भंवर: क्या पूरा हो पाया रजिया का सपना

रजिया तीखे नैननक्श की लड़की थी. खूब गोरी भी थी. एक दकियानूसी परिवार में पलीबढ़ी होने के बावजूद उस ने बीए कर लिया था. वह मास्टरनी बनना चाहती थी, इसलिए अपनी अम्मी से पूछ कर उस ने बीएड का फार्म भर दिया. कुछ ही दिनों में उस के पास बीएड में दाखिला लेने के लिए कालेज से चिट्ठी भी आ गई.

चिट्ठी आते ही रजिया के अब्बू और अम्मी में जम कर झगड़ा शुरू हो गया. अब्बू तो रजिया को शुरू से ही स्कूल में पढ़ाने के खिलाफ थे. रजिया ने जब 5वीं जमात पास की थी, तब उस की पढ़ाईलिखाई को ले कर परिवार के बुजुर्गों में बहस शुरू हो गई थी.

उस की अम्मी नरगिस के अलावा सभी की यह राय थी कि रजिया को स्कूल के बजाय अपने मजहब की तालीम दी जाए. उस के अब्बू करीम साहब चाहते थे कि उसे कुरान शरीफ रटाया जाए. लेकिन रजिया की अम्मी ने उन्हें समझाया, ‘‘वह कुरान शरीफ तो पढ़ ही चुकी है. जमाना अब बदल गया है, इसलिए रजिया के लिए भी पढ़ाईलिखाई की जरूरत है.’’

तभी एक साहब आगे बढ़े और कहने लगे, ‘‘बड़े स्कूल में न भेजो, लड़की बिगड़ जाएगी. पढ़ा कर क्या कराना है, घर में परदे में ही तो रहेगी.’’

काफी बहस के बाद रजिया का दाखिला लखनऊ में कर दिया गया, जहां उस की मौसी रहती थीं. रजिया ने अपनी अम्मी द्वारा हौसला बढ़ाए जाने और अपनी जिद से बीए कर लिया था.

दरअसल, रजिया का परिवार लखनऊ के पास एक छोटे से कसबे में रहता था. वहां आज भी लड़कियों की पढ़ाई पर इतना जोर नहीं दिया जाता था. यही वजह थी कि रजिया ने अपने इलाके के कालेज के बजाय लखनऊ से बीए किया था.

जब करीम साहब से नरगिस ने रजिया की बीएड करने की इच्छा बताई, तो वे आगबबूला हो उठे, ‘‘रहने दो, बहुत हो चुका यह नाटक. यह सब तुम्हारी वजह से हो रहा है. मेरी इज्जत का तो खयाल करो. लोग क्या कहेंगे?’’ करीम साहब ने नरगिस से कहा.

‘‘जरा समझने की कोशिश करो. इस में क्या हर्ज है?’’

‘‘मैं हरगिज रजिया को बीएड में दाखिला कराने के लिए राजी नहीं हूं. लड़की बड़ी हो कर दुलहन बनती है, अपने घर को संभालती है, न कि बेपरदा हो कर बाहर घूमती है.’’

रजिया से तब चुप न रहा गया. उस ने आगे बढ़ कर कहा, ‘‘आप परदापरदा चिल्ला रहे हैं. आज कहां है परदा? बाजारों और बसों में औरतें बुरका पहनती जरूर हैं, पर उन का नकाब हमेशा उठा ही रहता है… क्यों? औरतें खेतों में काम करती हैं, सब्जियां लाती हैं, फिर कहां गया उन का परदा?’’

‘‘तुम मुझ से बहस कर रही हो?’’ करीम साहब ने गुस्से से कहा.

‘‘अब्बू, मैं बहस नहीं कर रही, बल्कि सही बात कह रही हूं. लड़कों की तरह लड़कियों की भी पढ़ाईलिखाई जरूरी है. अगर वे नौकरी न भी करें तो शादी के बाद मां बन कर अपने बच्चों की देखभाल तो अच्छी तरह कर सकती हैं.’’

बातचीत के दौरान वहां उन के कुछ करीबी रिश्तेदार और पड़ोसी भी आ गए. करीम साहब के एक पोंगापंथी दोस्त कहने लगे, ‘‘छोड़ो बेटी इन बातों को, अभी तुम नादान हो. आज हमारे देश की सरकार मुसलमानों के साथ इंसाफ नहीं कर रही है. सरकारी नौकरियों में हमें बहुत कम लिया जाता है. चारों तरफ हिंदूमुसलिम के झगड़े होते रहते हैं. यहां तक कि लोग हमें गयागुजरा समझते हैं. गिरी निगाहों से देखते हैं.’’

‘‘नहीं चाचा मियां, आप के समझने में फर्क है. जो भी पढ़ाईलिखाई में तेज होता है, वह अपनी मंजिल तक आराम से पहुंच जाता है, चाहे फिर वह हिंदू हो या मुसलमान. आज हिंदुस्तान का हर आदमी आजादी से अपने मजहब के मुताबिक रहने और अपने त्योहार मनाने का पूरा हक रखता है.

‘‘उधर जरा पाकिस्तान और दूसरे मुसलिम देशों को देखो, जो इसलामी देश होने का ढिंढोरा पीटते हैं, पर वहां क्या हो रहा है? इसलाम सिखाता है कि सभी से प्यार करो, न कि सिर्फ मुसलमानों को.

‘‘उन देशों में भी बराबरी का हक नहीं है. यहां से गए मुसलमानों को छोटा समझा जाता है, जबकि हमारे देश के कानून में किसी मजहब या बिरादरी को ज्यादा सुविधा नहीं दी गई है. हमारे देश में पढ़ाईलिखाई के आधार पर ही किसी को नौकरी मिलती है, हिंदूमुसलिम के आधार पर नहीं. इस मामले में लड़केलड़कियों में भी भेद नहीं किया जाता. कई नौकरियों में तो लड़के देखते रह जाते हैं और लड़कियां अपनी पढ़ाईलिखाई और हुनर के बल पर नौकरी पा जाती हैं.

‘‘2 मिसाल हमारे गांव की ही ले लो. हरदेव का बड़ा लड़का एक मुकदमे के चक्कर में जेल चला गया. ऐसे मौके पर किसी ने उस का साथ नहीं दिया. घर में उस की औरत और एक बच्चा था. औरत पढ़ीलिखी थी, इसलिए एक दफ्तर में नौकरी कर ली.

‘‘उस ने खुद की गुजरबसर की और अपने आदमी की भी जमानत करा ली,’’ नरगिस ने करीम साहब की ओर देखते हुए फिर कहा, ‘‘दूसरी ताजा मिसाल नईम की बेटी की ले लो. वह अनपढ़ लड़की शादी के बाद ससुराल गई.

‘‘अभी 2 ही साल बीते होंगे शादी को हुए कि उस का आदमी एक हादसे में मारा गया. सासससुर थे ही नहीं, रिश्तेदारों ने भी दुत्कार दिया उसे.

‘‘अब वह अपने बच्चे के साथ दुख व लाचारी के दिन काट रही है. अगर वह भी पढ़ीलिखी होती तो उस की यह हालत नहीं होती,’’ रजिया ने मजबूती से अपनी बात रखी.

इन सब के बावजूद रजिया अपनेआप को एक गहरे भंवर में फंसा हुआ महसूस कर रही थी. करीम साहब अपने फैसले पर अडिग थे, तो आखिर में रजिया की अम्मी को कहना पड़ा, ‘‘यह फैसला मेरा नहीं, बल्कि खुद रजिया का है. कानून के मुताबिक हमें उस के फैसले में दखल देने का कोई हक नहीं है.’’

‘‘हक क्यों नहीं? क्या हम उस के…’’ करीम साहब ने बहुत कोशिश की कि रजिया बीएड में दाखिला न ले, पर नरगिस ने हमेशा की तरह उस की तरफदारी की और वह बीएड करने लगी.

समय बीतता गया. रजिया की ट्रेनिंग पूरी हो गई. कुछ ही दिनों में वह एक स्कूल में अंगरेजी की बड़ी मास्टरनी हो गई.

करीम साहब रजिया के नौकरी करने से परेशान रहने लगे थे और अकसर उन की तबीयत खराब रहने लगी थी. एक दिन जब रजिया स्कूल से आई तो घर में कोई नहीं था. पड़ोसी से पता लगा कि उस के अब्बू की तबीयत खराब हो गई है. लोग उन्हें अस्पताल ले गए हैं.

कुछ ही देर में रजिया अस्पताल पहुंच गई. वहां बड़ी भीड़ जमा थी.

तभी नर्स ने आ कर कहा, ‘‘खून चाहिए. क्या आप में से कोई खून दे सकता है? अस्पताल में खून नहीं है.’’

खून देने के नाम पर सब चुप हो गए. रजिया सब की ओर देख रही थी. रजिया के कानों में एक ही शब्द ‘खून’ बारबार गूंज रहा था.

‘‘खून जितना चाहिए मेरा ले लीजिए, पर मेरे अब्बू को बचा लीजिए.’’

एकएक पल कीमती था. नर्स उसे अंदर ले गई, पर उस का खून दूसरे ग्रुप का था.

करीम साहब का इलाज करने वाले डाक्टरों में सर्जन वसीम भी थे. वे करीम साहब को पहचान गए, जिन के मकान में तकरीबन 23 साल पहले वे अपने मातापिता के साथ रहते थे.

उस समय वसीम और रजिया बहुत छोटे थे, इसलिए अब वे एकदूसरे को नहीं पहचान पाए थे. उन्हीं दिनों वसीम के पिताजी की बदली देहरादून हो गई थी. वसीम की पढ़ाईलिखाई वहीं हुई. वही वसीम अब सर्जन वसीम हो गए थे और रजिया मास्टरनी. उन्होंने रजिया से पूछा, ‘‘ये आप के क्या लगते हैं?’’

‘‘ये मेरे अब्बू हैं.’’

‘‘तो फिर आप का नाम रजिया होगा?’’ सर्जन वसीम ने सवालिया निगाह रजिया पर डाली.

‘‘जी, हां.’’

तभी वसीम ने अपने सहयोगी डाक्टर विमल से कहा, ‘‘डाक्टर, मेरा ब्लड ग्रुप करीम साहब के ब्लड ग्रुप से मिलता है, इसलिए मेरा खून ले लीजिए,’’ कहते हुए डाक्टर वसीम खून देने के लिए करीम साहब के बगल वाले बिस्तर पर लेट गए.

जब खून देने के बाद डाक्टर वसीम बाहर निकले, तो रजिया बड़े आभार से उन्हें देखने लगी और बोली, ‘‘मैं तुम्हारा शुक्रिया किस तरह अदा करूं. तुम ने मेरे अब्बू की जान बचा ली.’’

‘‘अरे, यह तो मेरा फर्ज था,’’ वसीम ने झुकी नजरों से कहा.

‘‘क्या नाम है तुम्हारा?’’ होश में आने पर करीम साहब ने पूछा.

‘‘वसीम. शायद आप ने मुझे पहचाना नहीं? आप रफीक साहब को तो जानते होंगे, जो आप के मकान में रहते थे?’’

‘‘हां. वही रफीक साहब जो सरकारी बैंक में मैनेजर थे?’’

‘‘जी हां, मैं उन्हीं का लड़का हूं.’’

अब सर्जन वसीम बिना रोकटोक उन के घर में आनेजाने लगे. एक शाम चाय पीने के बाद वसीम वहां से चले गए. रजिया ने खिड़की खोल कर सड़क की ओर देखा. सड़क की ज्यादातर बत्तियां बुझ चुकी थीं. सड़क सुनसान थी, जिसे वसीम के जूतों की आहट तोड़ रही थी. पेड़ों, मैदानों और मकानों पर चांदनी छिटक गई थी.

तभी रजिया ने खिड़की के पट बंद कर दिए और सोने की कोशिश करने लगी. लेकिन उस की आंखों के आगे बारबार वसीम का चेहरा नाचने लगता. उस के दिल में वसीम के प्रति प्यार हिलोरे मारने लगा था.

हो भी क्यों न. वसीम थे ही इतने हैंडसम. 5 फुट, 10 इंच का कद, चौड़ा सीना, चेहरामोहरा भी बहुत गजब. कालेज में खूब लड़कियां उन पर मरती होंगी.

एक दिन जब डाक्टर वसीम जाने लगा, तो रजिया ने अकेले में कहा, ‘‘कल मेरे जन्मदिन की पार्टी है. तुम आओगे न?’’

