बेहतर पाचन तंत्र के लिए क्या खाएं क्या नहीं

पाचनतंत्र भोजन को इस तरह पचाता है कि शरीर इस से मिले पोषक पदार्थों और ऐनर्जी का इस्तेमाल कर सके. कुछ प्रकार के भोजन जैसे सब्जियां और योगहर्ट पचाने में आसान होते हैं. विशेष प्रकार का भोजन खाने या अचानक आहार में कुछ बदलाव लाने से पाचनतंत्र की समस्याएं हो सकती हैं.

अगर पाचनतंत्र ठीक से काम न कर सके तो अपच की समस्या हो सकती है. अपच आमतौर पर कई बीमारियों और जीवनशैली से जुड़े कारकों की वजह से होता है. पाचन संबंधी समस्याओं के लक्षण आमतौर पर कुछ इस तरह होते हैं:

पेट फूलना, गैस, कब्ज, डायरिया, उलटी, सीने में जलन.

आहार जो पाचनतंत्र के लिए फायदेमंद है

छिलके वाली सब्जियां: सब्जियों में फाइबर भरपूर मात्रा में होता है, जो पाचन के लिए महत्त्वपूर्ण है. फाइबर कब्ज दूर करने में मदद करता है. सब्जियों के छिलके में फाइबर बहुत अधिक होता है, इसलिए अच्छा होगा कि आप पूरी सब्जी खाएं. आलू, बींस और फलियों के छिलकों में फाइबर बहुत ज्यादा मात्रा में पाया जाता है.

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फल: फलों में फाइबर बहुत अधिक पाया जाता है. इन में विटामिन और मिनरल्स भी अधिक मात्रा में पाए जाते हैं जैसे विटामिन सी और पोटैशियम. उदाहरण के लिए सेब, संतरा और केला पाचन के लिए बेहद कारगर हैं.

साबूत अनाज से युक्त आहार: साबूत अनाज भी घुलनशील और अघुलनशील फाइबर का अच्छा स्रोत है. घुलनशील फाइबर बड़ी आंत में जैल जैसा पदार्थ बना लेता है, जिस से पेट भरा महसूस करते हैं और शरीर में ग्लूकोस का अवशोषण धीरेधीरे होता रहता है. अघुलनशील फाइबर कब्ज से बचाने में मदद करता है. फाइबर पाचनतंत्र में अच्छे बैक्टीरिया को पोषण भी देता है.

खूब तरल का सेवन करें: त्वचा को स्वस्थ रखने, इम्यूनिटी और ऊर्जा बढ़ाने के लिए शरीर को पानी की जरूरत होती है. पानी पाचन के लिए भी जरूरी है. जिस तरह हमारे पाचनतंत्र में अच्छे बैक्टीरिया को होना जरूरी है उसी तरह तरल भी बहुत अधिक महत्त्वपूर्ण है.

अदरक: अदरक पाचन की समस्याओं जैसे पेट फूलना में राहत देती है. सूखा अदरक पाउडर बेहतरीन मसाला है, जो भोजन को बेहतरीन स्वाद देता है. अदरक का इस्तेमाल चाय बनाने में भी किया जाता है. अच्छी गुणवत्ता का अदरक चुनें. चाय के लिए ताजा अदरक लें.

हलदी: हलदी आप की किचन में मौजूद ऐंटीइनफ्लैमेटरी और ऐंटीकैंसर मसाला है. इस में करक्युमिन पाया जाता है, जो पाचनतंत्र के भीतरी स्तर को सुरक्षित रखता है, अच्छे बैक्टीरिया को पनपने में मदद करता है और बोवल रोगों एवं कोलोरैक्टल कैंसर के उपचार में भी कारगर पाया गया है.

योगहर्ट: इस में प्रोबायोटिक्स होते हैं. ये लाइव बैक्टीरिया और यीस्ट हैं, जो पाचनतंत्र के लिए फायदेमंद होते हैं.

असंतृप्त वसा: इस तरह की वसा यानी फैट शरीर को विटामिनों के अवशोषण में मदद करते हैं. इन के साथ फाइबर पाचन को आसान बनाता है. पौधों से मिलने वाले तेल जैसे जैतून का तेल अनसैचुरेटेड फैट का अच्छा स्रोत है, लेकिन वसा का इस्तेमाल हमेशा ठीक मात्रा में करें. एक वयस्क को रोजाना अपने आहार में 2000 कैलोरी की जरूरत होती है, जिस में वसा की मात्रा 77 ग्राम से अधिक नहीं होनी चाहिए.

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क्या न खाएं

कुछ खाद्य एवं पेयपदार्थों के कारण पेट फूलना, सीने में जलन और डायरिया जैसी समस्याएं होती हैं. उदाहरण के लिए:

तेलीय/वसा युक्त आहार: तले और मसालेदार भोजन के सेवन से बचें, क्योंकि यह आप के पाचनतंत्र के लिए कई समस्याओं का कारण बन सकता है. ऐसे आहार को पचने में ज्यादा समय लगता है. इस कारण कब्ज, पेट फूलना या डायरिया जैसी समस्याएं होती हैं. तले खाद्यपदार्थों के सेवन से ऐसिडिटी और पेट फूलना जैसी समस्याएं होती हैं.

मसालेदार भोजन: मसालेदार भोजन पेट में दर्द या मलत्याग करते समय असहजता का कारण बन सकता है.

प्रोसैस्ड फूड: अगर आप को पाचन संबंधी समस्याएं हैं. प्रोसैस्ड खाद्यपदार्थों का सेवन न करें, इस तरह के आहार में फाइबर कम मात्रा में होता है, जबकि कृतिम चीनी, कृत्रिम रंग, नमक एवं प्रीजरर्वेटिव बहुत अधिक मात्रा में पाए जाते हैं, जो आप की पाचन संबंधी समस्याओं को और बदतर बना सकते हैं, साथ ही फाइबर न होने के कारण इस तरह के भोजन को पचाने के लिए शरीर के ज्यादा काम करना पड़ता है और यह कब्ज का कारण बन सकता है.

रिफाइंड चीनी, सफेद रिफाइंड चीनी इनफ्लैमेटरी कैमिकल बनाती है और पाचनतंत्र में डिसबायोसिस को बढ़ावा देती है. इस से पाचनतंत्र में बैक्टीरिया का संतुलन बिगड़ जाता है. इस तरह की चीनी हानिकर बैक्टीरिया को बढ़ावा देती है.

शराब: शराब के सेवन से डीहाइड्रेशन हो जाता है, जो कब्ज और पेट फूलने का कारण बन सकता है. यह पेट एवं पाचनतंत्र के लिए नुकसानदायक है और लिवर के मैटाबोलिज्म में बदलाव ला सकती है. शराब ऐसिडिक होती है, इसलिए स्टमक यानी आमाशय के भीतरी अस्तर को नुकसान पहुंचा सकती है.

कैफीन: कैफीन, चाय, कौफी, चौकलेट, सौफ्ट ड्रिंक, एनर्जी ड्रिंक, बेक्ड फूड, आईसक्रीम में पाया जाता है. यह पाचनतंत्र के मूवमैंट को तेज करता है, जिस से पेट जल्दी खाली हो जाता है. इस से पेट दर्द और डायरिया जैसी समस्याएं हो सकती हैं.

कार्बोनेटेड पेय: इन में मौजूद गैस पेट फूलना जैसी समस्याओं का कारण बन सकती है. इस का असर आमाशय के भीतरी स्तर पर भी पड़ता है. साथ ही इस तरह के पेयपदार्थों में चीनी बहुत अधिक मात्रा में पाई जाती है, जो पाचन की समस्याओं को और बढ़ा सकती है. कार्बोनेटेड पेय, शरीर में इलैक्ट्रोलाइट के संतुलन को बिगाड़ सकते हैं, जिस से शरीर डीहाइड्रेट हो सकता है.

पाचन को बेहतर बनाने के लिए अच्छी आदतें

चबाना: खाने को हमेशा अच्छी तरह चबा कर खाएं. आगे भोजन का पचना आसान हो जाता है, क्योंकि हारमोन इस पर बेहतर काम कर पाते हैं.

टेबल पर खाएं: खाते समय आप का ध्यान खाने पर हो, टेबल पर आराम से बैठ कर खाएं. खाते समय स्क्रीन के सामने न रहें.

रिलैक्स हो कर आराम से खाएं: अकसर हम काम की भागदौड़ में जल्दबाजी में खाते हैं, कभीकभी हम खाने का आनंद नहीं लेते. लेकिन जब हम रिलैक्स हो कर खाना खाते हैं, तो यह अच्छी तरह पचता है. अगर हम तनाव में होंगे, तो शरीर पचाने पर कम ध्यान देगा.

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सब के साथ मिल कर खाएं: इस से न केवल खाना पचाने में मदद मिलती है, बल्कि आपस में प्यार भी बढ़ता है और हम अपने वजन को भी नियंत्रित रख पाते हैं. परिवार में एकसाथ मिल कर खाना खाने से बच्चों और किशोरों को फायदा होता है. उन का आत्मविश्वास बढ़ता है, उग्र व्यवहार, खाने की समस्याओं, नशे की लत, अवसाद, आत्महत्या जैसे खयालों में कमी आती है.

 -डा. सुधा कंसल, रैसपिरेटरी स्पैश्यलिस्ट, इंद्रप्रस्थ अपोलो हौस्पिटल, दिल्ली.

चुगली की आदत बच्चों में न पनपने दें

Writer- किरण सिंह

यहां की बात वहां करना, किसी के पीठपीछे उस की बुराई करना, किसी को भलाबुरा कहना आदि चुगली करना है. बच्चों में अकसर चुगली की आदत एक बार पड़ जाती है तो फिर यह उम्रभर रहती है.

मनोवैज्ञानिकों के अनुसार, चुगली करना अपने दिल की भड़ास निकालने का एक माध्यम है  या यों कहें कि हीनभावना से ग्रस्त व्यक्ति चुगली कर के खुद को तुष्ट करने का प्रयास करता है. इसीलिए वह खुद में कमियां ढूंढ़ने के बजाय दूसरों की मीनमेख निकालने में अपनी ऊर्जा खपाता रहता है.

चुगलखोर व्यक्तियों की दोस्ती टिकाऊ नहीं होती

वैसे हम चुगलखोरों को लाख बुराभला कह लें लेकिन सच यह है कि निंदा रस में आनंद बहुत आता है. शायद यही वजह है कि अपेक्षाकृत चुगलखोरों के संबंध अधिक बनते हैं या यों कहें कि चुगलखोरों की दोस्ती जल्दी हो जाती है. लेकिन यह भी सही है कि उन की दोस्ती टिकाऊ नहीं होती क्योंकि वास्तविकता का पता लगने पर लोग चुगलखोरों से किनारा करने लगते हैं.

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बच्चों में चुगलखोरी

अकसर देखा गया है कि बच्चे जब  गलती करते हुए अभिभावकों द्वारा पकड़े जाते हैं और पैरेंट्स पूछते हैं कि कहां से सीखा, तो वे अपने को तत्काल बचाने के लिए अपने दोस्तों या फिर भाईबहनों का नाम ले लेते हैं जिस से पैरेंट्स का ध्यान उन पर से हट कर दूसरों पर चला जाता है. यहीं से चुगलखोरी की आदत लगने लगती है.

एक बार सोनू की मम्मी ने सोनू को पैसे चोरी करते हुए पकड़ लिया और फिर डांटडपट कर पूछने लगीं कि यह सब कहां से सीखा. सोनू ने तब अपना बचाव करने के लिए पड़ोस के दोस्त का नाम ले लिया. यह बात सोनू की मम्मी ने उस के दोस्त की मम्मी से कह दी. परिणामस्वरूप, सोनू के दोस्त ने सोनू को चुगलखोर कह कर उस से दोस्ती तोड़ ली और सोनू दुखी रहने लगा.

