Hindi Funny Story: कुत्ता कह लें, पर आवारा नहीं

Hindi Funny Story, लेखक – मुकेश विग

कुत्तों के मुखिया ने सभी कुत्तों को शाम को एक आपात बैठक में मैदान में पहुंचने को कहा. शाम के समय बड़ी तादाद में बहुत सारे कुत्ते पूंछ हिलाते हुए मैदान में पहुंचने लगे.

कुछ देर बाद एक कुत्ता कहने लगा, ‘‘दोस्तो, क्या आप जानते हैं कि हमें सड़कों से हटाने की तैयारियां चल रही हैं? हमारा कुसूर क्या है? क्या हम इस देश के नागरिक नहीं हैं? आदमी में और हम में सिर्फ पूंछ का ही तो फर्क है. वे बोलते हैं, तो हम भौंकते हैं.

‘‘हमें आवारा भी कहा जा रहा है, जिस से दिल को बड़ी चोट पहुंचती है. पर हम तो गलियों के राजा हैं, आवारा नहीं. हमें देख कर तो बड़ेबड़े चोर भी भाग जाते हैं.’’

दूसरा कुत्ता बोला, ‘‘इस ‘आवारा’ शब्द को सुन कर खुदकुशी करने का मन करता है, लेकिन हमें तो सुसाइड करना भी नहीं आता. हमारे ही कुछ साथी बड़ेबड़े घरों में शान से रहते हैं, खाते हैं, बिस्तर पर सोते हैं, महंगी गाडि़यों में घूमते हैं. क्या वे भी आवारा हैं?

‘‘2-4 कुत्तों की वजह से हमारी पूरी कौम को बदनाम करना सही नहीं. हम कोई नशा नहीं करते, सिर्फ हड्डी का चसका है.

‘‘पुलिस में भी कई हमारे साथी ट्रेनिंग ले कर चोरों और अपराधियों को पकड़वा रहे हैं. हमारे एहसानों को भी भुला दिया गया है. कोई अगर छेड़खानी करे तो उसे जरूर हम काट लेते हैं, फिर बिना वजह किसी को भी क्यों काटेंगे?

‘‘कई फिल्मों में भी हमारे साथियों ने अच्छा काम किया है. धर्मराज युधिष्ठर ने भी एक कुत्ते को ही इतनी इज्जत और प्यार दिया था, फिर यह अचानक हमें बेदखल व बेघर क्यों किया जा रहा है? हमें मिलवार भौंकते हुए इस के खिलाफ हर हाल में आवाज उठानी होगी.

‘‘अपने हक के लिए लड़ना होगा, लेकिन यह सब शांत तरीके से करना होगा, तभी हम सब इस संकट से निकल सकते हैं.’’

सभी कुत्ते पूंछ हिला कर उस कुत्ते का समर्थन कर रहे थे.

एक कुत्ता बोला, ‘‘भैरवजी भी कुत्ते के साथ ही चलते हैं. जापान में हमारे एक साथी कुत्ते की मूर्ति प्लेटफार्म पर लगाई गई है. हमारे 2 साथी अंतरिक्ष में भी जा चुके हैं फिर हम आवारा कैसे हो गए?’’ इतना कहतेकहते वह कुत्ता भावुक हो गया, तो 2 कुत्ते उस का मुंह चाटने लगे.

एक कुत्ता बोला, ‘‘सुना है कि हमें हटाने वाले कानून में कुछ सुधार किया गया है. हमें फर्स्ट एड दे कर वापस हमारे ठिकाने पर छोड़ दिया जाएगा.

‘‘लेकिन दोस्तो, टीका तो लगवाना पड़ेगा. डरें मत. पर जिन का चालचलन सही नहीं, जो खतरनाक लगते हैं, वे अब हमारे साथ नहीं रह पाएंगे. थोड़ी जुदाई तो सहन करनी पड़ेगी.’’

तभी एक शरारती कुत्ते ने यह गीत बजा दिया, ‘तेरी गलियों में न रखेंगे कदम आज के बाद…’ तो सभी कुत्ते हंसने लगे.

तभी अचानक एक कुत्ता हांफता हुआ वहां पहुंचा, जिस ने एक अखबार पकड़ा हुआ था.

प्रधान कुत्ता उसे देख कर बोला, ‘‘यह सब क्या है? तुम क्या खबर लाए हो?’’

वह कुत्ता बोला, ‘‘सरदार, हमारे लिए एक बड़ी खुशखबरी है. अभी हमारा मामला अमल में आने में कुछ समय लेगा, क्योंकि कई लोग, नेता और हीरो भी हमारे समर्थन में आ रहे हैं. वे इस फैसले को गलत बता रहे हैं. यही खुशखबरी देने मैं यहां दौड़ादौड़ा आ रहा हूं.’’

सभी कुत्ते अखबार देखने लगे. कुछ कुत्ते तो अखबार के पहले पन्ने पर छपी कुत्ते का फोटो देख कर ही मुसकरा रहे थे कि चलो मुफ्त में फोटो तो छप गया.

कुत्तों का सरदार बोला, ‘‘हमारा समर्थन करने वालों का हम धन्यवाद करते हैं. आज लग रहा है कि हम अकेले नहीं हैं.

‘‘कुछ लोग हमें सड़कों और गलियों से भगाना चाहते हैं, तो कुछ लोग हमारे पक्ष में खड़े हैं. समझ नहीं आ रहा हम इन का धन्यवाद कैसे करें, जो मुश्किल घड़ी में हमारा पूरा साथ दे रहे हैं.

‘‘इन कुत्तों के सामने मत नाचना… फिल्म ‘शोले’ के इस डायलौग पर भी हमें गहरा दुख हुआ था, जबकि हमारी वफादारी की तो मिसाल भी दी जाती है. हम नाली का पानी पी लेते हैं, कूड़े से खाना ढूंढ़ कर खा लेते हैं, लेकिन कभी भी शिकवा नहीं करते.

‘‘आज हमारा मामला सुर्खियों में है. जो शैल्टर होम में जाना चाहते हैं, उन्हें वहां आप भेज दें, लेकिन जो सड़कों पर ही खुश हैं, उन्हें वहीं पर रहने दें. उन पर कोई जोरजबरदस्ती न करें.

‘‘अब सभी दोस्त खड़े हो कर अपनीअपनी पूंछ उठा कर जोर से भौंक कर हमारा समर्थन करने वालों का धन्यवाद करेंगे और इस के बाद अपनीअपनी गली और सड़क पर लौट जाएंगे.’’ Hindi Funny Story

Best Hindi Kahani: सही सजा

Best Hindi Kahani: पुरेनवा गांव में एक पुराना मठ था. जब उस मठ के महंत की मौत हुई, तो एक बहुत बड़ी उलझन खड़ी हो गई. महंत ने ऐसा कोई वारिस नहीं चुना था, जो उन के मरने के बाद मठ की गद्दी संभालता.

मठ के पास खूब जायदाद थी. कहते हैं कि यह जायदाद मठ को पूजापाठ के लिए तब के रजवाड़े द्वारा मिली थी.

मठ के मैनेजर श्रद्धानंद की नजर बहुत दिनों से मठ की जायदाद पर लगी हुई थी, पर महंत की सूझबूझ के चलते उन की दाल नहीं गल रही थी.

महंत की मौत से श्रद्धानंद का चेहरा खिल उठा. वे महंत की गद्दी संभालने के लिए ऐसे आदमी की तलाश में जुट गए, जो उन का कहा माने. नया महंत जितना बेअक्ल होता, भविष्य में उन्हें उतना ही फायदा मिलने वाला था.

उन दिनों महंत के एक दूर के रिश्तेदारी का एक लड़का रामाया गिरि मठ की गायभैंस चराया करता था. वह पढ़ालिखा था, लेकिन घनघोर गरीबी ने उसे मजदूर बना दिया था.

मठ की गद्दी संभालने के लिए श्रद्धानंद को रामाया गिरि सब से सही आदमी लगा. उसे आसानी से उंगलियों पर नचाया जा सकता था. यह सोच कर श्रद्धानंद शतरंज की बिसात बिछाने लगे.

मैनेजर श्रद्धानंद ने गांव के लोगों की मीटिंग बुलाई और नए महंत के लिए रामाया गिरि का नाम सुझाया. वह महंत का रिश्तेदार था, इसलिए गांव वाले आसानी से मान गए.

रामाया गिरि के महंत बनने से श्रद्धानंद के मन की मुराद पूरी हो गई. उन्होंने धीरेधीरे मठ की बाहरी जमीन बेचनी शुरू कर दी. कुछ जमीन उन्होंने तिकड़म लगा कर अपने बेटेबेटियों के नाम करा ली. पहले मठ के खर्च का हिसाब बही पर लिखा जाता था, अब वे मुंहजबानी निबटाने लगे. इस तरह थोड़े दिनों में उन्होंने अपने नाम काफी जायदाद बना ली.

रामाया गिरि सबकुछ जानते हुए भी अनजान बना रहा. वह शुरू में श्रद्धानंद के एहसान तले दबा रहा, पर यह हालत ज्यादा दिन तक नहीं रही.

जब रामाया गिरि को उम्दा भोजन और तन को आराम मिला, तो उस के दिमाग पर छाई धुंध हटने लगी.
उस के गाल निकल आए, पेट पर चरबी चढ़ने लगी. वह केसरिया रंग के सिल्क के कपड़े पहनने लगा. जब वह माथे और दोनों बाजुओं पर भारीभरकम त्रिपुंड चंदन लगा कर कहीं बाहर निकलता, तो बिलकुल शंकराचार्य सा दिखता.

गरीबगुरबे लोग रामाया गिरि के पैर छू कर आदर जताने लगे. इज्जत और पैसा पा कर उसे अपनी हैसियत समझ में आने लगी.

रामाया गिरि ने श्रद्धानंद को आदर के साथ बहुत सम?ाया, लेकिन उलटे वे उसी को धौंस दिखाने लगे. श्रद्धानंद मठ के मैनेजर थे. उन्हें मठ की बहुत सारी गुप्त बातों की जानकारी थी. उन बातों का खुलासा कर देने की धमकी दे कर वे रामाया गिरि को चुप रहने पर मजबूर कर देते थे. इस से रामाया गिरि परेशान रहने लगा.

एक दिन श्रद्धानंद मठ के बरामदे में बैठे चाय पी रहे थे. चाय खत्म हुई कि वे कुरसी से लुढ़क गए. किसी ने पुलिस को खबर कर दी. पुलिस श्रद्धानंद की लाश को पोस्टमार्टम के लिए ले जाना चाहती थी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट से भेद खुलने का डर था, इसलिए रामाया गिरि थानेदार को मठ के अंदर ले गया और लेदे कर मामले को रफादफा करा दिया.

श्रद्धानंद को रास्ते से हटा कर रामाया गिरि बहुत खुश हुआ. यह उस की जिंदगी की पहली जीत थी. उस में हौसला आ चुका था. अब उसे किसी सहारे की जरूरत नहीं थी.

रामाया गिरि नौजवान था. उस के दिल में भी आम नौजवानों की तरह तमाम तरह की हसरतें भरी पड़ी थीं. खूबसूरत औरतें उसे पसंद थीं. सो, वह पूजापाठ का दिखावा करते हुए औरत पाने का सपना संजोने लगा.

उन दिनों मठ की रसोई बनाने के लिए रामप्यारी नईनई आई थी. उस की एक जवान बेटी कमली भी थी. इस के बावजूद उस की खूबसूरती देखते ही बनती थी. गालों को चूमती जुल्फें, कंटीली आंखें और गदराया बदन.

एक रात रामप्यारी को घर लौटने में देर हो गई. मठ के दूसरे नौकर छुट्टी पर थे, इसलिए कई दिनों से बरतन भी उसे ही साफ करने पड़ रहे थे.

रामाया गिरि खाना खा कर अपने कमरे में सोने चला गया था, लेकिन उसे नींद नहीं आ रही थी. चारों ओर खामोशी थी. आंगन में बरतन मांजने की आवाज के साथ चूडि़यों की खनक साफसाफ सुनाई दे रही थी.

रामाया गिरि की आंखों में रामप्यारी की मस्त जवानी तैरने लगी. शायद उसे पाने का इस से अच्छा मौका नहीं मिलने वाला था. उस ने आवाज दी, ‘‘रामप्यारी, जरा इधर आना.’’

