बस एक सनम चाहिए- भाग 2: शादी के बाद भी तनु ने गैर मर्द से क्यों रखा रिश्ता

साल भर तक तो उन का यह आंखों वाला प्यार चला और फिर धीरेधीरे दोनों में प्रेम पत्रों का आदानप्रदान होने लगा. 1-2 बार छोटेमोटे गिफ्ट भी दिए थे दोनों ने एकदूसरे को. कई बार स्कूल के बाद कुछ देर रुक कर दोनों बातें भी कर लेते थे. तनु पहले की तरह ही मुझे अपने सारे राज बताती थी. अब तक हम दोनों 12वीं क्लास में आ गए थे. मैं ने एक दिन तनु से चुटकी ली, ‘‘कब तक चलेगा तुम्हारा यह प्यार?’’

तनु मुसकरा कर बोली, ‘‘जब तक प्यार सिर्फ प्यार रहेगा. जिस दिन इस की निगाहें मेरे शरीर को टटोलने लगेंगी, वही हमारे रिश्ते का आखिरी दिन होगा.’’ ‘‘अरे यार, आशिकों का क्या है? रिकशों की तरह होते हैं. एक बुलाओ तो कई आ जाते हैं,’’ तनु ने बेहद लापरवाही से कहा.

मैं उस की बोल्डनैस देख कर हैरान थी. मैं ने पूछा, ‘‘तनु, तुम्हें ये सब करते हुए डर नहीं लगता?’’ ‘‘इस में डरने की क्या बात है? अगर ऐसा कर के मेरा मन खुश रहता है तो मुझे खुश होने का पूरा हक है. और हां, ये लड़के लोग भी कहां डरते हैं? फिर मैं क्यों डरूं? क्या लड़की हूं सिर्फ इसलिए?’’ तनु थोड़ा सा गरमा गई. मेरे पास उस के तर्कों के जवाब नहीं थे.

उस दिन हमारी स्कूल की फेयरवैल पार्टी थी. हम सब को स्कूल के नियमानुसार साड़ी पहन कर आना था. तनु लाल बौर्डर की औफ व्हाइट साड़ी में बहुत ही खूबसूरत लग रही थी. हम लोग हमेशा की तरह साइकिलों पर नहीं, बल्कि टैक्सी से स्कूल गए थे. शाम को घर लौटते समय तनु ने मेरे कान में कहा, ‘‘मैं ने आज अपना रिश्ता खत्म कर लिया.’’ ‘‘मगर तुम तो हर वक्त मेरे साथ ही थी. फिर कब, कहां और कैसे उस से मिली? कब तुम ने ये सब किया?’’ मैं ने आश्चर्य के साथ प्रश्नों की झड़ी लगा दी.

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‘‘शांतशांतशांत…जरा धीरे बोलो.’’ तनु ने मुझे चुप रहने का इशारा किया और फिर बताने लगी, ‘‘टैक्सी से उतर के जब तुम सब स्कूल के अंदर जाने लगी थीं उसी वक्त मेरी साड़ी चप्पल में अटक गई थी, याद करो…’’ ‘‘हांहां… तुम पीछे रह गई थी,’’ मैं ने याद करते हुए कहा.

‘‘जनाब वहीं खड़े थे. टैक्सी की आड़ में, पहले तो मुझे जी भर के निहारा, फिर हाथ थामा और बिना मेरी इजाजत की परवाह किए मुझे बांहों में भर लिया. किस करने ही वाला था कि मैं ने कस कर एक लगा दिया. पांचों उंगलियां छप गई होंगी गाल पर…’’ तनु ने फुफकारते हुए कहा. ‘‘अब तुम ओवर रिएक्ट कर रही हो.. अरे, इतना तो हक बनता है उस का…’’ मैं ने उसे समझाने की कोशिश की.

‘‘नहीं, बिलकुल नहीं. मेरे शरीर पर सिर्फ मेरा अधिकार है,’’ तनु अब भी गुस्से में थी. उस के बाद परीक्षा. फिर छुट्टियां और रिजल्ट के बाद नया कालेज. वह स्कूल वाला लड़का कुछ दिन तो कालेज के रास्ते में दिखाई दिया मगर तनु ने कोई रिस्पौंस नहीं दिया तो उस ने भी अपना रास्ता बदल लिया.

पता नहीं कैसी जनूनी थी तनु. उसे प्यार तो चाहिए मगर उस में वासना का तनिक भी समावेश नहीं होना चाहिए. कालेज के 3 साल के सफर में उस ने 3 दोस्त बनाए. हर साल एक नया दोस्त. मैं कई बार उसे समझाया करती थी कि किसी एक को ले कर सीरियस क्यों नहीं हो जाती? क्यों फूलों पर तितली की तरह मंडराती हो? ‘‘फूलों पर मंडराना क्या सिर्फ भौंरो का ही अधिकार है? तितलियों को भी उतना ही हक है अपनी पसंद के फूल का रस पीने का…’’ तनु ताव में आ जाती.

तनु में एक खास बात थी कि वह किसी रिश्ते में तब तक ही रहती थी जब तक सामने वाला अपनी मर्यादा में रहता. जहां उस ने अपनी सीमा लांघी, वहीं वह तनु की नजरों से उतर जाता. तनु उस से किनारा करने में जरा भी वक्त नहीं लगाती. वह अकसर मुझ से कहती थी, ‘‘अपनी मरजी से चाहे मैं अपना सब कुछ किसी को सौंप दूं, मगर मैं अपनी मरजी के खिलाफ किसी को अपना हाथ भी नहीं पकड़ने दूंगी.’’ ‘‘कालेज के बाद जौब भी लग गई. तनु अब तो अपनेआप को ले कर सीरियस हो जाओ. कोई अच्छा सा लड़का देखो और सैटल हो जाओ,’’ मैं ने एक दिन उस से कहा जब उस ने मुझे बताया कि आजकल उस का अपने बौस के साथ सीन चल रहा है.

‘‘मेरी भोली दोस्त तुम नहीं जानती इन लड़कों को. उंगली पकड़ाओ तो कलाई पकड़ने लगते हैं. जरा सा गले लगाओ तो सीधे बिस्तर तक घुसने की कोशिश करते हैं. जिस दिन मुझे ऐसा लड़का मिलेगा जो मेरी हां के बावजूद खुद पर कंट्रोल रखेगा, उसी दिन मैं शादी के बारे में सोचूंगी,’’ तनु ने कहा. ‘‘तो फिर रहना जिंदगी भर कुंआरी ही. ऐसा लड़का इस दुनिया में तो मिलने से रहा.’’

इस के बाद कुछ ही महीनों में मेरी शादी हो गई. तनु ने भी जयपुर की अपनी पुरानी जौब छोड़ कर मुंबई की कंपनी जौइन कर ली. कुछ समय तो हम एकदूसरे के संपर्क में रहे फिर धीरेधीरे मैं अपनी गृहस्थी और बच्चे में बिजी होती चली गई और तनु दिल के किसी कोने में एक याद सी बन कर रह गई. आज इस गाने ने बरबस ही तनु की याद दिला दी. उस से बात करने को मन तड़पने लगा. ‘पता नहीं उसे सनम मिला या नहीं…’ सोचते.

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हुए मैं ने पुरानी फोन डायरी से उस का नंबर देख कर डायल किया, लेकिन फोन स्विच औफ आ रहा था. ‘क्या करूं? कहां ढूंढ़ूं तनु को इतनी बड़ी दुनिया में,’ सोचतेसोचते अचानक मेरे दिमाग की बत्ती जल गई और मैं ने तुरंत लैपटौप पर फेस बुक लौग इन किया. सर्च में ‘तनु’ लिखते ही अनगिनत तनु नाम की आईडी नजर आने लगीं. उन्हीं में एक जानीपहचानी शक्ल नजर आई. आईडी खंगाली तो मेरी ही तनु निकली. मैं ने उसे फ्रैंड रिक्वैस्ट भेज दी.

Crime: एक सायको पीड़ित की अजब दास्तां

माता-पिता बच्चों को पढ़ने के लिए  भेजते हैं मगर एक युवक की साइबर पुलिस द्वारा कथित खुलासे के बाद यह तथ्य चिंता का सबब बन गया है कि जब कोई युवा मानसिक रूप से पीड़ित होकर अश्लील हरकतें करने लगे और माध्यम सोशल मीडिया को बनाए तो आसपास की महिलाएं और लड़कियां को कितनी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.

पुलिस ने एक एक अलग ही आरोपी एक आईआईटी छात्र को पटना, बिहार से गिरफ्त में लिया  है. जिस पर आरोप है  राजधानी दिल्ली के एक नामी स्कूल की पचास से अधिक छात्राओं और महिला शिक्षकों को -“सोशल नेटवर्किंग साइट” के द्वारा भयादोहन अर्थात ब्लैक मेलिंग करने लगा था.पुलिस के मुताबिक महावीर पटना के खाजेकला थाना इलाके के गुजरी बाजार का रहवासी है. लंबी तफ्तीश के पश्चात गिरफ्तार कर लिया.

दरअसल संपूर्ण घटनाक्रम के पश्चात जो कहानी सामने आई है उसके अनुसार सिविल लाइंस स्थित स्कूल की तरफ से पुलिस को अगस्त माह में शिकायत मिली थी कोई अंजान शख्स ऑनलाइन कक्षाओं में अवैध तौर पर घुस जाता है. वह छात्राओं को ब्लैकमेल करता है और स्कूल के व्हाट्सएप ग्रुप के प्रोफाइल लोगो एवं अन्य सेटिंग्स में परिवर्तन कर अश्लील हरकतें कर रहा  है. अपने आप में विचित्र सच्ची घटना थी पुलिस ने जब यह मामला हाथ में लिया तो उसके सामने एक बड़ी चुनौती थी कि इस अजब गजब मामले का पटाक्षेप कैसा होगा.आखिरकार  इंस्पेक्टर संजीव कुमार की देखरेख में साइबर सेल प्रभारी एसआई रोहित सारस्वत को जांच सौंपी गई. इस दरमियान एक छात्रा ने भी थाने में शिकायत दी कि उसके साथ कोई अश्लील हरकतें कर रहा है. फिर एसआई रोहित सारस्वत और एसआई रोहित भारद्वाज ने स्कूल की छात्राओं से बात की तो कुछ आईपी एड्रेस मिले.

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पुलिस ने व्हाट्सएप से भी आईपी एड्रेस प्राप्त किए. इस सब के आधार पर पुलिस महावीर कुमार तक अंततः पहुंच गई. एसआई प्रवीन यादव और एसआई रोहित ने  पटना से आरोपी को गिरफ्तार कर लिया. महावीर धातु विज्ञान से बीटेक की पढ़ाई कर रहा है.

