अधूरे प्यार की टीस: क्यों हुई पतिपत्नी में तकरार – भाग 4

अपनी जिंदगी के अहम फैसले उन के दोनों बच्चों ने कभी उन के साथ सलाह कर के नहीं लिए थे. जवान होने के बाद वे अपने पिता को अपनी मां की खुशियां छीनने वाला खलनायक मानने लगे थे. उन की ऐसी सोच बनाने में सीमा का उन्हें राकेश के खिलाफ लगातार भड़काना महत्त्वपूर्ण कारण रहा था.

उन की बेटी रिया ने अपना जीवनसाथी भी खुद ढूंढ़ा था. हीरो की तरह हमेशा सजासंवरा रहने वाला उस की पसंद का लड़का कपिल, राकेश को कभी नहीं जंचा.

कपिल के बारे में उन का अंदाजा सही निकला था. वह एक क्रूर स्वभाव वाला अहंकारी इनसान था. रिया अपनी विवाहित जिंदगी में खुश और सुखी नहीं थी. सीमा अपनी बेटी के ससुराल वालों को लगातार बहुतकुछ देने के बावजूद अपनी बेटी की खुशियां सुनिश्चित नहीं कर सकी थी.

शादी करने के लिए रवि ने भी अपनी पसंद की लड़की चुनी थी. उस ने विदेश में बस जाने का फैसला अपनी ससुराल वालों के कहने में आ कर किया था.

राकेश को इस बात से बहुत पीड़ा होती थी कि उन के बेटाबेटी ने कभी उन की भावनाओं को समझने की कोशिश नहीं की. वे अपनी मां के बहकावे में आ कर धीरेधीरे उन से दूर होते चले गए थे.

इन परिस्थितियों में अंजु और उस के बेटे के प्रति उन का झुकाव लगातार बढ़ता गया. उन के घर उन्हें मानसम्मान मिलता था. वहां उन्हें हमेशा यह महसूस होता कि उन दोनों को उन के सुखदुख की चिंता रहती है.

इस में कोई शक नहीं कि उन्होंने नीरज की इंजीनियरिंग की पढ़ाई का लगभग पूरा खर्च उठाया था. सीमा ने इस बात के पीछे कई बार कलहक्लेश किया पर उन्होंने उस के दबाव में आ कर इस जिम्मेदारी से हाथ नहीं खींचा था. वह अंजु से उन के मिलने पर रोक नहीं लगा सकी थी क्योंकि उसे कभी कोई गलत तरह का ठोस सुबूत इन के खिलाफ नहीं मिला था.

राकेशजी को पहला दिल का दौरा 3 साल पहले और दूसरा 5 दिन पहले पड़ा था. डाक्टरों ने पहले दौरे के बाद ही बाईपास सर्जरी करा लेने की सलाह दी थी. अब दूसरे दौरे के बाद आपरेशन न कराना उन की जान के लिए खतरनाक साबित होगा, ऐसी चेतावनी उन्होंने साफ शब्दों में राकेशजी को दे दी थी.

पिछले 5 दिनों में उन के अंदर जीने का उत्साह मर सा गया था. वे खुद को बहुत अकेला महसूस कर रहे थे. उन्हें बारबार लगता कि उन का सारा जीवन बेकार चला गया है.

मोबाइल फोन की घंटी बजी तो राकेशजी यादों की दुनिया से बाहर निकल आए थे. उन की पत्नी सीमा ने अमेरिका से फोन किया था.

‘‘क्या रवि ठीकठाक पहुंच गया है?’’ सीमा ने उन का हालचाल पूछने के बजाय अपने बेटे का हालचाल पूछा तो राकेशजी के होंठों पर उदास सी मुसकान उभर आई.

‘‘हां, वह बिलकुल ठीक है,’’ उन्होंने अपनी आवाज को सहज रखते हुए जवाब दिया.

‘‘डाक्टर तुम्हें कब छुट्टी देने की बात कह रहे हैं?’’

‘‘अभी पता नहीं कि छुट्टी कब तक मिलेगी. डाक्टर बाईपास सर्जरी कराने के लिए जोर डाल रहे हैं.’’

‘‘मैं तो अभी इंडिया नहीं आ सकती हूं. नन्हे रितेश की तबीयत ठीक नहीं चल रही है. तुम अपनी देखभाल के लिए एक नर्स का इंतजाम जरूर कर लेना.’’

‘‘ठीक है.’’

‘‘अपने अकाउंट में भी उस का नाम जुड़वा दो.’’

‘‘ठीक है.’’

‘‘मैं तो कहती हूं कि आपरेशन कराने के बाद तुम भी यहीं रहने आ जाओ. वहां अकेले कब तक अपनी बेकद्री कराते रहोगे?’’

‘‘तुम मेरी फिक्र न करो और अपना ध्यान रखो.’’

‘‘मेरी तुम ने आज तक किसी मामले में सुनी है, जो अब सुनोगे. वकील को जल्दी बुला लेना. रवि के यहां वापस लौटने से पहले दोनों काम हो जाने…’’

राकेशजी को अचानक अपनी पत्नी की आवाज को सुनना बहुत बड़ा बोझ लगने लगा तो उन्होंने झटके से संबंध काट कर फोन का स्विच औफ कर दिया. कल रात को अपनेआप से किया यह वादा उन्हें याद नहीं रहा कि वे अब अतीत को याद कर के अपने मन को परेशान व दुखी करना बंद कर देंगे.

‘इस औरत के कारण मेरी जिंदगी तबाह हो गई.’ यह एक वाक्य लगातार उन के दिमाग में गूंज कर उन की मानसिक शांति भंग किए जा रहा था.

कुछ देर बाद जब रवि ने उन के कमरे में कदम रखा तब राकेशजी के चेहरे पर तनाव के भाव साफ नजर आ रहे थे.

अकेलेपन से कब तक जूझते रहेंगे बुजुर्ग

7 अगस्त, 2017 को मुंबई के ओशिवारा में अपनी मां से मिलने पहुंचे ऋतुराज साहनी को बंद फ्लैट से अपनी मां आशा साहनी का कंकाल मात्र ही मिला. अमेरिका में बसे बेटे ने आखिरी बार, अपनी मां से फोन पर बात अप्रैल 2016 में की थी. पुलिस को फ्लैट से सुसाइड नोट मिला, ‘‘मेरी मौत के लिए किसी को दोषी न ठहराया जाए.’’ आखिरी बार की बातचीत में महिला ने अपने पुत्र से कहा था, ‘मैं घर में बहुत अकेलापन महसूस करती हूं और ओल्डएज होम जाना चाहती हूं.’ आशाजी के नाम पर सोसायटी में करीब 5 से 6 करोड़ रुपए के 2 फ्लैट हैं.

संदर्भ यही है कि महिला अपने अकेलेपन से ऊब गई थी और मौत को ही अंतिम विकल्प मान कर इस दुनिया से चली गई. मगर अफसोस इस बात का है कि उस के पासपड़ोस के लोगों ने एक बार भी उस विषय में चर्चा नहीं की. क्या उस के घर अखबार वाला या कामवाली बाई कोई भी नहीं आती थी? क्या अपने पुत्र के सिवा किसी अन्य से बातचीत नहीं होती थी? क्या पूरी मुंबई या भारत में उस से संपर्क रखने वाले, उस के सुखदुख के साथी, पड़ोसी, मित्र या रिश्तेदार नहीं बचे थे? ऐसा कैसे हो सकता है जबकि उस की उम्र मात्र 63 वर्ष थी.

समाज और बुजुर्ग

भारत में 2020 तक 20 प्रतिशत भारतीय मानसिक समस्याओं का सामना कर रहे होंगे, ऐसा विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट से स्पष्ट हुआ है. हर वर्ष 2 लाख लोग आत्महत्या करते हैं जोकि विश्व में होने वाली आत्महत्याओं का 25 प्रतिशत है. देश में अकेलापन और आर्थिक व मानसिक असुरक्षा बुजुर्गों के दुख के प्रमुख कारण हैं.

हम समाज से हैं और समाज हम से है. व्यक्ति परिवार, पड़ोस, विद्यालय, समुदाय, राज्य, धर्म आदि विभिन्न लोगों से जुड़ा रहता है. इन सब के बावजूद हम अकेले कैसे पड़ जाते हैं, यह विचारणीय है.

सही कहावत है, बचपन खेल कर खोया, जवानी नींद भर सोया, बुढ़ापा देख कर रोया. बचपन और जवानी का समय, विभिन्न प्रकार की गतिविधियों, जिम्मेदारियों के बीच कब गुजर जाता है, पता नहीं चलता. लेकिन वृद्धावस्था की समस्याओं की व्यापकता, गंभीरता और जटिलता वर्तमान समय की प्रमुख समस्या के रूप में सामने आ रही है. जैसेजैसे लोगों के रहनसहन के स्तर में उन्नति हुई है, वैसे ही वृद्ध व्यक्तियों की अधिक समय तक जीवित रहने की संभावना भी बढ़ती जा रही है. सो, वृद्ध व्यक्तियों की संख्या में वृद्धि हो रही है.

समाज की यह परंपरा रही है कि वृद्धों के पुत्र व अन्य संबंधी उन की देखभाल करते हैं. इस के बावजूद, कई परिवारों में वृद्धों को पर्याप्त व आवश्यक देखभाल और सहायता नहीं मिल पाती. इस कारण वे दुखी व शारीरिकमानसिक बीमारियों से त्रस्त रहते हैं. वृद्धों की दुखदाई परिस्थिति के लिए परिवार का परस्पर मतभेद, कमजोर आर्थिक स्थिति, साधनों का अभाव और संतानों का विदेश जा कर बस जाना प्रमुख कारण हैं.

society

क्या न करें : रेमंड के मालिक विजयपत सिंघानिया का कहना है कि उन का पुत्र उन्हें कौड़ीकौड़ी के लिए तरसा रहा है और वे करोड़ों की जायदाद बेटे के नाम करने के बाद मुंबई की ग्रैंड पराडी सोसायटी में किराए के मकान में रह रहे हैं. जब अरबों की जायदाद पा कर भी किसी संतान में लालच आ सकता है तो मामूली हैसियत वाले परिवारों की बात ही क्या? अपने जीतेजी प्रौपर्टी अपनी संतानों के हवाले बिलकुल नहीं करनी चाहिए.

