प्रेम की पुड़िया में 9 दिन का राज : भाग 2

उसी दिन शाम को 5 बजे पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गई. इस रिपोर्ट ने पुलिस की सोच बदल दी. पता चला कि रंजीत के सिर में एक नहीं, 2 गोलियां मारी गई थीं, जो 3 टुकड़ों में बंट कर सिर में फंस गई थीं. इन में से एक गोली कनपटी पर तो दूसरी आंख में मारी गई थी. जाहिर है आत्महत्या करने वाला व्यक्ति खुद को 2 गोली कभी नहीं मार सकता.

निस्संदेह रंजीत को दोनों गोलियां किसी और ने मारी थीं. इस के बाद पुलिस ने हत्या वाली थ्योरी पर जांच करनी शुरू की. वैशाली की घुमावदार बातों से साफ लग रहा था कि अगर काल डिटेल्स न होती तो यह भी पता नहीं चलता कि रंजीत की लाश गन्ने के खेत में पड़ी है. हैरत की बात यह थी कि वैशाली ने इस घटना के बारे में अपने घर वालों को भी कुछ नहीं बताया था. यानी उस ने अपने प्रेमी की मौत की बात 9 दिन तक अपने सीने में दफन रखी थी.

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मंगलवार को पूरे दिन रंजीत की मौत को खुदकुशी बताने वाली सिविल लाइंस पुलिस ने देर रात मृतक के पिता भोपाल सिंह की तरफ से वैशाली, उस के पिता भूपेंद्र, मां गुड्डी, भाई विक्की और मुंहबोले मामा शुक्ला के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया.

मृतक के घर वाले पुलिस की अब तक की जांच से पूरी तरह संतुष्ट नहीं थे. रंजीत की मौत के मामले में घर वालों ने समानांतर जांच की थी, जिस ने पुलिस पड़ताल की पोल खोल कर रख दी थी. पुलिस शुरू से इस मामले को आत्महत्या मान कर चल रही थी, पुलिस ने गन्ने के उस खेत में 20-25 कदम दूर तक भी पड़ताल करना मुनासिब नहीं समझा था. बुधवार यानी 24 जून को रंजीत के घर वालों ने मामले से जुड़ी कुछ अहम चीजें ढूंढ निकाली थीं.

पुलिस ने वैशाली की बातों पर तो विश्वास किया, लेकिन रंजीत के घर वालों की बातों पर नहीं. इसलिए 24 जून की सुबह चमन सिंह, विमल और उन के पिता घर के अन्य लोगों के साथ घटनास्थल पर पहुंचे. उन्होंने उसी गन्ने के खेत में खोजबीन शुरू की, जहां से रंजीत का शव मिला था.

खोजबीन में घटनास्थल से 20-25 कदम की दूरी पर एक थैली रखी मिली, जिस में 4 कारतूस रखे थे. उस के पास ही रंजीत का बनियान और जूते मिले.

यह जानकारी जब गांव में फैली तो मौके पर ग्रामीणों की भीड़ जुट गई. इस के बाद पुलिस को सूचना दी गई. सूचना मिलने पर अगवानपुर पुलिस चौकी की पुलिस पहुंच गई. पुलिस ने कारतूस, बनियान, जूते और हड्डियों के अवशेष सील कर दिए.

जबकि 23 जून को पुलिस ने गन्ने के खेत से रंजीत का शव बरामद किया था. लेकिन तब यह सामान बरामद नहीं हुआ था. जिस तरह मामले से जुड़ी अहम चीजें खोज निकाली गईं, उस से पुलिस पड़ताल पर गंभीर सवाल भी उठने लगे.

एएसपी दीपक भूकर के अनुसार रंजीत के घर वालों को 4 कारतूस मिले थे. कारतूस चमकीले हैं, जबकि 23 जून को मिला कारतूस इतना चमकीला नहीं था. शव की कुछ हड्डियां गायब थीं. पोस्टमार्टम में भी 10 फीसदी कम हड्डियां बताई गई थीं. कई दिनों तक शव जंगल में पड़ा होने से संभव है जानवरों ने शव खा लिया हो. इसी से कुछ हड्डियां इधरउधर हो गई हों.

पुलिस ने मामले की जांच को गंभीरता से लेते हुए वैशाली से फिर से पूछताछ करने का फैसला किया. वैशाली किसी थ्रिलर फिल्म जैसी कहानियां बना रही थी. 9 दिन प्रेमी की मौत का राज सीने में छिपाए रखने वाली वैशाली ने 24 घंटे पुलिस को छकाने के बाद फिर अपनी कहानी की स्क्रिप्ट बदल दी थी.

पुलिस ने उस से पूछताछ की तो उस ने बताया कि गन्ने के खेत में उस के पहुंचने से पहले ही रंजीत ने खुद को गोली मार ली थी. तब उस ने रंजीत के मोबाइल से उस के भाई को काल किया था. लेकिन उस ने काल रिसीव नहीं की. फिर उस ने अपनी मां को फोन किया.

उस ने बताया कि मां से उस की करीब 9  मिनट बात हुई. वह फोन पर रो रही थी, उस की मां ने काल जारी रखी और बात करतेकरते उस के पास पहुंच गई. मां उसे ले कर घर लौट आई. पुलिस जांच में अब तक यह भी सामने आ चुका था कि रंजीत की लाश गन्ने के खेत में पड़ी होने की जानकारी वैशाली के मांबाप को भी थी.

24 जून की दोपहर पुलिस ने वैशाली की मां गुड्डी को हिरासत में ले लिया. पुलिस ने मांबेटी को आमनेसामने बैठा कर पूछताछ की. पता चला कि पिछले 7 साल से वैशाली के घर एक व्यक्ति शुक्ला रहता था, जो घटना के बाद से फरार है. उस का मोबाइल भी बंद था. वैशाली ने उसे मुंहबोला मामा बताया.

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शुरू में पुलिस जांच में वैशाली के बयान और रंजीत के घर मिली उस की पर्सनल डायरी आत्महत्या की ओर इशारा कर रहे थे. डायरी में रंजीत ने इस बात पर खेद प्रकट किया था कि उस का विवाह उस की मरजी के खिलाफ हो रहा है. डायरी में उस ने परिवार वालों को नसीहत दी थी कि छोटे भाई की शादी उस के मनमुताबिक करें. उस ने डायरी में अपनी एफडी छोटे भाई को देने की बात भी की थी. पुलिस ने इसी आधार पर आत्महत्या की कड़ी से कड़ी जोड़ने का प्रयास किया था.

वारदात की एकलौती चश्मदीद वैशाली ने प्रेमी रंजीत की मौत को ले कर अब तक जो दावे किए थे, उन में काफी विरोधाभास था. उस के रोजरोज बदल रहे बयानों ने पुलिस को चक्कर में डाल दिया था.

उस ने 105 घंटे में 6 बार अपने बयान बदले. हर बार उस का नया बयान सामने आ रहा था. पुलिस उस की इस स्वीकारोक्ति पर चौंकी, जब उस ने कहा कि गन्ने के खेत में उस ने खुद रंजीत को 2 गोलियां मारी थीं, क्योंकि वह उस पर शादी करने का दबाव बना रहा था.

वैशाली के साथ उस की मां ने भी कबूलते हुए कहा कि वह खुद और वैशाली का मामा शुक्ला वैशाली के साथ गए थे. चूंकि दोनों अलगअलग बिरादरी के थे, इसलिए शादी नहीं हो सकती थी. उस ने बहाने से वैशाली को गन्ने के खेत में बुलाया. वहां वैशाली ने मां और मामा के सामने ही 2 गोलियां मार कर रंजीत की हत्या कर दी.

हालांकि पुलिस सारी कडि़यों को आपस में जोड़ रही थी. पुलिस ने फरार आरोपी शुक्ला के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई. उस की लोकेशन गोरखपुर की आ रही थी. पुलिस की एक टीम उस की तलाश में जुटी थी. यह जानकारी मिलने पर वह टीम गोरखपुर के लिए रवाना हो गई.

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दूसरी टीम वैशाली और उस की मां से लगातार पूछताछ कर रही थी. जबकि तीसरी टीम लड़की के पिता व भाई से पूछताछ में जुटी थी. चौथी टीम सबूत जुटाने में लगी थी. पुलिस को लग रहा था कि वैशाली के मामा शुक्ला की इस मामले में अहम भूमिका रही होगी.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

प्रेम की पुड़िया में 9 दिन का राज : भाग 1

जिस लड़के या लड़की की शादी हो और वह 2-4 घंटे के लिए घर से इधरउधर हो जाए तो घर वालों को उस की इतनी चिंता होने लगती है, जितनी पहले कभी नहीं हुई. होनी भी चाहिए, क्योंकि जहन में इज्जतबेइज्जती के कई सवाल जो खड़े हो जाते हैं.

लड़की के मामले में तो ऐसे सवाल सोच बन कर सिर पर हथौड़े से बजाने लगते हैं. रंजीत के मामले में भी कुछ ऐसा ही हुआ. सुबह 5 बजे दौड़ लगाने निकला रंजीत घंटों बाद भी नहीं लौटा तो घर वालों ने सोचा कि किसी दोस्त के घर चला गया होगा. लेकिन जब वह दोपहर तक नहीं आया तो परेशान हो कर उस के मोबाइल पर काल की गई, लेकिन उस का मोबाइल स्विच्ड औफ था. इस के बाद चिंतित होना स्वाभाविक था.

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रंजीत मुरादाबाद शहर के निकटवर्ती गांव धर्मपुर शेरूआ का रहने वाला था. उस के पिता भोपाल सिंह गांव के पास स्थित प्लाइवुड की एक फैक्ट्री में ठेकेदार थे. उन के बेटों चमन सिंह और विमल में रंजीत बीच का था. भोपाल सिंह ने रंजीत को उसी प्लाइवुड फैक्ट्री में नौकरी दिला दी थी, जहां उन का ठेकेदारी का काम था.

