राजनीति में जाति और धर्म का दबदबा पूरी तरह से हावी है. इस की सबसे बड़ी वजह है वोट. हमारे देश के लोकतंत्र की विडंबना यह है कि यहां जाति और धर्म के नाम पर ही वोट पड़ते हैं. संविधान में कुछ भी लिखा हो पर चुनाव में टिकट बंटवारे से लेकर मुद्दे तय करने में जाति और धर्म को आधार बनाया जाता है.

उत्तर प्रदेश में इस का सबसे बड़ा उदाहरण श्रावस्ती के राजा सुहेलदेव के रूप में देखा जा सकता है. राजा सुहेलदेव की जाति को लेकर राजनीति ने कैसे-कैसे रंग बदले यह देखना काफी दिलचस्प है. राजा सुहेलदेव को कभी दलित कहा गया, कभी उन्हें पिछड़े तबके से जोड़ा गया तो कभी राजपूत माना गया. जैसेजैसे राजनीति के रंग बदले, वैसेवैसे राजा सुहेलदेव की जाति भी बदलती रही.

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भारतीय जनता पार्टी ने साल 2017 के विधानसभा चुनाव में राजा सुहेलदेव का महिमामंडन शुरू किया था. योगी सरकार बनने के बाद साल 2021 में चित्तौरा झील के किनारे राजा सुहेलदेव की भव्य मूर्ति लगाने का काम शरू किया. वीडियो कौंफ्रैंसिंग के जरीए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इस कार्यक्रम का हिस्सा बने.

भाजपा के लिए राजा सुहेलदेव इस वजह से भी खास हो जाते हैं, क्योंकि उन्होंने गजनवी सेनापति सैयद सालार मसूद गाजी को हरा कर मार डाला था. ऐसे में भाजपा के लिए राजा सुहेलदेव धार्मिक धुर्वीकरण में खास हो जाते हैं. भाजपा अब यहां चित्तौरा झील के किनारे राजा सुहेलदेव का स्मारक बनवाना चाहती है. इस से नई तरह का विवाद भी खड़ा हो गया है. विवाद यह है कि दलित और पिछडी जातियों के साथसाथ अब राजपूत जातियां भी राजा सुहेलदेव पर अपना हक जताने लगी लगी हैं. पयागपुर के राजा यशुवेंद्र विक्रम सिंह ने अपनी 88 बीघा जमीन राजा सुहेलदेव के लिए दान कर दी है.

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