दोनों मामले की ऊँच स्तरीय जाँच का मामला उठने लगा है.नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी प्रसाद यादव ने ट्वीट कर कहा है कि पुलिसिया जुल्म अगर नहीं रुका तो आंदोलन चलाया जाएगा.बेगूसराय वाले मामले में एक युवा को दूसरी जाति के लड़की के साथ प्रेम था. उसे थाने में बन्द कर दिया .बाद में कस्टडी में ही उसकी आत्हत्या करने की खबर मिली.इस मामले का उच्चस्तरीय जाँच करने का मामला जब सामाजिक कार्यकर्ता सन्तोष शर्मा ने उठाया तो उसे पुलिस गिरफ्तार कर ली .जम कर उनकी पिटायी की जिन्होंने अस्पताल में दम तोड़ दिया.
बेगूसराय मामले में बताया जाता है कि वीरपुर थाना में प्रेम प्रसंग मामले में पुलिस ने विक्रम पोद्दार नाम के युवक को गिरफ्तार किया था.उसकी मौत पुलिस कस्टडी में हो गई . ठाकुर संतोष शर्मा पुलिस कस्टडी में हुए इस संदेहास्पद मौत की उच्च स्तरीय जांच की मांग को लेकर लगातार संघर्ष कर रहे थे. इस वजह से पुलिस ने संतोष को गिरफ्तार कर उनकी पिटाई की.उन्हें कई गंभीर अंदरूनी चोटें आई औऱ इलाज के दौरान मौत हो गई. हत्या की उच्य स्तरीय जांच हो एवं दोषी पुलिसकर्मी एवं षड्यंत्र में शामिल व्यक्तियों पर हत्या का मुकदमा दर्ज कर कानूनी कार्रवाई हो.साथ ही संतोष के परिजनों को 50 लाख मुआवजा दिया जाए.अन्यथा जिला प्रशासन औऱ सरकार के खिलाफ जोरदार आंदोलन होगा. सामाजिक कार्यकर्ता संतोष कुमार शर्मा की मौत की जांच में लापरवाही बरतने पर छात्र व युवा सड़क पर उतरेंगे.ये बातें एआईएसएफ के जिला परिषद सदस्य साकेत कुमार ने कहीं. एआईएसएफ के जिलाध्यक्ष सजग सिंह ने एसपी को आवेदन देकर संतोष शर्मा की मौत की जांच आडियो के आधार पर करने की मांग की. नावकोठी थाने की पुलिस ने संतोष को लॉकडाउन के नाम पर गिरफ्तार किया.उसकी बेरहमी से पिटाई की गई.मुकदमा नहीं करने की शर्त पर इलाज शुरू किया गया.कहा कि मौत की उच्च स्तरीय जांच के अलावा संतोष के परिजन को उचित मुआवजा दिया जाए. युवा नेता संतोष शर्मा की संदेहास्पद मौत के घटना की उच्च स्तरीय जांच की मांग को लेकर भाकपा माले कार्यालय में आइसा एवं माले के कार्यकर्ता एक दिवसीय भूख हड़ताल पर रहे.माले के प्रखंड सचिव नूर आलम ने संतोष शर्मा की संदेहास्पद तरीके से हुई मौत की जांच कर दोषी पुलिसकर्मी एवं षडयंत्र में शामिल लोगों पर हत्या का मामला दर्ज करने व पीड़ित परिवार को ₹50 लाख रुपये मुआवजा देने की मांग सरकार से की है. भूख हड़ताल में माले नेता इंद्रदेव राम, लड्डू लाल दास, मोहम्मद सोहराब, प्रशांत कश्यप, सुधीर कुमार, शाहरुख आदि थे.एसपी अवकाश कुमार का कहना है कि संतोष शर्मा के परिजन ने अभी तक किसी तरह की आपत्ति दर्ज नहीं करायी है.उन्होंने सोशल मीडिया पर वायरल आडियो के संबंध में कहा कि वॉयस सेंपल की जांच तभी हो पाती जब संतोष जिंदा होता. बताया कि डीएसपी को जांच के लिए कहा गया है.
इसी तरह दूसरा मामला है.औरंगाबाद के गोह में स्वास्थ्य विभाग की टीम पर ग्रामीणों ने हमला कर दिया था. वहां सूचना थी कि दूसरे राज्य से लोग आए हैं तो स्वास्थ्य विभाग की टीम जांच करने गई.50-60 की संख्या में ग्रामीणों ने स्वास्थ्य विभाग की टीम पर हमला कर दिया.गाड़ियां तोड़ दीं.जब पुलिस की टीम मामले की जांच के लिए गई तो लोगों ने पुलिस पर भी हमला कर दिया.जिसमें एसडीपीओ और उनका अंगरक्षक घायल हो गया.उधर स्वास्थ्यकर्मियों पर हमला हुआ तो विरोध में डॉक्टर और अन्य स्वास्थ्यकर्मी धरने पर बैठ गए.
रविकांत फ़िल्म इंडस्ट्रीज में लेखक डायरेक्टर और इसी क्षेत्र के रहने वाले हैं.उन्होंने इस घटना की तहकीकात करते हुवे जानकारी दी है कि
इस घटना का एक दूसरा पक्ष है….
