फेयरवैल : क्या था श्वेता का वो खास गिफ्ट

शनाया को नए पीजी में कुछ दिन तो थोड़ा अजीब लगा पर अब उसे काफी अच्छा लगने लगा था. चारों लड़कियों प्रीति, रुचि, रागिनी और आईना के साथ उस की बहुत अच्छी बनती थी. बस, श्वेता थोड़ा मूडी थी. वह कभी तो बहुत अच्छा व्यवहार करती, लेकिन कभीकभी बिना वजह छोटी सी बात का बतंगड़ बना देती. रुचि के पास एक कार थी. कभीकभी सभी सहेलियां उसी कार से रात को डिस्को चली जाती थीं.

आज भी अचानक ऐसे ही प्लान बन गया. शनाया पहले कभी रात को घर से बाहर नहीं निकलती थी. मम्मी ने उसे सख्ती से मना किया था. बस, पीजी से औफिस और औफिस से पीजी आनाजाना ही होता था. यही शनाया का रूटीन था, पर इस नए पीजी में आने के बाद शनाया में काफी बदलाव आ गया था. वह अपने लुक्स और पहनावे को ले कर सजग हो रही थी.

वह नएनए डांस स्टैप्स भी सीख रही थी. उस ने सभी लड़कियों को नईनई पत्रिकाएं पढ़ने का शौक लगा दिया था. आज श्वेता का मूड भी काफी अच्छा था. डिस्को जाने के लिए वह हमेशा तैयार रहती थी. डिस्को में बार भी था, जहां श्वेता ने पांचों के लिए बियर और्डर की.

शनाया ने साफ मना कर दिया. बहुत जोर देने पर रुचि और प्रीति ने श्वेता का साथ दिया, पर श्वेता ने थोड़ी देर में एक के बाद एक कई पैग चढ़ा लिए. बड़ी मुश्किल से श्वेता को घर वापस लौटने के लिए मनाया गया.

ये सब शनाया और रागिनी को बिलकुल पसंद नहीं आया. रागिनी ने प्रीति और रुचि को भी समझाया कि अलकोहल लेना गलत है. आगे से ऐसी गलती न करे. अगर श्वेता जिद करती है तो ना कहना सीखे.

ये बातें श्वेता के कानों में भी पड़ीं और इस पर बुरी तरह बहस हुई. श्वेता ने पांचों को खूब बुराभला कहा. खैर, कुछ ही दिन में सब सामान्य हो गया. शनाया ने श्वेता को किसी से फोन पर बात करते हुए सुना था, ‘तुम मेरे लिए एक अच्छा फ्लैट ढूंढ़ दो. यहां तो कंपनी ही बेकार है. पांचों लड़कियां जाहिल हैं.’

शनाया ने बात को बढ़ाना उचित नहीं समझा पर उस की फैमिली के बारे में जरूर पूछा. प्रीति ने बताया कि उस के पिता विधायक हैं. इस से ज्यादा कोई भी नहीं जानता था. वह प्रौपर्टी डीलर के जरिए आ पाई थी. ‘मकानमालिक ने वैरिफिकेशन तो कराया ही होगा,’ पता नहीं क्यों शनाया गहराई से सोच रही थी.

मकानमालिक ने वैसे तो सीसीटीवी कैमरे लगा रखे थे, लेकिन वह लड़कियों को कुछ कहते नहीं थे. वे रहते भी काफी दूर थे. बस, महीने बाद किराया वसूलने आते थे.

एक दिन खुशगवार मौसम देख कर श्वेता ने कुछ निकाला. पैकेट देख कर शनाया समझ गई कि यह ड्रग्स है, ‘‘किसी को ट्राई करना हो तो कर सकता है,’’ श्वेता ने रुचि को कहा.

‘‘यार, यह तो गैरकानूनी है. दिस इस वैरी बैड,’’ शनाया ने कह ही दिया. बस, श्वेता को चुप कराना मुश्किल हो गया. अगले दिन पांचों लड़कियों ने श्वेता से साफसाफ कह दिया, ‘‘देखो श्वेता, अलकोहल तक तो ठीक है लेकिन ये सब हम बरदाश्त नहीं करेंगे. आगे से ऐसा मत करना वरना कहीं और रहने का इंतजाम कर लो.’’

श्वेता ने नया फ्लैट देख लिया था. जाने से पहले पांचों ने श्वेता को फेयरवैल देने की योजना बनाई. केक काटने के बाद सब जम कर नाचे. श्वेता की जिद पर सब ने हलकेहलके पैग लिए. खूब मस्ती कर सब सो गए. अगली सुबह श्वेता अपना सामान ले कर चली गई. मांगने पर भी उस ने उन को एड्रैस नहीं बताया.

अब सबकुछ सामान्य था. शनाया भी काफी खुश रहती थी. अचानक एक दिन एक छोटा सा वीडियो शनाया को किसी ने भेजा. वीडियो देख कर वह स्तब्ध रह गई. वे पांचों हाथों में गिलास ले कर नाच रही थीं. उन के कपड़े भी बेहद अस्तव्यस्त थे. वैसे भी लड़कियों के फ्लैट में कपड़ों का खयाल रखता कौन है. उन के अंग साफ दिख रहे थे.

श्वेता जाहिर है, वीडियो शूट कर रही थी. पांचों लड़कियां जैसे गश खा कर गिरीं लगभग 10-15 दिन रोनेधोने के बाद उन्होंने श्वेता को खोज लिया.

‘‘देखो, किसी फ्रैंड ने यह अपलोड किया है. तुम लोग चाहो तो खुशी से साइबर पुलिस से शिकायत करो,’’ श्वेता बोली. वह बेहद चालाक थी. उस ने साइबर पुलिस को भी बताया कि वह वीडियोज फ्रैंड्स को शेयर करती रहती है. उस का फोन भी हरवक्त उस के पास नहीं रहता. इसलिए कैसे, क्या हुआ, वह नहीं बता कती.

श्वेता तो साफ बच निकली पर इन पांचों को फेयरवैल का गिफ्ट जरूर दे गई. खैर, पांचों ने इस शहर को छोड़ कर अन्य किसी शहर में नौकरी करने में ही अपनी भलाई समझी.

काले धन का नया झांसा

भारत में लोकसभा चुनाव का प्रचार जब अपनी हद पर था तो 6 मई, 2024 को देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हैदराबाद में कहा था, “मैं भ्रष्टाचार से लूटे गए गरीबों के धन को वापस करने के बारे में कानूनी सलाह ले रहा हूं. मेरा ध्यान मेरे लिए इस्तेमाल किए जाने वाले अपशब्दों पर नहीं, बल्कि उन गरीब लोगों पर है, जिन का धन लूटा गया है. इस के लिए कानूनी सलाह ली जा रही है कि वह धन गरीबों को वापस कैसे किया जा सकता है.”

दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह कहते हुए सीधेसीधे यह बात मान ली है कि दुनिया की 5वीं बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के बाद भी देश में इफरात से गरीब और गरीबी है. दूसरी बात यह कि 8 नवंबर, 2016 को नोटबंदी के फैसले के समय नरेंद्र मोदी की ही की गई यह घोषणा भी खोखली निकली कि इस से देश में काला धन खत्म हो जाएगा. इसी से जुड़ी तीसरी अहम बात यह कि 10 साल में काले धन को बंद करने के लिए कुछ नहीं कर पाए हैं, उलटे, यह दिनोंदिन बढ़ ही रहा है. इस के लिए उन्होंने जो कुछ कर रखा है वह अभी किसी को नजर नहीं आएगा. हां, जिस दिन जनता उखाड़ फेंकेगी, उस दिन जोजो सामने आएगा, उस की भी कल्पना हर कोई नहीं कर सकता. चौथी और असल बात यह थी कि 80 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन और दूसरी योजनाओं के जरीए इमदाद देने के बाद भी भाजपा को उम्मीद के मुताबिक वोट और सीटें नहीं मिल रही हैं, इसलिए वोटों के लिए वही लालच दिया जा रहा है जो आज से 10 साल पहले दिया गया था कि देश में इतना काला धन है कि उसे पकड़ कर हरेक के खाते में 15-15 लाख डाल दूंगा.

नरेंद्र मोदी के इस झांसे से लोगों को कोई खास खुशी नहीं हुई, क्योंकि वे एक बार नहीं, बल्कि कई बार ऐसे धोखे पिछले 10 साल में खा चुके हैं.

इत्तिफाक से इसी दिन झारखंड के ग्रामीण विकास मंत्री आलमगीर के पीएस संजीव लाल के नौकर जहांगीर आलम के यहां से तकरीबन 35 करोड़ रुपए की नकदी बरामद हुई थी, जिसे चारा बना कर जनता के सामने उन्होंने पेश किया कि इस पैसे पर पहला हक तुम्हारा है, जो तुम्हें दिया भी जा सकता है, लेकिन इस के लिए जरूरी है कि मुझे तीसरी बार प्रधानमंत्री बनाओ.

अब इस इत्तिफाक में लोग भाजपा सरकार का यह रोल भी देख रहे हैं कि कहीं यह उस का ही कियाधरा तो नहीं. वजह, आजकल सबकुछ मुमकिन है और चुनाव जीतने के लिए नेता किसी भी हद तक जा सकते हैं. यह पैसा ईमान का था या बेईमानी का, इस बारे में भी कोई दावे से कुछ नहीं कह सकता. इस में हैरानी की एकलौती बात यह है कि इसे संभाल कर कमरे में रखा गया था यानी इसे कभी न कभी खर्च किया जाता, जिस से यह बाजार में आता.

मंदिरों में तो जाम है पैसा

जो नकदी झारखंड से बरामद हुई, वह उन पैसों के आगे कुछ नहीं है जो मंदिरों में जाम पड़ा है. तथाकथित भ्रष्टाचार का पैसा अगर गरीबों का है तो मंदिरों में सड़ रहा खरबों रुपया किस का है, प्रधानमंत्री कभी इस पर क्यों नही बोलते? क्या यह पैसा भी लूट का नहीं जो लोकपरलोक सुधारने व मोक्षमुक्ति वगैरह के नाम पर पंडेपुजारियों द्वारा झटका जाता है? यह पैसा क्यों गरीबों में नहीं बांट दिया जाता, जिस के लिए किसी कानूनी सलाह की भी जरूरत नहीं?

गरीबों के लिए दुबलाए जा रहे प्रधानमंत्री चाहें तो एक झटके में देश से गरीबी दूर हो सकती है, उन्हें बस मंदिरों का पैसा गरीबों में बांटे जाने का हुक्म देना भर है, लेकिन वे ऐसा करेंगे नहीं, क्योंकि सत्ता गरीबों के वोट से ही मिलती है. एक दफा लोकतंत्र खत्म हो जाए, संविधान मिट जाए लेकिन गरीबी पर आंच नहीं आनी चाहिए. जवाहरलाल नेहरू से ले कर इंदिरा गांधी और अटल बिहारी वाजपेयी से ले कर मनमोहन सिंह की सरकारों ने भी गरीबी दूर करने की सिर्फ बातें की थीं, गरीबी हटाओ के लुभावने नारे दिए थे, लेकिन इसे दूर करने को कुछ ठोस नहीं किया था. यही नरेंद्र मोदी कर रहे हैं. फंडा बहुत सीधा है कि जब तक धर्म और धर्मस्थल हैं तब तक गरीबी दूर नहीं हो सकती. इन के चलते गरीब निक्कमा, निठल्ला और भाग्यवादी बना रहता है. वह मेहनत भी कामचलाऊ करता है और जब पेट पीठ से चिपकने लगता है तो सरकार अपने गोदामों के शटर उठा देती है जिस से वह भूखा न मरे.

देश के लिए तो वह किसी काम का नहीं, लेकिन धर्म के लिए उसे जिंदा रखा जाता है. वैसे भी मंदिरों के पैसों पर हक भाजपा का ही है, जिसे सलामत रखने की बाबत वह पंडेपुजारियों को पगार और कमीशन देती है, एवज में भगवान के ये एजेंट भाजपा के लिए वोटों की दलाली करते हैं. इन के कोई उसूल नहीं होते. एक वक्त में यही काम ये लोग कांग्रेस के लिए भी करते थे. इन का भगवान सिर्फ बिना मेहनत से आया पैसा होता है जो इन दिनों मोदी सरकार उन्हें दरियादिली से दिला रही है.

