डर के साए में अवाम

केंद्र सरकार की मनमरजी से लागू हुई नीतियों, संशोधनों और नए कानूनों ने माली मोरचे पर सब से ज्यादा कमर कामधंधा करने वालों की तोड़ी है. अनुच्छेद 370 हो, नोटबंदी हो, जीएसटी हो, या फिर ताजा नागरिकता संशोधन कानून ने देशभर में कामधंधों को सिरे से तबाह कर दिया है.

उत्तर प्रदेश के गोसाईंगंज इलाके में नागरिकता संशोधन कानून से उपजे दंगे के बाद अघोषित कर्फ्यू ने चूड़ी उद्योग व उस से जुड़े गोदामों व ट्रांसपोर्ट कंपनियों में काम कर रहे हजारों मजदूरों के सामने दो जून की रोटी का संकट खड़ा कर दिया है.

तनाव के चलते शहर के अलगअलग हिस्सों में चलने वाले चूड़ी गोदाम बंद हैं. चूड़ी उद्योग से जुड़े काम ठप होने के चलते नगर के ट्रांसपोर्टर भी हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं.

नगर क्षेत्र की सीमा में 50-60 चूड़ी कारखाने हैं. इन कारखानों में दिहाड़ी पर काम करने वाले मजदूरों की तादाद 40,000 से ज्यादा है. 8-8 घंटे की

3 शिफ्टों में 300 से 500 रुपए वाले दिहाड़ी मजदूरों के घरों में चूल्हे की तपिश पैसे की कमी के चलते ठंडी पड़ चुकी है.

बेनूर पर्यटन का बाजार

उत्तराखंड जैसे राज्य की माली तरक्की बहुत हद तक पर्यटन पर टिकी है. मसूरी, नैनीताल जैसे कई शहर इस समय पर्यटकों की राह देखते हैं. इस समय की आमदनी अगले कुछ महीनों के लिए राहत ले कर आती है. लेकिन इस समय नैनीताल के लोग नागरिकता संशोधन कानून रद्द करने की मांग कर रहे हैं.  झील किनारे यह बैनर फहराया जा रहा है कि ‘वे तुम्हें हिंदुमुसलिम बताएंगे, लेकिन तुम भारतीय होने पर अड़े रहना’.

नैनीताल में कई संगठनों के अलावा हर धर्म और वर्ग से जुड़े शहर के आम लोगों ने मौन जुलूस निकाला. सीएए और एनआरसी के विरोध में इस जुलूस में शामिल लोगों ने मल्लीताल पंत पार्क में संविधान की शपथ ली और तल्लीताल में गांधीजी की मूर्ति के पास ‘भारत माता की जय’ के नारों के साथ जुलूस पूरा हुआ.

ये भी पढ़ें- महाराष्ट्र राजनीति में हो सकता है गठबंधन का नया ‘सूर्योदय’, राज ठाकरे ने बदला झंडा और चिन्ह

इस बारे में नैनीताल होटल एसोसिएशन के अध्यक्ष दिनेश शाह कहते हैं, ‘‘नए कानून से हमारे कारोबार पर बहुत बुरा असर पड़ा है. हमारे लिए दिसंबरजनवरी माह का महीना कारोबार के लिहाज से अमूमन काफी अच्छा रहता है. लेकिन रामपुर में लोग सड़कों पर हैं. हल्द्वानी में लोग अपनी नागरिकता बचाने के लिए प्रदर्शन कर रहे हैं. नैनीताल आने के सभी रास्तों पर विरोध प्रदर्शन चल रहा है, तो इस का असर बुरा पड़ रहा है.

‘‘होटलों की बुकिंग कैंसिल हो रही हैं. जो होटल इस समय 80-90 फीसदी तक बुक रहते थे, उन की 30-35 फीसदी तक ही बुकिंग है.

‘‘रामनगर में जिम कौर्बेट टाइगर रिजर्व आने वाले पर्यटकों की संख्या भी प्रभावित हुई है. हरिद्वार आने वाले पर्यटक भी इस समय ठिठके हुए हैं.’’

टे्रडर्स ऐंड वैलफेयर एसोसिएशन के प्रैसिडैंट रजत अग्रवाल कहते हैं कि क्रिसमस और नए साल को देखते हुए इस बार अब तक कारोबार में 30-35 फीसदी तक की गिरावट देखी जा रही है.

रजत अग्रवाल आगे कहते हैं कि दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान जैसे राज्यों से ज्यादा पर्यटक आते हैं. उत्तराखंड आने के लिए सभी को उत्तर प्रदेश से हो कर आना पड़ता है. वहां अभी कई जगह धारा 144 लगी है. माहौल शांत नहीं है. दिसंबरजनवरी माह तक आमतौर पर मसूरी में अच्छा कारोबार चलता है, लेकिन अभी लोग सफर करने में खुद को असहज महसूस कर रहे हैं.

रजत अग्रवाल बताते हैं कि साल 2013 में केदारनाथ आपदा के समय पर्यटन के लिहाज से व्यापारियों को सब से ज्यादा नुकसान हुआ था. उस के बाद नोटबंदी ने सबकुछ ठप कर दिया था. उस समय व्यापारियों का कारोबार 50 फीसदी तक प्रभावित हुआ था. अब यह नया कानून आम आदमी की रोजीरोटी को प्रभावित कर रहा है.

नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 को ले कर देशवासियों में उपजे असंतोष को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ के अलावा कनाडा, यूनाइडेट किंगडम, सऊदी अरब, रूस, आस्ट्रेलिया और इजराइल ने अपने देशवासियों को सावधान किया है. खासतौर पर पूर्वोत्तर के राज्यों में जाने से बचने की सलाह दी है.

बेजार हर कारोबार

पहले नोटबंदी हुई, जीएसटी लागू हुई और फिर जम्मूकश्मीर में अनुच्छेद 370 रद्द होने के बाद बंद हुए व्यापार और अब नागरिकता संशोधन विधेयक ने उद्योगपतियों और व्यापारियों को बेजार कर दिया है. यूसीपीएम के चेयरमैन डीएस चावला कहते हैं कि इन दिनों जो नुकसान लुधियाना की इंडस्ट्री का हो रहा है, उस की भरपाई में बहुत समय लगेगा.

फोपासिया के अध्यक्ष बदिश जिंदल के मुताबिक, केंद्र की नीतियां और नएनए कानून माली रूप से हमें खोखला कर रहे हैं.

लुधियाना के कारोबारी हलकों में फैला सन्नाटा बहुतकुछ कहता है. जिन राज्यों में नागरिकता संशोधन विधेयक का पुरजोर विरोध हो रहा है, उन्हीं राज्यों के सड़क और रेल मार्ग लुधियाना के उद्योगों के लिए एक तरह से ‘कौरिडोर’ का काम करते हैं. उन राज्यों में तो माल की सप्लाई और कारोबार एकदम बंद है ही, भूटान, नेपाल और बंगलादेश वगैरह की सप्लाई भी पूरी तरह से ठप हो गई है. अमृतसर के भी लुधियाना सरीखे हालात हैं.

