अश्लीलता: मोबाइल बना जरिया

आज के दौर में सोशल मीडिया के बढ़ते जोर से अब हर हाथ में वह चाबी है जो बड़ी आसानी से किसी भी अश्लील साइट का मुश्किल दरवाजा चुटकियों में खोल देती है, फिर जगह चाहे कोई भी हो. पर अगर कई साल पीछे जाएं तो उस दौर में लोग रंगीन पोस्टरनुमा किताबों में विदेशी अश्लील सितारों के मदमस्त पोज देख कर ही चरमसुख भोग लिया करते थे. ऐसी किताबें एक हाथ से दूसरे हाथ में चलती रहती थीं. जो लाता था वह बीच में बैठ कर देखता था और दूसरों को भी दिखाता था. पर उन्हें अपने बड़ों से छिपा कर रखना बड़ा मुश्किल होता था. नजर पड़ते ही पोल खुल जाए. अगर आप की नईनई मूंछें आई हैं तो पिटाई होने का भी खतरा बना रहता था.

उस के बाद वीडियो कैसेट में भरी जाने वाली अश्लील फिल्में देखते ही देखते हिट हो गईं. बंद कमरे में मस्ती भरा मनोरंजन. बहुत से स्कूली बच्चे थोड़ेथोड़े पैसे मिला कर किराए पर वीसीआर और अश्लील वीडियो कैसेट लाते थे और किसी एक के घर पर बैठ कर चोरीछिपे अपना दिन रंगीन कर लेते थे. बड़ों को इस बात की ज्यादा परवाह नहीं होती थी पर कोई सुरक्षित जगह तो उन्हें भी चाहिए थी.

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लेकिन जब से मोबाइल फोन हाथ में आया है, अश्लील के बाजार में जबरदस्त उछाल आ गया है. लैपटौप और मोबाइल फोन से देखा जाने वाला अश्लील इस इंडस्ट्री से जुड़े लोगों को अरबों रूपए की कमाई करा देता है. इंटरनेट पर यह सब से ज्यादा मुनाफे वाला धंधा बन गया है.

और जब से लोग सेक्स करते खुद के वीडियो बना कर सोशल मीडिया पर सरेआम कर रहे हैं तब से इस में देशीपन का छोंक भी लग गया है. इन वीडियो में साथी से छुप कर बनाए गए वीडियो से ले कर खेत में रेप के वीडियो तक शामिल होते हैं. कभीकभार तो सेक्स कर रहे जोड़े को ही नहीं पता होता है कि कोई तीसरी डिजिटल आंख उन के प्रेम प्रसंग को सार्वजनिक कर रही है.

कई बार लड़कियां खुद अकेले में अपने अश्लील वीडियो अपलोड कर के लोगों की राय जानना चाहती हैं कि उन की देह में किस हद का मस्तानापन है या पति अपनी पत्नी को चूमते हुए कहता है, ‘अगर आप को मेरी पत्नी की यह अदा पसंद आई है तो इस वीडियो को ज्यादा से ज्यादा लाइक और शेयर कीजिए.’

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ऐसा भी होता है

‘टिकटौक’ और ‘म्यूजिकली’ जैसे ऐप तो ऐसे वीडियो बनाने वालों के लिए वरदान बन गए हैं. एक नजरिए से अश्लील देखना अब एक आम बात हो गई है. लोग मान लेते हैं कि वे अकेले या दोस्तों या फिर अपने सेक्स पार्टनर के साथ अश्लील देख लेते हैं.

पर कभीकभार मामला बिगड़ भी जाता है. पुणे के एक डिजिटल बोर्ड पर तो अश्लील चल गई थी और उसे देखने के लिए वहां लोग जमा हो गए थे. दरअसल, किसी ने गलती से एक बिजी सड़क कर्वे रोड पर लगे डिजिटल बोर्ड पर अश्लील फिल्म चला दी थी जिस के चलते वहां का यातायात जाम हो गया था. यह जाम हायहाय करने के लिए नहीं, बल्कि आहें भरने के लिए लगा था.

इसी तरह केरल के वायनाड जिले में कलपेट्टा इलाके के बसस्टैंड पर अश्लील फिल्म चल गई थी. बस औपरेटर की पेन ड्राइव बदल जाने के चलते वहां इंतजार कर रहे मुसाफिरों ने 30 मिनट तक पौर्न फिल्म देखने का मजा लिया था. इस के बाद उसे बंद कर दिया गया होगा, वरना लोग तो और भी देर तक देखने के मूड में रहे होंगे.

एक अलग ही मामले में भारतीय नेवी के एक कमांडर पर अपनी पत्नी के आपत्तिजनक और मौर्फ्ड (एडिट किए हुए) फोटो को गूगल फोटो ऐप पर डालने का आरोप लगा था.

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इस मामले में उस कमांडर की पत्नी ने पुलिस को बयान दिया था कि उस के पति को पिछले 11 साल से पौर्न देखने की लत है, जिस से वह परेशान हो गई थी. कमांडर के घर वाले और एक प्रोफेशनल काउंसिलर भी उस के पति की यह लत नहीं छुड़वा पाए थे, बल्कि उस के पति ने उसे ही सताना शुरू कर दिया था.

इस का सीधा सा मतलब है कि अब लोगों के मोबाइल फोन में आसानी से अश्लील वीडियो मुहैया हैं. रोजाना हजारों तरह के ऐसे एकदम देशी वीडियो अपलोड होते रहते हैं. गांवदेहात के लोग भी ऐसा करने में पीछे नहीं हैं. अगर आप बालिग हैं तो अश्लील देखने में कोई बुराई नहीं है पर जरा संभल कर, क्योंकि अगर किसी सार्वजनिक जगह पर आप इस का लुत्फ लेते पकड़े गए, तो हंसी का पात्र भी बन सकते हैं.

Edited by- Neelesh Singh Sisodia 

एक सवाल-‘घरेलू हिंसा के कारण’

ससुराल स्वर्ग या अभिशाप… ?

मेरा एक सवाल समाज से ,घर और परिवार से क्या एक स्त्री को ससुराल भेजने के लिए ही पैदा किया जाता है ? अपनी बेटी को अचानक से एक अंजान घर में भेज दिया जाता है ,जहां उससे ये कहा जाता है कि अब तुम इस घर की बहू हो इस घर को संभालो तुम्हारी जिम्मेदारी बढ़ गई है. इतना ही नहीं वो  स्त्री सारे काम सीख जाती है,उस घर को अपना बना लेती है.लेकिन उस वक्त क्या जब उस देवी समान स्त्री को घरेलू हिंसा का शिकार होना पड़ता है. कभी दहेज के रूप में ये हिंसा उसके सामने आती है तो कभी बेटे को जन्म न दे पाने के कारण ये हिंसा उसके साथ होती है.

एक माता-पिता अपनी बेटी को बड़े अरमानों के साथ ससुराल भेजते हैं और साथ उसकी सुविधा के ध्यान रखते हुए सारे सामान देते हैं और इतना ही नहीं उनकी बेटी को कोई तकलीफ न हो इसके लिए वो दहेज के नाम पर ससुराल वालों को भी कुछ समान देते हैं….लेकिन ये दहेज प्रथा आज समाज और स्त्री के लिए अभिशाप बन गई है क्योंकि यही दहेज जब कम पड़ता है और लड़के वालों की मांगे पूरी नहीं होती है तो उस स्त्री को प्रताड़ित किया जाता है. अक्सर ससुराल वाले चाहते हैं कि मेरी बहू लड़के को जन्म दे..लेकिन अगर लड़की जन्म लेती है तो उस स्त्री को फिर प्रताड़ित किया जाता है. लोग ये क्यों नहीं समझते हैं कि लड़के या लड़की का पैदा होना किसी भी मनुष्य के हाथ में नहीं है.

मैं ये नहीं कहती की हर जगह या हर  ससुराल ऐसा होता है लेकिन आज दुनिया के ऐसे बहुत से कोने हैं जहां घरेलू हिंसा जैसी वारदात होती है. आए दिन ये खबर सुनने को मिलती है कि दहेज के लालच में पति ने पत्नि को जिंदा जलाया या मारा, ससुराल वालों से तंग आकर महिला ने की खुदखुशी. 22 जून 2019 में एक खबर आई की गोवा की एक महिला ने अपने ही पति को पीट- पीट कर मार डाला क्योंकि पति पत्नी को प्रताड़ित करता था. ये खबर ये साबित करती है की इसके चलते अपराध भी बढ़ता जा रहा है. 19 मार्च 2019 में खबर आई कि अहमदाबाद में पति ने अपनी पत्नी को सिर्फ इसलिए मारा क्योंकि उसने शैम्पू के लिए पैसे मांगे थे. 22 मई 2019 की एक खबर आईपीएस ने अपनी पत्नी को 5 करोड़ रुपए दहेज के लिए पीटा.

