समलैंगिकता : मौडर्न भारत है या नेपाल

उस की छोटी और घूरती आंखों का सामने वाले की आंखों में आंखें डाल कर देखने का अंदाज किसी को भी धोखे में डाल सकता है, क्योंकि स्कार्फ से ढके उस के चेहरे पर सिर्फ 2 आंखें ही साफ दिखाई देती हैं. गहरे नीले रंग का स्कार्फ, जो उस ने धूल से बचने के लिए चेहरे पर लपेट रखा है, लंबेसीधे बालों को चारों तरफ से ढकते हुए आंखों के नीचे आखिरी छोर तक आता है.

नेपाल के बलराम से अचानक मेरी मुलाकात होती है. उस ने बताया कि वह ‘पिंक त्रिकोण’ के लिए काम करता है और शनिवार को रत्ना पार्क में आने वाले लोगों में कंडोम बांटता है.

रत्ना पार्क, जो काठमांडू की प्रदूषित बिजी सड़क के किनारे बना है, समलैंगिकों के मिलने की जगह है. शाम के समय यहां पर उत्साहित जोडे़ पार्क में फैले हुए हैं. कुछ जोड़े आपस में बातचीत कर रहे हैं, तो कुछ अपने लिए सैक्स पार्टनर की तलाश में जुटे हैं.

मैं पार्क की चारदीवारी पर महेश के साथ बैठा हूं, जो समलैंगिक है और यूनिवर्सिटी का छात्र है… तभी एक नौजवान बहुत ही अदा के साथ हम से मुखातिब होता है, ‘‘हाय, क्या तुम भारत से हो?’’

मेरे ‘हां’ कहने पर वह अपना परिचय बलराम के रूप में देता है. उस ने आगे बताया, ‘‘मैं भारत के पुणे शहर में 3 साल रहा हूं, लेकिन भारत के बजाय यहां लड़कों का आपस में मिलना ज्यादा आसान है. ज्यादातर लड़के मुझ से मिलने की कोशिश करते हैं.’’

मैं ने उस से कहा कि हम भी यहां नए लोगों से मिलने आए हैं, क्योंकि यहां समलैंगिकों से मिलने के लिए न तो कोई सार्वजनिक जगह है और न ही कोई बार वगैरह है.

हम यह सब बातचीत कर ही रहे थे कि इतने में हमारे चारों तरफ काफी नौजवान जमा हो गए. महेश उन से बातचीत करने लगा. वह ब्लू डायमंड स्वयंसेवी संगठन के लिए काम करता है, जो नेपाल की अधिकार संरक्षण संस्था है, जिस ने इस छोटे से देश में समलैंगिकों को अधिकार दिलाने में मुख्य भूमिका निभाई है और पूरी दुनिया में तकरीबन 27 लाख बहुत ही कामयाब आंदोलन किए हैं.

पाकिस्तान, श्रीलंका, अफगानिस्तान, भूटान, बंगलादेश और मालदीव अपने देश में कहीं भी समलैंगिक संबंधों को मंजूरी नहीं देते हैं, केवल नेपाल ही एशिया में ऐसा देश है, जिस ने न केवल समलैंगिकता को मंजूरी दी हुई है, बल्कि समलैंगिकता को गैरकानूनी मानने वाले नियम के खिलाफ वहां की सुप्रीम कोर्ट ने कार्यवाही भी की है. यही नहीं, वहां की कोर्ट समलैंगिक विवाह संबंधों को भी कानूनन वैध बनाए जाने पर भी विचार कर रही है.

साल 2007 में नेपाल की सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकता के पक्ष में ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए सेम सैक्स संबंधों को अपराध मुक्त कर दिया था. साथ ही, यौन स्वच्छंदता और लिंग पहचान के आधार पर एक संस्थान का गठन किया, जो पूरी दुनिया में समलैंगिक विवाह और आपसी संबंधों का कानूनी व विधिपरक स्टडी करेगा और जिस ने सरकारी दस्तावेजों में तृतीय लिंग की पहचान के लिए अन्य विकल्प उपलब्ध करा कर खुद की पहचान का अधिकार दिलाया.

एक अमेरिकी जोड़े ने इस हिमालयन राष्ट्र में साल 2011 में समलैंगिक शादी की थी, जहां पर कुछ हिंदू समलैंगिक भी शादी में शामिल हुए थे. वहां पर सांकेतिक दूल्हा और दुलहन भारत समेत दुनिया के कोनेकोने से आए थे.

रिसर्च के दौरान आसपास के लोगों की बातों से पता चला कि समलैंगिकों का एक मजबूत संगठन बन गया है. तभी सन्नाटे को चीरती हुई मीठी और खनकती हंसी सुनाई पड़ती है. उस ओर देखने पर एक दुबलापतला, जींस और शौर्ट कमीज पहने एक लड़का दिखाई दिया. उस ने हमारे नजदीक आ कर कहा, ‘‘मैं मोहिनी हूं… आप मुझे मोहन भी कह सकते हैं. मैं यहां लड़कों से मिलने आई हूं.’’

मोहिनी या मोहन हम से कुछ फासले पर चारदीवारी पर बैठ जाता है और हाथ में आईना ले कर फेयर ऐंड हैंडसम क्रीम निकाल कर अपने चेहरे पर सावधानी के साथ लगाता है और चेहरे पर एक गहरी मुसकान के साथ कहता है, ‘‘थोड़ी ही देर में आप देखेंगे कि मैं मोहिनी जैसा सुंदर बन जाऊंगा.’’

मेरी पतली हालत देख कर उस समुदाय में से एक ने मुझ से, ‘‘हम इसे मोहिनी की मम्मी कहते हैं. यह बहुत बहादुर है. जरूरत पड़ने पर यह पुलिस और शरारती तत्त्वों से संघर्ष करती है, लेकिन अभी डरने, घबराने या बचने की कोई जरूरत नहीं है…’’

कुछ ही देर में वह अपने होंठों पर गुलाबी लिपस्टिक लगा लेता है, फिर वह अपने चेहरे पर मसकारा लगाता है. मोहन अब मोहिनी बन चुका है और मोहिनी की तरह बरताव करता है.

महेश मुझे इशारा करता है, ‘‘घना अंधेरा होने से पहले हमें यहां से निकल जाना चाहिए.’’

काठमांडू की धूल भरी तंग और भीड़भाड़ वाली सड़कों पर चलते हुए महेश बताता है कि मोहिनी एक छोटे से होस्टल की मालकिन है. यह सैक्स करने के लिए पैसे नहीं लेती. हो सकता है कि इसे इस में मजा आता हो और कुछ भी गलत न लगता हो. कुछ भी हो, इस ने लोगों से मिलने और मजा लेने का अच्छा रास्ता अपनाया है.

चीते के छापे की पोशाक, घुटने तक की लंबाई के जूते, गहरी संतरी रंग की लिपस्टिक, चमकदार पलकें, बालों की पोनीटेल बनाए श्रेष्ठा नेपाल की प्रतीक महिला दिखाई पड़ती हैं. उन्हें देख कर आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि वे साल 2007 में नेपाल की ‘मिस पिंक’ क्यों चुनी गई थीं.

‘मिस पिंक’ लिंग प्रवर्तक लोगों की नैशनल लैवल पर ब्यूटी प्रतियोगिता होती है, जो ब्लू डायमंड सोसाइटी द्वारा आयोजित की जाती है.

श्रेष्ठा का कहना था, ‘‘मैं अपनेआप को हमेशा एक लड़की मानती रही हूं. वैसे, मेरे पासपोर्ट में कुछ समय पहले तक मुझे कैलाशा नामक लड़के के रूप में बताया गया था. साथ ही, मैं कभी लिंग पहचान की वजहों को नहीं समझ पाई थी. मुझे हमेशा ‘हिजड़ा’ जैसे शब्दों से बुलाया जाता था, जिस से मुझे बहुत दुख होता था और मैं अपनेआप को अकेला महसूस करती थी.

‘‘आखिरकार मैं ने ब्लू डायमंड सोसाइटी की सदस्यता हासिल कर ली, जहां मैं ने अपने हकों को समझ और अपनी पहचान बनाई. मेरी मां पहले मेरी पहचान को ले कर भरम में थीं, लेकिन अब वे मेरी भावनाओं की इज्जत करती हैं और अपने आसपास के समाज को मेरे बारे में जागरूक करती हैं.’’

श्रेष्ठा ने अपना सिलिकौन ब्रैस्ट ट्रांसप्लांट थाईलैंड में कराया था. फिर फेशियल और मसाज के हफ्तेभर के कोर्स के बाद उन की खूबसूरती और भी निखर आई और वे वापस लौटने पर नेपाल के सैलेब्रिटी समाज में शामिल हो गईं. इस के बाद उन्होंने नेपाली फिल्म ‘राजमार्ग’ में बतौर हीरोइन काम किया, क्योंकि इस फिल्म का तानाबाना समलैंगिक संबंधों के इर्दगिर्द बुना गया था.

‘मिस पिंक’ एलजीबीटी संस्था का एकलौता समारोह नहीं है, बल्कि वह ‘मिस्टर हैंडसम’ (समलैंगिक पुरुषों के लिए एक सौंदर्य प्रतियोगिता), ‘एलजीबीटी ओलिंपिक’ और ‘समलैंगिक परेड’ जैसे समारोहों का भी आयोजन करती है. इस का मकसद एलजीबीटी समुदाय को सामाजिक लैवल पर पहचान दिलाना है.

24 साल के समलैंगिक विश्वराज अधिकारी ने साल 2013 की ‘मिस्टर हैंडसम’ प्रतियोगिता जीती थी. वे अपने पुरुष मित्र और मां के साथ काठमांडू में रहते हैं.

जब मैं ने उन के लिंग पहचान की जानकारी मांगी, तो उन्होंने बिना पलक झपकाए एक फोटो देते हुए कहा, ‘‘मैं एक लड़का हूं और एक लड़के के समान ही बरताव करता हूं. जब मैं इस सब को ले कर तनावग्रस्त था, तभी एक आदमी ने मेरे साथ रेप किया था, लेकिन मदद के लिए मैं पुलिस के पास नहीं जा सका. महल्ले के बहुत से लोगों को मेरे बारे में पता चल चुका था. मुझ अपनी मानसिक शांति के लिए अपना गृह नगर छोड़ना पड़ा.

‘‘मैं अपनेआप को बहुत खुशकिस्मत मानता हूं कि मेरा जन्म नेपाल जैसे देश में हुआ, जहां आज समलैंगिकता अपराध नहीं है, लेकिन समाज में मंजूरी मिलने में अभी वक्त लगेगा.’’

25 साल के विष्णु अधिकारी ने अपने बारे में बताया, ‘‘मेरा परिवार लिंग परिवर्तन के सख्त खिलाफ था, लेकिन लड़की के रूप में जब मैं लड़कों के साथ खेलना चाहती थी और उन लड़कों में से एक को मैं पसंद भी करती थी, तो मेरे परिवार वालों ने लड़कों के साथ खेलने से मना कर दिया, जबकि मैं न तो किसी को आकर्षित कर सकती थी और न ही मां बन सकती थी.

‘‘कुछ साल पहले मैं एक लड़की से प्यार करने लगा था, लेकिन उस के परिवार वालों ने जबरन उस की शादी कहीं और करा दी. अभी हाल ही में उस ने मुझ से एक रेडियो प्रोग्राम के माध्यम से संपर्क किया (प्रोग्राम का नाम है गीतीकथा, जो ब्लू डायमंड सोसाइटी द्वारा चलाया जाता है. इस में एलजीबीटी ग्रुप के सदस्यों की कामयाबी की कहानियां बताई जाती हैं. इन के सूत्रधार विष्णु अधिकारी हैं).

‘‘उस लड़की ने मुझ से कहा कि वह मेरे लिए अच्छे भविष्य की शुभकामनाएं देती है और आखिरकार मुझे जिंदगी जीने का वह रास्ता मिला, जिसे मैं चाहता था.

