शर्मनाक: जीती जागती लड़की का मृत्युभोज

कल एक ह्वाट्सएप ‘ग्रुप में शोक संदेश का कार्ड आया. शोक संदेश में एक लड़की की मौत होने और उस की ‘पीहर गौरणी’ यानी मृत्युभोज का आयोजन होने का ब्योरा छपा था. शोक संदेश पर लड़की की तसवीर भी छपी थी.

बहुत ही कमउम्र लड़की की मौत के इस शोक संदेश को पढ़ कर दुख हुआ, लेकिन जैसे ही कार्ड के साथ लिखी इबारत को पढ़ा तो मैं हैरान रह गया. आंखें हैरानी से खुली रह गईं, क्योंकि यह मृत्युभोज किसी लड़की की मौत पर नहीं, बल्कि उस के जीतेजी किया जा रहा था.

उस शोक संदेश में लड़की की मौत की तारीख  1 जून, 2023 लिखी थी और मृत्युभोज  का आयोजन 13 जून, 2023 को आयोजित किया जाना लिखा था. यह मृत्युभोज लड़की के दादा, पिता, चाचा, ताऊ और भाई कर रहे थे.

यह मामला केवल हैरानी तक सीमित नहीं है, बल्कि यह परेशान करने वाला है. इस से पता चलता है कि हमारा समाज आज भी किस मोड़ पर खड़ा है. यह शोक संदेश राजस्थान के भीलवाड़ा जिले के एक गांव से आया था.

वहां की 18 साल की एक लड़की ने अपनी पसंद के लड़के से शादी रचा ली थी और उस के इस ‘अपराध’ की सजा उसे जीतेजीते मरा घोषित कर के दी जा रही थी.

इस लड़की की सगाई गांव के ही एक लड़के से हुई थी. किसी वजह से परिवार वालों ने यह सगाई तोड़ दी, लेकिन लड़की ने इसे मंजूर नहीं किया. वह उसी लड़के से शादी करने पर अड़ गई.

परिवार वालों ने हामी नहीं भरी, तो लड़की ने घर से भाग कर उसी लड़के से शादी कर ली.  जब परिवार वालों ने लड़की की गुमशुदगी दर्ज कराई, तो पुलिस ने उसे ढूंढ़ कर बयान लिए. लड़की ने अपनी मरजी से शादी करने की बात कह कर परिवार वालों के साथ जाने से इनकार कर दिया.

लड़की का यह रवैया परिवार वालों को किस कदर नागवार गुजरा होगा, इस बात का अंदाजा शोक संदेश से लगाया जा सकता है. उन्होंने इस के विरोध में वही तरीका अपनाया, जो गांवदेहात में प्रचलित है यानी लड़की को मरा घोषित कर के उस का मृत्युभोज कर देना.

लड़की के परिवार वालों ने इसे अपनी ‘पगड़ी की लाज’ बचाने का कदम बताया है.  जब कोई लड़की भाग कर शादी कर लेती है, तो समाज उस के परिवार वालों को किस कदर शर्मिंदा करता है, यह किसी से छिपा नहीं है.

लड़की के भाग जाने की खबर सार्वजनिक होते ही उस के परिवार वालों पर थूथू की जाने लगती है. इस मामले में भी यही हुआ. जब प्रिया नामक इस लड़की ने अपनी मरजी से शादी रचाई, तो किसी ने इस की खुशी नहीं मनाई.

परिवार वालों पर यह खबर बिजली की तरह गिरी. उन्हें लगा कि वे किसी को चेहरा दिखाने लायक नहीं रहे. गांव के पंचपटेलों ने भी जलती आग  में घी का काम किया.

इस का नतीजा जीतीजागती लड़की के शोक संदेश के रूप में सामने आया. यह अपनी तरह का कोई पहला मामला नहीं है. लड़की के अपनी मरजी से शादी कर लेने पर गांवदेहात में ऐसी बातें अकसर सुनने को मिलती रहती हैं.

पहले ऐसी बातें अखबारों की सुर्खियां नहीं बनती थीं, लेकिन सोशल मीडिया के दौर में अब ऐसी बातें फौरन घरघर तक पहुंच जाती हैं. 2-3 साल पहले मध्य प्रदेश में मंदसौर के पास एक गांव की 19 साल की शारदा ने अपनी पसंद के लड़के से शादी की, तो उस के परिवार वालों ने भी वैसा ही कुछ किया था, जो अब प्रिया के परिवार वालों ने करने की सोची.

सवाल उठता है कि आखिर ऐसा कर के किसी को मिलेगा क्या? दरअसल, भाग कर शादी करने वाली लड़कियों के परिवार वाले उन के जीतेजी मृत्युभोज कर के अपनी नाक ‘ऊंची’ फिर से करना चाहते हैं.  उन्हें लगता है कि जब वे अपनी लड़की को मरा मान लेंगे, तो समाज उन्हें कुसूरवार नहीं ठहराएगा, बल्कि उन की गिनती उन ‘बेचारों’ में होगी, जिन की परवाह उस औलाद ने भी  नहीं की, जिसे उन्होंने पालापोसा और पढ़ायालिखाया.

21वीं सदी में पहुंचने के बावजूद भी समाज की असली तसवीर यही है. इस का सुबूत हैं वे बातें, जो भीलवाड़ा की प्रिया के मृत्युभोज का कार्ड सोशल मीडिया पर वायरल होने पर सामने आईं.  ऐसे लोगों की तादाद कम नहीं है, जो जीतीजागती लड़की का मृत्युभोज करने को सही ठहरा रहे हैं.

इसे अच्छी पहल बताया जा रहा है. समाज में हम अकसर लोगों को नारी सशक्तीकरण की बातें करते सुनते हैं, लेकिन जब कोई लड़की अपनी मरजी  से शादी कर लेती है, तो उसे कुलटा, कलंकिनी, कुलबैरन, खानदान की नाक कटाने वाली और न जाने क्याक्या कहा जाने लगता है.

कई बार तो मनमरजी से शादी करने का बदला लड़की की हत्या कर के लिया जाता है. समझ नहीं आता कि लड़की के अपनी मरजी से शादी करने पर ही कुल की नाक नीची क्यों होती है? कोई लड़का अगर पसंद की लड़की से शादी कर ले, तो ऐसा हंगामा क्यों नहीं बरपता? इस से भी बड़ा सवाल यह है कि क्या एक बालिग लड़की को अपनी पसंद से शादी करने का भी हक नहीं है?

नाबालिग लड़कियों का प्यार!

किशोरावस्था में लड़कियां जब किसी के प्यार के फंदे में फंस जाती है, तो अक्सर आगे जाकर अपनी जिंदगी तबाह कर लेती है.

यह एक ऐसी उम्र होती है, जब युवा आकर्षण में नवयुवतियां ऐसी भूल कर बैठती है कि आने वाला समय उनके लिए अंधकार मय हो सकता है. क्योंकि उन्हें पता नहीं होता कि सामने जो युवक है अथवा अधेड़ उम्र का व्यक्ति है, उसकी मंशा कितनी “सौ सौ चूहे खाकर बिल्ली हज को चली” वाली है.

दरअसल, युवावस्था में पांव रखने वाली युवती एक ऐसी मोहक अवस्था में होती है कि जब उसे दुनियादारी का पता नहीं होता.आम तौर पर मीठी चुपड़ी बातों में आकर वह जब प्यार की अंधी गली में आगे बढ़ जाती है तो पीछे मुड़ कर देखने का वक्त ही नहीं रह जाता और जिंदगी तबाही की ओर अग्रसर हो चुकी होती है.

आइए! आज इस अत्यंत महत्वपूर्ण सामाजिक त्रासदी पर दृष्टिपात करते हुए इस रिपोर्ट के माध्यम से यह संदेश युवा पीढ़ी को देने का प्रयास करें कि ठीक है आपकी उम्र प्यार… मोहब्बत की है, मगर थोड़ा संभल कर, समझ के साथ कर आगे बढ़ना.

शादी का झांसा, जिंदगी बर्बाद!