यहां पर सोनू की मम्मी को सोनू को यह सब किस ने सिखाया है, यह न पूछ कर चोरी के साइड इफैक्ट्स बता कर आगे से ऐसा न करने की सीख देनी चाहिए थी. साथ ही, यह भी बताना चाहिए था कि चुगली करना और चोरी करना दोनों ही गलत हैं.

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ऐसे बढ़ती है चुगली करने की प्रवृत्ति

कभीकभी  पैरेंट्स अनजाने में ही अपने बच्चों को आहत कर उन में चुगली करने की प्रवृत्ति को बढ़ावा देते हैं. दीपक के पापा हमेशा ही अपने बेटे दीपक की तुलना अपने दोस्त के बेटे कुणाल से करते हुए कुणाल की प्रशंसा कर दिया करते थे जिस से दीपक का कोमल सा बालमन आहत हो जाता था और वह कुणाल की तरह बनने की कोशिश करता था. जब उस की तरह बनने में नाकामयाब हो गया तो वह अपने पापा से कुणाल की  झूठीसच्ची चुगली करने लगा.

सो, मातापिता को बच्चों में छोटी उम्र से ही चुगली की आदत पनपने नहीं देनी है और उन्हें यह बताना है कि चुगली करना गलत है. बचपन से ही बच्चों में चुगली की आदत नहीं पनपेगी, तो बड़े हो कर भी वे खुद पर ध्यान देंगे बजाय किसी के प्रति कुंठित मन से चुगली करने के.

माता-पिता के लिए घर में करें ये बदलाव

पड़ोस में रहने वाले अभि और शीना के घर से कई दिनों से ठोकनेपीटने की आवाजें आ रही थीं. दोनों मल्टीनैशनल कंपनी में कार्यरत हैं. सुबह जा कर शाम को ही घर आ पाते हैं. पर अभी दोचार दिनों से दोनों घर पर ही थे. वे मजदूरों से घर में कुछ निर्माणकार्य करवा रहे थे.

मेरा मन नहीं माना तो एक दिन उन के घर पहुंच ही गई. देखा, पूरा घर अस्तव्यस्त था. शीना ने बड़ी मुश्किल से जगह बना कर मुझे बैठाया. मेरे पूछने पर वह बोली, ‘‘कल मेरे सासससुर आ रहे हैं. अभी तक तो वे दोनों स्वस्थ थे और अपने सभी काम खुद ही कर लेते थे पर अब पापाजी काफी बीमार रहने लगे हैं.

अभी तक हम 2 ही थे और इस घर में हमें कोई परेशानी नहीं थी. पर अब पापाजी की आवश्यकतानुसार हम घर में कुछ बदलाव करवा रहे हैं ताकि वे यहां बिना किसी परेशानी के आराम से रह सकें.

घर में जमीन पर बीचबीच में रखे फर्नीचर को शीना ने एक ओर कर दिया था. उन के कमरे से ले कर बाथरूम तक रैलिंग लगवा दी थी ताकि वे आराम से आजा सकें. इसी प्रकार के और भी बदलाव अभि व शीना ने अपने मातापिता की आयु की जरूरतों को देखते हुए करवा दिए थे.

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रजत कुछ दिनों से ब्रोकर के जरिए घर ढूंढ़ रहा था. 2 फ्लैट के मालिक होने के बावजूद रजत को प्रतिदिन ब्रोकर के साथ देख कर रमा हैरान थी. एक दिन जब उस ने रजत से पूछा तो वह बोला, ‘‘आंटी, मेरे दोनों फ्लैट दूसरी और तीसरी मंजिल पर हैं और दोनों ही सोसाइटीज में लिफ्ट नहीं है. अभी तक तो चल रहा था, क्योंकि मैं अपनी पत्नी और 2 बच्चों के साथ था. पर अब मेरी मां आने वाली हैं. 72 वर्षीया मेरी मां के दोनों घुटनों का औपरेशन हुआ है, इसलिए उन के लिए लिफ्ट या ग्राउंडफ्लोर का घर होना आवश्यक है.

10 वर्षों तक दुबई में प्रतिनियुक्ति के बाद अश्विन की जब भोपाल में पोस्ंिटग हुई तो उस ने अपने मातापिता के साथ ही रहने का फैसला लिया, ताकि वह अपने उम्रदराज हो चुके मातापिता की भलीभांति देखभाल कर सके. घर में एक माह रहने के बाद ही उसे समझ आ गया कि जिस घर में उस के मातापिता रह रहे हैं वह उन की उम्र के अनुकूल बिलकुल भी नहीं है. इसलिए, सर्वप्रथम 15 दिन का अवकाश ले कर उन की आवश्यकताओं को महसूस कर के उस ने घर को अपने मातापिता के अनुकूल करवाया ताकि वे उम्र के इस पड़ाव में सुकून के साथ रह सकें.

जीवन चलने का नाम है. बाल्यावस्था, युवावस्था और फिर वृद्धावस्था. वैश्वीकरण के इस युग में मातापिता को छोड़ कर रोजीरोटी के लिए बाहर जाना बच्चों की मजबूरी है.

मातापिता का अपने बच्चों के पास जाना भी लाजिमी ही है परंतु कई बार देखने में आता है कि बच्चों के घर की व्यवस्था में वे खुद को मिसफिट पाते हैं. उन के सिस्टम में रहने में वे तकलीफ अनुभव करते हैं. इसलिए कई बार वे बच्चों के पास जाने से ही कतराने लगते हैं.

ऐसे में अपने बुजुर्ग मातापिता की आवश्यकताओं के अनुसार अपने घर में बदलाव करना आवश्यक हो जाता है. जिन बच्चों के मातापिता उम्रदराज या अशक्त हैं, ऐसे दंपतियों का अपने घर को सीनियराइज करने की बहुत जरूरत होती है ताकि आप के साथसाथ आप के मातापिता के लिए भी आप का घर सुविधाजनक रहे और वे आराम से आप के साथ रह सकें. बुजुर्गों की जरूरतों के अनुसार निम्न बदलावों को किया जाना आवश्यक है :

महानगरों में फ्लैट कल्चर काफी तेजी से अपने पैर पसार चुका है. सोसाइटीज में बिल्डर कैमरे लगवाते ही हैं, परंतु यदि आप स्वतंत्र घर में निवास करते हैं तो मुख्य दरवाजे पर सीसीटीवी कैमरा अवश्य लगवाएं ताकि आप औफिस से ही मातापिता की कुशलता जान सकें, साथ ही, घर पर रह रहे आप के मातापिता भी हर आनेजाने वाले पर नजर रख सकें.

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अस्ति के घर की सीढि़यों पर अलग से लाइट की व्यवस्था न होने से उस के 65 वर्षीय ससुर का पैर फिसल गया और कूल्हे की हड्डी टूट गई. इसलिए घर के पोर्च, सीढि़यां, रैलिंग, बालकनी और टैरेस पर पर्याप्त लाइट लगवाएं ताकि अंधेरे में किसी प्रकार की दुर्घटना से वे बचे रहें.

विमलजी अपने इकलौते बेटे के पास केवल इसीलिए नहीं जा पाते क्योंकि उस की सोसाइटी में लिफ्ट नहीं है, और तीसरी मंजिल पर चढ़ कर वे जा नहीं पाते. वे कहते हैं, ‘‘एक बार चढ़ जाओ, तो नीचे आना ही नहीं हो पाता. पिंजरे में बंद पक्षी की भांति ऊपर टंगेटंगे जी उकता जाता है.’’ इसलिए जब भी घर खरीदें या किराए पर लें, तो अपने मातापिता का ध्यान रखते हुए ग्राउंड फलोर और लिफ्ट को प्राथमिकता दें.

अपने घर में उन के रहने के लिए ऐसा कमरा चुनें जिस में पाश्चात्य शैली का अटैच्ड बाथरूम हो. यदि उन्हें चलने में परेशानी है तो बाथरूम तक पहुंचने के लिए बार्स या रैलिंग और बाथरूम में ग्रेब हैंडिल्स लगवाएं. ताकि, वे बाथरूम में हैंडिल्स को पकड़ कर आराम से उठबैठ सकें, क्योंकि घुटनों की समस्या आजकल बहुत आम है जिस के कारण बिना सहारे के उठनाबैठना मुश्किल हो जाता है.

बाथरूम के बाहर और अंदर एंटी स्किट मैट की व्यवस्था करें ताकि उन के फिसलने की संभावना न रहे. बाथरूम का फर्श यदि चिकने टाइल्स का है तो उन्हें हटवा कर एंटी स्किट टाइल्स लगवाएं. साथ ही, चलनेफिरने के लिए भी एंटी स्किट स्लीपी ही यूज करने को कहें.

घर के फर्नीचर की व्यवस्था इस प्रकार से करें कि बुजुर्ग मातापिता को घर में चलनेफिरने में वे बाधक न बने. उन के लिए सुविधाजनक हलके फर्नीचर की व्यवस्था करें.

जीवन के एक मोड़ पर एक जीवनसाथी छोड़ कर चला जाता है. सो, अकेले रह गए पार्टनर के लिए हरदम घर के सदस्यों को पुकारना आसान नहीं होता. ऐसे में आप उन के लिए कार्डलैस बैल लगवाएं, ताकि आवश्यकता पड़ने पर वे आप को घंटी बजा कर बुला सकें.

बैड के पास ही मोबाइल चार्जिंग सौकेट लगवाएं ताकि अपने मोबाइल आदि को वे बिना किसी परेशानी के चार्ज कर सकें. यदि मोबाइल फोन उपयोग करने में उन्हें परेशानी होती है तो कार्डलैस फोन की व्यवस्था करें.

बैड के दोनों ओर साइड टेबल बनवाएं ताकि इन पर वे अपनी जरूरत का सामान दवाएं, किताबें, चश्मा, मोबाइल, पेपर आदि को सहजता से रख सकें.

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बैडरूम में एक टैलीविजन अवश्य लगवा दें ताकि वे सहज हो कर अपनी रुचि के अनुसार कार्यक्रम देख सकें, क्योंकि एक घर में रहने वाली तीन पीढि़यों की रुचियों में अंतर होना स्वाभाविक सी बात है. घर में रहने वाले छोटे बच्चों की पढ़ाई में यदि टैलीविजन से व्यवधान होता है तो उन्हें ईयरफोन ला कर दें ताकि वे अपने प्रोग्राम आराम से देख सकें.

घर में जमीन पर से यदि टैलीफोन, बिजली या केबल के तार आदि निकल रहे हैं तो उन्हें अंडरग्राउंड करवा दें ताकि वे उन के चलने में बाधक न बनें. यदि घर के फर्श पर चिकने टाइल्स लगे हैं तो उन पर कालीन बिछाएं ताकि वे पूरे घर में सुगमता से आवागमन कर सकें.

घर का फर्श या टाइल यदि कहीं से टूटा है तो उसे तुरंत ठीक करवाएं वरना इस की ठोकर खा कर वे गिर सकते हैं.

वास्तव में उपरोक्त बातें बहुत छोटीछोटी सी हैं, परंतु उम्रदराज मातापिता की सुरक्षा और सुविधा के लिए बहुत जरूरी हैं.

कम उम्र में बढ़ती हार्ट की बीमारी

डा. समोंजोय मुखर्जी

वर्ष 2020 में जारी राष्ट्रीय अपराध रिकौर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में हार्टअटैक से मरने वालों की संख्या 2014 से लगातार बढ़ रही है. परंपरागत रूप से हृदय की बीमारियों को ‘पुरुषों की बीमारी’ का पर्याय माना जाता रहा है. हालांकि, अब नवीनतम रिपोर्ट में बदलाव देखा जा रहा है.