‘‘मेरा परिवार अब मुझ से और मेरी लिंग पहचान से न केवल सहमत है, बल्कि अब तो वे मुझे ‘छोरा’ और ‘बाबू’ कह कर पुकारते हैं और मेरे कई दोस्त मुझे ‘हीरो’ कह कर बुलाते  हैं.’’

30 साल की दीपा (बदला हुआ नाम) ने बताया, ‘‘मैं ने20 साल की उम्र में एक लिंग परिवर्तित पुरुष के साथ संबंध बनाए और लैस्बियन बनने की कोशिश की. वे आदमी आर्मी में मेरे सीनियर अफसर थे. मेरा अपराध केवल मेरी यौन स्वछंदता थी. मुझे और मेरे सहयोगी को इस अपराध की सजा दी गई.

‘‘हमें 45 दिन तक बिना पानी, बिना धूप और भरपेट भोजन के जेल में रखा गया और मेरी समलैंगिकता की पुष्टि के लिए मुझे मानसिक रूप से सताया भी गया. मेरे परिवार वालों को मेरी यौन इच्छाओं के बारे में अखबारों के जरीए मालूम हुआ और तभी से वे मेरी सुरक्षा को ले कर चिंतित रहने लगे.

‘‘अपने संबंधों को आगे बढ़ाते हुए अब मैं अपने साथी के साथ रहती हूं, क्योंकि मेरे परिवार वालों ने हम दोनों के संबंधों को रजामंदी दे दी है. हम नियमित एकदूसरे के परिवार से डिनर वगैरह मौकों पर मिलते हैं और एक आम जिंदगी बिता रहे हैं.

‘‘मैं एक लड़का होने के बावजूद उन के परिवार वालों द्वारा एक लड़की के रूप में छेड़ी जाती हूं. लेकिन, अब मैं अपने साथी से शादी करना चाहती हूं और मुझे यकीन है कि नया कानून जल्द ही पास और लागू हो जाएगा.’’

पहले काठमांडू शहर में एलजीबीटी के सदस्यों को खुलेआम घूमते देखना काफी मुश्किल था, लेकिन अब उन की तादाद दिनोंदिन बढ़ती जा रही है, जो काफी अच्छी और बड़ी बात है.

नेपाल में 38 लाख से ज्यादा लोग एलजीबीटी ग्रुप से हैं. इन में से ज्यादातर लोग देह धंधे को ही अपनी आजीविका बनाए हुए हैं. कुछ लोग अभी भी हिंसा और हमलों के शिकार हैं.

मानव अधिकार समिति की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इन लोगों पर पुलिस की छापेमारी आज भी जारी है और उन पर भारी जुर्माना व लंबी हिरासत जैसे दंड दिए जाते हैं. एशिया के एक

छोटे से देश में समलैंगिकों को मान्यता मिलने पर सवाल यह भी उठता है कि मौडर्न कौन है, भारत या नेपाल?

सावित्री की नई कहानी

चौधरी जगवीर सिंह की हवेली गांव की शान थी. उन की बेटी सावित्री चुपचाप लेटी रात के अंधेरे में कई सवालों को सुलझाने की कोशिश कर रही थी. इस वक्त उस के दिलोदिमाग में एक नई रोशनी जगमगाने लगी थी. उस की आंखों में घुटन और पीड़ा के आंसू सूख चुके थे. राम किशन पर हुए जुल्म की याद उस के लिए बहुत दुखदायी थी, पर अब इस जुल्म के खिलाफ वह उठ खड़ी हुई थी.

‘पैदाइश से कोई छोटा या बड़ा कैसे हो सकता है? अच्छे घर में जन्म लेने से ही कोई बड़ा नहीं हो जाता,’ यह सोचते हुए सावित्री को लगा कि तीखे कांटों वाली कोई जिंदा मछली उस के गले में फंस गई है. वह फूटफूट कर रो पड़ी.

सावित्री को राम किशन की नजदीकी एक अजीब सी खुशी से भर देती थी. वह सोचने लगी कि वह जातपांत के बंधनों को झूठा साबित करेगी, चाहे उसे कितना भी दुख क्यों न झेलना पड़े. वह इस कालिख को धो डालेगी.

सावित्री की यादों में राम किशन का उदास चेहरा छाने लगा और उसे लगा कि हमेशा की तरह वह आंगन में पड़े तख्त पर बैठा है. पिताजी उस से कह रहे हैं, ‘क्यों रे राम किशन… तू छोटी जात वालों के घर कहां से पैदा हो गया? गांवभर में ब्राह्मण, बनियों का कोई भी लड़का है तेरे जोड़ का… न सूरत में और न सीरत में?’

तब सावित्री की आंखों में तारे नाच उठे थे. ऐसा लगता था जैसे चारों ओर रंगबिरंगे फूल खिल उठे हों. एक राम किशन ही तो था, जिसे हवेली में आनेजाने की इजाजत थी. यह सब सावित्री को सोचतेसोचते नींद आने लगी.

राम किशन और सावित्री ने एकसाथ ही ग्रेजुएशन पास की थी. उस के बाद राम किशन नौकरी की तलाश में दरबदर की खाक छानता रहा, लेकिन उसे कहीं भी काम न मिला. मेहनतमजदूरी भी इस पढ़ाई ने छीन ली थी. गांव के ढोरडंगर वह चरा नहीं सकता था. घर की हालत ऐसी थी कि क्या बिछाएं और क्या ओढ़ें.

कई दिनों के बाद राम किशन हवेली में आया. वह बेहद थका हुआ और उदास था. सावित्री घर में नहीं थी. वह आंगन में पड़े तख्त पर बैठ गया.

बाहर बैठक में चौधरी जगवीर सिंह के पास खानदानी पुरोहित बिसेसर पंडित बैठे थे. गांवभर के पापपुण्य का लेखाजोखा उन के पास रहता था. बापदादा की जो इज्जत पोथीपत्तरों की बदौलत बनी थी, उसे खींचखांच कर जमाए बैठे थे पंडितजी.

पुरोहित बिसेसर पंडित बोले, ‘‘देश रसातल को जा रहा है चौधरी साहब. इस छोटी जात के लौंडे का हवेली में आनाजाना बंद कराओ. इन लोगों ने तो देश का सत्यानाश कर दिया है.’’

‘‘क्या हुआ पंडित… कुछ बताओगे भी?’’ चौधरी जगवीर सिंह ने पूछा.

पंडितजी आंखें नचा कर बोले, ‘‘अजी बताना क्या है… कल तक जो हमारे जूतों पर पलते थे, अब सिर उठा कर चलते हैं. हमारा बेटा महेश कभी फेल नहीं हुआ. हमेशा हर क्लास में पास हुआ है. कल इंटरव्यू देने गया था शहर के बड़े दफ्तर में. बस, वही ‘आरक्षण’ की बात. उसे फेल कर एक निचली जाति वाले को ले लिया. है कि नहीं यह जुल्म?

‘‘ये गंवार लोग देश का कारोबार चलाएंगे? अरे, मैं तो कहूं चौधरी, देश डूबेगा या नहीं?’’ पंडितजी की आवाज आंगन तक गूंज रही थी.

आंगन में पड़े एक पुराने तख्त पर बैठा राम किशन एकएक लफ्ज सुन रहा था. पुरोहित बिसेसर के लफ्ज उस को छलनी कर रहे थे. वह बुदबुदाया, ‘हरामखोर कहीं का… जहर उगल रहा है. भला महेश की नौकरी पर एक दलित कैसे लिया जा सकता है. अगर आरक्षण को वाकई इस तरह लागू किया जाता तो कितने ही दलित नौजवान पढ़लिख कर भी बेकार क्यों घूम रहे हैं?’

‘‘अरे, तुम कब आए? ऐसे चुपचाप क्यों बैठे हो? कहां थे इतने दिन?’’ राम किशन को देखते ही सावित्री ने सवालों की झड़ी लगा दी.

राम किशन सकपकाया सा उस की ओर देखने लगा.

‘‘अरे, ऐसे क्यों देख रहे हो? क्या बात है?’’ राम किशन की आंखों में उदासी देख कर सावित्री सिहर उठी.

राम किशन कुछ बोल नहीं पाया. कुछ पल तक दोनों एकदूसरे को देखते रहे, जैसे मिल कर खामोशी का कोई बाग लगा रहे हों.

राम किशन ने हौले से कहा, ‘‘शहर गया था, काम की तलाश में… पर काम नहीं मिला.’’

‘‘तो इस में इतना उदास होने की क्या बात है? मिल जाएगी नौकरी भी,’’ सावित्री ने धीरज बंधाया. फिर वह आगे बोली, ‘‘लेकिन राम किशन, मैं ने तो सुना है कि तुम लोगों को नौकरी जल्दी मिल जाती है… और फिर भी अभी तक…’’ कहतेकहते वह रुक गई.

राम किशन के चेहरे पर फैलती उदासी को सावित्री ने देख लिया था. उसे लगा, जैसे उस ने कोई गलत बात कह दी हो.

‘‘मैं ने कुछ बुरा कह दिया, जो ऐसे देख रहे हो?’’ सावित्री ने पूछा.

‘‘नहीं, बुरा नहीं… जो सुनती हो वही कहोगी न,’’ राम किशन बोला, ‘‘आसपास नजर उठा कर देखो सावित्री… हमारी जिंदगी… क्या है… किन हालात में रहते हैं… एक बार हमारी जिंदगी में झांक कर देखो, वहां कुनमुनाते सपनों की राख मिलेगी, जिस में दुख और आंसू छिपे पड़े हैं,’’ राम किशन की आवाज के दर्द ने सावित्री को भीतर तक हिला दिया था.

राम किशन उठ कर चल दिया था. सावित्री को लगा, जैसे दोनों के बीच रिश्तों के सभी धागे अचानक टूट गए हैं. आंखों में बेबसी के आंसू लुढ़क पड़े. राम किशन की पीड़ा से वह दुखी हो उठी. उसे लगा जैसे वह किसी घने, कंटीले जंगल में भटक गई है.

चौधरी जगवीर सिंह की बैठक में और 4-5 लोग आ जुटे थे. राम किशन को हवेली से निकलते देख पुरोहित बिसेसर की त्योरियां चढ़ गईं.

‘‘राम किशन, तहसीलदार बनने में और कितने दिन हैं? हां भई, तुम लोगों का ही तो राज है… बामन, बनिए तो सिर्फ नाम के रह गए हैं,’’ बिसेसर ने मजाक किया.

राम किशन पुरोहित बिसेसर की बातें सुन कर रुक गया. खुद को संभालते हुए वह बोला, ‘‘पंडितजी, आप जोकुछ सुनते हैं या सोचते हैं… जरूरी नहीं कि सब उसी तरह से सोचें या सुनें… गांवदेहात की वजह से मैं आप की इज्जत करता हूं.’’

राम किशन की बात पर पंडित बिसेसर ने बिगड़ते हुए कहा, ‘‘कल का लौंडा, हमें ज्ञान सिखाता है, वह भी छोटी जात का हो कर? कलियुग आ गया है. अबे, कल तक तेरे बापदादा हमारी परछाईं के भी नजदीक खड़े नहीं हो सकते थे… और तू जबान लड़ाता है हम से.

‘‘चौधरी ने तुझे सिर चढ़ा रखा है, नहीं तो अब तक दो जूते लगा कर तेरे होश ठिकाने ला देता. तू समझता क्या है… दो अच्छर क्या पढ़ लिए कि

खुद को ज्यादा पढ़ालिखा समझने लगा. है तो छोटी जात का ही न,’’ पुरोहित बिसेसर के मुंह से लफ्ज गोली की तरह फूटने लगे.

चौधरी जगवीर सिंह ने उन्हीं को डांटा, ‘‘क्यों बच्चों के मुंह लगते हो पंडित?’’ फिर राम किशन की ओर देख कर बोले, ‘‘जा बेटा… बड़ों की बात का बुरा नहीं मानते.’’

गांव के पश्चिम में एक गंदी बस्ती थी. एक बड़े से जोहड़ ने उस बस्ती को 3 तरफ से घेर रखा था. इसी जोहड़ के किनारे बरगद का एक पुराना पेड़ था, जिस के नीचे से हो कर ही बस्ती में जाया जा सकता था.

