Manohar Kahaniya- गोरखपुर: मोहब्बत के दुश्मन- भाग 3

सौजन्य- मनोहर कहानियां

Writer- शाहनवाज

काल रिसीव करते हुए अनीश चाचा को इशारे से हिसाब देखने को कहते हुए दुकान से बाहर निकल गया और सड़क के एक किनारे बात करने में मशगूल हो गया. तभी साए की तरह उस के पीछे पीछे चाचा देवी दयाल भी बाहर निकल आए और कुछ दूरी पर खड़े भतीजे की निगरानी करने लगे.

उसी समय दूसरी तरफ से तेजी से 2 बाइक आ कर अनीश के पीछे रुकीं. दोनों बाइक पर 2-2 नकाबपोश युवक सवार थे. एक बाइक पर पीछे बैठे नकाबपोश ने अपने कमर में पीछे खोंस रखा धारदार दतिया निकाला और फिल्मी स्टाइल में अचानक अनीश के सिर, गले और सीने पर ताबड़तोड़ कई वार कर दिए.

भतीजे अनीश पर हमला होते देख चाचा देवी दयाल हमलावरों से भिड़ गए. अपनी जान की परवाह किए बिना उन्होंने भतीजे पर हमला करने वाले एक नकाबपोश को धर दबोचा.

यह देख कर नकाबपोश हड़बड़ा गया और उन से छूटने के लिए देवी दयाल के सीने पर प्रहार कर दिया. अचानक हुए हमले से देवी दयाल पल भर के लिए गश खा कर जमीन पर गिर गए. कुछ पलों बाद जब उठे तो नकाबपोश ने उन पर फिर से पलटवार किया. तब तक चीखपुकार तेज हो गई थी.

देवी दयाल की चीख सुन कर पासपड़ोस के दुकानदार शोर मचाते हुए बाहर निकले. पब्लिक को बदमाशों ने अपनी ओर आते हुए देखा तो चौंकन्ने हो गए और जिधर से आए थे, मौके पर हथियार फेंक कर उसी दिशा में फरार हो गए.

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दीप्ति ने अपने ही घर वालों के खिलाफ लिखाई रिपोर्ट

इधर अचानक हुए हमले से अनीश डर गया था. गंभीर रूप से घायल वह हवा में लहराते हुए किसी कटे पेड़ की तरह जमीन पर धड़ाम से गिरा.

आननफानन में लोगों ने अनीश और देवी दयाल को टैंपो में लाद कर गोला स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पहुंचाया, जहां डाक्टरों ने अनीश को देखते ही मृत घोषित कर दिया.

भतीजे की मौत की खबर सुनते ही देवी दयाल की हालत और बिगड़ गई. घबराहट के मारे उन की सांसों की रफ्तार और तेज हो गई. यह देख डाक्टर भी घबरा गए और उन्हें बाबा राघवदास (बीआरडी) मैडिकल कालेज, गुलरिहा रेफर कर दिया.

अनीश की हत्या की खबर मिलते ही इलाके में सनसनी फैल गई थी. जैसेजैसे उस के शुभचिंतकों को जानकारी हुई, वैसेवैसे कुछ घटनास्थल तो कुछ अस्पताल पर जुटते गए. उधर दिल दहला देने वाली घटना की सूचना गोला थाने के थानेदार सुबोध कुमार को मिल चुकी थी. घटना की सूचना मिलते ही वह फोर्स सहित अस्पताल पहुंच गए और अस्पताल को पुलिस छावनी में बदल दिया ताकि कोई अप्रिय घटना न घट सके.

सूचना पा कर थोड़ी ही देर में वहां तत्कालीन एसएसपी दिनेश कुमार प्रभु, एसपी (दक्षिणी) अरुण कुमार सिंह और सीओ गोला अंजनि कुमार पांडेय भी पहुंच गए थे. पुलिस अधिकारियों ने शव का निरीक्षण किया. सिर, गले और सीने पर किसी धारदार हथियार से ताबड़तोड़ हमला किया गया था. ज्यादा खून बहने से अनीश की मौत हुई थी.

पुलिस ने शव को अपने कब्जे में ले लिया और उसे पोस्टमार्टम के लिए बीआरडी मैडिकल कालेज, गुलरिहा भिजवा दिया. उस के बाद इंसपेक्टर सुबोध कुमार को कागजी काररवाई पूरी करतेकरते दोपहर के 2 बज गए थे.

अस्पताल से फारिग होते ही पुलिस गोपलापुर चौराहा पर उस जगह पहुंची, जहां घटना घटी थी. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया. मौके पर फैला खून जम चुका था, जिस पर ढेर सारी मक्खियां भिनभिना रही थीं.

मौके से कुछ दूरी पर खून से सना एक धारदार हथियार गिरा पड़ा था, पुलिस ने उसे बतौर सबूत अपने कब्जे में लिया. मौके पर पहुंची फोरैंसिक टीम अपनी जांच में जुट गई.

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पुलिस ने अनीश की पत्नी दीप्ति चौधरी की तहरीर पर आईपीसी की धारा 302, 307, 506, 120बी एवं एससी/एसटी की धारा 3(2)(वी) के तहत मायके के 17 लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा दिया.

जिन में नलिन मिश्र (पिता), मणिकांत मिश्र (बड़े पापा यानी ताऊ), अभिनव मिश्र (भाई), अनुपम मिश्र (भाई), विनय, उपेंद्र, अजय, प्रियंकर, अतुल्य, प्रियांशु, राजेश, राकेश, त्रियोगी, नारायण, संजीव, विवेक तिवारी और सन्नी सिंह सहित 4 अज्ञात शामिल थे. घटना की जांच की जिम्मेदारी गोला के सीओ अंजनि कुमार पांडेय को सौंपी गई थी.

इस मामले में पुलिस ने 4 आरोपियों मणिकांत मिश्र, विवेक तिवारी, अभिषेक तिवारी और सन्नी सिंह को गिरफ्तार कर लिया. उन्हें गोला के दीडीहा क्षेत्र से गिरफ्तार किया था. इन चारों से पूछताछ की गई तो उन्होंने अपराध स्वीकार करते हुए अन्य आरोपियों के नाम भी बता दिए. पुलिस ने इन्हें अदालत में पेश कर जिला जेल भेज दिया.

28 जुलाई, 2021 को एएसपी (साउथ) अरुण कुमार सिंह ने एक प्रैसवार्ता आयोजित कर 4 आरोपियों को गिरफ्तार करने की जानकारी दी और कहा कि जल्द ही बाकी के आरोपियों को भी गिरफ्तार कर लिया जाएगा. कथा लिखने तक अन्य आरोपी गिरफ्तार नहीं हो सके थे. पुलिस उन्हें तलाश रही थी.

वेटिंग रूम- भाग 4: सिद्धार्थ और जानकी की छोटी सी मुलाकात के बाद क्या नया मोड़ आया?

Writer- जागृति भागवत 

पिछले अंक में आप ने पढ़ा : जानकी अनाथालय में पलीबढ़ी थी. मेहनत और प्रतिभा के बल पर पढ़ाई कर पुणे के एक कालेज में लैक्चरर के इंटरव्यू के लिए जा रही थी. ट्रेन के इंतजार में रेलवे प्रतीक्षालय में उस की मुलाकात सिद्धार्थ से होती है जो एक संपन्न व्यवसायी का बिगड़ैल बेटा था. समय काटने के लिए दोनों के बीच बातचीत का सिलसिला शुरू होता है. सबकुछ होते हुए भी जिंदगी से नाराज सिद्धार्थ को जानकी की बातें एक नया नजरिया देती हैं. सिद्धार्थ स्वयं को शांत और सुलझा हुआ महसूस करने लगता है. उस के मातापिता उस में हुए बदलाव से हैरान थे. अब आगे…

सिद्धार्थ की आंखों से नींद कोसों दूर थी. जब तक नींद ने उसे अपनी आगोश में नहीं ले लिया तब तक वह सिर्फ जानकी के बारे में ही सोचता रहा. उसे अफसोस हो रहा था कि काश, वह थोड़ी हिम्मत कर के जानकी का फोन नंबर ही पूछ लेता. न जाने अब वह जानकी को देख पाएगा भी या नहीं? अचानक उसे याद आया कि 15 दिन बाद वह पुणे ही तो आ रही है नौकरी जौइन करने. उसी समय उस ने निश्चय किया कि 15 दिन बाद वह कालेज में जा कर जानकी को खोजेगा.

सुबह 11 बजे से पहले कभी न जागने वाला सिद्धार्थ आज सुबह 8 बजे उठ गया. नहा कर नाश्ते की मेज पर ठीक 9 बजे पापा के साथ आ बैठा और बोला, ‘‘पापा, आज मैं भी आप के साथ औफिस चलूंगा.’’ पापा का चेहरा विस्मय से भर गया. मां, जो सिद्धार्थ की रगरग पहचानती थीं, नहीं समझ पाईं कि सिद्धार्थ को क्या हो गया है. बस, दोनों इसी बात से खुश हो रहे थे कि उन के बेटे में बदलाव आ रहा है. हालांकि वे आश्वस्त थे कि यह बदलाव ज्यादा दिन नहीं रहेगा. जल्द ही सिद्धार्थ काम से ऊब जाएगा. फिर उस की संगत भी तो ऐसी थी कि अगर सिद्धार्थ कोशिश करे भी, तो उस के दोस्त उसे वापस गर्त में ले जाएंगे. जानकी अनाथालय पहुंच चुकी थी. सब लोग उस के इंतजार में बैठे थे. जैसे ही जानकी पहुंची, सब उस पर टूट पड़े. जानकी, मानसी चाची को उस की कामयाबी के बारे में पहले ही फोन पर बता चुकी थी, इसलिए सब उस के स्वागत के लिए खड़े थे. आज वात्सल्य से पहली लड़की को नौकरी मिली थी. अनाथालय में उत्सव का माहौल था.

रात को जानकी ने मानसी चाची को साक्षात्कार से ले कर सारी यात्रा का वृत्तांत काफी विस्तार से सुनाया, सिवा प्रतीक्षालय में सिद्धार् से हुई मुलाकात के. यह बात छिपाने के पीछे कोई उद्देश्य नहीं था फिर भी जानकी को यह गैरजरूरी लगा. पिछली रात नींद न आने से जानकी काफी थक गई थी, इस कारण लेटते ही नींद लग गई. सुबह भी काफी देर से जागी. पिछले 8-10 दिनों से लगातार बारिश के कारण मौसम बहुत सुहाना हो गया था. सुबह ठंडक और बढ़ गई थी. नींद खुलने के बाद भी उस का उठने का मन नहीं हो रहा था. जानकी उठी और बाहर आंगन में आ कर बैठ गई. बारिश रुक चुकी थी और हलकी धूप खिली थी लेकिन गमलों की मिट्टी अभी भी गीली थी. ठंडी हवाएं अब भी चल रही थीं. लगा कि कोई शौल ओढ़ ली जाए. ऐसे में अचानक ही उसे सिद्धार्थ का खयाल आया, ‘अब तक तो वह भी अपने घर पहुंच गया होगा. क्या लड़का था, थोड़ा अजीब लेकिन काफी उलझा सा था. काफी नकारात्मक सोच थी, यदि सोच को सही दिशा दे देगा तो बहुत कुछ पा सकता है.’ जानकी की यादों की लड़ी तब टूटी जब मानसी चाची ने आ कर पूछा, ‘‘अरे जानकी बेटा, तू कब उठी?’’

