जिंदगी का सफर: भारत की पहली महिला कुली संध्या मरावी

लेखक- कपूर चंद   

अधिकांश लोग औरत को अकसर कमजोर समझते हैं, लेकिन उन्हें यह बात अच्छी तरह से समझ लेनी चाहिए कि औरत कमजोर नहीं होती. वह अगर किसी काम को करने की ठान ले तो उस के लिए कुछ भी असंभव या मुश्किल नहीं होता. बल्कि वह उस काम को भी कर सकती है जिस पर पुरुष समाज अपना वर्चस्व समझता है.

जबलपुर के एक छोटे से गांव कुंडम की रहने वाली कल्याणी संध्या मरावी इस का जीताजागता उदाहरण है. वह कटनी रेलवे स्टेशन पर ऐसा काम करती हैं, जिसे देख कर लोग भी हैरान रह जाते हैं. 30 साल की संध्या वहां पर कुली के रूप में काम करती हैं.

संध्या ने यह काम खुशी से नहीं किया बल्कि उन के घर के ऐसे हालात हो गए जिस की वजह से उसे यह करने के लिए मजबूर होना पड़ा. दरअसल 22 अक्तूबर, 2016 को संध्या के पति भोलाराम मरावी की मृत्यु हो गई. वह लंबे समय से बीमार थे. पति की मौत के बाद संध्या पर जैसे मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा. घर में पति के अलावा कोई भी कमाने वाला नहीं था.

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पति जबलपुर के ही कटनी रेलवे स्टेशन पर कुली थे. उन की कमाई से मां, पत्नी और 3 बच्चों का पेट भरता था. पति की मौत के बाद संध्या की समझ में यह नहीं आ रहा था कि अब परिवार का खर्च कैसे चलेगा. अपनी बूढ़ी सास के अलावा तीनों बच्चों को कैसे पालेगी. यही सोचसोच कर वह परेशान हो रही थीं.

उन्होंने यह तय कर लिया था कि चाहे कुछ भी हो जाए, वह परिवार को भूखों नहीं मरने देगी. काफी सोचनेविचारने के बाद उस ने तय कर लिया वह पति के काम को ही शुरू करेगी. वह कटनी रेलवे स्टेशन के स्टेशन मास्टर के पास पहुंची और उन्हें अपनी समस्या से अवगत कराया.

स्टेशन मास्टर ने संध्या से यही कहा कि वह उस की इतनी मदद कर सकते हैं कि उस के पति का कुली का लाइसैंस उस के नाम ट्रांसफर करा देंगे. तो क्या वह कुली के रूप में यहां काम कर सकती है? संध्या तो पहले ही इस के लिए मन बना कर आई थीं, इसलिए तुरंत हां कर दी और दूसरी बात यह थी कि इस काम को करने के अलावा उन के सामने कोई दूसरा रास्ता भी नहीं था.

संध्या ने अपने परिवार का बोझ कम करने के लिए यात्रियों का लगेज उठाना शुरू किया तो उस के सामने कई तरह की परेशानियां आईं. उन्हें कुली के काम करने का कोई अनुभव नहीं था फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. स्टेशन पर 45 पुरुष कुलियों के बीच वह अकेली महिला कुली थीं.

शुरुआत में यात्री भी उसे अपना लगेज देने में झिझकते थे. उन्हें इस बात का डर रहता था कि कहीं यह महिला उस का लगेज गिरा कर कोई बड़ा नुकसान न कर दे. क्योंकि अधिकांश पुरुष महिला को असहाय और कमजोर ही समझते हैं. लेकिन संध्या ने जिम्मेदारी के साथ अपने काम को अंजाम देना शुरू किया.

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वह यात्रियों के लगेज को सिर और कंधे पर रख कर जब चलती थीं तो तमाम लोग उसे आश्चर्य से देखते. संध्या ने किसी की भी कोई परवाह नहीं की क्योंकि अपने परिवार के बोझ के आगे उन्हें यात्रियों का वह बोझ हल्का लगता था.

संध्या कुंडम गांव में रहती हैं. वह वहां से 45 किलोमीटर का सफर तय कर के पहले जबलपुर रेलवे स्टेशन पहुंचती हैं और इस के बाद 90 किलोमीटर दूर कटनी पहुंचती हैं. इस तरह रोजाना 270 किलोमीटर का सफर तय करके वह अपने परिवार के लिए रोजीरोटी मुहैया करा रही हैं. वर्ष 2017 से कुली का काम कर रही संध्या का सपना है कि वह अपने तीनों बच्चों को खूब पढ़ालिखा कर कामयाब इंसान बनाए.

रोजाना 270 किलोमीटर का सफर तय करने की वजह से उन का काफी समय बर्वाद हो जाता है, जिस से वह अपने बच्चों को समय नहीं दे पाती हैं. संध्या चाहती हैं कि उन का तबादला उन के घर के समीप यानी जबलपुर कर दिया जाए तो उन की परेशानी कुछ कम हो सकती है.

अनीता प्रभा: हौसलों की उड़ान

लेखक-  पुष्कर

कौन कहता है कि आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों… कवि दुष्यंत कुमार की ये पंक्तियां प्रभात शर्मा पर सटीक बैठती हैं. इन पंक्तियों को चरितार्थ करते हुए अनीता प्रभा ने अपने दृढ़ आत्मविश्वास, अटूट लगन और अथक परिश्रम से असंभव को भी संभव कर दिखाया.

मध्य प्रदेश के अनूपपुर जिले के एक छोटे से कस्बे के पारंपरिक परिवार में जन्मी अनीता प्रभा जिंदगी में कुछ खास करना चाहती थीं. लेकिन पारिवारिक बंदिशों के चलते 10वीं के बाद उन की पढ़ाई बंद हुई तो वह भाई के पास ग्वालियर चली गईं और वहां से 12वीं पास की. इस के बाद मात्र 17 साल की उम्र में उन की शादी 10 साल बड़े लड़के से कर दी गई.

ससुराल के हालात कुछ अच्छे नहीं थे. अनीता ने ससुराल में जिद कर के ग्रैजुएशन करना शुरू कर दिया. लेकिन वक्त यहां भी आड़े आ गया. फाइनल ईयर के एग्जाम से पहले उन के पति का एक्सीडेंट हो गया, जिस की वजह से अनीता एग्जाम नहीं दे पाईं. फाइनल ईयर के एग्जाम उन्होंने अगले साल क्लियर किए. 4 साल में ग्रैजुएशन करने का नुकसान यह हुआ कि अनीता प्रोबेशनरी बैंक आफिसर की पोस्ट के लिए रिजेक्ट कर दी गईं.

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घर की आर्थिक हालत दयनीय देख अनीता प्रभा ने ब्यूटीशियन का कोर्स किया और ब्यूटीपार्लर में काम करना शुरू कर दिया. इस से आर्थिक मदद तो होने लगी परंतु जिंदगी का सफर इतना आसान कहां था. अनीता प्रभा और उन के पति की उम्र में ही नहीं, सोच में भी अंतर था. यही वजह थी कि दोनों में टकराव शुरू हो गया.

अनीता प्रभा ने घरेलू हालात से निपटते हुए 2013 में विवादों से घिरे व्यापमं की फौरेस्ट गार्ड की परीक्षा दी. यह परीक्षा उन्होंने 4 घंटे में 14 किलोमीटर की दूरी पैदल तय कर के दी थी. उन की मेहनत रंग लाई और दिसंबर 2013 में उन्हें बालाघाट में पोस्टिंग मिल गई.

लेकिन अनीता यहीं नहीं रुकीं. उन्होंने अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते हुए व्यापमं के सबइंस्पेक्टर पोस्ट के लिए परीक्षा दी. लेकिन इस के फिजिकल टेस्ट में सफल नहीं हो सकीं. उन्होंने हिम्मत न हारते हुए दूसरी बार प्रयास किया और 2 महीने पहले ओवरी ट्यूमर का औपरेशन कराने के बावजूद फिजिकल टेस्ट पास कर के सबइंस्पेक्टर बन गईं.

उन्होंने बतौर सूबेदार जिला रिजर्व पुलिस लाइन में जौइन किया. इस की ट्रेनिंग के लिए वह सागर चली गईं. इसी दौरान उन के तलाक का केस भी कोर्ट में चला गया था. दूसरी तरफ व्यापमं की तैयारी करते हुए अनीता प्रभा ने मध्य प्रदेश स्टेट पब्लिक सर्विस कमीशन की परीक्षा दी. उस के रिजल्ट का इंतजार न कर के अनीता सागर के लिए रवाना हो गईं.

ट्रेनिंग के दौरान ही एमपीपीएससी के रिजल्ट आए. जिस में अनीता महिला वर्ग में 17वें नंबर पर थीं. यह एक महत्त्वाकांक्षी लड़की की अभूतपूर्व जीत थी. वह डीएसपी रैंक के लिए चयनित हो गई थीं. इस जीत का उत्सव मनाते हुए अनीता प्रभा ट्रेनिंग छोड़ कर वापस लौट आईं और अपने डीएसपी पद के जौइनिंग और्डर का इंतजार करने लगीं.

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किसी फिल्म सरीखी लगने वाली यह कहानी एक ऐसी लड़की की है, जिस ने बाल विवाह का दंश झेला. समाज और परिवार की रुढि़वादी परंपराओं को सहा लेकिन अपने हौसले को पस्त नहीं होने दिया और न ही अपने सपने को मरने दिया. उस ने कांटों भरी डगर पर चल कर अपना लक्ष्य हासिल कर लिया.

लेकिन राह यहीं खत्म नहीं हुई. अनीता प्रभा का सपना और ऊंचा मुकाम हासिल करना था यानी डिप्टी कलेक्टर के पद तक पहुंचना, जिस के लिए वह प्रयासरत भी हैं. जो भी हो, इतना संघर्ष कर के मात्र 25 वर्ष की आयु में राजपत्रित पद पर पहुंचना एक अभूतपूर्व सफलता है, जो युवाओं के लिए प्रेरणास्पद भी है और अनुकरणीय भी.

जब पढ़ाई के लिए लड़कियां मां-बाप को छोड़ें!

