तुम सही थी निशा: वैभव क्यों इतना निशा के प्रति आकर्षित था

‘अभी तुम 10-15 मिनट हो न यहां?’’ वैभव ने गार्डन में निशा के करीब जा कर पूछा.

‘‘कुछ काम है?’’ निशा ने पलट कर सवाल किया.

निशा का यह औपचारिक व्यवहार वैभव को अजीब लगा. वह झेंपता हुआ बोला, ‘‘कोई काम नहीं है. बस, तुम्हें न्यू ईयर का गिफ्ट देना है. तुम्हारे लिए एक डायरी खरीद कर रखी है. तुम पहली जनवरी को तो आई नहीं, 10 को आई हो. मैं कई दिन डायरी ले कर गार्डन आया, लेकिन आज नहीं ले कर आया. रुकना, मैं डायरी ले कर आ रहा हूं.’’

‘‘तुम डायरी लेने घर जाओगे? रहने दो, मुझे नहीं चाहिए. कई डायरियां हैं घर में,’’ निशा बोली.

‘‘यह मैं ने कब कहा कि तुम्हारे पास डायरी नहीं है. तुम्हारे पास सबकुछ है. बस, मेरी खुशी के लिए ले लो. मैं ने बड़े प्रेम से उसे तुम्हारे लिए रखा है. मैं लेने जा रहा हूं,’’ निशा के जवाब को सुने बिना वैभव वहां से चला गया.

कुछ देर बाद वह बतौर गिफ्ट डायरी ले कर गार्डन में वापस आया. तब तक निशा के आसपास काफी लोग आ गए थे. वहां उस ने गिफ्ट देना उचित नहीं समझा, लेकिन जब निशा गार्डन से जाने लगी तो वैभव रास्ते में उस से मिला.

‘‘लो,’’ वैभव ने डायरी आगे बढ़ाते हुए बड़े प्रेम से कहा.

लेकिन निशा ने डायरी लेने के लिए हाथ आगे नहीं बढ़ाया. वह चुपचाप खड़ी रही.

‘‘लो,’’ वैभव ने दोबारा कहा.

‘‘नहीं, मैं इसे नहीं ले सकती,’’ निशा ने सीधे शब्दों में इनकार कर दिया.

‘‘आखिर क्यों?’’ वैभव ने खुद को अपमानित महसूस करते हुए जानना चाहा.

‘‘मैं घरपरिवार वाली हूं, मैं इसे किसी भी हालत में नहीं ले सकती,’’ निशा यह कह कर आगे बढ़ गई.

इस बार वैभव ने भी कुछ नहीं कहा. उस के दिल को जबरदस्त धक्का लगा. वह डायरी को अपनी कमीज के नीचे छिपाते हुए विपरीत दिशा की ओर चल पड़ा. उस की आंखों में आंसू उमड़ आए थे. कुछ दूर चलने के बाद वह एकांत में बैठ गया और सोचने लगा कि वह उस डायरी का क्या करे?

तभी उस के मन में आया कि डायरी को वह योग सिखाने वाले गुरुजी को दे देगा. तत्काल उस ने उस पृष्ठ को फाड़ा, जिस पर बड़े प्यार से निशा को संबोधित करते हुए नववर्ष की शुभकामना लिखी थी. उस ने जा कर गुरुजी को डायरी दे दी. गुरुजी ने गिफ्ट सहर्ष स्वीकार कर लिया और उसे आशीर्वाद दिया, लेकिन उसे वह खुशी नहीं मिली, जो निशा से मिलती. अभी भी उस का मन अशांत था और वह यकीन ही नहीं कर पा रहा था कि एक छोटी सी डायरी स्वीकार करने में निशा ने इतनी हठ क्यों दिखाई.

वह तरहतरह की बातें सोच रहा था, ‘चलो, इस गिफ्ट के बहाने हकीकत पता लग गई. जिस निशा को मैं जीजान से चाहता हूं, उस के मन में मेरे प्रति इतनी भी भावना नहीं है कि वह मेरा गिफ्ट तक ले सके. मैं भ्रम में जी रहा था.

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‘अब उस से कोई संबंध नहीं रखूंगा. आज से सारा रिश्ता खत्म…नहीं…नहीं, लेकिन क्या मैं ऐसा कर पाऊंगा? क्या मैं उस से दूर रह कर जी पाऊंगा…शायद नहीं…क्यों नहीं जी पाऊंगा? उस से दूरी तो बना ही सकता हूं. दूर से देख लिया करूंगा, लेकिन मिलूंगा नहीं और न ही बात करूंगा. वह यही तो चाहती है. कब उस ने मुझ से मन से बात की? मैं ही तो उस से बात करता था. 10 शब्द बोलता था तो ‘हांहूं’ वह भी कर देती थी. कोई लगाव थोड़े ही था. लगाव तो मेरा था कि उस के बिना रातदिन बेचैन रहा करता था. उस के लिए तड़पता रहा, जिस ने आज मेरा इतना बड़ा अपमान कर दिया.

‘अगर ऐसा मालूम होता तो मैं उसे गिफ्ट देने का विचार ही मन में न लाता. ऐसी बेइज्जती मेरी इस से पहले कभी नहीं हुई. अब मैं उस से नजरें मिलाने लायक भी नहीं रहा. क्या मुंह ले कर उस के सामने जाऊंगा? अब तो दूरी ही ठीक है.’

लेकिन क्या ऐसा सोचने से मन बदल सकता था वैभव का? उस का प्यार बारबार उस पर हावी हो जाता और वह निशा से दूर रहने का निर्णय ले पाने में असफल हो जाता.

दिनभर उस का मन किसी काम में नहीं लगा. वह बेचैन रहा. उसे रात को ठीक से नींद भी नहीं आई. तरहतरह के विचार उस के मन में आते रहे.

वह उस बात को अपनी पत्नी सरिता से भी शेयर नहीं कर सकता था. हालांकि निशा के बारे में वह सरिता को बताया करता था, लेकिन यह बताने की उस की हिम्मत न थी. उसे डर था कि सरिता उस का मजाक उड़ाएगी. अंदर ही अंदर वह घुट रहा था.

अगले दिन सुबह 5 बजे वह जागा. रात को उस ने निश्चय किया था कि कुछ दिन तक वह गार्डन नहीं जाएगा, लेकिन सुबह खुद को रोक नहीं सका. निशा की एक झलक पाने के लिए वह बेचैन हो उठा और घर से चल पड़ा.

रास्ते में तरहतरह के विचार उस के मन में आते रहे, ‘आज निशा मिलेगी तो उस से बात नहीं करूंगा. अभिवादन भी नहीं. वह अपनेआप को समझती क्या है? उसे खुद पर घमंड है, तो मैं भी किसी मामले में उस से कम नहीं हूं. उस से मेरा कोई स्वार्थ नहीं है. बस, एक लगाव है, अपनापन है, जिसे वह गलत समझती है.’

लेकिन जब गार्डन आती हुई निशा अचानक दिखी, तो वैभव खुद को रोक नहीं पाया. वह उसे देखने लगा. निशा भी उसी की ओर देख रही थी. वैभव के मन में आया कि वह रास्ता बदल ले, लेकिन वह ऐसा नहीं कर सका.

निशा वैभव के करीब आ गई, लेकिन वह उस की ओर न देख कर सामने देख रही थी. वैभव की निगाहें उसी पर थीं. वह सोच रहा था, ‘देखो न, आज इस ने एक बार भी पलट कर नहीं देखा. जाओजाओ, मैं ही कौन सा मरा जा रहा हूं, तुम से बात करने के लिए. मैं आज निशा की तरफ बिलकुल नहीं देखूंगा आखिर वह अपनेआप को समझती क्या है और ऐसे ही कब तक अपनी मनमरजी चलाती है.‘

तभी निशा उस की ओर पलटी. वैभव के हाथ तत्काल अभिवादन की मुद्रा में जुड़ गए. निशा ने भी अभिवादन का जवाब दिया, लेकिन आगे उन दोनों के बीच कोई बातचीत नहीं हुई.

इस के बाद गार्डन में दोनों अपनेअपने क्रियाकलाप में लग गए, लेकिन वैभव का मन बारबार निशा की ओर भाग रहा था.

ऐसे ही कई दिन गुजर गए. वैभव को निशा के बिना चैन नहीं था, लेकिन वह ऊपर से खुद को ऐसा दिखाने की कोशिश करता कि जैसे उस का निशा से कोई सरोकार ही नहीं है.

निशा सबकुछ समझ रही थी. एक दिन उस ने वैभव को रोका और मुसकराते हुए पूछा, ‘‘नाराज हो क्या?’’

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‘‘नहीं. नाराज उन से हुआ जाता है, जो अपने हों. आप से मैं क्यों नाराज होने लगा?’’

निशा मुसकराते हुए बोली, ‘‘कुछ भी कहो, लेकिन नाराज तो हो. तुम्हारा चेहरा, दिल का हाल बयान कर रहा है, लेकिन तुम ने मेरी मजबूरी नहीं समझी.’’

‘‘एक छोटा सा गिफ्ट लेने में क्या मजबूरी थी?’’ वैभव ने तल्खी के साथ पूछा.

‘‘मजबूरी थी, वैभव. तुम ने समझने की कोशिश नहीं की,’’ निशा ने कहा.

‘‘मैं भी जानूं कि क्या मजबूरी थी?’’ वैभव ने जानना चाहा.

‘‘वैभव, सिर्फ भावनाओं से ही काम नहीं चलता. आगेपीछे भी सोचना पड़ता है. मैं ने कहा था न कि मैं घरपरिवार वाली हूं. तुम ने इस पर तो विचार नहीं किया और नाराज हो कर बैठ गए,’’ निशा ने कहा, ‘‘मैं अगर तुम्हारा गिफ्ट ले कर घर जाती तो घर के लोगपूछते कि किस ने दिया? सोचो, मैं क्या जवाब देती?

‘‘डायरी में तुम ने अपना नाम तो जरूर लिखा होगा. तुम्हारा नाम देख कर घर वाले क्या सोचते? इस बारे में तो तुम ने कुछ सोचा नहीं. बस, मुंह फुला लिया. बेवजह शक पैदा होता और मेरे लिए परेशानी खड़ी हो जाती. ऐसा भी हो सकता था कि मेरा गार्डन में आना हमेशा के लिए बंद हो जाता. तब हम दोनों मिल भी न पाते.’’

यह सुन कर वैभव को अपनी गलती का एहसास हुआ. उस के सारे गिलेशिकवे दूर हो गए और वह बोला, ‘‘तुम अपनी जगह सही थी, निशा.

‘‘तुम ने तो बड़ी समझदारी का काम किया. मुझे माफ कर दो. तुम्हारा फैसला ठीक था.

‘‘अब मुझे तुम से कोई शिकायत नहीं है. एक छोटा सा गिफ्ट तुम्हें वाकई परेशानी में डाल सकता था.’’

Manohar Kahaniya: डिंपल का मायावी प्रेमजाल- भाग 1

सौजन्य- मनोहर कहानियां

इस गलती का अहसास उन्हें तब हुआ, जब डिंपल और उस के गैंग के सदस्यों ने उन से करीब 60 लाख रुपए ऐंठ लिए. यह शातिर गैंग डिंपल के सहारे मोटी आसामी को इस तरह फांसता था कि…

गुजरात के जिला ऊंझा की गंजबाजार की एक कंपनी में मेहता (मुनीम) की नौकरी करने वाले मेहताजी आ कर अभी गद्दी पर बैठे ही थे कि उन के

फोन की घंटी बजी. उन्होंने फोन उठा कर स्क्रीन देखी तो पता चला फोन किसी अंजान का है, क्योंकि स्क्रीन पर नाम के बजाए नंबर आ रहा था.

किसी व्यापारी का नया नंबर होगा, यह सोच कर मेहताजी ने फोन उठा लिया. उन्होंने फोन उठा कर जैसे ही ‘हैलो’ कहा, दूसरी ओर से शहद में घुली आवाज आई, ‘‘हैलो मेहताजी, मैं डिंपल बोल रही हूं.’’

हैरान हो कर मेहताजी ने पूछा, ‘‘कौन डिंपल, मैं तो किसी डिंपल को नहीं जानता?’’

‘‘नहीं जानते तो अब जान जाएंगे. मैं तो आप को खूब अच्छी तरह जानती हूं मेहताजी.’’ दूसरी ओर से फिर उसी खनकती आवाज में कहा गया.

‘‘आप भले मुझे जानती हैं, पर मैं तो आप को बिलकुल नहीं जानता. खैर, छोड़ो यह सब. यह बताइए कि आप ने फोन क्यों किया है?’’ मेहताजी ने पूछा.

‘‘दोस्ती करने के लिए,’’ डिंपल ने कहा.