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घरेलू हिंसा के पीड़ितों को कई बार यह पता ही नहीं होता कि वे मदद मांगने किसके पास जा सकती हैं.

  • घरेलू हिंसा की शिकार हुई महिला कभी अपने डर से बाहर नहीं आ पाती है.
  • मानसिक आघात महिला को भीतर से तोड़कर रख देती है.
  • घरेलू हिंसा एक ऐसा दर्द ऐसा जख्म है जो शायद ही कोई महिला भूले.
  • मानसिक रोग की स्थिति में महिला पहुंच जाती है.
  • घरेलू हिंसा महिला की गरिमा को छिन्न-भिन्न कर देता है.

एक रिपोर्ट से पता चला कि मोरक्को में एक महिला हैं सलमा, 23 साल की सलमा 2 बच्चों की मां और शिक्षा कार्यकर्ता हैं, जो घरेलू हिंसा से पीड़ित थी कभी. उन्होंने जब इसके खिलाफ आवाज उठाई तो सबसे पहले एक रेडियो स्टेशन के जरिए अपनी व्यथा व्यक्त की थी. यह रेडियो स्टेशन मोरक्को में महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए काम करने वाले एक अभियान से जुड़ा है, जिसका नाम है ‘मेक योर स्टोरी हर्ड’. मोरक्को में अभियान चला कर पीड़ित महिलाओं को कानूनी मदद देकर उनके हिंसक पतियों के खिलाफ कार्रवाई करने में मदद की जा रही है. ऐसे ही कई अभियान हैं,जो भारत में भी चलाए जा रहे हैं लेकिन फिर भी घरेलू हिंसा की वारदात बढ़ती ही जा रही है.अकेले अगर भारत की बात करें तो यहां नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के आंकड़े दिखाते हैं कि 15 से 49 प्रतिशत महिलाओं के साथ कभी न कभी शारीरिक हिंसा हुई थी.घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम, 2005 भारत की संसद द्वारा पारित एक अधिनियम है जिसका उद्देश्य घरेलू हिंसा से महिलाओं को बचाना है. लेकिन फिर भी ये अपराध बढ़ते जा रहें हैं. आखिर कब तक?

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सवाल ये है कि भारत सरकार कर क्या रही है? क्या सरकार कोई कड़े कदम नहीं उठाएगी? अगर सरकार ने कुछ नहीं किया तो आने वाले समय में ससुराल सच में महिला के लिए एक घर नहीं बल्कि अभिशाप बन जाएगा….

आखिर क्यों ‘सेक्रेड गेम्स’ के ‘गायतोंडे’ को हुई थी ये परेशानी?

पिछले साल जुलाई महीने में रिलीज हुई नेटफ्लिक्स की बोल्ड वेब सीरीज ‘सेक्रेड गेम्स’ ने दर्शकों से खूब वाहवाही लूटी थी. इस की कहानी मुंबई के अंडरवर्ल्ड के इर्दगिर्द घूमी थी जिस में मुंबई का डॉन बना गणेश एकनाथ गायतोंडे (नवाजुद्दीन सिद्दीकी) मुंबई पुलिस के एक सिख इंस्पेक्टर सरताज सिंह (सैफ अली खान) को फोन कर के टिप देता है कि 25 दिन में मुंबई तबाह हो जाएगी. उस के बाद कहानी दिलचस्प मोड़ लेती हुई एक ऐसे अंजाम पर खत्म होती हैं जहां उस का दूसरा पार्ट बनना पक्का था. अब दूसरा पार्ट भी आ रहा है.

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इस वेब सीरीज में नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने गजब का काम किया था. परदे पर निभाए गए उस के किरदार का खौफ दर्शकों को भी महसूस हुआ था. वह जिस बेरहमी से अपने दुश्मनों पर गोली चलता था उसी बेरहमी से वह औरतों के साथ सेक्स भी करता था, फिर चाहे वह कोई धंधे वाली ही क्यों न हो.
दर्शकों को लुभाने के लिए सेक्स करने वाले सीन भी इस वेब सीरीज में जबरदस्त तरीके से फिल्माए गए थे. नवाजुद्दीन बिना किसी प्रोटेक्शन के इतनी सारी औरतों के साथ हमबिस्तर होता है कि वह सेक्स से जुडी बीमारी का शिकार हो जाता है. उस के पेशाब से खून निकलने लगता है. पूरे बदन पर लाल रंग के चकत्ते पड़ जाते हैं. एक तरह से वह मौत के मुंह में चला जाता है.

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वेब सीरीज में तो नवाजुद्दीन बच जाता है, पर हर कोई उस की तरह ऐसी बीमारी से बच जाए, यह जरूरी तो नहीं है. हमारे देश में बहुत से ऐसे लोग हैं जो घर में पत्नी के होते हुए बाहर गंदी बीमारियों से घिरीं देह धंधे वालियों के जिस्म से अपनी हवस पूरी करते हैं, वह भी बिना किसी प्रोटेक्शन के.
इन बदनाम गलियों में जाने वाले बहुत से लोग सिगरेटशराब जैसे नशे के भी आदी हो जाते हैं. सिगरेट तो उन के गुरदों पर बुरा असर डालती है.
क्या आप भी पेशाब में खून आने की समस्या से तो पीड़ित नहीं हैं? अगर ऐसा है तो सावधान हो जाइए क्योंकि ब्रिटेन में गुरदों के कैंसर के बारे में जागरुकता फैलाने वाले एक संगठन ने दावा किया है कि अगर आप को पेशाब में खून दिखाई देता है, चाहे एक बार भी, तो यह कैंसर का लक्षण हो सकता है.
इस संगठन का कहना है कि सिगरेट पीने और मोटापे की वजह से गुरदों के कैंसर का जोखिम बढ़ता है लेकिन बीमारी का जल्दी पता चलने से मौत की दर में गिरावट आ सकती है.

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अगर आप को पेशाब में खून दिखाई दे, भले ही एक बार ही, तो तुरंत अपने डॉक्टर को बताएं. वैसे भी अगर कोई आदमी बिना प्रोटेक्शन के किसी अनजान साथी के साथ सेक्स करता है तो उसे सेक्स से जुड़ी और भी कई बीमारियां हो सकती हैं जो उन के लिए जी का जंजाल बन जाती हैं. बहुत से लोग तो डर और झिझक के मारे डॉक्टर के पास भी नहीं जाते हैं और बीमारी को खतरनाक रूप धर लेने देते हैं. कुछ लोग तो झोलाछाप डॉक्टरों के चंगुल में फंस कर अपनी सेहत और पैसे का दोहरा नुकसान करा बैठते हैं. लिहाजा, इस तरह के मामलों में बिलकुल भी लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए. किसी अनजान साथी के साथ सेक्स के दौरान प्रोटेक्शन अपनाएं और खुद को गायतोंडे बनने से बचाएं.

प्रेमी को…

भरी सभा में उसे गिन कर 50 जूते मारे गए. पीडि़त ब्रजेश कुमार का कुसूर यही था कि उस ने दूसरी जाति की एक लड़की से प्यार किया था. उस लड़की की शादी उस के मातापिता ने दूसरी जगह तय कर दी थी. शायद लड़के वालों को इस लड़केलड़की के प्रेम संबंधों के बारे में जानकारी मिल गई थी जिस की वजह से उन्होंने इस शादी से इनकार कर दिया था. यह मामला जब मुखिया के पास पहुंचा तो उस के दरवाजे पर ही पंचायत बिठाई गई जहां सैकड़ों लोगों के सामने प्रेमी को 50 जूते मारे गए और एक लाख रुपए का जुर्माना लगाया गया, जिसे आरोपी और उस के पिता ने दबाव में आ कर स्वीकार भी कर लिया.

