भविष्य की नीव में दफन 2 लाशें

लेखक- दिनेश बैजल ‘राज’

उस ने यह बात प्रिंसिपल विजय कुमार को बताई तो उन्होंने 7 स्कूलों के संचालक सुरेंद्र लवानिया से सिफारिश कर के उसे 3 हजार रुपए महीना किराए पर स्कूल दिला दिया. लेकिन धीरज के मन में लालच आ गया और उस ने…

आगरा जनपद के थाना सिकंदरा की ओम विहार कालोनी निवासी सुरेंद्र लवानिया के सैनिक भारती इंटर  कालेज समेत 7 स्कूल हैं. इस के अलावा वह एक एफएम चैनल 90.8 के भी निदेशक हैं. उन का एक स्कूल थाना ताजगंज क्षेत्र के कौलक्खा में है. डा. बी.आर. अंबेडकर नाम के इस जूनियर हाईस्कूल को उन्होंने सेमरी निवासी धीरज को किराए पर दे रखा था.

धीरज ही इस स्कूल को चला रहा था. लेकिन पिछले 2 सालों से धीरज ने स्कूल के मालिक सुरेंद्र लवानिया को किराया नहीं दिया था. जब भी वह किराया मांगते तो धीरज कोई न कोई बहाना बना देता था.

28 जून, 2019 शुक्रवार की सुबह लगभग साढ़े 10 बजे इस स्कूल के संचालक धीरज ने सुरेंद्र कुमार लवानिया को फोन कर के कहा, ‘‘कहीं से मेरे पास पैसे आ गए हैं, आप स्कूल आ कर सारा किराया ले जाएं. आप अपने साथ प्रिंसिपल विजय कुमार को भी बुला लाएं गुरुजी के सामने पैसे दिए जाएंगे तो ठीक रहेगा.’’

धीरज विजय कुमार को गुरुजी कहता था. वह सुरेंद्र कुमार लवानिया के ही सैनिक भारती इंटर कालेज, उर्खरा में प्रिंसिपल थे और आगरा की इंदिरापुरम कालोनी में सपरिवार रहते थे. धीरज से किराए के पैसे मिलने की बात सुन कर सुरेंद्र लवानिया खुश हुए.

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उन्होंने उसी समय अपने एक कालेज के प्रिंसिपल विजय कुमार को फोन कर के कहा कि मैं धीरज के पास कौलक्खा पहुंच रहा हूं. तुम भी घर से सीधे धीरज के पास पहुंच जाओ. इस के बाद वह अपनी वरना कार से धीरज के पास जाने के लिए निकल गए.

पिं्रसिपल विजय कुमार उस समय सैनिक भारती इंटर कालेज में चौकीदार से सफाई कार्य करा रहे थे, क्योंकि पहली जुलाई को स्कूल खुलना था.

मूलरूप से दरभंगा, बिहार निवासी प्रिंसिपल विजय कुमार झा 25 साल पहले आगरा आए थे. सुरेंद्र लवानिया से उन का परिचय हुआ तो उन्होंने झा को सैनिक भारती इंटर कालेज का प्रिंसिपल बना दिया था. ईमानदार व मिलनसार स्वभाव के चलते बाद में विजय ही लवानिया के सभी स्कूलों की देखरेख की जिम्मेदारी संभालने लगे.

उन का बेटा मानवेंद्र उर्फ दीपक सीए की तैयारी कर रहा था. बेटी की वह शादी कर चुके थे. उन्होंने अपने बेटे से बता दिया था कि वे लवानिया साहब के साथ धीरज के पास जा रहे हैं. फिर वह बाइक ले कर निकल गए.

स्कूल मालिक और प्रिंसिपल  की रहस्यमय गुमशुदगी

शाम हो गई लेकिन न तो लवानिया साहब अपने घर लौटे और न ही विजय कुमार. सुरेंद्र लवानिया के घर वालों ने कई बार उन्हें फोन मिलाया लेकिन फोन स्विच्ड औफ था. उधर विजय कुमार का बेटा भी कई बार पिता का नंबर मिला चुका था पर उन का फोन स्विच्ड औफ होने की वजह से नहीं मिला. देर शाम सुरेंद्र लवानिया की पत्नी सुशीला ने प्रिंसिपल विजय के घर फोन किया.

विजय की पत्नी शीला ने उन्हें बताया कि उन के पति भी सुबह बाइक ले कर धीरज से मिलने की बात कह कर निकले थे, लेकिन उन का मोबाइल भी स्विच्ड औफ है. उन से संपर्क भी नहीं हो पा रहा है. शीला ने यह भी बताया कि धीरज को फोन किया था, घंटी जाने के बाद भी उस ने काल रिसीव नहीं की.

दोनों के घर वालों को चिंता हुई. उन्होंने अपने परिचितों को भी फोन कर के उन के बारे में पूछा. फिर उन्हें संभावित जगहों पर तलाश करने लगे. लेकिन दोनों का कोई सुराग नहीं लगा. तलाश में भटक रहे परिजन दूसरे दिन शनिवार 29 जून को ताजगंज थाने पहुंचे.

स्कूल मालिक सुरेंद्र लवानिया व प्रधानाचार्य विजय कुमार के परिजनों ने सुरेंद्र लवानिया के गायब होने की बात सुन कर थानाप्रभारी भी हैरान रह गए, क्योंकि शिक्षा जगत में सुरेंद्र लवानिया बड़ा नाम था. जिले में उन के 7 स्कूल और कालेज थे. 5 साल पहले उन्होंने खंदारी में एक एफएम चैनल भी शुरू किया था.

वह सपरिवार आगरा के सिकंदरा क्षेत्र की ओमविहार कालोनी में रहते थे. उन के परिवार में पत्नी सुशीला के अलावा 2 बेटियां और एक बेटा था. बड़ी बेटी की वह शादी कर चुके थे. सुरेंद्र लवानिया उत्तर प्रदेश शिक्षण संस्थान प्रबंधक परिषद के सदस्य भी थे. वे संगठन की प्रत्येक गतिविधि में हिस्सा लेते थे.

स्कूल स्वामी सुरेंद्र लवानिया व प्रधानाचार्य विजय कुमार के परिजनों ने थानाप्रभारी को घटना से अवगत कराया. मामला गंभीर था, इसलिए थानाप्रभारी ने सुरेंद्र और विजय की गुमशुदगी दर्ज कर के इस घटना की जानकारी अपने उच्चाधिकारियों को दे दी. दोनों के लापता होने की सूचना मिलते ही पुलिस महकमे में खलबली मच गई. हालात को देख कर अपहरण की आशंका थी. एसएसपी जोगेंद्र कुमार ने इस मामले की कमान खुद संभाल ली. इस के तुरंत बाद पुलिस दोनों की खोज में लग गई.

वैसे सुरेंद्र लवानिया मूलरूप से मंसा की मढैया, धिमिश्री, शमसाबाद के रहने वाले थे. उन का 400 वर्ग गज में बना डा. बी.आर. अंबेडकर जूनियर हाईस्कूल, कौलक्खा, थाना ताजगंज में था. 2 साल पहले यह स्कूल ताजगंज के गांव सेमरी निवासी धीरज जाटव ने 3 हजार रुपए मासिक किराए पर लिया था.

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धीरज को यह स्कूल विजय कुमार झा ने ही सुरेंद्र लवानिया से सिफारिश कर के किराए पर दिलवाया था. धीरज ने 2 साल से स्कूल का किराया नहीं दिया था. सुरेंद्र लवानिया जब भी उस से किराया मांगते तो वह टालमटोल कर देता था. 28 जून, 2019 को धीरज ने लवानिया साहब को फोन कर के किराया ले जाने के लिए बुलाया था.

29 जून, 2019 की सुबह जब शीला ने धीरज को फोन किया तो धीरज ने फोन उठा लिया. विजय के बारे में पूछने पर धीरज ने शीला को बताया कि प्रिंसिपल साहब और  लवानियाजी उस के पास आए ही नहीं थे.

इस के कुछ देर बाद धीरज शीला के घर  पहुंच गया. वहां उस ने चाय भी पी. शीला ने धीरज से कहा, ‘‘बेटा, यदि तुम से कोई गलती हो गई है तो कोई बात नहीं है. हम तुम्हें बचा लेंगे. उन के साथ कुछ करना मत.’’ शीला ने यह बात कहते हुए मन ही मन सोचा था कि यदि धीरज ने किसी वजह से दोनों का अपहरण कर लिया होगा तो वह समझाने पर मान जाएगा.

इस पर धीरज ने कहा, ‘‘आप कैसी बात कर रही हैं? वह मेरे गुरु हैं, मेरे अन्नदाता हैं. मैं कभी उन के साथ गलत नहीं कर सकता.’’

इस बीच धीरज पर शक होने पर शीला ने पुलिस को सूचना दे दी. कुछ ही देर में पुलिस वहां पहुंच गई. शीला के घर से निकलते ही पुलिस ने धीरज को हिरासत में ले लिया. थाने ला कर उस से सुरेंद्र लवानिया और विजय कुमार के बारे में पूछताछ की गई.

धीरज ने पुलिस से कहा, ‘‘उन दोनों के लापता होने के पीछे मेरा कोई हाथ नहीं है. हो सकता है कि उन का अपहरण हो गया हो, आप उन के मोबाइल को सर्विलांस पर लगवा दें, शायद उन की लोकेशन का पता चल जाए.’’

उधर पुलिस को दोनों के ही घर वालों ने बताया था कि सुरेंद्र लवानिया धीरज के बुलावे पर ही घर से अपनी वरना कार से धीरज से किराया लेने निकले थे, दूसरी ओर विजय कुमार झा अपनी बाइक से गए थे. दोनों के अपहरण के कयास पर पुलिस दोनों के वाहनों की सरगर्मी से तलाश में जुट गई.

गांव वालों से मिली संदेहास्पद जानकारी

पुलिस अधिकारियों को लग रहा था कि या तो दोनों का अपहरण हुआ है या फिर उन के साथ कोई अनहोनी हो गई है. एसएसपी जोगेंद्र कुमार ने सीओ (सदर) विकास जायसवाल के नेतृत्व में 3 टीमें बनाईं. एक टीम का नेतृत्व इंसपेक्टर (ताजगंज) अनुज कुमार को करना था, दूसरी टीम को इंसपेक्टर (सदर) कमलेश सिंह के साथ करना था, इन के साथ एक टीम क्राइम ब्रांच की भी थी. एसपी (सिटी) प्रशांत वर्मा को तीनों टीमों की मौनिटरिंग करनी थी.

इस बीच पुलिस ने विजय और सुरेंद्र के मोबाइल नंबरों को सर्विलांस पर लगा दिया था पता चला कि दोनों फोन नंबर घटना वाले दिन दोपहर 2 बजे से बंद हैं. यह बात भी सामने आई कि दोपहर 2 बजे मृतकों व धीरज के मोबाइलों की लोकेशन कौलक्खा स्थित स्कूल में ही थी.

पुलिस ने गांव वालों से पूछताछ की तो कुछ लोगों ने बताया कि उन्होंने सफेद रंग की एक कार स्कूल तक आती देखी थी. पुलिस को यह भी पता चला कि धीरज स्वयं को डा. बी.आर. अंबेडकर जूनियर हाईस्कूल का मालिक बताता था.

इन सब बातों से पुलिस को शक हुआ कि धीरज जरूर ही कुछ छिपा रहा है. पुलिस धीरज से प्यार से पूछताछ कर चुकी थी पर उस ने कुछ नहीं बताया था. लिहाजा उस के साथ सख्ती जरूरी थी. पुलिस की सख्ती के आगे धीरज टूट गया और उस ने सब उगल दिया.

उस ने बताया कि उस ने उन दोनों की गला घोंट कर हत्या करने के बाद उन के शवों को स्कूल परिसर में ही गड्ढा खोद कर दफन कर दिया है.

दोहरे हत्याकांड की बात सुन कर पुलिस अधिकारी सन्न रह गए. पुलिस ने दोनों के घर वालों को केस खुलने की सूचना दे दी. हत्या की जानकारी होते ही दोनों के परिवार में कोहराम मच गया. पुलिस ने धीरज के साथ हत्या में शामिल 3 अन्य आरोपियों को भी गिरफ्तार कर लिया. आरोपियों की निशानदेही पर पुलिस स्कूल पहुंच गई और रात में ही खुदाई का काम शुरू कर दिया.

खुदाई कर पुलिस ने निकाली लाशें

आरोपियों की निशानदेही पर पुलिस ने 3 घंटे की खुदाई के बाद स्कूल के कमरे के बाहर गड्ढे से दोनों शव बरामद कर लिए. मौके की काररवाई पूरी करने के बाद पुलिस ने सुरेंद्र लवानिया और विजय कुमार के शवों को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. एसपी (सिटी) प्रशांत वर्मा ने अभियुक्तों से पूछताछ की तो सुरेंद्र लवानिया और विजय कुमार की हत्या की जो कहानी सामने आई, कुछ इस तरह थी—

करीब 2 साल पहले प्रिंसिपल विजय कुमार झा की सिफारिश पर सुरेंद्र कुमार लवानिया ने 3 हजार रुपए प्रतिमाह किराए पर अपना एक स्कूल धीरज को दे दिया था. धीरज बीएससी करने के बाद बीएड कर रहा था. वह महत्वकांक्षा था. 2 माह पैसा देने के बाद उस ने किराया देना बंद कर दिया था.

किराया मांगने पर वह टालमटोल कर देता था. स्कूल के मालिक सुरेंद्र कुमार लवानिया उस पर किराया देने का दबाव बना रहे थे. उन्होंने कह दिया था कि किराया दो नहीं तो इस साल जुलाई से हम स्कूल वापस ले लेंगे.

लेकिन धीरज की नीयत खराब हो चुकी थी. वह स्कूल को कब्जाने के साथ ही किराया भी नहीं देना चाहता था. इस के लिए उस ने अपने भाइयों संदीप, नीरज और गांव के ही दोस्त विजय के साथ मिल कर एक खतरनाक योजना बना ली थी.

योजना के अनुसार उस ने स्कूल के मालिक लवानिया साहब को फोन पर किराया देने की बात कही. उस ने उन से कहा कि आप अपने साथ प्रिंसिपल विजय को भी ले आए ताकि उन के सामने रुपए दिए जाएंगे तो ठीक रहेगा. इस के साथ ही धीरज अपने भाइयों संदीप, धीरज और नीरज के साथ स्कूल पहुंच गया. पूर्वाह्न 11 बजे से पहले प्रधानाचार्य विजय कुमार झा अपनी बाइक से स्कूल पहुंच गए. उन्होंने स्कूल के औफिस में बैठ कर में धीरज से किराए के रुपए मांगे. इसी बीच धीरज और प्रिंसिपल विजय में कहासुनी हो गई. जिस के चलते दोनों में हाथापाई होने लगी. तभी धीरज ने अपने भाइयों और दोस्त की मदद से विजय को दबोच लिया और गला घोंट कर हत्या कर दी.

कुछ ही देर में स्कूल मालिक सुरेंद्र लवानिया भी धीरज के पास पहुंच गए. तब तक आरोपियों ने विजय की लाश कमरे में ही परदे के पीछे छिपा दी थी.

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सुरेंद्र ने धीरज से पूछा कि विजय कुमार झा अभी नहीं आए. तब धीरज ने मना कर दिया कि अभी नहीं आए. इस बीच हत्यारों ने विजय की बाइक भी छिपा दी थी.

बारीबारी से मार डाला दोनों को

सुरेंद्र लवानिया ने धीरज से किराए के रुपए मांगे तो धीरज फिर टालमटोल करने लगा. इस पर लवानिया भड़क गए. उन्होंने कहा कि तुम ने फोन पर रुपए देने की बात कही थी. यदि तुम रुपए नहीं दोगे तो स्कूल नहीं चला पाओगे. इस पर धीरज उन से भिड़ गया और हाथापाई करने लगा.

सुरेंद्र लवानिया अकेले थे और आरोपी 4 थे. इस बीच सुरेंद्र फर्श पर गिर गए. गिरने के दौरान उन्हें परदे के पीछे छिपी विजय की लाश दिखाई दी तो उन के मुंह से चीख निकल गई.

इस के बाद धीरज और उस के भाइयों के सिर पर खून सवार हो गया. भेद खुलने के डर से उन लोगों ने सुरेंद्र को पकड़ लिया और धीरज ने एक कपड़े से उन का गला घोंट दिया.

घटना के बारे में धीरज के पिता पप्पूराम को जानकारी हुई तो वह भी स्कूल आ गया. सुरेंद्र की कार हुंडई वरना को धीरज और उस का पिता पप्पूराम ले गए. कार को ये लोग सैंया में लादूखेड़ा के पास राजस्थान बार्डर पर खड़ी कर आए.

बाइक को संदीप का दोस्त विजय अपने साथ ले गया. इस के बाद 9 बजे धीरज और उस के भाई फिर स्कूल पहुंचे और 4 फीट लंबा और 4 फीट गहरा गड्ढा खोद कर दोनों शवों को उस में दफन कर दिया.

29 जून की सुबह एक टै्रैक्टर ट्रौली मिट्टी मंगवा कर स्कूल के कमरों के सामने डाल दी. जिस से किसी को शक न हो. मोबाइल, पर्स व अन्य कागजात भी आरोपियों ने जला कर शवों के साथ गडढे में दबा दिए थे. पुलिस ने जले मोबाइल फोन, कार, बाइक, गला घोंटने वाला कपड़ा, फावड़ा आदि भी बरामद कर लिए.

