नारी दुर्दशा का कारण धर्मशास्त्र और पाखंड

नारी को आज भी दोयम दर्जे का ही नागरिक समझा जाता है.सदियों से इनके ऊपर कई माध्यमों से जुल्म ढाने की परंपरा निरन्तर जारी है. इसमें धर्मशास्त्रों और पण्डे पुजारियों का भी अहम योगदान रहा है.

नारी के ऊपर शोषण और जुल्म में स्वयं नारी लोग ही मददगार की भूमिका में हैं.समाज में रिवाज और धर्म का पाठ पढ़ाकर नारियों को जुल्म के रसातल में डुबो दिया है. धर्म का कानून बनाने वाले मनु ने लिखा है,  ”स्त्री शूद्रों न धीयताम” यानी स्त्री और शूद्र को शिक्षा नहीं देनी चाहिए. अंधभक्त महिलाएं इन्हें ही अपना भगवान का हुक्म मानती हैं.

प्राचीन संत शंकराचार्य ने लिखा है, ”नारी नरकस्य द्ववारम”, यानी नारी नरक का दरवाजा है. लेकिन शायद उसे यह भी मालूम होना चाहिए कि इसी नरक के दरवाजे से तुम भी पैदा हुवे है. तुलसीदास ने जिसे उनकी पत्नी ने दुत्कार दिया था, लिखा है, ”अधम ते अधम, अधम अति नारी’, भ्राता पिता पुत्र उर गारी, पुरुष मनोहर निरखत नारी.”

“होहिं विकल सक मनहिं न रोकी,जिमि रवि मणि द्रव रविही विलोकि”

अथार्त चाहे भाई हो ,चाहे पिता हो,चाहे पुत्र हो नारी को अच्छा लगने पर वह अपने को रोक नहीं पाती जैसे रविमणि, रवि को देखकर द्रवित हो जाती है, वैसी ही स्थिति नारी की हो जाती है. वह संसर्ग हेतु ब्याकुल हो जाती है.

“राखिअ नारि जदप उर माही।जुबती शास्त्र नृपति बस नाही”

अथार्त स्त्री को चाहे ह्रदय में ही क्यों न रख लो तो भी स्त्री शास्त्र,और राजा किसी के वश में नहीं रहती है. नारी को पीड़ा दिलवाने में तुलसीदास की इस  चौपाई ने आग में घी का काम किया है, ”ढोल गंवार शुद्र पशु नारी,सकल ताड़ना के अधिकारी।”

धर्मग्रन्थों में नारियों और दलितों के ऊपर शोषण जुल्म के प्रपंचो से पूरा भरा हुआ है.इस साजिश और छल प्रपंच को आज तक दलित और महिलाएं समझ नही पाईं हैं. उनके ही समझाई में आज भी बहुत बड़ी आबादी चलने को विवश है. स्वर्ग नरक पुनर्जन्म भाग्य भगवान की पौराणिकवादी संस्कृति में फंसकर अगला जन्म सुधारने के चक्कर में नारियां स्वयं को पुरुष की दासी समझते हुवे अन्याय कष्ट सहकर भी झूठे गौरव का अनुभव करती है. माता पिता भी बेटियों को पराया धन समझकर कन्यादान करके उन्हें अन्यायपूर्ण जीवन जीने को विवश करते हैं. दहेज,कन्यादान,सतीप्रथा,देवदासी प्रथा, पर्दाप्रथा, योनिशुचिता प्रथा, वैधब्य जीवन आदि नारी विरोधी प्रथाएँ धर्म की देन हैं.

इन प्रथाओं को  ग्रन्थों ने खूब महिमामण्डित किया है.  बेवकूफ अंधविश्वासी पिताओं की सनक पर बेटियों की कुर्बानी को स्वयंबर का नाम दिया गया. जुए के दांव पर नारियां लगाई गईं. बच्चे   पाने के लिए जबरन ऋषियों को सौंपी गईं.

नारियों की सहने से ज्यादा दुर्दशा से द्रवित होकर सर्वप्रथम ज्योतिबा फुले, सावित्री बाई फुले और फातिमा शेख ने औरतों की पढ़ाई और सामाजिक आजादी के लिए काम किया.

1955-56 में नए हिन्दू कानूनों से भारतीय नारियों का बहुत बड़ा उपकार किया. जिन लोगों ने नारियों की भलाई के लिए काम किया आज की औरतें उनका नाम तक नहीं जानतीं. जिन शास्त्रों और पौराणिकवादी व्यवस्था ने इन पर जुल्म ढाए उनकी ही पूजा अर्चना आज तक महिलायें करती हैं.

पढ़ी लिखी औरतें भी व्रत, उपवास और गोबर तक की पूजा करती आ रही हैं और आज भी बदस्तूर जारी है.

गीता प्रेस की पुस्तक है,  ”गृहस्थ में कैसे रहें”  जिसके लेखक रामसुखदास हैं. इस पुस्तक में प्रश्न उतर के माध्यम से बताया गया है कि हिन्दू महिलाओं को कैसे जीवन जीना चाहिए. उदाहरण के रूप में यहां प्रस्तुत कर रहें हैं.

प्रश्न: पति मार पीट करे, दुःख दे तो पत्नी को क्या करना चाहिए ?

उत्तर: पत्नी को तो यही समझना चाहिए कि मेरे पूर्व जन्म का कोई बदला है, ऋण है जो इस रूप में चुकाया जा रहा है, अतः मेरे पाप ही कट रहे हैं और मैं शुद्ध हो रही हूँ. पीहर वालों को पता लगने पर वे उसको अपने घर ले जा सकते हैं. क्योंकि उन्होंने मार पीट के लिए अपनी कन्या थोड़े ही दी थी.

प्रश्न: अगर पीहर वाले भी उसको अपने घर न लें जाएं तो वह क्या करें ?

उत्तर: फिर तो उसे पुराने कर्मों का फल भोग लेना चाहिए. इसके सिवाय बेचारी क्या कर सकती है? उसको पति की मार धैर्यपूर्वक सह लेनी चाहिए. सहने से पाप कट जाएंगे और आगे सम्भव है कि पति स्नेह भी करने लग जाए. यदि वह पति की मार पीट न सह सके तो पति से कहकर उसको अलग हो जाना चाहिए और अलग रह कर अपनी जीविका सम्बन्धी काम करते हुवे एवं भगवान का भजन स्मरण करते हुए निधड़क रहना चाहिए.

इस पुस्तक में सैकड़ों इसी तरह के प्रश्नों का उत्तर है जिसमें हिंदू परिवारों को दिशा निर्देश दिए गए हैं.

यह पुस्तक सती का समर्थन करती है और महिलाओं को घर से बाहर नहीं निकलने की वकालत करती है. हिन्दू वादी संगठनों द्वारा भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने के लिए निरंतर आवाज उठाई जाती है. अगर यह देश हिंदू राष्ट्र बनता है तो क्या नारियों के ऊपर इसी तरह के कानून लागू किये जायेंगे? पड़ोसी देश पाकिस्तान और बंगलादेश में कट्टरवादी मुस्लिम संगठन भी इसी तरह की सोच रखते हैं. मुस्लिम धर्म में भी तीन तलाक, हलाला और पर्दा प्रथा जैसी दकियानूसी बातें हैं और उसका समर्थन इस्लाम धर्म को मानने वाले लोग करते हैं.इन कुप्रथाओं पर जब सवाल उठाये जाते हैं तो इस्लाम धर्म को मानने वाले धार्मिक कट्टरपंथी संगठन मौत का फतवा जारी करते हैं. क्या हिंदू राष्ट्र में ऐसा ही होगा?

आज औरतों पर शोषण और जुल्म ढाने का हथियार के रूप में इन धार्मिक पुस्तकों का उपयोग किया जाता है.इसे बढ़ावा देने और प्रचार प्रसार करने में साधू,  महात्मा, पंडे,  पुजारी, मुल्ला लोग लाखों की संख्या में एजेंटों के रूप में कार्य कर रहे हैं.

देश के कोने कोने से महिलाओं के साथ अपने पति द्वारा जुआ में हारने जैसी कुकृत्य, अत्याचार ,अनाचार और बलात्कार की घटनाएं प्रकाश में आते रहती है जिन पर सहज रूप से विश्वास भी नहीं होता.

इस तरह की एक घटना जौनपुर जिला के जफराबाद थाना क्षेत्र के शाहगंज की  है. एक जुआरी शराबी पति ने सारे रुपये हारने के बाद अपने पत्नी को ही जुए में दांव पर लगा दिया. वह जुए में अपनी पत्नी को हार गया. इसके बाद उसके जुआरी दोस्तों ने उसके पत्नी के साथ सामूहिक बलात्कार किया.

दूसरी घटना कानपुर की है. जुआ खेलने के एक शौकीन पति ने अपनी पत्नी को ही दांव पर लगा दिया. दांव हारने पर उसके चार दोस्तों ने उसके पत्नी पर हक जमाते हुए सामूहिक दुष्कर्म करना चाहा लेकिन बीबी किसी तरह किचन में घुस गई और उसने पुलिस को फोन कर दिया. तत्काल में पुलिस आ जाने की वजह से तारतार हो रही इज्जत बच गई.

महाभारत में द्रौपदी को जुए में हारने की घटना सर्वविदित है. आज भी दीवाली जैसे त्यौहार में संस्कृति और परम्परा के नाम पर जुआ खेलने का रिवाज सभ्य समाज तक में भी बरकरार है. सड़ी गली परम्परा को आज भी हम अपने कंधों पर ढो रहे है.

औरतों के ऊपर शोषण और जुल्म का समर्थन औरतों द्वारा ही किया जाता है. एजेंट के रूप में इनका इस्तेमाल किया जा रहा है.

हर गाँव मे धार्मिक गुरुओं  द्वारा शिव चर्चा,  माता की चौकी, जागरण, हवन और प्रवचनों की बाढ़ सी आ गयी है जिसमें महिलाओं की हीउपस्थिति अधिक होती है. शुद्ध घी अपने परिवारवालों को नहीं खिला कर अंधभक्ति में जलाया जा रहा है.

अपने बच्चों के शिक्षा और स्वास्थ्य पर खर्च नहीं करके धार्मिक कर्मकांडों पर अपनी मेहनत की कमाई महिलाएं खर्च कर रही हैं. पूजा पाठ, व्रत उपवास में महिलाएं रोबोटों की तरह इस्तेमाल की जा रही हैं. हवनों, यज्ञों में महिलाओं की संख्या अधिक देखी जा रही है. शहरों से लेकर गांवों तक धार्मिक प्रवचनों और कार्यक्रमों की बाढ़ आ गई है .

गांव गांव में मंदिर और मस्जिद बन रहे हैं. ज्ञान का केंद्र पुस्तकालय जो पहले ग्रामीण क्षेत्रों में थे मृतप्राय हो गए हैं. आपसी बातचीत भी खत्म होने की कागार पर है.

गांवो में सरकारी विद्यालयों महाविद्यालयों की हालत बहुत चिंतनीय है. इस ओर किसी का ध्यान नहीं है. ज्ञान का केंद्र जब नेस्तनाबूद होगा तो समाज मे अंधविसश्वास और धार्मिक पाखण्डों का मायाजाल बढ़ेगा ही. धार्मिक पाखण्डों को बढ़ावा देने में केंद्र की सरकार और चारण गाने वाले मीडिया भी महत्वपूर्ण भूमिका में है.

GHKKPM की फेम एक्ट्रेस आयशा सिंह का बिगड़ा हूलिया, सूज गया चेहरा

टीवी का सबसे चर्चित शो गुम है किसी के प्यार में हमेशा ही लाइमलाइट में बना रहे है. फैंस इस शो के स्टार्स के भी दिवाने है और सीरियल के भी. वही, शो की लीड एक्ट्रेस सई का रोल निभाने वाली आयशा सिंह इन दिनों अपने फेस को लेकर चर्चा में आ गई है. जी हां, उन्होंने फैंस को चिंता में डाल दिया है. फैंस उनकी फोटोज देख परेशान हो रहे है.

 

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आपको बता दें कि गुम है किसी के प्यार में से घर-घर में पहचान बनाने वाली एक्ट्रेस आयशा सिंह ने हाल ही मे कुछ इंस्टाग्राम अकाउंट पर फोटोज शेयर की हैं, जिसमें आयशा की बुरी हालत साफ नजर आ रही हैं. आयशा ने पहले अपनी सुंदर और हैप्पी स्माइल वाली फोटोज शेयर की हैं, जिसमें वह काफी अच्छी लग रही हैं.

