व्रत उपवास- भाग 1: नारायणी के व्रत से घर के सदस्य क्यों घबराते थे?

आज सारा घर कांप रहा था. सुबह से ही किसी का मन स्थिर नहीं था. कारण यह था कि आज नारायणी का उपवास था. कुछ दिन पहले ही उस ने करवाचौथ का व्रत रखा था. उस की याद आते ही सब के रोंगटे खड़े हो जाते हैं. आननफानन में अहोई अष्टमी का दिन आ गया.

नारायणी का नाम उस की दादी ने रखा था. वह चौबीसों घंटे नारायणनारायण जपती रहती थीं. जब दादी का देहांत हुआ तो यह रट उस की मां ने अपना ली. ऐसा लगता था कि साल में 365 दिनों में 365 त्योहारों के अलावा और कुछ काम ही नहीं है. मतलब यह है कि जैसे ही नारायणी ब्याह कर ससुराल पहुंची, उस ने मौका देखते ही पूजाघर का उद्घाटन कर डाला. वह स्वयं बन गई पुजारिन. इतने वर्ष गुजर गए, 3-3 बच्चों की मां बन गई, पर मजाल है कि एक ब्योरा भी भूली हो.

देवीलाल की नींद खुल गई थी, पर वह अलसाए से बिस्तर पर पड़े थे. सोच रहे थे कि उठ कर कुल्लामंजन किया जाए तो चाय का जुगाड़ बैठे.

एकाएक नारायणी का कर्कश स्वर कान में पड़ा, ‘‘अरे, सुना, आज अहोई अष्टमी का व्रत है. सारे दिन निर्जल और निराहार रहना है. बड़ा कष्ट होगा, सो मैं अभी से कहे देती हूं कि मुझ से दिन भर कोई खटपट मत करना.’’

देवीलाल की आंखें फटी की फटी रह गईं. बोले, ‘‘नारायणी, अभीअभी तो नींद से उठा हूं. चाय भी नहीं पी. कोई बात तक नहीं की और तुम मुझ से ऐसी बात करने लगी हो. अरे, खटपट तो खुद तुम ने ही चालू कर दी और इलजाम थोप रही हो मेरे सिर पर.’’

ये भी पढ़ें- क्षमादान: भाग 2

नारायणी ने ऊंची आवाज में कहा, ‘‘बस, कर दिया न दिन खराब. अरे, कम से कम व्रतउपवास के दिन तो शांति रखा करो. आखिर व्रत कोई अपने लिए तो रख नहीं रही हूं. बालबच्चों की उम्र बनी रहे, उसी के मारे इतना कठिन उपवास करती हूं.’’

देवीलाल को चाय की तलब लग रही थी, सो आगे बात न बढ़ा कर कुल्लामंजन करने चले गए.

अभी 4 दिन पहले की बात है. नारायणी ने करवाचौथ का व्रत रखा था, पति की उम्र लंबी होने की कामना करते हुए. पर पहला ही वाक्य जो मुंह से निकला था उस ने उन की उम्र 10 वर्ष कम कर दी थी.

‘सुनते हो?’ देवीलाल के कानों में गूंज रहा था, ‘आज करवाचौथ है. सुबह ही बोल देती हूं कि अपनी बकझक से दिन कड़वा मत कर देना.’

देवीलाल ने छटपटा कर उत्तर दिया था, ‘अरे, अब तो तुम ने कड़वा ही कर दिया. कसर क्या रही अब? लग रहा है आज हर साल की तरह से फिर करवाचौथ आ गया.’

नारायणी ने माथा पीट कर कहा, ‘हाय, कौन से खोटे करम किए थे मैं ने, जो तुम्हारे जैसा पति मिला. न जाने कौन से जन्मों का फल भुगत रही हूं. हे भगवान, अगर तू बहरा नहीं है तो मुझे इसी दम इस धरती से उठा ले.’

देवीलाल ने क्रोध में कहा, ‘तुम्हारा भगवान अगर बहरा नहीं है तो वह इस चीखपुकार को सुन कर अवश्य बहरा हो जाएगा. कितनी बार कहा है कि व्रत मत रखा करो. तुम तो यही चाहती हो न कि मेरी जितनी लंबी उम्र होगी उतने ही अधिक दिनों तक तुम मुझे सता सकोगी?’

नारायणी की आंखों से गंगाजमुना बह निकली. उस ने सिसकसिसक कर कहा, ‘हाय, किस नरक में आ गई. सुबहसुबह अपने पति से गालियां सुनने को मिल रही हैं. जिस पति की मंगलकामना के लिए व्रत रख रही हूं, वही मुझे जलाजला कर मार रहा है. क्या इस दुनिया में न्याय नाम की कोई चीज नहीं है?’

देवीलाल से पत्नी का रोनापीटना बरदाश्त नहीं हुआ. वह चिल्ला कर बोले, ‘न्याय तो इस दुनिया से उसी दिन उठ गया जिस दिन से तुम्हारे जैसा ढोल मेरे गले में डाल दिया गया.’

नारायणी जरा मोटी थी. उसे ढोल की संज्ञा से बड़ी चिढ़ थी. जोरजोर से रोने लगी और फिर हिचकियां ले कर बिसूरने लगी. जब किसी ने ध्यान न दिया तो औंधे मुंह बिस्तर पर पड़ गई.

ये भी पढ़ें- Romantic Story in Hindi: सच्चा प्रेम

बच्चे सब सकते में आ गए थे. वे समझ नहीं पा रहे थे कि यह क्या हो गया. वैसे अकसर उन के मांबाप का झगड़ा चलता रहता था, परंतु झगड़े का कारण कभी उन के पल्ले नहीं पड़ता था.

बड़ी बेटी निर्मला ने साहस कर के रसोई में जा कर जल्दी से पिता के लिए चाय बनाई. देवीलाल आंखें बंद कर के आरामकुरसी पर लेट गए थे. उन्हें झगड़े से चिढ़ थी. वह अकसर चुप रहते थे, पर कभीकभी बरदाश्त से बाहर हो जाता था. उन्हें अकसर खांसी का दौरा पड़ जाया करता था. खांसी का कारण दमा नहीं था. डाक्टरों के हिसाब से यह एक एलर्जी थी जो मानसिक तनाव से होती थी. जैसे ही गले में कुछ खुजली सी हुई, देवीलाल ने समझ लिया कि अब खांसी शुरू ही होने वाली है. ठीक होतेहोते 2 घंटे लग जाते. बड़ी मुश्किल से चाय पी कर प्याला नीचे रखा ही था कि खांसी ने जोर पकड़ लिया.

वह खांसते जाते थे और घड़ीघड़ी उठ कर बलगम थूकने जाते थे. सांसें भर्राने लगी थीं और लगता था जैसे अब दम निकल जाएगा.

नारायणी ने आवाज लगाई, ‘ओ निर्मला, जा कर थोड़ी सौंफ ले आ. उसे खाने से खांसी कुछ दब जाएगी. कितनी बार कहा है कि सिगरेट मत फूंका करो, पर मानें तब न.’

देवीलाल ने पिछले 7 दिनों से एक भी सिगरेट नहीं पी थी. जो कारण था उसे वह खुद समझ रहे थे, पर नारायणी को कैसे समझाएं? चुपचाप बच्चे की तरह निर्मला के हाथ से सौंफ ले कर मुंह में डाल ली. फिर भी थोड़ीथोड़ी देर में खांसते रहे.

व्रत उपवास- भाग 2: नारायणी के व्रत से घर के सदस्य क्यों घबराते थे?

नारायणी ने फिर आवाज लगाई, ‘अरे, निम्मो, जा कर नमक की डली ले आ. एक डली मुंह में डाल लेंगे तो आराम मिलेगा.’

निर्मला ने दौड़ कर मां की आज्ञा का पालन किया. देवीलाल जानते थे कि अब दौरा कम हो रहा है. एकआध घंटे में सामान्य हो जाएगा. फिर भी नमक की डली मुंह में रख कर चूसने लगे.

‘अरे, चाय दी आप ने पिताजी को?’ कमरे से नारायणी की आवाज आई.

‘जी, अम्मां.’