‘‘दोस्तीऽऽ आप मुझ से क्यों दोस्ती करना चाहती हैं?’’ मेहताजी ने हैरानी से पूछा जरूर, पर एक लड़की द्वारा दोस्ती करने की बात सुन कर उन के मन में लड्डू फूटने लगे थे. एक लड़की ने खुद ही दोस्ती का औफर जो किया था. लेकिन उसी समय औफिस में कस्टम आ गए तो उन्होंने कहा, ‘‘ऐसा है डिंपलजी, अब औफिस में लोग आ गए हैं, इसलिए इस तरह की बातें नहीं हो सकतीं. दोपहर को लंचटाइम में मैं आप को फोन करता हूं.’’

‘‘कितने बजे होता है आप का लंच?’’ डिंपल ने पूछा.

‘‘एक बजे.’’

‘‘तब तक मुझे इंतजार करना होगा? इतनी देर तक कैसे इंतजार करूंगी मैं?’’ वह बोली.

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‘‘जैसे अब तक किया है. आज से पहले जिस तरह आप का काम चल रहा था, उसी तरह चलाइए,’’ मेहता ने कहा.

‘‘मेहताजी, तब की बात और थी. तब आप से दोस्ती कहां हुई थी. अब दोस्ती हो गई है तो इंतजार करना बहुत मुश्किल लग रहा है.’’

‘‘ऐसा है, अब काम करने दो. दोपहर को एक बजे मैं फोन करता हूं. बाय…’’

‘‘बाय करने का मन तो नहीं कर रहा है, पर आप को काम करना है न, इसलिए बेमन से बाय कह रही हूं.’’ डिंपल बोली.

डिंपल ने जैसे ही बाय कहा, मेहताजी ने काल डिसकनेक्ट कर दी और डिंपल का नंबर अपने फोन में सेव कर लिया.

मेहताजी की भी मजबूरी थी, इसलिए न चाहते हुए उन्होंने फोन तो काट दिया था, पर उन का मन यही कर रहा था कि वह काम छोड़ कर बाहर निकल जाएं और डिंपल को फोन लगा कर आराम से बैठ जाएं और खूब बातें करें.

दूसरी ओर वह यह भी सोच रहे थे कि यह डिंपल कौन है, उन्हें कैसे जानती है, उन से क्यों दोस्ती करना चाहती है. यह सब उन की समझ में नहीं आ रहा था. इसी सोच में डूबे होने की वजह से उस दिन काम में उन का मन नहीं लग रहा था. उन का पैसों के हिसाबकिताब का काम था, अगर कुछ गड़बड़ होती तो उन की साख खराब हो सकती थी.

बहरहाल, किसी तरह उन्होंने दोपहर तक का समय बिताया. लंच होते ही लंच बौक्स खोलने के साथ ही उन्होंने डिंपल को फोन लगा दिया.

दूसरी ओर डिंपल जैसे उन्हीं के फोन का इंतजार ही कर रही थी. क्योंकि मेहताजी का फोन लगते ही दूसरी ओर से फोन रिसीव कर लिया गया था.

मायावी प्यार में फंस गए मेहताजी

फोन रसीव होते ही मेहताजी के कानों में घुंघरू जैसी खनकती आवाज आई, ‘‘हैलो मेहताजी, कैसे हैं आप? लगता है, आप भी मेरी तरह मुझ से बात करने के लिए बेचैन थे. इसीलिए लंच होते ही, लगता है टिफिन भी नहीं खोला और फोन लगा दिया.’’

‘‘सही कह रही हो डिंपलजी, अभी लंच बौक्स नहीं खोला है. सोचा कि फोन लगा लूं, आप से बात भी होती रहेगी और लंच भी होता रहेगा. आप से बात करते हुए लंच करने में आज कुछ ही ज्यादा मजा आएगा. शायद खाने का स्वाद भी बढ़ जाएगा.’’ मेहताजी ने मक्खन लगाते हुए कहा.

मेहताजी कुछ और कहते, डिंपल बीच में ही बोल पड़ी, ‘‘अब बस कीजिए मेहताजी, इतना ज्यादा भी मत चढ़ा दीजिए कि नीचे न आ पाऊं. एक बात और, आप यह जो बारबार आप और डिंपलजी कह रहे हैं, दोस्ती में यह अच्छा नहीं लगता. जो प्यार और अपनापन तुम कहने और नाम लेने में झलकता है, वह आप और डिंपलजी में बिलकुल नहीं. इसलिए अब मैं भी तुम्हें आप नहीं तुम कहूंगी. ठीक कहा न?’’ डिंपल बोली.

‘‘ठीक है, मैं वही कहूंगा, जो तुम्हें अच्छा लगेगा.’’

‘‘मैं तुम से बात कर के ही खुश थी. लेकिन अब लगा कि तुम प्यार भी करने लगे हो. अब तो मेरी खुशी की कोई सीमा ही नहीं है. इसलिए अब तो तुम से मिलने का मन हो रहा है.’’ डिंपल ने हंसते हुए कहा, ‘‘मिलोगे मुझ से?’’

‘‘क्यों नहीं. तुम मिलना चाहोगी तो मैं जरूर मिलूंगा. अरे हां, तुम ने अभी तक अपनी कोई फोटो तो भेजी नहीं. जरा देखूं तो मेरी दोस्त कितनी खूबसूरत है.’’

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‘‘मेहताजी, मैं अब केवल तुम्हारी दोस्त ही नहीं रही. बात आगे बढ़ गई है. तुम्हारे दिल का तो पता नहीं, पर मेरे दिल में तो अब कुछकुछ होने लगा है.’’ डिंपल ने कहा, ‘‘मैं अपना फोटो भेज रही हूं. और हां, मेरा फोटो देखते हुए अपना दिल थामे रखना, क्योंकि धड़कन तो बढ़ेगी ही, पर कहीं इतनी न बढ़ जाए कि…’’

मेहताजी को लगा कि डिंपल यह बात कहते हुए मुसकरा रही थी. फोटो भेजने की बात सुन कर ही मेहताजी की धड़कनें बढ़ गई थीं. बात करते हुए ही उन्होंने वाट्सऐप खोल कर देखा तो डिंपल का फोटो आया हुआ था.

मेहताजी ने झट से फोटो डाउनलोड किया. फोटो देख कर वह उसे देखते ही रह गए. डिंपल की खूबसूरती में वह इस तरह खो गए कि उन्हें खयाल ही नहीं रहा कि वह इतनी खूबसूरत लड़की से बात कर रहे हैं.

दूसरी ओर से डिंपल चिल्लाई, ‘अरे, कहां चले गए तुम,’ तब मेहताजी को खयाल आया.

उन्होंने कहा, ‘‘अरे भाई, मैं तुम्हारा फोटो देख रहा था. सचमुच तुम बहुत खूबसूरत हो. मैं तुम्हें देख कर भूल ही गया कि तुम से बात भी कर रहा हूं.’’

‘‘तुम मजाक बहुत अच्छा कर लेते हो. मैं इतनी खूबसूरत तो नहीं हूं कि तुम बात करना ही भूल गए.’’ डिंपल ने कहा.

‘‘कोेई खुद को सुंदर थोड़े ही कहता है. सुंदर तो वही कहेगा, जिसे लगेगा. तुम सुंदर लग रही हो, इसलिए मैं कह रहा हूं. मन करता है कि बस, तुम्हें ही देखता रहूं.’’

‘‘फोटो देखने से क्या होगा?’’

‘‘अब तो तुम से मिलने का मन हो रहा है.’’ मेहताजी ने कहा, ‘‘मैं ने भी अपनी फोटो भेज दी है.’’

‘‘तो आ जाओ. मैं ने कहां मना किया है. रही बात आप के फोटो की तो मैं ने आप से पहले ही कहा था कि मैं आप को जानती हूं.’’

‘‘खैर, उसे छोड़ो, तुम यह बताओ कि तुम से मिलने के लिए कहां आना होगा?’’ मेहताजी ने पूछा.

‘‘ऐसा करो, तुम ऐठोर चौराहे पर आ कर फोन करो. मैं तुम्हें वहीं मिल जाऊंगी.’’ डिंपल ने कहा.

‘‘अभी तो मैं औफिस में हूं. शाम 6 बजे के बाद ही आ सकता हूं.’’ मेहताजी ने कहा.

‘‘कोई बात नहीं, शाम 6 बजे के बाद ही आना. मैं कहीं जा थोड़े ही रही हूं. पर अब मैं भी आप से मिलने के लिए बेकरार हूं. आप की बातों ने मुझे बेचैन कर दिया है.’’ डिंपल ने थोड़ा नशीले अंदाज में कहा. अब तक लंचटाइम खत्म हो चुका था, इसलिए मेहताजी को न चाहते हुए भी फोन काटना पड़ा.

मेहताजी का वह पूरा दिन डिंपल के खयालों में ही बीता. वह बस यही सोचते रहे कि डिंपल से मिल कर क्या बातें करेंगे? क्या कहेंगे? संयोग देखो, उन्होंने शाम को डिंपल से मिलने का वादा कर लिया था, पर वह उस शाम डिंपल से मिलने जा नहीं पाए.

हुआ यह कि उन की कंपनी के डायरेक्टर ने उन्हें किसी व्यापारी को पैसे देने के लिए भेज दिया था. बड़े दुखी मन से उन्होंने डिंपल से माफी मांग ली थी.

उस रात उन्हें नींद नहीं आई. वह डिंपल को ले कर तरहतरह की बातें सोचते रहे कि मिलेंगे तो क्या बातें करेंगे? वह उन से क्या कहेगी? देर रात नींद आई तो उस ने सपने में भी उसे ही देखा. सपने में वह उन से कह रही थी, ‘‘अब मैं तुम्हारे बिना जी नहीं सकती.’’

मेहताजी अभी कुंवारे ही थे. डिंपल पहली लड़की थी, जो उन के जीवन में आई थी. इस के पहले किसी लड़की से इस तरह की बातें करने की कौन कहे, उन की दोस्ती तक नहीं हुई थी. इसीलिए तो उस की रसीली बातों ने उन्हें पागल कर दिया था. जब भी उन्हें मौका मिलता, वह फोन में आई डिंपल की फोटो देख लेते थे. वह उस से मिलने के लिए बेचैन थे. सुबह वह उस से मिल नहीं सकते थे. क्योंकि सुबह मिलने से डिंपल ने मना कर दिया था. उस ने कहा था कि 11 बजे से पहले वह घर से नहीं निकल पाएगी.

जबकि साढ़े 9 बजे मेहताजी को औफिस पहुंचना होता था. वह छुट्टी भी नहीं ले सकते थे. उस दिन औफिस में डायरेक्टर से उन की जरूरी मीटिंग थी. आखिर मन मार कर वह औफिस पहुंच गए.

उस दिन जरूरी काम की बात कह कर वह घर से आधा घंटा पहले निकल गए थे. औफिस पहुंचते ही उन्होंने डिंपल को फोन मिला दिया. बातचीत शुरू हुई तो मेहताजी ने कहा, ‘‘आज लंचटाइम से मैं छुट्टी ले लूंगा. तुम 2 बजे मिलने के लिए तैयार रहना. औफिस से निकलते ही मैं तुम्हें फोन करूंगा.’’

डिंपल तो उन से मिलने के लिए तैयार ही थी. उस ने हामी भर दी. औफिस से निकल कर मेहताजी ने फोन किया तो डिंपल ऐठोर चौराहे पर आ कर खड़ी हो गई.

दोनों ने एकदूसरे के फोटो देखे ही थे, इसलिए एकदूसरे को पहचानने में जरा भी दिक्कत नहीं हुई. मेहताजी ने डिंपल को देखा तो देखते ही रह गए. इस समय वह फोटो से भी ज्यादा खूबसूरत लग रही थी. जवानी में तो वैसे भी हर लड़की खूबसूरत लगती है. जबकि डिंपल तो वैसे भी खूबसूरत थी.

मेहताजी खूबसूरत डिंपल को पा कर निहाल हो गए थे. कुछ पल तक वह उसे निहारते रहे. चौराहे पर खड़े हो कर किसी लड़की से बात करना ठीक नहीं था, इसलिए मेहताजी ने डिंपल से कहीं एकांत में चलने को कहा तो डिंपल बोली, ‘‘कहीं ऐसी जगह ले चलो, जहां तुम्हारे और मेरे अलावा और कोई न हो.’’

मेहताजी ने सोचा था कि डिंपल किसी रेस्टोरेंट में चल कर फैमिली बौक्स में बैठने की बात कहेगी. पर जब उस ने कहीं ऐसी जगह चलने की बात कही कि जहां उन दोनों के अलावा कोई और न हो तो वह असमंजस में पड़ गए. वह इस तरह की जगह के बारे में सोचने लगे. काफी सोचनेविचारने के बावजूद कोई ऐसी एकांत जगह उन की नजर में नहीं आई, जहां उसे ले कर जाते. क्योंकि वह समझ गए थे कि डिंपल इस तरह की जगह पर चलने के लिए क्यों कह रही है.

पहली मुलाकात में ही हो गईं हसरतें पूरी

आखिर वह उसे ले कर अपने एक दोस्त के औफिस पहुंच गए. तब डिंपल खीझ कर बोली, ‘‘तुम्हें यही एकांत जगह मिली थी? औफिस में क्या होगा?’’

