Funny Story In Hindi: झूठे इश्तिहार वाली नौटंकी

Funny Story In Hindi: आज सुबहसुबह जब पूरब दिशा से सूरज उगा और लोग अपने डब्बों जैसे छोटे घरों से निकल कर बाहर आने लगे, तो सब की नजर पूरे शहर में लगे एक नए इश्तिहार पर पड़ी.

उस इश्तिहार में 3 तरह के लोगों की तसवीरें थीं. पहले वे कुछ लोग, जिन को सब पहचानते थे. उस से छोटी तसवीरों वाले दूसरी तरह के वे लोग थे, जिन की शक्लें केवल इधरउधर की जानकारी रखने वाले लोग पहचानते थे. सब से छोटी तीसरी तरह की तसवीरें उन लोगों की थीं, जिन को उन के परिवार के बाहर

2-4 लोग ही पहचानते थे. इन्हीं तीसरी तरह के लोगों ने आपस में चंदा इकट्ठा कर के इश्तिहार लगवाने के लिए पैसे जुटाए थे. ‘बाप बड़ा न भईया, सब से बड़ा रुपईया’ वाली कहावत में ऊपर वाले से भी ज्यादा गहरा विश्वास रखने वाले लोग इस ‘महंगे इश्तिहार और सस्ते विज्ञापन’ पर बिना वजह पैसा खर्च नहीं करते हैं.

इन में से जिन सब से छोटी तसवीरों वालों को मैं पहचानता हूं, इन के बारे में एक बात कमाल की है. इन के धंधे गोरे हैं या काले, यह तो किसी को ठीक से नहीं पता, लेकिन इन के धंधे करामाती जरूर हैं. इन सब की दिखने वाली आमदनी अठन्नी और दिखने वाला खर्चा रुपईया है.

छोटी तसवीरों वाले लोग अपने से बड़े साइज की तसवीरों वाले लोगों के भरोसे बैठे हैं और मझोले साइज की तसवीरों वाले लोग बड़ी तसवीरों वालों की मेहरबानी पर जिंदा हैं.

छोटी तसवीरों वाले लोगों के लिए बड़ी तसवीरों वाले लोग ऊपर वालों से कम नहीं हैं. इन ऊपर वालों के चलते ही इन का लोक सुरक्षित है, परलोक की चिंता करता ही कौन है?

ये सब से छोटी तसवीरों वाले लोग गारंटी से मूर्ख होते हैं. इन को चापलूसी के अलावा जिंदगी जीने का और कोई रास्ता आता भी नहीं है.

ये लोग दो टके के फायदे के चक्कर में रोज घपला करते हैं. छोटी तसवीरों वालों का रिस्क ज्यादा होता है. फायदा होने पर फायदा कम और नुकसान होने पर इन की बलि ही सब से पहले चढ़ती है. कोई भी गलती हो जाए, छोटी तसवीरों वाले बेचारे लोग अपनेअपने ऊपर वालों द्वारा बुरी तरह से रगड़े जाते हैं.

इश्तिहारों में तसवीर जितनी छोटी होगी, तसवीर को पोस्टरों से गायब करना उतना ही आसान होगा. हवा बदलते ही तसवीर जितनी छोटी होगी, वे लोग पोस्टर से उतनी जल्दी उड़ भी जाते हैं.

ये छोटी तसवीरों वाले लोग बेचारे तो हैं, लेकिन शरीफ कतई नहीं हैं. तिकड़मी हैं, तभी तो इश्तिहार लगवाते फिरते हैं. इन थर्ड कैटेगरी लोगों का आमतौर पर कोई एक फिक्स ऊपर वाला होता नहीं है. बदलते मौसम के हिसाब से इन के ऊपर वाले भी बदलते रहते हैं.

उस इश्तिहार में सचाई का रंग छोड़ कर बाकी सारे रंगों का बड़े करीने से इस्तेमाल किया गया था. इस इश्तिहार में ऐसेऐसे दावे किए गए हैं, जो बातें केवल दूसरों को मूर्ख समझने वाले मूर्ख ही कह सकते हैं. इश्तिहार में वादे ऐसेऐसे, जिन को ऊपर वाला भी चाहे तो इतने कम समय में पूरा नहीं कर पाएगा.

शब्द, शब्द हैं साहब, इन से कुछ भी कह दो. शब्दों में कहां इतनी ताकत कि झूठों को झूठ कहने से रोक लें. शब्द कब झूठों की कलम या जबान से बाहर आने से इनकार कर पाते हैं. शब्द अगर चाहें भी तो समझने वालों को अपनी सुविधा से मतलब निकालने से रोक नहीं पाएंगे.

इन इश्तिहारों का फायदा सिर्फ और सिर्फ उन लोगों को होगा, जिन की तसवीरें इन में छपी हैं. झूठे इश्तिहार को सच मानने वालों का फायदा इश्तिहार लगवाने वाले उठाएंगे. झूठ को सच मानने वाले पहले से मूर्ख हों या न हों, अब मूर्ख कहलाएंगे. Funny Story In Hindi

Bigg Boss 19 में फूटा गौरव खन्ना का गुस्सा, फरहाना भट्ट से हुई जोरदार बहस

Bigg Boss 19 अपने ड्रामे, विवादों और टकरावों के लिए लगातार सुर्खियों में बना हुआ है. हर दिन दर्शकों को घर के अंदर कुछ नया देखने को मिल रहा है. इस हफ्ते शो में कैप्टेंसी टास्क को लेकर खूब हलचल मची हुई है. गौरव खन्ना शुरुआत से ही कैप्टन की कुर्सी पाने के लिए पूरी मेहनत कर रहे हैं, लेकिन एक बार फिर उन्हें हार का सामना करना पड़ता है. हार के बाद उनका गुस्सा इस कदर बढ़ जाता है कि घर का माहौल पूरी तरह बदल जाता है.

बिग बौस के लेटेस्ट प्रोमो में दिखाया गया है कि गौरव की नाकामी पर तान्या मित्तल और फरहाना भट्ट जमकर उनका मजाक उड़ाती नजर आती हैं. दोनों “अब जीके क्या करेगा” कहते हुए नाचती हैं, जिससे गौरव का पारा चढ़ जाता है. गौरव गुस्से में फरहाना से भिड़ते हैं और कहते हैं, “तू चाहे जितनी ताली बजा ले, लेकिन मैं इस शो में रहने वाला हूं. जीके यहीं रहेगा और तू ये देखेगी.” इस पर फरहाना पलटकर पूछती हैं, “आप कौन हैं?” जिसके जवाब में गौरव ताव में आकर कहते हैं, “अब मैं तुझे टीवी की ताकत दिखाऊंगा. याद रख, फिनाले में तू मेरे लिए ताली बजा रही होगी, और लोग तुझे इसी बात से पहचानेंगे कि तू गौरव खन्ना के सीजन में आई थी.”

गौरव और फरहाना के बीच हुई यह गर्मागर्म बहस अब सोशल मीडिया पर भी चर्चा का विषय बन गई है. शो के फैंस अब यह देखने के लिए उत्सुक हैं कि इस विवाद का असर आने वाले एपिसोड्स में घर के रिश्तों पर कैसा पड़ता है. क्या गौरव इस झगड़े के बाद अपनी इमेज को संभाल पाएंगे या फिर फरहाना और तान्या के साथ उनका टकराव और बढ़ेगा यह आने वाले एपिसोड्स में देखने लायक होगा. Bigg Boss 19

Legendary Singers: आवाज के अनमोल 2 सितारे – रफी और किशोर दा हमारे

Legendary Singers, लेखक – विवेक रंजन श्रीवास्तव

हिंदी फिल्मों के प्लेबैक सिंगर मोहम्मद रफी का जन्म 24 दिसंबर, 1924 को अमृतसर जिले के कोटला गांव में हुआ था. उन्होंने गुरुदत्त, दिलीप कुमार, देव आनंद, भारत भूषण, जौनी वौकर, जौय मुखर्जी, शम्मी कपूर, राजेंद्र कुमार, राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन, धमेंद्र, जितेंद्र और ऋषि कपूर जैसे नामचीन फिल्म कलाकारों के अलावा गायक और कलाकार किशोर कुमार के लिए भी फिल्मी परदे पर अपनी शानदार आवाज में गाने गाए थे.

जब मोहम्मद रफी महज 7 साल के थे, तब अपने बड़े भाई की नाई की दुकान में बैठा करते थे. उधर से रोज गुजरने वाला एक फकीर अपनी मीठी आवाज में गाता हुआ निकलता था. नन्हे रफी उस फकीर का पीछा किया करते और उस के जैसा ही गाने की कोशिश करते थे. शायद वह अनाम फकीर ही उन का पहला संगीत गुरु था.

मोहम्मद रफी के बड़े भाई मोहम्मद हमीद ने संगीत के प्रति उन की यह दिलचस्पी देख कर उन्हें उस्ताद अब्दुल वाहिद खान के पास संगीत की तालीम लेने के लिए भेजा.

एक बार आल इंडिया रेडियो लाहौर में उस समय के मशहूर गायक और फिल्म कलाकार कुंदन लाल सहगल कार्यक्रम पेश करने आए थे. सुनने वालों में मोहम्मद रफी और उन के बड़े भाई भी शामिल थे.

अचानक बिजली गुल हो गई, जिस से सुनने वाले बेचैन होने लगे.

मोहम्मद रफी के बड़े भाई ने आयोजकों से अर्ज किया कि भीड़ को शांत करने के लिए मोहम्मद रफी को गाने का मौका दिया जाए. उन को इजाजत मिल गई और बिना बिजली और बिना माइक के 13 साल की
उम्र में मोहम्मद रफी का यह पहला सार्वजनिक गायन था.

उस समय के मशहूर संगीतकार श्याम सुंदर भी वहां मौजूद थे. उन्होंने जब नन्हे रफी को सुना, तो उस की आवाज के हुनर को पहचाना फिर मोहम्मद रफी को गाने का न्योता दिया.

इस तरह मोहम्मद रफी का पहला गीत एक पंजाबी फिल्म ‘गुल बलोच’ के लिए रिकौर्ड हुआ था, जिसे उन्होंने श्याम सुंदर के डायरैक्शन में साल 1944 में गाया था.

मुंबई तब भी फिल्म नगरी थी. ऐसे समय में नौजवान मोहम्मद रफी ने फिल्मों में प्लेबैक सिंगिंग को रोजीरोटी के रूप में अपनाने का फैसला लिया और साल 1946 में वे मुंबई आ गए.

संगीतकार नौशाद ने ‘पहले आप’ नाम की फिल्म में मोहम्मद रफी को गाने का मौका दिया और इस के बाद उन का फिल्मों में गायन का सफर चल निकला.

नौशाद द्वारा संगीतबद्ध गीत ‘तेरा खिलौना टूटा…’, फिल्म ‘अनमोल घड़ी’, साल 1946 से मोहम्मद रफी को हिंदी फिल्म जगत में नाम मिला. इस के बाद ‘शहीद’, ‘मेला’ और ‘दुलारी’ जैसी फिल्मों में भी मोहम्मद रफी ने गाने गाए जो बहुत पसंद किए गए.

साल 1951 में जब नौशाद फिल्म ‘बैजू बावरा’ के लिए गाने बना रहे थे, तब उन्होंने तलत महमूद की आवाज में रिकौर्डिंग करने की सोची, पर कहा जाता है कि नौशाद ने एक बार तलत महमूद को धूम्रपान करते देख कर अपना मन बदल लिया और मोहम्मद रफी से ही गाने को कहा.

‘बैजू बावरा’ के गानों ने मोहम्मद रफी को बड़ा गायक बना दिया. इस के बाद नौशाद ने उन्हें लगातार कई
गीत गाने को दिए. संगीतकार शंकरजयकिशन की जोड़ी को भी उन की आवाज पसंद आई और उन्होंने भी मोहम्मद रफी से गाने गवाना शुरू कर दिया.

शंकरजयकिशन उस समय राज कपूर के पसंदीदा संगीतकार थे, पर राज कपूर अपने लिए सिर्फ मुकेश की आवाज पसंद करते थे, लेकिन शंकरजयकिशन की सिफारिश पर मोहम्मद रफी ने राज कपूर को कई फिल्मों के गानों में अपनी आवाज दी.

अपनी आवाज के बल पर मोहम्मद रफी जल्दी ही एसडी बर्मन, ओपी नैय्यर, रवि, मदन मोहन, गुलाम हैदर, जयदेव, सलिल चौधरी जैसे बड़े संगीतकारों की पहली पसंद बन गए.

मोहम्मद रफी की असाधारण संगीत साधना के लिए उन्हें भारत सरकार से ‘पद्मश्री’ अवार्ड मिला. उन्हें अनेक बार फिल्मफेयर अवार्ड और दूसरे सम्मान भी मिले.

कमाल के किशोर दा

किशोर कुमार का जन्म 4 अगस्त, 1929 को खंडवा, मध्य प्रदेश में हुआ था. आभास कुमार गांगुली उर्फ किशोर कुमार एक मस्ती भरे इनसान थे. जहां एक तरफ मोहम्मद रफी की गायकी लोगों के दिलों पर मरहम का काम करती थी, वहीं किशोर कुमार की आवाज दिलों को मस्ती में ?ामने पर मजबूर कर देती थी. उन की गायकी में जिंदगी की उमंग का संगीत था. उन की आवाज में एक अटूट ऊर्जा थी. ‘जिंदगी एक सफर है सुहाना…’, ‘मेरे सपनों की रानी कब आएगी तू…’, ‘पलपल दिल के पास…’, ये सिर्फ गाने नहीं, बल्कि कई पीढि़यों की धड़कनें हैं.

किशोर कुमार की एक खास बात यह भी थी वे कभी भी किसी एक शैली तक सीमित नहीं रहे. वे गाते नहीं थे, गानों को जीते थे. उन की आवाज में नटखटपन, प्यार, दर्द, और बेफिक्री का एक अनोखा मिश्रण था.

उन की आवाज राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन, देव आनंद जैसे हर सुपरस्टारों की पहचान बन गई थी.

मोहम्मद रफी और किशोर कुमार की कोई तुलना नहीं है, बल्कि वे दोनों संगीत का संगम हैं. सच तो यह है कि मोहम्मद रफी और किशोर कुमार की तुलना करना वैसा ही है जैसे पूछ लेना कि चांद बेहतर है या सूरज? दोनों की अपनी रोशनी है, अपनी छटा है.

संगीतकार लक्ष्मीकांतप्यारेलाल, आरडी बर्मन और एसडी बर्मन सभी ने दोनों महान गायकों के हुनर का भरपूर इस्तेमाल किया. एक ही गायक से हर गाने का हर भाव गवाना आसान नहीं होता, लेकिन इन दोनों ने इसे मुमकिन बना दिया था.

इन दोनों अमर गायकों में एकदूसरे के प्रति आपसी इज्जत की भावना दिलचस्प थी. मोहम्मद रफी और किशोर कुमार के बीच कभी कोई ईष्या नहीं थी. वे एकदूसरे की गायकी की बेहद इज्जत करते थे. जब किशोर कुमार की जद्दोजेहद के दिन थे, तब मोहम्मद रफी ने उन्हें बढ़ावा किया और जब किशोर कुमार को कामयाबी मिली, तब उन्होंने कभी मोहम्मद रफी को पीछे नहीं बताया.

13 अक्तूबर, 1987 को किशोर कुमार भी इस दुनिया को अलविदा कह गए. पर क्या वे सचमुच चले गए? जब भी रेडियो पर उन का गाया कोई गाना बजता है, तो लगता है कि जैसे वे यहीं कहीं हैं. हमारी सांसों में, हमारी यादों में.