‘‘क्यों नहीं, जरूर आऊंगा और तुम्हें एक खूबसूरत तोहफा दूंगा.’’

यह सुन कर रजिया मुसकरा दी.

पार्टी के दिन अकेले में डाक्टर वसीम ने रजिया से कहा, ‘‘रजिया, मैं तुम से शादी करना चाहता हूं.’’

‘‘शादी?’’ रजिया ने चौंक कर कहा, ‘‘क्या यही तोहफा है तुम्हारा?’’

‘‘सिर्फ यह ही नहीं, एक और भी है,’’ कहते हुए डाक्टर वसीम ने सोने की एक अंगूठी रजिया की उंगली में पहना दी.

कुछ ही दिनों में दोनों पक्षों में बातचीत शुरू हो गई. डाक्टर वसीम भी अपने मातापिता की एकलौती औलाद थे, इसलिए वे अपने बेटे के लिए अच्छे खानदान की खूबसूरत और पढ़ीलिखी बहू चाहते थे. राजकुमारी सी रजिया उन्हें एक ही नजर में भा गई.

करीम साहब अपनी रजिया का इतने अच्छे घराने में रिश्ता होने पर फूले नहीं समा रहे थे.

‘‘देखा न आप ने, यह सब रजिया की पढ़ाईलिखाई की वजह से हुआ है,’’ रजिया की अम्मी नरगिस ने करीम साहब से कहा.

करीम साहब बोले, ‘‘तुम ठीक कहती हो. अगर रजिया पढ़ीलिखी नहीं होती, तो किसी डाक्टर से निकाह की बात सोच भी नहीं सकती थी. यह बात सच है कि कोई मजहब पढ़ाईलिखाई के लिए मना नहीं करता.

‘‘उस वक्त मेरी आंखों पर पट्टी पड़ गई थी. अब मेरी आंखें खुल गई हैं. मैं अब सब को सही सलाह दूंगा कि

लड़के के साथसाथ लड़की की तालीम भी जरूरी है, तभी हमारी बिरादरी आगे बढ़ सकेगी.’’

सैक्स सुखदायक है पर इन बातों पर भी गौर करें

सैक्सोलौजिस्ट डा. चंद्रकिशोर कुंदरा के मुताबिक, ‘प्रेमीप्रेमिका के बीच सैक्स संबंध स्थापित करने के लिए भौतिक, रासायनिक व मनोवैज्ञानिक कारक ही जिम्मेदार होते हैं. सैक्स ही एक ऐसी सरल क्रिया है जो प्रेमीप्रेमिका को एकसाथ एक ही समय में पूर्ण तृप्ति देती है.’

सैक्स की संपूर्णता प्रेमिका के बजाय प्रेमी पर निर्भर करती है, क्योंकि प्रेमी ही इस की पहल करता है. प्रेमिका सैक्स में केवल सहयोग ही नहीं करती बल्कि पूर्ण आनंद भी चाहती है. अकसर प्रेमीप्रेमिका सैक्स को सुखदायक मानते हैं, लेकिन कई बार सहवास ऐंजौय के साथसाथ कई समस्याओं को भी सामने लाता है. अनुभव के आधार पर इन को दूर कर प्रेमीप्रेमिका सैक्स का सुख उठाते हैं.

शरारती बनें

सैक्स को मानसिक व शारीरिक रूप से ऐंजौय करने के लिए प्रेमीप्रेमिका को शरारती बनना चाहिए. उत्साह, जोश, तनावमुक्त, हंसमुख, जिंदादिल, शरारती प्रेमीप्रेमिका ही सैक्स को संपूर्ण रूप से भोगते हैं.

आत्मविश्वास की कमी न हो

कई बार आत्मविश्वास की कमी हो जाती है. प्रेमी सैक्स के समय उतावलेपन के शिकार हो कर सैक्स के सुखदायक एहसास से वंचित रह जाते हैं.

सैक्स संबंध बनाते समय प्रेमीप्रेमिका के मन में यदि पौजिटिव सोच होगी, तभी दोनों पूर्ण रूप से संतुष्ट हो पाएंगे और सैक्स में कभी कमजोर नहीं पड़ेंगे.

पोर्न फिल्मों से प्रेरित न हों

प्रेमीप्रेमिका अकसर पोर्न फिल्में देख कर, किताबें पढ़ कर सैक्स में हर पल लिप्त रहने की कोशिश करते हैं. अत्यधिक मानसिक कामोत्तेजना की स्थिति में शीघ्रपतन व तनाव में कमी हो जाती है.

सैक्स में जल्दबाजी

कई बार सैक्स में प्रेमीप्रेमिका जल्दबाजी कर जाते हैं. शराब पी कर सैक्स करना चाहते हैं जोकि ठीक नहीं है. हमेशा मादक पदार्थों से दूर रहें. सैक्स के दौरान प्रेमिका ही मादकता का काम करती है.

बढ़ाएं शारीरिक आकर्षण

सहवास के लिए प्रेमी का शारीरिक आकर्षण, स्मार्टनैस, सैक्सी लुक, साफसफाई काफी महत्त्वपूर्ण है. पुरुषोचित्त गुण के साथसाथ गठीले बदन वाले चतुर सुरुचिपूर्ण वस्त्र, रसिक स्वभाव के प्रेमी ही सैक्स में सफल होते हैं.

रोमांटिक स्वभाव रखें

प्रेमिका सहवास के दौरान चाहती है कि उस का प्रेमी रोमांस व ताजगी द्वारा उसे कामोत्तेजित करे. अत: रोमांस की बातें कर सैक्स को सुखदायक बनाएं.

जब सैक्स का मौका मिले

प्रेमीप्रेमिका अकसर सैक्स के लिए मौके की तलाश में रहते हैं. जैसे ही उन्हें मौका मिलता है, वे एकदूसरे में समाने के लिए बेताब हो जाते हैं, लेकिन इस दौरान कई बार ऐसे अचानक किसी का दरवाजा खटखटाना व फोन की घंटी बज जाती है. ऐसी बाधाओं को दूर कर सहवास को मानसिक व शारीरिक रूप से सुखदायक बनाएं.

एक साथ स्क्रीन पर नजर आएंगे सारा अली और आयुष्मान खुराना, दोनों की कैमिस्ट्री देखना होगा दिलचस्प

बौलीवुड की सबसे नौटी और बोल्ड एक्ट्रेस सारा अली खान इन दिनों आयुष्मान के साथ एक फिल्म करने जा रही है. दोनों स्टार्स एक साथ एक फिल्म में काम करेंगे, जिसे देखना दर्शकों के लिए काफी एक्साइटेड होगा. दोनों ही स्टार्स ने बेहतर फिल्मों में काम किया है और पौपुलेरिटी हासिल की है. लेकिन अब पहली बार ऐसा होगा कि दोनों को दर्शक एक साथ मस्ती करते दिखेंगे.

 

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आपको बता दें कि आयुष्मान खुराना और सारा अली खान को लेकर एक फिल्म का अनाउंसमेंट किया गया है. आयुष्मान खुराना और सारा अली खान की साथ में ये पहली फिल्म होगी. इस फिल्म की घोषणा होने के बाद आयुष्मान खुराना और सारा अली खान के फैंस काफी ज्यादा एक्साइटेड हो गए हैं. आयुष्मान खुराना और सारा अली खान को साथ लाने में करण जौहर और गुनीत मोंगा के प्रोडक्शन हाउस का हाथ है.

 

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फिल्म ट्रेड एनालिस्ट तरण आदर्श ने मंगलवार को अपने ट्विटर हैंडल पर आयुष्मान खुराना और सारा अली खान की पहली फिल्म को लेकर अपडेट दिया है. एक ट्वीट के मुताबिक, करण जौहर के धर्मा प्रोडक्शन और गुनीत मोंगा के सिख्या एंटरटेनमेंट मिलकर एक एक्शन-कॉमेडी फिल्म बनाने जा रहे हैं. हालांकि, अभी इस फिल्म के टाइटल का अनाउंसमेंट नहीं किया गया है. आयुष्मान खुराना और सारा अली खान की इस फिल्म को आकाश कौशिक डायरेक्ट करने वाले हैं और उन्होंने इस फिल्म को लिखा भी है. आयुष्मान खुराना और सारा अली खान की पहली फिल्म जल्द ही शूटिंग शुरू होने वाली है. बताते चलें कि करण जौहर के धर्मा प्रोडक्शन और गुनीत मोंगा के सिख्या एंटरटेनमेंट का साथ में ये तीसरा प्रोजेक्ट है.

समंदर किनारे पहुंची भोजपुरी स्टार मोनालिसा, वायरल हुई See Photos

भोजपुरी की जानी मानी एक्ट्रेस मोनालिसा इन दिनों समंदर किनारे पहुंच गई है. जहां की फोटोज वे सोशल मीडिया पर धड़ल्ले से वायरल कर रही है. मोनालिसा की हर अदा पर लोग फिदा है. सोशल मीडिया पर तो मोनालिसा हमेशा ही छाई रहती हैं. इसलिए उन्हे भोजपुरी की क्वीन कहा जाता है.

 

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आपको बता दें कि मोनालिसा ने समंदर किनारे अपना बोल्ड लुक दिखाया है. उनकी फोटोज खूब वायरल हो रही है. एक्ट्रेस की ऐसी सुपरबोल्ड फोटोज देख उनके फैंस खुशी से पागल हो गए है.

भोजपुरी एक्ट्रेस मोनालिसा ने कैमरे के सामने एक से बढ़कर एक पोज दिए है. मोनालिसा का हर एक पोज इंटरनेट पर आग की तरह फैल रहा है. लोग मोनालिसा की इन फोटोज पर लोग खूब प्यार बरसा रहे है. हालांकि इससे पहले भी एक्ट्रेस समंदर किनारे का मजा ले चुकी है.

 

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बता दें कि भोजपुरी और टीवी इंडस्ट्री की सबसे हौट और बोल्ड एक्ट्रेसेस में मोनालिसा है. मोनालिसा इस मामले में बॉलीवुड की सनी लियोनी को भी टक्कर देती हैं. भोजपुरी एक्ट्रेस मोनालिसा का अंदाज निराला है. जहां मॉर्डन लुक में मोनालिसा बेहद बोल्ड लगती हैं तो वहीं देसी लुक में एक्ट्रेस मोनालिसा से लोगों की नजरें नहीं हटती है.

ब्रेकअप से बचना हैं तो गर्लफ्रेंड को ने दें ऐसे compliments

अगर आप रिलेशनशिप में हैं तो जाहिर सी बात है कि आपकी पार्टनर आपसे तारीफ जरूर सुनना पसंद करेगी, लेकिन कभी कभी पार्टनर ऐसे कॉम्प्लीमेंट दे देता है जिससे रिलेशन में ब्रेकअप तक बात पहुंच जाती है, तो ऐसे में हमेशा याद रखने वाली बातें हैं कि आप अपने पार्टनर को ऐसे कॉम्प्लीमेंट दें. जिससे आप उनके दिल को खुश कर सकेंगे न कि अपना ब्रेकअप करा दें. तो आज हम इस आर्टिकल में कुछ ऐसे कॉम्लीमेंट्स के बारे में बताएंगे जिसे आप जीवन में कभी अपनी पार्टनर का दिल नहीं दुखाएंगे.

1. मेरी एक्स से ज्यादा तुम केयरिंग हो

लड़के अक्सर कॉम्पलिमेंट देते है कि मेरी एक्स से ज्यादा तुम केयरिंग हो, जो बात लड़कियों को कभी पसंद नहीं आती है कि आप अपने पार्टनर को उसकी एक्स से कंपेयर करों. क्योकि अगर आपने ऐसा कॉम्प्लिमेंट दिया तो आपकी गर्लफ्रेंड का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच जाएगा. इसलिए कभी भी ऐसा कॉम्प्लिमेंट देने से बचें. आप इसकी जगह ये कह सकते है कि ‘मुझे आज तक तुमसे केयरिंग गर्लफ्रेंड नहीं मिली.’ या फिर ‘थैंक गॉड….मुझे इतनी केयरिंग गर्लफ्रेंड मिली.’

2. आज तुम बहुत खूबसूरत लग रही हो

ये सब बातें काफी कौमन है और लड़कियां ऐसी बातें सुनने में ज्यादा इंट्रस्टीड नहीं होती है. जिसे लगभग हर कोई अपनी गर्लफ्रेंड से कह देता है. अगर आप बोलना ही चाहते है तो इस कॉम्प्लिमेंट को थोड़ा इस तरह से बोलें कि… ‘तुम आज भी हमेशा की तरह बहुत ब्यूटीफुल लग रही हो.’ इससे आपकी गर्लफ्रेंड खुश भी हो जाएगी.

