सौजन्य- मनोहर कहानियां

पिछले साल कोरोना त्रासदी से सबक लेते हुए दुनिया के अधिकांश देशों ने इस बीमारी से भविष्य में निपटने के पुख्ता इंतजाम कर लिए थे. लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सबक लेने के बजाए विभिन्न राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों में अपनी पार्टी को जिताने की योजनाएं बनाते रहे. इस से लोगों के मन में एक ही सवाल उठ रहा है कि कोरोना की दूसरी लहर में बरती गई उन की उदासीनता उन की किसी योजना का हिस्सा तो नहीं है…

इस साल कोरोना की दूसरी लहर ने पूरे देश में कहर ढहाया. मरीजों को न दवाएं मिलीं न ही अस्पताल में बैड. चिकित्सा उपकरण भी नसीब नहीं हुए. इलाज नहीं मिलने से मरीज तड़प कर दम तोड़ते रहे. लाशों की कतारें लग गईं. कोरोना काल का यह संकट आजादी के बाद का सब से भयावह था.

21वीं सदी के इस सब से भयावह संकट काल में इस साल मार्चअप्रैल के महीने में जब देश में कोरोना वायरस अपना फन फैला रहा था, तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा नीत सरकार 5 राज्यों के विधानसभा चुनावों में सत्ता हासिल करने की कोशिशों में जुटी थी. मोदीजी का सब से बड़ा सपना पश्चिम बंगाल में भगवा झंडा फहराने का था. इस के लिए प्रधानमंत्री के अलावा गृहमंत्री अमित शाह और तमाम दूसरे प्रमुख नेता बंगाल में डेरा डाल कर रैलियां और चुनावी सभाएं कर रहे थे.

कोरोना का वायरस फलफूल रहा था. लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस महामारी का भयानक रूप नजर नहीं आ रहा था. इस का नतीजा यह हुआ कि जिम्मेदार नौकरशाही भी लापरवाह हो गई. सरकारी और निजी अस्पतालों में मरीजों की भीड़ बढ़ती जा रही थी. मरीजों की जान बचाने के संसाधन कम पड़ते गए. हालात यह हो गए कि अस्पतालों में मरीजों के लिए बैड ही नहीं मिल रहे थे. आईसीयू बैड, वेंटिलेटर और औक्सीजन तो दूर की बात थी. मरीज अस्पतालों के बाहर और फर्श पर भी दम तोड़ रहे थे.

मोदी सरकार इस भयावह दौर में राजनीति करती रही. प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी चुनावी रैलियां तब रोकीं, जब बंगाल में चौथे चरण के मतदान हो रहे थे. केवल पांचवें चरण के मतदान बाकी थे. इस बीच पूरे देश में हालात बेकाबू हो चुके थे. विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्री केंद्र सरकार से चिकित्सा संसाधनों की गुहार लगाते रहे, लेकिन केंद्र सरकार को यह सुनने की फुरसत ही नहीं थी.

देश में इस बीच सांसों के सौदागरों की नई फौज खड़ी हो गई. कोरोना मरीजों के लिए जीवनरक्षक समझे जाने वाले रेमडेसिविर इंजेक्शनों और औक्सीजन सिलेंडरों की कालाबाजारी शुरू हो गई. संकट के दौर में धंधेबाजों ने पैसा कमाने के नएनए तरीके खोज निकाले. मरीजों के परिजनों से जालसाजी और धोखाधड़ी होती रही. लोगों ने नकली इंजेक्शन बनाने की फैक्ट्रियां लगा लीं. कोरोना से बचाव के काम आने वाली पीपीई किट, सैनेटाइजर, मास्क और ग्लव्ज भी निम्न गुणवत्ता के आ गए.

