पुलिसिया जुल्म का आतंक और Corona का कहर

दोनों मामले की ऊँच स्तरीय जाँच का मामला उठने लगा है.नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी प्रसाद यादव ने ट्वीट कर कहा है कि पुलिसिया जुल्म अगर नहीं रुका तो आंदोलन चलाया जाएगा.बेगूसराय वाले मामले में एक युवा को दूसरी जाति के लड़की के साथ प्रेम था. उसे थाने में बन्द कर दिया .बाद में कस्टडी में ही उसकी आत्हत्या करने की खबर मिली.इस मामले का उच्चस्तरीय जाँच करने का मामला जब सामाजिक कार्यकर्ता सन्तोष शर्मा ने उठाया तो उसे पुलिस गिरफ्तार कर ली .जम कर उनकी पिटायी की जिन्होंने अस्पताल में दम तोड़ दिया.

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बेगूसराय मामले में बताया जाता है कि वीरपुर थाना में प्रेम प्रसंग मामले में पुलिस ने विक्रम पोद्दार नाम के युवक को गिरफ्तार किया था.उसकी मौत पुलिस कस्टडी में हो गई . ठाकुर संतोष शर्मा पुलिस कस्टडी में हुए इस संदेहास्पद मौत की उच्च स्तरीय जांच की मांग को लेकर लगातार संघर्ष कर रहे थे. इस वजह से पुलिस ने संतोष को गिरफ्तार कर उनकी पिटाई की.उन्हें कई गंभीर अंदरूनी चोटें आई औऱ इलाज के दौरान मौत हो गई. हत्या की उच्य स्तरीय जांच हो एवं दोषी पुलिसकर्मी एवं षड्यंत्र में शामिल व्यक्तियों पर हत्या का मुकदमा दर्ज कर कानूनी कार्रवाई हो.साथ ही संतोष के परिजनों को 50 लाख मुआवजा दिया जाए.अन्यथा  जिला प्रशासन औऱ सरकार के खिलाफ जोरदार आंदोलन होगा.  सामाजिक कार्यकर्ता संतोष कुमार शर्मा की मौत की जांच में लापरवाही बरतने पर छात्र व युवा सड़क पर उतरेंगे.ये बातें एआईएसएफ के जिला परिषद सदस्य साकेत कुमार ने कहीं. एआईएसएफ के जिलाध्यक्ष सजग सिंह ने एसपी को आवेदन देकर संतोष शर्मा की मौत की जांच आडियो के आधार पर करने की मांग की. नावकोठी थाने की पुलिस ने संतोष को लॉकडाउन के नाम पर गिरफ्तार किया.उसकी बेरहमी से पिटाई की गई.मुकदमा नहीं करने की शर्त पर इलाज शुरू किया गया.कहा कि मौत की उच्च स्तरीय जांच के अलावा संतोष के परिजन को उचित मुआवजा दिया जाए. युवा नेता संतोष शर्मा की संदेहास्पद मौत के घटना की उच्च स्तरीय जांच की मांग को लेकर  भाकपा माले कार्यालय में आइसा एवं माले के कार्यकर्ता एक दिवसीय भूख हड़ताल पर रहे.माले के प्रखंड सचिव नूर आलम ने संतोष शर्मा की संदेहास्पद तरीके से हुई मौत की जांच कर दोषी पुलिसकर्मी एवं षडयंत्र में शामिल लोगों पर हत्या का मामला दर्ज करने व पीड़ित परिवार को ₹50 लाख रुपये मुआवजा देने की मांग सरकार से की है. भूख हड़ताल में माले नेता इंद्रदेव राम, लड्डू लाल दास, मोहम्मद सोहराब, प्रशांत कश्यप, सुधीर कुमार, शाहरुख आदि थे.एसपी अवकाश कुमार का कहना है कि संतोष शर्मा के परिजन ने अभी तक किसी तरह की आपत्ति दर्ज नहीं करायी है.उन्होंने सोशल मीडिया पर वायरल आडियो के संबंध में कहा कि वॉयस सेंपल की जांच तभी हो पाती जब संतोष जिंदा होता. बताया कि डीएसपी को जांच के लिए कहा गया है.

इसी तरह दूसरा मामला है.औरंगाबाद के गोह में स्वास्थ्य विभाग की टीम पर ग्रामीणों ने हमला कर दिया था. वहां सूचना थी कि दूसरे राज्य से लोग आए हैं तो स्वास्थ्य विभाग की टीम जांच करने गई.50-60 की संख्या में ग्रामीणों ने स्वास्थ्य विभाग की टीम पर हमला कर दिया.गाड़ियां तोड़ दीं.जब पुलिस की टीम मामले की जांच के लिए गई तो लोगों ने पुलिस पर भी हमला कर दिया.जिसमें एसडीपीओ और उनका अंगरक्षक घायल हो गया.उधर स्वास्थ्यकर्मियों पर हमला हुआ तो विरोध में डॉक्टर और अन्य स्वास्थ्यकर्मी धरने पर बैठ गए.

रविकांत फ़िल्म इंडस्ट्रीज में लेखक डायरेक्टर और इसी क्षेत्र के रहने वाले हैं.उन्होंने इस घटना की तहकीकात करते हुवे जानकारी दी है कि

इस घटना का एक दूसरा पक्ष है….

लॉकडाउन के पहले चरण में गोह के अकौनी गाँव के रामजी यादव  का बेटा राधेश्याम भी दिल्ली से अपने गाँव लौटा. वो आराम से अपने गाँव में रहा.प्रशासन ने कोई खोज खबर नहीं ली. कुछ दिन बीतने के बाद पुलिस के लोग रामजी यादव को खोजते हुवे गाँव आये.उस गाँव में उनके अलावा कई रामजी यादव हैं.पुलिस दुसरे रामजी यादव के घर पहुच गयी.घर के बड़े लोग गेहूं की कटाई करने खेत गए थे.घर में बहुएं थीं.पुलिस उनसे ज़बरदस्ती रामजी यादव और राधेश्याम के बारे में पूछने लगी..राधेश्याम और रामजी यादव को खोजने लगी.अब चुकी राधेश्याम उस घर का था ही नहीं.तो वो वहां कहाँ मिलता.अब इसके बाद पुलिस का आतंक शुरू होता है.वो घर की बहुओं को पीटने लगती है..बड़ी बेरहमी से.हंगामा मच जाता है.आस पड़ोस के लोग जब देखते हैं की पुलिस बिना कारण महिलाओं को पीट रही है.तो वो लोग उसका विरोध करते हैं.गौर करने वाली बात है की उस पुलिस की टुकड़ी में एक भी महिला पुलिस नहीं थी.सभी पुरुष थे.और महिलाओं को बेरहमी से मार रहे थे.गाँव वालों ने पुलिस के इस कुकृत्य को रोकने के लिए पथराव किया.कुछ पुलिस वालों को भी चोट आई है.और पुलिस गाँव वालों का विरोध देख वापस चली गयी.पुलिस के जाने के थोड़ी देर बाद मेडिकल की टीम वहां पहुची.जिन्हें भी गाँव वालों के विरोध का सामना करना पड़ा.

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अब यहाँ से नया घटना क्रम शुरू होता है.

ये बात निकट के दूसरे थाने और और ऊपर के अधिकारी तक पहुची.फिर ज्यादा पुलिस बल गाँव आता है.गाँव वालों पर जुल्म शुरू होता है.गाँव वाले ईंट पत्थर चला रहे हैं.पुलिस लाठी.जिले के आला अधिकारी से लेकर बिहार के डी जी पी तक ये खबर पहुचती है.और फिर गाँव पुलिस छावनी में बदल दिया जाता है.मुक़दमें दर्ज होते हैं.गिरफ्तारियां शुरू होती है.डी जी पी  साहब का फरमान आता है.जेल में सडा देंगे.

कुछ प्रश्न जो अनुतरित हैं….

क्या पुलिस के पास इतना विवेक या कोई सिस्टम नहीं है.जो एक गाँव में सही रामजी यादव और उसके पुत्र राधेश्याम को खोज सके.पुलिस सिस्टम के सबसे नीचे के पायदान पर एक चौकीदार होता है.जो गाँव के हर व्यक्ति को जानता है.उस गाँव में वार्ड के मेम्बर होंगे.क्या पुलिस उनके माध्यम से सही रामजी यादव को ढूंढ नहीं सकती थी.या रामजी यादव राधेश्याम नाम के किसी भी व्यक्ति के साथ वो ये सब करेगी.क्या अभी तक पुलिस महकमे को नहीं पता की उसकी गलती के कारन इतना बड़ा बवाल हुआ है.