छत्तीसगढ़ के जगदलपुर आदिवासी बाहुल्य जिले में नाबालिग को विवाह झांसा देकर भगाने का मामला सामने आया है. युवक ने नाबालिग को भगाकर अवैध सम्बन्ध बनाए. पुलिस के अधिकारी ने हमारे संवाददाता को बताया कि परपा थाना इलाके के एक युवक शादी का झांसा देकर एक नाबालिग लड़की को अपने साथ भगाकर ले गया और उसका शीलभंग कर शादी करने का आश्वासन देता रहा .
पुलिस में रिपोर्ट के पश्चात तथ्यों की विवेचना की गई . इधर जब परिजनों को लापता हो गई लड़की नही मिली तो उन्होंने भी ख़ोज बीन शुरू की. पुलिस ने तलाश की, अंततः आरोपी को बड़े आमाबाल खरियापारा से गिरफ्तार कर लिया.

इस मसले पर परपा नगर निरीक्षक बी.आर.नाग ने बताया मामला नाबालिग लड़की का था अतः हमने संवेदनशीलता के साथ जांच प्रारंभ की और आरोपी की खोजबीन की गई. आखिरकार साइबर सेल और मुखबिर से जानकारी मिली कि गुम लड़की और आरोपी युवक भानपुरी इलाके के बड़े आमाबाल में है. टीम ने दबिश देकर नाबालिग लड़की को शामु कुमार बघेल के कब्जे से बरामद किया. लड़की ने बताया कि आरोपी ने उसे शादी का प्रलोभन देकर जबरदस्ती शारीरिक संबंध बनाकर दुष्कर्म किया है. आरोपी शामु कुमार बघेल को पुलिस ने कड़ा सबक सिखाते हुए धारा 366क, 376 भादवि, 06 पाक्सो एक्ट के तहत कार्यवाही कर कोर्ट में पेश किया गया. जहा से आरोपी को न्यायिक रिमाण्ड पर जेल भेजा गया है.

इस धोखे का हल क्या है?

सवाल यह है, कि इस धोखे और झांसे का हल क्या है. आखिरकार कैसे नाबालिक लड़कियां झांसे…. धोखेबाजी से बच सकती हैं. इस संदर्भ में पुलिस अधिकारी इंद्र भूषण सिंह कहते हैं कि सबसे बड़ा दायित्व होता है माता पिता और परिवार का. जो नाबालिक लड़कियों को, बच्चों को संस्कार दे सकते हैं.आज की इस आपाधापी के समय में माता पिता के पास समय नहीं रहता कि वे बच्चों से खुलकर अंतरंग बातें कर सकें. फलस्वरूप नाबालिक विशेष रूप से लड़कियां जब कहीं थोड़ा सा भी आसरा, झुकाव… प्यार का संबंल मिलता है तो किसी बेल की तरह लिपटने लगती है.

इस संदर्भ में प्रसिद्ध चिकित्सक डॉक्टर जी. आर. पंजवानी के मुताबिक बच्चों को अच्छे संस्कार हेतु श्रेष्ठतम पुस्तकें पढ़ने की आदत डालनी चाहिए जिन्हें पढ़कर वे सकारात्मक उर्जा से ओतप्रोत हो सकते हैं और गलत राह ओर नहीं बढ़ेंगे.

मिसाल: सामाजिक भाईचारा- जाट के घर से उठी, दलित लड़की की डोली

देवाराम जाखड़ की प्रगतिशील सोच व क्रांतिकारी पहल के चलते एक दलित समाज की लड़की पुष्पा की शादी एक जाट किसान परिवार के आंगन में पूरी होने पर देवाराम जाखड़ की सोच, उन की कोशिश और उन की हिम्मत की हर कोई तारीफ कर रहा है. गंवई इलाके में सब से ज्यादा अछूत समझी जाने वाली हरिजन जाति का नौजवान चाऊ गांव में दूल्हा बन कर घोड़ी पर ही नहीं बैठा, बल्कि वह घोड़ी पर सवार हो कर तोरण मारने के लिए जाट जाति के घर भी पहुंच गया.

जाखड़ों वाली ढाणी पर जब यह बरात पहुंची, तो जाटणी (देवाराम जाखड़ की पत्नी) ने दूल्हे का स्वागत चांदी के सिक्के से तिलक लगा कर किया. जाखड़ों की ढाणी में घोड़ी पर बैठे हरिजन दूल्हे के आगे भी वैसे ही नाचगान चल रहे थे, जैसे अकसर यहां के जाटों में होने वाले शादीब्याह में चलते रहते हैं. देवाराम जाखड़ ने शादी के कार्ड में कार्ल मार्क्स का संदेश ‘लोगों की खुशी के लिए पहली आवश्यकता धर्म का अंत है. धर्म अफीम की तरह है,’ लिखवाया.

कार्ड में कई संदेश दिए गए, जिन में पहला संदेश ज्योतिबा फुले का था, जिस में ज्योतिबा फुले को राष्ट्रपिता मानते हुए असमान व शोषक समाज को उखाड़ फेंकने के उन के ऐलान को उजागर किया गया. इस कार्ड में देवाराम जाखड़ ने ‘धरती आबा’ बिरसा मुंडा जैसे क्रांतिकारियों के क्रांतिकारी संदेश लिखवाए, जिन का नाम इस इलाके के लोगों ने पहली बार सुना. शादी के कार्ड में भगत सिंह, डाक्टर भीमराव अंबेडकर, सर छोटूराम, जयपाल सिंह, बिरसा मुंडा जैसे क्रांतिकारियों के संदेश लिखवाए गए, पर देवाराम जाखड़ ने किसी ब्राह्मणवादी देवीदेवता को पास भी नहीं फटकने दिया. शादी के कार्ड में एकमात्र तसवीर विद्रोही संत रैदास की थी.

शादी के इस कार्ड के कवर पेज पर ‘जय जवान जय किसान’ के स्लोगन के साथ ‘शिक्षित बनो, संगठित रहो, संघर्ष करो’ का ऐलान किया गया. इतना ही नहीं, इन्होंने इस कार्ड के कवर पेज पर शिक्षा और आजादी के बारे में लिखते हुए ‘किताबों संग आजादी, पढ़े चलो, बढ़े चलो’ का नारा भी दिया.

जाखड़ का यह गांव मशहूर मारवाड़ी लोककवि कानदानजी के गांव ‘मरुधर म्हारो देश झोरड़ों’ का ग्राम पंचायत मुख्यालय है, इसलिए इस निमंत्रणपत्र को पढ़ कर कानदानजी की एक कविता में थार के रेगिस्तान में बसने वाले ऐसे ही हीरेमोतियों के लिए दी गई उपमा ‘मरुधर का मोती’ याद आती है. शायद देवाराम जाखड़ जैसी ऊंची सोच रखने वाले लोगों के लिए ही कानदानजी ने यह उपमा दी होगी. देवाराम जाखड़ द्वारा खेतीकिसानी की आमदनी से करवाई गई यह शादी मरुधर में जाति आधारित ऊंचनीच और अंधविश्वास मिटाने की दिशा में बहुत बड़ा कदम होगा.

गौरतलब है कि इस देश में वर्ण व्यवस्था के चलते हजारों बरसों से सामाजिक व्यवस्था में एक दमघोंटू सा माहौल रहा है, हद दर्जे की छोटी सोच का बोलबाला रहा है, धार्मिक कर्मकांडों के चलते इनसानियत कहीं एक कोने में सदियों तक दफन रही है, दम तोड़ती रही है, सिसकती रही है… कह सकते हैं कि इस दमघोंटू व्यवस्था के खिलाफ भी लोगों ने सोचना और कदम उठाना शुरू किया है.

जाट एक किसान कौम है, जो हमेशा इंसाफ और सच के साथ रही है, जो इतिहास में कमजोर तबके के साथ खड़ी मिली है. जाट पुरखों ने अपना सबकुछ दांव पर लगा कर भी दलितों और कमजोरों के हक की लड़ाई पूरे दमखम के साथ लड़ी है. ज्यादातर यह कौम पाखंड और कर्मकांडी जमात से अकसर दूर ही रही है, बल्कि इन का मुखर विरोध भी रहा है. 11वीं शताब्दी में पैदा हुए इस कौम के महापुरुष वीर तेजाजी का जीवन इस का प्रमाण है, जिन्होंने दलितों को अपने साथ रखा, दूसरों की खातिर अपना जीवन बलिदान कर दिया था. आज भी यह शादी उसी परंपरा में एक और कड़ी है.

