कोने वाली टेबल: क्या सुमित को मिली उसकी चाहत

ठाणे में सब से बड़ा मौल है, विवियाना मौल. काफी बड़ा और सुंदर. एक से एक ब्रैंडेड शोरूम हैं. जब से यह मौल बना है, ठाणे में रहने वालों को हाई क्लास शौपिंग के लिए बांद्रा नहीं भागना पड़ता. वीकैंड में टाइम पास करने वालों की यह प्रिय जगह है. थर्डफ्लोर पर बढ़िया फ़ूड कोर्ट है. वैसे, हर फ्लोर पर बहुत ही क्लासी रैस्त्रां हैं, उन में से एक है, येलो चिल्ली. यह मशहूर सैलिब्रिटी शेफ संजीव कपूर की फ़ूडचेन का पार्ट है.

येलो चिल्ली की कोने वाली टेबल पर 30 वर्षीया लकी बहुत देर से बैठी फ्रैश लाइम वाटर पी रही है. उसे इंतज़ार है सुमित का. बस फोटो ही देखी है उस ने सुमित की. अपने घर वालों के कहने पर दोनों आज पहली बार अकेले मिल रहे हैं. सुमित अंदर आया, लकी ध्यान से सुमित को देख रही थी.

सुमित ने इधरउधर देखा, सीधा लकी के पास आ कर ‘हैलो’ बोला और अपना बैग दूसरी खाली पड़ी चेयर पर रखता हुआ बैठ गया. पूछ लिया, “आप इतने ध्यान से क्या देखने की कोशिश कर रही हैं?”

“देख रही हूं, टौल, डार्क एंड हैंडसम वाले कौन्सैप्ट पर कितना फिट बैठते हो.”

सुमित हंस पड़ा, तो क्या देखासुना-

“सब बकवास है, पता नहीं किस ने यह लाइन बना दी. लड़कियां फ़ालतू में टौल, डार्क एंड हैंडसम लड़कों की कल्पना करकर के अपना टाइम खराब करती हैं. अरे, क्या फर्क पड़ जाएगा अगर लड़का गोरा हो गया तो, या न हो लंबा? क्या करना है, सब अमिताभ बच्चन हो सकते हैं क्या? और हैंडसम होने की परिभाषा तो सब की अपनीअपनी अलग होती है न…

सुमित बहुत ही ध्यान से लकी को देखने लगा, लड़की है या तोप का गोला, किस बात पर इतनी भरी बैठी है. अभी तो आ कर बैठा ही हूं और यह तो शुरू हो गई. लकी अब मैन्यू कार्ड देखने लगी थी.

सुमित को लगा यही मौका है इसे ध्यान से देख लूं. वाइट जंप सूट में पोनीटेल बनाए, सुंदर सा चेहरा, अच्छा लग रहा था.

लकी ने कहा, “पहले और्डर दे दें? मुझे भूख लगी है, भूख के आगे मुझे कुछ नहीं सूझता. मेरा पेट भरा होना चाहिए, तभी मुझ से ठीक से बात हो पाती है.’’

सुमित ने कहा, “हां, हां, और्डर करते हैं, बताओ, क्या खाओगी?”

आप अपनी पसंद बताएं, मुझे यहां के छोलेभठूरे अच्छे लगते हैं, जब भी आती हूं, वही खाती हूं.’’

“मैं भी वही खा लूंगा.”

“क्यों, अपनी कोई पसंद नहीं आप की?”

“मैं तो सबकुछ खा लेता हूं, जो सामने दोस्त खा रहे होते हैं, मैं उस में खुश हो जाता हूं.”

“मुझे आप ने दोस्त मान लिया, पहली बार तो मिले हैं?”

सुमित चुप रहा, वेटर आया तो लकी ने कहा, “एक प्लेट छोलेभठूरे, एक प्लेट दहीकबाब, एक प्लेट पनीरटिक्का.”

वेटर के जाने के बाद सुमित ने हैरानी से कहा, “क्याक्या मंगवा लिया?”

लकी ने मुसकरा कर कहा, “मुझे बहुत सारी चीजें और्डर करना अच्छा लगता है, फिर एकदूसरे के साथ शेयर कर के ज्यादा चीजें खाई जा सकती हैं. असल में, आई एम अ बिग फूडी. नहीं तो अभी एकएक प्लेट छोलेभठूरे ही खा पाते, अब और भी चीजें खा सकते हैं. यह ठीक रहता है न.”

“लकी जी, मैं ने कभी और्डर को ले कर इतना सोचा नहीं.”

“आप कितने साल के हैं? सही वाली उम्र बताना, सर्टिफिकेट वाली नहीं.”

“30’’

“मैं भी 30. तो फिर बात करते हुए ये आप, आप, जी, लगाना बंद करें क्या? बोरिंग हो रहा है.’’

“अच्छा रहेगा.’’

“सुनो, तुम सचमुच शादी करना चाहते हो?”

“अभी नहीं, पर घर वाले बहुत जोर डाल रहे हैं.’’

“मेरे साथ भी यही प्रौब्लम है. अभी तो जौब में सेट हुई हूं, सोचा था थोड़ा घूमूंगी, फिरूंगी. मुझे नईनई जगहें देखने का बहुत शौक है. पर एक तो घर वाले और ऊपर से रिश्तेदार, चैन नहीं लेने दे रहे. और मुझे लगता है मेरी किसी से बनेगी भी नहीं, गलत बात किसी की जरा भी सहन नहीं होती, झगड़ा हो जाता है. मुझे गुस्सा भी बहुत आता है. तुम बताओ, क्यों कर रहे हो शादी? तुम तो लड़के हो, तुम्हें तो इतने फायदे हैं, कुछ भी कह सकते हो?”

“बस, मम्मीपापा ने रट लगा रखी है कि तुम शादी करो तो छोटे भाई का नंबर आए.”

“पर तुम्हारे शादी न करने की क्या वजह है?”

“बस, अभी मूड नहीं है.’’

“कोई अफेयर चल रहा है या ब्रेकअप हुआ है?”

“ब्रेकअप हुआ है.’’

“तो उस का गम मनाना चाहते हो?”

“नहीं, अब क्या गम मनाना, 2 महीने हो गए इस बात को.’’

“ब्रेकअप क्यों हुआ?”

इतने में वेटर ने खाना ला कर रखा तो लकी ने कहा, “चलो, खाने पर टूट पड़ती हूं, तुम्हारी सैड स्टोरी बाद में सुनती हूं, टैस्टी चीजों का मजा खराब नहीं करना चाहती.’’

सुमित मुसकरा दिया तो लकी ने कहा, “तुम कम बोलते हो क्या या ब्रेकअप के बाद लड़की से बात करने का कौन्फिडैंस ख़त्म हो गया?”

“हां, हो सकता है, जरा मूड कम ही होता है हंसनेबोलने का.”

“क्या बढ़िया छोले बने हैं, वाह, मजा आ गया. मेरी मम्मी भी छोले बनाती तो हैं अच्छे, पर यहां जैसे थोड़े ही बनते हैं घर पर, है न?”

“हां, अच्छा लग रहा है खाना.”

“तुम्हें पता है जब भी मैं विवियाना आती हूं, चाहे टाइम जो भी हो रहा हो, ये दहीकबाब जरूर खाती हूं. तुम नौनवेज खाते हो?”

“हां, तुम?”

“बाहर दोस्तों के साथ खाती हूं, घर वालों को नहीं पता है. तुम सिगरेट पीते हो?”

“हां, कभीकभी. तुम भी पीती हो क्या?”

“एकदो बार पी, मजा नहीं आया, फिर नहीं पी. शराब?”

“घर वालों को नहीं पता, कभीकभी किसी पार्टी में पीता हूं और फिर किसी दोस्त के घर पर ही रुक जाता हूं.”

“सुनो, एक काम करोगे, अपने घर वालों से कह देना कि मैं मिलने आई ही नहीं थी, मुझे नहीं करनी शादी अभी. अपने घर वालों से मैं निबट लूंगी. उन्हें पता चलना चाहिए कि जबरदस्ती करेंगे तो मैं किसी लड़के से मिलने जाऊंगी ही नहीं. मैं ने पहले 2 लड़कों को तो दूर से देखते ही रास्ता बदल लिया था, मिलने ही नहीं गई थी. मेरे घर वाले भी थकते नहीं मेरी बदतमीजी से.’’

“तो, आज मुझ से क्यों मिलीं?”

“बोर हो रही थी, यहां लंच का मूड हो गया.’’

“कोई बौयफ्रैंड है?”

“अभी तो नहीं है.’’

“कब था?”

“एक साल पहले.’’

“ब्रेकअप क्यों हुआ?”

“अपनी ज्यादा चलाता था, हर बात में रोकटोक करने लगा था, फिर मेरे गुस्से को झेल नहीं पाया. तुम्हें बताया न, कि मुझे बहुत गुस्सा आता है.’’

खाना हो चुका था. लकी ने वेटर को बिल लाने का इशारा किया. सुमित अपना वौलेट निकालने लगा तो लकी ने कहा, “मैं पे करूंगी.’’

“प्लीज, मुझे करने दो.’’

“क्यों?”

“मुझे अच्छा नहीं लगेगा, मुझे करने दो.’’

“नहीं, मेरा मन है.’’

“ओके, अगली बार करने दोगी?”

“हम मिल रहे हैं दोबारा?”

“तुम बताओ?’’

“मुश्किल है.’’

“अच्छा, ठीक है, जैसे तुम्हारी मरजी.’’

खाना खा कर दोनों बाहर निकले, तो लकी ने कहा, “जल्दी है जाने की?”

“नहीं, कुछ काम है?”

“बस, एक ब्लैक पैंट लेनी है ज़ारा से. ले लूं, फिर साथ ही निकलते हैं,” ग्राउंडफ्लोर तक आतेआते लकी ने पूछा, “अरे, तुम ने बताया नहीं, तुम्हारा ब्रेकअप क्यों हुआ था?”

“वह बहुत शक्की थी. किसी से भी बात करता, कहीं भी मैं जाता, बहुत सारे सवालों के साथ शक करती. फिर चैक करती कि कहीं मैं ने झूठ तो नहीं बोला. पूछताछ करती सब से. मुझे लगा, जब रिश्ते में विश्वास ही नहीं तो सब बेकार है.”

“औफिस कहां है तुम्हारा?”

“अंधेरी में.’’

“और तुम्हारा?”

“अंधेरी.’’

“अरे, वाह, कैसे जाती हो?”

“एसी बस से. तुम कैसे जाते हो?”

“कार से.”

“बढ़िया.’’

‘ज़ारा’ शोरूम में अपना बैग सुमित को पकड़ा लकी ने जल्दी से पैंट ट्राई कर के ले ली, तो सुमित ने हंसते हुए कहा-

“इतनी जल्दी ले ली? लड़कियां तो शौपिंग में बहुत टाइम लगाने के लिए मशहूर हैं?’’

