इश्किया आग : भाग 1

लेखक- पी.एल. कश्यप

शाम के यही कोई 6 बजे थे. धुंधलका उतर आया था. लखनऊ से सीतापुर जाने वाले मार्ग पर एक कस्बा है बख्शी का तालाब. इसी कस्बे से शिवपुरी बराखेमपुर गांव को एक रोड जाती है. सायंकाल का वक्त होने के कारण वह रोड सुनसान थी.

अचानक गुडंबा की तरफ से आ रही एक बाइक गोलइया मोड़ पर आ कर रुकी. बाइक पर 3 व्यक्ति सवार थे. वे सड़क किनारे खड़े हो कर किसी के आने का इंतजार करने लगे. कुछ देर के बाद सामने से एक बाइक आती हुई दिखाई दी, जिस पर 2 लोग बैठे थे.

इस से पहले कि मामला कुछ समझ में आता कि सड़क किनारे खड़े उन तीनों व्यक्तियों में से एक ने सामने से आती हुई उस बाइक को रोका. उस बाइक पर रामकुमार और उस का भतीजा मतोले बैठे थे, जो शिवपुरी बराखेमपुर में रहते थे.

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जैसे ही रामकुमार ने बाइक की गति धीमी की, तभी उन तीनों में से एक व्यक्ति ने तमंचे से फायर कर दिया. गोली बाइक रामकुमार के लगी जिस से बाइक सहित वे दोनों लड़खड़ा कर गिर पड़े. उन के गिरते ही तीनों हमलावर घटनास्थल से फरार हो गए. यह घटना 25 दिसंबर, 2019 की है.

रात काफी हो गई थी. मतोले ने उसी समय फोन कर के यह सूचना रामकुमार की पत्नी कमला को देते हुए कहा, ‘‘चाची, ज्ञानू ने अपने 2 साथियों राजा व अंकित के साथ चाचा रामकुमार पर हमला कर दिया है. उन के पेट में गोली लगी है. चाचा गोलइया मोड़ के पास घायल पड़े हैं.’’

यह खबर सुनते ही कमला फफक कर रो पड़ी. उस ने अपने जेठ यानी मतोले के पिता जयकरण व देवर दिनेश व अन्य परिवारजनों को यह जानकारी दे दी.

घटनास्थल गांव से 4-5 सौ मीटर की दूरी पर था. इसलिए जल्द ही परिवार व मोहल्ले वाले घटनास्थल पर पहुंच गए. परिवारजन घायल रामकुमार कोे बाइक से बख्शी के तालाब तक ले आए, फिर वहां से वाहन द्वारा लखनऊ के केजीएमयू मैडिकल अस्पताल ले गए.

रामकुमार की हालत गंभीर थी. उस के पेट में गोली लगने से खून ज्यादा मात्रा में बह चुका था, डाक्टरों की लाख कोशिशों के बाद भी रामकुमार को बचाया नहीं जा सका. मैडिकल कालेज में उपचार के दौरान उस की मृत्यु हो गई.

चूंकि मामला हत्या का था, इसलिए अस्पताल प्रशासन ने इस की सूचना स्थानीय थाना बख्शी का तालाब में दे दी. सूचना पा कर थानाप्रभारी बृजेश सिंह, एसएसआई कुलदीप कुमार सिंह और एसआई योगेंद्र कुमार, अवनीश कुमार और सिपाही नितेश मिश्रा के साथ मैडिकल कालेज जा पहुंचे.

डाक्टरों से बातचीत करने के बाद उन्होंने मृतक के परिजनों से पूछताछ की तो मतोले ने थानाप्रभारी को हमलावरों के नाम भी बता दिए. जरूरी काररवाई करने के बाद पुलिस ने रामकुमार का शव अस्पताल की मोर्चरी में भेज दिया. इस के बाद थानाप्रभारी रात में ही घटनास्थल पर पहुंच गए. रोशनी की व्यवस्था कर उन्होंने घटनास्थल से खून आलूदा मिट्टी से सबूत एकत्र किए.

अगले दिन 26 दिसंबर, 2019 को पोस्टमार्टम होने के बाद रामकुमार का शव उस के परिजनों को सौंप दिया. अंतिम संस्कार के बाद थानाप्रभारी ने रामकुमार की पत्नी कमला की ओर से ज्ञान सिंह उर्फ ज्ञानू और राजा के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 120बी व एससी/एसटी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया. चूंकि मुकदमे में एससी/एसटी एक्ट की धारा भी लगी थी, इसलिए इस की जांच की जिम्मेदारी सीओ स्वतंत्र सिंह ने संभाली.

पुलिस ने जांच शुरू की तो पता चला कि मृतक की पत्नी कमला का चरित्र ठीक नहीं था, इसलिए पुलिस ने कमला का मोबाइल फोन अपने कब्जे में ले लिया और उस से ज्ञान सिंह यादव का फोन नंबर भी प्राप्त कर लिया. पुलिस ने उन के नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई.

घटना का चश्मदीद मृतक का भतीजा मतोले था, पूछताछ करने पर मतोले ने पुलिस को बताया कि पड़ोस की दूध की डेयरी पर काम करने वाले ज्ञान सिंह उर्फ ज्ञानू ने उस से कई बार कहा कि तुम शहर में कामधंधे के लिए अपने चाचा रामकुमार के साथ न जाया करो, क्योंकि तुम्हारे चाचा से मेरी रंजिश चल रही है. उस ने अपने दोस्तों के साथ घेर कर चाचा को गोली मार दी.

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उधर पुलिस ने कमला और ज्ञान सिंह के फोन नंबरों की काल डिटेल्स का अध्ययन किया तो इस बात की पुष्टि हो गई कि कमला और ज्ञान सिंह के बीच दाल में कुछ काला अवश्य है.

एसएसआई कुलदीप सिंह ने इस बारे में मतोले से पूछा तो उस ने हां में सिर हिला दिया. ऐसे में कमला से पूछताछ करनी जरूरी थी. इसलिए 26 दिसंबर, 2019 की शाम एसएसआई कुलदीप सिंह अपने सहयोगियों एसआई अवनीश कुमार, हंसराज, महिला सिपाही श्रद्धा शंखधार, नेहा शर्मा को साथ ले कर कमला के घर पहुंचे. रात में पुलिस को अपने घर आया देख कर कमला सकपका गई. उस के चेहरे का रंग उतर गया. उस ने पूछा, ‘‘दरोगाजी, इतनी रात को घर आने का क्या मकसद है?’’

‘‘मैं यह जानना चाहता हूं कि क्या ज्ञान सिंह उर्फ ज्ञानू से तुम्हारे पति रामकुमार की कोई रंजिश थी? मुझे पता चला है कि तुम्हारे पति पर ज्ञान सिंह ने ही भाड़े के लोगों के साथ हमला कराया था. पुलिस उसी की तलाश में गांव आई है.’’ एसएसआई ने कहा.

यह कह कर एसएसआई ने कमला के दिमाग से शक का कीड़ा निकाल दिया, ताकि उसे लगे कि वह पुलिस के शक के दायरे में नहीं है. इस केस की जांच में सहयोग करने के लिए तुम्हें कल सुबह थाने आना होगा. इस पूछताछ में पुलिस को ज्ञान सिंह उर्फ ज्ञानू व अंकित यादव के खिलाफ कुछ और तथ्य मिल गए.

अगले दिन पुलिस टीम ज्ञान सिंह यादव उर्फ ज्ञानू, अंकित आदि की तलाश में उन के घर गई तो वे घरों पर नहीं मिले. पता चला कि कमला भी अपने घर से फरार हो गई है. इस से पुलिस को पूरा विश्वास हो गया कि ये लोग इस अपराध से जुड़े हैं. इसलिए पुलिस ने तीनों के पीछे मुखबिर लगा दिए.

मुखबिरों द्वारा पुलिस को पता चला कि कमला अपने प्रेमी ज्ञान सिंह उर्फ ज्ञानू व उस के दोस्त अंकित यादव के साथ फरार होने के लिए गांव से निकल कर भगतपुरवा तिराहा, भाखामऊ रोड पर खड़ी है. कुछ ही देर में थाना बख्शी का तालाब से एक पुलिस टीम वहां पहुंच गई. वहीं से पुलिस ने कमला, ज्ञान सिंह और अंकित को गिरफ्तार कर लिया.

एक मुखबिर की सूचना पर एक अन्य आरोपी उत्तम कुमार को भैसामऊ क्रौसिंग से एक तमंचे व 2 कारतूस सहित गिरफ्तार कर लिया गया.

थाने पहुंच कर कमला निडरता के साथ बोली, ‘‘दरोगाजी, हमें थाने बुला कर काहे बारबार परेशान कर रहे हैं.’’

इतना सुनते ही थानाप्रभारी बृजेश कुमार सिंह ने महिला सिपाही नेहा शर्मा और सिपाही शंखधार को बुला कर कहा, ‘‘इस औरत को हिरासत में ले लो. एक तो इस ने अपने प्रेमी के साथ मिल कर अपने पति की हत्या करने की साजिश रची और ऊपर से स्वयं पतिव्रता बनने का नाटक कर रही है.’’

थानाप्रभारी ने हंसते हुए कमला से कहा, ‘‘परेशान न हो शाम तक तुम्हें घर वापस भेज दिया जाएगा. कुछ अधिकारी यहां आ रहे हैं, तुम उन्हें सचसच बता देना.’’

सीओ स्वतंत्र सिंह भी जांच हेतु थाने पहुंच गए. सूचना पा कर एसपी (ग्रामीण) आदित्य लंगेह भी थाना बख्शी का तालाब आ पहुंचे. चारों आरोपियों को अधिकारियों के सामने पेश किया गया.

चारों आरोपियों ने पुलिस के सामने स्वीकार किया कि कमला के गांव के ही निवासी ज्ञान सिंह उर्फ ज्ञानू से अवैध संबंध थे. उन्होंने ही रामकुमार को ठिकाने लगाया था. उन चारों से हुई पूछताछ के आधार पर रामकुमार हत्याकांड की गुत्थी सुलझ गई.

पूछताछ में कमला और ज्ञान सिंह के अवैध संबंधों की जो कहानी प्रकाश में आई, वह इस प्रकार है—

लखनऊ से 20 किलोमीटर दूर लखनऊ-सीतापुर राजमार्ग के किनारे तहसील बख्शी का तालाब है. इसी क्षेत्र में गांव शिवपुरी बरा खेमपुर है. रामकुमार रावत का परिवार इसी गांव में रहता था.

