नहीं रहीं शूटर दादी, कोरोना से हुआ निधन 

भारत में कोराना वायरस का कहर बढ़ता ही जा रहा है. अब खेल जगत से जुड़े लोग भी इस वायरस की चपेट में हैं. 2 दिन पहले ही भारतीय महिला हाकी टीम की कप्तान रानी रामपाल समेत 7 खिलाड़ी कोविड 19 पौजिटिव पाए गए और कल 30 अप्रैल, 2021 को दुनिया की सब से उम्रदराज और ‘शूटर दादी’ के नाम से मशहूर निशानेबाज चंद्रो तोमर की कोरोना संक्रमण के चलते मौत हो गई. वे 89 साल की थीं.

उत्तर प्रदेश के बागपत जिले की रहने वाली चंद्रो तोमर को कोरोना संक्रमण के बाद सांस लेने में परेशानी के चलते मेरठ के एक अस्पताल में भरती कराया गया था.

चंद्रो तोमर ने 65 साल की उम्र में निशानेबाजी शुरू की थी. दरअसल, एक दिन वे अपनी पोती शैफाली को ले कर भारतीय निशानेबाज डाक्टर राजपाल सिंह की शूटिंग रेंज पर गई थीं. 2 दिन की ट्रेनिंग में उन्होंने देखा कि शैफाली को गन लोड करना ही नहीं आया. तीसरे दिन दादी ने उस के हाथ से गन ले कर लोड की और निशाना लगा दिया. निशाना सटीक लगा.

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यह देख कर डाक्टर राजपाल सिंह हैरान रह गए और बोले, ‘दादी, तू भी शूटिंग शुरू कर दे.’ बच्चों ने भी उन्हें थोड़ा उकसाया और बोले कि दादी प्रैक्टिस शुरू कर, हम गांव में किसी से नहीं कहेंगे… और बस दादी शुरू हो गईं.

चंद्रो तोमर का निशानेबाजी का सिलसिला चल पड़ा. उन का निशाना लाजवाब था. यही वजह है कि बुजुर्ग चंद्रो तोमर ने निशानेबाजी में नैशनल और स्टेट लैवल पर कई मैडल अपने नाम किए. ‘शूटर दादी’ ने वरिष्ठ नागरिक वर्ग में कई पुरस्कार भी हासिल किए, जिन में ‘स्त्री शक्ति सम्मान’ भी शामिल है जिसे खुद राष्ट्रपति ने उन्हें भेंट किया था.

फिल्मकार अनुराग कश्यप ने फिल्‍म ‘सांड़ की आंख’ चंद्रो तोमर और उन की देवरानी प्रकाशी तोमर की असली जिंदगी पर ही बनाई थी. यह फिल्म काफी मशहूर हुई थी.

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फिल्म हीरो आमिर खान ने भी दोनों ‘शूटर दादी’ की कहानी से प्रभावित हो कर उन्‍हें अपने शो ‘सत्‍यमेव जयते’ में भी बुलाया था.

चंद्रो तोमर की देवरानी प्रकाशी भी दुनिया की उम्रदराज महिला निशानेबाजों में गिनी जाती हैं. अपनी जिंदगी में इन दोनों औरतों ने मर्द प्रधान समाज में कई रूढ़ियों को भी खत्म किया.

सरिता पत्रिका ने साल 2019 में चंद्रो तोमर पर लंबा लेख छापा था, जब उन पर बनी फिल्म ‘सांड़ की आंख’ रिलीज हुई थी. इस फिल्म मेम भूमि पेडनेकर ने चंद्रो तोमर का किरदार और तापसी पन्नू ने उन की देवरानी प्रकाशी तोमर का किरदार निभाया था.

कोरोना: देश में “संयुक्त सरकार” का गठन हो!

इस महामारी से एकजुट हो कर जूझने के लिए जरूरत आ पड़ी है, देश में ‘संयुक्त सरकार’ का गठन हो.

क्या वाकई देश में ‘संयुक्त सरकार’ बनाने की जरूरत आ पड़ी है?

देश में कोरोना को ले कर जो हालात बन चुके हैं, वह दिल दहला रहे हैं. कहीं रेमडेसीविर इंजेक्शन नहीं है, कहीं औक्सीजन गैस नहीं है, कहीं बेड नहीं है, तो कहीं एंबुलेंस नहीं है.

लाशों को भी श्मशान घाट में जगह नहीं मिल पा रही है. उसे देख कर लगता है कि देश में मैडिकल इमर्जेंसी नहीं, बल्कि संयुक्त सरकार का गठन किया जाना चाहिए .

देश के गंभीर हालात पर देश भले ही मौन है, मगर देश के बाहर तमाम आलोचना हो रही है. आस्ट्रेलिया के प्रमुख अखबार ‘फाइनेंशियल रिव्यू’ ने प्रसिद्ध कार्टूनिस्ट डेविड रो का एक कार्टून छापा है- “पस्त हाथी पर मौत की सवारी.”

इस कार्टून में भारत को एक हाथी का प्रतीक दिखाया गया है, जो मरणासन्न है और प्रधानमंत्री मोदी अपने सिंहासन पर निश्चिंत शान से बैठे हुए हैं.

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देश और दुनिया में इस तरह की आलोचना से अच्छा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं देश के मुखिया होने के नाते सामने आ कर देश में सभी महत्वपूर्ण दलों के प्रमुख नेताओं को ले कर संयुक्त सरकार का गठन की घोषणा कर के देश को बचा सकते हैं. जैसे ही हालात में सुधार हो, देश पुनः अपने राजनीतिक रंगरूप में आगे बढ़ने लगे.

