समझौता : क्या जूही ने खुद के साथ समझौता किया?

डाक्टर के हाथ से परचा लेते ही जूही की आंखों के आगे अंधेरा छाने लगा. बेचारी आज बहुत परेशान थी. होती भी क्यों न, मां को कैंसर की बीमारी जो थी. इधर 6 महीने से तो उन की सेहत गिरती ही जा रही थी. वे बेहद कमजोर हो गई थीं.

पिछले महीने मां को अस्पताल में भरती कराना पड़ा. ऐसे में पूरा खर्चा जूही के ऊपर आ गया था. मां का उस के अलावा और कौन था. पिता तो बहुत पहले ही चल बसे थे. तब से मां ने ही जूही और उस के दोनों भाइयों को पालापोसा था.

तभी जूही के कानों में मां की आवाज सुनाई दी, ‘‘बेटी जूही, जरा पानी तो पिला दे. होंठ सूखे जा रहे हैं मेरे.’’

अपने हाथों से पानी पिला कर जूही मां के पैर दबाने लगी. परचा पकड़ते ही वह परेशान हो गई, ‘अब क्या करूं?’

रिश्तेदारों ने भी धीरेधीरे उन से कन्नी काट ली थी. जैसेजैसे वक्त बीतता जा रहा था, खर्चे तो बढ़ते ही जा रहे थे. सबकुछ तो बिक गया था. अब क्या था जूही के पास?

तभी जूही को सुभाष का ध्यान आया. उस की परचून की दुकान थी. वह शादीशुदा और 2 बच्चों का बाप था. जूही उस की दुकान की तरफ चल दी.

सुभाष जूही को देख कर चौंका और उस के अचानक इस तरह से आने की वजह पूछी, ‘‘आज मेरी याद कैसे आ गई?’’ कह कर सुभाष उस की कमर पर हाथ फेरने लगा.

जूही ने कहा, ‘‘वह… लालाजी… मां की तबीयत काफी खराब है. मैं आप से मदद मांगने आई हूं. दवा तक के पैसे नहीं हैं मेरे पास,’’ कहते हुए वह हिचकियां ले कर रोने लगी.

जूही की मजबूरी में सुभाष को अपनी जीत नजर आई, ‘‘बोल न क्या चाहती है? मैं तो हर वक्त तैयार हूं. बस, तू मेरी इच्छा पूरी कर दे,’’ बोलते हुए सुभाष ने उस की तरफ ललचाई नजरों से ऐसे देखा, जैसे कोई गिद्ध अपने शिकार को देखता है.

जूही सुभाष की आंखों में तैर रही हवस को पढ़ चुकी थी. वह तो खुद ही समर्पण के लिए आई थी. हालात से हार मान कर वह उस के सामने जमीन पर बैठ गई. आखिर चारा भी क्या था, उस के पास सम?ौते के सिवा. जीत की खुशबू पा कर सुभाष की हवस दोगुनी हो गई थी. उस ने अपने मन की कर डाली.

थोड़ी देर बाद सुभाष ने जूही को रुपए देते हुए कुटिल मुसकराहट के साथ कहा, ‘‘कभी भी, कैसी भी जरूरत हो, मैं तुम्हारी मदद के लिए तैयार हूं. बस, एक रात के लिए तू मेरे पास आ जाना.’’

खुद को ठगा हुआ महसूस करते हुए जूही वापस अस्पताल आ गई. उस ने दवा और अस्पताल के बिल चुकाए. वह मन ही मन सोच रही थी, ‘आज तो मैं ने सम?ौता कर के मां की दवाओं का इंतजाम कर दिया, लेकिन अब आगे क्या होगा?’

यही नहीं, जूही को अपने दोनों भाइयों की पढ़ाई और खानेपीने के खर्च की भी चिंता सताने लगी थी.

अब जब भी पैसों की जरूरत होती, जूही सुभाष के पास चली जाती और कुछ दिन के लिए परेशानी आगे टल जाती. वह अकसर अपने को दलदल में फंसा हुआ महसूस करती, लेकिन जानती थी कि रुपएपैसे के बिना गुजारा नहीं है.

धीरेधीरे मां की सेहत में सुधार होने लगा. भाइयों की पढ़ाई भी पूरी हो गई. नौकरी मिलते ही दोनों भाइयों ने अपनीअपनी पसंद की लड़कियों से शादी कर ली.

मां ने जब भाइयों से घर की जिम्मेदारी लेने को कहा, तो उन्होंने खर्चा देने से मना कर दिया. अपनी जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ कर वे अलग हो गए.

घर का खर्च, मां की बीमारी, डाक्टर की फीस व दवाओं का खर्च… इन जिम्मेदारियों को निभाने के लिए जूही को बस एक सहारा दिखता था सुभाष.

लेकिन, जूही अब थक कर टूट चुकी थी. एक दिन मां ने उसे उदास देखा तो वे पूछे बिना न रह सकीं, ‘‘क्या हुआ आज तुझे? तू इतनी चुप क्यों हैं?’’ और उस की पीठ पर प्यार भरा हाथ फेरा.

जूही सिसकसिसक कर रोने लगी. वह मां से लिपट कर बहुत रोई. मां हैरान भी हुईं और परेशान भी, क्योंकि सिर्फ वे ही जानती थीं कि जूही ने इस घर के लिए क्याक्या कुरबानियां दी हैं.

कुछ दिन बाद जूही की मां हमेशा के लिए इस दुनिया से चली गईं. उन के जाने के बाद जूही बहुत अकेली रह गई. इधर सुभाष को भी उस में कोई खास दिलचस्पी नहीं रह गई थी. जिस मकान में जूही रहती थी, वह भी बिक गया. सब सहारे साथ छोड़ कर जा चुके थे.

जूही ने एक कच्ची बस्ती में एक छोटा सा कमरा किराए पर ले लिया और लोगों के घरों में रोटी बनाने लगी. रोज सपने बुनती, जो सुबह उठने तक टूट जाते थे, फिर भी उस ने हिम्मत नहीं हारी. पर शरीर भी कब तक साथ देता.

अब जूही बीमार रहने लगी थी. तेज बुखार होने की वजह से एक दिन सांसें थमीं तो दोबारा चालू ही नहीं हो पाईं. आज उस ने फिर एक नया सम?ौता किया था मौत के साथ. वह मौत के आगोश में हमेशाहमेशा के लिए चली गई थी…

A टू Z: जाने सेक्स के बारे में सबकुछ

सेक्स हमारे जीवन का एक अहम हिस्सा होता है. सेक्स का नाम सुनते ही सभी लोगों का मन रोमांच से भर जाता है. आप पहली बार सेक्स कर रहें हों या इसको कई बार कर चुके हों, परंतु आपके मन में सेक्स को लेकर कई तरह के सवाल होते हैं. कई लोग सेक्स को सुरक्षित बनाने के तरीके खोजते हैं और दूसरी ओर कुछ लोग सेक्स को रोमांचक करने के उपाय जानना चाहते हैं. सेक्स को लेकर लोगों के मन में विभिन्न प्रकार के सवाल उठते हैं, लेकिन सेक्स करने के तरीके को लेकर सबसे अधिक सवाल होते हैं. आपके इसी सवाल के जवाब को नीचे विस्तार पूर्वक बताया जा रहा है.

योनि सेक्स (सेक्सुअल इंटरकोर्स) क्या है     

योनि के माध्यम से की गई संभोग क्रिया को ही योनि सेक्स कहा जाता है. इसमें महिलाओं की योनि को सेक्स के केंद्र में रखा जाता है और पुरुष सेक्स के दौरान अपनी सभी क्रिया को इसी अंग में करता है.

आम तौर से एक पुरुष और महिला के बीच सेक्स को ही “सेक्सुअल इंटरकोर्स” (Sexual Intercourse) कहा जाता है. इसमें पुरुष का उत्तेजित लिंग महिला की योनि में प्रवेश करता है. सेक्सुअल इंटरकोर्स यौन सुख या बच्चा पैदा करने के लिए किये जाता है.

भारत में 18 वर्ष से कम आयु के व्यक्ति के साथ सेक्स (संभोग) करना गैर कानूनी है. चाहे उनकी यौन सहमति हो भी, आप जिनके साथ यौन सम्बन्ध बनाना चाहते हैं, उनकी उम्र 18 से ज्यादा होना कानूनी तौर से अनिवार्य है.

सेक्स करने का तरीका

सेक्स वैसे तो कई तरीकों से किया जा सकता है. लेकिन हम यहां पर सामान्य तरह के सेक्स, यानी एक पुरुष और महिला के बीच लिंग और योनि के मिलन (सेक्सुअल इंटरकोर्स) की बात कर रहें. सेक्सुअल इंटरकोर्स का कोई एक निश्चित तरीका नहीं है, मगर फिर भी आप इसको करने से पहले कई तरह की तैयारियां कर सकते हैं.

इसको करने के लिए सबसे जरूरी बात यह है कि इसमें शामिल होने वाले दोनों ही साथी सेक्स को लेकर उत्साहित हों और साथ ही साथ इस क्रिया में किसी पर कोई दबाव न हो. अगर आप दोनों इस क्रिया का पूरा आनंद लेना चाहते हैं, तो आप दोनों को एक दूसरे की सहमति लेना बेहद जरूरी होता है. इसमें साथी की सहमति व उसके विचार जान लेना बेहद ही जरूरी होता है.

आइये आगे आपको बताएं सेक्स करने का तरीका –

  1. सेक्स करने का तरीका है पहले फोरप्ले करना

फोरप्ले एक ऐसी क्रिया है जिसको सेक्स से पहले किया जाता है. इसमें पुरुष और महिला एक दुसरे के शरीर को सेक्स करने के लिए तैयार करते हैं. इसमें किस करना, प्यार से छूना व महिला के संवेदनशील अंगों को जीभ से छूने की क्रिया को शामिल किया जाता है.

इससे महिलाओं की योनि में प्राकृतिक सेक्स लुब्रिकेंट बनना शुरू हो जाता है, जबकि पुरुष के लिंग में उत्तेजना आ जाती है. इन सभी संकेतों से पता चलता है कि महिला व पुरुष दोनों ही सेक्स के लिए तैयार हो गए हैं. फोरप्ले करने से दोनों जल्द ही यौन संबंध के चरम सुख के एक नए शिखर पर पहुंच जाते हैं. इस तरह सेक्स के दौरान फोरप्ले अहम भूमिका निभाता है.

  1. सेक्स कैसे भी करें लेकिन कंडोम जरूर लगाएं

सेक्स के लिए पुरुषों को कंडोम का इस्तेमाल करना चाहिए. लिंग और योनि के संपर्क में आने से पहले पुरुष को लिंग पर कंडोम लगा लेना चाहिए. इससे दोनों के लिए यौन संचारित रोग होने की संभावना कम हो जाती है. साथ ही, कंडोम का इस्तेमाल एक अच्छा अनचाहा गर्भ रोकने का उपाय है.

पुरुषों को स्खलन से पूर्व व महिला के साथ सेक्स करने से पूर्व कंडोम का उपयोग करना चाहिए. अगर आपकी महिला साथी सेक्स से पूर्व कंडोम का इस्तेमाल चाहती हैं तो उनको करीब आठ घंटे पहले इसका उपयोग करना होगा.

  1. सेक्स करने की सही पोजीशन का चयन करें

सेक्स को करने के लिए कई तरह की सेक्स पोजीशन को अपनाया जा सकता है. लेकिन यह कहना सही नहीं होगा कि कोई निश्चित सेक्स पोजीशन या सेक्स आसन सभी को आनंद प्रदान करने वाला होता है. सामान्यतः सेक्स के दौरान यह देखा जाता है कि महिला नीचे लेट जाती है और पुरुष उनके ऊपर लेटते हुए सेक्स करते हैं. इस पोजीशन को मिशनरी पोजीशन भी कहते हैं. अधिकतर दम्पति इस तरह की पोजीशन को ही अपनाते हैं.

इसके अलावा सेक्स पोजीशन में महिलाओं को पुरुषों के ऊपर आने वाली भी कई तरह की पोजीशन है. इसके अतिरिक्त दोनों साथियों का साथ में एक दूसरे की साइड व आगे-पीछे लेटने वाली आदि कई तरह की पोजीशन होती है. सही पोजीशन या सेक्स आसन को अपनाने के लिए दोनों ही साथियों को अपनी सहजता पर गौर करना होगा, जिसमें आप दोनों ही सहज महसूस करते हों वही पोजीशन आपके लिए सही रहेगी.

सेक्स आसन में अपने साथी को प्यार से छूने व करीब आने के अहसास से आप दोनों को चरम अवस्था तक पहुंचने में आसानी होती है. अगर साथी इस क्रिया में सहज न हो पा रहीं हों तो आप परेशान न हो, क्योंकि कई बार साथी को स्थिति को समझने व अपनाने में थोड़ा समय जरूर लगता है. एक बार आपका साथी आपके साथ सेक्स में सहज हो जाए, तो आप किसी अन्य पोजीशन को अपनाने पर भी विचार कर सकते हैं. सेक्स के रोमांच को बढ़ाने के लिए आप सेक्स टौय, एनल सेक्स व ओरल सेक्स को अपना सकते हैं. ओरल सेक्स को करने के बाद सामान्य (योनि सेक्स) सेक्स को करने से पूर्व आपको सावधानी के रूप में कंडोम को बदलना चाहिए, यदि आप ऐसा नहीं करते हैं तो आपको यौन संचारित रोगों का खतरा बना रहता है.

  1. लिंग को योनि में प्रवेश कराने का तरीका

फोरप्ले के बाद दोनों ही साथी जब सेक्स के लिए तैयार हों, तब पुरुष महिला की सहमति मिलने के बाद उनकी योनि में अपने लिंग को प्रवेश करा सकता है. लिंग को योनि के मुख पर ठीक से पहुँचाने के लिए अगर अपने हाथों की मदद लेनी पड़े, तो ज़रूर लें. यहाँ तक कि महिला को भी इसमें पुरुष की मदद करनी चाहिए. महिला लिंग को अपने हाथ में लेकर योनि के मुख पर रख सकती हैं. उसके बाद पुरुष का काम शुरू होता है.

अब पुरुष को धीरे-धीरे लिंग को योनि के अंदर ले जाएं. फिर इसको थोड़ा सा बाहर निकाले. फिर थोड़ा अंदर ले जाएँ. यह क्रिया कुछ बार दोहराएं. जब यह क्रिया स्वाभाविक हो जाए तो आप दोनों सेक्स का आनंद लेने लगेंगे. इस तरह सेक्स को करते समय आप दोनों ही साथी सहज महसूस करने लगेंगे.

हालांकि, कुछ ऐसी सेक्स पोजीशन भी हैं जिसमें महिला पुरुष के ऊपर होती है और वह खुद ही लिंग को योनि के अंदर प्रवेश करवा देती हैं.

इस दौरान आप या आपका साथी जब भी किसी क्रिया में रुकना चाहे तो आपको रुकना होगा. सेक्स के दौरान कई बार साथी किसी नए तरीके में सहज नहीं हो पाता है, ऐसे में आपको उनकी असहजता का ध्यान रखते हुए तुरंत उस क्रिया को रोक देना होगा.

  1. सेक्स को इस तरह बनाएं खास

यौन संबंध दो लोगों के बीच में होने वाले निजी संबंध होते हैं. इसमें दोनों साथी अपनी-अपनी जिम्मेदारी को समझते हुए एक दूसरे के करीब आते हैं. सेक्स करने वालों के मन में इसकी सही प्रक्रिया को जानने की उत्सुकता होती है, जबकि यह उत्सुकता पहली बार सेक्स करने वालों में अधिक देखने को मिलती है. तो जानते हैं सेक्स क्रिया को करने के सही तरीके व इसको खास बनाने वाले उपायों के बारे में.

साथी के मन को समझें

 सेक्स क्रिया का पूर्ण आनंद लेने के लिए आपको अपने साथी के मन को समझना होगा. यौन संबंध बनाने से पूर्व आपको यह जानने का प्रयास करना होगा कि आपका साथी इसमें शामिल होने का इच्छुक है या नहीं. अगर आप साथी की इच्छा के बिना सेक्स करते हैं तो आपको इसमें आनंद प्राप्त नहीं होगा. जब साथी आपके पास आते हुए आपको बार-बार छूने का प्रयास करें तो यह संकेत उनके मन में उठने वाली उत्तेजनाओं की ओर इशारा करता हैं. लेकिन इसको सिर्फ संकेत कहा जा सकता है, सेक्स के लिए उनकी इच्छा जानने के लिए आपको उनसे सहमति अवश्य लेनी चाहिए.

सही तैयारी करें

 सेक्स कई तरह से आपके स्वास्थ के लिए फायदेमंद होता है. इससे अतिरिक्त सेक्स से कैलोरी व तनाव दूर होता है. वहीं इस क्रिया को सही तैयारी के साथ न किया जाए तो यह आपके लिए कई तरह की समस्या भी खड़ी कर सकती है. इसलिए आप सेक्स को करने से पहले पूरी तैयारी कर लें. गर्भनिरोधक गोलियां व कंडोम को अपने पास जरूर रखें. आप दोनों के रिश्तों को सेक्स नजदीकियों में बदलता है, इसीलिए इसको सुरक्षित तरीके से ही करें. इसके अलावा एक कंडोम को आप बार-बार इस्तेमाल करने से बचें. साथ ही साथ इस बारे में साथी से जरूर बात करें और उनको भी सहज महसूस कराएं.

सही जगह सेक्स के उत्साह को बढ़ा देती है

सेक्स सभी के लिए महत्वपूर्ण होता है. चाहे आप इसको पहली बार कर रहें हों या पहले भी कर चुके हों. महत्वपूर्ण होने के चलते इसके लिए सही जगह चुनना बेहद जरूरी होता है. सेक्स करने के लिए आप ऐसी जगह चुनें जो आप दोनों साथियों को पसंद आए. इसके अलावा आप कमरे में हल्की रोशनी रखें और रोमांटिक गानों को भी लगाएं. इससे सेक्स के समय आप दोनों ही बेहतर महसूस करते हैं.

