Crime: करीबी रिश्तो में बढ़ते अपराध

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के मोहनलालगंज इलाके में कुछ ही समय में आधा दर्जन ऐसी घटनाएं घटीं, जिन से करीबी रिश्तों में बढ़ रहे अपराध का पता चलता है.

वैसे, यह बात केवल एक जगह की नहीं है. समाज में हर जगह एक सा हाल है. अपराध की घटनाओं की पड़ताल करने पर यह सच उजागर हो जाता है.

प्रेमी संग मंगेतर की हत्या

शहाबुद्दीन की शादी हसमतुल निशा के साथ तय हुई थी. निशा लखनऊ पीजीआई अस्पताल के पास ही एकता नगर में रहती थी. वह अपने 2 भाइयों में सब से छोटी और लाड़ली भी थी.

शहाबुद्दीन भी अपने घर में सब से छोटा था. वह बंथरा में रहता था. दोनों के घर के बीच 35 किलोमीटर की दूरी थी. शहाबुद्दीन ट्रासपोर्ट नगर में दुकान पर नौकरी करता था, जो दोनों के घरों के बीच थी.

हसमतुल निशा ने अपने घर वालों के कहने पर शहाबुद्दीन के साथ शादी के लिए हामी तो भर दी थी, पर वह अपने प्रेमी शाने अली को भूलने के लिए भी तैयार नहीं थी. ऐसे में जैसेजैसे शहाबुद्दीन के साथ शादी का दिन करीब आ रहा था, दोनों के बीच तनाव बढ़ रहा था.

हसमतुल निशा को लगता था कि वह शादी का दिखावा ही करेगी. बाकी वह मन से अपने प्रेमी शाने अली के साथ रहना चाहती थी.

शहाबुद्दीन के साथ हसमतुल निशा की सगाई होने के बाद उन दोनों के बीच बातचीत होने लगी. शहाबुद्दीन अकसर उसे फोन करने लगा और मिलने के लिए भी दबाव बनाने लगा.

यह बात हसमतुल निशा को अच्छी नहीं लग रही थी. शाने अली भी चाहता था कि हसमतुल निशा अपने होने वाले पति शहाबुद्दीन से मिलने न जाए. जब भी उसे यह पता चलता था कि दोनों की फोन पर बातचीत होती है और वह आपस में मिलते भी हैं, इस बात को ले कर हसमतुल निशा और शाने अली के बीच  झगड़ा होता था.

उन दोनों के बीच लड़ाई झगड़े के बाद यह तय हुआ कि अब शहाबुद्दीन को रास्ते से हटाना ही होगा.

शहाबुद्दीन को अपनी होने वाली पत्नी और उस के प्रेमी के बारे में कुछ भी पता नहीं था. वह उन दोनों को आपस में रिश्तेदार सम झता था और उन पर भरोसा भी करता था.

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अपनी होने वाली पत्नी हसमतुल निशा को शादी के पहले वह अच्छी तरह से जाननेसम झने के लिए करीब आने की कोशिश कर रहा था. उसे यह नहीं पता था कि उस की यह कोशिश उसे मौत की तरफ ले जा सकती थी.

शहाबुद्दीन अपनी होने वाली पत्नी के साथ संबंधों को मधुर बनाने का काम कर रहा था, पर प्रेमी के मायाजाल में फंसी हसमतुल निशा खुद को उस से दूर करना चाहती थी. परिवार के दबाव में वह खुल कर बोल नहीं पा रही थी.

हसमतुल निशा ने अपने प्रेमी शाने अली के साथ मिल कर योजना बनाई. हसमतुल निशा चाहती थी कि शाने अली उस के मंगेतर शहाबुद्दीन को रास्ते से हटा दे. योजना को सही आकार देने के लिए शाने अली ने अपने जन्मदिन पर  11 मार्च, 2021 को शहाबुद्दीन को मिलने के लिए बुलाया.

गुरुवार की रात तकरीबन साढ़े 8 बजे शाने अली और उस के दोस्त बाराबंकी निवासी अरकान, मोहनलालगंज निवासी संजू गौतम, अमन कश्यप और पीजीआई निवासी समीर मोहम्मद बाबूखेड़ा में जमा हुए. जैसे ही शहाबुद्दीन वहां पहुंचा, शाने अली और उन के दोस्तों ने उस पर चाकू से ताबड़तोड़ हमला कर दिया.

कई वार होने के बाद भी शहाबुद्दीन ने हार नहीं मानी और अपनी जान बचाने के लिए वह हमलावरों से भिड़ गया.

शाने अली और उस के हमलावर दोस्तों को जब लगा कि शहाबुद्दीन बच निकलेगा तो उन लोगों ने कुत्ते को बांधी जाने वाली जंजीर से शहाबुद्दीन का गला घोंट दिया, जिस से वह अपना बचाव नहीं कर पाया और मर गया.

बाद में हसमतुल निशा ने पुलिस को बताया कि उस ने अपने प्रेमी शाने अली के साथ मिल कर मंगेतर शहाबुद्दीन की हत्या कर दी.

चौथे पति का बेरहमी से कत्ल

लखनऊ के नगराम थाने के महगुआ गांव की रहने वाली ज्ञानवती ने अवधेश के साथ चौथी शादी की थी.

ज्ञानवती की पहली शादी 20 साल की उम्र में नगराम के रहने वाले दिलीप से हुई थी. शादी के कुछ दिन बाद ही उन दोनों के बीच अनबन शुरू हो गई.

दिलीप को केवल ज्ञानवती की याद तब ही आती थी, जब उसे उस का जिस्म चाहिए होता था. पतिपत्नी के रिश्ते में जिस्मानी संबंधों के साथ जिम्मेदारी भरा अहसास भी होता है. ज्ञानवती को कभी यह नहीं लगा कि दिलीप उस के साथ ऐसे संबंधों को निभा पाएगा.

अच्छी बात यह थी कि ज्ञानवती के समाज में तलाक लेने में कोई दिक्कत नहीं आती थी. पंचायत के फैसलों पर ही तलाक हो जाता था. शादी के कुछ साल बाद ज्ञानवती और दिलीप अलग हो गए.

ज्ञानवती की दूसरी शादी चौराहपुर के श्यामलाल के साथ हुई. श्यामलाल से उस के एक बच्चा भी हो गया, जिस का नाम सूरज रखा गया था.

सूरज के आने के बाद भी ज्ञानवती की जिंदगी में बहुत दिनों तक उजाला नहीं रह सका. जिस तरह से दिलीप के साथ ज्ञानवती का मनमुटाव शुरू हुआ था, उसी तरह से श्यामलाल के साथ भी होने लगा.

मनमुटाव  झगड़े में बदला और ज्ञानवती ने अलग रहने का फैसला कर लिया. श्यामलाल ने भी कह दिया कि बेटा सूरज उस के साथ ही रहेगा.

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इस के बाद भी ज्ञानवती ने अपना फैसला नहीं बदला. अब वह फिर से अपनी शादीशुदा जिंदगी बसाने के लिए कोशिश करने लगी.

इस बार ज्ञानवती ने सुखलाल खेड़ा नवी नगर निवासी सुनील रावत के साथ तीसरी शादी कर ली.

ज्ञानवती ने अब सोच लिया था कि सुनील ही उस की जिंदगी को सुखमय बनाएगा. पहले की दोनों शादियों के मुकाबले ज्ञानवती की तीसरी शादी उसे अच्छी लग रही थी.

सुनील का स्वभाव भी बहुत अच्छा था. ज्ञानवती के साथ उस का समय अच्छा गुजर रहा था. दोनों के 2 बच्चे राम और नरेश पैदा हुए. बच्चों के होने के बाद सुनील और ज्ञानवती के बीच संबंध पहले जैसे मधुर नहीं रहे थे. अब दोनों के बीच टकराव होने लगा था.

ज्ञानवती ने  झुकना नहीं सीखा था और सुनील से अलग रास्ता उस ने बना लिया. अब उस ने मंहगुआ गांव के रहने वाले अवधेश से अपनी चौथी शादी कर ली. 14 साल में चौथी शादी करने के बाद भी ज्ञानवती को संतोष नहीं हो रहा था.

ज्ञानवती का स्वभाव विद्रोही होने लगता था. अवधेश जब भी नशा कर के आता था. इस वजह से ज्ञानवती की उस से लड़ाई होने लगती थी. ज्ञानवती और अवधेश के बीच संबंध एक साल के अंदर फिर से हाशिए पर पहुंच गए थे.

पहले 3 पतियों को छोड़ कर शादी करने वाली ज्ञानवती ने चौथे पति को रास्ते से हटाने के लिए उस की हत्या ही कर दी.

ज्ञानवती ने पुलिस को बताया, ‘‘अवधेश मेरे चौथे पति थे. मैं ने सोचा था कि चौथी शादी के बाद मैं सुकून और शांति के साथ रह सकूंगी. अवधेश ने भी मु झ से यही वादा किया था.

‘‘पर शादी के कुछ ही दिनों के बाद हमारे बीच लड़ाई झगड़ा शुरू हो गया. तब मैं इस रिश्ते से भी छुटकारा पाने की सोचने लगी. 24 मई को इच्छाखेड़ा में मेरे रिश्तेदार के यहां शादी थी. वहीं मेरे दोनों लड़के गए थे. घर में मैं और अवधेश ही थे.

‘‘अवधेश कहीं गए थे. वहां से नशा कर के जब वे वापस घर आए तो पीने के लिए पानी मांगा. मु झे लगा कि यही सही मौका है. मैं ने सिंघाड़ा बोने में काम आने वाली कीटनाशक दवा पानी में मिला दी. इस के बाद मु झे डर लगने लगा कि वे यहीं मर जाएंगे तो मैं फंस जाऊंगी.

‘‘इस के बाद डंडे से सिर पर वार  कर दिया और लकड़ी की 2 फट्टी गले के दोनों तरफ रख कर दबा दिया.  जब वे बेहोश हो गए, तो खींच कर चारपाई से नीचे गिरा दिया.

‘‘ब्लेड से शरीर के कई हिस्सों हाथ और सीने पर पचासों निशान बना दिए. आंख की पलक भी काट दी और पूरे शरीर पर मिट्टी लगा दी, जिस से यह लगे कि कहीं और से मारपीट कर के यहां डाल दिया गया है.’’

प्रेमी से कराई अपने घर चोरी

रसूलपुर आशिक अली थाना गोसाईंगंज जिला लखनऊ के रहने वाले मनोज कुमार की 19 साल की बेटी खुशबू कुमारी का पुरवा मलौली थाना गोसाईंगंज के रहने वाले विनय यादव के साथ प्रेम हो गया. विनय खुशबू को बेहद प्यार करता था. दोनों के बीच जातपांत की गहरी खाई थी.

दोनों ही परिवारों को इन की दोस्ती पसंद नहीं थी. इस के बाद भी विनय और खुशबू अपनी दोस्ती को छोड़ना नहीं चाहते थे. लेकिन परेशानी यह थी कि उन को साथ रहने का रास्ता नहीं दिख रहा था.

अच्छी बात यह थी कि विनय और खुशबू के बीच एक तालमेल बना हुआ था. दोनों ही अपने विचारों का आदानप्रदान कर लेते थे. दोनों ने सोचा था कि विनय नौकरी करेगा, तो फिर वे दोनों शहर में अपना अलग घर ले कर रहेंगे.

कोरोना काल में लौकडाउन के चलते जिस तरह से कामधंधों पर रोक लगी, उस से विनय और खुशबू जैसे नौजवानों के सामने भी अपने भविष्य को ले कर सवालिया निशान लगा दिया. बेरोजगारी ने आगे के सभी रास्ते बंद कर दिए. यह उम्मीद थी कि 3 महीने के बाद जब लौकडाउन खुलेगा, तो सबकुछ वापस पटरी पर आ जाएगा. इस के बाद भी कोई कामधंधा नहीं बढ़ा.

मार्च, 2021 में जब कोरोना का संकट फिर से बढ़ा, तो विनय को जो कामधंधा मिल जाता था, वह भी बंद हो गया. ऐसे में खुशबू ने योजना बनाई कि विनय उस के घर में रखे रुपए चोरी कर ले.

खुशबू को उस के घर वाले भी मानसिक रूप से इतना परेशान करते थे कि वह किसी भी तरह से अपने घर में रहने को तैयार नहीं थी. अपने घर में चोरी की योजना बनाते समय उसे किसी भी तरह का डर नहीं हुआ.

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इधर विनय ने अपने साथी अपने ही गांव के रहने वाले शुभम यादव को भी इस योजना में जोड़ लिया. खुशबू के साथ योजना बनाते समय विनय ने उसे नींद की 8 गोली दी और कहा कि  4-4 गोली काढ़े में डाल कर रात में अपने मम्मी और पापा को पिला देना, जिस से वे रातभर आराम से सोते रहेंगे.

खुशबू ने 28 मई की रात ऐसा ही किया. जब मांबाप दोनों गहरी नींद में सो गए, तो विनय और शुभम ने खुशबू के साथ मिल कर उस के घर से 13 लाख रुपए नकद और 3 लाख रुपए के जेवर चोरी कर लिए.

खुशबू के पिता मनोज कुमार ने थाना गोसाईंगंज में चोरी का मुकदमा लिखाया. पुलिस ने खुशबू, विनय और उस के दोस्तों को जेल भेज दिया.

अशिक्षा और गरीबी

निगोहां गांव के रहने वाले राधेश्याम  के बेटे संदीप की दिमागी हालत खराब हो गई थी. तंग आ कर राधेश्याम ने उसे घर के पास के बिजली के खंभे से जंजीर से जकड़ कर बांध दिया.

जब यह बात समाजसेवियों को पता चली, तो उन्होंने विरोध किया और तब निगोहां इंस्पैक्टर नंदकिशोर ने जंजीर में जकड़े संदीप को खुलवा कर चचेरे भाई संजय को देखभाल के लिए सौंप दिया.

मोहनलालगंज थाना क्षेत्र में ही एक बेटे ने 3 बिस्वा जमीन के लिए अपनी मां की हत्या कर दी और लाश को मोहनलालगंज तहसील के पीछे फेंक दिया. ऐसी घटनाओं के पीछे मूल वजह अशिक्षा, गरीबी और बेरोजगारी है.

पुलिस अफसर पूर्णेंदु सिंह कहते हैं, ‘‘गरीबी, अशिक्षा और बेरोजगारी के साथसाथ लोगों में सहनशीलता और संस्कार खत्म हो गए हैं. इस की वजह से बेटा अपनी बूढ़ी मां की हत्या कर दे रहा है.

‘‘हत्याओं के पीछे निजी संबंधों का हाथ सब से ज्यादा पाया जा रहा है. चाहे वह करीबी संबंधी हो या करीबी दोस्त हो. पैसों का लालच इस कदर है कि लोग अपराध में हिस्सा ले लेते हैं. उस समय वे उस के अंजाम की बात भी नहीं सोचते हैं.’’

नशे और संगत का असर

लंबे समय से पत्रकारिता और समाजसेवा में लगे अखिलेश द्विवेदी कहते हैं, ‘‘बड़ी घटनाएं तो प्रकाश में आ जाती हैं, पर छोटीछोटी घटनाओं पर चर्चा कम होती है. अगर सभी आपराधिक घटनाओं को मिला कर देखें, तो पता चलता है कि अपराध करने वाले नशे का शिकार होते हैं, जिस की वजह से वे सहीगलत का फैसला नहीं कर पाते हैं और आपराधिक घटनाओं में शामिल हो जाते हैं.

