Manohar Kahaniya: नशा मुक्ति केंद्र में चढ़ा सेक्स का नशा- भाग 2

सौजन्य- मनोहर कहानियां

परिवार में मानो तूफान आ गया था. मातापिता अपने बच्चों को हमेशा अच्छी नजर से देखते हैं और उन्हें प्यार भी करते हैं, इसलिए जल्द शक नहीं कर पाते. यह अच्छी बात है, लेकिन बच्चों की संगत को भी नजरंदाज कर दिया जाए, यह लापरवाही है.

निधि का परिवार भी यह गलती कर चुका था. निधि अपने परिवार की इकलौती बेटी थी. मातापिता ने उसे समझाया. एकदो दिन तो वह घर पर ही रही, लेकिन फिर बाहर घूमने की जिद करने लगी. उस का स्वभाव भी बदल चुका था. वास्तव में नशे की तलब उसे बेचैन कर रही थी.

दरअसल, निधि ड्रग्स की बुरी तरह आदी हो चुकी थी. वह पहले जैसी कतई नहीं रही थी. पढ़ाई का रिजल्ट आया तो उस में भी वह फेल थी. एक समय ऐसा भी आया जब वह अपनी तलब पूरी करने को पैसे मांगती और न देने पर झगड़ा करती.

घर के हालात तनावपूर्ण थे. मातापिता की रातों की नींद उड़ चुकी थी, क्योंकि वह बेटी को समझा कर थक चुके थे, लेकिन वह मानने को तैयार नहीं थी. बेटी के भविष्य को बचाना उन के लिए चुनौतीपूर्ण हो गया. वह हर सूरत में निधि को बुरी लत से निकालना चाहते थे.

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उन लोगों के सामने अब एक ही रास्ता था कि बेटी को किसी नशा मुक्ति केंद्र में छोड़ दिया जाए. देहरादून में ऐसे कई नशा मुक्ति केंद्र थे. ऐसे ही एक अच्छे सेंटर के बारे में नवीन को पता चला.

उस का नाम था ‘वाक एंड विन सोबर लिविंग होम एंड काउंसलिंग सेंटर’. यह नशा मुक्ति केंद्र थाना क्लेमेनटाउन के अंतर्गत टर्नर रोड पर प्रकृति विहार में स्थित था. एक आवासीय कोठी को नशा मुक्ति केंद्र का रूप दिया गया था.

नशा मुक्ति केंद्र में ऐसे लड़केलड़कियों को रखा जाता था, जो नशे के आदी थे. नशा छुड़ाने के बदले उन के परिजनों से महीने में तय फीस ली जाती थी. यह फीस 20 से 40 हजार रुपए होती थी.

बच्चों के भविष्य के लिए मातापिता खुशीखुशी फीस चुकाने को तैयार रहते थे. इस नशा मुक्ति केंद्र के संचालक विद्यादत्त रतूड़ी थे, जबकि डायरेक्टर विभा सिंह.

नवीन और प्रिया ने यहां अपनी बेटी के बारे में बताया और सभी बातें तय होने के बाद बेटी को वहां रहने के लिए छोड़ दिया. वह खुश थे कि बेटी वहां रह कर अब पूरी तरह ठीक हो जाएगी, लेकिन उस की फिक्र जरूर बनी रहती थी.

प्रिया के लिए बेटी का नशा मुक्ति केंद्र में जाना किसी बुरे सपने की तरह था. प्रिया अकसर बेटी के बारे में सोचती रहती थीं. उस दिन भी वह फोटो एलबम देखते हुए बेटी को याद कर रही थीं तभी पतिपत्नी उस के बारे में चर्चा करने लगे थे.

4 लड़कियां हुईं गायब

प्रिया फोन पर बेटी से बात कर लिया करती थीं तो एक दिन बेटी ने बताया था कि वहां सब कुछ ठीक नहीं है. इस बात ने उन्हें चिंतित किया था, लेकिन नवीन ने अपनी बातों से उन की चिंता को दूर कर दिया था. लेकिन उन की बेटी की बात तब सच साबित हुई, जब नशा मुक्ति केंद्र से एक हैरान कर देने वाली खबर निकली.

दरअसल, 6 अगस्त, 2021 के अखबारों में एक खबर सुर्खी बनी कि ‘नशा मुक्ति केंद्र से 4 लड़कियां फरार’. इस खबर ने लोगों को चौंका दिया. थाना क्लेमेनटाउन पुलिस को सूचना मिली कि नशा मुक्ति केंद्र से 5 अगस्त की शाम 4 लड़कियां वार्डन को चकमा दे कर भाग गईं.

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जातेजाते वह सेंटर का बाहर से ताला भी लगा गईं. इस से सेंटर में हड़कंप मच गया. जिस की सूचना नशा मुक्ति केंद्र की डायरेक्टर विभा सिंह की तरफ  से पुलिस को दी गई थी. थानाप्रभारी धर्मेंद्र रौतेला अपनी टीम के साथ सेंटर पहुंचे और पूछताछ की.

पूछताछ में पता चला कि चारों लड़कियां चकमा दे कर भागी थीं, लेकिन बड़ा सवाल यह था कि लड़कियां सेंटर से आखिर क्यों भागीं? इस का ठीक जवाब लड़कियां ही दे सकती थीं. पुलिस को इस की आशंका जरूर हुई कि वजह कोई बड़ी रही होगी. बहरहाल पुलिस ने गुमशुदगी दर्ज कर ली.

किसी नशा मुक्ति केंद्र से लड़कियों का इस तरह से भाग जाना बेहद संवेदनशील था. एसएसपी योगेंद्र सिंह रावत ने अधीनस्थों को तुरंत लड़कियों की तलाश करने के निर्देश दिए. एसपी (सिटी) सरिता डोभाल ने इस प्रकरण की मौनिटरिंग शुरू कर दी.

जिस के बाद एक पुलिस टीम का गठन कर दिया गया. सीओ अनुज कुमार के निर्देशन में इस टीम में थानाप्रभारी धर्मेंद्र रौतेला, एसआई शोएब अली, रजनी चमोली, आशीष रवियान, हैड कांस्टेबल राजकुमार, कांस्टेबल सुनील पंवार, हितेश, भूपेंद्र व पिंकी आदि को शामिल किया गया.

पुलिस ने सीसीटीवी कैमरों की फुटेज की मदद ली, लेकिन तत्काल कोई सफलता नहीं मिली. 7 अगस्त को पुलिस ने चारों लड़कियों को एक होटल से खोज निकाला.

पुलिस ने लड़कियों से पूछताछ की तो उन्होंने नशा मुक्ति केंद्र के बारे में ऐसा सनसनीखेज खुलासा किया, जिसे सुन कर पुलिस भी चौंक गई. एक लड़की ने आगे बढ़ कर बताया, ‘‘सर, वह नशा मुक्ति केंद्र नहीं नरक केंद्र है.’’

‘‘मतलब?’’

‘‘वहां छेड़छाड़ की जाती है, मेरे साथ तो कई बार दुष्कर्म किया गया. मैं ने इस की शिकायत डायरेक्टर विभा से की तो उन्होंने उल्टा मेरे साथ मारपीट की.’’

लड़कियों के आरोप वाकई संगीन थे, ऐसे में तत्काल एक्शन लेना जरूरी था. पुलिस ने लड़की की तहरीर पर नशा मुक्ति केंद्र के संचालक विद्यादत्त रतूड़ी व डायरेक्टर विभा सिंह के खिलाफ  दुराचार, मारपीट, छेड़छाड़ व गालीगलौज की धाराओं में मुकदमा दर्ज कर लिया.

डायरेक्टर हुई गिरफ्तार

पुलिस टीम नशा मुक्ति केंद्र पहुंची और वहां से डायरेक्टर विभा सिंह को गिरफ्तार कर लिया, जबकि संचालक फरार हो चुका था. डायरेक्टर विभा सिंह ने चौंकाने वाली बातें पुलिस को बताईं.

अगले दिन पुलिस ने उसे न्यायालय में पेश कर के जेल भेज दिया. इस बीच लड़कियों को उन के परिजनों के हवाले कर दिया गया.

इस जांच में पुलिस को पता चला कि उक्त नशा मुक्ति केंद्र का संचालक विद्यादत्त रतूड़ी मूलरूप से पौड़ी गढ़वाल के उरमोला पट्टी गांव का रहने वाला था. पुलिस टीम उस के गांव रवाना हो गई, लेकिन वह वहां भी नहीं मिला. उस का मोबाइल भी स्विच्ड औफ  आ रहा था.

यह सनसनीखेज प्रकरण सुर्खियां बन चुका था. पुलिस उस की तलाश में जुटी रही. आखिर 9 अगस्त, 2021 को आरोपी को गिरफ्तार कर लिया गया. वह श्यामपुर क्षेत्र के एक होटल में छिपा हुआ था.

पुलिस ने उस से गहराई से पूछताछ की तो संचालक, डायरेक्टर के साथ ही नशा मुक्ति केंद्र की ऐसी कहानी निकल कर सामने आई जिस ने न सिर्फ चौंका दिया, बल्कि नशा मुक्ति केंद्र का काला सच भी सामने आ गया.

दरअसल, विद्यादत्त रतूड़ी के पिता हर्ष मनी रतूड़ी एयरफोर्स में नौकरी करते थे. कई साल पहले उन की तैनाती कानपुर में थी. विद्यादत्त कम उम्र में ही बुरी संगत का शिकार हो गया और उसे शराब पीने की लत लग गई.

मातापिता ने बेटे को बहुत संभालने की कोशिश की, लेकिन वह हाथ से निकल चुका था. समय अपनी गति से चलता रहा. इस बीच उस का विवाह भी कर दिया गया. वह नशे का इतना आदी हो गया कि दिन में भी नशा करने लगा.

साल 2018 में उसे देहरादून के सरस्वती विहार स्थित एक नशा मुक्ति केंद्र में भरती कराया गया. वहां पर अपने नशे के इलाज के दौरान ही उस ने नशा मुक्ति केंद्र में स्टाफ के रूप में काम करना शुरू कर दिया. विद्यादत्त ने करीब 3 साल वहां काम किया.

अगले भाग में पढ़ें- संचालक हो गया अंडरग्राउंड

छाया : विनोद पुंडीर

Satyakatha- ऊधमसिंह नगर में: धंधा पुराना लेकिन तरीके नए- भाग 3

सौजन्य- सत्यकथा

इस सूचना पर काररवाई करते हुए इंसपेक्टर बसंती आर्या अपनी टीम के साथ मौके पर पहुंचीं. अपनी टीम के साथ चारों तरफ से कार को घेरते हुए उस कार से 3 लोगों को पकड़ा गया. उन में एक आदमी और 2 औरतें थीं.

जब वे पकड़े गए, तब उन की हरकतें बेहद आपत्तिजनक थीं. तीनों को अपनी कस्टडी में ले कर पूछताछ के लिए थाने लाया गया.

आदमी की पहचान उत्तर प्रदेश में बरेली जिले के बहेड़ी थाना के रहने वाले 29 वर्षीय भगवान दास उर्फ अर्जुन के रूप में हुई. महिला की पहचान 32 वर्षीया भारती के रूप में हुई.

उस ने बताया कि वह उत्तर प्रदेश में रामपुर जिले के अंतर्गत दिनकरी की रहने वाली है, लेकिन अब वह ऊधमसिंह नगर जिला में  सिडकुल ढाल ट्रांजिट कैंप में रहती है.

इसी तरह से दूसरी 21 वर्षीया युवती ने अपना नाम पूजा यादव बताया. उस ने कहा कि उस का पति उत्तर प्रदेश में बाराबंकी जिले के गांव सनसडा में रहता है. तीनों से गहन पूछताछ के बाद उन की तलाशी ली गई. तलाशी में उन के पास से 2 स्मार्टफोन बरामद हुए. मोबाइलों में तमाम अश्लील फोटो, वीडियो के साथ ही अनेक अश्लील मैसेज भी भरे हुए थे.

उन्हीं मैसेज से मालूम हुआ कि ये दोनों महिलाएं एक रात के 1000 से 1500 रुपए लेकर ग्राहकों की रातें रंगीन करती थीं.

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उन के साथ पकड़ा गया भगवान दास का काम ग्राहक तलाशना होता था. वह उन्हें ग्राहकों तक पहुंचाने का काम करता था. बदले में 500 रुपए वसूलता था. दास ने बताया कि वह ग्राहक की जानकारी होटलों में ठहरने वालों से जुटाता था.

इस के लिए अपने संपर्क में आई युवतियों को किसी एकांत जगह पर कार में बैठा कर रखता था और फिर वहीं से ग्राहकों के फोन का इंतजार करता था. जैसे ही किसी ग्राहक का फोन आता वह 10 से 15 मिनट में उस के बताए स्थान पर लड़की को पहुंचा देता था.

तीनों 21 जुलाई को ग्राहक का फोन आने का ही इंतजार कर रहे थे. उन की कोई सूचना नहीं मिल पाने के कारण वे आपस में ही हंसीमजाक करते हुए टाइमपास कर रहे थे. ऐसा करते हुए वे बीचबीच में अश्लील हरकतें भी करने लगे थे.