जोश की जगह होश से काम लें

अधिकतर लोग सेक्स करते समय जोश में आ जाते हैं. जोश में सेक्स करना आपके साथी के मूड को खराब कर सकता है. सेक्स के लिए आपका उत्सुक होना अच्छी बात है, लेकिन आप अपनी इस भावना को सही तरह से उजागर करें. सेक्स के दौरान आपको ऐसा कुछ भी करने से बचना होगा, जिससे आपका साथी परेशान हो या वह असहज महसूस करे.

किस करने का अपना महत्व

साथी के करीब आते ही आप सबसे पहले उसको किस करते हैं और किस के माध्यम से आप अपने मन की भावना साथी के साथ साझां करते हैं. अंतरगता के साथ की गई किस महिलाओं के मूड को सेक्स के लिए बनाने का काम करती है. प्यार से साथी को किस करना, छूना व करीब आते हुए सहलाना साथी में उत्तेजना जाग्रत करता है. ऐसा करने से साथी आपके साथ भावनात्मक रूप से जुड़ाव महसूस करता है. इससे आप दोनों ही बेहतर तरह से सेक्स कर पाते हैं.

फोरप्ले करना जरूरी

सेक्स के लिए आपका साथी खुद अपने उतारे या आप उसके कपड़े उतारे एक ही बात है, लेकिन जब आप प्यार के साथ साथी के कपड़े एक-एक करके उतारते हैं, तो इसमें दोनों ही साथियों को एक अलग ही एहसास होता है. महिला को पुरुष की अपेक्षा चरम अवस्था तक पहुंचने पर अधिक समय लगता है. ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि महिला को उत्तेजित होने में समय लगता है. महिला को सेक्स के लिए तैयार करने की प्रक्रिया को ही फोरप्ले कहा जाता है.

सही समय का चुनाव करें

कई बार साथी किसी विशेष समय पर सेक्स के लिए तैयार नहीं होता है. इसलिए आप ऐसे समय का चुनाव करें जब आपके साथी अपने सभी काम को पूरा कर चुका हो, घर की सभी जिम्मेदारियों को पूरी करने में आप भी उनकी सहायता कर सकते हैं.

साथी से मदद लेना

सेक्स करते समय आपको अपने साथी से मदद लेते हुए शर्माना नहीं चाहिए. कई बार पुरुष महिला साथी से पूछे बिना इस तरह से सेक्स करते हैं कि महिला को दर्द होने लगता है. इस कारण से पुरुष को सेक्स के दौरान सही पोजीशन व आरामदायक स्थिति के बारे में महिला से बात करनी चाहिए. वहीं महिलाओं को भी पुरुषों की सहायता करते हुए बताना चाहिए कि उनको क्या करने में अच्छा लग रहा है.

आखिरी पलों को बनाएं खास

अक्सर पुरुष सेक्स के बाद महिलाओं से दूर जाकर बैठ जाते हैं या चरम अवस्था पर पहुंचते ही सोने चले जाते हैं. जबकि महिलाएं चाहती हैं कि सेक्स के बाद पुरुष उनके साथ बैठें, उनसे बातें करें. सेक्स के आखिर के पलों में पुरुषों को महिलाओं को कपड़े पहनाने में मदद करनी चाहिए. उनके साथ हंसी मजाक करके माहौल को सामान्य बनाना चाहिए. महिलाओं को भी सेक्स का अनुभव पुरुषों के साथ साझां करना चाहिए. जबकि अंत में पुरुषों को इस्तेमाल किए गए कंडोम को सही जगह पर ही फेंकना चाहिए. इसके बाद आप दोनों को संक्रमण से बचने के लिए अपने निजी अंगों की भी सफाई करनी चाहिए.

क्या सेक्स में महिलाओं की योनि से खून आता है

सेक्स को करते समय अधिकतर महिलाओं को उत्तेजित होने में थोड़ा समय जरूर लगता है. वहीं कई महिलाएं पहली बार सेक्स करते समय असहज व दर्द महसूस करती हैं. सामान्यतः यह दर्द ज्यादा तेज नहीं होता, परंतु महिला को यदि तेज दर्द का अनुभव हो तो पुरुष साथी को सेक्स करते समय रूकना होगा. सेक्स के दौरान जल्दबाजी न दिखाएं. महिलाओं को चरम सुख तक पहुंचाने की जिम्मेदारी भी पुरुषों की होती है, इसलिए आप किसी अच्छें ल्युब्रिकेंट का प्रयोग कर सकते हैं, ताकि इस दौरान आप दोनों की त्वचा घर्षण से जख्मी न हो. ध्यान रहें कि तेल युक्त ल्युब्रिकेंट व वैसलीन के इस्तेमाल से कंडोम के खराब हो जाने का खतरा बना रहता है.

अगर महिला पहली बार सेक्स कर रही है तो उनको हल्का रक्त स्त्राव हो सकता है. इससे महिलाओं को घबराने की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि अधिकतर महिलाओं में पहली बार सेक्स करते समय रक्त स्त्राव होना आम बात है. अगर किसी महिला को पहली बार सेक्स के दौरान रक्त स्त्राव न हो, तो भी यह एक सामान्य अवस्था ही होती है. ऐसा जरूरी नहीं है कि पहली बार सेक्स करते समय सभी महिलाओं को रक्त स्त्राव हो.

जिन महिलाओं को सेक्स करते समय हर बार रक्त स्त्राव हो रहा हो, उनको किसी स्त्री रोग विशेषज्ञ से मिलकर इस समस्या के सही कारणों का पता लगाकर उसका निदान करना चाहिए.

सेक्स से प्रेग्नेंसी, एचआईवी व यौन संचारित रोग होने का खतरा होता है क्या

कंडोम के बिना सामान्य सेक्स (योनि सेक्स) करने से प्रेग्नेंसी व यौन संचारित रोगों (एसटीडी) के साथ ही एचआईवी होने का भी खतरा बना रहता है. चाहे आप पहली बार ही सेक्स क्यों न कर रहें हो प्रेग्नेंसी व एसटीडी से बचने के लिए आपको कंडोम का इस्तेमाल जरूर करना चाहिए.

अगर आप असुरक्षित यौन संबंध बना चुके हैं, तो आपको जल्द ही किसी डॉक्टर से इस बारे में सलाह लेनी चाहिए. ऐसे में प्रेग्नेंसी को रोकने के लिए गर्भनिरोधक गोलियां ले सकते हैं. प्रेग्नेंसी से बचने के लिए आपके पास कई विकल्प मौजूद होते हैं, लेकिन यौन संचारित संक्रमण व एचआईवी से बचने के लिए आपको केवल कंडोम का इस्तेमाल करना होता है. साथी के साथ सेक्स से पूर्व सावधानी बरतना आप दोनों को ही सेक्स में सहजता प्रदान करता है. सेक्स करना आप दोनों का ही अपना निजी फैसला होता है, लेकिन इस दौरान सावधानी बरतना बेहद ही जरूरी होता है.

सेक्स करने के तरीके

एक दूसरे की अपेक्षाओं को जानें –

आपको अपने साथी के साथ सेक्स करने से कुछ समय पहले अपनी अपेक्षाओं को समझना होगा. इसके लिए आप एक सप्ताह का समय भी निर्धारित कर सकते हैं. साथी के करीब आने पर पहले कुछ दिनों में केवल आप उनके साथ किस करें व उनके हाथों को प्यार से पकड़ने तक ही सीमित रहें. इसके बाद आगे बढ़े. लेकिन ध्यान रहें कि तुरंत ही सेक्स न करें. आप व साथी दोनों ही सेक्स से क्या अपेक्षाएं रखते हैं, इस बारे में आपस में बात करें.

जब सप्ताह खत्म होने वाला हो तो आपको सेक्स करना चाहिए. सेक्स को करते समय आपको अपनी और साथी की इच्छाओं का मान रखना चाहिए. इस तरह की प्रक्रिया से आप अपने व साथी के अंदर भावनाओं को जगा सकते हैं. साथ ही अपने साथी के साथ के बारे में आप क्या सोचते हैं या प्यार में आप क्या महसूस करते हैं, इन बातों को एक-दूसरे को जरूर बताएं.

अपने साथी को मसाज दें  –

बेहतर सेक्स के तरीकों में मसाज एक बेहद ही कारगर व सरल उपायों में गिनी जाती है. इससे साथी के अंदर काम भावनाएं जागती है. यह सेक्स से पहले किए जाने वाले फोरप्ले का ही एक तरीका है. मसाज आपके साथी को सेक्स के लिए धीरे-धीरे तैयार करने का काम करती है और चरम अवस्था (ऑर्गेज्म) पर पहुंचने के लिए साथी के अंदर उत्तेजना को बढ़ाती है.

साधारण तरह से की गई मसाज न सिर्फ सेक्स को बढ़ाती है बल्कि आपकी सेक्सुअल लाइफ को भी बेहतर करती है. सेक्स के उद्देश्य से न की जाने वाली मसाज से आपको अपने साथी के शरीर के बारे में जानने का मौका मिलता है. इसके अलावा इससे साथी का तनाव कम करते सकते हैं और आप दोनों एक दूसरे के करीब आ सकते हैं.

अगर आप कामोत्तेजना को बढ़ाने के लिए मसाज का सहारा नहीं लेते हो, तो आप अपने साथी के साथ बैठकर दोनों के बीच की गलतफहमियों को दूर करें.

भावनाओं को समझने का प्रयास करें

बिना छुए हुए भी आप अपने साथी को बेहतर महसूस करवा सकते हैं. सुंगधित तेल से मसाज करना, कमरे में हल्की रोशनी के लिए मोमबत्तियों को जलाना व हल्की आवाज में रोमांटिक गानें भी, साथी में सेक्स की भावनाओं को जगाने का काम करते हैं. इसके अलावा साथी के पास होने पर एक दूसरे की सांसों की आवाज को सुनना भी आप दोनों में ही प्यार की भावनाओं को बढ़ाता है.

साथी को किस करते समय मन की भावनाओं पर भी ध्यान दें. अगर आप सेक्स करने जा रहें हैं और इसको मजेदार बनाना चाहते हैं, तो आपको सेक्स करते समय स्ट्रॉबेरी या किसी अन्य रसदार फल को सेक्स क्रिया में शामिल करना चाहिए. लेकिन इस बात का ध्यान रखें कि आप जब भी कंडोम का इस्तेमाल करें, तो उसमें कोई तेल न लगाएं इससे वह खराब हो जाता है.

सेक्स कैसे करते हैं

साथी के कानों में प्यार भरी बातें करें –

जब आप अपने साथी के साथ होते हैं और उनके कानों में कुछ प्यार भरी बातें करते हैं तो इस अहसास से बेहतर और कुछ नहीं होता है. इस तरह का उपाय आप दोनों के बीच की दूरी को कम करता है. आप अपने साथी को प्यार का इजहार करने के लिए फोन कॉल्स या मैसेज भी कर सकते हैं. इससे आप दोनों के ही अंदर एक उत्सुकता आती है.

प्यार का संदेश देने के लिए आप ईमेल या फिर किसी पत्र का भी सहारा ले सकते हैं. लेकिन आप इस बात का ध्यान रखें कि इस संदेश को किसी खास आदमी के द्वारा ही साथी के पास भेंजे.

खुद व साथी द्वारा हस्तमैथुन करें –

खुद व साथी के द्वारा हस्तमैथुन करना आपकी सेक्सुअल जिंदगी को बेहद ही अहम बना देता है. आप अपने शरीर की यौन प्रतिक्रियाओं को जानने के लिए भी इसे अपना सकते हैं. साथ ही आपको इसे करने से कैसा महसूस हुआ, इस बात को साथी के साथ साझा भी कर सकते है.

अपने साथी का हस्तमैथुन करने से आपको इस बारे में पता चलता है कि वह कैसा महसूस करते हैं. आपके सेक्स करने के अनुभव को महसूस करने के लिए भी यह एक विकल्प हो सकता है. इसके बारे में साथी से बात जरूर करें.

सेक्स के किए विशेष खिलौने इस्तेमाल करें –

आज सेक्स के लिए कई तरह के विशेष सेक्स खिलौने (Sex toys) बाजार में उपलब्ध है. अगर आप और आपका साथी इनको इस्तेमाल करने में सहूलियत महसूस करता है, तो आपको अपने चरम आनंद के लिए इस तरह के खिलौनों का प्रयोग करना चाहिए. कई लोग अपनी सेक्सुअल लाइफ में इन सेक्सुअल खिलौनों जैसे वाइब्रेटर (vibrators) आदि का प्रयोग करते हैं. लेकिन अगर आपने इसके इस्तेमाल के बारे में पहले कभी सोचा ही नहीं, तो आप इसके प्रयोग से होने वाली भावनाओं को नहीं समझ पाएंगे.

इन खिलौनों को आप ऑनलाइन भी खरीद सकते है. इसके लिए जरूरी नहीं है कि आप ज्यादा पैसे खर्च करें. आप इसमें छोटे बालों वाला ब्रश भी खरीद सकती है. इस ब्रश के नरम बाल आपके शरीर पर जादू सा उत्पन्न करते है और आप इसका इस्तेमाल कर कोई नया खेल भी आजमा सकते हैं.

सेक्स कैसे करें

सेक्स पर किताबें पढ़ें

आपको बता दें कि ऐसी कई तरह की किताबें मौजूद हैं जो किसी भी उम्र, लिंग और इच्छाओं को जानें बिना आपको सेक्स संतुष्टि के आसनों व विचारों को बताती है. अगर आप ने इस तरह की किताब को खरीदने के बारे में विचार नहीं किया है तो अब अपनी जरूरत के अनुसार इसको लेने पर विचार करें, क्योंकि इन किताबों से भी आपको काफी कुछ सिखने को मिल जाएगा.

अपनी इच्छाओं व कल्पनाओं को एक दुसरे से साझा करें

इस विषय हर आदमी की अपनी अलग इच्छा व कल्पनाएं होती है. आप सेक्स को लेकर जैसा सोचते हैं, उन सभी विचारों को साथी के साथ साझा करें. सिर से पैर तक, बालों से कूल्हों तक व कहीं बाहर घुमने के बारे में, आप क्या सोचत हैं सभी बातों को अपने साथी को बताएं.

अगर आप दोनों ही एक दूसरे की कल्पनाओं को पूरा करते हैं, तो आप साथी को सेक्स में भरपूर आनंद प्रदान कर सकते हैं. इसके अलावा कुछ नए खेल के साथ सेक्स करना भी आपके लिए मजेदार हो सकता है.

खुद को साफ सुथरा रखें –

हम केवल आपकी सामान्य तरह की साफ सफाई के बारे में बात कर रहें हैं. इसका मतलब यह नहीं है कि आप अपने शरीर को ज्यादा ही साफ सुथरा रखने पर जोर देने लगें, थोड़ा बहुत पसीना हर किसी को आता ही है. लेकिन यह ज्यादा ना हो इस बात पर ध्यान दें. अपने साथी को सम्मान दें और शरीर से आने वाले दुर्गंध को खुद से दूर ही रखें.

किसी प्रकार की चिंता न करें –

प्यार करने वाले साथी के साथ सेक्स करना जिंदगी का बेहद ही भावनात्मक और खूबसूरत अनुभव होता है. कभी-कभी सेक्स करते समय ज्यादा उत्सुक होना या ऑर्गेज्म के बारे में चिंता करना आपके लिए खराब हो सकता है. इसलिए आप अपने दिमाग को शांत रखें और प्यार के साथ सेक्स के खुशनूमा पल को महसूस करें.

मैं जिस डौक्टर के पास काउंसलिंग के लिए जाती हूं उसे मुझे प्यार हो गया है, मैं क्या करूं?

सवाल

मैं पढ़ीलिखी 28 वर्षीया युवती हूं. कुछ सालों पहले कुछ ऐसी स्थितियां रहीं कि मुझे लगने लगा कि मैं डिप्रेशन में जा रही हूं. मैं कुछ नहीं कर सकती लाइफ में. ऐसे में मैं अपनी काउंसलिंग करवाने के लिए डाक्टर के पास जाने लगी. डाक्टर की उम्र 40 साल की होगी. शादीशुदा है, 2 बच्चे हैं उस के. उस की पत्नी भी डाक्टर है. डाक्टर की थेरैपी सेशन से मुझे बहुत फर्क पड़ा. मुझे ऐसा लगने लगा है कि डाक्टर से ज्यादा कोई और मुझे समझ ही नहीं सकता. मुझे डाक्टर से प्यार हो गया है. मैं ने सोच लिया है कि डाक्टर से अपने दिल की बात कह दूंगी. क्या मैं ने जो फैसला लिया है, ठीक है? डाक्टर से अपने प्यार का इजहार कर दूं?

जवाब

डियर, हम यह अकसर कहते हैं कि प्यार कभी भी, किसी से भी, किसी भी उम्र में हो सकता है लेकिन जानतेबूझाते हुए दीवार पर सिर दे मारना या किसी की हंसतीखेलती गृहस्थी में सेंध मारना कहां की समझदारी है?

डाक्टर आप का काउंसलर है. आप का इलाज कर रहा है. आप की समस्या को समझाना, आप को समझाना उस का जौब है, प्रोफैशन है. आप की तरह न जाने और कितने ही पेशेंट उस के पास आते होंगे. अब वह सब के साथ तो प्यार नहीं करेगा न.

वह आप को समझाता है, इसलिए आप उस से प्रभावित हैं. उस की बातें आप को इंप्रैसिव लगती हैं. इसलिए धीरेधीरे आप को डाक्टर से प्यार हो गया है लेकिन इसे इफैचुएशन कहते हैं. आप को अपने दिल को संभालना होगा.

अब आप काफी हद तक संभल चुकी हैं. आप अपनी थिंकिंग पौजिटिव रखिए. शादी के बारे में सोच सकती हैं. शादी नहीं भी करना चाहतीं तो कुछ क्रिएटिव वर्क कीजिए. घूमेंफिरें, यारदोस्तों से मिलिए. डाक्टर का खयाल अपने दिमाग से निकाल देंगी तो सब के लिए अच्छा रहेगा.

अनसोशल बनाता सोशल मीडिया

दुनिया की आबादी 8.02 अरब के पार हो चुकी है. इन में से 5.3 अरब इंटरनैट यूजर्स हैं. सोशल मीडिया यूजर्स की संख्या सब से ज्यादा चीन में है. लेकिन एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2024 में भारत में 1 अरब स्मार्टफोन यूजर्स होंगे. पूरी दुनिया में सोशल मीडिया पर सब से ज्यादा समय इंडिया वाले बिताते हैं. अपनी भूख, प्यास, नींद और रिश्तों को दरकिनार कर भारतीय लोग इस बाबत अमेरिका और चीन को पीछे छोड़ चुके हैं.