इस दोहरे हत्याकांड का परदाफाश करने वाली टीम में क्राइम ब्रांच प्रभारी अरुण बालियान, एसआई अशोक कुमार, रमित कुमार, प्रदीप कौशिक, अरुण, कांस्टेबल हृदेश, आदेश त्रिपाठी, अजीत, करणवीर, विवेक, प्रशांत कुमार, पंकज, दीपू शामिल थे. गुमशुदगी की रिपोर्ट को हत्या की रिपेर्ट  में तरमीम कर पुलिस ने चारों हत्यारोपियों को न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.   द्य

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

(कहानी सौजन्य मनोहर कहानी)

असंभव के पार झाकने की भूल

लेखक- शैलेंद्र सिंह

निस्संदेह ऐसे प्यार का अंजाम ठीक नहीं होता. यतीश और नेहा के साथ भी…24जून, 2019 की बात है. लखनऊ के शेरपुर लवल गांव में सुबह 6 बजे रोज की तरह प्रभातफेरी निकल रही थी. प्रभातफेरी जब गांव में ही रहने वाले शिवप्रसाद के घर से 100 मीटर दूर पहुंची तो सड़क किनारे पीपल के पेड़ के नीचे एक लड़के का नंगा शव पड़ा दिखाई दिया. शव को देखने से लग रहा था कि किसी ने धारदार हथियार से उस की हत्या की है. प्रभातफेरी में जगदीश भी शामिल था. जगदीश जैसे ही लाश के पास गया, तो चिल्लाने लगा कि यह तो मेरा भतीजा यतीश है. इस का यह हाल किस ने कर दिया. लाश की शिनाख्त जगदीश ने अपने भतीजे यतीश के रूप में की.

उस ने इस बात की सूचना अपने भाई शिवप्रसाद और परिवार के अन्य लोगों को दे दी. घटना का पता चलते ही पूरे गांव में कोहराम मच गया. गांव के लोग घटनास्थल की तरफ भागे. यतीश का शव देख कर सभी लोग सन्न रह गए. 24 वर्षीय यतीश की मां सरला उस के शव से लिपट कर रोने लगी. गांव की महिलाएं और दूसरे लोग उसे ढांढस बंधा रहे थे. वह बारबार दहाड़ें मार कर रोतेरोते बेहोश हो रही थी. घटना की जानकारी लखनऊ जनपद के निगोहा थाने को दी गई. शेरपुर लवल गांव इसी थाने के तहत आता था. निगोहा लखनऊ जिले का अंतिम थाना है. इस के बाद रायबरेली जिला शुरू हो जाता है. पुलिस ने यतीश की नंगी लाश देखने और गांव वालों से बात करने के बाद अनुमान लगाया कि उस की हत्या की वजह अवैध संबंध हो सकते हैं

इंसपेक्टर निगोहां जगदीश पांडेय ने लखनऊ के एसएसपी कलानिधि नैथानी को घटना के बारे में बताया. एसएसपी कलानिधि नैथानी ने एसपी (क्राइम) सर्वेश कुमार मिश्रा और सीओ (मोहनलालगंज) राजकुमार शुक्ला को मौके पर जा कर घटना की तहकीकात और खुलासा करने को कहा.पुलिस ने घटनास्थल का निरीक्षण किया, तो पता चला कि मृतक यतीश पर किसी धारदार हथियार से वार किए गए थे. मौके पर काफी मात्रा में खून फैला हुआ था. लाश के मुआयने में लगा कि हत्यारे एक से अधिक रहे होंगे.

वहां मौजूद मृतक की मां सरला ने पुलिस को बताया कि यतीश कल रात अपने दोस्तों के साथ गांव के बाहर मोबाइल फोन पर गेम खेलने की बात कह कर आया था. मैं ने इसे मना भी किया पर यह नहीं माना. यह जानकारी मिलने के बाद पुलिस को यह पता लगाना था कि यतीश किन दोस्तों के साथ आया था. पुलिस ने मौके की काररवाई निपटा कर लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

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जांच में सामने आया नेहा का नाम

एसएसपी ने इस केस को सुलझाने के लिए एक पुलिस टीम बनाई.  इसी दौरान पुलिस टीम को मुखबिर से पता चला कि मृतक के गांव की ही नेहा से प्रेम संबंध थे. इस सूचना में पुलिस को दम नजर आया, क्योंकि जिस तरह से यतीश की नंगी लाश मिली थी, उस से हत्या की यही वजह नजर आ रही थी.

टीम ने यतीश के फोन की काल डिटेल्स निकलवाई तो उस में एक नंबर ऐसा मिल गया, जिस पर यतीश काफी देर तक बातें करता था. वह फोन नंबर नेहा का ही निकला. इस के बाद पुलिस को यकीन हो गया कि यतीश की हत्या के तार जरूर नेहा से जुड़े हैं. इसलिए पुलिस टीम नेहा के घर पहुंच गई. पुलिस नेहा और उस के भाई को पूछताछ के लिए थाने ले आई. पूछताछ करने पर नेहा ने यह तो कबूल कर लिया कि यतीश के साथ उस के प्रेम संबंध थे लेकिन उस के अनुसार, हत्या के बारे में उसे कोई जानकारी नहीं थी. सख्ती से पूछताछ करने पर नेहा के भाई शिवशंकर ने स्वीकार कर लिया कि यतीश ने उस के घर वालों का जीना हराम कर दिया था. इसीलिए उसे ठिकाने लगाने के पर मजबूर होना पड़ा. शिवशंकर ने यतीश की हत्या की जो कहानी बताई वह इस प्रकार थी—

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से 40 किलोमीटर दूर एक गांव है शेरपुर लवल. यहां की आबादी मिलीजुली है. ज्यादातर परिवार खेतीकिसानी पर निर्भर हैं. इन्हीं लोगों में शिवप्रसाद तिवारी का भी परिवार था.

यतीश तिवारी शिवप्रसाद का ही बेटा था. यतीश 2 भाई थे. मनीष बड़ा था और यतीश छोटा. मनीष होमगार्ड की नौकरी करता है. उस की ड्यूटी लखनऊ सचिवालय में लगी थी. मनीष अपने परिवार के साथ लखनऊ के पास ही तेलीबाग में रहता था. यतीश की एक बहन है प्रीति, जिस की शादी हो चुकी है. यतीश अकेला अपने मातापिता के साथ रहता था. मां सरला देवी आंगनबाड़ी कार्यकर्ता है.

यतीश भारतीय सेना में शामिल हो कर देश की सेवा करना चाहता था. इस के लिए वह अपनी तैयारी भी कर रहा था. वह रोजाना गांव के बाहर दौड़ लगाता था और एक्सरसाइज भी करता था. शारीरिक रूप से फिट 24 साल के यतीश ने कई प्रतियोगी परीक्षाएं पास की थीं. लेकिन फिजिकल टेस्ट में वह रह जाता था.

यतीश अपनी मां से कहता था कि अगर मैं आर्मी में नहीं जा पाया तो दूसरी फोर्स या पुलिस में तो मेरा चयन हो ही जाएगा. मां को भी बेटे की बात पर यकीन था. मां ही नहीं गांव और घर के दूसरे लोग भी यही मान रहे थे. यही वजह थी कि बिना नौकरी किए भी यतीश के रिश्ते आने लगे थे.

लेकिन यतीश अभी शादी नहीं करना चाहता था. उस ने मां से कहा, ‘‘मां शादी की अभी क्या जल्दी है, नौकरी लगने दो फिर शादी कर लूंगा.’’

‘‘शादी के लायक उम्र हो गई है. तू ही बता, अभी नहीं तो कब होगी तेरी शादी? तुझे पता नहीं है गांव के लोग तमाम तरह की बातें करते हैं. ऐसे में उन को भी कहने का मौका नहीं मिलेगा.

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‘‘जिस जगह से रिश्ता आया है वहां लड़की और घरपरिवार सभी अच्छा है. कई बार लड़की की किस्मत अच्छी होती है तो पति की नौकरी जल्दी लग जाती है.’’ मां ने यतीश को समझाया तो वह भी मां की बात टाल नहीं सका. इस के बाद मांबाप ने यतीश की शादी तय कर दी.

उस की शादी हैदरगढ़ के रहने वाले एक परिवार में तय हो गई. शादी और तिलक की तारीख भी तय हो गई थीं. इसी साल यानी 2019 में ही 22 नवंबर को तिलक और 28 नवंबर को उस की बारात जानी थी.

दूसरी ओर यतीश का चक्कर गांव की ही नेहा से चल रहा था. वह नेहा के साथ शादी करना चाहता था. नेहा के पिता मिस्त्री का काम करते थे. नेहा और यतीश अलगअलग बिरादरी के थे. इसलिए दोनों परिवारों के बीच शादी विवाह की बात किसी भी हालत में संभव नहीं था. यतीश और नेहा के बीच लंबे समय से संबंध थे. यह बात नेहा के घर वालों को भी पता चल गई थी.

उन्होंने नेहा को समझाया लेकिन वह प्रेमी को किसी भी हालत में नहीं छोड़ना चाहती थी. नेहा के मातापिता और परिवार के लोग इस बात का विरोध कर रहे थे. इस के बाद भी यतीश और नेहा मानने को तैयार नहीं थे.

जब नेहा और यतीश का मिलनाजुलना बंद नहीं हुआ तो नेहा के पिता शिवप्रसाद ने अपने परिवार को गांव से दूर पीजीआई अस्पताल के पास वेदावन कालोनी में किराए का घर ले कर दे दिया. पूरा परिवार किराए के उसी मकान में रहने लगा. लेकिन वहां जाने के बाद भी यतीश ने नेहा से मिलना नहीं छोड़ा.

शिवप्रसाद को यह बात पता चल गई थी कि नेहा और यतीश अब भी छिपछिप कर मिलते हैं. लिहाजा उस ने अपने बेटे शिवशंकर से कहा कि यतीश की हरकतें बढ़ती जा रही हैं. गांव छोड़ने के बाद भी वह नेहा का पीछा नहीं छोड़ रहा है. अब उसे सबक सिखाना ही पड़ेगा.

‘‘हम तो पहले ही कह रहे थे कि गांव छोड़ने से कुछ नहीं होगा. लेकिन आप ही नहीं माने. अब जो भी करना है, जल्दी करो. कहीं ऐसा न हो कि वह कोई दूसरा कदम उठा ले.’’ बेटे शिवशंकर ने कहा.

इस के बाद दोनों ने तय कर लिया कि यतीश को रास्ते से हटाना है. शिवप्रसाद और उस के बेटे शिवशंकर ने मिल कर यतीश की हत्या की योजना बना ली. शिवशंकर ने इस के लिए गांव में रहने वाले अपने दोस्त हनुमान को भी अपनी योजना में शामिल कर लिया.

हनुमान ने सतीश पर नजर रखनी शुरू कर दी  ताकि काम आसानी से हो सके. यतीश की दिनचर्या से पता चला कि रात को वह गांव के बाहर पीपल के पेड़ के पास चबूतरे पर बैठ कर मोबाइल फोन पर पबजी गेम खेलता है. यह पूरी जानकारी हनुमान ने शिवशंकर को दे दी. इस के बाद शिवशंकर, शिवप्रसाद और नुमान ने अपनी योजना को अंजाम देने की तैयारी कर ली.

23 जून को गांव में किसी की तेरहवीं का भोज था. शिवप्रसाद और शिवशंकर भोज में शामिल होने के लिए घर से निकले. वहां जाने से पहले दोनों ने हनुमान के साथ शराब पी, फिर खाना खाया. रात करीब एक बजे तीनों गांव के बाहर उस चबूतरे के पास पहुंच गए जहां पर यतीश मोबाइल के स्क्रीन पर नजरें जमाए बड़े ध्यान से गेम खेल रहा था.

शिवप्रसाद और हनुमान ने यतीश को पीछे से दबोच लिया. उस का मुंह दबा कर वे लोग उसे वहीं स्थित पुलिया के नीचे ले गए. इस के बाद शिवशंकर ने साथ लाए चापड़ से उस के गले और सिर पर कई वार किए. कुछ ही देर में वह मर गया. उस की हत्या करने के बाद इन लोगों ने उस के कपड़े उतार कर सड़क के किनारे फेंक दिया. यतीश के कपड़ों में तो खून लगा ही था. पुलिया के दोनों किनारों पर भी खून के छींटे गिर गए थे. शिवशंकर से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उस के दोस्त हनुमान को भी गिरफ्तार कर लिया, जबकि नेहा को छोड़ दिया गया.

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शिवशंकर की निशानदेही पर पुलिस ने उस के घर से हत्या में प्रयुक्त चापड़ और यतीश के खून सने कपड़े बरामद कर लिए. पुलिस ने दोनों आरोपियों शिवशंकर और हनुमान को कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया गया. कहानी लिखे जाने तक शिवप्रसाद की तलाश जारी थी. साफ जाहिर है कि अपराध छिपाने की कितनी भी कोशिश की जाए, अपराध छिपता नहीं है.      द्य

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में नेहा परिवर्तित नाम है.

‘जिहाद’ के नाम पर पुलिसिया जुल्म

‘जिहाद’ शब्द किसी भी लिहाज से विलेन नहीं है, बल्कि अगर इस के मतलब पर बात की जाए तो पता चलेगा कि ‘जिहाद’ एक अरबी शब्द है, जिस का मतलब है किसी अच्छे मकसद के लिए जद्दोजेहद करना.

लेकिन इस बात को भी नहीं नकारा जा सकता है कि ‘जिहाद’ के नाम पर बहुत से भटके हुए मुस्लिम ने दुनिया में आतंक मचाया है, लेकिन साथ ही एक कड़वा सच यह भी है कि इस शब्द का सहारा ले कर पुलिस ने बहुत से मुस्लिमों पर जोरजुल्म भी किए हैं.

ऐसे ही एक मामले में महाराष्ट्र की अकोला कोर्ट ने ‘जिहाद’ के नाम पर

3 मुस्लिम नौजवानों को यह कहते हुए बरी कर दिया था कि ‘जिहाद’ शब्द के इस्तेमाल भर से किसी को आतंकी नहीं ठहराया जा सकता है.

अकोला की इस अदालत के स्पैशल जज एएस जाधव ने यह टिप्पणी गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम कानून, शस्त्र अधिनियम और बांबे पुलिस ऐक्ट के तहत 3 आरोपियों के खिलाफ एक मामले में की थी.

यह मामला कुछ यों था कि अकोला जिले के पुसाद इलाके में 25 सितंबर, 2015 को बकरीद के मौके पर एक मसजिद के बाहर पुलिस वालों पर हुए हमले में 24 साल के अब्दुल रज्जाक और शोएब खान के साथसाथ 26 साल के सलीम मलिक को गिरफ्तार किया गया था. इन तीनों पर आईपीसी की अलगअलग धाराओं के तहत कई मामले दर्ज किए गए थे.

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इस मामले में पब्लिक प्रोसीक्यूटर

ने आरोप लगाए थे कि अब्दुल रज्जाक मसजिद पहुंचा, एक चाकू निकाला और उस ने ड्यूटी पर मौजूद 2 पुलिस वालों पर हमला कर दिया. उस ने हमले से पहले कहा था, ‘तुम ने गौहत्या कानून लागू किया इसलिए मैं तुम को जान से मार डालूंगा.’

एटीएस ने तो दावा किया था कि ये लोग मुस्लिम नौजवानों को आतंकी संगठनों में शामिल होने के लिए प्रभावित करने के आरोपी थे.

इस आरोप पर जज एएस जाधव ने कहा कि ऐसा लगता है कि आरोपी अब्दुल रज्जाक ने गौहत्या पर पाबंदी को ले कर हिंसा के जरीए सरकार और कुछ हिंदू संगठनों के खिलाफ अपना

गुस्सा जाहिर किया था. बेशक उस ने ‘जिहाद’ जैसे शब्द का इस्तेमाल किया होगा, लेकिन इस का मतलब यह नहीं है कि महज ‘जिहाद’ शब्द का इस्तेमाल करने से उसे आतंकवादी करार देना चाहिए.

कोर्ट ने तीनों आरोपियों को पुलिस वालों को चोट पहुंचाने के सिलसिले में अब्दुल रज्जाक को कुसूरवार ठहराते हुए 3 साल कैद की सजा सुनाई गई थी और चूंकि वह 25 सितंबर, 2015 से जेल में था और कैद में 3 साल गुजार चुका था, इसलिए अदालत ने उसे रिहा कर दिया.

यहां तो कोर्ट ने ‘जिहाद’ शब्द का मतलब बताते हुए इस केस में आरोपियों को एक तरह से बड़ी सजा मिलने से बचा लिया था, लेकिन बहुत से ऐसे मामले भी होते हैं जिन में पुलिस अपना पक्ष मजबूत करने के लिए लोगों पर झूठे आरोप भी लगा देती है.

यह मामला ‘जिहाद’ से तो जुड़ा नहीं है, पर है पूरी तरह से फर्जी. दरअसल, साल 2016 में 1 अक्तूबर को दिल्ली पुलिस ने नकली सिक्के बनाने के आरोप में दिल्ली के एक कारोबारी और दादरी के रहने वाले नरेश को गिरफ्तार किया था. बाद में नरेश ने जमानत पर जेल से बाहर आ कर दिल्ली पुलिस को बताया था कि उन का नकली सिक्के बनाने का कोई गैरकानूनी कारोबार नहीं है, बल्कि उन का तो बवाना इलाके में कैमिकल बनाने का धंधा है.

नरेश ने बताया कि 30 सितंबर को उन के घर समरपाल नाम का एक इंस्पैक्टर आया था और उन्हें पकड़ कर बवाना क्षेत्र में उन की कैमिकल फैक्टरी में ले गया था. वहां जा कर उस इंस्पैक्टर ने बताया कि इस फैक्टरी की पहली मंजिल पर नकली सिक्के बनते हैं.

उस ने इस मामले को रफादफा करने के एवज में नरेश से 25 लाख रुपए की घूस मांगते हुए धमकी दी कि अगर यह रकम नहीं दी गई तो उन्हें फंसा दिया जाएगा.

नरेश ने आगे बताया कि उन की फैक्टरी ग्राउंड फ्लोर और बेसमैंट में है. पहली मंजिल से उन का कोई लेनादेना नहीं है. लेकिन पुलिस ने उन की एक न सुनी और उन्हें पकड़ कर थाने ले गई.

इस दौरान पुलिस के जुल्म से तंग आ कर नरेश ने अपनी पत्नी से कह कर बैंक में रखे 9 लाख रुपए निकलवाए और पुलिस को दिए. इस के बाद भी पुलिस नहीं पसीजी और नरेश के साले के जरीए फिर से रुपए मांगे, लेकिन नरेश के पास और पैसे नहीं थे.