सूरज धीरेधीरे नीचे उतर रहा था. ढोरडंगर धूल उड़ाते गांव में लौट रहे थे.

बरगद के नीचे बिसेसर का बेटा महेश अपने दोस्तों के साथ गांजा फूंक रहा था. उस की इस गांजा मंडली में गांवभर के आवारा लड़के जमा थे.

राम किशन हवेली से निकल कर सीधा चला आ रहा था. बिसेसर के लफ्ज अभी तक उस के कानों में गूंज रहे थे. उसे देखते ही गांजा मंडली चौकन्ना हो गई. आंखों ही आंखों में मशवरा होने लगा, जैसे शिकारी शिकार को देख कर जाल फेंकने की बात सोच रहे हों.

महेश ने आगे बढ़ कर राम किशन का रास्ता रोक लिया और बोला, ‘‘कहो मजनू, लैला कैसी है?’’

राम किशन के बदन में कांटे भर गए. गांजा मंडली ने राम किशन को चारों ओर से घेर लिया. बरगद की छांव में अंधेरा घिरने लगा था. राम किशन शांत खड़ा था. मंडली राम किशन के नजदीक सिमट आई.

‘‘तेरे बड़े मजे हैं यार,’’ एक लड़का बोला.

‘‘झोंपड़ी चली है महलों में रास रचाने… कहो कन्हैया, राधा से मुलाकात कैसी रही?’’ दूसरे ने ठहाका लगाया.

‘‘अबे, इश्क से पहले अपनी औकात तो देख ली होती,’’ महेश ने आंखें तरेरीं.

राम किशन को लगा, जैसे वह जमीन में धंसता जा रहा है. उस का सारा बदन जैसे जड़ हो गया था.

‘‘अबे, आरक्षण से नौकरी पा सकते हो… पर चौधरी की बेटी तो किसी चौधरी को ही मिलेगी,’’ महेश राम किशन के मुंह के पास फुसफुसाया.

राम किशन ने हिम्मत जुटा कर कहा, ‘‘महेश, जाने दो मुझे. मैं झगड़ा करना नहीं चाहता.’’

‘‘अरे, देखो तो इस के सींग निकल आए है. हमें सिखाता है. यहीं जिंदा गाड़ दूंगा,’’ महेश ने राम किशन का गला पकड़ कर जोर से धक्का दिया.

राम किशन गिर पड़ा. जब तक वह उठने की कोशिश करता, तब तक गांजा मंडली ने लातघूंसों की बौछार शुरू कर दी. राम किशन की आंखों में तारे नाचने लगे. बदन में जगहजगह अंगारे फूटने लगे. उस ने हिम्मत नहीं छोड़ी. किसी तरह उन की गिरफ्त से छूट कर वह निकल भागा.

महेश ने दौड़ कर पकड़ना चाहा. छीनाझपटी में राम किशन के हाथ में महेश का हाथ आ गया. उस की मुट्ठियां कस गईं. हाथ को जोर से झटका दिया. एक चीख चारों ओर फैल गई. बरगद पर दुबके पक्षी डर से उड़ गए.

गांजा मंडली सिर पर पैर रख कर भागी. बरगद खामोश गवाह बना देख रहा था. सदियों से यह बरगद न जाने कितनी दास्तानें अपने भीतर छिपाए खड़ा था. इसी के नीचे पड़ा महेश दर्द से कराह रहा था.

खबर सनसनाती हवा की तरह गांवभर में फैल गई कि राम किशन ने महेश को मार डाला. बस्ती में डर के मारे लोगों का बुरा हाल था.

पुरोहित बिसेसर ने पूरा गांव सिर पर उठा लिया. वह राम किशन और बस्ती के खिलाफ पूरे गांव को भड़काता रहा. उधर महेश दर्द से रातभर छटपटाता रहा.

खबर उड़तेउड़ते हवेली तक भी पहुंच गई. सावित्री ने सुना, तो सन्न रह गई. ऐसा लगा, जैसे गले में कुछ अटक गया हो. वह राम किशन से मिल कर असलियत जानने को बेचैन हो उठी. परेशान सी आंगन में चक्कर काटने लगी. हवेली की हर चीज उस के लिए बरदाश्त से बाहर हो रही थी. वह खुद को एक ऐसे कुएं में फंसा महसूस कर रही थी, जिस से बाहर निकलने का रास्ता ही न बनाया गया हो.

सावित्री रहरह कर खुद पर खीज उठती. क्या करे, क्या न करे? वह इसी उधेड़बुन में थी.

तभी हवेली का पुराना दरवाजा चरमराया. दरवाजे पर घर की नौकरानी रामेसरी खड़ी थी, उसे देखते ही वह बिफर पड़ी, ‘‘कहां थी अब तक? कहां गई थी… अब मिली है फुरसत?’’

सावित्री के इस बरताव को देख कर रामेसरी दंग रह गई. पहली बार सावित्री ने ऐसा कहा था. उस की समझ में कुछ नहीं आया. वह जहां की तहां ठिठक कर खड़ी रह गई. वह इस नई सावित्री को एकटक हैरान हो कर देख रही थी.

रामेसरी को इस तरह खड़ा देख कर सावित्री का गुस्सा और बढ़ गया और बोली, ‘‘चुपचाप खड़ी रहेगी या कुछ बोलेगी भी…’’

रामेसरी ने हिम्मत जुटा कर कहा, ‘‘बिटिया, राम किशन और महेश में बहुत मारपीट हो गई है. मैं राम किशन के घर से आ रही हूं. महेश और उस के दोस्तों ने उसे खूब मारा है. इसी मारपीट में महेश का हाथ टूट गया है.

‘‘बिटिया, राम किशन तो बहुत अच्छा लड़का है. एकदम गऊ… जरूर इन गुंडों ने जानबूझ कर झगड़ा किया होगा. न जाने अब क्या होगा… मुझे तो डर लग रहा है.

‘‘बिटिया, यह पंडित तो नाग है… इस के डसे तो पानी भी नहीं मांगते. राम किशन को कुछ हो गया तो…’’ कहतेकहते रामेसरी का गला भर आया.

सावित्री ठगी सी रामेसरी की बातें सुन रही थी. उस के भीतरबाहर एक हलचल सी मच गई. वह तेजी से अपने कमरे की ओर भागी.

हर रोज की तरह सुबह हुई. राम किशन का पोरपोर दुख रहा था. वह खटिया पर लेटेलेटे कल की वारदात के बारे में सोचता रहा. वह हवेली न जाने का फैसला कर चुका था. सोचा कि अब वह सावित्री से मिलनाजुलना भी बंद कर देगा.

गली में चौधरी जगवीर सिंह का नौकर कालू दिखा, ‘‘राम किशन भैया, चौधरी साहब ने तुम्हें बुलाया है. जल्दी चलो.’’

राम किशन ने उठतेउठते पूछा, ‘‘क्या बात है? क्यों बुलाया है?’’

कालू ने सहमते हुए कहा, ‘‘वही कल वाली मारपीट की बात होगी. अब हम क्या जानें? पंडित पुलिस ले कर आया है.’’

आंगन में खड़ी राम किशन की मां ने सुना तो वे घबरा गईं. राम किशन के बापू तो मुंहअंधेरे ही काम पर निकल गए थे.

मां ने कहा, ‘‘नहीं बेटा, तू वहां मत जा. वे लोग पता नहीं कैसा सुलूक करें. इन लोगों पर यकीन मत करना,’’ युगोंयुगों का दर्द झलक उठा था मां के लफ्जों में.

राम किशन ने मां को धीरज बंधाया, ‘‘चिंता क्यों करती हो मां, कुछ नहीं होगा. झगड़ा मैं ने नहीं किया. उन लोगों ने ही मुझे मारा है. तुम चिंता मत करो. मैं अभी आता हूं…’’

मां अपने बेटे की नादानी पर रो पड़ी. उस ने आसपड़ोस वालों को आवाज दी. राम किशन तब तक गली में जा चुका था. मां ने कई लोगों को उस के पीछे भेजा.

हवेली में पहुंचते ही राम किशन पर पुलिस इंस्पैक्टर ने लातघूंसों की बारिश शुरू कर दी. मुंह से गालियां ऐसे फूट रही थीं मानो निहत्थे जुलूस पर मशीनगन चल रही हो.

चौधरी जगवीर सिंह खामोश बैठे थे. बैठक के चबूतरे पर पुरोहित बिसेसर, इंस्पैक्टर और एक पुलिस का सिपाही लोकतंत्र को मजबूत बना रहे थे. चबूतरे से नीचे भीड़ इकट्ठी हो गई थी. बस्ती के लोगों को हवेली से बाहर गली में ही रोक दिया गया था.

पुरोहित बिसेसर के मुंह से गालियां वेदमंत्रों सी निकल रही थीं. राम किशन के बदन पर जगहजह खून के धब्बे उभरने लगे.

बाहर के शोर ने सावित्री को झकझोर दिया था. हवेली से बैठक में आ कर देखा, तो सन्न रह गई.

उस की आंखों के आगे अंधेरा सा छा गया. उस ने अपने पिता की ओर देखा. ऐसा लगा जैसे कोई माटी का पुतला बैठा हो.

सावित्री की आंखों में खून उतर आया. चोट खाई शेरनी की तरह इंस्पैक्टर की ओर घूर कर देखा, फिर सिपाही के हाथ से डंडा छीन कर दहाड़ी, ‘‘क्यों पीट रहे हो इसे? क्या किया है इस ने?’’ भीड़ में सन्नाटा छा गया.

इंस्पैक्टर कुछ कह पाता, उस से पहले ही पुरोहित बिसेसर जहरीले नाग की तरह फुफकारा, ‘‘अपनी बेटी से कहो चौधरी कि हवेली में जाए. यह गांव का मामला है.’’

चौधरी जगवीर सिंह बेटी के इस तरह अचानक आ जाने से सहम गए थे. उन्होंने कुछ कहना चाहा, लेकिन सावित्री ने गरज कर कहा, ‘‘पंडित, यह मामला गांव का नहीं, आप के कपूत का है. एक गरीब के ऊपर इस तरह जुल्म होते देख रहा है पूरा गांव और आप इसे गांव का मामला कहते हैं?’’

चौधरी जगवीर सिंह ने बेटी को समझाने की कोशिश की, लेकिन सावित्री के चेहरे पर गुस्से का ज्वालामुखी फट पड़ा था.

पुरोहित बिसेसर ने लोगों की ओर देख कर कहा, ‘‘देख लो गांव वालो, चौधरी की बेटी एक छोटी जात वाले का साथ दे रही है. यह अधर्म है. आज तक हम चुप थे. हवेली की इज्जत सब की इज्जत थी…’’

सावित्री ने पूरी ताकत से कहा, ‘‘हां पंडित… यह अधर्म है… धर्म वह है, जो आप करते हैं… आप का गंजेड़ी, शराबी, चोर, बेईमान बेटा करता है. आप ब्राह्मण हैं… आप का बेटा ब्राह्मण है… इसलिए आप को इज्जत प्यारी है. बाकी सब लोग कीड़ेमकोड़े हैं. बेकुसूर लोगों पर जुल्म करना, उन्हें बेइज्जत करना, यही धर्म है आप का…?’’

‘‘उठो राम किशन, तुम अकेले नहीं हो… मैं हूं तुम्हारे साथ… उठो…’’

राम किशन को सहारा दे कर उठातेउठाते सावित्री का गला भर आया. आंखों में जलते अंगारे आंसुओं ने भिगो दिए. सावित्री ने गांव के नक्शे पर एक नई कहानी लिख दी थी.

भाई ने ही छीन लिया बहन का सुहाग

मध्य महाराष्ट्र की कृष्णा नदी की सहायक नदियों के किनारे निचली पहाड़ियों की लंबी शृंखला है. इन की घाटियों में बसे बीड शहर की अपनी एक अलग पहचान है. पहले यह शहर चंपावती के नाम से जाना जाता था. बीड में अनेक धार्मिक और ऐतिहासिक इमारतें हैं. इस के अलावा यहां शैक्षणिक संस्थान और कालेज भी हैं, जहां आसपास के शहरों से हजारों लड़केलड़कियां पढ़ने के लिए आते हैं.