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‘‘बस, अभी उठी हूं, चाची,’’ थोड़ी हड़बड़ाहट में जानकी ने जवाब दिया, लगा जैसे उस की कोई चोरी पकड़ी गई हो और उठ कर रोजमर्रा के कामों में जुट गई. धीरेधीरे दिन बीतते गए और जानकी के पुणे जाने के दिन करीब आते गए. जानकी को काफी तैयारियां करनी थीं. पुणे जा कर सब से बड़ी दिक्कत उस के रहने की व्यवस्था थी. पुणे में वह किसी को नहीं जानती थी. इस बीच उसे कई बार ऐसा लगा कि उस ने सिद्धार्थ से उस का मोबाइल नंबर क्यों नहीं लिया. शायद, उस अनजान शहर में वह कुछ मदद करता उस की. अनाथालय को छोड़ कर मानसी चाची भी उस के साथ नहीं जा सकती थीं. इसी चिंता में वे आधी हुई जा रही थीं कि जानकी का क्या होगा वहां, अनजान शहर में बिलकुल अकेली, कैसे रहेगी. सिद्धार्थ में आया बदलाव बरकरार था. पहले वह काफी गुस्सैल था और अब काफी शांत हो चुका था, बोलता भी काफी कम था, लगभग गुमसुम सा रहने लगा था. कोई दोस्तीयारी नहीं, कोई नाइट पार्टीज और बाइक राइडिंग नहीं. मां ने कई बार पूछा इस बदलाव का कारण लेकिन सिद्धार्थ ने मां से सिर्फ इतना ही कहा, ‘‘मौम, जब जागो तभी सवेरा होता है और मुझे भी एक न एक दिन तो जागना ही था, अब मान लो कि वह दिन आ चुका है. बस, आप लोग जैसा सिद्धार्थ चाहते थे वैसा बनने की कोशिश कर रहा हूं.’’

सिद्धार्थ को अब उस दिन का इंतजार था जब जानकी पुणे आने वाली थी. निश्चित तारीख तो उसे पता नहीं थी लेकिन वह उस रात के बाद से हिसाब लगा रहा था. अब उसे एहसास हो रहा था कि जानकी उस के दिलोदिमाग पर छा चुकी है. वही लड़की है जो उस के लिए बनी है, अगर वह उस की जिंदगी में आ जाए तो सिद्धार्थ के लिए किसी से कुछ मांगने के लिए बचेगा ही नहीं. इस बीच, वह जा कर पुणे आर्ट्स कालेज का पता लगा कर आ चुका था और यह भी पता कर चुका था कि जानकी कब आने वाली है. 15 सितंबर वह तारीख थी जिस का अब सिद्धार्थ को बेसब्री से इंतजार था. आखिर वह दिन आ गया. 14 सितंबर को जानकी पुणे के लिए रवाना होने वाली थी. यहां अनाथालय में खुशी और दुख साथसाथ बिखर रहे थे. मानसी चाची की तो एक आंख रो रही थी तो दूसरी आंख हंस रही थी. एक ओर तो उन की बेटी आज नौकरी करने जा रही है लेकिन उसी बेटी से बिछड़ने का गम भी खुशी से कम नहीं था. आखिर जानकी पुणे के लिए रवाना हो गई.

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सुबहसुबह पुणे पहुंच कर उस ने स्टेशन के पास ही एक ठीकठाक होटल खोज लिया. तैयार हो कर नियत समय पर कालेज पहुंच गई. सारी जरूरी कार्यवाही पूरी करने के बाद कालेज की एक प्रोफैसर ने उसे पूरा कालेज दिखाया और सारे स्टाफ व विद्यार्थियों से परिचय भी करवाया. इस बीच, उस ने उस प्रोफैसर से रहने की व्यवस्था के बारे में पूछा. उस प्रोफैसर ने कुछ एक जगह बताईं लेकिन पुणे बहुत महंगा शहर है, जानकी के लिए ज्यादा खर्चा करना मुमकिन नहीं था. इधर सिद्धार्थ ने पापा से एक दिन की छुट्टी ले ली थी. सुबह से काफी उत्साहपूर्ण लग रहा था. उस के तैयार होने का ढंग भी कुछ अलग ही था. मां सबकुछ देख रही थीं और समझने की कोशिश कर रही थीं. बेटा चाहे जितना भी बदल जाए, मां उस का मन फिर भी पढ़ लेती है. लेकिन मां खामोशी से सब देखती भर रहीं, कुछ बोली नहीं.

Crime- रोहतक चौहरा हत्याकांड: बदनामी, भय और भड़ास का नतीजा

फरवरी, 2021 को रोहतक के जाट कालेज अखाड़े में रात के तकरीबन सवा 8 बजे कुश्ती के कोच सुखविंदर ने अंधाधुंध फायरिंग कर 5 लोगों की हत्या कर दी थी. मरने वालों में जाट कालेज के कोच मनोज, रेलवे में काम कर रही उन की पत्नी साक्षी, उत्तर प्रदेश की पहलवान पूजा समेत 2 और कोच शामिल थे.

इस वारदात से 5 दिन पहले ही पूजा ने कोच मनोज को बताया था कि सुखविंदर उसे परेशान कर रहा है और शादी के लिए दबाव बना रहा है.

यह सुन कर कोच मनोज ने सुखविंदर की अखाड़े में आने से रोक लगा दी थी. इसी बात की रंजिश के चलते सुखविंदर ने यह घिनौना कदम उठाया था. हालांकि वह बाद में पकड़ा गया था.

इस बात को 7 महीने भी नहीं हुए थे कि विजय नगर कालोनी, रोहतक में ही एक चौहरे हत्याकांड ने नई सुर्खियां बना दीं. 27 अगस्त, 2021 को दिनदहाड़े घर में घुस कर 3 लोगों की हत्या कर दी गई, वहीं एक 17 साल की लड़की इस फायरिंग में घायल हुई, जिस ने वारदात के 40 घंटे बाद अस्पताल में दम तोड़ दिया.

पुलिस को मिली पहली जानकारी के मुताबिक, अज्ञात हथियारबंद बदमाशों ने घर में घुस कर परिवार के 4 सदस्यों पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसाईं, जिस के चलते 45 साल के प्रदीप उर्फ बबलू पहलवान, उन की 40 साल की पत्नी बबली और 60 साल की सास रोशनी की मौके पर ही मौत हो गई, जबकि प्रदीप की 17 साल की बेटी तमन्ना ने बाद में अस्पताल में दम तोड़ा.

प्रदीप उर्फ बबलू पहलवान और उस की सास रोशनी से हत्यारा सब से ज्यादा गहरी रंजिश रखता था, क्योंकि उस ने बबलू पहलवान को 3 और सास रोशनी को 2 गोलियां मारी थीं.

Crime: अठारह साल बाद शातिर अपराधी की स्वीकारोक्ति

पुलिस के पास जो पोस्टमार्टम रिपोर्ट पहुंची, उस में सामने आया कि बबलू पहलवान को माथे में पहली गोली मारने के बाद हत्यारे ने सटा कर उसी जगह

2 गोलियां और मारीं, वहीं सास रोशनी को भी पौइंट ब्लैंक रेंज से पहली गोली मारने के बाद दूसरी गोली भी सिर में पिस्टल सटा कर मारी गई.

इस हंसतेखेलते परिवार में 20 साल का एकलौता अभिषेक उर्फ मोनू ही बचा, जो बबलू पहलवान का बेटा था और वारदात के समय घर पर नहीं था. बाद में उसी ने घर आ कर यह खूनखराबा देखा था और पड़ोसियों को जमा किया था.

हुआ सनसनीखेज खुलासा

पुलिस इस हत्याकांड की पेचीदगी में उलझ गई थी. कभी इस बात का शक होता कि क्योंकि बबलू पहलवान दबंग था और प्रोपर्टी डीलर था, लिहाजा किसी ने उस से दुश्मनी निकाली होगी. पर हर एंगल से जांच करने के बाद पुलिस ने हैरतअंगेज तरीके से अभिषेक उर्फ मोनू को गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस के मुताबिक, अभिषेक उर्फ मोनू अपनी बहन तमन्ना के नाम प्रोपर्टी करवाने से नाराज था. ऐसा नहीं था कि प्रदीप उर्फ बबलू पहलवान अभिषेक से प्यार नहीं करता था.

लोगों की मानें, तो उस ने अपने बेटे अभिषेक को होंडा सिटी कार व सवा लाख रुपए का एप्पल का फोन तक दे रखा था. उसे दिल्ली में एयरलाइंस में क्रू मैंबर का कोर्स करवाया था. साथ ही, शहर के एक कालेज में दाखिला दिलवाया था. यहां तक कि एक निजी एयरलाइंस में नौकरी के लिए भी बातचीत की थी और उसे विदेश भेजने के लिए तैयार हो गया था.

बाद में पुलिस को पता चला कि अभिषेक कई दिन से अपने पिता से  5 लाख रुपए मांग रहा था, पर जब पिता ने वजह पूछी तो उस ने संतोषजनक जवाब नहीं दिया और जब परिवार को उस वजह की भनक लगी, तो अभिषेक की तुड़ाई कर दी गई.

दरअसल, पुलिस पूछताछ में अभिषेक उर्फ मोनू ने खुलासा किया कि वह सैक्स सर्जरी के जरीए अपना जैंडर बदलवाना चाहता था यानी लड़के से लड़की बनना चाहता था. वह पिछले एक साल से सर्जरी के लिए इंटरनैट पर इस तरह के क्लिनिक की जानकारी जुटा  रहा था.

यही नहीं, वह ऐसा कर के उत्तराखंड के एक दोस्त के साथ विदेश भागना चाहता था. इस दोस्त से अभिषेक की मुलाकात क्रू मैंबर का कोर्स करने के दौरान हुई थी.

पुलिस के मुताबिक, अभिषेक उर्फ मोनू अपने इस काम को अंजाम दे पाता, उस से पहले परिवार को इस बात का पता चला तो उसे जम कर पीटा गया. इस से गुस्सा हो कर उस ने यह वारदात कर डाली.

पुलिस के मुताबिक, अभिषेक उर्फ मोनू ने बड़े ही शातिर तरीके से इस वारदात को अंजाम दिया. अपना परिवार खत्म करने के बाद वह छत के रास्ते से फरार हुआ और एक होटल में जा छिपा, जहां उस का वही उत्तराखंड का तथाकथित दोस्त था, जिस के लिए वह अपना सैक्स बदलवा कर लड़की बनना चाहता था.

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वहां उन दोनों ने जिस्मानी रिश्ता बनाया और फिर एक घंटे के बाद अभिषेक दोबारा घर गया और इस हत्याकांड का पहला चश्मदीद गवाह बनते हुए पड़ोसियों को जमा कर लिया.