कारोबारी नरेश ने आगे बताया कि इंस्पैक्टर समरपाल ने उन पर नकली सिक्कों का कारोबार करने का केस बना कर जेल भिजवा दिया. उन्हें तकरीबन 42 दिनों तक दिल्ली की जेल में रहना पड़ा था.

नरेश की इस शिकायत पर पुलिस ने इंस्पैक्टर समरपाल के खिलाफ मामला दर्ज किया और उसे लाइन हाजिर भी किया. नरेश के आरोपों की हकीकत सामने आने के बाद इंस्पैक्टर समरपाल को बाद में सस्पैंड कर उस के खिलाफ केस दर्ज किया गया.

ऐसे न जाने कितने मामले होते हैं जहां पुलिस झूठे केस बना कर लोगों को सताती है, उन्हें पैसे से भी लूटती है. अगर मामला 2 धर्मों के लड़कालड़की के प्यार का हो तो उसे ‘लव जिहाद’ बनाने में देर नहीं लगाती है.

यह बात सितंबर, 2018 की है. उत्तर प्रदेश के मेरठ से पुलिस की गुंडागर्दी का एक वीडियो सामने आया था जिस में एक मुस्लिम लड़के से ताल्लुक होने पर कुछ पुलिस वालों ने हिंदू धर्म की छात्रा के साथ न सिर्फ बदतमीजी की थी, बल्कि उस पर अपने साथी छात्र के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने का दबाव भी बनाया था.

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पीडि़ता ने बताया कि वह अपने दोस्त के साथ उस के घर पढ़ने गई थी, जहां हिंदू संगठन के कुछ कार्यकर्ताओं ने पहुंच कर बवाल मचाया. इस के बाद वहां पहुंची पुलिस उन दोनों को अपने साथ ले गई थी.

पीडि़ता ने आगे बताया, ‘पुलिस मुझे और मेरे दोस्त को अलगअलग गाड़ी

में ले कर गई. मैं जिस गाड़ी में थी, उस में मौजूद पुलिस वालों ने मेरे साथ बदतमीजी की. मुझ पर मुस्लिम लड़के से रिश्ते होने का आरोप लगाया.

‘मेरा नकाब उतरवाया गया और गाड़ी में बैठे पुलिस वाले ने मेरा

वीडियो बनाया और मेरे खिलाफ

गंदी भाषा का इस्तेमाल किया…

‘जब मुझे थाने ले जाया गया तो वहां पुलिस वालों ने मुझ पर लड़के के खिलाफ केस दर्ज कराने के लिए कहा. मैं ने उन से कहा कि हमारे बीच कोई गलत संबंध नहीं हैं, इसलिए मैं ऐसा नहीं कर सकती. इस के बाद पुलिस वालों ने कहा कि हम तुम्हें कुछ नहीं कहेंगे, बस तुम लड़के के खिलाफ केस दर्ज करा दो, क्योंकि वह मुस्लिम है…

‘जब मेरे घर वाले वहां पहुंचे तो पुलिस ने उन से भी मेरे दोस्त के खिलाफ केस करने के लिए कहा, लेकिन मेरे घर वालों ने भी इनकार कर दिया.’

इस पूरे वाकिए पर एडीजी कानून व्यवस्था आनंद कुमार ने पुलिस वालों की इस हरकत को घोर गैरजिम्मेदाराना बताते हुए कहा कि पुलिस वालों ने न सिर्फ मारपीट की है, बल्कि खुद ही वीडियो बना कर वायरल भी किया है.

आरोपी 3 पुलिस वालों को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया गया, जबकि होमगार्ड के एक जवान को नौकरी से बरखास्त कर दिया गया.

जैसा इन मामलों में हुआ है, वैसा होना नहीं चाहिए और अगर यह साबित हो जाए कि पुलिस ही मामले को तोड़मरोड़ कर धार्मिक या सामाजिक उन्माद फैलाने का काम कर रही है, तो उस पर कड़ी कार्यवाही होनी चाहिए.

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ड्यूटी से निलंबित या लाइन हाजिर कर देना कोई सजा नहीं है, बल्कि यह तो उन्हें एक तरह से मदद पहुंचाई जाती है कि मामला ठंडा होने के बाद ड्यूटी पर बहाली हो जाएगी. पुलिस जनता की हिफाजत और समाज में शांति बनाए रखने के लिए बनाई गई है, उसे अपनी हद का पता होना चाहिए, तभी लोग उस की इज्जत करेंगे, नहीं तो बीच चौराहे पर तलवार निकाल कर लोहा लेने को मजबूर हो जाएंगे.

(कहानी सौजन्य मनोहर कहानी)

जरा संभल कर, अब सड़क पर ट्रैफिक रूल तोड़ेंगे तो लगेगा भारी जुरमाना

बिना हेल्मेट बाइक चलाना, बगैर सीट बेल्ट लगाए चलना, ओवरस्पीड और ओवरलोड जैसे तमाम ट्रैफिक रूल्स तोड़ने पर भारी जुरमाना लगाया जा सकता है. इस में ड्राइविंग लाइसेंस को निरस्त करने तक का प्रावधान है.
केंद्र सरकार ने सङक सुरक्षा और जरूरी एहतियात को देखते हुए नियम सख्त कर दिए हैं और लोकसभा ने ‘मोटर यान (संशोधन) विधेयक-2019’ को मंजूरी दे दी गई है, जिस में परिवहन व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने एवं सड़क सुरक्षा के क्षेत्र में काफी सख्त प्रावधान रखे गए हैं .

राज्यों के अधिकार में दखल नहीं

विधेयक पर चर्चा करते हुए केंद्रीय़ सङक एवं परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने कहा,”सरकार का मोटर यान संशोधन विधेयक के माध्यम से राज्यों के अधिकार में दखल देने का कोई इरादा नहीं है. इस के प्रावधानों को लागू करना राज्यों की मरजी पर निर्भर है और केंद्र की कोशिश राज्यों के साथ सहयोग करने, परिवहन व्यवस्था में बदलाव लाने और दुर्घटनाओं को कम करने की है.”

सख्त प्रावधान

इस विधेयक को ध्वनिमत से मंजूरी दे दी गई है. विधेयक में सड़क सुरक्षा के क्षेत्र में काफी सख्त प्रावधान रखे गये हैं. मसलन :
* किशोर नाबालिगों द्वारा वाहन चलाना.
* बिना लाइसेंस खतरनाक ढंग से वाहन चलाना.
* शराब पी कर गाड़ी चलाना.
* निर्धारित सीमा से तेज गाड़ी चलाना.
* निर्धारित मानकों से अधिक लोगों को बैठाना.
* अधिक माल लाद कर गाड़ी चलाना
* रैड लाइट जंप करना.
* बारबार लेन तोड़ना
* आपातकालीन वाहन जैसे ऐंबुलेंस अथवा 100 नंबर के वाहन को रास्ता नहीं देना आदि.

जुरमाने के साथ सजा भी

इन नियमों के उल्लंघन पर कड़े जुरमाने का प्रावधान किया गया है.
विधेयक में किए गए प्रावधान 18 राज्यों के परिवहन मंत्रियों की सिफारिशों पर आधारित हैं. इन सिफारिशों की संसद की स्थायी समिति ने भी जांचपरख की है.
विधेयक में तेज गाड़ी चलाने पर भी जुरमाना लगाने का प्रावधान किया गया है. बिना बीमा पौलिसी के वाहन चलाने पर भी जुरमाना रखा गया है. बिना हेलमेट वाहन चलाने पर जुरमाना एवं 3 माह के लिए लाइसेंस निलंबित किया जाना आदि शामिल हैं.

पहले क्या अब क्या

ट्रैफिक नियम तोड़ने पर पहले कितना था जुरमाना और अब कितना लगेगा, जानिए :
पहले अब
सामान्य चलान 100 500
बगैर ड्राइविंग लाइसेंस गाङी चलाना 500 5000
तेज स्पीड 400 1000 से 2000
खतरनाक ड्राइविंग 1000 5000
नशा कर के गाङी चलाना 2000 10000
सीट बेल्ट न लगाना 100 1000
बिना हेल्मेट बाइक चलाना 100 1000 व 3 महीने लाइसेंस सस्पेंड
ओवरलोड 100 3000 व 3 महीने लाइसेंस सस्पेंड
आपातकालीन वाहनों को रास्ता न देना 00 10000

हिट ऐंड रन पर सरकार का मुआवजा

हिट ऐंड रन के मामले में मृतक के परिजनों को सरकार की ओर से 2 लाख रूपए दिया जाएगा. पहले 25,000 रूपए का प्रावधान था.

इस के साथ ही थर्ड पार्टी इंश्योरेंस पर देनदारी की सीमा को समाप्त किया जाएगा.
इस से पहले 2016 में तैयार प्रस्ताव में मौत होने पर 10 लाख और घायल होने पर 5 लाख रूपए का प्रावधान था.

किशोर उम्र को गाङी चलाने देने पर अभिभावक भी दोषी

किशोर द्वारा गाड़ी चलाते हुए सड़क पर कोई अपराध करने की स्थिति में गाड़ी के मालिक अथवा अभिभावक को दोषी माना जाएगा और वाहन का पंजीकरण निरस्त कर दिया जाएगा.

मालूम हो कि देश में सड़कों पर बढती दुर्घटनाओं से जानमाल दोनों की छति होती है और देश को इस से करोड़ों का नुकसान होता है.
ऐसे में सरकार की कोशिश यह भी होनी चाहिए कि इस सख्त नियम के साथसाथ भ्रस्टाचार में लिप्त रहने वाले पुलिसकर्मियों पर भी सख्त काररवाई करे ताकि नियम तोड़ने वालों पर शिकंजा कसा जा सके.

 

डौक्टर पायल

लेखक: निखिल अग्रवाल

सत्तर के दशक से जब पिछड़ी जातियों या समुदायों के गरीब छात्रों ने उच्चस्तरीय पढ़ाई के लिए कदम बढ़ाने शुरू किए तभी से रैगिंग की शुरुआत हुई, जो उन के बढ़ते कदमों को रोकने के लिए थी. आश्चर्य यह है कि इक्कीसवीं सदी में पहुंचने के बाद भी रैगिंग हो रही है. रोहित बेमुला और डा. पायल तड़वी इस मानसिकता का शिकार…

करीब साढ़े 3 साल पहले सन 2016 के जनवरी माह में दलित छात्र रोहित वेमुला ने फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली थी. हैदराबाद

इस सुसाइड नोट में लिखी गई बातों पर उस समय देश भर में जम कर बहस हुई. जातिवादी व्यवस्था को देश का सब से बड़ा खतरा बताया गया. शिक्षण संस्थानों, कालेजों और यूनिवर्सिटी कैंपस में बढ़ते जातिवाद पर रोक लगाने की मांग उठी. संविधान में वर्णित समानता और सामाजिक सुरक्षा के अधिकारों की रक्षा पर भी जोर दिया गया.

इन बातों को 3 साल से ज्यादा का समय बीत गया. इस दौरान कई बार इन मुद्दों पर गर्मागर्मी के बीच बहस और चर्चाएं होती रहीं लेकिन धरातल पर कोई बदलाव नहीं आया. स्कूल से ले कर उच्च शिक्षा के प्रतिष्ठानों में रैगिंग होती रही. कभी शारीरिक या मानसिक प्रताड़ना तो कभी मौखिक रूप से अभद्र टीकाटिप्पणियां.

रैगिंग के नाम पर हर साल हजारों विद्यार्थी अपने सीनियर्स का भयावह व्यवहार झेलते रहे और उन के इशारों पर नाचते रहे. मैडिकल, इंजीनियरिंग और मैनेजमेंट जैसे उच्च शिक्षा के संस्थानों में रैगिंग के नाम पर कई बार सीनियर विद्यार्थियों का अमानवीय व्यवहार सामने आया.

मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने शिक्षण संस्थानों में रैगिंग के खिलाफ कड़े निर्देश जारी किए हुए हैं. कई राज्यों में रैगिंग पर रोक लगाने के लिए सख्त कानून भी बनाए गए हैं. सुप्रीम कोर्ट की बैंच ने 11 फरवरी, 2009 को स्पष्ट कहा था कि रैगिंग में लिप्त पाए गए विद्यार्थियों के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज होना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस के सख्ती से पालन कराने के निर्देश भी दिए गए. इस के बावजूद अभी तक रैगिंग की घटनाएं नहीं रुकीं हैं.

इसी 22 मई को मुंबई में एक दलित डाक्टर रैगिंग की कुत्सित मानसिकता की भेंट चढ़ गई. महाराष्ट्र के जलगांव के आदिवासी परिवार की डाक्टर पायल तड़वी मुंबई में रह कर डाक्टरी की स्नातकोत्तर की पढ़ाई कर रही थी. अपनी साथी महिला डाक्टरों के तानों से तंग आ कर उस ने जान दे दी.

डा. पायल तड़वी ने मौत को गले लगाने से पहले मां को बताई थी कथा. डा. पायल तड़वी मुंबई के बी.वाई.एल. नायर हौस्पिटल की रेजिडेंट डाक्टर थी. वह इस हौस्पिटल से जुड़े मैडिकल कालेज में पोस्ट ग्रैजुएशन की सेकंड ईयर की स्टूडेंट थी. वह गायनोकोलौजी की पढ़ाई कर रही थी. डा. पायल इस हौस्पिटल से जुड़े टोपीवाला नैशनल मैडिकल कालेज के हौस्टल में रहती थी. करीब 26 साल की डा. पायल शादीशुदा थी. उस के पति डा. सलमान मुंबई में ही एच.बी.टी. मैडिकल कालेज एंड कूपर हौस्पिटल में एनेस्थेसिओलौजी डिपार्टमेंट में सहायक प्रोफेसर हैं.

टोपीवाला नैशनल मैडिकल कालेज के हौस्टल के अपने कमरे में डा. पायल की रहस्यमय परिस्थति में मौत हो गई. डा. पायल उस दिन दोपहर में हौस्पिटल से अपने कमरे पर आई थी. इस के बाद शाम करीब 4 बजे उस ने अपनी मां आबिदा को फोन किया था. फोन पर उस ने मां से अपनी 3 सीनियर डाक्टर्स द्वारा प्रताडि़त और शोषण करने की बात कही थी.

तब मां ने पायल से पूछा, ‘‘आज कोई नई बात हुई क्या?’’

रुआंसी होते हुए पायल बोली, ‘‘मम्मी, अब मैं ज्यादा बरदाश्त नहीं कर पाऊंगी. आप को पता ही है कि मेरी सीनियर्स डा. हेमा, डा. भक्ति और डा. अंकिता मुझ से चिढ़ती हैं. वे रोजाना मुझे किसी न किसी बात पर प्रताडि़त करती रहती हैं.’’

मां आबिदा ने डा. पायल को दिलासा देते हुए कहा, ‘‘बेटी मुझे पता है तुम पर अत्याचार हो रहा है, लेकिन तुम अपने काम पर ध्यान दो. जल्दी ही सब ठीक हो जाएगा.’’

डा. पायल ने मां की दी हुई दिलासा पर मन को शांत करते हुए कुछ देर इधरउधर की बातें की.

बाद में शाम को 6-7 बजे के बीच आबिदा ने पायल को फिर फोन लगाया. उस समय उस के फोन की घंटी बजती रही पर वह काल रिसीव नहीं कर रही थी. इस पर आबिदा ने सोचा कि पायल शायद टौयलेट गई होगी. कुछ देर बाद उन्होंने दोबारा पायल को फोन लगाया, लेकिन इस बार भी कोई जवाब नहीं मिला. इस पर आबिदा चिंतित हो गईं.

आबिदा मुंबई में ही थीं. उन्होंने हौस्टल जा कर पायल के बारे में पता लगाने की सोची. वे बेटी के हौस्टल के लिए चल दी. इस बीच, शाम करीब साढ़े 7 बजे पायल की एक साथी डाक्टर ने डिनर पर चलने के लिए पायल के कमरे का दरवाजा खटखटाया, लेकिन उसे कोई जवाब नहीं मिला. कई बार दरवाजा पीटने पर जब नहीं खुला, तो साथी डाक्टर ने हौस्टल के सिक्योरिटी गार्ड को सूचना दी.

हौस्टल के सिक्योरिटी गार्ड ने भी वहां पहुंच कर कमरे का दरवाजा खटखटाया, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला. तब तक हौस्टल में रहने वाली कई डाक्टर वहां एकत्र हो गई थीं. काफी प्रयासों के बाद भी जब दरवाजा नहीं खुला, तो हौस्टल के गार्ड ने कमरे का दरवाजा तोड़ दिया.

दरवाजा टूटते ही अंदर का नजारा देख कर हौस्टल का गार्ड और वहां मौजूद डाक्टर सब हतप्रभ रह गए. कमरे के अंदर पायल छत पर लगे पंखे से लटकी हुई थी. उस के गले में दुपट्टे का फंदा लगा था.

हौस्टल के गार्ड की मदद से डाक्टरों ने पायल के शव को पंखे से नीचे उतारा. उन्होंने पायल की नब्ज और स्टेथेस्कोप से उस के दिल की धड़कनें देखीं, लेकिन उस में जीवन के कोई लक्षण नजर नहीं आए. फिर भी वे बड़ी उम्मीद के साथ पायल को तत्काल हौस्पिटल के इमरजेंसी वार्ड में ले गए. वहां डाक्टरों ने आवश्यक जांचपड़ताल के बाद डा. पायल को मृत घोषित कर दिया.

इस बीच हौस्पिटल प्रशासन ने डा. पायल के पति डा. सलमान को फोन कर कहा कि डा. पायल की हालत नाजुक है. डा. सलमान उस समय जैकब सर्किल स्थित अपने घर पर थे. सूचना मिलने के 10 मिनट के भीतर वे हौस्पिटल के इमरजेंसी वार्ड में पहुंच गए. उस समय डाक्टर अपने प्रयासों में जुटे हुए थे. डा. सलमान ने भी पायल की जान बचाने की हरसंभव कोशिश की, लेकिन सब कुछ खत्म हो चुका था.