उस दिन भगवान दास ने दोनों को 1500-1500 रुपयों में तय किया था. लेकिन जब काफी समय गुजर जाने के बाद भी उसे कोई ग्राहक नहीं आया था. पुलिस मुखबिर की निगाह उन पर गई और उन्होंने पुलिस को इस की सूचना दे दी.

पूछताछ में भगवान दास ने कई मोबाइल नंबर दिए, जो देहव्यापार करने वाली महिलाओं के थे.

वे अपनी बुकिंग एक दिन पहले करवा लेती थीं. बुकिंग के आधार पर ही उन्हें होटल या किसी निजी घर पर ले जाया जाता था. उन्हें ले जाने वाला ही उन का सौदा पक्का कर देता था. औनलाइन पेमेंट आने के बाद ही बताए जगह पर पहुंचती थीं.

इस मामले को थाना ट्रांजिट कैंप में दर्ज किया गया. पकड़े गए व्यक्तियों पर  सार्वजनिक स्थान पर अश्लील हरकतें कर अनैतिक देह व्यापार करने के संबंध में रिपोर्ट दर्ज की गई.

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उन पर आईपीसी की धारा 294/34 लगाई गईं. इसी के साथ उन्हें अनैतिक देह व्यापार निवारण अधिनियम की धारा 5/7/8 के तहत काररवाई की गई.

3साल पहले यानी 2018 तक काशीपुर की अनाज मंडी भी इस धंधे के लिए काफी बदनाम थी. आज भी स्थिति कमोबेश वैसी ही बनी हुई है. हालांकि कोरोना काल की वजह से उस में थोड़े समय के लिए मंदी जरूर आई, फिर पहले जैसी स्थिति बन गई.

मंडी देह का फूलनेफलने की भी वजह है. फसल ले कर आने वाले किसानों के अनाज की साफसफाई के लिए आढ़तियों की दुकानों पर औरतें काम करती हैं. उन की संख्या वे 2 ढाई सौ के करीब है.

फसल के ढेर पर झाड़ू लगाने वाली अधिकतर औरतें बिजनौर जिले की रहने वाली हैं, लेकिन काशीपुर में ही किराए का कमरा ले कर रहती हैं.

वे औरतें सुबहसुबह सजसंवर कर मंडी पहुंच जाती हैं. अपनी खूबसूरती का जलवा दिखा कर किसानों और व्यापारियों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं. वह मजदूरों को भी अपने जाल में आसानी से फांस लेती हैं. यह सब उन की आमदनी का एक अतिरिक्त जरिया होता है.

जितने पैसे वे मंडी में अनाजों के ढेर पर झाड़ू लगा कर नहीं कमा पातीं, उस से कहीं ज्यादा पैसा उन्हें देह व्यापार के धंधे में मिल जाता है.

हालांकि वह सब उन को ठीक भी नहीं लगता. उन्हें न केवल परिवार और समाज की नजरों से छिप कर रहना पड़ता है, बल्कि पुलिसप्रशासन से बच कर भी रहना जरूरी होता है. ऊपर से बदनामी का भी डर लगा रहता है.

उन की कोशिश रहती कि वे किसी के साथ आपत्तिजनक स्थिति में नहीं पकड़ी जाएं. जबकि हमेशा उन के मन के अनुकूल स्थिति बनी रहना संभव नहीं होती. नतीजा पुलिस की छापेमारी में कुछ पकड़ी जाती हैं तो कुछ अड्डे से भागने में सफल हो जाती हैं.

देह व्यापार के धंधे में लगे रहने की उन की मजबूरी थी. एक अड्डा बंद होता है तो उन के द्वारा तुरंत नया ठिकाना बना लिया जाता है. वैसे अधिकतर औरतों के पति दिहाड़ी मजदूरी करने वाले या फिर रिक्शा चलाने वाले हैं. वह शाम तक जितना कमाते हैं, उस का बड़ा हिस्सा शराब में उड़ा देते हैं.

शाम को घर पहुंचने पर घर का खर्च बीवी से चलाने की उम्मीद करते हैं. घर चलाने के खर्च से ले कर कमरे का किराया, कपड़ेलत्ते, बच्चों की परवरिश आदि तक उन्हीं के कंधों पर रहती है.

उस के बावजूद शराबी पतियों की मारपीट भी झेलनी पड़ती है. यह उन की दिनचर्या में शामिल हो चुका है. इस तरह देह के धंधे को अपनाने की मजबूरी बन गई है.

किसान कानून में बदलाव आने का असर उन के धंधे पर भी हुआ. कारण इस कानून के लागू होने पर किसान अपनी फसल कहीं भी बेचने के लिए आजाद हो गए. इस वजह से उन का काशीपुर की मंडी में आनाजाना बहुत कम हो गया. इस का असर उन औरतों के धंधे पर भी हुआ.

अनाज की मंडियों का काम ढीला होने से पहले के मुकाबले वहां औरतें कम आने लगी हैं. मजबूरी में उन्होंने नया तरीका निकाला और अपने घरों में ही धंधा करना शुरू कर दिया. जबकि वह जानती हैं कि यह धंधा किसी भी सूरत में महफूज नहीं है.

मैं हल्दीराम कंपनी से बोल रहा हूं…. ठगी के रंग हजार

अब आपको सावधान रहना है डिजिटल ठगी ट्रेंडिंग से. जी हां! आप अपने शहर में कोई दुकान चलाते हैं प्रतिष्ठित व्यवसायी हैं तो आपको सावधान रहने की दरकार है. क्योंकि अब ठगों ने देश की प्रतिष्ठित कंपनियों की डीलरशिप की लुभावनी लालच देकर के ठगने की एक नई योजना पर क्रियान्वयन करना शुरू कर दिया है.

इसी क्रम में रांची झारखंड में एक युवक से हल्दीराम नाम की स्नैक्स कंपनी के नाम पर 5 लाख रुपए ठग लिए गए.

हमारे संवाददाता ने इस संबंध में पुलिस अधिकारियों से चर्चा की तो उन्होंने जो जानकारियां दी वह चौंकाने वाली हैं .

पुलिस अधिकारी के मुताबिक दूसरी तरफ से कहा जाता है- हैलो, मैं हल्दीराम कंपनी से बोल रहा हूं आपके लिए एक अच्छा ऑफर आया है.

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हल्दीराम जैसी प्रतिष्ठित कंपनी के फोन को भला कोई छोटा मोटा व्यापारी कैसे इग्नोर कर सकता है. वह तो स्वयं को धन्य समझने लगता है और मुंगेरीलाल के सपनों में खो जाता है की हल्दीराम की मिलने के बाद कैसे लाखों रुपए कमा लूंगा.

सोशल मीडिया बड़ा माध्यम

छोटी पूंजी में कुछ बड़ा करने का सपना लिए अशोक नगर इलाके में रहने वाले अक्षर भारती नाम के युवक ने इंटरनेट पर कुछ सर्च किया. उसने सोचा कि हल्दीराम स्नैक्स कंपनी की एजेंसी लेकर काम शुरू भला कैसे किया जा सकता है और उसके बाद जो कुछ हुआ वह चौंकाने वाला है. अक्षर के मुताबिक मैंने एक वेबसाइट पर हल्दीराम फ्रेंचाइजी डिस्ट्रीब्यूटर के अप्लाय किया था वेबसाइट थी WWW. Franchiseidea.org इसके बाद  जुलाई के दूसरे पखवाड़े में  करण  नाम के आदमी ने मुझे अपने नंबर 7208612492 से कॉल किया.उसने कहा – मैं हल्दीराम कंपनी से बोल रहा हूं. मैं सेल्स मैनेजर हूं.

करण ने रजिस्ट्रेशन, प्रोसेसिंग और सिक्योरिटी मनी के तौर पर कुल 2 लाख 6 सौ रुपए मांग लिए. बातों में आकर अक्षर ने गूगल पे के जरिए रुपए करण के बताए खाते में जमा करवा दिए.

उसके बाद ठगी का खेल देखिए- Haldiram Foods International Pvt Ltd info@haldiram.online के ईमेल से कंपनी का कंन्फर्मेशन लेटर भी मिल गया. ठग ने नागपुर के भारतीय स्टेट  बैंक खाते में रुपए जमा करवाए.और  इसके बाद ठग करण से लुट चुके अक्षर का कोई संपर्क नहीं हो पाया. ठगी का शिकार हो चुके अक्षर को इंटरनेट से ही अक्षर को हल्दीराम कंपनी के कुछ और नंबर मिले. उसने आगे पूछताछ की तो  पता चला कि वहां करण वर्मा नाम का तो कोई आदमी काम ही नहीं करता.फिर टिकरा पारा थाने आकर अक्षर ने रपट दर्ज करवाई. कुल मिलाकर के दिन बीतते चले जा रहे हैं और अक्षर ठगी के बाद अपना सर पकड़े बैठा है क्योंकि उसे कोई राहत नहीं मिल पा रही इसलिए अच्छा है कि आप समझदारी से काम ले और किसी भी तरह की लेनदेन से पहले अच्छी तरीके से जानकारी एकत्र कर लें इसके पश्चात ही पैसों का निवेश करें.

किस्म किस्म के ठग

इन दिनों जहां सोशल मीडिया का प्रभाव बढ़ता चला जा रहा है. उसके साथ ही ठगी के प्रकरण भी तेजी से सामने आ रहे हैं. इसलिए इस आलेख के माध्यम से हम ऐसे तथ्य आपके समक्ष रख रहे हैं जिन्हें पढ़ समझ कर के आप ठगी से बच सकते हैं.

छत पर मोबाइल टावर लगाने का झांसा देकर ठगी के अनेक मामले लंबे समय से सामने आ रहे हैं जो अभी भी जारी है. बिहार के पटना के एक रेलकर्मी की पत्नी से मोबाइल टावर लगाने के नाम पर 5 लाख की ऑनलाइन ठग लिए गए. टीएस नारायण रेलकर्मी हैं. उनकी पत्नी के पास  जियो कंपनी के नाम से फोन कॉल आया कहा गया -आप भाग्यशाली हैं जियो ने मोबाइल टावर लगाने आपका घर चुना है. टावर लगेगा तो हर माह 40-50 हजार किराया मिलेगा. वह झांसे में आ गई और रुपए लुटा बैठी. इस तरीके के प्रकार सामने आ रहे हैं वह बताते हैं कि इतने चतुर सुजान हैं और ठगी के शिकार कितने भोले भाले. इस लेख में हम आपको ठगी से बचने के सहज रास्ते बता रहे हैं.

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दरअसल , साइबर सेल ने लोगों से अपील की है कि ऑनलाइल डेटिंग एप पर लड़के, लड़कियों से दोस्ती न करें, कोई लुभावनी स्कीम, बिजनेस प्रॉफिट वगैरह की बातों पर सरलता से  यकीन न करें, और किसी भी तरह  अपनी बैंक डिटेल किसी अनजान कॉलर को न दें. बहुत जरूरी ट्रांजेक्शन होने पर नजदीकी बैंक में जाकर खुद संपर्क करें. ऑनलाइन ठगी की घटना होने पर या फोन आने पर रायपुर साइबर सेल के नंबर पर कॉल करें. आप नजदीकी थाने पहुंचकर भी अपनी शिकायत दर्ज करवा सकते हैं.

Manohar Kahaniya:10 साल में सुलझी सुहागरात की गुत्थी- भाग 3

सौजन्य- मनोहर कहानियां

एएसआई जयवीर की टीम बारबार अलवर में कमल सिंगला और शकुंतला की तलाश करने के लिए जाती. लेकिन उन दोनों का कोई सुराग नहीं मिल रहा था.

क्राइम ब्रांच की इस टीम में एक कांस्टेबल हरेंद्र संयोग से राजस्थान का ही रहने वाला था. उस की मदद से पुलिस टीम को स्थानीय स्तर पर ऐसे लोगों की मदद मिलने लगी, जिस से कमल व शकुंतला के बारे में छनछन कर जानकारियां सामने आने लगी थीं. लेकिन इस पूरी कवायद में कई महीने गुजर गए.

इसी बीच एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट के एसीपी सुरेंद्र गुलिया ने रवि के अपहरण की जांच करने वाले इंसपेक्टर अमलेश्वर राय और एसआई करमवीर सिंह, एएसआई जयवीर सिंह, नरेश कुमार तथा कास्टेबल हरेंद्र से जांच में तेजी लाने के लिए कहा. तब तक पुलिस टीम को कमल सिंगला के मोबाइल का नंबर हासिल हो चुका था.

कमल के फोन नंबर की मौनिटरिंग शुरू हो गई और उस की काल डिटेल्स खंगालने का काम शुरू कर दिया गया. रवि के अपहरण में कमल की भूमिका होने की पुष्टि हो चुकी थी, इसलिए पुलिस ने उस के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट हासिल कर लिया.

लेकिन जब वह कहीं नहीं मिला तो उसे भगोड़ा घोषित कर के उस के ऊपर 50 हजार का ईनाम दिल्ली पुलिस ने घोषित कर दिया.

इस दौरान पुलिस ने उस के घर की कुर्की के वारंट भी जारी करवा लिए. पुलिस की एक टीम ने स्थाई रूप से अलवर में ही डेरा डाल दिया.