पुलिस रिमांड में जब कुछ मनोवैज्ञानिक अभिषेक उर्फ मोनू से मिले, तो वह सामान्य बना रहा और एक तरह से उन्हें भी उलझा दिया. बाद में वकील मोहित वर्मा ने शनिवार, 11 सितंबर, 2021 को सुनारिया जेल में जा कर उस से तकरीबन 12 मिनट तक बातचीत की तो अभिषेक ने खुद को बेकुसूर बताया.

अभिषेक उर्फ मोनू ने यह भी बताया कि पुलिस ने उसे बिना वजह फंसाया है. उस से काफी दस्तावेजों पर दस्तखत भी कराए गए हैं. उस का इस हत्याकांड से कोई मतलब नहीं है. उस ने सीबीआई जांच की भी मांग की.

अभिषेक उर्फ मोनू अपने बचाव में दलील रखने का हकदार है, पर खुद को बेकुसूर कहने भर से वह इस हत्याकांड से पीछा नहीं छुड़ा सकता. वैसे, वह ऐसे परिवार और समाज से आता है, जहां किसी लड़के का लड़की बन कर जीने की सोच रखना ही सब से बड़ी सजा है.

जिस हरियाणा में दूसरी जाति में शादी करने से ओनर किलिंग हो जाती है, वहां प्रदीप उर्फ बबलू पहलवान कैसे सहन कर सकता था कि उस का लाड़ला बेटा ऐसी शर्मनाक डिमांड उस के सामने रख दे.

अभिषेक उर्फ मोनू को पता था कि आज यह बात बताने पर उस की पिटाई हुई है, तो कल को समाज में अपनी इज्जत की खातिर बाप ही उस की बलि चढ़ा सकता है.

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हो सकता है कि उस के उत्तराखंड वाले दोस्त ने उसे यह राह दिखाई हो, पर उम्र के जिस पड़ाव पर अभिषेक था, उसे खुद का वजूद बचाने के लिए यही एक रास्ता समझ आया हो.

जिस तरह से अभिषेक उर्फ मोनू ने क्राइम सीन पर पुलिस के सामने सबकुछ उगल कर यह हत्याकांड कबूल किया है, उस से शक की कोई गुंजाइश नहीं बचती है, बशर्ते इस वारदात में जमीनजायदाद से जुड़े पारिवारिक झगड़े का कोई दूसरा पेंच न फंसता हो.

सजा- भाग 1: तरन्नुम ने असगर को क्यों सजा दी?

असगर ने अपने दोस्त शकील से शर्त जीत कर तरन्नुम से निकाह तो कर लिया था लेकिन तरन्नुम को जब उस के विवाहित होने का पता चला तो उस ने आम औरतों की तरह सामंजस्य करने से इनकार कर दिया और असगर को वह सजा दी जिस की कल्पना भी वह नहीं कर सकता था.

असगर अपने दोस्त शकील की शादी में शरीक होने रामपुर गया. स्कूल के दिनों से ही शकील उस के करीबी दोस्तों में शुमार होता था. सो दोस्ती निभाने के लिए उसे जाना मजबूरी लगा था. शादी की मौजमस्ती उस के लिए कोई नई बात नहीं थी और यों भी लड़कपन की उम्र को वह बहुत पीछे छोड़ आया था.

शकील कालेज की पढ़ाई पूरी कर के विदेश चला गया था. पिछले कितने ही सालों से दोनों के बीच चिट्ठियों द्वारा एकदूसरे का हालचाल पता लगते रहने से वे आज भी एकदूसरे के उतने ही नजदीक थे जितना 10 बरस पहले.

असगर को दिल्ली से आया देख शकील खुशी से भर उठा, ‘‘वाह, अब लगा शादी है, वरना तेरे बिना पूरी रौनक में भी लग रहा था कि कुछ कसर बाकी है. तुझ से मिल कर पता लगा क्या कमी थी.’’

‘‘वाह, क्या विदेश में बातचीत करने का सलीका भी सिखाया जाता है या ये संवाद भाभी को सुनाने से पहले हम पर आजमाए जा रहे हैं.’’

‘‘अरे असगर, जब तुझे ही मेरे जजबात का यकीन न आ रहा हो तो वह क्यों करेगी मेरा यकीन, जिसे मैं ने अभी देखा भी नहीं,’’ शकील, असगर के कंधे पर हाथ रखते हुए बोला.

बातें करतेकरते जैसे ही दोनों कमरे के अंदर आए असगर की निगाहें पल भर के लिए दीवान पर किताब पढ़ती एक लड़की पर अटक कर रह गईं. शकील ने भांपा, फिर मुसकरा दिया. बोला, ‘‘आप से मिलिए, ये हैं तरन्नुम, हमारी खालाजाद बहन और आप हैं असगर कुरैशी, हमारे बचपन के दोस्त. दिल्ली से तशरीफ ला रहे हैं.’’

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दुआसलाम के बाद वह नाश्ते का इंतजाम देखने अंदर चली गई. असगर के खयाल जैसे कहीं अटक गए. शकील ने उसे भांप लिया, ‘‘क्यों साहब, क्या हुआ? कुछ खो गया है या याद आ रहा है?’’

असगर कुछ नहीं बोला, बस एक नजर शकील की तरफ देख कर मुसकरा भर दिया.

शादी के सारे माहौल में जैसे तरन्नुम ही तरन्नुम असगर को दिखाई दे रही थी. उसे बिना बात ही मौसम, माहौल सभी कुछ गुनगुनाता सा लगने लगा. उस के रंगढंग देख कर शकील को मजा आ रहा था. वह छेड़खानी पर उतर आया. बोला, ‘‘असगर यार, अपनी दुनिया में वापस आ जाओ. कुछ बहारें देखने के लिए होती हैं, महसूस करने के लिए नहीं, क्या समझे? भई, यह औरतों की आजादी के लिए नारा बुलंद करने वालियों की अपने कालेज की जानीमानी सरगना है, तुम्हारे जैसे बहुत आए और बहुत गए. इसे कुछ असर होने वाला नहीं है.’’

‘‘लगानी है शर्त?’’ असगर ने चुनौती दी, ‘‘अगर शादी तक कर के न दिखा दूं तो मेरा नाम असगर कुरैशी नहीं.’’

शकील ने उसे छेड़ते हुए कहा, ‘‘मियां, लोग तो नींद में ख्वाब देखते हैं, आप जागते में भी.’’

‘‘बकवास नहीं कर रहा मैं,’’ असगर ने कहा, ‘‘बोल, अगर शादी के लिए राजी कर लूं तो?’’

‘‘ऐसा,’’ शकील ने उकसाया, ‘‘जो नई गाड़ी लाया हूं न, उसी में इस की डोली विदा करूंगा, क्या समझा. यह वह तिल है जिस में तेल नहीं निकलता.’’

और इस चुनौती के बाद तो असगर तरन्नुम के आसपास ही नजर आने लगा. अचानक ही एक से एक शेर उस के होंठों पर और हर महफिल में गजलें उस की फनाओं में बिखर रही थीं.

शकील हैरान था. यह तरन्नुम, जो हर आदमी को, आदमी की जात पर लानत देती थी, कैसे अचानक ही बहुत लजीलीशर्मीली ओस से भीगे गुलाब सी धुलीधुली नजर आने लगी.

घर में उस के इस बदलाव पर हलकी सी चर्चा जरूर हुई. शकील के साथ तरन्नुम के अब्बाअम्मी उस से मिलने आए. शकील ने कहा, ‘‘ये तुम से कुछ बातचीत करना चाहते थे, सो मैं ने सोचा अभी ही मौका है फिर शाम को तो तुम वापस दिल्ली जा ही रहे हो.’’

असगर हैरान हो कर बोला, ‘‘किस बारे में बातचीत करना चाहते हैं?’’

‘‘तुम खुद ही पूछ लो, मैं चला,’’ फिर अपनी खाला शहनाज की तरफ मुड़ कर बोला, ‘‘खालू, देखो जो भी बात आप तफसील से जानना चाहें उस से पूछ लें, कल को मेरे पीछे नहीं पडि़एगा कि फलां बात रह गई और यह बात दिमाग में ही नहीं आई,’’ इस के बाद शकील कमरे से बाहर हो गया.

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असगर ने कहा, ‘‘आप मुझ से कुछ पूछना चाहते थे, पूछिए?’’

शहनाज बड़ा अटपटा महसूस कर रही थीं. उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि वे क्या सवाल करें. उन के शौहर रज्जाक अली ने चंद सवाल पूछे, ‘‘आप कहां के रहने वाले हैं. कितने बहनभाई हैं, कहां तक पढ़े हैं? सरकारी नौकरी न कर के आप प्राइवेट नौकरी क्यों कर रहे हैं? अपना मकान दिल्ली में कैसे बनवाया? वगैरहवगैरह.’’

असगर जवाब देता रहा लेकिन उसे समझ में नहीं आ रहा था कि इतनी तहकीकात किसलिए की जा रही है. शहनाज खाला थीं कि उस की तरफ यों देख रही थीं जैसे वह सरकस का जानवर है और दिल बहलाने के लिए अच्छा तमाशा दिखा रहा है. खालू के चंदएक सवाल थे जो जल्दी ही खत्म हो गए.

शहनाज खाला बोलीं, ‘‘तो बेटा, जब तुम्हारे सिर पर बुजुर्गों का साया नहीं है तो तुम्हें अपने फैसले खुद ही करने होते होंगे, है न…’’

‘‘जी,’’ असगर ने कहा.

‘‘तो बताओ, निकाह कब करना चाहोगे?’’

‘‘निकाह?’’ असगर ने पूछा.

‘‘और क्या,’’ खाला बोलीं, ‘‘भई, हमारे एक ही बेटी है. उस की शादी ही तो हमारी जिंदगी का सब से बड़ा अरमान है. फिर हमारे पास कमी भी किस चीज की है. जो कुछ है सब उसे ही तो देना है,’’ खाला ने खुलासा करते हुए कहा.

‘‘पर आप यह सब मुझ से क्यों कह रही हैं?’’

इस पर खालू ने कहा, ‘‘बात ऐसी है बेटा कि आज तक हमारी तरन्नुम ने किसी को भी शादी के लायक नहीं समझा. हम लोगों की अब उम्र हो रही है. अब उस ने तुम्हें पसंद किया है तो हमें भी अपना फर्ज पूरा कर के सुर्खरू हो लेने दो.’’

‘‘क्या?’’ असगर हैरान रह गया, ‘‘तरन्नुम मुझे पसंद करती है? मुझ से शादी करेगी?’’ असगर को यकीन नहीं आ रहा था.

‘‘हां बेटा, उस ने अपनी अम्मी से कहा है कि वह तुम्हें पसंद करती है और तुम्हीं से शादी करेगी. देखो बेटा, अगर लेनेदेने की कोई फरमाइश हो तो अभी बता दो. हमारी तरफ से कोई कसर नहीं रहेगी.’’

‘‘पर खालू मैं तो शादी,’’ असगर कुछ कहने के लिए सही शब्द सोच ही रहा था कि खालू बीच में ही बोले, ‘‘देखो बेटा, मैं अपनी बच्ची की खुशियां तुम से झोली फैला कर मांग रहा हूं, न मत कहना. मेरी बच्ची का दिल टूट जाएगा. वह हमेशा से ही शादी के नाम से किनारा करती रही है. अब अगर तुम ने न कर दी तो वह सहन नहीं कर सकेगी.’’

