बापू की 150वीं वर्षगांठ में खूब किए गए आयोजन, लेकिन क्या गांधी के सपनों का भारत बन पाया?

”नमस्कार मैं भारत कुमार. हां कभी मुझे सोने की चिड़िया कहा जाता था पर अब नहीं रहा. पहले मुझे गांधी, नेहरू, पटेल, लाल बहादुर शास्त्री जैसे महान शक्सियतों से पहचान मिलती थी लेकिन कमबख्त अब मुझे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के हत्यारे गोडसे से भी पहचान मिल गई है. 2 अक्टूबर को हिंदुस्तान की आजादी के नायक महात्मा गांधी का 150वां जन्मदिन बनाया गया है. इसी दिन सोशल मीडिया के रणबांकुरे गांधी के हत्यारे को अमर कर रहे थे.

इतना ही नहीं टौप ट्रेडिंग में गोडसे अमर रहे था. उस दिन मैं समझ गया कि अब मेरी पहचान बदल गई है. अब मेरी पहचान गोडसे अमर रहे से हो रही है जोकि कभी नहीं होना चाहिए था. मुझे अंग्रेजों की हुकूमत से आजाद करने वाले नायक के हत्यारे से जाना जाए ऐसा नहीं होना चाहिए. आज मैं व्यथित हूं लेकिन कुछ कर नहीं सकता. बस इंतजार है और भरोसा है कि एक दिन ये सब कुछ जरूर बदलेगा…”

ये भी पढ़ें- चावल घोटाले की पकती खिचड़ी

गांधी जयंती के दिन देश भर में  बड़े-बड़े आयोजन किए गए. करोड़ों रूपये की आहूति दे दी गई वो भी ऐसे दौर में जब देश आर्थिक मंदी से जूझ रहा है. हालांकि सरकार इस बात को सिरे से नकारती आई है कि इस देश में किसी भी प्रकार की मंदी है लेकिन ग्रोथ रेट तो यही दर्शाता है. कांग्रेस और बीजेपी दोनों महात्मा गांधी के नाम का इस्तेमाल कर राजनीति चमकाने की कोशिश में जुटे हुए हैं.

2 अक्टूबर के दिन दो दोनों में जुबानी जंग भी छिड़ गई. कोई पदयात्रा निकाल रहा है तो कोई मंचों से भाषणबाजी कर रहा है लेकिन कोई भी बापू के सपनों का भारत नहीं बना रहा है. गांधी जी के भारत में हिंदू-मुसलमानों की बात नहीं होती थी. गांधी के भारत में मौब लिंचिंग शब्द नहीं होता था. लेकिन अब सब हो रहा है. भले ही भारी-भरकम आयोजन कर के गांधी जी की 150वीं वर्षगांठ बनाने की कवायद की जा रही हो लेकिन ये तब तक सार्थक नहीं होगी जब तक गांधी के सपनों का भारत नहीं बनेगा.

पीएम मोदी ने स्मारक टिकटों और 40 ग्राम शुद्ध चांदी के सिक्के को महात्मा गांधी को समर्पित किया. इस टिकट और सिक्के को 15वीं गांधी जयंती पर बापू को समर्पित किया गया है. इस दौरान पीएम मोदी ने भारत को खुले में शौच मुक्त बनाने में योगदान देने वाले स्वच्छाग्रहियों को सम्मानित किया गया.पीएम मोदी ने कहा कि बापू की जयंती का उत्सव तो पूरी दुनिया मना रही है.

ये भी पढ़ें- भूखे बच्चों की मां के आंसू बताते हैं कि बिहार में बहार

कुछ दिन पहले संयुक्त राष्ट्र ने डाक टिकट जारी कर इस विशेष अवसर को यादगार बनाया और आज यहां भी डाक टिकट और सिक्का जारी किया गया है. मैं आज बापू की धरती से, उनकी प्रेरणा स्थली, संकल्प स्थली से पूरे विश्व को बधाई देता हूं, शुभकामनाएं देता हूं. यहां आने से पहले मैं साबरमती आश्रम गया था. अपने जीवन काल में मुझे वहां अनेक बार जाने का अवसर मिला है. हर बार मुझे वहां पूज्य बापू के सानिध्य का ऐहसास हुआ लेकिन आज मुझे वहां एक नई ऊर्जा भी मिली.

अब हम यहां पर कुछ बात कर लेते हैं अर्थव्यवस्था की जिसका कोई जिक्र नहीं हो रहा है…

साल 2019-20 की पहली तिमाही के आंकड़े जारी किये गए हैं. जिनके अनुसार आर्थिक विकास दर 5 फीसदी रह गई है. बीते वित्तीय वर्ष की इसी तिमाही के दौरान विकास दर 8 प्रतिशत थी. वहीं पिछले वित्तीय साल की आखिरी तिमाही में ये विकास दर 5.8 प्रतिशत थी. अर्थशास्त्री विवेक कौल के अनुसार यह पिछली 25 तिमाहियों में सबसे धीमा तिमाही विकास रहा और ये मोदी सरकार के दौर के दौरान की सबसे कम वृद्धि है.

विशेषज्ञ कहते हैं कि देश की अर्थव्यवस्था में तरक्की की रफ्तार धीमी हो रही है. ऐसा पिछले तीन साल से हो रहा है.उनका कहना है कि उद्योगों के बहुत से सेक्टर में विकास की दर कई साल में सबसे निचले स्तर तक पहुंच गई है. देश मंदी की तरफ़ बढ़ रहा है. लेकिन सरकार को इससे कोई फर्क है ही नहीं. तभी तो सरकार ने हाउडी मोदी कार्यक्रम में आंख बंद कर खूब पैचे खर्च किए.

नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार के अनुसार जून में ख़त्म होने वाली साल की पहली तिमाही में विकास दर में गिरावट से ये मतलब नहीं निकलना चाहिए कि देश की अर्थव्यवस्था मंदी का शिकार हो गयी है. वो कहते हैं, “भारत में धीमी गति से विकास के कई कारण हैं जिनमे दुनिया की सभी अर्थव्यवस्था में आयी सुस्ती एक बड़ा कारण है.” वो सरकार के हिस्सा हैं तो ऐसी बातें तो करेंगे ही. लेकिन सच छिपता नहीं है. आज हर सेक्टर में सुस्ती देखी जा रही है.

ये भी पढ़ें- 16 साल की इस लड़की ने दिया यूएन में भाषण, राष्ट्रपति

पश्चिमी देशों में इसे हल्की मंदी करार देते हैं. साल-दर-साल आधार पर आर्थिक विकास में पूर्ण गिरावट हो तो इसे गंभीर मंदी कहा जा सकता है. इससे भी बड़ी मंदी होती है डिप्रेशन, यानी सालों तक नकारात्मक विकास. अमरीकी अर्थव्यवस्था में 1930 के दशक में सबसे बड़ा संकट आया था जिसे आज डिप्रेशन के रूप में याद किया जाता है. डिप्रेशन में महंगाई, बेरोज़गारी और ग़रीबी अपने चरम सीमा पर होती है.

साल 2008-09 में वैश्विक मंदी आयी थी. उस समय भारत की अर्थव्यवस्था 3.1 प्रतिशत के दर से बढ़ी थी जो उसके पहले के सालों की तुलना में कम थी लेकिन विवेक कॉल के अनुसार भारत उस समय भी मंदी का शिकार नहीं हुआ था.

गहरी पैठ

दिल्ली में तुगलकाबाद के एक मंदिर को ले कर जमा हुए दलितों के समाचारों को जिस तरह मीडिया ने अनदेखा किया और जिस तरह दलित नेता मायावती ने पहले इस आंदोलन का समर्थन किया और फिर हाथ खींच लिए, साफ करता है कि दलितों के हितों की बात करना आसान नहीं है. ऊंची जातियों ने पिछले 5-6 सालों में ही नहीं 20-25 सालों में काफी मेहनत कर के एक ऐसी सरकार बनाई है जिस का सपना वे कई सौ सालों से देखते रहे हैं और वे उसे आसानी से हाथ से निकलने देंगे, यह सोचना गलत होगा.

दलित नेताओं को खरीदना बहुत आसान है. भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, कम्यूनिस्ट पार्टी, तृणमूल कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल आदि में दलित हैं पर उन के पास न तो कोई पद है और न उन की चलती है. कांशीराम के कारण पंजाब और उत्तर प्रदेश में दलित समर्थक बहुजन समाज पार्टी ने अपनी जगह बनाई पर उस में जल्दी ही ऊंची जातियों की घुसपैठ इस तरह की हो गई कि वह आज ऊंची जातियों का हित देख रही है, दलितों का नहीं.

दलितों की समस्याएं तुगलकाबाद का मंदिर नहीं हैं. वे तो कदमकदम पर समस्याओं से घिरे हैं. उन पर हर रोज अत्याचार होते हैं. उन्हें पढ़नेलिखने पर भी सही जगह नहीं मिलती. ऊंची जातियां उन्हें हिकारत से देखती हैं. उन को जम कर लूटा जाता है. उन का उद्योगों, व्यापारों, कारखानों में सही इस्तेमाल नहीं होता. उन्हें पहले शराब का चसका दिया हुआ था अब धर्म का चसका भी दे दिया गया है. उन्हें भगवा कपड़े पहनने की इजाजत दे कर ऊंची जातियों के मंदिरों में सेवा का मौका दे दिया गया है पर फैसलों का नहीं.