रामकुमार रावत अपने परिवार में सब से बड़ा था. उस के अन्य 2 भाई दिनेश (35 साल) व राजेश (30 साल) थे. रामकुमार का विवाह करीब 15 साल पहले मूसानगर के निकट कुरसी गांव की रहने वाले शिवचरण रावत की बेटी कमला के साथ हुआ था. उस के 2 बच्चे थे. रामकुमार लखनऊ के आसपास कामधंधे की तलाश में जाता रहता था.

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उस के पड़ोस में ही ज्ञान सिंह उर्फ ज्ञानू रहता था, जो मूलरूप से शिवपुरी मानपुर लाला, थाना बख्शी का तालाब का रहने वाला था. ज्ञान सिंह अविवाहित था. रामकुमार की पत्नी कमला की उम्र लगभग 40 वर्ष के आसपास रही होगी. कमला की एक बहन रामप्यारी शिवपुरी मानपुर लाला में रहती थी. निकटवर्ती रिश्तेदारी होने के कारण कमला का अपनी बहन के गांव शिवपुरी मानपुर लाला अकसर आनाजाना लगा रहता था.

ज्ञान सिंह उर्फ ज्ञानू अपने गांव में दूध की डेयरी का काम करता था. वह रोजाना अपने गांव से दूध इकट्ठा कर बाइक से बख्शी का तालाब कस्बे में बेचने के लिए आताजाता था. कमला की बहन रामप्यारी के कहने पर ज्ञान सिंह ने कमला के पति रामकुमार को अपने साथ दूध के काम पर लगा दिया.

इस के बाद दूध इकट्ठा करने का काम रामकुमार करने लगा. बाद में वह दूध बेचने के लिए लखनऊ व निकटवर्ती इलाकों में निकल जाता था और दूध बेच कर शाम तक अपने गांव शिवपुरी बराखेमपुर लौट आता था. रामकुमार की दिन भर की यही दिनचर्या थी. इस तरह कई सालों तक रामकुमार ज्ञान सिंह के साथ रह कर दूध बेचने का काम करता रहा.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

जब मुरदे ने दे दी खुद की गवाही : अपराधी चाहे जितनी चालाकियां कर ले, कानून से नहीं बच सकता

अपराधी चाहे जितना शातिर हो, अपराध करते समय वह कितने ही हथकंडे अपना ले, कानून की नजरों से न बच सकता है न छिप सकता है.

हाल ही में एक ऐसी ही घटना घटी जिस पर यकीन करना एकबारगी कठिन लगता है.

जमीन संबंधी विवाद

घटना बिहार के बक्सर जिले की है, जहां रामधनी नाम का एक शख्स मठिया मोङ पर लिट्टी बेच कर घर चलाता था. जगह भीङभाङ वाली थी, इसलिए उसे दिनभर में अच्छी आमदनी हो जाती थी.

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वह अपने इस व्यवसाय को बढ़ाने की सोच रहा था और इसीलिए उस ने सोचा कि क्यों न वह जमीन का एक टुकड़ा बेच कर कारोबार बढ़ाने में लगा दे.

उस ने अपने जमीन के एक टुकङे को बेचा तो यह बात उस के विरोधियों को खटकने लगी. इस पर अच्छाखासा विवाद भी शुरू हो गया.

इस विवाद से छुटकारा पाने के लिए उस ने अपने विरोधियों से बातचीत करनी चाही और एक सुबह उन से मिलने पहुंच गया.

हत्या कर कब्र में दफना दिया

मगर विरोधियों ने इस दौरान न सिर्फ  उस की हत्या कर दी, बल्कि पेशेवर तरीके से लाश को जमीन में दफना दिया. लाश सङ कर जल्दी जमीन में जल्द मिल जाए इस के लिए अपराधियों ने कब्र में नमक भी डाल दिया.

उधर सुबह का निकला रामधनी घर नहीं लौटा तो घर वालों को इस बात की चिंता हुई.

घर वालों ने पुलिस को घटना के बारे में बताया और कहा कि रामधनी घर नहीं लौटा है. पुलिस को बताने के बाद वे जगहजगह उसे ढूंढ़ने भी निकल पङे लेकिन रामधनी जीवित हो तब तो मिलता.

ढूंढ़ने के दौरान ही घर वाले एक कब्रिस्तान पहुंचे तो वहां देखा कि एक मुरदे का पैर कब्र से बाहर है. घर वालों ने पैर को तुरंत पहचान लिया. कब्र में रामधनी की लाश पङी थी.

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घटना की सूचना पुलिस को दी गई. पुलिस ने शव को कब्र से निकाला और जरूरी तफ्तीश शुरू कर दी.

ऐसे मिला सुराग

दरअसल, मौनसून के दिनों वहां तेज बारिश हो रही थी और इस बारिश में मिट्टी बही तो मुरदे का एक पैर कब्र से बाहर आ गया. घर वालों ने तुरंत उस की पहचान कर पुलिस में सूचना दी.

खबरों की मानें तो पुलिस को हत्या करने वालों का सुराग मिल गया है और जल्दी ही सभी अपराधी पुलिस गिरफ्त में होंगे.

रामधनी की हत्या से लोगों में गुस्सा तो है पर वे मानते हैं कि मर कर भी रामधनी ने अपनी मौत की गवाही दे दी और पुलिस को सुराग भी ताकि जल्द ही हत्यारों पर कानूनी काररवाई हो.

अपराधी आगे आगे, पुलिस पीछे पीछे

पहला मामला-

छत्तीसगढ़ के न्यायधानी बिलासपुर के तोरवा  थाना क्षेत्र में एक महिला फांसी पर लटकी मिली. मामला थाने पहुंचा, जांच पड़ताल हुई तो यह पर्दाफाश हुआ कि उसके दो पुत्रों  ने ही महिला की अवैध संबंधों से नाराज होकर हत्या की थी.

दूसरा मामला-

जिला दुर्ग के कोतवाली थाना क्षेत्र में छत से गिरकर एक शख्स की मौत हो गई. जांच पड़ताल में यह पुलिस ने पाया की उसे पुत्र ने ही धक्का देकर नीचे गिरा दिया था. जिसके कारण मौत हुई.

तीसरा मामला-

कोरबा जिला के बाल्को थाना क्षेत्र में एक लड़की की  लाश मिली .प्रारंभ में यह तथ्य सामने आया कि लड़की ने जहर खा लिया है. मगर पुलिस विवेचना में यह बात सिद्ध हो गई कि उसे जहर देकर मारा गया था.

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अपराध की दुनिया में अपराधी आगे आगे चलता है और पुलिस पीछे पीछे. मगर पुलिस कब आगे हो जाती है यह अपराधी को पता ही नहीं चलता. यह खेल अपराधियों और पुलिस के मध्य चलता रहता है. अक्सर हम किसी की मौत की खबर मिलने पर चकित हो जाते हैं कि यह कैसे आत्महत्या कर सकता है?  मगर जब तथ्य से तथ्य मिलते हैं और कोई अफसर ईमानदारी से जांच करता है तो सच्चाई सामने आ जाती है. अक्सर जिसे ‘”आत्महत्या” माना जाता है या “दुर्घटना”, जांच के पश्चात यह तथ्य उजागर होता है की इसके पीछे कोई षड्यंत्र था. कोई काला  नकाब ओढ़े हुए था, जिसे पुलिस पकड़ कर कानून के हवाले करती  है.

कब तक छिपेगा हत्यारा

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर की सच्ची घटना आपको बताते हैं- 2 जुलाई 2020को करीब ढाई बजे मुजगहन थाना इलाके के कांदुल में खेत के पास 21 वर्षीय केशव निषाद की लाश फांसी पर टंगी मिली थी. मुजगहन पुलिस ने मामले में मर्ग कायम किया . मगर अब मृतक के पोस्टमार्टम रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है कि केशव निषाद की पहले गला दबाकर हत्या की गई. इसके बाद उसे फांसी पर लटकाया गया था.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के आधार पर अब पुलिस अज्ञात आरोपी के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज कर जांच में जुट गई है. मृतक केशव ने पेशे से ड्राइवर था. पुलिस उसके परिवार के लोगों के साथ ही उसके जान पहचान वालों से पूछताछ कर रही है. यही इस घटनाक्रम की हकीकत है. यह आसानी से समझा जा सकता है कि केशव निषाद की हत्या क्यों और किस लिए की गई होगी. अपराधी ने बड़ी चतुराई से उसे मार कर फांसी पर लटका दिया मगर क्या अब वह बच जाएगा?

छोटे बड़े होते हैं स्वार्थ

इस तरह की हत्याओं के पीछे, कभी-कभी बहुत बड़े स्वार्थ होते हैं और कभी बहुत ही छोटे छोटे.पुलिस अधिकारियों, अपराधिक मामले न्यायालय में पैरवी करने वाले अधिवक्ताओं से बातचीत में यह तथ्य सामने आता है कि अक्सर हत्या के पीछे  अपराधी की कोई ना कोई छोटी बड़ी मंशा होती है. पुलिस अधिकारी विवेक शर्मा बताते हैं कि ऐसे अनेक मामलों को उन्होंने जांच में लिया है और दोषियों को सजा भी हुई है. उन्होंने बताया कि एक ऐसे ही गंभीर मामले में परिजनों को न्यायालय से 10 वर्ष की सजा हुई अतः यह सोचना कि कोई कानून से बच सकता है, यह उसकी बहुत बड़ी भूल है.

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डॉ उत्पल अग्रवाल अधिवक्ता बताते हैं ऐसे 2 मामले उनके पास पैरवी के लिए आए और दोनों ही मामलों में अपराधियों को सजा मिली. दरअसल, लोग अपने आप को बेहद शातिर समझते हैं और कभी कभी क्रोध में आकर भी हत्या कर देते हैं और फिर जिंदगी भर पछताते हैं.

हम खो जाएंगे

हम खो जाएंगे : भाग 2

अपनी बातों के दरम्यान वह आमतौर पर हम का ही इस्तेमाल करती थी. अपनी उम्र से कहीं ज्यादा समझदार थी. कभी मूड में होती थी तो मजे की बातें करती थी, वरना आमतौर पर मेरे सामने आ कर बैठ जाती थी और बड़ीबड़ी आंखों से एकटक देखा करती थी. मेरे अलावा उस घर में कभीकभार एक लड़का दिखाई दिया करता था. उस का नाम नासिर था.