अब तो पुलिस के नाक का सवाल है.पुलिस घायल हुई.मेडिकल टीम पर हमला हुआ.साहब ये तो देखो की क्यूँ हुआ.गलती कहाँ से शुरू हुयी.और अब तो हर जगह एक ही नरेशन है.गाँव वालों ने पुलिस और मेडिकल टीम पर हमला किया.महिलाओं को  इतना अभद्र ढंग से पिटायी की गयी है.किसी भी संवेदनशील ब्यक्ति को सिर्फ फोटो देखकर रोंगटे खड़े हो जायेंगे.

पूर्व विधायक और पुलिस प्रशासन में रह चुके सोमप्रकाश ने इस घटना के सम्बंध में जानकारी दी कि इस गाँव में दलित और पिछड़ी जाति के लोग रहते हैं. उस गाँव में जितने भी लोग मिले सबकि जबरजस्त पिटायी की गयी और 44 लोगों को जेल भेजा गया जिसमें करीब 14 महिलाएँ हैं.9 महिलाएँ गर्भवती हैं.11 लोग नाबालिग हैं.

सोमप्रकाश ने कहा कि इस महामारी में जनता के लिए सबसे अधिक कोई घृणा का पात्र है तो वह पुलिस है. आखिर इसका कारण क्या है. अपनी पुरानी नीति को बदलनी होगी.पहले लात और फिर बात करने की शैली में बदलाव लाना होगा.इस लॉक डाउन में अगर कोई बाहर घूमते मिलता है तो पहले उसे पीटने की जरूरत नहीं है. उससे पूछा जाना चाहिए.हो सकता है वह अपने परिजन के लिए दवा लेने के लिए जा रहा हो.लॉक डाउन में भी दवा और राशन की दूकानें खुली हुवी है. जरूरत पर लोग जायेंगे ही.इस घटना की निंदा तमाम बुद्धजीवी और राजनीतिक दल के लोग कर रहे हैं. जाप नेता स्यामसुंदर ने कहा है कि इस घटना की हम घोर निंदा करते हैं और इसकी ऊँच स्तरीय जाँच की माँग करते हैं.

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लॉक डाउन के दौरान पूरे देश में पुलिस जुल्म और पिटायी की वजह से कितने लोगों ने दम तोड़ दिया है. रक्षक ही भक्षक बन गए हैं.

Corona Virus : नहीं बदली फितरत, जमाती फिर धरे गए

कोरोना के इस बिजूके से अमेरिका, स्पेन, ब्रिटेन, ईरान, पाकिस्तान समेत भारत भी इस से अछूता नहीं रहा है. इस के चलते देश की मोदी सरकार ने भी तमाम बंदिशें लगाई हैं. इन्हीं बंदिशों के चलते पूरे देश में 3 मई तक लाॅकडाउन है. भले ही कुछ जगहों पर काम करने की छूट दी है, पर इस के तहत लोग अभी भी काम पर नहीं जा पा रहे यानी अपने घरों में कैद हैं. बैंकें खुली हुई हैं, सरकारी अस्पताल खुले हुए हैं, सफाई वाले हर रोज कूड़ा उठाने आ रहे हैं, सब्जी बेचने वाले गलियों में दिख रहे हैं वहीं आदेश का पालन कराने के लिए पुलिस भी अपना काम मुस्तैदी से कर रही है.

इस महामारी को ले कर सरकार के साथसाथ पुलिस भी बारबार अपील कर रही है कि छिपाइए मत, अपना चैकअप कराइए. अगर कोई पॉजिटिव है भी तो इलाज कराइए. वहीं डाक्टरों की चैकअप टीम भी अलगअलग राज्यों के गांवगांव, गलीगली घूम कर कोरोन मरीज खोजने में जुटी है. पर इतना समझाने के बाद भी अपढ़ता व नासमझी के चलते कई लोग अब भी खुलेआम उल्लंघन करते दिख जा रहे हैं.

ऐसा ही एक मामला तब सामने आया, जब दिल्ली के निजामुददीन मरकज में मार्च माह में तबलीगी जमात का जलसा हुआ. इस जलसे में हजारों लोग शामिल हुए थे. जलसा हो जाने के बाद भी लोग अपने धर्म का प्रचार करने के लिए टूरिस्ट वीजा पर रुके हुए थे.

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निजामुददीन मरकज में तमाम जमातियों के पकडे़ जाने पर खुलासा हुआ था कि इन में से कई जमाती कोराना पोजिटिव हैं. साथ ही, ये जमाती पूरे देश में फैले हुए हैं, तब पुलिस ने अलगअलग राज्यों में इन की धरपकड़ शुरू की. इन जमातियों को सामने आने और क्वारंटीन होने को कहा गया, फिर भी प्रयागराज में कई जमाती छिपे हुए थे क्योंकि इन जमात के लोगों कों अपने मौलानाओं पर ज्यादा भरोसा था, सरकार पर नहीं.

उत्तर प्रदेश की सरकार ने भी सख्त हिदायत दी थी कि समय रहते ये जमाती सामने आ जाएं, पर ऐसा हो न सका. प्रयागराज में 20 अप्रैल की रात उत्तर प्रदेश पुलिस ने एक प्रोफेसर के अलावा 16 विदेशी जमातियों समेत कुल 30 लोगों को पकड़ा.

प्रोफेसर को शहर में जमातियों को चोरीछिपे शरण देने और कोरोना महामारी एक्ट के तहत गिरफ्तार किया गया. जबकि ये सभी जमाती दिल्ली के निजामुददीन मरकज में आयोजित तबलीगी जमात के जलसे में शरीक हुए थे.

कुछ दिन पहले पुलिस को खबर मिली थी कि शिवकुटी के रसूलाबाद के रहने वाले इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के राजनीति विज्ञान विभाग के प्रोफेसर मो. शाहिद दिल्ली में आयोजित तबलीगी जमात के जलसे में शामिल हो कर लौटे हैं और चुपचाप शहर में रह रहे हैं. इस के बाद उन्हें क्वारंटीन कर दिया गया. पर तबलीगी जमातियों की मदद करने यानी उन के रहनेखाने का इंतजाम करना ही उन की भूल बन गया.

यही वजह थी कि 20 अप्रैल की रात इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर मो. शाहिद सहित 30 लोगों को पकड़ लिया. इन में 16 विदेशी थाईलैंड के 9 व इंडोनेशिया के7 नागरिक हैं.  अगले दिन मैडिकल चैकअप के बाद सभी आरोपी खुल्दाबाद थाने में मजिस्टेट के सामने पेश हुए और कड़ी सुरक्षा के बीच इन सभी को नैनी जेल भेज दिया.

इन विदेशियों को विदेशी अधिनियम का उल्लंघन करने, साजिश में शामिल होने और मदद करने के आरोप में पकड़ा गया.

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जांच में यह तथ्य भी सामने आया कि सभी जमाती टूरिस्ट वीजा के जरिए भारत आ कर अपने धर्म का प्रचार कर रहे थे. उन के वीजा में प्रयागराज आने पर रोक थी, इस के बावजूद वे यहां आ कर छिपे थे, जो गलत था. इस पर उन के खिलाफ करेली व शाहगंज थाने में एफआईआर दर्ज हुई. इंडोनेशियाई जमातियों के गुप्त रूप से रहने व खानेपीने का इंतजाम इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर मो. शाहिद ने कराया था.

एक अनपढ़, नासमझ ऐसी हरकत करता तो बात समझने की थी, पर प्रोफेसर मो. शाहिद तो पढे़लिखे थे. समझदार थे, पर उन की यह गुस्ताखी समझ से परे है? इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में राजनीति शास्त्र के प्रोफेसर मो. शाहिद जैसे लोग समाज को आईना दिखाने का काम करते हैं, यानी अच्छी सीख देने की कोशिश करते हैं, पर जब ऐसी करतूतें सामने आती हैं तो चेहरा शर्मसार हो जाता है.

इन जमातियों का अपने धर्म के प्रचार के अलावा और क्या मकसद था, समझ से परे है, जब इन्हें प्रयागराज आने की मनाही थी, तो क्यों आ कर छिपे वहां? वहीं प्रोफेसर जैसे पद पर काम करने वाले मो. शाहिद का इन की मदद करना गले के नीचे नहीं उतर रहा?

वे खुद तो धरे ही गए, साथ ही 30 लोगों को भी अपने साथ ले डूबे. मजिस्टेट ने इन सभी को नैनी जेल भेज दिया. पर कोर्ट में ये लोग अपने को कैसे बेकुसूर साबित कर पाएंगे, कहना मुश्किल है.