लॉकडाउन के पहले चरण में गोह के अकौनी गाँव के रामजी यादव का बेटा राधेश्याम भी दिल्ली से अपने गाँव लौटा. वो आराम से अपने गाँव में रहा.प्रशासन ने कोई खोज खबर नहीं ली. कुछ दिन बीतने के बाद पुलिस के लोग रामजी यादव को खोजते हुवे गाँव आये.उस गाँव में उनके अलावा कई रामजी यादव हैं.पुलिस दुसरे रामजी यादव के घर पहुच गयी.घर के बड़े लोग गेहूं की कटाई करने खेत गए थे.घर में बहुएं थीं.पुलिस उनसे ज़बरदस्ती रामजी यादव और राधेश्याम के बारे में पूछने लगी..राधेश्याम और रामजी यादव को खोजने लगी.अब चुकी राधेश्याम उस घर का था ही नहीं.तो वो वहां कहाँ मिलता.अब इसके बाद पुलिस का आतंक शुरू होता है.वो घर की बहुओं को पीटने लगती है..बड़ी बेरहमी से.हंगामा मच जाता है.आस पड़ोस के लोग जब देखते हैं की पुलिस बिना कारण महिलाओं को पीट रही है.तो वो लोग उसका विरोध करते हैं.गौर करने वाली बात है की उस पुलिस की टुकड़ी में एक भी महिला पुलिस नहीं थी.सभी पुरुष थे.और महिलाओं को बेरहमी से मार रहे थे.गाँव वालों ने पुलिस के इस कुकृत्य को रोकने के लिए पथराव किया.कुछ पुलिस वालों को भी चोट आई है.और पुलिस गाँव वालों का विरोध देख वापस चली गयी.पुलिस के जाने के थोड़ी देर बाद मेडिकल की टीम वहां पहुची.जिन्हें भी गाँव वालों के विरोध का सामना करना पड़ा.
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अब यहाँ से नया घटना क्रम शुरू होता है.
ये बात निकट के दूसरे थाने और और ऊपर के अधिकारी तक पहुची.फिर ज्यादा पुलिस बल गाँव आता है.गाँव वालों पर जुल्म शुरू होता है.गाँव वाले ईंट पत्थर चला रहे हैं.पुलिस लाठी.जिले के आला अधिकारी से लेकर बिहार के डी जी पी तक ये खबर पहुचती है.और फिर गाँव पुलिस छावनी में बदल दिया जाता है.मुक़दमें दर्ज होते हैं.गिरफ्तारियां शुरू होती है.डी जी पी साहब का फरमान आता है.जेल में सडा देंगे.
कुछ प्रश्न जो अनुतरित हैं….
क्या पुलिस के पास इतना विवेक या कोई सिस्टम नहीं है.जो एक गाँव में सही रामजी यादव और उसके पुत्र राधेश्याम को खोज सके.पुलिस सिस्टम के सबसे नीचे के पायदान पर एक चौकीदार होता है.जो गाँव के हर व्यक्ति को जानता है.उस गाँव में वार्ड के मेम्बर होंगे.क्या पुलिस उनके माध्यम से सही रामजी यादव को ढूंढ नहीं सकती थी.या रामजी यादव राधेश्याम नाम के किसी भी व्यक्ति के साथ वो ये सब करेगी.क्या अभी तक पुलिस महकमे को नहीं पता की उसकी गलती के कारन इतना बड़ा बवाल हुआ है.
अब तो पुलिस के नाक का सवाल है.पुलिस घायल हुई.मेडिकल टीम पर हमला हुआ.साहब ये तो देखो की क्यूँ हुआ.गलती कहाँ से शुरू हुयी.और अब तो हर जगह एक ही नरेशन है.गाँव वालों ने पुलिस और मेडिकल टीम पर हमला किया.महिलाओं को इतना अभद्र ढंग से पिटायी की गयी है.किसी भी संवेदनशील ब्यक्ति को सिर्फ फोटो देखकर रोंगटे खड़े हो जायेंगे.
पूर्व विधायक और पुलिस प्रशासन में रह चुके सोमप्रकाश ने इस घटना के सम्बंध में जानकारी दी कि इस गाँव में दलित और पिछड़ी जाति के लोग रहते हैं. उस गाँव में जितने भी लोग मिले सबकि जबरजस्त पिटायी की गयी और 44 लोगों को जेल भेजा गया जिसमें करीब 14 महिलाएँ हैं.9 महिलाएँ गर्भवती हैं.11 लोग नाबालिग हैं.
सोमप्रकाश ने कहा कि इस महामारी में जनता के लिए सबसे अधिक कोई घृणा का पात्र है तो वह पुलिस है. आखिर इसका कारण क्या है. अपनी पुरानी नीति को बदलनी होगी.पहले लात और फिर बात करने की शैली में बदलाव लाना होगा.इस लॉक डाउन में अगर कोई बाहर घूमते मिलता है तो पहले उसे पीटने की जरूरत नहीं है. उससे पूछा जाना चाहिए.हो सकता है वह अपने परिजन के लिए दवा लेने के लिए जा रहा हो.लॉक डाउन में भी दवा और राशन की दूकानें खुली हुवी है. जरूरत पर लोग जायेंगे ही.इस घटना की निंदा तमाम बुद्धजीवी और राजनीतिक दल के लोग कर रहे हैं. जाप नेता स्यामसुंदर ने कहा है कि इस घटना की हम घोर निंदा करते हैं और इसकी ऊँच स्तरीय जाँच की माँग करते हैं.
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लॉक डाउन के दौरान पूरे देश में पुलिस जुल्म और पिटायी की वजह से कितने लोगों ने दम तोड़ दिया है. रक्षक ही भक्षक बन गए हैं.