रामाया गिरि की आवाज सुन कर रामप्यारी सिहर उठी. वह अनसुनी करते हुए फिर से बरतन मांजने लगी.

रामाया गिरि खीज उठा. उस ने बहाना बनाते हुए फिर उसे पुकारा, ‘‘रामप्यारी, जरा जल्दी आना. दर्द से सिर फटा जा रहा है.’’

अब की बार रामप्यारी अनसुनी नहीं कर पाई. वह हाथ धो कर सकुचाती हुई रामाया गिरि के कमरे में पहुंच गई.

रामाया गिरि बिछावन पर लेटा हुआ था. उस ने रामप्यारी को देख कर अपने सूखे होंठों पर जीभ फिराई, फिर टेबिल पर रखी बाम की शीशी की ओर इशारा करते हुए बोला, ‘‘जरा, मेरे माथे पर बाम लगा दो…’’

मजबूरन रामप्यारी बाम ले कर रामाया गिरि के माथे पर मलने लगी. कोमल हाथों की छुअन से रामाया गिरि का पूरा बदन झनझना गया. उस ने सुख से अपनी आंखें बंद कर लीं.

रामाया गिरि को इस तरह पड़ा देख कर रामप्यारी का डर कुछ कम हो चला था. रामाया गिरि उसी का हमउम्र था, सो रामप्यारी को मजाक सूझने लगा.

वह हंसती हुई बोली, ‘‘जब तुम्हें औरत के हाथों ही बाम लगवानी थी, तो कंठीमाला के झमेले में क्यों फंस गए? डंका बजा कर अपना ब्याह रचाते. अपनी घरवाली लाते, फिर उस से जी भर कर बाम लगवाते रहते…’’

वह उठ बैठा और हंसते हुए कहने लगा, ‘‘रामप्यारी, तू मुझ से मजाक करने लगी? वैसे, सुना है कि तुम्हारे पति को सिक्किम गए 10 साल से ऊपर हो गए. वह आज तक नहीं लौटा. मुझे नहीं समझ आ रहा कि उस के बिना तुम अपनी जवान बेटी की शादी कैसे करोगी?’’

रामाया गिरि की बातों ने रामप्यारी के जख्म हरे कर दिए. उस की आंखें भर उठीं. वह आंचल से आंसू पोंछने लगी.

रामाया गिरि हमदर्दी जताते हुए बोला, ‘‘रामप्यारी, रोने से कुछ नहीं होगा. मेरे पास एक रास्ता है. अगर तुम मान गई, तो हम दोनों की परेशानी हल हो सकती है.’’

‘‘सो कैसे?’’ रामप्यारी पूछ बैठी.

‘‘अगर तुम चाहो, तो मैं तेरे लिए पक्का मकान बनवा दूंगा. तेरी बेटी की शादी मेरे पैसों से होगी. तुझे इतना पैसा दूंगा कि तू राज करेगी…’’

रामप्यारी उतावली हो कर बोली, ‘‘उस के बदले में मुझे क्या करना होगा?’’

रामाया गिरि उस की बांह को थामते हुए बोला, ‘‘रामप्यारी, सचमुच तुम बहुत भोली हो. अरी, तुम्हारे पास अनमोल जवानी है. वह मुझे दे दो. मैं किसी को खबर नहीं लगने दूंगा.’’

रामाया गिरि का इरादा जान कर रामप्यारी का चेहरा फीका पड़ गया. वह उस से अपना हाथ छुड़ाते हुए बोली, ‘‘मुझ से भारी भूल हो गई. मैं समझती थी कि तुम गरीबी में पले हो, इसलिए गरीबों का दुखदर्द समझते होगे. लेकिन तुम तो जिस्म के सौदागर निकले…’’

इन बातों का रामाया गिरि पर कोई असर नहीं पड़ा. वासना से उस का बदन ऐंठ रहा था. इस समय उसे उपदेश के बदले देह की जरूरत थी.

रामप्यारी कमरे से बाहर निकलने वाली थी कि रामाया गिरि ने झपट कर उस का आंचल पकड़ लिया.
रामप्यारी धक से रह गई. वह गुस्से से पलटी और रामाया गिरि के गाल पर एक जोरदार तमाचा जड़ दिया. रात के सन्नाटे में तमाचे की आवाज गूंज उठी. रामाया गिरि हक्काबक्का हो कर अपना गाल सहलाने लगा.

रामप्यारी बिफरती हुई बोली, ‘‘रामाया, ऐसी गलती फिर कभी किसी गरीब औरत के साथ नहीं करना. वैसे मैं पहले से मठमंदिरों के अंदरूनी किस्से जानती हूं. बेचारी कुसुमी तुम्हारे गुरु महाराज की सेवा करते हुए अचानक गायब हो गई. उस का आज तक पता नहीं चल पाया.

‘‘मैं थूकती हूं तुम्हारी महंती और तुम्हारे पैसों पर. मैं गरीब हूं तो क्या हुआ, मुझे इज्जत के साथ सिर उठा कर जीना आता है.’’

इस घटना को कई महीने बीत गए, लेकिन रामाया गिरि रामप्यारी के चांटे को भूल नहीं पाया.

एक रात उस ने अपने खास आदमी खड्ग सिंह के हाथों रामप्यारी की बेटी कमली को उठवा लिया.
कमली नीबू की तरह निचुड़ी हुई लस्तपस्त हालत में सुबह घर पहुंची. कमली से सारा हाल जान कर रामप्यारी ने माथा पीट लिया.

समय के साथ रामाया गिरि की मनमानी बढ़ती गई. उस ने अपने विरोधियों को दबाने के लिए कचहरी में दर्जनों मुकदमे दायर कर दिए. मठ के घंटेघडि़याल बजने बंद हो गए. अब मठ पर थानाकचहरी के लोग जुटने लगे.

रामाया गिरि ने अपनी हिफाजत के लिए बंदूक खरीद ली. उस की दबंगई के चलते इलाके के लोगों से उस का रिश्ता टूटता चला गया.

रामाया गिरि कमली वाली घटना भूल सा गया. लेकिन रामप्यारी और कमली के लिए अपनी इज्जत बहुत माने रखती थी.

एक दिन रामप्यारी और कमली धान की कटाई कर रही थीं, तभी रामप्यारी ने सड़क से रामाया गिरि को मोटरसाइकिल से आते देखा.

बदला चुकाने की आग में जल रही दोनों मांबेटी ने एकदूसरे को इशारा किया. फिर दोनों मांबेटी हाथ में हंसिया लिए रामाया गिरि को पकड़ने के लिए दौड़ पड़ीं.

रामाया गिरि सारा माजरा समझ गया. उस ने मोटरसाइकिल को और तेज चला कर निकल जाना चाहा, पर हड़बड़ी में मोटरसाइकिल उलट गई.

रामाया गिरि चारों खाने चित गिरा. रामप्यारी के लिए मौका अच्छा था. वह फुरती से रामाया गिरि के सीने पर चढ़ गई. इधर कमली ने उस के पैरों को मजबूती से जकड़ लिया.

रामप्यारी रामाया गिरि के गले पर हंसिया रखती हुई चिल्ला कर बोली, ‘‘बोल रामाया, तू ने मेरी बेटी की इज्जत क्यों लूटी?’’

इतने में वहां भारी भीड़ जमा हो गई. रामाया गिरि लोगों की हमदर्दी खो चुका था, सो किसी ने उसे बचाने की कोशिश नहीं की.

रामाया गिरि का चेहरा पीला पड़ चुका था. जान जाने के खौफ से वह हकलाता हुआ बोला, ‘‘रामप्यारी… ओ रामप्यारी, मेरा गला मत रेतना. मुझे माफ कर दो.’’

‘‘नहीं, मैं तुम्हारा गला नहीं रेतूंगी. गला रेत दिया तो तुम झटके से आजाद हो जाओगे. मैं सिर्फ तुम्हारी गंदी आंखों को निकालूंगी. दूसरों की जिंदगी में अंधेरा फैलाने वालों के लिए यही सही सजा है.’’

रामप्यारी बिलकुल चंडी बन चुकी थी. रामाया गिरि के लाख छटपटाने के बाद भी उस ने नहीं छोड़ा. हंसिया के वार से रामाया गिरि की आंखों से खून का फव्वारा उछल पड़ा. Best Hindi Kahani

Story In Hindi: हत्या या आत्महत्या – क्या हुआ था अनु के साथ?

Story In Hindi: अनु के विवाह समारोह से उस की विदाई होने के बाद रात को लगभग 2 बजे घर लौटी थी. थकान से सुबह 6 बजे गहरी नींद में थी कि अचानक अनु के घर से, जो मेरे घर के सामने ही था, जोरजोर से विलाप करने की आवाजों से मैं चौंक कर उठ गई. घबराई हुई बालकनी की ओर भागी. उस के घर के बाहर लोगों की भीड़ देख कर किसी अनहोनी की कल्पना कर के मैं स्तब्ध रह गई. रात के कपड़ों में ही मैं बदहवास उस के घर की ओर दौड़ी. ‘अनु… अनु…’ के नाम से मां को विलाप करते देख कर मैं सकते में आ गई.

किसी से कुछ पूछने की हिम्मत नहीं हो रही थी. लेकिन मुझे वहां की स्थिति देख कर समझने में देर नहीं लगी. तो क्या अनु ने वही किया, जिस का मुझे डर था? लेकिन इतनी जल्दी ऐसा करेगी, इस का मुझे अंदेशा नहीं था. कैसे और कहां, यह प्रश्न अनुत्तरित था, लेकिन वास्तविकता तो यह कि अब वह इस दुनिया में नहीं रही. यह बहुत बड़ी त्रासदी थी. अभी उम्र ही क्या थी उस की…? मैं अवाक अपने मुंह पर हाथ रख कर गहन सोच में पड़ गई.

मेरा दिमाग जैसे फटने को हो रहा था. कल दुलहन के वेश में और आज… पलक झपकते ही क्या से क्या हो गया. मैं मन ही मन बुदबुदाई. मेरी रूह अंदर तक कांप गई. वहां रुकने की हिम्मत नहीं हुई और क्यों कर रुकूं… यह घर मेरे लिए उस के बिना बेगाना है. एक वही तो थी, जिस के कारण मेरा इस घर में आनाजाना था, बाकी लोग तो मेरी सूरत भी देखना नहीं चाहते.

मैं घर आ कर तकिए में मुंह छिपा कर खूब रोई. मां ने आ कर मुझे बहुत सांत्वना देने की कोशिश की तो मैं उन से लिपट कर बिलखते हुए बोली, ‘‘मां, सब की माएं आप जैसे क्यों नहीं होतीं? क्यों लोग अपने बच्चों से अधिक समाज को महत्त्व देते हैं? क्यों अपने बच्चों की खुशी से बढ़ कर रिश्तेदारों की प्रतिक्रिया का ध्यान रखते हैं? शादी जैसे व्यक्तिगत मामले में भी क्यों समाज की दखलंदाजी होती है? मांबाप का अपने बच्चों के प्रति यह कैसा प्यार है जो सदियों से चली आ रही मान्यताओं को ढोते रहने के लिए उन के जीवन को भी दांव पर लगाने से नहीं चूकते? कितना प्यार करती थी वह जैकब से? सिर्फ वह क्रिश्चियन है…? प्यार क्या धर्म और जाति देख कर होता है? फिर लड़की एक बार मन से जिस के साथ जुड़ जाती है, कैसे किसी दूसरे को पति के रूप में स्वीकार करे?’’ रोतेरोते मन का सारा आक्रोश अपनी मां के सामने उगल कर मैं थक कर उन के कंधे पर सिर रख कर थोड़ी देर के लिए मौन हो गई.

पड़ोसी फर्ज निभाने के लिए मैं अपनी मां के साथ अनु के घर गई. वहां लोगों की खुसरफुसर से ज्ञात हुआ कि विदा होने के बाद गाड़ी में बैठते ही अनु ने जहर खा लिया और एक ओर लुढ़क गई तो दूल्हे ने सोचा कि वह थक कर सो गई होगी. संकोचवश उस ने उसे उठाया नहीं और जब कार दूल्हे के घर के दरवाजे पर पहुंची तो सास तथा अन्य महिलाएं उस की आगवानी के लिए आगे बढ़ीं. जैसे ही सास ने उसे गाड़ी से उतारने के लिए उस का कंधा पकड़ा उन की चीख निकल गई. वहां दुलहन की जगह उस की अकड़ी हुई लाश थी. मुंह से झाग निकल रहा था.

