4-5 महीने की भागदौड़ और कुछ दोस्तों की सहायता से मु झे एक प्राइवेट कालेज में परमानैंट नौकरी मिल गई थी. स्नेह और सारा का स्कूल 3 बजे समाप्त हो जाता था. बसस्टैंड से मोहिनी दोनों बच्चों को अपने घर ले जाती. उज्जवल चाहता था कि स्नेह मोहिनी को अपना ले हालांकि मोहिनी और स्नेह दोनों ही इस प्रबंध से नाखुश थे. शाम को कालेज से लौटते हुए मैं स्नेह को अपने साथ ले आती थी.
परिवर्तन इस बार भी सभी के जीवन में आया था. अपनी पीड़ा को पीछे छोड़ कर मैं स्वावलंबी हो रही थी. मोहिनी को अब 2 बच्चों को संभालना पड़ रहा था, जो उस के लिए किसी चुनौती से कम नहीं था. दीपक की कंपनी ने उस का स्थानांतरण स्पेन कर दिया था. और उज्जवल, उस के ऊपर तो अब 3 घरों की जिम्मेदारी आ गई थी.
स्नेह और मोहिनी के अतिरिक्त, इकलौता बेटा होने के कारण उस के ऊपर अपनी मां की जिम्मेदारी भी थी. पति की मृत्यु के बाद उज्जवल की मां मेरठ में अपने संयुक्त परिवार के साथ रहती थीं. लेकिन छुट्टियों में उन का इंदौर आनाजाना लगा रहता था. उज्जवल के इस निर्णय से वे भी खुश नहीं थीं. वैसे, इस के पीछे का कारण मेरे प्रति कोई लगाव नहीं, बल्कि वर्षों पुराना रोग कि ‘क्या कहेंगे लोग’ था.
लेकिन इस सब में सब से अधिक नुकसान दोनों बच्चों का हुआ था. उन की तो पूरी दुनिया बदल गई थी. उन की बालसुलभ जिज्ञासा को उत्तर ही नहीं मिल रहा था. जहां सारा को उज्जवल का उस के घर रहना पसंद नहीं था, वहीं स्नेह को मोहिनी के घर जाना.
मैं स्नेह की उधेड़बुन सम झ रही थी. धीरेधीरे मैं ने उसे परिस्थिति से अवगत कराना शुरू किया. अपने पिता से अलगाव उस के लिए सरल नहीं था. लेकिन मेरा बेटा मु झ से भी अधिक सम झदार था. वह घटनाओं को देखने के साथसाथ सम झने लगा और उन का आकलन भी करने लगा था. अब इस विषय पर हमारे बीच खुल कर बातें होने लगी थीं.
प्रेम मात्र शरीर का समर्पण नहीं है, बल्कि भावनाओं के समंदर में निस्वार्थ भाव से खुद को समर्पण करने का नाम भी है. प्रेम में एक साथी की कमी को दूसरा साथी पूर्ण करता है. प्रेम शक्ति का स्रोत है और मोह व दुर्बलता का सागर. प्रेम स्वतंत्रता का भाव है जबकि मोह उल झनों से भरा हुआ बंदिश का स्वरूप. प्रेम कुछ मांगता नहीं है और मोह मांगना छोड़ता नहीं है. प्रेम का कोई अस्तित्व मिल नहीं सकता जबकि मोह का कोई अस्तित्व होता ही नहीं.
मोहिनी उज्जवल से मोहित थी. लेकिन अभावग्रस्त सम्मोहन के साथ जीने के लिए समर्पित नहीं थी. उस की गलती भी नहीं थी. वह एक धनी परिवार की बेटी थी. विवाह के पश्चात भी उस का जीवन सुखसुविधाओं से पूर्ण रहा था. दीपक की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी थी. मोहिनी ने उज्जवल से भी यह ही अपेक्षा की थी. एक प्रेमी के रूप में सुदर्शन उज्जवल उस के हृदय के सिंहासन पर बैठ गया था, लेकिन जब उसी प्रेमी की कमजोर पौकेट का उसे पता चला, प्रेम भाप बन कर उड़ने लगा.
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उज्जवल की हालत भी इस से भिन्न नहीं थी. प्रेयसी के नखरे उठाने का आनंद उस की जेब पर भारी पड़ रहा था. अब वह सम झ रहा था जिस मुसकान और जिंदादिल व्यक्तित्व से वह अपनी प्रेमिका के हृदय पर शासन कर पाया था, उस के पीछे का कारण उस की पत्नी का समर्पण था. मैं ने जिस चतुराई से घर को संभाल रखा था, उसी ने उज्जवल को एक तनावरहित जीवन प्रदान किया था. समय के साथ उन दोनों का मोहभंग होना शुरू हो गया था. उन की लड़ाइयां बढ़ गई थीं.
मैं ने कालेज के नजदीक एक घर किराए पर ले लिया और स्नेह को किसी अप्रिय परिस्थति से बचाने के लिए उस का उज्जवल के घर जाना बंद करा दिया था.
