मीठी अब लौट आओ: भाग 1

लेखक- अशोक कुमार

चुनाव आयोग द्वारा मुझे मणिपुर में विधानसभा चुनाव कराने के लिए बतौर पर्यवेक्षक नियुक्त किया गया था. मणिपुर में आतंकवादी गतिविधियां होने के कारण ज्यादातर अधिकारियों ने वहां पर चुनाव ड्यूटी करने से मना कर दिया था पर चूंकि मैं ने पहले कभी मणिपुर देखा नहीं था इसलिए इस स्थान को देखने की उत्सुकता के कारण चुनाव ड्यूटी करने के लिए हां कर दी थी.

चुनाव आयोग द्वारा मुझे बताया गया कि वहां पर सेना के साथ ही केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल भी तैनात है, जो ड्यूटी के समय हमेशा मेरे साथ रहेगा. यह जानने के बाद मेरे मन से डर बिलकुल ही निकल गया था और मैं चुनाव ड्यूटी करने के लिए मणिपुर चला आया था.

चुनाव के समय मेरी ड्यूटी चंदेल जिले के तेंगनौपाल इलाके में थी, जो इंफाल से लगभग 70 किलोमीटर दूर है. यहां आने के लिए सारा रास्ता पहाड़ी था और बेहद दुरूह भी था. इस इलाके में आतंकवादी गतिविधियां भी अधिक थीं, रास्ते में जगहजगह आतंकवादी लोगों को रोक लेते थे या अगवा कर लेते थे.

मैं केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल की टुकड़ी के साथ पूरी सुरक्षा में नामांकन समाप्ति वाले दिन जिला मुख्यालय पहुंच गया था. जिला मुख्यालय पर जरूरी सुविधाओं का अभाव था. रास्ते टूटेफूटे थे, भवनों की मरम्मत नहीं हुई थी और बिजली बहुत कम आती थी. ऐसे में काम करना मुश्किल था पर डाक बंगले से अकेले बाहर जाना संभव ही नहीं था क्योंकि इलाके में आतंकवादी  गति- विधियां चरम पर थीं. ऐसे में 20 दिन वहां पर बिताना मुश्किल था और समय बीतता ही नहीं था.

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दूसरे दिन मैं ने उस विधानसभा क्षेत्र के ए.डी.एम. से विस्तार के साथ इलाके के बारे में विचारविमर्श किया और पूरे विधानसभा क्षेत्र के सभी 36 पोलिंग स्टेशनों को देखने की इच्छा जाहिर की. ए.डी.एम. ने मुझे जरूरी नक्शों के साथ एक जनसंपर्क अधिकारी, जो उस क्षेत्र के नायब तहसीलदार थे, को मेरे साथ दौरे पर जाने के लिए अधिकृत कर दिया था. इस क्षेत्र में यह मेरा पहला दौरा था इसलिए अनजान होने के कारण बिना किसी सहयोगी के इस क्षेत्र का दौरा किया भी नहीं जा सकता था. एक सप्ताह में ही मुझे इस क्षेत्र के सभी मतदान केंद्रों को देखना था और मतदाताओं से उन की मतदान संबंधी समस्याएं पूछनी थीं.

अगले दिन मैं क्षेत्र के दौरे पर जाने के लिए तैयार बैठा था कि मुझे वहां के स्टाफ से सूचना मिली कि जो जनसंपर्क अधिकारी मेरे साथ जाने वाले थे वह अचानक अस्वस्थ होने के कारण आ नहीं पाएंगे और वर्तमान में उन के अलावा कोई दूसरा अधिकारी उपलब्ध नहीं है. ऐसी स्थिति में मुझे क्षेत्र का भ्रमण करना अत्यंत मुश्किल लग रहा था. मैं इस समस्या का हल सोच ही रहा था कि तभी चपरासी ने मुझे किसी आगंतुक का विजिटिंग कार्ड ला कर दिया.

कार्ड पर किसी महिला का नाम ‘शर्मिला’ लिखा था और उस के नीचे सामाजिक कार्यकर्ता लिखा हुआ था. चपरासी ने बताया कि यह महिला एक बेहद जरूरी काम से मुझ से मिलना चाहती है. मैं ने उस महिला को मिलने के लिए अंदर बुलाया और उसे देखा तो देखता ही रह गया. वह लगभग 35 वर्ष की एक बेहद खूबसूरत महिला थी और बेहद वाक्पटु भी थी. उस ने मुझ से कुछ औपचारिक परिचय संबंधी बातें कीं और बताया कि इस क्षेत्र में लोगों को, खासकर महिलाओं को जागरूक करने का कार्य करती है.

बातचीत का सिल- सिला आगे बढ़ाते हुए वह महिला बोली, ‘‘तो आप इलेक्शन कमीशन के प्रतिनिधि हैं और यहां पर निष्पक्ष चुनाव कराने आए हैं?’’

‘‘जी हां,’’ मैं ने कहा.

‘‘आप ने यहां के कुछ इलाके तो देखे ही होंगे?’’

‘‘नहीं, आज तो जाने के लिए तैयार था पर मेरे जनसंपर्क अधिकारी अस्वस्थ होने के कारण आ नहीं पाए इसलिए समझ में नहीं आ रहा है कि इलाके का दौरा किस प्रकार किया जाए.’’

‘‘आप चाहें तो मैं आप को पूरा इलाका दिखा सकती हूं.’’

‘‘यह तो ठीक है पर क्या आप के पास इतना समय होगा?’’

‘‘हां, मेरे पास पूरा एक सप्ताह है. मैं आप को दिखाऊंगी.’’

शर्मिला का उत्तर सुन कर मेरी समझ में नहीं आया कि मैं क्या बोलूं. अलग कमरे में जा कर वहां के ए.डी.एम. से फोन पर बात की और शर्मिला के साथ क्षेत्र का दौरा करने की अपनी इच्छा जाहिर की.

पहले तो ए.डी.एम. ने मना किया क्योंकि यह एक आतंकवादी इलाका था और किसी अधिकारी को किसी अजनबी के साथ जाने की इजाजत नहीं थी. क्योंकि पहले कई अधिकारियों का सुंदर लड़कियों द्वारा अपहरण किया जा चुका था और बाद में उन की हत्या भी कर दी गई थी. यह सब जानते हुए भी पता नहीं क्यों मैं शर्मिला के साथ जाने का मोह छोड़ नहीं पा रहा था और मैं ने ए.डी.एम. से अपने जोखिम पर उस के साथ इलाके के भ्रमण की दृढ़ इच्छा जाहिर कर दी थी.

ए.डी.एम. ने मेरी जिद को देखते हुए आखिर में केंद्रीय रिजर्व बल के साथ जाने की इजाजत दे दी थी और साथ में यह शर्त भी थी कि शर्मिला अपनी गाड़ी में आगेआगे चलेगी और मेरे साथ नहीं बैठेगी.

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शर्मिला ने मुझ से कहा था कि वह सब से पहले मुझे क्षेत्र का सब से दूर वाला हिस्सा दिखाना चाहेगी, जहां मतदान केंद्र संख्या 36 है. मैं ने उसे सहमति दी और हम उस केंद्र की ओर चल दिए. यह केंद्र तहसील मुख्यालय से 36 किलोमीटर दूर था.

हम दलबल के साथ इस मतदान केंद्र की ओर चले तो रास्ते में अनेक पहाड़ आए और 3 जगहों पर फौज के चेकपोस्ट आए जहां रुक कर हमें अपनी पूरी पहचान देनी पड़ी थी. साथ ही केंद्रीय बल के सभी जवानों से पूछताछ की गई और उस के बाद ही हमें आगे जाने की अनुमति मिली. आखिर में लगभग ढाई घंटे की कठिन यात्रा के बाद हम अंतिम पोलिंग स्टेशन पहुंच पाए, जो एक प्राइमरी स्कूल में स्थित था. यह स्कूल 1949 में बना था.

इस पड़ाव पर पहुंच कर हम ने राहत की सांस ली. शर्मिला ने थोड़ी देर में गांव वालों को बुला लिया. वह मेरे और उन के बीच संवाद के लिए दुभाषिए का काम करने लगी. थोड़ी देर बाद गांव वाले चले गए और केंद्रीय रिजर्व बल के जवान व ड्राइवर खाना खाने में व्यस्त हो गए. मुझे अकेला पा कर शर्मिला ने बातें करनी शुरू की.

‘‘आप को यहां आना कैसा लगा?’’

‘‘ठीक लगा, पर थोड़ा थकान देने वाला है.’’

‘‘आप ने यहां आने वाले रास्तों को देखा?’’

‘‘हां.’’

‘‘क्या आप ने देखा कि यहां आना कितना मुश्किल है. तमाम सड़कें टूटी हैं. पुल टूटे हैं. वर्षों से लगता है कि इन की मरम्मत नहीं हुई है.’’

‘‘यह बारिश के कारण भी तो हो सकता है. इस क्षेत्र में तो भारत में सब से अधिक बारिश होती है.’’

‘‘नहीं, यह मरम्मत न किए जाने के कारण है. उत्तराखण्ड व हिमाचल में भी तो खूब बारिश होती है पर वहां तो सड़कों और पुलों की स्थिति ऐसी नहीं है. यह स्थिति क्या क्षेत्र के लिए सरकार की उपेक्षा नहीं दिखाती है?’’

‘‘हो सकता है, पर इस बारे में मुझे अधिक जानकारी नहीं है.’’

‘‘आप एक आम आदमी की नजर से यहां के रहने वालों की नजर से सोचिए कि यदि किसी गर्भवती महिला को या एक बीमार व्यक्ति को इन सड़कों से हो कर 3 घंटे की यात्रा कर के तहसील स्थित अस्पताल पहुंचना हो तो क्या उस महिला का या उस व्यक्ति का जीवन बच सकेगा? महिला का तो रास्ते में ही गर्भपात हो सकता है और व्यक्ति अस्पताल पहुंचने से पहले ही दम तोड़ देगा. सोचिए कि कितनी पीड़ा, कितना दर्द यहां के लोग सहते हैं.’’