वैसे तो महिलाओं को कार्डियोवैस्कुलर बीमारी पुरुषों के मुकाबले 7-10 साल बाद होती है पर महिलाओं के बीच यह मौत का एक अहम कारण बना हुआ है. इस विश्वास के कारण कि महिलाएं कार्डियोवैस्कुलर बीमारी (सीएडी) से ‘सुरक्षित’ हैं, महिलाओं में हृदय की बीमारी के जोखिम को अकसर कम कर के आंका जाता है. महिलाओं में हार्टअटैक के संकेत और लक्षण अस्पष्ट हो सकते हैं और इस का पता उतनी आसानी से नहीं चलता है क्योंकि सीने में तेज दर्द का संबंध अकसर हार्टअटैक से जुड़ा होता है.

कुछ मिनट से ज्यादा देर तक रहने वाला सीने में एक खास किस्म का दर्द, दबाव या असुविधा महिलाओं में हार्टअटैक का आम संकेत है. हालांकि, खासतौर से महिलाओं में सीने का दर्द अमूमन बहुत गंभीर नहीं होता है और यह सब से ज्यादा दिखाई देने वाला लक्षण भी नहीं होता है. महिलाएं इस का वर्णन खासतौर से दबाव या सख्ती के रूप में करती हैं. यह भी संभव है कि सीने में दर्द के बिना मरीज हार्टअटैक का शिकार हो जाए.

महिलाओं में अकसर ये लक्षण तब सामने आते हैं जब वे आराम कर रही हों या सो रही हों और पुरुषों के मुकाबले यह कम होता है. महिलाओं में भावनात्मक तनाव भी हार्टअटैक के लक्षण की शुरूआत में भूमिका अदा कर सकता है.

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हार्टअटैक के ये कुछ संकेत हैं जिन पर सभी को नजर रखनी चाहिए.

बेहद थकान या सीने में भारीपन महसूस करना.

सांस फूलना या अत्यधिक पसीना आना.

गरदन, पीठ, कमर, जबड़ों, बांह या पेट के ऊपरी हिस्से में दर्द.

चक्कर आना या उलटी होने का एहसास

कार्डियैक जोखिम के इन लक्षणों में बहुतों को नियंत्रित किया जा सकता है लेकिन सब को नहीं. सामान्य जीवनशैली में बदलाव ला कर कुछ जोखिम घटकों का प्रबंध किया जा सकता है लेकिन कुछ घटक, जैसे आयु, लिंग, परिवार का इतिहास, नस्ल और जातीयता जैसे कुछ कारणों पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं है. अनुमान है कि जीवनशैली में बदलाव से हार्टअटैक और स्ट्रोक समेत कार्डियैक बीमारियों के 80 फीसदी मामले रोके जा सकते हैं.

कई ऐसे कारण हैं जो महिलाओं में हृदय की बीमारी का जोखिम बढ़ाते हैं-

महिलाओं में ऐसे जोखिम हैं जो पुरुषों में नहीं हैं : उच्च रक्तचाप, बढ़ा हुआ ब्लडशुगर, ज्यादा कोलैस्ट्रौल, धूम्रपान और मोटापा हृदय की बीमारी के लिए खास जोखिम हैं जो महिलाओं में भी पुरुषों की तरह मौजूद होते हैं. हृदय की बीमारी का परिवार का इतिहास भी महिलाओं पर पुरुषों की ही तरह प्रभाव छोड़ सकता है. हालांकि कुछ बीमारियां, जैसे एंडोमेट्रियोसिस, पौलिसिस्टिक ओवरी डिजीज (पीसीओडी), डायबिटीज और उच्च रक्तचाप जो गर्भावस्था के दौरान विकसित होता है आदि कौरोनरी आर्टरी डिजीज का जोखिम बढ़ा देती हैं. यह हार्टअटैक के प्रमुख कारणों में एक है. 40 साल से कम की महिलाओं में एंडोमेट्रियोसिस से कौरोनरी आर्टरी डिजीज का जोखिम 400 फीसदी तक बढ़ जाता है.

देर से गर्भधारण करना कार्डियोवैस्कुलर डिजीज का जोखिम बढ़ा कर महिलाओं और उन के बच्चे को प्रभावित कर सकता है : देर से मां बनने का असर पैदा होने वाले बच्चे पर बाद में पड़ सकता है. इस से देर से गर्भधारण के कारण हो सकने वाली समस्याओं में प्लेसेन्टल एबरप्शन, प्रीमैच्योर रप्चर औफ मेमब्रेन, कोरियोएम्नियोनाइटिस यानी भ्रूण को ढकने वाली झिल्लियों में सूजन, प्रसवाक्षेप और हेलेप सिंड्रोम जैसी समस्याएं हो सकती हैं.

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महिलाओं में सीएडी का पता लगाना मुश्किल हो सकता है : हृदय की मुख्य धमनियों के संकरा होने या उन में बाधा का पता लगाने का परंपरागत तरीका एक्सरे मूवी (एंजियोग्राम) है जो कार्डियैक कैथेराइजेशन के दौरान लिया जाता है. हालांकि, महिलाओं में सीएडी अकसर छोटी धमनियों को प्रभावित करता है. एंजियोग्राफी में इस का पता लगाना मुश्किल होता है. इसलिए, यह सुझाव दिया जाता है कि अगर महिला को एंजियोग्राफी के बाद ‘औल क्लीयर’ का संकेत मिले पर लक्षण बना रहे तो ऐसे कार्डियोलौजिस्ट के पास जाना चाहिए जो महिलाओं के मामले में सुविज्ञ हों.

महिलाओं पर हार्टअटैक पुरुषों के मुकाबले भारी पड़ता है : हार्टअटैक के बाद महिलाओं का प्रदर्शन पुरुषों के जैसा अच्छा नहीं होता है. उन्हें अकसर लंबे समय तक चिकित्सीय देखभाल और निगरानी की आवश्यकता होती है और अस्पताल से छुट्टी मिलने से पहले ही उन के निधन की आशंका ज्यादा होती है. इस का कारण उन जोखिम घटकों को माना जा सकता है जिन का उपचार नहीं किया गया या किया जाता है. इन में डायबिटीज या उच्च रक्तचाप आदि शामिल हैं. कभीकभी इस का कारण यह भी होता है कि वे परिवार को प्राथमिकता देती हैं और खुद की उपेक्षा करती हैं.

हार्टअटैक के बाद महिलाओं को हमेशा सही दवाइयां नहीं मिलती हैं : हार्टअटैक के बाद महिलाओं में खून का थक्का जमने की आशंका पुरुषों के मुकाबले ज्यादा होती है. यह दूसरे अटैक का कारण बन सकता है. अस्पष्ट कारणों से उन्हें खून का थक्का जमने से रोकने वाली दवा दिए जाने की संभावना कम है. यह महिलाओं में पुरुषों के मुकाबले एक साल के अंदर हार्टअटैक आने की आशंका ज्यादा होने का कारण हो सकता है.

धूम्रपान और खाने वाली गर्भनिरोधक गोलियां स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हैं : दोनों का मेल घातक हो सकता है. धूम्रपान के बारे में जाना जाता है कि इस से धमनियां संकुचित हो जाती हैं. इस से खून के थक्के बनते हैं और कार्डियोवैस्कुलर समस्याएं होती हैं. दूसरी ओर, खाने वाली गर्भ निरोधक गोलियां शरीर के हार्मोन संतुलन को बदल देती हैं. इस से खून सामान्य के मुकाबले ज्यादा गाढ़ा होता है.

कुछ जोखिमों पर नियंत्रण संभव नहीं है लेकिन सही आदतों का पालन करना आप के हृदय के स्वास्थ्य के लिए काफी मददगार हो सकता है. कुछ उपाय जो हृदय की बीमारी और स्ट्रोक को कम करने में मददगार हो सकते हैं, ये हैं-

आरामतलब जीवनशैली से बचना.

नियमित शारीरिक गतिविधि और 25 से कम बीएमआई के साथ शरीर का स्वस्थ वजन रखना.

जीवनशैली में संशोधन कर के जैसे शारीरिक गतिविधियां बढ़ा कर और समय पर जानकारी प्राप्त कर के ब्लडप्रैशर ठीक रखना.

तनाव कम करने की कोशिश करना क्योंकि इस बात के पर्याप्त सुबूत हैं कि तनाव और हृदय पर इस के प्रभाव को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए.

वसामुक्त, उच्च फाइबर वाला पौष्टिक भोजन करना तथा खराब ढंग से प्रसंस्कृत भोजन से बचना.

धूम्रपान से बचने की कोशिश और शराब का सेवन कम करना.

जीवनशैली में बदलाव के अलावा वार्षिक जांच करवाना हृदय को जानने का सर्वश्रेष्ठ तरीका है. जो लोग उम्र के 20वें दशक के आखिर में और 30वें दशक में हैं उन्हें नियमित जांच करानी चाहिए.

जैसेजैसे कोरोनरी आर्टरी डिजीज को रोकने से संबंधित ज्यादा सूचनाएं उपलब्ध हो रही हैं, यह स्पष्ट होता जा रहा है कि महिलाएं भी पुरुषों के बराबर जोखिम में हैं और उन्हें रोकथाम के गंभीर उपाय करने चाहिए. हृदय की बीमारी और स्ट्रोक से बचने के साथसाथ चेतावनी के संकेतों को पहचानने के लिए हर महिला को अपने जोखिम घटक से वाकिफ होना चाहिए तथा जितनी जल्दी संभव हो, इलाज करवाना चाहिए. सांस फूलने, सीने में दर्द, अत्यधिक पसीना आना और चक्कर आने जैसे आम लक्षणों को नजरअंदाज न करें. अपने हृदय के लिए अच्छी आदतें अपनाने के लिए कोई भी समय बहुत देर नहीं है.

(लेखक मणिपाल अस्पताल, द्वारका, दिल्ली में कंसल्टैंट व सीनियर इंवैन्शनल कार्डियोलौजिस्ट हैं).

जब आप कौलिंग से ज्यादा चैटिंग करने लगें

हाल के दशकों में सोशल मीडिया का क्रेज बढ़ा है. एकदूसरे से जोड़े रखने वाले सोशल मीडिया प्लेटफौर्म और मोबाइल एप्लिकेशंस की भी खासी संख्या बढ़ी है. आज हम अपने दोस्तों, रिश्तेदारों और औफिस कलीग्स से फोन पर बोल कर बात करने के बजाय उन्हें टैक्स्ट मैसेज ज्यादा करते हैं.

एक रिसर्च में पाया गया कि हम किसी से बोल कर बात करने के बजाय लिख कर ज्यादा बात करते हैं, यानी हम अपने स्मार्टफोन और लैपटौप का इस्तेमाल भी मेल भेजने और मैसेज के लिए ही कर रहे हैं. हम वीडियो या वौयस कौल कम कर रहे हैं. लेकिन स्टडी में यह बात सामने आई है कि फोन पर बात करने के बजाय टैक्स्ट मैसेज करने से हमारी सोशल बौंडिंग कमजोर हो रही है. इस की जगह अगर हम बोल कर बातें करें तो रिश्ते मजबूत बनेंगे.

विशेषज्ञों के मुताबिक, लोग अपनों की आवाज के जरिए ज्यादा जुड़ाव महसूस करते हैं. आवाज सुन कर वे सामने वाले के बोलने का भाव समझ पाते हैं. लेकिन लोगों को लगता है कहीं उन के कौल करने से सामने वाला डिस्टर्ब न हो जाए या शायद उन्हें अच्छा न लगे, इस कारण मैसेज कर देना ही सही रहेगा. मैसेज के साथ एक इमोजी भेज देना बहुत फीका सा लगता है. लेकिन वहीं अगर बोल कर उस बात को जतलाया जाए तो अपनापन सा महसूस होता है.

सोशल मीडिया की वजह से लोगों के बीच की दूरियां भले ही कम हो गई हैं लेकिन दिलों की दूरियां बढ़ी हैं. न्यूयौर्क के शोधकर्ताओं का कहना है कि हम समय बचाने के लिए अकसर ईमेल या टैक्स्ट मैसेज भेजना ज्यादा पसंद करते हैं. लेकिन सही मानो में फोनकौल अपनों से जुड़ाव महसूस कराता है.