“मुझे शौपिंग में टाइम खराब करना पसंद नहीं. काम की चीजें लेती हूं और निकलती हूं, ट्रायल रूम की भीड़ से तबीयत घबरा जाती है मेरी. चलो, निकलते हैं, अब. अच्छा लगा मिल कर.”

“हां, अच्छा तो लगा मुझे भी, कैसे आई हो?”

“औटो से. वैसे, मैं ने कार ले ली है, एकदो दिन में डिलीवरी होने वाली है. मैं बहुत एक्ससाइटेड हूं अपनी कार के लिए.”

“यह तो बड़ी ख़ुशी की बात है. अपनी कार की एक पार्टी तो बनती है,” सुमित सचमुच बहुत खुश हुआ था सुन कर.

“पार्टी चाहिए तुम्हें कार की?’’

“तुम्हारा मन हो तो मैं दूं तुम्हें तुम्हारी कार की पार्टी? जब कार आ जाए तो तुम्हारी कार से मरीन ड्राइव चलेंगे. वहीं पिज़्ज़ा एक्सप्रैस में पिज़्ज़ा खिलाऊंगा तुम्हें? बोलो, चलोगी?”

“प्रोग्राम तो अच्छा सोच रहे हो तुम? कहीं तुम्हें मैं पसंद तो नहीं आ गई? देखो, मेरा शादी का कोई मूड नहीं है अभी.”

“अरे बाबा, मुझे भी नहीं करनी है शादी, इसलिए तुम्हारे साथ थोड़ा ठीक लग रहा है.’’

“ठीक है, लाओ फोन नंबर दो अपना, कार आने पर तुम्हें फोन करूंगी, चलेंगे घूमने. और याद रखना, अपने घर वालों को कहना कि मैं मिली ही नहीं.”

“ठीक है.’’

अपने घर से थोड़ा दूर ही सुमित की कार से उतरते हुए लकी ने कहा, “अरे, यह तो बताओ, तुम्हारा अपनी गर्लफ्रैंडफ्रेंड के साथ सैक्स भी चलता था?”

“हां, और तुम्हारा?”

“हां, चलो, बाय, मिलते हैं फिर, कार आने पर.’’

घर जा कर दोनों ने झूठ बोल दिया कि वे आपस में मिले ही नहीं, लकी डांट खाती रही, सुमित के घरवाले दूसरी लड़कियों के बारे में अपनी राय देने लगे. लकी और सुमित ने फोन नंबर होने पर भी एकदूसरे से कोई बात न की, न कोई मैसेज भेजा. जिस दिन लकी की कार आई, लकी ने सुमित को फोन किया, “मरीन ड्राइव चलना है?”

“हां, संडे को शाम 5 बजे निकलेंगे. अपना ऐड्रेस भेज रहा हूं, मुझे लेने आ जाना.’’

संडे तक का टाइम दोनों ने वैसा ही बिताया जैसा दोनों का रूटीन था. संडे शाम को सुमित वर्तक नगर की नीलकंठ सोसाइटी में अपनी बिल्डिंग के बाहर ही मिल गया, सीट बेल्ट बांधते हुए सुमित ने कहा, “कलर सुंदर है कार का, ब्लू कलर मुझे भी पसंद है. कैसा लग रहा है अपनी कार चलाना?”

“बढ़िया. मैं कार चला रही हूं, तुम्हारी मेल ईगो तो नहीं हर्ट हो रही है?”

“नहीं, आराम मिल रहा है, थक जाता हूं रोज ड्राइविंग से, आज मजे से बैठ कर जाऊंगा.’’

शाम बहुत सुंदर लगी आज दोनों को. जाने कितनी बातें होती रहीं. दोनों हैरान से एक किनारे साथ घूमते हुए बीचबीच में समुद्र की लहरें देखने के लिए खड़े हो जाते, हलकेहलके सुरमई से अंधेरे में समुद्र किनारे बनी चट्टानों के पास की दीवारों पर बैठे युवा जोड़े चहक रहे थे. कुछ एकदूसरे की कमर में हाथ डाले एकदूसरे में यों खोए थे कि जैसे किसी बात का उन पर असर नहीं. चाहे उन्हें कोई भी देख रहा हो, चाहे कोई कुछ भी सोच रहा हो. मुंबई में इन जगहों में ये सीन बहुत ही आम हैं. बाहर से आए लोग जल्दी इन सीन को हजम नहीं कर पाते. ऐसे प्रेमियों को बेशर्मों का तमगा तुरंत थमा दिया जाता है.

पिज़्ज़ा एक्सप्रैस में पिज़्ज़ा खाते हुए लकी ने कहा, “सुनो, तुम मुझे वैसे तो ठीक ही लग रहे हो, क्या कहते हो, एकदो बार और टाइम साथ बिताते हैं. दिल हां कर रहा हो, तो शादी कर ही लें क्या?”

सुमित हंसा, बोला, “इतनी जल्दी मूड चेंज हो गया?”

“हां, सोच रही हूं, कर ही लूं. साथ की लड़कियों की भी शादी हो गई है. अकेले ऐसी जगह घूमना छूटता जा रहा है. आज कई दिनों बाद ऐसे शाम बिताई, अच्छा लगा. कोई बौयफ्रैंड फिर बनाऊं, न पटे तो फिर ब्रेकअप हो. फिर मूड खराब हो, इस से अच्छा है कि तुम से शादी कर लूं, साथ घूमने वाला साथी भी मिल जाएगा. बोलो, क्या कहते हो?”

“मैं भी सोच रहा हूं कि तुम से ही कर लूं शादी. तुम कार चलाया करोगी तो मुझे भी आराम हो जाएगा. तुम शौपिंग में बोर भी नहीं करोगी. सो, तुम भी मुझे लग तो ठीक ही रही हो. ठीक है, थोड़ा और मिलते हैं, फिर कर ही लेते हैं शादी.”

दोनों जोर से हंस दिए. फिर वही हुआ जो दोनों ने बिलकुल भी नहीं सोचा था. अगले महीने ही दोनों की शादी हो गई, धूमधाम से. और दोनों अकसर विवियाना मौल में येलो चिल्ली की उसी कोने वाली टेबल पर डिनर करने जरूर जाते हैं. दोनों को ही उस कोने वाली टेबल से कुछ इश्क सा हो गया है!

ज्योति: जैसा नाम वैसी ही गुणी

लेखिका : वैदेही कोठारी

घरगृहस्थी में ज्योति पूरी तरह रम चुकी थी. उसे घरपरिवार का ध्यान रखना, उन की पसंद का खाना बनाना सभीकुछ अच्छा लगता था, क्योंकि ज्योति की काकी ने उसे 8वीं क्लास के बाद सिर्फ घरपरिवार का कैसे ध्यान रखना है, खाना कैसे बनाना है, बस इतना ही सिखाया था. पढ़ाई बंद हुई, तो बाहर की दुनिया से ज्यादा नाता ही नहीं रहा. 18वां साल खत्म होते ही ज्योति को डोली में बैठा दिया था.

अगर घर के किसी भी सदस्य की तबीयत खराब होती, तो ज्योति उस का खास ध्यान रखती.

ज्योति जैसा नाम वैसी ही गुणी थी. वह घर की ज्योत थी. उस के पति रमेश सरकारी स्कूल में प्रिंसिपल थे, इसलिए वह उन के स्कूल जाने वाले समय का खास ध्यान रखती थी.

ज्योति के 2 बेटे थे. बड़ा बेटा कालेज में और छोटा बेटा हाईस्कूल में पढ़ता था. घर में बूढ़ी सासूजी भी थीं, जो अपना ज्यादातर समय टैलीविजन देखने में बिताती थीं.

पर, समय कब एकजैसा चलता है. कुछ समय से ज्योति को अपनी सेहत कुछ अच्छी नहीं लग रही थी. वह कुछ काम करती, तो उसे थकान महसूस होने लगती.

एक दिन ज्योति ने रमेश से कहा, ‘‘कुछ दिनों से मुझे ज्यादा थकान महसूस होने लगी है,’’ तो रमेश ने कहा कि आराम कर लिया करो.

इसी तरह कुछ दिन तो निकल गए, पर अब ज्योति को कभी सिर दुखना, कभी हाथपैर में दर्द, कंपन जैसी कुछ परेशानियां बढ़ने लगी थीं.

ज्योति रमेश को जब भी अपनी तबीयत के बारे में बोलती, तो रमेश मुंह बना कर कहते, ‘‘तुम कब ठीक रहती हो… तुम्हें तो कुछ न कुछ होता ही रहता है… लाओ, जल्दी खाना दो मुझे… जाना है…’’

ज्योति मायूस हो कर चुप्पी साध गई और रमेश को खाना परोस कर, फिर पेनकिलर दवा खा कर धीरेधीरे अपने घर के काम निबटाने लग गई.

अब तो ज्योति दिन में जब कभी आराम करती, तो बेटा चिल्लाते हुए बोलता, ‘‘क्या मां, जब देखो तुम पड़ी रहती हो?’’

वह थकीथकी सी उठ कर पूछती कि क्या हुआ? तो बेटा बोलता, ‘‘मुझे खाना दो…’’

ज्योति बेटे को खाना परोसती, फिर धीरेधीरे घर के दूसरे काम में लग जाती.

ज्योति का चेहरा दिनोंदिन मुरझाने लगा था. उस की रंगत फीकी पड़ने लगी थी.

रमेश शाम को जब घर आता, तो उस का मुरझाया हुआ चेहरा देख कर बोलता, ‘‘अच्छे से नहीं रह सकती हो क्या? घर में तुम्हें हल नहीं चलाना पड़ता, जो ऐसी थकी सी दिख रही हो.’’

यह सुन कर ज्योति अंदर ही अंदर टूट गई. वह झूठी मुसकान के साथ बोली, ‘‘कुछ नहीं… बस ऐसे ही… अभी चाय बनाती हूं. आप कपड़े बदल लो.’’

ज्योति ने सभी के लिए चाय बनाई, फिर वह खाना बनाने की तैयारी करने लग गई.

आज ज्योति को पेनकिलर  दवा का भी असर नहीं हो रहा था. वह अपने दर्द को छिपाते हुए सब को खाना खिलाने लगी. आज उस का खाना खाने का मन भी नहीं कर रहा था.

ज्योति ने जैसेतैसे थकेहारे मन और तन से घर का काम निबटाया. उसे थोड़ा चक्कर आया तो वह कुरसी पर बैठने लगी, पर तभी नीचे गिर पड़ी.

जब सभी को आवाज आई, तो वे दौड़ कर ज्योति के पास आ गए और फिर उसे डाक्टर के पास ले गए.

डाक्टर ने जब पूरी जांच की, तो उसे सीरियस हालत में बताया.