एक पल को असगर चुप रहा, फिर बोला, ‘‘आप ने शकील से बात कर ली है.’’

‘‘हां,’’ खालू बोले, ‘‘उस की रजामंदी के बाद ही हम तुम से बात करने आए हैं.’’

शहनाज खाला उतावली सी होती हुई बोलीं, ‘‘तुम हां कह दो और शादी कर के ही दिल्ली जाओ. सभी इंतजाम भी हुए हुए हैं. इस लड़की का कोई भरोसा नहीं कि अपनी हां को कब ना में बदल दे.’’

‘‘ठीक है, जैसा आप सही समझें करें,’’ असगर ने कहा.

शहनाज खाला ने उस का हाथ पकड़ कर अपनी आंखों से लगाया, ‘‘बेटा, तुम तो मेरे लिए फरिश्ते की तरह आए हो, जिस ने मेरी बच्ची की जिंदगी बहारों से भर दी,’’ खुशी से गमकते वह और खालू घर के अंदर खबर देने चले गए.

उन के जाने के बाद शकील कमरे में आते हुए बोला, ‘‘तो हुजूर ने मुझे शह देने के लिए सब हथकंडे आजमाए.’’

असगर ने कहा, ‘‘तू डर मत, मैं जीत का दावा कार मांग कर नहीं कर रहा हूं.’’

‘‘तू न भी मांगे,’’ शकील ने कहा, ‘‘तो भी मैं कार दूंगा. हम मुगल अपनी जबान पर जान भी दे सकने का दावा करते हैं, कार की तो बात ही क्या.’’

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‘‘मजाक छोड़ शकील,’’ असगर ने कहा, ‘‘कल उसे पता लगेगा तब…’’

‘‘अब कुछ असर होने वाला नहीं है,’’ शकील ने कहा, ‘‘अपनेआप शादी के बाद हालात से सुलह करना सीख जाएगी. अपने यहां हर लड़की को ऐसा ही करने की नसीहत दी जाती है.’’

‘‘पर तू कह रहा था शकील कि वह आम लड़कियों जैसी नहीं है, बड़ी तेजतर्रार है.’’

कैक्टस के फूल- भाग 2: क्यों ममता का मन पश्चात्ताप से भरा था?

Writer- इंदिरा राय

ममता पटना में केंद्रीय विद्यालय में अध्यापिका थी और सौरभ भी उन दिनों वहीं कार्यरत था. छुट्टियों के बाद पटना जा कर पहला काम जो उस ने किया वह था ममता से मुलाकात. स्कूल के अहाते में अमलतास के पीले गुच्छों वाले फूलों की पृष्ठभूमि में ममता का सौंदर्य और भी दीप्त हो आया था. वह तो ठगा सा रह गया किंतु तब भी ममता ने यथार्थ की खुरदरी बातें ही की थीं, ‘‘वह विवाह के बाद भी नौकरी करना चाहती है क्योंकि इतनी अच्छी स्थायी नौकरी छोड़ना बुद्धिमानी नहीं है.’’

सौरभ तो उस समय भावनाओं के ज्वार में बह रहा था. ममता जो भी शर्त रखती वह उसे मान लेता फिर इस में तो कोई अड़चन नहीं थी. दोनों को पटना में ही रहना था. अड़चन आई 6 वर्ष बाद जब सौरभ का स्थानांतरण बिहार शरीफ के लिए हो गया. उस की हार्दिक इच्छा थी कि ममता नौकरी छोड़ दे और उस के साथ चले. 5 वर्ष की मीनी का उसी वर्ष ममता के स्कूल में पहली कक्षा में प्रवेश हुआ था. चीनी साढ़े 3 वर्ष की थी. वैसे सौरभ नौकरी छोड़ने को न कहता यदि ममता का तबादला हो सकता. वह केंद्रीय विद्यालय में थी और प्रत्येक शहर में तो केंद्रीय विद्यालय होते नहीं. परंतु ममता इस के लिए किसी प्रकार सहमत नहीं थी. उस के तर्क में पर्याप्त बल था. सौरभ के कई सहकर्मियों ने बच्चों की शिक्षा के लिए अपने परिवार को पटना में रख छोड़ा था. उन लोगों की बदली छोटेबड़े शहरों में होती रहती है. सब जगह बढि़या स्कूल तो होते नहीं. फिर आज मीनीचीनी छोटी हैं कल को बड़ी होंगी.

उस ने अपनी नौकरी के संबंध में कुछ नहीं कहा था परंतु सौरभ नादान तो नहीं था. मन मार कर ममता और बच्चों के रहने की समुचित व्यवस्था कर के उसे अकेले आना पड़ा. गरमी की छुट्टियों में पत्नी और बच्चे उस के पास आ जाते, छोटीछोटी छुट्टियों में कभी दौरा बना कर, कभी ऐसे ही सौरभ आ जाता.

गत 4 वर्षों से गृहस्थी की गाड़ी इसी प्रकार धकियाई जा रही थी. अकेले रहते और नौकर के हाथ का खाना खाते उस का स्वास्थ्य गड़बड़ रहने लगा था. 2 जगह गृहस्थी बसाने से खर्च भी बहुत बढ़ गया था. परंतु ममता की एक मुसकान भरी चितवन, एक रूठी हुई भंगिमा उस की सारी झुंझलाहट को धराशायी कर देती थी और वह उस रूपपुंज के इर्दगिर्द घूमने वाला एक सामान्य सा उपग्रह बन कर रह जाता.

9 बजे ममता और बच्चियों के जाने के बाद सौरभ ने स्नान किया, तैयार हो कर सोचा कि सचिवालय का एक चक्कर लगा आए. पटना स्थानांतरण के लिए किए गए प्रयासों में एक प्रयास और जोड़ ले. दरवाजे पर ताला लगा कर चाबी सामने वाले मकान में देने के लिए घंटी बजाई. गृहस्वामिनी निशि गीले हाथों को तौलिए से पोंछती हुई बाहर निकलीं, ‘‘अरे भाईसाहब, आप कब आए?’’

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‘‘कल रात,’’ सौरभ ने उन्हें चाबी थमाने का उपक्रम किया. निशि ने चाबी लेने में कोई शीघ्रता नहीं दिखाई, ‘‘अब तो भाईसाहब, आप यहां बदली करवा ही लीजिए. अकेली स्त्री के लिए बच्चों के साथ घर चलाना बहुत कठिन होता है. बच्चे हैं तो हारीबीमारी चलती ही रहती है, यह तो कहिए आप के संबंधी कपिलजी हैं जो आप की अनुपस्थिति में पूरी देखरेख करते हैं, आजकल इतना दूसरों के लिए कौन करता है?’’

सौरभ अचकचा गया, वह तो कपिल को जानता तक नहीं. ममता ने झूठ का आश्रय क्यों लिया? उस ने निशि की ओर देखा, होंठों के कोनों और आंखों से व्यंग्य भरी मुसकान लुकाछिपी कर रही थी.

‘‘हां, बदली का प्रयास कर तो रहा हूं,’’ सौरभ सीढि़यों से नीचे उतर आया. नए जूते के कारण उंगलियों में पड़े छाले उसे कष्ट नहीं दे रहे थे क्योंकि देह में कैक्टस का जंगल उग आया था.

सचिवालय के गलियारे में इधरउधर निरुद्देश्य भटक कर वह सांझ गए लौटा. मीनीचीनी की मीठी बातें, ममता की मधुर मुसकान उस पर पहले जैसा जादू नहीं डाल सकीं. 10 वर्षों की मोहनिद्रा टूट चुकी थी.

ममता ने पूछा, ‘‘क्या हुआ? तबादले की फाइल आगे बढ़ी?’’

‘‘कुछ होनाहवाना नहीं है, सभी तो यहीं आना चाहते हैं. मैं तो सोचता हूं कि अब हम सब को इकट्ठे रहना चाहिए.’’

‘‘यह कैसे संभव होगा?’’ ममता के माथे पर बल पड़ गए थे.

‘‘संभव क्यों नहीं है? यहां का खर्च तुम्हारे वेतन से तो पूरा पड़ता नहीं. दोनों जनों की कमाई से क्या लाभ जब बचत न हो.’’

‘‘क्या सबकुछ रुपयों के तराजू पर तोला जाएगा? मीनीचीनी को केंद्रीय विद्यालय में शिक्षा मिल रही है, वह क्या कुछ नहीं?’’

‘‘आजकल सब शहरों में कान्वेंट स्कूल खुल गए हैं…फिर तुम स्वयं उन्हें पढ़ाओगी. तुम नौकरी करना ही चाहोगी तो वहां भी तुम्हें मिल जाएगी.’’

‘‘और मेरी 12 वर्षों की स्थायी नौकरी? क्या इस का कुछ महत्त्व नहीं?’’ ममता का क्रोध चरम पर था.

‘‘अब सबकुछ चाहोगी तो कैसे होगा?’’ हथियार डालते हुए सौरभ सोच रहा था. मैं क्यों ममता के तर्ककुतर्कों के सामने झुक जाता हूं? अपनी दुर्बलता से उत्पन्न खीज को दबाते हुए वह मन ही मन योजना बनाने लगा कि कैसे वह अपने क्रोध को अभिव्यक्ति दे.

दूसरे दिन प्रात:काल ही वह जाने के लिए तैयार हो गया. ममता ने आश्चर्य से टोका, ‘‘आज तो छुट्टी है…सुबह से ही क्यों जा रहे हो?’’

‘‘मुझे वहां काम है,’’ उस ने रुखाई से कहा. ममता को जानना चाहिए कि वह भी नाराज हो सकता है.

वापस आने के बाद भी सौरभ को चैन नहीं था. हर समय संदेह के बादलों से विश्वास की धूप कहीं कोने में जा छिपी थी. मन में युद्ध छिड़ा हुआ था, ‘स्त्री की आत्मनिर्भरता तो गलत नहीं, कार्यरत स्त्री की पुरुषों से मैत्री भी अनुचित नहीं फिर उस का सारा अस्तित्व कैक्टस के कांटों से क्यों बिंधा जा रहा है?’

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विवेक से देखने पर तो सब ठीक लगता है परंतु भावना का भी तो जीवन में कहीं न कहीं स्थान है. इच्छा होती है कि एक बार उन लोगों के सामने मन की भड़ास पूरी तरह निकाल ले. इसी धुन में 3-4 दिन बाद वह पुन: पटना पहुंचा. उस समय शाम के 7 बज रहे थे. द्वार पर ताला लगा था.

निशि ने भेदभरी मुसकान के साथ बताया, ‘‘कपिलजी के साथ वे लोग बाहर गए हैं.’’

वह उन्हीं की बैठक में बैठ गया. आधे घंटे बाद सीढि़यों पर जूतेचप्पलों के शोर से अनुमान लगा कि वे लोग आ गए हैं. सौरभ बाहर निकल आया. आगेआगे सजीसंवरी ममता, पीछे चीनी को गोद में लिए कपिल और हाथ में गुब्बारे की डोर थामे मीनी. अपने स्थान पर कपिल को देख कर आगबबूला हो उठा.

ममता भी सकपका गई थी, ‘‘सब ठीक है न?’’

