‘यार दिलदार तु?ो कैसा चाहिए, प्यार चाहिए या पैसा चाहिए...’ कोई भी सच्चा हमसफर तो प्यार की ही बात करेगा, पर वे हमसफर जो सिर्फ पैसे के चलते ही किसी के हमकदम बनते हैं, वे पैसे को ही तवज्जुह देंगे.
पतिपत्नी के बीच जब ‘वो’ आती है, तो शादीशुदा जिंदगी की गाड़ी लड़खड़ाने लगती है. पति के लिए पत्नी का होना ‘घर की मुरगी दाल बराबर’ की तरह होता है. उसे सैक्रेटरी या किसी और के लटके?ाटके अच्छे लगने लगते हैं, तो वह ‘वो’ बन जाती है. तब शुरू होता है पतिपत्नी के बीच मनमुटाव.
ऐसे में मर्द को यह सम?ा लेना चाहिए कि उस की जिंदगी में ‘वो’ का आना किसी खतरे की घंटी से कम नहीं है. इस में कोई दो राय नहीं कि ‘वो’ केवल पैसा ही चाहती है. ‘वो’ वही शख्स है, जो आज इस के पास और कल उस के पास.
मनोज कुमार एक एजेंसी के डायरैक्टर थे. उन की शादी हो चुकी थी. एक बच्चा भी था. उन की एक सैक्रेटरी थी, जिस के साथ उन के नाजायज संबंध थे और अपने उस संबंध के प्रति वे शर्मिंदा भी नहीं थे.
शुरूशुरू में सैक्रेटरी ने खुद को बेबस बता कर नौकरी हासिल की. बाद में वह मन से कंपनी की सेवा करने लगी और तब से बौस अपनी सैक्रेटरी से संबंधों के चलते अकसर ?ाठ बोल कर देर रात घर लौटते और ‘वो’ पर ज्यादा से ज्यादा खर्च करते. पत्नी के मांगने पर वे उस से कहते कि कंपनी घाटे में जा रही है, इसलिए कम खर्च करो.
वह बेवकूफ औरत अपने पति पर आंख मूंद कर भरोसा कर रही थी. सैक्रेटरी से संबंधों के चलते मनोज साहब औफिस पर पूरी तरह ध्यान नहीं दे पाते थे. ऐसे में उन का कारोबार पूरी तरह चौपट हो गया और जब उन के पास पैसा नहीं रहा, तो उन की ‘वो’ भी उन का दामन छुड़ा कर चली गई और वह भी सामने वाली कंपनी के डायरैक्टर की बांहों में.