मोबाइल की लोकेशन और उस से बात करने वाले हर शख्स की जानकारी अलवर में बैठी पुलिस टीम को मिल रही थी. लेकिन इसे संयोग कहें या कमल की किस्मत कि पुलिस टीम के पहुंचने से पहले ही वह मौजूद जगह से निकल जाता था.

लेकिन पुलिस जब किसी को पकड़ने की ठान लेती है तो देर से ही सही, चालाक अपराधी भी पुलिस के चंगुल में फंस ही जाता है.

आखिरकार 27 सितंबर, 2019 को कमल सिंगला (27) को अलवर की शालीमार कालोनी से गिरफ्तार कर लिया गया. यहां भी उस का एक घर था, जहां छिप कर वह रह रहा था. हालांकि शकुंतला उस के साथ नहीं थी. लेकिन कमल का पकड़ा जाना भी पुलिस के लिए बड़ी उपलब्धि थी.

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दिल्ली ला कर जब पुलिस टीम ने उस से पूछताछ शुरू की तो वह हमेशा की तरह पुलिस को अपने झूठ के जाल में उलझाने की कोशिश करता रहा.

लेकिन इस बार जांच दल के पास उस के खिलाफ ब्रेनमैपिंग टेस्ट की रिपोर्ट से ले कर बबली से अदालत में शकुंतला की शादी से जुड़ा गलत शपथपत्र दिलाने जैसे कई ठोस सबूत मौजूद थे. जिन का उस के पास कोई उत्तर नहीं था.

पुलिस टीम ने थोड़ी सख्ती की तो कमल सिंगला सब कुछ तोते की तरह बताने लगा. पूछताछ में पता चला कि रवि का अपहरण कर उस की हत्या कर दी गई थी और इस काम में उस की मदद उस के ड्राइवर गणेश महतो ने की थी. गणेश को उस ने 2012 में ही नौकरी से हटा दिया था, जिस के बाद वह बिहार चला गया.

कमल यह तो नहीं बता सका कि ड्राइवर गणेश किस गांव का है और उस का फोन नंबर क्या है, लेकिन दिल्ली में रहने वाले उस के जीजा अनिल का नंबर पुलिस को कमल से मिल गया.

पुलिस टीम ने उसी दिन अनिल से संपर्क किया और गणेश महतो के बारे में जानकारी हासिल कर ली. अनिल को साथ ले कर पुलिस टीम तत्काल बिहार के समस्तीपुर में करवां थानांतर्गत चकमहेशी गांव पहुंची, जहां से गणेश महतो पुत्र सुरेश महतो (31) को गिरफ्तार कर लिया गया. उस ने शुरुआती पूछताछ में ही अपना गुनाह कुबूल कर लिया.

पुलिस टीम गणेश को ट्रांजिट रिमांड पर दिल्ली ले आई. इस के बाद कमल व गणेश से आमनेसामने बैठा कर पूछताछ की गई, फिर उन से हुई पूछताछ का मिलान किया गया.

पुलिस टीम दोनों को ले कर टपूकड़ा गई, जहां स्थानीय पुलिस की मदद से कमल के औफिस के सामने एक खाली प्लौट की जेसीबी मशीनों से खुदाई करवाई, जिसमें करीब 25 मानव अस्थियां बरामद हुईं, जिन्हें जांच के लिए फोरैंसिक लैब भेज दिया गया.

इश्क में अंधा हुआ कमल

ये अस्थियां रवि कुमार की थीं या नहीं, यह पुष्टि करने के लिए पुलिस ने 10 अक्तूबर, 2019 को दीन दयाल उपाध्याय अस्पताल में डीएनए जांच के लिए जयभगवान और उन की पत्नी के ब्लड सैंपल लिए.

रवि कुमार के अपहरण व हत्या के मामले की जांच जितनी पेचीदा थी, उस के अपहरण व हत्या की कहानी उस से कहीं ज्यादा चौंकाने वाली है. जिस से पता चलता है कि प्रेम में अंधा एक आशिक किस तरह शातिर अपराधी की तरह न सिर्फ अपने गुनाह को अंजाम देता रहा बल्कि 8 साल तक चली जांच में पुलिस की आंखों में भी धूल झोंकता रहा.

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2010 में टपूकड़ा में रहने वाली शकुंतला अचानक कमल सिंगला के संपर्क में आई थी. कमल का ट्रांसपोर्ट और बिल्डिंग मटीरियल सप्लाई का कारोबार था. उस के कुछ ट्रक, टैक्सियां और मैटाडोर भी किराए पर चलते थे. इस के अलावा कमल प्लौट ले कर उन में फ्लैट बना कर बेचने का भी काम करता रहता था.

साल 2010 में कमल ने शकुंतला के पड़ोस में एक एक खाली प्लौट ले कर उस में फ्लैट निर्माण का काम कराया तो इसी दौरान बगल के मकान में रहने वाली शकुंतला पर उस की नजर पड़ी.

कमल उन दिनों ठीक से बालिग भी नहीं हुआ था, जबकि तीखे नाकनक्श और गदराए बदन वाली शकुंतला जवानी की दहलीज पर पहले ही कदम रख चुकी थी.

यहीं पर दोनों की एकदूसरे से आंखें लड़ीं और कमल ने किसी तरह शकुंतला के घर में आनाजाना शुरू कर दिया. दोनों का इश्क परवान चढ़ने लगा और नाजायज रिश्ते बन गए. जबकि परिवार बेटी की इस करतूत से अंजान था.

इसी बीच 8 फरवरी, 2011 को परिवार ने शकुंतला की शादी समालखा के रवि से करा दी. कमल को जब  शकुंतला के रिश्ते की भनक लगी तो उस ने शकुंतला से इस का विरोध किया.

उस पर दबाव बनाया कि वह अपने परिवार वालों से इस रिश्ते के लिए मना कर दे. लेकिन लोकलाज और मातापिता के डर से शकुंतला ऐसा न कर सकी. इसी असमंजस में उस के हाथ में किसी और के नाम की मेहंदी लग गई.  लेकिन कमल सिंगला ने तय कर लिया था कि वह शकुंतला को किसी और की होने नहीं देगा. उस के मन में एक साजिश पलने लगी.

इसी साजिश के तहत रवि को देखने जाने के लिए जब शकुंतला के परिवार वाले पहली बार गए तो कमल खुद अपनी गाड़ी में परिवार के लोगों को ले कर गया था.

शकुंतला की शादी होने तक जितनी बार भी उस का परिवार के रवि के घर गया, हर बार कमल ही उन्हें अपनी गाड़ी से ले कर दिल्ली गया.

सुहागरात पर नहीं छूने दिया शरीर

जैसेतैसे शादी हो गई. लेकिन ससुराल जाने से पहले ही कमल ने शकुंतला से वादा ले लिया कि वह ससुराल जा तो रही है लेकिन वह किसी भी कीमत पर अपना तन अपने पति को न सौंपे.

शकुंतला तो खुद ये शादी मजबूरी में कर रही थी. इसलिए उस ने भी कमल से वादा कर लिया कि ऐसा ही होगा. लेकिन तुम को मुझे अपनी बनाना है तो जल्द ही कुछ करना होगा.

शादी के बाद उस ने इसी साजिश के तहत बहाने बना कर रवि को अपना शरीर छूने तक नहीं दिया.

इस दौरान कमल के दिमाग में रवि को रास्ते से हटाने की साजिश तैयार हो चुकी थी. साजिश के मुताबिक 20 मार्च, 2011 को रवि अपनी ससुराल टपूकड़ा, अलवर पहुंचा तो कमल भी दोस्त की तरह उस से मिला और दोस्त की तरह घुमायाफिराया.

अगले भाग में पढ़ें- रवि कुमार हत्याकांड का पटाक्षेप हो गया

Crime- डर्टी फिल्मों का ‘राज’: राज कुंद्रा पोनोग्राफी केस- भाग 1

20जुलाई, 2021 की सुबह का सूरज ठीक से उदय भी नहीं हुआ था, उस से पहले ही दिन फिल्म इंडस्ट्री  की पटाखा गर्ल कही जाने वाली अभिनेत्री शिल्पा शेट्टी के मुंबई में सब से पौश इलाके जुहू बीच पर बने आलीशान बंगले के बाहर मीडिया का जमावड़ा होना शुरू हो चुका था.

हर कोई बीती रात की कहानी के बारे में शिल्पा की प्रतिक्रिया लेना चाहता था. शिल्पा शेट्टी और उन के पति राज कुंद्रा अपने दोनों बच्चों बेटा विहान राज कुंद्रा और बेटी शमिषा कुंद्रा  के साथ समुद्र किनारे बने बंगले में रहते थे. समुद्र किनारे बने ‘किनारा’ नाम के इस बंगले के बाहर उस दिन मीडिया के लोगों की जो भीड़ उमड़ी थी उस ने शिल्पा शेट्टी को असहज कर दिया था. क्योंकि एक दिन पहले यानी 19 जुलाई की रात को शिल्पा के पति राज कुंद्रा को मुंबई के भायखला से क्राइम ब्रांच की टीम ने गिरफ्तार कर लिया था.

दरअसल क्राइम ब्रांच की साइबर सेल की टीम अश्लील फिल्में बनाने वाले गैंग की जांच कर रही थी. जिस की जांच करते हुए खुलासा हुआ कि इस गैंग का मास्टरमाइंड राज कुंद्रा ही था. पूरी मुंबई और बौलीवुड हस्तियों तक रात में ही राज कुंद्रा की गिरफ्तारी की खबर जंगल की आग की तरह फैलते हुए पहुंच गई. इसी का नतीजा था कि अगली सुबह शिल्पा और राज कुंद्रा के बंगले के बाहर मीडिया के लोगों की भारी भीड जमा थी.

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राज कुंद्रा को जिस मामले में गिरफ्तार किया गया था, उस में लगे आरोप इतने घिनौने और संगीन थे कि शिल्पा शेट्टी के लिए उन आरोपों से जुड़े सवालों का जवाब देना मुमकिन नहीं था. इसलिए उन्होंने मीडिया से दूरी बना ली.

दरअसल, राज कुंद्रा की गिरफ्तारी की पटकथा इसी साल फरवरी में लिखी गई थी. मुंबई क्राइम ब्रांच की प्रौपर्टी सेल को एक गुप्त सूचना मिली थी कि मलाड वेस्ट के मडगांव में एक किराए के आलीशान बंगले में अश्लील फिल्म की शूटिंग चल रही है.  इसी सूचना के आधार पर सेल के एपीआई लक्ष्मीकांत सालुंखे ने अपनी टीम के साथ उस बंगले पर छापेमारी की.

टीम ने मौके पर देखा कि एक न्यूड वीडियो की शूटिंग चल रही थी. वहां 2 लड़कियों समेत कुल 5 लोग थे, जिन्हें  हिरासत में ले लिया गया.

पूछताछ व छानबीन शुरू हुई तो पता चला कि यह शूटिंग मोबाइल एप्लिकेशन के लिए की जा रही थी, जिस पर अश्लील वीडियो अपलोड किए जाते हैं. इन वीडियोज को देखने के लिए पैसा दे कर मोबाइल एप्लिकेशन की सदस्यता लेनी पड़ती है.

जिस लड़की की अश्लील फिल्म  शूट की जा रही थी, उस के साथ पुलिस ने रौनक नाम के कास्टिंग डायरेक्टर, रोवा नाम की एक महिला वीडियोग्राफर तथा इस अश्लील फिल्म में काम कर रहे लीड एक्टर भानु और रोवा की दोस्त प्रतिभा को भी गिरफ्तार कर लिया गया.

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जांच में पता चला है ये गिरोह मोबाइल एप्लिकेशन के अलावा कुछ ओटीटी प्लेटफार्म के लिए भी ओटीटी फिल्म बनाते हैं. ऐप के बारे में पड़ताल शुरू हुई तो राज कुंद्रा का नाम भी सामने आया.

जब मुंबई क्राइम ब्रांच ने इस मामले का खुलासा किया तो सामने आया कि इस गिरोह से जुड़े आरोपी अश्लील वीडियो बना कर उन के ट्रेलर इंस्टाग्राम, ट्विटर, टेलीग्राम, वाट्सऐप और अन्य सोशल मीडिया साइटों पर भी जारी करते थे.

इस खुलासे के बाद 4 फरवरी 2021 को मुंबई के क्राइम ब्रांच ने  मालवानी थाने में राज कुंद्रा समेत गिरफ्तार आरोपियों के खिलाफ मुकदमा अपराध संख्या 103/2021 दर्ज  कराया था.

जिस में उन के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 292, 293, 420, 34 और आईटी एक्ट की धारा 67, 67ए व अन्य संबंधित धाराएं भी एफआईआर में लगाई थीं.

मुकदमा तो फरवरी में दर्ज हो गया था, लेकिन मुंबई क्राइम ब्रांच को तलाश थी एक ऐसे पुख्ता सबूत की, जो राज कुंद्रा को बेनकाब कर सके. क्योंकि उन पर अश्लील फिल्में बनवाने से ले कर कुछ ऐप्स के जरिए उन्हें प्रसारित और शेयर करने का इलजाम था.