यह सुन कर पति और बच्चे चिंतित हो गए. रमेश के कानों में ज्योति को कहे अपने वे शब्द घूम गए, ‘तुम को तो कुछ न कुछ होता ही रहता है…’

काश, उस समय रमेश ज्योति की हालत को समझ लेता…

निगाहों से आजादी कहां : क्या बचा पाई वो अपनी इज्जत

‘‘अरे रामकली, कहां से आ रही है?’’ सामने से आती हुई चंपा ने जब उस का रास्ता रोक कर पूछा तब रामकली ने देखा कि यह तो वही चंपा है जो किसी जमाने में उस की पक्की सहेली थी. दोनों ने ही साथसाथ तगारी उठाई थी. सुखदुख की साथी थीं. फुरसत के पलों में घंटों घरगृहस्थी की बातें किया करती थीं.

ठेकेदार की जिस साइट पर भी वे काम करने जाती थीं, साथसाथ जाती थीं. उन की दोस्ती देख कर वहां की दूसरी मजदूर औरतें जला करती थीं, मगर एक दिन उस ने काम छोड़ दिया. तब उन की दोस्ती टूट गई. एक समय ऐसा आया जब उन का मिलना छूट गया.

रामकली को चुप देख कर चंपा फिर बोली, ‘‘अरे, तेरा ध्यान किधर है रामकली? मैं पूछ रही हूं कि तू कहां से आ रही है? आजकल तू मिलती क्यों नहीं?’’

रामकली ने सवाल का जवाब न देते हुए चंपा से सवाल पूछते हुए कहा, ‘‘पहले तू बता, क्या कर रही है?’’

‘‘मैं तो घरों में बरतन मांजने का काम कर रही हूं. और तू क्या कर रही है?’’

‘‘वही मेहनतमजदूरी.’’

‘‘धत तेरे की, आखिर पुराना धंधा छूटा नहीं.’’

‘‘कैसे छोड़ सकती हूं, अब तो ये हाथ लोहे के हो गए हैं.’’

‘‘मगर, इस वक्त तू कहां से आ रही है?’’

‘‘कहां से आऊंगी, मजदूरी कर के आ रही हूं.’’

‘‘कोई दूसरा काम क्यों नहीं पकड़ लेती?’’

‘‘कौन सा काम पकड़ूं, कोई मिले तब न.’’

‘‘मैं तुझे काम दिलवा सकती हूं.’’

‘‘कौन सा काम?’’

‘‘मेहरी का काम कर सकेगी?’’

‘‘नेकी और पूछपूछ.’’

‘‘तो चल तहसीलदार के बंगले पर. वहां उन की मेमसाहब को किसी बाई की जरूरत थी. मुझ से उस ने कहा भी था.’’

‘‘तो चल,’’ कह कर रामकली चंपा के साथ हो ली. वैसे भी वह अब मजदूरी करना नहीं चाहती थी. एक तो यह हड्डीतोड़ काम था. फिर न जाने कितने मर्दों की काम वासना का शिकार बनो. कई मजदूर तो तगारी देते समय उस का हाथ छू लेते हैं, फिर गंदी नजरों से देखते हैं. कई ठेकेदार ऐसे भी हैं जो उसे हमबिस्तर बनाना चाहते हैं.

एक अकेली औरत की जिंदगी में कई तरह के झंझट हैं. उस का पति कन्हैया कमजोर है. जहां भी वह काम करता है, वहां से छोड़ देता है. भूखे मरने की नौबत आ गई तब मजबूरी में आ कर उसे मजदूरी करनी पड़ी.

जब पहली बार रामकली उस ठेकेदार के पास मजदूरी मांगने गई थी, तब वह वासना भरी आंखों से बोला था, ‘‘तुझे मजदूरी करने की क्या जरूरत पड़ गई?’’

‘‘ठेकेदार साहब, पेट का राक्षस रोज खाना मांगता है?’’ गुजारिश करते हुए वह बोली थी.

‘‘इस के लिए मजदूरी करने की क्या जरूरत है?’’

‘‘जरूरत है तभी तो आप के पास आई हूं.’’

‘‘यहां हड्डीतोड़ काम करना पड़ेगा. कर लोगी?’’

‘‘मंजूर है ठेकेदार साहब. काम पर रख लो?’’

‘‘अरे, तुझे तो यह हड्डीतोड़ काम करने की जरूरत भी नहीं है,’’ सलाह देते हुए ठेकेदार बोला था, ‘‘तेरे पास वह चीज है, मजदूरी से ज्यादा कमा सकती है.’’

‘‘आप क्या कहना चाहते हैं ठेकेदार साहब.’’

‘‘मैं यह कहना चाहता हूं कि अभी तुम्हारी जवानी है, किसी कोठे पर बैठ जाओ, बिना मेहनत के पैसा ही पैसा मिलेगा,’’ कह कर ठेकेदार ने भद्दी हंसी हंस कर उसे वासना भरी आंखों से देखा था.

तब वह नाराज हो कर बोली थी, ‘‘काम देना नहीं चाहते हो तो मत दो. मगर लाचार औरत का मजाक तो मत उड़ाओ,’’ इतना कह कर वह ठेकेदार पर थूक कर चली आई थी.

फिर कहांकहां न भटकी. जो भी ठेकेदार मिला, उस के साथ वह और चंपा काम करती थीं. दोनों का काम अच्छा था, इसलिए दोनों का रोब था. तब कोई मर्द उन की तरफ आंख उठा कर नहीं देखा करता था.

मगर जैसे ही चंपा ने काम पर आना बंद किया, फिर काम करते हुए उस के आसपास मर्द मंडराने लगे. वह भी उन से हंस कर बात करने लगी. कोई मजदूर तगारी पकड़ाते हुए उस का हाथ पकड़ लेता, तब वह भी कुछ नहीं कहती है. किसी से हंस कर बात कर लेती है तब वह समझता है कि रामकली उस के पास आ रही है.

कई बार रामकली ने सोचा कि यह हाड़तोड़ मजदूरी छोड़ कर कोई दूसरा काम करे. मगर सब तरफ से हाथपैर मारने के बाद भी उसे ऐसा कोई काम नहीं मिला. जहां भी उस ने काम किया, वहां मर्दों की वहशी निगाहों से वह बच नहीं पाई थी. खुद को किसी के आगे सौंपा तो नहीं, मगर वह उसी माहौल में ढल गई.

‘‘ऐ रामकली, कहां खो गई?’’ जब चंपा ने बोल कर उस का ध्यान भंग किया तब वह पुरानी यादों से वर्तमान में लौटी.

चंपा आगे बोली, ‘‘तू कहां खो गई थी?’’

‘‘देख रामवती, तहसीलदार का बंगला आ गया. मेमसाहब के सामने मुंह लटकाए मत खड़ी रहना. जो वे पूछें, फटाफट जवाब दे देना,’’ समझाते हुए चंपा बोली.

रामकली ने गरदन हिला कर हामी भर दी.

दोनों गेट पार कर लौन में पहुंचीं. मेमसाहब बगीचे में पानी देते हुए मिल गईं. चंपा को देख कर वे बोलीं, ‘‘कहो चंपा, किसलिए आई हो?’’

‘‘मेमसाहब, आप ने कहा था, घर का काम करने के लिए बाई की जरूरत थी. इस रामकली को लेकर आई हूं,’’ कह कर रामकली की तरफ इशारा करते हुए चंपा बोली.

मेमसाहब ने रामकली को देखा. रामकली भी उन्हें देख कर मुसकराई.

‘‘तुम ईमानदारी से काम करोगी?’’ मेमसाहब ने पूछा.

‘‘हां, मेमसाहब.’’

‘‘रोज आएगी?’’

‘‘हां, मेमसाहब.’’

‘‘कोई चीज चुरा कर तो नहीं भागोगी?’’

‘‘नहीं मेमसाहब. पापी पेट का सवाल है, चोरी का काम कैसे कर सकूंगी…’’

‘‘फिर भी नीयत बदलने में देर नहीं लगती है.’’

‘‘नहीं मेमसाहब, हम गरीब जरूर हैं मगर चोर नहीं हैं.’’

चंपा मोरचा संभालते हुए बोली, ‘‘आप अपने मन से यह डर निकाल दीजिए.’’

‘‘ठीक है चंपा. इसे तू लाई है इसलिए तेरी सिफारिश पर इसे रख

रही हूं,’’ मेमसाहब पिघलते हुए बोलीं, ‘‘मगर, किसी तरह की कोई शिकायत नहीं मिलनी चाहिए.’’

‘‘आप को जरा सी भी शिकायत नहीं मिलेगी,’’ हाथ जोड़ते हुए रामकली बोली, ‘‘आप मुझ पर भरोसा रखें.’’

फिर पैसों का खुलासा कर उसे काम बता दिया गया. मगर 8 दिन का काम देख कर मेमसाहब उस पर खुश हो गईं. वह रोजाना आने लगी. उस ने मेमसाहब का विश्वास जीत लिया.

मेमसाहब के बंगले में आने के बाद उसे लगा, उस ने कई मर्दों की निगाहों से छुटकारा पा लिया है. मगर यह केवल रामकली का भरम था. यहां भी उसे मर्द की निगाह से छुटकारा नहीं मिला. तहसीलदार की वासना भरी आंखें यहां भी उस का पीछा नहीं छोड़ रही थीं.

मर्द चाहे मजदूर हो या अफसर, औरत के प्रति वही वासना की निगाह हर समय उस पर लगी रहती थी. बस फर्क इतना था जहां मजदूर खुला निमंत्रण देते थे, वहां तहसीलदार अपने पद का ध्यान रखते हुए खामोश रह कर निमंत्रण देते थे.

ऐसे ही उस दिन तहसीलदार मेमसाहब के सामने उस की तारीफ करते हुए बोले, ‘‘रामकली बहुत अच्छी मेहरी मिली है, काम भी ईमानदारी से करती?है और समय भी ज्यादा देती है,’’ कह कर तहसीलदार साहब ने वासना भरी नजर से उस की तरफ देखा.

तब मेमसाहब बोलीं, ‘‘हां, रामकली बहुत मेहनती है.’’

‘‘हां, बहुत मेहनत करती है,’’ तहसीलदार भी हां में हां मिलाते हुए बोले, ‘‘अब हमें छोड़ कर तो नहीं जाओगी रामकली?’’

‘‘साहब, पापी पेट का सवाल है, मगर…’’

‘‘मगर, क्या रामकली?’’ रामकली को रुकते देख तहसीलदार साहब बोले.

‘‘आप चले जाओगे तब आप जैसे साहब और मेमसाहब कहां मिलेंगे.’’

‘‘अरे, हम कहां जाएंगे. हम यहीं रहेंगे,’’ तहसीलदार साहब बोले.

‘‘अरे, आप ट्रांसफर हो कर दूसरे शहर में चले जाएंगे,’’ रामकली ने जब तहसीलदार पर नजर गड़ाई, तो देखा कि उन की नजरें ब्लाउज से झांकते उभार पर थीं. कभीकभी ऐसे में जान कर के वह अपना आंचल गिरा देती ताकि उस के उभारों को वे जी भर कर देख लें.

तब तहसीलदार साहब बोले, ‘‘ठीक कहती हो रामकली, मेरा प्रमोशन होने वाला है.’’

