बहके कदमों का खूनी अंजाम

राजस्थान के भरतपुर जिले के चिकसाना थाना क्षेत्र के गांव नौह निवासी हरिप्रसाद शर्मा के शादीशुदा बेटे पवन शर्मा के रहस्यमय परिस्थितियों में घर से देर रात गायब हो जाने पर परिवार ही नहीं, मोहल्ले के लोग भी अचंभित हो गए.

गुमशुदा पवन शर्मा के घर वालों को उस की पत्नी टीना ने बताया कि देर रात किसी का फोन आया था, जिस के बाद कामधंधे के लिए जाने की बात कह कर वह कहीं चले गए. जाते समय उन्होंने बताया था कि थोड़ी देर में आ जाएंगे.

टीना की बात पर यकीन कर के घर वाले कुछ नहीं बोले. हालांकि आधी रात को कामधंधे के लिए कहीं चले जाने की बात उन के गले से नहीं उतरी, पर और कोई चारा भी नहीं था. लेकिन 4-5 दिन गुजर जाने के बाद पवन वापस नहीं आया तो पिता हरिप्रसाद शर्मा थाने में बेटे की गुमशुदगी दर्ज कराने के लिए जाने लगे.

इस पर पहले तो टीना ने उन्हें यह कह कर रोकने की कोशिश की कि वो कामधंधे के लिए गए हैं, गुमशुदगी दर्ज कराई तो पुलिस उलटे हमें ही परेशान कर सकती है. फिर बाद में कुछ सोच कर उस ने ससुर के साथ चिकसाना थाने जा कर पति की गुमशुदगी दर्ज करवा दी.

पुलिस ने हरिप्रसाद से पवन का हुलिया, पहने गए कपड़ों सहित अन्य जरूरी जानकारी ले कर गुमशुदगी दर्ज कर ली और अपने स्तर से पवन को तलाशना शुरू कर दिया.

लेकिन हफ्ते-2 हफ्ते की बात छोडि़ए, 4-5 महीने बीत जाने के बाद भी पवन की खबर नहीं मिली, जिस से उस के घर वाले निराश हो चुके थे. जबकि बहू टीना अपने में मस्त रहती.

बच्चों को उस ने पहले ही पवन के दादादादी के पास बेहतर पढ़ाई कराने के बहाने भेज दिया था, इसलिए उस पर कोई जिम्मेदारी तो थी नहीं. वह आजादी से मनमानी कर रही थी. बस एक काम वह जरूर कर रही थी. वह यह कि सभी व्रत उपवास और धार्मिक कार्यों में घर वालों के साथ जरूर शामिल होती थी.

पवन की गुमशुदगी के बाद घर वालों की नजर में टीना एक तरह से दुखियारी बन चुकी थी, इसलिए हर कोई उस से सहानुभूति रखता था.

अक्तूबर 2022 महीने की 18 तारीख थी. हरिप्रसाद शर्मा को नींद नहीं आ रही थी. जवान बेटे के असमय वियोग ने उन्हें उम्र से कहीं ज्यादा बूढ़ा बना दिया था. जीवन बोझ लगने लगा था. बस बेटे के वापस आने की उम्मीद में ही जिंदा थे.

देर रात हरिप्रसाद शर्मा पानी पीने के लिए उठे तो बहू के कमरे से किसी मर्द की आवाज सुन उन्हें लगा कि शायद उन की मुराद पूरी हो गई है और बेटा वापस आ गया है. कौतूहलवश उन के कदम बहू के कमरे की तरफ बढ़ चले. लेकिन थोड़ी दूर जा कर ही उन्हें रुकना पड़ा.

कमरे के अंदर बेटा तो नहीं था, बल्कि पड़ोसी भोगेंद्र उर्फ भोला उन की बहू के साथ आपत्तिजनक हालत में था. बहू टीना का हाथ पकड़ कर वह कह रहा था, ‘‘जानू, किस्मत अच्छी थी जो अपना काम भी हो गया और किसी को पता भी नहीं चला. मस्त रहो तुम, अब अपन ऐश करेंगे.’’

यह सुन कर अपमान, शर्म और दुख से आहत हो हरिप्रसाद ने बहू के कमरे को बाहर से ताला लगा दिया और थाने में सूचना देने चल पड़े. लेकिन जब तक पुलिस पहुंचती भोगेंद्र उर्फ भोला ने फोन कर अपने पिता दिनेश चंद और भाई को बुला लिया.

उन दोनों ने हरिप्रसाद के घर वालों से लड़झगड़ कर कमरे का ताला तोड़ कर भोगेंद्र को वहां से निकाल लिया और अपने साथ ले गए. भोगेंद्र उसी रात को गांव से दिल्ली चला गया.

हरिप्रसाद शर्मा ने 20 नवंबर, 2022 को चिकसाना थाने पहुंच कर लिखित शिकायत कर दी. उन्होंने अपनी बहू टीना और उस के प्रेमी भोगेंद्र द्वारा अपने बेटे पवन की हत्या अथवा उसे गायब करने का आरोप लगाया.

एसएचओ विनोद कुमार मीणा ने मामले की गंभीरता देखते हुए हत्या के ऐंगल से मामले की जांच शुरू की और भरतपुर के एसपी श्याम सिंह के आदेश तथा एएसपी बृजेश ज्योति उपाध्याय (आईपीएस) के निर्देशन में पुलिस टीम गठित की गई, जिस में एएसआई बलबीर सिंह, महेंद्र सिंह, हेडकांस्टेबल कैलाश चंद और सिपाही पुष्पेद्र सिंह, उदयवीर सिंह तथा योगेंद्र सिंह को शामिल किया गया.

पुलिस टीम ने सब से पहले दिल्ली से गांव लौटे आरोपी भोगेंद्र और टीना को हिरासत में ले कर उन से मनोवैज्ञानिक ढंग से पूछताछ की. इस के साथ ही साक्ष्य एकत्रित किए.

पुलिस पूछताछ से घबरा कर टीना और भोगेंद्र ने हत्या को अंजाम देना कुबूल कर लिया, जिस के बाद दोनों को गिरफ्तार कर लिया गया. आरोपियों के कुबूलनामे के बाद पवन की हत्या की जो कहानी उजागर हुई, वह इस प्रकार निकली—

राजस्थान और उत्तर प्रदेश की सरहद पर बसा एक बड़ा शहर है भरतपुर, जिसे उत्तर प्रदेश के लोग राजस्थान का प्रवेश द्वार भी कहते हैं. इसी भरतपुर जिले के चिकसाना थाना क्षेत्र गांव नौह में ब्राह्मणों के कई परिवार रहते हैं.

इन में से एक परिवार है हरिप्रसाद शर्मा का. इन के बेटे पवन शर्मा की शादी की उम्र निकलती जा रही थी. उस के योग्य कोई रिश्ता नहीं मिल पाने से मातापिता और रिश्तेदार चिंता में रहते थे.

तभी पवन के लिए उत्तर प्रदेश के महानगर कानपुर से टीना नाम की लड़की का रिश्ता आया. फिर दोनों ओर से बातचीत हो जाने पर यह रिश्ता तय हो गया और 2015 में पवन की शादी टीना के साथ हो गई.

महानगर की रहने वाली खुले स्वभाव की टीना को गांव में स्थित ससुराल आ कर थोड़ी परेशानी हुई, लेकिन भरतपुर शहर गांव के नजदीक होने के कारण वह धीरेधीरे वहां के रंग में रचबस गई. हंसीखुशी के साथ पतिपत्नी का समय बीतने लगा और 5 साल में टीना 2 बच्चों की मां भी बन गई.

बच्चे बड़े हुए तो दंपति ने उन्हें उन की अच्छी पढ़ाई के लिए थोड़ी दूर स्थित दादादादी के पास छोड़ दिया. टीना और पवन पिता के साथ रहने लगे. पवन और टीना की उम्र में बड़ा अंतर था. जहां टीना 23 की थी वहीं पवन 37 साल का यानी उन की उम्र में 14 साल का अंतर था.

उम्र का ये बड़ा अंतर शुरू में तो पता नहीं चला, लेकिन वक्त गुजरने के साथ ही दांपत्य जीवन में यह अंतर अपना असर दिखाने लगा. जहां टीना हिरनी की तरह कुलांचे भर कर दौड़ना चाहती थी तो वहीं 2 बच्चों का बाप बनने के बाद पवन धीरगंभीर हो गया था और कामधंधे को ले कर ज्यादा समय गुजारने लगा था.

पति द्वारा अपनी उपेक्षा से आहत टीना ने इसी दौरान करीब 2 साल पहले ब्राह्मण परिवार के हमउम्र पड़ोसी युवक भोगेंद्र उर्फ भोला से जानपहचान बढ़ा ली, जो बाद में अवैध संबंधों में बदलती गई.

27 वर्षीय भोगेंद्र दिल्ली की किसी प्राइवेट फर्म में नौकरी करता था और गांव में घर होने के कारण समयसमय पर आताजाता रहता था. जब से टीना से उस की आंखें चार हुईं, भोगेंद्र टीना के आकर्षण में फंस कर उस के आसपास मंडराने लगा और दोनों का प्रेम परवान चढ़तेचढ़ते अनैतिकता की हदें पार कर गया.

पवन को भोला का बारबार उस के घर आना अच्छा नहीं लगता था, लेकिन 2 बच्चों की मां बन चुकी पत्नी पर वह शक नहीं करना चाहता था, इसलिए देवरभाभी का रिश्ता मान कर चुप रह जाता था, जिस का बेजा फायदा उठा कर टीना और भोगेंद्र उर्फ भोला मर्यादा की सीमाएं लांघ गए थे.

मई महीने की एक रात थी, जब थकान के कारण पवन जल्दी घर आ कर सो गया था. देर रात उस की नींद खुली तो अपनी पत्नी को भोगेंद्र के साथ हमबिस्तर देख सन्न रह गया.

फिर परिवार की बदनामी होने के चलते दोनों को कड़ी फटकार लगा कर उस ने मामला दबा दिया, लेकिन वासना की आग में जल रहे टीना और भोगेंद्र ने अपने रास्ते के कांटे पवन को ठिकाने लगाने का मन बना लिया था. वे मौके की तलाश में रहने लगे.

तयशुदा साजिश के अनुसार 29 मई, 2022 की रात को टीना ने फोन कर दिल्ली से भोगेंद्र को गांव बुलाया तो वह अपने दोस्त उत्तर प्रदेश के एटा जिले के रहने वाले दीप सिंह के साथ रात साढ़े 12 बजे गांव पहुंचा और दीप सिंह को घर के बाहर बाइक पर छोड़ कर खुद टीना से मिलने घर में घुस गया.

वह बेखौफ हो कर उस से रोमांस करने लगा, तभी पवन की नींद खुल गई और अपनी पत्नी को गैरमर्द की बाहों में देख अपना आपा खो बैठा. वह भोगेंद्र उर्फ भोला से भिड़ गया. लेकिन कदकाठी से मजबूत भोगेंद्र ने नींद से जागे पवन का मुंह दबोच कर उसे काबू में कर लिया और अपने साथी दीप सिंह को बुला कर उस की मदद से पवन की रस्सी से गला घोट कर हत्या कर के ठिकाने लगा दिया.

रात ढलने वाली थी, इसलिए रजाई के कवर में लाश लपेट कर बोरे में भर कर दोनों दोस्तों ने वह बैड के अंदर बने बौक्स में रख दी. उन्होंने सोचा कि मौका देख कर नहर में फेंक देंगे. फिर दोनों सुबह होने से पहले बाइक से दिल्ली चले गए. अगले दिन वट सावित्री व्रत आया, यह व्रत सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सलामती के लिए रखती हैं.

टीना ने भी व्रत पूजा की और बाद में उसी बैड पर बैठ कर खीरपूरी खाई, जिस के अंदर बौक्स में पति की लाश रखी गई थी. इत्मीनान से फोन पर किसी से देर तक बातचीत करने के बाद वह सो गई.

एकदो दिन से ज्यादा लाश को घर में नहीं रखा जा सकता था, क्योंकि गरमी के दिन थे. बदबू फैल कर हत्या का राज फाश कर सकती थी. लिहाजा वापस भोगेंद्र अपने दोस्त दीप सिंह के साथ गांव नौह पहुंचा. दोनों ने बाइक से गांव से 2 किलोमीटर दूर स्थित गिरिराज नहर में लाश बड़े पत्थर से बांध फेंक दी. इस के बाद वे दोनों वापस दिल्ली लौट गए.

इस बीच रोनेधोने के साथ ही टीना ने एकदो दिन खानापीना छोड़ कर घर वालों को जता दिया कि वह पति के लापता हो जाने से बेहद दुखी है. साथ ही गुमशुदगी दर्ज होने के बाद कुछ दिनों तक शातिरदिमाग टीना और भोगेंद्र ने मोबाइल से बात करनी बंद कर दी, ताकि किसी को उन शक न हो. इसी बीच टीना अपने पीहर वालों को बुला कर उन के साथ कानपुर चली गई.

वापस भरतपुर आने के बाद टीना घर वालों और पुलिस की गतिविधियों के समाचार दूसरे फोन से प्रेमी भोगेंद्र को दे कर सचेत करती रही. खास बात यह रही कि गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज होने के बाद पुलिस और घर वाले पवन को तलाशते रहे और भोगेंद्र तथा टीना वापस मिलने लगे और उन की नजदीकियां बढ़ती गईं.

2 बच्चों की मां टीना और भोगेंद्र का प्रेम धीरेधीरे पागलपन की हद तक पहुंच चुका था. दोनों को एकदूसरे से मिले बिना चैन नहीं था, इसलिए दोनों देर रात को उस वक्त चोरीछिपे मिल लेते थे. जब दुनिया वाले सो रहे होते.

दीपावली से पहले महिलाओं का सब से महत्त्वपूर्ण व्रत करवाचौथ आया. तब भी टीना ने पति की लंबी उम्र और सलामती के लिए वह सावित्री का व्रत रखा. उस ने नई साड़ी पहन, शृंगार कर के दूसरी औरतों की तरह करवाचौथ की कहानी सुन कर चंद्रमा की पूजा आरती भी की. किसी को शक तक नहीं होने दिया कि गुमशुदा पवन शर्मा के साथ अनहोनी हो चुकी है.

लेकिन 16 अक्तूबर, 2022 की रात को हरिप्रसाद को बहू की हकीकत पता लग गई. भोगेंद्र उर्फ भोला और टीना की निशानदेही पर पुलिस ने मृतक के कमरे में उस के बैड से खून से सना रजाई का कवर, नायलौन की रस्सी के अतिरिक्त हत्याकांड में प्रयुक्त बाइक बरामद कर ली.

अभियुक्त भोगेंद्र को रिमांड पर ले कर पुलिस उसे उस जगह ले गई, जहां उस ने पवन की लाश फेंकी थी. गोताखोरों की मदद से नहर के गंदे पानी से मृतक का करीब 6 महीने पुराना शव जो करीबकरीब नष्ट हो चुका था. उस की हड्डियां और वह बड़ा पत्थर बरामद कर जब्त कर लिया, जिस से बांध कर शव फेंका था.

साथ ही नहर से मिली मृतक पवन की पैंट शर्ट की जेबों से पवन तथा टीना के आधार कार्ड जन आधार कार्ड भी बरामद कर सबूत के लिए जब्त कर लिए और हत्याकांड के बाद फरार हो गए भोगेंद्र के साथी दीप सिंह निवासी एटा (उत्तर प्रदेश) को तलाशना शुरू किया.

पुलिस टीम ने उसे भी जल्दी गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया. साथ ही 21 नवंबर से 4 दिन के पुलिस रिमांड पर चल रहे भोगेंद्र उर्फ भोला को भी रिमांड अवधि पूर्ण होने तथा सभी वांछित साक्ष्य बरामद कर लेने के बाद 24 नवंबर, 2022 को अदालत में पेश किया गया, जहां से कोर्ट के आदेश पर दोनों आरोपियों को न्यायिक अभिरक्षा में भेज दिया गया.

मृतक की पत्नी टीना को पहले ही गिरफ्तार कर कोर्ट के आदेश पर जेल भेजा जा चुका था. कथा लिखे जाने तक पवन शर्मा हत्याकांड के सभी तीनों आरोपियों को जेल भेज दिया गया था.

हालांकि मामला न्यायालय में विचाराधीन है, लेकिन दुखद बात यह रही कि टीना की नासमझी या यूं कहिए कि टीवी के क्राइम पैट्रोल जैसे शो लगातार देखने के कारण उपजी शातिराना हरकतों की वजह से उस की खुशहाल गृहस्थी तो उजड़ी ही, साथ ही 2 निर्दोष मासूम बच्चे भी अनाथ हो गए

अपराध: श्रद्धा हत्याकांड- बेबस हैं लड़कियां, चाहे शादीशुदा चाहे लिवइन

दुनिया के किसी भी समाज में अपराध को पूरी तरह रोक पाना तकरीबन नामुमकिन है. लेकिन ऐसा न हो, इसलिए पुलिस के साथसाथ मीडिया वाले भी किसी अपराध की हकीकत बताते हुए लोगों को जागरूक करते रहते हैं, ताकि भविष्य में ऐसे कांड न होने पाएं. पिछले काफी सालों से टैलीविजन पर हत्या जैसे अपराधों की कहानियां ‘क्राइम पैट्रोल’ या ‘सावधान इंडिया’ या फिर दूसरे नामों से दिखाई जाती हैं और ‘मनोहर कहानियां’ या ‘सत्यकथा’ जैसी अपराध खोजी पत्रिकाएं भी देशविदेश में होने वाले अपराधों की जानकारी देती रहती हैं, ताकि लोग अपने आसपास नजरें जमाए रखें कि कहीं कोई बड़े कांड की तैयारी तो नहीं कर रहा है.

इस के बावजूद अगर देश की राजधानी में कोई लड़का अपनी लिवइन पार्टनर की हत्या कर के काफी दिनों तक मासूम होने का ढोंग करता रहे तो समझ लीजिए कि लोगों की भावनाओं के साथसाथ उन की इनसानियत भी दम तोड़ रही है.

दिल्ली के महरौली इलाके में 18 मई, 2022 को ऐसा ही एक दिल दहलाने वाला कांड हुआ था, पर इस का खुलासा कई महीने बाद हुआ. वह भी तब जब दिल्ली पुलिस ने पीडि़ता श्रद्धा के पिता विकास वालकर द्वारा दर्ज कराई गई गुमशुदगी की शिकायत की जांच शुरू की थी.

श्रद्धा की हत्या उस के तथाकथित प्रेमी आफताब ने की थी और इस की जड़ में था उन के बीच का झगड़ा. दिल्ली पुलिस सूत्रों ने बताया कि इस प्रेमी जोड़े के बीच 18 मई, 2022 को पहली बार झगड़ा नहीं हुआ था, बल्कि वे दोनों पिछले काफी समय से झगड़ा करते आ रहे थे. समाचार एजेंसी एएनआई को सूत्रों ने बताया कि 18 मई को मुंबई से घर का सामान लाने को ले कर आफताब और श्रद्धा के बीच झगड़ा हुआ था. घर का खर्च कौन उठाएगा और सामान कौन लाएगा, इस बात को ले कर भी उन में झगड़े होते थे. इस बात को ले कर आफताब काफी गुस्से में आ गया था.

18 मई, 2022 की रात को तकरीबन 8 बजे दोनों के बीच जम कर झगड़ा शुरू हुआ. झगड़ा इतना ज्यादा बढ़ गया कि आफताब ने श्रद्धा की गला दबा कर हत्या कर दी. उस ने रातभर श्रद्धा की लाश को कमरे में रखा और अगले दिन

चाकू और रैफ्रिजरेटर खरीदने चला गया. पर क्यों?

क्या है पूरा मामला आफताब और श्रद्धा पिछले 3 साल से झगड़ रहे थे. वे आपस में क्यों झगड़ते थे, इस से पहले यह जान लेते हैं कि वे दोनों कौन थे और मुंबई छोड़ कर दिल्ली में क्या कर रहे थे?पेशे से शैफ और फोटोग्राफर तकरीबन 28 साल के आफताब पूनावाला का जन्म मुंबई में हुआ था और वह वहां अपने छोटे भाई अहद, पिता आमिन और मां मुनीरा बेन के साथ वसई उपनगर में बनी यूनिक पार्क हाउसिंग सोसाइटी में रहता था.

मुंबई के एलएस रहेजा कालेज से ग्रेजुएट आफताब पूनावाला इस साल की शुरुआत में श्रद्धा से मिलने के बाद दिल्ली में रहने लगा था.श्रद्धा का पूरा नाम श्रद्धा वाकर था. वह मूल रूप से महाराष्ट्र के पालघर जिले की रहने वाली थी और मुंबई के मलाड इलाके में एक मल्टीनैशनल कंपनी के एक काल सैंटर में काम करती थी. यहीं से उस की मुलाकात आफताब पूनावाला से हुई थी.

कुछ ही समय में श्रद्धा और आफताब एकदूसरे से बेहद प्यार करने लगे थे और उन्होंने शादी तक का फैसला कर लिया था, लेकिन उन दोनों के परिवार वाले इस रिश्ते से खुश नहीं थे. नतीजतन, उन दोनों ने अपने प्यार की खातिर परिवार और मुंबई छोड़ दी. इस के बाद वे दिल्ली आ गए और महरौली के एक फ्लैट में लिवइन में रहने लगे. पुलिस की पूछताछ में आरोपी आफताब पूनावाला ने अपना गुनाह कबूल करते हुए बताया कि श्रद्धा उस पर लगातार शादी करने का दबाव बना रही थी. वह रोजाना सुबह से ले कर शाम तक बस एक ही बात कहती थी कि शादी कर लो. इसी बात को ले कर उन के बीच आएदिन झगड़ा होता था. पूछताछ में यह भी सामने आया कि आफताब की कई दूसरी लड़कियों से भी दोस्ती थी, जिन को ले कर श्रद्धा को उस पर शक हो रहा था. जब श्रद्धा ने इस बारे में पूछा तो आफताब ने सिरे से खारिज कर दिया.

