Writer- वीरेंद्र सिंह
सभी अपनेअपने काम में लग गए. प्रताप अपनी सीट पर अकेला रह गया तो विचारों में खो गया. उस के दिमाग में सुधा से कहासुनी से ले कर मैनेजर साहब को खरीखोटी सुनाने तक की एकएक घटना चलचित्र की तरह घूम गई. पैन निकालने के लिए उस ने जेब में हाथ डाला तो पुलिस द्वारा दी गई रसीद भी पैन के साथ बाहर आ गई. रसीद देख कर उस का दिमाग भन्ना उठा. मेज पर रखे पानी के गिलास को खाली कर के वह आहिस्ता से उठा. पैर में दर्द होने के बावजूद वह धीरेधीरे आगे बढ़ा. टैलीफोन मैनेजर साहब की ही मेज पर था. प्रताप उसी ओर बढ़ रहा था. प्रताप के गंभीर चेहरे को देख कर मैनेजर घबराए. उन की हालत देख कर प्रताप के होंठों पर कुटिल मुसकान तैर गई. मैनेजर साहब की ओर देखे बगैर ही वह उन के सामने पड़ी कुरसी पर बैठ गया. टैलीफोन अपनी ओर खींच कर पुलिस की ट्रैफिक शाखा का नंबर मिला दिया. दूसरी ओर से आवाज आई, ‘‘नमस्कारजी, मैं ट्रैफिक शाखा से हैडकौंस्टेबल ईश्वर सिंह बोल रहा हूं.’’
‘‘नमस्कार ईश्वर सिंहजी, आप ब्लूलाइन बसों के खिलाफ मेरी एक शिकायत लिखिए.’’
‘‘आप की जो शिकायत हो, लिख कर भेज दीजिए.’’
‘‘लिख कर भेजूंगा तो तुम्हें अपनी औकात का पता चल जाएगा…’’ प्रताप थोड़ा रोष में बोला, ‘‘फोन किसी जिम्मेदार अधिकारी को दीजिए.’’
‘‘औफिस में इस समय और कोई नहीं है. इंस्पैक्टर साहब और एसीपी साहब राउंड पर हैं.’’
‘‘एसीपी साहब के पास तो मोबाइल फोन होगा, उन का नंबर दो.’’
कौंस्टेबल ईश्वर सिंह ने जो नंबर दिया था, उसे मिलाते हुए प्रताप खुन्नस में था. उधर से स्विच औन होते ही वह बोला, ‘‘सर, मैं प्रताप सिंह बोल रहा हूं. मेरी एक शिकायत है.’’
‘‘बोलो.’’
‘‘आप के टै्रफिक के नियम सिर्फ स्कूटर वालों के लिए ही हैं क्या? सड़क पर जिस तरह अंधेरगर्दी के साथ ब्लूलाइन बसें दौड़ रही हैं, आप के स्टाफ वालों को दिखाई नहीं देतीं?’’ प्रताप की आवाज क्रोध में कांप रही थी.
‘‘देखिए साहब, जो पकड़ी जाती हैं, उन के खिलाफ कार्यवाही की जाती है.’’
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‘‘क्या कार्यवाही करते हैं आप लोग, वह सब मैं जानता हूं,’’ प्रताप काफी गुस्से में था इसलिए उस के स्वर में थोड़ा तल्खी थी. उसी तल्ख आवाज में वह बोला, ‘‘यहां आश्रम रोड पर आ कर थोड़ी देर खड़े रहिए. ड्राइवर बसें किस तरह बीच सड़क पर खड़ी कर के सवारियां भरते हैं, देख लेंगे. उस व्यस्त सड़क पर भी ओवरटेक करने में उन्हें जरा हिचक नहीं होती. आप के पुलिस वाले खड़े यह सब देखते रहते हैं.’’
‘‘देखिए प्रतापजी, डिपार्टमैंट अपनी तरह से काम करता है.’’