ऐसा नहीं है कि सिर्फ बुजुर्ग ही अकेलेपन के शिकार हो मानसिक अवसाद से घिर जाते हैं बल्कि युवा भी जब समाज से कटते हैं तो वे भी मानसिक रोगी बन जाते हैं और आत्महत्या कर लेते हैं या अपने को घर में कैद कर रहने लगते हैं. ऐसे कई युवकयुवतियों को घर से पुलिसबल द्वारा जबरन अस्पताल में भरती कराने की खबरें भी समयसमय पर सुर्खियां बनती रहती हैं.

क्या करें : अपनी आर्थिक सुरक्षा बरकरार रखनी चाहिए. अपने स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए मौसमी फल, सब्जी व स्वास्थ्यवर्धक आहार लेना चाहिए. पड़ोसी, रिश्तेदार व मित्रों के संपर्क में रहना चाहिए. सभी की यथासंभव आर्थिक, मानसिक या शारीरिक स्तर की मदद जरूर करनी चाहिए. जब आप आगे बढ़ कर दूसरों के सुखदुख में काम आएंगे तभी आप दूसरों की नजरों में आ पाएंगे.

अकेलेपन को अपना साथी न बना कर नियमित रूप से अपनी सोसायटी, महल्ले के क्लब या पार्क में जाएं. लोगों के संपर्क में रह कर उन के सुखदुख जानें. इस तरह के संपर्क आप को जीवन के सकारात्मक रुख की ओर ले जाते हैं.

यदि आर्थिक रूप से समर्थ हैं तो ड्राइवर, कामवाली, घरेलू नौकर की समयसमय पर आर्थिक मदद अवश्य करें. यदि धनाभाव है तो कमजोर तबके के बच्चों की पढ़ाई में निशुल्क या कम पैसे से ट्यूशन दे कर अपना समय व्यतीत करें व अकेलापन भी दूर करें.

यदि आप संयुक्त परिवार में हैं तो घर के सभी सदस्यों को साथ ले कर चलें. किसी भी प्रकार का भेदभाव पारिवारिक संबंधों की कड़वाहट का कारण बन सकता है. अगर आप अकेले ही वृद्धावस्था का सफर काट रहे हैं और आप की संतानें दूसरे शहरों या विदेशों में बसी हैं तो आप को अपने बच्चों से संपर्क में रहने से ज्यादा, अपने पड़ोसियों के संपर्क में रहना जरूरी है. आप की किसी भी परेशानी में बच्चों के पहुंचने से पहले पड़ोसी स्थिति संभाल लेंगे. यह तभी संभव है जब आप पड़ोसियों से मधुर संबंध रखेंगे.

आप अपनी सोसायटी, महल्ले के बुजुर्ग लोगों का एक अलग ग्रुप बना कर अपना समय बहुत ही अच्छे ढंग से बिता सकते हैं. बारीबारी से चायपानी का प्रोग्राम, साथ घूमने का प्रोग्राम, लूडो, कैरम, शतरंज जैसे खेल साथ में खेलने का प्रस्ताव भी समय को रोचक बनाता है.

सब का संगसाथ

महिमाजी पूरे महल्ले के बच्चों को अपने घर पर बुला कर रमी खेलती मिल जाएंगी. आतेजाते को पुकारेंगी, ‘‘ए लली, थोड़ी देर रमी खेलो न.’’ सब जानते हैं कि वे ताश खेलने की काफी शौकीन हैं. जो भी फुरसत में रहता है, उन के पास जा कर ताश खेल लेता है. किसी दिन उन की आवाज न सुनाई दे तो लोग खुद ही उन का हालचाल पूछने लगते हैं.

सुनयनाजी भजन, सोहर, बन्नाबन्नी सभी लोकगीत बहुत सुरीले स्वर में गाती हैं. हर घर के तीजत्योहार या किसी भी प्रोग्राम में उन की उपस्थिति अनिवार्य है. उन के लिए हर घर से निमंत्रण आता है.

महेशजी ने व्यायाम में महारत हासिल की हुई है. वे पार्क में नियमित रूप से लोगों को योग के टिप्स देते मिल जाते हैं. यदि वे पार्क में न दिखें, तो लोग उन का हालचाल लेने उन के घर पहुंच जाते हैं.

विनयजी को गप मारने की आदत है. अपने दरवाजे पर बैठेबैठे वे हर आनेजाने वाले की कुशलता पूछ लेते हैं. जिस दिन वे न दिखाई दें, उस दिन लोग उन के घर ही चल देते हैं.

प्रकाशजी एक बडे़ से बंगले के मालिक हैं. अपने बच्चों के विदेश प्रवास और पत्नी की मृत्यु के बाद अकेलेपन को दूर करने का उन्होंने एक नायाब तरीका ढूंढ़ा. उन्होंने अपने बंगले के आधे हिस्से में असहाय, निराश्रित वृद्धजन के लिए द्वार खोल दिए, जिस में रहनेखाने की सुविधा के बदले श्रमदान को अधिक महत्त्व दिया. वहां पर दिनभर किसी भी कार्य में दिया योगदान ही आप को वहां की सुविधा का लाभार्थी बनाता है, जैसे साफसफाई, खाना बनाना या बगीचे का रखरखाव. इस प्रकार वे अपनी उम्र के लोगों से जुड़े हुए हैं और वहीं वे उन का सहारा भी बन गए हैं.

समाज को अपनी गिरफ्त में लेता जा रहा है जहां धन, यश व भीड़भाड़ के बावजूद वृद्ध एकाकी हो कर अपनों के इंतजार में दम तोड़ रहे हैं.

 

जाएं तो जाएं कहां : चार कैदियों का दर्द -भाग 4

अनुपम को हैरानी हुई कि उस के नाम किसी ने चिट्ठी लिखी है. जेल में आने वाली चिट्ठियों को जेलर के पास से हो कर गुजरना पड़ता था. उसे पहले खोल कर पढ़ा जाता, फिर चिट्ठी दी जाती. चिट्ठी खुली थी. जेल के गार्ड ने चिट्ठी ला कर अनुपम को दी.

अनुपम ने चिट्ठी खोल कर पढ़ी:

‘प्रिय पतिदेव,

‘चरण स्पर्श,

‘पता चला है कि आप आतंकवाद के आरोप में दिल्ली जेल में हैं. सो, चिट्ठी लिखने का सौभाग्य मिला. मैं ठीक हूं. दोनों बेटियां साथ में?हैं. हम इस समय जम्मू शरणार्थी शिविर में हैं. कुछ समय बाद ही कश्मीर में आतंकवादियों ने फिर से पैर पसार लिए थे. उन का खुला आदेश?था कि हिंदू घाटी छोड़ दें, वरना मारे जाएंगे.

‘जब हिंदुओं की दिनदहाड़े हत्याएं होने लगीं, तो सभी हिंदू मौका मिलते ही अपना घर छोड़ कर भाग गए. आसपड़ोस के मुसलिम परिवारों ने कहा भी कि आप लोग मत जाइए. लेकिन बंदूक के सामने किस का जोर चलता?है. बाद में उन्होंने ही कहा कि अभी आप लोग चले जाइए. माहौल ठीक होते ही आ जाना.

‘काफी समय बीत गया, लेकिन कोई भी जाने को तैयार नहीं है. राहत केंद्रों से ही लोग दिल्ली जैसे शहरों की तरफ बढ़ने लगे हैं, रोजगार की तलाश में. नए मकान की तलाश में.

‘मैं जम्मू में ही रह कर दूसरों के घरों में बरतनझाड़ू का काम कर के जैसेतैसे दोनों बेटियों की खातिर जी रही हूं. आप से मिलने दिल्ली आना नहीं हो पा रहा है.

‘मैं ने एक वकील से बात की है. वह आप का केस लड़ने को तैयार है. वह भी कश्मीरी पंडित?है. हमारे दर्द को समझता है. बिना पैसे के इनसानियत के नाम पर वह केस लड़ने को राजी है. हम जल्दी मिलेंगे.

‘आप के इंतजार में.

‘आप की मनोरमा.’

चिट्ठी पढ़ कर अनुपम की आंखों में आंसू आ गए. खुशी के आंसू. आंसू अपनों के मिलने के. चारों कैदी रसोई वाले बैरक में बैठे थे. अनुपम ने बाकी तीनों को बताया. वे खुश हो गए.

‘‘किसी ने ठीक ही कहा है कि एक दरवाजा बंद होता है, तो दूसरा खुल जाता है,’’ अनुपम ने कहा.

‘‘हां, और किसी के लिए सारे दरवाजे बंद कर देता है. किसीकिसी की जिंदगी में उजाला होता ही नहीं है,’’ बिशनलाल ने कहा. जमानत खारिज होने से वह उदास था.

‘‘हम तो भटके हुए राही हैं. राजनीति के शिकार. हम जाएं तो जाएं कहां? हम जैसों का न कोई देश है, न घर,’’ चांद मोहम्मद ने कहा.

‘‘आप लोग अपने पैरों पर खुद ही कुल्हाड़ी मारते हैं,’’ राकेश ने कहा.

‘‘हां, तुम ठीक कहते हो. बलि के बकरे हैं हम. कटने के ही काम आते हैं…’’ चांद मोहम्मद ने उदास लहजे में कहा, ‘‘हमारे अपने ही लोग हमारे दुश्मन हैं, तो…’’

माहौल फिर बोझिल हो गया. चारों लेट कर नींद के आने का इंतजार करने लगे.