शर्मिला के इस कथन पर मैं निरुत्तर हो गया था. समझ नहीं पा रहा था कि क्या कहूं, क्योंकि इस सवाल का कोई उत्तर मेरे पास था ही नहीं.

अगले दिन शर्मिला ने मुझे मतदान केंद्र संख्या 26 और 27 दिखाने को कहा. यहां जाने के लिए हमें 10 किलोमीटर जीप से जाने के बाद 5 घंटे नदी में नाव से जाना था. हम 3 नावों में बैठ कर उन दोनों पोलिंग स्टेशनों पर पहुंचे. रास्ते कितने परेशानी भरे होते हैं और आदमी का जीवन कितना कष्टों से भरा होता है, यह मैं ने पहली बार 5 घंटे नाव की सवारी करने पर जाना.

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इन दोनों पोलिंग स्टेशनों पर शर्मिला ने सभी गांव वालों को बुला कर उन की समस्याएं उन की जबानी मुझे सुनाई थीं. उस ने बताया था कि इन गांवों तक पहुंचना कितना मुश्किल है, बीमार का इलाज होना, शिक्षा व रोजगार पाना लगभग असंभव है. सारा जीवन अंधेरे में उजाले की उम्मीद लिए काटने जैसा है. ये लोग रोज सोचते हैं कि कल नई जिंदगी मिलेगी पर आज तक सिर्फ अंधेरा ही साथ रहा है. इन गांवों में 1949 का बना हुआ प्राइमरी स्कूल है जो आजादी के लगभग 60 वर्ष बाद भी प्राइमरी ही है. यहां पर शिक्षक भी नहीं आते हैं और बच्चे कक्षा 5 से आगे पढ़ ही नहीं पाते.

तीसरे दिन शर्मिला मुझे पोलिंग स्टेशन संख्या 13, 14 की ओर ले गई. इस तरफ भी वही स्थिति थी, खराब सड़कें, टूटे पुल, टूटे स्कूल, बेरोजगार लोग और बंद पड़े चाय के कारखाने…मैं समझ नहीं पा रहा था कि शर्मिला मुझे क्या दिखाना चाह रही थी. एक ऐसा सच, जिस के बारे में दिल्ली में किसी को पता नहीं और हम लोग ‘इंडिया शाइनिंग’ कहते रहते हैं पर सच तो यह है कि आधी से ज्यादा आबादी के लिए जीवन की मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं. इन स्थितियों को देख कर लगता है कि हम आम आदमी के लिए संवेदनशील नहीं हैं और उसे अच्छी जिंदगी देना ही नहीं चाहते.

जानें आगे क्या हुआ कहानी के अगले भाग में…

गलती की सजा: भाग 2

पहला भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें- गलती की सजा: भाग 1

‘‘मुझे आप की मदद कर के बहुत खुशी मिलेगी. मैं आप की छुट्टी के लिए प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी से अनुरोध करूंगी. मु झे पूरा भरोसा है कि वे मेरी बात मान लेंगे और आप को 2 महीने की छुट्टी मिल जाएगी,’’ विनिता ने कहा.

विजय को कुछ बोलते नहीं बन रहा था, इसलिए उस ने कहा, ‘‘अगर तैयारी के लिए 2 महीने की छुट्टी मिल गई, तो आप की बड़ी मेहरबानी होगी.’’

‘‘क्यों नहीं, मैं आप के लिए इतना तो कर ही सकती हूं. वैसे भी बहुत एहसान है आप का मु झ पर. मेरा भी तो फर्ज बनता है कि मैं आप के लिए कुछ करूं,’’ विनिता ने कहा.

विजय पहले से ही शर्मिंदगी महसूस कर रहा था. विनिता की इस बात पर उस ने चुप रहना ही बेहतर सम झा. थोड़ी देर चुप रहने के बाद उस ने जाने की इजाजत मांगी.

घर लौटते हुए विजय बहुत पछता रहा था. वह मन ही मन सोच रहा था, ‘काश, मैं ने इस से शादी की होती तो हो सकता है कि मु झे भी कामयाबी मिल जाती. इस लड़की से तो मु झे परीक्षा की तैयारी में मदद ही मिलती. नुकसान तो होता नहीं?’

अब विजय को पिछली कोशिश में कामयाबी न मिलने का उतना अफसोस नहीं था, जितना कि विनिता से शादी नहीं करने के उस के गलत फैसले का था. पर, अब बहुत देर हो चुकी थी. अब आखिरी कोशिश में उसे किसी भी कीमत पर कामयाबी हासिल करनी है.

विनिता ने तैयारी के लिए 2 महीने की छुट्टी दिलाने की सिफारिश करने का भरोसा दिलाया ही है, इसलिए अब उसे पूरे मन से तैयारी में जुट जाना चाहिए.

अगले दिन विद्यालय पहुंचाने पर प्रिंसिपल ने बताया कि बीडीओ साहिबा की सिफारिश पर उस की छुट्टी मंजूर कर ली गई है.

प्रिंसिपल ने फिर कहा, ‘‘सुना है कि आप ने बीडीओ साहिबा पर कभी बहुत एहसान किया था, इसलिए उन्होंने आप की मदद की है. आखिर क्या एहसान किया था आप ने, जरा हमें भी बताइए?’’

विजय ने  झेंपते हुए कहा, ‘‘मु झे खुद नहीं पता कि मैं ने कब उन के लिए क्या किया था. अच्छे अफसर ऐसे ही लोगों की मदद किया करते हैं. वैसे, सच पूछा जाए तो एहसान तो उन्होंने मु झ पर अब किया है, जिस का कर्ज चुकाना भी मेरे लिए आसान नहीं होगा.’’

उसी समय बीडीओ साहिबा का काफिला स्कूल में आया. प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी के साथ स्कूल के निरीक्षण के लिए विनिता वहां पहुंची थीं.

कार से उतरते ही उन्होंने विजय से कहा, ‘‘विजय बाबू, पिछली बार पता नहीं आप ने कैसी कोशिश की थी, पर इस बार आप की कोशिश में कमी नहीं होनी चाहिए. मेरी शुभकामना है कि इस बार आप को कामयाबी जरूर मिले.’’

अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए विनिता बोली, ‘‘जिसे खुद पर भरोसा नहीं होता, वही दूसरों पर भरोसा नहीं कर पाता. जिसे खुद पर भरोसा होता है, उसे अपने साथियों पर भी भरोसा होता है. ऐसे लोग नए साथियों को पा कर जोश से भर जाते हैं. उन के लिए कामयाबी की राह और आसान हो जाती है, इसलिए सब से पहले खुद पर भरोसा करना ज्यादा जरूरी है. इस से कोई भी राह आसान हो जाती है.

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‘‘पिछली बार शायद आप को अपनेआप पर भरोसा नहीं था, इसलिए आप को कामयाबी नहीं मिली. अगर आप को कामयाबी मिल जाएगी, तो आप ने जो मु झ पर एहसान किया है, उस का भी कर्ज चुक जाएगा, इसलिए मैं ने आप पर भरोसा कर के आप को छुट्टी दिलवाने में मदद की है. इस बार यह भरोसा मत तोड़ दीजिएगा.’’

विजय ने कहा, ‘‘सम झदार लोग एक बार गलती करते हैं, बारबार नहीं.’’

विजय ने अगले 2 महीने की छुट्टी का फायदा उठा कर खूब तैयारी की. इस तैयारी का उसे फल भी मिला. उस ने मुख्य परीक्षा व इंटरव्यू में भी कामयाबी हासिल की और उस का चयन प्रशासनिक सेवा के लिए हो गया.

विजय इस खबर को सुनाने के लिए सब से पहले विनिता के पास पहुंचा. उस के चैंबर में पहुंच कर विजय ने कहा, ‘‘मेरा चयन प्रशासनिक सेवा के लिए हो गया है. इस में आप की मदद का भी अच्छा योगदान है. अगर आप ने छुट्टी दिलाने में मदद नहीं की होती तो मु झे यह कामयाबी नहीं मिलती.’’

‘‘बहुतबहुत बधाई. वैसे, मैं ने आप की कोई मदद नहीं की. मैं ने पहले भी आप से कहा है कि आप के एहसान का कर्ज चुकाया है.

‘‘जरा सोचिए, अगर आप ने शादी के लिए मना नहीं किया होता और मेरी शादी आप के साथ हो गई होती, तो क्या होता. शादीशुदा लड़की के लिए अभी भी किसी प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी करना बड़ा मुश्किल होता है. परिवार की जिम्मेदारियों के बाद उस के पास खुद के लिए भी समय नहीं बचता है.

‘‘लेकिन, ऐसा मर्दों के साथ नहीं होता. वे सारी जिम्मेदारियों से मुक्त हो कर केवल परीक्षा पर अपना ध्यान दे कर तैयारी कर सकते हैं. घर में किसी ने खाना खाया है या नहीं, घर की सफाई हुई है या नहीं, इन सब बातों से उन्हें कोई लेनादेना नहीं होता.

‘‘इस तरह की जिम्मेदारियां औरतों को उठानी पड़ती हैं और मेरी शादी हो गई होती, तो शायद मु झे भी तैयारी के लिए कम समय मिलता. और मैं आज इस पद पर नहीं पहुंच पाती, इसलिए मु झे लगा था कि जो हुआ अच्छा ही हुआ और आप के द्वारा शादी के लिए मना करने को मैं ने आप का मु झ पर एक एहसान ही माना. अब आप को कामयाबी मिल चुकी है. अब मु झे भी सुकून मिला.’’

विजय ने कहा, ‘‘इस तरह मत कहिए. मैं ने जो गलती की थी, उसे अब मैं सुधारना चाहता हूं. अगर आप को बुरा न लगे तो मु झ से शादी कर मेरी पिछली गलती को सुधारने का मौका देने की कृपा करें.’’