18 मई, 2022 की रात भी दोनों के बीच इन्हीं सब बातों को ले कर झगड़ा हुआ था, जिस के बाद आफताब ने श्रद्धा की बेरहमी से हत्या कर दी. श्रद्धा को मारने वाले आफताब की हैवानियत से इनकार नहीं किया जा सकता है. उस ने उस लड़की को मौत के घाट उतार दिया, जिस से वह प्यार करता था और उस के साथ एक ही घर में रहता था. पर ऐसा क्यों होता है कि कोई इनसान किसी के साथ जानवर जैसा बरताव करने पर उतारू हो जाता है?

क्या श्रद्धा ने शादी की बात कह कर इतनी बड़ी गलती कर दी थी कि उसे अपनी ही जान से हाथ धोना पड़ा? आफताब जैसे लोगों की यह कैसी फितरत होती है कि वे कोल्ड ब्लडेड मर्डर को अंजाम दे देते हैं और किसी को खबर तक नहीं लगती? सब से बड़ा सवाल यह कि ऐसे मामलों में लव जिहाद का एंगल कैसे जुड़ जाता है लव जिहाद का हौआ उन्हीं मामलों में उछाला जाता है, जहां लड़का मुसलिम और लड़की हिंदू होती है, पर यहां तो शादी ही नहीं हुई थी. आफताब ने एक दिल दहला देने वाला कांड सिर्फ इसलिए किया, क्योंकि वह मुसलिम था, यह बात गले से नीचे नहीं उतरती है.

जब आफताब ने श्रद्धा का कत्ल किया था, तब वह नशे में था. अब अगर पुलिस को शक है कि आफताब सीरियल किलर हो सकता है, तो लव जिहाद का बुलबुला वैसे ही फूट जाता है.इस हत्याकांड ने साल 2010 की उसी खौफनाक कहानी को याद दिला दिया है, जिस में श्रद्धा की तरह ही एक और औरत की हत्या की गई थी. तब 36 साल की अनुपमा गुलाटी की उस के पति राजेश गुलाटी ने उत्तराखंड के देहरादून में हत्या कर दी थी.हत्यारे राजेश ने अनुपमा को मारने के बाद उस के शरीर के 70 टुकड़े करने के लिए बिजली से चलने वाले कटर का इस्तेमाल किया था. वहां तो लव जिहाद की कोई गुंजाइश नहीं थी, जबकि कांड बहुत बड़ा था.

अगर कोई अपना जानवर सरीखा हो कर जुल्म करे तो यकीनन हमें ही उसे पहचानने में कोई कमी रह गई है. श्रद्धा को जरूर अंदाजा रहा होगा कि आफताब जब आपा खो बैठता है, तो वह किस हद तक जा सकता है. इस के बावजूद वह उस के दिमाग को पढ़ नहीं पाई. दरअसल, आफताब पूनावाला या राजेश गुलाटी जैसे लोग स्वभाव से गुस्सैल होते हैं, जो सामने वाले की छोटी से छोटी बात को दिल से लगा लेते हैं. फिर वे सामने वाले पर हावी होने की कोशिश करते हैं और जब उन्हें ‘न’ सुनने को मिलती है, तो वे इसे बरदाश्त नहीं कर पाते हैं.

साल 1995 के दिल्ली में हुए जेसिका लाल हत्याकांड में आरोपी मनु शर्मा को जेसिका की ‘न’ ही चुभ गई थी कि एक बारमेड कैसे उसे ड्रिंक देने से मना कर सकती है और मनु शर्मा ने जेसिका पर गोली दागने में देर नहीं की. आफताब ने श्रद्धा की लाश के टुकड़े करने में झिझक महसूस नहीं की. तो क्या वह चाकू का इस तरह इस्तेमाल करने का आदी था? ऐसा हो सकता है, क्योंकि गला घोंट कर मारने के बाद फुतूर सिर से उतरने के बाद वह घबरा सकता था, पर उस ने ऐसा नहीं किया और श्रद्धा की लाश के टुकड़ेटुकड़े करने में कोई दया नहीं दिखाई.

चूंकि श्रद्धा अब इस दुनिया में नहीं है, तो उसे ही पीडि़ता समझा जाएगा, पर आफताब पूनावाला जैसे अपराधी दिमाग के लोग खुद को पीडि़त समझते हैं और पीड़ा देने वाले को सजा देना अपना हक समझते हैं. गला दबा कर मारने के बाद भी आफताब को संतुष्टि नहीं मिली थी. वह श्रद्धा की लाश को भी सजा देना चाहता था, ताकि खुद के अहम को संतुष्टि मिले. अगर दूसरी तरफ श्रद्धा आफताब पर शादी करने का जोर दे रही थी, तो इस में कोई गलत बात नहीं थी. लेकिन उन के रोजरोज के झगड़ों के बावजूद श्रद्धा आफताब की बदनीयती नहीं समझ पाई तो यही उस की सब से बड़ी गलती थी.

श्रद्धा ने अपने मांबाप की नहीं सुनी और आफताब के साथ बिना शादी किए एकसाथ रहने लगी, यहां तक तो सब ठीक था, पर उसे आफताब के गुस्सैल स्वभाव को समझ जाना चाहिए था. वह उस से तुरंत अलग हो जाती. अगर मांबाप के घर नहीं जाती तो भी कोई बात नहीं थी. वह अपने पैरों पर खड़ी थी, इसलिए अकेली रह सकती थी. उसे पीजी में तो जगह मिल ही जाती, जहां उस की जान बची रह सकती थी. पर वह ऐसा न करने की गलती कर बैठी.

ऐसे मामलों में गलती तो उन पड़ोसियों की भी होती है, जो ऐसे झगड़ों की जड़ में जाने के बजाय कन्नी काट लेते हैं. इस मामले में पड़ोसी जानते थे कि आफताब और श्रद्धा झगड़ते थे, पर उन्हें भी इतना बड़ा अपराध होने की भनक तक नहीं लग पाई. आफताब ने श्रद्धा का सिर काट कर उसे रैफ्रिजरेटर में रखा और जिस्म के कई टुकड़े कर दिए थे. हत्या के 5 महीने बाद उस ने उन्हें ठिकाने लगाना शुरू किया, पर मजाल है कि पड़ोसी यह हत्याकांड सूंघ पाए. आफताब लाश काटते समय पानी का नल चला देता था, ताकि खून नाली में बह जाए. उस पर पानी के बिल के 300 रुपए पैंडिंग थे, पर मकान मालिक को जरा भी शक नहीं हुआ.

दिक्कत यह है कि शहरों में लोग धीरेधीरे सामाजिक सरोकारों को भूलते जा रहे हैं. कोई आप के पड़ोस में आया तो यह कह कर नाकभौं सिकोड़ लेते हैं कि बड़ा अजीब है, ‘नमस्ते’ तक नहीं की. पर क्या हम खुद कोई पहल करते हैं? पड़ोस में जब भी कोई आता है, तो उसे चायपानी पूछ कर अच्छे पड़ोसी होने का संकेत दे सकते हैं, फिर यह उस पर है कि वह अपना मेलजोल बढ़ाता है या नहीं. इस से एकदूसरे को कुछ हद तक समझने में मदद मिल जाती है.

इस सब के बावजूद आफताब पूनावाला जैसे अपराधी का दिमाग पढ़ना मुश्किल होता है, पर श्रद्धा को अगर यह पता लगने लगा था कि आफताब उस पर हावी होने की नाजायज कोशिश करने लगा है, तो उसे सतर्क हो जाना चाहिए था. उसे कतई आफताब की उंगलियों पर नहीं नाचना चाहिए था और किसी को अपने इस बिगड़ते रिश्ते के बारे में बता देना चाहिए था.लेकिन जिस देश में बड़ी आसानी से निठारी कांड हो जाता हो या जहां आज तक आरुषी हत्याकांड के हत्यारे के बारे में पता नहीं चल पाया हो, वहां आम लोगों की समाज के प्रति जागरूकता की असलियत की पोल खुल जाती है.

पहले लोग आसपड़ोस में आंखें खुली रख कर जिम्मेदार नागरिक होने के संकेत दे देते थे, पर अब तो मकान मालिक को किराएदार से किराया लेने के अलावा कोई सरोकार नहीं होता है. पड़ोसी भी बंद कमरों से आती झगड़े की आवाजों को नजरअंदाज कर देते हैं और जब कोई बड़ा कांड हो जाता है, तो ऐसे चौंकते हैं, जैसे उन्हें कुछ मालूम ही नहीं था.आफताब पूनावाला जैसे लोग समाज का वे अटूट हिस्सा हैं, जो कहीं भी हो सकते हैं और अपने आसपड़ोस में बड़े अच्छे होने की ऐक्टिंग करते हैं, इसीलिए उन्हें कांड होने से पहले समझ लेना बड़ा मुश्किल होता है, पर यह नामुमकिन भी नहीं है.अगर हम सतर्क रहें, क्योंकि हर बड़े अपराध की दस्तक बहुत पहले होने लगती है, अगर उसे सुन लिया जाए तो. लेकिन हमारे इसी बहरेपन का फायदा अपराधी उठाते हैं.

एकतरफा प्यार का गुनाह

सुबह के यही कोई साढ़े 3 बजे मुंबई के डोमेस्टिक एयरपोर्ट परिसर में स्थित थाना विलेपार्ले पुलिस को इर्ला कूपर अस्पताल से सूचना मिली कि एक युवती की हत्या कर के उस की लाश को जला दिया गया है. उस समय ड्यूटी पर तैनात इंसपेक्टर महादेव निवालकर ने इस सूचना की तुरंत डायरी बनवाई और थानाप्रभारी लक्ष्मण चव्हाण, पुलिस कंट्रोल रूम के अलावा अन्य वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को सूचना दे कर खुद एआई देवकाते, सांलुके, सबइंसपेक्टर पाटिल, महिला सबइंसपेक्टर कडव, सिपाही सुरेश छोत्रो, संतोष शिंदे, योगेंद्र सिंह शिंदे, गांवडे, सावडेकर, महांडिक और पालवे को साथ ले कर के इर्ला कूपर अस्पताल के लिए रवाना हो गए.

इंसपेक्टर महादेव निवालकर जिस समय सहयोगियों के साथ अस्पताल पहुंचे थे, डाक्टरों की एक टीम युवती के शव का निरीक्षण कर रही थी. युवती के साथ आए लोग अस्पताल परिसर में ही मौजूद थे. उन के बीच मातम का माहौल था. महादेव निवालकर ने देखा, युवती का चेहरा बुरी तरह से जला हुआ था.

पूछताछ में पता चला कि मृतका का नाम श्रद्धा पांचाल था. वह फिजियोथेरैपिस्ट थी. डाक्टरों के अनुसार, श्रद्धा की हत्या एक से डेढ़ घंटा पहले गला घोंट कर की गई थी. उस के दोनों पैरों पर खरोंच के निशान थे, जिस से आशंका जताई गई थी कि हत्या के पूर्व उस के साथ मनमानी भी की गई थी.

डाक्टरों से बातचीत के बाद महादेव निवालकर ने मृतका श्रद्धा के साथ आए लोगों से बातचीत शुरू की. घर वालों से तो उस समय कोई खास जानकारी नहीं मिल सकी, क्योंकि उस समय वे कुछ बताने की स्थिति में नहीं थे. साथ आए पड़ोसियों ने जो बताया था उस के अनुसार, मामला काफी संदिग्ध था. पड़ोसियों ने रात ढाई बजे के आसपास श्रद्धा के कमरे से धुआं निकलता देखा था. तब उन्हें लगा था कि यह धुआं शायद एयरकंडीशनर से निकल रहा है.

लेकिन आधे घंटे बाद जब श्रद्धा के घर वालों के रोनेचीखने की आवाजें आईं तो पता चला कि वह धुआं एसी से नहीं, बल्कि श्रद्धा के कमरे से निकल रहा था. किसी ने श्रद्धा की हत्या कर के उस की लाश को जलाने की कोशिश की थी. पड़ोसी भाग कर वहां पहुंचे तो कमरे की लाइट नहीं जल रही थी. टौर्च की रोशनी में उन्होंने जो दृश्य देखा, वह दिल को दहलाने वाला था. कमरे के बीचोबीच श्रद्धा की अधजली निर्वस्त्र लाश पड़ी थी. उसी की जींस से उस का गला कसा हुआ था.

पड़ोसी दीपक और सचिन ने जल्दी से जींस हटाई और उपचार के लिए उसे इर्ला कूपर अस्पताल ले आए. डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर इस बात की सूचना थाना विलेपार्ले पुलिस को दे दी थी. महादेव निवालकर ने मामले की प्राथमिक काररवाई निपटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल में रखवा दिया था. यह 6 दिसंबर, 2016 की बात थी.

अस्पताल की काररवाई निपटा कर महादेव निवालकर सहयोगियों के साथ घटनास्थल पर यानी श्रद्धा के घर पहुंचे. डा. श्रद्धा पांचाल मकान की ऊपरी मंजिल पर बने कमरे में रहती थी. उसी कमरे में उस ने सोने से ले कर पढ़ाई तक का इंतजाम कर रखा था. लेकिन डाक्टर होने के बावजूद वह समय की पाबंद नहीं थी. उस के आनेजाने का कोई निश्चित समय नहीं था.

घर वालों को किसी तरह की तकलीफ न हो, इस के लिए श्रद्धा ने अपने कमरे की सीढ़ी घर के बाहर से बनवा रखी थी. इसलिए वह जब भी देर से घर आती थी, सीधे अपने कमरे में चली जाती थी. अगर कभी वह सहेलियों के घर रुक जाती थी तो घर वालों को बता देती थी.

महादेव निवालकर श्रद्धा के कमरे का निरीक्षण करने लगे. उस के कमरे की सारी चीजें बिखरी हुई थीं. अलमारी के भी दोनों पट खुले हुए थे. उस के अंदर का सारा सामान बिखरा था. कमरे में बिखरे किताबों के पेज जले हुए थे. इस से पुलिस को लगा कि किताबों के पन्ने फाड़ कर श्रद्धा की लाश को जलाने की कोशिश की गई थी.

महादेव निवालकर घटनास्थल का निरीक्षण कर आसपड़ोस वालों से पूछताछ कर रहे थे कि जोन-8 के डीसीपी वीरेंद्र मिश्र, एसीपी प्रकाश गव्हाणे, थानाप्रभारी लक्ष्मण चव्हाण भी आ पहुंचे. इन्हीं अधिकारियों के साथ फोरैंसिक टीम और क्राइम ब्रांच यूनिट-8 के अधिकारी भी आए थे. फोरैंसिक टीम का काम निपट गया तो अधिकारियों ने भी घटनास्थल का निरीक्षण किया.

अधिकारियों के जाने के बाद महादेव निवालकर भी थाने लौट आए थे. उन्होंने श्रद्धा के घर वालों की ओर से हत्या का मुकदमा दर्ज कर मामले की जांच शुरू कर दी थी. चूंकि मामला दुष्कर्म और हत्या का था, इसलिए पुलिस हत्यारे को जल्दी से जल्दी गिरफ्तार करना चाहती थी. हत्यारे तक पहुंचने के लिए पुलिस ने श्रद्धा के घर वालों से गहराई से पूछताछ की, लेकिन उन लोगों से कोई खास जानकारी नहीं मिल सकी.

इस पूछताछ में पुलिस को सिर्फ इतना ही पता चला था कि उस रात श्रद्धा साढ़े 9 बजे घर आई थी. 10 बजे घर वालों के साथ खाना खा कर वह निपटी थी कि उस की 2 सहेलियां पूजा उर्फ पल्लवी और चैताली मुखर्जी उस से मिलने आ गई थीं. कुछ देर तीनों बातें करती रहीं, उस के बाद वे बाहर चली गई थीं. इस के बाद वे कब कमरे पर आईं, घर वालों को पता नहीं चला.

महादेव निवालकर ने श्रद्धा की दोनों सहेलियों को थाने बुला कर पूछताछ की तो पता चला कि वे श्रद्धा की जिगरी सहेलियां थीं. वे आपस में अकसर मिलती रहती थीं. कभीकभी एकदूसरे के घर रुक भी जाया करती थीं. उस दिन रात को वे श्रद्धा के यहां आईं तो थोड़ी देर घर में रुक कर सभी एटीएम पर पैसे निकालने चली गईं.

वहां से आ कर 12 बजे तक दोनों श्रद्धा के कमरे पर बातें करती रहीं. श्रद्धा को नींद आने लगी तो दोनों उठीं और श्रद्धा से दरवाजा बंद करने को कह कर दरवाजा उढ़का कर चली गईं. श्रद्धा की दोनों सहेलियों से भी हत्यारे तक पहुंचने का कोई सुराग नहीं मिला था. इस के बाद महादेव निवालकर ने अपना ध्यान श्रद्धा की क्लिनिक पर केंद्रित किया.

श्रद्धा फिजियोथेरैपिस्ट थी, ऐसे में उस के यहां हर तरह और हर उम्र के लोग आते थे. उन में कुछ ऐसे भी रहे होंगे, जो श्रद्धा को पसंद करते रहे होंगे. क्योंकि श्रद्धा आधुनिक फैशनपरस्त और खुले विचारों वाली युवती थी. वह हर किसी से खुल कर बात करती थी.

ऐसे में कोई ऐसा भी रहा होगा, जो उस के प्रति आकर्षित हो गया होगा. श्रद्धा ने उसे नजरअंदाज किया होगा, जिस की वजह से बात दुष्कर्म से हत्या तक पहुंच गई होगी. यही सोच कर पुलिस ने श्रद्धा के क्लिनिक और उस के यहां आनेजाने वालों के नामपते तथा टेलीफोन नंबर ले कर गहराई से जांच की, लेकिन कोई भी ऐसा आदमी नहीं मिला, जिस पर शक किया जाता. इस तरह मामला धीरेधीरे जटिल और पेंचीदा होता जा रहा था.

ऐसे में परिस्थितियां कुछ ऐसी बनीं कि पुलिस को श्रद्धा के घर वालों पर ही शक हो गया. पुलिस को लगा कि श्रद्धा की हत्या एक सोचीसमझी साजिश के तहत की गई थी, जिस में घर वाले ही शामिल हैं. वे श्रद्धा की किसी कमजोरी को छिपाने की कोशिश कर रहे हैं. यही सोच कर पुलिस पूछताछ के लिए श्रद्धा के एक मुंहबोले भाई तथा घर वालों को थाने ले आई.

इस बात की भनक जैसे ही मीडिया को लगी, उन्होंने श्रद्धा के घर वालों का जीना दूभर कर दिया. अपनी टीआरपी बढ़ाने के लिए इलैक्ट्रौनिक और प्रिंट मीडिया ने इस मामले को तिल का ताड़ बना दिया. जिस के जो मन में आया, वह खबरों को रंगीन और चटपटी बना कर नोएडा के आरुषि हत्याकांड से जोड़ कर अनापशनाप खबरें पेश करने लगा.

मीडिया ने श्रद्धा के मांबाप को गुनाहों के कटघरे में खड़ा कर दिया. यही नहीं, डा. श्रद्धा के चरित्र को भी जम कर शर्मसार किया गया. और यह सब तब तक चलता रहा, जब तक श्रद्धा का असली कातिल पकड़ा नहीं गया. एक ओर जहां मीडिया नाक में दम किए था, वहीं दूसरी ओर मामले की जांच कर रही पुलिस टीम पर वरिष्ठ अधिकारियों का भी दबाव था. क्राइम ब्रांच और थाना पुलिस का मिलाजुला औपरेशन भी काम नहीं आ रहा था. पुलिस का सारा तंत्र बेकार हो चुका था.

परेशान पुलिस ने सभी रेलवे स्टेशनों, मुंबई के उपनगर नवी मुंबई, थाणे, वसई पालघर जनपद के नालासोपारा, विरार, कल्याण के सभी पुलिस थानों के संदिग्धों के रिकौर्ड चैक कर पूछताछ कर डाली, साथ ही श्रद्धा के फोन नंबरों के काल डिटेल्स निकलवा कर खंगाला. इस के अलावा करीब 5 सौ से अधिक लोगों से पूछताछ की गई, लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात रहा.

50 दिनों से अधिक बीत गए, पर पुलिस अंधेरे में ही हाथपैर मारती रही. पुलिस की समझ में नहीं आ रहा था कि श्रद्धा की हत्या का रहस्य क्या था और हत्यारा कौन था? इस मामले को ले कर पुलिस चिंतित जरूर थी, लेकिन निराश नहीं थी.

एक बार फिर पुलिस ने वरिष्ठ अधिकारियों के निर्देश पर घटनास्थल पर जा कर मामले से संबंधित सारे तथ्यों को समझने की कोशिश की. इसी के साथ उस इलाके में लगे सभी सीसीटीवी कैमरों की फुटेज निकलवा कर उन्हें बारीकी से देखा गया. इस में उन्हें आशा के विपरीत फल मिला. आखिर इस से श्रद्धा की हत्या की कडि़यां जुड़ ही गईं.

पुलिस को एक फुटेज में एक ऐसा चेहरा दिखाई दिया, जिस पर शक हुआ. उस का चेहरा काफी धुंधला था, पर उस की गतिविधियां काफी संदिग्ध लग रही थीं. चेहरा स्पष्ट न होने की वजह से उसे पहचाना नहीं जा सकता था. फुटेज को सांताकु्रज की लैब भेजा गया तो चेहरा कुछ साफ हुआ. इस के बाद सच्चाई सामने आ गई. वह युवक उसी बस्ती में लगभग 7 सालों से रह रहा था, जहां श्रद्धा का परिवार रहता था.

