बाढ़ पीड़ितों की मदद के लिए आगे आए पप्पू यादव, तस्वीरें हो रहीं हैं वायरल

जन अधिकार पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव की इन दिनों पटना बाढ़ पीड़ितों में फंसे लोगों की सहायता करते हुए की तस्वीरें व वीडियो खूब वायरल हो रहीं है. वह अपने पार्टी के सदस्यों के साथ बाढ़ के पानी में राहत सामग्री वितरित करते हुए नजर आ रहे हैं. उनके साथ जहां एक तरफ पार्टी के सदस्य दिन-रात बाढ़ पीड़ितों को सहायता पहुंचाने में लगे हुए हैं. वही आम लोग भी पप्पू यादव के जरिए आर्थिक सहायता पहुंचा कर बाढ़ पीड़ितों की मदद कर रहे हैं.

पप्पू यादव के इस काम की लोग जम कर सराहना कर रहें हैं. पप्पू यादव के फेसबुक आईडी व उनके वास्तविक नाम राजेश रंजन के नाम से बने फेसबुक पेज व ट्विटर पेज पर उनके तस्वीरों पर खूब, लाइक कमेन्ट व शेयर हो रहें है. इन दिनों पटना व आसपास के शहर भीषण रूप से बाढ़ के पानी में गिरे हुए हैं. जिससे लोग अपने घरों में कैसे हो कर रह गए हैं. लोगों में खाने-पीने की सामग्री का बेहद अकाल है. और बिहार सरकार बाढ़ पीड़ितों को मदद पहुचाने में लाचार नजर आ रही है. ऐसे में पप्पू यादव बाढ़ पीड़ितों के लिए मसीहा बनकर सामने आए हैं.

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बाढ़ पीड़ितों को राहत पहुंचाने के लिए पप्पू यादव दिन रात अपने साथियों के साथ कमर से ऊपर पानी में घुसकर लोगों के घरों तक राहत सामग्री पहुंचा रहे हैं. वहीं जहां पर पानी में घुसकर राहत सामग्री पहुंचाना संभव नहीं है वहां वह ट्रैक्टर व जेसीबी के जरिए भी राहत सामग्री का वितरण करते हुए नजर आ रहे हैं. बाढ़ के पानी में घिरे अमीर व गरीब लोगों में पप्पू यादव द्वारा वितरित किये जा रहे दूध, पानी व खाद्य सामग्री रस्सियों व जेसीबी के जरिये पहुचाएं जा रहें है.

पप्पू यादव के जरिए सहायता के लिए आगे आ रहे हैं लोग-

पप्पू यादव द्वारा बाढ़ पीड़ितों को पहुचाये जा रहे राहत कार्य से प्रभावित होकर लोग उनके जरिये बाढ़ पीड़ितों को मदद पहुचाने में आर्थिक सहयोग के लिए भी आगे आ रहें हैं. इसमें आम आदमी से लेकर नौकरीपेशा व विदेशों में रह रहे लोग भी शामिल हैं.  पप्पू यादव ने अपने राजेश रंजन वाले पेज पर लिखा है कि- “नगर अध्यक्ष मधेपुरा के बीडीओ के गोपीकृष्ण उन्हें 100000 रूपये  की मदद बाढ़ पीड़ितों में मदद पहुचाने के लिए दी है. हम आपकी भावनाओं का सम्मान करते हैं. आपने पटना के लोगों के दर्द को समझा और उनकी परेशानी से निकलने निकालने में हमारी मुहिम को अपना योगदान दिया. गोपी जी आपको पटना के लोगों की दुआएं खूब मिलेंगी धन्यवाद”.

वही उन्होंने लिखा है कि नवादा जिले के शिक्षक राजकुमार प्रसाद जी को सलूट जिन्होंने पटना में मुसीबत की मार झेल रहे लोगों की मदद के लिए आज अपना 1 महीने का वेतन दे दिया. रियल हीरो राजकुमार जी हैं ऐसे लोग हमारे बीच रहेंगे तब तक इंसानियत जिंदा रहेगी.