घटना 19 दिसंबर, 2018 की है. उस समय शाम के यही कोई पौने 6 बजे का समय था. बीड के जानेमाने आदित्य इलैक्ट्रौनिक टेलीकम्युनिकेशन इंजीनियरिंग कालेज में सेमेस्टर परीक्षा का अंतिम पेपर चल रहा था, हजारों की संख्या में युवकयुवतियां परीक्षा दे रहे थे. इन्हीं में भाग्यश्री और सुमित वाघमारे भी थे. ये दोनों पतिपत्नी थे.

निर्धारित समय पर जब पेपर खत्म हुआ तो अन्य छात्रछात्राओं के साथ ये दोनों भी कालेज से बाहर आ गए. इन दोनों के चेहरों पर खुशी की चमक थी. मतलब उन का पेपर काफी अच्छा हुआ था, जिस की खुशी वह अपने सहपाठियों में बांट रहे थे.

लेकिन कौन जानता था कि उन के खिले चेहरों की खुशी सिर्फ कुछ देर की मेहमान है. परीक्षा के परिणाम आने के पहले ही उन की जिंदगी में जो परिणाम आने वाला था. वह काफी भयानक था. 15-20 मिनट अपने सहपाठियों से मिलनेजुलने के बाद दोनों पार्किंग में पहुंचे, जहां उन की स्कूटी खड़ी थी.

सुमित वाघमारे ने पार्किंग से अपनी स्कूटी निकाली और दोनों उस पर बैठ कर घर जाने के लिए निकल गए. 10 मिनट में वह नालवाड़ी रोड गांधीनगर चौक पर पहुंच गए. तभी उन की स्कूटी के सामने अचानक एक मारुति कार आ कर रुकी. उस वक्त सड़क कालेज के सैकड़ों छात्रों और भीड़भाड़ से भरी थी. मारुति कार उन की स्कूटी के सामने कुछ इस तरह आ कर रुकी थी कि वे दोनों रोड पर गिरतेगिरते बचे थे. इस के पहले कि वे संभल कर कुछ कहते, कार से 2 युवक निकल कर बाहर आ गए.

उन्हें देख कर भाग्यश्री और सुमित वाघमारे के होश उड़ गए. क्योंकि उन में से एकभाग्यश्री का भाई बालाजी लांडगे और दूसरा उस का दोस्त संकेत था. उन के इरादे कुछ ठीक नहीं लग रहे थे.

बालाजी लांडगे सुमित को खा जाने वाली नजरों से घूरे जा रहा था. भाग्यश्री अपने भाई के गुस्से को समझ रही थी. संभावना को देखते हुए भाग्यश्री अपने पति की रक्षा के लिए झट से पति के सामने आ खड़ी हुई. इस के बावजूद भी बालाजी लांडगे ने बहन को धक्का दे कर सुमित के सामने से हटाया और अपने दोस्त संकेत वाघ की तरफ इशारा कर के सुमित को पकड़ने के लिए कहा.

संकेत ने सुमित का कौलर पकड़ लिया. यह देख बालाजी बोला, ‘‘क्यों बे, मैं ने कहा था न कि मेरी बहन से दूर रहना, नहीं तो नतीजा बुरा होगा. लेकिन मेरी बातों का तुझ पर कोई असर नहीं हुआ. इस की सजा तुझे जरूर मिलेगी.’’

गुस्से में चाकू बना तलवार

इस के पहले कि सुमित कुछ कहता या संभल पाता, बालाजी लांडगे ने अपनी जेब से चाकू निकाला और सुमित पर हमला कर दिया. पति पर हमला होता देख भाग्यश्री चीखते हुए बोली, ‘‘भैया, सुमित को छोड़ दो. उस की कोई गलती नहीं है. सजा देनी है तो मुझे दो. मैं ने उसे प्यार और शादी के लिए मजबूर किया था. तुम्हें मेरी कसम है भैया. दया करो, बहन पर.’’

‘‘कैसी बहन, मेरी बहन तो उसी दिन मर गई थी, जब घर से भाग कर तूने इस से शादी की थी. जानती है तेरी इस करतूत से समाज और बिरादरी में हमारी कितनी बदनामी हुई. तूने परिवार को कहीं का नहीं छोड़ा. लेकिन मैं भी इसे नहीं छोड़ूंगा.’’ वह बोला.

अगले ही पल बालाजी लांडगे ने चाकू सुमित वाघमारे के पेट में उतार दिया. इस हमले से सुमित वाघमारे की मार्मिक चीख निकली और वह जमीन पर गिर कर तड़पने लगा. इस के बाद भी बालाजी लांडगे का गुस्सा शांत नहीं हुआ. वह सुमित वाघमारे पर तब तक वार करता रहा, जब तक कि उस की मौत न हो गई.

इस दौरान भाग्यश्री रहम की भीख मांगती रही. पति की जान बचाने के लिए वह मदद के लिए चीखतीचिल्लाती रही. लेकिन उस की सहायता के लिए कोई आगे नहीं आया. सुमित वाघमारे की हत्या करने के बाद बालाजी और उस का दोस्त संकेत दोनों वहां से चले गए.

अचानक घटी इस घटना को जिस ने भी देखा, स्तब्ध रह गया. शहर के बीचोबीच भीड़भाड़ भरे इलाके में घटी इस घटना से पूरे बीड शहर में सनसनी फैल गई. भाग्यश्री पति के शरीर से लिपट कर बुरी तरह चीखचिल्ला कर लोगों से सहायता मांग रही थी कि उस के पति को अस्पताल ले जाने में मदद करें. लेकिन मदद के लिए कोई आगे नहीं आया.

काफी हाथपैर जोड़ने के बाद आखिरकार एक आटो वाले को दया आई और वह सुमित वाघमारे को अपने आटो से जिला अस्पताल ले गया, जहां डाक्टरों ने सुमित को मृत घोषित कर दिया.

यह सुन कर भाग्यश्री अस्पताल में ही फिर से रोने लगी. अस्पताल स्टाफ ने उसे सांत्वना दी. पुलिस केस था, लिहाजा अस्पताल प्रशासन की सूचना पर पुलिस भी वहां पहुंच गई. भाग्यश्री ने अस्पताल से ही सुमित के घर वालों को फोन कर के उस की हत्या की खबर दे दी थी.

अस्पताल पहुंचे थाना विलपेठ के पीआई ने भाग्यश्री से बात की तो उस ने बता दिया कि उस के पति की हत्या उस के सगे भाई बालाजी लांडगे और उस के दोस्त संकेत ने की है. थानाप्रभारी ने यह सूचना अपने वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी.

कुछ ही देर में बीड शहर के एसपी जी. श्रीधर, एडीशनल एसपी वैभव कलुबर्मे, डीएसपी (क्राइम) सुधीर खिरडकर, पीआई घनश्याम पालवदे, एपीआई दिलीप तेजनकर, अमोल धंस, पंकज उदावत के साथ अस्पताल आ गए. उन्होंने मृतक के शव का बारीकी से निरीक्षण किया. उस के शरीर पर तेज धार वाले हथियार के कई वार थे.

अस्पताल से पूछताछ करने के बाद पुलिस अधिकारी घटनास्थल पर पहुंचे. घटनास्थल की काररवाई निपटाने के बाद पीआई फिर से अस्पताल गए. उन्होंने सुमित की लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

औनरकिलिंग के चक्कर में हुई हत्या

भाग्यश्री ने अपने भाई बालाजी लांडगे और संकेत वाघ के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज करवाने के बाद पुलिस को बताया कि जब से उस ने अपने परिवार के विरुद्ध जा कर सुमित वाघमारे से कोर्टमैरिज की थी, तब से उस के परिवार वाले अकसर सुमित को धमकियां देते आ रहे थे, जिस की उन्होंने करीब एक महीने पहले शिवाजी नगर पुलिस थाने में शिकायत दर्ज करवाई थी. लेकिन पुलिस ने कोई काररवाई नहीं की तो बालाजी के हौसले बुलंद हो गए.

पुलिस को मामला औनरकिलिंग का लग रहा था. दिनदहाड़े हत्या होने की खबर जब शहर में फैली तो एसपी जी. श्रीधर ने लोगों को भरोसा दिया कि हत्यारों को जल्द पकड़ लिया जाएगा. उन्होंने उसी समय इस केस की जांच पुलिस डीएसपी (क्राइम) सुधीर खिरडकर को सौंप दी.

खिरडकर ने जांच का जिम्मा लेते ही स्थानीय पुलिस और क्राइम ब्रांच की कई टीमें बना कर तेजी से जांच शुरू कर दी. पुलिस ने सब से पहले शहर की नाकेबंदी कर के अभियुक्तों के बारे में अलर्ट जारी कर दिया.

घटनास्थल के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगाली गई तो इस बात की पुष्टि हो गई कि वारदात को बालाजी लांडगे और संकेत वाघ ने ही अंजाम दिया था. लिहाजा पुलिस ने दोनों के फोन नंबर सर्विलांस पर लगा दिए. साथ ही मुखबिरों को भी सजग कर दिया. लेकिन 3 दिनों तक पुलिस और क्राइम ब्रांच को कोई सफलता नहीं मिली.

जांच के दौरान पुलिस को जानकारी मिली कि सुमित वाघमारे की हत्या में बालाजी लांडगे के दोस्त कृष्णा क्षीरसागर और उस के भाई गजानंद क्षीरसागर ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. बालाजी और उस का दोस्त संकेत फरार हो चुके थे. लिहाजा पुलिस टीम ने दबिश दे कर कृष्णा क्षीरसागर और उस के भाई गजानंद क्षीरसागर को गिरफ्तार कर लिया.

कृष्णा क्षीरसागर और गजानंद क्षीरसागर ने क्राइम ब्रांच को बताया कि बालाजी लांडगे और संकेत वाघ पुणे होते हुए औरंगाबाद में एक मंत्री के घर गए हैं. यह सूचना मिलते ही क्राइम ब्रांच की टीम पुणे में उस मंत्री के घर पहुंच गई. पता चला कि टीम के आने के कुछ घंटे पहले ही दोनों वहां से अमरावती के लिए निकल गए थे.

आरोपी अमरावती शहर से बाहर न जा सकें, इस के लिए एसपी जी. श्रीधर ने अमरावती के पुलिस कमिश्नर से अभियुक्तों की गिरफ्तारी में मदद करने को कहा. तब पुलिस कमिश्नर ने अमरावती शहर की पुलिस के साथ जीआरपी को भी सतर्क कर दिया. जीआरपी ने बालाजी लांडगे और संकेत वाघ को अमरावती के बडनेरा रेलवे स्टेशन पर गिरफ्तार कर लिया. इस के बाद उन्होंने दोनों अभियुक्त क्राइम ब्रांच की जांच टीम को सौंप दिए.

क्राइम ब्रांच औफिस में बालाजी लांडगे से पूछताछ की तो उस ने आसानी से अपना गुनाह स्वीकार करते हुए अपनी बहन के सुहाग की हत्या की जो कहानी बताई, इस प्रकार निकली—

25 वर्षीय सुमित वाघमारे महत्त्वाकांक्षी युवक था. मूलरूप से बीड तालखेड़ा, तालुका मांजल, गांव हमुनगोवा का रहने वाला था. उस के पिता शिवाजी वाघमारे गांव के जानेमाने किसान थे. गांव में उन की काफी प्रतिष्ठा थी. परिवार में उन की पत्नी के अलावा एक बेटी और बेटा सुमित वाघमारे थे.

शिवाजी वाघमारे उसे उच्चशिक्षा दिला कर कामयाब इंसान बनाना चाहते थे, इसलिए उन्होंने सुमित का एडमिशन बीड शहर के आदित्य इलैक्ट्रौनिक टेलीकम्युनिकेशन इंजीनियरिंग कालेज में करवाया. उस के रहने की व्यवस्था उन्होंने बीड शहर में ही रहने वाली अपनी साली के यहां कर दी थी. अपनी मौसी के घर रह कर सुमित इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने लगा.