3. तुम गुस्से में काफी प्यारी लगती हो

यह कॉम्प्लिमेंट देकर आप गर्लफ्रेंड के गुस्से को और भी भड़का सकते हैं, क्योंकि गुस्से में उस बात के असली मतलब की तरफ ध्यान नहीं जाएगा. वो उस बात को पकड़ सकती है कि मतलब कि ‘मैं सिर्फ गुस्से में ही प्यारी लगती हूं, वैसे नहीं’ मैं तो आपके कॉम्प्लिमेंट का मतलब समझ सकता हूं, लेकिन गुस्से वाली गर्लफ्रेंड को उसका सही मतलब समझाने में आपको पसीने तक आ सकते हैं, इसलिए गुस्से में कोई भी कॉम्प्लिमेंट देने की जगह उसे चुप कराने की कोशिश करें. जब वो नॉर्मल हो जाए, तो हंसी लाने के लिए नीचे दिया कॉम्प्लिमेंट ट्राय कर सकते हैं. ‘अरे, तुम तो रोते हुए भी काफी प्यारी लगती हो!’

4. आज तो तुम्हारी ड्रेस काफी स्टाइलिश है

गर्ल्स किसी भी चीज को खरीदने में समय इसलिए लगाती हैं, क्योंकि वे मैटेरियल, रंग, क्वालिटी आदि चेक करती हैं. अगर आपकी गर्लफ्रेंड स्टाइलिश ड्रेस पहनकर आए और उसकी तारीफ में आपने बोल दिया, कि आज तुम्हारी ड्रेस काफी स्टाइलिश है. तो उसके गुस्से का कारण आप है, कि गर्ल्स अपनी ड्रेस के लिए काफी अवेयर होती हैं. हमेशा मैचिंग के शूज या सैंडिल, एसेसरीज आदि मिलाकर ही पहनती हैं. अब ऐसे में आप बोलेंगे उनकी ड्रेस आज काफी स्टाइलिश है, तो वो उनके दिल को दुखा सकती है. इसकी बजाय आप बोलें कि ‘हमेशा कि तरह तुम इस ड्रेस में भी काफी स्टाइलिश लग रही हो.’

5. तुम अपनी फ्रेंड से ज्यादा सुंदर हो

आप ये कहने की गलती कभी मत करना कि तुम अपनी फ्रेंड से ज्यादा सुंदर हो, इसका मतलब है कि आपका उसकी फ्रेंड पर भी ध्यान है और आप अपने पार्टनर की तुलना उससे कर रहे हो. इसका दूसरा मतलब ये भी हो सकता है कि आप उनकी दोस्त का निर्दार कर रहे है और वो अपनी फ्रेंड के लिए हर्ट फील कर रही है. इसलिए उनकी फ्रेंड को उनसे कम सुंदर बताने की जगह आप ये कह सकते हैं, कि ‘तुम काफी खूबसूरत हो.’  इस कॉम्प्लिमेंट से न आपने किसी की तुलना की और गर्लफ्रेंड की तारीफ भी कर दी.

ससुर-बहू के नाजायज संबंध, दुखद होता है अंत

आखिरकार कुंदन कुमार ने खुदकुशी कर ली. शायद इस बुजदिली के अलावा उसे कोई और रास्ता सूझ नहीं रहा था. जब अपने ही बेवफाई और बेईमानी करते हैं, तो एक समय के बाद नफरत खुद की बेबसी पर भी होने लगती है. फिर कुछ दिनों बाद जिंदगी बेमानी लगने लगती है. यही सब कई दिनों से कुंदन कुमार के साथ हो रहा था, जिस ने बीवी की बेवफाई और चाचा की मनमानी की सजा खुद को देते हुए इस दुनिया को अलविदा कह दिया. पटना बाजार इलाके के गांव कुरथौल के रहने वाले इस नौजवान की बीवी किसी जवान आशिक या पुराने यार के साथ नहीं,

बल्कि अपने ही चाचा ससुर जसवंत सिंह के साथ भाग गई थी. पीछे रह गए थे मां के लिए बिलखते 2 मासूम बच्चे और बीवी की इस हरकत पर कलपता कुंदन कुमार, जिस की दुनिया में अंधेरा छा गया था. 22 मई, 2022 को जहर खाने के पहले कुंदन कुमार इंसाफ पाने के लिए पुलिस थाने गया था, लेकिन वहां से भी उसे दुत्कार कर भगा दिया गया था. कुंदन कुमार की बीवी और चाचा में कब और कैसे जिस्मानी संबंध बन गए थे, इस की उसे भनक भी नहीं लगी. घर का बुजुर्ग होने के नाते गांव में ही रहने वाले जसवंत सिंह का घर में आनाजाना आम था.

कुंदन कुमार का माथा उस समय ठनका था, जब गांव के ही कुछ लोगों से उस ने इस बाबत सुना. पहले तो कुंदन कुमार को यकीन ही नहीं हुआ कि पिता समान चाचा अपनी बेटी समान बहू के साथ शारीरिक संबंध बना सकता है और पत्नी की रजामंदी भी इस में है, पर जब यह सच निकला तो वह तिलमिला उठा. बेकार गया समझाना कुंदन कुमार ने बारीबारी से चाचा और पत्नी को समझाया कि यह ठीक नहीं है, रिश्तों की मानमर्यादा के खिलाफ है, लेकिन इश्क में गले तक डूबे इस बेमेल जोड़े के कानों पर जूं भी नहीं रेंगी. हद तो तब हो गई, जब टोकने पर जसवंत सिंह ने उसे जान से मारने की धमकी दे डाली. बात चूंकि पहले से फैल चुकी थी,

इसलिए कुंदन कुमार ने पुलिस की मदद लेनी चाही, पर वहां से भी निराशा ही हाथ लगी, तो दूसरे जो हकीकत में अपने थे, के गुनाह और गलती की सजा उस ने खुद को दे डाली. कुंदन कुमार की मौत के बाद गांव वालों ने पुलिस के निकम्मेपन और लापरवाही के खिलाफ सड़क पर प्रदर्शन किया, तो पुलिस ने उस की पत्नी और चाचा के खिलाफ खुदकुशी के लिए उकसाने का मामला दर्ज कर लिया. अफसोस और हैरत की बात तो यह भी थी कि जो लोग ‘हायहाय’ कर रहे थे, उन में से कुछ थाने से लौटते समय उस पर ताने भी कस रहे थे. बात बहुत जल्द आईगई हो गई, लेकिन कई सवाल अपने पीछे छोड़ गई है कि आखिर क्यों ससुरबहू में जिस्मानी संबंध बन जाते हैं और इस हद तक हो जाते हैं कि वे आपस में नए लड़केलड़कियों जैसा इश्क करने लगते हैं?

क्यों प्यार में डूबे ससुरबहू को दीनदुनिया, की परवाह नहीं रहती है? कहने को तो कहा जा सकता है कि ‘दिल तो है दिल, दिल का एतबार, क्या कीजे… आ गया जो किसी पे प्यार, क्या कीजे…’ लेकिन ऐसा प्यार क्या वाकई प्यार होता है और उसे जायज करार देना चाहिए, जो अपने ही बेटे की गृहस्थी पर डाका डाले? यही प्यार किसी की हत्या और खुदकुशी की वजह बन जाए और इस से किसी को कुछ हासिल न हो, तो इसे प्यार क्या खा कर कहा जाए. इसे सिर्फ सैक्स की हवस कह कर भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, क्योंकि एक बार समझाने या धमकाने पर हमबिस्तरी करने का सिलसिला रुकना मुमकिन है, लेकिन यह बात प्यार पर लागू नहीं होती,

जिस के चलते आशिक और माशूक वाकई अंधे हो जाते हैं और समझाइश के दायरे से काफी दूर हो चुके होते हैं. कत्ल ही कर दिया कुंदन कुमार की तरह की ही कहानी राजस्थान के अलवर के बहरोड़ इलाके के रहने वाले विक्रम सिंह की है, जिस की हत्या उस के पिता बलवंत सिंह और पत्नी पूजा ने मिल कर की थी. 5 मार्च, 2022 की रात के तकरीबन 3 बजे सैक्स के लिए तड़प रहा बलवंत सिंह अपने बेटेबहू के कमरे में गया और आहिस्ता से 29 साला पूजा को बुलाया, जो तुरंत चाबी भरी गुडि़या की तरह अपने 62 साल के ससुर के पीछेपीछे चल दी और ससुर के कमरे में पहुंचते ही उन दोनों ने रासलीला शुरू कर दी. लेकिन इस बार बेसब्र हो रहे ससुरबहू यह नहीं देख पाए कि विक्रम सिंह भी जाग गया है और दबे पैर उन के पीछे आ रहा है. पिता के कमरे का जो सीन विक्रम सिंह ने देखा, वह उस के लिए किसी सदमे से कम नहीं था. पूजा और बलवंत सिंह सबकुछ भूलभाल कर एकदूसरे से इस तरह से लिपटे थे कि अब कभी एकदूसरे से अलग ही नहीं होंगे. विक्रम सिंह का खून खौला,

लेकिन अपनेआप को काबू करते हुए वह किसी तरह अपने कमरे में आ गया. अभी विक्रम सिंह सोच ही रहा था कि यह क्या हो रहा है और वह क्या करे, तभी बलवंत सिंह और पूजा आ गए. उन दोनों ने उसे जकड़ा और दुपट्टे से उस का गला घोंट दिया. इस के बाद अलवर के नामी कारोबारी बलवंत सिंह सुबह रोजाना की तरह सैर पर निकल गए, जिस से लोग उन्हें देख लें और पूजा भी घर के कामकाज में ऐसे लग गई मानो कुछ देर पहले उस ने पति को नहीं, बल्कि कान पर भिनभिनाते मच्छर को मारा हो. योजना के मुताबिक, उन दोनों ने फोन से जानपहचान वालों और नातेरिश्तेदारों को विक्रम सिंह की मौत की खबर देते हुए रोनेधोने का कामयाब ड्रामा किया.

इन की साजिश भी कामयाब हो जाती, लेकिन शव यात्रा में शामिल आए लोगों का माथा यह देख कर ठनका कि किसी को भी विक्रम सिंह का चेहरा नहीं दिखाया जा रहा है. यह बात चोर की दाढ़ी में तिनका सरीखी थी, क्योंकि मरने वाले के अंतिम दर्शन आम रिवाज है. शक होने पर पूजा के ही भाई ने पुलिस वालों को फोन कर दिया. छानबीन और पूछताछ में उन दोनों ने अपना गुनाह कबूल कर लिया. उजागर यह भी हुआ कि बलवंत सिंह की पत्नी की मौत 2 साल पहले हुई थी, तभी से इन दोनों में नाजायज संबंध बन गए थे. रईसों के इस घर में 64 लाख रुपए भी तिजोरी में रखे थे, जो बलवंत सिंह को एक जमीन बेचने के बाद मिले थे. मुमकिन है कि यह भारीभरकम नकदी भी इस वारदात की वजह रही हो. बलवंत सिंह जैसे विधुर बूढ़ों की सैक्स की भूख कैसे मिटे,

यह एक अलग बहस का मुद्दा हो सकता है, लेकिन बहू को अपने जाल में फंसा कर इसे शांत किया जाए, तो अंत दुखद होना कुदरती बात है, क्योंकि कोई बेटा यह बरदाश्त नहीं कर सकता कि उस के पिता और पत्नी आपस में सैक्स संबंध बनाते हुए उसे धोखा दें. प्यार या हवस कुंदन कुमार की मौत के बाद जितनी हैरानी कुरथौल गांव के लोगों को हुई थी, उतनी ही हैरानी अलवर शहर के लोगों को विक्रम सिंह की हत्या पर हुई थी. ऐसी खबरें, जिन में पूरा घर बरबाद हो जाता है, सोचने को मजबूर करती हैं कि आखिर यह प्यार था या हवस थी? देखा जाए, तो ऐसे संबंधों में दोनों ही चीजें बराबरी से रहती हैं. 1-2 बार ये संबंध भले ही लिहाज और दबाव में बनते हों, लेकिन फिर धीरेधीरे ससुरबहू दोनों को ही हमबिस्तरी की लत या आदत कुछ भी कह लें, पड़ जाती है और इस में उन्हें इतना मजा आने लगता है कि वे किसी अंजाम की परवाह नहीं करते हैं. यहां से पैदा होता है एक जुर्म,