मोहम्मद रफी और किशोर कुमार न सिर्फ गायक थे, वे संगीत का एक युग थे, एक एहसास थे. वे ऐसे सितारे थे, जो दिनरात कभी भी ढलते नहीं, लगातार चमकते रहते हैं. Legendary Singers

Hindi Story: फोड़ा

Hindi Story, लेखक – पंकज त्रिवेदी

आंगन के चारों ओर दीवार थी. लोहे का दरवाजा खुलने की आवाज सुनाई दी. मनोज बिस्तर पर पड़ा जाग रहा था. जाड़े की बहुत घनी रात थी.

मनोज ने घड़ी में देखा. अभी तो रात के 10 बजे हैं. इस वक्त कौन होगा? ऐसा सोच कर मनोज बिस्तर से उठ गया. ठीक उसी समय बरामदे के दरवाजे पर धीरे से किसी ने दस्तक दी.

मनोज ने बत्ती जलाई. दरवाजा खोला. वह सामने खड़ी औरत का चेहरा ठीक से पहचान न पाया. घर के सामने खुला मैदान अंधकार ओढ़ कर सोया हुआ था. दूरदूर तक खेत ही खेत थे. माहौल में नमी के साथ जाड़े की फसल की खुशबू फैली हुई थी. झींगुर की आवाज के अलावा सबकुछ शांत था. मनोज को गांव के बाहर ग्राम पंचायत के पास एक सरकारी मकान मिला था.

उस औरत ने कुछ कदम आगे बढ़ कर बरामदे में पैर रखा.

‘‘अरे जीवली, तुम…?’’ मनोज ने हैरान हो कर पूछा.

जीवली की आंखों में आंसू थे. वह दरवाजे के पास ही बैठ गई.

‘‘जीवली, तुम इस समय क्यों आई? क्या हुआ?’’ मनोज ने पूछा.

जवाब देने के बदले जीवली को रोती हुई देख कर मनोज और ज्यादा हैरानी में पड़ गया.

‘‘कुछ बोलो तो सही… क्यों रो रही हो?’’ मनोज की आवाज में थोड़ी सख्ती आ गई.

जीवली ने कुछ बोले बिना ही दरवाजे को बंद कर दिया. मनोज को अचरज हुआ और मन में कहीं डर भी था. उसे कड़ाके की ठंड में भी पसीना आने लगा.

मनोज पिछले 2 साल से इस गांव में था. पूरा गांव उसे इज्जत की नजरों से देखता था. यह उस के पढ़ेलिखे और संस्कारी इनसान की पहचान थी. ग्रामसेवक के पद पर उस की उज्ज्वल छवि रही है. ऐसे समय जीवली उस के घर में आ कर दरवाजा बंद कर दे, तो पसीना निकल आएगा ही न. वह अभी भी रो रही थी.

मनोज ने हिम्मत कर के धीरे से पूछा, ‘‘जीवली, तुम क्यों रो रही हो? कुछ बात करोगी तो सम झ आएगा न? और यह दरवाजा तो खोल,’’ इतना कह कर मनोज दरवाजे की ओर मुड़ा.

उसी समय जीवली ने मनोज के पैर पकड़ लिए. मनोज रुक गया और फिर वहीं घुटनों के बल बैठ गया और बोला, ‘‘जीवली, अभी कितने बजे हैं उस का अंदाजा है तुम्हें? बाहर अंधेरा और यहां मैं अकेला हूं.

अगर किसी को पता चला न तो… जो भी काम हो जल्दी से बोल दो.’’

लालटेन के उजास में जीवली ने धीरे से चुनरी उतार दी और मनोज कुछ कदम पीछे चला गया. उसे लगा कि यह जीवली क्या करने लगी है? उसे धक्का मार कर बाहर निकालने की इच्छा हो गई, मगर वह ऐसा न कर पाया.

जीवली ने अंगिया की डोरी छोड़ दी. मनोज ने अपनी आंखें बंद कर लीं.

‘‘साहब, आप के पास मरहम है क्या? मैं यहां से जल गई हूं.’’

मनोज ने धीरे से आंखें खोलीं. जीवली के बाईं करवट पर बड़ा सा फोड़ा (फफोला) हो गया था. वह सच में जल गई थी.

मनोज को कुछ याद हो आया. उस दिन पहली ही बार जीवली पानी भरने आई थी. तब मनोज को यह सरकारी मकान मिले एक हफ्ता भी नहीं हुआ था. गांव में ज्यादा जानपहचान नहीं थी. दोपहर का समय था. खाना खा कर थोड़ा आराम कर के मनोज ने सोचा कि गांव ही घूम लिया जाए.

उस मकान के आंगन के कुएं में जीवली घड़े से बड़ी मटकी में पानी डालने के लिए नीचे झुकी, उसी समय मनोज का ध्यान उस तरफ गया. एक पल के लिए तो वह जड़ हो गया. इतनी उम्र में उस ने कई औरतें देखी थीं, मगर आज पहली बार उसे लगा कि चीथड़ों में लिपटा हुआ रत्न भी होता है.

जीवली ने तिरछी नजरों से मनोज की ओर देख लिया था. उस ने जल्दी से चुनरी ठीक से ओढ़ ली और मनोज की ओर मादक मुसकान फेंक दी, फिर धीरे से बोली, ‘‘साहब, लगन कब करना है?’’

फिर मनोज के जवाब का इंतजार किए बिना जीवली जल्दी से चली गई.

‘‘साहब, कौन सी सोच में पड़ गए? मरहम हो तो जल्दी से लगा दो न. कुछ देर में वह आएगा, तो फिर…’’

मनोज अपनी यादों से लौट आया. उस ने जल्दी से अंदर के कमरे में जा कर बरनोल ला कर फोड़े पर हलके हाथों से मरहम लगाना शुरू किया.

‘‘साहब, जल्दी लगा दो न, बहुत जलन हो रही है…’’ कह कर जीवली कराहने लगी.

मनोज का हाथ कांपने लगा. जलन के चलते बड़ा सा फोड़ा हो गया था.

उस की नजरों के सामने कुएं पर पानी भरती जीवली का ही सीन था, जिस के लिए वह बारबार तरसता था.

उसे लगा कि वह ठीक से मरहम लगा नहीं पाएगा.

उस समय जीवली ने खुद कलेजे को मजबूत कर के मनोज का हाथ पकड़ कर उंगली पर लगा मरहम फोड़े पर लगा दिया.

मनोज तो हैरान सा देखता ही रह गया. जीवली की आंखों में आंसू थे, फिर भी उस ने मनोज के सामने मुसकरा कर देखा. वैसे भी जो पीड़ा सह पाए, वही मुसकरा सकते हैं.

मनोज कुछ सम झ न पाया. उस ने पूछा, ‘‘तुम यहां कैसे जल गई?’’

‘‘उस ने दाग दिया,’’ अंगिया की डोरी बांधते हुए जीवली ने कहा.

‘‘क्यों, ऐसा भी क्या हो गया था?’’

‘‘वह दारू पी कर आया और बोला मु झे जल्दी खाना दे. खातेखाते बोला कि कल तु झे अर्जुन के खेत में खाना देने जाना है, तैयार हो कर रहना.’’

‘‘उस ने तुम से ऐसा क्यों कहा?’’ मनोज ने पूछा.

‘‘उस मुए ने कहा कि अर्जुन मु झे हमेशा शराब पिलाता है, इसलिए तु झे उसे राजी करना होगा… समझ गई न?’’

‘‘बहुत घटिया आदमी है वह तो,’’ मनोज ने कहा.

‘‘आप सुनो तो सही. मैं ने उस से कहा कि कोई कामधंधा करो तो गुलामी करनी न पड़े. अर्जुन जान गया है कि तुझे दारू के बगैर चलेगा नहीं, इसलिए मु झ पर नजर डाली. तू भी कितना हलकट है कि हां कह कर चला आया,’’ इतना बोलते हुए जीवली ने अपने आंसू पोंछे.

‘‘तो इस में तुम ने क्या गलत कहा,’’ मनोज ने कहा.

‘‘बस, उस का तौर ही ऐसा है. मैं ने झट से कह दिया तो उस ने चूल्हे में से जलती हुई लकड़ी उठा ली. मैं अपना हाथ आगे बढ़ाऊं, उस से पहले तो बाईं ओर करवट पर दे मारी… फिर कहता कि अपने रूप का बहुत घमंड है न तुझे?’’

‘‘मगर इसे इनसान कहें या…?’’ मनोज बोला, ‘‘बिलकुल जाहिल आदमी है.’’

‘‘ऐसा नहीं कहते, कोई बात नहीं. वह तो जब भी दारू पी कर आता है, तब मारता है. मगर आज सुलगती लकड़ी हाथ आ गई,’’ जीवली बोली.

थोड़ी देर के बाद जीवली बाहर निकली. उस ने आसपास देखा. घना अंधेरा था.

मनोज ने धीरे से कहा, ‘‘तुम अकेली जा पाओगी कि छोड़ने आऊं?’’

‘‘नहींनहीं, मैं चली जाऊंगी.’’

‘‘वह जाहिल तुम्हें देख लेगा तो…?’’ मनोज को चिंता होने लगी.

‘‘वह तो खर्राटे मारता होगा. दारू पी कर आने के बाद कुछ देर हंगामा कर देता है. एक बार खटिया पकड़ ले, फिर खेल खल्लास,’’ जीवली ने कहा.

‘‘कुछ दिन और मरहम लगाना होगा… जीवली, सम झ रही हो न…’’ मनोज ने कहा.

‘‘साहब, मुए ने ऐसी जगह दाह लगाया है कि डाक्टर को दिखाने में भी लाज आती है,’’ जीवली ने कहा.

‘‘मेरे पास आते शर्म न आई?’’ मनोज के चेहरे पर शरारती मुसकान उभर आई.

‘‘शर्म लगे मगर क्या करूं मैं? उस दिन मैं पानी भर रही थी न, तब आप मेरे सामने कैसे टकटकी लगा कर देखते थे,’’ जीवली के ये शब्द सुनते ही मनोज झेंप गया.

‘‘मैं कल आऊंगी…’’ कहते हुए जीवली बाहर निकल गई.

अब तो जीवली का इंतजार करना मनोज को अच्छा लगता था. आज वह देर से आई. मनोज के लिए इंतजार का एकएक पल एक युग जितना लंबा लगने लगा था.

जीवली आ गई. मनोज का हाथ उस के फोड़े पर फिरता रहा.

‘‘साहब, एक बात कहूं?’’

हां, बोल…’’ मनोज ने कहा.

‘‘आप मुझे मरहम लगाते हैं, तो कुछ होता नहीं है?’’

‘‘जीवली, तुम तो शादीशुदा हो. यह तो महरम लगा कर दर्द मिटाने का काम है. तेरा घरवाला, वह जाहिल है न?’’ मनोज बोल रहा था, उस से उलट उस के मन में उथलपुथल हो रही थी.

‘‘साहब, उस मुए को तो दारू पी कर मारना ही आता है. घर की औरत पर हाथ उठाए उन में क्या होगा?’’ जीवली की बात से मनोज को अचरज हुआ.

‘‘क्यों?’’ मनोज ने पूछा.

‘‘उस ने दाह दे कर मुझे फोड़ा दे दिया. छोड़ो न उस कलमुंहे का नाम…’’ फिर जीवली धीरे से बोली, ‘‘मगर आप कहें तो मैं रोज आती रहूंगी…’’ और फिर उस ने अपनी आंखें नचाईं.

‘‘ऐसा भी क्या है कि तुम उस से इतनी नाराज हो?’’ मनोज ने पूछा.

‘‘साहब, उस की बात ही जाने दो न. उस दिन मु झे कहता था न कि अर्जुन के साथ रात बिताने जा. सच कहूं तो वह मरद में ही नहीं है,’’ इतना बोलते ही जीवली लाल हो गई.

‘‘क्या बात करती हो?’’ मनोज हैरान हो कर बोला.

‘‘साहब, क्या आप को कुछ नहीं होता?’’ जीवली ने पूछा.

‘‘जीवली, तुम्हारा रूप ही ऐसा है कि कोई भी आदमी पागल हो जाए. जल्दी से अपने घर जा,’’ मनोज को मानो अपनेआप पर अब भरोसा नहीं रहा था.

‘‘आप ने तो कभी ऐसा दिखने ही नहीं दिया…’’ कहते हुए जीवली ने मनोज के गले में हाथ डाल दिए.

जीवली के इस हमले के सामने मनोज पानीपानी हो गया. वह जमीन पर ही चारों खाने चित हो गया और
कुछ देर तक जीवली मस्ती करती रही.

फिर मनोज ने कहा, ‘‘तुम्हारा घरवाला मेरे पास आया था.’’

‘‘क्या…?’’ जीवली के पेट में डर की बिजली फैल गई.

‘‘हां, कल मेरे पास आ कर पैसे मांगे और कह कर गया कि साहब, जीवली आप के पास आती है, मैं जानता हूं. मु झे कोई फर्क नहीं पड़ता. मगर रोज कुछ चिल्लर का जोग करना पड़ेगा. हम दोनों की गाड़ी चलेगी.’’

मनोज ने बात कही तो जीवली के मन पर कोई असर न हुआ.

मनोज ने पूछा, ‘‘जीवली, तुम कुछ बोली नहीं?’’

‘‘मुझे पता है. मैं ने ही उसे कहा था, उस अर्जुन के पास जाने से तो…’’ इतना बोलते जीवली के मुंह पर मनोज ने अपना हाथ रख दिया और बांहों में जकड़ लिया.

ठीक उसी दिन फोड़े में से मवाद बाहर निकलने लगा था और जीवली का दर्द भी कम होने लगा था. आज वह बड़ी खुश थी. Hindi Story

Best Hindi Story: मैं ही अम्मी अब्बू भी मैं

Best Hindi Story: बासित ने आईने में अपनेआप को देखा. बालों में सफेदी आने लगी थी और आंखों के किनारे पर झुर्रियों की रेखाएं बढ़ती उम्र का अहसास करा रही थीं.

हालांकि, अभी बासित महज 39 साल का था, पर पैसा कमाने की धुन में वह ऐसा खोया कि अपनी सेहत का ध्यान नहीं रख पाया.

बासित ने 15 साल की उम्र में मुन्ने मियां की शार्गिदगी में मोटर मेकैनिक का काम सीखना शुरू किया था. दिमाग का तेज बासित जल्दी ही काफीकुछ सीखता चला गया.

मोटरसाइकिल की सर्विस करनी हो या जीपकार की कोई खराबी दूर करनी हो, बासित तुरंत ही मर्ज भांप कर उसे ठीक करने में लग जाता था, पर उस की मेहनत के बदले मुन्ने मियां उसे वाजिब पैसे नहीं देते थे, लिहाजा, बासित ने मुन्ने मियां के यहां काम छोड़ कर एक दूसरी दुकान अशरफ मोटर्स पर काम करना शुरू कर दिया.

बदले में दुकान के मालिक अशरफ मियां उसे काम सिखाने के साथसाथ 2,000 रुपए की पगार भी देते थे, जिस में से बासित 1,000 रुपए खर्चे करता और 1,000 रुपए की बचत करता था.

बासित के सिर से मांबाप का साया तभी उठ गया था, जब वह महज 13 साल का था. मांबाप दोनों एक सड़क हादसे में मारे गए थे.

बासित और आबिद 2 भाई ही बचे थे, जो अब भरी दुनिया में अकेले थे. आबिद को चाचू अपने साथ मुंबई ले गए, जबकि बासित ने यहीं रहना ठीक समझा.

