शराफत अली बड़ी बेचैनी से कमरे में चहलकदमी कर रहे थे. कभी वे दरवाजे के पास आ कर बाहर की तरफ देखते, तो कभी मोबाइल की घड़ी को. घड़ी की बढ़ती गिनती के साथ उन की चहलकदमी और भी तेज होती जा रही थी.

शराफत अली सोच रहे थे, ‘आखिर अभी तक वे लोग आए क्यों नहीं? मैं ने तो दोपहर में 2 बजे का वक्त दिया था और अब तो 3 बजने वाले हैं. फोन भी नहीं मिल रहा. आखिर ऐसी कौन सी वजह हो सकती है?’

इसी बीच एक टैक्सी तेजी से आ कर उन के दरवाजे के पास रुकी. उस टैक्सी में से एक आदमी और 2 औरतें बाहर निकलीं. टैक्सी वाले को पैसे देने के बाद वे तीनों शराफत अली के घर की तरफ बढ़े.

यह देख कर शराफत अली का चेहरा खिल उठा. वे तेजी से उन लोगों की तरफ लपके. तब तक वे तीनों दरवाजे तक आ चुके थे. शराफत अली ने बढ़ कर हाथ मिलाया और उन्हें अंदरले आए.

‘‘बैठिए, तशरीफ रखिए,’’ शराफत अलीने कहा.

‘‘जी, शुक्रिया. भई, हम लोग थोड़ी देर से आने के लिए माफी चाहते हैं,’’ उस आदमी ने बैठते हुए कहा.

शराफत अली बोले, ‘‘अरे नहीं, इस में माफी की क्या बात है, यह तो सभी के साथ हो जाता है.’’

‘‘माफ कीजिएगा साहब, आज ज्यादा देर तक नहीं रुक सकेंगे, इसलिए हो सके तो जल्द ही बिटिया को बुलवा लीजिए,’’ एक औरत ने कहा.

‘‘हांहां, क्यों नहीं. जैसी आप की मरजी,’’ कहते हुए शराफत अली अंदर चले गए.

जब कुछ देर बाद वे लौटे, तो उन के हाथों में नाश्ते की एक ट्रे थी. उसे

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