फिर भले ही वह कुंदन कुमार की खुदकुशी हो या विक्रम सिंह की हत्या हो. ससुरबहू के नाजायज संबंध कभी हैरानी की बात नहीं रहे, कम से कम इस लिहाज से तो कतई नहीं कि ये एक मर्द और एक औरत के बीच कायम होते हैं, लेकिन चूंकि ये सभी के लिए नुकसानदेह साबित होते हैं, इसलिए ससुरबहू को इन के अंजाम पर गौर करते हुए इन्हें पनपने ही नहीं देना चाहिए और अगर पनप चुके हों तो तुरंत इन पर लगाम लगा देनी चाहिए. एकांत के मौके इफरात से मिलते हैं और कोई आसानी से शक नहीं करता, पर इस का बेजा फायदा उठाना अकसर बड़ी परेशानी का सबब बन जाता है. सच यह भी है कि पति के निकम्मे, आवारा, नशेड़ी, बेरोजगार, दब्बू या नामर्द होने पर ऐसे संबंधों के पनपने में सहूलियत रहती है. पत्नी को सैक्स की भूख मिटाने के लिए कहीं और नहीं ताकना पड़ता,

वह आसानी से ससुर से ही आशनाई कर बैठती है, लेकिन गलत आखिर गलत ही होता है, इस हकीकत से भी मुंह नहीं मोड़ा जा सकता. वह दौर और था, जब बचपन में बेटे की शादी हो जाती थी और ससुर की उम्र 35-40 साल होती थी. घर का मुखिया होने के नाते वह बहू से जोरजबरदस्ती करता भी था, तो किसी की हिम्मत उसे रोकनेटोकने की नहीं होती थी. लेकिन अब बहुतकुछ बदल जाने के बाद भी इन नाजायज ताल्लुकात का सिलसिला थम नहीं रहा है, तो जरूरत जागरूकता और समझ की है कि राज आज नहीं तो कल खुलना ही है और एक अपराध होना तय है, तो क्यों न अभी से संभला जाए. द्य ड्डनहीं बनना ससुर के बच्चे की मां ससुर अगर जोरजबरदस्ती करे, तो बहू ज्यादा विरोध नहीं कर पाती. ऐसा ही कुछ ग्वालियर के नजदीक मालनपुर की सुमित्रा (बदला हुआ नाम) के साथ हुआ. उत्तर प्रदेश के जालौन की सुमित्रा की शादी जून, 2021 में हुई थी. शुरू के कुछ दिन तो हंसीखुशी से बीते, लेकिन जल्द ही ससुर की नीयत उस की जवानी और खूबसूरती पर डोलने लगी.

13 फरवरी, 2022 को ससुर ने जबरदस्ती उस से शारीरिक संबंध बनाए, जिस से वह पेट से हो आई. यह बात उस ने घर वालों को बताई, तो बवंडर मच गया. अपनी गैरत बचाने और ससुर की हैवानियत उजागर करने के लिए सुमित्रा ने ग्वालियर हाईकोर्ट में याचिका दायर करते हुए आपबीती बताई व बच्चा गिराने की इजाजत मांगी. 22 मई, 2022 को कोर्ट ने उस से हलफनामा मांगा है कि वाकई उस के पेट में पल रहे बच्चे का पिता उस का ससुर है और अगर बच्चा ससुर का नहीं हुआ, तो उस पर ससुर की इज्जत पर कीचड़ उछालने और बच्चे की हत्या करने का मुकदमा चलाया जाएगा. हाईकोर्ट ने यह सख्ती इसलिए भी बरती है कि कुछ मामलों में बहुत सी औरतें नजदीकी रिश्ते के किसी मर्द पर ऐसे ही आरोप लगा कर बाद में मुकर गईं.

अब देखना दिलचस्प होगा कि सुमित्रा क्या करती है. वैसे, सटीक तरीका डीएनए टैस्ट का है, जिस से यह पता चल जाता है कि बच्चा किस का है. यह इसलिए भी जरूरी है कि कोई औरत झूठा हलफनामा भी दे सकती है. सुमित्रा जैसी बहुओं को चाहिए कि वे ससुर की जोरजबरदस्ती का समय रहते विरोध करें और तुरंत थाने में रिपोर्ट दर्ज कराएं. ससुरबहू ने की शादी हर मामले में यह जरूरी नहीं है कि बहू के साथ संबंध ससुर द्वारा उसे डराधमका कर, लालच दे कर या बहलाफुसला कर ही बनाए जाते हैं, बल्कि कई बार बहू खुद ससुर के प्यार में अंधी हो जाती है. ऐसा ही एक अजीबोगरीब मामला पिछले साल जून महीने में राजस्थान के अलवर में देखने में आया था, जब 52 साल के ससुर प्रभाती लाल ने अपनी 29 साल की बहू लाली देवी से शादी कर ली थी.

काम उन्होंने गुपचुप नहीं किया था, बल्कि पहले दिल्ली जा कर आर्य समाज मंदिर में सात फेरे लिए और फिर शादी रजिस्टर्ड कराने के लिए तीस हजारी कोर्ट भी गए थे. प्यार होने के बाद वे दोनों दिल्ली के द्वारका इलाके के सैक्टर-3 में जा कर किराए के मकान में बाकायदा मियांबीवी की तरह रहने लगे थे. उन्होंने समझदारी दिखाते हुए तमाम कानूनी एहतियात बरते थे. लाली देवी ने अलवर में ही अपने पति पर मारपीट का आरोप लगाते हुए उस से तलाक ले लिया था और बहू के प्यार में पड़े प्रभाती लाल ने भी अपनी बीवी को तलाक दे दिया था यानी शादी पर एतराज जताने की कोई वजह नहीं छोड़ी थी. दिलचस्प बात लाली देवी का 2 बच्चों की मां होना है. अब इस रिश्ते पर कोई उंगली नहीं उठा सकता है. यह और बात है कि दादा प्रभाती लाल ही अपनी बहू लाली देवी के बच्चों का पिता बन गया है और वह अपने ही पति की मां बन गई है. बहू को जायज और कानूनी तौर पर पत्नी बनाने का देश का यह पहला उजागर मामला है.

मेरी पत्नी एक 55 साल के आदमी के साथ नाजायज रिश्ते में है, मैं क्या करूं?

सवाल

मेरी उम्र 38 साल है. मेरी शादी को कई साल हो गए हैं, लेकिन मुझे अब पता चला है कि मेरी पत्नी एक 55 साल के आदमी के साथ नाजायज रिश्ता बनाए हुए है. इस बात से मैं बहुत दुखी हूं, लेकिन अपनी इज्जत बचाए रखने के लिए चुप हूं. मैं क्या करूं?

जवाब

परेशानी यह है कि आप अपनी पत्नी को रोक नहीं पा रहे हैं और न ही इस की वजह समझ पा रहे हैं जिस ने आप का जीना हराम कर दिया है. मुमकिन है कि आप की पत्नी को उस के साथ संबंध बनाने में ज्यादा सुख मिलता हो जिस के चलते उस ने घरगृहस्थी, समाज और आप की परवाह न करते हुए एक गैर और अधेड़ मर्द से नाजायज संबंध बनाए.

इस का यह मतलब नहीं है कि आप में कोई कमी है. मुमकिन यह भी है कि आप की पत्नी उस मर्द के किसी दबाव में हो. कोई भी कदम उठाने से पहले आप बात की तह तक जाएं और पत्नी से खुल कर बात करें और उसे ऐसा न करने को कहें. इस पर भी अगर बात न बने तो उस के नाजायज संबंधों के सुबूत इकट्ठा कर अदालत में तलाक के लिए जाएं.

समाज और इज्जत की परवाह करते रहेंगे तो यों ही घुटघुट कर जीते रहेंगे और पत्नी भी इस का नाजायज फायदा उठाती रहेगी.

शर्मिंदगी : उस औरत ने किसे नीचा दिखाया

औरत आगे बढ़ी और मेरे पैरों की ओर झुकी, तभी मैं पीछे हट कर बोला, ‘‘इस तरह बारबार मेरे पैरों को मत पकड़ो. यह ठीक नहीं है. रही बात तुम्हारे पति की तो वह निर्दोष होगा तो अदालत से छूट जाएगा.’’

‘‘साहब, पता नहीं अदालत कब छोड़ेगी. अगर आप चाहें तो 5 मिनट में छुड़वा सकते हैं.’’ लड़के ने धीमी आवाज में कहा, ‘‘हमारे ऊपर दया करें साहब, हमारा और कोई नहीं है.’’

वह औरत इस लायक थी कि उसे औफिस बुलाया जा सकता था, वहां उस से इत्मीनान से बात भी की जा सकती थी. मैं ने अपना विजिटिंग कार्ड लड़के को देते हुए कहा, ‘‘यह मेरा कार्ड है. तुम इन्हें ले कर मेरे औफिस आ जाओ. शायद मैं तुम्हारा काम करा सकूं.’’

इस के बाद मैं औफिस चला गया. लेकिन उस दिन मेरा मन काम में नहीं लग रह था. फाइलों को देखते हुए मुझे बारबार उस औरत की याद आ रही थी. मुझे लग रहा था कि वह आती ही होगी. लेकिन उस दिन वह नहीं आई. घर आते हुए मैं उसी के ख्यालों में डूबा रहा. यही सोचता रहा कि पता नहीं वह क्यों नहीं आई.

अगले दिन मैं औफिस पहुंचा तो वह औरत और लड़का मुझे औफिस के गेट के सामने खड़े दिखाई दे गए. मैं जैसे ही कार से उतरा, दोनों मेरे पास आ गए. मैं ने उन्हें सवालिया नजरों से घूरते हुए कहा, ‘‘तुम्हें तो कल ही आना चाहिए था?’’

‘‘हम कल आए तो थे साहब, लेकिन आप के चपरासी ने कहा कि साहब बहुत व्यस्त हैं, इसलिए वह किसी से नहीं मिल सकते.’’ लड़के ने कहा.

‘‘तुम ने उसे मेरा कार्ड नहीं दिखाया?’’

‘‘दिखाया था साहब,’’ लड़के ने कहा, ‘‘चपरासी ने कार्ड देखा ही नहीं. कहा कि इसे जेब में रखो, फिर कभी आ जाना.’’

‘‘ठीक है, 10 मिनट बाद मेरी केबिन के सामने आओ, मैं तुम्हें बुलवाता हूं.’’ मैं ने औरत को नजर भर कर देखते हुए कहा.

10 मिनट बाद दोनों मेरे सामने बैठे थे. लड़के ने फिर वही कहानी दोहराई. मैं ने उस की बातों पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया. जो हंगामा हुआ था, उस का मुझे पता था. यह भी पता था कि उस मामले में कोई असली अपराधी नहीं पकड़ा गया था.

मैं ने हंगामा होने वाले इलाके के थानाप्रभारी को फोन किया. जब उस ने बताया कि अभी महिला के पति के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज नहीं है तो मैं ने कहा, ‘‘जब तक मैं दोबारा फोन न करूं, उस के खिलाफ कोई काररवाई मत करना.’’

इतना कह कर मैं ने फोन काट दिया. वह औरत और लड़का मेरी तरफ ताक रहे थे. मेरे फोन रखते ही लड़के ने कहा, ‘‘साहब, उस ने कुछ नहीं किया.’’

‘‘तुम ने बाहर स्टेशनरी वाली दुकान देखी है?’’ मैं ने लड़के से पूछा.

‘‘जी, वह किताबों वाली दुकान.’’ लड़के ने कहा.

‘‘हां, तुम ऐसा करो,’’ मैं ने उसे 10 रुपए का नोट देते हुए कहा, ‘‘उस दुकान से एक दस्ता कागज ले आओ. उस के बाद बताऊंगा कि तुम्हें क्या करना है.’’

लड़का 10 रुपए का नोट लेने के बजाए बोला, ‘‘मेरे पास पैसे हैं साहब. मैं ले आता हूं कागज.’’

लड़का चला गया तो मैं ने औरत को चाहतभरी नजरों से देखते हुए कहा, ‘‘तुम्हारा काम तो हो जाएगा, लेकिन तुम्हें भी मेरा एक काम करना होगा.’’