इन फोटोज में एक्ट्रेस शुरुआत में 3 फोटो में डीप नेक ड्रेस में काफी ग्लैमरस लग रही हैं. वह अलग-अलग फैशियल एक्सप्रेशन देने की कोशिश कर रही हैं, लेकिन आखिरी फोटो में आयशा की बुरी हालत साफ दिख रही है. एक्ट्रेस का चेहरा काफी ज्यादा सूजा हुआ नजर आ रहा है. इसकी वजह आयशा ने मधुमक्खी का काटना बताया है. जिसे शेयर कर उन्होंने अपनी हालत की फैंस को जानकारी दी है. आयशा ने कैप्शन में लिखा, ‘हाय इंस्टा परिवार… कुछ समय के लिए एक्टिव नहीं रहने के लिए मैं माफी चाहती हूं, क्योंकि मेरी तबीयत थोड़ी खराब है, लेकिन मैं जल्द ही सभी अपडेट के साथ ठीक होने और फिर से शुरू करने की कोशिश कर रही हूं. आप सभी से विनती है कि मेरी प्राइवेसी का सम्मान करें और कृपया मुझे अपनी प्रार्थनाओं में शामिल करें.’

 

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बता दें कि फैंस उनकी ये फोटोज पर फैंस लगातार कमेंट करते नजर आ रहे है. फैंस उनसे उनकी हेल्थ के बारे में पूछ रहे हैं. हर कोई एक्ट्रेस के ठीक होने की दुआ कर रहा है. एक यूजर ने कैप्शन में पूछा, ‘क्या ये कोई इनफेक्शन है.’ दूसरे ने लिखा, ‘आयशा दीदी… अपना ध्यान रखो.’ इसी तरह एक और यूजर ने लिखा, ‘इनके साथ क्या हुआ?’  हालांकि अब देखना ये होगा की एक्ट्रेस कब तक ठीक होती है और एक नई हैप्पी फोटो फैंस को शेयर करती है.

अन्नया पांडे ने दिखाया ग्लैमरस लुक, फोटोज से घायल हुए फैंस

बौलीवुड किड्स की जब भी बात आती है तो सबसे पहला नाम अन्नया पांडे का सामने आता है उसके बाद शाहरुख की बेटी, सारा अली खान जैसी एक्ट्रेस लोगों के दिलों पर राज करती है. लेकिन अब ये किड्स स्टार बन चुके है वही, अन्नया पांडे को इंडस्ट्री में ज्यादा टाइम नहीं हुआ है लेकिन अपनी फिल्मों से और एक्टिंग एक्ट्रेस ने लोगों को खूब दिल जीता है. अन्नया सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव रहती है अब उनकी हाल की फोटो ने फैंस के होश उड़ा दिए है.

 

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आपको बता दें कि अनन्या पांडे फिल्मों में एक्टिंग के साथ ही सोशल मीडिया पर खूब चर्चा में रहती हैं. वे अपनी ग्लैमरस तस्वीरें शेयर करती रहती हैं. अनन्या पांडे ने एक बार फिर अपनी फोटोज शेयर कर फैंस का ध्यान खींचा है. अनन्या पांडे ने अपनी कातिल निगाहों से फैंस को घायल कर दिया है. अन्नया पांडे की फोटोज सोशल मीडिया पर धड़ल्ले से वायरल हो रही है, जिस पर फैंस जमकर कमेंट करते नजर आ रहे है.

हाल में अनन्या पांडे ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट से कुछ फोटोज शेयर की हैं जो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रही हैं. इन फोटोज में अनन्या पांडे ने अपनी कातिल निगाहों से फैंस को घायल करती दिख रही है. अनन्या पांडे की आउटफिट की बात करें, तो उन्होंने डीपनेक टॉप के साथ स्कर्ट पहना हुआ है. एक्ट्रेस ने बोल्ड आउटफिट में अपना कर्वी फिगर जमकर फ्लॉन्ट किया है.

अनन्या पांडे के खुले बालों ने उनकी फोटोज की खूबसूरती ओर ज्यादा बढ़ा दी है. अनन्या पांडे की फोटोज को पसंद करने के साथ ही फैंस कमेंट सेक्शन में प्यार की बौछार कर रहे है.

अनन्या पांडे का ग्लैमरस लुक हमेशा ही फैंस का ध्यान खींचता है. अनन्या पांडे ने हाल ही में अपनी थ्रोबैक फोटोज सोशल मीडिया पर शेयर की थी. अनन्या पांडे की बिकिनी वाली तस्वीर देखकर फैंस ने उनकी जमकर तारीफ की थी.

 

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बत दें कि एक्ट्रेस अनन्या पांडे, आदित्य रॉय कपूर के साथ रिलेशनशिप में है. लेकिन खई बार उनकी ब्रेकअप की खबरें आ चुकी है. एक्ट्रेस के वर्कफ्रंट की बात करें, तो उनकी लिस्ट में ‘बैड न्यूज’, ‘कंट्रोल’ और ‘शंकरा’ जैसी फिल्में हैं.

गर्मियों में ज्यादा नींबू पानी पीना पड़ सकता है भारी, होते हैं ये 5 नुकसान

गर्मियों का सीजन ही ऐसा होता है जिसमे आपको अधिक पानी की जरूरत पड़ती है और सादा पानी सिर्फ आपकी प्यास बुझा सकता है गर्मी में आपके शरीर को ठंड़क नहीं पहुंचा सकता है इसके लिए लोग ज्यादातर नींबू पानी पीते है. जो आपकी गर्मी को दूर भगाता है. इससे शरीर डिटॉक्सीफाई होता है. नींबू पानी आपको हाइड्रेटेड भी रख सकता है और रिफ्रेश भी फील कराता है. वहीं इसमें कई सारे विटामिन की मौजूदगी भी है जो सेहत के लिए फायदेमंद है. लेकिन इतनी खूबियों के बावजूद रोज नींबू पानी पीने से आपको नुकसान भी हो सकता है. जी हां, अंधाधुन नींबू पानी पीना आपको नुकसान पहुंचा सकता है. इसकी वजह से आपको ये पांच बड़ी बीमारियों का सामना करना पड़ा सकता है.

दांतों की परेशानी

नींबू पानी आपको सुबह सुबह स्वाद में काफी अच्छा लग सकता है. लेकिन अगर आप इसका सेवन रोजाना करना शुरू कर देते हैं तो यह आपकी दांतों की सेहत के लिए ठीक नही है. नींबू में मौजूद एसिड रोजाना आपके दांतों तक पहुंच कर उन्हें और ज्यादा सेंसटिव बना सकता है. इनामेल को बचाने के लिए आप जिस चीज का सेवन करते हैं उसको बड़े ध्यान से चुने.

अल्सर

जो लोग बहुत अधिक खट्टे फलों का सेवन करते हैं उन्हें गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है. नींबू पानी पीने से एसिड रिफ्लक्स(एसिडिटी का घरेलू इलाज),उल्टी और मतली से पीड़ित होते हैं. आपको अल्सर की समस्या भी हो सकती है.

गैस की परेशानी

नींबू में सिट्रिक एसिड होता है, जो पेट में एसिड की मात्रा को बढ़ाता है. ऐसा होने पर पेट में गैस की समस्या हो सकती है. इसका अधिक सेवन से एसिड रिफ्लक्स या जीईआरडी को बढ़ जाता है. जिससे पेट में एसिड वापस एसोफेगस यानी कि गले की नली में आ जाता है, जिससे हार्टबर्न की समस्या हो सकती है.

गले की परेशानी

नींबू का अधिक सेवन गले के स्वास्थ्य के लिए भी अच्छा नहीं है. नींबू का रस गले में जलन और खराश पैदा कर सकता है. नींबू में मौजूद सिट्रिक गले की झिल्ली को प्रभावित कर सकता है, जिससे गले में खराश और सूजन हो सकती है.

हड्डियों को नुकसान

एक्सपर्ट के मुताबिक नींबू से हड्डियों को भी नुकसान हो सकता है. ये जोड़ों और हड्डियों के बीच मौजूद चिकनाई को कम कर सकता है.

मेरे घरवाले नीची जाति की लड़की से शादी नहीं करने दे रहे हैं, मैं क्या करूं?

सवाल

मेरी उम्र 22 साल है. मैं झारखंड के रांची शहर में रहता हूं. वहां एक लड़की मेरी अच्छी दोस्त है. हम दोनों शादी करना चाहते हैं, पर मेरे घर वाले उस की छोटी जाति को ले कर यह रिश्ता जोड़ने से मना कर रहे हैं, पर हम दोनों एकदूसरे से बहुत प्यार करते हैं. मैं जाति की ऊंचनीच को नहीं मानता हूं. हम दोनों घर से भाग कर शादी नहीं करना चाहते हैं. मैं ऐसा क्या करूं कि अपने परिवार वालों की सोच बदल दूं?

जवाब

जातपांत की जड़ें बहुत गहरी होती हैं, जो आदमी को एक दायरे में बांध कर रख देती हैं. परिवार वालों की क्या किसी की भी यह सोच रातोंरात नहीं बदली जा सकती, क्योंकि यह धर्म के ठेकेदारों, दुकानदारों और दलालों की खोदी हुई ऐसी दलदल है, जिस में आप जैसे कई नौजवान फंसे छटपटा रहे हैं. आप ने बिना जाति का खयाल किए छोटी जाति की लड़की से प्यार किया और अब शादी भी करना चाहते हैं, यह अच्छी बात है. इसी से आदमी आदमी के बीच की खाई पटेगी. किसी की परवाह न करते हुए आप शादी कर लें और अपने लैवल पर जातपांत और भेदभाव वाली सोच का विरोध करते रहें.

lok sabha Election 2024 : क्या पैसे के बल पर हाईजैक हो रहे हैं चुनाव

भारत के संविधान निर्माताओं और आजादी की लड़ाई लड़ने वाले अमर शहीदों ने कभी सोचा ही नहीं होगा कि उन के आजाद देश में जब चुनाव होंगे, तो उन्हें पैसे के बूते कुछ लोग हाईजैक कर लेंगे.

चुनावी खर्च जिस तरह बेलगाम होते जा रहे हैं, उस पर बृजेश माथुर की सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर यह एक टिप्पणी बहुत खास है.

‘बेहतर होगा कि चुनाव आयोग इन मामलों की खुद जांच करे. पता लगाए कि अवैध बरामदगी के पीछे कौन सा उम्मीदवार या दल है और फिर उस के खिलाफ सख्त कार्यवाही हो. इस तरह की सख्ती के बिना चुनावों में धनबल का दखल नहीं रुकेगा.

‘यह सही है कि चुनाव में धनबल का इस्तेमाल रोकने के लिए चुनाव आयोग की सतर्कता बढ़ी है, लेकिन यह सिर्फ धरपकड़ तक सीमित है. ऐसे मामलों में सजा की दर बहुत कम है, क्योंकि चुनाव के बाद स्थानीय प्रशासन और पुलिस मामले को गंभीरता से नहीं लेते. अकसर असली सरगना छुटभैयों को फंसा कर बच जाते हैं.’

दरअसल, लोकतंत्र का महाकुंभ कहलाने वाले लोकसभा चुनाव में आज जिस तरह चुनाव में करोड़ों रुपए हर लोकसभा संसदीय क्षेत्र में खर्च हो रहे हैं, उस से यह तो साफ हो जाता है कि आम आदमी या कोई सामान्य काबिल इनसान संसद में पहुंचने के लिए सात जन्म लेगा तो भी नहीं पहुंच पाएगा.

लोकसभा चुनाव 2024 में माना जा रहा है कि खर्च के मामले में पिछले सारे रिकौर्ड टूट जाएंगे और दुनिया का सब से बड़ा लोकतांत्रिक देश कहलाने वाले भारत में चुनाव खर्च अपनी हद पर होंगे यानी भारत में दुनिया की सब से खर्चीली चुनावी व्यवस्था होगी.

चुनाव पर गंभीरता से नजर रखने वाले जानकारों के मुताबिक, लोकसभा चुनाव 2024 में अनुमानित खर्च 1.35 लाख करोड़ रुपए तक पहुंचने की संभावना है. अगर बात की जाए लोकसभा चुनाव 2019 में खर्च की तो 60,000 करोड़ रुपए से दोगुने से भी ज्यादा है.