गौरतलब है कि पंजाब से असम, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, तेलंगाना, कर्नाटक, केरल के रास्ते भूटान व दूसरे नजदीकी देशों को सड़क और रेल मार्ग के जरीए हौजरी, कपड़ा, साइकिल और साइकिल पार्ट, मशीनरी टूल, नटबोल्ट, खराद, सिलाई मशीनें व सिलाई मशीनों के कलपुरजे व विभिन्न दूसरी किस्म के सामान भेजे जाते हैं. नागरिकता संशोधन विधेयक के विरोध में जारी आंदोलन का सब से ज्यादा असर इन में से कुछ राज्यों में हो रहा है. अब इन राज्यों के रास्तों से माल नहीं जा रहा.

लुधियाना के एक बड़े कारोबारी और सीसू के प्रधान उपकार सिंह आहूजा कहते हैं, ‘‘हमारे साथसाथ औद्योगिक संस्थानों में काम करने वाले मजदूर और कर्मचारी भी मुश्किल में हैं.’’

ये भी पढ़ें- विधानसभा चुनाव 2019: सरकार में हेमंत, रघुवर बेघर

अमृतसर के कपड़ा व्यापारी नंदलाल शर्मा भी इस बारे में ऐसा ही कुछ कहते हैं, ‘‘अमृतसर से कपड़ा, बडि़यां, अचार, मुरब्बे, पापड़ और मसाले भी दूसरे राज्यों और नेपाल, भूटान और बंगलादेश जाते हैं. सब जगह की सप्लाई फिलहाल रुकी हुई है और हम ने नया माल बनाना बंद कर दिया है. कारीगरों और ढुलाई का काम करने वाले मजदूरों को मजदूरी नहीं मिल रही. ज्यादातर ऐसे हैं, जो दिहाड़ी मजदूर के तौर पर काम करते हैं, लेकिन अब वे बेकार हैं.’’

एक मजदूर रोशनलाल ने बताया कि उस के घर की रोटी चलनी मुश्किल हो रही है. जून, 1984 में अमृतसर के व्यापारिक जगत में ऐसे हालात तब पैदा हुए थे, जब मजदूरों को रोटी के लाले पड़ गए थे और अब वैसा ही सबकुछ है.

लुधियाना की सिलाई मशीन डवलपमैंट क्लब के प्रधान जगबीर सिंह सोखी कहते हैं, ‘‘नागरिकता संशोधन विधेयक के बाद जिन राज्यों में तनाव है, वहां न तो हम जा पा रहे हैं और न हमारा माल. बैंक किस्तों के लिए दबाव बना रहे हैं. सम झ नहीं आ रहा कि बैंक के कर्ज की किस्त कैसे चुकाएं. नया माल जा नहीं रहा और पुराने माल की रकम की वापसी नहीं हो रही. इंटरनैट सेवाएं बंद होने से ट्रांजैक्शन भी रुक गई है.’’

अमृतसर के 80,000 से ज्यादा परिवार और व्यापारी भारतपाकिस्तान के बीच व्यापार बंद होने के चलते तगड़ी माली दिक्कतों से जूझ रहे हैं. 17 फरवरी के बाद अटारी आईसीसी के जरीए होने वाले कपड़े, सीमेंट, मसालों और मेवों का आनाजाना समूचे तौर पर बंद है.

सिर्फ आईसीपी पर ही 3,300 कुली, 2,000 सहायक, 550 क्लियरिंग एजेंट और 6,000 से ज्यादा ट्रांसपोर्टर काम करते थे. उन का धंधा अब छूट गया है. इस से बदहाली का अंदाजा लगाया जा सकता है.

सांसद गुरजीत सिंह ओंजला ने बताया कि वे भारतपाक ट्रेड ठप होने से बद से बदतर हुए हालात के मद्देनजर केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी से कई बार मिले, लेकिन सबकुछ जस का तस है.

कश्मीर में हरे हैं जख्म

‘‘बीते 4-5 महीने में मेरा तकरीबन 10 लाख रुपए का नुकसान हो चुका है. अपने काम को फिर से जिंदा करने के लिए मु झे श्रीनगर छोड़ कर जम्मू आना पड़ा है.’’

फोन पर अपनी परेशानी बयां करते हुए शारिक अहमद कुछ इस तरह बात की शुरुआत करते हैं. वे कहते हैं, ‘‘काम के सिलसिले में मु झे 8,000 रुपए का एक कमरा किराए पर लेना पड़ा है. नए ब्रौडबैंड कनैक्शन के 2,000 रुपए हर महीने देने होंगे. घर से दूर बाकी खर्चे भी ज्यादा करने होंगे.’’

पिछले एकडेढ़ महीने से शारिक अहमद जम्मू में हैं. वे श्रीनगर में टूर ऐंड टै्रवल से जुड़ी एक दुकान चलाते थे. नए शहर में नए तरीके से काम जोड़ने पर खर्च बढ़ेंगे. इस से ज्यादा चिंता उन्हें अपने बीवीबच्चों की है, जिन्हें श्रीनगर में ही छोड़ कर आना पड़ा.

5 अगस्त को अनुच्छेद 370 हटाए जाने के साथ ही भारत प्रशासित जम्मूकश्मीर में इंटरनैट सेवा को बंद कर दिया गया था. इस से कश्मीर घाटी के आम शहरियों के कामधंधे तकरीबन चौपट हो चुके हैं.

श्रीनगर के सानी हुसैन एक बुक स्टोर चलाते हैं. इंटरनैट सेवा बंद होने की वजह से नई किताबों के और्डर के लिए उन्हें हाल ही में दिल्ली जाना पड़ा. वे कहते हैं, ‘‘श्रीनगर से एक बार दिल्ली जाने का मतलब है 30,000 रुपए खर्च करना. किताबों के व्यापार में इतना तो मार्जिन भी नहीं बनता. 5 अगस्त से पहले किताबें लेने के लिए मु झे कभी दिल्ली नहीं जाना पड़ा था. मैं ने हमेशा ही इंटरनैट के जरीए किताबें और्डर कीं.’’

5 अगस्त, 2019 को जब अनुच्छेद 370 हटाए जाने की घोषणा हुई थी, तब इंटरनैट और दूरसंचार सेवाएं सब से पहले प्रभावित हुई थीं. इन के अलावा कसबों और गांवों तक में कर्फ्यू लगा दिया गया था. स्कूलकालेज बंद करा दिए गए थे. साथ ही, बंद हो गए थे सब छोटे व्यापार.

ये भी पढ़ें- पौलिटिकल राउंडअप : सरकारी सर्कुलर पर विवाद

हालांकि श्रीनगर में स्थानीय बाजार अब सामान्य हालात में लौट चुके हैं. पोस्टपेड मोबाइल और लैंडलाइन फोन सेवाएं शुरू हो चुकी हैं, लेकिन घाटी में इंटरनैट और प्रीपेड मोबाइल सेवा का शुरू होना अभी बाकी?है.

इसी मुद्दे पर उमर कहते हैं, ‘‘जब अनुच्छेद 370 पर फैसला होने वाला था तो मैं ने विदेश में रह रहे अपने रिश्तेदारों को सब से पहले सूचित किया. मैं ने उन्हें बताया कि मेरी वैबसाइट बंद होने वाली है. मेरे काम का एक बड़ा हिस्सा इंटरनैट पर आधारित है. औनलाइन और्डर वहीं से मिलते हैं.