मेरी इस बात का मतलब वह तुरंत समझ गई. मैं ने उस के चेहरे के बदलते रंग से इस बात का अंदाजा लगा लिया था. फिर औरतें तो नजरों से ही अंदाजा लगा लेती हैं कि मर्द क्या चाहता है. मैं ने अपनी इच्छा को शब्दों का रूप दे दिया. मैं ने कहा, ‘‘अगर तुम ने मेरी बात नहीं मानी तो तुम्हारा पति कम से कम 3 सालों के लिए जेल चला जाएगा. पुलिस ने उसे हंगामे के मुकदमे में नामजद किया है.’’

यह कहते हुए मेरी नजरें औरत के चेहरे पर जमी रहीं और मैं उसे पढ़ने की कोशिश कर रहा था. मैं ने आगे कहा, ‘‘अगर तुम चाहती हो कि तुम्हारा पति घर आ जाए तो तुम आज 4 बजे अमर कालोनी के स्टौप पर मुझे मिल जाना. स्टौप से थोड़ा हट कर खड़ी होना, जिस से मैं तुम्हें आसानी से पहचान सकूं. अगर तुम नहीं आईं तो मैं यही समझूंगा कि तुम अपने शौहर की रिहाई नहीं कराना चाहती.’’

औरत सिर झुकाए बैठी रही. उस के होंठ कांप रहे थे. लेकिन शब्द नहीं निकल रहे थे. मैं उस के जवाब की प्रतीक्षा करता रहा. जब उस ने कोई जवाब नहीं दिया तो मैं समझ गया कि चुप का मतलब रजामंदी है. मैं ने कहा, ‘‘तुम वहां अकेली ही आना. अगर कोई साथ होगा तो फिर तुम्हारा काम नहीं होगा.’’

उस ने सहमति में सिर हिला कर गर्दन झुका ली. लड़के के आने तक मैं उसे तसल्ली देता हुआ उस की खूबसूरती की तारीफें करता रहा. लेकिन उस ने मेरी तरफ देख कर जरा भी खुशी प्रकट नहीं की. वह मूर्ति की तरह बैठी मेरी बातें सुनती रही. लड़के के आने के बाद मैं ने उसे विदा करते हुए कहा, ‘‘मैं कोशिश करूंगा कि तुम्हारा पति कल तक छूट जाए.’’

दोनों के जाने के बाद मैं औफिस के कामों को निपटाने लगा, लेकिन मन में जो लड्डू फूट रहे थे, वे मुझे उलझाए हुए थे. ठीक 4 बजे मैं अपनी कार से अमर कालोनी के बसस्टौप पर पहुंच गया. दरवाजा खोल कर मैं बाहर निकलने ही वाला था कि उस औरत को अपनी ओर आते देखा. जालिम की चाल दिल में उतर जाने वाली थी.

थोड़ी देर में उस सुंदर चीज को पहलू में लिए मैं उस फ्लैट की ओर जा रहा था, जो मैं ने अपनी अय्याशियों के लिए ले रखा था. मेरी कार हवा से बातें कर रही थी. पूरे रास्ते न तो उस औरत ने होंठ खोले और न ही मैं ने कुछ कहा.

फ्लैट में पहुंच कर पहले मैं ने अपना हलक गीला किया, जिस से मजा दोगुना हो सके. जब अंदर का शैतान पूरी तरह से जाग उठा तो मैं ने उस की ओर हाथ बढ़ाते हुए कहा, ‘‘मुझे कतई विश्वास नहीं था कि तुम इतनी आसानी से मान जाओगी, मेरा ख्याल है कि तुम्हें अपने पति से बहुत ज्यादा प्यार है. तुम अपने प्यार को जेल जाते नहीं देख सकती थी.’’

मैं अपनी बातें कह रहा था और वह किसी पत्थर की मूर्ति की भांति निश्चल बैठी फर्श को ताके जा रही थी. मैं ने उस के कंधे पर हाथ रख कर अपनी ओर खींचा तो वह एकदम से बिस्तर पर गिर गई. गिरते ही उस ने अपनी आंखें बंद कर लीं. मुझे उस का यह अंदाज काफी पसंद आया.

अगले दिन शाम को 7 बजे के करीब जब मैं घर पहुंचा तो यह देख कर दंग रह गया कि वह औरत, एक आदमी और मेरी पत्नी लौन में बैठे चाय पी रहे थे. मुझे देखते ही वह आदमी उठ खड़ा हुआ और मेरे पास आ कर मेरे पैर छू लिए. मैं ने एक नजर औरत पर डाली. वह नजरें झुकाए खामोश बैठी थी.

मैं ने उस आदमी की ओर देखा तो उस की आंखों में मेरे प्रति आभार के भाव थे. वह मुझे बारबार धन्यवाद दे रहा था. वह कह रहा था, ‘‘साहब, आप बहुत बड़े आदमी हैं. यह एहसान मैं कभी नहीं भूल पाऊंगा.’’

अब मेरे अंदर उस का सामना करने का साहस नहीं रह गया था. मैं उस से पीछा छुड़ा कर घर में जाना चाहता था. लेकिन पत्नी ने पीछे से कहा, ‘‘कहां जा रहे हैं, जरा इधर तो आइए. यह बेचारी कितनी देर से आप का इंतजार कर रही है. आप ने इस का काम करा कर बडे़ पुण्य का काम किया है. आप की वजह से मेरा सिर गर्व से ऊंचा हो गया है. मैं बहुत खुश हूं.’’

मैं ने पलट कर एक नजर पत्नी की ओर देखा. वह सचमुच बहुत खुश दिख रही थी. मैं ने कहा, ‘‘मेरी तबीयत ठीक नहीं है. मैं थोड़ा आराम करना चाहता हूं.’’ कह कर मैं तेजी से दरवाजे में घुस गया.

बैडरूम में पहुंच कर मैं बिस्तर पर ढेर हो गया. कुछ देर बाद पत्नी मेरे कमरे में आई और बैड पर बैठ कर मेरे बालों में अंगुलियां फेरते हुए बोली, ‘‘तुम्हें कुछ पता है, वह बेचारी गूंगी थी, इसीलिए वह हमें नहीं बता पा रही थी कि उस पर क्या जुल्म हुआ था. इसीलिए आभार व्यक्त करने के लिए वह पति को साथ लाई थी. वह कह रहा था कि अगर उसे जेल हो जाती तो यह बेचारी कहीं की नहीं रह जाती. कोई उसे सहारा देने वाला नहीं था.’’

अब मुझ में इस से अधिक सुनने की ताकत नहीं रह गई थी. मैं अपनी शर्मिंदगी छिपाने के लिए तेजी से उठा और बाथरूम में घुस गया.

और वक्त बदल गया : क्या हुआ नीरज के साथ

नीरज की परेशानी दिन ब दिन बढ़ती जा रही थी. स्कूल के इम्तिहान खत्म हो चुके थे. ट्यूशन क्लासेज भी बंद हो गई थीं. अभी उस के सामने कई खर्चे खड़े थे- कमरे का किराया, घर का सामान. उस के पास इतने पैसे न थे कि सारे खर्च एकसाथ निबट जाते. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. नीरज को एकाएक खयाल आया कि मकानमालकिन मिसेज रेमन से बात की जाए, शायद कोई हल निकल आए. मिसेज रेमन उस 2 कमरों के मकान में अकेली ही रहती थीं. छत पर उस का कमरा था. वहां एक कमरा वाशरूम के साथ था. बरामदे को घेर कर छोटी सी रसोई बना दी थी. नीरज के लिए कमरा ठीकठीक था. उस की अच्छी गुजर हो रही थी. पिछले दिनों उस की बीमारी की वजह से पैसों की समस्या खड़ी हो गई थी. इलाज में पैसा खर्च हो गया और बचत न हो सकी.

शाम को वह मिसेज रेमन के दरवाजे की घंटी बजा रहा था. उन्होंने दरवाजा खोला और मुसकरा कर बोलीं, ‘‘हैलो यंगमैन, कैसे हो?’’ उस के जवाब का इंतजार किए बगैर उन्होंने प्यार से उसे बिठाया. उस के न कहने के बावजूद वे चाय ले आईं. फिर पूछा, ‘‘बताओ, कैसे आना हुआ?’’

नीरज ने धीमे से कहा, ‘‘मैम, आप को तो पता है मैं एमई कर रहा हूं और ट्यूशन कर के अपना खर्च चलाता हूं. छुट्टियों में कोई काम कर लेता हूं पर इस बार बीमारी के इलाज में खर्च ज्यादा हो गया, इसलिए इस महीने का किराया वक्त पर नहीं दे पाऊंगा. मुझे थोड़ी मोहलत दे दीजिए.’’

इस से पहले कभी नीरज से मिसेज रेमन को कोई शिकायत न थी. बहुत शिष्ट और शालीन था वह. किराया हमेशा वक्त पर देता था. मिसेज रेमन अच्छी महिला थीं, बोलीं, ‘‘कोई बात नहीं, जब तुम्हें सहूलियत हो तब किराया दे देना. तुम स्टूडैंट हो और बहुत अच्छे लड़के हो. इतनी रियायत तो मैं तुम्हें दे सकती हूं.’’

नीरज खुश हो गया, बोला, ‘‘बहुतबहुत शुक्रिया मैम.’’

वे बोलीं, ‘‘नीरज मेरे पास तुम्हारे लिए एक औफर है. मेरा एक स्टोर है. उस को मेरे एक पुराने मित्र मिस्टर जैकब देखते हैं. वे भी काफी उम्र के हैं. हिसाबकिताब में उन्हें परेशानी होती है. अगर तुम शाम को थोड़ा वक्त निकाल कर हिसाबकिताब देख लो तो तुम्हारे किराए के रुपए भी उसी में से कट जाएंगे और कुछ रुपए तुम्हें मिल भी जाएंगे.’’

नीरज ने तुरंत कहा, ‘‘ठीक है मैम, मैं कल से यह काम शुरू कर दूंगा. इस से मुझे बहुत मदद मिल जाएगी. मैं आप का बहुत एहसानमंद हूं.’’

दूसरे दिन से नीरज 1-2 घंटे स्टोर पर हिसाबकिताब वगैरा देखने लगा. मिस्टर जैकब बहुत सुलझे हुए और सहयोग करने वाले इंसान थे. बड़े अच्छे से उस का काम चलने लगा. महीना पूरा होने पर किराए के पैसे काट कर उसे कुछ रकम भी मिल गई. नीरज के सैमेस्टर शुरू हो गए. परीक्षाएं खत्म होने पर उसे सुकून मिला.

उस दिन वह अच्छे मूड में नीचे गार्डन में बैठा था कि मिसेज रेमन आ गईं. उस की परीक्षाएं खत्म होने की बात सुन कर वे बहुत खुश हुईं. उसे रात के खाने पर आमंत्रित किया. बहुत अच्छे माहौल में खाना खाया गया. उन्होंने बिरयानी बहुत अच्छी बनाई थी. बरसों बाद उसे किसी ने इतने प्यार से खाना खिलाया था. मिसेज रेमन ने छुट्यों में उसे 1-2 जगह और काम दिलाने का भी वादा किया.

रात को जब वह बिस्तर पर लेटा तो मिसेज रेमन के बारे में सोच रहा था. पर पता नहीं कैसे एक खूबसूरत चेहरा उस के खयालों में उभर आया. उस हसीन चेहरे को वह भूल जाना चाहता था. अपने अतीत को अपने जेहन से खुरच कर फेंक देना चाहता था. पर न जाने क्यों वह चेहरा बारबार उस की यादों में चला आता था. न चाहते हुए भी वह अतीत में डूब गया…

उस समय वह करीब 6 साल का था. एक बहुत खूबसूरत औरत, जो उस की मम्मी थी, उसे प्यार करती, उस का खयाल रखती. उस के पापा भी बहुत हैंडसम और डैश्ंिग थे. वे उसे घुमाने ले जाते, खिलौने दिलाते. पर एक बात से वह बहुत परेशान रहता कि अकसर किसी न किसी बात पर उस के मातापिता के बीच लड़ाई हो जाती, खूब तकरार होती. वह सहम कर अपने कमरे में छिप जाता. उस का मासूम दिल यह समझ ही नहीं पाता कि उस के मम्मीपापा क्यों झगड़ते हैं. फिर घर में खाना नहीं पकता. पापा गुस्से से बाहर चले जाते और खूब देर से घर लौटते. वह दूध और डबलरोटी खा कर सो जाता. इसी तरह दिन गुजर रहे थे. एक दिन दोनों के बीच बड़ी जोरदार लड़ाई हुई. फिर पापा जोरजोर से चिल्ला कर पता नहीं क्याक्या बक कर बाहर चले गए. मम्मी भी देर तक चिल्लाती रहीं. उस रात को पापा घर वापस लौट कर नहीं आए. दूसरे दिन आए तो फिर दोनों में तकरार शुरू हो गई. बीचबीच में उस का नाम भी ले रहे थे. फिर पापा सूटकेस में अपना सामान भर कर चले गए और कभी लौट कर नहीं आए. मम्मी का मिजाज बिगड़ा रहता.