भूख से मरें या Corona से गरीबों को मरना ही है

प्रदीप कुमार और बिपिन कुमार बिहार के औरंगाबाद जिला अंतर्गत जम्होर और मुन्ना कुमार सहसपुर बारुण का रहने वाला है. इस राज्य के सैकड़ों युवा तमिलनाडु कृष्णागिरी में काम करते हैं. अधिकांशतः युवा अशोक लीलैंड कम्पनी में काम करते हैं. लौक डाउन की वजह से कम्पनी बन्द है. कम्पनी वाला पैसा नहीं दे रहा है. इन युवाओं के पास पैसे खत्म हो गए हैं. राशन और गैस तक नहीं है. यहाँ तक कि पीने वाले पानी की भी किल्लत है. मकान मालिक किराया माँग रहा है. घर से माँ बाबूजी का फोन आ रहा है. क्या बेटा क्या हाल चाल है ? कुछ पैसा हो तो भेजो.ये लड़के अपने घर वालों को वास्तविक स्थिति से अवगत नहीं करा रहे हैं. ये लड़के समझ रहे हैं कि जब हमलोगों के वास्तविक स्थिति को घर वाले जानेंगे तो उनके पास रोने धोने के सिवा कोई उपाय नहीं है. कम्पनी के मैनेजर फोन करते हैं तो रिंग होते रहता है. उठाता तक नहीं है. हमलोगों के पास भूख से मरने वाली स्थिति पैदा हो गयी है. कुछ समझ मे नहीं आ रहा है.हमलोगों के शरीर में जान नहीं है. ताकत नहीं मिल पा रहा है.

बिस्कुट वैगरह खा कर किसी तरह दिन गुजार रहे हैं. टेलीफोन पर बात करते हुवे ये लड़के फफक कर रोते हुवे मुझसे आग्रह कर रहे हैं कि भैया हमलोगों को कोई उपाय निकालकर अपने घर बुलवा लीजिये.

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इन नौजवानों को पता नहीं है कि सरकार सिर्फ बड़े लोगों के बारे में सोंच रही है. बड़े लोगों के बेटा बेटी कोटा राजस्थान से चले आये.बिहार के हँसुआ नवादा के विधायक अनिल सिंह को कोटा से लाने के लिए एस डी एम ने स्पेशल पास निर्गत कर दिया.वे अपने बेटी को कोटा से वापस लेकर लौट गए.

परन्तु इन लाखों गरीब मजदूरों की कौन सुनेगा जो भूख गरीबी और बेबसी से तंग आकर आत्हत्या तक करने को विवश हैं. इन नौजवानों की मजबूरी को सुननेवाला कोई नहीं है.

गया जिले के बारा ग्राम निवासी तीस वर्षीय मुकेश कुमार उर्फ छब्बू मण्डल लॉक डाउन को लेकर आर्थिक तंगी की वजह से नोयडा दिल्ली के सेक्टर 53 की झुग्गियों में फंदे से लटककर आत्हत्या कर ली.लॉक डाउन की वजह से उसके पास काम नहीं थे.उसकी पत्नी पूनम का कहना है कि लॉक डाउन के दौरान जब पैसे खत्म हो गए तो ढाई हजार रुपये में अपना मोबाइल बेचकर घर का राशन और 400 रुपये में एक पंखा लेकर आया .हमलोगों के पास न काम थे न पैसे.हमलोग पूरी तरह से सरकार द्वारा बांटे जा रहे मुफ्त खाने पर निर्भर थे.लेकिन ये भी रोज नहीं मिल पा रहे थे. पत्नी पास में ही रहने वाले अपने पिता के घर गयी थी.उसके दो बच्चे बाहर में खेल रहे थे.मुकेश की स्थिति अत्यंत खस्ता हाल हो गयी थी.किराना दुकानदार उधार देने से इनकार कर दिया था.मुकेश के ससुर का भी पैर टूटने की वजह से वह लाचार थे.दाह संस्कार तक करने के लिए पैसे नहीं थे.लोगों ने चन्दा करके दाह संस्कार किया.

देश में जानलेवा कोरोना वायरस की वजह से आत्महत्या करने का मामला बढ़ते जा रहा है. लौक डाउन की वजह से काम धंधा बन्द है. इससे सबसे अधिक प्रवासी मजदूर भुक्तभोगी हो रहे हैं.

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उत्तरप्रदेश के बाँदा जिला के 52 वर्षीय रामभवन शुक्ला जिन्होंने एक पेड़ से फंदा लगाकर जान दे दी क्योंकि अपनी गेहूँ की फसल की कटाई के लिए मजदूर नहीं मिल रहे थे.परिवार चलाने की चिंता जब सताने लगी तो उन्होंने कोई उपाय नहीं देखकर जान की ही बाजी लगा दी.

मेघालय के एल्ड्रिन लिंगदोह नामक युवा को शांति फूड सेंटर नामक रेस्तरां के मालिक ने उसे काम से निकाल दिया.वह लड़का अनाथ था.उसका देख रेख करनेवाला कोई नहीं था.मजबूर होकर उसने आत्हत्या कर लिया.

गुरूग्राम से एक 29 वर्षीय युवा उत्तरप्रदेश अपने गाँव लौटा एक पुलिस कांस्टेबल ने उसकी पिटायी की इसकी वजह से वह मजबूर होकर आत्हत्या कर लिया.

उड़ीशा के सागर देवगढिया ने आर्थिक तंगी की वजह से आत्महत्या कर ली.

किसी भी ब्यक्ति या जीव जंतु के लिए जान सबसे अधिक प्यारा होता है. जान के बाद ही दूसरी अन्य चीजें प्यारी होती है. लेकिन जहाँ चारों तरफ अंधेरा ही अंधेरा दिखाई दे तो लोग मजबूर होकर मौत को गले लगाने के लिए विवश हो रहे हैं.ये चन्द उदाहरण आत्हत्या के हैं. बहुत मामले प्रकाश में भी नहीं आ रहे हैं.

इस बुरे परिस्थिति में भी बधाई के पात्र हैं. स्वयं सेवी संस्था एवं ब्यक्तिगत तौर पर भूखे मजबूर लोगों तक को खाना मुहैया कराने वाले लोग.

मस्ती उनको है. जिन्हें सरकारी मोटी रकम प्रतिमाह उनके खाते में आ जाती है और काम भी नहीं करना पड़ रहा है. वैसे लोगों पर लॉकडाउन का क्या असर होगा.. ?

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इसी तरह इस लौक डाउन ने सैकड़ों लोगों की जान ले ली.इसका कोई रिकार्ड नहीं है. पुलिस प्रसाशन की पिटायी. भूख और दवा के अभाव में लोग प्रतिदिन दम तोड़ रहे हैं. दैनिक मजदूर,ठेला ,खोमचा और रिक्शा चलाने वाले लोग लोग भूख और दवा के अभाव में मौत के करीब हैं. अगर यह लॉक डाउन जारी रहा और इसके कारगर उपाय नहीं किये गए तो लोग कोरोना से नहीं भूख और अन्य दूसरे कारणों से मौत को गले लगा लेंगे.

भुखमरी,बेरोजगारी,सरकारी उदासीनता और पुलिस की बर्बरता न जाने कितने लोगों की जान ले लेगी.

Corona Lockdown में शराब की बहती गंगा 

छत्तीसगढ़ मे कोरोना विषाणु कोविड 19 महामारी के इस समय काल में शराब की  जमीनी स्थिति बेहद चिंताजनक दिखाई दे रही है.  छतीसगढ मे इस भीषण लाॅक डाउन  में भी शराब की गंगा बह रही है! छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल की कांग्रेस सरकार शराबबंदी के मसले पर चारों तरफ से घिर गई है .क्योंकि भूपेश बघेल ने शराबबंदी के मुद्दे पर ही एक तरह से जनादेश हासिल किया था. मगर डेढ़ वर्ष व्यतीत हो जाने के बाद भी प्रदेश में शराब बंदी लागू नहीं की गई है  और जैसी परिस्थितियां दिख रही है ऐसा प्रतीत नहीं होता कि आने वाले समय में भूपेश बघेल सरकार छत्तीसगढ़ में बिहार की तर्ज पर शराबबंदी करेगी.

दृश्य एक-

एक हजार की कीमत का शराब लॉक डाउन के इस समय में तीन हजार में बिक रहा  है.

दृश्य  दो- 

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शराब खत्म हुआ जो 80 रुपये में बिकता था तीन सौ रुपए में गली-गली में बिक रहा  है.

दृश्य तीन-

भले आपको दूध, दही इस कोरोना महामारी के समय में ना मिले मगर शराब आप को बड़ी आसानी से उपलब्ध हो जाती है, कैसे?

कुल मिलाकर यह कहा जा रहा है कि छत्तीसगढ़ में महामारी के इस समय में भी शराब की गंगा बह रही है. जिम्मेदार अधिकारी जिनका काम कोरोना को  रोकना है वे ही शराब बिकवाते पकड़े जा रहे हैं.

