मेरे पति का रोमांस बिलकुल खत्म हो गया है, मैं क्या करुं?

सवाल 

हमारी शादी को अभी 3 महीने ही हुए हैं, लेकिन मेरे पति का रोमांस बिलकुल खत्म हो गया है. जिसे ले कर मैं काफी चिंतित हूं.

जवाब

शादी के शुरुआती दिनों में तो रोमांस बढ़ता है. पार्टनर के करीब जाने को, उसे चूमने को दिल करता है. ऐसे में आप के पति के ऊबने का कारण समझ नहीं आ रहा है. आप उन से प्यार से इस बारे में जानने की कोशिश करें. और खुद को भी टिपटौप रखें. मौडर्न कपड़े पहनें, कौन्फिडैंट रहें, कुछ इनोवेटिव करें ताकि आप का पार्टनर आप से भागे नहीं बल्कि करीब आए. इन सब के बावजूद अगर हालात नहीं सुधरें तो खुल कर इस विषय में बात करें ताकि आप के सामने पूरी स्थिति साफ हो सके.

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मैं एक्टर बनना चाहता हूं, पर कैसे?

सवाल 

बीए प्रथम वर्ष का छात्र हूं और मैं ऐक्टर बनना चाहता हूं. मैं थिएटर करता हूं. बड़े-बड़े औडिटोरियम्स में शो कर चुका हूं. क्या एक्टर बनने के लिए मुझे नैशनल स्कूल औफ ड्रामा में दाखिला लेना चाहिए या नहीं? यदि हां तो इस के लिए क्या करना होगा और क्या इस प्रशिक्षण के बाद मैं एक्टर बन पाऊंगा?

जवाब

आप की यह अच्छी हौबी है, यदि भविष्य में आप इसे ही कैरियर बनाना चाहते हैं तो बीए की पढ़ाई पूरी करने के बाद आप अपने इस मनपसंद कोर्स में ऐडमिशन ले सकते हैं. जहां तक इस के बारे में जानकारी की बात है तो वह आप को इंटरनैट से मिल जाएगी. आप को आगाह कर दें कि अन्य क्षेत्रों की बनिस्बत इस क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा बहुत अधिक है, इसलिए सोचसमझ कर ही फैसला लें.

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बेड़ियां तोड़ती मुस्लिम लड़कियां

लेखक – जरगाम मियां, मो. अताउल्लाह

वह लड़की है सना नियाज, जो दिल्ली के जामा मसजिद इलाके की तंग गलियों में से एक गली मदरसा हुसैन बख्श में रहने वाले नियाजुद्दीन की बेटी है.नियाजुद्दीन जामा मसजिद के पास ही एक होटल ‘अल जवाहर’ में बावर्ची हैं. सना नियाज 6 भाईबहनों में चौथे नंबर पर है. उस से बड़ी 3 बहनें हैं जिन में पहले नंबर की बहन इलमा दिल्ली के जाकिर हुसैन कालेज से ग्रेजुएशन करने के बाद जामिया मिल्लिया इसलामिया यूनिवर्सिटी से फैशन डिजाइनिंग में डिप्लोमा कर रही है, वहीं दूसरे नंबर की बहन इकरा भी जाकिर हुसैन कालेज से ग्रेजुएशन के बाद उसी यूनिवर्सिटी से फाइन आर्ट्स में डिगरी कोर्स कर रही है, जबकि तीसरे नंबर की बहन उमेरा, जिस ने साल 2017 में 12वीं जमात पास की थी, इस समय नौर्थ कैंपस के हिंदू कालेज में बीए की छात्रा है.

सना नियाज जामा मसजिद इलाके की उन गलियों में रहती है जहां पर आज से कुछ साल पहले तक लड़कियां अपने घरों में लोकल दुकानदारों के लिए थैलियां बनाती थीं, बुक बाइंडरों के लिए किताबों के फर्मों की मुड़ाई किया करती थीं. उन के लिए स्कूली तालीम बेकार की बात समझी जाती थी.

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ऐसे इलाके के एक घर में 1-2 नहीं, बल्कि 5 लड़कियां तालीम हासिल कर रही हैं. इन में से 3 लड़कियों ने स्कूल में टौप किया है और एक लड़की सना नियाज ने तो दिल्ली के सरकारी स्कूलों के नतीजों में 97.6 फीसदी अंकों के साथ पहला मुकाम हासिल किया है.

जब मैं सना नियाज के अब्बा नियाजुद्दीन से मिला तो उन्होंने बताया कि सना और उस की अम्मी इस वक्त पहाड़ी इमली पर एक समिति के औफिस में मौजूद हैं जहां उस के सम्मान में एक कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है.

जब मैं वहां पहुंचा तो सना के साथ उस की अम्मी और कुछ दूसरी लड़कियां भी मौजूद थीं. उन लड़कियों ने भी 12वीं जमात में अच्छे नंबर हासिल किए थे और वे सारी लड़कियां भी जामा मसजिद के सर्वोदय कन्या विद्यालय नंबर 3 की छात्राएं थीं. यह उर्दू मीडियम स्कूल है.

सना नियाज के मुताबिक, उस ने अपनी बड़ी बहनों की परंपरा को ही आगे बढ़ाया है. उस की बड़ी बहनें भी पढ़ाईलिखाई में अच्छी हैं और उस ने भी सर्वोदय कन्या विद्यालय नंबर 3, जामा मसजिद से पढ़ाई की है.

सना नियाज का सपना है कि उसे सैंट स्टीफन कालेज में दाखिला मिल जाए और वहीं से ग्रेजुएशन करने के बाद सिविल सर्विस के इम्तिहान में कामयाबी पाने की कोशिश की जाए.

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वहीं दूसरी ओर सना नियाज की अम्मी असमा परवीन का कहना है, ‘‘आज से 18-20 साल पहले जब मैं ने अपनी बेटियों को पढ़ाने का फैसला किया था तब आसपड़ोस के लोगों ने इस बात पर एतराज जताया था, मगर मैं ने उन पर ध्यान नहीं दिया था क्योंकि मेरे शौहर ने मुझे इस बारे में आजादी दे दी थी कि मैं जिस तरह चाहूं अपनी लड़कियों की परवरिश करूं.’’

नियाजुद्दीन की कम आमदनी में 6 बच्चों की पढ़ाई के साथ घर का खर्च चलाना मुश्किल काम था. मगर सना की अम्मी असमा परवीन का कहना है कि उन्होंने अपने इरादे को अमलीजामा पहनाने के लिए हर मुमकिन कोशिश की. इसी का नतीजा है कि आज उन की बेटियां बेहतर तालीम ले रही हैं.

अपनी इस कामयाबी में सना नियाज अपने स्कूल की प्रिंसिपल नीलम सचदेवा को भी श्रेय देती है. उस के मुताबिक, प्रिंसिपल मैडम का बरताव सख्त टीचर का न हो कर एक अच्छे दोस्त जैसा रहा है जिस से स्कूल में पढ़ने का माहौल बना रहता है.

सना नियाज की ख्वाहिश है कि समाज की हर लड़की पढ़ीलिखी हो, जिस से कि वह अपने पैरों पर खड़ी हो कर एक अच्छे समाज को बना सके.

सना नियाज के साथसाथ जब 12वीं जमात की दूसरी लड़कियों से बात की गई तो उन में से ज्यादातर ने कहा कि उन का पढ़ने का मकसद टीचर बनना है.

एक लड़की का कहना था कि उस की मां की ख्वाहिश है कि वह पढ़लिख कर टीचर बने इसलिए वह टीचर बनना चाहती है जबकि एक और लड़की का कहना था कि वे 4 बहनें हैं और उस की बाकी बहनें भी चाहती थीं कि वे टीचर बनें मगर किसी वजह से वे टीचर नहीं बन सकीं, इसलिए अब वह खुद टीचर बन कर उन सब का ख्वाब पूरा करेगी.

सना नियाज की कामयाबी सिर्फ एक लड़की की कामयाबी नहीं है. यह कामयाबी एक इशारा है कि आज का यह समाज भी तेजी से बदल रहा है जिस को पिछड़ा और परंपराओं की चारदीवारी में कैद बताया जाता रहा है.

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मुसलिमों के पसमांदा समाज में भी औरतें आज तेजी से आगे बढ़ रही हैं. आज वे किसी और पर निर्भर नहीं रहना चाहती हैं. उन के अंदर भी कुछ करने का जज्बा उफान पर है.

सना नियाज के अलावा भी हमें जितनी लड़कियां मिलीं, वे सब मिडिल क्लास परिवारों से ताल्लुक रखती थीं. मगर सना में और उन बाकी लड़कियों में एक बात अलग थी, वह यह कि सना के अलावा सब बुरका पहने हुए थीं.

शायद यही फर्क था कि जहां सना सिविल सर्विस का इम्तिहान दे कर समाज की तरक्की के लिए काम करना चाहती है तो बाकी की सारी लड़कियों की जिंदगी का मकसद टीचर बनना है.

सना नियाज चाहती है कि वह भी उसी तरह अपने समाज की दूसरी लड़कियों के काम आ सके, जिस तरह उस की अम्मी हर समय इलाके की लड़कियों की तालीम के लिए जद्दोजेहद करती रहती हैं.

सना नियाज की अम्मी असमा परवीन चाहती हैं कि कोई भी लड़की बगैर तालीम के नहीं रहे. इस के लिए वे इलाके के लोगों को समझाती रहती हैं. अगर कोई यह कहता है कि वह अपनी लड़की को तालीम नहीं दिलाएगा तो वे उस को समझाने की कोशिश करती हैं.

सना नियाज की भी यही ख्वाहिश है कि वह जिंदगी में एक ऐसा मुकाम हासिल करे, जिस से वह समाज की तरक्की में हिस्सा ले सके.

मेरा पढ़ाई में बिलकुल मन नहीं लग रहा है. क्या करूं?

सवाल 

मैं बीए की छात्रा हूं. पिछले 2 वर्षों से मेरा झुकाव एक लड़के की तरफ है. अपने दिल की बात उस से कहने में डरती हूं. ऐसे में मेरे दिमाग में बस उस लड़के की तस्वीर घूमती है. मेरा पढ़ाई में बिलकुल मन नहीं लग रहा है. क्या करूं?

जवाब 

आप की उम्र पढ़लिख कर भविष्य संवारने की है. इसलिए इन सब चक्करों से अपना मन हटा कर अपनी पढ़ाई की ओर ध्यान दें. अभी सारा जीवन आप के सामने पड़ा है. यदि पढ़लिख कर आप अपना भविष्य संवार लेती हैं तो जीवन में और भी अच्छे लड़के मिलेंगे.

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अश्लीलता: मोबाइल बना जरिया

आज के दौर में सोशल मीडिया के बढ़ते जोर से अब हर हाथ में वह चाबी है जो बड़ी आसानी से किसी भी अश्लील साइट का मुश्किल दरवाजा चुटकियों में खोल देती है, फिर जगह चाहे कोई भी हो. पर अगर कई साल पीछे जाएं तो उस दौर में लोग रंगीन पोस्टरनुमा किताबों में विदेशी अश्लील सितारों के मदमस्त पोज देख कर ही चरमसुख भोग लिया करते थे. ऐसी किताबें एक हाथ से दूसरे हाथ में चलती रहती थीं. जो लाता था वह बीच में बैठ कर देखता था और दूसरों को भी दिखाता था. पर उन्हें अपने बड़ों से छिपा कर रखना बड़ा मुश्किल होता था. नजर पड़ते ही पोल खुल जाए. अगर आप की नईनई मूंछें आई हैं तो पिटाई होने का भी खतरा बना रहता था.

उस के बाद वीडियो कैसेट में भरी जाने वाली अश्लील फिल्में देखते ही देखते हिट हो गईं. बंद कमरे में मस्ती भरा मनोरंजन. बहुत से स्कूली बच्चे थोड़ेथोड़े पैसे मिला कर किराए पर वीसीआर और अश्लील वीडियो कैसेट लाते थे और किसी एक के घर पर बैठ कर चोरीछिपे अपना दिन रंगीन कर लेते थे. बड़ों को इस बात की ज्यादा परवाह नहीं होती थी पर कोई सुरक्षित जगह तो उन्हें भी चाहिए थी.

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लेकिन जब से मोबाइल फोन हाथ में आया है, अश्लील के बाजार में जबरदस्त उछाल आ गया है. लैपटौप और मोबाइल फोन से देखा जाने वाला अश्लील इस इंडस्ट्री से जुड़े लोगों को अरबों रूपए की कमाई करा देता है. इंटरनेट पर यह सब से ज्यादा मुनाफे वाला धंधा बन गया है.

और जब से लोग सेक्स करते खुद के वीडियो बना कर सोशल मीडिया पर सरेआम कर रहे हैं तब से इस में देशीपन का छोंक भी लग गया है. इन वीडियो में साथी से छुप कर बनाए गए वीडियो से ले कर खेत में रेप के वीडियो तक शामिल होते हैं. कभीकभार तो सेक्स कर रहे जोड़े को ही नहीं पता होता है कि कोई तीसरी डिजिटल आंख उन के प्रेम प्रसंग को सार्वजनिक कर रही है.

कई बार लड़कियां खुद अकेले में अपने अश्लील वीडियो अपलोड कर के लोगों की राय जानना चाहती हैं कि उन की देह में किस हद का मस्तानापन है या पति अपनी पत्नी को चूमते हुए कहता है, ‘अगर आप को मेरी पत्नी की यह अदा पसंद आई है तो इस वीडियो को ज्यादा से ज्यादा लाइक और शेयर कीजिए.’

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ऐसा भी होता है

‘टिकटौक’ और ‘म्यूजिकली’ जैसे ऐप तो ऐसे वीडियो बनाने वालों के लिए वरदान बन गए हैं. एक नजरिए से अश्लील देखना अब एक आम बात हो गई है. लोग मान लेते हैं कि वे अकेले या दोस्तों या फिर अपने सेक्स पार्टनर के साथ अश्लील देख लेते हैं.

पर कभीकभार मामला बिगड़ भी जाता है. पुणे के एक डिजिटल बोर्ड पर तो अश्लील चल गई थी और उसे देखने के लिए वहां लोग जमा हो गए थे. दरअसल, किसी ने गलती से एक बिजी सड़क कर्वे रोड पर लगे डिजिटल बोर्ड पर अश्लील फिल्म चला दी थी जिस के चलते वहां का यातायात जाम हो गया था. यह जाम हायहाय करने के लिए नहीं, बल्कि आहें भरने के लिए लगा था.

इसी तरह केरल के वायनाड जिले में कलपेट्टा इलाके के बसस्टैंड पर अश्लील फिल्म चल गई थी. बस औपरेटर की पेन ड्राइव बदल जाने के चलते वहां इंतजार कर रहे मुसाफिरों ने 30 मिनट तक पौर्न फिल्म देखने का मजा लिया था. इस के बाद उसे बंद कर दिया गया होगा, वरना लोग तो और भी देर तक देखने के मूड में रहे होंगे.

एक अलग ही मामले में भारतीय नेवी के एक कमांडर पर अपनी पत्नी के आपत्तिजनक और मौर्फ्ड (एडिट किए हुए) फोटो को गूगल फोटो ऐप पर डालने का आरोप लगा था.

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इस मामले में उस कमांडर की पत्नी ने पुलिस को बयान दिया था कि उस के पति को पिछले 11 साल से पौर्न देखने की लत है, जिस से वह परेशान हो गई थी. कमांडर के घर वाले और एक प्रोफेशनल काउंसिलर भी उस के पति की यह लत नहीं छुड़वा पाए थे, बल्कि उस के पति ने उसे ही सताना शुरू कर दिया था.

इस का सीधा सा मतलब है कि अब लोगों के मोबाइल फोन में आसानी से अश्लील वीडियो मुहैया हैं. रोजाना हजारों तरह के ऐसे एकदम देशी वीडियो अपलोड होते रहते हैं. गांवदेहात के लोग भी ऐसा करने में पीछे नहीं हैं. अगर आप बालिग हैं तो अश्लील देखने में कोई बुराई नहीं है पर जरा संभल कर, क्योंकि अगर किसी सार्वजनिक जगह पर आप इस का लुत्फ लेते पकड़े गए, तो हंसी का पात्र भी बन सकते हैं.

Edited by- Neelesh Singh Sisodia 

एक सवाल-‘घरेलू हिंसा के कारण’

ससुराल स्वर्ग या अभिशाप… ?

मेरा एक सवाल समाज से ,घर और परिवार से क्या एक स्त्री को ससुराल भेजने के लिए ही पैदा किया जाता है ? अपनी बेटी को अचानक से एक अंजान घर में भेज दिया जाता है ,जहां उससे ये कहा जाता है कि अब तुम इस घर की बहू हो इस घर को संभालो तुम्हारी जिम्मेदारी बढ़ गई है. इतना ही नहीं वो  स्त्री सारे काम सीख जाती है,उस घर को अपना बना लेती है.लेकिन उस वक्त क्या जब उस देवी समान स्त्री को घरेलू हिंसा का शिकार होना पड़ता है. कभी दहेज के रूप में ये हिंसा उसके सामने आती है तो कभी बेटे को जन्म न दे पाने के कारण ये हिंसा उसके साथ होती है.

एक माता-पिता अपनी बेटी को बड़े अरमानों के साथ ससुराल भेजते हैं और साथ उसकी सुविधा के ध्यान रखते हुए सारे सामान देते हैं और इतना ही नहीं उनकी बेटी को कोई तकलीफ न हो इसके लिए वो दहेज के नाम पर ससुराल वालों को भी कुछ समान देते हैं….लेकिन ये दहेज प्रथा आज समाज और स्त्री के लिए अभिशाप बन गई है क्योंकि यही दहेज जब कम पड़ता है और लड़के वालों की मांगे पूरी नहीं होती है तो उस स्त्री को प्रताड़ित किया जाता है. अक्सर ससुराल वाले चाहते हैं कि मेरी बहू लड़के को जन्म दे..लेकिन अगर लड़की जन्म लेती है तो उस स्त्री को फिर प्रताड़ित किया जाता है. लोग ये क्यों नहीं समझते हैं कि लड़के या लड़की का पैदा होना किसी भी मनुष्य के हाथ में नहीं है.

मैं ये नहीं कहती की हर जगह या हर  ससुराल ऐसा होता है लेकिन आज दुनिया के ऐसे बहुत से कोने हैं जहां घरेलू हिंसा जैसी वारदात होती है. आए दिन ये खबर सुनने को मिलती है कि दहेज के लालच में पति ने पत्नि को जिंदा जलाया या मारा, ससुराल वालों से तंग आकर महिला ने की खुदखुशी. 22 जून 2019 में एक खबर आई की गोवा की एक महिला ने अपने ही पति को पीट- पीट कर मार डाला क्योंकि पति पत्नी को प्रताड़ित करता था. ये खबर ये साबित करती है की इसके चलते अपराध भी बढ़ता जा रहा है. 19 मार्च 2019 में खबर आई कि अहमदाबाद में पति ने अपनी पत्नी को सिर्फ इसलिए मारा क्योंकि उसने शैम्पू के लिए पैसे मांगे थे. 22 मई 2019 की एक खबर आईपीएस ने अपनी पत्नी को 5 करोड़ रुपए दहेज के लिए पीटा.

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घरेलू हिंसा के पीड़ितों को कई बार यह पता ही नहीं होता कि वे मदद मांगने किसके पास जा सकती हैं.

  • घरेलू हिंसा की शिकार हुई महिला कभी अपने डर से बाहर नहीं आ पाती है.
  • मानसिक आघात महिला को भीतर से तोड़कर रख देती है.
  • घरेलू हिंसा एक ऐसा दर्द ऐसा जख्म है जो शायद ही कोई महिला भूले.
  • मानसिक रोग की स्थिति में महिला पहुंच जाती है.
  • घरेलू हिंसा महिला की गरिमा को छिन्न-भिन्न कर देता है.

एक रिपोर्ट से पता चला कि मोरक्को में एक महिला हैं सलमा, 23 साल की सलमा 2 बच्चों की मां और शिक्षा कार्यकर्ता हैं, जो घरेलू हिंसा से पीड़ित थी कभी. उन्होंने जब इसके खिलाफ आवाज उठाई तो सबसे पहले एक रेडियो स्टेशन के जरिए अपनी व्यथा व्यक्त की थी. यह रेडियो स्टेशन मोरक्को में महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए काम करने वाले एक अभियान से जुड़ा है, जिसका नाम है ‘मेक योर स्टोरी हर्ड’. मोरक्को में अभियान चला कर पीड़ित महिलाओं को कानूनी मदद देकर उनके हिंसक पतियों के खिलाफ कार्रवाई करने में मदद की जा रही है. ऐसे ही कई अभियान हैं,जो भारत में भी चलाए जा रहे हैं लेकिन फिर भी घरेलू हिंसा की वारदात बढ़ती ही जा रही है.अकेले अगर भारत की बात करें तो यहां नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के आंकड़े दिखाते हैं कि 15 से 49 प्रतिशत महिलाओं के साथ कभी न कभी शारीरिक हिंसा हुई थी.घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम, 2005 भारत की संसद द्वारा पारित एक अधिनियम है जिसका उद्देश्य घरेलू हिंसा से महिलाओं को बचाना है. लेकिन फिर भी ये अपराध बढ़ते जा रहें हैं. आखिर कब तक?

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सवाल ये है कि भारत सरकार कर क्या रही है? क्या सरकार कोई कड़े कदम नहीं उठाएगी? अगर सरकार ने कुछ नहीं किया तो आने वाले समय में ससुराल सच में महिला के लिए एक घर नहीं बल्कि अभिशाप बन जाएगा….

आखिर क्यों ‘सेक्रेड गेम्स’ के ‘गायतोंडे’ को हुई थी ये परेशानी?

पिछले साल जुलाई महीने में रिलीज हुई नेटफ्लिक्स की बोल्ड वेब सीरीज ‘सेक्रेड गेम्स’ ने दर्शकों से खूब वाहवाही लूटी थी. इस की कहानी मुंबई के अंडरवर्ल्ड के इर्दगिर्द घूमी थी जिस में मुंबई का डॉन बना गणेश एकनाथ गायतोंडे (नवाजुद्दीन सिद्दीकी) मुंबई पुलिस के एक सिख इंस्पेक्टर सरताज सिंह (सैफ अली खान) को फोन कर के टिप देता है कि 25 दिन में मुंबई तबाह हो जाएगी. उस के बाद कहानी दिलचस्प मोड़ लेती हुई एक ऐसे अंजाम पर खत्म होती हैं जहां उस का दूसरा पार्ट बनना पक्का था. अब दूसरा पार्ट भी आ रहा है.

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इस वेब सीरीज में नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने गजब का काम किया था. परदे पर निभाए गए उस के किरदार का खौफ दर्शकों को भी महसूस हुआ था. वह जिस बेरहमी से अपने दुश्मनों पर गोली चलता था उसी बेरहमी से वह औरतों के साथ सेक्स भी करता था, फिर चाहे वह कोई धंधे वाली ही क्यों न हो.
दर्शकों को लुभाने के लिए सेक्स करने वाले सीन भी इस वेब सीरीज में जबरदस्त तरीके से फिल्माए गए थे. नवाजुद्दीन बिना किसी प्रोटेक्शन के इतनी सारी औरतों के साथ हमबिस्तर होता है कि वह सेक्स से जुडी बीमारी का शिकार हो जाता है. उस के पेशाब से खून निकलने लगता है. पूरे बदन पर लाल रंग के चकत्ते पड़ जाते हैं. एक तरह से वह मौत के मुंह में चला जाता है.

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वेब सीरीज में तो नवाजुद्दीन बच जाता है, पर हर कोई उस की तरह ऐसी बीमारी से बच जाए, यह जरूरी तो नहीं है. हमारे देश में बहुत से ऐसे लोग हैं जो घर में पत्नी के होते हुए बाहर गंदी बीमारियों से घिरीं देह धंधे वालियों के जिस्म से अपनी हवस पूरी करते हैं, वह भी बिना किसी प्रोटेक्शन के.
इन बदनाम गलियों में जाने वाले बहुत से लोग सिगरेटशराब जैसे नशे के भी आदी हो जाते हैं. सिगरेट तो उन के गुरदों पर बुरा असर डालती है.
क्या आप भी पेशाब में खून आने की समस्या से तो पीड़ित नहीं हैं? अगर ऐसा है तो सावधान हो जाइए क्योंकि ब्रिटेन में गुरदों के कैंसर के बारे में जागरुकता फैलाने वाले एक संगठन ने दावा किया है कि अगर आप को पेशाब में खून दिखाई देता है, चाहे एक बार भी, तो यह कैंसर का लक्षण हो सकता है.
इस संगठन का कहना है कि सिगरेट पीने और मोटापे की वजह से गुरदों के कैंसर का जोखिम बढ़ता है लेकिन बीमारी का जल्दी पता चलने से मौत की दर में गिरावट आ सकती है.

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अगर आप को पेशाब में खून दिखाई दे, भले ही एक बार ही, तो तुरंत अपने डॉक्टर को बताएं. वैसे भी अगर कोई आदमी बिना प्रोटेक्शन के किसी अनजान साथी के साथ सेक्स करता है तो उसे सेक्स से जुड़ी और भी कई बीमारियां हो सकती हैं जो उन के लिए जी का जंजाल बन जाती हैं. बहुत से लोग तो डर और झिझक के मारे डॉक्टर के पास भी नहीं जाते हैं और बीमारी को खतरनाक रूप धर लेने देते हैं. कुछ लोग तो झोलाछाप डॉक्टरों के चंगुल में फंस कर अपनी सेहत और पैसे का दोहरा नुकसान करा बैठते हैं. लिहाजा, इस तरह के मामलों में बिलकुल भी लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए. किसी अनजान साथी के साथ सेक्स के दौरान प्रोटेक्शन अपनाएं और खुद को गायतोंडे बनने से बचाएं.

प्रेमी को…

भरी सभा में उसे गिन कर 50 जूते मारे गए. पीडि़त ब्रजेश कुमार का कुसूर यही था कि उस ने दूसरी जाति की एक लड़की से प्यार किया था. उस लड़की की शादी उस के मातापिता ने दूसरी जगह तय कर दी थी. शायद लड़के वालों को इस लड़केलड़की के प्रेम संबंधों के बारे में जानकारी मिल गई थी जिस की वजह से उन्होंने इस शादी से इनकार कर दिया था. यह मामला जब मुखिया के पास पहुंचा तो उस के दरवाजे पर ही पंचायत बिठाई गई जहां सैकड़ों लोगों के सामने प्रेमी को 50 जूते मारे गए और एक लाख रुपए का जुर्माना लगाया गया, जिसे आरोपी और उस के पिता ने दबाव में आ कर स्वीकार भी कर लिया.

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इस घटना का किसी ने वीडियो बना लिया और सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया. जब यह घटना प्रशासन की नजर में आई तो दोषी मुखिया समेत जूते मारने वाले रणजीत कुमार यादव को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. दूसरी घटना बिहार से ही जुड़े सीतामढ़ी जिले की है, जहां आलोक ने अनीता नाम की लड़की के साथ प्रेम विवाह किया. यह बात गांव वालों को रास नहीं आई और आलोक के मातापिता समेत उस जोड़े को मारपीट कर गांव से बाहर कर दिया. आलोक के पिता ने जिला प्रशासन समेत मुख्यमंत्री के ‘जनता दरबार’ तक में इंसाफ की गुहार लगाई लेकिन कामयाबी नहीं मिली. बाद में इस मामले पर कोर्ट ने संज्ञान लिया तब राहत मिली. लेकिन आज भी उस प्रेमी जोड़े का कहीं अतापता नहीं है. गुजरात के दाहोद जिले के एक गांव में एक 30 साल की औरत को अपने प्रेमी के साथ भागने की अजीबोगरीब सजा दी गई. पहले तो उस औरत की जम कर पिटाई की गई, उस के बाद बाल काट कर पति को कंधे पर बिठा कर नाचने के लिए कहा गया. वह औरत लोगों से माफी मांगती रही, लेकिन परिवार वालों ने एक न सुनी और उसे सरेआम नाचने के लिए मजबूर किया गया.

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इसी तरह बिहार के मुजफ्फरपुर के कटरा थाने के तहत एक प्रेमी जोड़े को बिजली के खंभे से बांध कर बेरहमी के साथ पिटाई की गई. इस से भी जब मन नहीं भरा तो दोनों को बतौर जुर्माना 51,000 रुपए देने का फरमान सुनाया गया. इस तरह के मामले पूरे देश से आते रहते हैं. कहीं प्रेमी जोड़ों की परिवार और समाज द्वारा हत्या कर दी जाती है तो कहीं बाल मूंड़ कर जूते की माला पहना कर पूरे गांव में घुमाया जाता है. पंचायतों में इस तरह के जो फैसले लिए जाते हैं, जिन के द्वारा ऐसे फैसले सुनाए जाते हैं, वे गांव के सब से ऊंचे कद के लोग होते हैं. उन की इज्जत पूरे गांव वालों द्वारा की जाती है, तभी तो उन की गिरी हुई बातों को भी पूरा समाज मान लेता है. लेकिन अगर आप गांव के इज्जतदार लोग हैं तो आप की सोच भी ऊंचे दर्जे की होनी चाहिए लेकिन अफसोस, ऐसा हो नहीं पाता है. हम आज भी जातपांत, धर्म की छोटी सोच से ऊपर नहीं उठ पा रहे हैं. प्रेम और विवाह करने के मामले में हमारी सोच अभी भी दकियानूसी है. सच तो यह है कि जब हमारे बच्चे इंजीनियरिंग, डाक्टरी और दूसरी पढ़ाई करने के लिए कालेजों, यूनिवर्सिटियों में जाएंगे तो वहां उन में दोस्ती और प्यार होना लाजिमी है. हम अपने लड़केलड़कियों के हर तरह के बदलाव, खानपान, रहनसहन, उन के बदलते संस्कार को जब स्वीकार कर रहे हैं तो उन के प्यार को भी स्वीकार करना पड़ेगा, तभी हम विकसित और मौडर्न समाज की कल्पना कर सकते हैं. –

विकलांगों के लिए काम के मौके

जो अपने हकों को जानते भी हैं और अपनी विकलांगता के मुताबिक नौकरी पा कर कमा भी रहे हैं. तीसरी श्रेणी उन विकलांगों की है जो न तो अनपढ़ हैं और न ही बहुत ज्यादा पढ़ेलिखे. वे अपने हकों से परिचित तो हैं, पर सरकारी नौकरी नहीं पा सकते हैं. वे कुछ करना तो चाहते हैं, पर लाचार हैं. सैंसस 2001 की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में 2 करोड़ से ज्यादा लोग किसी न किसी तरह की विकलांगता से पीडि़त हैं.

इन विकलांगों में 26 से 45 फीसदी अनपढ़ हैं. आमतौर पर अनपढ़ विकलांग वे होते हैं जिन्हें जन्म के बाद भीख मांगने के लिए सड़कों पर छोड़ दिया जाता है या मानव तस्करी के चलते उन्हें बचपन में ही विकलांग बना दिया जाता है. दूसरे गरीब बेसहारा परिवारों के विकलांग खुद के पैरों पर खड़े होने के बजाय उम्रभर सहारा ढूंढ़ने की कोशिश में जुटे रहते हैं. क्या सच में विकलांगों को सहारे की जरूरत है? क्या वे खुद ही हालात के मुताबिक अपने पैरों पर खड़े नहीं हो सकते हैं? विकलांगों के हालात पर दिल्ली के जनकपुरी इलाके के ए ब्लौक की रहने वाली किरण ने एक किस्सा सुनाया, ‘‘मैं एक दिन जनकपुरी मैट्रो स्टेशन से बाहर निकली तो देखा कि थोड़ा अंधेरा हो गया था और इक्कादुक्का रिकशे वाले ही वहां खड़े थे. मैं अपने घर जाने के लिए किसी रिकशे वाले को ढूंढ़ ही रही थी कि एक आदमी मेरे सामने रिकशा ले कर आया और बैठने को कहा. ‘‘तभी मेरी नजर उस के पैरों पर पड़ी. उस का एक पैर बिलकुल बेजान था, पर दूसरा ठीक था. मुझे रिकशे पर बैठते हुए लग रहा था कि पता नहीं, यह ढंग से रिकशा चला भी पाएगा या नहीं. लेकिन फिर मैं उस के रिकशे पर जा कर बैठ गई, क्योंकि बाकी रिकशे वाले मेरे घर तक जाने को तैयार ही नहीं थे. ‘‘जब वह आदमी रिकशा ले कर आगे बढ़ा तो मुझे लगा कि यह इतनी मेहनत कर रहा है, वहीं दूसरी ओर हट्टेकट्टे होते हुए भी कई लोग सड़कों पर भीख मांग रहे हैं.

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असल में यह अपने पैरों पर तो खड़ा है.’’ दिल्ली में ही करोलबाग की एक प्राइवेट कंपनी में काम करने वाले वीरेंद्र ने बताया, ‘‘एक बार मैं बस से अपने घर सुलतानपुरी जा रहा था, वहां मेरी एक नेत्रहीन से मुलाकात हुई. ऐसे ही जानकारी के लिए मैं ने उस से पूछा कि आप कहां रहते हैं और क्या करते हैं तो उस आदमी ने जवाब दिया, ‘एक समाजसेवी संगठन ने बेसहारा अंधों के लिए आश्रम बनाया हुआ है. मैं वहीं रहता हूं. अपनी रोजीरोटी और जेबखर्च के लिए मैं एक फैक्टरी में मोमबत्ती बनाने का काम करता हूं.’ ‘‘नेत्रहीन होने के बावजूद वह आदमी आश्रम में पड़े रहने से बेहतर काम करना पसंद करता था. यह बहुत बड़ी बात है.’’

मंजिल की ओर अब विकलांगों को ‘दिव्यांग’ कहा जाने लगा है जिस का मतलब है ‘दिव्य अंग’ होना. पर विकलांग को ‘दिव्यांग’ कहने से क्या उस की विकलांगता ठीक हो जाएगी या उसे आम आदमी की तरह रोजगार मिल जाएगा? क्या हमें विकलांग को ‘दिव्यांग’ का नया नाम दे कर उसे समाज से अलग दिखाना चाहिए? एक तरफ विकलांगों को आम आदमी की तरह मानने की बात की जा रही है, वहीं दूसरी तरफ उन को उन्हीं की ही सचाई शहद में डुबो कर बताई जा रही है. यह ढोंग का कौन सा नया रूप है? क्यों न विकलांग खुद अपने हुनर का परिचय दें? क्यों न वे अपने हालात को लाचारी का नहीं, बल्कि हौसले का रूप दें? साधना ढांड, सुधा चंद्रन, गिरीश शर्मा, अरुणिमा सिन्हा और मालती कृष्णामूर्ति सभी विकलांगों के लिए मिसाल हैं, पर क्या वह रिकशे वाला और मोमबत्ती बनाने वाला विकलांग भी मिसाल नहीं हैं? काम जो ये कर सकें कोई हाथपैरों से विकलांग है, लेकिन ठीक से बोलसुन सकता है तो वह रेडियो जौकी या एंकर बनने की सोच सकता है. इस तरह के विकलांग काल सैंटर वगैरह में भी नौकरी पा सकते हैं.

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अगर किसी विकलांग शख्स को लिखनेपढ़ने का शौक है तो वह लेखक बन सकता है. वह घर बैठे फ्रीलांस काम कर सकता है और अपनी पसंद के विषयों पर भी लेख लिख सकता है. इस के अलावा अपनी खुद की छोटीमोटी दुकान खोली जा सकती है. 5वीं क्लास की एक किताब में एक लड़की ईला का जिक्र किया गया है जो हाथ न होने के बावजूद कशीदाकारी में माहिर हो जाती है. सुनने व बोलने में नाकाम विकलांग यह काम सीख सकते हैं. वे इसी तरह के दूसरे काम भी सीख कर रोजीरोटी कमा सकते हैं. थोड़ेबहुत पढ़ेलिखे विकलांग खासकर लड़कियां या औरतें किसी औफिस में रिसैप्शनिस्ट की नौकरी पा सकती हैं. वैसे भी अगर कोई मन में किसी काम को करने की ठान लेता है तो हिमालय जैसा पहाड़ भी चढ़ जाता है, फिर उस की विकलांगता भी आड़े नहीं आती है. द्य

उधार के गहनों से करें तौबा

बड़े भाई ने उसे सोने के झुमके जो तोहफे में दिए थे. बरात दुलहन के घर गई, खूब नाचगाना हुआ, फेरे पड़े और फिर नईनई ननद बनी रचना अपनी भाभी को घर ले आई. शादी में रचना के झुमकों की भी खूब तारीफ हुई थी. खूबसूरत होने के साथसाथ वे महंगे भी थे.

शादी की गहमागहमी कम हुई, तो रचना ने वे झुमके संभाल कर लोहे की अपनी अलमारी में रख दिए. कुछ दिनों के बाद रचना के पड़ोस की एक सहेली मेनका के मामा की बेटी की शादी थी. एक दिन वह रचना से बोली, ‘‘सुन, तू मुझे 2 दिन के लिए अपने नए झुमके उधार दे दे. शादी में उन्हें पहनूंगी तो लड़कों पर रोब पड़ेगा.’’ रचना का मन तो नहीं था, पर वह अपनी दोस्ती भी नहीं तोड़ना चाहती थी. उस ने अपनी मां से पूछे बिना ही मेनका को झुमके दे दिए और संभाल कर रखने की भी हिदायत दी. रचना को जिस बात का डर था, वही हुआ. मेनका से वे झुमके खो गए. दरअसल, शादी के घर में एक दिन जब वह बाथरूम से नहा कर निकली तो वे झुमके वहीं भूल गई. फिर उन झुमकों पर किस ने हाथ साफ किया, पता ही नहीं चला. मेनका की तो जैसे जान सूख गई. मातापिता से खूब डांट खाई, लेकिन उस की असली समस्या तो यह थी कि रचना का सामना कैसे करेगी. और जब रचना को यह खबर लगी तो उस का रोरो कर बुरा हाल हो गया.

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घर में पता चला तो सब को बहुत दुख हुआ, पर अब कर भी क्या सकते थे. मेनका से झुमकों के पैसे भी किस मुंह से मांगते. लेकिन उस दिन के बाद रचना और मेनका में पहले जैसी पक्की दोस्ती नहीं रही. यह कोई एक किस्सा नहीं है, बल्कि न जाने कितने सालों से हमारे देश में औरतों और लड़कियों में एकदूसरे के गहने उधार लेने का चलन सा रहा है. क्या वजह है कि औरतें या लड़कियां कुछ समय के लिए ही सही, इतनी आसानी से महंगे गहनों की उधारी कर लेती हैं? इस का सब से आसान जवाब उन का गहनों के प्रति प्रेम होता है. अगर वे महंगी धातु जैसे सोने या चांदी के हों तो यह मोह पूरी तरह उमड़ने लगता है. फिर मुफ्त का माल कौन नहीं चाहेगा, क्योंकि उन्हें लगता है कि वे गहनों को संभाल कर रखेंगी. पर जब वे चोरी हो जाते हैं या उन में किसी तरह का दूसरा नुकसान हो जाता है तो फिर मचता है घमासान. मालती और राधा के मामले में गहनों की चोरी भी नहीं हुई थी, पर गहनों को ले कर उन की दोस्ती में खटास जरूर आ गई थी. हुआ यों था कि राधा ने मालती से उस का गहनों का एक नकली सैट कुछ दिनों के लिए उधार लिया था. सैट ज्यादा महंगा भी नहीं था, पर चूंकि नकली था तो इस्तेमाल करने पर उस की पौलिश थोड़ी उतर गई थी. जब राधा ने वह सैट वापस किया तो मालती को अपने सैट की हालत देख कर बुरा लगा. उस ने शिकायत की तो राधा ने गलती मानने के बजाय कहा कि सैट की पौलिश तो पहले से उतरी हुई थी. बस, इसी बात पर मामला इतना बिगड़ा कि आज वे दोनों एकदूसरे का मुंह तक देखना पसंद नहीं करती हैं. पराए गहनों के लिए यह प्यार गांवदेहात की औरतों में भी खूब देखा जाता है. बड़े भाई की शादी हुई नहीं कि छोटी बहन भाभी के गहनों पर अपना हक समझने लगती है.

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गहने क्या वह तो उस की सिंगारदानी, चमकीले कपड़ों को अपनी बपौती मानने लगती है. भाभी थोड़ी चिंता जता दे या इशारों में मना करने की कोशिश करे तो पूरा ससुराल पक्ष ही उसे दुश्मन समझने लगता है. यहां पर दहेज के सामान को साझा इस्तेमाल करने का मनोविज्ञान ससुराल वालों पर हावी रहता है कि बाप ने बेटी को जो दिया, उस पर बहू की सास, ननद और भाभीदेवरानियों का हक बनता है. इस में गहनों के इस्तेमाल और उन के खोने या खराब होने पर मचे बवाल से ही कई बार घर बनने के बजाय बिगड़ते चले जाते हैं. रिश्ते की हमउम्र कुंआरी बहनों में गहनों की अदलाबदली की यह रीत ज्यादा दिखाई देती है.

चूंकि उन्हें गहने मातापिता या बड़े भाई बनवा कर देते हैं इसलिए उन्हें उन की कीमत का अंदाजा नहीं होता है. पर उन की इस उधारी के गहनों के नुकसान का खमियाजा कई बार उन के आपसी संबंधों को कमजोर कर देता है. लिहाजा, जो गहने आपसी रिश्तों में खटास लाएं, उन की उधारी नहीं करनी चाहिए. खुद के पास जैसे भी गहने हों असली या नकली, कम या ज्यादा, उन्हीं से काम चला लेना चाहिए. वैसे भी आजकल गांव हों या शहर, औरतों के साथ होने वाली लूट की वारदातों में इतनी ज्यादा बढ़ोतरी हो गई है कि गहनों को मांग कर पहनने की सोच को ही दूर से सलाम कर देना चाहिए. सादगी से रहें, सुखी रहें.

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