Satyakatha: चरित्रहीन कंचन

सौजन्य: सत्यकथा

रामकुमार की जानकारी में अपनी पत्नी कंचन की कुछ ऐसी बातें आई थीं, जिस के बाद कंचन उस के लिए अविश्वसनीय हो गई थी. बताने वाले ने रामकुमार को यह तक कह दिया, ‘‘कैसे पति हो तुम, घर वाली पर तुम्हारा जरा भी अकुंश नहीं. इधर तुम काम पर निकले, उधर कंचन सजधज कर घर से निकल जाती है. दिन भर अपने यार के साथ ऐश करती है और शाम को तुम्हारे आने से पहले घर पहुंच जाती है.’’

रामकुमार कंचन पर अगाध भरोसा करता था. पति अगर पत्नी पर भरोसा न करे तो किस पर करे. यही कारण था कि रामकुमार को उस व्यक्ति की बात पर विश्वास नहीं हुआ. वह बोला, ‘‘हमारी तुम्हारी कोई नाराजगी या आपसी रंजिश नहीं है, मैं ने कभी तुम्हारा बुरा नहीं किया. इस के बावजूद तुम मेरी पत्नी को किसलिए बदनाम कर रहे हो, मैं नहीं जानता. हां, इतना जरूर जानता हूं कि कंचन मेकअपबाज नहीं है. शाम को जब मैं घर पहुंचता हूं तो वह सजीधजी कतई नहीं मिलती.’’

‘‘कंचन जैसी औरतें पति की आंखों में धूल झोंकने का हुनर बहुत अच्छी तरह जानती हैं.’’ उस व्यक्ति ने बताया, ‘‘तुम्हें शक न हो, इसलिए वह मेकअप धो कर घर के कपड़े पहन लेती होगी.’’

रामकुमार को तब भी उस व्यक्ति की बातों पर विश्वास नहीं हुआ. वह उस का करीबी था, इसलिए उस ने उसे थोड़ा डांट दिया.

रामकुमार ने उस शख्स को डांट जरूर दिया था, लेकिन उस के मन में यह भी खयाल आया कि कोई इतनी बड़ी बात कह रहा है तो वह हवा में तो कह नहीं रहा होगा. उस ने खुद देखा होगा या उस के पास कोई ठोस सबूत या गवाह होगा. वैसे भी धुंआ वहीं उठता है, जहां आग लगी होती है. लिहाजा वह बेचैन हो गया. उस ने सोचा कि अपनी तसल्ली के लिए वह इस बारे में कंचन से बात जरूर करेगा.

घर पहुंचतेपहुंचते रामकुमार ने कंचन से उक्त संदर्भ में बात करने का इरादा बदल दिया. इस के पीछे कारण यह था कि कोई भी औरत अपनी बदचलनी स्वीकार नहीं करती तो कंचन कैसे कर लेगी. इसीलिए उस ने स्वयं मामले की असलियत का पता लगाने का फैसला कर लिया.

पत्नी के चरित्र को ले कर रामकुमार तनाव में था. उस का वह तनाव चेहरे और आंखों से साफ झलक रहा था. एक दिन कंचन ने उस से पूछा भी, लेकिन रामकुमार ने टाल दिया, बोला, ‘‘मन ठीक नहीं है.’’

‘‘तुम्हारी दवा घर में रखी तो है, पी लो. जी भी ठीक हो जाएगा और चैन की नींद भी सो जाओगे.’’ वह बोली.

तनाव की अधिकता से रामकुमार का सिर फट रहा था. सिर हलका करने और चैन से सोने के लिए उसे स्वयं भी शराब की तलब महसूस हो रही थी. इसलिए वह कंचन से बोला, ‘‘ले आओ.’’

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कंचन ने शराब की बोतल, पानी, नमकीन और एक गिलास ला कर पति के सामने रख दिया. रामकुमार ने एक बड़ा पैग बना कर हलक में उड़ेला और सोचने लगा कि कल उसे क्या करना चाहिए.

उत्तर प्रदेश के जनपद जौनपुर के गांव गोहानी में रहता था शंभू सिंह. शंभू सिंह के परिवार में पत्नी पार्वती के अलावा एक बेटा कुलदीप और एक बेटी कंचन थी. कुलदीप पंजाब में रह कर काम करता था. उस की पत्नी गांव में रहती थी.

शंभू सिंह खेतिहर मजदूर था. कमाई कम थी, इसलिए घरपरिवार में किसी न किसी चीज का सदैव अभाव बना रहता था. सुंदर व चुलबुली कंचन मामूली चीजों तक को तरसती रहती थी.

पिता की कमाई कम थी और खर्च अधिक, इसलिए निजी जरूरतें और शौक पूरा करने के लिए कंचन को घर से वांछित रुपए मिल नहीं  सकते थे. इसीलिए वह कभी कोई चीज खाने को तरसती, कभी किसी को अच्छे कपड़े पहने देख ललचाती तो कभी सोचती कि सजनेसंवरने का सामान कैसे खरीदे.

किशोर उम्र की लड़कियों की मानसिकता समझने और उन से लाभ उठाने वालों की दुनिया में कोई कमी नहीं है. गोहानी गांव में भी कुछ ऐसे ठरकी थे. उन्होंने कंचन का लालच समझा तो वह उसे रिझाने लगे. खिलानेपिलाने या कुछ सामान दिलाने के नाम पर वह कंचन के साथ अश्लील हरकत करते.

कुछ समय में ही कंचन समझ गई कि कोई यूं मेहरबान नहीं होता. जो पैसा खर्च करता है, उस के एवज में कुछ चाहता भी है. वह अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए लोगों की इच्छाएं पूरी करने लगी. परिणाम यह हुआ कि कंचन कुछ ही दिनों में पूरे गांव में बदनाम हो गई.

बात पिता शंभू सिंह और मां पार्वती तक पहुंची तो उन्होंने अपना सिर पीट लिया कि बेटी है या आफत की परकाला. छोटी सी उम्र में इतने बड़े गुल खिला रही है. दोनों ने कंचन को खूब मारापीटा, मगर कंचन ने अपनी राह नहीं बदली.

शंभू सिंह और पार्वती जब सारी कोशिश कर के हार गए तब उन्होंने सोचा कि कंचन की जल्द शादी कर के उसे ससुराल भेज दिया जाए, तभी थोड़ीबहुत इज्जत बची रह सकती है.

इस फैसले के बाद शंभू सिंह ने कंचन के लिए वर की तलाश शुरू कर दी. जल्द ही एक अच्छा रिश्ता मिल गया. प्रतापगढ़ जनपद के गांव धर्मपुर निवासी राजेश पटेल से कंचन का रिश्ता तय हो गया. 12 वर्ष पूर्व कंचन का विवाह राजेश पटेल से हो गया.

कंचन को अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए अब किसी और की जरूरत नहीं थी. पति राजेश उस की हर जरूरत पूरी करता था. कालांतर में कंचन ने 2 बेटियों को जन्म दिया.

धीरेधीरे कंचन और राजेश में मतभेद रहने लगे, जिस वजह से उन के बीच वादविवाद होता था. यह वादविवाद कभीकभी विकराल रूप धारण कर लेता था. कंचन को अब अपनी ससुराल काटने को दौड़ती थी. उस का वहां मन नहीं लगता था.

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इसी बीच कंचन की मुलाकात रामकुमार दुबे से हो गई. रामकुमार दुबे कन्नौज के गुरसहायगंज का रहने वाला था. 10 सालों से वह हरदोई जिले में रहने वाली अपनी बहन मिथलेश की ससुराल में रहता था. काम की तलाश में वह प्रतापगढ़ आ गया. यहीं पर उसे कंचन मिल गई.

पहली मुलाकात हुई तो उन के बीच बातें हुईं. दोनों की यह मुलाकात काफी अच्छी रही. दोनों ने एकदूसरे को अपना नंबर दे दिया. इस के बाद तो उन की मुलाकातों का सिलसिला चल निकला. फोन पर भी बातें होने लगीं. कुछ ही दिनों में दोनों इतने करीब आ गए कि शादी कर के साथ रहने की सोचने लगे.

दोनों ने साथ रहने का फैसला लिया तो कंचन अपनी ससुराल छोड़ कर उस के पास आ गई. रामकुमार ने साथ रहने के लिए कंचन के कहने पर पहले ही जौनपुर के भुईधरा गांव में जमीन ले कर 2 कमरों का मकान बनवा लिया था. दोनों शादी कर के यहीं रहने लगे. यह 8 साल पहले की बात है. 4 साल पहले कंचन ने एक बेटे को जन्म दिया.

लेकिन अभावों ने कंचन का यहां भी पीछा न छोड़ा. रामकुमार की भी कमाई अधिक नहीं थी. घर का खर्च बड़ी मुश्किल से चलता था. कंचन की मुश्किलें बढ़ने लगीं तो उस ने इधरउधर देखना शुरू कर दिया. उसे ऐसे व्यक्ति की तलाश थी जो उस की जरूरतों पर पैसा खर्च कर सके. इस खेल की तो वह पुरानी खिलाड़ी थी.

उस की तलाश रामाश्रय पटेल पर जा कर खत्म हुई. रामाश्रय जौनपुर के मुगरा बादशाहपुर थाना क्षेत्र के बेरमाव गांव का निवासी था. बेरमाव पंवारा थाना क्षेत्र की सीमा से सटा गांव था. रामाश्रय दिल्ली में रह कर किसी फैक्ट्री में काम करता था. कुछ दिनों बाद वह घर आता रहता था. रामाश्रय विवाहित था और उस के 3 बच्चे भी थे. लेकिन उस की अपनी पत्नी से नहीं बनती थी.

रामाश्रय भुईधरा गांव आता रहता था. इसी आनेजाने में उस की मुलाकात कंचन से हो गई थी. कंचन जान गई थी कि रामाश्रय आर्थिक रूप से काफी मजबूत है. कंचन और रामाश्रय की मुलाकातें होने लगीं. इन मुलाकातों में कंचन ने रामाश्रय के बारे में काफी कुछ जान लिया.

वह यह भी जान गई कि रामाश्रय की अपनी पत्नी से नहीं बनती. यह जान कर वह काफी खुश हुई, उस का काम आसान जो हो गया था. पत्नी से परेशान मर्द को बहला कर अपने पहलू में लाना आसान होता है, यह कंचन बखूबी जानती थी.

कंचन ने अब रामाश्रय को अपने लटकेझटके दिखाने शुरू कर दिए. रामाश्रय भी कंचन के नजदीक आ कर उसे पाने की चाहत रखता था. कंचन के लटकेझटके देख कर वह भी समझ गया कि मछली खुद शिकार होने को आतुर है. वह भी कंचन पर अपना प्रभाव जमाने के लिए खुल कर उस पर अपना पैसा लुटाने लगा.

कंचन की रामाश्रय से नजदीकी क्या हुई, कंचन के अंदर की अभिलाषा जाग गई. कंचन ने अपनी कामकलाओं का ऐसा जादू बिखेरा कि रामाश्रय सौसौ जान से उस पर न्यौछावर हो गया.

रामकुमार के काम पर जाते ही कंचन सजधज कर घर से निकल जाती और रामाश्रय के साथ घूमती और मटरगश्ती करती. रामाश्रय पर कंचन के रूप का जबरदस्त नशा चढ़ा हुआ था. रामकुमार के घर आने से पहले कंचन घर आ जाती थी. घर आने के बाद अपना मेकअप धो कर साफ कर लेती. घर के कपड़े पहन कर घर का काम करने लगती.

कंचन समझती थी कि किसी को उस की रंगरलियों की खबर नहीं है. जबकि वास्तविकता सब जान रहे थे. एक दिन किसी शुभचिंतक ने रामकुमार को उस की पत्नी की रंगरलियों की दास्तान बयां कर दी.

रामकुमार ने इस बाबत कंचन से कोई सवाल नहीं किया. बल्कि उस ने अपने सारे पैग पीतेपीते सोच लिया कि हकीकत का पता करने के लिए उसे क्या करना है.

दूसरे दिन रामकुमार काम पर जाने के लिए घर से तो निकला, पर गया नहीं. कुछ दूरी पर एक जगह छिप कर बैठ गया. उस की नजर घर की ओर से आने वाले रास्ते पर जमी थी.

मुश्किल से आधा घंटा बीता होगा कि कंचन आती दिखाई दी. अच्छे कपड़े, आंखों में काजल, होठों पर लिपस्टिक, कलाइयों में खनकती चूडि़यां उस की खूबसूरती बढ़ा रही थी.