आंध्र प्रदेश के एक गांव आदिविकोट्टूरू में लोगों ने खेत में एक लावारिस लाश को देखा. पता चला कि वह कोई भिखारी था. चूंकि हर जगह कोरोना का डर फैला हुआ है, लिहाजा लोग उस भिखारी की लाश के पास जाने से हिचक रहे थे.

ऐसे में श्रीकाकुलम जिले के कासीबुग्गा में तैनात महिला सबइंस्पैक्टर के. श्रीषा ने उस लाश को कंधा दिया और 2 किलोमीटर तक पैदल ले जाने के बाद उस का अंतिम संस्कार कराया.

इस से पहले 26 जनवरी को भारत की पहली महिला फाइटर पायलट भावना कांत वायु सेना की झांकी के साथ परेड में नजर आई थीं, जबकि फ्लाइट लैफ्टिनैंट स्वाति फ्लाईपास्ट में शामिल हुई थीं.

देशभर में न जाने कितनी लड़कियां अपनेअपने फील्ड में नाम कमा रही हैं. इस में उन की वह पढ़ाई काम आती है, जो उन में गजब का जोश भर देती है. पर एक कड़वा सच यह भी है कि आज भी बहुत से मां-बाप अपनी बेटियों को पढ़ने के लिए उस लिहाज से आजादी नहीं देते हैं, जितनी बेटों को दी जाती है.

2017 का राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग भी चिंता जाहिर करता है कि 15-18 आयु वर्ग में तकरीबन 39.4 फीसदी किशोरियां किसी भी शैक्षणिक संस्थान में नहीं जा रही हैं. इस की सबसे बड़ी सामाजिक बाधा यह है कि गांव हों या शहर, आज भी लड़कियों को बोझ समझा जाता है, जिनकी पढ़ाई पर क्यों खर्च किया जाए?

इसके अलावा जब कोई लड़की पढ़ने की जिद ठान लेती है तो समाज के तानों से उसे भेदा जाता है. तभी तो बहुत से मां-बाप अपनी लड़कियों को 10वीं या 12वीं तक की पढ़ाई कराते हैं और उसके बाद शादी करा देते हैं.

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बहुत कम ऐसी लड़कियां होती हैं जो ऐसी तमाम बाधाएं पार कर के अपने मां-बाप को छोड़ कर पढ़ाई के लिए घर से बाहर निकलती हैं. अगर वह लड़की एकलौती है तो घर पर मां-बाप अकेले कैसे रहेंगे, यह सवाल भी उसके सामने होता है और साथ ही उसे खुद को भी अनजान जगह पर महफूज रखने की चुनौती का सामना करना होता है.

हरियाणा के महम जिले के निंदाना गांव की रितु राठी तनेजा का ही किस्सा लें. आज रितु एक कामयाब पायलट और एक नामचीन यूट्यूबर हैं, पर साथ ही यह भी याद रखना चाहिए कि वे जिस माहौल और समाज में पैदा हुई हैं वहां कई बार लड़कियों को पैदा होने से पहले ही मां के पेट में मार दिया जाता है.

रितु राठी तनेजा ने बताया कि वे बचपन से बहुत पढ़ना चाहती थीं और इस के लिए बहुत मेहनत भी करती थीं. मांबाप उन के बहुत लाड़ लड़ाते थे और अपनी बेटी को खूब पढ़ाना चाहते थे, पर बाकी रिश्तेदार परिवार पर शादी का दबाव बनाने लगे, जबकि रितु स्कूल के दिनों से ही पायलट बनना चाहती थीं.

लिहाजा, उन्होंने अपने परिवार वालों से कहा कि जितना खर्च वे उन की शादी में करेंगे उतना पैसा उन्हें अमेरिका भेजने में खर्च कर दें. मां-बाप की रजामंदी के बाद रितु ने अमेरिका में पायलट की ट्रेनिंग के लिए अप्लाई किया और उन का सलैक्शन हो गया.

अमेरिका में डेढ़ साल रहने और ट्रेनिंग करने के बाद रितु भारत लौट आईं, लेकिन उन्हें नौकरी नहीं मिली. इस बीच रितु की मां की ब्रेन हेमरेज से मौत हो गई. धीरे-धीरे परिवार कर्ज में डूब गया.

इस सब के बावजूद रितु ने हार नहीं मानी और एक छोटी नौकरी शुरू की. इसी बीच एक दिन उन के पास एक एयरलाइंस की चिट्ठी आई, जिस में उन को कोपायलट की नौकरी औफर की थी. इस नौकरी के 4 साल में रितु की मेहनत रंग लाई और वे कैप्टन बन गईं.

रितु राठी तनेजा की जिंदगी से पता चलता है कि किसी लड़की का अपने सपने पूरे करना बिलकुल भी आसान नहीं है. अपने मांबाप से पढ़ाई के लिए हां करवाने के बाद भी रितु को समाज के ताने सुनने पड़े. मांबाप ने भी कम पीड़ा नहीं सही. बेटी को खर्चा कर के देश के बाहर भेजा. ये दिन उन के लिए भी इम्तिहान ही थे.

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सवाल उठता है कि जब बेटी पढ़ाई के लिए अपने मां-बाप को छोड़ती है तो उस परिवार के सामने किस तरह की समस्याएं खड़ी हो सकती हैं और उन का हल क्या है? अगर लड़की एकलौती है तो यह समस्या और भी गंभीर हो जाती है.

लड़की का दूसरी जगह पढ़ने जाने का मतलब है अपने परिवार से कई साल दूर रहना. ऐसी जगह ज्यादातर लड़कियां या तो उस संस्थान में ही होस्टल में रहती हैं, जहां से पढ़ाई कर रही होती हैं. पर ऐसा नहीं होता है तो वे किराए पर बतौर पेइंगगैस्ट रहना महफूज और सस्ता समझती हैं.

अगर थोड़ा पीछे जाएंगे तो इस समस्या की गंभीरता समझ में आ जाएगी. साल 1996-97 की बात है. हरियाणा के कुरुक्षेत्र की कविता (बदला हुआ नाम) वहीं के दयानंद महिला कालेज से अपनी ग्रेजुएशन पूरी कर चुकी थीं. वे आगे सोशल वर्क में पोस्ट ग्रेजुएशन करना चाहती थीं, लिहाजा उन्होंने इस के लिए कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी से एंट्रेंस एग्जाम दिया और पास भी हो गईं. उन का दाखिला कुरुक्षेत्र से 40-50 किलोमीटर दूर यमुनानगर के खालसा कालेज में हो गया.

क्लासें शुरू हुईं. कविता ने पहले कुछ दिन तो कुरुक्षेत्र से यमुनानगर आना-जाना शुरू किया, पर इस सबमें उनका बहुत समय बर्बाद हो जाता था.

कविता ने बताया, “इस के बाद मेरे मम्मीपापा ने मेरे लिए होस्टल देखना शुरू कर दिया. लेकिन जब होस्टल नहीं मिला तो किराए पर कमरा लेने की सोची. मैं इस से पहले कभी अकेली नहीं रही थी. घर पर सभी अपनीअपनी राय देने लगे, क्योंकि उस समय यह बहुत नई और अचरज की बात थी कि कोई लड़की पढ़ाई के लिए अकेली कमरा ले कर घर से दूर रहे.

“घर के बड़ों ने इस का विरोध किया. यहां तक ताना दिया गया कि ‘जितना तेरे मम्मीपापा ने तेरी पढ़ाई पर खर्चा किया है, उतने में तो तेरी शादी हो जाती’. पर मेरे मम्मी-पापा खासकर मम्मी ने साफ कह दिया कि तू सिर्फ अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे, बाकी हम संभाल लेंगे.

“मां ने यह बात कह तो दी थी, पर वे भी मेरी तरह अंदर से डरी हुई थीं. एक अकेली लड़की का पढ़ाई के लिए अपने परिवार से दूर रहना वाकई एक मुश्किल टास्क था. फिर भी हिम्मत कर के मेरी मां ने मेरा कमरा सैट किया और रसोई के लिए जरूरत का सामान जुटाया. मेरे अकेलेपन को वहां बनी मेरी नई सहेलियों ने दूर किया. उन में से बहुत सी तो अपने परिवार के साथ रहती थीं.

“इस बात से मुझे बहुत बल मिला और अपना काम खुद करने की आदत डाली, क्योंकि पहले तो सारे काम मां ही कर देती थीं. लेकिन अब अकेले रहने से मुझ में आत्मविश्वास बढ़ा था और मैं अपनी पढ़ाई जारी रख पाई.”

कमोबेश आज भी यह समस्या ज्यादा बदली नहीं है. लोग अपनी बेटियों को पढ़ाने की बात तो करते हैं, पर उन का अकेले दूसरे शहर में पढ़ने जाना किसी मांबाप के आसान फैसला नहीं होता है. लेकिन हर बच्चे के लिए पढ़ाई बहुत जरूरी है और इससे उनमें आत्मविश्वास आता है. यह बात, के. श्रीषा, भावना कांत, स्वाति जैसी लड़कियों ने सच साबित कर दी है, इसलिए उन्हें पढ़ने के लिए बढ़ावा दें, फिर चाहे उन्हें अपने मां-बाप को ही क्यों न कुछ समय के लिए छोड़ना पड़े.

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सरकारी अस्पताल: गरीबों की उम्मीद की कब्रगाह

सरकारी अस्पताल का मतलब है सरकार द्वारा बनवाया गया ऐसा अस्पताल जहां तकरीबन मुफ्त में ऐसे गरीब लोगों का इलाज भी हो जाए, जो बड़े और महंगे प्राइवेट अस्पताल में जाने की सपने में भी नहीं सोच सकते हैं. ऐसे सरकारी अस्पताल हर राज्य के हर बड़े शहर में बनाए जाते हैं, ताकि आसपास के गरीब लोगों को कम समय में ही इलाज की सुविधा मिल सके.

हरियाणा के फरीदाबाद शहर में बादशाह खान अस्पताल ऐसा ही सरकारी अस्पताल है. साल 2020 के आखिर में मुख्यमंत्री मनोहर लाल के आदेश पर इस अस्पताल का नाम बदल कर हमारे देश के प्रधानमंत्री रह चुके अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर कर दिया गया है.