30 जून, 2020 को चूंकि रंजीत की शादी थी, इसलिए भी चिंता की बात थी. चिंताजनक इसलिए क्योंकि गांव की ही वैशाली से उस के प्रेम संबंध थे और वह उस से शादी करना चाहता था. जबकि घर वाले उस की और वैशाली की शादी इसलिए नहीं करना चाहते थे क्योंकि वह दूसरी बिरादरी में शादी के पक्ष में नहीं थे.

रंजीत के पिता भोपाल सिंह, भाई चमन सिंह और विमल ने रंजीत को पूरे गांव में खोजा. सभी संभावित जगहों पर पता लगाया. जब कहीं से भी उस की कोई जानकारी नहीं मिली तो पिता और भाइयों को पुलिस की शरण में जाना ठीक लगा. उन्होंने थाना सिविल लाइंस की पुलिस चौकी अगवानपुर में रंजीत की गुमशुदगी दर्ज करा दी. पुलिस ने भी अपने स्तर पर रंजीत को खोजा. जब रंजीत रात को भी नहीं लौटा तो भोपाल सिंह के परिवार को लगा कि जरूर कहीं कुछ गड़बड़ है.

सोचविचार के बाद भोपाल सिंह अपने बेटों के साथ पुलिस चौकी पहुंचे. उन्होंने रंजीत और वैशाली की प्रेम कहानी के बारे में पुलिस को बता दिया. साथ ही यह भी कि रंजीत और वैशाली देरदेर तक मोबाइल पर बात किया करते थे, जिस की वजह से उस के घर वाले रंजिश रखते थे.

यह जानकारी मिलने के बाद पुलिस ने वैशाली को पुलिस चौकी बुलवा लिया. वह इंटरमीडिएट तक पढ़ी थी, थोड़ी तेज भी थी.

वैशाली ने पुलिस के सामने स्वीकार किया कि रंजीत और उस के बीच प्रेम संबंध थे. दोनों शादी भी करना चाहते थे, लेकिन एक साल पहले सब कुछ खत्म हो गया था. उस ने यह भी कहा कि वह जानती है कि 30 जून को रंजीत की शादी होनी है. ऐसे में उस से बात करने का कोई मतलब नहीं है. सीधीसरल भाषा में कहूं तो मेरी उस से कोई बात नहीं होती, न होगी. इस बातचीत के बाद पुलिस ने उसे घर जाने को कह दिया.

रंजीत के घर वाले और पुलिस कई दिन तक उसे ढूंढते रहे, लेकिन उस का कोई पता नहीं चला. इस पर थानाप्रभारी नवल मारवाह ने रंजीत के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई.

जांच में पता चला कि 14 जून को उस के मोबाइल फोन पर आखिरी काल वैशाली की आई थी. इस पर 22 जून को पुलिस ने वैशाली, भूपेंद्र और भाई विक्की को पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया. तीनों को थाना सिविल लाइंस ला कर पूछताछ की गई.

पुलिस ने वैशाली से पूछा, ‘‘14 जून को रंजीत के मोबाइल पर आखिरी काल तुम्हारी थी, बताओ उस से क्या बात हुई थी और रंजीत कहां है?’’

‘‘काल उस ने की थी, मैं ने नहीं. मैं पहले ही बता चुकी हूं कि अब हमारे बीच ऐसा कुछ नहीं बचा था कि बात की जाए. मैं नहीं जानती कि वह कहां गया.’’

इंसपेक्टर नवल मारवाह को लगा कि कहीं कुछ गड़बड़ है. उन्होंने मातहतों से कहा कि तीनों को थाने में बैठाए रखें.

इन लोगों से देर रात पूछताछ की गई. भूपेंद्र और विक्की तो कुछ नहीं बता सके, लेकिन वैशाली ने बम सा फोड़ा. उस ने बताया, ‘‘यह सही है कि 14 जून को रंजीत ने मुझे फोन किया था. उस ने मिलने के लिए मुझे गांव से करीब एक किलोमीटर दूर शुगर मिल के पीछे गन्ने के एक खेत में बुलाया था. उस ने मुझ से कहा कि 30 जून को उस की शादी है. लेकिन वह यह शादी नहीं करना चाहता.’’

वैशाली ने आगे बताया, ‘‘यह सच है कि मैं उस से प्यार करती थी. लेकिन घर वालों की मरजी के बिना शादी नहीं कर सकती थी. उस की भी यही सोच थी. दोनों की बातचीत हुई तो हम ने साथसाथ मरने का फैसला किया. रंजीत तमंचा साथ लाया था. तय हुआ कि वह पहले खुद को गोली मारेगा, बाद में मुझे. यही सोच कर उस ने खुद को गोली मार ली. उस का बहता खून देख कर मैं डर गई और वहां से भाग आई.’’

वैशाली ने यह भी बताया कि रंजीत ने उसे बताया था कि आत्महत्या की बात वह डायरी में लिख कर आया है. साथ ही यह भी कि उस की लाश गन्ने के उसी खेत में पड़ी है. यह बात चौंकाने वाली थी, क्योंकि जिस रंजीत को पुलिस खोज रही थी, उस की लाश गन्ने के खेत में पड़ी थी.

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23 जून को तड़के साढ़े 3 बजे सिविल लाइंस पुलिस ने वैशाली की निशानदेही पर गन्ने के खेत से रंजीत का शव बरामद कर लिया. 9 दिन पुराना शव कंकालनुमा बन गया था. एक एक्सीडेंट के बाद रंजीत की एक बाजू में रौड डाली गई थी. उस रौड और कपड़ों से उस के घर वालों ने बता दिया कि लाश रंजीत की ही है.

फोरैंसिक टीम पुलिस के साथ आई थी. उस ने जरूरी सबूतों के साथसाथ घटनास्थल से 315 बोर का लोडेड तमंचा, एक खोखा और मृतक का मोबाइल फोन बरामद किया. प्राथमिक काररवाई के बाद पुलिस ने रंजीत के शव को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.

रंजीत के घर वाले उस की हत्या को सोचीसमझी साजिश बता रहे थे, जबकि पुलिस उसे आत्महत्या मान रही थी. इस में पेच यह था कि 14 जून को घटना से पहले वैशाली और रंजीत के बीच 54 मिनट तक बात हुई थी. ऐसी स्थिति में इसे साजिश नहीं माना जा सकता था. हालांकि इस के बाद ही रंजीत गायब हुआ था.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

रिश्तों की डोर : सुनंदा की आंखों पर पड़ी थी पट्टी

रिश्तों की डोर : भाग 1- सुनंदा की आंखों पर पड़ी थी पट्टी

‘क्यों होता है कोई ऐसा… क्या रिश्तों से जुड़ने के लिए समय का होना ही जरूरी है, धन का होना ही जरूरी है… ऐसा होता तो कुछ समय पहले जब इक्कादुक्का औरतें नौकरी करती थीं, उन के पास तो समय ही समय था, तो सभी अपनों को बांध पातीं, सभी अच्छी होतीं. लेकिन ऐसा नहीं होता था, तब भी औरतें घर तोड़ने वाली होती थीं, कर्कश होती थीं. रिश्तों को जोड़ने के लिए आप का स्वागत वाला भाव, मीठी वाणी, खुला दिलोदिमाग, उस समय का महत्त्व जो आप अपनों के साथ बिताते हो, मधुर मुसकान जरूरी होती है,’ वानिया बड़बड़ा रही थी.

मां क्या कहें बेटी को. इकलौते भाईभाभी का रूखा सा व्यवहार वानिया को अकसर सहन नहीं होता तो वह जबतब मां के सामने बड़बड़ाती थी. जब बेटे की शादी हुई थी तब नई बहू के अडि़यल स्वभाव से मां परेशान होतीं तो यही बेटी मां को समझाती थी. शायद उसे विश्वास था कि समय के साथ भाभी बदल जाएगी, लेकिन कुछ लोग कभी नहीं बदलते…फिर बुनियादी स्वभाव तो कभी नहीं बदलता.

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करे भी क्या वानिया, पहले भाई ऐसे नहीं थे. वानिया अपने भाई विनय से कम से कम 10 साल छोटी थी और जब वह लगभग 10 साल की थी तब पापा उसे व मां को 20 साल के भाई के सहारे छोड़ कर दुनिया से चल बसे थे.

पापा के गले से झूलने वाली उम्र में वानिया ने पापा को खो दिया था. वह अचानक खामोश व खोईखोई सी रहने लगी. लेकिन भाई जरूर 20 साल की उम्र में 40 के हो गए थे. भाई ने मां व वानिया को ऐसे संभाला कि मांबेटी दोनों ही पति व पिता के जाने का गम भूल गईं.

विनय उस समय इंजीनियरिंग कर रहा था. इंजीनियरिंग करने के बाद उस ने गुड़गांव से एम.बी.ए. किया और वहीं उस की नौकरी लग गई. वह मां व वानिया को भी अपने साथ गुड़गांव ले गया था और वहीं फ्लैट ले कर रहने लगा. जिस साल वानिया के भाई की नौकरी लगी उस साल उस ने 10वीं का इम्तहान दिया था.

12वीं में 95 प्रतिशत अंक लाने पर वानिया ने अपने भाई से अद्भुत सी चीज मांगी और वह थी भाभी, क्योंकि मां के कई बार कहने पर भी उस के भाई विनय शादी की बात को टाल रहे थे पर छोटी बहन की मांग को वह नहीं ठुकरा सके.

विनय ने मां को सुनंदा के बारे में बताया, जिस ने उस के साथ एम.बी.ए. किया था और अब वह भी एक प्रतिष्ठित कंपनी में मैनेजर थी. मां को भला क्या आपत्ति हो सकती थी. धूमधाम से विनय और सुनंदा का विवाह हो गया. भाभी के रूप में सलोनी लंबीछरहरी सुनंदा को देख वानिया और मां दोनों निहाल हो गईं.