निर्मला जाने क्यों सदा से मां को अम्मां ही कहती आई है. कुछ लोगों ने उसे टोका भी था. पर उसे आदत सी पड़ गई थी और अब कोई कुछ नहीं कहता था.

‘जा, एक प्याला और बना दे. अदरक डाल कर पानी खौला लेना,’  फिर नारायणी बड़बड़ाई, ‘कितनी बार कहा है कि तुलसी का पेड़ लगा लो, पर समझ में आए तब न.’

दिन चढ़ने लगा था. देवीलाल की खांसी दब गई थी. नारायणी उठ कर बाहर आ गई थी. वह आ कर देवीलाल को सामान गिनाने लगी जो उसे उपवास के लिए चाहिए था. उस की सूची सदा खोए की मिठाई और फलों से शुरू होती थी. व्रतों में फलाहार का प्रमुख स्थान है, पर आज उस की सूची में ऐसा कुछ नहीं था.

व्यंग्य से देवीलाल ने कहा, ‘क्या बात है, फलाहार नहीं होगा क्या?’

नारायणी ने उत्तर दिया, ‘आज निर्जल और निराहार रहना है. करवाचौथ है न, पर तुम जल्दी आना. दिनभर पूरीपकवान की तैयारी करनी है. हां, तुम्हें उड़द की दाल की कचौड़ी अच्छी लगती है न? लौटते समय बाजार से पीठी ले आना.’

देवीलाल चुपचाप चले गए. उन के जाते ही नारायणी ने बच्चों को काम में पेलना शुरू कर दिया, ‘निर्मला, तू यह पीस डाल.’

‘गोलू, तू भाग कर सामान ले आ. ‘तेरे पिताजी को कहना भूल गई थी. सोनू, तू किसी काम का नहीं. जा कर पंडिताइन से मेरी बड़ी घंटी ले आ. एक दिन को ले गई थीं. आज 1 हफ्ता हो गया. ऐसे मांगने आ जाते हैं, मानो सारे महल्ले में एक यही घंटी है.’

ये भी पढ़ें- जीवनधारा: भाग 2

सारा दिन ऐसी ही भागदौड़ में निकल गया. नारायणी का गालीगलौज जारी रहा. वह देवीलाल की खीज बच्चों पर उतारती रही. सब को 1-2 धौल भी पड़ गए. निर्मला रो पड़ी. गोलू दांत पीसता हुआ कोने में चला गया. सोनू ने आगे कोई काम करने से साफ इनकार कर दिया. नारायणी का क्रोध भी सातवें आसमान पर चढ़ता गया. वह बारबार व्रत और अपने कष्टों की दुहाई देती रही और सब को कोसती रही.

दोपहर में सब ने यों ही दो कौर मुंह में डाल कर पानी पी लिया. नारायणी की तानाशाही के नीचे सब दब गए थे.

7 बजतेबजते नारायणी ने पूजा की तैयारी कर ली. थाली सजा ली. वह असली घी का दीया, गुलगुले, 7 पूरियां, पानी का लोटा, कलावा, रोली सब बारबार देख कर संतुष्ट होने का प्रयत्न करती रही.

‘देख तो, चांद निकला या नहीं?’ सोनू को आज्ञा मिली.

‘नहीं निकला,’ सोनू ने बैठेबैठे कह दिया.

‘यहीं से कह दिया,’ नारायणी ने डांटा, ‘बाहर जा कर देख कर आने में क्या पैर घिसते हैं?’

‘कितनी बार तो देख आया. अब मैं नहीं जाता. गोलू से कह दो.’

ये भी पढ़ें- ग्रहण हट गया: भाग 2

गोलू अपनी और पड़ोसिन की छत पर भी कई बार हो आया था. चौथ थी न. उस दिन विशेष तौर पर जाने कहां से बादल आ कर चांद पर छा जाते हैं. कल ही तो एकदम साफ गोल सा चांद चमक रहा था. नारायणी भूख के मारे तड़प रही थी. प्यास के मारे गला सूख रहा था. सारा खाना बड़ी मेहनत से बनाया था. कचौड़ी, दहीबड़े, जिमीकंद, आलूपरवल और गुलाब जामुन, सब उस की प्रतीक्षा कर रहे थे.

पौने 9 बजने को हुए तब कोई चिल्लाया, ‘देखो, वह रहा चांद.’

नारायणी लपक कर कमरे में गई. दोबारा अपना शृंगार देखा. मांग में गहरा लाल सिंदूर, माथे पर बड़ा सा टीका, गले में मंगलसूत्र के ऊपर सोने का भारी हार, कानों में झुमके, उंगलियों में 4 अंगूठियां और चौड़े बार्डर की गोटे वाली चमकीली जार्जेट की साड़ी. सबकुछ ठीक था.

नारायणी नईनवेली दुलहन की तरह पल्ले से सिर ढकती हुई हाथों में थाली और लोटा ले कर ऊपर छत पर गई, पर चांद कहीं दूरदूर तक दिखाई नहीं दिया. पता लगा कि किसी को भ्रम हो गया था. वह चांद नहीं था, एक चमकता बादल का टुकड़ा था, जो जैसे आया था वैसे ही चला गया.

नारायणी निराश हो गई. नीचे आ कर धम से बैठ गई.

कुछ देर में चिल्लाई, ‘अरे, सुनते हो? ये बच्चे तो किसी काम के नहीं हैं. तुम ही देख कर आओ कि चांद निकला या नहीं.’

देवीलाल ने झल्ला कर जवाब दिया, ‘अरे, जब निकलेगा तो सब को दिखेगा.’

बेचारे 4 बार तो वह खुद भी चक्कर काट चुके थे.

सोनू ने कहा, ‘पिताजी, कुतुब मीनार से तो अवश्य दिखाई देगा. टैक्सी ले कर आऊं?’

नारायणी ने उसे घूर कर देखा. सोनू जहां खड़ा था वहीं ठिठक कर रह गया. उस घर में मजाक की इजाजत नहीं थी.

चांद निकला साढ़े 9 बजे. पहले हलकी सी लाली दिखाई दी. फिर उस का एक टुकड़ा. जैसे ही समाचार मिला नारायणी अपना सामान उठा कर खड़ी हो गई.

ये भी पढ़ें- एहसास

‘जरा यह थाली तो पकड़ना, मैं अपना सिर ठीक से ढक लूं,’ नारायणी ने थाली पति की ओर बढ़ाई.

नारायणी ने माथा ठोक कर कहा, ‘हाय, यह क्या बदशगुनी कर दी. एक भी काम ठीक से नहीं होता. सारे दिन का व्रत बेकार हो गया. तुम्हें तो मुझ से दुश्मनी है दुश्मनी.’

देवीलाल से भूल हुई थी, इसलिए धीरे से कह दिया, ‘अरे, घी ही तो गिरा है, और ले आओ.’

नारायणी ने चिढ़ कर कहा, ‘घी गिरना तो एकदम अशुभ है. सुबह से सिवा मनहूसियत फैलाने के कर क्या रहे हो? मैं भूखप्यास से तड़प रही हूं, ऊपर से यह बदशगुनी. मेरे तो करम ही फूट गए.’

देवीलाल कड़क कर कुछ कहने ही वाले थे कि पड़ोस की छतों से आवाजें आने लगीं, ‘अरे, चाची, जल्दी आओ न. सब तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं.’

‘अरे, भौजी, बाद में झगड़ लेना, अभी तो ऊपर आओ.’

‘बहनजी, कितनी देर करोगी? बड़ी भूख लगी है.’

करवाचौथ के दिन पड़ोस की सारी सधवाएं एकसाथ मिल कर चांद की पूजा करती हैं. नारायणी ने ऐसे थूक सटका मानो जहर पी रही हो. देवीलाल को आग्नेय नेत्रों से देखा तो देवीलाल सिकुड़ गए. वह पैर पटकती हुई गई. दीए में फिर से घी डाला और बत्ती ठीक कर के थालीलोटा ले कर ऊपर चली गई. ऊपर से स्त्रियों के ‘खीखी’ कर के हंसने के स्वर आ रहे थे.

ऊपर जा कर स्त्रियों की हंसी में नारायणी भी शामिल हो गई. ठठा कर हंसने और ठिठोली करने में उस का सब से ऊंचा स्वर था. देवीलाल सोच रहे थे, ‘यह मुखौटा कैसा?’