छानबीन में मुंबई क्राइम ब्रांच को जो सबूत हाथ लगे वो राज कुंद्रा की तरफ मुख्य साजिशकर्ता होने का इशारा कर रहे थे.

अगले भाग में पढ़ें- एडवांस पेमेंट मिलने के बाद गहना और कामत अश्लील फिल्में बनाने का काम करते थे 

Satyakatha: रिश्तों का कत्ल- भाग 1

सौजन्य- सत्यकथा

एक मोटरसाइकिल पर सवार 2 युवक तेजी से सरपट दौड़ रही सफेद रंग की स्कौर्पियो कार का दूर से पीछा कर रहे थे. ओवरटेक कर के बाइक जैसे ही स्कौर्पियो के समानांतर आई, बाइक के पीछे बैठे नकाबपोश ने ड्राइवर को लक्ष्य बना कर उस के हाथ पर गोली मार दी.

गोली लगते ही स्कौर्पियो के ड्राइवर के हाथ से स्टीयरिंग छूट गया और कार लहराते हुए डिवाइडर से जा टकराई. तभी घायल ड्राइवर ने कार का दरवाजा खोला. वह कार से निकल कर भागने ही वाला था कि तभी वह बाइक सवार बदमाश उस के करीब जा पहुंचे और उस से पूछा, ‘‘कार में पीछे बैठा बैंक मैनेजर शैलेंद्र ही है न?’’

दर्द से कराह रहे ड्राइवर ने ‘हां’ में सिर हिला दिया. तभी हथियारबंद नकाबपोेश बदमाश ने कार में पिछली सीट पर बैठे बैंक मैनेजर शैलेंद्र कुमार सिन्हा के पास पहुंच कर सिर में एक और सीने में 2 गोलियां उतार दीं. इस के बाद वह हवा में असलहा लहराते हुए आराम से निकल गए.

जिस समय यह घटना घटी थी, उस समय सुबह के 8 बजे थे. राष्ट्रीय राजमार्ग होने के बावजूद सड़क पर सन्नाटा पसरा था.

सड़क पर खून से लथपथ युवक को दर्द से कराहता देख कर कुछ बाइक वाले वहां रुके तो ड्राइवर ने उन से मदद मांगी और 100 नंबर पर फोन कर के घटना की सूचना पुलिस को देने का अनुरोध किया.

ड्राइवर ने अपना नाम अनिल बताया और कहा कि बदमाशों ने कार में बैठे उस के मालिक को भी गोली मारी है.

यह घटना बिहार के नालंदा जिले की फतुहा थाना क्षेत्र के भिखुआचक राष्ट्रीय राजमार्ग पर 5 जून, 2021 को सुबह 8 बजे के करीब घटी थी.

इस के बाद भीड़ में से एक व्यक्ति ने 100 नंबर पर फोन कर घटना की सूचना पुलिस को दे दी थी. सूचना मिलते ही फतुहा थाने के थानाप्रभारी मनोज कुमार सिंह अपनी टीम के साथ मौके पर पहुंच गए.

कार चालक अनिल डिवाइडर के किनारे बैठा दर्द से कराह रहा था. उस के दाएं हाथ से खून लगातार बह रहा था. कार में पिछली सीट पर खून से लथपथ रिटायर्ड बैंक मैनेजर शैलेंद्र कुमार सिन्हा की लाश पड़ी हुई थी.

क्राइम सीन देख कर ऐसा लग रहा था कि बदमाश ने शैलेंद्र को करीब से गोली मारी थी. छानबीन में पुलिस को 7.65 एमएम का एक खोखा कार में से बरामद हुआ था.

साक्ष्य के तौर पर पुलिस ने खोखे को अपने कब्जे में ले लिया. इस बीच थानाप्रभारी मनोज कुमार ने एसपी (ग्रामीण) कांतेश कुमार मिश्र और एसएसपी उपेंद्र कुमार शर्मा को इस घटना की जानकारी दे दी थी. घटना की जानकारी मिलते ही दोनों  पुलिस अधिकारी मौके पर पहुंच गए.

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एक बात पुलिस अधिकारियों को खटक रही थी कि बदमाशों ने चालक को क्यों छोड़ दिया? उस की हत्या क्यों नहीं की? कहीं दाल में कुछ काला तो नहीं है?

गोली लगने से चालक अनिल की हालत बिगड़ती जा रही थी. इसलिए पुलिस ने उसे जल्द से जल्द जिला हौस्पिटल भेज दिया ताकि उस के जरिए बदमाशों तक आसानी से पहुंचा जा सके. शैलेंद्र कुमार की हत्या का वही एक चश्मदीद गवाह था.

बेहतर इलाज के बाद चालक अनिल के स्वास्थ्य में तेजी से सुधार हुआ तो उसी शाम 3 बजे के करीब थानाप्रभारी मनोज कुमार सिंह बयान लेने जिला अस्पताल पहुंचे, जहां वह भरती था.

‘‘कैसे हो अनिल? अब कैसा फील कर रहे हो?’’ थानाप्रभारी मनोज कुमार ने मुसकराते हुए पूछा.

‘‘सर, पहले से बेहतर हूं और अच्छा महसूस कर रहा हूं.’’ अनिल ने बताया.

‘‘अच्छा बताओ कि यह कैसे और क्या हुआ था?’’

‘‘साहब, मैं कार चला रहा था कि तभी साइड से आए एक बाइक वाले ने मुझे गोली मारी जो हाथ में लगी. गोली लगते ही कार की स्टीयरिंग मेरे हाथ से छूट गई और कार डिवाइडर से जा टकराई. फिर बाइक पर पीछे बैठे नकाबपोश बदमाश ने मुझ से पूछा कि कार में बैठा क्या शैलेंद्र यही है. मैं ने हां कह दिया. मेरे हां कहते ही उस बदमाश ने साहब को गोलियों से भून डाला और फरार हो गए.’’ अनिल बोला.

‘‘ओह! बाइक पर कितने बदमाश थे.’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘साहब, 2.’’ उस ने बताया.

‘‘दोनों बदमाशों में से किसी का चेहरा याद है तुम्हें?’’ उन्होंने अगला सवाल किया.

‘‘नहीं, साहब. कैसे चेहरा देखता, जब दोनों के चेहरे नकाब से ढके थे.’’ अनिल बोला.

‘‘ओह!’’ थानेदार मनोज कुमार ने एक लंबी सांस छोड़ी, ‘‘अच्छा, यह बताओ तुम आ कहां से रहे थे?’’

‘‘नालंदा के गड़पर स्थित प्रोफेसर कालोनी से आ रहे थे. साहब के छोटे बेटे मनीष गुवाहाटी से पटना आ रहे थे. उन्हें ही रिसीव करने साहब को ले कर पटना जा रहा था कि…’’ कह कर अनिल रोने लगा.

‘‘तुम्हारे साहब के घर में कौनकौन रहता है और तुम्हारे यहां आने की जानकारी किस किस को थी?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘साहब के साथ मेमसाहब और उन का बड़ा बेटा पीयूष रहते हैं. पीयूष दिव्यांग हैं. मेम साहब और पीयूष बाबा के अलावा किसी को भी इस की जानकारी नहीं थी.’’ उस ने बताया.

‘‘ठीक है. अभी तो मैं चलता हूं बाद में आ कर फिर तुम से मिलूंगा.’’

थानेदार मनोज कुमार सिंह ड्राइवर अनिल उर्फ धर्मेंद्र से पूछताछ कर वहां से थाने लौट आए थे. इधर शैलेंद्र कुमार की हत्या की जानकारी मिलते ही उन के घर में कोहराम छा गया था. मृतक शैलेंद्र कुमार की पत्नी सरिता देवी का रोरो कर बुरा हाल था.

ससुर की हत्या की जानकारी जैसे ही दामाद पवन कुमार को हुई, वह भागाभागा मोर्चरी पहुंचा, जहां पोस्टमार्टम के बाद लाश मोर्चरी में रखी हुई थी. गुवाहाटी से पटना आ रहे बेटे मनीष को रास्ते में ही फोन से पिता की हत्या की जानकारी दे दी गई थी, इसलिए वह भी सीधा मोर्चरी पहुंच गया था.

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इस बीच में पुलिस ने मनीष की तरफ से 2 अज्ञात बदमाशों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया. बेटा, दामाद और रिश्तेदारों ने मिल कर शैलेंद्र कुमार का गंगा के किनारे श्मशान घाट पर अंतिम संस्कार किया और अपनेअपने घरों को लौट आए. फिर मनीष जीजा पवन के साथ घर देर रात पहुंचा.

बेटे को देख कर मां की आंखें फफक पड़ीं तो मनीष भी खुद को रोक नहीं पाया. मां को रोता देख उस की आंखें बरस पड़ीं. रोतेरोते दोनों एकदूसरे को हिम्मत दे रहे थे.

पलभर के लिए वहां का माहौल एकदम से फिर गमगीन हो गया था. दामाद पवन कुमार कुछ देर वहां रुका. उस ने सास और साले को समझाया और फिर रामकृष्णनगर, पटना अपने किराए के कमरे पर वापस लौट गया.

अगले दिन थानाप्रभारी मनोज कुमार सिंह हत्या की गुत्थी सुलझाने और जानकारी लेने के लिए गड़पर प्रोफेसर कालोनी में स्थित मृतक शैलेंद्र कुमार के आवास पहुंचे. घर में वैसे ही मातम छाया हुआ था.

घर का गमगीन माहौल देख कर थानाप्रभारी का मन द्रवित हो गया. वह यह नहीं समझ पा रहे थे कि बैंक मैनेजर की पत्नी से कैसे पूछताछ करें, लेकिन ड्यूटी तो ड्यूटी होती है. उसे पूरा तो करना ही था.

उन्होंने मृतक की पत्नी सरिता देवी से हत्या के संबंध में कुछ जरूरी सवाल पूछे. सरिता देवी के जवाब से इंसपेक्टर मनोज कुमार सिंह को ऐसा कहीं नहीं लगा कि उन की किसी से कोई दुश्मनी हो. उन के जवाब से एक बात साफ हो गई थी कि पूर्व बैंक मैनेजर शैलेंद्र कुमार की हत्या सुनियोजित तरीके से की गई थी.

निश्चित ही उन का कोई ऐसा अपना था, जिसे उन की गतिविधियों के बारे में पलपल की जानकारी थी. उसी अपने ने बदमाशों के साथ मुखबिरी का खेल खेला और उन की जान ले ली.

सरिता देवी से पूछताछ करने के बाद विवेचनाधिकारी मनोज सिंह थाने वापस लौट आए थे.

रास्ते भर में वे यही सोच रहे थे कि आखिर वह कौन हो सकता है, जिस ने मुखबिर की भूमिका निभाई होगी और उन की हत्या से किस का क्या लाभ हुआ होगा?

हत्या की गुत्थी एकदम से उलझती चली जा रही थी. इस के सुलझाने का एक आखिरी रास्ता काल डिटेल्स ही बचा था.

अगले भाग में पढ़ें- तीनों आरोपियों ने भी अपने जुर्म कुबूल कर लिए

Manohar Kahaniya: किसी को न मिले ऐसी मां- भाग 3

सौजन्य- मनोहर कहानियां

एसआईटी ने अपना काम शुरू कर दिया. इस बार जब दोबारा जांच शुरू हुई तो एसआईटी को हरन व जश्न के अपहरण व हत्याकांड की जांच में एक के बाद एक कई ऐसे क्लू मिलने शुरू हो गए, जिस से इस बहुचर्चित केस की कडि़यां एक साथ जुड़ती चली गईं. आखिर 4 मार्च, 2021 को पुलिस ने जांच का पटाक्षेप करते हुए दीदार सिंह की पत्नी व हरन व जश्न की मां मंजीत कौर तथा दीदार सिंह के मौसेरे भाई बलजीत सिंह को गिरफ्तार कर लिया.

दोनों से पूछताछ के बाद 2 मासूम बच्चों के बहुचर्चित व सनसनीखेज हत्याकांड की ऐसी हैरतअंगेज कहानी सामने आई, जिसे सुन कर हर किसी ने दांतों तले अंगुली दबा ली और लोग कहने को मजबूर हो गए कि ऐसी मां किसी को न दे.

घटनास्थल से पलटी हत्याकांड की थ्यौरी

दरअसल, कोरोना महामारी के दौरान लौकडाउन लगने के बाद जब पुलिस की जांचपड़ताल और गतिविधियां धीमी पड़ गईं तो दीदार सिंह की पत्नी मंजीत कौर अचानक अपने पति का घर छोड़ कर शहर में अपनी बहन के पास रहने के लिए पटियाला चली गई थी. इस के बाद एक के बाद एक ऐसे घटनाक्रम हुए, जिस ने दोनों बच्चों के अपहरण व हत्याकांड की थ्यौरी ही पलट दी.

हुआ यूं कि कई महीने गुजर जाने के बाद भी जब पुलिस और परिवार वालों को दोनों बच्चों के कातिल का कोई सुराग नहीं मिला तो दीदार सिंह ने गंभीरता से सोचना शुरू किया कि ऐसा कौन शख्स हो सकता है जो बिना किसी लाभ के दोनों बच्चों को अगवा कर के उन की हत्या कर सकता है.