उस दिन बात आईगई हो गई. तहसीलदार साहब उस से बात करने का मौका ढूंढ़ते रहते हैं. मगर कभी उस पर हाथ नहीं लगाते हैं. रामकली को तो बस इसी बात का संतोष है कि औरत को मर्दों की निगाहों से छुटकारा नहीं मिलता है. मगर वह तब तक ही महफूज है, जब तक तहसीलदार की नौकरी इस शहर में है.

कुछ इस तरह : कैसा था जूही का परिवार

एक बजे जूही ने घर में सोए मेहमानों पर नजर डाली. उस की चाची, मामी और ताऊ व ताईजी कुछ दिनों के लिए रुक गए थे. बाकी मेहमान जा चुके थे. ये लोग जूही और उस की मम्मी कावेरी का दुख बांटने के लिए रुक गए थे.

जूही ने अब धीरे से अपनी मम्मी के बैडरूम का दरवाजा खोल कर झांका. नाइट बल्ब जल रहा था. जूही ने मां को कोने में रखी ईजीचेयर पर बैठे देखा तो उस का दिल भर आया. क्या करे, कैसे मां का दिल बहलाए. मां का दुख कैसे कम करे. कुछ तो करना ही पड़ेगा, ऐसे तो मां बीमार पड़ जाएंगी.

उस ने पास जा कर कहा, ‘‘मां, उठो, ऐसे बैठेबैठे तो कमर अकड़ जाएगी.’’ कावेरी के मुंह से एक आह निकल गई. जूही ने जबरदस्ती मां का हाथ पकड़ कर उठाया और बैड पर लिटा दिया. खुद भी उन के बराबर में लेट गई. जूही का मन किया, दुखी मां को बच्चे की तरह खुद से चिपटा ले और उस ने वही किया.

कावेरी से चिपट गई वह. कावेरी ने भी उस के सिर पर प्यार किया और रुंधे स्वर में कहा, ‘‘अब हम कैसे रहेंगे बेटा, यह क्या हो गया?’’ यही तो कावेरी 20 दिनों से रो कर कहे जा रही थी. जूही ने शांत स्वर में कहा, ‘‘रहना ही पड़ेगा, मां. अब ज्यादा मत सोचो. सो जाओ.’’

जूही धीरेधीरे मां का सिर थपकती रही और कावेरी की आंख लग ही गई. कई दिनों का तनाव, थकान तनमन पर असर दिखाने लगा था. जूही की खुद की आंखों में नींद नहीं थी.

26 वर्षीया जूही, कावेरी और पिता शेखर 3 ही लोगों का तो परिवार था. अब उस में से भी 2 ही रह गईं. 20 दिनों पहले शेखर जो रात को सोए, उठे ही नहीं. सोतेसोते कब हार्टफेल हो गया, पता ही नहीं चला. मांबेटी अकेली उन के जाने के बाद सब काम कैसे निबटाए चली आ रही हैं, वे ही जानती हैं.

रिश्तेदारों को इस दुखद घटना की सूचना देने से ले कर, उन के आने पर सब संभालते हुए जूही भी शारीरिक व मानसिक रूप से थक रही है अब. शेखर एक सफल, प्रसिद्ध बिजनैसमैन थे. आर्थिक स्थिति काफी अच्छी थी. मुंबई के पवई इलाके में उन के इस 4 बैडरूम फ्लैट में अब मांबेटी ही रह गई हैं.

एमबीए करने के बाद जूही काफी दिनों से पिता के बिजनैस में हाथ बंटा रही थी. यह वज्रपात अचानक हुआ था, इस की पीड़ा असहनीय थी. शेखर जिंदादिल इंसान थे. जीवन के हर पल को वे भरपूर जीते थे. परिवार के साथ घूमना उन का प्रिय शौक था. साल में एक बार कावेरी और जूही को ले कर कहीं न कहीं घूमने जरूर जाते थे और अब भी अगले महीने स्विट्जरलैंड जाने के टिकट बुक थे, मगर अब?

जूही के मुंह से एक सिसकी निकल गई. पिता की इच्छाएं, उन के जीने के अंदाज, उनकी जिंदादिली, उन का स्नेह याद कर रुलाई का आवेग फूट पड़ा. मां की नींद खराब न हो जाए यह सोच कर वह बालकनी में जा कर वहां रखी चेयर पर बैठ कर देर तक  रोती रही. अचानक सिर पर हाथ महसूस हुआ, तो वह चौंकी. हाथ कावेरी का था. ‘‘मम्मी, आप?’’

‘‘मु?ो लिटा कर खुद यहां आ गई. चलो, आओ, सोते हैं, 3 बज रहे हैं. अब की बार बेटी को दुलारते हुए कावेरी अपने साथ ले गई. 20 दिनों से यही तो चल रहा था. कभी बेटी मां को संभाल रही थी, कभी मां बेटी को.

दोनों ने लेट कर सोने की कोशिश करते हुए आंखें बंद कर लीं. कुछ ही दिनों में बाकी मेहमान भी चले गए. मांबेटी अकेली रह गईं. घर का सूनापन, हर तरफ फैली उदासी, घर के कोनेकोने में बसी शेखर की याद. जीना कठिन था पर जीवन है, तो जीना ही था. कावेरी सुशिक्षित थीं. वे पढ़नेलिखने की शौकीन थीं. कुछ सालों से लेखन के क्षेत्र में काफी सक्रिय थीं. उन की कई रचनाएं प्रकाशित होती रहती थीं. लेखन के क्षेत्र में उन की एक खास पहचान बन चुकी थी. शेखर से उन्हें हमेशा प्रोत्साहन मिला था. अब शेखर के जाने के बाद कलम जो छूटा, उस का सिरा पकड़ में ही नहीं आ रहा था.

जूही ने औफिस जाना शुरू कर दिया था. कई शुभचिंतक उसे औफिस में भरपूर सहयोग कर रहे थे. पर घर पर अकेली उदास मां की चिंता उसे दुखी रखती. जूही ने एक दिन कहा, ‘‘मां, कुछ लिखना शुरू करो न. कुछ लिखोगी, तो ठीक रहेगा, मन भी लगेगा.’’

‘‘नहीं, मैं अब लिख नहीं पाऊंगी. मेरे अंदर तो सब खत्म हो गया है. लिखने का तो कोई विचार आता ही नहीं.’’

जूही मुसकराई, ‘‘कोई बात नहीं, कई राइटर्स कभीकभी नहीं लिख पाते. होता है ऐसा. ठीक है, ब्रेक ले लो.’’ फिर एक दिन जूही ने कहा, ‘‘मां, टिकट बुक हैं, हम दोनों चलें स्विटजरलैंड?’’

कावेरी को ?ाटका लगा. ‘‘अरे नहींनहीं, सोचा भी कैसे तुम ने? तुम्हारे पापा के बिना हम कैसे जाएंगे. घूम लिए जितना घूमना था,’’ कह कर कावेरी सिसक पड़ी. जूही ने मां के गले में बांहें डाल दीं, ‘‘मां, सोचो, पापा का सपना था वहां जाने का, हम वहां जाएंगे तो लगेगा पापा की इच्छा पूरी कर रहे हैं. वे जहां भी हैं, हमें देख रहे हैं. मैं तो यही महसूस करती हूं. आप को नहीं लगता, पापा हमारे साथ ही हैं? मैं तो औफिस में भी उन की उपस्थिति अपने आसपास महसूस करती हूं, दोगुने उत्साह के साथ काम में लग जाती हूं. चलो न मां, हम घूम कर आएंगे.’’

कावेरी ने गंभीरतापूर्वक फिर न कर दिया. पर अगले दोचार दिन जूही के लगातार सकारात्मक सु?ावों और स्नेहभरी जिद के आगे कावेरी ने हां में सिर हिलाते हुए, ‘‘जैसी तुम्हारी मरजी, तुम्हारे लिए यही सही’’ कहा, तो जूही उन से लिपट गई, बोली, ‘‘बस मां, अब सब मेरे ऊपर छोड़ दो.’’

जूही की मौसी गंगा का बेटा अजय पेरिस में अपनी पत्नी रीमा के साथ रहता था. जूही अब लगातार अजय से संपर्क कर सलाह करती रही. जिस ने भी सुना कि दोनों घूमने जा रही हैं, हैरान रह गया. कुछ लोगों ने मुंह बनाया, व्यंग्य किए. पर वहीं, कुछ लोग ऐसे भी थे जिन्होंने खुल कर मांबेटी के इस फैसले की प्रशंसा की. जूही को शाबाशी दी कि वह अपना मनोबल, आत्मविश्वास ऊंचा रखते हुए अपनी मां को कुछ बदलाव के लिए बाहर ले कर जा रही है.

उन लोगों का कहना था कि अच्छा है, दोनों घूम कर आएंगी, इतना बड़ा वज्रपात हुआ है, दोनों कुछ उबर पाएंगी.

इतनी प्रतिभावान मां हिम्मत छोड़ कर ऐसे ही दुख में डूबी रही तो क्या होगा मां का, कैसे मन लगेगा, जूही को इस बात की बड़ी चिंता थी और यह कि जिन किताबों में मां रातदिन डूबी रहती थीं, अब उन की तरफ देख भी नहीं रही थीं. बस, चुपचाप बैठी रहती थीं. इस ट्रिप से मां का मन जरूर बदलेगा. घर में तो हर समय कोई न कोई शोक प्रकट करने आता ही रहता था. वही बातें बारबार सुन कर कैसे इस मनोदशा से निकला जा सकता है. यही सब जूही के दिमाग में चलता रहता था.

शेखर का टिकट तो बहुत भारीमन से जूही कैंसिल करवा चुकी थी. औफिस का काम अपने मित्रों, सहयोगियों पर छोड़ कर जूही और कावेरी ट्रिप पर निकल गईं.

मुंबई से साढ़े 3 घंटे में कतर पहुंच कर वहां 2 घंटे रुकना था. जूही पिता को याद करते हुए उन की बातें करने में न हिचकते हुए कावेरी से उन की खूब बातें करने लगी कि पापा को ट्रैवलिंग का कितना शौक था. हर जगह का स्ट्रीटफूड ट्राई करते थे. हम भी ऐसा ही करेंगे. कावेरी भी धीरेधीरे सब याद करते हुए मुसकराने लगी तो जूही को बहुत खुशी हुई. फ्लाइट चेंज कर के दोनों साढ़े 7 घंटे में जेनेवा पहुंच गए.

जूही ने कहा, ‘‘मां, यहां रुकेंगे. ‘लेक जेनेवा’ पास से देखेंगे. पापा ने बताया था, उन्होंने डिस्कवरी चैनल में देखा था एक बार, लेक से एक तरफ स्विटजरलैंड, एक तरफ फ्रांस दिखता है. वहां ‘लोसान टाउन’ है जहां से ये दोनों दिखते हैं. वहीं ‘लेक जेनेवा’ के सामने किसी होटल में रह लेंगे.’’

‘‘ठीक है, जैसा तुम ने सोचा है, सब जानकारी ले ली है न?’’