हर समाज में कमजोर वर्ग होते ही हैं. गरीब और अमीर की खाई बनी रहती है. इस से कोई समाज नहीं बच पाया. कम्यूनिस्ट रूस भी नहीं. वहां भी कमजोर किसानों को बराबरी की जगह नहीं मिली. पार्टी और सरकार में उन लोगों ने कब्जा कर लिया था जिन के पुरखे जार राजाओं के यहां मौज उड़ाते थे. कम्यूनिज्म के नाम पर उन्हें बराबरी का ओहदा दे दिया गया पर बराबरी तो जेलों में ही मिली.

ये भी पढ़ें- आज भी इतनी सस्ती है दलितों और पिछड़ों की जिंदगी!

आज भारत में संविधान के बावजूद धर्मजनित एक व्यवस्था बनी हुई है, कायम है और अब फलफूल रही है. दिल्ली का आंदोलन इसी का शिकार हुआ. इसे दबाना पुलिस के बाएं हाथ का काम रहा क्योंकि इस में हल्ला ज्यादा था. पुलिस ने पहले उन्हें खदेड़ा और फिर जैसा हर ऐसी जगह होता है, उन्हें हिंसा करने का मौका दे कर 100-200 को पकड़ लिया. उन के नेता को लंबे दिनों तक पकड़े रखा जाएगा. दलितों का यह आंदोलन ऐसे ही छिन्नभिन्न हो जाएगा जैसे 20-25 साल पहले महेंद्र सिंह टिकैत का किसान आंदोलन छिटक गया था.

जब तक ऊंचे ओहदों पर बैठे दलित आगे नहीं आएंगे और अपना अनुभव व अपनी ट्रेनिंग पूरे समाज के लिए इस्तेमाल न करेंगे, चाहे चुनाव हों या सड़कों का आंदोलन, वे सफल न हो पाएंगे. हां, दलितों को भी इंतजार करना होगा. फिलहाल ऊंची जातियों को जो अपनी सरकार मिली है वह सदियों बाद मिली है. दलितों को कुछ तो इंतजार करना होगा, कुछ तो मेहनत करनी होगी. कोई समाज बिना मेहनत रातोंरात ऊंचाइयों पर नहीं पहुंच सकता.

देशभर में पैसे की भारी तंगी होने लगी है. यह किसी और का नहीं, सरकार के नीति आयोग के वाइस चेयरमैन राजीव कुमार का कहना है. पिछले 70 सालों में ऐसी हालत कभी नहीं हुई जब व्यापारियों, उद्योगों, बैंकों के पास पैसा न हो. हालत यह है कि अब किसी को किसी पर भरोसा नहीं है. सरकार के नोटबंदी, जीएसटी और दिवालिया कानून के ताबड़तोड़ फैसलों से अब देश में कोई कहीं पैसा लगाने को तैयार ही नहीं है और देश बेहद मंदी में आ गया है.

राजीव कुमार ने यह पोल नहीं खोली कि पिछले 2-3 दशकों में जिस तरह पैसा धर्म के नाम पर खर्च किया गया है वह अब हिसाब मांग रहा है. पिछले 5-7 सालों में तो यह खर्च कई गुना बढ़ गया है क्योंकि पहले यह पैसा लोग खुद खर्च करते थे पर अब सरकार भी खर्च करती है.

ये भी पढ़ें- कश्मीर में धारा 370 समाप्त

कश्मीर में ऐक्शन से पहले सरकार को अमरनाथ यात्रा पर गए लोगों को निकालना पड़ा. हजारों को लौटना पड़ा. पर ये लोग क्या देश को बनाने के लिए गए थे? देश तो खेतों, कारखानों, बाजारों से बनता है. जब आप किसानों को खेतों में मंदिरों को बनवाने को कहेंगे, कारखानों में पूजा करवाएंगे, बाजारों में रामनवमी और हनुमान चालीसा जुलूस निकलवाएंगे तो पैसा खर्च भी होगा, कमाई भी कम होगी ही.

जो समाज निकम्मेपन की पूजा करता है, जो समाज काम को निचले लोगों की जिम्मेदारी समझता है, जो समाज मुफ्तखोरी की पूजा करता है, वह चाहे जितने नारे लगा ले, जितनी बार चाहे ‘जय यह जय वह’ कर ले भूखों मरेगा ही. चीन में माओ ने यही किया था और बरसों पूरी कौम को भूखा मरने पर मजबूर किया था. जब चीन कम्यूनिज्म के पाखंड के दलदल से निकला तो ही चमका.

भारत का गरीब आज काम के लिए छटपटा रहा है. पहली बार उस ने सदियों में आंखें खोली हैं. उसे अक्षरज्ञान मिला है. उसे समझ आया है कि काम की कीमत केवल आधा पेट भरना नहीं, उस से कहीं ज्यादा है. धर्म के नाम पर उस का यह सपना तोड़ा जा रहा है और नतीजा यह है कि वह फिर लौट रहा है दरिद्री की ओर और साथ में पूरे बाजार को डुबा रहा है.

सरकार की कोई भी स्कीम काम करने का रास्ता नहीं बना रही है. सब रुकावटें डाल रही हैं. कश्मीर के नाम पर देश का अरबों रुपया हर रोज बरबाद हो रहा है. अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट दिनोंदिन खर्च कर रहा है. बड़ी मूर्तियां बनाई जा रही हैं. कारखाने न के बराबर लग रहे हैं. उलटे छंटनी हो रही है. पहले अमीरों के उद्योग गाडि़यों के कारखानों में छंटनी हुई अब बिसकुट बनाने वाले भी छंटनी कर रहे हैं. नीति आयोग के राजीव कुमार में इतनी हिम्मत कैसे आ गई कि उन्होंने सरकार की पोल खोल दी. अब उन की छुट्टी पक्की पर जो उन्होंने कहा वह तो हो ही रहा है. अमीरों के दिन तो खराब होंगे पर गरीब भुखमरी की ओर बढ़ चलें तो बड़ी बात न होगी.

ये भी पढ़ें- गहरी पैठ

कश्मीर में धारा 370 समाप्त

देश के एक बड़े वर्ग की इच्छा को भुनाते हुए भारतीय जनता पार्टी ने अपने संसदीय बहुमत के सहारे कश्मीर के 1947 के विलय के अनुबंधों को तोड़ते हुए जम्मूकश्मीर को अलग संवैधानिक स्थान देने वाले अनुच्छेद 370 और 35ए को एक झटके में कुछ घंटों में समाप्त कर के जम कर वाहवाही लूटी. 1947 से ही कश्मीर भारत के लिए नासूर बना हुआ है और मुसलिमबहुल जनता वाला यह राज्य भारत और पाकिस्तान के बीच विवाद का केंद्र बना हुआ है.

इस ऐतिहासिक फैसले का परिणाम इस समस्या को सुलझाने में हो या न हो कश्मीर के अलावा बाकी भारतीयों को जो खटका रहता था कि उन को विशिष्ट स्तर पर क्यों रखा जा रहा है, समाप्त हो गया है. भारतीय जनता पार्र्टी ने यह कदम उठा कर उन भारतीयों को संतोष दिया है जो एक देश एक संविधान का नारा देते थे. ये लोग बाकी संविधान को कितना मानते थे, कितना समझते थे, यह बात न आज पूछने की है, न कहने की.

भारत सरकार को अंदाजा है कि इस कदम को उठाने के बाद कश्मीर में और आग सुलगेगी. इसीलिए कश्मीर को पूरी छावनी बना डाला गया है और वहां से पर्यटकों को निकाल दिया गया है. यहां तक कि अचानक अमरनाथ यात्रा भी स्थगित कर दी गई. भारत सरकार को अब पूरा एहसास है कि कश्मीर विवाद और उलझेगा, तभी तो वहां भारी संख्या में सेना व अर्धसैनिक बल तैनात किए गए हैं.

देश का हर नागरिक देश की अखंडता व एकता में विश्वास रखता है और जब अरसा पहले तमिलों ने या पंजाब में सिखों ने अलग होने की मांग रखी थी तो भारत सरकार ने बल व कूटनीति दोनों का इस्तेमाल कर के इन इलाकों को शांत किया था. आशा की जानी चाहिए कि यही कश्मीर के साथ होगा.

ये भी पढ़ें- हिंदुत्व और राष्ट्रवाद

कश्मीर का वैसे तो भारत में विलय 1947 में ही हो गया था पर जो संवैधानिक रेखा खिंची थी उस के हटने से वही फर्क पड़ेगा जो गोवा, पुडुचेरी या सिक्किम पर पड़ा. कभी विदेशी ताकतों के अधीन रहे या स्वतंत्र इन भूभागों के भारत में पूर्ण विलय के बाद न वहां के जनमानस पर कोई असर पड़ा है और न बाकी देश पर. कश्मीर के अनुच्छेदों 370 व 35ए की समाप्ति के बाद कश्मीर की हालत सुधरेगी यह तो आशा नहीं पर बाकी भारत को भारी संतोष होगा कि उस ने एक संवैधानिक विजय पाई है.