‘‘यहां पर कितनी गंदगी है. जेल प्रशासन भी साफसफाई का बिलकुल खयाल नहीं रखता,’’ अनुपम ने कहा.

‘‘यही आदमी बाहर की दुनिया में भी कहता है. गंदगी खुद करता है और कुसूर सरकार को देता है. बाहर भी आबादी जरूरत से ज्यादा है और अंदर भी. हमें इस का ध्यान खुद रखना होगा,’’ चांद मोहम्मद ने कहा.

‘‘सब को ध्यान रखना चाहिए. हम अकेले क्या कर सकते हैं’’ राकेश ने कहा.

‘‘हम यह चाहते हैं कि पानगुटका खा कर थूकें हम और सफाई सरकार करे. शौचालय की गंदगी के लिए भी हम सरकार को दोष देंगे. अंदरबाहर सब जगह एक सा हाल है,’’ बिशनलाल ने कहा.

‘‘अफसरमुलाजिम सिर्फ घूस खाएं, मुनाफा कमाएं, हमें इस्तेमाल करें और हमारे हिस्से में आए सिर्फ मेहतरी,’’ अनुपम ने मुंह बनाते हुए कहा.

‘‘खैर छोड़ो… हां भाई राकेश, तुम सुनाओ. इतना बड़ा केस तो है नहीं तुम्हारा, फिर तुम्हारी जमानत क्यों नहीं हो पा रही है?’’ चांद मोहम्मद ने पूछा.

‘‘जमानत के लिए वकील चाहिए. जमानत मंजूर होने के बाद जमानतदार चाहिए. उस सब के लिए पैसा चाहिए. पैसा है नहीं मेरे पास.

‘‘फिर बाहर जा कर हमें करना क्या है? बेरोजगारी से कौन लड़ेगा? पैसे कहां से आएंगे? फिर समाज की हंसी भी बरदाश्त करनी पड़ेगी. घर वालों को लाख दफा मना किया था, लेकिन माने नहीं. खुद भी भुगत रहे हैं और हमें भी भुगतवा रहे हैं,’’ राकेश ने कहा.

‘‘हुआ क्या था?’’ अनुपम ने पूछा.

‘‘नौकरी मिली नहीं. न रिश्वत देने के लिए पैसे थे और न ही कोई सरकारी कोटा. घर के लोगों की सारी उम्मीदें मुझ से थीं. मैं यूपीएससी की तैयारी के लिए दिल्ली गया, लेकिन कुछ हो न सका.

‘‘एक मुसलिम लड़की के प्यार में दीवाना हुआ, तो उस के घर वालों ने फतवा जारी कर दिया. पढ़ाईलिखाई एक तरफ रह गई. मेरी जान के लाले पड़ गए. शादी के लिए मंदिर तक पहुंच गए. ऐन वक्त पर लड़की के परिवार वाले वहां आ गए.

‘‘लड़की अपने परिवार का विरोध न कर सकी. मुझे मारापीटा गया. पुलिस को घूस खिला कर 4 दिन तक थाने में बंद रख कर थर्ड डिगरी दी गई.

‘‘जब मैं बाहर आया, तो दोस्तों से पता चला कि प्रेमिका की शादी दुबई में जा कर करवा दी गई. मैं घर पहुंचा तो पिता के सपने चकनाचूर करने का मुझे कुसूरवार करार दिया गया.

‘‘रोजरोज के तानों से तंग आ कर मैं काम की तलाश में मुंबई चला आया. कुछ दिन भटकने के बाद मैं आटोरिकशा चलाने लगा.

‘‘कुछ दिन बीते थे कि हिंदीमराठी झगड़ा शुरू हो गया. उत्तरभारतीयों खासकर बिहारियों के आटोरिकशे जला दिए गए. तोड़फोड़ की गई. मराठी नेता ने मुंबई छोड़ो अभियान छेड़ दिया. उन के अभियान में मैं भी फंस गया. मारपीट कर मुझे पटना जाने वाली ट्रेन में ठूंस दिया गया.

‘‘घर आया तो मातापिता को लगा कि लड़के की शादी कर दी जाए. मैं ने लाख समझाया कि अभी मुझे कुछ कर लेने दो, कुछ बन जाने दो.

‘‘पिताजी ने गुस्से से कहा, ‘तुम्हारा कुछ नहीं हो सकता. तुम कुछ नहीं बन सकते. शादी करो और हमें जिम्मेदारी से मुक्त करो.’

‘‘पिताजी चाहते थे कि हमारी जाति में शादी हो जाए. दहेज में जो रकम मिलेगी, उस से मेरे लिए छोटीमोटी दुकान खोल देंगे.

‘‘शादी की रात पत्नी ने कहा, ‘मैं किसी और से प्यार करती हूं. मुझे हाथ मत लगाना.’

‘‘मेरे सारे अरमान ठंडे पड़ गए. मैं ने पूछा भी कि फिर मुझ से शादी क्यों की? मेरी जिंदगी क्यों बरबाद की? पता नहीं, क्या हुआ, शादी की पहली ही रात दुलहन ने जहर खा लिया.

‘‘अस्पताल में दुलहन तो बच गई, लेकिन उस के कहने पर दहेज के लिए सताने और उसे खुदकुशी के लिए उकसाने का केस बना. पूरा परिवार अंदर. बूढ़े मातापिता, जवान बहन.

‘‘बड़ी मुश्किल से एकएक कर के मातापिता और बहन की जमानत हुई. चाचा और मामा ने दलालों को पैसा दे कर जमानतदार दिलवाए.

‘‘मैं हर तरफ से टूट चुका था. उस पर पिताजी का गुस्सा. एक बार मिलने आए तो उन्होंने कहा कि हम कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रहे. हम यह शहर छोड़ कर जा रहे?हैं. जब हमारे पास पैसे होंगे तो जमानत करवा लेंगे, अब सिर्फ पेशी में आएंगे.

‘‘पिताजी परिवार को ले कर बनारस चले गए. चाचा बनारस में नौकरी करते थे. उन्होंने पिताजी को एक प्राइवेट कंपनी में चौकीदार की नौकरी दिलवा दी. 4-5 हजार रुपए महीने की तनख्वाह में घर चलाएं या केस लड़ने के लिए पैसा दें, मेरी जमानत कराएं. बहन की शादी करना भी जरूरी है. पेशी में मां और बहन से कोर्ट में मुलाकात हुई.

‘‘मां ने रोते हुए कहा, ‘हम तुम्हारी जमानत कराने की कोशिश में लगे हैं. यहां से तो जमानत अर्जी खारिज हो गई. हाईकोर्ट से तुम्हारी जमानत हो जाएगी. लेकिन अभी पैसों की तंगी है.’

‘‘मैं ने मां से कहा, ‘क्या करूंगा बाहर आ कर मैं? अंदर ही?ठीक हूं. मेरी जमानत की कोशिश मत करना.’’’

माहौल में फिर उमस सी भर आई.

बिशनलाल ने कहा, ‘‘न तो जमीन अपनी, न ही जंगल अपना. पुलिस कारोबारी, माओवादी सब दुश्मन अपने. जाएं तो जाएं कहां?’’

चांद मोहम्मद ने अपने इर्दगिर्द भिनभिना रहे मच्छर को मारते हुए कहा, ‘‘वतन हो कर बेवतन. मजहब के बकरे हैं हम. जाएं तो जाएं कहां?’’

मच्छरों से बचने के लिए अनुपम ने जगहजगह से फटी हुई चादर पैर से सिर तक ओढ़ते हुए कहा, ‘‘अपने ही देश में शरणार्थी, अपने ही घर में आतंकवादियों का शिकार और अपनी ही पुलिस से आतंकवाद का ठप्पा. मर क्यों नहीं जाते हम?’’

राकेश ने कहा, ‘‘कल होली है. मिठाई बांटने आएंगी कई समाजसेवी संस्थाएं.’’

बिशनलाल ने खड़े हो कर कहा, ‘‘भाईचारा जिंदाबाद…’’ और फौरन लेट गया.

राकेश ने हाथ को माइक बनाते हुए कहा, ‘‘सुनिए, सन्नाटे को चीरती हुई सनसनी. एक बिहारी की दर्दभरी दास्तां. प्रेमिका का निकाह दुबई में. पत्नी भाग गई प्रेमिका के संग. दहेज का लोभी, बीवी को मारने की कोशिश करने वाला यह खतरनाक शख्स राकेश कुमार जेल में…’’

इस के बाद राकेश हंसने लगा. साथ ही, यह सुन कर बाकी तीनों भी हंसने लगे. हंसतहंसते चारों की आंखों में आंसू आ गए और फिर चारों एकसाथ अपनेअपने आंसुओं को छिपाने के लिए मुंह को अपने हाथों से बंद कर लेते, लेकिन कमबख्त आंसू छलकछलक कर उन के दर्द का ब्योरा दे ही देते.

खिलाड़ियों के खिलाड़ी : मीनाक्षी की जिंदगी में कौन था आस्तीन का सांप – भाग 4

‘‘यह फ्लैट मुझे मुख्यमंत्री ने अपने विशेष कोटे से अलौट किया है जिस में उन के और मेरे खास दोस्त ही ठहर सकते हैं. तुम कुछ दिन वहां रह लो, फिर मैं मुख्यमंत्री से बात कर के तुम्हें निराश्रित और आर्थिकरूप से कमजोर विधवा बता कर तुम्हारे नाम से एक आलीशान फ्लैट भी अलौट करवा दूंगा जहां तुम आराम से रहना, फिर रूपयोंपैसों की तो तुम्हारे पास कमी है नहीं. अगर जरूरत पड़ जाए तो हम लोग हैं ही.’’

