सितंबर का महीना वास्तव में भर-भर के सितम लेकर आया. खासकर के बिहार वासियों के लिए. पहले तो बारिश हुई नहीं और जब हुई तो ऐसी हुई कि बिहार की राजधानी पटना का 90 फीसदी हिस्सा जलमग्न हो गया. कौन मंत्री, कौन संत्री, कौन ब्यूरोक्रेट कोई नहीं बच पाया.

जिस वक्त बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी आधे पानी में डूबकर घर से बाहर निकलने की जद्दोजहद कर रहे थे उसको देखकर लग गया कि सरकार भी आधी डूब गई. हालांकि वो ठहरे सियासतदान. उनके लिए आनन-फानन व्यवस्थाएं की गई. जल्द से जल्द उनको पानी से बाहर सुरक्षित स्थान ले जाया गया. अब यहां थोड़ा जिक्र कर लेते हैं सुशासन बाबू की.

जी हां बिहार के सीएम नीतीश कुमार जिनको जनता ने सुशासन बाबू का खिताब दिया हुआ है. लालू के कुशासन से त्रस्त जनता से नीतीश कुमार को प्रदेश की कमान सौंप दी. नीतीश कुमार ने जनता के भरोसे को टूटने भी नहीं दिया. उसी का नतीजा है नीतीश कुमार लगातार तीसरी बार बिहार के मुख्यमंत्री बने हैं. सुशासन बाबू के प्रदेश में कानून व्यवस्था तो सुधरी लेकिन नहीं सुधरा तो बिहार का इंफ्रास्ट्रक्चर. उसी का परिणाम है कि सरकार के नंबर दो सुशील मोदी को पानी में डूबकर घर से बाहर निकलना पड़ा.

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जरा अब बात कर लेते हैं कि आखिरकार बार-बार ऐसा क्यों होता है. क्यों राजधानी पटना का ये हाल बना हुआ है. सुशासन बाबू ग्रह-नक्षत्रों को क्यों दोष दे रहे हैं. क्यों नहीं सुशासन कुमार इस बात से ताल्लुक रखते कि उनसे गलती हुई. जब तक एक इंसान ये स्वीकार नहीं करेगा कि उससे गलती हुई, तब तक वो उसको कैसे सुधारेगा. आज भी पटना की आधी आबादी को साफ पानी मुहैया नहीं हो पा रहा है.

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