दरअसल, इस में राजनीतिक दलों और संगठनों, उम्मीदवारों, सरकार और निर्वाचन आयोग समेत चुनावों से संबंधित सभी तरह के खर्च शामिल हैं. चुनाव संबंधी खर्चों पर बीते 40 साल से नजर रख रहे एक गैरलाभकारी संगठन के अध्यक्ष एन. भास्कर राव के दावे के मुताबिक, लोकसभा चुनाव में अनुमानित खर्च 1.35 लाख करोड़ रुपए तक पहुंचने की उम्मीद है.

माहिरों का मानना है कि भारत में चुनावी बौंड के खुलासे से साफ हो गया है कि पार्टियों के पास खुल कर खर्च करने के लिए पैसा है. राजनीतिक दलों ने उस पैसे को खर्च करने के रास्ते तैयार कर लिए हैं.

जैसा कि हम जानते हैं देश में काले धन की बात की जाती है, भ्रष्टाचार की बात की जाती है. यह सबकुछ चुनाव के दरमियान देखा जा सकता है और चौकचौराहे पर इस पर चर्चा होने लगी है कि आखिर प्रमुख राष्ट्रीय दलों के उम्मीदवार जो करोड़ों रुपए खर्च कर रहे हैं, वे आते कहां से हैं? मगर इस दिशा में न तो सरकार ध्यान दे रही है और न ही चुनाव आयोग या फिर सुप्रीम कोर्ट या सरकार की कोई जांच एजेंसी.

भारतीय जनता पार्टी इस चुनाव में सत्ता हासिल करने के लिए नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में वह सबकुछ कर रही है, जो कोई कल्पना भी नहीं कर सकता. इस का आज की तारीख में अंदाजा नहीं लगाया जा सकता.

हो सकता है कि आने वाले समय में इस का खुलासा हो पाए कि भाजपा ने लोकसभा 2024 में कितना पैसा खर्च किया. माना जा रहा है कि चुनाव प्रचार में हो रहे खर्च के मामले में यह पार्टी देश की विपक्षी पार्टियों को बहुत पीछे छोड़ देगी.

एक एनजीओ के जरीए से इस पर निगाह रखने वाले संगठन के पदाधिकारी के मुताबिक, उन्होंने शुरुआती खर्च 1.2 लाख करोड़ रुपए से बढ़ा कर 1.35 लाख करोड़ रुपए कर दिया, जिस में चुनावी बौंड के खुलासे के बाद के आंकड़े और सभी चुनाव संबंधित खर्चों का हिसाब शामिल है.

एक और संगठन ने दावा किया कि साल 2004-05 से साल 2022-23 तक देश के 6 प्रमुख राजनीतिक दलों को कुल 19,083 करोड़ रुपए का तकरीबन 60 फीसदी योगदान अज्ञात स्रोतों से मिला, जिस में चुनावी बौंड से मिला पैसा भी शामिल था.

एक और संगठन ने बताया कि चुनाव से पहले की गतिविधियां पार्टियों और उम्मीदवारों के प्रचार खर्च का अटूट हिस्सा हैं, जिन में राजनीतिक रैलियां, परिवहन, कार्यकर्ताओं की बहाली और यहां तक कि नेताओं की विवादास्पद खरीदफरोख्त भी शामिल है.

इसी तरह विदेश में बैठे चुनाव पर निगाह रखने वाले एक संगठन के मुताबिक, भारत में 96.6 करोड़ वोटरों के साथ प्रति वोटर खर्च तकरीबन 1,400 रुपए होने का अंदाजा है. यह भी कहा गया कि यह खर्च साल 2020 के अमेरिकी चुनाव के खर्च से ज्यादा है, जो 14.4 अरब डौलर या तकरीबन 1.2 लाख करोड़ रुपए था.

एक विज्ञापन एजेंसी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अमित वाधवा के मुताबिक, लोकसभा 2024 के इस  चुनाव में डिजिटल प्रचार बहुत ज्यादा हो रहा है. राजनीतिक दल कारपोरेट ब्रांड की तरह काम कर रहे हैं और पेशेवर एजेंसियों की सेवाएं ले रहे हैं.

इस तरह आज हमारे देश में जो लोकसभा चुनाव लड़ा जा रहा है, उस में राजनीतिक पार्टियां सत्ता हासिल करने के लिए तय सीमा से ज्यादा खर्च कर रही हैं.

ऐसे में अगर हम नैतिकता की बात करें, तो जब कोई पार्टी या उस के उम्मीदवार करोड़ों रुपए खर्च कर के चुनाव जीतते हैं, तो साफ है कि वे आम जनता के लिए जवाबदेह नहीं हो सकते. जिन लोगों ने उन्हें रुपएपैसे की मदद की है या गलत तरीकों से रुपया कमाया गया है, तो फिर चुने हुए प्रतिनिधि यकीनन अपने आकाओं के लिए काम करेंगे या फिर अपना फायदा पहले देखेंगे.

अरविंद केजरीवाल की जमानत और अदालतों की मजबूरी

सुप्रीम कोर्ट ने अरविंद केजरीवाल को 20 दिन की कई शर्तों के बाद जो जमानत दी है वह यह नहीं दिखाती कि देश में अभी भी कानून का राज है और कोई मनमानी नहीं कर सकता. यह जमानत सिर्फ यह दिखाती है कि सरकार के आगे सुप्रीम कोर्ट भी कितनी कमजोर है कि वह एक चुने हुए जिम्मेदार मुख्यमंत्री को सिर्फ बेईमान गवाहों के बयानों पर गिरफ्तार किए जाने पर भी जमानत जैसा मौलिक हक नहीं दे सकती.

जो हाथ सुप्रीम कोर्ट के इस मामले में बंधे दिख रहे हैं, वे हर अदालत में दिखते हैं. हर मजिस्ट्रेट पुलिस के कहने पर हर ऐसे व्यक्ति को जेल भेज देता है जिस के खिलाफ पुलिस ने या किसी और ने कोई एफआईआर कराई हो. 5-7 साल बाद जब मामले का फैसला आता है तो 80 प्रतिशत मामलों में तो पहला जज ही इन आरोपियों को बेगुनाह कह देता है क्योंकि पुलिस ने जब उन्हें पकड़ा था तो उस के पास कोई सुबूत नहीं था.

केवल राजनीति वाले मामलों में सत्ता में बैठी सरकार के इशारे पर पहली अदालत सजा देती है पर उन में से भी बहुत से छूट जाते हैं. आपसी मारपीट, रंजिश, सरेआम हत्या, हत्यारे का खुद गुनाह मान लेने जैसे मामलों में सही सजा सुनाई जाती है. ज्यादातर मामले जो पुलिस वाले या सरकारी अफसर कानून तोड़ने पर दायर करते हैं, उन में न गवाह होते हैं, न सुबूत होते हैं पर महीनों हो सकता है किसी को जेल में रहना पड़ा हो क्योंकि जमानत नहीं मिली.

इस मामले में जिस में अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया, सत्येंद्र जैन को जेल में बंद किया, यह शक है कि उन्होंने शराब नीति में हेरफेर कर के जनता या सरकार के पैसे को हड़पा है. ऐसे मामलों में जमानत पर छोड़ देने से भी काम चल जाता पर अदालतें सरकारों की शक्ल देख कर जमानत नहीं देतीं.

2012 से 2014 तक भारतीय जनता पार्टी के इशारे पर हिसाबकिताब को परखने वाले विनोद राय ने कितने ही मंत्रियों को जेल भिजवा दिया और महीनों उन्हें जमानत नहीं मिली. बाद में एक भी मामले में कोयला घोटाले या 2जी घोटाले में कोई गुनाहगार नहीं पाया गया पर कइयों को महीनों, सालों जेल में गुजारने पड़े. आम आदमियों की हालत तो इस से भी बुरी होती है.

मिलावट करने, जमाखोरी करने, इनकम टैक्स या सेल्स टैक्स में गड़बड़ करने के शक, मकान समय पर बना कर न देने जैसे गुनाहों में एफआईआर करा दी जाती है और पुलिस के कहने पर मजिस्ट्रेट जमानत नहीं देते. उन्हें जमानत न देने का बल सुप्रीम कोर्ट के ऐसे ही मामलों से मिलता है.

मजेदार बात यह है कि लगभग हर जज अपने कैरियर में 4-5 फैसलों में लिखता है कि लोगों की आजादी सब से बड़ी चीज है और कानून का सिद्धांत है कि बेल नौट जेल माना जाए. पर असल में होता उलटा ही है. अरविंद केजरीवाल को 2 जून को जेल में लौटना होगा, यह आदेश दे कर सुप्रीम ने कहा है कि जिस पर शक हो उसे जमानत न दो, महीनों रखो, छोड़ना है तो इस मामले की तरह 10-20 दिन के लिए छोड़ो, जैसे पैरोल दी जाती है.

दिक्कत यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने इतनी छूट तो दे दी पर पहला मजिस्ट्रेट इतना रिस्क भी नहीं लेता और जैसा पुलिस वाले या पब्लिक प्रोसिक्यूटर कहता है, मान लेता है. पुलिस के पास इसी से अपार ताकत है और तभी कांस्टेबल की कुछ नौकरियों के लिए भी लाखों कैंडीडेट खड़े हो जाते हैं. देश का आम गरीब जो महंगा वकील नहीं कर सकता जरा सी गलती पर महीनों जेल में सड़ सकता है जबकि उस पर गुनाह साबित भी नहीं हुआ हो.

मजबूरी : क्या बेटी का दहेज जुटा पाए शराफत अली

शराफत अली बड़ी बेचैनी से कमरे में चहलकदमी कर रहे थे. कभी वे दरवाजे के पास आ कर बाहर की तरफ देखते, तो कभी मोबाइल की घड़ी को. घड़ी की बढ़ती गिनती के साथ उन की चहलकदमी और भी तेज होती जा रही थी.

शराफत अली सोच रहे थे, ‘आखिर अभी तक वे लोग आए क्यों नहीं? मैं ने तो दोपहर में 2 बजे का वक्त दिया था और अब तो 3 बजने वाले हैं. फोन भी नहीं मिल रहा. आखिर ऐसी कौन सी वजह हो सकती है?’

इसी बीच एक टैक्सी तेजी से आ कर उन के दरवाजे के पास रुकी. उस टैक्सी में से एक आदमी और 2 औरतें बाहर निकलीं. टैक्सी वाले को पैसे देने के बाद वे तीनों शराफत अली के घर की तरफ बढ़े.

यह देख कर शराफत अली का चेहरा खिल उठा. वे तेजी से उन लोगों की तरफ लपके. तब तक वे तीनों दरवाजे तक आ चुके थे. शराफत अली ने बढ़ कर हाथ मिलाया और उन्हें अंदरले आए.

‘‘बैठिए, तशरीफ रखिए,’’ शराफत अलीने कहा.

‘‘जी, शुक्रिया. भई, हम लोग थोड़ी देर से आने के लिए माफी चाहते हैं,’’ उस आदमी ने बैठते हुए कहा.

शराफत अली बोले, ‘‘अरे नहीं, इस में माफी की क्या बात है, यह तो सभी के साथ हो जाता है.’’

‘‘माफ कीजिएगा साहब, आज ज्यादा देर तक नहीं रुक सकेंगे, इसलिए हो सके तो जल्द ही बिटिया को बुलवा लीजिए,’’ एक औरत ने कहा.

‘‘हांहां, क्यों नहीं. जैसी आप की मरजी,’’ कहते हुए शराफत अली अंदर चले गए.

जब कुछ देर बाद वे लौटे, तो उन के हाथों में नाश्ते की एक ट्रे थी. उसे

मेज पर रखते हुए वे बोले, ‘‘लीजिए, नाश्ता कीजिए.’’

‘‘अरे, इस की क्या जरूरत थी? आप बेकार परेशान हुए,’’ आदमीने कहा.

‘‘नहीं, इस में परेशानी की क्या बात है. यह तो हमारा फर्ज है. जीनत बेटी, चाय ले आओ,’’ शराफत अली ने कहा.

जीनत चाय ले कर जैसे ही अंदर दाखिल हुई, उस की खूबसूरती देख कर वे तीनों दंग रह गए.

‘‘जमाल साहब, यह है मेरी बेटी जीनत,’’ शराफत अली ने जीनत का परिचय कराते हुए कहा. तब तक जीनत चाय मेज पर रख कर वापस जा चुकी थी.