पप्पू यादव अपने राजेश रंजन नाम की पेज से लिखते हैं कि पटना के परेशान लोगों की पीड़ा को विदेशों में में रह रहे लोग भी महसूस कर रहे हैं. यही वजह है कि शिकागो में रह रहे श्री शंभू प्रसाद जी और उनकी पत्नी और आर प्रसाद जी ने 525 यूएस डौलर यानी 36751 रूपये की आर्थिक मदद भेजी है. इसके अलावा शिकागो से श्री समर्थ अबरोल जी ने भी 257 यूएस डॉलर यानी 18000 रूपये की मदद की है. हम आपको पटना से लोगों की तरफ धन्यवाद देते हैं और आपका आभार प्रकट करते हैं.

9 वर्ष की बच्ची ने अपने गुल्लक से दिए 11 हजार रूपये –

पप्पू यादव के रात कार्यों के बारे में अपने परिवार वालों के सोशल मीडिया के जरिये जानकारी होने पर उनके राहत कार्यों से प्रभावित होकर बिहार के समस्तीपुर जिले की रहने वाली नौ वर्ष की बच्ची सौम्या सिद्धि ने भी अपनी पौकेट मनी से गुल्लक में बचा कर रखे गए 11000 रुपयों को पटना आकर पप्पू यादव को सौंपा. सौम्या सिद्धि ने बताया कि वह पप्पू यादव के कार्यों से प्रभावित होकर अपने गुल्लक में बचाए गए 11000 रुपयों को गुल्लक तोड़कर पप्पू यादव को समस्ती पुर से पटना तक देनें आई है. इस बात की जानकारी पप्पू यादव ने अपने टि्वटर पेज पर शेयर भी किया है उन्होंने लिखा है –

“माता-पिता के द्वारा जब बच्चों में सेवाभाव और मानवता का संस्कार भरा जाए, तो लगता है कि अभी भी बहुत कुछ बचा है. वहीं, 24 घंटे में पानी निकालने वाले रणछोड़ मोदी को सौम्या से सबक लेना चाहिए, जो सालों से गुल्लक में जोड़े अपने पैसे लेकर टीवी और सोशल मीडिया में पटना के लोगों की परेशानी देख कर मदद के लिए निकल पड़ी.”

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बाढ़ पीड़ितों को राहत पहुंचाने में नाकाम होने पर उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी द्वारा अपने पड़ोसियों को बाढ़ में छोड़कर भाग जाने के बाद जब इसकी जानकारी पप्पू यादव को हुई तो वह सुशील मोदी के कौलोनी के लोगों को भी राहत पहुंचाने के लिए पहुंच गए. उन्होंने अपने फेसबुक आईडी पर लिखा है की “अभी हम सुशील कुमार मोदी के राजेंद्र नगर स्थित घर पर आए हैं जहां जो भी लोग फंसे हैं उनको पानी और खाना दिया जा रहा है . इस इलाके में पानी अभी भी इतना लगा हुआ है कि लोग बेहाल है . लेकिन सुशील मोदी जी अपने पड़ोसियों को छोड़कर भाग खड़े हुए हैं”.

उन्होंने लिखा है “बिहार के उपमुख्यमंत्री के राजेंद्र नगर स्थित घर घर वाले इलाके में स्थिति बेहद ख़राब है. हम वहां पहुंच कर फंसे लोगों की मदद कर रहे हैं. जो घर के छत पर खड़े होकर मदद की गुहार लगा रहे हैं. वह लिखते हैं सुशील कुमार मोदी की गली में तो लोग रोने लगते हैं . ऐसे में मेरे आंखों से आंसू निकल आए . स्थिति  इतनी खराब है स्थिति है कि बताया नहीं जा सकता है.”

