लेखक- वीरेंद्र कुमार खत्री

कोरोना की दूसरी लहर इतनी ज्यादा खतरनाक साबित हुई कि इनसान तो मरे ही, साथ ही नजदीकी रिश्ते भी मरते दिखे. बिहार में कई ऐसी मौतें हुईं, जिन में मृतक के परिवार के लोगों ने अंतिम संस्कार करने की पहल नहीं की.

पटना समपतचक कछुआरा पंचायत की एक घटना है. कोरोना की भेंट चढ़े पिता की लाश के पास मां को छोड़ कर बेटा और बहू फरार हो गए. मुखिया प्रतिनिधि को इस की जानकारी हुई, तो उन्होंने एंबुलैंस बुलाई और लाश को अंतिम संस्कार के लिए भेजा.

नालंदा स्थानीय बाजार के थाना मोड़ के पास चलतेचलते एक बुजुर्ग की मौत हो गई. बुजुर्ग की बेटी साथ में थी, पर वह वहां से भाग गई. लोगों ने इस की सूचना पुलिस को दी.

इसी तरह औरंगाबाद में पतिपत्नी की कोरोना ने जान ले ली. उन के बेटे व परिजनों ने लाश को हाथ लगाने से भी इनकार कर दिया. इस की जानकारी रैडक्रौस के चेयरमैन को मिली, तो उन्होंने अपने निजी खर्च से एंबुलैंस और  2 लोगों को तैयार कर लाश को श्मशान घाट भिजवाया व दाह संस्कार कराया.

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फुलवारीशरीफ थाना के जानीपुर नगवां डेर के रहने वाले 20 साल के एक नौजवान की मौत हो गई. मौत के बाद घर के एक कमरे में 12 घंटे तक उस की लाश पड़ी रही. कोरोना की आशंका को ले कर किसी ने अंतिम संस्कार करने की पहल नहीं की.

स्थानीय विधायक को सूचना दी गई, तो उन्होंने मृतक के घर पहुंच कर हालात की जानकारी ली. उन्होंने जिला प्रशासन को सूचना दे कर एंबुलैंस मंगा कर लाश को अंतिम संस्कार के लिए भेजा.

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