‘‘शराफत साहब, इसे आप ने तालीम कहां तक दिलवाई है?’’ जमाल अहमद ने चाय की चुस्की लेते हुए पूछा.

‘‘जी, इसी साल इस ने बीए किया है.’’

‘‘तो ठीक है, हमें आप की लड़की पसंद है. सबीहा, तुम लोग अंदर जा कर जीनत से कुछ बातचीत करो, तब तक मैं शराफत साहब से कुछ जरूरी बातें करता हूं,’’ जमाल अहमद ने कहा. वे दोनों औरतें उठ कर अंदर चली गईं.

‘‘देखिए शराफत साहब, हम चाहते हैं कि हमारी जो भी बातचीत हो, साफसुथरी हो, ताकि बाद में कोई मसला न खड़ा हो.

‘‘यह तो आप जानते ही हैं कि मैं ने अभी कुछ ही दिनों पहले अपनी 2 बेटियों की शादी की है. जमा किए गए मेरे सारे रुपए तो उसी में खर्च हो गए. अब मेरे पास इतने रुपए तो हैं नहीं कि मैं अकरम की शादी में कुछ लगा सकूं, इसलिए मैं चाहता हूं कि जो नकद रुपए आप उस वक्त देें, वे मुझे पहले ही दे दें, क्योंकि मैं अकरम की शादी धूमधाम से करना चाहता हूं,’’ जमाल अहमद ने सपाट लहजे में कहा.

‘‘तो आप मुझ से कितना पैसा चाहते हैं?’’ शराफत अली ने पूछा.

‘‘कुछ खास नहीं, बस यही कोई 2 लाख रुपए. बाकी तो आप खुद ही देंगे. अपनी बेटी को खाली हाथ थोड़े ही विदा कर देंगे.

‘‘अब आप जानते ही हैं कि आजकल दफ्तर आनेजाने में सवारी के लिए काफी परेशान होना पड़ता है. यही वजह है कि काफी समय लग जाता है. आप का दामाद घर जल्दी चला आए, ताकि आप की बेटी को ज्यादा इंतजार न करना पड़े, इस के लिए आप बाइक तो देंगे ही.’’

‘‘2 लाख और साथ में बाइक भी?’’ शराफत अली चौंके.

‘‘अब देखिए न, आजकल इतनी सख्त गरमी पड़ती है कि आधा घंटे भी आप बाहर नहीं रह सकते. एसी होने से आप की बेटी को ठंडी हवा मिलती रहेगी.

‘‘और हां, आजकल के लड़केलड़कियों को फिल्म देखने का इतना शौक होता है कि चाहे कितने पैसे बरबाद हो जाएं, सिनेमाघर जरूर जाएंगे. जब घर में 60 इंच का बड़ा एलईडी टीवी होगा, तो वह फुजूलखर्ची अपनेआप बंद हो जाएगी. और अब खुद से क्या बताऊं, आप खुद ही समझदार हैं.’’

‘‘लेकिन जमाल साहब, मैं इस हालत में नहीं हूं कि इतना सब कर सकूं,’’ शराफत अली ने मजबूरी बताते हुए कहा.

‘‘चलिए, कोई बात नहीं. यह जरूरी नहीं कि आप छोटेबड़े सभी सामान हमें दें. अरे, 10-20 हजार रुपए के छोटेमोटे सामान आप हमें नहीं दीजिएगा तो मुझे कोई शिकायत नहीं होगी,’’ जमाल अहमद ने मानो एहसान जताते हुए कहा.

‘‘यह आप कैसी बातें कर रहे हैं जमाल साहब… आप आप तो मुसलमान हैं. आप के मुंह से ऐसी बातें अच्छी नहीं लगतीं,’’ शराफत अली ने कहा.

‘‘जी हां, मैं जानता हूं कि मैं मुसलमान हूं, लेकिन मैं यह भी अच्छी तरह जानता हूं कि मैं उस वक्त भी मुसलमान था, जब मेरी बड़ी बेटी दहेज की आग में जिंदा जला दी गई थी. मैं उस वक्त भी मुसलमान था, जब मैं ने अपनी 2 बेटियों की शादी में 5-7 लाख रुपए का खर्च उठाया था और आज जब मेरा वक्त आया, तो आप मुझे मेरे मुसलमान होने की याद दिला रहे हैं,’’ कहतेकहते जमाल अहमद का चेहरा सख्त होता चला गया.

‘‘मेरे कहने का यह मतलब नहीं था, जमाल साहब. मैं तो सिर्फ अपनी बात कर रहा था कि मैं साधारण आदमी हूं. अब आप ही सोचिए कि मैं इतना सब कैसे कर सकता हूं? मेरी मजबूरी समझने की कोशिश कीजिए जमाल साहब,’’ शराफत अली ने तकरीबन गिड़गिड़ाते हुए कहा.

‘‘कोई बात नहीं, जब आप की मजबूरी खत्म हो जाए, तभी अपनी इस बेटी की शादी के बारे में सोचिएगा, क्योंकि इस जमाने में बेटी को अगर खुश देखना चाहते हैं, तो मुंहमांगा दहेज भी देना पड़ेगा, वरना…

‘‘खैर, छोडि़ए न इन सब बातों को. मैं ऐसे हालात पर पहुंचने के बजाय शादी न करना ही बेहतर समझता हूं. और बुरा मत मानिएगा, बिना दहेज के कम से कम मैं तो शादी नहीं कर सकता,’’ जमाल अहमद ने बड़ी बेरुखी से कहा.

‘‘देखिए जमाल साहब, जो मुझ से हो सकता है, वह तो मैं दूंगा ही, लेकिन आप की मांगें मुझ जैसे आदमी के लिए बहुत ज्यादा हैं,’’ शराफत अली ने अपनी आवाज में नरमी ला कर कहा.

‘‘हो सकता है, लेकिन मैं इस से कम में शादी नहीं कर सकूंगा. आप ठीक से सोचसमझ लें.

मुझे कोई जल्दी नहीं है,’’ जमाल अहमद ने कहा और अपने साथ आईं औरतों को साथ ले कर वहां से चले गए.

शराफत अली एकदम ठगे से खड़े रह गए. जमाल अहमद की बातों से उन्हें गहरी चोट पहुंची थी. पहुंचती भी क्यों न, उन की बेटी का यह तीसरा रिश्ता भी दहेज की वजह से आज तय होतेहोते रह गया. वे कुछ सोचने लग गए.

‘‘ठीक है, ठीक है,’’ अचानक उन के मुंह से ऐसे निकला मानो उन्होंने कोई बड़ा फैसला कर लिया हो.

रात के 2 बजने वाले थे. तभी महल्ले में शोर हुआ, ‘‘चोर… चोर… पकड़ो… चोर.’’

ये आवाजें शराफत अली के घर के पास ही रहने वाली रमा देवी के घर से उठ रही थीं. जब लोग वहां पहुंचे, तब तक चोर भाग चुका था.

रमा देवी बुरी तरह रोरो कर कह रही थीं, ‘‘अरे, कुछ करो. मैं लुट गई, बरबाद हो गई. अपनी बेटी की शादी के लिए एकएक पैसा मैं ने जमा किया था. अब मैं क्या करूंगी? पूरे 12 लाख रुपए के जेवर उठा ले गए. मैं तो अब कहीं की नहीं रही.’’

रमा देवी इस महल्ले की अच्छी औरतों में गिनी जाती थीं. अपने पति की मौत के बाद से वे किसी तरह सिलाईकढ़ाई कर के अपनी गृहस्थी की गाड़ी खींच रही थीं. उस वक्त उन के 3 छोटेछोटे बच्चे थे, 2 लड़कियां और एक छोटा लड़का. अगले हफ्ते ही उन की बेटी की बरात आने वाली थी. लोग उन्हें समझाबुझा कर थाने ले गए और चोरी की रिपोर्ट दर्ज कराई.

चोरी हुए 12 घंटे बीत चुके थे, लेकिन अभी तक चोर का कोई पता नहीं लगाया जा सका था. अब रमा देवी चुप हो कर बैठ गई थीं.

तभी शराफत अली हाथ में एक झोला लिए हुए उन के मकान में दाखिल हुए. रमा देवी के नजदीक पहुंच कर उन्होंने अपना झोला पलट दिया. उस में से और जेवरात नीचे गिरे.

यह देख कर रमा देवी की खुशी का ठिकाना न रहा, लेकिन अगले ही पल उन के मुंह से निकला, ‘‘यह आप के पास कैसे…?’’

‘‘बहन, मैं ने ही तुम्हारे घर में चोरी की थी. मैं ने ही भागते वक्त तुम्हें धक्का दिया था…’’ रुंधे गले से शराफत अली ने कहा.

‘‘आप ने? लेकिन क्यों?’’ रमा देवी ने हैरान हो कर पूछा.

‘‘अपनी बेटी के दहेज का इंतजाम जो करना था,’’ शराफत अली ने लंबी सांस ले कर कहा.

‘‘तो फिर आप इन्हें वापस करने क्यों चले आए?’’

‘‘और करता भी क्या? जिस के लिए मैं ने यह चोरी की, वही नहीं रही,’’ कह कर शराफत अली फफकफफक कर रोने लगे.

‘‘जीनत नहीं रही? मगर, यह हुआ कैसे?’’ रमा देवी ने हैरान हो कर पूछा.

‘‘कुछ पल चुप रह कर उन्होंने कहा, ‘‘कल रात जब मैं आप के घर से चुराया हुआ माल ले कर अपने घर पहुंचा, तो महल्ले वालों के शोर से जीनत भी जाग चुकी थी. मैं दौड़ताहांफता हुआ जैसे ही अपने घर में अंदर घुसा, वैसे ही मेरा हाथ दरवाजे की चौखट पर इतनी जोर से टकराया कि झोला हाथ से छूट कर दूर जा गिरा.

‘‘तब तक जीनत वहां चली आई थी. बिखरे माल को देख कर उस ने मुझे झकझोरते हुए पूछा, ‘अब्बू, आप ने चोरी की है? बोलते क्यों नहीं, आप ने चोरी की है?’

‘‘मैं ने दरवाजा बंद करते हुए कहा. ‘हांहां, मैं ने चोरी की है,’

‘‘वह बोली, ‘मगर क्यों? अब्बू, क्यों?’

‘‘मैं ने कहा, ‘इसलिए कि तुझे डोली में बैठा कर विदा कर सकूं, दहेज के इन भूखे भेडि़यों के मुंह पर चांदी का जूता मार सकूं.’

‘‘इतना सुनते ही वह बोली, ‘नहीं अब्बू, नहीं. मुझे नहीं चाहिए ऐसी डोली, जो किसी बेबस की आहों पर उठे, नहीं चाहिए मुझे ऐसी डोली, नहीं चाहिए,’

‘‘यह कहते हुए जीनत अंदर चली गई. जब कुछ देर बाद मैं उस के कमरे में पहुंचा तो देखा कि पंखे से लटक रहे एक रस्सी के फंदे में वह झूल रही थी,’’ कहतेकहते शराफत अली चक्कर खा कर जमीन पर गिर पड़े.

मुंदरी का इंतकाम : क्या मिल पाई बलात्कारियों को सजा

जटपुर गांव की मुंदरी को जब यह पता चला कि उस की बड़ी बहन सुंदरी अपने 4 बलात्कारियों को तबाह और बरबाद कर के ईंटभट्ठे से गायब हो गई है, तो उसे अपनी बहन की बहादुरी और होशियारी पर बड़ा गर्व हुआ.

मुंदरी के मन में यह बात गहराने लगी कि उसे भी अपनी बहन की तरह बहादुर बनना है. वह जानती थी कि वह ज्यादा पढ़ीलिखी तो है नहीं, इसलिए उसे कोई बड़ी नौकरी मिलने से रही. हां, ईंटभट्ठे पर मजदूरी का काम उसे जरूर मिल सकता है.

मुंदरी ने अपने पिता जगप्रसाद से अपने मन की बात कही, ‘‘पिताजी, मुझे भी उसी ईंटभट्ठे पर काम करना है, जहां दीदी काम करती थीं.’’

‘‘बिटिया, सुंदरी के जाने के बाद मेरा मन निढाल हो गया है. यह सब तू अच्छी तरह से जानती है कि ये दिन मैं ने कैसे काटे हैं. अगर तू भी उसी ईंटभट्ठे पर काम करना चाहती है, तो तेरी मरजी. मैं कुछ नहीं कहने वाला. सुंदरी लड़ कर गई थी, इसलिए तुझे रोकने की मेरी हिम्मत नहीं. घर में अगर दो पैसे आएंगे, तो क्या मुझे काटेंगे…’’

मुंदरी अगले ही दिन नेमतपुर गांव गई, जहां पर वह ईंटभट्ठा था. वह ठेकेदार रामपाल से नौकरी के बाबत मिली, लेकिन जब रामपाल को यह पता चला कि मुंदरी तो सुंदरी की बहन है, इसलिए वह उसे काम पर रखने के लिए आनाकानी करने लगा. उसे लगा कि कहीं वह किसी मुसीबत में न फंस जाए. उस के मन में काला चोर बैठा था. उस ने सुंदरी के साथ क्याक्या किया था, उसे वे सारी बातें याद आने लगीं.

लेकिन तभी रामपाल को मुंदरी में सुंदरी का अक्स उभरता हुआ नजर आने लगा. उसे रंगीन रातें याद आने लगीं. मुंदरी को देख कर उस की हवस जागने लगी. मुंदरी की खूबसूरती और उभरती जवानी उसे अपनी ओर खींचने लगी.

लंगोट का कच्चा आदमी कहीं भी गिर जाता है. रामपाल की कमजोरी उस पर हावी हो गई और वह उसे काम पर रखने के लिए तैयार हो गया.

मुंदरी को भी ईंटभट्ठे पर रहने के लिए वही कोठरी दी गई, जो सुंदरी को रहने के लिए दी गई थी. उसे इस कोठरी में सुंदरी की याद सताने लगी. उसे याद आता कि बलात्कार के बाद कैसे सुंदरी डरीडरी और सहमीसहमी सी रहने लगी थी. बलात्कारियों के जमानत पर छूटने पर वह कैसे गुस्सा हो उठी थी. उस के बाद वह कैसे परिवार वालों से लड़?ागड़ कर ईंटभट्ठे पर आ गई थी और फिर कैसे अपने बलात्कारियों से उस ने जम कर बदला लिया था.

तब मुंदरी सोचने लगती कि आखिर उस भली और संकोची लड़की में यहां आने पर इतनी हिम्मत कहां से आ गई. वह इस राज को जानने के लिए बेसब्र हो उठी, लेकिन इस राज से परदा उठने में देर न लगी.

कुछ ही दिन बाद ठेकेदार रामपाल ने मुंदरी को अपने औफिस में बुलाया और उस से कहा, ‘‘मुंदरी, तुम्हारी बहन सुंदरी को हम ने यहां आने वाले ग्राहकों और हम से मिलने आने वाले लोगों के लिए चाय और पानी पिलाने का काम दिया था. हम तुम्हें भी यही काम देना चाहते हैं. क्या तुम यह काम करना चाहोगी?’’

मुंदरी को रामपाल पहले दिन से ही अच्छा आदमी नहीं लगा था. वह उस से दूर ही रहना चाहती थी. उस ने कहा, ‘‘साहब, अगर हम मिट्टी ढोने और ईंट पाथने का ही काम करें, तो क्या आप को कोई एतराज है?’’

रामपाल तो यही सोचता था कि मुंदरी अपनी बहन सुंदरी की तरह इस काम को करने के लिए आसानी से मान जाएगी, लेकिन वह तो आनाकानी कर रही थी. अपने दांव को उलटा पड़ता देख रामपाल ने चतुर शिकारी की तरह पैंतरा बदला और दूसरा दांव चला, ‘‘अरे, तुम खूबसूरत हो, जवान हो, इसलिए हम तुम को यह काम दे रहे हैं.’’

लेकिन यह सुनते ही मुंदरी भड़क गई, ‘‘साहब, हम यहां मजदूरी कर के दो पैसे कमाने आए हैं, अपनी खूबसूरती और जवानी की बोली लगाने नहीं. हमारे जिस्म पर बुरी नजर मत डालिए.’’

रामपाल तुरंत संभला. उसे ध्यान आया कि वह मुंदरी से बातें कर रहा है, सुंदरी से नहीं, लेकिन वह औरतों और लड़कियों को अच्छी तरह से संभालना जानता था. वह अपने क्षेत्र का अनुभवी खिलाड़ी था, अनाड़ी नहीं.

रामपाल ने मामले को तुरंत संभाला, ‘‘अरे मुंदरी, तुम तो नाहक ही नाराज होती हो. मेरे कहने का तो बस यह मतलब था कि सुंदरी का काम हम तुम्हें सौंपना चाहते हैं. कितनी अच्छी चाय बनाती थी तुम्हारी बहन, इसी तरह तुम भी अच्छी चाय बनाती होगी… क्यों?’’

‘‘हां तो साहब यह कहिए न. दीदी का काम हम संभालने के लिए तैयार हैं, लेकिन आगे से हमारे शरीर और उम्र के बारे में कुछ मत कहिएगा,’’ मुंदरी ने रामपाल को नसीहत देते हुए कहा.

रामपाल मन ही मन सोचने लगा, ‘बकरे की अम्मां कब तक खैर मनाएगी. एक बार चंगुल में फंस जा मुंदरी, तुझे तेरी जवानी का मजा न चखा दिया तो कहना.’

‘‘क्या सोचने लगे साहब?’’ सोच में डूबे रामपाल से मुंदरी ने पूछा.

‘‘कुछ नहीं मुंदरी, बस यही सोच रहा था कि तुम्हारी बहन सुंदरी कितनी अच्छी चाय बनाती थी. उस की चाय पी कर कितना मजा आता था. मुंदरी, कल से तुम ही चायपानी का काम संभालो.’’

‘‘ठीक है साहब, जैसा आप का हुक्म,’’ मुंदरी बोली.

अगले दिन से मुंदरी चायपानी का काम संभालने लगी. रामपाल तो बस इसी मौके की तलाश में था कि वह कैसे मुंदरी को अपनी हवस का शिकार बनाए. रामपाल ने उसे सब तरह का लालच दे कर देख लिया, लेकिन मुंदरी उस के शिकंजे में फंसने के लिए किसी कीमत पर तैयार नहीं हो रही थी.

अब रामपाल ने मुंदरी को अपनी हवस का शिकार बनाने के लिए आखिरी पासा फेंका. एक शाम जब रामपाल के औफिस में कोई नहीं था और मुंदरी अपनी कोठरी पर जाने की तैयारी में थी.

तभी रामपाल ने मुंदरी को अपने औफिस में बुलाया और कहा, ‘‘मुंदरी, तुम्हारे काम को देख कर मालिक ने तुम्हारी पगार 500 रुपए बढ़ाने का फैसला किया है.’’

यह सुन कर मुंदरी बड़ी खुश हुई. उस ने कहा, ‘‘साहब, यह तो हमारे लिए बड़ी खुशी की बात है. यह सब आप की मेहरबानी है.’’

‘‘अरे मुंदरी, ले इस खुशी में यह कोल्ड ड्रिंक पी. बहुत गरमी हो रही है.’’

‘‘हां साहब, गरमी तो बहुत तेज है,’’ कोल्ड ड्रिंक का गिलास पकड़ते हुए मुंदरी ने कहा.

मुंदरी कोल्ड ड्रिंक के गिलास को होंठों से लगा कर उसे गटागट पीने लगी. उसे कोठरी पर जाने की जल्दी थी, लेकिन रामपाल की हवस भरी निगाहें तो उस के उभरे जिस्म को ताड़ रही थीं. वह तो बड़े आराम से कुरसी पर ?ाल रहा था.

मुंदरी ने जल्दी से गिलास खाली किया. अभी उस ने जाने के लिए गिलास को मेज पर रखा ही था कि उसे सिर में बेचैनी सी महसूस हुई. उसे चक्कर आने लगे. वह कुरसी पकड़ कर उस पर बैठना चाहती थी, लेकिन वह चक्कर खा कर जमीन पर गिर पड़ी.

रामपाल के चेहरे पर शैतानी मुसकान उभरी. उस का दांव कामयाब रहा. उस ने बेहोश पड़ी मुंदरी को अपनी बांहों में उठाया और उसे बराबर में बने अपने बैडरूम में ले गया. उसे बैड पर लिटाया और एक प्यारा सा चुम्मा उस के होंठों पर लिया, फिर उस ने दारू का एक बड़ा पैग तैयार किया और मोबाइल के कैमरे को ठीक से सैट किया.

दारू चढ़ाने के बाद पूरी मस्ती और इतमीनान के साथ रामपाल ने उस बैड पर मुंदरी की अस्मत का चूरमा बना डाला.

जब मुंदरी को होश आया, तो अपनेआप को बिस्तर पर बिना कपड़ों के पा कर उस के होश उड़ गए. उस ने सामने कुरसी पर रामपाल को अधनंगा बैठा देखा, तो उस ने उस पर पूरी ताकत से चीखना चाहा, लेकिन उस को लगा जैसे उस की चीख कहीं दब गई है.

मुंदरी ने चादर को अपने शरीर पर खींचते हुए से रामपाल की ओर गुस्से में देखा. वह बेशर्मी से मुसकरा रहा था.

‘‘यह सब क्या है?’’ मुंदरी ने तकरीबन आंखों में आंसू भर कर कहा.

‘‘कुछ नहीं, बस यह है,’’ रामपाल ने अपने मोबाइल की स्क्रीन मुंदरी के सामने करते हुए कहा.

उस में अपनी अस्मत लुटने की फिल्म देख कर मुंदरी के पैरों तले से जमीन खिसक गई. उस को लगा जैसे वह आसमान से सीधे पाताल में समा गई हो.

इस से पहले कि मुंदरी कुछ कहती, रामपाल बोला, ‘‘मेरी रानी, अगर बाहर जा कर जबान खोली, तो तेरी यह गंदी फिल्म सारी दुनिया देखेगी.’’

फिर रामपाल ने अपनी रिवौल्वर लहराई और उस के बाद उस रिवौल्वर को मुंदरी की कनपटी पर रखते हुए बोला, ‘‘और यह भी हो सकता है कि उस से पहले इस की सारी गोलियां तेरे भेजे में उतर जाएं.

‘‘वैसे भी हमारे इस भट्ठे में ईंट पकाने के लिए मोटीमोटी लकडि़यां भी रखी जाती हैं. एक लकड़ी की जगह तुम्हारी लाश को रख देंगे, फिर

तुम्हारे मांबाप को गंगा में बहाने के लिए तुम्हारी अस्थियां भी नहीं मिलेंगी. सबकुछ स्वाहा.’’

यह सुन कर मुंदरी अंदर तक कांप गई. रामपाल जानता था कि औरत का दिल होता ही कितना है. वह भी अस्मत लुटी हुई औरत का. यह काम उस ने कोई पहली बार तो किया नहीं था. गरीब और भली औरतों को डरानाधमकाना वह अच्छे से जानता था.

अभी कोल्ड ड्रिंक में मिली नशीली दवाओं का असर मुंदरी के ऊपर से अच्छी तरह नहीं उतरा था. उस की हिम्मत बिस्तर से उठने की भी नहीं हो रही थी, लेकिन वह उस राक्षस के सामने अब एक पल भी रुकना नहीं चाहती थी. उस ने जैसेतैसे अपने कपड़े पहने और बाहर निकल गई.

मुंदरी अपने को संभालते हुए अपनी कोठरी में पहुंची. एक गिलास ठंडा पानी पिया, तभी उस की नजर सामने टंगे आईने पर पड़ी. वह अपना चेहरा ध्यान से देखने लगी. उसे लगा कि वह कोई और मुंदरी है, जो अपनी दुनिया को खो चुकी है. इस के बाद वह अपने फोल्डिंग पलंग पर निढाल हो गई.

मुंदरी की आंखों में नींद तो नहीं थी, लेकिन कितने ही सवाल रहरह कर उस के मन में उठ रहे थे. फिर उन्हीं सवालों के जवाब वह मन में तलाश करती, लेकिन कई सवाल बिना जवाब मिले ही रह जाते.

मुंदरी ने यह तय कर लिया था कि इस मुंह को ले कर वह अपने मांबाप के सामने तो बिलकुल नहीं जाएगी. तो क्या वह इस रामपाल कसाई और दरिंदे के साथ ही काम करेगी और अपनी अस्मत लुटवाती रहेगी?

तभी अपनी बहन सुंदरी का चेहरा मुंदरी की आंखों के सामने घूमने लगा, जैसे वह उस से कह रही हो, ‘मुंदरी, बस तू इतने से घबरा गई… मुझे देख, मैं ने अपने 4-4 बलात्कारियों से बदला लिया है. क्या तू एक से भी बदला नहीं ले सकती? इतनी कमजोर है तू?’

मुंदरी ने मन ही मन कहा, ‘नहींनहीं, मैं इतनी कमजोर नहीं.’

मुंदरी को लगा जैसे उस के अंदर किसी अनदेखी ताकत बढ़ रही है. वह ताकत उसे लड़ने के लिए बढ़ावा दे रही है. उस का मन उसे धिक्कार रहा था और कह रहा है, ‘इस शातिर रामपाल से इस की भाषा में ही बदला लेना होगा. वह छलकपट से जीत सकता है, तो मुंदरी तू क्यों नहीं?’

मुंदरी का मन ऐसा सोचते ही घनघनाने लगा. वह रामपाल से इंतकाम लेने की सोचने लगी. उस का मन इंतकाम का खाका तैयार करने लगा. तब जा कर उस के फीके चेहरे पर कुटिल मुसकान उभरी.

मुंदरी ने तय कर लिया कि रामपाल को उस के ही तीर से मारना है. यह सोच कर उसे संतुष्टि मिली और तब वह नींद के आगोश में चली गई.

अगली सुबह मुंदरी बड़े यकीन के साथ उठी. अब वह कोई भोलीभाली मुंदरी नहीं थी, बल्कि वह तो नए तेवर वाली मुंदरी थी.

उधर रामपाल को चिंता हो रही थी कि मुंदरी कहीं कोई नया बखेड़ा न खड़ा कर दे. वह बेसब्री से उस का इंतजार कर रहा था, लेकिन वह तब हैरान रह गया जब मुंदरी ने आते ही बड़ी जालिम मुसकान और अदा के साथ कहा, ‘‘और साहब, कैसे हो? कौन सी दुनिया में खोए हो?’’

रामपाल को बिलकुल भी यकीन नहीं था कि मुंदरी उस के सामने ऐसे पेश आएगी. ऐसा होने पर अकसर लड़कियां काम छोड़ कर भाग जाती थीं और अपना मुंह भी बंद रखती थीं.

मुंदरी की मुसकान देख कर रामपाल झट से बोला, ‘‘अरे मुंदरी, मैं तो तुम्हें ही याद कर रहा था.’’

मुंदरी ने कुरसी पर बैठे रामपाल के गालों पर उंगली फिराते हुए कहा, ‘‘क्यों इतनी पसंद आ गई क्या मैं तुम को मेरे राजा?’’

‘‘ओह मुंदरी, तुम बहुत गजब की हो,’’ रामपाल ने नशीली आंखों से देखते हुए कहा.

तब मुंदरी अपने चेहरे को रामपाल के चेहरे से सटाते हुए बोली, ‘‘तो फिर इस गरीब को अपने दिल की रानी बना लो न.’’

मुंदरी की गरम सांसों ने रामपाल के तनबदन में हवस के शोले भड़का दिए. उस ने मुंदरी को कस कर अपनी बांहों में पकड़ कर उस के होंठों पर एक गहरा चुम्मा लेते हुए कहा, ‘‘तुम मेरी ही तो रानी हो.’’

इस के बाद मुंदरी और रामपाल खुल कर खेलने लगे. रामपाल मुंदरी को भी सुंदरी की तरह पहाड़ों की सैर कराने लगा.

मुंदरी ने मौके का फायदा उठाया. उस ने रामपाल से कार चलाना सीख लिया. जब कभी उन्हें मौजमस्ती के लिए पहाड़ों में जाना होता, तो कार अकसर मुंदरी ही चलाती थी.

रामपाल किसी को कानोंकान खबर भी नहीं होने देता था कि वह मुंदरी के साथ पहाड़ों में घूमने जाता है. पहाड़ी जीवन मुंदरी को बहुत भाता था. वह अकसर पहाड़ी औरतों को देखती कि वे कैसे पहाड़ों पर चढ़ कर घास काटती हैं और लकडि़यां ढो कर लाती हैं.

एक दिन रामपाल मुंदरी को कोटद्वार के रास्ते पौड़ी गढ़वाल ले जा रहा था. रास्ते में मुंदरी ने जानबू?ा कर रामपाल को शराब पीने के लिए उकसाया. रास्ते में वह उसे दूसरी चीजें खिलाती रही और उसे पानी पिलाती रही. यह सब उस की अपनी योजना का हिस्सा था.

यह रास्ता कई जगह बहुत संकरा और खतरनाक ढलान वाला भी था. रास्ते में रामपाल ने मुंदरी से कार रोकने को कहा, जिस से वह शौच कर सके.

मुंदरी यही तो चाहती थी. उस ने कार ऐसी जगह रोकी, जहां एक खतरनाक मोड़ था. एक तरफ ऊंचा पहाड़ था और दूसरी ओर गहरी खाई थी.

शाम ढलने को थी और गाडि़यों की आवाजाही कम थी. शौच करने के लिए रामपाल उतरा, तो मुंदरी भी कार से उतर गई.

रामपाल शौच के लिए पहाड़ की तरफ बढ़ा, तो मुंदरी ने कहा, ‘‘अरे मेरे राजा, उधर कहां जाते हो? इधर खाई की तरफ करो न. हम भी तो देखें, हमें बांहों में कस कर पकड़ने वाले गबरू नौजवान की धार कितनी दूर तक जाती है. असली मर्द की ताकत और मर्दानगी उस की तेज धार ही तो होती है.’’

मर्दानगी के सवाल पर रामपाल सबकुछ भुला बैठा. लंगोट का कच्चा तो वैसे भी अपने को दुनिया का सब से बड़ा मर्द समझाता है. उस ने कहा, ‘‘देख मुंदरी, आज तू हमारी धार देख. तब पता चलेगा तु?ो हम कितने बड़े मर्द हैं.’’

इतना कह कर रामपाल खाई की तरफ खड़ा हो कर हलका होने लगा. मुंदरी सम?ा गई कि इस से बढि़या मौका इंतकाम लेने का कोई और हो नहीं सकता. वह भेड़े की तरह चार कदम पीछे हटी और फिर रामपाल के पिछवाड़े पर इतनी जोर से लात जमाई कि वह सैकड़ों फुट नीचे खाई में जा गिरा, जहां उस के जिंदा बचने की कोई उम्मीद ही नहीं थी.

फिर मुंदरी ने नीचे खड़ेखड़े ही कार को स्टार्ट किया और कार का स्टेयरिंग खाई की तरफ मोड़ दिया. कार में गियर पड़ते ही वह भी वहीं जा गिरी, जहां रामपाल नीचे खाई में पड़ा था.

फिर मुंदरी चुपचाप दूसरी तरफ पहाड़ी पर जा चढ़ी. यह सब काम चंद सैकंड में हो गया और मुंदरी को ऐसा करते किसी ने देखा भी नहीं.

इस के बाद मुंदरी ने एक पहाड़न का सा वेश बनाया, कपड़ों पर मिट्टी और रेत लगा ली, होंठों की लिपस्टिक पोंछ डाली और कुछ लकडि़यां बीन लीं. फिर वह नीचे उतरी और कुछ दूर चल कर एक चाय की गुमटी पर वे लकडि़यां औनेपौने दाम पर बेच दीं.

यह तो सब दिखावा था, रुपए तो मुंदरी ने अपनी सलवार के नेफे में छिपा रखे थे. वहां से वह एक बस में बैठ कर पौड़ी पहुंच गई और वहां एक होटल में ठहरी.

सुबह के अखबार में मुंदरी ने पढ़ा कि ‘एक सड़क हादसे में कोटद्वार और पौड़ी के रास्ते में शराब के नशे में धुत्त एक ड्राइवर कार समेत गहरी खाई में गिर गया. इस हादसे में ड्राइवर की मौत हो गई. ड्राइवर की पहचान रामपाल सिंह, पुत्र कृपाल सिंह, गांव नेमतपुर, जिला बिजनौर के रूप में हुई है.’

इस के तुरंत बाद मुंदरी ने अपने घर फोन लगाया, ‘‘पिताजी, मैं केदारनाथ, बद्रीनाथ दर्शन के लिए जा रही हूं. मैं ने रामपाल ठेकेदार से 15 दिन की छुट्टी ले ली थी.’’

‘‘अरे मुंदरी, रामपाल तो कल एक सड़क हादसे में मर गया है,’’ पिताजी ने कहा.

‘‘ओह पिताजी, यह तो बहुत बुरा हुआ. अच्छा, तो आप एक काम करना कि आप भट्ठा मालिक से बता देना कि मैं ने रामपाल ठेकेदार से 15 दिन की छुट्टी ली थी. लौट कर मैं काम पर आ जाऊंगी.’’

मुंदरी जानती थी कि रामपाल किसी रियासत का राजा तो था नहीं, जो पुलिस उस की मौत की गहराई से छानबीन करेगी. सब ने मान लिया कि रामपाल ठेकेदार की सड़क हादसे में मौत हो गई. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में उस का शराब पीना साबित हो ही चुका था.

रामपाल की तेरहवीं हो गई. मुंदरी का भी इंतकाम कामयाब हो गया और वह वापस काम पर भी लौट आई. भट्ठे पर नया ठेकेदार आ गया, जो रामपाल की तरह लंगोट का कच्चा नहीं था. सबकुछ पहले जैसा हो गया.

आंगन का बिरवा: मीरा ने नेहा को क्या दी सलाह

पलकें मूंदे मैं आराम की मुद्रा में लेटी थी तभी सौम्या की आवाज कानों में गूंजी, ‘‘मां, शलभजी आए हैं.’’

उस का यह शलभजी संबोधन मुझे चौंका गया. मैं भीतर तक हिल गई परंतु मैं ने अपने हृदय के भावों को चेहरे पर प्रकट नहीं होने दिया, सहज भाव से सौम्या की तरफ देख कर कहा, ‘‘ड्राइंगरूम में बिठाओ. अभी आ रही हूं.’’

उस के जाने के बाद मैं गहरी चिंता में डूब गई कि कहां चूक हुई मुझ से? यह ‘शलभ अंकल’ से शलभजी के बीच का अंतराल अपने भीतर कितना कुछ रहस्य समेटे हुए है. व्यग्र हो उठी मैं. सच में युवा बेटी की मां होना भी कितना बड़ा उत्तरदायित्व है. जरा सा ध्यान न दीजिए तो बीच चौराहे पर इज्जत नीलाम होते देर नहीं लगती. मुझे धैर्य से काम लेना होगा, शीघ्रता अच्छी नहीं.

प्रारंभ से ही मैं यह समझती आई हूं कि बच्चे अपनी मां की सुघड़ता और फूहड़ता का जीताजागता प्रमाण होते हैं. फिर मैं तो शुरू से ही इस विषय में बहुत सजग, सतर्क रही हूं. मैं ने संदीप और सौम्या के व्यक्तित्व की कमी को दूर कर बड़े सलीके से संवारा है, तभी तो सभी मुक्त कंठ से मेरे बच्चों को सराहते हैं, साथ में मुझे भी, परंतु फिर यह सौम्या…नहीं, इस में सौम्या का भी कोई दोष नहीं. उम्र ही ऐसी है उस की. नहीं, मैं अपने आंगन की सुंदर, सुकोमल बेल को एक बूढ़े, जर्जर, जीर्णशीर्ण दरख्त का सहारा ले, असमय मुरझाने नहीं दूंगी.

अब तक मैं अपने बच्चों के लिए जो करती आई हूं वह तो लगभग अपनी क्षमता और लगन के अनुसार सभी मांएं करती हैं. मेरी परख तो तब होगी जब मैं इस अग्निपरीक्षा में खरी उतरूंगी. मुझे इस कार्य में किसी का सहारा नहीं लेना है, न मायके का और न ससुराल का. मुंह से निकली बात पराई होते देर ही कितनी लगती है. हवा में उड़ती हैं ऐसी बातें. नहीं, किसी पर भरोसा नहीं करना है मुझे,  सिर्फ अपने स्तर पर लड़नी है यह लड़ाई.

बाहर के कमरे से सौम्या और शलभ की सम्मिलित हंसी की गूंज मुझे चौंका गई. मैं धीमे से उठ कर बाहर के कमरे की तरफ चल पड़ी.

‘‘नमस्ते, भाभीजी,’’ शलभ मुसकराए.