अश्लील फोटो और ब्लैकमेल

आरोपी महावीर के इकबालिया बयान के मुताबिक वह कोटा, राजस्थान में 2018 में इंजीनियरिंग की तैयारी करने के लिए जब गया था वहां  सिविल लाइंस दिल्ली स्थित स्कूल की पूर्व छात्रा से मुलाकात हुई जिसके कहने पर उसने इंस्टाग्राम पर प्रोफाइल बनाकर  बातचीत  शुरू की. आगे उसने इंस्टाग्राम पर संबंधित स्कूल की छात्राओं को ढूंढना शुरू किया. फिर उसने मोबाइल नंबर लेकर बात करनी शुरू की. एक छात्रा से उसकी दूसरी सहेली का नंबर लेकर बात करना शुरू किया. इस बीच उसके आचरण से नाराज़ छात्राओं ने बात करना बंद कर दिया तो उसने परेशान करने का निर्णय लिया.

सबसे पहले महावीर ने छेड़छाड़ कर छात्राओं की अश्लील फोटो बनाई. इसके जरिए छात्राओं को भयभीत और ब्लैकमेल करने लगा. वह डरा धमकाकर स्कूल के व्हाट्सएप ग्रुप और ऑनलाइन कक्षाओं के लिंक मंगा लिया करता था. फिर इन ग्रुप में कभी फोटो बदल देता तो कभी अश्लील फोटो डाल देता. यही नहीं बदला लेने के लिए महावीर ने आवाज बदलने वाले एप का इस्तेमाल किया. वह इस एप के जरिए एक छात्रा को दूसरे छात्रा के प्रति भड़काता था.

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यही नहीं स्कूल में शिक्षकों को फोन कर छात्राओं की शिकायत करता था. वह स्कूल की महिला टीचर से भी अभद्रता करता था. इसकी वजह से आठ छात्राओं को स्कूल की ऑनलाइन कक्षाओं से निकाल भी दिया गया था. मगर आखिरकार महावीर को पुलिस ने पकड़ ही लिया और आज वो जेल की हवा खा रहा है.
संगीत के द्वारा मनोविकारों की गुत्थी सुलझाने वाले शिक्षक घनश्याम तिवारी के मुताबिक आमतौर पर ऐसे ही युवक मनो विकारों से ग्रस्त होते हैं और इसके लिए जहां उन्हें चिकित्सा की आवश्यकता होती है वही संगीत के माध्यम से भी स्वास्थ्य गत लाभ संभव है. दरअसल ऐसे युवक एक ऐसे समय से गुजर रहे होते हैं जब उन्हें सही सलाह की आवश्यकता होती है उन्हें यह बताना आवश्यक होता है कि आप की सीमाएं क्या है.

पुलिस अधिकारी विवेक शर्मा के मुताबिक ऐसे ही कुछ मामलों में विवेचना की है जिसमें मैंने यह पाया है कि कम उम्र के युवक अश्लील मनोभावों से ऐसी हरकतें करने लगते हैं उन्हें कानून की जानकारी नहीं होती और अति आत्मविश्वास के कारण वे गलत दिशा में आगे बढ़ जाते हैं फिर बाद में पछताना पड़ता है.

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जरूरी हैं दूरियां पास आने के लिए- भाग 1: क्यों मिशिका को भूलना चाहता था विहान

लेखिका- डा. मंजरी अमित चतुर्वेदी

फ्लाइट बेंगलुरु पहुंचने ही वाली थी. विहान पूरे रास्ते किसी कठिन फैसले में उलझ था. इसी बीच  मोबाइल पर आते उस कौल को भी वह लगातार इग्नोर करता रहा. अब नहीं सींच सकता था वह प्यार के उस पौधे को, उस का मुरझ जाना ही बेहतर है. इसलिए उस ने मिशिका को अपनी फोन मैमोरी से रिमूव कर दिया. मुमकिन नहीं था यादों को मिटाना, नहीं तो आज वह उसे दिल की मैमोरी से भी डिलीट कर देता सदा के लिए.

‘सदा के लिए… नहींनहीं, हमेशा के लिए नहीं, मैं मिशी को एक मौका और दूंगा,’ विहान मिशी के दूर होने के खयाल से ही डर गया.

‘शायद ये दूरियां ही हमें पास ले आएं,’ यही सोच कर उस ने मिशी की लास्ट फोटो भी डिलीट कर दी.

इधर  मिशिका परेशान हो गई थी, 5 दिनों से विहान से कोई कौंटैक्ट नहीं हुआ था.

‘‘हैलो दी, विहान से बात हुई क्या? उस का न कौल लग रहा है न कोई मैसेज पहुंच रहा है, औफिस में एक प्रौब्लम आ गई है, जरूरी बात करनी है,’’ मिशी बिना रुके बोलती गई.

‘‘नहीं, मेरी कोई बात नहीं हुई. और प्रौब्लम को खुद सौल्व करना सीखो,’’ पूजा ने इतना कह कर फोन काट दिया.

मिशी को दी का यह रवैया अच्छा नहीं लगा, पर वह बेपरवाह सी तो हमेशा से ही थी, सो उस ने दी की बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया.

मिशिका उर्फ मिशी मुंबई में एक कंपनी में जौब करती है. उस की बड़ी बहन है पूजा, जो अपने मौमडैड के साथ रहते हुए कालेज में पढ़ाती है. विहान ने अभी बेंगलुरु में नई मल्टीनैशनल कंपनी जौइन की है. उस की बहन संजना अभी पढ़ाई कर रही है. मिशी और विहान के परिवारों में बड़ा प्रेम है. वे पड़ोसी थे. विहान का घर मिशी के घर से कुछ ही दूरी पर था. 2 परिवार होते हुए भी वे एक परिवार जैसे ही थे. चारों बच्चे साथसाथ बढ़े हुए.

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गुजरते दिनों के साथ मिशी की बेपरवाही कम होने लगी थी. विहान  से बात न हुए आज पूरे 3 महीने बीत गए थे. मिशी को खालीपन लगने लगा था. बचपन से अब तक ऐसा कभी नहीं हुआ था. जब पास थे तो वे दिन में कितनी ही बार मिलते थे, और जब जौब के कारण दूर हुए तो कौल और चैट का हिसाब लगाना भी आसान काम नहीं था. 2-3 महीने गुजरने के बाद मिशी को विहान की बहुत याद सताने लगी थी. वह जब भी घर पर फोन करती तो मम्मीपापा, दीदी सभी से विहान के बारे में पूछती. आंटीअंकल से बात होती तब भी जवाब एक ही मिलता, ‘वह तो ठीक है, पर तुम दोनों की बात नहीं हुई, यह कैसे पौसिबल है?’ अकसर जब मिशी कहती कि महीनों से बात नहीं हुई तो सब झठ ही समझते थे.

दशहरा आ रहा था, मिशी जितनी खुश घर जाने को थी उस से कहीं ज्यादा खुश यह सोच कर थी कि अब विहान से मुलाकात होगी. इन छुट्टियों में वह भी तो आएगा.

‘बहुत झगड़ा करूंगी, पूछूंगी उस से  यह क्या बचपना है, अच्छी खबर लूंगी. क्या समझता है अपनेआप को… ऐसे कोई करता है क्या,’ ऐसी ही अनगिनत बातों को दिल में समेटे वह घर पहुंची. त्योहार की रौनक मिशी की उदासी कम न कर सकी. छुट्टियां खत्म हो गईं, वापसी का समय आ गया पर वह नहीं आया जिस का मिशी बेसब्री से इंतजार कर रही थी. दोनों घरों की दूरियां नापते मिशी को दिल की दूरियों का एहसास होने लगा था. अब इंतजार के अलावा उस के पास कोई रास्ता नहीं था.

मिशी दीवाली की शाम ही घर पहुंच पाई थी. डिनर की  तैयारियां चल रही थीं. त्योहारों पर दोनों फैमिली साथ ही समय बितातीं, गपशप, मस्ती, खाना, सब खूब एंजौय करते थे. आज विहान की फैमिली आने वाली थी. मिशी खुशी से झम उठी थी, आज तो विहान से बात हो ही जाएगी. पर उस रात जो हुआ उस का मिशी को अंदाजा भी नहीं था. दोनों परिवारों ने सहमति से पूजा और विहान का रिश्ता तय कर दिया. मिशी को छोड़ सभी बहुत खुश थे.

‘पर मैं खुश क्यों नहीं हूं? क्या मैं विहान से प्यार… नहींनहीं, हम तो, बस, बचपन के साथी हैं. इस से ज्यादा तो कुछ नहीं है. फिर मैं आजकल विहान को ले कर इतना क्यों परेशान रहती हूं? उस से  बात न होने से मुझे यह क्या हो रहा है. क्या मैं अपनी ही फीलिंग्स समझ नहीं पा रही हूं?’ इसी उधेड़बुन में रात आंखों में  बीत गई थी. किसी से कुछ शेयर किए बिना ही वह  वापस मुंबई  लौट  गई. दिन यों ही बीत रहे थे. पूजा की शादी के बारे में न घर वालों ने आगे कुछ बताया न ही  मिशी ने पूछा.

एक दिन दोपहर को मिशी के फोन पर विहान की कौल आई, ‘‘घर की लोकेशन सैंड करो, डिनर साथ ही करेंगे.’’

मिशी ‘‘करती हूं’’ के अलावा कुछ न बोल सकी. उस के चेहरे पर मुसकान बिखर गई थी. उस दिन वह औफिस से जल्दी घर पहुंची, खाना बना कर घर संवारा और खुद को संवारने में जुट गई.

‘मैं विहान के लिए ऐसे क्यों संवर रही हूं? इस से पहले तो कभी मैं ने इस तरह नहीं सोचा,’ वह सोचने लगी. उस को खुद पर हंसी आ गई. अपने ही सिर पर धीरे से चपत लगा कर वह विहान के इंतजार में भीतरबाहर होने लगी. उसे लग रहा था जैसे वक्त थम गया हो. वक्त काटना मुश्किल हो रहा था.

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लगभग 8 बजे डोरबेल बजी. मिशी की सांसें ऊपरनीचे हो गईं, शरीर ठंडा सा लगने लगा, होंठों पर मुसकराहट तैर गई. दरवाजा खोला, पूरे 10 महीने बाद विहान उस के सामने था. एक पल को वह उसे देखती ही रही, दिल की बेचैनी आंखों से निकलने को उतावली हो उठी.

विहान भी लंबे समय बाद अपनी मिशी से मिल उसे देखता ही रह गया. फिर मिशी ने ही किसी तरह संभलते हुए विहान को अंदर आने को कहा. मिशी की आवाज सुन  विहान  अपनी सुध में वापस आया. दोनों देर तक चुप बैठे, छिपछिप कर एकदूसरे को देख लेते, नजरें मिल जाने पर यहांवहां देखने लगते. दोनों ही कोशिश में थे कि उन की चोरी पकड़ी न जाए.