उधर, डा. पायल की मां आबिदा व अन्य परिजन हौस्टल पहुंच गए. वहां पर उन्हें पता चला कि पायल अपने कमरे में पंखे से लटकी हुई थी और उसे उस के साथी डाक्टर हौस्पिटल के इमरजेंसी वार्ड में ले गए हैं, तो वे वहां पहुंच गए. इमरजेंसी वार्ड में उन्हें डा. पायल के पति डा. सलमान भी मिल गए.

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3 महिला डाक्टरों के खिलाफ मां ने दर्ज कराई रिपोर्ट. डा. पायल को मृत देख कर आबिदा और डा. सलमान रोने लगे. पायल के साथी डाक्टरों की आंखों से भी आंसू टपकने लगे. किसी को विश्वास ही नहीं हो रहा था कि उन के साथ पढ़ने और अपने काम के प्रति समर्पित साथी डा. पायल अब उन के बीच नहीं रही.

हौस्टल प्रशासन ने डा. पायल की मौत की सूचना पुलिस को दी तो पुलिस ने हौस्पिटल पहुंच कर शव को कब्जे में ले कर पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. तब तक रात के करीब 10 बज गए थे. इसलिए पोस्टमार्टम दूसरे दिन होना था.

बाद में पुलिस ने हौस्टल में डा. पायल के कमरे में पहुंच कर जांचपड़ताल की. हौस्टल में रहने वाली डाक्टरी की छात्राओं और कर्मचारियों से प्रारंभिक पूछताछ की. रात ज्यादा हो जाने के कारण पुलिस ने डा. पायल का कमरा बंद करवा दिया.

अगले दिन 23 मई, 2019 को देशभर में लोकसभा चुनाव की मतगणना हो रही थी. इसलिए डा. पायल की आत्महत्या का मामला चुनावी सुर्खियों में दब गया.

इस बीच, डा. पायल की मां आबिदा ने अग्रीपाड़ा पुलिस थाने पहुंच कर 3 सीनियर महिला डाक्टरों हेमा आहूजा, डा. भक्ति मेहर और डा. अंकिता खंडेलवाल के खिलाफ  रिपोर्ट दर्ज करा दी. तीनों आरोपी डाक्टर गायनोकोलोजिस्ट थीं.

पुलिस ने एससी/एसटी एक्ट, आत्महत्या के लिए उकसाने, एंटी रैगिंग एक्ट और इंफारमेशन टेक्नौलोजी एक्ट के तहत मामला दर्ज किया. आबिदा ने पुलिस को बताया कि जब से उन की बेटी पायल का एडमिशन बी.वाई.एल. नायर हौस्पिटल एंड कालेज में हुआ था, तब से उसे सीनियर डाक्टरों द्वारा परेशान किया जा रहा था. इस संबंध में हमने कालेज प्रशासन से भी शिकायत की, लेकिन कुछ नहीं हुआ.

चुनाव परिणाम का शोर थमने पर डा. पायल की आत्महत्या के मामले ने तूल पकड़ लिया. दलित डाक्टर को प्रताडि़त कर आत्महत्या करने के लिए मजबूर करने के मामले में विभिन्न संगठनों ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिए.

महाराष्ट्र एसोसिएशसन औफ रेजिडेंट डाक्टर (मार्ड) ने घटना की निंदा करते हुए तीनों आरोपी सीनियर डाक्टरों की सदस्यता निरस्त कर दी. वहीं, नायर हौस्पिटल के डीन डा. रमेश भारमल ने मामले की आंतरिक जांच के आदेश दे कर 6 सदस्यीय कमेटी गठित कर दी. इसके अलावा 2 सीनियर डाक्टरों को नोटिस दे कर उन से इस मामले में जवाब मांगा गया.

मार्ड की अध्यक्ष डा. कल्याणी डोंगरे ने कहा कि डा. पायल जिंदगी के हर पल को एंजौय करती थी. सोशल मीडिया पर भी एक्टिव थी, आत्महत्या वाले दिन भी उस ने हौस्पिटल में 2 सर्जरी की थीं.

डा. पायल की मौत को ले कर मुंबई में लगातार हो रहे विरोध प्रदर्शन को देखते हुए पुलिस कमिश्नर ने जोन-3 के डीसीपी अविनाश कुमार और अन्य अधिकारियों को इस मामले की गंभीरता से जांच करने और आरोपी डाक्टरों की गिरफ्तारी के निर्देश दिए.

पुलिस ने मामले की जांच में तेजी लाते हुए रैगिंग के नाम पर डा. पायल को प्रताडि़त करने के सबूत जुटाए. पायल की मां आबिदा ने उस के मोबाइल के वे स्क्रीनशौट पुलिस को उपलब्ध कराए, जिन में आरोपी डाक्टरों की ओर से उसे जातिसूचक शब्दों से प्रताडि़त किया गया था.

घर वालों का आरोप था कि हौस्टल के कमरे में डा. पायल पंखे से लटकी मिलने के काफी देर बाद तक उस का कमरा खुला हुआ रहा था. इस दौरान तीनों आरोपी डाक्टर वहां देखी गई थीं. उन्होंने ने शक जताया कि यदि डा. पायल ने आत्महत्या की है तो उस ने कमरे में कोई सुसाइड नोट जरूर छोड़ा होगा, लेकिन वहां कोई सुसाइड नोट नहीं मिला. आरोपी डाक्टरों ने पायल का लिखा सुसाइड नोट संभवत: नष्ट कर दिया.

मामले की आंतरिक जांच के लिए बनाई गई 6 सदस्यीय कमेटी की जांच रिपोर्ट आने के बाद 27 मई को नायर अस्पताल प्रशासन ने डा. पायल को परेशान करने और उस पर जातिगत टिप्पणियां करने के आरोप में 4 डाक्टरों को निलंबित कर दिया.

इन में प्रसूति विभाग की प्रमुख डा. यी चिंग लिंग के अलावा तीनों आरोपी सीनियर रेजिडेंट डा. हेमा आहूजा, डा. भक्ति मेहर और डा. अंकिता खंडेलवाल शामिल थीं. अगले आदेश तक चारों निलंबित डाक्टरों के बौंबे म्युनिसिपल कारपोरेशन (बीएमसी) के किसी भी अस्पताल में काम करने पर रोक लगा दी गई. नायर अस्पताल भी बीएमसी की ओर से संचालित है.

दूसरी ओर, 27 मई को महाराष्ट्र महिला आयोग ने नायर अस्पताल प्रशासन को नोटिस भेज कर मामले की पूरी जानकारी मांगी. आयोग ने अस्पताल को नोटिस भेज कर रैगिंग रोकने के लिए अब तक उठाए गए कदमों का विवरण भी मांगा. साथ ही यह भी पूछा कि भविष्य में ऐसी घटनाएं रोकने के लिए अस्पताल प्रशासन ने क्या कदम उठाए हैं.

सीनियर छात्र अब भी रैगिंग को अपना अधिकार समझते हैं. अस्पताल प्रशासन की एंटी रैगिंग कमेटी की जांच रिपोर्ट में डा. पायल के मानसिक शोषण और जातिगत टिप्पणियां करने की बात सही पाई गई. यह रिपोर्ट महाराष्ट्र यूनिवर्सिटी औफ हेल्थ साइंस को सौंप दी गई. रिपोर्ट आने के बाद मैडिकल एजुकेशन विभाग ने 4 सदस्यीय कमेटी बना कर मौजूदा एंटी रैगिंग नियमों की समीक्षा कर रिपोर्ट देने को कहा.

इस बीच, डा. पायल तड़वी की आत्महत्या का मामला देशभर में सुर्खियों में छा गया. शिवसेना ने अपने मुखपत्र ‘सामना’ में कहा कि पायल की दर्दनाक दास्तान महाराष्ट्र जैसे प्रगतिशील कहलाने वाले समाज पर सवालिया निशान है.

डा. पायल के पिता सलीम, मां आबिदा व पति डा. सलमान को साथ ले कर कई दलित और जनजातीय संगठनों ने 28 मई, 2019 को अस्पताल के बाहर प्रदर्शन कर आरोप लगाया कि मुमकिन है कि तीनों महिला डाक्टरों ने पायल की हत्या की हो, इसलिए सरकार इस मामले में हस्तक्षेप करे. पायल के आदिवासी समुदाय से होने के कारण तीनों सीनियर डाक्टर उसे प्रताडि़त करती थीं.

लगातार हो रहे विरोध और प्रदर्शनों को देखते हुए दबाव में आई पुलिस ने डा. भक्ति मेहर को 28 मई को और डा. हेमा आहूजा एवं डा. अंकिता खंडेलवाल को भी उसी रात गिरफ्तार कर लिया. तीनों आरोपी महिला डाक्टरों को पुलिस ने 29 मई को अदालत में पेश किया. अदालत ने उन्हें 31 मई तक पुलिस रिमांड पर भेज दिया.

पायल की मौत का मामला लगातार संवेदनशील और गंभीर होता जा रहा था. इसलिए महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के आदेश पर मुंबई के पुलिस कमिश्नर ने 30 मई को इस की जांच का काम क्राइम ब्रांच को सौंप दिया.

क्राइम ब्रांच ने मामले की जांचपड़ताल शुरू कर 31 मई को कुछ डाक्टरों से पूछताछ की. इस के अलावा राजा ठाकरे को इस मामले में विशेष सरकारी वकील नियुक्त किया गया. क्राइम ब्रांच तीनों आरोपियों को रिमांड पर लेना चाहती थी, लेकिन इस से पहले ही पुलिस रिमांड की अवधि पूरी होने पर अदालत ने 31 मई को तीनों आरोपी डाक्टरों को 10 जून तक के लिए न्यायिक हिरासत में भायखला जेल भेज दिया.

बाद में क्राइम ब्रांच ने बौंबे हाईकोर्ट में अरजी दायर कर तीनों आरोपी महिला डाक्टरों का पुलिस रिमांड मांगा. रिमांड तो नहीं मिला, लेकिन न्यायमूर्ति एस. शिंदे ने 9 जून को सुबह 9 से शाम 6 बजे के बीच तीनों आरोपी डाक्टरों से पूछताछ की अनुमति जरूर दे दी. अपने आदेश में उन्होंने यह भी कहा कि शुरुआत में ही मामले की जांच योग्य अधिकारियों को सौंपनी चाहिए थी.

मामले की जांचपड़ताल के लिए दिल्ली से राष्ट्रीय अनुसूचित जाति/जनजाति आयोग का 5 सदस्यीय दल 6 जून को मुंबई पहुंच गया. आयोग के अध्यक्ष नंद कुमार की अगुवाई में इस दल ने महाराष्ट्र के मुख्य सचिव, स्वास्थ्य सचिव, मुंबई के पुलिस आयुक्त सहित उच्चाधिकारियों से बैठक कर डा. पायल तड़वी मामले की तथ्यात्मक जानकारी हासिल की. दल ने नायर अस्पताल और टोपीवाला नैशनल मैडिकल कालेज के प्रबंधन से जुड़े लोगों से भी मुलाकात की.

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निशाना थी डा. पायल तड़वी की पृष्ठभूमि. महाराष्ट्र के जलगांव की रहने वाली डा. पायल आदिवासी समाज से थी. एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी करने के बाद उस ने 1 मई, 2018 को गायनोकोलोजी में पोस्ट ग्रैजुएशन के लिए मुंबई के टोपीवाला नैशनल मैडिकल कालेज में एडमिशन लिया था. यह मैडिकल कालेज मुंबई के ही बी.वाई.एल. नायर अस्पताल से संबद्ध है.

कालेज में एडमिशन लेने के कुछ दिन बाद ही कुछ सीनियर महिला डाक्टर रैगिंग के नाम पर उसे प्रताडि़त करने लगीं. पायल को जातिसूचक शब्दों से अपमानित किया जाता था. डा. हेमा आहूजा और डा. भक्ति मेहर कुछ दिनों के लिए डा. पायल की रूममेट रही थीं. आबिदा का आरोप है कि उन की बेटी के साथ प्रताड़ना की शुरुआत उसी समय हुई थी.

दोनों रूममेट सीनियर डाक्टर पायल की बेडशीट से अपने गंदे पैर पोंछती थीं. उस का सामान इधरउधर फेंक देती थीं. बाद में दोनों सीनियर डाक्टर हेमा आहूजा और डा. भक्ति मेहर दूसरा कमरा आवंटित होने पर उस में रहने लगी थीं, लेकिन उन के अत्याचार कम होने के बजाय बढ़ते गए.

उन के साथ डा. अंकिता खंडेलवाल भी पायल को टौर्चर करती थी. कहा जाता है कि तीनों सीनियर डाक्टर कई बार मरीजों के सामने ही पायल को बुरी तरह डांटती थीं. उस की फाइलों को मुंह पर फेंक देती थीं.

वे पायल को औपरेशन थिएटर में भी नहीं घुसने देती थीं, जबकि उस की पढ़ाई के लिहाज से थिएटर में होने वाले औपरेशन देखना और समझना उस के लिए बेहद जरूरी था. वे वाट्सएप गु्रप पर भी पायल की खिल्ली उड़ाती थीं.

पायल ने सीनियर डाक्टरों की ओर से प्रताडि़त करने की बात अपनी मां आबिदा को बताई थी. आबिदा ने बेटी को छोटीमोटी बातों पर ध्यान नहीं देने और पढ़ाई पर फोकस रखने की सलाह दी थी. जब पायल पर अत्याचार ज्यादा बढ़े, तो दिसंबर 2018 में उस ने अपने परिवार से इस की शिकायत की. इस पर पायल के पति डा. सलमान ने पायल के डिपार्टमेंट में लिखित शिकायत की. इस शिकायत पर डा. पायल की यूनिट बदल दी गई.

यूनिट बदलने पर डा. पायल को कुछ राहत जरूर मिली. अब उसे सीधे तौर पर प्रताडि़त नहीं किया जाता था, बल्कि सोशल मीडिया के माध्यम से उसे मानसिक यंत्रणा दी जाती थी. कुछ दिनों बाद डा. पायल को वापस पुरानी यूनिट में भेज दिया गया, तो उस पर तीनों सीनियर डाक्टरों के अत्याचार बढ़ गए. डा. पायल और उस के परिजनों ने इस बारे में बाद में भी कई बार शिकायतें की, लेकिन कुछ नहीं हुआ.

डा. सलमान के अनुसार, घटना से एक दिन पहले 21 मई को डा. पायल ने फोन कर उन्हें बताया था कि वह अपने दोस्तों के साथ हौस्टल से बाहर मोहम्मद अली रोड पर होटल में डिनर पर जा रही है. पति डा. सलमान से हुई इस आखिरी बातचीत में डा. पायल ने अगले दिन मिलने का वादा किया था.

होटल में डिनर के दौरान सभी दोस्तों ने सेल्फी ली थी. डा. पायल ने भी सेल्फी ली थी. डा. पायल ने यह सेल्फी वाट्सएप के एक गु्रप पर पोस्ट कर दी थी. इस सेल्फी को लेकर सीनियर डाक्टरों हेमा, डा. भक्ति और डा. अंकिता ने सोशल मीडिया पर डा. पायल का खूब मजाक बनाया और उसे मानसिक रूप से प्रताडि़त किया.

डिनर करने पर मारे ताने

22 मई, 2019 को डा. पायल की सुबह से नायर हौस्पिटल में ड्यूटी थी. ड्यूटी के दौरान सीनियर डाक्टर हेमा, डा. भक्ति और डा. अंकिता ने होटल में डिनर करने को ले कर डा. पायल को खूब ताने मारे. इस के बावजूद डा. पायल अपने काम में जुटी रही. उसने 2 सर्जरी में सीनियर डाक्टरों का सहयोग भी किया.

दोपहर करीब ढाई बजे वह अस्पताल से निकल कर हौस्टल में अपने कमरे पर पहुंची. शाम करीब 4 बजे पायल ने अपनी मां आबिदा को मोबाइल पर काल कर कहा था कि मम्मी अब बरदाश्त नहीं होता. इस पर आबिदा ने पायल को जल्दी ही सब ठीक होने की दिलासा देते हुए दामाद डा. सलमान के साथ समय बिताने को कहा था ताकि मन कुछ शांत हो सके.

इस के बाद शाम करीब साढ़े 7 बजे डा. पायल अपने कमरे में पंखे से लटकी हुई मिली. कथा लिखे जाने तक मुंबई क्राइम ब्रांच इस मामले की जांच कर रही थी. तीनों आरोपी महिला डाक्टर न्यायिक अभिरक्षा में जेल में थीं. डा. पायल के परिजनों का आरोप है कि अगर उन की शिकायत पर अस्पताल प्रशासन ने ध्यान दे कर कोई काररवाई की होती तो आज पायल जीवित होती.

राज्य अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति आयोग ने पुलिस की जांच में कई खामियां मानी हैं. डा. पायल के मामले की जांच के लिए आयोग ने 4 लोगों की एक कमेटी बनाई थी. इस में एक रिटायर्ड आईएएस और आईपीएस अधिकारी के अलावा एक भूतपूर्व जज और आयोग के सचिव को शामिल किया गया. इस कमेटी ने मौका मुआयना कर अपनी रिपोर्ट बनाई, लेकिन इसे अंतिम रूप नहीं दिया है. रिपोर्ट में कहा है कि पुलिस ने कई महत्त्वपूर्ण बातों को जांच में शामिल नहीं किया. सही धाराएं भी नहीं लगाई गईं.

इस कमेटी ने जांच में देखा कि पायल के बैड और पंखे के बीच करीब 9 फीट का अंतर है. बिना टेबल या कुरसी लगाए पंखे तक नहीं पहुंचा जा सकता जबकि कमरे में कोई टेबल या कुरसी नहीं थी. कमेटी ने जांच एजेंसी से सीसीटीवी फुटेज और विसरा रिपोर्ट भी मांगी है. कमेटी यह भी जांच कर रही है कि सबसे पहले शिकायत मिलने पर अस्पताल प्रशासन ने स्थानीय पुलिस को सूचित क्यों नहीं किया.