भूपेश बघेल की भीष्म  प्रतिज्ञा

छत्तीसगढ़ में कभी शराब के कारण लोगों के बेवजह तबाह हो जाने की खबरें हत्या और लूट की खबरें सुर्खियों में रहती थी.यह कोरोना महामारी के कारण बेहद कम हो गयी है.

लेकिन लॉक डाउन के बाद से  इन विगत 28 दिनों में इस तरह की  घटनाएं सामने नहीं आ रही है.यहां तक कि घरेलू हिंसा के मामलों पर भी लगाम लगी है. लेकिन जैसे-जैसे लॉक डाउन-2 यानि 3 मई2020  की तारीख नजदीक आती जा रही है,  महिलाओं के चेहरे पर चिंता की लकीरें उभर रही हैं- भरी जवानी में जवान पुत्र या पति को खो देने का भय, मासूम खिलखिलाते बचपन को फिर रोज शराबी पिता के शाम को शराब पीकर घर आकर मारपीट करने, घर में कलह होने,राशन ना होने का भय सताने लगा है. और सवाल  यह उठ रहा है कि भूपेश बघेल की भीष्म  प्रतिज्ञा का क्या हुआ जो उन्होंने विधानसभा चुनाव के पूर्व उठाई थी यानी छत्तीसगढ़ में शराबबंदी.

कारण विगत छत्तीसगढ़ में 28 दिनों से शराब दुकानें बंद हैं.इससे प्रदेश के प्रत्येक घर परिवार में खुशहाली का वातावरण नजर आ रहा है. जो शराब पीने से कोसों दूर है वे तो खुश हैं ही लेकिन महिलाओ और कलह के वातावरण में जीवन बिताने वाले बच्चों के जीवन मे कोरोना कुछ दिनों के लिए एक नया खुशियों का सबेरा लाया हैं.इन सबका मानना है कि प्रदेश में हमेशा के लिए शराबबंदी हो जाए , जिससे शराब पर होने वाला खर्च बच्चों के बेहतर भविष्य के निर्माण में लगे और घर परिवार खुशहाल रहे.एकाएक शराब दुकानें फिर से शुरू होने की खबर से प्रदेश की महिलाएं परेशान हो गई हैं. उन्हें शराब चालू होने के बाद का भय सता रहा है .शराब की वजह से फिर घरेलू हिंसा, कलह, तंगहाली बढ़ेगी। शराब पीने के लिए रुपये की व्यवस्था के लिए महिलाएं मारपीट की शिकार होंगी.

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विगत विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का जन घोषणा पत्र प्रदेश की महिलाओं के लिए गहन अंधकार में “दिए की लौ” की भांति पूर्ण शराबबंदी प्रदेश में किए जाने को लेकर सामने आया.प्रदेश की 22 विधानसभा  सीटों पर महिला मतदाताओं की अधिकता है और पूर्ण शराबबंदी का मुद्दा ही कांग्रेस को आशातीत सफलता दिलाते हुए सत्ता के मुकाम पर पहुंचा गया. लेकिन आज लगभग डेढ़ बरस बीतने जा रहे हैं।पूर्ण शराबबंदी की चर्चा पर कांग्रेस दाएं-बाएं झांकने  लगती है.

शराब बंदी की जबरदस्त मांग 

हालांकि “लॉकडाउन” ने शराबबंदी के लिए उपयुक्त समय और वातावरण तैयार कर दिया है.  इतने दिनों में शराब की लत को लेकर ना तो किसी की मौत हुई है और नही कोई मरीज अस्पताल में दाखिल हुआ है. शराब पी कर अस्पताल में भर्ती होने या शराब पीकर मरने की खबरें कई बार सुनने को मिली  है लेकिन लॉक डाउन  के दौरान किसी के शराब न पीने से होने वाली किसी भी विवाद या बड़ी घटना की बात सामने नही आई है. लॉकडाउन ने जनहितकारी शराबबंदी के लिए उपयुक्त समय और वातावरण तैयार कर दिया है. शराब की लत से लॉक डाउन के कारण लाखो मुक्ति पा चुके है. घरों में कलह का वातावरण समाप्त हो चुका है.

 छत्तीसगढ़  के हित में है

अगर छत्तीसगढ़ को आगे बढ़ाना है तो दृढ़ इच्छा शक्ति के साथ शराबबंदी पूर्ण तौर पर लागू करके प्रदेश को नशे से मुक्त करना होगा.चीन अफीम छोड़कर आज आगे बढ़ गया है, तो हम क्यों नहीं जा सकते. इसके लिए सत्ताधारी कांग्रेस को ही सोचना एवं समझना होगा कि बड़ा सामाजिक-आर्थिक बदलाव का कार्य शराबबंदी से होगा.

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दरअसल, छत्तीसगढ़ में शराब पीने वालों की संख्या  कुछ सालों में तेज़ी से बढ़ती चली गई है. राष्ट्रीय वार्षिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण की मानें तो छत्तीसगढ़ के 100 में से 32 लोग शराब पीने के आदी हैं, जो देश में सर्वाधिक है.

यह कौन सा सुशासन है, नीतीश कुमार बताएंगे -प्रशांत किशोर

देश में कोरोना वायरस के बढते कहर के बीच बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर विपक्ष जम कर भड़ास निकाल रहे हैं. ताजा मामला राजस्थान के कोटा में पढ़ रहे बिहार भाजपा के विधायक अनिल सिंह को ले कर है. विपक्ष का आरोप है कि विधायक का एक बेटा जो राजस्थान के कोटा में रह कर पढाई कर रहा है, को लाने के लिए नीतीश सरकार ने पास जारी किया जो लौकडाउन का सरासर उल्लंघन है, वह भी तब जब इस के पूर्व में कोटा में फंसे सैकङों बच्चों को जब वहां की सरकार ने बिहार जाने की अनुमति दे दी थी तब बिहार के सीमा पर इन्हें रोक दिया गया था. बाद में नीतीश कुमार इस शर्त पर इन छात्रों को राज्य में आने देने के लिए राजी हुए कि इन्हें कुछ दिन क्वारंटाइन में रखा जाएगा.

अब नीतीश के कभी काफी करीब रहे और चुनावी रणनीतिकार प्रशांत कुमार ने सरकार पर निशाना साधा है.

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एक के बाद एक ट्वीट कर प्रशांत किशोर ने कहा,”कोटा में फंसे सैकड़ों बच्चों को नीतीश कुमार ने यह कह कर खारिज कर दिया कि ऐसा करना लौकडाउन की मर्यादा के खिलाफ होगा. अब उन्हीं की सरकार ने बीजेपी के एक एमएलए को कोटा से अपने बेटे को लाने के लिए विशेष अनुमति दे दी. नीतीशजी, अब आप की मर्यादा क्या कहती है?”

बिहार के गरीब मजदूर फंसे पड़े हैं

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इस से पहले भी प्रशांत किशोर ने कई ट्विट कर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर निशाना साधा था, जब बिहार के प्रवासी मजदूरों को बिहार में प्रवेश को ले कर नीतीश कुमार ने इसे लौकडाउन का उल्लंघन बताया था.

अपने ट्विट में प्रशांत ने कहा था,”देश भर में बिहार के लोग फंसे पङे हैं और नीतीशजी मर्यादा का पाठ पढा रहे हैं. स्थानीय सरकारें कुछ कर भी रही हैं पर, पर नीतीशजी ने संबंधित राज्यों से इस मसले पर बात भी नहीं की. पीएम के साथ मीटिंग में भी उन्होंने इस की चर्चा तक नहीं की.”

प्रशांत किशोर ने अगले ट्विट में लिखा,”नीतीशजी इकलौते ऐसे सीएम हैं जो पिछले 1 महीने से लौकडाउन के नाम पर पटना के अपने आवास से बाहर तक नहीं निकले हैं. साहेब की संवेदनशीलता और व्यस्तता ऐसी है कि कुछ करना तो दूर, दूसरे राज्य में फंसे बिहार के लोगों को लाने के लिए इन्होंने किसी सीएम से बात तक नहीं की.”

कन्नी काट गए मंत्रीजी

बिहार सरकार में जल संसाधन मंत्री और दिल्ली जदयू के प्रभारी संजय झा से जब फोन पर बात करने की कोशिश की गई तो उन्होंने गोलमोल जवाब देते हुए कहा,”देखिए यह तो अधिकारियों के बीच की बात है. सरकार कहीं भी इस मुद्दे को ले कर शामिल नहीं है.”

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यह पूछने पर कि नीतीश सरकार ने बिहार के प्रवासी मजदूरों की घर वापसी के लिए क्या किया है? उन्होंने गोलमोल जवाब दे कर बताने से इनकार कर दिया.