प्रेम गली अति सांकरी: भाग 3

Writer- जसविंदर शर्मा 

अगले दिन स्कूल से आ कर देखा कि घर में पापा की मिस्ट्रैस आई हुई थी. साथ में, उस की छोटी सी गुडि़या और हमारा छोटा भाई. ‘उस ने’ घर का काम संभाल लिया.

‘वह’ उस बैडरूम में सोने लगी थी जहां मां सोती थीं. पापा भी उस के साथ ही सोते. पापा के हौसले बुलंद थे. घर में हुए इस बदलाव से हम दोनों बहनें बहुत त्रस्त थीं.

हमें मां की याद सता रही थी और हमें कुछ भी पता नहीं था कि मां कहां हैं. कहीं वे मर तो नहीं गईं. हम यह बात पड़ोसियों से भी पूछ नहीं सकते थे.

पड़ोसियों की आंखों में कुछ दूसरे हैरानजदा सवाल थे कि हमारे घर में आ कर रहने वाली यह स्त्री कौन है और पापा की क्या लगती है. पापा ने उस के बारे में एकदो पड़ोसियों को यह बताया था कि ‘वह’ उन की चचेरी बहन है जिसे उस के पति ने छोड़ दिया है.

सप्ताह बाद मां लौटीं तो हमारी सांस में सांस आई. हमारा रुटीन सामान्य हो गया. सुबह स्कूल, दोपहर को होमवर्क और शाम को खेल. बड़े लोगों को घर में क्या परेशानियां हैं, हम उन्हें क्या समाधान दे सकते थे. पापा ने घर में क्या गड़बड़झाला रचा रखा है, हमारी समझ में कुछ नहीं आता था. अब घर में कई लोग थे : एक पति और उन की 2 पत्नियां व 4 बच्चे.

मां के लौट आने पर अब घर में पापा की मिस्ट्रैस का रुतबा घट गया था. ‘वह’ चुपचाप रहती, गेट के ठीक सामने बाहर वाले कमरे में अपनी गुडि़या को संभालने में ही मस्त और व्यस्त रहती. घर के किसी मामले में उस की कोई राय नहीं ली जाती थी. मां ने अपना पुराना बड़ा वाला बैडरूम संभाल लिया था.

घर में पापा का दरजा अब वह नहीं रह गया था. हर तीसरेचौथे दिन ये बड़े लोग घर में तूफान मचाते, गालियां देते और एकदूसरे को कोसते. पापा सोते तो मां के कमरे में ही मगर दोनों के बीच कोई बातचीत नहीं होती थी.

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पापा की जरूरतें पूरी करने के लिए दोदो औरतें थीं. घर में हर समय तनाव रहता. मां उन से बचने की कोशिश न करती या यों कहें कि वे जानबूझ कर पापा को और दुखी करतीं. पापा उन की ये बातें समझ न पाते या समझ कर अनजान बने रहते.

उन के लिए घर में रखैल रखना खांडे की धार पर चलने जैसा था. वे एक समय में दोदो नावों पर सवार होना चाहते थे. वे दोनों औरतों के बीच बुरी तरह फंस गए थे. एक को खुश करते तो दूसरी नाराज हो जाती.

हर रात हम खाने के टेबल पर डिनर के लिए बैठते. एक कष्टभरी खामोशी हमारे बीच तनी रहती. हम ऐसा बरताव करते, मानो एकदूसरे के लिए एलियंस हों. सुबह मां हमें तैयार कर के स्कूल भेजतीं. फिर किचन में पापा व उन की मिस्ट्रैस घुसते. मां की गालियों और तानों की बौछारों को सहन करते हुए ‘वह’ रह रही थी. उस का यह साहस वर्णन से बाहर था.

‘उस की’ बेटी से हम बात नहीं करते थे. हमारे लिए ‘उस से’ बोलना भी मना था. पापा के खिलाफ मां की उस जंग में हम बच्चे पूरी तरह मां के साथ थे. ‘उस ने’ मुझे अपनी तरफ झुकाने की बहुत कोशिश की.

उस ने मुझे ‘एलिस इन वंडरलैंड’ नामक किताब मेरे 12वें जन्मदिन पर उपहार में दी. मुझे वह पुस्तक बहुत अच्छी लगी. मैं जानती थी कि वह मेरे प्रति दयालु है मगर मैं अपनी मां के प्रति वफादार रहना चाहती थी. हां, मेरे मन का एक हिस्सा ‘उसे’ चाहता जरूर था. मुझे तब पता नहीं था कि मेरे पापा से प्यार कर के उस ने कितना बड़ा गुनाह किया है.

‘उस का’ इस तरह हमारे साथ रहने का यह अनोखा अरेंजमैंट ज्यादा दिनों तक चल नहीं पाया. पापा को तो कोई आपत्ति नहीं थी मगर जब भी मां मेरे छोटे भाई को ले कर बाहर निकलतीं, उन्हें खुद पर शर्म आती कि वे अपनी सौत के साथ रह रही हैं. हमें भी यही बताया गया था कि अगर पड़ोसी ‘उस के’ बारे में पूछताछ करें तो कहो कि वह हमारी किराएदार है.

मां ने सभी टोनेटोटके कर के देख लिए, नानी और मामा की राय ली, कई वकीलों से सलाह की मगर ‘उसे’ अपने घर से नहीं निकाल पाईं. ‘वह’ इतने अपमान और बेइज्जती के बावजूद हमारे घर में रह रही थी, उस की एक ही मुख्य वजह थी. वह वजह थी कि ‘वह’ पापा से बेइंतहा प्यार करती थी. जो ज्ञान पुरुष स्त्रियों से उन के बारे में हासिल करते हैं भले ही वह उन की संचित संभावनाओं के बारे में न हो कर सिर्फ उन के भूत और वर्तमान के बारे में ही क्यों न हो, वह तब तक अधूरा और उथला रहेगा जब तक कि स्त्रियां स्वयं वह सबकुछ नहीं बता देतीं.

कई महीनों बाद जब मां से यह सब सहन नहीं हुआ तो उन्होंने अदालत का दरवाजा खटखटाया और पापा पर दोष लगाते हुए ‘उसे’ घर से निकालने के लिए पुलिस कार्यवाही की मांग की. पापा के औफिस में भी लिख कर शिकायत दे दी कि ‘उस के’ हमारे घर में यों रहने से हम पर व हमारे बच्चों पर बुरा असर पड़ रहा है.

एक रात उस का सामान चला गया और साथ ही वह भी. पापा 2 परिवारों के मुखिया बन गए. पापा ने हमारे घर आना बिलकुल ही कम कर दिया. बस, हर महीने की पहली तारीख को आते और घर में अपनी तनख्वाह छोड़ जाते. किसी बच्चे के बारे में न पूछते.

मां ने तलाक की अर्जी लगा दी तो पापा हम से बिलकुल ही दूर हो गए. हम बच्चों की हालत बहुत खराब हो गई थी. मां हमेशा गुमसुम रहने लगी थीं. अपनी सेहत का खयाल न रखतीं. ढंग के कपड़े न पहनतीं. न कहीं जातीं और न ही हमें ले कर निकलतीं.

हमारी पढ़ाईलिखाई के खर्च बढ़ते जा रहे थे. पापा खर्च उठा रहे थे मगर मां बहुत बार हमें बिना कारण डांटतीं, हम पर पाबंदियां लगातीं.

मां अपने आत्मत्याग से हमें ब्लैकमेल करतीं. हमें वही पता होता जो वे हमें बतातीं. वे हमें हर वक्त बतातीं कि कैसे अपना पेट काटकाट कर उन्होंने हमें शिक्षा दी. कभीकभी वही बातें बारबार सुनसुन कर हमें चिढ़ आ जाती. हमें पैदा करने या महंगे स्कूलों में भेजने का आग्रह हम बच्चों ने तो नहीं किया था.

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हम नहीं जानते थे कि जो कुछ वे कर रही थीं या पति के साथ जैसे उन का समीकरण बिगड़ रहा था उस में हम लोगों की कोई भूमिका थी भी या नहीं. हां, इस का असर हम पर पड़ रहा था. वे हमारे लिए जो कर रही थीं उस के पीछे उन का अपना निजी उद्देश्य भी तो था. पापा ने तो आसानी से पैसे के दम पर हम से पल्ला झाड़ लिया था मगर मां कई बार गुस्से में बिफर कर कहतीं, ‘तुम न होते तो मैं फिर शादी कर लेती या फिर अपने मायके में जा कर शान से रहती. हमारी खातिर मां के आत्महत्या और बलि का बकरा बनने का विचार हमें उन के प्रति कृतज्ञता नहीं बल्कि भ्रम और अपराधबोध से भर देता था.

हम मां की आधीअधूरी रह गई आकांक्षाओं की पूर्ति के साधनमात्र रह गए थे. हम चाहते थे कि मां हर हालत में खुश रहें मगर वे उदास थीं, वंचिता थीं. और हमारे खयाल में यह सब हमारी गलती के कारण ही था.

Manohar Kahaniya- राम रहीम: डेरा सच्चा सौदा के पाखंडी को फिर मिली सजा- भाग 2

सौजन्य- मनोहर कहानियां

हरियाणा पुलिस ने हिंसा फैलाने के आरोप में राम रहीम की गोद ली बेटी और उस की कथित प्रेयसी कहीं जाने वाली हनीप्रीत को भी चंडीगढ़ से गिरफ्तार कर लिया. हनीप्रीत हिंसा होने के बाद से ही फरार थी.

फ्रीज हुए डेरा के 90 बैंक एकाउंट

साध्वियों से बलात्कार मामले में गुरमीत राम रहीम का सजा होने व गिरफ्तारी के बाद से ही डेरा सच्चा सौदा के रहस्य लोक की कहानियां सार्वजनिक होने लगीं.

इधर, डेरा सर्मथकों की हिंसा के बाद डेरा के 90 बैंक खाते फ्रीज कर दिए गए. गुरमीत राम रहीम के खिलाफ एन्फोर्समेंट डायरेक्टोरेट (ईडी) ने भी जांच शुरू कर दी. क्योंकि डेरा की 700 करोड़ की संपत्ति में मनी लांड्रिंग की आशंका नजर आ रही थी.

गुरमीत राम रहीम को रेप मामले में सजा होने के बाद पंचकूला और सिरसा के अलावा करीब 5 राज्यों में हिंसक प्रर्दशन हुए थे. इस मामले में दरजनों केस दर्ज हुए. चंडीगढ़ व पंचकूला में हिंसा फैलाने के मामले में डेरा प्रवक्ता दिलावर सिंह को भी देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया गया.

दिलावर सिंह एमएसजी ग्लोरियस इंटरनैशनल स्कूल सिरसा का एडमिनिस्ट्रेटर था. उस ने डेरामुखी के गनमैन ओमप्रकाश सिंह, डेरा सर्मथक दान सिंह व चमकौर सिंह के साथ मिल कर पंचकूला में आगजनी की घटनाओं को अंजाम दिया था. करीब 177 से अधिक मामले दर्ज किए गए और 1137 आरोपियों को अरेस्ट किया गया था.