जब नारायणी नीचे आई तो फिर से वैसी ही गंभीर थी. चेहरे पर तनाव था. बड़बड़ा रही थी, ‘हाय, मेरे तो करम फूट गए हैं.’

देवीलाल ने कहा, ‘अरे, पूजा कर के आ रही हो, कुछ तो शुभ बोलो.’

‘क्या शुभ बोलूं?’ नारायणी ने तड़क कर कहा, ‘तुम सब मेरे दुश्मन हो दुश्मन.’

‘कैसी बातें कर रही हो?’ देवीलाल ने डांट कर कहा, ‘क्यों मनहूसियत फैला रही हो?’

‘क्या कहा? मैं मनहूस हूं. अरे, जिस के लिए दिनभर भूखीप्यासी रह कर उपवास किया, वही मुझे मनहूस कह रहा है. यह मैं क्या सुन रही हूं, भगवान. ऐसा सुनने से पहले मैं मर क्यों नहीं गई?’

‘किस ने कहा था यह मनहूस व्रत रखने को?’ देवीलाल ने चिल्ला कर कहा, ‘यह व्रत तो मेरे जीवन का सब से बड़ा शाप है. सुबह से सिर्फ रोनेधोने, उठापटक के और हो क्या रहा है?’

‘शाप है, शाप है?’ नारायणी की घिग्घी बंध गई. उस से आगे कुछ न बोला गया. वह कुछ क्षण रुक कर रोने लगी. जा कर औंधे मुंह बिस्तर पर पड़ गई.

‘भगवान, तू नरक दे दे या फिर इस घर से उठा ले,’ वह बारबार यही कह कर माथा पीट रही थी.

जब तक नारायणी शांत हुई, घर में सन्नाटा हो गया था. बच्चे सहम कर बैठे हुए थे. सब की भूख मर गई थी.

देवीलाल ने निर्मला से कहा, ‘बेटी, खाना गरम कर के तुम लोग खा लो.’

यह कह कर वह अपने बिस्तर पर हाथ से मुंह ढक कर लेट गए.

पर ऐसे में कोई खाना कैसे खा सकता था? निर्मला दोनों भाइयों को दाएंबाएं बगल में लिटा कर अपने बिस्तर पर पड़ गई. आखिर सब को नींद आ गई.

आधी रात हुई. नारायणी उठी. उस ने खाना गरम कर के मेज पर रखा. सब को हिलाहिला कर उठाया, पर किसी ने उठने का नाम नहीं लिया.

‘मरो सब लोग,’ नारायणी ने कहा. कपड़े बदल कर वह भी बिस्तर पर लेट कर करवटें बदलने लगी.

डुप्लीकेट- भाग 1: आखिर क्यों दुखी था मनोहर

कल्पना सिनेमाघर में काफी पुरानी फिल्म ‘अपना कौन’ चल रही थी. बहुत कम दर्शक थे. मनोहर भी फिल्म देखने आया था. जैसेजैसे वह सीन निकट आ रहा था, उस के दिल की धड़कनें बढ़ती जा रही थीं. एक घंटे बाद वह सीन आया. अचानक फिल्म की हीरोइन सीढि़यों से लुढ़कती हुई फर्श पर आ गिरती है.

यह देखते हुए मनोहर के मुंह से दुखभरी चीख निकली. वह बुरी तरह कांप उठा. उस का मन बहुत भारी हो गया. वह सीट से उठा और सिनेमाघर से बाहर निकल गया. वह बस इतनी ही फिल्म देखने आया था.

सिनेमाघर से बाहर आ कर मनोहर ने एक रिकशा वाले को जनकपुरी चलने को कहा.

मनोहर के चेहरे पर दुख की रेखाएं फैलती जा रही थीं. 20 साल पहले बनी थी यह फिल्म ‘अपना कौन’. किसी को क्या पता था कि सीढि़यों से लुढ़क कर फर्श पर गिरने वाली हीरोइन नहीं, बल्कि हीरोइन की डुप्लीकेट नीलू थी. नीलू उस की पत्नी ऊंचे जीने से बुरी तरह लुढ़कती हुई फर्श पर गिरी. उस के बाद वह कभी उठ ही न पाई.

फिल्म नगरी की नकली सुनहरी चमकदमक. खिंचे चले जा रहे हैं अनेक नौजवान. न जाने कितने चेहरे इस चमक के पीछे छिपे गहरे अंधकार में हमेशा के लिए खो जाते हैं.

मनोहर विचारों के सागर में गोते लगाने लगा

मनोहर विचारों के सागर में गोते लगाने लगा. उसे याद आ रहा था जब वह नौजवान था, हैंडसम था. उसे ऐक्टिंग करने का शौक था. शहर के कुछ मंचों पर नाटकों में भी ऐक्टिंग की थी. उसे भी फिल्मों में काम करने का भूत सवार हो गया था. वह घर से मुंबई भाग आया था. महीनों मारामारा घूमता रहा. जो रुपए लाया था, खत्म हो गए.

ये भी पढ़ें- मोरे बालम गए कलकत्ता

तभी उस की दोस्ती विजय से हो गई जो फिल्मों में डुप्लीकेट का काम करता था. विजय उसे भी स्टूडियो में साथ ले जाने लगा. वहां वह फिल्मों की शूटिंग देखता और सोचता कि काश, मुझे भी किसी फिल्म में काम मिल जाता.

वह दिन मनोहर की खुशी का दिन था जब एक फिल्म में विजय ने उसे भी डुप्लीकेट का काम दिला दिया था. उस ने मन ही मन सोचा था कि आज वह डुप्लीकेट बना है, कल हीरो भी जरूर बनेगा.

पर, यह सोचना कितना गलत रहा, क्योंकि फिल्म नगरी में हीरो कभी डुप्लीकेट नहीं बनता और डुप्लीकेट कभी हीरो नहीं बनता. जो जिस लाइन पर चल निकला, सो चल निकला. जिस पर जो लेबल यानी ठप्पा लग गया, सो लग गया.

फिल्मी दुनिया में मनोहर भी एक डुप्लीकेट बन कर रह गया

फिल्मी दुनिया में मनोहर भी एक डुप्लीकेट बन कर रह गया था. वह कुछ नामचीन हीरो के लिए काम करने लगा था. शीशे तोड़ कर कमरे में घुसता. ऊंचीऊंची इमारतों पर विलेन के डुप्लीकेट से लड़ाई के शौट देता. कभी वह पहाडि़यों से लुढ़कता तो कभीकभी ऐसे स्टंट भी करने पड़ते जिन्हें देख कर दर्शक अपनी सांसें रोक लेते.

फिल्मों की शूटिंग पर मनोहर सुंदर सलोनी सी एक लड़की को देखा करता था. एक दिन जब उस से बात की गई, तो उस ने बताया था कि उस का नाम नीलिमा है. पर सभी उसे नीलू कहते हैं. उसे भी थोड़ीबहुत ऐक्टिंग आती थी. वह भी अपने शहर में कई नाटकों में रोल कर चुकी थी. वह भी फिल्मों में हीरोइन बनना चाहती थी.

यहां मुंबई में नीलू के दूर के एक रिश्ते का मामा रहता है. उस से फोन पर बात हुई तो उस ने एकदम कह दिया कि आ जाओ, मेरी बहुत जानपहचान है फिल्म नगरी में.

नीलू ने जब मम्मीपापा को मुंबई में जाने के बारे में बताया तो दोनों ने साफ मना कर दिया था. फिल्मी दुनिया में फैली अनेक बुराइयों व परेशानियों के बारे में भी उसे समझाया था.

पापा ने कहा था, ‘नए लोगों को वहां पैर जमाने में बहुत संघर्ष करना पड़ता है. उन लड़कियों के लिए दलदल में गिरने जैसी बात हो जाती है जिन का फिल्म नगरी या मुंबई में कोई अपना नहीं होता.’

‘वहां पर मामा जगत प्रसाद तो हैं. उन्होंने फोन पर मुझ से कहा है कि उन की बहुत जानपहचान है,’ नीलू बोली थी.