भारतीय जनता पार्टी को वही लाभ होगा जैसा इंदिरा गांधी को 1969-71 में बैंकों के राष्ट्रीयकरण, प्रिवी पर्स समाप्त करने, कपड़ा मिलों व खानों

का राष्ट्रीयकरण और बंगलादेश

को अलग कराने से हुआ था.

इंदिरा गांधी के इन ऐतिहासिक

कदमों का देश में जो स्वागत हुआ

था, वैसा ही अब हो रहा है, पर इंदिरा गांधी ने यह अपनी गद्दी की खातिर किया था.

कश्मीर के बारे में निर्णय लेने में अब दिल्ली को दो बार नहीं सोचना पड़ेगा कि संविधान आड़े आ रहा है. केंद्र सरकार को किसी तरह की अनुमति नहीं लेनी पड़ेगी. हां, कश्मीरी इसे कैसे पचाएंगे, यह कहना कठिन है. भारतीय जनता पार्टी फिलहाल तो कश्मीरियों को पुचकारने या मनाने के मूड में नहीं है.

कर्नाटक में करा नाटक

भारतीय जनता पार्टी ने आखिरकार कर्नाटक में पौराणिक परंपरा के अनुसार सुग्रीवों व विभीषणों के सहारे कांग्रेस और जनता दल सैक्युलर की गठबंधन सरकार को गिरा कर लंका को जीत ही लिया है. अब किसी विभीषण को राज्य का उपमुख्यमंत्री बना कर रामराज्य स्थापित कर दिया जाएगा. जब लोकसभा में भारी बहुमत हो और अधिकांश राज्यों में भाजपा की ही सरकारें हों, ऐसे में भाजपा की कर्नाटक की बेचैनी और विधायकों की खरीद समझ से परे है.

यह स्पष्ट है कि भाजपा उस कल्पित चक्रवर्ती राज के सपने देख रही है जिस में कश्मीर से कन्याकुमारी तक भाजपा का राज हो और कामगार खुश हों या न हों, ऋषिमुनियों को लगातार प्रतिष्ठा, दान और पैसा सब मिलता रहे. ऐसे में कर्नाटक क्यों हाथ से दूर रहे. 5 गांव मांगने वाले पांडवों ने कहनेसुनने पर अपने पूरे खानदान को मरवा दिया था और महाभारत के युद्ध के अंत में बचे पांडवों को हिमालय पर जा कर आत्महत्या करनी पड़ी थी.

जहां चुनावों में विधिवत जीत मिली हो वहां तो कुछ नहीं कहा जा सकता. पर जहां बहुमत न मिला हो वहां भी सरकार बनाने की जो जिद भाजपा ने पकड़ ली है, वह देश को भारी पड़ेगी. इस जिद के चलते साम, दाम, दंड व भेद अपनाए जाएंगे और यही साम, दाम, दंड, भेद भाजपा की शासन संस्कृति बन जाएंगे. ये राज्य के हर अंग पर चलेंगे.

सरकार पहले ही जाति व धर्म का भेद भुना कर पूरे समाज को दीवारों से बांट रही है. हर धर्म ही नहीं, हर जाति के लोग भी अपने में सिमट रहे हैं कि कहीं उन के अस्तित्व पर आंच न आ जाए, उन की किसी कमजोरी या गलती को तिल का ताड़ न बना दिया जाए. कर्नाटक में कांग्रेस के बागी विधायक भाजपा से इसीलिए जा मिले ताकि उन को संरक्षण मिल सके.

जब भी कोई शासक अति शक्तिशाली होता है, वह थोड़े से विरोध को भी नहीं सह सकता. उस के लिए लोकतंत्र एक सीढ़ी मात्र होता है जिसे चढ़ने के बाद उसे जला देना ठीक रहता है ताकि और कोई उस का इस्तेमाल कर चुनौती न दे सके. कर्नाटक में सरकार का फेरबदल अनावश्यक था. एक लोकतांत्रिक पार्टी सत्तारूढ़ पार्टी मेंहो रही उठापटक को चुनावों में भुना सकती है, अपनी सरकार बनाने के लिए नहीं.

ये भी पढ़ें- जातिवाद का जहर

कांग्रेस और जनता दल सैक्युलर अपनी पार्टियों में घुसे सैकड़ों सुग्रीवों और विभीषणों से मुकाबला नहीं कर सकते. जाति का सवाल उठे बिना यह स्पष्ट है कि आज जो दलबदल हो रहे हैं उन में वही सब से बड़ा कारण है. कांग्रेस और दूसरे दलों की अब खैर नहीं, क्योंकि भाजपा अपना एकछत्र राज चाहती है. यही सपना कभी 1977 में मोरारजी देसाई ने देखा था और यही राजीव गांधी ने 1984 में संसद में भारी बहुमत पा कर देखा था.

धार्मिक कट्टरता

रांची की जिला अदालत के एक मजिस्ट्रेट मनीश कुमार सिंह ने कट्टरपंथी बनती 19 वर्षीया हिंदू लड़की रिचा भारती को फेसबुक पर अनापशनाप पोस्ट करने से रोकने के लिए जो कदम उठाया, वह सही होते हुए भी अजीब था. इसलाम को बदनाम करने के प्रयास में अगर पहली पेशी में बिना पूरी सुनवाई के सिर्फ जमानत की शर्त पर कुरान की 5 प्रतियां बांटने को कहा जाए तो यह एक तरह की सजा ही होगी. जो मजिस्ट्रेट को नहीं देनी चाहिए थी.

अदालत के इस फैसले का लाभ देशभर के हिंदूवादी लोगों ने जम कर उठाया. वे  व्हाट्सऐप, इंस्टाग्राम, ट्विटर, फेसबुक पर मजिस्ट्रेट का मखौल उड़ाने, उन की भर्त्सना करने और रिचा भारती को महान बताने में जुट गए. 2 दिनों बाद मजिस्ट्रेट ने फैसला तो बदला लेकिन तब तक धर्म के दुकानदारों को भरपूर बारूद मिल चुका था.

मजिस्ट्रेट की नीयत खराब न थी. वे इतना ही चाहते होंगे कि 19 वर्षीया लड़की धर्म की दुकानदारी के पचड़े में न पड़े और कुरान बांटने के बहाने मुसलमानों के संपर्क में आए. पर, हिंदू कट्टरों ने लगातार खोदी जा रही खाई में इसे रुकावट समझा.

ट्विटर, फेसबुक, व्हाट्सऐप ऐसी पोस्टों से भरे पड़े हैं जिन में मुसलिम कपड़े पहने युवक बुराभला कह रहे हैं. ये पोस्ट असली हैं, इस को साबित करना असंभव है. यह संभव है कि किसी भी हिंदू को टोपी पहना कर, दाढ़ी बढ़वा कर कुछ भी कहते रिकौर्डिंग कर लें और फिर दुष्प्रचार के लिए डाल दें. आज का डरा हुआ मुसलमान, दलित, पिछड़ा इतनी हिम्मत नहीं रखता कि वह पाखंडियों के बारे में कुछ कह सके, धमकियां देना तो बहुत दूर की बात है. पर, हिंदू धर्म के प्रचारकों के लिए इस नए प्रकार का नाटक कराना वैसा ही आसान है जैसा वे रामलीला में राक्षसों की पोशाक पहना कर युवाओं से कराते हैं.

देश का टुकड़ेटुकड़े गैंग उदारवादियों में नहीं है जो मानवता की बात करते

हैं. टुकड़ेटुकड़े गैंग तो धर्म के अंधविश्वासियों में है जो हर रोज भारत माता की जय और जय श्रीराम के नारे लगवाते हैं.

सुरक्षा कहां जरूरी

नेताओं के चारों ओर काली या खाकी वरदी में बंदूकधारी गार्डों की भीड़ कई बार नेताओं को छिपा देती है और उन्हें अपने समर्थकों से दूर कर देती है. फिर भी न जाने क्यों ज्यादातर नेता इस सिक्योरिटी को अपने लिए तमगा समझते रहे हैं जबकि यह उन के और समर्थकों के बीच अकसर दीवार भी बन जाती है. साथ ही, इस भीड़ में मौजूद गुप्तचर सत्तारूढ़ दल के नेताओं के लिए घातक भी हो सकते हैं.

देश में कानूनव्यवस्था ऐसी नहीं है कि तालियां बजाई जाएं. पर 10-15 गार्डों की सुरक्षा को रखना न केवल सरकार पर निरर्थक बोझ है, यह लोकतंत्र की मूल भावना के खिलाफ भी है. सुरक्षा मन से होती है. गांधी की हत्या हो गई थी. इंदिरा गांधी की हत्या सुरक्षाकर्मियों ने ही कर दी थी. राजीव गांधी तमाम सुरक्षा के बावजूद मारे गए थे.

सुरक्षा केवल मानसिक बल से मिलती है, सरकारी गार्डों से नहीं. आज जिस तरह से आत्मघाती हत्यारों को तैयार किया जा रहा है, उस से कोई

भी सुरक्षित नहीं है. आज बाजार में राइफलें खुलेआम उपलब्ध हैं जो काफी दूर तक अचूक निशाना साध सकती हैं. वहीं, पुलिस व सेना से ऐसी राइफलों को चुरानाछीनना भी आम  है. इन की, चाहो तो, तस्करी भी आसानी से हो सकती है.