‘‘कुछ नहीं करता, साहब, आप का पूरा का पूरा डिपार्टमैंट बेकार है. आप के पुलिसकर्मी घूस लेने में लगे रहते हैं. बस वालों से हफ्ता लेते हैं, ऐसे में उन के खिलाफ कैसे कार्यवाही करेंगे?’’
‘‘माइंड योर लैंग्वेज. आप अपनी शिकायत लिख कर भेज दीजिए. दैट्स आल,’’ दूसरी ओर से फोन काट दिया गया.
‘लिखित शिकायत करूंगा…जरूर करूंगा?’ बड़बड़ाता हुआ प्रताप अपनी सीट पर आ कर बैठ गया. पैन उठाया और जिस तरह तोप में गोला भरा जाता है, उसी तरह ठूंसठूंस कर पूरे पेज में एकएक बात लिखी. होंठ भींचे वह लिखता रहा. उस का आक्रोश अक्षर के रूप में कागज पर उतरता रहा. शिकायत का पत्र पूरा हुआ तो उस ने संतोष की सांस ली. पूरे कागज पर एक नजर डाल कर उसे मोड़ा और डायरी में रख लिया. डायरी हाथ में ले कर वह उठ खड़ा हुआ. घुटने में अभी भी दर्द हो रहा था. मगर उस की परवा किए बगैर वह बैंक से बाहर आया. बैंक के सामने ही पीसीओ में फैक्स की सुविधा भी थी. वह सीधे पीसीओ पर पहुंचा. सामने बैठे पीसीओ के मालिक लालबाबू के हाथ में कागज और एक चिट पकड़ाते हुए कहा, ‘‘चिट में लिखे नंबरों पर इसे फैक्स करना है.’’
लालबाबू उन सभी नंबरों के बगल में लिखे नामों को देख कर प्रताप को ताकने लगा. मुख्यमंत्री, राज्यपाल, गृहमंत्री से ले कर पुलिस कमिश्नर तक के नंबर थे वे. उस चिट में शहर के प्रमुख अखबारों के भी फैक्स नंबर थे. अपनी ओर एकटक देख रहे लालबाबू से उस ने कहा, ‘‘सभी नंबरों पर इसे फैक्स कर दीजिए.’’
‘‘जी,’’ उस ने प्रताप द्वारा दिए कागज को फैक्स मशीन में इंसर्ट किया. फिर एकएक नंबर डायल करता रहा. फैक्स मशीन में कागज एक तरफ से घुस कर, दूसरी ओर से निकलने लगा. प्रताप खड़ा इस प्रक्रिया को ध्यान से देख रहा था. सारे फैक्स ठीक से हो गए हैं, इस के कन्फर्मेशन की रिपोर्ट की कौपी लालबाबू ने प्रताप के हाथ में पकड़ाने के साथ ही बिल भी थमा दिया. पैसे दे कर सभी कन्फर्मेशन रिपोर्ट्स प्रताप ने डायरी में संभाल कर रखी और पीसीओ से बाहर निकल आया. अब प्रताप के दिमाग की तनी नसें थोड़ी ढीली हुईं. जिस से उस ने स्वयं को काफी हलका महसूस किया. कितने दिनों से वह इस काम के बारे में सोच रहा था. आखिर आज पूरा हो ही गया.