बहरहाल, गुरमीत राम रहीम के पापों की कलई खुलनी शुरू हो चुकी थी और कानून ने सख्त रुख अपना लिया था. उस के खिलाफ मुंह न खोलने वाले लोग भी अब अदालत में सच बयां कर रहे थे.

एक तरफ राम रहीम साध्वियों से बलात्कार के मामले में जेल से बाहर आने के लिए एड़ीचोटी का जोर लगा रहा था कि 17 जनवरी, 2019 को पंचकूला की विशेष सीबीआई के जज जगदीप सिंह  ने सिरसा के स्थानीय पत्रकार रामचंद्र छत्रपति हत्या के मामले में भी गुरमीत राम रहीम को उम्रकैद की सजा सुना दी.

इस मामले में डेरा प्रमुख के साथ 3 अन्य लोगों कुलदीप सिंह, निर्मल सिंह और कृष्ण लाल को भी दोषी ठहराया गया था. इन्हें भी उम्रकैद की सजा सुनाई गई.

दरअसल, सिरसा के स्थानीय पत्रकार रामचंद्र छत्रपति वकालत छोड़ कर ‘पूरा सच’ नाम से एक अखबार निकालते थे. रामचंद्र अपने अखबार के नाम की तरह ही पत्रकारिता के लिए जाने जाते थे. निर्भीक छवि के रामचंद्र छत्रपति की हत्या का मामला कहीं न कहीं साध्वियों के दुष्कर्म से ही जुड़ा था.

2002 में रामचंद्र छत्रपति के हाथ वह चिट्ठी लग गई, जो गुमनाम साध्वी ने लिखी थी. रामचंद्र ने उस चिट्ठी को अपने अखबार में छाप दिया. इसी अखबार में छपी खबर के बाद लोगों को डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख राम रहीम द्वारा डेरे में साध्वियों के साथ दुष्कर्म करने की जानकारी मिली थी. इस खबर के छपने के बाद छत्रपति को जान से मारने की धमकियां मिलने लगीं.

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आखिरकार 19 अक्तूबर, 2002 की रात छत्रपति को घर के बाहर गोली मारी गई. इस के बाद 21 अक्तूबर को दिल्ली के अपोलो अस्पताल में उन की मौत हो गई.

हालांकि इस दौरान छत्रपति होश में आए लेकिन राजनीतिक दबाव के कारण छत्रपति का बयान तक दर्ज नहीं किया गया.

दरअसल, छत्रपति अपने अखबार में डेरा सच्चा सौदा की अच्छी और बुरी खबरों को छापते थे, जिस कारण उन्हें जान से मारने की धमकियां मिलती रहती थीं. यह बात सिरसा के सभी पत्रकार जानते थे.

मृतक पत्रकार के बेटे अंशुल ने हाईकोर्ट में दायर की थी याचिका

जनवरी, 2003 में मृतक के बेटे अंशुल ने हाईकोर्ट में एक याचिका दायर कर मामले को सीबीआई को सौंपने की मांग की. इस याचिका में डेरा प्रमुख गुरमीत राम रहीम के  भी इस में संलिप्त होने के आरोप लगाए. सोशल मीडिया में रामचंद्र छत्रपति को इंसाफ दिए जाने की मांग जोर पकड़ने लगी.

इसी दौरान डेरामुखी पर डेरे के एक पूर्व मैनेजर रंजीत सिंह की हत्या के भी आरोप लगने लगे. इस मामले में भी पीडि़तों की तरफ से अदालत का दरवाजा खटखटाया गया.

हाईकोर्ट ने पत्रकार छत्रपति और डेरा मैनेजर रंजीत सिंह की हत्या के मामलों को जोड़ते हुए 10 नवंबर, 2003 को सीबीआई को एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया.

सीबीआई ने दिसंबर, 2003 में मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी. मामला दर्ज होते ही डेरा की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर जांच पर रोक लगाने की अपील की गई, जिस के बाद उस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की और मामले की जांच पर उस वक्त रोक लगा दी गई.

लेकिन नवंबर, 2004 में दूसरे पक्ष की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने डेरा की याचिका को खारिज कर दिया और सीबीआई जांच को जारी रखने के आदेश दिए.

सीबीआई ने दोबारा दोनों मामलों की जांच शुरू की और डेरा प्रमुख समेत कइयों को अभियुक्त बनाया. इसी मामले में सीबीआई कोर्ट ने गुरमीत राम रहीम समेत 4 आरोपियों को उम्रकैद की सजा सुनाई.

साध्वी रेप केस मामले और पत्रकार छत्रपति हत्याकांड की सजा काट रहे डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम के जेल जाने के बाद से उस की खास राजदार हनीप्रीत सब से ज्यादा सुर्खियों में रही है. उस पर भी पंचकूला में दंगा भड़काने, राजद्रोह और राम रहीम को पुलिस कस्टडी से भगाने की साजिश रचने के आरोप लगे और बाद में उसे गिरफ्तार किया गया.

हालांकि कुछ महीने बाद हनीप्रीत को अदालत से जमानत मिल गई और उस के बाद हनीप्रीत ने डेरा सच्चा सौदा की कमान अपने हाथों में ले ली. लेकिन सवाल उठता है कि आखिर हनीप्रीत कौन है, जो गुरमीत राम रहीम के बाद डेरा सच्चा सौदा की सब से ताकतवर बनी है.

आखिर इतना बड़ा परिवार होते हुए राम रहीम क्यों हर वक्त हनीप्रीत को याद करता रहा और हनीप्रीत से उस का क्या खास रिश्ता है.

हनीप्रीत इंसां का जन्म 21 जुलाई, 1980 को हरियाणा के फतेहाबाद में हुआ था. उस का स्कूली नाम प्रियंका तनेजा है.  प्रियंका तनेजा का पूरा परिवार करीब ढाई दशक से डेरे का अनुयायी था.

हनीप्रीत के दादा ने पाकिस्तान से आ कर हरियाणा के सिरसा में कपड़े की दुकान खोली थी. जहां गुरमीत राम रहीम के गुरु शाह मस्तानाजी आते रहते थे. तभी से उन की फैमिली डेरे की अनुयायी हो गई.

कुछ ही दिनों में हनीप्रीत के दादा डेरे के प्रशासक बन गए और वहां खजाने से संबंधित काम देखने लगे थे. 1996 में प्रियंका के दसवीं पास करते ही दादा ने उस का एडमिशन डेरे के ही स्कूल में करवा दिया.

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हनीप्रीत के पिता रामानंद तनेजा पहले पुरानी दिल्ली एमआरएफ टायर्स का ‘सर्च टायर्स’ नाम से शोरूम चलाते थे. लेकिन बाद में उन्होंने डेरे में ही एक बड़ा सीड प्लांट डाल लिया. बाद में गुरमीत राम रहीम ने उस के पिता रामानंद तनेजा को डेरा की पर्चेजिंग कमेटी का हेड बना दिया, जो डेरे के सारे सामान की खरीदफरोख्त का काम देखने लगे.

प्रियंका के भाई साहिल तनेजा को भी गुरमीत का आशीर्वाद मिल गया और वह भी डेरे में बड़े स्तर पर कारोबार करने लगा. बाद में प्रियंका की छोटी बहन नीशू तनेजा की गुरुग्राम में जो शादी हुई, उस में भी बाबा का खास योगदान रहा.

हनीप्रीत के चाचा और मामा समेत दूसरे कई रिश्तेदार सिरसा के मुख्य मार्गों पर टायरों का कारोबार करते हैं. आज भी डेरे में कई बड़े प्रोजेक्ट हनीप्रीत के नाम से चल रहे हैं.

बताते हैं कि गुरमीत राम रहीम 1996 में डेरे के स्कूल में जब छात्राओं को आशीर्वाद देने गया था तो वहां उस की नजर पहली बार प्रियंका तनेजा पर पड़ी थी. बस उसी के बाद बाबा ने कुछ ऐसा चक्कर चलाया कि वह प्रियंका को अपना खास आशीर्वाद देने के लिए डेरे में अपने निजी कक्ष में बुलाने लगा.

बाबा की खासमखास बन गई हनीप्रीत

कुछ ही दिनों में प्रिंयका पूरी तरह बाबा के वश में हो गई. कुछ समय बाद बाबा ने उस का नया नामकरण किया और उस का नाम हनीप्रीत इंसां रख दिया. क्योंकि डेरे में सभी राजदारों व साधुसाध्वियों को ‘इंसां’ सरनेम दिया जाता है.

उम्र का काफी फासला होने के बावजूद धीरेधीरे गुरमीत राम रहीम और हनीप्रीत इंसा के बीच नजदीकियां बढ़ने लगीं.

जल्द ही हनीप्रीत बाबा की खास बन गई और उस की पहुंच बेरोकटोक बाबा के बैडरूम तक होने लगी. हनीप्रीत ने 12वीं तक की पढ़ाई डेरे के स्कूल में ही की. बाबा ने उस का डेरे से बाहर आनाजाना बंद करा दिया. डेरे में उस के लिए एक खास आवास की व्यवस्था कर दी गई और वहीं पर उस के टीचर उसे पढ़ाने के लिए आते.  इतना ही नहीं, बाबा ने हनीप्रीत के लिए एक विशेष जिम बनवा दिया. हनीप्रीत के नाम पर डेरे के अंदर एक बुटीक भी खोल दिया गया.

बताते हैं कि धीरेधीरे हनीप्रीत और राम रहीम की नजदीकियां कुछ इस तरह बढ़ गईं कि हनीप्रीत बाबा के हर राज की राजदार हो गई. हनीप्रीत अब गुरमीत की सब से करीबी बन गई थी. गुरमीत उस पर इतना मेहरबान था कि उस ने हनीप्रीत के नाम पर डेरे में कई बड़े कारोबार शुरू किए.

बताते हैं कि डेरे के अंदर बाबा और हनीप्रीत के रिश्ते को ले कर हमेशा लोगों के मन में सवाल रहते थे. लेकिन बाबा के डर से कोई अपनी जबान नहीं खोलता था, क्योंकि बाबा राम रहीम उसे लोगों के सामने अपनी बेटी, अपनी ‘परी’ कहता था. लेकिन हकीकत यह थी कि वो बाबा की ‘परी’ नहीं बल्कि बाबा की ‘हनी’ थी.

बताते हैं कि जब बाबा को लगा कि एक अविवाहित लड़की इस तरह उस की सेवा में रहेगी तो इस से उस की छवि और प्रतिष्ठा पर सवाल खड़े हो सकते हैं. इसलिए उस ने 14 फरवरी, 1999 वैलेनटाइंस डे के दिन हनीप्रीत की शादी विश्वास गुप्ता से करा दी. हनीप्रीत के परिवार की तरह करनाल के रहने वाले विश्वास गुप्ता का परिवार भी बाबा का अनुयायी था. बाबा ने ही शादी की सारी व्यवस्थाएं कराई थीं. राम रहीम ने हनीप्रीत की शादी तो गुप्ता से करा तो दी, लेकिन दोनों को आदेश दिया कि वे बच्चा पैदा न करें.