उस युवक का नाम देवाशीष धारा था. पुलिस उस की तलाश में लग गई. वह जिस मकान में किराए पर रहता था, मकान मालिक ने बताया कि वह 8 जनवरी, 2017 को कमरा खाली कर के अपने गांव चला गया था. पुलिस ने इस मामले में देर करना उचित नहीं समझा. वैसे भी संभावित अभियुक्त उन की पहुंच से काफी दूर निकल चुका था.

थानापुलिस ने इस बात की जानकारी वरिष्ठ अधिकारियों को दी. इस के बाद अधिकारियों के निर्देश पर पुलिस की एक टीम पश्चिम बंगाल स्थित देवाशीष के गांव के लिए रवाना हो गई. पुलिस को उस का पता मकान मालिक से मिल गया था.

देवाशीष के गांव गई पुलिस टीम ने स्थानीय पुलिस की मदद से उसे गिरफ्तार कर लिया. उसे वहां की अदालत में पेश कर के प्रोडक्शन वारंट पर मुंबई ला कर अधिकारियों की उपस्थिति में उस से पूछताछ की गई तो पहले वह खुद को इस मामले से अनभिज्ञ बताता रहा. लेकिन जब पुलिस ने थोड़ी सख्ती की तो वह टूट गया और उस ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया.

27 वर्षीय देवाशीष धारा मूलरूप से पश्चिम बंगाल के जिला मिदनापुर के थाना दासपुर के गांव मेधूपुर का रहने वाला था. उस के पिता नंदलाल गांव के एक गरीब किसान थे. परिवार का सब से बड़ा बेटा देवाशीष ही था. बड़ा हुआ तो घर की आर्थिक स्थिति ठीक न होने की वजह से सन 2010 में वह काम की तलाश में मुंबई आ गया.

कहा जाता है कि मुंबई में कोई भूखा नहीं सोता, पर यहां काम नसीब से मिलता है. यही देवाशीष के साथ भी हुआ. उसे उस के मनमुताबिक काम नहीं मिला. उस के गांव के कुछ लोग वहां मेहनतमजदूरी करते थे, उन्हीं के साथ वह भी मेहनतमजदूरी करने लगा.

देवाशीष महत्त्वाकांक्षी युवक था. मेहनतमजदूरी से जो पैसे मिलते थे, उन्हें जोड़ कर रखता था. खर्चे के बाद जो भी पैसे बचते थे, वह उन्हें गांव भेज देता था. रहने के लिए उस ने विलेपार्ले पूर्व के श्रद्धानंद रोड पर साईंबाबा मंदिर के पास किराए का कमरा ले रखा था.

जहां देवाशीष रहता था, उसी के नजदीक की लीलाबाई सोसायटी के एक चालनुमा 2 मंजिले मकान में काशीनाथ पांचाल परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी और 2 बेटियां थीं. 50साल के काशीनाथ मुंबई लोअर परेल की सन मिल कंपाउंड की एक प्रतिष्ठित फर्म में नौकरी करते थे. उन्हें बेटा नहीं था, इसलिए उन्होंने बेटियों को ही बेटों की तरह पालापोसा. वह बेटियों को पढ़ालिखा कर किसी योग्य बनाना चाहते थे. बड़ी बेटी श्रद्धा पढ़लिख कर फिजियोथेरैपिस्ट बन गई थी और विलेपार्ले वेस्ट जुहू में अपनी क्लिनिक खोल ली थी, जो धीरेधीरे चलने भी लगी थी. छोटी बेटी भी इलैक्ट्रौनिक इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रही थी.

24 साल की श्रद्धा खूबसूरत तो थी ही, वाचाल भी थी. वह किसी से भी बात करने में नहीं झिझकती थी. इस की एक वजह यह थी कि उस का काम ही ऐसा था.

जो दूसरों की फिटनेस का खयाल रखता हो, वह अपनी फिटनेस का ध्यान रखेगा ही. श्रद्धा के अधिकतर ग्राहक फिल्मी दुनिया और टीवी सीरियलों में काम पाने वाले युवकयुवतियां थे. वे क्लिनिक पर भी आते थे और घर पर भी. ऐसे लोगों के बीच रहने की वजह से श्रद्धा खुद भी मौडल की तरह रहती थी. वह कपड़े भी छोटेछोटे पहनती थी.

देवाशीष की नजर श्रद्धा पर पड़ी तो वह उसे चाहने लगा. वैसे तो वह श्रद्धा को कई सालों से देखता आ रहा था, लेकिन उस के मन में श्रद्धा के प्रति प्यार तब जागा, जब उस ने फिजियोथेरैपिस्ट डाक्टर बन कर अपनी क्लिनिक खोली थी. फिल्म और सीरियल में काम पाने के इच्छुक युवकयुवतियों के संपर्क में रहने की वजह से श्रद्धा का रहनसहन और बातव्यवहार उसी तरह हो गया था. वह बनसंवर कर घर से सुबह निकलती थी तो देर रात को ही लौटती थी.

श्रद्धा की खूबसूरती देवाशीष को अपनी ओर आकर्षित करने लगी थी. दिल के हाथों मजबूर देवाशीष श्रद्धा का सामीप्य पाने को बेचैन रहने लगा था. इस के लिए वह श्रद्धा का पीछा भी करने लगा था. लेकिन वह उस से अपने दिल की बात कह नहीं पा रहा था. इस की एक वजह यह थी कि उस की और श्रद्धा की हैसियत में बड़ा अंतर था. श्रद्धा के सामने वह कुछ नहीं था.

लेकिन दिल तो दिल है, वह किस पर आ जाए कौन जानता है. जब देवाशीष से रहा नहीं गया तो एक दिन उस ने श्रद्धा से दिल की बात कह ही दी. भला श्रद्धा उस के प्यार को कहां स्वीकार करने वाली थी. उस ने जो जवाब दिया, वह देवाशीष के कलेजे में तीर की तरह उतर गया.

देवाशीष को अपमानित कर श्रद्धा अपने काम पर चली गई और उसे भूल गई. उस ने यह बात किसी को बताई भी नहीं. श्रद्धा भले ही इस बात को भूल गई थी, लेकिन देवाशीष अपने अपमान को नहीं भुला सका था. वह बदले की आग में जलने लगा. वह श्रद्धा को सबक सिखाने का मौका ढूंढने लगा.

घटना वाली रात देवाशीष दोस्तों से मिल कर लौट रहा था, तभी उस ने श्रद्धा की सहेलियों को उस के कमरे से निकलते देखा. उसे यह मौका उचित लगा. वह कुछ देर श्रद्धा के मकान के आसपास घूमता रहा. उस के बाद मौका देख कर वह श्रद्धा के कमरे के दरवाजे पर जा पहुंचा.

उस ने दरवाजे पर हाथ रखा तो दरवाजा खुल गया, क्योंकि दरवाजा खुला ही था. दरअसल, श्रद्धा की सहेलियों ने जाते समय उस से दरवाजा बंद करने को कहा था, लेकिन नींद में होने की वजह से वह दरवाजा बंद नहीं कर सकी थी. गहरी नींद में सो रही श्रद्धा को देवाशीष ने इस तरह दबोचा कि वह अर्द्धबेहोशी की स्थिति में चली गई. उसी हालत में उस ने श्रद्धा के कपड़े उतार कर उस के साथ दुष्कर्म किया और अपना अपराध छिपाने के लिए उसी की जींस से उस का गला घोंट दिया.

श्रद्धा मर गई तो अलमारी में रखी किताबें निकाल कर उस ने फाड़ा और उन के पन्ने श्रद्धा की लाश पर रख कर आग लगा दी. आग जब तक जोर पकड़ती, उस ने कमरे की लाइट तोड़ कर बाहर आ गया. बाहर आ कर दरवाजे की कुंडी बंद की और भाग गया.

इस हत्याकांड के बाद एक महीने तक वह अपने दोस्तों के यहां रह कर पुलिस काररवाई के बारे में पता करता रहा. जब उस ने देखा कि पुलिस हत्यारे के बारे में पता नहीं लगा पा रही है तो निश्चिंत हो कर वह गांव चला गया. लेकिन वह बच नहीं सका और 2 फरवरी, 2017 को पुलिस द्वारा पकड़ा गया.

इंसपेक्टर महादेव निवालकर ने पूछताछ के बाद देवाशीष के खिलाफ दुष्कर्म और हत्या का मुकदमा दर्ज कर उसे अदालत में पेश किया, जहां से उसे आर्थर रोड जेल भेज दिया गया.

कातिल फिसलन: दारोगा राम सिंह के पास कौनसा आया था केस- भाग 1

‘‘देखिए… मैं अभी नहा कर आई हूं,’’ सुखलाल से खुद को छुड़ाने की कोशिश करते हुए सलोनी किसी तरह बोली, लेकिन वह शराबी कहां मानने वाला था. वह बेशर्मी से बोला, ‘‘इसीलिए तो अभी खासतौर से तुम को प्यार करने आया हूं. तरोताजा फल का स्वाद ही अलग होता है.’’

इसी पकड़धकड़ में सलोनी का सिर टेबल के कोने से जा टकराया और उस की चीख निकल गई, ‘‘आह…’’

लेकिन सलोनी की कमजोरी तो जिस्मानी से ज्यादा दिमागी थी. वह कसमसा कर रह गई और सुखलाल उस के ऊपर छा गया.

तकरीबन 15 मिनट बाद सलोनी के जलते दिल पर अपने जहर की बरसात करने के बाद संतुष्टि की सांसें भरता सुखलाल उठा और कहने लगा, ‘‘बस, हो तो गया. कोई ज्यादा समय थोड़े ही लगता है हम को काम करने में. तुम्हीं बेकार में टैंशन ले लेती हो और हम को भी दे देती हो,’’ इस के बाद वह बाहर चला गया.

सलोनी ने भरी आंखों से घड़ी देखी तो बच्चों के स्कूल से लौटने का समय हो रहा था. बुझे मन से वह दोबारा नहाने चली गई. बाहर आ कर अपने माथे की चोट पर एंटीसैप्टिक क्रीम लगा ही रही थी कि दरवाजे की घंटी बज उठी.

सलोनी ने दरवाजा खोला. उस के दोनों बेटे स्कूल से आ चुके थे.

बड़े बेटे की नजर अपनी मां के माथे पर गई तो वह पूछ बैठा, ‘‘मम्मी, यह चोट कैसे लगी?’’

‘‘वह जरा टेबल से सिर टकरा गया. तुम दोनों फ्रैश हो लो. मैं आलू के परांठे बना रही हूं,’’ सलोनी ने जल्दी से उसे टाला और रसोईघर में चली गई.

सलोनी के साथ इस तरह की घटनाओं की भूमिका तो उसी दिन से शुरू हो गई थी जब तकरीबन 6 महीने पहले उस के पति सुधीर ने पैसे की तंगी कम करने के लिए सुखलाल को ऊपर का कमरा किराए पर दिया था. उन को तब पता नहीं था कि कि 50 साल का सुखलाल किस कदर काइयां आदमी है. उस के तार इलाके के कुछ बड़े दबंगों से जुड़े थे और पुलिस से भी.

टीवीकूलरपंखे वगैरह की रिपेयरिंग की दुकान चलाने वाला सुधीर सीधासादा आदमी था. सुखलाल की गंदी नजरें यहां आते ही खुद से 10 साल छोटी सलोनी पर टिक गई थीं. पहली मुलाकात में ही वह उस के हुस्न को देखता रह गया था, जब वह उस के लिए चाय ले कर आई थी. इस के बाद तो सुखलाल ने उस पर लगातार डोरे डालने शुरू कर दिए थे.

जब सलोनी ने सुखलाल की दाल नहीं गलने दी तो उस ने एक दिन अपना गैरकानूनी कट्टा चुपके से सुधीर की दुकान में रखवा कर इलाके के अपने परिचित दारोगा से उस को गिरफ्तार

करा दिया.

अपने पति को दिलोजान से चाहने वाली सलोनी ने हर मुमकिन कोशिश कर ली लेकिन सुधीर को छुड़ा नहीं पाई. तब एक रात इसी सुखलाल ने सलोनी को अपने कमरे में इस बारे में बात करने के लिए बुलाया और अपने मन की कर ली. सुबह उस ने अपने नशे में होने का बहाना बनाया और सुधीर की रिहाई का लालच दे कर उसे किसी से कुछ भी न बताने के लिए राजी कर लिया.

रोजरोज थाने में थर्ड डिगरी झेल रहा बेकुसूर सुधीर अगले दिन ही रिहा कर दिया गया. सलोनी उस की हालत देख कर रो पड़ी.

सुखलाल ने उस के इलाज के लिए कुछ पैसे दे कर सलोनी की रहीसही हिम्मत भी तोड़ दी. उस ने सोचा कि अपनेआप को एक बार दागदार कर के उस ने अपना घर और सुहाग बचा लिया है, लेकिन उस का यह सोचना गलत निकला.

सुखलाल पर सलोनी का स्वाद लग चुका था. अब वह अकसर उस को मौका पाते ही दबोच लेता था.

आज भी सलोनी के साथ वही हुआ. वह बारबार सोचती कि सुधीर को सबकुछ बता दे, लेकिन सुखलाल का डर उस की जबान सिल देता.

शाम को सुधीर दुकान से आया और सलोनी के माथे पर लगी चोट देख कर शंका भरी आवाज में सवाल करने लगा.

दरअसल, सुधीर को यह सारा मामला किसी और ही नजरिए से दिखने लगा था. वह सोचता था कि सलोनी और सुखलाल के बीच कुछ है और उस का खमियाजा पति होने के नाते थाने में गिरफ्तार हो कर उसे भुगतना पड़ा.

सलोनी ने सुधीर से भी अपनी चोट का वही बहाना बनाया जो उस ने अपने बच्चों से बनाया था. सुधीर उस का जवाब सुन कर चुपचाप वहां से चला तो गया, लेकिन आज उस की आंखों में सलोनी ने एक ऐसी आग की झलक देखी जो उस ने पहले कभी महसूस नहीं की थी.

अगली सुबह बाहर हो रहे शोर से सलोनी जागी तो उस ने सुधीर को अपने पास नहीं पाया. वह हड़बड़ी में अपने बाल बांधती बाहर भागी. उस के घर के बगल वाली खाली जमीन के सामने लोगों की भीड़ लगी थी. कोई आदमी कह रहा था, ‘‘जिंदा है कि मर गया?’’

ये शब्द सुनते ही सलोनी को बेहोशी आने लगी. कहीं सुधीर ने तनाव में आ कर खुदकुशी तो…

घबराहट में वह बेतहाशा लोगों को धकियाती आगे बढ़ी तो पाया कि सामने सुखलाल खून से लथपथ गिरा पड़ा था. उस के पेट में लोहे की एक छड़ धंसी थी और जिस्म शांत हो चुका था.

इसी बीच पुलिस भी आ गई. नए दारोगा राम सिंह ने कुछ ही दिनों पहले इस इलाके का चार्ज लिया था और सुखलाल उस से भी मेलजोल बढ़ाने में लगा रहता था लेकिन राम सिंह की ईमानदारी के चलते वह कामयाब नहीं हो सका था.

सलोनी घर वापस आई और सुधीर को पूरे घर में तलाशा. उसे नहीं पा कर उस को फोन मिलाया. वह भी बंद मिला.

सलोनी सिर पकड़ कर रोने लगी कि आखिर वही हुआ जिस से बचने के लिए उस ने अपना सबकुछ लुटा दिया था… आखिरकार सुधीर कानून का मुजरिम बन ही गया.

सुखराम की लाश को कस्टडी में लेने के बाद दारोगा राम सिंह सलोनी

के घर आया क्योंकि सुखलाल उसी का किराएदार था. उस ने सुखलाल के कमरे की तलाशी ली. सीढ़ीघर के बाहर

की तरफ दीवार नहीं बनी थी जिस के चलते वहां से नीचे गिरने का खतरा बना रहता था.

दारोगा राम सिंह ने अंदाजा लगा लिया कि यहीं से सुखलाल भी नीचे गिरा है. उस के कमरे में रखी शराब की बोतलों को आगे की जांच के लिए जब्त कर उस ने सलोनी से सवाल किया, ‘‘आप के पति कहां हैं?’’

‘‘ज… जी, वे मेरे मायके गए हैं, कल रात को… मेरे चाचाजी की तबीयत अचानक खराब हो गई थी तो उन को ही देखने,’’ सलोनी ने झूठ बोल दिया ताकि राम सिंह का शक सुधीर पर न जाए. अपनी बात की तसदीक तो वह अपने मायके वालों को समझा कर करा ही सकती थी.

प्यार का ऐसा भयानक अंजाम आपने सोचा न होगा

नींद न आने की वजह से सुशीला बेचैनी से करवट बदल रही थी. जिंदगी ने उसे एक ऐसे मुकाम पर ला खड़ा किया था, जहां वह पति प्रदीप से जुदा हो सकती थी. चाहत हर किसी की कमजोरी होती है और जब कोई इंसान किसी की कमजोरी बन जाता है तो वह उस से बिछुड़ने के खयाल से ही बेचैन हो उठता है. सुशीला और प्रदीप का भी यही हाल था. प्रदीप उसे कई बार समझा चुका था, फिर भी सुशीला उस के खयालों में डूबी रातरात भर बेचैनी से करवट बदलती रहती थी. उस रात भी कुछ वैसा ही था. रात में नींद न आने की वजह से सुबह भी सुशीला के चेहरे पर बेचैनी और चिंता साफ झलक रही थी. उसे परेशान देख कर प्रदीप ने उसे पास बैठाया तो उस ने उसे हसरत भरी निगाहों से देखा. उस की आंखों में उसे बेपनाह प्यार का सागर लहराता नजर आया.

कुछ कहने के लिए सुशीला के होंठ हिले जरूर, लेकिन जुबान ने साथ नहीं दिया तो उस की आंखों में आंसू उमड़ आए. प्रदीप ने गालों पर आए आंसुओं को हथेली से पोंछते हुए कहा, ‘‘सुशीला, तुम इतनी कमजोर नहीं हो, जो इस तरह आंसू बहाओ. हम ने कसम खाई थी कि हर पल खुशी से बिताएंगे और एकदूसरे का साथ नहीं छोड़ेंगे.’’

‘‘साथ ही छूटने का तो डर लग रहा है मुझे.’’ सुशीला ने झिझकते हुए कहा.

‘‘सच्चा प्यार करने वालों की खुशियां कभी अधूरी नहीं होतीं सुशीला.’’

‘‘मैं तुम्हारे बिना जिंदा नहीं रह सकती प्रदीप. तुम मेरी जिंदगी हो. यह जिस्म मेरा है, दिल मेरा है, लेकिन मेरे दिल की हर धड़कन तुम्हारी नजदीकियों की मोहताज है.’’

सुशीला के इतना कहते ही प्रदीप तड़प उठा. अपनी हथेली उस के होंठों पर रख कर उस ने कहा, ‘‘मुझे कुछ नहीं होगा सुशीला. मैं तुम्हें सारे जहां की खुशियां दूंगा. तुम्हारे चेहरे पर उदासी नहीं, सिर्फ खुशी अच्छी लगती है, इसलिए तुम खुश रहा करो. इस फूल से खिलते चेहरे ने मुझे हमेशा हिम्मत दी है, वरना हम कब के हार चुके होते.’’

‘‘मैं ने सुना है कि मेरे घर वालों ने धमकी दी है कि वे हमें जिंदा नहीं छोड़ेंगे?’’ सुशीला ने चिंतित हो कर पूछा.

‘‘अब तक कुछ नहीं हुआ तो आगे भी कुछ नहीं होगा, इसलिए तुम बेफिक्र रहो. अब तो हमारे प्यार की एक और निशानी जल्द ही दुनिया में आ जाएगी. हम हमेशा इसी तरह खुशी से रहेंगे.’’ प्रदीप ने कहा.

पति के कहने पर सुशीला ने बुरे खयालों को दिल से निकाल दिया. नवंबर, 2016 के पहले सप्ताह की बात थी यह. अगर सुशीला ने प्रदीप से प्यार न किया होता तो उसे यह डर कभी न सताता. प्यार के शिखर पर पहुंच कर दोनों खुश थे. यह बात अलग थी कि इस मुकाम तक पहुंचने के लिए उन्होंने काफी विरोध का सामना किया था.

उन्होंने ऐसी जगह प्यार का तराना गुनगुनाया था, जहां कभी सामाजिक व्यवस्था तो कभी गोत्र तो कभी झूठी शान के लिए प्यार को गुनाह मान कर अपने ही खून के प्यासे बन जाते हैं.

प्रदीप हरियाणा के सोनीपत जिले के खरखौदा कस्बे के बरोणा मार्ग निवासी धानक समाज के सुरेश का बेटा था. वह मूलरूप से झज्जर जिले के जसौर खेड़ी के रहने वाले थे, लेकिन करीब 17 साल पहले आ कर यहां बस गए थे. उन के परिवार में पत्नी सुनीता के अलावा 2 बेटे एवं एक बेटी थी. बच्चों में प्रदीप बड़ा था. सुरेश खेती से अपने इस परिवार को पाल रहे थे.

3 साल पहले की बात है. प्रदीप जिस कालेज में पढ़ता था, वहीं उस की मुलाकात नजदीक के गांव बिरधाना की रहने वाली सुशीला से हुई. सुशीला जाट बिरादरी के किसान ओमप्रकाश की बेटी थी. दोनों की नजरें चार हुईं तो वे एकदूसरे को देखते रह गए. इस के बाद जब भी सुशीला राह चलती मिल जाती, प्रदीप उसे हसरत भरी निगाहों से देखता रह जाता.