गरीब मजदूरों की कोई अहमियत नहीं

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इधर दिल्ली में फंसे हजारों दिहाङी मजदूरों को लौकडाउन का हवाला दे कर ‘जहां हैं वहीं रहें’ कहने वाले नीतीश कुमार की आलोचना करते हुए दिल्ली प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता पुष्पेंद श्रीवास्तव ने कहा,”लगता है बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव को ले कर नीतीशजी गठबंधन धर्म निभा रहे हैं या फिर वे भाजपा नेताओं के दबाव में हैं.”

उन्होंने कहा,”यह तो बेहद अफसोस की बात है कि एक तरफ जहां बिहार के हजारों प्रवासी मजदूर दिल्ली सहित देश के कई जगहों पर फंसे पङे हैं, तो सिवाय इन के लिए कुछ करने के, बिहार के एक भाजपा एमएलए को कोटा से अपने बेटे को लाने के लिए वीआईपी पास जारी करना मूर्खता है.

“जब नीतीश कुमार प्रवासी मजदूरों को बिहार लाने में असमर्थ थे और लौकडाउन का हवाला दे रहे थे तो इस की सराहना ही हो रही थी पर भाजपा नेता को पास जारी कर उन्होंने यह साबित कर दिया कि उन की नजरों में गरीब मजदूरों की कोई अहमियत नहीं है. जब कोटा में रह रहे अन्य छात्रों को उन्होंने क्वारंटाइन में रखने को कहा था तो इस बात की क्या गारंटी है कि भाजपा एमएलए के बेटे को कोई संक्रमण नहीं है? क्या इस बात की गारंटी खुद मुख्यमंत्री या राज्य के अधिकारी लेंगे?”

जवाब किसी के पास नहीं

इस मुद्दे को ले कर अब जदयू के पदाधिकारी और विधायक भी कुछ कहने से बचते दिख रहे हैं. दिल्ली प्रदेश जदयू के महासचिव राकेश कुशवाहा ने इस बाबत कुछ कहने से साफ इनकार कर दिया और यहां तक कह दिया कि उन्हें इस की जानकारी तक नहीं है.

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मालूम हो कि बिहार में कोरोना वायरस अब धीरेधीरे अपना पैर पसार चुका है और सरकारी आंकड़ों के मुताबिक अब तक वहां 86 पौजिटिव मामले दर्ज किए गए हैं जबकि 2 लोगों की मौत भी हो चुकी है.

कानून तो हर किसी पर लागू होता है

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मगर इतना तो साफ है कि कोरोना वायरस को ले कर देशभर में लागू लौकडाउन को ले कर जहां नीतीश सरकार की प्रवासी मजदूरों की घर वापसी और ठोस निर्णय न ले पाने की वजह से आलोचना की जा रही थी, वहीं भाजपा के एक एमएलए के बेटे को पास जारी कर सरकार खुद कटघरे में है. बात भी सही है, नीतीश कुमार राज्य के मुखिया हैं और इस नाते राज्य के अमीरगरीब हर नागरिक के प्रति उन की जिम्मेदारी बनती है. आज वे विपक्ष के निशाने पर हैं तो जाहिर है इस कदम से उन की आलोचना होगी ही वह भी तब जब लौकडाउन में हर किसी पर देश का कानून एकसमान लागू होता है.

फल, सब्जी के बाद पान उत्पादकों पर भी रोजी रोटी का संकट

कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने शुरू किए गए लौक डाउन का असर हर जगह दिखाई दे रहा है. फल, फूल, सब्जी उगाने वाले किसानों के साथ देश के विभिन्न इलाकों में पान की खेती करने वाले किसान भी इससे अछूते नहीं हैं. बिना किसी सुरक्षा उपायों के कोरोना वायरस से लड़ी जा रही इस जंग से गरीब किसान जिंदा बच भी गया तो कर्ज के बोझ और भूख से मर जायेगा.

25 मार्च से पूरे देश में लागू किए गए लौक डाउन में पान की दुकानों के बंद होने से पनवाड़ी के साथ पान पत्तों की खेती से जुड़े किसान परिवार की हालत खराब है. पान के पत्तों की तुड़ाई और बिक्री बंद होने से बरेजों में लगी पान की फसल सड़ने की कगार पर  है. पान उत्पादक किसानों की साल भर की मेहनत पर पानी फिर गया है और उनके समक्ष रोजी रोटी का संकट खड़ा हो गया है.

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मध्यप्रदेश में पान की खेती मुख्य रूप से  छतरपुर, टीकमगढ़, ग्वालियर, दतिया, पन्ना, सतना, रीवा, सागर, दमोह, कटनी, जबलपुर, नरसिंहपुर, रायसेन, मंदसौर, रतलाम, खंण्डवा, होशंगावाद, छिदवाड़ा, सिवनी, मंडला, डिंडौरी सहित 21 जिलों में होती है. वैसे तो प्रदेश में चौरसिया जाति के लोगों का व्यवसाय पान की खेती से जुड़ा हुआ है,लेकिन पान बरेजों में दलित और पिछड़े वर्ग के लोग भी मजदूरी का काम करते हैं. चौरसिया समाज के लोग पान के पत्तों को उगाने के अलावा पान की दुकान पर भी पान और पान मसाला बेचने का धंधा करते हैं.

नरसिंहपुर जिले में करेली तहसील के गांव निवारी, तेंदूखेड़ा तहसील के पीपरवानी और गाडरवारा तहसील के गांव बारहा बड़ा में पान की खेती होती है.

अकेले नरसिंहपुर जिले में चार सौ हेक्टेयर में होने वाली पान की खेती के व्यवसाय से लगभग एक हजार पान उत्पादक किसानों की आजीविका चलती है.पान उत्पादकों द्वारा जिले के बाहर भी अपने पान पत्ते की सप्लाई की जाती है.पिछले एक महीने में इन किसानों की फसल की तुड़ाई और सप्लाई न होने से धीरे धीरे वह सड़ने लगी है.

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निवारी गांव में चौरसिया जाति के एक सौ से अधिक परिवार तीन पीढ़ियों से  पान की खेती कर रहे हैं. गांव के 75 साल के बुजुर्ग खेमचंद चौरसिया अपना दर्द वयां करते हुए कहते हैं -” मेरे दस सदस्यों का परिवार पान की खेती से गुजारा करता है,लेकिन महिने भर से इस लौक डाउन ने खाने पीने को मोहताज कर दिया है”. करेली के साप्ताहिक बाजार में पान की थोक और फुटकर बिक्री करके मिलने वाले रूपयों से रोजमर्रा की चीजों को खरीद कर रोज़ी रोटी चलाते हैं. वे सरकार को कोसते हुए कहते हैं – “ये सरकार की गलत प्लानिंग के कारण हुआ है. जब जनवरी माह में ही दूसरे देशों में कोरोना का अटैक शुरू हो गया था ,तो हमारी सरकार विदेशों में रह रहे अमीर, नौकरशाह और कारपोरेट जगत के लोगों को हवाई जहाज से भारत ला रही थी. यदि उसी समय विदेशों से आवाजाही बंद कर देते तो आज ये दिन न देखने पड़ते”.

बारहा बड़ा के पान उत्पादक ओमप्रकाश  चौरसिया बताते हैं कि पान की फसल नाजुक फसलों में शुमार होती है. पान के पत्तों को तोड़ने के बाद ज्यादा दिनों तक उसे सहेजकर नहीं रखा जा सकता है और पान पत्तों की तुड़ाई भी एक निश्चित अंतराल पर करना होती है.लौक डाउन की वजह से पहले से तोड़ी गई फसल की सप्लाई न होने से सड़ गई है.वे कहते हैं कि उनके पान की सप्लाई छिंदवाड़ा और सागर जिले में तक होता है. मोदी के पहले ही नरसिंहपुर जिले के अफसरों ने 23 मार्च से लौक डाउन कर दिया . इसकी वजह से  पान के रैक नहीं पार्टियों तक न पहुंच कर ट्रांसपोर्ट में ही सड़ गये.अफसरों की सख्ती अब हमें रोजी रोटी को मोहताज रख रही है.

पीपरवानी गांव के औंकार चौरसिया का कहना है कि हमारे गांव के किसानों की आजीविका का इकलौता साधन पान की खेती है. बास की लकड़ी से बने बरेंजो में लगी पान की बेलाओं में  नियमित रूप से पानी देकर सहेजना पड़ता है. कोरोना की महामारी पान उत्पादक किसानों के लिए बहुत बड़ी मुसीबत बनकर आई है. पान की बिक्री न होने और तुड़ाई न कर पाने के कारण हरी भरी फसल सड़ने लगी है.वे  कहते हैं कि सरकार अभी तक किसी प्रकार की मदद के लिए नहीं आगे नहीं है.गांव के अगड़े जाति के लोग तो मोदी के भजन गाने में इतने मस्त हैं कि उन्हें गरीब मजदूर की कोई फ़िक्र ही नहीं है. धर्म का धंधा करने वाले ये लोग कभी थाली, ताली बजाने का फरमान सुनाते हैं तो कभी दिया जलाने का.ये सब नौटंकी न करो तो गांव के लोग शंका की निगाह से देखते हैं.