‘‘क्यों, कुछ गलत होना चाहिए?’’ अंतर की कटुता से वाणी भी कड़वी हो गई थी.

‘‘नहींनहीं, अभी 3 दिन पहले यहां से गए थे, इसी से पूछा.’’

‘‘मुझे नहीं आना चाहिए था क्या?’’ सौरभ का क्रोध निशि और कपिल की उपस्थिति भी भूल गया था.

Satyakatha: ऑपरेशन करोड़पति- भाग 2

सौजन्य- सत्यकथा

उसी कार से उन्होंने औपरेशन करोड़पति की शुरुआत की. उस दिन अगस्त की 4 तारीख थी. पांचों साथी कार में सवार नवीन पटेल के शोरूम पहुंचे. समय दोपहर साढ़े 12 बजे का था.

वीरेंद्र अपने 4 साथियों को ले कर शोरूम में घुसा, जबकि एक साथी कार में ही बैठा रहा. वह निशांत था. वह कार में लगे काले शीशे के कारण बाहर से नहीं दिख रहा था. वीरेंद्र ने नवीन पटेल को अपना परिचय एक प्लाईवुड व्यापारी के रूप में दिया.

नवीन पटेल से परिचय करने के बाद उस ने अपने 3 सहयागियों के तौर पर बाकी का परिचय करवाया. थोड़ी देर तक इधरउधर की बातें करने के बाद वीरेंद्र ने बताया कि कुछ समय में ही उन का कारपेंटर आने वाला है. वही प्लाईवुड के बारे में बाकी जानकारी देगा.

नवीन पटेल ने उन्हें सामने के सोफे पर बैठने को कहा और अपने एक कर्मचारी को पानी और चाय लाने के लिए बोल कर अपना काम निपटाने लगे. कर्मचारी के वहां से हटते ही वीरेंद्र के एक साथी ने अचानक ही शोरूम का शटर बंद कर दिया.

नवीन पटेल चौंक गए. उन्होंने समझा कि शटर अपने आप गिर गया है. क्योंकि ऐसा पहले भी 2-3 बार हो चुका था. उन्होंने तुरंत अपने कर्मचारी को आवाज लगाई, ‘‘कितनी बार कहा है कि शटर ठीक करवा लो, लेकिन नहीं.’’

नवीन बात पूरी करने वाले ही थे कि वीरेंद्र बिहारी ने फुरती से नवीन  के गले पर चाकू रख दिया. नवीन बौखलाते हुए बोले, ‘‘अरे, यह क्या बदतमीजी है? कौन…कौन हो तुम लोग? यह क्या कर रहे हो?’’

‘‘अगर अपनी जान की सलामती चाहते हो, तो एक करोड़ रुपया निकालो. अभी के अभी.’’ वीरेंद्र कड़कती आवाज में बोला.

‘‘छोड़ो मुझे, मुझे छोड़ दो.’’ नवीन अपना हाथ पीछे ले जा कर दूसरे बदमाश का हाथ पकड़ने की कोशिश करने लगे, जो पीछे से उन के दोनों कंधे पकड़े था.

‘‘नहीं छोड़ेंगे तुम्हें, जब तक कि तुम पैसे नहीं दे देते हो. वरना जिंदा भी नहीं बचोगे.’’ वीरेंद्र बोला.

नवीन अचानक आई इस मुसीबत से बुरी तरह घबरा गए. अपने पुराने कर्मचारी निशांत को आवाज दी. चाय लाने के लिए गया कर्मचारी शोरगुल सुन कर वहां आ चुका था. उसे तीसरे बदमाश ने धर दबोचा.

नवीन समझ चुके थे कि वे अपहर्त्ताओं के चंगुल में फंस चुके हैं. वह उन से विनती करने लगे, ‘‘मेरे पास पैसा नहीं है. लौकडाउन में इतना बिजनैस भी नहीं हो रहा है.’’

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‘‘कहीं से भी लाओ हम नहीं जानते. घरवाली को फोन कर अभी पैसे मंगवाओ. वरना…’’ कहते हुए वीरेंद्र चाकू उन की गरदन पर रेतने की स्थिति में ले आया.

काफी कोशिश और मारपीट करने के बाद भी बात नहीं बनी. बारबार नवीन एक ही रट लगाए रहे कि उन के पास पैसे नहीं है. वीरेंद्र ने अपने एक साथी को उन की आंखों और मुंह पर पट्टी बांधने को कहा.

फटाफट बदमाशों ने नवीन की आंखों और मुंह पर पट्टी बांधी, फिर चाकू की नोक पर ढकेलते हुए कार के पास ले गए. कार में पहले से बैठे निशांत ने उसे तुरंत अंदर खींच लिया. कार की ड्राइविंग सीट पर वीरेंद्र जा बैठा. कुछ समय में ही कार सड़क पर दौड़ने लगी.

यहां तक तो पांचों बदमाशों को सफलता मिल गई थी, लेकिन उन्हें इस बात की चिंता हुई कि वे फिरौती की काल कैसे करें? किस से पैसे मंगवाएं? कहां पर मंगवाएं?

अचानक प्रोग्राम में बदलाव होने से सभी दुविधा में आ गए थे. भीतर से उन्हें पकड़े जाने का डर भी लग रहा था.

अपहरण जैसे अपराध का यह उन का पहला अनुभव था. वह अभी तक छोटीमोटी चोरियां और लूटपाट ही किया करते थे.

उन्हें यह भी डर था कि अपना फोन इस्तेमाल करने पर तुरंत पुलिस की नजर में आ जाएंगे. ऐसे में हो सकता है कि वह फिरौती मिलने से पहले ही पकड़े जाएं.

वीरेंद्र को सामने मोबाइल पर बात करते हुए मजदूरों को देख कर एक आइडिया आया. उस ने तुरंत गाड़ी रोकी और 2 मजदूरों के मोबाइल छीन लिए. फिर गाड़ी तेजी से आगे बढ़ा दी.

फोन निशांत को देते हुए नवीन की पत्नी को काल लगाने के लिए कहा. नवीन पटेल की पत्नी मीनाक्षी का नंबर निशांत को मालूम था. उस ने तुरंत से फोन लगा दिया. मीनाक्षी द्वारा फोन रिसीव करते ही निशांत ने स्पीकर   औन कर दिया.

‘‘हैलो, कौन बोल रहा है?’’ मीनाक्षी ने पूछा.

‘‘मैडम, अगर तुम अपने पति की खैरियत चाहती हो तो एक करोड़ रुपए का बंदोबस्त जल्द कर लो. वरना उन्हें भूल जाओ.’’ वीरेंद्र  कर्कश आवाज में बोला.

‘‘हैलो…हैलो, आप कौन बोल रहे हैं?’’ मीनाक्षी कांपती आवाज में बोली.

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‘‘मैं कौन बोल रहा हूं, इस से तुम्हें कोई मतलब नहीं है. तुम सिर्फ उतना ही करो जितना हम कह रहे हैं. पैसा कहां लाना है, यह हम तुम्हें जल्द बातएंगे.’’ वीरेंद्र बोला.

‘‘लेकिन…. लेकिन तुम हो कौन? मेरे पति कहां हैं?’’

‘‘लेकिनवेकिन कुछ नहीं. बस, तुम इतना याद रखना कि पुलिस के पास भूल कर भी मत जाना. नहीं तो नतीजा बुरा होगा, समझी. और हां, तुम्हारा पति हमारे कब्जे में अभी तक सुरक्षित है.’’ कहते हुए वीरेंद्र ने फोन डिसकनेक्ट कर दिया.

दूसरी तरफ नवीन पटेल की पत्नी मीनाक्षी यह समझ गई थीं कि उस के पति का का अपहरण हो चुका है. वह बेहद घबरा गईं. यह बात किसे बताएं, किसे नहीं समझ नहीं पा रही थीं.

कुछ पल रुक कर उन्होंने निशांत को फोन लगाया. निशांत ने काल रिसीव की, लेकिन आवाज उस की नहीं थी. कोई और भद्दी गाली देते हुए बोला, ‘‘…आखिर तूने होशियारी दिखा दी न?’’ निशांत का फोन वीरेंद्र ने रिसीव किया था, ‘‘अब किसी को काल मत करना और रुपए के साथ हमारे फोन का इंतजार करना.’’

मीनाक्षी ने झट से फोन कट कर दिया. उन्होंने समझा कि शायद निशांत भी उस के पति के साथ है या फिर उस का फोन अपहर्त्ताओं के पास है.

उन के सामने बड़ी समस्या यह भी थी कि एक करोड़ रुपए कहां से लाएगी? अपहर्त्ताओं की इस शर्त से परिवार में कोहराम मच गया. इस समस्या का समाधान कैसे करें, यह उन की समझ में नहीं आ रहा था.

मीनाक्षी की मानसिक स्थिति बिगड़ गई. वह डिप्रेशन में चली गईं. परिवार वालों ने बड़ी मुश्किल से उन्हें संभाला. समझाबुझा कर पुलिस की मदद लेने को कहा. तब तक रात के 9 बज चुके थे.

मीनाक्षी हिम्मत कर 4 अगस्त, 2021 को रात साढ़े 9 बजे अपने रिश्तेदारों के साथ पणजी पुलिस स्टेशन पहुंचीं. 3 रिश्तेदारों के साथ होने के बावजूद वह काफी घबराई हुई थीं. उन की हालत देख थानाप्रभारी विजय चौडणखर ने हैरानी से पूछा, ‘‘क्या बात है? आप इतना घबराई हुई क्यों हैं?’’

नवीन पटेल गोवा के एक जानेमाने कारोबारी थे, इस कारण थानाप्रभारी मीनाक्षी को पहले से पहचानते थे. हाल में ही वह नवीन की मैरिज एनिवर्सरी में शामिल भी हुए थे. तब मीनाक्षी ने उन की अच्छी आवभगत की थी.

उत्तरी गोवा में थिविन गांव के रहने वाले 30 वर्षीय नवीन पटेल एक प्रतिष्ठित व्यक्ति थे. उन का गोवा के मौडल टाउन में आशीर्वाद नाम का एक शोरूम और एक प्लाईवुड का गोदाम था.

नवीन की पत्नी को अपने पास आया देख कर थानाप्रभारी चौंक गए. उन की घबराई हुई हालत देख कर उन्होंने पूछा, ‘‘क्या हुआ भाभीजी? आप इतनी घबराई हुई क्यों हैं?’’ इसी के साथ उन्होंने मीनाक्षी को बैठने को कहा.

सामने की कुरसी पर बैठते ही मीनाक्षी फूटफूट कर रोने लगीं. थानाप्रभारी ने उन्हें शांत करवाया. एक गिलास पानी पिलाया और पूरी बात बताने को कहा. जब मीनाक्षी ने नवीन पटेल के अपहरण की बात बताई तो थानाप्रभारी चिंता में पड़ गए. उन्होंने पूरी बात विस्तार से बताने को कहा.

मीनाक्षी ने अपहर्त्ताओं से हुई सभी बातें उन्हें बताईं. साथ ही अपने मोबाइल पर आए अपहर्त्ताओं के काल के समय को बताया.