चौंकाने वाली बात यह भी है कि पिछले 7 सालों में महाराष्ट्र में रैगिंग से जुड़े 248 मामले सामने आए हैं. इस में 17 प्रतिशत यानी 43 मामले मैडिकल कालेजों से जुड़े हुए हैं. इन में 7 मामले मुंबई के मैडिकल कालेजों के हैं.

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पुलिस भले ही इस मामले में सारे सबूत जुटा ले और अदालत आरोपी डाक्टरों को सजा भी दे दे, लेकिन सवाल यह उठता है कि उच्च शैक्षणिक संस्थानों में रैगिंग पर प्रभावी तरह से रोक क्यों नहीं लग पा रही है. इस के अलावा सवाल यह भी है कि जातिवाद का जहर कब तक फैलता रहेगा?

डा. पायल की मौत किसी भी संवेदनशील मन को झकझोर देने वाली है. यह घटना जहां समाज के लिए शर्मिंदगी का सबक है, वहीं यह सोचने को भी मजबूर करती है कि ऐसी स्थितियों के चलते शिक्षा व्यवस्था क्या नई पीढ़ी में स्वस्थ मानसिकता का विकास कर पाएगी.

(कहानी सौजन्य मनोहर कहानी)

कदमों पर मौत

लेखक-  आर.के. राजू  

उत्तर प्रदेश के महानगर मुरादाबाद का एक इलाका है लाइनपार. समय के साथ अब यह इलाका काफी विकसित हो चुका है, जिस के चलते अब यहां की आबादी काफी बढ़ गई है. बात 9 मई, 2019 की है. रात के करीब साढ़े 11 बजे थे. दुर्गानगर, लाइनपार के अधिकांश लोग उस समय अपनेअपने घरों में सो चुके थे. तभी अचानक हुए एक फायर की आवाज ने कुछ लोगों की नींद उड़ा दी.

गोली की आवाज सुनते ही कुछ लोग अपनेअपने घरों से बाहर निकल आए और जानने की कोशिश करने लगे कि आवाज कहां से आई. पता चला कि गोली चलने की आवाज विष्णु शर्मा के घर से आई थी. उस के घर का दरवाजा भी खुला हुआ था.

लोगों ने जिज्ञासावश उस के घर में झांक कर देखा तो एक महिला फर्श पर गिरी पड़ी थी और फर्श पर काफी खून भी फैला हुआ था. यह देख कर किसी की भी उस के घर के अंदर जाने की हिम्मत नहीं हुई. मामले की गंभीरता को देखते हुए किसी ने फोन द्वारा सूचना थाना मझोला को दे दी. थानाप्रभारी विकास सक्सेना रात की गश्त पर निकलने वाले थे. उन्हें यह सूचना मिली तो पुलिस टीम के साथ वह दुर्गानगर के लिए रवाना हो गए.

दुर्गानगर में लोगों से पूछताछ करते हुए पुलिस विष्णु शर्मा के घर पहुंच गई. उस समय वहां खड़े पड़ोस के लोग कानाफूसी कर रहे थे. विष्णु शर्मा के घर का दरवाजा खुला हुआ था. थानाप्रभारी टीम के साथ उस के घर में घुस गए. उन के पीछेपीछे मोहल्ले के लोग भी आ गए. तभी उन्होंने देखा कि फर्श पर एक महिला लहूलुहान पड़ी हुई थी. वहीं पर एक शख्स खड़ा था. उस ने अपना नाम विष्णु शर्मा बताया. वहीं बिछी चारपाई पर एक देशी तमंचा भी रखा हुआ था.

पुलिस ने सब से पहले वह तमंचा अपने कब्जे में लिया. इस के बाद थानाप्रभारी और मोहल्ले के लोगों ने घायलावस्था में पड़ी महिला की नब्ज टटोली तो पता चला कि उस की मौत हो चुकी है. विष्णु शर्मा ने बताया कि मृतका उस की पत्नी आशु है. विष्णु ने बताया कि इस ने आत्महत्या कर ली है. तमंचा यह साथ लाई थी.

विष्णु की बात सुन कर थानाप्रभारी चौंकते हुए बोले, ‘‘क्या यह तुम्हारे साथ नहीं रहती थी?’’

‘‘नहीं सर, यह पिछले काफी दिनों से दोनों बच्चों को ले कर अपने प्रेमी सनी के साथ कांशीराम नगर में रह रही थी.’’ विष्णु ने बताया. थानाप्रभारी ने इस बिंदु पर फिलहाल विस्तार से जांच करना जरूरी नहीं समझा. उन्होंने हत्या के इस मामले की जानकारी अपने उच्चाधिकारियों को दे दी. सूचना पा कर रात में ही सीओ (सिविल लाइंस) राजेश कुमार भी घटनास्थल पर पहुंच गए.

पुलिस ने अगले दिन जरूरी काररवाई कर के आशु की लाश पोस्टमार्टम हाउस पहुंचा दी. चूंकि घटना के संबंध में पुलिस को विष्णु शर्मा से पूछताछ करनी थी, इसलिए वह उसे थाना मझोला ले गई. सीओ राजेश कुमार भी मझोला थाने पहुंच गए.

सीओ राजेश कुमार की मौजूदगी में थानाप्रभारी विकास सक्सेना ने विष्णु शर्मा से पूछताछ की. उस ने बताया, ‘‘करीब 8-9 महीने पहले आशु अपने पुराने प्रेमी सनी नागपाल के साथ भाग गई थी. अपनी दोनों बेटियों को भी वह साथ ले गई थी. पिछले कई दिनों से आशु मेरे ऊपर काफी दबाव बना रही थी कि मैं दोनों बेटियों को अपने पास रख लूं. लेकिन मैं ने उन्हें पास रखने से मना कर दिया था.

‘‘कल रात साढ़े 11 बजे उस ने आ कर दरवाजा पीटना शुरू कर दिया. जैसे ही मैं ने किवाड़ खोले, आशु अंदर आ गई. बाहर उस का प्रेमी सनी नागपाल और दोनों बेटियां खड़ी थीं. घर में घुसते ही वह मुझ से इस बात पर झगड़ने लगी कि मैं बेटियों को अपने पास रख लूं. जिद में मैं ने भी मना कर दिया.

‘‘तभी उस ने अपने साथ लाए तमंचे से खुद को गोली मार ली. मैं ने उसे रोकना भी चाहा लेकिन तब तक वह गोली चला चुकी थी. आशु के नीचे गिरते ही सनी नागपाल दोनों बच्चों को अपने साथ ले कर भाग गया.’’

पूछताछ के दौरान थानाप्रभारी को विष्णु शर्मा के मुंह से शराब की दुर्गंध आती महसूस हुई तो उन्होंने पूछा, ‘‘तुम ने शराब पी रखी है?’’

‘‘हां सर, मैं ने कल रात पी थी.’’ विष्णु शर्मा ने कहा. दोनों पुलिस अधिकारियों को विष्णु की बातों में झोल नजर आ रहा था. इस की वजह यह थी कि जिस तमंचे से आशु को गोली लगी थी, वह उस की लाश से दूर चारपाई पर रखा था. ऐसा संभव नहीं था कि खुद को गोली मारने के बाद वह चारपाई पर तमंचा रखने जाए. अगर आशु ने खुद को गोली मारी होती तो तमंचा उस की लाश के नजदीक ही पड़ा होता.

सीओ राजेश कुमार के निर्देश पर थानाप्रभारी ने विष्णु शर्मा से सख्ती से पूछताछ की तो उस ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. उस ने कहा कि आशु की हत्या उस के हाथों ही हुई है. पत्नी की हत्या की उस ने जो कहानी बताई, वह हैरान कर देने वाली निकली—

आशु शर्मा का प्रेमी सनी नागपाल मूलरूप से मुरादाबाद के लाजपतनगर का रहने वाला था. उस के पिता कोयला कारोबारी हैं. उन्होंने कोयले का डिपो गोविंदनगर सरस्वती विहार में बना रखा था. डिपो के पास में ही आशु का घर था. सनी नागपाल कारोबार के सिलसिले में अकसर कोयले की डिपो पर आता रहता था. वहीं पर उस की मुलाकात आशु से हुई थी. यह करीब 10 साल पुरानी बात है. यह मुलाकात पहले दोस्ती में बदली और फिर प्यार में. सनी नागपाल पैसे वाला था, इसलिए वह आशु पर दिल खोल कर पैसे खर्च करता था.

इसी दौरान आशु के घर वालों ने उस का रिश्ता शहर के ही दुर्गानगर निवासी विष्णु शर्मा से कर दिया. विष्णु उस समय बीए में पढ़ रहा था. सन 2009 में विष्णु शर्मा और आशु का सामाजिक रीतिरिवाज से विवाह हो गया. विष्णु के पिता अशोक शर्मा थाना हयातनगर, संभल के कस्बा एंचोली के रहने वाले थे. वह खेतीकिसानी करते थे. उन के पास खेती की अच्छीखासी जमीन थी. विष्णु पत्नी के साथ मुरादाबाद में रहता था. आटा, दाल, चावल आदि सामान उस के गांव से आ जाता था. विष्णु व आशु दोनों हंसीखुशी से रह रहे थे. इसी दौरान आशु ने इंटरमीडिएट की परीक्षा पास की. आशु अपनी पढ़ाई जारी रखना चाहती थी. लिहाजा विष्णु ने अपने खर्च से आशु को अंगरेजी विषय से एमए कराया. इसी दौरान आशु 2 बेटियों की मां बन गई. ग्रैजुएशन के बाद भी विष्णु बेरोजगार था. उस की सास कृष्णा शर्मा समाजवादी पार्टी की नेता थीं, उन्होंने पार्षद का चुनाव भी लड़ा था.

सास ने दिलाई नौकरी

अपनी पहुंच के चलते उन्होंने दामाद विष्णु की भारतीय खाद्य निगम में संविदा के आधार पर मुंशी के पद पर नौकरी लगवा दी. एफसीआई का गोदाम मुरादाबाद के लाइनपार में ही था, विष्णु के घर के एकदम पास था. वह मन लगा कर नौकरी करने लगा.

आशु शर्मा शुरू से ही जिद्दी और महत्त्वाकांक्षी थी. उस के शौक महंगे थे. मौल में शौपिंग करना, स्टाइलिश कपड़े पहनना उस का शगल था. शुरुआती सालों में विष्णु पत्नी की हर जरूरत पूरी करता रहा. लेकिन बाद में वह पत्नी की बढ़ती महत्त्वाकांक्षाओं और खर्च को पूरा करने में असफल हो गया तो उस ने पत्नी को मौल में शौपिंग करानी बंद कर दी.

घटना से करीब एक साल पहले आशु अचानक बिना बताए दोनों बेटियों को साथ ले कर घर से गायब हो गई. विष्णु व आशु के मायके वालों ने उसे बहुत तलाश किया, पर वह नहीं मिली. इस पर विष्णु ने पत्नी की गुमशुदगी थाना मझोला में दर्ज करवा दी.बाद में पता चला कि वह अपने पुराने प्रेमी सनी नागपाल के साथ कांशीराम नगर में किराए का कमरा ले कर लिवइन रिलेशन में रह रही है. जब यह बात विष्णु और आशु के मायके वालों को पता चली तो उन्होंने आशु को समझाया और घर चलने को कहा. लेकिन आशु अपने प्रेमी सनी को छोड़ने के लिए तैयार नहीं हुई. आशु की शादी विष्णु से होने के बाद भी उस का प्रेमी सनी नागपाल उसे भूला नहीं था. 2 बच्चों की मां बनने के बाद भी आशु बनठन कर रहती थी. लगता ही नहीं था कि वह 2 बच्चों की मां है.

आशु जानती थी कि उस का प्रेमी सनी पैसे वाला है. उस की कभीकभी सनी से फोन पर बात होती रहती थी. सनी नागपाल उसे पहले की तरह ही चाहता था. साथसाथ गुजारे पुराने पलों को दोनों भूले नहीं थे. फलस्वरूप दोनों में फिर से नजदीकियां बढ़ने लगी.

आशु को लग रहा था कि विष्णु के साथ रह कर उस के सपने पूरे नहीं हो सकेंगे, लिहाजा वह पति को छोड़ कर प्रेमी सनी नागपाल के पास पहुंच गई.

इस के बाद दोनों तरफ के रिश्तेदारों ने कई बार पंचायत की लेकिन आशु की जिद की वजह से यह कोशिश भी नाकाम साबित हुई. करीब 10 महीने से आशु अपने प्रेमी सनी नागपाल के साथ रह रही थी.

उधर सनी नागपाल भी शादीशुदा था. उस की पत्नी का नाम सिमरन था और वह 2 बच्चों की मां थी. उस की बड़ी बेटी 9 साल की और बेटा 5 साल का था.

जब सनी नागपाल की पत्नी सिमरन को पता चला कि उस का पति अपनी प्रेमिका आशु के साथ कांशीराम नगर में रह रहा है, तो उस ने मार्च 2019 में महिला थाने में पति के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करवा दी.

रिपोर्ट दर्ज हो जाने के बाद महिला थाने की पुलिस ने सनी नागपाल को गिरफ्तार कर लिया. उस के वकील ने सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश का हवाला दे कर कहा कि जब ये दोनों बालिग हैं तो दोनों को साथ रहने की आजादी है.

आशु जब अपनी मरजी से विष्णु के साथ रह रही है तो किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए. इस के बाद पुलिस ने सनी नागपाल को 41ए का नोटिस दे कर थाने से ही जमानत पर रिहा कर दिया.

आशु को पति से प्रेमी लगा प्यारा

आशु शर्मा खुले हाथ खर्च करना चाहती थी, जो उस के पति विष्णु के बूते की बात नहीं थी, इसलिए वह पति को छोड़ कर प्रेमी सनी के साथ रह रही थी.

उधर सनी नागपाल ने आशु से कहा, ‘‘आशु, देखो मैं ने तुम्हारी खातिर अपनी पत्नी और दोनों बच्चों को छोड़ दिया है. इसलिए अब तुम भी अपनी दोनों बेटियों को विष्णु के पास छोड़ आओ. उन की परवरिश विष्णु करेगा. फिर हम दोनों आराम से रहेंगे.’’

घटना से एक दिन पहले आशु ने अपनी बड़ी बहन नीरज शर्मा से फोन पर बात की. तब उस ने कहा कि दीदी मैं अब बहुत परेशान हो गई हूं. अपनी दोनों बेटियों को विष्णु को सौंप कर सेटल होना चाहती हूं.

उधर विष्णु को जब अपनी पत्नी की जुदाई बरदाश्त नहीं हुई तो उस ने शराब पीनी शुरू कर दी. आशु भी आए दिन विष्णु को फोन करती रहती थी कि बच्चे याद कर रहे हैं. वे अब तुम्हारे पास ही रहेंगे. क्योंकि बच्चों के असली पिता तुम ही हो.

आशु वाट्सऐप से बच्चों की तसवीरें विष्णु के फोन पर भेजती रहती थी. कई बार उस ने विष्णु को नानवेज खाते हुए भी फोटो भेजे थे. विष्णु पूरी तरह से शाकाहारी था, इसलिए उसे आशु पर बहुत गुस्सा आया कि उस ने बच्चों को नानवेज खाना सिखा दिया. उस ने पत्नी को बहुत समझाया कि वह बच्चों को नानवेज न खिलाए और उन्हें ले कर आ जाए, लेकिन वह नहीं मानी.

घटना वाले दिन 9 मई, 2019 की रात में आशु व सनी नागपाल ने दोनों बेटियों के साथ एक होटल में खाना खाया. वहीं पर दोनों ने प्लान बनाया कि दोनों बेटियों को विष्णु के हवाले कर आएंगे. आशु बोली, ‘‘रात घिरने दो. मैं जब विष्णु के पास जाऊंगी तो वह मेरी बात नहीं टालेगा. वैसे भी वह रात में ड्रिंक किए होगा. मेरी बात मान लेगा.’’

आशु की दोनों बेटियों ने मना किया कि हमें पापा के पास क्यों ले जा रहे हो. हम वहां पर क्या करेंगे. घर पर वह अकेले रहते हैं, खुद जब पापा ड्यूटी पर चले जाया करेंगे तो हमें कौन देखेगा. हम वहां बोर हो जाएंगे. पर आशु ने उन की बातों को अनसुना कर दिया.

योजना के अनुसार सनी नागपाल व आशु अपनी दोनों बेटियों के साथ 9 मई की रात करीब साढ़े 11 बजे विष्णु के दुर्गानगर स्थित घर पहुंचे. उस समय विष्णु गहरी नींद में सोया हुआ था. वहां पहुंच कर आशु ने दरवाजा पीटना शुरू किया. इस से विष्णु की नींद टूट गई. वह उठा और अपनी सुरक्षा के लिए अंटी में .315 बोर का तमंचा लोड करके रख लिया. उस समय वह शराब के नशे में था.

दरवाजे पर पहुंच कर विष्णु ने आवाज लगाई, ‘‘कौन है?’’

तो बाहर से आवाज आई, ‘‘मैं तुम्हारी पत्नी आशु हूं. कुंडी खोलो, कुछ बात करनी है.’’

‘‘बात करनी है तो कल दिन में आना.’’ विष्णु ने कहा.

तब आशु ने जोर दे कर कहा, ‘‘देखो कोई जरूरी बात करनी है. दरवाजा तो खोलो.’’

विष्णु ने दरवाजा खोला तो देखा, बाहर उस का सनी, जिस ने उस का घर उजाड़ दिया था, दोनों बेटियों को लिए खड़ा था.

विष्णु बोला, ‘‘बताओ, क्या काम है?’’

‘‘देखो, मुझे सेटल होना है. बच्चियां तुम्हारी हैं इसलिए इन्हें तुम्हारे हवाले करने आई हूं. आज से तुम इन दोनों की परवरिश करना.’’ आशु बोली.

विष्णु ने साफ मना कर दिया कि जो लोग मांस खाते हैं, उन से उस का कोई संबंध नहीं है, ‘‘तुम ही बेटियों को मांस खिलाती हो.’’