अगले भाग में पढ़ें- डेरे के सारे फैसले लेने लगी हनीप्रीत

Manohar Kahaniya: पत्नी की मौत की सुपारी- भाग 1

सौजन्य- मनोहर कहानियां

उस दिन मई 2021 की 18 तारीख थी. रात के 8 बज रहे थे. बिधनू थानाप्रभारी विनोद कुमार सिंह इलाके में गश्त पर निकलने वाले थे, तभी उन के मोबाइल फोन पर काल आई. उन्होंने काल रिसीव की तो फोनकर्ता ने चौंकाने वाली सूचना दी. उस ने बताया कि करसुई पुल के पास जो हनुमान मंदिर है, वहां एक महिला की लाश पड़ी है. उस की हत्या गोली मार कर की गई है.

चूंकि मामला महिला की हत्या का था, अत: थानाप्रभारी विनोद कुमार सिंह ने गश्त पर जाने के बजाय उस जगह जाना जरूरी समझा जहां महिला की लाश पड़े होने की उन्हें सूचना मिली थी. इस से पहले उन्होंने घटना की खबर वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को दी.

फिर पुलिस बल के साथ घटनास्थल की ओर रवाना हो लिए. थाना बिधनू से करसुई नहर पुल की दूरी करीब 3 किलोमीटर थी. इसलिए पुलिस को वहां पहुंचने में ज्यादा समय नहीं लगा.

घटनास्थल पर उस समय कुछ लोग खड़े थे. उन्होंने महिला की लाश का मुआयना किया. मृतक महिला की उम्र 35 साल के आसपास थी. गोली मार कर उस की हत्या की गई थी. पीठ पर 2 तथा सीने पर एक गोली दागी गई थी.

महिला जींस व कमीज पहने थी. उस की मांग में सिंदूर तथा पैरों में बिछिया थे. स्पष्ट था कि वह विवाहित थी. शव के पास ही सड़क किनारे उस की स्कूटी लुड़की पड़ी थी, जिस का नंबर यूपी78 जीएफ 3398 था. वहीं पर मृतका का पर्स व मोबाइल फोन पड़ा था, जिसे पुलिस ने सुरक्षित कर लिया.

थानाप्रभारी विनोद कुमार सिंह अभी निरीक्षण कर ही रहे थे कि सूचना पा कर एसएसपी प्रीतिंदर सिंह, एसपी (आउटर) अष्टभुजा प्रसाद सिंह तथा डीएसपी विकास पांडेय घटनास्थल पर आ गए. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया और वहां मौजूद कुछ लोगों से पूछताछ की.

वहां मौजूद एक युवक ने पुलिस को बताया कि वह मंदिर में हनुमानजी के दर्शन करने आया था. तभी उसे फायर की आवाज सुनाई दी. वह वहां पहुंचा तो महिला मृत पड़ी थी. उस ने 2 हत्यारों को मोटरसाइकिल से भागते हुए देखा था. दोनों हेलमेट लगाए थे. उस ने ही पुलिस को सूचना दी थी.

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अब तक महिला के शव को अनेक लोग देख चुके थे, लेकिन कोई उसे पहचान न सका था. तब पुलिस ने मौके की काररवाई पूरी कर शव को पोस्टमार्टम के लिए लाला लाजपतराय अस्पताल भिजवा दिया. महिला की स्कूटी भी थाने भिजवा दी.

घटनास्थल से मृत महिला का पर्स व मोबाइल फोन बरामद हुआ था. इस मोबाइल फोन को थानाप्रभारी विनोद कुमार सिंह ने खंगाला तो उस में उस के पिता का फोन नंबर सेव था. थानाप्रभारी ने उस नंबर पर बात की तो पता चला कि वह नंबर बिरला नगर ग्वालियर के रहने वाले अनिल कुमार शर्मा का है. उन्होंने अनिल से पूछा कि जिस मोबाइल नंबर से वह बात कर रहे हैं, वह किस का है?

‘‘यह नंबर मेरी बेटी आरती शर्मा का है. लेकिन आप कौन है? मेरी बेटी का मोबाइल फोन आप के पास कैसे आया?’’ अनिल शर्मा ने घबराते हुए पूछा.

‘‘देखो शर्माजी, मैं कानपुर नगर के थाना बिधनू से इंसपेक्टर विनोद कुमार सिंह बोल रहा हूं. एक महिला के शव के पास से मुझे यह मोबाइल फोन मिला था. आप जल्दी से थाना बिधनू आ जाइए. तब शव की शिनाख्त भी हो सकेगी.’’

19 मई की सुबह 8 बजे अनिल कुमार शर्मा अपने साढू मनोज के साथ थाना विधनू पहुंच गए. इस के बाद थानाप्रभारी विनोद कुमार सिंह उन्हें पोस्टमार्टम हाउस ले गए. यहां महिला की लाश देख कर अनिल शर्मा फफक कर रो पड़े. उन्होंने बताया कि लाश उन की बेटी आरती की है.

थानाप्रभारी विनोद कुमार सिंह ने अनिल कुमार शर्मा को धैर्य बंधाया और फिर पूछताछ की. अनिल कुमार ने बताया कि उन्होंने कई साल पहले आरती की शादी हमीरपुर जिले के भरुआ सुमेरपुर कस्बा निवासी श्यामशरण शर्मा के साथ की थी.

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लेकिन दामाद और बेटी में पटरी नहीं खाती थी सो दोनों के बीच अकसर झगड़ा होता था. श्यामशरण को शक था कि आरती का किसी के साथ चक्कर चल रहा है. इसी को ले कर वह आरती को प्रताडि़त करता था.

अनिल शर्मा ने नामजद लिखाई रिपोर्ट

अनबन होने पर आरती मायके में रहने लगी थी. दिसंबर 2020 में दोनों के बीच समझौता कराने का प्रयास किया था. लेकिन असफल रहा. समझौते के दौरान ही दोनों झगड़ा करने लगे थे. उसी समय गुस्से में श्यामशरण ने आरती का सिर फोड़ दिया था. लोकलाज के कारण हम ने दामाद के खिलाफ रिपोर्ट भी दर्ज नहीं कराई थी.

इस झगड़े के बाद आरती कानपुर के नौबस्ता थाना अंतर्गत सागरपुरी, गल्लामंडी में किराए का मकान ले कर रहने लगी थी. जिस मकान में वह रहती थी, उसी में उस ने एक आइसक्रीम फैक्ट्री शुरू कर दी थी. शादियों के सीजन में आइसक्रीम की डिमांड खूब हो रही थी.

आरती पति से अलग जरूर रहती थी, लेकिन पति श्यामशरण उस पर निगरानी रखता था. फोन पर वह उसे धमकाता भी था. अनिल ने आरोप लगाया कि उस की बेटी आरती की हत्या उस के पति श्यामशरण तथा जेठ रामशरण ने की है.

थानाप्रभारी विनोद कुमार सिंह ने अनिल कुमार शर्मा की तरफ से भादंवि धारा 302 आईपीसी के तहत श्यामशरण शर्मा व रामशरण के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली और जांच में जुट गए.

इधर महिला उद्यमी आरती हत्याकांड की खबर अखबारों में छपी तो आईजी (कानपुर जोन) मोहित अग्रवाल तथा एडीजी भानु भास्कर ने मामले को गंभीरता से लिया और घटनास्थल का निरीक्षण कर मृतका के पिता अनिल शर्मा से पारिवारिक जानकारी हासिल की.

इस के बाद उन्होंने एसपी (आउटर) अष्टभुजा प्रसाद की देखरेख में पुलिस टीम गठित कर दी. केस का खुलासा करने वाली टीम को 50 हजार रुपए का पुरस्कार भी घोषित कर दिया.

गठित पुलिस टीम ने 3 बिंदुओं पर जांच शुरू की. पहली अवैध संबंधों की, दूसरी पति से अनबन तथा तीसरी व्यापारिक प्रतिस्पर्धा.

टीम ने सब से पहले आरती शर्मा के पति श्यामशरण तथा जेठ रामशरण को भरुआ सुमेरपुर कस्बा में स्थित उन के घर से उठाया फिर दोनों को बिधनू थाने ला कर पूछताछ की. लेकिन दोनों ने जुबान नहीं खोली.

पुलिस टीम ने आरती शर्मा के मोबाइल फोन को खंगाला तो उस में एक ऐसा वीडियो मिला, जिस में वह दोस्तों के साथ ड्रिंक कर रही थी और अश्लील हंसीमजाक कर रही थी.

टीम को समझते देर नहीं लगी कि आरती रंगीनमिजाज महिला थी. इसी मोबाइल में एक ऐसा नंबर भी था, जिस पर आरती की घटना से पहले बात हुई थी. इस नंबर को खंगाला गया तो पता चला कि यह नंबर प्रतापगढ़ के भौलपुर गांव निवासी जितेंद्र का है.

पुलिस टीम ने जितेंद्र को उस के गांव से हिरासत में ले लिया और बिधनू थाने लाई. यहां उस से कड़ाई से पूछताछ हुई तो उस ने बताया कि उस का मोबाइल खो गया था. किसी ने गलत इस्तेमाल किया है. पुलिस को भी लगा कि जितेंद्र निर्दोष है, अत: उसे थाने से जाने दिया.

पुलिस टीम को पक्का यकीन था कि आरती की हत्या का रहस्य उस के पति के पेट में ही छिपा है. अत: टीम ने श्यामशरण शर्मा से कड़ाई से पूछताछ की. पुलिस की सख्ती से श्यामशरण टूट गया. उस ने बताया कि आरती की हत्या उस ने शूटरों से कराई थी. मौत का सौदा उस ने 3 लाख 20 हजार रुपए में किया था, जिस में से 1 लाख 40 हजार शूटरों के खाते में ट्रांसफर कर दिए थे.

श्यामशरण ने शूटरों के नाम शाहरुख खान निवासी इमलिया बाड़ा कस्बा भरुआ सुमेरपुर तथा नईम उर्फ भोलू निवासी ईदगाह कस्बा भरुआ सुमेरपुर जिला हमीरपुर बताया.

20 मई, 2021 को पुलिस टीम ने भरुआ सुमेरपुर थाना पुलिस की मदद से शाहरुख खान के घर पर छापा मारा. लेकिन वह घर से फरार था. दबाव बनाने के लिए पुलिस ने उस की पत्नी रूबी, मां परवीन खातून तथा बहन रुखसार को हिरासत में ले लिया.