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इन्हीं सब बातों को सोचतेसोचते अचानक दीदार सिंह को अपने मौसेरे भाई बलजीत का खयाल आया. क्योंकि जब से उस के दोनों बेटे लापता हुए और बाद में उन की लाशें मिली थीं, तब से दोस्तों और रिश्तेदारों में एक ही इंसान था, जो न तो उस के पास हमदर्दी के दो बोल बोलने के लिए आया और न ही उस ने फोन कर के इस दुख में अपना शोक व्यक्त किया था.

इस के बाद नंवबर 2020 में वह हरन व जश्न की हत्या का राज खोलने के लिए बनी एसआईटी के हैड डीएसपी जसविंदर सिंह टिवाणा के पास पहुंचा और बोला, ‘‘सर अभी तक मुझे किसी पर शक नहीं था, लेकिन अब मैं दावा करता हूं कि अगर आप बलजीत को बुला कर सख्ती से पूछताछ करेंगे तो मेरे बच्चों की मौत का राज पता चल जाएगा.’’

‘‘इस की कोई खास वजह?’’ डीएसपी जसविंदर सिंह ने दीदार सिंह को हैरतभरी नजरों से देखते हुए पूछा.

मौसेरा भाई बलजीत आया शक के दायरे में

इस के बाद दीदार ने एक के बाद एक वह सारा घटनाक्रम बयान कर दिया, जिस के चलते उसे बलजीत सिंह पर शक हुआ था. सारी बात सुनने के बाद डीएसपी टिवाणा ने कहा, ‘‘दीदार सिंह, तुम ने देर से ही सही मगर बड़े काम की जानकारी हमें दी है. अगर पहले ये सब बातें बताई होतीं तो शायद अब तक हम तुम्हारे बच्चों  के कातिल तक पहुंच चुके होते.’’

उन्होंने आगे कहा, ‘‘लेकिन तुम्हारी बात सुन कर मुझे लगता है कि हो न हो अगर बलजीत का इस मामले में हाथ है तो तुम्हारी बीवी मंजीत कौर का भी इस में जरूर हाथ रहा होगा.’’

‘‘नहीं साहब नहीं.. रब न करे आप की बात में सच्चाई हो… क्योंकि कोई मां अपने बच्चों का कत्ल करा सकती है, ये बात मेरे गले से नहीं उतर रही.’’ दीदार सिंह ने हैरत से खुले अपने मुंह पर हाथ रखते हुए कहा.

‘‘रब न करे ऐसा हो, लेकिन दीदार तुम ने जो हालात बयान किए हैं, उस में ऐसा संभव हो सकता है.’’ डीएसपी बोले.

इस के बाद डीएसपी टिवाणा ने एसएसपी विक्रमजीत दुग्गल को दीदार सिंह के बच्चों के केस में आए इस नए इस खुलासे से अवगत कराया तो उन्होंने कहा कि जो भी संदिग्ध लगे, उस से पूछताछ करो. लेकिन अब मुझे इस केस का जल्द से जल्द खुलासा चाहिए.

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इस के बाद डीएसपी टिवाणा ने एसआईटी की मीटिंग बुलाई और बलजीत को बुला कर पूछताछ करने की रणनीति तय की. बलजीत को बुलाया गया. सवालों की एक लंबी फेहरिस्त पुलिस के पास थी, जिन का बलजीत ने बेखौफ हो कर जवाब दिया.

चूंकि पुलिस के पास न तो बलजीत के खिलाफ ठोस सबूत था और न ही कोई गवाह, लिहाजा जब उसे छुड़ाने के लिए कुछ लोगों ने पुलिस पर दबाव बनाना शुरू किया तो बलजीत को मजबूरन छोड़ना पड़ा.

बलजीत के बाद पुलिस ने दीदार सिंह की पत्नी मंजीत कौर को भी पूछताछ के लिए बुलाया. मंजीत कौर ने शक जताया कि उस के पति का घर से बाहर किसी औरत से संबध है, वह चाहता है कि बच्चों को खत्म करने के बाद मुझ से छुटकारा मिल जाए और वह दूसरी शादी कर ले.

मंजीत कौर से पूछताछ के बाद तो थ्यौरी ही बदल गई

पुलिस ने अगले एक महीने में 2-3 बार बलजीत और मंजीत कौर को पूछताछ के लिए बुलाया. पूछताछ में पुलिस को हत्यारों का सुराग तो नहीं मिला, लेकिन उन्होंने हर बार दीदार सिंह पर उलटे ऐसेऐसे इलजाम लगाए कि इस से दोनों बच्चोें की हत्या की गुत्थी और ज्यादा उलझ गई.

एसएसपी के निर्देश पर डीएसपी टिवाणा ने दिसंबर 2020 में पटियाला की जिला अदालत में दीदार सिंह, मंजीत कौर तथा बलजीत कौर के लाई डिटेक्टर टेस्ट के लिए अरजी लगा दी.

मार्च के पहले हफ्ते में सब से पहले पुलिस ने दीदार सिंह का लाई डिटेक्टर टेस्ट कराया, उस के बाद एकएक कर के बलजीत सिंह और मंजीत कौर के लाई डिटेक्टर टेस्ट कराए गए.

पुलिस के पास इन से पूछने के लिए सवालों की एक लंबी फेहरिस्त पहले से तैयार थी. इस टेस्ट का परिणाम सामने आया तो पता चला कि दीदार सिंह ने सभी सवालों के जवाब एकदम सही दिए थे. जबकि मंजीत कौर तथा बलजीत ने ज्यादातर सवालों के जवाब में झूठ बोला था.

टेस्ट के बाद यह साफ हो गया कि हरनजीत सिंह व जश्नजीत सिंह के अपहरण व हत्याकांड को उन दोनों ने ही अंजाम दिया था.

लेकिन इस वारदात को क्यों और कैसे अंजाम दिया गया, इस का खुलासा होना बाकी था. लाई डिटेक्टर का परिणाम आने के बाद डीएसपी टिवाणा ने एसएसपी दुग्गल व एसआईटी के सभी अधिकारियों के समक्ष जब मंजीत कौर व बलजीत सिंह से पूछताछ की तो उन के पास छिपाने के लिए कुछ भी नहीं था. दोनों ने अपनेअपने गुनाह की कहानी कबूल कर ली.

दीदार सिंह पटियाला में जिस ट्रांसपोर्ट कंपनी में काम करता था, वह ज्यादातर वहीं रहता था. महीने में 3-4 बार ही वह परिवार से मिलने आता था.

पति से रहने वाली यही दूरी मंजीत के लिए गैरमर्द के करीब जाने का सबब बन गई. दीदार सिंह की मौसी का लड़का बलजीत अकसर ही दीदार सिंह के घर आताजाता था.

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लेकिन करीब 3 साल पहले जब बलजीत दीदार की पत्नी मंजीत कौर की तरफ आकर्षित हुआ तो उस का घर में आनाजाना कुछ ज्यादा ही बढ़ गया. दोनों के बीच पैदा हुआ आकर्षण जल्द ही नाजायज रिश्तों में बदल गया.

दीदार सिंह ने अपनी पत्नी मंजीत कौर को गांव में ही मनियारी की दुकान (सौंदर्य प्रसाधनों और कौस्मेटिक के सामान) खुलवा रखी थी. मंजीत पढ़ीलिखी और तेजतर्रार महिला थी. मनियारी की दुकान के कारण उस का समय भी व्यतीत हो जाता था और इस से होने वाली आमदनी में दीदार सिंह का हाथ भी बंटा देती थी.

बलजीत खेड़ी गंडियां से करीब 5 किलोमीटर दूर स्थित गांव महमा का रहने वाला था. अपने गांव के बाहर ही राजपुरा रोड पर उस ने गाडि़यों की डेंटिंगपेंटिग की वर्कशौप खोल रखी थी.

जब तक बलजीत के मंजीत कौर से नाजायज संबध नहीं बने थे, तब तक वह अकसर दीदार सिंह जब भी गांव आता तो उस के साथ शराब पीने की बैठकबाजी होती रहती थी. लेकिन अचानक बलजीत ने दीदार के साथ ऐसी शराब की बैठक करना बंद कर दी.

इधर, अब बलजीत अपनी वर्कशौप छोड़ कर रोजाना ही मंजीत की दुकान पर आने लगा और दिन भर वहीं पर पड़ा रहता था. कुछ दिन तो लोगों ने इसे नजरअंदाज किया लेकिन जल्द ही दोनों के संबधों को ले कर गांव में चर्चा फैलने लगी.

अगले भाग में पढ़ें- मंजीत ने रची थी साजिश

Crime Story- गुड़िया रेप-मर्डर केस: भाग 4

उधर सीबीआई अपने कानों में तेल डाल कर अपनी जांच प्रक्रिया में जुटी रही. सीबीआई के 9 महीने के अथक प्रयास के बाद हलाइला जंगल से एक लकड़ी काटने वाले राजू नाम के संदिग्ध को पकड़ा और उस से कड़ाई से पूछताछ की.

खुद को निर्दोष बताते हुए राजू ने सीबीआई अधिकारी गुरम को बताया कि 5 जुलाई के दिन जंगल में अनिल उर्फ नीलू परेशान हाल में देखा गया था. उस के बाद से वह कहीं नहीं दिखाई दिया. वह मंडी जिला के बटोर का रहने वाला है और यहां पर एक ठेकेदार के पास लकड़ी चिरान का काम करता था.

राजू के बयान के बाद एसपी गुरम ने उसे छोड़ दिया और मुखबिर के जरिए नीलू का पकड़ने के लिए जाल फैला दिया. 13 अप्रैल, 2018 को सीबीआई ने आखिरकार शिमला के हाटकोटी इलाके से अनिल उर्फ नीलू समय गिरफ्तार कर लिया जब वह शिमला छोड़ कर कहीं भागने की फिराक में जुटा था.

एसपी एस.एस. गुरम गिरफ्तार नीलू को सीधे सीबीआई मुख्यालय दिल्ली ले आए और यहां उस से कड़ाई से पूछताछ की.

आखिरकार सीबीआई के सवालों की बौछार के आगे नीलू टूट ही गया और अपना जुर्म कुबूलते हुए गुडि़या रेपमर्डर केस को खुद अंजाम देने की बात कुबूल ली. फिर उस ने आगे की पूरी कहानी रट्टू रोते की तरह उगल दी, जो कुछ ऐसे सामने आई—

28 वर्षीय अनिल उर्फ नीलू उर्फ कमलेश उर्फ चरानी मूलरूप से मंडी जिले के बटोर का रहने वाला था. शिमला के कोटखाई थाने के महासू में किराए का कमरा लेकर अकेला रहता था. हलाइला गांव के पास तांदी के जंगल में एक ठेकेदार के यहां वह लकड़ी चीरने का काम करता था.

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अनिल उर्फ नीलू अविवाहित था. इकहरे बदन का दुबलापतला नीलू देखने में तो एकदम मरियल सा था, लेकिन था अव्वल दरजे का इश्कबाज रोमियो. राह गुजरती किसी महिला को देखता तो उस के मुंह से वासना की लार टपकने लगती थी. यहीं नहीं उसे खा जाने वाली नजरों से तब तक घूरता था, जब तक वह उस की नजरों से ओझल नहीं हो जाती थी.

अनिल उर्फ नीलू की हो गई नीयत खराब

गुडि़या तांदी के जंगल के रास्ते हो कर रोजाना घर से स्कूल और स्कूल से घर जाया करती थी. नीलू की गुडि़या पर कई दिनों से नजर गड़ी हुई थी. गुडि़या थी तो नाबालिग, लेकिन स्वस्थ देह में उस का अंगअंग विकसित हो चुका था. उस के बदन पर जब भी नीलू की नजरें पड़ती थीं, उस की रगों में वासना के गंदे कीड़े कुलबुलाने लगते थे. लेकिन मन मसोस कर रह जाता था.

गुडि़या नीलू की आंखों के रास्ते उस के दिल में उतर चुकी थी. उस ने सोच लिया था कि गुडि़या के जिस्म को जब तक वह मन के मुताबिक नहीं भोग लेगा, तब तक उसे संतुष्टि नहीं होगी.

बात जुलाई, 2017 की है. उन दिनों बारिश की वजह से जंगल में चिरान का काम बंद चल रहा था लेकिन नीलू ठेके पर रोजाना पहुंचता था. उधर गुडि़या का स्कूल खुल चुका था. वह 10वीं कक्षा में पढ़ती थी. वह रोज समय से स्कूल जाया करती थी. उसे तांदी के जंगल के रास्ते से हो कर ही जाना पड़ता था.

4 जुलाई, 2017 को शाम साढ़े 4 बजे स्कूल से छुट्टी हुई तो वह जंगल के रास्ते घर निकल पड़ी. इधर नीलू जंगल में घात लगा कर उस के आने का इंतजार करने लगा कि आज वह अपनी हसरतें पूरी कर के ही रहेगा.

नीलू ने गुडि़या को जंगल की ओर जैसे ही आते देखा, वह सतर्क हो गया और उस ने शिकारी भेडि़ए की तरह पीछे से मुंह पर हाथ रख उसे दबोच लिया. अचानक हुए हमले से गुडि़या डर गई. और नीलू के मजबूत हाथों से छूटने की कोशिश करने लगी, लेकिन उस के चंगुल से निकल नहीं पाई.