अगर सरकार ने बहुत से नेताओं

व दूसरे लोगों की सुरक्षा का स्तर घटाया है तो सही किया है. यह चाहे राजनीतिक विरोध के चलते किया गया हो या सुरक्षा कर्मियों की निरर्थकता के लिए, फैसला सही ही है. सुरक्षा तो वहां होनी चाहिए जहां पैसा है, कमजोर लोग हैं, बच्चे हैं. आमतौर पर वे जगहें असुरक्षित रहती हैं.

ये भी पढ़ेंआम लोगों की सरकार से उम्मीदें

हमारे यहां महल्लों में पुलिस की नियमित गश्त लगना बंद हो गई है. घरवाले अपने आसपास तैनात पुलिसमैन का नाम व नंबर जानना तो क्या, शक्ल भी नहीं पहचानते. हर 100-200 घरों के आसपास एक नियमित गश्त करने वाला नेताओं की सुरक्षा से ज्यादा जरूरी है. वह अपरोक्ष रूप में नेताओं को भी सुरक्षा देगा क्योंकि पुलिसमैन बहुत कुछ पता कर सकता है.

पाकिस्तानी एक्टर्स की बद्तमीजी पर इंडियन एक्टर्स ने लगाई फटकार

पुलवामा में  आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच पैदा हुई टेंशन से इंटरटेंनमेंट इंडस्ट्रीज भी नहीं बची. बीते दिन भारतीय वायु सेना के जवान विंग कमांजर अभिनंदन को पाकिस्तानी आर्मी ने पकड़ा. अभिनंदन की तस्वीरें और वीडियो सोशल मीडिया पर काफी वायरल हुए. इसके बाद पाकिस्तान कुछ कलाकारों ने अभिनंदन के फोटो और वीडियो को शेयर करते हुए मजाक उड़ाया, जिसके जवाब में भारतीय स्लेब्स ने उनकी क्लास ली.

विंग कमांडर की फोटो शेयर करते हुए पाकिस्तानी एक्टर वीना मलिक ने लिखा कि, अभी अभी तो आए हो, अच्छी मेहमान नवाजी हो गई आपकी.

इसपर करारा जवाब देते हुए स्वरा फास्कर ने ट्वीट किया कि, वीना जी…लानत है तुम पर और तुम्हारी बीमार मानसिकता पर. तुम्हारी ऐसी खुशी पूरी तरह बेशरमी है. हमारा औफिसर बहादुर, दयालु और स्वाभिमानी है. कम से कम तुम्हारी सेना के उस मेजर में कुछ शालीनता बाकी है जो अभिनंदन से पूछताछ कर रहा है साथ ही तुम्हारे देश की जनता में भी जो शांति चाहती है.

इसके अलावा भाबी जी घर पर हैं कि स्टार सौम्या टंडन ने वीना मलिक को फटकार लगाते हुए कहा कि, विश्वास नहीं कर सकती कि उसके जैसा कोई ऐसी बात लिख रहा है. यह वाकई बहुत दुख की बात है.

अदनान सामी ने भी पाकिस्तान के इन ट्रोलर्स को मुंहतोड़ जवाब देते हुए लिखा कि, डियर पाक ट्रोल्स आपकी गालियां आपकी असलियत सामने लाती हैं. आपके और गंदगी की बाल्टी के बीच एकमात्र अंतर बाल्टी है.

आपको बता दें कि अदनान सामी के पिता पाकिस्तान के राजनायिक थे. 2016 में अदनान ने भारत की नागरिकता ले ली थी.

मसूद अजहर को छोड़ना भारत की सबसे बड़ी गलती थी

पुलवामा में सीआरपीएफ काफिले पर आतंकी हमले के बाद पूरा देश आक्रोशित है, 38 जवानो के शवों को देखकर हर आंख भीगी है. हर जुबान से बस यही निकल रहा है कि बस अब बहुत हुआ… अब इन्हे छोड़ना नहीं है. जिस वक़्त देश के गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने शहीद जवान के ताबूत को कंधा दिया वो पल पूरे देश को रुला गया. पुलवामा की घटना और इससे पहले हुई कई घटनाएं ना घटतीं अगर हमने मसूद अज़हर जैसे खूंखार आतंकी को अपने चंगुल से ना निकलने दिया होता. बहुत बड़ी गलती हो गई जब कंधार विमान हाईजैक के दौरान आतंकी मसूद अजहर को छोड़ा गया. अगर उसको उस वक़्त शूट कर दिया जाता तो शायद संसद, उरी, पठानकोट और अब पुलवामा में आतंकी हमले न होते.

पुलवाम की साजिश रचने वाला जैश-ए-मुहम्मद का सरगना मौलाना मसूद अजहर वही आतंकी है, जिसे कंधार विमान हाईजैक के दौरान रिहा करना पड़ा था. मसूद अजहर की रिहाई के बाद पाकिस्तान चौड़ा हो गया और उसकी शह पाकर ही मसूद ने आतंकी संगठन जैश-ए-मुहम्मद को जन्म दिया. इसमें कोई शक नहीं कि मसूद के आतंकी संगठन को जहां पाकिस्तानी सेना का पूरा सपोर्ट है वहीं चीन भी उसको पूरा सपोर्ट करता है और उसका इस्तेमाल भारत को परेशान करने के लिए करता है.

मसूद अजहर को साल 1994 में पहली बार गिरफ्तार किया गया था. कश्मीर में सक्रिय आतंकी संगठन हरकत-उल-मुजाहिदीन का सदस्य होने के आरोप में उस वक्त उसकी श्रीनगर से गिरफ्तारी हुई. मौलाना मसूद अजहर की गिरफ्तारी के बाद, जो कुछ हुआ उसका शायद किसी को अंदाजा भी नहीं था. अज़हर को छुड़ाने के लिए आतंकियों ने 24 दिसंबर, 1999 को 180 यात्रियों से भरे एक भारतीय विमान को नेपाल से अगवा कर लिया और विमान को कंधार ले गए. भारतीय इतिहास में यह घटना ‘कंधार विमान कांड’ के नाम से दर्ज है. कंधार विमान कांड के बाद भारतीय जेलों में बंद आतंकी मौलाना मसूद अजहर, मुश्ताक जरगर और शेख अहमद उमर सईद की रिहाई की मांग की गई और यात्रियों की जान बचाने के लिए छह दिन बाद 31 दिसंबर को आतंकियों की शर्त मानते हुए भारत सरकार ने मसूद अजहर समेत तीनों आतंकियों को छोड़ दिया. इसके बदले में कंधार एयरपोर्ट पर अगवा रखे गए विमान के बंधकों समेत सभी को छोड़ दिया गया.

यहीं से शुरू हुई जैश की कहानी 

जेल से छूटने के बाद मसूद अजहर ने फरवरी 2000 में जैश-ए-मुहम्मद आतंकी संगठन की नींव रखी, जिसका मकसद था भारत में आतंकवादी घटनाओं को अंजाम देना और कश्मीर को भारत से अलग करना. उस वक्त सक्रिय हरकत-उल-मुदाहिददीन और हरकत-उल-अंजाम जैसे कई आतंकी संगठन जैश-ए-मुहम्मद में शामिल हो गए. खुद मसूद अजहर भी हरकत-उल-अंसार का महासचिव रह चुका है. साथ ही हरकत-उल-मुजाहिदीन से भी उसके संपर्क थे.

संसद, पठानकोट, उरी से लेकर पुलवामा हमले में जैश का हाथ

यह कोई पहली बार नहीं है, जब जैश ने भारत को दहलाने की कोशिश की हो. साल 2001 में संसद हमले से लेकर उरी और पुलवामा हमले में जैश का हाथ रहा है. अपनी रिहाई और आतंकी संगठन की स्थापना के दो महीने के भीतर ही जैश ने श्रीनगर में बदामी बाग स्थित भारतीय सेना के स्थानीय मुख्यालय पर आत्मघाती हमले की जिम्मेदारी ली थी.

बड़े आतंकी हमले में जैश का हाथ

28 जून, 2000:

जम्मू कश्मीर सचिवालय की इमारत पर हमला. जैश ने ली हमले की जिम्मेदारी.

14 मई, 2002:

जम्मू-कश्मीर के कालूचक में हुए हमले में 36 जवान शहीद हो गए, जबकि तीन आतंकी मारे गए.

1, अक्टूबर 2008:

जैश के तीन आत्मघाती आतंकी विस्फोटक पदार्थों से भरी कार लेकर जम्मू-कश्मीर विधानसभा परिसर में घुस गए. इस घटना में 38 लोग मारे गए.

26/11 मुंबई हमला:

26/11 मुंबई आतंकी हमले को भी जैश ने अंजाम दिया था. 26 नवंबर, 2008 को मुंबई में समुद्र के रास्ते आए 10 आतंकियों ने 72 घंटे तक खूनी तांडव किया था. इस हमले में 166 लोग मारे गए थे, जबकि कई घायल हो गए थे. इस हमले का मास्टर माइंड भी मसूद अजहर रहा है. मुंबई हमले में 9 आतंकी भी मारे गए थे. इस में एक जिंदा आतंकी आमिर अजमल कसाब को भी पकड़ा गया था, जिसे बाद में फांसी की सजा दी गई.