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वैज्ञानिकों ने रिसर्च में कुछ लोगों को उन के पुराने साथियों से फोन पर मेल के जरिए कनैक्ट होने को कहा. कुछ लोगों को वीडियोकौल, टैक्स्ट मैसेज और वौयस चैट से कनैक्ट होने को कहा. इस में पाया गया कि एकदूसरे से बात कर के वे ज्यादा जुड़ाव महसूस कर रहे हैं. यहां तक कि जो लोग सिर्फ वौयसकौल से जुड़े, उन्हें भी साथियों के साथ अच्छी बौंडिंग नजर आई.

रिचर्स में ये 4 बातें सामने आई हैं

लोगों को बोल कर बातें करने में झिझक महसूस होती है.

असुरक्षा के चलते टैक्स्ट मैसेज भेजते हैं.

टैक्स्ट चैट से तेज है वौयस चैट में बौंडिंग.

वौयस चैट में मिसअंडरस्टैंडिंग का खतरा कम है.

बोल कर बात करने के फायदे

अकेलेपन से छुटकारा.

तनाव कम.

लोगों से जुड़ा हुआ महसूस करेंगे.

दोस्तरिश्तेदारों से मजबूत बौंडिंग होगी.

हमें क्या करना चाहिए

जितना ज्यादा हो सके, बोल करबात करें.

औफिस जा कर काम करने में संकोच न करें.

बोल कर बात करने में झिझक महसूस न करें.

सामाजिक जुड़ाव कम न होने दें.

साथ काम करने वाले साथियों से मजबूत बौंडिंग रखें.

रिसर्च में यह भी पाया गया है कि लोग बोल कर बात करने से पीछे हटते हैं. उस की जगह मेल या टैक्स्ट मैसेज का यूज करना ज्यादा पसंद करते हैं. लोगों को लगता है कि बोल कर बात करना भद्दा लग सकता है या फिर सामने वाला उसे गलत समझ सकता है, इसलिए वे बात करने से कतराते हैं.

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मैक कोम्ब्स बिजनैस स्कूल में असिस्टैंट प्रोफैसर अमित कुमार कहते हैं कि लोग आवाज वाले मीडिया से ज्यादा कनैक्ट महसूस करते हैं लेकिन लोगों के अंदर भद्दा लगने और गलत महसूस किए जाने का डर भी होता है. इस के चलते लोग टैक्स्ट मैसेज ज्यादा भेजते हैं. आज सोशल डिस्टैंसिंग भले लोग बरत रहे हैं लेकिन हमें सोशल बौंडिंग की भी जरूरत है.

कोरोना के बाद लोगों की सोशल बौंडिंग कम हुई

अमेरिका लेबर सप्लाई कंपनी ऐडको ने 8 हजार वर्कर्स में वर्क फ्रौम होम को ले कर एक सर्वे किया. इस के मुताबिक, हर 5 में से 4 लोग घर से काम करना चाहते हैं. हालांकि, घर से काम करने में कम्युनिकेशन गैप बढ़ गया है और लोग अकेलेपन का शिकार हो रहे हैं. इस के अलावा वर्क फ्रौम होम से लोगों का फेसटूफेस बात करने का समय भी कम हो गया.

रिमोट वर्किंग में चुनौतियों को ले कर

लोग क्या कहते हैं

कोऔर्डिनेशन और कम्युनिकेशन की कमी.

अकेलापन.

कुछ और करते समय नहीं.

घर पर डिस्टर्बैंस.

दोस्तों से अलग टाइमजोन.

मोटिवेट रहने की चुनौती.

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वैकेशन लेने में समस्या.

इंटरनैट की दिक्कत.

अन्य और भी.

लिख कर बात करने के बजाय बोल कर

बात करने के फायदे

लोगों से ज्यादा जुड़े रहेंगे.

स्ट्रैस फ्री रहेंगे.

स्वास्थ्य के लिए अच्छा है.

अपनापन महसूस करेंगे.

सोशल बौंडिंग के लिए क्या करें

चैटिंग या टैक्स्ट मैसेज करने के बजाय कौल कर के बात करें.

अपने दोस्त, रिश्तेदार या सहकर्मियों से फोन कर बात करें तो उन्हें ज्यादा अच्छा लगेगा.

सोशल मीडिया पर अपना स्क्रीनटाइम कम करें.

वर्क फ्रौम होम में अगर अकेलापन महसूस हो तो औफिस जा कर काम करें.

प्यूबिक एरिया ऐसे रखें सौफ्ट

Writer- किरण आहूजा

शरीर के अनचाहे बालों को हटाने के लिए लड़कियां वैक्ंिसग तो करती हैं लेकिन लड़कियों में प्यूबिक एरिया के बालों को हटाने का ट्रैंड अब काफी बढ़ गया है. इसे बिकिनी वैक्स कहते हैं. बिकिनी वैक्स का मतलब प्राइवेट पार्ट और उस के आसपास के अनचाहे बालों को वैक्स की मदद से साफ करने की प्रक्रिया से है.

स्विमिंग करने वाली लड़कियों के बीच इस वैक्स का चलन ज्यादा है. बिकिनी वैक्स कराने के बाद प्यूबिक एरिया और उस के आसपास की स्किन साफ, कोमल और चिकनी हो जाती है. इस के अलावा, यदि आप बिकिनी पहनने की प्लानिंग कर रही हैं तो आप को यह वैक्स जरूर करानी चाहिए. लेकिन हाथ व पैरों की वैक्ंिसग करने या कराने के मुकाबले बिकिनी लाइन की वैक्ंिसग कराने में कुछ बातों का खास ध्यान रखने की जरूरत है.

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तरहतरह की बिकिनी वैक्स-

प्यूबिक हेयर को हटाने के लिए कई प्रकार की वैक्स उपलब्ध हैं.

ह्ल नौर्मल बिकिनी वैक्स : इस में पैंटीलाइन के आसपास के बाल साफ होते हैं. यह जांघ के ऊपर वाला एरिया होता है. स्विमिंग करने वाली ज्यादातर लड़कियां इस का इस्तेमाल करती हैं. इस का फायदा यह है कि स्विम सूट पहनने पर बाल नजर नहीं आते और आप बिना किसी फिक्र के स्विमिंग को एंजौय कर सकती हैं.

ह्ल ब्राजीलियन बिकिनी वैक्स : इस में सारे प्यूबिक हेयर साफ हो जाते हैं. पैंटी पहनने के बाद कोई बाल दिखाई नहीं देता. सफाईपसंद लड़कियों के लिए यह अच्छा विकल्प है क्योंकि इस से प्राइवेट एरिया की त्वचा साफ और चिकनी हो जाती है.

ह्ल फ्रैंच बिकिनी वैक्स : इस से प्राइवेट पार्ट के सभी बाल साफ तो हो जाते हैं लेकिन फ्रंट पर यह एक हेयरस्ट्रिप को छोड़ देता है जिस का आकार आकर्षक होता है.

ह्ल मिनी ट्रायंगल बिकिनी वैक्स : पार्टनर को आकर्षित करने के लिए यह एक अच्छा स्टाइल साबित होता है. इसे फुल ब्राजीलियन वैक्स भी कहते हैं. इस में वैजाइना के ठीक ऊपर त्रिकोण छोड़ कर बचे बालों को वैक्स कर के निकाला जाता है.

बिकिनी वैक्स के फायदे

बिकिनी के फायदे सुंदर दिखने के साथ ही सेहत के लिए भी महत्त्वपूर्ण हैं. वैक्स करने या कराने से बिकिनी एरिया में गंदगी जमा नहीं हो पाती. नतीजतन उस एरिया में इन्फैक्शन होने का खतरा नहीं रहता. प्राइवेट पार्ट और आसपास की स्किन साफ व मुलायम हो जाती है. इस के अलावा और भी कई फायदे हैं.

प्राइवेट पार्ट क्लीन रहने से पीरियड के दौरान भी किसी तरह की इरिटेशन नहीं होती है और अच्छा महसूस होता है.

शेविंग की तुलना में ज्यादा बेहतर है. इस से स्किन एक्सफोलिएट हो जाती है और दोबारा आने वाले बाल पतले व कमजोर होते हैं.

प्यूबिक एरिया पर कालेपन को कम करने में यह मदद करती है.

बाल जड़ से हट जाते हैं. किसी तरह के कठोर बाल नहीं रहते, बल्कि बिकिनी एरिया की स्किन स्मूथ हो जाती है.

न केवल बाल रिमूव होते हैं बल्कि इस हिस्से की डेड स्किन सैल्स से छुटकारा पाने में भी मदद मिलती है.

बिकिनी वैक्स के बाद क्या करें –

अगर आप सोच रही हैं कि सिर्फ वैक्स करने से आप का काम खत्म हो गया तो आप गलत हैं क्योंकि बाकी शरीर के मुकाबले बिकिनी वैक्स के बाद ज्यादा खयाल रखने की जरूरत होती है, जैसे-

पार्लर में प्यूबिक हेयर हटाने के बाद खास क्रीम या फिर तेल की मालिश की जाती है ताकि वहां की त्वचा ड्राई न हो. घर पर बिकिनी वैक्स करने के बाद त्वचा को पानी से साफ करें और एलोवेरा जेल या फिर कोई अच्छा सा मौइश्चराइजर लगा लें.

अगर आप को बिकिनी एरिया में जलन हो रही है तो आप टी बैग लगा कर इसे शांत कर सकती हैं या फिर बर्फ से भी सिकाई कर सकती हैं.

वैक्स की गई स्किन को तुरंत धूप के संपर्क में न लाएं खासतौर से शुरू के 24 घंटे तक. अगर आप पूल या बीच पर जाने की प्लानिंग कर रही हैं तो वैक्ंिसग के एक दिन बाद जाने का प्लान बनाएं.

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अगर वैक्ंिसग के कुछ दिनों तक प्यूबिक एरिया में इन्फैक्शन, बुखार, दर्द और सूजन महसूस हो तो तुरंत डाक्टर से संपर्क करें.

एक्सफोलिएटिंग स्क्रब आप की त्वचा पर बैक्टीरिया और तेल की मात्रा को कम कर के पोस्ट वैक्सिंग जलन को कम करने में मदद कर सकता है.

परमानेंट दोस्त हैं जरूरी

‘आई लव यू माय लब्बू’ लिखा टैटू जब बौलीवुड अभिनेत्री जाहनवी कपूर ने सोशल मीडिया के जरिए अपने फैंस को दिखाया तो यह टैटू चर्चा का विषय बन गया. जिस समय जाहनवी ने यह टैटू अपने फ्रैंड्स को शेयर किया, उस समय वह छुटिट्यां मनाने गई थी. छुटिट्यों में भी जाहनवी अपनी मां को ही याद करती रही. ‘आई लव यू माय लब्बू’ लिखे टैटू का संबंध जाहनवी की मां श्रीदेवी से है.

जब श्रीदेवी जिंदा थीं, उस समय उन्होंने जाहनवी को लिखा था, ‘आई लव यू माय लब्बू’. श्रीदेवी के न रहने के बाद जाहनवी ने इस लाइन को ही अपना टैटू बनवा लिया. श्रीदेवी अपनी बेटी जाहनवी को प्यार से उस के निकनेम ‘लब्बू’ से ही बुलाती थीं. इस टैटू के जरिए जाहनवी कपूर अपनी मां को याद करती हैं. श्रीदेवी ने अपने जीवित रहते जाहनवी कपूर के लिए यह लिखा था, ‘‘मैं तुम से बहुत प्यार करती हूं प्यारी लब्बू, तुम दुनिया की सब से अच्छी बच्ची हो.’’

जाहनवी कपूर का जन्म 7 मार्च, 1997 को हुआ था. उस की मां का नाम श्रीदेवी और पिता का नाम बोनी कपूर है. जाहनवी कपूर आज हिंदी फिल्मों की प्रतिभाशाली अभिनेत्री हैं. जाहनवी ने 2018 में पहली फिल्म ‘धड़क’ से अपने अभिनय की शुरुआत की थी. इस फिल्म के लिए जाहनवी को ‘बेस्ट डैब्यू अवार्ड’ दिया गया था.