वहशी दरिंदा नीलू घसीटता हुआ उसे जंगल के बीच ले गया और उस के साथ जबरदस्ती कर डाली. जब वासना की आग ठंडी हुई तो उस के सामने जेल की सलाखें नजर आने लगीं कि अगर इसे जिंदा छोड़ दिया तो यह अपने घर वालों को जा कर बता देगी.

फिर क्या था? ये सवाल दिमाग में आते ही नीलू गुडि़या पर फिर से टूट पड़ा और फिर एक बार और उस के साथ अपना मुंह काला किया और गला घोंट कर मौत के हवाले झोंक दिया.

उस की पहचान मिटाने के लिए उस के स्कूल के कपड़े, जूतेमोजे, स्कूल बैग सब जला दिए और फरार हो गया. जहां 2 दिनों बाद उस की नग्नावस्था में लाश बरामद हुई.

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सीबीआई पर भी अंगुली उठा रहे हैं लोग

बहरहाल, फिर शुरू हुआ एसआईटी और सीबीआई का खेल. एसआईटी ने जिन 5 आरोपियों को गिरफ्तार किया था, जिन में एक आरोपी सूरज सिंह की हिरासत में मौत हो चुकी थी, उन आरोपियों को सीबीआई ने दोषी नहीं माना और उन्हें जमानत पर छोड़ दिया.

सीबीआई ने गुडि़या रेप मर्डर केस में जिस एक आरोपी कमलेश उर्फ अनिल उर्फ नीलू उर्फ चरानी को आरोपी बनाया है, उस की जांच से न तो गुडि़या के घरवाले खुश हैं और न ही मदद सेवा ट्रस्ट के चेयरमैन विकास थाप्टा.

सामाजिक संस्था के चेयरमैन विकास थाप्टा का कहना है, ‘‘मैं इस बात से कतई इंकार नहीं करता कि नीलू दोषी नहीं है, लेकिन मैं इस बात को भी नहीं स्वीकार करता कि एक अकेला नीलू ही इस घटना को अंजाम दे सकता है. नीलू के अलावा भी इस केस में और भी दोषी हैं, जिन्हें बचाया गया है. उन दोषियों को सजा दिलाने तक संस्था चुप नहीं बैठेगी, संघर्ष करती रहेगी.’’

इस के बाद इसी संस्था की ओर से हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट में गुडि़या दुष्कर्म मामले की जांच दोबारा करवाए जाने की मांग को ले कर न्यायाधीश त्रिलोक सिंह चौहान और न्यायाधीश सी.बी. बारोवलिया के समक्ष एक याचिका दायर की. याचिका पर सुनवाई करने वाले न्यायाधीश त्रिलोक सिंह चौहान ने सुनवाई करने वाली बेंच से खुद को अलग कर लिया.

Manohar Kahaniya: जिद की भेंट चढ़ी डॉक्टर मंजू वर्मा

खैर, गुडि़या को न्याय दिलाने के लिए मदद सेवा ट्रस्ट के चेयरमैन विकास थाप्टा, उन की सहयोगी तनुजा थाप्टा और ट्रस्ट के वकील भूपेंद्र चौहान ने एड़ीचोटी एक कर दी थी. आखिरकार उन की मेहनत रंग ले आई और गुडि़या का कातिल नीलू अपने कुकर्मों की सजा मृत्यु होने तक जेल में काटता रहेगा.

सीबीआई ने आईजी और एसपी सहित जिन 9 पुलिसकर्मियों को गिरफ्तार किया था, कथा लिखने तक उन में से आईजी जहूर हैदर जैदी और एसपी डी.डब्ल्यू. नेगी जमानत पर जेल से बाहर आ चुके हैं.

इन के केस में कोर्ट से अभी फैसला नहीं हुआ है. अब देखना यह है कि रस्सी को सांप बनाने में माहिर इन पुलिसकर्मियों के खिलाफ अदालत क्या सजा सुनाती है.

(कथा में मृतका का नाम और स्थान परिवर्तित है. कथा दस्तावेजों और पुलिस सूत्रों पर आधारित)

Crime Story- रिश्तों की हद की पार: ससुर और बहू दोनों जिम्मेदार

एक मोटरसाइकिल पर सवार 2 युवक तेजी से सरपट दौड़ रही सफेद रंग की स्कौर्पियो कार का दूर से पीछा कर रहे थे. ओवरटेक कर के बाइक जैसे ही स्कौर्पियो के समानांतर आई, बाइक के पीछे बैठे नकाबपोश ने ड्राइवर को लक्ष्य बना कर उस के हाथ पर गोली मार दी.

गोली लगते ही स्कौर्पियो के ड्राइवर के हाथ से स्टीयरिंग छूट गया और कार लहराते हुए डिवाइडर से जा टकराई. तभी घायल ड्राइवर ने कार का दरवाजा खोला. वह कार से निकल कर भागने ही वाला था कि तभी वह बाइक सवार बदमाश उस के करीब जा पहुंचे और उस से पूछा, ‘‘कार में पीछे बैठा बैंक मैनेजर शैलेंद्र ही है न?’’

दर्द से कराह रहे ड्राइवर ने ‘हां’ में सिर हिला दिया. तभी हथियारबंद नकाबपोेश बदमाश ने कार में पिछली सीट पर बैठे बैंक मैनेजर शैलेंद्र कुमार सिन्हा के पास पहुंच कर सिर में एक और सीने में 2 गोलियां उतार दीं. इस के बाद वह हवा में असलहा लहराते हुए आराम से निकल गए.

जिस समय यह घटना घटी थी, उस समय सुबह के 8 बजे थे. राष्ट्रीय राजमार्ग होने के बावजूद सड़क पर सन्नाटा पसरा था.

सड़क पर खून से लथपथ युवक को दर्द से कराहता देख कर कुछ बाइक वाले वहां रुके तो ड्राइवर ने उन से मदद मांगी और 100 नंबर पर फोन कर के घटना की सूचना पुलिस को देने का अनुरोध किया.

ड्राइवर ने अपना नाम अनिल बताया और कहा कि बदमाशों ने कार में बैठे उस के मालिक को भी गोली मारी है.

यह घटना बिहार के नालंदा जिले की फतुहा थाना क्षेत्र के भिखुआचक राष्ट्रीय राजमार्ग पर 5 जून, 2021 को सुबह 8 बजे के करीब घटी थी.

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इस के बाद भीड़ में से एक व्यक्ति ने 100 नंबर पर फोन कर घटना की सूचना पुलिस को दे दी थी. सूचना मिलते ही फतुहा थाने के थानाप्रभारी मनोज कुमार सिंह अपनी टीम के साथ मौके पर पहुंच गए.

कार चालक अनिल डिवाइडर के किनारे बैठा दर्द से कराह रहा था. उस के दाएं हाथ से खून लगातार बह रहा था. कार में पिछली सीट पर खून से लथपथ रिटायर्ड बैंक मैनेजर शैलेंद्र कुमार सिन्हा की लाश पड़ी हुई थी.

क्राइम सीन देख कर ऐसा लग रहा था कि बदमाश ने शैलेंद्र को करीब से गोली मारी थी. छानबीन में पुलिस को 7.65 एमएम का एक खोखा कार में से बरामद हुआ था.

साक्ष्य के तौर पर पुलिस ने खोखे को अपने कब्जे में ले लिया. इस बीच थानाप्रभारी मनोज कुमार ने एसपी (ग्रामीण) कांतेश कुमार मिश्र और एसएसपी उपेंद्र कुमार शर्मा को इस घटना की जानकारी दे दी थी. घटना की जानकारी मिलते ही दोनों  पुलिस अधिकारी मौके पर पहुंच गए.

एक बात पुलिस अधिकारियों को खटक रही थी कि बदमाशों ने चालक को क्यों छोड़ दिया? उस की हत्या क्यों नहीं की? कहीं दाल में कुछ काला तो नहीं है?

गोली लगने से चालक अनिल की हालत बिगड़ती जा रही थी. इसलिए पुलिस ने उसे जल्द से जल्द जिला हौस्पिटल भेज दिया ताकि उस के जरिए बदमाशों तक आसानी से पहुंचा जा सके. शैलेंद्र कुमार की हत्या का वही एक चश्मदीद गवाह था.

बेहतर इलाज के बाद चालक अनिल के स्वास्थ्य में तेजी से सुधार हुआ तो उसी शाम 3 बजे के करीब थानाप्रभारी मनोज कुमार सिंह बयान लेने जिला अस्पताल पहुंचे, जहां वह भरती था.

‘‘कैसे हो अनिल? अब कैसा फील कर रहे हो?’’ थानाप्रभारी मनोज कुमार ने मुसकराते हुए पूछा.

‘‘सर, पहले से बेहतर हूं और अच्छा महसूस कर रहा हूं.’’ अनिल ने बताया.

‘‘अच्छा बताओ कि यह कैसे और क्या हुआ था?’’

‘‘साहब, मैं कार चला रहा था कि तभी साइड से आए एक बाइक वाले ने मुझे गोली मारी जो हाथ में लगी. गोली लगते ही कार की स्टीयरिंग मेरे हाथ से छूट गई और कार डिवाइडर से जा टकराई. फिर बाइक पर पीछे बैठे नकाबपोश बदमाश ने मुझ से पूछा कि कार में बैठा क्या शैलेंद्र यही है. मैं ने हां कह दिया. मेरे हां कहते ही उस बदमाश ने साहब को गोलियों से भून डाला और फरार हो गए.’’ अनिल बोला.

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‘‘ओह! बाइक पर कितने बदमाश थे.’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘साहब, 2.’’ उस ने बताया.

‘‘दोनों बदमाशों में से किसी का चेहरा याद है तुम्हें?’’ उन्होंने अगला सवाल किया.

‘‘नहीं, साहब. कैसे चेहरा देखता, जब दोनों के चेहरे नकाब से ढके थे.’’ अनिल बोला.

‘‘ओह!’’ थानेदार मनोज कुमार ने एक लंबी सांस छोड़ी, ‘‘अच्छा, यह बताओ तुम आ कहां से रहे थे?’’

‘‘नालंदा के गड़पर स्थित प्रोफेसर कालोनी से आ रहे थे. साहब के छोटे बेटे मनीष गुवाहाटी से पटना आ रहे थे. उन्हें ही रिसीव करने साहब को ले कर पटना जा रहा था कि…’’ कह कर अनिल रोने लगा.

‘‘तुम्हारे साहब के घर में कौनकौन रहता है और तुम्हारे यहां आने की जानकारी किस किस को थी?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘साहब के साथ मेमसाहब और उन का बड़ा बेटा पीयूष रहते हैं. पीयूष दिव्यांग हैं. मेम साहब और पीयूष बाबा के अलावा किसी को भी इस की जानकारी नहीं थी.’’ उस ने बताया.

‘‘ठीक है. अभी तो मैं चलता हूं बाद में आ कर फिर तुम से मिलूंगा.’’

थानेदार मनोज कुमार सिंह ड्राइवर अनिल उर्फ धर्मेंद्र से पूछताछ कर वहां से थाने लौट आए थे. इधर शैलेंद्र कुमार की हत्या की जानकारी मिलते ही उन के घर में कोहराम छा गया था. मृतक शैलेंद्र कुमार की पत्नी सरिता देवी का रोरो कर बुरा हाल था.

ससुर की हत्या की जानकारी जैसे ही दामाद पवन कुमार को हुई, वह भागाभागा मोर्चरी पहुंचा, जहां पोस्टमार्टम के बाद लाश मोर्चरी में रखी हुई थी. गुवाहाटी से पटना आ रहे बेटे मनीष को रास्ते में ही फोन से पिता की हत्या की जानकारी दे दी गई थी, इसलिए वह भी सीधा मोर्चरी पहुंच गया था.

इस बीच में पुलिस ने मनीष की तरफ से 2 अज्ञात बदमाशों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया.

बेटा, दामाद और रिश्तेदारों ने मिल कर शैलेंद्र कुमार का गंगा के किनारे श्मशान घाट पर अंतिम संस्कार किया और अपनेअपने घरों को लौट आए. फिर मनीष जीजा पवन के साथ घर देर रात पहुंचा.

बेटे को देख कर मां की आंखें फफक पड़ीं तो मनीष भी खुद को रोक नहीं पाया. मां को रोता देख उस की आंखें बरस पड़ीं. रोतेरोते दोनों एकदूसरे को हिम्मत दे रहे थे.

पलभर के लिए वहां का माहौल एकदम से फिर गमगीन हो गया था. दामाद पवन कुमार कुछ देर वहां रुका. उस ने सास और साले को समझाया और फिर रामकृष्णनगर, पटना अपने किराए के कमरे पर वापस लौट गया.

अगले दिन थानाप्रभारी मनोज कुमार सिंह हत्या की गुत्थी सुलझाने और जानकारी लेने के लिए गड़पर प्रोफेसर कालोनी में स्थित मृतक शैलेंद्र कुमार के आवास पहुंचे. घर में वैसे ही मातम छाया हुआ था.