भूखे बच्चों की मां के आंसू बताते हैं कि बिहार में बहार

राजेश रंजन उर्फ़ पप्पू यादव के सोशल मीडिया पेज पर शेयर किये जा रहें फोटो व वीडियो पर लोग बिहार सरकार पर जहां जम कर भड़ास निकाल रहें हैं . वहींं पप्पू यादव की जम कर तारीफ भी कर रहें हैं. उनके एक ट्वीट पर जावेद आलम नाम के यूजर ने लिखा है- “बिहार के इस कठिन समय मे आपसे जितने लोगो की मदद हो रही है आप कर रहे है,बहुत ही सहरानीय कार्य ह . आपने बिना स्वर्थ के सभी लोगो की मदद कर रहे है. इस मदद को जनता जरूर याद रखेगी. क्योंकि जो सरकार में रहकर कार्य नही कर पा रहे है,आप बिना किसी पद के रहते हुए भी इतने लोगों की मदद की.” वहीं  राकेश कुमार नाम का यूजर लिखता है – “देखे सुशील मोदी और नीतीश कुमार एक बच्ची भी आप से समझदार है वो गुल्लक फोड़ लाई और आप मजबूरी में फंसे लोगो का हम मारते हैं. ये कलयुग है हर आदमी का हिसाब यही पर होता है.
बाढ़ पीड़ितों के मदद में आगे आये पप्पू यादव इन दिनों बिहार के लिए हीरो बन कर उभरें है. उनके द्वारा किये जा रहे राहत कार्यों की सराहना सभी को करनी चाहिए.

भूखे बच्चों की मां के आंसू बताते हैं कि बिहार में बहार नहीं सिर्फ हाहाकार है!

सितंबर का महीना वास्तव में भर-भर के सितम लेकर आया. खासकर के बिहार वासियों के लिए. पहले तो बारिश हुई नहीं और जब हुई तो ऐसी हुई कि बिहार की राजधानी पटना का 90 फीसदी हिस्सा जलमग्न हो गया. कौन मंत्री, कौन संत्री, कौन ब्यूरोक्रेट कोई नहीं बच पाया.

जिस वक्त बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी आधे पानी में डूबकर घर से बाहर निकलने की जद्दोजहद कर रहे थे उसको देखकर लग गया कि सरकार भी आधी डूब गई. हालांकि वो ठहरे सियासतदान. उनके लिए आनन-फानन व्यवस्थाएं की गई. जल्द से जल्द उनको पानी से बाहर सुरक्षित स्थान ले जाया गया. अब यहां थोड़ा जिक्र कर लेते हैं सुशासन बाबू की.

जी हां बिहार के सीएम नीतीश कुमार जिनको जनता ने सुशासन बाबू का खिताब दिया हुआ है. लालू के कुशासन से त्रस्त जनता से नीतीश कुमार को प्रदेश की कमान सौंप दी. नीतीश कुमार ने जनता के भरोसे को टूटने भी नहीं दिया. उसी का नतीजा है नीतीश कुमार लगातार तीसरी बार बिहार के मुख्यमंत्री बने हैं. सुशासन बाबू के प्रदेश में कानून व्यवस्था तो सुधरी लेकिन नहीं सुधरा तो बिहार का इंफ्रास्ट्रक्चर. उसी का परिणाम है कि सरकार के नंबर दो सुशील मोदी को पानी में डूबकर घर से बाहर निकलना पड़ा.

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जरा अब बात कर लेते हैं कि आखिरकार बार-बार ऐसा क्यों होता है. क्यों राजधानी पटना का ये हाल बना हुआ है. सुशासन बाबू ग्रह-नक्षत्रों को क्यों दोष दे रहे हैं. क्यों नहीं सुशासन कुमार इस बात से ताल्लुक रखते कि उनसे गलती हुई. जब तक एक इंसान ये स्वीकार नहीं करेगा कि उससे गलती हुई, तब तक वो उसको कैसे सुधारेगा. आज भी पटना की आधी आबादी को साफ पानी मुहैया नहीं हो पा रहा है.

लोग पानी के लिए तसर रहे हैं. बच्चों को दूध नहीं मिल रहा. घरों का सामान सड़ रहा है लेकिन माननीय मुख्यमंत्री जी पहले तो हवाई दौरा किया. उसके बाद 19 लग्जरी गाड़ियों का काफिला लेकर बाढ़ के हालात देखने निकले. सीएम के काफिले को देखकर लगा नहीं कि सीएम साहब वाकई पीड़ितों का दर्द बांटने आए हैं. जो तस्वीरें हमने देखी उसमें तो ऐसा लगा कि मानों सीएम साहब शक्ति प्रदर्शन कर रहे हों.

फिलहाल बारिश थम गई है. सोमवार को कभी-कभी सिर्फ बूंदाबांदी ही हुई. कुछ ऊंचे इलाकों से पानी हटा भी है. मगर अभी भी निचले इलाकों राजेंद्र नगर, कदमकुआं, पटना सिटी, कंकड़बाग और इंद्रपुरी-शिवपुरी में लाखों की आबादी जलजमाव में फंसी है. लेकिन बुधवार को फिर से मौसम विभाग ने ऑरेंज अलर्ट जारी कर दिया. यानी फिर मूसलाधार बारिश का अनुमान लगाया जा रहा है.