इसी कालेज से भाग्यश्री लांडगे भी इंजीनियरिंग कर रही थी. दोनों एक ही कक्षा में थे, जिस से उन की अच्छी दोस्ती हो गई. उन की दोस्ती प्यार तक कब पहुंच गई, उन्हें पता ही नहीं चला.

दोनों के दिलों में प्यार के अंकुर फूटे तो वे एकदूसरे को अपने जीवनसाथी के रूप में देखने लगे थे. उन्हें ऐसा लगने लगा जैसे दोनों एकदूसरे के लिए ही बने हों.

पहले दोस्ती, फिर प्यार, बाद में शादी समय धीरधीरे सरक रहा था. कालेज की पढ़ाई और परीक्षा में सिर्फ 6 महीने रह गए थे. दोनों ने फाइनल परीक्षा के बाद शादी करने का फैसला किया था, लेकिन इस के पहले ही भाग्यश्री के परिवार वालों को उस के और सुमित के बीच चल रहे प्यार की जानकारी हो गई, जिसे जान कर वे सन्न रह गए. उन्होंने भाग्यश्री के लिए जो सपना देखा था, वह टूट कर बिखरते हुए नजर आया.

मामला काफी नाजुक था. भाग्यश्री का फैसला उन की मानमर्यादा के खिलाफ था. लेकिन भाग्यश्री सुमित वाघमारे के प्यार में अंधी हो चुकी थी. फिर भी उन्होंने मौका देख कर भाग्यश्री को समझाने की काफी कोशिश की. उस के भाई बालाजी लांडगे को तो सुमित जरा भी पसंद नहीं था.

वह न तो उन की बराबरी का था और न ही उन की बिरादरी का. उस ने भाग्यश्री को न केवल डांटाफटकारा बल्कि बुरे अंजाम की चेतावनी भी दी. साथ ही यह भी कहा कि अगर उस ने अपनी राह और रवैया नहीं बदला तो उस का कालेज जाना बंद करा देगा.

घर और परिवार का माहौल बिगड़ते देख भाग्यश्री समझ गई कि घर वाले उस की शादी में जरूर व्यवधान डालेंगे. इसलिए किसी भी नतीजे की परवाह किए बगैर कालेज की परीक्षा के 3 महीने पहले उस ने अपने प्रेमी सुमित वाघमारे से कोर्टमैरिज कर ली. इतना ही नहीं, कुछ दिनों के लिए वह पति सुमित के साथ भूमिगत हो गई.

भाग्यश्री के अचानक गायब हो जाने के बाद उस के घर वालों की काफी बदनामी हुई. इतना ही नहीं, जब उन्हें पता चला कि उस ने सुमित से शादी कर ली है तो उन्हें बहुत गुस्सा आया. घर वालों ने दोनों को बहुत तलाशा. जब वे नहीं मिले तो सुमित वाघमारे को जिम्मेदार मानते हुए उन्होंने शिवाजी नगर थाने में सुमित के खिलाफ भाग्यश्री के अपहरण की शिकायत दर्ज करा दी.

पुलिस ने मामले में संज्ञान लेते हुए अपनी काररवाई शुरू कर दी. इसी बीच भाग्यश्री को पता चल गया कि पुलिस उन्हें तलाश रही है. लिहाजा अपनी शादी के एक महीने बाद भाग्यश्री और सुमित वाघमारे दोनों पुलिस के सामने हाजिर हो गए. दोनों ने अपने बालिग होने और शादी करने का प्रमाणपत्र पुलिस को दे दिया. साथ ही अपनी सुरक्षा की भी गुहार लगाई.

मामले की गंभीरता को देखते हुए पुलिस ने भाग्यश्री के परिवार वालों को समझा दिया कि दोनों बालिग हैं, इसलिए उन की शादी कानूनन वैध है. इसलिए उन्हें किसी भी तरह तंग न किया जाए. अगर भाग्यश्री या उस के पति ने थाने में अपनी सुरक्षा आदि को ले कर कोई शिकायत की तो पुलिस को काररवाई करनी पड़ेगी.

लेकिन पुलिस की चेतावनी के बाद भी भाग्यश्री के परिवार वालों का रवैया नहीं बदला. उन के अंदर प्रतिशोध की चिंगारी सुलगती रही. भाग्यश्री के भाई बालाजी लांडगे ने भाग्यश्री और सुमित वाघमारे को घटना के एक महीने पहले सबक सिखाने की धमकी दी थी, जिस की शिकायत उन्होंने थाने में भी की थी.

प्रेमी युगल की शिकायतके बावजूद कुछ नहीं हुआ

पुलिस में की गई इस शिकायत का भी बालाजी पर कोई असर नहीं हुआ. वह अपने परिवार की बेइज्जती पर भाग्यश्री को सबक सिखाना चाहता था. इस के लिए उस ने एक खतरनाक योजना तैयार की, जिस में उस ने अपने दोस्त संकेत वाघ, कृष्णा क्षीरसागर और गजानंद क्षीरसागर की मदद ली. उन्हें उन का काम समझा कर वह मौके की तलाश में रहने लगा था.

19 दिसंबर, 2018 को कृष्णा क्षीरसागर ने बालाजी लांडगे को बताया कि भाग्यश्री और सुमित वाघमारे अपनी परीक्षा देने के लिए कालेज आएंगे. खबर पाते ही बालाजी लांडगे अपनी योजना की तैयारी में लग गया. उस ने अपने दोस्त संकेत वाघ को उस की कार के साथ लिया और कालेज के पास आ कर परीक्षा खत्म होने का इंतजार करने लगा.

परीक्षा खत्म होने के बाद भाग्यश्री और सुमित वाघमारे जब अपनी स्कूटी से कालेज से घर के लिए निकले तो बालाजी लांडगे ने उन का रास्ता रोक लिया और देखते ही देखते बहन के सिंदूर को रक्त के कफन में लपेट दिया.

सुमित वाघमारे की हत्या के बाद संकेत वाघ और बालाजी लांडगे ने कार ले जा कर मित्रनगर छोड़ दी. वहां से वह गजानंद क्षीरसागर की स्कूटी से वाडा रेलवे स्टेशन गए, वहां से वे पुणे, औरंगाबाद और अमरावती पहुंचे, जहां वे रेलवे पुलिस के हत्थे चढ़ गए थे.

चारों गिरफ्तार अभियुक्तों से विस्तृत पूछताछ करने के बाद बीड क्राइम ब्रांच के अधिकारियों ने उन्हें विलपेठ पुलिस थाने के अधिकारियों को सौंप दिया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

मेरे जेठ करीब आने की कोशिश करते हैं, मैं क्या करूं?

सवाल

मेरी शादी करीब 4 साल पहले दिल्ली में हुई थी. पति बिजनैसमैन हैं. हमारी अरेंज्ड मैरिज हुई थी. शुरुआत में पति के साथ थोड़ी खटपट रहती थी, मगर फिर धीरेधीरे हम एकदूसरे को समझने लगे और सब ठीक चलने लगा. मगर इसी बीच मेरी जेठानी जो परिवार के साथ ऊपर वाले फ्लोर पर रहती थीं अचानक चल बसीं. उन के 2 बच्चे हैं जो इतने बड़े हो चुके हैं कि खुद अपनी देखभाल कर सकें.

मेरे जेठ की पास में ही कपड़ों की शौप है. वे अकसर मेरे पति के पीछे भी हमारे घर आतेजाते रहते थे. जेठानी की मौत के बाद मेरे मन में उन के लिए सहानुभूति की भावना रहती थी. मगर उन का रवैया कुछ और ही रहने लगा. वे अकसर मेरे करीब आने का प्रयास करने लगे. एक दिन तो खुलेतौर पर मुझ से हमबिस्तर होने का आग्रह करने लगे.

मैं ने उस समय तो उन्हें किसी तरह झटक दिया और जाने को कह दिया, मगर अब मुझे डर लगा रहता है कि न जाने कब वे फिर से ऐसे ही इरादे के साथ आ धमकें. मुझे पति से भी इस संदर्भ में बात करने में हिचक हो रही है, क्योंकि वे अपने बड़े भाई को बहुत मानते हैं. मुझे डर है कि कहीं वे मुझे ही दोषी न मान बैठें. बताएं क्या करूं?

जवाब

सब से पहले तो आप को बिना किसी डर या हिचकिचाहट के अपने पति से बात करनी चाहिए. उन्हें अपने विश्वास में ले कर अपना डर जाहिर करना होगा. यदि वे बिलकुल न मानें तो किसी दिन मौका देख कर कोई सुबूत जुटाने का प्रयास करें. जेठ जब भी दरवाजा खटखटाएं तो आप मोबाइल का वौइस रिकौर्डर औन कर के अपने पास रख लें तब दरवाजा खोलें.

ऐसे में जेठ यदि कोई गलत बात कहते या ऐसीवैसी कोई हरकत करते हैं तो सब रिकौर्ड हो जाएगा और फिर आप अपने पति को बतौर सुबूत उस रिकौर्डिंग को सुना सकती हैं. वैसे अच्छा होगा कि आप पति से कहीं और घर लेने का आग्रह करें या फिर जेठ की दोबारा शादी कराने का प्रयास करें. उन्हें पत्नी की कमी खल रही है, इसलिए आप की तरफ आकर्षित हो रहे हैं. नई पत्नी के आ जाने पर संभव है कि वे आप से सामान्य व्यवहार करने लगें.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
सब्जेक्ट में लिखे…  सरस सलिल- व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

इन 5 कारणों से पिता नहीं बन पाते पुरुष

Lifestyle News in Hindi: इन्फर्टिलिटी (Infertility) एक ऐसी समस्या है जो बीमारी (Disease) ना होकर आत्मसम्मान की लड़ाई ज्यादा है. बातों बातों में एक दुसरे को मर्दानगी दिखने वाले पुरुष अगर ऐसी बीमारी को सार्वजनिक (Public) रुप से उजागर करे तो उनके पुरुषार्थ पर सवाल उठाया जाता है. जिसके चलते सही समय पर इलाज शुरु नहीं हो पाता. इसको ज्ञान की कमी कहें या फिर पुरुष प्रधान (Male Dominated) समाज में अपनी धोक जमाए रखना, जो भी हो पर इन्फर्टिलिटी एक बीमारी जिसका इलाज ना संभव है बल्कि आप इससे पुरी तरह ठीक भी हो सकते है. आपको जानकर आश्चर्य होगा पर एक सर्वे के अनुसार भारत में लगभग 2 करोड़ 75 लाख जोड़े बांझपन का शिकार हैं, यानी हर 10 में से 1 जोड़ा शादी के बाद बच्चा पैदा करने में सक्षम नहीं है.

मेडीकल साइंस की बात करें तो इन्फर्टिलिटी के बारे लोगों की राय काफी गलत है.ये जान कर हैरानी पर ज्यादातर लोगों में बांझपन का कारण उनकी गलत आदतें होती हैं. भारत में बढ़ रहे बांझपन या इन्फर्टिलिटी के पांच कारण है जिसे आपको जानना बेहद जरुरी है. तो जानते है क्या है वो 5 कारण…

1. शादी के उम्र है एक कारण

आजकल लड़के-लड़कियां कैरियर सेट हो जाने और आर्थिक रूप से सक्षम हो जाने के बाद शादी के फैसले ले रहे हैं. यही कारण है कि ज्यादातर लड़के-लड़कियां 30-32 की उम्र तक शादी के बंधन में बंधना चाहते हैं. इसके अलावा शादी के बाद भी वो कुछ समय तक बच्चे की जिम्मेदारियों से बचना चाहते हैं. चिकित्सक मानते हैं कि 35 की उम्र के बाद महिलाओं को मां बनने में सामान्य से ज्यादा मुश्किलें आती हैं. ज्यादातर मामलों में नौर्मल डिलीवरी के बजाय औपरेशन करना पड़ता है और कई जोड़ों में शुक्राणुओं की क्वालिटी भी खराब होने लगती है, जिससे उन्हें प्रेग्नेंसी में परेशानी आती है. दूसरे कारण जो आजकल अधिकांश स्त्रियों में पाये जा रहे हैं वो हैं फाइब्रायड का बनना, एन्डोमैंट्रियम से सम्बन्धी समस्याएं. उम्र के बढ़ने के कारण हाइपरटेंशन जैसी दूसरी समस्याएं भी आ जातीं हैं और इनके कारण महिलाओं में फर्टिलिटी प्रभावित होती है.