‘‘वे एक बार छोटे अपराध करते हैं, फिर बड़ेबड़े अपराध करने से भी पीछे नहीं हटते. नौजवान तबका ऐसे लोगों के निशाने पर होता है, जो अपने गलत कामों के लिए उस का इस्तेमाल करने की कोशिश में रहते हैं.’’

इस सिलसिले में पत्रकार अनुपम मिश्र कहते हैं, ‘‘नौजवान तबके में संबंधों के प्रति सहनशीलता खत्म हो रही है. इस वजह से वे अपराध करने के पहले किसी भी तरह से सोचविचार नहीं कर रहे. सब से खतरनाक बात यह है कि महिलाएं भी अपराध करने से पीछे नहीं रह रही हैं. ये घटनाएं समाज के लिए बड़ी चुनौती बनती जा रही हैं.

‘‘अब समाज को इस से बचने का उपाय देखना होगा. कानून की भूमिका भी अहम है. अपराधों में जल्दी सुनवाई और सजा का मिलना शुरू हो जाए, तो अपराध करने से लोग डरेंगे. साथ ही साथ समाज में इस के प्रति जागरूकता भी बढ़ानी होगी.’’

Manohar Kahaniya: शैली का बिगड़ैल राजकुमार- भाग 2

सौजन्य- मनोहर कहानियां

राज स्मार्ट था और बातों का धनी था. शैली भी उस से प्रभावित हो कर उस से खुलने लगी. शैली ने राज को अपने बारे में सब बता दिया था. उस के बावजूद राज उसे पटाने में लगा था.

राज युवा था और अविवाहित था. उसे कोई भी खूबसूरत युवती मिल जाती और शादी करने को तैयार हो जाती. लेकिन राज को शैली में न जाने क्या दिखा, जो वह अपने से 14 साल बड़ी विधवा औरत, जिस के एक जवान बेटी भी थी, उस के प्यार में पड़ने को आतुर था.

यह प्यार था या एक जाल, जिस में वह शैली को फांसने की तैयारी कर रहा था. यह तो वक्त के गर्त में छिपा था. लेकिन इतना सब शैली ने नहीं सोचा. वह तो राज जैसे युवा को अपनी तरफ आकर्षित देख कर फूली नहीं समा रही थी.

शादी तक पहुंचा प्यार

दोस्ती की अगली सीढ़ी प्यार होता है. दोनों प्यार की सीढ़ी पर चढ़ने को आतुर थे. उन के बीच वीडियो काल पर बातें होने लगीं. ऐसी ही एक वीडियो काल के दौरान राज ने शैली से कहा, ‘‘हम दोनों को फेसबुक पर जुड़े काफी समय हो गया. लेकिन मैं इधर काफी दिनों से महसूस करने लगा हूं कि हमारा रिश्ता दोस्ती के रिश्ते से भी आगे बढ़ गया है.

‘‘जिस रिश्ते की दहलीज पर हम ने कदम रखा है वह रिश्ता है प्यार का रिश्ता. मुझे तुम से प्यार हो गया है शैली. यह कब हुआ कैसे हुआ, इस बात का मुझे भी पता न चला. जब इस को मैं ने महसूस किया तो दिल की खुशी का ठिकाना न रहा. मुझे लगता है कि तुम भी मुझ से प्यार करती हो. एम आई राइट शैली?’’

शैली यह सुन कर मन ही मन खुश हो रही थी, उस ने अपनी यह खुशी राज पर जाहिर नहीं होने दी और बोली, ‘‘राज, हम दोस्त ही रहें तो अच्छा है, प्यार के चक्कर से दूर रहें, वही ठीक है.’’

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शैली के गोलमोल जवाब से राज जान गया कि शैली के दिल में भी वही है, जो वह चाहता है. वह भी उसे प्यार करती है लेकिन कहने से कतरा रही है. हो सकता है इस के पीछे बड़ा कारण हो. लेकिन उस ने भी ठान लिया कि वह शैली को मना कर ही रहेगा.

‘‘शैली, ऐसा क्यों कह रही हो. जब प्यार करती हो तो उसे स्वीकार भी करो. दिल में छिपा कर मत रखो.’’ राज ने बेचैन हो कर शैली से कहा.

‘‘राज हम दोनों में उम्र का बहुत बड़ा फासला है. तुम से कुछ साल छोटी मेरी एक बेटी है. ऐसे में हम प्यार के रिश्ते में नहीं पड़ सकते, दोस्ती का रिश्ता ही ठीक है. वैसे भी हमारे समाज में यह स्वीकार्य नहीं है.’’

‘‘तुम मुझ से बड़ी हो फिर भी नासमझी वाली बातें कर रही हो. प्यार कभी उम्र नहीं देखता, कभी जातपात, ऊंचनीच नहीं देखता और न किसी की परवाह करता है. जिस से होता है तो बस हो जाता है. हमारी जिंदगी है तो जिंदगी के फैसले हम ही लेंगे, खासतौर पर उन फैसलों को जिन पर हमारी जिंदगी की खुशियां टिकी हैं.

‘‘वैसे भी समाज में कई उदाहरण हैं जिस में महिला पुरुष से बड़ी थी, लेकिन उन्होंने किसी की परवाह नहीं की और एक बंधन में बंध कर खुशहाल जिंदगी गुजार रहे हैं. जब वे एक साथ अच्छी जिंदगी गुजार सकते हैं तो हम क्यों नहीं.’’ राज ने समझाया.

कुछ सोच कर शैली बोली, ‘‘बात तो तुम्हारी सही है, हमें अपनी जिंदगी के फैसले लेने का खुद हक है. किसी को परेशानी हो तो उस से हमें क्या करना. मैं भी तुम्हें बहुत दिनों से चाह रही थी. लेकिन दुविधा में पड़ी थी. तुम ने आज मुझे निश्चिंत कर दिया कि तुम मेरे जीवनसाथी बनने के लिए ही बने हो. लव यू राज.’’

‘‘लव यू टू शैली.’’ राज ने भी शैली के प्यार का जवाब प्यार से दिया. इस के बाद उन के बीच काफी देर तक बातें होती रहीं. राज शैली को मनाने में सफल हो गया.

उन में प्यार हो गया वह भी बिना एकदूसरे से मिले. अब दोनों ने एकदूसरे से मिलने का फैसला किया.

निश्चित तिथि पर पार्क में दोनों मिले. एकदूसरे को सामने देख कर दोनों खुश हुए. पार्क में बात करने में दिक्कत हुई तो वे सुरक्षित और शांत ठिकाने पर बातें करने चले गए. इस के बाद उन के बीच मुलाकातों का सिलसिला बढ़ता ही गया. बाद में दोनों ने शादी करने का फैसला लिया तो अपने घर वालों को बताया.

शैली ने अपनी छोटी बहन मोनिका को इस बारे में बताया तो मोनिका ने अपनी बड़ी बहन से कहा कि उन्होंने राज के बारे में सब पता कर लिया है कि नहीं. इस पर शैली ने उसे आश्वस्त किया कि उस ने राज के बारे में सब पता कर लिया है. जबकि शैली को उतना ही पता था, जितना राज ने उसे बताया था.

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ससुराल में होने लगी अनबन

वर्ष 2017 में शैली ने राज से विवाह कर लिया. विवाह के बाद बेटी तान्या के साथ ससुराल गांव निगदू आ गई. कुछ समय तक सब ठीकठाक चलता रहा. उस के बाद शैली की राज के घर वालों से तकरार होने लगी. उस की वजह यह थी कि वे सब शैली और उस की बेटी तान्या को परेशान करते थे. राज या तो चुप रहता या अपने घर वालों का ही पक्ष लेता. जब पानी सिर के ऊपर से गुजरने लगा तो शैली ने अलग रहने का इरादा कर लिया.

शैली ने करनाल शहर के न्यू प्रेमनगर मोहल्ले में मकान किराए पर ले लिया. शैली ने जहां मकान किराए पर लिया था, वहीं 2 गली छोड़ कर उस की छोटी बहन मोनिका किराए पर रहती थी.

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Satyakatha: प्यार की ये कैसी डोर

सौजन्य- सत्यकथा

छत्तीसगढ़ का रायगढ़ जिला आदिवासी बाहुल्य है. यहां का लैलूंगा शहर जिला मुख्यालय से लगभग 85 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. लैलूंगा घोर जनजातीय आदिवासी बाहुल्य विकास खंड है. धीरेधीरे यहां का मिश्रित माहौल अपने आप में एक आकर्षण का माहौल पैदा करने लगा है, क्योंकि यहां पर अब भले ही बहुतेरे मारवाड़ी, ब्राह्मण, कायस्थ समाज के लोग आ कर रचबस रहे हैं, लेकिन आदिवासी सभ्यता और संस्कृति की महक यहां आज भी स्वाभाविक रूप से महसूस की जा सकती है.

लैलूंगा थाना अंतर्गत एक छोटे से गांव कमरगा में शदाराम सिदार एक सामान्य काश्तकार हैं. वह 2 बेटे और एक बेटी वाले छोटे से परिवार का बमुश्किल पालनपोषण कर रहे  थे. शदाराम का बड़ा बेटा जय कुमार सिदार प्राइमरी तक पढ़ने के बाद पिता के साथ खेतीबाड़ी में हाथ बंटा रहा था.

गरीबी और परिवार की दयनीय हालत देख कर के एक दिन 21 वर्ष की उम्र में वह अपने एक दोस्त रमेश के साथ छत्तीसगढ़ से सटे झारखंड राज्य के बोकारो शहर में रोजगार  के लिए चला गया.

जल्द ही जय कुमार को स्थानीय राजू टिंबर ट्यूनिंग प्लांट में क्लीनर मशीन चलाने का काम मिल गया और जय का मित्र रमेश भी वहीं काम करने लगा. फिर उन्होंने बोकारो के एक मोहल्ले में कमरा किराए पर ले लिया.

समय अपनी गति से बीत रहा था कि एक दिन जय और रमेश सुबह घर से अपनी ड्यूटी पर जा रहे थे कि जय को साइकिल के साथ खड़ी एक परेशान सी लड़की दिख गई. जय कुमार और रमेश थोड़ा आगे बढ़े तो जय ने रुक कर कहा, ‘‘यार, लगता है इस लड़की को कुछ मदद की जरूरत है.’’

दोनों  मुड़ कर वापस आए. तब युवती की ओर मुखातिब हो कर जय  ने कहा, ‘‘क्या बात है, आप क्यों परेशान खड़ी हो?’’

युवती थोड़ा सकुचाई  फिर बोली, ‘‘देखो न, साइकिल में पता नहीं क्या हो गया है, आगे ही नहीं बढ़ रही.’’

जय ने कहा, ‘‘लगता है साइकिल की चैन फंस गई है, किसी मिस्त्री को दिखानी होगी.’’

और नीचे बैठ कर वह साइकिल को ठीक करने की असफल कोशिश करने लगा. मगर चैन बुरी तरह फंस गई थी. थोड़ी देर तक प्रयास करने के बाद जय ने रमेश की ओर देखते हुए कहा, ‘‘चलो, इस की थोड़ी मदद कर देते हैं.’’

इस पर रमेश ने कहा, ‘‘यार, देर हो जाएगी, काम पर न पहुंचे तो प्रसादजी नाराज हो जाते हैं, तुम को तो पता ही है कि काम पर समय पर पहुंचना बहुत जरूरी है.’’

इस पर सहज रूप से जय सिदार ने कहा, ‘‘बात तो सही है, ऐसा करते हैं, तुम काम पर चले जाओ और उन से बता देना कि आज मैं छुट्टी पर रहूंगा… मैं इन की साइकिल ठीक करा देता हूं.’’

जय को रमेश आश्चर्य से देखता हुआ ड्यूटी पर चला गया. इधर जय ने युवती की मदद के लिए साइकिल अपने कंधे पर उठा ली और धीरेधीरे साइकिल मिस्त्री के पास पहुंचा. थोड़ी ही देर में मिस्त्री ने साइकिल ठीक कर दी.

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युवती जय के व्यवहार और हमदर्दी को देख कर बहुत प्रभावित हुई. फिर दोनों ने बातचीत में एकदूसरे का नाम और परिचय पूछा. युवती ने अपना नाम सरस्वती मरांडी बताया. जब जय वहां से जाने लगा तो सरस्वती ने उसे अचानक रोक कर कहा, ‘‘आप ने मेरे कारण आज अपना बहुत नुकसान कर लिया है बुरा न मानें तो क्या आप मेरे साथ एक कप चाय पी सकते हैं?’’

जय सिदार 19 वर्षीय सरस्वती की बातें सुन कर हंसता हुआ राजी हो गया. अब वह उसे अच्छी लगने लगी थी. मंत्रमुग्ध सा जय उस के साथ एक रेस्टोरेंट में चला गया.

बातोंबातों में सरस्वती ने उसे बताया कि वह अपने गांव ढांगी करतस, जिला धनबाद की रहने वाली है और यहां स्थानीय प्रौढ़ शिक्षा केंद्र में शिक्षिका है. इस बीच जय ने सरस्वती का मोबाइल नंबर ले लिया और अपने बारे में सब कुछ बताता चला गया.

अब अकसर जय सिदार सरस्वती से बातें करता. सरस्वती भी उसे पसंद करती और दोनों के बीच प्रेम की बेलें फूट पड़ीं. जल्द ही एक दिन जय कुमार ने सरस्वती से झिझकते हुए कहा, ‘‘सरस्वती, मैं तुम्हें चाहने लगा हूं. तुम प्लीज मना मत करना, नहीं तो मैं मर ही जाऊंगा.’’

इस पर सरस्वती मुसकराते हुए बोली, ‘‘अच्छा, बताओ तो इस का तुम्हारे पास क्या सबूत है.’’

‘‘सरस्वती, तुम्हारे लिए मैं सब कुछ करने को तैयार हूं. बताओ, मुझे क्या करना है.’’ जय सिदार ने हिचकते हुए कहा.

‘‘मैं तो मजाक कर रही थी, मैं जानती हूं कि तुम मुझे बहुत पसंद करते हो.’’ सरस्वती बोली.

यह सुन कर जय की हिम्मत बढ़ गई. वह बोला, ‘‘…और मैं.’’

सरस्वती ने धीरे से  कहा, ‘‘लगता है तुम तो प्यार के खेल में अनाड़ी हो. अरे बुद्धू, अगर कोई लड़की मुसकराए, बात करे, इस का मतलब तुम नहीं समझते…’’

यह सुन कर जय खुशी से उछल पड़ा. इस के बाद उन का प्यार परवान चढ़ता गया. फिर एक दिन सरस्वती और जय ने एक मंदिर में विवाह कर लिया.

सन 2017 से ले कर मार्च, 2020 अर्थात कोरोना काल से पहले तक दोनों ही प्रेमपूर्वक झारखंड में एक छत के नीचे रह रहे थे. इस बीच दोनों ने मंदिर में विवाह कर लिया और पतिपत्नी के रूप में आनंदपूर्वक रहने लगे.