सुशीला खूबसूरत थी. उम्र के नाजुक पायदान पर कदम रख कर उस का दिल कब धड़कना सीख गया था, इस का उसे खुद भी पता नहीं चल पाया था. वह हसीन ख्वाबों की दुनिया में जीने लगी थी. प्रदीप उस के दिल में दस्तक दे चुका था.

सुशीला समझ गई थी कि खुद उसी के दिल की तरह प्रदीप के दिल में भी कुछ पनप रहा है. दोनों के बीच थोड़ी बातचीत से जानपहचान भी हो गई थी. यह अलग बात थी कि प्रदीप ने कभी उस पर कुछ जाहिर नहीं किया था. वक्त के साथ आंखों से शुरू हुआ प्यार उन के दिलों में चाहत के फूल खिलाने लगा था.

एक दिन सुशीला बाजार गई थी. वह पैदल ही चली जा रही थी, तभी उसे अपने पीछे प्रदीप आता दिखाई दिया. उसे आता देख कर उस का दिल तेजी से धड़कने लगा. वह थोड़ा तेज चलने लगी. प्रदीप के आने का मकसद चाहे जो भी रहा हो, लेकिन सामाजिक लिहाज से यह ठीक नहीं था.

प्रदीप ने जब सुशीला का पीछा करना काफी दूरी तक नहीं छोड़ा तो वह रुक गई. उसे रुकता देख कर प्रदीप हिचकिचाया जरूर, लेकिन वह उस के निकट पहुंच गया. सुशीला ने नजरें झुका कर शोखी से पूछा, ‘‘मेरा पीछा क्यों कर रहे हो?’’

‘‘तुम्हें ऐसा क्यों लग रहा है?’’ प्रदीप ने सवाल के जवाब में सवाल ही कर दिया.

‘‘इतनी देर से पीछा कर रहे हो, इस में लगने जैसा क्या है.’’

‘‘तुम से बातें करने का दिल हो रहा था मेरा.’’ प्रदीप ने कहा.

‘‘इस तरह मेरे पीछे मत आओ, किसी ने देख लिया तो…’’ सुशीला ने कहा.

प्रदीप उस दिन जैसे ठान कर आया था, इसलिए इधरउधर नजरें दौड़ा कर उस ने कहा, ‘‘अगर किसी से 2 बातें करने की तड़प दिल में हो तो रहा नहीं जाता सुशीला. तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो. तुम पहली लड़की हो, जिसे मैं प्यार करने लगा हूं.’’

सुशीला ने उस की बातों का जवाब नहीं दिया और मुसकरा कर आगे बढ़ गई. हालांकि प्रदीप की बातों से वह मन ही मन खुश हुई थी. वह भी प्रदीप को चाहने लगी थी. उस रात दोनों की ही आंखों से नींद गायब हो गई थी.

इस के बाद उन की मुलाकात हुई तो सुशीला प्रदीप को देख कर नजरों में ही इस तरह मुसकराई, जैसे दिल का हाल कह दिया हो. इस तरह प्यार का इजहार होते ही उन के बीच बातों और मुलाकातों का सिलसिला चल निकला. प्यार के पौधे को रोपने में भले ही वक्त लगता है, लेकिन वह बढ़ता बहुत तेजी से है.

यह जानते हुए भी कि दोनों की जाति अलगअलग हैं, वे प्यार के डगर पर चल निकले. सुशीला प्रदीप के साथ घूमनेफिरने लगी. प्यार अगर दिल की गहराइयों से किया जाए तो वह कोई बड़ा गुला खिलाता है. दोनों का यह प्यार वक्ती नहीं था, इसलिए उन्होंने साथ जीनेमरने की कसमें भी खाईं.

समाज प्यार करने वालों के खिलाफ होता है, यह सोच कर उन के दिलों में निराशा जरूर काबिज हो जाती थी. यही सोच कर एक दिन मुलाकात के क्षणों में सुशीला प्रदीप से कहने लगी, ‘‘मैं हमेशा के लिए तुम्हारी होना चाहती हूं प्रदीप, लेकिन शायद ऐसा न हो पाए.’’

‘‘क्यों?’’ कड़वी हकीकत को जानते हुए भी प्रदीप ने अंजान बन कर पूछा.

‘‘मेरे घर वाले शायद कभी तैयार नहीं होंगे.’’

‘‘बस, तुम कभी मेरा साथ मत छोड़ना, मैं तुम्हारे लिए हर मुश्किल पार करने को तैयार हूं.’’

‘‘यह साथ तो अब मरने के बाद ही छूटेगा.’’ सुशीला ने प्रदीप से वादा किया.

प्यार उस शय का नाम है, जो कभी छिपाए नहीं छिपता. सुशीला के घर वालों को जब बेटी के प्यार के बारे में पता चला तो घर में भूचाल आ गया. ओमप्रकाश के पैरों तले से यह सुन कर जमीन खिसक गई कि उन की बेटी किसी अन्य जाति के लड़के से प्यार करती है. उन्होंने सुशीला को आड़े हाथों लिया और डांटाफटकारा, साथ ही उस की पिटाई भी की. उन्होंने जमाना देखा था, इसलिए उस पर पहरा लगा दिया.

शायद उन्हें पता नहीं था कि सुशीला का प्यार हद से गुजर चुका है. इस से पहले कि कोई ऊंचनीच हो, ओमप्रकाश ने उस के लिए लड़के की तलाश शुरू कर दी. सुशीला ने दबी जुबान से मना किया कि वह शादी नहीं करना चाहती, लेकिन उस की किसी ने नहीं सुनी.

प्यार करने वालों पर जितने अधिक पहरे लगाए जाते हैं, उन की चाहत का सागर उतना ही उफनता है. सुशीला के साथ भी ऐसा ही हुआ. एक दिन किसी तरह मौका मिला तो उस ने प्रदीप को फोन किया. उस से संपर्क न हो पाने के कारण वह भी परेशान था.

फोन मिलने पर सुशीला ने डूबे दिल से कहा, ‘‘मेरे घर वालों को हमारे प्यार का पता चल गया है प्रदीप. अब शायद मैं तुम से कभी न मिल पाऊं. वे मेरे लिए रिश्ता तलाश रहे हैं.’’

यह सुन कर प्रदीप सकते में आ गया. उस ने कहा, ‘‘ऐसा नहीं हो सकता सुशीला. तुम सिर्फ मेरा प्यार हो. तुम जानती हो, अगर ऐसा हुआ तो मैं जिंदा नहीं रहूंगा.’’

‘‘उस से पहले मैं खुद भी मर जाना चाहती हूं. प्रदीप जल्दी कुछ करो, वरना…’’ सुशीला ने कहा और रोने लगी.

प्रदीप ने उसे हौसला बंधाते हुए कहा, ‘‘मुझे सोचने का थोड़ा वक्त दो सुशीला. पहले मैं अपने घर वालों को मना लूं.’’

दोनों के कई दिन चिंता में बीते. प्रदीप ने अपने घर वालों को दिल का राज बता कर उन्हें सुशीला से विवाह के लिए मना लिया. जबकि सुशीला का परिवार इस रिश्ते के सख्त खिलाफ था. उन्होंने उस पर पहरा लगा दिया था. मारपीट के साथ उसे समझाने की भी कोशिश की गई थी, लेकिन वह प्रदीप से विवाह की जिद पर अड़ी थी.

सुशीला बगावत पर उतर आई थी, क्योंकि प्रदीप के बिना उसे जिंदगी अधूरी लग रही थी. कई दिनों की कलह के बाद भी जब वह नहीं मानी तो उसे घर वालों ने अपनी जिंदगी से बेदखल कर के उस के हाल पर छोड़ दिया.

प्रदीप ने भी सुशीला को समझाया, ‘‘प्यार करने वालों की राह आसान नहीं होती सुशीला. हम दोनों शादी कर लेंगे तो बाद में तुम्हारे घर वाले मान जाएंगे.’’

एक दिन सुशीला ने चुपके से अपना घर छोड़ दिया. पहले दोनों ने कोर्ट में, उस के बाद सादे समारोह में शादी कर के एकदूसरे को जीवनसाथी चुन लिया. इसी के साथ परिवार से सुशीला के रिश्ते खत्म हो गए.

सुशीला और प्रदीप ने प्यार की मंजिल पा ली थी. इस बीच प्रदीप ने एक फैक्ट्री में नौकरी कर ली. एक साल बाद प्यार की निशानी के रूप में सुशीला ने बेटी को जन्म दिया, जिस का नाम उन्होंने प्रिया रखा. वह 3 साल की हो चुकी थी. अब एक और खुशी उन के आंगन में आने वाली थी.

इतने दिन हो गए थे, फिर भी एक अंजाना सा डर सुशीला के दिल में समाया रहता था. इस की वजह थी उस के परिवार वाले. उन से उसे धमकियां मिलती रहती थीं. उस दिन भी सुशीला इसीलिए परेशान थी. सुशीला के घर वालों की नाराजगी बरकरार थी.

अपने रिश्ते को उन्होंने सुशीला से पूरी तरह खत्म कर लिया था. एक बार प्रदीप की होने के बाद सुशीला भी कभी अपने मायके नहीं गई थी. उसे मायके की याद तो आती थी, लेकिन मजबूरन अपने जज्बातों को दफन कर लेती थी. उस ने सोच लिया था कि वक्त के साथ सब ठीक हो जाएगा.

प्रदीप और सुशीला अपने घर में नए मेहमान के आने की खुशी से खुश थे, लेकिन जिंदगी में खुशियों का स्थाई ठिकाना हो, यह जरूरी नहीं है. कई बार खुशियां रूठ जाती हैं और वक्त ऐसे दर्दनाक जख्म दे जाता है, जिन का कोई मरहम नहीं होता. सुशीला और प्रदीप की भी खुशियां कितने दिनों की मेहमान थीं, इस बात को कोई नहीं जानता था.

18 नवंबर, 2016 की रात की बात है. प्रदीप के घर के सभी लोग सो रहे थे. प्रदीप और सुशीला बेटी के साथ अपने कमरे में सो रहे थे, जबकि उस के मातापिता सुरेश और सुनीता, भाई सूरज अलग कमरे में सो रहे थे. बहन ललिता अपने ताऊ के घर गई थी. समूचे इलाके में खामोशी और सन्नाटा पसरा था. तभी किसी ने प्रदीप के दरवाजे पर दस्तक दी. प्रदीप ने दरवाजा खोला तो सामने कुछ हथियारबंद लोग खड़े थे.

प्रदीप कुछ समझ पाता, उस से पहले ही उन्होंने उस पर गोलियां चला दीं. गोलियां लगते ही प्रदीप जमीन पर गिर पड़ा. सुशीला बाहर आई तो उसे भी गोली मार दी गई. प्रदीप के पिता सुरेश और मां सुनीता के बाहर आते ही हमलावरों ने उन पर भी गोलियां चला दीं. सूरज की भी आंखें खुल गई थीं. खूनखराबा देख कर उस के होश उड़ गए. हमलावरों ने उसे भी नहीं बख्शा.

गोलियों की तड़तड़ाहट से वातावरण गूंज उठा था. आसपास के लोग इकट्ठा होते, उस के पहले ही हमलावर भाग गए थे. घटना की सूचना स्थानीय थाना खरखौदा को दी गई. थानाप्रभारी कर्मबीर सिंह पुलिस बल के साथ मौके पर आ पहुंचे. पुलिस आननफानन घायलों को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ले गई. तीनों की हालत गंभीर थी, लिहाजा प्राथमिक उपचार के बाद उन्हें रोहतक के पीजीआई अस्पताल रेफर कर दिया गया.

उपचार के दौरान सुरेश, सुनीता और प्रदीप की मौत हो गई, जबकि डाक्टर सुशीला और सूरज की जान बचाने में जुट गए. सूरज के कंधे में गोली लगी थी और सुशीला की पीठ में. डाक्टरों ने औपरेशन कर के गोलियां निकालीं. सुरक्षा के लिहाज से अस्पताल में पुलिस तैनात कर दी गई थी. सुशीला गर्भ से थी. उस के शिशु की जान को भी खतरा हो सकता था.

डाक्टरों ने उस की सीजेरियन डिलीवरी की. उस ने स्वस्थ बेटे को जन्म दिया. डाक्टरों ने दोनों को खतरे से निकाल लिया था. पति और सासससुर की मौत ने उसे तोड़ कर रख दिया था. सुशीला बहुत दुखी थी. अचानक हुई घटना ने उस के जीवन में अंधेरा ला दिया था. वह दर्द और आंसुओं की लकीरों के बीच उलझ चुकी थी.

घायल सूरज ने पुलिस को जो बताया था, उसी के आधार पर अज्ञात हमलावरों के खिलाफ हत्या और हत्या के प्रयास का मुकदजा दर्ज किया गया. एसपी अश्विन शैणवी ने अविलंब आरोपियों की गिरफ्तारी के निर्देश दिए. 3 लोगों की हत्या से क्षेत्र में दहशत फैल गई थी.

अगले दिन एसपी अश्विन शैणवी और डीएसपी प्रदीप ने भी घटनास्थल का दौरा किया. उन के निर्देश पर पुलिस टीमों का गठन किया गया. एसआईटी इंचार्ज राज सिंह को भी टीम में शामिल किया गया. पुलिस ने जांच शुरू की तो सुशीला और प्रदीप के प्रेम विवाह की बात सामने आई.

पुलिस ने सुशीला से पूछताछ की, लेकिन वह सही से बात करने की स्थिति में नहीं थी. फिर भी उस ने हमले का शक मायके वालों पर जताया. मामला औनर किलिंग का लगा. पुलिस ने सुशीला के पिता के घर दबिश दी तो वह और उन के बेटे सोनू एवं मोनू फरार मिले.

इस से पुलिस को विश्वास हो गया कि हत्याकांड को इन्हीं लोगों के इशारे पर अंजाम दिया गया था. पुलिस के हाथ सुराग लग गया कि खूनी खेल खेलने वाले कोई और नहीं, बल्कि सुशीला के घर वाले ही थे. पुलिस सुशीला के पिता और उस के बेटों की तलाश में जुट गई.

उन की तलाश में झज्जर, बेरी, दादरी, रिवाड़ी और बहादुरगढ़ में दबिशें दी गईं. पुलिस ने उन के मोबाइल नंबर हासिल कर के जांच शुरू कर दी. 22 नवंबर को पुलिस ने सुशीला के एक भाई सोनू को गिरफ्तार कर लिया. उस से पूछताछ की गई तो नफरत की जो कहानी निकल कर सामने आई, वह इस प्रकार थी—

दरअसल, सुशीला के अपनी मरजी से अंतरजातीय विवाह करने से पूरा परिवार खून का घूंट पी कर रह गया था. सोनू और मोनू को बहन के बारे में सोच कर लगता था कि उस ने उन की शान के खिलाफ कदम उठाया है. उन्हें सब से ज्यादा इस बात की तकलीफ थी कि सुशीला ने एक पिछड़ी जाति के लड़के से शादी की थी.

उन के दिलों में आग सुलग रही थी. मोनू आपराधिक प्रवृत्ति का था. उस की बुआ का बेटा हरीश भी आपराधिक प्रवृत्ति का था. हरीश पर हत्या का मुकदमा चल रहा था और वह जेल में था. समय अपनी गति से बीत रहा था. समाज में भी उन्हें समयसमय पर ताने सुनने को मिल रहे थे. जब भी सुशीला का जिक्र आता, उन का खून खौल उठता था.

मोनू ने मन ही मन ठान लिया था कि वह अपनी बहन को उस के किए की सजा दे कर रहेगा. उस के इरादों से परिवार वाले भी अंजान नहीं थे. जुलाई, 2016 में मोनू की बुआ का बेटा हरीश पैरोल पर जेल से बाहर आया तो वह मोनू का साथ देने को तैयार हो गया. मोनू लोगों के सामने धमकियां देता रहता था कि वह बहन को तो सजा देगा ही, प्रदीप से भी अपनी इज्जत का बदला ले कर रहेगा.

मोनू शातिर दिमाग था. वह योजनाबद्ध तरीके से वारदात को अंजाम देना चाहता था. उस ने छोटे भाई सोनू को सुशीला के घर भेजना शुरू कर दिया. इस के पीछे उस का मकसद यह जानना था कि वे लोग कहांकहां सोते हैं, कोई हथियार आदि तो नहीं रखते. इस बीच जबजब सुशीला को पता चलता कि मोनू प्रदीप और उस के घर वालों को मारने की धमकी दे रहा है, वह परेशान हो उठती थी.

मोनू का भाई सोनू और पिता भी इस खतरनाक योजना में शामिल थे. जब मोनू पहली प्लानिंग में कामयाब हो गया तो उस ने वारदात को अंजाम देने की ठान ली. हरीश के साथ मिल कर उस ने देशी हथियारों के साथ एक कार का इंतजाम किया. इस के बाद वह कार से अपने साथियों के साथ रात में सुशीला के घर जा पहुंचा और वारदात को अंजाम दे कर फरार हो गया.

एक दिन बाद पुलिस ने सुशीला के षडयंत्रकारी पिता ओमप्रकाश को गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ के बाद दोनों आरोपियों को पुलिस ने अदालत में पेश कर के न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया. इस बीच खरखौदा थाने का चार्ज इंसपेक्टर प्रदीप के सुपुर्द कर दिया गया. वह मुख्य आरोपी मोनू की तलाश में जुटे हैं.

सुशीला ने सोचा भी नहीं था कि उसे प्यार करने की इतनी बड़ी सजा मिलेगी. ओमप्रकाश और उस के बेटे ने सुशीला के विवाह को अपनी झूठी शान से न जोड़ा होता तो शायद ऐसी नौबत न आती. सुशीला का सुहाग उजाड़ कर वे सलाखों के पीछे पहुंच गए हैं. कथा लिखे जाने तक आरोपियों की जमानत नहीं हो सकी थी और पुलिस मोनू और उस के अन्य साथियों की सरगर्मी से तलाश कर रही थी.

अनोखा बदला : निर्मला ने कैसे लिया बहन और प्रेमी से बदला

निर्मला से सट कर बैठा संतोष अपनी उंगली से उस की नंगी बांह पर रेखाएं खींचने लगा, तो वह कसमसा उठी. जिंदगी में पहली बार उस ने किसी मर्द की इतनी प्यार भरी छुअन महसूस की थी.

निर्मला की इच्छा हुई कि संतोष उसे अपनी बांहों में भर कर इतनी जोर से भींचे कि…

निर्मला के मन की बात समझ कर संतोष की आंखों में चमक आ गई. उस के हाथ निर्मला की नंगी बांहों पर फिसलते हुए गले तक पहुंच गए, फिर ब्लाउज से झांकती गोलाइयों तक.

तभी बाहर से आवाज सुनाई पड़ी, ‘‘दीदी, चाय बन गई है…’’

संतोष हड़बड़ा कर निर्मला से अलग हो गया, जिस का चेहरा एकदम तमतमा उठा था, लेकिन मजबूरी में वह होंठ काट कर रह गई.

नीचे वाले कमरे में छोटी बहन उषा ने नाश्ता लगा रखा था. चायनाश्ता करने के बाद संतोष ने उठते हुए कहा, ‘‘अब चलूं… इजाजत है? कल आऊंगा, तब खाना खाऊंगा… कोई बढि़या सी चीज बनाना. आज बहुत जरूरी काम है, इसलिए जाना पड़ेगा…’’

‘‘अच्छा, 5 मिनट तो रुको…’’ उषा ने बरतन समेटते हुए कहा, ‘‘मुझे अपनी एक सहेली से नोट्स लेने हैं. रास्ते में छोड़ देना. मैं बस 5 मिनट में तैयार हो कर आती हूं.’’

उषा थोड़ी देर में कपड़े बदल कर आ गई. संतोष उसे अपनी मोटरसाइकिल पर बैठा कर चला गया.

उधर निर्मला कमरे में बिस्तर पर गिर पड़ी और प्यास अधूरी रह जाने से तड़पने लगी.

निर्मला की आंखों के आगे एक बार फिर संतोष का चेहरा तैर उठा. उस ने झपट कर दरवाजा बंद कर दिया और बिस्तर पर गिर कर मछली की तरह छटपटाने लगी.

निर्मला को पहली बार अपनी बहन उषा और मां पर गुस्सा आया. मां चायनाश्ता बनाने में थोड़ी देर और लगा देतीं, तो उन का क्या बिगड़ जाता. उषा कुछ देर उसे और न बुलाती, तो निर्मला को वह सबकुछ जरूर मिल जाता, जिस के लिए वह कब से तरस रही थी.

जब पिता की मौत हुई थी, तब निर्मला 22 साल की थी. उस से बड़ी कोई और औलाद न होने के चलते बीमार मां और छोटी बहन उषा को पालने की जिम्मेदारी बिना कहे ही उस के कंधे पर आ पड़ी थी.

निर्मला को एक प्राइवेट फर्म में अच्छी सी नौकरी भी मिल गई थी. उस समय उषा 10वीं जमात के इम्तिहान दे चुकी थी, लेकिन उस ने धीरेधीरे आगे पढ़ कर बीए में दाखिला लेते समय निर्मला से कहा था, ‘‘दीदी, मां की दवा में बड़ा पैसा खर्च हो रहा है. तुम अकेले कितना बोझ उठाओगी…

‘‘मैं सोच रही हूं कि 2-4 ट्यूशन कर लूं, तो 2-3 हजार रुपए बड़े आराम से निकल जाएंगे, जिस से मेरी पढ़ाई के खर्च में मदद हो जाएगी.’’