मेहताजी सोच में पड़ गए. जब कुछ देर तक वह कुछ नहीं बोले तो डिंपल ने कहा, ‘‘क्या सोच रहे हो? तुम्हारे पास कोई ऐसी जगह नहीं है क्या, जहां मेरे और तुम्हारे अलावा और कोई न हो?’’

थोड़ा सकुचाते हुए मेहताजी ने कहा, ‘‘हां, मेरे पास ऐसी कोई जगह नहीं है. कहो तो किसी होटल में कमरा ले लेते हैं. पर इस तरह किसी होटल में जाएंगे तो होटल वाला भी हमारे बारे में अच्छा नहीं सोचेगा.’’

‘‘मैं होटल में वैसे भी नहीं जाऊंगी. आप के पास ऐसी कोई जगह नहीं है तो मेरे साथ चलो. मेरे पास है ऐसी जगह. मेरी सहेली का घर है. इस समय वह मायके गई हुई है. देखभाल के लिए घर की चाबी मुझे दे गई है. वहां किसी तरह का कोई डर नहीं है. आराम से बैठ कर जब तक मन होगा, तब तक बातें करेंगे. और हां, खानेपीने के लिए कुछ साथ लेते चलेंगे, जिस से अंदर जाने के बाद फिर किसी चीज के लिए बाहर निकलना न पड़े.’’

मेहताजी भी तो इसी तरह की जगह चाहते थे. डिंपल की सुंदरता और उस की बातों में वह कुछ इस तरह खो चुके थे कि यह भी नहीं सोच पा रहे थे कि डिंपल आखिर उस पर इतना क्यों मेहरबान है कि पहली ही मुलाकात में वह उसे ऐसी जगह ले जा रही है, जहां उन दोनों के अलावा और कोई न हो.

डिंपल के साथ ऐसी जगह जा कर क्या होगा, वह इस से भी अंजान नहीं थे. लेकिन जब आदमी की मति मारी जाती है तो वह अपना भलाबुरा नहीं सोच पाता.

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यही हुआ मेहताजी के साथ. वह भी अपना भलाबुरा नहीं सोच पाए. रास्ते में एक रेस्टोरेंट से खानेपीने का अच्छाखासा सामान बंधवा कर वह डिंपल के साथ उस की सहेली के घर पहुंचे तो घर पर ताला लगा था.

ताला खोल कर दोनों अंदर पहुंचे तो घर एकदम साफसुथरा था. कहीं से ऐसा नहीं लग रहा था कि यह घर कई दिनों से बंद था. पर मेहताजी ने इस बात पर भी ध्यान ही नहीं दिया.

मेहताजी सोफे पर बैठे तो डिंपल भी उन से सट कर बैठी ही नहीं, बल्कि उन की गोद में लेट सी गई. मेहताजी भी डिंपल का इरादा भांप कर अपने काम में लग गए. उन्होंने उस के शरीर पर अपने हाथों से हरकत करनी शुरू कर दी. थोड़ी ही देर में वह सब हो गया,

जो एक मर्द और औरत के बीच में एकांत में होता है.

इस के बाद तो डिंपल और मेहताजी के बीच फोन पर खूब बातें तो होती ही थीं, जब देखो, तब मेहताजी डिंपल से मिलने भी लगे थे. मेहताजी को डिंपल से मिलने में मजा भी खूब आ रहा था.

पर एक दिन जब मेहताजी अपनी कार से डिंपल के कहने पर उसे विसपुर छोड़ने जा रहे थे तो रास्ते में एक युवक मिला जो उन से लड़नेझगड़ने लगा.

वह डिंपल को अपनी पत्नी बता कर मेहताजी पर आरोप लगाने लगा कि इस आदमी ने उस की पत्नी को बहलाफुसला कर अवैध संबंध बना लिए हैं. अब वह ऐसी औरत को कतई नहीं रखेगा, जिस के किसी अन्य पुरुष से संबंध हैं.

डिंपल भी रोने लगी कि अब वह कहां जाएगी. वह मेहताजी से कहने लगी कि अगर उस का पति उसे नहीं रख रहा है तो वह उसे अपने साथ रखें.

मेहताजी तो डिंपल के साथ सिर्फ मौजमजा करना चाहते थे. उन्होंने इस बारे में कभी सोचा ही नहीं था कि मौजमजा के चक्कर में बात यहां तक पहुंच जाएगी. डिंपल अब उन के गले की हड्डी बन गई थी. वह डिंपल के चक्कर में बुरी तरह फंस चुके थे.

अगले भाग में पढ़ें- 35 लाख में हुआ समझौता

जीने की राह- भाग 4: उदास और हताश सोनू के जीवन की कहानी

Writer- संध्या 

मैं ने स्वयं ही मन में एक संकल्प लिया कि मैं नीता और रिया की यादों को अपनी कमजोरी नहीं बनने दूंगा बल्कि उसे संबल बनाऊंगा और उस से प्रेरणा ले कर जिंदगी आगे जीऊंगा. एक पल बाद मैं सोचने लगा, मैं करूंगा क्या ऐसा, जिस से जीवन सार्थक महसूस हो. एकाएक सोनू की याद आ गई-तनहा, उदासीन, सोनू. मन में एक संकल्प उभर आया, हां, मैं नीता व रिया की अपनी यादों को अपने दिल में बसाए, अपने जीवन में संजोए, तनहा व उदासीन सोनू की जिंदगी संवारने की कोशिश करूंगा. इस उदास युवती को एक सामान्य खुशहाल जीवन जीने के लिए प्रोत्साहित करूंगा. अब मेरे जीवन का यही लक्ष्य होगा. मैं खुद को बेहद हलका महसूस करने लग गया, जीने की राह जो मुझे मिल गई थी.

अपने संकल्प की चर्चा मैं ने किसी से भी नहीं की थी. मैं ने कालेज भी जौइन कर लिया. मन में खयाल आया, अपने दुख के कारण विद्यार्थियों को हानि पहुंचाना गलत है, सो, अब सुबह कालेज जाने की व्यस्तता हो गई थी. सोनू ने भी स्कूल जौइन कर लिया था. दिन में हम अपनेअपने कार्यों में व्यस्त रहते थे किंतु शाम में अवश्य मौका निकाल कर हम मिल लेते थे. अचानक 5 दिनों के लिए उत्तम एवं भाभीजी को दिल्ली जाने का प्रोग्राम बनाना पड़ गया, परिवार में एक शादी पड़ गई थी. सोनू फ्लैट में अकेली रह गई थी, इसलिए मैं उस का ज्यादा खयाल रखने लगा था. अब वह भी मुझ से ज्यादा बातें करने लगी है. उस ने अपने मांपापा के विषय में विस्तार से बताया कि उस के मांपापा ने दोनों परिवारों के विरोध के बावजूद अंतर्जातीय विवाह किया था. इसलिए दोनों परिवार वालों ने उन लोगों से संबंध तोड़ लिए थे. उस ने बताया कि उस के मांपापा को उस से पहले भी एक बेटी हुई थी, जिस का नाम पापा ने बड़े प्यार से ‘संगम’ रखा था. 2 भिन्न जातिधर्म का संगम. उस की मां बहुत सरल स्वभाव की थीं, उन्होंने दोनों परिवारों को संगम के बहाने मिलाने का काफी प्रयास किया किंतु दोनों तरफ से कड़ा जवाब ही मिला कि वे संगम को नाजायज औलाद मानते हैं, उस के जन्म से उन्हें कोई खुशी नहीं है. सो, मेलमिलाप का तो सवाल ही नहीं उठता है. उस ने आगे बताया, ‘‘संगम 9 माह की हो कर खत्म हो गई. मां ने बताया था कि संगम को सिर्फ बुखार हुआ था, जो अचानक काफी तेज हो गया था. उसे डाक्टर के पास ले गए किंतु उस ने कम समय में ही आंखें उलट दीं एवं उस का शरीर ऐंठ गया. डाक्टर कुछ भी न कर सके.

‘‘मांपापा का प्यार सच्चा था, दोनों एकदूसरे का संबल बन एकदूसरे के लिए खुश रहते एवं एकदूसरे को खुश रखने की पूरी कोशिश करते. संगम की मृत्यु के 2 साल बाद मेरा जन्म हुआ. मां ने फिर दोनों परिवारों से मुझे स्वीकार करने की मिन्नतें कीं. उन्होंने हाथ जोड़ कर प्रार्थना की कि इस नन्ही जान को स्वीकार कर लीजिए. आप लोगों ने मेरी पहली बच्ची को नहीं स्वीकारा, वह रूठ कर चली गई. किंतु मां की पुकार दोनों परिवारों के बीच की तपन को पिघला न सकी. दोनों परिवारों का एक ही जवाब था, जब हमारा तुम से ही कोई संबंध नहीं है तब तुम्हारी औलाद से हमें क्या मोह?

‘‘मां ने मुझे बताया था कि दोनों परिवारों के रुख के कारण पापा ने नाराज हो कर मां से वचन लिया था कि अब वह कभी भी दोनों परिवारों से मेलमिलाप का प्रयास नहीं करेगी. इस के बाद मां ने दोनों परिवारों के संबंध में सोचना बंद कर दिया,’’ मुझे यह सब बता कर सोनू फूटफूट कर रो पड़ी. मैं ने उसे सांत्वना देने के उद्देश्य से उस के कंधे थपथपाते हुए कहा, ‘‘सोनू, धैर्य रखो, आश्चर्य होता है लोग इतने निर्दयी क्यों हो जाते हैं जो अपने खून को पहचानने से, उसे स्वीकार करने से इनकार कर देते हैं.’’ सोनू अपने आंसू पोंछती हुई बोली, ‘‘मनजी, मेरी समझ में नहीं आता, लोग प्यार से इतनी घृणा क्यों करते हैं. मेरे मांपापा अलगअलग जातिधर्म के थे, दोनों ने प्यार किया था, कोई अपराध तो नहीं किया था, किंतु दोनों परिवारों ने उन का बहिष्कार कर दिया. मां ने एक बार बताया था कि उन की मां ने उन्हें उलाहना देते हुए कहा था कि यह दिन दिखाने से तो अच्छा होता कि वे मर गई होतीं, तो उन्हें खुशी होती.’’

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सोनू की जीवनगाथा सुननेसुनाने में हमें समय का खयाल ही नहीं रहा. रात के साढ़े 8 बज चुके थे. मैं ने कहा, ‘‘सोनू, काफी देर हो चुकी है. अब तुम घर जाओ. हम कल मिलते हैं. अपना खयाल रखना.’’ वह बिना कुछ बोले, धीरे से बाय, गुडनाइट कह कर चल दी. रविवार का दिन था, सोनू का फोन आया, ‘‘मनजी, मेरे साथ मार्केट चलिएगा, घर का थोड़ा जरूरी सामान खरीदना है.’’

मैं ने कहा, ‘‘ठीक है, 4 बजे तक चलते हैं.’’ हम नजदीक के मौल में चले गए. उस ने चादरें, तौलिया तथा किचन का काफी सामान लिया. मैं ने भी किचन की कुछ चीजें खरीद लीं. यह सब खरीदारी नीता ही किया करती थी. सो, मुझे थोड़ी असुविधा हो रही थी. सोनू से मुझे खरीदारी में काफी मदद मिली. खरीदारी करते हुए हमें 8 से ऊपर बज गए. सो हम ने डिनर भी बाहर ही कर लिया. सोनू का सामान कुछ ज्यादा था, इसलिए मैं ने कहा, ‘‘तुम्हारा सामान तो ज्यादा है, इसलिए कुछ सामान मैं तुम्हारे घर तक पहुंचा देता हूं.’’ उस ने सहमति में सिर हिला दिया. उस का सामान पहुंचा कर मैं लौटने लगा तब वह बोली, ‘‘मनजी, मैं आप से कुछ कहना चाहती हूं.’’

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‘‘हांहां, बोलो,’’ मैं ने कहा.

वह झिझकते हुए बोली, ‘‘मनजी, अब हम एकदूसरे को अच्छी तरह से जानते हैं.’’ मैं ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘दरअसल, समान दुख के कारण हम एकदूसरे को जल्दी समझ सके.’’ ‘‘मनजी, हमें एकदूसरे को जानते हुए 6 माह से भी ऊपर हो चुके हैं. मैं इंतजार में थी कि आप ही इस संबंध में कुछ करते किंतु आप तो…’’ वह एक पल रुक कर मुसकराते हुए बोली, ‘‘मनजी, आप बहुत भले इंसान हैं. इतनी बातें मैं मांपापा के सिवा सिर्फ आप से करती हूं.’’ मैं ने भी उस की हां में हां मिलाते हुए कहा, ‘‘मैं भी इतनी बातें सिर्फ नीता और रिया से करता था. हम दोनों बातें कर ही रहे थे कि उत्तम और भाभीजी दिल्ली से लौट आए. घर के सामने उन की टैक्सी आ चुकी थी, हम दोनों उन की अगवानी में लग गए. उत्तम से सारी बातें जानने के लिए मैं अधीर हो रहा था, क्योंकि मैं ने उस से विशेष आग्रह किया था कि वह दिल्ली में समय निकाल कर मेरे बड़े भैया एवं भतीजे सुमन से अवश्य मिल ले तथा मैं ने शादी संबंधी जो भैया एवं सुमन से सलाह मांगी थी, वह प्रत्यक्षत: उस संबंध में राय जान ले एवं उन की प्रतिक्रिया प्रत्यक्षत: देख कर, उन के विचार साफतौर पर समझ ले. उत्तम ने बताया कि दोनों ही मेरे विचारों से सहमत हैं तथा इस सिलसिले में इसी हफ्ते आ जाएंगे. अगले दिन सोनू शाम को मेरे घर पर आई थी. हम दोनों चाय पी रहे थे एवं बातें कर रहे थे कि बड़े भैया का फोन आया. जरूरी बातें कर, मैं ने उन से थोड़ी देर बाद बात करने की बात कह कर फोन काट दिया.

