यह तो होना ही था. साल 2013 में केदारनाथ में बादल फटने के बाद मचे हाहाकार और जानमाल के नुकसान से भी सरकारें नहीं जागी हैं. आज भी पहाड़ों पर ऐसी विवादित परियोजनाएं चल रही हैं, जो कुदरत को मानो उकसा रही हैं अपना गुस्सा दिखाने के लिए.

उत्तराखंड के चमोली जिले में हिम ग्लेशियर टूटने से जिस ऋषिगंगा पावर प्रोजैक्ट की तबाही का रोना रोया जा रहा है, वह शुरू से ही विवादों में रहा है. इस प्रोजैक्ट पर 10 साल से ज्यादा समय से काम जारी था. पर याद रहे कि यह कोई सरकारी नहीं, बल्कि प्राइवेट सैक्टर का प्रोजैक्ट था, जिसे ले कर जम कर विरोध हुआ था.

पर्यावरण की सुरक्षा के लिए काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस प्रोजैक्ट को बंद कराने के लिए अदालत का दरवाजा तक खटखटाया था, लेकिन वे नाकाम रहे थे. उन का मानना था कि इस तरह के प्रोजैक्ट हिमालय को नुकसान पहुंचा सकते हैं और उन का डर आज सच साबित हो गया.

उधर तमाम विवादों के बावजूद ऋषिगंगा पावर प्रोजैक्ट पर बिजली का उत्पादन शुरू हो गया था और वहां 63,520 एमडब्ल्यूएच बिजली बनाने का टारगेट रखा गया था. हालांकि अभी कितना उत्पादन हो रहा था, इस की कोई आधिकारिक जानकारी मौजूद नहीं है. शुरुआती दावों की बात करें तो यह कहा गया था कि जब यह प्रोजैक्ट अपनी पूरी क्षमता पर काम करेगा, तब यहां से बनने वाली बिजली दिल्ली, हरियाणा समेत कुछ दूसरे राज्यों में सप्लाई की जाएगी.

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वैसे, ऋषिगंगा नदी पर उत्तराखंड जल विद्युत निगम के साथ प्राइवेट कंपनी के भी कई पावर प्रोजैक्ट बन रहे हैं.

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