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जाहनवी के परिवार में भाई अर्जुन कपूर फिल्मों में अभिनय करते हैं. इस के अलावा उस के चाचा अनिल कपूर और संजय कपूर भी फिल्मों में हैं. जाहनवी की पढ़ाई मुंबई के धीरूभाई अंबानी इंटरनैशनल स्कूल से हुई. जाहनवी ने कैलिफोर्निया के ‘ली स्ट्रैसबर्ग थिएटर एंड फिल्म इंस्टिट्यूट’ में ऐक्ंिटग की पढ़ाई पूरी की थी.

जाहनवी कपूर हिंदी फिल्म ‘धड़क’, कौमेडी हौरर फिल्म में रूही अफजा, बायोपिक ‘गुंजन सक्सेना : द कारगिल गर्ल’ में गुंजन सक्सेना की भूमिका में काम कर चुकी हैं. नैटफ्लिक्स एंथोलौजी फिल्म ‘घोस्ट स्टोरीज’ में जोया अख्तर के सेगमैंट में भी अभिनय किया है. इस के अलावा अब वे करण जौहर की फिल्म ‘तख्त’ में एक गुलाम लड़की का किरदार निभा रही हैं.

रोमांटिक कौमेडी फिल्म ‘दोस्ताना’ के सीक्वैंस में कार्तिक आर्यन और लक्ष्य लालवानी के साथ काम कर रही हैं. 24 साल की उम्र में जाहनवी कपूर ने अपनी एक अलग पहचान बना ली है. फिल्मी दुनिया में उन के बहुत सारे मित्र हैं. घरपरिवार भी है. इस के बाद भी उन्हें अपनी मां से अच्छा कोई और दोस्त मिला नहीं.

श्रीदेवी मां नहीं दोस्त

श्रीदेवी का जन्म 13 अगस्त, 1963 को हुआ था. श्रीदेवी ने 1975 में फिल्म ‘जूली’ से बाल अभिनेत्री के रूप में प्रवेश किया था. उन्होंने बाद में तमिल, मलयालम, तेलुगू, कन्नड़ और हिंदी फिल्मों में काम किया. अपने फिल्मी कैरियर में उन्होंने 63 हिंदी, 62 तेलुगू, 58 तमिल, 21 मलयालम तथा कुछ कन्नड़ फिल्मों में भी काम किया.

श्रीदेवी को फिल्मों की ‘लेडी सुपरस्टार’ कहा जाता है. उन्होंने 5 फिल्मफेयर पुरस्कार प्राप्त किए. उन्हें लोकप्रिय अभिनेत्री माना जाता है. 2013 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री सम्मान दिया. उन की प्रमुख फिल्मों में ‘हिम्मतवाला’, ‘सदमा’, ‘नागिन’, ‘निगाहें’, ‘मिस्टर इंडिया’, ‘चालबाज’, ‘लम्हे’, ‘खुदागवाह’ और ‘जुदाई’ हैं. 24 फरवरी, 2018 को दुबई में श्रीदेवी का निधन हो गया.

श्रीदेवी अपने कैरियर की ही तरह से अपने परिवार का भी ध्यान रखती थीं. वे काफी समय परिवार और अपनी बेटियों को देती थीं. दुबई भी वे पति बोनी कपूर, बेटी खुशी और भतीजे मोहित के साथ शादी के एक समारोह में हिस्सा लेने गई थीं. उन की बड़ी बेटी जाहनवी उस समय उन के साथ नहीं थी. मां के न रहने के बाद जाहनवी अकेली पड़ गई. मां के साथ अंतिम समय न रहने का दर्द उसे था.

अब उस ने अपनी मां की याद में अपने हाथों से लिखा टैटू बनवा कर याद किया. युवाओं में अपने पेरैंट्स के साथ लगाव बढ़ता जा रहा है. इस की वजह यह है कि अब उन के पास परमानैंट दोस्तों की कमी होने लगी है. जाहनवी जैसे कई युवा अपने पेरैंट्स को खोने के बाद उन की याद में डूबे रहते हैं.

परमानैंट दोस्त की कमी

युवाओं के अकेले परमानैंट दोस्त अब पेरैंट्स ही रह गए हैं. पति, पत्नी और पेरैंट्स के अलावा जो दोस्त होते हैं, वे कुछ घंटों के लिए होते हैं. यही नहीं, ये सभी दोस्त अपने मतलब के लिए दोस्ती करते हैं. बच्चे भी उदार और सपोर्टिव पेरैंट्स के साथ चिपके रहना पंसद करते हैं.

श्रीदेवी ने कम उम्र में ही काम शुरू किया था. परिवार का कोई बहुत सहयोग नहीं था. इस के बाद भी श्रीदेवी ने न केवल फिल्मों में नाम कमाया, बल्कि अच्छी मां के रूप में भी पहचान बनाई. आज के युवा इस तरह की जिम्मेदारी उठाने से बचते हैं. उन के पास जो दोस्त होते हैं, वे उन के वर्किंगप्लेस के होते हैं. ये कोई परमानैंट दोस्त नहीं होते. परमानैंट दोस्तों की संख्या अब कम होती जा रही है. काम खत्म होते ही दोस्त बदल जाते हैं. इस वजह से जब किसी तरह का दुख हो, इमोशनल सहयोग की जरूरत हो तो दोस्त की कमी खलने लगती है.

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युवाओं के सब से पहले परमानैंट दोस्त उन के पेरैंट्स होते हैं. इस के बाद शादी होने के बाद पतिपत्नी के रूप में परमानैंट दोस्त मिलते हैं. यही वजह है कि पेरैंट्स एक तय समय पर बच्चों की शादी कर देना चाहते हैं. आज के दौर में बच्चे पहले कैरियर बनाना पसंद करते हैं. इस के बाद वे शादी की सोचते हैं. कैरियर में भी कंपीटिशन बढ़ गया है. ऐसे में उन को कैरियर बनाने में भी समय लगने लगा है.

इस बीच अगर पेरैंट्स के साथ कोई हादसा हो जाए, बच्चे अकेले पड़ जाते हैं. जिन को पतिपत्नी के रूप में परमानैंट दोस्त मिल जाते हैं उन को कम दिक्कत का सामना करना पड़ता है. अगर पतिपत्नी और पेरैंट्स में से कोई भी साथ न हो तो जीवन से परमानैंट दोस्त एकदम से खत्म हो जाते हैं, जिस की वजह से युवा दिक्कत में आ जाते हैं.

इसलिए, यह जरूरी हो गया है कि जीवन में परमानैंट दोस्त हों. ये कभी गलत सलाह नहीं देंगे. मुसीबत में साथ, हिम्मत और सहयोग देंगे. पेरैंट्स हमेशा नहीं रह सकते. युवाओं को शादी से दूर नहीं भागना चाहिए. पेरैंट्स के बाद पतिपत्नी आपस में एकदूसरे के परमानैंट दोस्त होते हैं, जो हर सुखदुख में साथ देते हैं.

वर्किंगप्लेस के दोस्त भी महज दोस्त ही होते हैं. इन पर पूरी तरह से भरोसा नहीं किया जा सकता. युवाओं को परमानैंट दोस्तों के साथ रहने की कोशिश करनी चाहिए. वही मुसीबतों से बाहर निकाल सकते हैं. अकेलापन दूर कर सकते हैं. परमानैंट दोस्तों की कमी कई तरह की मानसिक बीमारियां ले कर आती है. इन से बचने के लिए भी परमानैंट दोस्तों का जीवन में होना जरूरी होता है.       – शैलेंद्र सिंह द्य

पीरियड्स में सेक्स, नो टेंशन!

अकसर आप ने सुना होगा कि पीरियड्स में सैक्स करना सही नहीं माना जाता है. यहां तक कि आज भी कई जगह पीरियड्स के दौरान महिलाओं को अपने घर में ही पराया बना दिया जाता है. उन्हें पति से दूरी बनाने को कहा जाता है, रसोईघर में घुसने नहीं दिया जाता है, यहां तक कि महिलाएं पीरियड्स के दौरान खुद को सब से अलगथलग कर लेती हैं, जिस से ऐसा लगता है कि उन के लिए पीरियड्स अभिशाप हों, जबकि हमें यह मानना होगा कि यह उन्हें प्रकृति की देन है.

1972 में जब ‘द जौय औफ सैक्स : ए गोरमैट गाइड टू लवमेकिंग’ नामक एक बैस्ट सैलर पुस्तक प्रकाशित हुई थी तब पीरियड्स के दौरान सैक्स की मनाही थी. लेकिन लेखक ने पीरियड्स के दौरान सैक्स को पौजिटिव नजरिए से देखा और यह वास्तव में सही भी है.

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ऐसा माना जाता है कि पीरियड्स में सैक्स लंबे समय से सांस्कृतिक व धार्मिक कारणों से निंदा का कारण बन गया है. अभी भी बहुत से लोग मानते हैं कि यह खतरनाक व बुरा है. लेकिन शिक्षा के माध्यम से इस भ्रांति को दूर करने की कोशिश की जा रही है.

अनेक शोधों से तो यह भी पता चला है कि पीरियड्स के दौरान सैक्स के काफी फायदे हैं व महिलाएं पीरियड्स के दौरान बहुत ज्यादा कामोत्तेजित हो जाती हैं, क्योंकि योनि से अधिक खून का बहाव जो होता है, इसलिए महिलाओं में होने वाली इस प्राकृतिक प्रक्रिया को स्वीकार करें, क्योंकि यह उन की सिर्फ शारीरिक खुशहाली के लिए ही नहीं, बल्कि मानसिक खुशहाली के लिए भी आवश्यक है.

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सैक्स के लाभ

पीरियड्स की अवधि का कम होना : संभोग के दौरान मांसेपशियों में संकुचन तेजी से होने से पीरियड्स का खून तेजी से बाहर निकलता है, जिस का मतलब है कि अगर आप के पीरियड्स 7 दिन तक चलेंगे तो संभोग के कारण उन की अवधि घट कर 2-3 दिन हो जाती है.

दर्द से राहत : पीरियड्स में मांसपेशियों में जो ऐंठन होती है, संभोग उसे शांत करता है, क्योंकि इस से खून का प्रवाह बढ़ता है और ऐंड्रोफिंस रिलीज होता है जो दर्द से राहत दिलाने का काम करता है.

करे लुब्रिकेशन का काम : सैक्स के दौरान जितने लुब्रिकेशन की जरूरत होती है, कई महिलाओं में इस दौरान इस की कमी रहती है. लेकिन पीरियड्स के दौरान गुप्तांगों में ऐक्स्ट्रा फ्लूड रहता है.

सैक्स की इच्छा बढ़ाए : आप को बता दें कि महिलाओं में बड़ी तेजी से हार्मोन बदलते हैं खासकर प्रोजेस्टेरोन हार्मोन ओब्युलेशन से पहले ओवरीज से रिलीज होता है, जो ऐंड्रोमैट्रियन को अंडों को फलदायक बनाने के लिए तैयार करता है.

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प्रोजेस्टेरोन को कामेच्छा कम करने के लिए जाना जाता है इसलिए यह हार्मोन सर्किल की शुरुआत में न्यून होता है और आप की सैक्स की इच्छा बढ़ जाती है. तनाव को कम करे : सैक्स से ऐंड्रोफिंस नामक कैमिकल्स रिलीज होते हैं जिस से आप अच्छा महसूस कर पाते हैं. इस से पीरियड्स के दौरान होने वाले तनाव में भी कमी आती है. सिरदर्द से राहत : ज्यादातर महिलाओं को इस दौरान पैन्स्ट्रूअल माइग्रेन की शिकायत होती है, लेकिन सैक्स से सिरदर्द से उन्हें राहत मिल सकती है. मूड को सुधारे : साबित हुआ है कि संभोग से ऐंड्रोफिंस हार्मोंस जैसे औक्सिटोसिन व डोपामाइन रिलीज होते हैं, जो पीरियड्स के लक्षणों को कम कर के मूड को सुधारने का काम करते हैं.