‘नीलू बेटी, वह तेरा सगा मामा तो है नहीं. दूर के रिश्ते में मेरा भाई लगता है. तू फिल्मी दुनिया के सपने छोड़ कर यहीं पढ़ाईलिखाई में अपना ध्यान दे,’ मम्मी ने कहा था.

पर नीलू नहीं मानी. उस की जिद के सामने वे मजबूर हो गए. उन दोनों को नाराज कर वह मुंबई पहुंच गई. जगत मामा व मामी उसे देख कर बहुत खुश हुए.

जगत मामा ने नीलू को फिल्मी दुनिया के अनेक लोगों के साथ अपने फोटो भी दिखाए. उसे पूरा विश्वास हो गया था कि मामा उसे जल्द ही किसी न किसी फिल्म में रोल दिला देंगे.

एक दिन मामी बाजार गई हुई थीं. मामा और वह घर पर अकेले ही थे. वह एक फिल्मी पत्रिका पढ़ रही थी.

‘नीलू, एक दिन तुम्हारी तसवीरें भी इसी तरह पत्रिकाओं व अखबारों में छपेंगी.’

‘सच, मामाजी,’ नीलू की आंखों में खुशी भरी चमक तैरने लगी मानो उस की फिल्म की शूटिंग हो रही है. उसे हीरोइन की सहेली का रोल मिला है. उस के फोटो भी अखबारों में छप रहे हैं.

तभी नीलू चौंक उठी. मामा ने एक झटके से उसे अपनी तरफ खींचना चाहा था. वह एकदम बोल उठी, ‘यह क्या करते हो आप मामाजी?’

मामा ने मुसकरा कर उस की ओर देखा था. मामा की आंखों में वासना के डोरे तैर रहे थे.

‘मामाजी, आप से मैं क्या कहूं? आप को तो शर्म आनी चाहिए. आप अपनी भांजी के साथ ऐसी हरकत कर रहे हो.’

‘अरे, तुम मेरी सगी भांजी तो हो नहीं. मेरी 2-3 निर्माताओं से बात चल रही है. उन्होंने कहा है कि वे जल्द ही तुम्हें स्क्रीन टैस्ट के लिए बुला लेंगे. स्क्रीन टैस्ट के नाम पर यह सब होना मामूली बात है.

ये भी पढ़ें- उम्र के इस मोड़ पर: भाग 2

‘अगर तुम इस से बचना चाहोगी तो नामुमकिन हो जाएगा काम मिलना. अखबारमैगजीनों में तुम ने पढ़ा होगा कि बहुत सी हीरोइन अपने इंटरव्यू में बता देती हैं कि फिल्मों में काम देने के नाम पर उन का यौन शोषण हुआ है.’

Social Story in Hindi: व्रत उपवास- भाग 3: नारायणी के व्रत से घर के सदस्य क्यों घबराते थे?

अभी करवाचौथ बीते 4 दिन भी नहीं हुए थे कि अष्टमी आ पहुंची. इसी- लिए नारायणी को छोड़ कर सब कांप रहे थे. और जैसे ही नारायणी ने चेतावनी दी कि कोई खटपट न करे तो शत्रु दल में भगदड़ मच गई. तनाव के कुछ तार बाकी थे, वे सब एकसाथ झनझना उठे. जैसे ही देवीलाल ने कहा कि खटपट वह शुरू कर रही है तो रोनापीटना शुरू हो गया.

एक दिन पहले ही नारायणी सब बच्चों से पूछ रही थी कि अष्टमी के दिन क्या बनाएं. बच्चों ने बड़े चाव से अपनी- अपनी पसंद बताई थी. काफी तैयारी भी हो चुकी थी. बच्चे बेसब्री से अष्टमी की प्रतीक्षा कर रहे थे. मन ही मन कह भी रहे थे कि चाहे कुछ भी हो वे मां को प्रसन्न रखेंगे.

पर ऐसा न पिछले कई वर्षों से हुआ था और न इस साल होने के आसार दिखाई दे रहे थे. नारायणी तो आंसू टपका कर बिस्तर पर जा गिरी और घर का भार आ पड़ा निर्मला के नन्हेनन्हे नाजुक कंधों पर. उस ने जैसेतैसे चाय बनाई, नाश्ता बनाया और सब को खिलाया. पर उस के गले से कुछ न उतरा.

देवीलाल ने गला खंखारते हुए पूछा, ‘‘बाजार से कुछ लाना है?’’

नारायणी चुप रही.

‘‘अरे, बाजार से कुछ लाना है?’’

नारायणी फिर भी चुप रही.

निर्मला ने मां के पास जा कर कंधा हिलाते हुए कहा, ‘‘अम्मां, बाबूजी बाजार जा रहे हैं, कुछ मंगाना है क्या?’’

ये भी पढ़ें- वक्त की साजिश

‘‘भाड़ में जाओ सब.’’

‘‘वह तो चले जाएंगे, पर अभी कुछ लाना हो तो बताओ,’’ देवीलाल ने कहा.

‘‘थोड़े मखाने ले आना. खरबूजे के बीज और एक नारियल. खोया मिले तो ले आना. जो सब्जी समझ में आए, ले लेना पर मटर लाना मत भूलना. आज आलूमटर की कचौडि़यां बनाऊंगी. सोनू का बड़ा मन था. मूंगदाल की पीठी ले आना, हलवा बनाना है. दहीबड़े खाने हों तो उड़द की दाल की पीठी और दही ले आना,’’ नारायणी एक सांस में बोल गई.

देवीलाल ने गहरी सांस भर कर कहा, ‘‘एकसाथ इतना सामान कैसे लाऊंगा?’’

‘‘सोनू को साथ ले जाओ.’’

‘‘चल बेटा, सोनू चल. बरतन और थैला उठा ले. पूछ ले अम्मां से घीतेल तो है न? कहीं ऐन मौके पर उस के लिए भी भागना पड़े.’’

‘‘अरे, अभी तो लाए थे करवाचौथ के दिन. सब का सब रखा है. खर्च ही कहां हुआ?’’

करवाचौथ के नाम से फिर एक बार दहशत छा गई. इस से पहले कि कुछ गड़बड़ हो, देवीलाल बाहर सड़क पर आ गए और सोनू की प्रतीक्षा करने लगे.

कुछ देर तक तो शांतिअशांति के उतारचढ़ाव में दिन निकला. पर जहां नारायणी जैसी धार्मिक तथा कट्टर व्रत वाली औरत हो, वहां तूफान न आए यह असंभव था. वह बारीबारी से देवीलाल और बच्चों को आड़े हाथों लेती रही. कभी इसे झिड़कती तो कभी उसे डांटती. देवीलाल को तो एक क्षण चैन नहीं लेने दिया.

ये भी पढ़ें- खुशी का गम: भाग 2

बोली, ‘‘मेरी मां तो सीधी थी, एकदम गऊ. आज उसी की शिक्षा है कि मैं भी इतनी सीधी हूं. मुंह से एक शब्द नहीं निकलता. दूसरी औरतों को देखो, कितनी तेजतर्रार हैं. सारे महल्ले का मुंह बंद कर देती हैं, बस, एक बार बोलना शुरू कर दें.’’

देवीलाल ने बच्चों की ओर देखा. वे मुसकराने का असफल प्रयत्न कर रहे थे. ठंडी सांस भर कर देवीलाल ने कहा, ‘‘सो तो है. तुम्हारे जैसी सीधी तो अंगरेजी कुत्ते की पूंछ भी नहीं होती.’’

नारायणी पहले तो समझी कि उस की प्रशंसा हो रही है, पर जब उस की समझ में आया तो चिढ़ कर बोली, ‘‘तुम मेरी मां की हंसी तो नहीं उड़ा रहे?’’

‘‘तुम्हारी मां तो गऊ थीं. कोई उन की हंसी उड़ाएगा. मैं तो बैल की सोच रहा था.’’

नारायणी ने आंखें तरेर कर कहा, ‘‘क्या कुछ मजाक कर रहे हो?’’

‘‘नहीं तो,’’ देवीलाल ने बात बदल कर कहा, ‘‘बेटी निर्मला, खाली हो तो एक प्याला चाय ही बना दे.’’

कुछ देर शांति रही, पर कब तक? फिर वही शाम और पूजा की तैयारी. फिर वही चांद की प्रतीक्षा. लो कल सप्तमी के दिन तो ऐसी फुरती से निकल आया कि पूछो मत और आज अष्टमी है तो ऐसा गायब जैसे गधे के सिर से सींग. सारा परिवार पागलों की तरह चांद की तलाश में ऊपरनीचे, अंदरबाहर घूम रहा था.

9 बज गए. पिछली बार की तरह फिर एक बार खतरे की घंटी बजी. पर वह चांद न था, केवल उस की परछाईं थी.

‘‘अरे, जा न,’’ नारायणी ने सोनू को डांटा, ‘‘जाता है कि नहीं.’’

‘‘अभी तो देख कर आ कर बैठा हूं,’’ सोनू ने झल्ला कर कहा, ‘‘अब नहीं जाता.’’

‘‘जा, गोलू, तू ही जा. यह तो मेरी जान ले कर छोड़ेगा. मरा, न जाने किस घड़ी में पैदा हुआ था,’’ नारायणी ने कोसा.

‘‘अम्मां, मैं नहीं जाता. मेरी टांगें तो टूट गई हैं ऊपरनीचे होते,’’ गोलू ने घुटने दबाते हुए कहा, ‘‘सोनू को कहो. यह बीच सीढ़ी से ही लौट आता है.’’

‘‘सत्यानास,’’ नारायणी एकदम आपा खो बैठी, ‘‘एक तो तुम्हारे लिए भूखप्यास से तड़प रही हूं और तुम लोगों से इतना सा भी नहीं होता.’’

‘‘छोड़ो, अम्मां,’’ सोनू ने हलके से कहा, ‘‘जा कर पिताजी की चांद देख लो. असली चांद से ज्यादा चमकती है.’’

नारायणी ने चिल्ला कर कहा, ‘‘मर जाओ एकएक कर के. मजाल है कि तुम्हारा मुंह भी देखूं.’’

देवीलाल ने कहा, ‘‘क्या कह रही हो, नारायणी? बच्चों के लिए व्रत रख रही हो और उन्हें ही कोस रही हो? ऐसा व्रत रखने का क्या लाभ है?’’

‘‘करम फूट गए जो ऐसी औलाद पैदा हुई. इस से तो बिना संतान ही भली थी,’’ नारायणी ने क्रोध में कहा. वह तनाव के अंतिम क्षणों में पहुंच गई थी.

इतने में ‘चांद निकल आया’ का शोर आने लगा. नारायणी ने फिर से अपनी गोटे वाली साड़ी को ठीक किया और सजीसजाई पूजा की थाली को ले कर छत की भीड़ में गुम हो गई. सोचती जा रही थी कि बाईं आंख फड़क रही है, कहीं फिर कुछ बदशगुनी न हो जाए.

जब खाना खाने बैठे तो किसी की इच्छा खाना खाने की न हुई. सब थोड़ा- बहुत खापी कर उठ गए. इस तरह मंगल कामना करते हुए बच्चों के लिए अष्टमी का व्रत पूरा हुआ.

दूसरे दिन पड़ोस वाली शीला ने पूछा, ‘‘अरे, नारायणी चाची, कल श्याम चाचा के यहां खाने पर क्यों नहीं आईं?’’

‘‘खाने पर,’’ नारायणी ने पूछा, ‘‘कैसा खाना था श्याम के यहां?’’

‘‘अरे, क्या तुम्हें निमंत्रण नहीं मिला? उन के बेटे की सगाई थी न.’’

‘‘पता नहीं,’’ नारायणी ने मुरझा कर कहा.

सहसा शीला को याद आया, ‘‘पर वैसे भी तुम कहां आतीं. कल तो तुम ने अहोई अष्टमी का व्रत रखा होगा. सच, बड़ा कठिन है. मैं तो एक बार भी व्रत नहीं रख पाई. मुझे तो चक्कर आने लगते हैं.’’

नारायणी ने कहा, ‘‘अगर निमंत्रण आया होता तो मैं अवश्य आती.’’

ये भी पढ़ें- क्षमादान: भाग 2

‘‘क्यों, क्या व्रत नहीं रखतीं?’’

‘‘व्रत?’’ नारायणी ने क्रोध में कहा, ‘‘ऐसे नासपीटे बच्चों के लिए व्रत रखना तो महान अपराध है.’’

शीला अवाक् हो कर नारायणी का मुंह देख रही थी. उस ने कभी उसे इतना उत्तेजित नहीं देखा था.

सहज हो कर नारायणी ने पूछा, ‘‘क्याक्या बना था दावत में?’’

Social Story in Hindi: डुप्लीकेट- भाग 2: आखिर क्यों दुखी था मनोहर

नीलू भी मजबूर हो गई थी. उस का सब से पहला यौन शोषण मामा ने किया. स्क्रीन टैस्ट के नाम पर कई बार यौन शोषण हुआ, पर उसे किसी फिल्म में काम नहीं मिला.

शूटिंग देखतेदेखते नीलू की दोस्ती निशा से हो गई थी. निशा फिल्मों में डुप्लीकेट का काम करती थी. कभीकभी छोटामोटा रोल भी उसे मिल जाता था.

एक दिन एक फिल्म की शूटिंग चल रही थी. निशा के डुप्लीकेट के रूप में कुछ शौट फिल्माए जाने थे. अचानक निशा की तबीयत खराब हो गई तो उस ने अपना काम नीलू को दिला दिया.

इतने साल हो गए हैं डुप्लीकेट का रोल करतेकरते, पर किसी फिल्म में कोई ढंग का रोल नहीं मिला.

इस के बाद मनोहर व नीलू का मिलनाजुलना बढ़ता रहा. एक दिन वह आया जब उस ने नीलू से शादी कर ली.

शादी के बाद उस ने नीलू को किसी भी फिल्म में डुप्लीकेट का काम करने को बिलकुल मना कर दिया था.

2 साल बाद उन के घर में एक नन्हामुन्ना मेहमान आ गया. बेटे का नाम कमल रखा गया.

एक दिन नीलू ने उस से कहा, ‘मैं तो चाहती हूं कि तुम भी डुप्लीकेट का काम छोड़ दो. जब तुम शूटिंग पर चले जाते हो, मुझे बहुत डर लगता है. अगर तुम्हें कुछ हो गया तो हम दोनों का क्या होगा?’

ये भी पढ़ें- चाय की दुकान: यहां हर खबर मिलती है

‘हां नीलू, तुम ठीक कहती हो. मैं भी यही सोच रहा हूं. मेरा मन भी इस काम से ऊब चुका है. इस काम में इज्जत तो बिलकुल है ही नहीं. कभीकभी तो अपनेआप से ही नफरत होने लगती है.

क्या हम बेइज्जती के ही हकदार हैं, शाबाशी के नहीं?

‘जब कोई मामूली सा डायरैक्टर भी सब के सामने डांट देता है तब लगता है कि क्या हम इतने गिरे हुए हैं जो हमारी इस तरह बेइज्जती कर दी जाती है? क्या हम बेइज्जती के ही हकदार हैं, शाबाशी के नहीं?

‘अब तो यहां मुंबई में रहते हुए मेरा मन ऊब गया है,’ नीलू ने कहा था.

‘तुम ठीक कहती हो. हम जल्द ही यहां से चले जाएंगे किसी छोटे से शहर में या किसी पहाड़ी इलाके में. वहीं पर मैं कोई छोटामोटा काम कर लूंगा. हम अपने बेटे कमल को इस फिल्मी दुनिया से दूर ही रखेंगे.’

नीलू ने मुसकराते हुए उस की ओर देखा था.

एक दिन मनोहर की तबीयत कुछ ज्यादा ही खराब हो गई. इलाज शुरू हुआ. कई डाक्टरों को दिखाया गया, पर बीमारी कम नहीं हो रही थी. जो भी पास में पैसा था, बीमारी की भेंट चढ़ गया.

एक स्पैशलिस्ट डाक्टर को दिखाया गया तो उस ने कुछ जरूरी जांच, दवा, इंजैक्शन वगैरह लिख दिए थे.

मनोहर बिस्तर पर लेटा हुआ कुछ सोच रहा था. उस की आंखों से पता नहीं कब आंसू बह निकले.

नीलू ने उस के आंसू पोंछते हुए कहा था, ‘आप अपना मन दुखी न करो. डाक्टर ने कहा है कि तुम ठीक हो जाओगे.’

‘नीलू, इतने रुपए कहां से आएंगे? तुम रहने दो, जो होगा वह हो जाएगा.’

ये भी पढ़ें- उलटी गंगा: भाग 3

‘तुम किसी भी तरह की चिंता मत करो. मैं प्रकाश स्टूडियो जाऊंगी. वहां फिल्म ‘अपना कौन’ की शूटिंग चल रही है. डायरैक्टर प्रशांत राय तुम्हें और मुझे जानता है.’

‘नहीं नीलू, तुम्हें चौथा महीना चल रहा है. तुम दोबारा पेट से हो. ऐसे में तुम्हें मैं कहीं नहीं जाने दूंगा.’

मनोहर  ने मन ही मन यह फैसला किया…

‘तुम्हारी यह नीलू कोई गलत काम कर के पैसे नहीं लाएगी. मुझे जाने दो,’ कह कर नीलू चली गई थी.

मनोहर चुपचाप लेटा रहा. उस ने मन ही मन यह फैसला कर लिया था कि बीमारी ठीक होते ही वह नीलू व बेटे कमल के साथ यहां से चला जाएगा. उसे नींद आने लगी थी.

रात के 3 बज रहे थे. दरवाजे पर खटखटाहट हुई तो उस ने उठ कर दरवाजा खोल दिया. सामने खड़े विजय को देख कर मनोहर बुरी तरह चौंका.

विजय एकदम बोल उठा, ‘मनोहर, जल्दी अस्पताल चलना है. भाभी बहुत सीरियस हैं.’

मनोहर ने घबराई आवाज में पूछा, ‘क्या हुआ नीलू को?’

‘प्रकाश स्टूडियो में ‘अपना कौन’ की शूटिंग चल रही थी. नीलू भाभी ने तुम्हारी बीमारी की बता कर डायरैक्टर प्रशांत राय से काम मांगा. डायरैक्टर ने डुप्लीकेट का काम दे दिया. हीरोइन को सीढि़यों से लुढ़क कर नीचे फर्श पर गिरना था.

‘यही सीन नीलू भाभी पर फिल्माया गया. वे फर्श पर गिरीं तो फिर उठ न सकीं. बेहोश हो गईं. शायद वे पेट से थीं,’ विजय ने बताया था.

यह सुन कर मनोहर सन्न रह गया था. विजय ने एक टैक्सी की और उसे व कमल को साथ ले कर चल दिया.

विजय ने रास्ते में बताया था, ‘जब नीलू भाभी बेहोश हो गईं तो डायरैक्टर प्रशांत राय ने कहा था कि आजकल किसी के साथ हमदर्दी करना भी ठीक नहीं. इस ने हम को बताया नहीं था अपनी प्रैगनैंसी के बारे में. यह सीरियस है. इसे अभी अस्पताल ले जाओ और इस के घर पर खबर कर दो,’ कहते हुए डायरैक्टर ने मुझे कुछ रुपए भी दिए थे.

मनोहर के मुंह से एक शब्द भी नहीं निकल पा रहा था.

अस्पताल पहुंचने पर पता चला कि नीलू आपरेशन थिएटर में है. कुछ देर बाद लेडी डाक्टर ने बाहर आ कर कहा था, ‘सौरी, ज्यादा खून बह जाने के चलते नीलू को नहीं बचाया जा सका. उसे इस हालत में यह काम नहीं करना चाहिए था.’

मनोहर चुपचाप सुनता रहा. वह कुछ भी कहने की हालत में नहीं था.

नीलू ने तो उस से यह डुप्लीकेट का काम न करने का वादा ले लिया था, पर यही काम नीलू को हमेशा के लिए उस से बहुत दूर ले गया था.

फिर उस की जिंदगी में आई निशा. वह निशा को भी कई सालों से जानता था. निशा नीलू की सहेली थी. निशा पड़ोस में ही रहती थी. उसे भी नीलू के इस तरह मरने का बहुत दुख था.

ये भी पढ़ें- नसबंदी: क्या वाकई उस की नसबंदी हो पाई?

नफरत का बीज बना विशाल वृक्ष

मनीष कुमार अपने दोस्त को बीमारी के हालात में लेकर पटना एन एम सी एच गया था.उसके दोस्त का सुगर लेवल अचानक घट गया था. तीन दिन ईलाज के बाद वह नहीं बच सका. उसके दोस्त का कोरोना जाँच कराया गया.वह कोरोना पॉज़िटिव निकला .मनीष का भी जाँच कराया गया.यह भी कोरोना पॉजिटिव पाया गया .इसे जिला मुख्यालय के आइसोलेशन सेंटर में रखा गया.14 दिन के बाद वह पूर्णतः ठीक होकर घर चला आया .उसका रिपोर्ट भी निगेटिव आ गया .

वह सभी परिवार आमलोगों की तरह स्वस्थ है. लेकिन दो माह बीतने के बाद भी आज भी कोरोना से ग्रसित होने का फ़जीहत पूरा परिवार झेल रहा है. गाँव का कोई ब्यक्ति मनीष के पास बैठने और बात तक करने के लिए तैयार नहीं है. ठीक होने के बाद भी कोई रिश्तेदार तक मिलने के लिए नहीं आया.

ये भी पढ़ें- किराएदार नहीं मकान मालिक बन कर जिएं, कोई धर्म कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा

यह सिर्फ मनीष के साथ ही नहीं बल्कि गाँव कस्बे में कोरोना से संक्रमित होकर ठीक होने वाले सभी लोगों को कमोवेश यही झेलना पड़ रहा है.

सबसे अधिक स्वास्थ्य विभाग के डॉक्टर ,नर्स और कर्मचारियों को झेलना पड़ रहा है. इनसे कोई बात नहीं करना चाहता .यहाँ तक किराये पर रहे इन लोगों को मकान खाली करने के लिए दबाव बनाया जा रहा है.

ममता कुमारी ए एन एम ने बताया कि होली के पहले मेरा ट्रांसफर कर दिया गया.घर से 70 किलोमीटर की दूरी पर.कुछ दिन घर से किसी तरह आना जाना शुरू किया.इसी बीच कोरोना की वजह से फर्स्ट लॉकडाउन लगा.ड्यूटी करना भी जरूरी और लॉक डाउन का पालन करना भी .बहुत कोशिश किया किराये पर कमरा लेने के लिए लेकिन नहीं मिल सका .चार महीने से एक मोटरसायकिल खरीदा और एक लड़के को पाँच हजार रुपये महीना ले जाने और ले आने के लिए दे रही हूँ.

मनीष और ममता तो एक उदाहरण है.इस नफरत की आग से बहुत लोग जल रहे हैं.जिन डॉक्टरों के सम्मान में थाली और ताली बजवायी गयी.हेलीकॉप्टर से फूल बरसाये गए.उनका यह हश्र होगा .कल्पना से भी परे की बात है.

बगल वाले कोरोना संक्रमित से इतनी नफरत और अमिताभ बच्चन  और उसके परिवार वालों को जब कोरोना होता है तो उसके लिए हम हवन करते हैं और ठीक होने के लिए दुआ माँगते हैं.जबकि अमिताभ बच्चन की नजर में हमारी औकात एक कीड़ा मकोड़ा के जितना भी नहीं है. जब तुम भूख से मर रहे थे.पैदल चलते तुम्हारे पैरों में छाले पड़ गये थे.तुम्हारी रोटियाँ रेलवे ट्रैक पर बिखरी हुवी रह गयी थी और तुम मौत की नींद सदा के लिए सो गये थे.तुम्हारे बूढ़े माँ बाप, जवान पत्नी और दूधमुँहे बच्चे घर आने का इंतजार कर रहे थे.तब तुम्हारा देश का यह महानायक करोना को ठेंगा दिखा रहा था और हाँथ धोने का तरीका बता रहा था. तुम्हारे पक्ष में बोलने के लिए इसे एक शब्द नहीं मिला था.