संसद हमला

13 दिसंबर, 2001 को भारतीय संसद पर हुए हमले के पीछे भी लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मुहम्मद के आतंकियों का हाथ. इस हमले में 6 पुलिसकर्मी शहीद हो गए थे, जबकि तीन संसद भवन कर्मी भी मारे गए. संसद हमले का दोषी अफजल गुरु भी जैश से जुड़ा था. उसे 10 फरवरी 2013 में फांसी दी गई थी.

पठानकोट हमला

जनवरी 2016 को पंजाब के पठानकोट स्थित वायु सेना ठिकाने पर हमले के लिए भी ज़िम्मेदार. इस हमले में वायुसेना और एनएसजी के कुल सात सुरक्षाकर्मी शहीद हुए थे. दो दिनों की मुठभेड़ के बाद सभी आतंकियों को मार गिराया गया था.

उरी हमला

18 सितंबर, 2016 में कश्मीर के उरी स्थित सैन्य ठिकाने पर हुए हमले में भी जैश का हाथ रहा है. उरी हमले में 18 सैनिक शहीद हो गए थे. इस हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक की थी और पीओके में घुसकर कई आतंकी ठिकानों का खात्मा कर दिया था.

आतंकी संगठनों की सूची में शामिल ‘जैश’

जैश-ए-मुहम्मद को भारत ने ही नहीं बल्कि ब्रिटेन, अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र भी आतंकी संगठनों की सूची में शामिल कर चुका है. हालांकि अमेरिका के दबाव के बाद पाकिस्तान ने भी साल 2002 में इस संगठन पर प्रतिबंध लगा दिया था, मगर अंदर ही अंदर सेना का पूरा सपोर्ट जैश को मिलता रहा. भारत मसूद अज़हर के प्रत्यर्पण की पाकिस्तान से कई बार मांग कर चुका है, लेकिन पाकिस्तान हर बार सबूतों के अभाव का हवाला देते हुए इस मांग को नामंजूर कर देता है. इसके लिए उसे चीन की मदद भी बराबर मिल रही है. चीन ने तो मसूद अज़हर को आतंकी मानने तक से इंकार कर दिया है.

भारत को अब अपने पड़ोसी देशों – पकिस्तान और चीन से टक्कर लेने और और उनको कड़ा सबक सिखाने के लिए तैयार हो जाना चाहिए. सांप को दूध पिलाने से वो अपनी प्रवृत्ति नहीं छोड़ देगा, पुलवामा के बाद तो हमें ये बाद अच्छी तरह समझ में आ जानी चाहिए.

अय्याशी की चाहत बनी आफत

मालदार और रसूखदार लोग पैसों के दम पर दुनिया की हर चीज खरीद सकते हैं लेकिन उन की जिंदगी में जरूरी नहीं  कि सैक्स सुख भी वैसा ही हो जैसा कि वे चाहते हैं. पैसे से सैक्स सुख हासिल करना कितना महंगा पड़ता है, यह आएदिन उजागर होता रहता है.

लेकिन यह अंदाजा कोई नहीं लगा पाएगा कि सैक्स सुख जान जाने की वजह भी बन सकता है. लोग यहीं तक उम्मीद कर सकते हैं कि जो पैसे वाले सैक्स का मजा लेने बाजार जाते हैं, पकड़े जाने पर उन के हिस्से में बदनामी ही आती है और एहतियात न बरतें तो उन्हें ब्लैकमेल भी होना पड़ता है, लेकिन मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड इलाके के छतरपुर जिले की इस वारदात ने सभी को चौंका दिया कि ऐसा भी हो सकता है.

दास्तां एक सेठ की

आनंद जैन उर्फ सुकुमाल जैन मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड इलाके के छतरपुर जिले के जानेमाने लोहा व्यापारी थे.

50 साला इस अधेड़ के पास करोड़ों की दौलत थी और शहर में अच्छीखासी इज्जत भी थी. धार्मिक इमेज वाले आनंद जैन रोजाना मंदिर जाते थे. यहां तक कि रात को दुकान बंद करने के बाद भी वे शहर की पहाड़ी पर बने मंदिर में दर्शन करते हुए घर जाते थे.

9 अक्तूबर, 2018 की रात आनंद जैन की हत्या उन की ही दुकान में हो गई, तो शहरभर में सनाका खिंच गया. उस रात वे घर वालों को ‘थोड़ी देर में वापस आता हूं’ कह कर कहीं चले गए थे.

देर रात तक जब आनंद जैन नहीं लौटे तो घर वालोें को चिंता हुई, क्योंकि बारबार फोन करने पर भी उन का मोबाइल नंबर नहीं लग रहा था.

उन का जवान बेटा पीयूष जैन ढूंढ़ता हुआ दुकान में पहुंचा तो वहां उस ने पिता की खून से लथपथ लाश देखी.

सदमे में आ गए पीयूष जैन ने खुद को संभालते हुए पिता की हत्या की खबर पुलिस और दूसरे जानपहचान वालों को दी तो भीड़ इकट्ठा होना शुरू हो गई.

पुलिसिया जांच में लाश के पास एक हथौड़ा पड़ा मिला जिस से अंदाजा यह लगाया गया कि उसी से हत्यारे ने उन की हत्या की होगी, क्योंकि आनंद जैन का सिर किसी तरबूज की तरह फटा हुआ था.

दुकान की तलाशी लेने पर जो चौंका देने वाली चीजें बरामद हुईं वे थीं औरतों की पहनने वाली एक ब्रा और एक इस्तेमाल किया हुआ कंडोम जिस में वीर्य भरा हुआ था.

ये चीजें हालांकि उन की इज्जतदार और धार्मिक इमेज से मेल खाती हुई नहीं थीं, लेकिन यह अंदाजा लगाना पुलिस वालों की मजबूरी हो गई थी कि जरूर आनंद जैन ने किसी कालगर्ल को बुलाया होगा और उस से किसी बात पर झगड़ा हुआ होगा जो उन की बेरहमी से की गई हत्या की वजह बना, लेकिन जब सच सामने आया तो हर कोई चौंक पड़ा.

यह थी लत

आनंद जैन के मोबाइल फोन के सहारे पुलिस ने चंद घंटों में ही कातिल को ढूंढ़ निकाला जिस के नंबर पर उन की अकसर रात को ही देर तक बातें होती रहती थीं.

वह कातिल एक बेरोजगार नौजवान राजेश रैकवार था जिस की हैसियत राजा भोज जैसे आनंद जैन के सामने गंगू तेली सरीखी भी नहीं थी. पुलिस उसे गिरफ्तार करने तो शक की बिना पर गई थी लेकिन पुलिस वालों को देखते ही उस के होश फाख्ता हो गए और मामूली पूछताछ में ही उस ने खुद मान लिया कि आनंद जैन की हत्या उस ने ही की है.

हत्या क्यों की? इस सवाल के जवाब में राजेश ने जो बताया वह और भी हैरान कर देने वाला था.

बकौल राजेश, ‘‘आनंद जैन उस के साथ सैक्स करते थे और इस के एवज में उसे हर बार के 400 रुपए देते थे.’’

राजेश के मुताबिक, वह कुछ दिनों पहले ही काम मांगने के लिए आनंद जैन की दुकान पर गया था. काम देने में तो उन्होंने मजबूरी जता दी लेकिन उस के हाथ में खर्चे के लिए 200 रुपए रख दिए थे.

राजेश इस बात पर हैरान हुआ था क्योंकि वह जहां भी काम मांगने जाता था वहां लोग उसे झिड़क कर भगा देते थे और 200 रुपए तो दूर की बात है, 2 रुपए भी नहीं देते थे. जितनी इज्जत इन सेठजी ने दी थी, उतनी आज तक किसी बड़े आदमी ने उसे नहीं दी थी.

ज्यादा हैरानी की बात तो यह थी कि इस के एवज में सेठजी उस से कोई हम्माली या बेगारी नहीं करवा रहे थे बल्कि जातेजाते उन्होंने कहा था कि जब भी पैसों की जरूरत पड़े तो ले जाना.

इस बात और हमदर्दी का राजेश पर वाजिब असर पड़ा था कि काश, दुनिया में सभी पैसे वाले आनंद सेठ जैसे हो जाएं तो कहीं बेरोजगारी और जातपांत का नाम नहीं होगा.

अब जरूरत पड़ने पर राजेश आनंद जैन के पास जाने लगा जिन्होंने कभी उसे निराश नहीं किया था. लेकिन अब वे  पैसे लेने उसे रात में बुलाने लगे थे.

ऐसे ही एक दिन बातें करतेकरते आनंद जैन ने उसे अपना हस्तमैथुन करने के लिए कहा तो वह अचकचा उठा. उस ने मना करने की कोशिश की लेकिन आनंद जैन के बारबार कहने पर मना नहीं कर सका.

राजेश को इस बात का भी डर था कि अगर वह मना करेगा तो सेठजी पैसे देना छोड़ देंगे और मुफ्त की मलाई मारी जाएगी. लिहाजा, जब भी देर रात को आनंद जैन फोन कर के उसे बुलाते तो वह उन का हस्तमैथुन कर आता था.