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इस घटना का किसी ने वीडियो बना लिया और सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया. जब यह घटना प्रशासन की नजर में आई तो दोषी मुखिया समेत जूते मारने वाले रणजीत कुमार यादव को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. दूसरी घटना बिहार से ही जुड़े सीतामढ़ी जिले की है, जहां आलोक ने अनीता नाम की लड़की के साथ प्रेम विवाह किया. यह बात गांव वालों को रास नहीं आई और आलोक के मातापिता समेत उस जोड़े को मारपीट कर गांव से बाहर कर दिया. आलोक के पिता ने जिला प्रशासन समेत मुख्यमंत्री के ‘जनता दरबार’ तक में इंसाफ की गुहार लगाई लेकिन कामयाबी नहीं मिली. बाद में इस मामले पर कोर्ट ने संज्ञान लिया तब राहत मिली. लेकिन आज भी उस प्रेमी जोड़े का कहीं अतापता नहीं है. गुजरात के दाहोद जिले के एक गांव में एक 30 साल की औरत को अपने प्रेमी के साथ भागने की अजीबोगरीब सजा दी गई. पहले तो उस औरत की जम कर पिटाई की गई, उस के बाद बाल काट कर पति को कंधे पर बिठा कर नाचने के लिए कहा गया. वह औरत लोगों से माफी मांगती रही, लेकिन परिवार वालों ने एक न सुनी और उसे सरेआम नाचने के लिए मजबूर किया गया.

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इसी तरह बिहार के मुजफ्फरपुर के कटरा थाने के तहत एक प्रेमी जोड़े को बिजली के खंभे से बांध कर बेरहमी के साथ पिटाई की गई. इस से भी जब मन नहीं भरा तो दोनों को बतौर जुर्माना 51,000 रुपए देने का फरमान सुनाया गया. इस तरह के मामले पूरे देश से आते रहते हैं. कहीं प्रेमी जोड़ों की परिवार और समाज द्वारा हत्या कर दी जाती है तो कहीं बाल मूंड़ कर जूते की माला पहना कर पूरे गांव में घुमाया जाता है. पंचायतों में इस तरह के जो फैसले लिए जाते हैं, जिन के द्वारा ऐसे फैसले सुनाए जाते हैं, वे गांव के सब से ऊंचे कद के लोग होते हैं. उन की इज्जत पूरे गांव वालों द्वारा की जाती है, तभी तो उन की गिरी हुई बातों को भी पूरा समाज मान लेता है. लेकिन अगर आप गांव के इज्जतदार लोग हैं तो आप की सोच भी ऊंचे दर्जे की होनी चाहिए लेकिन अफसोस, ऐसा हो नहीं पाता है. हम आज भी जातपांत, धर्म की छोटी सोच से ऊपर नहीं उठ पा रहे हैं. प्रेम और विवाह करने के मामले में हमारी सोच अभी भी दकियानूसी है. सच तो यह है कि जब हमारे बच्चे इंजीनियरिंग, डाक्टरी और दूसरी पढ़ाई करने के लिए कालेजों, यूनिवर्सिटियों में जाएंगे तो वहां उन में दोस्ती और प्यार होना लाजिमी है. हम अपने लड़केलड़कियों के हर तरह के बदलाव, खानपान, रहनसहन, उन के बदलते संस्कार को जब स्वीकार कर रहे हैं तो उन के प्यार को भी स्वीकार करना पड़ेगा, तभी हम विकसित और मौडर्न समाज की कल्पना कर सकते हैं. –

विकलांगों के लिए काम के मौके

जो अपने हकों को जानते भी हैं और अपनी विकलांगता के मुताबिक नौकरी पा कर कमा भी रहे हैं. तीसरी श्रेणी उन विकलांगों की है जो न तो अनपढ़ हैं और न ही बहुत ज्यादा पढ़ेलिखे. वे अपने हकों से परिचित तो हैं, पर सरकारी नौकरी नहीं पा सकते हैं. वे कुछ करना तो चाहते हैं, पर लाचार हैं. सैंसस 2001 की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में 2 करोड़ से ज्यादा लोग किसी न किसी तरह की विकलांगता से पीडि़त हैं.

इन विकलांगों में 26 से 45 फीसदी अनपढ़ हैं. आमतौर पर अनपढ़ विकलांग वे होते हैं जिन्हें जन्म के बाद भीख मांगने के लिए सड़कों पर छोड़ दिया जाता है या मानव तस्करी के चलते उन्हें बचपन में ही विकलांग बना दिया जाता है. दूसरे गरीब बेसहारा परिवारों के विकलांग खुद के पैरों पर खड़े होने के बजाय उम्रभर सहारा ढूंढ़ने की कोशिश में जुटे रहते हैं. क्या सच में विकलांगों को सहारे की जरूरत है? क्या वे खुद ही हालात के मुताबिक अपने पैरों पर खड़े नहीं हो सकते हैं? विकलांगों के हालात पर दिल्ली के जनकपुरी इलाके के ए ब्लौक की रहने वाली किरण ने एक किस्सा सुनाया, ‘‘मैं एक दिन जनकपुरी मैट्रो स्टेशन से बाहर निकली तो देखा कि थोड़ा अंधेरा हो गया था और इक्कादुक्का रिकशे वाले ही वहां खड़े थे. मैं अपने घर जाने के लिए किसी रिकशे वाले को ढूंढ़ ही रही थी कि एक आदमी मेरे सामने रिकशा ले कर आया और बैठने को कहा. ‘‘तभी मेरी नजर उस के पैरों पर पड़ी. उस का एक पैर बिलकुल बेजान था, पर दूसरा ठीक था. मुझे रिकशे पर बैठते हुए लग रहा था कि पता नहीं, यह ढंग से रिकशा चला भी पाएगा या नहीं. लेकिन फिर मैं उस के रिकशे पर जा कर बैठ गई, क्योंकि बाकी रिकशे वाले मेरे घर तक जाने को तैयार ही नहीं थे. ‘‘जब वह आदमी रिकशा ले कर आगे बढ़ा तो मुझे लगा कि यह इतनी मेहनत कर रहा है, वहीं दूसरी ओर हट्टेकट्टे होते हुए भी कई लोग सड़कों पर भीख मांग रहे हैं.

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असल में यह अपने पैरों पर तो खड़ा है.’’ दिल्ली में ही करोलबाग की एक प्राइवेट कंपनी में काम करने वाले वीरेंद्र ने बताया, ‘‘एक बार मैं बस से अपने घर सुलतानपुरी जा रहा था, वहां मेरी एक नेत्रहीन से मुलाकात हुई. ऐसे ही जानकारी के लिए मैं ने उस से पूछा कि आप कहां रहते हैं और क्या करते हैं तो उस आदमी ने जवाब दिया, ‘एक समाजसेवी संगठन ने बेसहारा अंधों के लिए आश्रम बनाया हुआ है. मैं वहीं रहता हूं. अपनी रोजीरोटी और जेबखर्च के लिए मैं एक फैक्टरी में मोमबत्ती बनाने का काम करता हूं.’ ‘‘नेत्रहीन होने के बावजूद वह आदमी आश्रम में पड़े रहने से बेहतर काम करना पसंद करता था. यह बहुत बड़ी बात है.’’

मंजिल की ओर अब विकलांगों को ‘दिव्यांग’ कहा जाने लगा है जिस का मतलब है ‘दिव्य अंग’ होना. पर विकलांग को ‘दिव्यांग’ कहने से क्या उस की विकलांगता ठीक हो जाएगी या उसे आम आदमी की तरह रोजगार मिल जाएगा? क्या हमें विकलांग को ‘दिव्यांग’ का नया नाम दे कर उसे समाज से अलग दिखाना चाहिए? एक तरफ विकलांगों को आम आदमी की तरह मानने की बात की जा रही है, वहीं दूसरी तरफ उन को उन्हीं की ही सचाई शहद में डुबो कर बताई जा रही है. यह ढोंग का कौन सा नया रूप है? क्यों न विकलांग खुद अपने हुनर का परिचय दें? क्यों न वे अपने हालात को लाचारी का नहीं, बल्कि हौसले का रूप दें? साधना ढांड, सुधा चंद्रन, गिरीश शर्मा, अरुणिमा सिन्हा और मालती कृष्णामूर्ति सभी विकलांगों के लिए मिसाल हैं, पर क्या वह रिकशे वाला और मोमबत्ती बनाने वाला विकलांग भी मिसाल नहीं हैं? काम जो ये कर सकें कोई हाथपैरों से विकलांग है, लेकिन ठीक से बोलसुन सकता है तो वह रेडियो जौकी या एंकर बनने की सोच सकता है. इस तरह के विकलांग काल सैंटर वगैरह में भी नौकरी पा सकते हैं.