आरोपियों के घरवालों से की पूछताछ

इस के बाद पुलिस ने ईदगाह निवासी नईम उर्फ भोलू के घर छापा मारा. वह भी घर से फरार था. पुलिस ने भोलू की मां शमीम, बहन रोजी तथा एक अन्य को हिरासत में ले लिया.

सभी को थाना बिधनू लाया गया. दबाव बना कर पुलिस अधिकारियों के समक्ष उन से पूछताछ की गई और शाहरुख तथा नईम के ठिकानों की जानकारी जुटाई गई. पूछताछ के बाद उन्हें छोड़ दिया गया.

23 मई को थानाप्रभारी वी.पी. सिंह को खबरी के जरिए पता चला कि शाहरुख खान अपनी पत्नी रूबी से मिलने घर आया है. इस पर उन्होंने दबिश दे कर शाहरुख को उस के घर से दबोच लिया और थाने ले आए. इस के बाद उन्होंने उसे बिधनू पुलिस को सौंप दिया.

अगले भाग में पढ़ें- आरती दोस्तों के साथ करती थी मौजमस्ती

अपने हिस्से की जिंदगी- भाग 1: क्यों कनु मोबाइल फोन से चिढ़ती थी?

Writer- Er. Asha Sharma

पहलीडेट का पहला तोहफा. खोलते हुए कनु के हाथ कांप रहे थे. पता नहीं क्या होगा… हालांकि निमेश के साथ इस रिश्ते को आगे बढ़ाने के लिए कनु का दिल बिलकुल भी गवाही नहीं दे रहा था, मगर कहते हैं न कि कभीकभी आप की अच्छाई ही आप की दुश्मन बन जाती है. कनु के साथ भी यही हुआ था. उस ने अपनी छोटी सी जिंदगी में इतने दुख देख लिए थे कि अब वह हमेशा इसी कोशिश में रहती कि कम से कम वह किसी के दुखी होने का कारण न बने. इसीलिए न चाहते हुए भी वह आज की इस डेट का प्रस्ताव ठुकरा नहीं सकी.

निमेश उस का सहकर्मी, उस का दोस्त, उस का मैंटर, उस का लोकल गार्जियन, सभी कुछ तो था. ऐसा भी नहीं था कि कनु उस के भीतर चल रहे झंझावात से अनजान थी. अनजान बनने का नाटक जरूर कर रही थी. कितने बहाने बनाए थे उस ने जब कल औफिस में निमेश ने उसे आज शाम के लिए इनवाइट किया था.

‘यह निमेश भी न बिलकुल जासूस सा दिमाग रखता है… पता नहीं इसे कैसे पता चल गया कि आज मेरा जन्मदिन है. मना करने पर भी कहां मानता है यह लड़का…’ कनु सोचतेसोचते गिफ्ट रैप के आखिरी फोल्ड पर पहुंच चुकी थी.

बेहद खूबसूरती से पैक किए गए लेटैस्ट मौडल के मोबाइल को देखते ही कनु के होंठों पर एक फीकी सी मुसकान तैर गई. वह पहले से ही जानती थी कि इस में ऐसा ही कुछ होगा, क्योंकि उस के ओल्ड मौडल मोबाइल हैंडसैट को ले कर औफिस में अकसर ही निमेश ‘ओल्ड लेडी औफ न्यू जैनरेशन’ कह कर उस का मजाक उड़ाता था.

कनु कैसे बताती निमेश को कि यह छोटा सा मोबाइल ही उस की जिंदगी में इतना बड़ा तूफान ले कर आया था कि उस का परिवार तिनकातिनका बिखर गया था. उसे आज भी याद है लगभग 10 साल पहले का वह काला दिन जब पापा से लड़ाई होने के बाद गुस्से में आ कर उस की मां ने अपनेआप को आग के हवाले कर दिया था. मां की दर्दनाक और कातर चीखें आज भी उस की रातों की नींदें उड़ा देती हैं. मां शायद मरना नहीं चाहती थीं, मगर पापा पर मानसिक दबाव डालने के लिए उन्होंने यह जानलेवा दांव खेला था. उन्हें यकीन था कि पापा उन्हें रोक लेंगे, मगर पापा तो गुस्से में आ कर पहले ही घर से बाहर निकल चुके थे. उन्होंने देखा ही नहीं था कि मां कौन सा खतरनाक कदम उठा रही हैं.

मां को लपटों में घिरा देख कर वही दौड़ कर पापा को बुलाने गई थी. मगर पापा उसे आसपास नजर नहीं आए तो पड़ोस वाले अनिल अंकल ने पापा को मोबाइल पर फोन कर के हादसे की सूचना दी थी. आननफानन में मां को हौस्पिटल ले जाया गया, मगर तब तक बहुत देर हो चुकी थी. मोबाइल ने उस की मां को हमेशा के लिए उस से छीन लिया था.

कनु के पापा को शुरू से ही नईनई तकनीक इस्तेमाल करने का शौक था. उन दिनों मोबाइल लौंच हुए ही थे. पापा भी अपनी आदत के अनुसार नया हैंडसैट ले कर आए थे. घंटों बीएसएनएल की लाइन में खड़े हो कर उन्होंने सिम ली थी. उन दिनों मोबाइल में अधिक फीचर नहीं हुआ करते थे. बस कौल और मैसेज ही कर पाते थे. हां, मोबाइल पर कुछ गेम्स भी खेले जाते थे.

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पापा के मोबाइल पर जब भी कोई फनी या फिर रोमांटिक मैसेज आता था तो पापा उसे पढ़ कर मां को सुनाते थे. मां जोक सुन कर तो खूब हंसा करती थीं, मगर रोमांटिक शायरी सुनते ही जैसे किसी सोच में पड़ जाती थीं. वे पापा से पूछती थीं कि इस तरह के रोमांटिक मैसेज उन्हें कौन भेजता है… पापा भेजने वाले का नाम बता तो देते थे, मगर फिर भी मां को यकीन नहींहोता था.

धीरेधीरे मां को यह शक होने लगा था कि पापा के दूसरी महिलाओं से संबंध हैं और वे ही उन्हें इस तरह के रोमांटिक मैसेज भेजती हैं. वे पापा से छिप कर अकसर उन का मोबाइल चैक करती थीं. पापा को उन की यह आदत अच्छी नहीं लगी या फिर शायद पापा के मन में ही कोई चोर था, उन्होंने अपने मोबाइल में सिक्युरिटी लौक लगा दिया.

मां दिमागीरूप से परेशान रहने लगी थीं. हालत यह हो गई थी कि जब भी पापा के मोबाइल में मैसेज अलर्ट बजता मां दौड़ कर देखने जातीं कि किस का मैसेज है और क्या लिखा है… मगर लौक होने की वजह से देख नहीं पाती थीं. वे पापा से मोबाइल चैक करवाने की जिद करतीं तो पापा का ईगो हर्ट होता और वे मां पर चिल्लाने लगते. बस यही कारण था दोनों के बीच लड़ाई होने का.

यह लड़ाई कभीकभी तो इतनी बढ़ जाती थी कि पापा मां पर हाथ भी उठा देते थे. जब कभी पापा अपना मोबाइल मां को पकड़ा देते और उन्हें किसी महिला का कोई मैसेज उस में दिखाई नहीं देता तो मां को लगता था कि पापा ने सारे मैसेज डिलीट कर दिए हैं.

पापा का ध्यान मोबाइल से हटाने के लिए मां उन पर मानसिक दबाव बनाने लगी थीं. कभी सिरदर्द का बहाना तो कभी पेटदर्द का बहाना करतीं… कभी कनु और उस के बड़े भाई सोनू को बिना वजह ही पीटने लगतीं… कभी कनु की दादी को समय पर खाना नहीं देतीं… कभी पापा को आत्महत्या करने और जेल भिजवाने की धमकियां देतीं… और एक दिन धमकी को हकीकत में बदलने के लिए उन्होंने खुद पर तेल छिड़क कर आग लगा ली. उन का यह नासमझी में उठाया गया कदम कनु और सोनू के लिए जिंदगी भर का नासूर बन गया.

मां के जाते ही गृहस्थी का सारा बोझ कनु की बूढ़ी दादी के कमजोर कंधों पर आ गया.

उस समय कनु की उम्र 10 साल और सोनू की 13 साल थी. साल बीततेबीतते कनु के पापा किसी दलाल की मार्फत एक अनजान महिला से शादी कर के उसे अपने घर ले आए. वह महिला कुछ महीने तो उन के साथ रही, मगर बूढ़ी सास और बच्चों की जिम्मेदारी ज्यादा नहीं उठा सकी और एक दिन चुपचाप बिना किसी को बताए घर छोड़ कर चली गई.

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कुछ साल अकेले रहने के बाद कनु के पापा फिर से अपने लिए एक पत्नी ढूंढ़ लाए. इस बार महिला उन के औफिस की ही विधवा चपरासिन थी. नई मां ने सास और बच्चों के साथ रहने से इनकार कर दिया तो कनु के पापा वहीं उसी शहर में अलग किराए का मकान ले कर रहने लगे. गृहस्थी फिर से कनु की दादी संभालने लगी थीं. कुछ साल तो घर खर्च और बच्चों की पढ़ाई का खर्चा कनु के पापा देते रहे, मगर फिर धीरेधीरे वह भी बंदकर दिया.

अब सोनू 18 साल का हो चुका था. उस ने ड्राइविंग सीखी और टैक्सी चलाने लगा.

हम तीन- भाग 1: आखिर क्या हुआ था उन 3 सहेलियों के साथ?

स्नेही ने कालेज से आते ही मुझे बताया, ‘‘मां, शनिवार को हमारी 10वीं कक्षा का रियूनियन है, बहुत मजा आएगा, मैं बहुत एक्साइटेड हूं. नीता, रिंकी, मोना से मिले हुए बहुत समय हो गया. वे लोग भी कोटा से इस प्रोग्राम के लिए विशेषरूप से आ रही हैं. एक

बड़े होटल में पार्टी है, डिनर है, बहुत मजा आएगा मां.’’

मैं उसे चहकते देख रही थी. उस की खास सहेलियां नीता, रिंकी, मोना कोटा में इंजीनियरिंग कर रही हैं.

स्नेहा फिर बोली, ‘‘कुछ बोलो न मां… बहुत मजा आता है पुराने दोस्तों से मिल कर… है न मां?’’

न चाहते हुए भी मेरे मुंह से ठंडी सी सांस निकली, ‘‘हां, आता तो है.’’

स्नेहा मेरे पास बैठ गई. बोली, ‘‘मां, आप की भी तो सहेलियां, दोस्त रहे होंगे… आप को उन की याद नहीं आती?’’

‘‘आती तो है, लेकिन शादी के बाद लड़कियां अपनीअपनी गृहस्थी में खो जाती हैं. चाह कर भी कहां एकदूसरे से मिल पाती हैं.’’