यह फरीदाबाद का एकलौता 200 बिस्तर का सरकारी अस्पताल है, जिस में रोजाना हजारों की तादाद में मरीज इलाज कराने के लिए आते हैं. पर क्या नाम बदलने से इस अस्पताल की हालत में कोई बदलाव हुआ है या सिर्फ वोट की राजनीति के चलते ही ऐसा हुआ है? वजह, यह अस्पताल कुछ ऐसी खबरों के लिए भी सुर्खियों में रहा है, जो इनसानियत को शर्मसार कर देती हैं.

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साल 2019 की बात है. महीना था अगस्त का. फरीदाबाद के इसी बीके अस्पताल में इलाज कराने आई 12 साल की एक बच्ची के साथ अस्पताल के एक मुलाजिम ने कथिततौर पर छेड़छाड़ कर दी थी.

पुलिस के मुताबिक, 12 साल की उस बच्ची को कुछ दिन पहले चोट लग गई थी. वह अपनी मां के साथ अस्पताल में पट्टी कराने आई थी. पट्टी करने के दौरान आरोपी ने बच्ची के साथ गलत हरकत की. बच्ची ने अपनी मां को बता दिया. बच्ची की मां ने अस्पताल में हंगामा करना शुरू कर दिया. सूचना मिलने पर महिला थाना पुलिस ने आरोपी मुलाजिम, जो कंपाउंडर था, को हिरासत में ले लिया.

इतना ही नहीं, एक बार तो यह अस्पताल इस खबर की भी सुर्खियां बना था कि जब किसी के बच्चा पैदा होता है तो वहां का स्टाफ बच्चे के पिता या दूसरे परिवार वालों से ‘बधाई’ के पैसे नहीं ले लेता, तब तक जच्चाबच्चा को आपरेशन थिएटर से वार्ड में नहीं भेजा जाता है. एक तरह की वसूली या जबरदस्ती की जाती है.

बीके अस्पताल में भ्रष्टाचार भी हद तक है. एक हालिया खबर की बानगी देखिए. फरीदाबाद के एसजीएम नगर के नवीन की मां की कुछ महीने पहले इलाज के दौरान मौत हो गई थी. यह इलाज चिमनीबाई धर्मशाला के पास प्राची अस्पताल में कराया गया था.

नवीन ने प्राची अस्पताल के डाक्टर सुरेश पर इलाज में लापरवाही बरतने का आरोप लगाते हुए सिविल सर्जन को लिखित में शिकायत दी. सिविल सर्जन ने इस मामले की जांच का जिम्मा बीके अस्पताल के एनीथिसिया महकमे के एचडीओ डाक्टर नवदीप सिंघल को सौंप दिया.

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आरोप है कि इस मामले की जांच के दौरान डाक्टर सुरेश और डाक्टर नवदीप सिंघल पीड़ित नवीन पर शिकायत वापस लेने के लिए दबाव डाल रहे थे. यह भी आरोप है कि मामले को रफादफा करने के लिए वे दोनों नवीन को 5 लाख रुपए देने की बात भी कह रहे थे. लेकिन नवीन ने इस की शिकायत विजिलैंस महकमे में कर दी.

विजिलैंस महकमे में डीएसपी कैलाश चंद ने बताया कि जैसे ही शिकायत करने वाले नवीन को डाक्टर नवदीप सिंघल और डाक्टर सुरेश ने रुपए दिए, तभी विजिलैंस महकमे की टीम ने उन्हें रंगेहाथ पकड़ लिया.

भंडारा में दुखद हादसा

महाराष्ट्र के भंडारा जिले का एक दिल दहलाने वाला मामला ही लीजिए. इस साल की शुरुआत में 8 जनवरी, शुक्रवार की देर रात को वहां के एक सरकारी अस्‍पताल में आग लगने से एक वार्ड की सिक न्यूबौर्न केयर यूनिट में रखे गए 10 नवजात बच्‍चों की दर्दनाक मौत हो गई.

इस वार्ड में 17 नवजात बच्‍चों को रखा गया था. एक नर्स ने जब वार्ड से धुआं निकलते हुए देखा तो उसे इस हादसे के बारे में पता चला.

दरअसल, इस अस्‍पताल में आग रात के तकरीबन 2 बजे लगी थी. आग लगने की वजह शौर्ट सर्किट बताया गया. इस वार्ड में एक दिन से ले कर 3 महीने तक के बच्‍चों को रखा गया था. यह एक खास तरह का वार्ड होता है जिस में उन्‍हीं बच्‍चों को रखा जाता है जिन की हालत काफी नाजुक होती है और जन्‍म के समय जिन का वजन बहुत कम होता है.

मौके पर गए कई मीडिया हाउस वालों की रिपोर्ट से पता चला था कि बच्चों की उस यूनिट में आग लगने से धुआं भर गया था. जब फायर ब्रिगेड वाले और अस्पताल के मुलाजिम किसी तरह दरवाजा तोड़ कर अंदर गए तो उन्होंने पाया कि कुछ बच्चे बुरी तरह जल गए थे, जबकि कुछ बच्चे धुएं के चलते अपनी जान गंवा चुके थे.

इस हादसे पर देश के हर छोटेबड़े नेता ने अपना दुख जाहिर किया. प्रदेश सरकार ने अस्पताल प्रशासन की इस घोर लापरवाही के लिए उसे लताड़ लगाई तो विपक्ष ने सत्ता पक्ष को आड़े हाथ लिया. पीड़ित परिवारों को मुआवजे का मरहम लगाया गया, पर क्या कुछ लाख रुपए की रकम से उन मांबाप का दर्द किया जा सकता है, जिन्होंने अपने उन नवजातों को खोया है, जिन्होंने अपनी आंखें भी ढंग से नहीं खोली थीं?

दुख की बात तो यह है कि देश तकरीबन हर सरकारी अस्पताल में बदहाली का आलम एकजैसा है. कभी उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर से खबर आती है कि वहां के जिला अस्पताल में एक वार्डबौय किसी घायल मरीज के टांके लगा रहा था, तो कभी पश्चिम बंगाल के मालदा अस्पताल में 24 घंटों में 9 नवजात शिशुओं की मौत दिल दहला देती है. एक साल की उम्र से कम के इन नवजात शिशुओं की मौत की वजह तय समय से पहले जन्म, कम वजन और सांस लेने संबंधी समस्याएं थीं.

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मध्य प्रदेश के जबलपुर में एक अजीब सा ही मामला सामने आया. जनहित याचिका दायर करने वाले एक आदमी के वकील ने वीडियो कौंफ्रैंसिंग के जरीए हाईकोर्ट में दलील रखी कि मध्य प्रदेश के असंगठित क्षेत्र के मजदूरों खासकर बीड़ी कामगार और माइनिंग फील्ड के मजदूर कोरोना काल में खतरे में हैं. ऐसा इसलिए है, क्योंकि वहां डाक्टरों की कमी के साथसाथ दूसरे संसाधनों की भी बेहद कमी है. अगर डाक्टर हैं भी उन की ड्यूटी एकसाथ 2 से ज्यादा अस्पतालों में लगा दी गई है. इन अस्पतालों में पीपीटी किट, मास्क और सैनेटाइजर मुहैया नहीं हैं.

इस दलील के बाद हाईकोर्ट ने हैरानी जाहिर की कि ऐसे अस्पतालों का संचालन महज चपरासियों के भरोसे कैसे चल सकता है.

सरकारी अस्पतालों की बदहाली, भ्रष्टाचार और बदइंतजामी का ही नतीजा है कि आज छोटे कसबों में भी प्राइवेट अस्पताल खुल रहे हैं. गरीब लोग उन में जा भी रहे हैं, फिर चाहे उन्हें अपनी जमापूंजी ही को ही क्यों न स्वाहा करना पड़े.

दुष्कर्म बरक्स ब्लैकमेलिंग के खेल में जेल!

ब्लैकमेलिंग अर्थात भयादोहन के अपराध में अक्सर पुरुषों को ही पुलिस दबोचती है, मगर हमेशा ऐसा नहीं है, कुछ युवतियां भी इस खेल में माहिर खिलाड़ी होती हैं. मगर यह भी सच है कि भयादोहन करने वाला कोई भी हो. कानून के लंबे हाथों से बच नहीं सकता. कैसा ही शातिर खिलाड़ी हो, ऐसी गलतियां कर बैठता है कि सच सामने आ जाता है कि आखिर दोषी कौन है.

छत्तीसगढ़ के औद्योगिक जिला कोरबा में एक भयादोहन मामला में एक युवती आज इन्हीं तथ्यों और सच के कारण जेल की हवा खा रही है.आइए! देखते हैं कुछ ऐसी घटनाएं जिनसे यह सच्चाई और भी आईने की तरह साफ हो जाती है.

प्रथम घटना-

राजधानी रायपुर के एक विशाल कपड़ा शोरूम में साथ साथ काम कर रहे युवक युवतियों में से एक युवती ने दोस्ती के कुछ समय बाद पुरुष मित्र पर दुष्कर्म का आरोप लगाया अंततः जांच के पश्चात युवती दोषी पाई गई.

दूसरी घटना-

छत्तीसगढ़ के भाटापारा बलोदा बाजार जिला के खपराडीह में एक स्कूल में शिक्षिका ने पुरुष शिक्षक पर दुष्कर्म का मामला दर्ज कराया ब्लैक मेलिंग करने लगी और आखिरकार पुलिस के फंदे में आ गई.

महिलाओं पर जोरजुल्म: जड़ में धार्मिक पाखंड

वह ब्लैकमेलर गर्ल

छत्तीसगढ़ के कोरबा में एक युवती भयादोहन मामले में पुलिस की गिरफ्त में आ गई है.वह
दुष्कर्म मामले में फंसा देने की धमकी देकर ” युवक मित्र” को ब्लैकमेल करती रही. इस शातिर युवती को पुलिस ने गिरफ्तार किया है.