विवाह की धूमधाम खत्म हो गई. सभी लोग विदा हो गए. सुनंदा ने भी नौकरी पर जाना शुरू कर दिया. मां चाहती थीं कि सुनंदा कम से कम कुछ दिन की तो छुट्टियां ले लेती तो उन का भी बहू का चाव पूरा हो जाता, लेकिन फिर उन्होंने मन को यह सोच कर समझा लिया कि आखिर इतने उच्च पद पर कार्यरत लड़की की कई दूसरी जिम्मेदारियां भी तो होती हैं.

शुरुआत में मां व वानिया, सुनंदा को जरा भी कष्ट नहीं होने देतीं, लेकिन बहू उन्हें जरा भी भाव नहीं देती थी. दोनों ही इस बात को महसूस करते हुए भी महसूस नहीं करना चाहती थीं. उन्हें तो बस, सुनंदा को प्यार करने व उस के लिए कुछ भी करने में मजा आता था. अब धीरेधीरे नई बहू व भाभी का चाव खत्म होने लगा तो सुनंदा की अकड़ उन्हें खलने लगी. सुबह की चाय से ले कर रात के खाने तक मां जो कुछ भी बहू के लिए शौक से करती थीं अब मजबूरी लगने लगी.

वानिया के लिए बड़े भाई पिता समान थे. वह उन के आसपास मंडराती रहती लेकिन सुनंदा को यह फूटी आंख न सुहाता. उन के कमरे में जब कभी वानिया आ जाती तो सुनंदा का चेहरा गुस्से से तन जाता. उस के चेहरे को भांप कर वानिया वहां से चली जाती. सुनंदा का दर्प हर समय उस की बातों व व्यवहार में झलकता रहता. वह खुद से ज्यादा योग्य व स्मार्ट किसी को समझती ही नहीं थी. मां या वानिया किसी की तारीफ करतीं तो वह झट उस की कमी की तरफ उंगली उठा देती या मुंह बिचका देती. अपने इस स्वभाव की वजह से सुनंदा हर किसी के दिल में अपने लिए ईर्ष्या के भाव पैदा कर देती.

सुनंदा के साथ अपने वैवाहिक जीवन का सामंजस्य बिठाने की कोशिश में विनय, मां व बहन से दूर होने लगा. धीरेधीरे भाईबहन और मांबेटे के बीच संवादहीनता की स्थिति आने लगी. भाई भी मां व वानिया के जन्मदिन पर कोई महंगा सा उपहार दे कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री मानने लगा.

मां बीमार होतीं तो बेटे की ओर से एक बार डाक्टर व दवाइयों की औपचारिकता पूरी कर दी जाती. उस के बाद यह भी नहीं पूछा जाता कि अब तबीयत कैसी है. इन दिनों भी मां की तबीयत ठीक नहीं चल रही थी. भाई मां को एक बार डाक्टर को दिखा कर दवाइयां ले आए थे. उस के बाद उन को इतनी फुरसत भी नहीं थी कि सुबहशाम 5 मिनट मां के पास बैठ कर, कोमल स्वर में उन का हालचाल पूछ पाते.

वानिया ही किसी तरह अपनी कालिज की पढ़ाई के साथ मां की देखभाल करती और सब को खाना भी पका कर खिलाती. रात भर मां का बुखार देखती, दवा देती और उस घड़ी को कोसती जब उस ने भाई से भाभी की मांग की थी और सुनंदा जैसी भाभी इस घर में आई थीं.

बोला यही जाता है कि प्यार देने पर ही प्यार मिलता है पर वानिया सोचती कुछ लोग सुनंदा भाभी जैसे भी होते हैं जिन के सामने प्यार की, मीठे बोलों की, भावनाओं की, मीठे एहसास की कीमत नहीं होती, बल्कि ऐसे लोग उन्हें मूर्ख लगते हैं.

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‘‘मां, तुम कुछ बोलती क्यों नहीं. भाभी के नौकरी करने का यह मतलब तो नहीं कि घर और तुम्हारी तरफ से वह इस कदर लापरवाह हो जाएं. आखिर यह घर और तुम उन की जिम्मेदारी हो,’’ एक दिन वानिया भन्ना कर बोली.

‘‘किसी दूसरे घर की लड़की को क्या कहना है वानिया, जब अपना बेटा ही परिवार व पत्नी के बीच संतुलन नहीं रख पा रहा है.’’

‘‘भैया भी तो कितने बदल गए हैं मां, फिर भी इस तरह सीधा व समर्पित रह कर काम नहीं चलता. जब दूसरा तुम्हारी भाषा नहीं समझता तो जरूरी है कि उसे उस की भाषा में बात समझाई जाए,’’ वानिया गुस्से में बोली.

‘‘उसे समय भी तो नहीं है न,’’ मां बात को टालने और वानिया को शांत करने की गरज से बोलीं. तभी से वानिया यही सब बड़बड़ा रही थी. उस के ऊपर काम का भार बहुत हो गया था. वह कालिज जाती, किचन में काम करती, मां की भी देखभाल करती, पढ़ाई भी करती, शाम को ट्यूशन भी लेती थी क्योंकि जब से भाभी आई थीं, जेबखर्च के लिए उस को भाई के आगे हाथ फैलाना अच्छा नहीं लगता था.

जानें आगे क्या हुआ कहानी के अगले भाग में…

प्रेम की पुड़िया में 9 दिन का राज

Best Of Manohar Kahaniya: पहली ही रात भागी दुल्हन

सौजन्य: मनोहर कहानियां

26 साल के छत्रपति शर्मा की आंखों में नींद नहीं थी. वह लगातार अपनी नईनवेली बीवी प्रिया को निहार रहा था. जैसे ही प्रिया की नजरें उस से टकराती थीं, वह शरमा कर सिर झुका लेती थी. 20 साल की प्रिया वाकई खूबसूरती की मिसाल थी. लंबी, छरहरी और गोरे रंग की प्रिया से उस की शादी हुए अभी 2 दिन ही गुजरे थे, लेकिन शादी के रस्मोरिवाज की वजह से छत्रपति को उस से ढंग से बात करने तक का मौका नहीं मिला था.

छत्रपति मुंबई में स्कूल टीचर था. उस की शादी मध्य प्रदेश के सिंगरौली शहर के एक खातेपीते घर में तय हुई थी और शादी मुहूर्त 23 नवंबर, 2017 का निकला था. इस दिन वह मुंबई से बारात ले कर सिंगरौली पहुंचा और 24 नवंबर को प्रिया को विदा करा कर वापस मुंबई जा रहा था. सिंगरौली से जबलपुर तक बारात बस से आई थी. जबलपुर में थोड़ाबहुत वक्त उसे प्रिया से बतियाने का मिला था, लेकिन इतना भी नहीं कि वह अपने दिल की बातों का हजारवां हिस्सा भी उस के सामने बयां कर पाता.

बारात जबलपुर से ट्रेन द्वारा वापस मुंबई जानी थी, जिस के लिए छत्रपति ने पहले से ही सभी के रिजर्वेशन करा रखे थे. उस ने अपना, प्रिया और अपनी बहन का रिजर्वेशन पाटलिपुत्र एक्सप्रैस के एसी कोच में और बाकी बारातियों का स्लीपर कोच में कराया था. ट्रेन रात 2 बजे के करीब जब जबलपुर स्टेशन पर रुकी तो छत्रपति ने लंबी सांस ली कि अब वह प्रिया से खूब बतियाएगा. वजह एसी कोच में भीड़ कम रहती है और आमतौर पर मुसाफिर एकदूसरे से ज्यादा मतलब नहीं रखते.

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ट्रेन रुकने पर बाराती अपने स्लीपर कोच में चले गए और छत्रपति, उस की बहन और प्रिया एसी कोच में चढ़ गए. छत्रपति की बहन भी खुश थी कि उस की नई भाभी सचमुच लाखों में एक थी. उस के घर वालों ने शादी भी शान से की थी.

जब नींद टूटी तो…

कोच में पहुंचते ही छत्रपति ने तीनों के बिस्तर लगाए और सोने की तैयारी करने लगा. उस समय रात के 2 बजे थे, इसलिए डिब्बे के सारे मुसाफिर नींद में थे. जो थोड़ेबहुत लोग जाग रहे थे, वे भी जबलपुर में शोरशराबा सुन कर यहांवहां देखने के बाद फिर से कंबल ओढ़ कर सो गए थे. छत्रपति और प्रिया को 29 और 30 नंबर की बर्थ मिली थी.

जबलपुर से जैसे ही ट्रेन रवाना हुई, छत्रपति फिर प्रिया की तरफ मुखातिब हुआ. इस पर प्रिया ने आंखों ही आंखों में उसे अपनी बर्थ पर जा कर सोने का इशारा किया तो वह उस पर और निहाल हो उठा. दुलहन के शृंगार ने प्रिया की खूबसूरती में और चार चांद लगा दिए थे. थके हुए छत्रपति को कब नींद आ गई, यह उसे भी पता नहीं चला. पर सोने के पहले वह आने वाली जिंदगी के ख्वाब देखता रहा, जिस में उस के और प्रिया के अलावा कोई तीसरा नहीं था.

जबलपुर के बाद ट्रेन का अगला स्टौप इटारसी और फिर उस के बाद भुसावल जंक्शन था, इसलिए छत्रपति ने एक नींद लेना बेहतर समझा, जिस से सुबह उठ कर फ्रैश मूड में प्रिया से बातें कर सके.

सुबह कोई 6 बजे ट्रेन इटारसी पहुंची तो प्लैटफार्म की रोशनी और गहमागहमी से छत्रपति की नींद टूट गई. आंखें खुलते ही कुदरती तौर पर उस ने प्रिया की तरफ देखा तो बर्थ खाली थी. छत्रपति ने सोचा कि शायद वह टायलेट गई होगी. वह उस के वापस आने का इंतजार करने लगा.

ट्रेन चलने के काफी देर बाद तक प्रिया नहीं आई तो उस ने बहन को जगाया और टायलेट जा कर प्रिया को देखने को कहा. बहन ने डिब्बे के चारों टायलेट देख डाले, पर प्रिया उन में नहीं थी. ट्रेन अब पूरी रफ्तार से चल रही थी और छत्रपति हैरानपरेशान टायलेट और दूसरे डिब्बों में प्रिया को ढूंढ रहा था.

सुबह हो चुकी थी, दूसरे मुसाफिर भी उठ चुके थे. छत्रपति और उस की बहन को परेशान देख कर कुछ यात्रियों ने इस की वजह पूछी तो उन्होंने प्रिया के गायब होने की बात बताई. इस पर कुछ याद करते हुए एक मुसाफिर ने बताया कि उस ने इटारसी में एक दुलहन को उतरते देखा था.

इतना सुनते ही छत्रपति के हाथों से जैसे तोते उड़ गए. क्योंकि प्रिया के बदन पर लाखों रुपए के जेवर थे, इसलिए किसी अनहोनी की बात सोचने से भी वह खुद को नहीं रोक पा रहा था. दूसरे कई खयाल भी उस के दिमाग में आजा रहे थे. लेकिन यह बात उस की समझ में नहीं आ रही थी कि आखिरकार प्रिया बगैर बताए इटारसी में क्यों उतर गई? उस का मोबाइल फोन बर्थ पर ही पड़ा था, इसलिए उस से बात करने का कोई और जरिया भी नहीं रह गया था.

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एक उम्मीद उसे इस बात की तसल्ली दे रही थी कि हो सकता है, वह इटारसी में कुछ खरीदने के लिए उतरी हो और ट्रेन चल दी हो, जिस से वह पीछे के किसी डिब्बे में चढ़ गई हो. लिहाजा उस ने अपनी बहन को स्लीपर कोच में देखने के लिए भेजा. इस के बाद वह खुद भी प्रिया को ढूंढने में लग गया.

भुसावल आने पर बहन प्रिया को ढूंढती हुई उस कोच में पहुंची, जहां बाराती बैठे थे. बहू के गायब होने की बात उस ने बारातियों को बताई तो बारातियों ने स्लीपर क्लास के सारे डिब्बे छान मारे. मुसाफिरों से भी पूछताछ की, लेकिन प्रिया वहां भी नहीं मिली. प्रिया नहीं मिली तो सब ने तय किया कि वापस इटारसी जा कर देखेंगे. इस के बाद आगे के लिए कुछ तय किया जाएगा. बात हर लिहाज से चिंता और हैरानी की थी, इसलिए सभी लोगों के चेहरे उतर गए थे. शादी की उन की खुशी काफूर हो गई थी.

प्रिया मिली इलाहाबाद में, पर…

इत्तफाक से उस दिन पाटलिपुत्र एक्सप्रैस खंडवा स्टेशन पर रुक गई तो एक बार फिर सारे बारातियों ने पूरी ट्रेन छान मारी, लेकिन प्रिया नहीं मिली.

इस पर छत्रपति अपने बड़े भाई और कुछ दोस्तों के साथ ट्रेन से इटारसी आया और वहां भी पूछताछ की, पर हर जगह मायूसी ही हाथ लगी. अब पुलिस के पास जाने के अलावा कोई और रास्ता नहीं था. इसी दौरान छत्रपति ने प्रिया के घर वालों और अपने कुछ रिश्तेदारों से भी मोबाइल पर प्रिया के गुम हो जाने की बात बता दी थी.

पुलिस वालों ने उस की बात सुनी और सीसीटीवी के फुटेज देखी, लेकिन उन में कहीं भी प्रिया नहीं दिखी तो उस की गुमशुदगी की सूचना दर्ज कर ली. इधर छत्रपति और उस के घर वालों का सोचसोच कर बुरा हाल था कि प्रिया नहीं मिली तो वे घर जा कर क्या बताएंगे. ऐसे में तो उन की मोहल्ले में खासी बदनामी होगी.

कुछ लोगों के जेहन में यह बात बारबार आ रही थी कि कहीं ऐसा तो नहीं कि प्रिया का चक्कर किसी और से चल रहा हो और मांबाप के दबाव में आ कर उस ने शादी कर ली हो. फिर प्रेमी के साथ भाग गई हो. यह खयाल हालांकि बेहूदा था, जिसे किसी ने कहा भले नहीं, पर सच भी यही निकला.

पुलिस वालों ने वाट्सऐप पर प्रिया का फोटो उस की गुमशुदगी के मैसेज के साथ वायरल किया तो दूसरे ही दिन पता चल गया कि वह इलाहाबाद के एक होटल में अपने प्रेमी के साथ है. दरअसल, प्रिया का फोटो वायरल हुआ तो उसे वाट्सऐप पर इलाहाबाद स्टेशन के बाहर के एक होटल के उस मैनेजर ने देख लिया था, जिस में वह ठहरी हुई थी. मामला गंभीर था, इसलिए मैनेजर ने तुरंत प्रिया के अपने होटल में ठहरे होने की खबर पुलिस को दे दी.

एक कहानी कई सबक

छत्रपति एक ऐसी बाजी हार चुका था, जिस में शह और मात का खेल प्रिया और उस के घर वालों के बीच चल रहा था, पर हार उस के हिस्से में आई थी.

इलाहाबाद जा कर जब पुलिस वालों ने उस के सामने प्रिया से पूछताछ की तो उस ने दिलेरी से मान लिया कि हां वह अपने प्रेमी राज सिंह के साथ अपनी मरजी से भाग कर आई है. और इतना ही नहीं, इलाहाबाद की कोर्ट में वह उस से शादी भी कर चुकी है.

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बकौल प्रिया, वह और राज सिंह एकदूसरे से बेइंतहा प्यार करते हैं, यह बात उस के घर वालों से छिपी नहीं थी. इस के बावजूद उन्होंने उस की शादी छत्रपति से तय कर दी थी. मांबाप ने सख्ती दिखाते हुए उसे घर में कैद कर लिया था और उस का मोबाइल फोन भी छीन लिया था, जिस से वह राज सिंह से बात न कर पाए.

4 महीने पहले उस की शादी छत्रपति से तय हुई तो घर वालों ने तभी से उस का घर से बाहर निकलना बंद कर दिया था. लेकिन छत्रपति से बात करने के लिए उसे मोबाइल दे दिया जाता था. तभी मौका मिलने पर वह राज सिंह से भी बातें कर लिया करती थी. उसी दौरान उन्होंने भाग जाने की योजना बना ली थी.

प्रिया के मुताबिक राज सिंह विदाई वाले दिन ही जबलपुर पहुंच गया था. इन दोनों का इरादा पहले जबलपुर स्टेशन से ही भाग जाने का था, लेकिन बारातियों और छत्रपति के जागते रहने के चलते ऐसा नहीं हो सका. राज सिंह पाटलिपुत्र एक्सप्रैस ही दूसरे डिब्बे में बैठ कर इटारसी तक आया और यहीं प्रिया उतर कर उस के साथ इलाहाबाद आ गई थी.

पूछने पर प्रिया ने साफ कह दिया कि वह अब राज सिंह के साथ ही रहना चाहती है. राज सिंह सिंगरौली के कालेज में उस का सीनियर है और वह उसे बहुत चाहती है. घर वालों ने उस की शादी जबरदस्ती की थी. प्रिया ने बताया कि अपनी मरजी के मुताबिक शादी कर के उस ने कोई गुनाह नहीं किया है, लेकिन उस ने एक बड़ी गलती यह की कि जब ऐसी बात थी तो उसे छत्रपति को फोन पर अपने और राज सिंह के प्यार की बात बता देनी चाहिए थी.

छत्रपति ने अपनी नईनवेली बीवी की इस मोहब्बत पर कोई ऐतराज नहीं जताया और मुंहजुबानी उसे शादी के बंधन से आजाद कर दिया, जो उस की समझदारी और मजबूरी दोनों हो गए थे.

जिस ने भी यह बात सुनी, उसी ने हैरानी से कहा कि अगर उसे भागना ही था तो शादी के पहले ही भाग जाती. कम से कम छत्रपति की जिंदगी पर तो ग्रहण नहीं लगता. इस में प्रिया से बड़ी गलती उस के मांबाप की है, जो जबरन बेटी की शादी अपनी मरजी से करने पर उतारू थे. तमाम बंदिशों के बाद भी प्रिया भाग गई तो उन्हें भी कुछ हासिल नहीं हुआ. उलटे 8-10 लाख रुपए जो शादी में खर्च हुए, अब किसी के काम के नहीं रहे.

मांबाप को चाहिए कि वे बेटी के अरमानों का खयाल रखें. अब वह जमाना नहीं रहा कि जिस के पल्लू से बांध दो, बेटी गाय की तरह बंधी चली जाएगी. अगर वह किसी से प्यार करती है और उसी से शादी करने की जिद पाले बैठी है तो जबरदस्ती करने से कोई फायदा नहीं, उलटा नुकसान ज्यादा है. यदि प्रिया इटारसी से नहीं भाग पाती तो तय था कि मुंबई जा कर ससुराल से जरूर भागती. फिर तो छत्रपति की और भी ज्यादा बदनामी और जगहंसाई होती.

अब जल्द ही कानूनी तौर पर भी मसला सुलझ जाएगा, लेकिन इसे उलझाने के असली गुनहगार प्रिया के मांबाप हैं, जिन्होंने अपनी झूठी शान और दिखावे के लिए बेटी को किसी और से शादी करने के लिए मजबूर किया. इस का पछतावा उन्हें अब हो रहा है.

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जरूरत इस बात की है कि मांबाप जमाने के साथ चलें और जातिपांत, ऊंचनीच, गरीबअमीर का फर्क और खयाल न करें, नहीं तो अंजाम क्या होता है, यह प्रिया के मामले से समझा जा सकता है. – कथा में प्रिया परिवर्तित नाम है.

चार बीवियों का पति : भाग 3

रजनी पहली पत्नी थी और उस से नीटू का कानूनी तलाक भी नहीं हुआ था, इसलिए जब वह उस के साथ शारीरिक संबध भी बनाता रहता था. रजनी भी कभी इनकार नहीं कर पाती थी. इसी दौरान लीलू ने अपनी निजी जरूरत के लिए नीटू से 12 लाख रुपए लिए और कुछ समय बाद वापस करने का वादा कर दिया. लेकिन काफी दिन बीत जाने पर भी जब वह पैसे वापस नहीं कर पाया तो नीटू ने उस पर दबाव बनाना शुरू कर दिया.

आखिर एक दिन ऐसी नौबत आई कि नीटू व लीलू में इस बात को ले कर खटपट इतनी बढ़ गई कि नीटू ने उस का हिसाबकिताब चुकता कर उसे पार्टनरशिप से हटा दिया. लेकिन इस के बावजूद नीटू के उस पर 10 लाख रुपए बकाया रह गए.

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अब नीटू जब भी बच्चों से मिलने के लिए गांव जाता तो लीलू पर अपनी रकम वापस करने का दबाव डालता था.

कुछ इंसान गलतियों से भी सीख नहीं लेते. नीटू भी ऐसा ही इंसान था. दौलत की चमक ने उस में अय्याशी की जो भूख पैदा कर दी थी, उसे पूरा करने के बावजूद वह अय्याशियों से बाज नहीं आया.

लिहाजा 2019 आतेआते नीटू का अपने ही दफ्तर में काम करने वाली एक लड़की ज्योति पर दिल आ गया और उस ने ज्योति से आर्यसमाज मंदिर में शादी कर के उसे किराए के एक मकान में रख दिया.

वह कभी शिखा के पास चला जाता तो कभी ज्योति की बाहों का हार बन जाता. लेकिन एक दिन शिखा पर उस की तीसरी शादी का राज खुल गया तो शिखा से उस का झगड़ा शुरू हो गया.

आखिर एक दिन शिखा ने पुलिस बुला ली. जिस के बाद शिखा ने 4 लाख रुपए ले कर नीटू को तलाक दे दिया. जब ज्योति को इस बात का पता चला कि उस से पहले नीटू 2 शादी कर चुका है और इस के अलावा भी कई लड़कियों के साथ उस के संबंध हैं तो 2019 खत्म होतेहोते उस ने भी नीटू से नाता तोड़ लिया और तलाक का आवेदन कर दिया.

उधर लीलू नीटू के कर्ज को ले कर परेशान था. वह नीटू की पत्नी रजनी के लगातार संपर्क में था और नीटू की तीनों शादियों के बारे में उसे भी बता दिया था.

इसी बीच जब ज्योति नीटू को छोड़ कर चली गई तो एक बार फिर उसे औरत की जरूरत महसूस होने लगी. इस बार उस ने शादी डौट कौम पर जीवनसाथी की तलाश कर एक ऐसी लड़की के साथ शादी करने का फैसला किया जो उस के दोनों बच्चों को भी अपना सके.

नीटू की तलाश जल्द ही पूरी हो गई. गुरुग्राम में रहने वाली कविता भी जीवनसाथी खोज रही थी, जिस ने एक बच्चा होने के बाद अपने पति की शराब की लत से परेशान हो कर उसे तलाक दे दिया था. कविता संपन्न परिवार की लड़की थी.

कविता के साथ बात आगे बढ़ी तो उस ने नीटू के दोनों बच्चों को अपनाने की सहमति दे दी. नीटू ने भी कविता की बेटी को पिता का नाम देने और उसे अपनाने की अनुमति दे दी.

सपना, सपना ही रह गया

लौकडाउन के दौरान 20 मई को परिवार वालों की मौजूदगी में नीटू ने कविता से शादी कर ली. शादी के बाद नीटू कविता को ले कर अपने गांव भी गया और उसे दोनों बच्चों से भी मिलाया.

नीटू ने फैसला कर लिया था कि कोरोना का चक्कर खत्म होने के बाद जब लौकडाउन पूरी तरह खत्म हो जाएगा तो दोनों बच्चों व कविता को उस की बेटी के साथ दिल्ली के मकान में ले आएगा. फिलहाल कविता अपनी बेटी के साथ अपने मायके में ही रह रही थी.

इस दौरान सुधीर उर्फ लीलू के जरिए रजनी को यह बात पता चल गई कि नीटू ने फिर से चौथी शादी कर ली है. इस बार उस ने जिस लड़की से शादी की है वो नीटू के परिवार को भी काफी पसंद आई है तो रजनी अपने भविष्य को ले कर चिंता में पड़ गई.

क्योंकि नीटू ने एक तो उसे छोड़ दिया था, ऊपर से उसे खर्चा भी नहीं देता था. अगर कविता से उस के संबध सही रहे तो उस के दोनों बच्चे भी उस के हाथ से चले जाएंगे. ऐसे में न तो उसे नीटू की प्रौपर्टी में से कोई हिस्सा मिलेगा न ही उसे बच्चे मिलेंगे.

लिहाजा उस ने लीलू को दिल्ली बुला कर कोई ऐसा उपाय करने को कहा जिस से उसे नीटू की प्रौपर्टी में हिस्सा मिल जाए. लीलू तो पहले ही नीटू से छुटकारा पाने की सोच रहा था. लिहाजा उस ने रजनी से कहा कि अगर नीटू की हत्या करा दी जाए तो न सिर्फ उस से छुटकारा मिल जाएगा बल्कि उस की प्रौपर्टी भी उसे ही मिल जाएगी.

एक बार इंसान के दिमाग में खुराफात समा जाए तो फिर अपने लालच को पूरा करने के लिए वह उसे अंजाम तक पहुंचा कर ही दम लेता है. रजनी ने लीलू से कहा कि अगर वह किसी कौंट्रेक्ट किलर से नीटू की हत्या करवा दे तो वह केवल नीटू का दिया कर्ज माफ कर देगी बल्कि नीटू का निहाल विहार वाला दूसरा मकान जिस की कीमत करीब एक करोड़ रुपए है, उस के नाम कर देगी. साथ ही उस ने ये भी कहा कि हत्या कराने के लिए जो भी खर्च आएगा वो उस का भी आधा खर्च उसे दे देगी.

लीलू तो पहले ही अपने कर्ज से मुक्ति और नीटू से बदला लेने के लिए किसी ऐसे ही मौके की तलाश में था, अब तो उसे बड़ा फायदा होने की भी उम्मीद थी, लिहाजा उस ने रजनी की बात मान ली.

सुधीर उर्फ लीलू ने विकास की हत्या करने के लिए कौन्ट्रैक्ट किलर से संपर्क किया. बागपत के ही रोहित उर्फ पुष्पेंद्र, सचिन और रवि से उस की पुरानी जानपहचान थी.

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उस ने इस काम के लिए उन तीनों को 6 लाख की सुपारी देना तय किया. 3 लाख रुपए एडवांस दे दिए. लीलू ने उन्हें बता दिया था कि नीटू दिल्ली से अपने गांव आने वाला है, गांव में उस की हत्या को अंजाम देना है.

19 जून को दिन में ही लीलू ने हत्यारों को फोन कर के बता दिया था कि नीटू अपने घेर में बोरिंग करवा रहा है. घेर में उसे मारना बेहद आसान है, इसलिए आज ही मौका देख कर उस का खात्मा कर दें. शाम को रोहित नाम का बदमाश गांव में आया और लीलू से मिला. लीलू ने उसे नीटू का घेर दिखा दिया और अपने साथ ले जा कर रोहित को नीटू की शक्ल भी दिखा दी. उस के बाद वे लोग चले गए.

रात को करीब साढे़ 8 बजे जब पूरी तरह अंधेरा छा गया तो रोहित अपने दोनों साथियों रवि और सचिन के साथ स्पलेंडर बाइक पर गमछे बांध कर घेर पर पहुंचा और विकास उर्फ नीटू की गोली मार कर हत्या कर दी.

पुलिस ने पूछताछ के बाद अभियुक्त रोहित के कब्जे से 1 लाख 20 हजार रुपए, घटना में प्रयुक्त एक स्पलेंडर बाइक, एक तमंचा 315 बोर और 2 जिंदा कारतूस बरामद कर लिए, जबकि नीटू की हत्या की सुपारी देने वाले आरोपी सुधीर उर्फ लीलू से 2 लाख रुपए नकद और स्कोडा कार बरामद हुई.

रजनी से 4 हजार रुपए बरामद किए गए. रोहित से पूछताछ में पता चला कि 12 जून, 2020 को उस ने अपने 2 साथियों के साथ अब्दुल रहमान उर्फ मोनू पुत्र बाबू खान, निवासी बावली जोकि खल मंडी में एक आढ़ती के पास पल्लेदार का काम करता है, से 93,500 रुपए लूट लिए थे, इन्हीं पैसों से उन्होंने नीटू की हत्या के लिए हथियार खरीदे थे क्योंकि घटना को अंजाम देने के लिए हथियारों की व्यवस्था करने का काम शूटर्स का ही था.

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नीटू हत्याकांड के तीनों आरोपियों से पूछताछ के बाद पुलिस ने उन्हें अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. 2 फरार आरोपियों को पकड़ने के लिए पुलिस  प्रयास कर रही थी.

– कथा पुलिस व पीडि़त परिवार से मिली जानकारी पर आधारित

चार बीवियों का पति : भाग 2

रजनी के पास अपने पति की हत्या कराने का आधार तो था, लेकिन बिना सबूत के उस पर हाथ डालना उचित नहीं था. इसलिए पुलिस ने रजनी का मोबाइल नंबर हासिल कर के उस की डिटेल्स निकलवा ली. पुलिस टीम ने जांच को आगे बढाया तो एक और आशंका हुई कि हो ना हो गांव के ही किसी शख्स ने हत्यारों को नीटू के गांव में होने की सूचना दी हो.