मार्च 2020 में जब कोविड 19 का संक्रमण फैलने लगा तो जय का काम छूट गया. घर में खाली बैठेबैठे जय को अपने गांव और मातापिता की याद आने लगी. एक दिन जय ने सरस्वती से कहा, ‘‘चलो, हम गांव चलते हैं, वहां इस समय रहना ठीक रहेगा, पता नहीं ये हालात कब तक सुधरेंगे. और जहां तक रोजीरोटी का सवाल है तो हम गांव में ही कमा लेंगे. फिर आज सवाल तो जान बचाने का है.’’

सरस्वती को बात पसंद आ गई. उस समय गांव जाने के लिए कोई साधन नहीं था. तब जय कुमार पत्नी सरस्वती को अपनी साइकिल पर बैठा कर जिला रायगढ़ के गांव कामरगा में स्थित अपने घर की ओर चल दिया. लगभग 300 किलोमीटर की दूरी तय कर के जय कुमार अपने घर पहुंच गया.

घर में पिता शदाराम और परिजनों ने जब जय को देखा, सभी की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. साथ में सरस्वती को देखा तो पिता शदाराम ने पूछा, ‘‘यह कौन है?’’

जय ने सकुचाते हुए सरस्वती का परिचय पत्नी के रूप में परिजनों को करा दिया. उस समय किसी ने भी कुछ नहीं कहा.

लौकडाउन का यह समय सभी को चिंतित किए हुए था. मगर स्थितियां सुधरने लगीं तो जय कुमार से सवालजवाब होने लगा. एक दिन पिता शदाराम ने कहा, ‘‘बेटा जय, गांव के लोग पूछ रहे हैं कि तुम्हारी बहू कहां की है किस जाति की है? जब मैं ने बताया तो समाज के लोगों ने नाराजगी प्रकट की है. इस से शादी कर के तुम ने बहुत बड़ी भूल की है बेटा.’’

‘‘पिताजी, अब मैं क्या करूं, जो होना था, वह तो हो चुका है.’’ यह सुन कर जय बोला.

‘‘बेटा, हम को भी समाज में रहना है, यहीं जीना है. यह हाल रहेगा तो हम, हमारा परिवार भारी मुसीबत में पड़ जाएगा. कोई हम से रोटीबेटी का रिश्ता तक नहीं रखेगा. ऐसे में हो सके तो तुम लोग कहीं और जा कर के जीवन बसर करो, ताकि समाज के लोग अंगुली न उठा सकें.’’

जय ने कहा, ‘‘पिताजी, अब क्या हो सकता है, मैं क्या करूं मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा.’’

एक दिन एक निकट के परिजन ने जय से कहा, ‘‘अब देख लो, सोचसमझ के कुछ निर्णय लो. वैसे, पास के गांव के हमारे परिचित रामसाय ने अपनी बेटी के साथ तुम्हारे विवाह का प्रस्ताव भेजा था. वह पैसे वाले लोग भी हैं और हमारे समाज के भी हैं. ऐसा करो, सरस्वती को तुम छोड़ दो. फिर हम बात आगे बढ़ाते हैं.’’

यह सुन कर जय का मन भी बदल गया. क्योंकि सुमन को वह बचपन में पसंद करता था.

वह सोचने लगा कि काश! वह सरस्वती के चक्कर में नहीं पड़ता तो आज सुमन उस की होती.

इसी दरमियान जय गांव में ही तेजराम के यहां ट्रैक्टर चलाने लगा था. नौसिखिए जय सिदार से एक दिन अचानक दुर्घटना हो गई तो तेजराम ने उस की पिटाई कर दी और उस से नुकसान की भरपाई मांगने लगा.

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परिस्थितियों को देख कर जय पत्नी सरस्वती को ले कर पास के दूसरे गांव सरकेदा में अपने जीजा रवि के यहां गुजरबसर करने आ गया. जय का रवि के साथ अच्छा याराना था. बातोंबातों में एक दिन रवि ने कहा, ‘‘भैया, यह तुम्हारे गले कैसे पड़ गई, इस से कितनी सुंदर लड़कियां हमारे समाज में हैं.’’

यह सुन कर के जय मानो फट पड़ा. बोला, ‘‘भाटो (जीजा), बस यह भूल मुझ से हो गई है, अब मैं क्या करूं, मुझे तो लगता है कि सरस्वती से शादी कर के मैं फंस गया हूं.’’

रवि ने जय कुमार को बताया कि परिवार में चर्चा हुई थी कि सुमन के पिता तुम्हारे लिए 2-3 बार आ चुके हैं. अब क्या हो.’’

‘‘क्या करूं, क्या इसे बोकारो छोड़ आऊं?’’ विवशता जताता जय कुमार बोला.

‘‘…और अगर कहीं फिर वापस आ गई तो..?’’  रवि कुमार ने चिंता जताई.

जय कुमार असहाय भाव से जीजा रवि की ओर देखने लगा.

रवि मुसकराते हुए बोला, ‘‘एक रास्ता है…’’

और दोनों ने बातचीत कर के एक ऐसी योजना बनाई, जिस ने आगे चल कर दोनों को जेल की सलाखों के पीछे पहुंचा दिया.

वह 7 जनवरी, 2021 का दिन था. एक दिन पहले ही जय और रवि ने सरस्वती से बात कर के पिकनिक के लिए झरन डैम चलने की योजना बना ली थी. एक बाइक पर तीनों सुबहसुबह पिकनिक के लिए निकल गए. लैलूंगा शहर घूमने, खरीदारी के बाद 7 किलोमीटर आगे खम्हार जंगल के पास झरन डैम में पहुंच कर तीनों ने खूब मस्ती की. मोबाइल से फोटो खींचे और खायापीया.

इस बीच सरस्वती ने एक दफा सहजता से कहा, ‘‘कितना अच्छा होता, आज सारे परिवार वाले भी हमारे साथ होते तो पिकनिक यादगार हो जाती.’’

इस पर रवि ने बात बनाते हुए कहा, ‘‘भाभी, आएंगे आगे सब को ले कर के आएंगे. आज तो हम लोगों ने सोचा कि चलो देखें, यहां का कैसा माहौल है अगली बार  सब को ले कर के पिकनिक मनाएंगे.’’

आज जय सिदार कुछ उखड़ाउखड़ा भी दिखाई दे रहा था. इस पर सरस्वती ने कहा था, ‘‘पिकनिक मनाने आए हो या फिर किसी और काम से…’’

यह सुन कर अचकचाए जय कुमार ने मुसकरा कर कहा, ‘‘ऐसीवैसी कोई बात होती तो मैं भला क्यों आता. तुम गलत समझ रही हो. क्या है सारे कामधंधे रुके पड़े हैं. पैसा कहीं से तो आ नहीं पा रहा है, बस इसी बात की टेंशन है सरस्वती.’’

सरस्वती को लगा कि जय जायज बात कर रहा है. थोड़ी देर बाद जब वापस चलने का समय हुआ तो एक जगह रवि कुमार रुक गया और छोटी अंगुली दिखा कर बोला, ‘‘मैं अभी फारिग हो कर आता हूं.’’

रवि झाडि़यों के अंदर चला गया. सही मौका देख कर के जय ने अचानक सरस्वती पर हमला कर दिया और उस के बाल पकड़ कर उसे मारने लगा और एक रस्सी निकाल कर के गला घोंटने लगा. वह वहीं गिर पड़ी और फटी आंखों से उसे देखती रह गई.

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जय आखिरी तक सरस्वती पर प्राणघातक हमला भी करता रहा. इतनी देर में रवि भी दौड़ कर आ गया और जय का साथ देने लगा.  देखते ही देखते सरस्वती के प्राणपखेरू उड़ गए. सरस्वती की मौत के बाद रवि ने उस के गले में एक नीली रस्सी बांधी और झाडि़यों में घसीट कर सरस्वती की लाश छिपा दी.

12 जनवरी, मंगलवार को शाम लगभग 5 बजे थाना लैलूंगा मैं अपने कक्ष में थानाप्रभारी एल.पी. पटेल रोजमर्रा के कामों को निपटा रहे थे कि दरवाजे पर आहट सुनाई दी. उन्होंने देखा 3-4 ग्रामीणों के साथ खम्हार गांव के सरपंच शिवप्रसाद खड़े हैं. थानाप्रभारी ने उन सभी को अंदर बुला लिया. तभी सरपंच ने उन से कहा, ‘‘सर, जंगल में एक महिला की लाश मिली है. कुछ लोगों ने देखा तो मैं सूचना देने के लिए आया हूं.

मामले की गंभीरता को देखते हुए एसआई व 2 कांस्टेबलों को थानाप्रभारी पटेल ने घटनास्थल की ओर रवाना किया और अपने काम में लग गए. लगभग एक घंटे बाद उन्हें सूचना मिली कि लाश किसी महिला की है. उन्होंने एसआई को स्थिति को देखते हुए सारे सबूतों को इकट्ठा करने और फोटोग्राफ लेने के निर्देश दिए और कहा कि वह स्वयं घटनास्थल पर आ रहे हैं.

थाने से निकलने से पहले एल.पी. पटेल ने एसपी (रायगढ़) संतोष सिंह और एएसपी अभिषेक वर्मा को महिला की लाश मिलने की जानकारी दी और घटनास्थल की ओर रवाना हो गए.

जब वह वहां पहुंचे तो थोड़ी देर में ही जिला मुख्यालय से डौग स्क्वायड टीम भी आ गई  और महिला की लाश को देख कर के उन्हें समझने में देर नहीं लगी कि यह सीधेसीधे एक ब्लाइंड मर्डर का मामला है.

पुलिस विवेचना में जांच अधिकारी एल. पी. पटेल के सामने शुरुआती परेशानी मृतका की पहचान की थी, जिस के लिए मशक्कत शुरू कर दी गई. इस कड़ी में रायगढ़ जिले के सभी थानों के गुम इंसानों के हुलिया से मृतका का मिलान किया गया. जब सफलता नहीं मिली तो छत्तीसगढ़ राज्य पुलिस पोर्टल पर राज्य के लगभग सभी जिलों के गुम इंसानों से हुलिया का मिलान कराया गया. सभी सोशल मीडिया ग्रुप में मृतका के फोटो वायरल किया जाने लगा. मगर सुराग नहीं मिल रहा था.

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आखिरकार एक दिन पुलिस को अच्छे नतीजे मिले. सोशल मीडिया में वायरल की गई तसवीर के जरिए मृतका की शिनाख्त सरस्वती मरांडी, पुत्री सुजीत मरांडी, उम्र 23 वर्ष निवासी ढांगी करतस, जिला धनबाद (झारखंड) के रूप में हुई.

मृतका की शिनाख्त के बाद मामले में नया पहलू सामने आया, जिस से अनसुलझे हत्याकांड की गुत्थी सुलझती चली गई. लैलूंगा पुलिस को हत्याकांड में कमरगा गांव, थाना लैलूंगा के जयकुमार सिदार के मृतका का कथित पति होने की जानकारी भी मिली.

लैलूंगा पुलिस द्वारा गोपनीय तरीके से जयकुमार सिदार का उस के गांव में पता लगाया गया तो जानकारी मिली कि वह तथा उस का जीजा रवि कुमार सिदार दोनों ही अपनेअपने गांव से गायब हैं.

हत्या के इस गंभीर मामले में एसपी संतोष सिंह द्वारा अज्ञात महिला के वारिसों और संदिग्धों की तलाश के लिए थाना लैलूंगा, धरमजयगढ़, चौकी बकारूमा की 3 अलगअलग टीमें बनाई गईं. एक टीम में एसडीपीओ सुशील नायक, एसआई प्रवीण मिंज, हैडकांस्टेबल सोमेश गोस्वामी, कांस्टेबल प्रदीप जौन, राजेंद्र राठिया, दूसरी टीम में थानाप्रभारी लैलूंगा इंसपेक्टर लक्ष्मण प्रसाद पटेल, कांस्टेबल मायाराम राठिया, धनुर्जय बेहरा, जुगित राठिया, अमरदीप एक्का और तीसरी टीम में एसआई बी.एस. पैकरा, एएसआई माधवराम साहू, हैडकांस्टेबल संजय यादव, कांस्टेबल इलियास केरकेट्टा को शामिल किया गया.

पहली टीम को किलकिला, फरसाबहार, बागबाहर और तपकरा तथा दूसरी टीम को पत्थलगांव, घरघोड़ा, लारीपानी, चिमटीपानी एवं टीम नंबर 3 को बागबाहर, कांसाबेल, कापू, दरिमा, अंबिकापुर की ओर जांच के लिए लगाया गया था.

तीनों टीमों के अथक प्रयास पर आरोपियों को जिला जशपुर के गांव रजौरी से 20 जनवरी को हिरासत में ले कर थाने लाया गया. दोनों आरोपी पुलिस से लुकछिप कर रजौरी के जंगल में लकड़ी काटने का काम कर रहे थे.

दोनों ने कड़ी पूछताछ में अंतत: सरस्वती मरांडी की हत्या करने का अपना अपराध स्वीकार लिया.

रोजगार के सिलसिले में वह बोकारो, झारखंड गया था. वहां राजू टिंबर ट्यूनिंग प्लांट में क्लीनर मशीन चलाता था और किराए के मकान में रहा करता था. वहीं सरस्वती मरांडी से उस की जानपहचान हुई.

जय कुमार परेशान था और उस ने अपने जीजा रवि के साथ सरस्वती की हत्या का प्लान बनाया और उसी प्लान के तहत 7 जनवरी, 2021 को पिकनिक का बहाना कर सरस्वती को मोटरसाइकिल पर बिठा कर लैलूंगा ले कर आए.

लैलूंगा बसस्टैंड पर खानेपीने के सामान व सरस्वती ने कपड़े खरीदे. तीनों फिर खम्हार के झरन डैम गए, जहां सरस्वती ने वही पीले रंग की सलवारकुरती पहनी, जो उस ने गांव कमरगा की सुनीता सिदार (टेलर) से बनवाई थी. वहां उन्होंने मोबाइल पर खूब सेल्फी ली.

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शाम करीब 5 बजे भेलवाटोली एवं खम्हार के बीच पगडंडी के रास्ते में रवि सिदार पेशाब करने का बहाना कर रुका. उसी समय जयकुमार सिदार ने सरस्वती के बाल पकड़ कर उसे जमीन पर पटक दिया और गला दबा कर उस की हत्या कर दी.

इस के बाद रवि और जयकुमार सिदार ने सरस्वती के गले में चुनरी से गांठ बांध कर खींचा और लाश सरई झाडि़यों के बीच छिपा दी. दोनों आरोपी भागने की हड़बड़ी में अपनी चप्पलें, गमछा भी घटनास्थल के पास छोड़ आए.

लैलूंगा पुलिस ने आरोपी जय कुमार सिदार (25 साल) और रवि सिदार (30 वर्ष) को गिरफ्तार कर घरघोड़ा की कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया.

Satyakatha- कहानी खूनी प्यार की: भाग 3

सौजन्य- सत्यकथा

अविनाश सिंह ने कहा, ‘‘हम ने तुम्हारे मोबाइल फोन की जांच करवाई है और यह जानकारी सामने आई है कि तुम कभी भी अपना मोबाइल रात को बंद नहीं करते थे. फिर उस रात आखिर मोबाइल क्यों बंद किया.