चीख सुन कर सभी लोग दौड़े आए और दुलहन को देख कर सन्न रह गए.

दहेज से लदा ट्रक भी साथसाथ पहुंचा. लेकिन वर पक्ष वाले भले मानस थे, उन्होंने सोचा कि जब बहू ही नहीं रही तो उस सामान का वे क्या करेंगे? इसलिए उसी समय ट्रक को अनु के घर वापस भेज दिया. उन के घर में खुशी की जगह मातम फैल गया. अनु के घर दुखद खबर भिजवा कर उस का अंतिम संस्कार अपने घर पर ही किया. अनु के मातापिता ने अपना सिर पीट लिया, लेकन अब पछताए होत क्या, जब चिडि़यां चुग गई खेत.

एक बेटी समाज की आधारहीन परंपराओं के तहत तथा उन का अंधा अनुकरण करने वाले मातापिता की सोच के लिए बली चढ़ गई. जीवन हार गया, परंपराएं जीत गईं.

अनु मेरे बचपन की सहेली थी. एक साथ स्कूल और कालेज में पढ़ी, लेकिन जैसे ही उस के मातापिता को ज्ञात हुआ कि मैं किसी विजातीय लड़के से प्रेम विवाह करने वाली हूं, उन्होंने सख्ती से उस पर मेरे से मिलने पर पाबंदी लगाने की कोशिश की, लेकिनउस ने मुझ से मिलनेजुलने पर मांबाप की पाबंदी को दृढ़ता से नकार दिया. उन्हें क्या पता था कि उन की बटी भी अपने सहपाठी, ईसाई लड़के जैकब को दिल दे बैठी है. उन के सच्चे प्यार की साक्षी मुझ से अधिक और कौन होगा? उसे अपने मातापिता की मानसिकता अच्छी तरह पता थी. अकसर कहती थी, ‘‘प्रांजलि, काश मेरी मां की सोच तुम्हारी मां जैसे होती. मुझे एक बात समझ में नहीं आती कि मातापिता हमें अपनी सोच की जंजीरों में क्यों बांधना चाहते हैं. तो फिर हमें खुले आसमान में विचरने ही क्यों देते हैं? क्यों हमें ईसाई स्कूल में पढ़ाते हैं? क्यों नहीं पहले के जमाने के अनुसार हमारे पंख कतर कर घर में कैद कर लेते हैं? समय के अनुसार इन की सोच क्यों नहीं बदलती? ’’

मैं उस के तर्क सुन कर शब्दहीन हो जाती और सोचती काश मैं उस के मातापिता को समझा पाती कि उन की बेटी किसी अन्य पुरुष को वर के रूप में स्वीकार कर ही नहीं पाएगी, उन्हें बेटी चाहिए या सामाजिक प्रतिष्ठा, लेकिन उन्होंने मुझे इस अधिकार से वंचित कर दिया था.

अनु एक बहुत ही संवेदनशील और हठी लड़की थी. जैकब भी पढ़ालिखा और उदार विचारों वाला युवक था. उस के मातापिता भी समझदार और धर्म के पाखंडों से दूर थे. वे अपने इकलौते बेटे को बहुत प्यार करते थे और उस की खुशी उन के लिए सर्वोपरि थी. मैं ने अनु को कई बार समझाया कि बालिग होने के बाद वह अपने मातापिता के विरुद्ध कोर्ट में जा कर भी रजिस्टर्ड विवाह कर सकती है, लेकिन उस का हमेशा एक ही उत्तर होता कि नहीं रे, तुझे पता नहीं हमारी बिरादरी का, मैं अपने लिए जैकब का जीवन खतरे में नहीं डाल सकती… इतना कह कर वह गहरी उदासी में डूब जाती.

मैं उस की कुछ भी मदद न करने में अपने को असहाय पा कर बहुत व्यथित होती. लेकिन मैं ने जैकब और उस के परिवार वालों से कहा कि उस के मातापिता से मिल कर उन्हें समझाएं, शायद उन्हें समझ में आ जाए,

लेकिन इस में भी अनु के घर वालों को मेरे द्वारा रची गई साजिश की बू आई, इसलिए उन्होंने उन्हें बहुत अपमानित किया और उन के जाने के बाद अनु को मेरा नाम ले कर खूब प्रताडि़त किया. इस के बावजूद जैकब बारबार उस के घर गया और अपने प्यार की दुहाई दी. यहां तक कि उन के पैरों पर गिर कर गिड़गिड़ाया भी, लेकिन उन का पत्थर दिल नहीं पिघला और उस की परिणति आज इतनी भयानक… एक कली खिलने से पहले ही मुरझा गई. मातापिता को तो उन के किए का दंड मिला, लेकिन मुझे अपनी प्यारी सखी को खोने का दंश बिना किसी गलती के जीवनभर झेलना पड़ेगा.

लोग अपने स्वार्थवश कि उन की समाज में प्रतिष्ठा बढ़ेगी, बुढ़ापे का सहारा बनेगा और दैहिक सुख के परिणामस्वरूप बच्चा पैदा करते हैं और पैदा होने के बाद उसे स्वअर्जित संपत्ति मान कर उस के जीवन के हर क्षेत्र के निर्णय की डोर अपने हाथ में रखना चाहते हैं, जैसे कि वह हाड़मांस का न बना हो कर बेजान पुतली है. यह कैसी मानसिकता है उन की?

कैसी खोखली सोच है कि वे जो भी करते हैं, अपने बच्चों की भलाई के लिए करते हैं? ऐसी भलाई किस काम की, जो बच्चों के जीवन से खुशी ही छीन ले. वे उन की इस सोच से तालमेल नहीं बैठा पाते और बिना पतवार की नाव के समान अवसाद के भंवर में डूब कर जीवन ही नष्ट कर लेते हैं, जिसे हम आत्महत्या कहते हैं, लेकिन इसे हत्या कहें तो अधिक सार्थक होगा. अनु की हत्या की थी, मातापिता और उन के खोखले समाज ने. Story In Hindi

Hindi Family Story: नाइंसाफी – मां के हक के लिए लड़ती एक बेटी

Hindi Family Story: बैठक में बैठी शिखा राहुल के खयालों में खोई थी. वह नहा कर तैयार हो कर सीधे यहीं आ कर बैठ गई थी. उस का रूप उगते सूर्य की तरह था. सुनहरे गोटे की किनारी वाली लाल साड़ी, हाथों में ढेर सारी लाल चूडि़यां, माथे पर बड़ी बिंदी, मांग में चमकता सिंदूर मानो सीधेसीधे सूर्य की लाली को चुनौती दे रहे थे. घर के सब लोग सो रहे थे, मगर शिखा को रात भर नींद नहीं आई. शादी के बाद वह पहली बार मायके आई थी पैर फेरने और आज राहुल यानी उस का पति उसे वापस ले जाने आने वाला था. वह बहुत खुश थी.

उस ने एक भरपूर नजर बैठक में घुमाई. उसे याद आने लगा वह दिन जब वह बहुत छोटी थी और अपनी मां के पल्लू को पकड़े सहमी सी दीवार के कोने में घुसी जा रही थी. नानाजी यहीं दीवान पर बैठे अपने बेटों और बहुओं की तरफ देखते हुए अपनी रोबदार आवाज में फैसला सुना रहे थे, ‘‘माला, अब अपनी बच्ची के साथ यहीं रहेगी, हम सब के साथ. यह घर उस का भी उतना ही है, जितना तुम सब का. यह सही है कि मैं ने माला का विवाह उस की मरजी के खिलाफ किया था, क्योंकि जिस लड़के को वह पसंद करती थी, वह हमारे जैसे उच्च कुल का नहीं था, परंतु जयराज (शिखा के पिता) के असमय गुजर जाने के बाद इस की ससुराल वालों ने इस के साथ बहुत अन्याय किया. उन्होंने जयराज के इंश्योरैंस का सारा पैसा हड़प लिया. और तो और मेरी बेटी को नौकरानी बना कर दिनरात काम करवा कर इस बेचारी का जीना हराम कर दिया. मुझे पता नहीं था कि दुनिया में कोई इतना स्वार्थी भी हो सकता है कि अपने बेटे की आखिरी निशानी से भी इस कदर मुंह फेर ले. मैं अब और नहीं देख सकता. इस विषय में मैं ने गुरुजी से भी बात कर ली है और उन की भी यही राय है कि माला बिटिया को उन लालचियों के चंगुल से छुड़ा कर यहीं ले आया जाए.’’

फिर कुछ देर रुक कर वे आगे बोले, ‘‘अभी मैं जिंदा हूं और मुझ में इतना सामर्थ्य है कि मैं अपनी बेटी और उस की इस फूल सी बच्ची की देखभाल कर सकूं… मैं तुम सब से भी यही उम्मीद करता हूं कि तुम दोनों भी अपने भाई होने का फर्ज बखूबी अदा करोगे,’’ और फिर नानाजी ने बड़े प्यार से उसे अपनी गोद में बैठा लिया था. उस वक्त वह अपनेआप को किसी राजकुमारी से कम नहीं समझ रही थी. घर के सभी सदस्यों ने इस फैसले को मान लिया था और उस की मां भी घर में पहले की तरह घुलनेमिलने का प्रयत्न करने लगी थी. मां ने एक स्कूल में अध्यापिका की नौकरी कर ली थी. इस तरह से उन्होंने किसी को यह महसूस नहीं होने दिया कि वे किसी पर बोझ हैं.

नानाजी एवं नानी के परिवार की अपने कुलगुरु में असीम आस्था थी. सब के गले में एक लौकेट में उन की ही तसवीर रहती थी. कोई भी बड़ा निर्णय लेने के पहले गुरुजी की आज्ञा लेनी जरूरी होती थी. शिखा ने बचपन से ही ऐसा माहौल देखा था. अत: वह भी बिना कुछ सोचेसमझे उन्हें मानने लगी थी. अत्यधिक व्यस्तता के बावजूद समय निकाल कर उस की मां कुछ वक्त गुरुजी की तसवीर के सामने बैठ कर पूजाध्यान करती थीं. कभीकभी वह भी मां के साथ बैठती और गुरुजी से सिर्फ और सिर्फ एक ही दुआ मांगती कि गुरुजी, मुझे इतना बड़ा अफसर बना दो कि मैं अपनी मां को वे सारे सुख और आराम दे सकूं जिन से वे वंचित रह गई हैं.

तभी खट की आवाज से शिखा की तंद्रा भंग हो गई. उस ने मुड़ कर देखा. तेज हवा के कारण खिड़की चौखट से टकरा रही थी. उठ कर शिखा ने खिड़की का कुंडा लगा दिया. आंगन में झांका तो शांति ही थी. घड़ी की तरफ देखा तो सुबह के 6 बज रहे थे. सब अभी सो ही रहे हैं, यह सोचते हुए वह भी वहीं सोफे पर अधलेटी हो गई. उस का मन फिर अतीत में चला गया…

जब तक नानाजी जिंदा रहे उस घर में वह राजकुमारी और मां रानी की तरह रहीं. मगर यह सुख उन दोनों के हिस्से बहुत दिनों के लिए नहीं लिखा था. 1 वर्ष बीततेबीतते अचानक एक दिन हृदयगति रुक जाने के कारण नानाजी का देहांत हो गया. सब कुछ इतनी जल्दी घटा कि नानी को बहुत गहरा सदमा लगा. अपनी बेटी व नातिन के बारे में सोचना तो दूर, उन्हें अपनी ही सुधबुध न रही. वे पूरी तरह से अपने बेटों पर आश्रित हो गईं और हालात के इस नए समीकरण ने शिखा और उस की मां माला की जिंदगी को फिर से कभी न खत्म होने वाले दुखों के द्वार पर ला खड़ा कर दिया.

नानाजी के असमय देहांत और नानीजी के डगमगाते मानसिक संतुलन ने जमीनजायदाद, रुपएपैसे, यहां तक कि घर के बड़े की पदवी भी मामा के हाथों में थमा दी. अब घर में जो भी निर्णय होता वह मामामामी की मरजी के अनुसार होता. कुछ वक्त तक तो उन निर्णयों पर नानी से हां की मुहर लगवाई जाती रही, पर उस के बाद वह रस्म भी बंद हो गई. छोटे मामामामी बेहतर नौकरी का बहाना बना कर अपना हिस्सा ले कर विदेश में जा कर बस गए. अब बस बड़े मामामामी ही घर के सर्वेसर्वा थे.