‘‘हां, मां, अजय भैया के लगातार संपर्क में हूं.’’ रात होतेहोते बर्फ से ढके पहाड़ों पर लाइट दिखने लगी. जूही ने उत्साहपूर्ण कांपती सी आवाज में कहा, ‘‘मां, वह देखो, वह फ्रांस है.’’ होटल में रूम ले कर सामान रख कर फ्रैश होने के बाद दोनों ने कुछ खाने का और्डर किया, थोड़ा खापी कर दोनों बार निकल आईं.

लेक के आसपास कईर् परिवार बैठ कर एंजौय कर रहे थे. शेखर की याद शिद्दत से आई. कावेरी वहां के माहौल पर नजर डालने लगी. सब कितने शांत, खुश, बच्चे खेल रहे थे. आसपास काफी चर्च थे. चर्च की घंटियों की आवाज कावेरी को बड़ी भली सी लगी.

दोनों अगले दिन लोसान घूमते रहे. कैथेड्रल्स, गार्डंस, म्यूजियम बहुत थे. वहां दोनों 2 दिन रुके. वहीं एक जगह मूवी ‘दिल वाले दुलहनिया ले जाएंगे’ की शूटिंग हुई थी. कावेरी अचानक हंस पड़ी, ‘‘जूही, याद है न, तुम्हारे पापा ने यह मूवी 4 बार देखी थी. टीवी पर तो जब भी आती थी, वे देखने बैठ जाते थे. यही सब तो उन्हें यहां देखना था, आज यह जगह देख कर वे बहुत खुश होते.’’

‘‘वे देख रहे हैं यह जगह हमारे साथ, जो हमेशा दिल में रहते हैं. वे दूर कहां हैं,’’ जूही बोली थी.

कावेरी मुसकरा दी, ‘‘मेरी मां बनती जा रही हो तुम. मेरी मां होती तो वे भी मु?ो यही सम?ातीं. सच ही कहा गया है कि बेटी बड़ी हो जाए तो भूमिकाएं बदल जाती हैं.’’

दोनों वहां से फिर ‘इंटरलेकन’ चली गईं. वहां जा कर तो दोनों का मन खिल उठा. वहां बड़ा सा पहाड़ था. 2 लेक के बीच की जगह को इंटरलेकन कहा जाता है. सुंदर सी लेक. अचानक जूही जोर से हंस पड़ी, ‘‘मां, उधर देखो, कितने सारे हिंदी के साइन बोर्ड.’’

‘‘वाह,’’ कावेरी भी वहां हिंदी के साइनबोर्ड देख कर आश्चर्य से भर उठी. वहां से दोनों 2 घंटे का सफर कर खूबसूरत ‘टौप औफ यूरोप’ देखने गईं जो पूरे साल बर्फ से ढका रहता है. वहां से वापस आ कर आसपास की जगहें देखीं. वहां का कल्चर, खानपान का आनंद उठाती रहीं. वहां उन्हें थोड़ा जरमन कल्चर भी देखने को मिला.

ट्रिप काफी रोमांचक और खूबसूरत लग रहा था. दोनों को कहीं कोई परेशानी नहीं थी. दोनों हर जगह फैले प्राकृतिक सौंदर्य को जीभर कर एंजौय कर रही थीं. पूरी ट्रिप के अंत में उन्हें 2 दिन के लिए अजय के घर भी जाना था. अजय सब बता ही रहा था कि अब कहां और कैसे जाना है.

फिर अजय की सलाह पर दोनों वहां से

इटली में ‘ओरोपा सैंचुरी’ चले गए, जो पहाड़ों में ही है. वहां बहुत ही पुराने चर्च हैं, जहां जीसस के हर रूप को बहुत ही अनोखे ढंग से दिखाया गया है. जीसस का साउथ अफ्रीकन और डार्क जीसस और मदर मैरी का अद्भुत रूप देख कर दोनों दंग रह गईं. इंग्लिश नेस थीं. बहुत सारी धर्मशालाएं थीं. बहुत ही अद्भुत, रोमांचक अनुभव था यह.

फोन का नैटवर्क नहीं था तो हर जगह शांति थी व इतनी सुंदरता कि कावेरी ने अरसे बाद मन को इतना शांत महसूस किया. आसपास सुंदर झलों की आवाज, प्रकृतिप्रदत्त सौंदर्य को आत्मसात करती कावेरी जैसे किसी और ही दुनिया में पहुंच गई थी. अगले दिन एक नन दोनों को ग्रेवयार्ड दिखाने ले गई.

जूही अब तक? इस नन से काफी बातें कर चुकी थी. अपने पिता की मृत्यु के बारे में भी बता चुकी थी. नन काफी स्नेहिल स्वभाव की थी. वहां पहुंच कर नन की शांत, गंभीर आवाज गूंज रही थी, ‘बस, यही सच है. जीवन का सार यही है. यही होना है. एक दिन सब को जाना ही है. बस, यही कोशिश करनी चाहिए कि कुछ ऐसा कर जाएं कि सब के पास हमारी अच्छी यादें ही हों. जितना जीवन है, खुशी से जी लें, पलपल का उपयोग कर लें. दुखों को भूल आगे बढ़ते रहें.’’ नन तो यह कह कर थोड़ा आगे बढ़ गई. कावेरी को पता नहीं क्या हुआ, वह अद्भुत से मिश्रित भावों में भर कर जोरजोर से रो पड़ी.

नन ने वापस आ कर कावेरी का कंधा थपथपाया और फिर आगे बढ़ गई. जूही भी मां की स्थिति देख सिसक पड़ी. पर जीभर कर रो लेने के बाद कावेरी ने अचानक खुद को बहुत मजबूत महसूस किया. खुद को संभाला, अपने और जूही के आंसू पोंछे. जूही को गले लगा कर प्यार किया और मुसकरा दी.

जूही अब हैरान हुई, ‘‘क्या हुआ, मां, आप ठीक तो हैं न?’’

‘‘हां, अब बिलकुल ठीक हूं, चलें?’’ दोनों आगे चल दीं.

जूही ने मां की ऐसी शांत मुद्रा बहुत दिनों बाद देखी थी, कहा, ‘‘मां, बहुत थक गई, आज जल्दी सोऊंगी मैं.’’

‘‘तुम सोना, मुझे कुछ काम है.’’

‘‘क्या  काम, मां?’’ जूही फिर हैरान हुई.

‘‘आज ही रात को नई कहानी में इस ट्रिप का अनुभव लिखना है न.’’

‘‘ओह, सच मां?’’ जूही ने मां के गाल चूम लिए.

एकदूसरे का हाथ पकड़ शांत मन से दोनों ने कुछ इस तरह से आगे कदम बढ़ा दिए थे कि नन भी पीछे मुड़ कर उन्हें देख मुसकरा दी थी.

लालू प्रसाद यादव के 7 दामाद, कोई इंजीनियर, कोई मंत्री तो कोई दिखता है हीरो जैसा

लालू एक ऐसे ही मंत्री हैं जिनकी कुल 7 बेटियां है और 7 दामाद भी है. सातों के सात बड़े ही कमाल के दामाद हैं कोई इंजीनियर है, तो कोई पेशे से मंत्री है. लालू यादव की सातों बेटियों के नाम मीसा भारती, रोहिणी आचार्य, चंदा यादव, रागिनी यादव, हेमा यादव, अनुष्का राव, राज लक्ष्मी है.

 

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लालू प्रसाद की सबसे बड़ी बेटी मीसा भारती है. वो एमबीबीएस एग्जाम में टौपर रही हैं. राज्यसभा सदस्य मीसा भारती मां राबड़ी देवी, भाई तेजप्रताप यादव और तेजस्वी यादव की तरह बिहार की पौलिटिक्स में एक्टिव है. मीसा की शादी सौफ्टवेयर इंजीनियर शैलेश कुमार से हुई है.

आरजेडी प्रमुख लालू की दूसरी बेटी रोहिणी हैं. ये सोशल मीडिया पर खूब एक्टिव रहती हैं. सिंगापुर में रहकर भी यह अपने पिता के विरोधियों पर हमलावर रहती हैं. इनके निशाने पर बीजेपी नेता, आरएसएस कार्यकर्ता और नीतीश कुमार रहते हैं. रोहिणी की शादी साल 2002 में बिहार के औरंगाबाद में राव रणविजय सिंह के बेटे राव समरेश सिंह से हुई है. रोहिणी के पति पेशे से कंप्यूटर इंजीनियर हैं.

लालू प्रसाद की तीसरी बेटी चंदा चेहरे से काफी खूबसूरत और ग्लैमरस है. चंदा अपनी सभी बहनों में मोस्ट फैशनेबल है. चंदा की शादी साल 2006 में विक्रम सिंह से हुई है. विक्रम सिंह इंडियन एयरलाइन्स में पायलट हैं.

लालू प्रसाद की चौथी बेटी रागिनी यादव है. इनकी शादी पौलिटिशियन जितेंद्र यादव के बेटे राहुल यादव से हुई है. रागिनी के पति राहुल ने स्विट्जरलैंड से होटल मैनेजमेंट की पढ़ाई की है और अब राजनीति कर रहे हैं. 2022 यूपी विधानसभा चुनाव में इन्होंने सपा के टिकट पर चुनाव लड़ा था.

पांचवी बेटी का नाम है हेमा यादव है. हेमा की शादी दिल्ली के एक राजनीतिक परिवार में विनीत यादव से हुई है. कहा जाता है कि दोनों ने लव मैरिज की है. पिछले दिनों जमीन के बदले नौकरी मामले में हेमा का भी नाम आया था.

आरजेडी प्रमुख की छठी बेटी धन्नु उर्फ अनुष्का राव है. अनुष्का की शक्ल इनके भाई तेजस्वी से बहुत मिलती है. अनुष्का के पति का नाम चिरंजीव राव है और वह कांग्रेसी नेता अजय सिंह के बेटे हैं. चिरंजीव NSUI के अध्यक्ष भी रह चुके हैं.

लालू प्रसाद की सबसे छोटी बेटी राजलक्ष्मी है. राज लक्ष्मी की शादी मुलायम सिंह यादव के पोते तेज प्रताप सिंह यादव से हुई है. तेजप्रताप मैनपुरी से सांसद भी रह चुके हैं. तेज प्रताप देखने में भी काफी हैंडसम है, वैसे लालू की सातों बेटियों में मीसा और रोहिणी की ही रुचि पौलिटिक्स में है.

इंडियन 2 पिट गई, पर ये 4 साउथ इंडियन मूवीज ने खूब पीटा पैसा

जितनी चर्चा बौलीवुड की देशविदेश में होती है, आज उतनी ही सुर्खियों में टौलीवुड भी है. दर्शकों का साउथ की फिल्में देखने में रुचि बढ़ती जा रही है. दिनों दिन साउथ सिनेमा पौपुलर हो रहा है. इन दिनों साउथ की कई फिल्में ऐसी है जिनके एक्शन हीरो और डायलौग काफी फेमस हैं और हिंदी के औडियंस को भी बहुत पसंद आ रह हैं. 