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निवारी गांव के पढ़े लिखे युवा पंकज चौरसिया बताते हैं कि सप्ताह के अलग-अलग दिनों में जिले के गांव कस्बों में लगने वाले हाट बाजारों में जाकर वे पान की बिक्री से करते हैं और इसी  आमदनी से घर का चूल्हा चौका चलता है . 22 मार्च से पूरा महिना बीतने को है ,पान पत्तों की कोई बिक्री न होने से गुजर बसर मुश्किल हो गई है. पंकज बताते हैं कि उनके पास थोड़ी सी खेती में गेहूं चना की फसल भी हो जाने से राहत है, परन्तु बरेजों में मजदूरी कर रहे लोगों  के परिवार पर रोज़ी रोटी का संकट खड़ा हो गया है.लौक डाउन में सब्जियां बनाने तेल ,मसाले तक नहीं मिल रहे, मजबूरन गर्म पानी में उबालकर नमक मिलाकर काम चला रहे हैं.

लंबे समय से मध्यप्रदेश के पान की खेती करके वाले किसान पान विकास निगम बनाने की मांग कर रहे हैं. विभिन्न प्रकार की प्राकृतिक आपदायें आने की स्थिति में शासन प्रशासन द्वारा इन कृषकों को समय पर उचित लाभ नहीं मिल पाता हैं, जिस कारण से मजबूर होकर किसानों का इस खेती से मोह भंग भी होने लगा है.

किसान भाईयों का सारथी बनेगा  ‘किसान रथ’!

कोरोना संकट के दौर में किसानों को राहत देने के लिए  केंद्रीय कृषि मंत्री श्री तोमर ने ‘ किसान रथ’ मोबाइल एप की  शुरूआत किया .

परिवहन में सुगमता के उद्देश्य से एप लांच :- केंद्रीय कृषि मंत्री ने बताया कि विश्वव्यापी कोरोना वायरस के संक्रमण के दौर में, देश में खेती-किसानी से जुड़े तमाम लोगों को हरसंभव मदद और राहत देने के लिए प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के मार्गदर्शन में केंद्र सरकार निरंतर काम कर रही है. इसी तारतम्य में केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण, ग्रामीण विकास तथा पंचायती राज मंत्री श्री नरेंद्र सिंह तोमर ने शुक्रवार को, कृषि उत्पादों के परिवहन में सुगमता लाने के उद्देश्य से किसान रथ मोबाइल एप लांच किया.

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केंद्रीय कृषि मंत्री ने कहा कि आज हम सब कोरोना वायरस संकट के दौर से गुजर रहे हैं और इसलिए जबसे लॉकडाउन की स्थिति हुई है, सामान्य चलने वाला कामकाज प्रभावित हुआ है. कृषि का क्षेत्र हमारे देश के लिए महत्वपूर्ण है, अर्थव्यवस्था की दृष्टि से भी इस क्षेत्र का बड़ा महत्व है. मौजूद संकट के दौर में ही, कृषि का काम भी बहुत तेजी के साथ करने की आवश्यकता है. इसे देखते हुए, केंद्र सरकार ने कृषि के काम में रूकावट न हो, कामकाज प्रभावित नहीं हो, किसानों को परेशानी नहीं हो, इसलिए अनेक छूटें प्रारंभ से ही इस क्षेत्र के लिए दी है.

* कृषि उत्पादों के परिवहन में दिक्कतें  दूर होगी   :- खेती-किसानी का काम इन दिनों जोरों पर है व अनेक राज्यों में उपार्जन का काम भी प्रारंभ हो गया है. सारी रियायतों के बाद भी कृषि उत्पादों के परिवहन में कुछ दिक्कतें थी, क्योंकि लॉकडाउन से पहले परिवहन से जुड़े सभी लोग एक साथ थे, लेकिन यह लागू होने से वे कहीं अलग-अलग चले गए, जिससे परेशानी आई कि अब सबकी उपलब्धता कैसे होगी. इस दृष्टि से कृषि मंत्रालय लगातार प्रयत्न कर रहा था कि इस कठिनाई को कैसे हल किया जाएं और अब कई दिनों की तैयारी के बाद किसान रथ मोबाइल एप लांच किया गया है.

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* किसान भाई कैसे जुड़ सकते है इससे :- इसके लिए किसान भाई के पास एंड्रॉयड स्मार्टफोन होना चाहिए . जिसमें इंटरनेट की भी सुविधा होनी चाहिए . इसके बाद किसान भाई लोग इंटरनेट ऑन कर के ‘गूगल प्ले-स्टोर’ से  ‘किसान रथ’ एप को डाउनलोड कर ले . यह ऐप अंग्रेजी, हिंदी, गुजराती, मराठी, पंजाबी, तमिल, कन्नड़ और तेलुगु भाषा में उपलब्ध है. ऐप डाउनलोड करने के बाद  आपको नाम, मोबाइल नंबर और आधार नंबर जैसी जानकारियों के साथ पीएम किसान के लिए रजिस्ट्रेशन करना होगा. यदि आप व्यापारी हैं तो आपको कंपनी का नाम, अपना नाम और मोबाइल नंबर के साथ रजिस्ट्रेशन करना होगा. रजिस्ट्रेशन करने के बाद आप मोबाइल नंबर और एक पासवर्ड के जरिए एप में लॉगिन कर सकेंगे.

* कैसे कम करेगा यह ऐप :-   ऐप पर किसानों को माल की मात्रा का का ब्यौरा देना होगा.उसके बाद परिवहन सुविधाएं उपलब्ध कराने वाली नेटवर्क कंपनी किसानों को उस माल को पहुंचाने के लिए ट्रक और किराये का ब्यौरा दिया जायेगा. पुष्टि मिलने के बाद, किसानों को ऐप पर ट्रांसपोर्टरों का विवरण मिलेगा और वे ट्रांसपोर्टरों के साथ बातचीत कर सकते हैं और उपज को मंडी तक पहुंचाने के लिए सौदे को अंतिम रूप दे सकते हैं.

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ऐप के कई फायदा है:-  सरकार ने किसान रथ को लॉकडाउन की स्थिति में सब्जियों और फसलों की खरीद-बिक्री के लिए लॉन्च किया है, ताकि किसान आसानी से अपने सामान को बेच सकें और व्यापारी खरीद सकें. किसान रथ देशभर के किसानों को और व्यापारियों को कृषि उत्पाद को बाजार तक पहुंचाने में मदद करेगा.

मजदूरों का कोई माई बाप नहीं

किसी भी देश की तरक्की में उन मेहनत कश  मजदूरों का योगदान ही सबसे अधिक होता  है. खेती किसानी, उद्योग धंधे, फैक्ट्री, विभिन्न प्रकार के निर्माण कार्य मजदूर के हाथ बिना पूरे नहीं होते. मैले कुचैले कपड़ों में दो जून की रोटी के लिए गर्मी,सर्दी और बरसात में विना रूक काम करने वाले मजदूर काम की तलाश में अपना घर-बार छोड़कर मीलों दूर निकल जाते है.

आजादी के सात दशक बीत गए, लेकिन देश से हम गरीबी दूर नहीं कर पाये हैं.2014 में अच्छे दिन आने का सपना दिखाने वाली मोदी सरकार इन मजदूरों को रोटी,कपड़ा और मकान नहीं दे पाई है.सरकार पी एम आवास योजना का कितना ही ढोल पीटे, लेकिन अभी भी मजदूरों के परिवार पालीथीन तानकर अपने आशियाने बना रहे हैं. अपनी  बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए मजदूर एक राज्य से दूसरे राज्यों में जाने विवश हैं.

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कोरोना वायरस के फैलने को रोकने के लिए 24 मार्च की रात जब प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में 21 दिन के लौक डाउन की घोषणा की तो पूरा देश अवाक रह गया. लौक डाउन की परिस्थितियों से निपटने किसी को मौका नहीं दिया गया और न ही कोई सुनियोजित तरीका अपनाया गया. जब मजदूरों को लगा कि वे शहर में विना काम धंधा 21 दिन नहीं रह सकते तो महिलाओं और छोटे छोटे बच्चों के साथ पैदल ही अपने गांव की ओर निकल पड़े. समाचार चैनलों ने जब मजदूरों के घर लौटने की खबर दिखाई तो राज्य सरकारों ने अपनी इज्जत बचाने इन्हें रोक कर भोजन पानी का इंतजाम किया. इन मजदूरों के जत्थे को सरकारी जर्जर भवनों में रोककर न तो सोशल डिस्टेंस का पालन हो रहा है और न ही मजदूरों की मूलभूत आवश्यकताओं का ध्यान रखा जा रहा है. नरसिंहपुर जिले के गोटेगांव में जबलपुर की सीमा से सटे गांव में रूके मजदूरों के साथ महिलाओं और दुधमुंहे बच्चों को इस चिलचिलाती गर्मी में दो वक्त की रोटी भी नहीं मिल पा रही.