वस्तुत: कोरोना का कहर देश के लगभग सभी राज्यों में बिजली बन कर टूटा है. देश का सब से बड़ा राज्य उत्तर प्रदेश हो या महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश हो या राजस्थान, दिल्ली हो या दक्षिण भारत के प्रदेश सभी जगह कोविड-19 के कारण स्वास्थ्य संकट खड़ा हो गया है और शासनप्रशासन की धज्जियां उड़ रही हैं. लगता ही नहीं कि कहीं कोई व्यवस्था सुचारु रूप से चल रही है. अस्पतालों के बद से बदतर हालात वायरल वीडियो के रूप में देश देख रहा है. जीवनरक्षक दवाएं नहीं मिल पा रही हैं और अगर ये कहीं मिल भी रही हैं, तो कालाबाजारी में लाखों रुपए लोगों को देने पड़ रहे हैं.

जिस तरह कोरोना महासंकट के कारण हालात बेकाबू हो गए हैं और संभले नहीं संभल रहा है. उन्हें देख कर लगता है कि तत्काल प्रभाव से देशहित मे संयुक्त राष्टीय सरकार को देश को सौंप देना चाहिए.

औक्सीजन का ही एक मसला अगर हम देखें तो पाते हैं कि देश के हर कोने में त्राहिमामत्राहिमाम मची हुई है. कहीं औक्सीजन नहीं है, तो कहीं औक्सीजन होने पर उसे अनट्रेंड लोग संचालित कर रहे हैं और न जाने कितने मरीज सिर्फ लापरवाही से मर गए. कई जगहों पर तो औक्सीजन लीकेज के कारण आग लग गई और बेवजह लोग मर गए.

औक्सीजन का वितरण भी देशभर में सुचारु रूप से नहीं हो पा रहा है. सवाल है कि आखिर इस का दोषी कौन है? शासनप्रशासन आखिर कहां है? ऐसी गंभीर हालत को देख कर कहा जा सकता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी को देश को जो दिशा देनी चाहिए, उसे नहीं दे पा रहे हैं. चहुं ओर अव्यवस्था का आलम बन गया है, इसलिए जितनी जल्दी हो सके, देश अगर संयुक्त राष्ट्रीय सरकार काम संभाल ले तो कोरोना संकट से नजात शीघ्र मिलने की संभावना है .

देश में महामारी का आलम है. भयंकर हो चुके कोरोना के कारण सरकारें ‘मौतों का हत्याकांड’ कर रही हैं यानी आंकड़े छिपाए जा रहे हैं.

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छत्तीसगढ़ से औक्सीजन लखनऊ, उत्तर प्रदेश भेजा जा रहा है. और कहीं का औक्सीजन कहीं सत्ता की धौंस दिखा कर रोक लिया जा रहा है. लोग इस आपाधापी में बेवजह ही मर रहे हैं. ऐसे गंभीर हालात बन गए हैं. जमाखोरी और महंगाई सुरसा के मुंह की तरह बढ़ चुकी है. शासन महंगाई को रोक नहीं पा रहा है और जमाखोरी कर के लोग आम लोगों को दोनों हाथों से लूट रहे हैं. लगता है, देश में शासन नहीं है. देश अराजकता की ओर बढ़ चुका है. जिसे जितनी जल्दी हो सके, व्यवस्थित करने के लिए संयुक्त सरकार बनाना इस दृष्टिकोण से उचित प्रतीत होता है क्योंकि इसी संवैधानिक माध्यम से देश में एक रूप से शासन संभव होगा और देश कोरोना से लड़ पाएगा.

और दुनिया चिंतित हो उठी है…

जिस तरीके से कोरोना की रफ्तार बढ़ रही है, आने वाले समय में प्रतिदिन 5 लाख कोरोना मरीज मिलने लगेंगे तो हालात और भी गंभीर हो जाएंगे. स्थिति में सुधार का क्या प्रयास हो रहा है? यह देशदुनिया की जनता को दिखाई नहीं दे रहा है. स्थिति विषम होते हुए ही दिखाई दे रही है.

यहां सब से महत्वपूर्ण तथ्य है कि कोविड-19 की तबाही भयावह मंजर को, भारत के गंभीर हालात को दुनिया देख रही है और उसे देख कर के चिंतित है. और आगे आ कर के हाथ बंटाना चाहती है पाकिस्तान, चीन जैसे शत्रु राष्ट्रों के अलावा यूरोपीय संघ, जरमनी, ईरान ने भारत के गंभीर हालात को देख कर के सहायता देने की पेशकश की है. वहीं रूस और अमेरिका भी सामने आ गया है, क्योंकि आज भारत के कारण दुनिया को ‘मानवता संकट’ में दिखाई देने लगी है.
अनेक देश भारत को इस महामारी से बचाने के लिए पहल कर रहे हैं. ऐसे हालात को देख कर के कहा जा सकता है कि जब दुनिया चिंतित है, तो सीधा सा अर्थ है कि भारत की वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी की मोदी सरकार असफल सिद्ध हो रही है. हालात यही बने रहे तो कहा जा रहा है कि आने वाला समय और भी भयावह होगा.

हमारे यहां विगत दिनों सब से मजाक भरा फैसला यह रहा कि कोरोना वैक्सीन 3 दरों पर खरीदने का ऐलान किया गया. केंद्र सरकार स्वयं 150 रुपए में और राज्यों को 600 रुपए में वैक्सीन बेचने का फरमान जारी हुआ, जो सरकार के दिवालियापन का ही सुबूत है.