दुनिया में इंडियंस के सब से ज्यादा सोशल मीडिया अकाउंट्स

रिसर्च फर्म ‘रेडसियर’ के मुताबिक, इंडियन यूजर्स हर दिन कम से कम 7.3 घंटे अपने स्मार्टफोन पर बिताते हैं. इन में से अधिकतर टाइम वे सोशल मीडिया पर बिताते हैं, जबकि अमेरिकन यूजर्स का औसतन स्क्रीन टाइम 7.1 घंटे है और चीनी यूजर्स 5.3 घंटे सोशल मीडिया पर बिताते हैं. अमेरिका और ब्रिटेन में एक इंसान के औसतन 7 सोशल मीडिया अकाउंट हैं, जबकि एक भारतीय कम से कम 11 सोशल मीडिया अकाउंट्स पर मौजूद है.

रिसर्च जर्नल पबमेड के मुताबिक, करीब 70 फीसदी लोग बिस्तर पर सोने जाने के बाद भी मोबाइल पर नजरें गड़ाए रहते हैं और सोशल मीडिया पर व्यस्त रहते हैं.

एक स्टडी के अनुसार, एक अमेरिकन व्यक्ति औसतन हर साढ़े 6 मिनट पर अपना फोन चैक करता है और पूरे दिन में तकरीबन डेढ़ 150 बार. वहीं भारतीय दिन में 4.9 घंटे यानी तकरीबन 5 घंटे अपने फोन पर बिताते हैं. यानी, महीने के डेढ़ सौ घंटे और साल के 1,800 घंटे.

जर्नल पबमेड की रिपोर्ट के मुताबिक, सोशल मीडिया पर ज्यादा ऐक्टिव रहने वाले लोगों में नींद की कमी रहती है और जिस का असर उन के मैंटल हैल्थ पर पड़ता है. व्यक्ति में डिप्रैशन और भूलने की बीमारी देखी जा सकती है. साइबर बुलिंग, अफवाहें, नैगेटिव कमैंट्स और गंदी गालियां यूजर्स को डिप्रैशन में ला देती हैं. एक सर्वे के मुताबिक, करीब 60 फीसदी यूजर्स औनलाइन एब्यूज के शिकार होते हैं.

मोबाइल के चलते बिगड़ रहे हैं रिश्ते

साइकैट्रिस्ट डा. राजीव मेहता का कहना है कि सोशल साइट्स पर बिजी रहने वाले लोगों की सामाजिक जिंदगी खत्म सी होने लगती है. आप घर वालों और दोस्तों से बात नहीं करते. आपसी रिश्ते खराब होने लगते हैं. इमोशनल जुड़ाव नहीं रहता. रिश्तों में शेयरिंग, केयरिंग नहीं रहती. व्यक्ति का दायरा सीमित हो जाता है और मन में कुंठाएं घर कर जाती हैं. यहां तक कि नए कपल भी सोशल साइट्स पर इतने खोए रहते हैं कि उन की पर्सनल लाइफ डिस्टर्ब हो जाती है जो एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर की वजह बनती है.

साहिल और प्रियंका की शादी अभी पिछले साल ही हुई थी. दोनों की अरेंज मैरिज थी.  साहिल को सोशल मीडिया की जबरदस्त लत थी. औफिस से आ कर भी वह सोशल मीडिया पर एक्टिव रहता, जिस से प्रियंका को बहुत चिढ़ होती. उस का कहना था कि पूरे दिन वह घर पर अकेली होती है. कोई बात करने वाला भी नहीं होता उस के साथ. तो कम से कम रात में तो वह उसे थोड़ा समय दे. लेकिन पत्नी की बात अनसुनी कर वह मोबाइल पर रील देखदेख कर हंसता रहता. उस के कानों में अपनी पत्नी की बात घुसती ही नहीं थी.

एक दिन गुस्से में प्रियंका ने भी कह दिया कि जब मोबाइल से इतना ही प्यार है तो उस से शादी क्यों की? उस पर साहिल ने भी कह दिया, ‘हां है, तो क्या कर लोगी?’ और इसी बात पर दोनों में ?ागड़े शुरू हो गए. आज प्रियंका अपने मायके में है और उन के बीच तलाक का मामला चल रहा है.

बात पार्टनर से न कर के, लोग फोन पर नजरें टिकाए होते हैं. पार्टनर कुछ बोल रहा है लेकिन आप फोन पर गेम खेलने और रील देखने में व्यस्त हैं. सामने बैठे व्यक्ति से कोई कनैक्शन नहीं और मीलों दूर बैठे किसी इंसान से फोन पर चैंटिंग चल रही है.

डा. रौबर्ट्स लिखते हैं कि उन की स्टडी में शामिल 92 फीसदी लोगों ने कहा कि पार्टनर की हर वक्त मोबाइल फोन चैक करने की आदत उन के रिश्तों को खराब कर रही है. स्टडी में शामिल लगभग सभी लोगों ने कहा कि पार्टनर का फोन हर वक्त उन के हाथों में ही होता है.

रिसर्चगेट की एक और स्टडी कहती है कि मोबाइल फोन एडिक्शन के कारण कपल के बीच तनाव और दूरियां पैदा हो रही हैं. इस स्टडी में शामिल 70 फीसदी लोगों का कहना था कि मोबाइल फोन के कारण वे अपने पार्टनर से साथ पूरी तरह से कनैक्ट नहीं कर पाते क्योंकि वह 100 फीसदी कभी मौजूद ही नहीं होता.

सिर्फ बड़े ही नहीं, बल्कि हम युवा भी सोशल मीडिया पर ऐक्टिव रहते हैं जिस का असर हमारे रिश्ते पर तो पड़ता ही है, हमारे मैंटल हैल्थ पर भी यह बुरा असर डालता है.

मेरी एक दोस्त की 19 साल की बहन यामिनी का सपना डाक्टर बनने का था. उस के पेरैंट्स ने उस का एडमिशन एक अच्छे मैडिकल कालेज में करवाया भी. मगर उस का मन अब पढ़ाई में बिलकुल नहीं लगता. वह देररात तक मोबाइल पर लगी रहती है. अपनी फोटो क्लिक कर सोशल मीडिया पर अपलोड करती है. जब उस के पेरैंट्स उस से कुछ कहते हैं या सम?ाते हैं तो वह उन से बहस पर उतारू हो जाती है और ?ागड़ने लगती है. अपनी किताबें उठा कर फेंकने लगती है कि उसे कोई डाक्टर नहीं बनना. नहीं चाहिए उसे कुछ.

कई बार उस ने खुद को भी नुकसान पहुंचाने की कोशिश की है जिस के कारण उस के पेरैंट्स डरेडरे रहते हैं. मोबाइल पर ज्यादा ऐक्टिव रहने के कारण वह चिड़चिड़ी हो गई है. उस का बिहेवियर खराब हो गया है. वह घर में किसी से ज्यादा बात भी नहीं करती.

जब हमें अपेक्षा के अनुरूप अपने पोस्ट किए फोटो पर लाइक्स और कमैंट्स नहीं मिलते हैं तब हम अवसाद में चले जाते हैं. पढ़ाई में अरुचि होने लगती है. हमें कुछ भी अच्छा नहीं लगता. सोशल मीडिया पर ऐप्स के जरिए अपनी तसवीरें फिल्टर कर लोग यह बताने की कोशिश करते हैं कि वे अपनी जिंदगी में बहुत खुशहाल हैं. लेकिन जब उन के उसी फोटो पर लाइक्स और कमैंट्स नहीं आते तो वे तनाव और जलन के शिकार हो कर मैंटल हैल्थ खो बैठते हैं.

साइकैट्रिस्ट का कहना है कि फिल्टर्स फन के लिए तो ठीक है लेकिन जब इन का इस्तेमाल ?ाठे दिखावे के लिए होने लगे तो यह समस्या की वजह बन जाता है. फोटो, वीडियो और पोस्ट पर आने वाले कमैंट्स, लाइक्स और शेयर यूजर के लिए रिवार्ड पौइंट्स की तरह काम करते हैं. इस से लोगों को अजीब सी खुशी मिलती है जिस से ब्रेन का रिवार्ड सैंटर एक्टिवेट हो जाता है और यही कारण है कि यूजर सोशल साइट्स पर ज्यादा समय बिताते हैं. उन्हें लगता है कि उन की पोस्ट लोगों को पसंद आएगी और खूब वायरल होगी. लेकिन जब ऐसा नहीं होता तब वे तनाव और डिप्रैशन के शिकार होने लगते हैं.

देररात तक जागने से पैदा हो रही है समस्या

विशेषज्ञों का कहना है कि मस्तिष्क में रेटिकुलर एक्टिवेटिंग सिस्टम होता है जिस में कई तरह के न्यूरोट्रांसमीटर निकलते हैं जो सरकाडियम रिद्म को संतुलित करते हैं. देररात तक जागने से ये असुंलित हो जाते हैं जो हमारी दिनचर्या को प्रभावित करते हैं.

स्टैनफोर्ड मैडिकल स्कूल के न्यूरोसाइंस डिपार्टमैंट की एक रिसर्च के मुताबिक, मोबाइल फोन हमारे मस्तिष्क के डोपामाइन सैंटर्स को एक्टिव करता है. यही कारण है कि हम कोई जरूरी काम न होने पर भी हर थोड़ी देर में अपना फोन उठा लेते हैं. अगर फोन पास न हो तो हमें घबराहट और बेचैनी होने लगती है.

नशे की तरह सोशल मीडिया

सोशल मीडिया की लत लोगों के सिर चढ़ कर बोल रही है. एक फोन हाथ में न हो तो हम बेचैन हो उठते हैं. सोशल मीडिया हमारे जीवन में ज्यादा ही दखल देने लगा है. आज लोग वर्चुअल दुनिया में इतने ज्यादा खो गए हैं कि अपनों से और दुनियादारी से दूर हो गए हैं, लेकिन बता दें कि वक्त पड़ने पर यह वर्चुअल दुनिया आप का साथ नहीं देने वाली.

सोशल मीडिया एक नशे की तरह बन गया है जिस के बिना लोगों का दिन शुरू नहीं होता. लेकिन यह शौक स्वास्थ्य के लिए खतरा बनता जा रहा है जो न केवल लोगों के शारीरिक, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य को भी नुकसान पहुंचा रहा है. रिसर्च के अनुसार, वीडियो गेम खेलने के दौरान इस्तेमाल किए जाने वाले हैडफोन, ईयरबड और म्यूजिक वैन्यू का प्रभाव कानों में पड़ता है जो लोगों की सुनने की क्षमता को कम कर रहा है.

सोशल मीडिया का नैगेटिव असर इतना खतरनाक हो जाता है कि लोग जान देने के बारे में सोचने लगते हैं. सोशल मीडिया के सुसाइड कनैक्शन पर जब जर्नल औफ यूथ एंड एडोलसैंस ने रिसर्च की तो डरावने वाले फैक्ट सामने आए. इस में पता चला कि सोशल मीडिया पर कोई जितना ज्यादा वक्त बिताता है, उस के खुद को नुकसान पहुंचाने का खतरा उतना ही बढ़ जाता है.

सोशल मीडिया के दुष्परिणाम

-इस की लत से छुटकारा मिलना मुश्किल होता है.

-इस से उदासी बढ़ती है और सेहत इग्नोर होती है.

-खुद में हीनभावना पैदा होती है.

-लोगों की हैल्थ पर बुरा असर पड़ता है.

-रिश्तों में दूरियां पैदा होती हैं.

यूनिवर्सिटी औफ पेन्सिलवेनिया की एक स्टडी के मुताबिक, लोग अपना अकेलापन दूर करने के लिए सोशल मीडिया की तरफ भागते हैं. लेकिन वे जितना ज्यादा वक्त सोशल मीडिया पर बिताते हैं, उन का अकेलापन उतना ही बढ़ता जाता है. स्टडी में यह भी पाया गया कि जैसे ही लोग सोशल मीडिया यूज करना कम कर देते हैं, उन का अकेलापन कम होने लगता है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डबल्यूएचओ ) के एक हालिया अध्ययन में सामने आया है कि लंबे समय तक तेज शोर में रहने से सुनने की क्षमता इस कदर प्रभावित हो रही है कि उस से उबरने की संभावना भी घट रही है. इस के साथ ही, इन वीडियो गेमर्स में टिनिटस की समस्या भी देखी गई है. टिनिटस से पीडि़तों को अकसर कान में रहरह कर घंटी, सीटी और सनसनाहट जैसी आवाजें सुनाई पड़ती हैं.

ब्रिटिश मैडिकल जर्नल (बीएमजे) पब्लिक हैल्थ में प्रकाशित रिसर्च के मुताबिक, सोशल मीडिया और वीडियो गेमर्स अकसर कई घंटों तक तेज आवाज में मोबाइल देखते हैं. इस से ध्वनि का स्तर कानों के लिए निर्धारित सुरक्षित सीमा के करीब या उस से अधिक होता है.

शोधकर्ताओं ने उत्तर अमेरिका, यूरोप, दक्षिणपूर्व एशिया, आस्ट्रेलिया और एशिया के 9 देशों में 53,833 लोगों पर किए गए

14 अध्ययनों की समीक्षा की है. रिसर्च में पाया गया कि मोबाइल में ध्वनि का औसत स्तर 43.2 डेसिबल (डीबी) से 80-89 डीबी के बीच था. गेमिंग की अवधि घटा कर जोखिम कम किया जा सकता है.

शोध के मुताबिक, दुनियाभर में वीडियो गेम्स आज खाली समय को भरने का बेहद लोकप्रिय साधन बन गए हैं. कहना गलत न होगा कि तकनीकी का इस्तेमाल आज पढ़ाई के लिए कम और मनोरंजन के लिए ज्यादा होने लगा है. एक अनुमान के अनुसार, 2022 के दौरान दुनियाभर में इन गेमर्स का आंकड़ा 300 करोड़ से ज्यादा था.

वयस्क के लिए कितनी ध्वनि सीमा निर्धारित

रिपोर्ट के मुताबिक, सप्ताह में किसी वयस्क को 86 डेसिबल (डीबी ) शोर में केवल 10 घंटे, 90 डेसिबल में 4 घंटे, 92 डेसिबल में ढाई घंटे, 95 डेसिबल में एक घंटा और 98 डेसिबल में 38 मिनट से ज्यादा नहीं रहना चाहिए. यदि वे इस से ज्यादा समय इस शोर में रहते हैं तो उन के सुनने की क्षमता प्रभावित होने की ज्यादा आशंका है.

युवा ज्यादा खेलते हैं वीडियो गेम

तीन अलगअलग अध्ययनों में देखा गया है कि लड़कियों की तुलना में लड़के ज्यादा वीडियो गेम खेलते हैं. एक अध्ययन में सामने आया है कि अमेरिका में एक करोड़ से ज्यादा लोग वीडियो या कंप्यूटर गेम खेलते समय तेज या बहुत तेज शोर के संपर्क में आ सकते हैं.

स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, 60 वर्ष से अधिक उम्र के लगभग 30 फीसदी लोगों में सुनने की क्षमता कम होने लगती है. हालांकि, जिस प्रकार से कम उम्र के लोगों में भी इस का जोखिम देखा जा रहा है वह काफी चिंताजनक है.

कोरोनाकाल में जब लोग एकदूसरे से दूर थे, अकेले थे, तब यही एक फोन ही सहारा था मन बहलाने के लिए और एकदूसरे को आपस में जोड़े रखने के लिए. बच्चे भी औनलाइन पढ़ाई करते थे, आज भी करते हैं. लेकिन अब लोग सोशल मीडिया में आकंठ तक डूब चुके हैं.

कहते हैं, सुविधाएं अपने साथ समस्याएं भी ले कर आती हैं. आज मोबाइल और इंटरनैट की वजह से इंसान की जिंदगी आसान तो हुई है लेकिन दूसरी तरफ बड़ी समस्याएं भी पैदा हुई हैं. कुछ समस्याएं आर्थिक नुकसान पहुंचा रही हैं तो कई जानलेवा बन रही हैं. इंटरनैट के बढ़ते प्रसार के साथ साइबर क्राइम में तेजी से इजाफा हुआ है. इस की चपेट में पुरुष महिला, बच्चे, युवा सब हैं. भारत समेत समूचे एशिया-प्रशांत क्षेत्र में डिजिटलाइजेशन जिस तेजी से बढ़ रहा है, उसी तेजी से साइबर अपराध बढ़ने की भी आशंका है.

दूर बैठे अपराधी अलगअलग तरकीबों के जरिए लोगों को लूट रहे हैं. कई बार धोखे से तो कई बार सीनाजोरी करते हुए ब्लैकमेल कर के. सैक्सटोर्शन भी उन में से एक है. इस की वजह से बहुत लोगों ने अपनी जान दे दी.

पिछले दोतीन वर्षों के आंकड़ों पर नजर डालें तो अकेले मुंबई में सैक्सटोर्शन के केस में तेजी से उछाल आया है. साल 2021 में सैक्सटोर्शन के 54 केस दर्ज हुए थे, जिन में से 24 ऐसे थे जिन में पीडि़त से 10 लाख से ज्यादा पैसे वसूले गए थे. साल 2022 में सैक्सटोर्शन के कुल 77 केस दर्ज हुए थे. इन 77 मामलों में से 22 में पीडि़तों से आरोपियों ने 10 लाख से ज्यादा पैसे वसूले थे. 71 वर्षीय मुंबई के एक व्यापारी से सैक्सटोर्शन रैकेट चलाने वालों ने 51 लाख रुपए वसूले थे. इस तरह गैंग के लोग सोशल मीडिया के जरिए लोगों को टारगेट कर के अपना शिकार बनाते हैं.

पिछले सालभर में गुजरात में सैक्सटोर्शन के मामलों में शिकायतों की संख्या एक साल में ही 85 फीसदी तक देखी गई. देश के दूसरे हिस्सों में भी सैक्सटोर्शन के मामले आते रहे हैं.