2. कुछ गलत आदतें भी है कारण

आजकल कम उम्र में सिगरेट, शराब, गुटखा और कई बार ड्रग्स की लत भी लड़के-लड़कियों में काफी बढ़ गई है. इन आदतों के कारण भी वीर्य (Sperm) की गुणवत्ता खराब होती है और स्पर्म काउंट कम होता है. यह होने वाले बच्चे में आनुवांशिक तौर पर बदलाव भी कर सकता है . इसी प्रकार से अल्कोहल भी टेस्टोस्टेरौन के उत्पादन को कम करता है. विशेषज्ञों के अनुसार किसी प्रकार की दवाओं या ड्रग्स के गलत तरीके से इस्तेमाल के कारण भी इन्फर्टिलिटी हो सकती है. स्टेरायड जैसे हार्मोन हमारे शरीर के हार्मोन के स्त‍र में बदलाव लाते हैं जो कि हमारे स्वास्‍थ्‍य को भी प्रभावित कर सकते हैं. बीमारी होने पर भी चिकित्सक की सलाहानुसार ही दवाएं लेनी चाहिए.

3. काम का बढ़ता बोझ

आजकल लगभग हर सेक्टर में काम और सफलता का दबाव पहले से ज्यादा बढ़ गया है. इस कारण से लोग ओवर टाइम, नाइट शिफ्ट या घर पर काम करने को मजबूर होते हैं. काम के साथ-साथ शरीर के लिए आराम भी बहुत जरूरी है. समय कम होने के कारण लोग न तो एक्सरसाइज करते हैं और न ही अपने खानपान पर ध्यान दे पाते हैं. इन कारणों से भी धीरे-धीरे व्यक्ति के स्पर्म की क्वालिटी पर असर पड़ता है.

4. बढ़ती बीमारियां भी है कारण

हाइपरटेंशन (हाई ब्लड प्रेशर), डायबिटीज, मोटापा जैसी समस्या आजकल युवाओं में भी आम हो गयी है. इनका प्रभाव व्यक्ति की सेक्सुअल लाइफ पर भी पड़ता है . डायबिटीज़, पी सी ओ डी (पॉलीसिस्टिक ओवरियन डिज़ीज़) के कारण महिलाओं मे बहुत सी बीमारियां आम हो गयी हैं . 60 से 70 प्रतिशत महिलाओं में ओवुलेशन की क्रिया ही नहीं होती . वज़न का बढ़ना और व्यायाम की कमी के कारण भी सही मात्रा में हार्मोन नहीं बन पाते. बचपन से ही लोगों में कंप्‍यूटर और लैपटाप पर बैठना आम है और यह कारण भी कहीं ना कहीं इन्फर्टिलिटी के जि़म्मेदार होते हैं.

5. प्रदूषण और शहरी वातावरण ये सबसे अहम कारण

शहरी वातावरण में बढ़ते प्रदूषण और टाक्सिन ने 45 से 48 प्रतिशत इन्फर्टिलिटी के मामले बढ़ा दिये हैं. जीवनशैली में बदलाव और खानपान की गलत आदतें भी अप्रत्यक्ष रूप से इन्फर्टिलिटी की जि़म्मेदार हैं. पेस्टिसाइड और प्लास्टिक का खानपान के दौरान हमारी फूड चेन में आना हार्मोन के स्तर को प्रभावित करता है. यूनिवर्सिटी आफ नार्थ कैरालिना, चैपल हिल के शोधकर्ताओं ने यह पता लगाया है कि वो महिलाएं जो नाइट शिफ्ट में काम करती हैं उनमें समय से पहले प्रसव की सम्भावना रहती है .

कैसे छुटकारा पाया जाए इन्फर्टिलिटी से

इन्फर्टिलिटी दूर करने के लिए जरूरी है कि आप अभी से अपने स्वास्थ्य का ख्याल रखें. शुरुआत से अपना मोटापा, डायबिटीज और ब्लड प्रेशर कंट्रोल रखें. सिगरेट, शराब, तंबाकू उत्पादों का सेवन बिल्कुल बंद कर दें. खानपान में पौष्टिक आहार शामिल करें और रोज थोड़ी एक्सरसाइज जरूर करें. साथ ही शरीर में कुछ भी बदलाव हो तो तुरंत डाक्टर से सलाह ले और किसी भी बदलाव को अंदेखा ना करें. इन्फर्टिलिटी को बीमारी की तरह ले जिससे की आप जल्द निजाद पा सकें. समाज के डर से इसको छुपाना समस्या को और बढ़ाना है. इसलिए अगर आप भी बच्चा ना होने से परेशान है तो जल्द से जल्द अपना इलाज शुरु कराए.

कहीं आप सेक्स एडिक्शन के शिकार तो नहीं, जानें लक्षण

Sex News in Hindi: सेक्स ऐडिक्शन (Sex Addiction) एक खतरनाक डिसऔर्डर (Disorder) है, जिसमें आदमी अपनी सेक्शुअल नीड्स (Sexual Needs) पर कंट्रोल नहीं कर पाता. यह है कि यह बेहद खतरनाक डिसऑर्डर है और अडिक्टेड (Addicted) आदमी की जिंदगी बर्बाद भी कर सकता है.

क्या है सेक्स ऐडिक्शन ?  

सेक्स ऐडिक्शन  आउट ऑफ कंट्रोल हो जाने वाली सेक्शुअल ऐक्टिविटी है. इस स्थिति में सेक्स से जुड़ी हर बात आती है चाहे पॉर्न देखना हो, मास्टरबेशन हो या फिर प्रॉस्टिट्यूट्स के पास जाना, बस यह एक ऐसी ऐक्टिविटी होती है जिस पर इंसान का कंट्रोल नहीं रहता.

क्या हैं लक्षण?

सेक्स थेरेपिस्ट के साथ रेग्युलर मीटिंग्स के बिना यह बताना बहुत मुश्किल है कि किसे यह डिसऑर्डर है लेकिन कुछ लक्षण है जिनसे आप अंदाजा लगा सकती हैं और फिर डॉक्टर से कंसल्ट कर सकती हैं. जैसे, बहुत सारे लोगों के साथ अफेयर होना, मल्टिपल वन नाइट स्टैंड, मल्टिपल सेक्शुअल पार्टनर्स, हद से ज्यादा पॉर्न देखना, अनसेफ सेक्स करना, साइबर सेक्स, प्रॉस्टिट्यूट्स के पास जाना, शर्मिंदगी महसूस होना, सेक्शुअल नीड्स पर से नियंत्रण खो देना, ज्यादातर समय सेक्स के बारे में ही सोचना या सेक्स करना, सेक्स न कर पाने की स्थिति में तनाव में चले जाना.

ऐसे पायें छुटकारा

सेक्स ऐडिक्शन  के शिकार लोगों को फौरन साइकॉलजिस्ट या साइकायट्रिस्ट के पास जाना चाहिए. साइकॉलजिस्ट काउंसिलिंग और बिहेवियर मॉडिफिकेशन के आधार पर इस ऐडिक्शन का इलाज करते हैं और मरीज के विचारों में परिवर्तन लाने की कोशिश करते हैं.

ऐसे लोगों को दूसरे कामों में व्यस्त रहने की सलाह दी जाती है. उन्हें समझाया जाता है कि वे संगीत, लॉन्ग वॉक आदि का सहारा लें और अपने परिवारवालों के साथ ज्यादा से ज्यादा वक्त बिताएं. साइकायट्रिस्ट दवाओं के माध्यम से इलाज करता है.

सेक्स ऐडिक्शन  एनोनिमस (एसएए) सेक्स ऐडिक्शन के शिकार लोगों का संगठन हैं. यहां कोई फीस नहीं ली जाती और न ही दवा दी जाती है. मीटिंग में इसके सदस्य जीवन के कड़वे अनुभवों, इससे जीवन में होने वाले नुकसान और काबू पाने की कहानी शेयर करते हैं. मीटिंग में आने वाले नए सदस्यों को इससे छुटकारा दिलाने के लिए मदद भी करते हैं. इससे पीड़ितों का आत्मबल बढ़ता है और उनमें इस बुरी आदत को छोड़ने की शक्ति विकसित होती है.

लाल कमल : अंधविश्वास को मात देता उजाला

आईएएस यानी भारतीय प्रशासनिक सेवा में आने के बाद आनंद अभी बेंगलुरु में एक ऊंचे प्रशासनिक पद पर काम कर रहा है. महात्मा गांधी की पुकार पर साल 1942 के आंदोलन में स्कूल छोड़ कर देश की आजादी के लिए कूद पड़ने वाले करमना गांव के आदित्य गुरुजी के पोते आनंद को देश और समाज के प्रति सेवा करने की लगन विरासत में मिली है. आनंद बचपन से ही अपने तेज दिमाग, बड़ेबुजुर्गों के प्रति आदर और हमउम्र व बच्चों के बीच मेलजोल के साथ पढ़नेलिखने व खेलनेकूदने में भाग लेने के चलते बहुत लोकप्रिय था.

गांवसमाज के हर तीजत्योहार, शादीब्याह, रीतिरिवाज में आनंद को उमंग के साथ हिस्सा लेने में बहुत खुशी होती थी. केवल छात्र जीवन में ही नहीं, बल्कि प्रशासनिक सेवा में आने के बाद भी होलीदशहरा में वह गांव आने का मौका निकाल ही लेता था.

इस बार मार्च महीने में दफ्तर के कुछ काम से उसे पटना जाना था. पटना आने के बाद आनंद ने एक दिन गांव जाने का प्रोग्राम बनाया.

आनंद को गांव आ कर काफी अच्छा लगता है, पर अब यहां बहुतकुछ बदल गया है.

यह बात आज के बच्चे सोच भी नहीं सकते कि जहां पहले कभी कच्ची सड़क पर बैलगाड़ी और टमटम के अलावा कोई दूसरी सवारी नहीं हुआ करती थी, वहां अब पक्की रोड पर बसें और आटोरिकशा 12 किलोमीटर दूर रेलवे स्टेशन तक जाने के लिए हर 15 मिनट पर तैयार मिल जाते हैं.

यहां तक कि पटना से निकलने वाले सभी अखबार अब इस गांव में आते हैं और हौकर इन्हें घरघर तक पहुंचा जाता है. साथ ही, टैलीविजन पर भी अब हर छोटीबड़ी खबर और मनोरंजन के तमाम कार्यक्रमों समेत नईपुरानी फिल्में भी देखने को मिल जाती हैं.

अब आनंद के बाबूजी तो रहे नहीं, पर चाचा और चाची रहते हैं. उसे देखते ही उन के चेहरे पर खुशी की चमक आंखों में नमी लिए पसर गई.

आनंद ने चाचा के पैर छुए. उन्होंने उस के सिर को दोनों हाथों में ले कर चूमते हुए ढेर सारा आशीर्वाद दिया.

चाची दोनों की बातें सुनते हुए अंदर से बाहर आ गई थीं. आनंद ने उन के भी पैर छुए.

चाची ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘हम कह रहे थे कि आनंद हम को देखे बिना जा ही नहीं सकता.’’

‘‘कैसे हैं आप लोग?’’ आंखों में भर आए आंसुओं को रूमाल से पोंछते हुए आनंद ने पूछा.

‘‘तुम्हारे जैसे बेटे के रहते हमें क्या हो सकता है? हम भलेचंगे हैं. लो, कुछ चायनाश्ता कर के थोड़ा आराम कर लो, तब तक मैं खाना तैयार कर लेती हूं,’’ कह कर चाची अंदर चल पड़ीं.