कंचन जैसे ही नजदीक आई. रामकुमार एकदम से छिपे हुए स्थान से निकल कर उस के सामने आ खड़ा हुआ. पति को अचानक सामने देख कर कंचन भौचक्की रह गई. वह रामकुमार से पूछना चाहती थी कि वह यहां कैसे, काम पर गए नहीं या लौट आए. मगर मानो वह गूंगी हो गई. चाह कर भी आवाज उस के गले से नहीं निकली.

रामकुमार ने कंचन की आंखों में देख कर भौंहें उचकाईं, ‘‘छमिया बन कर कहां चलीं… यार से मिलने? अपना मुंह काला करने और मेरी इज्जत की धज्जियां उड़ाने.’’

कंचन घबराई, लेकिन जल्दी ही खुद को संभालते हुए बोली, ‘‘नहाधो कर घर से निकलना भी अब जुल्म हो गया. दुखी हो गई हूं मैं तुम से.’’

‘‘घर चल, तब मैं बताता हूं कि कौन किस से दुखी है.’’

दोनों घर आए तो उन के बीच जम कर झगड़ा हुआ. कंचन अपनी गलती मानने को तैयार नहीं थी. उस का कहना था कि वह रामाश्रय से मिलने नहीं, अपनी सहेली से मिलने जा रही थी.

रामकुमार ने कंचन पर अंकुश लगाने का हरसंभव प्रयास किया, मगर वह नाकाम रहा.

14 मई को गांव रामपुर हरगिर के पास शारदा नहर के किनारे लोगों ने एक लाश देखी. देखते ही देखते वहां काफी संख्या में लोग जमा हो गए. लाश को ले कर लोग तरहतरह की चर्चाएं करने लगे. इसी बीच रामपुर हरगिर गांव के अजय कुमार नाम के व्यक्ति ने संबंधित थाना पंवारा को लाश मिलने की सूचना दे दी.

सूचना पा कर थानाप्रभारी सेतांशु शेखर पंकज अपनी टीम के साथ घटनास्थल की ओर रवाना हो गए. वहां पहुंच कर उन्होंने लाश का निरीक्षण किया. मृतक की उम्र लगभग 35-36 वर्ष रही होगी. मृतक के शरीर की खाल पानी में रहने से गल गई थी. लाश देखने में 2-3 दिन पुरानी लग रही थी. मृतक के दाएं हाथ पर रामकुमार पटेल और कंचन गुदा हुआ था.

थानाप्रभारी सेतांशु शेखर ने लाश के कई कोणों से फोटो खींचने के साथ नाम का जो टैटू था, उस की भी फोटो खींच ली. घटनास्थल का निरीक्षण किया गया तो पास से चाकू, रस्सी और कपड़े बरामद हुए.

वहां मौजूद लोगों से लाश की शिनाख्त कराने की कोशिश की गई, लेकिन कोई भी लाश को नहीं पहचान सका. थानाप्रभारी सेतांशु शेखर ने लाश पोस्टमार्टम हेतु भेज दी. फिर अजय कुमार को साथ ले कर थाने आ गए.

अजय कुमार की लिखित तहरीर पर थानाप्रभारी ने अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत थाने में मुकदमा दर्ज करा दिया. थाने के सिपाहियों को लाश पर मिले टैटू की फोटो दे कर अपने थाना क्षेत्र और आसपास के थाना क्षेत्र में भेजा, जिस से मृतक के बारे में कोई जानकारी मिल सके. उन का यह प्रयास सफल भी हुआ.

गोहानी गांव में टैटू देख कर लोगों ने पहचाना कि कंचन तो उसी गांव की बेटी है, रामकुमार उस का पति है. वह टैटू देख कर यह लगा कि वह लाश रामकुमार की थी.

जानकारी मिली तो थानाप्रभारी सेतांशु शेखर गोहानी गांव पहुंच गए. रामकुमार की ससुराल गोहानी में थी. वहां रामकुमार की पत्नी कंचन मौजूद थी. उस के साथ में रामाश्रय था. रामाश्रय का पता पूछा तो उस का गांव बेरमाव था जोकि घटनास्थल से काफी करीब था.

रामकुमार की हत्या होना, उस समय उस की पत्नी कंचन का मायके में होना और उस के साथ जो व्यक्ति रामाश्रय मिला उस के गांव के नजदीक रामकुमार की लाश मिलना, यह सब इत्तिफाक नहीं था. सुनियोजित साजिश के तहत घटना को अंजाम देने की ओर इशारा कर रहा था.

इस बात को थानाप्रभारी बखूबी समझ गए थे. इसलिए उन्होंने शक के आधार पर पूछताछ हेतु दोनों को हिरासत में ले लिया और थाने वापस आ गए.

थाने ला कर उन दोनों से पहले अलगअलग फिर आमनेसामने बैठा कर कड़ाई से पूछताछ की गई तो वे दोनों टूट गए और हत्या के पीछे की वजह बयान कर दी.

कंचन और रामाश्रय दोनों के संबंधों को ले कर हर रोज घर में रामकुमार झगड़ा करने लगा. वह उन के मिलने में अड़चनें पैदा करने लगा तो कंचन ने रामाश्रय से रामकुमार को हमेशा के लिए अपने रास्ते से हटाने के लिए कह दिया. यह घटना से करीब एक हफ्ते पहले की बात है. दोनों ने पूरी योजना बना ली.

योजनानुसार कंचन अपने मायके गोहानी चली गई. 11/12 मई की रात रामाश्रय रामकुमार के पास गया. उस से कंचन से संबंध खत्म करने की बात कही. फिर एक नई शुरुआत करने के बहाने उसे अपने साथ ले गया. रामकुमार को उस ने जम कर शराब पिलाई. देर रात एक बजे रामाश्रय रामकुमार को रामपुर हरगिर गांव के पास ले गया. उस समय रामकुमार नशे में धुत था.

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रामाश्रय ने साथ लाए चाकू से गला काट कर रामकुमार की हत्या कर दी. उस के बाद उस के हाथपैर रस्सी और कपड़े से बांध कर लाश नहर में डाल दी लेकिन लाश नदी में स्थित बिजली के आरसीसी के बने खंभों में फंस कर रह गई. नदी के बहाव में वह नहीं बह सकी. रामाश्रय यह नहीं देख पाया.

वह तो चाकू वहीं फेंक कर घर चला गया. अगले दिन वह कंचन के पास उस के मायके पहुंच गया. वहां वह कंचन के साथ पुलिस के हत्थे चढ़ गया.

मुकदमे में भादंवि की धारा 201/120बी/34 और जोड़ दी गईं. कानूनी लिखापढ़ी करने के बाद दोनों को न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Manohar Kahaniya : पावर बैंक ऐप के जरिए धोखाधड़ी- भाग 2

सौजन्य- मनोहर कहानियां

शेख रौबिन, पेमा वांगमो, सीए अविक केडिया और रौनक बंसल ने जब ठगी का पूरा जाल तैयार कर लिया तो चीनी नागरिकों ने चीन से अपने तीनों ऐप्स को प्रमोट करने के लिए इन्हें गूगल प्लेस्टोर के मेलवेयर स्पैम में डाल कर प्रमोट करना शुरू कर दिया.

इन ऐप्स को वाट्सऐप, टेलीग्राम के जरिए भी प्रमोट करना शुरू कर दिया. कई तरह की गेम एप्लीकेशन और सोशल मीडिया प्लेटफार्म्स पर इन एप्लीकेशन के विज्ञापन इतनी तेजी से वायरल होने लगे कि एक महीने के भीतर ही पावर बैंक ऐप गूगल प्लेस्टोर पर डाउनलोड होने वाले ऐप में चौथे नंबर पर ट्रेंड करने लगा.

दोगुना करने के लालच में फंसते गए लोग

इन एप्लीकेशन को इतने आकर्षक ढंग से प्रमोट किया जा रहा था कि पूरे भारत में जो भी लोग इन लिंक को देखते जल्दी पैसा कमाने के लालच में तुरंत इसे डाउनलोड कर लेते.

दरअसल मल्टीलेवल मार्केटिंग की तर्ज पर बनी एप्लीकेशन में लोगों को बहुत मामूली सी रकम इनवैस्ट करने पर इस के 25 से 35 दिनों में दोगुना होने का औफर था. सब से छोटी रकम के रूप में 300 रुपए निवेश करने थे, उस के बाद कोई चाहे तो इस रकम को लाखों तक निवेश कर सकता था. यानी सब से छोटी रकम की लिमिट 300 रुपए और अधिकतम की सीमा कोई नहीं थी.

दिलचस्प बात यह थी कि जिन लोगों के पास किसी भी ऐप के माध्यम से प्रमोट हो कर ये क्विक मनी अर्निंग ऐप का लिंक पहुंचता था वह क्लिक करते ही लोगों के मोबाइल फोन में खुदबखुद इंस्टाल हो जाता था.

जिस में सब से पहले इनवैस्ट करने वाले को रकम के कुछ ही दिनों में दोगुना होने का औफर होता. उस के बाद एक प्रोफार्मा होता, जिस में निवेशक को अपना नाम, पता, मोबाइल नंबर, आधार व बैंक खाते की जानकारी भरनी होती. साथ ही कुछ शर्तें लिखी होतीं, जिन्हें स्वीकार करना होता था.

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इस के बाद जितनी भी रकम किसी को इनवैस्ट करनी हो उस का भुगतान करने के लिए पेटीएम, गूगल पे, भारत पे और यूपीआई के पेमेंट गेटवे के बार कोड व डिटेल दी गई थी. जिन के जरिए लोग अपनी इनवैस्ट की जाने वाली रकम का भुगतान कर देते थे.

सब से अच्छी बात यह थी कि शुरुआत के कुछ दिनों में छोटी रकम इनवैस्ट करने वाले करीब 20 फीसदी लोगों को तय समय सीमा में वादे के अनुसार उन की इनवैस्ट रकम का दोगुना भुगतान मिल गया. इस से उत्साहित ऐसे लोगों ने अगले इनवैस्टमेंट के रूप में हजारों और लाखों रुपए की बड़ी रकम का इनवैस्टमेंट करना शुरू कर दिया.

बाद में पैसा आना हो गया बंद

जिन लोगों को एक बार लाभ मिल चुका था, उन्होेंने अपने मित्रों, रिश्तेदारों और जानपहचान वालों को भी इन ऐप्स के बारे में और अपने लाभ के बारे में बताया तो अचानक एक महीने बाद तेजी से पावर बैंक और ईजी मनी ऐप लोगों के आकर्षण का केंद्रबिंदु बन गया.

पिछले डेढ़ साल से कोरोना और ज्यादातर समय रहे लौकडाउन के कारण लोगों के कामधंधे चौपट हो चुके थे, काफी लोग बेरोजगार हो गए थे. ऐसे में आर्थिक तंगी से जूझ रहे लोगों के लिए मल्टीलेवल मार्केटिंग के ये ऐप्स लोगों को देवदूत लगने लगे, जो रातोंरात उन की दरिद्रता दूर कर सकते थे.

बस ये ऐप धड़ाधड़ डाउनलोड होने लगे. देखते ही देखते देश भर में लाखों लोगों ने इन में पैसा इनवैस्ट करना शुरू कर दिया. दरअसल, गूगल प्लेस्टोर व दूसरे सोशल मीडिया तथा यूट्यूब के बहुत सारे वीडियो में जिस तरह से इन एप्लीकेशंस का प्रचार हो रहा था और पेमेंट गेटवे के जरिए रकम जमा कराई जा रही थी, उस से किसी को भी यह शक ही नहीं था कि ये धोखाधड़ी का एक ऐसा लालच भरा जाल है, जिस में एक बार कोई फंस गया तो निकलना बेहद मुश्किल होगा.

वैसे भी भारत सरकार ने बैंक खातों में खुले एकाउंट और पेमेंट गेटवे पर खाता बनाने के लिए इतनी औपचारिकताएं और दस्तावेज जमा कराने की बाध्यता कर दी है कि लोग यही समझते हैं कि अगर उन के साथ कोई धोखाधड़ी हो भी गई तो वे पुलिस में शिकायत कर कानूनी काररवाई कर देंगे.

यही कारण रहा कि लोग तेजी के साथ इन ऐप्स के जरिए इनवैस्टमेंट करते चले गए. लेकिन 2 महीने बाद ही धोखाधड़ी करने वाले संचालक अपनी असलियत पर आ गए. बड़ी रकम जमा कराने वाले लोगों का पैसा वापस लौटाने का नंबर आया तो उन के मोबाइल पर ये ऐप्स ब्लौकहोने लगे, लिहाजा जल्द ही लोगों को समझ में आने लगा कि यह धोखाधड़ी का एक जाल है.

लोगों ने पुलिस में शिकायतें करनी शुरू कर दीं और सोशल मीडिया पर अपने इन कड़वे अनुभव और धोखाधड़ी की कहानी लिखनी शुरू कर दी.