 

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साउथ की फिल्में हिंदी में डब कर रिलीज होती हैं  जिससे बहुत बड़ी संख्या में हिंदी भाषी लोग भी इन मूवीज के फैंस हैं. साउथ की फिल्मों का एक्शन भी जबरदस्त होता है. साउथ की ऐसे ही कई फिल्में है जो आज बहुत पौपुलर है और उनके डायलौग्स भी घरघर में बोले जाते हैं. इनकी फिल्मों की कहानी की कई परतें होती है. हीरोइन भी आम महिलाओं सी दिखाई देती हैं. इनकी स्टोरी और हीरोहीरोइन आम आदमी से मिलता जुलता होता है.  इस कारण उत्तर भारत का समाज भी इनसे बड़ी आसानी से कनैक्ट हो जाता है.  साउथ के डायरेक्शन के साथसाथ हीरोइनों के फेशियल एक्सप्रेशन भी मायने रखते हैं. इसलिए साउथ सिनेमा को ज्यादा पसंद किया जाता है.

खासकर इन फिल्मों के लड़के ज्यादा दीवाने है. उन्हे साउथ की एक्ट्रेस, डायलौग्स और स्टोरी बेहद पसंद आती है, क्योंकि उनकी कहानियां आम लोगो से मिली जुली होती है. तो जानिए ऐसे ही कुछ पौपुलर एक्शन फिल्मों के बारे में जिनके डायलौग भी काफी फेमस हुए और इनकी फिल्में बाहर तक पौपुलर हुई.

Film Pushpa

फेमस डायलौगपुष्पा झुकेगा नहीं साला

फिल्म की कहानी तस्करी से जुड़ी हुई है. जिसमें पुष्पा बने साउथ के एक्टर अल्लू अर्जुन तस्करी में कामयाबी पाने के लिए दुश्मन बना लेता है. इस फिल्म की कहानी घरघर पौपुलर हुई लेकिन बौक्स औफिस के हिसाब से फिल्म ने काफी कम कमाई की. फिल्म को डायरेक्टर सुकुमार ने डायरेक्ट किया है. इस फिल्म के डायलौग भी गलीमोहल्ले में पौपुलर हो गए. सोशल मीडिया पर रील्स भी बनने लगी. इस फिल्म में एक्शन के साथ ड्रामा भी है.

Film RRR 

फेमस डायलौग – छुपछुप के डरडर के नहीं, सामने से करना होगा वार

फिल्म की कहानी एक निडर क्रांतिकारी और ब्रिटिश सेना में अधिकारी की है. इस फिल्म को डायरेक्ट एसएस राजमौली ने किया और ये फिल्म साउथ फिल्मों की नंबर 1 एक्शन फिल्म रही. जिसे 8 रेटिंग भी मिले. फिल्म आरआरआर का पूरा नाम राइज़ रौर रिवोल्टहै. इस फिल्म ने औस्कर भी जिता. इस फिल्म ने टौलीवुड को ग्लोबल प्लेटफौर्म तक पहुंचाया.

इस फिल्म में दमदार एक्टिंग करने वाले हीरो रहे राम चरण की दमदार एक्टिंग के कारण यह मूवी पूरे भारत में पौपुलर हुए. Bollywood

यह फिल्म भारत में काफी मशहूर हुई. इस फिल्म को विदेश में भी काफी पसंद किया गया. फिल्म ने भारत में 1000 करोड़ से ज्यादा का कलेक्शन किया. एसएस राजामौली (SS Rajamouli) की आरआरआर ने विदेशों में भी शानदार कमाई की. अकेले अमेरिका में फिल्म ने 14.5 मिलियन डौलर की कमाई की है.

Action Film KGF  

फेमस डायलौग – इस दुनिया में सबसे बड़ा योद्धा मां होती है

इस फिल्म की कहानी एक युवक की है जो अपनी मरी हुई मां का वादा पूरा करने के लिए पैसा कमाना चाहता है और इसलिए वह मुंबई चला आता है और वहां गोल्ड माफिया बन जाता है. ये केजीएफ चैप्टर 1 की स्टोरी है. फिल्म काफी हिट हुई. फिल्म के कैरेक्टर्स से लेकर डौयलौग काफी फेमस हुए थे. फिल्म के डायरेक्टर प्रशांत नील है. फिल्म के एक्टर यश की एक्टिंग लोगों को पसंद आई.

इस फिल्म के डायलौग बेहद ही फेमस है. इस फिल्म का पार्ट 2 भी बना है. पार्ट 2 भी पेमस रहा. कमाई की बात करें, तो भारत और विदेश दोनों में ब्लौकबस्टर साबित हुई. यश की केजीएफ 80 करोड़ रुपये के बजट में बनीं, इस फिल्म ने 185.24 करोड़ रुपये का कलेक्शन किया था. वही, फिल्म केजीए 2 का कलेक्शन वर्ल्‍डवाइड 1239.92 करोड़ रुपये रहा.

Film Vikram

फेमस डायलौगअगर जंगल हो, तो शेर, चीता शिकार पर निकलते हैं 

एक्टर कमल हासन स्टारर फिल्म विक्रम साउथ की पौपुलर मूवी में से है जो एक्शन थ्रिलर के लिए जानी जाती है. विक्रम लोकेश कनगराज ने लिखी और निर्देशित की है. फिल्म की कहानी एक बूढ़े शराबी पर बनी है. फिल्म विक्रम को 3 जून 2022 को रिलीज किया गया था. फिल्म ने 113 दिनों में दुनिया भर में 500 करोड़ से अधिक की कमाई की, तमिल सिनेमा के 100 वर्षों में सबसे ज्यादा कमाई करने वाली पहली फिल्म बनी. कोविड 19 महामारी की वजह से इस मूवी को रिलीज होने में काफी समय लगा.

 साल 2024 में रिलीज हुई ‘इंडियन 2’ एक्शन फिल्म

हाल ही में साउथ की इंडियन 2 रिलीज हुई है. ये एक विजिलेंट एक्शन फिल्म है. जिसको डायरेक्ट एस. शंकर ने किया है, जिन्होंने इसकी कहानी भी लिखी है. इस फिल्म में कमल हासन ने सेनापति का रोल निभाया है.  ये फिल्म 12 जुलाई 2024 को रिलीज हुई है. एक्शन से भरपूर होने के बावजूद पिट गई. 

नीतीश कुमार ने विधानसभा में किया महिला विधायक का अपमान, हुए आपे से बाहर

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एक बार फिर आपे से बाहर हो गए और एक ‘महिला विधायक’ को इंगित करते हुए कुछ ऐसा कह दिया, जो खुद उन के लिए आफत बन गया है और अब जब वे घिरे गए हैं, तो उन से जवाब देते नहीं बना, मगर उन्होंने अपनी गलती या माफी नहीं मांगी, नतीजतन वे और उन का बरताव आज देशभर में चर्चा की बात बन गए हैं.

अच्छा होता कि नीतीश कुमार तत्काल अपने कथन को ले कर माफी मांग लेते, मगर आज हमारे समाज और देशप्रदेश में जो लोग ऊंचे ओहदों पर पहुंच जाते हैं, वे अपनेआप को सबकुछ समझते हैं और अपनी गलती पर माफी मांगने में उन्हें शर्म आती है.

नीतीश कुमार के तेवर

दरअसल, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार विधानसभा में अपना आपा खो बैठे और राष्ट्रीय जनता दल की विधायक रेखा देवी पर गुस्से में आ कर एक विवादास्पद टिप्पणी करते हुए कहा – ‘अरे महिला हो, कुछ जानती नहीं हो.”

नीतीश कुमार के इस कथन को ले कर विधानसभा में हंगामा खड़ा हो गया. थोड़ी देर बाद उन्हें बात समझ में आ गई कि गलती हो गई है, मगर अपनी गलती को छिपाने के बजाय समझदारी दिखाते हुए गलती स्वीकार कर लेते, तो बात वहीं खत्म हो जाती.

बिहार की मुख्यमंत्री रह चुकीं और राज्य विधानपरिषद में प्रतिपक्ष की नेता राबड़ी देवी ने इस मुद्दे पर कहा, “मुख्यमंत्री के साथ ऐसा पहली बार नहीं हुआ है… लोग जानते हैं कि उन के (नीतीश) मन में महिलाओं के लिए कोई सम्मान नहीं है. उन्होंने विधानसभा में जोकुछ किया है, वह सरासर एक महिला का अपमान है. जद (यू) नेताओं और राजग के अन्य गठबंधन सहयोगियों के मन में महिलाओं के लिए कोई सम्मान नहीं है. महिलाओं का सम्मान केवल राजद और इंडिया गठबंधन के नेताओं में ही है.”

यह महिलाओं का अपमान

नीतीश कुमार बिहार विधानसभा में अपनी कही हुई बातों के चलते चर्चा में रहे हैं. पहले भी उन्होंने कुछ ऐसी बातें कह दी थीं, जो संसदीय नहीं की जा सकती हैं.

रेखा देवी, जिन्हें इंगित करते हुए नीतीश कुमार ने टिप्पणी की थी, ने कहा, “नीतीश कुमारजी ने विधानसभा में जोकुछ कहा, वह एक महिला का अपमान है. उन्होंने मेरे साथ ऐसा किया… यह पहली बार नहीं हुआ है. हम आज यहां अपने नेता और पार्टी प्रमुख लालू प्रसाद की वजह से हैं… नीतीश कुमार की वजह से नहीं. नीतीश कुमार ने सदन में एक दलित विधायक का अपमान किया है. ऐसा लगता है कि मुख्यमंत्री का अपने दिमाग पर कोई नियंत्रण नहीं रहा.”

दरअसल, बिहार विधानसभा में 24 जुलाई, 2024 को राज्य के संशोधित आरक्षण कानूनों को संविधान की 9वीं अनुसूची में शामिल किए जाने की मांग को ले कर विपक्षी सदस्य हंगामा और नारेबाजी कर रहे थे. हंगामे के बीच मुख्यमंत्री नीतीश कुमार दखल देने के लिए उठ खड़े हुए. उस समय राजद की मसौढी से विधायक रेखा देवी अपनी बात कह रही थीं.

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने रेखा देवी की ओर उंगलियां दिखाते हुए ऊंची आवाज में कहा, “अरे महिला हो, कुछ जानती नहीं हो. इन लोगों (राजद) ने किसी महिला को आगे बढ़ाया था. क्या आप को पता है कि मेरे सत्ता संभालने के बाद ही बिहार में महिलाओं को उन का हक मिलना शुरू हुआ. 2005 के बाद हम ने महिलाओं को आगे बढ़ाया है. बोल रही हो, फालतू बात… इसलिए कह रह हैं, चुपचाप सुनो. ”

उन के इतना कहते ही सदन में हल्ला बोल शुरू हो गया. एक महिला विधायक से इस तरह मुखातिब होने का विपक्षी सदस्यों द्वारा विरोध किए जाने पर मुख्यमंत्री ने कहा, “अरे क्या हुआ… सुनोगे नहीं… हम तो सुनाएंगे और अगर नहीं सुनिएगा, तो यह आप की गलती है.”

बाद में संसदीय कार्यमंत्री विजय कुमार चौधरी ने दखल देते हुए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से आसन को संबोधित करने का अनुरोध किया तो नीतीश कुंअर ने विपक्षी सदस्यों के बारे में कहा, “आप समझ लीजिए कि हम लोगों ने 1-1 चीज को लागू कर दिया है.”

इधर तेजस्वी यादव ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की टिप्पणी को ‘महिला विरोधी व असभ्य’ करार दिया. उन्होंने आरोप लगाया कि महिलाओं के खिलाफ बयानबाजी नीतीश कुमार की आदत है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार मुख्यमंत्री के साथसाथ एक वरिष्ठतम विधायक हैं, उन्हें अपनी बात आसन को संबोधित करते हुए कहनी चाहिए थी, मगर जिस ढंग और शब्दों में उन्होंने आसन की अनदेखी कर के अपनी बात कही, वह हर नजरिए से आलोचना की बात बन गई है.

22वीं सदी की शादी : कुछ ऐसा होगा फिर नजारा

‘‘यह लो जी, हमारा लड़का आ गया,’’ मेरी तरफ इशारा कर के मेरी मां बोलीं. मैं हाथ में चाय की ट्रे थाम कर नपेतुले कदमों से आ रहा था. लड़की वालों ने भरपूर नजरों से मुझे घूरा, तो मेरे हाथपैर कांप उठे.

‘‘बेहद सुशील लड़का लगता है,’’ लड़की की भाभी मुसकराते हुए बोलीं. मैं ने नजाकत से अपनी नजरें नीची कर लीं.

‘‘चलो भाई, लड़के और लड़की को कुछ देर अकेले में बातें कर लेने दो,’’ लड़की की चाची सब को उठाते हुए बोलीं. मेरा दिल धकधक कर रहा था.

सब के वहां से हटते ही लड़की बोली, ‘‘तेरा धंधा क्या है बीड़ू?’’

‘‘देखिए, इस तरह की टपोरी जबान में बातें करते हुए आप अच्छी नहीं लगतीं,’’ मैं नजरें झुकाए अंगूठे से जमीन को कुरेदते हुए बोला.

‘‘ऐ… 19वीं सदी की शरमाती हीरोइन के माफिक नहीं, अपुन से आंख मिला कर बात कर. अपुन 22वीं सदी की लड़की है. तू क्या 20वीं सदी का मौडल ढूंढ़ रहा है?’’ लड़की तो मानो मेरी मिट्टी पलीद करने पर ही तुली थी. मगर मेरे मन में तो लड्डू फूट रहे थे, ‘वह रमेश… अपनी बीवी की बहादुरी के किस्से सुनासुना कर कितना बोर करता था. उस की बीवी उसे शादी के मंडप से उठा कर भागी थी, क्योंकि रमेश का बाप उस की शादी अपने दोस्त की लड़की से करवा रहा था, जो वजन में उस से चौगुनी थी. अगर रमेश की बीवी इतनी हिम्मती थी, तो उस ने रमेश को शादी के मंडप तक पहुंचने ही क्यों दिया?’

अभी मैं कुछ और सोचता कि तभी उस लड़की की तेज आवाज ने मुझे यादों से वर्तमान में ला पटका, ‘‘अरे ओ फ्यूज बल्ब, यह बारबार तेरी लाइट किधर गुल हो जाती है?’’

मैं मन ही मन उस लड़की की इस अदा पर फिदा हुआ जा रहा था. साथ ही, मैं यही सोच रहा था कि अगर मर्द की मर्दानगी हो सकती है, तो औरत की औरतानगी क्यों नहीं हो सकती?

‘‘भाई लोगो, अंदर आ जाओ. अपुन को लड़का बहुत ही पसंद है. अभी अपुन भी ओल्ड मौडल का बड़ाच शौकीन है क्या… एक घंटा हो गया, अभी तक इस बीड़ू ने अपुन से नजर तक नहीं मिलाई. अबे ओए 1856 की मर्सिडीज, अभी भी अपुन कहरेला है कि अपन के थोबड़े पर एक निगाहीच मार. बाद में अपुन को लफड़ा नहीं मांगता,’’ वह लड़की बोली.

मैं ने अदा से नजरें और झुका लीं, मानो ऐसा करने से जो नंबर बाकी रह गए होंगे, वे भी मिल जाएंगे और मेरा स्कोर सौ फीसदी हो जाएगा.

‘‘बधाई हो जी, हमें आप का लड़का बहुत पसंद है. क्या सब्र है इस में, वरना 3 लड़कों ने तो हमारी लड़की की डांट से पैंट गीली कर दी थी. यह लो जी, मुंह मीठा करो,’’ लड़की की मां ने मेरी मां के मुंह में मिठाई का टुकड़ा जबरन ठूंसते हुए कहा.

मैं शरमा कर अपनी कमीज का कौलर दांतों में दबा कर तेजी से कमरे की ओर भागा. फटाफट शादी का मुहूर्त निकला. आखिरकार वह घड़ी भी आ गई, जब मैं बाबुल का घर छोड़ कर अपनी प्रियतमा के घर जाने लगा.

जी हां, यह 22वीं सदी की शादी थी. मुझे सजासंवार कर सेज कर बिठा दिया गया. पहले दुलहन संजीसंवरी घूंघट निकाले अपने प्रियतम का इंतजार करती थी, मगर 22वीं सदी में दूल्हा सजसंजवर कर सेहरा मुंह पर लगाए अपनी दुलहन का इंतजार करता है कि कब वह आए और घूंघट यानी सेहरा उठाए और अपने दूल्हे का दीदार करे.

मेरे इंतजार की घडि़यां खत्म हुईं. आखिरकार मेरी दुलहनिया आ गई. क्या धमाकेदार ऐंट्री थी. दरवाजा ऐसे खोला, मानो तोड़ देने का इरादा हो. साथ में 2 लड़कियां और… मैं तो घबरा ही गया.

‘‘जानेमन…’’ वह पलंग पर बैठते हुए बोली, ‘‘क्या सेहरा लगा कर बैठा है,’’ इतना कह कर उस ने एक हाथ मारा, तो मेरा सेहरा एक फुट दूर जा कर गिरा.

‘‘आई लव यू,’’ उस ने मुझे कहा, मगर उस की नजरें तो अपनी सहेली से बातें कर रही थीं.

‘‘क्या जी…’’ मैं ने अदा से शरमाते हुए कहा, ‘‘आप 2 बौडीगार्ड साथ ले आईं और अब सुहागिन रात पर मेरे बदले अपनी सहेली को ‘आई लव यू’ कह रही हैं. क्या आप फिल्म ‘फायर’ की शबाना…’’

‘‘ऐ ढक्कन, अपुन तेरे को ही ‘आई लव यू’ बोल रही है. तू कहां गलत ट्रैक पर जा रहा है…’’

‘‘मगर, आप तो अभी भी अपनी सहेली को ही देख रही हैं. ‘आई लव यू’ भी तो आप ने उस से ही कहा था.’’

‘‘अरे अक्ल के दुश्मन, तभी तो जिस दिन मैं तुम्हें देखने आई थी, तो मैं ने तुझ से कहा था कि मुझे ठीक से देख ले. तुम्हें अभी तक पता नहीं चला कि मैं ‘लुकिंग लंदन टाकिंग टोक्यो’ हूं.’’

‘‘क्या… नहीं… आप… तुम… ऐसी हो. मैं तो लुट गया… बरबाद हो गया…’’ मैं ने अपना हाथ दीवार पर मारते हुए कहा.

कुछ मत लाना प्रिय: रश्मि की सास ने कौनसी बात बताई थी

अजय ने टूअर पर जाते हुए हमेशा की तरह मुझे किस किया. बंदा आज भी रोमांटिक तो बहुत है पर मैं उस बात से मन ही मन डर रही थी जिस बात से शादी के पिछले 10 सालों से आज भी डरती हूं जब भी वे टूअर पर निकलते हैं. मेरा डर हमेशा की तरह सच साबित हुआ, वे बोले, ”चलता हूं डार्लिंग, 5 दिनों बाद आ जाऊंगा. बोलो, हैदराबाद से तुम्हारे लिए क्या लाऊं?”

मैं बोल पङी, ”नहीं, प्लीज कुछ मत लाना, डिअर.”

पर क्या कभी कह पाई हूं, फिर भी एक कोशिश की और कहा, ‘’अरे नहीं, कुछ मत लाना, अभी बहुत सारे कपड़े पङे हैं जो पहने ही नहीं हैं.’’

‘’ओह, रश्मि, तुम जानती हो न कि जब भी मैं टूअर पर जाता हूं, तुम्हारे लिए कुछ जरूर लाता हूं, मुझे अच्छा लगता है तुम्हारे लिए कुछ लाना.’’

थोङा प्यार और रोमांस के साथ (टूअर पर जाते हुए पति पर प्यार तो बहुत आ रहा होता है ) मैं ने भी अजय को भेज कर अपनी अलमारी खोली. यों ही ऊपरी किनारे में रखे कपड़ों का और बाकी कुछ चीजों का वही ढेर उठा लिया जो अजय पिछले कुछ सालों में टूअर से लाए थे. इस में कोई शक नहीं कि अजय मुझे प्यार करते हैं पर मुश्किल थोड़ी यह है कि अजय और मेरी पसंद थोड़ी अलगअलग है.

अजय हमेशा मेरे लिए कुछ लाते हैं. कोई भी पत्नी इस बात पर मुझ से जल सकती है. सहेलियां जलती भी हैं, साफसाफ आहें भी भरती हैं कि हाय, उन के पति तो कभी नहीं लाते ऐसे गिफ्ट्स. हर बार इस बात पर खुश मैं भी होती हूं पर परेशानी यह है कि अजय जो चीजें लाते हैं, अकसर मेरी पसंद की नहीं होतीं.

अब यह देखिए, यह जो ब्राउन कलर की साड़ी है, इस का बौर्डर देख रहे हैं कि कितना चौड़ा है. यह मुझे पसंद ही नहीं है और सब से बड़ी बात यह कि ब्राउन कलर ही नहीं पसंद है. अजीब सा लगता है यह पीला सूट. इतना पीला? मुझे खुद ही आंखों में चुभता है, औरों की क्या कहूं.

अजय को ब्राइट कलर पसंद है. कहते हैं कि तुम कितनी गोरी हो… तुम पर तो हर रंग अच्छा लगता है. मैं मन ही मन सोचती हूं कि हां, ठीक है, प्रिय, गोरी हूं तो कभी मेरे लिए मेरे फैवरिट ब्लू, व्हाइट, ब्लैक, रैड कलर भी तो लाओ. मुझ पर तो वे रंग भी बहुत अच्छे लगते हैं. और अभी तो अजय ने एक नया काम शुरू किया है. वह अपनेआप को इस आइडिया के लिए शाबाशी देते हैं, अब वह टूअर पर फ्री टाइम मिलते ही जब मेरे लिए शौपिंग के लिए किसी कपड़े की शौप पर जाते हैं, वीडिओ कौल करते हैं, कहते हैं कि मैं तुम्हें कपड़े दिखा रहा हूं तो तुम ही बताओ तुम्हें क्या चाहिए? मैं ने इस बात पर राहत की थोड़ी सांस ली पर यह भी आसान नहीं था.

पिछले टूअर पर अजय जब मेरे लिए रैडीमैड कुरती लेने गए, दुकानदार को ही फोन पकड़ा दिया कि इसे बता दो तुम्हें. मैं ने बताना शुरू किया कि कोई प्लेन ब्लू कलर की कुरती है?

”हां जी, मैडम, बिलकुल है.”

फिर वह कुरतियां दिखाने लगा. साइज समझने में थोड़ी दिक्कत उसे भी हुई और समझाने में मुझे भी. अजय को मैं ने व्हाट्सऐप पर मैसेज भी भेजे कि अभी न लें, साइज समझ नहीं आ रहा है, उन का रिप्लाई आया कि सही करवा लेना. एक कुरती लिया गया, फिर अजय हैदराबाद में वहां के फेमस पर्ल सैट लेने गए. मैं यहां दिल्ली में बैठीबैठी इस बात पर नर्वस थी कि क्या खरीदा जाएगा.

मैं बोली जा रही थी कि पहले वाले भी रखे हैं अभी तो. न खरीदो पर पत्नी प्रेम में पोरपोर डूबे हैं अजय. आप लोग मुझे पति के लाए उपहारों की कद्र न करने वाली पत्नी कतई न समझें. बस, जिस बात से घबराती हूं, वह है पसंद में फर्क.

रास्ते से अजय ने फोन किया, ”किस तरह का सैट लाऊं?”

”बहुत पतला सा, जिस में कोई बड़ा डिजाइन न हो, बस छोटेछोटे व्हाइट मोतियों की पतली सी माला और साथ में छोटी कान की बालियां, जो मैं कभी भी पहन पाऊं.’’

मैं ने काफी अच्छी तरह से अपनी पसंद बता दी थी. अगले दिन सुबह ही अजय को वापस आना था. हमारे दोनों बच्चों के लिए भी वे वहां से करांची बिस्कुट और वहां की मिठाई भी लाने वाले थे. अजय को दरअसल सब के लिए ही कुछ न कुछ लाने का शौक है. यह शौक शायद उन्हें अपने पिताजी से मिला है.

ससुरजी भी जब घर आते, कुछ न कुछ जरूर लाया करते. कभी किसी के लिए, तो कभी किसी के लिए कुछ लाने की उन की प्यारी सी आदत थी. सासूमां हमेशा इस बात को गर्व से बताया करतीं.

उन्होंने मुझे भी एक बार हिंट दिया, ”तुम्हारे ससुरजी को मेरे लिए कुछ लाने की आदत है. यह अलग बात है कि कभी मुझे उन की लाई चीजें कभी पसंद आती हैं, तो कभी नहीं, पर जिस प्यार से लाते हैं, बस उस प्यार की कद्र करते हुए मैं भी उन की लाई चीजें देखदेख कर थोड़ा चहकने की ऐक्टिंग कर लेती हूं जिस से वे खुश हो जाएं. तो बहू, जब भी अजय कुछ लाए, पसंद न भी हो तो खुश हो कर दिखाना,” हम दोनों इस बात पर बहुत देर तक हंसी थीं और इस बात पर जीभर कर हंसने के बाद हमारी बौंडिंग बहुत अच्छी हो गई थी.

सासूमां तो बहुत ही खुश हो गई थीं जब उन्हें समझ आया कि हम दोनों एक ही कश्ती में सवार हैं, कभी मूड में होतीं तो ससुरजी की अनुपस्थिति में अपनी अलमारी खोल कर दिखातीं, ”यह देखो, बहू, यह जितनी भी गुलाबी छटा बिखरी देख रही हो मेरे कपड़ों में, सब गुलाबी कपड़े तुम्हारे ससुरजी के लाए हुए हैं. उन्हें गुलाबी रंग बहुत पसंद हैं. वे जीवनभर मेरे लिए जो भी लाए, सब गुलाबी ही लाए. सहेलियां, रिश्तेदार गुलाबी रंग में ही मुझे देखदेख कर बोर हो गए पर तुम्हारे ससुरजी ने अपनी पसंद न छोड़ी. गुलाबी ढेर लगता रहा एक कोने में.”

मैं बहुत हंसी थी उस दिन, पर मैं ने प्यारी सासूमां की बात जरूर गांठ से बांध ली थी कि अजय जो भी लाते हैं, मैं ऐसी ऐक्टिंग करती हूं कि वे खुद को ही शाबाशी देने लगते हैं कि कितनी अच्छी चीज लाए हैं मेरे लिए. मुझे तो कुछ भी खरीदने की जरूरत ही नहीं पड़ती. ऐक्टिंग का अच्छा आइडिया दे गईं सासूमां. आज अगर वे होतीं तो अपनी चेली को देख खुश होतीं.

यह अलग बात है कि मैं अजय को यह नहीं समझा पाई कभी कि जब इतने नए कपड़े रखे रहते हैं तो मैं बीचबीच में अपनी पसंद का बहुत कुछ क्यों खरीदती रहती हूं. कुछ भी कहें लोग, पति होते तो हैं भोलेभाले और आसानी से आ जाते हैं बातों में. तभी तो आजतक जान नहीं पाए कि मैं खुद भी क्यों खरीदती रहती हूं बहुत कुछ.

दरअसल, मैं वह गलती भी नहीं करना चाहती जो मेरी अजीज दोस्त रीता ने की थी. उस ने शादी के बाद अपने पति की लाई हुई चीजें देख कर उन्हें साफसाफ समझा दिया कि दोनों की पसंद में काफी फर्क है. उसे उन का लाया कुछ पसंद नहीं आएगा तो पैसे बेकार जाएंगे. वह अपनी पसंद की ही चीजें खरीदना पसंद करती है और वे उस के लिए कुछ न लाया करें. वह जो भी खरीदेगी, आखिर होगा तो उन का ही पैसा, तो उन पति पत्नी में यहां बात ही खत्म हो गई.

जीवनभर का टंटा एक बात में साफ. पर मैं ने देखा है कि जब भी उस का फ्रैंड सर्किल उस से पूछता है कि भाई साहब ने क्या गिफ्ट दिया या क्या लाए, तो उस का चेहरा उतरता तो है, क्योंकि उन के पति ने भी उन की बात पर ध्यान दे कर फिर कभी न उन पर अपना पैसा वैस्ट किया, न ही समय. मतलब पति के लाए उपहारों में बात तो है.

खैर, रात को बच्चे खुश थे कि पापा उन के लिए जरूर कुछ लाएंगे. मैं हमेशा की तरह उन के आने पर तो खुश थी पर कुछ लाने पर तो डरी ही हुई थी, जब सुबह बच्चे अपनी चीजों में खुश थे.

अजय ने किसी फिल्मी हीरो की तरह पर्ल सैट का बौक्स मुझे देते हुए रोमांटिक नजरों से देखते हुए कहा, ”अभी पहन कर दिखाओ, रश्मि.”

मैं ने बौक्स खोला, खूब बड़ेबड़े मोतियों की माला, बड़ा सा हरा पेडैंट, कंधे तक लटकने वाली कान खी बालियां, खूब भारीभरकम सा सैट. शायद मेरे चेहरे का रंग उड़ा होगा जो अजय पूछ रहे थे, ”क्या हुआ? पसंद नहीं है?”

”अरे, नहींनहीं, यह तो बहुत ही जबरदस्त है,” मुझे सासूमां की बात सही समय पर याद आई तो मैं ने कहा.

”थैंक यू,’’ कहते हुए मैं मुसकरा दी. मैं ने बौक्स अलमारी में रखा, वे फ्रैश होने चले गए. मैं ने उन के सामने चाय रखते हुए टूअर की बातें पूछीं और साथ में लगे हाथ पूरी चालाकी से यह भी कहा, ”बहुत भारी सैट ले आए. कोई हलकाफुलका ले आते जो कभी भी पहन लेती. यह तो सिर्फ किसी फंक्शन में ही निकलेगा. कोई हलका सा नहीं था क्या?’’

”अरे, था न. बहुत वैराइटी थी. पर मैं ने सोचा कि हलका क्या लेना.’’

मन हुआ कहूं कि प्रिय, इतना मत सोचा करो, बस जो हिंट दूं, ले आया करो. पर चुप ही रही और सामने बैठी कल्पना में हलकेफुलके सैट पहने अपनेआप को देखती रही.

अजय महीने में 15 दिन टूअर पर ही रहते हैं. एक दिन औफिस से आ कर बोले, ”रश्मि, अगले हफ्ते चंडीगढ़ जाना है, बोलो, क्या चाहिए? क्या लाऊं तुम्हारे लिए?’’

मैं ने प्यार से उन के गले में बांहें डाल दीं,”कुछ नहीं, इतना कुछ तो रखा है. हर बार लाना जरूरी नहीं, डिअर.’’

”मेरी जान, पर मुझे शौक है लाने का.’’

मेरा दिल कह रहा था कि नहीं… जानते हैं न आप, क्यों कह रहा था?

मेरे पति ‘मम्माज बॉय’ हैं, मैं क्या करूं?

सवाल
28 वर्षीय महिला हूं. पिछले साल ही शादी हुई थी. शादी के बाद ससुराल आई तो 2-3 दिन में ही समझ गई कि पति ‘मम्माज बौय’ हैं. वे अपनी मां से पूछ कर ही कोई काम करते हैं और मेरी एक भी बात नहीं मानते. खाने से ले कर परदे के रंग तक का चयन मेरी सास ही करती हैं और मेरी बातों को जरा भी अहमियत नहीं देतीं. इस से मैं काफी तनाव में रहती हूं. सम झ नहीं आ रहा क्या करूं?
जवाब
अभी आप की नईनई शादी हुई है. आप के पति सम झदार हैं और इसीलिए वे नहीं चाहते होंगे कि अचानक मां को नजरअंदाज कर आप की बातों को उन के सामने ज्यादा तवज्जो दें. इस से घर में अनावश्यक ही तनाव भरा माहौल हो जाएगा.
आप को धीरेधीरे समय के साथ घर में अपनी जगह बनानी चाहिए. बेहतर होगा कि आप अपनी सास को सास नहीं मां सम झें. उन के साथ खाली वक्त में साथ बैठें, टीवी देखें, शौपिंग करने जाएं, उन की पसंद की ड्रैस खरीद कर उन्हें दें. घर के कामकाज में उन की सहायता करें.
जब आप की सास को यह यकीन हो जाएगा कि अब आप अच्छी तरह से गृहस्थी संभाल सकती हैं, तो धीरेधीरे वे आप को पूरी जिम्मेदारी सौंप देंगी.

 

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
सब्जेक्ट में लिखे…  सरस सलिल- व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem
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