कृष्णाअपने घने काले बालों को बाहर बालकनी में खड़ी हो कर सुल?ा रही थी. उस की चाय जैसी भूरी रंगत को उस के बाल केश और अधिक मादक बनाते थे. शादी के 10 साल बाद भी नमन उतना ही दीवाना था जितना पहले साल था. नमन का प्यार उस की सहेलियों के बीच ईर्ष्या का विषय था. पर कभीकभी सत्य के व्यवहार से कृष्णा के मन में संशय भी होता था कि क्या यह प्यार है या दिखावा?

कुल मिला कर जिंदगी की गाड़ी ठीकठाक चल रही थी. छोटा सा परिवार था कृष्णा का, पति नमन और बेटी विहा. परंतु कुछ माह से कृष्णा ने महसूस किया था कि नमन देर रात को घर आने लगा है. जब भी कृष्णा पूछती, वह यही बोलता कि तुम्हारे और विहा के लिए खट रहा हूं, नहीं तो मेरे लिए दो रोटियां भी काफी हैं.

मगर कृष्णा के मन को फिर भी ऐसा लगता था कि कहीं कुछ तो गलत है. अभी भी बाहर बाल सुखाते हुए कृष्णा के मन में यही सब चल रहा था कि बाहर दरवाजे पर घंटी बजी. दरवाजा खोला देखा तो सामने नमन खड़ा था.

इस से पहले कृष्णा कुछ बोलती, नमन बोला, ‘‘अरे उदयपुर जा रहा हूं, 5 दिनों के लिए. इसलिए सोचा कि आज पूरा दिन अपनी बेगम के साथ बिताया जाए,’’ और फिर नमन ने 2 पैकेट पकड़ाए.

कृष्णा ने खोल कर देखे, ‘‘एक में बहुत सुंदर जैकेट थी और दूसरे में एक ट्रैक सूट.’’

कृष्णा मुसकराते हुए बोली, ‘‘अच्छा हरजाना भर रहे हो, नए साल पर यहां न होने का.’’

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