‘‘बहुत परेशान न होइएगा चाची. सादा खाना ही ठीक रहेगा,’’ आनंद ने कहा और चायनाश्ता करते हुए चाचा

से अपने खेतखलिहान के साथ ही साफ बागबगीचे, गांवसमाज की बातें करने लगा.

चाची के हाथ का बना खाना खाते हुए आनंद को बरबस ही बचपन की यादें ताजा हो आईं.

खाना खाने के बाद आनंद ने कुछ देर आराम किया. शाम को चाचा ने फागू को बुलाया. उन्होंने सरसों के सूखे डंठलों को खलिहान से मंगवा कर परिवार के सदस्यों की संख्या के हिसाब से एक ज्यादा होल्लरी यानी लुकाठी बनवाई.

होलिका दहन के लिए गांव की तय जगह पर लोग समय पर इकट्ठा हो गए थे. आनंद भी चाचा के जोर देने पर वहां पहुंच गया था.

वैसे, होली के इस मौके पर होने वाली हुल्लड़बाजी और नशे के असर से सहीगलत न समझ पाने वाले नौजवानों की हरकतों को आनंद बचपन से ही नापसंद करता रहा है.

आनंद को यह बात तो अच्छी लगती कि होलिका दहन में गांवमहल्ले की बहुत सी गंदगी, बेकार की चीजें, जो सही माने में बुराई की प्रतीक हैं, जला कर आबोहवा को कुछ हद तक साफ करने में मदद मिलती है. परंतु वह यह भी मानता है कि होलिका दहन के ढेर से उठती आग की लपटों से कभीकभार आसपास के हरेभरे पेड़ों और मकानों को पहुंचने वाले नुकसान से इस को मनाने के सही ढंग पर नए सिरे से सोचना चाहिए.

आनंद को देख कर गांव के बहुत से नौजवान लड़के उस के पास आ गए. उन सभी लड़कों ने अपने मातापिता से आनंद के बारे में पहले ही बहुतकुछ सुन रखा था. वे अपने बच्चों को आनंद जैसा बनने की सीख देते थे.

आनंद को भी उन से मिल कर बहुत अच्छा लगा.

आनंद ने उन नौजवानों से दोस्त की तरह कई बातें कीं, फिर होलिका दहन के बारे में भी अपने मन की बातें उन से साझा कीं. वे सभी आनंद जैसे एक बड़े ओहदे वाले शख्स की इतनी अपनेपन भरी बातों से बहुत ज्यादा प्रभावित थे.

एक लड़के सुंदर ने आगे आते हुए कहा, ‘‘आनंद अंकल, हम आप से वादा करते हैं कि आगे से सावधान रहेंगे और किसी भी दुर्घटना की नौबत नहीं आने देंगे.’’

सुधीर ने भी भरोसा दिलाते हुए कहा, ‘‘अंकल, आज होली के नाम पर न तो कोई गंदे गाने गाएगा और न ही गंदी हरकत करेगा.’’

और सच में ही उस शाम के होलिका दहन को बड़ी सादगी से मनाया गया.

आनंद ने सभी को होली की मिठाई खिलाई. उस के बाद वह अपने चाचा के साथ घर लौट आया.

चैत्र पूर्णिमा की रात थी. दालान में चारपाई पर लेटे आनंद को चांदनी में नहाई रात काफी अच्छी लग रही थी. नींद की गहराई में धीरेधीरे उतरते हुए भी आनंद के कानों में होली के गीत सुनाई पड़ रहे थे.

अचानक ही तभी कुत्तों के भूंकने की आवाजों को बीच गांव के लोगों की घबराहट भरी आवाजों का शोर जोर पकड़ता हुआ सुनाई पड़ा.

‘‘मालिक, गोलीबंदूक के साथ बसहा गांव वाले फसल लगे खेतों की सीमा पर आ कर लड़नेमरने को तैयार खड़े हैं,’’ दीनू को अपने चाचा से यह कहते हुए सुन कर चौंकता हुआ आनंद झटके से उठ बैठा.

आनंद ने अपने मोबाइल फोन से कुछ संबंधित बड़े पुलिस अफसरों से बात करने की कोशिश की.

रास्ते में दीनू ने बताया कि आधी रात के बाद गांव के कुछ अंधविश्वासी लोग देवी मां के मंदिर में जमा हुए थे.

तांत्रिक इच्छा भगत ने पहले देवी मूर्ति की लाल उड़हुल के फूलों, रोली, अबीरगुलाल से पूजा की थी, उस के बाद एक तगड़ा काला कुत्ता भैरों के रूप में वहां लाया गया.

वहां जुटे लोगों ने खुद शराब पीने के साथसाथ उस कुत्ते को भी शराब पिलाई और फूलमाला से पूजा की गई.

नए साल में अपने गांव की खुशहाली और पुराने साल आई मुसीबतों को हमेशा के लिए भगाने के लिए उन्होंने करायल, अरंडी का तेल, पीली सरसों, लाल मिर्च, सिंदूर, चावल वगैरह को एक छोटे मिट्टी के बरतन में ढक कर भैरों कहे जाने वाले कुत्ते की गरदन में बांध दिया.

तांत्रिक इच्छा भगत ने मंदिर से एक जलता हुआ दीया उठा कर कुत्ते की गरदन में सामान समेत बंधे मिट्टी के बरतन में सावधानीपूर्वक रख दिया. फिर दीए की गरमी से परेशान कुत्ता भूंकता हुआ बसहा गांव की तरफ दौड़ पड़ा.

इच्छा भगत और कुछ लोग इस बात को पक्का करना चाहते थे कि वह कुत्ता वापस उन के अपने गांव में न लौटे.

उधर खेतों की रखवाली कर रहे बसहा गांव के कुछ किसानों ने दूसरे छोर पर आग की लपटों के साथ कुत्ते की गुर्राहट भरी आवाज सुनी. कुछ ही देर में पकने को तैयार गेहूं की फसल लपटों में झुलसने लगी थी.

रखवाली कर रहे किसानों को पूरा माजरा समझने में ज्यादा समय नहीं लगा. उन्होंने दौड़ कर तमाम गांव वालों को बुला लिया. ट्यूबवैल चला कर पानी से आग बुझाने के साथसाथ कुछ लोग गोलीबंदूक के साथ इस घटना के पीछे रहे करमना गांव को सबक सिखाने को ललकारने लगे थे. हवा में गोलियों की आवाजें गूंजने लगी थीं.

इस से पहले कि करमना गांव के कुछ अंधविश्वासी और नासमझ तत्त्वों की शरारत के कारण पड़ोसी गांव वालों की होली की खुशी खूनखराबे और मातम की भेंट चढ़ जाती, आनंद अपने साथ जिला मजिस्ट्रेट और एसपी की टीम मौके पर ले कर पहुंच गया. उस ने गुस्साए लोगों को समझाबुझा कर शांत किया.

अंधविश्वास में ‘भैरव टोटका’ करने वाले इच्छा भगत व दूसरे लोगों को पुलिस पकड़ कर वहां थोड़ी ही देर में पहुंच गई.

आनंद के कहने पर उन लोगों ने बसहा गांव के लोगों से अपने गलत अंधविश्वास के चलते किए गए काम के लिए माफी मांगी.

‘‘हम आप के पैर पकड़ते हैं भैया, हमें माफ कर दीजिए. हम शपथ लेते हैं कि आगे से नासमझी और अंधविश्वास से भरा कोई काम नहीं करेंगे.’’

तब तक आग बुझाने के लिए फायर ब्रिगेड की टीम भी वहां आ चुकी थी.

तेजी से किए गए बचाव काम से आग को ज्यादा फैलने के पहले ही बुझाने में कामयाबी मिल गई थी.

आनंद ने गांव वालों की ओर से हुई गलती के लिए माफी मांगते हुए कहा, ‘‘रघुवीर, मैं तुम्हारे जज्बात को अच्छी तरह समझ सकता हूं… अपनी जिस फसल को खूनपसीना बहा कर तुम ने तैयार किया है, उस के खेत में इस तरह जल जाने के चलते हुए दिल के घाव को भरना किसी के लिए मुमकिन नहीं है. फिर भी करमना गांव के लोगों की ओर से मैं खुद जिम्मेदारी लेता हूं कि तुम्हें जो भी नुकसान हुआ है, उसे हमारे द्वारा कल ही पूरा किया जाएगा.’’

अपने खेत की तैयार फसल के जलने से नाराज रघुवीर कुसूरवारों को सबक सिखाने पर आमादा था, पर अपने स्कूल के दिनों में सही बात से आगे बढ़़ने की प्रेरणा देने वाले आदित्य गुरुजी जैसे आनंद के रूप में अभी वहां आ खड़े हो गए थे, इसलिए वह अपने गुस्से पर काबू कर गया.

रघुवीर आनंद के पैरों पर झुकता हुआ बोला, ‘‘माफ करें सर. आप की हर बात मेरे सिरआंखों पर.’’

आनंद ने रघुवीर को गले लगाते हुए कहा, ‘‘उठो रघुवीर, अब बसहापुर गांव और करमना गांव आपस में

मिल कर एकदूसरे की मुसीबतों को मिटाते हुए खुशियां लाने के लिए हमेशा तैयार रहेंगे. तुम बिलकुल चिंता मत करो.

‘‘इस बार गांव के स्कूल वाले मैदान में करमना और बसहा दोनों गांव मिल कर एकसाथ होली मनाएंगे.’’

वहां जमा दोनों गांवों के लोगों के चेहरे पर खुशी की लाली चमक उठी. ‘हांहां’ के साथ ‘होली है होली है’ की आवाजें चिडि़यों की चहचहाहट भरे माहौल में गूंज उठीं.

उसी समय गांव के पूर्वी आकाश में सूरज एक लाल कमल की तरह खिलता नजर आ रहा था.

अपनी लाडली की शादी में आमिर खान ने किया जमकर डांस, सामने आया वीडियो

बॉलीवुड के जाने माने एक्टर आमिर खान (Amir Khan) की बेटी आइरा खान (Ira Khan) की शादी इन दिनों सुर्खियों में बनीं हुई है. आमिर खान अपनी बेटी की शादी (Wedding) में खूब मस्ती करते दिखाई दिए है. जिसाक वीडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहा है. बेटी आइरा की शादी की खुशी आमिर के चहरे पर साफ दिखाई दे रही है.


आपको बता दें कि आइरा खान ने नूपुर शिखरे से शादी की है दोनों पति पत्नी हमेशा हमेशा के लिए शादी के बंधन में बंध चुके है. 3 जनवरी को दोनों एक दूजे के हो गए है. कपल ने मुंबई के ताज लैंड्य एंड में रजिस्टर्ड मैरिज की है. जहां कई रिश्तेदार शामिल हुए. ऐसे में अंबानी परिवार समेत खान और शिखरे परिवार में शादी में शिरकत करते हुए दिखाई दिया. वही, इसी बीच आमिर का डांस वीडियो खूब सुर्खियां बटोर रहा है. देखते ही देखते एंटरटेनमेंट की दुनिया में ये वीडियो वायरल हो रहा है.

वायरल वीडियो में देखा जा सकता है कि एक्टर आमिर खान और उनकी एक्स वाइफ किरण राव इस पार्टी में डांस करते हुए नजर आ रहे है. वही, आमिर के आस-पास कुछ लेडिज नजर आ रही है और वह  ‘मेरी प्यारी बहनिया बनेगी दुल्हनिया’ गाना गा रही है. इस पर आमिर और किरण डांस करते दिख रहे हैं. उनके चेहरे पर बेटी की शादी की खुशी अलग ही नजर आ रही है. इस वीडियो के कैप्शन में लिखा है कि, ये आइरा की मेहंदी सेरेमनी का है. बता दें, आइरा और नूपुर की शादी में फैमिली मेंबर्स और दोस्त शामिल हुए थे.

 

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बताते चले कि आमिर खान की बहन निखत का कहना है कि शादी उदयपुर में होंगी, ‘उदयपुर की प्लानिंग पूरी तरह से इरा और नुपुर के दोस्तों के लिए है और हम उनके साथ जा रहे हैं साथ ही आइरा की शादी में सभी लोग ढोल और गानों पर डांस की प्रैक्टिस कर रहे है.