‘‘अगर मोबाइल बंद भी कर दिया तो फिर सुबह उस में सारे मैसेज को तुम ने डिलीट क्यों किया था? हमें अब विश्वास है कि हत्या तुम ने ही की है. सबूत हमें मिल चुका है, तुम सचसच बताओ. इसी में तुम्हारी भलाई है.’’

इस पर संजय चौहान गिड़गिड़ाते हुए बोला, ‘‘साहब, कृष्णा की हत्या की बात सुन कर मैं घबरा गया था, इसलिए अपने मोबाइल का सारा मैसेज डिलीट कर दिया था.’’

संजय चौहान को घूरते हुए उन्होंने कहा, ‘‘जब तुम घर में थे तो तुम्हें कैसे पता चल गया कि कृष्णा की हत्या हुई है, बिना देखे जाने?’’

संजय चौहान ने घबरा कर आंखें चुराते हुए कहा, ‘‘मैं ने सुना तो मुझे लगा कि जरूर परिवार वालों ने उसे मार कर फेंक दिया है.’’

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‘‘देखो, तुम पुलिस को धोखा नहीं दे सकते, तुम ने बारबार अपना बयान बदला है और तीनों बातें सही नहीं हो सकतीं. अब साफसाफ बता दो, हम ने तुम्हारे मोबाइल की काल डिटेल्स भी चैक करवाई है.’’ थानाप्रभारी ने कहा.

अब संजय चौहान टूट गया और बोला, ‘‘सर…गलती मुझ से हुई है. मैं बताता हूं उस रात क्या हुआ था.’’

और उस ने जो कहानी बताई, उस के अनुसार कृष्णा कुमारी और वह दोनों आर्यसमाज मंदिर, बिलासपुर में जल्द ही शादी करने वाले थे कि नेवेंद्र की उन के बीच एंट्री हुई. अकसर कृष्णा नेवेंद्र से मोबाइल पर बात करती थी, एक दिन जब वह रात को कृष्णा से मिलने गया तो मोबाइल मैं उस ने नेवेंद्र का चैट पढ़ लिया.

चैट पढ़ कर उस का दिमाग घूमने लगा. उस ने उसी समय स्वयं कृष्णा के रूम में रात को जब वाट्सऐप पर नेवेंद्र से बातें की तो उस के सामने खुलासा हो गया कि कृष्णा का उस से कुछ ज्यादा ही गहरा संबंध हो चुका है. दोनों आपस में अश्लील बातें भी किया करते थे.

इस पर एक दिन कृष्णा से झगड़ा कर के संजय चौहान ने कहा, ‘‘सारी सच्चाई मैं जान गया हूं. तुम अगर अब आगे उस के साथ बात करोगी तो ठीक नहीं होगा.’’

इस पर कृष्णा कुमारी ने तुनक कर कहा, ‘‘मैं किसी की जायजाद नहीं हूं. ऐसा है तो अभी से संबंध खत्म समझो.’’

संजय को भी गुस्सा आ गया. उस ने गुस्से में कहा, ‘‘कृष्णा, अगर तुम मेरी नहीं होगी तो मैं किसी की तुम्हें नहीं होने दूंगा, मैं तुम्हें मार दूंगा.’’

संजय ने बताया कि एक टीवी सीरियल में उस ने ऐसी ही कहानी देखी थी, वही सीरियल देख कर उस ने प्रेमिका कृष्णा की हत्या कर उस के पिता को फंसाने की योजना बनाई.

योजनानुसार, 29 मई 2021 की रात को जब संजय चौहान कृष्णा से  मिलने गया तो अपनी बाइक को दूर झाडि़यों के पास खड़ी कर गया था और पैदल बिना चप्पल के धीरेधीरे उस के घर की ओर गया. रात को लगभग 12 बजे उस ने एक पत्थर इशारे के रूप में कृष्णा की छत पर फेंका. बाद में थोड़ी देर में कृष्णा आई और दोनों एक कमरे में बैठ कर के आपस में बातचीत कर रहे थे. इसी तरह से वह पहले भी कृष्णा से मिलता था.

संजय ने उसे फुसला कर कहा, ‘‘कृष्णा, तुम एक मैसेज लिखो कि मुझे मेरे पिता मार डालेंगे, मुझे बचा लो. और यह मैसेज मुझे और नेवेंद्र को भेज दो.’’

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कृष्णा ने विश्वास में आ कर ऐसा ही किया. बाद में कृष्णा ने वह मैसेज अपने फोन से डिलीट कर दिया.

आगे बातों ही बातों में जब उसे यह समझ में आया कि कृष्णा अब उस के हाथ से पूरी तरह निकल चुकी है तो उस ने वहीं पास में रखी हुई एक साड़ी उस के गले में डाल कर उस का गला घोंट दिया फिर लाश उठा कर के बाड़ी में फेंक कर अपने घर चला गया.

पुलिस ने संजय चौहान के इकबालिया बयान के बाद उसे कृष्णा कुमारी वैष्णव की हत्या के आरोप में 31 मई, 2021 को भादंवि की धारा 302, 120बी के तहत गिरफ्तार कर लिया. फिर उसे प्रथम न्यायिक दंडाधिकारी, कटघोरा की अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

Satyakatha: सपना का ‘अधूरा सपना’

 सौजन्य- सत्यकथा

कानपुर जिले के घाटमपुर थाना अंतर्गत एक गांव है बिहारिनपुर. इसी गांव में शिवआसरे परिवार सहित रहता था. उस के परिवार में पत्नी मीना के अलावा 2 बेटियां सपना, रत्ना तथा 2 बेटे कमल व विमल थे. शिवआसरे ट्रक ड्राइवर था. उस के 2 अन्य भाई रामआसरे व दीपक थे, जो अलग रहते थे और खेतीबाड़ी से घर खर्च चलाते थे.

शिवआसरे की बेटी सपना भाईबहनों में सब से बड़ी थी. वह जैसेजैसे सयानी होने लगी, उस के रूपलावण्य में निखार आता गया. 16 साल की होतेहोते सपना की सुंदरता में चारचांद लग गए. मतवाली चाल से जब वह चलती, तो लोगों की आंखें बरबस उस की ओर निहारने को मजबूर हो जाती थीं.

सपना जितनी सुंदर थी, उतनी ही पढ़नेलिखने में भी तेज थी. उस ने पतारा स्थित सुखदेव इंटर कालेज में 9वीं कक्षा में एडमिशन ले लिया था. जबकि उस की मां मीना उसे मिडिल कक्षा से आगे नहीं पढ़ाना चाहती थी, लेकिन सपना की जिद के आगे उसे झुकना पड़ा.

सपना के घर से कुछ दूरी पर शालू रहता था. शालू के पिता बैजनाथ किसान थे. उन के 3 बच्चों में शालू सब से बड़ा था. 17 वर्षीय शालू हाईस्कूल की परीक्षा पास कर चुका था और इंटरमीडिएट की पढ़ाई घाटमपुर के राजकीय इंटर कालेज से कर रहा था.

शालू के पिता बैजनाथ और सपना के पिता शिवआसरे एक ही बिरादरी के थे, सो उन में गहरी दोस्ती थी. दोनों एकदूसरे का दुखदर्द समझते थे. किसी एक को तकलीफ हो तो दूसरे को दर्द खुद होने लगता.

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बैजनाथ और शिवआसरे बीते एक दशक से गांव में बटाई पर खेत ले कर खेती करते थे. हालांकि शिवआसरे ट्रक चालक था और खेतीबाड़ी में कम समय देता था. इस के बावजूद दोनों की पार्टनरशिप चलती रही. दोनों परिवारों में घरेलू संबंध भी थे. लिहाजा उन के बच्चों का भी एकदूसरे के घर आनाजाना लगा रहता था.

शालू सपना को चाहता था. सपना भी उस की आंखों की भाषा समझती थी. सपना के लिए शालू की आंखों में प्यार का सागर हिलोरें मारता था. सपना भी उस की दीवानी होने लगी. धीरेधीरे उस के मन में भी शालू के प्रति आकर्षण पैदा हो गया.सपना पड़ोस में रहने वाले शालू को न सिर्फ प्यार करती थी, बल्कि वह शादी भी करना चाहती थी.

सपना शालू के मन को भाई तो वह उस का दीवाना बन गया. सपना के स्कूल जाने के समय वह बाहर खड़ा उस का इंतजार करता रहता. सपना उसे दिखाई पड़ती तो वह उसे चाहत भरी नजरों से तब तक देखता रहता, जब तक वह उस की आंखों से ओझल नहीं हो जाती. अब वह सपना के लिए तड़पने लगा था. हर पल उस के मन में सपना ही समाई रहती थी. न उस का मन काम में लगता था, न ही पढ़ाई में.

शालू का शिवआसरे के घर जबतब आनाजाना लगा ही रहता था. घर आनाजाना काम से ही होता था. लेकिन जब से सपना शालू के मन में बसी, शालू अकसर उस के घर ज्यादा जाने लगा. इस के लिए उस के पास बहाने भी अनेक थे.

शिवआसरे के घर पहुंच कर वह बातें भले ही दूसरे से करता, लेकिन उस क ी नजरें सपना पर ही जमी रहती थीं. शालू की अपने प्रति चाहत देख कर उस का मन भी विचलित हो उठा. अब वह भी शालू के आने का इंतजार करने लगी.

दोनों ही अब एकदूसरे का सामीप्य पाने को बेचैन रहने लगे थे. लेकिन यह सब अभी नजरों ही नजरों में था.

शालू की चाहत भरी नजरें सपना के सुंदर मुखड़े पर पड़तीं तो सपना मुसकराए बिना न रह पाती. वह भी उसे तिरछी निगाहों से घूरते हुए उस के आगेपीछे चक्कर लगाती रहती. अब शालू अपने दिल की बात सपना से कहने के लिए बेचैन रहने लगा.

शालू अब ऐसे अवसर की तलाश में रहने लगा, जब वह अपने दिल की बात सपना से कह सके. कोशिश करने पर चाह को राह मिल ही जाती है. एक दिन शालू को मौका मिल ही गया. उस दिन सपना के भाईबहन मां मीणा के साथ ननिहाल चले गए थे और शिवआसरे ट्रक ले कर बाहर गया था. सपना को घर में अकेला पा कर शालू बोला, ‘‘सपना, यदि तुम बुरा न मानो तो मैं तुम से कुछ कहना चाहता हूं.’’

सपना जानती थी कि शालू उस से क्या कहेगा. इसलिए उस का दिल जोरजोर धड़कने लगा. घबराई सी वह शालू की ओर प्रश्नवाचक निगाहों से देखने लगी. शालू ने हकलाते हुए कहा, ‘‘सपना वो क्या है कि मैं तुम्हारे बारे में कुछ…’’

‘‘मेरे बारे में…’’ चौंकने का नाटक करते हुए सपना बोली, ‘‘जो भी कहना है, जल्दी कहिए.’’ शायद वह भी शालू से प्यार के शब्द सुनने के लिए बेकरार थी.

‘‘कहीं तुम मेरी बात सुन कर नाराज न हो जाओ…’’ शालू ने थोड़ा झेंपते हुए कहा.

‘‘अरे नहीं…’’ मुसकराते हुए सपना बोली, ‘‘नाराज क्यों हो जाऊंगी. तुम मुझे गालियां तो दोगे नहीं. जो भी कहना है, तुम दिल खोल कर कहो, मैं तुम्हारी बातों का बुरा नहीं मानूंगी.’’

सपना जानबूझ कर अंजान बनी थी. जब शालू को सपना की ओर से कुछ भी कहने की छूट मिल गई तो उस ने कहा, ‘‘सपना, मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं. मुझे तुम्हारे अलावा कुछ अच्छा नहीं लगता. हर पल तुम्हारी ही सूरत मेरी नजरों के सामने घूमती रहती है.’’

शालू की बातें सुन कर सपना मन ही मन खुश हुई, फिर बोली, ‘‘शालू, प्यार तो मैं भी तुम से करती हूं, लेकिन मुझे डर लग रहा है.’’

‘‘कैसा डर सपना?’’ शालू ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘यही कि हमारेतुम्हारे प्यार को घर वाले स्वीकार करेगें क्या?’’

‘‘हम एक ही जाति के हैं. दोनों परिवारों के बीच संबंध भी अच्छे हैं. हम दोनों अपनेअपने घर वालों को मनाएंगे तो वे जरूर मान जाएंगे.’’

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उस दिन दोनों के बीच प्यार का इजहार हुआ, तो मानो उन की दुनिया ही बदल गई. फिर वे अकसर ही मिलने लगे. सपना और शालू के दिलोदिमाग पर प्यार का ऐसा जादू चढ़ा कि उन्हें एकदूजे के बिना सब कुछ सूना लगने लगा.

जब भी मौका मिलता, दोनों एकांत में एक साथ बैठते और अपने ख्वाबों की दुनिया में खो जाते. प्यार में वे इस कदर खो गए कि उन्होंने जीवन भर एकदूसरे का साथ निभाने की कसमें भी खा लीं. एक बार मन से मन मिला तो फिर दोनों के तन मिलने में भी देर नहीं लगी.

सपना और शालू ने लाख कोशिश की कि उन के संबंधों की जानकारी किसी को न हो. लेकिन प्यार की महक को भला कोई रोक सका है. एक दिन पतारा बाजार से लौटते समय गांव में ही रहने वाले उन्हीं की जाति के युवक मोहन ने उन दोनों को रास्ते में हंसीठिठोली करते देख लिया. घर आते ही उस ने सारी बात शिवआसरे को बता दी. कुछ देर बाद जब सपना घर लौटी तो शिवआसरे ने सपना को डांटाफटकारा और पिटाई करते हुए हिदायत दी कि भविष्य में वह शालू से न मिले.

सपना की मां मीना ने भी इज्जत का हवाला दे कर बेटी को खूब समझाया. सपना पर लगाम कसने के लिए मां ने उस का घर से बाहर निकलना बंद कर दिया. साथ ही उस पर कड़ी निगरानी रखने लगी. मीना ने शालू के घर जा कर उस के मांबाप से शिकायत की कि वह अपने बेटे को समझाएं कि वह उस की इज्जत से खिलवाड़ न करे.

लेकिन कहावत है कि लाख पहरे बिठाने के बाद भी प्यार कभी कैद नहीं होता. सपना के साथ भी ऐसा ही हुआ. मां की निगरानी के बावजूद सपना और शालू का मिलन बंद नहीं हुआ. किसी न किसी बहाने वह शालू से मिलने का मौका ढूंढ ही लेती थी.

कभी दोनों नहीं मिल पाते तो वे मोबाइल फोन पर बतिया लेते और दिल की लगी बुझा लेते. सपना को मोबाइल फोन शालू ने ही खरीद कर दिया था. इस तरह बंदिशों के बावजूद उन का प्यार बढ़ता ही जा रहा था. दबी जुबान से पूरे गांव में उन के प्यार के चर्चे होने लगे थे.

एक शाम सहेली के घर जाने का बहाना बना कर सपना घर से निकली और शालू से मिलने गांव के बाहर बगीचे में पहुंच गई. इस की जानकारी मीना को हुई तो सपना के घर लौटने पर मां का गुस्सा फट पड़ा, ‘‘बदजात, कुलच्छिनी, मेरे मना करने के बावजूद तू शालू से मिलने क्यों गई थी. क्या मेरी इज्जत का कतई खयाल नहीं?’’