‘‘नहीं मां, दोस्तों से मिलना इतना मुश्किल तो नहीं है. आप नानी के यहां जाती हैं तो किसी से मिलने की कोशिश नहीं करतीं?’’

‘‘हां, मैं जाती हूं तो वे लोग थोड़े ही होती हैं वहां. वे अपने हिसाब से प्रोग्राम बना कर मायके आती हैं.’’

‘‘अरे मां, कोशिश तो करो, अपनी पुरानी सहेलियों से मिलने की. आप को भी बहुत

मजा आएगा… आप की लाइफ में भी एक चेंज होगा. मेरी मानो तो एक रियूनियन आप भी रख ही लो.’’

स्नेहा तो कह कर फ्रैश होने चली गई, 2 चेहरे मेरी आंखों के आगे तैर गए. क्यों न मैं भी सुकन्या और अनीता से मिलूं, लेकिन मैं यहां मुंबई में, सुकन्या इलाहाबाद में और अनीता दिल्ली में है. 20 साल से तो कोई संपर्क है नहीं. मां के यहां जाती हूं तो मां से ही उन के बारे में पता चल जाता है. अब थोड़ा अजीब तो लगेगा. अब किस का कितना स्वभाव बदल गया होगा, पता नहीं. कोई मिलने में रुचि दिखाएगी भी या नहीं… खैर पहल तो कर के देखनी चाहिए. एक कोशिश करने में क्या हरज है.

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बस, मन इसी बात में उलझ कर रह गया. अमित औफिस से आए. मुझे थोड़ी देर देखते रहे, फिर बोले, ‘‘मीनू, क्या हुआ, किसी सोच में डूबी लग रही हो?’’

मैं ने उन्हें कुछ नहीं कह कर टाल दिया. डिनर के समय स्नेहा और राहुल ने भी मुझे टोका, ‘‘क्या हुआ मां?’’

मैं ने उन्हें भी टाल दिया. मैं अभी किसी को कुछ नहीं बताना चाहती थी. पहले अपनी सहेलियों का पता तो कर लूं.

अगले दिन सब के जाने के बाद मैं ने मुजफ्फरनगर मां को

फोन कर उन्हें अपने मन की बात बताई.

वे हंस पड़ीं. बोलीं, ‘‘बहुत अच्छा सोचा. बना लो प्रोग्राम.’’

‘‘मेरे पास उन दोनों के नंबर नहीं हैं.’’

‘‘परेशान क्यों हो रही हो? मैं उन के घर से फोन नंबर ला कर तुम्हें बता दूंगी.’’मैं बेफिक्र हो गई. आधे घंटे में ही मां ने मुझे दोनों के फोन नंबर लिखवा दिए. सुकन्या हमारी गली में ही तो रहती थी और अनीता

2 गलियां छोड़ कर. मैं दोनों से बात करने के लिए बेचैन हो गई. मेरी आवाज दोनों नहीं पहचानीं, लेकिन जब उस उम्र के खास कोडवर्ड, खास किस्सों का संकेत दिया तो दोनों चहक उठीं. हम ने कितने गिलेशिकवे किए, कभी याद न करने के उलाहने दिए और फिर मैं ने अपना प्रोग्राम बताया तो दोनों एकदम तैयार हो गईं. लेकिन परेशानी यह थी कि अनीता अब टीचर थी और सुकन्या मेरी तरह हाउसवाइफ. यह तय हुआ कि अनीता छुट्टियों में मुजफ्फरनगर आ सकेगी. रात को जब हम चारों साथ बैठे तो मैं ने कहा, ‘‘अमित, आप से कोई जरूरी बात करनी है.’’

बच्चों के भी कान खड़े हो गए.

अमित ने कहा, ‘‘कहो न, क्या हुआ?’’

‘‘मुझे भी अपनी सहेलियों से मिलने मां के यहां जाना है… मेरा भी रियूनियन का प्रोग्राम बन गया है.’’

तीनों जोर से हंस पड़े. मैं झेंप गई तो अमित ने स्नेहा से कहा, ‘‘स्नेहा, तुम अपनी मम्मी को क्या पट्टी पढ़ा देती हो… वे सीरियस हो जाती हैं.’’

‘‘क्यों, उन की भी लाइफ है. सारा दिन क्या हमारे आगेपीछे घूमती रहें? उन का भी फ्रैंड सर्कल रहा होगा. उन का भी मन करता होगा. मां, आप बताओ, क्या सोचा आप ने?’’

मैं ने तीनों को सुकन्या और अनीता से हुई बातचीत के बारे में बता दिया. हंसीखुशी मेरा प्रोग्राम बन गया.

राहुल को अलग ही चिंता हुई. बोला, ‘‘मम्मी, हमारे खाने का क्या होगा?’’

‘‘लताबाई से बात कर ली है. वह दोनों टाइम आ कर खाना बना देगी. अमित ने 2-3 दिन बाद ही मेरी फ्लाइट बुक कर दी. मैं ने सुकन्या और अनीता को भी बता दिया. अब हम तीनों फोन पर संपर्क में रहतीं. बहुत अच्छा लगने लगा है. सुकन्या के पति सुधीर बिजनैसमैन हैं. उस की भी 1 बेटी और 1 बेटा है. अनीता के पति विनय डाक्टर हैं और उन का इकलौता बेटा नागपुर में इंजीनियरिंग कर रहा है.’’

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‘‘हम तीनों एक ही कालेज में पढ़ी हैं. 12वीं कक्षा तक तो हम एक ही क्लास में थीं. बाकी लड़कियां हमें 3 देवियां कहती थीं. 12वीं कक्षा के बाद बीए में हमारे विषय अलगअलग हो गए थे. सुकन्या का विवाह तो बीए के बाद ही हो गया था. अनीता और मेरा एमए करने के बाद. अनीता ने अंगरेजी में एमए किया था और मैं ने ड्राइंग ऐंड पेंटिंग में.’’

Satyakatha- केरला: अजब प्रेम की गजब कहानी- भाग 3

सौजन्य: सत्यकथा

Writer- शाहनवाज

यह सुन कर साजिता को धक्का तो लगा लेकिन उस ने रहमान के साथ रहने के लिए पहले से ही खुद को तैयार कर लिया था. अब वह पीछे मुड़ कर वापस अपने घर पर नहीं जाना चाहती थी.

ऐसे में उसी रात रहमान साजिता को अपने घर ले आया और अपने कमरे में साजिता को छिपा लिया.

वह रात किसी तरह से गुजर गई लेकिन अगली सुबह साजिता के परिवार वालों को साजिता अपने कमरे में नहीं मिली तो वे परेशान हो गए. सुबह तक साजिता के गुम हो जाने की खबर पूरे गांव में फैल चुकी थी.

साजिता के पिता वेलायुधन और मां शांता दोनों साजिता को पागलों की तरह इधरउधर ढूंढने लगे. समय बीतने के साथसाथ साजिता के घर वालों ने नेम्मारा थाने में उस की गुमशुदगी की सूचना भी लिखवाई.

साजिता को ढूंढने के लिए पुलिस ने भी एड़ीचोटी का जोर लगा दिया लेकिन साजिता का कहीं नामोनिशान नहीं मिला.

इधर रहमान ने भी साजिता को छिपाने का पूरा बंदोबस्त कर के रखा था. इलैक्ट्रीशियन होने की वजह से उस ने अपने कमरे के दरवाजे पर एक ऐसा सर्किट लगा दिया था, जिस से उस के कमरे में घुसने वाले हर इंसान को बिजली के हलके वोल्ट के झटके लगते थे.

रहमान की खुराक अचानक से बढ़ गई थी, जोकि जाहिर सी बात है वह साजिता के लिए खाना लिया करता था. यहां तक कि जो रहमान पहले अपने परिवार के साथ बैठ कर खाना खाया करता था, वह अब थाली ले कर अपने कमरे में घुस जाया करता और खाना खा कर थाली धो कर लौटता था.

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रहमान ने जानबूझ कर अपने मिजाज में बदलाव कर लिया था, उस ने अचानक से परिवार वालों के प्रति अपने व्यवहार को बदल लिया था. वह सिर्फ इसलिए कि उस के घर वाले उसे मानसिक रूप से बीमार समझें और उस पर ज्यादा ध्यान न दें.

रहमान ज्यादा से ज्यादा समय अपने कमरे में बिताने लगा था, उस ने अपने कमरे में एक पुराना टीवी भी लगवा लिया था. जब रहमान घर पर नहीं रहता तब कमरे में साजिता टीवी देख कर या फिर फोन में गेम्स खेल कर अपना टाइम पास किया करती थी.

इसी तरह से एक साल, 2 साल नहीं बल्कि 11 साल बीत गए. इस बीच रहमान अपनी कमाई का एक हिस्सा अपने घर देता तो वहीं पाईपाई कर के उस ने अपने और साजिता के लिए पैसे जोड़ने भी शुरू कर दिए थे.

साजिता को भी अब उस चारदीवारी में रहने की आदत हो गई थी. वह शौच करने के लिए सिर्फ रात को निकलती जब रहमान के घर वाले सो जाते थे. यही नहीं, 11 सालों के दौरान साजिता एक बार भी बीमार नहीं पड़ी. यहां तक कि उसे एक छींक तक नहीं आई.

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इसी तरह से 11 साल बीत गए और मार्च 2021 में जब रहमान और साजिता दोनों को लगा कि उन के पास इतने पैसे इकट्ठे हो गए हैं कि शहर में जा कर वे कुछ समय तक किराए के कमरे में बिना काम किए रह सकते हैं तो 8 मार्च, 2021 की रात को रहमान अपने साथ साजिता को ले कर पास के शहर विथानासेरी चला गया.

जिस के बाद अचानक से रहमान अपने घर से एक दिन लापता हो गया और 3 महीने बाद बड़े भाई बशीर को उस जगह पर दिखाई दिया, जहां से वह बाइक चलाते हुए अपने कमरे पर लौट रहा था.

यह पूरी कहानी सुनने के बाद माननीय न्यायाधीश ने रहमान और साजिता को साथ में रहने की इजाजत दे दी है. अब रहमान और साजिता दोनों के घर वालों ने उन के रिश्ते को मंजूरी दे दी है और अब रहमान पत्नी साजिता के साथ हंसीखुशी से अपने घर रह रहा है.

वेटिंग रूम- भाग 3: सिद्धार्थ और जानकी की छोटी सी मुलाकात के बाद क्या नया मोड़ आया?