‘‘तकरीबन डेढ़ महीने तक वैबसाइट बंद रही. बाद में हम ने दिल्ली में एक टीम रखी, जो वैबसाइट को चला सके. वैबसाइट बंद रहने के चलते इस सीजन में हमें 70 फीसदी का नुकसान हुआ है.’’

हिंदू राष्ट्र की राह पर

राम मंदिर बनाने का मामला हो या हिंदुत्व का मामला हो, अनुच्छेद 370 को हटाना हो, तीन तलाक या फिर नागरिकता संशोधन कानून, हर मामले में भाजपा का एकमात्र एजेंडा मुसलिमों के खिलाफ माहौल बना कर अपने परंपरागत हिंदू वोट बैंक को एकजुट करना रहा है. जामिया मिल्लिया इसलामिया यूनिवर्सिटी में पुलिस का कहर भी इसी बात को दिखाता है.

भाजपा में अटल बिहारी वाजपेयी, राजनाथ सिंह, सुषमा स्वराज, अरुण जेटली को उदारवादी हिंदुओं की श्रेणी में रख कर देखा जाता रहा है. लाल कृष्ण आडवाणी ने भाजपा में जो पौध तैयार की, वह कट्टर हिंदुत्व की राह पर चलने वाली?है.

राजनीति की गहरी सम झ रखने वाले लोग तभी सम झ गए थे, जब नरेंद्र मोदी ने राजनाथ सिंह को गृह मंत्री पद से हटा कर अपने पुराने सहयोगी अमित शाह को गृह मंत्री बनाया था कि अब वे दोनों मिल कर गुजरात का एजेंडा पूरे देश में लागू करेंगे.

जब देश में बेरोजगारी, भुखमरी, महंगाई और कानून व्यवस्था जैसे मुद्दे विकराल समस्या का रूप धारण कर चुके हैं, ऐसे समय में मोदी सरकार ने सारे मुद्दों को दरकिनार कर उन मुद्दों को प्राथमिकता के आधार पर लिया, जो सीधे मुसलिमों के खिलाफ जा कर हिंदुओं की हमदर्दी बटोरने वाले थे.

अनुच्छेद 370 हटाने के बाद गृह मंत्री अमित शाह की भाषा उन के भाषण में देखिए तो वह बारबार इस बात पर जोर दे रहे थे कि अनुच्छेद 370 के हटने पर विपक्ष कह रहा था कि देश में खून की नदियां बह जाएंगी, पर देश में तो एक पटाका भी नहीं फूटा है.

उन का मतलब साफ था कि उन्होंने विपक्ष के साथ ही देश के मुसलिमों को भी इतना डरा दिया है कि अब ये लोग कुछ भी करेंगे, तब भी कोई चूं नहीं करेगा.

दूसरी बार प्रचंड बहुमत में आने के बाद भले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सब को साथ ले कर चलने की बात कही हो, पर उन के दूसरे कार्यकाल में अब तक जो कुछ भी हुआ है, वह धर्म और जाति के आधार पर हुआ है. हकीकत यह है कि मोदी सरकार में ऐसा कुछ नहीं हुआ, जिस से देश का मुसलिम अपने को सुरक्षित महसूस करता.

यदि देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह का थोड़ा सा भी ध्यान देश के भाईचारे पर होता तो सुप्रीम कोर्ट के राम मंदिर बनने का रास्ता पक्का करने के तुरंत बाद ये लोग नागरिकता संशोधन कानून न लाते.

प्रचंड बहुमत का मतलब यह नहीं है कि आप कुछ भी कर सकते हैं. इन लोगों ने यह सोच लिया था कि अब उन के डर से पूरा देश सहमा हुआ है, जो मरजी आए करो. देश और संविधान की रक्षा के लिए बनाए गए तंत्रों विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका और मीडिया उन की कठपुतली की तरह काम कर रहे हैं.

ये भी पढ़ें- जेल से बाहर आने के बाद एस आर दारापुरी का बयान, “मुझे शारीरिक नहीं मानसिक प्रताड़ना मिली”

जो लोग नागरिकता संशोधन कानून के विरोध को मुसलिमों का विरोध सम झ रहे हैं, वे गलती कर रहे हैं. इस आंदोलन में मुसलिम के साथ ही दलित, पिछड़ों के अलावा सवर्ण समाज के लोग भी हैं.

दरअसल, यह वह गुस्सा है, जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दमनकारी नीतियों के चलते दबा रखा था. इस आंदोलन में बड़ी संख्या में बेरोजगार नौजवान हैं, जो मोदी सरकार से नाराज हैं.

पूर्वोत्तर के बाद जब यह आंदोलन दिल्ली और उत्तर प्रदेश में आया तो इस ने विकराल रूप ले लिया. उत्तर प्रदेश में 21 लोगों के मरने की खबर है.

एनआरसी के समर्थन में पूरे देश में भाजपा व कुछ चरमपंथी संगठन रैलियां कर रहे हैं और प्रधानमंत्री व गृह मंत्री कह रहे हैं कि एनआरसी पर अभी तक कोई चर्चा तक नहीं हुई है. खैर, जो भी हो,  झूठ पकड़ा गया और देश ने सच जान लिया है.

यह तानाशाहों की सोच होती?है कि भारी विरोध को देखते हैं, तो अपने फैसलों पर दोबारा सोचने के बजाय  झूठ बोलने लग जाते हैं, क्योंकि उन को हार कभी स्वीकार नहीं होती है.

जरमनी बरबाद हो रहा था, मगर हिटलर ने गलती स्वीकार नहीं की और आखिर में चाहे खुदकुशी करनी पड़ी हो, मगर हारा हुआ मानना उस को स्वीकार नहीं था.

विपक्ष में राजनीतिक दलों के बजाय इस बार नागरिक समाज है और नागरिक समाज विपक्ष की भूमिका में खड़ा होता है तो भागने की लाख कोशिश कर लो, मगर असली मुद्दे पर ला कर खड़ा कर ही दिया जाएगा.

एनआरसी से खौफजदा भारत के नागरिक

नैशनल रजिस्टर सिटीजन्स औफ इंडिया यानी एनआरसी में नाम दर्ज कराने का मामला शहर से ले कर गांव तक में खासकर मुसलिम समुदाय में चर्चा का मुद्दा बना हुआ है. बहुत से लोगों को इस बारे में कोई जानकारी नहीं है और वे दहशत में जी रहे हैं. कुछ भक्तगण इस मुगालते में हैं कि ऐसे मुसलिम, जिन के पास कोई दस्तावेज नहीं हैं, वे पाकिस्तान और बंगलादेश वापस चले जाएंगे. उन की सारी जमीनजायदाद हम लोगों की हो जाएगी.

इस मामले पर शाक्य बीरेंद्र मौर्य का कहना है, ‘‘भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने ‘डिस्कवरी औफ इंडिया’ में, राहुल सांस्कृत्यायन ने ‘वोल्गा से गंगा’ किताब में और तकरीबन सभी इतिहासकारों ने इस बात को माना है कि आर्य बाहर से आए हुए हैं और विदेशी हैं.

‘‘21 मई, 2001 को ‘टाइम्स औफ इंडिया’ ने छापा था कि आर्य विदेशी हैं. इन का डीएनए भारत के लोगों से मैच नहीं करता. इन सब पुरानी बातों के अलावा साल 2018 में एक नए शोध में फिर इस बात की तसदीक हुई कि आर्य बाहर से आए हुए हैं और विदेशी हैं.