देवाराम जाखड़ कहते हैं, ‘‘हमें यह बात समझ लेनी चाहिए कि हमारे असली और स्वाभाविक साथी एससी और एसटी ही हैं. मनुवादी और सामंती  तत्त्वों से हमारी परंपरागत सोच का कोई मेल न कभी गुजरे कल में हुआ और आज और भविष्य में तो इस की उम्मीद कम ही लगती है, क्योंकि उन के हित और हमारे हित एक नहीं हैं. ‘दलित वर्गों से हमारे हितों का कोई टकराव नहीं है, हमारा और इन का मेल स्वाभाविक है. हमें यह बात दिल और अपनी समझ में बैठानी होगी कि बिना एससी व एसटी के साथ हम अधूरे हैं. अगर ये सब एक नहीं हुए, तो सब नुकसान में ही रहेंगे. वक्त की जरूरत को समझते हुए इन की एकता बहुत जरूरी है.’’

यहां केवल यही एक बड़ी बात नहीं है कि इस किसान परिवार ने बिना मांबाप की एक दलित लड़की पुष्पा की शादी का खर्चा उठाया है. इस में बड़ी बात यह है कि ठेठ थार के रेगिस्तान की इस धोरा री धरती में, जहां की बड़ी आबादी ब्राह्मणवाद की गुलाम है, जो 100 फीसदी पिछड़ी सोच में जी रही है, जहां हरिजन लोग मेघवालों, नायकों, बावरियों, ढोली, भीलों और चौकीदारों वगैरह के घर के दरवाजे से भी काफी दूर खड़े रहते हैं, वहां जाट कौम के किसान परिवार ने एक हरिजन की बेटी की शादी अपने घर के आंगन में की है.

अबकी शादियां बन सकती है आफत

संपादकीय-1

शादियां अब हर तरह के लोगों के लिए एक जुआ बन गर्ई हैं जिस में सब कुछ लुट जाए तो भी बड़ी बात नहीं. राजस्थान की एक औरत ने 2015 में कोर्ट मैरिज की पर शादी के बाद बीवी मर्द से मांग करने लगी कि वह अपनी जमीन उस के नाम कर दे वरना उसे अंजाम भुगतने पड़ेंगे. शादी के 8 दिन बाद ही वह लापता हो गई पर उस से मिलतीजुलती एक लाश दूर किसी शहर में मिली जिसे लावारिस समझ कर जला दिया.

औरत के लापता होने के 6 माह बाद औरत के पिता ने पुलिस में शिकायत कि उस के मर्द ने उन की बेटी एक और जने के साथ मिल कर हत्या कर दी है. दूर थाने की पुलिस ने पिता को जलाई गई लाभ के कपड़े दिखाए तो पिता ने कहा कि ये उस के बेटी के हैं. मर्द और उस के एक साथी को जेल में ठूंस दिया गया. 7 साल तक मर्द जेलों में आताजाता रहा. कभी पैरोल मिलती, कभी जमानत होती.

अब 7 साल बाद वह औरत किसी दूसरे शहर में मिली और पक्की शिनाख्त हुई तो औरत को पूरी साजिश रचने के जुर्म में पकड़ लिया गया है आज जब सरकार हल्ला मचा रही है कि यूनिफौर्म सिविल कोर्ट लाओ, क्योंकि आज इस्लाम धर्म के कानून औरतों के खिलाफ हैं. असलियत यह है कि ङ्क्षहदू मर्दों और औरतों दोनों के लिए ङ्क्षहदू कानून ही अब आफत बने हुए हैं. अब गांवगांव में पुलिस को मियांबीवी झगड़े में बीवी पुलिस को बुला लेती है और बीवी के रिश्तेदार आएंगे निकलते छातियां पीटते नजर खाते हैं तो मर्दों को गिरफ्तार करना ही पड़ता है.

शादी ङ्क्षहदू औरतों के लिए ही नहीं मर्दों के लिए आफत है, जो सीधी औरतें और गुनाह करना नहीं जानती वे मर्द के जुल्म सहने को मजबूर हैं पर मर्द को छोड़ नहीं सकती. क्योंकि ङ्क्षहदुओं का तलाक कानून ऐसा है कि अगर दोनों में से एक भी चाहे तो बरसों तलाक न होगा. ङ्क्षहदू कानूनों में छोड़ी गई औरतों को कुछ पैसा तो मिल सकता है पर उन को न समाज में इज्जत मिलती न दूसरी शादी आसानी से होती है.

चूंकि तलाक मुश्किल से मिलता है और चूंकि औरतें तलाक के समय मोटी रकम वसूल कर सकती हैं. कोई भी नया जना किसी भी कीमत पर तलाकशुदा से शादी करने को तैयार नहीं होता. सरकार को ङ्क्षहदूमुसलिम करने के लिए यूनिफौर्म सिविल कोर्ट की पड़ी है जबकि जरूरत है ऐसे कानून क जिस में शादी एक सिविल समझौता हो, उस में क्रिमीनल पुलिस वाले न आए.

जब औरतें शातिर हो सकती हैं, अपने प्रेमियों के साथ मिल कर पति की हत्या कर सकती हैं, नकली शादी कर के रूपयापैसा ले कर भाग सकती है. न निभाने पर पति की जान को आफत बन सकती है तो समझा जा सकता है कि देश का कानून खराब है और यूनिफौर्म सिविल कोर्ट बने या मन वालूे ङ्क्षहदू विवाह कानून तो बदला जाना चाहिए जिस में किसी जोर जबरदस्ती की गुंजाइश न हो. यदि लोग अपनी बीवियों के फैलाए जालों में फंसते रहेंगे और औरतें मर्दों से मार खाती रहेंगी तो पक्का है समाज खुश नहीं रहेगा और यह लावा कहीं और फूटेगा.

मजबूरी नहीं, जरूरत है दहेजबंदी

‘अगर आप को पता चल जाए कि आप जिस शख्स के विवाह समारोह में जा रहे हैं, वहां दहेज लिया गया है, तो वैसे विवाह में कतई न जाएं. अगर किसी मजबूरी की वजह से वहां जाना पड़े तो जाएं, लेकिन वहां खाना न खाएं.’ बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आजकल अपनी हर सभा में यह बात जरूर कहते हैं. बिहार में शराबबंदी को अच्छीखासी कामयाबी मिलने के बाद उन्होंने अब दहेजबंदी की पहल शुरू की है.

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कहते हैं कि दहेज को रोकने की बात को ज्यादातर लोग नामुमकिन करार दे रहे हैं, पर ऐसे लोगों को यह सोचना चाहिए कि शराब पर पाबंदी लगाने के बाद भी ऐसी ही दलीलें दी जा रही थीं. अब यह हालत है कि बिहार में शराबबंदी को कामयाबी मिलने के बाद दूसरे राज्यों में भी शराब पर रोक लगाने की आवाजें बुलंद होने लगी हैं.

बिहार कमजोर वर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2016-17 में तकरीबन 987 बेटियां दहेज के नाम पर मार दी गईं, वहीं साल 2015 में 1154 बेटियों की जानें दहेज की वजह से चली गईं. महिला हैल्पलाइन में हर साल दहेज के चलते सताई गई बेटियों के मामले बढ़ते ही जा रहे हैं.

साल 2015 में जहां 93 मामले दर्ज हुए थे, वहीं साल 2016 में वे बढ़ कर 111 हो गए. इस के अलावा साल 2016 में राज्य के अलगअलग थानों में दहेज के नाम पर सताने के कुल 4852 मामले दर्ज किए गए थे.

राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि हर घंटे दहेज के नाम पर एक लड़की को मार दिया जाता है. कमजोर वर्ग के एडीजी विनय कुमार ने बताया कि दहेज प्रताड़ना में कानून किसी को बख्श नहीं रहा है, इस के बाद भी ऐसे मामलों में कमी नहीं आ रही है.