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गंभीर हालत का इस बात से भी पता चलता है कि दुनिया के कई देशों ने भारत से अपनी आवाजाही को रोक दिया है. भारत के कई बड़े पैसे वाले अपनी जान बचाने की खातिर देश छोड़ कर भाग चुके हैं.

यह भी महत्वपूर्ण तथ्य है कि भारत में हुई मौतों पर अमेरिका जैसे देश मान रहे हैं कि भारत में जो आंकड़े सरकार बता रही है, उस से दोगुना से 5 गुना तक मौतें हो रही हैं, जिन्हें छुपाया जा रहा है.

ऐसे में अगर देश को मैडिकल इमर्जेंसी से बचाने के लिए यथाशीघ्र ही एक राष्ट्रीय सरकार बननी चाहिए, तभी देश में एक रूप में शासन व्यवस्था होने पर लोगों की जान बचेगी, अन्यथा आने वाले समय में जो भयंकर मंजर होगा, उस के कारण लोग देश की शासन व्यवस्था और शासन में बैठे हुए लोगों को कभी भी माफ नहीं कर पाएंगे. इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से आग्रह है कि अपना अहम छोड़ कर सभी राष्ट्रीय दलों को साथ ले कर देश के प्रमुख अर्थशास्त्री, न्यायविद, चिकित्सक, सामाजिक विभूति को आगे ला कर एक ‘राष्ट्रीय संयुक्त सरकार’ बनाएं और उन्हें कैबिनेट मंत्री का दर्जा देते हुए देश को नेतृत्व देने का काम किया जाना चाहिए.

कोरोना अवसाद और हमारी समझदारी

छत्तीसगढ़ सहित संपूर्ण देश में कोराना कोविड-19 से हालात बदतर होते दिखाई दे रहे हैं. छत्तीसगढ़ के भिलाई में एक कोरोना मरीज ने अवसाद में  आकर के आत्महत्या कर ली. इसी तरह एक युवती ने भी आर्थिक हालातों को देखते हुए  कोरोनावायरस पाज़िटिव होने के बाद आत्महत्या कर ली.

कोरोना के भयावह  हालात  की खबरें टीवी, सोशल मीडिया पर गैरजिम्मेदाराना रवैये के साथ  दिखाई जा रही है. जबकि इस सशक्त माध्यम का उपयोग लोगों को साहस बंधाने और जागरूक करने के लिए किया जा सकता है.

दरअसल, आत्महत्या की जो घटनाएं सामने आ रही है, उसका कारण है लोग अवसाद ग्रस्त हो ऐसे कदम उठा रहे हैं. जो समाज के लिए चिंता का सबब  है.

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इस समय में हमें किस तरह अवसाद से बचना हैऔर बचाना है और लोगों को अवसाद से निकालना है….  इस गंभीर मसले पर, इस रिपोर्ट में हम चर्चा कर रहे हैं.

कोरोना काल के इस संक्रमण कारी समय में देखा जा रहा है कि समस्या निरंतर गंभीर होती जा रही है. लॉकडाउन को ही लीजिए, तो यह स्पष्ट हो जाता है कि जिस तरह की पाबंदियां कोरोना- 2 के इस समय काल में लगाई गई हैं वैसी पिछली दफा नहीं थी. चिकित्सालय और सरकारी व्यवस्था भी धीरे धीरे तार तार होते दिखाई दे रहे हैं.

ऐसी परिस्थितियों में जब आज अमानवीयता का दौर है. हर एक जागरूक व्यक्ति को चाहिए कि वह अपने आसपास सकारात्मक उर्जा का संचार करें और लोगों के लिए सहायक बन कर उदाहरण बन जाए.

यह घटना एक सबक है

छत्तीसगढ़ के इस्पात नगरी कहे जाने वाले भिलाई के एक अस्पताल में भर्ती कोरोना के एक मरीज ने अस्पताल की खिड़की से छलांग लगाकर आत्महत्या कर ली.

घटना भिलाई स्थित जामुल थाना क्षेत्र के अंतर्गत एक अस्पताल में घटित हुई. 14 अप्रैल 2021की बीती रात   अस्पताल के  कोविड मरीज ने “बीमारी” से तंग आकर आत्मघाती कदम उठा लिया. घटना की सूचना मिलते ही पुलिस मौके पर पहुंची और मामले की विवेचना कर रही है  जामुल पुलिस ने हमारे संवाददाता को बताया कि आत्महत्या करने वाला  शख्स जामुल के एक अस्पताल में 11 अप्रैल से भर्ती था.उसकी कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आई थी और इलाज चल रहा था. मृतक का नाम ईश्वर विश्वकर्मा है और वह धमधा नगर का रहने वाला है. उसने  अपने वार्ड की खिड़की से छलांग लगाकर आत्महत्या कर ली. पुलिस ने बताया कि अस्पताल प्रबंधन से घटना की सूचना मिली. इसके बाद अस्पताल पहुंचकर मर्ग कायम कर स्वास्थ्य कर्मियों और डॉक्टर से पूछताछ जारी है.

जैसा कि हम जानते हैं ऐसे गंभीर आत्मघात  के मामलों में भी पुलिस की अपनी एक सीमा है. पुलिस औपचारिकता निभाते हुए मामले  की फाइल को आगे  बंद कर देगी. मगर विवेक शील समाज में यह प्रश्न तो उठना ही चाहिए कि आखिर ईश्वर विश्वकर्मा ने आत्महत्या क्यों की क्या ऐसे कारण थे जो उसे आत्म घाट का कदम उठाना पड़ा और ऐसा क्या हो आगामी समय में कोई कोरोना पेशेंट आत्महत्या न करें. समाज और सरकार दोनों की ही जिम्मेदारी है कि हम संवेदनशील हो और अपने आसपास सकारात्मक कार्य अवश्य करें, हो सकता है आप के इस कदम से किसी को संबल मिले और जीने का हौसला भी.

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मीडिया की ताकत को दिशा !

कोरोना कोविड19 के इस समय काल में देश का राष्ट्रीय और स्थानीय मीडिया चाहे वह इलेक्ट्रॉनिक हो अथवा प्रिंट मीडिया ऐसा प्रतीत होता है कि अपने दायित्व से पीछे हट गया है. अथवा वह भूल चुका है कि उसकी ताकत आखिर कहां है.

जिस तरह आज राष्ट्रीय और स्थानीय मीडिया में इस समय खबरें दिखाई जा रहे हैं… और हर पल बार-बार भयावह रूप में दिखाई जा रही है. जिसके कारण लोगों में एक भय का वातावरण निर्मित होता चला जा रहा है. मीडिया का यह परम कर्तव्य है कि खराब से खराब समय में भी अच्छाई को सामने लाते हुए उसे विस्तार से दिखाएं ताकि लोगों में जनचेतना जागता का वातावरण बने. हिंदी और तेलुगु कि कवि डॉक्टर टी. महादेव राव के मुताबिक पूर्व में मीडिया का ऐसा रुख नहीं था, आज मीडिया जिस तरह अपनी ताकत को भूल कर रास्ते से भटक गई है वह समाज के लिए गंभीर चिंता का विषय है. आज मीडिया को चाहिए कि वह लोगों में यह जागरूकता पैदा करें कि हम किस तरह इस महामारी से बच सकते हैं, इसकी जगह लोगों को मौत के आंकड़े और श्मशान घाट के भयावह हालत दिखाकर अखिर मीडिया कैसी भूमिका निभा रहा है.

चिकित्सक डॉक्टर जी आर पंजवानी के मुताबिक महामारी के इस समय में हम जितना हो सके बेहतर से बेहतर काम करें और लोगों को सकारात्मक ऊर्जा से भर दें यही हमारा प्रथम दायित्व होना चाहिए.

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Lockdown Returns: आखिर पिछले बुरे अनुभव से सरकार कुछ सीख क्यों नहीं रहीं?

भले अभी साल 2020 जैसी स्थितियां न पैदा हुई हों, सड़कों, बस अड्डों, रेलवे स्टेशनों में भले अभी पिछले साल जैसी अफरा तफरी न दिख रही हो. लेकिन प्रवासी मजदूरों को न सिर्फ लाॅकडाउन की दोबारा से लगने की शंका ने परेशान कर रखा है बल्कि मुंबई और दिल्ली से देश के दूसरे हिस्सों की तरफ जाने वाली ट्रेनों में देखें तो तमाम कोविड प्रोटोकाॅल को तोड़ते हुए लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी है. पिछले एक हफ्ते के अंदर गुड़गांव, दिल्ली, गाजियाबाद से ही करीब 20 हजार से ज्यादा मजदूर फिर से लाॅकडाउन लग जाने की आशंका के चलते अपने गांवों की तरफ कूच कर गये हैं. मुंबई, पुणे, लुधियाना और भोपाल से भी बड़े पैमाने पर मजदूरों का फिर से पलायन शुरु हो गया है. माना जा रहा है कि अभी तक यानी 1 अप्रैल से 10 अप्रैल 2021 के बीच मंुबई से बाहर करीब 3200 लोग गये हैं, जो कोरोना के पहले से सामान्य दिनों से कम, लेकिन कोरोना के बाद के दिनों से करीब 20 फीसदी ज्यादा है. इससे साफ पता चल रहा है कि मुंबई से पलायन शुरु हो गया है. सूरत, बड़ौदा और अहमदाबाद में आशंकाएं इससे कहीं ज्यादा गहरी हैं.

सवाल है जब पिछले साल का बेहद हृदयविदारक अनुभव सरकार के पास है तो फिर उस रोशनी में कोई सबक क्यों सीख रही? इस बार भी वैसी ही स्थितियां क्यों बनायी जा रही हैं? क्यों आगे आकर प्रधानमंत्री स्पष्टता के साथ यह नहीं कह रहे कि लाॅकडाउन नहीं लगेगा, चाहे प्रतिबंध और कितने ही कड़े क्यों न करने पड़ंे? लोगों को लगता है कि अब लाॅकडाउन लगना मुश्किल है, लेकिन जब महाराष्ट्र और दिल्ली के खुद मुख्यमंत्री कह रहे हों कि स्थितियां बिगड़ी तो इसके अलावा और कोई चारा नहीं हैं, तो फिर लोगों में दहशत क्यों न पैदा हो? जिस तरह पिछले साल लाॅकडाउन में प्रवासी मजदूरों की दुर्दशा हुई थी, उसको देखते हुए क्यों न प्रवासी मजदूर डरें ?