‘‘नहीं, कभी नहीं…’’ विनिता ने रूखे लहजे में जवाब दिया, ‘‘आप ने कैसे सोच लिया कि मैं आप से शादी करने के लिए तैयार हो जाऊंगी.

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‘‘आप को याद होगा कि सगाई के बाद आप ने शादी के लिए मना किया था. एक बार जिस ने मना किया था, उसी से शादी कर के मैं अपने स्वाभिमान के साथ खिलवाड़ नहीं कर सकती. आप के एहसान का कर्ज चुका दिया. अब आप जा सकते हैं.’’

विजय चुपचाप नजरें  झुकाए विनिता के चैंबर से बाहर निकल गया. उसे यह उम्मीद नहीं थी कि कामयाबी हासिल करने के बाद भी इस तरह से उसे दुत्कार दिया जाएगा. उस के लिए यह किसी सजा से कम नहीं थी. पर उसे यह भी एहसास हो गया कि उस ने जो गलती की थी, उस के बदले यह सजा कम ही थी.

गलती की सजा: भाग 1

जब विजय ने किसी की बात नहीं मानी, तो दोस्त रमेश को उसे सम झाने की जिम्मेदारी दी गई. रमेश ने उसे बहुत सम झाया, पर वह टस से मस न हुआ.

दरअसल, विजय ने राज्य लोक सेवा आयोग की प्रारंभिक परीक्षा दी थी. उस का नतीजा अभी एक दिन पहले आया था. इस परीक्षा में वह कामयाब रहा था. इस के बाद मुख्य परीक्षा थी.

विजय का मानना था कि उसे परीक्षा के लिए जीजान से तैयारी करनी होगी. अगर वह उस में कामयाब रहा, तो इंटरव्यू में उसे कामयाबी पाने का पूरा यकीन था.

इस तरह विजय डिप्टी कलक्टर बन सकता था. इतने बड़े पद पर पहुंचने का यह मौका वह खोना नहीं चाहता था.

दोस्त रमेश ने सम झाया कि शादी के बाद भी मुख्य परीक्षा की तैयारी आसानी से की जा सकती है. उस की पत्नी के होने से तैयारी में मदद मिलेगी, नुकसान नहीं होगा. पर विजय ने कहा, ‘‘शादी के बाद न चाहते हुए भी मेरा ध्यान बंट जाएगा. हां, मैं तुम्हारी बात मानते हुए इतना कर सकता हूं कि परीक्षा के बाद तक के लिए इस शादी को टाल देता हूं. 3 महीने बाद परीक्षा होगी. परीक्षा के बाद मैं शादी कर लूंगा. तब तक के लिए लड़की वालों को रुकने के लिए कहो.’’

वैसे, उन की जाति में लड़केलड़कियों की शादी जल्दी ही हो जाती थी. विजय और जो लड़की पसंद की गई थी, दोनों की जाति के मुखिया देर होने पर खुसुरफुसुर करने लगे थे.

आखिरकार थक कर लड़की वालों को यह संदेश भिजवाया गया कि शादी को कुछ दिनों के लिए टाल दिया जाए.

लड़की वालों को यह बात बहुत बुरी लगी. उन्होंने शादी की पूरी तैयारी कर ली थी. अब तक बहुत सारे रुपए खर्च हो चुके थे.

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लड़की के पिता ने कहा, ‘‘ठीक है, पर जो नुकसान हुआ है, उस की भरपाई लड़के वालों को करनी होगी.’’

लड़की ने जब यह सुना, तो उस ने कहा, ‘‘मु झे ऐसे लोगों से रिश्ता नहीं जोड़ना है, इसलिए लड़के वालों से नुकसान की भरपाई कराइए और मु झे भी कुछ दिनों के लिए यों ही छोड़ दीजिए.’’

विजय के परिवार वालों को लड़की वालों के खर्च में हुए नुकसान की भरपाई करनी पड़ी.

इस शादी से छुटकारा पा कर विजय ने जीजान से परीक्षा की तैयारी की, पर उसे कामयाबी नहीं मिली.

उसी समय प्राथमिक विद्यालय के शिक्षकों की भरती शुरू हुई. हालांकि यह नियमित नौकरी नहीं थी और तनख्वाह बहुत ही कम थी, पर खर्च चलाने के लिए विजय ने इस नौकरी के लिए आवेदन दिया. उस का चयन पास के ही प्रखंड के एक प्राथमिक विद्यालय में हो गया.

विजय को विद्यालय की वह नौकरी करते हुए तकरीबन डेढ़ साल बीत गए. इस बीच उस ने फिर से राज्य लोक सेवा आयोग की परीक्षा का इश्तिहार देखा. ओबीसी का आरक्षण भी था. उस ने भी इस के लिए आवेदन कर दिया.

पिछली बार विजय परीक्षा में नाकाम रहा था, इसलिए इस बार वह अच्छी तरह तैयारी करना चाहता था.

तभी विजय को उस के साथी शिक्षकों ने बताया कि उसी प्रखंड की बीडीओ यानी प्रखंड विकास पदाधिकारी, जो एक औरत हैं, का चयन पिछली बार के राज्य लोक सेवा आयोग की परीक्षा में हुआ था. अगर वह चाहे तो उन से परीक्षा से संबंधित टिप्स ले सकता है. वे ऐसी पदाधिकारी हैं, जो सब की मदद करती हैं. वे परीक्षा की तैयारी से संबंधित उचित सलाह भी देती हैं.

राज्य लोक सेवा आयोग के नियमों के मुताबिक विजय इस बार की परीक्षा के बाद कभी बैठ नहीं सकता था, क्योंकि अगली बार से उस की उम्र इस परीक्षा के लिए ज्यादा हो जाएगी, इसलिए वह परीक्षा की तैयारी में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहता था. अपने साथी शिक्षकों की सलाह मान कर वह बीडीओ से मिलने पहुंचा.

बीडीओ के चैंबर के बाहर नेमप्लेट को देख कर उसे विश्वास नहीं हुआ, ‘विनिता कुमारी’.

‘कहीं यह वही तो नहीं, जिस से मेरी शादी होने वाली थी? यह भी राज्य लोक सेवा आयोग की परीक्षा में बैठने वाली थी. इस के रिजल्ट के बारे में तो मु झे पता भी नहीं चला था. हो सकता है कि यह कोई और हो,’ इसी तरह सोचते हुए वह चैंबर में दाखिल होने लगा और बोला, ‘‘क्या मैं अंदर आ सकता हूं मैडम?’’

‘‘हां, आइए,’’ अंदर से आवाज आई.

विजय ने देखा, वह विनिता ही थी. दोनों एकदूसरे को देख कर थोड़ी देर के लिए ठिठके, फिर विनिता ने ही हालात को संभालते हुए पूछा, ‘‘बैठिए, यहां कैसे आना हुआ?’’

विनिता को यहां देख कर विजय की हालत काटो तो खून नहीं जैसी हो गई थी. उसे कुछ बोलते नहीं बन रहा था.

उस ने हड़बड़ाते हुए कहा, ‘‘मैं प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी से मिलने आया था, तो सोचा कि नए प्रखंड विकास पदाधिकारी से भी मिल लूं. यहां पर देखा कि आप हैं…’’

‘‘क्या मु झे देख कर आप को अच्छा नहीं लगा?’’ विनिता ने जानबू झ कर पूछा.

‘‘नहीं, ऐसा नहीं है,’’ विजय ने जवाब दिया.

‘‘वैसे, आप का शुक्रिया. अगर आप ने शादी के लिए मना नहीं किया होता, तो मैं भी शायद अपनी शादीशुदा जिंदगी में रम जाती और इस मुकाम को हासिल नहीं कर पाती.

‘‘आप के मना करने के बाद मैं ने अपना ध्यान और समय लोक सेवा आयोग की मुख्य परीक्षा में लगाया और मु झे उस में कामयाबी मिली. इस कामयाबी के बाद मेरा आत्मविश्वास बढ़ा और इंटरव्यू में भी कामयाबी के बाद मेरा चयन इस पद के लिए हो गया,’’ विनिता ने कहा.

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‘‘मु झ से गलती हो गई थी,’’ विजय ने शर्मिंदा होते हुए कहा.

‘‘आप भी मुख्य परीक्षा की तैयारी कर रहे थे. क्या हुआ आप का?’’ विनिता ने पूछा.

‘‘मु झे कामयाबी नहीं मिली. उस के बाद मैं ने प्राथमिक शिक्षक भरती के लिए आवेदन किया, जिस में मेरा चयन हो गया और अब मैं इसी प्रखंड के प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक हूं,’’ विजय ने कहा.

‘‘अच्छी बात है. कोई भी पद या काम छोटा या बड़ा नहीं होता. वैसे, मेरे लायक कोई सेवा हो तो बताइएगा. हाल ही में फिर से लोक सेवा आयोग की सिविल सेवा परीक्षा के लिए इश्तिहार निकला था. क्या आप ने फार्म भरा है?’’?विनिता ने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा.

‘‘हां, पर शिक्षक के रूप में नियमित रूप से काम करते हुए इस की तैयारी करना बड़ा मुश्किल होगा. अगले महीने प्रारंभिक परीक्षा है. इस परीक्षा में तो आसानी से कामयाबी मिल जाएगी, पर उस के तकरीबन 2 महीने बाद मुख्य परीक्षा होगी.

‘‘उस के लिए कम से कम 2 महीने की छुट्टी चाहिए. इस के लिए मैं ने आवेदन भी दे दिया है, पर इतनी छुट्टी मिल पाएंगी, इस की उम्मीद कम ही है.’’