‘‘लो, तुम्हारे सामने ही मैं वे सभी वीडियो डिलीट कर देती हूं,’’ कहते हुए मीनाक्षी ने अपना मोबाइल निकाला और विशाल के सामने सारे वीडियो डिलीट कर दिए, फिर लैपटौप में सेव किए हुआ वीडियोज का एक फोल्डर भी डिलीट कर दिया.

विशाल बड़े ध्यान से सब देख रहा था मगर उस ने मीनाक्षी के साथ जिस तरह की दोस्ती थी उस से उस ने यह जरूर जान लिया था कि मीनाक्षी बहुत शातिर है. जितनी सहजता से वह सब डिलीट कर रही है, इस का मतलब यही है कि उस ने ये सब कहीं और जरूर छिपा कर रखा होगा. विशाल ने देखा कि मीनाक्षी अपने लैपटौप और अन्य कुछ इलैक्ट्रौनिक डिवाइसेज हरे रंग के एक छोटे से बैग में रख कर उसे लाल रंग के सूटकेस में रख रही है.

विशाल ने मीनाक्षी के सामने सुनहरे सपनों का एक महल खड़ा कर दिया था. वह बेहद खुश हो गई थी. विशाल की बातें सुन कर मीनाक्षी खयालों में खो गई और अपने सुरक्षित एवं सुखद भविष्य की कल्पना करने लगी. कल्पना की दुनिया में खोई मीनाक्षी सोचने लगी कि उस ने अरुण के साथ हमेशा तनावग्रस्त जिंदगी जी है, अरुण उस के साथ बहुत अत्याचार करता था, अपनी जान बचाने के लिए वह अपनी पत्नी का उपयोग करने से भी बाज नहीं आता था. अब उसे इस तरह की घिनौनी जिंदगी से छुटकारा मिल जाएगा.

लेकिन, मीनाक्षी अपने गिरेबान में नहीं ?ांक रही थी. उस ने भी तो अरुण के नाम से बहुत फायदा उठाया था. ऐशोआराम की जिंदगी जीने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी. महंगी कारों में घूमने और बड़े होटलों में पार्टियों से उसे फुरसत कहां मिलती थी. जब से उस ने सैक्रेटियट में एंट्री की थी तब से उस का रोब और भी बढ़ गया था. कई अफसरों व मंत्रियों से उस के बैडरूम कौन्टैक्ट्स भी थे. उस ने मुख्यमंत्री तक को अपना मोहरा बना कर रखा था.

मीनाक्षी 2 दिनों बाद विशाल के वीआईपी फ्लैट में रहने के लिए चली गई. अब मीनाक्षी बहुत खुश थी और सोच रही थी कि अब उस के दिन बदल रहे हैं. मगर वह मुख्यमंत्री और विशाल के बीच जो खिचड़ी पक रही थी, उस से नावाकिफ थी. मुख्यमंत्री को उन के बहुत ही करीबी एक मीडियाकर्मी दोस्त ने सावधान करते हुए कहा था कि विरोधी पार्टी ने मीनाक्षी को उन के खेमे में सेंध लगाने के लिए भेजा है. विरोधी पार्टी के एक बड़े नेता के घर में मीनाक्षी का आनाजाना बढ़ गया है. उस ने यहां तक सुना है कि अगर वह सरकार गिराने मे सहयोग करेगी तो उसे मंत्री भी बनाया जा सकता है. कहते हैं कि राजनीति में कोई किसी का दोस्त नहीं होता. आप का जिगरी दोस्त तक आप की आस्तीन का सांप बन जाता है.

एक दिन मुख्यमंत्री ने विशाल को अपने बंगले पर बुलाया और सारी बातें बताते हुए सचेत रहने की सलाह दी. फिर दोनों ने यह तय किया कि मीनाक्षी को रास्ते से हटाना ही उन के हित में होगा. दोनों ने रात देर तक बातें कर के अपने प्लान को अंतिम रूप दिया और एकदूसरे से गले मिलते हुए जुदा हुए.

4 दिनों बाद विशाल ने मीनाक्षी को फोन किया, ‘‘हैलो मीनाक्षी, कैसी हो, कोई परेशानी तो नहीं हो रही है तुम्हें?’’

‘‘नहीं तो, यहां तो बहुत अच्छा लग रहा है. मु?ो कोई तकलीफ नहीं है,’’ मीनाक्षी ने खुश होते हुए कहा.

‘‘मीनाक्षी, दरअसल, मैं ने इसलिए फोन किया कि मुख्यमंत्री के 2 खास दोस्त कल अपनी फैमिली के साथ यूएस से किसी बहुत ही जरूरी काम के लिए उन से मिलने आ रहे हैं. वे केवल 4 दिन इंडिया में रुकेंगे. मुख्यमंत्री उन से सीक्रेटली’ मिलना चाहते हैं. इस के लिए उन्होंने मुझ से अनुरोध किया है कि उन के ठहरने की व्यवस्था वीआईपी फ्लैट में करूं. मैं उन के अनुरोध को टाल नहीं सकता. तुम्हें थोड़ी परेशानी तो होगी मगर क्या कर सकते हैं.

‘‘प्लीज, मेरे लिए तुम्हें थोड़ी तकलीफ उठानी पड़ेगी. बस, 4 दिन की बात है. तुम अपना बहुत जरूरी सामान ले कर होटल हिलटोन में पहुंच जाना. वहां मैं ने तुम्हारे लिए एक डीलैक्स सूट 4 दिन के लिए तुम्हारे नाम से ही बुक करवा दिया है. सारा पेमैंट मैं ने एडवांस में ही पेड कर दिया है. तुम्हें वहां 4 दिन तक एक भी पैसा अपनी जेब से खर्च नहीं करना है. मुख्यमंत्री के दोस्त जैसे ही यूएस के लिए रवाना होंगे, तुम अपने फ्लैट में लौट जाना.’’

‘‘हां, क्यों नहीं विशाल, 4 दिन की ही तो बात है. मैं कल सुबह ही चली जाऊंगी, डोंट वरी.’’ शहर के सब से बड़े फाइवस्टार होटल में 4 दिन तक शान से मुफ्त में रहने को मिलेगा, इस खुशी में उछलते हुए मीनाक्षी ने आगे कहा, ‘‘थैंक्यू.’’

विशाल ने फोन काट दिया और तुरंत मुख्यमंत्री को सारी बात बता दी.

‘‘वैरी गुड विशाल, तुम अब तैयार हो जाओ. हम दोनों आज रात 11 बजे की फ्लाइट से उदयपुर मेरे पिता से मिलने जा रहे हैं. उन की तबीयत बहुत खराब है. हमारे टिकट बुक हो चुके हैं,’’ मुख्यमंत्री ने खुश होते हुए कहा.

विशाल की समझ में नहीं आ रहा था कि मुख्यमंत्री अचानक उदयपुर जाने के लिए क्यों कह रहे हैं. प्लान तो कुछ अलग बना था. खैर, वह तैयार हो कर निश्चित समय पर एअरपोर्ट पहुंच गया. रात में करीब एक बजे वे दोनों उदयपुर पहुंच गए. मुख्यमंत्री के पिताजी बिलकुल स्वस्थ लग रहे थे, घर के बाकी सभी सदस्य भी ठीक लग रहे थे.

विशाल ने मुख्यमंत्री की तरफ देखा, तो उन्होंने अपनी बाईं आंख दबाते हुए कहा, ‘‘विशाल, एवरी थिंग इज गोइंग वैल. डोंट वरी. जा कर अपने कमरे में सो जाओ, सुबह बात करेंगे.’’

विशाल सुबह जल्दी उठ कर तैयार हो गया. मगर मुख्यमंत्री देर तक सोते रहे. वे 10 बजे के बाद उठे और करीब 12 बजे तक नहाधो कर तैयार हुए. बाहर हौल में आ कर उन्होंने विशाल से कहा, ‘‘विशाल, जरा टीवी लगा कर समाचार तो सुनो.’’

विशाल ने जल्दी से टीवी औन किया, एक न्यूज चैनल लगाया जिस पर ब्रेकिंग न्यूज आ रही थी- ‘कुख्यात गैंगस्टर अरुण नाईक की पत्नी मीनाक्षी नाईक की एक सड़क दुर्घटना में मौत. वे अपनी कार खुद चला रही थीं. एक विकट मोड़ पर उन की कार एक ट्रक से टकरा गई. कार का पैट्रोल टैंक फट जाने से उन का पूरा शरीर जल गया तथा कार में रखा सामान भी जल कर राख हो गया.’’

मुख्यमंत्री विशाल की पीठ पर हाथ रखते हुए बोले, ‘‘विशाल, हम भी पहुंचे हुए खिलाड़ी हैं. हम ने कच्ची गोटियां नहीं खेली हैं. तुम ने जिस लाल सूटकेस को हमारे लिए खतरा बताया था, उसे मीनाक्षी कार में अपने साथ ले जा रही थी. पलभर में खेल खत्म हो गया और हम दोनों शहर से बाहर हैं.’’ यह कहते हुए मुख्यमंत्री ने जोर से ठहाका लगाया और ताली के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया.

विशाल ने भी ठहाका लगा कर उन्हें ताली देते हुए कहा, ‘‘सरजी, आप केवल खिलाड़ी नहीं, आप तो खिलाडि़यों के भी खिलाड़ी हैं.’’