तांक झांक- भाग 2: क्यों शालू को रणवीर की सूरत से नफरत होने लगी?

Writer- Neerja Srivastava

‘ओह आज तो सुबह से बड़ी चहलकदमी हो रही है… तैयार मैडम प्रिया सधे कदमों से हाईहील में खटखट करते इधरउधर आजा रही हैं,’ दिल में उस के जलतरंग सी उठने लगी. ‘लगता है किसी फंक्शन में जा रही है… उफ लो यह खड़ूस अपने जूते पहने यहीं आ मरा… बेटा, थ्री पीस सूट पहन कर हीरो नहीं बन जाएगा… बीवी की बात कभी तो मान लिया कर… थोड़ी बौडीशौडी बना ले,’ तरुण परदे के पीछे खड़ा बड़बड़ाए जारहा था.

‘काश, प्रिया जैसी मेरी बीवी होती… खटखट करते2 कदम आगे2 कदम पीछे करके मेरे साथ डांस करती… मैं उसे यों गोलगोल घुमाता,’ वह खयालों में खो गया.

एक दिन खयालों को सच करने के लिए तरुण शालू के नाप के हाईहील सैंडल ले आया. बड़े चाव से शालू को पहना कर उस ने म्यूजिक औन कर दिया. शालू को सहारा दे कर उस ने खड़ा किया. घुमाया तो शालू खिलखिला कर हंसते हुए बोली, ‘‘अरे तरु मुझ से नहीं होगा… गिर जाऊंगी,’’ फिर अपनेआप को संभालने के लिए उसने तरुण को जो खींचा तो दोनों बिस्तर पर जा गिरे. तरुण को भी हंसी आ गई. थोड़ी देर तक दोनों हंसते रहे.

प्रिया को अपनी बालकनी से ज्यादा कुछ तो दिखाई नहीं दिया पर दोनों की हंसी बड़ी देर तक सुनाई देती रही.

‘अकसर दोनों की हंसीखिलखिलाहट सुनाई देती है. कितना हंसमुख है तरुण… अपनी पत्नी को कितना खुश रखता है और एक ये हैं श्रीमान रणवीर हमेशा मुंह फुलाए बैठे रहते हैं जैसे दुनिया का सारा बोझ इन्हीं के कंधों पर हो,’ प्रिया के दिल में हूक सी उठी तो वह अंदर हो ली.

थोड़ी देर बाद ही तरुण उठा और शालू को भी उठा दिया, ‘‘चलो, थोड़ी प्रैक्टिस करते हैं… कल 35 नंबर कोठी वाले उमेशजी के बेटे की सगाई है. सारे पड़ोसियों को बुलाया है. हमें भी. और रणवीर फैमिली को भी. खूब डांसवांस होगा. बोला है खूब तैयार हो कर आना.’’

‘‘अच्छा तो यह बात है. तभी ये सैंडल…’’ शालू मुसकराई.

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शालू फिर खड़ी हो गई. किसी तरह तरुण कमर में हाथ डाल कर डांस करवाने लगा. हंसते हुए शालू ने 2 राउंड लिए. फिर अचानक पैर ऐसा मुड़ा कि हील सैंडल से अलग जा पड़ी और शालू अलग.

‘‘तुम से कुछ नहीं होगा शालू… तुम ने अच्छेखासे सैंडल भी बेकार कर दिए.’’

‘‘ब्रैंडेड नहीं थे…  तो पहले ही लग रहा था पर आप को बुरा लगेगा इसलिए कहा नहीं. प्रिया को रणवीर हर चीज ब्रैंडेड ही दिलाते हैं. काश, मेरा पति भी इतना रईस होता,’’ कह शालू ने ठंडी आह भरी.

‘‘यह देखो क्या किया…’’ तरुण ने दोनों टुकड़े उसे थमा दिए.

शालू ने उन्हें क्विकफिक्स से चिपका दिया. बोली, ‘‘देखो तरु सैंडल बिलकुल सही हो गया. अब चलो पार्टी में.’’

‘‘हां पर डांसवांस तुम रहने ही देना… वहां तुम्हारे साथ कहीं मेरी भी भद्द न हो जाए,’’ तरुण बेरुखाई से बोला.

उधर रणवीर अपनी बालकनी में शालू की किचन से रोज आती आलू, पुदीने के परांठों की खुशबू से काफी प्रभावित था. पत्नी प्रिया के रोजरोज के उबले अंडे, दलिया के नाश्ते से त्रस्त था. कई बार चुपके से शालू की तारीफ भी कर चुका था और वह कई बार मेड के हाथों उसे भिजवा भी चुकी थी. आज सुबह भी उस ने परांठे भिजवाए थे.

शालू तरुण के साथ नीचे उतरी तो प्रिया और रणवीर भी आ चुके थे. रणवीर गाड़ी स्टार्ट कर रहा था.

‘‘आइए, साथ ही चलते हैं तरुणजी,’’ रणवीर ने कहा तो प्रिया ने भी इशारा किया. चारों बैठ गए.

रणवीर बोला, ‘‘परांठों के लिए थैंक्स शालूजी… आप के हाथों में जादू है… मैं अपनी बालकनी से रोज पकवानों की खुशबू का मजा लेता हूं… प्रिया को तो घी, तेल पसंद नहीं… न बनाती है न मु?ो खाने देना चाहती है. तरुणजी आप के तो मजे हैं. रोज बढि़याबढि़या पकवान खाने को मिलते हैं. काश…’’

‘अबे आगे 1 लफ्ज भी न बोलना… क्या बोलने जा रहा था तू,’ तरुण मुट्ठियां भींचते हुए मन ही मन बुदबुदा उठा.

इधर शालू महंगी बड़ी सी गाड़ी में बैठ एक रईस से अपनी तारीफ सुन कर निहाल हुई जा रही थी.

और प्रिया ‘हां फैट खूब खाओ और ऐक्सरसाइज मत करो. फिर थुलथुल बौडी लेकर घूमना इन्हीं यानी शालू के साथ… तरुणकी तारीफ में क्यों बोलोगे? क्या गठीली बौडीहै. काश मेरा हबी ऐसा होता,’ प्रिया मन हीमन बोली.

शालू पर उड़ती नजर पड़ी तो न जाने क्यों वह जलन सी महसूस करने लगी. गाड़ी के ब्रेक के साथ सभी के उठते विचारों को भी ब्रेक लगे. पार्टी स्थल आ गया था.

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मेहमान आ चुके थे. फंक्शन जोरों पर था. मीठीमीठी धुन के साथ कोल्डड्रिंक्स, मौकटेल के दौर चल रहे थे. तभी वधू का प्रवेश हुआ. स्टेज से उतर लड़के ने उस का स्वागत किया और स्टेज पर ले आया. तालियों की गड़गड़ाहट के साथ सगाई की रस्म पूरी की गई.

सभी ने बारीबारी से स्टेज पर आ कर बधाई दी. लड़कालड़की की शान में कुछ कहना भी था उन्हें चाहे गा कर चाहे वैसे ही. सभी ने कुछ न कुछ सुनाया.

तरुण और शालू स्टेज पर आए तो प्रिया की हसरत भरी नजरें डैशिंग तरुण पर ही जमी थीं. तरुण ने किसी गीत की मुश्किल से 2 लाइन ही गुनगुनाईं और फिर बधाई गिफ्ट थमा शालू का हाथ थामे शरमाते हुए स्टेज से उतर गया.

‘ओह तरुण की तो बस बौडी ही बौडी है. अंदर तो कुछ है ही नहीं… 2 शब्द भी नहीं बोल पाया लोगों के सामने. कितना शाई… गाना भी पूरा नहीं गा सका,’ तरुण को स्टेज पर चढ़ता देख प्रिया की आंखों में आई चमक की जगह अब निराशा झलक रही थी. आकर्षण कहीं काफूर हो रहा था.

‘शालू, आप ऐसे कैसे जा सकती हो बगैर डांस किए. मैं ने आप का बढि़या डांस देखा है… मेरे हाथों में… आइएआइए,’’ उमेशजी की पत्नी आशाजी ने आत्मीयता से उसे ऊपर बुला लिया.

Manohar Kahaniya: सुपरस्टार के बेटे आर्यन खान पर ड्रग्स का डंक- भाग 2

सौजन्य- मनोहर कहानियां 

जब अभिनेता सुशांत सिंह की रहस्यमय मौत 14 जून, 2020 को हुई थी तभी से उन के निशाने पर फिल्म इंडस्ट्री के वे स्टार्स हैं, जो ड्रग्स का सेवन करते हैं.

सुशांत सिंह की मौत के बाद भी ड्रग माफिया की चर्चा हुई थी और हल्ला भी ज्यादा मचा था, क्योंकि सुशांत और उस के कुछ साथी भी ड्रग्स लेते थे. तब इस की जांच वानखेड़े ने ही की थी.

इस के बाद तो वह बौलीवुड के ड्रग कनेक्शन के पीछे पड़ गए. आर्यन का मामला उसी पीछे पड़ने की एक कड़ी है.

मुंबई हवाई अड्डे पर तैनाती के दौरान उन की कहासुनी आए दिन फिल्म स्टार्स से हुई. 2008 बैच के आईआरएस अधिकारी समीर वानखेड़े एनसीबी से पहले एनआईए यानी राष्ट्रीय जांच एजेंसी में रहते भी सुर्खियों में रहते थे.

हालिया मामले में भी उन्होंने कोई नरमी नहीं बरती और एक दूसरी सनसनी 11 अक्तूबर को यह कहते हुए मचाई कि इस मामले की जासूसी हो रही थी.

इस के पहले सुनवाई कर रही मुंबई की अदालत ने उन की इस मंशा पर पानी फेर दिया था कि आर्यन और दूसरे आरोपियों को एनसीबी की कस्टडी दी जाए, जिस से उन से ढंग से पूछताछ हो सके.

अदालत ने इस दलील से इत्तफाक नहीं रखा और आरोपियों को आर्थर रोड जेल भेज दिया. यहां भी मीडिया बदस्तूर अपना काम करता रहा, मसलन आर्यन फलां बैरक में रहेगा, उसे घर का खाना नहीं मिलेगा और जेल की दिनचर्या और सख्त नियमों का उसे पालन करना पड़ेगा. कपड़े जरूर उसे पसंद के मिल सकते हैं. नाश्ते और लंच डिनर का मेन्यू भी प्रसारित किया गया.

समीर वानखेड़े के साथसाथ चर्चे सतीश मानशिंदे के भी खूब हुए कि वह इस से पहले भी इस तरह के कई मुकदमों में पैरवी कर चुके हैं. सुनील दत्त के अभिनेता बेटे संजय दत्त को जमानत उन्होंने ही दिलवाई थी.

संजय दत्त कभी अव्वल दरजे के ड्रग एडिक्ट थे और मुंबई बम धमाकों में भी उन का नाम आया था. उन की जिंदगी पर फिल्म भी बनी और किताबें भी लिखी गईं.

सलमान खान को ड्रिंक एंड ड्राइव मामले के साथ काले हिरण के शिकार के चर्चित मामले में भी मानशिंदे ने जोरदार तरीके से पैरवी करते हुए उन्हें जमानत दिलवाई थी और फिर बाइज्जत बरी भी करवाने में कामयाबी हासिल की थी.

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अपने दौर के दिग्गज और नामी वकील राम जेठमलानी के 10 साल जूनियर रहे इस धुरंधर वकील की एक पेशी की फीस ही 10 लाख रुपए हुआ करती है.

सुशांत सिंह की गर्लफ्रैंड रिया चक्रवर्ती को जमानत दिलवाने का श्रेय भी मानशिंदे के खाते में दर्ज है और अभिनेत्री राखी सावंत का एक मुकदमा भी वह लड़ चुके हैं. आर्यन के मामले में भी उन्होंने जमानत याचिकाएं दमदार दलीलों के जरिए दायर कीं लेकिन शुरुआती दौर में उन्हें कामयाबी नहीं मिली.

जब आर्यन की चर्चा जरूरत से ज्यादा हो चुकी तो लोगों की दिलचस्पी सतीश मानशिंदे और समीर वानखेड़े में बढ़ी कि देखें कौन किस पर भारी पड़ता है क्योंकि ये दोनों ही अपनेअपने फील्ड के महारथी हैं.