‘‘मां, मैं शालू से प्यार करती हूं. वह भी मुझे चाहता है.’’

‘‘आने दे तेरे बाप को. प्यार का भूत न उतरवाया तो मेरा नाम मीना नहीं.’’ मीना गुस्से से बोली.

‘‘आखिर शालू में बुराई क्या है मां? अपनी बिरादरी का है. पढ़ालिखा स्मार्ट भी है.’’ सपना ने मां को समझाया.

‘‘बुराई यह है कि शालू तुम्हारे चाचा का लड़का है. जातिबिरादरी के नाते तुम दोनों का रिश्ता चचेरे भाईबहन का है. अत: उस से नाता जोड़ना संभव नहीं है.’’ मां ने समझाया.

मांबेटी में नोकझोंक हो ही रही थी कि शिवआसरे घर आ गया. उस ने पत्नी का तमतमाया चेहरा देखा तो पूछा, ‘‘मीना, क्या बात है, तुम गुस्से से लाल क्यों हो?’’

‘‘तुम्हारी लाडली बेटी सपना के कारण. लगता है कि यह बिरादरी में हमारी नाक कटवा कर ही रहेगी. मना करने के बावजूद भी यह कुछ देर पहले शालू से मिल कर आई है और उस की तरफदारी कर जुबान लड़ा रही है.’’ मीना ने कहा.

पत्नी की बात सुन कर शिवआसरे का गुस्सा बेकाबू हो गया. उस ने सपना की जम कर पिटाई की और कमरा बंद कर दिया. गुस्से में उस ने खाना भी नहीं खाया और चारपाई पर जा कर लेट गया. रात भर वह यही सोचता रहा कि इज्जत को कैसे बचाया जाए.

सुबह होते ही शिवआसरे शालू के पिता बैजनाथ के घर जा पहुंचा, ‘‘तुम शालू को समझाओ कि वह सपना से दूर रहे. अन्यथा अंजाम अच्छा नहीं होगा. अपनी इज्जत के लिए वह किसी हद तक जा सकता है.’’

इस घटना के बाद दोनों परिवारों के बीच दरार पड़ गई. शिवआसरे और बैजनाथ के बीच साझेदारी भी टूट गई. इधर चौकसी बढ़ने पर शालू और सपना का मिलनाजुलना लगभग बंद हो गया था. जिस से दोनों परेशान रहने लगे थे. अब दोनों की बात चोरीछिपे मोबाइल फोन पर ही हो पाती थी.

14 मई, 2021 को शिवआसरे के साले मनोज की शादी थी. शिवआसरे ने घर की देखभाल की जिम्मेदारी भाई दीपक को सौंपी और सुबह ही पत्नी मीना व 2 बच्चों के साथ बांदा के बरुआ गांव चला गया. घर में रह गई सपना और सब से छोटा बेटा विमल.

दिन भर सपना घर के काम में व्यस्त रही फिर शाम होते ही उसे प्रेमी शालू की याद सताने लगी. लेकिन चाचा दीपक की निगरानी से वह सहमी हुई थी.

रात 12 बजे जब पूरा गांव सो गया, तो सपना ने सोचा कि उस का चाचा भी सो गया होगा. अत: उस ने शालू से मोबाइल फोन पर बात की और मिलने के लिए उसे घर बुलाया.

शालू चोरीछिपे सपना के घर आ गया. लेकिन उसे घर में घुसते हुए दीपक ने देख लिया. वह समझ गया कि वह सपना से मिलने आया है. उस ने तब दरवाजा बाहर से बंद कर ताला लगा दिया और बड़े भाई शिवआसरे को फोन कर के सूचना दे दी.

शिवआसरे को जब यह सूचना मिली तो वह साले की शादी बीच में ही छोड़ कर अकेले ही बरुआ गांव से चल दिया. 15 मई की सुबह 7 बजे वह अपने घर पहुंच गया. तब तक शालू के मातापिता सीमा और बैजनाथ को भी पता चल चुका था कि उन के बेटे शालू को बंधक बना लिया गया है. वे लोग शिवआसरे के घर पहले से मौजूद थे. शिवआसरे घर के अंदर जाने लगा तो बैजनाथ ने पीछे से आवाज लगाई.

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इस पर शिवआसरे ने कहा कि वह बस बात कर मामला हल कर देगा और घर के अंदर चला गया. पीछे से बैजनाथ और सीमा भी घर के अंदर दाखिल हुए. लेकिन वे अपने बेटे शालू तक पहुंच पाते, उस के पहले ही शिवआसरे शालू और सपना को ले कर एक कमरे में चला गया और उस में लगा लोहे का गेट बंद कर लिया.

शालू के पिता बैजनाथ व मां सीमा खिड़की पर खड़े हो गए, जहां से वे अंदर देख सकते थे. बैजनाथ ने एक बार फिर शिवआसरे से मामला सुलझाने की बात कही. इस पर उस का जवाब यही था कि बस 10 मिनट बात कर के मामला सुलझा देगा.

इधर पिता का रौद्र रूप देख कर सपना कांप उठी. शिवआसरे ने दोनों से सवालजवाब किए तो सपना पिता से उलझ गई. इस पर उसे गुस्सा आ गया. शिवआसरे ने डंडे से सपना को पीटा. उस ने शालू की भी डंडे से पिटाई की.

लेकिन पिटने के बाद भी सपना का प्यार कम नहीं हुआ. वह बोली, ‘‘पिताजी, मारपीट कर मेरी जान भले ही ले लो, पर मेरा प्यार कम न होगा. आखिरी सांस तक मेरी जुबान पर शालू का नाम ही होगा.’’

बेटी की ढिठाई पर शिवआसरे आपा खो बैठा. उस ने कमरे में रखी कुल्हाड़ी उठाई और सपना के सिर व गरदन पर कई वार किए. जिस से उस की गरदन कट गई और मौत हो गई. इस के बाद उस ने कुल्हाड़ी से वार कर शालू को भी वहीं मौत के घाट उतार दिया.

यह खौफनाक मंजर देख कर शालू की मां सीमा की चीख निकल गई. सीमा और बैजनाथ जोरजोर से चिल्लाने लगे. सीमा ने मदद के लिए कई घरों के दरवाजे खटखटाए लेकिन कोई मदद को नहीं आया.

प्रधान पति राजेश कुमार को गांव में डबल मर्डर की जानकारी हुई तो उन्होंने थाना घाटमपुर पुलिस तथा बड़े पुलिस अधिकारियों को फोन द्वारा सूचना दी. सूचना पाते ही थानाप्रभारी धनेश प्रसाद, एसपी (आउटर) अष्टभुजा प्रताप सिंह, एएसपी आदित्य कुमार शुक्ला तथा डीएसपी पवन गौतम पहुंच गए.

शिवआसरे 2 लाशों के बीच कमरे में बैठा था. थानाप्रभारी धनेश प्रसाद ने उसे हिरासत में ले लिया. आलाकत्ल कुल्हाड़ी भी कमरे में पड़ी थी. पुलिस ने उसे भी सुरक्षित कर लिया. जबकि शिवआसरे के अन्य भाई दीपक व रामआसरे पुलिस के आने से पहले ही फरार हो गए थे.

पुलिस अधिकारियों ने शिवआसरे से पूछताछ की तो उस ने सहज ही जुर्म कबूल कर लिया और कहा कि उसे दोनों को मारने का कोई गम नहीं है.

पुलिस अधिकारियों ने गांव वालों तथा मृतक शालू के पिता बैजनाथ से पूछताछ की. बैजनाथ ने बताया कि वह और उस की पत्नी सीमा बराबर शिवआसरे से हाथ जोड़ कर कह रहे थे कि बेटे को बख्श दे. लेकिन वह नहीं माना और आंखों के सामने बेटे पर कुल्हाड़ी से वार कर उस की जान ले ली.

पूछताछ के बाद पुलिस अधिकारियों ने मृतक शालू व सपना के शवों को पोस्टमार्टम हेतु हैलट अस्पताल, कानपुर भिजवा दिया.

चूंकि शिवआसरे ने डबल मर्डर का जुर्म कबूल कर लिया था और आलाकत्ल कुल्हाड़ी भी बरामद हो गई थी, अत: थानाप्रभारी धनेश प्रसाद ने बैजनाथ की तरफ से भादंवि की धारा 302 के तहत शिवआसरे के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली और उसे गिरफ्तार कर लिया.

16 मई, 2021 को पुलिस ने अभियुक्त शिवआसरे को कानपुर कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Crime- लव वर्सेज क्राइम: प्रेमिका के लिए

प्यार… लव… यह शब्द,भावना जीवन के लिए कितना महत्वपूर्ण है. यह किसी को “ऊंचाइयों” पर पहुंचा देता है और किसी को इतना नीचे की उसका जीवन जेल के सीखचों में बितता है.
छत्तीसगढ़ के जिला कोरबा में एक प्रेमी ने प्रेमिका की खातिर अपराध की दुनिया में प्रवेश करने के लिए सब कुछ किया परिणाम यह हुआ कि ना तो उसे प्रेमिका मिल पाई और न ही जीवन का सुख. हां वह आज अपने अपराध में शामिल साथी के साथ जेल की हवा खा रहा है.
छत्तीसगढ़ के जिला कोरबा की पुलिस ने दो युवकों को गिरफ्तार किया है. पुलिस ने हमारे संवाददाता को बताया कि दोनों युवकों ने “यूट्यूब” से एटीएम काटने का तरीका सीखकर प्रेमिका को खुश करने एटीएम काटकर चोरी करने की योजना बनाई थी. आरोपियों ने कोरबा के बलगी बांकीमोंगरा में लगे एटीएम को काटने की योजना बनाई .
दरअसल,  पम्पहाउस के दिलीप राणा ने  रिपोर्ट दर्ज कराई थी की प्रार्थी का बॉडी गैरेज है, जहां पर डेंटिंग-पेंटिंग व वाहन मरम्मत का कार्य किया जाता है. अज्ञात चोर ने  दुकान का ताला तोड़कर एक ऑक्सीजन सिलेण्डर, दो गैस पाईप, एक कटिंग टॉर्च, एक रेग्युलेटर, मीटर घड़ी तथा सिलेण्डर चाबी को चोरी कर ली है.
Crime: छत्तीसगढ़ में उड़ते नकली नोट!

और पुलिस हो गई सतर्क

किसी बड़ी वारदात होने के हालात को भांपते हुए पुलिस ने सतर्कता बरतते हुए  जांच शुरू कर दी,  सीसीटीवी कैमरों का अवलोकन करने पर दो संदिग्ध व्यक्ति स्कूटी में प्रार्थी के गैरेज से सामान चोरी करते व ले जाते दिखे.
पड़ताल के दौरान पता चला कि इण्डस्ट्रियल एरिया के सर्वमंगला गैस एजेंसी में 2 लड़के और 1 लड़की लाल रंग की  कार कमांक CG 13 Y 3292 से गैस सिलेण्डर को रिफिल कराने लेकर आये थे किन्तु उनके पास पर्ची नही होने से रिफिल नहीं किया गया है.
सर्वमंगला गैस एजेंसी जाकर सीसीटीव्ही फुटेज प्राप्त किया गया और वाहन की जानकारी आरटीओ से प्राप्त करके वाहन स्वामी के बुधवारी स्थित मकान में जाकर दबिश देने पर जानकारी मिली कि संजय पटेल पिता भगतराम पटेल निवासी ढोढ़ीपारा  शादी में जाने के लिये कार को मांगकर ले गया था.जो अब तक वापस नहीं आया है.

पुलिस द्वारा वाहन स्वामी के माध्यम से कार को बुधवारी, गांधी चौक के पास घेराबंदी कर पकड़ा गया. वाहन में आरोपी संजय पटेल पिता भगतराम पटेल उम्र 24 साल निवासी ढोढ़ीपारा चौकी सीएसईबी जिला कोरबा एवं अजय पटेल पिता रामचन्द पटेल उम्र 22 साल निवासी ग्राम जुराली थाना कटघोरा जिला कोरबा मिले. वाहन की तलाशी लेने पर प्रार्थी दिलीप राणा के गैरेज से चोरी किया हुआ दो गैस पाईप, एक कटिंग टॉर्च, एक रेग्युलेटर, मीटर घड़ी तथा सिलेण्डर चाबी, एक घरेलु गैस सिलेण्डर, दस्ताना, पेचकस, सलाईरिंज पाना, टी पाना, लोहे का रॉड एवं एक छोटा ऑक्सीजन सिलेण्डर बरामद हुआ, जिसे जब्त कर लिया गया.

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यूट्यूब से सीखा एटीएम को काटना

लोग अपराध कैसे सीखते हैं यह भी इस सनसनीखेज वारदात के परिदृश्य में समझा जा सकता है. युवा वर्ग पैसों के लिए अब यूट्यूब को नकारात्मक भाव से लेते हुए उसकी वीडियो को देख अपराध करना भी सीख समझ रहा है. हमारी इस कथा में भी यह सत्य सामने आ गया कि यूट्यूब की वीडियो देखकर एटीएम को काटने की प्लानिंग दिमाग में कथित आरोपी को सुझी थी.

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पुलिस ने जब आरोपी संजय पटेल से कड़ाई से पूछताछ की तो  उसने बताया कि लगभग पंद्रह दिन पहले वह  मोबाईल पर यूट्यूब ने एटीएम मशीन को गैस कटर से काटकर रुपये चोरी करने का वीडियो देखता रहता था. यही नहीं आरोपी ने अपनी प्रेमिका और दोस्त के साथ मिलकर एटीएम लूटने की योजना बनाई थी. अपराध की दुनिया में संजय पटेल सफल हो पाता उसके पहले पुलिस की सतर्कता के कारण पकड़ा गया और दोस्त के साथ जेल की हवा खा रहा है इधर उसकी प्रेमिका फरार हो चुकी है जिसे पुलिस ढूंढ रही है.

Satyakatha- सूदखोरों के जाल में फंसा डॉक्टर: भाग 3

19 मई, 2018 को सिद्घार्थ तिगनाथ अपनी मां, पत्नी के साथ तत्कालीन एसपी मोनिका शुक्ला से मिले थे. उन्हें सूदखोरों के खिलाफ सारे सबूत और 8 लाख की लूट संबंधी प्रमाण भी दिए गए थे. पुरानी फाइलों के पन्ने पलटने पर पुलिस का संदेह यकीन में बदल चुका था कि डा. सिद्धार्थ ने सूदखोरों की प्रताड़ना की वजह से ही यह आत्मघाती कदम उठाया है.

पूरे मामले की जांच कर रहे एसआई जितेंद्र गढ़वाल को एक डायरी हाथ लगी, जिसे पढ़ कर मालूम हुआ कि सूदखोरों के चक्रव्यूह में बुरी तरह फंस चुके थे.

डा. सिद्धार्थ ने अपनी डायरी में मौत से पहले लिखा था, ‘मैं इस विश्वास के साथ दुनिया छोड़ रहा हूं कि मैं सच्चा और इज्जतदार था. बहुत बड़ा योगदान दे सकता था, पर मेरे जीवन में धूर्त लोगों का जमघट रहा है. पिछले 10 सालों से अब बहुत हुआ, इस संसार में रिस्की है अच्छा होना. कमलनाथजी, मोदीजी अवैध सूदखोरी, चैक रख कर ब्लैकमेलिंग करने वालों के खिलाफ कानून जरूर बनाइएगा. शायद मेरी जिंदगी का एक अर्थ निकले.