बासित हर महीने बचत करता और अपने खर्चे में कटौती करता. उस के पास जब थोड़ी रकम जमा हो गई तो उस ने एक लकड़ी के खोखे में कुछ टूल्स के साथसाथ मोटर सर्विसिंग का सामान भी बिक्री के लिए रख लिया.

बासित का अच्छा बरताव, मेहनत और ग्राहक को संतोष कर पाने की अद्भुत ताकत रंग लाई थी और समय बीतने के साथ अब पैसों की आमद भी अच्छी होने लगी थी. जमा की गई रकम को बासित ने काम बढ़ाने में ही लगाया और धीरेधीरे वह शहर में एक आटोमोबाइल और स्पेयर पार्ट्स की दुकान का मालिक बन गया.

बासित की अच्छीखासी कमाई भी होने लगी थी, पर अम्मीअब्बू के न होने के चलते और पैसे कमाने की धुन में बासित को खुद की शादी का खयाल ही नहीं आया. ऐसा नहीं था कि उसे किसी साथी की जरूरत नहीं महसूस हुई, पर पैसे कमाने की धुन में वह शादी को दरकिनार करता गया, जिस का नतीजा यह हुआ कि 39 साल की उम्र में भी वह अभी अनब्याहा ही था.

मुंबई से चाचू और आबिद वीडियो काल पर हालचाल ले लेते और शादी कर लेने को कहते, पर बासित हर बार मुसकरा देता.

आज बासित अपनी दुकान पर आ कर कुरसी पर बैठा ही था कि उस के दोस्त रमेश और करीम आ गए, जो अकसर ही बासित से शादी करने को कहते थे. वे दोनों आज भी बासित से शादी कर लेने की बात
कहने लगे.

‘‘अरे, अब इस उम्र में हम से भला कौन शादी करेगा?’’ बासित के मुंह से अनायास ही निकल गया, तो इस बात को मानो करीम ने दोनों हाथों से लपक लिया.

करीम ने बासित को बताया कि लखनऊ से 70 किलोमीटर दूर हफीजपुर नाम के कसबे में रहमत नाम का एक दर्जी है, जिस की 4 बेटियां हैं और सब एक से बढ़ कर एक खूबसूरत भी हैं, पर रहमत दर्जी गरीब होने के चलते दहेज नहीं दे पा रहा है, लिहाजा उस की बेटियां अभी तक अनब्याही हैं.

‘‘अरे भाई, दहेज का क्या करना है? भला हमारे बासित के पास पैसों की क्या कमी है? चलो, हम लोग शादी का पैगाम ले कर चलते हैं,’’ रमेश खुश हो कर बोला.

बासित अपनी शादी की बात सुन कर इधरउधर देखने लगा और लड़कियों की तरह शरमा भी रहा था. रमेश और करीम सम झ गए थे कि बासित भी चाहता है कि उस की शादी करा दी जाए, इसलिए वे दोनों हफीजपुर जा कर रहमत दर्जी से मिले और निकाह की बात बताई.

रहमत दर्जी को तो जैसे मनमांगी मुराद मिल गई. उस की बड़ी बेटी सायरा 25 साल की थी, जबकि बासित की ज्यादा उम्र रहमत दर्जी के लिए थोड़ी चिंता का सबब तो थी, पर 4 बेटियों का बाप भला बासित जैसा अच्छा और पैसे वाला दामाद कहां से ला पाता, इसलिए रहमत ने सायरा की शादी बासित के साथ करने के लिए हामी भर दी.

बासित ने जब सायरा का फोटो देखा, तो उस की खूबसूरती देख कर दंग रह गया. सायरा के चेहरे का रंग एकदम साफ था. होंठों के ऊपर एक काला तिल सायरा की खूबसूरती में चार चांद लगा रहा था. नशीली और कजरारी आंखें उसे बला की खूबसूरत बनाती थीं.

बासित ने निकाह से पहले नया घर ले लिया था, जो लखनऊ के पौश इलाके गोमतीनगर में था. पूरे 4 कमरे थे इस में और घर के आगे एक छोटा सा लौन भी था, साथ ही गाड़ी पार्किंग की अच्छीखासी जगह भी थी.

निकाह के बाद सायरा इसी नए घर में आई थी. सायरा की खुशी का ठिकाना नहीं था. कहां तो दर्जी की बेटी… गरीबी में पलीबढ़ी, जहां पर पहनने को अच्छे कपड़े नहीं थे और पेटभर खाना भी नसीब नहीं होता था और कहां यह बासित का कोठीनुमा घर. अलमारी भर कर रंगबिंरगे कपड़े दिला दिए थे बासित ने. खाने को काजूबादाम के ढेरों पैकेट मेज पर सजे थे.

और रसोईघर तो देखो… खासे 2 कमरों के बराबर है… दराजों पर सुनहरे सनमाइका वाली नक्काशी है. और तो और रसोईघर में एक चिमनी भी लगी हुई है.

अब भला दालसब्जी के छौंक के बाद खांसी आने का झं झट ही नहीं.

सारा धुआं चिमनी से झर्र से बाहर और ज्यादा गरमी लगे तो बैडरूम में एसी औन कर लो.

बाथरूम में मौसम के हिसाब से गरम और ठंडा पानी नहाने के लिए और इन सब चीजों के बाद बासित जैसा शौहर मिला है, जो हर पसंदनापसंद का ध्यान रखता है. सायरा के सपनों को तो मानो पंख ही लग गए थे.

उस दिन इतवार था. बासित आज घर पर ही था. दोपहर बाद अमीनाबाद घूमने जाने का प्लान बना. सायरा ने बादामी रंग का सूट पहना, तो उस की खूबसूरती और भी दमक उठी.

बासित के साथ गाड़ी में बैठते समय कितना अच्छा महसूस हो रहा था. सायरा और बासित की कार महल्ले से बाहर निकली, तो महल्ले के मनचलों और खासकर चमन नाम के लड़के की नजरों में सायरा की खूबसूरती खटक गई.

चमन 28 साल का था जो बासित की दुकान पर ही काम करता था. उस ने दुकान के लोगों से सायरा के हुस्न के चर्चे पहले से ही सुन रखे थे, पर आज जब उस ने कार में बैठी सायरा को देख लिया, तो वह तो उस के हुस्न का दीवाना हो उठा.

चमन को यह बात बुरी लग रही थी कि इतनी खूबसूरत लड़की को तो उस की हमराह होना चाहिए, फिर यह 39 साल के बासित को कैसे मिल गई? सायरा की खूबसूरती पर मरमिटा था चमन और वह मन ही मन किसी योजना पर काम करने लगा था.

आज तो बासित पूरा अमीनाबाद ही खरीद देना चाह रहा था सायरा के लिए. बासित बस सायरा की नजरें पढ़ रहा था. बाजार में जिस सामान पर सायरा की नजरें जातीं, बासित वही चीज खरीद लेता. शौहर की मुहब्बत को देख कर मन ही मन फूली नहीं समा रही थी सायरा.

अगले दिन जब बासित अपनी दुकान पर चला गया, तब सायरा ने सोचा कि बासित उसे इतना प्यार करते हैं, उस पर इतना खर्च करते हैं, तो उस का भी तो फर्ज बनता है कि वह बासित के लिए कुछ करे, मसलन अपने कमाए हुए पैसों से बासित को कुछ तोहफे दे.

सायरा को याद आया कि जब वह अब्बू के पास मायके में थी, तब अम्मी ने उसे छोटे बच्चों के कपड़े सिलने का हुनर सिखाया था.

उसी दिन से सायरा ने आसपास के इलाके में खोज शुरू दी. कोई ऐसा दुकानदार या शोरूम वाला, जो उसे ऐसा कोई काम दे सके.

थोड़ीबहुत पूछताछ और गूगल की मदद के बाद सायरा एक ऐसे एजेंट को ढूंढ़ने में कामयाब हो गई, जो उसे बच्चों के कपड़े सिलने का काम देने पर राजी हो गया.

सायरा ने कपड़े लिए और अपने घर के एक छोटे कमरे में सिलाई मशीन रख ली और कपड़े सिलने का काम शुरू कर दिया.

इस कमरे में हमेशा ताला पड़ा रहता, क्योंकि सायरा नहीं चाहती थी कि बासित को उस के कपड़े सिलने के काम के बारे मे पता चले.

बासित को कभी पसंद नहीं आता कि पैसों की कोई कमी न होने के बावजूद सायरा कपड़े सिलने जैसा काम करे, इसलिए बासित के घर से जाने के बाद ही सायरा घर से बाहर जाती और और्डर लेकर वापस आ जाती. आनेजाने में सायरा को तकरीबन एक घंटे का समय लग जाता.

मनचला चमन, जो लगातार इस फिराक में था कि कैसे सायरा को हासिल किया जाए, उस ने अपने गुरगे बासित के घर के आसपास फैला रखे थे, जो सायरा के हर बार बाहर जाने पर नजर रखते थे.

चमन को अब अच्छा मौका मिल गया था. उस को यह पता चल गया था कि बासित के जाने के बाद सायरा कहीं जाती है. बस, फिर क्या था. उस ने मौका देख कर बासित के कान में फूंक दिया कि बासित की खूबसूरत बीवी का किसी गैर मर्द के साथ चक्कर चल रहा है और बासित की गैरहाजिरी में वह उस लड़के के साथ मजे करने जाती है.

‘‘यह क्या बकवास कर रहे हो चमन… होश में तो हो तुम…’’ बासित के भरोसे को बहुत गहरा झटका लग गया था.

शायद बासित गुस्से से मार ही बैठता चमन को, पर तुरंत ही चमन ने बासित से कहा कि उसे भरोसा नहीं है, तो आज शाम को 4 बजे अपने घर जा कर खुद देख ले.

बासित के लिए अपने पर काबू रख पाना मुश्किल हो रहा था, पर उस ने दिमाग को ठंडा रखते हुए हुए 4 बजने का इंतजार किया और 4 बजे अपने घर गया.

बासित यह देख कर चौंक गया था कि घर में सिर्फ उस का एक नौकर और नौकरानी ही हैं. पूछने पर पता चला कि सायरा कहीं बाहर गई है. बासित ने गुस्से में आ कर सायरा को फोन लगाया पर फोन नहीं उठा.

बासित का शक पक्का हो रहा था कि उस की बड़ी उम्र के चलते ही सायरा किसी गैर मर्द के प्यार में पड़ कर मजे कर रही है.

तकरीबन एक घंटे के इंतजार के बाद सायरा वापस आई, तो बासित को दरवाजे पर खड़ा देख कर ठिठक गई. बासित ने उसे घर के बाहर ही भलाबुरा कहना शुरू कर दिया. वह कुछ न कह पाई, चुपचाप अंदर आ गई.

2-3 दिन गुजर जाने के बाद भी बासित नौर्मल नहीं हुआ तो सायरा ने उसे धीमी आवाज में सम झाने की कोशिश भी की, पर बासित नहीं समझा.

बासित ने सायरा की बात तक नहीं सुनी, क्योंकि उस के दिमाग में शक की चिनगारी सुलग रही थी और इस चिनगारी को हवा देने का काम चमन लगातार कर रहा था.

चमन बासित के कान लगातार भरता रहता और बासित से कहता कि खूबसूरत औरतें नई उम्र के लड़कों को ज्यादा पसंद करती हैं. उस ने बासित के मन में अपनी बातों से सायरा के लिए इतनी नफरत पैदा कर दी कि एक दिन किसी बात पर बासित का मूड उखड़ गया और गुस्से में आ कर बासित ने सायरा के चालचलन पर सवाल उठाते हुए तलाक दे ही दिया.

गरीब घर से ताल्लुक रखने वाली सीधीसादी सायरा कोर्टकचहरी के चक्कर नहीं लगाना जानती थी. उस ने बासित को लाख सम झाने की कोशिश की, पर उस ने एक न सुनी.

हार कर बेचारी सायरा ने बासित के द्वारा तलाक दिए जाने को अपनी तकदीर मान लिया और जब शहर में अकेले जिंदगी काटना उस के लिए मुश्किल हो गया तो न चाहते हुए भी वह अपने मायके लौट आई.

चमन अपनी योजना के पहले हिस्से में तो पूरी तरह कामयाब हो चुका था यानी उस के द्वारा बासित के मन में इतनी नफरत भर दी गई थी कि आखिरकार बासित ने सायरा को तलाक दे ही दिया.

तलाक के बाद मायके में रहना किसी भी लड़की को अच्छा नहीं लगता और फिर अभी तो सायरा की 3 बहनों का निकाह भी होना बाकी था.

ऐसे में सायरा का घर आ कर बैठना किसी को नहीं सुहा रहा था. महल्ले वाले अलग बातें बना रहे थे और ये सब बातें सायरा को और भी दुखी कर रही थीं.

सायरा और बासित के तलाक के तकरीबन 7 महीने बाद चमन की योजना का दूसरा चरण शुरू हुआ.

चमन ने सायरा के अब्बू रहमत से मुलाकात की और सायरा से शादी करने की बात कही.

रहमत बहुत खुश हुए और उन्होंने इस बारे में घर के लोगों और सायरा से बात की. सभी ने सायरा को दोबारा निकाह कर लेने को कहा, पर सायरा शादी नहीं करना चाहती थी, लेकिन उस को यह भी लगा कि अब्बू के सीने पर अभी और बेटियों का बो झ है, ऐसे में एक तलाकशुदा लड़की का घर में रहना ठीक नहीं.

बारबार दोबारा शादी के लिए जोर दिए जाने के सवाल पर सायरा ने चमन से शादी के लिए हां कर दी और एक सादे समारोह में कुछ लोगों के बीच सायरा और चमन का निकाह करा दिया गया.

चमन इतनी खूबसूरत बीवी पा कर बहुत खुश था. उस के सारे ख्वाब मानो पूरे हो गए थे. वह लखनऊ से
150 किलोमीटर दूर अपने गांव मीठापुर में आ कर रहने लगा था.

चमन ने यहां अपना धंधा भी जमा लिया था और पुराने यारदोस्त भी उस से मिलनेज़ुलने लगे थे.

समय बीतने के साथ सायरा ने महसूस किया कि चमन किसी तरह का नशा करता है और प्यारमुहब्बत के पलों में अकसर ही वहशीपन की हरकतें करने लगता था.

चमन पोर्न मूवी देखने का शौकीन था. वह टीवी पर ब्लू फिल्म चला देता और सायरा को जबरदस्ती देखने पर मजबूर करता. और तो और कई बार चमन ने ब्लू फिल्म की हीरोइन जैसी हरकतें करने के लिए सायरा से कहा, पर सायरा ने ऐसा गंदा काम करने से मना किया तो चमन ने उस के साथ मारपीट की.

2 दिन के बाद फिर से चमन ने सायरा से पोर्नस्टार की तरह ही सैक्स करने को कहा और मजबूर सायरा ने ठीक वैसे ही करने की कोशिश भी की, पर वह कर न सकी. सायरा को उलटी आ गई थी.

चमन को सायरा से कोई प्यारमुहब्बत तो थी नहीं, बल्कि वह तो उस के हुस्न पर फिदा हो गया था और अब जब वह उस का शौहर था, तो सायरा के जिस्म पर अपना पूरा हक समझता था.

यहां तक कि जब सायरा के बच्चा होने वाला था और वह पूरे दिनों से थी, तब भी चमन सैक्स करना नहीं भूलता था.

समय आने पर सायरा ने एक खूबसूरत सी लड़की को जन्म दिया. लड़की जनने पर चमन के ताने और भी बढ़ गए, पर सायरा यह सोच कर चुप रही कि आज नहीं तो कल उस के शौहर को अक्ल आ ही जाएगी.

पर एक साल गुजरने के बाद भी चमन ने सायरा से जिस्मानी ताल्लुक तो खूब रखे, पर उस के मन की बातों को कभी भी इज्जत नहीं दे सका था.

एक दिन शाम को सायरा ने चमन को किसी लड़की से वीडियो काल करते हुए देख लिया. वह लड़की बिना कपड़ों के थी.

‘‘क्या मेरा शरीर तुम्हें खुश नहीं कर पाता, जो किसी बाहरी लड़की के साथ यह हरकत कर रहे हो,’’ कहते
हुए सायरा ने चमन के हाथ से मोबाइल छीन लिया.

सायरा के द्वारा मोबाइल छीनने की हरकत से चमन गुस्से में भर गया और उस ने सायरा के पीठ पर एक जोरदार लात मारी. बेचारी सायरा दर्द से दोहरी हो कर गिर गई, पर चमन का मन नहीं पसीजा.

उस दिन तो चमन ने सारी हदें पार कर दीं. उस ने सायरा के साथ जबरदस्ती करना चाहा, जबकि सायरा इस बात के लिए राजी न थी.

सायरा गिड़गिड़ाने लगी, ‘‘मैं तुम्हारी बीवी हूं, कोई रखैल नहीं,’’ पर सायरा की इस बात का चमन पर कोई असर नहीं हुआ और उस ने सायरा को अपनी मजबूत टांगों के नीचे दबा कर मनमानी कर ही ली.

सायरा रोती रही पर चमन पर कोई असर नहीं हुआ और थोड़ी देर के बाद वह बेसुध हो कर सो गया.

चमन एक वहशी जानवर था, जिस ने बासित के मन में सायरा के लिए जहर भर कर उस की गृहस्थी को तोड़ दिया और अब सायरा से मजे करना चाहता था.

सायरा अभी तक तो सहन कर रही थी, पर अब उस का भरोसा शादी और मर्द की जाति से पूरी तरह उठ
चुका था.

सायरा की जिंदगी में पहले बासित आया, जिस ने बिना सायरा की बात सुने उसे तलाक दे दिया और दूसरा
मर्द चमन आया, जो सिर्फ उसे अपनी हवस मिटाने के लिए इस्तेमाल करना चाहता था.

सायरा ने अपनी बच्ची को साथ लिया और अपने साथ हुई मारपीट की रिपोर्ट पुलिस में दर्ज कराई.

सायरा इतने पर ही नहीं रुकी, बल्कि ‘महिला अबला नहीं सबला’ नामक एनजीओ से गुहार लगाई कि उसे चमन नाम के जानवर से तलाक दिलाया जाए और उस की बच्ची के खर्चे के लिए हर्जाना भी दिलवाया जाए. चमन ने उस का जीना हराम कर रखा है.

सायरा के बदन पर चोटों के निशान और पड़ोसियों की गवाही और दूसरे सुबूत जब मिल गए और पुलिस चमन को गिरफ्तार करने गई, तो चमन के होश ठिकाने आ गए. वह सायरा से माफी मांगने लगा, पर सायरा टस से मस नहीं हुई.

चमन सलाखों के पीछे था और अब सायरा की जिंदगी में शौहर नाम की चीज के लिए कोई जगह नहीं थी. अब वह अपनी बच्ची को अकेले ही पालेगी और उसे सिखाएगी कि औरत को किसी भी मर्द का का जुल्म नहीं सहन करना चाहिए.

अपनी बेटी का माथा चूमते हुए सायरा बुदबुदा उठी, ‘‘मैं तेरी अम्मी भी, अब्बू भी मैं हूं तेरा.’’

यह कहते हुए सायरा के चेहरे पर एक अलग चमक थी. Best Hindi Story

News Story In Hindi: सोने की खतरनाक चमक

News Story In Hindi: आज विजय ने अनामिका के घर पर रुकने का प्लान बनाया था. दीवाली बीत चुकी थी. तब अनामिका अपने गांव गई थी. पूरे 15 दिन के बाद लौटी थी.

जिस इलाके में अनामिका रहती थी, वहां के ज्यादातर लोग बिहार से थे. उन में से बहुत से लोग दीवाली और छठ पूजा मनाने के लिए अपनेअपने घर जा चुके थे. अनामिका छठ पूजा से पहले ही लौट आई थी. उसी का प्लान था कि विजय उस के साथ रात बिताए.

अनामिका का वन रूम फ्लैट था. उस ने करीने से सब सजा रखा था. बिस्तर पर नई चादर बिछी थी और ‘एलैक्सा’ पर अरिजीत सिंह का एक रोमांटिक गाना ‘फिर भी तुम को चाहूंगा…’ बज रहा था.

अनामिका किचन में मैगी बना रही थी. उस ने ब्लैक कलर का झीना गाउन पहना हुआ था. विजय बनियान और शौर्ट्स में था. वह अनामिका की जुल्फों से खेल रहा था और उसे यहांवहां छेड़ रहा था.

‘‘विजय, मु झे मैगी बनाने दो न प्लीज,’’ अनामिका ने अपने बालों को ठीक करते हुए कहा.

‘‘पर मु झे तो मोमो खाने हैं,’’ विजय ने अनामिका को अपने आगोश में लेते हुए कहा.

‘‘मुझे सब पता है तुम्हारा ‘मोमो’ वाला इशारा किस तरफ है. जब देखो, दिमाग में हवस भरी रहती है,’’ अनामिका बोली.

‘‘तो फिर इस हवस को मिटाते हैं. न रहेगा बांस और न बजेगी बांसुरी,’’ विजय ने कहा.

‘‘यह बांसुरी वाला राग किसी और को सुनाना. आज जो शरारत तुम्हारी आंखों में दिख रही है, मुझे लगता नहीं कि तुम यहां सोने आए हो,’’ अनामिका ने गैस बंद करते हुए कहा.

अब वे दोनों बैडरूम में थे और मैगी खा रहे थे. इतने में विजय ने कहा, ‘‘यार, अब रहा नहीं जाता. सोचता हूं कि तुम्हें अपने ले ही आऊं.’’

‘‘तो मैं ने कब मना किया है. कर लेते हैं शादी,’’ अनामिका बोली.

‘‘पर हम ज्यादा महंगी शादी नहीं करेंगे,’’ विजय ने कुछ सोच कर कहा.

‘‘लेकिन मु झे सोने की अंगूठी तो दोगे न?’’ अनामिका ने हैरत से कहा.

‘‘अरे, सोने की अंगूठी खरीदना कौन सी बड़ी बात है. ऐसा करते हैं कि जल्दी ही सगाई कर लेते हैं. रिंग सैरेमनी में एकदूसरे को अंगूठी पहना देंगे,’’ विजय ने अनामिका को अपनी बांहों में भरते हुए कहा.

‘‘यह ठीक रहेगा. इसी संडे चलते हैं अंगूठी खरीदने,’’ अनामिका बोली.

‘‘पर उस से पहले आज की रात का तो मजा ले लें,’’ इतना कह कर विजय ने अनामिका को दबोच लिया.

अगले संडे विजय और अनामिका एक सुनार की दुकान पर थे. सुनार ने उन्हें अंगूठी के कई डिजाइन दिखाए. अनामिका को 22 कैरेट की 3 ग्राम से थोड़े ज्यादा की एक अंगूठी पसंद आई.

‘‘जी, आप की पसंद बहुत अच्छी है,’’ सुनार बोला.

‘‘कितने की है?’’ विजय ने सवाल किया.

‘‘जी, सिर्फ 50,000 रुपए की है,’’ सुनार बोला.

‘‘इतनी हलकी अंगूठी भी 50,000 रुपए की?’’ अनामिका के तो होश ही उड़ गए.

‘‘जी, आप को पता नहीं सोने के भाव आसमान छू रहे हैं. सोना पिछले एक साल में 79,000 प्रति 10 ग्राम से 1.31 लाख प्रति 10 ग्राम के लैवल पर आ चुका है. अक्तूबर, 2024 में 24 कैरेट सोने की कीमत 79,681 रुपए प्रति 10 ग्राम थी, जबकि अक्तूबर, 2025 तक सोने की कीमत बढ़ कर 1,14,314 रुपए प्रति 10 ग्राम हो गई थी,’’ सुनार ने कहा.

सोने के इतना ज्यादा दाम देख कर अनामिका का मूड खराब हो गया. उस ने इशारे से विजय को वहां से चलने को कहा.

अब वे दोनों एक कैफे में बैठे कौफी पी रहे थे. अनामिका ने अपने मोबाइल पर देखा कि पिछले कुछ समय से लोगों में सोना खरीदने की दिलचस्पी ज्यादा ही थी.

‘‘विजय, एक बताओ कि यह सोना खरीद कर घर में या बैंक के लौकर में रखने से होता क्या है? लोगों को सोने से इतना लगाव क्यों है?’’ अनामिका ने सवाल किया.

‘‘देखो, और देशों का तो पता नहीं, पर भारत में सोने को ‘देवताओं की करेंसी’ कहा जाता है और लोगों का ऐसा विश्वास है कि यह ‘पीला धातुई धागा’ जिस के बदन पर होगा, वह कभी गरीब नहीं रहेगा, हमेशा सौभाग्यशाली बना रहेगा,’’ विजय ने कहा.

‘‘हाल ही में मैं बीबीसी की एक खबर खंगाल रहा था, तो उस में पता चला कि मौर्गन स्टैनली, जो एक अमेरिकी ग्लोबल फाइनैंशियल सर्विस कंपनी है, ने हाल ही में एक रिपोर्ट जारी की जिस में कहा गया है कि जून, 2025 तक भारतीय परिवारों के पास 34,600 टन गोल्ड है, जिस की कीमत तकरीबन 3.8 ट्रिलियन डौलर है. यह वैल्युएशन भारत की जीडीपी का तकरीबन 88.8 फीसदी है.’’

यह सुन कर अनामिका की आंखें खुली की खुली रह गईं.

विजय ने आगे बताया, ‘‘मौर्गन स्टैनली की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय रिजर्व बैंक ने भी अपना गोल्ड भंडार बढ़ाया है और साल 2024 में 75 टन सोना खरीदा. इस के साथ ही भारत का गोल्ड भंडार तकरीबन 880 टन पहुंच गया है जो कि भारत के कुल विदेशी मुद्रा भंडार का 14 फीसदी है.

‘‘यह तो रही बात भारत में गोल्ड के बढ़ते रुतबे की, लेकिन सोने की बढ़ती कीमतें देश की इकोनौमी पर भी असर डालती हैं और इस का सीधा असर पड़ता है करेंसी पर.

‘‘सोने की कीमतों में उतारचढ़ाव कई वजह से होता है. उन में से एक अहम वजह है गोल्ड का इंपोर्ट और ऐक्सपोर्ट. गोल्ड के इंपोर्ट में बढ़ोतरी का सीधा असर महंगाई के रूप में देखने को मिल सकता है.’’

‘‘मैं कुछ सम झी नहीं?’’ अनामिका धीरे से बोली.

‘‘मान लो देश में सोने की मांग बढ़ती है तो इस बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए विदेशों से सोना इंपोर्ट करना पड़ेगा और इस सोने की कीमत को चुकाने के लिए और करेंसी नोट छापने पड़ेंगे, जिस से रुपए की वैल्यू पर असर पड़ेगा. नतीजा, महंगाई बढ़ने का डर बना रहेगा,’’ विजय ने एक खबर का हवाला देते हुए कहा.

‘‘तो क्या ऐसा पहली बार हुआ कि जब सोने की कीमतों ने इतनी लंबी छलांग लगाई है?’’ अब अनामिका का ध्यान कौफी पीने में बिलकुल नहीं था.

‘‘ऐसा नहीं है. खबरों की मानें तो साल 1930 के आसपास और 1970-80 में गोल्ड ने ऐसा ही ‘बुल रन’ (तेजी) दिखाया था. साल 1978 और 1980 के बीच सोने की कीमतें दुनियाभर में 4 गुना हो गई थीं और सोना 200 डौलर प्रति ओंस से बढ़ कर तकरीबन 850 डौलर प्रति ओंस तक पहुंच गया था.

‘‘तब माहिरों ने कीमतों से इस उछाल की वजह दुनियाभर में बढ़ती महंगाई, ईरान में क्रांति और अफगानिस्तान पर सोवियत हमले से बनी अनिश्चितता को बताया था.

‘‘हालांकि, तब भारत में सोने का इंपोर्ट कानून के तहत कंट्रोल में था. इस के बावजूद आंकड़े बताते हैं कि भारत में 10 ग्राम सोने के दाम साल 1979 में 937 रुपए से बढ़ कर साल 1980 में 1,330 रुपए हो गए थे. मतलब, कीमतों में यह उछाल तकरीबन 45 फीसदी का था.

‘‘पर अब मु झे लगता है और खबरें भी इसी तरफ इशारा करती हैं कि हमारे देश में सोना खरीदने के ट्रैंड में भी बदलाव आया है. ज्वैलरी की बजाय कई लोग अब फिजिकल गोल्ड (जैसे सोने की ब्रिक्स या बिसकुट) में पैसा लगा रहे हैं. जहां देखो लोग धड़ल्ले से सोना खरीद रहे हैं. बड़े शहरों की तुलना में छोटे शहरों और कसबों में लोग सोना ज्यादा खरीद रहे हैं.’’

‘‘पर इस का कोई तो नुकसान भी होता होगा न?’’ अनामिका ने सवाल दागा.

‘‘जहां तक मु झे लगता है कि बढ़ती कीमतों के बावजूद अगर लोग सोना खरीद रहे हैं तो इस से उन की फाइनैंशियल सेविंग्स कम हो सकती हैं. बैंक में डिपौजिट घट सकते हैं. इस से बैंकिंग सिस्टम में पैसा घट सकता है और लोन देने लायक रकम कम हो सकती है.

‘‘कुलमिला कर इस का असर कौर्पोरेट या एग्रीकल्चर सैक्टर को दिए जाने वाले लोन पर पड़ सकता है
और फाइनैंशियल ग्रोथ पर असर पड़ सकता है.’’

‘‘तो क्या सोना खरीदने की इस आपाधापी में सोने की स्मगलिंग भी बढ़ सकती है?’’ अनामिका तो सवाल पर सवाल दागे जा रही थी.

‘‘हाल ही में देश में दीवाली की धूम रही है और फैस्टिव सीजन में सोने की चमक भी लगातार बढ़ी है. साल 2025 के जनवरी महीने से दीवाली तक सोने की कीमत में 67 फीसदी की बढ़ोतरी दिखी. इस से साफ जाहिर है कि जिस रफ्तार से सोने का भाव बढ़ रहा है, तो सोने की स्मगलिंग के मामलों में भी जोरदार इजाफा हो रहा है.

‘‘रौयटर्स की एक रिपोर्ट में अफसरों के हवाले से कहा गया है कि गैरकानूनी सोने की स्मगलिंग के मामलों में जबरदस्त बढ़ोतरी देखने को मिली है. सर्राफा व्यापारी भी इस बात को कुबूल कर रहे हैं कि लिमिटेड सप्लाई के चलते इस में इजाफा हो रहा है.

‘‘रिपोर्ट में बताया गया है कि धनतेरस और दीवाली से पहले ही सोने की घरेलू कीमतें रिकौर्ड हाई पर दिखीं और इस के साथ ही पूरे भारत में सोने की स्मगलिंग में तेजी से बढ़ोतरी हुई. त्योहारी सीजन में पारंपरिक रूप से सोने के जेवरों, सिक्कों और बार (छड़) की डिमांड बढ़ जाती है, लेकिन बढ़ती कीमतों और लिमिटेड सप्लाई ने स्मगलिंग को बढ़ावा देने का काम किया. इस स्मगलिंग के खेल में खूब पैसा बनाया जा रहा है.