जब पैसे वालों को तसल्ली हो जाती है कि गरीब हैं और गरीबी किसी सरकार की देन नहीं, बल्कि इन के पिछले जन्मों के पापों का फल है, तो वह दान की, पूजापाठ की तादाद बढ़ा देता है, ताकि अगले जन्म में वह गरीबी में पैदा न हो.

ऐसे में छापों के पैसों से गरीबी दूर करने का झांसा देना एक बड़ी चालाकी है. बात तो तभी बन सकती है जब मंदिरों के खजानों का मुंह गरीबों के लिए खोल दिया जाए.
देश के मंदिरों के पैसे की थाह लेना आसान नहीं है, लेकिन यह हर कोई जानता है कि उन में अथाह धन है. हाल तो यह है कि एक अकेले तिरुपति के मंदिर की जायदाद से ही गरीबी दूर हो सकती है. कुबेर के इस रईस मंदिर के ट्रस्ट के मुताबिक बैंकों में 16,000 करोड़ रुपए की एफडी हैं, जिन का ब्याज ही करोड़ों में होता है. देशभर में मंदिर ट्रस्ट की 960 प्रापर्टी हैं, जिन की कीमत भी अरबों रुपए में है. मंदिर के पास 11 टन सोना है और तकरीबन ढाई टन सोने के गहने हैं. साल 2022-23 में ही जमा पैसे पर 3,100 करोड़ रुपए ब्याज में मिले थे और रोज करोड़ों का चढ़ावा बदस्तूर आ ही रहा है.

गरीबी तो अकेले तिरुपति के पैसे से ही दूर हो सकती है लेकिन अगर इस में अयोध्या, काशी, शिर्डी, वैष्णो देवी, उज्जैन सहित चारों धामों का भी पैसा मिला दिया जाए तो देश में अमीरों की भरमार हो जाएगी. लेकिन फिर वे भाजपा को वोट नहीं देने वाले, क्योंकि फिर उन्हें धर्म की जरूरत नहीं रह जाएगी और भाजपा को इस के सिवा कुछ और आता नहीं जो पूरे चुनाव प्रचार में मुसलिमों का डर दिखाते रामश्याम और राधेराधे करती रही. उस का मकसद पंडेपुजारियों की आमदनी पक्की करना है.

पब्लिक मीटिंगों में विपक्षियों को कोसते रहना नरेंद्र मोदी की कोई सियासी मजबूरी नहीं, बल्कि चालाकी है कि ये अगर सत्ता में आए तो मुफ्त की तगड़ी कमाई वाला धर्म और मंदिर खत्म कर देंगे, फिर सब बैठ कर चिमटा हिलाते रहना. अगर इस पैसे की इस सनातनी सिस्टम की हिफाजत चाहते हो तो मुझे वोट दो, मैं गरीबी बनाए रखूंगा, यह मेरी गारंटी है.

लू लगने से Shahrukh Khan की बिगड़ी थी तबीयत, अस्पताल में भर्ती हुए थे एक्टर

बौलीवुड के किंग खान कहे जाने वाले एक्टर शाहरुख खान की टीम KKR इन दिनों आईपीएल में खूब अच्छा खेलती नजर आई है. लेकिन इसी बीच शाहरुख के फैंस को एक बड़ा झटका लगा है जी हां, 22 मई को एक्टर अहमदाबाद के केडी अस्पताल में एडमिट हो गए. उनकी अचानक तबीयत खराब हो गई थी. गर्मी से उन्हें डिहाइड्रेशन हो गया था. जिसकी वजह से उन्हे अस्पताल ले जाना पड़ा.

 

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आपको बता दें कि शाहरुख को अस्पताल में भर्ती कराने के तुरंत बाद पत्नी गौरी उनसे मिलने पहुंचीं. साथ ही एक्ट्रेस जूही चावला ने भी दोस्त की खैरियत पूछी. इस घटना से शाहरुख के फैंस को बड़ा झटका लगा है. उनकी चिंताए बढ़ती नजर आई. बता दें KKR और SRH के बीच हुए प्ले-ऑफ मैच के दौरान शाहरुख खान की तबीयत बिगड़ी थीं. उनकी तबीयत तेज गर्मी की वजह से खराब हुई थी. उन्हे हीट स्ट्रोक और डिहाइड्रेशन हुआ था. हालांकि फैंस के लिए और उनके परिवार के लिए राहत की खबर है कि अब उन्हे अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया है.

 

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खबरों की माने तो अब डौक्टरों ने शाहरुख खान को अराम करने की सलाह दी है. वहीं, आईपीएल 2024 का फाइनल 26 मई को है. जहां फाइनल खेलने वालों की टीम में शाहरुख की KKR शामिल है वही, दूसरी तरफ कौन सी टीम खेलेंगी ये अभी देखना बाकी है.

जल्द शुरु होने वाला है ‘ओटीटी बिग बौस 3’, क्या अनिल कपूर करेंगे शो होस्ट?

ओटीटी प्लेटफॉर्म पर शो देखने वालों के लिए अब खुशखबरी है कि लोगों का पसंदीदा शो बिग बौस सीजन 3 जल्द आने वाला है. हाल ही में बिग बौस ओटीटी सीजन 3 का मेकर्स ने टीजर रिलीज किया है. इस प्रोमो में शो के पुराने सीजन की कई मजोदार यादें दिखाई गई है. जिसमें कंटेस्टेंट लड़ते-झगड़ते नजर आ रहे है. वही, टीजर में एक बड़ा हिंट दिया है कि शो के होस्ट इस बार सलमान नहीं बल्कि अनिल कपूर होंगे.

 

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टीवी का कौन्ट्रोवर्शियल शो बिग बौस सीजन 3 दर्शकों के लिए एक बड़ी खबर लेकर आ रहा है इस शो के दो सीजन आ चुके है अब तीसरा सीजन आने वाला है. जिसका होस्ट कौन होगा ये अभी तय नहीं हुआ है. लेकिन टीजर से साफ की इस बार सलमान खान इस शो को होस्ट नहीं करेंगे, खबरों की मानें तो शो के लिए संजय दत्त, करण जौहर, अनिल कपूर के नाम सामने आ रहे है.

शो के इस टीजर के कैप्शन में लिखा गया है, कि ‘ये सीजन होगा खास, एकदम झक्कास.’ वहीं प्रोमो के दौरान बिग बॉस अपनी आवाज में कहते सुनाई दे रहे हैं, ‘ये फाइट भूल जाओगे, ये लव स्टोरी भूल जाओगे, ये वायरल मोमेंट सब भूल जाओगे. बिग बॉस ओटीटी का अगला सीजन देखकर बाकी सब भूल जाओगे. क्योंकि ये सीजन होगा खास. एकदम झक्कास.’ अब लोग ऐसी उम्मीद जताने लगे हैं कि इस सीजन को सलमान की जगह अनिल कपूर होस्ट करने वाले हैं, क्योंकि ‘झक्कास’ अनिल कपूर का खास डायलॉग माना जाता रहा है. अब होस्ट को लेकर लोगों के रिएक्शंस सामने आ रहे हैं.

अब इस टीजर को देख लोग अलगअलग कमेंट करते दिख रहे है. एक ने कहा है, ‘अगर ये सच है कि होस्ट के लिए सलमान की जगह अनिल कपूर होंगे तो समझ लीजिए कि ये शो ऑडियंस को एक वीक भी रोक नहीं पाएगा. क्योंकि सलमान और उनके होस्ट करने का तरीका मजेदार होता है. मुझे नहीं लगता कि ऐसा अनिल कपूर कर सकते हैं.’ एक अन्य यूजर ने कहा, ‘नए सीजन के लिए एक्साइटेड हूं, लेकिन सलमान इस शो के OG हैं और मुझे नहीं लगता कि उन्हें कोई भी रिप्लेस कर सकता है.’

 

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एक दूसरे यजर ने कहा, ‘बहुत ज्यादा एक्साइटेड हूं इसे लेकर, लेकिन अनिल कपूर क्यों, मेरा मतलब है अनिल कपूर क्यों होस्ट करेंगे? मुझे तो सलमान ही चाहिए.’ एक अन्य ने कहा- अनिल कपूर शो होस्ट करेंगे ये अच्छी बात है, लेकिन सलमान खान के बिना इस शो का कोई मतलब ही नहीं. अब देखना ये होगा कि बिग बौस ओटीटी का होस्ट कौन होगा.

और राज खुला : किरन ने क्यों बनाया आटोरिकशा वाला दोस्त

‘‘राजू मेरा नाम है. अक्ल एमए पास है और शक्ल पीएचडी करने के काबिल है,’’ अपने आटोरिकशा की रफ्तार को और तेज करते हुए राजू ने अपना परिचय फिल्मी अंदाज में दिया.

यूनिवर्सिटी के सामने से राजू ने एक खूबसूरत सवारी अपने आटोरिकशा में बैठाई थी. मशरूम कट बाल, आंखों पर नीला चश्मा, गुलाबी टीशर्ट और काली जींस पहने उस सवारी ने उस से यों ही नाम पूछ लिया था.

उस के जवाब में राजू ने अपना दिलचस्प परिचय दिया था.

राजू के जवाब पर वह सवारी मुसकरा दी, ‘‘बड़े दिलचस्प आदमी हो. कितने पढ़ेलिखे हो?’’

‘‘मैं ने इतिहास में एमए किया है. आगे पढ़ने का इरादा है, लेकिन पिताजी की अचानक मौत हो जाने की वजह से घर की गाड़ी में ब्रेक लग गया है. बैंक से कर्ज ले कर यह आटोरिकशा खरीदा है. दिनभर कमाई और रातभर पढ़ाई. बात समझ में आई…’’

‘‘वैरी गुड, कीप इट अप. तुम बहुत होशियार और मेहनती हो. मेरा नाम किरन है,’’ उस सवारी ने राजू की बात से खुश होते हुए कहा.

किरन को साइड मिरर में देख कर राजू ने सोचा, ‘यह जरूर किसी बड़े बाप की औलाद है. एसी में बैठ कर चेहरा गुलाबी हो गया है.’

आटोरिकशा आंचल सिनेमा के पास से गुजरा. उस में एक पुरानी फिल्म ‘मुझ से दोस्ती करोगे’ चल रही थी. किरन ने फिल्म का पोस्टर देख कर कहा, ‘‘मुझ से दोस्ती करोगे?’’

‘‘क्यों नहीं करूंगा. इतिहास गवाह है कि मर्द को अपने दोस्त और अपनी औरत से ज्यादा अजीज कुछ नहीं होता,’’ राजू ने जोश में आ कर कहा.

राजू की बात सुन कर किरन के होंठों पर मुसकराहट तैरने लगी. उस ने तो फिल्म का बस नाम पढ़ा था और राजू ने उस का और ही मतलब निकाल लिया था, पर उस के चेहरे से जाहिर हो रहा था कि उसे इस पढ़ेलिखे आटोरिकशा वाले से दोस्ती करने में कोई एतराज नहीं है.

राजू खुश था. खुशी से उस का चेहरा दमक उठा था. पिछले 6 महीने से वह इस रूट से सवारियां उठाता रहा था, मगर हर कोई उस से तूतड़ाक में ही बात करता था. पहली बार उस के आटोरिकशा में ऐसी सवारी बैठी थी, जिस का दिल भी उसे उतना ही खूबसूरत लगा, जितना कि बदन.

‘‘आप को कहां जाना है, यह तो आप ने बताया ही नहीं?’’ राजू ने पीछे मुड़ कर पूछा.

‘‘पांचबत्ती चौराहा…’’ छोटा सा जवाब देने के बाद किरन ने गला साफ करते हुए पूछा, ‘‘फिल्में देखते हो?’’

‘‘बचपन में खूब देखता था, इसलिए फिल्मों का मुझ पर बहुत ज्यादा असर पड़ा है.’’

तभी आटोरिकशा एक झटके से रुक गया और राजू बोला, ‘‘आप की मंजिल आ गई.’’

‘‘बातोंबातों में समय का पता ही नहीं चला,’’ कह कर किरन ने 20 रुपए का नोट निकाल कर राजू की ओर बढ़ाया.