‘मेरा ये लेटर मीडिया को जरूर देना. शायद इस दबाव में पुलिस कुछ काररवाई करे. जब जीवित रहते किसी ने उन की बात नहीं सुनी तो डायरी में ये सब कुछ लिख कर, अपने जीवन को ही सबूत के तौर पर भेंट चढ़ा दिया.

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इस विश्वास के साथ कि उन्हें न्याय मिलेगा और सरकार इन अपराधों को रोकने के लिए कुछ कानून बनाएगी, जिस से भविष्य में कोई इन सूदखोरों के चक्र में न फंसे.’

डायरी पढ़ कर पता लगा कि प्रतिदिन एक लाख रुपए तक की पैनल्टी लगा कर सूदखोरों ने सिद्धार्थ और उन के पूरे परिवार को जिस तरह से प्रताडि़त किया, उस की कहानी सुनने मात्र से रोंगटे खड़े हो जाते हैं.

10 से 20 फीसद के ब्याज से शुरू हुआ यह खेल आखिरकार 120 फीसद ब्याज की दर के कर्ज तक जा पहुंचा था.

चंद लाख रुपए का कर्जा लेने वाले डा. सिद्धार्थ तिगनाथ ब्याज की अदायगी करतेकरते ही 5 करोड़ रुपए से अधिक की धनराशि सूदखोरों को दे चुके थे. बावजूद इस के सूदखोर कर्जा उतरने ही नहीं दे रहे थे.

नतीजतन परिवार की चलअचल संपत्ति गंवा चुके डा. सिद्धार्थ तिगनाथ ने आखिरकार बीती 22 अप्रैल को दुनिया से अलविदा कह दिया. इस के पूर्व वह एक ऐसी डायरी लिख कर गए, जिस में अपनी मौत का जिम्मेदार सूदखोरों की प्रताड़ना को बताया.

उन की डायरी के पन्नों में नरसिंहपुर के लगभग 20 से अधिक सूदखोरों के नाम और अभी तक उन को दिए गए पैसों का पूरा हिसाब था. मरने से पहले डा. सिद्धार्थ सूदखोरों के चंगुल में फंसे अन्य लोगों को सूदखोरों से बचाने की मार्मिक अपील भी कर गए.

डा. सिद्धार्थ की मौत के बाद उन के परिवार वाले, राजनैतिक हस्तियां और सामाजिक कार्यकर्ता नरसिंहपुर पुलिस पर आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए दबाव बनाने लगे.

समाचार पत्रों में रोज ही सूदखोरों पर शिकंजा कसने के समाचार छप रहे थे. डा. सिद्धार्थ के बहनोई अजय शुक्ला ने फेसबुक पर ‘जस्टिस फार डा. सिद्धार्थ अभियान’ छेड़ दिया था.

इस मुहिम का असर रहा कि युवक कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष कुनाल चौधरी, जिला पंचायत नरसिंहपुर के पूर्व अध्यक्ष देवेंद्र पटेल ने भी डा. सिद्धार्थ को न्याय दिलाने के लिए मोर्चा खोल दिया. उन्होंने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से ले कर डीजीपी व एसपी नरसिंहपुर तक को शिकायत कर दोषी सूदखोरों को गिरफ्तार करने की मांग की.

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मामले की गंभीरता को देखते हुए एसपी विपुल श्रीवास्तव ने व्यक्तिगत रुचि दिखा कर प्रकरण की जांच कराई. नतीजा यह रहा कि सिद्धार्थ की तेरहवीं के ठीक एक दिन पहले ही पुलिस ने 7 लोगों के खिलाफ आत्महत्या करने को विवश करने का मामला दर्ज कर लिया गया.

लंबी पूछताछ के बाद पुलिस ने जिन 7 लोगों के खिलाफ भादंवि की धारा 306, 34 का अपराध दर्ज किया था. उन में सुनील जाट निवासी संजय वार्ड, अजय उर्फ पप्पू जाट, भागचंद उर्फ भग्गी यादव नरसिंहपुर को 6 मई 2021 को गिरफ्तार कर लिया गया.

वहीं 2 मुख्य आरोपी आशीष नेमा के कोविड पौजिटिव होने व सौरभ रिछारिया के घर में परिजन के संक्रमित होने पर ये गिरफ्तार नहीं किए गए थे. इन का जिले के बाहर इलाज चल रहा था. जबकि धर्मेंद्र जाट और राहुल जैन फरार हो गए, जिन की सरगरमी से पुलिस ने तलाश शुरू कर दी.

खैरी गांव का पूर्व सरपंच धर्मेंद्र जाट अपने बीवीबच्चों को जिले से बाहर रिश्तेदारों के यहां भेज कर खुद भी भागने की फिराक में था, मगर पुलिस की सक्रियता से उसे सुबह तड़के खैरी गांव में बने उस के मकान से गिरफ्तार कर लिया. गुलाब चौराहा नरसिंहपुर निवासी राहुल जैन पुलिस को चकमा दे कर भाग गया.

30 मई, 2021 को एसआई जितेंद्र गढ़वाल को मुखबिर के माध्यम से सूचना मिली कि डा. सिद्धार्थ मामले का एक आरोपी राहुल जैन जबलपुर में छिपा हुआ है.

एसआई जितेंद्र गढ़वाल, आरक्षक पंकज और आशीष की टीम वहां पहुंची तो पता चला कि वह तो जबलपुर के कछपुरा इलाके में दूध बेचने का धंधा कर रहा है. पुलिस टीम ने वहां से राहुल जैन को गिरफ्तार कर लिया .

यूं तो डा. सिद्धार्थ की डायरी में उन 20 सूदखोरों के नाम दर्ज थे जो उन से ब्याज के रूप में लाखों की रकम हड़प चुके थे, परंतु पुलिस की जांच में केवल 7 लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया है. सिद्धार्थ के घर वाले इस बात को ले कर नाराज हैं.

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उन का कहना है कि सभी सूदखोरों के खिलाफ कड़ी कानूनी काररवाई की जाए, जिस से अब कोई शख्स उन सूदखोरों के बनाए चक्रव्यूह में न फंस सके.

कथा संकलन तक 2 मुख्य आरोपी आशीष नेमा और सौरभ रिछारिया को पुलिस गिरफ्तार नहीं कर पाई थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Crime Story in Hindi: वह नीला परदा- भाग 10: आखिर ऐसा क्या देख लिया था जौन ने?

Writer- Kadambari Mehra

पूर्व कथा

एक रोज जौन सुबहसुबह जंगल में सैर के लिए गया, तो वहां नीले परदे में लिपटी सड़ीगली लाश देख कर घबरा गया. उस ने तुरंत पुलिस को सूचना दी. बिना सिर और हाथ की लाश की पहचान करना पुलिस के लिए नामुमकिन हो रहा था. इंस्पैक्टर क्रिस्टी ने टीवी पर वह नीला परदा बारबार दिखाया, मगर कोई सुराग हाथ नहीं लगा.

एक रोज क्रिस्टी के पास जैनेट नाम की लड़की का फोन आया. वह क्रिस्टी से मिल कर कुछ बताना चाहती थी.

जैनेट ने क्रिस्टी को जिस लड़की का फोटो दिखाया उस का नाम फैमी था. फोटो में वह अपने 3 साल के बेटे को गाल से सटाए बैठी थी. जैनेट ने बताया कि वह छुट्टियों में अपने वतन मोरक्को गई थी. क्रिस्टी ने मोरक्को से यहां आ कर बसी लड़कियों की खोजबीन शुरू की. आखिरकार क्रिस्टी को फहमीदा नाम की एक महिला की जानकारी मिली. क्रिस्टी फहमीदा के परिवार से

मिलने मोरक्को गया. वहां फहमीदा की मां ने लंदन में बसे अपने 2-3 जानकारों के पते दिए. क्रिस्टी को लारेन नाम की औरत ने बताया कि फहमीदा किसी मुहम्मद नाम के व्यक्ति से प्यार करती थी और वह उस के बच्चे की मां बनने वाली थी.

फिर एक दिन लारेन ने क्रिस्टी को बताया कि उस ने मुहम्मद को देखा है. क्रिस्टी और लारेन जब उस जगह पहुंचे तो पता चला कि यह दुकान मुहम्मद की नहीं बल्कि साफिया की थी, जिस के दूसरे पति का नाम नासेर था.

क्रिस्टी एक कबाब की दुकान पर गया तो अचानक दुकान के मालिक नासेर को देख उस के दिमाग में लारेन का बताया हुलिया कुलबुलाने लगा.

कांस्टेबल एंडी ने नासेर का पीछा किया तो मालूम पड़ा कि उस की बीवी और 3 बच्चे वहीं रहते हैं. क्रिस्टी ने एंडी को उस की बीवी का पीछा करने की सलाह दी. एंडी ने उस की बीवी, दुकान व बच्चों का ब्योरा क्रिस्टी को दे दिया. क्रिस्टी ने स्कूल से बच्चे का बर्थ सर्टिफिकेट निकलवाया तो कई बातें उजागर हो गईं. क्रिस्टी ने नासेर से फहमीदा नाम की औरत का जिक्र किया, तो उस के चेहरे का रंग उड़ गया. क्रिस्टी के साथ काम कर रही मौयरा ने स्कूल के हैडमास्टर की मदद से बच्चे को फहमीदा का फोटो दिखाया तो बच्चे ने तुरंत उसे पहचान लिया.

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मौयरा साफिया से अब्दुल नाम के बच्चे की हकीकत उगलवाना चाहती थी, मगर अब्दुल का नाम सुनते ही साफिया सकपका गई. फिर जो कुछ भी उस ने मौयरा को बताया, वे सारी बातें उस ने रिकौर्ड कर लीं. क्रिस्टी को यकीन हो चला कि नासेर भागने की कोशिश करेगा मगर क्रिस्टी के बिछाए जाल में वह खुदबखुद फंसता चला गया. क्रिस्टी ने कड़ाई से पूछताछ की, तो नासेर ने फहमीदा और अब्दुल के बारे में सारी जानकारी पुलिस को दे दी. मगर नीले परदे में लिपटी लाश का रहस्य अभी बरकरार था.

अब आगे पढ़ें :

थोड़ी नानुकर के बाद साफिया राजी हो गई, तो बच्चा नासेर ने हथिया लिया. इस के साथ ही उस ने 30-40 मील दूर सरे काउंटी में घर व बिजनैस भी शिफ्ट करने की योजना बना ली और एस्कौट में एक दुकान व उस के ऊपर एक फ्लैट ले कर उस में जा बसा. फैमी को पास ही के गांव बेसिंगस्टोक में बस जाने का सुझाव दिया. फैमी पढ़ाई के साथसाथ एक फैक्टरी में काम करने लगी. फैक्टरी बेसिंगस्टोक में ही थी. वह वहां से अपने बच्चे से आसानी से मिलने आ सकती थी.

बच्चा जब नासेर के घर चला गया तब वह बहुत रोईधोई मगर नासेर ने उसे बहलाफुसला लिया. अपनी बीवी से छिपा कर उसे खूब सैर कराई और वादे के मुताबिक मोरक्को, मां से मिलने भेज दिया.

वह जब वहां से लौटी तो सरे में शिफ्ट कर गई और जैनेट के घर में एक कमरा किराए पर ले कर रहने लगी. जैनेट ज्यादातर नर्सिंग के काम से बाहर ही रहती थी. उस का कमरा नासेर और फैमी का हनीमून चैंबर था. यहीं वह घुमाने के बहाने बेटे को भी ले आता था, फैमी से मिलवाने. यह सब इतनी चतुराई से चलता रहा कि साफिया को कुछ खबर नहीं लगी.

इधर छोटे से फ्लैट में 5 बेटियों का निर्वाह मुश्किल से हो रहा था. उन में से 3 तो कालेज जाने लगी थीं, लेकिन बच्चे के आ जाने से साफिया का सारा ध्यान उसी में लगा रहता था. उधर नासेर की दुकान नई जगह होने से अच्छी नहीं चल रही थी. इतना बदलाव तीनों बड़ी बेटियां निगल नहीं पा रही थीं.

साफिया ने अपने मांबाप को सब व्यथा सुनाई. उन्होंने कुछ पैसा अपने पास से लगा कर एक और दुकान न्यूजएजेंट की खरीद ली और उसी के ऊपर तीनों बड़ी बेटियों के संग रहने लगे. यह जगह नासेर की दुकान से 4-5 मील दूर उसी शहर में थी.

इधर नासेर ने देखा कि एस्कौट शहर में बाहर के टूरिस्ट बहुत आते हैं, क्योंकि यहां बहुत बड़ा रेसकोर्स है. अत: उस ने ग्रोसरी की दुकान हटा कर वहां कबाब व सैंडविच की दुकान खोल ली. वह बातचीत में लोगों का मन मोहने में नंबर वन था ही. दुकान धड़ल्ले से चल निकली. इस में साफिया का कोई काम नहीं था, इसलिए वह सुबह से दोपहर तक अपनी बड़ी बेटी की दुकान में हाथ बंटाती ताकि वह कालेज की पढ़ाई ढंग से कर सके.

नासेर की दुकान अच्छी चल निकली तो उस ने एक अच्छा सा 4 बैडरूम वाला घर भी खरीद लिया. यह वही घर था, जिस में मौयरा मनोवैज्ञानिक बन कर साफिया से मिलने गई थी.

सारी कहानी सामने आ चुकी थी मगर फैमी का क्या हुआ, इस बात का कोई इशारा भी नासेर नहीं दे रहा था. इस के अलावा वह फैमी को दुश्चरित्र औरत के अलावा और कुछ भी नहीं बता रहा था.

उस ने अपने बेटे के फैमी का बेटा होने की बात भी पुलिस को नहीं बताई. यह तो लारेन ने बताया डेविड क्रिस्टी को. बच्चे के गोद लेने का कोई पेपर भी नहीं मिला था.

नासेर ने फहमीदा का नाम तक जानने से इनकार कर दिया. सैकड़ों सवालों का उत्तर वह गोल कर गया. फिर भी झूठ पकड़ने वाली ‘लाई डिटेक्टर’ पर उस का झूठ पकड़ा जा रहा था. अंत में क्रिस्टी ने उस से पूछा, ‘‘जब जैनेट अपने घर में होती थी, तब तुम क्या फैमी के पास नहीं जाते थे?’’

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नासेर बोला, ‘‘तब वही मेरे पास आती थी.’’

क्रिस्टी ने पूछा, ‘‘कहां सोते थे तुम दोनों?’’

अचानक नासेर बोल पड़ा, ‘‘दुकान के ऊपर फ्लैट खाली पड़ा था, हम वहीं

मिलते थे.’’

मौयरा को भी उस ने ऊपर के फ्लैट में चलने की दावत दी थी.

क्रिस्टी ने कड़क कर कहा, ‘‘तुम तो वहां और लड़कियों को भी ‘गुड टाइम’ देते थे. क्या यह नहीं हो सकता कि एक दिन फैमी ने तुम्हारी बेवफाई पकड़ ली और तुम से झगड़ा किया, इसलिए तुम ने उसे रास्ते से हटा दिया?’’