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अगर आपको भी लगती है बहुत ज्यादा ठंड तो हो सकता है थायराइड

Health Tips in Hindi: क्या आप को जरूरत से ज्यादा ठंड लगती है, हमेशा आप के हाथपैर ठंडे रहते हैं और जाड़े के मौसम में स्वेटर्स की 2-3 लेयर्स से कम में आप का काम नहीं चलता? आइए जानते हैं क्यों लगती है कुछ लोगों को अधिक ठंड. इस से थायराइड (Thyroid) की समस्या बढ़ सकती है.  हाइपोथायराइडिज्म एक स्थिति है जब थायराइड ग्लैंड कम एक्टिव होता है. थायराइड ग्लैंड बहुत सारे मेटाबौलिज्म (Metabolism) प्रक्रियाओं के लिए उत्तरदायी है. इस का एक काम शरीर के तापमान का नियंत्रण करना भी है. जाहिर है हाइपोथायरायडिज्म से पीड़ित व्यक्ति ज्यादा ठंड महसूस करते हैं क्यों कि उन के शरीर में थायराइड हार्मोन (Harmon) की कमी रहती है.

अधिक उम्र

अधिक उम्र में ठंड अधिक लगती है. खासकर 60 साल के बाद व्यक्ति का मेटाबोलिज्म स्लो हो जाता है. इस वजह से शरीर कम हीट पैदा करता है.

एनीमिया

आयरन की कमी से शरीर का तापमान गिरता है क्यों कि आयरन रेड ब्लड सेल्स का प्रमुख स्रोत है. शरीर को पर्याप्त आयरन न मिलने से रेड ब्लड सेल्स बेहतर तरीके से काम नहीं कर पाते और हमें ज्यादा ठंड लगने लगती है.

खानपान

यदि आप गर्म चीजें ज्यादा खाते हैं जैसे ड्राई फ्रूट्स, नौनवेज, गुड, बादाम आदि तो आप को ठंड कम लगेगी. इस के विपरीत ठंडी चीजें जैसे, सलाद, आइसक्रीम, वेजिटेबल्स, दही आदि अधिक लेने से ठंड ज्यादा लगती है.

प्रेगनेंसी

प्रेगनेंसी के दौरान महिलाओं को एनीमिया और सरकुलेशन की शिकायत हो जाती है. इस वजह से कई बार ठंड लगने खासकर हाथ पैरों के ठंडा होने की शिकायत करती है.

डीहाइड्रेशन

पानी कम मात्रा में पीने से शरीर का मेटाबौलिज्म घट जाता है और शरीर खुद को गर्म रखने के लिए आवश्यक एनर्जी और हीट तैयार नहीं कर पाता.

हारमोंस

अलगअलग तरह के हार्मोन्स भी हमारे शरीर के तापमान को प्रभावित करते हैं. उदाहरण के लिए एस्ट्रोजेन साधारणतः डाइलेटेड ब्लड वेसल्स और बौडी टेंपरेचर प्रमोट करता है. जबकि पुरुषों में मौजूद टेस्टोस्टेरोन हार्मोन इस के विपरीत कार्य करता है. इस वजह से महिलाओं का शरीर ज्यादा ठंडा होता है. एक अध्ययन के मुताबिक महिलाओं के हाथ पैर पुरुषों के देखे लगातार अधिक ठंडे रहते हैं. यही नहीं महिलाओं में थायराइड और अनीमिया की समस्या भी अधिक होती है. दोनों ही ठंड लगने के लिए अहम् कारक हैं.

पुअर सर्कुलेशन

यदि आप का पूरा शरीर तो आरामदायक स्थिति में है मगर हाथ और पैर ठंडे हो रहे हैं तो इस का मतलब है कि आप को सरकुलेशन प्रौब्लम है जिस की वजह से खून का प्रवाह शरीर के हर हिस्से में सही तरीके से नहीं हो रहा. हार्ट भी सही तरीके से काम नहीं कर रहा. ऐसी स्थिति में भी ठंड अधिक लगने की समस्या पैदा हो सकती है.

तनाव और चिंता

जिन लोगों की जिंदगी में अधिक तनाव और डिप्रेशन होता है वे अक्सर ठंड अधिक महसूस करते हैं क्यों कि तनावग्रस्त होने की स्थिति में हमारे मस्तिष्क का वह भाग सक्रिय हो जाता है जो खतरे के समय आप को सचेत रखता है.ऐसे में शरीर अपनी सारी ऊर्जा खुद को सुरक्षित रखने के लिए रिज़र्व रखता है और हाथपैर जैसे हिस्सों तक गर्मी नहीं पहुंच पाती.

जब बीएमआई कम हो

न केवल बीएमआई और वजन कम होने के कारण आप को ठंड ज्यादा लग सकती है बल्कि आप के शरीर में फैट और मसल्स की मात्रा भी उस की वजह बनती है. मसल्स अधिक मात्रा में होने से शरीर अधिक हीट पैदा करता है और फैट की वजह से भी शरीर से हीट लौस कम होता है जिस से ठंड कम लगती है.

यदि आप को लगता है कि दूसरों के मुकाबले आप का शरीर हमेशा ही ज्यादा ठंडा रहता है या फिर पहले कभी आप ने ठंड महसूस नहीं किया मगर अब हमेशा ही ऐसा लगने लगा है तो आप को मेडिकल चेकअप कराना चाहिए. यदि ठण्ड के साथ आप के वजन में तेजी से बढ़ोतरी या कमी हो रही है, बाल झड़ रहे हैं और कब्ज की शिकायत रहने लगी है ,तो भी किसी अच्छे डाक्टर से जरूर मिलें.

मैं जिस लड़की से प्यार करता हूं उस की शादी हो गई है, मैं क्या करूं?

सवाल-

मैं एक 20 साल का लड़का हूं और एक लड़की से प्यार करता हूं, लेकिन कुछ कारणों से उस लड़की की हाल ही में शादी हो गई है. इस के बावजूद वह मुझ से फोन पर बहुत देर तक बात करती है.

हालांकि वह पहले की तरह मुझ से प्यार भरी बातें तो नहीं करती है, लेकिन कहती है कि आप जब तक चाहे बात करेंगे, तब तक मैं भी बात करूंगी. मुझे समझ नहीं आ रहा है कि उस से फोन पर बात करूं या नहीं. मुझे क्या करना चाहिए?

जवाब-

अब उस लड़की से फोन पर बात करने से कोई फायदा नहीं. वह शायद इस बात से डरी हुई है कि कभी आप उस के पति पर प्यार की बात उजागर न कर दें. इस से वह कहीं की नहीं रह जाएगी.

मुमकिन है कि वह आप का दिल रखने के लिए ही फोन पर बात करती हो, पर इस से आप को और उसे कुछ हासिल नहीं होने वाला, क्योंकि अगर उस के पति को यह बात पता चल गई तो तूफान उस की जिंदगी में आएगा, इसलिए उस से बात करना कम और फिर बंद कर दें.

अपने कैरियर पर ध्यान दें और वक्त रहते किसी अच्छी लड़की से शादी कर लें, धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
सब्जेक्ट में लिखे…  सरस सलिल- व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

25 दिसंबर की वह काली रात और एक अनोखी हत्या

Crime News in Hindi: छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के जिले चांपा जांजगीर के पंतोरा थाने के तहत बन रहे नए भारत माला रोड (Bharat Mala Road) पर छाता जंगल के पास 25 दिसंबर, 2023 की रात एक हत्या हुई. हत्यारे ने बड़ी सोचीसमझी चालाकी के साथ अपनेआप को छिपाना चाहा और अगर पुलिस (Police) इस मामले में थोड़ी सी भी कोताही करती, तो हत्यारा बच कर निकल सकता था, मगर ऐसा हो न पाया. दरअसल, बुधवार, 27 दिसंबर, 2023 को एक खबर सुर्खियां में थी कि एक आटोरिकशा चालक(Autorikshaw Driver) के सिर को पत्थर से कुचल कर उस की हत्या कर दी गई है. मगर जब पुलिस ने जांचपड़ताल की, तो इस हत्या के मामले में नया मोड़ आ गया.

पुलिस जिसे मरा हुआ समझ रही थी वही जिंदा निकला और हत्या का आरोपी भी वही पाया. जांच में यह भी पाया गया कि आटोरिकशा चालक ने ही किसी सवारी की हत्या कर उसे अपने कपड़े पहना दिए और खुद की हत्या बताने और पुलिस को भरमाने की शातिर चाल चली. मजेदार बात यह है कि उस आटोरिकशा चालक के परिवार वालों ने उस की शिनाख्त भी कर ली थी.

आप को पूरी घटना तफसील से बताते हैं. गांव ढेका, जिला बिलासपुर का रहने वाला 36 साल का शंकर शास्त्री, जिस के पिता का नाम जगजीवन है, बिलासपुर में आटोरिकशा चलाता था. सोमवार, 25 दिसंबर की सुबह वह अपने घर से आटोरिकशा नंबर सीजी 10 एई 9477 ले कर निकला था. रात के तकरीबन 8 बजे वह बिलासपुर रेलवेस्टेशन से आटोरिकशा ले कर निकला, लेकिन घर वापस नहीं पहुंचा. परिवार के लोगों द्वारा कई बार फोन लगाने पर भी उस ने फोन नहीं उठाया.

मंगलवार, 26 दिसंबर, 2023 की सुबह कोरबापंतोरा रोड पर छाता जंगल के पास भारत माला रोड पर खून से लथपथ एक लाश लोगों ने देखी. उस का सिर कुचला हुआ था. वहीं एक आटोरिकशा भी रोड पर पलटा हुआ था.

सूचना मिलने पर पंतोरा चौकी प्रभारी दिलीप सिंह और पुलिस टीम मौके पर पहुंची. घटनास्थल पर डौग स्कवायड और साथ ही बिलासपुर से फौरैंसिंक ऐक्सपर्ट की टीम भी बुलाई गई.

घटनास्थल का बारीकी से मुआयना किया गया. पुलिस को मौके से शराब की बोतल और मूंगफली भी पड़ी हुई मिली. इस से लगा कि शराब पीने के दौरान हुए झगड़े के बाद यह हत्या की गई होगी.