घर का गमगीन माहौल देख कर थानाप्रभारी का मन द्रवित हो गया. वह यह नहीं समझ पा रहे थे कि बैंक मैनेजर की पत्नी से कैसे पूछताछ करें, लेकिन ड्यूटी तो ड्यूटी होती है. उसे पूरा तो करना ही था.

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उन्होंने मृतक की पत्नी सरिता देवी से हत्या के संबंध में कुछ जरूरी सवाल पूछे. सरिता देवी के जवाब से इंसपेक्टर मनोज कुमार सिंह को ऐसा कहीं नहीं लगा कि उन की किसी से कोई दुश्मनी हो. उन के जवाब से एक बात साफ

हो गई थी कि पूर्व बैंक मैनेजर शैलेंद्र कुमार की हत्या सुनियोजित तरीके से की गई थी.

निश्चित ही उन का कोई ऐसा अपना था, जिसे उन की गतिविधियों के बारे में पलपल की जानकारी थी. उसी अपने ने बदमाशों के साथ मुखबिरी का खेल खेला और उन की जान ले ली.

सरिता देवी से पूछताछ करने के बाद विवेचनाधिकारी मनोज सिंह थाने वापस लौट आए थे.

रास्ते भर में वे यही सोच रहे थे कि आखिर वह कौन हो सकता है, जिस ने मुखबिर की भूमिका निभाई होगी और उन की हत्या से किस का क्या लाभ हुआ होगा?

हत्या की गुत्थी एकदम से उलझती चली जा रही थी. इस के सुलझाने का एक आखिरी रास्ता काल डिटेल्स ही बचा था.

7 जून को पुलिस को मृतक शैलेंद्र की काल डिटेल्स मिल गई थी. विवेचनाधिकारी सिंह ने काल डिटेल्स का अध्ययन किया तो उस में एक नंबर ऐसा भी मिला, जिस से काफी बातचीत हुई थी. पुलिस ने मृतक की पत्नी से उस नंबर के बारे में जानकारी मांगी तो वह नंबर मृतक के दामाद पवन कुमार का निकला.

विवेचनाधिकारी सिंह की नजरों में पता नहीं क्यों पवन संदिग्ध रूप में चढ़ गया था. फिर उन्होंने पवन के बारे में सरिता देवी से जानकारी ली. सास सरिता देवी ने उन्हें दामाद पवन के बारे में जो जानकारी दी, सुन कर वह चौंक गए थे.

पता चला कि पवन ने अपनी पत्नी सृष्टि के होते हुए अपने बड़े साले पीयूष की पत्नी निभा से प्रेम विवाह कर लिया था. यही नहीं, एक मोटी रकम को ले कर ससुर शैलेंद्र और दामाद पवन के बीच कई महीनों से रस्साकशी चल रही थी.

दरअसल, बिहारशरीफ रेलवे स्टेशन के पास एक 5 कट्ठे की जमीन थी. वह जमीन शैलेंद्र कुमार को पसंद आ गई थी. दामाद पवन ने उन्हें वह जमीन दिलवाने की हामी भी भर दी थी. दामाद के जरिए 60 लाख में जमीन का सौदा भी पक्का हो गया था.

जमीन मालिक को कुछ पैसे एडवांस दिए जा चुके थे और 17 जून को जमीन का बैनामा छोटे बेटे मनीष के नाम होना तय हो गया था. इसी दौरान शैलेंद्र की हत्या हो गई.

खैर, पुलिस ने पवन के मोबाइल नंबर को सर्विलांस में लगा दिया और मुखबिरों को भी उस के पीछे लगा दिया ताकि उस की गतिविधियों के बारे में सहीसही पता लग सके.

अंतत: पवन वह गलती कर ही बैठा, जिस की संभावना पुलिस को बनी हुई थी. उस गलती के बिना पर पुलिस ने पवन को उस के रामकृष्णनगर स्थित घर से धर दबोचा और उसे पूछताछ के लिए थाने ले आई.

पुलिस ने पवन से कड़ाई से पूछताछ करनी शुरू की तो पवन एकदम से टूट गया और ससुर की हत्या का जुर्म कुबूल करते हुए कहा, ‘‘हां सर, मैं ने ही सुपारी दे कर ससुर की हत्या कराई थी. मुझे माफ कर दीजिए सर, मैं पैसों के लालच में अंधा हो गया था.’’ कह कर वह रोने लगा.

‘‘तुम्हारे इस काम में और कौनकौन थे या फिर तुम ने यह सब अकेले ही किया?’’ विवेचनाधिकारी मनोज कुमार ने सवाल किया.

‘‘साहब, मेरे इस काम में मेरी दूसरी पत्नी निभा, छोटा भाई टिंकू और शूटर अमर शामिल थे.’’ उस ने बताया.

‘‘ठीक है तो ले चलो सभी गुनहगारों के पास.’’

इस के बाद पुलिस पवन को कस्टडी में ले कर रामकृष्णनगर पहुंची और उस की पत्नी निभा तथा छोटे भाई टिंकू को गिरफ्तार कर लिया. उसी दिन कंकड़बाग के अशोकनगर कालोनी से शूटर अमर को भी गिरफ्तार कर लिया गया.

तीनों आरोपियों ने भी अपने जुर्म कुबूल कर लिए. उस के बाद इस हत्या की जो कहानी सामने आई, बेहद चौंकाने वाली थी, जहां पैसों के लालच में अंधे हुए दामाद ने कई रिश्तों का कत्ल कर दिया था. पढ़ते हैं इस कहानी को—

60 वर्षीय शैलेंद्र कुमार सिन्हा मूलत: बिहार के नालंदा जिले के गड़पर प्रोफेसर कालोनी के रहने वाले थे. उन के परिवार में कुल 5 सदस्य थे. पत्नी सरिता देवी और 2 बेटे पीयूष व मनीष और एक बेटी सृष्टि. घर में किसी चीज की कमी नहीं थी.

भौतिक सुखसुविधाओं की ऐसी कोई चीज नहीं थी, जो उन के घर में मौजूद न हो. उस पर से वह खुद भारतीय स्टेट बैंक के मैनेजर थे. उन की अच्छीभली तनख्वाह थी, इसलिए जिंदगी बड़े मजे से कट रही थी.

शैलेंद्र का बड़ा बेटा पीयूष दिव्यांग था. वह पूरी तरह से चलफिर नहीं सकता था. बेटे की हालत देख कर उन के कलेजे में टीस उठती थी.

छोटा बेटा मनीष हृष्टपुष्ट और तंदुरुस्त था, शरीर से भी और दिमाग से भी. पढ़ने में वह अव्वल था. अपनी योग्यता और काबिलियत की बदौलत मनीष की बैंक में नौकरी लग गई थी और वह असम के गुवाहाटी में तैनात था.

शैलेंद्र ने समय रहते दोनों बेटों की शादी कर दी थी. जिम्मेदारी के तौर पर एक बेटी बची थी शादी करने के लिए, सो उस के लिए भी वह योग्य वर की तलाश कर रहे थे. उन्होंने रिश्तेदारों के बीच में बात चला दी कि बेटी के योग्य कोई अच्छा वर मिले तो बताएं. रिश्तेदारों के बीच से पटना का रहने वाला पवन कुमार का रिश्ता आया.

पवन राजधानी पटना की पौश कालोनी में कोचिंग सेंटर चलाता था. कोचिंग से उस की अच्छीखाई कमाई हो जाया करती थी. बैंक मैनेजर शैलेंद्र को यह रिश्ता पसंद आ गया. उन्होंने बेटी सृष्टि की शादी पवन से कर के अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन कर दिया.

पवन कुमार 2 भाई थे. दोनों भाइयों में पवन बड़ा था और टिंकू कुमार छोटा. दोनों में पवन सुंदर और बेहद समझदार था. वह कोचिंग से इतना कमा लेता था कि अपना खर्च निकालने के बाद कुछ बैंक बैलेंस बना लिया था.

खैर, शैलेंद्र को यह रिश्ता पसंद आ गया और उन्होंने बेटी सृष्टि की शादी पवन से कर दी. एक प्रकार से पवन के कंधों पर ससुराल की देखरेख की जिम्मेदारी भी आ गई थी.

वह ऐसे कि बड़ा साला पीयूष दिव्यांग था. छोटा साला मनीष परिवार ले कर नौकरी पर गुवाहाटी में रहता था.

घर पर बचे सासससुर. उन की देखरेख के लिए एक व्यक्ति की जरूरत रहती थी, सो दामाद पवन सास

और ससुर की सेवा के लिए सदैव तत्पर रहता था.

दामाद के इस व्यवहार से सासससुर दोनों बहुत खुश रहते थे. वैसे भी बिहार की यह परंपरा है कि बेटी और दामाद घर के मालिक की तरह होते हैं. सास और ससुर बेटी और दामाद की सलाहमशविरा के बिना कोई काम नहीं करते थे.

कोई भी काम होता तो वे दामाद से रायमशविरा लिए बिना नहीं करते थे. बारबार ससुराल आनेजाने से बड़े साले पीयूष की पत्नी निभा, जो रिश्ते में पवन की सलहज लगती थी, दोनों के बीच खूब हंसीठिठोली होती थी.

हंसीठिठोली होती भी कैसे नहीं, उन का तो रिश्ता था ही मजाक का. मजाक का यह रिश्ता दोनों के बीच में कब प्रेम के रिश्ते में बदल गया, न तो पवन जान सका और न ही निभा.

यह रिश्ता प्रेम तक ही कायम नहीं रहा, बल्कि यह जिस्मानी रिश्ते में बदल गया था और पहली पत्नी के रहते पवन ने सलहज निभा से कोर्टमैरिज कर ली और उसे ले कर पटना में रहने लगा था.

दामाद की करतूतों की भनक जब सासससुर को लगी तो उन के पैरों तले से जमीन खिसक गई. दामाद पवन ने काम ही ऐसा किया था. जिस थाली में उस ने खाया था, उसी में छेद कर दिया था. और तो और उस ने सृष्टि का जीवन भी बरबाद कर दिया था. बेटी की जिंदगी को ले कर मांबाप चिंता के अथाह सागर में डूब गए थे.

शैलेंद्र ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उन का दामाद ऐसी करतूत करेगा कि उन का समाज में उठनाबैठना तक मुहाल हो जाएगा.

इतना होने के बावजूद उन्होंने बेटी को यही सीख दी कि कुछ भी हो जाए, अपने हक के लिए लड़ना. वहां से कायरों की तरह भागना मत. बेचारी सीधीसादी सृष्टि करती भी क्या, किस्मत पर रोने के सिवाय.

खैर, होनी को कौन टाल सकता है, जो होना है उसे हो कर रहना है. अपनी किस्मत की लकीर समझ कर सृष्टि ससुराल में जीवन काटने लगी थी. इधर पवन सलहज से पत्नी बनी निभा को साथ ले कर पटना में रहने लगा था.

अब पवन और निभा की नजरें ससुराल की करोड़ों की संपत्ति पर जम गई थीं. पवन और निभा दोनों को पता था कि इसी साल फरवरी में ससुर शैलेद्र कुमार सिन्हा नौकरी से रिटायर हो जाएंगे. रिटायरमेंट के दौरान उन्हें लाखों रुपए मिलने वाले हैं.

ससुर के जीवन भर की कमाई पर दोनों की गिद्ध दृष्टि जम गई थी और उन रुपयों को हासिल करना उन का मकसद बन गया था. कैसे और क्या करना है, यह उन्होंने पहले से ही योजना बना ली थी. इस योजना में पवन ने अपने छोटे भाई टिंकू को भी शामिल कर लिया था.

फरवरी, 2021 में बैंक मैनेजर शैलेंद्र कुमार सिन्हा नौकरी से रिटायर हुए. उन्हें जीपीएफ, ग्रैच्युटी आदि के मिला कर 70-80 लाख रुपए मिले थे. उन रुपयों से वह छोटे बेटे के लिए किसी वीआईपी एरिया में जमीन खरीदना चाहते थे और जमीन की तलाश में वह जुट भी गए थे.

उसी दौरान कहीं से इस की जानकारी पवन को हो गई थी कि ससुरजी छोटे साले के लिए जमीन खरीदने की फिराक में हैं.

पवन ससुर शैलेंद्र से मिला और उन्हें भरोसा दिलाया कि बिहारशरीफ रेलवे स्टेशन के पास एक अच्छी और कीमती जमीन है. वह कीमती जमीन उस के जानपहचान वाले की है. देखना चाहें तो उसे देख लें. जमीन पसंद आने पर बात आगे बढ़ाई जाएगी, नहीं तो कोई बात नहीं.

दामाद की बात उन्हें पसंद आ गई. उन्होंने दामाद से जमीन दिखाने की बात कही तो उस ने वह जमीन दिखा दी. वह जमीन उन्हें पसंद आ गई.

बातचीत भी हो गई. 60 लाख रुपयों में सौदा फाइनल हो गया और शैलेंद्र ने एकमुश्त रकम दामाद को दे दी. 60 लाख की रकम देख कर पवन की नीयत बदल गई.

शैलेंद्र ने पवन से कह दिया था कि जमीन की रजिस्ट्री छोटे बेटे मनीष के नाम होगी. ससुर को झांसे में रख पवन ने विश्वास दिया कि वह जैसा चाहते हैं वैसा ही होगा. लेकिन इधर उस के मन में तो कुछ और ही चल रहा था.

पवन जमीन मालिक को 60 लाख में से कुछ रुपए दे कर बाकी के रुपए डकार गया. शैलेंद्र रजिस्ट्री बेटे के नाम पर करने के लिए बारबार दामाद पर दबाव बना रहे थे जबकि वह ऐसा करने वाला नहीं था. वह तो रुपए डकार गया था.

ससुर शैलेंद्र के दबाव बनाने से पवन घबरा गया था. वह समझ गया था कि उसे छोड़ने वाले नहीं हैं अगर जमीन की रजिस्ट्री मनीष के नाम पर नहीं की तो. इस मुसीबत से छुटकारा पाने का एक ही रास्ता बचा है ससुर को रास्ते से हटाने का.

फिर क्या था उस के साथ दूसरी पत्नी निभा और उस का छोटा भाई टिंकू पहले से थे ही. सो उन्होंने इस खतरनाक योजना में साथ देने के लिए भी हामी भर दी.

इस बीच लौकडाउन लग गया. लौकडाउन लगने की वजह से सभी काम बंद पड़े थे. मई के महीने में थोड़ी ढील मिली तो ससुर ने फिर दबाव बढ़ाया कि जमीन की रजिस्ट्री जल्द से जल्द करा दे.

आखिरकार मामला 60 लाख रुपए का है. तो उस ने ससुर को बताया कि 17 जून को रजिस्ट्री होगी, समय से छोटे साले मनीष को बुला लीजिएगा.

इधर, पवन ने ससुर को रास्ते से हटाने के लिए अपने छोटे भाई टिंकू के जरिए कांट्रैक्ट किलर अमर को एक लाख रुपए की सुपारी दे दी. जिस में पेशगी के तौर 40 हजार रुपए शूटर अमर को दे दिए और बाकी रकम काम पूरा होने के बाद देनी तय हुई.

उस के बाद से टिंकू और अमर दोनों शैलेंद्र की रेकी करने लगे कि वह कब और कहां जाते हैं? किस से मिलते हैं? एक हफ्ते की रेकी में जारी जानकारी दोनों ने जमा कर ली. बस घटना को अंजाम देना शेष था.

5 जून, 2021 को छोटा बेटा मनीष गुवाहाटी से पटना आने वाला था. यह जानकारी पवन को हो गई थी. उस ने घटना को अंजाम देने के लिए इसी दिन को अच्छा समझा और इस की पूरी जानकारी शूटर अमर को दे दी.

5 जून, 2021 की सुबह करीब पौने 8 बजे शैलेंद्र बेटे को रिसीव करने अपनी स्कौर्पियो कार से पटना के लिए निकले. कार में वह पीछे बैठे थे और ड्राइवर अनिल उर्फ धर्मेंद्र कार चला रहा था.

कार जैसे ही फतुहा हाइवे पहुंची तो टिंकू शूटर अमर को अपनी बाइक पर पीछे बैठा कर कार का पीछा करने लगा और थोड़ी देर बाद उस ने कार को ओवरटेक कर के ड्राइवर अनिल के हाथ में गोली मार कर कार रोकवाई.

ड्राइवर से शैलेंद्र के बारे में कन्फर्म होने के बाद शूटर अमर ने 3 गोलियां मार कर पूर्व बैंक मैनेजर शैलेंद्र कुमार सिन्हा की हत्या कर दी और मौके से दोनों फरार हो गए.

बहरहाल, पुलिस को शुरू से ही इस में करीबियों के शामिल होने का शक था और हुआ भी वही. पवन को हिरासत में ले कर जब पूछताछ हुई तो परदा उठ गया और चारों आरोपी पवन, निभा, टिंकू और अमर गिरफ्तार कर लिए गए.

पुलिस ने शूटर अमर की निशानदेही पर उस के पास से एक पिस्टल, एक जिंदा कारतूस, एक बाइक और एक स्कूटी, 3 मोबाइल फोन और सिम बरामद किए.

कथा लिखे जाने तक चारों आरोपी जेल में बंद थे. पुलिस उन के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल करने की तैयारी में जुटी थी. जेल की सलाखों के पीछे पहुंचने के बाद पवन को अपने किए पर पश्चाताप हो रहा था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Crime Story: पुलिस वाले की खूनी मोहब्बत- भाग 2

अधिकारियों ने इस एंगल पर भी विचार किया कि स्वीटी का किसी दूसरे व्यक्ति से कोई प्रेम प्रसंग तो नहीं था. इस के लिए अजय सहित उस के मकान के आसपास के लोगों और रिश्तेदारों से पूछताछ की गई, लेकिन इस बात में कोई दम नजर नहीं आया.

पुलिस अपने तरीके से स्वीटी की तलाश में जुटी हुई थी. इस दौरान जुलाई के दूसरे सप्ताह में वडोदरा से कुछ दूर भरूच जिले के अटाली गांव के पास एक अधूरी पड़ी निर्माणाधीन बिल्डिंग के पिछवाड़े पुलिस को कुछ जली हुई हड्डियां मिलीं.

पुलिस ने फोरैंसिक विशेषज्ञों से उन हड्डियों की जांच कराई तो पता चला कि वह हड्डियां किसी इंसान की थीं.

जली हुई इंसानी हड्डियां मिलने पर स्वीटी के लापता होने में पुलिस अधिकारियों का शक इंसपेक्टर अजय पर गहरा गया. उस से सख्ती से पूछताछ की गई, लेकिन वह अपनी पत्नी के लापता होने की बात ही कहता रहा.

आखिर पुलिस अधिकारियों ने अजय के सच और झूठ बोलने का पता लगाने के लिए विभिन्न परीक्षण कराने का फैसला किया. इस के अलावा जली हुई हड्डियों का पता लगाने के लिए डीएनए टेस्ट कराने का भी निर्णय लिया गया.

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पुलिस ने सब से पहले गांधीनगर की विधि विज्ञान प्रयोगशाला में अजय की सीडीएस जांच कराई. इजरायल की विशेष रूप से स्थापित तकनीक सीडीएस जांच के जरिए विभिन्न सवालों के जरिए संदिग्ध व्यक्ति के पसीने और शरीर के तापमान के आधार पर सच्चाई का पता लगाया जाता है.

इस के बाद पुलिस ने उस के पौलीग्राफ टेस्ट और नारको टेस्ट के लिए अदालत से अनुमति मांगी.

स्वीटी के 2 साल के बेटे अंश का डीएनए टेस्ट कराया गया, ताकि यह पता लगाया जा सके कि बरामद हुई हड्डियां स्वीटी की हैं या नहीं.

इंसपेक्टर अजय का कराया पौलीग्राफ टेस्ट

बाद में अदालत से अनुमति मिलने पर पुलिस ने अजय का पौलीग्राफ टेस्ट भी कराया. पौलीग्राफ टेस्ट की प्रक्रिया 2 दिन तक चलती रही.

इस बीच, पुलिस को यह बात पता चली कि स्वीटी अपने बेटे से मिलने के लिए आस्ट्रेलिया जा सकती है. इस संभावना को देखते हुए पुलिस ने स्वीटी के पहले पति हेतस पांड्या और बेटे से औनलाइन पूछताछ की.

पुलिस ने हेतस पांड्या से स्वीटी के संपर्क में आने और इस के बाद दोनों के अलग होने के बारे में जानकारी ली.

इस पूछताछ में यह बात सामने आई कि स्वीटी ने अपने बेटे रिदम से कुछ महीने पहले आस्ट्रेलिया आ कर मिलने की बात कही थी, लेकिन स्वीटी आस्ट्रेलिया गई नहीं थी. हेतस पांड्या ने पूछताछ में यह भी बताया कि संभवत: स्वीटी के पासपोर्ट का नवीनीकरण नहीं हुआ है.

स्वीटी के लापता होने के बाद से उस के पहले बेटे रिदम ने आस्ट्रेलिया से ही सोशल मीडिया के जरिए अपनी मां की तलाश का अभियान छेड़ दिया था. तमाम तरह की तकनीकी और एफएसएल जांच कराने के बावजूद कोई ठोस परिणाम सामने नहीं आया था. कैलेंडर की तारीखें रोजाना बदलती जा रही थीं.

स्वीटी को लापता हुए करीब डेढ़ महीने का समय बीत गया था, लेकिन उस का कुछ पता नहीं चला था. यह भी पता नहीं चल सका था कि वह जीवित है या मर चुकी.

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क्राइम ब्रांच ने संभाली जांच

पुलिस की लगातार हो रही आलोचनाओं को देखते हुए गुजरात सरकार ने जुलाई के तीसरे सप्ताह में इस मामले की जांच अहमदाबाद क्राइम ब्रांच को सौंप दी. क्राइम ब्रांच के अफसरों ने नए सिरे से मामले की जांचपड़ताल शुरू की.

पुलिस अफसरों ने मीटिंग कर इस मामले में अब तक की जांच पर गहराई से विचारविमर्श किया. इस में यही बात सामने आई कि यह घरेलू मामला है. इस का राज उस के पति पुलिस इंसपेक्टर अजय से पूछताछ में ही निकल सकता है.

इस के लिए अजय की नारको टेस्ट कराने की अदालत से अनुमति मिल गई, लेकिन अजय ने अपनी मानसिक और शारीरिक स्थिति ठीक नहीं बताते हुए नारको टेस्ट देने में सक्षम नहीं बताया.

दरअसल, अजय पुलिस इंसपेक्टर था. उसे कानून की खामियां और पुलिस की

सीमा रेखा भी पता थी. पुलिस नारको टेस्ट के लिए उस से जबरदस्ती नहीं कर सकती थी और न ही उस से सख्ती से पूछताछ कर सकती थी.

अजय की ओर से नारको टेस्ट कराने से इनकार करने पर क्राइम ब्रांच के अफसरों का शक उस पर गहरा गया. उन्होंने उस के शहर छोड़ कर जाने पर रोक लगा दी गई.

इस के साथ ही क्राइम ब्रांच के अफसरों ने अजय के मकान से जांच शुरू करने और अटाली गांव में एक बिल्डिंग के पीछे जहां इंसानी हड्डियां मिली थीं, वहां का मौकामुआयना करने का निर्णय किया.

क्राइम ब्रांच के अधिकारियों ने 23 जुलाई को अजय के प्रयोशा सोसायटी स्थित फ्लैट की जांचपड़ताल की.

इस में एक पुराने पुलिस वाले ने अपने अनुभव के आधार पर बाथरूम को कैमिकल से सफाई करवा कर देखा तो वहां खून के कुछ धब्बे मिले. इस के बाद पुलिस ने अपनी जांचपड़ताल तेज कर दी और कुछ जरूरी सबूत जुटाने के लिए अजय से फिर पूछताछ की.

आखिर पुलिस ने 49वें दिन स्वीटी के गायब होने की गुत्थी सुलझा कर 24 जुलाई, 2021 को इस मामले का परदाफाश कर दिया. स्वीटी पटेल की हत्या हो चुकी थी.

पुलिस ने स्वीटी की हत्या के मामले में उस के पति पुलिस इंसपेक्टर अजय देसाई और उस के दोस्त कांग्रेस नेता किरीट सिंह जडेजा को गिरफ्तार कर लिया. किरीट सिंह ने कांग्रेस टिकट पर पिछला विधानसभा चुनाव लड़ा था.

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अजय देसाई और किरीट सिंह जड़ेजा से पूछताछ और पुलिस की जांचपड़ताल में स्वीटी की हत्या की जो कहानी उभर कर सामने आई, वह इस प्रकार है—

अजय देसाई से प्रेम विवाह करने के बाद स्वीटी खुश थी. किसी बात की कोई परेशानी नहीं थी. अजय से उस के एक बेटा भी हो गया था. वह पति और बेटे के साथ मौज की जिंदगी गुजार रही थी.

स्वीटी ने भले ही अपने पहले पति हेतस पांड्या से तलाक ले लिया था, लेकिन वह अपने पहले बेटे रिदम से बहुत प्यार करती थी. आस्ट्रेलिया में अपने पापा के साथ रहने वाले रिदम से स्वीटी लगभग रोजाना फोन पर बात करती थी. हेतस को इस में कोई ऐतराज नहीं था. हेतस के मन में स्वीटी के प्रति भी कोई कटुता नहीं थी.

इंसपेक्टर अजय ने कर ली थी दूसरी शादी

सब कुछ ठीकठाक चल रहा था. पति अजय पुलिस इंसपेक्टर था. उस का अपना रौबदाब था. इसलिए स्वीटी को अजय पर फख्र भी था.

स्वीटी से प्रेम विवाह के कुछ दिनों बाद ही अजय ने अपने समाज की एक युवती पूजा से विधिवत शादी कर ली. अजय ने स्वीटी को यह बात नहीं बताई. स्वीटी को भी इस बात का पता नहीं चला. अजय ने अपनी दूसरी पत्नी पूजा को दूसरी जगह मकान दिलवा दिया.

अगले भाग में पढ़ें- गला घोंट कर की थी स्वीटी की हत्या

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