Editorial: जंग का नया चेहरा: न हथियार, न खून – सिर्फ तकनीक

Editorial: राजा सदियों से सेनाओं में आम किसानों को भरती करते रहे हैं. सूखे, बाढ़, फसलों की बीमारी, जमीन को साहूकारों के हाथ दिए जाने के बाद किसानों के पास सेना में नौकरी कमाई का एक अच्छा साधन था. यदि जिंदा रहे, अपने राजा के लिए जेल गए तो पैसे कुछ ज्यादा मिल जाते थे और लूट का माल भी हाथ लग जाता था. बहुत बार लड़कियां भी हाथ पड़ जाती थीं जिन्हें इस्तेमाल कर के बेचा जा सकता था.

अब लड़ाई में किसानों से बने सैनिकों का काम कम होता जा रहा है. मरनेमारने की अब जरूरत नहीं रहेगी. बदन कसरती है यह जरूरत सेनाओं को नहीं है. अब खेल दिमाग का हो रहा है. अब लड़ाई तकनीक की हो रही है जिन में बिना आदमी वाले ड्रोन उड़ कर दुश्मन पर हमला कर रहे हैं और इन्हें बेहद साधारण बदन वाले पर दिमाग से बेहद तेज लोग दूर कहीं एयरकंडीशंड कमरों में बैठे चला रहे हैं.

हवाईजहाज, टैंक, तोप, मशीनगन, यहां तक सैनिकों की वरदी हाईटैक होती जा रही है. उन के हाथ की बंदूकें खुद निशाना तय कर सकती हैं. उन का हैलमेट पूरी मशीन है जिस में टीवी स्क्रीन है. वायरलैस इक्वीपमैंट है. दुश्मन को अंधेरे में देखने के कैमरे लगे हैं. पीछे कौन आ रहा है यह तक हैलमेट के पीछे लगे कैमरे आंखों के सामने के गौगल्स में दिखा रहा है. अब लड़ाई दिमाग की है, दमखम की नहीं.

अब दुनियाभर की सरकारें सैनिकों को कम कर रही हैं. अमेरिका तो सैनिकों का इस्तेमाल अपने ही नागरिकों को डराने के लिए कर रहा है. चीन, रूस, भारत सब सैनिकों की भरती कम कर रहे हैं, क्योंकि हाथापाई वाली झड़पों की जरूरत कम होती जा रही है.

अब तो बौर्डरों पर कैमरे लगे हैं, सैकड़ों की तादाद में जिन में ऐसे सौफ्टवेयर लगे हैं जो दूर रखी आटोमैटिक गनों से अपनेआप निशाना लगा कर बौर्डर क्रौस करने वाले पर गोलियों की बरसात कर सकती हैं. किसानों के पास यह दिमाग नहीं होता कि वे इन्हें बना सकें या चला सकें.

अब सेनाओं को अच्छे पढ़ेलिखे टैक्नीशियन चाहिए जो हर पौसीबल सिचुएशन को पहले से सोच सकें और उस के लायक इक्वीपमैंट बनवा सकें. अब वह जमाना गया जब अपनी जान जोखिम में डाल कर दुश्मन के इलाके में घुसने की हिम्मत चाहिए हो. 7 मई से 10 मई तक भारतपाकिस्तान युद्ध में एक भी सैनिक ने दुश्मन की आंखों में नहीं झांका. सब लड़ाई दूर बैठे हवाईजहाजों के पायलटों की स्क्र्रीनों पर आसपास का ब्योरा दे रहे थे और बटन दबाने को डायरैक्ट कर रहे थे जिस से मिसाइल पाकिस्तानी ठिकानों पर भारतीय हवाई इलाके में उड़ते हुए ही दागी जा सकें.

पाकिस्तान और भारत के हवाईजहाजों की डौग फाइट्स हुईं पर बिना एयर बौर्डर क्रौस किए क्योंकि काम तो एयर फाइटर प्लेन कर रहे थे, उन के सौफ्टवेयर कर रहे थे. चीनी, फ्रांसीसी, रूसी, अमेरिकी प्लेनों की लड़ाई की और इसीलिए 4 दिन की लड़ाई के बाद किसी सैनिक का नाम नहीं आया कि उस ने खास बहादुरी दिखाई. बहादुरी तो अब वह इक्वीपमैंट बनाने वालों के हाथों में फिसल गई है जिन्होंने ड्राइंगबोर्ड पर बैठ कर डिजाइन किया. नतीजा यह है कि चाहे थल सेना हो, वायु सेना या जल सेना अब कमाल तो टैक्नीक का है. किसानों से सेना में भरती हुए सैनिक तो बस चौकीदारी के लिए रह गए हैं.

एयर मार्शल आशुतोष दीक्षित, जो इंटेग्रेटिड डिफैंस स्टाफ के चीफ हैं, ने कहा कि अब फ्रंट नाम की कोई चीज नहीं बची है. पहले फ्रंट पर लड़ने वालों को दुश्मन को मारने की हिम्मत दिखाने पर मैडल मिलते थे, प्रमोशन मिलती थी, जनता हाथोंहाथ लेती थी. अब सैनिक गुमनाम है. वह तो सिर्फ उस सैंटर की चौकीदारी कर रहा है जहां से ड्रोन, गैस, एयरक्राफ्ट, मिसाइलें चलाई जा रही हैं.

बेरोजगार अधपढ़े किसानों के बेटे अगर यह सोचें कि वे सेना में भरती हो कर अपनी जिंदगी बचा लेंगे तो भूल जाएं. उन्हें तो अब इंजीनियरिंग सीखनी होगी. कंप्यूटर डिजाइनिंग सीखनी होगी दिमाग अलर्ट रखना सीखना होगा. कई स्क्रीनों पर एकसाथ नजर रखने और कई सौ बटनों में से सही को चुनने की कला सीखनी होगी. आम किसानों के बेटे यह नहीं कर सकते.

किसानों के बेटों के लिए अमेरिका ने मागा गैंग बना दिए हैं, हम ने कांवड़ खरीद दिए हैं. अपने ही लोगों को परेशान करो, धमकाओ, लूटो, यही काम बचा है. यह खुद की सोच है, धर्म की सेवा है. पार्टी की सेवा है पर देश की सेवा नहीं है. देश के लिए तो ये बेरोजगार एक आफत हैं.

अब तो पुलिस की नौकरी भी किसानों के बेटों के लायक नहीं रह रही है क्योंकि ज्यादा काम ये कैमरे और काल रिकौर्ड से करते हैं. पुलिस में भी हाईटैक सिस्टम आ रहा है. दमखम की जरूरत तो केवल तभी होती है जब अपने लोगों की ही भीड़ से निबटना हो और उस में बहादुरी दिखाने पर कोई प्रमोशन नहीं मिलता, कोई मैडल नहीं मिलता. जनता की थूथू मिलती है.

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बजाय सरकारी स्कूलों को ठीक करने के, सरकारें प्राइवेट स्कूलों को एक के बाद एक सुविधाएं दे रही हैं और शहरों के बाद नामी या नए स्कूलों की ब्रांचें कसबों और गांवों के आसपास खुलने लगी हैं. इन में फीस ज्यादा होती?है, बड़ी बिल्डिंग होती?है, कुछ में एयरकंडीशंड कमरे होते हैं पर पढ़ाई सिर्फ सिफर होती है.

इन स्कूलों से निकले बच्चे पिज्जा, पास्ता, कोल्ड कौफी, ग्रीन टी तो पीना जानते हैं पर ये न खेलने या फैक्टरी में काम करने लायक बचते हैं, न दफ्तरों में छोटी नौकरियों के लायक. गांवकसबों के गरीब मांबापों के लिए ये प्राइवेट स्कूल आफत हो गए हैं क्योंकि सरकारी स्कूलों में भेजो तो नाक कटती है और नीची जातियों के बच्चों के साथ उठनाबैठना पड़ता है.

दिल्ली में स्कूलों ने एडमिशन के समय दरवाजों पर भारी भीड़ देख कर फीस अनापशनाप बढ़ानी शुरू कर दी है. गांवों के पास या कसबों में बने स्कूलों ने भी यही किया होगा. बढ़ती फीस को ले कर हल्ला मचा तो भाजपा सरकार ने, जो वैसे ही नहीं चाहती कि हर कोई पढ़ ले, तरकीब निकाल कर कानून बना डाला जिस में फीस स्कूल की कमेटी तय करेगी जिस में मैनेजमैंट, प्रिंसिपल, 3 टीचर और कुछ मांएं या पिता होंगे.

ये लोग स्कूल के फायदे के फैसले लेंगे क्योंकि ज्यादा कमाई का मतलब ज्यादा सुविधाएं, अच्छा वेतन. रही बात पेरेंट्स के नुमाइंदों की तो उन्हें तो कोई मैनेजमैंट चुटकियों में खरीद लेगा, उन के बच्चों को ऐक्स्ट्रा मार्क्स दे कर किसी को भी फीस बढ़वाने के लिए हामी करवाना आसान है.

यह दिल्ली सरकार का कानून सारे देश की भाजपा सरकारें लागू करेंगी क्योंकि दिल्ली सरकार की मुख्यमंत्री तो मोहरा ही हैं. मतलब यह है कि गांवों, कसबों के पास बने इंगलिश मीडियम स्कूलों में पढ़ाने वाले बच्चों के मांबापों को और ज्यादा पेट काट कर पढ़ाना होगा या मुंह लटका कर सरकारी स्कूल में ट्रांसफर कराना होगा. बच्चों के साथ भी यह मुसीबत होगी कि मैक्डौनाल्ड और पिज्जा हट की जगह उन्हें कालू राम भटूरे वाला के ठेले पर घटते जेबखर्च से खाना होगा. बच्चों का मन किस तरह टूटेगा, यह सोचना आसान नहीं.

सरकार शिक्षा के नाम पर जो खिलवाड़ कर रही है वह पूरे देश को बरबाद कर रही है. हम सिर्फ गाल बजाना जानते हैं, सही फैसलों में कोई मजा नहीं है. Editorial

Bollywood: कासिम हैदर ‘कासिम’ की ‘हसरत’ हो रही पूरी

Bollywood: बौलीवुड का खेल निराला है. यहां इनसान बनने कुछ आता है और बन कुछ और ही जाता है. जब कासिम हैदर ‘कासिम’ शौकिया शायरी लिख रहे थे, तब वे ऐक्टर बनने के लिए मुंबई आए थे. शुरुआती जद्दोजेहद के बाद उन्हें मशहूर डायरैक्टर लेख टंडन के टैलीविजन सीरियल ‘कहीं देर न हो जाए’ में ऐक्टिंग करने का मौका मिल गया.

तब कासिम हैदर ‘कासिम’ को लगा कि उन की जद्दोजेहद खत्म हो गई है, पर यह उन की भूल थी. उस के बाद उन्होंने कुछ फिल्में भी मिलीं, लेकिन नैपोटिज्म की मार के आगे वे टिक नहीं पाए. अब तो उन की पहचान म्यूजिक वीडियो तक ही सिमट कर रह गई है. इन दिनों वे म्यूजिक वीडियो ‘हसरत’ के चलते सुर्खियां बटोर रहे हैं.

अपनी जद्दोजेहद और अब तक के सफर के बारे में कासिम हैदर ‘कासिम’ कहते हैं, ‘‘मैं तो पहले लेखक ही था. शेरोशायरी लिखता रहा हूं. पर मेरे एक दोस्त ने मेरे अंदर ऐक्टर बनने की ललक पैदा की और वह मुझे ले कर मुंबई आ गया. शुरुआत में मैं मुंबई में अपने इसी दोस्त के ही पास रहा.

‘‘एक दिन मेरी मुलाकात कासिब जैदी साहब से हो गई. उन्होंने सलाह दी कि ऐक्टर या गीतकार या शायर जिस रूप में जो काम मिले, वह करते जाओ. एक दिन उन्होंने मेरा परिचय शबाब शाबरी साहब से करवा दिया. उन्होंने मेरा लिखा पहला गाना गाया.

‘‘उस गाने की रिकौर्डिंंग के समय मैं भी यह देखने गया था कि रिकौर्डिंंग कैसे होती है. वहीं पर इस गाने का म्यूजिक वीडियो डायरैक्ट करने के लिए एक फिल्म डायरैक्टर भी खड़े हुए थे. उन्होंने मुझ से कहा कि आप का चेहरा अच्छा है. अगर आप इस गाने के वीडियो में ऐक्टिंग करेंगे, तो ज्यादा अच्छा होगा.

‘‘मैं ने उस गाने के वीडियो में ऐक्टिंग की. उस वीडियो को देख कर मशहूर फिल्म डायरैक्टर लेख टंडन ने मुझे सीरियल ‘कहीं देर न हो जाए’ में ऐक्टिंग करने का मौका दिया. लेकिन अफसोस है कि उस के बाद भी मेरे कैरियर को वह रफ्तार न मिल सकी, जैसा मैं ने सोचा था.

‘‘वैसे सीरियल ‘कहीं देर न हो जाए’ के बाद मैं ने 2-3 सीरियलों और भी किए थे. मुझे 2 फिल्में भी मिली थीं, पर वे फिल्में मेरे हाथ से छीन कर नैपोकिड्स को दे दी गईं. मुझे नुकसान यह हुआ कि उस के बाद मेरे पास फिल्मों के औफर आने बंद हो गए.

‘‘जब मेरे हाथ से 2 फिल्में निकल गईं, तो मैं ने सोचा कि एक बार फिर मैं गाना बना कर नाम कमा सकता हूं और मैं ने खुद अपना एक गाना ‘दिल है बेकरार मन…’ बनाया और इस में ऐक्टिंग भी की.

‘‘इस गाने के हिट होने के बाद मेरे पास गीत या शायरी लिखने के औफर आने लगे. पैसे की भी कमी थी, तो मैं ने कुछ गीत और शायरी दूसरों के लिए लिखे, जिस के बदले में मुझे सिर्फ पैसा मिला, पर नाम नहीं.
‘‘मैं सच कह रहा हूं कि कुछ लोगों ने तो मेरे लिखे गाने पर अपना नाम चिपका दिया. मेरे ऐसे गाने कुछ बड़ी कंपनियों में बज रहे हैं, जो हिट हैं.

‘‘आप को यकीन नहीं होगा, पर मैं ने 50 से ज्यादा गीत लिखे हैं. मैं अपने लिखे हुए गानों पर खुद 6-7 म्यूजिक वीडियो बना चुका हूं. मैं अपने नए म्यूजिक अलबम ‘हसरत’ को ले कर काफी जोश में हूं. यह काफी पसंद किया जा रहा है. अब मैं इस का दूसरा पार्ट ले कर आने की तैयारी कर रहा हूं.’’