फिल्मों में नशा

फिल्म इंडस्ट्री का नशे से काफी गहरा नाता हमेशा से ही रहा है. शराब तो बेहद आम है जिसे लगभग सभी कलाकार पीते हैं. देखा जाए तो नशा इस इंडस्ट्री का पर्याय और पहचान शुरू से ही है. लेकिन ड्रग्स की विधिवत शुरुआत हुई 70 के दशक से. तब ड्रग्स को आज जितनी मान्यता नहीं मिली थी और यह नशा भी सिर्फ अपराधियों और अभिजात्य वर्ग का नशा माना जाता था.

इसी दौर में देवानंद की फिल्म हरे राम हरे कृष्ण आई. हिप्पी कल्चर वाली इस फिल्म में जीनत अमान ने पेरेंट्स से उपेक्षित एक मध्यमवर्गीय नशेड़ी युवती का रोल इतनी शिद्दत से निभाया था कि दर्शक रातोंरात उन के मुरीद हो गए थे.

लेकिन दिक्कत तब खड़ी होने लगी, जब युवा जीनत के साथसाथ नशे के भी दीवाने होने लगे. तब नशे के लिए गांजा, चिलम, अफीम, चरस सहित एलएसडी जैसी घातक गोलियां इस्तेमाल की जाती थीं.

जीनत अमान पर फिल्माए गाने ‘दम मारो दम मिट जाए गम…’ का असर उलटा हुआ. युवाओं ने नशे के नुकसानों से कोई सबक नहीं सीखा.

नशे से आगाह करती एक और फिल्म एलएसडी पर आधारित भी इसी दौर में रिलीज हुई थी, पर वह ज्यादा चली नहीं थी.

आज के आर्यन नुमा युवाओं का इस गुजरे कल से गहरा ताल्लुक है. फिल्म इंडस्ट्री में बेशुमार पैसा है, जिस पर अंडरवर्ल्ड की नजर पड़ी तो देखते ही देखते उस का हुलिया बदल गया. अंडरवर्ल्ड के सरगना फिल्मकारों को फाइनेंस करने लगे और जुर्म की दुनिया इस सुनहरे परदे की जरूरत बन गई.

हर तीसरी फिल्म में दिखाया जाने लगा कि ड्रग्स के कारोबार में मुनाफा ही मुनाफा है. लेकिन इस से भी ज्यादा प्रचार इस बात का हुआ कि ड्रग्स के सेवन से आप एक ऐसी दुनिया में पहुंच जाते हैं, जहां कोई गम या दुख नहीं होता. आप ध्यान और समाधि की सी अवस्था में होते हैं.

देखते ही देखते हर कोई इस ध्यान में डूबने लगा. ड्रग्स का नशा स्टेटस सिंबल बन गया और यह कारोबार इतनी तेजी से फैला कि आज झुग्गीझोपड़ी वाले युवा भी इस की गिरफ्त में हैं.

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एनसीबी की समस्या यही है कि वह इस कारोबार की जड़ तक नहीं पहुंच पाती. कुछ नशेडि़यों को यहांवहां से गिरफ्तार कर मान लिया जाता है कि अब समस्या हल हो गई.

तालिबानी सत्ता के बाद भारत में बढ़ गई ड्रग तस्करी

हाल ही में अफगानिस्तान पर तालिबानों के कब्जे से नशे के कारोबार पर पड़े फर्क का ही नतीजा है कि ड्रग्स सप्लाई एकाएक ही तेजी से बढ़ी. तय है इसलिए कि तालिबानी सरकार का मूड और नीतियां ड्रग्स के कारोबारी समझ नहीं पा रहे लिहाजा क्लीयरेंस सेल की तरह उन्होंने अपना स्टौक खाली करना और औनेपौने में यहांवहां माल खपाना शुरू कर दिया.

आर्यन खान कांड के चंद दिनों पहले ही गुजरात के कच्छ जिले के मुंद्रा बंदरगाह से 21 हजार करोड़ रुपए की हेरोइन जब्त हुई थी. इस जब्ती के कारोबारी और सियासी मायने और अटकलें अलग हैं, लेकिन यह तय है कि अगर यह खेप न पकड़ी जाती तो अब तक देश के कोनेकोने में फैल चुकी होती.

हल्ला इस बात पर ज्यादा मचा कि यह खेप अडानी समूह द्वारा संचालित बंदरगाह पर उतरी. आर्यन की गिरफ्तारी के बाद यह सवाल भी उठा कि कहीं यह नया ड्रामा मुंद्रा बंदरगाह पर से ध्यान हटाने के लिए तो नहीं रचा गया, क्योंकि अडानी समूह के मौजूदा हुक्मरानों से अंतरंग संबंध हैं और आम लोग भी इस बाबत सवाल पूछने लगे थे.

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इस और ऐसे कई अनसुलझे सवालों का जबाब आधाअधूरा ही सही, हिंदी फिल्मों से मिलता रहा है. 70-80 के दशक की हर तीसरी फिल्म में पुलिस कमिश्नर बने चरित्र अभिनेता इफ्तिखार नए भरती हुए इंसपेक्टर रवि या विजय को एक महत्त्वपूर्ण फाइल सौंपते गंभीरता से यह कहते नजर आते थे कि यह रही ड्रग्स के उन तस्करों और कारोबारियों की जन्मकुंडली, जो हमारे देश की युवा पीढ़ी को खोखला करते, उन्हें नशे के नर्क में धकेलने का संगीन गुनाह कर रहे हैं.

इंसपेक्टर बने अमिताभ बच्चन या शशि कपूर अपनी एडि़यों को घुमा कर एक जोरदार सैल्यूट ठोकते थे और उन की जीप सीधे विलेन के अड्डे पर जा पहुंचती थी.

अगले भाग में पढ़ें- आर्यन कोई नादान बच्चा नहीं

लौटती बहारें- भाग 3: मीनू के मायके वालों में क्या बदलाव आया

पिछली बार तो पगफेरे के समय वे साथ थे. मम्मीपापा, भाईबहन से ज्यादा बातें करने का अवसर ही नहीं मिला, क्योंकि शेखर हर समय साथ रहते थे. अगले दिन वापस भी आ गए थे.

मन रोमांचित हो रहा था कि इस बार अपनी प्यारी सहेली चित्रा से भी मिलूंगी. रेनू और राजू मेरे बाद कितने अकेले हो गए होंगे. उन दोनों की चाहे पढ़ाई से संबंधित समस्या हो या कोई और, हल अपनी मीनू दीदी से ही पूछते थे. मम्मी का भी दाहिना हाथ मैं ही थी. पापा मुझे देख गर्व से फूले न समाते. यही सोचतेसोचते समय कब बीत गया पता ही नहीं चला.

झटके से बस रूकी. मैं ने देखा सहारनपुर आ गया था. मैं पुलकित हो उठी. बस की खिड़की से झांका तो राजू तेज कदमों से बस की ओर आता दिखा. बस से उतरते ही राजू ने मेरा सूटकेस थाम लिया. उसे देख खुशी से मेरी आंखें भर आईं. 2 ही महीनों में राजू बहुत स्मार्ट हो गया था. नए स्टाइल में संवरे बाल, आंखों पर काला चश्मा लगा था.

घर पहुंचते ही ऐसे लगा मानो कोई खोई हुई चीज अचानक मिल गई हो. मैं सब से टूट कर मिली. मम्मीपापा ने पीठ पर हाथ फेर कर दुलारा. मुझे लगा कि मैं इस प्यार के लिए कितना तरस गई थी. मेरा और ससुराल का हालचाल

पूछ मम्मी किचन में चली गईं. मैं पापा की सेहत और रेनू व राजू की पढ़ाई के बारे में पूछताछ करने लगी.

बड़े अच्छे माहौल में खाना खत्म हुआ. राजू और रेनू मेरी अटैची के आसपास घूमने लगे. बोले, ‘‘बताओ दीदी, दिल्ली से हमारे लिए क्या लाई हो?’’

मैं शर्म से गड़ी जा रही थी कि किस मुंह से उपहार दिखाऊं. मैं अनिच्छा से ही उठी और उन दोनों के पैकेट निकाल कर दे दिए. पैकेट खोलते ही रेनू और राजू के मुंह उतर गए. दोनों मेरी ओर देखने लगे.

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रेनू बोली, ‘‘आप कमाल करती हैं दीदी… पूरी दिल्ली में यही घटिया चीजें आप को हमारे लिए मिलीं.’’

राजू भी बोल उठा, ‘‘दीदी, ऐसे चीप कपड़े तो हमार कामवाली बाई के बच्चे भी नहीं पहनते हैं.’’

शर्म और अपमान से मैं क्षुब्ध हो उठी. यह सही था. कपड़े उन के स्तर के नहीं थे, परंतु ऐसा व्यवहार तो मैं ने उन का पहली बार देखा था. दोनों पैकेटों को पलंग पर रख कमरे से बाहर निकल गए. मैं हैरानपरेशान उन्हें देखती रह गई.

जो भाईबहन मुझे इतना आदर और मान देते थे वही सस्ते से उपहारों के लिए इतना सुना गए. मन खिन्न हो उठा. बहुत थकी थी. वहीं पलंग पर लेट गई. न जाने कब आंख लग गई.

शाम को आंख खुली तो कानों में रेनू की आवाज सुनाई दी.

मैं ने बालकनी से नीचे देखा तो रेनू एक लड़के से बातें करती दिखाई दी. लड़का बाइक पर बैठा था. हावभाव और बातचीत से किसी निम्नवर्गीय परिवार का लग रहा था. अचानक उस ने बाइक स्टार्ट की और रेनू को फ्लाइंग किस देता हुआ तेज गति से चला गया.

यह सब देख मैं हैरान रह गई. अभी तो कालेज में रेनू का पहला वर्ष ही है. उस ने अपनी आयु के 18 वर्ष भी पूरे नहीं किए. अपरिपक्व है. अभी से यह किस रास्ते चल पड़ी? फिर मैं ने सोचा कि मौका देख कर बात करूंगी.

मम्मी कमरे में चाय ले कर आ गईं. मैं ने मम्मी का हाथ पकड़ कर, ‘‘मम्मी, आप यहीं बैठो,’’ कह कर मैं ने उन के लिए लाई साड़ी और पापा की शौल का पैकेट उन्हें पकड़ा दिया. मेरी आंखें शर्म से झुकी जा रही थीं.

उन्होंने साड़ी और शौल को उलटपुलट कर देखा, फिर बोलीं, ‘‘इस की क्या जरूरत थी. अभी तेरे पापा ने रिटायरमैंट के अवसर पर महंगी साडि़यां दिलवाई हैं,’’ और फिर पैकेट वहीं छोड़ किचन में चली गईं.

मैं शर्मिंदगी से उबर नहीं पा रही थी. मैं ने सारे तोहफे समेटे और अलमारी के कोने में रख दिए.

बड़ा नौर्मल सा दिखने का अभिनय करते हुए मैं मम्मी के पास किचन में चली गई.

मुझे देखते ही मम्मी बोली, ‘‘अरे, तू कमरे में ही आराम कर यहां कहां चली आई. अब तो तू हमारी मेहमान है.’’

यह सुन कर मेरी आंखें भर आईं. मैं मुंह फेर कर बरतनों को उलटपलट कर रखने लगी. मुझे वे दिन याद आने लगे, जब मेरे किचन में जाने पर मम्मी आश्वस्त हो बाहर निकल जाती थीं. दो घड़ी आराम कर लेती थीं. कल तो मौसियां, चाची, बूआ सब मेहमान आ जाएंगे. फिर तो मम्मी को जरा सी भी फुरसत नहीं मिलेगी. बड़ा मन कर रहा था कि मां की गोद में सिर रख कर खूब रो लूं, मन हलका कर लूं पर मां तो लगातार काम करती जा रही थीं. बीचबीच में ससुराल के मेरे अनुभव भी पूछती जा रही थीं. मुझे जो भी सूझता जवाब देती जा रही थी.

मम्मी ने रसोई में पड़ा स्टूल मेरी तरफ खिसका दिया और बोलीं, ‘‘थक जाएगी, बैठ जा.’’

उन का यह मेहमानों वाला व्यवहार मेरे सीने में किसी कांटे की तरह चुभ रहा था.

अगले दिन बहुत चहलपहल रही. घर में खूब रौनक हो गई थी. सब की केंद्र बिंदु मैं थी. सभी ससुराल के अनुभव, पति, घर वालों के स्वभाव के बारे में पूछ रहे थे. मैं दिल में टीस छिपाए रटेरटाए उत्तर देती जा रही थी. कैसे बताती कि मैं पेड़ से टूटी शाखा और शाखा से

टूटे पत्ते जैसी जिंदगी गुजार रही हूं. अपनापन पाने की कई परीक्षाएं दे चुकी पर हर बार असफल होती रही.