‘‘एक रिपोर्ट के मुताबिक, मौजूदा बाजार लैवल पर हर एक किलोग्राम सोने की स्मगलिंग से स्मगलर अंदाजन 11.5 लाख रुपए से ज्यादा का मुनाफा कमा रहे हैं. यह आंकड़ा जुलाई, 2024 में आयात शुल्क कटौती के बाद के मुनाफे से तकरीबन दोगुना है,’’ विजय ने बताया.

‘‘अच्छा, यह बताओ कि क्या इंटरनैशनल दबाव से भी सोने के भाव ऊपर नीचे हो सकते हैं?’’ अनामिका
ने पूछा.

‘‘देखा जाए तो इस समय पूरी दुनिया में अफरातफरी का माहौल बना हुआ है. कितने ही देश जंग की आग में झुलस रहे हैं या फिर जनता का विरोध झेल रहे हैं.

‘‘वैसे, इस साल फरवरी महीने के बाद से अमेरिका की तरफ टैरिफ नीति में बदलाव के बाद भारत में अनिश्चितता और बढ़ती गई, जिस से लोग शेयर बाजार की जगह सोने की तरफ शिफ्ट होने लगे, क्योंकि इसे सेफ इन्वैस्टमैंट माना जाता है.

‘‘भारत और चीन में सोने की खुदरा इन्वैस्टमैंट बढ़ गई है. इन दोनों देशों में सोने के लिए लोगों में ज्यादा चाहत है और दुनिया में सोने की सब से ज्यादा खपत इन्हीं दोनों देशों में होती है.

‘‘एक बात और भी कि भारत में इन दिनों बैंकों में जमा रकम पर काफी कम ब्याज मिल रहा है और इस से भी सोने में इन्वैस्टमैंट के प्रति लोगों का रु झान बढ़ा है. लोग सेविंग एकाउंट में जमा रखने से बेहतर सोने की खरीदारी को मान रहे हैं.

‘‘गोल्ड के ऐक्सचेंज ट्रेडेड फंड (ईटीए) के प्रति भी लोगों का आकर्षण तेजी से बढ़ रहा है. इस के जरीए कम रकम भी सोने पर लगाई जा सकती है और उस का फायदा सोने की दर के हिसाब से मिलता है.

‘‘देखा जाए तो आजकल अपनी इन्वैस्टमैंट के पोर्टफोलियो में सोना बहुत खास हिस्सा बन गया है. इन सब बातों के अलावा दुनिया के विभिन्न सैंट्रल बैंकों की तरफ से सोने की खरीदारी में तेजी से सोने की मांग बढ़ रही है.

‘‘यूक्रेन और रूस की लड़ाई के बाद से इस खरीदारी में तेजी आई है. अमेरिका, चीन, पोलैंड, भारत जैसे कई देश के सैंट्रल बैंक सोने की ज्यादा खरीदारी कर रहे हैं. मु झे लगता है कि इन्हीं वजहों से सोने की कीमतों में बढ़ोतरी चल रही है.’’

‘‘पर जब से अमेरिका में वहां के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का विरोध शुरू हुआ है, तब से डौलर भी थोड़ा कमजोर सा होता दिख रहा है. क्या इस वजह से भी सोने पर कोई असर पड़ा है?’’ अनामिका ने पूछा.

‘‘ऐसा कहा जा सकता है. पिछले कुछ दिनों से डौलर में कमजोरी देखी जा रही है और जब भी डौलर कमजोर होगा, सोने के दाम बढ़ेंगे. अमेरिका में अभी काफी उथलपुथल है जिस से डौलर के कमजोर होने का डर है. ऐसे में सोने की मांग में तेजी जारी रह सकती है,’’ विजय बोला.

‘‘एक खास वजह यह भी तो है कि सोना धरती पर जितना है, उतना ही रहेगा. इस की प्रोडक्शन बढ़ाई नहीं जा सकती. सप्लाई कम और डिमांड ज्यादा. दाम तो बढ़ेंगे ही…’’ अनामिका ने अपनी बात रखी.

‘‘तुम ने बिलकुल सही कहा. मांग के मुताबिक कच्चे तेल और सोने जैसे आइटम का प्रोडक्शन नहीं बढ़ाया जा सकता है, क्योंकि निश्चित जगहों पर सोने का खनन हो रहा है,’’ विजय बोला.

‘‘कुछ भी हो, हमारा आज का दिन बड़ा खराब गया. कहां तो हम एंगेजमैंट रिंग खरीदने निकले थे और कहां अब कौफी पर सोने के भाव की चर्चा कर रहे हैं,’’ अनामिका ने मुंह बनाते हुए कहा.

‘‘सही कहा तुम ने. मूड का मट्ठा हो गया. एकदम खट्टे वाला,’’ विजय ने हंसते हुए कहा.

‘‘तुम भी न… हर बात में कौमेडी घुसेड़ देते हो. चलो, अब चलते हैं. सोना तो नहीं मिला, अब घर चल कर सोते हैं. अब तो बस यही सोना रह गया है हमारी जिंदगी में,’’ अनामिका ने चुटकी ली.

विजय हैरान सा अनामिका को देखता रह गया. News Story In Hindi

Story In Hindi: आजादी का रंग

Story In Hindi: मीनाक्षी को आज भी अच्छी तरह याद है जब वह लाल जोड़ा पहन कर राजवीर की नईनवेली दुलहन बन कर जटपुर गांव से मेरठ जैसे बड़े शहर में आई थी, तो उस का उस घर में कितना शानदार स्वागत हुआ था.

मुंह दिखाई के समय कैसे राजवीर की पड़ोसनों ने उस की खूबसूरती की तारीफ के पुल बांध दिए थे. राजवीर की मां तो अपनी बहू की तारीफ सुनसुन कर निहाल हो गई थीं. कई दिन तक उसे रसोईघर में भी नहीं घुसने दिया था.

खुशी का पारावार जितना ज्यादा होता है, वहां दुख का वेग भी उतना ही तेज होता है.

राजवीर आईटीआई का डिप्लोमा कर के एक पेपर मिल में इलैक्ट्रिशियन लगा ही था, तभी उस के लिए शादी के रिश्ते आने लगे थे. उस के मांबाप ने अपने एकलौते बेटे की शादी एक खानदानी लड़की मीनाक्षी से करा दी थी.

मीनाक्षी ज्यादा पढ़ीलिखी नहीं थी, बस इंटर पास. गांव में लड़की इतना भी पढ़लिख जाए तो बहुत. इस के बाद तो मातापिता को उस की शादी की चिंता सताने लगती है.

मीनाक्षी की शहर में आते ही जिंदगी बदल गई. मेरठ शहर की चकाचौंध उसे बहुत रास आई. राजवीर उसे मल्टीप्लैक्स में फिल्म दिखाने ले जाता, बड़ेबड़े मौल में उसे शौपिंग कराता, जबकि गांव में वह भैंस के लिए बड़ी नांद में सानी करती थी, उसे चारा डालती थी. भैंस के नीचे सफाई करना, उसे नहलाना, गोबर उठा कर डालना, बस वह ऐसे ही कामों में तो बिजी रहती थी.

लेकिन शहर के तो जलवे ही अलग थे. हर समय बनठन कर रहना. खाली समय में सोफे पर बैठ कर बड़ी स्क्रीन वाली एलईडी पर सासबहू के सीरियल देखना. अब तो मीनाक्षी के मजे ही मजे थे. उस के सब ख्वाब पूरे हो रहे थे.

अगले ही साल घर में एक बिटिया की किलकारी गूंज उठी. मीनाक्षी ने उस का नाम सपना रखा. सचमुच, उस ने ऐसी ही जिंदगी का सपना तो देखा था. लेकिन इस दुनिया में आने और जाने वालों का तांता लगा ही रहता है.

सपना दुनिया में आई, तो कुछ ही महीनों के बाद उस की दादी इस दुनिया से चल बसीं.

मां के चल बसने पर राजवीर ने घर के कामकाज के लिए एक नौकरानी लगवा दी. कुछ सालों तक सबकुछ ठीक चलता रहा, लेकिन एक दिन बड़ा हादसा हो गया. पेपर मिल में लापरवाही के चलते राजवीर को बिजली का करंट लग गया. मिल के मुलाजिम उसे अस्पताल ले कर गए, लेकिन उसे बचाया न जा सका. घर की आमदनी का मेन जरीया राजवीर ही था. उस के जाते ही घर की आमदनी जीरो हो गई.

राजवीर के पिताजी इतने ज्यादा बूढ़े हो गए थे कि किसी काम के नहीं बचे थे. बेटे के जाने का सदमा उन्हें इतना गहरा लगा कि एक दिन उन का भी हार्ट फेल हो गया.

अब घर की सारी जिम्मेदारी मीनाक्षी के कमजोर कंधों पर आ गई. वह इतनी पढ़ीलिखी तो थी नहीं कि उसे अच्छे ओहदे वाली कोई नौकरी मिल सके. पेपर मिल से मिली मुआवजे की रकम भी कब तक चलती. रिश्तेदारों ने भी जल्दी ही अपने हाथ खड़े कर दिए. आखिर वे भी कब तक मदद करते.

ऐसे ही एक आदमी की सिफारिश पर मीनाक्षी की एक स्कूल में औफिस असिस्टैंट की नौकरी लग गई. मीनाक्षी अभी खूबसूरत और जवान थी. कइयों की निगाहें उस पर टिकने लगी थीं.

मीनाक्षी को नौकरी का सहारा तो मिल गया था, लेकिन 8,000 रुपल्ली की तनख्वाह में बिजली का बिल, राशनपानी, दूध का बिल, घर के और तमाम खर्चे और ऊपर से सपना की पढ़ाई का खर्चा… सब बड़ी मुश्किल से पूरे हो पा रहे थे. जैसेतैसे गृहस्थी चल रही थी. वह आमदनी बढ़ाना चाहती थी, लेकिन चाह कर भी उसे कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था.

तभी मीनाक्षी की जिंदगी में सुबोधिनी नाम की एक औरत आई. उस के बच्चे उसी स्कूल में पढ़ते थे, जिस में मीनाक्षी काम करती थी.

सुबोधिनी की नजर बड़ी पारखी थी. वह हमेशा ऐसी औरतों की तलाश में रहती थी, जो बेसहारा हों, लाचार हों, मगर खूबसूरत और जवान हों. वह ऐसी औरतों का ब्रेनवाश करने में माहिर थी.

धीरेधीरे सुबोधिनी ने मीनाक्षी की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाया. मीनाक्षी को तो सहारे की जरूरत ही थी. उसे लगा चलो दुनिया में कोई तो है, जो उस से दोस्ती करना चाहती है. सुबोधिनी उसे अच्छी लगने लगी, अपनी रहनुमा लगने लगी.

सुबोधिनी जानती थी कि गरम लोहे पर चोट कब करनी है. जब वह सम झ गई कि मीनाक्षी उस पर भरोसा करने लगी है. तब एक दिन उस ने चाय पीने के बहाने मीनाक्षी से मुलाकात करने का समय मांगा.

सुबोधिनी चाय पीते हुए बोली, ‘‘मीनाक्षी, मु झे बड़ा अफसोस है, तुम इतनी कम उम्र में विधवा हो गई.’’

‘‘दीदी, यह किसी के हाथ में तो था नहीं. जो भाग्य में बदा था, वह हो गया.’’

‘‘अरे पगली, यह कैसी दकियानूसी बातें कर रही है. भाग्य तो चुटकियों में बदल जाता है,’’ सुबोधिनी बोली.

‘‘वह कैसे दीदी?’’ मीनाक्षी ने पूछा.

‘‘आजादी के रंग से,’’ सुबोधिनी ने कहा.

‘‘आजादी के रंग से? दीदी, मैं कुछ समझी नहीं,’’ मीनाक्षी बोली.

‘‘हांहां, आजादी के रंग से. बस, थोड़ी सी हिम्मत होनी चाहिए,’’ सुबोधिनी ने बताया.

‘‘दीदी, ठीक से सम झाओ. पहेलियां सी मत बु झाओ,’’ मीनाक्षी ने हलकी मुसकान के साथ कहा. इस से उस के चेहरे की रंगत और बढ़ गई.

‘‘देखो मीनाक्षी, पुरानी सड़ीगली सोच से छुटकारा पाना ही हम औरतों के लिए बड़ी आजादी है. फिर सम झ लो तुम्हारा जीवन सुनहरा ही सुनहरा है,’’ सुबोधिनी थोड़ा खुल कर बोली.

‘‘लेकिन दीदी, मेरी सोच तो दकियानूसी नहीं है, लेकिन समाज का खयाल तो रखना ही पड़ता है,’’ मीनाक्षी ने अपनी बात रखी.

‘‘वाह मीनाक्षी, वाह. तुम उस समाज का खयाल रखती हो जो सुबह तुम्हारी शक्ल देखना भी पसंद नहीं करता,’’ सुबोधिनी ने ताना मारा.

यह सुन कर मीनाक्षी सोच में पड़ गई.

मौका देखते ही सुबोधिनी ने मीनाक्षी के हाथ पर अपना हाथ रखते हुए कहा, ‘‘देखो मीनाक्षी, मैं अच्छे से जानती हूं कि 8,000 रुपल्ली में घर का खर्चा भी ठीक से नहीं चलता.’’

‘‘वह तो है दीदी,’’ कहते हुए मीनाक्षी उदास हो गई.

‘‘मीनाक्षी, अगर तुम जरा सी हिम्मत दिखाओ, आजादी के पंख पसारो तो तुम्हारे इन 8,000 रुपए को 80,000 या उस से भी ज्यादा में बदलने में देर नहीं लगेगी.’’

‘‘नहीं दीदी, मैं कोई ऐसावैसा काम नहीं कर सकती,’’ मीनाक्षी ने सुबोधिनी के हाथ से अपना हाथ दूर करते हुए कहा.

‘‘अरे पगली, यह ऐसावैसा क्या होता है? यही तो दकियानूसी है. यह शरीर तुम्हारा है, यह जवानी तुम्हारी है. इस पर तुम्हारा हक है. यह किसी के बाप की जागीर नहीं. बड़ेबड़े रईस और हवस के शिकारी औरतों के तलवे चाटते हैं. नाक रगड़ते हैं औरत के सामने.

‘‘समाज का क्या, वह तो पैसे वालों और रसूखदारों की उंगलियों पर नाचता है. यह ससुरा समाज बेईमानों, निकम्मों और रईसजादों को सलाम ठोंकता है. गरीब को कौन पूछता है. एक बार इस गरीबी और लाचारी के दलदल से बाहर निकल कर तो देख मीनाक्षी, अगर यही समाज तेरे सामने न झुका तो कहना.

‘‘तुम्हारे पास सबकुछ होगा मीनाक्षी, सबकुछ. दौलत, शोहरत, बंगला, गाड़ी सबकुछ,’’ सुबोधिनी ने वहां से उठते हुए कहा.

मीनाक्षी सुबोधिनी की बातें सुन कर सोच में पड़ गई थी. एक तरफ सुबोधिनी की बताई आजादी का रंग था,तो दूसरी तरफ समाज.

सुबोधिनी ने 2-3 बार और ब्रेनवाश कर के मीनाक्षी की इस कशमकश को भी खत्म कर दिया.

फिर एक दिन. देहरादून का एक नामचीन होटल. एक रात. 20,000 रुपए. 15,000 मीनाक्षी के, 5,000 की दलाली सुबोधिनी के.

मीनाक्षी को यकीन ही नहीं हो रहा था. एक रात की कमाई 15,000 भी हो सकती है. उस ने 8,000 रुपल्ली की नौकरी को ठोकर मारी. सपना को स्कूल के होस्टल में डाला और आजादी के रंगीले रंग में डूब गई.

तभी मीनाक्षी की जिंदगी में रतन आया. वह उस का नियमित ग्राहक था, लेकिन दोनों की नजदीकियां इतनी बढ़ीं कि मीनाक्षी उस के साथ जिंदगी गुजारने का सपना देखने लगी.

रतन के पास पैसे की कोई कमी न थी. आखिरकार दोनों ने लिवइन रिलेशनशिप में रहना शुरू कर दिया.
मीनाक्षी रतन को अपने पति की तरह मानने लगी. रतन भी उस का पूरा खर्च उठा रहा था. इस से मीनाक्षी बेफिक्र हो गई.

लेकिन एक दिन रतन गया, तो लौट कर ही नहीं आया. कुछ दिन बाद जब मीनाक्षी ने उसे फोन किया, तो रतन का जवाब सुन कर वह अवाक रह गई.

रतन बोल रहा था, ‘मीनाक्षी, तुम्हारे साथ बहुत अच्छा समय गुजरा. बड़ा मजा आया. अब मैं ने अपनी ही बिरादरी की लड़की से शादी कर ली है. लेकिन तुम्हारे पास भी आता रहूंगा.

तुम मेरे लिए भरपूर बाजार हो. बाय… लव यू,’ इतना कह कर रतन ने फोन काट दिया.

मीनाक्षी के मन में ‘भरपूर बाजार’ शब्द हथौड़े की तरह चोट कर रहा था. वह मन ही मन सोचने लगी, ‘एक बार ‘बाजारू’ होने का कलंक माथे पर लग जाए, तो यह कलंक लाख कोशिश करने पर भी उतरता नहीं.

औरत को बाजारू बनाने वालों को भी लड़की सती सावित्री ही चाहिए, चाहे खुद ने सौ जगह मुंह मार रखा हो.’

मीनाक्षी पुराने ग्राहकों के नंबर तलाशने लगी. रतन से बंधन टूटा, तो आजादी का रंग और निखरा. Story In Hindi

Best Hindi Kahani: बांगुर बाबा और कमली

Best Hindi Kahani: कमली ने आसमान की ओर देखा. उस ने अंदाजा लगाया कि शायद शाम के 4 बजे हैं. उस का पति कलुआ थकहार कर 5 बजे तक घर आएगा.

यह सोच कर दीवार की ओर लगे एक आईने के सामने खड़े हो कर कमली ने सिंगार करना शुरू कर दिया. सिंगार के बाद कमली ने अपनेआप को आईने में देखा, तो खुद ही शरमा गई.

कमली की उम्र 28 साल के आसपास थी. उस का शरीर लंबा और इकहरा था. पतली कमर और पेट के बीच गहरी नाभि कमली को और भी मादक बनाती थी.

कमली का रंग सांवला जरूर था, पर उस का पतला चेहरा, सुतवां नाक और नशीली आंखें उसे बहुत खूबसूरत बनाती थीं.

आसपास के कई गांवों में भी कमली जैसी मदमस्त औरत नहीं थी. गांव के सभी नौजवान यहां तक कि बड़ी उम्र के मनचले भी कमली को देख कर आहें भरते थे. पर मजाल है कि कमली किसी के फेर में आ जाए.

स्वभाव से कमली एक तेजतर्रार औरत थी, जो मर्दों की नजरों को पढ़ना अच्छी तरह जानती थी. तभी तो जब भी वह गांव के बाजार में सौदा लेने जाती, तो मनचलों की नजरें उस के खूबसूरत जिस्म और उभरे और सुडौल सीने को घूरती रहतीं. लोगों का घूरना कमली अच्छी तरह समझती थी.

कमली के उभार उस की चोली से झांकते तो वह अपने सीने पर धीरे से आंचल डाल लेती, जिस से ‘आह’ भरते मर्द मन मसोस कर रह जाते थे.

अभी कमली अपने रूप को आईने में निहार कर खुद पर मोहित हो ही रही थी कि कलुआ घर आ गया. उस ने सिर पर पगड़ी के रूप में बंधा कपड़ा निकाल फेंका और खटिया पर बैठ गया.

कमली उसे देख कर मुसकराई, पर कलुआ से मुसकराया भी नहीं गया. कमली रसोई से गुड़ और पानी ले कर आई. कलुआ से बैठा नहीं जा रहा था, सो वह खटिया पर ही पसर गया.

कमली ने पानी पीने के लिए बारबार कहा, तो कलुआ ने थोड़ा गुड़ और पानी पिया और फिर खटिया पर लेट गया.

लोटा एक ओर सरका कर कमली भी खटिया पर कलुआ के बगल में ही लेट गई और अपना सिर कलुआ के सीने पर रख दिया. वह अपनी उंगलियां कलुआ के जिस्म पर घुमाने लगी. ऐसा कर के कमली कलुआ के साथ प्यार करना और संबंध बनाना चाह रही थी, पर कलुआ के शरीर में कोई हलचल नहीं हुई. ठंडा सा पड़ा रहा वह. मर्दाना शरीर में कोई तनाव भी नहीं आया.

कमली सम झ गई थी कि आज भी ठाकुर ने कलुआ को बुराभला कहा है.

‘‘ठाकुर ने कुछ कहा क्या?’’ कमली ने पूछा.

‘‘बारबार कर्जा चुकता करने को कहते हैं, जबकि पैसे तो मैं कई बार लौटा चुका हूं, पर,’’ आगे कुछ नहीं बोल सका था कलुआ.

एक बार कमली के बीमार पड़ने पर कलुआ ने गांव के ठाकुर से 1,000 रुपए उधार लिए थे, जिन्हें बाद में धीरेधीरे कर के चुका भी दिया था, पर ठाकुर के मुताबिक अभी तक उस ने आधी रकम ही चुकता की थी, इसलिए वे बाकी के पैसों की मांग किए जा रहे थे.

कमली मन ही मन विचार करने लगी थी कि उसे ही इस समस्या के समाधान के लिए कुछ करना होगा.
अगले दिन सुबह के तकरीबन 11 बजे कमली ठाकुर की कोठी पर पहुंच गई. आंगन के बाहर ही 40 साल की खूबसूरत ठकुराइन दिख गईं. कमली ने ठकुराइन को ‘नमस्ते’ किया.

‘‘आओ कमली, कैसे आना हुआ?’’ ठकुराइन नरम स्वभाव की थीं. उन की मीठी आवाज सुन कर कमली को अच्छा लगा, तो उस ने बताया कि वह कर्जे के बारे में ठाकुर साहब से कुछ बात करना चाहती है.

अभी ठकुराइन कुछ कह पातीं कि इतने में ठाकुर अंदर से आ गए. उन की उम्र तकरीबन 50 साल थी, पर शक्ल से वे अभी जवान ही दिखते थे.

ठाकुर अकसर ठकुराइन से नाराज रहते थे, क्योंकि अब तक ठकुराइन के कोई बच्चा नहीं था. ठाकुर इस बात की जिम्मेदार ठकुराइन को मानते थे और इसी वजह से वे उन्हें खरीखोटी सुनाते और परेशान करते थे.

ठाकुर को आता देख कर ठकुराइन झट से अंदर चली गईं.

कमली की कर्जे वाली बात ठाकुर ने सुनी और उन्होंने एक हवस भरी नजर कमली के सीने और पेट पर डाली और कहा, ‘‘अगर तू मेरे साथ एक रात बिताने को तैयार हो जाए, तो मैं कलुआ का सारा कर्जा माफ कर दूंगा.’’

‘‘वाह, ठाकुर साहब वाह, ऐसे तो तुम लोग हम अछूतों का छुआ पानी भी नहीं पीते, पर हमारे बदन को चाटने से भी तुम्हें परहेज नहीं,’’ कमली गुस्से में भर कर बोली और पैर पटकते हुए वापस चली आई.

ठाकुर को कमली की इस अदा पर गुस्सा नहीं आया, बल्कि वे कमली के तेजी से ऊपरनीचे होते कूल्हों को देख कर निहाल हुए जा रहे थे. वे जानते थे कि परेशान हो कर एक दिन कमली उन के पास आ ही जाएगी.

और सच भी यही था कि कलुआ की परेशानी को देखते हुए कमली ने सोचा कि अपना शरीर एक रात के लिए ठाकुर को सौंप देने में कोई बुराई तो नहीं है. सुबह उठ कर नहाधो लेगी, कम से कम कलुआ को तो ठाकुर परेशान तो नहीं करेंगे.

कमली इसी उधेड़बुन में थी कि उस ने सामने से एक भीड़ को आते देखा. ‘बांगुर बाबा की जय, बांगुर बाबा की जय’ के नारे लग रहे थे. गुलाबी रंग के कपड़े पहने हुए कुछ लोग हाथ में बैनर उठाए हुए थे और एक आदमी परचे बांट रहा था.

कमली को भी परचा मिला, पर वह तो अनपढ़ थी, इसलिए कुछ न पढ़ सकी. भीड़ में से एक आदमी से पूछने पर उस ने बताया कि इसी गांव के बाहरी छोर पर बांगुर बाबा ने अपना पंडाल लगाया है, जहां पर वे गरीबों की मदद करेंगे और बेऔलाद औरतों को ऐसा मंत्र देंगे, जिस से उन के औलाद हो जाएगी. सभी लोगों के कष्ट हरने का तरीका भी है बांगुर बाबा के पास.

कमली बांगुर बाबा की इन शक्तियों के बारे में सुन कर बहुत खुश हो गई और मन ही मन उन के पास जाने का विचार करने लगी.

अगले दिन जब कलुआ काम पर चला गया तो कमली उसे बिना बताए गांव के बाहर लगे बांगुर बाबा के पंडाल में पहुंच गई.

भीड़ अभी आनी शुरू हुई थी. बांगुर बाबा के आदमी एक ओर मेजकुरसी डाल कर कागज पर आने वाले लोगों का नामपता और उन की समस्याएं लिख रहे थे और बारीबारी बांगुर बाबा के पास एक दूसरे छोटे से पंडालनुमा कमरे में भेज रहे थे. वे अंदर जाने वाले के सिर पर एक गुलाबी रंग का कपड़ा भी बांध रहे थे.

कमली भी बेसब्री से अपनी बारी का इंतजार कर रही थी. उस की बारी आई तो धड़कते दिल के साथ उस ने अपना नामपता और समस्या लिखवा दी.

‘हम गरीब हैं और हम पर ठाकुर का कर्जा है…’ कमली की यह समस्या लिख दी गई और उस के सिर पर गुलाबी कपड़ा बांध दिया गया. फिर कमली को अंदर भेज दिया गया.

अंदर जा कर कमली ने देखा कि बांगुर बाबा कोई बूढ़ा आदमी तो नहीं, बल्कि यही कोई 50-52 साल का आदमी था, पर उस ने किसी बाबा की तरह अपने चेहरे पर दाढ़ी जरूर बढ़ा रखी थी.

बाबा के पास ही एक बरतन में आग सुलग रही थी, जिस पर वह बीचबीच में कोई पाउडर सा डाल देता था.

बांगुर बाबा ने कमली को ऊपर से नीचे तक जम कर घूरा और कहा कि उस की गरीबी जरूर दूर होगी, बस वह शांत बैठी रहे.

बांगुर बाबा कुछ देर तक पता नहीं क्या बुदबुदाता रहा और उस के आगेपीछे घूमने लगा और फिर उस ने कमली की पीठ पर हाथ रख दिया. बांगुर बाबा की इस छुअन से कमली चौंक गई. उसे लगा कि बांगुर बाबा की नीयत में कुछ खोट है.

कमली ने विरोध करते हुए खड़े हो कर भागना चाहा, पर वह ऐसा कर नहीं सकी, बल्कि उस का सिर भारी हो जाने के चलते उसे नींद सी आने लगी और वह बेहोश हो कर एक ओर लुढ़क गई.

जब कमली होश में आई, तो उस के बदन पर एक भी कपड़ा नहीं था. बांगुर बाबा एक ओर बैठा हुआ चिलम फूंक रहा था.

कमली ने तेजी से कपड़े पहनने शुरू कर दिए और खा जाने वाली नजरों से बांगुर बाबा को घूरने लगी. हालांकि, कमली का शरीर अभी भी बो िझल सा था, पर फिर भी उस ने पास में रखी हुई एक सुराही को उठा कर बांगुर बाबा के सिर पर मारना चाहा, पर बांगुर बाबा पहले से ही सतर्क था.

‘‘ज्यादा शोर मचाने की जरूरत नहीं है. यह देख तेरे नंगे जिस्म की वीडियो फिल्म कैद है इस में,’’ कहते हुए बांगुर बाबा ने एक बड़े से मोबाइल की स्क्रीन को कमली की तरफ दिखाया.

कमली ने देखा कि उस मोबाइल में उस का नंगे जिस्म के हर हिस्से की वीडियो फिल्म कैद थी.

कमली फफक पड़ी. उस की इज्जत लुट चुकी थी. अपने शरीर को तो उस ने ठाकुर को भी नहीं छूने दिया जो उस का कर्जा माफ कर देता, पर बांगुर बाबा ने उस के भरोसे का कत्ल कर दिया. उसे बेहोश कर के उस की इज्जत लूटी और वीडियो फिल्म भी बना ली.

कमली रोने लगी थी और तेजी से बाहर की ओर भागी. कुछ भी हो अब वह कलुआ को अपनी यह शक्ल
नहीं दिखाएगी. तेज कदमों से वह गांव के बाहर नदी की ओर बढ़ती जा रही थी.

नदी के पुल पर पहुंच कर कमली ने नीचे बहती धार को देखा, तो वह ठिठक गई.

कमली ने सोचा कि वह तो मर जाएगी, पर उस के बाद कलुआ का क्या होगा. इस भरी दुनिया में उसे तो दो रोटी देने वाला भी कोई नहीं है. ठाकुर जब उस पर जुल्म करेगा, तो किस के आंचल में मुंह छिपाएगा कलुआ? और फिर उस के साथ गलत काम तो बांगुर बाबा ने किया है, सजा तो उसे मिलनी चाहिए, तो वह भला अपनी जिंदगी क्यों खत्म करे?

कमली इसी ऊहापोह के बीच वापस अपने घर पहुंची और अपने घर के आंगन में लगे नल से 2-3 बालटी पानी भरा और अपने बदन को रगड़रगड़ कर साफ कर के नहाने लगी.

शाम को आज कलुआ फिर परेशान दिखा. उसे ठाकुर ने बुराभला कहा था और तमाचे भी रसीद किए थे. कमली का सब्र जवाब दे रहा था. उस के दिमाग में ठाकुर का जुल्म, बांगुर बाबा और ठकुराइन के चेहरे लगातार घूम रहे थे. वह मन ही मन कोई योजना बना रही थी.

इस घटना को 2-3 बीत गए थे. कमली जानती थी कि हर शनिवार को ठाकुर शहर जाते हैं, इसलिए वह ठाकुर के जाने के बाद ठकुराइन से मिलने जा पहुंची और उन का दुख बांटने लगी, ‘‘अब तो ठाकुर साहब की उम्र भी हो चली है. एकाध साल में बच्चा नहीं हुआ तो जिंदगीभर बां झ होने का ठप्पा लगा रहा जाएगा आप पर.’’

ठकुराइन के चेहरे पर आई उदासी और निराशा को पढ़ते हुए कमली ने उन्हें बांगुर बाबा के बारे में बताया और यह भी कहा कि बांगुर बाबा किसी भी समस्या को हल कर देते हैं.

‘‘अच्छा, पर कैसे?’’ पूछते हुए ठकुराइन के चेहरे की चमक बढ़ गई.

‘‘अलगअलग समस्या के हल के लिए अलगअलग दाम है. मसलन, पति किसी दूसरी औरत के चक्कर में फंसा हो तो 2,000 रुपए और बच्चा होने के लिए वे 5,000 रुपए लेते हैं. और ये सारे काम वे शनिवार की शाम को होते हैं,’’ कमली ने जोश के साथ बताया.

ठकुराइन किसी भी तरह से एक औलाद चाहती थीं. वे कमली की बातें सुन कर राजी हो गईं.

‘‘ठीक है कमली, मैं बांगुर बाबा के पास जाऊंगी… तुम रुको,’’ ठकुराइन अंदर जा कर 5,000 रुपए ले आईं.

‘‘ये पैसे आप मत रखो. मु झे दे दो. मैं बांगुर बाबा को दे दूंगी, क्योंकि मैं इस से पहले भी उन के पास जा चुकी हूं और वे मु झे अच्छी तरह से जानते हैं,’’ कमली ने कहा तो ठकुराइन ने तुरंत ही पैसे उसे दे दिए.

कमली ने पैसों को अच्छी तरह से अपनी चोली में छिपा लिया था. ठकुराइन किसी भी हाल में आज शनिवार की शाम को ही बांगुर बाबा से मिल लेना चाहती थीं.

कमली और ठकुराइन सब की नजरों से बचतेबचाते हुए बांगुर बाबा के पंडाल पर पहुंचीं और कमली ने बांगुर बाबा के चेलों को ठकुराइन की समस्या लिखवा दी.

चेलों ने ठकुराइन के सिर पर गुलाबी रंग का कपड़ा बांध दिया, जिस के बाद ठकुराइन अंदर चली गईं और कमली कुछ देर रुक कर मुसकराती हुई वापस अपने घर चली गई. अपनी योजना के पहले चरण में तो वह कामयाब हो गई थी.

2-3 दिन के बाद कलुआ और कमली ने पंचायत के सदस्यों से अर्ज किया कि वे पंचायत के सामने अपनी कुछ फरियाद रखना चाहते हैं और पंचायत में ठाकुर साहब को भी बुलाया जाए.

पंचों ने ठाकुर को बुला भेजा, पर ठाकुर अपनी अकड़ में थे, सो पंचों के बुलाने पर नहीं आए. पर पंचों के बारबार कहने और पंचायत का मान रखने के लिए आखिरकार ठाकुर पंचायत में आ गए. गांव के बड़ेबूढ़े, मर्दऔरतें और बच्चे वहां जमा हुए और पंच एक आसन पर विराजे.

एक पंच ने कहना शुरू किया, ‘‘यह पंचायत कमली और कलुआ की अर्ज पर बुलाई गई है. तो बताओ कमली, तुम्हें क्या कहना है?’’

कमली खड़ी हुई और तेज आवाज में उसने कहा, ‘‘मेरे पति ने कई साल पहले ठाकुर साहब से 500 रुपए बतौर कर्ज लिए थे, जिन्हें पूरे ब्याज के साथ हम लौटा भी चुके हैं, पर फिर भी ठाकुर साहब नहीं मानते कि हम ने पैसे लौटाए हैं और वे लगातार मेरे मर्द पर जुल्म करते रहते हैं.’’

‘‘तुम ने कर्जा लौटा दिया है, इस का क्या सुबूत है तुम्हारे पास?’’ ठाकुर बीच में ही दहाड़ पड़े.

कमली ने जवाब दिया, ‘‘हम अनपढ़ लोग हैं और हमारे पास कोई सुबूत नहीं है कि हम कर्जा दे चुके हैं, इसलिए अपनी गलती को संभालते हुए हम आज भरी पंचायत में दोबारा अपना कर्जा चुकता करने को तैयार हैं. पर इस शर्त के साथ कि कलुआ आज के बाद ठाकुर के घर बंधुआ मजदूरी नहीं करेगा और ठाकुर हम से दोबारा पैसे नहीं मांगेंगे.’’

कमली की बात सुन कर किसी को भला क्या एतराज होता. कलुआ ने अपनी जेब से पूरे 1,000 रुपए निकाले और पंचों के सामने गिन कर ठाकुर की ओर बढ़ा दिए.

ठाकुर दांत पीसते हुए सोचने लगे, ‘‘इन लोगों के पास एकदम से इतना पैसा कहां से आ गया?’’ पर बात पंचायत और सब के सामने थी, इसलिए उन्होंने पैसे ले लिए और यह ऐलान कर दिया कि अब कलुआ उन का कर्जदार नहीं है और न ही वह उन का बंधुआ मजदूर है.

कलुआ को अपने कानों पर भरोसा ही नहीं हो रहा था कि अब उसे ठाकुर की गालियां नहीं सुननी पड़ेंगी और न ही उन के घर पर काम करना पड़ेगा. आज वह ठाकुर के कर्ज से छुटकारा पा गया था.

रात को कमली ने चिलम में तंबाकू भरी और कलुआ ने चिलम जलाई. कलुआ ने भी दम मारा और कमली
ने भी. दोनों आंगन में खटिया डाल कर लेट गए.

‘‘तू यह तो बता कि 1,000 रुपए लाई कहां से? क्या ठाकुर से अपने जिस्म का सौदा कर किया है?’’

कलुआ ने कमली के उभारों पर अपने हाथ का दबाव बढाते हुए पूछा तो कमली ने मुसकराते हुए कहा कि वह खाली आम खाए पेड़ गिनना छोड़ दे.

कलुआ कमली की बात सुन कर मुसकराने लगा और अपने चेहरे को कमली के उभरे सीने के बीच रख दिया और उस के हाथ कमली के चिकने जिस्म पर फिसलने लगे.

कमली ने महसूस किया कि आज कलुआ उसे जी भर कर प्यार कर रहा था. आज कलुआ के बदन में बहुत तनाव था. कलुआ और कमली के जोर से खटिया भी मधुर शोर करने लगी थी.

आज अचानक तकरीबन 4 महीने के बाद ठकुराइन और कमली की मुलाकात हुई. दोनों की नजरों में जो बात हुई उसे वे दोनों ही सम झ सकीं. ठकुराइन की शरमाती नजरें यह बताने के लिए काफी थीं कि बांगुर बाबा से उस शाम की मुलाकात के बाद वे पेट से हो गई हैं.

‘‘ठाकुर साहब को उन के पिता बनने की खबर बता दी है. वे बहुत खुश हैं,’’ ठकुराइन ने फुसफुसाते हुए कहा, तो कमली भी मुसकराए बिना नहीं रह सकी.

‘‘पर बांगुर बाबा ने हमारी वीडियो फिल्म बना ली है. यह बात हम किसी को नहीं बताएंगे,’’ कमली ने कहा तो ठकुराइन ने भी कमली से फुसफुसाते हुए कहा, ‘‘हां भई, नदी के घाट पर नहाते समय तो सब नंगे ही होते हैं.’’

दोनों ने एकदूसरे के हाथों को जोर से दबाया और अपनेअपने रास्ते चल पड़ीं. कमली यह सोच कर खुश हो रही थी कि किस तरह से उस ने एक तीर चला कर कई शिकार कर लिए हैं.

समय आने पर ठकुराइन ने एक बच्चे को जन्म दिया. ठाकुर ने पूरे गांव में दावत दी और जम कर मजा किया. पड़ोस के गांव से नाचनेगाने वाली बुलाई गई और रातभर नौटंकी के मजे लिए गए. रातभर यह गाना बजता रहा, ‘लौंडिया लंदन से लाएंगे, रातभर उसे नचाएंगे…’

आखिरकार ठाकुर को उन का वारिस मिल ही गया था. भले ही वे यह नहीं जान सके थे कि वे उस बच्चे के असली पिता नहीं हैं.

कलुआ को अपनी जीविका चलाने के लिए कुछ काम तो करना ही था और कमली के पास ठकुराइन के दिए हुए पूरे 4,000 रुपए बाकी थे. इन पैसों से कमली ने घर के लिए 2-3 महीने का राशन लिया और एक लकड़ी का खोखा बनवाया, जिसे गांव के बाहर जाने वाली सड़क के किनारे रखवा दिया गया, जिस में टौफी, बिसकुट, तंबाकू, पानी की बोतल, गुटका वगैरह रख कर वे दोनों अपनी जीविका चलाने लगे.

ठाकुर को औलाद मिल गई थी. ठकुराइन को ठाकुर की नजरों में इज्जत मिल रही थी. कलुआ को कमाई का साधन और मजदूरी से छुटकारा मिल गया था, पर बांगुर बाबा किसी और गांव में समस्याओं को हल करने की आड़ में गरीब और भोलेभाले लोगों का शोषण कर रहा था.

ऐसे न जाने कितने बांगुर बाबा अभी भी समाज में हैं और अंधविश्वास का फायदा उठा रहे हैं. केवल पढ़ाईलिखाई और जागरूकता ही लोगों को ऐसे बांगुर बाबाओं से बचा सकती है. Best Hind Kahani

Hindi Romantic Story: प्यार की कोई हद नहीं

Hindi Romantic Story: मेरा नाम धीरज है. वह दिन मेरी यादों में अब भी ताजा है, जैसे कल ही की बात हो. उस समय मैं एक अल्हड़, नासमझ नौजवान था. सपनों की दुनिया में जीने वाला, जिसे प्यार के गहरे मतलब का पता तक न था. गांव के सालाना मेले में, भीड़भाड़ और ढोलनगाड़ों के बीच, मेरी नजर अचानक सीमा पर ठहर गई.

सीमा अपने दोस्तों के साथ हंसते हुए बातें कर रही थी. उस की हंसी में इतनी कशिश थी कि आसपास की रौनक भी फीकी लगने लगी. वह बस मुसकरा रही थी और मैं उस मुसकान में अपने भविष्य का कोई अक्स देखने लगा.

पहली नजर के बाद, हमारी मुलाकातें धीरेधीरे आम हो गईं. कभी कुएं से पानी भरते हुए वह मेरे पास से गुजर जाती, कभी आम के बगीचे के रास्ते पर अचानक सामना हो जाता.

शुरू में मैं दूर से उसे निहारने तक ही सीमित था, पर समय के साथसाथ हमारी आंखें बोलने लगीं. उन चोरीचुपके पलों में हम ने सपने बुने.

सीमा कहती, ‘‘धीरज, हमारा एक छोटा सा घर होगा, उस का दरवाजा नीला होगा. खिड़की से धूप और हवा भरपूर आएगी. पिछवाड़े तुलसी का पौधा होगा.’’

हम दोनों अपनी ही बनाई दुनिया में खोए रहते. मुझे लगता था, अगर हमारे दिल साफ हैं, तो पूरा संसार हमारे साथ खड़ा होगा. पर मैं गलत था.

एक शाम हम खेतों के किनारे बैठे थे. आकाश में डूबता सूरज था और दूर से बैलों की घंटियां सुनाई दे रही थीं.

सीमा अपनी चूडि़यों से खेल रही थी और मैं उस के चेहरे को चुपचाप देख रहा था. तभी कदमों की तेज आहट सुनाई दी. उस के पिता और उस का भाई वहां आ गए थे. चेहरे पर गुस्सा, आंखों में समाज की पुरानी दीवारें.

सीमा के पिता की आवाज भारी थी, जैसे किसी ने पत्थर फेंका हो, ‘‘कौन हो तुम? अपनी औकात भूल गए हो? हमारी जाति से बाहर का हो कर भी हमारी बच्ची पर अपनी नजरें उठाने की हिम्मत कैसे की?’’

सीमा के भाई ने एक कदम आगे बढ़ा कर उंगली मेरे सीने पर टिका दी, ‘‘अगली बार सीमा के आसपास भी दिखे, तो याद रखना कि अंजाम बहुत बुरा होगा.’’

उस पल मेरी सांसें थम सी गईं. मैं कुछ कहना चाहता था. शायद यह कि प्यार जाति नहीं देखता या कि सीमा और मैं बस सपने देख रहे थे. लेकिन मेरे होंठ सूख गए. दिल इतनी तेजी से धड़क रहा था कि लगा वे लोग आवाज भी सुन लेंगे. मेरा गला खुश्क हो गया, जैसे किसी ने वहां कांटे भर दिए हों.

मैं ने उन की आंखों में देखना चाहा, पर हिम्मत नहीं जुटा पाया.

सीमा मेरी ओर देख रही थी. उस की आंखों में डर था, पर एक उम्मीद भी. शायद वह चाहती थी कि मैं कुछ कहूं, कुछ बोलूं. लेकिन मैं खामोश खड़ा रहा. उस खामोशी ने हमारे सपनों की बुनियाद को हिला दिया.

उस रात मैं बहुत देर तक जागता रहा. हर बार सोचा कि कल जा कर सीमा से कह दूंगा कि डरना नहीं चाहिए. पर सुबह होतेहोते मेरा साहस बुझ गया. गांव के लोगों की निगाहें, उन की बातें, उस के पिता और भाई के गुस्से का खौफ सब मिल कर मेरे सीने पर पत्थर सा दबाव डाल रहे थे.

दिन बीतते गए. मैं अब वे रास्ते बदलने लगा, जहां सीमा दिख सकती थी. मेरे भीतर अपराधबोध कचोटता रहा. हर बार जब मैं कुएं के पास से गुजरता, तो लगता कि वहां हमारी हंसी की गूंज अब मुझे डांट रही है. रातों को, जब अकेला होता, तो खुद को कोसता. ‘तुम ने क्यों नहीं कुछ कहा? क्यों नहीं खड़े हुए उस के लिए?’ लेकिन सुबह होते ही वही डर मुझे जकड़ लेता.

सीमा की शादी की खबर बिजली सी गिरी मेरे ऊपर. गांव में ढोलनगाड़े गूंज रहे थे, लोग शादी के भोज के मजे ले रहे थे, पर मेरे भीतर एक सन्नाटा था. शादी के दिन मैं अपने घर की छत पर खड़ा था.

मैं ने उसे दुलहन के लिबास में देखा… वह बहुत खूबसूरत लग रही थी, पर उस की मुसकान में एक अजीब सी थकान थी या शायद यह मेरे टूटे हुए दिल की कल्पना थी. बरात आई, शहनाइयां बजीं. जब उस की डोली उठी, तो मुझे लगा जैसे किसी ने मेरे भीतर से कुछ खींच लिया हो.

सीमा के जाने के बाद, गांव वैसा नहीं रहा. आम के बगीचे अब सूने लगते, मेले की भीड़ में अब संगीत नहीं, शोर सुनाई देता था.

मैं अकसर उन रास्तों पर भटकता जहां हमने सपने देखे थे. हर जगह मुझे अपनी ही बुजदिली का अक्स दिखाई देता.

मैं ने कभी उसे अपने प्यार का इजहार नहीं किया और शायद यही मेरी सब से बड़ी भूल थी. न कि समाज
की दीवारें.

अब, सालों बाद भी, जब मैं उन दिनों को याद करता हूं, तो एक कसक उठती है. सीमा मेरी जिंदगी का वह अध्याय है जिसे मैं न तो मिटा सकता हूं, न ही जी सका हूं. मैं जानता हूं, प्यार शायद अब उस की जिंदगी में किसी और रूप में बसा होगा, पर मेरे दिल में वह अब भी वही लड़की है. नीले दरवाजे वाले घर के सपने देखने वाली.