3 महीने इसी तरह गुजर गए, फिर मम्मी एकदम, खुश दिखने लगीं. एक दिन एक बैग में उस का सामान पैक किया, फिर उस की मम्मी, जिस का नाम सोनाली था, ने कहा, ‘नीरज, मुझे विदेश में जौब मिल गई है. अब तुम मेरी कजिन नीता आंटी के साथ रहोगे. वे तुम्हारा बहुत खयाल रखेंगी. बेटा, तुम भी उन को तंग न करना.’ दूसरे दिन सोनाली उसे नीता आंटी के यहां छोड़ने गई.

नीरज किसी भी हाल में मम्मी को छोड़ना नहीं चाहता था. रोरो कर उस की हिचकियां बंध गईं. मम्मी भी रो रही थीं पर फिर वे आंचल छुड़ा कर चली गईं. नीरज उदास सा, हालात से समझौता करने को मजबूर था. उस के पास और कोई रास्ता न था.

उस का ऐडमिशन दूसरे स्कूल में हो गया. नीता आंटी का व्यवहार उस से अच्छा था. वे उसे प्यार भी करती थीं. अंकल बहुत कम बोलते, उसे अलग कमरे में अकेले सोना होता था. रात में सोते समय वह कई बार डर कर उठ जाता, तकिया सीने से लगाए रोरो कर रात काट देता. कोई ऐसा न था जो उसे उन काली रातों में उसे सीने से लगा कर प्यार करता. उसे समझ नहीं आता था, मां उसे छोड़ कर क्यों चली गईं? पापा कहां चले गए? दिन बीतते रहे. 10-12 दिनों बाद मम्मी उस से मिलने आईं. खिलौने, चौकलेट, कपड़े लाई थीं. उसे खूब प्यार किया और फिर उसे रोताबिलखता छोड़ कर मलयेशिया चली गईं.

जिंदगी एक ढर्रे पर चलने लगी. नीता आंटी उस का बहुत खयाल रखतीं. आंटी के यहां रहते हुए उसे कई बातें पता चलीं. आंटी की शादी को 8 साल हो गए थे. उन के यहां औलाद न थी. इसलिए उन्होंने उसे गोद लिया था. जैसेजैसे वह बड़ा होता गया, उसे सारी बातें समझ में आती गईं. कुछ बातें उसे नीता आंटी से पता चलीं. कुछ बातें उन की पुरानी बूआ कमला से पता चलीं. उस के मांबाप की कहानी भी उन्हीं लोगों से मालूम पड़ीं.

उस की मम्मी सोनाली बहुत खूबसूरत, चंचल और जहीन थीं. जब वे एमएससी कर रही थीं, उन की मुलाकात उस के पापा रवि से हुई. पहले दोस्ती, फिर मुहब्बत. दोनों के धर्म में फर्क था. दोनों के घरों से शादी का इनकार ही था. पर इश्के जनून कहां रुकावटों से रुकता है. दोनों की पढ़ाई पूरी होते ही उन दोनों ने सोचसमझ कर आपसी सहमति से अपना शहर छोड़ दिया और इस शहर में आ कर बस गए. सोनाली और रवि दोनों ही नए जमाने के साथ चलने वाले, ऊंची उड़ान भरने वाले परिंदे सरीखे थे. पुराने रीतिरिवाजों के विरोधी, नई सोच नई डगर, आजाद खयालों के हामी, उन दोनों ने ‘लिवइन रिलेशन’ में एकसाथ रहना शुरू कर दिया. विवाह उन्हें एक बंधन लगा.

उन का एजुकेशनल रिकौर्ड काफी अच्छा था. जल्द ही उन्हें अच्छी नौकरी मिल गई. जल्द ही उन्होंने जीवन की सारी जरूरी सुविधाएं जुटा लीं. एक साल फूलों की महक की तरह हलकाफुलका खुशगवार गुजर गया. फिर उन की जिंदगी में नीरज आ गया. शुरूशुरू में दोनों ने खुशी से जिम्मेदारी उठाई. दिन पंख लगा कर उड़ने लगे. सोनाली चंचल और आजाद रहने वाली लड़की थी. घर में सासससुर या कोई बड़ा होता तो कुछ दबाव होता, थोड़ा समझौता करने की आदत बनती. पर ऐसा कोई न था.

रवि बेहद महत्त्वाकांक्षी और थोड़ा स्वार्थी था. खर्च और काम बढ़ने से दोनों के बीच धीरेधीरे कलह होने लगी. पहले तो कभीकभार लड़ाई होती, फिर अंतराल घटने लगा. दोनों में बरदाश्त और सहनशीलता जरा न थी. फिर हर दूसरे, तीसरे दिन लड़ाई होने लगी. रवि के अपने मांबाप, परिवार से सारे संबंध टूट चुके थे और वे लोग उस से कोई संबंध रखना भी नहीं चाहते थे. उन के रवि के अलावा एक बेटा और एक बेटी थी. उन्हें डर था कि कहीं रवि के व्यवहार का दोनों बच्चों पर बुरा प्रभाव न पड़ जाए. जो लड़का प्यार की खातिर घरपरिवार छोड़ दे, उस से उम्मीद भी क्या रखी जा सकती है.

रिश्तेदारों से तो रवि पूरी तरह कट चुका था. कभी किसी दोस्त या सहयोगी के यहां कोई समारोह में शामिल होने का मौका मिलता, वहां भी कोई न कोई ऐसी बात हो जाती कि मन खराब हो जाता. कभी कोई इशारा कर के कहता, ‘यही हैं जो लिवइन रिलेशन में रह रहे हैं.’ या कोई कह देता, ‘इन लोगों की शादी नहीं हुई है, ऐसे ही साथ रहते हैं.’ उन दिनों लिवइन रिलेशन बहुत कम चलन में था. लोग इसे बहुत बुरा समझते थे. लोग खूब आलोचना भी करते थे.

रवि भी इस बात को महसूस करता था कि अगर समाज में घुलमिल कर रहना है तो समाज के बनाए उसूलों के अनुसार चलना जरूरी है. पर अब इन सब बातों के लिए बहुत देर हो चुकी थी. जो जैसा चल रहा था, वही अच्छा लगने लगा था.

सोनाली अपने परिवार की बड़ी बेटी थी. उस से छोटी 2 बहनें थीं. उस ने घर से भाग कर रवि के साथ रहना शुरू कर दिया. इन सब बातों की उस के मांबाप को खबर हो गई थी. बिना शादी के दोनों साथ रहते हैं, इस बात से उन्हें बहुत धक्का लगा. ऐसी खबरें तो पंख लगा कर उड़ती हैं. उन की 2 बेटियां कुंआरी थीं. कहीं सोनाली की कालीछाया उन दोनों के भविष्य को भी ग्रहण न लगा दे, यह सोच कर उन लोगों ने सोनाली से कोई संबंध नहीं रखा, न उस की कोई खोजखबर ली. वैसे भी, एक आजाद लड़की को क्या समझाना. इस तरह सोनाली भी अपने परिवार से अलग हो गई थी. उस की रिश्ते की एक बहन नीता इसी शहर में रहती थी. उस से मेलमुलाकात होती रहती थी. उस की शादी को 8 साल हो गए थे. उस की कोई औलाद न थी. वह बच्चे के लिए तरसती रहती थी.

इधर, रवि और सोनाली के बीच अहं का टकराव होता रहता. दोनों पढ़ेलिखे, सुंदर और जहीन थे. कोई झुकना न चाहता था. एक बात और थी, दोनों ही अपने परिवारों से कटे हुए थे. इस बात का एहसास उन्हें खटकता तो था पर खुल कर इस को कभी स्वीकार नहीं करते थे क्योंकि उन की ही गलती नजर आती. फिर सोशललाइफ भी कुछ खास न थी. इसी घुटन और कुंठा ने दोनों को चिड़चिड़ा बना दिया था.

नीरज की जिम्मेदारी और खर्च दोनों को ही भारी पड़ता. दोनों को अपनाअपना पैसा बचाने की धुन सवार रहती. नतीजा निकला रोजरोज की लड़ाई और अंजाम, रवि घर, नीरज और सोनाली को छोड़ कर चला गया. न कोई बंधन था, न कोई दवाब, न कोई कानूनी रोक. बड़ी आसानी से वह सोनाली और बच्चे को छोड़ चला गया. किसी से पता चला कि वह दुबई चला गया.

इधर, सोनाली भी बहुत महत्त्वाकांक्षी थी. उस ने भी दौड़धूप व कोशिश की. उसे मलयेशिया में नौकरी मिल गई. अब सवाल उठा बच्चे का. उस का क्या किया जाए. सोनाली भी अकेले यह जिम्मेदारी उठाना नहीं चाहती थी. अभी उस के सामने पूरी जिंदगी पड़ी थी. उस की कजिन नीता ने सुझाव दिया कि उस की कोई औलाद नहीं है, वह नीरज को अपने बेटे की तरह रखेगी. सोनाली ने नीरज को उसे दे दिया. एक मौखिक समझौते के तहत बच्चा उसे मिल गया. कोई कानूनी कार्यवाही की जरूरत ही नहीं समझी गई.

इस तरह मासूम नीरज, नीता आंटी के पास आ गया. बिना मांबाप के एक मांगे की जिंदगी गुजारने की खातिर. नीता आंटी उस का खूब खयाल रखती थीं, पढ़ाई भी अच्छी चल रही थी. जो बच्चे बचपन में दुख उठाते हैं, तनहाई और महरूमी झेलते हैं, वे वक्त से पहले सयाने और समझदार हो जाते हैं. नीरज ने अपना सारा ध्यान पढ़ाई में लगा दिया. एक ही धुन थी उसे कि कुछ बन कर दिखाना है. मेहनत और लगन से उस का रिजल्ट भी खूब अच्छा आता था.

दुख और हादसे कह कर नहीं आते. नीता आंटी का रोड ऐक्सिडैंट हो गया. 4-5 दिन मौत से संघर्ष करने के बाद वे चल बसीं. नीरज की तो दुनिया उजड़ गई. अब बूआ एकमात्र सहारा थीं. वे उस का बहुत ध्यान रखतीं. अंकल पहले से ही कटेकटे से रहते थे. अब और तटस्थ हो गए. धीरेधीरे हालात सामान्य हो गए. उस वक्त वह 10वीं में पढ़ रहा था. एक साल गुजर गया. आंटी की कमी तो बहुत महसूस होती पर सहन करने के अलावा कोईर् रास्ता न था. पहले भी वह अकेला था अब और अकेला हो गया.

उस के सिर पर आसमान तो तब टूटा जब अंकल दूसरी शादी कर के दूसरी पत्नी को घर ले आए. दूसरी पत्नी रेनू 30-31 साल की स्मार्ट औरत थी. कुछ अरसे तक वह चुपचाप हालात देखती और समझती रही और जब उसे पता चला, नीरज गोद लिया बच्चा है, तो उस के व्यवहार में फर्क आने लगा.

नीरज ने अपनेआप को अपने कमरे तक सीमित कर लिया. खाने वगैरा का काम बूआ ही देखतीं. डेढ़ साल बाद जब रेनू का बेटा पैदा हुआ तो नीरज के लिए जिंदगी और तंग हो गई. अब तो रेनू उसे बातबेबात डांटनेफटकारने लगी थी. खानेपीने पर भी रोकटोक शुरू हो गई. बासी बचा खाना उस के लिए रखा जाता. वह तो गनीमत थी कि बूआ उसे बहुत प्यार करती थीं, छिपछिपा कर उसे खिला देतीं.