राजेश जैसे बेरोजगार नौजवान के लिए यह कोई घाटे का सौदा नहीं था लेकिन एक रात आनंद जैन ने उस से सैक्स करने की बात कही तो वह सकपका उठा.

भले ही राजेश झुग्गीझोंपड़ी में रहता था लेकिन ऐसा गंदा काम उस ने पहले कभी नहीं किया था. मना कर देने पर आनंद जैन ने उसे पेशकश की कि अगर वह इस के लिए तैयार हो जाए तो वे हर बार 400 रुपए उसे देंगे.

पैसों की जरूरत के चलते राजेश के सामने उन की बात मान लेने के अलावा और कोई रास्ता नहीं था. लिहाजा, वह इस काम के लिए भी तैयार हो गया. फिर तो आनंद जैन उसे कभी भी दुकान में बुला कर अपनी ख्वाहिश पूरी करने लगे.

इस दौरान वे उसे वैसा ही प्यार करते थे और डौयलौग बोलते थे जैसे कोेई मर्द औरत को प्यार करते वक्त करता और बोलता है.

9 अक्तूबर, 2018 की रात को घर जाने के बाद आनंद जैन को फिर से सैक्स की तलब लगी तो उन्होंने राजेश को फोन किया. इस पर राजेश ने जवाब दिया कि नवरात्र के दिनों में वह ऐसा गंदा काम नहीं कर सकता. इस से व्रत टूट जाएगा.

यह जवाब सुन कर आनंद जैन ने उसे ढील देते हुए कहा कि ठीक है तो फिर हाथ से ही कर जाना.

राजेश के सिर फिर डर का यह भूत सवार हो गया कि अगर नहीं गया तो पैसे मिलना बंद हो जाएगा और इतने पैसे वाले सेठ के लिए लड़कों की क्या कमी, वे किसी दूसरे को फांस लेंगे.

‘सिर्फ हस्तमैथुन ही तो करना है,’ यह सोचते हुए राजेश वारदात की रात उन की दुकान पर पहुंच गया. लेकिन उसे आया देख आनंद जैन ने फिर सैक्स की जिद पकड़ ली तो उस ने साफ मना करते हुए पहले वाला जवाब दोहरा दिया.

इस पर आनंद जैन जबरदस्ती करने लगे तो उसे और गुस्सा आ गया और उस ने दुकान में पड़ा हथौड़ा उठा कर उन के सिर पर दे मारा. सिर तरबूज की तरह फट गया और आनंद जैन जमीन पर गिर कर तड़पने लगे.

आनंद जैन को उन के हाल पर छोड़ कर राजेश उन के पास से 20,000 रुपए और सोने की चैन गले से उतार कर ले गया. गिरफ्तार होने के बाद पुलिस ने वे चीजें बरामद कर लीं.

क्या करें ऐसे मर्द

राजेश अब जेल में बैठा अपने किए पर पछता रहा है, पर सवाल आनंद जैन जैसे खातेपीते रईस मर्दों का है जिन्हें कई वजहों के चलते बीवी या औरतों के साथ सैक्स में मजा नहीं आता तो वे लड़कों को सैक्स सुख का जरीया बना लेते हैं. कई लोग मुंहमांगे पैसे दे कर अपना हस्तमैथुन करवाते हैं तो कई लोग मुखमैथुन और गुदामैथुन करते और करवाते हैं.

रजामंदी से हो तो इस सौदे में कोई हर्ज नहीं क्योंकि अब तो सुप्रीम कोर्ट भी इसे कानूनी मंजूरी दे चुका है लेकिन जबरदस्ती होगी तो ऐसी वारदातें भी होंगी.

ऐसे काम चूंकि चोरीछिपे होते हैं इसलिए किसी को हवा भी नहीं लगती. हवा तब लगती है जब कोई बड़ा कांड हो जाता है.

ऐसा ही एक मामला मध्य प्रदेश के वित्त मंत्री रह चुके भारतीय जनता पार्टी के दिग्गज नेता राघवजी भाई का सुर्खियों में रहा था जो अपने घरेलू नौकर राजकुमार के साथ वही सब करते थे जो आनंद जैन राजेश के साथ कर रहे थे.

तब राघवजी की ज्यादतियों से तंग आ गए राजकुमार ने उन की करतूतों की सीडी बना कर थाने में रिपोर्ट दर्ज करवा दी थी. इस के चलते राघवजी को मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था और उस कांड की बदनामी का दाग आज तक उन के दामन पर लगा है.

बीते दिनों सुप्रीम कोर्ट ने जैसे ही समलैंगिक संबंधों को कानूनी मंजूरी दी तो राघवजी ने राहत की सांस लेते हुए कहा था कि अब उन पर चल रहा धारा 377 का मुकदमा बंद हो जाएगा.

लेकिन लौंडेबाजी के आदी हो गए मर्दों का कोई इलाज नहीं है. भोपाल के सैक्स में माहिर एक नामी डाक्टर की मानें तो यह कोई बीमारी नहीं है लेकिन इस के लिए जोरजबरदस्ती करना ठीक नहीं. दूसरे, नाबालिगों का इस्तेमाल करने से बचना चाहिए, क्योंकि यह अभी भी कानूनन जुर्म है.

इन्हीं डाक्टर का यह भी कहना है कि कई वजहों के चलते कुछ मर्दों को औरतों के साथ सैक्स करने में मजा नहीं आता है इसलिए वे लड़कों को फंसाते हैं. यह उन की मजबूरी हो जाती है.

ज्यादातर मर्द दूसरे के हस्तमैथुन से संतुष्ट हो जाते हैं क्योंकि वह पूरे फोर्स से होता है लेकिन कुछ को सैक्स में ही मजा आता है.

अब कानून भी उन के साथ है लेकिन इस के बाद भी उन्हें फूंकफूंक कर कदम रखने होंगे. इस में उन का पार्टनर ब्लैकमेल भी कर सकता है और नाजायज मांगें भी मनवाने का दबाव बना सकता है क्योंकि उन की कमजोरी वह समझ चुका होता है कि ये पैसे वाले लोग अपने चेहरे से शराफत का नकाब उतरने से बहुत डरते हैं.

घूस की मार से देश बीमार

मध्य प्रदेश के शहडोल जिले के गोहपारु थाने के असिस्टैंट सब इंस्पैक्टर एम एल शुक्ला को 7 मई को लोकायुक्त पुलिस, रीवा ने 3 हजार रुपए की रिश्वत लेते रंगेहाथों पकड़ा. मारपीट के एक मामले को रफादफा करने के लिए आरोपी से यह घूस ली जा रही थी.

शाजापुर जिले के आगर मालवा के ब्लौक मैडिकल औफिसर डा. आर एल मालवीय को 9 मई को 250 रुपए की घूस लेते वक्त लोकायुक्त पुलिस उज्जैन द्वारा गिरफ्तार किया गया. सेमली गांव निवासी सरकारी तौर पर घोषित एक गरीब आदमी अनवर खां की 10 वर्षीय बेटी फरजाना के कान में चांदी का घुंघरू फंस गया था, अस्पताल में इलाज के लिए ले जाने पर उक्त डाक्टर ने 450 रुपए मांगे थे.

9 मई को ही शाजापुर के गांव अकोदिया के पटवारी संतोष सोलंकी को उज्जैन लोकायुक्त ने एक किसान से 3 हजार रुपए की घूस लेते रंगेहाथों पकड़ा. घूस नामांतरण के लिए ली गई थी. सौदा कुल 8 हजार रुपए में तय हुआ था जिस में से 5 हजार रुपए पीडि़त किसान पूर्व में उक्त पटवारी को दे चुका था.उज्जैन जनपद पंचायत के सहायक मंत्री कमल सिंह सिसौदिया को 20 हजार रुपए की रिश्वत लेते रंगेहाथों लोकायुक्त द्वारा पकड़ा गया. नयागांव के सरपंच नरेंद्र सिंह से यह रिश्वत एक सरकारी इमारत बनवाने की इजाजत के लिए ली गई थी. कुल सौदा 1 लाख रुपए में तय हुआ था.

भोपाल में 8 मई को स्कूली शिक्षा विभाग के एक ब्लौक एकेडमिक  कोऔर्डिनेटर विक्रम सिंह प्रजापति को लोकायुक्त ने 4 हजार रुपए की रिश्वत लेते रंगेहाथों गिरफ्तार किया. यह घूस एक स्कूल को मान्यता देने के एवज में मांगी गई थी. भोपाल के टीटी नगर इलाके में बीआरसी यानी विकास खंड स्रोत समन्वय कार्यालय है. यह विभाग स्कूलों का निरीक्षण तयशुदा मानदंडों पर करता है. कुछ दिन पहले वी एस प्रजापति ने निजामुद्दीन कालोनी स्थित स्कौलर स्कूल का निरीक्षण किया था और मान्यता देने के लिए 4 हजार रुपए एस ए अहमद नाम के शिक्षक से मांगे थे.

8 मई को मंदसौर जिले के पीपल्या मंडी शासकीय कन्या उच्चतर माध्यमिक विद्यालय के प्रभारी प्राचार्य जे के डोसी को लोकायुक्त दल द्वारा 4 हजार रुपए की रिश्वत लेते हुए रंगेहाथों गिरफ्तार किया गया. यह रिश्वत राकेश काबरा, कमलेश पाटीदार और संजय पंवार नाम के अनुबंधित शिक्षकों से पिछले डेढ़ महीने की पगार निकालने के बाबत ली गई थी.