म्यूजिक अलबम ‘हसरत’ की चर्चा करते हुए कासिम हैदर ‘कासिम’ बताते हैं, ‘‘एक दिन मैं अपने एक दोस्त वसीम के साथ एक दुकान पर चाय पी रहा था, जहां म्यूजिक डायरैक्टर सागर साहब बैठे हुए थे. बात ही बात में सागर साहब ने मुझे एक औडियो सुनाया.

‘‘मैं ने उन से कहा कि मैं आप को एक अच्छा गाना लिखकर देता हूं. फिर मैं ने वहीं पर टिश्यू पेपर ले कर गाना लिखना शुरू किया वह गाना लिखतेलिखते मैं 3 चाय पी गया.

‘‘यह गाना सागर साहब को पसंद आ गया, तो उन्होंने इस पर म्यूजिक अलबम बनाने की सलाह दी. फिर सागर साहब ने मेरे लिखे गाने को अपने म्यूजिक डायरैक्शन में हरमन से गवाया. इस के वीडियो में मैं ने और आयुषी तिवारी ने ऐक्टिंग की है.’’

क्या बौलीवुड में मनचाही कामयाबी न मिल पाने का गम आप को सताता है? इस सवाल पर कासिम हैदर ‘कासिम’ ने कहा, ‘‘अब अनुभवों ने मुझे बहुतकुछ सिखा दिया है. मुझे खुशी है कि शायरी के क्षेत्र का मैं उस्ताद हूं. मेरे शेर पढ़ने वालों की तादाद काफी है.

‘‘मैं ने आंध्र प्रदेश में हैदराबाद, उत्तर प्रदेश में बिजनौर से ले कर बाराबंकी और वाराणसी तक कई शहरों सहित कश्मीर, बिहार, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, गुजरात में स्टेज प्रोग्राम किए हैं. विदेशों में भी स्टेज शो किए हैं.’’ Bollywood

Family Crime: प्यार बना कातिल – मम्मी-पापा और भाई की ली जान

Family Crime: घर में मौजूद तमाम लोग खड़ेखड़े यही सोच रहे थे कि आखिर इन तीनों की किसी से क्या दुश्मनी रही  होगी, जो तीनों को इतनी बेरहमी से मौत के घाट उतार दिया था. मुंशी बिंद और पत्नी देवंती देवी की खून से लथपथ लाशें कमरे में फर्श पर आड़ीतिरछी पड़ी हुई थीं, जबकि रामाशीष की लाश घर के बाहर दरवाजे पर पड़ी थी. तीनों की गला रेत कर हत्या की गई थी. शादी कार्यक्रम में दोबारा आ जाने से आशीष बच गया था. सब की जुबान पर यही चर्चा थी कि अगर आशीष भी घर पर रहा होता तो हत्यारे उसे भी नहीं बख्शते, बेरहमी से उस की भी जान ले लेते.

उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के थाना नंदगंज के अंतर्गत एक गांव कुसुम्ही कला खिलवा पड़ता है. इसी गांव में 45 वर्षीय मुंशी बिंद अपनी पत्नी देवंती देवी और 2 बेटों रामाशीष (20 साल) और आशीष (18 साल) के साथ हंसीखुशी से रहता था. मुंशी बिंद का परिवार छोटा था, जिस में सब हंसीखुशी से रहते थे. मुंशी बिंद मुंबई में रह कर टाइल्स लगाने का काम करता था. इस काम से उसे अच्छा मुनाफा होता था. 6 जून, 2024 को वह एक जरूरी काम की वजह से मुंबई से घर आया था, लेकिन कुछ परेशानी की वजह से वह काम पूरा नहीं हो पाया था, इसलिए उसे कुछ दिनों तक गांव में ही रुकना पड़ा. 

बात 8 जुलाई, 2024 की थी. इस दिन गांव में मुंशी बिंद के पट्टीदार के घर शादी थी. शादी में मुंशी बिंद के परिवार को भी आमंत्रित किया गया था. पत्नी और दोनों बेटों के साथ वह शादी में शामिल हुआ और देर रात तक पार्टी का आनंद लिया. उसे अब थकान हो रही थी सो रात 11 बजे के करीब परिवार सहित वह घर लौट आया. उस के बाद बाहर के कमरे में मुंशी बिंद पत्नी के साथ सो गया और दोनों भाई रामाशीष और आशीष अंदर के कमरे में सो गए थे. 

पता नहीं छोटे बेटे आशीष को नींद क्यों नहीं आ रही थी. वह बिस्तर पर उधरइधर करवटें बदलता रहा. बेचैनी काफी बढ़ गई तो आशीष बिस्तर से नीचे उतरा और बिना किसी से कुछ बताए फिर शादी वाले कार्यक्रम में चला गया. वहां डीजे का कार्यक्रम चल रहा था. लोग संगीत पर थिरक रहे थे. आशीष भी उन्हीं के बीच हो लिया और कार्यक्रम का लुत्फ ले रहा था. पता नहीं क्यों उस का मन अभी भी बेचैन और परेशान सा लग रहा था.

खैर, देर रात 2 बजे तक डीजे पर डांस चलता रहा. आशीष जब खुद को थका हुआ महसूस करने लगा तो वह उस कार्यक्रम को बीच में छोड़ कर वापस घर लौट गया और फिर थोड़ी ही देर में दौड़ता भागता हुआ वहीं जा पहुंचा, जहां अभी भी डीजे बज रहा था. उस की सांसें धौंकनी की तरह चल रही थीं. चेहरे पर घबराहट और परेशानियों की लकीरें स्पष्ट उभरी हुई नजर आ रही थीं. जब उसे कुछ समझ में नहीं आया तो उस ने डीजे को बंद करा दिया और हांफते हुए हाथ का इशारा अपने घर की तरफ किया और बोला, ”वहां…वहां…किसी ने मेरे मम्मीपापा और भाई को मार डाला है.’’ इतना कह कर दहाड़ मार कर वह रोने लगा.

किस ने किए 3 मर्डर

आशीष के रोने की आवाज सुन कर शादी वाली जगह पर सन्नाटा छा गया और जो जहां था, उस के पांव वहीं थम गए. वे दौड़तेभागते आशीष के घर पहुंच गए. घर पर आशीष के मम्मीपापा और भाई की खून से सनी लाशें पड़ी थीं. रात में ही तीनों की हत्या की खबर पूरे गांव में फैल गई थी. यह खबर जैसे ही उस के बड़े भाई रामप्रकाश बिंद को मिली, उस की आंखों से नींद ओझल हो गई. वह जिस हाल में था, मौके पर जा पहुंचा. इतना ही नहीं, घरपरिवार के लोग मौके पर जा पहुंचे थे.

बड़ा भाई रामप्रकाश और उस की मां यही सोचसोच कर परेशान हुए जा रहे थे कि आखिर किस ने और क्यों तीनों के कत्ल किए होंगे. जबकि वे ऐसे नेचर के नहीं थे. उसी रात गांव के चौकीदार रामनयन ने नंदगंज थाने के एसएचओ शमसुद्ïदीन अहमद को इस घटना की सूचना फोन द्वारा दे दी. उस समय घड़ी में साढ़े 4 बजे के करीब का टाइम हो रहा था और एसएचओ गश्त से कुछ देर पहले ही लौटे थे. वह सोने की तैयारी कर रहे थे. 

चौकीदार की बात सुन कर एसएचओ चौंक पड़े, ”3-3 कत्ल हुए हैं, लेकिन क्यों? किस ने किए ये सारे कत्ल?’’ एक साथ कई सवाल उन के मुंह से निकल गए. यही नहीं, इतना सुनते ही एसएचओ अहमद की आंखों से नींद छूमंतर हो गई. वह उसी समय आननफानन में कुछ पुलिसकर्मियों को ले कर घटनास्थल की ओर रवाना हो गए. थाने से घटनास्थल करीब 5 किलोमीटर दूर था. थोड़ी देर में पुलिस घटनास्थल पर पहुंच गए. एसएचओ अहमद ने दिल दहला देने वाली घटना की जानकारी एसपी (गाजीपुर) ओमवीर सिंह को भी दे दी. 

सूचना पाते ही फोरैंसिक टीम भी मौके पर पहुंच गई थी. पुलिस टीम जांच में जुटी हुई थी. यही नहीं, दिल दहला देने वाली इस घटना की जानकारी वाराणसी जोन के अपर पुलिस महानिदेशक पीयूष मोर्डिया तक जा पहुंची थी. उन्होंने एसपी ओमवीर सिंह को निर्देश दिया कि वह जल्द से जल्द घटना का खुलासा कर आरोपियों को जेल के पीछे भेजें. पुलिस ने सब से पहले लाशों का मुआयना किया. मौकामुआयना से पता चला कि हत्यारों ने किसी धारदार हथियार से गले पर वार कर तीनों की हत्या की थी. हत्यारों का मकसद सिर्फ उन की हत्या करना था, क्योंकि अगर उन्होंने लूटपाट करने के उद्ïदेश्य से घटना को अंजाम दिया होता तो घर का सामान तितरबितर होता, जबकि घर का सारा सामान अपनी जगह पर था.

आशीष ने उगली चौंकाने वाली सच्चाई

बहरहाल, पुलिस ने लाशों का पंचनामा भर कर उन्हें पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेज दिया. पुलिस ने हत्या के बारे में मृतक के बड़े भाई रामप्रकाश से पूछताछ की तो पता चला कि एक महीने पहले पड़ोसी राधे बिंद ने फोन पर मुंशी को जान से मारने की धमकी दी थी. एक पंचायत में हुए फैसले को ले कर राधे बिंद उस से काफी नाराज था. रामप्रकाश बिंद के बयान के आधार पर पुलिस ने राधे बिंद को गिरफ्तार कर लिया. पुलिस पूछताछ में वह एक ही बात रटता रहा कि वह निर्दोष है, उस ने किसी का कत्ल नहीं किया. रंजिशन रामप्रकाश और उस के घर वाले उसे फंसा रहे हैं.

लाश का पोस्टमार्टम करवा कर दोपहर बाद पुलिस ने उसे रामप्रकाश को अंतिम संस्कार के लिए सुपुर्द कर दिया. जांचपड़ताल के दौरान एक ऐसा सुराग पुलिस के हाथ लगा, जिस ने घटना का रुख मोड़ दिया और बिना समय गंवाए पुलिस की एक टीम श्मशान घाट जा पहुंची. वहां तीनों लाशों का अंतिम संस्कार किया जा चुका था और लोग अपने घरों को लौट रहे थे, तभी पुलिस वहां आ धमकी थी. फिर पुलिस बड़ी चतुराई से परिवार में एकमात्र बचे आशीष को थाने ले आई. यह देख कर सभी हैरान हो गए. रामप्रकाश बिंद भी उस के साथसाथ हो लिए.

थाने में पुलिस उस के साथ सख्ती से पूछताछ करनी शुरू की. पहले तो उस ने नानुकुर किया. पुलिस को इधरउधर घुमाता रहा. लेकिन जब देखा कि अब पुलिस के शिकंजे से बच पाना उस के लिए मुश्किल है तो उस ने सच बता देने में ही अपनी भलाई समझी और सारी सच्चाई बयां करते हुए बोला, ”हां…हां…हां… मैं ने ही मम्मी, पापा और भाई की हत्या की है. भाई को मैं मारना नहीं चाहता था, लेकिन उस ने मुझे मम्मीपापा का कत्ल करते हुए देख लिया था और उस ने शोर मचाना शुरू कर दिया. मैं कहीं पकड़ा न जाऊं, इसी डर से मैं ने उन्हें भी मार डाला.’’

आशीष पुलिस के सामने अपने दुस्साहस की कहानी ऐसे सुना रहा था, जैसे वह मैराथन दौड़ जीत कर आया हो. न तो उस के माथे पर पसीने की एक भी बूंद छलकी और न ही चेहरे पर पश्चाताप के कोई भाव ही दिख रहे थे. ढीठ की तरह अपनी अकड़ का प्रदर्शन कर रहा था. भतीजे के मुंह से उस की खूनी करतूत सुन कर बड़े ताऊ रामप्रकाश बिंद हैरानपरेशान और दुखी थे. उन्हें तो यकीन ही नहीं हो रहा था कि मासूम सा दिखने वाला आशीष जो कह रहा है, वह सच भी हो सकता है. 

पहले प्यार का ऐसे हुआ अहसास

18 साल के आशीष पर मांबाप के लाड़प्यार और उन के परवरिश पर एक लड़की का प्यार इस कदर हावी हुआ कि उस ने अपने ही हाथों परिवार को नेस्तनाबूद कर डाला.

नादान इश्क की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी

मुंशी बिंद के पड़ोस में राधे बिंद अपने परिवार के साथ रहता था. 6 सदस्यों वाला उस का खुशहाल परिवार था, जिन में 2 बेटे और 2 बेटियां थीं. गाजीपुर में ही रह कर राधे बिंद एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करता था. 16 वर्षीया नंदिनी बिंद राधे की सब से बड़ी बेटी थी और जान से प्यारी भी. उस पर जान छिड़कता था वह. और जान छिड़के भी क्यों न, वह थी ही इतनी काबिल और होनहार कि वही नहीं घर के सभी उस पर जान छिड़कते थे.

नंदिनी जितनी काबिल थी, उतनी ही खूबसूरत भी थी. उस की सुंदरता और चंचलता पर हर किसी को प्यार आता था. ऐसे में भला आशीष कैसे अछूता रह सकता था, जबकि वह उस का पड़ोसी था. नंदिनी का अंगअंग विकसित हो चुका था. उस के बदन से जवानी की खुशबू फैली थी. कुदरत ने बड़ी फुरसत से उसे बनाया था. झील सी गहरी आंखें, सुर्ख गाल, गुलाब की नाजुक पंखुडिय़ों के समान होंठ, नागिन सी लहराती जुल्फें, किसी जन्नत की हूर से कम नहीं थी वह. जब होंठ दबा कर हौले से मुसकराती थी तो मानो कयामत आ जाती थी. कीचड़ में खिले कमल के जैसी थी नंदिनी. उस की मोहक अदा और गोरे रंग पर आशीष पूरी तरह फिदा था. 

उस दिन शाम का वक्त हो रहा था, जब नंदिनी सजधज कर पिंक रंग का सलवारसूट पहने अपनी छत पर खड़ी खोईखोई सी टकटकी लगाए आसमान की ओर देख थी. बयार मंदमंद बह रही थी. बयार के झोंकों से लहराते हुए बाल उस के सुर्ख गाल से अठखेलियां कर रहे थे. ऐसा होता देख उसे असीम सुख की अनुभूति हो रही थी. लेकिन उसे यह नहीं पता था कि उस की इस अदा को एक आवारा भंवरा अपनी पलकों में कैद कर रहा है. उसे वह कई पलों से अपलक निहारता जा रहा है. वह कोई और नहीं, उस के पड़ोस में रहने वाला आशीष था. उस दिन के बाद से आशीष नंदिनी का दीवाना हो गया था. आंखें खुलतीं तो उसे देखना चाहता था, आंखें बंद होतीं तो उसे पहले देखना चाहता था. उठतेबैठते, खातेपीते हर घड़ी, हर पल आशीष उसे देखता चाहता था.

दिन दूना बढ़ता गया कच्ची उम्र का सच्चा प्यार

आशीष को देख कर नंदिनी का रोमरोम खिल उठता था. अपने रसीली होंठों को एक कोने में दबाए हौले से मुसकरा कर अंदर कमरे की ओर भाग जाती थी. उस के दिल के किसी एक कोने में आशीष के लिए जगह बन चुकी थी. मोहब्बत की आग दोनों के दिलों में बराबर की लगी हुई थी. मौका देख कर दोनों ने अपने प्यार का इजहार कर दिया था. धीरेधीरे दोनों का प्यार जवां हो रहा था. 2 प्यार के पंछी नीले गगन के तले सैर कर रहे थे. आशीष और नंदिनी का प्यार सच्चा था. उन का प्यार एक बिलकुल पाकसाफ था. वे शादी करना चाहते थे. लेकिन अपने दिल की बात न तो नंदिनी अपने घर वालों से कह पा रही थी और न ही आशीष ही. भीतर ही भीतर दोनों घुट रहे थे.

एक दिन की बात है. नंदिनी के घर वाले किसी काम से बाहर गए हुए थे. घर पर नंदिनी ही अकेली थी. यह बात आशीष को मालूम था. उस दिन दोपहर का समय हो रहा था. आशीष भी घर ही पर था. मौका देख कर वह नंदिनी से मिलने दबेपांव उस के घर में घुस गया. अचानक आशीष को सामने देख कर नंदिनी चौंक गई, ”तुम यहां… इस वक्त? किसी ने देख लिया तो?’’ सकपकाती हुई नंदिनी फुसफुसाते हुए बोली.

हां, मैं…’’ आशीष ने उसी के अंदाज में जवाब दिया, ”कोई देख लेगा तो देख लेने दो, मेरे ठेंगे से. मैं किसी की परवाह नहीं करता.’’

कोई काम था क्या?’’

हां, काम था.’’

बोलो.’’

तुम्हारे बिना मैं नहीं जी सकता नंदिनी. मुझे डर लगता है कि कहीं हमारे घर वाले हमारे प्यार के दुश्मन न बन बैठें.’’

सो तो है, यह डर मेरे भी दिल में है. मैं भी सोचसोच कर परेशान रहती हूं. मैं तो ये सोचती हूं जिस दिन मम्मीपापा को हमारे प्यार के बारे में मालूम होगा तो कितनी बड़ी कयामत आ जाएगी.’’

”तुम्हें परेशान होने या चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है, नंदिनी. जब तक मैं जिंदा हूं, तुम सब कुछ मुझ पर छोड़ दो, जैसेतैसे मैं सब संभाल लूंगा. मेरा प्यार हीररांझे की तरह सच्चा है. हम एक साथ नहीं जी सके तो साथ मर तो सकेंगे न.’’

ना आशीष ना.’’ तड़प कर बोली नंदिनी, ”फिर दोबारा मत कहना. हम हमारे प्यार को पाने के लिए जमाने से लड़ेंगे. मम्मीपापा को समझाएंगे.’’ नंदिनी ने आशीष को समझाने की कोशिश की.

इस के बाद दोनों घंटों प्यार भरी बातें करते रहे. नंदिनी और आशीष प्यार की दुनिया में खोए भविष्य के सुनहरे सपने देख रहे थे. इसी दौरान नंदिनी के घर वालों को उन के प्यार के बारे में सब कुछ पता चल गया था. नंदिनी के पापा राधे बिंद को जैसे ही बेटी की आशिकी के बारे में पता चला, उस के तनबदन में आग लग गई थी. उस ने बेटी को तो आड़ेहाथों लिया ही, आशीष की तो जलालतमलामत सब कर डाली थी. 

यहां तक कि राधे बिंद ने मुंबई में रह रहे आशीष के पापा मुंशी बिंद को बेटे को संभाल लेने की धमकी दी. ऐसा न करने पर उस ने जान से मार देने की धमकी भी दे डाली थी. मुंशी बिंद ने राधे बिंद को समझाने की कोशिश की कि वह बेटे को नंदिनी से दूर रहने के लिए समझाएगा. परेशान मत हो. सब कुछ ठीक हो जाएगा. थोड़ा समय दे दो मुझे. मैं जल्द घर आ रहा हूं. मैं सब कुछ ठीक कर दूंगा. फिर उस ने फोन पर ही आशीष को भी समझाया और उसे जम कर डांट पिलाई कि पढ़ाईलिखाई की उम्र है, मन लगा कर पढ़ो, समय आने पर अच्छी लड़की देख कर शादी करा दूंगा. लेकिन ये छिछोरपना करना छोड़ दो, वरना मुझ से बुरा कोई नहीं होगा. 

बात इतने पर ही खत्म नहीं हुई. जिद्ïदी स्वभाव के आशीष ने पापा की बातों को अनसुना कर दिया. उसे पापा का डांटना भी अच्छा नहीं लगा. प्यार में अंधा हो चुका आशीष नंदिनी से किसी भी कीमत पर दूर नहीं होना चाहता था. इस के लिए वह किसी भी हद तक जाने को तैयार था. मगर नंदिनी का साथ छोडऩा उसे मंजूर नहीं था. राधे बिंद के समझाने के बावजूद आशीष का उस की बेटी नंदिनी से मिलना और बातें करना बंद नहीं हुआ, बल्कि उस दिन के बाद से वह और उग्र हो गया और सारी हदें पार कर उस से मिलता रहा. राधे ने मुंशी को समझाया कि अब पानी सिर के ऊपर से गुजर रहा है. अपने बेटे के कदमों को रोक दो, वरना उसे जान से हाथ धोना होगा. फिर मत कहना कि तुम ने ऐसा क्यों कर दिया.

इस तरह बैठा दिए प्यार पर पहरे

राधे बिंद के बारबार शिकायत करने पर मुंशी बिंद परेशान हो गया था. बेटे को समझाने का उस पर कोई असर नहीं हो रहा था. मां और भाई को तो पुरुवापछुवा की बयार समझता था. उन के समझाने पर वह उन्हीं से लड़ पड़ता था. मजबूर हो कर मुंशी बिंद को 6 जून, 2024 को मुंबई से गाजीपुर आना पड़ा. उस के अगले दिन राधे बिंद ने गांव में पंचायत बुलाईपंचायत में पंचों के सामने आशीष, उस के पिता मुंशी बिंद और भाई रामाशीष को बुलाया गया. पंचों ने उस दौरान मुंशी बिंद और उस के बेटे आशीष को जम कर लताड़ा. बेटे की करतूत से घर वालों का सिर शर्म से झुक गया था. पंचों ने जो जलालत मलालत की, सो अलग से.

पंचायत में तय किया गया कि लड़का और लड़की दोनों पर उन के घर वाले सख्त पाबंदी लगाएं. उन्हें मिलने से हर हाल पर रोकें. घंटों चली पंचायत में मुंशी बिंद का सिर झुका ही रहा. इस के बाद घर वालों ने आशीष पर पहरा लगा दिया. घर वालों की सख्ती से आशीष चिढ़ गया और उसे अपने ही घर वाले दुश्मन लगने लगे. मम्मीपापा की सख्ती से परेशान आशीष के मन में एक खौफनाक इंतकाम ने जगह बना ली. उस ने तय कर लिया कि जो भी उस के प्यार में रोड़ा बनने की कोशिश करेगा, वह उस का सब से बड़ा दुश्मन होगा, चाहे वह उस के मम्मीपापा ही क्यों न हों.

उस दिन के बाद से आशीष अपने मम्मीपापा का दुश्मन बन गया और उन्हें रास्ते से हटाने के लिए अनेकानेक खतरनाक योजना बनाने लगा, मगर वह अपनी घिनौनी साजिश में कामयाब नहीं हो पा रहा था. मम्मीपापा की डांट और सख्त रवैए से आशीष विद्रोह पर उतर आया था. इधर आशीष की करतूतों से मम्मीपापा की पूरे गांव में थूथू हो रही थी, इसलिए बेटे के प्रति उन का रवैया सख्त हो गया था. वे हर कीमत पर उसे नंदिनी से मिलने से रोक रहे थे. क्योंकि नंदिनी के पापा राधे बिंद ने आशीष को जान से मारने की भी धमकी दी थी. यह बात उसे पता नहीं थी. वह तो इस बात पर घर वालों से खार खाए हुआ था कि मम्मीपापा की वजह से ही उसे नंदिनी से मिलने नहीं दिया जा रहा है.

आशीष को मम्मीपापा क्यों लगने लगे दुश्मन

घर वालों की सख्त पाबंदी के चलते आशीष ने उन्हें रास्ते से हटाने की खतरनाक योजना बना ली थी. बस उसे अंजाम देना शेष था. योजना को अंजाम देने के लिए आशीष सही समय का इंतजार कर रहा था और वह अपने खतरनाक इरादों में कामयाब भी हो गया. दरअसल, 8 जुलाई, 2024 को गांव में एक परिचित के घर तिलक का कार्यक्रम होना था. उस कार्यक्रम में मुंशी बिंद को परिवार सहित आने का न्यौता मिला था. इस दिन को ही आशीष ने अंजाम देने को चुना. इस के पीछे उस का खास मकसद यह था कि लोग तिलक के कार्यक्रम में व्यस्त रहेंगे. डीजे के शोर में किसी को कुछ पता भी नहीं चलेगा और उस का काम भी पूरा हो जाएगा.

तिलक की रात मुंशी बिंद अपने दोनों बेटों रामाशीष और आशीष के साथ कार्यक्रम में चला गया. देर रात 11 बजे खाना खा कर सभी वापस घर लौट आए. उस के बाद आगे बरामदे में मुंशी बिंद अपनी पत्नी के साथ सो गया और दोनों बेटे भीतर वाले कमरे में सो गए. बिस्तर पर जाते ही रामाशीष नींद की आगोश में समा गया, जबकि आशीष की आंखों से नींद कोसों दूर थी. उस के मन में तो कुछ और ही चल रहा था. पलट कर पहले उस ने भाई को देखा. उसे हिलाडुला कर जांचा. वह पूरी तरह से नींद में जा चुका था. फिर वह दबेपांव बिस्तर से नीचे उतरा और उस ओर बढ़ गया, जहां उस के मांबाप सो रहे थे. वे भी गहरी नींद में जा चुके थे. 

पापा मुंशी बिंद को देखते ही आशीष का चेहरा गुस्से से तमतमा उठा. आंखों से गुस्से का लावा फूट पड़ा और बदन कांपने लगा. उस पर खून सवार हो गया था. फिर क्या था, नींद में सो रहे पापा के गले की ओर उस के मजबूत हाथ बढ़ते गए और उस ने गला दबा कर मार डाला. गहरी नींद में होने के बावजूद जब आशीष पिता का गला दबा रहा था तो उस के हाथों से छूटने के लिए वह बिस्तर पर फडफ़ड़ा रहा था. उसी बीच पत्नी उठ बैठी और पति को बेटे के हाथों से छुड़ाने लिए बेटे से भिड़ गई. आशीष ने देखा कि अब खेल बिगड़ जाएगा तो मम्मी देवंती को भी गला दबा कर मार डाला. उस दौरान उस ने अपनी जान बचाने के लिए बड़े बेटे को नाम ले कर पुकारती रही.

गहरी नींद में होने के बावजूद मां की आवाज सुन कर रामाशीष उठ गया और बाहर की ओर लपका, जिस ओर से आवाज आ रही थी. उस ने देखा कि छोटा भाई आशीष मांबाप की हत्या कर वहीं खड़ा है. दोनों की लाशें नीचे फर्श पर पड़ी हैं तो वह कांप उठा. यह देख कर आशीष बुरी तरह डर गया कि सुबह होते ही भाई सभी को घटना के बारे में बता देगा और वह पकड़ा जाएगा. पुलिस से बचने और राज को राज बनाए रखने के लिए उस ने रामाशीष का भी गला घोंट दिया और उस की लाश को बाहर डाल दिया. 

इस के बाद उस ने खुरपी से एकएक कर तीनों के गले रेत दिए. ताकि लगे कि बदमाशों ने गला रेत कर कत्ल किया है. पुलिस का सीधा शक कभी उस पर नहीं आएगा और वह कानून के फंदे से बच जाएगा. बहरहाल, तीनों का कत्ल करने के बाद आशीष ने अपने खून सने कपड़े उतार दिए और पानी से हाथमुंह धो कर कर दूसरे कपड़े पहन कर तैयार हो कर चल रही पार्टी की ओर हो लिया और रास्ते में कपड़े और खून सनी खुरपी को फेंक दी. 

फिर खुद को इतना सामान्य बना लिया, जैसे उस ने कुछ किया ही न हो. फिर पार्टी में जा कर उस ने ऐसा ड्रामा रचा कि सारे लोग अवाक रह गए. फिर आगे क्या हुआ, कहानी में ऊपर बताया जा चुका है. बहरहाल, आशीष एक लड़की के प्यार के लिए इतना बागी हो गया कि उस ने अपने ही परिवार का खात्मा कर दिया. उसे अपने किए का जरा भी मलाल नहीं है, लेकिन अपने किए की सजा जेल की सलाखों के पीछे जा कर पा रहा है. 

कथा लिखे जाने तक आशीष सलाखों के पीछे कैद था. पुलिस ने उस की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त खून सनी खुरपी और कपड़े बरामद कर लिए.

—कथा में नंदिनी बिंद परिवर्तित नाम है. कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित है. Family Crime

Family Story In Hindi: मर्यादा – आखिर क्या हुआ निशा के साथ

Family Story In Hindi: देर रात गए घर के सारे कामों से फुरसत मिलने पर जब रोहिणी अपने कमरे में जाने लगी तभी उसे याद आया कि वह छत से सूखे हुए कपड़े लाना तो भूल ही गई है. बारिश का मौसम था. आसमान साफ था तो उस ने कपड़ों के अलावा घर भर की चादरें भी धो कर छत पर सुखाने डाल दी थीं. थकान की वजह से एक बार तो मन हुआ कि सुबह ले आऊंगी, लेकिन फिर ध्यान आया कि अगर रात में कहीं बारिश हो गई तो सारी मेहनत बेकार चली जाएगी. फिर रोहिणी छत पर चली गई.

वह कपड़े उठा ही रही थी कि छत के कोने से उसे किसी के बात करने की धीमीधीमी आवाज सुनाई दी. रोहिणी आवाज की दिशा में बढ़ी. दायीं ओर के कमरे के सामने वाली छत पर मुंडेर से सट कर खड़ा हुआ कोई फोन पर धीमी आवाज में बातें कर रहा था. बीचबीच में हंसने की आवाज भी आ रही थी. बातें करने वाले की रोहिणी की ओर पीठ थी इसलिए उसे रोहिणी के आने का आभास नहीं हुआ, मगर रोहिणी समझ गई कि यह कौन है.

रोहिणी 3-4 महीनों से निशा के रंगढंग देख रही थी. वह हर समय मोबाइल से चिपकी या तो बातें करती रहती या मैसेज भेजती रहती. कालेज से आ कर वह कमरे में घुस कर बातें करती रहती और रात का खाना खाने के बाद जैसे ही मोबाइल की रिंग बजती वह छत पर भाग जाती और फिर घंटे भर बाद वापस आती.

रोहिणी के पूछने पर बहाना बना देती कि सहेली का फोन था या पढ़ाई के बारे में बातें कर रही थी. लेकिन रोहिणी इतनी नादान नहीं है कि वह सच न समझ पाए. वह अच्छी तरह जानती थी कि निशा फोन पर लड़कों से बातें करती है. वह भी एक लड़के से नहीं कई लड़कों से.

‘‘निशा इतनी रात गए यहां अंधेरे में क्या कर रही हो? चलो नीचे चलो,’’ रोहिणी की कठोर आवाज सुन कर निशा ने चौंक कर पीछे देखा.

‘‘चल यार, मैं तुझे बाद में काल करती हूं बाय,’’ कह कर निशा ने फोन काट दिया और बिना रोहिणी की ओर देखे नीचे जाने लगी.

‘‘तुम तो एकडेढ़ घंटा पहले छत पर आई थीं निशा, तब से यहीं हो? किस से बातें कर रही थीं इतनी देर तक?’’ रोहिणी ने डपट कर पूछा.

निशा बिफर कर बोली, ‘‘अब आप को क्या अपने हर फोन काल की जानकारी देनी पड़ेगी चाची? आप क्यों हर समय मेरी पहरेदारी करती रहती हैं? किस ने कहा है आप से? मेरा दोस्त है उस से बातें कर रही थी.’’

‘‘निशा, बड़ों से बातें करने की भी तमीज नहीं रही अब तुम्हें. मैं तुम्हारे भले के लिए ही तुम्हें टोकती हूं,’’ रोहिणी गुस्से से बोली.

‘‘मेरा भलाबुरा सोचने के लिए मेरी मां हैं. सच तो यह है कि आप मुझ से जलती हैं. आप की बेटी मेरे जितनी सुंदर नहीं है. उस का मेरे जैसा बड़ा सर्कल नहीं है, दोस्त नहीं हैं. इसीलिए मेरे फोन काल से आप को जलन होती है,’’ निशा कठोर स्वर में बोल कर बुदबुदाती हुई नीचे चली गई.

कपड़ों को हाथ में लिए हुए रोहिणी स्तब्ध सी खड़ी रह गई. उस की गोद में पली लड़की उसे ही उलटासीधा सुना गई.

रोहिणी की बेटी ऋचा निशा से कई गुना सुंदर है, लेकिन हर समय सादगी से रहती है और पढ़ाई में लगी रहती है.

रोहिणी बचपन से ही उसे समझती आई है और ऋचा ने बचपन से ले कर आज तक उस की बताई बात का पालन किया है. वह अपने आसपास फालतू भीड़ इकट्ठा करने में विश्वास नहीं करती. तभी तो हर साल स्कूल और कालेज में टौप करती आई है.

लेकिन निशा संस्कार और गुणों पर ध्यान न दे कर हर समय दोस्तों व सहेलियों से घिरे रहना पसंद करती है. तारीफ पाने के लिए लेटैस्ट फैशन के कपड़े, मेकअप बस यही उस का प्रिय शगल है और इसी में वह अपनी सफलता समझती है. तभी तो ऋचा से 2 साल बड़ी होने के बावजूद भी उसी की क्लास में है.

नीचे जा कर रोहिणी ने ऋचा के कमरे में झांक कर देखा. ऋचा पढ़ रही थी, क्योंकि वह पी.एस.सी. की तैयारी कर रही थी. रोहिणी ने अंदर जा कर उस के सिर पर प्यार से हाथ फेरा और अपने कमरे में आ गई.

‘जिंदगी में हर बात का एक नियत समय होता है. समय निकल जाने के बाद सिवा पछतावे के कुछ हासिल नहीं होता. इसलिए जीवन में अपने लक्ष्य और प्राथमिकताएं तय कर लेना और उन्हीं के अनुसार प्रयत्न करना,’ यही समझाया था रोहिणी ने ऋचा को हमेशा. और उसे खुशी थी कि उस की बेटी ने जीवन का ध्येय चुनने में समझदारी दिखाई है. पूरी उम्मीद है कि ऋचा अपने लक्ष्य प्राप्ति में अवश्य सफल होगी.

अगले दिन ऋचा और निशा के कालेज जाने के बाद रोहिणी ने अपनी जेठानी से बोली कि निशा आजकल रोज घंटों फोन पर अलगअलग लड़कों से बातें करती है. आप जरा उसे समझाइए. लेकिन बदले में जेठानी का जवाब सुन कर वह अवाक रह गई.

‘‘करने दे रे, यही तो दिन हैं उस के हंसनेखेलने के. बाद में तो उसे हमारी तरह शादी की चक्की में ही पिसना है. बस बातें ही तो कर रही है न और वैसे भी सभी लड़के एक से एक अमीर खानदान से हैं.’’

रोहिणी को समझते देर नहीं लगी कि जेठानी की मनशा क्या है. वैसे भी उन्होंने निशा को ऐसे ढांचे में ही ढाला है कि अमीर खानदान में शादी कर के ऐश से रहना ही उस का एकमात्र ध्येय है. अमीर परिवार के इतने लड़कों में से वह एक मुरगा तो फांस ही लेगी.

रोहिणी को जेठानी की बात अच्छी नहीं लगी, लेकिन उस ने समझ लिया कि उन से और निशा से कुछ भी कहनासुनना बेकार है. वह ऋचा को उन दोनों से भरसक दूर रखने का प्रयत्न करती. वह नहीं चाहती थी कि ऋचा का ध्यान इन बातों पर जाए.

कई महीनों तक रोहिणी ऋचा की पढ़ाई को ले कर व्यस्त रही. उस ने निशा को टोकना छोड़ दिया और अपना सारा ध्यान ऋचा पर केंद्रित कर लिया. आखिर बेटी के भविष्य का सवाल है. रोहिणी अच्छी तरह समझती थी कि बेटी को अच्छे संस्कार दे कर बड़ा करना और बुरी सोहबत से बचा कर रखना एक मां का फर्ज होता है.

एक दिन रोहिणी ने निशा के हाथ में बहुत महंगा मोबाइल देखा तो उस का माथा ठनका. निशा और उस की मां की आपसी बातचीत से पता चला कि कुछ दिन पहले किसी हिमेश नामक लड़के से निशा की दोस्ती हुई है और उसी ने निशा को यह मोबाइल उपहार में दिया है.

जेठानी रोहिणी की ओर कटाक्ष कर के कहने लगीं कि लड़का आई.ए.एस. है. खानदान भी बहुत ऊंचा और अमीर है. निशा की तो लौटरी खुल गई. अब तो यह सरकारी अफसर की पत्नी बनेगी.

रोहिणी को इस बात पर बड़ी चिंता हुई. कुछ ही दिनों की दोस्ती पर कोई किसी पर इतना पैसा खर्च कर सकता है, यह बात उस के गले नहीं उतर रही थी.

उस ने अपने पति नीरज से बात की तो नीरज ने कहा, ‘‘मैं भी धीरज भैया को कह चुका हूं, लेकिन तुम तो जानती हो, वे भाभी और बेटी के सामने खामोश रहते हैं. तुम जबरन तनाव मत पालो. ऋचा पर ध्यान दो.

जब उन्हें अपनी बेटी के भविष्य की चिंता नहीं है तो हम क्यों करें? समझाना हमारा काम था हम ने कर दिया.’’

रोहिणी को नीरज की बात ठीक लगी. उस ने तो निशा को भी अपनी बेटी समान ही समझा, पर अब जब मांबेटी दोनों अपने आगे किसी को कुछ समझती ही नहीं तो वह भी क्या करे.

अगले कुछ महीनों में तो निशा अकसर हिमेश के साथ घूमने जाने लगी. कई बार रात में पार्टियां अटैंड कर के देर से घर आती. उस के कपड़ों से महंगे विदेशी परफ्यूम की खुशबू आती.

कपड़े दिन पर दिन कीमती होते जा रहे थे. रोहिणी ने कभी ऋचा और निशा में भेद नहीं किया था, इसलिए उस के भविष्य के बारे में सोच कर उस के मन में भय की लहर दौड़ जाती. पर वह मन मसोस कर मर्यादा का अंशअंश टूटना देखती रहती. घर में 2 विपरीत धाराएं बह रही थीं.

ऋचा सारे समय अपनी पढ़ाई में व्यस्त रहती और निशा सारे समय हिमेश के साथ अपने सुनहरे भविष्य के सपनों में खोई रहती. उस के पैर जमीन पर नहीं टिकते थे. उस के सुंदर दिखने के उपायों में तेजी से बढ़ोतरी हो रही थी. वह ऋचा और रोहिणी को ऐसी हेय दृष्टि से देखती थी मानो हिमेश का सारा पैसा और पद उसी का हो.

ऋचा के बी.ए. फाइनल और पी.एस.सी. प्रिलिम्स के इम्तिहान हो गए, लेकिन आखिरी पेपर दे कर आने के तुरंत बाद ही वह अन्य परीक्षा की तैयारियों में जुट गई. उस की दृढ़ता और विश्वास देख कर रोहिणी और नीरज भी आश्वस्त थे कि वह पी.एस.सी. की परीक्षा में जरूर सफल हो जाएगी.

और वह दिन भी आ गया जब रोहिणी और नीरज के चेहरे खिल गए. उन के संस्कार जीत गए. ऋचा की मेहनत सफल हो गई. वह प्रिलिम्स परीक्षा पास कर गई और साथ ही बी.ए. में पूरे विश्वविद्यालय में अव्वल रही.

लेकिन इस खुशी के मौके पर घर में एक तनावपूर्ण घटना घट गई. निशा रात में हिमेश के साथ उस की बर्थडे पार्टी में गई. घर में वह यही बात कह कर गई कि हिमेश ने बहुत से फ्रैंड्स को होटल में इन्वाइट किया है. खानापीना होगा और वह 11 बजे तक घर वापस आ जाएगी. लेकिन जब 12 बजे तक निशा घर नहीं आई तो घर में चिंता होने लगी. वह मोबाइल भी रिसीव नहीं कर रही थी. रात के 2 बजे तक उस की सारी सहेलियों के घर पर फोन किया जा चुका था पर उन में से किसी को भी हिमेश ने आमंत्रित नहीं किया था. जिस होटल का नाम निशा ने बताया था नीरज वहां गया तो पता चला कि ऐसी कोई बर्थडे पार्टी वहां थी ही नहीं.

गंभीर दुर्घटना की आशंका से सब का दिल धड़कने लगा. रोहिणी जेठानी को तसल्ली दे रही थी पर उन के चेहरे का रंग उड़ा हुआ था. वे रोहिणी से नजरें नहीं मिला पा रही थीं. सुबह 4 बजे जब वे लोग पुलिस में रिपोर्ट करने की सोच रहे थे कि तभी एक गाड़ी तेजी से आ कर दरवाजे पर रुकी और तेजी से चली गई. कुछ ही पलों बाद निशा अस्तव्यस्त और बुरी हालत में घर आई और फूटफूट कर रोने लगी.

उस की कहानी सुन कर धीरज और उस की पत्नी के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई. रोहिणी और नीरज अफसोस से भर उठे.

बर्थडे पार्टी का बहाना बना कर हिमेश निशा को एक दोस्त के फार्म हाउस में ले गया. वहां उस के कुछ अधिकारी आए हुए थे. उसने निशा से उन्हें खुश करने को कहा. मना करने पर वह गुस्से से चिल्लाया कि महंगे उपहार मैं ने मुफ्त में नहीं दिए. तुम्हें मेरी बात माननी ही पड़ेगी. उपहार लेते समय तो हाथ बढ़ा कर सब बटोर लिया और अब ढोंग कर रही हो. और फिर पता नहीं उस ने निशा को क्या पिला दिया कि उस के हाथपांव बेदम हो गए और फिर…

कहां तो निशा उस की पत्नी बनने का सपना देख रही थी और हिमेश ने उसे क्या बना दिया. हिमेश ने धमकी दी थी कि किसी को बताया तो…

रोहिणी सोचने लगी अगर मर्यादा का पहला अंश भंग करने से पहले ही निशा सचेत हो जाती तो आज अपनी मर्यादा खो कर न आती.

निशा के कानों में रोहिणी के शब्द गूंज रहे थे, जो उन्होंने एक बार उस से कहे थे कि मर्यादा भंग करते जाने का साहस ही हम में एकबारगी सारी सीमाएं तोड़ डालने का दुस्साहस भर देता है.

वाकई एकएक कदम बिना सोचेसमझे अनजानी राह पर कदम बढ़ाती वह आज गड्ढे में गिर गई थी. Family Story In Hindi

Family Story In Hindi: सलाह लेना जरूरी – क्या पत्नी का मान रख पाया रोहित?

Family Story In Hindi, लेखिका- शिखा गुप्ता

घंटी बजी तो मैं खीज उठी. आज सुबह से कई बार घंटी बज चुकी थी, कभी दरवाजे की तो कभी टेलीफोन की. इस चक्कर में काम निबटातेनिबटाते 12 बज गए. सोचा था टीवी के आगे बैठ कर इतमीनान से नाश्ता करूंगी. बाद में मूड हुआ तो जी भर कर सोऊंगी या फिर रोहिणी को बुला कर उस के साथ गप्पें मारूंगी, मगर लगता है आज आराम नहीं कर पाऊंगी.

दरवाजा खोला तो रोहिणी को देख मेरी बांछें खिल गईं. रोहिणी मेरी ओर ध्यान दिए बगैर अंदर सोफे पर जा पसरी.

‘‘कुछ परेशान लग रही हो, भाई साहब से झगड़ा हो गया है क्या?’’ उस का उतरा चेहरा देख मैं ने उसे छेड़ा.

‘‘देखा, मैं भी तो यही कहती हूं, मगर इन्हें मेरी परवाह ही कब रही है. मुफ्त की नौकरानी है घर चलाने को और क्या चाहिए? मैं जीऊं या मरूं, उन्हें क्या?’’ रोहिणी की बात का सिरपैर मुझे समझ नहीं आया. कुरेदने पर उसी ने खुलासा किया, ‘‘2 साल की पहचान है, मगर तुम ने देखते ही समझ लिया कि मैं परेशान हूं. एक हमारे पति महोदय हैं, 10 साल से रातदिन का साथ है, फिर भी मेरे मन की बात उन की समझ में नहीं आती.’’

‘‘तो तुम ही बता दो न,’’ मेरे इतना कहते ही रोहिणी ने तुनक कर कहा, ‘‘हर बार मैं ही क्यों बोलूं, उन्हें भी तो कुछ समझना चाहिए. आखिर मैं भी तो उन के मन की बात बिना कहे जान जाती हूं.’’

रोहिणी की फुफकार ने मुझे पैतरा बदलने पर मजबूर कर दिया, ‘‘बात तो सही है, लेकिन इन सब का इलाज क्या है? तुम कहोेगी नहीं, बिना कहे वे समझेंगे नहीं तो फिर समस्या कैसे सुलझेगी?’’

‘‘जब मैं ही नहीं रहूंगी तो समस्या अपनेआप सुलझ जाएगी,’’ वह अब रोने का मूड बनाती नजर आ रही थी.

‘‘तुम कहां जा रही हो?’’ मैं ने उसे टटोलने वाले अंदाज में पूछा.

‘‘डूब मरूंगी कहीं किसी नदीनाले में. मर जाऊंगी, तभी मेरी अहमियत समझेंगे,’’ उस की आंखों से मोटेमोटे आंसुओं की बरसात होने लगी.

‘‘यह तो कोई समाधान नहीं है और फिर लाश न मिली तो भाई साहब यह भी सोच सकते हैं कि तू किसी के साथ भाग गई. मैं बदनाम महिला की सहेली नहीं कहलाना चाहती.’’

‘‘सोचने दो, जो चाहें सोचें,’’ कहने को तो वह कह गई, मगर फिर संभल कर बोली, ‘‘बात तो सही है. ऐसे तो बड़ी बदनामी हो जाएगी. फांसी लगा लेती हूं. कितने ही लोग फांसी लगा कर मरते हैं.’’

‘‘पर एक मुश्किल है,’’ मैं ने उस का ध्यान खींचा, ‘‘फांसी लगाने पर जीभ और आंखें बाहर निकल आती हैं और चेहरा बड़ा भयानक हो जाता है, सोच लो.’’

बिना मेकअप किए तो रोहिणी काम वाली के सामने भी नहीं आती. ऐसे में चेहरा भयानक हो जाने की कल्पना ने उस के हाथपांव ढीले कर दिए. बोली, ‘‘फांसी के लिए गांठ बनानी तो मुझे आती ही नहीं, कुछ और सोचना पड़ेगा,’’ फिर अचानक चहक कर बोली, ‘‘तेरे पास चूहे मारने वाली दवा है न. सुना है आत्महत्या के लिए बड़ी कारगर दवा है. वही ठीक रहेगी.’’

‘‘वैसे तो तेरी मदद करने में मुझे कोई आपत्ति नहीं, पर सोच ले. उसे खा कर चूहे कैसे पानी के लिए तड़पते हैं. तू पानी के बिना तो रह लेगी न?’’ उस की सेहत इस बात की गवाह थी कि भूखप्यास को झेल पाना उस के बूते की बात नहीं.

रोहिणी ने कातर दृष्टि से मुझे देखा, मानो पूछ रही हो, ‘‘तो अब क्या करूं?’’

‘‘छत से कूदना या फिर नींद की ढेर सारी गोलियां खा कर सोए रहना भी विकल्प हो सकते हैं,’’ मुश्किल वक्त में मैं रोहिणी की मदद करने से पीछे नहीं हट सकती थी.

‘‘ऊफ, छत से कूद कर हड्डियां तो तुड़वाई जा सकती हैं, पर मरने की कोई गारंटी नहीं और गोली खाते ही मुझे उलटी हो जाती है,’’ रोहिणी हताश हो गई.

हर तरकीब किसी न किसी मुद्दे पर आ कर फेल होती जा रही थी. आत्महत्या करना इतना मुश्किल होता है, यह तो कभी सोचा ही न था. दोपहर के भोजन पर हम ने नए सिरे से आत्महत्या की संभावनाओं पर विचार करना शुरू किया तो हताशा में रोहिणी की आंखें फिर बरस पड़ीं. मैं ने उसे सांत्वना देते हुए कहा, ‘‘कोई न कोई रास्ता निकल ही आएगा, परेशान मत हो.’’

रोहिणी ने छक कर खाना खाया. बाद में 2 गुलाबजामुन और आइसक्रीम भी ली वरना उस बेचारी को तो भूख भी नहीं थी. मेरी जिद ने ही उसे खाने पर मेरा साथ देने को मजबूर किया था.

चाय के दूसरे दौर तक पहुंचतेपहुंचते मुझे विश्वास हो गया कि आत्महत्या के प्रचलित तरीकों से रोहिणी का भला नहीं होने वाला. समस्या से निबटने के लिए नवीन दृष्टिकोण की जरूरत थी. बातोंबातों में मैं ने रोहिणी के मन की बात जानने की कोशिश की, जिस को कहेसुने बिना ही उस के पति को समझना चाहिए था.

बहुत टालमटोल के बाद झिझकते हुए उस ने जो बताया उस का सार यह था कि 2 दिन बाद उसे भाई के साले की बेटी की शादी में जाना था और उस के पास लेटैस्ट डिजाइन की कोई साड़ी नहीं थी. इसलिए 4 माह बाद आने वाले अपने जन्मदिन का गिफ्ट उसे ऐडवांस में चाहिए था ताकि शादी में पति की हैसियत के अनुरूप बनसंवर कर जा सके और मायके में बड़े यत्न से बनाई गई पति की इज्जत की साख बचा सके.

मुझे उस के पति पर क्रोध आने लगा. वैसे तो बड़े पत्नीभक्त बने फिरते हैं, पर पत्नी के मन की बात भी नहीं समझ सकते. अरे, शादीब्याह पर तो सभी नए कपड़े पहनते हैं. रोहिणी तो फिर भी अनावश्यक खर्च बचाने के लिए अपने गिफ्ट से ही काम चलाने को तैयार है. लोग तनख्वाह का ऐडवांस मांगते झिझकते हैं, यहां तो गिफ्ट के ऐडवांस का सवाल है. भला एक सभ्य, सुसंस्कृत महिला मुंह खोल कर कैसे कहेगी? पति को ही समझना चाहिए न.

‘‘अगर मैं बातोंबातों में भाई साहब को तेरे मन की बात समझा दूं तो कैसा रहे?’’ अचानक आए इस खयाल से मैं उत्साहित हो उठी. असल में अपनी प्यारी सहेली को उस के पति की लापरवाही के कारण खो देने का डर मुझे भी सता रहा था.

एक पल के लिए खिल कर उस का चेहरा फिर मुरझा गया और बोली, ‘‘उन्हें फिर भी न समझ आई तो?’’

मैं अभी ‘तो’ का जवाब ढूंढ़ ही रही थी कि टेलीफोन घनघना उठा. फोन पर रोहिणी के पति की घबराई हुई आवाज ने मुझे चौंका दिया.

‘‘रोहिणी मेरे पास बैठी है. हां, हां, वह एकदम ठीक है,’’ मैं ने उन की घबराहट दूर करने की कोशिश की.

‘‘मैं तुरंत आ रहा हूं,’’ कह कर उन्होंने फोन काट दिया. कुछ पल भी न बीते थे कि दरवाजे की घंटी बज उठी.

दरवाजा खोला तो रोहिणी के पति सामने खड़े थे. रोहित भी आते दिखाई दे गए. इसलिए मैं चाय का पानी चढ़ाने रसोई में चली गई और रोहित हाथमुंह धो कर रोहिणी के पति से बतियाने लगे.

रोहिणी की समस्या के निदान हेतु मैं बातों का रुख सही दिशा में कैसे मोड़ूं, इसी पसोपेश में थी कि रोहिणी ने पति के ब्रीफकेस में से एक पैकेट निकाल कर खोला. कुंदन और जरी के खूबसूरत काम वाली शिफोन की साड़ी को उस ने बड़े प्यार से उठा कर अपने ऊपर लगाया और पूछा, ‘‘कैसी लग रही है? ठीक तो है न?’’

‘‘इस पर तो किसी का भी मन मचल जाए. बहुत ही खूबसूरत है,’’ मेरी निगाहें साड़ी पर ही चिपक गई थीं.

‘‘पूरे ढाई हजार की है. कल शोकेस में लगी देखी थी. इन्होंने मेरे मन की बात पढ़ ली, तभी मुझे बिना बताए खरीद लाए,’’ रोहिणी की चहचहाट में गर्व की झलक साफ थी.

एक यह है, पति को रातदिन उंगलियों पर नचाती है, फिर भी मुंह खोलने से पहले ही पति मनचाही वस्तु दिलवा देते हैं. एक मैं हूं, रातदिन खटती हूं, फिर भी कोई पूछने वाला नहीं. एक तनख्वाह क्या ला कर दे देते हैं, सोचते हैं सारी जिम्मेदारी पूरी हो गई. साड़ी तो क्या कभी एक रूमाल तक ला कर नहीं दिया. तंग आ गई हूं मैं इन की लापरवाहियों से. किसी दिन नदीनाले में कूद कर जान दे दूंगी, तभी अक्ल आएगी, मेरे मन का घड़ा फूट कर आंखों के रास्ते बाहर आने को बेताब हो उठा. लगता है अब अपनी आत्महत्या के लिए रोहिणी से दोबारा सलाहमशवरा करना होगा. Family Story In Hindi

Hindi Story: पतझड़ के बाद – कैसे बदली सांवली काजल की जिंदगी?

Hindi Story, लेखिका- अंजु गुप्ता ‘प्रिया’

‘‘काजल बेटी, ड्राइवर गाड़ी ले कर आ गया है, बारिश थम जाने के  बाद चली जाती,’’ मां ने खिड़की के पास खड़ी काजल से कहा.

‘‘नहीं, मां, दीपक मेरा इंतजार करते होंगे. मुझे अब जाना चाहिए,’’ कह कर काजल ने मांबाबूजी से विदा ली और गाड़ी में बैठ गई.

बरसात अब थोड़ी थम गई थी और मौसम सुहावना हो चला था. कार में बैठेबैठे काजल के स्मृतिपटल पर अतीत की लकीरें फिर से खिंचने लगीं.

आज यह ड्रामा उस के साथ छठी बार हुआ था. वरपक्ष के लोग, जिन के लिए मांबाबूजी सुबह से ही तैयारी में लगे रहते, काजल से फिर वही जिद की जाती कि वह जल्दी से अच्छी तरह तैयार हो जाए. मेकअप से चेहरा थोड़ा ठीक कर ले पर काजल का कुछ करने का मन न करता. मां के तानों से दुखी हो वह बुझे मन से फिर भी एक आशा के साथ मेहमानों के लिए नाश्ते की ट्रे ले कर प्रस्तुत होती.

पिताजी कहते, ‘बड़ी सुशील व सुघड़ है हमारी काजल. बी.ए. प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण किया है.

मां भी काजल के बनाए व्यंजनों की तारीफ करना नहीं भूलतीं पर सब व्यर्थ. वर पक्ष के लोग काजल के गहरे काले रंग को देखते ही मुंह बिचका देते और बाद में जवाब देने का वादा कर मूक इनकार का प्रदर्शन कर ही जाते.

आज भी ऐसा ही हुआ और हमेशा की भांति फिर शुरू हुआ मां का तानाकशी का पुराण. बूआ भी काजल की बदसूरती का वर्णन अप्रत्यक्ष ढंग से करते हुए आग में घी डालने का कार्य करतीं. वैसे हमदर्दी का दिखावा करते हुए कहतीं, ‘बेचारी के भाग्य की विडंबना है. कितनी सीधी और सुघड़, हर कार्य में निपुण है, पर कुदरत ने इसे इतना कालाकलूटा तो बनाया ही अच्छे नाकनक्श भी नहीं दिए. ऐसे में भला कौन सा सुंदर नौजवान शादी के लिए इस के साथ हामी भरेगा. हां, कोई उस से उन्नीस हो तो कुछ बात बन जाए.’

काजल कुछ भी न कह पाती और अपनी किस्मत पर सिसकसिसक कर रो पड़ती. अब तो उस की आंखों के आंसू भी सूखने लगे थे. उस के साथ एक विडंबना यह भी थी कि पैदा होते ही उस की मां चिरनिद्रा में सो गईं. पिताजी ने घर वालों व बहनों के कहने पर दूसरी शादी कर ली.

नई मां जितनी खूबसूरत थी उतनी ही खूबसूरती से उस ने काजल के प्रति प्यार जताया था पर जब से उस ने सोनाली व सुंदरी जैसी खूबसूरत बेटियों को जन्म दिया था काजल के प्रति उस का प्यार लुप्त हो गया था.

काजल इस घर में मात्र काम करने वाली एक मशीन बन कर रह गई थी. छोटी बहनों को घर के काम करने से एलर्जी थी. घर की हर छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी जिम्मेदारी लदती तो सिर्फ काजल पर. वैसे मां भी जानती थी कि काजल से उसे कितना सहारा है. कभीकभी तो वह कह देती कि काजल न हो तो घर का एक पत्ता भी न हिले पर ये सब औपचारिक बातें थीं.

मां को नाज था तो सिर्फ अपनी बेटियों पर कि उन्हें तो कोई भी राजकुमार स्वयं मुंह से मांग कर ले जाएगा और ऐसा हुआ भी.

बड़ी बेटी सोनाली अपनी सखी की शादी में गई और वहां कुंवर को पसंद आ गई. पिताजी ने तो कहा कि पहले काजल के हाथ पीले हो जाएं. मां के यह कहने पर कि बड़ी के चक्कर में वे अपनी दोनों बेटियों को कुंवारी नहीं रख सकती, वे थोड़ा आहत भी हो गए थे.

बड़ी बेटी सोनाली की शादी के बाद तो मां को बस छोटी बेटी सुंदरी की चिंता थी पर हुआ यह कि जब काजल को 7वीं बार दिखाया गया उस दौरान सुंदरी के रूप की आभा ने मनोहर का मन हर लिया और वह काजल के बजाय सुंदरी को अपनी घर की शोभा बना कर ले गया.

अब रह गई तो सिर्फ काजल. बाबूजी जब कहते कि काजल के हाथ पीले हो जाते तो इस की मां की आत्मा को शांति मिलती तो मां जवाब देने से न चूकती, ‘काजल का विवाह नहीं हुआ तो इस में मेरा क्या दोष. इस का भाग्य ही खोटा है. मैं ने तो कभी कोई कसर नहीं छोड़ी. इस के चक्कर में मैं अपनी बेटियों को उम्र भर कुंवारी तो नहीं रख सकती थी. 32 की तो यह हो गई. मुझे तो 40 तक इस के आसार नजर नहीं आते.’

फिर भी पिताजी काजल के लिए सतत प्रयत्नशील रहते. काजल भी पिता की सहनशक्ति के आगे चुप थी पर जब पिताजी ने फिर से यह ड्रामा एक बार दोहराने को कहा तो काजल में न जाने कहां से पिताजी का विरोध करने की शक्ति आ गई और जोर की आवाज में कह ही दिया, ‘नहीं, अब और नहीं. पिताजी, मुझ पर दया करो. अपमान का घूंट मैं बारबार न पी सकूंगी, पिताजी. मुझ अभागिन को बोझ समझते हो तो मैं नौकरी कर अपना निर्वाह खुद करूंगी.’

काजल ने इस बार किसी की परवा न करते हुए एक बुटीक में नौकरी कर ली. अब उस की दिनचर्या और भी व्यस्त हो गई. घर के अधिकांश कार्य वह सवेरे तड़के निबटा कर नौकरी पर जाती और शाम तक व्यस्त रहती. रात को सारा काम निबटा कर ही सोती.

अब उसे उदासी के लिए समय ही न मिलता. काम में व्यस्त रह कर वह संतुष्ट रहती. उस की कोई सखीसहेली भी नहीं थी जिस के साथ अपना सुखदुख बांटती. परिवार के सदस्यों के बीच उस ने अपने को हमेशा तनहा ही पाया था पर अब उसे विदुषी जैसी एक अच्छी सहेली मिल गई थी. विदुषी ने ही काजल को अपने यहां नौकरी पर रखा था. वह काजल की कार्य- कुशलता व उस के सौम्य स्वभाव से बहुत प्रभावित थी. उस ने काजल को प्रोत्साहित किया कि वह अपने में थोड़ा परिवर्तन लाए और जमाने के साथ चले.

उस ने काजल को चुस्त, स्मार्ट और सुंदर दिखने के सभी तौरतरीके बताए. काजल पर विदुषी की बातों का गहरा प्रभाव पड़ा. उस के व्यक्तित्व में गजब का बदलाव आया था.

एक दिन विदुषी ने काजल को अपने घर डिनर पर आमंत्रित किया. शाम को जब वह उस के घर पहुंची तो  बड़ी उम्र के एक बदसूरत से युवक ने दरवाजा खोला. तभी विदुषी की आवाज कानों में पड़ी, ‘अरे, महेश, काजल को बाहर ही खड़ा रखोगे या अंदर भी लाओगे… काजल, यह मेरे पति महेश और महेश, यह काजल,’ दोनों का परिचय कराते हुए विदुषी ने चाय की ट्रे मेज पर रख दी.

काजल थोड़ा अचंभित थी, इस विपरीत जोड़े को देख कर, ‘सच विदुषी कितनी खूबसूरत, कितनी स्मार्ट है और ऊपर से अपना खुद का व्यापार करती है. कितने खूबसूरत ड्रेसेज का प्रोडक्शन करती है, औरों को भी खूबसूरत बनाती है, और कहां उस का यह पति. काला, मुंह पर चेचक के दाग…’

काजल अभी सोच ही रही थी कि फोन की घंटी बजी. महेश ने फोन रिसीव कर विदुषी और काजल से जाने की इजाजत मांगी. अर्जेंट केस होने की वजह से वह फौरन गाड़ी ले कर रवाना हो गया.

उस के जाने के बाद खाना खाते हुए काजल ने विदुषी से कहा, ‘‘दीदी, क्या आप का प्रेम विवाह…’’

विदुषी ने बात काटते हुए कहा, ‘हां, मेरा प्रेम विवाह हुआ है. मेरे पति महेश भौतिक सुंदरता के नहीं, मन की सुंदरता के मालिक हैं और मुझे ऊंचा उठाने में मेरे पति का ही श्रेय है.  उन्होंने हर पल मेरा साथ दिया.’

विदुषी ने बताया कि एक एक्सीडेंट के दौरान उन का पूरा परिवार खत्म हो गया था और उन के बचने की भी कोई उम्मीद नहीं थी. ऐसे में उन्हें डाक्टर महेश ने ही संभाला और टूटने से बचाया. जहां मन मिल जाते हैं वहां सुंदरताकुरूपता का कोई अर्थ नहीं होता.

काजल यह सुन कर द्रवित हो उठी थी. खाना खत्म कर काजल ने जाने की इजाजत मांगी. विदुषी से विदा हो कर वह कुछ दूर ही चली थी कि उस ने देखा एक स्कूटर सवार तेजी से एक रिकशे को टक्कर मार कर आगे निकल गया. रिकशे में बैठे वृद्ध दंपती अपने पर नियंत्रण न रख सके और वृद्ध पुरुष रिकशे से गिर पड़ा. उस की पत्नी घबरा कर सहायता के लिए चिल्लाने लगी.

सड़क पर ज्यादा भीड़ नहीं थी. काजल भागीभागी उन के  पास पहुंची. उस ने वृद्धा को ढाढस बंधाते हुए उन की दवाइयां जो सड़क पर गिर गई थीं, समेटीं और वृद्ध को सहारा दे कर उठाया. उस की कुहनियां छिल गई थीं और खून बह रहा था. काजल ने पास में ही एक डाक्टर के क्लिनिक पर ले जा कर उस वृद्ध की ड्रेसिंग कराई.

उस वृद्धा ने काजल को आशीर्वाद देते हुए बताया कि वे कुछ ही दूरी पर रहते हैं. तबीयत खराब होने के कारण डाक्टर को दिखा कर घर वापस जा रहे थे. काजल ने उन्हें उन के घर के पास तक छोड़ कर विदा ली.

वृद्ध पुरुष ने, जिन का नाम उमाकांत था, कहा, ‘बेटी, तुम कल आने का वादा कर के जाओ.’

उन्होंने इतने प्यार से, विनम्रता से निवेदन किया था कि काजल इनकार न कर सकी.

घर में घुसते ही मां ने उसे आड़े हाथों लिया. पिताजी ने भी देरी का कारण न पूछते हुए मौन निगाहों से काजल को देखा और बिना कुछ कहे अपने कमरे में चले गए.

सुबह जब काजल ने पिताजी को रात की घटना बताई तो पिताजी बहुत खुश हुए और आफिस से लौटते हुए उमाकांत बाबू का हालचाल पूछ कर आने को कहा. काजल ने विदुषी से दोपहर में ही छुट्टी ले ली और उमाकांत बाबू के घर की ओर चल पड़ी.

काजल को उमाकांतजी और उन की पत्नी से इतना लगाव हो गया कि वह रोज उन से मिलने जाती. उन की सेवा से  उसे एक सुखद अनुभूति होती.

उस दिन वह आफिस जाने के लिए आधा घंटा पहले घर से निकली तो उस के कदम उमाकांतजी के घर की तरफ बढ़ गए. दरवाजा मांजी की बजाय एक लंबे और आकर्षक नौजवान ने खोला. भीतर से उमाकांत बाबू की आवाज आई, ‘अरे, काजल बेटी, चली आओ. मैं बरामदे में हूं.’

उन्होंने काजल से उस नौजवान का परिचय कराते हुए कहा, ‘यह हमारा बेटा दीपक है. आईएएस की ट्रेनिंग पूरी कर के मसूरी से कल ही लौटा है.’

काजल ने धीरे से दीपक से अभिवादन किया.

दीपक ने कृतज्ञता प्रकट करते हुए कहा, ‘मैं, आप का बहुत आभारी हूं. काजलजी, मेरी अनुपस्थिति में आप ने मेरे मांबाबूजी का खयाल रखा.’

तभी मांजी चाय ले कर आ गइर्ं और बोलीं, ‘दीपक बेटा, यही है मेरी बहू, क्या तुझे पसंद है? और हां, बेटी, तू भी इनकार नहीं करना. मेरा बेटा बड़ा अफसर है, तुझे बहुत खुश रखेगा.’

काजल को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि यह क्या हो रहा है. उस की आंखों से टपटप आंसू गिरने लगे. वह रोते हुए बोली, ‘मांजी. आप यह क्या कह रही हैं? आप मेरे बारे में सब कुछ जानती हैं. कहां मैं और कहां दीपक बाबू? फिर मैं आप की पसंद हूं पर आप के बेटे की तो नहीं…’

दीपक, जो चुपचाप खड़े थे, धीमे से मुसकरा कर बोले, ‘देखिए, काजलजी, शादीविवाह की बात तो मांबाप ही तय करते हैं और मैं ने अपनी पसंद अपनी मां से कह दी. क्या आप को कोई आपत्ति है? मुझे आप जैसी ही लड़की की तलाश थी. यदि मैं आप को पसंद नहीं तो…’

‘नहीं, दीपक बाबू, दरअसल, बात यह नहीं…’

‘यह नहीं, तो कहो हां, बोलो हां.’

और फिर काजल भी सभी के साथ हंस पड़ी.

तब उमाकांत बाबू ने काजल को आदेशात्मक स्वर में कहा, ‘बेटी, आज आफिस नहीं, घर जाओ. हम सब शाम को तुम्हारे रिश्ते की बात करने आ रहे हैं.’

शाम को उमाकांत बाबू, दीपक और उस की मां के साथ आए. वे काजल की मंगनी दीपक के साथ तय कर शादी की तारीख भी पक्की कर गए. सभी तरफ खुशी का माहौल था. सभी रिश्तेदार, पासपड़ोसी काजल के भाग्य से चकित थे. मां भी इठला कर कह रही थीं कि मेरी काजल तो लाखों में एक है तभी तो दीपक जैसा उच्च पदस्थ दामाद मिला.

काजल भी सोच रही थी कि दुख के पतझड़ के बाद कभी न कभी तो सुख का वसंत आता है और यह वसंत उस के जीवन में इतने समय बाद आया….

तभी, गाड़ी का ब्रेक लगते ही काजल अतीत से निकल कर वर्तमान में लौट आई. उस ने देखा दीपक उस के इंतजार में बाहर ही खड़े हैं. Hindi Story

Crime Story In Hindi: मरहम – गुंजन ने अभिनव से क्यों बदला लिया?

Crime Story In Hindi: गुंजन जल्दीजल्दी काम निबटा रही थी. दाल और सब्जी बना चुकी थी. बस, फुलके बनाने बाकी थे. तभी अभिनव किचन में दाखिल हुआ और गुंजन के करीब रखे गिलास को उठाने लगा. उस ने जानबूझ कर गुंजन को हौले से स्पर्श करते हुए गिलास उठाया और पानी ले कर बाहर निकल गया.

गुंजन की धड़कनें बढ़ गईं. एक नशा सा उस के बदन को महकाने लगा. उस ने चाहत भरी नजरों से अभिनव की तरफ देखा जो उसे ही निहार रहा था. गुंजन की धड़कनें फिर से ठहर गईं. उसे लगा, जैसे पूरे जहान का प्यार लिए अभिनव ने उसे आगोश में ले लिया हो और वह दुनिया को भूल कर अभिनव में खो गई हो.

तभी अम्माजी अखबार ढूंढ़ती हुई कमरे में दाखिल हुईं और गुंजन का सपना टूट गया. नजरें चुराती हुई गुंजन फिर से काम में लग गई.

गुंजन अभिनव के यहां खाना बनाने का काम करती है. अम्माजी का बड़ा बेटा अनुज और बहू सारिका जौब पर जाते हैं. छोटा बेटा अभिनव भी एक आईटी कंपनी में काम करता है. उस की अभी शादी नहीं हुई है और वह गुंजन की तरफ आकृष्ट है.

22 साल की गुंजन बेहद खूबसूरत है और वह अपने मातापिता की इकलौती संतान है. मातापिता ने उसे बहुत लाड़प्यार से पाला है. इंटर तक पढ़ाया भी है. मगर घर की माली हालत सही नहीं होने की वजह से उसे दूसरों के घरों में खाना बनाने का काम करना पड़ा.

गुंजन जानती है कि अभिनव ऊंची जाति का पढ़ालिखा लड़का है और अभिनव के साथ उस का कोई मेल नहीं हो सकता. मगर कहते हैं न कि प्यार ऐसा नशा है जो अच्छेअच्छों की बुद्धि पर ताला लगा देता है. प्यार के एहसास में डूबा व्यक्ति सहीगलत, ऊंचनीच, अच्छाबुरा कुछ भी नहीं समझता. उसे तो बस किसी एक शख्स का खयाल ही हरपल रहने लगता है और यही हो रहा था गुंजन के साथ भी. उसे सोतेजागते हर समय अभिनव ही नजर आने लगा था.

धीरेधीरे वक्त गुजरता गया. अभिनव की हिम्मत बढ़ती गई और गुंजन भी उस के आगे कमजोर पड़ती गई. एक दिन मौका देख कर अभिनव ने उसे बांहों में भर लिया. गुंजन ने खुद को छुड़ाने का प्रयास करते हुए कहा, ‘‘अभिनवजी, अम्माजी ने देख लिया तो क्या सोचेंगी?’’

‘‘अम्मा सो रही हैं, गुंजन. तुम उन की चिंता मत करो. बहुत मुश्किल से आज हमें ये पल मिले हैं. इन्हें बरबाद न करो.’’

‘‘मगर अभिनवजी, यह सही नहीं है. आप का और मेरा कोई मेल नहीं,’’ गुंजन अब भी सहज नहीं थी.

‘‘ऐसी बात नहीं है गुंजन. मैं तुम से प्यार करने लगा हूं. प्यार में कोई छोटाबड़ा नहीं होता. बस, मुझे इन जुल्फों में कैद हो जाने दो. गुलाब की पंखुड़ी जैसे इन लबों को एक दफा छू लेने दो.’’

अभिनव किसी भी तरह गुंजन को पाना चाहता था. गुंजन अंदर से डरी हुई थी मगर अभिनव का प्यार उसे अपनी तरफ खींच रहा था. आखिर गुंजन ने भी हथियार डाल दिए. वह एक प्रेयसी की भांति अभिनव के सीने से लग गई. दोनों एकदूसरे के आलिंगन में बंधे प्यार की गहराई में डूबते रहे. जब होश आया तो गुंजन की आंखें छलछला आईं. वह बोली, ‘‘आप मेरा साथ तो दोगे न? जमाने की भीड़ में मुझे अकेला तो नहीं छोड़ दोगे?’’

‘‘पागल हो क्या? प्यार करता हूं. छोड़ कैसे दूंगा?’’ कह कर उस ने फिर से गुंजन को चूम लिया. गुंजन फिर से उस के सीने में दुबक गई. वक्त फिर से ठहर गया.

अब तो ऐसा अकसर होने लगा. अभिनव प्यार का दावा कर के गुंजन को करीब ले आता.

दोनों ने ही प्यार के रास्ते पर बढ़ते हुए मर्यादाओं की सीमारेखाएं तोड़ दी थीं. गुंजन प्यार के सुहाने सपनों के साथ सुंदर घरसंसार के सपने भी देखने लगी थी.

मगर एक दिन वह देख कर भौचक्की रह गई कि अभिनव के रिश्ते की बात करने के लिए एक परिवार आया हुआ है. मांबाप के साथ एक आधुनिक, आकर्षक और स्टाइलिश लड़की बैठी हुई थी.

अम्माजी ने गुंजन से कुछ खास बनाने की गुजारिश की तो गुंजन ने सीधा पूछ लिया, ‘‘ये कौन लोग हैं अम्माजी?’’

‘‘ये अपने अभि को देखने आए हैं. इस लड़की से अभि की शादी की बात चल रही है. सुंदर है न लड़की?’’ अम्माजी ने पूछा तो गुंजन ने हां में सिर हिला दिया.

उस के दिलोदिमाग में तो एक भूचाल सा आ गया था. उस दिन घर जा कर भी गुंजन की आंखों के आगे उसी लड़की का चेहरा नाचता रहा. आंखों से नींद कोसों दूर थी.

अगले दिन जब वह अभिनव के घर खाना बनाने गई तो सब से पहले मौका देख कर उस ने अभिनव से बात की, ‘‘यह सब क्या है अभिनव? आप की शादी की बात चल रही है? आप ने अपने घर वालों को हमारे प्यार की बात क्यों नहीं बताई?’’

‘‘नहीं गुंजन, हमारे प्यार की बात मैं उन्हें नहीं बता सकता.’’

‘‘मगर क्यों?’’

‘‘क्योंकि हमारा प्यार समाज स्वीकार नहीं करेगा. मेरे मांबाप कभी नहीं मानेंगे कि मैं एक नीची जाति की लड़की से शादी करूं,’’ अभिनव ने बेशर्मी से कहा.

‘‘तो फिर प्यार क्यों किया था आप ने? शादी नहीं करनी थी तो मुझे सपने क्यों दिखाए थे?’’ तड़प कर गुंजन बोली.

‘‘देखो गुंजन, समझने का प्रयास करो. प्यार हम दोनों ने किया है. प्यार के लिए केवल हम दोनों की रजामंदी चाहिए थी. मगर शादी एक सामाजिक रिश्ता है. शादी के लिए समाज की अनुमति भी चाहिए. शादी तो मुझे घर वालों के कहेनुसार ही करनी होगी.’’

‘‘यानी प्यार नहीं, आप ने प्यार का नाटक खेला है मेरे साथ. मैं नहीं केवल मेरा शरीर चाहिए था. क्यों कहा था मुझे कि कभी अकेला नहीं छोड़ोगे?’’

‘‘मैं तुम्हें अकेला कहां छोड़ रहा हूं गुंजन? मैं तो अब भी तुम ही से प्यार करता हूं मेरी जान. यकीन मानो, हमारा यह प्यार हमेशा बना रहेगा. शादी भले ही उस से कर लूं मगर हम दोनों पहले की तरह ही मिलते रहेंगे. हमारा रिश्ता वैसा ही चलता रहेगा. मैं हमेशा तुम्हारा बना रहूंगा,’’ गुंजन को कस कर पकड़ते हुए अभिनव ने कहा.

गुंजन को लगा जैसे हजारों बिच्छुओं ने उसे जकड़ रखा हो. वह खुद को अभिनव

के बंधन से आजाद कर काम में लग गई. आंखों से आंसू बहे जा रहे थे और दिल तड़प रहा था.

घर आ कर वह सारी रात सोचती रही. अभिनव की बेवफाई और अपनी मजबूरी उसे रहरह कर कचोट रही थी. अभिनव के लिए भले ही यह प्यार तन की भूख थी मगर उस ने तो हृदय से चाहा था उसे. तभी तो अपना सबकुछ समर्पित कर दिया था. इतनी आसानी से वह अभिनव को माफ नहीं कर सकती थी. उस के किए की सजा तो देनी ही होगी. वह पूरी रात यही सोचती रही कि अभिनव को सबक कैसे सिखाया जाए.

आखिर उसे समझ आ गया कि वह अभिनव से बदला कैसे ले सकती है. अगले दिन से ही उस ने बदले की पटकथा लिखनी शुरू कर दी.

उस दिन वह ज्यादा ही बनसंवर कर अभि के घर खाना बनाने पहुंची. अभि शाम

4 बजे की शिफ्ट में औफिस जाता था. अम्माजी हर दूसरे दिन 12 से 4 बजे तक के लिए घर से बाहर अपनी सखियों से मिलने जाती थीं. पिताजी के पैर में तकलीफ थी, इसलिए वे बिस्तर पर ही रहते थे.

12 बजे अम्माजी के जाने के बाद वह अभिनव के पास चली आई और उस का हाथ पकड़ कर बोली, ‘‘अभिनव, आप की शादी की बात सुन कर मैं दुखी हो गई थी. मगर अब मैं ने खुद को संभाल लिया है. शादी से पहले के इन दिनों को मैं भरपूर एंजौय करना चाहती हूं. आप की बांहों में खो जाना चाहती हूं.’’

अभिनव की तो मनमांगी मुराद पूरी हो रही थी. उस ने झट गुंजन को करीब खींच लिया. दोनों एकदूसरे की आगोश में खोते चले गए. बैड पर अभि की बांहों में मचलती गुंजन ने सवाल किया, ‘‘कल आप सच कह रहे थे अभिनव, शादी के बाद भी आप मुझ से यह रिश्ता बनाए रखोगे न?’’

‘‘हां गुंजन, इस में तुम्हें शक क्यों है? शादी एक चीज होती है और प्यार दूसरी चीज. हम दोनों का प्यार और शरीर का यह मिलन हमेशा कायम रहेगा. शादी के बाद भी यह रिश्ता ऐसा ही चलता रहेगा,’’ कह कर अभिनव फिर से गुंजन को बेतहाशा चूमने लगा.

शाम को गुंजन अपने घर लौट आई. उसे खुद से घिन आ रही थी. वह बाथरूम में गई और नहा कर बाहर निकली. फिर मोबाइल ले कर बैठ गई. आज के उन के शारीरिक मिलन का एकएक पल इस मोबाइल में कैद था. उस ने बड़ी होशियारी से मोबाइल का कैमरा औन कर के ऐसी जगह रखा था जहां से दोनों की सारी हरकतें कैद हो गई थीं.

काफी देर तक का लंबा अंतरंग वीडियो था. 10 दिन के अंदर उस ने ऐसे

3-4 वीडियो और शूट कर लिए. फिर वीडियोज एडिट कर के बड़ी चतुराई से उस ने अपने चेहरे को छिपा दिया.

कुछ दिनों में अभिनव की शादी हो गई. 8-10 दिनों के अंदर ही उस ने अभिनव की पत्नी से दोस्ती कर ली और उस का मोबाइल नंबर ले लिया. अगले दिन उस ने अम्माजी को कह दिया कि उस की मुंबई में जौब लग गई है और अब काम पर नहीं आ पाएगी. उस दिन वह अभिनव से मिली भी नहीं और घर चली आई.

अगले दिन सुबहसुबह उस ने अपने और अभिनव के 2 अंतरंग वीडियो अभिनव की पत्नी को व्हाट्सऐप कर दिए. 2 घंटे बाद उस ने 2 और वीडियो व्हाट्सऐप किए और चैन से घर के काम निबटाने लगी.

शाम 4 बजे के करीब अभिनव का फोन आया. गुंजन को इस का अंदाजा पहले से था. उस ने मुसकराते हुए फोन उठाया तो सामने से अभिनव का रोता हुआ स्वर सुनाई दिया, ‘‘गुंजन, तुम ने यह क्या किया मेरे साथ? मेरी शादीशुदा जिंदगी की अभी ठीक से शुरुआत भी नहीं हुई थी और तुम ने ये वीडियोज भेज दिए. तुम्हें पता है, माया सुबह से ही मुझ से लड़ रही थी और अभीअभी सूटकेस ले कर हमेशा के लिए अपने घर चली गई. गुंजन, तुम ने यह क्या कर दिया मेरे साथ? अब मैं…’’

‘‘…अब तुम न घर के रहोगे न घाट के. गुडबाय मिस्टर अभिनव,’’ गुंजन ने कहा और फोन काट दिया.

उस ने आज अभिनव से बदला ले लिया था. खुद को मिले हर आंसुओं का बदला. आज उसे महसूस हो रहा था जैसे उस के जख्मों पर किसी ने मरहम लगा दिया हो. Crime Story In Hindi

Hindi Family Story: बहू – जब स्वार्थी दीपक को उसकी पत्नी ने हराया

Hindi Family Story, लेखिका- अमिता बत्रा

बहू शब्द सुनते ही मन में सब से पहला विचार यही आता है कि बहू तो सदा पराई होती है. लेकिन मेरी शोभा भाभी से मिल कर हर व्यक्ति यही कहने लगता है कि बहू हो तो ऐसी. शोभा भाभी ने न केवल बहू का, बल्कि बेटे का भी फर्ज निभाया. 15 साल पहले जब उन्होंने दीपक भैया के साथ फेरे ले कर यह वादा किया था कि वे उन के परिवार का ध्यान रखेंगी व उन के सुखदुख में उन का साथ देंगी, तब से वह वचन उन्होंने सदैव निभाया.

जब बाबूजी दीपक भैया के लिए शोभा भाभी को पसंद कर के आए थे तब बूआजी ने कहा था, ‘‘बड़े शहर की लड़की है भैयाजी, बातें भी बड़ीबड़ी करेगी. हमारे छोटे शहर में रह नहीं पाएगी.’’

तब बाबूजी ने मुसकरा कर कहा था, ‘‘दीदी, मुझे लड़की की सादगी भा गई. देखना, वह हमारे परिवार में खुशीखुशी अपनी जगह बना लेगी.’’

बाबूजी की यह बात सच साबित हुई और शोभा भाभी कब हमारे परिवार का हिस्सा बन गईं, पता ही नहीं चला. भाभी हमारे परिवार की जान थीं. उन के बिना त्योहार, विवाह आदि फीके लगते थे. भैया सदैव काम में व्यस्त रहते थे, इसलिए घर के काम के साथसाथ घर के बाहर के काम जैसे बिजली का बिल जमा करना, बाबूजी की दवा आदि लाना सब भाभी ही किया करती थीं.

मां के देहांत के बाद उन्होंने मुझे कभी मां की कमी महसूस नहीं होने दी. इसी बीच राहुल के जन्म ने घर में खुशियों का माहौल बना दिया. सारा दिन बाबूजी उसी के साथ खेलते रहते. मेरे दोनों बच्चे अपनी मामी के इस नन्हे तोहफे से बेहद खुश थे. वे स्कूल से आते ही राहुल से मिलने की जिद करते थे. मैं जब भी अपने पति दिनेश के साथ अपने मायके जाती तो भाभी न दिन देखतीं न रात, बस सेवा में लग जातीं. इतना लाड़ तो मां भी नहीं करती थीं.

एक दिन बाबूजी का फोन आया और उन्होंने कहा, ‘‘शालिनी, दिनेश को ले कर फौरन चली आ बेटी, शोभा को तेरी जरूरत है.’’

मैं ने तुरंत दिनेश को दुकान से बुलवाया और हम दोनों घर के लिए निकल पड़े. मैं सारा रास्ता परेशान थी कि आखिर बाबूजी ने इस समय हमें क्यों बुलाया और भाभी को मेरी जरूरत है, ऐसा क्यों कहा  मन में सवाल ले कर जैसे ही घर पहुंची तो देखा कि बाहर टैक्सी खड़ी थी और दरवाजे पर 2 बड़े सूटकेस रखे थे. कुछ समझ नहीं आया कि क्या हो रहा है. अंदर जाते ही देखा कि बाबूजी परेशान बैठे थे और भाभी चुपचाप मूर्ति बन कर खड़ी थीं.

भैया गुस्से में आए और बोले, ‘‘उफ, तो अब अपनी वकालत करने के लिए शोभा ने आप लोगों को बुला लिया.’’

भैया के ये बोल दिल में तीर की तरह लगे. तभी दिनेश बोले, ‘‘क्या हुआ भैया आप सब इतने परेशान क्यों हैं ’’

इतना सुनते ही भाभी फूटफूट कर रोने लगीं.

भैया ने गुस्से में कहा, ‘‘कुछ नहीं दिनेश, मैं ने अपने जीवन में एक महत्त्वपूर्ण फैसला लिया है जिस से बाबूजी सहमत नहीं हैं. मैं विदेश जाना चाहता हूं, वहां बहुत अच्छी नौकरी मिल रही है, रहने को मकान व गाड़ी भी.’’

‘‘यह तो बहुत अच्छी बात है भैया,’’ दिनेश ने कहा.

दिनेश कुछ और कह पाते, तभी भैया बोले, ‘‘मेरी बात अभी पूरी नहीं हुई दिनेश, मैं अब अपना जीवन अपनी पसंद से जीना चाहता हूं, अपनी पसंद के जीवनसाथी के साथ.’’

यह सुनते ही मैं और दिनेश हैरानी से भैया को देखने लगे. भैया ऐसा सोच भी कैसे सकते थे. भैया अपने दफ्तर में काम करने वाली नीला के साथ घर बसाना चाहते थे.

‘‘शोभा मेरी पसंद कभी थी ही नहीं. बाबूजी के डर के कारण मुझे यह विवाह करना पड़ा. परंतु कब तक मैं इन की खुशी के लिए अपनी इच्छाएं दबाता रहूंगा ’’

मैं बाबूजी के पैरों पर गिर कर रोती हुई बोली, ‘‘बाबूजी, आप भैया से कुछ कहते क्यों नहीं  इन से कहिए ऐसा न करें, रोकिए इन्हें बाबूजी, रोक लीजिए.’’

चारों ओर सन्नाटा छा गया, काफी सोच कर बाबूजी ने भैया से कहा, ‘‘दीपक, यह अच्छी बात है कि तुम जीवन में सफलता प्राप्त कर रहे हो पर अपनी सफलता में तुम शोभा को शामिल नहीं कर रहे हो, यह गलत है. मत भूलो कि तुम आज जहां हो वहां पहुंचने में शोभा ने तुम्हारा भरपूर साथ दिया. उस के प्यार और विश्वास का यह इनाम मत दो उसे, वह मर जाएगी,’’ कहते हुए बाबूजी की आंखों में आंसू आ गए.

भैया का जवाब तब भी वही था और वे हम सब को छोड़ कर अपनी अलग दुनिया बसाने चले गए.

बाबूजी सदा यही कहते थे कि वक्त और दुनिया किसी के लिए नहीं रुकती, इस बात का आभास भैया के जाने के बाद हुआ. सगेसंबंधी कुछ दिन तक घर आते रहे दुख व्यक्त करने, फिर उन्होंने भी आना बंद कर दिया.

जैसेजैसे बात फैलती गई वैसेवैसे लोगों का व्यवहार हमारे प्रति बदलता गया. फिर एक दिन बूआजी आईं और जैसे ही भाभी उन के पांव छूने लगीं वैसे ही उन्होंने चिल्ला कर कहा, ‘‘हट बेशर्म, अब आशीर्वाद ले कर क्या करेगी  हमारा बेटा तो तेरी वजह से हमें छोड़ कर चला गया. बूढ़े बाप का सहारा छीन कर चैन नहीं मिला तुझे  अब क्या जान लेगी हमारी  मैं तो कहती हूं भैया इसे इस के मायके भिजवा दो, दीपक वापस चला आएगा.’’

बाबूजी तुरंत बोले, ‘‘बस दीदी, बहुत हुआ. अब मैं एक भी शब्द नहीं सुनूंगा. शोभा इस घर की बहू नहीं, बेटी है. दीपक हमें इस की वजह से नहीं अपने स्वार्थ के लिए छोड़ कर गया है. मैं इसे कहीं नहीं भेजूंगा, यह मेरी बेटी है और मेरे पास ही रहेगी.’’

बूआजी ने फिर कहा, ‘‘कहना बहुत आसान है भैयाजी, पर जवान बहू और छोटे से पोते को कब तक अपने पास रखोगे  आप तो कुछ कमाते भी नहीं, फिर इन्हें कैसे पालोगे  मेरी सलाह मानो इन दोनों को वापस भिजवा दो. क्या पता शोभा में ऐसा क्या दोष है, जो दीपक इसे अपने साथ रखना ही नहीं चाहता.’’

यह सुनते ही बाबूजी को गुस्सा आ गया और उन्होंने बूआजी को अपने घर से चले जाने को कहा. बूआजी तो चली गईं पर उन की कही बात बाबूजी को चैन से बैठने नहीं दे रही थी. उन्होंने भाभी को अपने पास बैठाया और कहा, ‘‘बस शोभा, अब रो कर अपने आने वाले जीवन को नहीं जी सकतीं. तुझे बहादुर बनना पड़ेगा बेटा. अपने लिए, अपने बच्चे के लिए तुझे इस समाज से लड़ना पड़ेगा.

तेरी कोई गलती नहीं है. दीपक के हिस्से तेरी जैसी सुशील लड़की का प्यार नहीं है.

तू चिंता न कर बेटा, मैं हूं न तेरे साथ और हमेशा रहूंगा.’’

वक्त के साथ भाभी ने अपनेआप को संभाल लिया. उन्होंने कालेज में नौकरी कर ली और शाम को घर पर भी बच्चों को पढ़ाने लगीं. समाज की उंगलियां भाभी पर उठती रहीं, पर उन्होंने हौसला नहीं छोड़ा. राहुल को स्कूल में डालते वक्त थोड़ी परेशानी हुई पर भाभी ने सब कुछ संभालते हुए सारे घर की जिम्मेदारी अपने कंधों पर उठा ली.

भाभी ने यह साबित कर दिया कि अगर औरत ठान ले तो वह अकेले पूरे समाज से लड़ सकती है. इस बीच भैया की कोई खबर नहीं आई. उन्होंने कभी अपने परिवार की खोजखबर नहीं ली. सालों बीत गए भाभी अकेली परिवार चलाती रहीं, पर भैया की ओर से कोई मदद नहीं आई.

एक दिन भाभी का कालेज से फोन आया, ‘‘दीदी, घर पर ही हो न शाम को

आप से कुछ बातें करनी हैं.’’

‘‘हांहां भाभी, मैं घर पर ही हूं आप आ जाओ.’’

शाम 6 बजे भाभी मेरे घर पहुंचीं. थोड़ी परेशान लग रही थीं. चाय पीने के बाद मैं ने उन से पूछा, ‘‘क्या बात है भाभी कुछ परेशान लग रही हो  घर पर सब ठीक है ’’

थोड़ा हिचकते हुए भाभी बोलीं, ‘‘दीदी, आप के भैया का खत आया है.’’

मैं अपने कानों पर विश्वास नहीं कर पा रही थी. बोली, ‘‘इतने सालों बाद याद आई उन को अपने परिवार की या फिर नई बीवी ने बाहर निकाल दिया उन को ’’

‘‘ऐसा न कहो दीदी, आखिर वे आप के भाई हैं.’’

भाभी की बात सुन कर एहसास हुआ कि आज भी भाभी के दिल के किसी कोने में भैया हैं. मैं ने आगे बढ़ कर पूछा, ‘‘भाभी, क्या लिखा है भैया ने ’’

भाभी थोड़ा सोच कर बोलीं, ‘‘दीदी, वे चाहते हैं कि बाबूजी मकान बेच कर उन के साथ चल कर विदेश में रहें.’’

‘‘क्या कहा  बाबूजी मकान बेच दें  भाभी, बाबूजी ऐसा कभी नहीं करेंगे और अगर वे ऐसा करना भी चाहेंगे तो मैं उन्हें कभी ऐसा करने नहीं दूंगी. भाभी, आप जवाब दे दीजिए कि ऐसा कभी नहीं होगा. वह मकान बाबूजी के लिए सब कुछ है, मैं उसे कभी बिकने नहीं दूंगी. वह मकान आप का और राहुल का सहारा है. भैया को एहसास है कि अगर वह मकान नहीं होगा तो आप लोग कहां जाएंगे  आप के बारे में तो नहीं पर राहुल के बारे में तो सोचते. आखिर वह उन का बेटा है.’’

मेरी बातें सुन कर भाभी चुप हो गईं और गंभीरता से कुछ सोचने लगीं. उन्होंने यह बात अभी बाबूजी से छिपा रखी थी. हमें समझ नहीं आ रहा था कि अब क्या करें, तभी दिनेश आ गए और हमें परेशान देख कर सारी बात पूछी. बात सुन कर दिनेश ने भाभी से कहा, ‘‘भाभी, आप को यह बात बाबूजी को बता देनी चाहिए. दीपक भैया के इरादे कुछ ठीक नहीं लग रहे.’’

यह सुनते ही भाभी डर गईं. फिर हम तीनों तुरंत घर के लिए निकल पड़े. घर जा कर

भाभी ने सारी बात विस्तार से बाबूजी को बता दी. बाबूजी कुछ विचार करने लगे. उन के चेहरे से लग रहा था कि भैया ऐसा करेंगे उन्हें इस बात की उम्मीद थी. उन्होंने दिनेश से पूछा, ‘‘दिनेश, तुम बताओ कि हमें क्या करना चाहिए ’’

दिनेश ने कहा, ‘‘दीपक आप के बेटे हैं तो जाहिर सी बात है कि इस मकान पर उन का अधिकार बनता है. पर यदि आप अपने रहते यह मकान भाभी या राहुल के नाम कर देते हैं तो फिर भैया चाह कर भी कुछ नहीं कर सकेंगे.’’

दिनेश की यह बात सुन कर बाबूजी ने तुरंत फैसला ले लिया कि वे अपना मकान भाभी के नाम कर देंगे. मैं ने बाबूजी के इस फैसले को मंजूरी दे दी और उन्हें विश्वास दिलाया कि वे सही कर रहे हैं.

ठीक 10 दिन बाद भैया घर आ पहुंचे और आ कर अपना हक मांगने लगे. भाभी पर इलजाम लगाने लगे कि उन्होंने बाबूजी के बुढ़ापे का फायदा उठाया है और धोखे से मकान अपने नाम करवा लिया है.

भैया की कड़वी बातें सुन कर बाबूजी को गुस्सा आ गया. वे भैया को थप्पड़ मारते हुए बोले, ‘‘नालायक कोई तो अच्छा काम किया होता. शोभा को छोड़ कर तू ने पहली गलती की और अब इतनी घटिया बात कहते हुए तुझे जरा सी भी लज्जा नहीं आई. उस ने मेरा फायदा नहीं उठाया, बल्कि मुझे सहारा दिया. चाहती तो वह भी मुझे छोड़ कर जा सकती

थी, अपनी अलग दुनिया बसा सकती थी पर उस ने वे जिम्मेदारियां निभाईं जो तेरी थीं.

तुझे अपना बेटा कहते हुए मुझे अफसोस होता है.’’

भाभी तभी बीच में बोलीं, ‘‘दीपक, आप बाबूजी को और दुख मत दीजिए, हम सब की भलाई इसी में है कि आप यहां से चले जाएं.’’

भाभी का आत्मविश्वास देख कर भैया दंग रह गए और चुपचाप लौट गए. भाभी घर की बहू से अब हमारे घर का बेटा बन गई थीं. Hindi Family Story

फिल्म ‘Hera Pheri 3’ में हुई ‘बाबू भैया’ की वापसी

साल 2000 में आई फिल्म ‘हेरा फेरी’ (Hera Pheri) आज भी लोगों के दिलों में बसती है. ‘अक्षय कुमार’ (Akshay Kumar), ‘सुनील शेट्टी’ (Sunil Shetty) और ‘परेश रावल’ (Paresh Rawal) की यह कौमेडी फिल्म बौलीवुड लवर्स के लिए एक ऐसा तोहफा थी’ जिसे चाहे जितनी बार देख लें, बोर नहीं हो सकते. इस फिल्म में ‘परेश रावल’ (Paresh Rawal) के ‘बाबू भैया’ वाले आइकौनिक रोल को तो कोई चाह कर भी नहीं भूल सकता, क्योंकि इस फिल्म ने हम सब को बेइंतिहा हंसाया है.

इसी के चलते मेकर्स ने इस फिल्म का सीक्वेल साल 2006 में रिलीज किया था, जिस का नाम ‘फिर हेरा फेरी’ (Phir Hera Pheri) रखा गया था. इस फिल्म में भी ‘अक्षय कुमार’ (Akshay Kumar), ‘सुनील शेट्टी’ (Sunil Shetty) और ‘परेश रावल’ (Paresh Rawal) जैसे कमाल के कलाकारों ने अपने ऐक्टिंग स्किल्स और कौमिक टाइमिंग्स से लोगों को फुलऔन एंटरटेन किया था. फिल्म ‘हेरा फेरी’ (Hera Pheri) और ‘फिर हेराफेरी’ ब्लौकबस्टर साबित हुई थीं और लोगों के दिलों में बस गई थीं.

लोगों का फिल्म के लिए इतना प्यार देख मेकर्स ने एक बार फिर सोचा है कि वे इस फिल्म के तीसरे पार्ट को ले कर आएं. जी हां, फिल्म ‘हेराफेरी 3′ (Hera Pheri 3) पिछले कुछ समय से काफी चर्चा में रही है और फिल्म का चर्चा में बने रहने का कारण और कोई नहीं’ बल्कि फिल्म के लीड ऐक्टर्स में से एक ‘परेश रावल’ (Paresh Rawal) यानी ‘बाबू भैया’ थे.

दरअसल, कुछ दिनों पहले ऐसी खबर सामने आई थी कि ‘परेश रावल’ (Paresh Rawal) अब फिल्म ‘हेराफेरी 3’ (Hera Pheri 3) का हिस्सा नहीं रहेंगे और इस खबर ने फैंस को काफी निराश भी किया था. इसी के चलते कई ऐसी बातें सामने आई थीं, जिन से लोगों को काफी हैरानी हुई थी. ऐसा कहा जा रहा था कि फिल्म ‘हेराफेरी 3‘ (Hera Pheri 3) को फिरोज नाडियाडवाला (Firoz Nadiadwala) के साथ खुद ‘अक्षय कुमार’ (Akshay Kumar) भी प्रोड्यूस कर रहे हैं और ऐसे में ‘परेश रावल’ (Paresh Rawal) के फिल्म को मना करने से ‘अक्षय कुमार’ (Akshay Kumar) को काफी नुकसान पहुंच सकता है.

हाल ही में फैंस के लिए अब एक गुड न्यूज सामने आई है कि परेश रावल ‘हेराफेरी 3’ (Hera Pheri 3) का हिस्सा बने रहेंगे. लोगों का ऐसा कहना था कि यह फिल्म ‘परेश रावल’ (Paresh Rawal) के बिना अधूरी है. हालांकि, कुछ लोगों का ऐसा मानना भी था कि फिल्म को हिट करवाने के लिए और फिल्म की हाइप बनाने के लिए यह सब बस एक पब्लिसिटी स्टंट था.

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