दहेज किस कदर परिवार को बरबाद कर रहा है और बेटियों की जानें ले रहा है, इस का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि साल 2016 में जहां राज्य में छेड़खानी के 342 मामले थानों में दर्ज हुए, वहीं दहेज के लालच में 987 बेटियों की जानें ले ली गईं.

समाजसेवी आलोक कुमार दावा करते हैं कि सामाजिक जागरूकता के जरीए दहेज को काफी हद तक कम किया जा सकता है. अगर सरकार गंभीरता से साथ दे, तो शराबबंदी की तरह दहेजबंदी को भी कामयाबी मिलनी तय है.

बिहार महिला आयोग की अध्यक्ष अंजुम आरा बताती हैं कि शराबी पति की पिटाई और दूसरे तरीकों से तंग औरतों की रोज 3-4 शिकायतें आयोग को मिलती थीं, पर शराबबंदी के 8 महीने के गुजरने के बाद ऐसा एक भी मामला दर्ज नहीं हुआ है.

मर्द शराब पीते हैं और उस का खमियाजा औरतों और बच्चों समेत पूरे परिवार को उठाना पड़ता है. दहेज पर रोक लगाने के लिए बिहार सरकार ने बिहार राज्य दहेज निषेध नियमावली 1998 में दहेज निषेध अफसर की तैनाती की बात कही है.

इन अफसरों को दहेज लेनेदेने वालों के खिलाफ कानूनन कार्यवाही करने के साथसाथ सामाजिक जागरूकता फैलाने की जिम्मेदारी सौंपी गई है.

आज तक दहेज निषेध अफसरों को फाइलों से बाहर ही नहीं निकाला गया था यानी उन की कहीं तैनाती नहीं की गई थी. अब सरकार ने दहेज पर रोक लगाने के लिए कमर कसी है, तो उम्मीद है कि दहेज के लिए बेटियों की जिंदगी दांव पर लगाने वालों को सबक सिखाया जा सकेगा.

क्या चीफ जस्टिस धनंजय चंद्रचूड़ आजादी बचा सकेंगे?

देश की सब से बड़ी अदालत के 50वें चीफ जस्टिस धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ अपनेआप में इसलिए अलग हैं कि उन्होंने ऐसे अनेक फैसले लिए हैं, जिन से यह कहा जा सकता है कि वे सच्चे माने में भारत के जनमानस की आवाज बन कर देश के चीफ जस्टिस पद की कुरसी पाए हैं. धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ ने 9 नवंबर, 2022 को देश के 50वें चीफ जस्टिस के तौर पर शपथ ली. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने राष्ट्रपति भवन के दरबार हाल में आयोजित एक समारोह में उन्हें इस पद की शपथ दिलाई.

धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ का कार्यकाल 10 नवंबर, 2024 तक रहेगा यानी वे अगले 2 साल तक देश के चीफ जस्टिस के तौर पर अपनी सेवाएं देंगे. शपथ ग्रहण करने के तुरंत बाद उन्होंने कहा, ‘‘शब्दों से नहीं, काम कर के दिखाएंगे. आम आदमी के लिए काम करेंगे. बड़ा मौका है, बड़ी जिम्मेदारी है. आम आदमी की सेवा करना मेरी प्राथमिकता है.’’ चीफ जस्टिस धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ की सब से बड़ी खूबी यह है कि वे हर मामले में सब्र के साथ सुनवाई करते हैं. देश ने देखा था कि किस तरह कुछ दिन पहले उन्होंने एक मामले में लगातार 10 घंटे तक सुनवाई की थी. चीफ जस्टिस धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ ने 2 बार अपने पिता चीफ जस्टिस रह चुके यशवंत विष्णु चंद्रचूड़ के फैसलों को भी पलटा है, जिस में सब से अहम है इंदिरा गांधी के शासनकाल में जब इमर्जैंसी लगाई गई थी, तो आम लोगों के मौलिक अधिकारों को स्थगित कर दिया गया था, जिस पर उन के पिता ने मुहर लगाई थी, मगर जब समय आया, तो बेटे ने अपने पिता के फैसले को पलट दिया और यह फैसला दिया कि किसी भी हालत में संविधान द्वारा दिए गए निजता के मौलिक अधिकार को स्थगित नहीं किया जा सकता.

इसी तरह गर्भपात को ले कर जस्टिस धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ का फैसला क्रांतिकारी माना जा रहा है.  इस संदर्भ में अपने फैसले में  उन्होंने अविवाहित महिलाओं के  24 हफ्ते तक के गर्भपात की मांग के अधिकारों को बरकरार रखने के बारे में कहा था.  जस्टिस धनंजय चंद्रचूड़ उस संविधान पीठ का भी हिस्सा रहे, जिस ने सहमति से समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया और अनुच्छेद 21 के तहत निजता को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता  दे दी.  वे सबरीमाला मंदिर में प्रवेश करने के लिए सभी उम्र की महिलाओं के अधिकार को बरकरार रखने वाले फैसले का हिस्सा भी रहे.

‘वो’ केवल पैसा चाहे

‘यार दिलदार तु?ो कैसा चाहिए, प्यार चाहिए या पैसा चाहिए…’ कोई भी सच्चा हमसफर तो प्यार की ही बात करेगा, पर वे हमसफर जो सिर्फ पैसे के चलते ही किसी के हमकदम बनते हैं, वे पैसे को ही तवज्जुह देंगे.

पतिपत्नी के बीच जब ‘वो’ आती है, तो शादीशुदा जिंदगी की गाड़ी लड़खड़ाने लगती है. पति के लिए पत्नी का होना ‘घर की मुरगी दाल बराबर’ की तरह होता है. उसे सैक्रेटरी या किसी और के लटके?ाटके अच्छे लगने लगते हैं, तो वह ‘वो’ बन जाती है. तब शुरू होता है पतिपत्नी के बीच मनमुटाव.

ऐसे में मर्द को यह सम?ा लेना चाहिए कि उस की जिंदगी में ‘वो’ का आना किसी खतरे की घंटी से कम नहीं है. इस में कोई दो राय नहीं कि ‘वो’ केवल पैसा ही चाहती है. ‘वो’ वही शख्स है, जो आज इस के पास और कल उस के पास.

मनोज कुमार एक एजेंसी के डायरैक्टर थे. उन की शादी हो चुकी थी. एक बच्चा भी था. उन की एक सैक्रेटरी थी, जिस के साथ उन के नाजायज संबंध थे और अपने उस संबंध के प्रति वे शर्मिंदा भी नहीं थे.

शुरूशुरू में सैक्रेटरी ने खुद को बेबस बता कर नौकरी हासिल की. बाद में वह मन से कंपनी की सेवा करने लगी और तब से बौस अपनी सैक्रेटरी से संबंधों के चलते अकसर ?ाठ बोल कर देर रात घर लौटते और ‘वो’ पर ज्यादा से ज्यादा खर्च करते. पत्नी के मांगने पर वे उस से कहते कि कंपनी घाटे में जा रही है, इसलिए कम खर्च करो.

वह बेवकूफ औरत अपने पति पर आंख मूंद कर भरोसा कर रही थी. सैक्रेटरी से संबंधों के चलते मनोज साहब औफिस पर पूरी तरह ध्यान नहीं दे पाते थे. ऐसे में उन का कारोबार पूरी तरह चौपट हो गया और जब उन के पास पैसा नहीं रहा, तो उन की ‘वो’ भी उन का दामन छुड़ा कर चली गई और वह भी सामने वाली कंपनी के डायरैक्टर की बांहों में.

उस के लिए तो वही बात थी कि चलो एक और मूर्ख फंसा. पर हैरानी की बात यह है कि क्या उस मूर्ख को यह नहीं दिखता कि कल तक तो यह सामने वाली कंपनी के डायरैक्टर की बांहों में ?ाल रही थी?

मर्दों को यह सम?ा लेना चाहिए कि आज की इस रफ्तार भरी जिंदगी में जहां उस की पत्नी उस की सच्ची हमकदम है, ऐसे में किसी दूसरी औरत का हाथ थामना किसी भी तरह से सही नहीं ठहराया जा सकता.

यह माना कि आप की पत्नी खूबसूरत नहीं है या बोलचाल में ज्यादा व्यवहार कुशल नहीं है, पर फिर भी बुरे वक्त में यही बीवी अपनी बचत की पूंजी से आप को उबारती है.

उस वक्त वह अपने किसी कीमती गहने या साड़ी का मोह नहीं रखती, क्योंकि उस का अनमोल गहना उस का मर्द जो उस के पास होता है.

पत्नी यह जानती है कि आप के पास पैसा नहीं है तो वह भूखी सोना भी मंजूर कर लेगी, पर आप को छोड़ कर हरगिज नहीं जाएगी, बल्कि दिनरात मेहनत कर वह आप को सहयोग ही देगी.

इस के उलट बाहर वाली ‘वो’ केवल वहीं तक सहयोग देती है, जब तक आप के पास पैसा है. वैसे भी यह सम?ा लेना चाहिए कि वह आप के पास सुख और आराम खोजने आई है, न कि आप का दुखदर्द बांटने, इसलिए ‘वो’ को अपनी शादीशुदा जिंदगी में घुसपैठ कभी मत करने दीजिए.

दिनेश इस मामले में कहता है, ‘‘घरवाली ही घरवाली होती है और बाहरवाली बाहरवाली. बाहरवाली नए फैशन की होती है, जबकि घरवाली तो वही रूटीन… कभीकभी तो घरवाली की शक्ल देख कर मैं उकता जाता हूं.

‘‘बाहरवाली मेरे लिए हर दिन नई सोच और नया अंदाज ले कर आती

है. बस, एक बर्गर, पिज्जा या कौफी और बदले में ढेर सारी मस्ती. है

न सस्ती?’’

सम?ादार लोग मानते हैं कि ‘वो’ अकसर वे लड़कियां होती हैं, जो आलसी औरकायर होती हैं. वे मेहनत नहीं करना चाहतीं, पर उन के सपने ऊंचे होने के चलते बहुत सा पैसा कमाना चाहती हैं.

उन्हें जिंदगी में हर समय नया स्टाइल चाहिए, इसलिए वे एक पैसे वाले से संबंध बनाती हैं, जिस के पास पैसा और गाड़ीबंगला हो. ऐसी लड़कियां उन नए कारोबारियों के पास कम ही फटकती हैं, जो अभी मध्यम तबके से आए होते हैं.

मजेदार बात यह है कि शादी के बारे में भी इन के खयाल कुछ ऐसे ही होते हैं. कोई पैसे वाला, पर तब यही लड़कियां किसी नौजवान को ढूंढ़ती हैं, जबकि सिर्फ मौजमस्ती के लिए ये न उम्र देखती हैं और न शक्ल. वे तो बस पर्स देखती हैं. अगर आप ऐसी गलती करने जा रहे हैं, तो पत्नी के बारे में भी सोचिए.

आप की पत्नी क्या स्मार्ट नहीं. अगर है तो फिर क्यों इधरउधर मुंह मार रहे हैं. और अगर नहीं है, तो आप उसे स्मार्ट बनने में कितनी मदद करते हैं?

आप की पत्नी आप को अगर बोर लगने लगे, तो आप उस का गैटअप चेंज करने में उस की मदद कीजिए. इस तरह आप अपनी पत्नी को कभीकभी ‘वो’ सम?ा कर प्यार करने की कोशिश कीजिए, तो शायद कभी ‘वो’ की जरूरत ही न पड़े. और आप के पैसे बचे रहें.

‘वो’ अकसर पतिपत्नी का आपस में लड़ा कर उन का तलाक कराती है और फिर पति की जायदाद हड़प कर उसे फुटपाथ पर ला खड़ा करती है. अब मरजी है आप की.

धर्म का चश्मा चढ़ाए अंधी सोच

धर्म का चश्मा पहन कर सोच भी अंधी हो जाती है. रायपुर (भाटापाड़ा) के गांव टेहका में 3 आंखें, 2 नाभि व सिर पर एक मांस के पिंड के साथ बच्चे का जन्म हुआ. उसे देखने के लिए सैकड़ों लोग वहां जा पहुंचे और खूब चढ़ावा चढ़ा, क्योंकि गणेश पक्ष की समाप्ति व पितृ पक्ष के लगते ही बच्चे का जन्म उसे देवता की श्रेणी में ले आया था. इस में कुदरत की चूक पर कोई ध्यान नहीं दिया गया.

इस मसले पर मनोवैज्ञानिक डाक्टर विचित्रा दर्शन आनंद कहती हैं, ‘‘सवाल न करने की सोच ही इनसान की शख्सीयत उभारने में सब से बड़ी बाधक होती है और इसे जन्म देता है वह माहौल, जिस में कोई शख्स पलताबढ़ता है.

‘‘तभी तो आज भी काला जादू से बीमारी ठीक करने की बात पर विश्वास किया जाता है. मिसाल के तौर पर तिलक हजारिका (जादूगर) ने एक शख्स की पीठ पर थाली चिपका दी और उस की तकलीफ दूर करने का दावा किया.’’

तर्कशास्त्री सीवी देवगन ने काला जादू होने की बात को नकारा है. इसे एक चालबाजी बताया है.

कुछ महीने पहले टैलीविजन पर एक शख्स लटकन बाबा ने भविष्यफल व अचूक उपाय बताने के नाम पर अपनी किस्मत चमका ली. उस बाबा ने कहा कि शंकरजी पर चढ़ा बेलपत्र ले कर उस पर भभूत लगाएं और उस का तावीज बना कर गले में डाल लें. आप के सारे रुके काम पूरे हो जाएंगे.

इस से ज्यादा मजाकिया बात और क्या होगी? फिर भी लोग पाखंड के कामों से जुड़े रहते हैं. अपने दिमाग का छोटा सा हिस्सा भी इस्तेमाल में नहीं लाते, तभी तो ऐसे बाबाओं की तादाद में लगातार बढ़ोतरी हो रही है.

भक्ति या भरमजाल

कुछ समय पहले ‘राधे मां’ का बिगुल बजा था. लाखों भक्तों ने ‘राधे मां’ नामक औरत को देवी का दर्जा दे कर उस की पूजा की. एक से बढ़ कर एक विवादों से घिरी यह ‘राधे मां’ हाथ में त्रिशूल, माथे पर बड़ा लाल टीका, नाक में नथनी पहन कर भक्तों के आकर्षण का केंद्र बन गई.

क्या है असलियत

पंजाब में गुरुदासपुर की सुखविंदर कौर शादी के बाद घर चलाने के लिए कपड़े सिलती थी. 21 साल की उम्र में सुखविंदर कौर गुरु की शरण में जा पहुंची. वहां उस का नामकरण ‘राधे मां’ हुआ और ‘राधे मां’ के भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ी. इन में सिनेमा जगत व दूसरी हस्तियां भी शामिल हो गईं.

यह ‘राधे मां’ कभी भक्तों के बीच झूमती और भक्ति के जोश में किसी भक्त की गोद में चढ़ जाती. आशीर्वाद दे कर उस भक्त की मनोकामना पूरी करती.

आस्था के मायाजाल में लिपटी जनता ‘राधे मां’ के जयकारे लगाते कई बार देखी गई. कभी यही ‘राधे मां’, लाल मिनी स्कर्ट में कहर बरपाती देखी गई. इस का अपना दरबार सजता था.

वकील फाल्गुनी ब्रह्मभट्ट ने विरोध किया कि यह औरत धर्म के नाम पर लोगों को ठग रही है.

एक और बाबा

‘सारथी बाबा’, जिस की करोड़ों की जायदाद है. गंजाम, ओडिशा में वह साधुगीरी कर धनदौलत के नशे में डूबा हुआ है. ‘सारथी बाबा’ का असली नाम संतोष राउल है. घर से भाग कर 7 साल भटकने के बाद साल 1992 में केंद्रपाड़ा, ओडिशा में अपना आश्रम खोला. यह बाबा प्रवचन देने के बजाय रंगरलियां मनाता रहा और बीयर बेचता रहा. बाद में पुलिस ने इसे गिरफ्तार किया और अब इस पर केस चल रहा है.

‘हीलिंग बाबा’ के नाम से मशहूर सैबेश्चियन मार्टिन मुंबई के ठाणे इलाके में एक ‘आशीर्वाद प्रार्थना केंद्र’ चला रहा था. यह बाबा मरीज को अपने सामने खड़ा करता है और अपने दोनों हाथों को ऊपर उठा कर कुछ बुदबुदाता है. कुछ ही देर में वह मरीज खड़ेखड़े ही गिर जाता है, मतलब उस की बीमारी दूर हो गई.

इस ‘हीलिंग बाबा’ ने जन्म से अंधी एक लड़की की आंखें ठीक करने का दावा किया. इस के अलावा पुष्पा नाम की औरत की दोनों खराब किडनी को ‘जीसस’ की दुहाई दे कर ‘हीलिंग बाबा’ ने ठीक करने का दावा किया.

पिछले 10 साल से यह केंद्र चल रहा है, पर अब पुलिस ने इस केंद्र के 2 लोगों को गिरफ्तार किया है और ‘हीलिंग बाबा’ खुद एक अस्पताल में भरती हो गया.

अब सोचने वाली बात यह है कि जो आदमी किडनी ठीक कर सकता है, आंखों में रोशनी ला सकता है, वह अपना इलाज क्यों नहीं कर पाया?

जानलेवा प्रथा

3 सौ सालों से चल रहा 2 गांवों के बीच खुलेआम मौत का खूनी खेल ‘गोटमार उत्सव’ बड़े ही जोश के साथ मनाया जाता है. कहा जाता है कि छिंदवाड़ा के पांडुरना गांव का एक लड़का और सांवर गांव की एक लड़की भाग कर नदी पार कर रहे थे, तभी गांव वालों ने देख लिया और दोनों को पत्थर मारमार कर मार डाला.

तभी से यह ‘गोटमार उत्सव’ के रूप में भादों मास के कृष्ण पक्ष में मनाया जाता है. इस में हर साल काफी लोग घायल होते हैं और कुछ की मौत भी हो जाती है.

प्रशासन इसे रोकने में नाकाम रहा है. इस के लिए धारा 144 भी लगाई गई, लोगों के खिलाफ रबड़ की गोलियां भी चलाई गईं, पर यह उत्सव न रुक पाया. अब उत्सव वाले दिन प्रशासन की तरफ से एंबुलैंस वहां रहती है, जो घायलों को अस्पताल ले जाने का काम करती है.

अभी हाल ही में सिंहस्थ, उज्जैन में कुंभ मेले में साधुसंतों में गोलीबारी और तलवारबाजी हुई. कई साधुसंन्यासी तो चोटिल हो कर अस्पताल पहुंच गए.

सोचने की बात यह है कि साधुसंत मोहमाया से दूर रहने की बात करते हैं, पर खुद गुटबाजी में लिप्त हैं और लड़मर रहे हैं. उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में भी चढ़ावे के बंटवारे के चक्कर में वहां के पंडों को हाथापाई करते देखा गया था.

ऐसी घटनाएं देखसुन कर भी जनता की आंखें क्यों नहीं खुलतीं? ऐसी सोच पर दुख होता है. धर्म की आड़ में धर्म के ठेकेदार जनता को यों ही बहलातेफुसलाते रहेंगे, पर जनता कब तक दिमाग की खिड़की बंद किए उन के पीछेपीछे चलती रहेगी?

सरकारी नौकरी या खुद का काम

बेरोजगार नौजवानों की फौज दिनोंदिन बढ़ती जा रही है. जहां तक सरकारी नौकरी का सवाल है, चपरासी जैसे पद के लिए लाखों डिगरीधारी अर्जी देते हैं. आज का नौजवान तबका सरकारी नौकरी के लालच में रहता है, लेकिन खुद अपना काम करने की कोशिश नहीं करता.

काश, नौजवान अगर सरकारी नौकरी के बजाय खुद का कारोबार करने का रास्ता चुनें, तो सही समय पर उन के कैरियर की शुरुआत हो सकेगी, क्योंकि तब उन्हें नौकरी के लिए दरदर की ठोकरें नहीं खानी पड़ेंगी.

सरकारी नौकरी मिलना बच्चों का खेल नहीं है. अनेक नौजवान ऐसे हैं, जिन्हें 10-15 साल कोशिश करने के बाद भी सरकारी नौकरी नहीं मिली और अब वे ‘ओवर ऐज’ हो गए हैं, यानी अब उन्हें नौकरी नहीं मिल सकती. अगर वे सरकारी नौकरी का मोह छोड़ कर समय पर कारोबारी बनने की सोच लेते, तो आज नई ऊंचाइयों को छू रहे होते.

ऐसे लोगों से उन नौजवानों को सबक लेना चाहिए, जो आज भी सरकारी नौकरी की उम्मीद लगाए बैठे हैं और अपनी जिंदगी के अहम सालों को बेरोजगार रह कर बरबाद कर रहे हैं.

याद रखिए, बीता हुआ समय लौट कर नहीं आता. ऐसे में जितनी देर से आप कोई कारोबार शुरू करेंगे, उस में उतने ही पीछे रहेंगे, इसलिए सरकारी नौकरी का दामन थामने की इच्छा रखने के बजाय खुद इस लायक बनने की कोशिश करें कि आप दूसरों को अपने कारोबार में रोजगार दे सकें.

अगर सरकारी नौकरी को छोड़ कर निजी क्षेत्र की कंपनियों में नौकरी की बात करें, तो वहां सिर्फ डिगरी होने से काम नहीं चलता, बल्कि कोई हुनर भी होना चाहिए. क्योंकि वहां ‘कचरा’ नहीं चलता, बल्कि वे ‘क्रीम’ को छांटते हैं.

जाहिर है, जिन नौजवानों में ये गुण हैं, वे ही निजी क्षेत्र की कंपनियों में नौकरी की उम्मीद लगा सकते हैं.

निजी कंपनियां सालाना पैकेज भले ही खूब देती हैं, लेकिन उन के काम करने के घंटे और शर्तें बड़ी कठोर होती हैं. जो नौजवान मेहनती हैं, चुनौतियों को स्वीकार करने की हालत में हैं, उन्हें ही कंपनियां मौका देती हैं.

ऐसे में एक आम नौजवान क्या करे? क्यों न वह अपना कारोबार खुद लगाए? नौकर के बजाय वह मालिक क्यों न बने?

जी हां, आज सरकार और बैंकों की इतनी सारी योजनाएं हैं, जिन का फायदा उठा कर बेरोजगार नौजवान अपना खुद का कारोबार लगा सकते हैं.

नौजवान कारोबारियों के सामने सब से बड़ी समस्या पैसा लगाने की होती है. अमीर परिवार के नौजवान के लिए तो इस का समाधान है, लेकिन मध्यम और गरीब तबके के नौजवान कारोबार शुरू करने के लिए पैसा कहां से लाएं? कौन उन की मदद करेगा? नातेरिश्तेदार मुंह फेर लेते हैं. मांबाप के पास इतना पैसा नहीं होता कि वे अपनी औलाद को उस के पैरों पर खड़ा होने के लिए दे सकें.

ऐसे नौजवानों को निराश होने की जरूरत नहीं है. इस के लिए किसी भी सरकारी बैंक में जाइए और लोन के लिए उन की योजनाओं की जानकारी लें. वहां आप की बात बन सकती है.

नौजवान कारोबारियों के लिए सरकार अनेक साधन जुटाती है. इस में जमीन, पूंजी, शक्ति के साधन, कच्चा माल, यातायात, संचार वगैरह खास हैं.

अगर नौजवानों को कारोबार लगाने के लिए तकनीकी मदद की जरूरत होती है, तो सरकारी संस्थाएं उन्हें उचित सलाह देती हैं.

सरकार नए कारोबारियों को आकर्षित करने के लिए समयसमय पर अलगअलग कार्यशालाएं, सम्मेलन और विचार गोष्ठियां भी कराती है.

लड़कियों को कारोबार के क्षेत्र में बढ़ावा देने के लिए सरकार की तरफ से विशेष योजनाएं चलाई जा रही हैं. उन्हें स्वरोजगार के लिए ट्रेनिंग, सलाह व कर्ज संबंधी सुविधाएं दी जा रही हैं. उन्हें खासतौर पर रियायती दर पर कर्ज दिया जाता है.

लघु उद्योग सेवा संस्थान, लघु उद्योग व्यवसाय संगठन, जिला उद्योग केंद्र, भारतीय औद्योगिक विकास संगठन वगैरह इस दिशा में अच्छा काम कर रहे हैं. इस के अलावा राष्ट्रीय साहस विकास कार्यक्रम, लघु उद्योग विकास संगठन और राज्यस्तरीय परामर्श देने वाले संगठन भी नएनवेले कारोबारियों को ट्रेनिंग देने का काम बखूबी करते हैं.

सरकार द्वारा पिछड़े क्षेत्रों में कारोबारियों को बढ़ावा देने के लिए विशेष सुविधाएं और छूट दी जाती है. सरकार उन्हें अनुदान देती है, ताकि उन की सामान बनाने की लागत कम हो सके. उन्हें टैक्सों में भी कई तरह की छूट दी जाती है.

जब आप कारोबारी बनेंगे, तो आप के सामने तमाम चुनौतियां आएंगी, लेकिन निराश हो कर पीछे हटने के बजाय उन का डट कर सामना करने की कोशिश करें.

जिस दिन आप ऐसा करने के लायक हो जाएंगे, तब आप का दृढ़ निश्चय और आत्मविश्वास ही आप को कामयाबी की सीढ़ी पर आगे बढ़ने में मददगार होगा.

नजदीकी रिश्तों में प्यार को परवान न चढ़ने दें

मामला 1

मध्य प्रदेश के आदिवासी बाहुल्य जिले धार के गांव गिरवान्या में पिछले साल 12 दिसंबर को महुआ के एक पेड़ पर जवान लड़कालड़की फांसी पर लटके मिले थे. लड़के का नाम दिनेश और लड़की का नाम सीमा था. वे दोनों एक शादी में शामिल होने अपने गांव देगडी नानपुर से गिरवान्या आए थे.

यह खबर जंगल की आग की तरह पूरे निमाड़ इलाके में फैली. यह तो हर किसी को समझ आ गया था कि मामला प्यारमुहब्बत का रहा होगा, लेकिन लोगों को जब यह पता चला कि सीमा और दिनेश आपस में चचेरे भाईबहन थे, तो हर किसी ने यह कहा कि उन्होंने खुदकुशी कर के दूसरी गलती की. पहली गलती यह थी कि भाईबहन होने के नाते उन्हें प्यार के पचड़े में ही नहीं पड़ना चाहिए था.

तो फिर क्या करते वे दोनों और ऐसी गलतियां अकसर आजकल के जवान लड़केलड़कियों से क्यों हो रही हैं कि वे नजदीकी रिश्ते में प्यार में पड़ जाते हैं और साथ जीनेमरने और शादी की कसमें खाने के बाद जब घर वालों से शादी की बात करते हैं, तो उन पर तो मानो पहाड़ सा टूट पड़ता है, क्योंकि रिश्तेनातों की मर्यादा इस की इजाजत नहीं देते?

इस सवाल का जवाब दिनेश के पिता सुकलाल और सीमा के पिता इरडा के पास भी नहीं है जो आपस में भाईभाई हैं. उन दोनों के चेहरे अपने बच्चों को खोने के 3 महीने बाद भी बुझे और उतरे हुए हैं, लेकिन वे भी समाज और उसूलों से बंधे हैं, जो गलत कहीं से नहीं कहे जा सकते.

सीमा और दिनेश ने अपने प्यार के बारे में बताते हुए शादी की इजाजत अपनेअपने पिता से मांगी थी, जो उन्होंने नहीं दी. इस जवाब पर उन्होंने वही बुजदिली दिखाई, जो बीती 9 फरवरी को गुजरात के सूरत में रामसेवक और पूनम उर्फ लक्ष्मी ने दिखाई थी.

मामला 2

रामसेवक निषाद मूलत: उत्तर प्रदेश का रहने वाला था और अपने 3 भाइयों के साथ रोजगार के जुगाड़ में सूरत आ गया था. अच्छी बात यह थी कि उसे एक कंपनी में मशीन आपरेटर का काम भी मिल गया था. 6 लोगों वाला यह परिवार शिवांजलि सोसाइटी के नजदीक अक्षय पटेल की चाल में एक दड़बेनुमा घर में रहता था.

घर की माली हालत हालांकि ठीक नहीं थी, लेकिन सभी भाइयों के कामकाजी होने से जिंदगी की गाड़ी ठीकठाक और शांति से चल रही थी, लेकिन लौकडाउन के दिनों में इन की फुफेरी बहन लक्ष्मी भी सूरत आ गई तो एक तूफान आया और सबकुछ अपने साथ बहा ले गया.

सूरत की एक कंपनी में बतौर टीएफओ आपरेटर काम करने वाले पूनम के पिता गंगाचरण ने भी इसी चाल में कमरा ले लिया था, जो रामसेवक के घर के नजदीक था.

3 महीनों में ही नाबालिग 17 साला पूनम और रामसेवक को एकदूसरे से इतना प्यार हो गया कि वे साथ जीनेमरने की कसमें खाने लगे.

रिश्ते में कजिन होने के चलते उन पर दोनों के घर वालों ने किसी तरह का शक नहीं किया, लेकिन यह लापरवाही

5 फरवरी को उन पर तब गाज बन कर गिरी, जब उन्होंने अपने प्यार की बात बताते हुए शादी करने की भी ख्वाहिश जाहिर की.

यह सोचते हुए कि जवानी में नादानी हो ही जाती है, घर वालों ने उन्हें टरकाने की कोशिश की कि जल्द ही मसला सुलझा लेंगे और कुछ सख्ती भी दिखाई कि किसी भी सूरत में यह शादी नहीं हो सकती तो रामसेवक और लक्ष्मी ने भी पंखे पर एकसाथ लटक कर खुदकुशी कर ली.

मामला 3

यह दिलचस्प मामला छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले का है. दिसंबर, 2020 के दूसरे हफ्ते में सुबह के तकरीबन 10 बजे एक जवान लड़की गंगरेल बांध पर बने मां अंगार मोती मंदिर के पास गहरे पानी में कूद पड़ी, जिस पर राह चलते लोगों की नजर पड़ी तो उन्होंने बांध में कूद कर उसे बचा लिया.

मामला थाने तक पहुंचा तो पता चला कि एक साल पहले ही लड़की ने अपने ही गांव के एक लड़के से लव मैरिज की थी. लेकिन दोनों में शादी के बाद पटरी नहीं बैठी तो वह पति से तलाक ले कर मायके आ कर रहने लगी.

यहां तक बात हर्ज की नहीं थी, लेकिन लोचा उस वक्त शुरू हुआ जब लड़की अपने ममेरे भाई से दिल लगा बैठी और वह भी उसे टूट कर चाहने लगा. उन दोनों ने घर वालों से अपनी शादी कराने की बात कही तो वे सकते में आ गए और ऊंचनीच बताते हुए दो टूक कह दिया कि रिश्ते के भाईबहन में आपस में शादी नहीं हो सकती, तो लड़की अकेली दरिया में कूद गई, लेकिन लोगों की नजर में आ जाने से बचा ली गई.

मामला 4

उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के गांव पश्चिम टोला का 20 साला पिंकू लोधी मुंबई में टेलरिंग का काम करता था, लेकिन लौकडाउन के दौरान दूसरे तमाम लोगों की तरह उसे भी गांव वापस आना पड़ा था. आया तो घर के सामने रहने वाली लड़की ज्योतिका लोधी से उसे प्यार हो गया, जो रिश्ते में उस की भतीजी लगती थी. चूंकि नजदीकी रिश्ता होने के चलते उन की शादी की मंजूरी घर वाले नहीं दे रहे थे, इसलिए दोनों ने बीती

18 जनवरी को गांव के एक बगीचे के पेड़ पर साथ लटक कर खुदकुशी कर ली. बाद में यह सुगबुगाहट भी हुई कि दोनों प्यार तो बहुत पहले से करते थे, लेकिन लौकडाउन में पिंकू के गांव आ जाने के बाद यह तेजी से परवान चढ़ने लगा था, जिस का अंजाम इस तरीके से हुआ.

जवानी और नादानी

नजदीकी रिश्तों में प्यार और शादी की जिद पूरी न होने पर साथ या फिर अकेले खुदकुशी कर लेने के जो मामले आएदिन सामने आते हैं, उन में लड़कालड़की की उम्र इतनी कम होती है कि उन्हें समझदार नहीं माना जा सकता. वे सपनों की दुनिया में जी रहे होते हैं, जहां रिश्तेनातों और हकीकत की कोई जगह ही नहीं होती. यह सच है कि प्यार का असल लुत्फ जवानी के दिनों में ही आता है, क्योंकि इस उम्र में प्यार किया नहीं जाता, बल्कि हो जाता है.

लेकिन जब यह प्यार गलत जगह होता है, तो लुत्फ कम मुसीबतें ज्यादा प्रेमियों को झेलनी पड़ती हैं. खासतौर पर जब घरपरिवार के लोगों समेत समाज और कानून भी उन की जिद से इत्तिफाक न रखते हों.

इन सभी की निगाह में नजदीकी रिश्तों में प्यार और शादी जुर्म है, फिर भी नौजवान यह करते हैं तो इस की वजहें जानना भी जरूरी हैं, जिस से इस

आफत को वक्त रहते काबू किया जा सके और निराशहताश बच्चों की जान बचाई जा सके.

इसलिए परवान चढ़ता इश्क

यह समाज का वह दौर है, जब हर तबके के लोग आजादी से रहना चाहते हैं, इसलिए वे कमाऊ होते ही या फिर शादी के कुछ दिनों बाद मांबाप और घर से अलग हो जाते हैं. जब बच्चे होते हैं, तो उन्हें पालनेपोसने में सभी को पसीने आ जाते हैं. रोजीरोटी के जुगाड़ में सभी इस तरह मसरूफ रहते हैं कि बड़े होते बच्चों को बहुत सी जरूरी बातें नहीं सिखा पाते, खासतौर से रिश्तों की हद और अहमियत कि ममेरा, चचेरा, फुफेरा और मौसेरा रिश्ता क्या होता है और  कैसे निभाया जाता है.

रिश्तेदारी में पहले सी नजदीकियां नहीं रह गई हैं, लिहाजा लोग सालोंसाल एकदूसरे से नहीं मिल पाते. और जब कभी मिलते भी हैं, तो 2-4 दिनों के लिए और पुरानी यादें ताजा कर चलते बनते हैं. जवान होते बच्चे होश संभालने के बाद एकदूसरे को देखते हैं, तो उन की फीलिंग्स में एकदूसरे के लिए सैक्स का आकर्षण हो आना कुदरती बात होती है, क्योंकि उन्होंने एकदूसरे को कभी भाई या बहन की नजर से देखा और महसूसा ही नहीं होता.

इन के मिलनेजुलने पर कोई रोकटोक नहीं होती, इसलिए गलत जगह हो गया प्यार जल्द परवान चढ़ता है. चूंकि तनहाई और आजादी इफरात से मिलती है, इसलिए अकसर उन में सैक्स ताल्लुकात भी कायम हो जाते हैं. फिर तो इन की वापसी मुश्किल ही नहीं, बल्कि नामुमकिन हो जाती है.

चूंकि एक नया रिश्ता कायम हो चुका होता है, इसलिए पुराने रिश्ते की कोई कीमत और अहमियत इन के लिए नहीं रह जाती.

आखिर हमारी शादी में हर्ज क्या है? यह सवाल जब वे घर वालों से करते हैं, तो जवाब में समझाइश और मारकुटाई ही उन के हिस्से में आती है. पर तब तक लड़कालड़की तन और मन से एकदूसरे के हो चुके होते हैं. घर वालों की बातें सुन कर उन्हें लगता है कि उन्होंने कोई भारी पाप कर डाला है.

प्यार के दौरान किए गए वादे और खाई गई कसमें इन्हें रहरह कर याद आती हैं. साथ जी नहीं सकते, लेकिन साथ मर तो सकते हैं की सोच लिए ये लोग एकसाथ खुदकुशी कर लेते हैं.

मांबाप भी ध्यान दें

जवान होते लड़केलड़कियों को शुरू से ही रिश्तेनातों की अहमियत वक्तवक्त पर समझाते रहें और उन्हें अकेले में ज्यादा मिलनेजुलने न दें. सीधे टोकने पर बात बिगड़ सकती है, इसलिए कोई न कोई उन के साथ रहे तो प्यार पनपेगा ही नहीं. लड़कालड़की भी रिश्ते की अहमियत आप की तरह समझते हैं, यह मुगालता पालना अकसर महंगा पड़ता है.

लड़का या लड़की को कभी रिश्तेदार के यहां लंबे वक्त के लिए अकेला न छोड़ें, खासतौर से वहां जहां उन की उम्र का लड़का या लड़की हो. इस के बाद भी कभी वे अगर शादी की बात करें तो सब्र और समझ से काम लें, ज्यादा डांटफटकार, रोकटोक और मारपिटाई से भी बात नहीं बनती, क्योंकि इश्क का भूत बच्चों के सिर चढ़ कर बोल रहा होता है, इसलिए उन्हें इतना मौका ही न दें कि वे नजदीकी रिश्ते में प्यार करें.  तो फिर हल क्या

तेजी से बढ़ती इस समस्या का हल नौजवानों के पास ही है, जो जानतेमझते हैं कि नजदीकी रिश्तों में प्यार और शादी को कोई मंजूरी नहीं देता, इसलिए इन्हें ही ये एहतियात बरतनी चाहिए :

* रिश्ते के कजिन यानी भाईबहन के अलावा हमउम्र चाचा, मामा, मौसा और फूफा से अकेले में मिलनेजुलने से बचना चाहिए. यही बात लड़कों को भी समझते हुए उस पर अमल करना चाहिए.

* हंसीमजाक और सैक्सी बातें तो बिलकुल नहीं करनी चाहिए.

* मोबाइल फोन पर बात करने से परहेज करना चाहिए. आजकल प्यार जायज हो या नाजायज इसी पर ज्यादा पनपता है.

* अगर कोई नजदीकी रिश्तेदार प्यार हो जाने की बात कहे, तो बजाय उसे शह देने के पहली बार में ही सख्ती से मना कर देना चाहिए.

* तोहफे न तो लेना चाहिए और न ही देना चाहिए.

* यह बात हमेशा ध्यान रखनी चाहिए कि नजदीकी रिश्तेदारी में प्यार और शादी कामयाब नहीं होती. इस से फायदा तो कोई नहीं उलटे नुकसान कई हैं.

* इस के बाद भी प्यार हो जाए तो धीरेधीरे प्रेमी से दूरी बनाने की कोशिश करते हुए कहीं और मन लगाने की भी कोशिश करनी चाहिए. एक दफा दूसरी जाति और धर्म में प्यार करने पर दुनिया, समाज और कानून आप का साथ दे सकते हैं, लेकिन नजदीकी रिश्तों में प्यार हो जाने पर नहीं, इसलिए इस से बचना ही बेहतर रास्ता है.

* खुदकुशी इस समस्या का हल नहीं है. इस से 2 परिवारों के लोग जिंदगीभर दुख में डूबे रहते हैं और आप को भी कुछ हासिल नहीं होता.

* शादी के लिए घर वालों के राजी न होने पर अगर दूसरा साथ मरने की बात कहे तो उस की जज्बाती बातों में न आ कर उसे समझाना चाहिए कि इस से प्यार अमर नहीं हो जाएगा, बल्कि घर वालों और मांबाप की बदनामी होगी, इसलिए रास्ते अलग करना ही एकलौता रास्ता है.

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