पापा का सेवानिवृत्ति का आयोजन बहुत अच्छी तरह संपन्न हो गया. सभी लोगों

ने उन की ईमानदारी की खूब प्रशंसा की. मैं ने देखा पापा ने चेहरे पर कृतिम खुशी का जो मुखौटा लगा रखा था वह कई बार खिसक जाता तो चेहरे पर चिंता की रेखाएं दिखने लगतीं. मैं जानती थी कि ये चिंताएं रेनू और राजू को ले कर हैं, जो अभी कहीं सैटल नहीं हैं. उन की शिक्षा, विवाह, नौकरी सभी कुछ बाकी है. यह तो पापा की दूरदर्शिता थी कि समय पर यह मकान बनवा लिया था, जिस की छत्रछाया में उन का परिवार सुरक्षित था. अब तो फंड और पैंशन से गुजारा चलाना था.

अगले दिन पापा कैटरिंग वालों का हिसाब कर रहे थे. उधर मेहमानों की विदाई भी हो रही थी.

मेहमानों के जाते ही घर में सन्नाटा सा छा गया. सब थके हुए थे. दोपहर को थकान उतारने के लिए आराम करने लगे.

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मैं ने इस आयोजन के दौरान एक बात और नोट की कि पूरे आयोजन में रेनू और राजू का सहयोग नगण्य था. रेनू काफी समय तो पार्लर में लगा आई बाकी समय मौसी, चाची और बूआ से गपशप करती रही. राजू भी मेहमानों के साथ मेहमान बना घूम रहा था. 1-2 बार तो मैं ने उसे बिलकुल पड़ोस वाली टीना, जो उस की ही हमउम्र थी, से इशारेबाजी करते भी देखा. देखने में ये बातें इस उम्र में नौर्मल होती है, परंतु इन्हें अपनी पढ़ाईलिखाई और जिम्मेदारी का पूरा ध्यान रखना चाहिए. उपहारों को ले कर किए इन दोनों के कटाक्ष एक बार फिर मेरी वेदना को बढ़ा गए. मन उचाट हो गया. मैं उठ कर अपने कमरे में चली गई.

रेनू और राजू घर पर नहीं थे. मम्मीपापा सोए हुए थे. मैं ने देखा पूरे कमरे की काया पलट हो चुकी थी. दीवारों पर आलिया भट्ट, वरुण धवन के पोस्टर लगे हुए थे.

फिर मैं ने अपनी अलमारी खोली. इस में मेरी बहुत सी यादें जुड़ी थी. अलमारी में रेनू के कपड़े और सामान रखा था. इधरउधर देखा, रेनू की अलमारी पर ताला लगा था. अचानक अलमारी के ऊपर रखी 2 गठरियां दिखाई दीं. उतार कर देखीं तो एक में मेरे कपड़े थे और एक में किताबें बंधी थीं. मैं उन्हें कहां रखूं, यह सोच ही रही थी कि रेनू के बाय कहने की आवाज आई.

बालकनी में जा कर देखा, रेनू उसी लड़के की बाइक से उतर कर

ऊपर आ रही थी. मुझे सामने पा कर चौंक गई. फिर नजरें बचा कर अंदर जाने लगी.

उसी समय राजू भी किसी से मोबाइल पर बातें करता ऊपर आ गया. मुझे देख मोबाइल छिपाते हुए अपने कमरे की ओर जाने लगा. मैं ने उसे आवाज दी तो वह अनसुना कर गया.

अब मेरा धैर्य भी जवाब देने लगा था.

फिर भी मैं ने यथासंभव खुद को सामान्य करते हुए बड़े प्यार से दोनों को पुकारा. रेनू तो अभी वहीं खड़ी थी. राजू मुंह फुलाए आकर खड़ा हो गया.

मैं ने बड़े प्यार से दोनों की पढ़ाईलिखाई के बारे में पूछा तो दोनों ने संक्षिप्त उत्तर दिए और जाने लगे.

मैं ने राजू से पूछा, ‘‘यह मोबाइल तुम ने नया खरीदा क्या?’’

‘‘पापा ने ले कर दिया?’’

राजू मुंह बना कर बोला ‘‘पापा क्या ले कर देंगे, यह मुंबई वाली मौसी का बेटा रजत अपना पुराना मोबाइल दे गया. मैं ने अपनी सिम डलवा ली.’’

Crime: नशे पत्ते की दुनिया में महिलाएं 

एक समय था जब लड़कियां या महिलाएं नशे से दूर रहती थी. अब हालात इतने बदल चुके हैं कि महिलाएं नशे की व्यापार में खुलकर सामने आ रही हैं और पुलिस की दबिश में पकड़ी जा कर जेल  जा रही हैं.

महिलाओं को इस नशे के व्यापार में आखिर कौन और कैसे घसीट लाता है और महिलाओं के नशे की व्यापार में आने से जहां समाज को विकृति पैदा हो रही है वहीं यह चिंता का सबब बनता जा रहा है कि आखिर महिलाओं को इस कृत्य से कैसे रोका जा सकता है.

हाल ही में कुछ ऐसी घटनाएं घटित हुई है जिनके परिपेक्ष्य में कहा जा सकता है कि युवतियां और महिलाएं नशे के व्यापार में बहुत आगे निकल चुकी हैं. जिसका खामियाजा उनके परिवार को भी भुगतना रहा है. जहां एक तरफ परिवार इससे टूट रहे हैं, वही देश के जागरूक नागरिकों के लिए भी एक सोचनीय विषय है कि समाज में ऐसा क्या परिवर्तन आया हुआ है कि महिलाएं जिन्हें यह माना जाता था कि किसी भी नशे और अन्य अपराधिक भूमिकाओं से दूर रहती हैं आज वे उसके आसपास पहुंच चुकी हैं. हम  इस रिपोर्ट में इस सच्चाई को सामने लाते हुए आपको कुछ महत्वपूर्ण चौंकाने वाली जानकारियां दे रहे हैं.

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प्रथम घटना- महाराष्ट्र के नागपुर में एक महिला को नशीली इंजेक्शन के साथ पुलिस ने धर दबोचा महिला ने स्वीकार किया कि वह लंबे समय से नशे के व्यापार में है.

दूसरी घटना- दक्षिण  हैदराबाद में लड़कियां और महिलाओं का एक रैकेट नशीली ड्रग्स के व्यवसाय के केंद्र में था जिसका पुलिस ने खुलासा किया है.
तीसरी घटना – नोएडा के एक संभ्रांत परिवार की महिला को प्रतिबंधित नशीली सामाग्री के साथ पुलिस ने पकड़ा महिला ने बताया रूपए के लिए वह ऐसा कर रही है.

यह कुछ चुनिंदा घटनाएं हैं जो यह इंगित करती है कि महिलाएं अब खुलकर के नशे के व्यापार में अपनी भूमिका निभा रही है जो समाज के लिए एक चिंता का सबब है.

बड़े शहरों से छोटे शहर

यह भी  तथ्य सामने आ रहा है मुंबई, दिल्ली, कोलकाता जैसे महानगरों के बाद अब छोटे शहर कस्बों में भी महिलाएं नशे के व्यापार में केंद्र में आ चुकी है और अपने पति अथवा भाइयों के संरक्षण में निर्भीक होकर के नशे का धंधा कर रही हैं.

छत्तीसगढ़ के जिला कोरिया के पटना थाना अंतर्गत नशीली दवाओं का व्यापार करने वाली महिला को जो लंबे समय से इस व्यवसाय में संलग्न थी आखिरकार पुलिस ने काफी मात्रा में नशीली इंजेक्शन के साथ रंगे हाथ पकड़ा और गिरफ्तार कर लिया है. छत्तीसगढ़ के इस जिले में पुलिस द्वारा महिलाओं को नशे के चंगुल से बाहर निकालने के लिए लगातार अभिनव प्रयास किया जा रहा है.

यहां ऑपरेशन निजात के तहत पुलिस अधीक्षक कोरिया संतोष कुमार सिंह के आदेशानुसार पुलिस सक्रिय हुई तो 9 अक्टूबर 2021 को मुखबिर से सूचना मिली की ग्राम चिरगूड़ा दरीदाड में नशीली दवा इंजेक्शन का अवैध कारोबार चल रहा है. सूचना के आधार पर मीना सोनवानी नामक महिला को पकड़ा गया  उससे नशे के संबंध में पूछताछ की गई और उसके पास से अवैध रूप से बिक्री करने के लिये रखा हुआ नशीला दवा इंजेक्शन जप्त किया गया.

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आरोपी का कृत्य गंभीर अपराध घटित करना सबूत पाये जाने  आरोपी महिला को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया है. हमारे संवाददाता ने जब इस  मसले पर खोजबीन की तो यह तथ्य सामने आया कि आरोपी का पति ओम प्रकाश पूर्व में नशीली दवाओं का व्यापार करते हुए पकड़े जाने पर जेल में है फिर भी महिला द्वारा अवैध नशीली दवाओं का व्यापार किया जा रहा था.

सामाजिक कार्यकर्ता एवं लेखक डॉक्टर टी महादेव राव के मुताबिक  समाज में आज जिस तरीके से पैसों की होड़ मची हुई है किसी भी स्थिति में लोग रूपया अजित करने के लिए अपराधिक गतिविधियों में संलग्न हो जाते हैं. उसी का परिणाम है कि महिलाएं भी नसे पत्ते जैसे व्यवसाय को अपना रही हैं जो चिंता का कारण है.

Top 10 Best Friendship Story In Hindi : दोस्ती की टॉप 10 बेस्ट कहानियां हिन्दी में

Top 10 Best Friendship Story In Hindi : दोस्ती जीवन का सबसे कीमती रिश्ता है. इस रिश्ते में हम एक-दूसरे के साथ सुख-दुख, अकेलापन, हंसी-ठिठोली, सबकुछ साझा करते हैं. एक सच्चा दोस्त जीवन के मुश्किल समय में भी हमारा ढाल बनकर खड़ा रहता है. दोस्ती के रिश्ते को हमेशा सहेज कर रखना चाहिए. तो इस आर्टिकल में आपके लिए लेकर आए हैं सरस सलिल की 10 Best Friendship Story In Hindi. इन कहानियां को पढ़ कर दोस्ती के अनमोल रिश्ते के बारे में आप जान पायेंगे. तो अगर आपको भी हैं कहानियां पढ़ने का शौक तो पढ़िए सरस सलिल की Top 10 Best Friendship Story In Hindi.

  1. दोस्ती: क्या एक हो पाए आकांक्षा और अनिकेत ?

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आकांक्षा खुद में सिमटी हुई दुलहन बनी सेज पर पिया के इंतजार में घडि़यां गिन रही थी. अचानक दरवाजा खुला, तो उस की धड़कनें और बढ़ गईं. मगर यह क्या? अनिकेत अंदर आया.

दूल्हे के भारीभरकम कपड़े बदल नाइटसूट पहन कर बोला, ‘‘आप भी थक गई होंगी. प्लीज, कपड़े बदल कर सो जाएं. मुझे भी सुबह औफिस जाना है.’’

आकांक्षा का सिर फूलों और जूड़े से पहले ही भारी हो रहा था, यह सुन कर और झटका लगा, पर कहीं राहत की सांस भी ली. अपने सूटकेस से खूबसूरत नाइटी निकाल कर पहनी और फिर वह भी बिस्तर पर एक तरफ लुढ़क गई.

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2. पंचायती राज: कैसी थी उनकी दोस्ती

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उस दिन मुनिया अपने मकान में अकेली थी कि शोभित को अपने पास आया देख कर उस का मन खुशी से झूम उठा. उस ने इज्जत के साथ शोभित को पास बैठाया. पास के मकानों में रहते हुए शोभित और मुनिया में अच्छी दोस्ती हो गई थी. दोनों बचपन से ही एकदूसरे के घर आनेजाने लगे थे. कब उन के बीच प्यार का बीज पनपने लगा, उन्हें पता भी नहीं चला. अगर उन दोनों में मुलाकातें न हो जातीं, तो उन के दिल तड़पने लगते थे.

कुछ देर की खामोशी को तोड़ते हुए शोभित बोला, ‘‘मुनिया, मैं कई दिनों से तुम से अपने मन की बात कहना चाहता था, लेकिन सोचा कि कहीं तुम्हें या तुम्हारे परिवार वालों को बुरा न लगे.’’ ‘‘तो आज कह डालो न. यहां कोई नहीं है. तुम्हारी बात मेरे तक ही रहेगी,’’ कह कर वह हंसी थी.

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3. दिये से रंगों तक: दोस्ती और प्रेम की कहानी

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हम दोनों चेन्नई में 2 महीने पहले ही आए थे. मेरे पति साहिल का यहां ट्रांसफर हुआ था. मेरे पास एमबीए की डिगरी थी. सो, मुझे भी नौकरी मिलने में ज्यादा दिक्कत न आई. हमारे दोस्त अभी कम थे. यही सोच कर दीवाली के दूसरे दिन घर में ही पार्टी रख ली. अपने और साहिल के औफिस के कुछ दोस्तों को घर पर बुलाया था. दीवाली के अगले दिन जब मैं शाम को दिये और फूलों से घर सजा रही थी तो साहिल बोले, ‘‘शैली, कितने दिये लगाओगी? घर सुंदर लग रहा है. तुम सुबह से काम कर रही हो, थक जाओगी. अभी तुम्हें तैयार भी तो होना है.’’