ये बी पढ़ें- फेरी वालों के फरेब में फंसते लोग

‘‘जब इतिहासकारों और मैडिकल साइंस ने मान लिया है कि आर्य विदेशी हैं, तो इन विदेशी नागरिकों का एक बार फिर से डीएनए टैस्ट करा कर इन की पहचान कर, इन को वापस भेजना चाहिए. लेकिन दुख की बात है कि भारत में जो खुद विदेशी हैं, आज वही नागरिकता का सर्टिफिकेट बांट रहे हैं और मूल भारतीय सांसद, विधायक, नेता, मंत्री सब मूकदर्शक बने तमाशा देख रहे हैं. अगर आप में जरा भी राष्ट्र प्रेम बचा है तो लोकसभा और राज्यसभा में इस मुद्दे को बेबाकी से उठाइए.’’

प्रोफैसर अलखदेव प्रसाद अचल ने बताया, ‘‘केंद्र सरकार द्वारा 10 करोड़ मुसलिम, ओबीसी, एससी व एसटी की नागरिकता खत्म करने की कोशिश की जा रही है. कैसे आप की नागरिकता खत्म होगी?

‘‘भारत सरकार सभी नागरिकों से कोई ऐसा दस्तावेज देने के लिए कह रही है, जिस से यह साबित हो पाए कि वह या उस के पूर्वज साल 1971 से पहले भी भारत के नागरिक थे. बहुत से लोगों के पास ऐसा कोई दस्तावेज नहीं होगा, जिसे वे सुबूत के रूप में पेश कर सकें.

‘‘जो लोग साल 1971 के बाद पैदा हुए, जिन के पास जमीनजायदाद होगी या जो लोग जमींदार थे, जिन की जमीनजायदाद है और खतियान में उन का नाम है, वे तो खतियान निकाल कर साबित कर देंगे कि 1971 से पहले भी भारत के नागरिक थे. लेकिन बाकी लोग ऐसा साबित नहीं कर पाएंगे.

‘‘भारत के नागरिकों में कितने लोग थे, जिन के पास साल 1971 से पहले जमीनजायदाद रही होगी? चंद लोगों के पास 1971 से पहले जमीन रही होगी. सिर्फ मुसलिम ही नहीं, बल्कि पिछडे़ और दलितों का एक बहुत बड़़ा तबका नागरिकता के इस पचड़े में फंस जाएगा.

‘‘फिर लोग अपनी नागरिकता बचाने के लिए सरकारी दफ्तरों में दौड़ लगाएंगे और भाजपा के नेताओं और कार्यकर्ताओं के सामने हाथपैर जोड़ेंगे कि उन की नागरिकता बचा ली जाए.’’

क्या कहता है संविधान

अनुच्छेद 5 में बताया गया है कि जब संविधान लागू हो रहा था तो उस वक्त कौन भारत का नागरिक होगा. अगर कोई व्यक्ति भारत में जनमा था या जिस के माता या पिता में से कोई भारत में जनमा हो या अगर कोई व्यक्ति संविधान लागू होने से पहले कम से कम 5 सालों तक भारत में रहा हो, तो वह भारत का नागरिक होगा.

नागरिकता का अधिकार

ऐसे में भ्रष्ट कर्मचारियों और अधिकारियों को एक अधिकार दिया गया है कि कैसे वे लोगों से पैसा ले कर उन की नागरिकता बहाल कर दें. सिटीजनशिप ऐक्ट के जरीए उन्हें यह अधिकार दिया गया है.

सिटीजनशिप ऐक्ट में कोई भी व्यक्ति यह घोषणा कर सकता है कि वह नागरिक नहीं तो कम से कम इस देश में शरणार्थी तो है ही. फिर वह सिटीजनशिप ऐक्ट में नागरिकता के लिए आवेदन करे. अगर वह मुसलिम नहीं है तो उस के आवेदन पर विचार किया जाएगा.

ये भी पढ़ें- पर्यावरण पर भारी धर्म की दुकानदारी

अगर वह मुसलिम है तो आवेदन ही नहीं कर सकता, क्योंकि सिटीजनशिप ऐक्ट में ही ऐसा प्रावधान है कि इस ऐक्ट में सिर्फ उन्हीं लोगों को नागरिकता दी जाएगी, जो मुसलिम नहीं हैं.

मुसलिमों को नागरिकता देने का प्रावधान इस कानून के अंदर है ही नहीं, इसलिए मुसलिम आवेदन भी नहीं कर पाएंगे.

फिर करोड़ों दलित, आदिवासी और पिछडे़, जिन के पास 1971 से पहले कोई जमीनजायदाद नहीं थी, उन्हें शरणार्थी घोषित कर के सालों तक उन से वोट

देने का अधिकार भी छीन लिया जाएगा और उन से नागरिकता के लिए सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगवाए जाएंगे.

यह चक्कर कब खत्म होगा, कोई नहीं जानता, क्योंकि राजीव गांधी के जमाने से ऐसा ही चक्कर असम के लोग लगा रहे हैं और पिछले 30 सालों से उन्हें वोट देने के अधिकार को बहाल रखने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है.

आने वाले 50 साल तक भूमिहीन याद रखें, इस में वे सभी भूमिहीन लोग शामिल हैं, जो 1971 से पहले भूमिहीन थे, 1971 के बाद जिन लोगों ने आरक्षण पा कर नौकरी पाई और खुद जमीन खरीद ली, वे भी नागरिकता नहीं बचा पाएंगे क्योंकि आप को 1971 से पहले के दस्तावेज देने हैं. पिछडे़ व दलित और पूरे देश में अपनी नागरिकता को बहाल रखने के लिए संघर्ष करते दिख जाएंगे. इस का क्या नतीजा होगा, पता नहीं.

लेकिन उन के संघर्ष करने का एक अवसर होगा. मुसलिमों के पास ऐसा कोई अवसर नहीं होगा, क्योंकि कानून में ही उन को आवेदन देने का प्रावधान नहीं है. जिन मुसलिमों के पास साल 1971 से पहले अपने पूर्वज को इस देश का नागरिक साबित करने का कोई कानूनी दस्तावेज नहीं होगा, उन्हें बंगलादेशी घोषित कर दिया जाएगा. उन के सारे नागरिक अधिकार खत्म हो जाएंगे.

हो सकता है कि उन के घर या मकान भी सरकार कब्जे में ले ले. ऐसे शरणार्थी लोगों को शहर के किसी बाहरी इलाकों में डिटैंशन सैंटर में डाल दिया जाएगा.

इस बारे में इंजीनियर सनाउल्लाह अहमद रिजवी ने बताया, ‘‘आप कल्पना नहीं कर सकते कि लोगों को कितनी परेशानी होगी. कितने शर्म की बात है कि आजादी के 70 साल बाद भी इस देश के नागरिक को अपनी नागरिकता साबित करनी होगी.

‘‘जिन लोगों के भूकंप, बाढ़ जैसी आपदा में कागजात खो गए हों या किसी गरीब ने अपनी अशिक्षा के चलते न बना पाया हो, उन बेचारों पर तो जैसे मुसीबत आ पड़ी है.’’