थानाप्रभारी विजय चोडणखर मीनाक्षी का स्मार्टफोन ले कर जांचपरख करने लगे. संयोग से फोन में आटो रिकौर्डिंग का ऐप था. विजय ने काल की रिकौर्डिंग औन कर मीनाक्षी के सामने ही कई बार सुना.

फोन में शोरूम के कर्मचारी निशांत का भी नाम था. उसे काल करने पर मिले जवाब के बारे में पूछने पर मीनाक्षी ने सिर्फ इतना बताया कि वह उन का बहुत ही भरोसेमंद कर्मचारी है और उस का हमारे घर भी आनाजाना होता था. इस वक्त वह कहां है, पूछने पर मीनाक्षी ने बताया कि अब उस का फोन बंद आ रहा है.

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थानाप्रभारी इतना तो जानते ही थे कि अधिकतर अपहरण के मामले में किसी न किसी नजदीकी का ही हाथ होता है. इसी अंदेशे के साथ उन्होंने निशांत के जरिए अपहर्त्ताओं तक पहुंचने की योजना बनाई.

इस के बाद थानाप्रभारी ने मीनाक्षी और उन के साथ आए लोगों के बयानों के आधार पर नवीन पटेल के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज कर ली गई. थानाप्रभारी ने उन्हें इस आश्वासन के साथ घर भेज दिया कि पुलिस उन के पति को अवश्य छुड़ा लेगी.

अगले भाग में पढ़ें- पुलिस को अपहर्त्ताओं तक पहुंचने के लिए क्या जानकारी मिली

आज दिन चढ़या तेरे रंग वरगा- भाग 3

पत्र पूरा होते ही सब सिर झुका कर बैठ गए. ‘‘मैं अभी आया,’’ कह कर प्रशांत सर लंबेलंबे डग भरते हुए दूसरे कमरे की ओर चल दिए.

कुछ देर बाद वे एक व्हीलचेयर को पीछे से सहारा देते हुए चला कर ला रहे थे. व्हीलचेयर पर एक महिला गाउन पहने बैठी थी. शांत, सौम्य चेहरा, स्नेह से भरी बड़ीबड़ी आंखें, बालों से झांकती हलकी चांदी और कंधे पर आगे की ओर लटकती हुई लंबी सी चोटी.

प्रशांत सर नम आंखों से सब की ओर देख कर व्हीलचेयर पर बैठी महिला से परिचय करवाते हुए बोले, ‘‘मिलिए इन से, मेरे सुखदुख की साथी, मेरे जीवन की खुशी, मेरी अर्धांगिनी, जसप्रीत.’’

सब आश्चर्यचकित रह गए. कुछ देर तक उन दोनों को अपलक निहारने के बाद दीपेश उठ कर खड़ा हो गया और उस को देख सभी जसप्रीत के सम्मान में खड़े हो गए.

जसप्रीत ने अपना टेढ़ा हाथ उठा कर सब को बैठने का इशारा किया और अपने होंठों को धीरे से फैलाते हुए मुसकरा दी.

प्रशांत सर बोलने लगे, ‘‘अपनी पीएचडी के दौरान ही जब मुझे जसप्रीत के विषय में पता लगा तो मैं ने झट से विवाह का निर्णय ले लिया. दबी जबान में मम्मीपापा ने विरोध जरूर किया पर वे समझ गए थे कि अब मैं नहीं रुकने वाला. मैं नहीं छोड़ सकता था जसप्रीत को उस हाल में.’’

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‘‘इन्होंने बहुत इ…इ…इलाज करवाया मेरा. उस के बा…बाद ही थो…थोड़े हाथपैर चल…चलने लगे मेरे.’’ जसप्रीत अपनी बात रुकरुक कर कह पा रही थी.

‘‘आज जसप्रीत ने मुझ से कहा कि मैं अपनी डायरी आप सब को पढ़ने को दे दूं, इन का कहना था कि तभी बच्चे जान सकेंगे कि हम इमरान और स्वाति की भावनाएं क्यों बेहतर ढंग से समझ पा रहे हैं,’’ प्रशांत सर ने बताया.

‘‘ओह, आप से मिलना कितना अच्छा लग रहा है,’’ कह कर चहकती हुई साक्षी जसप्रीत से लिपट गई. सब लोग उठ कर जसप्रीत को घेर कर खड़े हो गए.

प्रशांत सर ने फिर से बोलना शुरू किया, ‘‘आप लोग जानना चाहते थे कि मैं ने क्या कहा स्वाति और इमरान के पेरैंट्स से? सुनो, मैं ने पहले उन से पूछा कि धर्म के नाम पर बंटवारा आखिर है क्या? कहां से आईं ये बातें? क्या यह जन्मजात गुण है व्यक्ति का? जन्म लेते ही बच्चे के चेहरे पर क्या उस का धर्म अंकित होता है? हम ही बनाते हैं ये दीवारें और कैद हो जाते हैं उन में खुद ही. इतना ही नहीं, जब कोई प्रेम के वशीभूत हो इन दीवारों को तोड़ना चाहता है तो हम उसे नासमझ ठहरा कर या डराधमका कर चुप करा देते हैं. कब तक अपनी बनाई हुई दीवारों में खुद को कैद करते रहेंगे हम? कब तक अपनी बनाई हुई बेडि़यों में जकड़े रखेंगे खुद को हम? आखिर कब तक.’’

जसप्रीत ने अपनी दोनों हथेलियां मिलाईं और धीरे से ताली बजाने लगी. वहां खड़े छात्र भी मुसकराते हुए जसप्रीत का अनुसरण करने लगे. कमरा तालियों की आवाज से गूंज उठा.

‘‘सर, हम किन शब्दों में आप को धन्यवाद कहें,’’ दीपेश ने कहा.

प्रशांत सर मुसकराते हुए बोले, ‘‘एक बात मैं जरूर कहूंगा. स्वाति और इमरान के पेरैंट्स समझदार हैं. फिलहाल दोनों के मिलने पर रोकटोक न लगाने को तैयार हैं वे. कह रहे थे कि रिश्ता जोड़ने के विषय में कुछ दिन विचार करेंगे. चलो, आशा की किरण तो दिखाई दी न? पर दुख की बात है कि सब लोग ऐसे नहीं होते.’’

‘‘क्यों न हम सब मि…मिल…मिल कर एक ऐसा संग…संगठन बनाएं जो लोगों को जा…जा…जाग…जागरूक करे,’’ जसप्रीत ने सुझाव दिया.

‘‘हां, हां,’’ की सम्मिलित आवाज कमरे में सुनाई देने लगी.

‘‘मैं भी स…सह… सहयोग करूंगी उस…उस में.’’ कह कर जसप्रीत का चेहरा नई आभा से दैदीप्यमान हो झिलमिलाने लगा.

‘‘वाह जसप्रीत, खूब. हम जल्द ही ऐसा करेंगे,’’ प्रशांत सर बोले.

‘‘उस संगठन के माध्यम से हम सब को यह समझाने का प्रयास करेंगे कि जाति और धर्म का लबादा जो हम ने सिर तक पहन रखा है, बहुत जरूरी है अब उसे उतार फेंकना. दम घुट जाएगा वरना हमारा,’’ हर्षित अपनी बुलंद आवाज में बोला.

‘‘और यह भी कि बच्चों की बात सुना करें पेरैंट्स. उन पर भरोसा रखें, उन्हें दोस्त समझें,’’ साक्षी ने कहा.

‘‘औ…औ…और यह भी…यह भी… कि कोई औरत अपने को कम….कम…. कमजोर समझ कर आ…आ….आ… आत्महत्या की कोशिश न करे…क… कभी,’’ जसप्रीत अटकअटक कर बोली.

‘‘बिलकुल, नारी अबला नहीं वह तो संबल है सब का,’’ साक्षी ने कहा.

कुछ देर बाद प्रशांत ने सब का धन्यवाद किया और वे चारों लौट गए.

रात के 10 बज गए थे. प्रशांत सर ने कमला को खाना लगाने को कहा और जसप्रीत को सहारा दे कर डाइनिंग टेबल की कुरसी पर बैठा दिया.

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अगले दिन सुबह 6 बजे नींद खुली उन की. खिड़की का परदा हटा कर वे बाहर देखते हुए सोच रहे थे, ‘कितना सुंदर है यह आकाश में गुलाबी रंग बिखेरता हुआ सूरज और उस के उदय होते ही गगन में स्वच्छंदता से उड़ान भरते हुए ये पंछियों के झुंड…

‘जसप्रीत, तुम्हारा यह नया रूप शायद आने वाले समय को अपने गुलाबी रंग में रंग लेगा और फिर नई पीढ़ी भर सकेगी एक स्वच्छंद, ऊंची उड़ान…आज का दिन तो सचमुच तुम्हारे रंग में रंग कर निकला है प्रीत.’

प्रशांत सर गुनगुना उठे – ‘‘आज दिन चढ़या तेरे रंग वरगा.’’

Satyakatha- दिल्ली: शूटआउट इन रोहिणी कोर्ट- भाग 3

सौजन्य- सत्यकथा

लेखक- शाहनवाज

3 मार्च, 2020 को दिल्ली पुलिस की स्पैशल सेल ने गुरुग्राम से उसे गिरफ्तार किया था. इस से पहले साल 2015 में जब जितेंद्र गोगी को गिरफ्तार किया गया था तो 30 जुलाई, 2016 को गोगी पुलिस को चकमा दे कर फरार हो गया था.

उस वक्त उसे हरियाणा रोडवेज की बस से नरवाना कोर्ट में पेशी पर ले जाया जा रहा था. तब 10 हथियारबंद बदमाश बस को रुकवा कर जितेंद्र गोगी को अपने साथ ले कर भाग गए थे.

इस के बाद से लगातार बड़ी वारदात में जितेंद्र गोगी का नाम सामने आता रहा. 17 अक्तूबर, 2017 को हरियाणा के पानीपत में चर्चित सिंगर हर्षिता दहिया की गोली मार कर हत्या कर दी गई थी. हर्षिता को 4 गोलियां मारी गई थीं. इस केस में जितेंद्र गोगी का नाम सामने आया था और कहा गया था कि हर्षिता के जीजा ने जितेंद्र गोगी को सुपारी दे कर हत्या करवाई थी.

इस के अगले ही महीने स्वरूप नगर में एक टीचर दीपक बालियान की हत्या कर दी गई, जिस में जितेंद्र गोगी का ही नाम सामने आया. जनवरी, 2018 में अलीपुर के रवि भारद्वाज की 25 गोलियां मार कर हत्या की गई थी. इस में भी जितेंद्र गोगी ही शामिल था.

अभी इसी साल 19 फरवरी को रोहिणी के कंझावला में आंचल उर्फ पवन की भी हत्या जितेंद्र गोगी गैंग ने की थी, जिस में कम से कम 50 राउंड फायरिंग हुई थी.

8 सितंबर, 2019 को दिल्ली के नरेला इलाके में विधानसभा का चुनाव लड़ चुके वीरेंद्र मान की 26 गोलियां मार कर हत्या कर दी गई थी. इस केस का भी मुख्य आरोपी जितेंद्र गोगी ही था. तब पुलिस ने जितेंद्र गोगी के शार्पशूटर कपिल को गिरफ्तार किया था.