सरकार, प्रशासन की भूमिका और “राहत तथा बचाव” कार्यों की है तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इसे नेचर (प्रकृति) से उत्पन्न आपदा मान चुके हैं, प्रशासन की विफलता इस बात से भी स्पष्ट हो जाती है कि राज्य के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी और बिहार कोकिला कही जाने वालीं पद्मश्री गायिका शारदा सिन्हा जैसी बड़ी हस्तियों को तीन दिन बाद पानी से निकाला जा सका. ऐसे में आम आदमी की बात ही करना बेमानी सा लगता है. क्योंकि लाखों की आबादी जो अपने घरों में फंसी है, उसके लिए एनडीआरएफ़ की महज़ 33 नौकाएं ही काम कर रहे हैं.

यहां पर बड़ा सवाल ये है कि आखिरकार महज चार या पांच दिन की बारिश में ही पूरा पटना कैसे जल मग्न हो गया. लोग इसकी तुलना 1967 में आई प्रलयंकारी बाढ़ से करने लगे हैं. हालांकि वो बाढ़ नदियों के बढ़े जलस्तर और बांधों के टूटने के कारण आई थी. लेकिन इस बार तो ना कहीं बांध टूटे, ना कहीं नदी के उफ़ान से बाढ़ आया. 72 घंटों के दौरान करीब 300 मिमी की बारिश हुई. और इतने में ही पूरा पटना शहर डूब गया. ऐसा भी नहीं कि पटना में पहले कभी इतनी बारिश नहीं हुई, मुहल्लों में जलभराव नहीं हुआ, पर पटना के रहने वाले कह रहे हैं कि उनके जीवनकाल में ऐसे हालात कभी नहीं पैदा हुए.

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सिलसिलेवार तरीके से हम बताते हैं कि आखिरकार ऐसा हुआ कैसे. पटना में जलप्रलय का पहला कारण तो ये कि शहर की ड्रेनेज व्यवस्था पूरी तरह फेल हो गई है. इसके ज़िम्मेदार पटना नगर निगम और बुडको दोनों है. दोनों में कोई समन्वय ही नहीं है. पटना को स्मार्ट सिटी का रूप दिया जा रहा है जिसकी वजह से जगह-जगह पर सड़कें खुदी हुई पड़ी हैं. खुदी हुई मिट्टी और कूड़ा करकट के अंबार ने ड्रेनेज को ब्लौक कर दिया है. पाइपों में मिट्टी भर गई है और कई जगह तो वो डूब ही गए हैं.

दूसरा कारण ये कि जिन नदियों में बारिश का पानी छोड़ा जाता है वे पहले से खतरे के निशान से ऊपर बह रही थीं. पानी का प्रेशर इतना बढ़ गया था कि सारे ड्रेनेज पहले से बंद कर दिए गए था. इसलिए पानी कहीं जा नहीं सका. पटना से सटे दीघा में गंगा नदी अपने 44 साल के जलस्तर के रिकार्ड को पार कर 50.79 मीटर पर आ गया है जो अभी तक के रिकौर्ड स्तर से महज़ 1.07 मीटर ही कम है. इसका प्रमुख कारण है सहयोगी नदियों पुनपुन, सोन और गंडक का जलस्तर, जो ख़तरे के निशान को पार कर चुका है.

तीसरा कारण है राहत बचाव कार्यों के नाकाफी इंतजाम. सीएम नीतीश कुमार बिहार में पिछले 15 सालों से सरकार चला रहे हैं वो इस बात को बोलकर नहीं बच सकते कि ये हथिनी नक्षत्र की वजह से हो रहा है. आपको ये मानना पड़ेगा कि पहले से कोई तैयारी नहीं थी. पूरा सिस्टम सूखे से निपटने की योजना बनाने में लगा था. कल्पना की जा सकती है कि जब इतनी बड़ी आबादी पानी में घिरी है, तब केवल 33 बोट ही राहत और बचाव कार्य में लगे हैं.