मां का अपनी नौकरी से बचाखुचा वक्त रसोई में बीतने लगा था. मां ही सुबह उठ कर चायनाश्ता बनातीं. उस का और अपना टिफिन बनाते वक्त कोई न कोई नाश्ते की भी फरमाइश कर देता, जिसे मां मना नहीं कर पाती थीं. सब काम निबटातेनिबटाते, भागतेदौड़ते वे स्कूल पहुंचतीं.

कई बार तो शिखा को देर से स्कूल पहुंचने पर डांट भी पड़ती. इसी प्रकार शाम को घर लौटने पर जब मां अपनी चाय बनातीं, तो बारीबारी पूरे घर के लोग चाय के लिए आ धमकते और फिर वे रसोई से बाहर ही न आ पातीं. रात में शिखा अपनी पढ़ाई करतेकरते मां का इंतजार करती कि कब वे आएं तो वह उन से किसी सवाल अथवा समस्या का हल पूछे. मगर मां को काम से ही फुरसत नहीं होती और वह कापीकिताब लिएलिए ही सो जाती. जब मां आतीं तो बड़े प्यार से उसे उठा कर खाना खिलातीं और सुला देतीं. फिर अगले दिन सुबह जल्दी उठ कर उसे पढ़ातीं.

यदि वह कभी मामा या मामी के पास किसी प्रश्न का हल पूछने जाती तो वे हंस कर

उस की खिल्ली उड़ाते हुए कहते, ‘‘अरे बिटिया, क्या करना है इतना पढ़लिख कर? अफसरी तो करनी नहीं तुझे. चल, मां के साथ थोड़ा हाथ बंटा ले. काम तो यही आएगा.’’

वह खीज कर वापस आ जाती. परंतु उन की ऐसी उपहास भरी बातों से उस ने हिम्मत न हारी, न ही निराशा को अपने मन में घर करने दिया, बल्कि वह और भी दृढ़ इरादों के साथ पढ़ाई में जुट जाती.

मामामामी अपने बच्चों के साथ अकसर बाहर घूमने जाते और बाहर से ही खापी कर आते. मगर भूल कर भी कभी न उस से न ही मां से पूछते कि उन का भी कहीं आनेजाने का या बाहर का कुछ खाने का मन तो नहीं? और तो और जब भी घर में कोई बहुत स्वादिष्ठ चीज बनती तो मामी अपने बच्चों को पहले परोसतीं और उन को ज्यादा देतीं. वह एक किनारे चुपचाप अपनी प्लेट लिए, अपना नंबर आने की प्रतीक्षा में खड़ी रहती.

सब से बाद में मामी अपनी आवाज में बनावटी मिठास भर के उस से बोलतीं, ‘‘अरे बिटिया तू भी आ गई. आओआओ,’’ कह कर बचाखुचा कंजूसी से उस की प्लेट में डाल देतीं. तब उस का मन बहुत कचोटता और कह उठता कि काश, आज उस के भी पापा होते, तो वे उसे कितना प्यार करते, कितने प्यार से उसे खिलाते. तब किसी की भी हिम्मत न होती, जो उस का इस तरह मजाक उड़ाता या खानेपीने को तरसता. तब वह तकिए में मुंह छिपा कर बहुत रोती. मगर फिर मां के आने से पहले ही मुंह धो कर मुसकराने का नाटक करने लगती कि कहीं मां ने उस के आंसू देख लिए तो वे बहुत दुखी हो जाएंगी और वे भी उस के साथ रोने लगेंगी, जो वह हरगिज नहीं चाहती थी.

एकाध बार उस ने गुरुजी से परिवार से मिलने वाले इन कष्टों का जिक्र करना चाहा, परंतु गुरुजी ने हर बार किसी न किसी बहाने से उसे चुप करा दिया. वह समझ गई कि सारी दुनिया की तरह गुरुजी भी बलवान के साथी हैं.

जब वह छोटी थी, तब इन सब बातों से अनजान थी, मगर जैसेजैसे बड़ी होती गई, उसे सारी बातें समझ में आने लगीं और इस सब का कुछ ऐसा असर हुआ कि वह अपनी उम्र के हिसाब से जल्दी एवं ज्यादा ही समझदार हो गई.

उस की मेहनत व लगन रंग लाई और एक दिन वह बहुत बड़ी अफसर बन गई. गाड़ीबंगला, नौकरचाकर, ऐशोआराम अब सब कुछ उस के पास था.

उस दिन मांबेटी एकदूसरे के गले लग कर इतना रोईं, इतना रोईं कि पत्थरदिल हो चुके मामामामी की भी आंखें भर आईं. नानी भी बहुत खुश थीं और अपने पूरे कुनबे को फोन कर के उन्होंने बड़े गर्व से यह खबर सुनाई. वे सभी लोग, जो वर्षों से उसे और उस की मां को इस परिवार पर एक बोझ समझते थे, ‘ससुराल से निकाली गई’, ‘मायके में आ कर पड़ी रहने वाली’ समझ कर शक भरी निगाहों से देखते थे और उन्हें देखते ही मुंह फेर लेते थे, आज वही सब लोग उन दोनों की प्रशंसा करते नहीं थक रहे थे. मामामामी ने तो उस के अफसर बनने का पूरा क्रैडिट ही स्वयं को दे दिया था और गर्व से इतराते फिर रहे थे.

समय का चक्र मानो फिर से घूम गया था. अब मां व शिखा के प्रति मामामामी का रवैया बदलने लगा था. हर बात में मामी कहतीं, ‘‘अरे जीजी, बैठो न. आप बस हुकुम करो. बहुत काम कर लिया आप ने.’’

मामी के इस रूप का शिखा खूब आनंद लेती. इस दिन के लिए तो वह कितना तरसी थी.

जब सरकारी बंगले में जाने की बात आई, तो सब से पहले मामामामी ने अपना सामान बांधना शुरू कर दिया. मगर नानी ने जाने से मना कर दिया, यह कह कर कि इस घर में नानाजी की यादें बसी हैं. वे इसे छोड़ कर कहीं नहीं जाएंगी. जो जाना चाहे, वह जा सकता है. मां नानी के दिल की हालत समझती थीं. अत: उन्होंने भी जाने से मना कर दिया. तब शिखा ने भी शिफ्ट होने का प्रोग्राम फिलहाल टाल दिया.

इसी बीच एक बहुत ही सुशील और हैंडसम अफसर, जिस का नाम राहुल था की तरफ से शिखा को शादी का प्रस्ताव आया. राहुल ने खुद आगे बढ़ कर शिखा को बताया कि वह उसे बहुत पसंद करता है और उस से शादी करना चाहता है. शिखा को भी राहुल पसंद था.

राहुल शिखा को अपने घर, अपनी मां से भी मिलाने ले गया था. राहुल ने उसे बताया कि किस प्रकार पिताजी के देहांत के बाद मां ने अपने संपूर्ण जीवन की आहुति सिर्फ और सिर्फ उस के पालनपोषण के लिए दे दी. घरघर काम कर के, रातरात भर सिलाईकढ़ाईबुनाई कर के उसे इस लायक बनाया कि आज वह इतना बड़ा अफसर बन पाया है. उस की मां के लिए वह और उस के लिए उस की मां दोनों की बस यही दुनिया थी. राहुल का कहना था कि अब उन की इस 2 छोरों वाली दुनिया का तीसरा छोर शिखा है, जिसे बाकी दोनों छोरों का सहारा भी बनना है एवं उन्हें मजबूती से बांधे भी रखना है.

यह सब सुन कर शिखा को महसूस हुआ था कि यह दुनिया कितनी छोटी है. वह समझती थी कि केवल एक वही दुखों की मारी है, मगर यहां तो राहुल भी कांटों पर चलतेचलते ही उस तक पहुंचा है. अब जब वे दोनों हमसफर बन गए हैं, तो उन की राहें भी एक हैं और मंजिल भी.

राहुल की मां शिखा से मिल कर बहुत खुश हुईं. उन की होने वाली बहू इतनी सुंदर, पढ़ीलिखी तथा सुशील है, यह देख कर वे खुशी से फूली नहीं समा रही थीं. झट से उन्होंने अपने गले की सोने की चेन उतार कर शिखा के गले में पहना दी और फिर बड़े स्नेह से शिखा से बोलीं, ‘‘बस बेटी, अब तुम जल्दी से यहां मेरे पास आ जाओ और इस घर को घर बना दो.’’

मगर एक बार फिर शिखा के परिवार वाले उस की खुशियों के आड़े आ गए. राहुल दूसरी जाति का था और उस के यहां मीटमछली बड़े शौक से खाया जाता था जबकि शिखा का परिवार पूरी तरह से पंडित बिरादरी का था, जिन्हें मीटमछली तो दूर प्याजलहसुन से भी परहेज था.

घर पर सब राहुल के साथ उस की शादी के खिलाफ थे. जब शिखा की मां माला ने शिखा को इस शादी के लिए रोकना चाहा तो शिखा तड़प कर बोली, ‘‘मां, तुम भी चाहती हो कि इतिहास फिर से अपनेआप को दोहराए? फिर एक जिंदगी तिलतिल कर के इन धार्मिक आडंबरों और दुनियादारी के ढकोसलों की अग्नि में अपना जीवन स्वाहा कर दे? तुम भी मां…’’ कहतेकहते शिखा रो पड़ी.

शिखा के इस तर्क के आगे माला निरुत्तर हो गईं. वे धीरे से शिखा के पास आईं और उस का सिर सहलाते हुए रुंधी आवाज में बोलीं, ‘‘मुझे माफ कर देना मेरी प्यारी बेटी. बढ़ती उम्र ने नजर ही नहीं, मेरी सोचनेसमझने की शक्ति को भी धुंधला दिया था. मेरे लिए तुम्हारी खुशी से बढ़ कर और कुछ भी नहीं… हम आज ही यह घर छोड़ देंगी.’’

जब मामामामी को पता लगा कि शिखा का इरादा पक्का है और माला भी उस के साथ है, तो सब का आक्रोश ठंडा पड़ गया. अचानक उन्हें गुरुजी का ध्यान आया कि शायद उन के कहने से शिखा अपना निर्णय बदल दे.

बात गुरुजी तक पहुंची तो वे बिफर उठे. जैसे ही उन्होंने शिखा को कुछ समझाना चाहा, शिखा ने अपने मुंह पर उंगली रख कर उन्हें चुप रहने का इशारा किया और फिर अपने गले में पड़ा उन की तसवीर वाला लौकेट उतार कर उन के सामने फेंक दिया.

सब लोग गुस्से में कह उठे, ‘‘यह क्या पागलपन है शिखा?’’

गुरुजी भी आश्चर्यमिश्रित रोष से उसे देखने लगे.

इस पर शिखा दृढ़ स्वर में बोली, ‘‘बहुत कर ली आप की पूजा और देख ली आप की शक्ति भी, जो सिर्फ और सिर्फ अपना स्वार्थ देखती है. मेरा सर्वस्व अब मेरा होने वाला पति राहुल है, उस का घर ही मेरा मंदिर है, उस की सेवा आप के ढोंगी धर्म और भगवान से बढ़ कर है,’’ कहते हुए शिखा तेजी से उठ कर वहां से निकल गई.

शिखा के इस आत्मविश्वास के आगे सब ने समर्पण कर दिया और फिर खूब धूमधाम से राहुल के साथ उस का विवाह हो गया.

अचानक बादलों की गड़गड़ाहट से शिखा की आंख खुल गई. आंगन में लोगों की चहलकदमी शुरू हो गई थी. आंखें मलती हुई वह उठी और सोचने लगी, यहां दीवान पर लेटेलेटे उस की आंख क्या लगी वह तो अपना अतीत एक बार फिर से जी आई.

‘राहुल अब किसी भी वक्त उसे लेने पहुंचने ही वाला होगा,’ इस खयाल से शिखा के चेहरे पर एक लजीली मुसकान फैल गई. Hindi Family Story

Hindi Romantic Story: बारिश – फुहार इश्क की

Hindi Romantic Story: मेरी शक्लसूरत कुछ ऐसी थी कि 2-4 लड़कियों के दिल में गुदगुदी जरूर पैदा कर देती थी. कालेज की कुछ लड़कियां मुझे देखते हुए आपस में फब्तियां कसतीं, ‘देख अर्चना, कितना भोला है. हमें देख कर अपनी नजरें नीची कर के एक ओर जाने लगता है, जैसे हमारी हवा भी न लगने पाए. डरता है कि कहीं हम लोग उसे पकड़ न लें.’

‘हाय, कितना हैंडसम है. जी चाहता है कि अकेले में उस से लिपट जाऊं.’

‘ऐसा मत करना, वरना दूसरे लड़के भी तुम को ही लिपटाने लगेंगे.’

धीरेधीरे समय बीतने लगा था. मैं ने ऐसा कोई सबक नहीं पढ़ा था, जिस में हवस की आग धधकती हो. मैं जिस्म का पुजारी न था, लेकिन खूबसूरती जरूर पसंद करने लगा था.

एक दिन उस ने खूब सजधज कर चारबत्ती के पास मेरी साइकिल के अगले पहिए से अपनी साइकिल का पिछला पहिया भिड़ा दिया था. शायद वह मुझ से आगे निकलना चाहती थी.

उस ने अपनी साइकिल एक ओर खड़ी की और मेरे पास आ कर बोली, ‘माफ कीजिए, मु?ा से गलती हो गई.’
यह सुन कर मेरे दिल की धड़कनें इतनी तेज हो गईं, मानो ब्लडप्रैशर बढ़ गया हो. फिर उस ने जब अपनी गोरी हथेली से मेरी कलाई को पकड़ा, तो मैं उस में खोता चला गया.

दूसरे दिन वह दोबारा मु?ो चौराहे पर मिली. उस ने अपना नाम अंबाली बताया. मेरा दिल अब उस की ओर खिंचता जा रहा था.

प्यार की आग जलती है, तो दोनों ओर बराबर लग जाती है. धीरेधीरे वक्त गुजरता गया. इस बीच हमारी मुहब्बत रंग लाई.

एक दिन हम दोनों एक ही साइकिल पर शहर से दूर मस्ती में ?ामते हुए आगे बढ़ते जा रहे थे. आकाश में बादलों की दौड़ शुरू हो चुकी थी. मौसम सुहावना था. हर जगह हरियाली बिछी थी.

अचानक आसमान में काले बादल उमड़ने लगे, जिसे देख कर मैं परेशान होने लगा. मु?ो अपनी उतनी फिक्र नहीं थी, जितना मैं अंबाली के लिए परेशान हो उठा था, क्योंकि कभी भी तेज बारिश शुरू हो सकती थी.

मैं ने अंबाली से कहा, ‘‘आओ, अब घर लौट चलें.’’

‘‘जल्दी क्या है? बारिश हो गई, तो भीगने में ज्यादा मजा आएगा.’’

‘‘अगर बारिश हो गई, तो इस कच्ची और सुनसान सड़क पर कहीं रुकने का ठिकाना नहीं मिलेगा.’’
‘‘पास में ही एक गांव दिखाई पड़ रहा है. चलो, वहीं चल कर रुकते हैं.’’

‘‘गांव देखने में नजदीक जरूर है, लेकिन उधर जाने के लिए कोई सड़क नहीं है. पतली पगडंडी पर पैदल चलना होगा.’’

‘‘अब तो जो परेशानियां सामने आएंगी, बरदाश्त करनी ही पड़ेंगी,’’ अंबाली ने हंसते हुए कहा.

हम ने अपनी चाल तेज तो कर दी, लेकिन गांव की पतली पगडंडी पर चलना उतना आसान न था. अभी हम लोग सोच ही रहे थे कि एकाएक मूसलाधार बारिश होने लगी.

कुछ दूरी पर घासफूस की एक झोपड़ी दिखाई दी. हम लोग उस ओर दौड़ पड़े. वहां पहुंचने पर उस में एक टूटाफूटा तख्त दिखाई पड़ा, लेकिन वहां कोई नहीं था.

हम दोनों भीग चुके थे. झोपड़ी में शरण ले कर सोचा कि कुछ आराम मिलेगा, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ.

अंबाली ठंड से बुरी तरह कांपने लगी. जब उस के दांत किटकिटाने लगे, तो वह बोली, ‘‘मैं इस ठंड को बरदाश्त नहीं कर पाऊंगी.’’

‘‘कोई दूसरा उपाय भी तो नहीं है.’’

‘‘तुम मुझे अपने आगोश में ले लो. अपने सीने में छिपा लो, तुम्हारे जिस्म की गरमी से कुछ राहत मिलेगी,’’ अंबाली ने कहा. ‘‘अंबाली, हमारा प्यार अपनी जगह है, जिस पर मैं धब्बा नहीं लगने दूंगा, लेकिन तुम्हारी हिफाजत तो करनी होगी,’’ कह कर मैं ने अपनी कमीज उतार दी और उसे अपने सीने से चिपका लिया.
जब अंबाली मेरी मजबूत बांहों और चौड़े सीने में जकड़ गई, तो उस के होंठ जैसे मेरे होंठों से मिलने के लिए बेताब होने लगे थे.

मैं ने उस के पीछे अपनी दोनों हथेलियों को एकदूसरे पर रगड़ कर गरम किया और उस की पीठ सहलाने लगा, ताकि उस का पूरा बदन गरमी महसूस करे. तब मुझे ऐसा लगा, जैसे गुलाब की कोमल पंखुडि़यों पर ओस गिरी हो. मेरी उंगलियां फिसलने लगी थीं.

आधे घंटे के बाद बारिश कम होने लगी थी.

अंबाली मेरी बांहों में पूरी तरह नींद के आगोश में जा चुकी थी. मैं ने उसे जगाना ठीक नहीं सम?ा.
एक घंटे बाद मैं ने उसे जगाया, तब तक बारिश बंद हो चुकी थी.

अंबाली ने अलग हो कर अपने कुरते की चेन चढ़ाई और मुसकराते हुए पूछा, ‘‘तुम ने मेरे साथ कोई शैतानी तो नहीं की?’’

मैं हंसा और बोला, ‘‘हां, मैं ने तुम्हारे होंठों पर पड़ी बारिश की बूंदों को चूम कर सुखा दिया था.’’
‘‘धत्त…’’ थोड़ा रुक कर वह कहने लगी, ‘‘तुम्हारा सहारा पा कर मुझे नई जिंदगी मिली. ऐसा मन हो रहा था कि जिंदगीभर इसी तरह तुम्हारे सीने से लगी रहूं.’’

‘‘हमारा प्यार अभी बड़ी नाजुक हालत में है. अगर हमारे प्यार की जरा सी भी भनक किसी के कान में पड़ गई, तो हमारी मुहब्बत खतरे में तो पड़ ही जाएगी और हमारी जिंदगी भी दूभर हो जाएगी,’’ मैं ने कहा.
‘‘जानते हो, मैं तुम्हारे आगोश में सुधबुध भूल कर सपनों की दुनिया में पहुंच गई थी. मेरी शादी धूमधाम से तुम्हारे साथ हुई और विदाई के बाद मैं तुम्हारे घर पहुंची. वहां भी खूब सजावट थी.

‘‘रात हुई. मुझे फूलों से सजे हुए कमरे में पलंग पर बैठा दिया गया. तुम अंदर आए, दरवाजा बंद किया और मेरे पास बैठे.

‘‘हम दोनों ने वह पूरी रात बातें करते हुए और प्यार करने में गुजार दी,’’ इतना कह कर वह खामोश हो गई.

‘‘फिर क्या हुआ?’’ मैं ने पूछा.

‘‘हवा का एक बवंडर आया और मेरा सपना टूट गया. मैं ने महसूस किया कि मैं तुम्हारी बांहों में
हूं. मेरा जिस्म तुम्हारे सीने में समाया था,’’ इतना कहतेकहते वह मुझसे चिपक गई.

‘‘अंबाली, बारिश बंद हो चुकी है. अंधेरा घिरने लगा है. अब हमें अपने घर पहुंचने में बहुत देर हो जाएगी. तुम्हारे घर वाले चिंता कर रहे होंगे. कहीं हमारा राज न खुल जाए.’’

‘‘तुम ठीक कहते हो. हमें चलना ही होगा.’’

कुछ दिन कई वजहों से हम दोनों नहीं मिल सके. लेकिन एक शाम अंबाली मेरे पास सहमी हुई आई. मैं ने उस के चेहरे को देखते हुए पूछा, ‘‘आज तुम बहुत उदास हो?’’

‘‘आज मेरा मन बहुत भारी है. मैं तुम्हारे बिना कैसे जी सकूंगी, कहीं मैं खुदकुशी न कर बैठूं, क्योंकि उस के सिवा कोई रास्ता नहीं सूझता,’’ कह कर अंबाली रो पड़ी.

‘‘ऐसा क्या हुआ?’’

‘‘मेरे घर वालों को हमारे प्यार के बारे में मालूम हो गया. अब मेरी शादी तय हो चुकी है. लड़का पढ़ालिखा रईस घराने का है. अगले महीने की तारीख भी तय कर ली गई. अब मुझे बाहर निकलने की इजाजत भी नहीं मिलेगी,’’ अंबाली रोते हुए बोली.

‘‘तुम्हारे घर वाले जो कर रहे हैं, वह तुम्हारे भविष्य के लिए ठीक होगा. मेरातुम्हारा कोई मुकाबला नहीं. उन के अरमानों पर जुल्म मत करना. हमारा प्यार आज तक पवित्र है, जिस में कोई दाग नहीं लगा. सम?ा लो कि हम दोनों ने कोई सपना देखा था.’’

‘‘यह कैसे होगा?’’

‘‘अपनेआप को एडजस्ट करना ही पड़ेगा.’’

‘‘मेरे लिए कई रिश्ते आए, पर मैं ने किसी को पसंद नहीं किया. उस के बाद मैं तुम्हें अपना दिल दे बैठी, अब तुम मु?ो भूल जाने के लिए कहते हो. मैं तुम्हें बेहद प्यार करती हूं, मेरा प्यार मत छीनो. मैं तुम्हें भुला नहीं पाऊंगी. क्या तुम मुझे तड़पते देखते रहोगे? मैं तुम्हें हर कीमत पर हासिल करना चाहूंगी.’’

कुछ दिन हम लोग अपना दुखी मन ले कर समय बिताते रहे. किसी काम को करने की इच्छा नहीं होती थी. अंबाली की मां से उस की हालत देखी नहीं गई. वह एकलौती लाड़ली थी. उन्होंने अपने पति को बहुत सम?ाया.

अंबाली के पिता ने एक दिन हमारे यहां संदेशा भेजा, ‘आप लोग किसी दूसरे किराए के मकान में दूर चले जाइए, ताकि दोनों लड़केलड़की का भविष्य खराब न हो.’

हमें दूसरे मकान में शिफ्ट होना पड़ा. 3 महीने तक हम एकदूसरे से नहीं मिले. चौथे महीने अंबाली के पिता मेरे पिता से मिलने आए और साथ में मिठाई भी लाए थे.

बाद में उन्होंने कहा, ‘‘रिश्ता वहीं होगा, जहां अंबाली चाहेगी, इसलिए

2 साल में उस की पढ़ाई पूरी हो जाने पर विचार होगा. आप लोग दूर चले आए. हम दोनों की इज्जत नीलाम होने से बच गई, वरना ये आजकल के लड़केलड़की मांबाप की नाक कटा देते हैं.’’

मेरे पिता ने उन की बातों को सुना और हंस कर टाल दिया.

एक साल बीत जाने पर मेरा चुनाव एक सरकारी पद पर हो गया और मेरी बहाली दूसरे शहर में हो गई. मेरी शादी के कई रिश्ते आने लगे और मैं बहाने बना कर टालता रहा.

आखिर में मेरे पिता ने झला कर कहा, ‘‘अब हम लोग खुद लड़की देखेंगे, क्योंकि तुम्हें कोई लड़की पसंद नहीं आती. अगर तुम ने हमारी पसंद को ठुकरा दिया, तो हम लोग तुम्हें अकेला छोड़ कर चले जाएंगे.’’
मुझे उन के सामने झकना पड़ा और कहा, ‘‘आप लोग जैसा ठीक समझे, वैसा करें. मुझे कोई एतराज नहीं होगा.’’

शादी की जोरशोर से तैयारियां होने लगीं, लेकिन मुझे कोई दिलचस्पी न थी.
बरात धूमधाम से एक बड़े होटल में घुसी, जहां बताया गया कि लड़की के पिता बीमार होने के चलते द्वारचार पर नहीं पहुंच सके. उन के भाई बरात का स्वागत करेंगे.

लड़की को लाल घाघराचोली में सजा कर स्टेज तक लाया गया, पर उस के चेहरे से आंचल नहीं हटाया गया था.

लड़की ने मेरे गले में जयमाल डाली और मैं ने उस के गले में. तब लोग शोर करने लगे, ‘अब तो लड़की का घूंघट खोल दिया जाए, ताकि लोग उस की खूबसूरती देख सकें.’

लड़की का घूंघट हटाया गया, जिसे देख कर मैं हैरान रह गया. उस की आंखों से आंसू बह रहे थे, मानो उसे जबरदस्ती बांधा गया था.

मैं ने एक उंगली से उस की ठुड्डी को ऊपर किया. उस की नजरें मुझे से टकराईं, तो वह बेहोश होतेहोते बची.

सुहागरात में अंबाली ने मेरे आगोश में समा कर अपनी खुशी का इजहार किया. उस का प्यार जिंदा रह गया. मैं ने उस के गुलाबी गाल पर अपने होंठ रख कर प्यार से कहा, ‘‘अंबाली, तुम्हारे गालों पर अभी तक बारिश की बूंदें मोतियों जैसी चमक रही हैं. थोड़ा मुझे अपने होंठों से चूम लेने दो.’’

यह सुन कर अंबाली खिलखिला कर हंस पड़ी, जैसे वह कली से फूल बन गई हो. Hindi Romantic Story

Bigg Boss 19 में इस क्रिकेटर की बहन ने ली वाइल्ड कार्ड एंट्री

Bigg Boss 19 इन दिनों दर्शकों के बीच खूब सुर्खियां बटोर रहा है. हर वीकेंड का वार एपिसोड दर्शकों के लिए किसी मनोरंजन पैकेज से कम नहीं होता. जहां सलमान खान घरवालों की क्लास लगाते नजर आते हैं, वहीं कुछ मेहमान शो में आकर मस्ती और मजा बढ़ा देते हैं. बीते एपिसोड में Bigg Boss OTT विनर एल्विश यादव ने भी एंट्री ली और कंटेस्टेंट्स के साथ एक दिलचस्प गेम खेला, जिसमें उन्हें एक-दूसरे के अंदर भरे “विष” का एंटीडोट देना था.

इसी बीच शो में एक नई वाइल्ड कार्ड एंट्री ने सभी की नजरें अपनी ओर खींच ली हैं. दरअसल, मशहूर क्रिकेटर दीपक चाहर की बहन मालती चाहर ने Bigg Boss 19 के घर में कदम रखा है. आते ही मालती ने अपने गेम का अंदाज दिखाना शुरू कर दिया है और दर्शक उनके आत्मविश्वास भरे रवैये से काफी प्रभावित नजर आ रहे हैं.

मालती चाहर एक जानी-मानी मौडल, एक्ट्रेस और फिल्ममेकर हैं. वह सोशल मीडिया पर अपनी ग्लैमरस तस्वीरों और बोल्ड पर्सनैलिटी के लिए अक्सर चर्चा में रहती हैं. उनकी एंट्री के साथ ही Bigg Boss के घर का माहौल एकदम बदल गया है. मालती कंटेस्टेंट्स से खुलकर भिड़ने और गेम में अपनी जगह मजबूत करने की कोशिश कर रही हैं. अब देखना दिलचस्प होगा कि उनकी यह वाइल्ड कार्ड एंट्री शो की दिशा कितनी बदलती है और दर्शकों को कितना एंटरटेन करती है. Bigg Boss 19

Bihar Elections: बिहार में भाजपा की मुश्किलें

Bihar Elections: हार की राजनीति हमेशा से ही उतारचढ़ाव से भरी रही है. यहां जनता का रुझान किसी एक दल के लिए परमानैंट नहीं रहता, बल्कि काम और हालात को देख कर बदलता रहता है.

मौजूदा हालात में देखा जाए तो भारतीय जनता पार्टी या राजग गठबंधन के लिए जनता का झुकाव उतना नहीं है, जितना कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए है.

नीतीश कुमार की सरकार ने सड़क और बिजली जैसी बुनियादी सहूलियतों में सुधार किया, जिस के चलते आम लोग उन्हें ‘काम करने वाला नेता’ मानते हैं. गांवगांव में सड़कें बनीं, बिजली पहुंची और शहरों में अस्पताल व स्कूल की आलीशान इमारतें खड़ी की गईं, लेकिन एक हकीकत यह भी है कि इन इमारतों के भीतर सहूलियतों की भारी कमी है.

अस्पतालों में न तो डाक्टर मिलते हैं और न ही दवाएं. स्कूलों में टीचर तो गिनती के हैं, पर पढ़ाई का लैवल गिरा हुआ है. यही वजह है कि सरकारी स्कूलों में बच्चे जाना पसंद नहीं करते. ऊपर से भ्रष्टाचार ने पूरे तंत्र को खोखला कर दिया है.

नीतीश कुमार खुद भी अब चाह कर कुछ कर पाने की हालत में नहीं दिखते. इस वजह से आने वाला चुनाव उन के लिए भारी हो सकता है.

भाजपा की हालत और राजग की बैसाखी

बिहार में भाजपा की पकड़ उतनी मजबूत नहीं है जितनी वह दूसरे राज्यों में बना चुकी है. उस के पारंपरिक वोटर सवर्ण और वैश्य समुदाय से हैं, जिन की तादाद उतनी ही है, जितनी राजद के यादव वोटरों की. ऐसे में भाजपा को जीत पक्की करने के लिए जद (यू) जैसी पार्टी की बैसाखी चाहिए.

इस प्रदेश में भाजपा लगातार दलितों और पिछड़ों के बीच जगह बनाने की कोशिश करती रही है, लेकिन सांप्रदायिक एजेंडे और ‘हिंदूमुसलिम’ के रटेरटाए नारे उसे कामयाबी दिलाने में नाकाम रहे हैं.

राजग की सभाओं में भी वह जोश और भीड़ नहीं दिखती, जो महागठबंधन की यात्राओं में देखने को मिलती है. महागठबंधन के नेता राहुल गांधी और तेजस्वी यादव जब जनता के बीच पहुंचते हैं, तो भीड़ अपनेआप उमड़ पड़ती है. ‘वोट चोर, गद्दी छोड़’ के नारे के बाद महागठबंधन को एक नई मजबूती मिली है.

इस के उलट भाजपा की सभाओं में भीड़ जुटाने के लिए सरकारी और प्राइवेट स्कूलों को बंद किया जाता है, ‘जीविका दीदीयों’ को बुलाने के लिए प्रशासनिक दबाव बनाया जाता है और आम दर्शकों को भाड़े पर लाया जाता है. यह सब दिखाता है कि भाजपा के पास असली जनाधार की कमी है.

मुद्दों से ध्यान भटकाने की राजनीति

राजनीति में अकसर देखा जाता है कि असली मुद्दों से ध्यान हटाने के लिए भावनात्मक कार्ड खेला जाता है. हाल ही में बिहार में भी कुछ ऐसा ही हुआ.

एक आदमी ने मंच से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मां के खिलाफ अपशब्द कहे. यह घटना बहुत गलत थी, लेकिन भाजपा ने इसे बड़ा मुद्दा बना कर महंगाई, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार जैसे असली सवालों से ध्यान हटाने की कोशिश की.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विदेश से लौटते ही एक कार्यक्रम में आधे घंटे के भाषण में तकरीबन 25 मिनट अपनी मां का जिक्र कर दिया और यह कहा कि ‘मेरी मां का अपमान देश का अपमान है’.

लेकिन सवाल यह भी उठता है कि जब भाजपा के कई नेता संसद से ले कर सार्वजनिक मंचों तक विपक्षी नेताओं की माताओं और आम औरतों का अपमान करते रहे हैं, तब प्रधानमंत्री ने कभी इस पर चिंता क्यों नहीं जताई? राजनीति में उन का यही दोहरापन जनता अच्छी तरह समझती है.

बिहार बंद काम न आया

भाजपा ने इस मां का अपमान करने वाले मुद्दे को आधार बना कर बिहार बंद का आह्वान किया. लेकिन बंद को कामयाब बनाने के लिए औरतों और आम जनता को अपमानित किया गया. सड़कों पर बदसुलूकी हुई, जबरन दुकानें बंद कराई गईं. पैसे दे कर भीड़ बुलाने जैसे आरोप लगाए गए.

यह सब लोकतंत्र के मूल्यों और जनता की गरिमा के खिलाफ था. सवाल यह है कि अगर किसी ने गाली दी भी थी, तो उस की गिरफ्तारी हो चुकी थी, फिर भी जनता को परेशान करना किस हद तक सही कहा जा सकता है?

बिहार की राजनीति इस समय एक चौराहे पर खड़ी है. नीतीश कुमार की इमेज अब भी भाजपा की तुलना में थोड़ी अच्छी है, लेकिन भ्रष्टाचार और कामकाज की कमजोरी ने उन के कद को भी कम किया है.

दूसरी ओर भाजपा अपने सांप्रदायिक एजेंडे से आगे नहीं बढ़ पा रही है. यही वजह है कि जनता का भरोसा महागठबंधन की ओर ज्यादा झुकता दिख रहा है.

राजनीति में जनता सिर्फ नारों और भावनाओं से नहीं, बल्कि काम और सहूलियत चाहती है. अगर भाजपा और राजग इसे समझने में नाकाम रहे, तो बिहार में उन की राह और मुश्किल हो जाएगी.

सब से बड़ी बात तो यह है कि अब भारतीय जनता पार्टी और नरेंद्र मोदी बिहार में अपनी पकड़ खोते नजर आ रहे हैं. स्थानीय भाजपा नेताओं का भी वोटरों पर ज्यादा भरोसा नहीं बन पा रहा है. यह राजग के लिए खतरे की घंटी हो सकती है. Bihar Elections

Editorial: एप्स पर बैन बना नेपाल में हिंसा की चिंगारी

Editorial: नेपाल में जवानों की जान मोबाइल और उस के एप्स छीनने की सजा इस बुरी तरह वहां की किशोरों और युवाओं की भीड़ ने सरकार को दी, इस को कोई सोच भी नहीं सकता था. अब तक सब यही समजते थे कि मोबाइल पर फालतू के मैसेज देने वाले और रील बनाने या देखने वाले युवा लड़केलड़कियां निकम्मे हैं, बेकार हैं, बेवकूफ हैं और लाचार है. उन्हें नहीं मालूम कि वे क्याकर रहे हैं.

बड़ी व बूढ़ी पीढ़ी को यह अहसास ही नहीं था कि युवाओं के लिए उन का साथी बन चुका मोबाइल तो उन की जान से भी बढ़ कर है. जब नेपाल के कम्यूनिस्ट प्रधानमंत्री ब्राह्मणवादी केपी शर्मा ओली ने इस में कुछ एप्स पर बैन लगाया तो सोचा था कि कमजोर युवा इसे चुपचाप आंख झुका कर मान लेंगे. पर वे इतने गुस्से में भर जाएंगे कि उन्होंने संसद भवन, राष्ट्रपति भवन, सरकारी कार्यालयों, अखबारों के दफ्तरों को जला डाला और काठमांडू लाचार हो गया.

सेना भी कुछ ज्यादा नहीं कर पाई. यह साफ नहीं है कि यह गुस्सा सरकार पर था जो बेहद करप्ट है और जहां भाईभतीजावाद जम कर चल रहा है और कल के कम्यूनिस्टों के बच्चे आज महलों में रह रहे हैं, दूसरे देशों में जान खपा कर कमाई नेपाल भेज कर आए पैसे पर मौज उड़ा रहे हैं या सिर्फ मोबाइल प्रेम इस भयंकर आगजनी की वजह है.

मोबाइल आज के जवानों के हाथ में अकेला तरीका है जिस से वे दुनिया से जुड़े हैं. अखबारों को तो दूसरे देशों की तरह नेपाली युवाओं ने पढ़ना बंद कर दिया है क्योंकि वे सिर्फ सरकारी प्रचार कर रहे हैं.

नेपाल की आमदनी में तीसरा हिस्सा आज उन नेपालियों का है जो नेपाल से बाहर जा कर बेगाने देशों में गरमी, सर्दी या बारिश में रह कर काम कर रहे हैं और पेट काट कर पैसा अपने घरों में भेजते हैं. अपने मांबाप, भाईबहनों, प्रेमीप्रेमिकाओं से बात करने के लिए उन के पास यूट्यूब, व्हाट्सएप जैसे टूल ही हैं और वे भी उन से कोई छीन ले, यह उन्हे मंजूर नहीं है.

कम्यूनिस्ट होते हुए भी केपी शर्मा ओली यह नहीं समझ पाए जैसे वे ब्राह्मणवादी धर्म को नेपाल पर थोपते रहे हैं वैसे ही मोबाइल एक धर्म बन गया है. ये एप अब मंदिर बन गए हैं. अगर किसी मंदिर को ढहा दिया जाए तो बड़ीबूढ़ी पीढ़ी क्या करेगी? सब का सत्यानाश न? यही जेन जी ने किया है. उन्होंने बचपन से ही ओली वाले नकली देवीदेवताओं को नहीं देखा, उन्होंने तो कार्टून फिल्मों को देखा, टीवी के हीरोहीरोइनों को देखा, ठुमके लगाती लड़कियों को देखा.

जेन जी से न सिर्फ मांबाप छीनना, दोस्त छीनना, प्रेमीप्रेमिका छीनना चाहा, उन की सैक्सी भूख को भी छीनने की कोशिश की गई तो यह सब से बड़ा गुनाह है. आज दुनियाभर में टैक्नोलौजी ने सैक्स का छिपा बड़ा बाजार खड़ा कर दिया है और उस के बलबूते पर एलोन मस्क या सुंदर पिचाई अपना एंपायर खड़ा कर चुके हैं. मार्क जुकरबर्ग जैसों की ताकत को नेपाल के शासक पंडे नहीं सम?ा पाए और अब फटेहाल दुबके पड़े हैं.

जेन जी ऐसी पीढ़ी है जिसे मांबाप ने जीना सिखाया ही नहीं. उन्हें पैदा होते ही मोबाइल, टीवी के हाथों में सौंप दिया. सरकार भूल गई कि यह पीढ़ी अपने असली मांबाप, असली सगेसंबंधी मोबाइल और उस के एप्स को छीनने भी नहीं देगी.

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पिछले सालों में अमीर दुनियाभर में ज्यादा अमीर हो रहे हैं और गरीब या तो जहां के तहां हैं या कहींकहीं थोड़े घटेबढ़े हैं. अमीरों और गरीबों में एक बड़ा भारी फर्क अमेरिका और यूरोप तक में दिख रहा है. चीन, जो वैसे कम्यूनिस्ट है यानी बराबरी की बात करता है, भी अमीरों से भरा पड़ा है.

सभी देशों में जहां एक तरफ शानदार मौल बन रहे हैं, 5 सितारे वाले होटल बन रहे हैं, चमचम करते एयरपोर्ट बन रहे हैं, बड़े मकान बन रहे हैं, बड़ी गाडि़यां बन रही हैं, वहीं दूसरी और लगातार हर शहर में एक गंदा, बदबूदार इलाका फैल रहा है, कच्ची झोपड़ियां बन रही हैं, सड़कोंगलियों पर बिना घरों के लोग बढ़ रहे हैं.

जब साइंस इतनी तरक्की कर रहा है तो यह कैसे हो रहा है कि हर आदमी के लिए छत मुहैया नहीं कराई जा पा रही, हर गरीब को बीमारी में दवा नहीं मिल पा रही, हर बच्चे को अच्छी पढ़ाई और खेलने को जगह नहीं मिल पा रही? क्यों साइंस की तरक्की का आधा नहीं 90 फीसदी फायदा 10 फीसदी लोगों को मिल रहा है?

यह इसलिए हो रहा है कि आज गरीबों ने पढ़नालिखना और सम?ाना छोड़ दिया है. गरीब भी पढ़ालिखा हो सकता है कम से कम इतना पढ़ा कि वह सम?ा सके कि उस की सरकार जो कर रही है वह किस के फायदे के लिए है. लेकिन न पढ़ने वाले गरीबों ने सोच लिया है कि कहीं कभी कोई नेता उभरेगा जो उन्हें गंदगी से भरी बदबूदार जिंदगी से निकालेगा और हाथ पर हाथ धरे उन्हें सबकुछ मिल जाएगा. ऐसा न पहले कभी हुआ है, न आज होगा. आज गरीबों के पास वोटका हक है तो वोट लेने के लिए कुत्तों को 2-4 रोटी टुकड़े फेंक कर लुभा लिया जाता है और एक बार सत्ता में आने के बाद अमीर नेता खुल कर अमीरों को गरीबों की मेहनत का पैसा लूटलूट कर देते रहते हैं.

वजह साफ है कि गरीब को अब पता ही नहीं चलता कि उसे लूटा कैसे जा रहा है. साइंस और तकनीक का फायदा हुआ है कि गरीबों को बहकाना बहुत आसान हो गया है. गरीबों के हाथ में जबरन मोबाइल पकड़ा दिए गए हैं जिन में नाचने वाली लड़कियों के वीडियो भी होते हैं और साथ ही देश के शासक नेता के ‘महान’ कामों का बखान भी. आधीअधूरी जानकारी रखने वाला 2 बालटी पानी, 4 नालियों, 5 किलो राशन और मोबाइल पर भरपूर मिलने वाली चहकती लड़कियों को देख कर खुश हो जाता है.

सरकारें तरहतरह के टैक्स लागाती हैं. जबरन लगाए जीएसटी में कुछ कटौती को इस तरह ढोल के साथ पेश किया गया है कि लगता है कि अदानीअंबानी का खजाना छीन कर जनता में बांट दिया गया है. आधी समझ वाला इसे वरदान समझता है जिस के लिए उसे पहले ही मंदिरों, चर्चों, मसजिदों में बोला जाता रहा है.

गरीबों को अपनी लड़ाई खुद लड़नी होगी. चतुराई किसी को पेट से नहीं मिलती. यह सीखी जाती है और हर कोई सीख सकता है. मूर्खता बीमारी है, जन्मजात मिली कमजोरी नहीं. गरीब कमजोर नहीं रहें, लूटे न जाएं, बहकाए न जाएं यह उन्हें समझना होगा और उन की समझदारी किसी कागज पर छपे अक्षरों में है, मोबाइल में भी नहीं और पौवे की बोतल में भी नहीं. Editorial

Live-in Relationship का खौफनाक अंजाम

Live-in Relationship, लेखक – महेश कांत शिवा

27 जून, 2025 को हरियाणा के पानीपत में एक औरत की उस के लिवइन पार्टनर ने गला काट कर हत्या कर दी और फरार हो गया. दरअसल, उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद के गांव केलई की रहने वाली उषा के पति की काफी दिनों पहले मौत हो गई थी. गांव में रोजगार न होने के चलते वह कामधंधे की तलाश में पानीपत चली आई.

उषा पानीपत की गंगाराम कालोनी में किराए के कमरे में रहने लगी. यहां पर उस की मुलाकात उत्तर प्रदेश के बदायूं के रहने वाले महेंद्र नामक एक नौजवान से हुई. पहले उन दोनों में दोस्ती हुई और फिर बाद में उन्होंने लिवइन रिलेशनशिप में रहने का फैसला कर लिया.

बताया जाता है कि पिछले कुछ समय से उषा और महेंद्र में किसी बात को ले कर झगड़ा चल रहा था. 24 जून, 2025 को महेंद्र्र ने चाकू से उषा का गला काट कर उस की हत्या कर दी और फरार हो गया. हालांकि, पुलिस ने महेंद्र को 2 दिन बाद ही गिरफ्तार कर लिया.

महेंद्र ने पुलिस को बताया कि उषा उस से बातबात पर झगड़ा करने लगी थी. उसे शक था कि वह किसी दूसरे मर्द से फोन पर बात करने लगी थी. उस की इसी हरकत से तंग आ कर उस ने उषा की हत्या कर दी.

इसी तरह पश्चिम बंगाल की रहने वाली 24 साल की ब्यूटी खातून तकरीबन 6 महीने पहले अपने परिवार वालों को बिना बताए पानीपत आई थी. यहां वह पुराना औद्योगिक क्षेत्र के कुलदीप नगर में किराए पर रहने लगी और एक फैक्टरी में काम करने लगी.

इसी दौरान ब्यूटी खातून की जानपहचान सूरज पठान नाम के एक नौजवान से हुई. दोनों में पहले दोस्ती हुई और कुछ ही दिनों में दोस्ती प्यार में बदल गई. इस के बाद वे लिवइन रिलेशनशिप में रहने लगे.

हालांकि, ब्यूटी खातून ने अपनी बहन नेहा खातून को फोन कर के बता दिया था कि वह पानीपत में है और एक लड़के से प्यार करती है और वे दोनों एकसाथ रहते हैं. पर 19 जून, 2025 को सूरज पठान ने ब्यूटी खातून की हत्या कर दी.

गिरफ्तारी के बाद सूरज पठान ने बताया कि ब्यूटी खातून उस के अलावा किसी दूसरे लड़के से भी बात करती थी. उस ने अनेक बार ब्यूटी खातून को सम?ाया कि वह किसी दूसरे से बात न करे, लेकिन वह नहीं मानी.

इसी के चलते सूरज पठान ने 19 जून, 2025 को ईंट से ब्यूटी खातून के सिर पर वार किया, जिस से उस की मौत हो गई.

14 जून, 2025 को पानीपत से सटे करनाल शहर में 35 साल की पूजा नामक औरत की हत्या भी उस के लिवइन पार्टनर ने कर दी थी.

पूजा मूल रूप से कंबोपुरा गांव की रहने वाली थी और उस की शादी गांव बढ़ेडा में हुई थी. वह 3 बच्चों की मां थी. वह अपने पति को छोड़ कर करनाल की दीवान कालोनी में एक आदमी के साथ लिवइन रिलेशनशिप में रहने लगी थी.

उन दोनों में किसी बात को ले कर झगड़ा हुआ और पूजा के लिवइन पार्टनर ने उस की गला दबा कर हत्या कर दी और लाश को एक एंबुलैंस में घर के बाहर छोड़ कर फरार हो गया.

हरियाणा के पलवल के गांव नांगल ब्राह्मण का रहने वाला योगेश फरीदाबाद में प्राइवेट नौकरी करता था, जहां उस की जानपहचान उत्तर प्रदेश के अयोध्या की रहने वाली एक लड़की से हुई. दोनों में मुलाकात हुई और प्यार हो गया. इस के बाद योगेश ने साल 2017 में उस लड़की से लवमैरिज की थी.

शादी के बाद योगेश के 2 बच्चे हुए, जिन में 6 साल की बेटी और 10 महीने का बेटा था. इस के बाद उस की अपनी पत्नी से अनबन रहने लगी, तो योगेश की पत्नी उसे छोड़ कर बच्चों समेत अपने मायके चली गई और वहीं रहने लगी.

पत्नी के मायके जाने के बाद योगेश फरीदाबाद की नौकरी छोड़ कर हरियाणा के रेवाड़ी आ गया और यहां के धारूहेड़ा इलाके में एक अस्पताल में ओटी असिस्टैंट की नौकरी करने लगा.

नौकरी के दौरान योगेश की मुलाकात करनाल के वकीलपुरा सदर बाजार की रहने वाली प्रिया से हुई. दोनों में दोस्ती हुई और फिर प्यार हो गया, जिस के बाद उन दोनों ने लिवइन रिलेशनशिप में रहने का फैसला किया.

बाद में प्रिया भी अपने 3 बच्चों को ले कर आ गई और वे धारूहेड़ा के सैक्टर 6 में एक किराए के मकान में रहने लगे. प्रिया ने अपने तीनों बच्चों का दाखिला गुरुकुलम स्कूल में करा दिया.

बताया जाता है कि उन दोनों के बीच कुछ समय से किसी बात को ले कर अनबन चल रही थी. इसी बीच स्कूल की छुट्टी पड़ने के चलते प्रिया ने अपने तीनों बच्चों को अपनी बहन के पास भेज दिया. अब मकान में योगेश और प्रिया ही रह रहे थे.