फैक्स सभी को मिल ही गया होगा. अब मजा आएगा. फैक्स जैसे ही मिलेगा, मुख्यमंत्री गृहमंत्री से कहेंगे. उन्हें भी फैक्स की कौपी मिल गई होगी. राज्यपाल के यहां से भी सूचना आएगी. सब की नाराजगी पुलिस कमिश्नर को झेलनी पड़ेगी. फिर वे एसीपी ट्रैफिक को गरम करेंगे. उस के बाद नंबर आएगा कौंस्टेबलों का. एसीपी एकएक कौंस्टेबल का तेल निकालेगा. बैंक में आ कर वह अपनी सीट पर बैठ गया. अब उसे बड़े भाई की याद आ गई. पिछली रात वे पैसे के लिए उस से किस तरह गिड़गिड़ा रहे थे. उसी क्षण उस की आंखों के सामने सुधा का तमतमाया चेहरा नाच गया. मन ही मन उसे एक साथ 4-5 गालियां दे कर वह कुरसी से उठ खड़ा हुआ. बैंक के कर्मचारियों की के्रडिट सोसायटी बहुत ही व्यवस्थित ढंग से चल रही थी. सोसायटी के सैके्रटरी नरेंद्र नीचे के फ्लोर पर बैठते थे. वह लिफ्ट से नीचे उतरा. नरेंद्र अपनी केबिन में बैठे थे. उन की मेज के सामने पड़ी कुरसी खींच कर वह बैठ गया. लोन के लिए फौर्म ले कर उस ने भरा और नरेंद्र की ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘नरेंद्र साहब, बड़े भाई थोड़े गरीब हैं. उन्हें मकान की मरम्मत करानी है. यदि मरम्मत नहीं हुई तो बरसात में दिक्कत हो सकती है. इसलिए मैं आग्रह करता हूं कि मेरी अर्जी पर विशेष ध्यान दीजिएगा.’’
‘‘नरेंद्र साहब ने अत्यंत मधुर स्वर में कहा, ‘‘इस महीने खास दबाव नहीं है, इसलिए आप का काम आराम से हो जाएगा. आप को 80 हजार रुपए चाहिए न?’’
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प्रताप ने स्वीकृति में सिर हिलाया. नरेंद्र साहब ने फौर्म में लगी रसीद फाड़ कर प्रताप की ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘अपने भाईसाहब से कहना कि वे
सारी व्यवस्था करें. 3 तारीख को पैसा मिल जाएगा.’’
‘‘थैंक्स,’’ प्रताप ने सैक्रेटरी साहब का हाथ थाम कर कहा, ‘‘थैंक्यू वैरी मच.’’
नरेंद्र द्वारा दी गई रसीद जेब में रख कर प्रताप खड़ा हुआ. उस की एक बहुत बड़ी टैंशन खत्म हो गई थी. पैसा पा कर बेचारा बड़ा भाई खुश हो जाएगा. यदि भैया हर महीने आ कर अपनी किस्त दे जाएंगे तो कोई परेशानी नहीं होगी. सुधा को इस बात का पता ही नहीं चलेगा. सुधा की याद आते ही उस की मुट्ठियां भिंच गईं.
उस की विचारयात्रा आगे बढ़ी. यदि उसे पता चल भी जाएगा तो क्या कर लेगी? ज्यादा से ज्यादा झगड़ा करेगी. जब तक कान सहन करेंगे, सहता रहूंगा. उस के बाद अपने हाथों का उपयोग करूंगा. एक बार उलटा जवाब मिल जाएगा तो उस का दिमाग अपनेआप ही ठिकाने पर आ जाएगा.
सुधा के विचारों से मुक्त होना प्रताप के लिए आसान नहीं था. फिर भी उस ने औफिस की फाइलों में मन लगाने का प्रयास किया. बैंक की बिल्ंिडग के गेट के पास जो मैकेनिक था, प्रताप ने स्कूटर की चाबी दे कर उसे लाने के लिए भेज दिया था. साथ ही, यह भी कह दिया था कि शाम तक वह स्कूटर बना कर तैयार कर देगा.
शाम को प्रताप बैंक से निकला तो मैकेनिक ने स्कूटर बना कर तैयार कर दिया था. वह स्कूटर स्टार्ट कर ही रहा था कि उस के कंधे पर किसी ने हाथ रखा. उस ने पलट कर देखा, दीपेश बैग टांगे खड़ा था. उस के साथ आकाश और दीपक भी थे. दीपेश ने कहा, ‘‘यार, मैं तुझ से मिलने तेरे बैंक आया हूं और तू घर भागने की तैयारी कर रहा है? लगता है, भाभी से बहुत डरता है?’’