मुझे यह नहीं मालूम था कि उस का घर से क्या रिश्ता है मगर वह बड़ी बेतकल्लुफी से शाहीना से बात किया करता था. शाहीना ने बस सिर्फ इतना बताया था कि वो उन का रिश्तेदार है. कई बार मन होता कि उस से सवाल करूं कि रिश्ता क्या है? मगर यह सोच कर छोड़ दिया कि मुझे पेड़ गिनने से क्या मतलब?

शाहीना मुझ पर मरती थी. जेब कभी खाली नहीं रहती थी. तनख्वाह 2 सौ रुपए थी. 100 रुपए अब्बू ऐंठ लिया करते थे, 50 अम्माजी की भेंट चढ़ जाते थे. मेरे हिस्से में केवल 50 रुपए रह जाते थे. खुद सोच लें कि एक आवारागर्द लड़के को कितने दिन मजे से रख सकते थे.

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महीने के शुरू के दिनों में ही जेब खाली हो जाती थी. शाहीन को मैं ने अपनी आर्थिक स्थिति शुरू में ही बता दी थी कि मैं फोरेस्ट डिपार्टमैंट में काम करने वाले एक मामूली से नौकर की छठी औलाद हूं.

बाप अपनी 3 बहनों और 2 बेटियों की शादी करने के बाद बिलकुल कंगाल हो चुका है. इसलिए मेरी तालीम के खर्चे बड़ी मुश्किल से पूरे हो पाते हैं. अम्मी अकसर बीमार रहती हैं. उन का अच्छी तरह इलाज नहीं हो सका है. रिजल्ट के बाद प्राइवेट तौर पर इम्तिहान की तैयारी करूंगा. अच्छी नौकरी मेरी जिंदगी का मकसद है.

मौजूदा नौकरी टैंपरेरी है किसी भी समय जवाब मिल सकता है. जब तक तुम्हारे अब्बू मेहरबान हैं, हमारा गुजारा हो रहा है. जैसे ही उन्हें पता चलेगा कि उन की बेटी से इश्क फरमाने लगा हूं, वो मुझे नौकरी से निकाल बाहर करेंगे. इस से पहले कि यह स्थिति आ जाए मैं खुद यह नौकरी छोड़ना चाहता हूं.

शाहीना मेरी दर्द भरी कहानी सुन कर मेरी मोहब्बत पर और जोर से ईमान ले आई. वो चुपकेचुपके मेरी जेब में सौपचास के नोट डाल दिया करती  थी. कभी सूट का कपड़ा खरीद लाती तो कभी पतलून, टाई तोहफे में दे देती.

3 महीने बाद मेरा रिजल्ट आ गया. मैं थर्ड डिविजन में पास हो गया था. औफिस में मिठाई बांटी. वहीद साहब ने बुलवा लिया. मुबारकबाद दी. कहने लगे, ‘‘मियां, माशा अल्लाह होनहार हो. इम्तिहान में निकल गए यहां मीटिंग होने वाली है, देखते हैं तुम्हारा मुकद्दर यहां भी चमकता है या नहीं. अगर तुक्का चल गया तो तनख्वाह भी बढ़ जाएगी और नौकरी भी पक्की हो जाएगी.’’

मुझ से मीठी बातें करने के बाद उन्होंने तोते की तरह आंखें फेर लीं. हुआ यह कि उन के रिश्तेदार ने भी इंटर पास किया था. वह सिफारिश के लिए उन के पास आ गया. वहीद साहब ने चुपकेचुपके उसे अपने पास रखने का फैसला कर लिया. मुझे पता ही नहीं चलने दिया. मेरी वह रिपोर्ट जो कुछ दिनों बाद मीटिंग में पेश करनी थी, रातोंरात बदल दी.

मुझे इस काम के लिए अयोग्य और गैरजिम्मेदार करार दे कर फौरी तौर पर नौकरी से अलग करने की सिफारिश के साथ दूसरी रिपोर्ट मीटिंग में पेश कर दी. औफिस में दूसरे लोग पहले से ही मुझ से जलते थे कि हर समय साहब के घर के चक्कर काटता रहता है. औफिस का काम करता ही कहां था.

वहीद साहब ने मुझे अपना पीए बना डाला और इस का बदला भी कुछ नहीं मिला. आखिरी समय तक उन्होंने मुझे धोखे में रखा. यही कहते रहे कि फिक्र न करो मियां तुम्हारी नौकरी पक्की करवा देंगे.

मीटिंग हुई. मुझे पूरी उम्मीद थी कि नौकरी भी पक्की होगी और पैसे भी बढ़ेंगे. अपने तौर पर सारी काररवाई बड़े ही खुफिया तरीके से हो रही थी. जैसे ही मीटिंग खत्म हुई, मैं वहीद साहब से मिलने के लिए बेचैन हो गया. वो नहीं मिले, सीधे घर चले गए. मैं घर पहुंचा. पता चला कि किसी काम से बाहर गए हुए हैं.

औफिस आया तो नक्शा ही बदला हुआ था. हर जुबान पर मेरी नौकरी खत्म होने का जिक्र था. जूनियर एकाउंटेट ने बुला कर मुझे सारी सच्चाई बता दी कि वहीद साहब ने तुम्हारे साथ ज्यादती की है.

मेरे तनबदन में आग लग गई. उन्होंने ए टू जैड तक मीटिंग की सारी काररवाई सुना दी. कहने लगे, ‘वह बड़े काइयां हैं. देखना, वो तुम से मिलना भी गवारा नहीं करेंगे. उन्होंने मीटिंग के बाद उस लड़के का अपौइंटमेंट लैटर भी टाइप करवा लिया है, जिसे वह तुम्हारी जगह रखना चाहते हैं. यह लड़का नासिर उन का रिश्तेदार है.’

मेरे कानों की लौएं गरम हो गईं. नासिर को मैं ने उन के घर भी देखा था. इस का मतलब यह हुआ कि दोनों बापबेटी मुझे उल्लू बना रहे थे. वहीद साहब ने उसे नौकरी दिलवाई है. बेटी उसे बहुत लिफ्ट देती है. अब मेरी जगह नासिर वहां जाया करेगा.

अगर इस समय शाहीना इस खेल में शरीक न थी तो क्या हुआ. चंद दिनों बाद वो भी जैनब की तरह पटरी बदल कर नए रास्ते पर चल निकलेगी. लेकिन मैं ऐसा नहीं होने दूंगा. मुझे वहीद साहब को ऐसा मजा चखाना होगा कि वह भी याद रखें.

अगले दिन सूरज डूबने के वक्त वहीद साहब के घर पहुंचा, मुझे मालूम था कि इस वक्त बच्चों सहित वह सैर के लिए किसी छोटे पार्क में जाते हैं और घर पर शाहीना अकेली होती है.

मेरा पैगाम पहुंचते ही वह बेकरारी से बाहर निकल आई. कहने लगी, ‘कमाल के आदमी हैं आप, सुना है कल आए थे. बाहर से ही अब्बू को पूछा और चल दिए, हम इंतजार करते ही रह गए. हमें आप से बहुत जरूरी बात करनी थी.’

वह मुझे अंदर ले आई. घर में उस के सिवा और कोई न था. कहने लगी, ‘वो लोग अभी सैर के बाद लौट आएंगे. हम फिर शायद इतनी आजादी के साथ आप से न मिल सकें. अब्बू हमारी शादी नासिर से करना चाहते हैं. वह अब्बू का भांजा है. हमें इस रिश्ते पर कोई ऐतराज न होता अगर आप से पहले वादा न किया होता. हम वादा निभाने वालों में से हैं. बताइए, आप हम से शादी करेंगे या यों ही दिल्लगी कर रहे थे.’

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लड़की की इस साफगोई से पसीने छूट गए. मगर यह हिम्मत दिखाने का मौका था. मैं ने कहा, ‘मैं तुम्हें अपनी जिंदगी का साथी बनाना चाहता था, मगर तुम्हारे अब्बू साहब ने सब कुछ चौपट कर दिया. उन्होंने मुझे नौकरी से निकलवा दिया है और नासिर को मेरी जगह रख लिया है.’

वह बोली, ‘यह तो और भी अच्छा हुआ. अब्बू साहब हमारी यह ख्वाहिश कभी पूरी नहीं करेंगे. वह नासिर से भी कहते रहते हैं कि यह लड़की तुम्हारा सुकून बरबाद कर देगी. हम सचमुच उन का सुकून बरबाद कर के छोड़ेंगे, आप हमारे साथ चलने को तैयार हो जाइए.

‘हम दोनों यह शहर छोड़ कर मुंबई चले जाएंगे. आप वहां नौकरी तलाश कर के हमारे लिए छोटा सा घर बना दें, हम सारी उम्र आप के कदमों में बसर करेंगे. इस घर से अब हमें नफरत होने लगी है.’

ओह, तो साहबजादी मेरे साथ भागने के मंसूबे बना रही थीं. यानी कुदरत ने बदला लेने का मौका खुद ही हमारी झोली में डाल दिया था. वहीद साहब ने अपने भांजे को खुशियां देने के लिए मेरी नौकरी और अपनी बेटी के जज्बात की भेंट चढ़ाई थी. उन्हें सबक देना जरुरी हो गया था.

मैं ने फौरन शाहीना के मंसूबे पर हामी भर दी. वह कहने लगी, ‘आप खर्चे की फिक्र न करें. सारा इंतजाम हम करेंगे. आप पर आंच नहीं आने देंगे. जब तक आप की नौकरी नहीं लगेगी, घर का खर्च हम उठाएंगे.

इस हसीन पेशकश पर दिल झूम उठा. सोचा सब मुफ्त में हाथ आए तो बुरा क्या है. मेरे घर वाले खुद मेरी आवारागर्दी से तंग आए हुए हैं. उन से कह दूंगा कि मुंबई जा कर नौकरी ढूंढूंगा. अब्बू के बारे में मुझे पता था कि बहुत खुश होंगे.

वह बारबार कहते थे कि मंसूर मियां कोई दूसरी नौकरी ढूंढो. यह सौपचास वाली नौकरी दिल को कुछ जंचती नहीं. उन की यह हसरत भी पूरी हो जाएगी कि मैं दूसरे शहर जा कर भी नौकरी तलाशने की कोशिश करुंगा. अभी मैं ने उन्हें नौकरी छूटने के बारे में कुछ नहीं बताया था.

घर लौटा तो पूरी योजना मेरे दिमाग में तैयार हो चुकी थी. वहीद साहब से बदला ले कर अपने भविष्य तक के लिए ढेरों सपने देख डाले थे मैं ने. शाहीना एक अच्छी बीवी साबित हो सकती थी. इस से पहले जिन आधा दरजन लड़कियों से मेरा चक्कर चला था, जो खुद भी मेरे जैसी ही थीं. इसलिए मुझे शाहीना की मोहब्बत पर भी शक होने लगा था कि वह भी यूं ही वक्त गुजारी के तौर पर यह शगल अपनाए हुए है.

मगर जब उस ने मेरे साथ जिंदगी गुजारने का पूरा प्रोग्राम संजीदगी से सुना दिया, तब मुझे वो अच्छी लगी कि शादी कहीं न कहीं तो करनी ही होगी. यह लड़की इतनी कुरबानियां दे रही है, सारी उम्र वफादार रहेगी. वहीद साहब तिलमिला कर रह जाएंगे और उन का वो भांजा हाथ मलता रह जाएगा. उन्हें कभी दुश्मन का नाम तक मालूम हो नहीं सकेगा.

प्रोग्राम यह तय हुआ था कि वो अपनी खाला के घर जाने के बहाने घर से निकलेगी. और खुद स्टेशन पहुंच जाएगी. वहां मैं उस का इंतजार करूंगा और पहले से ही 2 टिकट खरीद लूंगा, वह ऐन वक्त पर आएगी. दोनों अलगअलग डिब्बों में सफर करेंगे.

अपनाअपना टिकट पास रखेंगे. ताकि किसी को शुबहा न हो. अगर खुदा न खास्ता पुलिस ने हम में से किसी एक को पकड़ लिया तो वह हरगिज दूसरे का नाम न लेगा और ऐसी सूरत में उस से पूरी तरह से अजनबी बन जाएगा. वैसे इस बात की संभावना बहुत कम थी, फिर भी इस तेज दिमाग की लड़की को मुझे बचाए रखने का पूरा ध्यान था.

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तय प्रोग्राम के मुताबिक मैं ने अब्बू को बता दिया कि मैं एक इंटरव्यू के लिए मुंबई जा रहा हूं. अगर नौकरी मिल गई तो अपना सामान लेने वापस आ जाऊंगा. न मिल सकी तो कुछ दिन ठहर कर एकदो जगह और कोशिश करूंगा.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

हम खो जाएंगे : भाग 1

हर औरत की तरह मेरी बीवी हूरा बेगम को भी जेवरात का बड़ा शौक है. मैं ने शादी पर जो जेवरात चढ़ाए थे, 20 साल गुजरने के बावजूद उन्हें यों सीने से लगाए रखती है जैसे बंदरिया अपने बच्चे को. मैं उस से कहता भी हूं, ‘हूरा बेगम इन्हें बेच कर नए फैशन के जेवरात खरीद लाओ. तुम्हारा दिल इन से अभी तक भरा नहीं?’

तो वो एकदम जज्बाती सी हो कर कहती है ‘मंसूर इंसान का उन चीजों से कभी दिल नहीं भरता जो उस के दिलोदिमाग में खुशगवार यादों की बस्ती आबाद कर देती हों. जब मैं आज की बोझिल जिम्मेदारियों से थक कर इन जेवरात की पिटारी खोलती हूं तो ऐसा लगता है कि मैं वही नई ब्याहता दुल्हन हूं और तुम अपने जज्बात से लरजते हाथों से मुझे ये जेवर पहना रहे हो.

तुम्हें याद है न, तुम ने चुपके से अपनी बहन सलमा से कहलवाया था कि हूरा से कह देना जब मैं आऊं तो वो फूलों का गहना पहने मिले, धातु के जेवरात उतार देना. मैं ने तुम्हारा हुक्म फौरन मान लिया था. मगर पता नहीं क्यों मुझे यह बदशगुनी सी लगी थी कि शादी की पहली रात ही दूल्हे को अपने रूप का जलवा दिखाए बगैर दुलहन जेवर उतार दे.

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मेरी आंखों में आंसू भर आए थे. तुम ने मेरे दुखी दिल को महसूस कर के पूछा था ‘हूरा क्या बात है तुम खुश नहीं लग रहीं. क्या मुझ से शादी तुम्हारी मरजी के बगैर हुई है?’ मैं ने तड़प कर तुम्हारे मुंह पर हाथ रख दिया था, याद है न. फिर तुम्हारे बहुत जोर देने पर मैं ने अपने दिल की बात बता दी थी.

तुम बहुत देर तक गुमसुम से बैठे रहे थे. फिर उठ कर मेरे पास आ गए थे और जेवरात का डिब्बा खोल कर सारे जेवर मुझे अपने हाथों से पहनाते हुए कहा था. लो बस अपना दिल मैला न करो.

आज की रात एकदूसरे के लिए हमारे दिल में मोहब्बत के सिवा और कोई जज्बा पैदा नहीं होना चाहिए. तुम्हें याद है न? और तुम ने मुंह दिखाई में मुझे यह सैट दिया था?’

मेरी बीवी यह वाकया कई बार मुझे सुना चुकी है. हर बार वह एक मजे के साथ इस वाकिए का एकएक लफ्ज सौसौ रंगों में डुबो कर सुनाती है. मगर बेवकूफ यह नहीं जानती कि यह वाकया सुनते हुए मेरा ब्लडप्रेशर हाई होने लगता है. उसे नहीं मालूम कि उस के शौहर को इन जेवरात से क्या एलर्जी होती है. उस ने शादी की पहली रात यह क्यों कहा था कि वो फूलों का गहना पहन ले. हर आदमी की जिंदगी में कुछ बातें ऐसी जरूर होती हैं जिन का राजदार वो खुद ही होता है.

सालोंसाल बल्कि सारी उम्र साथ रहने वाली बीवी भी नहीं जानती कि उस के शौहर के दिल के चंद खाने उस से छिपे हुए हैं. वह खुश कर देने वाले चंद जुमलों से अपने दिल को आबाद करती रहती है. खुद को धोखा देती रहती है कि उस की जिंदगी में दाखिल होने वाली मैं वो अकेली औरत हूं जो उस के दिलोदिमाग पर पूरी तरह कब्जा किए हुए है.

इस आत्ममुग्धता के सहारे वो खुशीखुशी अपने जिस्मोजान की कुर्बानी देती चली जाती है. अच्छा ही है कि वह इस आत्ममुग्धता में डूबी रहती है. अगर वह हर सच्चाई की तह में उतरने वाली अकल ले कर पैदा होती तो शिकारी फितरत वाला मर्द सारी उम्र शिकार से महरूम (वंचित) रह जाता.

हां, दूसरे मर्दों की तरह मैं भी शिकारी फितरत वाला मर्द था. जवानी के दौर में कई सारी लड़कियां मेरी मोहब्बत के जाल में फंस कर मुझ पर अपना तनमन और धन न्यौछावर करती रहीं. कुलसुम, जैनब, हमीदा, गुलफ्शां, साजिदा. कोई एक नाम हो तो याद भी करूं, बहुत से चेहरे तो वक्त ने धुंधला भी दिए हैं.

सिर्फ एक चेहरा ऐसा है जिसे मैं कोशिश के बावजूद अपनी नजरों से जुदा नहीं कर सका हूं. और वो है शाहीना का चेहरा. उस का बाप एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करता था. उन दिनों मैं ने इंटर का इम्तिहान दिया था. वक्त ही वक्त था.

मेरे एक दोस्त ने मशविरा दिया कि जब तक रिजल्ट न आ जाए हम कहीं नौकरी कर लेते हैं. अगर कामयाब हो गए तो पढ़ाई जारी रखेंगे. कभी नौकरी पढ़ाई में रुकावट बनी तो उसे छोड़ देंगे. वह गुजराती लड़का था. हमेशा फायदे की बात सोचा करता था.

हम दोनों की गाढ़ी छनती थी. हम दोनों ने नौकरी की तलाश बड़ी लगन से शुरू कर दी. दोनों एक साथ कई औफिसों की धूल छानते फिरा करते थे. इस फाकामस्ती (दरिद्रता) की हालत में भी मोहब्बत का कारोबार जारी रहता था.

यहांवहां घूमतेभटकते शाहीना के अब्बा से मुलाकात हो गई. वो अकाउंटेंट थे. उन्होंने हमारी दरखास्तें बड़े गौर से पढ़ीं और दोनों को बुलवा लिया. कहने लगे हमारे यहां एक जगह खाली है. और वो भी टैंपरेरी है. संभव है कुछ महीनों बाद हम वो पद खत्म कर दें या स्थाई कर दें. यह बात अगले 3 महीने बाद मीटिंग में ही तय होगी, तुम में से एक को यह नौकरी दी जा सकती है. आपस में फैसला कर लो कि तुम दोनों में से ज्यादा जरूरत किस को है?

मेरा गुजराती दोस्त फौरन पीछे हट गया. कहने लगा, ‘जनाब मेरे इस दोस्त को रख लीजिए. मेरे अब्बा की दुकान है, मैं तो वैसे भी व्यस्त रहता हूं. यह बिलकुल बेकार फिरता रहता है. इसे बैठने का ठिकाना मिल जाएगा.’

इस तरह मुझे नौकरी मिल गई. इस पद के रहने न रहने का अधिकार वहीद साहब के हाथ में था. इसलिए मैं ज्यादातर उन्हीं के आसपास मंडराता रहता था. उन्होंने मुझे अपने निजी कामों के लिए घर भेजना शुरू कर दिया. घर में शाहीना से मुलाकात हो गई. गोरी रंगत वाली यह लड़की मेरी नजरों में आ गई.

उन दिनों मेरा चक्कर जैनब से चल रहा था, जो मेरे लगातार झूठ बोलने से तंग आ गई थी. वह चुपकेचुपके अपने रिश्ते के भाई को शीशे में उतार कर शादी की तैयारियां कर रही थी. मुझे उस की बहन ने सब कुछ बता दिया था.

इस से पहले कि वो मुझे दुत्कारती मैं खुद उसे छोड़ना चाहता था. मगर जब तक इस ध्ांधे के लिए कोई दूसरी लड़की नहीं मिलती, यह जरा मुश्किल काम लगता था. शाहीना पर नजर पड़ी तो दिल ने चुटकी ली कि लो मियां तुम्हारा बंदोबस्त हो गया. लड़की कम बोलती है, सूरतशक्ल अच्छी है. थोड़ी सी मेहनत करनी पड़ेगी. यह कौन सा मुश्किल है, ज्यादा से ज्यादा एकदो हफ्ते लगातार अदाकारी करनी पड़ेगी.

सब से पहले मैं ने उस का बैकग्राउंड मालूम किया. पता चला कि शाहीना वहीद साहब की सगी औलाद नहीं है. वह उस की मां के पहले शौहर से है. मां का तलाक हो गया था. बच्ची उसी के पास रही. उस ने वहीद साहिब से शादी कर ली. उन की बीवी एक बच्चे को जन्म दे कर मर चुकी थी. बच्चा जिंदा था.

उस की परवरिश के लिए वह दूसरी शादी के इच्छुक थे. शाहीना की उम्र उस समय ढाई साल थी. किसी दोस्त के जरिए से यह रिश्ता तय हो गया था. शादी के बाद दोनों मियांबीवी ने अपने बच्चों की हिफाजत के लिए एक फैसला किया.

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बीवी अपने फैसले पर कायम रही, उस ने वहीद साहब के बेटे को अपनी औलाद से बढ़ कर प्यार दिया. मगर वहीद साहब अपनी सौतेली बच्ची से दिमागी तौर पर समझौता न कर सके. उन्होंने कभी उसे गोद तक में नहीं लिया. उस की जरूरतों का खयाल न रखा. ऊपर से 4 बच्चे और आ गए शाहीना बिलकुल बैकग्राउंड (नेपथ्य) में चली गई.

जैसेजैसे वह बड़ी होती गई उस पर जिम्मेदारियों का बोझ बढ़ता गया. मां को इतना समय नहीं मिलता था कि उस की परेशानियों को समझ सकती. वो अंदर ही अंदर अपने सारे बहनभाइयों से जलती थी, जिन्होंने मिल कर उस की मां को उस से छीन लिया था.

पढ़ाई में कमजोर थी या शायद उस ने अपना सारा दिमाग बहनभाइयों को जलाते रहने की तरकीबों पर लगा दिया था. बाप उस से नफरत करता था. हर गलती उसी के सिर पर थोप कर उस से पूछताछ करता था.

देखने में तो कम बोलने वाली और दूसरों की खिदमत करते रहने वाली लड़की नजर आती थी, मगर जैसेजैसे उस के भेद खुलते गए मुझे अंदाजा हो गया कि वह बहनभाइयों को आपस में लड़वा कर बड़ी खुश होती है.

19-20 बरस की लड़की, नन्ही बच्ची की तरह भागतीदौड़ती फिरा करती थी. कभी आंगन वाले पेड़ पर चढ़ जाती तो कभी दीवार पर जा बैठती. जुबान नहीं खोलती थी. मैं ने कुछ दिन उस की मनोस्थिति समझने में लगाए फिर बिल्ली की तरह पुचकार कर उसे अपने करीब कर लिया.

उस की गुर्राहटें आहिस्ताआहिस्ता कम होने लगीं. लहजे में नरमी आ गई. जज्बात की हल्की सी तपिश से उस के दिल की सख्त चट्टान मोम में बदल गई और इस से पहले कि जैनब मुझे अपनी शादी का कार्ड थमाती, मैं ने शाहीना से मोहब्बत का इकरार करवा लिया.

जैनब की छुट्टी कर के मैं जोरशोर से शाहीना पर मरने लगा. मुझे उस जमाने में हर लड़की फ्लर्ट लगती थी. शायद इसलिए कि मेरी पहले की सारी महबूबाओं में एक भी वफा वाली नहीं थी. वहीद साहब के हुक्म पर जब भी मैं उन के घर जाता था, मोहल्ले के किसी बच्चे के हाथ पहले ही शाहीना को इत्तला भिजवा दिया करता था.

वह किसी न किसी बहाने बैठक (उस जमाने में ड्राइंगरूम को बैठक कहते थे) में आ जाती. मुझ से मिलने के बाद उस के चेहरे पर काफी सुकून छा जाता. अकसर कहती थी मंसूर आप ने हमारे दिल में जीने की उमंग पैदा कर दी है. वरना हम सोचा करते थे किसी रोज अफीम खाकर मर जाएं. हम से यहां कोई प्यार नहीं करता. अब्बू कहते हैं कि हमारी रगों में उन का खून नहीं है, इसलिए हम बदतमीज हैं, चालाक हैं, बेहूदा हैं.

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उन्हें हमारे अंदर दुनिया भर की कमियां नजर आती हैं. अम्मी उन्हें और उन की औलाद को खुश करने के लिए हमें उन सब के सामने जलील करती रहती हैं. वो हम से इतना काम लेती हैं कि अगर हम कहीं नौकरी कर लें तो इस जगह से कहीं ज्यादा बेहतर तरीके से जिंदगी गुजार सकते हैं.

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धर्म की दोधारी तलवार : भाग 3

शाहनवाज का पिता रशीद अहमद शौकत अली पार्क कर्नलगंज बजरिया में रहता था. शाहनवाज उस का सब से छोटा बेटा था. बड़ी बेटी फरजाना जाजमऊ सरैया बाजार निवासी आमिर खान को ब्याही थी. बड़ा बेटा रशीद अहमद चमड़े का व्यवसाय करता था. शाहनवाज उन के व्यवसाय में मदद करता था. शाहनवाज शादीशुदा था.

शाजिया उस की पत्नी थी, लेकिन वह फरेब कर सीता से शादी करना चाहता था. उस ने मन बना लिया था कि वह सीता उर्फ नेहा से शादी रचा कर उसे परिवार से अलग कमरा ले कर रहेगा.

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शाहनवाज निश्चित दिन तारीख व समय पर आजमगढ़ पहुंच गया और होटल गगन में ठहर गया. उस के लिए होटल का कमरा सीता ने बुक कराया था. शाहनवाज ने होटल रूम में ठहरने की जानकारी सीता को दी. कुछ देर बाद वह भी होटल रूम में पहुंच गई. रूम में दोनों का आमनासामना हुआ तो दोनों ही एकदूसरे से प्रभावित हुए. शाहनवाज जहां शरीर से हृष्टपुष्ट सजीला आकर्षक युवक था, तो सीता भी खूबसूरत व जवानी से भरपूर थी.

शाहनवाज से शादी पर अड़ी सीता

शाहनवाज से बातें करतेकरते सीता सोचने लगी कि उस ने भावी पति के रूप में जैसे सुंदर व सजीले युवक के सपने संजोए थे, शाहनवाज वैसा ही निकला. अगर शाहनवाज से उस की शादी हो जाए तो उस के जीवन में बहार आ जाएगी.

सीता अभी इसी सोच में डूबी थी कि शाहनवाज बोला, ‘‘मैं ने जितना सोचा था, तुम उस से कहीं ज्यादा हसीन हो. वैसे बुरा न मानो तो एक बात बोलूं?’’

‘‘बोलो, जो कहना चाहते हो बेहिचक कहो.’’ सीता की धड़कनें तेज हो गईं.

‘‘तुम्हें देखते ही दिल में प्यार का अहसास जाग उठा है.’’ कहते हुए शाहनवाज उस के हाथ पर हाथ रख कर बोला, ‘‘आई लव यू सीता.’’

प्रेम निवेदन सुन कर सीता की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. उस ने अपना दूसरा हाथ उठा कर शाहनवाज के हाथ पर रख कर कह दिया, ‘‘आई लव यू टू.’’

दोनों तरफ से प्यार का इजहार हुआ तो चंद मिनटों में दोनों की दोस्ती प्यार में बदल गई. कुछ देर बातचीत करने के बाद शाहनवाज वहां से चला गया. इस के बाद दोनों का प्यार दिन दूना रात चौगुना बढ़ने लगा. उन के बीच की दूरियां कम होती गईं. फिर शारीरिक संबंध भी बन गए.

शाहनवाज महीने में एकदो बार आजमगढ़ आता, होटल या लौज में ठहरता. सीता घर वालों को बिना कुछ बताए वहां आ जाती. दोनों में प्यारमोहब्बत की बातें होतीं. दोनों एकदूसरे के होने की कसमें खाते. उन के बीच शारीरिक मिलन होता फिर दोनों अपनेअपने घर लौट जाते.

शाहनवाज और सीता एकदूसरे से बेइंतहा मोहब्बत करने लगे थे. दोनों शादी करना चाहते थे, लेकिन शादी कर पाते उस के पहले ही उन के प्यार का भांडा फूट गया. हुआ यह कि एक रात सीता शाहनवाज से बातें कर रही थी, तभी उस की मां सरोज की आंखें खुल गईं. उस ने दोनों के बीच होने वाली प्यारमोहब्बत की बातें सुन लीं.

सरोज को समझते देर न लगी कि उस की बेटी के कदम बहक गए हैं. वह रात में तो कुछ नहीं बोली लेकिन सवेरा होते ही उस ने पूछा, ‘‘सीता, तू रात में किस से बहकीबहकी बातें कर रही थी? यह शाहनवाज कौन है?’’

शाहनवाज का नाम सुन कर सीता चौंकी. उसे समझते देर नहीं लगी कि उस के प्यार का भांडा फूट चुका है. अब सच्चाई बताने में ही भलाई है. वह बोली, ‘‘मां, मैं शाहनवाज से बात कर रही थी. शाहनवाज कानपुर में रहता है और हमारी दोस्ती फेसबुक पर हुई थी. हम दोनों एकदूसरे को बेहद प्यार करते हैं और शादी करना चाहते हैं.’’

सीता की बात सुन कर सरोज सन्न रह गई. वह उसे समझाते हुए बोली, ‘‘बेटी, हम हिंदू और वह मुसलमान. हम गैरधर्म के लड़के से तेरी शादी नहीं कर सकते, इसलिए अपने कदम वापस खींच ले, हम जल्द ही तेरा विवाह किसी हिंदू लड़के से कर देंगे.’’

‘‘मां, अब जमाना बदल गया है. अब हिंदूमुसलमान के बीच कोई मतभेद नहीं रहा है. शाहनवाज पढ़ालिखा कमाऊ लड़का है, इसलिए हम शादी उसी से करेंगे. आप लोग राजी न हुए तो मैं भाग कर शाहनवाज से शादी कर लूंगी.’’ उस ने समझाया.

सरोज ने बेटी की हरकतों की जानकारी पति को दी तो जवाहर को बहुत दुख हुआ. उस ने भी सीता को बहुत समझाया कि वह मुसलिम समाज के युवक से शादी न करे. लेकिन सीता ने मांबाप की बात नहीं मानी और अपनी जिद पर अड़ी रही. तब जवाहर ने  बड़ी बेटी सुशीला को घर बुलाया और सीता को समझाने को कहा.

लेकिन सीता ने तकवितर्क से बड़ी बहन को शादी के लिए राजी कर लिया. उस के बाद सुशीला ने अपने मांबाप को भी मना लिया. जवाहर और उस की पत्नी सरोज सीता की शादी शाहनवाज से करने को राजी तो हो गए. लेकिन इज्जत के कारण अपने घर से बेटी को विदा करने को राजी नहीं हुए. तब सुशीला ने अपनी ससुराल मसखारी से दोनों का विवाह कराने का निश्चय किया.

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बढ़ने लगी विषबेल

21 अगस्त, 2019 को सुशीला ने अपनी ससुराल मसखारी अंबेडकर नगर में मौलवी को बुला कर सीता का निकाह शाहनवाज से करा दिया. इस के बाद सीता शाहनवाज की बीवी बन कर कानपुर आ गई. शाहनवाज ने निकाह से पहले ही जाजमऊ में किराए पर कमरा ले लिया था.

इसी कमरे में वह सीता उर्फ नेहा के साथ पतिपत्नी की तरह रहने लगा. शाहनवाज की बीवी को पता ही नहीं चला कि उस के शौहर ने दूसरा निकाह कर लिया.

सीता 3 माह तक शाहनवाज के साथ खुश रही. उस के बाद दोनों में तकरार होने लगी. तकरार का पहला कारण था ससुराल वालों से मिलवाने तथा ससुराल में रहने की जिद. दरअसल, सीता चाहती थी कि वह पति के घर वालों के साथ रहे लेकिन शाहनवाज पहली पत्नी का भेद खुलने के भय से उसे घर ले जाने को मना कर देता था.

दूसरा कारण यह था कि शाहनवाज कभी दिन में तो कभी रात को और कभीकभी 2 दिन तक घर से गायब हो जाता था. सीता पूछती तो लड़ने लगता था. इस से सीता को शक होने लगा था कि वह कोई राज छिपा रहा है. राज छिपाने की जानकारी उस ने अपनी बहन सुशीला तथा मां सरोज को भी फोन के माध्यम से दे दी थी.

सीता जब ससुराल जाने की ज्यादा जिद करने लगी तो शाहनवाज को भेद खुलने का डर सताने लगा, अत: इस गंभीर समस्या के समाधान के लिए शाहनवाज जाजमऊ सरैया कानपुर निवासी अपने बहनोई आमिर खान के घर गया और उस से विचारविमर्श किया.

विचारविमर्श के बाद तय हुआ कि सीता को ठिकाने लगा दिया जाए. इस के बाद सीता को ठिकाने लगाने की योजना बनी. इस योजना में शाहनवाज ने अपने बहनोई आमिर खान के अलावा दोस्त शरीफ उर्फ सोनू तथा हसीब को भी शामिल कर लिया.

27 दिसंबर, 2019 को शाहनवाज ने सीता को बताया कि आज शाम वह उसे घुमाने ले जाएगा. इस के बाद वह उसे अपने घर ले जाएगा. यह सुन कर सीता खुशी से झूम उठी. उस ने साजशृंगार किया. आभूषण पहने फिर पति के साथ जाने का इंतजार करने लगी.

शाम 5 बजे शाहनवाज कार ले कर आया. कार में उस के साथ उस का बहनोई आमिर खान भी था. शाहनवाज कार अपने दोस्त जीशान से यह कह कर लाया था कि वह 2 रोज के लिए बाहर घूमने जा रहा है. किराए के तौर पर उस ने जीशान को 10 हजार रुपए दिए थे.

जहर भरी जिंदगी का अंत

जाजमऊ के किराए वाले घर से शाहनवाज सीता उर्फ नेहा को कार में बिठा कर निकला. रामादेवी चौराहे पर उस ने दोस्त शरीफ व हसीब को भी कार में बिठा लिया. फिर सभी कंपनी बाग चौराहा पहुंचे. वहां की शराब की एक दुकान से इन लोगों ने शराब खरीदी. इस के बाद वे गंगा बैराज पहुंचे.

सभी ने चलती गाड़ी में शराब पी और सीता उर्फ नेहा को भी शराब जबरदस्ती पिलाई. कुछ देर बाद सीता जब नशे में अर्धमूर्छित हो गई, तब शाहनवाज ने कार सिंहपुर बिठूर की ओर मुड़वा दी.

इस के बाद चलती कार में ही शाहनवाज ने अपने बहनोई आमिर खान तथा दोस्त शरीफ की मदद से सीता की गला घोंट कर हत्या कर दी.

हत्या करने के बाद उन लोगों ने सीता के शरीर से गहने उतारे, उस का मोबाइल कब्जे में किया फिर कार सुनसान स्थान पर रोक कर सीता के शव को सड़क किनारे झाडि़यों में फेंक दिया.

सीता के शरीर से उतारे गए गहने तथा मोबाइल फोन को भी वहीं झाड़ी में छिपा दिया. शाहनवाज ने अपना तमंचा भी झाड़ी में छिपा दिया था. इस के बाद वे कार से अपनेअपने घर चले गए.

दूसरे दिन 12 बजे के बाद थाना नवाबगंज पुलिस को महिला का शव पड़े होने की सूचना मिली. थानाप्रभारी दिलीप कुमार बिंद घटनास्थल पहुंचे और शव कब्जे में ले कर जांच शुरू की. जांच में हत्या का परदाफाश हुआ और कातिल पकड़े गए.

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5 जनवरी, 2020 को थाना नवाबगंज पुलिस ने अभियुक्त शाहनवाज तथा आमिर खान को कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट डी.के. राय की अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया. अन्य 2 अभियुक्त शरीफ व हसीब फरार थे. पुलिस उन्हें पकड़ने को प्रयासरत थी.

धर्म की दोधारी तलवार : भाग 2

शाहनवाज के बयान के आधार पर अन्य आरोपियों को पकड़ने के लिए थानाप्रभारी दिलीप कुमार बिंद ने पुलिस टीम के साथ शाहनवाज के बहनोई आमिर खान के घर में छापा मारा. पुलिस के साथ शाहनवाज को देख कर आमिर खान ने भागने का प्रयास किया लेकिन पुलिस ने उसे दबोच लिया.

इस के बाद पुलिस ने शरीफ सोनू तथा हसीब के घर छापा मारा किंतु वे दोनों फरार हो चुके थे. आमिर खान को पुलिस थाना नवाबगंज ले आई. थाने पर जब उस से सीता की हत्या के संबंध में पूछताछ की गई तो उस ने सहज ही हत्या का जुर्म कबूल कर लिया.

थाना नवाबगंज पुलिस ने अब तक सीता उर्फ नेहा के मुख्य हत्यारोपियों को तो गिरफ्तार कर लिया था, लेकिन अभी तक सीता का मोबाइल फोन तथा उस के आभूषण पुलिस बरामद नहीं कर पाई थी. बिंद ने मोबाइल फोन और जेवरात के बाबत पूछताछ की तो शाहनवाज और आमिर खान ने बताया कि मोबाइल फोन तथा जेवरात उन दोनों ने घटनास्थल के पास झाडि़यों में छिपा दिए थे.

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3 जनवरी, 2020 की सुबह थानाप्रभारी दोनों आरोपियों को साथ ले कर मोबाइल फोन व जेवरात बरामद करने के लिए घटनास्थल पहुंचे. आमिर खान और शाहनवाज ने सड़क किनारे की झाडि़यों में मोबाइल फोन व जेवरात खोजने लगे. जेवरात खोजते अभी 10 मिनट ही बीते थे कि शाहनवाज ने झाड़ी में पहले से छिपा कर रखा गया तमंचा निकाला और पुलिस पर फायर झोंक दिया. साथ ही भागने का प्रयास किया.

तभी थानाप्रभारी ने शाहनवाज पर गोली चला दी, जो उस के दाएं पैर में लगी वह लड़खड़ा कर गिर गया. पुलिस ने उसे दबोच लिया. इस के बाद पुलिस ने कड़ा रुख अपनाते हुए आमिर और शाहनवाज की निशानदेही पर झाड़ी में छिपा कर रखा गया सीता का मोबाइल फोन, अंगूठी, मंगलसूत्र, नोज पिन, कानों के बाले व पायल बरामद कर लीं.

पुलिस ने वह तमंचा भी बरामद कर लिया जिस से शाहनवाज ने पुलिस पर फायर किया था. बरामद सामान के साथ पुलिस दोनों को थाने ले आई.

कुछ ही देर में एसएसपी अनंतदेव तिवारी, एसपी (पश्चिम) डा. अनिल कुमार तथा सीओ अजीत सिंह चौहान थाना नवाबगंज आ गए. पुलिस अधिकारियों ने हत्यारोपी शाहनवाज और आमिर खान से एक घंटे तक पूछताछ की, उस के बाद एसएसपी अनंतदेव तिवारी ने प्रैसवार्ता की और ब्लाइंड मर्डर का खुलासा किया.

जीजा-साले की जुगलबंदी का नतीजा

शाहनवाज और आमिर ने सीता उर्फ नेहा की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया था, साथ ही हत्या में प्रयुक्त कार तथा मृतका का मोबाइल फोन और जेवरात भी बरामद करा दिए थे. अत: थानाप्रभारी ने शाहनवाज, आमिर खान, शरीफ उर्फ सोनू तथा हसीब के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201, 120बी और आर्म्स एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया. पुलिस जांच में फरेबी पति की सनसनीखेज घटना प्रकाश में आई—

उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ शहर के कोतवाली थानांतर्गत एक मोहल्ला है गडया. इसी मोहल्ले के पुराना मध्य पुल के पास जवाहर अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी सरोज के अलावा 2 बेटियां सुशीला तथा सीता उर्फ नेहा थीं. जवाहर बुनाई कारखाने में काम करता था. कारखाने से उसे जो वेतन मिलता था, उसी से परिवार का भरणपोषण होता था. जवाहर बड़ी बेटी सुशीला का विवाह हो चुका था. सुशीला ससुराल में सुखमय जीवन व्यतीत कर रही थी.

सुशीला से छोटी सीता उर्फ नेहा थी. वह पढ़लिख कर अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती थी. वह इंटरमीडिएट के बाद आगे भी पढ़ना चाहती थी, लेकिन उस के मातापिता की आर्थिक स्थिति कमजोर थी, जिस से वह उस के आगे की पढ़ाई को मना कर रहे थे.

इस समस्या के निदान के लिए सीता ने प्राइवेट स्कूल में शिक्षिका की नौकरी कर ली. स्कूल के माध्यम से उसे कुछ बच्चों के ट्यूशन भी मिल गए. इस तरह वह अपना तथा अपनी पढ़ाई का खर्चा स्वयं निकालने लगी.

एक दिन सीता उर्फ नेहा स्कूल से पढ़ा कर घर लौट रही थी, तभी एकाएक पीछे से किसी ने उस के कंधे पर हाथ रख दिया. सीता चौंक कर पलटी तो उस के मुंह से हर्षमिश्रित चीख निकल गई, ‘अरे मनीषा, तू…’

मनीषा शर्मा सीता की बचपन की सहेली थी. पहली से ले कर 8वीं कक्षा तक दोनों साथ पढ़ी थीं. उस के बाद मनीषा दूसरे मोहल्ले में जा कर रहने लगी थी. 5 साल बाद दोनों की अब मुलाकात हुई थी. बरसों बाद बिछुड़ी हुई सहेलियां मिलीं तो दोनों बातचीत के साथ पुरानी यादें ताजा करने नजदीक के रेस्तरां जा पहुंचीं.

रेस्तरां में चाय की चुस्कियों के बीच दोनों सहेलियां बचपन से ले कर स्कूल तक की अपनी पुरानी यादें ताजा करने लगीं. बातोंबातों में मनीषा ने पूछा, ‘‘अच्छा ये बता जिंदगी कैसे कट रही है. कोई दोस्त है या नहीं? शादी का इरादा है या कोई हमसफर मिल गया है?’’

सीता के चेहरे पर दर्द की परछाइयां तैरने लगीं. वह ठंडी सांस ले कर बोली, ‘‘मनीषा, तू मेरी सब से प्यारी और भरोसेमंद सहेली है, इसलिए तुझ से क्या छिपाऊं. घर की आर्थिक स्थिति कुछ ठीक नहीं है. दहेज के डर से मातापिता परेशान हैं, इसलिए अभी तक मेरे लिए लड़का भी देखना शुरू नहीं किया है. रही बात दोस्त बनाने की, वह मैं ने किसी को बनाया नहीं है.’’

फेसबुक ने बनाई जोड़ी

मनीषा खिलखिला कर हंसी और फिर उस के गाल पर चुटकी काटते हुए बोली, ‘‘मातापिता के सहारे रहेगी तो तेरी शादी कभी नहीं होगी. तुझे खुद ही पहल कर दोस्त बनाना होगा और शादी की पहल करनी होगी.’’

‘‘वह कैसे?’’ सीता ने पूछा.

‘‘इंटरनेट की एक साइट है फेसबुक. उस के बारे में तू जानती है?’’

‘‘हां, जानती हूं. मैं जब 10वीं में पढ़ रही थी तब कंप्यूटर क्लास भी जौइन कर रखी थी. उसी दौरान फेसबुक, गूगल, याहू वगैरह के बारे में जाना था.’’

‘‘अच्छी बात है कि तुम फेसबुक के बारे में जानती हो वरना मुझे समझाने में दिक्कत हो जाती.’’ फिर मनीषा ने अपने पत्ते खोले, ‘‘फेसबुक पर मैं नएनए दोस्त बनाती हूं. इन से रसीली और चटपटी बातें करती हूं, जिस से मुझे पूरी संतुष्टि मिलती है. तुम्हें यह जान कर ताज्जुब होगा कि मैं उन अनजान दोस्तों से ऐसीऐसी बातें भी खुल कर कर लेती हूं, जो किसी से रूबरू करते भी शरम आए. मेरी तरह तू भी फेसबुक की मुरीद हो जा, फिर देखना तेरी हर मुराद पूरी होगी.’’

सीता मुसकराने लगी, ‘‘आइडिया तो बेहतरीन है, मैं तेरे सुझाव पर गौर करूंगी.’’

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फिर दोनों रेस्तरां से बाहर निकलीं और अपनेअपने घर चली गईं. उस रात सीता को नींद नहीं आई. वह रात भर सहेली के सुझाव पर मंथन करती रही. आखिर उसे यह सुझाव सही लगा. उस ने भी फेसबुक पर नए दोस्त बनाने का निश्चय कर लिया.

सीता को मोबाइल पर इंटरनेट चलाने का शौक था. अब वह सोशल साइट फेसबुक पर नएनए दोस्त बनाने लगी और उन से चैटिंग करने लगी. जो युवक मन को पसंद आ जाता था, उस का मोबाइल नंबर ले कर वह उसे अपना नंबर दे देती. वह मनपसंद युवक से ही बात करती थी, अन्य के फोन रिसीव नहीं करती थी.

फेसबुक पर ही सीता का परिचय शाहनवाज से हुआ. सीता ने उस की प्रोफाइल देखी तो पता चला उस की उम्र 30 वर्ष है और वह कानपुर शहर के बजरिया का रहने वाला है. शाहनवाज पढ़ालिखा था और व्यवसाय करता था. शाहनवाज हालांकि दूसरे धर्म का था, फिर भी सीता का झुकाव उस की ओर हो गया. दोनों ने अपने मोबाइल नंबर एकदूसरे को दे दिए, जिस से दोनों की अकसर देर रात तक बातें होने लगीं.

हालांकि सीता का दिल शाहनवाज को स्वीकार कर चुका था. लेकिन उसे इस बात की चिंता थी कि कहीं शाहनवाज शादीशुदा तो नहीं. इस चिंता से मुक्ति पाने के लिए एक दिन सीता ने बातोंबातों में पूछ लिया, ‘‘शाहनवाज, तुम शादीशुदा हो या कुंवारे? सचसच बताना, झूठ का सहारा मत लेना. क्योंकि झूठ से मुझे सख्त नफरत है.’’

‘‘झूठ बोलना मेरे स्वभाव में नहीं है, इसलिए सच यह है कि मैं कुंवारा भी हूं और शादीशुदा भी.’’ उस ने बताया.

‘‘क्या मतलब?’’ सीता चौंकी.

‘‘मतलब यह कि मेरी शादी हुई थी, लेकिन चंद दिनों बाद ही बीवी से मेरा तलाक हो गया था. अब उस से मेरा कोई संबंध नहीं है. इस तरह मैं अब कुंवारा ही हूं.’’

सीता मन ही मन खुश हुई और बोली, ‘‘शाहनवाज, मुझे जान कर खुशी हुई कि तुम ने सब सच बताया. अब मेरी चिंता दूर हो गई.’’

धीरेधीरे दोनों की दोस्ती गहरा गई. शाहनवाज को लगने लगा कि सीता उस की जिंदगी में बहार बन कर आएगी. वहीं सीता को भी आभास होने लगा था कि शाहनवाज ही उस के सपनों का राजकुमार है, इसलिए उस का मन उस से रूबरू होने को मचलने लगा.

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एक दिन सीता ने बातोंबातों में शाहनवाज को अपने शहर आजमगढ़ आने को कह दिया. दिन, तारीख, समय और होटल का नाम भी उसी दिन निश्चित हो गया. शाहनवाज तो यह चाहता ही था, सो उस ने सीता के आमंत्रण को सहर्ष स्वीकार कर लिया. इस के बाद वह आजमगढ़ जाने तथा महबूबा से रूबरू होने की तैयारी में जुट गया.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

धर्म की दोधारी तलवार : भाग 1

उस दिन दिसंबर महीने की 28 तारीख थी. कड़ाके की ठंड थी. घना कोहरा भी छाया था. ठंड की वजह से लोग घरों में दुबके थे. मंद गति से बह रही बर्फीली पछुआ हवाएं ठंड का कुछ ज्यादा ही अहसास करा रही थीं. दोपहर बाद जब कोहरा छंटा और सूरज ने हलकी रोशनी बिखेरी तभी कुछ लोगों ने गंगा बैराज से सिंहपुर बिठूर जाने वाली रोड के किनारे झाडि़यों में एक जवान महिला का शव पड़ा देखा.

जैसेजैसे लोगों को यह जानकारी मिली, लोग वहां जुटने लगे. कुछ ही देर बाद वहां भीड़ बढ़ गई. इसी बीच किसी ने महिला का शव पड़ा होने की सूचना थाना नवाबगंज को दे दी.

सूचना प्राप्त होते ही नवाबगंज थानाप्रभारी दिलीप कुमार बिंद पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पहुंच गए. उन्होंने अज्ञात महिला का शव मिलने की जानकारी पुलिस अधिकारियों को दी, फिर निरीक्षण में जुट गए. मृतका का रंग गोरा, शरीर स्वस्थ तथा उम्र 28 साल के आसपास थी. वह गुलाबी रंग का सलवारकुरता पहने थी. उस के हाथों पर मेहंदी रची थी और वह पैरों में बिछिया पहने थी. उस की गरदन, पीठ और सीने पर खरोंच व रगड़ के निशान थे. उस के मुंह से शराब की दुर्गंध भी आ रही थी.

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देखने से ऐसा लग रहा था जैसे मृत्यु से पहले महिला ने शराब पी थी या फिर उसे जबरन पिलाई गई थी. उस के बाद उस की हत्या कर शव सड़क किनारे झाडि़यों में फेंक दिया गया होगा. महिला के शरीर पर कोई आभूषण नहीं था, लेकिन ऐसा लग रहा था कि उस की नाक, कान, गले से आभूषण खींचे गए थे. क्योंकि नाक, कान से खून रिस रहा था. महिला की हत्या कहीं अन्यत्र की गई थी.

थानाप्रभारी दिलीप कुमार बिंद अभी निरीक्षण कर ही रहे थे कि सूचना पा कर एसएसपी अनंत देव तिवारी, एसपी (पश्चिम) डा. अनिल कुमार तथा सीओ अजीत सिंह चौहान भी वहां आ गए. पुलिस अधिकारियों ने मौके पर फोरैंसिक टीम और डौग स्क्वायड को भी बुलवा लिया.

पुलिस अधिकारियों ने महिला के शव का बारीकी से निरीक्षण किया. साथ ही कुछ आवश्यक दिशानिर्देश थानाप्रभारी दिलीप कुमार को दिए. उस के बाद फोरैंसिक टीम ने भी निरीक्षण कर साक्ष्य जुटाए.

खोजी कुत्ता महिला के शव को सूंघ कर सड़क पर गया और गंगा बैराज की ओर भौंकते हुए भागा. कुछ दूर जा कर वह रुका और चक्कर काटने लगा. टीम ने वहां निरीक्षण किया तो कार के पहियों के निशान दिखे. टीम ने अनुमान लगाया कि महिला की हत्या कार में की गई होगी और बाद में शव को झाडि़यों में फेंक दिया गया होगा. शव फेंकने के बाद कार को वहीं से बैक किया गया था.

घटनास्थल पर भीड़ जुटी थी, पर कोई भी शव को नहीं पहचान पाया. अत: पुलिस अधिकारियों ने सहज ही अनुमान लगा लिया कि महिला पासपड़ोस के गांव या नवाबगंज की रहने वाली नहीं है. घटनास्थल की काररवाई पूरी करने के बाद थानाप्रभारी ने शव पोस्टमार्टम के लिए लाला लाजपतराय चिकित्सालय कानपुर भिजवा दिया.

थानाप्रभारी दिलीप कुमार बिंद महिला के शव की शिनाख्त के बाद ही पोस्टमार्टम कराना चाहते थे, इसलिए उन्होंने 3 दिन तक पोस्टमार्टम नहीं कराया. इस बीच उन्होंने कानपुर शहर समेत आसपास के जिलों के थानों में महिला की फोटो तसदीक के लिए भेजी. साथ ही कानपुर शहर से प्रकाशित होने वाले दैनिक अखबारों में भी महिला के हुलिया सहित फोटो छपवाई.

पिता को पता चला अखबार की खबर से

अखबारों में छपी फोटो तथा महिला का हुलिया पढ़ कर जाजमऊ (कानपुर) निवासी वी.के. सिंह का माथा ठनका. क्योंकि जिस महिला की फोटो अखबार में छपी थी, वह उन की किराएदार सीता उर्फ नेहा की थी. वह पिछले 3 महीने से अपने पति शाहनवाज के साथ उन के मकान में किराए पर रह रही थी. नेहा और शाहनवाज पिछले 3 दिन से वापस नहीं लौटे थे.

चूंकि मामला हत्या का था, अत: वी.के. सिंह तुरंत थाना नवाबगंज पहुंचे और थानाप्रभारी दिलीप कुमार बिंद को यह जानकारी दी. इस के बाद बिंद वी.के. सिंह को अस्पताल ले गए और उन्हें महिला का शव दिखाया. वी.के. सिंह ने शव देखते ही पहचान लिया. उन्होंने बताया कि यह शव सीता उर्फ नेहा का ही है. शव की शिनाख्त हो जाने के बाद बिंद ने नेहा के शव का पोस्टमार्टम करा दिया.

पुलिस को यह तो पता चल गया था कि मृतका शाहनवाज की पत्नी थी लेकिन वह कहां की रहने वाली थी, उस की हत्या उस के पति शाहनवाज ने की थी या फिर हत्या किसी से कराई गई थी. शाहनवाज कहां का रहने वाला है, ये सब बातें पुलिस को पता लगानी थी.

थानाप्रभारी दिलीप कुमार बिंद ने जांच आगे बढ़ाने के लिए सर्विलांस टीम का सहयोग लिया. सर्विलांस टीम ने घटनास्थल के पास वाले मोबाइल टावर का डाटा डंप कराया तो 2 ऐसे नंबर मिले, जो घटना वाली रात (27 दिसंबर, 2019) को देर रात कुछ देर तक साथ रहे थे.

बिंद ने इन संदिग्ध नंबरों के पते निकलवाए तो एक नंबर सीता के नाम का था, जिस का पता आजमगढ़ कोतवाली के गडया मोहल्ला पुराना मध्य पुल दर्ज था. जबकि दूसरा फोन नंबर शाहनवाज का था, जिस का पता शौकत अली पार्क, थाना बजरिया, कानपुर दर्ज था.

पुलिस की एक टीम सीता के संबंध में जानकारी जुटाने आजमगढ़ पहुंची और कोतवाली पुलिस के सहयोग से उस के घर गडया मोहल्ला मध्य पुल पहुंच गई. घर पर नेहा के पिता जवाहर मौजूद थे. उन से पता चला कि नेहा का ही दूसरा नाम सीता था. पुलिस ने उन्हें मृतका की फोटो दिखाई तो वह फफक पडे़, ‘‘साहब, यह फोटो मेरी बेटी सीता की है. 3 महीने पहले उस ने कानपुर के शाहनवाज से शादी की थी. हम ने उसे मना किया था कि दूसरे धर्म के लड़के से शादी मत करो लेकिन वह नहीं मानी.’’

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मां सरोज को बेटी नेहा की हत्या की जानकारी हुई तो वह दहाड़ें मार कर रोने लगी. बड़ी बेटी सुशीला ने किसी तरह मां को संभाला. उस ने पुलिस को बताया कि नेहा से कभीकभार फोन पर बात होती थी.

उसे शिकायत थी कि शाहनवाज उसे ससुराल वालों से नहीं मिलवाता. ज्यादा जोर देने पर नाराज हो जाता है, प्रताडि़त भी करता है. साहब, हम लोगों ने उसे शादी के लिए बहुत मना किया था, लेकिन उस की जिद के आगे हमें झुकना पड़ा था. उस ने कहा कि नेहा की हत्या शाहनवाज ने ही की है. उसे सजा जरूर दिलवाना.

जवाहर की बेटी सुशीला कुछ दिन पहले ही मायके आई थी. उस ने पुलिस को बताया कि उस की ससुराल अंबेडकर नगर जिले के गांव मसखारी में है. उस ने ही 21 अगस्त को सीता की शादी शाहनवाज के साथ कराई थी. शादी के बाद वह खुश थी. क्रिसमस वाले दिन सीता का फोन आया था.

तब उस ने बताया था कि उस का पति कोई राज छिपा रहा है. फिर यह भी बताया कि 27 दिसंबर को वह उसे अपने घर वालों से मिलवाने ले जाएगा. सुशीला ने बताया कि पहले कई बार शाहनवाज से बात हुई पर कभी ऐसा नहीं लगा कि वह बहन की हत्या कर देगा.

मिल गया सुराग

मातापिता और बहन से जानकारी हासिल कर पुलिस टीम कानपुर लौट आई. टीम ने सीता उर्फ नेहा के संबंध में सारी जानकारी थानाप्रभारी दिलीप कुमार बिंद तथा पुलिस अधिकारियों को दे दी. अब तक की जांचपड़ताल से यह बात साफ हो चुकी थी कि सीता उर्फ नेहा की हत्या उस के शौहर शाहनवाज ने ही की थी. पर नईनवेली पत्नी की हत्या उस ने क्यों की, इस का राज उस की गिरफ्तारी के बाद ही खुल सकता था. अत: पुलिस ने शाहनवाज को गिरफ्तार करने के लिए जाल फैलाया.

2 जनवरी, 2020 की शाम पुलिस को सर्विलांस टीम की मदद से पता चला कि शाहनवाज कंपनी बाग चौराहे पर मौजूद है. यह पता चलते ही थानाप्रभारी पुलिस फोर्स के साथ कंपनी बाग चौराहा पहुंच गए.

पुलिस जीप रुकते ही एक युवक वहां से आर्यनगर चौराहे की ओर भागा. लेकिन पुलिस ने उसे दबोच लिया. पूछताछ में वह शाहनवाज ही था. उसे थाना नवाबगंज लाया गया.

शाहनवाज से जब उस की पत्नी सीता उर्फ नेहा की हत्या के संबंध में पूछा गया तो वह साफ मुकर गया. उस ने कहा कि वह स्वयं पत्नी की तलाश में भटक रहा है. शाहनवाज के इस सफेद झूठ पर थानाप्रभारी दिलीप कुमार बिंद को गुस्सा आ गया. उन्होंने शाहनवाज से सख्ती से पूछताछ की तो वह टूट गया. उस ने पत्नी की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. यही नहीं, उस ने हत्या में प्रयुक्त कार भी बरामद करा दी, जो उस के दोस्त जीशान की थी.

थानाप्रभारी दिलीप कुमार बिंद ने शाहनवाज से पत्नी की हत्या का कारण पूछा तो वह कुछ क्षण मौन रहा फिर बोला, ‘‘सर, सीता को मैं बहुत चाहता था. वह भी मुझ से बहुत प्यार करती थी लेकिन भेद खुल जाने के भय से मैं ने उसे मौत की नींद सुला दिया.’’

‘‘कौन सा भेद खुलने का डर था तुम्हें?’’ बिंद ने पूछा.

‘‘सर, शादीशुदा होने का. दरअसल, मैं ने सीता से झूठ बोल कर निकाह कर लिया था, जबकि मेरा पहले ही निकाह हो चुका था. मैं ने सीता से कहा था कि मेरा निकाह तो हुआ था लेकिन तलाक हो गया है. इसी झूठ को छिपाने के लिए मैं ने निकाह के बाद सीता को जाजमऊ स्थित किराए के मकान में रखा था. इधर कुछ दिनों से वह ससुराल वालों से मिलवाने और उन्हीं के साथ रहने की जिद करने लगी थी. अगर मैं उसे अपने घर ले जाता तो भेद खुल जाता, इसलिए मैं ने उसे मार डाला.’’ शाहनवाज ने बताया.

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‘‘हत्या की साजिश में और कौनकौन शामिल थे?’’ बिंद ने पूछा.

‘‘सर, हत्या में मेरा बहनोई आमिर खान, जो सरैया बाजार जाजमऊ में रहता है, दोस्त शरीफ उर्फ सोनू और हसीब शामिल थे. दोनों जाजमऊ में रहते हैं. हत्या में इस्तेमाल हुई कार जीशान की थी, जिसे मैं 10 हजार रुपए किराए पर लाया था.’’

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

धर्म की दोधारी तलवार

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