इस बात को ले कर आशु व विष्णु में बहस होने लगी. बात मारपीट तक पहुंच गई. दोनों में मारपीट व गुत्थमगुत्था होने लगी. तभी विष्णु ने अंटी में लगा तमंचा निकाल लिया. तमंचा देख कर आशु पहले तो घबरा गई फिर उस ने तमंचा छीनने की कोशिश की. इसी दौरान विष्णु ने फायर कर दिया. गोली लगते ही आशु जमीन पर गिर पड़ी. कुछ देर छटपटाने के बाद उस की मृत्यु हो गई.

फायर की आवाज सुन कर मकान के बाहर खड़ा सनी उस की दोनों बेटियों को ले कर भाग खड़ा हुआ. विष्णु ने तमंचा वहीं चारपाई पर रख दिया.

विष्णु शर्मा से पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे कोर्ट में पेश कर मुरादाबाद की जेल भेज दिया. उधर आशु का प्रेमी उस की दोनों बेटियों को ले कर रात में ही आशु की बहन नीरज शर्मा के घर पीतल बस्ती पहुंचा.

वह बोला, ‘‘आशु का विष्णु से झगड़ा हो गया है. तुम इन लड़कियों को अपने पास रख लो.’’

 

नीरज ने लड़कियों को रखने से मना कर दिया. आशु का फोन सनी नागपाल के पास था. पुलिस ने फोन किया तो फोन सनी नागपाल ने उठाया. पुलिस ने पूछा कि लड़कियां कहां हैं. उस ने बताया कि लड़कियां मेरे पास हैं. पर उस ने पुलिस को जगह नहीं बताई कि वह कहां है.

थानाप्रभारी विकास सक्सेना के नेतृत्व में एक टीम सनी नागपाल को उस के फोन की लोकेशन के आधार पर तलाशने लगी लेकिन उस के फोन की लोकेशन बारबार बदलती रही. इस के अलावा टीम उस के संभावित ठिकानों पर दबिश देने लगी.

सनी गिरफ्तारी से बचने के लिए साईं अस्पताल के सामने कांशीराम गेट के पास पहुंच गया. वहां से वह दिल्ली भागने की फिराक में था.

वह दिल्ली जाने वाली बस का इंतजार कर रहा था. तभी मुखबिर की सूचना पर पुलिस टीम ने उसे हिरासत में ले लिया. यह 19 मई, 2019 की बात है. पुलिस ने सनी नागपाल से पूछताछ कर उसे न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया.

अमीरों की सरकार

अमीरों की सरकार  यह देश धीरेधीरे अमीर और गरीब की खाई में बंटता जा रहा है. 1947 के बाद बहुत से सरकारी काम गरीबों को सहूलियतें देने के लिए शुरू किए गए थे. इन में से कुछ में दिखावा था, कुछ में घटिया काम था पर फिर भी जो गरीब इन का फायदा उठा पाते थे, उन्हें कुछ राहत थी. अब सरकार खुल्लमखुल्ला अमीरों को जन्म से ऊंची जाति के होने की वजह से हर तरह की सहूलियत देने वाली नीतियां बना रही है और इस का नतीजा यह होगा कि निचली जाति में पैदा होने वाले गरीब अब और ज्यादा बेहाल होंगे.

इतना जरूर है कि अब सरकार के पास हाथ फैलाने वाले गरीबों की गिनती बढ़ती जा रही है. पहले वे अपने खोल में बंद रहते थे. अब बीसियों चुनाव देखने के बाद उन में हिम्मत आ गई है और अगर उन का हक बनता है तो वे मांगने लगे हैं. सरकार इतने गरीबों के लिए कुछ कर नहीं सकती इसलिए अब उस ने ऐसी नीतियां बनानी शुरू कर दी हैं कि अमीर अपने पैसे के बल पर अच्छी जिंदगी जी सकें और गरीब अपने पिछले जन्मों के पापों का फल भोगते हुए बस बाबाओं के चरणों में लोट कर शुद्ध हो सकें. बिहार के अस्पतालों में सैकड़ों बच्चे पिछले माह मरे थे, वे गरीबों के थे. इंसेफलाइटिस अगर अमीरों के बच्चों को हुआ भी होगा तो उन्हें प्राइवेट नर्सिंगहोमों में जगह मिल गई थी जहां दवाएं एयरकंडीशनिंग, सफाई सब था. हजारों गरीबों को कौन मुफ्त में अस्पताल दे.

रेल मंत्रालय अब पटरियों पर प्राइवेट ट्रेनें चलाने की इजाजत देगा. इन पर बेहद महंगी पर बेहद सुविधाजनक, साफसुथरी, टाइम से ट्रेनें चलेंगी. सरकार ने कहना शुरू कर दिया है कि गरीबों के लिए सस्ते टिकटों का जमाना अब लद गया है. पढ़ाई में तो काफी सालों से यह नीति चल रही है. निजी स्कूल गांवगांव में खुल गए हैं जहां महंगी पढ़ाई दी जा रही है. सरकारी स्कूलों में दिखावा है और मोटे वेतन वाले टीचर बच्चों को पेपर बता कर 10वीं व 12वीं में पास करा कर रिजल्ट तो ठीक कर लेते हैं, पर वैसे कुछ करतेकराते नहीं हैं. इसीलिए 10वीं व 12वीं पास बेरोजगारों की बड़ी भीड़ पैदा हो गई है. सड़कों पर अब ऊबर, ओला चलने लगी हैं और सरकारी बसें न के बराबर रह गई हैं क्योंकि उतना सस्ता किराया ऊंचे लोगों को खलता है.

वैसे भी उन में हर जाति के लोग साथसाथ बैठने को मजबूर होते हैं. अरविंद केजरीवाल की औरतों को मुफ्त मैट्रो में सफर करने वाली स्कीम फेल कर दी जाएगी यह पक्का है क्योंकि फिर तो गरीबअमीर साथ बैठ सकेंगी. गरीब अपनी खाल में रहें. यह संदेश वे समझ लें. अब जन्म से तय होगा कि आप क्या पाने के हकदार हैं.

अंधविश्वास: भगवान का दूत कहने वाले

ऐसे इश्तिहार देने वाले बाबाओं का दावा होता है कि वे किसी की भी बड़ी से बड़ी परेशानी को चुटकी बजाते ही हल कर सकते हैं. वे खुद को तंत्र विद्या में माहिर तांत्रिक बताते हैं. इश्तिहारों के जरीए वे घर बैठे लोगों तक आसानी से पहुंच जाते हैं.

हैरानी की बात तो यह है कि लोग इन के इस छलावे में आ भी जाते हैं. वे इन्हें फोन करते हैं, अपनी परेशानियां सुनाते हैं, कई बार तो ये ढोंगी बाबा

उन्हें फोन पर ही ऊलजुलूल सुझाव देते हैं या अपने शिविर या कहें दफ्तर में बुलाते हैं.

इन बाबाओं के पास अकसर लोग औलाद पाने की आस में ही जाते हैं और इस परेशानी से बचने के लिए या तो बाबा औरत को बहलाफुसला कर सैक्स करते हैं या फिर उसे बेहोश कर के बलात्कार.

महाराष्ट्र की एक वारदात है. खुद को ‘भगवान का दूत’ कहने वाले 45 साल के ऐसे ही एक ढोंगी के पास एक औरत पहुंची. उस औरत ने जब बाबा को अपनी परेशानी बताई तो वह उसे एक कमरे में ले गया. वहां औरत के ऊपर गंगाजल छिड़का गया और उसे नींद की दवा दी गई.

दवा का असर होने लगा तो बाबा और उस के एक नंगधड़ंग साथी ने उस औरत को यहांवहां छूना शुरू कर दिया और बाद में ढोंगी बाबा ने उस का बलात्कार किया.

इस मामले पर वकील रंजना का मानना है कि पीडि़त औरतों द्वारा ऐसे ढोंगियों के खिलाफ किसी तरह की कोई कार्यवाही की मांग नहीं की जाती है क्योंकि उन्हें समाज का डर तो होता ही है, साथ ही इस बात का भी डर होता है कि कहीं उन के पति उन्हें छोड़ न दें.

औलाद के नाम पर बलात्कार ही केवल एक अपराध नहीं है जो ये ढोंगी करते हैं, बल्कि पूजापाठ और कष्टों को मिटाने के नाम पर लोगों को लूटना, बलि चढ़वाना और टोनाटोटका करना भी इन का पेशा है.

ऐसे ही 2 बाबाओं में मोहम्मद आसिफ और मोहम्मद ताहिर के नाम भी शुमार हैं. हैदराबाद के इन 2 ढोंगियों ने लिबर्टी प्लाजा नाम की इमारत में अपना औफिस खोल कर लोगों को ठगने का बड़ा ही अच्छा इंतजाम कर रखा था.

ज्योति नाम की एक औरत इन के पास अपनी पारिवारिक समस्या के हल के लिए आई. इन दोनों ने उस से कहा कि उस के घरपरिवार पर बुरी ताकतों का साया है, साथ ही यह भरोसा भी दिया कि उन के द्वारा किए गए टोनेटोटके से यह साया पूरी तरह से हट जाएगा.

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नासमझी के चलते ज्योति ने अपने गहने और 50,000 रुपए इन ढोंगियों की झोली में ला कर रख दिए. पैसे और जेवर ले कर ये ढोंगी वहां से खिसक लिए, जबकि ज्योति अपना माथा पीटती रह गई.

मौडर्न बाबा

इन तांत्रिकों और वशीकरण करने वाले बाबाओं ने अपना लैवल बहुत ज्यादा बढ़ा लिया है, अब केवल अखबार, पत्रिकाएं व पोस्टर ही ऐसा जरीया नहीं हैं जिन के द्वारा ये अपना कारोबार फैला रहे हैं, बल्कि अब इन की वैबसाइट भी बनने लगी हैं.

ऐसी ही एक वैबसाइट पर लिखा हुआ था, ‘कहीं न हो काम, हम से पाएं समाधान, लवमैरिज, सौतन, दुश्मन से छुटकारा, निराश प्रेमी संपर्क करें…’

इस वाक्य को पढ़ कर जो पहला सवाल जेहन में आता है, वह यह है कि क्या सचमुच इन बेतुकी बातों पर लोग यकीन करते होंगे?

इस सवाल का जवाब पाने में ज्यादा देर नहीं लगी. नालासोपारा इलाके में फेक बाबा, सांईं के भेष में बलात्कारी और

2 भाइयों ने बलि चढ़ाया परिवार जैसी घटनाएं पढ़ कर तो यकीन हो गया है कि भारत में अंधविश्वासियों की कमी नहीं है.

मुद्दा यह नहीं है कि ये पाखंडी बाबा बन कर ये सब अपराध क्यों कर रहे हैं, बल्कि मुद्दा यह है कि लोग इन्हें ये अपराध करने ही क्यों दे रहे हैं?

ढोंगियों से बचें

इन ढोंगियों पर उंगली उठाने से पहले इन के पास जाने वाले लोगों की गलती को बड़ा मानना ज्यादा बेहतर होगा. आखिर ये वही लोग हैं जो निर्मल बाबा के ‘लाल चटनी से समोसा खाने के बजाय हरी चटनी से खाइए, सभी परेशानियां ठीक हो जाएंगी’ जैसे उपदेशों पर यकीन करते हैं.

बात वहीं आ जाती है कि बचाव क्या है? तो बचाव यही है इन ढोंगियों के चंगुल से दूर रहना. घर में, दफ्तर में या आपसी रिश्तों में जो कष्ट हैं, उन का हल आप को अपनी खुद की समझदारी से मिलेगा, किसी के टोनेटोटके से नहीं. औलाद न होने की कई वजहें हो सकती हैं और विज्ञान में उन के उपाय भी हैं. इन बाबाओं के पास जा कर कोई भभूत खा कर या बलात्कार का शिकार हो कर बच्चा पाना कोई समाधान नहीं है.     द्य

कानून है आप के साथ

द्य आईपीसी की धारा 416 : धोखाधड़ी करने पर किसी भी शख्स को एक साल तक की जेल या जुर्माना भरना पड़ सकता है

या दोनों.

द्य आईपीसी की धारा 420 : इस कानून के तहत अगर कोई आदमी किसी की निजी जायदाद से जुड़ी कोई धोखाधड़ी करता है तो उसे 7 साल तक की जेल व जुर्माना भरना पड़ सकता है.

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द्य इस के अलावा धोखाधड़ी और ठगी के लिए धारा 420, 508 और साधारण कानून के आधार पर इन पाखंडियों को जेल पहुंचाया जा सकता है.

द्य पाखंडियों द्वारा बलात्कार या कत्ल जैसी वारदातों को अंजाम दिया जाता है तो उसी के मुताबिक आईपीसी की धाराएं लागू होंगी.

रामकथा हादसा : आस्था पर कुठाराघात

सैकड़ों लोग आंखें बंद किए इस कथा का आनंद ले रहे थे और अपनी तकलीफों के समाधान का अहसास कर रहे थे.
बीती बातों को याद कर बुजुर्गों की आंखों से आंसू निकल रहे थे और वे कथा का रसास्वादन कर रहे थे. तभी आंधीतूफान ने दस्तक दी. अपलक मौसम को निहारते कथावाचक भी धोतीकुरता संभालते दौड़ते नजर आए.

यह वाकिआ राजस्थान के बाड़मेर के एक गांव जसोल में हुआ. दिन रविवार, 23 जून, 2019 की दोपहर के साढ़े 3 बजे आंधीतूफान ने अपना रंग दिखाया. तेज हवाएं चलने लगीं. तेज हवा से पंडाल उखड़ गया. वहां भगदड़ मच गई. कई लोग तो संभल भी नहीं पाए थे कि जोरदार बारिश आ गई. आंधीतूफान का कहर ही लोगों की धार्मिक आस्था पर चोट कर गया. इस हादसे में 15 से ज्यादा लोग मर गए और कई घायल हो गए. घायलों को नाहटा अस्पताल में भरती कराया गया.

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कथावाचक मुरलीधर मनोहर ने कथा बीच में ही छोड़ दी और घर चले जाने को कहा.

मौसम के साथसाथ माहौल बिगड़ता देख उन्होंने लोगों से पंडाल खाली करने की अपील की. स्टेज छोडऩे से पहले उन्होंने कहा कि हवा काफी तेज है इसलिए कथा को रोकना पड़ेगा. तेज हवा से पंडाल उखड़ रहा है. निकलिए बाहर सभी. खाली कर दीजिए पंडाल. इस के बाद पंडाल उखड़ता देख वे भी स्टेज छोड़ कर चले गए.

कथावाचक ने तो जैसेतैसे भीड़ से बचबचा कर अपनी जान बचाई, पर जो कथा में मगन थे, भगदड़ से अनजान थे, वे ही इस हादसे का शिकार हो गए. कथा सुनने वाले ज्यादातर बुजुर्ग थे जो भाग नहीं सकते थे. उस समय उन्हें अपनी लाचारी भारी पड़ी. अगर वे भी जवान होते तो अपनी जान बचा सकते थे. यानी भाग सकते थे.

पंडाल काफी बड़े एरिया में लगाया गया था, जिस में 2000 से 3000 लोग समा सकें. पर पंडाल इतना भी मजबूत नहीं था कि भगदड़ होने पर हजारों की तादाद को झेल पाता. आंधीतूफान ने पलभर मेें ही ऐसा कोहराम मचा दिया कि 15 तो यों ही चल बसे.

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तकरीबन70-80 लोग घायल हुए, वे भी अस्पताल में बैठेबैठे राम लला को ही कोस रहे होंगे कि काश, हम वहां न जाते तो बच सकते थे. पर होनी को कौन टाल सकता है.

जिला कलक्टर हिमांशु गुप्ता ने बताया कि तकरीबन हजार लोग जसोल गांव में राम कथा सुनने के लिए पहुंचे थे. दोपहर साढ़े 3 बजे तूफान आया और हादसे में तबदील हो गया.

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने ट्वीट किया कि जसोल, बाड़मेर में राम कथा के दौरान पंडाल गिरने से हुए हादसे में बड़ी तादाद में लोगों की जानें जाने की जानकारी बहुत ही दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण है. उन्होंने हादसे में मारे गए लोगों के परिवारों को 5 लाख व घायलों को 2 लाख रुपए देने का ऐलान किया, वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बाड़मेर में पंडाल गिरना दुर्भाग्यपूर्ण बताया.

मुख्यमंत्री रह चुकी वसुंधरा राजे ने ट्वीट किया कि बाड़मेर के जसोल गांव में राम कथा के दौरान तेज आंधी से गिरे पंडाल हादसे में 15 से अधिक लोगों की मौत की खबर सुन कर बेहद दुख हुआ.

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बाड़मेर के सांसद कैलाश चौधरी ने नाहटा अस्पताल का दौरा किया, घायलों का हालचाल जाना और कहा कि यह घटना काफी दर्दनाक है.

सिरकटी लाश ने पुलिस को कर दिया हैरान

अंबाला छावनी के रेलवे पुलिस स्टेशन में तैनात महिला हवलदार मनजीत कौर को सुबह सुबह खबर मिली कि अंबाला और छावनी रेलवे स्टेशनों के बीच खंभा नंबर 267/15 के पास अपलाइन पर एक सिरकटी लाश पड़ी है. सूचना मिलते ही पुलिस घटनास्थल पर पहुंच कर अपनी कार्यवाई में जुट गईं. धड़ रेलवे लाइन के बीचोबीच उत्तरदक्षिण दिशा में पड़ा था. धड़ पर हल्के बादामी रंग का पठानी सूट था. उस से ठीक 8 कदम की दूरी पर उत्तर दिशा में शरीर से अलग हुआ सिर पड़ा था. उस से 2 कदम की दूरी पर लाइन के बीचोबीच बायां हाथ और 5 कदम की दूरी पर सफेद रंग की पंजाबी जूतियां पड़ी थीं.

मरने वाला 35 से 40 साल के बीच था. उस की पहचान के लिए मनजीत कौर ने पठानी सूट की जेबें खंगाली, लेकिन उन में ऐसा कुछ नहीं मिला, जिस से उस की पहचान हो पाती. मनजीत कौर को यह मामला दुर्घटना का नहीं, आत्महत्या का लगा. लिहाजा अपने हिसाब से वह काररवाई करने लगीं. उस दिन थानाप्रभारी सतीश मेहता छुट्टी पर थे, इसलिए थाने का चार्ज इंसपेक्टर सोमदत्त के पास था.