मेरे लिए वह प्यार एक अनदिखे धागे की तरह है, जिसे समाज की सीमाएं तोड़ नहीं सकीं, पर मेरे अपने डर ने उसे अधूरा छोड़ दिया. Hindi Romantic Story

Equality Struggle: दलित नौजवान – अपनी मशाल खुद बनें

Equality Struggle: हर साल 14 अप्रैल को ‘अंबेडकर जयंती’ के मौके पर ‘नीला गमछा’ गले में लटका कर डाक्टर भीमराव अंबेडकर की एक हाथ में संविधान पकड़े और दूसरे हाथ से आसमान को उंगली दिखाती मूर्ति के ‘चरणों’ में झुक कर गुलाब या गेंदे के ‘लालपीले फूल’ चढ़ा देने भर से अगर आप ने काले फ्रेम का चश्मा और कोटपैंट पहने इस इनसान की सोच पकड़ ली है, तो आप गलत दिशा में जा रहे हैं. आप की इस इनसान को ले कर भ्रामक सोच आज भी कायम है.

डाक्टर भीमराव अंबेडकर को सम झने के लिए हमें जातिवाद के उस जहरीले सांप को सम झना होगा, जिस ने अपने अहंकार में आज तक अपनी केंचुली भी नहीं बदली है. हमें समाज की बेकार सोच के उस कूड़ेदान से वह आईना बाहर निकालना होगा, जिस में शूद्रों को उन की परछाईं तक नहीं दिखती है. कितने भयावह हालात हैं न?

एक उदाहरण से समझते हैं. एक समय देश के सब से ज्यादा पढ़ेलिखे लोगों में शुमार डाक्टर भीमराव अंबेडकर ने संविधान को ले कर अपने एक भाषण में कहा था, ‘मैं यहां पर संविधान की अच्छाइयां गिनाने नहीं जाऊंगा, क्योंकि मु झे लगता है संविधान कितना भी अच्छा क्यों न हो, वह अंतत: बुरा साबित होगा, अगर उसे इस्तेमाल में लाने वाले लोग बुरे होंगे. और संविधान कितना भी बुरा क्यों न हो, वह अंतत: अच्छा साबित होगा, अगर उसे इस्तेमाल में लाने वाले लोग अच्छे होंगे.’

किसी इनसान के अच्छा या बुरा होने की इस से ज्यादा सटीक व्याख्या नहीं हो सकती, क्योंकि यह बात वह आदमी भरी संसद में बोल रहा है, जिसे अपने बचपन से ले कर आज तक जाति के नाम पर दुत्कार, पीड़ा और नफरत ही मिली है. आज भले ही उस ने अपनी पढ़ाईलिखाई से अपने विचारों को ‘शुद्ध’ कर लिया है, पर जब वह यह शिक्षा पा रहा था, तब स्कूल में उसे ‘अशुद्ध’ होने का ‘जातिगत तमगा’ देने वालों ने पूरी ‘श्रद्धा’ से चाहा था कि ब्रह्मा के पैर से जन्मा यह ‘अछूत’ अपने पुश्तैनी काम के बो झ तले दब कर कीड़ेमकोड़े की तरह मरखप जाए.

अब आज की बात करते हैं. इसी साल सितंबर का महीना और जगह उत्तर प्रदेश का बाराबंकी जिला. वहां के मसौली थाना इलाके के मलौली मजरे डापलिन पुरवा के रहने वाले निचली जाति के उदयभान निर्मल के मुताबिक, वह यूपीएसआई (उत्तर प्रदेश पुलिस सबइंस्पैक्टर) की तैयारी कर रहा था और इस के लिए वह चौराहे पर बनी क्वांटम लाइब्रेरी में रोजाना पढ़ने के लिए जाता था.

आरोप है कि रविवार, 21 सितंबर को दोपहर 2 बजे के बाद लंच हुआ और खाना खाने के लिए सभी छात्र एकत्र हुए. इसी बीच उदयभान निर्मल ने गलती से किसी दूसरे छात्र का टिफिन छू दिया. उस ऊंची जाति के प्रदुम्न ने जातिगत नफरत दिखाते हुए टिफिन दूर फेंक दिया.

पीडि़त छात्र उदयभान निर्मल के मुताबिक, प्रदुम्न ने टिफिन फेंकते हुए कहा कि तुम नीची जाति के हो, मेरे साथ बैठ कर खाना नहीं खा सकते. तुम्हारा काम जूतेचप्पल की मरम्मत करना है, पढ़ाईलिखाई करना तुम्हारा काम नहीं है.

पीडि़त उदयभान निर्मल आगे ने बताया कि प्रदुम्न ने जातिसूचक अपशब्द और गाली देने के बाद दोस्तों को फोन कर के बुला लिया और उस की बेरहमी से पिटाई कर दी. आगे कुछ कार्रवाई करने पर जान से मारने की धमकी दी.

बेइज्जती और मारपीट से दुखी दलित छात्र उदयभान निर्मल ने मसौली थाने में तहरीर दे कर कार्रवाई की मांग की है.

उदयभान निर्मल का कहना है कि वह प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहा है, लेकिन ‘शिक्षा के मंदिर’ (लाइब्रेरी) में भी जातिगत भेदभाव का सामना करना पड़ा, जो बेहद दुखद और शर्मनाक है.

उदयभान ने भले ही अपने नाम के आगे ‘निर्मल’ लगा है, पर वह प्रदुम्न जैसे अगड़ी जाति वालों के मन का मैल धो नहीं पा रहा है. लाइब्रेरी, जहां शांत रह कर शिक्षा हासिल की जाती है, वहां भी प्रदुम्न के मन में ‘जातिवाद का शोर’ इतना ज्यादा हावी था कि उसे उदयभान की हलकी सी छुअन भी स्वीकार नहीं हुई.

‘तुम्हारा काम जूतेचप्पल की मरम्मत करना है, पढ़ाईलिखाई करना तुम्हारा काम नहीं है’ वाली यह सोच प्रदुम्न में अचानक से नहीं जन्मी है, बल्कि इसे तो उस के बड़े ने पालपोस कर विरासत में दिया है कि भले ही देश कितनी भी तरक्की कर जाए, संविधान कितना भी मजबूत हो जाए, पर ये दोनों तुम्हारे जूते की नोक पर रहेंगे, क्योंकि तुम ‘बह्मा की श्रेष्ठ संतान’ हो, ‘ब्लू ब्लड’ हो. तुम देश और संविधान से भी ऊपर हो. यह ‘वैचारिक बुल्डोजर’ सदियों से वंचित समाज को रौंदता आया है.

यहां सवाल उठता है कि क्या जातिवाद को खत्म करने के लिए पढ़ाईलिखाई को वंचितों का हथियार बनाया जा सकता है? हां, पर हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि निचली जाति के लोगों में पढ़ाईलिखाई को ले कर सोच क्या बनी हुई है.

पढ़ाई करने से हम देश, समाज और दुनिया के प्रति जागरूक होते हैं, अच्छा रोजगार पाते हैं, चार लोगों में अपने विचार रखने की सोच बना पाते हैं, पर साथ ही हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि जिस देश और समाज में हम रह रहे हैं, उस पर धार्मिक कट्टरता बहुत ज्यादा हावी हो गई है. हर किसी को अपनेअपने ईश्वर की तलाश सी रहती है. यही वजह है कि वंचित समाज ने भी डाक्टर भीमराव अंबेडकर में अपना ईश्वर तलाशना शुरू कर दिया है. यह मूर्तिपूजा का ही नया रूप है, क्योंकि इस तलाश में भीमराव अंबेडकर के विचार तो दब गए हैं.

पाखंडी पंडेपुजारी तो चाहते हैं कि उन के मंदिरों में वे भक्त ही भेड़ की तरह सिर झुकाए चले आएं, जिन में दानपात्र भरने की ताकत है, फिर चाहे वे किसी भी समाज, समुदाय और जाति के क्यों न हों. फटेहाल दलित अंबेडकर की मूर्ति में उल झे रहें, नीले गमछे के बो झ में दबे रहें, नेता के भाषणों को सुनने वाली भीड़ बने रहें और थोड़ा सा बरगलाने पर ढेर सारे वोट सियासी रहनुमाओं के बैलेट बौक्स में दान स्वरूप चढ़ा दें, यही काफी है. वे बिना सिर के (बेदिमाग) वोटबैंक हैं, जिन्हें सिर्फ चुनाव में चूना लगाया जाता है.

यह सियासी प्रपंच तब और ज्यादा बढ़ा, जब हर नेता को यह लगा कि दलित समाज डाक्टर अंबेडकर के नाम पर एकजुट हो गया है या हो सकता है. नेताओं ने इसे अपना ‘दलित प्रेम’ बताया पर हकीकत में ऐसा नहीं है. हर दल इस समुदाय से ‘सियासी स्वार्थ’ साध रहा है, इन के घर भोजन करने की नौटंकी कर रहा है, इन्हें ‘सुरक्षित सीट’ से टिकट दे रहा है, पर भला कुछ नहीं कर रहा. खुद इस समाज से निकले नेता भी कागजी शेर बन कर रह गए हैं. अगड़ों का ‘यैसमैन’ कहलाने में इन्हें अलग तरह का सुख मिलता है.

इस बात को इस उदाहरण से सम झते हैं. ‘फौरवर्ड प्रैस’ में कंवल भारती का एक लेख छपा था, जिस में उत्तर प्रदेश में हाथरस जिले की इगलास सुरक्षित सीट से साल 2017 में चुने गए विधायक राजवीर दिलेर का जिक्र किया गया था. इन के पिता किशन लाल भी 5 बार के विधायक और एक बार के सांसद थे. पढ़ाईलिखाई इन की ज्यादा नहीं है.

राजवीर दिलेर के बारे में पत्रकार आलोक शर्मा की एक रिपोर्ट अखबार ‘टाइम्स औफ इंडिया’ में छपी थी, जिस के मुताबिक ये सवर्णों के यहां जमीन पर बैठते हैं, चाय के लिए अपना कप अपने साथ रखते हैं और कहते हैं कि ‘मेरे बाप भी जातिवाद मानते थे, और मैं भी मानता हूं’.

राजवीर दिलेर का सुरक्षित क्षेत्र जाटों का इलाका है, जिन की तादाद 90,000 है. इन्हीं के वोटों पर इस दलित की जीत निर्भर करती है. क्या इस विधायक से दलितों के लिए काम करने की उम्मीद की जा सकती है?

शायद नहीं, क्योंकि ऐसे नेता भी वोटबैंक की ताकत सम झते हैं. इन्हें भले ही ‘सुरक्षित सीट’ मिल जाती है, पर जब तक दूसरी जातियों का हाथ इन के सिर पर नहीं आता है, तब तक इन का जीतना बड़ा मुश्किल होता है.

जब नेताओं का ऐसा गठजोड़ बनता है, तो दलित तबके के गरीब और अनपढ़ लोग तो क्या, अच्छे पढ़ेलिखे और ‘वैल सैटल्ड’ लोग भी तन और मन से हताश हो जाते हैं. हरियाणा में आईपीएस वाई. पूरन कुमार की खुदकुशी का मामला इसी प्रशासनिक और राजनीतिक अंधेरगर्दी का नतीजा है, जहां एक बड़ा अफसर 7 अक्तूबर, 2025 को चंडीगढ़ में गोली मार कर अपनी जिंदगी खत्म कर लेता है.

आईपीएस वाई. पूरन कुमार आंध्र प्रदेश के रहने वाले थे. उन का जन्म 27 अक्तूबर, 1977 को हुआ था. उन्होंने आईआईएम अहमदाबाद से पीजीडीएमसी किया था. इस के बाद उन्होंने यूपीएससी की तैयारी की और ऐग्जाम क्लियर किया. वे साल 2001 बैच के हरियाणा कैडर के आईपीएस अफसर थे.

फिलहाल वाई. पूरन कुमार रोहतक रेंज के आईजी थे. 29 सितंबर, 2025 को ही उन का ट्रांसफर हुआ था. उन्हें अब रोहतक के सुनरिया में पुलिस ट्रेनिंग कालेज में आईजी के तौर पर पोस्टिंग मिली थी.

वाई. पूरन कुमार कई सालों से सिस्टम से परेशान थे. मई, 2021 में उन्होंने अंबाला के एसपी के सामने तब के डीजीपी मनोज यादव के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी. उन का आरोप था कि उन्हें उन की जाति के चलते परेशान और सताया जाता है.

नवंबर, 2023 में वाई. पूरन कुमार ने तब के मुख्य सचिव संजीव कौशल से उस समय के गृह सचिव टीवीएसएन प्रसाद के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की इजाजत मांगी थी. उन्होंने आरोप लगाया था कि उन की जाति के चलते उन्हें गैर कैडर पद पर तैनात किया गया था.

पिछले साल अप्रैल में वाई. पूरन कुमार ने साल 2024 के हरियाणा विधानसभा चुनावों से ठीक पहले चुनाव आयोग के सामने एक शिकायत दर्ज कराई थी, जिस में उन्होंने आरोप लगाया था कि आचार संहिता लागू होने के बाद 2 एजीजीपी को डीजीपी और 2 आईजी को एडीजीपी के तौर पर प्रमोट किया गया था.

अपने सुसाइड नोट में आपीएस वाई. पूरन कुमार ने 8 आईपीएस और 2 आईएएस अफसरों पर आरोप लगाए थे. उन्होंने जिन पर आरोप लगाया था, उन में 8 आईपीएस अमिताभ ढिल्लों, मनोज यादव, पीके अग्रवाल, संदीप खिरवार, सिबास कविराज, संजय कुमार, पंकज नैन और डाक्टर रवि किरण आदि के नाम शामिल हैं. इन के अलावा 2 रिटायर्ड आईएएस राजीव अरोड़ा और टीवीएसएन प्रसाद का नाम भी है.

अब आप सोचिए कि इतने बड़े रैंक का बड़ा सरकारी अफसर, जिस पर अपने इलाके में शांति और भाईचारा बनाने का दबाव रहता है, वह अपनी जाति की हीनता के बो झ तले दबाया जा रहा था. वह भी ऐसे लोगों द्वारा जो उसी के ‘प्रशासनिक भाईबंधु’ थे.

तो क्या जातिवाद का यह जहरीला सांप कभी भी केंचुली नहीं उतरेगा? चूंकि हमारे समाज में जातपांत बहुत गहरे तक पैठ जमाए हुए है, तो लगता है कि फिलहाल यह दूर की कौड़ी है, पर यहां एक बात जो बहुत ज्यादा अहम है, वह है इस बहुजन समाज की आपसी एकता, जिसे पढ़ाईलिखाई से और ज्यादा मजबूत किया जा सकता है.

दूसरा तरीका यह है कि जहां आप रहते हैं, उस घर, गली, महल्ले को व्यवस्थित करें. लोगों को यह मत सोचने दें कि उन का गंदगी या गरीबी में रहना पिछले जन्म का पाप है, जिसे वे आज इस जन्म में भोग रहे हैं. दुनिया की कोई भी ताकत आप को साफसुथरा और आप के आसपास की जगह को ‘नीट एंड क्लीन’ बनाने से रोक नहीं सकती है.

तीसरा, अपने आसपास के लोगों में फैली सामाजिक बुराइयों को जड़ से खत्म करने का बीड़ा उठाएं. आप कोई बड़े अफसर बने हैं, तो यह मत सम झें कि अब निकलो इस नरक से जहां हमारी पुरानी पीढि़यां जानवर से बदतर जिंदगी गुजार कर मरखप गईं. इस उलट आप की नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि समाज के इस हिस्से को कैसे अंधविश्वास, नशाखोरी, बेरोजगारी, आपराधिक गतिविधियों में शामिल होने से रोका जाए.

रास्ता दिखाने के लिए एक के हाथ में ही मशाल होना काफी है. अपनी मशाल खुद बनें. जातिवाद के अंधेरे से निबटने का यही एकमात्र रास्ता है. Equality Struggle

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