गुजरात के साबरकांठा जिले में 28 सितंबर, 2018 को एक 14 महीने की बालिका के साथ हुई रेप की वारदात के साथ भड़की हिंसा की वजह से लोग वहां से भागने को मजबूर हो गए.
इस घटना के बाद उत्तर प्रदेश और बिहार के मजदूरों के साथ योजना बना कर मारपीट की घटनाएं घटने लगीं. बिहार व उत्तर प्रदेश के लाखों मजदूर अपनेअपने घरों को लौटने लगे. टे्रन व बसों में पैर रखने तक की जगह नहीं थी.
यह है गुजरात का विकास मौडल जिस की असलियत अब खुल कर सामने आ रही है. पूरे मामले की जड़ में एक बच्ची से हुई रेप की घटना है और आरोपी को पुलिस गिरफ्तार कर चुकी है. लेकिन उस के बाद यह मामला गुजरात बनाम बाहरी में तबदील कर दिया गया और उत्तर भारतीय मजदूरों को चुनचुन कर निशाना बनाया गया. इसे ही कहते हैं ‘सब का साथ सब का विकास.’
बिहार और उत्तर प्रदेश के मजदूरों के साथ यह पहली घटना नहीं है. असम के तिनसुकिया इलाके में 2015 में संदिग्ध उल्फा आतंकवादियों द्वारा हिंदीभाषी उत्तर प्रदेश और बिहार वालों को टारगेट करते हैं. महाराष्ट्र की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना उत्तर प्रदेश और बिहार वालों को बाहर का होने के नाम पर उन के साथ ज्यादती करती रहती है.
‘अहमदाबादपटना ऐक्सप्रैस’ ट्रेन से लौट रहे इन मजदूरों की आपबीती सुन कर हम यह सोचने के लिए मजबूर हो जाते हैं कि यह वही विकास मौडल का सब्जबाग दिखाने वाला गुजरात प्रदेश है, जिस का बखान करते देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नहीं अघाते हैं.
गुजरात में काम कर रहे ये वही मजदूर हैं जो साल 2014 के लोकसभा चुनाव में अपना वोट देने और मोदी का गुणगान करने गुजरात से अपने राज्यों उत्तर प्रदेश और बिहार में आए थे.
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