राजू नोट लेने से इनकार करते हुए बोला, ‘‘दोस्ती इस मुलाकात तक ही थी तो बेशक मैं पैसे ले लूंगा, वरना आप यह नोट वापस अपनी जेब के हवाले कर लें.’’

किरन ने मुसकरा कर राजू को घूरती निगाहों से देखा, जैसे उस की निगाहें यह परख रही हों कि उस ने किसी गलत आदमी को तो अपना दोस्त नहीं बनाया है.

किरन ने नोट वापस जेब में रख लिया और फिर अपना हाथ राजू की तरफ बढ़ाया. राजू ने दोस्त के रूप में किरन का हाथ थाम लिया.

राजू ने महसूस किया कि किरन का हाथ छूते ही उस के दिमाग में अजीब सी तरंगें उठीं. किरन के जाने के 10 मिनट बाद तक राजू वहीं खड़ा रहा.

दूसरे दिन राजू को यूनिवर्सिटी के बाहर किरन के लिए ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ा.

आटोरिकशा में बैठते ही किरन ने कहा, ‘‘राजू, तुम्हें एमए में कितने फीसदी नंबर मिले थे?’’

‘‘64 फीसदी,’’ कहते हुए राजू ने आटोरिकशा स्टार्ट कर साइड मिरर में किरन के चेहरे को देखा.

किरन ने राजू का जोश बढ़ाते हुए कहा, ‘‘फिर तो तुम प्रतियोगी इम्तिहान पास कर के किसी भी कालेज में लैक्चरर बन सकते हो.’’

‘‘दोस्त, अपनी तकदीर खराब है. मेरी तकदीर में तो यह आटोरिकशा चलाना ही लिखा है.’’

‘‘तकदीर, माई फुट… मुझे इन चीजों पर यकीन नहीं है. आदमी अगर पूरी लगन से काम करे तो वह जो चाहता है, पा सकता है,’’ किरन ने राजू को डांट दिया.

राजू और किरन की दोस्ती पक्की हो गई थी. दोनों राजनीति, पढ़ाईलिखाई, फिल्म, दूसरी घटनाओं वगैरह पर खुल कर बातचीत करने लगे थे.

उस दिन रविवार था. राजू सुबहसुबह पांचबत्ती चौराहा पहुंच गया. आज उस की सालगिरह थी और वह उसे किरन के साथ मनाना चाहता था.

चौराहे के दाईं ओर किरन का बंगला था. बेबाक बातें करने में माहिर किरन ने राजू को अपने नाम के अलावा अपनी निजी जिंदगी और परिवार के बारे में कुछ नहीं बताया था.

किरन को बंगले से निकल कर आते देख राजू का चेहरा खिल गया. राजू को खुश देख कर किरन के होंठों पर भी मुसकान उभरी.

किरन के आटोरिकशा में बैठते ही राजू ने म्यूजिक सिस्टम चला दिया. ‘जिंदगी एक सफर है सुहाना…’ गीत ने किरन के चेहरे पर ताजगी ला दी. उस ने राजू से पूछा, ‘‘क्या प्रोग्राम है?’’

‘‘तुम बोलो. जहां चाहो, वहां घुमा दूंगा. अच्छे होटल में खाना खिला दूंगा,’’ राजू ने कहा.

‘‘चलो, शहर में घूमते हैं. फिर दिल ने जो चाहा वही करेंगे. बोलो, मंजूर है?’’ किरन ने कहा.

‘‘आज का पूरा दिन तुम्हारे नाम. जो चाहोगे वही होगा,’’ कह कर राजू ने आटोरिकशा शहर के बाजार के भीड़भाड़ वाले इलाके की ओर मोड़ दिया.

थोड़ी दूर जाने के बाद किरन ने राजू को आटोरिकशा रोकने के लिए कहा. राजू ने आटोरिकशा रोक दिया.

‘‘आज मेरा मूड बहुत खराब है. मुझे तुम्हें कुछ बताना है. एक ऐसा सरप्राइज, जो तुम्हें चौंका देगा,’’ किरन ने आटोरिकशा रुकने के बाद कहा.

‘‘तो बताओ, क्या है सरप्राइज?’’

‘‘ऐसे नहीं, पहले तुम मुझे कुछ खिलाओपिलाओ.’’

‘‘क्या पीना है, कोल्ड डिंक या जूस?’’ राजू ने पूछा.

‘‘शराब पीनी है.’’

‘‘शराब, वह भी दिन में… मैं ने तो कभी शराब को छुआ तक नहीं,’’ राजू ने हैरानी से कहा.

‘‘अभी तो तुम ने मेरी मरजी के मुताबिक दिन बिताने का वादा किया था और फौरन भूल गए,’’ किरन ने कहा.

‘‘ठीक है, चलो,’’ कह कर राजू ने बेमन से आटोरिकशा बाजार की ओर बढ़ा दिया.

शराब का ठेका पास ही था. राजू शराब की बोतल ले आया. साथ में 2 कोल्ड ड्रिंक की बोतलें भी थीं. फिर दोनों सुनसान जगह पर जा पहुंचे. राजू ने वहां आटोरिकशा खड़ा कर दिया.

किरन ने कोल्ड ड्रिंक की दोनों बोतलों को आधा खाली कर के उन में शराब डाल दी. राजू का मन थोड़ा बेचैन सा हो गया, लेकिन वह अपने नए दोस्त को नाराज नहीं करना चाहता था. दोनों शराब पीने लगे.

जैसा कि शराब पीने के बाद पीने वाले का हाल होता है, वही उन दोनों का भी हुआ. किरन को कम, मगर राजू को बहुत नशा चढ़ गया. वह निढाल सा हो कर आटोरिकशा की पिछली सीट पर बैठ गया.

‘‘चलो, अब शहर घूमते हैं. अब आटोरिकशा चलाने का जिम्मा मेरा,’’ कह कर किरन ने आटोरिकशा स्टार्ट कर दिया.

किरन को कार चलानी आती थी, इसलिए आटोरिकशा चलाना उसे बाएं हाथ का खेल लगा. उस ने आटोरिकशा का हैंडिल थाम लिया और भीड़भाड़ वाली सड़क की ओर मोड़ दिया.

नशे के सुरूर में किरन से आटोरिकशा संभल नहीं रहा था, फिर भी उसे चलाने में मजा आने लगा.

बाजार में घुसते ही आटोरिकशा सब्जी के एक ठेले से टकरा गया, फिर आगे बढ़ कर एक साइकिल सवार को ऐसी टक्कर मारी कि वह बेचारा सड़क पर मुंह के बल गिर पड़ा. उस के होंठ व नाक से खून बहने लगा.

वह साइकिल सवार आटोरिकशा चलाने वाले को भलाबुरा कहता, उस से पहले ही सड़क के किनारे एक शोरूम के सामने खड़ी कार से आटोरिकशा टकरा कर बंद हो गया.

नशे की वजह से राजू को कुछ भी पता नहीं लगा. देखते ही देखते वहां लोगों की अच्छीखासी भीड़ जमा हो गई.

‘‘2 थप्पड़ मारो इस को, अभी नशा उतर जाएगा. दूध के दांत भी नहीं टूटे कि शराब पीना शुरू कर दिया,‘‘ भीड़ में से किसी ने कहा.

एक लड़के ने किरन को खींच कर आटोरिकशा से बाहर निकाला और पीटना शुरू किया.

‘‘मुझे मत मारो, मैं…’’ किरन ने डरते हुए कहा. मगर उस की बात किसी ने नहीं सुनी.

तभी 2 पुलिस वाले वहां आ गए. उन्होंने भी लगे हाथ किरन के गालों पर 2 थप्पड़ रसीद कर दिए.

शोरगुल सुन कर नशे में धुत्त राजू उठ खड़ा हुआ. मारपीट देख कर वह घबरा गया. वह किरन को बचाने के लिए भीड़ में घुस गया, मगर भीड़ तो मरनेमारने पर उतारू हो चुकी थी.

‘‘मैं लड़की हूं. मुझ पर हाथ मत उठाओ,’’ किरन ने चीखते हुए कहा.

‘‘अच्छा, खुद को लड़की बता कर पिटने से बचना चाहता है…’’ एक आदमी ने उसे घूंसा मारते हुए कहा.

किरन चेहरेमोहरे और कपड़ों से लड़की नहीं लगती थी. लोगों ने उसे पीटना जारी रखा. राजू भी बीचबचाव में किरन के साथ पिटने लगा.

‘‘मैं लड़की हूं… मुझे छोड़ दो,’’ किरन ने जोर से चिल्लाते हुए अपनी टीशर्ट उतार दी.

किरन के टीशर्ट उतारते ही लोग सकते में आ गए. वे दूर हट कर खड़े हो गए. किरन के कसे हुए ब्लाउज में छाती के उभार उस के लड़की होने का सुबूत दे रहे थे.

यह देख कर राजू का नशा काफूर हो गया. जिसे वह लड़का समझ कर दोस्ती निभा रहा था, वह एक लड़की थी.

यह राज खुलना लोगों के लिए ही नहीं, बल्कि राजू के लिए भी अचरज की बात थी.

अनोखा रिश्ता : क्या रंग लाई एक अनजान से मुलाकात

जयशंकर से गले मिल कर जब मैं अपनी सीट पर जा कर बैठा तो देखा मनीषा दास आंचल से अपनी आंखें पोंछे जा रही थीं. उन के पांव छूते समय ही मेरी आंखें नम हो गई थीं. धीरेधीरे ट्रेन गुवाहाटी स्टेशन से सरकने लगी और मैं डबडबाई आंखों से उन्हें ओझल होता देखता रहा.

इस घटना को 25 वर्ष बीत चुके हैं. इन 25 वर्षों में जयशंकर की मां को मैं ने सैकड़ों पत्र डाले. अपने हर पत्र में मैं गिड़गिड़ाया, पर मुझे अपने एक पत्र का भी जवाब नहीं मिला. मुझे हर बार यही लगता कि श्रीमती दास ने मुझे माफ नहीं किया. बस, यही एक आशा रहरह कर मुझे सांत्वना देती रही कि जयशंकर अपनी मां की सेवा में जीजान से लगा होगा.

मेरे लिए मनीषा दास की निर्ममता न टूटी जिसे मैं ने स्वयं खोया, अपनी एक गलती और एक झूठ की वजह से. इस के बावजूद मैं नियमित रूप से पत्र डालता रहा और उन्हें अपने बारे में सबकुछ बताता रहा कि मैं कहां हूं और क्या कर रहा हूं.

एक जिद मैं ने भी पकड़ ली थी कि जीवन में एक बार मैं श्रीमती दास से जरूर मिल कर रहूंगा. असम छोड़ने के बाद कई शहर मेरे जीवन में आए, बनारस, इलाहाबाद, लखनऊ, दिल्ली, देहरादून फिर मास्को और अंत में बर्लिन. इन 25 वर्षों में मुझ से सैकड़ों लोग टकराए और इन में से कुछ तो मेरी आत्मा तक को छू गए लेकिन मनीषा दास को मैं भूल न सका. वह जब भी खयालों में आतीं  मेरी आंखें नम कर जातीं.

मां की तबीयत खराब चल रही थी. 6 सप्ताह की छुट्टी ले कर भारत आया था. मां को देखने के बाद एक दिन अनायास ही मनीषा दास का खयाल जेहन में आया तो मैं ने गुवाहाटी जाने का फैसला किया और अपने उसी फैसले के तहत आज मैं मां समान मनीषा दास से मिलने जा रहा हूं.

गुवाहाटी मेल अपनी रफ्तार से चल रही थी. मैं वातानुकूलित डब्बे में अपनी सीट पर बैठा सोच रहा था कि यदि श्रीमती दास ने मुझे अपने घर में घुसने नहीं दिया या फिर मुझे पहचानने से इनकार कर दिया तब? इस प्रश्न के साथ ही मैं ने मन में दृढ़ निश्चय कर लिया कि चाहे जो हो पर मैं अपने मन की फांस को निकाल कर ही आऊंगा.

मेरे जेहन में 25 साल पहले की वह घटना साकार रूप लेने लगी जिस अपराधबोध की पीड़ा को मन में दबाए मैं अब तक जी रहा हूं.

मैं गुवाहाटी मेडिकल कालिज में अपना प्रवेश फार्म जमा करवाने गया था. रास्ते में मेरा बटुआ किसी ने निकाल लिया. उसी में मेरे सारे पैसे और रेलवे के क्लौक रूम की रसीद भी थी. इस घटना से मेरी तो टांगें ही कांपने लगीं. मैं सिर पकड़ कर प्लेटफार्म की एक बेंच पर बैठ गया.