‘‘यार, सुबहसुबह ऐक्सिडैंट हो गया था, जिस में यह देखो घुटना छिल गया है,’’ प्रताप ने पैर उठा कर फटे पैंट के नीचे घुटना दिखाते हुए कहा, ‘‘परंतु अब जब तुम तीनों मिल गए हो तो
सारी तकलीफ दूर हो गई है. हम
चारों अंतिम बार कब मिले थे? मेरे खयाल से साल, डेढ़ साल तो हो ही गए होंगे?’’
‘‘नहीं, भाई, पूरे 2 साल हो गए हैं,’’ दीपक ने कहा, ‘‘यहीं मिले थे. फिर सामने वाले होटल में सब ने रात का डिनर किया था. अरे हां यार प्रताप, वह तेरा साथी पान सिंह नहीं दिखाई दे रहा है.’’
‘‘दिखाई कहां से देगा, आजकल कभी उस की सब्जी नहीं पकती तो कभी बेचारे को बासी रोटी मिलती है.’’
‘‘क्या मतलब? तेरी मजाक करने
की आदत अभी भी नहीं गई,’’ आकाश ने कहा.
‘‘सच कह रहा हं. जानते हो, एक दिन मैं बिग बाजार गया. एक किलोग्राम जीरा और कुछ सामान खरीदा. वहां मुझे एक कूपन मिला, जिस से मेरा समान फ्री हो गया. जब से इस बात का पता पान सिंह की बीवी को चला है, वह रोज सुबह उसे लंच में बासी रोटी बांध देती है.’’
‘‘चल, बहुत हो गया. अब उस का ज्यादा मजाक मत उड़ा,’’ दीपेश ने टोका.
दीपेश तो उस के साथ ही देहरादून में बोर्डिंग में रहता था. आकाश और दीपक भी उस के क्लास में साथ ही थे. पान सिंह उस के गांव का ही रहने वाला था, जिस की अनुपस्थिति में वह उस का मजाक उड़ा रहा था. कालेज लाइफ में पांचों की मित्रता सगे भाइयों जैसी थी. 2 साल बाद चारों इकट्ठा हुए थे. फिर चारों बैठ कर बातें करने लगे. बातें करते रात के 9 बज गए. तब दीपेश ने कहा, ‘‘यार, अब तो भूख लगी है, खाने के लिए कुछ करो.’’
‘‘सामने अभी हाल ही एक नया रैस्टोरैंट खुला है, वहां वाजिब दाम में बढि़या खाना मिलता है,’’ प्रताप ने बड़े ही आत्मविश्वास के साथ कहा.
वह अपने तीनों मित्रों के साथ रैस्टोरैंट की ओर बढ़ रहा था, तब भी उस के दिमाग में विचार चल रहे थे. हर बुधवार को मूंग की दाल बनाने का भूत सुधा के दिमाग से निकालना ही पड़ेगा. आने वाले बुधवार को वह मूंग की दाल खाने से साफ मना कर देगा और यहां आसपास तमाम होटल हैं, जा कर खा लेगा. उस ने पक्का निर्णय कर लिया कि कुछ भी हो, इस बार बुधवार को वह मूंग की दाल बिलकुल नहीं खाएगा.
चारों रैस्टोरैंट में जा कर एक मेज पर बैठ गए. इधरउधर निगाहें डाल कर आकाश ने कहा, ‘‘यार प्रताप, रैस्टोरैंट तो अच्छा है. आज की पार्टी मेरी ओर से. पिछले महीने पुत्ररत्न प्राप्त हुआ है, उसी की खुशी में.’’
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फिर तो सभी ने उसे बधाई दी. पुरानी यादों को ताजा करते हुए हंसतेखिलखिलाते उन्होंने खाना खाया. खाना अच्छा था. खाना खाने के बाद उठते हुए प्रताप
ने कहा, ‘‘आज तुम लोग मिले, बहुत अच्छा लगा. रोजाना तो बैंक से सीधे घर.’’