3 दिन में रिश्वत के ये 7 बड़े मामले केवल मध्य प्रदेश के हैं. राज्य में औसतन हर दिन 2 मुलाजिम घूस लेते रंगेहाथों पकड़े जाते हैं. पकड़े गए 90 फीसदी मुलाजिम छोटे पद वाले होते हैं. 10 फीसदी ही बड़े यानी मगरमच्छ होते हैं जिन से करोड़ोंअरबों की नामीबेनामी संपत्ति और नकदी जब्त होती है. साल 2013 में 15 मई तक 300 से भी ज्यादा सरकारी कर्मचारी घूस लेते पकड़े गए.

ये मामले चिंतनीय इस लिहाज से भी हैं कि घूस लेने के तौरतरीके तेजी से बदल रहे हैं और न पकड़े जाने वाले मामलों की तादाद जाहिराना तौर पर लाख गुना ज्यादा होगी. वजह, सभी लोग शिकायत नहीं करते हैं.

घूस के नए तौरतरीके

तेजी से पनपती घूसखोरी के सियासी नतीजे क्या होंगे यह तो कहना अभी मुश्किल है पर आगर मालवा के ब्लौक मैडिकल औफिसर आर एस मालवीय ने तो शर्मोहया की सारी हदें पार कर दीं. अनवर खां गरीबी रेखा कार्डधारी (बीपीएल) है यानी मुश्किल से कमाखा पाता है. एक दिन बेटी के कान में चांदी का घुंघरू फंस गया. वह बेटी को ले कर सरकारी अस्पताल पहुंचा जहां डाक्टर साहब ने उस की हैसियत देखते हुए केवल 450 रुपए रिश्वत के मांगे. अनवर की जेब में उस वक्त महज

100 रुपए थे जो उस ने तुरंत ईमानदारी से दे दिए और बचे 350 रुपए बाद में देने का वादा कर लिया. बेटी की तकलीफ दूर करने के लिए वह कुछ भी कर सकता था. डाक्टर साहब ने तो उस की गरीबी देखते भारी डिस्काउंट भी दे दिया था, दूसरी सहूलियत यह दी कि रिश्वत में भी उधारी कर दी. अस्पताल न हुआ बनिए की दुकान हो गई कि किराने का सामान ले जाओ, पैसे बाद में जब हों, दे देना.

2 दिन बाद दूसरी दफा वह बेटी को दिखाने गया तो घूसखोर डाक्टर साहब बकाया पैसे न मिलने पर ?ाल्ला उठे और 10 वर्षीय फरजाना को अस्पताल में ही यह कहते बैठा लिया कि बेटी छोड़ जाओ, जब पैसों का इंतजाम हो जाए तो अपनी बेटी को ले जाना. बेचारी मासूम फरजाना घंटों बंधक बनी रही या गिरवी रही. इस बात से अनवर परेशान हो गया. उसे कुछ सू?ा नहीं रहा था कि क्या करे तभी किसी ने उसे समझ कर लोकायुक्त कार्यालय का रास्ता बता दिया, तब कहीं जा कर बिटिया को वह डाक्टर के चंगुल से छुड़ा पाया.

पुराने जमाने में ऐसा होता था कि सूदखोर किसानों को भारीभरकम ब्याज पर कर्ज देते थे और उस के एवज में किसान परिवार से उस के ही खेतों में मजदूरी करा कर सारी उपज हड़प जाते थे. किसान और उस का परिवार मजदूरी करने के लिए जिंदा रहें, इतना भर खाने को देते थे. ऐसा आज भी होता है, फर्क सिर्फ इतना आया है कि अब लोग घूस में औलाद को भी गिरवी रखने लगे हैं. गहने, जायदाद भी घूस में चलते हैं, यह बात भोपाल के एक वरिष्ठ तहसीलदार स्वीकारते हुए बताते हैं कि नामांतरण, खसराखतौनी की नकल, बंटवारे वगैरह जैसे जरूरी कामों में राजस्व विभाग नकदी का मुहताज नहीं, उस के होनहार मुलाजिम सोनेचांदी के गहने ले कर किसान का काम कर देते हैं. मुरगी अगर ज्यादा मोटी हो तो एकाध एकड़ जमीन की रजिस्ट्री किसी सगेसौतेले रिश्तेदार के नाम करवा कर पीडि़त की परेशानी दूर कर देते हैं.

विदिशा की एक अदालत का बाबू तो घूस की तय रकम पर ब्याज भी लेता है. मुवक्किलों के पास पैसे नहीं होते तो रेट तय कर उसी दिन से 24 फीसदी ब्याज की दर से वह घूस लेता है. अंदाजा है कि इस बाबू को मुकदमेबाजों से तकरीबन 12 लाख रुपए लेने हैं. कुछ मामलों में घूस का लेनदेन चैक और बैंक खातों के नंबरों से भी हुआ है. देने वाले को बैंक अकाउंट नंबर दिया गया और पैसे जमा होने के 8-10 दिन बाद काम किया गया. घूसखोर ने चैक किसी और के नाम से लिया.

किस्तों में घूस

घूस एकमुश्त ही लेंगे, यह जिद घूसखोरों ने कभी की छोड़ दी है. अब अधिकांश घूस किस्तों में ली जाती है जिस से देने वाले को सहूलियत रहे. उज्जैन के असिस्टैंट इंजीनियर कमल सिंह सिसोदिया ने भवन निर्माण हेतु सौदा 1 लाख रुपए में सरपंच नरेंद्र सिंह से तय किया था. मजबूरी जताए जाने पर किस्तों में घूस लेने के लिए राजी हो गए और पहली दफा में ही धरे गए. घूसखोरों की मनोवृत्ति जानने वाले भोपाल के समाजशास्त्र के एक प्रोफैसर की मानें तो यह इंजीनियर अपनी गिरफ्तारी या बदनामी पर कम बाकी 80 हजार रुपए डूबने पर ज्यादा दुखी रहा होगा. शुजालपुर का पटवारी संतोष सोलंकी इस मामले में बाजी मार गया. वह किसान से 5 हजार रुपए पहले ही सफलतापूर्वक ले चुका था.

शहडोल के एएसआई एम एल शुक्ला को भी किस्तों में घूस लेने की दयानतदारी भारी पड़ी. यह एएसआई आरोपी से 5 हजार रुपए पहले ही ले चुका था. बचे 3 हजार रुपए का लालच न छूटा तो आरोपी ने लोकायुक्त में शिकायत कर दी.

रतलाम की बिजली कंपनी का बाबू बालाराम काकड़ तो हवन करते ही हाथ जला बैठा. बिल पास करने के लिए घूस दरअसल में मांगी कार्यपालन यंत्री ए के सिंह ने थी जो इत्तेफाक से उस दिन दफ्तर में नहीं थे. लेकिन बालाराम ने अपने कमीशन के लालच में खुद 11 हजार रुपए ले लिए और पकड़ा गया. हालांकि मामला ए के सिंह के खिलाफ भी दर्ज हुआ.

कौनकौन लेता है घूस

बालाराम तो मातहत था और जानता था कि ऐसे बिल बगैर नजराने के पास नहीं होते. गाड़ी किराए पर लेते वक्त भी बिजली कंपनियों और दूसरे सरकारी दफ्तर वाले घूस लेते हैं और हर दफा बिल पास करने पर भी पैसों का वजन रखना पड़ता है. इस में बाबू का हिस्सा 20-30 फीसदी रहता है. भोपाल के एक ठेकेदार की मानें तो जरूरी नहीं है कि घूस काम करने वाला ही ले. अब तो अधिकारी लोग एहतियात बरतते हैं और बारबार जगह और नाम बदलते रहते हैं. यह ठेकेदार बताता है, ‘‘मुझे एक बार लगभग 2 लाख रुपए का बिल पास कराने के लिए एक इंजीनियर साहब को 30 हजार रुपए देने थे तो वे बोले, ‘मेरा साला आप के घर से आ कर रुपए ले जाएगा.’ मैं इंतजार करता रहा, साहब का साला नहीं आया तो मैं घबराया कि कहीं उन्होंने घूस लेने का इरादा न बदल लिया हो. वजह, मुझे पैसों की सख्त जरूरत थी क्योंकि पैसा सीमेंट वाले को देना था. जब दोबारा फोन किया तो होशंगाबाद रोड के एक बंगले का पता बताते हुए बोले, ‘यहां के लैटरबौक्स में डाल आओ.’ मैं समझ गया कि साहब घबराए हुए हैं. लिहाजा, जैसा उन्होंने कहा, वैसा ही मैं ने किया.’’

कई लोग बीवीबच्चों, नजदीकी रिश्तेदारों या भरोसेमंद दोस्तों के जरिए घूस लेते हैं. आजकल नया चलन कार में पैसे रखवाने का जोर पकड़ रहा है. रिश्वत देने वाले को बता दिया जाता है कि फलां कार में पैसे रख आओ और मुड़ कर मत देखना. जाहिर है घूसखोर आसपास ही कहीं होता है, और गाड़ी पर उस की नजर रहती है. नजारा पुरानी हिंदी फिल्मों के उन दृश्यों सरीखा होता है जिन में डाकू और स्मगलर पैसे वाला ब्रीफकेस ले कर शंकरजी के पुराने मंदिर या किसी खंडहर में देने वाले को बुलाते हैं. वैसे भी घूसखोरों, चोरलुटेरों और  स्मगलर्स में कोई खास फर्क नहीं है सिवा इस के कि घूसखोर समाज का सम्मानजनक नागरिक माना जाता है.