मैं ने साहिल की तरफ  प्यार से देखते हुए कहा, ‘‘मैं क्यों, तुम भी तो मेरे साथ बराबरी से काम कर रहे हो. बस, 10 मिनट और, फिर तैयार होते हैं.’’

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4. भीगी पलकों में गुलाबी ख्वाब: क्या ईशान अपनी भाभी को पसंद करता था?

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मालविका की गजल की डायरी के पन्ने फड़फड़ाने लगे. वह डायरी छोड़ दौड़ी गई. पति के औफिस जाने के बाद वह अपनी गजलों की डायरी ले कर बैठी ही थी कि ड्राइंगरूम के चार्ज पौइंट में लगा उस का सैलफोन बज उठा.

फोन उठाया तो उधर से कहा गया, ‘‘मैं ईशान बोल रहा हूं भाभी, हम लोग मुंबई से शाम तक आप के पास पहुंचेंगे.’’

42 साल की मालविका सुबह 5 बजे उठ कर 10वीं में पढ़ रहे अपने 14 वर्षीय बेटे मानस को स्कूल बस के लिए  रवाना कर के 49 वर्षीय पति पराशर की औफिस जाने की तैयारी में मदद करती है. नाश्तेटिफिन के साथ जब पराशर औफिस के लिए निकल जाता और वह खाली घर में पंख फड़फड़ाने के लिए अकेली छूट जाती तब वह भरपूर जी लेने का उपक्रम करती. सुबह 9 बजे तक उस की बाई भी आ जाती जिस की मदद से वह घर का बाकी काम निबटा कर 11 बजे तक पूरी तरह निश्ंिचत हो जाती.

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5. पोलपट्टी: क्यों मिताली और गौरी की दोस्ती टूट गई?

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आज अस्पताल में भरती नमन से मिलने जब भैयाभाभी आए तो अश्रुधारा ने तीनों की आंखों में चुपके से रास्ता बना लिया. कोई कुछ बोल नहीं रहा था. बस, सभी धीरे से अपनी आंखों के पोर पोंछते जा रहे थे. तभी नमन की पत्नी गौरी आ गई. सामने जेठजेठानी को अचानक खड़ा देख वह हैरान रह गई. झुक कर नमस्ते किया और बैठने का इशारा किया. फिर खुद को संभालते हुए पूछा, ‘‘आप कब आए? किस ने बताया कि ये…’’

‘‘तुम नहीं बताओगे तो क्या खून के रिश्ते खत्म हो जाएंगे?’’ जेठानी मिताली ने शिकायती सुर में कहा, ‘‘कब से तबीयत खराब है नमन भैया की?’’

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6. बहुरुपिया- दोस्ती की आड़ में क्या थे हर्ष के खतरनाक मंसूबे?

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हर्ष से मेरी मुलाकात एक आर्ट गैलरी में हुई थी. 5 मिनट की उस मुलाकात में बिजनैस कार्ड्स का आदानप्रदान भी हो गया.

‘‘मेरी खुद की वैबसाइट भी है, जिस में मैं ने अपनी सारी पेंटिंग्स की तसवीरें डाल रखी हैं, उन के विक्रय मूल्य के साथ,’’ मैं ने अपने बिजनैस कार्ड पर अपनी वैबसाइट के लिंक पर उंगली रखते हुए हर्ष से कहा.

‘‘जी, बिलकुल, मैं जरूर आप की पेंटिंग देखूंगा. फिर आप को टैक्स मैसेज भेज कर फीडबैक भी दे दूंगा. आर्ट गैलरी तो मैं अपनी जिंदगी में बहुत बार गया हूं पर आप के जैसी कलाकार से कभी नहीं मिला. योर ऐवरी पेंटिंग इज सेइंग थाउजैंड वर्ड्स,’’ हर्ष ने मेरी पेंटिंग पर गहरी नजर डालते हुए कहा.

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7. नेवीब्लू सूट : दोस्ती की अनमोल कहानी

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मैं हैदराबाद बैंक ट्रेनिंग सैंटर आई थी. आज ट्रेनिंग का आखिरी दिन है. कल मुझे लौट कर पटना जाना है, लेकिन मेरा बचपन का प्यारा मित्र आदर्श भी यहीं पर है. उस से मिले बिना मेरा जाना संभव नहीं है, बल्कि वह तो मित्र से भी बढ़ कर था. यह अलग बात है कि हम दोनों में से किसी ने भी मित्रता से आगे बढ़ने की पहल नहीं की. मुझे अपने बचपन के दिन याद आने लगे थे. उन दिनों मैं दक्षिणी पटना की कंकरबाग कालोनी में रहती थी. यह एक विशाल कालोनी है. पिताजी ने काफी पहले ही एक एमआईजी फ्लैट बुक कर रखा था. मेरे पिताजी राज्य सरकार में अधिकारी थे. यह कालोनी अभी विकसित हो रही थी. यहां से थोड़ी ही दूरी पर चिरैयाटांड महल्ला था. उस समय उत्तरी और दक्षिणी पटना को जोड़ने वाला एकमात्र पुल चिरैयाटांड में था. वहीं एक तंग गली में एक छोटे से घर में आदर्श रहता था. वहीं पास के ही सैंट्रल स्कूल में हम दोनों पढ़ते थे.

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8. एक रिश्ता प्यारा सा: माया और रमन के बीच क्या रिश्ता था?

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“अरे रमन जी सुनिए, जरा पिछले साल की रिपोर्ट मुझे फॉरवर्ड कर देंगे, कुछ काम था” . मैं ने कहा तो रमन ने अपने चिरपरिचित अंदाज में जवाब दिया “क्यों नहीं मिस माया, आप फरमाइश तो करें. हमारी जान भी हाजिर है.

“देखिए जान तो मुझे चाहिए नहीं. जो मांगा है वही दे दीजिए. मेहरबानी होगी.” मैं मुस्कुराई.

इस ऑफिस और इस शहर में आए हुए मुझे अधिक समय नहीं हुआ है. पिछले महीने ही ज्वाइन किया है. धीरेधीरे सब को जानने लगी हूं. ऑफिस में साथ काम करने वालों के साथ मैं ने अच्छा रिश्ता बना लिया है.

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9. एक अच्छा दोस्त: सतीश से क्या चाहती थी राधा

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सतीश लंबा, गोरा और छरहरे बदन का नौजवान था. जब वह सीनियर क्लर्क बन कर टैलीफोन महकमे में पहुंचा, तो राधा उसे देखती ही रह गई. शायद वह उस के सपनों के राजकुमार सरीखा था.

कुछ देर बाद बड़े बाबू ने पूरे स्टाफ को अपने केबिन में बुला कर सतीश से मिलवाया.

राधा को सतीश से मिलवाते हुए बड़े बाबू ने कहा, ‘‘सतीश, ये हैं हमारी स्टैनो राधा. और राधा ये हैं हमारे औफिस के नए क्लर्क सतीश.’’

राधा ने एक बार फिर सतीश को ऊपर से नीचे तक देखा और मुसकरा दी.

औफिस में सतीश का आना राधा की जिंदगी में भूचाल लाने जैसा था. वह घर जा कर सतीश के सपनों में खो गई. दिन में हुई मुलाकात को भूलना उस के बस में नहीं था.

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10. यह दोस्ती हम नहीं झेलेंगे

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रात को 8 से ऊपर का समय था. मेरे खास दोस्त रामहर्षजी की ड्यूटी समाप्त हो रही थी. रामहर्षजी पुलिस विभाग के अधिकारी हैं. डीवाईएसपी हैं. वे 4 सिपाहियों के साथ अपनी पुलिस जीप में बैठने को ही थे कि बगल से मैं निकला. मैं ने उन्हें देख लिया. उन्होंने भी मुझे देखा.

उन के नमस्कार के उत्तर में मैं ने उन्हें मुसकरा कर नमस्कार किया और बोला, ‘‘मैं रोज शाम को 7 साढ़े 7 बजे घूमने निकलता हूं. घूम भी लेता हूं और बाजार का कोई काम होता है तो उसे भी कर लेता हूं.’’

‘‘क्या घर चल रहे हैं?’’ रामहर्षजी ने पूछा.

मैं घर ही चल रहा था. सोचा कि गुदौलिया से आटोरिकशा से घर चला जाऊंगा पर जब रामहर्षजी ने कहा तो उन के कहने का यही तात्पर्य था कि जीप से चले चलिए. मैं आप को छोड़ते हुए चला जाऊंगा. उन के घर का रास्ता मेरे घर के सामने से ही जाता था.

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Satyakatha: पुलिसवाली ने लिया जिस्म से इंतकाम- भाग 4

सौजन्य- सत्यकथा

इन दोनों ही शिकायतों पर शिवाजी सानप के खिलाफ विभागीय जांच शुरू कर दी गई. शीतल के साथ संबंधों की जानकारी शिवाजी के परिवार तक पहुंच गई थी.

चूंकि शिवाजी सानप तेजतर्रार हैड कांस्टेबल था. मुंबई पुलिस में कई सीनियर अफसरों के साथ रहते हुए उस ने कई गुडवर्क किए थे, इसलिए वे तमाम अधिकारी उसे पसंद करते थे. सभी को ये भी पता था कि शिवाजी के शीतल के साथ संबंध थे, लेकिन उस ने कभी शीतल से जबरदस्ती नहीं की थी.

यही कारण रहा कि ऐसे तमाम अधिकारियों के दबाव में शिवाजी के खिलाफ की गई शीतल की शिकायत ठंडे बस्ते में डाल दी गई.

जब काफी वक्त गुजर गया और शीतल को लगने लगा कि शिवाजी के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ कर वह उसे सजा नहीं दिलवा पाएगी तो उस ने खुद ही उसे सजा देने का निर्णय कर लिया.

शीतल पहले ही नेहरू नगर थाने से आर्म्स यूनिट में अपना तबादला करा चुकी थी. मन ही मन वह किसी ऐसी तरकीब पर विचार करने लगी, जिस से वह शिवाजी से अपने अपमान का इंतकाम भी ले सके और उस पर आंच भी ना आए.

इसी सोचविचार में काफी वक्त गुजर गया. अचानक उसे खयाल आया कि क्यों न शिवाजी को सड़क हादसे में मरवा दिया जाए. एक बार इस खयाल ने मन में जगह बनाई तो रातदिन वह इसी रास्ते से शिवाजी से बदला लेने की साजिश रचने लगी.

इसी साजिश के तहत उस ने ट्रक ड्राइवर का पेशा करने वाले धनराज यादव की इंस्टाग्राम पर प्रोफाइल देखी तो साजिश का खाका उस के दिमाग में फिट बैठ गया.

शीतल ने शिवाजी को रास्ते से हटाने के लिए हथियार के रूप में धनराज को मोहरा बनाने के लिए पहले इंस्टाग्राम पर रिक्वेस्ट भेज कर धनराज से दोस्ती की और 5 दिन बाद ही उस ने धनराज को शादी के लिए प्रपोज भी कर दिया. चंद रोज के भीतर दोनों ने शादी कर ली.

एक हफ्ते बाद ही शीतल ने धनराज को शिवाजी की कहानी सुनाई और कहा कि वह उस से बदला लेना चाहती है. तुम ड्राइवर हो, तुम से सड़क हादसा हो जाए तो तुम पर कोई शक भी नहीं करेगा. लेकिन धनराज तैयार नहीं हुआ और डर कर अपने गांव भाग गया.

शीतल का पहला दांव ही खाली चला गया. जिस मकसद से उस ने धनराज से शादी की थी, वह अधूरा रह गया. पर वह किसी भी कीमत पर शिवाजी से बदला लेना चाहती थी. इसी उधेड़बुन में काफी वक्त गुजर गया. इसी बीच मुंबई में 2020 की शुरुआत से कोविड महामारी का प्रकोप फैलने लगा.

कोविड का पहला दौर ठीक से खत्म भी नहीं हुआ था कि महामारी की दूसरी लहर भी शुरू हो गई. जून महीने के बाद जब हालत कुछ सुधरने लगे तो शीतल के दिमाग में फिर से शिवाजी से बदला लेने की धुन सवार हो गई.

शीतल खुद इस काम को अंजाम नहीं देना चाहती थी, इसलिए अबकी बार उस ने दूसरा मोहरा चुना अपनी सोसाइटी के सिक्योरिटी गार्ड बबनराव के बेटे विशाल जाधव को.

दरअसल, सोसाइटी में आतेजाते शीतल ने एक बात नोटिस की थी कि गार्ड बबनराव का 18 साल का बेटा विशाल जाधव उसे चोरीछिपी नजरों से देखता है.

शीतल एक खूबसूरत और जवान युवती थी. किसी मर्द की नजर को वह भलीभांति जानती थी कि उन नजरों में उस के लिए कौन सा भाव छिपा है.

अचानक विशाल के रूप में शीतल को शिवाजी से बदला लेने का दूसरा हथियार नजर आने लगा. उस ने मन ही मन प्लान कर लिया कि अब विशाल को कैसे अपने काबू में करना है. एक जवान और जिस पर कोई लड़का पहले से ही निगाह लगाए हो, उसे काबू में करना तो बेहद आसान होता है.