पिछले साल इन दिनों लाखों की तादाद में प्रवासी मजदूर तपती धूप व गर्मी में भूखे-प्यासे पैदल ही अपने गांवों की तरफ भागे जा रहे थे, इनके हृदयविदारक पलायन की ये तस्वीरें अभी भी जहन से निकली नहीं हैं. पिछले साल मजदूरों ने लाॅकडाउन में क्या क्या नहीं झेला. ट्रेन की पटरियों में ही थककर सो जाने की निराशा से लेकर गाजर मूली की तरह कट जाने की हृदयविदारक हादसों का वह हिस्सा बनीं. हालांकि लग रहा था जिस तरह उन्होंने यह सब भुगता है, शायद कई सालों तक वापस शहर न आएं, लेकिन मजदूरों के पास इस तरह की सुविधा नहीं होती. यही वजह है कि दिसम्बर 2020 व जनवरी 2021 में शहरों में एक बार फिर से प्रवासी मजदूर लौटने लगे या इसके लिए विवश हो गये. लेकिन इतना जल्दी उन्हें अपना फैसला गलत लगने लगा है. एक बार फिर से वे पलायन के लिए विवश हो रहे हैं.

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प्रवासी मजदूरों के इस पलायन को हर हाल में रोकना होगा. अगर हम ऐसा नहीं कर पाये किसी भी वजह से तो चकनाचूर अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाना सालों के लिए मुश्किल हो जायेगा. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) के अनुसार लगातार छह सप्ताह से कोविड-19 संक्रमण व मौतों में ग्लोबल वृद्धि हो रही है, पिछले 11 दिनों में पहले के मुकाबले 11 से 12 फीसदी मौतों में इजाफा हुआ है. नये कोरोना वायरस के नये स्ट्रेन से विश्व का कोई क्षेत्र नहीं बचा, जो इसकी चपेट में न आ गया हो. पहली लहर में जो कई देश इससे आंशिक रूप से बचे हुए थे, अब वहां भी इसका प्रकोप जबरदस्त रूप से बढ़ गया है, मसलन थाईलैंड और न्यूजीलैंड. भारत में भी केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के डाटा के अनुसार संक्रमण के एक्टिव केस लगभग 13 लाख हो गये हैं और कुछ दिनों से तो रोजाना ही संक्रमण के एक लाख से अधिक नये मामले सामने आ रहे हैं.

जिन देशों में टीकाकरण ने कुछ गति पकड़ी है, उनमें भी संक्रमण, अस्पतालों में भर्ती होने और मौतों का ग्राफ निरंतर ऊपर जा रहा है, इसलिए उन देशों में स्थितियां और चिंताजनक हैं जिनमें टीकाकरण अभी दूर का स्वप्न है. कोविड-19 संक्रमितों से अस्पताल इतने भर गये हैं कि अन्य रोगियों को जगह नहीं मिल पा रही है. साथ ही हिंदुस्तान में कई प्रांतों दुर्भाग्य से जो कि गैर भाजपा शासित हैं, वैक्सीन किल्लत झेल रहे हैं. हालांकि सरकार इस बात को मानने को तैयार नहीं. लेकिन महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उधव ठाकरे तक सार्वजनिक रूप से कह चुके हैं कि उनके यहां महज दो दिन के लिए वैक्सीन बची है और नया कोटा 15 के बाद जारी होगा.

हालांकि सरकार ने इस बीच न सिर्फ कोरोना वैक्सीनों के फिलहाल निर्यात पर रोक लगा दी है बल्कि कई ऐसी दूसरी सहायक दवाईयों पर भी निर्यात पर प्रतिबंध लग रहा है, जिनके बारे में समझा जाता है कि वे कोरोना से इलाज में सहायक हैं. हालांकि भारत में टीकाकरण शुरुआत के पहले 85 दिनों में 10 करोड़ लोगों को कोविड-19 के टीके लगाये गये हैं. लेकिन अभी भी 80 फीसदी भारतीयों को टीके की जद में लाने के लिए अगले साल जुलाई, अगस्त तक यह कवायद बिना रोक टोक के जारी रखनी पड़ेगी. हालांकि हमारे यहां कोरोना वैक्सीनों को लेकर चिंता की बात यह भी है कि टीकाकरण के बाद भी लोग न केवल संक्रमित हुए हैं बल्कि मर भी रहे हैं.

31 मार्च को नेशनल एईएफआई (एडवर्स इवेंट फोलोइंग इम्यूनाइजेश्न) कमेटी के समक्ष दिए गये प्रेजेंटेशन में कहा गया है कि उस समय तक टीकाकरण के बाद 180 मौतें हुईं, जिनमें से तीन-चैथाई मौतें शॉट लेने के तीन दिन के भीतर हुईं. बहरहाल, इस बढ़ती लहर को रोकने के लिए तीन टी (टेस्ट, ट्रैक, ट्रीट), सावधानी (मास्क, देह से दूरी व नियमित हाथ धोने) और टीकाकरण के अतिरिक्त जो तरीके अपनाये जा रहे हैं, उनमें धारा 144 (सार्वजनिक स्थलों पर चार या उससे अधिक व्यक्तियों का एकत्र न होना), नाईट कर्फ्यू सप्ताहांत पर लॉकडाउन, विवाह व मय्यतों में निर्धारित संख्या में लोगों की उपस्थिति, स्कूल व कॉलेजों को बंद करना आदि शामिल हैं. लेकिन खुद केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डा. हर्षवर्धन का बयान है कि नाईट कफर््यू से कोरोनावायरस नियंत्रित नहीं होता है, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसे ‘कोरोना कफर््यू’ का नाम दे रहे हैं ताकि लोग कोरोना से डरें व लापरवाह होना बंद करें (यह खैर अलग बहस है कि यही बात चुनावी रैलियों व रोड शो पर लागू नहीं है).

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महाराष्ट्र के स्वास्थ्य मंत्री राजेश टोपे का कहना है कि राज्य का स्वास्थ्य इन्फ्रास्ट्रक्चर बेहतर करने के लिए दो या तीन सप्ताह का ‘पूर्ण लॉकडाउन’ बहुत आवश्यक है. जबकि डब्लूएचओ की प्रवक्ता डा. मार्गरेट हैरिस का कहना है कि कोविड-19 के नये वैरिएंटस और देशों व लोगों के लॉकडाउन से जल्द निकल आने की वजह से संक्रमण दर में वृद्धि हो रही है. दरअसल, नाईट कफर््यू व लॉकडाउन का भय ही प्रवासी मजदूरों को फिर से पलायन करने के लिए मजबूर कर रहा है. नया कोरोनावायरस महामारी को बेहतर स्वास्थ्य इन्फ्रास्ट्रक्चर और मंत्रियों से लेकर आम नागरिक तक कोविड प्रोटोकॉल्स का पालन करने से ही नियंत्रित किया जा सकता है.

लेकिन सरकारें लोगों के मूवमेंट पर पाबंदी लगाकर इसे रोकना चाहती हैं, जोकि संभव नहीं है जैसा कि पिछले साल के असफल अनुभव से जाहिर है. अतार्किक पाबंदियों से कोविड तो नियंत्रित होता नहीं है, उल्टे गंभीर आर्थिक संकट उत्पन्न हो जाते हैं, खासकर गरीब व मध्यवर्ग के लिए. लॉकडाउन के पाखंड तो प्रवासी मजदूरों के लिए जुल्म हैं, क्रूर हैं. कार्यस्थलों के बंद हो जाने से गरीब प्रवासी मजदूरों का शहरों में रहना असंभव नहीं तो कठिन अवश्य हो जाता है, खासकर इसलिए कि उनकी आय के स्रोत बंद हो जाते हैं और जिन ढाबों पर वह भोजन करते हैं उनके बंद होने से वह दाल-रोटी के लिए भी तरसने लगते हैं.

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कोरोनिल: बाबा रामदेव के सफेद झूठ

क्या रामदेव योग गुरु के रूप में पहले देश और दुनिया भर में नामचीन हो चुके रामदेव झूठ बोलते हैं?
क्या एक संत… ऋषि का चोला पहने हुए बाबा रामदेव ने “झूठ” के सहारे हजारों करोड़ रुपए का आर्थिक साम्राज्य पतंजलि खड़ा किया है… क्या रामदेव ने दुनिया भर में भय और संत्रास के प्रतीक बन चुके कोरोना कोविड-19 के भय का लाभ उठाने का प्रयास और कोरोनिल दवा को बना और बेचकर नहीं किया है?

सभी प्रश्नों का एक ही जवाब है बीते दिनों जब बाबा रामदेव ने भारत सरकार के दो महत्वपूर्ण मंत्री नितिन गडकरी व डाक्टर हर्षवर्धन के साथ मंच से यह घोषणा की उन्होंने कोरोना की बनाई गई दवाई कोरोनिल डब्ल्यूएचओ यानी विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा फार्मास्यूटिकल प्रोडक्ट ( सी ओ पी पी)का प्रमाण पत्र मिल गया है और अब कोरोनिल दुनिया के 158 देशों में पतंजलि द्वारा निर्यात की जा सकेगी.

सवाल सिर्फ इतना है कि क्या देश की संविधानिक सरकार के दो मंत्रियों की मौजूदगी में उनकी जानकारी के बगैर, सहमति के बिना रामदेव ने कोरोनिल दवाई के संदर्भ में झूठ बोला है तो ऐसे में रामदेव पर भारत सरकार क्या कठोर एक्शन लेने जा रही है.

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कोरोना जैसा कि सर्वज्ञात है दुनिया भर में एक तबाही का प्रतीक महामारी मान ली गई है. और उसके संबंध में किसी भी प्रकार की दवा बिना प्रमाणन, अनुज्ञा के वितरित वार्षिक बिक्री नहीं की जा सकती. तब रामदेव ऐसी क्या हस्ती हैं जो अपनी हांक कर देश और दुनिया को सीधे-सीधे खतरे में डाल कर लोगों को काल कवलित करने का काम कर रहे हैं. कथित रूप से उनके द्वारा घोषणा की जा रही है कि उनके द्वारा निर्मित कोरोनिल कोरोनावायरस के लिए एक प्रभावी दवा है. मगर आई एम ए और डब्ल्यूएचओ ने जब सवाल उठा दिया है तो रामदेव पर सरकार को सख्त कार्रवाई करनी चाहिए और मंत्रियों से भी देश और कानून को पूछना चाहिए कि उन्होंने ऐसा किस प्रभाव में किया है जिसके कारण लोगों के स्वास्थ्य और पैसों की क्षति की संभावना है

कोरोना बना कमाई का जरिया

एक तरफ  कोविड-19 से देश दुनिया हलकान परेशान है दूसरी तरफ बाबा रामदेव सत्ता के संरक्षण में कोरोनिल बना कर जमकर रुपए कमा रहे हैं ऐसा काम कोई और करता तो क्या हुआ जेल की चीजों के पीछे नहीं होता?

रामदेव योग गुरु के रूप में एक सम्मानित नाम बन चुके हैं.एक समय था जब सत्ता हो या विपक्ष सारी नामधारी हस्तियां रामदेव के “योग की पाठशाला” में हाजिरी लगाती थी. रामदेव कभी हरिद्वार में साइकिल चलाते थे. मगर योग ने उन्हें सम्मान और पैसा सब कुछ दिया था मगर ऐसा क्या हो गया कि उन्हें और पैसों की चाहत में एक उद्योगपति के रूप में सामने आना पड़ा और आज कोरोना की दवा बनाकर रातों-रात स्वयंभू लोगों के रक्षक बनकर कोरोनिल दवाई का इजाद करके स्वयं घोषणा करनी पड़ रही है कि यह कोरोनावायरस से बचाव में परम सहायक है और विश्व स्वास्थ संगठन डब्ल्यूएचओ ने इसे स्वीकृति प्रमाणन दिया है.

कहते हैं समझदार आदमी झूठ ऐसा बोलता है कि पकड़ा ना जाए.और बेशर्म आदमी झूठ बोलकर पकड़े जाने पर हो… हो.. कर हंसता है और कहता है वह तो मजाक कर रहा था. रामदेव बाबा क्या दूसरी श्रेणी में रखे जा सकते हैं. मंत्रियों के समक्ष देश की मीडिया को संबोधित करके सफेद झूठ का वितंडा खड़ा करने का प्रयास पर से पर्दा उठ गया है. ऐसे में यह योगी का बाना पहनने वाले रामदेव को देश और मानवता से माफी मांगनी चाहिए और तत्काल कोरोनिल को बेचना बंद करना चाहिए.
भारत सरकार को भी चाहिए कि ऐसे झूठ समाज में और ना फैले दूसरे लोग भी रामदेव के रास्ते पर चल पड़े इसलिए कानून का डंडा चलाएं.

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मानवता के प्रति गंभीर अपराध

कहते हैं सारे अपराधों में स्वास्थ्य के साथ किए जाने वाला अपराध सबसे गंभीर घातक और अक्षम्य होता है. जब सारी दुनिया की सरकारें मिलकर कोरोना वैक्सीन ढूंढ रही थी और माना जा रहा था कि कोरोना वायरस की वैक्सीन को एक 2 साल का लंबा वक्त लगेगा.

ऐसे में बाबा रामदेव ने आनन-फानन में कोरोनिल को भारत में लांच कर दिया. कथित रूप से भारत सरकार के स्वास्थ्य विभाग से भी कोई अनुमति नहीं ली गई. बात जब बढ़ी तब ना-नुकुर के बाद सरकार की अनुमति मिल गई और राम बाबा की बल्ले-बल्ले हो गई. पतंजलि के सारे स्टोर्स में दवा धड़ल्ले से बिकने लगी. हमारे देश में भेड़ चाल ऐसे ही नहीं चल पड़ती रामदेव की कोरोनिल की दवा भी धड़ल्ले से विकी और स्वयं बाबा के प्रवक्ता के अनुसार 500 करोड़ रुपए की कोरोनिल उन्होंने बेची है. और अब उनकी निगाह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रशंसा कर उनका कृपा पात्र बन के दुनियाभर में दवाई बेचने की थी. दो मंत्रियों के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस करके अश्वमेघ का घोड़ा छोड़ने ही वाले थे कि डब्लू एच ओ और आइएमए ने उनके घोड़े की रास पकड़ ली है.

इधर महाराष्ट्र की उद्धव सरकार उनके स्वास्थ्य मंत्री देशमुख ने बाबा रामदेव की कोरोनिल को महाराष्ट्र में बिकने से प्रतिबंधित कर दिया है.और सार्वजनिक रूप से कहा है कि केंद्र के दो मंत्रियों को बाबा रामदेव के साथ मंच साझा नहीं करना चाहिए था. आईएमए ने भी उंगली उठाई इसके बाद यह स्पष्ट है कि बाबा रामदेव ने कोरोना संबंधी दवाई के बारे में देश की आवाम के समक्ष झूठ बोला है.

आने वाले समय में देश के अन्य राज्य भी बाबा रामदेव की कोरोना वायरस दवाई पर प्रतिबंध लगाएंगे. और हो सकता है मामले मुकदमे में उलझ कर रामदेव का पतंजलि का यह किला ढहने भी लगे.

जनता तो अब चंदन ही घिसेगी

वर्तमान सरकार की नीतियों से सब गङबङ हो गया, अब तो ऐसा ही लगता है. पहले नोटबंदी ने आम लोगों से ले कर गृहिणियों तक को परेशान किया और फिर जीएसटी के मकङजाल में व्यापारी ऐसे उलझे कि उन्हें इस कानून को समझने में वैसा ही लगा जैसे किसी क्रिकेट प्रेमियों को डकवर्डलुइस के नियम को समझने में लगता है.

नोटबंदी ने मारा कोरोना ने रूलाया

एक के बाद एक लागू कानूनों से पहले सरकार ने मौकड्रिल करना जरूरी नहीं समझा. परिणाम यह हुआ कि देश में असमंजस की स्थिति बन गई. नोटबंदी के समय तो आलम यह था कि लोग अपने ही कमाए पैसे मनमुताबिक निकाल नहीं सकते थे.

तब आर्थिक विशेषज्ञों ने भी माना था कि आगे चल कर देश को इस से नुकसान होगा. निवेश कम होंगे तो छोटे और मंझोले व्यापार पर इस का तगङा असर पङेगा. और हुआ भी यही. छोटेछोटे उद्योगधंधे बंद हो गए या बंदी के कगार पर पहुंच गए. बेरोजगारी चरम पर पहुंच गई.

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मगर उधर सरकार कोई ठोस नतीजों पर पहुंचने की बजाय धार्मिक स्थलों, मूर्तियों और स्टैचू बनाने में व्यस्त रही.

परिणाम यह हुआ कि निवेश कम होते गए, किसानों को प्रोत्साहन न मिलने से वे खेती के प्रति भी उदासीन होते गए और रहीसही कसर अब कोरोना ने पूरी कर दी.

कोरोना वायरस के बीच देश में लागू लौकडाउन भी सरकारी उदासीनता की भेंट चढ़ गया और इस से सब से अधिक वही प्रभावित हुए जो देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ कहे जाते हैं.

विश्व बैंक की रिपोर्ट और भारतीय अर्थव्यवस्था

सरकारी उदासीनता और लापरवाही का नतीजा भारत की अर्थव्यवस्था पर तेजी से पङा. हाल के दिनों में छोटेबङे उद्योगधंधे या तो बंद हो गए या बंदी के कगार पर जा पहुंचे. लाखों नौकरियां खत्म हो गईं. और अब तो भारतीय अर्थव्यवस्था को ले कर विश्व बैंक ने जो कहा है वह चिंता बढ़ाने वाली बात है.

विश्व बैंक ने हाल ही में यह कहा है कि कोरोना संकट से दक्षिण एशिया के 8 देशों की वृद्धि दर सब से ज्यादा प्रभावित हो सकती है, जिस में भारत भी एक है.

40 सालों में सब से खराब स्थिति

विश्व बैंक का यह कहना कि भारत और अन्य दक्षिण एशियाई देश 40 सालों में सब से खराब आर्थिक दौर में हैं, तो जाहिर है आगे हालात और भी बदतर दौर में बीतेंगे.

‘दक्षिण एशिया की अर्थव्यवस्था पर ताजा अनुमान : कोविड-19 का प्रभाव’ रिपोर्ट पेश करते हुए विश्व बैंक ने कहा है कि भारत समेत दक्षिण एशियाई देशों में 40 सालों में सब से खराब आर्थिक विकास दर दर्ज की जा सकती है. दक्षिण एशिया के क्षेत्र, जिन में 8 देश शामिल हैं, विश्व बैंक का अनुमान है कि उन की अर्थव्यवस्था 1.8% से लेकर 2.8% की दर से बढ़ेगी जबकि मात्र 6 महीने पहले विश्व बैंक ने 6.3% वृद्धि दर का अनुमान लगाया था.

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भारत के बारे में विश्व बैंक का अनुमान है कि चालू वित्त वर्ष में यहां वृद्धि दर 1.5% से लेकर 2.8% तक रहेगी.

विश्व बैंक की रिपोर्ट में कहा गया कि 2019 के आखिर में जो हरे निशान के संकेत दिख रहे थे उसे वैश्विक संकट के नकारात्मक प्रभावों ने निगल लिया है.

जाहिर है, इस से आने वाले दिनों में हालात बिगङेंगे ही. उधर सरकार के पास इस से निबटने और आर्थिक प्रगति के अवसर को आगे बढ़ाने में भयंकर दिक्कतों का सामने करना पङ सकता है.

मुश्किल में कारोबारी और मजदूर

कोरोना वायरस के फैलाव को रोकने के उपायों के कारण पूरे दक्षिण एशिया में सप्लाई चैन प्रभावित हुई, तो कामगाज ठप्प पङ गए.

सरकार की खामियों की वजहों से लौकडाउन भी पूरी तरह असफल हो गया. देश में फिलहाल 2 लाख से अधिक कोरोना पीङितों की संख्या है और इस का फैलाव भी अब तेजी से होने लगा है.

उधर भारत में तालाबंदी के कारण सवा सौ करोङ लोग घरों में बंद हैं, करोङों लोग बिना काम के हैं और हालात इतने बदतर होते जा रहे कि कुछ बाजारों के खुलने के बावजूद कारोबार चौपट है. इस से बड़े और छोटे कारोबार बेहद प्रभावित हैं.

शहरों में रोजीरोटी मिलनी मुश्किल हो गई तो लाखों प्रवासी मजदूर शहरों से अपने गांवों को लौट चुके हैं और यह पलायन बदस्तूर जारी है.

विश्व बैंक ने किया आगाह

रिपोर्ट में यह आगाह किया गया है कि यह राष्ट्रीय तालाबंदी आगे बढ़ती है तो पूरा क्षेत्र आर्थिक दबाव महसूस करेगा. अल्पकालिक आर्थिक मुश्किलों को कम करने के लिए विश्व बैंक ने क्षेत्र के देशों से बेरोजगार प्रवासी श्रमिकों का समर्थन करने के लिए वित्तीय सहायता देने और व्यापारियों और व्यक्तियों को ऋण राहत देने को कहा है.

मगर भारत में जहां की राजनीति हर कामों पर भारी पङती है, वहां लोगों व व्यापारियों को आसानी से ॠण मिल जाएगा, इस में संदेह ही है. भारतीय बैंक की हालत पहले ही बङेबङे घोटालों की वजह से पतली है. भ्रस्टाचार ऊपर से नीचे तक है और यह भी सरकार की नीतियों को आगे ले जाने में बाधक है.

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उधर, सरकार के पास कोई माकूल रोडमैप भी नहीं है जिन से बहुत जल्दी देश में आर्थिक असमानता को दूर किया जा सके. सरकार के अधिकतर सांसद व मंत्री एसी कमरों में बैठ कर सरकार चलाना चाहते हैं.

जनता सरकार के कामकाज से संतुष्ट नहीं दिखती. पर जैसाकि हमेशा से होता आया है, वही आगे भी होगा. देश को धर्म और जाति पर बांटा जाएगा फिर वोट काटे जाएंगे.

जनता जनार्दन क्या करे, सरकार के पास कहने के लिए तो है ही- प्रभु के श्रीचरणों में रहो, वही बेङापार करेंगे. यानी अब तो सिर्फ चंदन ही घिसते रहो…

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