ऐसा नहीं है कि सिर्फ मुसलिम नहीं फंसेंगे. असम में 19 लाख में से तकरीबन 14 लाख गैरमुसलिम हैं, वैसे ही हर राज्य में उन की तादाद होगी.

तब गैरमुसलिमों यानी हिंदुओं को भी नहीं बख्शा जाएगा और रिफ्यूजी मान कर ही कुछ दिनों की नागरिकता दी जाएगी. वे बैठेबिठाए पाकिस्तानी या बंगलादेशी बन जाएंगे.

जरा गौर से सोचिए और इस काले कानून का विरोध कीजिए. खुश होने वाले यह जान लें कि जिस तरह गांधी, मौलाना, आजाद, भगत सिंह व अशफाकउल्ला ने मिल कर हमें अंगरेजों से नजात दी थी, वैसे ही आज उन के ख्वाबों के साथ जीने वाले लोग मिल कर इन काले अंगरेजों से भी लडें़गे और इस काले कानून का विरोध करेंगे.

ये भी पढ़ें- “अंधविश्वास” ने ली, रुद्र की ‘नरबलि’

बरसों से अपने गांवकसबों से दूर रह रहे लोग, सारे कामकाज छोड़ कर जमीनों की मिल्कीयत और रिहाइश के सुबूत लेने के लिए अपने गांव आएंगे. इन में से कुछ यह भी पाएंगे कि कर्मचारी व पदाधिकारी से सांठगांठ कर के लोगों ने अपनी जमीनों की मिल्कीयत बदल दी है. बहुत बडे़ पैमाने पर संपत्ति के विवाद सामने आएंगे. खूनखराबा भी होगा.

ये दस्तावेज नहीं होंगे मान्य

आधारकार्ड, पैनकार्ड दिखा कर आप अपनी नागरिकता साबित नहीं कर सकते. जो लोग यह सम झ रहे हैं कि एनआरसी के तहत सरकारी कर्मचारी घरघर आ कर कागज देखेंगे, यह उन की भूल होगी. नागरिकता साबित करने की जिम्मेदारी व्यक्ति की होगी, सरकार की नहीं.

इस के अलावा जिस की नागरिकता जहां से सिद्ध होगी, उसे शायद हफ्तों वहीं रहना पडे़. करोड़ों लोगों के कामकाज छोड़ कर लाइनों में लगे होने से देश का उद्योग, व्यापार और वाणिज्य, और सरकारी व गैरसरकारी दफ्तरों का कामकाज चौपट होगा.

अर्थव्यवस्था पर असर

सनक में लाई गई नोटबंदी और जल्दबाजी में लाए गए जीएसटी ने पहले ही हमारी अर्थव्यवस्था को तबाह कर दिया है. इक्कादुक्का घुसपैठियों को छोड़ कर ज्यादातर वास्तविक लोग ही परेशान होंगे.

श्रीलंकाई, नेपाली और भूटानी मूल के लोग, जो सदियों से इस पार से उस पार आतेजाते रहते हैं, उन्हें अपनी नागरिकता साबित करने में दांतों से पसीना आ जाएगा. जाहिर है, इन में से ज्यादातर हिंदू ही होंगे.

लगातार अपनी जगह बदलते रहने वाले आदिवासी समुदायों को तो सब से ज्यादा दिक्कत आने वाली है. वन क्षेत्रों में रहने वाले लाखों लोग वहां की जमीनों पर वन अधिकार कानून के तहत अपना कब्जा तो साबित कर नहीं पा रहे हैं, वे नागरिकता कैसे साबित करेंगे?

दूरदराज के पहाड़ी और वन क्षेत्रों में रहने वाले लोग, घुमंतू समुदाय, अकेले रहने वाले बुजुर्ग, अनाथ बच्चे, बेसहारा महिलाएं, विकलांग लोग और भी इस से प्रभावित होंगे.

इन की होगी चांदी

इस में कुछ लोगों की पौबारह भी हो जाएगी. बडे़ पैमाने पर दलाल सामने आएंगे. जिस के पास पैसा है, वे नागरिक न होने के बावजूद फर्जी कागजात बनवा लेंगे. नागरिकता साबित करने में सब से ज्यादा दिक्कत उसे होगी, जो सब से ज्यादा लाचार, बेबस और वंचित हैं.

बनेंगे डिटैंशन सैंटर

जो लोग अपनी नागरिकता साबित नहीं कर पाएंगे, उन के लिए देश में डिटैंशन सैंटर बनेंगे. इन सैंटरों को बनाने और चलाने में देश के अरबों रुपए खर्च होंगे. कुलमिला कर देश के सामाजिक, माली और राजनीतिक हालात बेहाल हो जाएंगे.

अगर फार्म भरना पड़े

वकील शेख बिलाल का सु झाव है कि सभी नियमों को बहुत ही ध्यान से पढे़ं और भरें. धर्म वाले कौलम में मुसलिम लोग इसलाम लिखें और समुदाय के कौलम में मुसलिम लिखें. इस के अलावा कुछ भी न जोडें़ जैसे शिया, सुन्नी, अहले, हदीस, तबलीग जमात वगैरह.

किसी फार्म को भरने के लिए किसी अधिकारी या कर्मचारी पर निर्भर न रहें. अपना नाम और बाकी डिटेल खुद ही भरें या अपने किसी भरोसेमंद आदमी से भरवाएं. फार्म भरने में बाल पैन का इस्तेमाल करें.

देश के सभी राज्यों में एनआरसी और कैब का विरोध स्वयंसेवी संगठन, शिक्षण संस्थान और राजनीतिक दल के साथसाथ लेखक व पत्रकार अपनेअपने लैवल से कर रहे हैं. इसे सुप्रीम कोर्ट में भी ले जाया गया है.

ये भी पढ़ें- दम तोड़ते परिवार

देश को आजाद कराने वाले और अपनी जान की कुरबानी देने वाले स्वतंत्रता सेनानी व हमारे राष्ट्रभक्तों ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि जिस आजादी के लिए हम सबकुछ लुटा रहे हैं, उस भारत का हश्र यह होगा. गुजरात में नर्मदा किनारे सैकड़ों मीटर की ऊंचाईर् पर खड़े पटेल अपने सपनों के भारत को बरबाद होता देखते रहेंगे.

असम में जो दस्तावेज मांगे गए

असम में रहने वाले लोगों को सूची ए में दिए गए कागजातों में से कोई एक जमा करना था. इस के अलावा दूसरी सूची बी में दिए गए दस्तावेजों में से किसी एक को दिखाना था जो कि आप अपने पूर्वजों से संबंध साबित कर सकें. लिस्ट ए में मांगे गए मुख्य दस्तावेजों की लिस्ट :

द्य 1951 का एनआरसी. द्य 24 मार्च, 1971 तक का मतदाता सूची में नाम. द्य जमीन का मालिकाना हक या किराएदार होने का रिकौर्ड. द्य नागरिकता प्रमाणपत्र. द्य स्थायी निवास प्रमाणपत्र. द्य शरणार्थी पंजीकरण प्रमाणपत्र. द्य किसी भी सरकारी प्राधिकरण द्वारा जारी लाइसैंस. द्य सरकार या सरकारी उपक्रम के तहत सेवा या नियुक्ति को प्रमाणित करने वाला दस्तावेज. द्य राज्य के ऐजूकेशन बोर्ड या यूनिवर्सिटी के प्रमाणपत्र. द्य अदालत के आदेश रिकौर्ड. द्य पासपोर्ट. द्य कोई भी एलआईसी पौलिसी.