नासेर ने मना करते हुए कहा, ‘‘नहीं, बात कुछ और थी.’’

क्रिस्टी ने पूछा, ‘‘क्या बात थी.’’

नासेर पलट गया, ‘‘कुछ नहीं, कोई झगड़ा नहीं हुआ.’’

‘‘झूठ, बिलकुल झूठ. हमें पूरा यकीन है कि तुम ने उसे जान से मार डाला.’’

नासेर शांत था मगर अंदर की घबराहट मशीन पर साफ नजर आ रही थी.

क्रिस्टी ने उस की चुप्पी को अपराध छिपाने की कोशिश बताया और ऊपर के फ्लैट की फोरेंसिक जांच करने का हुक्म दिया.

फ्लैट हालांकि नया पेंट किया गया था फिर भी फोरेंसिक जांच के लिए उस की हरेक चीज उधेड़ कर देखने का उस ने हुक्म दिया.

साफिया नासेर की अचानक गिरफ्तारी से बेहद घबरा गई लेकिन उसे कुछ भी नहीं बताया गया.

मौयरा ने उस की दोनों छोटी बेटियों से पूछ लिया, ‘‘जब तुम लोग डैडी की दुकान के ऊपर फ्लैट में रहती थीं, तब तुम्हारे घर में किस रंग का सोफा था?’’

‘‘काले रंग का. मगर वह बहुत पुराना था, इसलिए डैड ने उसे फेंक दिया.’’

‘‘तुम्हें याद है कि तुम्हारे परदे किस रंग के थे?’’

‘‘थोड़ेथोड़े नीले, थोड़ेथोड़े ग्रे रंग के.’’

अब तो कोई शक बचा ही नहीं था. सारे फ्लैट में कोई सुराग नहीं मिला, मगर बाथरूम के टब के सामने का पैनल जब खींच कर हटाया गया तब उस का ऊपरी किनारा, जो टब से एकदम जुड़ जाता है, काफी गंदा मिला. उस में चिपचिपाहट थी. उसे माइक्रोस्कोप से देखने पर जमा हुआ पुराना

खून साफसाफ नजर आ गया, जिस में कुछ बाल भी फंसे हुए थे.

अब तो बाथरूम का सारा पेंट खुरचा गया. दरवाजे के पीछे पेंट के नीचे खून के धब्बे काफी मात्रा में पाए गए.

जांच करने पर वह खून जंगल में मिली लाश के खून से एकदम मिलता हुआ पाया गया.

अपने खिलाफ निकल रहे सुबूतों से डर कर अंतत: नासेर ने कबूल कर ही लिया कि उस ने फैमी को मार डाला था.

‘‘क्यों?’’

‘‘क्योंकि वह मुझे मजबूर कर रही थी कि मैं मोरक्को जा कर उस से निकाह कर लूं ताकि वह मेरी बीवी कहला सके. मैं ऐसा नहीं कर सकता था. साफिया को नाराज कर के मैं शादी की मंजूरी नहीं ले सकता था. दूसरी वजह थी मेरा बेटा. साफिया ने उसे 6 महीने की उम्र से पालापोसा था. उस की जानकारी में बच्चे की मां कब की उसे छोड़ चुकी थी.’’

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नासेर ने एक और चालाकी यह खेली थी कि फैमी को कभी साफिया से नहीं मिलाया ताकि वह उस की अज्ञात प्रेमिका बनी रहे. बच्चे को अगर कानूनी तौर पर गोद लेता, तो फैमी को सब के सामने लाना पड़ता. वह इस खतरे से खेलना नहीं चाहता था. आमनासामना होने पर फैमी कभी भी सारे भेद खोल सकती थी, इसलिए उस ने बच्चे का नाम बदल कर उस का जन्म मोरक्को में लिखवा दिया और गलत तारीख से जन्मपत्र बनवा लिया.

बड़ी चालाकी से वह फैमी से बच्चे को मिलवाने ले जाता था. वह कभी मिलने आता तो फिर खूब प्यार लुटाता था उस पर. यही समय नासेर और फैमी का ‘गुड टाइम’ भी होता था.

साफिया के नए घर में जाने के बाद से फैमी अकसर डोनर कबाब की दुकान के ऊपर वाले फ्लैट में नासेर से मिलने आती थी. वहीं उस ने वह तसवीर अपने बेटे के संग खिंचवाई थी.

अब वह चाहती थी कि नासेर उस से इसलामिक रीति से मोरक्को जा कर शादी कर ले ताकि वह अपने समाज में मुंह दिखा सके. उस की उम्र 35 की हो चली थी. इस उम्र में उसे कोई और मर्द नहीं मिलने वाला था. मगर नासेर न तो मान रहा था न ही उस पर से अपना कब्जा हटा रहा था. फैमी ने उस के राज का परदा हटाने की धमकी दी. बस, यही उस की मौत का कारण बनी. दोनों का झगड़ा हुआ. नासेर ने सोफे के कुशन से उस का मुंह दबा दिया और उस की छाती पर चढ़ बैठा. जब वह सांस घुटने से मर गई, तब उस को घसीट कर बाथरूम में ले गया. वहां बाथटब में डाल कर उस ने उस की गरदन डोनर कबाब काटने वाली तेज छुरी से काट कर अलग कर दी.

जिस प्लास्टिक की ढक्कनदार बालटी में डोनर कबाब का कीमा आता था, उसी में उस ने फैमी के सिर को रखा और उस के ऊपर रेत भर दी ताकि खून न टपके. फिर ढक्कन को बंद कर दिया. इसी तरह उस ने एक दूसरी बालटी में उस के दोनों हाथ काट कर डाले और रेत भर दी. फिर बचे हुए शरीर को परदों में लपेट कर बांध दिया. अपनी वैन में लाश डाल कर वह रौक्सवुड में फेंक आया. दोनों प्लास्टिक की बालटियां उस ने 2 अलगअलग पुलों पर से रात में टेम्स नदी में फेंक दीं.

वापस फ्लैट में आ कर उस ने सोफे को आग लगा दी. रैक्सीन का सोफा जलने से सारा फ्लैट धुएं से भर कर काला हो गया. गलीचा भी जल गया. इस आग को उस ने खुद ही पानी डाल कर बुझा दिया.

देर रात गए वह घर पहुंचा. साफिया के पूछने पर उस ने आग लगने का ब्योरा बता दिया. बताया कि फ्लैट में जहरीला धुआं भरा है, इसलिए कोई वहां न जाए. वह क्लेम कर के इंश्योरैंस से इस नुकसान का मुआवजा लेगा. अगले ही दिन उस ने बाथटब को साफ किया और जहांजहां खून के छींटे पड़े थे उन पर पेंट मार दिया.

फैमी का हैंडबैग उस के पास था, जिस में से चाबी ले कर वह मौका देख कर उस के घर में घुसा और शिनाख्त के सारे पेपर, जेवर, पैसे और अब्दुल का असली जन्मपत्र वगैरह सब अपने कब्जे में कर लिया जो सामान बेमतलब का था, उसे वहीं छोड़ दिया. और फैमी के कपड़े भी वह ले आया ताकि लगे कि वह कहीं विदेश चली गई है.

जैनेट उन दिनों घर पर नहीं थी. उसे क्रिसमस पर एक बूढ़े की तीमारदारी करने के लिए मोरक्को में काम मिला था. उस के जाने से पहले फैमी ने उसे बताया था कि वह भी मोरक्को जा रही है.

ठोस सुबूतों के आधार पर पुलिस ने नासेर के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज कर उसे जेल भेज दिया. अदालती कार्यवाही के बाद नासेर को उम्रकैद की सजा हुई.

जौन और डोरा के ड्राइंगरूम में बैठ कर डेविड क्रिस्टी आराम से सारी कहानी सुना रहा था. मौयरा और उस की बीवी भी वहां थी.

‘‘जौन, तुम सचमुच मानते हो कि वह आत्मा तुम्हें ढूंढ़ती हुई आई थी?’’

‘‘अरे मैं कैसे विश्वास दिलाऊं तुम सब को. डेविड जितनी बार तुम ने कहा कि मैं यह केस बंद कर रहा हूं, उतनी बार उस के आने का एहसास मुझे हुआ. तुम मानो या न मानो पर मुझे अब और भी तसल्ली हो गई है कि यह सब मेरा भ्रम नहीं था. जरा सोचो, जब से उस के हत्यारे ने उसे जंगल में फेंका मैं पहला व्यक्ति था जिस ने उसे देखा और उस के बारे में बताया. शायद वह अपने शरीर में बैठी रही मदद मांगने के लिए और जैसे ही मैं उसे मिला वह मेरे पीछे हो ली. वह मुझ से बारबार विनती कर रही थी, इस पर मुझे पूरा विश्वास है. तुम लोग इसे पागलपन समझते हो तो समझो.’’

‘‘नहीं जौन, कम से कम मैं इसे तुम्हारा पागलपन नहीं मान रहा हूं.’’

‘‘कैसे बोल रहे हो अब,’’ डोरा उपहास से बोली, ‘‘तुम्हीं ने तो कहा था न अल्बर्ट म्यूजियम में कि यह सब जौन के उत्तेजित होने के कारण कल्पना का तानाबाना है. उसे मानसिक शांति चाहिए.’’

‘‘कहा था, जरूर कहा था मगर उस के बाद जो कुछ घटा वह कम विस्मयकारी नहीं है. बताता हूं.

‘‘एक दिन जब मैं पूरी तरह हार गया था और केस बंद करने वाला था, एक औरत मुझ से मिलने आई. वह ईरानी थी और सरे के इलाके बर्ग हीथ से आई थी. यह जगह एमएसएम मार्केट से कोई 5-6 मील दूर पड़ती है. यह ईरानी औरत एक जोड़ी पुराने नीले परदे लाई थी मुझे दिखाने जो उस ने बुढि़या मार्था से खरीदे थे. उसे पता चला कि ऐसे परदे की पुलिस को तलाश है. मगर तब वह अपने देश जाने वाली थी. वापस आने पर उस ने नए परदे खरीद लिए और ये नीले परदे वह मुझे देने के लिए ले आई.’’

‘‘मगर मार्था ने तो कहा था बेसिंगस्टोक से कोई आई थी,’’ मौयरा ने चौंक कर पूछा.

‘‘मौयरा, मार्था बूढ़ी है न इसलिए उस की याददाश्त में से बर्ग हीथ फिसल गया और ब शब्द से बेसिंगस्टोक उभर आया, तो वह वही बोल गई. न वह बेसिंगस्टोक का नाम लेती, न हम उसे टीवी पर घोषित करते. न वहां रहने वाली जैनेट आगे आती और हमें फैमी का फोटो दिखाती. हमारी तहकीकात तो बस वहीं से शुरू हुई. है न अजीब बात?’’

‘‘कमाल है,’’ सब के मुंह से एकसाथ निकला.

‘‘तुम अब आराम से बेफिक्र हो कर सो सकते हो जौन. मैं ने तुम्हारी जिम्मेदारी पूरी कर दी है. मैं ने फैमी को उस के देश मोरक्को भेज दिया है और एक सरकारी चैरिटी की तरफ से एक मोटी रकम भी, जो उस के भाईबहनों के भविष्य को संवारने के काम आएगी.’’

Satyakatha: मकान में दफन 3 लाशें- भाग 2

सौजन्य- सत्यकथा

उन्हीं दिनों अहसान को किसी परिचित के मार्फत पता चला कि वार्ड नंबर-6 के बबैल रोड स्थित शिवनगर कालोनी में एक व्यक्ति अपना अर्द्धनिर्मित मकान बेच रहा है. उसे पैसों की बहुत जरूरत है.

औनेपौने दाम लगा कर अहसान सैफी ने वह मकान खरीद लिया. उस पर सिर्फ लेंटर डालना बाकी था, जबकि चारोें दीवारें पूरी तैयार थीं. उस ने जो सपना खुली आंखों से देखा था कि उस का भी अपना मकान हो, उस का वह सपना पूरा हो गया था. कुछ और रुपयों का बंदोबस्त कर उस ने लेंटर डलवा दिया.

अपनी मेहनत की कमाई से बने मकान में रह कर अहसान खुश था. मकान का सपना पूरा होने के बाद अहसान के दिल में एक कसक रह गई थी रातोंरात लखपति बनने की. वह ऐसा नायाब तरीका ढूढने में जुट गया, जिस से लखपति बनने से उसे कोई नहीं रोक पाता.

भले ही अहसान सैफी कम पढ़ालिखा था, लेकिन टेक्नोलौजी के मामले में बेहद शातिर था. इसी शातिरपन का वह लाभ उठाना चाहता था. इस के लिए उस ने शादी डौटकौम का सहारा लिया. अहसान ने शादी डौटकौम पर अपने लिए एक विज्ञापन दिया.

मुंबई के कल्याणी घाट की नाजनीन ने विज्ञापन देखा. उस ने अहसान के दिए मोबाइल नंबर पर संपर्क किया. नेकदिल नाजनीन ने खुल कर उसे अपने बारे में सारी हकीकत बयां कर दी कि वह बेवा है और 2 बच्चे भी हैं. इस रिश्ते को आगे बढ़ाने के लिए वह तैयार है तो बात आगे बढ़ाई जाए.

अपनी ओर से इस रिश्ते को अहसान ने मंजूरी दे दी थी. उसे नाजनीन के दोनों बच्चों से कोई ऐतराज नहीं था. अहसान की ओर से हरी झंडी मिलते ही नाजनीन ने भी अपनी ओर से भी हरी झंडी दे दी थी. रास्ता दोनों ओर से साफ था. नाजनीन के पिता मुन्ना शेख भी बेटी के फैसले के आगे नतमस्तक थे. उन्होंंने बेटी के जीवन में कोई दखल करना उचित नहीं समझा.

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नाजनीन एक धनाढ्य बाप की बेटी थी. खुद उस के बैंक खाते में भी लाखों रुपए थे. यह अहसान सैफी उस से पूछताछ कर के जान चुका था. उसे और क्या चाहिए था. मक्कारी का जाल बुन कर अहसान ने नाजनीन के इर्दगिर्द फैलाया था, वह उस के फैलाए जाल में फंस गई थी.

जल्द ही दोनों ने मुंबई में निकाह भी कर लिया. निकाह के बाद अहसान पत्नी नाजनीन और उस के दोनों बेटों सोहेल और साजिद को मुंबई से ले कर पानीपत अपने घर आ गया. घाटघाट का पानी पी चुके अहसान ने नाजनीन के साथ बड़ा धोखा किया था.

वह पहले से ही शादीशुदा है, ये बात उस ने उसे नहीं बताई थी. पहली पत्नी से उस के 2 बेटे भी हैं, यह भी उस ने छिपाया था. यह जनवरी, 2015 के करीब की बात है.

जीवन के जिस कठिन डगर से हो कर नाजनीन तिलतिल कर गुजर रही थी, पति अहसान का मजबूत साथ पा कर उसे एक किनारा मिल गया था, इस के सिवाय उसे कुछ नहीं चाहिए था. लेकिन पति की कमीनगी से वह परिचित नहीं थी कि उस ने उस के साथ धोखा किया है.