इस दुश्मनी में अब तक ये दोनों गैंग 8 बार सड़क पर टकरा चुके हैं. कम से कम 30 लोगों की जान गई है और जितेंद्र गोगी की मौत के बाद एक बार फिर से इस गैंगवार के बढ़ने का अंदेशा जताया जा रहा है.

राजधानी दिल्ली की रोहिणी कोर्ट में जज के सामने ही टौप मोस्ट गैंगस्टर जितेंद्र मान उर्फ गोगी हत्याकांड की पटकथा 10 दिन पहले ही मंडोली जेल में लिख ली गई थी.

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15 सितंबर को टिल्लू ताजपुरिया से मिलने उस के गैंग के लोग मंडोली जेल में पहुंचे थे. वहां टिल्लू ने अपने साथियों को गोगी की हत्या का प्लान बताया था. टिल्लू के कहने पर ही प्लान को अंजाम तक पहुंचाने के लिए लगातार 4 दिन कोर्ट की रैकी कर पांचवें दिन वारदात को अंजाम दे दिया गया.

अदालत के सभी गेट पर सुरक्षा व्यवस्था का जायजा लिया गया. इस के बाद फैसला हुआ कि गेट नंबर 4 से अंदर दाखिल हो कर वकील के कपड़ों में कोर्टरूम में पहुंचा जाएगा. बदमाशों ने ऐसा ही किया. वे अपने मकसद में कामयाब हुए और इन्होंने योजना के तहत गोगी की हत्या कर दी.

पुलिस सूत्रों का कहना है कि गोगी की हत्या के बाद विरोधी टिल्लू खेमे में खुशी का माहौल है. पिछले कई सालों से टिल्लू लगातार गोगी की हत्या की योजना बना रहा था.

पुलिस सूत्रों का कहना है कि 15 सितंबर को मंडोली जेल में टिल्लू से मिलने के लिए उमंग और विनय के अलावा कुछ और भी लोग थे. वहां मुलाकात के दौरान टिल्लू ने इन को अपना प्लान समझाया था.

योजना के तहत शूटरों के रुकने की व्यवस्था उमंग ने हैदरपुर में स्थित अपने घर में की. यहां से रोहिणी कोर्ट ढाई से तीन किलोमीटर के बीच है. ऐसे में यहां से आनाजाना आसान था.॒

पुलिस के अनुसार, 20 सितंबर के बाद उमंग, विनय, राहुल और जगदीप लगातार 3 से 4 घंटे कोर्ट की रैकी कर रहे थे. इन सभी को इस बात का पहले से ही अंदाजा था कि गोगी की सुनवाई कोर्टरूम नंबर 207 में ही होगी.

गोगी किसी भी सूरत में जिंदा न रहे, इसलिए शूटरों को आदेश था कि वे दोनों ओर से गोगी पर फायर करें.

सब कुछ साजिश के तहत हुआ. घटना वाले दिन उमंग शूटर राहुल व जगदीप को ले कर कोर्ट के गेट नंबर 4 से ही दाखिल हुआ. काफी देर वह पार्किंग में ही मौजूद रहा. जब कोर्ट रूम में गोलियां चलने की आवाज आई तो उमंग वहां से भाग निकला और सीधा अपने घर पहुंचा.

पुलिस सूत्रों का दावा है कि तिहाड़ और मंडोली जेल से इस साजिश को अंजाम दिया गया है. इस साजिश में टिल्लू ताजपुरिया, पश्चिमी यूपी का गैंगस्टर सुनील राठी, नीरज बवानिया गैंग का नवीन बाली और उस का भाई राहुल काला, टिल्लू का गुर्गा सुनील मान के शामिल होने की आशंका है.

इन में अधिकतर गैंगस्टर तिहाड़ की जेल नंबर 15 में हैं. आशंका है कि गैंगस्टरों ने इस हत्याकांड को अंजाम देने से पहले फोन के जरिए आपस में संपर्क किया होगा.

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वहीं दिल्ली पुलिस की स्पैशल सेल ने मामले में काररवाई करते हुए 2 लोगों को गिरफ्तार कर लिया. स्पैशल सेल की गिरफ्त में आए दोनों लोगों की पहचान उमंग और विनय के रूप में हुई. स्पैशल सेल ने दोनों को कोर्ट के गेट नंबर 4 के सीसीटीवी फुटेज के आधार पर गिरफ्तार किया था. ये दोनों आरोपी उत्तर पश्चिमी दिल्ली के हैदरपुर के रहने वाले हैं.

गैंगस्टर सुनील उर्फ टिल्लू ताजपुरिया एक पुराने मामले में रोहिणी कोर्ट में पेश हुआ. दिल्ली पुलिस स्पैशल सेल और थर्ड बटालियन के हथियारों से लैस जवान उसे सुबह ही कोर्ट में लाए थे.

रोहिणी जिला पुलिस ने भी भारी बंदोबस्त कर रखा था. रोहिणी कोर्ट पूरी तरह से छावनी में तब्दील दिखी. पुलिस को आशंका थी कि गोगी गैंग पलटवार करते हुए टिल्लू पर हमला कर सकता है, इसलिए एजेंसियां कोई जोखिम नहीं लेना चाहती थीं.

पुलिस सूत्रों ने बताया कि टिल्लू ताजपुरिया को शनिवार सुबह मंडोली जेल से लेने के लिए स्पैशल सेल की टीम को भेजा गया.

थर्ड बटालियन के जवान और स्पैशल सेल की टीम उसे अपनी सुरक्षा के घेरे में सुबह करीब सवा 10 बजे ले कर रोहिणी कोर्ट परिसर में पहुंच गई. एक पुराने मामले में उस की पेशी कोर्ट नंबर 202 में अडिशनल सेशन जज राकेश कुमार की कोर्ट में थी.

इस से पहले ही पुलिस ने पूरी तरह से रोहिणी कोर्ट परिसर को अपने घेरे में ले लिया था. पुलिस सूत्रों ने बताया कि जज के सामने टिल्लू को पेश किया गया तो उन्होंने अगली तारीख लगा दी.

सुरक्षा टीम करीब 12 बजे टिल्लू को कड़े सुरक्षा घेरे के बीच मंडोली जेल के लिए ले कर रवाना हो गई. करीब एक घंटे बाद जब पुलिस अफसरों को टिल्लू के सुरक्षित मंडोली जेल पहुंचने का मैसेज किया गया तो सब ने राहत की सांस ली.

क्राइम ब्रांच की टीम शूटआउट के अगले दिन 25 सितंबर को दोपहर बाद रोहिणी कोर्ट में पहुंची और 2 घंटे से भी ज्यादा समय तक पड़ताल की.

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इस दौरान कोर्ट रूम में क्राइम सीन रीक्रिएट किया गया. लोकल पुलिस से जल्द ही सभी सीसीटीवी कैमरों की फुटेज हासिल की, जिन का एनलिसिस कर पता लगाया जाएगा कि वकील की ड्रेस में कोर्ट के भीतर आए बदमाश किसकिस रूट से आए थे और दोनों हमलावरों के साथ क्या कुछ और बदमाश भी अदालत में आए थे?

Satyakatha- केरला: अजब प्रेम की गजब कहानी- भाग 2

सौजन्य: सत्यकथा

Writer- शाहनवाज

उन दिनों भारी बारिश की वजह से कच्चे घरों में अकसर बिजली से जुड़ी समस्या पैदा हो ही जाया करती थी. साजिता के साथसाथ रहमान का भी उन दिनों कच्चा ही घर था.

दरअसल, रहमान और साजिता एक लंबे समय से एकदूसरे से नजर से नजर मिलाया करते थे, लेकिन दोनों की एकदूसरे के साथ बातचीत करने की हिम्मत पैदा नहीं हो रही थी.

बिजली ठीक करने के बाद जब रहमान, साजिता के घर से वापस जाने लगा तो उस ने अपना फोन नंबर साजिता के पिता को यह कहते हुए दे दिया कि अगर कुछ दिक्कत महसूस हो तो फोन कर के उसे बुला लें. उस समय तो नहीं, लेकिन कुछ दिनों बाद साजिता ने हिम्मत कर के रहमान को फोन कर ही लिया.

पहली बार की बातचीत तो सिर्फ हायहैलो में ही निकल गई, लेकिन उस के बाद जब कभी साजिता को मौका मिलता तो वह रहमान के साथ फोन पर बातें किया करती.

धीरेधीरे समय के साथसाथ दोनों के बीच दोस्ती हुई. साजिता काम का बहाना कर के घर से निकलती और वे दोनों अकसर अपने गांव से दूर कहीं और मिलने जाया करते थे. कभी साथ में शहर घूमने निकलते तो कभी दूर के खेतों में वक्त गुजारा करते.

उन की ये दोस्ती समय के साथ गहराती चली गई और वे दोनों एकदूसरे को प्यार करने लगे. रहमान और साजिता दोनों के जीवन का वह पहला प्यार था, इसलिए उन के बीच एकदूसरे से लगाव कुछ ज्यादा ही हो गया था.

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इस के साथसाथ रहमान और साजिता ने एक बात का खासा ध्यान रखा था, वह यह कि वे दोनों अपना रिश्ता लोगों के सामने जाहिर नहीं करना चाहते थे. अपने गांव वालों के सामने तो बिलकुल भी नहीं.

ऐसा इसलिए कि रहमान और साजिता दोनों बखूबी जानते थे कि वे दोनों अलगअलग धर्म से ताल्लुक रखते थे. रहमान मुसलमान था तो साजिता हिंदू.

वे जानते थे कि उन के इस प्यार को, इस रिश्ते को उन के घर वाले और समाज मंजूरी नहीं देगा. इसलिए अपने प्यार को जगजाहिर होने से बचाने के लिए वे हरसंभव तरीके अपनाते थे. यहां तक कि जब दोनों फोन पर बातें करते तो बात करने के बाद काल डिटेल्स डिलीट कर देते थे.

उन के बीच यह पहले से ही तय हुआ था कि उन्हें अपने रिश्ते को दुनिया की नजरों से बचा कर रखना है, नहीं तो किसी की भी बुरी नजर लग सकती है.

समय बीता तो उन के बीच नजदीकियां और बढ़ती चली गईं. दोनों एकदूसरे से बेइंतहा प्यार करने लगे थे. एकदूसरे के साथ पूरी जिंदगी गुजारना चाहते थे. ऐसे में साजिता ने एक शाम को प्लान बनाया और उस ने रहमान को इस के लिए तैयार भी कर लिया.

सजिता ने रहमान से कहा, ‘‘रहमान, मैं तुम्हारे साथ अपनी बाकी की जिंदगी गुजारना चाहती हूं. हम दोनों को अगर साथ में रहना है तो हमें इस गांव से, अपने परिवार से दूर जाना पड़ेगा. उन्हें छोड़ना पड़ेगा. नहीं तो ये लोग हमें जुदा कर देंगे. मैं जानती हूं कि तुम्हारे लिए यह मुश्किल फैसला होगा. मैं ने बहुत सोचसमझ कर ही तुम से यह बात कही है.’’