दहेज का दावानल

एक समय ऐसा भी था जब मोटरसाइकिल का किसी घर में होना रुतबे की बात मानी जाती थी और अगर किसी को वह दहेज में मिल जाती थी तो पूरे इलाके में मानो मुनादी सी पिट जाती थी.

आज दहेज भी बरकरार है और इस के नाम पर गाड़ी मांगने का रिवाज भी. पर कभीकभार इस मांगने के खेल में पासा उलटा भी पड़ जाता है.

ऐसा ही कुछ उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में हुआ. यहां दहेज को ले कर हुए झगड़े में दूल्हे और बरातियों को बंधक बनाए जाने का मामला सामने आया.

इतना ही नहीं, वधू पक्ष ने महल्ले वालों के साथ मिल कर दूल्हे समेत 4 लोगों के सिर मुंड़वा दिए. मामले की सूचना देर रात पुलिस को हुई तो बंधक बनाए गए बरातियों को छुड़ाया जा सका.

यह था मामला

जानकारी के मुताबिक, खुर्रमनगर इलाके में लड़की के पिता सब्जी बेच कर गुजारा करते हैं. उन का शहीद जियाउल हक पार्क के पास कच्चा मकान है. अपनी बेटी का रिश्ता उन्होंने बाराबंकी के धौकलपुरवा के रहने वाले अब्दुल कलाम से तय किया था. कुछ समय पहले ही मंगनी की रस्म हुई थी. सामाजिक रीतिरिवाजों की लाज बचाने के लिए उन्होंने निकाह के लिए दहेज का सामान जुटाया था.

लड़की के पिता का आरोप है कि निकाह से हफ्ताभर पहले ही लड़के ने दहेज की मांगें बढ़ानी शुरू कर दीं. जैसेतैसे उन्होंने उस की सभी मांगें पूरी करने की कोशिश भी की.

निकाह के दिन दूल्हे ने दहेज का सामान देखा तो ‘पल्सर’ मोटरसाइकिल देख कर कहने लगा कि उसे तो ‘अपाचे’ मोटरसाइकिल चाहिए. इतना ही नहीं, उस ने 4 तोला सोने की चेन की भी मांग रख दी.

दुल्हन के पिता ने बताया कि जब उन्होंने मांग पूरी करने में हाथ खड़े कर दिए तो दूल्हा बरात वापस ले जाने की धमकी देने लगा.

आरोप है कि लड़की वालों ने 25,000 रुपए की मेहर तय की थी. इस पर भी लड़के वालों ने एतराज जताया. उन्होंने निकाहनामा से इस शर्त को हटाने की मांग की.

लड़की के पिता का कहना है कि वे तकरीबन 3 से 4 लाख रुपए दहेज दे रहे थे, लिहाजा 25,000 रुपए मेहर की रकम इस के सामने कुछ नहीं थी.

उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि विवाद के बीच दूल्हा और बराती शराब के नशे में हंगामा करने लगे.  इस के बाद दुलहन पक्ष के लोग भी नाराज होने लगे और बिना निकाह किए जाने पर नतीजा भुगतने की चेतावनी दी गई.

हालात बिगड़ते देख बरातियों ने मौके से भाग निकलने की कोशिश की. इस दौरान दूल्हा और उस का भाई भी भागने लगे तो लड़की के घर वालों ने उन्हें पकड़ लिया. इस के बाद भीड़ ने दूल्हे समेत 4 लोगों के सिर मुंड़वा दिए.

इस पूरे हंगामे पर दुलहन की दादी का कहना था, ‘‘उन्होंने शादी से 5 दिन पहले ये मांगें रखी थीं. जब हम ने कहा कि हम मांग पूरी नहीं कर सकते, तो दूल्हे ने निकाह करने से इनकार कर दिया. मुझे नहीं पता कि उस का सिर किस ने मुंड़वा दिया.’’

दहेज के इस मामले में तो वधू पक्ष ने समाज की परवाह न करते हुए वर पक्ष को सबक सिखा दिया, पर हर बार ऐसा नहीं हो पाता है. एक हैरतअंगेज मामले में ससुराल वालों ने अपनी 2 बहुओं को डेढ़ लाख रुपए में बेच डाला था.

यह केस विरार पुलिस स्टेशन इलाके का था. उन बहुओं को तब पता चला, जब खरीदने वाला उन्हें राजस्थान से वसई ले आया था.

पुलिस ने बताया कि इस मामले में पीडि़ता औरतों के पति, सासससुर समेत 12 लोग शामिल थे. मुंबई के विरार (पश्चिम) इलाके की एमबी स्टेट निवासी 24 साला पीडि़ता ने बताया कि साल 2015 में उस की शादी विरार के रहने वाले संजय मोहनलाल रावल से हुई थी. उस की छोटी बहन की शादी संजय के छोटे भाई वरुण रावल के साथ हुई थी.

वे दोनों बहनें एक ही घर में रहती थीं. शादी के बाद से ससुराल वाले उन दोनों बहनों को दहेज के लिए सताने लगे थे. ससुराल वालों ने उन से अपने मायके से 5 लाख रुपए लाने की डिमांड रखी थी. ऐसा नहीं करने पर उन्हें सताया जाने लगा था.

30 अगस्त को ससुराल वाले किसी बहाने से दोनों बहुओं को राजस्थान ले गए. वहां भी दोनों को मारापीटा गया. जलाने की भी धमकी दी गई. 10 सितंबर को ससुराल वालों ने उन दोनों को ट्रेन में बैठा दिया और अपने घर विरार जाने को कहा. उन के साथ एक अनजान शख्स भी गया था.

दूसरे दिन जब ट्रेन वसई रेलवे स्टेशन पहुंची तो उस आदमी ने उन से मीरा रोड चलने को कहा. इस बात पर उन का झगड़ा हो गया. यह देख कर कुछ लोग बीचबचाव में आ गए.

वहां उस आदमी ने खुलासा किया कि इन औरतों की ससुराल वालों ने इन्हें उसे डेढ़ लाख रुपए में बेचा है और वह इतना बोल कर वहां से चला गया.

इन दोनों मामलों में किसी की जान नहीं गई जबकि दहेज के दावानल में न जाने कितनी विवाहिताएं अपनी जान तक गंवा देती हैं.

नैशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि अलगअलग राज्यों से साल 2012 में दहेज हत्या के 8,233 मामले सामने आए थे. आंकड़ों का औसत बताता है कि हर घंटे में एक औरत दहेज की बलि चढ़ रही है.

केंद्र सरकार की ओर से जुलाई, 2015 में जारी आंकड़ों के मुताबिक, बीते 3 सालों में देश में दहेज संबंधी कारणों से मौत का आंकड़ा 24,771 था. जिन में से 7,048 मामले सिर्फ उत्तर प्रदेश से थे. इस के बाद बिहार और मध्य प्रदेश में क्रमश: 3,830 और 2,252 मौतों का आंकड़ा सामने आया.

दहेज निषेध अधिनियम

दहेज निषेध अधिनियम, 1961 के मुताबिक, दहेज लेने, देने या इस के लेनदेन में सहयोग करने पर 5 साल की कैद और 15,000 रुपए तक के जुर्माने की सजा हो सकती है.

दहेज के लिए सताने पर भारतीय दंड संहिता की धारा 498 ए, जो पति और उस के रिश्तेदारों द्वारा जायदाद या कीमती सामान के लिए अवैधानिक मांग के मामले से जुड़ी है, के तहत 3 साल की कैद और जुर्माना हो सकता है.

धारा 406 के तहत लड़की के पति और ससुराल वालों के लिए 3 साल की कैद या जुर्माना या फिर दोनों हो सकती हैं, अगर वे लड़की के स्त्रीधन को उसे सौंपने से मना करते हैं.

यदि किसी लड़की की शादी के 7 साल के भीतर असामान्य हालात में मौत होती है और यह साबित कर दिया जाता है कि मौत से पहले उसे दहेज के लिए सताया गया है, तो भारतीय दंड संहिता की धारा 304 बी के तहत लड़की के पति और रिश्तेदारों को कम से कम 7 साल से ले कर ताउम्र कैद की सजा हो सकती है.

आज की जिंदगी में बहुत से लोग इतने लालची होते जा रहे हैं कि वे अपने बेटों को दहेज के बाजार में बेचने से भी नहीं हिचकिचाते हैं. बेटे की पढ़ाई पर लगाई गई रकम को वे लड़की वालों से वसूलने की कोशिश करते हैं और जब उन के मुंह खून लग जाता है तो वे लड़की को बाद में भी सताने से बाज नहीं आते हैं. कुछ मामलों में शादी के दौरान ही दूल्हे पक्ष को सबक सिखा दिया जाता है तो कहीं बाद में दुलहनें भी बिकती नजर आती हैं.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें