जैसे ही डोरबैल बजी तो अधखुले दरवाजे में से किसी ने अंदर से ही दबे स्वर में पूछा, ‘‘जी कहिए?’’
रितिका की पैनी नजर अधखुले दरवाजे में से अंदर तक झांक रही थी. शायद कुछ तलाश करने की कोशिश कर रही थी, किसी के अंदर होने की आहट ले रही थी. जब उस ने देखा पड़ोसिन तो अंदर आने के लिए आग्रह ही नहीं कर रही तो बात बनाते हुए बोली, ‘‘आज कुछ बुखार जैसा महसूस हो रहा है. क्या आप के पास थर्मामीटर है? मेरे पास है पर उस की बैटरी लो है.’’
जी अभी लाती हूं कह कर दरवाजा बंद कर सुधा अंदर गई और फिर आधे से खुले दरवाजे से बाहर झांक कर उस ने थर्मामीटर अपनी पड़ोसिन रितिका के हाथ में थमा दिया.
रितिका चाह कर भी उस के घर की टोह नहीं ले पाई. घर जाते ही उस ने अपनी सहेली को फोन किया और रस ले ले कर बताने लगी कि कुछ तो जरूर है जो सुधा हम से छिपा रही है. अंदर आने को भी नहीं कहती.
अपार्टमैंट में यह अजब सा तरीका था. महिलाएं अकसर अकेले में एकदूसरे के घर जातीं लेकिन मेजबान महिला से कह देतीं कि वह किसी को बताए नहीं कि वह उस के घर आई थी वरना लोग बहुत लड़ातेभिड़ाते हैं.
कई दिन तो यह समझ ही नहीं आया कि आखिर वे ऐसा क्यों करती हैं? सभी एकसाथ मिल कर भी तो दिन व समय निश्चित कर मिल सकती हैं, किट्टी पार्टी भी रख सकती हैं.
अकसर जब वे मिलतीं तो सुधा व उस की बेटी संध्या के बारे में जरूर चर्चा करतीं. उन्हें शक था कि कोई तीसरा जरूर है उन के घर में जिसे वह छिपा रही है.
एक महिला ने बताया ‘‘मेरी कामवाली कह रही थी कि कोई ऐक्सट्रा मेंबर है उस के घर में. पहले खाने के बरतन में 2 प्लेटें होती थीं, अब 3 लेकिन कोई मेहमान नजर नहीं आता. न ही कोई सूटकेस न कोई जूते. पर हां, हर दिन 3 कमरों में से एक कमरा बंद रहता है, जिस की साफसफाई सुधा उस से नहीं करवाती. इसलिए कोई है जरूर.’’
‘‘मुझे भी शक हुआ था एक रात. उस के घर की खिड़की का परदा आधा खुला था. मैं बालकनी में खड़ी थी. मुझे लगा कोई पुरुष है जबकि वहां तो मांबेटी ही रहती हैं.’’
‘‘कैसी बातें करती हो तुम? क्या उन के कोई रिश्तेदार नहीं आ सकते कभी?’’
‘‘तुम सही कहती हो. हमें इस तरह किसी पर शक नहीं करनी चाहिए.’’
‘‘शक तो नहीं करनी चाहिए पर फिर वह घर का दरवाजा आधा ही क्यों खोलती है? किसी को अंदर आने को क्यों नहीं कहती?’’
‘‘अरे, उन की मरजी. कोई स्वभाव से एकाकी भी तो हो सकता है.’’
‘‘तुम बड़ा पक्ष ले रही हो उन का, कहीं तुम्हारी कोई आपसी मिलीभगत तो नहीं?’’ और सब जोर से ठहाका मार कर हंस पड़ीं.
रितिका अपनी कामवाली से खोदखोद कर पूछती, ‘‘कुछ खास है उस घर में. क्यों सारे दिन दरवाजा बंद रखती है यह मैडम?’’
‘‘मुझे क्या पता मैडम, मैं थोड़े ही वहां काम करती हूं,’’ कामवाली कभीकभी खीज कर बोलती.
पर तुम्हें खबर तो होगी, ‘‘जो उधर काम करती है. क्या तुम और वह आपस में बात नहीं करतीं? तुम्हारी सहेली ही तो है वह,’’ रितिका फिर भी पूछती.
रितिका का अजीब हाल था. कभी रात के समय खिड़की से अंदर झांकने की कोशिश करती तो कभी दरवाजे के बाहर से आहट लेने की. मगर सुधा हर वक्त खिड़की के परदे को एक सिरे से दूसरे सिरे तक खींच कर रखती और टीवी का वौल्यूम तेज रहता ताकि किसी की आवाज बाहर तक न सुनाई दे.
घर की घंटी बजी तो रितिका ने देखा ग्रौसरी स्टोर से होम डिलीवरी आई है. उस का सामान दे कर जैसे ही डिलीवरी बौय ने सामने के फ्लैट में सुधा की डोरबेल बजाई रितिका ने पूछा, ‘‘शेविंग क्रीम किस के लिए लाया है?’’
‘‘मैडम ने फोन से और्डर दिया. क्या जाने किस के लिए?’’ उस ने हैरानी से जवाब दिया.
अब तो जैसे रितिका को पक्का सुराग मिल गया था. फटाफट 3-4 घरों में इंटरकौम खड़का दिए, ‘‘अरे, यह सुधा शेविंग क्रीम कब से इस्तेमाल करने लगी?’’
‘‘क्या कह रही हो तुम?’’
‘‘हां, सच कह रही हूं. ग्रौसरी स्टोर से शेविंग क्रीम डिलिवर हुआ है आज फ्लैट नंबर 105 में,’’ जोर से ठहाका लगाते हुए उस ने कहा.
‘‘वाह आज तो खबरी बहुत जबरदस्त खबर लाई है, दूसरी तरफ से आवाज आई.’’
‘‘पर देखो तुम किसी को कहना नहीं. वरना सुधा तक खबर गई तो मेरी खटिया खड़ी कर देगी.’’
लेकिन उस के स्वयं के पेट में कहां बात टिकने वाली थी. जंगल की आग की तरह पूरे अपार्टमैंट में बात फैला दी. अब तो वाचमैन भी आपस में खुसरफुसर करने लगे थे, ‘‘कल मैं ने इंटरकौम किया तो फोन किसी पुरुष ने उठाया. शायद सुधा मैडम घर में नहीं थीं. वहां तो मांबेटी ही रहती हैं. तो यह आदमी कौन है?’’ एक ने कहा.
‘‘तो तूने क्यों इंटरकौम किया 105 में?’’
अरे कूरियर आया था. फिर मैं ने कूरियर डिलिवरी वाले लड़के से भी पूछा तो वह बोला कि ‘‘हां, एक बड़ी मूछों वाले साहब थे घर में.’’
‘‘बौयफ्रैंड होगा मैडम सुधाजी का. आजकल बड़े घरों में लिवइन रिलेशन खूब चलते हैं. अपने पतियों को तो ये छोड़ देती हैं, फिर दूसरे मर्दों को घर में बुलाती हैं. फैशन है आजकल ऐसा,’’ एक ने तपाक से कहा.
अगले दिन जैसे ही सुधा ने ग्रौसरी स्टोर में फोन किया और सामान और्डर किया तो शेविंग ब्लैड सुनते ही उधर से आवाज आई ‘‘मैडम यह तो जैंट्स के लिए होता है. आप क्यों मंगा रही हैं?’’ शायद उस लड़के ने जानबूझ कर यह हरकत की थी.
सुधा घबरा गई पर हिम्मत रखते हुए बोली, ‘‘तुम से मतलब? जो सामान और्डर किया है जल्दी भिजवा दो.’’
पर इतने में कहां शांति होने वाली थी. डिलिवरी बौय अपार्टमैंट में ऐंट्री करते हुए सिक्योरिटी गार्ड्स को सब खबर देते हुए अंदर गया.
शाम को जब सुधा की बेटी संध्या अपार्टमैंट में आई तो वाचमैन उसे कुछ संदेहास्पद निगाहों से देख रहे थे. फिर क्या था वाचमैन से कामवाली बाई और उन से हर घर में फ्लैट नंबर 105 की खबर पहुंच गई थी.
अपार्टमैंट की तथाकथित महिलाओं में यह खबर बढ़चढ़ कर फैल गई. सब एकदूसरे को इंटरकौम कर के या फिर चोरीचुपके घर जा कर मिर्चमसाला लगा कर खबर दे रही थीं और हर खबर देने वाली महिला दूसरी को कहती कि देखो मैं तुम्हें अपनी क्लोज फ्रैंड मानती हूं. इसीलिए तुम्हें बता रही हूं. तुम किसी और को मत बताना. विभीषण का श्राप जो ठहरा महिलाओं को चुप कैसे कर सकती थीं. कानोकान बात बतंगड़ बनती गई. सभी ने अपनीअपनी बुद्घि के घोड़े दौड़ाए. एक ने कहा कि सुधा का प्रेमी है जरूर. अपने पति को तो छोड़ रखा है. बेटी का भी लिहाज नहीं. इस उम्र में भला कोई ऐसी हरकत करता है क्या? तो दूसरी कहने लगी कि एक दिन मेरी कामवाली बता रही थी कि उस की सहेली फ्लैट नंबर 105 में काम करती है. कोई लड़का है घर में जरूर, बेटी का बौयफ्रैंड होगा.
सभी की नजरें फ्लैट नंबर 105 पर टिकी थीं. किसी ने सुधा से आड़ेटेढ़े ढंग से छानबीन करने की कोशिश भी की पर सुधा ने बिजी होने का बहाना किया और वहां से खिसक ली.
अब जब बात चली ही थी तो ठिकाने पर भी पहुंचनी ही थी. इसलिए पहुंच गई सोसायटी के सेक्रैटरी के पास, जो एक महिला थीं. उन्हें भी सुन कर बड़ा ताज्जुब हुआ कि गंभीर और सुलझी हुई सी दिखने वाली सुधा ने अपने घर में किसे छुपा रखा है? न तो कोई दिखाई देता है और न ही कभी खिड़कीदरवाजे खुलते हैं.
कोई आताजाता भी नहीं है. उन्होंने भी सिक्युरिटी हैड को सुधा के घर आनेजाने वालों पर नजर रखने की हिदायत दे दी. ‘‘कोई भी आए तो पूरी ऐंट्री करवाओ और मैडम को इंटरकौम करो. किसी पर कुछ शक हो तो तुरंत औफिस में बताना.’’
वाचमैन को तो जैसे इशारे का इंतजार था. मौका आ भी गया जल्द ही.
एक नई महिला आई फ्लैट नंबर 105 में. देखने में पढ़ीलिखी, टाइट जींस और शौर्टटौप पहन कर, एक हाथ में लैपटौप बैग था, दूसरे में एक छोटा कैबिन साइज सूटकेस. लेकिन जब वह गई तो बैग उस के हाथ में नहीं था. जाहिर था, सुधा के घर छोड़ आई थी. मतलब कुछ सामान देने आई थी.
रात के समय सुधा कुछ कपड़े हैंगर में डाल कर सुखा रही थी वाचमैन ने अपनी पैनी नजर डाली तो देखा हैंगर में कुछ जैंट्स शर्ट्स सूख रहे हैं. तो कामवाली से क्यों नहीं सुखवाए ये कपड़े?
अगले दिन जब सुबह हुई वाचमैन ने फिर देखा शर्ट रस्सी से गायब थे. वाचमैन ने यह खबर झट सेक्रैटरी मैडम तक पहुंचा दी, ‘‘मैडम कोई तो मर्द है इस घर में पर नजर आता नहीं.’’ आप कहें तो हम उन के घर जा कर पूछताछ करें?
‘‘नहीं इस सब की आवश्यकता नहीं,’’ सेक्रैटरी महोदया ने कहा.
अगले ही दिन सोसायटी औफिस में कुछ लोग बातचीत करने आए और वे उस महिला के बारे में पूछताछ करने लगे जो सुधा के घर बैग छोड़ गई थी. औफिस मैनेजर ने वाचमैन से पूछा तो बात खुल गई कि वह महिला सुधा के घर आई थी और 1 घंटे में वापस भी चली गई थी. उन लोगों ने सुधा के बारे में मैनेजर व वाचमैन से जानकारी ली. दोनों ने बहुत बढ़चढ़ कर चटखारे लेले कर सुधा के बारे में बताया और सुधा के घर में किसी पुरुष के छिपे होने का अंदेशा जताया. आज उन्हें ऐसा महसूस हुआ जैसे उन्होंने किसी अवार्ड पाने के लिए काम किया है. उन्होंने उसी समय पुलिस को बुलवाया और सुधा के घर की तलाशी का आदेश जारी कर दिया.
वाचमैन, मैनेजर व पुलिस समेत वे लोग फ्लैट नं. 105 में पहुंच गए. जैसे ही घंटी बजी सुधा ने अधखुले दरवाजे से बाहर झांका. इतने सारे लोगों और पुलिस को साथ देख उस के होश उड़ गए. उस ने झट से दरवाजा बंद करने की कोशिश की पर पुलिस के बोलने पर दरवाजा खोलना पड़ा.
जैसे ही घर की तलाशी ली गई बड़ी मूछों वाले महाशय सामने आए. सुधा बहुत डर गई थी. उस के मुंह से घबराहट के कारण एक शब्द भी नहीं निकला. सामने के फ्लैट में रितिका को जैसे ही कुछ आवाज आई. वह बाहर निकल कर सुधा के घर में ताकझांक करने लगी. वह समझ गई थी आज कुछ तो खास होने वाला है. पुलिस भी है और अपार्टमैंट का सैक्युरिटी हैड व मैनेजर भी. वह झट से अंदर गई और कुछ खास सहेलियों को इंटरकौम पर सूचना दे दी. बाहर जो नजारा देखा उस का पूरा ब्यौरा भी दे दिया.
एक से दूसरे व दूसरे से तीसरे घर में इंटरकौम के मारफत खबर फैली और साथ में यह चर्चा भी कि वह पुरुष सुधा का प्रेमी है या उस की बेटी संध्या का बौयफ्रैंड? फिर भी अपने घर के बंद दरवाजे के आईहोल से वह देखने की कोशिश कर रही थी कि बाहर क्या चल रहा है. थोड़ी ही देर में मूछों वाले साहब पुलिस की गिरफ्त में थे और न के साथ रवाना हो गए थे.
पूरे अपार्टमैंट में सनसनी फैल गई थी और अब अगले ही दिन अखबार में खबर आई तो 3 महीनों से छिपा राज खुल गया था.
हकीकत यह थी कि बड़ी मूछों वाले साहब जिन्हें सुधा ने अपने घर में छिपा कर रखा था, वे उन के पुराने पारिवारिक मित्र थे और किसी प्राइवैट बैंक में मैनेजर के तौर पर काम कर रहे थे और अपना टारगेट पूरा करने के लिए लोगों को अंधाधुंध लोन दे रहे थे. लोन के जरूरी कागजात भी पूरी तरह से चैक नहीं कर रहे थे. सिर्फ वे ही नहीं उन के साथ बैंक के कुछ अन्य कर्मचारी भी इस घपले में लिप्त थे.
यह बात तब खुली जब उन के कुछ क्लाइंट्स लोन चुकाने में असमर्थ पाए गए. बैंक के सीनियर्स ने जब इस की जांच की तो बड़ी मूछों वाले मिस्टर कालिया और उन के कुछ साथियों को इस में शामिल पाया. जांच हुई तो पाया गया कि कागजात भी पूरे नहीं थे. बल्कि लोन लेने वालों के द्वारा ये लोग कमीशन भी लिया करते थे ताकि लोन की काररवाई जल्दी हो जाए.
मिस्टर कालिया के अन्य साथी तो पकड़े गए थे पर इन्हें तो सुधा ने दोस्ती के नाते अपने घर में पनाह दी हुई थी. वह टाईट जींस और शौर्टटौप वाली महिला इन की पत्नी हैं. बैंक वाले पुलिस की मदद से मिसेज कालिया को ट्रैक कर रहे थे और वे सुधा के घर आए तो उन्हें समझ आ गया था कि हो न हो मिस्टर कालिया जरूर इसी अपार्टमैंट में छिपे हैं.
इस बहाने एक बैंक में बैंक कर्मियों द्वारा किए गए घोटाले का परदाफाश हुआ और मजे की बात यह कि अपार्टमैंट की बातूनी महिलाओं, वाचमैन और ग्रौसरी स्टोर के लड़कों को अब चटखारे ले कर सुनाने के लिए एक नया किस्सा भी मिल गया.