मैं ने यों तो पुराने जीवन की कड़वी यादों को उस मकान के साथ ही त्याग दिया था लेकिन अब भी कुछ शेष था. इसलिए, मेरा शरीर तो इस घर में आ गया, लेकिन मेरा मन पुरानी चौखट पर खड़ा इंतजार कर रहा था.
‘‘आप सो गईं मम्मी?’’
कुछ पता ही नहीं चला यादों की गाड़ी पर सवार हो कर कितनी दूर निकाल आई थी. स्नेह पुकारता नहीं, तो कुछ देर यों ही यादों की सैर करती रहती.
‘‘नहीं बेटा, बस आंखें बंद कर कुछ सोच रही थी. क्या हुआ, तुम तो बाहर खेल रहे थे?’’
‘‘बाहर पापा खड़े हैं.’’
‘‘पापा?’’
‘‘हां.’’
‘‘तुम अपने कमरे में टौयज लगाओ, मैं पापा से मिल कर आती हूं.’’
एक साल, 2 महीने 5 दिन और 4 घंटे बाद उज्जवल मेरे सामने बैठ कर अपनी गलती की माफी मांग रहा था. उस की प्रेमिका अपने रिश्ते को एक और मौका देने अपने पति के पास स्पेन चली गई थी. पराजित प्रेमी अपनी त्यक्त पत्नी के पास वापस चला आया, इस आशा के साथ कि वह इसे अपना अच्छा समय सम झ उस की बांहों में समा जाएगी. भटकना पुरुष का स्वभाव है और प्रतीक्षा स्त्री की नियति. समाज भी सोचता है कि परित्यक्ता पत्नी को फिर से पति का सान्निध्य प्राप्त हो जाए, तो उस के लिए इस से बड़ी खुशी और क्या होगी.
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‘‘अमोदिनी.’’
‘‘हां.’’
‘‘मु झे माफ कर दो.’’
‘‘क्यों?’’
‘‘मेरे अपराध के लिए.’’
‘‘तुम जानते हो कि तुम्हारा अपराध क्या है?’’
‘‘मैं मोहिनी के जाल में फंस गया था.’’
उज्जवल की बात सुन कर मैं जोर से हंस पड़ी थी. वह अचंभित हो कर मु झे देखने लगा.
‘‘इस पुरुषसत्तात्मक समाज के लिए कितना सरल है स्त्री को दोषी कह देना. कदम दोनों के भटकते हैं, मन दोनों का चंचल होता है, लेकिन चरित्रहीन स्त्री हो जाती है. स्त्री को अपराधी बना तुम खुद फिर से पवित्र हो जाते हो. मोहिनी ने तुम्हें नहीं, तुम दोनों ने एकदूसरे को छला है. प्रेम तुम दोनों का अपराध नहीं है, विश्वासघात है.’’
‘‘दीपक और मोहिनी अपने रिश्ते को एक और मौका दे रहे हैं.’’
‘‘उन के रिश्ते में रिश्ता कहने लायक कुछ शेष होगा.’’
‘‘तुम अब भी मु झ से नाराज हो?’’
‘‘बिलकुल नहीं, मैं तो तुम्हारी आभारी हूं. मेरे स्वाभिमान पर, मेरे विश्वास पर मारे गए तुम्हारे एक थप्पड़ ने मेरा परिचय मेरी त्रुटियों से करा दिया. आज मैं यह सम झ पाई हूं कि किसी भी प्रेम और रिश्ते से ऊपर होता है मनुष्य का खुद के प्रति सम्मान और प्रेम. इसीलिए हर स्त्री को अपना आर्थिक प्रबंध रखना चाहिए. समय और रिश्ता बदलते देर नहीं लगती. स्त्री के लिए विधा का उपार्जन और धन का संचय आवश्यक है. एक खूबसूरत सपने में रहना अच्छा लगता है. लेकिन इतना ध्यान रहे कि सपना टूट भी सकता है. मूसलाधार प्रलय से बचने के लिए हर स्त्री को एक रेनकोट तैयार रखना ही चाहिए.’’
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‘‘स्नेह के लिए ही मुझे माफ कर दो.’’
‘‘हर रिश्ता प्रेम और विश्वास पर टिका होता है. प्रेम तो मैं तुम से करती नहीं और विश्वास इस जीवन में कभी कर नहीं पाऊंगी. यदि स्नेह के लिए हम साथ होते भी हैं तो आगे चल कर यह रिश्ता कड़वाहट और छल को ही जन्म देगा. ऐसे विषैले माहौल में न हम खुश रह पाएंगे और न स्नेह.’’
‘‘अमोदिनी, काश कि मैं तुम्हारे योग्य हो पाता,’’ यह कह कर उस ने अपना सिर झुका लिया.
‘‘कल सही समय पर कोर्ट पहुंच जाना,’’ मैं ने कहा और आगे बढ़ गई.
आज मैं ने घर की चौखट लांघ गृहप्रवेश कर लिया था अपने घर में, जिस में उज्जवल की कोई जगह नहीं थी.