कैसे फंसते हैं लोग

सैक्सटोर्शन रैकेट चलाने वाले गैंग में कई लोग एकसाथ मिल कर काम करते हैं. इन में महिलाएं और लड़कियां भी होती हैं. ये लोग सोशल मीडिया के जरिए अपना शिकार खोजते हैं. जो लोग हाईप्रोफाइल दिखते हैं, उन को गैंग की लड़कियां फेसबुक पर फ्रैंड रिक्वैस्ट भेजती हैं.

इस के बाद धीरेधीरे वे उन से संपर्क बढ़ाती हैं. उस के बाद मोबाइल नंबर ले कर उन से बात करने लगती हैं. मौका देख कर व्हाट्सऐप कौल के जरिए अश्लील बातचीत भी करती हैं. इस तरह से सामने वाला

उस के जाल में फंस जाता है. दुख की बात तो यह है कि बच्चे और युवा भी इस

गंदे खेल का शिकार बन रहे हैं. इसलिए पेरैंट्स को चाहिए कि वे बच्चों को गाइड करें और खुद के स्क्रीन टाइम को भी नियंत्रित करें.

सैक्सटोर्शन 2 शब्दों से मिल कर बना है. ‘सैक्स’ और ‘एक्सटोर्शन’. यह एक साइबर क्राइम है, जिस का शिकार कोई भी बन सकता है. साइबर क्राइम से बचने के लिए सब से पहला मंत्र यही है कि सोशल मीडिया का इस्तेमाल कम से कम किया जाए और इसे इस्तेमाल करते समय सावधानी बरती जाए क्योंकि ‘सावधानी हटी तो दुर्घटना घटी.’

सोशल मीडिया से कैसे बनाएं दूरी

डा. मैक्सवेल लिखते हैं कि इस लत को छोड़ना सिगरेट, शराब छोड़ने जितना चुनौतीपूर्ण काम है. इस से छुटकारा पाने के लिए सब से पहले जरूरी है लत से नजात पाने का इरादा और यह इरादा तब तक नहीं हो सकता जब तक हमें यह न सम?ा आ जाए कि यह लत भले ही हमारा थोड़ा मनोरंजन करती है पर लौंग टर्म में यह हमारी हैल्थ और रिलेशन, दोनों के लिए खतरनाक साबित हो सकती है.

एक्सपर्ट का कहना है कि सोशल मीडिया के बुरे असर से बचने के लिए सब से पहले अपनी प्राथमिकताएं तय करना जरूरी है. अकेलापन और डिप्रैशन से बचना है तो सोशल मीडिया का इस्तेमाल कम से कम करना होगा.

रोज 30 मिनट से कम इन ऐप्स को यूज करने से फोमो के साथ ही दूसरे बुरे असर से भी बच सकते हैं. गिल्फर्ड जर्नल की रिपोर्ट भी यही बताती है कि सोशल मीडिया से दूरी बना कर उदासी, डिप्रैशन और अकेलेपन से नजात पाई जा सकती है.

महंगा इनाम : क्या शालिनी को मिल पाया अपना इनाम

मैंने जासूसी उपन्यास एक ओर रख दिया और किसी नवयौवना की तरह एफएम पर ‘क्रेजी सुशांत’ का प्रोग्राम शुरू होने का इंतजार करने लगी. मुझे क्रेजी सुशांत या उस के प्रोग्राम में कोई दिलचस्पी नहीं थी, मुझे तो सिर्फ उस इनाम में दिलचस्पी थी, जो वह अपने प्रोग्राम में हिस्सा लेने वाले किसी एक खुशनसीब को दिया करता था. इनाम 30 हजार रुपए था. मेरे लिए उस वक्त 30 हजार रुपए बहुत बड़ी रकम थी.

मैं एक प्राइवेट डिटेक्टिव थी और खुद ही अपनी बौस थी यानी मैं सैल्फ इंप्लायमेंट पर निर्भर थी. सेल्फ इंप्लायमेंट में यही सब से बड़ी खराबी है कि यह किसी भी वक्त बेरोजगारी में बदल सकता है. मेरा काम काफी दिनों से मंदा चल रहा था, बिल न जमा होने से बिजली कंपनी वाले काफी दिनों से मेरी बिजली काटने की धमकी दे रहे थे. अब आप समझ सकते हैं कि मैं क्यों बेचैनी से के्रजी सुशांत के प्रोग्राम का इंतजार कर रही थी.

अंतत: एफएम पर क्रेजी सुशांत की अजीबोगरीब आवाज उभरी. ऐसा मालूम होता था, जैसे वह नाक माइक पर रख कर बोलने का आदी था. सुशांत कह रह था, ‘क्रेजी सुशांत अपने प्रोग्राम के साथ आप की सेवा में हाजिर है. श्रोताओ, क्या मैं वास्तव में क्रेजी नहीं हूं. मेरे पागलपन का अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि मैं हर रोज किसी न किसी की सेवा में 30 हजार रुपए पेश करता हूं. इस के लिए आप को सिर्फ इतना करना होगा कि एक एसएमएस भेज कर अपना नाम, पता और फोन नंबर मुझे भेज दें.’

इतना कह कर वह अपने विशिष्ट अंदाज में हंसा. उस की हंसी कुछ ऐसी थी, जैसे किसी लकड़बग्घे को हिचकियां आ रही हों. वह गधा हर एक को कितनी आसानी से इनाम मिलने की उम्मीद दिला रहा था. मैं खुद पिछले चंद हफ्तों में एक हल्की उम्मीद के सहारे उसे सैकड़ों एसएमएस भेज चुकी थी.

वह कह रहा था, ‘‘श्रोताओ, लौटरी के जरिए मैं इस हफ्ते के खुशनसीब का नाम अपने थैले से निकालूंगा.’’

मैं अपने जिस फोन पर एफएम सुन रही थी, उसे अनायास ही कान के पास कर लिया और मुट्ठियां भींच कर बड़बड़ाई, ‘‘कमीने, आज तो मेरा नाम निकाल दे.’’

वह कह रहा था, ‘‘लीजिए श्रोताओ, मैं ने नाम की पर्ची निकाल ली है. 30 हजार रुपए जीतने वाले भाग्यशाली हैं नोएडा सेक्टर-8 के रहने वाले राहुल पांडे.’’

मैं ने गुस्से में कालीन पर घूंसा रसीद किया, जिस से हवा में मिट्टी का एक छोटा सा बादल बन गया. मेरी उम्मीद भी उसी बादल में खो गई थी. क्रेजी सुशांत इनाम पाने वाले को संबोधित कर रहा था, ‘‘डियर राहुल, तुम्हें इनाम पाने का तरीका तो मालूम ही होगा.’’

पता नहीं कि राहुल को तरीका मालूम था या नहीं, लेकिन मुझे बहुत अच्छी तरह मालूम था. इनाम की घोषणा लगभग 3 बज कर 5 मिनट पर होती थी और इनाम के हकदार को ठीक 5 बजे तक रेडियो स्टेशन पहुंच कर इनाम प्राप्त करना होता था. वह रेडियो पर संक्षिप्त में अपना अनुभव व्यक्त करता या करती थी और इनाम का चैक उस के हवाले कर दिया जाता था. अगर विजेता 5 बजे तक रेडियो स्टेशन नहीं पहुंच पाता था तो सवा 5 बजे दूसरी लौटरी निकाली जाती थी और इनाम किसी और का हो जाता था.

मैं ने पहले से भी अधिक मद्धिम उम्मीद के सहारे सोचा कि शायद रास्ते में राहुल की गाड़ी का टायर पंक्चर हो जाए और वह रेडियो स्टेशन न पहुंच सके. क्या पता दूसरी लौटरी में मेरी किस्मत चमक जाए और…

अपने आप को हौसला देने के लिए मैं ने किचन में जा कर सैंडविच तैयार की और उसे खाते हुए उम्मीद के सहारे यह सोच कर मोबाइल की ओर देखने लगी कि हो सकता है, उस की घंटी बजे और दूसरी ओर से कोई क्लाइंट बोले. फिर मैं मम्मी को फोन करने के बारे में सोचने लगी. थोड़ी बहुत संभावना थी कि शायद वह मुझे इतनी रकम उधार दे दें कि खींच तान कर महीना गुजर जाए. लेकिन ऐसी जरूरत नहीं पड़ी.

मोबाइल की घंटी बजी और मैं ने बहुत धीरज और शांति से काम लेते हुए तीसरी घंटी पर काल रिसीव कर के बहुत ही सौम्य व गरिमापूर्ण अंदाज में कहा, ‘‘शालिनी इंवेस्टीगेशन एजेंसी.’’

‘‘शालिनी चौहान?’’ दूसरी ओर से पूछा गया. न जाने क्यों उस की आवाज सुन कर ही मुझे लगा कि वह आदमी जरूर दौलतमंद होगा.

‘‘जी हां, लेकिन आप मुझे केवल शालिनी भी कह सकते हैं.’’ मैं ने बहुत खुलेदिल का प्रदर्शन करते हुए कहा.

‘‘मेरा नाम अर्पित मेहता है. मुझे नकुल चौधरी ने तुम से बात करने की सलाह दी थी.’’ वह बोला.

नकुल चौधरी एक वकील था, जो कभीकभी मेहरबानी के तौर पर मेरे पास क्लाइंट भेज देता था.

‘‘मैं आप के लिए क्या कर सकती हूं मिस्टर अर्पित?’’ मैं ने पूछा.

‘‘मैं किसी के बारे में तहकीकात कराने के लिए तुम्हारी सेवाएं हासिल करना चाहता हूं, शालिनी.’’ वह थोड़ा बेचैनी भरे स्वर में बोला, ‘‘इस संबंध में फोन पर बात करना मुनासिब नहीं होगा. मैं शाम साढ़े 5 बजे तक खाली हो जाऊंगा. क्या इस के बाद किसी समय मेरे औफिस में आने की तकलीफ कर सकती हो? मैं इस मामले में जरा जल्दी में हूं.’’

मुझे भला क्या आपत्ति हो सकती थी? मैं ने उस के औफिस का पता पूछ कर लिख लिया. मिलने का वक्त 5 बजे तय हुआ. अब मुझे क्रेजी सुशांत के प्रोग्राम में 30 हजार रुपए का इनाम न मिलने का कोई दुख नहीं था. इनाम मिलने से केस मिलना बेहतर था. केस की बात ही कुछ और थी.

5 कब बज गए, पता ही नहीं चला. उस समय तक क्रेजी सुशांत के प्रोग्राम में लौटरी के जरिए इनाम का अधिकारी राहुल पांडे रेडियो स्टेशन पहुंच चुका था. चैक लेने से पहले उस ने प्रोग्राम के बारे में अपना अनुभव व्यक्त करते हुए सुशांत की हंसी भी उड़ाई थी.

मैं इस बीच तैयार हो चुकी थी. इनाम की घोषणा समाप्त होते ही मैं घर से निकली और अपनी पुरानी गाड़ी को उस की औकात से ज्यादा तेज रफ्तार से दौड़ाना शुरू कर दिया.

अर्पित मेहता का औफिस एक शानदार इमारत की तीसरी मंजिल पर था. उस का औफिस देख कर मेरे अनुमान की पुष्टि हो गई थी. अर्पित मेहता वाकई एक धनी आदमी था और उसे धन खर्च करने का तरीका भी आता था. उस की खूबसूरत सैके्रटरी ने मुझे उस के कमरे में पहुंचा दिया. उस का कमरा बहुत शानदार तरीके से सजाया गया था. वह एक बड़ी मेज के पीछे बैठा था. उस ने उठ कर मेरा स्वागत किया. वह व्यक्तित्व से ही कामयाब व्यक्ति नजर आ रहा था. उस की कनपटियों पर सफेदी झलक रही थी.

हम ने बैठ कर रस्मी बातें कीं. उस ने कहा, ‘‘शालिनी, मैं नहीं चाहता कि मेरी बात सुन कर तुम मेरे बारे में कोई गलत राय कायम करो. इसलिए समस्या बताने से पहले मैं एक बात साफ कर देना चाहता हूं. मैं एक उसूल पसंद आदमी हूं. अगर मुझ से कोई गलती हो जाए तो मेरी यह कभी भी इच्छा या कोशिश नहीं होती कि मैं उस का नुकसान भुगतने से बचने की कोशिश करूं. मैं अपनी गलती का दंड अदा करने के लिए हर समय तैयार रहता हूं.’’

मैं ने सहमति में सिर हिलाया और अपने बैग से एक राइटिंग पैड और पेंसिल निकाल ली. एक क्षण रुकने के बाद वह बोला, ‘‘कुछ महीने पहले मेरी गाड़ी एक दूसरी गाड़ी से टकरा गई थी. बहुत मामूली सी दुर्घटना थी, जिस में मेरी गाड़ी को तो केवल चंद खरोंचें ही आई थीं.  यह अलग बात है कि वह खरोंच दूर कराने पर जितनी रकम खर्च हुई थी, उतने में छोटीमोटी गाड़ी आ जाती.’’

अमीर लोगों को मूल्यवान चीजें रखने की अधिक कीमत चुकानी पड़ती है. मैं ठंडी सांस ले कर रह गई.

अर्पित ने अपनी बात जारी रखी, ‘‘दूसरी गाड़ी में एक औरत और उस की बेटी सवार थी. उस समय तो यही लग रहा था कि दुर्घटना में उन्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचा था. फिर भी मैं ने नैतिकता और कानूनपसंदी का प्रदर्शन करते हुए उन्हें अपनी गाड़ी की इंश्योरेंस पौलिसी का नंबर दे दिया, जैसा कि दुर्घटना की स्थिति में किया जाता है. दुर्घटना में कोई भी जख्मी नहीं हुआ था, इसलिए मेरा विचार था कि बात वहीं समाप्त हो जाएगी. लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हो सका. उन मांबेटी ने एक वकील की सेवाएं ले कर कुछ दिनों बाद मुझ पर सौ करोड़ रुपए के हरजाने का दावा कर दिया.’’

‘‘सौ करोड़ रुपए?’’ मेरी आंखें आश्चर्य से फैल गईं, ‘‘यह तो बहुत बड़ी रकम है. वे दोनों किस हद तक शारीरिक नुकसान पहुंचने का दावा कर रही थीं?’’

‘‘मां का तो अस्पताल में रीढ़ की हड्डी की चोट का इलाज हो रहा था. यहां तक तो दावा मानने योग्य था.’’ अर्पित ठंडी सांस ले कर बोला, ‘‘लेकिन उस का कहना था कि दुर्घटना में भय के कारण उस की बेटी बोलने की शक्ति खो बैठी है. दुर्घटना के बाद से अब तक वह एक शब्द भी नहीं बोली है.’’

‘‘यह तो विचित्र बात है. डाक्टर क्या कहते हैं?’’ मैं ने पूछा.

‘‘हर एक की अलगअलग राय है,’’ अर्पित ने एक और ठंडी सांस ली, ‘‘मेरा एक दोस्त जो एक मशहूर मनोवैज्ञानिक था और 20 साल से प्रैक्टिस कर रहा था, उस का कहना था कि यह हिस्टीरियाई प्रतिक्रिया हो सकती है. लड़की जिस डाक्टर से इलाज करा रही है, उस के विचार में दुर्घटना में मस्तिष्क की वे कोशिकाएं प्रभावित हुई हैं, जो जुबान की शब्द भंडारण शक्ति को सुरक्षित रखती हैं. अर्थात उस में जुबान समझने और बोलने की योग्यता नहीं रही. वह डाक्टर अभी कुछ और टेस्ट कर रहा है.’’

‘‘आप को उस पर विश्वास नहीं है.’’ मैं ने पुष्टि करनी चाही.

‘‘मेरी समझ में नहीं आ रहा कि मैं किस पर विश्वास करूं और किस पर नहीं,’’ अर्पित ने कहा, ‘‘मैं भी इस दुर्घटना में शामिल था. मेरे सिर में दर्द तक नहीं हुआ. मुझे बात कुछ जंच नहीं रही है.’’

‘‘आप चाहते हैं कि मैं खोजबीन करूं कि लड़की झूठमूठ तो गूंगी नहीं बन रही है?’’ मैंने पूछा.

वह बेचैनी से पहलू बदलते हुए बोला, ‘‘मैं बिना किसी जांच के उन मांबेटी को धोखेबाज कहना नहीं चाहता. लेकिन ऐसा भी हो सकता है कि वह मामले को बढ़ाचढ़ा कर पेश कर रही हों.’’

‘‘मेरे विचार में यह कुछ अधिक मुश्किल काम नहीं है,’’ मैं ने कहा, ‘‘2-4 दिनों लड़की पर नजर रखी जाए. होशियारी से उस का पीछा किया जाए तो पता चल जाएगा कि वह कहीं बोलती है या नहीं?’’

अर्पित गले को साफ करते हुए बोला, ‘‘यही तो समस्या है कि मैं तुम्हें 4 दिन तो क्या, 2 दिन का समय भी नहीं दे सकता. असल में मुझे विश्वास था कि यह मामला कोर्ट में नहीं जाएगा. इसलिए अंतिम क्षणों तक मैं ने किसी डिक्टेटिव या खोजी की तलाश शुरू नहीं की. इस बुधवार को 10 बजे अदालत में इस दावे की सुनवाई होनी है. हो सकता है पहली ही पेशी में निर्णय भी हो जाए.’’

इस का मतलब था कि मेरे पास केवल एक दिन का समय था, जिस में मुझे कोई ऐसा सबूत तलाश करना था, जिस की वजह से दावेदार अपना दावा वापस लेने पर विवश हो जाए.

‘‘सौरी मिस्टर अर्पित, एक दिन में भला क्या हो सकता है?’’ मैं ने कहा.

‘‘इस परिस्थिति में अगर कोई समझौता हो भी जाए तो वह भी मेरे लिए जीत की तरह ही होगा,’’ अर्पित ने कहा, ‘‘मैं कह चुका हूं कि मुझे अपनी गलती की भरपाई करने पर कोई आपत्ति नहीं है. लेकिन इतनी सी बात पर मैं अपनी कुल संपत्ति का एक चौथाई उन मांबेटी को नहीं दे सकता.’’

एक बार फिर मेरी सांस ऊपर की ऊपर और नीचे की नीचे रह गई. मतलब अर्पित की कुल संपत्ति का एक चौथाई 100 करोड़ था. इस का मतलब था कि अर्पित मेरे अनुमान से कहीं अधिक धनवान था. संभवत: उन मांबेटी को अंदाजा था कि वह कितना मोटा आसामी है. तभी उन्होंने ज्यादा गहराई तक दांत गड़ाने का प्रोग्राम बनाया था.

आखिर मैं ने अपनी पूरी कोशिश करने की हामी भरते हुए उसे अपनी फीस के बारे में बताया तो उस ने कहा, ‘‘मैं केवल एक ही दिन के लिए तुम्हारी सेवाएं ले रहा हूं और इस का भुगतान पेशगी दे रहा हूं. अगर तुम कोई सबूत तलाश करने में कामयाब हो गईं तो मैं सारे खर्चों के अलावा तुम्हें 5 लाख रुपए का इनाम दूंगा. अगर तुम असफल रहीं तो मेरे कानूनी सलाहकार इस मसले से अपने हिसाब से निपटेंगे.’’

बातचीत के बाद मैं लौट आई. सब से पहले मैं ने उन मांबेटी के बारे में सूचना इकट्ठी की. बेटी का नाम रूपा सरकार था और मां का नाम सुषमा सरकार. वे द्वारका के सिंगल बैडरूम के छोटे से फ्लैट में रह रही थीं. मैं ने अपनी गाड़ी एक ऐसी जगह पार्क की, जहां से मैं उन के फ्लैट पर नजर रख सकती थी.

अर्पित मुझे उन के नाम और ठिकाने से अधिक कुछ नहीं बता सका था. मैं ने अपने तौर पर जानकारियां एकत्र करने की कोशिश की तो पता चला कि सुषमा सरकार यानी मां और रूपा सरकार किसी न किसी तरह के दावे कर के माल बटोरने में लगी रहती थीं. अगर मामला केवल उस औरत का होता तो शायद मैं उसे दे दिला कर राजी करने की कोशिश करती, लेकिन मसला उस की बेटी के अजीबोगरीब और अविश्वसनीय नुकसान का था. मैं ने उस डाक्टर से बात की, जो उस का इलाज कर रहा था. ऐसा मालूम होता था कि उस ने भी मांबेटी के दावे को सही साबित करने की बात को अपनी प्रेस्टीज का मसला बना लिया था.

9 बजे तक मैं अपनी कार में बैठेबैठे न्यूजपेपर पढ़ती रही. जब थक गई तो मैं ने गाड़ी से निकल कर हाथपांव सीधे किए और बिल्डिंग के चारों ओर एक चक्कर लगाया. मांबेटी के ग्राउंड फ्लोर स्थित फ्लैट का नंबर 7 था. उस के पीछे की तरफ एक पुरानी सी मारुति कार खड़ी थी, जिस पर लगे चंद निशानों से पता चल रहा था कि हाल ही उस का मामूली एक्सीडेंट हुआ है.

फ्लैट नंबर 7 में झांकने का मेरा प्रयास सफल नहीं हो सका. खिड़कियां बंद थीं और उन पर परदे पड़े हुए थे. अंदर तेज आवाज में म्युजिक बज रहा था. अंतत: मायूस हो कर मैं दोबारा अपनी कार में जा बैठी.

आखिर 10 बजे मांबेटी फ्लैट से बाहर निकलीं और गाड़ी में बैठ कर बाजार की ओर चल दीं. उन्होंने एकदूसरे से बिलकुल भी बात नहीं की. मैं ने उचित दूरी बना कर उन का पीछा करना शुरू कर दिया.

पहले दोनों एक बहुत अच्छे डिपार्टमेंटल स्टोर पर रुकीं और अंदर जा कर आधे घंटे तक बिना किसी मकसद के घूमती रहीं. उन्होंने महंगे फर्नीचर से ले कर मंगनी की अंगूठी तक का जायजा लिया. वे यकीनन उस दौलत को खर्च करने के तरीके सोच रही थीं, जो उन के ख्याल में उन्हें छप्पर फाड़ कर मिलने वाली थी. वे एकदम साधारण जीवन व्यतीत कर रही थीं, लेकिन उन की पसंद ऊंची लगती थी.

कुछ देर की आवारागर्दी के बाद आखिरकार वे एक ब्यूटीपार्लर में जा घुसीं. वे रिसैप्शन पर रुकीं तो मैं पीछे मुडे़ बिना सुषमा की आवाज सुन रही थी. मोटी सुषमा बाल सैट कराने के लिए एक कुरसी पर जा बैठी, जबकि दुबलीपतली रूपा वेटिंग रूम में बैठ गई. मुझे कुछ उम्मीद नजर आई कि संभवत: मुझे भाग्य आजमाने का अवसर मिलने वाला है.

मैं ने रिसैप्शन पर मौजूद लड़की से अपने बाल शैंपू और सैट कराने की बात की तो उस ने बताया कि करीब 10 मिनट बाद हेयर डे्रसर फ्री हो जाएगी.

मैं वेटिंग रूम में रूपा के सामने जा बैठी. वह सच्चे प्रेमप्रसंग प्रकाशित करने वाली एक पत्रिका के पृष्ठों पर नजरें जमाए बैठी थी. मैं ने भी मेज पर पड़ी 2-3 मैगजीनें उलटपलट कर देखने के बाद साधारण लहजे में कहा, ‘‘ऐसी जगहों पर हमेशा पुरानी मैगजीनें ही पड़ी रहती हैं.’’

रूपा ने मैगजीन से नजर हटा कर मेरी तरफ देखा, लेकिन बोली कुछ नहीं. मैं ने मुसकराते हुए मित्रवत लहजे में कहा, ‘‘तुम्हें शायद कोई अच्छी मैगजीन मिल गई है.’’

उस ने इनकार में सिर हिलाया तो मैं ने जल्दी से पूछा, ‘‘किसी खास ब्यूटीशियन के साथ अपाइंटमेंट है क्या?’’

उस ने कोई जवाब नहीं दिया और दोबारा उसी मैगजीन पर नजरें जमा कर बैठ गई. इतने में एक ब्यूटीशियन ने फ्री हो कर मुझे बुला लिया. जब इंसान को फास्ट सर्विस की कोई खास जरूरत नहीं होती तो उसे अनचाहे ही फास्ट सर्विस मिल जाती है.

मैं कुरसी पर जा बैठी. हेयरड्रेसर ने मेरे चारों ओर काला कपड़ा लपेटा और मैं ने शैंपू के लिए सिंक पर सिर झुका लिया. जब मेरे बाल संवारे जा रहे थे तो मैं ने ठंडी सांस ले कर कहा, ‘‘मैं ने किसी इतनी नौजवान लड़की को इतना रफटफ रहते हुए नहीं देखा.’’

हेयर ड्रेसर समझ गई कि मेरा इशारा किस ओर था. वह सिर घुमा कर रूपा की ओर देखते हुए बोली, ‘‘क्या हुआ?’’

‘‘मैं इस लड़की से दोस्ताना तरीके से बात करना चाहती थी. लेकिन उस ने कोई जवाब नहीं दिया. एक शब्द भी नहीं बोली.’’

हेयरड्रेसर मेरी ओर झुकते हुए बोली, ‘‘दरअसल, वह बेचारी बोल नहीं सकती. 2 महीने पहले एक अमीर आदमी ने अपनी कार से इन मांबेटी की कार में टक्कर मार दी थी. तब से इस बेचारी की बोलने की शक्ति चली गई है.’’

‘‘ओह… यह तो बड़ी अफसोसजनक बात है. मुझे यह बात मालूम नहीं थी?’’ मैं ने जल्दी से कहा. इस बीच सुषमा मुझ से कुछ दूर दूसरी कुरसी पर बाल सैट कराते हुए तेज रफ्तार से ब्यूटीशियन से बातें कर रही थी. ऐसा जान पड़ता था कि जैसे उसे आसपास का कुछ पता ही नहीं था.

‘‘मां की कमर में भी चोट आई थी,’’ ब्यूटीशियन ने कहा, ‘‘ये अमीर लोग समझते हैं, जो चाहे कर गुजरें, इन्हें कोई पूछने वाला नहीं.’’

इस का मतलब था कि इन लोगों की कहानी को और लोग भी जानते थे और कुछ लोगों की हमदर्दियां भी इन के साथ थीं. मेरे बाल सैट हो चुके तो मेरे पास वहां ठहरने का कोई बहाना नहीं रहा.

मैं ब्यूटीपार्लर से निकल आई और सामने सड़क किनारे एक बैंच पर बैठ गई. सड़क लगभग सुनसान थी. मैं सुबह 5 बजे की उठी थी. नींद मेरी आंखों में उतरने की कोशिश कर रही थी. मैं ने अपना सिर बैंच की बैक से टिका कर आंखें बंद कर लीं. कुछ देर में मुझे एक अजीबोगरीब सुखद अहसास हुआ. लेकिन उस अहसास का मैं ज्यादा देर आनंद नहीं उठा सकी.

‘‘शालिनी…’’ किसी की आवाज ने मुझे चौंका दिया. मैं हड़बड़ा कर सीधी हो गई.

एक घबराया हुआ सा युवक मेरे ऊपर थोड़ा सा झुका हुआ खड़ा था. उस की आंखों में शरारत साफ झलक रही थी. मुझे सड़क किनारे की एक बैंच पर ऊंघते देख कर संभवत: वह बहुत ही खुश हो रहा था.

मुझे केवल शालिनी के नाम से संबोधित कर के शायद उसे तसल्ली नहीं हुई थी. उस ने मेरा पूरा नाम लिया, ‘‘शालिनी चौहान…?’’ लेकिन यह मेरा शादी से पहले का नाम था. अब तो मुझे अपने पति से अलग हुए भी जमाना गुजर गया था. मैं हैरान हुए बिना न रह सकी कि यह कौन है, जो इस तरह मेरा नाम ले रहा है.

वह जैसे मेरी उलझन दूर करने के लिए अपने सीने पर हाथ रख कर बोला, ‘‘मैं सुशांत पाठक हूं, मिशन हाईस्कूल में तुम्हारे साथ पढ़ता था.’’

मेरी आंखें हैरत से फैल गईं. मुझे यकीन नहीं आ रहा था कि वह मेरा हाईस्कूल का क्लासमेट सुशांत था. कुछ समय के लिए वह मेरा बेहतरीन दोस्त भी रहा था. वह क्लास का सब से मूर्ख सा दिखने वाला लड़का था. कई बार आप ने देखा होगा कि छोटीछोटी घटनाएं कुछ लोगों को अचानक मिला देती हैं. सुशांत और मेरी यह मुलाकात कुछ इसी तरह थी.

सुशांत अब पहले की तरह दुबलापतला लड़का नहीं था, बल्कि भारीभरकम था. उस की भौहें आपस में लगभग जुड़ चुकी थीं और चेहरे पर मोटी मूंछें उग आई थीं.

‘‘तुम सुशांत पाठक हो?’’ मैंने अविश्वास से कहा.

‘‘हां.’’ वह कंधे उचका कर मुझे हैरत के दूसरे झटके से दोचार कराते हुए बोला, ‘‘और अब मुझे लोग क्रेजी सुशांत के नाम से जानते हैं. लेकिन पुराने दोस्तों के लिए मैं सुशांत ही हूं.’’

ओह माई गौड, पिछले एक महीने से मैं बाकायदा इस बेवकूफ का प्रोग्राम सुन रही थी और एसएमएस भेजभेज कर थक गई थी. मैं ने उसे अपने पास बैठने का इशारा करते हुए पूछा, ‘‘तुम ने मुझे कैसे पहचाना?’’

‘‘तुम में कुछ ज्यादा बदलाव नहीं आया है,’’ वह बोला, ‘‘और सुनाओ, तुम शौपिंग सेंटरों के सामने सोने के अलावा और क्या करती हो?’’

‘‘मैं एक प्राइवेट डिटेक्टिव हूं. यहां भी मैं काम के सिलसिले में आई हूं.’’ मैं ने कनखियों से ब्यूटीपार्लर की तरफ देखा. मैं नहीं चाहती कि जब वे मांबेटी बाहर आएं तो मैं यहां बातों में फंसी रह जाऊं.

‘‘यकीन तो नहीं आ रहा कि तुम प्राइवेट डिटेक्टिव हो.’’ ऐसा लग रहा था, जैसे वह हंसते हुए मेरी बातों का मजा ले रहा हो. लेकिन जल्दी ही शायद उस ने मेरी बेचैनी को महसूस कर लिया और अपना विजिटिंग कार्ड निकाल कर मुझे देते हुए बोला, ‘‘जब तुम्हें फुरसत हो, मुझे फोन कर लेना. शायद हम कहीं साथसाथ लंच वगैरह कर सकें.’’

‘‘जरूर.’’ मैं ने सिर हिलाते हुए कहा. वह वहां से चला गया. मैं भी उठ गई. तभी मैं ने देखा. मां बेटी ब्यूटीपार्लर से बाहर आ रही थीं. वे एक बार फिर शौपिंग सेंटर में घुस गईं. इस बार उन्होंने खानेपीने की कुछ चीजें खरीदीं. मैं उन की नजर में आए बिना उन पर निगाह रखे हुए थी.

यह बड़ी अजीब बात थी कि वैसे तो सुषमा की जुबान किसी और की मौजूदगी में एक पल को भी नहीं रुकती थी, लेकिन जब मांबेटी साथ होती थीं तो सुषमा बिलकुल खामोश रहती थी. बेशक रूपा जवाब नहीं दे सकती थी, लेकिन सुषमा आदत से मजबूर हो कर उस से कोई बात तो कर सकती थी.

ऐसा लगता था, जैसे वह जानबूझ कर खामोश रहती थी. मुझे लगा कि अर्पित का शक सही था. लेकिन अभी तक मेरे पास यह साबित करने के लिए कोई युक्ति नहीं थी.

मांबेटी अपना खरीदा हुआ सामान एक ट्रौली पर लाद कर बाहर जाने लगीं तो मैं उन के पीछे लग गई. शौपिंग सेंटर से निकल कर मांबेटी कार में बैठ कर रवाना हुईं और कुछ देर बाद एक पैट्रोल पंप पर जा रुकीं. यहां मुझे अपना भाग्य आजमाने का मौका मिला. सुषमा की गाड़ी के पीछे पैट्रोल लेने के लिए मुझ सहित 3-4 गाडि़यां और थीं.

उन में से एक को शायद बहुत जल्दी थी. वह हौर्न पर हौर्न बजा रहा था. सुषमा जल्दी में अपने पैट्रोल टैंक का ढक्कन छोड़ कर चल दी. मैं ने जल्दी से आगे बढ़ कर पैट्रोल पंप कर्मचारी से ढक्कन ले लिया कि मैं उन्हें रास्ते में दे दूंगी. मैं जब ढक्कन ले कर चली तो मेरे दिमाग में एक छोटी सी योजना जन्म ले रही थी.

जब मैं उन मांबेटी के फ्लैट पर पहुंची तो एक बार फिर पहले ही जैसा दृश्य मेरा इंतजार कर रहा था. खिड़कियों पर परदे गिरे हुए थे और एफएम पूरी आवाज से चल रहा था. मैं ने कालबैल बजाई तो दरवाजा सुषमा ने खोला. उस के एक हाथ में सिगरेट और दूसरे में बीयर का गिलास था. मैं ने ढक्कन उस की तरफ बढ़ाते हुए कहा, ‘‘यह संभवत: आप का है?’’

उस ने आंखें सिकोड़ कर ढक्कन का निरीक्षण किया. फिर बोली, ‘‘हां, आप को कहां मिला?’’

‘‘आप इसे पैट्रोल पंप पर छोड़ आई थीं, मैं ने रास्ते में हौर्न बजा कर आप को ध्यान दिलाने की भी कोशिश की, लेकिन आप ने नहीं देखा. मुझे आप के पीछेपीछे यहां तक आना पड़ा.’’ मैं ने बताया.

‘‘थैंक्यू… असल में मेरे पीछे एक खबीस को पैट्रोल लेने की बहुत जल्दी थी,’’ वह आंखें मिचमिचा कर मेरा निरीक्षण करने लगी, ‘‘ऐसा लगता है, जैसे तुम्हें कहीं देखा है.’’

मैं ने मस्तिष्क पर जोर दे कर चौंकने की ऐक्टिंग करते हुए कहा, ‘‘अरे हां, आप शायद पार्लर में मौजूद थीं. आप के साथ वह बच्ची भी थी, जो शायद…’’ मैं ने जल्दी से मुंह पर हाथ रख लिया.

वह हाथ नचाते हुए बोली, ‘‘अगर आप उसे गूंगी कहने वाली थीं तो इस में शर्मिंदा होने की कोई बात नहीं. यह बात अब कोई राज नहीं रही कि वह बोल नहीं सकती. आप अंदर आना चाहो तो आ सकती हो.’’

मैं भला क्यों इनकार करती. मैं अंदर पहुंची तो उस ने जोर से रूपा को पुकार कर एफएम की आवाज कम करने को कहा और मुझे बैठने का इशारा करते हुए बोली, ‘‘कुछ पियोगी?’’

मैं ने इनकार में सिर हिलाते हुए कहा, ‘‘सुना है, आप मांबेटी के साथ कोई दुर्घटना घट गई थी?’’

‘‘हां, एक व्यक्ति ने अंधों की तरह दिन की रोशनी में हमारी कार को पीछे से टक्कर मार दी थी. मुझे भी उस ने लगभग अपाहिज ही कर दिया था. सप्ताह में 2 दिन फिजियोथेरैपी के लिए जाती हूं, इसलिए जरा चलफिर लेती हूं.’’

‘‘आप को उस व्यक्ति पर हरजाने का दावा करना चाहिए था.’’ मैं ने कहा.

‘‘किया हुआ है,’’ वह जल्दी से बोली, ‘‘और उसे हरजाना देना ही पड़ेगा.’’ उस का चेहरा उस समय बिलकुल लालच की तसवीर बना हुआ था. कुछ देर बाद मैं ने महसूस किया कि मेरे वहां और बैठने का कोई औचित्य नहीं था. मैं ने इजाजत मांगी. इसी बीच एफएम पर वही जानीपहचानी हंसी उभरी, जैसे किसी लकड़बग्घे को हिचकियां लगी हों.

मैं ने चौंक कर उधर देखा, जहां एफएम बज रहा था. सुषमा ने जैसे मेरी जानकारी में इजाफा करते हुए कहा, ‘‘यह क्रेजी सुशांत का प्रोग्राम है. सुशांत रोजाना लौटरी के जरिए 30 हजार रुपए का इनाम देता है. रूपा प्रोग्राम में 50-60 बार मैसेज भेज चुकी है. आज तक तो इनाम नहीं निकला. मैं उसे समझाती रहती हूं कि इस तरह के इनामों आदि के चक्करों में नहीं पड़ना चाहिए. इस दुनिया में फ्री में कुछ नहीं मिलता.’’

मैं उठ कर बाहर आ गई. बाकी बातें मेरे मस्तिष्क से निकल गईं. सुषमा ने संभवत: मुझे वह रस्सी दे दी थी, जिस से मैं उस के गले में फंदा डाल सकती थी.

मैं ने तुरंत सुशांत को फोन मिलाया. उसे अपनी योजना पर अमल करवाने के लिए राजी करना मेरी सोच से कहीं ज्यादा आसान साबित हुआ. शायद हम दोनों ही अंतर्मन से झूठे और धोखेबाजों को पसंद नहीं करते थे और उन्हें पकड़वाने के लिए अपनी भूमिका अदा करना चाहते थे.

मैं रूपा और सुषमा के फ्लैट की निगरानी कर रही थी. ठीक 3 बजे मैं ने सुषमा को गाड़ी में बैठ कर अकेली जाते देख लिया था. यकीनी तौर पर वह फिजियोथेरैपी के लिए गई थी. कुछ देर बाद मैं ने रूपा को बहुत जल्दीजल्दी में घबराई हुई सी हालत में एक टैक्सी में बैठ कर रेडियो स्टेशन की तरफ जाते देखा.

उस के कुछ देर बाद मैं ने रेडियो पर उस की मिनमिनाती हुई सी आवाज सुनी. वह क्रेजी सुशांत से 30 हजार रुपए का चैक वसूल करने के बाद थैंक्स गिविंग के तौर पर उस के प्रोग्राम के बारे में अपने अनुभव बयान कर रही थी. रूपा शायद वास्तव में मान चुकी थी कि अर्पित मेहता या उस का कोई आदमी भला यह प्रोग्राम कहां सुनता होगा.

दूसरे उसे यह भी इत्मीनान हो गया होगा कि यह प्रोग्राम लाइव पेश होता था. इस की कोई रिकौर्डिंग नहीं होती थी. उस ने सोचा होगा कि उस की आवाज हवा की लहरों पर धूमिल हो जाएगी और बात वहीं समाप्त हो जाएगी. लेकिन उसे नहीं मालूम था कि मेरे कहने पर सुशांत ने उस की अपनी जुबान से उस के परिचय के साथ उस की आवाज रिकौर्ड करने का इंतजाम कर रखा था.

जैसे ही रूपा रेडियो स्टेशन से बाहर निकली, मैं ने अंदर जा कर सुशांत से वह टेप ले लिया, जिस पर रूपा का थैंक्स गिविंग मैसेज रिकौर्ड हो चुका था. मैं ने सुशांत को थैंक्स कहते हुए कहा, ‘‘आशा है, यह टेप सुनने के बाद रूपा सदमे से बेहोश हो जाएगी और अपना दावा वापस ले लेगी.’’

सुशांत हंसते हुए बोला, ‘‘आइंदा कभी मेरी जरूरत हो तो मैं हाजिर हूं. मैं हंगामी तौर पर काम करने में माहिर हूं.’’

‘‘नहीं, मेरे दूसरे क्लाइंटस की तरह अर्पित मेहता को हंगामे वाले अंदाज में मदद की जरूरत नहीं पड़ेगी,’’ मैं ने भी हंसते हुए कहा.

‘‘तुम उस अर्पित मेहता के लिए काम कर रही हो?’’ सुशांत के माथे पर लकीरें सी खिंच गईं, ‘‘वही जो मेहता इंटरप्राइजेज का मालिक है.’’

‘‘हां,’’ मैं ने उसे जवाब दिया, ‘‘लेकिन तुम इतनी नागवारी से क्यों पूछ रहे हो?’’

वह मुसकराते हुए बोला, ‘‘खैर, तुम तो अपने काम का मुआवजा ले रही हो. वैसे वह आदमी ठीक नहीं है, अव्वल दर्जे का बदमाश है वह.’’

‘‘तुम उसे कैसे जानते हो?’’ मैं ने पूछा.

‘‘इस रेडियो स्टेशन का मालिक भी वही है.’’ सुशांत ने जवाब दिया.

अब मेरा रुख सुषमा के फ्लैट की ओर था. मैं सोच रही थी कि लोगों को अपना भ्रम बनाए रखने का मौका देना चाहिए. इसलिए मैं ने फैसला कर लिया कि रूपा और सुषमा को अदालत में जाने से पहले ही टेप सुना देनी चाहिए ताकि वे चाहें तो कोर्ट न जा कर अपमानित होने से बच जाएं.

मैं ने उन के फ्लैट पर पहुंच कर दरवाजा खटखटाया. दरवाजा सुषमा ने खोला. मुझे उसी क्षण अंदाजा हो गया कि कोई गड़बड़ थी. रूपा की आंखें लाल और सूजी हुई थीं. जैसे वह काफी रोई हो.

‘‘क्या बता है सुषमा?’’ मैं ने अनजान बनते हुए कहा.

‘‘बस कुछ मत पूछो,’’ वह टिश्यू पेपर से आंखें पोंछते हुए बोली. वह दमे की मरीज मालूम होती थी. फिर भी मौत की ओर अपना सफर तेज करने के लिए लगातार सिगरेट पीती रहती थी. मैं अंदर पहुंची.

चंद मिनट रोनेधोने और हांफने के बाद सुषमा ने मेरी निहायत बुद्धिमत्तापूर्वक और प्रेमभरी पूछताछ के जवाब में कहा, ‘‘हमें गरीबी की जिंदगी से निकलने का सुनहरा अवसर मिला था. मगर इस लड़की ने जरा सी गलती से उसे बर्बाद कर दिया.’’ उस ने क्रोधित नजरों से रूपा की ओर देखा, जो सिर झुकाए बैठी थी. ‘‘मैं ने कसम खाई थी कि मैं उस व्यक्ति से हिसाब बराबर करूंगी, मगर अब वह बच कर निकल जाएगा.’’

‘‘कौन आदमी?’’ मैं ने चेहरे पर मासूमियत बनाए रखते हुए पूछा.

‘‘सुषमा का बाप.’’ रूपा ने जवाब दिया.

‘‘तुम्हारा पति?’’ मैं ने बात पक्की करने के लिए पूछा. क्योंकि मैं यही समझ रही थी कि वह अर्पित मेहता की बात कर रही थी.

इस बीच रूपा ने रोना शुरू कर दिया. सुषमा हांफते हुए उसे चुप कराने का प्रयत्न करते हुए बोली, ‘‘देखो, मुझे याद है, मैं ने तुम्हारी मां से वादा किया था. लेकिन मैं जो कर सकती थी, वह मैं ने किया.’’

अब इस केस पर काम करतेकरते कोई और ही मामला मेरे सामने खुल रहा था. मैं ने जल्दी से पूछा, ‘‘तुम क्या कह रही हो सुषमा, मेरा तो विचार था कि तुम ही उस की मां हो?’’

वह एक बार फिर रोनेधोने लगी. ऐसा लगता था कि उस से काम की कोई बात मालूम करना मुश्किल ही होगा. मैं रूपा के पास जा पहुंची. वह मुश्किल से 18 साल की थी. वह बेशक काफी दुबलीपतली थी और गरीबों वाले हुलिया में थी, लेकिन उस का व्यक्तित्व गौरवमयी था. मैं ने रूपा की ओर देखते हुए कहा, ‘‘तुम आज रेडियो स्टेशन पर जो कारनामा दिखा कर आई हो. उस की वजह से रो रही हो?’’

रूपा की आंखें फैल गईं और वह शायद गैरइरादतन बोल उठी, ‘‘आप को कैसे मालूम?’’

मैं ने इनकार में सिर हिलाते हुए कहा, ‘‘पहले तुम बताओ, तुम्हारी मां इतना क्यों रो रही हैं?’’

‘‘यह मेरी मां नहीं है, मेरी मां की एक नजदीकी सहेली हैं. मेरी मां तो मर चुकी है.’’ रूपा ने बताया. उस के लहजे में सालों की नाराजगी और गुस्सा था.

‘‘तुम मुझे सब कुछ बता कर दिल का बोझ हलका कर सकती हो?’’ मैं ने कहा.

‘‘बताने को इतना ज्यादा कुछ नहीं है.’’ रूपा कंधे उचका कर बोली, ‘‘मेरी मां की पिछले साल कैंसर से मृत्यु हो चुकी है. आंटी सुषमा उन की करीबी सहेली थीं. मेरी देखभाल उन्होंने अपने जिम्मे ले ली. हमारा वक्त किसी हद तक ठीक ही गुजर रहा था, लेकिन कुछ महीनों पहले एक दुर्घटना में उन की कमर में चोट लग गई. तब से हमारे हालात खराब हो गए और हमें अपने बड़े फ्लैट को छोड़ कर इस जगह आना पड़ा. इस माहौल में हम खुशी से नहीं रह रहे हैं.’’

‘‘लेकिन तुम्हारे पिता का क्या किस्सा है?’’

‘‘मेरे पिता ने मेरी मां से शादी नहीं की थी. मैं उन की बगैर शादी की औलाद हूं. छोटी ही थी, जब वे एकदूसरे से अलग हो गए. बहरहाल मेरी और मम्मी की गुजरबसर ठीक होती रही. मुझे कभी अपना बाप याद नहीं आया. जब मेरी मां बीमार हुई तो उसे आर्थिक हालत के बारे में फिक्र हुई.

‘‘उस ने अपनी खातिर नहीं, केवल मेरी वजह से मेरे बाप से आर्थिक मदद हासिल करने की गर्ज से कानूनी काररवाई करने का फैसला किया. मेरे बाप ने उस की खुशामद की कि अगर उस ने ऐसा किया तो वह तबाह हो जाएगा. क्योंकि तब तक वह अपनी बीवी की दौलत से तरक्की कर के बहुत दौलतमंद हो चुका था.

‘‘उस ने कहा कि अगर उस की बीवी को मालूम हो गया कि उस की कोई नाजायज औलाद भी है तो वह उस से तलाक ले लेगी. और सारी दौलत भी वापस हासिल कर लेगी. उस ने मेरी मां से कहा कि अगर वह यह लिख कर दे दे कि मैं उस की बेटी नहीं हूं तो वह मम्मी की मौत के बाद खुफिया तौर पर मेरा हरमुमकिन खयाल रखेगा. मेरी हर जरूरत पूरी करेगा.’’

रूपा की आंखों के आंसू उस के पीले गालों पर ढुलक आए. उस ने जल्दी से उसे पोंछ दिया और गहरी सांस ले कर बोली, ‘‘मम्मी की मौत के बाद पापा ने अपना इरादा बदल दिया और मेरी कोई खैरखबर नहीं ली. सुषमा आंटी ने मुझे अपनी बेटी बना लिया. तब से मैं उन्हीं के साथ रहती हूं.’’

मैं ने सुषमा की तरफ देखा तो वह सिगरेट का कश ले कर बोली, ‘‘मैं ने दुर्घटना का यह ड्रामा रचा था. मेरा विचार था कि रूपा के अमीर बाप से रकम हासिल करने का इस के सिवा और कोई तरीका हमारे लिए संभव नहीं है. यह ड्रामा रचना कोई आसान काम नहीं था. इस लड़की को 2 महीने तक मैं ने जिस तरह से चुप रखा है, मैं ही जानती हूं.’’

फिर उस ने पछतावे वाले अंदाज में सिर हिलाया, ‘‘और उस खबीस को देखो… उस ने अपने ही खून… अपनी ही बेटी को नहीं पहचाना.’’

‘‘तुम्हारा मतलब है अर्पित मेहता इस लड़की का बाप है?’’ मैं ने तसदीक करनी चाही. मेरा सिर घूम रहा था.

‘‘हां,’’ सुषमा ने जवाब दिया, ‘‘लेकिन तुम्हें उस का नाम कैसे मालूम?’’

मैं ने कोई जवाब नहीं दिया और वहां से उठ कर आ गई.

अगली सुबह मैं अपने घर के सामने खड़ी थी. कूड़े का ट्रक गली में कूड़ा उठाने आया था. अर्पित से मिले पैसे से मेरे बिल तो अदा हो गए थे, लेकिन मुझे नहीं मालूम था कि अगले महीने की मकान की किस्त कैसे अदा होगी और दूसरे खर्चे कैसे पूरे होंगे?

मुझे नहीं मालूम था कि रूपा के मुकदमे से संबंध रखने वाले किसी व्यक्ति ने एफएम पर उस की बातें सुनी थीं या नहीं? लेकिन मेरे हाथ में मौजूद सीडी में इस बात का एकमात्र सबूत था. इस के बगैर यह बात साबित नहीं की जा सकती थी कि सुषमा बोल सकती है.

मैं वह सीडी अर्पित के सामने पेश कर के 5 लाख रुपए इनाम ही नहीं, इस से भी ज्यादा रकम हासिल कर सकती थी. वे 5 लाख रुपए मेरे कई महीने के विलासितापूर्ण जीवन के लिए काफी थे. लेकिन जब कूड़ा ले जाने वाला ट्रक मेरे सामने आया तो मैं ने वह सीडी उस में फेंक दी. अब किसी के पास इस बात का कोई सबूत नहीं था कि रूपा बोल सकती है?

तृष्णा : इरा को जिंदगी से क्या शिकायत थी

उस का मन एक स्वच्छ और निर्मल आकाश था, एक कोरा कैनवस, जिस पर वह जब चाहे, जो भी रंग भर लेती थी. ‘लेकिन यथार्थ के धरातल पर ऐसे कोई रह सकता है क्या?’ उस का मन कभीकभी उसे यह समझाता, पर ठहर कर इस आवाज को सुनने की न तो उसे फुरसत थी, न ही चाह. फिर उसे अचानक दिखा था, उदय, उस के जीवन के सागर के पास से उगता हुआ. उस ने चाहा था, काश, वह इतनी दूर न होता. काश, इस सागर को वह आंखें मूंद कर पार कर पाती. उस ने आंखें मूंदी थीं और आंखें खुलने पर उस ने देखा, उदय सागर को पार कर उस के पास खड़ा है, बहुत पास. सच तो यह था कि उदय उस का हाथ थामे चल पड़ा था.

दिन पंख लगा कर उड़ने लगे. संसार का मायाजाल अपने भंवर की भयानक गहराइयों में उन्हें निगलने को धीरेधीरे बढ़ने लगा था. उन के प्यार की खुशबू चंदन बन कर इरा की गोद में आ गिरी तो वह चौंक उठी. बंद आंखों, अधखुली मुट्ठियों, रुई के ढेर से नर्म शरीर के साथ एक खूबसूरत और प्यारी सी हकीकत, लेकिन इरा के लिए एक चुनौती. इरा की सुबह और शाम, दिन और रात चंदन की परवरिश में बीतने लगे. घड़ी के कांटे के साथसाथ उस की हर जरूरत को पूरा करतेकरते वह स्वयं एक घड़ी बन चुकी थी. लेकिन उदय जबतब एक सदाबहार झोंके की तरह उस के पास आ कर उसे सहला जाता. तब उसे एहसास होता कि वह भी एक इंसान है, मशीन नहीं.

चंदन बड़ा होता गया. इरा अब फिर से आजाद थी, लेकिन चंदन का एक तूफान की तरह आ कर जाना उसे उदय की परछाईं से जुदा सा कर गया. अब वह फिर से सालों पहले वाली इरा थी. उसे लगता, ‘क्या उस के जीवन का उद्देश्य पूरा हो गया? क्या अब वह निरुद्देश्य है?’ एक बार उदय रात में देर से घर आया था, थका सा आंखें बंद कर लेट गया. इरा की आंखों में नींद नहीं थी. थोड़ी देर वह सोचती रही, फिर धीरे से पूछा, ‘‘सो गए क्या?’’

‘‘नहीं, क्या बात है?’’ आंखें बंद किए ही वह बोला. ‘‘मुझे नींद नहीं आती.’’

उदय परेशान हो गया, ‘‘क्या बात है? तबीयत तो ठीक है न?’’ अपनी बांह का सिरहाना बना कर वह उस के बालों में उंगलियां फेरने लगा. इरा ने धीरे से अलग होने की कोशिश की, ‘‘कोई बात नहीं, मुझे अभी नींद आ जाएगी, तुम सो जाओ.’’

थोड़ी देर तब उदय उलझा सा जागा रहा, फिर उस के कंधे पर हाथ रख कर गहरी नींद सो गया. कुछ दिनों बाद एक सुबह नाश्ते की मेज पर इरा ने उदय से कहा, ‘‘तुम और चंदन दिनभर बाहर रहते हो, मेरा मन नहीं लगता, अकेले मैं क्या करूं?’’

उदय ने हंस कर कहा, ‘‘सीधेसीधे कहो न कि चंदन तो आ गया, अब चांदनी चाहिए.’’ ‘‘जी नहीं, मेरा यह मतलब हरगिज नहीं था. मैं भी कुछ काम करना चाहती हूं.’’

‘‘अच्छा, मैं तो सोचता था, तुम्हें घर के सुख से अलग कर बाहर की धूप में क्यों झुलसाऊं? मेरे मन में कई बार आया था कि पूछूं, तुम अकेली घर में उदास तो नहीं हो जाती हो?’’ ‘‘तो पूछा क्यों नहीं?’’ इरा के स्वर में मान था.

‘‘तुम क्या करना चाहती हो?’’ ‘‘कुछ भी, जिस में मैं अपना योगदान दे सकूं.’’

‘‘मेरे पास बहुत काम है, मुझ से अकेले नहीं संभलता. तुम वक्त निकाल सकती हो तो इस से अच्छा क्या होगा?’’ इरा खुशी से झूम उठी.

दूसरे दिन जल्दीजल्दी सब काम निबटा कर चंदन को स्कूल भेज कर दोनों जब घर से बाहर निकले तो इरा की आंखों में दुनिया को जीत लेने की उम्मीद चमक रही थी. सारा दिन औफिस में दोनों ने गंभीरता से काम किया. इरा ने जल्दी ही काफी काम समझ लिया. उदय बारबार उस का हौसला बढ़ाता. जीवन अपनी गति से चल पड़ा. सुबह कब शाम हो जाती और शाम कब रात, पता ही न चलता था.

एक दिन औफिस में दोनों चाय पी रहे थे कि एकाएक इरा ने कहा, ‘‘एक बात पूछूं?’’ ‘‘हांहां, कहो.’’

‘‘यह बताओ, हम जो यह सब कर रहे हैं, इस से क्या होगा?’’ उदय हैरानी से उस का चेहरा देखने लगा, ‘‘तुम कहना क्या चाहती हो?’’

‘‘यही कि रोज सुबह यहां आ कर वही काम करकर के हमें क्या मिलेगा?’’ ‘‘क्या पाना चाहती हो?’’ उदय ने हंस कर पूछा.

‘‘देखो, मेरी बात मजाक में न उड़ाना. मैं बहुत दिनों से सोच रही हूं, हमें एक ही जीवन मिला है, जो बहुत कीमती है. इस दुनिया में देखने को, जानने को बहुत कुछ है. क्या घर से औफिस और औफिस से घर के चक्कर काट कर ही हमारी जिंदगी खत्म हो जाएगी?’’ ‘‘क्या तुम्हें लगता है कि तुम जो कुछ कर रही हो, वह काफी नहीं है?’’ उदय गंभीर था.

इरा को न जाने क्यों गुस्सा आ गया. वह रोष से बोली, ‘‘क्या तुम्हें लगता है, जो तुम कर रहे हो, वही सबकुछ है और कुछ नहीं बचा करने को?’’ उदय ने मेज पर रखे उस के हाथ पर अपना हाथ रख दिया, ‘‘देखो, अपने छोटे से दिमाग को इतनी बड़ी फिलौसफी से थकाया न करो. शाम को घर चल कर बात करेंगे.’’

शाम को उदय ने कहा, ‘‘हां, अब बोलो, तुम क्या कहना चाहती हो?’’ इरा ने आंखें बंद किएकिए ही कहना शुरू किया, ‘‘मैं जानना चाहती हूं कि जीवन का उद्देश्य क्या होना चाहिए, आदर्श जीवन किसे कहना चाहिए, इंसान का सही कर्तव्य क्या है?’’

‘‘अरे, इस में क्या है? इतने सारे विद्वान इस दुनिया में हुए हैं. तुम्हारे पास तो किताबों का भंडार है, चाहो तो और मंगवा लो. सबकुछ तो उन में लिखा है, पढ़ लो और जान लो.’’ ‘‘मैं ने पढ़ा है, लेकिन उन में कुछ नहीं मिला. छोटा सा उदाहरण है, बुद्ध ने कहा कि ‘जीवहत्या पाप है’ लेकिन दूसरे धर्मों में लोग जीवों को स्वाद के लिए मार कर भी धार्मिक होने का दावा करते हैं और लोगों को जीने की राह सिखाते हैं. दोनों पक्ष एकसाथ सही तो नहीं हो सकते. बौद्ध धर्म को मानने वाले बहुत से देशों में तो लोगों ने कोई भी जानवर नहीं छोड़ा, जिसे वे खाते न हों. तुम्हीं बताओ, इस दुनिया में एक इंसान को कैसे रहना चाहिए?’’

‘‘देखो, तुम ऐसा करो, इन सब को अपनी अलग परिभाषा दे दो,’’ उदय ने हंस कर कहा.

इरा ने कहना शुरू किया, ‘‘मैं बहुतकुछ जानना चाहती हूं. देखना चाहती हूं कि जब पेड़पौधे, जमीन, नदियां सब बर्फ से ढक जाते हैं तो कैसा लगता है? जब उजाड़ रेगिस्तान में धूल भरी आंधियां चलती हैं तो कैसा महसूस होता है? पहाड़ की ऊंची चोटी पर पहुंच कर कैसा अुनभव होता है? सागर के बीचोंबीच पहुंचने पर चारों ओर कैसा दृश्य दिखाई देता है? ये सब रोमांच मैं स्वयं महसूस करना चाहती हूं.’’ उदय असहाय सा उसे देख रहा था. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह इरा को कैसे शांत करे. फिर भी उस ने कहा, ‘‘अच्छा उठो, हाथमुंह धो लो, थोड़ा बाहर घूम कर आते हैं,’’ फिर उस ने चंदन को आवाज दी, ‘‘चलो बेटे, हम बाहर जा रहे हैं.’’

उन लोगों ने पहले एक रैस्तरां में कौफी पी. चंदन ने अपनी पसंद की आइसक्रीम खाई. फिर एक थिएटर में पुरानी फिल्म देखी. रात हो चुकी थी तो उदय ने बाहर ही खाना खाने का प्रस्ताव रखा. काफी रात में वे घर लौटे. कुछ दिनों बाद उदय ने इरा से कहा, ‘‘इस बार चंदन की सर्दी की छुट्टियों में हम शिमला जा रहे हैं.’’

इरा चौंक पड़ी, ‘‘लेकिन उस वक्त तो वहां बर्फ गिर रही होगी.’’ ‘‘अरे भई, इसीलिए तो जाएंगे.’’

‘‘लेकिन चंदन को तो ठंड नुकसान पहुंचाएगी.’’ ‘‘वह अपने दादाजी के पास रहेगा.’’

शिमला पहुंच कर इरा बहुत खुश थी. हाथों में हाथ डाल कर वे दूर तक घूमने निकल जाते. एक दिन सर्दी की पहली बर्फ गिरी थी. इरा दौड़ कर कमरे से बाहर निकल गई. बरामदे में बैठे बर्फ गिरने के दृश्य को बहुत देर तक देखती रही.

फिर मौसम कुछ खराब हो गया था. वे दोनों 2 दिनों तक बाहर न निकल सके. 3-4 दिनों बाद ही इरा ने घर वापस चलने की जिद मचा दी. उदय उसे समझाता रह गया, ‘‘इतनी दूर इतने दिनों बाद आई हो, 2-4 दिन और रुको, फिर चलेंगे.’’

लेकिन उस ने एक न सुनी और उन्हें वापस आना पड़ा. एक बार चंदन ने कहा, ‘‘मां, जब कभी आप को बाहर जाना हो तो मुझे दादाजी के पास छोड़ जाना, मैं उन के साथ खूब खेलता हूं. वे मुझे बहुत अच्छीअच्छी कहानियां सुनाते हैं और दादी ने मेरी पसंद की बहुत सारी चीजें बना कर मुझे खिलाईं.’’

इरा ने उसे अपने सीने से लगा लिया और सोचने लगी, ‘शिमला में उसे चंदन का एक बार भी खयाल नहीं आया. क्या वह अच्छी मां नहीं? अब वह चंदन को एक दिन के लिए भी छोड़ कर कहीं नहीं जाएगी.’ अब हर साल चंदन के स्कूल की छुट्टियों में वे तीनों कहीं न कहीं घूमने निकल जाते. जीवन में रस सा आ

गया था. सब बेचैनी से छुट्टियों का इंतजार करते. एक शाम चाय पीते हुए इरा ने कहा, ‘‘सुनो, विमलेशजी कह रही थीं कि इंटरनैशनल इंस्टिट्यूट औफ फिजिकल एजुकेशन से 2-3 लोग आए हैं, वे सुबह 1 घंटे ऐक्सरसाइज करना सिखाएंगे और उन के लैक्चर भी होंगे. मुझे लगता है, शायद मेरे कई प्रश्नों का उत्तर मुझे वहां जा कर मिल जाएगा. अगर कहो तो मैं भी चली जाया करूं, 15-20 दिनों की ही तो बात है.’’

उदय ने चाहा कि कहे, ‘तुम कहां विमलेश के चक्कर में पड़ रही हो. वह तो सारा दिन पूजापाठ, व्रतउपवास में लगी रहती है. यहां तक कि उसे इस का भी होश नहीं रहता कि उस के पति व बच्चों ने खाना खाया कि नहीं?’ लेकिन वह चुप रहा. थोड़ी देर बाद उस ने कहा, ‘‘ठीक है, सोच लो, तुम्हें ही समय निकालना पड़ेगा. ऐसा करो, 15-20 दिन तुम मेरे साथ औफिस न चलो.’’

‘‘नहींनहीं, ऐसा कुछ नहीं है, मैं कर लूंगी,’’ इरा उत्साहित थी. इरा अब ऐक्सरसाइज सीखने जाने लगी. सुबह जल्दी उठ कर वह उदय और चंदन के लिए नाश्ता बना कर चली जाती. उदय चंदन को ले कर टहलने निकल जाता और लौटते समय इरा को साथ ले कर वापस आ जाता. फिर दिनभर औफिस में दोनों काम करते.

शाम को घर लौटने पर कभी उदय कहता, ‘‘आज तुम थक गई होगी, औफिस में भी काम ज्यादा था और तुम सुबह 4 बजे से उठी हुई हो. आज बाहर खाना खा लेते हैं.’’

लेकिन वह न मानती. अब वह ऐक्सरसाइज करना सीख चुकी थी. सुबह जब सब सोते रहते तो वह उठ कर ऐक्सरसाइज करती. फिर दिन का सारा काम करने के बाद रात में चैन से सोती.

एक दिन इरा ने उदय से कहा, ‘‘ऐक्सरसाइज से मुझे बहुत शांति मिलती है. पहले मुझे छोटीछोटी बातों पर गुस्सा आ जाता था, लेकिन अब नहीं आता. कभी तुम भी कर के देखो, बहुत अच्छा लगेगा.’’ उदय ने हंस कर कहा, ‘‘भावनाओं को नियंत्रित नहीं करना चाहिए. सोचने के ढंग में परिवर्तन लाने से सबकुछ सहज हो सकता है.’’

चंदन की गरमी की छुट्टियां हुईं. सब ने नेपाल घूमने का कार्यक्रम बनाया. जैसे ही वे रेलवेस्टेशन पहुंचे, छोटेछोटे भिखारी बच्चों ने उन्हें घेर लिया, ‘माई, भूख लगी है, माई, तुम्हारे बच्चे जीएं. बाबू 10 रुपए दे दो, सुबह से कुछ खाया नहीं है.’ लेकिन यह सब कहते हुए उन के चेहरे पर कोई भाव नहीं था, तोते की तरह रटे हुए वे बोले चले जा रहे थे. इस से पहले कि उदय पर्स निकाल कर उन्हें पैसे दे पाता, इरा ने 20-25 रुपए निकाले और उन्हें दे कर कहा, ‘‘आपस में बराबरबराबर बांट लेना.’’

काठमांडू पहुंच कर वहां की सुंदर छटा देख कर सब मुग्ध रह गए. इरा सवेरे उठ कर खिड़की से पहाड़ों पर पड़ती धूप के बदलते रंग देख कर स्वयं को भी भूल जाती. एक रात उस ने उदय से कहा, ‘‘मुझे आजकल सपने में भूख से बिलखते, सर्दी से ठिठुरते बच्चे दिखाई देते हैं. फिर मुझे अपने इस तरह घूमनेफिरने पर पैसा बरबाद करने के लिए ग्लानि सी होने लगती है. जब हमारे चारों तरफ इतनी गरीबी, भुखमरी फैली हुई है, हमें इस तरह का जीवन जीने का अधिकार नहीं है.’’

उदय ने गंभीर हो कर कहा, ‘‘तुम सच कहती हो, लेकिन स्वयं को धिक्कारने से समस्या खत्म तो नहीं हो सकती. हमें अपने सामर्थ्य के अनुसार ऐसे लोगों की सहायता करनी चाहिए, लेकिन भीख दे कर नहीं. हो सके तो इन्हें आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास करना चाहिए. अगर हम ने अपनी जिंदगी में ऐसे 4-6 घरों के कुछ बच्चों को पढ़नेलिखने में आर्थिक या अन्य सहायता दे कर अपने पैरों पर खड़ा होने का मौका दिया तो वह कम नहीं है. तुम इस में मेरी मदद करोगी तो मुझे अच्छा लगेगा.’’ इरा प्रशंसाभरी नजरों से उदय को देख रही थी. उस ने कहा, ‘‘लेकिन दुनिया तो बहुत बड़ी है. 2-4 घरों को सुधारने से क्या होगा?’’

नेपाल से लौटने के बाद इरा ने शहर की समाजसेवी संस्थाओं के बारे में पता लगाना शुरू किया. कई जगहों पर वह स्वयं जाती और शाम को लौट कर अपनी रिपोर्ट उदय को विस्तार से सुनाती. कभीकभी उदय झुंझला जाता, ‘‘तुम किस चक्कर में उलझ रही हो. ये संस्थाएं काम कम, दिखावा ज्यादा करती हैं. सच्चे मन से तुम जो कुछ कर सको, वही ठीक है.’’

लेकिन इरा उस से सहमत नहीं थी. आखिर एक संस्था उसे पसंद आ गई. अनीता कुमारी उस संस्था की अध्यक्ष थीं. वे एक बहुत बड़े उद्योगपति की पत्नी थीं. इरा उन के भाषण से बहुत प्रभावित हुई थी. उन की संस्था एक छोटा सा स्कूल चलाती थी, जिस में बच्चों को निशुल्क पढ़ाया जाता था. गांव की ही कुछ औरतों व लड़कियों को इस कार्य में लगाया गया था. इन शिक्षिकाओं को संस्था की ओर से वेतन दिया जाता था. समाज द्वारा सताई गई औरतों, विधवाओं, एकाकी वृद्धवृद्धाओं के लिए भी संस्था काफी कार्य कर रही थी.

इरा सोचती थी कि ये लोग कितने महान हैं, जो वर्षों निस्वार्थ भाव से समाजसेवा कर रहे हैं. धीरेधीरे अपनी मेहनत और लगन की वजह से वह अनीता का दाहिना हाथ बन गई. वे गांवों में जातीं, वहां के लोगों के साथ घुलमिल कर उन की समस्याओं को सुलझाने की कोशिश करतीं. इरा को कभीकभी महसूस होता कि वह उदय और चंदन के साथ अन्याय कर रही है. एक दिन यही बात उस ने अनीता से कह दी. वे थोड़ी देर उस की तरफ देखती रहीं, फिर धीरे से बोलीं, ‘‘तुम सच कह रही हो…तुम्हारे बच्चे और तुम्हारे पति का तुम पर पहला अधिकार है. तुम्हें घर और समाज दोनों में सामंजस्य रखना चाहिए.’’

इरा चौंक गई, ‘‘लेकिन आप तो सुबह आंख खुलने से ले कर रात देर तक समाजसेवा में लगी रहती हैं और मुझे ऐसी सलाह दे रही हैं?’’ ‘‘मेरी कहानी तुम से अलग है, इरा. मेरी शादी एक बहुत धनी खानदान में हुई. शादी के बाद कुछ सालों तक मैं समझ न सकी कि मेरा जीवन किस ओर जा रहा है? मेरे पति बहुत बड़े उद्योगपति हैं. आएदिन या तो मेरे या दूसरों के यहां पार्टियां होती हैं. मेरा काम सिर्फ सजसंवर कर उन पार्टियों में जाना था. ऐसा नहीं था कि मेरे पति मुझे या मेरी भावनाओं को समझते नहीं थे, लेकिन वे मुझे अपने कीमती समय के अलावा सबकुछ दे सकते थे.

‘‘फिर मेरे जीवन में हंसताखेलता एक राजकुमार आया. मुझे लगा, मेरा जीवन खुशियों से भर गया. लेकिन अभी उस का तुतलाना खत्म भी नहीं हुआ था कि मेरे खानदान की परंपरा के अनुसार उसे बोर्डिंग स्कूल में भेज दिया गया. अब मेरे पास कुछ नहीं था. पति को अकसर काम के सिलसिले में देशविदेश घूमना पड़ता और मैं बिलकुल अकेली रह जाती. जब कभी उन से इस बात की शिकायत करती तो वे मुझे सहेलियों से मिलनेजुलने की सलाह देते. ‘‘धीरेधीरे मैं ने घर में काम करने वाले नौकरों के बच्चों को पढ़ाना शुरू किया. शुरू में तो मेरे पति थोड़ा परेशान हुए, फिर उन्होंने कुछ नहीं कहा. वहां से यहां तक मैं उन के सहयोग के बिना नहीं पहुंच सकती थी. उन्हें मालूम हो गया था कि अगर मैं व्यस्त नहीं रहूंगी तो बीमार हो जाऊंगी.’’

इरा जैसे सोते से जागी, उस ने कुछ न कहा और चुपचाप घर चली आई. उसे जल्दी लौटा देख कर उदय चौंक पड़ा. चंदन दौड़ कर उस से लिपट गया. उदय और चंदन खाना खाने जा रहे थे. उदय ने अपने ही हाथों से कुछ बना लिया था. चंदन को होटल का खाना अच्छा नहीं लगता था. मेज पर रखी प्लेट में टेढ़ीमेढ़ी रोटियां और आलू की सूखी सब्जी देख कर इरा का दिल भर आया.

चंदन बोला, ‘‘मां, आज मैं आप के साथ खाना खाऊंगा. पिताजी भी ठीक से खाना नहीं खाते हैं.’’

इरा ने उदय की ओर देखा और उस की गोद में सिर रख कर फफक कर रो पड़ी, ‘‘मैं तुम दोनों को बहुत दुख देती हूं. तुम मुझे रोकते क्यों नहीं?’’ उदय ने शांत स्वर में कहा, ‘‘मैं ने तुम से प्यार किया है और पति होने का अधिकार मैं जबरदस्ती तुम से नहीं लूंगा, यह तुम जानती हो. जीवन के अनुभव प्राप्त करने में कोई बुराई तो नहीं, लेकिन बात क्या है तुम इतनी परेशान क्यों हो?’’

इरा उसे अनीताजी के बारे में बताने लगी, ‘‘जिन को आदर्श मान कर मैं अपनी गृहस्थी को अनदेखा कर चली थी, उन के लिए तो समाजसेवा सूने जीवन को भरने का साधन मात्र थी. लेकिन मेरा जीवन तो सूना नहीं. अनीता के पास करने के लिए कुछ नहीं था, न पति पास था, न संतान और न ही उन्हें अपनी जीविका के लिए संघर्ष करना था. लेकिन मेरे पास तो पति भी है, संतान भी, जिन की देखभाल की जिम्मेदारी सिर्फ मेरी है, जिन के साथ इस समाज में अपनी जगह बनाने के लिए मुझे संघर्ष करना है. यह सब ईमानदारी से करते हुए समाज के लिए अगर कुछ कर सकूं, वही मेरे जीवन का उद्देश्य होगा और यही जीवन का सत्य भी…’’

लंग पेशेंट्स रखें गरमियों में अपना खास ख्याल, तेज धूप कर सकती है फेफड़े खराब

गरमियों का मौसम चल रहा है. लू के थपेड़े झुलसा रहे हैं. पसीना है कि सूखता ही नहीं. सरकार बार बार कहती है कि जरूरी हो तो ही दिन में घर से बाहर निकलें. पर फिर भी काम तो करने ही पड़ते हैं. ऐसे में तेज धूप किसी को भी किसी भी तरह का नुकसान पहुंचा सकती है. तेज गरमी में सब से ज्यादा ध्यान अस्थमा के लोगों को रखना पड़ता है, क्योंकि गरमी में सब से ज्यादा नुकसान अस्थमा पेशेंट्स को होता है. वजह, इस मौसम में रैस्पिरेटरी इंफैक्शन का खतरा बढ़ जाता है. बौडी का मैटाबौलिक रेट बढ़ने लगता है. ऐसे में फेफड़ों पर बहुत लोड पड़ता है. बहुत ठंडी या गरमी से सांस की नलियों में सूजन पैदा हो जाती है. ज्यादा तापमान में यह नलियां ड्राई हो कर सूज जाती हैं, जिस से ये बहुत सैंसिटिव हो जाती हैं. ऐसे में अगर पेशेंट को साथ में हीट स्ट्रोक हो जाए, तो समस्या बढ़ जाती है. तो आज इस आर्टिकल में हम यही बताएंगे कि गरमी में फफड़ों के लिए क्या करें और क्या न करें.

क्या करें अस्थमा पेशेंट्स

  • सीपीओडी (Chronic obstructive pulmonary disease) के मरीज डॉक्टर की सलाह लेकर इन्फ्लूएंजा या नीमोकोकल वैक्सीन का इस्तेमाल करें.
  • जहां भी रहें उस जगह का तापमान मेंटेन रखें, जिससे बॉडी एक समान टेंपरेचर पर रहे.
  • तेज धूप में और दिन के समय सुबह 10 से शाम 4 बजे तक बाहर न निकलें.

ऐसे करें बचाव

  • पर्याप्त मात्रा में पानी पिएं. पानी के अलावा ओआरएस, फलों का जूस व नारियल पानी भी लें.
  • थोड़ी देर ही सही व्यायाम के लिए वक्त जरूर निकालें. ज्यादा थकाने वाली एक्सरसाइज से बचें.
  • एसी से निकलकर तुरंत तेज धूप में जाने से बचें.
  • वॉकिंग फिट रहने के लिए बेस्ट है.
  • वायरल इन्फेक्शन हो, तो मास्क पहनकर ही रहें.
  • वॉकिंग फिट रहने के लिए बेस्ट है.
  • वायरल इन्फेक्शन हो, तो मास्क पहनकर ही रहें.

मेरी बीवी बहुत अच्छी है पर मैं दूसरी महिला को पसंद करता हूं, मैं क्या करूं?

सवाल

कई सालों से मेरा एक शादीशुदा औरत के साथ हमबिस्तरी करने का सिलसिला चल रहा था. उस का अपने देवर के साथ भी संबंध है. इस साल मेरी शादी हो गई. मेरी बीवी बहुत अच्छी है. लेकिन, मैं उस औरत को भूल नहीं पा रहा हूं. वह भी मेरी याद में बीमार हो गई है. मैं क्या करूं?

जवाब

आप भी मौकापरस्त हैं और वह औरत भी मर्दों की शौकीन लगती है. ऐसे संबंधों को ज्यादा अहमियत देना बेवकूफी है. जब तक मुमकिन था, आप लोगों ने मस्ती की, पर अब सुधर कर बीवी के साथ वफादार बनने की कोशिश करें. उस औरत को आप जैसे और मिल जाएंगे, इसलिए उस की फिक्र न करें.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

 
सब्जेक्ट में लिखे…  सरस सलिल- व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

अंधविश्वास: झूठे आदर्श पाखंड को जन्म देते हैं

आदर्श पाखंड़ को जन्म देते हैं आप को यह पढ़ कर शायद हैरानी हो कि भारत में जितने भी जानेमाने धर्मगुरु हुए हैं, उन में से ज्यादातर किसी न किसी ठीक न हो सकने वाली बीमारी से पीडि़त रहे हैं या अभी भी हैं. जो दूसरों को यह उपदेश देते थे कि ओम का उच्चारण करते रहने से, ओम की जय करने से, प्राणायाम करने से रोग पास भी नहीं फटकते, पर वे खुद किसी न किसी बीमारियों से जरूर पीडि़त थे. इस की एक खास वजह है.

यह एक मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि जब भी कोई इनसान अपनी किसी कुदरती इच्छा को दबाने की कोशिश करता रहता है, तो उस की वह इच्छा उस आदमी के अचेतन मन में चली जाती है. फिर वह किसी न किसी मनोकायिक (साइकोसोमैटिको) बीमारी को जरूर जन्म देने लगती है. जनवरी, 2022 में मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में एक अस्पताल में तब हड़कंप मच गया, जब जिले के सौस गांव से एक विक्षिप्त बाबा को एंबुलैंस में लाया गया था. वह गांव में कभी कीचड़ में लोट जाता, तो कभी पेड़ों पर चढ़ जाता या ड्रामा करता. अस्पताल में भी वह बाबा नर्सिंग स्टाफ के सामने नंगा हो जाता, तो कभी वार्डबौयों पर हमला करने लगता. उसे पुलिस के हवाले कर दिया गया.

पर सवाल है कि ऐसे हालात आए ही क्यों? इसलिए कि बाबाओं को कहा जाता है कि इच्छाओं को दबाओ और वे खुद बीमार हो जाते हैं. राजा हो या रंक, साधु हो या संत, कोई भी कुदरत के इस नियम से बच नहीं पाता. बढ़ती इच्छाओं को दबाने के खिलाफ सजा देने का कुदरत का यह एक ढंग है. आप देखोगे कि जो भी इनसान ?ाठे आदर्शों की चादर ओढ़ कर पाखंड वाली जिंदगी जी रहा होगा, वह किसी न किसी बड़ी बीमारी से भी जरूरत पीडि़त होगा. वह बीमारी ही उस की मौत की वजह भी बन जाती है. भारत में यह भी एक विडंबना ही है कि लोग किसी के चरित्र का मूल्यांकन केवल इस बात से लगाते हैं कि अमुक इनसान ने अपनी कामवासनाओं को कितना कंट्रोल में रखा हुआ है.

जो इनसान कामवासनाओं के बारे में खुले स्वभाव का होता है, उसे हम चरित्रहीन मानने लगते हैं और जो ब्रह्मचारी होने का ढोंग करता हो, उस की पूजा करने लगते हैं और उसे दानदक्षिणा भी देने लगते हैं. एक गलत सोच के चलते हिंदू धर्म में हजारों सालों में सब से ज्यादा अहमियत ब्रह्मचर्य को दी गई है. साधुसंन्यासी इसलिए भी समाज में इज्जत पा रहे हैं, क्योंकि वे ब्रह्मचर्य पालन का दावा करते हैं. जिस तरह एक पीएचडी डिगरी लेने वाला अपने नाम के साथ डाक्टर लिखने लगता है, उसी तरह कई साधुसंन्यासी समाज में ज्यादा से ज्यादा इज्जत पाने के लिए अपने नाम के साथ ‘बाल ब्रह्मचारी’ की डिगरी भी जोड़ देते हैं.

मजे की बात यह है कि पूरे संसार में भारतीय ही सब से ज्यादा कामुक हैं. वे एक साल में ही पूरे आस्ट्रेलिया की आबादी के बराबर बच्चे पैदा कर देते हैं. भारतीयों के बिस्तर उन के खेतों से ज्यादा उपजाऊ माने जाते हैं. मनोवैज्ञानिक इस बात से पूरी तरह सहमत हैं कि जब भी कोई इनसान हठपूर्वक ब्रह्मचर्य साधने की कोशिश करने लगता है, तो कामुकता भी उस का पीछा करती रहती है, जो अपना रूप बदल कर सामने आती रहती है. ब्रह्मचर्य की साधना करने वाला दिनरात अपने कामकेंद्र के इर्दगिर्द ही जिंदगी बिताने लगता है. वह किसी जंगल में या गुफा में तपस्या कर रहा होगा, तो उस के सपनों में अप्सराएं आ कर उस की साधना भंग करने लगेंगी.

कुछ अज्ञानी लोगों ने सोचेसमझे बिना ही वीर्य के संबंध में कई तरह की गलत बातें फैला रखी हैं. कुछ शास्त्रों में यह भी पढ़ने को मिलता है कि इनसान अगर 32 किलो भोजन खाता है, तो उस से शरीर में 800 ग्राम रक्त बनता है. उस 800 ग्राम रक्त में से केवल 20 ग्राम वीर्य ही बनता है. पर मैडिकल जांचपड़ताल से यह पता चला है कि पुरुष के शरीर में वीर्य बनना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है. जिस तरह से पाचक ग्रंथियां भोजन को पचाने के लिए पाचक रस छोड़ती रहती हैं, उसी तरह से यौन ग्रंथियां वीर्य बनाती रहती हैं. जब वीर्य में शुक्राणुओं की संख्या जरूरत से ज्यादा बढ़ जाती है, तो वीर्य सपनों के रूप में शरीर से बाहर निकल जाता है. यह कुदरत द्वारा बनाई गई एक आनंददायक व्यवस्था है.

पर धर्मशास्त्र व कुछ धर्मगुरु ऐसा प्रचार करते हैं कि लोग हमेशा डरे रहें. शरीर के अंदर वीर्य बनने की प्रक्रिया हमेशा चलती ही रहती है, इसलिए जरूरत से ज्यादा वीर्य को शरीर के अंदर रोक पाना मुमकिन नहीं है. पर बहुत से लोग खासतौर पर धर्मगुरु इस सच को छिपाने के लिए कई तरह के ढोंग करने लगते हैं. अपने नाम के साथ ‘बाल ब्रह्मचारी’ लिखना भी ऐसा ही एक ढोंग मात्र है. जो लोग हठपूर्वक ब्रह्मचर्य का पालन कर रहे होते हैं, वे भी इस उम्मीद में जी रहे होते हैं कि स्वर्ग में जा कर तो उन की देखभाल अप्सराएं करेंगी, जो उन की हर आज्ञा का पालन करेंगी. जब इनसान अपनी किसी इच्छा को हठपूर्वक दबा लेता है, तो वह इच्छा उस के मन में जा कर दब जाती है, फिर इनसान को उस दबी हुई इच्छा को पूरा करने के लिए किसी न किसी पाखंड का सहारा लेना पड़ता है. जो लोग गृहस्थी त्याग देते हैं, वे आश्रम या कुटिया बना कर रहने लगते हैं.

जिन औरतों के पति नामर्द होने के कारण बच्चा पैदा नहीं कर सकते, उन्हें अपने आश्रम में अकेले में बुला लेते हैं. अपनी दबी हुई काम इच्छाओं को पूरा करने के लिए ही तंत्र साधना के नाम पर औरतों की पूजा करने लगते हैं और तंत्र के नाम पर यौन क्रियाओं में लग जाते हैं. धर्मगुरुओं के आश्रमों में ऐसी बातें हमेशा होती ही रहती हैं, क्योंकि यह सब धर्म के नाम पर होता है, इसलिए लोग इन्हें चुपचाप सहन कर लेते हैं. भारत में कई धर्मगुरु यह ढोंग भी करते रहते हैं कि वे तो पैसों को हाथ तक नहीं लगाते. पर जब ये विदेशों में जाते हैं, तो वहां करोड़ों रुपयों में खेलने लगते हैं. महंगी से महंगी कारें खरीद लेते हैं. पांचसितारा आश्रमों को बना लेते हैं. हिंदू समाज ने समाधि लगाने को भी बहुत इज्जत दे रखी है, इसलिए कई साधुसंत यह ढोंग करने लगते हैं कि वे समाधि की उच्च अवस्था को भी हासिल हो चुके हैं.

कई तो अपने नाम के साथ भी ‘समाधिनाथ’ तक लिखने लगते हैं. लोेगों को प्रभावित करने के लिए वे अपनी समाधि का खूब प्रचार करते हैं और करवाते हैं. आम लोगों को प्रभावित करने के लिए वे कुछ दिनों के लिए खुद को मिट्टी में दबा लेते हैं, फिर जिंदा बाहर निकल आते हैं. अंधविश्वासी लोग इस काम को एक चमत्कार मान कर उन्हें खूब दानदक्षिणा देते हैं. इस मौके और हमदर्दी का फायदा उठा कर मंदिर बनाने के नाम पर लाखों रुपए जमा कर लिए जाते हैं. किंतु भोलेभाले लोग यह सम?ा ही नहीं पाते कि ऐसे काम केवल जादू दिखाने जैसी ट्रिक की मदद से ही किए जाते हैं. चमत्कार या भगवान को पाने से इस का कोई संबंध नहीं होता. ऐसे लोग प्राणायाम व सांसों को काबू में करने की कला सीख कर ऐसा करने में कामयाब हो जाते हैं. साइबेरिया के बर्फीले प्रदेश के भालू 6 महीने तक खुद को बर्फ में ही दबा कर सोए रहते हैं. बरसात के बाद मेढक जमीन के नीचे ही दबे पड़े रहते हैं. ठंड से बचने के लिए सांप भी खुद को मिट्टी के नीचे दबाए रखते हैं. इस से उन की कोई समाधि नहीं लग जाती.

कुछ दिन जमीन के नीचे दबे रहने का समाधि से कोई संबंध नहीं होता. एक धर्मगुरु का बायां हाथ काम नहीं करता था. इस विकलांगता को भी उन्होंने समाधि के नाम पर खूब भुनाया. वे बारबार कहते रहते थे कि जब वे समाधि में बैठे थे, तो उन के इस हाथ को दीमक लग गई थी. बहुत से धर्मगुरु अपने झूठे दावों का पाखंड कर के नाम कमाने में लगे रहे हैं. उन झूठे दावों को साबित करने के लिए उन्होंने कई तरह के इंतजाम कर रखे होते हैं. आप को अपने चारों ओर कई साधुसंन्यासी ऐसे मिल जाएंगे, जिन का बरताव पागलों जैसा होता है. कुछ तो छोटीछोटी बातों पर भी गुस्सा हो जाते हैं. भोलेभाले लोग यह सम?ाने लगते हैं कि इन पर भगवान का उन्माद छाया हुआ है, इसीलिए वे ऐसा बरताव कर रहे हैं. पर वे यह नहीं जानते हैं कि भगवान की कोई खुमारी नहीं होती. ऐसे लोग केवल मनोवैज्ञानिक वजहों से ही बीमार होते हैं.

लड़कों के लिए क्यों जरूरी है अपने प्राइवेट पार्ट की ग्रूमिंग करना, जानें यहां

हमारे शरीर पर कई ऐसी जगह होती है जहां काफी बाल उगते है. इन पार्ट्स को टाइम टाइम पर ग्रूम करना काफी जरुरी है. लड़के अपने सिर के बालों की ग्रू‍मिंग पर हमेशा ध्‍यान देते हैं, लेकिन वे हमेश अपने प्राइवेट पार्ट के बालों को नजरअंदाज करते हैं. प्राइवेट पार्ट को आप अपने सर के बालों से ज्यादा ध्यान दे क्योंकी इन्हें नज़रअंदाज़ करना न सिर्फ आत्मविश्वास को कमज़ोर करता है बल्कि निजी स्वच्छता को भी प्रभावित करता है. जबकी महिलाएं इस मामले में ज्यादा सजग नज़र आती हैं. प्राइवेट पार्ट की ग्रूमिंग क्यों जरुरी है आइंए जानते है.

साफ-सफाई है एक बड़ा कारण

अगर आप प्राइवेट पार्ट्स की समय पर ग्रूमिंग नहीं करते, तो बढ़े हुए बालों के कारण गर्मी, पसीने और बैक्टीरिया उनके आस-पास इकट्ठा हो जाते हैं. इस पार्ट की ट्रिमिंग या शेव करने से किसी भी अवांछित संक्रमण से बचाव होता है और स्वच्छता बनाए रखने में भी मदद मिलती है.

प्राइवेट पार्ट को बड़ा दिखाता है ग्रूमिंग

प्राइवेट पार्ट के बालों की सफाई न करने पर ये आपके आत्‍मविश्‍वास को प्रभावित करते हैं, क्‍योंकि इनके बड़े होने पर आपका प्राइवेट पार्ट छोटा नजर आता है. इसलिए इस जगह के बालों की सफाई जरूरी है.

स्वस्थ नजर आए प्राइवेट पार्ट

प्राइवेट एरिया को ग्रूम करने पर वो साफ और  स्वस्थ नजर आता है. इस एरिया की सफाई यह सुनिश्चित करती है कि आपको किसी प्रकार का संक्रमण या बीमारी नहीं है और इससे आपका प्राइवेट एरिया भी स्वस्थ रहता है. इसके विपरीत प्राइवेट एरिया को ग्रूम करने से आप देख पाते हैं कि इस जगह कोई रेशेज या इनफेक्शन तो नहीं हो रहा है. जो उस एरिया के लिए बेहद जरुरी है.

अगर दिखाना हो आकर्षक

प्राइवेट पार्ट के एरिया की सफाई करने से यह अधिक आकर्षक नजर आता है. इससे आपके पार्टनर को भी समस्‍या नहीं होती है और आपका पार्टनर आपके साथ प्‍यार के पलों में असहज नहीं होता है. प्राइवेट पार्ट के आस-पास की त्वचा छूने में बेहद संवेदनशील होती हैं. और जब इस स्थान पर साफाई रहती है तो स्पर्श का बेहतर अनुभव होता है.

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