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प्रार्थी प्रेमकांत साहू उम्र 30 वर्ष निवासी खरमोरा, कोरबा के मुताबिक परिचय और दोस्ती और फिर अवैध संबंधों के बाद वह मुझे खुलकर पैसे मांग कर ब्लैकमेल करने लगी पहले तो मैंने दोस्ती के कारण पैसे दिए मगर जब मुझे लगा कि नहीं तो उसका व्यवसाय बन गया है मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा मैं क्या करूं मगर एक मित्र की सलाह पर थाना कोतवाली कोरबा रिपोर्ट दर्ज कराई. यह की करीब एक वर्ष पूर्व रमा (बदला हुआ नाम) दुष्कर्म मामले मे फंसा दूंगी कहकर ब्लैकमेल कर पैसा की मांग कर रही थी. इस बयान पर थाना कोतवाली कोरबा मे धारा 384,388 भादवि. का अपराध सबूत पाये जाने से अपराध पंजीबद्ध किया गया. महत्वपूर्ण तथ्य है कि कोतवाली महिला डेस्क ने मामले की बारीकी से जांच प्रारंभ की.

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गर्ल की चतुराई काम नहीं आई

दुष्कर्म मामले में हीरोइन कहे जाने वाली युवती पुलिस के अनुसार बहुत शातिर मांइड की है.विवेचना के दौरान पता चला कि प्रार्थी प्रेमकांत साहू का एक वर्ष पूर्व उसके गांव की ही रहने वाली युवती की सहेली रमा (बदला हुआ नाम) से जान पहचान हुई .जान-पहचान प्रेम संबंध में परिवर्तित हो गई. प्रार्थी और युवती के बीच आपसी सहमति से शारीरिक संबंध स्थापित हो गया. और कुछ समय बाद युवती द्वारा युवक को दुष्कर्म केस मे फंसाने की धमकी देकर डरा धमका कर रूपये पैसे की मांग शुरू हो गई. प्रार्थी डर कर युवती को लगभग 1.50 लाख रूपये एवं गूगल-पे के माध्यम से अलग अलग किस्तो मे 1.50 लाख रूपये कुल 3 लाख रूपये देता चला गया.

इसके बाद युवती के मन मे लालच बढ़ने लगा और युवक से डरा धमका कर ब्लैकमेल कर 25,000 रूपये प्रतिमाह मांग रही थी.इस पर युवक द्वारा कुछ माह डर कर युवती को पैसे दिया. परंतु फिर भी युवती द्वारा युवक को डरा धमकाकर बलात्कार केस में फंसाने एवं स्वयं को नुकसान पहुंचाने की बात कर प्रार्थी युवक को लगातार ब्लैकमेल कर पैसे की मांग की जा रही थी. युवक वर्तमान मे बेरोजगार है तथा पैसे की तंगी एवं मानसिक रूप से परेशान होकर आत्महत्या की भी कोशिश कर चूका है, थक हार कर सहायता के लिए पुलिस के पास आया. मामले की गंभीरता को देखते हुए थाना प्रभारी निरीक्षक दुर्गेश शर्मा के नेतृत्व मे पुलिस टीम गठित कर युवती को खरमोरा से गिरफ्तार किया गया. पैसे के लिये ब्लैकमेलिंग व उद्दापन से संबंधित वाइस रिकार्ड, जिसमे आरोपित युवती द्वारा बलात्कार के केस में फंसा देने व खुद को नुकसान पहुचा कर फंसा देने का डर दिखाकर बहुत ही अश्लील तरीके से बातचीत करते हुए गालीगलौच कर प्रार्थी से पैसे की मांग की जा रही है.

महिलाओं पर जोरजुल्म: जड़ में धार्मिक पाखंड

मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिले में एक छोटा सा गांव है मुहारी खुर्द. वहां नवरात्र शुरू होते ही गांव के लोगों ने चंदा इकट्ठा कर के दुर्गा की मूर्ति की स्थापना की थी. मूर्ति के विसर्जन के बाद 28 अक्तूबर, 2020 को गांव में कन्या भोज चल रहा था. आयोजक गांव की लड़कियों को खीर, पूरी, हलवा परोस रहे थे.

उस कन्या भोज में गांव के बृजेश पांडे की 17 साल की बेटी चांदनी भी आई थी. वह पंडाल में भोज के लिए बैठी ही थी कि  पंडित नाथूराम शास्त्री की नजर  उस पर पड़ गई. चांदनी को पंडाल में देख कर नाथूराम भड़क गया और उसे डांटते हुए बोला, “तू कैसे कन्या भोज के लिए आ गई? तुम तो समाज के नाम पर कलंक हो. तुम्हारे परिवार पर तो गौहत्या का पाप लगा है.”

पंडित नाथूराम की डांट से चांदनी घबरा गई और बिना भोजन किए अपने घर आ ग‌ई. रोरो कर उस का बुरा हाल था. उसे बारबार 4 महीने पुराना वह वाकिआ याद आ रहा था, जब उस के खेत में गाय का बछड़ा घुस आया था. खेलखेल में उस के भाई ने बछड़े के गले में एक रस्सी फंसा कर खूंटी से बांध दिया था. मगर रस्सी के फंदे में फंस कर उस बछड़े की मौत हो गई थी. जब गांव वालों को बछड़े की मौत की जानकारी लगी तो पूरे गांव ने उन्हें गौहत्या का दोषी मान लिया.

चांदनी के परिवार ने समाज से बाहर किए जाने के पंचायत के फैसले के बाद इलाहाबाद जा कर गंगा स्नान और पूजापाठ करा कर गांव के लोगों के लिए भंडारा भी किया था, लेकिन गांव का पंडित नाथूराम शास्त्री चांदनी के परिवार से जुर्माने के तौर पर 51,000 रुपए देने के लिए जोर डाल रहा था. परिवार की माली हालत ठीक नहीं होने की वजह से वे लोग जुर्माने की रकम अदा नहीं कर पाए. इस से दबंगों की पंचायत ने उन्हें समाज से बाहर निकाल दिया.

नवरात्र के भंडारे में अपने साथ पढ़ने वाली लड़कियों समेत जब चांदनी कन्या भोज के लिए पहुंची तो पंडित नाथूराम शास्त्री ने उसे समाज का कलंक कह कर बेइज्जत कर दिया.

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पंडित नाथूराम की इस बेरुखी से दुखी हो कर 17 साल की चांदनी जब घर आई तो घर के सभी लोग खेतखलिहान में थे. बेइज्जती का घूंट पी कर आई चांदनी ने खुद पर केरोसिन छिड़क कर आग लगा ली. आग की लपटों के बीच चीखतेबिलखते उस की मौत हो गई. इस की खबर जैसे ही पंडित नाथूराम को लगी, तो वह गांव से फरार हो गया.

दरअसल, देश में महिलाओं पर होने वाले इस तरह के जोरजुल्म की जड़ में धार्मिक कर्मकांड और पाखंड एक बहुत बड़ी वजह है. नवरात्र में कन्या पूजन कर देवी आराधना का ढोंग किया जाता है और मौका मिलते ही उन्हें हवस का शिकार बनाया जाता है.

धर्म के नाम पर महिलाओं पर होने वाले जोरजुल्म की यह घटना कोई नई बात नहीं है. 9 दिन चलने वाली दुर्गा पूजा के आयोजन में मूर्तियों की स्थापना में लाखों रुपए चंदा जमा कर के  धर्म और भक्ति का ढोंग किया जाता है और देवी दर्शन को निकली लड़कियों और महिलाओं के साथ समाज और धर्म के ठेकेदारों द्वारा बुरा बरताव किया जाता है. धर्म के इन ठेकेदारों को केवल 9 दिनों तक लड़कियों में देवी का रूप दिखाई देता है और साल के बाकी दिनों में उन्हें  बलात्कार और यौन शोषण का शिकार होना पड़ता है.

महिलाओं में माहवारी के दौरान पंडेपुजारियों द्वारा उन्हें अछूत मान कर मंदिरों में प्रवेश नहीं दिया जाता है और उन्हें तरहतरह के व्रतउपवास, कथापूजन में उलझा कर मोटी दानदक्षिणा मांगी जाती है.

और भी दकियानूसी परंपराएं

आज के वैज्ञानिक युग में भी गांवकसबों से ले कर शहरों तक में दकियानूसी परंपराएं समाज में कायम हैं, जिन के नाम पर ही धर्म की दुकानें चल रही हैं. अनजाने में ही अगर गायबिल्ली और गिलहरी की मौत किसी वजह से लोगों के घरों में हो जाती है, तो इसे पाप समझा जाता है और गांव के पंडेपुजारी इस दोष के निवारण के लिए भोजभंडारे के साथसाथ दानदक्षिणा भी ऐंठते हैं.

अपनेआप को गाय का रक्षक मानने वाले लोग आवारा घूमती गायों के लिए चारापानी का इंतजाम नहीं कर पाते हैं, लेकिन गाय की मौत पर हायतोबा मचा देते हैं और गाय की तस्करी करने वालों को मौब लिंचिंग का शिकार बना देते है.

गांव के पंडेपुजारियों द्वारा तथाकथित मांगलिक कामों में विधवा औरत को शामिल होने को अशुभ मानते हैं और धर्म का डर दिखा कर उन्हें दोबारा शादी करने से रोका जाता है.

धर्मग्रंथ भी कम नहीं

हमारे धर्मग्रंथों में महिलाओं से दोहरे बरताव के किस्से भरे पड़े हैं. एक तरफ कहा जाता है कि जहां नारी की पूजा की जाती है, वहां देवताओं का निवास होता है, तो दूसरी तरफ यही देवता नारी की देह का सुख लेने को लालायित रहते हैं. इंद्र द्वारा गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या के साथ छल कर के शारीरिक संबंध बनाने की कथा पुराणों में लिखी है. धर्म की सीख देने वाले ऋषिमुनि भी दो कदम आगे ही रहे हैं.

ऋषि पराशर ने मछुआरे की लड़की सत्यवती से नौका में संभोग कर अपनी वासना की आग बुझाई थी. इसी वजह से ‘महाभारत’ लिखने वाले वेद व्यास का जन्म हुआ था. ये वही वेद व्यास हैं, जिन्होंने अंबे, अंबालिका और उन की दासी के साथ शारीरिक संबंध बनाए, जिस से पांडु ,ध‌तराष्ट्र और विदुर जैसे पुत्र पैदा हुए.

धर्म महिलाओं को पुरुषों के अधीन रहने की ही सीख देता है. किसी भी धर्मग्रंथ की कहानियों में उपदेश यही दिया जाता है कि पत्नी पति के जोरजुल्म को सहन कर भी पति को परमेश्वर मानती रहे. धर्मगुरुओं की भूमिका भी समाज को रास्ता दिखाने के बजाय अपने स्वार्थ की पूर्ति की ज्यादा रही है. धर्म का अनुसरण सब से ज्यादा महिलाएं ही करती आई हैं, इसी का फायदा हमारे धर्मगुरुओं ने उठा कर उन्हें अपनी हवस का शिकार बनाया है.

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हमारे धर्मगुरु आज भी इस परंपरा को निभा रहे हैं. आसाराम, राम रहीम , रामपाल, नारायण सांईं, स्वामी चिन्मयानंद जैसे धर्म के ठेकेदार इस के जीतेजागते उदाहरण हैं.

हिंदू धर्म के साधुसंतों के अलावा चर्च के पादरी और मसजिदमजारों के मौलवी भी महिलाओं के यौन शोषण के मामलों में पुलिस के हत्थे चढ़ चुके हैं. चर्च महिलाओं व बच्चों के यौन शोषण के अड्डे बन गए हैं. कैथोलिक पादरियों द्वारा हजारों यौन उत्पीड़न के मामले सामने आ चुके हैं.

देह धंधे में फंसीं औरतें

बंगलादेश की एक गारमैंट फैक्टरी में 9,000 रुपए महीने पर नौकरी करने वाली तलाकशुदा औरत शबाना को उस के ही साथ काम करने वाले एक आदमी ने भारत में अच्छी नौकरी का लालच दिया.

उस आदमी पर भरोसा कर के शबाना बिना अपने मांबाप को बताए ही दलाल के जरीए मुंबई पहुंच गई, लेकिन वहां पर उस के साथ धोखा हुआ और उस आदमी ने उसे सिर्फ 50,000 रुपए में एक नेपाली औरत को बेच दिया, जो एक चकलाघर चलाती थी. फिर शबाना को न चाहते हुए भी देह धंधा करना पड़ा.

मुंबई से बैंगलुरु, फिर अलगअलग शहरों में देह धंधे के अड्डों से होती हुई अलगअलग लोगों के चंगुल में फंसने के बाद आखिर में शबाना का ठिकाना बना पुणे का रैडलाइट इलाका. वहीं से पुणे पुलिस ने शबाना को छुड़ाया और एक एनजीओ के सुपुर्द कर दिया.

इस संस्था के लोगों ने ही मुंबई में बंगलादेशी हाईकमीशन से जुड़े औफिस से बात की और शबाना के घर वालों का पताठिकाना मालूम किया. जांचपड़ताल के बाद शबाना को उस के देश भेजने की तैयारी की गई.

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शबाना की कहानी भी दूसरी हजारों ऐसी औरतों की तरह ही लगती है, जो अच्छी नौकरी की तलाश में भारत  आती हैं और एक अंधेरी जिंदगी में फंस जाती हैं.

लेकिन, शबाना की कहानी में एक मोड़ था. उस ने भारत से लौटने से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को साल 2017 में एक चिट्ठी लिखी थी, जिस में उस ने लिखा था, ‘भारत में अपने ग्राहकों से टिप में मिले कुछ पैसे मैं ने बचा रखे हैं, लेकिन उन में से ज्यादा 500 रुपए और 1,000 रुपए के पुराने नोट हैं, जो रद्द हो चुके हैं. बहुत ज्यादा तकलीफ और कलंक उठा कर कमाए गए मेरे कुछ हजार रुपयों को अगर मोदीजी बदलवा दें तो मैं उन की अहसानमंद रहूंगी.’

इस भावुक चिट्ठी का रुपाली शिभारकर ने हिंदी अनुवाद किया था. फिर इस चिट्ठी को शबाना की ओर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और तब की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को ट्वीट किया था.

इसी चिट्ठी में शबाना ने लिखा था कि बैंगलुरु में रैडलाइट इलाके में काम करते समय कोठे के मालिक हाथ में एक भी पैसा नहीं देते थे, लेकिन कुछ ग्राहक खुश हो कर टिप दे देते थे, वह उन्हें पेटीकोट के भीतर किसी तरह से छिपा कर रख लेती थी, लेकिन अब वे नोट चलन से बाहर हैं. मोदीजी अगर नोट बदलवा दें तो कुछ पैसे ले कर वह अपने घर जा सकेगी.

पर सब को मालूम है कि जिद्दी और गरूर वाली यह सरकार बेबस औरत की सुनने नहीं वाली.

पश्चिम बंगाल के 24 परगना की सायमा को इस की बिलकुल भनक नहीं थी कि जिस की मुहब्बत में वह अपने गांव से भाग कर मुंबई जा रही है, वही उस का सौदागर बन जाएगा.

सायमा को जिस्मफरोशी की मंडी में बेच दिया गया था. तब उस की उम्र महज 16 साल थी. जिस्मानी और दिमागी तौर पर कमजोर सायमा उन जुल्मों को याद कर के सिहर उठती है, जो उस ने बेचे जाने के बाद सहे थे.

सायमा ऐसी अकेली नहीं है. नैशनल क्राइम रिकौर्ड ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि पूरे भारत में मानव तस्करी की शिकार लड़कियों में से 42.67 फीसदी सिर्फ पश्चिम बंगाल की हैं.

देह धंधे के लिए तस्करी का शिकार हुई ज्यादातर पीडि़ताओं को वही सबकुछ झेलना पड़ता है, जो सायमा ने झेला. इन में से कुछ का अनुभव और भी बुरा है.

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सामाजिक कार्यकर्ता बैताली गांगुली कहती हैं कि कोलकाता न सिर्फ देह धंधे के लिए की जा रही मानव तस्करी का एक बड़ा केंद्र है, बल्कि यह बंगालदेश और नेपाल से तस्करी का शिकार हुई लड़कियों का ‘ट्रांजिट पौइंट’ भी है.

उन का आगे कहना है कि तस्करी का शिकार हुई ज्यादातर लड़कियों को या तो कोलकाता में एशिया की देह धंधे की सब से बड़ी मंडी ‘सोनागाछी’ में बेच दिया जाता है या फिर उन्हें उन बड़े शहरों में बेचा जाता है, जहां ‘डांस बार’ का धंधा जोरों पर चल रहा है.

पश्चिम बंगाल की सरकार और कुछ सामाजिक संगठनों ने ऐसी लड़कियों को मानव तस्करों के चंगुल से बचाने के लिए बड़ी मुहिम चलाई है.

इस में देश के अलगअलग ‘रैडलाइट’ इलाकों और डांस बारों से बहुत सी लड़कियों को बचाया भी गया है, मगर सामाजिक संस्थाओं के सामने इन लड़कियों के दोबारा बसाने की समस्या सब से बड़ी चुनौती के रूप में रही है, क्योंकि शोषण के बाद इन में मनोवैज्ञानिक अस्थिरता के लक्षण पैदा हो जाते हैं.

देह धंधे के लिए तस्करी का शिकार हुई ऐसी ही लड़कियों को ‘ट्रौमा’ यानी अवसाद से बाहर निकालने के लिए सामाजिक संगठनों ने म्यूजिक और डांस का सहारा लिया है.

‘समवेद’ नामक एक गैरसरकारी संगठन ने तस्करी का शिकार हुईं इन लड़कियों को उन के पुनर्वास केंद्रों पर ही जा कर म्यूजिक और डांस के जरीए जिंदगी को दोबारा जीने के लिए बढ़ावा देना शुरू किया है.

‘समवेद’ की सोहिनी चक्रवर्ती कहती हैं, ‘‘यह डांस और म्यूजिक इस तरह से पिरोया गया है, ताकि इन्हें मुक्ति का अहसास दिला सके. मुक्ति पिछली जिंदगी से, पिछले अनुभवों से और कड़वी यादों से.’’

सोहिनी चक्रवर्ती का कहना है कि जोरजुल्म ?ोलने के बाद इन बचाई गईं लड़कियों का बरताव बिलकुल बदल जाता है. ये न किसी से बात करना चाहती हैं, न घुलनामिलना. इन के अंदर चिड़चिड़ापन आ जाता है. डांस और म्यूजिक इन्हें सब से मुक्ति देने में मदद करता है.

नीतू, जो तस्करी का शिकार होने के बाद कोलकाता के एक पुनर्वास केंद्र में रह रही थी, ने बताया कि जब उसे रैडलाइट इलाके से बचाया गया था, तब वह बिलकुल टूटी हुई थी.

नीतू ने बताया, ‘‘मेरे साथ जोकुछ हुआ, उस के बाद मैं जीना नहीं चाहती थी. न किसी से मिलना चाहती थी, न अपने घर ही वापस लौटना चाहती थी. लगता था मानो जिंदगी अब खत्म हो गई है. मगर जब मैं ने डांस और म्यूजिक का सहारा लिया, तो सबकुछ बदलाबदला सा नजर आया. ऐसा लगा जैसे मु?ो मुक्ति मिल रही हो.’’

आज नीतू की तरह कोलकाता के पुनर्वास केंद्रों में रहने वाली कई ऐसी लड़कियां हैं, जो खुद म्यूजिक और डांस के जरीए इस अवसाद से उबर गई हैं.

अब नीतू बतौर प्रशिक्षक पुनर्वास केंद्रों में रह रही दूसरी लड़कियों को अपनी जिंदगी दोबारा जीने के लिए बढ़ावा देने का काम कर रही हैं.

देश के तकरीबन हर राज्य के किसी न किसी इलाके में देह धंधा अपने पैर पसारे हुए है, जहां लाखों औरतें दुनिया से कट कर बेबस जिंदगी जी रही हैं.

ऐसी बहुत ही कम औरतें होती हैं, जो अपनी मरजी से देह धंधे में आती हैं. ज्यादातर औरतें ऐसी ही होती हैं, जिन के सामने या तो कोई मजबूरी होती है या अनजाने ही इन्हें इन बदनाम बाजारों में बेच दिया जाता है.

दुनिया के तमाम दूसरे रिश्तों से दूर ये औरतें न किसी की मां होती हैं, न बहन, न बेटी और न पत्नी, इन्हें सिर्फ वेश्याओं के नाम से जाना जाता है. अपनी इज्जत को दांव पर लगा कर समाज के न जाने कितने रसूखदार लोगों की इज्जत बचाए रखने का काम करती हैं ये. लेकिन क्या आप जानते हैं कि तंग गलियों और स्टोररूमनुमा ऐसे कमरों में रहने वाली ये वेश्याएं, जहां सूरज भी अपनी किरणों को भेजने से गुरेज करता है, का भारत में बुरा हाल है.

महिला और बाल विकास मंत्रालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में  30 लाख से ज्यादा औरतें देह धंधे से जुड़ी हैं, जिन में से तकरीबन 36 फीसदी औरतें ऐसी हैं, जो 18 साल की उम्र से पहले ही इस धंधे में शामिल हो गईं, जबकि ह्यूमन राइट्स ‘वाच’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में 2 करोड़ सैक्स वर्कर हैं, जो किसी न किसी रूप से इस धंधे में शामिल हैं.

देश के सब से बड़े रैडलाइट एरिया सोनागाछी, कोलकाता को माना जाता है. यहां तकरीबन 3 लाख औरतें देह धंधे से जुड़ी हैं. दूसरे नंबर पर मुंबई का कमाठीपुरा है, जहां तकरीबन 2 लाख से ज्यादा सैक्स वर्कर हैं. फिर दिल्ली का जीबी रोड, आगरा का कश्मीरी मार्केट, ग्वालियर का रेशमपुरा, पुणे का बुधवार पेठ है.

छोटे शहरों की बात करें, तो वाराणसी का मडुआडीह, मुजफ्फरपुर का चतुर्भुज स्थान, आंध्र प्रदेश के पेड्डापुरम व गुडिवडा, सहारनपुर का नक्कासा बाजार, इलाहाबाद का मीरगंज, नागपुर का गंगाजमुना और मेरठ का कबाड़ी बाजार भी इसी बात के लिए बदनाम है.

आंकडों के मुताबिक, देश में रोजाना तकरीबन 2,000 लाख रुपए का देह धंधा होता है. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की एक स्टडी के मुताबिक, भारत में

68 फीसदी लड़कियों को रोजगार के झासे में फंसा कर वेश्यालयों तक पहुंचाया जाता है, जबकि 17 फीसदी लड़कियों को शादी का वादा कर के इस धंधे में धकेल दिया जाता है.

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क्या है कानून

भारत में वेश्यावृत्ति या देह धंधा अभी भी अनैतिक देह व्यापार कानून  के तहत आता है. हालांकि देश में समयसमय पर इस बात को ले कर बहसें चलती रही हैं कि क्यों न वेश्यावृत्ति को कानूनन वैध बना दिया जाए यानी यह कानून फुजूल का रहा, यह स्वीकार करने के बाद उस के फुजूल के होने की वजहों को जांचने के बजाय इस पूरे धंधे से दंड व्यवस्था अपनी जिम्मेदारी ही समेट ले? राज्य व्यवस्था औरतों के हिंसक उत्पीड़न, शोषण और खरीदेबेचे जाने की पाशविक परंपरा को अपनी मूक असहाय सहमति दे.

‘भारतीय दंड विधान’ 1860 से ‘वेश्यावृत्ति उन्मूलन विधेयक 1956’ तक सभी कानून सामान्यतया वेश्यालयों के कार्य व्यापार को नियंत्रित रखने तक ही प्रभावी रहे हैं.

इस कानून के अनुसार, वेश्याएं अपने व्यापार का निजी तौर पर यह काम कर सकती हैं, लेकिन कानूनी तौर पर जनता में ग्राहकों की मांग नहीं कर सकती हैं. इस कानून का मकसद भारत में यौन कार्यों की विभिन्न वजहों का रोकना और धीरेधीरे वेश्यावृत्ति को खत्म करना है.

बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में वेश्यावृत्ति गैरकानूनी है. अगर कोई शख्स किसी सार्वजनिक जगह पर बेहूदा या अश्लील हरकत करते पाया जाता है, तो भी उस के खिलाफ सजा का प्रावधान है.

अनैतिक आवागमन

‘रोकथाम’ अधिनियम

आईटीपीए 1986 वेश्यावृत्ति को रोकने के लिए बनाया गया है. इस कानून के मुताबिक, जो औरत किसी शख्स को जिस्मानी संबंध बनाने के लिए उकसाएगी, उस को दंड दिया जाएगा. इस के अलावा कालगर्ल्स अपने फोन नंबर को सार्वजनिक रूप से पब्लिश नहीं कर सकतीं, ऐसा करने पर उन को  6 महीने के कारावास व जुर्माने का प्रावधान है. किसी सार्वजनिक जगह के पास देह धंधा करने पर  सैक्स वर्कर को 3 महीने की सजा और जुर्माने का प्रावधान है.

ग्राहक के लिए

एक ग्राहक अगर किसी वेश्या के साथ सार्वजनिक जगह के 200 गज के दायरे में संबंध बनाते पाया जाता है या उस पर यौन संबंधों में शामिल होने का आरोप लगता है, तो उसे 3 महीने के कारावास के साथ जुर्माना देना होगा. अगर सैक्स वर्कर 18 साल से कम उम्र की है, तो ग्राहक को 7 से 10 साल की सजा का प्रावधान है.

वेश्यालय चलाने पर

कोई शख्स अगर वेश्यालय चलाता है या किसी से चलवाता है या वेश्यालय चलाने में मदद करता है, तो उसे 3 साल का सश्रम कारावास व 2,000 रुपए का जुर्माना होगा. अगर वही शख्स दोबारा इस अपराध का दोषी पाया गया, तो उस को कम से कम 2 साल व ज्यादा से ज्यादा 5 साल का कठोर कारावास और 2,000 रुपए का जुर्माना देना होगा.

सेहत एक बड़ी समस्या

वेश्याओं की सेहत को ले कर हमेशा से ही बहस होती रही है. भारत में एचआईवी संक्रमण के बढ़ने की वजह इन्हें ही माना जाता है. हालांकि पिछले दशक में एचआईवी संक्रमित वेश्याओं की तादाद में गिरावट आई है.

इस कार्यक्रम के तहत 5,000 वेश्याओं को जागरूक किया गया है.  2 लोगों की टीम यहां की वेश्याओं को उन की बीमारियों के बारे में, कंडोम के इस्तेमाल के सही तरीके और इस के फायदे के बारे में बता रही है.

इस कार्यक्रम को साल 1992 में शुरू किया गया था, तब सिर्फ 27 फीसदी वेश्याएं कंडोम का इस्तेमाल करती थीं, लेकिन साल 2001 तक 86 फीसदी वेश्याएं कंडोम का इस्तेमाल करने लगीं. मुंबई व पुणे सहित देश के बाकी हिस्सों में चल रहे रैडलाइट एरिया में भी इस तरह के जागरूकता कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं.

भारत में वेश्यावृत्ति को कानूनी मंजूरी नहीं हासिल है, इसलिए इन्हें किसी भी तरह के खास हक भी नहीं दिए गए हैं. वेश्याओं के भी सिर्फ वही हक हैं, जो आम नागरिकों को मिलते हैं.

हालांकि अगर यहां वेश्यावृत्ति को कानूनी मंजूरी दी गई, तो वेश्याएं भी श्रमिक कानून के अंदर आ जाएंगी और उन्हें भी बाकी मजदूरों को मिलने वाले विशेषाधिकार मिल जाएंगे. समयसमय पर यहां वेश्यालयों को कानूनी मंजूरी देने की मांग उठती रहती है.

10 मार्च, 2016 को आल इंडिया नैटवर्क औफ सैक्स वर्कर्स ने एक संगठन बना कर देश के 16 राज्यों में एक कैंपेन चलाया था. इस कैंपेन में

90 सैक्स वर्कर्स शामिल थीं. वह इस बात की ओर सरकार और देश का ध्यान खींचना चाहती थीं कि उन्हें समाज में सिक्योरिटी नहीं मिलती है.

उन का यह भी कहना था कि समाज के बाकी लोग जिस तरह से कोई त्योहार या अवसर में शामिल होते हैं, हमें उस तरह से भी शामिल नहीं किया जाता. वे बाकी दूसरे कामों की ही तरह देह धंधा करती हैं, इसलिए उन्हें भी दूसरे कर्मचारियों की तरह पैंशन मिलनी चाहिए और यौन कार्य को भी सार्वभौमिक पैंशन योजना के तहत लाया जाना चाहिए.

हालांकि इन की किसी भी मांग को अभी तक पूरा नहीं किया गया है.

पति जब करता है, पत्नी की हत्या!

अक्सर समाचार माध्यमों और मीडिया में एक खबर होती है कि फलां व्यक्ति ने अपनी पत्नी की हत्या कर दी. सात जन्मों का भारतीय दर्शन, जो यह बताता है कि पति पत्नी का संबंध एक जन्म का नहीं बल्कि सात जन्मों का होता है और इस फिलासफी पर भारतीय समाज गर्व करता है. ऐसे में यक्ष प्रश्न यह खड़ा हो जाता है कि कोई पति अपनी अर्धांगिनी की हत्या क्यों कर देता है?

आज इस आलेख में हम इस महत्वपूर्ण मसले पर प्रकाश डालने का प्रयास कर रहे हैं.और  बताने का यह प्रयास भी. यह   जनवरी 2021 में पति पत्नी के संबंधों में आई खटास और परिणाम स्वरूप हत्या जैसी सच्ची घटनाओं पर आधारित है .

पहली घटना-

छत्तीसगढ़ के जिला कोरबा के थाना बालकों में एक पति ने अपनी पत्नी को इसलिए मार दिया क्योंकि उसे उसके अवैध संबंधों की जानकारी हो गई.

दूसरी घटना –

छत्तीसगढ़ जिला रायगढ़ के थाना तमनार में एक शख्स ने अपनी पत्नी को आशा होते विवाद के कारण परेशान होकर मार डाला.

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तीसरी घटना –

छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर थाना अंतर्गत एक शख्स ने अपनी पत्नी को सिर्फ इसलिए मार डाला क्योंकि उसे समय पर भोजन नहीं देती थी.

अक्सर समाचार पत्रों में पुलिस के माध्यम से यह समाचार सुर्खियों में रहता है कि पति ने पत्नी की हत्या कर दी और पुलिस ने विवेचना के पश्चात पति को जेल भेज दिया. इस संपूर्ण घटनाक्रम के पीछे के सच को अक्सर उजागर नहीं किया जाता अथवा पाठक वर्ग सरसरी निगाह से उसे देखते हुए आगे निकल जाता है.

इस आलेख में ऐसी ही घटनाओं को बयां करते हुए हम यह बताने का प्रयास कर रहे हैं कि ऐसी घटनाओं पर कैसे अंकुश लगाया जा सकता है.

छत्तीसगढ़ के आदिवासी बाहुल्य जिला रायगढ़ के तमनार के इंदिरानगर में एक वृद्ध ने अपनी पत्नी की टांगी मारकर हत्या कर दी. आरोपी घर में ताला बंद कर अपनी बेटी के पास पहुंचा और पत्नी की हत्या करने की बात कही. इसके बाद से आरोपी फरार है.तमनार पुलिस मामला दर्ज कर आरोपी को तलाशने में लगी हुई है. पुलिस ने हमारे संवाददाता को बताया  छोटेलाल सहिस अपनी पत्नी सुकांति सहिस के साथ इंदिरा नगर में रहता था. दोनों के बीच विवाद हुआ.विवाद इतना बढ़ा कि आरोपी ने टांगी से पत्नी की हत्या कर दी. हत्या के बाद आरोपी घर बंद कर अपनी बेटी के घर गया. यहां पर उसने अपनी पत्नी को मारने की बात कही और निकल गया. सूचना पर मृतका के दामाद और बेटा घर पहुंचे. महिला आंगन में लहूलुहान होकर पड़ी हुई थी. पुलिस को सूचना दी गई. पुलिस ने मौके पर आकर शव का पंचनामा किया और हत्या आरोपी पति को तलाश कर रही है.

नए साल से हो गयी दुखद शुरुआत

छत्तीसगढ़ में नव वर्ष 2021 की शुरुआत एक ऐसी घटना से मानो शुरू हुई.जिला राजनांदगांव के उपनगर डोंगरगढ़ के समीपस्थ ग्राम रूदगांव में  एक महिला की हत्या के मामले में अंततः पति ही अपनी पत्नी का हत्यारा निकला .  लम्बे समय तक हंसी-खुशी पारिवारिक जीवन बिताने के बाद ऐसी क्या बात हो गई कि पति को अपनी पत्नी की हत्या करने जैसी गंभीर घटना को अंजाम देना पड़ा?

इसका कारण पुलिस व ग्राम वासियों के लिए एक अनसुलझी पहली बन गई . पुलिस की गिरफ्त में आया पति हत्या का का कोई कारण नहीं बता  रहा था.

उल्लेखनीय है कि विगत एक जनवरी को नववर्ष की भोर के साथ ही मितानिन प्रशिक्षक का कार्य करने वाली कोमिन देवांगन (48 वर्ष) की हत्या की खबर ग्राम रूदगांव सहित आसपास सनसनी के रूप में फैल गई . प्रारंभिक पूछताछ में ही शक की सुई महिला के साथ रहने वाले पति की तरफ ही घूम रही थी.वैसे इस मामले में इस बात की पुष्टि हो गई थी कि पति ने ही अपनी पत्नी की हत्या की है. वहीं डाग स्क्वाड की मदद से भी पुलिस ने  पति को हिरासत में लेकर पूछताछ प्रारंभ की. परन्तु सबसे बड़ा सवाल भी अनसुलझा रह गया कि इतने लम्बे समय तक हंसी खुशी पारिवारिक जीवन बिताने के बाद पति पत्नी के बीच ऐसी क्या परिस्थितियां बनी कि पति ने क्रोधित होकर  पत्नी को मौत के घाट उतार दिया. पुलिस ने बताया कि आरोपित पति हत्या के पीछे के कारण के संबंध में कुछ नहीं बता रहा था. दरअसल, यह तथ्य अंततः सामने आ गया कथित हत्या इसलिए हुई क्योंकि पति को पत्नी पर शक था कि उसके अन्यत्र अवैध संबंध हैं.

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पत्नी को मारा और कर ली आत्महत्या

छत्तीसगढ़ के जिला बलरामपुर के एक लौज में युवक ने पहले गला दबाकर अपनी पत्नी की हत्या कर दी और फिर खुद भी फांसी लगा जान दे दी. पुलिस ने हमारे संवाददाता को बताया कि पुलिस अधीक्षक कार्यालय के सामने स्थित एक लॉज में महिला का शव  मिला, दूसरी तरफ युवक बाथरूम में फंदे से लटका मिला. दोनों की उम्र कर 28 साल  है. यहां महत्वपूर्ण तथ्य है कि आखिर क्यों

घर जाने के बजाय लॉज में रुके थे पति-पत्नी…. और क्यों ऐसा गंभीर कदम उठाया गया.

पुलिस ने बताया कि बलरामपुर  के कंचन नगर निवासी विद्युत विश्वास और अपनी पत्नी रिक्ता मिस्त्री के साथ रायपुर गया था.  लौटने के बाद दोनों घर जाने के बजाय एसएस लॉज में रुक गए थे. इसके बाद दोनों के शव लॉज के कमरे में मिले. इसके बाद पुलिस ने दोनों शवों को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. ऐसी ही जाने कितनी ही घटना है आए दिन घटित होती हैं और इनका गंभीर विवेचन नहीं हो पाता कि आखिर घटनाक्रम के पीछे का सच क्या है ताकि समाज में इसका हल निकाला जा सके. सामाजिक कार्यकर्ता और संगीत के द्वारा मनोविज्ञान के अध्ययेता घनश्याम तिवारी के अनुसार सबसे अहम सवाल होता है पति पत्नी के बीच एक दूसरे पर विश्वास जब यह विश्वास की मीनार दरकने लगती है तब हत्या जैसी घटना घटित होती है.

छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के अधिवक्ता डॉ उत्पल अग्रवाल के मुताबिक न्यायालय में जाने कितने केस हत्या के आते हैं जिनमें बहुतेरे पति द्वारा पत्नी की हत्या के ही होते हैं मैंने यह समझा है कि इसका महत्वपूर्ण कारण अवैध संबंध अथवा शक की सुई ही होता है.

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सामाजिक कार्यकर्ता रमाकांत श्रीवास के मुताबिक अगर पति पत्नी दोनों समझदारी सूझ बूझ से काम लें और अपनी अपनी जिम्मेदारी और दायित्व को समझें तो कभी भी हत्या जैसा घटनाक्रम घटित नहीं होगा.

रहस्य रोमांच: कल्पना नहीं हकीकत, इतना बड़ा खजाना कि कीमत बताते न बने

यूं तो खजानों का मतलब ही होता है ऐसा अकूत धन जो कल्पना से भी बहुत ज्यादा हो. लेकिन इतिहास में जितने खजाने अब तक खजाना खोजने वालों को मिले हैं,उनकी बड़ी से बड़ी सम्पदा भी अकूत नहीं रही यानी इतनी नहीं रही कि उसे आंका न जा सके. मगर दो साल पहले अमरीका की अंतरिक्ष अनुसंधान एजेंसी नासा ने एक ऐसे खजाने को खोजा है कि अगर उसके धन को हासिल कर लिया जाए तो वह इतना होगा कि जिसे बताने में सचमुच अंकगणित लड़खड़ा जायेगी. अगर इस खजाने की सम्पदा को एक अंक में उचारित करना हो तो 8,000 के पीछे 000000000000000 और लगाने पड़ेंगे. यह संपत्ति दरअसल 8,000 क्वाड्रिलियन पाउंड है.

लेकिन यह खजाना धरती में नहीं है. इस खजाने को दो साल पहले अमेरिका की अंतरिक्ष अनुसंधान एजेंसी नासा ने मंगल और बृहस्पति ग्रह के बीच मौजूद एक एस्टेरायड में खोजा है. यह एस्टेरायड या छोटा तारा है, पूरी तरह से लोहे का है और इसके अंदर सोना और हीरे की परतें होने का भी अनुमान है. नासा के वैज्ञानिकों के मुताबिक यह छुद्र तारा यानी एस्टेरायड पूरी तरह से लोहे से भरा हुआ है. अगर इस लोहे का कोई खरीदार मिल जाए और वह इसकी आज की तारीख के हिसाब से भी कुछ कम कीमत दे दे, तो भी इस लोहे और उसके अंदर मौजूद सोने और हीरे की इतनी कीमत है कि दुनिया के हर इंसान के खाते में 90 अरब से ज्यादा रुपये आ जाएंगे. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह खजाना कितना बड़ा होगा?

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लेकिन सवाल है क्या इस खजाने को व्यवहारिक रूप में हासिल किया जा सकता है यानी क्या इसका दोहन संभव हैै? इस बारे में अभी वैज्ञानिक तक भी कुछ नहीं कह सकते. हां, दुनियाभर के वैज्ञानिकों की एक कमेटी इसका अध्ययन करेगी और जानेगी कि क्या जिस खजाने को दुनिया की तमाम गरीबी दूर कर देने वाला अकूत खजाना समझा जा रहा है, उसे धरती के इस्तेमाल में लाया जा सकता है?

इन तमाम सवालों का जवाब वैज्ञानिक अगले कुछ सालों में देंगे. लेकिन पिछले पांच हजार सालों में दुनिया के लिखित अलिखित इतिहास में खजानों को लेकर इंसानी ललक रही है, उससे आज तक कई लाख लोग अपनी जान गंवा चुके हैं. जबकि संपत्ति के रूप में बहुत थोड़े से ही कुछ भाग्यशाली लोग रहे हैं, जिन्हें कुछ मिला है. फिर भी मानव इतिहास इस बात का गवाह है कि हमेशा से भूले बिसरे या छुपे हुए खजाने लोगों को आकर्षित करते हैं; क्योंकि सबको लगता है बिना कुछ किये रातोंरात मालामाल हो जाने का यह सबसे आसान तरीका है. यूं तो दुनिया में हजारों खजाने माने जाते हैं और सबका कुछ न कुछ ब्योरा भी मौजूद है.

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लेकिन दुनिया में जिन खजानों को लेकर तमाम लोग एकमत हैं वैसे करीब 100 खजाने हैं और इनमें भी सबसे बड़े 6-7 खजानों की खोज में अब तक एक अनुमान के मुताबिक 10 लाख से ज्यादा लोग अपनी जान गंवा चुके हैं. अगर दुनिया के 10 बड़े रहस्यमयी खजानों की खोज में निकलें, तो इसमें पहला नंबर है एल डोराडो का शापित रहस्यम खजाना. इस खजाने की खोज में अब तक एक अनुमान में मुताबिक 2 लाख से ज्यादा लोग अपनी जान गंवा चुके हैं. हालांकि इसका कोई विश्वसनीय आंकड़ा किसी के पास नहीं है. क्योंकि जो लोग इस खजाने की खेाज में गये उन्होंने अपना कोई रजिस्टेªशन नहीं कराया था. लेकिन माना जाता है कि कोलंबिया की गुवाटाबिटा झील में यह खजाना दबा है. वास्तव में हजारों टन सोने के इस खजाने के पीछे विश्वास की कहानी यह है कि हजारों साल पहले यहां के आदिवासी सूर्य की आराधना करते समय अपना सोना इस झील में फेंका करते थे. वह सोना हजारों साल में झील की तलहटी में इकट्ठा हो गया है.

वैसे खजानों की अनगिनत कहानियों में कोई देश पीछे नहीं है. चाहे वो चीन हो या हिंदुस्तान. माना जाता है कि दक्षिण भारत में कई ऐसे खजाने छिपे हैं, जिनकी रखवाली हजारों, हजार काले नागों की सेना करती है. पता नहीं इस बात में कितनी सच्चाई होगी, लेकिन पिछले एक दशक के अंदर दक्षिण भारत में कई ऐसे मंदिर सामने आये हैं, जिनके तहखानों में कई कई टन सोने की मौजूदगी सार्वजनिक हुई है.

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इससे यह भी कहा जा सकता है कि खजानों को लेकर सारी कहानिया बिल्कुल झूठी भी नहीं हैं. साथ ही हम उन कहानियों को कैसे भूल सकते हैं, जो ऐसे इतिहास के पात्रों को हमारे सामने लाती हैं, जिनकी किस्मत रहस्यमयी खजानों ने बदली. बहरहाल दुनिया के ये सारे खजाने कहानियां हो सकते हैं, किस्से हो सकते हैं, लेकिन नासा के वैज्ञानिकों ने जिस छुद्र ग्रह को अब तक के सुने गये खजानों के बाप के रूप में पेश किया है, वो खजाना कहानी नहीं है, कल्पना नहीं है, बस अभी तक यह बात कल्पना है कि आखिर इस खजाने का दोहन कैसे संभव होगा?

पति जब पत्नी को लगाता है ‘आग’!

तू नारी का जीवन दुख कष्टों से भर जाता है. और यह दर्द वही अभागी औरत जानती है, जिसने उसे भोगा है.

दरअसल, ऐसे घटनाक्रम और मनोविज्ञान के पीछे आमतौर पर दूसरी औरत की भूमिका होती है. जैसे ही पति पत्नी और “वह” की कहानी शुरू होती है पत्नी पर अत्याचार शुरू हो जाता है. आइए! आज इस लेख में ऐसे ही कुछ सच्ची घटनाओं को बताते हुए इस समस्या का समाधान क्या हो पर भी चर्चा करते हैं.

पहली घटना-

छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिला में एक शख्स ने अपनी पत्नी को घर से निकाल दिया पत्नी ने जब कानून का सहारा लिया तो यह सच सामने आ गया कि पति एक दूसरी औरत की प्रेम जाल में फंसा हुआ था.

दूसरी घटना-

छत्तीसगढ़ के जगदलपुर में एक व्यक्ति ने विवाह के लगभग 15 वर्ष बाद एक दूसरी महिला से विवाह कर लिया और पहली पत्नी की हत्या कर जेल की हवा खा रहा है.

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तीसरी घटना-

जिला रायगढ़ में एक युवक ने प्रेम जाल में फंस विवाह के कुछ समय पश्चात ही अपनी पत्नी को जहर देकर मार डाला. पुलिस विवेचना में तथ्य सामने आ गया युवक को जेल की हवा खानी पड़ी.
ऐसे ही अनेक घटनाएं आए दिन समाज में घटित हो रही हैं जिसका सीधा सीधा संबंध किसी दूसरी औरत से होता है. आदमी प्रेम जाल में अंधा होकर अपराध का सहारा लेता है और फिर आगे आजीवन जेल की हवा खाता है.

अवैध संबंधों का दुष्परिणाम

दरअसल, जब कभी अपराध घटित होते हैं तो उसके पीछे अवैध संबंध आमतौर पर होता है. ऐसे ही घटनाक्रम में छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर में एक व्यक्ति ने अपनी पत्नी को आग के हवाले कर दिया. पत्नी को जलाने की वजह दूसरी औरत के साथ अवैध संबंध निकला, आरोप है कि पति ने अपनी पत्नी को कई बार तलाक के लिए दबाव बनाया, और नहीं मानने पर प्रेमिका के साथ मिलकर आग में झोंक दिया. शहर से लगे ग्राम सांड़बार निवासी 19 वर्षीय हिमांशु गुप्ता ने अपने पिता संतोष गुप्ता व एक महिला के खिलाफ कोतवाली में अपराध दर्ज कराया. घटनाक्रम यह है कि पिता का दूसरी महिला से प्रेम संबंध था, इसके बाद से हिमांशु अपनी मां उमा गुप्ता के साथ पिता से अलग सांड़बार में दूसरे मकान में रहने लगा, पर आए दिन आरोपी संतोष गुप्ता अपनी पत्नी से लड़ाई झगड़ा कर उससे तलाक मांगता था ताकि वह अपनी प्रेमिका के साथ दूसरी शादी कर सकें. इसी घटनाक्रम में प्रेम में अंधा होकर उसने अपनी पत्नी को एक दिन आग के हवाले कर दिया और इस अपराध के भंवर में फंसकर अपनी जिंदगी बर्बाद कर ली.

प्रेमिका के साथ मिलकर

प्रेम के जाल में फंस, ढलती उम्र में संतोष गुप्ता ने अपनी प्रेमिका के साथ मिलकर अपनी पत्नी के शरीर पर मिट्टी तेल छिड़कर आग लगाई. इस मौके पर बीच-बचाव करते पुत्र को भी मार कर भगा दिया. महिला ने किसी तरह स्वयं आग बुझाई और घटना की जानकारी मायके वालों को दी. जली हुई‌ महिला को इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया. इधर मामले में बेटे ने अपने पिता के खिलाफ कोतवाली में एफआईआर कराई. पुलिस ने आरोपी पति व उसकी प्रेमिका के खिलाफ अपराध दर्ज कर उसे गिरफ्तार कर लिया है.

ग्राम सांड़बार निवासी 19 वर्षीय हिमांशु गुप्ता ने अपने पिता संतोष गुप्ता व एक महिला के खिलाफ कोतवाली में अपराध दर्ज कराया और पिता पर आरोप लगाया है कि पिता का दूसरी महिला से प्रेम संबंध है. हिमांशु अपनी मां उमा गुप्ता के साथ पिता से अलग सांड़बार में दूसरे मकान में चला रहता था .पिता अवैध संबंधों के चक्कर में फस आए दिन उसकी मां को दूसरी शादी करने के लिए सहमति लिखित में देने के लिए दबाव बना रहा था. संतोष गुप्ता अपनी प्रेमिका सरिता के साथ ग्राम सुन्दरपुर में रहता है. घटना दिवस 16 जनवरी को हिमांशु अपनी मां उमा के साथ सुन्दरपुर स्थित काली मंदिर में पूजा करने गया था.
वहीं पर पास में में संतोष अपनी प्रेमिका के साथ खाना बना रहा था.मां-बेटे को देखकर वह सांड़बार स्थित घर को खाली करने व शादी करने के लिए लिखित देने को लेकर विवाद करने लगा.इस दौरान संतोष अपनी पत्नी के साथ मारपीट करने लगा. बीच-बचाव करने पहुंचे हिमांशु को भी उसने पीट कर भगा दिया.
हिमांशु डर कर वहां से भाग गया. मौका पाकर संतोष ने अपनी प्रेमिका के साथ मिल मिट्टी तेल पत्नी के शरीर पर छिड़क दिया और आग लगा दी.

Crime: नाबालिग के हाथ, खून के रंग

महिला जलने लगी तो पास में ड्रम में रखे पानी को डाल कर स्वयं आग बुझाई और घटना की जानकारी मायके वालों को दी. महिला को इलाज के लिए मेडिकल कॉलेज अस्पताल में भर्ती कराया गया है. हिमांशु की रिपोर्ट पर कोतवाली पुलिस ने संतोष व सरिता के खिलाफ कोतवाली में अपराध दर्ज कराई .
अवैध संबंधों के कारण पत्नी के साथ दुर्व्यवहार और अपराध का मूल कारण, पुलिस अधिकारी इंद्र भूषण सिंह के मुताबिक दरअसल प्रेम के जाल में फंस कर आदमी अपनी पत्नी के साथ अत्याचार करता है, उसकी हत्या करने का प्रयास अथवा हत्या करता है तो वह यह भूल जाता है कि कानून के लंबे हाथ उसके गिरेबान तक अवश्य पहुंच जाएंगे. आमतौर पर लोग प्रेम के वशीभूत अंधे होकर अपराध पर बैठते हैं और ऐसे मामले सामान्य लोगों से लेकर संभ्रांत और पढ़े लिखे लोगों के परिवारों में भी पाए गए हैं. मैंने चुनिंदा मामलों की जांच पड़ताल की है, उसमें पुरुष को दोषी पाया गया है. निष्कर्ष रूप में मैं यही कहूंगा कि विवाह के बाद दूसरी औरत के चक्कर में कदापि नहीं फंसना चाहिए.

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