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

पुष्पा का प्रेम ‘रतन’ : भाग 1

सांवले रंग का धनंजय सामान्य कदकाठी वाला युवक था. उस की एकमात्र खूबी यही थी कि वह सरकारी नौकरी में था. कहने का अभिप्राय यह कि वह जिंदगी भर अपने परिवार का बोझ अपने कंधों पर उठा सकता था.

बिहार के जिला गोपालगंज के बंगरा बाजार निवासी रामजी मिश्रा ने धनंजय की यही खूबी देख कर उस से अपनी बेटी ब्याही थी. मांबाप ने कहा और खूबसूरत पुष्पा शादी के बंधन में बंध कर मायके की ड्योढ़ी छोड़ ससुराल आ गई. लेकिन उसे धक्का तब लगा, जब उस ने पति को देखा. वह जरा भी उस के जोड़ का नहीं था.

पत्नी यदि खूबसूरत हो तो पति उस के हुस्न का गुलाम बन ही जाता है. धनंजय भी पुष्पा का शैदाई बन गया. पुष्पा ने धनंजय की कमजोरी का फायदा उठा कर उसे अपनी उंगलियों पर नचाना शुरू कर दिया.

पुष्पा को धनंजय चाहे जैसा लगा हो, लेकिन धनंजय खूबसूरत, पढ़ीलिखी बीवी पा कर खुश था.

धनंजय सुबह 9 बजे घर से निकलता था, तो फिर रात 8 बजे के पहले घर नहीं लौटता था. पीडब्ल्यूडी में लिपिक के पद पर कार्यरत धनंजय की ड्यूटी पड़ोसी जिले सीवान में थी. धनंजय को अपने गांव अमवां से सीवान आनेजाने में 2 घंटे लग जाते थे. धनंजय को जितनी पगार मिलती थी, वह पूरी की पूरी पुष्पा के हाथ पर रख देता था.

धंनजय के 2 भाई और थे, बड़ा रंजीत और छोटा राजीव. रंजीत मुंबई में तो राजीव दिल्ली में नौकरी करता था. विवाह के बाद से ही धनंजय पुष्पा के साथ अलग घर में रह रहा था. कालांतर में पुष्पा 2 बच्चों की मां बनी. एक बेटा था सौरभ और एक बेटी साक्षी.

गत वर्ष मई महीने में धनंजय के साले का विवाह देवरिया की भुजौली कालोनी में हुआ था. विवाह में धनंजय पांडे की मुलाकात दुलहन के चचेरे भाई रतन पांडे से हुई. मुलाकात के दौरान दोनों की काफी बातें हुई.

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इसी बातचीत के दौरान धनंजय ने उस से देवरिया में मकान किराए पर दिलाने को कहा तो रतन ने हामी भर दी. विवाह में शामिल  होने के बाद धनंजय और पुष्पा बच्चों के साथ वापस लौट आए.

रतन पांडे देवरिया के थाना गौरीबाजार के सिरजम हरहंगपुर निवासी सुभाष पांडेय का बेटा था. सुभाष पांडेय टीवी मैकेनिक थे. 24 वर्षीय रतन 4 बहनों में दूसरे नंबर का था. इंटर पास रतन देवरिया में मोबाइल कंपनी ‘एमआई’ के कस्टमर केयर सेंटर में नौकरी करता था और देवरिया खास में ही किराए पर कमरा ले कर रह रहा था.

धनंजय से बात होने के कुछ ही दिनों के अंदर रतन ने धनंजय को शहर के इंदिरा नगर मोहल्ले में सौरभ श्रीवास्तव का मकान किराए पर दिलवा दिया. धनंजय अपनी पत्नी पुष्पा और दोनों बच्चों के साथ उसी मकान में रहने लगा.

बिहार का सीवान जिला उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले की सीमा से सटा है. इसलिए धनंजय को वहां से सीवान जाने में कोई दिक्कत नहीं होती थी, वह अपनी ड्यूटी पर रोजाना आनेजाने लगा. बच्चों का एडमीशन भी पास के एक स्कूल में करा दिया था.

धनंजय रोजाना सुबह निकल जाता और देर रात वापस लौटता था. बच्चे भी स्कूल चले जाते थे. पुष्पा घर पर अकेली रह जाती थी. ऐसे में रतन का पुष्पा के पास आनाजाना बढ़ गया. रतन पुष्पा की खूबसूरती पर पहले ही मर मिटा था. इसीलिए उस ने पुष्पा के नजदीक रहने के लिए धनंजय को देवरिया में किराए पर मकान दिलवाया था. धनंजय के कहने पर वह उस के बच्चों सौरभ और साक्षी को ट्यूशन पढ़ाने लगा था.

बच्चों के जन्म के बाद से धनंजय अब पुष्पा में पहले जैसी रुचि नहीं लेता था. वैसे भी जैसेजैसे वैवाहिक जीवन आगे बढ़ता है, कई पतिपत्नी एकदूसरे में दोष खोजने लगते हैं, जो उन के बीच विवाद की जड़ बनते हैं. धनंजय भी पुष्पा में कमियां निकालने लगा था. वैसे भी पुष्पा को तो वह कभी नहीं भाया था, किसी तरह उस के साथ अपनी जिंदगी काट रही थी.

जब धनंजय उस के दोष और गलतियां निकालता था तो पुष्पा के अंदर दबा गुस्सा गुबार बन कर बाहर निकल पड़ता था, जिस पर धनंजय उस की पिटाई कर देता था. ऐसा अधिकतर धनंजय के शराब के नशे में होने पर ही होता था. धनंजय मारपिटाई पर उतर आया तो पुष्पा को उस से हद से ज्यादा नफरत हो गई.

रतन ने उस के घर आना शुरू किया तो पुष्पा की नजर उस पर टिकने लगीं. रतन गोराचिट्टा, स्मार्ट और कुंवारा था. पुष्पा ने ऐसे ही युवक की कामना की थी.

विवाह से पहले उस की 2 ही इच्छाएं थीं, एक तो उस का जीवनसाथी सरकारी नौकरी वाला हो और दूसरा वह खूबसूरत व स्मार्ट हो. उस की जोड़ी उस के साथ ‘रब ने बना दी जोड़ी’ जैसी हो. उस की एक इच्छा तो पूरी हो गई थी लेकिन दूसरी इच्छा ने उसे रूला दिया.

धनंजय ने कभी भी पुष्पा की तारीफ  नहीं की थी, लेकिन रतन पुष्पा की जम कर तारीफ करता था, साथ ही हंसीमजाक भी. पुष्पा सोचती थी कि रतन को सुंदरता की कद्र करनी आती है, लेकिन धनंजय को नहीं.

रतन लतीफे सुना कर पुष्पा को खूब हंसाता था. उस की पसंदनापसंद की चीजों का ख्याल रखता था. पुष्पा साड़ी या सलवारसूट पहनती तो उसे अपनी राय बताता. इन बातों से पुष्पा मन ही मन बहुत खुश होती. धीरेधीरे पुष्पा को भी रतन की आदत पड़ गई. उस के बिना अब उसे अच्छा नहीं लगता, घर में सब सूनासूना सा महसूस होता.

रतन ने पुष्पा को इतनी खुशियां दीं कि वह सोचने को मजबूर हो गई कि काश! मेरा पति रतन जैसा होता, तो कितना अच्छा होता…?

एकांत क्षणों में पुष्पा, रतन की तुलना धनंजय से करने लगती और यह सोच कर मायूस हो जाती कि धनंजय रतन के आगे किसी मामले में नहीं ठहरता. पुष्पा रतन के बारे में ज्यादा सोचती तो उस का मन उस की बांहों में ही सिमटने को मचल उठता.

पुष्पा और रतन की निगाहों में एकदूसरे के लिए तड़प भरी रहती थी. पानी का गिलास, चाय का कप लेतेदेते हुए दोनों की अंगुलियों का स्पर्श होता तो दोनों ही ओर चिंगारियां छूटने लगतीं.

पुष्पा का रतन

रतन का व्यक्तित्व पुष्पा के दिल में हलचल मचाए हुए था तो पुष्पा की आकर्षक देहयष्टि रतन के युवा मन में सरसराहट भरती रहती थी. वह पुष्पा से बिना नजरें मिलाए उस का दीदार करता रहता. उसे पूरी तरह पा कर न सही, स्पर्श कर के ही सुख लूटता रहता.

रतन कुछ कारणों से अपने गांव चला गया तो पुष्पा खुद को फिर तन्हा महसूस करने लगी. उसे ऐसा लगा, जैसे उस की रूह निकल कर चली गई हो और मुरदा जिस्म वहां रह गया हो.

धनंजय सीवान से अपनी ड्यूटी से वापस लौटता, रात में जब वह उस से संसर्ग करता, तब भी वह मुर्दों की तरह निष्क्रिय पड़ी रहती. धनंजय उस के व्यवहार से इसलिए स्तब्ध नहीं हुआ, क्योंकि वह जानता था कि पुष्पा उस से बिलकुल खुश नहीं है.

उधर गांव गए रतन का हाल भी ऐसा ही था. पुष्पा को याद कर के वह रात भर करवटें बदलता रहता, आंखें बंद करता तो सपने में पुष्पा ही नजर आती. जो वह हकीकत में करने की ख्वाहिश रखता था, उसे कल्पना में ही कर के खुद को तसल्ली दे लेता था.

आखिर रतन गांव से शहर लौटा तो पुष्पा से मिलने गया. पुष्पा उस समय अकेली थी. उसे रतन की यादों ने बेहाल कर रखा था. रतन को देखते ही पुष्पा का चेहरा खिल उठा.

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रतन के अंदर आते ही पुष्पा ने लपक कर दरवाजा बंद कर दिया. फिर नाराजगी प्रकट करते हुए बोली, ‘‘क्या इस तरह मुझे तड़पाना अच्छा लगता है तुम्हें?’’

‘‘मैं समझा नहीं.’’ रतन अंजान बनते हुए बोला.