क्योंकि आमतौर पर नीटू गांव में कम ही आता था और अगर आता भी था तो केवल एक रात के लिए. एक आंशका ये भी थी कि संभवत: नीटू की हत्या के तार दिल्ली से जुड़े हों. दिल्ली में या तो उस की किसी से कोई दुश्मनी रही होगी या लेनदेन का विवाद.

इसलिए पुलिस की एक टीम ने परिवार वालों से जानकारी ले कर दिल्ली स्थित नीटू के 2 मकानों पर दबिश दी तो पता चला विकास उर्फ नीटू ने एक नहीं बल्कि 4 शादियां की थीं.

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दिल्ली में नीटू के घर में रहने वाले किराएदारों और उस की प्लेसमेंट एजेंसी में काम करने वाले कर्मचारियों से पता चला कि नीटू रंगीनमिजाज इंसान था और अपनी अय्याशियों के कारण महिलाओं से एक के बाद एक शादी करता रहा था.

लेकिन पुलिस को किसी से भी नीटू की अन्य पत्नियों के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं मिल सकी. इसी बीच अचानक मामले में एक नया मोड़ आया. 22 मई को 2 महिलाएं बड़ौत थाने पहुंच कर जांच अधिकारी अजय शर्मा से मिलीं. पता चला कि उन में से एक महिला विकास की दूसरे नंबर की पत्नी शिखा थी और दूसरी कविता जो उस की वर्तमान व चौथे नंबर की पत्नी थी.

उन दोनों ने बताया कि नीटू की पहली पत्नी रजनी ने 2018 में भी एक बार नीटू को मरवाने की साजिश रची थी. ये बात खुद नीटू ने उन से कही थी. शिखा और कविता से जरूरी पूछताछ के बाद पुलिस ने रजनी के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई.

काल डिटेल्स की पड़ताल के बाद पता चला कि जिस रात नीटू की हत्या की गई उसी रात रजनी के मोबाइल पर 9 बजे से 10 बजे के बीच एक ही नंबर से 2 काल आई थीं. जब इन काल्स के बारे में पता किया गया तो जानकारी मिली कि जिस नंबर से काल आईं वह शाहपुर बडौली में रहने वाले नीटू के दोस्त और पुराने पार्टनर सुधीर उर्फ लीलू का था.

आखिर ऐसी कौन सी बात थी कि इतनी रात में लीलू ने नीटू की पत्नी को 2 बार फोन किए. कहीं ऐसा तो नहीं कि लीलू ही वो शख्स हो, जिस ने कातिलों को नीटू के उस रात गांव में होने की जानकारी दी हो.

संदेह के घेरे में रजनी और लीलू

पुलिस को जैसे ही लीलू पर शक हुआ उस के मोबाइल की कुंडली खंगाली गई. पता चला उस रात कत्ल से पहले लीलू की 2 अंजान नंबरों पर भी बात हुई थी. वे दोनों नंबर गांव के किसी व्यक्ति के नहीं थे, लेकिन दोनों नंबरों की लोकेशन गांव में ही थी.

गुत्थियां काफी उलझी हुई थीं, जिन्हें सुलझाने के लिए पुलिस ने सुधीर व नीटू की पहली पत्नी को पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया.

पुलिस ने जब उन के सामने मोबाइल फोन की डिटेल्स सामने रख कर पूछताछ शुरू की तो बहुत ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी. नीटू हत्याकांड की गुत्थी खुद ब खुद सुलझती चली गई. जिस के बाद पुलिस ने मुखबिरों का जाल बिछा कर 25 जून को बावली गांव की पट्टी देशू निवासी रोहित उर्फ पुष्पेंद्र को गिरफ्तार कर लिया. पता चला उसी ने बावली गांव के रहने वाले अपने 2 साथियों सचिन और रवि उर्फ दीवाना के साथ मिल कर नीटू की गोली मार कर हत्या की थी.

पुलिस ने जब रजनी, सुधीर उर्फ लीलू तथा रोहित से पूछताछ की तो नीटू की हत्या के पीछे उस के रिश्तों की उलझन की कहानी कुछ इस तरह सामने आई.

विकास ने जिन दिनों दिल्ली में प्लेसमेंट एजेंसी खोली थी, वह उन दिनों दिल्ली के निहाल विहार में रजनी के घर में किराए का कमरा ले कर रहता था. 2009 में दोनों की यहीं पर जानपहचान हुई थी.

नीटू अय्याश रंगीनमिजाज जवान था, वह अकेला रहता था और उसे एक औरत के जिस्म की जरूरत थी. धीरेधीरे उस ने रजनी से दोस्ती कर ली. रजनी को भी नीटू अच्छा लगा. धीरेधीरे दोनों की दोस्ती प्यार में बदल गई और दोनों के बीच रिश्ते भी बन गए.

लेकिन कुछ समय बाद जब रजनी के परिवार वालों को दोनों के रिश्तों की भनक लगी तो उन्होंने रजनी से शादी करने का दबाव डाला. फलस्वरूप नीटू को रजनी से शादी करनी पड़ी. इस के बाद नीटू ने रजनी के परिवार वाला मकान छोड़ दिया.

चूंकि इस दौरान उस का कामधंधा काफी जम गया था और कमाई अच्छी हो रही थी, इसलिए उस ने नांगलोई में एक प्लौट ले कर उस पर मकान बनवा लिया था. रजनी को ले कर नीटू उसी मकान में रहने लगा.

दोनों की जिंदगी ठीक गुजर रही थी. रजनी और नीटू के 2 बेटे हुए . लेकिन रजनी नीटू की एक बुरी आदत से अंजान थी. प्लेसमेंट के धंधे से होने वाली अच्छीखासी कमाई थी. जब पैसा आया तो अय्याशी का शौक लग गया. इसी के चलते प्लेसमेंट औफिस में धंधा करने वाली लड़कियों को बुला कर अय्याशी करने लगा. जब इंसान के पास इफरात में दौलत आती है तो कई को शराब की लत लग जाती है. औफिस में पीना पिलाना नीटू की रोजमर्रा की आदत बन गई. रजनी को नीटू की अय्याशियों का पता तब चला, जब नीटू के गांव का ही रहने वाला सुधीर उर्फ लीलू नीटू के साथ धंधे में उस का पार्टनर बना. रजनी बच्चों के साथ अक्सर नीटू के गांव भी जाती थी. गांव के दोस्त रजनी को नीटू की पत्नी होने के कारण भाभी कह कर बुलाते थे.

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नीटू ने लीलू को अपने ही घर में रहने के लिए एक कमरा दे दिया था. इसीलिए घर में रहतेरहते लीलू को रजनी से काफी लगाव हो गया था. उसे यह देखकर बुरा लगता कि 2 बच्चों का पिता बन जाने और घर में अच्छीखासी पत्नी होने के बावजूद नीटू अपनी कमाई बाजारू औरतों पर लुटाता है.

रजनी से हमदर्दी के कारण एक दिन लीलू ने रजनी को नीटू की अय्याशियों के बारे में बता दिया. नीटू की बेवफाई और अय्याशियों के बारे में पता चलने के बाद रजनी ने उस पर निगाह रखनी शुरू कर दी और एकदो बार उसे औफिस में अय्याशी करते पकड़ भी लिया. इस के बाद रजनी व नीटू में अक्सर झगड़ा होने लगा.

नीटू की अय्याशी अब घर में कलह का कारण बन गई. इस दौरान नीटू ने इफरात में होने वाली आमदनी से निहाल विहार में ही एक और प्लौट खरीद कर उस पर भी एक मकान बना लिया था. उस ने उसी मकान को अपनी अय्याशी का नया अड्डा बना लिया. 2 बच्चों को जन्म देने के बाद रजनी का शरीर ढलने लगा था. उस में नीटू को अब वो आकर्षण नहीं दिखता था जो उसे रजनी की तरफ खींचता था.

बात बढ़ती गई

नीटू की अय्याशी की लत के कारण रजनी से उस की खटपट व झगड़े इस कदर बढ़ गए कि एक दिन रजनी दोनों बच्चों को छोड़ कर अपने मायके चली गई. दरअसल उन के बीच हुए इस अलगाव की वजह थी शिखा नाम की नीटू की प्रेमिका जिस के बारे में उसे पता चला था कि नीटू उस से शादी करने वाला है.

जब रजनी उसे छोड़ कर अपने मायके चली गई तो नीटू का रास्ता साफ हो गया, लिहाजा उस ने शिखा से शादी कर ली. शिखा के परिवार वालों ने नीटू के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा दिया. साथ ही उन्होंने अपनी तहरीर में आरोप लगाया कि उन की बेटी नाबालिग है. लेकिन शिखा ने अदालत में इस बात का प्रमाण दे दिया कि वह बालिग है.

इस पर अदालत ने उसे बालिग मान कर न सिर्फ नीटू के खिलाफ दर्ज मुकदमे को खारिज कर दिया बल्कि उस की शादी को भी वैध करार दिया.

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इस दौरान नीटू के दोनों बच्चे गांव में उस के मातापिता के पास रहने लगे थे. तब तक नीटू ने परिवार के अलावा गांव वालों को इस बात की भनक नहीं लगने दी थी कि उस ने रजनी को छोड़ कर दूसरी लड़की से शादी कर ली है. चूंकि रजनी उस के बच्चों की मां थी इसलिए नीटू कभीकभी उसे बच्चों से मिलाने के लिए अपने साथ गांव ले जाता था.

जानें आगे क्या हुआ कहानी के अगले भाग में…

चार बीवियों का पति : भाग 1

दिल्ली से सटे बागपत जिले में एक गांव है शाहपुर बडौली. विकास तोमर उर्फ नीटू (32) यहीं का रहने वाला था. उस के पिता किसान थे. 5 भाइयों में नीटू चौथे नंबर का था. 3 भाई उस से बड़े थे. जबकि एक छोटा था. नीटू ज्यादा पढ़ालिखा नहीं था. इंटर तक पढ़ाई करने के बाद वह दिल्ली चला आया था. करीब 12 साल पहले वह जब दिल्ली आया था तो उस के पास 2 जोड़ी कपड़े और पांव में एक जोड़ी जूते थे.

नीटू ने एक प्लेसमेंट एजेंसी की मदद से एक फैक्ट्री में नौकरी कर ली. लेकिन जब उसे पहले महीने की सैलरी मिली तो वह आधी थी. पता चला आधी सैलरी कमीशन के रूप में प्लेसमेंट एजेंसी ने अपने पास रख ली.

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नीटू ने उस फैक्ट्री में 5 महीने तक नौकरी की. लेकिन हर महीने सैलरी में से एक फिक्स रकम प्लेसमेंट एजेंसी कमीशन के रूप में काट लेती थी. अगर नीटू विरोध करता तो प्लेसमेंट एजेंसी उसे नौकरी से निकालने की धमकी देती.

नीटू को लगा कि नौकरी से तो अच्छा है कि प्लेसमेंट एजेंसी खोल लो और दूसरों की कमाई पर खुद ऐश करो.

लेकिन प्लेसमेंट एजेंसी यानी कि लोगों को नौकरी दिलाने का कारोबार चलता कैसे है. इस सवाल का जवाब पाने के लिए नीटू ने नांगलोई की एक प्लेसमेंट एजेंसी में करीब 6 महीने तक पहले औफिस बौय फिर सुपरवाइजर की नौकरी की.

नौकरी करना तो एक बहाना था ताकि गुजरबसर और खानेखर्चे का इंतजाम होता रहे. असल बात तो यह थी कि नीटू प्लेसमेंट एजेंसी के धंधे के गुर सीखना चाहता था. आखिरकार 7-8 महीने की नौकरी के दौरान नीटू ने प्लेसमेंट एजेंसी चलाने के गुर सीख लिए.

इस के बाद उस ने अपने परिवार से आर्थिक मदद ली और नांगलोई के निहाल विहार में ही एक दुकान ले कर प्लेसमेंट एजेंसी का दफ्तर खोल लिया. पास के ही एक मकान में उस ने रहने के लिए कमरा भी ले लिया.

प्लेसमेंट एजेंसी चलाने के लिए जरूरी लाइसैंस तथा कानूनी औपचारिकता भी उस ने पूरी कर लीं. संयोग से उस का धंधा चल निकला. देखतेदेखते नीटू लाखों में खेलने लगा. लेकिन दिक्कत यह थी कि वह अकेला पड़ जाता था. उस के पास कोई भरोसे का आदमी नहीं था.

लेकिन जल्द ही उस की ये परेशानी भी दूर हो गई. उसी के गांव में रहने वाला सुधीर जिसे गांव में सब प्यार से लीलू कहते थे, उस के साथ काम करने के लिए तैयार हो गया.

नीटू ने लीलू को अपने साथ रख लिया और तय किया कि वह उसे सैलरी नहीं देगा बल्कि जो भी कमाई होगी, उस में से एक चौथाई का हिस्सा उसे मिलेगा. इस के बाद तो कुदरत ने नीटू का ऐसा हाथ पकड़ा कि देखते ही देखते उस का धंधा तेजी से चल निकला और उस के ऊपर पैसे की बारिश होने लगी.

अचानक हुई हत्या

नीटू के एक बड़े भाई की पिछले साल एक दुर्घटना में मौत हो गई थी. 22 जून, 2020 को उस की बरसी थी. भाई की बरसी पर घर में होने वाले हवनपूजा और दूसरे रीतिरिवाजों को पूरा करने के लिए नीटू गांव में अपने परिवार के पास आया हुआ था. वैसे भी कोरोना वायरस की वजह से लगे लौकडाउन के बाद कामधंधे ठप पड़े थे. इसलिए नीटू ने सोचा कि जब पूजापाठ के लिए गांव आया हूं तो क्यों न घर में छोटेमोटे बिगड़े पड़े कामों को सुधार लिया जाए.

घर से थोड़ी दूरी पर बने घेर (पशुओं का बाड़ा और बैठक) में 19 जून को नीटू ने बोरिंग कराने का काम शुरू कराया था. सुबह से शाम हो गई थी. काम अभी भी बाकी था. रात के करीब साढ़े 8 बज चुके थे. नीटू का छोटा भाई बबलू और बड़ा भाई अजीत घेर में उस के पास बैठे गपशप कर रहे थे. तभी अचानक एक पल्सर बाइक तेजी से घेर के बाहर आकर रुकी.

बाइक पर 3 लोग सवार थे, जिन में से 2 गाड़ी से उतरे और घेर के अंदर आ गए. तीनों भाई दरवाजे से 8-10 कदम की दूरी पर पड़ी अलगअलग चारपाइयों पर बैठे थे. उन्होंने सोचा बाइक से उतरे लड़के शायद कुछ पूछना चाहते होंगे.

दोनों लड़कों ने कुर्ता और जींस पहन रखी थी. मुंह पर मास्क की तरह गमछे बांधे हुए थे. क्षण भर में दोनों लड़के नीटू की चारपाई के पास पहुंचे. इस से पहले कि नीटू या उस के भाई कुछ पूछते अचानक दोनों युवकों ने कुर्ते के नीचे हाथ डाल कर तमंचे निकाले और एक के बाद एक 2 गोलियां चलाईं, जिस में से एक गोली नीटू की छाती में लगी दूसरी उस की कनपटी पर. गोली चलते ही दोनों भाइयों के पांव तले की जमीन खिसक गई. जान बचाने के लिए वे चीखते हुए घेर के भीतर की तरफ भागे.

मुश्किल से 3 या 4 मिनट लगे होंगे. जब हमलावरों को इत्मीनान हो गया कि नीटू की मौत हो चुकी है तो वे जिस बाइक से आए थे, दौड़ते हुए उसी पर जा बैठे और आखों से ओझल हो गए.

गोली चलने और चीखपुकार सुन कर गांव के लोग एकत्र हो गए. सारा माजरा पता चला तो नीटू के परिवार के लोग भी घटनास्थल पर पहुंच गए. देखते देखते पूरा गांव नीटू के घेर के अहाते के बाहर एकत्र हो गया.

गांव के लोग इस बात पर हैरान थे कि हमलावरों ने 3 भाइयों में से केवल नीटू को ही गोलियों का निशाना क्यों बनाया. नीटू तो वैसे भी गांव में नहीं रहता था फिर उस की किसी से ऐसी क्या दुश्मनी थी कि उस की हत्या कर दी गई.

इस दौरान गांव के प्रधान ने इस वारदात की सूचना पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी थी. वहां से यह सूचना बड़ौत थाने की पुलिस को दी गई.

लौकडाउन का दौर चल रहा था. लिहाजा पुलिस भी लौकडाउन का पालन कराने के लिए सड़कों पर ही थी. बड़ौत थानाप्रभारी अजय शर्मा को जैसे ही शाहपुर बडौली में एक व्यक्ति की गोली मार कर हत्या करने की सूचना मिली तो वह एसएसआई धीरेंद्र सिंह तथा अपनी पुलिस टीम के साथ बडौली गांव में पहुंच गए.

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सूचना मिलने के करीब एक घंटे के भीतर बड़ौत इलाके के सीओ आलोक सिंह, एडीशनल एसपी अनित कुमार तथा एसपी अजय कुमार सिंह भी घटनास्थल पर आ गए.

पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया. चश्मदीद के तौर पर 2 ही लोग थे नीटू के भाई अजीत व बबलू. दोनों न अक्षरश: पुलिस के सामने वह घटनाक्रम बयान कर दिया जो हुआ था. लेकिन वारदात को किस ने अंजाम दिया, नीटू की हत्या क्यों हुई, क्या उस की किसी से दुश्मनी थी. कातिल कौन हो सकता है, जैसे पुलिस के सवालों के जवाब परिवार का कोई भी शख्स नहीं दे पाया. वजह यह कि नीटू की हत्या खुद उन के लिए भी एक पहेली की तरह ही थी.

हत्या का कारण पता नहीं चला

बहरहाल पुलिस को तत्काल नीटू की हत्या के मामले में कोई अहम जानकारी नहीं मिल सकी. इसलिए रात में ही शव को पोस्टमार्टम के लिए बागपत के सरकारी अस्पताल भिजवा दिया गया. नीटू की हत्या का मामला बड़ौत कोतवाली में भादंसं की धारा 302, 452, 506 और दफा 34 के तहत दर्ज कर लिया गया.

एसपी अजय कुमार ने एएसपी अनित कुमार सिंह की निगरानी में एक पुलिस टीम गठित करने का आदेश दिया. सीओ आलोक सिंह के नेतृत्व में गठित इस टीम में बड़ौत थानाप्रभारी अजय शर्मा के अलावा एसएसआई धीरेंद्र सिंह, कांस्टेबल विशाल कुमार, हरीश, देवेश कसाना, रोहित भाटी, अजीत के अलावा महिला उपनिरीक्षक साक्षी सिंह तथा महिला कांस्टेबल तनु को भी शामिल किया गया.

पुलिस ने गांव में कुछ मुखबिर भी तैनात कर दिए ताकि लोगों के बीच चल रही चर्चाओं की जानकारी मिल सके.

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शुरुआती जांच के बाद यह बात सामने आई कि संभव है इस वारदात को नीटू की पहली पत्नी रजनी ने अंजाम दिया हो. पता चला नीटू ने अपनी पत्नी को कई सालों से छोड़ रखा था. वह दिल्ली में अपने मायके में रहती थी, लेकिन उसके दोनों बच्चे गांव में नीटू के घरवालों के पास रहते थे. साथ ही पुलिस को यह भी पता चला कि जिस रात नीटू की हत्या हुई उसी रात सूचना मिलने के बाद नीटू की पहली पत्नी रजनी रात को करीब 1 बजे गांव पहुंच गई थी.

जानें आगे क्या हुआ कहानी के अगले भाग में…

आ अब लौट चलें : भाग 3

लेखक- नीरज कुमार मिश्रा

दिनेश की आटा मिल भी बंद हो गई. वह भारी मन से साइकिल खड़ी कर के अपने कमरे में गया तो फुलवा उसे देख कर ही समझ गई कि दिनेश कुछ परेशान है.

‘‘क्या बात है जी… आज मुंह लटकाए आ रहे हो… किसी से लडाईझगड़ा हो गया क्या?‘‘ फुलवा न पूछा.

‘‘नहीं रे फुलवा… सुना है, पूरी दुनिया में कोई भयानक बीमारी फैल रही है. लोग मर रहे हैं… इसलिए सरकार ने सारे उद्योग, सभी  कामकाज को पूरी तरह से बंद करने का निर्णय लिया है. और ये सब तब तक बंद रहेगा, जब तक यह बीमारी पूरी तरह से खत्म नहीं हो जाती,” दुखी मन से दिनेश ने कहा.

‘‘सबकुछ बंद… पर, ऐसा कैसे हो जाएगा… और काम नहीं होगा तो हमें पैसा कहां से मिलेगा… और… और हम खाएंगे क्या… हमें तो लगता है कि कोई मजाक किया है तुम से,‘‘ फुलवा ने चौंक कर कहा.

पर, ये तो कोई मजाक नहीं था… धीरेधीरे सबकुछ बंद होने की खबर फुलवा को भी पता चल गई और उस को भी मानना पड़ गया कि हां, सबकुछ वास्तव में ही बंद हो गया है.

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महल्ले में सारे मजदूर अपनेअपने घरों में ही बैठे थे और उस बीमारी को कोस रहे थे, जिस ने आ कर उन सब की जिंदगी पर ही एक सवालिया निशान लगा दिया था.

सभी के साथ ही दिनेश का भी दम घुटता था घर में… खाने का सामान और राशन भी धीरेधीरे खत्म हो रहा था. जब ज्यादा परेशानी आई तो दिनेश को अपना गांव याद आया.

‘‘फुलवा, मैं तो कहता हूं कि चलो अपने गांव लौट चलते हैं…”

लेकिन, गांव जाने का नाम सुनते ही फुलवा पूछ बैठी, ‘‘गांव… गांव जा कर क्या करेंगे? यहां जमीजमाई गृहस्थी है… इसे छोड़ कर कहां जाएंगे.”

‘‘यहां शहर में भी अब क्या रखा है… मालिक पगार नहीं दे रहा… अब हम यहां कितने दिन खाएंगे… और क्या खाएंगे… गांव में हमारी जमीन का एक टुकड़ा है… छोटा भाई उस पर खेती करता है… उसी पर हम भी कुछ उगा लेंगे और आराम से रहेंगे… कम से कम मरेंगे तो नहीं,‘‘ परेशान भाव से दिनेश ने कहा.

शहर में लौकडाउन था. सबकुछ ठप हो गया था. बहुत सारे मजदूर अपने गांव को चल पड़े थे. सरकारी तंत्र भी इन मजदूरों के पलायन को व्यवस्थित और सुरक्षित कर पाने में पूरी तरह नाकाम रहा था, इसलिए कई मजदूरों के जत्थे पैदल ही अपने गांव की ओर चल पड़े थे और इस दौरान उन मजदूरों के साथ कई दुखद हादसे भी हो चुके थे.

पर, शहर में काम न होने के कारण किसी भी हालत में दिनेश को यहां रहना रास नहीं आ रहा था. वह बस अपने गांव पहुंच जाना चाहता था. कम से कम गांव पहुंच कर जिंदा तो रह सकेगा वह.

और इसी सोच को लिए वह जब भी फुलवा से बात करता तो वह भी इसी शहर में रहने की बात पर अड़ जाती और दोनों में मनमुटाव की नौबत आ जाती.

दिनेश ने भी शहर में ही रह कर लौकडाउन के खुलने का इंतजार किया, पर हालात दिनबदिन खराब ही होते दिख रहे थे. रोजगार बंद हो गए थे और खानेपीने की चीजें भी महंगी हो रही थीं.

काम पर जाने के लिए बड़े अरमानों से लाई गई साइकिल भी अब धूल खा रही थी. महल्ले में चारों तरफ मरघट जैसा सन्नाटा सा छाया रहता था. महल्ले के कई लोग भी अपनेअपने गांव को चले गए थे और उन्हें गांव को जाता देख दिनेश को भी अपने गांव की याद सताती, पर फुलवा की जिद के आगे वह मजबूर था और मन मसोस कर रह जाता.

अब दिनेश के चेहरे पर  पहले वाली चमक नहीं रही, पगार पहले से ही बंद हो गई थी और घर के हालात भी खराब हो गए थे. फुलवा से भी ज्यादा ठिठोली नहीं करता था दिनेश.

कुछ दिन और बीते गए और उस की उदासी का कारण गांव न जा पाना है. इस कारण को फुलवा जान गई, तो उस ने अपनी जिद छोड़ने की सोची, ‘‘सुनोजी, हमें लगता है कि अब हम को भी गांव ही लौट जाना चाहिए. हमारे वास्ते शहर में अब कुछ नहीं बचा है. गांव जा कर कम से कम अपनी जिंदगी तो बचा सकेंगे हम.’’

फुलवा की ये बातें सुन कर दिनेश खुशी से झूम उठा. फुलवा को बांहों में भर कर दिनेश बोला, ‘‘हां फुलवा, मुझे पूरा यकीन था कि तुम जरूर मन जाओगी. हम कल ही सुबहसवेरे गांव की ओर निकल जाएंगे,” दिनेश चहकते हुए कह रहा था.

‘‘पर, ट्रेनें, बसें वगैरह सब तो बंद हैं… फिर हम जाएंगे कैसे?‘‘ फुलवा ने वाजिब सवाल किया.

‘‘अरे, उस की चिंता तू क्यों करती है? मेरे बहुत से साथी तो अपने परिवार के साथ पैदल ही गांव लौट गए हैं. जब वे पैदल जा सकते हैं, तो मैं और तुम साइकिल से क्यों नहीं…?‘‘ दिनेश ने साइकिल की ओर इशारा करते हुए कहा.

‘‘साइकिल से कैसे गांव जाएंगे?‘‘ फुलवा चौंकी.

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‘‘अरे तू चिंता मत कर… मैं अपना सारा सामान मकान मालिक की गाड़ी के गैराज में रख दूंगा. जब स्थिति सामान्य हो जाएगी तो यहां आ कर सामान ले जाऊंगा… फिलहाल तो मैं और तुम साइकिल पर गाना गाते हुए चले चलेंगे गांव की तरफ.”

दिनेश ने समाधान बता दिया.

‘‘ठीक है, फिर हमें अभी से सामान रखने की तैयारी शुरू करनी होगी,” फुलवा ने कहा.

दोनों पतिपत्नी ने अपना हर सामान रखना शुरू कर दिया था और शाम तक सारा सामान मकान मालिक के गैराज में सुरक्षित रखवा दिया गया और हालात सामान्य होने पर सामान हटा लेने की बात भी दिनेश ने मकान मालिक को बता दी.

दिनेश ने शाम को अपनी साइकिल साफ कर दी थी और खापी कर दोनों जल्दी सो गए, क्योंकि अगली सुबह ही उन्हें गांव के लिए निकलना था.

सुबह उठ कर नहाधो कर दोनों तैयार हो गए. फुलवा ने एक छोटा सा कंधे पर लटकाने वाला बैग जरूर साथ ले लिया था.

एक ओर फुलवा का मन भारी हो रहा था, तो वहीं दूसरी ओर दिनेश खुश हो रहा था कि अब उसे शहर की नौकरी में किसी की डांट नहीं खानी पड़ेगी.

दोनों ही कमरे से उतर कर नीचे पहुंचे, जहां साइकिल खड़ी होती थी, पर साइकिल तो वहां से नदारद थी.

दिनेश ने चौंकते हुए इधरउधर खोजा, पर साइकिल वहां नहीं थी. साइकिल के खड़े होने की जगह पर ईंट के एक छोटे टुकड़े से दबा कर परचानुमा कागज जरूर रखा था.

फुलवा ने उसे खोला और पढ़ने लगी, “दोस्त दिनेश, उस दिन मेरे मांगने पर तुम ने मुझे साइकिल तो नहीं दी… मैं ने भी उस बात का बुरा नहीं माना था… पर, सही माने में आज मुझे इस साइकिल की जरूरत उस दिन से भी ज्यादा आ पड़ी है…

“तुम तो शहर के हालात बखूबी जानते ही हो… अब यहां रहना बहुत मुश्किल लग रहा है… तुम यह भी जानते हो कि मेरा एक दिव्यांग बेटा भी है और गांव में उस की मां अकेली हमारी राह देख रही है.

“एक दिव्यांग बेटे को उस की मां से मिलाने के लिए मेरा गांव जाना बहुत जरूरी है. मेरे पास गांव जाने का कोई और साधन न होने के कारण मैं तुम्हारी साइकिल चुरा कर ले जा रहा हूं. वापस कर पाऊंगा या नहीं, यह तो मैं नहीं जानता. पर उम्मीद है कि तुम मुझे माफ कर सकोगे…

“तुम्हारी तरह किस्मत का मारा तुम्हारा पड़ोसी मनोज”

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परचानुमा कागज पढ़ कर फुलवा और दिनेश की आंखों में आंसू आ गए.

बस फर्क खुशी और दुख के आंसुओं का था…

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