सेफ सैक्स के लिए यह भी जरूरी

* पीरियड्स के दौरान कंसीव करने के चांस बहुत कम होते हैं लेकिन अगर आप का पीरियड सर्किल छोटा है तो कंसीव करने के चांस काफी बढ़ जाते हैं, इसलिए अगर आप कंसीव नहीं करना चाहती हैं तो पीरियड्स की शुरुआत में ही सैक्स करें, वह भी सेफ तरीके से.

* पीरियड्स में सैक्स से सैक्सुअल ट्रांसमिटिड इंफैक्शन होने का भी डर रहता है, इसलिए सेफ सैक्स के लिए कंडोम वगैरह का इस्तेमाल करना न भूलें.

* वेजाइनल यीस्ट इंफैक्शन होने के चांसेज ज्यादा रहते हैं क्योंकि आप की योनि 3.8-4.5 के बीच पीएच लैवल को मैंटेन रखती है लेकिन मैंसुरेशन के दौरान यह बढ़ जाता है. इस का कारण है कि खून का पीएच लैवल काफी बढ़ा हुआ होता है.

* बैक्टीरिया को पनपने से रोकने के लिए जल्दीजल्दी सैनेटरी पैड्स वगैरह बदलें.

लिहाजा, सैक्स को ऐंजौय कर खुद को हैल्दी और ऐक्टिव रखें. साथ ही, पीरियड्स में सैक्स से जुड़ी भ्रांतियों को दूर करने की कोशिश करें.

– जैसमीन वासुदेवा

मार्केटिंग मैनेजर, नाइन    

करें खुद को मोटिवेट

Writer- वंदना बाजपेयी

जीवन में कुछ हासिल करना है या आगे बढ़ना है तो खुद पर भरोसा होना जरूरी है. आज प्रतियोगिता इतनी बढ़ गई है कि कई बार व्यक्ति को हताशा का सामना करना पड़ जाता है. कई बार खुद की हार से आत्महत्या करने जैसा खयाल भी आ जाता है. ऐसे में जब तक खुद को मोटिवेट न किया जाए तो चीजें सामान्य नहीं हो पातीं.

मेरे नाना अकसर एक कहानी सुनाया करते थे. कहानी इस प्रकार थी, ‘एक गांव में एक गरीब लड़का रहता था. उस का नाम मोहन था. मोहन बहुत मेहनती था. काम की तलाश में वह एक लकड़ी के व्यापारी के पास पहुंचा. उस व्यापारी ने उसे जंगल से पेड़ काटने का काम दिया. नई नौकरी से मोहन बहुत उत्साहित था. वह जंगल गया और पहले ही दिन 18 पेड़ काट डाले. व्यापारी ने मोहन को शाबाशी दी. शाबाशी सुन कर मोहन गद्गद हो गया. अगले दिन वह और ज्यादा मेहनत से काम करने लगा. इस तरह 3 सप्ताह बीत गए. वह बहुत मेहनत से काम करता, लेकिन यह क्या, अब वह केवल 15 पेड़ ही काट पाता था.

व्यापारी ने कहा, ‘कोई बात नहीं, मेहनत करते रहो.’

2-3 सप्ताह और बीत गए. ज्यादा अच्छे परिणाम पाने के लिए उस ने और ज्यादा जोर लगाया. लेकिन केवल 10 पेड़ ही ला सका. अब मोहन बड़ा दुखी हुआ. वह खुद नहीं सम झ पा रहा था क्योंकि वह रोज पहले से ज्यादा काम करता लेकिन पेड़ कम काट पाता.

हार कर उस ने व्यापारी से ही पूछा, ‘मैं सारे दिन मेहनत से काम करता हूं, लेकिन फिर भी क्यों पेड़ों की संख्या कम होती जा रही है?’

व्यापारी ने कहा, ‘तुम ने अपनी कुल्हाड़ी को धार कब लगाई थी.’

मोहन बोला, ‘धार… मेरे पास तो धार लगाने का समय ही नहीं बचता. मैं तो सारे दिन पेड़ काटने में ही व्यस्त रहता हूं.’

व्यापारी ने कहा, ‘बस, इसीलिए तुम्हारी पेड़ों की संख्या दिनप्रतिदिन घटती जा रही है.’

यही बात हमारे जीवन पर भी लागू होती है, हम रोज सुबह नौकरी, व्यापार व कोई अन्य काम करने जाते हैं या कई बार हम कोई काम बहुत जोश से शुरू करते हैं. धीरेधीरे वह काम हमें रूटीन लगने लगता है और हम उस काम को केवल ‘करने के लिए’ करने लगते हैं. पर उस को करने का पहले जैसा जोश और जनून खोने लगता है. जब ज्यादा मेहनत करने के बाद भी हम उतने अच्छे परिणाम नहीं दे पाते हैं तब हमें जरूरत होती है मन की कुल्हाड़ी को धार देने की, यानी खुद को मोटिवेट करने की, ताकि हम उतने ही समय में उत्साह के साथ ज्यादा से ज्यादा काम कर सकें.

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प्रेरणा के अभाव में धीरेधीरे बड़े उत्साह के साथ पढ़ने के लिए स्टडी टेबल के पास चिपकाए गए टाइम टेबल मात्र शोपीस बन कर रह जाते हैं. औफिस से नोटिस मिल जाता है व व्यवसाय घाटे के साथ डूबने लगता है. ऐसे समय में जरूरी है कि हम खुद को मोटिवेट करें और उत्साहहीनता व निराशा से बाहर निकलें.

जब काम बो िझल लगने लगे तो अपनेआप से 2 प्रश्न करने चाहिए- पहला, क्या आप जिस लक्ष्य को प्राप्त करना चाहते हैं उस को पाने के लिए कोई प्रेरणा उत्प्रेरक की तरह काम कर रहे हैं? और दूसरा, आप खुद को उस लक्ष्य को पाने के लिए काम में अपनी ऊर्जा  झोंक पाते हैं?

यहां ध्यान देने योग्य बात यह है कि किसी काम को करने की इच्छा रखना या उस काम को करने के लिए खुद को इतना मोटिवेट करना कि काम हो जाए, ये  2 अलग बातें हैं. यही वह अंतर भी है जिस से एक लक्ष्य ले कर काम करते 2 व्यक्तियों में से एक को सफल व दूसरे को असफल घोषित किया जाता है. दरअसल, सैल्फ मोटिवेशन वह जादू है जो हमें जिंदगी में सफल करता है. सैल्फ मोटिवेशन वह आंतरिक बल है जो हमें लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए आगे बढ़ाता है. जब हम ऐसी मनोदशा में होते हैं कि ‘काम छोड़ दें’, ‘अब नहीं हो पा रहा’ या ‘काम कैसे शुरू करें’ तब सैल्फ मोटिवेशन ही हम को आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है. सैल्फ मोटिवेशन वह हथियार है जो आप को अपने सपनों को पाने, अपने लक्ष्य को हासिल करने व सफलता के मंच को तैयार करने में मदद करता है.

अगर आप को रहरह कर यह लगता है कि आप जो काम कर रहे हैं उस को करने में आप को मजा नहीं आ रहा है या किस दिशा में आगे बढ़ें, यह सू झ नहीं रहा, तो आप निश्चितरूप से उत्साहहीनता के शिकार हैं. अगर ऐसा है भी, तो सब से पहले तो आप यह सम झ लें कि उत्साहहीनता या निराशा का शिकार होने वाले आप अकेले नहीं. हर कोई अपने जीवन में कभी न कभी इस का अनुभव करता है चाहे वह मोटिवेशनल गुरु ही क्यों न हो. निराशा में सदा घिरे रहने के स्थान पर इस में सुरंग बना कर बाहर निकलना आना चाहिए.

सम िझए स्वप्रेरणा के आंतरिक व बाह्य कारणों को सैल्फ मोटिवेशन के लिए आप को यह सम झना बहुत जरूरी है कि आप को प्रेरणा कहां से मिलती है या वे कौन से कारण हैं जिन से प्रेरित हो कर आप ने वह काम करना शुरू किया है. ये कारण 2 प्रकार के हो सकते हैं- आंतरिक व  बाह्य. आंतरिक कारणों में यह आता है कि आप वास्तव में उस काम से प्यार करते हैं, उसे करे बिना आप को अपना जीवन अधूरा लगता है. जब आप निराश हों तो अपने उसी प्यार को जगाइए, जिस के ऊपर हलका सा कुहरा छा गया है. फिर देखिएगा,  झूम कर बरसेंगे सफलता के बादल.

बाह्य कारणों में पैसा या पावर आते हैं. ज्यादातर वे लोग जिन्होंने बचपन में बहुत गरीबी देखी होती है या शोषण  झेला होता है वे ऐसे ही कामों के प्रति आकर्षित होते हैं जहां ज्यादा पैसा या पावर मिले. कुछ लोग नाम कमाना चाहते हैं, यह भी बाह्य कारण है. आंतरिक कारण जहां खुद ही आसानी से प्रेरित करते हैं वहीं बाह्य कारणों के लिए हमें उन परिस्थितियों को बारबार याद करना पड़ता है जिस कारण हम ने वह काम करना शुरू किया था.

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हिम्मत न हारिए

जीवन सत्य है कि दिन और रात की तरह परिस्थितियां भी सदा एकसमान नहीं रहतीं. कभी कम कभी ज्यादा, प्रकृति का नियम है. उत्साह भी कोई ऐसी चीज नहीं है जो हमेशा आप के साथ रहे. यह आताजाता रहता है. जब जाता है तो दुखी न हों. इस बात को सम िझए कि भले ही इस समय आप निरुत्साहित महसूस कर रहे हैं, पर यह स्थिति हमेशा नहीं रहने वाली.

घबराने व निराश होने की जगह कुछ समय के लिए दिमाग को उस काम में लगाइए जिस में आप का मन रमता हो, जैसे संगीत, चित्रकारी, बागबानी आदि. ताकि, आप पूरी तरह रिलैक्स हो सकें. अब बस, अपने लक्ष्य से जुड़े रहिए और पहले जैसे उत्साहजनित प्रेरणा के वापस आने का इंतजार कीजिए. इस दौरान अपने लक्ष्य के बारे में पढि़ए, चिंतन करिए, कुछ सार्थक योजनाएं बनाने का प्रयास करिए.

आशावादी रहिए

नकारात्मक विचार आप की पूरी ऊर्जा चुरा लेते हैं. पस्त हौसलों से किले नहीं ध्वस्त किए जाते हैं. मु झे अकसर याद आती है, ‘चिकन सूप फौर सोल’ की एक सत्यकथा जिस में एक क्षतिग्रस्त स्पाइन वाली लड़की से हर डाक्टर ने कह दिया था कि अब तुम कभी चल नहीं पाओगी. निराशहताश लड़की के मित्र ने उसे सम झाया कि ‘इन डाक्टर्स ने तुम्हारी बीमारी का इलाज तो किया नहीं अलबत्ता एक चीज तुम से चुरा ली.

‘‘क्या?’’ लड़की ने पूछा.

‘‘होप,’ लड़के ने उत्तर दिया.

तब, उस लड़की ने अपनी आशा को फिर से जाग्रत किया और अपने पैरों पर चल कर मैडिकल साइंस को फेल कर दिया. अगर आप सदैव अपने लक्ष्य के प्रति आशावादी रहते हैं तो यह आशा ही आप की प्रेरणा बन जाएगी. अगर कभी नकारात्मक विचार आए भी, तो उस पर ज्यादा मत सोचिए.