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कोरोना मरीजों के लिए औक्सीजन मिलनी मुश्किल हो गई. देशभर में औक्सीजन वितरण का जिम्मा मोदी सरकार ने अपने हाथ में ले लिया. औक्सीजन बांटने में भी राजनीति की गई. भाजपाशासित राज्यों को जरूरत से ज्यादा औक्सीजन आवंटित की जाती रही और कांग्रेस व दूसरे दलों के शासन वाले राज्यों से भेदभाव किया जाता रहा. इस का नतीजा यह हुआ कि औक्सीजन का संकट पैदा होने से मरीजों की जानें जाती रहीं.

वैक्सीन पर चली राजनीति

वैक्सीन को लेकर अभी तक राजनीति चल रही है. 45 साल से अधिक उम्र के लोगों के लिए केंद्र सरकार ने इस साल की शुरुआत में राज्यों को टीका देने की हामी भर ली, लेकिन राज्यों को पर्याप्त टीका ही नहीं मिला. लोगों की जान बचाने के लिए 18 साल से अधिक उम्र के लोगों को भी टीके लगाने का फैसला केंद्र सरकार ने ले लिया, लेकिन केंद्र सरकार ने इन टीकों के खर्च की जिम्मेदारी राज्य सरकारों पर डाल दी.

हजारों करोड़ रुपए का बोझ बढ़ने से राज्य सरकारों की आर्थिक हालत पतली होने लगी है. खास बात यह रही कि देश की जनता से टैक्स के रूप में वसूले गए पैसों से वैक्सीनेशन हो रहा है और सर्टिफिकेट पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की फोटो लगी हुई है.

अफसोस की बात यह भी रही कि मोदीजी ने अपनी दोस्ती निभाने और अपना नाम चमकाने और वाहवाही लूटने के लिए भारत के लोगों के हिस्से की वैक्सीन दूसरे देशों को भेज दी. लेकिन जब देश में त्राहित्राहि होने लगी तो सरकार को दूसरे देशों से मदद लेने के लिए मजबूर होना पड़ा. अब पूरे देश में टीके का टोटा हो रहा है. लोगों को समय पर टीका नहीं लगने से कोरोना का खतरा कम नहीं हो रहा है.

अभी कोरोना की तीसरी लहर की चेतावनी दी जा रही है. अगर तीसरी लहर आई, तो बच्चों पर इस का सब से ज्यादा असर होने की आशंका जताई जा रही है. इस बीच, मई के पहले सप्ताह से उत्तर प्रदेश में गंगा और यमुना सहित दूसरी नदियों के तटों पर सैकड़ों की संख्या में लाशें मिलने लगीं. इन लाशों को देख कर ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि कोरोना से दम तोड़ने वालों की लाशें जमीन में दफन कर दी गई या नदियों में बहा दी गई.

पिछले साल कोरोना से पहली बार भारत सहित पूरी दुनिया के लोगों का परिचय हुआ. कोरोना की इस पहली लहर को उस समय लौकडाउन कर के कुछ हद तक काबू कर लिया गया. हालांकि इस से देश की जनता के आर्थिक हालात बिगड़ गए.

ये हालात ठीक होते, इस से पहले ही कोरोना की दूसरी लहर आ गई. इस बीच, एक साल के दौरान मोदी सरकार ने कोई सबक नहीं लिया. चिकित्सा संसाधन नहीं बढ़ाए गए. इस बार मोदी सरकार लापरवाह बनी रही. इस का नतीजा सब के सामने है.

इस से ज्यादा अफसोस की बात क्या होगी कि केंद्र सरकार का मंत्री सोशल मीडिया पर अपने रिश्तेदार के लिए किसी अस्पताल में बैड दिलाने की गुहार करता रहा. मंत्रियों और सांसदों के कहने पर भी अस्पतालों में मरीजों को बैड नहीं मिले. मोदी सरकार कोरोना पर काबू पाने के लिए अब कुएं खोदने की तैयारी कर रही है, लेकिन अब क्या फायदा, चिडि़या तो खेत चुग चुकी. क्योंकि देश में हजारोंलाखों लोग अपने परिजनों को खो चुके.

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कोरोना संकट के बीच, मई के महीने में ब्लैक फंगस के मामले एकाएक बढ़ गए. इस ने लोगों की चिंता और बढ़ा दी थी. महामारी के दौर में सामने आई केंद्र सरकार की लापरवाही को ले कर पूरी दुनिया में भारत की किरकिरी होने लगी थी. और तो और मोदी के कट्टर समर्थक भी विरोध में उतर आए थे.

लुटेरे हो गए सक्रिय

खतरा अभी टला नहीं था. लुटेरों के रूप में सामने आए सांसों के सौदागरों ने ऐसी लूटखसोट शुरू कर दी, जिन से लोग भी परेशान हो गए. दिल्ली से जयपुर तक और लखनऊ से अहमदाबाद तक, सभी जगह इन सौदागरों ने कोरोना मरीजों से ठगी के नएनए हथकंडे अपनाए थे.

दिल्ली में कोरोना के नाम पर सब से ज्यादा ठगी की वारदातें हुईं. देश का आम आदमी सोचता है कि दिल्ली में बड़ेबड़े और नामी अस्पताल हैं. इन में अच्छा इलाज होता होगा, लेकिन कोरोना काल में हालात बिलकुल उलट रहे. सरकारी अस्पतालों में तो सामान्य मरीजों को छोडि़ए, मंत्रियों और अफसरों को भी कोरोना मरीजों के लिए बैड नहीं मिले, अस्पतालों में सुविधाओं की बातें तो दूर रहीं.

अस्पताल वालों के अलावा ठगों और जालसाजों ने कोरोना से जूझ रहे मरीजों के परिवार वालों से पैसे ठगने के नए से नए तरीके निकाल लिए थे. मरीजों के लिए जरूरी उपकरणों की कालाबाजारी करने वालों ने लोगों को जम कर लूटा.

दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने अप्रैल के आखिरी सप्ताह में नकली रेमडेसिविर इंजेक्शन बनाने वाली एक फैक्ट्री पकड़ी. यह फैक्ट्री उत्तराखंड के कोटद्वार में चल रही थी. इसे सील कर दिया गया. इस मामले में एक महिला सहित 7 लोगों को गिरफ्तार किया गया. इन से बड़ी संख्या में नकली रेमडेसिविर इंजेक्शन की भरी और खाली शीशियां, पैकिंग मशीन, पैकिंग मटीरियल, स्कौर्पियो गाड़ी सहित दूसरे वाहन जब्त किए गए.

इस फैक्ट्री का पता भी मुश्किल से चला. कोरोना संक्रमण के बढ़ते प्रकोप के बीच अप्रैल में जब जीवन रक्षक दवा के तौर पर रेमडेसिविर इंजेक्शन की मांग पूरे देश में तेजी से बढ़ी, तो इस की कालाबाजारी की सूचनाएं पुलिस को मिलने लगी थीं.

क्राइम ब्रांच की टीम ने महरौली बदरपुर रोड पर स्थित संगम विहार से 23 अप्रैल को 2 लोगों मोहम्मद शोएब खान और मोहन कुमार झा को पकड़ा. इन के पास कुछ इंजेक्शन मिले. इन से पता चला कि बड़े शहरों में ये इंजेक्शन 40 से 50 हजार रुपए तक में बेचे जा रहे हैं.

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दिल्ली पुलिस ने की गिरफ्तारियां

इन से पूछताछ के आधार पर 25 अप्रैल को यमुना विहार से मनीष गोयल और पुष्कर चंदरकांत को पकड़ा गया. इन से पता चलने पर एक इवेंट मैनेजर साधना शर्मा को गिरफ्तार किया. इन तीनों से भी बड़ी संख्या में ये इंजेक्शन बरामद हुए. फिर 27 अप्रैल को हरिद्वार से वतन कुमार सैनी को पकड़ा. वतन बीफार्मा और एमबीए डिग्रीधारी है. उस के घर से पैकिंग मशीन, खाली शीशियां, पैकिंग मटीरियल आदि सामान मिला. वतन कुमार से पूछताछ के बाद रुड़की से आदित्य गौतम को गिरफ्तार किया गया.

कौमर्स ग्रैजुएट आदित्य गौतम फार्मेसी से जुड़ा काम करता है. उस ने हजारों की संख्या में बायोटिक इंजेक्शन की शीशियां खरीदीं. इन इंजेक्शनों की शीशियों पर कोटद्वार की फैक्ट्री में रेमडेसिविर के लेबल लगवाए.

पुलिस ने उस की निशानदेही पर एक मशीन, लेबल तैयार करने के काम लिया कंप्यूटर और नकली इंजेक्शन की शीशियां बरामद कीं. इन लोगों ने बाकायदा अपना नेटवर्क बना रखा था, जिस के जरिए ये जरूरतमंदों से मोटी रकम ले कर उन्हें नकली रेमडेसिविर इंजेक्शन देते थे.

इसी तरह दिल्ली पुलिस ने औक्सीजन कंसंट्रेटर की कालाबाजारी का बड़ा मामला पकड़ा. दक्षिणी जिला पुलिस ने मई के पहले सप्ताह में लोधी कालोनी के सेंट्रल मार्केट में एक रेस्तरां बार ‘नेगे एंड जू बार’ में छापा मार कर 32 औक्सीजन कंसंट्रेटर के बौक्स बरामद किए. एक बौक्स में थर्मल स्कैनर और एन-95 मास्क मिले. पुलिस ने वहां से 4 लोगों रेस्तरां के मैनेजर हितेश के अलावा सतीश सेठी, विक्रांत और गौरव खन्ना को पकड़ा.

मगरमच्छों तक पहुंची पुलिस

इन से पूछताछ के आधार पर छतरपुर के मांडी गांव स्थित खुल्लर फार्महाउस में एक गोदाम पर छापा मारा. यहां से 398 औक्सीजन कंसंट्रेटर बरामद हुए. पूरे देश में कोरोना मारामारी के बीच पकड़े गए करीब 4 करोड़ रुपए कीमत के ये औक्सीजन कंसंट्रेटर कालाबाजारी से बेचे जा रहे थे.

पूछताछ में पता चला कि इस रेस्टोरेंट का मालिक नवनीत कालरा है. कालरा दिल्ली का प्रसिद्ध व्यवसाई है. पेज थ्री सोसायटी से जुड़े रहने वाले दलाल के कई फिल्मी सितारों और क्रिकेटरों से अच्छे संबंध हैं. वह होटल खान चाचा, नेगे एंड जू बार, टाउनहाल रेस्ट्रो बार, मिस्टर चाऊ के अलावा दयाल आप्टिकल्स से जुड़ा हुआ है.

वह इन रेस्टोरेंट की आड़ में औक्सीजन कंसंट्रेटर की कालाबाजारी कर रहा था. गिरफ्तार आरोपियों से पूछताछ के आधार पर पुलिस ने कालरा के खान मार्केट के मशहूर रेस्टोरेंट ‘खान चाचा’ से 96 कंसंट्रेटर और बरामद किए. पता चला कि कालरा ने ये कंसंट्रेटर लंदन में रहने वाले अपने दोस्त गगन दुग्गल की कंपनी मैट्रिक्स सेल्युलर के संपर्कों की मदद से यूरोप और चीन से मंगवाए थे. गिरफ्तार गौरव खन्ना गगन की कंपनी का सीईओ और चार्टर्ड अकाउंटेंट है.

कोरोना का कहर शुरू होने और मांग बढ़ने पर कालरा ने बड़ी संख्या में कंसंट्रेटर बेच भी दिए थे. पुलिस ने कालरा की तलाश में उस के ठिकानों पर छापे मारे, लेकिन सेंट्रल मार्केट में छापे की सूचना मिलने के बाद ही वह 2 लग्जरी गाडि़यों से परिवार के कुछ लोगों के साथ फरार हो गया.