Bigg Boss 17: अभिषेक पर भड़की ईशा मालवीय की मां, दी लीगल एक्शन की धमकी

बिग बॉस 17 (Bigg Boss 17) इन दिनों धमाकेदार शो चल रहा है सलमान खान (Salman Khan) का रिएलिटी शो में हर दिन कुछ नया देखने को मिल रहा है. बीते एपिसोड में एक्ट्रेस ईशा मालवीय (isha Malviya) और अभिषेक कुमार (Abhishek kumar) के बीच झगड़ा हुआ था. इस दौरान ईशा मालवीय और उनके बॉयफ्रेंड समर्थ जुरैल ने अभिषेक कुमार पर करारा निशाना साधा था. अभिषेक कुमार लगातार ईशा मालवीय को टारगेट करते दिख रहे है. अब इस पर ईशा मालवीय की मां का भी गुस्सा फूट गया है. ईशा मालवीय की मां ममता मालवीय ने इंस्टास्टोरी पर अभिषेक कुमार पर निशाना साधते हुए सीधा-सीधा उनके खिलाफ लीगल एक्शन की धमकी दे दी है. इतना ही नहीं ईशा मालवीय की मां ममता मालवीय ने कमेंट कर ये भी पूछा कि आखिर वो शो में आया ही क्यों ?

 

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आपको बता दें कि ममता मालवीय ने इंस्टाग्राम पर एक लंबी पोस्ट शेयर की है. उन्होंने लिखा है कि ‘ईशा को हर बार इस लड़के ने कैरेक्टर एसेसिनेट किया है. मुझे भी नहीं बख्शा. ये गेम मेंटल स्ट्रेंथ का है. इतना ट्रॉमिटाइज्ड था तो पता था ईशा आने वाली है बीबी में तो फिर आया ही क्यों शो में? लीगल एक्शन बनता है ऐसे हरकतों पर अब भी हम चुप है सिर्फ और सिर्फ ईशा के लिए. शर्म करो अपने पर हर बार ईशा को बीच में लाने के लिए. और लोगों को भी शर्म आनी चाहिए जो ये एग्रेसिव बर्ताव को सपोर्ट करते हैं.’ एंटरटेनमेंट न्यूज की दुनिया में ममता मालवीय की ये पोस्ट सोशल मीडिया पर आते ही वायरल हो गई है.

 

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हालांकि, बीते दिन के एपिसोड में ईशा मालवीय ने लगातार अभिषेक कुमार को पोक किया था. वो लगातार अपने बॉयफ्रेंड समर्थ जुरैल संग अभिषेक कुमार को टारगेट करती दिखी थीं. अभिषेक कुमार जहां लड़ाई में ईशा मालवीय के कैरेक्टर की धज्जियां उड़ाते दिखे तो वहीं, एक्ट्रेस उनकी मेंटल स्टेट्स पर फब्तियां कसतीं और उन्हें घर का टीवी फोड़ने के लिए उकसाती दिखी थीं. हालांकि अब मेकर्स ने जारी किए नए प्रोमो के जरिए दिखाया है कि कैसे एक्ट्रेस ईशा मालवीय पोकिंग का सारा ठीकरा समर्थ जुरैल पर डालती दिखी हैं. जिसके बाद समर्थ जुरैल भी ईशा मालवीय पर बिगड़ते दिखेंगे.

अधूरे प्यार की टीस: क्यों हुई पतिपत्नी में तकरार – भाग 5

‘‘इतनी टेंशन में किसलिए नजर आ रहे हो, पापा?’’ रवि ने माथे में बल डाल कर सवाल पूछा.

‘‘तुम्हारी मम्मी का फोन आया था,’’ राकेशजी का स्वर नाराजगी से भरा था.

‘‘ऐसा क्या कह दिया उन्होंने जो आप इतने नाखुश दिख रहे हो?’’

‘‘मकान तुम्हारे नाम करने और मेरे अकाउंट में तुम्हारा नाम लिखवाने की बात कह रही थी.’’

‘‘क्या आप को उन के ये दोनों सुझाव पसंद नहीं आए हैं?’’

‘‘तुम्हारी मां का बात करने का ढंग कभी ठीक नहीं रहा, रवि.’’

‘‘पापा, मां ने मेरे साथ इन दोनों बातों की चर्चा चलने से पहले की थी. इस मामले में मैं आप को अपनी राय बताऊं?’’

‘‘बताओ.’’

‘‘पापा, अगर आप अपना मकान अंजु आंटी और नीरज को देना चाहते हैं तो मेरी तरफ से ऐसा कर सकते हैं. मैं अच्छाखासा कमा रहा हूं और मौम की भी यहां वापस लौटने में बिलकुल दिलचस्पी नहीं है.’’

‘‘क्या तुम को लगता है कि अंजु की इस मकान को लेने में कोई दिलचस्पी होगी?’’ कुछ देर खामोश रहने के बाद राकेशजी ने गंभीर लहजे में बेटे से सवाल किया.

‘‘क्यों नहीं होगी, डैड? इस वक्त हमारे मकान की कीमत 70-80 लाख तो होगी. इतनी बड़ी रकम मुफ्त में किसी को मिल रही हो तो कोई क्यों छोड़ेगा?’’

‘‘मुझे यह और समझा दो कि मैं इतनी बड़ी रकम मुफ्त में अंजु को क्यों दूं?’’

‘‘पापा, आप मुझे अब बच्चा मत समझो. अपनी मिस्टे्रस को कोई इनसान क्यों गिफ्ट और कैश आदि देता है.’’

‘‘क्यों देता है?’’

‘‘रिलेशनशिप को बनाए रखने के लिए, डैड. अगर वह ऐसा न करे तो क्या उस की मिस्टे्रस उसे छोड़ क र किसी दूसरे की नहीं हो जाएगी.’’

‘‘अंजु मेरी मिस्टे्रस कभी नहीं रही है, रवि,’’ राकेशजी ने गहरी सांस छोड़ कर जवाब दिया, ‘‘पर इस तथ्य को तुम मांबेटा कभी सच नहीं मानोगे. मकान उस के नाम करने की बात उठा कर मैं उसे अपमानित करने की नासमझी कभी नहीं दिखाऊंगा. नीरज की पढ़ाई पर मैं ने जो खर्च किया, अब नौकरी लगने के बाद वह उस कर्जे को चुकाने की बात दसियों बार मुझ से कह…’’

‘‘पापा, मक्कार लोगों के ऐसे झूठे आश्वासनों को मुझे मत सुनाओ, प्लीज,’’ रवि ने उन्हें चिढ़े लहजे में टोक दिया, ‘‘अंजु आंटी बहुत चालाक और चरित्रहीन औरत हैं. उन्होंने आप को अपने रूपजाल में फंसा कर मम्मी, रिया और मुझ से दूर कर…’’

‘‘तुम आज मेरे मन में सालों से दबी कुछ बातें ध्यान से सुन लो, रवि,’’ इस बार राकेशजी ने उसे सख्त लहजे में टोक दिया, ‘‘मैं ने अपने परिवार के प्रति अपनी सारी जिम्मेदारियां बड़ी ईमानदारी से पूरी की हैं पर ऐसा करने के बदले में तुम्हारी मां से मुझे हमेशा अपमान की पीड़ा और अवहेलना के जख्म ही मिले.

‘‘रिया और तुम भी अपनी मां के बहकावे में आ कर हमेशा मेरे खिलाफ रहे. तुम दोनों को भी उस ने अपनी तरह स्वार्थी और रूखा बना दिया. तुम कल्पना भी नहीं कर सकते कि तुम सब के गलत और अन्यायपूर्ण व्यवहार के चलते मैं ने रातरात भर जाग कर कितने आंसू बहाए हैं.’’

‘‘पापा, अंजु आंटी के साथ अपने अवैध प्रेम संबंध को सही ठहराने के लिए हमें गलत साबित करने की आप की कोशिश बिलकुल बेमानी है,’’ रवि का चेहरा गुस्से से लाल हो उठा था.

‘‘मेरा हर एक शब्द सच है, रवि,’’ राकेशजी जज्बाती हो कर ऊंची आवाज में बोलने लगे, ‘‘तुम तीनों मतलबी इनसानों ने मुझे कभी अपना नहीं समझा. दूसरी तरफ अंजु और नीरज ने मेरे एहसानों का बदला मुझे हमेशा भरपूर मानसम्मान दे कर चुकाया है. इन दोनों ने मेरे दिल को बुरी तरह टूटने से…मुझे अवसाद का मरीज बनने से बचाए रखा.

‘‘जब तुम दोनों छोटे थे तब हजारों बार मैं ने तुम्हारी मां को तलाक देने की बात सोची होगी पर तुम दोनों बच्चों के हित को ध्यान में रख कर मैं अपनेआप को रातदिन की मानसिक यंत्रणा से सदा के लिए मुक्ति दिलाने वाला यह निर्णय कभी नहीं ले पाया.

‘‘आज मैं अपने अतीत पर नजर डालता हूं तो तुम्हारी क्रूर मां से तलाक न लेने का फैसला करने की पीड़ा बड़े जोर से मेरे मन को दुखाती है. तुम दोनों बच्चों के मोह में मुझे नहीं फंसना था…भविष्य में झांक कर मुझे तुम सब के स्वार्थीपन की झलक देख लेनी चाहिए थी…मुझे तलाक ले कर रातदिन के कलह, लड़ाईझगड़ों और तनाव से मुक्त हो जाना चाहिए था.

‘‘उस स्थिति में अंजु और नीरज की देखभाल करना मेरी सिर्फ जिम्मेदारी न रह कर मेरे जीवन में भरपूर खुशियां भरने का अहम कारण बन जाता. आज नीरज की आंखों में मुझे अपने लिए मानसम्मान के साथसाथ प्यार भी नजर आता. अंजु को वैधव्य की नीरसता और अकेलेपन से छुटकारा मिलता और वह मेरे जीवन में प्रेम की न जाने कितनी मिठास भर…’’

राकेशजी आगे नहीं बोल सके क्योंकि अचानक छाती में तेज दर्द उठने के कारण उन की सांसें उखड़ गई थीं.

रवि को यह अंदाजा लगाने में देर नहीं लगी कि उस के पिता को फिर से दिल का दौरा पड़ा था. वह डाक्टर को बुलाने के लिए कमरे से बाहर की तरफ भागता हुआ चला गया.

राकेशजी ने अपने दिल में दबी जो भी बातें अपने बेटे रवि से कही थीं, उन्हें बाहर गलियारे में दरवाजे के पास खड़ी अंजु ने भी सुना था. रवि को घबराए अंदाज में डाक्टर के कक्ष की तरफ जाते देख वह डरी सी राकेशजी के कमरे में प्रवेश कर गई.

राकेशजी के चेहरे पर गहन पीड़ा के भाव देख कर वह रो पड़ी. उन्हें सांस लेने में कम कष्ट हो, इसलिए आगे बढ़ कर उन की छाती मसलने लगी थी.

‘‘सब ठीक हो जाएगा…आप हिम्मत रखो…अभी डाक्टर आ कर सब संभाल लेंगे…’’ अंजु रोंआसी आवाज में बारबार उन का हौसला बढ़ाने लगी.

राकेशजी ने अंजु का हाथ पकड़ कर अपने हाथों में ले लिया और अटकती आवाज में कठिनाई से बोले, ‘‘तुम्हारी और अपनी जिंदगी को खुशहाल बनाने से मैं जो चूक गया, उस का मुझे बहुत अफसोस है…नीरज का और अपना ध्यान रखना…अलविदा, माई ल…ल…’’

जिम्मेदारियों व उत्तरदायित्वों के समक्ष अपने दिल की खुशियों व मन की इच्छाओं की सदा बलि चढ़ाने वाले राकेशजी, अंजु के लिए अपने दिल का प्रेम दर्शाने वाला ‘लव’ शब्द इस पल भी अधूरा छोड़ कर इस दुनिया से सदा के लिए विदा हो गए थे.

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