निरीक्षण के बाद सोमदत्त ने मनजीत कौर के पास जा कर कहा, ‘‘यह आत्महत्या नहीं हो सकती. आत्महत्या करने वाला आदमी कहीं रेलवे लाइन पर इस तरह लेटता है?’’

‘‘जी सर, आप सही कह रहे हैं. यह मामला आत्महत्या का नहीं है.’’

‘‘जरूर यह हत्या का मामला है और हत्या कहीं दूसरी जगह कर के लाश यहां फेंकी गई है. इस के पीछे का षड्यंत्र तो जांच के बाद ही पता चलेगा.’’

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‘‘ठीक है, कानूनी कार्यवाई कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवाइए.’’ सोमदत्त ने एएसआई ओमवीर से कहा.

औपचारिक कानूनी काररवाई पूरी कर के ओमवीर और मनजीत कौर ने लाश को अंबाला के कमांड अस्पताल भिजवा दिया, जहां से लाश को पोस्टमार्टम के लिए रोहतक के पीजीआई अस्पताल भेज दिया.

अगले दिन पोस्टमार्टम के बाद मृतक का विसरा रासायनिक परीक्षण के लिए मधुबन लैबोरेटरी भिजवा दिया गया. डाक्टरों ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मौत का कारण श्वासनली कटना बताया था. रेल के पहियों से वैसे ही उस की गरदन कट गई थी. डाक्टरों के अनुसार यह रेल दुर्घटना का मामला था.

उन दिनों रेलवे पुलिस की अंबाला डिवीजन के एसपी थे आर.पी. जोवल. यह मामला उन के संज्ञान में आया तो वह भी इस की जांच में रुचि लेने लगे.

उन के लिए यह मामला दुर्घटना या आत्महत्या का नहीं था. उन्होंने इसे हत्या ही माना, लेकिन जांच तभी आगे बढ़ सकती थी, जब लाश की शिनाख्त हो जाती. हालांकि सिरकटी लाश मिलने का समाचार सभी अखबारों में छपवा दिया गया था. इस के अलावा लाश की शिनाख्त के लिए पुलिस ने भी समाचार पत्रों में अपील छपवाई थी. जिस में लाश का हुलिया और कपड़ों वगैरह का विवरण दिया गया था.

2 दिनों बाद इंसपेक्टर सतीश मेहता छुट्टी से लौटे तो उसी दिन दोपहर बाद अखबार हाथ में लिए एक आदमी उन से मिलने आया. उस ने आते ही कहा, ‘‘जिस आदमी की शिनाख्त के बारे में आप ने अखबार में विज्ञापन दिया है, मैं उस के कपड़े वगैरह देखना चाहता हूं. आप लोगों ने लाश के फोटो तो करवाए ही होंगे, आप उन्हें भी दिखा दें.’’

इंसपेक्टर मेहता ने उस का परिचय पूछा तो वह बोला, ‘‘मेरा नाम मोहनलाल मेहता है. मैं भी एक रिटायर्ड पुलिस इंसपेक्टर हूं, महेशनगर में रहता हूं,’’ कहते हुए उन्होंने हाथ में थामा अखबार खोल कर उस में छपा विज्ञापन सतीश मेहता को दिखाते हुए कहा, ‘‘आप लोगों की ओर से आज के अखबार में यह जो विज्ञापन छपवाया गया है, इस में मरने वाले का हुलिया और कपड़े वगैरह मेरे बेटे से मेल खा रहे हैं.’’

सतीश मेहता ने अखबार ले कर उस में छपी अपील को देखते हुए पूछा, ‘‘आप के बेटे का क्या नाम है?’’

‘‘उस का नाम जोगेंद्र मेहता है, मगर सभी उसे जग्गी मेहता कहते थे.’’

‘‘काम क्या करता था आप का बेटा?’’

‘‘पंजाब नैशनल बैंक में क्लर्क था. उस की पोस्टिंग मेन बाजार शाखा में थी. 14 जुलाई की रात वह अपने बैंक के चपरासी के साथ स्कूटर से कहीं गया था, उस के बाद लौट कर नहीं आया. आज 4 दिन हो चुके हैं.’’

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‘‘आप ने चपरासी से नहीं पूछा?’’

‘‘मैं ने अगले दिन ही उसे बैंक में फोन कर के पूछा था. उस ने बताया था कि वह किसी जरूरी काम से अंबाला से बाहर गया है. 2-4 दिनों में लौट आएगा. स्कूटर के बारे में उस ने बताया था कि वह उसी के पास है.’’

‘‘चपरासी का क्या नाम है?’’

‘‘जी मुन्ना.’’

‘‘वह कहां रहता है?’’

‘‘वह हिसार रोड पर कहीं रहता है. अगर आप को उस से कुछ पूछना है तो वह बैंक में ही मिल जाएगा. लेकिन आप मुझे कपड़े और फोटो तो दिखा दीजिए.’’

‘‘आप परेशान मत होइए. आप को सभी चीजें दिखा दी जाएंगी. लेकिन पहले आप मेरे साथ मुन्ना चपरासी के यहां चलिए. हो सकता है, हमारे पास जो कपड़े और फोटो हैं, वे आप के बेटे के न हों. फिर भी आप मेरे साथ चलिए.’’ सतीश मेहता मोहनलाल को साथ ले कर बैंक पहुंचे.

लेकिन तब तक मुन्ना घर जा चुका था. पूछने पर पता चला कि वह अंबाला शहर के हिसार रोड पर दुर्गा नर्सिंगहोम के पास किराए पर रहता है. सतीश मेहता वहां पहुंचे तो वह घर पर ही मिल गया. उस का नाम मनजीत कुमार था. पूछने पर उस ने वही सब बताया, जो वह मोहनलाल को बता चुका था.

लेकिन सतीश मेहता को उस की बातों पर यकीन नहीं हुआ. उन्होंने उसे डांटा तो उस ने दोनों हाथ जोड़ कर कहा, ‘‘सर, 14 जुलाई की शाम मैं बैंक से जग्गी साहब के साथ उन के घर गया था. उस रात उन्होंने मुझे पार्टी देने का वादा किया था. खानेपीने के बाद आधी रात को मैं चलने लगा तो उन्होंने कहा, ‘‘मैं उन के साथ चलूं. इस के बाद वह मुझे अपने स्कूटर पर बैठा कर विश्वासनगर ले गए. वहां एक घर के सामने उन्होंने स्कूटर रोक दी.’’

‘‘जहां स्कूटर रोका, वह घर किस का था?’’ सतीश मेहता ने मुन्ना से पूछा.

‘‘यह मुझे नहीं मालूम. उस घर की ओर इशारा कर के उन्होंने कहा था कि रात में वह वहीं रुकेंगे. इस के बाद मैं उन का स्कूटर ले कर चला आया था.’’ मुन्ना ने कहा.

‘‘तुम ने उन से पूछा नहीं कि वह मकान किस का है? उतनी रात को वह उस मकान में क्या करने जा रहे हैं?’’

‘‘पूछा था सर.’’

‘‘क्या कहा था उन्होंने?’’

‘‘सर, जग्गी साहब ने मुझ से सिर्फ यही कहा था कि रात में वह वहीं रुकेंगे. उन्होंने मुझे उस घर का फोन नंबर दे कर यह भी कहा था कि जरूरत हो तो मैं फोन कर लूं. लेकिन फोन एक लड़की उठाएगी. इस के बाद उन्होंने मुझे सुरजीत सिंह का फोन नंबर भी दिया और कहा कि कोई ऐसीवैसी बात हो जाए तो मैं सुरजीत सिंह को फोन कर लूं.’’

‘‘यह सुरजीत कौन है?’’

‘‘सुरजीत सिंह जग्गी साहब के दोस्त हैं. वह भी विश्वासनगर में रहते हैं. घूमने के लिए जग्गी साहब अकसर उन्हीं की कार मांग कर लाया करते थे.’’

‘‘टैक्सी वगैरह का धंधा करते हैं क्या?’’

‘‘यह तो मुझे नहीं मालूम. लेकिन इतना जरूर पता है कि किसी औफिस में नौकरी करते हैं.’’

‘‘अभी उन्हें छोड़ो, यह बताओ कि उस रात और क्या हुआ था?’’

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‘‘सर, जब मैं जग्गी साहब को छोड़ कर घर आया तो लेटते ही सो गया. सुबह तक जग्गी साहब नहीं आए तो मैं ने पड़ोस के पीसीओ से उन के बताए नंबर पर फोन किया. फोन सचमुच लड़की ने उठाया. मैं ने उस से जग्गी साहब के बारे में पूछा तो उस ने कहा कि इस नाम का कोई आदमी वहां नहीं रहता. इस पर मैं ने उसे समझाते हुए कहा कि उन का पूरा नाम जोगेंद्रलाल मेहता है और वह पंजाब नैशनल बैंक में नौकरी करते हैं. इस पर भी उस ने मना कर दिया कि वह इस नाम के आदमी को नहीं जानती.’’

‘‘ठीक है, तुम हमारे साथ वहां चलो, जहां रात में जग्गी साहब को छोड़ कर गए थे.’’

मुन्ना सतीश मेहता को उस जगह ले गया, जहां उस ने जग्गी को छोड़ा था. वह विश्वासनगर का एक पुराना सा मकान था. मुन्ना ने उस मकान की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘‘हम इसी मकान के आगे रुके थे और इसी दरवाजे से जग्गी साहब अंदर गए थे.’’

उस मकान में ताला लटक रहा था. सतीश मेहता ने पड़ोसियों से उस मकान में रहने वालों के बारे में पूछा तो पता चला कि उस घर में हरीश विरमानी अपनी पत्नी कांता और 2 जवान बेटियों यवनिका तथा शामला के साथ रहते थे.

विरमानी के दिमाग की नस फट गई थी, जिस की वजह से उन दिनों इस परिवार को काफी परेशानी झेलनी पड़ रही थी. विरमानी चंडीगढ़ के पीजीआई में भरती थे. परिवार के लोग अकसर चंडीगढ़ में ही रहते थे. संभव था कि उस समय भी घर पर ताला लगा कर वहीं गए हों.

वहां काम की कोई जानकारी नहीं मिल सकी. इस पर सतीश सुरजीत सिंह के घर की ओर बढ़ गए. उन का घर भी विश्वासनगर में ही था. वह स्थानीय इलैक्ट्रिसिटी बोर्ड में काम करते थे. सुरजीत घर पर ही मिल गए.

उन से जग्गी मेहता के बारे में पूछा गया तो उन्होंने बताया कि जग्गी उन का दोस्त था और उन से हर तरह की बातें शेयर करता था. एक बार उस ने मुझे बताया था कि हरीश विरमानी की लड़कियां बदचलन हैं.

पलभर बाद सुरजीत ने दिमाग पर जोर देते हुए कहा, ‘‘डेढ़, 2 महीने पहले की बात है. विरमानी अपनी बीमारी की वजह से चंडीगढ़ के पीजीआई अस्पताल में भरती था. जग्गी ने उस का हालचाल लेने की बात कही तो मैं उसे अपनी कार से चंडीगढ़ ले गया. उस समय जग्गी के साथ विरमानी की बड़ी बेटी यवनिका भी थी. वापसी में जीरकपुर के एक होटल में जग्गी ने गाड़ी रुकवा कर मुझे बीयर पिलाई और खुद भी पी. उस के बाद मुझे बाहर बैठा कर वह खुद यवनिका को ले कर होटल के कमरे में चला गया. वहां से वह करीब पौन घंटे बाद लौटा.’’

‘‘तुम्हारे कहने का मतलब यह है कि जग्गी और यवनिका के बीच गलत संबंध थे?’’ सतीश मेहता ने पूछा.

‘‘इस बारे में पक्के तौर पर तो कुछ नहीं कह सकता, लेकिन जब हम चंडीगढ़ से लौट रहे थे तो पिछली सीट पर बैठा जग्गी लगातार यवनिका के साथ अश्लील हरकतें करता रहा था.’’ सुरजीत ने कहा.

उस की इस बात पर मोहनलाल मेहता भड़क उठे. ‘‘ऐसा नहीं हो सकता. मेरा बेटा 40 साल का हो चुका है और बालबच्चेदार है. उस की खूबसूरत पढ़ीलिखी बीवी है.’’

सतीश मेहता ने उन्हें समझाया कि इस तरह की बातों पर भावुक होने की जरूरत नहीं है. हमें हर बात को ध्यान में रख कर जांच आगे बढ़ानी है.

इस पर मोहनलाल कुछ सोचते हुए बोले, ‘‘हरीश विरमानी की लड़कियों के पास कुछ लड़के आया करते थे. इस बारे में मेरे बेटे ने कुछ अन्य लोगों के साथ मिल कर पुलिस से शिकायत भी की थी.’’

‘‘क्या हुआ था शिकायत वाले मामले में?’’

‘‘दोनों पार्टियों में समझौता करा दिया गया था. उस के बाद लड़कियों के पास फालतू लोगों का आना बंद हो गया था.’’

‘‘यह तो आप के बेटे ने अच्छा काम किया था. लेकिन अभी मुझे सुरजीत से कुछ और पूछना है.’’

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‘‘आप के कुछ पूछने से पहले मैं एक बात जानना चाहता हूं. आप जिस जग्गी मेहता के बारे में पूछ रहे हैं, उस ने कुछ कर दिया है क्या?’’

‘‘वह गायब है और हम उस की तलाश में लगे हैं.’’

सुरजीत का घर दूर नहीं था. इंसपेक्टर सतीश मेहता मोहनलाल को ले कर उस के घर पहुंचे. वह घर पर ही था. मेहता ने उस से पूछा, ‘‘14 जुलाई की रात जग्गी मेहता से तुम्हारी कोई बातचीत हुई थी?’’

‘‘जी सर, उस रात वह मेरे पास आया था. आते ही उस ने यवनिका को फोन किया था. उस के प्रोग्राम के अनुसार उस रात उसे यवनिका के साथ रहना था. उस ने मुझ से 2 हजार रुपए मांगते हुए कहा था कि अगर उसे कार की जरूरत पड़ी तो वह मेरी कार ले जाएगा. लेकिन मैं ने उसे कार देने से इनकार कर दिया था. इस की वजह यह थी कि वह मेरा दोस्त जरूर था, लेकिन वह बालबच्चेदार था, इसलिए मुझे यह ठीक नहीं लगा.’’

‘‘तुम्हारे पास वह अकेला ही आया था?’’

‘‘जी, वह अकेला ही आया था.’’

‘‘उस का चपरासी मुन्ना साथ नहीं था?’’

‘‘जी नहीं, वह साथ में नहीं था. जग्गी ने मुझे बताया कि उसे अपने घर पर बैठा कर वह शराब लेने आया था.’’

‘‘फिर क्या हुआ था?’’

‘‘वह मुझ से 2 हजार रुपए ले कर चला गया था. आधी रात के बाद उस का फोन आया था. तब उस ने कहा था कि वह यवनिका के घर से बोल रहा है. उस ने एक बार फिर कार मांगी थी, लेकिन मैं ने मना कर दिया था.’’

‘‘उस के बाद क्या किया था उस ने?’’

‘‘क्या किया, पता नहीं. शायद टैक्सी ले कर अंबाला से कहीं बाहर चला गया होगा?’’

इस के बाद सतीश मेहता मोहनलाल के घर जा पहुंचे. जग्गी मेहता की पत्नी का नाम संतोष था. वह पब्लिक स्कूल में टीचर थीं. सतीश मेहता ने शालीनता के साथ पतिपत्नी के रिश्तों के अलावा जग्गी के बारे में कुछ बातें पूछीं और मोहनलाल के साथ थाने लौट आए.

वापस लौट कर उन्होंने थाने में रखे लाश के कपड़े और फोटो मोहनलाल को दिखाए तो उन्होंने रोते हुए कहा, ‘‘ये कपड़े और फोटो मेरे बेटे के हैं.’’

सतीश मेहता ने उन्हें सांत्वना दी और समझा कर कहा, ‘‘आप एक अरजी लिख कर दे दें ताकि हम रिपोर्ट लिख कर आगे की काररवाई शुरू करें.’’

‘‘क्या आप इस अभागे बाप को बेटे की लाश दिखा देंगे?’’

लेकिन एक दिन पहले ही लाश को लावारिस मान कर उस का अंतिम संस्कार कर दिया गया था, यह बात सतीश मेहता ने उन्हें बता दी.

दुखी मन से मोहनलाल मेहता उठे और धीरेधीरे चलते हुए थाने से बाहर निकल गए. उन की मानसिक दशा देख कर सतीश मेहता ने कुछ कहना उचित नहीं समझा. मोहनलाल मेहता दोबारा थाने नहीं आए तो उन्हें बुलाने के लिए सिपाही भेजे गए, लेकिन वह टालते रहे. इस से पुलिस को लगा कि शायद वह बेटे की बदनामी से डर गए हैं.

लेकिन 2 अगस्त की सुबह मोहनलाल मेहता बेटे की हत्या की रिपोर्ट दर्ज कराने आ पहुंचे. उन की तहरीर के आधार पर यवनिका, शामला, अमित और सुनील को संदिग्ध मानते हुए नामजद रिपोर्ट दर्ज कर ली गई.

रिपोर्ट दर्ज होने के बाद सतीश मेहता ने एसपी आर.सी. जोवल से संपर्क किया तो उन्होंने काररवाई का आदेश दे दिया. सतीश मेहता ने अपनी एक टीम गठित की, जिस में एसआई सोमदत्त, एएसआई गुरमेल सिंह, हवलदार आनंद किशोर, अश्विनी कुमार, राधेश्याम के अलावा कुछ महिला पुलिसकर्मियों को शामिल किया गया.