‘‘कितने दिन हो गए तुम्हें. मैं तुम्हारी सूरत देखने को तरस गई थी.’’ पुष्पा ने शिकायती लहजे में कहा.

‘‘सच,’’ रतन खुश होते हुए बोला,‘‘मैं यही सुनने को तो गैरहाजिर था. मैं देखना चाहता था कि तुम्हारे दिल में मेरे लिए कितनी चाहत है. अगर ऐसा नहीं करता, तो तुम शायद आज अपने दिल की बात मुझ से न कहतीं.’’

‘‘तुम सच कह रहे हो रतन. तुम ने मुझ पर न जाने कैसा जादू कर दिया है कि मैं हर पल तुम्हारे बारें में ही सोचती रहती हूं.’’ कहते हुए उस ने रतन के गले में बांहें डाल दीं.

‘‘यही हाल मेरा भी है पुष्पा. जिस दिन तुम्हारा दीदार नहीं होता, वह दिन पहाड़ सा लगता है.’’ पुष्पा की पतली कमर में हाथ डालते हुए रतन ने उसे अपने करीब खींचा और उस के होंठों पर अपने होंठ रख दिए.

पुष्पा के होंठों में ऐसी तपन थी, कि रतन को लगा जैसे उस ने अंगारों को छू लिया हो. पुष्पा के होंठों से अपने होंठ अलग करते हुए उस ने पुष्पा की सुरमई आंखों में झांका, तो लगा जैसे उन में पूरा मयखाना समाया हो. पुष्पा की नशीली आंखों, फूलों जैसे रुखसार, सुराही जैसी गरदन और उस के नाजुक अंगों को देख कर रतन के रोमरोम में लहर सी दौड़ गई.

गजब तो तब हुआ, जब पुष्पा ने अपने बंधे हुए गेसू खोल दिए. थोड़ी देर पहले ही उस ने सिर धोया था. सावन की घटाओं से भी श्यामवर्ण गेसू कमर के नीचे उभारों को छूने लगे, तो रतन बोल पड़ा, ‘‘वाह पुष्पा, क्या लाजवाब हुस्न है तुम्हारा.’’

पुष्पा ने खिलखिला कर हंसते हुए पूछा, ‘‘वो कैसे?’’

‘‘आइने में देख लो, खुद समझ जाओगी.’’

‘‘वो तो मैं तुम्हारी आंखों में देख कर समझ रही हूं.’’

‘‘क्या देख रही हो मेरी आंखों में?’’ रतन ने पूछा.

‘‘बेईमानी. किसी का माल हड़पने के लिए नीयत खराब कर रहे हो.’’ पुष्पा ने हौले से रतन के गाल पर चपत लगाई.

‘‘अगर वह माल लाजवाब और मीठा हो तो उसे उठा कर मुंह में रख लेने में कैसी झिझक. सच में दिल कर रहा है कि आज मैं तुम्हें लूट ही लूं.’’

‘‘तो रोका किस ने है?’’ कहते हुए पुष्पा रतन के गले से झूल गई और बोली,‘‘आओ लूट लो मेरे हुस्न के इस अनमोल खजाने को. मैं तो कब से तुम्हें सौंपने को बेताब थी.’’

रतन का गला सूखने लगा था, ‘‘कोई आ गया तो?’’

‘‘कोई नहीं आ रहा अभी, तुम निश्चिंत रहो.’’

इस के बाद दोनों वासना के खेल में डूबते चले गए. घर की तनहाई दोनों के दिलों की ही नहीं जिस्मों के मिलन की भी साक्षी बन गई. इस के बाद तो रोज ही उन के बीच यह खेल खेला जाने लगा.

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रतन ने पुष्पा को दिया अपने नाम वाला सिम

रतन ने पुष्पा को एक सिम खरीद कर दे दिया. उस ने सिम को अपने मोबाइल में डाल लिया. पुष्पा इस सिम का इस्तेमाल केवल रतन से बात करने के लिए करती थी.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

पुष्पा का प्रेम ‘रतन’ : भाग 2

धनंजय की अनुपस्थिति में रतन पूरे दिन पुष्पा के साथ उस के घर में मौजूद रहता. उस के साथ समय बिताता तो उन पलों को अपने स्मार्टफोन में भी कैद कर लेता. वह अपने मोबाइल से अंतरंग पलों के फोटो और वीडियो भी बनाता था.

18 अप्रैल की सुबह बंद चीनी मिल के परिसर में कुछ युवक लकड़ी लेने गए. इस बीच उन की नजर एक पेड़ के नीचे पड़ी एक लाश पर गई. उन्होंने आसपास के लोगों को बताया तो चंद मिनटों में वहां काफी भीड़ इकट्ठा हो गई. 112 नंबर पर काल कर के पुलिस को लाश मिलने की सूचना दी गई.

घटनास्थल थाना कोतवाली देवरिया में आता था, इसलिए कंट्रोल रूम से यह सूचना कोतवाली पुलिस को दे दी गई. सूचना पा कर इंसपेक्टर टीजे सिंह अपनी पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गए.

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मृतक की उम्र 40-42 वर्ष रही होगी. उस के चेहरे को किसी भारी वस्तु से कूंचा गया था. चेहरा क्षतविक्षत होने के कारण मृतक की पहचान होना मुश्किल था. उस के गले पर भी कसे जाने के निशान मौजूद थे. घटनास्थल पर लाश से कुछ दूरी पर खून से सना एक ईंट का टुकड़ा पड़ा मिला. हत्यारे ने उसी ईंट के टुकड़े से मृतक का चेहरा कुचला था.

इंसपेक्टर टीजे सिंह निरीक्षण कर ही रहे थे कि तभी एसपी डा. श्रीपति मिश्र, एएसपी शिष्यपाल, सीओ सिटी निष्ठा उपाध्याय समेत अन्य अधिकारी भी वहां पहुंच गए. अधिकारियों ने भी लाश व घटनास्थल का निरीक्षण किया.

इंसपेक्टर टीजे सिंह के आदेश पर कुछ सिपाहियों ने मृतक के कपड़ों की तलाशी ली तो कपड़ों से मृतक का आधार कार्ड मिल गया, जिस में मृतक का नाम धनंजय पांडे लिखा था और पता देवरिया की सीमा से सटे बिहार के गोपालगंज जिले के कुचायकोट थाना क्षेत्र में आने वाले गांव अमवा का लिखा था.

मृतक के घर वालों को कुचायकोट थाना पुलिस के जरीए सूचना भेजी गई. इस के बाद पुलिस अधिकारी इंसपेक्टर टीजे सिंह को आवश्यक दिशानिर्देश दे कर वापस लौट गए.

सूचना पर मृतक के घर वाले और ससुराल वाले वहां पहुंचे. उन लोगों ने धनंजय की लाश की शिनाख्त कर दी. लाश की शिनाख्त होने के बाद उसे पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दिया गया.

कोतवाली लौट कर इंसपेक्टर टीजे सिंह ने धनंजय पांडे के ससुर रामजी मिश्रा की लिखित तहरीर के आधार पर अज्ञात के विरूद्ध भादंवि की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया.

केस की जांच शुरू करते हुए इंसपेक्टर टीजे सिंह ने सर्वप्रथम पुष्पा से पूछताछ की, जो कि घटना से एक महीने पहले से अपने मायके में रह रही थी.

उन्होंने पुष्पा से पूछा, ‘‘धनंजय की किसी से कोई दुश्मनी थी या उस का किसी से हाल ही में कोई लड़ाईझगड़ा हुआ था?’’

‘‘सर, उन की किसी से दुश्मनी नहीं थी और न ही उन का किसी से लड़ाईझगड़ा हुआ था. वह तो सुबह अपने आफिस के लिए निकल जाते थे और रात में लौटते थे.’’

‘‘फिर भी कोई दुश्मनी रही हो, याद करने की कोशिश कीजिए.’’

‘‘सर, मेरी जानकारी में तो नहीं है, अगर औफिस में कोई बात हुई हो तो मुझे पता नहीं. मेरे पति आफिस की कोई भी बात मुझे नहीं बताते थे.’’

पुष्पा बड़े ही सहज भाव से सवालों का जवाब दे रही थी. उस के चेहरे के भावों और बोलने के अंदाज से यह कतई नहीं झलक रहा था कि वह पति की मौत से गमगीन है. यह बात मन में शक पैदा करने वाली थी.

पुष्पा के चेहरे को पढ़ने की कोशिश करते हुए इंसपेक्टर टीजे सिंह ने एक और सवाल दागा, ‘‘घर में कौनकौन आता था?’’

‘‘सर, हम देवरिया में किराए पर रह रहे थे. हमारी किसी से जानपहचान नहीं है. इसलिए कोई भी नहीं आताजाता था.’’

‘‘कोई भी नहीं?’’ इंसपेक्टर टीजे सिंह ने उस की आंखों से आंखें मिला कर उस का सच और झूठ पकड़ने के लिए एक बार फिर एकएक शब्द पर जोर देते हुए पूछा.

इंसपेक्टर सिंह को घुमाती रही पुष्पा

इंसपेक्टर टीजे सिंह द्वारा इस तरह पूछने पर पुष्पा एक पल के लिए हड़बड़ाई, लेकिन अगले ही पल खुद को संभालते हुए बोली, ‘‘जी सर कोई नहीं, बस मेरे बच्चों को पढ़ाने के लिए रतन पांडे आता था. वह हमारा दूर का रिश्तेदार है, उसी ने हमें देवरिया में रहने के लिए किराए पर मकान दिलवाया था.’’

‘‘तो बताना चाहिए था न… मैं दोबारा न पूछता तो आाप बताती भी नहीं.’’

‘‘सर, वह तो घर का ही है, बाहर का नहीं, इसीलिए नहीं बताया.’’ पुष्पा ने सफाई दी.