ऊपर दिए गए दस्तावेजों में से कोई भी 24 मार्च, 1971 के बाद का नहीं होना चाहिए. अगर किसी नागरिक के पास इस तारीख से पहले का दस्तावेज नहीं है तो 24 मार्च, 1971 से पहले का अपने पिता या दादा के डौक्यूमैंट्स में से किसी एक को दिखा कर अपने पिता या दादा से संबंध स्थापित करना होगा. दी गई लिस्ट बी डौक्यूमैंट में उन का नाम होना चाहिए:

जन्म प्रमाणपत्र, भूमि दस्तावेज, बोर्ड या विश्वविद्यालय का प्रमाणपत्र, बैंक, एलआईसी, पोस्ट औफिस रिकौर्ड, राशनकार्ड, मतदाता सूची में नाम.

कानूनी रूप से स्वीकार किए गए दूसरे दस्तावेज-

शादीशुदा औरतों के केस में सर्कल अधिकारी या ग्राम पंचायत सचिव द्वारा दिया गया प्रमाणपत्र.

नागरिकता कानून पर बवाल

देशभर में नागरिकता कानून में बदलाव से अफरातफरी मची हुई है. जिस वाहवाही की उम्मीद भाजपा सरकार और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कर रहा था वह उसे नहीं मिली. यह बदलाव मोटेतौर पर पाकिस्तान, बंगलादेश व अफगानिस्तान से आने वाले हिंदुओं को जल्दी भारतीय नागरिकता देने के लिए बना है. इन देशों में से बंगलादेश से तो हिंदू आते रहे हैं, पर पाकिस्तान व अफगानिस्तान से नाम के हिंदू ही आते हैं.

भाजपा और भगवा जमात की सोच यह है कि पाकिस्तान का नाम ले कर कभी भी इस देश के लोगों को बहकाया जा सकता है. पिछली मई में हुए चुनावों में भाजपा ने पाकिस्तान को ही निशाने पर ले कर बात की थी. बहुत पहले जब इंदिरा गांधी का सिंहासन डोल रहा था तब भी उन्होंने विदेशी हाथ का शिगूफा छेड़ा था और जिस का मतलब रूस या अमेरिका से नहीं था, पाकिस्तान से था. भाजपा कांग्रेस की कारगुजारियों की एकएक बात बारीकी से बहसों में दोहराती है पर वह विदेशी हाथ की बात नहीं करती, क्योंकि आज भाजपा यही कर रही है.

इस बदले कानून में पाकिस्तान का नाम इसलिए लिया गया है कि भारत का हिंदू वोटर भुलावे में रहे कि पाकिस्तान में तो हिंदुओं के साथ बहुत बुरा हो रहा है और वे डर कर भाग रहे हैं. बदले में वे अगर भारतीय मुसलमान को सताएं तो यह सही ही होगा.

ये भी पढ़ें- शिव सेना का बड़ा कदम

इस प्रकार का बदले का रिवाज सदियों से चल रहा है. दूर कहीं एक धर्म या जाति के लोग कुछ करें तो उन का बदला कहीं और निर्दोषों से लेना आदमी की आदत है. पुलिस ऐसे मामलों में कुछ नहीं करती, यह तो सब जानते हैं. इस नए कानून से एक हथियार हरेक आम हिंदू को मिल जाएगा कि वह किसी भी मुसलिम से पूछताछ करने लगे चाहे उस के पास कोई अधिकार है या नहीं.

बजाय मिल कर देश को बनाने के अब बिगाड़ने का काम शुरू हो गया है. देश की माली हालत खराब है. मंदी छाई हुई है. बिक्री घट रही है. बेरोजगारी बढ़ रही है. प्याज तक के दाम आसमान पर हैं, पर भाजपा सरकार को कश्मीर के अनुच्छेद 370, तीन तलाक, नागरिकता बिल, राम मंदिर, नमामि गंगे, चारधाम, पटेल की मूर्ति, रामसीता की मूर्ति की पड़ी है.

देश में अगर कुछ हो रहा है तो पुलिस का काम हो रहा है. कश्मीर हो, उत्तरपूर्व हो, असम हो, हैदराबाद में रेप हो, उन्नाव में लड़कियों को जलाना हो, पुलिस ही पुलिस दिखती है. लगता है 2014 और 2019 में हम ने देश को बनाने के लिए नहीं देश में पुलिस राज बनाने के लिए सरकारें चुनी थीं.

नागरिकता कानून में बदलाव आम आदमी को देगा कुछ नहीं, पर बेबात का संकट पैदा कर देगा. लंगड़े देश की बैसाखी भी तोड़ दी जाएगी. इस में सब से ज्यादा बुरा उन किसानों, कारखानों के मजदूरों, हुनरमंद लोगों, औरतों, जवानों का होगा जिन का कल काला होता नजर आ रहा है.

अगर कुछ चमचमा रहा है तो मंदिर और पूजापाठ का धंधा जिस में पहले केवल ऊंची जातियों के लोग जाते थे, अब पिछड़े भी धकेले जा रहे हैं और वे कामधंधे छोड़ कर अलख जगाने में लग गए हैं.

मौत के मकान

दिल्ली में 45 लोगों की संकरी गलियों में बने गोदाम में आग लगने से हुई मौतों पर भाजपा और आम आदमी पार्टी एकदूसरे और गोदाम मालिकों पर चाहे जितनी तूतूमैंमैं कर लें, सच बात तो यह है कि दिल्ली जैसे शहर में मजदूरों के पास रहने की जगह तक नहीं है और उन्हें संकरी गलियों में एकदूसरे से सटे बने मकानों में जो गोदामों की तरह इस्तेमाल होते हैं, काम भी करना होता है और वहीं रहना होता है. उन की जिंदगी उन चूजों की तरह होती है जिन्हें आटोरिकशा, ट्रकों पर लाद कर पौल्ट्री फार्म से मंडियों तक ले जाया जाता है और फिर काट कर खा लिया जाता है.

ये भी पढ़ें- गहरी पैठ

ये 45 लोग खुशी से उस गोदाम में नहीं रह रहे थे जहां पुरानी वायरिंग थी, सामान भरा था, छोटी खिड़कियां थीं, गुसलखाने नहीं थे, शौच का आधाअधूरा इंतजाम था. वे गुलाम भी नहीं थे. वे आजाद थे और कहीं भी जा कर रह सकते थे, पर उन्हें वहीं रहना पसंद आया, क्योंकि छत भी मिली, रोजाना रोजगार भी मिला.

देश की 60-70 फीसदी आबादी ऐसे ही रह रही है. यह वह आबादी है जो अछूत नहीं मानी जाती. ये लोग पिछड़ी जातियों के हैं पर आज 70 साल की आजादी और 150 साल की तकनीक के बावजूद जंगलों में रहने की तरह रह रहे हैं. अब जंगल शहरी हो गए हैं, उतने ही खतरनाक.

उत्तर प्रदेश, बिहार,  झारखंड से आए ये मजदूर 500-600 रुपए की दिहाड़ी में इतना ही कमा पाते हैं कि अपना पेट भर सकें, कुछ पैसे घर भेज सकें. ये अपना मकान अलग ले कर नहीं रह सकते, आनेजाने का खर्च नहीं उठा सकते. देशभर में फैली भयंकर बेकारी, गरीबी, अनपढ़ता उन की इस हालत के लिए जिम्मेदार है, न भाजपा की नगरनिगम, न अरविंद केजरीवाल की दिल्ली सरकार, न पिछली सरकारें और न ही गोदाम मालिक.

इन गोदामनुमा फैक्टरियों में स्कूल बैग बनते हैं, कपड़े सिले जाते हैं, बाइडिंग होती है और यहीं कारीगर सो जाते हैं, क्योंकि वे कहीं और नहीं जा सकते.

यह देश के कर्णधारों की गलती है, अमीर और गरीब के बीच की बढ़ती खाई का नतीजा है. पूरे देश ने किस्मत और पूजापाठ पर भरोसा करना शुरू कर दिया है, मेहनत पर नहीं. देश में गरीबों को, पिछड़ों को, दलितों को पिछले जन्मों के पापों का फल भोगना माना जा रहा है. घंटेघडि़याल बजाए जा रहे हैं, मंदिर बनाए जा रहे हैं, फैक्टरियां नहीं, मजदूरों के घर नहीं. इसलिए जो हुआ होना ही था, होता रहेगा, क्योंकि देश की हालत दिन ब दिन बिगड़ रही है, सुधर नहीं रही.

ये भी पढ़ें- नोटबंदी, GST और 370 हटानाः दिखने में अच्छे, असल में बेहद नुकसानदेह

CAA PROTEST: यूपी में हिंसा के बाद 15 लोगों की मौत, 705 गिरफ्तारियां

नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ पूरे देश में प्रदर्शन हो रहे हैं. बिल पास होने तक ये विद्रोह पूर्वोत्तर के राज्यों तक ही सीमित था लेकिन अब ये देश के ज्यादातर हिस्सों तक फैल चुका है. यूपी में प्रदर्शन के दौरान हिंसा भड़क गई. फिलहाल अभी तक यूपी के कई हिस्सों में रह रहकर प्रदर्शनकारी सड़कों पर आ रहे हैं और पत्थरबाजी और आगजनी कर रहे हैं. पुलिस प्रदर्शनकारियों पर आंसू गैस, वाटर कैनन जैसे प्रसाधनों से उन पर काबू पाने की कोशिश कर रही है.

शनिवार को कानपुर और रामपुर में प्रदर्शन के दौरान हिंसा हुई. रामपुर में एक की मौत हो गई. अन्य जिलों में छिटपुट घटनाएं हुई हैं. पुलिस के मुताबिक, विरोध प्रदर्शनों के दौरान 11 दिनों के भीतर 15 लोगों की मौत हो चुकी है और 705 गिरफ्तारियां हुई हैं. 4500 लोगों को हिरासत में लिया गया है.

आईजी (कानून व्यवस्था) प्रवीण कुमार के मुताबिक, “पूरे प्रदेश में 10 दिसंबर से लेकर अब तक 15 लोगों की मौत हो चुकी है. हिंसक प्रदर्शनों में 705 लोगों को गिरफ्तार किया गया है. पूरे प्रदेश में धारा 144 लागू कर दी गई है. पुलिस हिंसाग्रस्त इलाकों में गश्त कर लोगों से शांति की अपील कर रही है.”

ये भी पढ़ें- दिल्ली-लखनऊ में हिंसा आर या पार, नागरिकता बिल पर बवाल

अब लखनऊ समेत 15 जिलों में सोमवार को दोपहर 12 बजे तक इंटरनेट और एसएमएस सेवाएं बंद रहेंगी. मोबाइल ऑपरेटरों को गृहमंत्रालय द्वारा आदेश भेजे गए हैं. लखनऊ, सहारनपुर, मेरठ, शामली, मुजफरनगर, गाजियाबाद, बरेली, मऊ, संभल, आजमगढ़, आगरा, कानपुर, उन्नाव, मुरादाबाद, प्रयागराज शामिल हैं. अन्य जिलों में भी इंटरनेट सेवाओं को बंद रखने का फैसला वहां के डीएम पर छोड़ा गया है. स्थितियों के अनुरूप वे इंटरनेट सेवाओं को प्रतिबंधित कर सकते हैं.

शनिवार को लखनऊ की एसएसपी कलानिधि नैथानी ने बताया कि 250 लोगों को वीडियो फुटेज और फोटो के आधार पर चिन्हित कर गिरफ्तार किया गया है. फिलहाल बाकी प्रदर्शनकारियों की गिरफ्तारी के लिए छापेमारी जारी है. प्रशासन इन आरोपियों पर रासुका और संपत्ति कुर्क की कार्रवाई करने की तैयारी कर रही है. उधर, गोरखपुर में भी प्रदर्शन करने वालों के पुलिस ने स्केच जारी किए हैं.

शनिवार को कानपुर के यतीमखाना में जुलूस निकाला गया. इस दौरान बड़ी संख्या में मौजूद प्रदर्शनकारियों ने पुलिस पर पथराव करना शुरू कर दिया. भीड़ को तितर-बितर करने के लिए पुलिस ने लाठीचार्ज किया और आंसूगैस के गोले भी छोड़े. इसमें 12 से अधिक लोगों के घायल होने की जानकारी है. सपा के विधायक अमिताभ बाजपेयी और हाजी इरफान सोलंकी को पुलिस ने हिरासत में ले लिया। स्थिति अभी भी तनावपूर्ण है.

दूसरी ओर, रामपुर में प्रशासन से अनुमति नहीं मिलने के बावजूद उलेमाओं ने बंद बुलाया. इस दौरान हजारों की संख्या में लोग सड़कों पर उतर आए. ईदगाह के पास इकट्ठा होकर लोगों ने जमकर नारेबाजी की. इस दौरान पुलिस और भीड़ बिल्कुल आमने-सामने हो गई. प्रदर्शन के दौरान भीड़ इतनी उग्र हो गई कि उन्होंने एक पुलिस जीप के अलावा अन्य आठ वाहनों को भी फूंक दिया. इस हिंसक प्रदर्शन के दौरान एक शख्स की मौत हो गई. हालांकि पुलिस ने कहा कि उसकी ओर से कोई फायरिंग नहीं की गई है.

ये भी पढ़ें- कुछ ऐसे भी लोग करते हैं टिक-टौक से अपनें सपनों को पूरा

मुजफ्फरनगर के सिविल लाइन थाना क्षेत्र में कच्ची सड़क के पास केवलपुरी में शनिवार को दो पक्षों के बीच पथराव हो गया. इस दौरान दोनों पक्षों की ओर से पथराव किया गया. मौके पर पहुंची पुलिस ने लाठियां फटकारकर भीड़ को वहां से खदेड़ दिया. तनाव को देखते हुए भारी पुलिस बल तैनात कर दिया गया है.

झांसी में सोशल मीडिया की निगरानी कर रही पुलिस ने भड़काऊ पोस्ट वाली 300 फेसबुक आईडी ब्लॉक कर दी हैं. इन सभी के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराने की तैयारी हो रही है. शिया धर्मगुरु मौलाना कल्बे जव्वाद ने बढ़ती हिंसा के बीच कहा कि मुस्लिम समुदाय से शांति बनाए रखने की अपील की. पुलिस महानिदेशक सिंह ने कहा, “हिंसा करने वालों को छोड़ा नहीं जाएगा. हिंसा में बाहरी लोगों का हाथ है। उन्होंने आशंका जताई कि हिंसा में एनजीओ और राजनीतिक लोग भी शामिल हो सकते हैं. हम किसी निर्दोष को गिरफ्तार नहीं करेंगे.”

प्रदेश के पुलिस महानिदेशक (कानून-व्यवस्था) प्रवीण कुमार ने बताया कि सीएए को लेकर लगातार हो रहे विरोध प्रदर्शनों में अब तक 124 एफआईआर दर्ज की गई हैं. 705 लोगों को गिरफ्तार किया गया है, वहीं 4500 लोगों के खिलाफ निरोधात्मक कार्रवाई करते हुए उन्हें हिरासत में लिया गया है. आईजी के अनुसार, पथराव व आगजनी में 263 पुलिसकर्मी घायल हुए हैं, जिनमें से 57 पुलिसकर्मियों को गोली लगी है.

ये भी पढ़ें- खजाने के चक्कर में खोदे जा रहे किले

उन्होंने बताया कि हिंसा में 15 लोगों की मौत हुई है. पुलिस ने 405 खोखे बरामद किए हैं. आईजी ने बताया कि सोशल मीडिया के 14,101 आपत्तिजनक पोस्टों से संबंधित लोगों पर कार्रवाई की गई है. इनमें ट्विटर की 5965, फेसबुक की 7995 और यूट्यूब की 142 आपत्तिजनक पोस्टों पर कार्रवाई की गई है. इनमें 63 एफआईआर दर्ज की गई हैं, वहीं 102 आरोपियों को गिरफ्तार किया गया है, इनके अलावा 442 पाबंद किए गए हैं.

दिल्ली-लखनऊ में हिंसा आर या पार, नागरिकता बिल पर बवाल

19 दिसंबर की दिल्ली की ये हिंसा इस कदर हावी हो गई की लोगों के मन में डर बैठ गया है. लोग सहम रहे हैं. इस हिंसा को देख तो यही लगता है कि अब तो दिल्ली की ये हिंसा आर या पार. इस बढ़ती हिंसा के चलते राजधानी दिल्ली के कई मेट्रो स्टेशनों को बंद कर दिया गया, जिसमें भगवान दास, राजीव चौक, जनपथ, वसंत विहार, कल्याण मार्ग, मंडी हाउस, खान मार्केट, जामा मस्जिद, लालकिला, जामिया विश्वनिद्याल, मुनेरका, केंदीय सचिवालय, चांदनी चौक, शाहीन बाग ये सभी मेट्रो स्टेशन शामिल हैं.

लालकिला, मंडीहाउस समेत कई ऐसे क्षेत्र हैं दिल्ली के जहां पर गुरुवार को उग्र प्रदर्शनकारियों ने जमकर प्रदर्शन किया और जगह-जगह पर आगजनी, तोड़-फोड़, पथराव किया. पुलिस को लाठीचार्ज करनी पड़ी, आंसू गैस के गोले छोड़ने पड़े. ऐसा नहीं है कि इस प्रदर्शन में केवल विद्यार्थी ही शामिल हैं बल्कि इस प्रदर्शन में कुछ नेता भी शामिल हैं. एक खबर के मुताबिक इतिहासकार रामचंद्र गुहा और बेंगलुरु में लेखक को तो हिरासत में लिया गया साथ ही योगेंद्र यादब, उमर खालिद, संदीप दीक्षित, प्रशांत भूषण जैसे नेताओं को भी हिरासत में लिया गया है.

ये भी पढ़ें- खजाने के चक्कर में खोदे जा रहे किले

ये सभी नेता नागरिकता बिल को लेकर प्रदर्शन में शामिल है. मेंट्रो के बंद हो जाने के कारण आम जनता को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि लोगों को आवाजाही में दिक्कत हो रही है. तो वहीं राजधानी दिल्ली में कई इलाकों में इंटरनेट सेवा को बंद कर दिया गया है. कालिंग सुविधा बंद कर दी गई है. एसएमएस तक पर रोक लगा दी गई है. ताकि हिंसा को बढ़ावा देने वाले कुछ अवांछनीय तत्व जो अफवाह फैला रहे हैं वो ना कर पाए. लेकिन ऐसे में उन क्षेत्रों में रहने वाले आम नागरिक परेशानी उठा रहे हैं.

इधर जामिया हिंसा को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार और दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी करते हुए कहा कि इस पर सुनवाई अब चार फरवरी को होगी. एक तरफ दिल्ली में हिंसा उग्र होती जा रही है तो वहीं गुरुवार को लखनऊ में भी हिंसा अपने चरम पर पहुंचता हुआ नजर आया. वहां पर प्रदर्शनकारी उग्र हो उठे. कई जगहों पर आगजनी, तोड़फोड़ की और इतना ही नहीं बल्कि एक ओबी वैन को भी आग के हवाले कर दिया. कई गाड़ियां धू-धू कर जल रहीं थीं. रोडवेज बसों को भी आग के हवाले कर दिया.

हालांकि जहां पर भी सार्वजनिक संपत्ति को प्रदर्शनकारियों ने नुकसान पहुंचाया है वहां पर सरकार कड़ा रुख अपनाते हुए सख्त कार्रवाई करेगी. लखनऊ के डालीगंज इलाके में हिंसा इतनी तेज हो गई कि पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा और आंसू गैस के गोले भी छोड़ने पड़ें. लखनऊ के इस बढ़ती हिंसा में दो पुलिस बूथ भी बुरी तरह से स्वाहा हो गए. वहां पर इस हिंसा को देखते हुए इंटरनेट सेवा बंद कर दी गई है. हिंसा का ये रूप देखकर कोई भी सहम जाए. पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच में झड़प हो रही है. प्रदर्शनकारी पुलिस पर उल्टा पथराव करने पर उतारू हैं.

ये भी पढ़ें- अंधविश्वास: भक्ति या हुड़दंग

खबरों के मुताबिक सीएम योगी इन सब को देख कर काफी नाराज हैं और उन्होंने कहा है कि जो भी उपद्रवी सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचा रहे हैं उन सबको भरपाई करनी पड़ेगी. उन पर सख्त कार्रवाई की जाएगी. उन्होंने इस इस पर चर्चा के लिए बैठक भी बुलाई है. शायद ये कड़ा रुख अपनाना जरूरी भी था. उपद्रवीयों ने लखनऊ में 20 बाइक, 10 कार व 3 बसों को जला डाला. इतना ही नहीं कवर करने के लिए गई चार मीडियो ओबी वैन को भी आग के हवाले कर दिया. ना जाने ये प्रदर्शन कब तक चलेगा और देश को कब तक इसमें जलना पड़ेगा, क्योंकि ये हिंसा बहुत ही खतरनाक रूप लेती जा रही है और सरकार को जल्द ही इस पर कोई कड़ा रूख अपनाना होगा.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें