बड़े भाई ने उसे सोने के झुमके जो तोहफे में दिए थे. बरात दुलहन के घर गई, खूब नाचगाना हुआ, फेरे पड़े और फिर नईनई ननद बनी रचना अपनी भाभी को घर ले आई. शादी में रचना के झुमकों की भी खूब तारीफ हुई थी. खूबसूरत होने के साथसाथ वे महंगे भी थे.
शादी की गहमागहमी कम हुई, तो रचना ने वे झुमके संभाल कर लोहे की अपनी अलमारी में रख दिए. कुछ दिनों के बाद रचना के पड़ोस की एक सहेली मेनका के मामा की बेटी की शादी थी. एक दिन वह रचना से बोली, ‘‘सुन, तू मुझे 2 दिन के लिए अपने नए झुमके उधार दे दे. शादी में उन्हें पहनूंगी तो लड़कों पर रोब पड़ेगा.’’ रचना का मन तो नहीं था, पर वह अपनी दोस्ती भी नहीं तोड़ना चाहती थी. उस ने अपनी मां से पूछे बिना ही मेनका को झुमके दे दिए और संभाल कर रखने की भी हिदायत दी. रचना को जिस बात का डर था, वही हुआ. मेनका से वे झुमके खो गए. दरअसल, शादी के घर में एक दिन जब वह बाथरूम से नहा कर निकली तो वे झुमके वहीं भूल गई. फिर उन झुमकों पर किस ने हाथ साफ किया, पता ही नहीं चला. मेनका की तो जैसे जान सूख गई. मातापिता से खूब डांट खाई, लेकिन उस की असली समस्या तो यह थी कि रचना का सामना कैसे करेगी. और जब रचना को यह खबर लगी तो उस का रोरो कर बुरा हाल हो गया.
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घर में पता चला तो सब को बहुत दुख हुआ, पर अब कर भी क्या सकते थे. मेनका से झुमकों के पैसे भी किस मुंह से मांगते. लेकिन उस दिन के बाद रचना और मेनका में पहले जैसी पक्की दोस्ती नहीं रही. यह कोई एक किस्सा नहीं है, बल्कि न जाने कितने सालों से हमारे देश में औरतों और लड़कियों में एकदूसरे के गहने उधार लेने का चलन सा रहा है. क्या वजह है कि औरतें या लड़कियां कुछ समय के लिए ही सही, इतनी आसानी से महंगे गहनों की उधारी कर लेती हैं? इस का सब से आसान जवाब उन का गहनों के प्रति प्रेम होता है. अगर वे महंगी धातु जैसे सोने या चांदी के हों तो यह मोह पूरी तरह उमड़ने लगता है. फिर मुफ्त का माल कौन नहीं चाहेगा, क्योंकि उन्हें लगता है कि वे गहनों को संभाल कर रखेंगी. पर जब वे चोरी हो जाते हैं या उन में किसी तरह का दूसरा नुकसान हो जाता है तो फिर मचता है घमासान. मालती और राधा के मामले में गहनों की चोरी भी नहीं हुई थी, पर गहनों को ले कर उन की दोस्ती में खटास जरूर आ गई थी. हुआ यों था कि राधा ने मालती से उस का गहनों का एक नकली सैट कुछ दिनों के लिए उधार लिया था. सैट ज्यादा महंगा भी नहीं था, पर चूंकि नकली था तो इस्तेमाल करने पर उस की पौलिश थोड़ी उतर गई थी. जब राधा ने वह सैट वापस किया तो मालती को अपने सैट की हालत देख कर बुरा लगा. उस ने शिकायत की तो राधा ने गलती मानने के बजाय कहा कि सैट की पौलिश तो पहले से उतरी हुई थी. बस, इसी बात पर मामला इतना बिगड़ा कि आज वे दोनों एकदूसरे का मुंह तक देखना पसंद नहीं करती हैं. पराए गहनों के लिए यह प्यार गांवदेहात की औरतों में भी खूब देखा जाता है. बड़े भाई की शादी हुई नहीं कि छोटी बहन भाभी के गहनों पर अपना हक समझने लगती है.
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गहने क्या वह तो उस की सिंगारदानी, चमकीले कपड़ों को अपनी बपौती मानने लगती है. भाभी थोड़ी चिंता जता दे या इशारों में मना करने की कोशिश करे तो पूरा ससुराल पक्ष ही उसे दुश्मन समझने लगता है. यहां पर दहेज के सामान को साझा इस्तेमाल करने का मनोविज्ञान ससुराल वालों पर हावी रहता है कि बाप ने बेटी को जो दिया, उस पर बहू की सास, ननद और भाभीदेवरानियों का हक बनता है. इस में गहनों के इस्तेमाल और उन के खोने या खराब होने पर मचे बवाल से ही कई बार घर बनने के बजाय बिगड़ते चले जाते हैं. रिश्ते की हमउम्र कुंआरी बहनों में गहनों की अदलाबदली की यह रीत ज्यादा दिखाई देती है.
चूंकि उन्हें गहने मातापिता या बड़े भाई बनवा कर देते हैं इसलिए उन्हें उन की कीमत का अंदाजा नहीं होता है. पर उन की इस उधारी के गहनों के नुकसान का खमियाजा कई बार उन के आपसी संबंधों को कमजोर कर देता है. लिहाजा, जो गहने आपसी रिश्तों में खटास लाएं, उन की उधारी नहीं करनी चाहिए. खुद के पास जैसे भी गहने हों असली या नकली, कम या ज्यादा, उन्हीं से काम चला लेना चाहिए. वैसे भी आजकल गांव हों या शहर, औरतों के साथ होने वाली लूट की वारदातों में इतनी ज्यादा बढ़ोतरी हो गई है कि गहनों को मांग कर पहनने की सोच को ही दूर से सलाम कर देना चाहिए. सादगी से रहें, सुखी रहें.