‘‘ये आप हमें तय करने दें कि कौन क्या है, हमारे निशाने पर सभी होते हैं चाहे घर के हों या बाहर के. वैसे भी अधिकतर केसों में हत्यारा घर का अपना ही कोई निकलता है.’’ कह कर टीजे सिंह ने पुष्पा की तरफ  देखा तो उस के चेहरे पर आने वाले भाव देख कर वह मुस्करा उठे और फिर उठते हुए बोले, ‘‘खैर अब मैं चलता हूं, जरूरत पड़ी तो आप से दोबारा पूछताछ करूंगा.’’

‘‘जी सर.’’

टीजे सिंह वहां से चले गए. वहां से निकलने से पहले वह पुष्पा का मोबाइल नंबर लेना नहीं भूले.

इंसपेक्टर सिंह ने उस नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई साथ ही जिस मोबाइल में सिम पड़ा था. उस मोबाइल में दूसरे सिम भी डाले गए थे तो उन सिम के नंबरों की भी डिटेल्स देने को कहा गया.

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जब पुष्पा के बताए नंबर की काल डिटेल आई तो उस में कुछ खास नहीं मिला. लेकिन साथ में एक और नंबर की काल डिटेल्स आई थी.  वह नंबर भी पुष्पा अपने डबल सिम वाले मोबाइल में प्रयोग कर रही थी. लेकिन उस नंबर के बारे में पुष्पा ने कुछ नहीं बताया था.

उस नंबर से केवल एक नंबर पर ही रोज बात की जाती थी. उस नंबर की डिटेल्स निकलवाई तो वह नंबर रतन पांडे के नाम पर था. रतन वही था जो धनंजय के घर ट्यूशन पढ़ाने आता था. उस का पता किया तो वह घर से फरार मिला.

20 अप्रैल को इंसपेक्टर टीजे सिंह ने एक मुखबिर की सूचना पर अमेठी तिराहे के खोराराम मोड़ से रतन पांडे को गिरफ्तार कर लिया. थाने ला कर जब उस से सख्ती से पूछताछ की गई तो रतन ने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया, साथ ही हत्या की वजह भी बता दी. इस के बाद इंसपेक्टर सिंह पुष्पा को उस के मायके से गिरफ्तार कर के थाने ले आए.

थाने में जब उस से पूछताछ की गई तो उस ने बरगलाने की कोशिश की कि रतन ने उस के अश्लील फोटो व वीडियो बना लिए थे, जिन के सहारे वह उसे ब्लैकमेल कर रहा था. उसी ने उस के पति की हत्या की है. लेकिन जब सख्ती दिखाई गई तो उस ने सच उगल दिया.

पुष्पा रतन को अपनी जान से भी ज्यादा चाहने लगी थी, उसी के साथ विवाह कर के वह अपनी आगे की जिंदगी गुजारना चाहती थी. इस के लिए वह रतन के साथ भाग जाती और विवाह कर लेती. लेकिन जिंदगी सिर्फ प्यार से नहीं गुजरती, पैसों की भी जरूरत होती है. रतन छोटीमोटी नौकरी करता था, उस से उस का खुद का गुजारा ही नहीं हो पाता था. ज्यादा पैसा तो सरकारी नौकरी में ही मिलता है जो कि धनंजय के पास थी. इसलिए पैसों की उसे कभी कोई दिक्कत नहीं हुई.

पुष्पा को सरकारी नौकरी का मोह था. इसलिए उस ने इस का रास्ता निकाल लिया. उस रास्ते पर चल कर उस की सारी इच्छाएं पूरी हो सकती थीं. वह रास्ता था धनंजय की मौत. धनंजय के मरने से पुष्पा को एक तो उस से छुटकारा मिल जाता, दूसरे उस की जगह मृतक आश्रित कोटे से उसे नौकरी मिल जाती और तीसरा वह रतन से विवाह कर के आराम से जिंदगी गुजार सकती थी.

पुष्पा अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए पति के खून से हाथ रंगने को तैयार थी. वह यह भूल गई कि केवल सोचने भर से जिंदगी आसान नहीं हो जाती. सब कुछ मनचाहा नहीं होता.

वह जिस रास्ते पर चलने को आमादा थी उस पर उसे सरकारी नौकरी तो नहीं जेल की सलाखें जरूर मिलने वाली थीं. दूसरी ओर धनंजय को अपनी मौत के षड़यंत्र का कैसे पता चलता, जबकि उसे पुष्पा और रतन के अवैध संबंधों तक की जानकारी नहीं थी.

पुष्पा अपने इरादों को अंजाम तक पहुंचाने को आतुर थी. रतन तो पहले से ही पुष्पा से बारबार धनंजय को मार देने की बात कहता रहता था. वह तो पुष्पा की तरफ से बस हरी झंडी मिलने का इंतजार कर रहा था. पुष्पा ने अपने दिल की पूरी बात रतन को बता दी. इस के बाद दोनों ने धनंजय की हत्या की योजना बनाई. योजनानुसार 16 मार्च, 2020 को पुष्पा बच्चों के साथ अपने मायके गोपालगंज चली गई.

एक महीना पूरा होने पर 17 अप्रैल की शाम 4 बजे पुष्पा ने रतन को फोन कर के धनंजय की हत्या करने को कहा.

काश! धनंजय शराब के लालच में न पड़ता

18 अप्रैल की रात 8 बजे के करीब रतन ने धनंजय को शराब पीने के लिए बंद चीनी मिल परिसर में बुलाया. धनंजय के वहां पहुंचने पर रतन ने एक ईंट के टुकडे़ से उस के सिर पर प्रहार किया. धनंजय दर्द से बिलबिला उठा. इसी बीच रतन ने पास में उगी गिलोय की बेल उखाड़ कर धनंजय के गले में डाल दी और पूरी ताकत से कस दिया.

दम घुटने से धनंजय की मौत हो गई. इस के बाद रतन ने धनंजय के चेहरे को बुरी तरह से कुचल दिया. फिर धनंजय की जेब से मोबाइल निकाल कर रतन वहां से चला गया. उस ने वाट्सऐप पर मैसेज कर के पुष्पा को धनंजय की मौत की जानकारी दे दी. पुष्पा द्वारा मैसेज देख लेने के बाद रतन ने वह मैसेज डिलीट कर दिया.

लेकिन दोनों पकड़े गए. रतन ने अपना एंड्रायड मोबाइल फारमेट कर दिया था. इसलिए उस मोबाइल का डाटा रिकवर करने के लिए इंसपेक्टर टीजे सिंह ने मोबाइल में डाटा रिकवरी ऐप इंस्टाल किया और मोबाइल का पूरा डाटा रिकवर कर लिया. मोबाइल की गैलरी में रतन व पुष्पा के अनगिनत फोटो मिले, जिस में कई अश्लील भी थे, जिन को उन्होंने सुबूत के तौर रख लिया.

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अभियुक्त रतन के पास से इंसपेक्टर सिंह ने धनंजय का मोबाइल भी सिम सहित बरामद कर लिया. हत्या में प्रयुक्त ईंट का टुकड़ा पहले ही घटनास्थल से बरामद हो गया था.

कानूनी औपचारिकताएं पूरी कर के दोनों को न्यायालय में पेश किया गया, जहां से दोनों को न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज  दिया.

-कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

पुष्पा का प्रेम ‘रतन’

ब्लैकमेलर से ऐसे बचें

भय दोहन के अनेक मामले इन दिनों छत्तीसगढ़ में घटित हुए है.

प्रथम- रायगढ़ में  नाबालिक लड़की के साथ मित्रता करके उसके अश्लील फोटोग्राफ्स खींच लिए  और फिर लड़की के साथ मनमानी करने की कोशिशें की.

द्वितीय – कोरबा  मे महिला के साथ संबंध बनाने के पश्चात वीडियो बना लिया और दोस्तों को आमंत्रित कर महिला को ब्लैकमेल करने की  कोशिश की.

तृतीय-धमतरी में   एक बुजुर्ग ने एक युवक और युवती को आपत्तिजनक स्थिति में देख फोटो खींचकर भय दोहन करने की चेष्टा की.

अब लाख टके का सवाल यह है कि आखिर ब्लैक मेलिंग या भय दोहन से कैसे बचा जाए. आज हम आपको इसका एक रामबाण  तरीका बताने जा रहे  हैं. आप यह लेख गंभीरता से पढ़ें-

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भय दोहन या अंग्रेजी में कहें ब्लैकमेलिंग का धंधा बहुत पुराना है. और यह नए नए ढंग से कोरोना की तरह अपना रंग दिखाता रहता है. अगर आप सही हैं तो ऐसे ब्लैकमेल, भय दोहन करने वालों से बिल्कुल भी ना डरे. बल्कि खुलकर सामना करें. एक बार जरुर साहस का परिचय देते हुए पुलिस, कानून का सहारा ले सकते हैं. क्योंकि भय दोहन करने वाले एक बार शिकार को अपनी चंगुल में लेने के बाद  आसानी से नहीं छोड़ते. इसलिए जीवन भर ब्लेक मेलिंग का शिकार होने से अच्छा है सामना करें . समझदारी यही है कि साहस के साथ सामना कर आप सुकून से जीवन बिसार सकें.

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर मे एक ऐसा ही मामला सरगर्म होकर चर्चा में है.दरअसल, एक युवक के मोबाइल से उसकी गर्लफ्रेंड का फोटो और वीडियो वायरल करने की धमकी देते हुए रुपए और जेवर की मांग की. मामला पुलिस के समक्ष आया जिसे रायपुर पुलिस ने बड़ी हुई समझदारी के साथ सुलझा दिया है.