सूचना मिलने पर शंकर शास्त्री के परिवार वाले भी वहां पहुंच गए और मारे गए की पहचान आटोरिकशा चालक के रूप में की गई और लाश उस के परिवार वालों को सौंप दी गई.

पर जब पुलिस की जांचपड़ताल शुरू हुई, तो मामले ने नया मोड़ ले लिया. पुलिस ने मोबाइल डिटेल निकाली और सीसी फुटेज खंगाले, तो पता चला कि मारे गए शख्स के अलावा और एक आदमी का मोबाइल एकसाथ घटनास्थल पर बंद हुआ था.

पुलिस ने दोनों मोबाइल नंबरों की डिटेल निकाली, तो आटोरिकशा चालक का मोबाइल कुछ समय के लिए चालू मिला. पुलिस ने लोकेशन ट्रेस कर के उसे कोरबा से गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस ने पूछताछ की तो उस ने खुद को सवारी बताया और आटोरिकशा चालक की हत्या करना बताया, जबकि वह खुद आटोरिकशा चालक था. पहचान छिपाने के लिए उस ने अपना मुंडन भी करा लिया था.

अब इस मामले ने नया मोड़ ले लिया है. जिसे पुलिस मरा हुआ समझ रही थी, वही कातिल निकला. बहरहाल, पुलिस ने आटोरिकशा चालक को गिरफ्तार कर लिया है. जब पुलिस ने उस से पूछताछ की, तो उस ने बताया कि वह अपराध पर लिखी गई किताबें पढ़ता था और उन्हीं से सीख ले कर उस ने यह अपराध करने के बाद खुद को बचाने की चाल चली थी. पर नाकाम रहा.

अनकहा प्यार : बिनब्याहे मिली सासूमां

कालेकाले बादलों ने आसमान में डेरा डाल दिया था. मुक्ता सूखे कपड़े उतारने के लिए तेजी से आंगन की तरफ दौड़ी. बूंदों ने झमाझम बरसना शुरू कर दिया था.

कपड़े उतारतेउतारते मुक्ता काफी भीग चुकी थी. अंदर आते ही उस ने छींकना शुरू कर दिया.

मां बड़बड़ाते हुए बोलीं, ‘‘मुक्ता, मैं ने तुझ से कितनी बार कहा है कि भीगा मत कर, लेकिन तू मानती ही नहीं. मुझे आवाज दे देती, तो मैं उतार लाती कपड़े.’’

मुक्ता ने शांत भाव से कहा, ‘‘मां, आप सो रही थीं, इसलिए मैं खुद ही चली गई. अगर आप जातीं, तो आप भी तो भीग जातीं न.’’

मां उसे दुलारते हुए बोलीं, ‘‘मेरी बेटी अपनी मां को इतना प्यार करती है…’’

‘‘हां,’’ मुक्ता ने सिर हिलाते हुए कहा और मां के कांधे से लिपट गई.

‘‘तू पूरी तरह से भीग गई है… जा, जा कर पहले तौलिए से बाल सुखा ले और कपड़े बदल ले. मैं तेरे लिए तुलसीअदरक वाली चाय बना कर लाती हूं,’’ कहतेकहते मां चाय बनाने चली गईं.

मुक्ता कपड़े बदल कर सिर पर तौलिया लपेटे हुए सोफे पर आ कर बैठ गई.

‘‘ले, गरमागरम चाय पी ले और चाय पी कर आराम कर,’’ मां चाय दे कर दूसरे काम के लिए किचन में चली गईं.

मुक्ता खिड़की से बारिश की बूंदों को गिरते हुए देख रही थी और देखतेदेखते पुरानी यादों में खो गई.

औफिस जाने के लिए मुक्ता बस स्टौप पर खड़ी बस का इंतजार कर रही थी कि तभी एक नौजवान उस की बगल में आ कर खड़ा हो गया. सुंदर कदकाठी का महत्त्व नाम का वह नौजवान औफिस के लिए लेट हो रहा था. आज उस की बाइक खराब हो गई थी.

महत्त्व रहरह कर कभी अपने हाथ की घड़ी, तो कभी बस को देख रहा था. तभी एक बस आ कर खड़ी हो गई. सब लोग उस बस में जल्दीजल्दी चढ़ने लगे. मुक्ता और महत्त्व ने भी बस में चढ़ने के लिए बस के दरवाजे को पकड़ा. गलती से महत्त्व का हाथ मुक्ता के हाथ पर रखा गया. वह सहम गई और बस से दूर जा कर खड़ी हो गई.

महत्त्व जल्दी से बस में चढ़ गया. पर जब बस में चारों तरफ नजरें दौड़ाने पर उसे मुक्ता नहीं दिखाई दी, तो वह बस से उतर गया और बस स्टौप की तरफ चलने लगा. मुक्ता वहीं पर खड़ी दूसरी बस का इंतजार कर रही थी.

महत्त्व ने पास आ कर मुक्ता से पूछा, ‘‘आप बस में क्यों नहीं चढ़ीं?’’

‘‘जी, बस यों ही… भीड़ बहुत ज्यादा थी, इसलिए…’’

तभी दूसरी बस आ कर खड़ी हो गई. मुक्ता बस में चढ़ गई. महत्त्व भी बस

में चढ़ गया. थोड़ी देर में मुक्ता का औफिस आ गया… वह बस से उतर गई. कुछ देर बाद महत्त्व का भी औफिस आ गया था.

शाम को औफिस छूटने के बाद दोनों इत्तिफाक से एक ही बस में चढ़े और दोनों ने एकदूसरे को हलकी सी स्माइल दी.

अब दोनों का एक ही बस से आनाजाना शुरू हो गया. ये मुलाकातें एकदूसरे से बोले बिना ही कब प्यार में बदल गईं, पता ही नहीं चला.

एक दिन वे दोनों बस स्टौप पर खड़े थे. काले बादलों ने घुमड़घुमड़ कर शोर मचाना शुरू कर दिया. महत्त्व ने मुक्ता से कहा, ‘‘मौसम कितना सुहाना है… क्यों न कहीं घूमने चलें?’’

मुक्ता ने धीरे से कहा, ‘‘लेकिन, औफिस भी तो जाना है…’’

‘‘आज औफिस को गोली मारो… मैं बाइक ले कर आता हूं… बाइक से घूमने चलेंगे. तुम मेरा यहीं इंतजार करना… मैं बस 2 मिनट में आया,’’ कह कर महत्त्व बाइक लेने चला गया.

थोड़ी देर में महत्त्व बाइक ले कर आ गया. उस ने अपना हाथ मुक्ता की तरफ बढ़ाया. मुक्ता ने अपना हाथ महत्त्व के हाथ पर रख दिया और बाइक पर बैठ गई. दोनों घूमतेघूमते बहुत दूर निकल गए.

जब बहुत देर हो गई, तब मुक्ता ने कहा, ‘‘काले बादल घने होते जा रहे हैं और अंधेरा भी बढ़ रहा है. अब हमें चलना चाहिए. बारिश कभी भी शुरू हो सकती है.’’

महत्त्व ने बाइक स्टार्ट की. मुक्ता पीछे बैठ गई. दोनों चहकते हुए चले जा रहे थे. काले बादलों ने झमाझम बरसना शुरू कर दिया. मुक्ता ने दोनों हाथों से महत्व को कस के पकड़ लिया. महत्त्व भी प्यार की मीठी धुन में गुनगुनाता हुआ बाइक चला रहा था.

आगे गड्ढा था, जिस में पानी भरा हुआ था. महत्त्व ने ध्यान नहीं दिया. बाइक गड्ढे में जा गिरी, जिस से महत्त्व और मुक्ता बुरी तरह जख्मी हो गए. कुछ लोग उन्हें अस्पताल ले कर पहुंचे.

महत्त्व की अस्पताल पहुंचते ही मौत हो गई. उस की मौत से मुक्ता अंदर से टूट गई और सोचने लगी, ‘अनकहा प्यार अनकहा ही रह गया…’

अपनी यादों में खोई मुक्ता की आंखों से आंसू गिरने लगे.

‘‘मुक्ता… ओ मुक्ता, किन यादों में खो गई… देख, तेरी चाय ठंडी हो गई. चल छोड़, मैं दूसरी बना कर लाती हूं. मां और मुक्ता दोनों साथ चाय पीते हैं.’’

चाय पीते हुए मां ने मुक्ता से पूछा, ‘‘महत्त्व को याद कर रही थी?’’

मुक्ता लंबी गहरी सांस लेते हुए बोली, ‘‘हां, मां… मां, बस आप ही समझ सकती हो कि महत्त्व का मेरी जिंदगी में क्या महत्त्व था. मम्मीपापा के चले जाने के बाद मैं बिलकुल अकेली हो गई थी. फिर महत्त्व मेरी जिंदगी में आया और मेरी दुनिया ही बदल गई. लेकिन, वह भी मुझे छोड़ कर चला गया. मैं बिलकुल टूट कर बिखर गई.

‘‘महत्त्व के चले जाने के बाद आप ने मुझे संभाला. आप सिर्फ महत्त्व की ही मां नहीं हो… आप मेरी भी मां हो. अब आप मेरी जिम्मेदारी हो. मैं आप को छोड़ कर कहीं नहीं जाऊंगी.’’

एक और बलात्कारी : रूपा का रसपान करने वाला जालिम

रूपा पगडंडी के रास्ते से हो कर अपने घर की ओर लौट रही थी. उस के सिर पर घास का एक बड़ा गट्ठर भी था. उस के पैरों की पायल की ‘छनछन’ दूर खड़े बिरजू के कानों में गूंजी, तो वह पेड़ की छाया छोड़ उस पगडंडी को देखने लगा.

रूपा को पास आता देख बिरजू के दिल की धड़कनें तेज हो गईं और उस का दिल उस से मिलने को मचलने लगा.