जब यह टीम काररवाई के लिए मौडल टाउन की ओर जा रही थी तो रास्ते में उन्हें स्थानीय नेता दिलीप चावला मिल गए. औपचारिक बातचीत के बाद सतीश मेहता ने उन्हें जग्गी की सिरकटी लाश मिलने वाली बात बताई तो उन्होंने कहा, ‘‘जग्गी मेहता का कत्ल 2 लड़कियों यवनिका, शामला और 2 लड़कों अमित और सुनील ने किया है.’’

‘‘आप को कैसे पता चला?’’

‘‘कुछ देर पहले वे चारों मेरे पास मदद के लिए आए थे. लेकिन मुझे उन की मदद करना उचित नहीं लगा. इसलिए मैं ने मना कर के उन्हें अपने घर से भगा दिया.’’

‘‘आप को पुलिस को बताना चाहिए था. खैर, इस समय वे कहां होंगे?’’

‘‘मेरे पास जाते वक्त उन्होंने अपनेअपने घर लौट जाने की बात कही थी. मैं समझता हूं कि इस समय वे अपनेअपने घरों में ही होंगे.’’

सतीश मेहता ने यह बात एसपी आर.सी. जोवल को बताई तो उन्होंने सीआईए इंसपेक्टर खुशहाल सिंह के नेतृत्व में एएसआई हरबंस लाल, हवलदार ललित कुमार, सिपाही रणबीर सिंह, बलबीर सिंह और सोहनलाल की एक टीम बना कर उन की मदद के लिए भेज दी.

अब तक सतीश मेहता के बुलाने पर थाने की महिला एएसआई सुदर्शना देवी, हवलदार संगीता, मनजीत कौर, सिपाही धर्मपाल कौर भी तैयार हो कर आ पहुंची थीं. सतीश मेहता अपनी टीम के साथ विश्वासनगर की ओर चल पड़े. ये पुलिस टीम हरीश विरमानी के घर पहुंची तो यवनिका और शामला घर पर ही मिल गईं. पुलिस वालों को देख कर उन लड़कियों को घबरा जाना चाहिए था, लेकिन घबराने के बजाय उन्होंने अपना अपराध स्वीकार करते हुए आत्मसमर्पण कर दिया.

इस के बाद खुशहाल सिंह दिलीप चावला को साथ ले कर अमित और सुनील को गिरफ्तार करने चले गए. संयोग से वे दोनों भी अपनेअपने घरों पर मिल गए. उन्होंने भी जग्गी मेहता के कत्ल का अपना अपराध स्वीकार कर लिया.

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चारों अभियुक्तों को अगले दिन स्पैशल रेलवे दंडाधिकारी संतप्रकाश की अदालत में पेश कर के पूछताछ के लिए 3 दिनों के पुलिस रिमांड पर ले लिया गया. यह तब की बात है, जब जुवैनाइल एक्ट अस्तित्व में नहीं आया था. लिहाजा नाबालिग शामला के साथ भी अन्य अभियुक्तों जैसा ही व्यवहार किया जा रहा था.

रिमांड अवधि के दौरान की गई पूछताछ में चारों ने पुलिस को जो कुछ बताया, उस से जोगेंद्र कुमार मेहता उर्फ जग्गी मेहता की हत्या की कहानी सामने आ गई.

अंबाला के विश्वासनगर के रहने वाले टेलर मास्टर लेखराज के परिवार में पत्नी सुमित्रा देवी के अलावा 3 बेटे थे. जिन में सब से बड़ा था अमित, जिस ने आठवीं पास कर के पढ़ाई छोड़ दी थी. कुछ दिन उस ने मिक्सी बनाने का काम सीखा. जल्दी ही उस का इस काम से जी भर गया तो वह पिता के साथ टेलरिंग का काम करने लगा. अमित से दोनों छोटे भाई अभी पढ़ रहे थे.

विश्वासनगर के ही एक मंदिर में एक दिन शाम को अमित कुमार दर्शन करने गया तो प्रसाद खरीदते समय उस की नजर एक लड़की से टकरा गई. वह पहली ही नजर में उस की ओर आकर्षित हो गया. इस के बाद वह रोजाना वहां जाने लगा. आंखों ही आंखों में उस ने उस से प्रणय निवेदन किया तो लड़की ने मौन स्वीकृति दे दी.

वह लड़की यवनिका थी. जल्दी ही दोनों की मुलाकातें अंबाला के विभिन्न स्थानों पर होने लगीं. मांबाप के घर न होने पर यवनिका उसे अपने घर भी बुलाने लगी.

हरीश विरमानी के बीमार पड़ जाने के बाद दोनों की मौज आ गई. यवनिका रात में अमित को अपने घर बुलाने लगी तो दोनों के बीच शारीरिक संबंध भी बन गए.

एक दिन अमित यवनिका घर पर थे, तभी जग्गी मेहता अचानक आ पहुंचा. हरीश विरमानी से उस का अच्छा परिचय था. उसी की हालचाल लेने वह वहां आया था. मांबाप की अनुपस्थिति में अमित को देख कर जग्गी ने कहा, ‘‘विरमानी साहब तो अस्पताल में हैं. तुम्हारी मां और बहन भी शायद वहीं गई होंगी. ऐसे में तुम इस लड़के के साथ अकेली क्या कर रही हो?’’

जग्गी मेहता ने यह बात यवनिका से कही थी, लेकिन उस के बजाय जवाब अमित ने दिया, ‘‘तुम्हें क्या ऐतराज है?’’

‘‘मुझे इस में क्या ऐतराज हो सकता है. मेरे कहने का मतलब यह है कि तुम भी ऐश करो और कभीकभी मुझे भी करवा दिया करो.’’

जग्गी यवनिका के पिता का दोस्त था. उम्र में भी लगभग उन के बराबर था. पिता के दोस्त की बातें सुन कर उसे बड़ा अजीब लगा. लेकिन उस के मन में चोर था, इसलिए वह चुप रही.

जबकि अमित से यह बात बरदाश्त नहीं हुई. वह जग्गी को हड़काते हुए बोला, ‘‘तुम हमारे लिए पहले भी मुसीबत बनते रहे हो. उस दिन पुलिस बुला कर तुम हमारे ऊपर इस तरह रौब डाल रहे थे, जैसे तुम कहीं के मजिस्ट्रेट हो. ध्यान से सुन लो, यवनिका मेरी है, हम दोनों एकदूसरे को जीजान से चाहते हैं और जल्दी ही शादी भी करने वाले हैं.’’

‘‘भई, जब तुम्हें शादी करनी हो, कर लेना. मैं इस से कहां शादी करने जा रहा हूं.’’

‘‘तुम शादीशुदा हो और तुम्हारे बच्चे भी हैं, इसलिए तुम्हें यह सब शोभा नहीं देता. तुम हमारे रास्ते में मत आओ.’’

‘‘वाह! तुम तो बड़े अकड़ रहे हो भाई. एक बात याद रखना, मेरा नाम जग्गी मेहता है. मैं तुम्हें ऐसा सबक सिखाऊंगा कि जिंदगी भर याद रखोगे.’’ कह कर जग्गी पैर पटकता चला आया.

विश्वासनगर में ही शिंगाराराम रहते थे. लेकिन कुछ समय पहले ही उन की मौत हो गई थी. उन के परिवार में पत्नी दुलारी देवी के अलावा 3 बेटे थे. उन का बीच वाला बेटा सुनील कुमार था, जो दसवीं पास कर के सेल्समैनी करने लगा था.

अमित और सुनील एक ही कालोनी में आगेपीछे के मकानों में रहते थे. इसी वजह से दोनों में परिचय था. अमित का जिन दिनों यवनिका के साथ इश्क परवान चढ़ा था, एक दिन उस ने यवनिका को अपनी गर्लफ्रैंड बता कर सुनील से मिलवाया. इस के बाद अमित ने सुनील का परिचय यवनिका की छोटी बहन शामला से करवा दिया तो उन के बीच दोस्ती हो गई.

बड़ी बहन की देखादेखी किसी की बांहों में समाने को वह भी मचल रही थी. सुनील से दोस्ती हुई तो वह भी उस से संबंध बना बैठी. इस के बाद दोनों बहनें जब घर में अकेली होतीं, सुनील और अमित को बुला कर रासलीला रचातीं.

17 जून को जग्गी मेहता सुरजीत सिंह की कार में हरीश विरमानी का हालचाल लेने चंडीगढ़ जा रहा था. जाने से पहले उस ने फोन कर के यवनिका को भी साथ चलने को कहा. उस ने जाने से मना किया तो जग्गी ने कहा कि उस के साथ एक परिवार जा रहा है. इस के बाद यवनिका उस के साथ चंडीगढ़ चलने को तैयार हो गई.

उस दिन शाम को अंबाला लौटने पर अमित यवनिका से मिला तो उस ने रोते हुए कहा, ‘‘अमित आज जग्गी मेहता ने मेरे साथ बहुत गलत किया, वह बहुत गंदा आदमी है.’’

‘‘क्या किया उस ने तुम्हारे साथ…?’’

‘‘जाते वक्त तो सब ठीक रहा, लेकिन लौटते समय जीरकपुर पहुंचे तो वहां के एक होटल के सामने जग्गी ने कार रुकवा दी. अंदर जा कर दोनों ने बीयर पी. इस के बाद जग्गी मुझे होटल के कमरे में ले गया. सुरजीत बाहर ही बैठा रहा. जग्गी ने कमरे में ले जा कर मेरे साथ जबरन मुंह काला किया.’’

‘‘क्याऽऽ? उस ने तुम्हारे साथ जबरदस्ती की और तुम ने शोर भी नहीं मचाया?’’

‘‘मैं अकेली लड़की क्या कर सकती थी? डर के मारे मेरे मुंह से आवाज तक नहीं निकली. लेकिन अब मैं उसे जिंदा नहीं रहने दूंगी. बस, तुम्हें मेरा साथ देना होगा.’’ यवनिका ने गुस्से में कहा.

इस के बाद दोनों ने जग्गी मेहता की हत्या की योजना बनाने के साथ शामला और सुनील से बात की. चारों ने इस मुद्दे पर एक अनूठी योजना तैयार की. उसी योजना के तहत लोहे का एक बड़ा ट्रंक खाली कर लिया गया. करंट लगा कर मारने के लिए बिजली के तार की भी व्यवस्था कर ली गई. लेकिन यवनिका को यह योजना पसंद नहीं आई.

इस के बाद खूब सोचसमझ कर जो योजना तैयार की गई, उस के अनुसार 14 जुलाई की दोपहर यवनिका ने जग्गी के घर फोन कर के बैंक का नंबर ले लिया. इस के बाद बैंक फोन किया. जिस आदमी ने फोन उठाया, उस ने लड़की की आवाज सुन कर कहा, ‘‘जग्गी का रोज का यही हाल है, कभी सविता का फोन आता है तो कभी किसी और का.’’

इस के बाद उस ने जग्गी मेहता को आवाज लगाई. जग्गी मेहता ने पहले यवनिका के पिता का हालचाल पूछा. इस के बाद जीरकपुर वाली घटना का जिक्र कर के उसे उकसाने की कोशिश करने लगा. इस के बाद यवनिका ने उसे रात में अपने घर आने को कह दिया. जग्गी ने किसी होटल में चलने को कहा तो यवनिका ने घर में ही रात बिताने को कहा.

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उसी रात साढ़े 10 बजे जग्गी मेहता ने यवनिका को फोन किया. एक बार फिर उस ने रात कहीं बाहर बिताने को कहा तो यवनिका ने साफसाफ कहा, ‘‘आना हो तो घर आ जाओ. मैं बाहर नहीं जाऊंगी. घर में कोई खतरा नहीं है. घर में शामला और मैं ही हूं.’’

‘‘ठीक है. मैं रात 12, साढ़े 12 बजे के बीच आ जाऊंगा.’’

इस के बाद योजना के अनुसार, सुनील बाजार से शराब ले आया. अमित ने नशे की गोलियों का इंतजाम किया. जिस कमरे में जग्गी मेहता को जाना था, वहां पड़े बैड पर सुनील चादर ओढ़ कर लेट गया. घर का दरवाजा खुला छोड़ दिया गया.

एकदम सही समय पर जग्गी पहुंच गया. अमित रसोई में छिप गया. शामला और यवनिका जग्गी को प्यार से अंदर ले आईं. जग्गी अपने भाग्य पर इतराते हुए शहंशाहों की तरह आया. कमरे में पहुंच कर बैड पर किसी को लेटा देख कर पूछा, ‘‘यह कौन लेटा है?’’

‘‘दादी अम्मा हैं. अभी कुछ देर पहले अचानक आ गईं. लेकिन तुम्हें घबराने की जरूरत नहीं है. अफीम खा कर आराम से पड़ी रहती हैं. फिर तुम जरा धीरे बोलना.’’ यवनिका ने कहा.

इस के बाद वहीं से सुरजीत सिंह को फोन किया. फोन करने के बाद यवनिका ने उस का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘चलो, उधर दीवान पर चलो. अगर कपड़े उतारना चाहो तो उतार लो.’’

जग्गी अपनी जगह से उठ कर दीवान पर इत्मीनान से बैठ गया. शराब की बोतल पहले ही वहां रखी गई थी. बोतल देख कर उस ने यवनिका से गिलास लाने को कहा. नशे की गोलियां पीस कर यवनिका ने पहले से ही स्टील के गिलास में डाल रखी थीं. जग्गी के पास आ कर उस ने खुद ही गिलास में शराब डाली और उसे हिलाते हुए जग्गी की ओर बढ़ा दिया.

जग्गी पहले ही शराब पी कर आया था. यवनिका के हाथों उस ने 2 पैग और चढ़ा लिए. वह भी नशीली दवा के साथ. थोड़ी ही देर में वह नशे में झूमने लगा. उस के बाद यवनिका और शामला से बोला, ‘‘तुम दोनों भी मेरे साथ थोड़ी पियो.’’

यवनिका रसोई में गई और 2 गिलासों में थम्सअप ले आई. रसोई में जाते समय वह शराब की बोतल साथ ले गई थी. इसलिए उन्हें थम्सअप पीते देख कर जग्गी को लगा कि वे भी शराब पी रही हैं. अब तब झूमते हुए उस ने अपने कपड़े उतार दिए.

जग्गी मेहता ने जैसे ही कपड़े उतारे सुनील ने जल्दी से सामने आ कर उस की फोटो खींच ली. ठीक उसी समय अमित भी वहां आ गया. कैमरे की फ्लैश से जग्गी की आंखें चुंधिया गईं. अमित और सुनील को सामने पा कर वह आंखें मलते हुए चिल्लाया, ‘‘कबाब में हड्डी बनने के लिए तुम लोग यहां क्यों आए हो? दिनरात तुम लोग ऐश करते हो, मैं ने कभी अड़ंगा डाला है?’’

अमित ने उस के दोनों हाथ पकड़ कर पूछा, ‘‘तुम ने मेरी यवनिका को पीजीआई ले जाने के बहाने रास्ते में होटल में दुष्कर्म किया था न?’’

‘‘नहीं तो. मैं ने कब इस से दुष्कर्म किया?’’

‘‘जीरकपुर के ब्रिस्टल होटल के कमरे में यवनिका को ले जा कर तुम ने इस के साथ क्या किया था?’’

‘‘जो भी किया, उस से क्या हो गया? तुम उस के साथ क्या करते हो? मैं ने तो कभी कुछ नहीं पूछा. और तुम लोग मेरा यह फोटो खींच कर क्या करोगे?’’

‘‘उस का क्या होगा, यह बाद की बात है.’’ यवनिका ने उस के सामने आ कर कहा, ‘‘अभी तो मुझ से आंख मिला कर बताओ कि ब्रिस्टल होटल में तुम ने मेरे साथ जबरदस्ती की थी या नहीं?’’

यवनिका के यह कहते ही जग्गी उस के पैर पकड़ कर माफी मांगने लगा. शायद उसे इस बात का आभास हो गया था कि उसे वहां मौजमस्ती के लिए नहीं, किसी साजिश के तहत बुलाया गया है.

जग्गी माफी मांग ही रहा था कि अमित ने जग्गी के मुंह पर हाथ रख कर दूसरे हाथ से उस की गरदन में चाकू घुसेड़ दिया. ठीक उसी समय सुनील ने दूसरा चाकू भी उस की गरदन में दूसरी ओर से घुसेड़ दिया.

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2 चाकुओं के वार से बिना चीखेचिल्लाए जग्गी छटपटाने लगा. फिर तो उन्होंने उस पर और भी कई वार किए. कुछ देर बाद जब उन्हें लगा कि जग्गी मर गया है तो उसे कपड़े और जूते पहना कर दीवान पर बिछे गद्दे में लपेट कर घर में रखी साइकिल पर लाद कर रेलवे लाइन पर फेंक आए. संयोग से उस समय तेज बारिश हो रही थी, इसलिए रेलवे लाइन तक लाश ले जाते समय उन्हें कोई परेशानी नहीं हुई.

इस के बाद उन्होंने गद्दा और चाकू पास के गंदे नाले में फेंक दिया. वहीं साइकिल भी छिपा दी. घर लौट कर खून के छींटे और धब्बे साफ कर दिए गए.

दीवार पर खून साफ करने से जो धब्बे बन गए थे, उसे सहज बनाने के लिए यवनिका ने वहां सरसों का तेल गिरा दिया ताकि देख कर लगे कि किसी से तेल की शीशी गिर गई है.

यह सब करतेकरते 5 बज गए. इस के बाद यवनिका और शामला पहले चंडीगढ़ स्थित पीजीआई गईं और मातापिता से मिल कर हरिद्वार चली गईं. जबकि मातापिता से बताया था कि अंबाला जा रही हैं.

पूछताछ के बाद उन की निशानदेही पर खून लगा गद्दा, साइकिल और हत्या में प्रयुक्त दोनों चाकू बरामद कर लिए गए. रिमांड अवधि समाप्त होने पर उन्हें फिर से अदालत में पेश कर सभी को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

विवेचक सतीश मेहता ने निर्धारित अवधि में इन के खिलाफ आरोप पत्र तैयार कर निचली अदालत में पेश कर दिया. अंबाला की जिला अदालत में 3 साल तक केस चला. बाद में सेशन से चारों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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