गर्लफ्रेंड के साथ फोटो वीडियो मोबाइल में ना रखें

राजधानी रायपुर में एक युवक को गर्लफ्रेंड के साथ फोटो और वीडियो रखना किस तरह भारी पड़ गया इस सनसनीखेज अपराध घटना का जीवंत साक्ष्य है. अंकुश वर्मा की शिकायत पर पुलिस ने कथित  आरोपी अजय कुमार को गिरफ्तार कर लिया है.पुलिस  के अनुसार, कबीर नगर का रहने वाला बीकॉम फाइनल ईयर का छात्र अंकुश वर्मा अपनी गर्लफ्रेंड से मिलने रायपुर के  शंकर नगर गया था. वहीं निकट खड़े   आरोपी अजय कुमार  ने दोनों को आपत्ति  जनक  हालात  मे मिलते देख लिया था. मुलाकात के बाद घर के लिए निकले अंकुश का आरोपी ने पीछा करते हुए दुसाहसिक ढंग से गुढ़ियारी ओवरब्रिज के पास रोक लिया. और बड़े ही नाटकीय ढंग से उसे भयभीत करते हुए कहा-” मेरी भांजी से क्यों मिलकर आ रहा है.”यह  कहते हुए पीड़ित छात्र को उसके मोबाइल से उसकी गर्लफ्रेंड की फोटो डिलीट करने के नाम से मोबाइल अपने पास ले लिया और फिर युवक और उसकी गर्लफ्रेंड का फोटो और वीडियो अपने व्हाट्सएप पर शेयर कर  लिया. फिर  आरोपी ने उसे अपने साथ चलने को कहा और थोड़ी दूर जाकर वहां से फरार हो गया.

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लगभग  एक घंटा बाद उसने पीड़ित छात्र के मोबाइल नंबर पर फोन कर उसके लिए फ़ोटो और वीडियो को वायरल करने की धमकी देकर पांच लाख रुपये की मांग की. लेकिन पीड़ित ने साहस का परिचय देते हुए यह ठान लिया कि वह  भय दोहन का शिकार नहीं होगा  और उसे पैसा नहीं दिया तब दोबारा आरोपी अजय ने उसे फोन कर गर्लफ्रेंड के घर से जेवर लाने  का दबाव बनाने लगा. मगर फोटो और वीडियो वायरल करने की धमकी से डर चुके पीड़ित युवक ने थाने में आकर शिकायत दर्ज करायी . राजधानी पुलिस ने तत्परता दिखाते हुए  आरोपी अजय  को  गिरफ्तार कर लिया है.

गलती की सजा

पत्नी के हाथों पति का “अंत” 

छत्तीसगढ़ के सूरजपुर जिले में एक महिला ने अपने ही पति की निर्मम हत्या करवा उसे दुर्घटना का स्वरूप देकर पुलिस को भरमाना चाहा. अक्सर हम पति अथवा पुरुष के द्वारा महिलाओं की हत्या की खबर सुर्खियां बनते देखते हैं. मगर ऐसा बहुत ही कम होता है जब कोई महिला अपने पति, जिसके साथ उसने सात फेरे लिए हैं को रास्ते से हटाने के लिए षडयंत्र करती है और पति को मौत के घाट उतार दिया जाता है.

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छत्तीसगढ़ के जिला सूरजपुर में पुलिस ने सप्ताह भर पहले हुए कत्ल की गुत्थी को सुलझाने में  सफलता हासिल की है. जिस एसईसीएल कोल इंडिया  कर्मचारी की हत्या कर हादसा का स्वरुप देने की  चेष्टा की  गई, वो दरअसल  हत्या  मे सहभागी मिली . पुलिस की जांच के बाद  यह तथ्य सामने आ गया कि  हत्या का मास्टर माइंड कोई औऱ नहीं, बल्कि उसी की पत्नी थी. जिसने अपने भाई के साथ मिलकर पति को मौत के घाट उतार दिया था.

कारण  बना  अवैध संबंध 

और जैसा कि अक्सर हर अपराध के पीछे कोई एक कारण बड़ा गंभीर होता है इस सनसनीखेज हत्याकांड में भी

हत्या की वजह पत्नी का अवैध संबंध उजागर हुआ है. विगत  26 मई2020 को भटगांव थाना क्षेत्र के चुनगढी खोपा मार्ग में एसईसीएल में काम करने वाले भैयालाल साहू की लाश सड़क किनारे मिली थी. मृतक के सर पर  चोट के निशान थे जिससे पुलिस को साफ जाहिर हो रहा था कि मामला  हत्या का  है. इस अंधे कत्ल की गुत्थी सुलझाने के लिए भटगांव पुलिस डाग स्क्वायड की मदद से जांच कर रही थी. पुलिस को पूछताछ करते करते भैयालाल की पत्नी तारा साहू पर शक हुआ, तो उससे भी  पूछताछ  पुलिस ने की.पुलिस की कड़ाई से पूछताछ में सप्ताह भर पश्चात  आरोपी पत्नी तारा  ने हत्या  की अंततः स्वीकारोक्ति की.

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भाई का सहारा  मिला 

इस सनसनीखेज हत्याकांड में यह बात सामने आई कि तारा साहू ने अपने भाई विकास साहू को किसी तरह अपने साथ मिला लिया था.आरोपी  तारा साहू ने इकबालिया बयान में  बताया कि पति को उसके अवैध संबंध के बारे में खबर लग चुकी थी. जिसके कारण वह तारा से मारपीट  किया  करता था. इस कारण  तारा अपने पति को रास्ते से हटाने के लिए विगत एक साल से  मौका ढूंढ रही थी. 25 मई2020 की रात जब पति शराब के नशे में था, तब तारा ने अपने भाई विकास साहू को घर बुलाया, फिर पति को नशे की हालत में रात को कार में बैठा गांव से बाहर ले गए. गांव से दूर खोपा मार्ग में भैयालाल  साहू को  कार से उतारा गया, उसके बाद सर पर तवे से तबाड़तोड़ वार कर मौत के घाट उतार दिया गया . हत्या को हादसा बताने के लिए उसके शरीर पर वाहन चढ़ा दिया. जिससे मामला दुर्घटना  का प्रतीत हो . मगर  पुलिस की पारखी नजर मे उनकी यह चालाकी ज्यादा समय  तक टिक  नहीं पाई.

पुलिस अधीक्षक  राजेश कुकरेजा ने अंधे कत्ल का खुलासा करते हुए बताया कि अवैध संबंध के चलते भैयालाल  साहू की हत्या की गई . हत्या के आरोपी पत्नी तारा साहू और भाई विकास साहू को गिरफ्तार कर लिया गया है.

संबंधों की बैसाखी बनी बंदूक : भाग 1

घड़ी की टिकटिक करती सुइयां 11 मार्च, 2020 को अलविदा कह कर अगली तारीख पर दस्तक दे चुकी थीं. प्रणव जैन और उस की नानी मनोरमा जैन रात का पहला पहर बीत जाने पर भी बेचैनी से घर में टहल रहे थे.

प्रणव रात 10 बजे से ही अपनी मां रिनी जैन को फोन पर फोन कर रहा था, लेकिन उन का फोन लगातार बंद जा रहा था. इस उम्मीद में कि शायद अब फोन औन हो गया होगा, वह दोबारा फोन करता. लेकिन दूसरी तरफ से वही स्विच्ड औफ की आवाज सुन कर दिल निराशा से भर उठता.

प्रणव और उस की नानी के मन में बुरेबुरे ख्याल आ रहे थे. मां के साथ किसी अनिष्ट की आशंका से ही प्रणव का पूरा शरीर सिहर जाता था.

रिनी जैन (42) अपनी मां मनोरमा जैन और बेटे प्रणव जैन के साथ दिल्ली से सटे गाजियाबाद में मोहननगर के पास स्थित गुलमोहर ग्रीन सोसायटी में जी-5 एए फ्लैट में रहती हैं.

उन का बेटा प्रणव डीएलएफ स्कूल में 12वीं का छात्र है. तलाकशुदा रिनी जैन के साथ उन की मां मनोरमा भी रहती हैं. रिनी जैन गाजियाबाद में इग्नू से संबद्ध एक इंस्टीट्यूट में इग्नू की तरफ से बतौर काउंसलर नियुक्त थीं. साधनसंपन्न परिवार था.

रिनी जैन जिदंगी को खुल कर जीने वाली महिला थीं, इसीलिए अपने परिचितों में वह एक बिंदास और शौकीन मिजाज महिला के रूप में जानी जाती थीं.

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11 मार्च, 2020 की शाम साढ़े 7 बजे रिनी अपनी मां और बेटे से यह कह कर घर से निकली थीं कि उन की किसी के साथ मीटिंग है और वह साढे़ 9 या 10 बजे तक लौट आएंगी. रिनी जैन अपनी स्विफ्ट कार यूपी14सी बी3394 ले कर अपनी सोसाइटी से निकलीं और देर रात तक घर नहीं लौटीं तो उन के बेटे व मां को चिंता सताने लगी.

परेशानहाल उन के बेटे व मां ने ऐसे तमाम लोगों को फोन करना शुरू कर दिया, जो रिनी जैन के परिचित थे और वह अकसर उन से मिलतीजुलती रहती थीं.

लेकिन किसी के पास रिनी के बारे में कोई ठोस जानकारी नहीं थी. उन्होंने अपनी ही सोसाइटी गुलमोहर ग्रीन के 812 एए में रहने वाले अपने परिचित संदीप कौशिक को भी फोन कर के रिनी के बारे में जानना चाहा. उन्होंने बताया कि दिन में एक बार उन की रिनी से बात तो हुई थी, लेकिन बीते दिन मुलाकात नहीं हुई थी.

प्रणव जैन और उन की नानी मनोरमा जैन की रात आंखोंआंखों में ही कटी. जैसेतैसे सुबह हुई तो प्रणव सोचने लगा कि अब क्या किया जाए. लेकिन 12 मार्च को सुबह 8 बजे कालोनी में रहने वाले उस के अंकल संदीप उन के घर पहुंच गए.

परिवार का हमदर्द बना संदीप

संदीप ने आते ही प्रणव से रिनी जैन के बारे में सारी बात पूछी. प्रणव ने उन्हें बताया कि वह घर में 9 या 10 बजे तक लौटने की बात कह कर गई थीं. यह जान संदीप भी चिंतित हो उठे. आखिरकार तय हुआ कि रिनी के लापता होने की गुमशुदगी दर्ज करा दी जाए.