रहमान ने भी पहले से ही इस विषय में सोचविचार कर रखा था. उस ने साजिता की बातों का जवाब देते हुए कहा, ‘‘तुम्हारी इस बात से मैं भी बिलकुल सहमत हूं. अगर हम ने अपने घर वालों को अपने इस रिश्ते के बारे में बताया तो वे इस रिश्ते को मंजूरी कभी नहीं देंगे. बेहतर यही है कि हमें इस गांव से, अपने परिवार से दूर चले जाना चाहिए.’’

दोनों के बीच इस बातचीत के बाद दोनों ने दिन तय कर लिया कि उन्हें किस दिन अपने घर छोड़ देना है. ठीक 11 साल पहले, 2 फरवरी 2010 की रात के करीब साढ़े 9 बज रहे थे. ठंड के दिन थे तो उस समय तक गांव वाले सब सो चुके थे. साजिता और रहमान के घर वाले भी गहरी नींद में थे सिवाय उन दोनों के.

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साजिता ने पहले से ही अपने कपड़ेलत्ते और जरूरी सामान एक छोटे से बैग में भर लिया था. बिना आवाज किए साजिता ने घर से निकल कर पहले इधरउधर नजरें घुमाईं और यह सुनिश्चित किया कि बाहर कोई है तो नहीं. जब उसे सभी रास्ते साफ और सुनसान दिखाई दिए तो वह घर से निकल गई और पगडंडियों के सहारे रहमान से मिलने तय जगह पर चली गई.

वहां रहमान पहले से ही मौजूद था. वह वहां पहुंच तो गया था लेकिन उस के चेहरे पर काफी उदासी छाई हुई थी. साजिता ने उस से उस की उदासी की वजह पूछी तो उस ने बताया कि उस के पास इतने पैसे नहीं थे, जिस से वह उस के साथ कहीं शहर में जा कर किराए के कमरे पर गुजरबसर कर सके.

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छोटी छोटी खुशियां- भाग 4: शादी के बाद प्रताप की स्थिति क्यों बदल गई?

Writer- वीरेंद्र सिंह

उस ने जैसे ही चौराहा पार किया, सीटी बजाते हुए एक ट्रैफिक पुलिस वाला स्कूटर रोकने का इशारा करते हुए आगे आ गया. प्रताप को स्कूटर रोकना पड़ा. सिपाही ने कहा, ‘‘लाइसैंस?’’

प्रताप ने बिना कुछ कहे, जेब से लाइसैंस निकाल कर सिपाही की ओर बढ़ाया तो उस ने फुरती से लाइसैंस कब्जे में करते हुए कहा, ‘‘200 रुपए निकालो.’’

‘‘क्यों?’’ प्रताप ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘लाल बत्ती होने पर भी तुम ने स्कूटर नहीं रोका. इसलिए चालान तो कटवाना ही पड़ेगा,’’ सिपाही ने दांत निपोरते हुए कहा.

गुटखे से पीले हुए उस के दांत देख

कर प्रताप को चिढ़ हो गई. प्रताप की आंखों के सामने मैनेजर साहब का गुस्से से लालपीला होता चेहरा नाच रहा था. प्रताप ने आंखें फैला कर कहा, ‘‘भले आदमी, आधा चौराहा पार करने के बाद तो पीली लाइट जली. इस में मेरा क्या दोष, जो चालान कटवाऊं. फिर मेरे पीछे से जो बस गई, उसे तो तुम ने नहीं रोका?’’

‘‘तुम अपना चालान कटवाओ, दूसरे की चिंता मत करो,’’ सिपाही रसीद बुक निकाल कर बोला, ‘‘नाम?’’

प्रताप अपना समय बरबाद नहीं करना चाहता था. सुधा की किचकिच की वजह से गए 200 रुपए. प्रताप ने 200 रुपए दिए और रसीद ले कर जेब में रखी. किक मार कर स्कूटर स्टार्ट किया. पानी के रेले की तरह चल रहे वाहनों के बीच से रास्ता बनाते हुए उस ने स्कूटर की गति बढ़ा दी.

आगे ट्रैफिक ढीला था. प्रताप के दिमाग की नसें और तन गईं. इस सिपाही का भी कुछ करना होगा. कैसेकैसे लोग ट्रैफिक में भरती हो गए हैं. एकएक को सीधा करना पड़ेगा. मैं इन सब की शिकायत गृहमंत्री से करूंगा. जल्दी पहुंचने के चक्कर में उस ने स्कूटर की गति भयानक रूप से तेज कर दी. जब से उस ने स्कूटर चलाना शुरू किया था, इतनी तेज गति से पहली बार चलाया था. उसी वक्त एक घटना घट गई.

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अचानक एक लड़की उस के सामने आ गई. विचारों में खोया प्रताप एकदम से हकबका गया. उस लड़की को बचाने के लिए प्रताप स्कूटर की सीट पर लगभग आधा खड़ा हो गया. पूरी ताकत से उस ने ब्रेक दबाए. लेकिन तड़ाक से बे्रक वायर टूट गया. उस ने एकदम से स्कूटर को फर्स्ट गेयर में डाला. स्कूटर जोरदार झटके के साथ पलटा और आगे घिसट गया. दाहिने पैर का घुटना सड़क पर इस तरह रगड़ा कि पैंट तो फट ही गई, चमड़ी छिल कर अंदर का मांस भी दिखाई देने लगा. सिर डिवाइडर से टकरा गया, जिस की वजह से प्रताप की आंखों के सामने अंधेरा छा गया.

फिर कितनी देर तक प्रताप बेहोश रहा, उसे पता नहीं चला. होश में आया तो दिमाग की नसें अभी भी तनी हुई थीं. बड़ी मुश्किल से उस ने आंखें खोल कर अगलबगल देखा. बीच सड़क पर वह पड़ा हुआ था. उसे लोग घेरे हुए थे. जहां की त्वचा छिली थी, असहनीय जलन हो रही थी. भीड़ में से एक युवक ने आगे बढ़ कर पानी की बोतल प्रताप को पकड़ाई. ठंडा पानी पीने के बाद प्रताप को थोड़ी राहत महसूस हुई. उस युवक ने इशारे से एक युवक को बुलाया और प्रताप की बांह पकड़ कर बैठाया. प्रताप के घुटने में बहुत तेज जलन हो रही थी. फिर उन युवकों ने प्रताप को उठा कर खड़ा किया. पीड़ा होते हुए भी प्रताप को धीरेधीरे चलने में दिक्कत नहीं हो रही थी. भीड़ में से किसी ने आटो बुला दिया था. आभारी नजरों से सब की ओर ताकते हुए प्रताप आटो में बैठ गया. औफिस करीब ही था, फिर आटो वाला भी भला आदमी था, इसलिए उस ने प्रताप से पैसे नहीं लिए थे. चोट में जलन अभी भी वैसी ही थी. औफिस में फर्स्ट ऐड बौक्स है, प्रताप यह जानता था.

आटो से उतर कर लिफ्ट तक जाने में प्रताप को काफी तकलीफ हुई थी.

बैंक में पहुंच कर उस ने राहत की सांस ली. आज की एक छुट्टी तो बची. एक बार मैनेजर साहब को मुंह दिखा कर वह डाक्टर के पास जा कर पट्टी बंधवा लेगा. टिटनैस का इंजैक्शन भी लगवाना जरूरी है.

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प्रताप ने बैंक में प्रवेश किया. उपस्थिति रजिस्टर मैनेजर साहब की मेज पर रखा था. मैनेजर साहब कंप्यूटर पर काम कर रहे थे. उन के सामने पड़ी कुरसी पर प्रताप आराम से बैठ गया. इतना चलने के बाद उस के घुटने का दर्द और बढ़ गया था. उस ने हस्ताक्षर करने के लिए जैसे ही रजिस्टर उठाया, मैनेजर साहब का ध्यान उस की ओर गया. उन की भौंहें तन गईं. उन्होंने कहा, ‘‘मिस्टर प्रताप, यह भी कोई टाइम है आने का?’’

मैनेजर साहब यही कहेंगे, प्रताप पहले से ही जानता था. आज बाजी प्रताप के हाथ में थी, इसलिए वह आज मैनेजर साहब से पूरा का पूरा पुराना बदला ले लेना चाहता था. वह तल्ख लहजे में बोला, ‘‘इधर देखो, यह मेरा घुटना छिल गया है और आप मुझे समय बता रहे हैं. मैं किस तरह बैंक पहुंचा हूं, यह मैं ही जानता हूं.’’

प्रताप ने यह बात इतने जोर से कही थी कि बैंक का पूरा स्टाफ चौंक कर प्रताप और मैनेजर साहब को ताकने लगा था. मैनेजर साहब प्रताप के इस व्यवहार से हक्काबक्का रह गए थे. फिर तो प्रताप आक्रामक हो उठा, ‘‘आप आदमी हैं या शैतान? पूरा घुटना छिल गया है, खून भी बह रहा है. फिर भी मैं बैंक आया हूं,’’ सभी लोगों को दिखाई पड़े, इस तरह प्रताप ने अपना पैर उठाया. प्रताप की हालत देख कर मैनेजर साहब खिसिया गए. इस मुद्दे पर मैनेजर साहब को आज अच्छी तरह खींचा जा सकता है, यह सोच कर प्रताप थोड़ी तेज आवाज में बोला, ‘‘आप अफसर हैं तो खुद को महान मानने लगे हैं. अरे इंसान हैं, थोड़ी तो इंसानियत रखो. किसी को शौक नहीं है लेट आने का. कोई समस्या हो जाती है, तभी आदमी लेट होता है.’’

पूरा स्टाफ आश्चर्य से प्रताप को ताक रहा था. उस ने अपना पैर उठा कर सब को चोट दिखाई. फिर दांत भींच कर मैनेजर साहब को घूरा. अब मैनेजर साहब की हिम्मत उस से नजर मिलाने की नहीं हो रही थी. सिंह साहब को चुप देख कर प्रताप बोला, ‘‘इतनी तकलीफ सह कर भी मैं बैंक आया हूं. इस की कद्र करने के बजाय आप साहबगीरी दिखा रहे हैं. साहब, आप को शर्म आनी चाहिए.’’

मैनेजर साहब को काटो तो खून नहीं वाली हालत हो गई थी. उन्होंने धीमे से कहा, ‘‘सौरी.’’

‘‘यू हैव टू…’’ इतना कह कर प्रताप धीरेधीरे अपनी मेज की ओर बढ़ने लगा. एक नजर उस ने सहकर्मियों पर डाली. उसी एक नजर में उस ने भांप लिया था कि मैनेजर साहब के साथ आज उस ने जो बरताव किया है उस से सभी खुश हैं. वह अपनी सीट पर जा कर बैठा तो एकएक, दोदो कर के लोग उस के पास आ कर हालचाल पूछने लगे. मिश्राजी फर्स्ट ऐड बौक्स ले कर आए. रेखा ने घुटने पर डिटौल लगाई तो काफी तेज जलन हुई. होंठ भींच लिए प्रताप ने. फिर बीटाडीन लगा कर ऊपर से रुई रख कर पट्टी बांध दी. रेखा की ओर देखते हुए प्रताप ने कहा, ‘‘थैंक्यू, थैंक्यू वेरी मच, रेखाजी.’’

पट्टी बंधने के बाद प्रताप ने काफी राहत महसूस की.

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