Writer- Shivi Goswami
अगले दिन भी वही सब. न मेरा फोन उठाया और न खुद फोन या मैसेज किया. बस अपने सर को उस ने अपनी छुट्टी के लिए एक मेल भेजा था, जिस में बस यह लिखा था कि कोई जरूरी काम है.
क्या जरूरी काम हो सकता है? मैं सोच नहीं पा रहा था.
नीलेश ने कहा, ‘तुम उस के घर के फोन पर बात करने की कोशिश क्यों नहीं करते?’
‘अगर किसी और ने फोन उठाया तो?’ मैं ने उस के सवाल पर अपना सवाल किया.
‘तो तुम बोल देना कि तुम उस के औफिस से बोल रहे हो और यह जानना चाहते हो कि कब तक छुट्टी पर है वह.’
हिम्मत कर के मैं ने उस के घर के फोन पर काल किया. पहली बार किसी ने फोन नहीं उठाया. नीलेश के कहने पर मैं ने दोबारा कोशिश की. इस बार फोन पर आवाज आई जो मैं सुनना चाहता था.
‘हैलो सुमेधा, मैं समीर बोल रहा हूं. कहां हो, कैसी हो? और तुम औफिस क्यों नहीं आ रही हो? मैं ने तुम्हारा मोबाइल नंबर कितनी बार मिलाया, लेकिन तुम ने फोन नहीं उठाया. सब ठीक तो है?’
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सुमेधा चुपचाप मेरी बातों को बस सुने जा रही थी.
‘सुमेधा कुछ तो बोलो.’
‘अब मुझे कभी फोन मत करना समीर…’ सुमेधा ने धीमी आवाज में कहा.
‘क्या, पर हुआ क्या यह तो बताओ?’ मैं ने बेचैन हो कर पूछा.
‘पापा को माइनर हार्ट अटैक आया था. अब उन की हालत ठीक है. मेरे लिए एक रिश्ता आया था पापा ने वह रिश्ता तय कर दिया है और उन की हालत को ध्यान में रखते हुए मैं न नहीं कर पाई.’
‘तुम्हें उन्हें मेरे बारे में तो बताना चाहिए था,’ मैं ने कहा.
‘समीर वह लड़का बिजनैसमैन है,’ सुमेधा ने एकदम से कहा.
‘ओह, तो शायद इसीलिए तुम्हारी उस से शादी हो रही है,’ मैं ने कहा.
‘तुम जो भी समझो मैं मना नहीं करूंगी. अगले महीने मेरी शादी है. मैं ने आज ही अपना रिजाइनिंग लैटर अपने सर को मेल कर दिया है. बाय समीर.’
मैं बस फोन को देखे जा रहा था और नीलेश मुझे देखे जा रहा था. उस का मेरे प्यार को स्वीकार करना जितना खूबसूरत सपने की तरह था, उतना ही आज उस का यह बोलना किसी बुरे सपने से कम नहीं था. मैं चाहता था कि दोनों बातों में से सिर्फ एक ख्वाब बन जाए, लेकिन दोनों ही हकीकत थीं.
आज इस बात को पूरे 3 साल हो गए. उस दिन के बाद मैं ने कभी सुमेधा को न तो फोन किया और न ही उस ने मेरा हाल जानने की कोशिश की. जिस दिन उस की शादी थी उसी दिन मुझे दिल्ली की एक मल्टीनैशनल कंपनी से इस नौकरी का औफर आया था. यहां की सैलरी से दोगुनी सैलरी और एक फ्लैट. सब कुछ ठीक ही नहीं बल्कि एकदम परफैक्ट. आज जो मेरे पास है अगर वह मेरे पास 3 साल पहले होता तो शायद आज सुमेधा मिसेज समीर होती.
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वक्त बदल गया और वक्त के साथ लोग भी. आज मैं जिस मुकाम पर पहुंच गया हूं शायद उस समय इन सब चीजों की कल्पना उस ने कभी की ही नहीं होगी. उस वक्त मैं सिर्फ समीर था लेकिन आज एक मल्टीनैशनल कंपनी का जनरल मैनेजर. आज मेरे पास सब कुछ है लेकिन मेरी सफलता को बांटने के लिए वह नहीं है जिस के लिए शायद मैं यह सब करना चाहता था.
अचानक मेरे मोबाइल की बजी. घंटी ने मुझे मेरी यादों से बाहर निकाला.
नीलेश का फोन था. सब कुछ बदल जाने के बाद भी मेरी और नीलेश की दोस्ती नहीं बदली थी. शायद कुछ रिश्ते सच में सच्चे और अच्छे होते हैं.
‘‘कब तक पहुंचेगा?’’ नीलेश ने पूछा.
‘‘निकलने वाला हूं बस,’’ मैं ने नीलेश से कहा.
‘‘जल्दी निकल यार,’’ कह कर नीलेश ने फोन रख दिया.
नीलेश की शादी है आज. शादी दिल्ली में ही हो रही थी. मुझे सीधे शादी में ही शरीक होना था. अपने सब से अच्छे दोस्त की शादी में न जाने का कोई बहाना होता भी तो भी मैं उस को बना नहीं सकता था.
मैं फटाफट तैयार हुआ. अपनी कार निकाली और चल दिया. वहां पहुंचा तो चारों तरफ फूलों की भीनीभीनी खुशबू आ रही थी. नीलेश बहुत स्मार्ट लग रहा था. मैं ने उस की तरफ फूलों का गुलदस्ता बढ़ाते हुए कहा, ‘‘यह तुम्हारी नई जिंदगी की शुरुआत है और मेरी दिल से शुभकामनाएं तुम्हारे साथ हैं.’’
नीलेश मेरे गले लग गया. और लोगों को भी उसे बधाइयां देनी थीं, इसलिए मैं स्टेज से नीचे उतर गया. उतर कर जैसे ही मैं पीछे मुड़ा तो देखा कि लाल साड़ी में एक महिला मेरे पीछे खड़ी थी. उस के साथ उस का पति और बेटा भी था.
वह कोई और नहीं सुमेधा थी, जो मेरी ही तरह अपने दोस्त की शादी में शामिल होने आई थी. मुझे देख कर वह चौंक गई. वह मुझ से कुछ कहती, इस से पहले ही मेरी पुरानी कंपनी के सर ने मेरी तरफ हाथ बढ़ाते हुए कहा, ‘‘वैल डन समीर. मुझे तुम पर बहुत गर्व है. थोड़े से ही समय में तुम ने बहुत सफलता हासिल कर ली है. मैं सच में बहुत खुश हूं तुम्हारे लिए.’’
मैं बस हां में सिर हिला रहा था और जरूरत पड़ने पर ही जवाब दे रहा था. मेरा दिमाग इस वक्त कहीं और था.
सुमेधा अपने पति के साथ खड़ी थी. उस का पति एक बिजनैसमैन था, लेकिन उस की कंपनी इतनी बड़ी नहीं थी. आज मेरा स्टेटस उस से ज्यादा था.
यह मैं क्या सोच रहा हूं? मेरी सोच इतनी गलत कब से हो गई? मुझे किसी की व्यक्तिगत और व्यावसायिक जिंदगी से कोई मतलब नहीं होना चाहिए. मेरा दम घुट सा रहा था. अब इस से ज्यादा मैं वहां नहीं रुक सकता था. मैं जैसे ही बाहर जाने लगा सुमेधा ने पीछे से मुझे आवाज लगाई.
‘‘समीर…’’
उस के मुंह से अपना नाम सुनते ही मन में आया कि उस से सारे सवालों के जवाब मांगूं. पूछूं उस से कि जब प्यार किया था तो विश्वास क्यों नहीं किया? सब कुछ एकएक कर के उस की आवाज से मेरी आंखों के सामने आ गया.
लेकिन अब वह पहले वाली सुमेधा नहीं थी. अब वह मिसेज सुमेधा थी. मुझे उस का सरनेम तो क्या उस के पति का नाम भी मालूम नहीं था और मुझे कोई दिलचस्पी भी नहीं थी ये सब जानने की. न मैं उस का हाल जानना चाहता था और न ही अपना बताना.
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मैं ने पलट कर उस की आंखों में आखें डाल कर कहा, ‘‘क्या मैं आप को जानता हूं?’’
वह मेरी तरफ एकटक देखती रही. अगर मैं पहले वाला समीर नहीं था तो वह भी पहले वाली सुमेधा नहीं रही थी.
शायद मेरा यही सवाल हमारी आखिरी मुलाकात का जवाब था. उस की चुप्पी से मुझे मेरा जवाब मिल गया और मैं वहां से चल दिया.