राहत और बचाव कार्यों में सुस्ती का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि शहर के एक बड़े इलाके राजीव नगर, इंद्रपुरी, शिवपुरी, पाटलिपुत्र कौलोनी जहां करीब एक लाख की आबादी फंसी है वहां तीसरे दिन एक बोट उपलब्ध कराई जा सकी. बीबीसी की एक रिपोर्ट में पता चलता है कि प्रशासन की तरफ से जो राहत और क्विक रिस्पांस टीम के नंबर जारी किए गए हैं, उनपर फोन नहीं लग रहा. अगर कहीं लग भी रहा है तो कोई रिस्पांड नहीं कर रहा.

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चौथा और सबसे अहम कारण है कि सरकारी सिस्टम इस बारिश का आकलन करने में पूरी तरह विफल रहा. पहले तो सब सूखे के इंतजार में आंख मूंद कर सोए रहे. और जब बारिश शुरू हुई तो उसकी भयावहता का अंदाजा नहीं लगा सके. बारिश छूटने का इंतजार होता रहा.

पांचवा कारण वही है जो मुख्यमंत्री ने कहा है. इस हालात लेकर बोली गई उनकी बात से ऐसा लगता है जैसे सरकार ने अपने हाथ खड़े कर दिए हो. पटना को स्मार्ट सिटी बनाने का ख्वाब देख रही सरकार 300 मिलीमीटर वर्षापात से जमा पानी भी निकाल पाने में अक्षम है.

बिहार में एक बात तो है. शासन और प्रशासन में एक समानता देखी जा रही है. दोनों के मुंह से एक ही बयान सामने आ रहा है कि ये प्राकृतिक आपदा है ये पहले से बताकर नहीं आती. ये बात सबको पता है कि प्राकृतिक आपदा पर किसी का जोर नहीं है लेकिन अगर महज बारिश के बाद जलभराव से ये नौबत आ जाए कि 40 से 50 लोगों की मौत हो जाए तो आपको जवाब देना पड़ेगा. अगर आपकी बात मान भी ली जाए तो क्या फानी तूफान आने के बाद भी हम हाथ पर हाथ रखे बैठे रहते और इंतजार करते कि आपदा का. फिर लाशें गिनते फिर उनकी कीमतें लगा देते.

चक्रवाती तूफान फानी से निपटने के भारत के प्रयासों की संयुक्त राष्ट्र ने सराहना की थी. संयुक्त राष्ट्र ने कहा था कि भारतीय मौसम विभाग की सटीक और अचूक भविष्यावाणी से फानी से कम से कम नुकसान हुआ. दुनिया भर की प्राकृतिक आपदाओं पर निगाह रखने वाली संयुक्त राष्ट्र की ‘डिजास्टर रिडक्शन’ एजेंसी यूएन औफिस फौर डिजास्टर रिडक्शन (UNISDR) ने कहा कि भारत के मौसम विभाग ने लगभग अचूक सटीकता के साथ फानी चक्रवात के बारे में जानकारी दी, इसका नतीजा ये हुआ कि सरकारी विभागों को लोगों को फानी के प्रभाव में आने वाले इलाके से निकालने के लिए पूरा वक्त मिला. इसके तहत 10 लाख से ज्यादा लोगों को आपदा राहत केंद्रों में ले जाया गया.

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बाढ़ में डूबे बिहार से आई रोंगटे खड़े करने वाली तस्वीर, पढ़ें पूरी खबर

कुदरती कहर हो या मानव जनित दुर्घटनाएं, दुनिया के किसी एक कोने से ऐसी तस्वीर कभीकभी सामने आती है कि जिन्हें देखते ही या तो रूह कांप उठता है या फिर रोंगटे खङे हो जाते हैं. ऐसी त्रासदियों में आमतौर पर या तो बच्चे होते हैं या फिर महिलाएं. यों तो दुनियाभर में बच्चों की ऐसीऐसी भयानक तस्वीरें सामने आई हैं जिन्हें देख कर किसी के भी रोंगटे खङे हो जाएं, मगर बाढ की विनाशलीला के बीच बिहार से एक ऐसी ही खौफनाक तस्वीर सामने आई है, जिसे देख कर कलेजा मुंह को आ जाए.

खौफनाक तस्वीर

इस तस्वीर में एक मृत बच्चा पानी से घिरे एक टीले पर पङा हुआ है. वह टीला भी इतना गीला हो चुका है कि कभी भी भरभरा कर पानी में समा सकता है. बच्चे के आसपास कोई नहीं है और वह लावारिस पङा पानी में समा जाने को तैयार है. उस का पूरा शरीर अकड़ कर फूल चुका है.

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सीरिया युद्ध में भी ऐसे ही हालात थे

इसी तरह की एक तस्वीर साल 2015 में तुर्की के समुद्रीतट पर से एक सीरियाई बच्चे की भी सामने आई थी. तब सीरिया में चल रहे गृहयुद्ध की बर्बरता को देख पूरी दुनिया स्तब्ध थी. यह तस्वीर इतना खौफनाक था कि देख कर ही आंखों में आंसू आ जाएं. ऐलन कुर्दी नाम के इस 3 साल के बच्चे का शव तुर्की समुद्रीतट पर बह कर आया था.

पिता-बेटी की रूला देने वाली तस्वीर

कुछ समय पहले उत्तरी अमेरिका की सीमा से लगी रियो ग्रांडे नदी के किनारे एक पिता और बेटी की लाश की तस्वीर भी सामने आई थी, जो बेहद भयानक और मानवीय संवेदना को बुरी तरह रूला रहा था.

अब बाढ की वीभिषका से जूझ रहे बिहार से आई इस मृत बच्चे की तस्वीर ने मानव सभ्यता को हिला कर रख दिया है.

कहर मगर क्यों

कुछ लोग इसे कुदरती कहर बता रहे हैं, कुछ अंधविश्वासी भगवान का प्रकोप, तो वहीं कुछ ऐसे भी लोग हैं जो इस के लिए पूरी मानव सभ्यता को ही दोष दे रहे हैं, जिन की वजह से वन खाली हो गए, जंगलों की इतनी कटाई हुई कि वहां रेगिस्तान जैसे हालात हो गए. इस से पहाड़ों के बीच से आने वाली सैकड़ों नदियां अपना मूल रास्ता भटक कर ऐसा कहर बरपाती हैं कि हर साल हजारों की संख्या में लोग मारे जाते हैं. लाखों बेघर हो जाते हैं और करोड़ों कुपोषण के शिकार हो जाते हैं.

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कौन है असली गुनहगार

बिहार में हर साल आने वाली बाढ भी जहां मानव भूलों का नतीजा हैं, वहीं सफेदपोश नेताओं की लापरवाही भी, जो सिर्फ बाढ से घिरे लोगों के बीच जा कर फोटो खिंचवाने और मुआवजा की घोषणा कर अपनी जिम्मेदारी खत्म कर लेते हैं. न तो पिछली सरकारें और न ही वर्तमान सरकार ने बाढ से बचाव के लिए कोई प्लान बनाया है.

दरअसल, बिहार में हर साल बाढ नेपाल से छोङे गए पानी से आता है. इस से दोनों ही तरफ के लाखों लोग प्रभावित होते हैं. बस होता इतना भर है कि नेपाल और भारत दोनों ही एकदूसरे पर दोष मढ़ते हैं मगर होता कुछ नहीं. मगर ऐसी खौफनाक तस्वीर देख कर भी सरकार नींद से जाग जाएगी, कहना बेमानी होगा.

 

पटना में दिखा हुनर और हुस्न का जलवा

शादीशुदा महिलाएं भी खुद की खूबसूरती और टैलेंट का लोहा मनवा सकती हैं. इस का मुजायरा ‘ब्यूटी पेजैंट मिसेज इंडिया 2019 प्रतियोगिता’ के पटना औडिशन में दिखा, जब एक से बढ़कर एक महिलाएं न सिर्फ हुनर और हाजिरजवाबी में आगे रहीं, बल्कि शादीशुदा और बच्चे की मां होने के बावजूद भी जोश और जज्बे से औडियंस का मन मोह लिया.

शादीशुदा होना कैरियर में बाधक नहीं

पटना के होटल पाटलिपुत्र कौंटीनैंटल में आयोजित इस प्रतियोगिता में पटना औडिशन के लिए 15 महिलाओं ने शिरकत कर यह बता दिया कि मन में जज्बा हो तो शादीशुदा होना कैरियर में बाधक नहीं होता.

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दर्शकों की वाहवाही

प्रतियोगिता में प्रतिभागियों ने रैंप पर कैट-वौक किया तो उपस्थित औडियंस ने जम कर तालियां बजाईं.
इस दौरान प्रतिभागियों ने जजों द्वारा पूछे गए सवालों के जवाब भी दिए और ऐक्टिंग और सिंगिंग भी कर के दिखाया.

औडिशन को जज करने टीवी कलाकार तान्या शर्मा, नेहा मर्दा, रति पांडेय, अभिनेता विपुल गुप्ता सहित बौलीवुड के कई शख्सियतें शामिल रहे.

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ग्रैंड फिनाले मुंबई में

प्रतियोगिता के आयोजक ए आर एंटरटेनमैंट ग्रुप के औनर आशीष राय ने मीडिया से बातचीत में बताया, “मन में जज्बा हो तो शादीशुदा व होनहार महिलाएं भी ग्लैमर की दुनिया में नाम कमा सकती हैं.”
शो का ग्रैंड फिनाले मुंबई में आयोजित किया जाएगा।

शर्मनाक : मजदूरों के साथ कहर जारी

गुजरात के साबरकांठा जिले में 28 सितंबर, 2018 को एक 14 महीने की बालिका के साथ हुई रेप की वारदात के साथ भड़की हिंसा की वजह से लोग वहां से भागने को मजबूर हो गए.

इस घटना के बाद उत्तर प्रदेश और बिहार के मजदूरों के साथ योजना बना कर मारपीट की घटनाएं घटने लगीं. बिहार व उत्तर प्रदेश के लाखों मजदूर अपनेअपने घरों को लौटने लगे. टे्रन व बसों में पैर रखने तक की जगह नहीं थी.

यह है गुजरात का विकास मौडल जिस की असलियत अब खुल कर सामने आ रही है. पूरे मामले की जड़ में एक बच्ची से हुई रेप की घटना है और आरोपी को पुलिस गिरफ्तार कर चुकी है. लेकिन उस के बाद यह मामला गुजरात बनाम बाहरी में तबदील कर दिया गया और उत्तर भारतीय मजदूरों को चुनचुन कर निशाना बनाया गया. इसे ही कहते हैं सब का साथ सब का विकास.

बिहार और उत्तर प्रदेश के मजदूरों के साथ यह पहली घटना नहीं है. असम के तिनसुकिया इलाके में 2015 में संदिग्ध उल्फा आतंकवादियों द्वारा हिंदीभाषी उत्तर प्रदेश और बिहार वालों को टारगेट करते हैं. महाराष्ट्र की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना उत्तर प्रदेश और बिहार वालों को बाहर का होने के नाम पर उन के साथ ज्यादती करती रहती है.

अहमदाबादपटना ऐक्सप्रैसट्रेन से लौट रहे इन मजदूरों की आपबीती सुन कर हम यह सोचने के लिए मजबूर हो जाते हैं कि यह वही विकास मौडल का सब्जबाग दिखाने वाला गुजरात प्रदेश है, जिस का बखान करते देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नहीं अघाते हैं.

गुजरात में काम कर रहे ये वही मजदूर हैं जो साल 2014 के लोकसभा चुनाव में अपना वोट देने और मोदी का गुणगान करने गुजरात से अपने राज्यों उत्तर प्रदेश और बिहार में आए थे.

साबरमती ऐक्सप्रैसट्रेन से लौट रहे मजदूरों ने बताया कि कंपनी मालिक और ठेकेदार ही बोल रहे हैं कि वे हिफाजत की गारंटी नहीं ले सकते. मार दिए जाओगे. घर लौट जाओ. ट्रेन में जगह नहीं थी, फिर भी लोग एकदूसरे पर लदे किसी तरह अपने गांव लौट रहे थे.

औरंगाबाद, बिहार के राजू ने दुखी मन से बताया, ‘‘हम लोग तो हर जगह पीटे जाते हैं. हम इसलिए पीटे जाते हैं कि हम बिहार के हैं. लेकिन अपने राज्य में रोजगार न मिलने से मजबूरी में यहां आए हैं.’’

10 सालों से लगातार काम कर रहे विजय ने बताया, ‘‘घर में काफी सामान हो गया था. सारा सामान छोड़ कर आना मुश्किल लग रहा था लेकिन मकान मालिक ने साफ कह दिया कि 24 घंटे के अंदर घर खाली कर दो, नहीं तो हम तुम्हारी जिंदगी का रिस्क नहीं लेंगे.

‘‘मकान मालिक, जिन्हें मैं काकाऔर उन की पत्नी को काकीबोला करता था, से सालों का संबंध मटियामेट हो गया. एक बड़े बैग में कितना सामान लाता. मन मसोस कर सारा सामान वहीं छोड़ कर इसलिए चले आए कि इस के चक्कर में कहीं जान न चली जाए.’’

शंकर मोहन राजनंदन कहता है, ‘‘सभी लोगों की एक ही दास्तान है. हम लोग शौक से गुजरात या दूसरे राज्यों में कमाने के लिए थोड़े ही जाते हैं. बिहार में ज्यादा उद्योगधंधे नहीं हैं. परिवार और अपना पेट पालने के लिए दूसरे राज्यों में जाना पड़ता है. अगर बिहार और उत्तर प्रदेश के सारे मजदूर गुजरात से चले आएंगे तो वहां की सारी कंपनियां बंद हो जाएंगी.

‘‘देशभर में बिहार और उत्तर प्रदेश के नौजवानों की मेहनत से ही ये कंपनियां चल रही हैं और मालिक मजे कर रहे हैं. यहां काम नहीं है और पेट चलाने की मजबूरी हम लोगों के साथ है.’’

दिलीप, जो गया जिले के बथानी इलाके का रहने वाला है, ने बताया, ‘‘जिस लड़के ने रेप किया उसे फांसी दे दो. अगर हम लोग उस के बचाव में खड़े होते तो हम लोग कुसूरवार थे. एक आदमी ने गलत किया तो क्या उस राज्य के सारे लोग बलात्कारी हैं? एक बिहारी रेप करे तो सारे बिहारी रेपिस्ट हो गए 4 गुजराती देश का पैसा ले कर भाग गए तो इस का मतलब हर गुजराती चोर हैं?’’

बिहार के शेखपुरा के तहत एक गांव मेहसौना है जहां के तकरीबन हर घर से 1-2 नौजवान गुजरात के मेहसाना में काम करते हैं. इस गांव के तकरीबन 70 नौजवान वहां काम करते हैं. जब से गुजरात में हालात खराब हुए हैं, तब से यहां कई घरों में चूल्हे नहीं जले हैं.

नीरज 12 लड़कों के साथ गुजरात से सारा सामान छोड़ कर किसी तरह जान बचा कर अपने गांव आया है. ब्रह्मदेव चौहान के घर 4 दिनों से चूल्हा नहीं जला. उन के 4 बेटे गुजरात में फंसे हुए थे. उन के मोबाइल फोन पर उन की बात भी नहीं हो पा रही थी.

किसी एक के किए की सजा पूरे उत्तर भारतीयों को मिले, यह सोच ठीक नहीं है. जिन बिहारियों और उत्तर प्रदेश की मेहनत से गुजरात अमीर है, उन के साथ इस तरह का बरताव कहीं से भी ठीक नहीं है.

राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो के रिकौर्ड के मुताबिक, साल 2017 में जहां पूरे देश में बलात्कार के मामलों में 12 फीसदी की बढ़ोतरी हुई तो क्या ये इतने बड़े हुए बलात्कार बिहार के लोगों ने ही किए?

इसी तरह कुछ साल पहले बंगाल बंगालियों का नारा लगा कर, असम में बोडो उग्रवादियों द्वारा, महाराष्ट्र में राज ठाकरे के लोगों द्वारा उत्तर भारतीय लोगों के साथ कभी भाषा के नाम पर, तो कभी बाहरी के नाम पर मारपीट, हिंसा और गालीगलौज की जाती रही है.

नेता व विधायक रह चुके राजाराम सिंह का कहना है कि यह देश सभी लोगों का है. यहां के संसाधनों पर सभी लोगों का बराबर का हक है. किसी के साथ धर्म, जाति, रंग, क्षेत्र के आधार पर भेदभाव किया जाना गलत बात है.

सब से बड़ी बात यह है कि गुजरात की सरकार और पार्टी इन बिहारियों के बचाव में आ कर खड़ी नहीं हुई क्योंकि ये लोग हैं तो पिछड़ी जातियों के ही.

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