‘‘तुझे पढ़ाई के खर्च की चिंता क्यों हो रही है? मैं कमा रही हूं न… बस, तू पढ़ती जा,’’ निर्मला बोली थी.

अब निर्मला 30 साल की होने वाली है. 1-2 साल में उषा भी पढ़लिख कर ससुराल चली जाएगी, तो अकेलापन पहाड़ बन जाएगा.

लेकिन एक दिन अचानक मौका हाथ आ लगा था, तो निर्मला की सोई इच्छाएं अंगड़ाई ले कर जाग उठी थीं.

उस दिन दफ्तर में काम निबटाने के बाद सब चले गए थे. निर्मला देर तक बैठी कागजों को चैक करती रही थी. संतोष उस की मदद कर रहा था. आखिरकार रात के 10 बजे फाइल समेट कर वह उठी, तो संतोष ने हंस कर कहा था, ‘‘इस समय तो आटोरिकशा या टैक्सी भी नहीं मिलेगी, इसलिए मैं आप को मोटरसाइकिल से घर तक छोड़ देता हूं.’’

निर्मला ने कहा था, ‘‘ओह… एडवांस में शुक्रिया?’’

निर्मला को उस के घर के सामने उतार कर संतोष फिर मोटरसाइकिल स्टार्ट करने लगा, तो उस ने हाथ बढ़ा कर हैंडल थाम लिया और कहने लगी, ‘‘ऐसे कैसे जाएंगे… घर तक आए हैं, तो कम से कम एक कप चाय…’’

‘‘हां, चाय चलेगी, वरना घर जा कर भूखे पेट ही सोना पड़ेगा. रात भी काफी हो गई है. मैं जिस होटल में खाना खाता हूं, अब तो वह भी बंद हो चुका होगा.’’

‘‘आप होटल में खाते हैं?’’

‘‘और कहां खाऊंगा?’’

‘‘क्यों? आप के घर वाले?’’

‘‘मेरा कोई नहीं है. मैं मांबाप की एकलौती औलाद था. वे दोनों भी बहुत कम उम्र में ही मेरा साथ छोड़ गए, तब से मैं अकेला जिंदगी काट रहा हूं.’’

संतोष ने बहुत मना किया, लेकिन निर्मला नहीं मानी थी. उस ने जबरदस्ती संतोष को घर पर ही खाना खिलाया था.

अगले दिन शाम के 5 बजे निर्मला को देख कर मोटरसाइकिल का इंजन स्टार्ट करते हुए संतोष ने कहा था, ‘‘आइए… बैठिए.’’

निर्मला ने बिना कुछ बोले ही पीछे की सीट पर बैठ कर उस के कंधे पर हाथ रख दिया था. घर पहुंच कर उस ने फिर चाय पीने की गुजारिश की, तो संतोष ने 1-2 बार मना किया, लेकिन निर्मला उसे घर के अंदर खींच कर ले गई थी.

इस के बाद रोज का यही सिलसिला हो गया. संतोष को निर्मला के घर आने या रुकने के लिए कहने की जरूरत नहीं पड़ती थी, खासतौर से छुट्टी वाले दिन तो वह निर्मला के घर पड़ा रहता था. सब ने उसे भी जैसे परिवार का एक सदस्य मान लिया था.

एक दिन अचानक निर्मला का सपना टूट गया. उस दिन उषा अपनी सहेली के यहां गई थी. दूसरे दिन उस का इम्तिहान था, इसलिए वह घर पर बोल गई थी कि रातभर सहेली के साथ ही पढ़ेगी, फिर सवेरे उधर से ही इम्तिहान देने यूनिवर्सिटी चली जाएगी.

उस दिन भी संतोष निर्मला के साथ ही उस के घर आया था और खाना खा कर रात के तकरीबन 10 बजे वापस चला गया था.

उस के जाने के बाद निर्मला बाहर वाला दरवाजा बंद कर के अपने कमरे में लौट रही थी, तभी मां ने टोक दिया, ‘‘बेटी, तुझ से कुछ जरूरी बात करनी है.’’

निर्मला का मन धड़क उठा. मां के पास बैठ कर आंखें चुराते हुए उस ने पूछा, ‘‘क्या बात है मां?’’

‘‘बेटी, संतोष कैसा लड़का है. वह तेरे ही दफ्तर में काम करता है… तू तो उसे अच्छी तरह जानती होगी.’’

निर्मला एकाएक कोई जवाब नहीं दे सकी.

मां ने कांपते हाथों से निर्मला का सिर सहलाते हुए कहा, ‘‘मैं तेरे मन का दुख समझती हूं बेटी, लेकिन इज्जत से बढ़ कर कुछ नहीं होता, अब पानी सिर से ऊपर जा रहा है, इसलिए…’’

निर्मला एकदम तिलमिला उठी. वह घबरा कर बोली, ‘‘ऐसा क्यों कहती हो मां? क्या तुम ने कभी कुछ देखा है?’’

‘‘हां बेटी, देखा है, तभी तो कह रही हूं. कल जब तू बाजार गई थी, तब दो घड़ी के लिए संतोष आया था. वह उषा के साथ कमरे में था.

‘‘मैं भी उन के साथ बातचीत करने के लिए वहां पहुंची, लेकिन दरवाजे पर पहुंचते ही मैं ने उन दोनों को जिस हालत में देखा…’’

निर्मला चिल्ला पड़ी, ‘‘मां…’’ और वह उठ कर अपने कमरे की ओर भाग गई.

निर्मला के कानों में मां की बातें गूंज रही थीं. उसे विश्वास नहीं हुआ. मां को जरूर धोखा हो गया है. ऐसा कभी नहीं हो सकता. लेकिन यही हो रहा था.

अगले दिन निर्मला दफ्तर गई जरूर, लेकिन उस का किसी काम में मन नहीं लगा. थोड़ी देर बाद ही वह सीट से उठी. उसे जाते देख संतोष ने पूछा, ‘‘क्या हुआ? तबीयत ठीक नहीं है क्या?’’

निर्मला ने भर्राई आवाज में कहा, ‘‘मेरी एक खास सहेली बीमार है. मैं उसे ही देखने जा रही हूं.’’

‘‘कितनी देर में लौटोगी?’’

‘‘मैं उधर से ही घर चली जाऊंगी.’’

बहाना बना कर निर्मला जल्दी से बाहर निकल आई. आटोरिकशा कर के वह सीधे घर पहुंची. मां दवा खा कर सो रही थीं. उषा शायद अपने कमरे में पढ़ाई कर रही थी. बाहर का दरवाजा अंदर से बंद नहीं था. इस लापरवाही पर उसे गुस्सा तो आया, लेकिन बिना कुछ बोले चुपचाप दरवाजा बंद कर के वह ऊपर अपने कमरे में चली गई.

इस के आधे घंटे बाद ही बाहर मोटरसाइकिल के रुकने की आवाज सुनाई पड़ी. निर्मला को समझते देर नहीं लगी कि जरूर संतोष आया होगा.

निर्मला कब तक अपने को रोकती. आखिर नहीं रहा गया, तो वह दबे पैर सीढि़यां उतर कर नीचे पहुंची. मां सो रही थीं.

वह बिना आहट किए उषा के कमरे के सामने जा कर खड़ी हो गई और दरवाजे की एक दरार से आंख सटा कर झांकने लगी. भीतर संतोष और उषा दोनों एकदूसरे में डूबे हुए थे.

उषा ने इठलाते हुए कहा, ‘‘छोड़ो मुझे… कभी तो इतना प्यार दिखाते हो और कभी ऐसे बन जाते हो, जैसे मुझे पहचानते नहीं.’’

संतोष ने उषा को प्यार जताते हुए कहा, ‘‘वह तो तुम्हारी दीदी के सामने मुझे दिखावा करना पड़ता है.’’

उषा ने हंस कर कहा, ‘‘बेचारी दीदी, कितनी सीधी हैं… सोचती होंगी कि तुम उन के पीछे दीवाने हो.’’

संतोष उषा को प्यार करता हुआ बोला, ‘‘दीवाना तो हूं, लेकिन उन का नहीं तुम्हारा…’’

कुछ पल के बाद वे दोनों वासना के सागर में डूबनेउतराने लगे. निर्मला होंठों पर दांत गड़ाए अंदर का नजारा देखती रही… फिर एकाएक उस की आंखों में बदले की भावना कौंध उठी. उस ने दरवाजा थपथपाते हुए पूछा, ‘‘संतोष आए हैं क्या? चाय बनाने जा रही हूं…’’

संतोष उठने को हुआ, तो उषा ने उसे भींच लिया, ‘‘रुको संतोष… तुम्हें मेरी कसम…’’

‘‘पागल हो गई हो. दरवाजे पर तुम्हारी दीदी खड़ी हैं…’’ और संतोष जबरदस्ती उठ कर कपड़े पहनने लगा.

उस समय उषा की आंखों में प्यार का एहसास देख कर एक पल के लिए निर्मला को अपना सारा दुख याद आया.

मां के कमरे के सामने नींद की गोलियां रखी थीं. उन्हें समेट कर निर्मला रसोईघर में चली गई. चाय छानने के बाद वह एक कप में ढेर सारी नींद की गोलियां डाल कर चम्मच से हिलाती रही, फिर ट्रे में उठाए हुए बाहर निकल आई.

संतोष ने चाय पी कर उठते हुए आंखें चुरा कर कहा, ‘‘मुझे बहुत तेज नींद आ रही है. अब चलता हूं, फिर मुलाकात होगी.’’

इतना कह कर संतोष बाहर निकला और मोटरसाइकिल स्टार्ट कर के घर के लिए चला गया.

दूसरे दिन अखबारों में एक खबर छपी थी, ‘कल मोटरसाइकिल पेड़ से टकरा जाने से एक नौजवान की दर्दनाक मौत हो गई. उस की जेब में मिले पहचानपत्रों से पता चला कि संतोष नाम का वह नौजवान एक प्राइवेट कंपनी में काम करता था’.

सहेली की साजिश में फंसी सिंगर वैशाली

पार नामक नदी के पास से सुबह के समय गुजर रहे लोगों की नजर नदी के किनारे खड़ी एक कार पर पड़ी.

सुनसान जगह पर लावारिस हालत में कार खड़ी होने पर लोगों को अजीब सा लगा. कार के आसपास भी कोई दिखाई नहीं दिया. उत्सुकतावश जब लोग कार के पास पहुंचे तो उन की आंखें फटी रह गईं.

कार की पिछली सीट पर एक महिला की लाश पड़ी थी. लाश देखते ही लोगों द्वारा पुलिस को फोन कर कार में लाश पड़ी होने की जानकारी दी गई.

सूचना मिलते ही गुजरात के जिला वलसाड के थाना पारदी की पुलिस घटनास्थल पर पहुंच गई. यह नदी गुजरात के वलसाड शहर के पारदी इलाके में स्थित है. यह बात 28 अगस्त, 2022 की है.

पुलिस ने घटनास्थल पर पहुंच कर निरीक्षण किया. कार और महिला की लाश की हालत देख कर पुलिस को यह समझते देर नहीं लगी कि मामला हत्या का है. महिला की उम्र 32-33 साल के आसपास थी. उस के गले पर निशान देखने से ऐसा लग रहा था कि महिला की गला दबा कर हत्या की गई है.

उस की चप्पलें ड्राइविंग सीट के नीचे पड़ी थीं. जबकि लाश कार की पिछली सीट पर जिस हालत में थी, उस से लग रहा था कि महिला को जबरन खींच कर पिछली सीट पर लिटा कर उस का गला दबाया गया है.

महिला के शरीर पर चोट का कोई निशान नहीं था. उस के कपड़े भी अस्तव्यस्त नहीं थे और अपना बचाव करने के भी कोई सबूत दिखाई नहीं दे रहे थे. इतना जरूर था कि महिला की ब्लू कलर की मारुति बलेनो कार की चाबी, उस का  मोबाइल  व अन्य सामान गायब था.

पुलिस यह नहीं समझ पा रही थी कि जब महिला का गला दबाया गया, तब उस ने हत्यारों से संघर्ष क्यों नहीं किया? हत्यारों का पता लगाने के लिए सब से पहले मरने वाली महिला की शिनाख्त होनी जरूरी थी.

तब कार के नंबर से कार मालिक का पता करने का प्रयास किया गया, वहीं पुलिस ने ऐसी किसी महिला की गुमशुदगी के संबंध में भी पता करना शुरू किया.

हरेश ने की पत्नी की लाश की शिनाख्त

संयोग से बीती 27 अगस्त की शाम को ही वलसाड के ही रहने वाले हरेश बलसारा ने थाने में अपनी पत्नी और प्रसिद्ध गरबा सिंगर वैशाली बलसारा की गुमशुदगी दर्ज कराई थी. इस पर पुलिस ने हरेश बलसारा से संपर्क किया.

अपनी कार और पत्नी की लाश को देखते ही हरेश फूटफूट कर रोने लगा. उस ने बताया कि लाश उस की पत्नी वैशाली बलसारा की है. हरेश ने पुलिस को बताया कि उस की 34 वर्षीय पत्नी वैशाली बलसारा 27 अगस्त, 2022 की शाम को किसी से मिलने की बात कह कार से अकेली निकली थी.

देर शाम जब वह लौट कर नहीं आई और न उस का कोई फोन आया, तब उसे फोन किया. लेकिन उस का मोबाइल फोन स्विच्ड औफ था.

काफी देर तक जब फोन नहीं मिला तो वह घबरा गया. उस ने पत्नी के बारे में परिचितों से पूछताछ के साथ ही स्वयं भी तलाश की. लेकिन हर ओर से निराशा मिलने के बाद उस ने थाने में गुमशुदगी दर्ज कराई थी.

घटना की जानकारी मिलते ही वलसाड के एसपी डा. राजदीप सिंह झाला व डीएसपी  वी.एन. पटेल सहित अनेक वरिष्ठ अधिकारी मौके पर पहुंच गए. डौग स्क्वायड और फोरैंसिक टीम की भी मदद ली गई.

लाश की शिनाख्त हो जाने पर पुलिस ने मौके की काररवाई निपटाने के बाद पोस्टमार्टम के लिए वैशाली का शव सूरत भेज दिया. फोरैंसिक टीम ने घटनास्थल से जरूरी सबूत जुटाए.

अब यह बात स्पष्ट हो गई थी कि मृतका वैशाली बलसारा है. पुलिस के सामने अब यह प्रश्न था कि वैशाली की किसी से क्या कोई दुश्मनी थी? या उस की शोहरत से किसी को जलन थी? वैशाली की हत्या कैसे, क्यों और किस ने की?

हत्या के संबंध में पुलिस पूछताछ में हरेश ने बताया कि जाते समय वैशाली बलसारा ने किसी से मिलने जाने और कुछ देर में लौट आने की बात कही थी. इस से ज्यादा वह कुछ नहीं बता पाया.

गरबा गुजरात का एक प्रसिद्ध डांस है. गरबा की धुन ही अलग और गाने भी बेहद खास होते हैं. इस में डांडिया ले कर लोग डांस करते हैं. इसी गरबा की जानीमानी, बेहद खूबसूरत, गुजरात के वलसाड की रहने वाली लोक गायिका वैशाली बलसारा की पहचान हो जाने के बाद पता चला कि मृतका वैशाली जहां मशहूर गरबा सिंगर थी, वहीं उस का पति हरेश बलसारा म्यूजिशियन था. वह कार्यक्रमों में गिटार बजाता था.

दोनों ही संगीत की दुनिया के लिए जानापहचाना चेहरा थे. वे गुजरात, मुंबई के अलावा विदेशों में भी शो करते थे. मशहूर गरबा सिंगर की हत्या की खबर मिलते ही वलसाड में सनसनी फैल गई.

पुलिस की 6 टीमें जुटीं जांच में

पोस्टमार्टम रिपोर्ट से भी स्पष्ट हो गया था कि वैशाली की हत्या उस की गला दबा कर की गई थी. हत्यारों का उद्देश्य केवल वैशाली की हत्या करना था. यदि हत्यारे चाहते तो कार भी ले जा सकते थे.

अब सवाल यह था कि वैशाली का कत्ल क्यों किया गया? क्या वैशाली की प्रौपर्टी के लिए हत्या की गई या कोई अन्य कारण था?

पुलिस ने जांच का काम शुरू किया. हत्या के खुलासे के लिए पुलिस की 6 टीमें बनाई गईं. सब से पहले पतिपत्नी के संबंधों के बारे में जानकारी जुटाई. हरेश और वैशाली की शादी साल 2011 में हुई थी. दोनों की एक बेटी भी है. जबकि हरेश बलसारा के पहली पत्नी से भी एक बेटी थी.

इस समय हरेश और वैशाली अपनी दोनों बेटियों और मातापिता के साथ रहते थे. परिवार में किसी तरह की कोई समस्या नहीं थी. पुलिस को इस बात का यकीन हो गया था कि मृतका का पति हरेश पुलिस से झूठ नहीं बोल रहा और न कोई बात छिपा रहा है.

अब वैशाली के कत्ल में पुलिस ने गहराई से जांच का काम शुरू किया. कातिल का पता लगाने के लिए पुलिस ने आसपास के सीसीटीवी कैमरों को खंगालना शुरू किया.

वैशाली की सहेली बबीता से की पूछताछ

पुलिस ने अनेक लोगों से पूछताछ की. करीब 100 से अधिक सीसीटीवी कैमरों की फुटेज की जांच की. इस जांच के बाद पुलिस को एक बड़ा सुराग मिला. इस से यह भी पता चला कि आखिरी बार जिंदा रहते हुए वैशाली को एक महिला दोस्त बबीता कौशिक के साथ देखा गया था. अब पुलिस ने बबीता की काल डिटेल्स निकाली. उस की काल डिटेल्स भी चैक की. इस से यह स्पष्ट हो गया कि जब वैशाली की हत्या हुई, तब उस के

साथ बबीता भी थी. यानी हत्या की वह चश्मदीद थी.

बबीता के बारे में पुलिस ने जानकारी जुटाई. पुलिस को पता चला कि बबीता इस समय 8 माह से अधिक की गर्भवती है. ऐसे में मानवीय पहलू को देखते हुए उस से पूछताछ करना बेहद ही मुशकिल था.

पुलिस के सामने यह चुनौती भी थी कि बबीता से पूछताछ के दौरान यदि स्वास्थ्य संबंधी कोई परेशानी हो गई तो उस के गर्भ में पल रहे बच्चे को भी नुकसान हो सकता था. बबीता के 10 साल का एक बेटा भी है.

ऐसे में पुलिस ने सभी बातों का ध्यान रखते हुए एक नई और अनोखी तरकीब निकाली. पुलिस ने सब से पहले डाक्टरों की एक टीम बनाई. फिर बबीता के घर जा कर पुलिस ने उसे बताया, ‘‘आप की दोस्त वैशाली बलसारा की हत्या हो गई है. जांच में पाया गया है कि आखिरी बार वैशाली की आप से बात हुई थी, इसलिए आप से इस संबंध में कुछ जानकारी करना चाहते हैं ताकि आप की दोस्त के हत्यारों को शीघ्र पकड़ा जा सके.’’

इस के साथ ही पुलिस ने बबीता को डाक्टरों से भी मिलवाया ताकि उसे यह न लगे कि उसे किसी तरह की परेशानी होगी. इस तरह बबीता को भी पुलिस पर भरोसा हो गया.

बबीता के पूरी तरह आश्वस्त हो जाने के बाद पुलिस ने पूछा, ‘‘आखिरी बार जब आप वैशाली से मिलीं तो आप को कोई संदिग्ध नजर आया था?’’

तब बबीता ने पुलिस को उलझाने का प्रयास किया. इसलिए झूठ बोलते हुए कहा, ‘‘हां, आखिरी बार जब मैं मिली थी तो वैशाली के साथ 2 और लोग भी थे. जिन में एक को वह सामने आने पर पहचान सकती है.’’

पुलिस ने झूठ बोल कर उगलवाया सच

इस पर पुलिस ने कुछ संदिग्ध लोगों के सीसीटीवी फुटेज दिखाए. इस के अलावा भी कुछ संदिग्धों के फोटो दिखाए. ये फोटो उन लोगों के थे, जिन का वैशाली मर्डर केस से दूरदूर तक कोई लेनादेना नहीं था.

लेकिन पुलिस के इस जाल में बबीता फंस गई. उस ने उन दिखाए हुए फोटो में से एक को पहचान लिया. फिर पूरे यकीन के साथ पुलिस को बताया कि यही वह संदिग्ध व्यक्ति था, जिसे आखिरी बार वैशाली के साथ उस ने देखा था.

इस प्रकार पुलिस का शक यकीन में बदल गया कि बबीता झूठ बोल रही है और वैशाली के कत्ल में बबीता का ही हाथ है. इस के बाद महिला पुलिसकर्मियों ने समझाते हुए उस से गहराई से पूछताछ की. तब रहस्यों में लिपटी गरबा सिंगर वैशाली के कत्ल की कहानी उजागर हुई.

जुर्म करने के बाद हर अपराधी झूठ बोलता है. लेकिन पुलिस ने ही जब कातिल से झूठ बोल कर उसे अपने बुने हुए जाल में फांस लिया तो कातिल ने कत्ल की पूरी सच्चाई उगल दी.

असल में मर्डर की यह पूरी कहानी 25 लाख रुपए से शुरू होती है. बबीता और वैशाली दोनों दोस्त थीं. उन की दोस्ती 2 साल पुरानी ही थी. वैशाली से बबीता ने ब्याज पर कई बार में 25 लाख रुपए उधार लिए थे. लेकिन अब बबीता उधार लिए गए रुपयों को लौटा नहीं पा रही थी. जबकि वैशाली अपने पैसों के लिए बारबार उस से तकादा कर रही थी. घटना से एक सप्ताह पहले भी वैशाली ने पैसे लौटाने के लिए बबीता पर दबाव बनाया था.

बबीता की हो गई नीयत खराब

इस पर परेशान हो कर बबीता ने फेसबुक के जरिए 2 सुपारी किलर्स से संपर्क किया. हत्या के लिए 10 लाख रुपयों की मांग की गई. बातचीत के बाद 8 लाख रुपए में वैशाली की हत्या करने की बात तय हो गई.

इस के बाद बबीता ने 27 अगस्त, 2022 को वैशाली से बात की. उस ने वैशाली से कहा, ‘‘इस समय मेरे पास 8 लाख रुपए हैं.’’

उस ने उधार दिए गए रुपए वापस देने के लिए उसे पुरानी और बंद पड़ी हीरे की फैक्ट्री के पास आने के लिए कहा.

चालाकी दिखाते हुए बबीता खुद उस दिन अपनी कार के बजाय स्कूटी ले कर घर से निकली. उस ने अपनी स्कूटी फैक्ट्री से करीब 2 किलोमीटर दूर ही खड़ी कर दी. इस के बाद आटो ले कर वह उस जगह पहुंची, जहां उस ने वैशाली को रुपए लेने के लिए बुलाया था. यहां पहले से ही बबीता के बुलाए सुपारी किलर छिपे हुए थे.

बबीता हत्यारों के साथ वैशाली का बेसब्री से इंतजार कर रही थी. बबीता को देख कर वैशाली ने कार को बबीता के पास रोका. कार रुकते ही बबीता और उस का एक साथी कार में बैठ गए.

कार में बैठेबैठे ही बबीता ने वैशाली से कहा, ‘‘बहन, पूरे रुपए का इंतजाम तो अभी नहीं हो पाया है. केवल 8 लाख रुपए ही लाई हूं. शेष रुपए भी जल्दी ही दे दूंगी.’’

बबीता अपने साथ रुपए एक बैग में ले कर आई थी. उस ने वैशाली को बताया कि वह अपने साथ भाई को लाई है. उस ने रुपयों का बैग वैशाली को थमाते हुए कहा कि गिन लो पूरे 8 लाख रुपए हैं.

इसी के साथ बबीता ड्राइविंग सीट के बगल में जबकि उस का कथित भाई पीछे की सीट पर बैठ गए. जबकि एक साथी पहरेदारी करता रहा. इसी बीच पीछे बैठे सुपारी किलर ने वैशाली की नाक पर क्लोरोफार्म लगा रुमाल रख दिया, जिस से वह बेहोश हो गई. फिर बेहोश वैशाली का अंगोछे से गला घोट दिया, जिस से उस की मौत हो गई.

इस के बाद अपने साथी की मदद से उस की लाश को कार की पिछली सीट पर लिटा दिया ताकि देखने वालों को लगे कि तबियत खराब होने से वैशाली की मौत हो गई है.

फिर बबीता ने वे 8 लाख रुपए दोनों बदमाशों को दे दिए. हत्या करने के बाद वे सभी लोग वहां से चले गए.

काश! पति से न छिपाया होता राज

वैशाली बलसारा के पति हरेश को इस बात की जानकारी नहीं थी कि उस की पत्नी ने अपनी महिला दोस्त बबीता को 25 लाख रुपए उधार दिए थे. वैशाली ने अपने पति को बिना बताए बबीता को रुपए दिए थे, इस के चलते वह कहां और क्यों जा रही है, यह बात उस दिन अपने पति से छिपाई, जो उस की हत्या का कारण बनी.

बबीता से हुई पूछताछ में कई राज परत दर परत खुलते चले गए. बबीता के जानकारी देने पर पुलिस की एक टीम ने पंजाब के लुधियाना जिले के बिसिया गांव से वहां के रहने वाले सुखविंदर सिंह उर्फ सुखा भटिनी नाम के सुपारी किलर को गिरफ्तार कर लिया. पुलिस उसे वलसाड ले लाई.

गिरफ्तार आरोपी सुखा ने पुलिस को हत्या की पूरी सच्चाई बताई. बताया कि घटना से सप्ताह भर पहले ही बबीता ने हत्या का फैसला लिया था. उस ने हम लोगों से संपर्क किया. घटना से एक दिन पहले पंजाब से हम लोग ट्रेन से सूरत आए और एक होटल में रुके.

अगले दिन वे ट्रेन से वलसाड पहुंचे, जहां बबीता उन्हें लेने आई थी. वहां सभी ने मिल कर वैशाली की हत्या की आखिरी साजिश रची. इस के बाद वैशाली को मारने के लिए जगह चुनी.

योजना के अनुसार बबीता ने रुपए देने के लिए वैशाली को फोन किया और उस जगह पर बुलाया. सुपारी किलर रिक्शे से मौके पर पहुंचे. उन के पहुंचने के बाद बबीता आटो से तथा कुछ देर बाद वैशाली कार से वहां पहुंची.

कार में वैशाली को क्लोरोफार्म सुंघा कर बेहोश करने के बाद हत्यारों ने उसे कार की पिछली सीट पर लिटा कर अंगोछे से उस का गला घोट दिया, जिस से उस की मौत हो गई.

पुलिस जांच में यह बात भी सामने आई कि हत्या से पहले बबीता ने सुपारी किलर्स को गुजरात में आने के लिए किराए के पैसे और सूरत के एक होटल में ठहरने के पैसे गूगलपे के जरिए दिए थे. पुलिस ने जांच के दौरान वैशाली की हत्या जिस अंगोछे से की गई थी, उसे भी बरामद कर लिया. वह सुखवीर का था.

11 साल से संपर्क में था कौन्ट्रैक्ट किलर

गुजरात की जानीमानी गायिका वैशाली हत्याकांड में वलसाड और पारदी पुलिस ने बड़ी सफलता हासिल करते हुए पंजाब के लुधियाना से सुपारी ले कर हत्या करने वाले आरोपी को गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस पूछताछ में इस किलर ने खुलासा किया कि वह और बबीता पिछले 11 सालों से सोशल मीडिया के जरिए संपर्क में थे. बबीता ने उस से संपर्क किया और यह झूठ बोल कर अपनी दोस्त वैशाली की हत्या कराई थी कि वैशाली की वजह से उस का पति से तलाक हो गया था. इस पर कौन्ट्रैक्ट किलर ने वैशाली की हत्या की सुपारी ले ली.

 

आरोपियों ने वैशाली की हत्या के बदले मिले रुपयों से मंहगी चीजें खरीदीं. इस के साथ ही हाथों पर महंगे टैटू भी बनवाए. यह भी खुलासा हुआ कि आरोपी लंबे समय से पंजाब में कोई काम नहीं कर रहे थे.

पुलिस ने इस अपराध के सभी सबूत ढूंढ लिए हैं. एक कहावत है कि पैसा इंसानी रिश्तों का कातिल है. आज के दौर में पैसों के लालच ने आदमी को ऐसा अंधा कर दिया है कि उसे कोई रिश्ता नजर ही नहीं आता है. यह एक ऐसी ही कहानी है, जिस में एक दोस्त ने अपनी दूसरी महिला दोस्त की सिर्फ इसलिए हत्या करा दी ताकि उसे उधार की रकम वापस नहीं करनी पड़े.

वलसाड जिला पुलिस ने राज्य के बाहर एक अभियान चला कर एक सुपारी किलर को गिरफ्तार कर लिया. जबकि एक अन्य सुपारी किलर की तलाश में जुटी थी.

गिरफ्तारी के बाद बच्ची को जन्म देने वाली वैशाली की हत्या की मास्टरमाइंड बबीता को न्यायालय ने एक माह की जमानत दे दी है. जमानत पूरी होने के बाद बबीता के खिलाफ कानूनी काररवाई की जाएगी.

नौकरी की भेट चढ़ा मासूम

शाम के 8 बज गए थे. राजस्थान के कोटा नगर निगम में अपनी रोजमर्रा की ड्यूटी पर तैनात इमरान अंसारी के पास पत्नी अंजुम का फोन आया. अंजुम उस समय बुरी तरह हड़बड़ाई हुई थी. कांपतीलरजती हुई आवाज में उस ने बताया, ‘‘अबीर कहीं नहीं मिल रहा है.’’

डेढ़ वर्षीय अबीर इमरान का इकलौता बेटा था. बेहद खूबसूरत और चंचल अबीर पूरे परिवार का ही नहीं पूरे मोहल्ले का भी दुलारा था.

अंजुम ने अपनी सफाई देते हुए कहा, ‘‘मैं बावर्चीखाने में खाना बना रही थी, अबीर उस समय नीचे कमरे में खेल रहा था. खाना पक गया तो मेरी तवज्जो उस की तरफ गई, लेकिन वह कहीं नजर नहीं आया. अपनी छत की तरफ गई, लेकिन वहां भी नहीं दिखा.

‘‘मम्मी की छत की मुंडेर पर खड़े हो कर मैं ने चौतरफा आवाज लगाई. लेकिन कोई जवाब नहीं. आसपड़ोस में भी देख आई, लेकिन कोई नहीं बता सका कि अबीर कहां है. अबीर की तो कहीं किलकारी तक नहीं सुनाई दी. जब कोई नतीजा नहीं निकला तो आप को फोन किया.’’ इस के साथ ही अंजुम फूटफूट कर रोने लगी.

इमरान ने बीवी को तसल्ली देते हुए  कहा, ‘‘इस तरह घबराओ मत. वो तो पूरे मोहल्ले का लाडला है, जरूर कोई घुमाने ले गया होगा.’’ इमरान ने अपने छोटे भाई का नाम लेते हुए कहा, ‘‘तुम ने जीशान भाई से पूछा.’’

अंजुम बिलख पड़ी, ‘‘मैं ने तो सब से पूछ लिया. जब कोई नतीजा नहीं निकला, तब कहीं जा कर आप को फोन किया.’’

अब तो इमरान का भी माथा ठनकने लगा. भला उस मासूम बच्चे का कौन दुश्मन हो सकता है? अपनी घबराहट पर काबू पाते हुए उस ने बीवी अंजुम को तसल्ली देते हुए कहा, ‘‘तुम परेशान मत होओ. बस, मैं आधे घंटे में पहुंच रहा हूं.’’

यह बात 25 अप्रैल, 2022 की है. बेटे को ले कर अंजुम फूटफूट कर रोने लगी.

उस के रोने की आवाज सुन कर पड़ोसी इकट्ठा हो गए. औरतों ने अंजुम को दिलासा दिलाई, ‘‘घबराओ मत, बच्चा मिल जाएगा.’’

उधर इमरान औफिस से सीधा घर पहुंचने के बजाय मोहल्ले में बच्चे को तलाश करने लगा. तभी पत्नी का फोन आया, अबीर अम्मी वाले मकान की छत पर रखी पानी की टंकी में मिल गया है.

हतप्रभ इमरान लपकता हुआ घर पहुंचा. बेटे को अंजुम की गोद में बेहोश पड़ा देख कर इमरान फफक पड़ा. बिलखते हुए वह अपने छोटे भाइयों शाकिर और इफ्तखार के साथ बेसुध बच्चे को ले कर जे.के. लोन अस्पताल की तरफ दौड़ा. लेकिन डाक्टरों ने बच्चे को मृत घोषित कर दिया.

लाडले की मौत से घरपरिवार और बस्ती में कोहराम मच गया. दहाड़ मारती पत्नी को संभालना इमरान के लिए मुश्किल हो गया. आखिरकार आंसुओं का सैलाब बहाते हुए परिवार के लोगों ने रात में ही बच्चे को कब्रिस्तान में दफना दिया.

कब्रिस्तान से घर लौटने के बाद परिवार के लोग एकजुट हो कर बैठे तो इस बात पर चर्चा होने लगी कि नन्हा बच्चा कैसे इतनी ऊंचाई पर रखी टंकी तक पहुंचा? फिर अबीर को जिस टंकी से बरामद किया गया है, उस का ढक्कन तो बंद था. आखिर माजरा क्या है?

अंजुम बुरी तरह फफक पड़ी कि जरूर किसी ने हमारे बच्चे की हत्या की है. घुटने पर चलने वाला अबीर सीढि़यां कैसे चढ़ गया? पानी की टंकी का ढक्कन बंद था तो कैसे खोला?

बात सोलह आने सच थी. ऐसा कौन करेगा, कहते हुए सभी के मुंह खुले के खुले रह गए.

बेटे की रहस्यमय और दर्दनाक मौत से पगलाए हुए इमरान की रात को पलक तक नहीं झपकी. भोर का झुटपुटा होते ही वह रामपुरा कोतवाली पहुंच कर एसएचओ हंसराज मीणा के पावों में गिर कर बिलख पड़ा, ‘‘साहब, मेरे मासूम बच्चे को पता नहीं किस ने मार डाला.’’

एसएचओ मीणा ने उसे दिलासा देते हुए कहा, ‘‘पूरी बात डिटेल में बताओ, कैसे क्या हुआ?’’

इमरान ने सुबकते हुए पूरी घटना उन्हें बता दी, ‘‘साहब, बीती शाम को कोई साढ़े 5 बजे, जिस वक्त मेरी बीवी अंजुम खाना पका रही थी, नीचे कमरे में खेलता हुआ हमारा डेढ़ साल का बेटा अबीर पता नहीं कहां निकल गया. बाद में घंटों की भागदौड़ में तलाश किया तो वह मेरी अम्मा के मकान की छत पर रखी पानी से भरी टंकी में मिला.

‘‘उसे ले कर हम फौरन अस्पताल पहुंचे, लेकिन डाक्टरों ने मृत घोषित कर दिया. अब यह अहम सवाल सामने आ रहा है कि घुटने पर चलने वाला बच्चा सीढि़यां कैसे चढ़ा? टंकी का ढक्कन बंद था, कैसे उसे खोला? बाद में किस ने ढक्कन बंद किया? इस से तो यही लगता है कि बच्चे की हत्या की गई है.’’

इमरान की बात सुन कर एसएचओ मीणा भी सकते में आ गए. उन्होंने कहा कि बच्चे की ऐसी खौफनाक मौत की वजह रंजिश के अलावा कुछ नहीं हो सकती. बच्चे को जिस दर्दनाक तरीके से मारा गया है, उस के पीछे कोई अदावत ही हो सकती है. उन्होंने उस से पूछा कि तुम्हारी किसी से कोई रंजिश तो नहीं है?

‘‘नहीं साहब, मेरी या मेरे परिवार की किसी से कोई भी अदावत नहीं है. यह काम तो कोई बददिमाग आदमी ही कर सकता है.’’  इमरान बोला.

घटना इस कदर दहलाने वाली थी कि आग की तरह पूरे शहर में फैल गई. नतीजतन पूरा शहर कोतवाली की तरफ उमड़ पड़ा. एडिशनल एसपी प्रवीण चंद जैन ने लोगों को समझाबुझा कर विश्वास दिलाया, ‘‘आप निश्चिंत रहें. अपराधी जो भी होगा, जल्दी ही कानून की गिरफ्त में होगा.’’

उन के विश्वास दिलाने पर आहिस्ताआहिस्ता भीड़ छंटने लगी. उधर पुलिस आईजी रविदत्त गौड़ के निर्देश पर एडिशनल एसपी प्रवीण चंद जैन की अगुवाई में मामले की पड़ताल के लिए एसएचओ हंसराज मीणा समेत एक दरजन पुलिसकर्मियों को एक टीम में शामिल किया गया.

आईजी के निर्देश पर मजिस्टै्रट बोर्ड का गठन किया गया. बोर्ड ने इमरान तथा उस के परिवार की सहमति पर अबीर का शव कब्रिस्तान से निकाल कर उस का पोस्टमार्टम करवाया.

पोस्टमार्टम की रिपोर्ट चौंकाने वाली थी. रिपोर्ट में कहा गया था कि बच्चे को टंकी के पानी में जबरन डुबोए रखा गया था. नतीजतन बच्चे ने छटपटाते हुए दम तोड़ा था. रिपोर्ट पढ़ कर पुलिस इस नतीजे पर पहुंची कि बच्चा किसी साजिश का शिकार हुआ है.

मामले की पड़ताल को ले कर पुलिस ने 3 बातों पर अपना ध्यान केंद्रित किया. पहला— वारदात के दिन घरपरिवार में महिलाओं और बच्चों के अलावा कोई मर्द नहीं था. दूसरा— किसी बाहरी शख्स की घर में आवाजाही तो कतई नहीं थी. तीसरा— कुछ अरसा पहले अबीर की चाची सोबिया ने गुस्से में बच्चे को बुरी तरह खरोंच दिया था. इस पर परिवार में भूचाल आ गया था. पूरे परिवार ने उस की लानतमलामत करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी.

अबीर भी इस घटना से इस कदर सहम गया था कि सोबिया के करीब जाने से भी डरता था. पुलिस को सुराग मिल गया था. लेकिन फिलहाल पुलिस घर वालों से पूछताछ करने से कतरा रही थी.

दरअसल, एक तरफ तो परिवार सदमे में था, दूसरी तरफ रमजान चल रहे थे. ऐसे में पुलिस के सामने दोहरी चुनौती खड़ी हो गई थी. किस से पूछताछ की जाए और सिलसिले की शुरुआत कैसे की जाए? जबकि दूसरी तरफ मीडिया का भी जबरदस्त दबाव था.

पुलिस ने मामले की तह तक पहुंचने के लिए बीच का रास्ता अपनाते हुए एक एएसआई और महिला पुलिसकर्मियों को सादा वेशभूषा में परिवार के लोगों की निगरानी में लगा दिया. पुलिस परिवार के हर सदस्य के तौरतरीकों पर नजर गड़ाए हुए थी.

इस दौरान अबीर की चाची सोबिया की गतिविधियों ने संदेह पैदा कर दिया. सोबिया घटना वाले दिन से लगातार सामने वाले मकान में रहने वाले 3 बच्चों से ज्यादा मिलजुल रही थी और घर में चल रही हलचल का ब्यौरा पूछ रही थी.

पुलिस ने बच्चों को बुला कर सोबिया से मिलने की वजह पूछी तो बच्चों के चेहरे फक पड़ गए. उन्होंने पलभर में सारा रहस्य उगल दिया. पुलिस के सामने सोबिया का चेहरा बेनकाब हो गया था. अफसरों ने जब सोबिया से सच उगलवाने के लिए पुलिसिया अंदाज अपनाया तो वह टूट गई और सब कुछ सच उगलने लगी.

सोबिया के मुंह से हत्याकांड का सच सुन कर पुलिस के पैरों तले से जैसे जमीन खिसक गई. डेढ़ वर्षीय मासूम बालक की निर्मम हत्या करने वाली एक महिला है और वह भी सगी चाची… यह सुन कर पुलिस अफसर भी हैरान रह गए. सोबिया द्वारा पुलिस को दिए गए बयान से कहानी इस प्रकार सामने आई—

राजस्थान के शहर कोटा के रामपुरा इलाके के आखिरी छोर पर लाडपुरा में एक मुसलिम बाहुल्य बस्ती है कर्बला. इसी बस्ती में शबाना मंजिल के पास इमरान अंसारी अपनी बीवी अंजुम और डेढ़ वर्षीय बेटे अबीर के साथ करीब 21 लोगों के कुनबे के बीच रहता था.

इमरान अंसारी कोटा नगर निगम में नौकरी करता था. उसे अपने अब्बू मुस्तकीम अहमद की मौत के बाद निगम में अनुकंपा के आधार पर नौकरी मिली थी. इमरान 9 भाइयों में सब से बड़ा था. उस से छोटे भाई का नाम जीशान अहमद था. पिता की विरासत में उस का भी बराबर का हक था.

हालांकि सभी भाइयों ने अब्बू की मौत के बाद इमरान के लिए नौकरी की रजामंदी दे दी थी. लेकिन दिली तौर पर जीशान चाहता था कि पिता के करीब वो ज्यादा था. इसलिए अब्बू की नौकरी पाने का पहला हकदार वह था.

जीशान अहमद की बीवी सोबिया इस बात से खफा थी और गाहेबगाहे अपने शौहर को उकसाती रहती थी कि इस तरह खामोश रहने से तुम्हें कुछ हासिल नहीं होने वाला.

आखिर बीवी की ख्वाहिशों ने जोर मारा तो जीशान भी उखड़ गया. बिफरते हुए उस ने कह दिया, ‘‘भाईजान, वालिद की खिदमत जिस तरह मैं ने की, उस के मद्देनजर उन की नौकरी का हकदार मैं हुआ. आप तो नाजायज रूप से इस पर काबिज हो गए.’’

इमरान जानता था कि जीशान गलत नहीं है. लेकिन निगम की आरामपसंद नौकरी और अच्छीखासी पगार का लालच उस के दिलोदिमाग पर पूरी तरह हावी हो चुका था. ऐसे में नौकरी के हाथ से निकल जाने की सोच भी उस के लिए गमजदा करने वाली थी.

इमरान यह भी जानता था कि जीशान दिमागी तौर पर ज्यादा तेजतर्रार नहीं है. लेकिन जिस तरह वो बदसलूकी पर आमादा है, उस के पीछे पूरी तरह उस की बीवी सोबिया की भड़काऊ कोशिशें हैं.

इमरान समझदार था. उस ने तनिक ठंडे दिमाग से काम लिया. उस ने पूरी तरह दरियादिली दिखाते हुए कहा, ‘ठीक है भाई, महज नौकरी के लिए भाइयों की मोहब्बत में फर्क नहीं आना चाहिए. लेकिन रजामंदी के कागज पर दस्तखतों के बाद ही मुझे नौकरी मिली है. अब नौकरी तुम्हारे नाम करवाने के लिए फिर सब कुछ नए सिरे से लिखनापढ़ना होगा. पता नहीं इस काररवाई में कितना वक्त लग जाए? अफसर इस से खफा भी हो सकते हैं, नतीजतन घरेलू झगड़े के मद्देनजर नौकरी खटाई में भी पड़ सकती है. फिर तो दोनों भाई खाली हाथ रह जाएंगे.’’

इमरान ने थोड़ी समझाइश करते हुए कहा, ‘‘ऐसा है भाई, मैं तुम्हें माली इमदाद करता रहूंगा और नौकरी भी घर में ही बनी रहेगी.’’ जीशान मान गया, लेकिन इमरान अपने वादे पर खरा नहीं उतरा.

अपने शौहर जीशान अहमद की नौकरी हजम करना और आर्थिक मदद के वादे से मुकरना सोबिया के दिल में कील की तरह चुभ गया. रंजिश के कोढ़ में खुजली तब पैदा हुई जब नौकरी और ऊपरी आमदनी ने इमरान और उस की बीवी अंजुम के रहनसहन और बरताव में भी तब्दीली पैदा कर दी.

कहते हैं कि औरत ही औरत की सब से बड़ी दुश्मन होती है. इस कहावत को अंजुम के सोबिया के प्रति नफरत के बरताव ने भी रंजिश के शोलों को हवा दी. परिवार में किसी भी मसले पर इमरान और अंजुम को अहमियत दी जाती थी, यह सोबिया के लिए बरदाश्त से बाहर हो गया था. उसे लगता था कि परिवार में उस की कद्र नहीं है.

उस के 2 बेटों की अपेक्षा इमरान के बेटे अबीर को जिस तरह हर किसी का प्यारदुलार मिलता था, वह उस की आंखों की किरकिरी बन गया था.

खुंदक की वजह से वह यह नहीं समझ पाती थी कि अबीर जितना मासूम और खूबसूरत लगता है, उस की वजह से वो हर किसी का लाडला था. एक दिन तो अबीर खेलते हुए उस के दुपट्टे को खींचने लगा तो सोबिया इस कदर गुस्साई कि उस ने अबीर को बुरी तरह नोचते हुए खून भी निकाल दिया.

सोबिया के लिए यह फितूर बड़ा महंगा पड़ा. नतीजतन पूरे परिवार ने उस की जबरदस्त लानतमलामत कर दी. सरेआम बेइज्जती का यह कड़वा घूंट सोबिया को बरदाश्त नहीं हुआ. इस घटना ने रंजिश के शोलों को भड़काने में जबरदस्त हवा दी और वह बदला लेने पर आमादा हो गई.

वह बखूबी जानती थी कि मां की ममता ऐसी होती है कि वह अपनी औलाद को जिगर का टुकड़ा मानती है और लख्तेजिगर को ही खत्म कर दिया जाए तो औरत एक तरह से ताउम्र के लिए लहूलुहान हो जाती है.

सोबिया अंजुम को ऐसा ही सबक सिखाना चाहती थी. नतीजतन उस ने अबीर को ही अपना निशाना बनाया. अबीर की हत्या का शक उस पर न हो, इसलिए उस ने पड़ोस के 3 बच्चों को अपनी योजना में शामिल किया. तीनों बच्चों का उस की योजना में शामिल होना उन की मजबूरी थी.

दरअसल, तीनों बच्चे गलत सोहबत की वजह से सोबिया के जाल में फंसे हुए थे. बच्चों की करतूतों की राजदार सोबिया ने बच्चों को डराते हुए कहा कि अगर तुम ने मेरी बात नहीं मानी तो तुम्हारे वालिदैन के सामने तुम्हारा सारा कच्चा चिट्ठा खोल दूंगी. इस कारण बच्चे पूरी तरह से सोबिया की मुट्ठी में थे.

पहले सोबिया ने अबीर को नदी में फेंक आने की योजना बनाई, लेकिन बच्चे इस में जोखिम बता कर बिदक गए. उन का कहना था कि बच्चे को नदी तक ले जाने में वे किसी की भी निगाह में आ सकते हैं.

बाद में उस ने अबीर को पानी की टंकी में डालने की योजना बनाई. उस ने इस के लिए सोमवार 25 अप्रैल, 2022 का दिन चुना. उस समय परिवार का कोई मर्द घर पर नहीं होता. उस ने सोमवार को दोपहर से शाम के बीच का वक्त चुना.

शाम को तकरीबन साढ़े 5 बजे अंजुम जब सामने वाले बड़े मकान में बनी रसोई में खाना बना रही थी और अबीर नीचे मकान में खेल रहा था. उसी दौरान उन 3 बच्चों में से एक अबीर को ले कर दूसरी मंजिल पर गया. वहां से 2 बच्चे भी उस के साथ हो लिए.

उन्होंने छत पर जा कर 500 लीटर की पानी की टंकी का ढक्कन खोल दिया. फिर डेढ़ साल के अबीर को टंकी में डाल दिया. वारदात के समय सोबिया सामने वाली छत पर खड़ी हो कर इशारों से उन्हें गाइड कर रही थी.

अबीर को पानी की टंकी में डालने के बाद बच्चे घबरा गए. एक बार तो उन्होंने अबीर को बाहर निकाल लिया, लेकिन सोबिया ने सामने वाली छत से इशारों में उन बच्चों को धमकाया. जिस से बच्चे डर गए और अबीर को फिर से पानी की टंकी में डाल दिया.

इस के बाद बच्चे नीचे आ गए. साबिया ने सामने वाले मकान से बड़े मकान में आ कर टंकी का ढक्कन चैक किया. वह पूरी तरह से नहीं लगा था. सोबिया ढंग से टंकी का ढक्कन लगा कर चली गई.

इस बीच जब मां अंजुम को अबीर नजर नहीं आया तो उस ने परिवार की औरतों के साथ उसे तलाशना शुरू किया. छत की 2 टंकियों को चैक किया. अबीर शाम को साढ़े 5 बजे करीब गायब हुआ था. रात को साढ़े 7 बजे के आसपास पानी की टंकी में उस का शव मिला.

पुलिस ने आईपीसी की धारा 302, 120बी के तहत सोबिया को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे न्यायिक अभिरक्षा में भेज दिया और तीनों बच्चों को पुलिस ने बेकुसूर मान कर छोड़ दिया.

अपने संगीन अपराध के बावजूद सोबिया के चेहरे पर शर्मिंदगी तक नहीं दिख रही थी. उस ने इस तर्क के साथ जमानत पर बाहर आने की कोशिश की कि मुझे झूठा फंसाया गया है. लेकिन उस का यह घिसा हुआ तर्क नहीं चला. सोबिया अभी न्यायिक अभिरक्षा में है. पुलिस उस के खिलाफ कोर्ट में आरोप पत्र दाखिल कर चुकी है.

 

क्या यही प्यार है

सुबह का आगाज होते ही ग्वालियर के निंबाजी की तंग गलियों में 20 जुलाई, 2022 को पुलिस सायरन की आवाज सुन कर लोग चौंक

गए. वे अपनेअपने घरों से निकल आए. देखते ही देखते घनी आबादी वाले इलाके में स्थित भंवर सिंह के घर के बाहर लोगों की भीड़ जुट गई. वहां कई पुलिसकर्मी भी मौजूद थे. भंवर सिंह की कुंवारी बेटी किरण की हत्या के बारे में सुन कर लोग सन्न रह गए थे. इस का उन्हें जरा भी विश्वास ही नहीं हो रहा था.

इस तरह की वारदात उन के इलाके में हुई, यह जान कर लोग आक्रोशित भी हो गए. हालांकि वे अपने गुस्से को दबाए हुए आपस में तरहतरह की बातें कर उस बारे में विस्तार से जानने की कोशिश कर रहे थे.

इस वारदात की सूचना पौ फटते ही जनकगंज थाने के एसएचओ आलोक परिहार को घर वालों ने ही दी थी. बिना देरी किए वह पुलिस टीम के साथ मौकाएवारदात पर पहुंच गए थे. पुलिस ने घटनास्थल और लाश का बारीकी से निरीक्षण किया. पाया कि मृतका किरण की हत्या हरे रंग के गमछे से गला घोट कर की गई थी.

गला घोटे जाने का निशान गले पर साफ नजर आ रहा था. किरण की लाश बैठक में फर्श पर पड़ी थी और उस के गले में गमछे का फंदा भी कसा था. किरण की उम्र करीब 20-21 साल के आसपास थी. वहीं टेबल पर प्लेट में नमकीन, बिसकुट और चाय रखी थी.

इस से पुलिस ने अनुमान लगाया कि हत्यारे से मृतका के मधुर संबंध रहे होंगे. तभी उस की आवभगत हुई होगी. किरण का घर जिस गली में था, वह काफी संकरी थी. सभी के घर एकदूसरे से जुड़े हुए थे. यदि किरण मदद के लिए शोर मचाती तो घर में मौजूद उस की बड़ी बहन की बेटी सोनिया और पासपड़ोस में रहने वाले लोग अवश्य उस की मदद के लिए दौड़ पड़ते.

एसएचओ आलोक परिहार ने इस हत्या की गुत्थी सुलझाने के सिलसिले में कई बिंदुओं पर गौर किया. जैसे, घर का सारा कीमती सामान सुरक्षित था. अलमारियों में ताले जस के तस लगे थे. घर में लूटपाट का कहीं कोई निशान नजर नहीं आ रहा था.

इस से यह बात स्पष्ट था कि हत्या लूटपाट के लिए कतई नहीं की गई थी. इन्हीं वजहों से पुलिस का ध्यान करीबी लोगों पर गया. पुलिस ने मृतक के पड़ोसी के घर पर लगे सीसीटीवी कैमरे के फुटेज की जांच शुरू की.

सीसीटीवी फुटेज में एक युवक मुंह पर गमछा बांधे भंवर सिंह के घर में दाखिल होता दिखाई दिया. वही जब 15 मिनट बाद घर से वापस बाहर निकला, तब उस के मुंह पर गमछा नहीं बंधा था. उस का चेहरा स्पष्ट दिखाई दिया. एसएचओ परिहार ने इसे भंवर सिंह को दिखा कर उस युवक के बारे में पूछा. भंवर सिंह ने उसे पहचान लिया और उस का नाम मुकुल बताया.

लाश के गले से लिपटा गमछा वही था, जो मुकुल ले कर घर में घुसा था. इस के अलावा कोई और सबूत नहीं मिला. फोरैंसिक एक्सपर्ट ने भी घटनास्थल और लाश का बारीकी से निरीक्षण किया. प्रारंभिक जांच पूरी करने के बाद पुलिस ने लाश पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी.

उस वक्त एसएचओ ने किरण के परिजनों को दहाड़ मार कर रोते पाया. उन में एक बूढ़ी महिला और दूसरी लड़की की आंखों से आंसू थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे. बूढ़ी महिला किरण की नानी और मृतका की हमउम्र युवती उस की मौसी की बेटी सोनिया थी. एसएचओ ने उन्हें ढांढस बंधाया और उन से किरण के जानने वालों के बारे में पूछा.

किरण की मौत के बारे में सब से पहले घर में मौजूद सोनिया सिहोते को पता चला था. उस ने पुलिस को बताया कि घटना के दिन वह और उस की मौसी किरण सिंघानिया अपने नाना के घर पर थी. रोज की तरह सुबह होने से पहले नानानानी 4 बजे अपनी ड्यूटी पर चले गए थे. वे नगरनिगम में काम करते हैं.

उसी दौरान सुबह साढ़े 5 बजे के करीब किसी ने डोरबैल बजाई थी. घंटी बजने की आवाज सुन जब उस ने खिड़की का एक पल्ला खोल कर बाहर झांका तो विकास मौसा के छोटे भाई मुकुल धौलपुरिया को घर के दरवाजे पर खड़ा पाया.

इस बारे में उस ने मौसी किरण को बताया. मौसी ने उन्हें भीतर बुला कर ड्राइंगरूम में बैठाने के लिए कहा. उस के बाद वह मुकुल मौसा के लिए चाय नाश्ता लेने किचन में चली गई. मौसी चायनाश्ता टेबल पर रख कर मुकुल मौसा से बातचीत करने लगी और वह किचन में साफसफाई करने चली गई गई.

थोड़ी देर बाद किचन की साफसफाई कर वह घर के बाहर आई. उस ने देखा कि मुकुल बाहर से ड्राइंगरूम की कुंडी लगा कर झूला चौक की तरफ तेज कदमों से चले जा रहे हैं.

फिर उस ने ड्राइंगरूम की कुंडी खोली. वहां का दृश्य देख कर वह डर गई. कमरे में उस की किरण मौसी जमीन पर बेहोश पड़ी थी. उस ने मौसी को पुकारा, हिलायाडुलाया. लेकिन उस ने कोई हरकत नहीं की.

उस ने देखा कि किरण मौसी के गले में वही हरे रंग का गमछा कसा हुआ था, जो उस ने सुबह के वक्त मुकुल के गले में लिपटा देखा था. सोनिया ने बताया कि तुरंत किरण मौसी को आटोरिक्शा से अस्पताल ले गई. डाक्टर ने नब्ज देखते ही उसे मृत बता दिया.

फिर तो वह और घबरा गई. उस ने तुरंत पुलिस को काल कर दी. सोनिया ने मौसी के मर जाने की सूचना नानानानी को भी फोन कर दे दी और उन्हें जल्द घर आने को कहा.

खबर सुन कर नानानानी उलटे पैर वापस घर आ गए. नानी किरण की हालत देख कर रोनेचिल्लाने लगी. नाना की आंखों में भी आंसू आ गए. उन के रोनेचिल्लाने की आवाज सुन कर पासपड़ोस के कुछ लोग वहां आ गए.

किरण के बारे में छोटी से छोटी जानकारी जुटा कर एसएचओ आलोक परिहार थाने लौट आए. उन्होंने मृतका की बड़ी बहन की बेटी सोनिया की तहरीर पर अज्ञात हत्यारे के खिलाफ आईपीसी की धारा 302 के तहत मामला दर्ज कर लिया.

इस मामले की जांच एसएचओ परिहार ने अपने हाथों में ले ली. भंवर सिंह और सोनिया से मिली जानकारी के आधार पर घटनास्थल की स्थिति से इतना तो स्पष्ट हो चुका था कि किरण की हत्या में किसी जानने वाले का ही हाथ है.

सोनिया से मिली जानकारी के मुताबिक मुकुल ही मामले का मुख्य दोषी था. परिहार ने देर किए बगैर उसे दबोच लिया. वह आसानी से मिल गया. फिर उसे सबूत के तौर सीसीटीवी फुटेज और बरामद गमछे को दिखा कर सख्ती से पूछताछ की गई.

उस ने जल्द ही अपना जुर्म कुबूल कर लिया. और फिर इस हत्याकांड की

जो कहानी सामने आई, वह काफी दिलचस्प थी.

किरण जवानी की दहलीज पर खड़ी थी और मुकुल भी जवान हो चुका था. दोनों रिश्तेदार थे. उन के रिश्ते अगर काफी दूर के नहीं थे तो पास के भी नहीं थे. मुकुल किरण की बड़ी बहन का देवर था. इस कारण उस का बड़े भैया के साथ उन की सुसराल आनाजाना लगा रहता था.

इस लिहाज से किरण और मुकुल के बीच मजाक का रिश्ता था. किरण बड़े भाई की साली थी. इस लिहाज से वह उस की भी साली थी. दोनों हमउम्र थे. एक तरफ किरण की चढ़ती जवानी थी, दूसरी तरफ मुकुल का बांकपन और मदमस्ती की छेड़छाड़ वाली आदतें थीं.

फिर भी किरण ने न तो मुकुल को नजर भर कर देखा था और न ही मुकुल ने किरण को, जबकि उन के बीते सालों की जानपहचान थी.

बात बीते साल की है. एक दिन मुकुल जब भैया की ससुराल आया था, तब किरण घर में अकेली थी. किरण उसे अपने ड्राइंगरूम में बिठा कर खुद रसोई में चली गई. किंतु उस रोज मुकुल की नजर रसोई में जाती किरण की मदमस्त चाल पर पड़ी.

उस से रहा नहीं गया और बोल पड़ा, ‘‘हाय सैक्सी, तू चीज बड़ी है मस्तमस्त…’’

गाने की यह लाइन किरण के कानों तक पहुंची. वह पीछे मुड़ कर मुसकराई और फिर तेज कदमों से कमर मटकाती हुई चली गई. उस रोज मुकुल उसे देखता ही रह गया.

थोड़ी देर में किरण चाय और प्लेट में नमकीन बिसकुट ले कर आ गई. मुकुल के सामने के स्टूल पर रख कर फिर वापस जाने लगी. तभी मुकुल ने उस का हाथ पकड़ लिया और अपनी ओर खींचते हुए बैठने को कहा. लेकिन किरण पानी लाने के बहाने हाथ छुड़ा कर दोबारा किचन में चली गई.

उस रोज पहली बार मुकुल ने किरण की देह पर गहरी नजर डाली थी और उसे घर में अकेला पा कर छेड़ने के मूड में था. इस का असर किरण के मन पर भी हुआ, लेकिन उस के दिल की धड़कनें बढ़ गईं. उस ने शर्म और रिश्ते की मानमर्यादा को बनाए रखा.

किरण ने मुकुल से आने का कारण पूछा. बड़ी बहन का समाचार लिया और मुकुल के साथ ड्राइंगरूम में समय गुजारते हुए औपचारिक बातें कीं.

कुछ दिनों बाद ही मुकुल फिर किरण से मिला. इस बार उस की मुलाकात घर पर नहीं, भीड़भाड़ वाले बाजार में हुई. छूटते ही उस ने किरण की तारीफ में कहा, ‘‘आज तो तुम इस ड्रेस में और भी सैक्सी लग रही हो.’’

किरण केवल मुसकरा कर रह गई. सिर झुकाते हुए बोली, ‘‘बाजार में ऐसी बातें करना ठीक नहीं है.’’

‘‘तो चलें किसी एकांत जगह में?’’ मुकुल तपाक से बोला.

‘‘…अरे नहींनहीं. मुझे जल्द घर जाना है. अपना कुछ सामान खरीदने बाजार आई थी.’’ किरण बोली.

‘‘ऐसा करो, तुम अपना मोबाइल नंबर बताओ,’’ मुकुल ने कहा.

‘‘लिखो 97…’’

‘‘अरे! 9 नंबर ही हुए.’’ मुकुल बोला.

‘‘अंत में 7 नहीं डाला क्या?’’ किरण बोली.

‘‘अच्छाअच्छा… लो, 7 डाल दिया. अब काल करता हूं. मेरे नंबर को सेव कर लेना. रात को काल करूंगा.’’ मुकुल लगातार बोलता चला गया.

किरण के मोबाइल पर मुकुल की मिस्ड काल आ गई. किरण देखते हुए बोली, ‘‘हां, आ गया नंबर. तुम्हारे नंबर के अंत में भी 37 है…’’

‘‘अब तुम्हीं बताओ हमारेतुम्हारे बीच कितनी समानता है,’’ मुकुल के इस तर्क पर किरण ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. चुपचाप वहां से चली गई.

किरण अपने परिवार, संस्कार और समाज के रीतिरिवाज में बंधी थी. उम्र 22 की हो चुकी थी. दिलदिमाग में उस के कई रंगीन सपने थे. उन में मनपसंद जीवनसाथी का भी था. लेकिन वह किस रूप में मिलने वाला था पता नहीं था.

दूसरी तरफ जब से मुकुल ने किरण की कमसिन जवानी को भरी नजर से देखा था, उसे पाने के लिए बेचैन हो गया था. उस का मन उस से हटता ही नहीं था. वह बड़े भाई की साली थी. उस से मिलनाजुलना आसानी से हो जाता था. किरण की खूबसूरती ने मुकुल का मन कुछ इस तरह मोह लिया था कि वह उसे पाने के लिए लालायित हो उठा था. एक दिन हसरत भरी नजरों से देखने पर किरण ने मुकुल का ध्यान तोड़ते हुए कहा, ‘‘ऐसे क्या देख रहे हो मुकुल, क्या कोई खास बात है?’’

मुकुल को लगा, जैसे उस की चोरी पकड़ी गई हो. वह झेंपते हुए बोला, ‘‘न..नहीं. यूं ही… कुछ भी तो नहीं…’’

‘‘कुछ बात तो जरूर है,’’ इस बार किरण ने उसे छेड़ा था.

‘‘बात तो है जरूर,’’ मुकुल बोला.

‘‘जरा मैं भी तो सुनूं,’’ किरण दोबारा मजाकिया अंदाज में बोली.

‘‘आज तुम बहुत सुंदर लग रही हो. बहुत सजीधजी हो. कहीं जाने वाली हो क्या?’’ मुकुल बोला.

‘‘कुछ दिन पहले मैं सैक्सी दिखती थी, आज सिर्फ सुंदर दिख रही हूं?’’ किरण बिंदास हो कर चहकती हुई बोल पड़ी.

‘‘ऐसी बात नहीं है, तुम बहुत सैक्सी हो. दिन पर दिन और सैक्सी होती जा रही हो.’’

‘‘सो तो हूं ही.’’ किरण थोड़ा शरमाई.

वैसे किरण दूसरी लड़कियों की तरह झिझकती नहीं थी. जिस से खुल जाती थी, तो बस पूछिए मत, उस से दिल खोल कर बातें करती थी. पिछले कुछ हफ्तों से किरण मुकुल के साथ काफी खुल गई थी.

उस ने बताया कि वह अपनी सहेली के बर्थडे में जा रही है. और फिर इठलाती हुई वहां से चली गई. मुकुल उसे तब तक टकटकी लगाए निहारता रहा, जब तक कि वह उस की नजरों से ओझल नहीं हो गई.

उस दिन मुकुल ने पहली बार किरण को इस तरह खुल कर बातें करते हुए देखा था.  किरण आंखों के रास्ते उस के दिल में उतर गई थी. किरण की बातें और अदाओं ने मुकुल के दिल में हचलच मचा रखी थी.

मुकुल घर पहुंचते ही सीधा अपनी भाभी के पास गया. भाभी यानी किरण की बड़ी बहन से अपने दिल की बात कह डाली. मुकुल ने बड़ी हिम्मत कर अपनी भाभी से किरण के साथ शादी की बात चलाई. उस ने कहा कि वह किरण को बहुत चाहता है. किरण भी उस से प्यार करती है. यह सुनते ही किरण की बड़ी बहन मुकुल पर बरस पड़ी.

तिलमिलाती हुई नाराजगी के साथ डांट लगाई, ‘‘कमाताधमाता एक धेला नहीं है और सपने देख रहा है मेरी छोटी बहन से शादी करने के. पहले कमाने की सोच, उस के बाद शादी करने की बात मुझ से करना. …और किरण को तो तुम भूल ही जाओ…’’

मुकुल बेरोजगार था. वह भाभी की बातों पर चुप रहा. उस समय उन से किरण को ले कर बहस करना सही नहीं समझा. दूसरी तरफ किरण के दिलोदिमाग में मुकुल रच बस गया था.

प्यार के अंकुर फूट चुके थे. प्यार की खुशबू उसे भी बेचैन किए जा रही थी, लेकिन वह भी परिवार की मर्यादाओं से बंधी हुई थी. दोनों मन ही मन एकदूसरे को चाहने लगे थे.

मुकुल की भाभी ने किरण को भी जबरदस्त डांट पिलाई. उसे डांटते हुए कहा कि बेरोजगार और दिन भर आवारागर्दी करते घूमने वाले मुकुल से शादी कर वह अपना जीवन क्यों बरबाद करना चाह रही है.

साथ ही उस ने किरण को हिदायत भी दी कि आइंदा मुकुल का नाम तक जुबां पर नहीं लाए. उस से दूर रहे. यहां तक कि उस के घर से बाहर जाने और मुकुल से मिलने तक पर नाना से कह कर पाबंदी लगवा दी.

किरण की बड़ी बहन नहीं चाहती थी कि उस की छोटी बहन की शादी उस के देवर से हो. किरण मन मसोस कर रह गई. किरण को तो परिजनों की पाबंदी से कोई खास फर्क नहीं पड़ा, उस ने अपने दिल को तसल्ली दे दी कि उसे परिवार वालों की पसंद के लड़के के साथ ही शादी करना पड़ेगी. किंतु मुकुल किरण को पाने के बेचैन रहने लगा.

किरण से मिलने की पाबंदी लगने के बाद मुकुल उस के घर चोरीछिपे जाने लगा. वह किरण के पास तभी जाता था, जब वह घर में अकेली होती. इस बारे में वे पहले मोबाइल से बातें कर लेते थे. इस के लिए सुबह 4 बजे का समय सब से सही था.

मुकुल 20 जुलाई, 2022 की सुबह किरण के घर तब गया था, जब उस के नाना और घर के दूसरे सदस्य नहीं हों. किंतु उसे इस का पता नहीं था, उस दिन उस की भतीजी सोनिया वहां आई हुई थी.

किरण मुकुल को ड्राइंग रूम में बैठा कर साथसाथ चाय पीने लगी. इसी दौरान मुकुल ने किरण से सैक्स करने की इच्छा जताई. किंतु किरण ने इंकार कर दिया. फिर मुकुल छेड़छाड़ करने लगा. उस के अंगों को छूने छेड़ने लगा. किरण उस का विरोध जताने लगी.

जबकि मुकुल के दिमाग पर सैक्स का फितूर सवार था. वह उस से हर हाल में सैक्स करना चाहता था. इसी क्रम में मुकुल ने उस से कहा कि वह एक न एक दिन तो उस से शादी करेगा ही.

इस पर जैसे ही किरण ने कहा, ‘‘कतई नहीं.’’

मुकुल सैक्स की जद में पागल जैसा हो गया. उस ने अपने गले का गमछा किरण के गले में डाल दिया. दोनों हाथों से गमछे को कसता रहा और उस से शादी करने की बात कुबूल करवाने की जिद करता रहा.

उस वक्त वह इस बात से एकदम अनजान था कि किरण की गला दबने से मौत हो चुकी है. वह अपना होशोहवास खो बैठा था.

किरण की सांस बंद होने पर वह घबरा गया और उसी घबराहट में गमछा लिए बगैर ही वहां से फरार हो गया. जाने से पहले उस ने ड्राइंगरूम के दरवाजे की बाहर से कुंडी लगा दी. मुकुल एक पल गंवाए बगैर वहां से निकल भागा. जबकि पुलिस उसी रोज मुकुल का नाम आते ही उसे पकड़ने का अपना जाल बिछा चुकी थी. पूरे शहर और वहां से बाहर जाने वाले रास्ते, रेलवे स्टेशन एवं बस अड्डे पर मुखबिरों को लगा दिया गया था.

एसएचओ आलोक परिहार को मुखबिर से मिली सूचना के बाद मुकुल मुरैना रेलवे स्टेशन पर खड़ा मिल गया था. वहां वह ट्रेन के आने का इंतजार कर रहा था. पुलिस ने उसे तत्काल हिरासत में ले लिया. थाने ला कर उस से पूछताछ की गई. उस के द्वारा किरण की हत्या करने का जुर्म कुबूल करने के बाद पुलिस ने उसे न्यायालय में पेश कर दिया. वहां से उसे जेल भेज दिया गया.

पति ना हो ऐसा

मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल की वाटिका विहार कालोनी के रहने वाले राजेश और पुनीता की शादी के 2 दशक बीत चुके थे. वह इतना लंबा समय खट्टेमीठे अनुभवों के साथ गुजारते आए थे. राजेश की जब शादी हुई थी, तब उस की उम्र केवल 16 साल की थी. वह 16 साल की पुनीता को विदिशा से साल 2002 में ब्याह कर लाया था. दोनों ने कच्ची उम्र में दांपत्य जीवन की शुरुआत की.

राजेश आजीविका के लिए सूर्यवंशी गोविंदपुरा इंडस्ट्रियल एरिया स्थित एक फैक्ट्री में काम पर लग गया. जबकि पुनीता घरपरिवार को संभालने में लगी रही. किंतु हां, परिवार को कैसे खुश रखा जाए, घर की जरूरतें कैसे पूरी हों, परिवार के दूसरे सदस्यों के साथसाथ सामाजिक मानमर्यादा का किस तरह निर्वाह किया जाए? आदि बातों का वे काफी खयाल रखते थे.

एक तरह से उन्होंने अपना एक संतुलित परिवार बना लिया. वे 2 बच्चों के मातापिता बन गए. उन का बड़ा बेटा 14 साल का और छोटा 10 साल का हो चुका था. दोनों एक पब्लिक स्कूल में पढ़ते थे.

पुनीता एक कुशल गृहिणी की तरह घरपरिवार को संभाले हुए थी, लेकिन कुछ समय से घर के बढ़ते खर्च, बच्चों की अच्छी पढ़ाईलिखाई को ले कर परेशान रहने लगी थी. उसे मकान बनवाने की भी चिंता थी, लेकिन पति की आमदनी बहुत ही सीमित थी. इस के लिए उस ने अपने भाई मंगलेश से 2 लाख रुपए की मदद भी ली थी.

फिर भी सब कुछ ठीकठाक चल रहा था. कोरोना काल में उन की माली हालत बिगड़ गई थी और राजेश चाह कर भी अपने साले का कर्ज नहीं उतार पा रहा था. इसे ले कर आए दिन राजेश की पुनीता से तूतूमैंमैं होने लगी थी.

बात शुरू होती थी घर के खर्च से, जो मकान बनवाने और भाई से लिए कर्ज तक जा पहुंचती थी. जब भी पुनीता उसे भाई के कर्ज के पैसे देने की बात करती थी, तब राजेश गुस्सा हो जाता था. उलटे उस पर तरहतरह के आरोप लगाने लगता था.

एक दिन तो हद हो गई. राजेश ने अपने साले मंगलेश को फोन कर बताया कि उस की बहन के रंगढंग तब से ठीक नहीं हैं, जब से वह पास के अस्पताल में काम करने लगी है.

‘‘हैलो मंगलेश, सुन रहा है न तू?’’ राजेश तेज आवाज में मोबाइल को मुंह के पास ले जा कर बोल रहा था.

‘‘हांहां बोलो जीजा, तुम्हारी आवाज साफ आ रही है. बोलो न, क्या बता रहे थे… दीदी को क्या हो गया है?’’ मंगलेश बोला.

‘‘अरे मंगलेश, उसे कुछ हुआ नहीं है. उस के चालचलन बदल गए हैं. बेहया हो गई है. जब से वह अस्पताल में काम करने जाने लगी है, तब से उस के रंगढंग बहुत बदल गए हैं. जरा उसे समझा दियो, वरना बहुत बुरा हो जाएगा.’’ राजेश एक तरह से धमकी भरे अंदाज में बोला और फोन कट कर दिया.

मंगलेश अपने जीजा की बातों को आधाअधूरा ही समझ पाया था. फिर भी उस ने अपनी बहन पुनीता  से एक बार बात करना सही समझ कर उसे काल कर दी, ‘‘हैलो दीदी! कैसी है तू?’’

‘‘मैं ठीक हूं, तू कैसा है? घर में सब कुशल से है न?’’ पुनीता मायके का हालसमाचार लेने लगी.

‘‘अरे दीदी, जीजा का फोन आया था. बोल रहे थे तुम्हें क्या हो गया है? कोई परेशानी है क्या?’’ मंगलेश बोला.

‘‘अरे नहीं रे भाई! तू उन की बातों पर ध्यान मत दे. यह हमारे उन के बीच की बात है.’’ पुनीता ने भाई को समझाया.

‘‘बच्चे कैसे हैं? उन की पढ़ाई ठीक से चल रही है न! स्कूल तो खुल गए होंगे? उन से मिले बहुत दिन हो गए. राखी के दिन उन्हें भी ले कर आ जाना,’’ मंगलेश बोला.

उस रोज बात आईगई हो गई. न तो पुनीता ने अपने पति के साथ आए दिन होने वाली तकरार के बारे में कुछ बताया और न ही मंगलेश ने बहन की निजी जिंदगी में गहराई तक झांकने की कोशिश की.

लेकिन यह क्या? अगले दिन ही राजेश ने मंगलेश को फिर फोन कर वही बात दुहराई. कहने लगा अपनी बहन को संभाल ले वरना अनर्थ हो जाएगा. उस ने सीधेसीधे आरोप लगा दिया कि उस का अस्पताल के ही एक युवक के साथ टांका भिड़ गया है. उस के साथ घूमनेफिरने लगी है. जिस से पासपड़ोस में उस की बदनामी हो रही है. उसे बच्चों को ले कर चिंता हो रही है.

एक तरह से राजेश ने उस रोज अपनी पत्नी पुनीता पर बदचलन होने और एक युवक के साथ अवैध संबंध रखने का आरोप लगा दिया था.

बहन के बारे में यह सुन कर मंगलेश ने उस रोज फोन पर ही बहन को काफी डांट लगाई. उस ने यहां तक कह डाला कि वह अपने परिवार पर ध्यान दे, बच्चों का भविष्य बनाए. गलत रास्ता नहीं अपनाए. दोबारा जीजा की शिकायत आई, तब समझ लेना कि उस के मायके का दरवाजा हमेशा के लिए बंद हो गया है.

राजेश द्वारा पुनीता को ले कर शिकायतों का सिलसिला लगातार चलता रहा. जब भी मंगलेश के फोन आते तो वह बातचीत का सिलसिला ही पुनीता की शिकायतों से करता. उस पर बदचलनी का आरोप लगाता.

दूसरी तरफ साला मंगलेश हर बार उसे भरोसा देता कि एक दिन उस के पास आ कर वह उसे समझाएगा. लेकिन उस के लिए वह दिन नहीं आया. उसे अपनी बहन को उस बारे में आमनेसामने बैठ कर बातें करने का मौका ही नहीं मिला.

मंगलेश 14 सितंबर, 2022 की सुबह 7 बजे के करीब अपने काम पर जाने के लिए तैयार हो रहा था. तभी राजेश का फोन आया. मोबाइल चार्जिंग में लगा हुआ था. वह झुंझला गया. नहीं चाहते हुए भी मोबाइल हाथ में ले लिया.

काल देख कर चौंक गया. फोन राजेश का नहीं, बल्कि उस की बहन पुनीता का था. कुछ पल के लिए सोचने लगा कि सबेरेसबेरे पुनीता ने क्यों फोन किया होगा? इस से पहले तो उस ने कभी फोन नहीं किया. जब भी उस से बात की, तब उसी ने बहन को फोन किया था. जरूर कोई खास बात होगी. मंगलेश फोन रिसीव करते हुए बोला, ‘‘हैलो, हां पुनीता, बोलो क्या बात हो गई, इतनी सुबह फोन किया?’’

‘‘अ…अ अरे, मैं बोल रहा हूं, त…त…तेरा जीजा राजेश.’’ आवाज में थरथराहट थी.

मंगलेश किसी अनहोनी से आशंकित हो गया. घबरा कर पूछ बैठा, ‘‘क्या बात है जीजा, तुम परेशान लग रहे हो और मरी आवाज में क्यों बोल रहे हो? सब कुछ ठीक तो है न?’’

‘‘अरे नहीं रे मेरे भाई! कुछ भी ठीक नहीं है. तुम्हारी बहन की उस के प्रेमी ने घर आ कर हत्या कर दी है,’’ राजेश एक सांस में बोल गया.

‘‘हत्या कर दी है? पूनम की हत्या कर दी है? किस ने? कैसे?’’ मंगलेश चौंकते हुए कई सवाल कर बैठा.

‘‘अरे तू फोन पर ही सब कुछ पूछता रहेगा या फिर जल्दी से आएगा भी. हम ने पुलिस को भी फोन कर दिया है. पुलिस आती ही होगी…’’

‘‘चल, मैं भी आता हूं,’’ कहते हुए मंगलेश ने तुरंत फोन कट किया और राजेश के यहां जाने के लिए झटपट तैयार हो गया. जेब में कुछ पैसे भी रख लिए.

उस से कुछ समय पहले ही राजेश ने 100 नंबर पर पुलिस को हत्या की सूचना दे दी थी. कहा था कि उस की पत्नी के दोस्त आनंद ने बांके से हमला कर उस की पत्नी की हत्या कर दी है. यह सूचना पा कर कुछ समय में ही भोपाल के छोला मंदिर थाने की पुलिस मौके पर पहुंच गई थी.

पुलिस ने जांच शुरू की और राजेश के बयान लिए. राजेश ने पुलिस को बताया कि वह अपने बच्चों को स्कूल छोड़ने गया हुआ था. पत्नी घर में अकेली थी. जब वह वापस लौटा तो पत्नी के हाथपैर बंधे हुए थे और उस का गला कटा हुआ था.

मौके पर पहुंची पुलिस ने जांच शुरू की. राजेश पुलिस को गुमराह करता रहा. शक के आधार पर पुलिस ने उस से सख्ती से पूछताछ की तो उस ने जुर्म कुबूल कर लिया. आरोपी की पड़ोसन यासमीन ने पुलिस को बताया कि उसे सुबह करीब पौने 8 बजे राजेश के घर से झगड़े की आवाज आ रही थी. राजेश के घर पहुंची तो वह पुनीता को चारपाई पर पटक कर उस पर चाकू से वार कर रहा था.

पुलिस ने वारदात के बारे में पड़ोसियों के अलावा मृतका के भाई मंगलेश से भी पूछताछ की. साथ ही घटनास्थल पर बरामद हत्या के सामान में भी बड़ा फर्क नजर आया. भाई ने पुलिस को राजेश से कुछ दिनों से फोन पर हो रही बात के बारे में बताया, जबकि पड़ोसियों ने भी बताया कि राजेश का पत्नी से हमेशा झगड़ा होता रहता था.

मोहल्ले के लोग उन के झगड़े से परेशान रहते थे. कई बार उन्होंने झगड़े का कारण जानने की कोशिश की, लेकिन पतिपत्नी में से किसी ने कोई बड़ा कारण नहीं बताया. यहां तक कि उन के बच्चे भी पिता की मरजी के बगैर किसी से कुछ भी नहीं बोलते थे.

पति ने जिस आनंद नाम के व्यक्ति पर हत्या का आरोप लगाया, उसे पुनीता गुरुभाई मानती थी. उसे राखी बांधती थी. उस ने उस के भाग जाने का भी आरोप लगया. कई बातों से जब पुलिस को शक हुआ और उस के घर की तलाशी ली, तब उन्हें वाशरूम में उस के ही खून से सने कपड़े मिले. वह चाकू भी बरामद हो गया, जिस पर खून लगा था.

जबकि राजेश ने अपने बयान में कहा था कि हत्या बांके से की गई है. पुलिस को समझते देर नहीं लगी, क्योंकि शव के गले पर उस के रेतने के निशान साफ दिख रहे थे और वहीं से खून अधिक रिस रहा था. जिस चारपाई पर शव पड़ा था, उस के इधरउधर खिसकाने पर भी संदेह पैदा हो गया था.

पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेजने के बाद राजेश को थाने ला कर सख्ती से पूछताछ की. जल्द ही वह टूट गया और अपनी पत्नी के साथ प्रेम प्रसंग का आरोप लगाते हुए हत्या करने की बात कुबूल कर ली.

असल में पुनीता ने छोला के द्वारकाधाम निवासी आटोरिक्शा चालक आनंद को अपना गुरुभाई बना रखा था. वह अकसर उस के घर जाता था, जो राजेश को यह पसंद नहीं था. इस वजह से दोनों के बीच झगड़ा होता रहता था. इस झगड़े से पुनीता ऊब चुकी थी और उस ने इस की पुलिस में शिकायत भी दर्ज करने के लिए छोला पुलिस से संपर्क किया था.

चूंकि यह एक घरेलू मामला था, इसलिए पुलिस ने उन्हें महिला थाने रेफर कर दिया, जहां परिवार परामर्श केंद्र में उन की काउंसलिंग की जा रही थी. पुलिस ने इस मामले को ले कर राजेश और पुनीता के बीच समझौता करवा दिया था.

एसीपी ऋचा जैन ने दोनों को आपसी मतभेद से दूर रहने की हिदायत दी थी. पुलिस ने पुनीता का ही पक्ष लिया था और राजेश के खिलाफ काररवाई करने की भी चेतावनी दी थी.

राजेश गोविंदपुरा औद्योगिक क्षेत्र में एक फैक्ट्री में सिक्योरिटी गार्ड के रूप में काम करता है. पुलिस की चेतावनी के बावजूद राजेश पुनीता की शिकायतें अपने साले से करता रहता था. कोई भी दिन ऐसा नहीं बीतता था, जब उस की पुनीता से बकझक नहीं हो जाती थी.

मामले की जांच के दौरान एसीपी जैन ने पाया कि वारदात के एक दिन पहले 13 सितंबर को राजेश जब घर लौटा, तब पड़ोसियों से मालूम हुआ कि उस की पत्नी का भाई उस की गैरहाजिरी में घर पर आया था. वह करीब 4-5 घंटे रुका भी था.

यह सुनते ही राजेश का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया. उस रोज तो वह किसी तरह से अपने गुस्से को काबू में किए रहा, लेकिन अगले रोज सुबह उठते ही उस ने खतरनाक योजना बना डाली.

सुबह वह बेटों को स्कूल छोड़ कर घर लौट आया. इसी बात को ले कर उस की उस से तीखी नोकझोंक हो गई. आते ही राजेश बीते दिन की बात पूछ बैठा. उस ने नाराजगी दिखते हुए गुस्से में कहा, ‘‘हरामजादी! मेरे पीछे गुलछर्रे उड़ाती है और मेरे खिलाफ ही पुलिस में शिकायत भी करती है.’’

इतना कहना था कि पुनीता भी गुस्से में आ गई. उस ने भी गालियां देनी शुरू कर दीं. उस ने पति को भिखारी कहा. भाई का पैसा लौटाने की बात करने लगी.

पुनीता के तेवर देखते हुए वह आगबबूला हो गया और चिकन काटने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले भारी चाकू से उस पर हमला कर दिया. उस ने चाकू से उस के चेहरे और गरदन पर वार किया जिस से उस की मौके पर ही मौत हो गई.

उस के बाद वह नहाया और खून सने कपड़े बाथरूम में छोड़ कर पुलिस कंट्रोल रूम को सूचना दे दी. उस के बाद उस ने पुनीता के मातापिता को भी फोन कर घटना की जानकारी दी.

इस वारदात का अपराध कुबूल करने के बाद पुलिस ने उसे हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर लिया.

मांबाप के झगड़े के बारे में बच्चें ने पुलिस को बताया कि पापा उन्हें नानामामा से बात नहीं करने देते थे. इस बार रक्षाबंधन पर नाना के घर गए थे तो रुकने भी नहीं दिया था. उसी दिन वापस आ गए थे.

घटना के दिन के बारे में उन्होंने बताया कि वे उस दौरान स्कूल गए थे. उस रोज पापा गार्ड की वरदी में नहीं थे. दोनों को सुबह स्कूल बस में बैठा कर चले गए थे. औफिस भी नहीं गए थे. जबकि पहले वह वहीं से ही औफिस चले जाते थे.

राजेश से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उसे कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

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