धीरेधीरे रेनू ने अंकल के कान भरने शुरू कर दिए. अब नीरज उन की नजरों में भी खटकने लगा. बेवजह के ताने व प्रताड़ना शुरू हो गई. उस दिन तो हद हो गई, उसे एक किताब की जरूरत थी, उस ने अंकल से पैसे मांगे. इस बात को ले कर इतना बड़ा बखेड़ा खड़ा हो गया कि अतीत के सारे कालेपन्ने खोल कर उसे सुनाए गए. उस पर किए गए एहसान जताए गए, खर्च के हिसाब बताए गए. नीरज खामोश खड़ा सब सुनता रहा.  उस के पास कहने को क्या था? उस के मांबाप ने उसे ऐसी स्थिति में ला कर खड़ा कर दिया था कि शरम से उस का सिर झुक जाता था. अच्छे मार्क्स लाने के बाद उस की न कोई कद्र थी, न कोई तारीफ. 10वीं में उस के 97 फीसदी नंबर आए थे. स्कौलरशिप मिल रही थी. पढ़ाई के सारे खर्चे उसी में से पूरे हो जाते. कभीकभार किताबें वगैरा के लिए कुछ पैसे मांगने पड़ते थे. उस पर भी हंगामा खड़ा हो जाता.

उस दिन वह अपने कमरे में आ कर बेतहाशा रोया. उस के मांबाप ने अपनी मुहब्बत व अपने ऐश, अपनी सहूलियतों, अपने स्वार्थ के लिए उस की जिंदगी बरबाद कर दी थी. अगर उन दोनों ने विधिवत शादी की होती, अपनी जिम्मेदारी समझी होती तो ननिहाल या ददिहाल में से कोई भी उसे रख लेता. उस की जिंदगी यों शर्मसार न हुई होती. उसी दिन रात को उस ने तय किया कि 12वीं पास होते ही वह यह घर छोड़ देगा. अपने बलबूते पर अपनी पढ़ाई पूरी करेगा.

12वीं उस ने मैरिट में उत्तीर्ण की. पर घर में कोई खुशी मनाने वाला न था. रूखीफीकी मुबारकबाद मिली. बस, बूआ ने बहुत प्यार किया. अपने पास से मिठाई मंगा कर उसे खिलाई. हां, उस के दोस्तों ने खूब सैलिब्रेट किया. 2-4 दिनों बाद उस ने घर छोड़ दिया. पढ़ाई के खर्चे की उसे कोई फिक्र न थी. स्कौलरशिप मिल रही थी. एक अच्छे स्टूडैंट के लिए कुछ मुश्किल नहीं होती.

उस की परफौर्मेंस बहुत अच्छी थी. उस का ऐडमिशन एक अच्छे कालेज में हो गया. उस ने अपने एक दोस्त के साथ मिल कर कमरा किराए पर ले लिया और ट्यूशन कर के निजी खर्च निकालने लगा. उस का पढ़ाने का ढंग इतना अच्छा था कि उसे 10वीं के बच्चों की ट्यूशन

मिल गई. जिंदगी सुकून से गुजरने लगी. छुट्टियों में काम कर के कुछ और पैसे कमा लेता. बीई में उस ने पोजीशन ली. बीई के बाद उस के दोस्त ने जौब कर

ली और दूसरे शहर में चला गया. मकानमालिक को कमरे की जरूरत थी, उसे वह घर छोड़ना पड़ा. फिर थोड़ी कोशिश के बाद उसे मिसेज रेमन के यहां कमरा मिल गया. यह खूब पुरसुकून व अच्छी जगह थी. उस ने दुनिया के सारे शौक, सारे मजे छोड़ दिए थे. उस की जिंदगी का बस एक मकसद था, पढ़ाई और सिर्फ पढ़ाई. यहां भी वह ट्यूशन कर के अपना खर्च चलाता था. अब स्टोर में भी काम मिल गया, ये सब पुरानी बातें सोचतेसोचते वह नींद की आगोश में चला गया.

नीरज का यह फाइनल सैमेस्टर था. कैंपस सिलैक्शन में उसे एक अच्छी कंपनी ने चुन लिया. जीभर कर उस ने खुशियां मनाई. फाइनल होने के बाद उस ने वही कंपनी जौइन कर ली. शानदार पैकेज, बहुत सी सहूलियतें जैसे उस की राह देख रही थीं. मिसेज रेमन और मिस्टर जैकब को भी उस ने बाहर डिनर कराया. उन दोनों ने भी उसे तोहफे व दुआएं दे कर उस का हौसला बढ़ाया. मिसेज रेमन ने एक मां की तरह प्यार किया. बूआ को साड़ी व पैसे दिए.

वक्त और हालात बदलते देर नहीं लगती. आज वह 6 साल का मजबूर व बेबस बच्चा न था, 24 साल का खूबसूरत, मजबूत और समृद्ध जवान था. एक शानदार घर में रह रहा था. दुनिया की सारी सुखसुविधाएं उस के पास थीं. पर फिर भी उस की आंखों में उदासी और जिंदगी में तनहाई थी. वह हर वीकैंड पर मिसेज रेमन से मिलने जाता. वही एकमात्र उस की दोस्त, साथी या रिश्तेदार थीं. अच्छा वक्त तो वैसे भी पंख लगा कर उड़ता है.

उस दिन शाम को वह लौन में बैठा चाय पी रहा था कि गेट पर एक टैक्सी आ कर रुकी. उस में से एक सांवली सी अधेड़ औरत उतरी और गेट खोल कर अंदर चली आई. नीरज उस महिला को पहचान न सका, फिर भी शिष्टाचार के नाते कहा, ‘‘बैठिए, आप कौन हैं?’’ उस औरत की आंखें गीली थीं. चेहरे पर बेपनाह मजबूरी और उदासी थी. उस ने धीरेधीरे कहना शुरू किया, ‘‘नीरज, तुम ने मुझे पहचाना नहीं. मैं सोनाली हूं, तुम्हारी मम्मी.’’

नीरज भौचक्का रह गया. कहां वह जवान और खूबसूरत औरत, कहां यह सांवली सी अधेड़ औरत. दोनों में बड़ा फर्क था. ‘मम्मी’ शब्द सुन कर नीरज के मन में कोई हलचल न हुई. उस की सारी कोमल भावनाएं बर्फ की तरह सर्द हो कर जम चुकी थीं. अब दिल पर इन बातों का कोई असर न होता था. उस ने सपाट लहजे में कहा, ‘‘कहिए, कैसे आना हुआ? आप को मेरा पता कहां से मिला?’’

‘‘बेटा, मैं दूर जरूर थी पर तुम से बेखबर न थी. तुम्हारा रिजल्ट, तुम्हारी कामयाबी, नौकरी सब की खबर रखती थी. इंटरनैट से दुनिया बहुत छोटी हो गई है. जीजाजी से मिसेज रेमन का पता चला. उन से तुम्हारे बारे में मालूम हो गया. इस तरह तुम तक पहुंच गई. मैं जानती हूं, मेरा तुम से माफी मांगना व्यर्थ है क्योंकि जो कुछ मैं ने किया है उस की माफी नहीं हो सकती. तुम्हारा बचपन, तुम्हारा लड़कपन, मेरी नादानी और मेरे स्वार्थ की भेंट चढ़ गया. मैं ने जज्बात में आ कर गलत फैसला किया. न मैं खुश रह सकी न तुम्हें सुख दे सकी. मैं ने वह खिड़की खुद ही बंद कर दी जहां से ताजी हवा का झोंका, मुहब्बत की ठंडी फुहार मेरे तपते वजूद की तपिश कम कर सकती थी. मैं ने थोड़े से ऐश की खातिर उम्रभर के दुखों से सौदा कर लिया. अब सिर्फ पछतावा ही मेरी जिंदगी है.’’

‘‘ठीक है, सोनाली मैम, जो आप ने किया, सोचसमझ कर किया था. आज से 30-32 साल पहले ‘लिवइन रिलेशनशिप’ इतनी आम बात न थी. बहुत कम लोग यह कदम उठाते थे. आप उस समय इतनी बोल्ड थीं, आप ने यह कदम उठाया. फिर उस को निभाना था. एक बच्चे को जन्म दे कर आप ने उस की जिंदगी के साथ खिलवाड़ किया. न मेरा कोई ननिहाल रहा, न ददिहाल. मैं ने कैसे खुद को संभाला, यह मैं जानता हूं.

‘‘जिस उम्र में बच्चे मां के सीने पर सिर रख कर सोते हैं उस उम्र में मैं ने तकिए से लिपट कर रोरो कर रातें काटी हैं. आप ने और पापा ने सिर्फ अपने ऐश देखे. एक पल को भी, उस बच्चे के बारे में न सोचा जिसे दुनिया में लाने के आप दोनों जिम्मेदार थे. अब मेरी मासूमियत, मेरा बचपन, मेरी कोमल भावनाएं सब बेवक्त मर चुकी हैं.’’

‘‘नीरज, तुम जो भी कह रहे हो, एकदम सच है. मैं ने हर कदम सोचसमझ कर उठाया था. पर उस के अंजाम ने मुझे ऐसा सबक सिखाया है कि हर लमहा मैं खुद को बुराभला कहती हूं. मलयेशिया में मैं ने दूसरी शादी की थी. पर 6 साल तक मुझे औलाद न हुई तो उस ने मुझे तलाक दे दिया. उसे औलाद चाहिए थी और मैं मां न बन सकी. औलाद की बेकद्री की मुझे सजा मिल गई. मैं औलाद मांगती रही, मेरे बच्चा न हुआ. सारे इलाज कराए. यहां औलाद थी तो मैं ने दूसरों को दे दी. मेरे गुनाहों का अंत नहीं है.

‘‘मुझे कैंसर है. थोड़ा ही वक्त मेरे पास है. मैं अपने गुनाहों का, अपनी भूलों का प्रायश्चित्त करना चाहती हूं. अब मैं तुम्हारे पास रहना चाहती हूं. मैं तनहाई से तंग आ गई हूं. मुझे तुम्हारी तनहाई का भी एहसास है. पैसा है मेरे पास, पर उस से तनहाई कम नहीं होती. भले तुम मुझे खुदगर्ज समझो पर यह मेरी आखिरी ख्वाहिश है. एक बार मुझे मेरी गलतियां सुधारने का मौका दो. अपनी बेबस व मजबूर मां की इतनी बात रख लो.’’

नीरज सोच में पड़ गया. एक बार दिल हुआ, मां को माफ कर दे. दूसरे पल संघर्षभरे दिन, अकेले रोतेरोते गुजारी रातें याद आ गईं. उस ने धीमे से कहा, ‘‘सोनाली मैम, इतने सालों से मैं बिना रिश्तों के जीने का आदी हो गया हूं. रिश्ते मेरे लिए अजनबी हो गए हैं. मुझे थोड़ा वक्त दीजिए कि मैं अपने दिल को रिश्ते होने का यकीन दिला सकूं, अपनों के साथ जीने का तरीका अपना सकूं.

‘‘इतने सालों तक तपते रेगिस्तान में झुलसा हूं, अब एकदम से ठंडी फुहार बरदाश्त न कर सकूंगा. मुझे अपनेआप को ‘मां’ शब्द से मिलने का, समझने का मौका दीजिए. अभी मुझे नए तरीकों को अपनाने में थोड़ी हिचकिचाहट है. जैसे ही मुझे लगेगा कि मैं ने मां को पहचान लिया है, मैं आप को खबर कर के लेने आ जाऊंगा. आप अपना फोन नंबर और पता मुझे दे जाइए.’’

सोनाली ने एक उम्मीदभरी नजर से बेटे को देखा. उस की आंखें डबडबा गईं. वह थकेथके कदमों से गेट की तरफ मुड़ गई.

हनीमून : क्या था मुग्धा का प्लान

आशीष को परेशान करने के लिए वह जल्दीजल्दी अपनी मां के पास जाने की जिद करती, परंतु वह बिना किसी नानुकुर के उस की फ्लाइट की टिकट बुक करवा देता. उस की उपेक्षा और तिरस्कार का आशीष पर कोई प्रभाव ही नहीं पड़ता. वह तो अपनी पत्नी की सुंदरता पर मुग्धभाव से मुसकराता रहता. हर क्षण उस की प्रसन्नता के लिए प्रयास करता रहता.

वह उसे अंटशंट बोलती व प्रताडि़त करने के अवसर खोजती रहती. खाली समय में अपने एहसान के खयालों में खोई रहती. सुधाकर को मुग्धा का जल्दीजल्दी आना अच्छा नहीं लगा था. एक दिन वे पत्नी से बोले थे, ‘अपनी लाड़ली को समझाओ, पति के घर रहने की आदत डाले. ‘वह तो हम लोगों का समय अच्छा है कि हमें इतना अच्छा दामाद मिला है, जो उस की हर इच्छा को पूरी करता है.

‘मैं तो यही चाहता हूं कि वह आशीष के प्यार को समझे.’

‘आप ने अपनी बेटी के प्यार को समझा था? आप को उस की हर बात से परेशानी होती है. पहले आप ने बिना उस की रजामंदी के शादी करवा दी. अब आप चाहते हैं कि वह तुरंत उसे अपना ले जबकि आप अच्छी तरह जानते हैं कि बचपन से ही काले रंग के लोगों से वह नफरत करती है. आप को याद नहीं है, पहले मैं भी तो जल्दीजल्दी मायके जाने की जिद करती थी. उस को समय दीजिए, वह आशीष के प्यार की कद्र करने लगेगी.’

‘मैं भी तो यही चाहता हूं कि वह पति के प्यार को समझे, उसे इज्जत दे और उसे प्यार भी करे,’ वे नाराज हो उठे थे, ‘ठीक है, तुम उसे शह देती रहो. जब शादी टूट जाए और दोनों के बीच तलाक हो जाए तो मेरे कंधे पर सिर रख कर मत रोना कि अब क्या करूं? समाज में सब के सामने, मेरी इज्जत खराब हो गई. तुम्हीं तो उस दिन कह रही थीं कि गीता भाभी कह रही थीं कि क्या बात है, मुग्धा की पति से बनती नहीं है क्या?’

‘ऐसा नहीं होगा. लोगों की तो आदत होती है दूसरों के फटे में हाथ डालने की.’

मुग्धा कमरे के बाहर से सब बातें सुन रही थी. वह तमक कर बोली थी, ‘पापा, आप ने मेरी शादी करवा कर समाज में अपनी इज्जत जरूर बचा ली परंतु आप ने कभी यह नहीं सोचा कि काले, बदसूरत और नापसंद आदमी के साथ एक घर में रह कर वह रोज कितनी तकलीफ से गुजरती होगी.

‘आप ने हमेशा अपने बारे में सोचा, समाज क्या कहेगा, यह सोचा. मेरे प्यार, मेरी चाहत और मेरे जख्मों के बारे में कभी नहीं सोच पाए. आप स्वार्थी हैं. यदि मेरे बारबार आने से आप की समाज में बदनामी होती है तो अब मैं नहीं आया करूंगी. आज से मैं आप से रिश्ता तोड़ती हूं.’ वह नाराज हो कर चली गई थी. उस के बाद से मुग्धा न तो कभी उन के पास आई और न ही अपने पापा से कभी फोन पर बात की.

उस का जीवन निरुद्देश्य था. वह टीवी सीरियल्स से सिर फोड़ती या अपने फोन पर उंगलियां चलाती और सब से थकहार कर वह  आशीष को कोसना शुरू कर देती. ‘उफ, मुझे इस आबनूसी अफ्रीकन से मुक्त कर दो,’ वह मन ही मन सोचती रहती, ‘इस का ऐक्सिडैंट क्यों नहीं हो जाता, यह मर क्यों नहीं जाता.’

आशीष सुंदर पत्नी के प्रेम में पागल औफिस से बारबार उसे फोन करता रहता. उस का दिल हर समय डरता रहता कि जब वह औफिस से शाम को घर लौटे तो कहीं वह घर से नदारद हो कर अपने प्रेमी की बांहों में न पहुंच चुकी हो.

जब कभी वह औफिस से रात में देर से घर आता तो वह पूछ लेता, ‘मुग्धा, मैं देर से आता हूं तो तुम परेशान हो जाती होगी?’ हमेशा वह तपाक से बोलती, ‘भला, मैं क्यों परेशान होंगी? जाना चाहो तो हमेशा के लिए जा सकते हो.’

वह हर क्षण उस के अहं पर चोट पहुंचाती कि वह अब नाराज होगा. परंतु वह अपना हौसला नहीं छोड़ता. उस के चेहरे पर हर पल मुसकराहट बनी रहती. कुछ दिनों बाद एक दिन वह बोला, ‘मुग्धा, तुम दिनभर घर में बोर होती होगी, इसलिए तुम्हारे लिए मैं ने एक जौब की बात की है. तुम घर से निकलोगी तो वहां चार लोगों से मिलनाजुलना होगा तो तुम्हें अच्छा लगेगा. तुम्हें दिनभर की बोरियत से छुटकारा मिलेगा.’

आज एक पल को वह सोचने को मजबूर हो गई थी कि यह आदमी उस के बारे में कितना सोचता रहता है. वह बचपन से ही शिक्षाकार्य से जुड़ने का सपना देखती रहती थी. परंतु दिखाने के लिए एहसान जताते हुए वह बोली थी, ‘अब आप ने बात कर ली है तो ठीक है, चलिए, मैं इंटरव्यू दे दूंगी. केवल आप की इच्छा पूरी करने के लिए.’

आज वह एक अरसे बाद ढंग से तैयार हुई थी. आईने में अपने ही अक्स को देख कर वह अपनी सुंदरता पर रीझ उठी थी. परंतु अपने साथ आशीष को देखते ही उस का मूड खराब हो गया था.

आशीष भी अपने को नहीं रोक पाया था और हिचकिचाहट के साथ उस के माथे पर प्यार की मुहर लगाते हुए बोला था, ‘मुग्धा, तुम सच में मुझे मुग्ध कर देती हो.’ आज वह नाराज होने की जगह शरमा गई थी. शादी का एक साल पूरा हो चुका था. उसे अब आशीष की आदतें भाने लगी थीं. वह कालेज जाने लगी थी. वहां जा कर वह खुश रहने लगी थी. वह आशीष के साथ हंस कर बातें भी करने लगी थी.

एक शाम वह बिना बताए उसे लेने के लिए कालेज पहुंच गया था. उस समय वह अपने साथियों के साथ किसी बात पर जोरजोर से ठहाके लगा रही थी. उस को देखते ही वह गंभीर हो उठी थी और बुरा सा मुंह बना कर बोली थी, ‘क्यों, मुझे चैक करने आए थे?’

‘ऐसा क्यों कह रही हो?’

‘आज तुम्हारा बर्थडे है न, इसलिए सुबह ही तो शौपिंग की बात हुई थी. आज खाना भी बाहर ही खा लेंगे.’

‘ओके, ओके.’

शौपिंग के नाम से उस की आंखें चमक उठी थीं. बहुत दिनों बाद आज उस ने कई सारी ब्रैंडेड ड्रैसेज पसंद कर ली थीं. वह ट्रायलरूम से पहनपहन कर आशीष को दिखा कर पूछ भी रही थी, ‘कैसी लग रही हूं.’

फिर वह बोली थी, ‘बिल ज्यादा हो गया हो तो मैं ड्रैसेज कम कर दूं.’

प्रसन्नता से अभिभूत आशीष बोला था, ‘नहींनहीं, 2-4 और लेनी हो तो ले सकती हो. एक लाल रंग की सुंदर सी ड्रैस हाथ में उठा कर वह बोला था, यह वाली तुम पर बहुत फबेगी. यह मेरी ओर से ले लो.’ वह खुश हो कर बोली थी, ‘अरे, इस पर तो मेरी नजर ही नहीं पड़ी थी. सच में, यह तो सब से अधिक सुंदर ड्रैस है.’ आज पहली बार उस ने आशीष को प्यारभरी नजरों से देखा था.

‘मुग्धा इसी तरह मुसकराती और खुश रहा करो तो तुम बहुत सुंदर लगती हो.’

समय के अंतराल से दोनों के बीच की दूरियां कम होने लगी थीं. अब वह आशीष को स्वीकार करने लगी थी. दोनों के बीच पनपते हुए रिश्ते का फल मुग्धा के जीवन में अंकुरित होने लगा था. नवजीवन की सांसों की अनुभूति से आशीष के प्रति वह समर्पित अनुभव करने लगी थी. उस के  प्रति क्रोध और नफरत के स्थान पर प्यार पनपने लगा था.

आशीष पापा बनने वाला है, यह जान कर चमत्कृत था. उस की खुशी का ठिकाना नहीं था. उस ने तो मुग्धा के पांवों तले फूल बिछा दिए थे. उस की दीवानगी ने सारी सीमाएं पार कर दी थीं. उस समय उस ने मीरा को उस की देखभाल के लिए बुलाया था.

मीरा बेटी के पास आईं तो आशीष की मुग्धा के  लिए दीवानगी और प्यार देख कर गदगद हो उठी थीं. उन्होंने मुग्धा को बताया था कि एहसान शादी कर के अपने जीवन में आगे बढ़ चुका है, इसलिए अब उसे भी कसम खानी पड़ेगी कि वह भी आशीष के साथ प्यार व इज्जत के साथ रहेगी. यद्यपि कि वह भी आशीष से प्यार करने लगी थी परंतु आदत के अनुसार, पति के सामने आते उस की जबान कड़वाहट उगलने लगती थी.

एक दिन अंतरंग क्षणों में वह मुग्धा से बोला था, ‘मुझे तो बेटी चाहिए और वह भी तुम्हारी तरह सुंदर और प्यारी सी. यदि बेटा हो गया, वह भी मेरी तरह शक्लसूरत और काले रंग का तब तो तुम्हारे लिए बेटा भी दंडस्वरूप हो जाएगा क्योंकि अभी तो तुम्हें एक ही काले, बदसूरत आशीष को अपने इर्दगिर्द देखना पड़ता है. यदि बेटा भी ऐसा हो जाएगा तब तुम्हारे चारों तरफ बदशक्ल कुरूपों का जमावड़ा हो जाएगा और तुम्हारे लिए इस से बड़ी सजा अन्य कुछ हो ही नहीं सकती.’

मुग्धा द्रवित हो उठी थी. उस ने उस के मुंह पर अपना हाथ रख दिया था, ‘प्लीज, मेरी गलतियों के लिए मुझे माफ कर दो.’ समयानुसार उस की गोद में उस की हमशक्ल परी सी बेटी आ गई थी. मीरा बेटी को समझाबुझा कर लौट गई थीं.

एक दिन आशीष को बहुत जोर का बुखार आ गया था. वह बेहोशी में भी मुग्धामुग्धा पुकार रहा था. उस की बिगड़ती हालत देख आज वह पहली बार अपने को असहाय अनुभव कर रही थी. वह डाक्टर को फोन करते ही आशीष के लंबे जीवन व स्वास्थ्य की कामना करने लगी थी.

अब वह आशीष को दिल से चाहने लगी थी. जिस काले, बदशक्ल व्यक्ति से वह नफरत करती थी, वही अब उस का सर्वस्व बन चुका था. औफिस से आने पर उसे जरा भी देर होती तो वह पलपल में उसे फोन करती रहती. एक दिन वह आशीष से बोली थी, ‘आशीष, मैं ने तुम्हारा हनीमून बरबाद कर दिया था और उस के बाद भी मैं ने तुम्हें बहुत परेशान किया है, इसलिए मैं अब दोबारा उन्हीं पलों को उन्हीं जगहों पर जी कर एक नई शुरुआत करना चाहती हूं.’

‘ओके डियर, आप अपनी छुट्टी के लिए अप्लाई कर दीजिएगा.’

‘मैं ने आप को सरप्राइज देने के लिए सब बुकिंग करवा ली हैं.’

हर्षातिरेक में आशीष उसे बांहों में भर अपने प्यार की मुहर लगा कर हनीमून के बारे में सोचते हुए तेजी से औफिस के लिए निकल गया था. उसी रात हुए इस हादसे से मुग्धा की मनोस्थिति जड़वत हो गई थी. वह निरुद्देश्य, निराधार आईसीयू के बाहर चहलकदमी कर रही थी.

सुधाकर और मां मीरा को देखते ही वह अपने पापा के कंधे से लिपट कर बिलखबिलख कर रोने लगी थी. वह अस्फुट शब्दों में बोली, ‘‘पापा, प्लीज मेरे आशीष को बचा लीजिए. अभी तो मैं ने उसे प्यार करना शुरू ही किया है. मुझे उस के साथ हनीमून पर जाना है.’’

सुधाकर स्वयं को संभाल नहीं पा रहे थे. वे भी रोतेरोते बोले थे, ‘‘कुछ नहीं होगा तेरे आशीष को, तेरा प्यार जो उस के साथ है.’’ सिसकियों के साथ संज्ञाशून्य होतेहोते उस के मुंह से ‘हनीमून पर जाना है,’ निकल रहा था. वहां खड़े सभी लोगों की आंखों से बरबस आंसू निकल पड़े थे.

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