एक ही साधे सब सधे

जब आप एकसाथ कई कामों को हाथ में ले लेते हैं तो आप का किसी खास काम के प्रति ध्यान का विकेंद्रीकरण हो जाता है. इस से आप कोई भी लक्ष्य हासिल नहीं कर पाते और आसानी से उत्साहहीनता के शिकार हो जाते हैं. ‘जैक औफ औल ट्रेड्स मास्टर औफ नन’ बनने से अच्छा है, हम अपने कामों की प्राथमिकताएं तय करें. अगर आप को लग रहा है कि आप का काम के प्रति उत्साह कम हो गया है तो अपने दिमाग को चारों तरफ दौड़ाने की जगह एक समय में केवल एक लक्ष्य पर लगा लीजिए. इस से आप का ध्यान व उर्जा एक ही स्थान पर खर्च होगी जिस से आप आसानी से उस लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं. सफलता की खुशी में आप दूसरे लक्ष्यों पर भी खुशमन से अपनी ऊर्जा खर्च कर सकते हैं.

हौसले बढ़ते हैं आप की परवाज देख कर

निराशा के दौर में ज्यादा से ज्यादा उन लोगों के बारे में पढ़ें, सोचें और बात करें जो सफल हैं. जिन्होंने अपना लक्ष्य पा लिया है. अच्छीअच्छी प्रेरणादायी किताबें पढि़ए, उन की जीवनी व संघर्ष पर ध्यान दीजिए. आप देखेंगे कि हर सफल व्यक्ति असफल हुआ है. पर उस ने असफलता पर रोते हुए आगे चलना बंद नहीं किया और धीरेधीरे मंजिल को प्राप्त किया. उन की जीवनी आप के लिए उत्प्रेरक का काम करेगी. मन में हौसला उत्पन्न होगा कि ‘जब वे पा सकते हैं तो मैं क्यों नहीं.’ रोजरोज इस प्रक्रिया को दोहराने से आप के मन में भी अपने लक्ष्य को पाने का उत्साह जागेगा.

नन्हेनन्हे कदम नापते हैं जहां

ज्यादातर उत्साहहीनता तब उत्पन्न होती है जब आप बहुत बड़ेबड़े लक्ष्य बनाते हैं और उन्हें नहीं पा पाते. आप निराश हो कर सोचने लगते हैं, ‘अरे लक्ष्य तो हासिल हो नहीं पाएगा, तो प्रयास ही क्यों किया जाए.’ कभी अपने बचपन को याद करिए जब आप चलना सीख रहे थे. मां आप से थोड़ी दूर खड़ी हो जाती थी और आजा, आजा कहती थी. आप हिम्मत करते हुए छोटेछोटे डग भरते हुए मां के पास पहुंच जाते थे और अपनी इस उपलब्धि पर खुश होते थे. अभी भी यही करना है. अपने लक्ष्य को छोटेछोटे हिस्सों में बांट लें. जैसे कैसे आप इन्हें पूरा करते जाएं, तो खुद को शाबाशी दें. धीरेधीरे आप का उत्साह वापस आता जाएगा.

अपनों की खुशी में ढूंढि़ए प्रेरणा

आप के अंदर प्रेरणा की चिनगारी नहीं जल पा रही है, तो अपनी योजना को किसी अपने को बताइए जिस के साथ आप अपनी सफलता बांटना चाहते हों. वह व्यक्ति आप का मित्र, पत्नी, बच्चे या हितैषी कोई भी हो सकता है. आप की सफलता की योजना से जरूर उस व्यक्ति की आंखों में चमक आ जाएगी. वह भी आप की सफलता को आप के साथ मनाना चाहेगा. जिस तरह से एक जुगनू क्षणभर में अंधकार को चुनौती दे देता है वैसे ही अपनों के स्नेह व उन को खुश देखने की इच्छा आप को अपने काम को अच्छे तरीके से करने की प्रेरणा देगी.

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कल्पनाशील बनिए

खुद को प्रेरित करने का यह सब से आसान व कारगर तरीका है. आप जो लक्ष्य हासिल करना चाहते हैं उस को प्राप्त करने की कल्पना करिए. कल्पना में देखिए (विजुअलाइज करिए) कि आप ने सफलता हासिल कर ली है. सोचिए, अब आप को कैसा महसूस हो रहा है. अब आप प्रकृति को धन्यवाद दे रहे हैं या परिवार और बच्चों के साथ पार्टी कर रहे हैं. जो लोग आप के करीब हैं वे कितने खुश हैं. निश्चित मानिए कि यह क्रिया आप के लिए प्रेरणा का काम करेगी और आप उत्साह से भर जाएंगे.

अपने लक्ष्य की घोषणा सार्वजानिक रूप से करिए

जब आप अपना लक्ष्य समाज के सामने बता देते हैं तो आप के ऊपर यह दबाव रहता है कि इस काम को पूरा करना ही है अन्यथा आप सार्वजनिक निंदा के पात्र बनेंगे. कौन चाहता है कि लोग उस की खिल्ली उड़ाएं, पीठ पीछे कहें कि ‘बड़े चले थे यह काम करने, अब देखो.’ आप भी ऐसी बातें सुनना नहीं चाहते होंगे, न यह चाहते होंगे कि आप की वजह से आप को या आप के परिवार को नीचा देखना पड़े. पर यह सामाजिक दबाव एक उत्प्रेरक का काम करता है. अपने को समाज की नजरों में ऊंचा उठाने के लिए आप खुद को पूरी तरह से  झोंक देते हैं. सफलता का इस से बड़ा कोई मूल मंत्र नहीं है. यहां यह बात ध्यान देने की है कि एक बार बता कर छोड़ मत दीजिए बल्कि हफ्तेपंद्रह दिनों में अपडेट भी करते रहिए.

समान जीवन वाले लोगों का रूप बनाइए

‘संगति ही गुण उपजे संगति ही गुण जाए.’ मान लीजिए, आप ने कोई लक्ष्य बना लिया और मेहनत भी शुरू कर दी है, पर आप का जिन लोगों के बीच उठनाबैठना है वे कामचोर हैं या दिनरात गपबाजी में दिन व्यतीत करते हैं तब आप अपना उत्साह ज्यादा दिन तक बरकरार नहीं रख पाएंगे. वहीं, अगर आप ऐसे लोगों के साथ हैं जो धुन के पक्के हैं और अपने लक्ष्य को पाने के लिए दिनरात नहीं देखते, कठोर परिश्रम करते हैं तो आप का मन भी उत्साह से भर जाएगा और एक कर्मठ शूरवीर की तरह आप कार्यक्षेत्र में जुट जाएंगे.

अपने समान लक्ष्य वाले लोगों से मिलतेजुलते रहिए

जो लोग आप के समान ही लक्ष्य रखते हैं उन से महीनेपंद्रह दिनों में मिलते रहिए. इस से आप उन की सफलता से अपडेट होते रहेंगे या उन्होंने कैसे प्रयास किया, इस बात की जानकारी आप को होती रहेगी. असफल लोग क्या गलती कर रहे हैं, यह देख कर आप का स्वयं द्वारा की जाने वाली गलतियों पर ध्यान जाएगा. इस के अतिरिक्त, इस विचारविमर्श से नए तथ्य उभर कर सामने आएंगे. उदाहरण के तौर पर, अगर आप गाना सीख रहे हैं तो साधारण श्रोता आप के गायन की वाहवाही करेंगे. पर गायकों की महफिल में आप को एकएक सुर पर चर्चा करने से सही आरोहअवरोह पकड़ने में मदद मिलेगी. साथ ही, समकालीन अच्छे गायकों से स्वस्थ प्रतिस्पर्धा की भावना जाग्रत होगी, जिस से आप को और बेहतर गाने की प्रेरणा मिलेगी.

खुद को इनाम दीजिए

‘इनाम, वह भी खुद को?’ अजीब लगता है पर सैल्फ मोटिवेशन का बहुत कारगर तरीका है. अपने लक्ष्य को कई छोटे हिस्सों में बांटिए. और हर हिस्से के पूरा होने पर एक इनाम रखिए. वह इनाम महज इतना भी हो सकता है कि काम का इतना हिस्सा पूरा होने के बाद एक कप कौफी पिएंगे. देखिएगा वह कौफी रोज की कौफी से अलग ही स्वाद देगी. उस में जीत का नशा जो मिला होगा. आप यह भी इनाम दे सकते हैं कि इतना काम पूरा होने के बाद नई खरीदी किताब पढ़ेंगे, या कोई पसंदीदा काम करेंगे. कुछ भी हो, अपनी छोटीछोटी जीत को सैलिब्रेट करिए. इस से आप को आगे काम पूरा करने की जबरदस्त प्रेरणा मिलेगी.

अपनी योजनाओं की तिथिवार डायरी बनाइए

आप कौन सा काम कब करना चाहते हैं, इस की तिथिवार डायरी बनाइए, जैसे आप लेखक हैं तो आप की डायरी कुछ यों बनेगी-

नया काव्य संग्रह— (….) मार्च तक.

कथा संग्रह— (….) पुस्तक मेले तक.

प्रकाशित लेख आदि का संग्रह—(….)दिसंबर तक.

इस डायरी को बारबार पलटिए और अपने निश्चय को पक्का करते रहिए. यह आप को अदृश्य प्रेरणा से नवाजता रहेगा.

अगर आप वास्तव में किसी काम को करना चाहते हैं तो एक खूबसूरत वाक्य याद रखिए जो वाल्ट डिज्नी कहा करते थे, ‘मु झे नहीं लगता कि कोई भी पढ़ाई उस व्यक्ति के लिए असंभव होती है जिसे अपने सपनों को सच बनाने का हुनर आता है.’ सपनों को सच बनाने का हुनर निर्भर करता है सैल्फ मोटिवेशन पर. इसलिए जब लगे कुछ मनमुताबिक नहीं हो रहा है, तो कुछ पल ठहरिए. अपने आप को मोटिवेट करिए. फिर देखिए चमत्कार. एकएक कर के सफलता के दरवाजे आप के लिए खुलते चले जाएंगे.

रिश्ते: अब तुम पहले जैसे नहीं रहे

आराधना की शादी टूटने की कगार पर है. महज 5 वर्षों पहले बसी गृहस्थी अब पचास तरह के  झगड़ों से तहसनहस हो चुकी है. आराधना और आशीष दोनों ही मल्टीनैशनल कंपनी में अच्छी पोस्ट पर कार्यरत हैं. हाइली एजुकेटेड हैं. बड़ी तनख्वाह पाते हैं. पौश कालोनी में फ्लैट लिया है. सबकुछ बढि़या है, सिवा उन दोनों के बीच संबंध के.

2 साल चले प्रेमप्रसंग के बाद आराधना और आशीष ने शादी का फैसला किया था. शादी से पहले तक दोनों दो जिस्म एक जान थे. साथसाथ खूब घूमेफिरे, फिल्में देखीं, शौपिंग की, हिल स्टेशन साथ गए, एकदूसरे को ढेरों गिफ्ट दिए, एकदूसरे की कंपनी खूब एंजौय की. ऐसा लगता कि इस से अच्छा मैच तो मिल ही नहीं सकता. इतना अच्छा और प्यारा जीवनसाथी हो तो पूरा जीवन खुशनुमा हो जाए.

लेकिन शादी के 2 ही वर्षों के अंदर सबकुछ बदल गया. शादी के बाद धीरेधीरे दोनों का जो रूप एकदूसरे के सामने आया, उस से लगा इस व्यक्तित्व से तो वे कभी परिचित ही नहीं हुए. एकदूसरे से बेइंतहा प्यार करने वाले आराधना और आशीष अब पूरे वक्त एकदूसरे पर दोषारोपण करते रहते हैं. छोटी सी बात पर गालीगलौच, मारपीट तक हो जाती है. फिर या तो आराधना अपने कपड़े बैग में भर कर अपनी दोस्त के यहां रहने चली जाती है या आशीष रातभर के लिए गायब हो जाता है.

दरअसल, शादी से पहले दोनों का अच्छा पक्ष ही एकदूसरे के सामने आया. मगर शादी के बाद उन की ऐसी आदतें और व्यवहार एकदूसरे पर खुले, जो घर के अंदर हमेशा से उन के जीवन का हिस्सा थे. शादी के बाद आशीष की बहुत सी आदतें आराधना को नागवार गुजरती थीं, खासतौर पर उस का गंदे पैर ले कर बिस्तर पर चढ़ जाना.

आशीष को घर में नंगे पैर रहने की आदत है. दिनभर जूते में उस के पैर कसे रहते हैं, लिहाजा, घर आते ही वह जूते उतार कर नंगे पैर ही रहता है. आराधना उस की इस आदत को कभी स्वीकार नहीं कर पाई. आराधना सफाई के मामले में सनकी है. कोई गंदे पैर ले कर उस के बिस्तर पर कैसे आ सकता है? शादी के पहले ही साल उस ने बैडरूम में लगे डबलबैड को 2 सिंगल बैड में बांट दिया. अपने बिस्तर पर वह आशीष को हरगिज चढ़ने नहीं देती है.

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कभी आशीष का मूड रोमांटिक हुआ और उस ने उस के बिस्तर में घुसने की कोशिश की तो वह उस के गंदे पैरों को ले कर चिढ़ी दिखती है और सारे मूड का सत्यानाश कर देती है. उन के रिश्ते में दरार बढ़ने की शुरुआत भी, दरअसल, यहीं से शुरुआत हुई एकदूसरे की नजदीकियां न मिलने से दूरियां बढ़ने की.

और भी कई आदतें आशीष की थीं जो आराधना को बरदाश्त नहीं थीं. नहाने के बाद भीगा तौलिया बाथरूम में ही छोड़ देना, धुलने वाले कपड़े वाशिंग मशीन में डालने की जगह इधरउधर रख देना, बिस्तर छोड़ने के बाद उस को तय कर के न रखना, खाने में हरी सब्जियों से परहेज, हर दूसरेतीसरे दिन नौनवेज खाने की फरमाइश, न मिलने पर बाहर से मंगवा लेना, ये तमाम बातें आराधना को परेशान करती हैं.

आराधना की भी आदतें आशीष को खटकती हैं. उस का जरूरत से ज्यादा सफाई पसंद होना, पूरी शाम फोन पर सहेलियों या अपने घर वालों से बातें करना, उस का डाइटिंग वाला खाना जो कभी भी आशीष के गले नहीं उतर सकता, अपने रूपरंग को बरकरार रखने के लिए ब्यूटीपार्लर में पानी की तरह पैसे बहाना, हर वीकैंड पर शौपिंग करना, फालतू की महंगी चीजें खरीद लाना और फिर गिफ्ट के तौर पर किसी सहेली को पकड़ा देना, कोई फ्यूचर प्लानिंग न करना, ऐसी उस की बहुतेरी बातें आशीष को खटकती हैं. इन्हीं पर दोनों के बीच  झगड़े होते हैं.

दोनों आर्थिक रूप से सक्षम हैं, लिहाजा, किसी के दबने का सवाल ही पैदा नहीं होता.  झगड़ा होता है तो दोनों कईकई दिनों तक एक छत के नीचे 2 अजनबियों की तरह रहते हैं. दोनों में से कोई सौरी नहीं बोलता. अब तो दोनों को ही यह लगने लगा है कि वे अलगअलग ही रहें तो बेहतर है. कम से कम औफिस से घर आने पर सुकून तो होगा. बेकार की बातों पर कोई खिचखिच तो नहीं करेगा. सात जन्मों तक साथ रहने की कसमे खाने वाले आराधना और आशीष 5 वर्षों में ही एकदूसरे से बुरी तरह ऊब चुके हैं.

कोई भी रिलेशनशिप आसानी से नहीं टूटती है. रिलेशनशिप में छोटीछोटी बातों का ध्यान रखना होता है. रिश्तों में धीरेधीरे दूरियां बढ़नी शुरू होती हैं और एक समय ऐसा आता है जब दूरियां इस कदर बढ़ जाती हैं कि रिलेशनशिप टूट जाती है.

अकसर रिलेशनशिप में देखा जाता है कि छोटीछोटी समस्याएं होती रहती हैं, जिन को अधिकतर हम नजरअंदाज कर देते हैं. परंतु इन समस्याओं को नजरअंदाज करने से आप के रिश्ते में दरार पड़ सकती है. इन समस्याओं को हमें नजरअंदाज नहीं करना चाहिए, हमें इन समस्याओं का समाधान निकालना चाहिए.

रिलेशनशिप में कुछ समस्याओं को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए और रिश्ते को बचाए रखने के लिए निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए :

स्वभाव में अंतर

अगर आप के और आप के पार्टनर के स्वभाव में काफी अंतर है तो यह अंतर बाद में रिलेशनशिप में समस्याएं पैदा कर सकता है. हर किसी का अपना अलग स्वभाव होता है. हो सकता है आप के पार्टनर को घूमने का शौक हो और आप घर पर रहना ही पसंद करते हों. हो सकता है आप के पार्टनर को बाहर जा कर पार्टी करने का शौक हो और आप घर पर ही पार्टी करने का शौक रखते हों. अलगअलग स्वभाव होने की वजह से भी रिलेशनशिप में दूरियां बढ़ने लगती हैं.

स्वभाव में अंतर होना आम बात है, पर इस अंतर को दूर किया जा सकता है. अगर आप चाहते हैं कि आप के रिश्ते में हमेशा प्यार बना रहे तो एकदूसरे के स्वभाव में ढलने का प्रयास करें. रिलेशनशिप को सफल बनाने के लिए पतिपत्नी दोनों को प्रयास करना होता है.

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अलग चाहतें

रिलेशनशिप में एकदूसरे को सम झना काफी महत्त्वपूर्ण होता है. अगर आप की और आप के पार्टनर की प्राथमिकताएं व चाहतें एकदूसरे से अलग हैं तो समय रहते इस बात पर ध्यान देना आप की रिलेशनशिप के लिए बेहतर रहेगा. अगर आप समय रहते इस बात पर ध्यान नहीं देंगे तो आप के रिश्ते में दूरियां बढ़ने लगेंगी.

रिलेशनशिप सिर्फ एक व्यक्ति के चाहनेभर से नहीं चल सकती. एक अच्छी रिलेशनशिप होने के लिए जरूरी है कि एकदूसरे की प्राथमिकताओं को सम झा जाए. जीवन में हर इंसान की कुछ न कुछ प्राथमिकताएं होती हैं. आप की और आप के पार्टनर की भी कुछ प्राथमिकताएं होंगी. आप एकदूसरे की प्राथमिकताओं को सम झने का प्रयास करेंगे तो आप की रिलेशनशिप में कोई भी समस्या नहीं आएगी.

उन के फैसले को तवज्जुह दें

अगर रिश्ते में छोटीछोटी बातों को ले कर तनाव होने लगे तो आप को सम झ जाना चाहिए कि रिलेशनशिप में समस्याएं आ रही हैं. एकदूसरे पर अधिकार जमाने के कारण या पार्टनर द्वारा सिर्फ अपने ही फैसलों को तवज्जुह देने के कारण रिश्ते में तनाव बढ़ने लगता है. तनाव बढ़ने के कारण रिश्ता टूट सकता है. अगर आप चाहते हैं कि आप के रिश्ते में कभी भी कोई भी परेशानी न आए तो एकदूसरे पर अधिकार जमाना छोड़ दें और हर काम में एकदूसरे का साथ निभाएं. रिलेशनशिप में प्यार से रहने से किसी भी तरह का कोई तनाव नहीं रहता. पार्टनर के साथ अधिक से अधिक समय बिताने का प्रयास करें.

भावनाएं साझा करें

एकदूसरे से बातचीत के जरिए अपनी भावनाओं को सा झा करें और कहां कमियां रह गई हैं, इस बात पर विचार करें. रिलेशनशिप में आपस में किसी को भी चलताऊ न लें. अगर आप का पार्टनर आप के लिए कुछ कर रहा है तो उसे अहमियत दें. अहमियत देने से रिश्ते और ज्यादा मजबूत होते हैं और आपसी प्यार भी बढ़ता है. अगर आप का पार्टनर आप के प्रति प्यार जता रहा है तो उस की भावनाओं की कद्र करें.

उन को सम्मान दें

एकदूसरे को सम्मान देने से ही प्यार बढ़ता है. बिना सम्मान के कोई भी रिश्ता नहीं चलता. इसलिए, हमेशा एकदूसरे को सम्मान दें, जम कर एकदूसरे की तारीफ करें. अगर आप से कोई गलती हुई है तो उसे फौरन स्वीकार कर लें. इस से आप का रिश्ता और ज्यादा मजबूत होगा और दरार नहीं आएगी. अकसर हम अपनी गलतियों को कभी नहीं मानते और दूसरे की गलती को स्वीकार कराने में ही पूरा वक्त लगा देते हैं. इस से रिश्ते कमजोर होते हैं. रिश्ते को मजबूत बनाने के लिए एकदूसरे को भरपूर वक्त देने के साथ ही अपने शौकों को एकदूसरे के साथ सा झा करें.

कभी तंज न करें

हमेशा एकदूसरे पर तंज कसते रहने से रिश्ता कमजोर होने लगता है. गलतियां सब से होती हैं, परंतु अगर हम उन गलतियों के लिए बारबार अपने पार्टनर पर तंज कसते रहेंगे तो रिश्ता कमजोर होने लगेगा और रिलेशनशिप में दूरियां बढ़ने लगेंगी.

पुरानी गलतियां याद न करें

जीवन में हर किसी से गलतियां होती हैं. कुछ ऐसी बातें भी होती हैं जिन्हें आप का पार्टनर याद नहीं करना चाहता होगा. उन बातों को पार्टनर को याद न दिलाएं. अगर आप बारबार पार्टनर को उन बातों को याद दिलाएंगे तो आप के रिश्ते में दूरियां बढ़ने लगेंगी और रिश्ता कमजोर होने लगेगा.

कम्युनिकेशन गैप

अकसर कम्युनिकेशन गैप होने की वजह से भी रिश्ते में दूरियां बढ़ने लगती हैं. अगर आप चाहते हैं कि आप की रिलेशनशिप मजबूत रहे, तो अपने पार्टनर से बातचीत करते रहें. घरबाहर की बातें उन से शेयर करें. अपने पार्टनर से खुल कर बातें करें. रिलेशनशिप को मजबूत बनाने के लिए इस बात का भी विशेष ध्यान रखें कि आप को पार्टनर की बातों को अनसुना नहीं करना है.

एक्स की बात न करें

एक्स के बारे में बात करने से भी रिलेशनशिप टूटने का खतरा रहता है. बारबार एक्स के बारे में बात करने से रिश्ते में दूरियां बढ़नी शुरू हो सकती हैं. एक्स के बारे में बात करने से लड़ाई झगड़े भी अधिक होने की संभावना रहती है. इसलिए पुराने जख्मों को कभी न कुरेदें.

भरोसा पैदा करें

रिश्ते को मजबूत बनाने के लिए भरोसा बहुत जरूरी होता है. भरोसा किसी भी रिश्ते की नींव होता है. रिलेशनशिप में धोखा देने का मतलब है कि रिश्ते में दूरियां बढ़ना. पार्टनर को धोखा देने से,  झूठ बोलने से, बातें छिपाने से रिश्ता मजबूत नहीं होता. धोखा देने से रिलेशनशिप में कई तरह की समस्याएं आनी शुरू हो जाती हैं. 2 लोग एक छत के नीचे खुशीखुशी से तभी रह सकते हैं जब उन के व्यवहार में पारदर्शिता हो, एकदूसरे के लिए प्यार और सम्मान हो. दोनों में से किसी में किसी बात का अहंकार न हो बल्कि आपसी विश्वास मजबूत हो.

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