जब रूपा उस के पास आई, तो वह चट्टान की तरह उस के रास्ते में आ कर खड़ा हो गया.

‘‘बिरजू, हट मेरे रास्ते से. गाय को चारा देना है,’’ रूपा ने बिरजू को रास्ते से हटाते हुए कहा.

‘‘गाय को तो तू रोज चारा डालती है, पर मुझे तो तू घास तक नहीं डालती. तेरे बापू किसी ऐरेगैरे से शादी कर देंगे, इस से अच्छा है कि तू मुझ से शादी कर ले. रानी बना कर रखूंगा तुझे. तू सारा दिन काम करती रहती है, मुझे बिलकुल भी अच्छा नहीं लगता.’’

‘‘गांव में और भी कई लड़कियां हैं, तू उन से अपनी शादी की बात क्यों नहीं करता?’’

‘‘तू इतना भी नहीं समझती, मैं तो तुझ से प्यार करता हूं. फिर और किसी से अपनी शादी की बात क्यों करूं?’’

‘‘ये प्यारव्यार की बातें छोड़ो और मेरे रास्ते से हट जाओ, वरना घास का गट्ठर तुम्हारे ऊपर फेंक दूंगी,’’ इतना सुनते ही बिरजू एक तरफ हो लिया और रूपा अपने रास्ते बढ़ चली.

शाम को जब सुमेर सिंह की हवेली से रामदीन अपने घर लौट रहा था, तो वह अपने होश में नहीं था. गांव वालों ने रूपा को बताया कि उस का बापू नहर के पास शराब के नशे में चूर पड़ा है.

‘‘इस ने तो मेरा जीना हराम कर दिया है. मैं अभी इसे ठीक करती हूं,’’ रूपा की मां बड़बड़ाते हुए गई और थोड़ी देर में रामदीन को घर ला कर टूटीफूटी चारपाई पर पटक दिया और पास में ही चटाई बिछा कर सो गई.

सुबह होते ही रूपा की मां रामदीन पर भड़क उठी, ‘‘रोज शराब के नशे में चूर रहते हो. सारा दिन सुमेर सिंह की मजदूरी करते हो और शाम होते ही शराब में डूब जाते हो. आखिर यह सब कब तक चलता रहेगा? रूपा भी सयानी होती जा रही है, उस की भी कोई चिंता है कि नहीं?’’

रामदीन चुपचाप उस की बातें सुनता रहा, फिर मुंह फेर कर लेट गया.

रामदीन कई महीनों से सुमेर सिंह के पास मजदूरी का काम करता था. खेतों की रखवाली करना और बागबगीचों में पानी देना उस का रोज का काम था.

दरअसल, कुछ महीने पहले रामदीन का छोटा बेटा निमोनिया का शिकार हो गया था. पूरा शरीर पीला पड़ चुका था. गरीबी और तंगहाली के चलते वह उस का सही इलाज नहीं करा पा रहा था. एक दिन उस के छोटे बेटे को दौरा पड़ा, तो रामदीन फौरन उसे अस्पताल ले गया.

डाक्टर ने उस से कहा कि बच्चे के शरीर में खून व पानी की कमी हो गई है. इस का तुरंत इलाज करना होगा. इस में 10 हजार रुपए तक का खर्चा आ सकता है.

किसी तरह उसे अस्पताल में भरती करा कर रामदीन पैसे जुटाने में लग गया. पासपड़ोस से मदद मांगी, पर किसी ने उस की मदद नहीं की.

आखिरकार वह सुमेर सिंह के पास पहुंचा और उस से मदद मांगी, ‘‘हुजूर, मेरा छोटा बेटा बहुत बीमार है.

उसे निमोनिया हो गया था. मुझे अभी 10 हजार रुपए की जरूरत है. मैं मजदूरी कर के आप की पाईपाई चुका दूंगा. बस, आप मुझे अभी रुपए दे दीजिए.’’

‘‘मैं तुम्हें अभी रुपए दिए दे देता हूं, लेकिन अगर समय पर रुपए नहीं लौटा सके, तो मजदूरी की एक फूटी कौड़ी भी नहीं दूंगा. बोलो, मंजूर है?’’

‘‘हां हुजूर, मुझे सब मंजूर है,’’ अपने बच्चे की जान की खातिर उस ने सबकुछ कबूल कर लिया.

पहले तो रामदीन कभीकभार ही अपनी थकावट दूर करने के लिए शराब पीता था, लेकिन सुमेर सिंह उसे रोज शराब के अड्डे पर ले जाता था और उसे मुफ्त में शराब पिलाता था. लेकिन अब तो शराब पीना एक आदत सी बन गई थी. शराब तो उसे मुफ्त में मिल जाती थी, लेकिन उस की मेहनत के पैसे सुमेर सिंह हजम कर जाता था. इस से उस के घर में गरीबी और तंगहाली और भी बढ़ती गई.

रामदीन शराब के नशे में यह भी भूल जाता था कि उस के ऊपर कितनी जिम्मेदारियां हैं. दिन पर दिन उस पर कर्ज भी बढ़ता जा रहा था. इस तरह कई महीने बीत गए. जब रामदीन ज्यादा नशे में होता, तो रूपा ही सुमेर सिंह का काम निबटा देती.

एक सुबह रामदीन सुमेर सिंह के पास पहुंचा, तो सुमेर सिंह ने हुक्का गुड़गुड़ाते हुए कहा, ‘‘रामदीन, आज तुम हमारे पास बैठो. हमें तुम से कुछ जरूरी बात करनी है.’’

‘‘हुजूर, आज कुछ खास काम है क्या?’’ रामदीन कहते हुए उस के पास बैठ गए.

‘‘देखो रामदीन, आज मैं तुम से घुमाफिरा कर बात नहीं करूंगा. तुम ने मुझ से जो कर्जा लिया है, वह तुम मुझे कब तक लौटा रहे हो? दिन पर दिन ब्याज भी तो बढ़ता जा रहा है. कुलमिला कर अब तक 15 हजार रुपए से भी ज्यादा हो गए हैं.’’

‘‘मेरी माली हालत तो बदतर है. आप की ही गुलामी करता हूं हुजूर, आप ही बताइए कि मैं क्या करूं?’’

सुमेर सिंह हुक्का गुड़गुड़ाते हुए कुछ सोचने लगा. फिर बोला, ‘‘देख रामदीन, तू जितनी मेरी मजदूरी करता है, उस से कहीं ज्यादा शराब पी जाता है. फिर बीचबीच में तुझे राशनपानी देता ही रहता हूं. इस तरह तो तुम जिंदगीभर मेरा कर्जा उतार नहीं पाओगे, इसलिए मैं ने फैसला किया है कि अब अपनी जोरू को भी काम पर भेजना शुरू कर दे.’’

‘‘लेकिन हुजूर, मेरी जोरू यहां आ कर करेगी क्या?’’ रामदीन ने गिड़गिड़ाते हुए कहा.

‘‘मुझे एक नौकरानी की जरूरत है. सुबहशाम यहां झाड़ूपोंछा करेगी. घर के कपड़ेलत्ते साफ करेगी. उस के महीने के हजार रुपए दूंगा. उस में से 5 सौ रुपए काट कर हर महीने तेरा कर्जा वसूल करूंगा.

‘‘अगर तुम यह भी न कर सके, तो तुम मुझे जानते ही हो कि मैं जोरू और जमीन सबकुछ अपने कब्जे में ले लूंगा.’’

‘‘लेकिन हुजूर, मेरी जोरू पेट से है और उस की कमर में भी हमेशा दर्द रहता है.’’

‘‘बच्चे पैदा करना नहीं भूलते, पर मेरे पैसे देना जरूर भूल जाते हो. ठीक है, जोरू न सही, तू अपनी बड़ी बेटी रूपा को ही भेज देना.

‘‘रूपा सुबहशाम यहां झाड़ूपोंछा करेगी और दोपहर को हमारे खेतों से जानवरों के लिए चारा लाएगी. घर जा कर उसे सारे काम समझ देना. फिर दोबारा तुझे ऐसा मौका नहीं दूंगा.’’

अब रामदीन को ऐसा लगने लगा था, जैसे वह उस के भंवर में धंसता चला जा रहा है. सुमेर सिंह की शर्त न मानने के अलावा उस के पास कोई चारा भी नहीं बचा था.

शाम को रामदीन अपने घर लौटा, तो उस ने सुमेर सिंह की सारी बातें अपने बीवीबच्चों को सुनाईं.

यह सुन कर बीवी भड़क उठी, ‘‘रूपा सुमेर सिंह की हवेली पर बिलकुल नहीं जाएगी. आप तो जानते ही हैं. वह पहले भी कई औरतों की इज्जत के साथ खिलवाड़ कर चुका है. मैं खुद सुमेर सिंह की हवेली पर जाऊंगी.’’

‘‘नहीं मां, तुम ऐसी हालत में कहीं नहीं जाओगी. जिंदगीभर की गुलामी से अच्छा है कि कुछ महीने उस की गुलामी कर के सारे कर्ज उतार दूं,’’ रूपा ने अपनी बेचैनी दिखाई.

दूसरे दिन से ही रूपा ने सुमेर सिंह की हवेली पर काम करना शुरू कर दिया. वह सुबहशाम उस की हवेली पर झाड़ूपोंछा करती और दोपहर में जानवरों के लिए चारा लाने चली जाती.

अब सुमेर सिंह की तिरछी निगाहें हमेशा रूपा पर ही होती थीं. उस की मदहोश कर देनी वाली जवानी सुमेर सिंह के सोए हुए शैतान को जगा रही थी. रूपा के सामने तो उस की अपनी बीवी उसे फीकी लगने लगी थी.

सुमेर सिंह की हवेली पर सारा दिन लोगों का जमावड़ा लगा रहता था, लेकिन शाम को उस की निगाहें रूपा पर ही टिकी होती थीं.