चुनाव के समय गरीब, मजदूरों से वोट की वटोरने वाले इन सफेद पोश नेताओं को  इन मजदूरों से जैसे कोई सरोकार ही नहीं है .

हरियाणा में काम करने वाले नरसिंहपुर जिले के एक  गांव बरांझ के मजदूर सुन्दर कौरव ने बताया कि वह 10अप्रेल को एक मालगाड़ी के डिब्बे में बैठकर इटारसी आ गया. इटारसी से रेलवे ट्रैक के किनारे किनारे पैदल ही अपने गांव की ओर चल पड़ा.भूख प्यास से व्याकुल सुंदर को सर्दी खांसी के साथ बुखार आ गया तो सिहोरा स्टेशन के पास बोहानी गांव के मेडिकल स्टोर से दबा खरीदकर गांव की ओर जा रहा था,तभी चैक पोस्ट पर तैनात कर्मचारियों ने उसे रोककर पूछताछ की. सुन्दर की हालत देख कर कोरोना वायरस के संभावित लक्षणों के आधार पर उसे जिला अस्पताल भेज दिया है.जहां उसकी जांज कर आइसोलेशन वार्ड में भर्ती किया गया है.

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हर साल फसलों की कटाई के लिए नरसिंहपुर जिले के गांवों में छिंदवाड़ा, सिवनी,मंडला, डिंडोरी जिलों से बड़ी संख्या में मजदूर आते हैं. इस वार लाक डाउन की बजह से इन मजदूरों को उतना काम नहीं मिला.और वे गांवों से घर की ओर निकल पड़े. गांव के स्थानीय लोगों ने उनसे रूकने और भोजन पानी की व्यवस्था का आश्वासन दिया तो उनका कहना था कि वे अपने 12 से 14 साल के बच्चों और बूढ़े मां-बाप को घर पर छोड़ कर फसल कटाई के लिए आये थे.लौक डाउन लंबा चला तो हमारे घर के सदस्यों का क्या होगा, इसलिए वे अपने गांव लौटने पैदल चल पड़े.

जब चीन के बुहान शहर में कोरोना वायरस का संक्रमण शुरू हुआ था, तो हमारे देश की सरकार ने चीन में लाखों डॉलर कमाने वाले अमीरों के साहबजादों को विशेष विमान से भारत बुला लियाथा, लेकिन भारत में कोरोना की महामारी फैलते ही इस देश के लाचार मजदूर को उसके गांव पहुंचाने कोई जनसेवक आगे नहीं आया.

इस सरकार को मजदूरों से ज्यादा चिंता तीर्थ यात्रा पर गये यात्रियों ,धर्म के ठेकेदारों और पुजारियों की ज्यादा थी, तभी तो वाराणसी में फंसे 900 तीर्थ यात्रियों को को आंध्रप्रदेश के राज्य सभा सांसद जीबीएल नरसिम्हा राव की पहल पर लक्जरी बसों में घर वापस भेजा गया.

14 अप्रैल को देश के प्रधान सेवक सुबह दस बजे यह सोचकर अपना संबोधन दे रहे थे मुंबई की सड़कों और धर्म शालाओं में मजदूर टेलीविजन देख रहे होंगे.किसी भी तरह की सूचना संचार की तकनीक से दूर जब यह अफवाह फैली कि आज‌लौक डाउन खत्म हो रहा है तो मजदूरों का हुजूम रेलवे स्टेशन की ओर बढ़ने लगा. बांद्रा स्टेशन पर घर जाने को उमड़ी भीड़ बता रही है कि लौक डाउन में फंसे मेहनत कश मजदूर  रोजी-रोटी की खातिर अपने घर लौट जाना चाहते हैं, लेकिन उन्हें  तो पुलिस के डंडे और आंसू गैस का सामना करना पड़ा .

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देश के क‌ई हिस्सों से यह खबर आ रही हैं कि रेलवे के कोचों को आइसोलेशन वार्ड में तब्दील किया गया है. यैसे में ये राजनेताओं को यह बात नहीं सूझती कि इनही रेलवे कोचों में इन मजदूरों को उनके घर वापस पहुंचा दिया जाए. दरअसल इन मजदूरों का कोई माई बाप नहीं है.नेता इन्हें अपनी कठपुतली समझते हैं,वे जानते हैं कि जब इनसे वोट लेना होगी तो एक बोतल शराब हजार पांच सौ के नोटों से इन्हे बरगलाया जा सकता है.

मजदूरों नहीं तीर्थयात्रियों की है – सरकार

एक तरफ काफी संख्या में महानगरों में लाखों मजदूर दाने दाने के लिए मुँहताज हैं. किसी हाल में वे घर आना चाहते हैं. उसे सरकार किसी प्रकार की सुविधा उपलब्ध नहीं करा रही है. जिन नौजवानों के खून पसीने से देश भर की फैक्ट्रियाँ गुलजार रहती है. उनके हाँथों से बनाये गए उत्पादों का उपभोग सारी दुनिया के अमीर गरीब,राजा से लेकर रंक तक करते हैं.फैक्ट्रियों के मालिक इनके बल पर गुलछर्रे उड़ाते हैं.आज वे ही दाने दाने के लिए मौत के करीब पहुँच गये हैं.इन मजदूरों द्वारा जारी फोटो और वीडियो देखकर किसी भी संवेदनशील ब्यक्ति का दिल दहल जाएगा.

सरकार का ध्यान इन भूखे लाचार लोगों की तरफ नहीं है.इन मजदूरों की आवाज दिल्ली में राज कर रहे प्रधानसेवक और उनके लगुवे भगुवे तक नहीं पहुँच पा रही है.दूसरी तरफ तीर्थयात्रियों को धार्मिक स्थलों से लॉक डाउन और सोशल डिस्टेंसिंग का अवहेलना करते हुवे उनके घरों तक लग्जरी गाड़ियों से पहुँचाया जा रहा है.

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गुजरात के लोग किसी धार्मिक अनुष्ठान के लिए हरिद्वार गए थे.इसी बीच लॉक डाउन हो गया.जो जहाँ थे वहीं फँस गए लेकिन गृह मंत्री के निजी हस्तक्षेप के बाद इन यात्रियों को अपने घरों तक पहुँचाया गया.

दूसरी घटना है.काशी बनारस की जहाँ से हमारे प्रधानमंत्री जी सांसद हैं.इनके आवाज पर पूरे देश में लॉक डाउन है. लोग घरों से नहीं निकल रहे हैं.जो जहाँ हैं वहीं रहें.लेकिन वाराणसी में महाराष्ट और उड़ीसा से आये एक हजार तीर्थ यात्री यहाँ फँस हुवे थे.तमिलनाडु,तेलंगाना,आंध्र प्रदेश,महाराष्ट और उड़ीसा के एक हजार से अधिक यात्रियों को 25 बसों और चार क्रूजर से सुरक्षाकर्मियों संग सभी लोगों को पहुँचाया गया.

पैंतालीस सीटों पर पैंतालीस यात्री.प्रधानमंत्री जी किस सोशल डिस्टेंसिंग का पालन आप करवा रहे हैं.

इन तीर्थ यात्रियों की आवाजें लोगों के कानों तक तुरन्त पहुँच गयी.जबकि ये लोग होटल और धर्मशाला में थे.जिला प्रशासन इन लोगों को खाने पीने के साथ सारी सुविधाओं का ख्याल रखे हुवे थी.जबकि मजदूर कई राज्यों में भूख से बेहाल हैं.

इन घटनाओं से स्पष्ट हो गया कि यह सरकार मेहनतकशों के लिए नहीं.तोंद फुलाये टिका लगाये जो परजीवी हैं. उनके ही हितों की बात सोंचती है.

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भाकपा माले के राष्ट्रीय नेता एवं पूर्व विधायक राजाराम सिंह ने कहा कि इस देश के मेहनतकश और श्रमिक वर्ग के लोगों अगर बात समझ में नहीं आयी तो अंग्रजों के गुलामी से भी बुरा हाल होने वाला है. इस कोरोना की वजह से गरीब,बेबस और लाचार लोग बेमौत मारे जायेंगे. यह सरकार पूंजीपतियों और धार्मिक ढकोसलेबाज लोगों को ही हर चीजों में प्राथमिकता देगी.