इस परदेस में कौन मेरी बातों पर भरोसा करेगा. मुझे कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था. तभी एक लड़का मेरे पास समय पूछने आया. मैं ने अपनी कलाई उस की ओर बढ़ा दी. वह स्टेशन पर किसी को लेने आया था. समय देख कर वह भी मेरे बगल में बैठ गया. थोड़ी देर तक तो वह चुप रहा फिर अपना परिचय दे कर मुझे कुरेदने लगा कि मैं कहां से हूं, गुवाहाटी में क्या कर रहा हूं? मैं ने थोड़े में उसे अपना संकट सुना डाला.

थोड़ी देर की खामोशी के बाद वह बोला, ‘धनबाद का किराया भी तो काफी होगा.’

‘हां, 100 रुपए है.’ यह सुन कर वह बोला कि यह तो अधिक है. पर तुम अपना जी छोटा न करो. मां को आने दो उन से बात करेंगे.

तभी एक ट्रेन आने की घोषणा हुई और वह लड़का बिना मुझ से कुछ कहे उठ गया. उस की बेचैनी मुझ से छिपी न थी. ट्रेन के आते ही प्लेट-फार्म पर ऐसी रेलपेल मची कि वह लड़का मेरी आंखों से ओझल हो गया.

15 मिनट बाद जब प्लेटफार्म से थोड़ी भीड़ छंटी तो मैं ने देखा कि वह लड़का अपनी मां के साथ मेरे सामने खड़ा था. मैं ने उठ कर उन के पांव को छुआ तो उन्होंने धीरे से मेरा सिर सहलाया और बस, इतना ही कहा, ‘जयशंकर बता रहा था कि तुम्हारा सूटकेस क्लौक रूम में है जिस की रसीद तुम गुम कर चुके हो. सूटकेस का रंग तो तुम्हें याद है न.’

मैं उन के साथ क्लौक रूम गया. अपना पता लिखवा कर वह सूटकेस निकलवा लाईं. जयशंकर ने अपनी साइकिल के कैरियर पर मेरा सूटकेस लाद लिया और मैं ने उस की मां का झोला अपने कंधे से लटका लिया. पैदल ही हम घर की तरफ चल पड़े.

आगेआगे जयशंकर एक हाथ से साइकिल का हैंडल और दूसरे से मेरा सूटकेस संभाले चल रहा था, पीछेपीछे मैं और उस की मां. जयशंकर का घर आने का नाम ही न ले रहा था. रास्ते भर उस की मां ने मुझ से एक शब्द तक न कहा, वैसे जयशंकर ने मुझे पहले ही बता दिया था कि मेरी मां सोचती बहुत हैं बोलती बहुत कम हैं. तुम इसे सहज लेना.

रास्ते भर मैं जयशंकर की मां के लिए एक नाम ढूंढ़ता रहा. उन के लिए मिसेज दास से उपयुक्त कोई दूसरा नाम न सूझा.

आखिरकार हम एक छोटी सी बस्ती में पहुंचे, जहां मिसेज दास का घर था, जिस की ईंटों पर प्लास्टर तक न था. देख कर लगता था कि सालों से घर की मरम्मत नहीं हुई है. छत पर दरारें पड़ी हुई थीं. कई जगहों से फर्श भी टूटा हुआ था पर कमरे बेहद साफसुथरे थे. दरवाजों और खिड़कियों पर भी हरे चारखाने के परदे लटक रहे थे. इन 2 कमरों के अलावा एक और छोटा सा कमरा था जिस में घर का राशन बड़े करीने से सजा कर रखा गया था.

मिसेज दास ने मुझे एक तौलिया पकड़ाते हुए हाथमुंह धोने को कहा. जब मैं बाथरूम से बाहर निकला तो संदूक पर एक थाली में कुछ लड्डू और मठरी देखते ही मेरी जान में जान आ गई.

मिसेज दास ने आदेश देते हुए कहा, ‘तुम जयशंकर के साथ थोड़ा नाश्ता कर लो फिर उस के साथ बाजार चले जाना. जो सब्जी तुम्हें अच्छी लगे ले आना. तब तक मैं खाने की तैयारी करती हूं.’

नाश्ता करने के बाद मैं जयशंकर के साथ सब्जी खरीदने के लिए बाजार चला गया. वापस लौटने तक मिसेज दास पूरे बरामदे की सफाई कर के पानी का छिड़काव कर चुकी थीं. दोनों चौकियों पर दरियां बिछी हुई थीं और वह एक गैस के स्टोव पर चावल बना रही थीं. घर वापस आते ही जयशंकर अपनी मां के साथ रसोई में मदद करने लगा और मैं वहीं बरामदे में बैठा अपनी वर्तमान दशा पर सोचता रहा. कब आंख लग गई पता ही न चला.

जयशंकर के बुलाने पर मैं बरामदे से कमरे में पहुंचा और दरी पर पालथी मार कर बैठ गया. मिसेज दास सारा खाना कमरे में ही ले आईं और मेरे सामने अपने पैर पीछे की तरफ मोड़ कर बैठ गईं. जहां हम बैठे थे उस के ऊपर बहुत पुराना एक पंखा घरघरा रहा था. खाने के दौरान ही मिसेज दास ने कहना शुरू किया, ‘बेटा, हम तो गुवाहाटी में बस, अपनी इज्जत ढके बैठे हैं. 100-200 रुपए की सामर्थ्य भी हमारे पास नहीं है. मुझे दीदी को लिखना होगा. पैसे आने में शायद 8-10 दिन लग जाएं. तुम कल सुबह जयशंकर के साथ जा कर अपने घर पर एक टेलीग्राम डाल दो वरना तुम्हारे मातापिता चिंतित होंगे.’

मेरा मन भर आया. सहज होते ही मैं ने उन से कहा, ‘इतने दिनों में तो मेरे घर से भी पैसे आ जाएंगे. आप अपनी दीदी को कुछ न लिखें. मैं तो यह सोच कर परेशान हूं कि 8-10 दिन तक आप पर बोझ बना रहूंगा…’

‘तुम ऐसा क्यों सोचते हो,’ मिसेज दास ने बीच में ही मुझे टोकते हुए कहा, ‘जो रूखासूखा हम खाते हैं तुम्हारे साथ खा लेंगे.’

दूसरे दिन सुबह मैं जयशंकर के साथ पोस्टआफिस गया. मैं ने घर पर एक टेलीग्राम डाल दिया. जब हम वापस आए, मिसेज दास बरामदे में खाना बना रही थीं. मैं ने उन के हाथ पर टेलीग्राम की रसीद और शेष पैसे रख दिए. मैं इस परिवार में कुल 6 दिन रहा था. इन 6 दिन में एक बार मिसेज दास ने मीट बनाया था और एक बार मछली.

एक दिन शाम को जयशंकर ने ही मुझे बताया कि बाबा के गुजरने के बाद मेरे चाचा एक बार मां के पास शादी का प्रस्ताव ले कर आए थे पर मां ने उसे यह कह कर ठुकरा दिया कि मेरे पास जयशंकर है जिसे मैं बस, उस के बाबा के साथ ही बांट सकती हूं और किसी के साथ नहीं. जयशंकर को अगर आप मार्गदर्शन दे सकते हैं तो दें वरना मुझे ही सबकुछ देखना होगा. मैं अपने पति की आड़ में उसे एक ऐसा मनुष्य बनाऊंगी कि उसे दुनिया याद करेगी.

मिसेज दास का असली नाम मनीषा मुखर्जी था और उन के पति का नाम प्रणव दास. जब मैं उन से मिला था तब मेरी उम्र 21 साल की थी और वह 42 वर्ष की थीं. उन के कमरे की मेज पर पति की एक मढ़ी तसवीर थी. मैं अकसर देखता था कि बातचीत के दौरान जबतब उन की नजर अपने पति की तसवीर पर टिक जाती थी, जैसे उन्हें हर बात की सहमति अपने पति से लेनी हो.

यह गुवाहाटी में मेरा तीसरा दिन था. मिसेज दास स्कूल जा चुकी थीं. जयशंकर भी कालिज जा चुका था. मैं घर पर अकेला था सो शहर घूमने निकल पड़ा. घूमतेघूमते स्टेशन तक पहुंच गया. अचानक मेरी नजर एक होटल पर पड़ी, जिस का नाम रायल होटल था. कभी  बचपन में अपने ममेरे भाइयों से सुन रखा था कि बगल वाले गांव के एक बाबू साहब का गुवाहाटी रेलवे स्टेशन के समीप एक होटल है. मैं बाबू साहब से न कभी मिला था और न उन्हें देखा था. मैं तो उन का नाम तक नहीं जानता था. पर मुझे यह पता था कि शाहाबाद जिले के बाबू साहब अपने नाम के पीछे राय लिखते हैं.

होटल वाकई बड़ा शानदार था. मैं ने एक बैरे को रोक कर पूछा, ‘इस होटल के मालिक राय साहब हैं क्या?’

‘हां, हैं तो पर भैया, यहां कोई जगह खाली नहीं है.’

‘मैं यहां कोई काम ढूंढ़ने नहीं आया हूं. तुम उन से जा कर इतना कह दो कि मैं चिलहरी के कौशल किशोर राय का नाती हूं और उन से मिलना चाहता हूं.’

थोड़ी देर बाद वह बैरा मुझे होटल के एक कमरे तक पहुंचा आया, जहां बाबू साहब अपने बेड पर एक सैंडो बनियान और हाफ पैंट पहने नाश्ता कर रहे थे. गले में सोने की एक मोटी चेन पड़ी थी. बड़े अनमने ढंग से उन्होंने मुझ से कुछ पीने को पूछा और उतने ही अनमने ढंग से मेरे नाना का हालचाल पूछा.

मुझे ऐसा लग रहा था कि जग बिहारी राय को बस, एक डर खाए जा रहा था कि कहीं मैं उन से कोई मदद न मांग लूं. अब उस कमरे में 2 मिनट भी बैठना मुझे पहाड़ सा लग रहा था. संक्षेप में मैं अपने ननिहाल का हालचाल बता कर उन्हें कोसता कमरे से बाहर निकल आया.

जयशंकर के पास बस, 2 जोड़ी कपड़े थे. बरामदे के सामने वाले कमरे की मेज उस के पढ़नेलिखने की थी पर उस की साफसफाई मिसेज दास खुद ही करती थीं. मैं उन्हें मां कह कर भी बुला सकता था पर मैं उन की ममता का एक अल्पांश तक न चुराना चाहता था. वैसे तो जयशंकर थोड़े लापरवाह तबीयत का लड़का था पर उसे यह पता था कि उस की मां के सारे सपने उसी से शुरू और उसी पर खत्म होते हैं. मिसेज दास हमारी मसहरी ठीक करने आईं. मैं अभी भी जाग रहा था तो कहने लगीं. ‘नींद नहीं आ रही है?’

‘नहीं, मां के बारे में सोच रहा था.’

‘भूख तो नहीं लगी है, तुम खाना बहुत कम खाते हो.’

मैं उठ कर बैठ गया और बोला, ‘मिसेज दास, मेरा मन घबरा रहा है. मैं आप के कमरे में आऊं?’

‘आओ, मैं अपने और तुम्हारे लिए चाय बनाती हूं.’

फिर मैं उन्हें अपने और अपने परिवार के बारे में रात के एक बजे तक बताता रहा और बारबार उन्हें धनबाद आने का न्योता देता रहा.

अगले दिन गुवाहाटी के गांधी पार्क में मेरी मुलाकात एक बड़े ही रहस्यमय व्यक्ति से हुई. वह सज्जन एक बैंच पर बैठ कर अंगरेजी का कोई अखबार पढ़ रहे थे. मैं भी जा कर उन की बगल में बैठ गया. देखने में वह मुझे बड़े संपन्न से लगे. परिचय के बाद पता चला कि उन का पूरा नाम शिव कुमार शर्मा था. वह देहरादून के रहने वाले थे पर चाय का व्यवसाय दार्जिलिंग में करते थे. व्यापार के सिलसिले में उन का अकसर गुवाहाटी आनाजाना लगा रहता था.