रूपा के जिस्म में गजब की फुरती थी. शाम को जल्दीजल्दी सारे काम निबटा कर अपने घर जाने के लिए तैयार रहती थी. लेकिन सुमेर सिंह देर शाम तक कुछ और छोटेमोटे कामों में उसे हमेशा उलझाए रखता था.

एक दोपहर जब रूपा पगडंडी के रास्ते अपने गांव की ओर बढ़ रही थी, तभी उस के सामने बिरजू आ धमका. उसे देखते ही रूपा ने अपना मुंह फेर लिया.

बिरजू उस से कहने लगा, ‘‘मैं जब भी तेरे सामने आता हूं, तू अपना मुंह क्यों फेर लेती है?’’

‘‘तो मैं क्या करूं? तुम्हें सीने से लगा लूं? मैं तुम जैसे आवारागर्दों के मुंह नहीं लगना चाहती,’’ रूपा ने दोटूक जवाब दिया.

‘‘देख रूपा, तू भले ही मुझ से नफरत कर ले, लेकिन मैं तो तुझ को प्यार करता ही रहूंगा. आजकल तो मैं ने सुना है, तू ने सुमेर सिंह की हवेली पर काम करना शुरू कर दिया है. शायद तुझे सुमेर सिंह की हैवानियत के बारे में पता नहीं. वह बिलकुल अजगर की तरह है. वह कब शिकारी को अपने चंगुल में फंसा कर निगल जाए, यह किसी को पता नहीं.

‘‘मुझे तो अब यह भी डर सताने लगा है कि कहीं वह तुम्हें नौकरानी से रखैल न बना ले, इसलिए अभी भी कहता हूं, तू मुझ से शादी कर ले.’’

यह सुन कर रूपा का मन हुआ कि वह बिरजू को 2-4 झपड़ जड़ दे, पर फिर लगा कि कहीं न कहीं इस की बातों में सचाई भी हो सकती है.

रूपा पहले भी कई लोगों से सुमेर सिंह की हैवानियत के बारे में सुन चुकी थी. इस के बावजूद वह सुमेर सिंह की गुलामी के अलावा कर भी क्या सकती थी.

इधर सुमेर सिंह रूपा की जवानी का रसपान करने के लिए बेचैन हो रहा था, लेकिन रूपा उस के झांसे में आसानी से आने वाली नहीं थी.

सुमेर सिंह के लिए रूपा कोई बड़ी मछली नहीं थी, जिस के लिए उसे जाल बुनना पड़े.

एक दिन सुमेर सिंह ने रूपा को अपने पास बुलाया और कहा, ‘‘देखो रूपा, तुम कई दिनों से मेरे यहां काम कर रही हो, लेकिन महीने के 5 सौ रुपए से मेरा कर्जा इतनी जल्दी उतरने वाला नहीं है, जितना तुम सोच रही हो. इस में तो कई साल लग सकते हैं.

‘‘मेरे पास एक सुझाव है. तुम अगर चाहो, तो कुछ ही दिनों में मेरा सारा कर्जा उतार सकती हो. तेरी उम्र अभी पढ़नेलिखने और कुछ करने की है, मेरी गुलामी करने की नहीं,’’ सुमेर सिंह के शब्दों में जैसे एक मीठा जहर था.

‘‘मैं आप की बात समझी नहीं?’’ रूपा ने सवालिया नजरों से उसे देखा.

सुमेर सिंह की निगाहें रूपा के जिस्म को भेदने लगीं. फिर वह कुछ सोच कर बोला, ‘‘मैं तुम से घुमाफिरा कर बात नहीं करूंगा. तुम्हें आज ही एक सौदा करना होगा. अगर तुम्हें मेरा सौदा मंजूर होगा, तो मैं तुम्हारा सारा कर्जा माफ कर दूंगा और इतना ही नहीं, तेरी शादी तक का खर्चा मैं ही दूंगा.’’

रूपा बोली, ‘‘मुझे क्या सौदा करना होगा?’’

‘‘बस, तू कुछ दिनों तक अपनी जवानी का रसपान मुझे करा दे. अगर तुम ने मेरी इच्छा पूरी की, तो मैं भी अपना वादा जरूर निभाऊंगा,’’ सुमेर सिंह के तीखे शब्दों ने जैसे रूपा के जिस्म में आग लगा दी थी.

‘‘आप को मेरे साथ ऐसी गंदी बातें करते हुए शर्म नहीं आई,’’ रूपा गुस्से में आते हुए बोली.

‘‘शर्म की बातें छोड़ और मेरा कहा मान ले. तू क्या समझाती है, तेरा बापू तेरी शादी धूमधाम से कर पाएगा? कतई नहीं, क्योंकि तेरी शादी के लिए वह मुझ से ही उधार लेगा.

‘‘इस बार तो मैं तेरे पूरे परिवार को गुलाम बनाऊंगा. अगर ब्याह के बाद तू मदद के लिए दोबारा मेरे पास आई भी तो मैं तुझे रखैल तक नहीं बनाऊंगा. अच्छी तरह सोच ले. मैं तुझे इस बारे में सोचने के लिए कुछ दिन की मुहलत भी देता हूं. अगर इस के बावजूद भी तू ने मेरी बात नहीं मानी, तो मुझे दूसरा रास्ता भी अपनाना आता है.’’

सुमेर सिंह की कही गई हर बात रूपा के जिस्म में कांटों की तरह चुभती चली गई.

सुमेर सिंह की नीयत का आभास तो उसे पहले से ही था, लेकिन वह इतना बदमाश भी हो सकता है, यह उसे बिलकुल नहीं पता था.

रूपा को अब बिरजू की बातें याद आने लगीं. अब उस के मन में बिरजू के लिए कोई शिकायत नहीं थी.

रूपा ने यह बात किसी को बताना ठीक नहीं समझ. रात को तो वह बिलकुल सो नहीं पाई. सारी रात अपने वजूद के बारे में ही वह सोचती रही.

रूपा को सुमेर सिंह की बातों पर तनिक भी भरोसा नहीं था. उसे इस बात की ज्यादा चिंता होने लगी थी कि अगर अपना तन उसे सौंप भी दिया, तो क्या वह भी अपना वादा पूरा करेगा? अगर ऐसा नहीं हुआ, तो अपना सबकुछ गंवा कर भी बदनामी के अलावा उसे कुछ नहीं मिलेगा.

इधर सुमेर सिंह भी रूपा की जवानी का रसपान करने के लिए उतावला हो रहा था. उसे तो बस रूपा की हां का इंतजार था. धीरेधीरे वक्त गुजर रहा था. लेकिन रूपा ने उसे अब तक कोई संकेत नहीं दिया था. सुमेर सिंह ने मन ही मन कुछ और सोच लिया था.

यह सोच कर रूपा की भी बेचैनी बढ़ती जा रही थी. उसे खुद को सुमेर सिंह से बचा पाना मुश्किल लग रहा था.

एक दोपहर जब रूपा सुमेर सिंह के खेतों में जानवरों के लिए चारा लाने गई, तो सब से पहले उस की निगाहें बिरजू को तलाशने लगीं, पर बिरजू का कोई अतापता नहीं था. फिर वह अपने काम में लग गई. तभी किसी ने उस के मुंह पर पीछे से हाथ रख दिया.

रूपा को लगा शायद बिरजू होगा, लेकिन जब वह पीछे की ओर मुड़ी, तो दंग रह गई. वह कोई और नहीं, बल्कि सुमेर सिंह था. उस की आंखों में वासना की भूख नजर आ रही थी.

तभी सुमेर सिंह ने रूपा को अपनी मजबूत बांहों में जकड़ते हुए कहा, ‘‘हुं, आज तुझे मुझ से कोई बचाने वाला नहीं है. अब तेरा इंतजार भी करना बेकार है.’’

‘‘मैं तो बस आज रात आप के पास आने ही वाली थी. अभी आप मुझे छोड़ दीजिए, वरना मैं शोर मचाऊंगी,’’ रूपा ने उस के चंगुल से छूटने की नाकाम कोशिश की.

पर सुमेर सिंह के हौसले बुलंद थे. उस ने रूपा की एक न सुनी और घास की झड़ी में उसे पूरी तरह से दबोच लिया.

रूपा ने उस से छूटने की भरपूर कोशिश की, पर रूपा की नाजुक कलाइयां उस के सामने कुछ खास कमाल न कर सकीं.

अब सुमेर सिंह का भारीभरकम बदन रूपा के जिस्म पर लोट रहा था, फिर धीरेधीरे उस ने रूपा के कपड़े फाड़ने शुरू किए.

जब रूपा ने शोर मचाने की कोशिश की, तो उस ने उस का मुंह उसी के दुपट्टे से बांध दिया, ताकि वह शोर भी न मचा सके.

अब तो रूपा पूरी तरह से सुमेर सिंह के शिकंजे में थी. वह आदमखोर की तरह उस पर झपट पड़ा. इस से पहले वह रूपा को अपनी हवस का शिकार बना पाता, तभी किसी ने उस के सिर पर किसी मजबूत डंडे से ताबड़तोड़ वार करना शुरू कर दिया. कुछ ही देर में वह ढेर हो गया.

रूपा ने जब गौर से देखा, तो वह कोई और नहीं, बल्कि बिरजू था. तभी वह उठ खड़ी हुई और बिरजू से लिपट गई. उस की आंखों में एक जीत नजर आ रही थी.

बिरजू ने उसे हौसला दिया और कहा, ‘‘तुम्हें अब डरने की कोई जरूरत नहीं है. मैं इसी तरह तेरी हिफाजत जिंदगीभर करता रहूंगा.’’

रूपा ने बिरजू का हाथ थाम लिया और अपने गांव की ओर चल दी.

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