इसी के बाद दिल्ली पुलिस और देश के दूसरे राज्यों की पुलिस ने इस धोखाधड़ी के नेटवर्क को तोड़ने के लिए छानबीन कर ऐक्शन लेने का काम शुरू कर दिया.

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पुलिस ने बैंक खाते कराए सीज

पुलिस ने शेख रौबिन, सीए अविक केडिया, रौनक बंसल और पेमा के अलावा दिल्ली के रहने वाले उमाकांत अक्श जौय, वेद चंद्रा , हरिओम और अभिषेक मंसारमाणी नाम के 4 लोगों को गिरफ्तार किया. ये सभी घोटाले में इस्तेमाल की जा रही मुखौटा कंपनियों के निदेशक थे और इन कंपनियों के खातों में ठगी की रकम ट्रांसफर हुई थी.

दिल्ली के ही रहने वाले एक आरोपी अरविंद को भी गिरफ्तार किया गया, जिस ने 3 व्यक्तियों को एकमुश्त भुगतान ले कर शैल कंपनियों को निदेशक बनने के लिए तैयार किया था.

शशि बंसल और मिथलेश शर्मा नाम की दिल्ली की 2 महिलाओं को चीनी जालसाजों को अपनी शैल कंपनियां और अपने नाम से खोले गए बैंक खाते ठगी के रकम को ट्रांसफर करने के लिए उपलब्ध कराने के आरोप में गिरफ्तार किया गया.

पुलिस ने अभी तक की जांच में 29 बैंक खातों का पता लगाया है, जिन में ठगी की रकम एक खाते से दूसरे खातों में भूलभुलैया पैदा करने के लिए ट्रांसफर की गई थी. इन बैंक खातों में पड़ी करीब 12 करोड़ की रकम को पुलिस ने सीज करवा दिया है. इस के अलावा सभी आरोपियों से करीब 30 सक्रिय मोबाइल फोन बरामद किए गए थे. इन में से अधिकांश का इस्तेमाल बैंक खातों के संचालन और पेमेंट गेटवे के खातों के औपरेशन में हो रहा था.

दोनों सीए अविक केडिया व रौनक बंसल से पता चला कि शेख रौबिन के अलावा वे चीनी जालसाजों के सीधे संपर्क में भी थे और उन से टेलीग्राम, डिंगटौक, वीचैट आदि के माध्यम से संपर्क में रहते थे.

अगले भाग में पढ़ें- रोचक खुलासों से चौंकी पुलिस

Manohar Kahaniya- पाक का नया पैंतरा: भाग 2

सौजन्य- मनोहर कहानियां

इशारा मिलते ही बौर्डर के दूसरी तरफ से करीब 10 फुट लंबा एक पीवीसी पाइप तारों के बीच से निकाला गया. इस पाइप में डाल कर कपड़े की माला के रूप में हेरोइन के पैकेट दूसरी तरफ से धकेले गए, जो भारतीय सीमा में निकल आए. हरमेश और रूपा इन पैकेटों को निकाल रहे थे, तभी बीएसएफ ने फायरिंग कर दी. इस पर वे तीनों हेरोइन के पैकेटों को छोड़ कर अंधेरे में अपनी जान बचाते हुए कच्चे रास्तों पर भाग निकले.

भागते हुए उन्होंने बौस को वाट्सऐप काल भी की, लेकिन उस ने काल रिसीव नहीं की. इस के बाद वे सुरक्षा एजेंसियों से बचते हुए इधरउधर भागते हुए खेतों में छिपते रहे, लेकिन सुरक्षा बलों की नजरों से बच नहीं सके और वे दोनों पकड़े गए.

काला सिंह के नहीं मिलने पर यह माना गया कि पूरे इलाके से वाकिफ होने के कारण वह फायरिंग होने पर भाग कर बौस तक पहुंच गया और दोनों गाड़ी से वहां से फरार हो गए.

दोनों तसकरों से पूछताछ के बाद बीएसएफ ने जांचपड़ताल की, तो पता चला कि 2-3 जून की रात करीब डेढ़-दो बजे बौर्डर पर पाकिस्तानी रेंजर्स ने सरकारी गाड़ी से तसकरों को बंदली पोस्ट के सामने जीरो लाइन तक पहुंचाया था. इस गाड़ी से तसकरों के साथ हेरोइन और पीवीसी पाइप लाया गया था. बाद में यह गाड़ी पाकिस्तान के वाच टावर की तरफ चली गई.

पाकिस्तानी तसकरों ने पाइप में तारबंदी के पास घनी झाडि़यों और रेत के टीलों की ओट में हेरोइन के पैकेट डाले और भारतीय सीमा से पत्थर फेंके जाने का इंतजार किया. पत्थर फेंकने पर इशारा मिलते ही पाक तसकरों ने वह पीवीसी पाइप तारबंदी के बीच से भारतीय सीमा में सरका दिया.

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बीएसएफ को मिली थी गुप्त सूचना

बीएसएफ को जांच में बंदली सीमा चौकी के सामने पाक के वाच टावर की ओर जाती गाड़ी के निशान मिले और एक गाड़ी भी टावर के पीछे खड़ी नजर आई. इस से पाकिस्तान के नापाक इरादे के सारे शक पुख्ता हो गए.

दरअसल, बीएसएफ की गुप्तचर शाखा को कई दिनों से यह सूचनाएं मिल रही थीं कि पाकिस्तानी तसकर जम्मूकश्मीर और पंजाब बौर्डर के रास्तों पर ज्यादा सख्ती होने के बाद से राजस्थान से लगी सीमाओं पर हेरोइन की तसकरी के सुरक्षित रास्ते तलाश रहे हैं. हेरोइन की तसकरी के जरिए पाकिस्तान भारत में नारको टेरेरिज्म फैलाने की साजिश रच रहा है.

इन्हीं सूचनाओं के बीच पाकिस्तान के कुख्यात तसकर मलिक चौधरी को 9 मई, 2021 के आसपास बौर्डर पर देखा गया था. माना जा रहा है कि वह अपने विश्वस्त सहयोगियों के साथ भारत में हेरोइन तसकरी के लिए सुरक्षित पौइंट की जगह तलाश कर रहा था.

बीएसएफ इंटेलिजेंस को मलिक की आवाजाही की भनक लग गई थी. इस के बाद बीएसएफ ने बौर्डर पर खाजूवाला की 114 बटालियन और सतराना की 127 बटालियन के इलाके में चौकसी कड़ी कर दी थी.

इसी के साथ फ्रंटियर के आईजी पंकज गूमर और डीआईजी (इंटेलिजेंस) मधुकर से सूचनाएं साझा की गईं. डीआईजी पुष्पेंद्र सिंह और बटालियन कमांडेंट अमिताभ पंवार ने सर्च औपरेशन प्लान किया. जी ब्रांच के डिप्टी कमांडेंट दीपेंद्र सिंह शेखावत के नेतृत्व में टीम बनाई गई. इस टीम ने खाजूवाला से सतराना तक सर्च औपरेशन कर दिया.

इसी दौरान सूचनाएं मिलती रहीं कि तसकर खराब मौसम का फायदा उठा कर हेरोइन डिलीवर कर सकते हैं. राजस्थान के सीमाई इलाकों में जून का महीना खराब मौसम में गिना जाता है. इस दौरान लू और आंधी चलती है. आंधी चलने से हवा में बहुतायत से रेत उड़ती है.

इस से पहले भी फरवरी 2021 में बीकानेर के खाजूवाला की संग्रामपुरा और कोडेवाला सीमा चौकी के बीच हेरोइन तसकरी की कोशिश की गई थी. इस मामले में खाजूवाला थाने में एफआईआर दर्ज कराई गई थी, लेकिन पुलिस किसी को नहीं पकड़ सकी.

तसकरों से की गई गहन पूछताछ

इस मामले में तब तारबंदी के दोनों तरफ 2-2 तसकरों के पैरों के निशान (फुट प्रिंट) मिले थे. जांच में सामने आया था कि भारतीय सीमा में 2 तसकर सड़क पर बाइक छोड़ कर पैदल ही तारबंदी तक गए थे. 2 अन्य तसकर सड़क पर ही रहे थे. मौके पर 2 बाइकों के टायरों के निशान, चाकू, कपड़ा, पानी की बोतल आदि चीजें मिली थीं.

3 जून, 2021 की रात पकड़ी गई 283 करोड़ रुपए की हेरोइन के सिलसिले में गिरफ्तार किए गए 2 तसकर रूपा और हरमेश से पूछताछ में पता चला कि अफगानिस्तान की यह हेरोइन पंजाब पहुंचाई जानी थी. लौकडाउन और तसकरी के दूसरे रास्ते बंद होने के कारण वहां सब से ज्यादा डिमांड हो रही थी.

राजस्थान फ्रंटियर पर अब तक की सब से बड़ी हेरोइन तसकरी पकड़े जाने और दोनों गिरफ्तार तसकरों से कुछ सुराग मिलने के बाद सुरक्षा एजेंसियां हरकत में आ गईं. नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो ने दोनों आरोपियों को अदालत में पेश कर 7 दिनों के रिमांड पर लिया.

बाद में उन्हें बीएसएफ के 127 बटालियन हैडक्वार्टर पर ले जा कर पूछताछ की गई. एनसीबी के डीडीजी ज्ञानेश्वर सिंह ने भी वहां पहुंच कर दोनों तसकरों से पूछताछ की.

इन से पता चला कि पंजाब का कुख्यात तसकर काला सिंह इस इलाके से पूरी तरह वाकिफ था. वह कई बार इस इलाके में आ कर रैकी कर चुका था.

बौर्डर पर सभी सीमा चौकियों तक पक्की सड़कें बनी हुई हैं. इसलिए वहां तक वाहनों की आवाजाही आसान है. काला सिंह ही उन्हें कैंपर गाड़ी से बौर्डर पर ले कर आया था.

खास बात यह पता चली कि पंजाब का रहने वाला काला सिंह उर्फ हरमेश केवल 20 साल का है. उस के खिलाफ कई संगीन मुकदमे दर्ज हैं. वह करीब 4 साल से हेरोइन की तसकरी में लिप्त है. यानी वह बालिग होने से पहले से ही 15-16 साल की उम्र में इस धंधे में उतर आया था.

वह 2019 में अमृतसर में हेरोइन और अवैध हथियार के साथ पकड़ा गया था. जमानत पर छूटने के बाद उस ने पंजाब के फिरोजपुर में एक मर्डर कर दिया था, जिस का मुकदमा फिरोजपुर सिटी थाने में दर्ज है. पंजाब पुलिस इस मामले में उस की तलाश कर रही थी.

अगले भाग में पढ़ें- कैसे नारको टेरेरिज्म फैलाने की साजिश की गई?

Manohar Kahaniya: चित्रकूट जेल साजिश- भाग 2

सौजन्य- मनोहर कहानियां

चूंकि वारदात के समय कोरोना बीमारी के कारण 2 डिप्टी जेलर छुट्टी पर थे और जेलर व जेल अधीक्षक जेल के बाहर अपने आवास में थे, जबकि नियमत: उन में से किसी एक को जेल के भीतर होना चाहिए था.

इस से साफ हो गया कि कहीं न कहीं जानबूझ कर या अनजाने में लापरवाही हुई है. इसीलिए डीआईजी (जेल) संजीव त्रिपाठी की रिपोर्ट पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यानाथ ने चित्रकूट जेल हत्याकांड मामले में चित्रकूट जेल के जेलर महेंद्र पाल व और जेल अधीक्षक श्रीप्रकाश त्रिपाठी को निलंबित कर दिया और उन के खिलाफ विभागीय काररवाई के भी आदेश दिए गए. साथ ही 3 अन्य जेल कर्मचारी संजय खरे, हरिशंकर राम और अमित कुमार को भी सस्पेंड किया गया.

उन की जगह अशोक कुमार सागर को चित्रकूट का नया जेल अधीक्षक बनाया गया. वहीं सी.पी. त्रिपाठी चित्रकूट जेल के नए जेलर बनाए गए.

लेकिन सब से बड़ा सवाल यह था कि आखिर अंशुल ने मेराज व मुकीम काला की हत्या क्यों की? जेल के भीतर यह शूटआउट जिस तरह से हुआ था, उस से एक बात तो साफ थी कि किसी ने साजिश रच कर मेराज व मुकीम काला को जेल के भीतर मरवाया है और अंशुल को शूटर के तौर पर इस्तेमाल किया गया था.

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मारे गए तीनों थे कुख्यात अपराधी

जिस तरह वारदात के समय अंशुल मुख्तार अंसारी का नाम बारबार ले कर उस के गैंग को खत्म करने की बात कर रहा था, उस से भी स्पष्ट था कि मुख्तार अंसारी के किसी दुश्मन ने उसे कमजोर करने के लिए इस काम को अंजाम दिया या फिर मुख्तार गैंग ने ही इस शूटआउट को अंजाम दिलवाया है.

शासन के आदेश पर डीआईजी (जेल) संजीव त्रिपाठी के अलावा चित्रकूट जिला पुलिस की जांच टीम के सीओ (सिटी) शीतला प्रसाद पांडेय, कोतवाल वीरेंद्र त्रिपाठी, एसआई रामाश्रय सिंह को मिला कर एक जांच दल गठित किया, जिस ने धीरेधीरे इन सवालों के जवाब तलाशने शुरू कर दिए.

इन तमाम सवालों के जवाब जानने से पहले हमें चित्रकूट जेल के शूटआउट में मारे गए तीनों अपराधियों के जुर्म का इतिहास खंगालना होगा.

अंशुल सीतापुर जिले के मानकपुर कुड़रा बनी का मूल निवासी था. पुलिस कस्टडी के दौरान अंशुल अपराध की दुनिया के सफर में अपने शामिल होने की जो कहानी सुनाता था, उस के मुताबिक सीतापुर में एक राजनैतिक पार्टी के नेता का बेटा उस की बहन से छेड़छाड़ करता था. ऐसी हरकत से मना करने पर उस नेता के बेटे ने गुंडई की. सरेआम पिटाई करने के बाद अंशुल पर गोली दाग दी.

नेता के बेटे द्वारा किए गए हमले में अंशुल के पैर में गोली लगी. जब वह शिकायत ले कर थाने गया तो थानाप्रभारी ने काररवाई करने से मना कर दिया. इस दौरान उस के पूरे परिवार का उत्पीड़न किया गया. इस उत्पीड़न की वजह से उस की भाभी को काफी तकलीफ उठानी पड़ी. इस दौरान भाभी का गर्भपात भी हो गया.

उस के बाद से अंशुल ने ठान लिया कि वह अब बदला ले कर ही रहेगा. अंशुल को फैजाबाद के एक नेता का वरदहस्त मिला, तब उस ने स्थानीय नेता के बेटे की हत्या कर इंतकाम की आग शांत की.

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कालेज में हुआ था अपराधियों से संपर्क

अंशुल दीक्षित ने तब तक लखनऊ विश्वविद्यालय में दाखिला ले लिया था, जहां वह कई अपराधियों के संपर्क में आया और उसी की बदौलत उस ने अपना बदला भी लिया. लखनऊ यूनिवर्सिटी के पूर्व महामंत्री विनोद त्रिपाठी से उन दिनों उस की सब से गहरी दोस्ती थी. उसी की बदौलत अंशुल का अपराधियों के साथ नेटवर्क बना था.

लेकिन बाद में किसी विवाद में अंशुल ने ही 11 दिसंबर, 2008 को गोमतीनगर के नेहरू इनक्लेव में विनोद त्रिपाठी और उस के साथी गौरव की हत्या कर दी थी.

विनोद त्रिपाठी की हत्या के केस में छात्र नेता हेमंत सिंह, विपिन सिंह और अश्वनी उपाध्याय गवाह थे. हालांकि अंशुल के खौफ से विपिन और अश्वनी ने आधी गवाही के बाद ही पैर पीछे खींच लिए.

लेकिन हेमंत, अंशुल को सजा दिलाने पर अड़ा था. इसलिए अंशुल हेमंत को गवाही से पीछे हटाने के लिए जान से मारने की धमकी दे रहा था. इसी दौरान वह मुख्तार अंसारी के भी संपर्क में आया और उस के लिए छिटपुट काम भी किए.

सन 2008 में वह गोपालगंज (बिहार) के भोरे में अवैध असलहों के साथ पहली बार पकड़ा गया था. लेकिन 6 साल बाद 17 अक्तूबर, 2013 को पेशी से लौटते समय वह सीतापुर रेलवे स्टेशन पर सिपाहियों को जहरीला पदार्थ खिला कर फायर करते हुए फरार हो गया था. बाद में उस पर 50 हजार का ईनाम घोषित हुआ.

पुलिस कस्टडी से फरार होने के बाद 27 सितंबर, 2014 को अंशुल की भोपाल में मौजूदगी की सूचना पर एसटीएफ लखनऊ के दारोगा संदीप मिश्र उसे भोपाल क्राइम ब्रांच के साथ गिरफ्तार करने गए थे. लेकिन यहां भी अंशुल दीक्षित पुलिस पर फायरिंग करते हुए भाग निकला.

उस की गोली से दरोगा संदीप मिश्र तथा क्राइम ब्रांच (भोपाल) के सिपाही राघवेंद्र घायल हो गए थे.

बन गया मुख्तार अंसारी का शार्प शूटर

लेकिन पुलिस पर हमला करने के बाद एसटीएफ हाथ धो कर अंशुल के पीछे पड़ गई और 4 दिसंबर, 2014 को गोरखपुर की स्पैशल टास्क फोर्स ने अंशुल दीक्षित को गिरफ्तार कर लिया था.

पुलिस की गिरफ्त में आया अंशुल तब तक कई बड़ी वारदातों को अंजाम दे चुका था. तब तक उस की पहचान अपराध जगत में माफिया सरगना मुख्तार अंसारी का खास व उस के शार्प शूटर के रूप में बन चुकी थी.

गिरफ्तारी के बाद लखनऊ जेल से अंशुल को 30 सितंबर, 2018 को रायबरेली जेल लाया गया. अंशुल दीक्षित रायबरेली कारागार में करीब 50 दिन रहा. इतने दिनों में ही उस ने अपने साथियों के साथ मिल कर जेल के भीतर अनुशासन की धज्जियां उड़ा दी थीं.

यहां उस ने शातिर बदमाश दलशृंगार सिंह और सोहराब के साथ मिल कर कई वीडियो बनाए. इन वीडियो के बल पर वह जेल के अफसरों को ब्लैकमेल करने लगा. बात जब सिर के ऊपर से गुजरी तो उसे व उस के साथियों को 20 नवंबर, 2018 को प्रतापगढ़ जेल शिफ्ट कर दिया गया.

अंशुल ने यहां भी अपने कारनामे जारी रखे. और एक के बाद एक 6 वीडियो वायरल किए. इस के बाद उसे 9 दिसंबर 2019 को उत्तर प्रदेश की नई हाईटेक चित्रकूट जेल भेजा गया.

तब से वह इसी जेल में बंद था. अंशुल जल्द ही चित्रकूट जेल में रम गया और ठाठ से रहने लगा. बताया जाता है कि जेल में उस से मुलाकात करने वाले उसे बड़ी रकम दे कर जाते थे. जेल के सभी वार्डनों, डिप्टी  जेलर तथा उच्चाधिकारियों से उस की गहरी सांठगांठ हो गई थी.

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कुख्यात गैंगस्टर था मुकीम काला

अंशुल की तरह मुकीम काला भी कुख्यात अपराधी था. मुकीम काला शामली जिले के कैराना थाना क्षेत्र के जहानपुरा गांव का रहने वाला था. उस पर शामली, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर के अलावा दिल्ली, पंजाब, राजस्थान और हरियाणा में 61 से अधिक आपराधिक मुकदमे दर्ज थे.

इन में लूट, रंगदारी, अपहरण, फिरौती के 35 से ज्यादा मुकदमे थे. मुकीम काला के दूसरे भाई वसीम काला को सन 2017 में एसटीएफ ने मेरठ में मुठभेड़ में मार गिराया था.

अपराध की दुनिया में आने से पहले मुकीम काला करीब 12 साल पहले राजमिस्त्री का काम करता था. लेकिन बाद में अपराधियों के संपर्क में आ कर मुकीम काला पश्चिमी उत्तर प्रदेश का कुख्यात गैंगस्टर बन गया. उस पर एक लाख रुपए का ईनाम भी रखा जा चुका था.

सपा सरकार में मुकीम काला का वेस्ट यूपी में जबरदस्त आतंक था. यूपी ही नहीं, हरियाणा, पंजाब और राजस्थान में भी उस के खिलाफ कई मामले दर्ज थे.

मुकीम काला ने हरियाणा के पानीपत में एक मकान में डकैती डाल कर पहली वारदात को अंजाम दिया. इस मामले में जेल गया. जेल में ही उस की मुलाकात सहारनपुर जिले के थाना गंगोह के मुस्तफा उर्फ कग्गा से हुई थी, जिस के बाद मुस्तफा उर्फ कग्गा ने उसे अपने गैंग में शामिल कर लिया. मुकीम के आने के बाद कग्गा का गैंग और मजबूत हो गया. पुलिस पर हमले करने के बाद यह गैंग रडार पर आया.

दिसबंर 2011 में पुलिस एनकाउंटर में मुस्तफा उर्फ कग्गा मारा गया. मुस्तफा की मौत के बाद मुकीम काला ने कग्गा के गैंग की बागडोर संभाल कर सरगना बन गया. काला के गैंग में 20 से अधिक बदमाश शामिल रहे.

इसी दौरान मुकीम काला भी मुख्तार के संपर्क में आया जो उस के धर्म से जुड़ा बड़ा माफिया होने के साथ एक सियासी रसूख वाला व्यक्ति भी था. मुख्तार के कहने पर काला ने कई वारदातों को अंजाम दिया.

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मुकीम काला जेल में बंद रहे या बाहर रहे, लेकिन अपने क्षेत्र कैराना में उस के नाम का इतना आतंक व्याप्त हो चुका था कि वहां रहने वाले हिंदू कारोबारियों से वह खुल कर रंगदारी वसूलने लगा. जो रंगदारी नहीं देता उसे मुकीम का गिरोह मौत के घाट उतार देता था.

उस की दहशत इतनी फैल गई कि कैराना में रहने वाले हिंदू परिवार वहां से डर के कारण पलायन करने लगे, जिसे 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने बड़ा मुद्दा तक बनाया.

अगले भाग में पढ़ें2 जेलर आए शक के दायरे में

Satyakatha- डॉक्टर दंपति केस: भरतपुर बना बदलापुर- भाग 1

सौजन्य- सत्यकथा

बात 28 मई की है. शाम के करीब पौने 5 बजे का वक्त रहा होगा. राजस्थान के भरतपुर शहर में डा. सुदीप गुप्ता अपनी पत्नी डा. सीमा गुप्ता के साथ कार से कुम्हेर गेट पर जाहरवीर मंदिर में दर्शन करने जा रहे थे. रोजाना शाम को मंदिर में जा कर दर्शन करना उन की दिनचर्या में शुमार था.

गुप्ता दंपति का शहर में काली की बगीची पर श्रीराम गुप्ता मेमोरियल हौस्पिटल है. इसी हौस्पिटल के ऊपरी हिस्से में वह अपने परिवार के साथ रहते थे. परिवार में डा. सुदीप की मां सुरेखा, पत्नी डा. सीमा और 18 साल का बेटा तथा 15 साल की बेटी थी.

डाक्टर दंपति 5 मिनट पहले ही अपने हौस्पिटल से मंदिर के लिए रवाना हुए थे. कार डा. सुदीप चला रहे थे. डा. सीमा उन के साथ आगे की सीट पर बैठी हुई थी. वह घर से करीब 750 मीटर दूर ही पहुंचे थे कि सरकुलर रोड पर नीम दा गेट के पास पीछे से आए एक मोटरसाइकिल पर सवार 2 युवकों ने साइड से ओवरटेक कर अपनी बाइक उन की कार के आगे लगा दी.

सड़क के बीच बाइक रुकने से डा. सुदीप ने फुरती से कार के ब्रेक लगाए. सुदीप कुछ समझ पाते, इस से पहले ही बाइक से उतर कर दोनों युवक कार की ड्राइविंग साइड में डा. सुदीप की तरफ आए. इन में एक युवक ने लाल कपड़े से अपना मुंह ढक रखा था और दूसरे युवक ने न तो मास्क लगाया हुआ था और न ही हेलमेट पहना हुआ था.

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इन दोनों युवकों को डा. सुदीप पहचान नहीं सके. कार के सामने बाइक लगाने की वजह जानने के लिए डा. सुदीप ने अपनी कार के गेट का शीशा नीचे किया.

डा. सुदीप उन युवकों से सवाल पूछते, इस से पहले ही मुंह पर कपड़ा बांधे युवक ने अपनी पैंट में छिपी पिस्तौल निकाली. उस ने बिना कुछ कहेसुने डा. सुदीप की कनपटी के पास 2-3 गोलियां मार दीं. डा. सुदीप के पास आगे की सीट पर ही बैठी डा. सीमा कुछ समझती, इस से पहले ही उस युवक ने उसे भी गोलियों से भून दिया.

डाक्टर दंपति पर गोलियां चलाने के बाद उस युवक ने कुछ पल रुक कर यह तसल्ली की कि दोनों की मौत हुई या नहीं. इस के बाद डा. सुदीप को एक गोली और मारी. फिर सड़क के दोनों ओर से गुजर रहे लोगों को डराने के लिए पिस्तौल से हवा में गोलियां चलाईं.

दोनों युवक बाइक पर सवार हो कर भागने लगे, लेकिन बाइक स्टार्ट नहीं हुई. इस पर गोलियां चलाने वाले युवक ने धक्का दिया. बाइक स्टार्ट होने पर दोनों उस पर सवार हो कर यूटर्न ले कर भाग गए. भागते हुए भी उन्होंने पिस्तौल से हवा में गोलियां चलाईं.

गोलियां लगने से डा. सुदीप और सीमा अपनी कार में ही लुढ़क गए. शहर के सब से प्रमुख रोड पर दिनदहाड़े हुई इस वारदात के समय सड़क के दोनों ओर वाहन लगातार आजा रहे थे, लेकिन किसी ने भी न तो बदमाशों को रोकने की हिम्मत की और न ही उन का पीछा किया. इसीलिए दोनों युवक जिस तरफ से आए थे, बाइक से उसी तरफ भाग गए. यह वारदात वहां आसपास लगे सीसीटीवी कैमरे में कैद जरूर हो गई.

खास बात यह हुई कि डाक्टर दंपति को सरेआम गोलियां मारने की वारदात लौकडाउन के दौरान हुई. कोरोना संक्रमण की चेन तोड़ने के लिए पूरे राजस्थान में अप्रैल महीने के तीसरे सप्ताह से ही लौकडाउन लगा हुआ था. लौकडाउन में हालांकि आम लोगों के घर से निकलने पर रोक लगी हुई थी, लेकिन फिर भी लोग किसी न किसी बहाने घर से बाहर निकलते ही थे. हरेक चौराहों के अलावा जगहजगह पुलिस तैनात रहती थी. इतनी सख्ती होने के बावजूद दोनों युवक पिस्तौल से गोलियां चलाते हुए भाग गए और पुलिस को पता भी नहीं चला.

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दोनों युवकों के भागने के बाद आसपास के लोग मौके पर एकत्र हो गए. उन्होंने कार में लुढ़के पड़े डा. सुदीप और उस की पत्नी सीमा को पहचान लिया और पुलिस को सूचना दी. कुछ ही देर में पुलिस पहुंच गई. मौके पर एकत्र लोगों ने बताया कि ये डा. सुदीप और उस की पत्नी है. पुलिस ने लोगों की मदद से दोनों को कार से निकाला और तुरंत अस्पताल ले गए. अस्पताल में डाक्टर दंपति को मृत घोषित कर दिया.

दिनदहाड़े डाक्टर दंपति की हत्या की घटना से शहर में दहशत फैल गई. पुलिस के अफसर मौके पर पहुंच गए. शुरुआती जांचपड़ताल में ही साफ हो गया कि डाक्टर दंपति की हत्या बदला लेने के लिए की गई थी.

डाक्टर दंपति के खौफनाक अंत के पीछे की कहानी इस से भी ज्यादा खौफनाक है. उस कहानी तक ले चलने से पहले आप को बता दें कि डा. सुदीप की एक प्रेमिका थी. उस का नाम था दीपा गुर्जर. दीपा के 6 साल का बेटा शौर्य था.

अगले भाग में पढ़ें- क्या दीपा का भाई  फायरिंग की घटना में शामिल था?

Crime: अपराध अर्थात “खून” बोलता है!

कहते हैं जघन्य अपराध कभी छुपता नहीं है, खास तौर पर हत्या. यह एक ऐसा गंभीर अपराध है जो हत्यारे की जिंदगी को तबाह कर देता है हत्या का आरोपी जिंदगी भर तिल तिल कर पश्चाताप अथवा भय से मरता रहता है.

अगर कानून और पुलिस से बच भी जाए तो यह अपराध उसे माफ नहीं करता और एक न एक दिन उसे सजा अवश्य मिलती है. ऐसा ही एक सच्चा घटनाक्रम छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर घटित हुआ है. पुलिस को युवक की हत्या की गुत्थी को सुलझाने में 10 साल लग गए. आखिरकार उसे 10 साल बाद अपने अपराध की सजा मिल ही गई. देखिए! क्या और कैसे घटनाक्रम बदला. दरअसल,  पुलिस हत्या की फाइल तक बंद कर चुकी थी. लेकिन आखिरकार अब नया सुराग मिलते ही पुलिस ने हत्या के आरोप में दो आरोपीयों को गिरफ्तार कर सजा दिलाई है. तथ्य सामने आया है कि आरोपी ने अपने “अवैध संबंध” को छुपाने के लिए युवक की हत्या की थी. लेकिन उसने बातों में आखिरकार दस साल बाद इसकी जानकारी अपने दोस्त को  दे दी और बात पुलिस तक पहुंच गई. इस तरह एक दोस्त ने ही कानून की मदद कर अपने अपराधी दोस्त को सलाखों के पीछे पहुंचा दिया.

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सर कुचल कर हत्या

10 साल पहले जनवरी 2011 में राजधानी रायपुर के खरोरा थाना क्षेत्र में एक व्यक्ति की हत्या हुई थी.  ग्राम कोसरंगी  में पुलिस को लेखराम सेन नाम के व्यक्ति की खेत में लाश मिली थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में पाया गया कि उसकी हत्या बेल्ट से गला दबाकर और सिर कुचलकर की गई थी. पुलिस इस अंधे कत्ल को सुलझाने की भरसक कोशिश की मगर जब कोई सुराग नहीं मिला तो पुलिस ने केस को खत्म कर दिया . लेकिन एक दिन अचानक पुलिस को 10 साल बाद सुराग मिला और आरोपी का राज खुल गया.

मुख्य आरोपी संतोष यादव ने कुछ दिन पहले इसी हत्या की पूरी दास्तां बातों बातों में अपने दोस्त को बताई . उसी दोस्त का जमीर जाग उठा और यह सच्चाई पुलिस तक पहुंच तक पहुंचा दी. फिर क्या था, पुलिस ने दो आरोपीयों संतोष यादव और लोकेश यादव को धर दबोचा. पुलिस का भी मानना है यदि आरोपी इस हत्या के राज को राज ही रखता, तो उसका पकड़ा जाना नामुमकिन था. लेकिन हत्या का अपराध छुपता नहीं सो एक बार फिर सिद्ध हो गया कि खून सचमुच बोलता है!

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अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक ग्रामीण तारकेश्वर पटेल ने हमारे संवाददाता को बताया दस साल पहले हत्या के मामले में पुलिस ने अज्ञात आरोपी के खिलाफ अपराध दर्ज किया था. सालों साल तक आरोपी की गिरफ्तारी नहीं हो सकी. रायपुर पुलिस ने पुराने गंभीर लंबित मामलों की समीक्षा की. जिसके बाद इस मामले को भी सुलझाने के निर्देश दिए गए थे. मामले की नए सिरे से जांच की गई. संदेह के आधार पर 2 युवक संतोष यादव और लोकेश यादव को हिरासत में लेकर पूछताछ की गई.

पुलिस  पूछताछ में दोनों ने अंततः हत्या करना स्वीकार कर लिया. आरोपियों ने पुलिस को बताया कि मुख्य आरोपी संतोष यादव अपनी प्रेमिका को मिलने बुलाया था. जिस जगह पर वह मिल रहा था, वहां अचानक लेखराम सेन पहुंच गया और धमकाने लगा. अपने अवैध संबंध को छुपाने के लिए दोनों ने उसकी हत्या कर दी और शव को खेत में छोड़कर भाग गए. पुलिस ने दोनों आरोपी को प्रारंभिक साक्ष्य के आधार पर गिरफ्तार कर न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया है.

Satyakatha: अधेड़ औरत के रंगीन सपने- भाग 1

सौजन्य- सत्यकथा

नोएडा के ककराला गांव की पुस्ता कालोनी में रात के ढाई बजे सायरन बजाती पुलिस की गाडि़यों और एक घर के बाहर जमा कालोनी के लोगों की भीड़ इस बात की ओर इशारा कर रही थी कि वहां कोई अनहोनी हुई है. दरअसल, 7 मई 2021 की दरमियानी रात को पुस्ता कालोनी में रामचंद्र सिंह के मकान में किराए पर रहने वाले 52 वर्षीय संतराम की घर में घुस कर कुछ बदमाशों ने हत्या कर दी थी.

जिस वक्त ये वारदात हुई, रात के करीब एक बजे का वक्त था. पुलिस घटनास्थल पर सूचना मिलने के बाद करीब ढाई बजे पहुंची. ककराला गांव गौतमबुद्ध नगर कमिश्नरेट के फेज-2 थानाक्षेत्र के अंर्तगत आता है.

फेज-2 थाने के प्रभारी सुजीत कुमार उपाध्याय उस समय कुछ सिपाहियों के साथ गश्त कर रहे थे. जब कंट्रोलरूम ने उन्हें ककराला में रहने वाले संतराम की उस के घर में हुई हत्या की खबर दी.

थानाप्रभारी सुजीत उपाध्याय अगले कुछ ही मिनटों में बताए गए घटनास्थल पर पहुंच गए. घटनास्थल पर तब तक मकान में रहने वाले कुछ दूसरे किराएदारों और आसपड़ोस के लोगों की काफी भीड़ जमा हो चुकी थी. संतराम की हत्या उस के सिर व चेहरे पर ईंटों के वार कर के की गई थी. पास ही खून से लथपथ एक ईंट इस बात की पुष्टि कर रही थी. कमरे का सारा सामान इधरउधर फैला पड़ा था.

मृतक की पत्नी सुशीला जिस की उम्र करीब 55 साल थी, पति के शव के साथ लिपटलिपट कर रो रही थी. किसी तरह पुलिस ने सुशीला को दिलासा दी तो उस ने सुबकते हुए बताया कि रात करीब साढे़ 12 बजे किसी ने हमारे कमरे का दरवाजा खटखटाया.

मैं ने जैसे ही दरवाजा खोला तो 3 लोग जबरदस्ती कमरे में घुस आए. कमरे में घुसते ही उन्होंने मुझे दबोच लिया और पूछा घर में कितने लोग हैं, जेवर और नकदी कहां रखे हैं. पूछताछ करते हुए उन्होंने मुझे एक के बाद एक साथ 3-4 थप्पड़ मारे और लातघूंसों की बारिश करते हुए मुझे जोर से जमीन पर धक्का दे दिया.

दीवार से सिर टकराने के कारण मैं उसी वक्त बेहोश हो गई. इस के बाद बदमाशों ने क्या किया, मुझे नहीं मालूम. जब कुछ देर बाद मुझे होश आया तो मैं ने अपने पति का शव इसी अवस्था में देखा जैसा इस समय आप देख रहे हैं.

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इस के बाद मैं ने शोर मचा कर अपने मकान के दूसरे किराएदारों और आसपड़ोस के लोगों को एकत्र किया. बाद में अपने जेठ लालूराम को फोन किया. वह गौतमबुद्ध नगर के गांव धूममानिकपुर में रहता था. वह भी एक घंटे में सूचना पा कर आ गया.

थानाप्रभारी सुजीत उपाध्याय को घटना का निरीक्षण करने और सुशीला के बयान से साफ लग रहा था कि संभवत: कुछ बदमाश लूटपाट के इरादे से घर में घुसे होंगे.

घटना का जो खाका तैयार हुआ था उस की पुष्टि के लिए थानाप्रभारी उपाध्याय ने एकएक कर उस मकान में रहने वाले सभी किराएदारों, आसपड़ोस के लोगों और संतराम के बड़े भाई लालूराम से पूछताछ की तो पता चला कि संतराम घरों का निर्माण करने वाला छोटामोटा ठेकेदार था. ठेकेदारी में वह राजमिस्त्रियों की टीम ले कर निर्माण का काम करता था.

इस काम में वहीं आसपास रहने वाले उस के जानकार उस की टीम में शामिल होते थे. संतराम के बारे में एक अहम जानकारी यह मिली कि वह बेहद सरल स्वभाव का इंसान था. आज तक उस का किसी से झगड़ा या दुश्मनी की बात भी किसी को पता नहीं चली थी.

पुलिस को पूछताछ में किसी से भी ऐसी कोई जानकारी नहीं मिली जिस से हत्याकांड के बारे में तत्काल कोई सुराग मिल पाता.

सुशीला इस घटना की एकमात्र चश्मदीद थी, लेकिन उस ने पूछताछ में बताया कि उस ने आज से पहले कभी उन हमलावरों को नहीं देखा था, वह उन के चेहरे और हुलिए के बारे में भी कोई खास जानकारी नहीं दे सकी. अलबत्ता उस ने यह जरूर कहा कि अगर वे लोग दोबारा उस के सामने आए तो वह उन्हें पहचान सकती है.

चूंकि जिस तरह बदमाशों ने घर में घुसते ही सुशीला के ऊपर हमला किया था, उस से जाहिर तौर पर कोई भी इंसान इतना घबरा जाता है कि वह किसी के चेहरेमोहरे को देखने की जगह पहले अपना बचाव और जान बचाने की कोशिश करता है.

लेकिन 2 ऐसी बातें थीं जो अब तक की जांच व पूछताछ में थानाप्रभारी सुजीत उपाध्याय को परेशान कर रही थीं. एक तो यह बात कि सुशीला के शरीर के सभी हिस्सों  का निरीक्षण करने के बाद भी उन्हें ऐसी कोई गुम या खुली हुई चोट नहीं मिली, जिस से साबित हो कि वह बेहोश हो गई थी. मतलब उस के शरीर पर खरोंच तक के निशान नहीं थे. दूसरे वह पुलिस को घर में लूटपाट होने वाले सामान की जानकारी नहीं दे सकी.

दरअसल, जिन बदमाशों ने घर में घुस कर एक आदमी की विरोध करने पर हत्या कर दी हो, क्या वह बिना कोई लूटपाट किए चले गए होंगे. दूसरे संतराम जिस हैसियत का इंसान था और किराए के मकान में जिस तरह का सामान मौजूद था, उसे देख कर कहीं से भी नहीं लग रहा था कि उस घर में लूटपाट करने के लिए बदमाश किसी की हत्या भी कर सकते हैं.

ऐसे तमाम सवाल थे जिन के कारण सुशीला पुलिस की निगाहों में संदिग्ध हो चुकी थी. लेकिन उस के पति की हत्या हुई थी इसलिए तत्काल उस से पूछताछ करना उपाध्याय ने उचित नहीं समझा.

इस वारदात की सूचना मध्य क्षेत्र के डीसीपी हरीश चंदर व एडीशनल डीसीपी अंकुर अग्रवाल व इलाके के एसीपी योगेंद्र सिंह को भी लग चुकी थी. सूचना मिलने के बाद वे भी मौके पर पहुंच गए. क्राइम इनवैस्टीगेशन व फोरैंसिक टीम के अफसर भी मौके पर पहुंच गए थे.

घटनास्थल से जरूरी साक्ष्य एकत्र किए गए. उस के बाद शव पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया गया.

मृतक संतराम के भाई लालूराम जो धूममानिकपुर थाना बादलपुर जिला गौतमबुद्ध नगर में रहता है, की शिकायत पर पुलिस ने 7 मई की सुबह भादंसं की धारा 302 के तहत मुकदमा पंजीकृत कर लिया, जिस की जांच का जिम्मा खुद थानाप्रभारी सुजीत उपाध्याय ने अपने हाथों में ले लिया.

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डीसीपी हरीश चंदर ने एसीपी योगेंद्र सिंह की निगरानी में हत्याकांड का खुलासा करने के लिए एक टीम गठित कर दी, जिस में थानाप्रभारी सुजीत उपाध्याय के साथ एसएसआई राजकुमार चौहान, एसआई रामचंद्र सिंह, नीरज शर्मा, हैडकांस्टेबल फिरोज, कांस्टेबल आकाश, जुबैर, विकुल तोमर, गौरव कुमार तथा महिला कांस्टेबल नीलम को शामिल किया गया. पूरे केस में पुलिस काररवाई पर नजर रखने के लिए एडीशनल डीसीपी अंकुर अग्रवाल को जिम्मेदारी सौंपी गई.

हत्या का मुकदमा दर्ज करने के बाद पुलिस ने सब से पहले संतराम के शव का पोस्टमार्टम कर शव को उस के परिजनों को सौंपा, जिन्होंने उसी शाम उस का अंतिम संस्कार कर दिया. इस दौरान दिल्ली व आसपास रहने वाले संतराम के काफी रिश्तेदार उस के घर पहुंच चुके थे.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट से यह बात साफ हो चुकी थी कि संतराम की मौत उस के सिर व चेहरे पर लगी चोटों के कारण हुई थी.

पुलिस टीम ने सभी बिंदुओं को ध्यान में रख क र अपनी  जांच शुरू कर दी. टीम ने सुशीला, उस के पति मृतक संतराम और उन के परिवार की कुंडली को खंगालना शुरू कर दिया.

इतना ही नहीं, पुलिस ने वारदात वाली रात को घटनास्थल के आसपास सक्रिय रहे मोबाइल नंबरों का डंप डाटा भी उठा लिया और उन सभी मोबाइल नंबरों की जांचपड़ताल शुरू की जाने लगी, जो वहां सक्रिय थे.

पुलिस ने संतराम व सुशीला के फोन नंबरों की काल डिटेल्स भी निकलवा ली. इस के अलावा गांव में अपने मुखबिरों को सक्रिय कर दिया.

संतराम पुत्र शंकर राम मूलरूप से उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले के कस्बा व थाना रोजा का रहने वाला था. उस के परिवार में एक भाई लालू राम के अलावा 4 बहनें थी.

यह बात करीब 18-19 साल पहले की है. उन दिनों संतराम अपने गांव व आसपास के इलाकों में राजमिस्त्री का काम करता था. उम्र बढ़ रही थी और उस ने शादी की नहीं थी, इसलिए जो भी कमाता उसे अपने ऊपर खर्च करता था. इंसान के ऊपर जिम्मेदारियां न हों तो शराब ही अधिकांश लोगों की जिंदगी का हिस्सा बन जाती है.

उसी के गांव में बालकराम भी रहता था, जो उसी की बिरादरी का होने के साथ पेशे से राजमिस्त्री का ही काम करता था. यही कारण था कि संतराम की बालकराम से खासी गहरी दोस्ती थी. संतराम का उस के घर भी आनाजाना था. बालकराम विवाहित था परिवार में पत्नी सुशीला और 5 बच्चे थे. 3 बेटे व 2 बेटियों में सब से बड़ा बेटा था.

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संतराम बालकराम के साथ उस के घर में बैठ कर शराब भी पीता था. बालकराम की पत्नी सुशीला 5 बच्चे होने के बाद भी गेहुएं रंग और छरहरे बदन की इतनी आकर्षक महिला थी कि पहली ही नजर में कोई भी उस की तरफ आकर्षित हो जाता था. सुशीला थोड़ा चंचल स्वभाव की महिला थी.

अगले भाग में पढ़ें- संतराम व सुशीला की खुली पोल

MK- पूर्व सांसद पप्पू यादव: मददगार को गुनहगार बनाने पर तुली सरकार- भाग 1

सौजन्य- मनोहर कहानियां 

कोरोना काल में पप्पू यादव ने लोगों की मदद कर जान भी बचाई. बढ़ती महामारी कोरोना के बीच जिस समय देश में तमाम एंबुलेंस चालकरूपी गिद्ध पीडि़तों से मुंहमांगी

रकम वसूल रहे थे, सरकार भी जरूरतमंदों को जरूरी चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध कराने में विफल थी, जिस की वजह से सैकड़ों मरीजों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा. उसी दौरान पूर्व सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव ने 7 मई को सारण जिले के अमनौर कस्बे के विश्वप्रभा सामुदायिक केंद्र परिसर में स्थित एक प्रशिक्षण केंद्र पर औचक छापा मार कर तहलका मचा दिया.

वहां नारंगी रंग के तिरपाल के अंदर दरजनों एंबुलेंस खड़ी मिलीं. यह सारण के भाजपा के वरिष्ठ सांसद राजीव प्रताप रूड़ी का गांव है.

ये सभी एबुंलेंस सांसद राजीव प्रताप रूड़ी की देखरेख में वहां खड़ी थीं. पप्पू यादव ने सभी एंबुलेंस का वीडियो बनाया और अपने ट्वीट पर इसे पोस्ट करते हुए जोरदार सवाल उठाया कि सांसद निधि से खरीदी गई इतनी सारी एंबुलेंस यहां क्यों खड़ी हैं, इस की आधिकारिक जांच होनी चाहिए.

देखते ही देखते पप्पू यादव का यह ट्वीट बिहार सहित पूरे भारत में वायरल हो गया. देश के सभी बड़े टीवी चैनलों पर यह खबर प्रमुखता से चलने लगी. टीवी पर इसे ले कर डिबेट होने लगी. जिस ने भी यह खबर देखी, उस ने कोरोना महामारी की नाजुक घड़ी में राजीव प्रताप रूड़ी द्वारा इतने सारे एंबुलेंस को बेवजह खड़ी रखने के फैसले की निंदा की. इस के साथ ही बिहार में चल रही नीतीश कुमार की सरकार भी लोगों के निशाने पर आ गई.

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इस के बाद बिहार की जनता नीतीश सरकार की नाकामियों पर तरहतरह के तीखे सवाल खड़े करने लगी. अभी कोरोना काल चल रहा था और सरकार लोगों को अच्छी स्वास्थ्य सेवा देने में पूरी तरह असफल साबित हो रही थी. पटना समेत पूरे बिहार में एंबुलेंस औपरेटर कोरोना मरीज के परिवार वालों से मनमाफिक किराया वसूल रहे थे.

ऐसे मुश्किल समय में बिहार की मौजूदा सरकार द्वारा सारण में खड़ी धूल फांक रही इन एंबुलेंसों का उपयोग कर हजारों मरीजों को समय रहते अस्पताल पहुंचा कर उन की जान बचा सकती थी. यह सभी एंबुलेंस कुछ साल पहले बीजेपी के वरिष्ठ सांसद राजीव प्रताप रूड़ी द्वारा जनता की सेवा के लिए सांसद निधि से खरीदी गई थीं.

लेकिन कोरोना महामारी में लाचार लोगों को मरते हुए देखने के बावजूद बीजेपी के वरिष्ठ सांसद राजीव रूड़ी का खामोश रहना बिहार की जनता के प्रति उन के घोर नकारात्मक रवैए को दिखा रहा था.

एंबुलेंस के अभाव के कारण परिजनों द्वारा मरीजों को ठेलों पर लाद कर अस्पताल तक पहुंचाते देखा जा सकता था. ऐसी विकट परिस्थिति में अगर ये एंबुलेंस मरीजों को समय पर अस्पताल पहुंचाने के काम आ जातीं तो सैकड़ों गरीब असहाय लोगों की जानें बचाई जा सकती थीं.

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वीडियो हुआ वायरल

पप्पू यादव द्वारा इस वीडियो को वायरल किए जाने के बाद सांसद राजीव प्रताप रूड़ी की तरफ से एक बेहद बचकाना सा बयान आया कि सभी एंबुलेंस ड्राइवरों के अभाव में यहां खड़ी हैं. जिस ने भी राजीव प्रताप रूड़ी का यह बयान सुना, सब ने इसे एक गैरजिम्मेदाराना बयान समझा.

बहरहाल, उन के इस बयान को सुन कर पप्पू यादव खामोश नहीं बैठे. उन्होंने जोरशोर से एंबुलेंस चालकों की तलाश शुरू की तो देखते ही देखते उन्होंने 40 कुशल चालकों की फौज खड़ी कर दी और राजीव प्रताप रूड़ी सहित नीतीश कुमार को इन्हें अपनी सेवा में लेने के लिए कहा. लेकिन सरकार ने इस मामले में एकदम चुप्पी साध ली.

बिहार सरकार का लोगों के प्रति ऐसा ढुलमुल रवैया देखने के बाद पप्पू यादव ने एक और ट्वीट करते हुए तंज कसा कि राजीव प्रताप रूड़ी इन एबुंलैंसों द्वारा नदी से बालू ढो रहे हैं. बालू ढोने के लिए उन के पास चालक हैं, लेकिन बीमारों की मदद करने के लिए उन के पास चालक नहीं हैं. प्रमाण के तौर पर उन्होंने नदी से बालू ढो रहे एंबुलेंस की फोटो भी पोस्ट की.

इस के बाद दोनों नेताओं के बीच एक तीखी बयानबाजी शुरू हुई. इस पर अमनौर थाने में पप्पू यादव के खिलाफ कोविड नियम भंग करने और सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के आरोप में मामला दर्ज कर लिया गया. पप्पू यादव ने सांसद राजीव प्रताप रूड़ी के पीए द्वारा फोन पर गालीगलौज करने का भी आरोप लगाया.

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पप्पू यादव को भेजा जेल

पप्पू यादव द्वारा बिहार की सुशासन की कुव्यवस्था उजागर किए जाने के बाद नीतीश सरकार तिलमिला कर रह गई. सरकार के शीर्ष नेताओं ने सोचा कि अगर पप्पू यादव बिहार की जनता को इसी तरह एक के बाद एक सरकार की नाकामियां गिनाते रहे तो उन का सरकार चलाना मुश्किल हो जाएगा. इसलिए पप्पू यादव को किसी तरह गिरफ्तार करने की योजना तैयार की गई.

अत: 10 मई, 2021 को पटना के 5 थानों की पुलिस ने लौकडाउन का उल्लंघन करने, बगैर पुलिस अनुमति के बाहर घूमने और सरकारी काम में बाधा डालने के आरोप में पप्पू यादव को बुद्धा कालोनी स्थित उन के आवास से गिरफ्तार कर लिया गया. उन्हें गिरफ्तार कर पहले पटना के गांधी मैदान थाने लाया गया. फिर 32 साल पुराने अपहरण के एक पुराने मामले की जांच के लिए मधेपुरा पुलिस को सौंप दिया गया.

अगले भाग में पढ़ें-जेल में ही हो गया था इश्क

Manohar Kahaniya- पाक का नया पैंतरा: भाग 3

सौजन्य- मनोहर कहानियां

गिरफ्तार तसकरों से मिली सूचनाओं पर एनसीबी ने पंजाब में औपरेशन इकाई को सतर्क कर दिया. तसकरों के नेटवर्क को ध्वस्त करने के लिए एनसीबी ओर बीएसएफ सहित विभिन्न खुफिया एजेंसियों ने पंजाब में तसकरों की घेराबंदी शुरू कर दी.

पंजाब में तसकरों की हुई तलाश

एनसीबी ने 7 जून को फिरोजपुर जिले में किचले गांव में काला सिंह के घर पर छापा मारा. घर पर उस के पिता जोगेंद्र सिंह मिले. उन से पूछताछ की गई, लेकिन कोई खास जानकारी नहीं मिली. 4 दिन की कड़ी पूछताछ के बाद एनसीबी के डीडीजी ज्ञानेश्वर सिंह के नेतृत्व में एक दल बीकानेर में गिरफ्तार किए दोनों तसकरों रूपा और हरमेश को ले कर 8 जून को पंजाब गया.

बीएसएफ का दल भी एनसीबी अधिकारियों के साथ पंजाब गया. दोनों एजेंसियों ने गिरफ्तार दोनों तसकरों की निशानदेही पर कई तरह की जांचपड़ताल की. दोनों के आपराधिक रिकौर्ड खंगाले गए. काला सिंह और बौस के बारे में भी जानकारी जुटाई गई. कई संदिग्ध लोगों से भी पूछताछ की गई.

पंजाब से लौट कर एनसीबी ने बीकानेर की खाजूवाला कोर्ट में हेरोइन के सैंपल पेश किए. एनसीबी के जौइंट डायरेक्टर उगमदान सिंह दोनों गिरफ्तार तसकरों और बरामद हेरोइन के सैंपल ले कर अदालत पहुंचे. इस दौरान बीएसएफ का दल भी उन के साथ था.

तसकरों की काल डिटेल्स के आधार पर नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो ने 12 जून को राजस्थान में सीमाई इलाकों में रहने वाले 3 युवकों को भी हेरोइन तसकरी के मामले में गिरफ्तार किया. इन युवकों ने पंजाब के तसकरों की मदद की थी.

तसकरों ने रावला स्थित 10 केएनडी के रहने वाले सुखप्रीत के सिमकार्ड का उपयोग बात करने में किया था. कड़ी पूछताछ के बाद सुखप्रीत और उस की निशानदेही पर उस के 2 साथियों को पकड़ा गया.

दूसरी ओर, एनसीबी ने पहले गिरफ्तार 2 तसकरों रूपा और हरमेश का 7 दिन का रिमांड पूरा होने पर 12 जून, 2021 को अदालत में पेश किया. अदालत ने दोनों को न्यायिक अभिरक्षा में भेज दिया. इन दोनों से की गई पूछताछ और पंजाब में जा कर की गई पड़ताल में यह बात सामने आई कि पंजाब की जेल में बंद कुख्यात तसकर बलदेव और जोगेंद्र उर्फ समीर जेल से ही तसकरी का नेटवर्क औपरेट कर रहे हैं.

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बीकानेर सीमा पर हेरोइन तसकरी की वारदात में शामिल रहे काला सिंह और बौस इन के गिरोह के ही सदस्य हैं. बलदेव और जोगेंद्र वाट्सऐप काल के जरिए इन से संपर्क में रहते थे.

बीएसएफ और एनसीबी की जांचपड़ताल में सामने आया कि भारत में नारको टेरेरिज्म फैलाने की साजिश में जुटे पाकिस्तान के रास्ते अफगानिस्तान से भारत में बड़े पैमाने पर हेरोइन आती रही है. यह हेरोइन कई रास्तों से भारत में आती है.

ढाई साल पहले पुलवामा की घटना के बाद जम्मूकश्मीर सीमा पर सख्ती बढ़ने से तसकरी की गुंजाइश कम हो गई थी. इस के अलावा पंजाब से लगी पाकिस्तान सीमा के रास्ते भी तसकरी होती रही है. अब पंजाब सीमा पर भी सख्ती होने से तसकरों ने पिछले कुछ समय से राजस्थान से लगी सीमाओं को तसकरी के लिए सेफ पौइंट मान कर प्रयास शुरू किए हैं.

इस के लिए उन्होंने तारबंदी के बीच में से पीवीसी पाइप निकाल कर उस में से हेरोइन के पैकेट धकेलने का नया तरीका अपनाया है. यह सुखद रहा कि हेरोइन तसकरों को इस नए प्रयोग के दौरान सब से बड़ी मात खानी पड़ी. तारबंदी के बीच पीवीसी पाइप निकालने के दौरान खासी सावधानी भी रखनी पड़ती है, क्योंकि तारबंदी में एक कोबरा तार होता है, जिस में करंट प्रवाहित होता रहता है.

इसी साल फरवरी में राजस्थान के सीमांत इलाके में हिंदुमल कोट मदनलाल बीओपी क्षेत्र में पाकिस्तानी तसकरों ने 6 किलोग्राम हेरोइन सप्लाई की थी. इस में से केवल एक किलोग्राम हेरोइन बरामद हुई. बाकी 5 किलोग्राम हेरोइन भारतीय तसकर ले जाने में सफल हो गए थे. इस मामले में 5 तसकर पकड़े गए थे.

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नवंबर 2020 में गजसिंहपुर में 8 किलोग्राम हेरोइन पकड़ी थी. इस दौरान बीएसएफ की फायरिंग में एक पाकिस्तानी तसकर मारा गया था. भारतीय तसकर भाग गए थे. अप्रैल 2019 में इंद्रजीत सीमा चौकी इलाके में 18 किलोग्राम हेरोइन की तसकरी हुई थी. इस मामले में पंजाब के अबोहर निवासी छिंदा सिंह का नाम सामने आया था. बीकानेर बौर्डर पर पिछले साल अक्तूबर में पंजाब के एक तसकर से सेटेलाइट फोन मिला था.

भारत में कई रास्तों से हेरोइन आती है. अफगानिस्तान से जमीनी स्तर पर पाकिस्तान के रास्ते विभिन्न बौर्डरों से आती है. हवाई मार्ग से भी हेरोइन आती है. समुद्री रास्तों के जरिए भी हेरोइन भारत में पहुंचती है. इस के अलावा नेपाल के रास्ते भी हमारे देश में हेरोइन लाई जाती है.

विभिन्न रास्तों से भारत में आने वाली हेरोइन की सब से ज्यादा खपत पंजाब, मुंबई और दिल्ली में होती है. वैसे तो हेरोइन की खपत पूरे देश में है. बौलीवुड में भी बड़ी मात्रा में हेरोइन की चोरीछिपे खपत होती है.

बहरहाल, पाकिस्तान से जुड़े राजस्थान बौर्डर पर बीएसएफ ने अब तक की सब से बड़ी हेरोइन तसकरी की खेप पकड़ कर पाकिस्तानी तसकरों के नए रास्ते का भंडाफोड़ कर दिया है, लेकिन तसकरों के नेटवर्क को नेस्तनाबूद करना बीएसएफ और एनसीबी के लिए चुनौती है.

Crime: ओलिंपियन सुशील कुमार गले में मेडल, हाथ में मौत

आज सुशील कुमार जिस मुकाम पर हैं, उन का नाम एक बड़े अपराध से जुड़ना वाकई दुखद है और सवाल खड़ा करता है कि क्यों किसी नामचीन पहलवान ने ऐसी वारदात को अंजाम दिया, जो उस की जिंदगी को पूरी तरह बरबाद कर सकती है?

यह सवाल उठने की एक वजह यह भी है कि सुशील कुमार ने कुश्ती में जो कारनामे किए हैं, वह कोई हंसीखेल नहीं है, वरना साल 2008 से पहले चंद खेल प्रेमियों को छोड़ दें तो बहुत से लोगों को यह भी नहीं पता था कि सुशील कुमार, योगेश्वर दत्त, अखिल कुमार और विजेंदर सिंह में से कौन मुक्केबाज है और कौन पहलवान.

लेकिन भारत ने साल 2008 में चीन में हुए बीजिंग ओलिंपिक खेलों में जो ऐतिहासिक प्रदर्शन किया था, उस में कुश्ती में सुशील कुमार और मुक्केबाजी में विजेंदर सिंह ने कांसे का तमगा जीता था. तब से सुशील कुमार ने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा और वे न केवल साल 2010 में वर्ल्ड चैंपियन बने, बल्कि साल 2012 में इंगलैंड के लंदन ओलिंपिक में कांसे के तमगे का रंग बदलते हुए उसे चांदी का कर दिया था.

देश की जनता और सरकार ने भी सुशील कुमार को प्यार और तोहफे देने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी. खेल जगत का हर बड़ा अवार्ड तो मिला ही, उन्हें नौकरी भी ऐसी दी गई कि वे भविष्य के पहलवानों को अपनी निगरानी में तराश सकें. इतना ही नहीं, 1982 में दिल्ली में हुए एशियाई खेलों के गोल्ड मेडलिस्ट और सुशील कुमार के गुरु महाबली सतपाल ने उन्हें अपना दामाद बनाया.

एक मुलाकात में मैं ने महाबली सतपाल से पूछा था कि उन्होंने सुशील को ही अपनी बेटी सवी के लिए क्यों चुना? तब अपने चिरपरिचित अंदाज में मुसकराते हुए उन्होंने मु झ से ही सवाल कर दिया था कि क्या आज की तारीख में मेरी बेटी के लिए सुशील से योग्य वर तुम्हें कोई दूसरा दिखता है?

सवी से शादी हुई और सुशील कुमार जुड़वां बेटों के पिता बने. इतना ही नहीं, उन्होंने अपने छोटे भाइयों का भी खास खयाल रखा. नजफगढ़ में उन्होंने ‘सुशील इंटरनैशनल’ नाम से एक स्कूल खोला, जिसे उन के भाई संभालते हैं.

फिर ऐसा क्या हुआ कि एक गरीब ड्राइवर के बेटे सुशील कुमार को यह तरक्की और जनता का प्यार रास नहीं आया और उन के साथ धीरेधीरे ऐसे विवाद जुड़ते गए, जो उन्हें अर्श से फर्श तक ले आए?

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जितना मैं ने सुशील कुमार को जाना और सम झा है, साल 2008 उन की जिंदगी का टर्निंग पौइंट था. बीजिंग ओलिंपिक में मेडल जीतते ही दिल्ली देहात का एक लड़का अचानक सुर्खियों में आ गया था. तब उन की उम्र 25 साल थी और उन्होंने अपनी जिंदगी के तकरीबन 12 साल उस छत्रसाल स्टेडियम में गुजार दिए थे.

पर अब चूंकि सुशील कुमार ओलिंपिक मैडल विजेता थे, तो लोग उन्हें अपने कार्यक्रमों में बतौर मुख्य अतिथि न्योता देने लगे थे. पर तब उन के सामने एक बड़ी समस्या यह आती थी कि वे अपनी बात को उतनी आसानी और रोचक ढंग से लोगों के सामने नहीं रख पाते थे. उन की यह  िझ झक बहुत दिनों के बाद दूर हो पाई थी, वरना बहुत सी बार तो उन के कोच ही मीडिया के सवालों के जवाब दे दिया करते थे.

ऐसे ही एक समारोह में मैं ने सुशील कुमार का पहली बार इंटरव्यू किया था और वह भी ठेठ हरियाणवी भाषा में. यह भाषा उन के लिए सहज थी, तो वे भी हरियाणवी में बोलना शुरू हो गए थे. मेरे सवालों का जवाब देते हुए उन के चेहरे पर गजब का आत्मविश्वास दिखा था.

इस के बाद हम बहुत बार मिले. ज्यादातर दिल्ली के छत्रसाल स्टेडियम में या फिर सोनीपत के पास बहालगढ़ स्पोर्ट्स अथौरिटी औफ इंडिया के कौंप्लैक्स में, जहां वे एक अलग अंदाज में रहते थे. इन दोनों जगहों पर वे अपने साथियों के साथ जमीन पर गद्दे लगा कर सोते थे और अपना खाना खुद बनाते थे.

जहां तक मु झे याद है, साल 2008 में ओलिंपिक मैडल जीतने के बाद सुशील कुमार के बहालगढ़ वाले कमरे में पहला एयरकंडीशनर लगा था, वरना मैं ने उन्हें मई की चिलचिलाती गरमी में तंबू में बिना पंखे के घोड़े बेच कर सोते देखा है. तब वे इस कहावत को सच साबित कर देते थे कि किसी सोते हुए पहलवान को नहीं जगाना चाहिए, क्योंकि मेहनत करने के बाद जब वह सोता है तो मुरदे के समान बेसुध हो जाता है.

चूंकि दिल्ली के छत्रसाल स्टेडियम में ज्यादातर पहलवान हरियाणा या दिल्ली देहात के होते थे, तो उन का हंसीमजाक भी उसी देशीपन से भरा होता था. वे सब तूतड़ाक की भाषा बोलते थे और जो पहलवान कसरत कम कर के खाने पर ज्यादा जोर देता था, उसे दूसरे पहलवान ‘चून’ (आटा) कह कर चिढ़ाते थे.

वैसे भी कुश्ती या पहलवानी से ऐसे बच्चों का नाता ज्यादा रहता है, जो पढ़ाईलिखाई में फिसड्डी ही होते हैं. घर के लोग उन से परेशान हो कर अखाड़े में भेज देते हैं, जहां से बहुत कम ही आगे की ट्रेनिंग के लिए बड़े शहर जा पाते हैं. उन में से भी कोई विरला ही सुशील कुमार बन पाता है.

कहने का मतलब यह है कि सुशील कुमार साल 2008 के बाद अपनी कड़ी मेहनत और कुश्ती के दांवपेंच से देश की शान तो बनते जा रहे थे, पर जिस स्टेडियम वाली जिंदगी से वे प्यार करते थे, वहां खेल की बारीकियां तो सिखा दी जाती थीं, लेकिन शिष्टाचार सिखाने वाले की बेहद कमी थी.

वैसे तो आप किसी भी क्षेत्र में हों, आप का शिष्टाचारी होना अच्छे इनसान होने की निशानी है, लेकिन खिलाडि़यों से भी इसी गुण की डिमांड ज्यादा रहती है. पर अफसोस, बड़े से बड़े खिलाड़ी शिष्टाचार के मामले में मात खा जाते हैं.

दुनियाभर में बहुत से खिलाड़ी पैसे से भले ही मालामाल हुए, पर शिष्टाचार के मामले में फुस निकले. हर कोई सचिन तेंदुलकर और अभिनव बिंद्रा की तरह सौम्य और शिष्टाचारी नहीं  बन पाया.

किसी खिलाड़ी का शिष्टाचारी होना क्यों जरूरी है? क्या शिष्टाचार खिलाड़ी में संयम बनाए रखता है? सरकार और खेल फैडरेशन वाले इस तरफ ध्यान

क्यों नहीं देते हैं? क्या अब समय आ गया है कि फैडरेशन वाले खिलाडि़यों  को शिष्टाचार सिखाने के लिए टीचर बहाल करें?

इन सब सवालों के जवाब महिला फुटबाल की कप्तान रह चुकी सोना चौधरी ने दिए, जो अब मोटिवेशनल स्पीकर भी हैं और कई सरकारी संस्थाओं के मुलाजिमों को जीवन जीने की कला के टिप्स देती हैं.

सोना चौधरी ने इस मुद्दे पर बताया, ‘‘हर खिलाड़ी में साहस होना चाहिए, पर साथ ही उसे होश भी नहीं खोना चाहिए. एक मुकाम पर पहुंच कर हर खिलाड़ी को यह फैसला करना होता है कि उसे समाज में कैसी इमेज बनानी है. उसी हिसाब से आप अपना रोल मौडल भी चुनते हैं, फिर जरूरी नहीं है कि वह रोल मौडल नामी खिलाड़ी ही हो.

‘‘जब मैं फुटबाल खेलती थी, तब मैं मदर टैरेसा की बहुत बड़ी फैन थी. एक बार कोलकाता में हम ने उन से मिलने का समय भी ले लिया था, पर किसी वजह से मिलना मुमकिन नहीं हो पाया था.

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‘‘कहने का मतलब है कि आप जिन गुणों को आत्मसात करना चाहते हैं, उसी मिजाज के लोगों से मिलते हैं या मिलने की कोशिश करते हैं.

‘‘जब आप किसी बड़े मुकाम पर पहुंच जाते हैं, तो आप का निजीपन खो जाता है. आप की समाज और देश के प्रति जवाबदेही बढ़ जाती है. उस रुतबे को बरकरार रखने के लिए और भी ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है.

‘‘हर कदम सोचसोच कर रखना पड़ता है, हर शब्द सोचसोच कर बोलना पड़ता है, क्योंकि किसी सार्वजनिक प्लेटफार्म पर आप जो भी बोलते हैं, उसे बहुत से लोग सुनते हैं और अपनी जिंदगी में ढालने की कोशिश करते हैं.

‘‘खिलाड़ी को अपने शिष्टाचार का बहुत ध्यान रखना चाहिए. इस से उस की इमेज बनती है. सरकार और खेल फैडरेशन को अलगअलग फील्ड के माहिर लोगों को बुला कर खिलाड़ी की हर तरह से इमेज डवलप करानी चाहिए. इस के लिए कौंट्रैक्ट पर भी लोगों को रखा जा सकता है.

‘‘लेकिन यह एक बार की ट्रेनिंग से मुमकिन नहीं है, बल्कि यह तो बारबार होना चाहिए, 15 दिन में या महीने में जरूर. तभी कोई खिलाड़ी अच्छा इनसान भी बनता है.

‘‘याद रखिए कि कोई खिलाड़ी बड़ी मुश्किल से ऊंचे मुकाम तक पहुंच पाता है, पर अच्छा इनसान उस से भी मुश्किल से बनता है.

‘‘मेरा मानना है कि शिष्टाचार किसी को डराने की प्रेरणा नहीं देता है, बल्कि यह तो दूसरों को भी गलत राह पर जाने से रोकता है.’’

जहां तक खिलाडि़यों और अपराध के संबंध की बात है, तो रोहतक, हरियाणा के एक वकील नीरज वशिष्ठ का कहना है, ‘‘सभ्य समाज में ऐसे अपराध की कोई जगह नहीं है और जब अपराध खेल जगत में अपने दबदबे के लिए दस्तक देने लगे तो हमें जरूर सोचना चाहिए. जिस खेलकूद से हम अपने बच्चों का भविष्य जोड़ कर देखते हैं, उस में अगर ‘‘मैं ही सबकुछ’’ की जिद हावी हो जाती है तो उस से न केवल खेल, बल्कि उस में शामिल सभी का नुकसान ही होता है.

‘‘हम सब को इस आपराधिक सोच को रोकना होगा, नहीं तो खेल जगत में जो नाम हमारे देश ने हासिल किया है, उसे धूल में मिलते देर नहीं लगेगी.’’

देशदुनिया में इतना नाम मिलने के बावजूद आज अगर सुशील कुमार इस हालत में हैं, तो कानून को भी बारीकी से उन सभी पहलुओं पर गौर करना होगा, जो उन के अपराधी बनने में मददगार साबित हुईं. सागर धनखड़ को तो वापस नहीं लाया जा सकता, पर सुशील कुमार जैसे बड़े खिलाड़ी को अपराध की राह पर जाने से रोका जा सकता है.

कानून का काम केवल सजा दिलाना ही नहीं है, बल्कि अपराधी को अच्छा इनसान बनने की प्रेरणा देना भी कानून का ही फर्ज है.

बात थोड़ी फिल्मी है, पर साल 1971 में आई राजेश खन्ना की फिल्म ‘दुश्मन’ में उन के निभाए गए किरदार से शराब के नशे में गाड़ी चलाते हुए एक आदमी रामदीन की मौत हो जाती है, जिस के बाद कानून उस किरदार को रामदीन के परिवार की देखभाल करने की अनोखी सजा देता है.

लेकिन रामदीन का परिवार उस के साथ दुश्मन जैसा बरताव करता है. लेकिन राजेश खन्ना का किरदार न केवल उस परिवार के पालनपोषण की जिम्मेदारी उठाता है, बल्कि दुश्मन से दोस्त बन जाता है.

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क्या गुनाह साबित होने के बाद सुशील कुमार को भी ऐसी कोई सजा मिल सकती है, जो भारतीय समाज को फिल्म ‘दुश्मन’ जैसा ही संदेश दे जाए? ऐसी सजा जिस में किसी अपराधी को अच्छा इनसान बनने का मौका मिले और अगर वह नामचीन खिलाड़ी है, तो फिर ऐसा करना ज्यादा जरूरी हो जाता है.

सुशील कुमार की इस पैरवी की एक बड़ी वजह यह भी है कि अगर उन्हें आदतन अपराधी मान कर कड़ी सजा दी जाती है, तो यह उन नए पहलवानों का मनोबल तोड़ देगी, जो सुशील कुमार को गुरु मान कर अखाड़े में उतरे हैं.

आज सुशील कुमार को दुनिया के सामने तौलिए के पीछे मुंह छिपाने पर उन की खिल्ली उड़ाने वालों या उन्हें ‘गैंगस्टर’, ‘डौन’ कहने वालों को यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि इस पहलवान ने दुनिया के मंच पर तिरंगे को फख्र से लहराने का काम कई बार किया है. अब तक आगामी टोक्यो ओलिंपिक में भारत के 8 पहलवानों ने अपना टिकट पक्का कर लिया है, उन में से ज्यादातर के आदर्श सुशील कुमार ही हैं.       द्य

और भी कांड हुए हैं

* हरियाणा के रोहतक में शुक्रवार, 12 फरवरी की शाम हुए एक हत्याकांड में 5 लोगों की मौत हो गई थी. मरने वालों में 2 कोच और एक महिला पहलवान शामिल थी. इस हत्याकांड को अंजाम देने का आरोप अखाड़े में ट्रेनर का काम करने वाले सुखविंदर पर लगा था.

* इसी तरह साल 2019 के नवंबर महीने में हरियाणा की रहने वाली नैशनल लैवल की ताइक्वांडो खिलाड़ी सरिता जाट को कुश्ती के एक खिलाड़ी सोमवीर जाट ने गोली मार दी थी.

सोमवीर जाट सरिता से प्यार करता था और उस से शादी करना चाहता था, पर सरिता के मना करने पर वह बहुत ज्यादा गुस्सा हो गया था और उस ने सरिता की मां के सामने ही उस की छाती में गोली ठोंक दी थी.

इस वारदात के तकरीबन एक साल बाद आरोपी सोमवीर जाट को पुलिस ने राजस्थान के दौसा इलाके से गिरफ्तार किया था.

* साल 2015 में रोहतक के कबड्डी खिलाड़ी रह चुके सन्नी देव उर्फ कुक्की के सिर भी एक खून का इलजाम लगा था. कुक्की नैशनल लैवल का कबड्डी खिलाड़ी था. विरोधी पक्ष के हत्थे जब कुक्की नहीं लगा तो उस ने कुक्की के छोटे भाई और नैशनल लैवल के कबड्डी खिलाड़ी सुखविंदर नरवाल को गोलियों से भून डाला था.

* हरियाणा के लिए क्रिकेट खेल चुका सुरजीत रंगदारी के मामले में पुलिस के हत्थे चढ़ा था. वह रंगदारी से पैसा इकट्ठा कर के फिर से क्रिकेट खेलना चाहता था, लेकिन पैसे कमाने का उस का यह तरीका उसे जुर्म की राह पर ले गया.

* दिल्ली का जितेंद्र उर्फ गोगी वौलीबाल का नैशनल लैवल का खिलाड़ी था. उस का उठनाबैठना बदमाशों के साथ हो गया और उस ने खेल छोड़ कर दिल्ली, सोनीपत, पानीपत व दूसरी कई जगहों पर वारदात करनी शुरू कर दी थी.

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