इस दौरान 1-2 रिश्तेदार भी रिनी के लापता होने की खबर पा कर उन के घर पहुंच गए थे.

गुलमोहर ग्रीन सोसाइटी थाना साहिबाबाद के अंतर्गत आती है. प्रणव जैन रिश्तेदारों और संदीप कौशिक को ले कर सुबह करीब 10 बजे साहिबाबाद थाने पहुंच गए.

साहिबाबाद थाने के एसएचओ अनिल कुमार शाही, एडीशनल एसएचओ मुकेश कुमार तथा एसएसआई प्रमोद कुमार उस वक्त किसी मसले पर मंत्रणा कर रहे थे.

संदीप कौशिक के साथ साहिबाबाद थाने पहुंचे प्रणव जैन ने इंसपेक्टहर शाही को बताया कि उन की मां रिनी जैन बीती शाम से अपनी कार समेत लापता हैं और उन का मोबाइल फोन भी बंद है.

प्रणव जैन ने अपनी मां के साथ किसी अनहोनी की आशंका जताई, तो इंसपेक्टर शाही ने रिनी जैन का एक फोटो ले कर उन की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करवा दी. साथ ही उन्होंने रिनी के हुलिए की जानकारी देते हुए जिले के सभी थानों और पूरे एनसीआर में वायरलैस पर उन की गुमशुदगी की सूचना प्रसारित करवा दी.

उसी दिन सिहानी गेट कोतवाली क्षेत्र में भट्ठा नंबर 5 के पास झाडि़यों में एक महिला का खून से लथपथ शव मिला था. उस के सिर में शायद गोली लगी थी. सिहानी गेट थाने की पुलिस ने उस अज्ञात महिला के शव के मिलने की जानकारी वायरलैस पर प्रसारित कराई थी.

वायरलैस पर मिली इस जानकारी से साहिबाबाद थाने की पुलिस को वह शव रिनी जैन का होने की आशंका हुई. इसलिए उसी दिन दोपहर में साहिबाबाद थाने के एसएसआई प्रमोद कुमार प्रणव जैन को साथ ले कर पहले सिहानी गेट थाने गए और फिर गाजियाबाद मोर्चरी पहुंचे.

सोसाइटी में रहने वाले फैमिली फ्रैंड संदीप कौशिक प्रणव के साथ थे. मोर्चरी में रखा महिला का शव बुरी तरह खून से लथपथ था. इस के बावजूद प्रणव शव को देखते ही फफकफफक कर रोने लगा. वह शव उस की मां का ही था.

प्रणव जैन ने पुलिस को बता दिया कि शव उस की मां का ही है. शव की शिनाख्त  हो गई थी. लिहाजा एसपी (सिटी) मनीष कुमार मिश्रा के आदेश पर सिहानी गेट पुलिस ने अज्ञात महिला की हत्या के दर्ज मामले को उसी दिन साहिबाबाद पुलिस के सुपुर्द कर दिया.

साहिबाबाद पुलिस ने निरीक्षण में पाया कि सिर पर वार कर हत्या करने के बाद शव को झाड़ी में फेंका गया था. महिला का मोबाइल व स्विफ्ट डिजायर कार गायब थी. रिनी अपने बेटे से पार्टी में जाने की बात कह कर घर से निकली थी. साहिबाबाद पुलिस ने 12 मार्च को ही रिनी जैन की गुमशुदगी के मामले को भादंसं की धारा 302 यानी हत्या के रूप में दर्ज कर लिया.

चूंकि मामला हत्या जैसे गंभीर अपराध का था, इसलिए इस मामले की जांच का दायित्व इंसपेक्टर इन्वैस्टीगेशन मुकेश कुमार के सुपुर्द कर दिया गया.

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मामला एक सभ्रांत परिवार की हाईप्रोफाइल महिला की हत्या का था, इसलिए गाजियाबाद के एसएसपी कलानिधि नैथानी ने भी इस पर तत्काल संज्ञान लिया और एसपी (सिटी) को निर्देश दिया कि घटना का जल्द से जल्द खुलासा करें.

एसपी (सिटी) ने उसी दिन बौर्डर इलाके के सीओ डा. राकेश कुमार मिश्रा  की निगरानी में थानाप्रभारी अनिल कुमार शाही, जांच अधिकारी इंसपेक्टर मुकेश कुमार, एसएसआई प्रमोद कुमार, सबइंसपेक्टर राजीव बालियान, नरेंद्र सिंह, हैडकांस्टेबल नाहर सिंह, कांस्टेबल सुजय कुमार, संजीव कुमार, ललित कुमार, सुनील कुमार और अनुज कुमार की टीम का गठन कर दिया और खुद जांच की मौनिटरिंग करने लगे.

जीवित गई रिनी लाश बन कर लौटी

थानाप्रभारी अनिल कुमार शाही ने उसी शाम को मृतका रिनी जैन के शव का पोस्टमार्टम करवा कर शव को उस के घर वालों के सुपुर्द करवा दिया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट से खुलासा हुआ कि रिनी जैन की मौत उन के सिर में 2 गोली लगने से हुई थी.

साथ ही उन के शव पर कई जगह चोट के निशान भी मिले थे. चूंकि रिनी जैन का मोबाइल व स्विफ्ट डिजायर कार गायब थी, इसलिए पुलिस को पहली नजर में लगा कि ये मामला लूटपाट के विरोध में हुई हत्या का हो सकता है.

हालांकि पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिलने तक पुलिस को शक था कि कहीं रिनी जैन की हत्या दुष्कर्म करने के बाद न की गई हो. लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट में यह शक गलत निकला.

पुलिस को एक शक यह भी था कि इस वारदात के पीछे उन के किसी परिचित का हाथ न रहा हो. क्योंकि मोहननगर में रहने वाली रिनी जैन का शव राजनगर एक्सटेंशन से लगे भट्ठा नंबर 5 के इलाके में मिलना यह दर्शाता था कि वहां तक वह किसी परिचित के साथ ही आई होंगी. क्योंकि उस इलाके में आमतौर पर कोई अपनी मरजी से घूमने नहीं आता.

पुलिस को यकीन था कि रिनी जैन के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाने से कातिल तक पहुंचने में मदद मिल सकती है. इसलिए थानाप्रभारी अनिल कुमार शाही ने रिनी जैन के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवा कर उस की पड़ताल शुरू करा दी, जिस से यह साफ हो गया कि रात के 10 बजे जब रिनी जैन का मोबाइल बंद हुआ था, तो उस की आखिरी लोकेशन राजनगर एक्सटेंशन की थी.

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पुलिस ने जब उस के मोबाइल की काल डिटेल्स तथा शाम 6 बजे से उस के मोबाइल की लोकेशन को चैक करने का काम शुरू किया तो रिनी जैन के कातिल का चेहरा बेनकाब होता चला गया.

पुलिस ने मोबाइल की टैक्निकल सर्विलांस और कुछ सीसीटीवी फुटेज का सहारा लेने के बाद आखिरकार 14 मार्च की सुबह कातिल को पकड़ने के लिए जाल बिछा दिया.

थाना साहिबाबाद के प्रभारी अनिल कुमार शाही ने गठित की गई पुलिस टीम के साथ 14 मार्च को राजनगर एक्सटेंशन में घेराबंदी कर दी और किसी का इंतजार करने लगे. आखिरकार थोडे़ इंतजार के बाद 2 लोग रिनी जैन की कार में बैठे हुए राजनगर एक्सटेंशन से गाजियाबाद की तरफ जाते दिखे.

जब उस गाड़ी को रोका गया, तो उस में सवार व्यक्ति को देख कर पुलिस टीम की बांछें खिल गईं. क्योंकि उस व्यक्ति को पकड़ने के लिए ही टीम ने जाल बिछाया था. वह शख्स कोई और नहीं, रिनी जैन की सोसाइटी में रहने वाला उन का फैमिली फ्रैंड संदीप कौशिक और उस की पत्नी प्रीति त्यागी थे.

संदीप की पत्नी प्रीति त्यागी न्यू देहली इंस्टीट्यूट औफ मैनेजमेंट, ओखला में विजिटिंग प्रोफेसर थी. वे दोनों जिस स्विफ्ट कार में सवार हो कर राजनगर एक्सटेंशन से गाजियाबाद की तरफ जा रहे थे, वह रिनी जैन की थी, जो लापता थी. पुलिस ने जब उस कार की तलाशी ली तो उस में रिनी जैन की हत्या में प्रयुक्त 6.35 बोर का रशियन पिस्टल बरामद हुआ.

इस मामले में अब तक पीडि़त परिवार के साथ उन का हमदर्द बन कर पुलिस को चकरघिन्नी की तरह घुमा रहे संदीप और उस की पत्नी के चोरी पकड़े जाते ही होश उड़ गए.

दोनों को रिनी जैन की कार समेत थाने लाया गया. एसपी (सिटी) मनीष कुमार और सीओ डा. राकेश कुमार मिश्रा भी साहिबाबाद पहुंच गए.

जब पुलिस ने सख्ती के साथ रिनी जैन की हत्या के बारे में संदीप और प्रीति से पूछताछ की, तो हत्याकांड के सारे राज बेपरदा होते चले गए.

अपने खुले विचारों के कारण रिनी जैन का अपने पति से 2004 में तलाक हो चुका था. पति से तलाक के बदले उसे अच्छीखासी रकम मिली थी.जिस के सहारे रिनी जैन कुछ साल तक गाजियाबाद के कविनगर में रहते हुए अपने बेटे को पालने लगी. साथ में उन की मां रहने लगी थी.

2014 में रिनी जैन की जिंदगी में तब अचानक बदलाव आया जब संदीप कौशिक से उस की जानपहचान हुई.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

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