‘‘औफिस से सीधे घर, यही लगभग सभी पुरुषों की कहानी होती है,’’ दीपक ने कहा, ‘‘कालेज लाइफ के भी क्या मजे थे, यार.’’
‘‘अब वे दिन कहानी बन गए हैं. जरा भी देर हो जाती है तो पत्नी हिसाब मांगने लगती है,’’ दीपेश बोला.
खापी कर डकार लेते हुए चारों रैस्टोरैंट से बाहर निकले. प्रताप के तीनों मित्र विदा हो गए तो उस ने भी अपना स्कूटर स्टार्ट किया. 10 बजने में मात्र 20 मिनट बाकी थे. घर पहुंचतेपहुंचते साढ़े 10 तो बज ही जाएंगे. सुधा लालपीली हो रही होगी. दरवाजे पर ही कुरसी डाले बैठी होगी. वर्षों बाद आज पुराने दोस्त मिले थे, उन के साथ भी तो बैठना जरूरी था. स्कूटर की गति के साथसाथ उस के विचारों की गति भी बढ़ती जा रही थी. देर होने पर सुधा अवश्य बवाल करेगी. वह लड़ने को भी तैयार होगी. इस बात का उसे पूरा आभास था. वह होंठों ही होंठों में मुसकराते हुए बड़बड़ाया, ‘मुझे पता है वह झगड़ा करेगी. लेकिन यदि आज उस ने झगड़ा किया तो मैं उस का वह हश्र करूंगा जिस की उस ने कभी कल्पना भी नहीं की होगी.’
प्रताप घर पहुंचा. उस के घर में घुसते ही सुधा ने जलती नजरों से पहले प्रताप की ओर, फिर घड़ी की ओर देखा. उस के बाद कर्कश स्वर में बोली, ‘‘अब तक कहां थे? किस के साथ घूम रहे थे?’’
‘‘तुम्हारी बहन के साथ घूम रहा था,’’ दांत भींच कर प्रताप ने कहा.
प्रताप ऐसा जवाब देगा, सुधा को उम्मीद नहीं थी. उस ने आंखें फाड़ कर प्रताप की ओर देखा. फिर आगे बढ़ कर प्रताप की आंखों में आंखें डाल कर चीखते हुए बोली, ‘‘क्या कहा तुम ने?’’
‘‘जो तुम ने सुना,’’ प्रताप ने दृढ़ता और आत्मविश्वास के साथ कहा.
‘‘बेशर्म, कुछ लाजशर्म है या नहीं?’’ सुधा ने प्रताप का कौलर पकड़ कर झकझोरते हुए कहा, ‘‘नीच कहीं के, इस तरह की बात कहते शर्म नहीं आती?’’
‘‘पहले तुम अपने बारे में सोचो,’’ प्रताप ने सुधा से कौलर छुड़ाते हुए शांति से कहा, ‘‘घर से बाहर निकलने पर रास्ते में बीस तरह की परेशानियां आती हैं. पति को घर आने से जरा सी देर हो जाए तो शांति से पूछना चाहिए. वह जो कहे उसे सुनना चाहिए. ऐसा करने के बजाय तुम रणचंडी बन जाती हो. मेरी समझ में यह नहीं आता कि हमेशा तुम उलटा ही क्यों सोचती हो?’’
‘‘तुम्हारे उपदेश मुझे नहीं सुनने,’’ सुधा की आंखों से आग बरस रही थी. वह तेज स्वर में बोली, ‘‘तुम ने जो कहा है वह मैं मम्मीपापा को फोन कर के बताऊंगी.’’
‘‘तुम्हें जिस से भी कहना हो, कह देना,’’ प्रताप ने कंधे उचका कर कहा, ‘‘साथ ही तुम ने जो पूछा है वह भी बता देना. और हां, देर क्यों हुई, यह जरूर बता देना,’’ कह कर प्रताप ने अपना दाहिना पैर आगे बढ़ाया. घुटने पर फटी पैंट और खून के दाग स्पष्ट दिखाई दे रहे थे. उस ने पैंट उठा कर घुटने पर बंधी पट्टी दिखाते हुए कहा, ‘‘लहूलुहान हो कर भी घर पहुंचो, तब भी तुम्हारे दिमाग में उलटीसीधी बातें ही आती हैं.’’
प्रताप के पैर में लगी चोट देख कर सुधा चुप रह गई. वह गरदन झुका कर कुछ सोचने लगी तो उंगली से इशारा कर के प्रताप थोड़ा ऊंचे स्वर में बोला, ‘‘तुम्हारे पास बुद्धि है. कभी उस का भी उपयोग कर लिया करो. हमेशा तुम्हारा व्यवहार एक जैसा ही रहता है. आदमी के साथ कभी भी, कुछ भी हो सकता है.’’
प्रताप के पैर में लगी चोट देख कर सुधा सहम सी गई थी. एक तो प्रताप को चोट लग गई थी. फिर 4 साल में पहली बार प्रताप ने इस तरह सुधा को जवाब दिया था. वह आश्चर्य से आंखें फाड़े प्रताप को ही ताक रही थी. प्रताप ने उसे हिकारतभरी नजरों से देखा. आज वह अपने मन की भड़ास निकाल रहा था, ‘‘तुम अपने व्यवहार को सुधारो, स्वभाव को बदलो और इंसान की तरह रहना सीखो. नहीं सीखा तो फिर मैं सिखा दूंगा.’’
सुधा आंखें फैलाए, होंठ भींचे प्रताप की बातें सुनती रही. प्रताप का आज जो मन हो रहा था, बके जा रहा था. सुधा से सहन नहीं हुआ तो वह मारे गुस्से के पैर पटकते हुए रसोई में चली गई.
प्रताप ने बैडरूम में जा कर कपड़े बदले और लेट गया.
सवेरे उठ कर वह बहुत खुश था. शरीर की थकान एक ही रात में उतर गई थी. फटाफट फ्रैश हो कर वह अखबार ले कर पढ़ने बैठ गया. एक जागरूक नागरिक ने टै्रफिक पुलिस को नींद से जगाया, हैडिंग के साथ उस का समाचार छपा था. उस के द्वारा फैक्स किए गए पत्र का मुख्य अंश भी छपा था. वह खुशी से झूम उठा. होंठों को गोल कर के सीटी बजाते हुए बाथरूम में घुसा.
सुधा आश्चर्य से प्रताप की प्रत्येक अदा को ध्यान से देख रही थी. प्रताप खाने के लिए बैठा तो सुधा उस की बगल में आ कर खड़ी हो गई. पिछली रात प्रताप ने उस के साथ जो व्यवहार किया था उस की नाखुशी अभी भी उस के चेहरे पर साफ झलक रही थी. वह भी कोई कच्ची मिट्टी की नहीं बनी थी. क्रैडिट सोसायटी से रुपए ले कर बड़े भाई को देने वाली बात अभी भी उस के दिमाग में घूम रही थी. प्रताप के चेहरे पर नजरें जमा कर आहिस्ता से बोली, ‘‘भैया को फोन कर दिया था न?’’ सुधा ने यह बात आज जिस तरह कही थी, उस में कल जैसी उग्रता नहीं थी. सुधा को शांति से बात करते देख प्रताप को आश्चर्य हुआ था.
मुंह में निवाला डाल कर प्रताप ने सिर हिला दिया. सुधा का चेहरा खिल उठा था. सुधा के चेहरे पर एक निगाह डाल कर प्रताप मन ही मन बड़बड़ाया, ‘उन्हें तो मैं इस तरह पैसा दूंगा कि तुझे पता ही नहीं चलेगा.’