‘‘नमस्ते, नमस्ते,’’ मेरे चेहरे पर सहज मीठी मुसकान थी परंतु अंतर में ज्वालामुखी धधक रहा था.

‘‘कैसी तबीयत है आप की,’’ उन्होंने कहा.

‘‘अब ठीक हूं भाईसाहब. बस, आप लोगों की मेहरबानी से उठ खड़ी हुई हूं,’’ कह कर मैं ने सौम्या को कौफी बना लाने के लिए कहा.

‘‘मेहरबानी कैसी भाभीजी. आप जल्दी ठीक न होतीं तो अपने दोस्त को क्या मुंह दिखाता मैं?’’

मुझे वितृष्णा हो रही थी इस दोमुंहे सांप से. थोड़ी देर बाद मैं ने उन्हें विदा किया. मन की उदासी जब वातावरण को बोझिल बनाने लगी तब मैं उठ कर धीमे कदमों से बाहर बरामदे में आ बैठी. कुछ खराब स्वास्थ्य और कुछ इन का दूर होना मुझे बेचैन कर जाता था, विशेषकर शाम के समय. ऊपर  से इस नई चिंता ने तो मुझे जीतेजी अधमरा कर दिया था. मैं ने नहीं सोचा था कि इन के जाने के बाद मैं कई तरह की परेशानियों से घिर जाऊंगी.

उस समय तो सबकुछ सुचारु रूप से चल रहा था, जब इन के लिए अमेरिका के एक विश्वविद्यालय ने उन की कृषि से संबंधित विशेष शोध और विशेष योग्यताओं को देखते हुए, अपने यहां के छात्रों को लाभान्वित करने के लिए 1 साल हेतु आमंत्रित किया था. ये जाने के विषय में तत्काल निर्णय नहीं ले पाए थे. 1 साल का समय कुछ कम नहीं होता. फिर मैं और सौम्या  यहां अकेली पड़ जाएंगी, इस की चिंता भी इन्हें थी.

संदीप का अभियांत्रिकी में चौथा साल था. वह होस्टल में था. ससुराल और पीहर दोनों इतनी दूर थे कि हमेशा किसी की देखरेख संभव नहीं थी. तब मैं ने ही इन्हें पूरी तरह आश्वस्त कर जाने को प्रेरित किया था. ये चिंतित थे, ‘कैसे संभाल पाओगी तुम यह सब अकेले, इतने दिन?’

‘आप को मेरे ऊपर विश्वास नहीं है क्या?’ मैं बोली थी.

‘विश्वास तो पूरा है नेहा. मैं जानता हूं कि तुम घर के लिए पूरी तरह समर्पित पत्नी, मां और सफल शिक्षिका हो. कर्मठ हो, बुद्धिमान हो लेकिन फिर भी…’

‘सब हो जाएगा, इतना अच्छा अवसर आप हाथ से मत जाने दीजिए, बड़ी मुश्किल से मिलता है ऐसा स्वर्णिम अवसर. आप तो ऐसे डर रहे हैं जैसे मैं गांव से पहली बार शहर आई हूं,’ मैं ने हंसते हुए कहा था.

‘तुम जानती हो नेहा, तुम व बच्चे मेरी कमजोरी हो,’ ये भावुक हो उठे थे, ‘मेरे लिए 1 साल तुम सब के बिना काटना किसी सजा जैसा ही होगा.’

फिर इन्होंने मुझे अपने से चिपका लिया था. इन के सीने से लगी मैं भी 1 साल की दूरी की कल्पना से थोड़ी देर के लिए विचलित हो उठी थी, परंतु फिर बरबस अपने ऊपर काबू पा लिया था कि यदि मैं ही कमजोर पड़ गई तो ये जाने से साफ इनकार कर देंगे.

‘नहीं, नहीं, पति के उज्ज्वल भविष्य व नाम के लिए मुझे स्वयं को दृढ़ करना होगा,’ यह सोच मैं ने भर आई आंखों के आंसुओं को भीतर ही सोख लिया और मुसकराते हुए इन की तरफ देख कर कहा, ‘1 साल होता ही कितना है? चुटकियों में बीत जाएगा. फिर यह भी तो सोचिए कि यह 1 साल आप के भविष्य को एक नया आयाम देगा और फिर, कुछ पाने के लिए कुछ खोना तो पड़ता ही है न?’

‘पर यह कीमत कुछ ज्यादा नहीं है?’ इन्होंने सीधे मेरी आंखों में झांकते हुए कहा था.

वैसे इन का विचलित होना स्वाभाविक ही था. जहां इन के मित्रगण विश्वविद्यालय के बाद का समय राजनीति और बैठकबाजी में बिताते थे, वहीं ये काम के बाद का अधिकांश समय घर में परिवार के साथ बिताते थे. जहां भी जाना होता, हम दोनों साथ ही जाते थे. आखिरकार सोचसमझ कर ये जाने की तैयारी में लग गए थे. सभी मित्रोंपरिचितों ने भी इन्हें आश्वस्त कर जाने को प्रेरित किया था.

इन के जाने के बाद मैं और सौम्या अकेली रह गई थीं. इन के जाने से घर में अजीब सा सूनापन घिर आया था. मैं अपने विद्यालय चली जाती और सौम्या अपने कालेज. सौम्या का इस साल बीए अंतिम वर्ष था. जब कभी उस की सहेलियां आतीं तो घर की उदासी उन की खिलखिलाहटों से कुछ देर को दूर हो जाती थी.

समय जैसेतैसे कट रहा था. इधर, सौम्या कुछ अनमनी सी रहने लगी थी. पिता की दूरी उसे कुछ ज्यादा ही खल रही थी. हां, इस बीच इन के मित्र कभी अकेले, कभी परिवार सहित आ कर हालचाल पूछ लिया करते थे.

मेरी सहयोगी शिक्षिकाएं भी बहुधा आती रहतीं, विशेषकर इन के मित्र शलभजी और मेरी सखी मीरा. शलभ इन के परममित्रों में से थे. इन के विभाग में ही रीडर थे एवं अभी तक कुंआरे ही थे. बड़ा मिलनसार स्वभाव था और बड़ा ही आकर्षक व्यक्तित्व. आते तो घंटों बातें करते. सौम्या भी उन से काफी हिलमिल गई थी.

मीरा मेरी सहयोगी प्राध्यापिका और घनिष्ठ मित्र थी. हम दोनों के विचारों में अद्भुत साम्य अंतरंगता स्थापित करने में सहायक हुआ था. मन की बातें, उलझनें, दुखसुख आपस में बता कर हम हलकी हो लेती थीं. उस के पति डाक्टर थे तथा 2 बेटे थे अक्षय और अभय. अक्षय का इसी साल पीसीएस में चयन हुआ था.

सत्र की समाप्ति के बाद संदीप भी आ गया था. उस के आने से घर की रौनक जाग उठी थी. दोनों भाईबहन नितनए कार्यक्रम बनाते और मुझे भी उन का साथ देना ही पड़ता. दोनों के दोस्तों और सहेलियों से घर भर उठता. बच्चों के बीच में मैं भी हंसबोल लेती, पर मन का कोई कोना खालीखाली, उदास रहता. इन की यादों की कसक टीस देती रहती थी.

वैसे भी उम्र के इस तीसरे प्रहर में साथी की दूरी कुछ ज्यादा ही तकलीफदेह होती है. पतिपत्नी एकदूसरे की आदत में शामिल हो जाते हैं. इन के लंबेलंबे पत्र आते. वहां कैसे रहते हैं, क्या करते हैं, सारी बातें लिखी रहतीं. जिस दिन पत्र मिलता, मैं और सौम्या बारबार पढ़ते, कई दिन तक मन तरोताजा, खुश रहता. फिर दूसरे पत्र का इंतजार शुरू हो जाता.

एक दिन विद्यालय में कक्षा लेते समय एकाएक जोर का चक्कर आ जाने से मैं गिर पड़ी. छात्राओं तथा मेरे अन्य सहयोगियों ने मिल कर मुझे तुरंत अस्पताल पहुंचाया. डाक्टर ने उच्च रक्तचाप बतलाया और कम से कम 1 महीना आराम करने की सलाह दी.

इस बीच, सौम्या बिलकुल अकेली पड़ गई. घर, अपना विद्यालय और फिर मुझे तीनों को संभालना उस अकेली के लिए बड़ा मुश्किल हो रहा था. तब शलभजी और मीरा ने काफी सहारा दिया.

मेरी तो तबीयत खराब थी, इसलिए जो भी आता उस की सौम्या से ही बातें होतीं. हां, मीरा आती तो विद्यालय के समाचार मिलते रहते. शलभजी भी मुझ से हाल पूछ सौम्या से ही अधिकतर बातें करते रहते.

इधर, शलभजी और सौम्या में काफी पटने लगी. आश्चर्य तब होता जब मेरे सामने आते ही दोनों असहज होने लगते. बस, इसी बात ने मुझे चौकन्ना किया.

शलभजी और सौम्या? बापबेटी का सा अंतर, इन से बस 2-4 साल ही छोटे होंगे वे, कनपटियों पर से सफेद होते बाल, इकहरा शरीर, चुस्तदुरुस्त पोशाक और बातें करने का अपना एक विशिष्ट आकर्षक अंदाज, सब मिला कर मर्दाना खूबसूरती का प्रतीक.

मुझे आश्चर्य होता कि मेरा हाल पूछने आए शलभ, मेरा हाल पूछना भूल, खड़ेखड़े ही सौम्या को आवाज लगाते कि सौम्या, आओ, तुम्हें बाहर घुमा लाऊं, बोर हो रही होगी और सौम्या भी ‘अभी आई’ कह कर झट अपनी खूबसूरत पोशाक पहन, सैंडिल खटखटाती बाहर निकल जाती.

सौम्या तो खैर अभी कच्ची उम्र की नासमझ लड़की थी, पर इस परिपक्व प्रौढ़ की बेहयाई देख मैं दंग थी. सोचती, क्या दैहिक भूख इतनी प्रबल हो उठी है कि सारे समीकरण, सारी परिभाषाएं इस तृष्णा के बीच अपनी पहचान खो, बौनी हो जाती हैं, नैतिकता अतृप्ति की अंधी अंतहीन गलियों में कहीं गुम हो जाती है. शायद, हां. तभी तो जिस वर्जित फल का शलभ अपनी जवानी के दिनों में रसास्वादन न कर सके थे,

इस पकी उम्र में उस के लोभ से स्वयं को बचा पाना उन के लिए कठिन हो रहा था. वैसे भी बुढ़ापे में अगर मन विचलित हो जाए तो उस पर नियंत्रण करना कठिन ही होता है. तिस पर सुकोमल, कमनीय, सुंदर सौम्या. दिग्भ्रमित हो उठे थे शलभजी.

वे आए दिन उस के लिए उपहार लाने लगे थे. कभी सलवारकुरता, कभी स्कर्टब्लाउज तो कभी नाइटी. सौम्या भी उन्हें सहर्ष ग्रहण कर लेती. मैं ने 2-3 बार शलभजी से कहा, ‘भाईसाहब, आप इस की आदत खराब कर रहे हैं, कितनी सारी पोशाकें तो हैं इस के पास.’

‘क्यों, क्या मैं इस को कुछ नहीं दे सकता? इतना अधिकार भी नहीं है मुझे? बहुत स्नेह है मुझे इस से,’ कह कर वे प्यारभरी नजरों से सौम्या की तरफ देखते. उस दृष्टि में किसी बुजुर्ग का निश्छल स्नेह नहीं झलकता था, बल्कि वह किसी उच्छृंखल प्रेमी की वासनामय काकदृष्टि थी.

मुझे लगता कि कपटी पुरुष स्नेह का मुखौटा लगा, सौम्या की इस नादानी और भोलेपन का लाभ उठा, उस का जीवन बरबाद कर सकता है. मेरे सामने यह समस्या एक चुनौती के रूप में सामने खड़ी थी. इन के वापस आने में 7 महीने बाकी थे. संदीप का यह अंतिम वर्ष था. उस से कुछ कहना भी उचित नहीं था.

प्रश्नों और संदेहों के चक्रव्यूह में उलझी मैं इस समस्या के घेरे से निकलने के लिए बुरी तरह से हाथपैर मार रही थी. तभी निराशा के गहन अंधकार में दीपशिखा की ज्योति से चमके थे मीरा के ये शब्द, ‘नेहा, सौम्या को तू मुझे सौंप दे, अक्षय के लिए. तुझे लड़का ढूंढ़ना नहीं पड़ेगा और मुझे सुघड़ बहू.’

‘सोच ले, यह लड़की तेरी खटिया खड़ी कर देगी, फिर बाद में मत कहना कि मैं ने बताया नहीं था.’

‘वह तू मुझ पर छोड़ दे,’ और फिर हम दोनों खुल कर हंस पड़ीं.

मीरा के कहे इन शब्दों ने मुझे डूबते को तिनके का सहारा दिया. मैं ने तुरंत उसे फोन किया, ‘‘मीरा, आज तू सपरिवार मेरे घर खाने पर आ जा. अक्षय, अभय से मिले भी बहुत दिन हो गए. रात का खाना साथ ही खाएंगे.’’

‘‘क्यों, एकाएक तुझे ज्यादा शक्ति आ गई क्या? कहे तो 10-20 लोगों को और अपने साथ ले आऊं?’’ उस ने हंसते हुए कहा.

‘‘नहींनहीं, आज मन बहुत ऊब रहा है. सोचा, घर में थोड़ी रौनक हो जाए.’’

‘‘अच्छा जी, तो अब हम नौटंकी के कलाकार हो गए. ठीक है भई, आ जाएंगे सरकार का मनोरंजन करने.’’

मनमस्तिष्क पर छाया तनाव का कुहरा काफी हद तक छंट चुका था और मैं नए उत्साह से शाम की तैयारी में जुट गई. रमिया को निर्देश दे मैं ने कई चीजें बनवा ली थीं. सौम्या ने सारी तैयारियां देख कर कहा था, ‘‘मां, क्या बात है? आज आप बहुत मूड में हैं और यह इतना सारा खाना क्यों बन रहा है?’’

‘‘बस यों…अब तबीयत एकदम ठीक है और शाम को मीरा, अक्षय, अभय और डाक्टर साहब भी आ रहे हैं. खाना यहीं खाएंगे. अक्षय नौकरी मिलने के बाद से पहली बार घर आया है न, मैं ने सोचा एक बार तो खाने पर बुलाना ही चाहिए. हां, तू भी घर पर ही रहना,’’ मैं ने कहा.

‘‘पर मां, मेरा तो शलभजी के साथ फिल्म देखने का कार्यक्रम था?’’

‘‘देख बेटी, फिल्म तो कल भी देखी जा सकती है, आंटी सब के साथ आ रही हैं. मेरे सिवा एक तू ही तो है घर में. तू भी चली जाएगी तो कितना बुरा लगेगा उन्हें. ऐसा कर, तू शलभ अंकल को फोन कर के बता दे कि तू नहीं जा पाएगी,’’ मैं ने भीतर की चिढ़ को दबाते हुए प्यार से कहा.

‘‘ठीक है, मां,’’ सौम्या ने अनमने ढंगसे कहा. शाम को मीरा, डाक्टर साहब, अक्षय, अभय सभी आ गए. विनोदी स्वभाव के डाक्टर साहब ने आते ही कहा, ‘‘बीमारी से उठने के बाद तो आप और भी तरोताजा व खूबसूरत लग रही हैं, नेहाजी.’’

‘‘क्यों मेरी सहेली पर नीयत खराब करते हो इस बुढ़ापे में?’’ मीरा ने पति को टोका.

‘‘लो, सारी जवानी तो तुम ने दाएंबाएं देखने नहीं दिया, अब इस बुढ़ापे में तो बख्श दो.’’

उन की इस बात पर जोर का ठहाका लगा.

सौम्या ने भी बड़ी तत्परता और उत्साह से उन सब का स्वागत किया. कौफी, नाश्ता के बाद वह अक्षय और अभय से बातें करने लगी.

मैं ने अक्षय की ओर दृष्टि घुमाई, ‘ऊंचा, लंबा अक्षय, चेहरे पर शालीन मुसकराहट, दंभ का नामोनिशान नहीं, हंसमुख, मिलनसार स्वभाव. सच, सौम्या के साथ कितनी सटीक जोड़ी रहेगी,’ मैं सोचने लगी. डाक्टर साहब और मीरा के साथ बातें करते हुए भी मेरे मन का चोर अक्षय और सौम्या की गतिविधियों पर दृष्टि जमाए बैठा रहा. मैं ने अक्षय की आंखों में सौम्या के लिए प्रशंसा के भाव तैरते देख लिए. मन थोड़ा आश्वस्त तो हुआ, परंतु अभी सौम्या की प्रतिक्रिया देखनी बाकी थी.

बातों के बीच ही सौम्या ने कुशलता से खाना मेज पर लगा दिया. डाक्टर साहब और मीरा तो सौम्या के सलीके से परिचित थे ही, सौम्या के मोहक रूप और दक्षता ने अक्षय पर भी काफी प्रभाव डाला. खुशगवार माहौल में खाना खत्म हुआ तो अक्षय ने कहा, ‘‘आंटी, आप से मिले और आप के हाथ का स्वादिष्ठ खाना खाए बहुत दिन हो गए थे, आज की यह शाम बहुत दिनों तक याद रहेगी.’’

विदा होने तक अक्षय की मुग्ध दृष्टि सौम्या पर टिकी रही. और सौम्या हंसतीबोलती भी बीचबीच में कुछ सोचने सी लगी, मानो बड़ी असमंजस में हो.

चलतेचलते डाक्टर साहब ने मीरा को छेड़ा, ‘‘मैडम, आप सिर्फ खाना ही जानती हैं या खिलाना भी?’’

मीरा ने उन्हें प्यारभरी आंखों से घूरा और झट से मुझे और सौम्या को दूसरे दिन रात के खाने का न्योता दे डाला.

मेरे लिए तो यह मुंहमांगी मुराद थी, अक्षय और सौम्या को समीप करने के लिए. दूसरे दिन जब शलभजी आए तो सौम्या ने कुछ ज्यादा उत्साह नहीं दिखाया. फिल्म के लिए जब उन्होंने पूछा तो उस ने कहा, ‘‘आज मीरा आंटी के यहां जाना है, मां के साथ…इसलिए…’’ उस ने बात अधूरी छोड़ दी.

वे थोड़ी देर बैठने के बाद चले गए. मैं भीतर ही भीतर पुलकित हो उठी. मुझे लगा कि प्रकृति शायद स्वयं सौम्या को समझा रही है और यही मैं चाहती भी थी.

दूसरे दिन शाम को मीरा के यहां जाने के लिए तैयार होने से पहले मैं ने सौम्या से कहा, ‘‘सौम्या, आज तू गुलाबी साड़ी पहन ले.’’

‘‘कौन सी? वह जार्जेट की जरीकिनारे वाली?’’

‘‘हांहां, वही.’’

इस साड़ी के लिए हमेशा ‘नानुकुर’ करने वाली सौम्या ने आज चुपचाप वही साड़ी पहन ली. यह मेरे लिए बहुत आश्चर्य की बात थी. गुलाबी साड़ी में खूबसूरत सौम्या का रूप और भी निखर आया.

न चाहते हुए भी एक बार फिर मेरी दृष्टि उस के ऊपर चली गई. अपलक, ठगी सी कुछ क्षण तक मैं अपनी मोहक, सलोनी बेटी का अप्रतिम, अनुपम, निर्दोष सौंदर्य देखती रह गई.

‘‘चलिए न मां, क्या सोचने लगीं?’’

सौम्या ने ही उबारा था इस स्थिति से मुझे.

मीरा के घर पहुंचतेपहुंचते हलकी सांझ घिर आई थी. डाक्टर साहब, मीरा, अक्षय सभी लौन में ही बैठे थे. अभय शायद अपने किसी दोस्त से मिलने गया था. हम दोनों जब उन के समीप पहुंचे तो सभी की दृष्टि कुछ पल को सौम्या पर स्थिर हो गई.

मैं ने अक्षय की ओर देखा तो पाया कि यंत्रविद्ध सी सम्मोहित उस की आंखें पलक झपकना भूल सौम्या को एकटक निहारे जा रही थीं.

‘‘अरे भई, इन्हें बिठाओगे भी तुम लोग कि खड़ेखड़े ही विदा कर देने का इरादा है?’’ डाक्टर साहब ने सम्मोहन भंग किया.

‘‘अरे हांहां, बैठो नेहा,’’ मीरा ने कहा और फिर हाथ पकड़ अपने पास ही सौम्या को बिठाते हुए मुझ से बोली, ‘‘नेहा, आज मेरी नजर सौम्या को जरूर लगेगी, बहुत ही प्यारी लग रही है.’’

‘‘मेरी भी,’’ डाक्टर साहब ने जोड़ा.

सौम्या शरमा उठी, ‘‘अंकल, क्यों मेरी खिंचाई कर रहे हैं?’’

‘‘इसलिए कि तू और लंबी हो जाए,’’ उन्होंने पट से कहा और जोर से हंस पड़े.

कुछ देर इधरउधर की बातों के बाद मीरा कौफी बनाने उठी थी, पर सौम्या ने तुरंत उन्हें बिठा दिया, ‘‘कौफी मैं बनाती हूं आंटी, आप लोग बातें कीजिए.’’

‘‘हांहां, मैं भी यही चाह रहा था बेटी. इन के हाथ का काढ़ा पीने से बेहतर है, ठंडा पानी पी कर संतोष कर लिया जाए,’’ डाक्टर साहब ने मीरा को तिरछी दृष्टि से देख कर कहा तो हम सभी हंस पड़े. सौम्या उठी तो अक्षय ने तुरंत कहा, ‘‘चलिए, मैं आप की मदद करता हूं.’’

दोनों को साथसाथ जाते देख डाक्टर साहब बोले, ‘‘वाह, कितनी सुंदर जोड़ी है.’’

‘‘सच,’’ मीरा ने समर्थन किया. फिर मुझ से बोली, ‘‘नेहा, सौम्या मुझे और इन्हें बेहद पसंद है और मुझे ऐसा लग रहा है कि अक्षय भी उस से प्रभावित है क्योंकि अभी तक तो शादी के नाम पर छत्तीस बहाने करता था, परंतु कल जब मैं ने सौम्या के लिए पूछा तो मुसकरा कर रह गया. अब अच्छी नौकरी में भी तो आ गया है…मुझे उस की शादी करनी ही है. नेहा, अगर कहे तो अभी मंगनी कर देते हैं. शादी भाईसाहब के आने पर कर देंगे. वैसे तू सौम्या से पूछ ले.’’

हर्ष के अतिरेक से मेरी आंखें भर आईं. मीरा ने मुझे किस मनोस्थिति से उबारा था, इस का रंचमात्र भी आभास नहीं था. भरे गले से मैं उस से बोली, ‘‘मेरी बेटी को इतना अच्छा लड़का मिलेगा मीरा, मैं नहीं जानती थी. उस से क्या पूछूं. अक्षय जैसा लड़का, ऐसे सासससुर और इतना अच्छा परिवार, सच, मुझे तो घरबैठे हीरा मिल गया.’’

‘‘मैं ने भी नहीं सोचा था कि इस बुद्धू अक्षय के हिस्से में ऐसा चांद का टुकड़ा आएगा,’’ मीरा बोली थी.

‘‘और मैं ने तो सपने में भी नहीं सोचा था कि मुझे इतनी हसीन समधिन मिलेगी,’’ डाक्टर साहब ने हंसते हुए कहा तो हम सब एक बार फिर से हंस पड़े.

तभी एकाएक चौंक पड़े थे डाक्टर साहब, ‘‘अरे भई, यह कबूतरों की जोड़ी कौफी उगा रही है

क्या अंदर?’’

तब मैं और मीरा रसोई की तरफ चलीं पर द्वार पर ही ठिठक कर रुक जाना पड़ा. मीरा ने मेरा हाथ धीरे से दबा कर अंदर की ओर इशारा किया तो मैं ने देखा, अंदर गैस पर रखी हुई कौफी उबलउबल कर गिर रही है और सामने अक्षय सौम्या का हाथ थामे हुए धीमे स्वर में कुछ कह रहा है.

सौम्या की बड़ीबड़ी हिरनी की सी आंखें शर्म से झुकी हुई थीं और उस के पतले गुलाबी होंठों पर मीठी प्यारी सी मुसकान थी.

मैं और मीरा धीमे कदमों से बाहर चली आईं. उफनती नदी का चंचल बहाव प्रकृति ने सही दिशा की ओर मोड़ दिया था.

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