2 दिन पहले जिस ट्रेन में सशस्त्र डकैती पड़ी थी, उस में वह भी आ रहे थे अत: उन्हें अपने सारे सामान से तो हाथ धोना ही पड़ा साथ ही उन के हजारों रुपए भी लूट लिए गए थे. उन्हें कुछ चोटें भी आईं, जिन्हें मैं देख चुका था. डकैतों का तो पता न चल पाया पर एक दक्षिण भारतीय के घर पर उन्हें शरण मिल गई जो गुवाहाटी में एक पेट्रोल पंप का मालिक था.

मैं ने उन की पूरी कहानी तन्मय हो कर सुनी. अब अपने बारे में कुछ बताने में मुझे बड़ी झिझक हुई. यह सोच कर कि जब मैं उन की बातों का विश्वास न कर पाया तो वह भला मेरी बातों का भरोसा क्यों करते? उन्हें बस, इतना ही बताया कि धनबाद से मैं यहां अपने एक दोस्त से मिलने आया हूं.

वह मुझे ले कर एक कैफे में गए जहां हम ने समोसे के साथ कौफी पी.  वहीं उन्होंने मुझे बताया कि जिस दक्षिण भारतीय के घर वह ठहरे हैं वह लखपति आदमी है. मैं घर से बाहर निकला नहीं कि जेब में 200 रुपए जबरन ठूंस देता है.

‘तुम अपने दोस्त से मिलने आए हो?’ उन्होंने पूछा तो मैं ने हां में अपनी गरदन हिला दी.

‘क्या करता है तुम्हारा दोस्त?’

‘बी.एससी. कर रहा है, सर.’

‘उस के मांबाप मालदार हैं?’

‘नहीं, वह विधवा मां का इकलौता बेटा है. मां एक प्राइमरी स्कूल में पढ़ाती हैं. फिर मैं ने उन्हें मिसेज दास के बारे में थोड़ाबहुत संक्षेप में बताया. कैफे के बाहर अचानक शर्माजी ने मुझ से पूछा, ‘आज शाम को तुम क्या कर रहे हो?’

‘कुछ खास नहीं.’

‘तुम 9 बजे के आसपास मुझ से शहर में कहीं मिल सकते हो?’

‘पर कहां? यहां तो मैं पहली बार आया हूं.’

वह कुछ सोचते हुए बोले, ‘ऐसा करो, तुम आज मेरा इंतजार रात के 9 बजे गुवाहाटी स्टेशन के पुल पर करना जो सारे प्लेटफार्मों को जोड़ता है. तुम समय से वहां पहुंच जाना क्योंकि मेरे पास शायद तब उतना समय न होगा कि तुम्हारे  किसी सवाल का जवाब दे सकूं.’

आशंकाओं की धुंध लिए मैं घर वापस आया. मिसेज दास खाना बना रही थीं. जयशंकर उन की मदद कर रहा था. मुझे देखते ही जयशंकर कहने लगा, ‘अगर तुम आने में थोड़ा और देर करते तो मां मुझे तुम्हारी खोज में भेजने वाली थीं. दोपहर का खाना भी तुम ने नहीं खाया.’

मैं माफी मांग कर हाथमुंह धोने चला गया. मेरे दिमाग में बस, एक ही सवाल कुंडली मारे बैठा था कि मिसेज दास को कौन सी कहानी गढ़ के सुनाऊं ताकि वह निश्चिंत हो कर मुझे शर्माजी से मिलने की अनुमति दे दें.

हाथमुंह धो कर मैं बरामदे में आ गया और आ कर चौकी पर चुपचाप बैठ गया. इस शर्मा से मेरा कोई कल्याण होने वाला है, यह भनक तो मुझे थी पर मैं मिसेज दास को कौन सा बहाना गढ़ कर सुनाऊं, यह मेरे दिमाग में उमड़घुमड़ रहा था.

खाने के बाद मैं ने मिसेज दास को अपनी गढ़ी कहानी सुना दी कि आज अचानक शहर में मुझे मेरे ननिहाल का एक आदमी मिला. स्टेशन के पास ही उस का अपना एक निजी होटल है. मुझे उस से मिलने 9 बजे जाना है.

मिसेज दास चौंकीं, ‘इतनी रात में क्यों?’

इस सवाल का जवाब मेरे पास था…‘होटल के कामों में वह दिन भर व्यस्त रहते हैं. उन के पास समय नहीं होता.’

‘ठीक है, तुम जयशंकर को साथ ले कर जाना. वह यहां के बारे में ठीक से जानता है. गुवाहाटी इतना सुरक्षित नहीं है. मैं इतनी रात में तुम्हें अकेले कहीं भी जाने की अनुमति नहीं दे सकती.’

मैं ने इस बारे में पहले सोच लिया था अत: बोला, ‘मिसेज दास, मैं बच्चा थोड़े ही हूं जो आप इतना घबरा रही हैं. हो सकता है कि अगला कुछ खानेपीने को कहे, ऐसे में अच्छा नहीं लगता किसी को बिना आमंत्रण के साथ ले जाना.’

मेरी बात सुन कर मिसेज दास की पेशानी पर बल पड़े पर उन्हें सबकुछ युक्तिसंगत लगा.

‘ठीक है, समय से तैयार हो जाना. मैं एक रिकशा तुम्हारे लिए तय कर दूंगी. वह तुम्हें वापस भी ले आएगा.’

ठीक साढ़े 8 बजे मिसेज दास एक रिकशे वाले को बुला कर लाईं. मैं उस पर बैठ कर स्टेशन की ओर चल पड़ा. स्टेशन के सामने वह मुझे उतार कर बोला, ‘मैं अपना रिकशा स्टैंड पर लगा कर स्टेशन के सामने आप का इंतजार करूंगा.’

9 बजने में अभी 5 मिनट बाकी थे. अंदर से मैं थोड़ा घबरा रहा था. प्लेटफार्मों को जोड़ने वाले पुल पर आधी गुवाहाटी अपने चिथड़ों में लिपटी सो रही थी. घुप अंधेरा था. यह शर्मा कहीं किसी षड्यंत्र में मुझे फंसाने तो नहीं जा रहा, सोचते ही मेरी रीढ़ की हड्डी तक सिहर गई थी. अचानक मुझे पुल पर एक आदमी लगभग भागता हुआ आता दिखा. इस घुप अंधेरे में भी शर्माजी की आंखें मुझे पहचानने में धोखा न खाईं… ‘ये हैं 600 रुपए. इन्हें संभालो और फटाफट अपना रास्ता नाप लो.’

मैं आननफानन में सारे रुपए अपनी जेब में ठूंस कर वहां से चल दिया. बाहर आते ही मेरा रिकशा वाला मुझे मिल गया. मैं ने एक घंटे का समय ले रखा था. हम घर की तरफ वापस लौट पड़े. रास्ते भर पुलिस की सीटियों और चोरचोर पकड़ो का स्वर मेरे कानों में गूंजता रहा.

घर पर मेरी असहजता कोई भी भांप न पाया. मिसेज दास और जयशंकर दोनों जागे हुए थे. बरामदे के सामने रिकशे के रुकते ही दोनों बरामदे में आ गए, ‘क्या हुआ, इतनी जल्दी वापस क्यों आ गए?’

वह बिहारी होटल में था ही नहीं तो मैं उस के नाम एक परची पर यहां का पता लिख कर वापस आ गया. कब तक मैं उस का इंतजार करता. आप भी देर होने पर घबरातीं.

‘चाय पीओगे,’ बड़ी आत्मीयता से मिसेज दास बोलीं.

मैं यह भी नहीं चाहता था कि मिसेज दास मेरी असहजता भांप लें. थकावट का बहाना बना कर बरामदे में आ गया और अपनी चौैकी पर लेट कर एक पतली सी चादर अपने चेहरे तक तान ली. नींद तो मुझे आने से रही.

रात भर बुरेबुरे खयाल तसवीर बन कर मेरी आंखों के सामने आते रहे और एक अनजाने भय से मैं रात भर बस, करवटें ही बदलता रहा. रात में 2-3 बार मिसेज दास मेरी मच्छरदानी ठीक करने आईं. मैं झट अपनी आंखें मूंद लेता था. ये शर्माजी के 600 रुपए अभी तक मेरी दाईं जेब में ठुंसे पड़े थे जिन्हें सहेजने की मेरे पास हिम्मत न थी.

सुबह होते ही रात का भय जाता रहा. रोज की तरह अपनी दिनचर्या शुरू हुई. 10 बजे के बाद मैं अकेला था.

मैं बाहर निकला तो नुक्कड़ पर मुझे वही रिकशे वाला टकरा गया जो स्टेशन ले गया था. उस के रिकशे पर बैठ कर मैं पास के एक बाजार में गया. 2 घंटे की खरीदारी में मिसेज दास के लिए मैं ने एक ऊनी शाल खरीदी और एक जोड़ी ढंग की चप्पल भी.

जयशंकर के लिए एक रेडीमेड पैंट और कमीज खरीदी. इस के अलावा मैं ने तरहतरह की मौसमी सब्जियां, सेब, नारंगी, मिठाइयां और एक किलो रोहू मछली भी खरीदी. इस खरीदारी में 300 रुपए खर्च हो गए पर रास्ते भर मैं बस, यही सोच कर खुश होता रहा कि इतने सारे सामानों को देख कर मिसेज दास और जयशंकर कितने खुश होंगे.

जयशंकर कालिज से वापस घर आया तो सामान का ढेर देखते ही पूछा, ‘बाबा, का पैसा आ गया क्या?’

मैं ने उसे बताया कि मेरे ननिहाल वाला आदमी आया था. जबरदस्ती मेरे हाथ पर 600 रुपए रख गया. मेरे नाना से वापस ले लेगा. तुम मिठाई खाओ न.

जयशंकर बिना कोई प्रतिक्रिया दिखाए अपने कपड़े बदल कर दोपहर का खाना लगाने लगा. मैं उसे कुरेदता रहा पर वह बिना एक शब्द बोले सिर झुकाए खाना खाता रहा.

जब मैं थोड़ा सख्त हुआ तो वह कहने लगा. बस, तुम ने हमारा स्वाभिमान आहत किया है. इतने पैसे खर्च करने से पहले तुम्हें मां से बात कर लेनी चाहिए थी. मां को उपहारों से बड़ी घबराहट होती है.’

मिसेज दास के आने तक घर में एक अजीब सन्नाटा छाया रहा. जयशंकर चुपचाप उदास अपनी पढ़ाईलिखाई की मेज पर जा बैठा और मैं अपना अपराधबोध लिए बरामदे में आ कर चुपचाप तखत पर लेट गया.

करीब साढ़े 4 बजे मिसेज दास आईं और मुझे बरामदे में लेटा देख कर बोलीं, ‘इस गरमी में तुम बरामदे में क्यों लेटे हो? जयशंकर वापस नहीं आया है क्या?’

कमरे से अब सिर्फ जयशंकर की आवाज आ रही थी. वह असमी भाषा में पता नहीं क्याक्या अपनी मां को बताए जा रहा था. मैं अपनेआप को बड़ा उपेक्षित महसूस कर रहा था.

मिसेज दास कमरे से बाहर निकलीं. मैं अपना सिर नीचा किए रोए जा रहा था. उन्होंने बढ़ कर मेरा चेहरा अपने दोनों हाथों में ले कर पेट से लगा लिया और पीठ सहलाने लगीं. फिर अपने आंचल से मेरी आंखें पोंछ कर मुझे कमरे में ले गईं और पीने को एक गिलास पानी दिया. उस के बाद वह सारे सामान को खोल कर देखने लगीं. उन के इशारे पर जयशंकर भी अपने कपड़े नापने उठा. पैंट और कमीज दोनों उस के नाप के थे. शाल और चप्पल भी मिसेज दास को बड़े पसंद आए. वह सब्जियां और मिठाइयां सजासजा कर रखने लगीं. बारबार मुझे बस इतना ही सुनने को मिलता था, ‘इतना क्यों खरीदा? गुवाहाटी के सारे बाजार कल से उठने वाले थे क्या?’

मैं खुश था कि कम से कम घर का तनाव थोड़ा कम तो हुआ.

उस रात खाना खाने के बाद मुझे मिसेज दास ने अपने कमरे में बुलाया. वह चारपाई पर बैठी अपनी चप्पलों को पैर से इधरउधर सरका रही थीं. पास  ही जयशंकर एक कुरसी पर चुपचाप बैठा छत के पंखे को देखे जा रहा था. मिसेज दास ने इशारे से अपने पास बुलाया और मुझे अपने बगल में बैठने को कहा. बड़ा समय लिया उन्होंने अपनी चुप्पी तोड़ने में.

‘जयशंकर बता रहा था कि तुम्हारे परिचित ने तुम्हें आज 600 रुपए दिए थे, यह बताओ कि हम पर तुम ने कितने पैसे खर्च कर डाले?’

‘करीब 300 रुपए.’

‘बाकी के 300 रुपए तो तुम्हारे पास हैं न?’

मैं ने शेष 300 रुपए जेब से निकाल कर उन के सामने रख दिए.

अब मिसेज दास ने अपना फैसला चंद शब्दों में मुझे सुना दिया कि तुम कल सुबह जयशंकर के साथ जा कर धनबाद के लिए किसी भी ट्रेन में अपना आरक्षण करवा लो. तुम्हारी मां घबरा रही होंगी. अपने परिचित का पता मुझे लिखवा दो. जब तुम्हारे बाबा का पैसा आ जाएगा तब मैं जयशंकर के हाथ यह 600 रुपए वापस करवा कर शेष रुपए तुम्हारे बाबा के नाम मनीआर्डर कर दूंगी. तुम्हें हम पर भरोसा तो है न?’

मुझे पता था कि यह मिसेज दास का अंतिम फैसला है और उसे बदला नहीं जा सकता. अपने एक झूठ को छिपाने के लिए मुझे मिसेज दास को एक मनगढ़ंत पता देना ही पड़ा.

दूसरे दिन मुझे एक टे्रन में आरक्षण मिल गया. मेरी टे्रन शाम को 7 बजे थी. मैं बुझे मन से घर वापस लौटा. खाना खाने के बाद मैं मिसेज दास की चारपाई पर लेट गया और मिसेज दास जयशंकर को साथ ले कर मेरी विदाई की तैयारी में लग गईं. वह मेरे रास्ते के लिए जाने क्याक्या पकाती और बांधती रहीं. हर 10 मिनट पर जयशंकर मुझ से चाय के लिए पूछने आता था पर मेरे मन में एक ऐसा शूल फंस गया था जो निकाले न निकल रहा था.

ट्रेन अपने नियत समय पर आई. मैं मिसेज दास के पांव छू कर और जयशंकर के गले मिल कर अपनी सीट पर जा बैठा.

कुछ दिनों के बाद बाबूजी का भेजा रुपया धनबाद के पते पर वापस आ गया. मनीआर्डर पर मात्र मिसेज दास का पता भर लिखा था.

मेरा यह अक्षम्य झूठ 25 वर्षों तक एक नासूर की तरह आएदिन पकता, फूटता और रिसता रहा था.

सोच के इस सिलसिले के बीच जागतेसोते मैं गुवाहाटी आ गया. रिकशा पकड़ कर मैं मिसेज दास के घर की ओर चल दिया. घर के सामने पहुंचा तो उस का नक्शा ही बदला हुआ था. कच्चे बरामदे के आगे एक दीवार और एक लोहे का फाटक लग गया था. छोटे से अहाते में यहांवहां गमले, बरामदे की छत तक फैली बोगनबेलिया की लताएं, एक लिपापुता आकर्षक घर.

मुझे पता था कि मिस्टर दास का अधूरा सपना बस, जयशंकर ही पूरा कर सकता है और उस ने पूरा कर के दिखा भी दिया.

फाटक की कुंडी खटखटाने में मुझे तनिक भी संकोच नहीं हुआ. मैं यहां किसी तरह की कोई उम्मीद ले कर नहीं आया था. बस, मुझे मिसेज दास से एक बार मिलना था. खटका सुन कर वह कमरे से बाहर निकलीं. शायद इन 25 सालों के बाद भी मुझ में कोई बदलाव न आया था.

उन्होंने मुझे देखते ही पहचान लिया. बिना किसी प्रतिक्रिया केझट से फाटक खोला और मुझे गले से लगा कर रोने लग पड़ीं. फिर मेरा चेहरा अपनी आंखों के सामने कर के बोलीं, ‘‘तुम तो बिलकुल अंगरेजों की तरह गोेरे लगते हो.’’

मैं उन के पांव तक न छू पाया. वह मेरा हाथ पकड़ कर घर के अंदर ले गईं. कमरों की साजसज्जा तो साधारण ही थी पर घर की दीवारें, फर्श और छतें सब की मरम्मत हुई पड़ी थी. मिसेज दास रत्ती भर न बदली थीं. न तो उन की ममता में और न उन की सौम्यता में कोई बदलाव आया था. बस, एक बदलाव मैं उन में देख रहा था कि उन के स्वर अब आदेशात्मक न रहे.

मेरे लिए यह बिलकुल अविश्वसनीय था. एम.एससी. करने के बाद जयशंकर अपनी इच्छा से एक करोड़पति की लड़की से शादी कर के डिब्रूगढ़ चला गया था. उस ने मां के साथ अपने सभी संबंध तोड़ डाले, जिस की मुझे सपनों में भी कभी आहट न हुई.

मिसेज दास की बड़ी बहन अब दुनिया में न रहीं. वह अपनी चल और अचल संपत्ति अपनी छोटी बहन के नाम कर गई थीं जो तकरीबन डेढ़ लाख रुपए की थी. जिस का एक भाग उन्होंने अपने घर की मरम्मत में लगाया और बाकी के सूद और अपनी सीमित पेंशन से अपना जीवन निर्वाह एक तरह से सम्मानित ढंग से कर रही थीं.

अब वह मेरे लिए मिसेज दास न थीं. मैं उन्हें खुश करने के लिए बोला, ‘‘मां, आप के हाथ की बनी रोहू मछली खाने का मन कर रहा है.’’

यह सुनते ही उन की आंखों से सावनभादों की बरसात शुरू हो गई. वह एक अलमारी में से मेरी चिट्ठियों का पूरा पुलिंदा ही उठा लाईं और बोलीं, ‘‘तुम्हारी एकएक चिट्ठी मैं अनगिनत बार पढ़ चुकी हूं. कई बार सोचा कि तुम्हें जवाब लिखूं पर शंकर मुझे बिलकुल तोड़ गया, बेटा. जब मेरी अपनी कोख का जन्मा बेटा मेरा सगा न रहा तो तुम पर मैं कौन सी आस रखती? फिर भी एक प्रश्न मैं तुम से हमेशा ही पूछना चाहती थी.’’

‘‘कौन सा प्रश्न, मां?’’

‘‘तुम्हें वह 600 रुपए मिले कहां से थे?’’

अब मुझे उन्हें सबकुछ साफसाफ बताना पड़ा.

सबकुछ सुनने के बाद उन्होंने मुझ से पूछा, ‘‘और एक बार भी तुम्हारा मन तुम्हें पैसे पकड़ने से पहले न धिक्कारा?’’

‘‘नहीं, क्योंकि मुझेअपने मन की चिंता न थी. मुझे आप के अभाव खलते थे पर अगर मुझे उन दिनों यह पता होता कि मैं अपने उपहारों के बदले आप को खो दूंगा तो मैं उन पैसों को कभी न पकड़ता. आप से कभी झूठ न बोलता. आप का अभाव मुझे अपने जीवन में अपनी मां से भी अधिक खला.’’

मिसेज दास चुपचाप उठीं और अपने संदूक से एक खुद का बुना शाल अपने कंधे पर डाल कर वापस आईं.

‘‘आओ, बाजार चलते हैं. तुम्हें मछली खानी है न. मेरे साथ 1-2 दिन तो रहोगे न, कितने दिन की छुट्टी है?’’

मैं उन के साथ 4 दिन तक रहा और उन की ममता की बौछार में अकेला नहाता रहा.

5वें दिन सुबह से शाम तक वह अपने चौके में मेरे रास्ते के लिए खाना बनाती रहीं और मुझे स्टेशन भी छोड़ने आईं. पूरे दिन उन से एक शब्द भी न बोला गया. बात शुरू करने से पहले ही उन का गला रुंध जाता था.

अब जब भी बर्लिन में मुझे उन की चिट्ठी मिलती है तो मैं अपना सारा घर सिर पर उठा लेता हूं. कई दिनों तक उन के पत्र का एकएक शब्द मेरे दिमाग में गूंजता रहता है, विशेषकर पत्र के अंत में लिखा उन का यह शब्द ‘तुम्हारी मां मनीषा.’

मैं उन्हें जब पत्र लिखने बैठता हूं अनायास मेरी भाषा बच्चों जैसी नटखट  हो जाती है. मेरी उम्र घट जाती है. मुझे अपने आसपास कोहरे या बादल नजर नहीं आते. बस, उन का सौम्य चेहरा ही मुझे हर तरफ नजर आता है.

वह लड़की: आखिर गुमसुम क्यों थी दीपाली

दीपाली की याद आते ही आंखों के सामने एक सुंदर और हंसमुख चेहरा आ जाता है. गोल सा गोरा चेहरा, सुंदर नैननक्श, माथे पर बड़ी सी लाल बिंदी और होंठों पर सदा रहने वाली हंसी.

असम आए कुछ ही दिन हुए थे. शहर से बाहर बनी हुई उस सरकारी कालोनी में मेरा मन नहीं लगता था. अभी आसपड़ोस में भी किसी से इतना परिचय नहीं हुआ था कि उन के यहां जा कर बैठा जा सके.

एक दोपहर आंख लगी ही थी कि दरवाजे की घंटी बजी. मैं ने कुछ खिन्न हो कर दरवाजा खोला तो सामने एक सुंदर और स्मार्ट सी असमी युवती खड़ी थी. हाथ में बड़ा सा बैग, आंखों पर चढ़ा धूप का चश्मा, माथे पर बड़ी सी लाल बिंदी. इस से पहले कि मैं कुछ पूछती, वह बड़े ही अपनेपन से मुसकराती हुई भीतर की ओर बढ़ी.

कुरसी पर बैठते हुए उस ने कहा, ‘‘आप नया आया है न?’’ तो मैं चौंकी फिर उस के बाद जो भी हिंदीअसमी मिश्रित वाक्य उस ने कहे वह बिलकुल भी मेरे पल्ले नहीं पड़े. लेकिन उस का व्यक्तित्व इतना मोहक था कि उस से बातें करना हमेशा अच्छा लगता था. उस की बातें सुन कर मैं ने पूछा, ‘‘आप सूट सिलती हैं?’’

‘‘हां, हां,’’ वह उत्साह से बोली तो एक सूट का कपड़ा मैं ने ला कर उसे दे दिया.

‘‘अगला वीक में देगा,’’ कह कर वह चली गई.

यही थी दीपाली से मेरी पहली मुलाकात. पहली ही मुलाकात में उस से एक अपनेपन का रिश्ता जुड़ गया. उस से मिल कर लगा कि पता नहीं कब से उसे जानती थी. यह दीपाली के व्यवहार, व्यक्तित्व का ही असर था कि पहली मुलाकात में बिना उस का नामपता पूछे और बिना रसीद मांगे हुए ही मैं ने अपना महंगा सूट उसे थमा दिया था. आज तक किसी अजनबी पर इतना विश्वास पहले नहीं किया था.

वह तो मीरा ने बाद में बताया कि उस का नाम दीपाली है और वह एक सेल्सगर्ल है. कितना सजधज कर आती है न. कालोनी की औरतों को दोगुने दाम में सामान बेच कर जाती है. मैं तो उसे दरवाजे से ही विदा कर देती हूं. दीपाली के बारे में ज्यादातर औरतों की यही राय थी.

मैं ने कभी दीपाली को मेकअप किए हुए नहीं देखा. सिर्फ एक लाल बिंदी लगाने पर भी उस का चेहरा दमकता रहता था. उस का हर वक्त खिल- खिलाना, हर किसी से बेझिझक बातें करना और व्यवहार में खुलापन कई लोगों को शायद खलता था. पर मस्तमौला सी दीपाली मुझे भा गई और जल्द ही वह भी मुझ से घुलमिल गई.

उस के स्वभाव में एक साफगोई थी. उस का मन साफ था. जितना अपनापन उस ने मुझ से पाया उस से कई गुना प्यार व स्नेह उस ने मुझे दिया भी.