पुलिस ने उस की तलाश में दिल्ली और उत्तर प्रदेश के अलावा उत्तराखंड में भी छापे मारे. कोई सुराग नहीं मिलने पर पुलिस ने कालरा के खिलाफ लुकआउट नोटिस जारी कर दिया.

पुलिस को आशंका थी कि कालरा विदेश भाग सकता है. इस बीच, कालरा ने गिरफ्तारी से बचने के लिए दिल्ली की एक अदालत में अग्रिम जमानत की अरजी लगा दी. यह अरजी खारिज हो गई. बाद में दिल्ली हाईकोर्ट ने भी कालरा की गिरफ्तारी पर रोक लगाने से इनकार कर दिया. बाद में कालरा को 17 मई, 2021 को दिल्ली पुलिस ने गुड़गांव से गिरफ्तार कर लिया.

विदेशी महिला भी हुई गिरफ्तार

दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने ही देश भर में औक्सीजन सिलेंडर के नाम पर लोगों से धोखाधड़ी करने वाले मेवाती गिरोह के इमरान को राजस्थान के भरतपुर जिले से गिरफ्तार किया

यूं तो दिल्ली पुलिस ने कोरोना काल में लोगों से दवाओं और इंजेक्शन के नाम पर धोखाधड़ी करने और कालाबाजारी के मामलों में सैकड़ों लोगों को गिरफ्तार किया है. खास बात यह है कि इस में महामारी के इस दौर में अमानवीय बन कर मुनाफाखोरी करने में विदेशी भी पीछे नहीं रहे.

दिल्ली की शाहबाद डेयरी थाना पुलिस ने कैमरून की रहने वाली एक विदेशी महिला अश्विनगवा अशेलय अजेंबुह को गिरफ्तार किया. वह इंजेक्शन देने के पर दरजनों लोगों से लाखों रुपए की ठगी कर चुकी थी. पुलिस ने उस के दरजन भर बैंक खाते भी सीज करा दिए. दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने 16 मई, 2021 को 2 विदेशी जालसाज चीका बैनेट और जोनाथन को गिरफ्तार किया. इन में एक नाइजीरिया और दूसरा घाना का रहने वाला है. इन्होंने देश भर में करीब एक हजार लोगों से कोरोना की दवा और औक्सीजन के नाम पर 2 करोड़ रुपए की ठगी की थी. इन से 22 मोबाइल फोन, 165 सिमकार्ड, 5 लैपटौप और बड़ी मात्रा में डेबिट कार्ड बरामद हुए. इन के करीब 20 बैंक खाते भी मिले हैं.

दिल्ली पुलिस के सामने ऐसा ही एक और मामला भी आया, जिस में ठग ने देश भर में साइबर ठगी की यूनिवर्सिटी के नाम पर विख्यात झारखंड के जामताड़ा से ठगी की ट्रेनिंग ली थी.

कोरोना संकट में औक्सीजन सिलेंडर दिलाने के नाम पर ठगी करने वाले गिरोह के 4 बदमाशों को पुलिस ने गिरफ्तार किया. इन में यूपी के फर्रुखाबाद का रहने वाला रितिक, गुरुग्राम निवासी योगेश सिंह, मोहम्मद आरजू और रवीश शामिल थे. इन से 4 मोबाइल, 16 सिमकार्ड, एक लैपटौप, 2 बाइक, एक स्कूटर और कुछ दस्तावेज बरामद किए गए.

इस गिरोह ने देश भर के लोगों से औनलाइन ठगी की वारदात की. दिल्ली में संत नगर, करोलबाग निवासी एक शख्स ने इन के खिलाफ करोलबाग में मुकदमा दर्ज कराया था. इस में रवीश ने जामताड़ा से साइबर ठगी की ट्रेनिंग ली थी.

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