जानकारी के मुताबिक, 2 से 6 जून, 2025 के बीच योगेश ने अपनी लिवइन पार्टनर प्रिया की गला घोंट कर हत्या कर दी और लाश को बैड में छिपाने के बाद खुद भी फांसी का फंदा लगा कर खुदकुशी कर ली.

इस बात का पता तब चला जब 6 जून, 2025 को लोगों को योगेश के मकान से बदबू आई, जिस के बाद लोगों ने पुलिस को सूचना दी. पुलिस ने कमरे का दरवाजा तोड़ा तो योगेश फांसी पर लटका हुआ मिला.

रेवाड़ी पुलिस ने भी रूटीन वर्क की तरह योगेश की लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया और आगे की जांच में जुट गई. उस वक्त योगेश के परिवार वालों सुसाइड करने की वजह पत्नी से अनबन होना बताई थी.

बेटे की मौत के बाद योगेश के पिता गिरीराज 19 जून को अपने बेटे का सामान लेने के लिए धारूहेड़ा पहुंचे. जब वे कमरे से बैड को उठाने लगे, तो वह काफी भारी लगा.

जैसे ही बैड खोला गया, तो उस में कपड़ों के बीच में एक औरत हाथ दिखाई दिया. वह योगेश की लिवइन पार्टनर प्रिया की लाश थी.

इसी तरह मूल रूप से उत्तराखंड के नानकमत्ता की रहने वाली 2 बच्चों की मां पूजा गुरुग्राम के थाना सैक्टर 5 में उत्तराखंड के ही सितारगंज गौरीखेड़ा के मूल बाशिंदे 25 साल के मुश्ताक अहमद के साथ लिवइन रिलेशनशिप में रहती थी.

पूजा एक स्पा सैंटर में काम करती थी, जबकि मुश्ताक टैक्सी चलाता था. कुछ दिनों पहले मुश्ताक पूजा को घुमाने के बहाने उत्तराखंड ले गया और वहां पर गरदन धड़ से अलग कर उस की हत्या कर दी.

हत्या के बाद मुश्ताक ने लाश के सिर को एक प्लास्टिक के थैले में डाल कर नाले में बहा दिया, जबकि धड़ को चादर में लपेट कर दूसरे नाले में फेंक दिया और छिपने के लिए कर्नाटक भाग गया.

उधर, जब काफी दिनों से पूजा नहीं मिली, तो उस की बहन ने उस की थाने में गुमशुदगी दर्ज कराई. पूजा की बहन ने पुलिस को बताया था कि उस की बहन मुश्ताक के साथ लिवइन रिलेशनशिप में रहती थी.

गुरुग्राम सैक्टर 5 थाना पुलिस ने पहले तो गुरुग्राम में ही पूजा की तलाश की, लेकिन जब वह नहीं मिली, तो उत्तराखंड में स्थानीय पुलिस के सहयोग से मुश्ताक को गिरफ्तार कर पूछताछ की गई.

मुश्ताक ने पुलिस को बताया कि उस की पूजा से मुलाकात रुद्र्रपुर बसस्टैंड पर हुई थी. वे दोनों बस से गुरुग्राम आ रहे थे. चूंकि दोनों एक ही राज्य के रहने वाले थे, तो दोनों में आसानी से दोस्ती हो गई. दोनों ने एकदूसरे का मोबाइल नंबर ऐक्सचेंज किया.

इसी बीच पूजा की बहन की तबीयत खराब हो गई, तो मुश्ताक उसे अपनी टैक्सी में ले कर उस की बहन के घर भी गया, जिस से दोनों की दोस्ती प्यार में बदल गई और उन्होंने लिवइन रिलेशनशिप में रहने का फैसला किया. तब से पूजा मुश्ताक को अपना पति मानने लगी थी.

इस बीच मुश्ताक अपने घर उत्तराखंड गया तो उस के परिवार वालों ने उस पर दबाव बना कर अपनी रिश्तेदारी की ही एक लड़की से शादी करा दी. जब पूजा को इस बात का पता चला तो वह मुश्ताक के घर पहुंच गई और मुश्ताक को अपना पति बताते हुए हंगामा किया. परिवार और रिश्तेदारों ने विवाद को आगे न बढ़ाते हुए पूजा और मुश्ताक को घर से बाहर निकाल दिया.

कुछ दिनों बाद मुश्ताक पूजा को धूमाने के बहाने उत्तराखंड ले गया और गरदन काट कर उस की हत्या कर दी.

बढ़ती जरूरतें और इच्छाएं

दरअसल, लिवइन रिलेशनशिप में रहने वाले जोड़ों की समय बढ़ने के साथसाथ जरूरतें और इच्छाएं भी बढ़ने लगती हैं. लिवइन रिलेशनशिप में आने से पहले दोनों के बीच भले ही यह सहमति बने कि वे दोनों एकदूसरे पर निर्भर नहीं रहेंगे, दोनों एकदूसरे पर पैसे से जुड़ा दबाव या सामाजिक बंधन का दबाव नहीं डालेंगे.

लेकिन जैसेजैसे समय गुजरता है और दोनों के बीच रिश्ता गहरा होता चला जाता है, वैसे ही उन की जरूरतें बढ़नी शुरू हो जाती हैं. दोनों में कहीं न कहीं वे भावनाएं भी पैदा होने लगती हैं, जो पतिपत्नी के रिश्ते के बीच होती हैं.

लिवइन रिलेशनशिप टूटने की दूसरी बड़ी वजहें

* दोनों के साथ रहने के चलते उन के खर्चे भी बढ़ते चले जाते हैं, फिर खर्चे उठाएगा कौन, यह सम?ा नहीं आता.

* लड़की या लड़के द्वारा शादी का दबाव बनाना.

* रसोईघर का खर्च और मकान का किराया कौन भरेगा, यह बड़ी समस्या.

* अगर दोनों के पहले से बच्चे हैं, तो उन की स्कूल फीस और दूसरे खर्च कौन उठाएगा.

* दोनों के घूमनेफिरने पर होने वाला खर्च किस की जेब से जाएगा.

* आपसी संबंध बनने के बाद महिला का पेट से हो जाना.

* परिवार द्वारा लड़के या लड़की की शादी दूसरी जगह तय कर दिया जाना. Live-in Relationship

Hindi Family Story: सोने की बालियां

Hindi Family Story: ईमानदार संसारचंद मेहनत में यकीन रखने वाला नौजवान था. एक साधारण परिवार से ताल्लुक रखने वाले संसारचंद की 3 बहनें और एक छोटा भाई था. 2 बहनों की शादी पहले ही हो चुकी थी. उन की शादी के बाद संसारचंद के पिता का देहांत हो गया. पिता की मौत के बाद उस ने भी अपने पुरखों का बढ़ईगीरी का काम संभाल लिया.

संसारचंद के हाथों में हुनर था और ईमानदारी के चलते काम की कोई कमी नहीं थी. कड़ी मेहनत से संसारचंद पूरे परिवार की जिम्मेदारी अपने कंधों पर उठाए हुए था. वह अपनी मां, छोटी बहन और छोटे भाई की रोटी, पढ़ाईलिखाई और भविष्य के लिए दिनरात मेहनत करता था.

अब संसारचंद की छोटी बहन कमला ब्याह लायक हो चुकी थी. अपने ब्याह के बारे में सोचे बिना संसारचंद ने मेहनत से जोड़े पैसों से कमला के ब्याह की तैयारी शुरू कर दी. रिश्ता अच्छा था, लेकिन एक अड़चन आ खड़ी हुई. वह थी सोने की बालियां.

गांव का रिवाज था कि लड़की को ब्याह के समय खाली कानों से विदा नहीं किया जाता था. यह केवल रिवाज ही नहीं था, बल्कि इज्जत की बात भी थी.

संसारचंद की इतनी औकात नहीं थी कि वह महंगी सोने की बालियां खरीद सके. पुराने कर्ज अभी चुकाए नहीं गए थे. यह बात संसारचंद की बड़ी बहन विमला को पता चली. विमला अपने पति के साथ पास के गांव में खुशहाल जिंदगी बिता रही थी.

भाई की परेशानी सोचसोच कर विमला बेचैन हो जाती. वह यह सोचती कि संसारचंद कमला के लिए बालियों का इंतजाम कैसे कर पाएगा? शादी के समय अपने मायके से मिली सोने की बालियां, जो वह पहने हुए थी, कमला को देने के बारे में सोचती, तो ससुराल वालों के सवालों से डर कर वह अपने विचार से पीछे हट जाती, लेकिन फिर उस ने फैसला कर ही लिया.

कमला की शादी का दिन निकट आ रहा था. एक दिन, पति के काम पर चले जाने के बाद, विमला घर में अकेली थी. उस ने अपनी अलमारी खोली और उस पोटली को निकाला, जिस में शादी के समय मायके से मिली हुई सोने की बालियां रखी थीं.

उन्हें बहन को देने के बारे में सोच कर विमला कुछ देर के लिए दुविधा में पड़ गई, लेकिन दूसरी ओर, बहन की खुशी और भाई की मजबूरी उस की सोच पर भारी पड़ गई.

अगले दिन विमला अपने मायके पहुंची. हाथ में बालियों की पोटली थी.

‘‘ले भैया, कमला की शादी के लिए बालियों की जरूरत थी. मेरे पास ये थीं. क्या अपनी कमला को खाली कानों से विदा करेंगे? मैं फिर कभी बनवा लूंगी,’’ कहते हुए विमला ने बालियां संसारचंद की हथेली पर रख दीं.

‘‘नहीं बहन, मैं ऐसा नहीं कर सकता. तुम्हारा भी अपना परिवार है. तुम्हारे पति और ससुराल वाले क्या कहेंगे?’’ संसारचंद बोला.

लेकिन विमला अड़ी रही. बारबार कहने पर संसारचंद ने नम आंखों से बालियों वाली पोटली को मजबूती से पकड़ लिया.

कमला की शादी अच्छे से हो गई, लेकिन संसारचंद को भीतर ही भीतर यह टीस बनी रही कि उस की बहन ने अपनी एक कीमती चीज, अपने घर से चोरी कर के छोटी बहन को दे दी.

संसारचंद ने अपनेआप से वादा किया कि वह यह कर्ज जरूर उतारेगा. उस ने जीतोड़ मेहनत जारी रखी और पैसे इकट्ठा करने लगा.

2 साल बीत गए. एक दिन संसारचंद शहर में सुनार की दुकान पर पहुंचा. उस ने एक सुंदर जोड़ी सोने की बालियां तैयार करवाईं.

बालियां ले कर संसारचंद सुबहसुबह अपनी बहन विमला के घर तब पहुंचा, जब उस का पति अशोक काम पर जा चुका था.

चायपानी के बाद संसारचंद ने एक छोटीसी डब्बी विमला के हाथों में रख दी. विमला ने डब्बी खोली तो अंदर नई, चमचमाती सोने की बालियां थीं.

‘‘यह क्या भैया?’’ विमला ने हैरानी से पूछा.

‘‘जो तू ने कभी बिना मांगें दी थीं, आज मैं वे तुझे लौटाने आया हूं. मन पर बड़ा बोझ था इस कर्ज का,’’ संसारचंद भावुक हो गया.

‘‘पर कमला मेरी भी तो छोटी बहन है,’’ विमला बोली.

‘‘लेकिन बहन, मुझे पता है कि तू ने वे बालियां अपनी ससुराल से चुरा कर दी थीं, जिस के बोझ से मेरा मन भारी था,’’ संसारचंद बोला.

‘‘सच कहूं तो वह बोझ मेरे मन पर भी बहुत था. मुझे खुद भी लगता था जैसे मैं ने चोरी की है. मुझ से रहा नहीं गया और मैं ने पहले ही दिन अपने पति को सब सच बता दिया था,’’ विमला बोलती जा रही थी, ‘‘उस भले इनसान ने कहा कि विमला, तू ने ठीक किया. उस ने तो यह भी कहा कि ऐसी चीजें तो मुश्किल वक्त में ही काम आती हैं.’’

संसारचंद सुनता रहा. उस की आंखें भर आईं. वह बोला, ‘‘अशोक के लौट आने तक मैं यहीं रुकूंगा. उस भले इनसान का शुक्रिया अदा करना तो बनता है.’’

चारों ओर रिश्तों की मिठास से महक उठी थीं हवाएं… Hindi Family Story

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