Writer- Rita Kashyap
‘‘शर्म से मर गया और क्या?’’
‘‘कविता, तू कुछ भी कहती फिर, लेकिन मुझे लगता है उस दिन उस ने तेरी नहीं बल्कि तू ने उस की इज्जत पर हाथ डाला था. उस दिन से वह शर्मिंदा हुआ मुंह छिपाए बैठा था और तू है कि जगहजगह अपनी इज्जत आप उछालती फिर रही है.’’
‘‘मुंह क्यों नहीं छिपाता वह? उस ने काम ही ऐसा किया था?’’
‘‘क्या किया था उस ने?’’ पूछते हुए रमा ने अपनी आंखें कविता की आंखों में गड़ा दीं.
‘‘तुझे क्या लगता है, मैं झूठ बोल रही हूं?’’
‘‘नहींनहीं, इसीलिए तो पूछ रही हूं. आखिर क्या किया था उस ने?’’
‘‘उस ने...उस ने...क्या इतना काफी नहीं कि उस ने मेरी इज्जत पर हाथ डाला था. इस पर भी तू चाहती है कि मुझे चुप रहना चाहिए था? वह इज्जतदार था तो क्या मेरी कोई इज्जत नहीं है?’’
‘‘इसीलिए तो पूछ रही हूं कि आखिर उस ने किया क्या था?’’
‘‘अच्छी जिद है, तू नहीं जानती कि एक औरत की इज्जत क्या होती है?’’
‘‘इतना ही अपनी इज्जत का खयाल है तो उस दिन से जगहजगह...’’
‘‘फिर वही बात, अरे भई 21वीं सदी है. आज मर्द अपनी मनमानी करता रहे और औरत आवाज भी न उठाए?’’
‘‘21वीं सदी में ही क्यों अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाने का हक तो औरतों को हमेशा से है लेकिन कोई...’’
‘‘लेकिन क्या?’’
‘‘लेकिन यह कि आवाज उठाने के लिए कोई बात तो हो? हवा देने के लिए चिंगारी तो हो.’’
‘‘रमा, तुझे तो हमेशा से मैं गलत ही लगती हूं. तू ही बता, एक औरत हो कर क्या मैं इतनी बड़ी बात कर सकती हूं?’’
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