तरक्की की ओर हैं क्या

एक ओर भारत सरकार दुनिया की नजरों में अच्छी इमेज बनाने की कोशिश में लगी है, वहीं पैसों की बरबादी भी सामने आ रही है.

अस्पताल बनाने, दवा तैयार करने व डाक्टरों की भरती को ले कर सरकार ज्यादा गंभीर नहीं है, बल्कि मिसाइल और मास्क, कोरोना किट खरीदने में लगी है. इस की कानोंकान किसी को खबर नहीं है. जब खबर उजागर होती है तो पता चलता है कि कोरोना किट के नाम पर हम ठगे गए हैं तो मास्क भी घटिया किस्म का दिया है. विपक्षी दल भी मूकदर्शक बना सरकार के साथ कदमताल कर रहा है.

एक ओर जहां कोरोना भय का माहौल है. सरकार अपनी तरफ से कुछ भी करने का वादा नहीं कर रही. इसी तरह फंसे मजदूरों को कोई राहत नहीं दे  रही. हजारों लोग जो बीच जगहों पर फंसे हुए हैं, उन को भी कोई सहूलियत नहीं दी जा रही. ये लोग अपने घर जाने को ले कर बेचैन हैं. अभी तक तो सरकार की ऐसी कोई योजना नहीं है इन लोगों को ले कर.

तरक्की का ढोल पीट कर यह सलाह दी गई है कि अपने घर से बाहर न जाएं. ताली बजाएं थाली पीटें, रोशनी करें. रोशनी के नाम पर तो मिनी दीवाली ही लोगों ने मना ली, पर उन बेचारों की सुध नहीं ली जो जहां फंसा हुआ है उसे उस की जगह तक पहुंचा दिया जाए.

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तरक्कीपसंद, अमनपसंद देश में ऐसी खुशहाली आएगी, सपने में भी नहीं सोचा था. जो जहां था वहीं का हो कर रह गया, ऐसा भी नहीं सोचा था. घरों में पत्नीबच्चे परेशान हैं. पता नहीं, अब कब वे माकूल दिन लौटेंगे.

ऐसा नही है कि भारत में सभी समस्याओं का खात्मा हो गया है.  आज भी कई लोग तमाम दिक्कतों को सहन कर रहे हैं. तंगहाली में जीने को मजबूर हैं. गाड़ियां चल नहीं रही हैं, बसों के पहिये रुके हुए हैं, मैट्रो बंद हैं, ऐसे में कैसे जाएं घर और कैसे लौटें काम पर…

सरकारी इंतजाम नाकाफी हैं. हर ओर यही नजारा देखा जा सकता है. ऊपर से राज्य सरकार ने भी अपने यहां ज्यादा सख्ती कर रखी है. ऐसी सख्ती भी किस काम की, लोग यों ही अपनी जान खो रहे हैं.

एक घटना उत्तर प्रदेश के कानपुर की है. यहां 2 बहनों के गलेसड़े शव मिले हैं क्योंकि फ्लैट से बदबू उठ रही थी. दरवाजा खुला, तो पुलिस भी चौंकी.

हुआ यह कि किराए पर रह रहीं 2 लड़कियों के पास मकान मालिक ने पड़ोसी को किराया लेने भेजा. आसपास रह रहे लोगों ने कहा कि अंदर से बदबू आ रही है. आननफानन पुलिस को बुलाया गया. पुलिस ने दरवाजा तोड़ा तो अंदर का नजारा वीभत्स था. बंद फ्लैट में 2 लड़कियों के सड़ चुके शव पड़े थे.

जानकारी के मुताबिक, बर्रा के रहने वाले राजेश दिल्ली बीएसफ में तैनात है. इन का कानपुर के पनकी थाना क्षेत्र में फ्लैट है, जिस को 4 महीने पहले दोनों लड़कियों ने ओयो के माध्यम से बुक कर के किराए पर लिया था.

ये दोनों सगी बहनें थीं. मकान मालिक हर माह का किराया लेने के लिए फ्लैट में किसी न किसी को भेजते थे.

14 अप्रैल को जब उन का पड़ोसी किराया लेने पहुंचा तो उस को वहां रहने वाले लोगों ने बताया कि कुछ दिनों से फ्लैट से अजीब सी दुर्गंध आ रही है और फ्लैट में रहने वाली लड़कियां भी काफी दिनों से नहीं दिखाई पड़ी हैं.

ऐसा सुन कर इस की सूचना पुलिस को दी गई. सूचना पर पहुंची पुलिस और फॉरेन्सिक की टीम ने दरवाजा तोड़ा तो वहां का नजारा देख सभी के होश उड़ गए. दोनों बहनों के शव कमरे के फर्श पर पड़े थे और उन के गले में फंसी रस्सी कमरे में लगी खिड़की के सहारे बंधी हुई थी. दोनों के गले में एक ही रस्सी के कोने थे और शव बुरी तरह से सड़ चुके थे.

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शवों की स्थिति देख कर मामला भले ही सुसाइड का लग रहा था, लेकिन कमरे में लेटे शव और सिर्फ 2 हाथ ऊंची खिड़की से लटक कर सुसाइड नहीं हो सकता, यह भी दिख रहा था.

पुलिस ने दोनों युवतियों की पहचान करते हुए बताया कि दोनों सगी बहनें आभा शुक्ला और रेखा शुक्ला हैं. इन की मौत कैसे हुई, यह तो पोस्टमार्टम रिपोर्ट के बाद ही साफ होगा. वहीं, फॉरेंसिक टीम ने मौके से बरामद सभी चीजों की बारीकी से जांच की. मौके से कोई सुसाइड नोट भी नहीं मिला है

वहीं दूसरी घटना भी उत्तर प्रदेश के कानपुर के ग्रामीण क्षेत्र सजेती क्षेत्र के मवई भच्छन गांव की है. यहां 10 अप्रैल की देर  रात कच्ची शराब की पार्टी हुई थी. जहरीली शराब पीने से  2 लोग मर गए, जबकि 6 बीमार हो गए. सभी को अस्पताल में भर्ती कराया गया.

एसएसपी अनंत देव ने बताया कि यह तो पता नहीं चल सका कि शराब कहां से आई थी. पर, शराब बोतल में थी.

सजेती क्षेत्र के मवई भच्छन गांव में प्रधान रणधीर सचान ने 10 अप्रैल की देर रात कच्ची शराब बनाने के लिए भट्ठी चढ़वाई थी और पार्टी आयोजित की थी.

सूचना पर इन्हें नजदीकी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) में भर्ती कराया गया. हालत गंभीर होने पर सभी को इलाज के लिए कानपुर भेज दिया गया. बीमारों में रणधीर सचान भी है. मरने से में अंकित फतेहपुर के अमौली पीएचसी में फार्मासिस्ट था, वहीं अनूप पेशे से ट्रक ड्राइवर था.

तीसरी घटना ने तो वाकई आंखें खोल दी और राज्य सरकार की पोल खोल कर रख दी . केरल से एक बेहद मार्मिक वीडियो सोशल मीडिया पर आया. अपने 65 साल के पिता को बीमार देख कर एक बेटा उन्हें अस्पताल ले जाने को सड़क पर दौड़ता दिखाई दिया.

बताया जा रहा है कि पुलिस ने इस शख्स के घर से एक किलोमीटर पहले ही एक ऑटो को आगे बढ़ने से रोक दिया था. ये ऑटो मरीज को अस्पताल ले जाने के लिए आया था, लेकिन जब पुलिस ने उसे रोक दिया तो बीमार बाप को वक्त पर अस्पताल पहुंचाने को उन का बेटा उन्हें गोद में ही ले कर सड़क पर दौड़ पड़ा.

यह  घटना केरल के पनलूर शहर की है. बीमार पिता को अस्पताल ले जाने के लिए उस के बेटे ने एक ऑटो को घर तक बुलाया था.

हालांकि पुलिस ने इस ऑटो को घर से एक किलोमीटर दूर की एक चेक पोस्ट पर ही रोक दिया. जब कोई और रास्ता नहीं मिला, तो इस शख्स का बेटा उसे गोद में उठा कर दौड़ पड़ा.

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सवाल यह है कि पुलिस ने आखिर बुजुर्ग बीमार को अस्पताल ले जाने की स्थिति में भी वाहनों को जाने की अनुमति क्यों नहीं दी?

सोशल मीडिया पर तमाम लोगों ने पुलिस के काम करने के तौरतरीकों को कठघरे में ला खड़ा किया है.

एक ओर सोशल मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया कुछ ज्यादा ही सक्रिय नजर आ रहा है, वहीं लोगों की सोच अभी भी दकियानूसी बातों  में उलझी हुई है और सोचने पर मजबूर करती है कि 21वीं सदी का भारत 18वीं सदी की गाथा लिख रहा है?

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