Writer- जागृति भागवत 

‘‘मैं जानती हूं कि मातापिता के साथ रहना निसंदेह बहुत अच्छा होता होगा लेकिन मैं उस सुख की कल्पना भी नहीं कर सकती. जिद क्या होती है, चाहतें क्या होती हैं, बचपन क्या होता है, ये सब सिर्फ पढ़ा है. मानसी चाची ने हम सब को भरपूर दुलार दिया क्योंकि स्नेह को पैसों से खरीदने की जरूरत नहीं होती. हमारी मांगें पूरी करना, हमारा जन्मदिन मनाना जैसी इच्छाएं ‘वात्सल्य’ के लिए फुजूलखर्ची थीं. मानसी चाची ने हमें कभी किसी चीज के लिए मना नहीं किया लेकिन डोनेशंस से सिर्फ बेसिक नीड्स ही पूरी हो सकती थीं.’’ ये सब सुनने के बाद सिद्धार्थ अवाक् रह गया. आश्चर्य, दुख, दया, स्नेह और कई भाव एकसाथ सिद्धार्थ के चेहरे पर तैरने लगे. उन दोनों के अलावा वहां अब कोई नहीं था. अगले 10-15 मिनट प्रतीक्षालय में सन्नाटा छाया रहा. न कोई संवाद न कोई हलचल. सिद्धार्थ के मन में जानकी का कद बहुत ऊंचा हो गया. उस ने जानकी से बातचीत सिर्फ समय काटने के उद्देश्य से शुरू की थी. वह नहीं जानता था कि आज जीवन की इतनी बड़ी सचाई से उस का सामना होने वाला है. फिर सिद्धार्थ ने प्रतीक्षालय में पसरी खामोशी को तोड़ते हुए कहा, ‘‘आय एम सौरी मैम, मेरा मतलब है जानकीजी. मैं सोच भी नहीं सकता था कि…मैं आवेश में पता नहीं क्याक्या बोल गया, आय एम रियली सौरी.’’

जानकी ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘मेरे चेहरे पर तो सब लिखा नहीं था, और आप तो मुझ से आज पहली बार मिले हैं, सब कैसे जानते भला? फिर भी एक बात अच्छी हुई है, इस बहाने कम से कम आप मेरा नाम तो जान गए.’’ सिद्धार्थ ने थोड़ा ?मुसकराते हुए अचरजभरे अंदाज में बोला, ‘‘या दैट्स राइट.’’ ‘‘तब से मैममैम कर रहे थे आप और हां, ये ‘डैड’ क्या होता है, अच्छेखासे जिंदा आदमी को डैड क्यों कहते हैं,’’ कहते हुए पहली बार जानकी खिलखिलाई. सिद्धार्थ अब थोड़ा सहज हो गया था. उसे जानकी से और विस्तार से पूछने में हिचक हो रही थी, लेकिन जिज्ञासा बढ़ रही थी, इसलिए उस ने पूछ ही लिया, ‘‘आप को देख कर लगता नहीं है कि आप अनाथालय में पलीबढ़ी हैं, आय मीन आप की एजुकेशन वगैरा?’’ ‘‘सब मानसी चाची ने ही करवाई. जब मैं छोटी थी तब लगभग 19-20 लड़कियां थीं ‘वात्सल्य’ में, सब अलगअलग उम्र की. सामान्यतया अनाथालय के बच्चों को वोकेशनल ट्रेनिंग दी जाती है ताकि वे अपने पैरों पर खड़े हो सकें. हमारे यहां भी सभी लड़कियों को स्कूल तो भेजा गया. कोई 5वीं, कोई 8वीं तक पढ़ी, पर कोई भी 10वीं से ज्यादा पढ़ नहीं सकी. फिर उन्हें सिलाई, कढ़ाई, बुनाई, अचारपापड़ बनाना जैसे छोटेछोटे काम सिखाए गए ताकि वे आत्मनिर्भर हो सकें. सिर्फ मैं ही थी जिस ने 12वीं तक पढ़ाई की. मेरी रुचि पढ़ाई में थी और मेरे मार्क्स व लगन देख कर मानसी चाची ने मुझे आगे पढ़ने दिया. अनाथालय में जो कुटीर उद्योग चलते थे उस से अनाथालय की थोड़ीबहुत कमाई भी होती थी. अनाथालय की सारी लड़कियां मेरी पढ़ाई के पक्ष में थीं और इस कमाई में से कुछ हिस्सा मेरी पढ़ाई के लिए मिलने लगा. मेरी भी जिम्मेदारी बढ़ गई. सब को मुझ से बहुत उम्मीदें हैं. मुझे उन लोगों के सपने पूरे करने हैं जिन्होंने न तो मुझे जन्म दिया है और न ही उन से कोई रिश्ता है. अपनों के लिए तो सभी करते हैं, जो परायों के लिए करे वही महान होता है. चूंकि साइंस की पढ़ाई काफी खर्चीली थी, सो मैं ने आर्ट्स का चुनाव किया, बीए किया, फिर इतिहास में एमए किया. फिर एक दिन अचानक इस लैक्चरर की पोस्ट के लिए इंटरव्यू कौल आई. वही इंटरव्यू देने पुणे गई थी.’’

‘‘फिर सैलेक्शन हो गया आप का?’’ अधीरता से सिद्धार्थ ने पूछा. जानकी ने बताया, ‘‘हां, 15 दिन में जौइन करना है.’’  इसी तरह से राजनीति, फिल्मों, बाजार आदि पर बातचीत करते समय कैसे गुजर गया, पता ही नहीं चला. लगभग 2:30 बजे जानकी की गाड़ी की घोषणा हुई. इन 5-6 घंटों की मुलाकात में दोनों ने एकदूसरे को इतना जान लिया था जैसे बरसों की पहचान हो. जानकी के जाने का समय हो चुका था लेकिन सिद्धार्थ उस का फोन नंबर लेने की हिम्मत नहीं जुटा पाया. बस, इतना ही बोल पाया, ‘‘जानकीजी, पता नहीं लाइफ में फिर कभी हम मिलें न मिलें, लेकिन आप से मिल कर बहुत अच्छा लगा. आप के साथ बिताए ये 5-6 घंटे मेरे लिए प्रेरणा के स्रोत रहेंगे. मैं ने आज आप से बहुत कुछ सीखा है.’’

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‘‘अरे भई, मैं इतनी भी महान नहीं हूं कि किसी की प्रेरणास्रोत बन सकूं. हो सकता है कि दुनिया में ऐसे भी लोग होंगे जो मुझ से भी खराब स्थिति में हों. मैं तो खुद अच्छा महसूस करती हूं कि जिन से मेरा कोई खून का रिश्ता नहीं है, उन्होंने मेरे जीवन को संवारा है. आप सर्वसाधन संपन्न हो कर भी अपनेआप को इतना बेचारा समझते हैं. मैं आप से यही कहना चाहूंगी कि जो हम से बेहतर हालात में रहते हैं, उन से प्रेरणा लो और जो हम से बेहतर हालात में रहते हैं, उन तक पहुंचने की कोशिश करो. यह मान कर चलना चाहिए कि जो हो रहा है, सब किसी एक की मरजी से हो रहा है और वह कभी किसी का गलत नहीं कर सकता. बस, हम ही ये बात समझ नहीं पाते. एनी वे, मैं चलती हूं, गुड बाय,’’ कह कर जानकी ने अपना बैग उठाया और जाने लगी. सिद्धार्थ ने सोचा ट्रेन तक ही सही कुछ समय और मिल जाएगा जानकी के साथ. और वह उस के पीछेपीछे दौड़ा. बोला, ‘‘जानकीजी, मैं आप को ट्रेन तक छोड़ देता हूं.’’

जानकी ने थोड़ी नानुकुर की लेकिन सिद्धार्थ की जिद पर उस ने अपना बैग उस के हाथ में दे दिया. जल्द ही ट्रेन प्लेटफौर्म पर आ गई और जानकी चली गई. सिद्धार्थ के लिए वक्त जैसे थम सा गया. जानकी से कोई जानपहचान नहीं, कोई दोस्ती नहीं, लेकिन एक अजीब सा रिश्ता बन गया था. पिछले 5-6 घंटों में उस ने अपने ?अंदर जितनी ऊर्जा महसूस की थी, अब उतना ही कमजोर महसूस कर रहाथा. भारी मन से वह वापस प्रतीक्षालय लौट आया. अब उस के लिए समय काटना बहुत मुश्किल हो गया था. जानकी का खयाल उस के दिमाग से एक मिनट के लिए भी जा नहीं रहा था. रहरह कर उसे जानकी की बातें याद आ रही थीं. अब उसे एहसास हो रहा था कि वह आज तक कितना गलत था. इतना साधन संपन्न होने के बाद भी वह कितना गरीब था. आज अचानक ही वह खुद को काफी शांत और सुलझा हुआ महसूस कर रहा था. उस के मातापिता ने आज तक जो कुछ उस के लिए किया था उस का महत्त्व उसे अब समझ में आ रहा था. उसे लगा, सच ही तो है कि पिता के व्यवसाय को बेटा आगे नहीं बढ़ाएगा तो उस के पिता की सारी मेहनत बरबाद हो जाएगी. लोग पहली सीढ़ी से शुरू करते हैं, उसे तो सीधे मंजिल ही मिल गई है. कितनी मुश्किलें हैं दुनिया में और वह खुद को बेचारा समझता था. वह आत्मग्लानि के सागर में गोते लगा रहा था. बारबार मन स्वयं को धिक्कार रहा था कि आज तक मैं ने क्याक्या खो दिया. मन विचारमग्न था तभी अगली गाड़ी की घोषणा हुई, जिस से सिद्धार्थ को पुणे जाना था.

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अगले दिन सिद्धार्थ पुणे पहुंच गया. रात जाग कर काटी थी. अब काफी थकान महसूस हो रही थी और नींद न होने से भारीपन भी. जब घर पहुंचा तो पिताजी औफिस जा चुके थे. मां ने ही थोड़े हालचाल पूछे. नहाधो कर सिद्धार्थ ने खाना खाया और सो गया. जब जागा तो डैड, जो अब उस के लिए पापा हो गए थे, वापस आ चुके थे. नींद खुलते ही सिद्धार्थ के दिमाग में वही प्रतीक्षालय और जानकी घूमने लगे. रात को तीनों साथ बैठे. सिद्धार्थ के हावभाव बदले हुए थे. मातापिता को लगा सफर की थकान है. जो सैंपल सिद्धार्थ लाया था उस ने वह पापा को दिखाए और काफी लगन से उन की गुणवत्ता पर चर्चा करने लगा. वह क्या बोल रहा था, इस पर पापा का ध्यान ही नहीं था, वे तो विश्वास ही नहीं कर पा रहे थे कि ये सब बातें सिद्धार्थ बोल रहा है जिसे उन के व्यवसाय में रत्ती भर भी रुचि नहीं है.

सिद्धार्थ बातों में इतना तल्लीन था कि समझ नहीं पाया कि पापा उसे निहार रहे हैं. रात का खाना खा कर वह फिर सोने चला गया. मातापिता दोनों ने इतने कम समय में सिद्धार्थ में बदलाव महसूस किया लेकिन कारण समझ नहीं सके. सिद्धार्थ के स्वभाव को जानते हुए उन के लिए इसे बदलाव समझना असंभव था.     

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