जूते पहन कर प्रताप ने स्कूटर की चाबी ली और दरवाजा बंद कर के बाहर आ गया. सीढि़यों से उतर कर स्कूटर के पास पहुंचा तो देखा तंबाकू और गुटखे के पाउच स्कूटर पर पड़े थे. सब्जी का कुछ कचरा स्कूटर की सीट पर तो कुछ फुटरैस्ट पर पड़ा था. यह देख कर प्रताप की सांस तेज हो गई. उस ने ऊपर की ओर देखा. संयोग से तीसरी मंजिल पर रहने वाले दंपती बालकनी में खड़े थे. प्रताप ने चीख कर कहा, ‘‘अरे ओ जंगलियो,’’ प्रताप इतने जोर से चीखा था कि अगलबगल फ्लैटों में रहने वाले लोग बाहर आ गए थे. सभी की आंखों में आश्चर्य था. मारे गुस्से के प्रताप कांप रहा था.
प्रताप ने अपने दाहिने हाथ की उंगलियां बालकनी की ओर उठा कर कहा, ‘‘मैं तुम से ही कह रहा हूं. कोई कुछ कहता नहीं है तो इस का मतलब यह तो नहीं हुआ कि गंदगी करने का ठेका तुम्हें मिल गया है. नीचे भी आदमी रहते हैं, जानवर नहीं. इस तरह कचरा फेंकने में आप लोगों को शर्म भी नहीं आती?’’
प्रताप जिस तरह चीखचीख कर अपनी बात कह रहा था, उस से सभी पड़ोसी स्तब्ध रह गए थे. दरवाजे पर खड़ी सुधा की आंखों में भी आश्चर्य था. प्रताप दांत पीस कर बोला, ‘‘सुन लो, आज के बाद यदि कचरा नीचे आया तो सारा कचरा समेट कर मैं तुम्हारे घर में फेंक दूंगा.’’
सभी की नजरें तीसरी मंजिल की बालकनी पर खड़े दंपती पर जम गई थीं. जबकि पतिपत्नी नीचे खड़े प्रताप को एकटक ताक रहे थे. प्रताप ने जो कहा था, उस का असर झांक रहे लोगों पर क्या पड़ा, यह देखने के लिए प्रताप ने चारों ओर नजरें दौड़ाईं. सभी लोग तीसरी मंजिल पर खड़े पतिपत्नी को हिकारत भरी निगाह से देख रहे थे. फिर उस ने विजेता की तरह गर्व के साथ स्कूटर में किक मारी. स्कूटर स्टार्ट हुआ तो सवार हो कर सड़क पर आ गया. आज सड़क पर बसें कायदे से खड़ी थीं. ट्रैफिक पुलिस भी चौराहे पर मुस्तैदी से खड़ा था. इस का मतलब उस की कार्यवाही का असर हुआ था. परंतु यह सब कितने दिन चलने वाला था.
उस ने बैंक में जैसे ही प्रवेश किया, सामने बैठे मैनेजर साहब ने पूछा, ‘‘भई प्रताप, तुम्हारा पैर कैसा है?’’
‘‘ठीक है, बैटर दैन यस्टरडे,’’ खुश होते हुए प्रताप ने कहा. उस ने अपनी सीट की ओर बढ़ते हुए सोचा, बेटा लाइन पर आ गया. सिधाई का जमाना नहीं रहा. एक बार आंखें लाल कर दो, सभी लाइन पर आ जाते हैं. उस दिन उस ने बैंक में काफी हलकापन महसूस किया. मैनेजर साहब का चमचा दिनेश 2 बार उस की मेज पर आ कर हालचाल पूछ गया था. उस ने चाय भी पिलाई थी. शाम को बैंक से घर जाते हुए वह काफी खुश था. स्कूटर खड़ा करते हुए उस ने देखा, आज पूरा मैदान साफ था. वह स्कूटर खड़ा कर रहा था, तभी सामने वाले फ्लैट में रहने वाले सुधीर ने उस के पास आ कर शाबाशी देते हुए कहा, ‘‘सुबह आप ने बहुत अच्छा किया. ऐसे लोगों के साथ ऐसा ही करना चाहिए. यदि आदमी होंगे तो अब ऐसा कुछ नहीं करेंगे.’’