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अगर किसी विकलांग शख्स को लिखनेपढ़ने का शौक है तो वह लेखक बन सकता है. वह घर बैठे फ्रीलांस काम कर सकता है और अपनी पसंद के विषयों पर भी लेख लिख सकता है. इस के अलावा अपनी खुद की छोटीमोटी दुकान खोली जा सकती है. 5वीं क्लास की एक किताब में एक लड़की ईला का जिक्र किया गया है जो हाथ न होने के बावजूद कशीदाकारी में माहिर हो जाती है. सुनने व बोलने में नाकाम विकलांग यह काम सीख सकते हैं. वे इसी तरह के दूसरे काम भी सीख कर रोजीरोटी कमा सकते हैं. थोड़ेबहुत पढ़ेलिखे विकलांग खासकर लड़कियां या औरतें किसी औफिस में रिसैप्शनिस्ट की नौकरी पा सकती हैं. वैसे भी अगर कोई मन में किसी काम को करने की ठान लेता है तो हिमालय जैसा पहाड़ भी चढ़ जाता है, फिर उस की विकलांगता भी आड़े नहीं आती है. द्य

उधार के गहनों से करें तौबा

बड़े भाई ने उसे सोने के झुमके जो तोहफे में दिए थे. बरात दुलहन के घर गई, खूब नाचगाना हुआ, फेरे पड़े और फिर नईनई ननद बनी रचना अपनी भाभी को घर ले आई. शादी में रचना के झुमकों की भी खूब तारीफ हुई थी. खूबसूरत होने के साथसाथ वे महंगे भी थे.

शादी की गहमागहमी कम हुई, तो रचना ने वे झुमके संभाल कर लोहे की अपनी अलमारी में रख दिए. कुछ दिनों के बाद रचना के पड़ोस की एक सहेली मेनका के मामा की बेटी की शादी थी. एक दिन वह रचना से बोली, ‘‘सुन, तू मुझे 2 दिन के लिए अपने नए झुमके उधार दे दे. शादी में उन्हें पहनूंगी तो लड़कों पर रोब पड़ेगा.’’ रचना का मन तो नहीं था, पर वह अपनी दोस्ती भी नहीं तोड़ना चाहती थी. उस ने अपनी मां से पूछे बिना ही मेनका को झुमके दे दिए और संभाल कर रखने की भी हिदायत दी. रचना को जिस बात का डर था, वही हुआ. मेनका से वे झुमके खो गए. दरअसल, शादी के घर में एक दिन जब वह बाथरूम से नहा कर निकली तो वे झुमके वहीं भूल गई. फिर उन झुमकों पर किस ने हाथ साफ किया, पता ही नहीं चला. मेनका की तो जैसे जान सूख गई. मातापिता से खूब डांट खाई, लेकिन उस की असली समस्या तो यह थी कि रचना का सामना कैसे करेगी. और जब रचना को यह खबर लगी तो उस का रोरो कर बुरा हाल हो गया.

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घर में पता चला तो सब को बहुत दुख हुआ, पर अब कर भी क्या सकते थे. मेनका से झुमकों के पैसे भी किस मुंह से मांगते. लेकिन उस दिन के बाद रचना और मेनका में पहले जैसी पक्की दोस्ती नहीं रही. यह कोई एक किस्सा नहीं है, बल्कि न जाने कितने सालों से हमारे देश में औरतों और लड़कियों में एकदूसरे के गहने उधार लेने का चलन सा रहा है. क्या वजह है कि औरतें या लड़कियां कुछ समय के लिए ही सही, इतनी आसानी से महंगे गहनों की उधारी कर लेती हैं? इस का सब से आसान जवाब उन का गहनों के प्रति प्रेम होता है. अगर वे महंगी धातु जैसे सोने या चांदी के हों तो यह मोह पूरी तरह उमड़ने लगता है. फिर मुफ्त का माल कौन नहीं चाहेगा, क्योंकि उन्हें लगता है कि वे गहनों को संभाल कर रखेंगी. पर जब वे चोरी हो जाते हैं या उन में किसी तरह का दूसरा नुकसान हो जाता है तो फिर मचता है घमासान. मालती और राधा के मामले में गहनों की चोरी भी नहीं हुई थी, पर गहनों को ले कर उन की दोस्ती में खटास जरूर आ गई थी. हुआ यों था कि राधा ने मालती से उस का गहनों का एक नकली सैट कुछ दिनों के लिए उधार लिया था. सैट ज्यादा महंगा भी नहीं था, पर चूंकि नकली था तो इस्तेमाल करने पर उस की पौलिश थोड़ी उतर गई थी. जब राधा ने वह सैट वापस किया तो मालती को अपने सैट की हालत देख कर बुरा लगा. उस ने शिकायत की तो राधा ने गलती मानने के बजाय कहा कि सैट की पौलिश तो पहले से उतरी हुई थी. बस, इसी बात पर मामला इतना बिगड़ा कि आज वे दोनों एकदूसरे का मुंह तक देखना पसंद नहीं करती हैं. पराए गहनों के लिए यह प्यार गांवदेहात की औरतों में भी खूब देखा जाता है. बड़े भाई की शादी हुई नहीं कि छोटी बहन भाभी के गहनों पर अपना हक समझने लगती है.

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गहने क्या वह तो उस की सिंगारदानी, चमकीले कपड़ों को अपनी बपौती मानने लगती है. भाभी थोड़ी चिंता जता दे या इशारों में मना करने की कोशिश करे तो पूरा ससुराल पक्ष ही उसे दुश्मन समझने लगता है. यहां पर दहेज के सामान को साझा इस्तेमाल करने का मनोविज्ञान ससुराल वालों पर हावी रहता है कि बाप ने बेटी को जो दिया, उस पर बहू की सास, ननद और भाभीदेवरानियों का हक बनता है. इस में गहनों के इस्तेमाल और उन के खोने या खराब होने पर मचे बवाल से ही कई बार घर बनने के बजाय बिगड़ते चले जाते हैं. रिश्ते की हमउम्र कुंआरी बहनों में गहनों की अदलाबदली की यह रीत ज्यादा दिखाई देती है.

चूंकि उन्हें गहने मातापिता या बड़े भाई बनवा कर देते हैं इसलिए उन्हें उन की कीमत का अंदाजा नहीं होता है. पर उन की इस उधारी के गहनों के नुकसान का खमियाजा कई बार उन के आपसी संबंधों को कमजोर कर देता है. लिहाजा, जो गहने आपसी रिश्तों में खटास लाएं, उन की उधारी नहीं करनी चाहिए. खुद के पास जैसे भी गहने हों असली या नकली, कम या ज्यादा, उन्हीं से काम चला लेना चाहिए. वैसे भी आजकल गांव हों या शहर, औरतों के साथ होने वाली लूट की वारदातों में इतनी ज्यादा बढ़ोतरी हो गई है कि गहनों को मांग कर पहनने की सोच को ही दूर से सलाम कर देना चाहिए. सादगी से रहें, सुखी रहें.

5 टिप्स: बदमाश बच्चों को कैसे करें कंट्रोल

लेखक- गरिमा पंकज

बंगलुरु के जेपी नगर में रहने वाले 14 साल के रौनक बनर्जी को ऊंचाई से बहुत डर लगता था. वह बाल्डविन्स ( Baldwins ) बॉयज हाई स्कूल में कक्षा 9 का छात्र था. 29  जून 2016 को इसी रौनक ने अपने अपार्टमेंट के दसवें फ्लोर से कूद कर जान दे दी. मरने से पहले लिखे गए उस के सुसाइड नोट में इस बात का जिक्र था  कि वह अपने क्लासमेट्स द्वारा किए जा रहे बुलिंग से परेशान था. रौनक ने  पत्र में एक जगह लिखा था, “मेरे एक क्लासमेट ने मेरी बुलिंग की. यह मेरे  लिए बहुत ही ज्यादा शर्मनाक और असहनीय था. जिन्हें अपना दोस्त समझा  उन्होंने ही मुझे धोखा दिया. ”

पुलिस तहकीकात के मुताबिक रौनक की  क्लास का एक लड़का उस के फिजिकल अपीयरेंस को ले कर मजाक बनाता था और उस का अपमान करता था. जिस वक्त वह लड़का बुलिंग कर रहा होता बाकी सारे दोस्त रौनक  पर हंसते रहते. रौनक ने कई दफा उन्हें ऐसा करने से रोका. ड्राइवर से भी  शिकायत की मगर कोई परिणाम नहीं निकला. रौनक इस बुलिंग और अपमान से इतना आहत हो चुका था कि उस ने खुद को ही खत्म कर डाला. बाद में बुलिंग करने वाले उस लड़के को जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के तहत रिमांड पर स्टेट होम फॉर बॉयज भेज  दिया गया.

इस तरह की बुलिंग अक्सर स्कूली बच्चों को सहनी पड़ती  है. बच्चे अपना ज्यादातर समय स्कूल में बिताते हैं. यहाँ वे न सिर्फ अपने टीचर या किताबों से सीखते हैं बल्कि क्लास के दोस्तों से भी बहुत कुछ सीखते हैं. ऐसे में किसी बच्चे के साथ बुलिंग की घटना हो तो यह बहुत चिंताजनक बात है. बुलिंग अकेलापन ,डिप्रेशन और लो सेल्फ एस्टीम की वजह बनते हैं. जिस से व्यक्ति सुसाइड तक करने को मजबूर हो जाता है.

नॉन प्रॉफिट  टीचर फाउंडेशन द्वारा पूरे देश में कराए गए एक सर्वे के मुताबिक बहुत से  विद्यार्थी अपमानित होने, बुली किये जाने या उपेक्षित महसूस करने को ले कर  तनावग्रस्त रहते हैं. कक्षा 4 से 8 तक के करीब 23% छात्रों और कक्षा 9 से 12 तक के करीब 14 % छात्रों ने स्वीकार किया कि लंच ब्रेक या प्ले टाइम के  समय वे उपेक्षित या छोड़ा हुआ महसूस करते हैं. कक्षा 4 से 8 तक के करीब 42 % छात्रों और कक्षा 9 से 12तक के करीब 36 % छात्रों ने स्वीकार किया कि  दूसरे बच्चे उन का मजाक बनाते हैं.

अच्छे पड़ोसी हैं जरूरी

यह सर्वे करीब 90  स्कूलों में किया गया. 850 शिक्षकों और 3,300 छात्रों से बात की गई. लड़के जहां फिजिकली   हैरेसमेंट के शिकार पाए गए तो वही लड़कियों को वर्बल आरगूमैंटस की परिस्थितियों को ज्यादा सहनी पड़ीं . वे इस बात से अधिक परेशान थी कि उन के पीठ पीछे बात की जाती है. अब्यूसिव वर्ड्स का इस्तेमाल किया जाता है.

यूके बेस्ड फर्म कौमपेरीटेक द्वारा 28 देशों में किए गए एक सर्वे के मुताबिक 2018 में साइबर बुलिंग के विक्टिम छात्रों की संख्या भारत में सब से अधिक है.

37% अभिभावकों ने यह स्वीकार किया कि उन के बच्चे कम से कम एक बार साइबर बुलिंग के शिकार जरूर बने हैं जब कि 2016  में 15%अभिभावकों ने ही ऐसा स्वीकारा था.

नेशनल सेंटर फॉर एजुकेशनल स्टैटिस्टिक्स की एक  रिपोर्ट के मुताबिक 5 छात्रों में 1 छात्र से ज्यादा यानी करीब 20.8  छात्रों ने बुली का शिकार बनने की रिपोर्ट दर्ज कराई. ज्यादातर बुलिंग की  घटनाए मिडल स्कूल में होती हैं. वर्बल और सोशल बुलिंग ज्यादा किए जाते हैं.

सोशल मीडिया कुंठित लोगों का खतरनाक नशा

किंग्स  कॉलेज ऑफ़ लंदन में किये गए एक अध्ययन के मुताबिक जो बच्चे बारबार बुलिंग का शिकार होते हैं वे जीवन भर तनाव और घुटन में जीते हैं. वे कभी भी खुशहाल और संतुष्ट जीवन नहीं जी सकते.

बुलिंग करने वाले बच्चे को मारपीट करने के आरोप में सुधार गृह या फोस्टर होम्स भेजा जा सकता है. पर माइनर होने की वजह से उन पर आईपीसी की धाराएं नहीं लगाईं जा सकतीं.

क्या है बुलिंग

किसी ऐसे व्यक्ति को अपनी बातों,  गतिविधियों या  हरकतों से चोट पहुंचाना,  परेशान करना, धमकाना या नीचा दिखाना बुलिंग है जो कमजोर है और अपनी रक्षा  करने में सक्षम नहीं है. बुलिंग वर्बल ,फिजिकल,  साइकोलॉजिकल ,साइबर या सोशल  किसी भी तरह का हो सकता है. बच्चों के मामले में इसे चाइल्ड बुलिंग कहते हैं.

कोई भी अभिभावक नहीं चाहता कि उसे यह सुनने को मिले कि उस का  बच्चा दूसरे बच्चे को परेशान कर रहा है. पर अक्सर ऐसा हो जाता है. यह बात  हमेशा ध्यान में रखें कि यदि बच्चा बुलिंग कर रहा है तो जरूरी नहीं कि वह  बुरा ही है. कई बार दिमागी तौर पर तेज और घरवालों की केयर करने वाले बच्चे  भी ऐसी हरकतें करने लग जाते हैं.

बुजुर्गों की सेवा फायदे का सौदा

फैक्टर्स जो बच्चे को बुलिंग करने को प्रेरित करते हैं…

  1. हो सकता है बच्चे को अपने दोस्तों के ग्रुप में बने रहने के लिए यह कदम उठाना पड़ा हो. उस के दोस्त किसी की बुलिंग कर रहे हों तो आप के बच्चे कोभी उन का साथ देना होगा.
  2. संभव है कि आप का बच्चा खुद किसी के द्वारा  बुलिंग का शिकार हो रहा हो. बुली विक्टिम्स अक्सर अपना रोष व्यक्त करने और  ताकत दिखाने के लिए कमजोर बच्चों के साथ बुलिंग करने लगते हैं. .
  3. संभव है कि बच्चा इस तरह अपने शिक्षक,अभिभावक या क्लासमैट्स  का ध्यान अपनी ओर खींचना चाहता हो क्यों कि वह अकेला महसूस कर रहा हो.
  4. क्रिमिनल बैकग्राउंड भी एक वजह हो सकती है. यदि बच्चे के अभिभावक या रिश्तेदार आपराधिक प्रवृत्ति के हैं तो बच्चे के जीन पर इस का असर पड़ता है . वह बचपन से ही ऐसे कार्यों को अंजाम देने लगेगा .स्वभाव से ही वह  डोमिनेटिंग और अग्रेसिव होगा .
  5. बायोलॉजिकल फैक्टर भी बच्चे के स्वभाव को प्रभावित करते हैं. कई दफा बच्चे का ब्रेन ओवर या अंडर डेवलप्डरहता है. दोनों ही स्थिति में बच्चा दूसरे बच्चों को डराने धमकाने या मारपीट करने की गतिविधियों में शामिल होने लगता है. ऐसी हालत में डॉक्टर से कंसल्ट करना जरुरी हो जाता है.
  6. वह समझ ही नहीं पा रहा हो कि उस के  व्यवहार से दूसरे बच्चों को चोट पहुंच रही है. खासकर छोटी उम्र के बच्चों  में प्रायः ऐसा देखा जाता है.
  7. कई बार बच्चे अपने अंदर की समस्याओं औरउलझनों को दबाने/छुपाने के लिए ऊपर से कठोर बन जाते हैं. बात फिजिकल  अपीयरेंस की हो, घरेलू परेशानियों की हो या पढ़ाई में कमजोर होना हो.  किसी  भी तरह से असुरक्षित और कमजोर महसूस कर रहे बच्चे अकसर सोशल स्ट्रक्चर में  अपनी जगह बनाए रखने और स्टेटस ऊंचा दिखाने की जद्दोजहद में बुलिंग का  सहारा लेने लगते हैं.

दिल्ली की मिसेज शोभा कहती हैं ,”मेरी दोस्त की बेटी अनुभा एक सकुचाई ,डरीसहमी सी रहने वाली लड़की थी. उस का आत्मविश्वास  काफी कमजोर था. पर जब उसे किसी और की बुलिंग करने का मौका मिला तो उस ने  ऐसा किया और अपने अंदर दूसरों को नियंत्रित करने,डरानेधमकाने की ताकत  महसूस की. उसे लगने लगा कि क्लास में किसी के द्वारा भी नोटिस न किए जाने  से अच्छा है एक गंदे बच्चे के तौर पर चर्चा का विषय बनना. ”

क्या मनुष्य पापात्मा है?

खासकर उन बच्चों के साथ अक्सर ऐसा होता है जो स्कूल /घर में तनाव, ट्रौमा या लो सेल्फ एस्टीम की समस्या से जूझ रहे होते हैं.

ध्यान  दें  कि क्या आप के बच्चे भी घर या स्कूल में किसी  तरह की परेशानी या दिक्कत महसूस कर रहे हैं. क्या उन्हें किसी तरह की एडजस्टमेंट प्रॉब्लम है , क्या वे अकेला महसूस करते हैं या हीन भावना का  शिकार है. यदि ऐसा है तो उस के साथ वक्त बिताएं और उस के मन से सारी  हीनभावनायें निकालने और परेशानियां दूर करने का प्रयास करें. ताकि उन के अंदर की तकलीफ बाहर किसी और रूप में निकल कर न आये.

यदि आप का बच्चा  भी किसी की बुलिंग कर रहा है तो आश्चर्य करने और उसे डांटनेफटकारने के बजाय बच्चे को समझने और इस समस्या से उबरने का प्रयास करें. बच्चे से बात  कर के उस के नजरिए को समझें. उसे सही दिशा देने का प्रयास करें.

रस्मों की मौजमस्ती धर्म में फंसाने का धंधा

  1. बात करें

जैसे ही आप को टीचर, दोस्त या किसी और अभिभावक द्वारा अपने बच्चे की इस हरकत का  खबर मिले तो सब से पहले बच्चे से बात करें. सीधे तौर पर उसे उस के विरुद्ध  आई शिकायत के बारे में सब कुछ बताएं और फिर शांति से बच्चे को अपना पक्ष  रखने दे. बच्चे से पूछे कि उस ने ऐसा क्यों किया. उसे डांटें नहीं बल्कि उस  के बंद एहसासों को खोलने का प्रयास करें.

  1. बंगलुरु के जेपी नगर में रहने वाले 14 साल के रौनक बनर्जी को ऊंचाई से बहुत डर लगता था. वह बाल्डविन्स ( Baldwins ) बॉयज हाई स्कूल में कक्षा 9 का छात्र था. 29  जून 2016 को इसी रौनक ने अपने अपार्टमेंट के दसवें फ्लोर से कूद कर जान दे दी. मरने से पहले लिखे गए उस के सुसाइड नोट में इस बात का जिक्र था  कि वह अपने क्लासमेट्स द्वारा किए जा रहे बुलिंग से परेशान था. रौनक ने  पत्र में एक जगह लिखा था, “मेरे एक क्लासमेट ने मेरी बुलिंग की. यह मेरे  लिए बहुत ही ज्यादा शर्मनाक और असहनीय था. जिन्हें अपना दोस्त समझा  उन्होंने ही मुझे धोखा दिया. “पुलिस तहकीकात के मुताबिक रौनक की  क्लास का एक लड़का उस के फिजिकल अपीयरेंस को ले कर मजाक बनाता था और उस का अपमान करता था. जिस वक्त वह लड़का बुलिंग कर रहा होता बाकी सारे दोस्त रौनक  पर हंसते रहते. रौनक ने कई दफा उन्हें ऐसा करने से रोका. ड्राइवर से भी  शिकायत की मगर कोई परिणाम नहीं निकला. रौनक इस बुलिंग और अपमान से इतना आहत हो चुका था कि उस ने खुद को ही खत्म कर डाला. बाद में बुलिंग करने वाले उस लड़के को जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के तहत रिमांड पर स्टेट होम फॉर बॉयज भेज  दिया गया.इस तरह की बुलिंग अक्सर स्कूली बच्चों को सहनी पड़ती  है. बच्चे अपना ज्यादातर समय स्कूल में बिताते हैं. यहाँ वे न सिर्फ अपने टीचर या किताबों से सीखते हैं बल्कि क्लास के दोस्तों से भी बहुत कुछ सीखते हैं. ऐसे में किसी बच्चे के साथ बुलिंग की घटना हो तो यह बहुत चिंताजनक बात है. बुलिंग अकेलापन ,डिप्रेशन और लो सेल्फ एस्टीम की वजह बनते हैं. जिस से व्यक्ति सुसाइड तक करने को मजबूर हो जाता है.धर्म के साए में पलते अधर्म

    नॉन प्रॉफिट टीचर फाउंडेशन द्वारा पूरे देश में कराए गए एक सर्वे के मुताबिक बहुत से  विद्यार्थी अपमानित होने, बुली किये जाने या उपेक्षित महसूस करने को ले कर  तनावग्रस्त रहते हैं. कक्षा 4 से 8 तक के करीब 23% छात्रों और कक्षा 9 से 12 तक के करीब 14 % छात्रों ने स्वीकार किया कि लंच ब्रेक या प्ले टाइम के  समय वे उपेक्षित या छोड़ा हुआ महसूस करते हैं. कक्षा 4 से 8 तक के करीब 42 % छात्रों और कक्षा 9 से 12तक के करीब 36 % छात्रों ने स्वीकार किया कि  दूसरे बच्चे उन का मजाक बनाते हैं.

    यह सर्वे करीब 90  स्कूलों में किया गया. 850 शिक्षकों और 3,300 छात्रों से बात की गई. लड़के जहां फिजिकली   हैरेसमेंट के शिकार पाए गए तो वही लड़कियों को वर्बल आरगूमैंटस की परिस्थितियों को ज्यादा सहनी पड़ीं . वे इस बात से अधिक परेशान थी कि उन के पीठ पीछे बात की जाती है. अब्यूसिव वर्ड्स का इस्तेमाल किया जाता है.

     

    यूके बेस्ड फर्म कौमपेरीटेक द्वारा 28 देशों में किए गए एक सर्वे के मुताबिक 2018 में साइबर बुलिंग के विक्टिम छात्रों की संख्या भारत में सब से अधिक है.

    37% अभिभावकों ने यह स्वीकार किया कि उन के बच्चे कम से कम एक बार साइबर बुलिंग के शिकार जरूर बने हैं जब कि 2016  में 15%अभिभावकों ने ही ऐसा स्वीकारा था.

     

    नेशनल सेंटर फॉर एजुकेशनल स्टैटिस्टिक्स की एक  रिपोर्ट के मुताबिक 5 छात्रों में 1 छात्र से ज्यादा यानी करीब 20.8  छात्रों ने बुली का शिकार बनने की रिपोर्ट दर्ज कराई. ज्यादातर बुलिंग की  घटनाए मिडल स्कूल में होती हैं. वर्बल और सोशल बुलिंग ज्यादा किए जाते हैं.

     

    किंग्स  कॉलेज ऑफ़ लंदन में किये गए एक अध्ययन के मुताबिक जो बच्चे बारबार बुलिंग का शिकार होते हैं वे जीवन भर तनाव और घुटन में जीते हैं. वे कभी भी खुशहाल और संतुष्ट जीवन नहीं जी सकते.

     

    बुलिंग करने वाले बच्चे को मारपीट करने के आरोप में सुधार गृह या फोस्टर होम्स भेजा जा सकता है. पर माइनर होने की वजह से उन पर आईपीसी की धाराएं नहीं लगाईं जा सकतीं.

     

    क्या है बुलिंग

    किसी ऐसे व्यक्ति को अपनी बातों,  गतिविधियों या  हरकतों से चोट पहुंचाना,  परेशान करना, धमकाना या नीचा दिखाना बुलिंग है जो कमजोर है और अपनी रक्षा  करने में सक्षम नहीं है. बुलिंग वर्बल ,फिजिकल,  साइकोलॉजिकल ,साइबर या सोशल  किसी भी तरह का हो सकता है. बच्चों के मामले में इसे चाइल्ड बुलिंग कहते हैं.

    कोई भी अभिभावक नहीं चाहता कि उसे यह सुनने को मिले कि उस का  बच्चा दूसरे बच्चे को परेशान कर रहा है. पर अक्सर ऐसा हो जाता है. यह बात  हमेशा ध्यान में रखें कि यदि बच्चा बुलिंग कर रहा है तो जरूरी नहीं कि वह  बुरा ही है. कई बार दिमागी तौर पर तेज और घरवालों की केयर करने वाले बच्चे  भी ऐसी हरकतें करने लग जाते हैं.

     

    जानें अपने प्यार का सच

    फैक्टर्स जो बच्चे को बुलिंग करने को प्रेरित करते हैं;

     

    1. हो सकता है बच्चे को अपने दोस्तों के ग्रुप में बने रहने के लिए यह कदम उठाना पड़ा हो. उस के दोस्त किसी की बुलिंग कर रहे हों तो आप के बच्चे कोभी उन का साथ देना होगा.
    2. संभव है कि आप का बच्चा खुद किसी के द्वारा  बुलिंग का शिकार हो रहा हो. बुली विक्टिम्स अक्सर अपना रोष व्यक्त करने और  ताकत दिखाने के लिए कमजोर बच्चों के साथ बुलिंग करने लगते हैं. .
    3. संभव है कि बच्चा इस तरह अपने शिक्षक,अभिभावक या क्लासमैट्स  का ध्यान अपनी ओर खींचना चाहता हो क्यों कि वह अकेला महसूस कर रहा हो.
    4. क्रिमिनल बैकग्राउंड भी एक वजह हो सकती है. यदि बच्चे के अभिभावक या रिश्तेदार आपराधिक प्रवृत्ति के हैं तो बच्चे के जीन पर इस का असर पड़ता है . वह बचपन से ही ऐसे कार्यों को अंजाम देने लगेगा .स्वभाव से ही वह  डोमिनेटिंग और अग्रेसिव होगा .
    5. बायोलॉजिकल फैक्टर भी बच्चे के स्वभाव को प्रभावित करते हैं. कई दफा बच्चे का ब्रेन ओवर या अंडर डेवलप्डरहता है. दोनों ही स्थिति में बच्चा दूसरे बच्चों को डराने धमकाने या मारपीट करने की गतिविधियों में शामिल होने लगता है. ऐसी हालत में डॉक्टर से कंसल्ट करना जरुरी हो जाता है.
    6. वह समझ ही नहीं पा रहा हो कि उस के  व्यवहार से दूसरे बच्चों को चोट पहुंच रही है. खासकर छोटी उम्र के बच्चों  में प्रायः ऐसा देखा जाता है.
    7. कई बार बच्चे अपने अंदर की समस्याओं औरउलझनों को दबाने/छुपाने के लिए ऊपर से कठोर बन जाते हैं. बात फिजिकल  अपीयरेंस की हो, घरेलू परेशानियों की हो या पढ़ाई में कमजोर होना हो.  किसी  भी तरह से असुरक्षित और कमजोर महसूस कर रहे बच्चे अकसर सोशल स्ट्रक्चर में  अपनी जगह बनाए रखने और स्टेटस ऊंचा दिखाने की जद्दोजहद में बुलिंग का  सहारा लेने लगते हैं.

    दिल्ली की मिसेज शोभा कहती हैं ,”मेरी दोस्त की बेटी अनुभा एक सकुचाई ,डरीसहमी सी रहने वाली लड़की थी. उस का आत्मविश्वास  काफी कमजोर था. पर जब उसे किसी और की बुलिंग करने का मौका मिला तो उस ने  ऐसा किया और अपने अंदर दूसरों को नियंत्रित करने,डरानेधमकाने की ताकत  महसूस की. उसे लगने लगा कि क्लास में किसी के द्वारा भी नोटिस न किए जाने  से अच्छा है एक गंदे बच्चे के तौर पर चर्चा का विषय बनना. ”

     

    खासकर उन बच्चों के साथ अक्सर ऐसा होता है जो स्कूल /घर में तनाव, ट्रौमा या लो सेल्फ एस्टीम की समस्या से जूझ रहे होते हैं.

     

    ध्यान  दें  कि क्या आप के बच्चे भी घर या स्कूल में किसी  तरह की परेशानी या दिक्कत महसूस कर रहे हैं. क्या उन्हें किसी तरह की एडजस्टमेंट प्रॉब्लम है , क्या वे अकेला महसूस करते हैं या हीन भावना का  शिकार है. यदि ऐसा है तो उस के साथ वक्त बिताएं और उस के मन से सारी  हीनभावनायें निकालने और परेशानियां दूर करने का प्रयास करें. ताकि उन के अंदर की तकलीफ बाहर किसी और रूप में निकल कर न आये.

     

    यदि आप का बच्चा  भी किसी की बुलिंग कर रहा है तो आश्चर्य करने और उसे डांटनेफटकारने के बजाय बच्चे को समझने और इस समस्या से उबरने का प्रयास करें. बच्चे से बात  कर के उस के नजरिए को समझें. उसे सही दिशा देने का प्रयास करें.

     

    1. बात करें

    जैसे ही आप को टीचर, दोस्त या किसी और अभिभावक द्वारा अपने बच्चे की इस हरकत का  खबर मिले तो सब से पहले बच्चे से बात करें. सीधे तौर पर उसे उस के विरुद्ध  आई शिकायत के बारे में सब कुछ बताएं और फिर शांति से बच्चे को अपना पक्ष  रखने दे. बच्चे से पूछे कि उस ने ऐसा क्यों किया. उसे डांटें नहीं बल्कि उस  के बंद एहसासों को खोलने का प्रयास करें.

     

    1. वजह पता लगाएं और लॉजिकल दंड दें

    पता  लगाइये कि आप का बच्चा ऐसा क्यों कर रहा है. बच्चे के टीचर या दोस्तों से बात कीजिये और इस व्यवहार के पीछे मौजूद सही वजह जानने का प्रयास करें. यदि बच्चा खुद बुली विक्टिम है तो उसे इस स्थिति से निकालने में मदद  करें. यदि वह स्कूल में लोकप्रियता हासिल करने के लिए ऐसा कर रहा है तो आप  उस को स्वस्थ दोस्ती और सब को साथ ले कर चलने की अहमियत बताएं.

     

    यदि  आप का बच्चा कंप्यूटर और सेलफोन के सहारे साइबर बुलिंग में इंवॉल्व है तो  तुरंत उस से फ़ोन और कंप्यूटर छीन लें. वह किसी दोस्त के साथ मिल कर ऐसा  करता है तो उस दोस्त से उस का मिलनाजुलना बंद करा दें. इसी तरह यदि वह रिश्तेदारों और पड़ोसियों के बच्चों को खेलते समय तंग करता है तो आप उस का सोशल बायकोट करा दें. उस को फैमिली कार में घुमाना ,पार्टीज और सोशल  इवेंट्स में ले जाना ,सोशल मीडिया का प्रयोग करना वगैरह बंद करा दे. घर में  कभी भी उसे अकेला न छोड़ें.

     

    1. नजरिया बदलने का प्रयास करें

     

    एक  बार बच्चे की समस्या समझ लेने के बाद आप को उसे इन समस्याओं से निकालने का प्रयास करना पड़ेगा. उन परिस्थितियों को समझें जिन की वजह से वह दूसरे  बच्चों को परेशान करने का प्रयास कर रहा है. उस की सोच बदलने की कोशिश करें. यदि आप का बच्चा जानबूझ कर किसी को तकलीफ दे रहा है, अपने किसी  क्लासमेट को खेलकूद या सोशल एक्टिविटीज में हिस्सा लेने से रोक रहा है तो  उसे समझाएं कि यदि कोई उसे अपने साथ न खिलाए या अकेला छोड़ दे तो उसे कितना  बुरा लगेगा. इसलिए हमेशा दूसरों को साथ ले कर चलना चाहिए और अच्छा व्यवहार करना चाहिए. जब भी कोई बच्चा साथ खेलने के लिए पूछे तो तुरंत ग्रुप में शामिल कर लेना चाहिए.

     

    बहुत से बच्चों के लिए बुलिंग शक्ति और ताकत  दिखाने का जरिया होता है. वे अपना डोमिनेंस महसूस करते हैं. मगर याद रखें  कहीं न कहीं यह एक  गलत ,ओछा , क्रूर और दर्द से भरा हुआ जरिया है. यह बात  आप को ही अपने बच्चे को समझानी होगी कि ताकत सही रास्ते से दिखाई जाती है. आप उस की एनर्जी को सही रास्ता दिखाएं. उसे लीडर बनने को प्रेरित करें ताकि   वह दूसरों को अपने अधीन रखने की भूख मिटा सके और उस की जिंदगी में उस की  महत्वाकांक्षाओं को सही आधार भी मिल जाए.

     

    अक्षय तृतीया से जुड़े भ्रामक तथ्य

    1. खुद को भी देखें

    जब   बच्चे घर में मांबाप या दूसरे घरवालों को एकदूसरे के साथ लड़तेझगड़ते या बुरा व्यवहार करते देखते हैं तो वे वही बात स्कूल में दोहराने लगते हैं. अभिभावकों को इस बात का एहसास जरूर होना चाहिए कि उन का व्यवहार कैसे उन के  बच्चों को प्रभावित कर सकता है. वे अपने बच्चों और जीवनसाथी से कैसे बात करते हैं, अपने गुस्से को कैसे हैंडल करते हैं  इन सब का असर बच्चे के कोमल  मन और व्यवहार पर पड़ता है.

    अक्सर ऐसा होता है कि बुलिंग आप के घर में  आप के ही द्वारा होता है पर उस पर आप का ध्यान नहीं जाता. इस लिए सब से  पहले घर से शुरुआत करें. घर के प्रत्येक सदस्य को आगाह करें. एकदूसरे के साथ प्रेमपूर्ण व्यवहार करें. घर में सकारात्मक वातावरण का निर्माण करें.

     

    1. बच्चे को शर्मिंदा न करें

    कुछ अभिभावक बुली चाइल्ड को सजा के तौर पर शर्मिंदा करने लगते हैं जैसे दूसरों   के आगे डांटना फटकारना ,कान पकड़ कर दरवाजे के बाहर खड़ा रखना वगैरह. इस  तरह उन के व्यवहार पर काबू नहीं पाया जा सकता. उलटा ऐसा करने पर वह  प्रतिशोध के साथ इस तरह की हरकतें ज्यादा करने लगते हैं.

    इसी तरह बच्चा  जब किसी का बुलिंग कर रहा होता है तो उस वक्त से बहुत अच्छा लगता है. मगर  यदि उसे विक्टिम से माफी मांगने को कहा जाए तो यह बात उसे बहुत ही अपमानजनक लगती है. शर्मिंदगी और गिल्ट की भावना उस के व्यक्तित्व पर बुरा असर डाल  सकती है. इसलिए यदि आप के बच्चे ने किसी की बुलिंग की यह जानने के बाद उसे डांटे फटकारें नहीं और माफी मांगने को भी विवश न करें. इस से बच्चा बहुत शर्मिंदगी महसूस करेगा. इस के विपरीत खूबसूरत तरीकों से भी रिश्ते में  सुधार लाया जा सकता है.

    अपने बच्चे से कहें कि जिसे उस ने परेशान किया है उसे लेटर लिख कर ,मैसेज कर या सामने जा कर माफी मांग लें ताकि  दोनों के बीच रिश्ते सुधर जाए.

    आप अपने बच्चे से पूरे क्लास के लिए कुकीज बनवा के ले जाने या क्लासमेट्स को सरप्राइज पार्टी देने जैसे काम  करवा सकते हैं. इस से बच्चे के मन में गिल्ट भी पैदा नहीं होगा और दूसरों  के साथ उस का रिश्ता भी सुधर जाएगा.

    पता  लगाइये कि आप का बच्चा ऐसा क्यों कर रहा है. बच्चे के टीचर या दोस्तों से बात कीजिये और इस व्यवहार के पीछे मौजूद सही वजह जानने का प्रयास करें. यदि बच्चा खुद बुली विक्टिम है तो उसे इस स्थिति से निकालने में मदद  करें. यदि वह स्कूल में लोकप्रियता हासिल करने के लिए ऐसा कर रहा है तो आप  उस को स्वस्थ दोस्ती और सब को साथ ले कर चलने की अहमियत बताएं.

    समाधि की दुकानदारी कितना कमजोर धर्म

यदि  आप का बच्चा कंप्यूटर और सेलफोन के सहारे साइबर बुलिंग में इंवॉल्व है तो  तुरंत उस से फ़ोन और कंप्यूटर छीन लें. वह किसी दोस्त के साथ मिल कर ऐसा  करता है तो उस दोस्त से उस का मिलनाजुलना बंद करा दें. इसी तरह यदि वह रिश्तेदारों और पड़ोसियों के बच्चों को खेलते समय तंग करता है तो आप उस का सोशल बायकोट करा दें. उस को फैमिली कार में घुमाना ,पार्टीज और सोशल  इवेंट्स में ले जाना ,सोशल मीडिया का प्रयोग करना वगैरह बंद करा दे. घर में  कभी भी उसे अकेला न छोड़ें.

  1. नजरिया बदलने का प्रयास करें

एक  बार बच्चे की समस्या समझ लेने के बाद आप को उसे इन समस्याओं से निकालने का प्रयास करना पड़ेगा. उन परिस्थितियों को समझें जिन की वजह से वह दूसरे  बच्चों को परेशान करने का प्रयास कर रहा है. उस की सोच बदलने की कोशिश करें. यदि आप का बच्चा जानबूझ कर किसी को तकलीफ दे रहा है, अपने किसी  क्लासमेट को खेलकूद या सोशल एक्टिविटीज में हिस्सा लेने से रोक रहा है तो  उसे समझाएं कि यदि कोई उसे अपने साथ न खिलाए या अकेला छोड़ दे तो उसे कितना  बुरा लगेगा. इसलिए हमेशा दूसरों को साथ ले कर चलना चाहिए और अच्छा व्यवहार करना चाहिए. जब भी कोई बच्चा साथ खेलने के लिए पूछे तो तुरंत ग्रुप में शामिल कर लेना चाहिए.

बहुत से बच्चों के लिए बुलिंग शक्ति और ताकत  दिखाने का जरिया होता है. वे अपना डोमिनेंस महसूस करते हैं. मगर याद रखें  कहीं न कहीं यह एक  गलत ,ओछा , क्रूर और दर्द से भरा हुआ जरिया है. यह बात  आप को ही अपने बच्चे को समझानी होगी कि ताकत सही रास्ते से दिखाई जाती है. आप उस की एनर्जी को सही रास्ता दिखाएं. उसे लीडर बनने को प्रेरित करें ताकि   वह दूसरों को अपने अधीन रखने की भूख मिटा सके और उस की जिंदगी में उस की  महत्वाकांक्षाओं को सही आधार भी मिल जाए.

  1. खुद को भी देखें

जब बच्चे घर में मांबाप या दूसरे घरवालों को एकदूसरे के साथ लड़तेझगड़ते या बुरा व्यवहार करते देखते हैं तो वे वही बात स्कूल में दोहराने लगते हैं. अभिभावकों को इस बात का एहसास जरूर होना चाहिए कि उन का व्यवहार कैसे उन के  बच्चों को प्रभावित कर सकता है. वे अपने बच्चों और जीवनसाथी से कैसे बात करते हैं, अपने गुस्से को कैसे हैंडल करते हैं  इन सब का असर बच्चे के कोमल  मन और व्यवहार पर पड़ता है.

अक्सर ऐसा होता है कि बुलिंग आप के घर में  आप के ही द्वारा होता है पर उस पर आप का ध्यान नहीं जाता. इस लिए सब से  पहले घर से शुरुआत करें. घर के प्रत्येक सदस्य को आगाह करें. एकदूसरे के साथ प्रेमपूर्ण व्यवहार करें. घर में सकारात्मक वातावरण का निर्माण करें.

  1. बच्चे को शर्मिंदा न करें

कुछ अभिभावक बुली चाइल्ड को सजा के तौर पर शर्मिंदा करने लगते हैं जैसे दूसरों   के आगे डांटना फटकारना ,कान पकड़ कर दरवाजे के बाहर खड़ा रखना वगैरह. इस  तरह उन के व्यवहार पर काबू नहीं पाया जा सकता. उलटा ऐसा करने पर वह  प्रतिशोध के साथ इस तरह की हरकतें ज्यादा करने लगते हैं.

इसी तरह बच्चा  जब किसी का बुलिंग कर रहा होता है तो उस वक्त से बहुत अच्छा लगता है. मगर  यदि उसे विक्टिम से माफी मांगने को कहा जाए तो यह बात उसे बहुत ही अपमानजनक लगती है. शर्मिंदगी और गिल्ट की भावना उस के व्यक्तित्व पर बुरा असर डाल  सकती है. इसलिए यदि आप के बच्चे ने किसी की बुलिंग की यह जानने के बाद उसे डांटे फटकारें नहीं और माफी मांगने को भी विवश न करें. इस से बच्चा बहुत शर्मिंदगी महसूस करेगा. इस के विपरीत खूबसूरत तरीकों से भी रिश्ते में  सुधार लाया जा सकता है.

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अपने बच्चे से कहें कि जिसे उस ने परेशान किया है उसे लेटर लिख कर ,मैसेज कर या सामने जा कर माफी मांग लें ताकि  दोनों के बीच रिश्ते सुधर जाए.

आप अपने बच्चे से पूरे क्लास के लिए कुकीज बनवा के ले जाने या क्लासमेट्स को सरप्राइज पार्टी देने जैसे काम  करवा सकते हैं. इस से बच्चे के मन में गिल्ट भी पैदा नहीं होगा और दूसरों  के साथ उस का रिश्ता भी सुधर जाएगा.

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