‘आप इतना सिंपल क्यों रहता है?’ दीपाली अकसर मुझ से पूछती. काफी कोशिश करने पर भी मैं स्त्रीलिंगपुल्ंिलग का भेद उसे नहीं समझा पाई थी, ‘कालोनी में सब लेडीज लोग कितना मेकअप करता है, रोज क्लब में जाता है. मेरे से कितना मेकअप का सामान खरीदता है.’

अकसर लेडीज क्लब की ओर जाती महिलाओं के काफिले को अपनी बालकनी से मैं भी देखती थी. मेकअप से लिपीपुती, खुशबू के भभके छोड़ती उन औरतों को देख कर मैं सोचती कि कैसे सुबह 10 बजे तक इन का काम निबट गया होगा, खाना बन गया होगा और ये खुद कैसे तैयार हो गई होंगी.

दीपाली ने एक बार बताया था, ‘आप नहीं जानता. ये लेडीज लोग सब अच्छाअच्छा साड़ी पहन कर, मेकअप कर के क्लब चला जाता है और पीछे सारा घर गंदा पड़ा रहता है. 1 बजे आ कर जैसेतैसे खाना बना कर अपने मिस्टर लोगोें को खिलाता है. 4 नंबर वाली का बेटाबेटी मम्मी के जाने के बाद गंदी पिक्चर देखता है.’

मुझे दीपाली का इंतजार रहता था. मैं उस से बहुत ही कम सामान खरीदती फिर भी वह हमेशा आती. उसे हमारा खाना पसंद आता था और जबतब वह भी कुछ न कुछ असमी व्यंजन मेरे लिए लाती, जिस में से चावल की बनी मिठाई ‘पीठा’  मुझे खासतौर पर पसंद थी. मैं उसे कुछ हिंदी वाक्य सिखाती और कुछ असमी शब्द मैं ने भी उस से सीखे थे. अपनी मीठी आवाज में वह कभी कोई असमी गीत सुनाती तो मैं मंत्रमुग्ध हो सुनती रह जाती.

हमेशा हंसतीमुसकराती दीपाली उस दिन गुमसुम सी लगी. पूछा तो बोली, ‘जानू का तबीयत ठीक नहीं है, वह देख नहीं सकता,’ और कहतेकहते उस की आंखों में आंसू आ गए. जानू उस के बेटे का नाम था. मैं अवाक् रह गई. उस के ठहाकों के पीछे कितने आंसू छिपे थे. मेरे बच्चों को मामूली बुखार भी हो जाए तो मैं अधमरी सी हो जाती थी. बेटे की आंखों का अंधेरा जिस मां के कलेजे को हरदम कचोटता हो वह कैसे हरदम हंस सकती है.

मेरी आंखों से चुपचाप ढलक कर जब बूंदें मेरे हाथों पर गिरीं तो मैं चौंक पड़ी. मैं देर तक उस का हाथ पकड़े बैठी रही. रो कर कुछ मन हलका हुआ तो दीपाली संभली, ‘मैं कभी किसी के आगे रोता नहीं है पर आप तो मेरा अपना है न.’

मेरे बहुत आग्रह पर दीपाली एक दिन जानू को मेरे घर लाई थी. दीपाली की स्कूटी की आवाज सुन मैं बालकनी में आ गई. देखा तो दीपाली की पीठ से चिपका एक गोरा सुंदर सा लगभग 8 साल का लड़का बैठा था.

‘दीपाली, उस का हाथ पकड़ो,’ मैं चिल्लाई पर दीपाली मुसकराती हुई सीढि़यों की ओर बढ़ी. जानू रेलिंग थामे ऐसे फटाफट ऊपर चला आया जैसे सबकुछ दिख रहा हो.

‘यह कपड़ा भी अपनी पसंद का पहनता है, छू कर पहचान जाता है,’ दीपाली ने बताया.

‘जानू,’ मैं ने हाथ थाम कर पुकारा.

‘यह सुन भी नहीं पाता है ठीक से और बोल भी नहीं पाता है,’ दीपाली ने बताया.

वह बहुत प्यारा बच्चा था. देख कर कोई कह ही नहीं सकता कि उसमें इतनी कमियां हैं. जानू सोफा टटोल कर बैठ गया. वह कभी सोफे पर खड़ा हो जाता तो कभी पैर ऊपर कर के लेट जाता.

‘आप डरो मत, वह गिरेगा नहीं,’ दीपाली मुझे चिंतित देख हंसी. सचमुच सारे घर में घूमने के बाद भी जानू न गिरा न किसी चीज से टकराया.

जाते समय जानू को मैं ने गले लगाया तो वह उछल कर गोद में चढ़ गया. उस बेजबान ने मेरे प्यार को जैसे मेरे स्पर्श से महसूस कर लिया था. मेरी आंखें भर आईं. दीपाली ने उसे मेरी गोद से उतारा तो वह वैसे ही रेलिंग थामे सहजता से सीढि़यां उतर कर नीचे चला गया. दीपाली ने स्कूटी स्टार्ट की तो जा कर उस पर चढ़ गया और दोनों हाथों से मां की कमर जकड़ कर बैठ गया.

‘अब घर जा कर ही मुझे छोड़ेगा,’ दीपाली हंस कर बोली और चली गई.

मैं दीपाली के बारे में सोचने लगी. घंटे भर तक उस बच्चे को देख कर मेरा तो जैसे कलेजा ही फट गया था. हरदम उसे पास पा कर उस मां पर क्या गुजरती होगी, जिस के सीने पर इतना बोझ धरा हो. वह इतना हंस कैसे सकती है. जब दर्द लाइलाज हो तो फिर उसे चाहे हंस कर या रो कर सहना तो पड़ता ही है. दीपाली हंस कर इसे झेल रही थी. अचानक दीपाली का कद मेरी नजरों में ऊपर उठ गया.

एक दिन सुबहसुबह दीपाली आई. मेखला चादर में बहुत जंच रही थी. ‘आप हमेशा ऐसे ही अच्छी तरह तैयार हो कर क्यों नहीं आती हो?’ मैं ने प्रशंसा करते हुए कहा. इस पर दीपाली ने खुल कर ठहाका लगाया और बोली, ‘सजधज कर आएगा तो लेडीज लोग घर में नहीं घुसने देगा. उन का मिस्टर लोग मेरे को देखेगी न.’

मुझे तब मीरा की कही बात याद आई कि दीपाली के व्यक्तित्व में कुछ ऐसा था जो औरतों में ईर्ष्या जगाता था.

‘मैं भाग कर शादी किया था. मैं ऊंचा जात का था न अपना आदमी से. घर वाला लोग मानता नहीं था,’ दीपाली कभीकभी अपनी प्रेम कथा सुनाती थी.

जहां कालोनी में मेरी एकदो महिलाओं से ही मित्रता थी वहां दीपाली के साथ मेरी घनिष्ठता सब की हैरानी का सबब थी. जानू हमारे घर आता तो पड़ोसियों के लिए कौतूहल का विषय होता. एक स्थानीय असमी महिला से प्रगाढ़ता मेरे परिचितों के लिए आश्चर्यजनक बात थी.

जब दीपाली को पता चला कि हमारा ट्रांसफर हो गया है तो कई दिनों पहले से ही उस का रोना शुरू हो गया था, ‘आप चला जाएगा तो मैं क्या करेगा. आप जैसा कोई कहां मिलेगा,’ कहतेकहते वह रोने लगती. दीपाली जैसी सहृदय महिला के लिए हंसना जितना सरल था रोना भी उतना ही सहज था. दुख मुझे भी बहुत होता पर अपनी भावनाएं खुल कर जताना मेरा स्वभाव नहीं था.

आते समय दीपाली से न मिल पाने का अफसोस मुझे जिंदगी भर रहेगा. हमें सोमवार को आना था पर किन्हीं कारणवश हमें एक दिन पहले आना पड़ा. अचानक कार्यक्रम बदला. दोपहर में हमारी फ्लाइट थी. मैं सुबह से दीपाली के घर फोन करती रही. घंटी बजती  रही पर किसी ने फोन उठाया नहीं, शायद फोन खराब था. मैं जाने तक उस का इंतजार करती रही पर वह नहीं आई. भरे मन से मैं एअरपोर्ट की ओर रवाना हुई थी.

बाद में मीरा ने फोन पर बताया था कि दीपाली सोमवार को आई थी और हमारे जाने की बात सुन कर फूटफूट कर रोती रही थी. वह मुझे देने के लिए बहुत सी चीजें लाई थी, जिस में मेरा मनपसंद ‘पीठा’ भी था.

मैं ने कई बार फोन किया पर वह फोन शायद अब तक खराब पड़ा है. पत्र वह भेज नहीं सकती थी क्योंकि उसे न हिंदी लिखनी आती है न अंगरेजी और असमी भाषा मैं नहीं समझ पाती.

दीपाली का मेरी जिंदगी में एक खास मुकाम है क्योंकि उस से मैं ने हमेशा जीने की, मुसकराने की प्रेरणा पाई है. हमारे शहरों में बहुत ज्यादा दूरियां हैं पर अब भी वह मेरे दिल के बहुत करीब है और हमेशा रहेगी.

पति के एक रिश्तेदार अजीब नजरों से मुझे देखते हैं और छूने की भी कोशिश हैं, मैं क्या करूं?

सवाल
मेरे पति के एक दूर के रिश्तेदार का हमारे घर में काफी आनाजाना है. वे मेरे पति के काफी करीब हैं. और वक्तबेवक्त कभी भी आ धमकते हैं. कई बार मुझे उन का रवैया सही नहीं लगता. वे कुछ अजीब नजरों से मेरी तरफ देखते हैं और कई दफा जबरन मुझे स्पर्श करने का प्रयास भी करते हैं. मैं पति से कुछ कह नहीं पाती यह सोच कर कि पता नहीं वे क्या सोचेंगे. 1-2 बार तो ऐसा मौका भी आया जब वे उस वक्त आ पहुंचे जब पति औफिस में और ससुरजी बाहर होते हैं, मैं घर में अकेली होती हूं. मुझे बहुत डर लगता है.

जवाब
डरने या घबराने की कोई बात नहीं है. आप को सब से पहले अपने पति से ये सारी बातें शेयर करनी चाहिए. पति से कहें कि वे उस रिश्तेदार को ताकीद कर दें कि फोन करने के बाद ही वे आप के घर आया करें. पति घर में न हों तो आप स्वयं कोई बहाना बना कर उन्हें दरवाजे से ही वापस भेज सकती हैं. उस रिश्तेदार से किसी भी तरह दूरी बढ़ा लें ताकि वह अकसर आ कर आप को परेशान न करे. सिर्फ पति से ही नहीं, अपने ससुर से भी इस बारे में चर्चा जरूर करें.

धर्म बना देता है लोगों को गुलाम

सुप्रीम कोर्ट चाहे लाख कह ले कि हर वयस्क को प्रेम व विवाह का मौलिक अधिकार है और किसी बजरंगी, किसी खाप, किसी सामाजिक या धार्मिक गुंडे को हक नहीं कि इस अधिकार को छीने, मगर असल में धार्मिक संस्थाएं विवाह के बीच बिचौलिए का हक कभी नहीं छोड़ेंगी. विवाह धर्म की लूट का वह नटबोल्ट है जिस पर धर्म का प्रपंच और पाखंड टिका है और इस में किसी तरह का कंप्रोमाइज कोई भी धर्म नहीं सहेगा, सुप्रीम कोर्ट चाहे जो कहे.

जो भी धर्म के आदेश के खिलाफ जा कर शादी करेगा, सजा सिर्फ उसे ही नहीं, बल्कि पूरे परिवार और रिश्तेदारों को भी मिलेगी. सब को कह दिया जाएगा कि इस परिवार से कोई संबंध न रखो. कोई पंडित, मुल्ला, पादरी शादीब्याह न कराएगा. श्मशान में जगह नहीं मिलेगी, लोग किराए पर मकान नहीं देंगे, नौकरी नहीं मिलेगी.

धर्म का जगव्यापी असर है. जब लोग 7 समंदर पार रहते हुए भी कुंडली मिलान के बाद विवाह करते हों, गोरों व कालों की कुंडली भी बनवा लेते हों ताकि सिद्ध किया जा सके कि धर्म, रंग और नागरिकता अलग होने के बावजूद विवाह विधिविधान से हुआ है, तो क्या किया जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट की फुसफुसाहट हिंदुत्व के नगाड़ों के बीच खो जाएगी.

पारंपरिक शादियां चलती हैं, तो इसलिए कि शादी चलाना पतिपत्नी के लिए जरूरी होता है, उन का कुंडली, जाति, गोत्र, सपिंड, धर्म से कोई मतलब नहीं होता. शादी दिलों का व्यावहारिक समझौता है. एकदूसरे पर निर्भरता तो प्राकृतिक जरूरत है ही, सामाजिक सुरक्षा के लिए भी जरूरी है और इस के लिए किसी धर्मगुरु के आदेश की जरूरत नहीं. यदि प्यार हो, इसरार हो, इकरार हो, इज्जत हो तो कोई भी शादी सफल हो जाती है. बच्चे मातापिता पर अपनी निर्भरता जता कर किसी भी बंधन को, शादी को ऐसे गोंद से जोड़ देते हैं कि सुप्रीम कोर्ट, कानून या कुंडली की जरूरत नहीं.

कुंडली, जाति, गोत्र, सपिंड के प्रपंच पंडितों ने जोड़े हैं, ये धर्म की देन हैं, प्राकृतिक या वैज्ञानिक नहीं. शादी ऐसा व्यक्तिगत कृत्य है जो व्यक्ति के जीवन को बदल देता है और धर्म इस अवसर पर मास्टर औफ सेरिमनीज नहीं मास्टर परमिट गिवर बन कर पतिपत्नी को जीवन भर का गुलाम बना लेता है.

शादी में धर्म शामिल है, तो बच्चे होने पर उसे बुलाया जाएगा और तभी उसे धर्म में जोड़ लिया जाएगा ताकि वह मरने तक धर्म के दुकानदारों के सामने इजाजतों के लिए खड़ा रहे.

विधर्मी से विवाह पर धर्म का रोष यही होता है कि एक ग्राहक कम हो गया है. चूंकि दूसरे धर्म का ग्राहक भी कम होता है, दोनों धर्मों के लोग एकत्र हो कर इस तरह के विवाह का विरोध करते हैं. आमतौर पर शांति व सुरक्षा तभी मिलती है जब पति या पत्नी में से एक धर्म परिवर्तन को तैयार हो.

अगर उसी धर्म में गोत्र या सपिंड का अंतर भुला कर शादी हो रही हो तो धर्म के दुकानदारों के लिए दोनों को मार डालने के अलावा कोई चारा नहीं होता. शहरों में तो यह संभव नहीं होता पर गांवों में इसे चलाना आसान है, संभव है और लागू करा जा सकता है.

सुप्रीम कोर्ट चाहे जितना कह ले, जब तक देश में धर्म के दुकानदारों का राज है और आज तो राज ही वे कर रहे हैं, सुप्रीम कोर्ट का आदेश केवल नरेंद्र मोदी के अच्छे दिन आ चुके हैं, जैसा है.

सैक्स से जुड़ी बीमारियां : शरमाना मना है

यौनजनित एलर्जी एवं रोगों का पता नहीं चल पाता, क्योंकि यह थोड़ा निजी सा मामला है. इस बारे में बात करने में लोग झिझकते हैं और अकसर चिकित्सक या परिजनों को भी नहीं बताते. जहां यौन संसर्ग से होने वाले रोग (एसटीडी) कुछ खास विषाणु एवं जीवाणु के कारण होते हैं, वहीं यौनक्रिया से होने वाली एलर्जी लेटेक्स कंडोम के कारण हो सकती है. अन्य कारण भी हो सकते हैं, परंतु लेटैक्स एक प्रमुख वजह है.

यौन संसर्ग से होने वाले रोग

एसटीडीज वे संक्रमण हैं जो किसी संक्रमित व्यक्ति के साथ यौन संसर्ग करने पर फैलते हैं. ये रोग योनि अथवा अन्य प्रकार के सैक्स के जरिए फैलते हैं, जिन में मुख एवं गुदा मैथुन भी शामिल हैं. एसटीडी रोग एचआईवी वायरस, हेपेटाइटिस बी, हर्पीज कौंपलैक्स एवं ह्यूमन पैपिलोमा वायरस (एचपीवी) जैसे विषाणुओं या गोनोरिया, क्लेमिडिया एवं सिफलिस जैसे जीवाणु के कारण हो सकते हैं.

इस तरह के रोगों का खतरा उन लोगों को अधिक रहता है जो अनेक व्यक्तियों के साथ सैक्स करते हैं, या फिर जो सैक्स के समय बचाव के साधनों का प्रयोग नहीं करते हैं.

कैंकरौयड : यह रोग त्वचा के संपर्क से होता है और अकसर पुरुषों को प्रभावित करता है. इस के होने पर लिंग एवं अन्य यौनांगों पर दाने व दर्दकारी घाव हो जाते हैं. इन्हें एंटीबायोटिक्स से ठीक किया जा सकता है और अनदेखा करने पर इन के घातक परिणाम हो सकते हैं. कंडोम का प्रयोग करने पर इस रोग के होने की आशंका बहुत कम हो जाती है.

क्लैमाइडिया : यह अकसर और तेजी से फैलने वाला संक्रमण है. यह ज्यादातर महिलाओं को होता है और इलाज न होने पर इस के दुष्परिणाम भी हो सकते हैं. इस के लक्षण स्पष्ट नहीं होते, परंतु कुछ मामलों में योनि से असामान्य स्राव होने लगता है या मूत्र त्यागने में कष्ट होता है. यदि समय पर पता न चले तो यह रोग आगे चल कर गर्भाशय, फैलोपियन ट्यूब या पूरी प्रजनन प्रणाली को ही क्षतिग्रस्त कर सकता है, जिस से बांझपन की समस्या हो सकती है.

क्रेब्स (प्यूबिक लाइस) : प्यूबिक लाइस सूक्ष्म परजीवी होते हैं जो जननांगों के बालों और त्वचा में पाए जाते हैं. ये खुजली, जलन, हलका ज्वर पैदा कर सकते हैं और कभीकभी इन के कोई लक्षण सामने नहीं भी आते. कई बार ये जूं जैसे या इन के सफेद अंडे जैसे नजर आ जाते हैं. कंडोम का प्रयोग करने पर भी इन जुंओं को रोका नहीं जा सकता, इसलिए बेहतर यही है कि एक सुरक्षित एवं स्थायी साथी के साथ ही यौन संसर्ग किया जाए. दवाइयों से यह समस्या दूर हो जाती है.

गोनोरिया :

यह एक तेजी से फैलने वाला एसटीडी रोग है और 24 वर्ष से कम आयु के युवाओं को अकसर अपनी चपेट में लेता है. पुरुषों में मूत्र त्यागते समय गोनोरिया के कारण जलन महसूस हो सकती है, लिंग से असामान्य द्रव्य का स्राव हो सकता है, या अंडकोशों में दर्द हो सकता है. जबकि महिलाओं में इस के लक्षण स्पष्ट नहीं होते. यदि इस की चिकित्सा समय से न की जाए, तो जननांगों या गले में संक्रमण हो सकता है. इस से फैलोपियन ट्यूब्स को क्षति भी पहुंच सकती है जो बांझपन का कारण बन सकती है.

हर्पीज :

यह रोग यौन संसर्ग अथवा सामान्य संपर्क से भी हो सकता है. मुख हर्पीज में मुंह के अंदर या होंठों पर छाले या घाव हो सकता है. जननांगों के हेर्पेस में जलन, फुंसी हो सकती है या मूत्र त्याग के समय असुविधा हो सकती है. यद्यपि दवाओं से इस के लक्षण दबाए जा सकते हैं, लेकिन इस का कोई स्थायी इलाज मौजूद नहीं है.

एचआईवी या एड्स :

ह्यूमन इम्यूनोडैफिशिएंसी वाइरस अथवा एचआईवी सब से खतरनाक किस्म का यौनजनित रोग है. एचआईवी से पूरा तंत्रिका तंत्र ही नष्ट हो जाता है और व्यक्ति की जान भी जा सकती है. एचआईवी रक्त, योनि व गुदा के द्रव्यों, वीर्य या स्तन से निकले दूध के माध्यम से फैल सकता है. सुरक्षित एवं स्थायी साथी के साथ यौन संबंध रख कर और सुरक्षा उपायों का प्रयोग कर के एचआईवी को फैलने से रोका जा सकता है.

पैल्विक इन्फ्लेमेटरी डिसीज :

पीआईडी एक गंभीर संक्रमण है और यह गोनोरिया एवं क्लेमिडिया का ठीक से इलाज न होने पर हो जाता है. यह स्त्रियों के प्रजनन अंगों को प्रभावित करता है, जैसे फैलोपियन ट्यूब. गर्भाशय या डिंबग्रंथि में प्रारंभिक अवस्था में कोई लक्षण स्पष्ट नहीं होते. परंतु इलाज न होने पर यह बांझपन या अन्य कई समस्याओं का कारण हो सकता है.

यौनजनित एलर्जी :

इस तरह की एलर्जी की अकसर लोग चर्चा नहीं करते. सैक्स करते वक्त कई बार हलकीफुलकी एलर्जी का पता भी नहीं चलता. परंतु, एलर्जी से होने वाली तीव्र प्रतिक्रियाओं की अनदेखी नहीं हो सकती, जैसे अर्टिकेरिया, एंजियोडेमा, अस्थमा के लक्षण, और एनाफाइलैक्सिस. इन में से कई एलर्जिक प्रतिक्रियाएं तो लेटैक्स से बने कंडोम के कारण होती हैं. कुछ अन्य कारण भी हो सकते हैं, जैसे कि वीर्य से एलर्जी, गस्टेटरी राइनाइटिस आदि.

लेटैक्स एलर्जी :

यह एलर्जी कंडोम के संपर्क में आने से होती है और स्त्रियों व पुरुषों दोनों को ही प्रभावित कर सकती हैं. लेटैक्स एलर्जी के लक्षणों में प्रमुख हैं- जलन, रैशेस, खुजली या अर्टिकेरिया, एंजियोडेमा, अस्थमा के लक्षण और एनाफाइलैक्सिस आदि. ये लक्षण कंडोम के संपर्क में आते ही पैदा हो सकते हैं.

यह एलर्जी त्वचा परीक्षण या रक्त परीक्षण के बाद पता चल पाती है. यदि परीक्षण में एलजीई एंटीबौडी मिलते हैं तो इस की पुष्टि हो जाती है, क्योंकि वे लेटैक्स से प्रतिक्रिया करते हैं. लेटैक्स कंडोम का प्रयोग बंद करने से इस एलर्जी को रोका जा सकता है.

वीर्य से एलर्जी :

बेहद कम मामलों में ऐसा होता है, लेकिन कुछ बार वीर्य में मौजूद प्रोटीन से स्त्री में इस तरह की प्रतिक्रिया हो सकती है. कई बार भोजन या एनसैड्स व एंटीबायोटिक्स में मौजूद प्रोटीन पुरुष के वीर्य से होते हुए स्त्री में एलर्जी करने लगते हैं.

इस का लक्षण है- योनि संभोग के 30 मिनट के भीतर योनि में जलन. अधिक प्रतिक्रियाओं में एरियूटिकेरिया, एंजियोडेमा, अस्थमा और एनाफाइलैक्सिस आदि शामिल हैं. प्रभावित महिला के साथी के वीर्य की जांच कर के इस एलर्जी की पुष्टि की जा सकती है.

दरअसल, नियमित यौन जीवन जीने वाले महिलाओं व पुरुषों को किसी विशेषज्ञ से प्राइवेट पार्ट्स की समयसमय पर जांच कराते रहना चाहिए. इस से यौनजनित विभिन्न रोगों का पता चलेगा और उन से आप कैसे बचें, इस का भी पता चल सकेगा. यदि ऐसी कोई समस्या मौजूद हुई, तो आप उचित इलाज करा सकते हैं. यह अच्छी बात नहीं है कि झिझक या शर्म के चलते ऐसी बीमारियों का इलाज रोक कर रखा जाए. यदि आप को या आप के साथी को ऐसी कोईर बीमारी या एलर्जी हो, तो तत्काल विशेषज्ञ से संपर्क करना चाहिए.

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