नाजनीन की इसी कमजोरी का फायदा अहसान ने उठाया था. बड़े ही काइयां तरीके से पत्नी को झांसे में रख कर उस के खाते से लाखों रुपए अपने खाते में ट्रांसफर करा लिए. मन की साफ नाजनीन ने यह सोच कर अपने खाते में रखे रुपए पति के खाते में ट्रांसफर कर दिए कि रुपए मेरे खाते में रहें, चाहे पति के खाते में, क्या फर्क पड़ता है, हैं तो हम दोनों एक ही. इस पर खर्च करने का अधिकार दोनों का बनता है.

दिन के उजाले में खुली आंखों से अहसान सैफी ने लखपति बनने के जो सपने देखे थे, पूरे हो गए थे. सपने पूरे होने के बाद अहसान मौज की जिंदगी जी रहा था. और फिर दूसरी पत्नी और बच्चों को छोड़ कर बहाने से बीचबीच में 2-4 दिनों के लिए वह घर से गायब हो जाया करता था.

इस बीच वह मुजफ्फरनगर पहली बीवी नूरजहां और दोनों बेटों से मिलने जाया करता था. मजे की बात तो यह थी अहसान ने पहली बीवी को भी धोखे में रखा था और दूसरी बीवी को भी. पहली बीवी नूरजहां से उस ने दूसरी शादी कर लेने की भनक तक नहीं लगने दी थी. बस वह यहां खानापूर्ति के लिए आता था और खर्चे के रुपए दे कर वापस पानीपत लौट आता था.

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पति अहसान के कईकई दिनों तक घर से अचानक से गायब हो जाने पर नाजनीन परेशान हो जाती थी. जब वह पति से इस बारे में पूछती थी तो वह उस से झगड़ पड़ता और हाथापाई पर उतर आता था. नाजनीन कोई दूध पीती बच्ची नहीं थी, जो पति के जुल्म को भाग्य समझ कर चुपचाप सह लेती. वह पढ़ीलिखी सभ्य खानदान की महिला थी. चुप बैठने वालों में से वह नहीं थी.

पति के अचानक गुम होने का राज फाश करने की उस ने ठान ली. उस दिन के बाद से वह पति पर पैनी नजर रखने लगी थी. जल्द ही पति की कलई खुल गई थी कि वह पहले से शादीशुदा है.

पहली पत्नी नूरजहां से उस के 2 औलादें भी हैं. जबकि अहसान ने उस से झूठ बोला था कि उस ने शादी नहीं की थी. पहली पत्नी नूरजहां भी पति के दूसरी शादी करने की बात जान चुकी थी. इसलिए वह भी उस से नाराज थी.

पति का सच सामने आने के बाद नाजनीन यह कतई बरदाश्त करने को तैयार नहीं थी कि उस का पति पहली पत्नी नूरजहां के साथ कोई संबंध या रिशता रखे.

पति से उस ने साफ कह दिया, ‘‘तुम ने मेरे साथ धोखा किया है. शादीशुदा और 2 बच्चों के बाप होते हुए भी तुम ने झूठ बोल कर यह बात मुझ से छिपाई थी. एक बात कान खोल कर सुन लेना, मेरे जीते जी तुम मेरी सौतन के साथ कोई रिश्ता नहीं रखोगे. अगर मेरी बात तुम ने नहीं मानी तो इस का अंजाम अच्छा नहीं होगा, यह तुम समझ लेना. मैं उन औरतों में से नहीं हूं जो पति के हर जुल्म हंस कर सहती रहूं.’’

अहसान सैफी समझ गया था कि नाजनीन जो कह रही है, उसे करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ेगी. लेकिन वह मर्द ही क्या जो पत्नी की धमकियों के आगे घुटने टेक दे. उस ने ठान लिया कि जो होगा देखा जाएगा, लेकिन पहली बीवी को नहीं छोड़ेगा.

सौतन को ले कर नाजनीन और अहसान के बीच में जंग छिड़ी तो जैसे थमने का नाम ही नहीं ले रही थी. नूरजहां को ले कर रोज दोनों के बीच कलह होती थी.

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रोजरोज की कलह से अहसान ऊब चुका था और नाजनीन और उस के दोनों बेटों से छुटकारा पाना चाहता था. लेकिन कैसे? इस बारे में वह सोचने लगा. वह जानता था कि नाजनीन से जीत पाना आसान नहीं होगा. उस के बाद शातिर अहसान ने अपना पैंतरा बदल दिया.

कल तक पत्नी से झगड़ने वाला चालाक अहसान अचानक उस के सामने फल से लदी डालियों के समान झुक गया और अपनी गलती की उस से माफी भी मांग ली. पत्नी को यह भी यकीन दिलाने में कामयाब हो गया कि उस के अलावा वह किसी और औरत की ओर कभी नजर उठा कर भी नहीं देखेगा, पहली पत्नी नूरजहां से भी कभी नहीं मिलेगा और न ही कभी बात करेगा.

पति की बेईमान शराफत पर नाजनीन ने आंख बंद कर यकीन कर लिया. मगर मक्कारी की खाल ओढ़े अहसान मौके की तलाश में बैठा था. जब अहसान को यकीन हो गया कि नाजनीन उस पर अंधा विश्वास करने लगी है तो उस ने अपने मंसूबों का पत्ता खोल दिया.

बात दिसंबर, 2016 के दूसरे पखवाड़े की है. बाजार से अहसान नींद की गोलियों के 2 पत्ते खरीद कर ले आया और अपनी शर्ट की ऊपरी जेब में छिपा कर रख लिए. रात खाने में चुपके से उस ने पूरी की पूरी गोलियां पाउडर बना कर मिला दीं. दवा मिला खाना पत्नी और दोनों बेटों को खिला दिया. खाना खाने के कुछ ही देर बाद तीनों गहरी नींद के आगोश में समा गए. उस ने तीनों को हिलाडुला कर देखा. तीनों के शरीर में कोई हरकत नहीं थी.

अगले भाग में पढ़ें- शादी डौटकौम के जरिए वह एक नए शिकार की तलाश में जुट गया

Manohar Kahaniya- दुलारी की साजिश: भाग 3

सौजन्य- मनोहर कहानियां

उन के रिश्ते के मामा राधा उरांव राजनीति के पुराने खिलाड़ी थे. राजनीति का ककहरा अनिल ने उसी मामा से सीखा और किस्मत आजमाने रामविलास पासवान के पास पहुंच गए. उन्होंने आशीर्वाद स्वरूप अपना हाथ अनिल के सिर पर रख दिया और उन्हें आदिवासी प्रकोष्ठ का प्रदेश अध्यक्ष बना दिया.

खद्दर का सफेद कुरता पायजामा पहन कर अनिल उरांव ताकतवर हो गए थे. यह घटना से 7 साल पहले की बात है.

अमीरों की तरह ठाठबाट थे प्रियंका के अनिल के पास अब पैसों के साथ साथ सत्ता की पावर थी और बड़ेबड़े माननीयों के बीच में उठनाबैठना भी. पहली बार अनिल ने सत्ता के गलियारे का मीठा स्वाद चखा था. माननीयों के सामने जब नौकरशाह सैल्यूट मारते थे, यह देख कर अनिल का दिल बागबाग हो जाता था.

यहीं से प्रियंका उर्फ दुलारी नाम की महिला अनिल उरांव की किस्मत में दुर्भाग्य की कुंडली मार कर बैठ गई थी. तब कोई नहीं जानता था कि यही प्रियंका एक दिन नागिन बन कर अनिल को डस लेगी.

36 वर्षीया प्रियंका हाट थानाक्षेत्र में स्थित केसी नगर कालोनी में दूसरे पति राजा के साथ रहती थी. पहला पति उसे बहुत पहले तलाक दे चुका था. उस के कोई संतान नहीं थी लेकिन दोनों बड़े ठाठबाट से रहते थे, अमीरों की तरह.

कई कमरों वाले उस के शानदार और आलीशान मकान में सुखसुविधाओं की सारी चीजें मौजूद थीं. घर में कमाने वाला सिर्फ उस का पति था. एक आदमी की कमाई में ऐसी शानोशौकत देख कर मोहल्ले वाले दंग रहते थे.

प्रियंका की शानोशौकत देख कर मोहल्ले वालों का दंग रहना जायज था. उस का पति राजा पूर्णिया विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर राजनाथ यादव का एक मामूली सा कार ड्राइवर था. उस की इतनी आमदनी भी नहीं थी कि वह घर खर्च के अलावा नवाबों जैसी जिंदगी जिए. ये ऐशोआराम तो प्रियंका की खूबसूरती की देन थी.

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गोरीचिट्टी और तीखे नयननक्श वाली प्रियंका की मोहल्ले में बदनाम औरतों में गिनती होती थी. शहर के बड़ेबड़े धन्नासेठों, भूमाफियाओं और नेताओं का उस के घर पर उठनाबैठना था. उस में लोजपा का युवा नेता अनिल उरांव का नाम भी शामिल था.

शादीशुदा होते हुए भी अनिल उरांव प्रियंका की गोरी चमड़ी के इस कदर दीवाने हुए कि उसे देखे बिना रह नहीं पाते थे. लेकिन प्रियंका उन से तनिक भी प्यार नहीं करती थी. वह तो केवल उन की दौलत से प्यार करती थी. वह जानती थी कि अनिल एक एटीएम मशीन है. बस, उस से दौलत निकालते जाओ, निकालते जाओ और ऐश करते जाओ.

प्रियंका ने बनाई योजना

अनिल उरांव जिस प्रियंका के प्यार में दीवाने थे, पूर्णिया का शूटर अंकित यादव उर्फ अनंत भी उसी प्रियंका को बेपनाह चाहता था. अनिल का उस की प्रेमिका प्रियंका की ओर आकर्षित होना, अंकित के सीने पर सांप लोटने जैसा था.

उस ने प्रियंका से कह दिया था ‘‘तू अपने आशिक से कह देना कि मेरी चीज पर नजर न डाले, वरना जिस दिन मेरा भेजा गरम हो गया तो उस की खोपड़ी में रिवौल्वर की सारी गोलियां डाल दूंगा.’’

फिर उस ने अपने प्रेमी अंकित को समझाया, ‘‘देखो अंकित, तुम ठहरे गरम खून के इंसान. जब देखो गोली, कट्टा और बंदूक की बातें करते हो, कभी ठंडे दिमाग से काम नहीं लेते. जिस दिन से ठंडे दिमाग से सोचना शुरू कर दोगे, उस दिन बिना गोली, कट्टे के सारे काम बन जाएंगे. क्यों बेवजह परेशान हो कर अपना ब्लड प्रैशर बढ़ाते हो. मैं क्या कहती हूं, उसे ध्यान से सुनो. मेरे पास एक नायाब तरीका है. जिस से सांप भी मर जाएगा और लाठी भी नहीं टूटेगी.’’

‘‘बता क्या कहना चाहती है तू.’’ अंकित ने पूछा.

‘‘यही कि अनिल उरांव का अपहरण कर लेते हैं और बदले में उस के घर वालों से फिरौती की एवज में मोटी रकम ऐंठ लेते हैं. नेताजी की जान के बदले उस के घर वालों के लिए 10-20 लाख देना कोई बहुत बड़ी बात

नहीं होगी. बोलो क्या कहते हो?’’ प्रियंका ने प्लान बनाया.

‘‘ठीक है जो करना हो, जल्दी करना. उस गैंडे को तेरे नजदीक देख कर मेरे तनबदन

में आग सी लग जाती है, कहीं ऐसा न हो

कि मैं अपना आपा खो दूं और तू भी स्वाहा हो जाए. जो करना है, जल्दी करना, समझी.’’ अंकित बोला.

‘‘ठीक है, बाबा ठीक है. क्यों बिना मतलब के अपना खून जलाते हो. समझो कि काम हो गया और तुम्हारी राह का कांटा भी हट गया.’’ प्रियंका ने कहा.

प्रियंका और अंकित ने मिल कर अनिल के अपहरण की योजना बना ली. योजना के मुताबिक, 29 अप्रैल, 2021 की सुबह प्रियंका ने अनिल उरांव को फोन कर के अपने घर आने को कहा. अनिल भतीजे राजन को साथ ले कर मोटरसाइकिल से निकले और बीच रास्ते में खुद मोटरसाइकिल से नीचे उतर कर कहा प्रियंका के यहां जा रहा हूं. जब फोन करूं तो बाइक ले कर चले आना.

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फिरौती ले कर बदल गई नीयत

अनिल प्रियंका के यहां पहुंचे तो उस के घर पर पहले से शूटर अंकित यादव उर्फ अनंत, उस का भांजा मिट्ठू कुमार यादव उर्फ मिट्ठू, मोहम्मद सादिक उर्फ राहुल और चुनमुन झा उर्फ बटेसर मौजूद थे.

अंकित को देख कर अनिल घबरा गए और वापस लौटने लगे तो चारों ने लपक कर उन्हें पकड़ लिया. अनिल ने बदमाशों के चंगुल से बचने के लिए खूब संघर्ष किया. कब्जे में लेने के लिए बदमाशों ने अनिल को लातघूंसों से खूब मारा और कपड़े वाली मोटी रस्सी से उन के हाथपैर बांध कर उन्हें कमरे में बंद कर दिया और उन का फोन भी अपने कब्जे में ले लिया ताकि वह किसी से बात न कर सकें.

फिर उन्हीं के फोन से अंकित ने अनिल के घर वालों को फोन कर के अपहरण होने की जानकारी देते हुए फिरौती के 10 लाख रुपए की मांग की. उस के बाद मोबाइल फोन से सिम निकाल कर तोड़ कर फेंक दिया ताकि पुलिस उन तक पहुंच न पाए.

30 अप्रैल, 2021 को फिरौती की रकम मिलने के बाद बदमाशों की नीयत बदल गई. चारों ने प्रियंका के घर पर ही अनिल की गला दबा कर हत्या कर दी और पेचकस जैसे नुकीले हथियार से अंकित ने अनिल की दोनों आंखें फोड़ दीं.

फिर उसी रात अनिल की लाश के. नगर थाने के डंगराहा के एक खेत में गड्ढा खोद कर दफना दी. जल्दबाजी में लाश दफन करते समय मृतक का एक हाथ बाहर निकला रह गया और वे कानून के शिकंजे में फंस गए.

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कथा लिखे जाने तक फरार चल रहा मुख्य आरोपी अंकित यादव उर्फ अनंत और उस का भांजा मिट्ठू कुमार यादव दोनों दरभंगा जिले से नाटकीय ढंग से गिरफ्तार कर लिए गए थे. दोनों आरोपियों ने लोजपा नेता अनिल उरांव के अपहरण और हत्या  करने का जुर्म स्वीकार लिया था.

जांचपड़ताल में प्रियंका के असम में करोड़ों रुपए संपत्ति का पता चला है, जो अपराध से कमाई गई थी. पुलिस ने संपत्ति जब्त करने की प्रक्रिया शुरू कर दी थी.

कथा लिखे जाने तक पुलिस पांचों आरोपियों प्रियंका उर्फ दुलारी, अंकित यादव, मिट्ठू कुमार यादव, मोहम्मद सादिक और चुनमुन झा के खिलाफ अदालत में आरोप पत्र दाखिल करने की तैयारी कर रही थी. पांचों आरोपी जेल की सलाखों के पीछे अपने किए की सजा भुगत रहे थे.

—कथा मृतक के रिश्तेदारों और पुलिस सूत्रों पर आधारित

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