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कुछ रोज में ही विशाल पूरी तरह शीतल के काबू में आ कर उस के आगेपीछे मंडराने लगा. शीतल ने विशाल की आंखों में अपने लिए छिपी जिस्मानी भूख को पढ़ लिया था. थोड़ा तड़पाने के बाद उस ने जब विशाल की इस जिस्मानी भूख की ख्वाहिश पूरी कर दी तो इस के बाद विशाल पूरी तरह उस के इशारे पर नाचने लगा.

विशाल के पूरी तरह मोहपाश में फंसते ही एक दिन शीतल ने उसे भी भावुक कर के हैडकांस्टेबल शिवाजी द्वारा अपनी इज्जत लूटने की एक झूठी कहानी सुना कर अपना बदला लेने के लिए उकसाना शुरू कर दिया.

शीतल के प्यार में विशाल पागल था, लिहाजा लोहा गर्म देख कर जब कई बार विशाल से प्यार की खातिर शिवाजी से बदला लेने के लिए कहा तो एक दिन विशाल ने उस का काम करने के लिए हामी भर दी, लेकिन साथ ही कहा कि इस काम के लिए उसे एक और साथी की जरूरत पड़ेगी और इस में कुछ पैसा भी खर्च होगा.

शीतल ने तुरंत हां कर दी. बस इस के बाद शीतल ने शिवाजी को खत्म करने की साजिश को अमली जामा पहनाने का काम शुरू कर दिया.

विशाल ने इस काम के लिए अपने एक दोस्त गणेश चौहान से बात की. गणेश तेलंगाना से रोजीरोटी की तलाश में मुंबई आया था. संयोग से कोरोना महामारी के कारण उन दिनों उस के पास कोई कामकाज नहीं था और पैसों की बड़ी तंगी थी.

जब विशाल ने उसे बताया कि उन्हें किसी का ऐक्सीडेंट करना है इस के बदले अच्छीखासी रकम मिलेगी तो मजबूरी में दबा गणेश भी तैयार हो गया.

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दोनों से शीतल ने मुलाकात की. शिवाजी को ठिकाने लगाने के लिए शीतल ने विशाल को 50 हजार और गणेश को 70 हजार रुपए एडवांस दे दिए. जिस के बाद विशाल और गणेश ने सब से पहले शिवाजी का पीछा करना शुरू किया. उस के आनेजाने के समय को नोट किया.

इस के बाद उन्होंने तय किया कि वो कुर्ला से पनवेल के बीच ही शिवाजी को मार डालेंगे. इस काम के लिए शीतल ने उन्हें एक सेकेंडहैंड नैनो कार खरीदवा दी. और 15 अगस्त की रात को इस खौफनाक वारदात को अंजाम दे दिया गया.

प्लान के मुताबिक 15 अगस्त, 2021 की रात साढ़े 10 बजे पनवेल रेलवे स्टेशन से मालधक्का जाने वाली सड़क पर शिवाजी को उन की नैनो कार से जोरदार टक्कर मार दी.

संयोग से राष्ट्रीय अवकाश के कारण व कम रोशनी के कारण कोई न तो यह देख सका कि टक्कर किस नंबर की कार से लगी है.

शिवाजी को टक्कर मारने के वक्त शीतल एक दूसरी कार से पीछा करते हुए पूरा नजारा देख रही थी. उस ने सड़क पर घायल शिवाजी को देख कर ही समझ लिया था कि वह जिंदा नहीं बचेगा.

योजना के मुताबिक ऐक्सीडेंट करने के बाद करीब 2 किलोमीटर आगे जा कर विशाल व गणेश ने नैनो कार पर पैट्रोल डाल कर पूरी तरह जला दी ताकि कोई सबूत पीछे न छूटे.

वारदात के बाद दोनों का पीछा कर रही शीतल उन्हें कार जलाने के बाद अपनी कार में बैठा कर साथ ले गई और उन्हें उन के घर छोड़ दिया.

बाद में पुलिस ने जब शीतल, विशाल व गणेश के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवा कर उन के मोबाइल की लोकेशन देखी तो उन की मौजूदगी उसी जगह के आसपास दिखी, जहां शिवाजी सानप का ऐक्सीडेंट हुआ था.

पुलिस ने रिमांड अवधि में पूछताछ के बाद तीनों आरोपियों को न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस की जांच व आरोपियों से पूछताछ पर आधारित

Satyakatha- इश्क का जुनून: प्यार को खत्म कर गई नफरत की आग- भाग 3

सौजन्य- सत्यकथा

लेखक-  दिनेश बैजल ‘राज’/संजीव दुबे

वहां पहुंच कर फ्लाईओवर से नीचे उतर कर लिंक रोड पर आ गए. यहीं पर उन लोगों ने बोलेरो में ही उत्तम के गले में रस्सी का फंदा कस कर उस की हत्या कर शव फेंक दिया. इस के साथ ही उस का प्राइवेट पार्ट काट दिया. इस के बाद नेहा को ले कर मुरैना रोड होते हुए राजस्थान के धौलपुर आ गए.

अलगअलग राज्यों में मिले शव

राजा खेड़ा रोड पर थाना दिहौली से करीब एक किलोमीटर दूर सुनसान जगह पर गाड़ी रोक ली. यहां नेहा की भी गले में रस्सी का फंदा लगा हत्या कर दी. उस की लाश भी वहीं फेंक दी.

हत्यारों ने लाश के चेहरे को मिट्टी से ढंक दिया. दोनों की हत्या कर शव ठिकाने लगा कर सभी हत्यारे पिनाहट वापस आ गए. फिर सभी अपनेअपने घर चले गए. देवीराम भी गांव अपने घर आ गया.

4 अगस्त, 2021 को राजस्थान के जिला धौलपुर जिले के थाना दिहौली क्षेत्र में कस्बा मरैना-दिहौली के बीच सड़क के किनारे खेत से सुबह 10 बजे नेहा का शव पुलिस ने बरामद किया था.

उस के गले में नाइलोन की पीले रंग की रस्सी से फंदा लगा था, जिस में 8-10 गांठे लगी थीं तथा चेहरा मिट्टी में दबा हुआ था.

इस पर एसपी धौलपुर केसर सिंह शेखावत ने शव की शिनाख्त नहीं होने पर 7 अगस्त को मैडिकल बोर्ड से उस का पोस्टमार्टम कराया. इस के बाद अंतिम संस्कार करा दिया गया. थाना दिहौली में हत्या का मुकदमा अज्ञात के नाम दर्ज कर लिया गया.

यहां से करीब 100 किलोमीटर दूर मध्य प्रदेश के जिला ग्वालियर के थाना आंतरी क्षेत्र में ग्वालियर झांसी हाईवे के पास भरतरी रोड पर सड़क के किनारे एक युवक की लाश उसी तरह की रस्सी से गला घोंट कर फेंकी हुई पुलिस को मिली.

पीले रंग की रस्सी में 8-10 गांठें लगी थीं. युवक का प्राइवेट पार्ट कटा हुआ था. यह शव उत्तम का था. लेकिन यह बात पुलिस को पता नहीं थी कि मृतक उत्तम है.

शिनाख्त न होने पर पोस्टमार्टम कराने के बाद धर्म का पता न चलने पर उसे दफना दिया गया. इस संबंध में थाना आंतरी पर हत्या का मुकदमा अज्ञात के खिलाफ दर्ज कर लिया गया.

एसपी (ग्वालियर) अमित सांगी के अनुसार, जांच के दौरान पुलिस के सामने एक महत्त्वपूर्ण तथ्य सामने आया कि राजस्थान के धौलपुर में एक युवती की इसी तरह लाश मिली थी. इस पर धौलपुर पुलिस से जानकारी साझा की गई.

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दोनों हत्याओं में समानता मिली. क्योंकि दोनों हत्याओं में जिस रस्सी का प्रयोग किया गया था, वह एक ही रस्सी के 2 टुकड़े थे. इस बात की पुष्टि उन के फोरैंसिक एक्सपर्ट ने भी की. दोनों लोग कपड़े भी पर्टिक्युलर कीमोफ्लाई के पहने हुए थे.

इस से अंदाजा लगाया गया कि हत्या के इन दोनों मामलों में कुछ न कुछ संबंध जरूर है. प्रथमदृष्टया ही लग रहा था कि प्रेमप्रसंग का या परिजनों द्वारा की गई हत्या है. इस के बाद  पुलिस ने किशोरी व युवक के शवों की शिनाख्त के लिए उन के फोटो समाचारपत्रों में भी प्रकाशित कराए.

ऐसे हुआ खुलासा

उधर जब फिरोजाबाद पुलिस को यमुना में प्रेमी युगल की लाशें नहीं मिलीं, तब पुलिस ने आरोपियों के मोबाइल फोन की लोकेशन को खंगाला. इस से पुलिस को यह जानकारी मिल गई कि घटना के समय कहांकहां ये लोग गए थे.

पुलिस ने उस रूट पर पड़ने वाले सभी थानों से अज्ञात लाशों की जानकारी जुटाई. फोटो, कपड़ों व मृतकों के हुलिए के आधार पर नेहा और उत्तम की शिनाख्त हुई. फिर पुलिस आरोपियों को ले कर ग्वालियर पुलिस से मिली.

पुलिस आरोपी शिवराज व सुनील के साथ ही उत्तम के पिता सुघर सिंह व अन्य परिजनों को साथ ले गई थी. आरोपियों से शवों के फेंके गए स्थानों की तसदीक कराई. संबंधित दोनों थानों पर संपर्क किया. नेहा व उत्तम के फोटो व कपड़ों को देख कर पहचान लिया गया.

सक्षम अधिकारी के आदेश पर उत्तम के दफनाए गए शव को जमीन से निकलवा कर परिजनों के सुपुर्द किया गया. थानाप्रभारी प्रवेंद्र कुमार सिंह व इस मामले के आईओ मोहम्मद खालिद दोनों थानों से सारे सबूत एकत्र कर फिरोजाबाद लौट आए.

उत्तम का शव जैसे ही गांव जहांगीरपुर पहुंचा, परिवार में कोहराम मच गया. बड़ी संख्या में भीड़ जुट गई. दोनों के भागने के बाद घरवाले समझ रहे थे कि वे लोग दोनों की तलाश कर रहे हैं. लेकिन नेहा के पिता व चाचा द्वारा हत्या करने की बात कुबूलने के बाद दोनों परिवारों में चीखपुकार मच गई.

जांच में पुलिस को पता चला कि प्रेमी युगल की हत्या में प्रयुक्त नाइलोन की लगभग 15 मीटर रस्सी पिनाहट से खरीदी गई थी. इसी रस्सी के 2 टुकड़े कर दोनों का गला घोंट कर हत्या की गई थी.

थाना सिरसागंज पुलिस ने पिनाहट से इस रस्सी विक्रेता की दुकान से वह बंडल भी बरामद कर लिया है, जिस से आरोपियों ने रस्सी खरीदी थी. इस के साथ ही बोलेरो भी बरामद कर ली. इसी गाड़ी में प्रेमी युगल की हत्या की गई थी.

हत्यारे इतने शातिर थे कि उन्होंने प्रेमी युगल की अलगअलग स्थानों पर हत्या कर शव अलगअलग राज्यों के दूरदराज इलाकों में इसलिए फेंके, ताकि सुनियोजित ढंग से की गई इन हत्याओं का कभी खुलासा न हो सके.

साथ ही देवीराम सिरसागंज पुलिस को गुमराह करता रहा कि हत्या कर दोनों के शव यमुना नदी में फेंक दिए थे, ताकि शव न मिलने पर वे लोग हत्या जैसे अपराध से बच जाएं.

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लेकिन तीनों राज्यों की पुलिस की सूझबूझ से औनर किलिंग का परदाफाश हो गया. आंतरी और दिहौली थाना पुलिस ने दोनों मृतकों के डीएनए सैंपल सुरक्षित रख लिए थे, जो फिरोजाबाद पुलिस को सौंप दिए.

इस के बाद दोनों थानों में दर्ज मुकदमे थाना सिरसागंज में दर्ज मुकदमे में समाहित हो गए.

पुलिस इस अपहरण और हत्याकांड में शामिल 12 आरोपियों में से देवीराम व सुनील को गिरफ्तार कर चुकी है, जबकि शिवराज ने कोर्ट में सरेंडर कर दिया था.

अन्य फरार चल रहे आरोपियों बालकराम, जैकी, जितेंद्र, श्याम बिहारी, रोहित, राहुल, अमन उर्फ मोनू, गुंजन व दगाबाज दोस्त वीनेश की तलाश की जा रही थी.

नेहा और उत्तम एकदूसरे से बेइंतहा प्यार करते थे. दोनों शादी करना चाहते थे. लेकिन नेहा के घर वालों को यह रिश्ता मंजूर नहीं था. इस के बाद नेहा के घर वालों की झूठी शान की नफरत का शोला प्रेमी युगल के प्यार पर ऐसा गिरा कि प्रेमी युगल की जान ले ली.

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