इन महानायकों के साजिश को समझना पड़ेगा.आज तक हम नहीं समझ पाये की हमारा असली महानायक कौन है.जब किसी सेलिब्रेटी,मंत्री ,विधायक और राजनेता को होता है तो उसके लिए दुआ,प्रार्थना जो पहचानता तक नहीं और बगल वाला जो हर दुःख सुख में एक पैर पर खड़ा रहता है. उससे घृणा और नफरत.

ये भी पढ़ें- “दूसरी औरत” और सड़क पर हंगामा

सबसे पहले तब्लीगी जमात और मुसलमानों से नफरत करने के लिए देश के हुक्मरानों ने मीडिया के मिलीभगत से बीजारोपण किया.पूरे देश में इस तरह की हवा चली की लोग देश भर के मुसलमानों से लोग नफरत करने लगे.हिन्दू दुकानदार,दूध देने वाले,डॉक्टर तक मुस्लिमों से दूरी बनाने लगे और फटकार लगाने लगे.आज उसका परिणाम हम सभी लोग झेल रहे हैं.

हम जैसा समाज बनायेगे. उसका परिणाम हमें झेलना पड़ेगा. हम लोगों से नफरत करना सिखायेंगे तो वे नफरत ही करेंगे.हम अगर बबूल का बीज लगायेंग तो आम फलने की आशा नहीं रखेंगें. आज वही हो रहा है. हमारे देश के प्रधानमंत्री और महानायक जैसे लोग अगर देश में भाईचारा और अमन का पाठ पढ़ाते तो इस देश का हाल यह नहीं होता.

डॉ विमलेंदु कुमार ने कहा कि अगर हमें कोरोना महामारी से लड़ना है तो इससे पीड़ित लोगों के साथ नफरत नहीं करनी चाहिए.कोरोना मरीजों के साथ किसी तरह का कोई भेदभाव नहीं करना चाहिए बल्कि उनका हौसला बढ़ाकर ठीक होने में सहयोग करना चाहिए.मुझे हाथी मेरे साथी फ़िल्म का एक गाना बारबार याद आता है -“नफरत की दुनिया छोड़कर प्यार की दुनिया में खुश रहना मेरे यार”.मैं तो लोगों को यहाँ तक कह रहा हूँ कि अगर आपके टोले मुहल्ले से कोई कोरोना संक्रमित मिलता है तो आप उसे थाली और ताली बजाते हुवे.उसका हर हाल में हौसला बढ़ाते हुवे अस्पताल जाते हुवे.सभी लोग जोर से आवाज दो आप ठीक होकर अस्पताल से जल्द से जल्द हमलोगों के बीच आओगे.इस बीमारी में हौसला बढ़ाने की जरूरत है. किसी से नफरत करके उसका मनोबल कतई नहीं तोड़ें.

शादियों को मातम में बदलती बेहूदगियां 

साल 2008 की बात है. गरमी का मौसम था. उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी जिले के रामपुर में एक लड़की का शादी समारोह चल रहा था. लड़की को ब्याहने हाजीपुर गांव से बरात आई थी. विवाह का संगीत बज रहा था और बरात के साथ चल रहे लोग फायरिंग कर खुशी का इजहार कर रहे थे.

द्वाराचार के बाद सजाधजा दूल्हा सुनील वर्मा जयमाला कार्यक्रम में जाने की तैयारी में था कि शादी समारोह में फायरिंग कर रहे एक लड़के की लापरवाही से एक गोली दूल्हे के सीने में लग गई. दूल्हे को आननफानन अस्पताल ले जाया गया जहां उस की मौत हो गई.

इसी तरह की एक घटना मध्य प्रदेश के गाडरवारा इलाके में भी हुई थी. इस में जयमाला स्टेज पर दूल्हादुलहन की मौजूदगी में नशे में धुत्त रिश्तेदारों द्वारा पिस्टल से हवाई फायर किए जा रहे थे. इसी हवाई फायर से जयमाला स्टेज पर मौजूद दूल्हे की एक रिश्तेदार आयुषी की गोली लगने से मौत हो गई. 21 साला आयुषी जबलपुर में इंजीनियरिंग की छात्रा थी.

खुशी मनाने के चक्कर में फायरिंग से होने वाली ये घटनाएं बताती हैं कि आज भी हम दिखावे के नाम पर कैसीकैसी बेहूदा परंपराओं को निभा रहे हैं. समाज के हर क्षेत्र में फायरिंग की ऐसी खूनी परंपराएं बंद होने का नाम नहीं ले रही हैं.

मौजूदा दौर में शादीब्याह, लग्न, फलदान, सगाई, जन्मदिन और दूसरे तमाम समारोहों में फायरिंग कर के खुशी का इजहार किया जाता है. इन कार्यक्रमों में नशे में धुत्त रहने वाले लोग जोश में होश खो कर खुशियों के पलों को मातम में बदल देते हैं.

शादीब्याह में फायरिंग का किसी खास धर्म से कोई संबंध नहीं है, बल्कि यह एक सामंती तबके के रीतिरिवाज की तरह है. राजामहाराजाओं के शासनकाल में राज्याभिषेक और स्वयंवर के समय तोप या बंदूक चला कर राजा की खुशामद की जाती थी.

राजामहाराजाओं की शान में किया जाने वाला यह शक्ति प्रदर्शन उन के वंशजों की अगड़ी जातियों में आज के दौर में भी प्रचलित है. आज भी शादीब्याह में दूल्हे को किसी राजा की तरह सजाया जाता है और एक दिन के इस राजा के सम्मान में गए बराती खुशी का इजहार करने के लिए फायरिंग करते हैं.

पत्रकार और साहित्यकार कुशलेंद्र श्रीवास्तव का कहना है कि पहले जब आतिशबाजी का चलन नहीं था तब से बरात में बंदूक से हवाई फायर किए जाते हैं. उसी परंपरा को आज भी कुछ अगड़ी जाति के लोग समाज में अपना रोब गांठने की गरज से अपनाए हुए हैं. फायरिंग के इस खूनी खेल को आज पिस्टल में कारतूस भर कर खेला जाने लगा है. अगड़ी कही जाने वाली कुछ जातियों में तो बाकायदा गन रखने वाले दलित जाति के नौकरचाकर बरात में साथ चलते हैं.

गन चलाने वाले ये सेवक पेशेवर निशानेबाज नहीं होते, बल्कि घरेलू नौकर होते हैं जो अपने कंधे पर बंदूक टांग कर चलते हैं और बरात में अपने मालिक की सेवाखुशामद करने का काम करते हैं.

शादी समारोहों में वीडियोग्राफी का काम करने वाले अश्विनी चौहान बताते हैं कि विवाह मंडप में सजीसंवरी लड़कियों को प्रभावित करने के लिए यही नौजवान डीजे के कानफोड़ू संगीत में डांस करने के साथ फायरिंग कर के खुद को हीरो साबित करने की होड़ में लग जाते हैं.

शादीब्याह के अलावा दशहरा पर्व पर भी शस्त्र पूजन के नाम पर घातक और खूनी हथियारों का सार्वजनिक तौर पर दिखावा किया जाता है और फायरिंग कर गांवनगरों की शांति को भंग किया जाता है. विभिन्न जाति व समुदायों द्वारा निकाली जाने वाली शोभायात्राओं, चल समारोहों के अलावा धार्मिक पर्वों में भी जश्न के नाम पर की जाने वाली यह फायरिंग जानलेवा साबित हो रही है.

ऐसी फायरिंग करने के मामले में राजनीतिक दल भी पीछे नहीं हैं. देश के सभी राज्यों में राजनीतिक दल किसी न किसी बहाने फायरिंग कर लोगों को उकसाने का काम करते हैं. सितंबर, 2018 में जबलपुर में भारतीय जनता युवा मोरचा के एक कार्यक्रम में की गई ऐसी फायरिंग की काफी चर्चा रही थी.

मैरिज पैलेसों पर सख्ती

राज्य सरकारों द्वारा समारोहों में फायरिंग रोकने के लिए नियम तो बनाए गए हैं, पर इन पर अमल होता नहीं दिख रहा. पंजाब सरकार ने नियमों में बदलाव करते हुए प्रावधान किया है कि हथियारों के लाइसैंस बनवाने वाले लोगों को अर्जी में लिखित में देना होगा कि वे किसी भी शादी समारोह या सामाजिक कार्यक्रम में हथियारों का गलत इस्तेमाल नहीं करेंगे.

इस के साथ ही हथियार ले कर मैरिज पैलेस या सामाजिक समारोह में प्रवेश रोकने के लिए मैरिज पैलेसों के प्रवेश द्वार पर मैटल डिटैक्टर लगाने को कहा गया है. इस के लिए मैरिज पैलेसों में कड़े नियम लागू किए हैं.

राज्य सरकार की ओर से कहा गया है कि मैरिज पैलेस में अगर हथियार ले कर किसी शख्स को प्रवेश करने दिया गया तो पैलेस मालिक के खिलाफ केस दर्ज कर उसे गिरफ्तार किया जा सकता है. इस के साथ ही मैरिज पैलेसों के मुख्य परिसरों में सीसीटीवी कैमरे लगाने के निर्देश भी दिए गए हैं.

मध्य प्रदेश में भी किसी शादी, पार्टी या समारोह में फायरिंग की कोई भी घटना होने पर संबंधित क्षेत्र के थाना प्रभारी के खिलाफ कार्यवाही करने का ऐलान किया गया है.

चंबल जोन के आईजी संतोष कुमार सिंह ने यह आदेश जारी करते हुए सभी थाना प्रभारियों से कहा है कि वे सख्ती के साथ ऐसी फायरिंग पर रोक लगाने के लिए हथियारों का प्रदर्शन करने वालों पर कार्यवाही करें. ऐसी फायरिंग और सार्वजनिक जगह पर हथियारों के प्रदर्शन को रोकने के लिए कलक्टर ने धारा 144 लागू की है.

कलक्टर के आदेश में कहा गया है कि जिले में कहीं पर भी कोई भी शख्स समारोह में फायरिंग नहीं करेगा, साथ ही शादी, पार्टी या दूसरे किसी समारोह में कोई भी हथियारों का प्रदर्शन नहीं करेगा.

जागरूकता की जरूरत

मुरैना जिले की एक महिला पार्षद रजनी बबुआ जादौन ने अपने बेटे की शादी के कार्ड पर मेहमानों से किसी भी तरह का नशा, शराब का सेवन न करने के साथ ही फायर न करने का संदेश दे कर समाज में एक अच्छी शुरुआत की है. उन्होंने अपने लड़के मानवेंद्र की शादी के कार्ड के कवर पेज पर ऐसा संदेश दिया.

देश में आज भी सामंती व्यवस्था को पालने वाली सामाजिक बुराइयां वजूद में हैं, जो गरीब और दलितों पर रोब जमाने के साथ उन का शोषण करने का काम कर रही हैं. केवल नकल करने के नाम पर किसी जलसे में अपनी झूठी शान को दिखाने वाली इस तरह की परंपराओं का समाज में विरोध होना चाहिए.

ऐसी फायरिंग जानमाल का नुकसान तो करती ही हैं, साथ ही समाज को मालीतौर पर भी खोखला बनाती हैं.

पेट की भूख और रोजगार की तलाश

तलाश आदमी को बंजारे की सी जिंदगी जीने पर मजबूर कर देती है. यह बात राजस्थान और मध्य प्रदेश के घुमंतू  लुहारों और उन की लुहारगीरी को देखने के बाद पता चलती है.

घुमंतू लुहार जाति के इतिहास के बारे में बताया जाता है कि 500 साल पहले जब महाराणा प्रताप का राज छिन गया था तब उन के साथ ही उन की सेना में शामिल रहे लुहार जाति के लोगों ने भी अपने घर छोड़ दिए थे. उन्होंने कसम खाई थी कि चितौड़ जीतने तक वे कभी स्थायी घर बना कर नहीं रहेंगे.

आज 500 साल बाद भी ये लुहार घूमघूम कर लोहे के सामान और खेतीकिसानी में काम आने वाले औजार बना कर अपनी जिंदगी बिताने को मजबूर हैं. जमाना जितना मौडर्न होता जा रहा है, इन घुमंतू लुहारों के सामने खानेपीने के उतने ही लाले पड़ते जा रहे हैं.

सब से ज्यादा परेशानी की बात है रोटी की चिंता. इन के बनाए औजार अब मशीनों से बने सामानों का मुकाबला नहीं कर पाते हैं. इस की वजह से इन लोगों के लिए रोजीरोटी कमाना मुश्किल हो गया है. सरकार की योजनाओं के बारे में इन्हें जानकारी नहीं है. इस वजह से ये लोग सरकारी योजनाओं का फायदा नहीं उठा पाते हैं.

लुहार जाति से जुड़े सुरमा ने कहा कि हमारी जाति के लोग सड़क किनारे डेरा डाले रहते हैं. कब्जा करने के नाम पर हमें खदेड़ा जाता है. एक ओर जहां दूसरी जातियों को घर बनाने के लिए जमीनें दी जा रही हैं, वहीं हमारे लिए न तो पानी का इंतजाम है, न ही शौचालय का. हमारे समाज की बहूबेटियों को असामाजिक तत्त्वों का डर बना रहता है.

इसी समाज की पानपति बताती हैं, ‘‘हम लोगों ने अपने बापदादा से मेहनत की कमाई से ही खाना सीखा है. हमारे पुरखों ने यही काम किया था और हम अब भी यही कर काम रहे हैं.’’

25 साला पप्पू लुहार, जो राजस्थान के माधोपुर का रहने वाला है, ने बताया, ‘‘हम लोग पूरे देश में घूमघूम कर यही काम करते हैं. आम लोगों की जरूरत की चीजें खासकर किसानों, मजदूरों के लिए सामान बनाते और बेचते हैं. हम लोगों का यही खानदानी काम है. हमारे पुरखे सदियों से यही काम करते आए हैं. हम दूसरा काम नहीं कर सकते क्योंकि हम पढ़ेलिखे नहीं हैं. हम लोगों को सरकार से कोई फायदा नहीं मिलता है.’’

मध्य प्रदेश के शिवपुरी से आए सूरज लुहार ने बताया, ‘‘हमारे परिवार में कोई पढ़ालिखा नहीं है. हम ने यही काम सीखा है. हमारे बच्चे हम से सीख रहे हैं. सालभर में 2 महीने बरसात के दिनों में हम अपने गांव में तंबू तान कर रहते हैं. हम लोग जहां भी जाते हैं, फुटपाथ पर ही सोते हैं.

‘‘हमें चोर, सांप, बिच्छू और मच्छर जैसी समस्याओं को झेलना पड़ता है. अनजान जगह पर खुले आसमान के नीचे औरतों के लिए सोना कितना मुश्किल काम है, इसे तो वही समझ सकता है जो उस जिंदगी को जी रहा है.’’

25 साला मदन लुहार की इसी साल शादी हुई है. उसे इस बात का अफसोस है कि वह जब चाहे तब अपनी पत्नी के साथ जिस्मानी संबंध नहीं बना सकता क्योंकि खुले आसमान में वह फुटपाथ पर ही सोता है. अगलबगल में उस के मातापिता व परिवार के दूसरे सदस्य भी सोते हैं ताकि रात में कोई औरतों के साथ गलत काम नहीं कर सके. आपस में जिस्मानी संबंध बनाने के लिए अमावस्या या जिस रात को चांद नहीं दिखाई पड़ता, वे दोनों उस रात का इंतजार करते हैं.

इन लोगों को सरकारी योजनाओं के बारे में कोई जानकारी नहीं है. औरतें एनीमिया और बच्चे कुपोषण से पीडि़त दिखाई देते हैं. छोटे बच्चे तो जहां रहते हैं वहां पल्स पोलियो की दवा पी लेते हैं, लेकिन दूसरे टीके इन के बच्चों को नहीं लग पाते. इस की मूल वजह यह है कि ये लोग एक जगह रहते नहीं हैं और न ही टीकाकरण के बारे में इन्हें कोई जानकारी है.

आज इन घुमंतू लुहार जाति के लोगों को सरकारी सुविधाए देने की जरूरत है ताकि इन्हें भी घर, कपड़े, पढ़ाईलिखाई और सेहत जैसी दुनिया की सभी सहूलियतें मिल सकें.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें