फर्क: रवीना की एक गलती ने तबाह कर दी उसकी जिंदगी

18 साल की रवीना के हाथों में जैसे ही वोटर आईडी कार्ड आया, उसे लगा जैसे सारी दुनिया उस की मुट्ठी में समा गई हो. यह सिर्फ एक दस्तावेज मात्र नहीं था बल्कि उस की आजादी का सर्टिफिकेट था।

‘अब मैं कानूनी रूप से बालिग हूं और अपनी मरजी की मालिक, अपनी जिंदगी की सर्वेसर्वा. निर्णय लेने को स्वतंत्र. जो चाहे करूं, जहां चाहे जाऊं. जिस के साथ मरजी रहूं. कोई बंधन, कोई रोकटोक नहीं. बस, खुला आसमान और ऊंची उड़ान…’ मन ही मन खुश होती हुई रवीना पल्लव के साथ अपनी आजादी का जश्न मनाने का नायाब तरीका सोचने लगी.

ग्रैजुऐशन के आखिरी साल की स्टूडैंट रवीना मातापिता की इकलौती बेटी थी. फैशन और हाई प्रोफाइल लाइफ की दीवानी रवीना नाजों पली होने के कारण जिद्दी और मनमौजी थी. पढ़ाईलिखाई में तो वह एक औसत छात्रा ही थी इसलिए पास होने के लिए हर साल उसे ट्यूशन और कोचिंग का सहारा लेना पड़ता था.

पल्लव भी पिछले दिनों ही इस कोचिंग इंस्टिट्यूट में पढ़ाने लगा है. पहली नजर में ही रवीना उस की तरफ झुकने लगी थी. लंबा और ऊंचा कद, गहरीगंभीर आंखें और लापरवाही से पहने कस्बाई फैशन के हिसाब से आधुनिक लिबास. बाकी लड़कियों की निगाहों में पल्लव कुछ भी खास नहीं था मगर उस का बेपरवाह अंदाज अतिआधुनिक शहरी रवीना के दिलोदिमाग में खलबली मचाए हुए था.

पल्लव कहने को तो कोचिंग इंस्टिट्यूट में पढ़ाता था लेकिन असल में तो वह खुद भी एक स्टूडैंट ही था. उस ने इसी साल अपना ग्रैजुऐशन पूरा किया था और अब प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने के लिए शहर में रुका था. कोचिंग इंस्टिट्यूट में पढ़ाने के पीछे उस का यह मकसद भी था कि इस तरीके से वह किताबों के संपर्क में रहेगा, साथ ही जेबखर्च के लिए कुछ अतिरिक्त आमदनी भी हो जाएगी.

पल्लव के पिता उस के इस फैसले से सहमत नहीं थे. वे चाहते थे कि पल्लव पूरी तरह से समर्पित हो कर अपना ध्यान केवल अपने भविष्य की तैयारी पर लगाए लेकिन पल्लव से पूरा दिन एक ही जगह बंद कमरे में बैठ कर पढ़ाई नहीं होती थी, इसलिए उस ने अपने पिता की इच्छा के खिलाफ पढ़ने के साथसाथ पढ़ाने का विकल्प चुना और इस तरह से रवीना के संपर्क में आया.

‘2 विपरीत ध्रुव एकदूसरे को आकर्षित करते हैं’, इस सर्वमान्य नियम से भला पल्लव कैसे अछूता रह सकता था. धीरेधीरे वह भी खुद के प्रति रवीना के आकर्षण को महसूस करने लगा था। मगर एक तो उस का संकोची स्वभाव, दूसरे सामाजिक स्तर पर कमतरी का एहसास उसे दोस्ती के लिए आमंत्रित करती रवीना की मुसकान के निमंत्रण को स्वीकार नहीं करने दे रहा था.

आखिर विज्ञान की जीत हुई और शुरुआती औपचारिकता के बाद अब दोनों के बीच अच्छीखासी ट्यूनिंग बनने लगी थी. फोन पर बातों का सिलसिला भी शुरू हो चुका था.

“लीजिए जनाब, सरकार ने हमें कानूनन बालिग घोषित कर दिया है,” पल्लव के चेहरे के सामने अपना वोटर कार्ड हवा में लहराते हुए रवीना खिलखिलाई.

“तो जश्न मनाएं…” पल्लव ने भी उसी गरमजोशी से जवाब दिया.

“चलो, आज तुम्हें पिज्जा खिलाने ले चलती हूं.”

“न… न… तुम अपने खुबसूरत हाथों से 1 कप चाय बना कर पिला दो. मैं तो इसी में खुश हो जाउंगा,” पल्लव ने रवीना के चेहरे पर शरारत करते बालों की लट को उस के कानों के पीछे ले जाते हुए कहा. रवीना उस का प्रस्ताव सुन कर हैरान थी.

“चाय? मगर कैसे? कहां?” रवीना ने पूछा.

“मेरे रूम पर और कहां?” पल्लव ने उसे आश्चर्य से बाहर निकाला. रवीना राजी हो गई.

रवीना ने मुसकरा कर स्कूटर स्टार्ट करते हुए पल्लव को पीछे बैठने के लिए आमंत्रित किया. यह पहला मौका था जब पल्लव उस से इतना सट कर बैठा था. कुछ ही मिनटों के बाद दोनों पल्लव के कमरे पर थे. जैसाकि आम पढ़ने वाले युवाओं का होता है, पल्लव के कमरे में भी सामान के नाम पर एक पलंग, टेबलकुरसी और रसोई का सामान था. रवीना अपने बैठने के लिए जगह तलाश कर ही रही थी कि पल्लव ने उसे पलंग पर बैठने का इशारा किया. रवीना सकुचाते हुए बैठ गई. पल्लव भी वहीं उस के पास आ बैठा.

एकांत में 2 युवा दिल एकदूसरे की धड़कनें महसूस करने लगे और कुछ ही पलों में दोनों के रिश्ते ने एक लंबा फासला तय कर लिया. दोनों के बीच बहुत सी औपचारिकताओं के किले ढह गए. एक बार ढहे तो फिर बारबार ये वर्जनाएं टूटने लगीं.

कहते हैं कि इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते. दोनों की नजदीकियों की भनक जब रवीना के घर वालों को लगी तो उसे लाइन हाजिर किया गया.

“मैं पल्लव से प्यार करती हूं,” रवीना ने बेझिझक स्वीकार किया. बेटी की मुंहजोरी पर पिता आगबबूला हो गए.
यह उम्र कैरियर बनाने की है, रिश्ते नहीं. समझीं तुम…” पापा ने उसे लताड़ दिया.

“मैं बालिग हूं. अपने फैसले खुद लेने का अधिकार है मुझे,” रवीना बगावत पर उतर आई थी. इसी दौरान बीचबचाव करने के लिए मां उन के बीच आ खड़ी हुईं.

“कल से इस का कालेज और इंस्टिट्यूट दोनों जगह जाना बंद,” पिता ने उस की मां की तरफ मुखातिब होते हुए कहा तो रवीना पांव पटकते हुए अपने कमरे की तरफ चल दी. थोड़ी ही देर में कपड़ों से भरा सूटकेस हाथ में लिए वह खड़ी थी.

“मैं पल्लव के साथ रहने जा रही हूं,” रवीना के इस ऐलान ने घर में सब के होश उड़ा दिए.

“तुम बिना शादी किए एक पराए मर्द के साथ रहोगी? क्यों समाज में हमारी नाक कटवाने पर तुली हो?” इस बार मां उस के खिलाफ हो गई.

“हम दोनों बालिग हैं. अब तो कोर्ट ने भी इस बात की इजाजत दे दी है कि 2 बालिग लिव इन में रह सकते हैं, उम्र चाहे जो भी हो,” रवीना ने मां के विरोध को चुनौती दी.

“कोर्ट अपने फैसले नियमकानून और सुबूतों के आधार पर देता है. सामाजिक व्यवस्थाएं इन सब से बिलकुल अलग होती हैं. कानून और समाज के नियम सर्वथा भिन्न होते हैं,” पापा ने उसे समझाने की कोशिश की मगर रवीना के कान तो पल्लव के नाम के अलावा कुछ और सुनने को तैयार ही नहीं थे.

उसे अब अपने और पल्लव के बीच कोई बाधा स्वीकार नहीं थी. वह बिना पीछे मुड़ कर देखे अपने घर की दहलीज लांघ गई. यों अचानक रवीना को सामान सहित अपने सामने देख कर पल्लव अचकचा गया. रवीना ने एक ही सांस में उसे पूरे घटनाक्रम का ब्यौरा दे दिया.

“कोई बात नहीं, अब तुम मेरे पास आ गई हो न. पुराना सब बातें भूल जाओ और मिलन का जश्न मनाओ,” कमरा बंद कर के पल्लव ने उसे अपने पास खींच लिया और कुछ ही देर में हमेशा की तरह उन के बीच रहीसही सारी दूरियां भी मिट गईं. रवीना ने एक बार फिर अपना सबकुछ पल्लव को समर्पित कर दिया.

2-4 दिन में ही पल्लव के मकानमालिक को भी सारी हकीकत पता चल गई कि पल्लव अपने साथ किसी लड़की को रखे हुए है. उस ने पल्लव को धमकाते हुए कमरा खाली करने का अल्टीमेटम दे दिया. समाज की तरफ से उन पर यह पहला प्रहार था मगर उन्होंने हार नहीं मानी. कमरा खाली कर के दोनों एक सस्ते होटल में आ गए.

कुछ दिन तो सोने से दिन और चांदी सी रातें गुजरीं मगर साल बीततेबीतते ही उन के इश्क का इंद्रधनुष फीका पड़ने लगा. ‘प्यार से पेट नहीं भरता’ इस कहावत का मतलब पल्लव अच्छी तरह समझने लगा था.
समाज में बदनामी होने के कारण पल्लव की कोचिंग छूट गई और अब आमदनी का कोई दूसरा जरीया भी उन के पास नहीं था. पल्लव के पास प्रतियोगी परीक्षाओं का शुल्क भरने तक के पैसे नहीं बच पा रहे थे. उस ने वह होटल भी छोड़ दिया और अब रवीना को ले कर बहुत ही निम्न स्तर के मोहल्ले में रहने आ गया.

एक तरफ जहां पल्लव को रवीना के साथ अपना भविष्य अंधकारमय नजर आने लगा था, तो वहीं दूसरी तरफ रवीना तो अब पल्लव में ही अपना भविष्य तलाशने लगी थी. वह इस लिव इन को स्थाई संबंध में परिवर्तित करना चाहती थी और पल्लव से शादी करना चाहती थी. रवीना को भरोसा था कि जल्दी ही अंधेरी गलियां खत्म हो जाएंगी और उन्हें अपनी मंजिल के रास्ते मिल जाएंगे. बस, किसी तरह पल्लव कहीं सैट हो जाए.

एक बार फिर विज्ञान का यह आकर्षण का नियम पल्लव पर लागू हो रहा था,’2 विपरीत ध्रुव जब एक निश्चित सीमा तक नजदीक आ जाते हैं तो उन में विकर्षण पैदा होने लगता है।’ पल्लव भी इसी विकर्षण का शिकार होने लगा था. हालातों के सामने घुटने टेकता वह अपने पिता के सामने रो पड़ा तो उन्होंने रवीना से अलग होने की शर्त पर उस की मदद करना स्वीकार कर लिया. मरता क्या नहीं करता, पिता की शर्त के अनुसार उस ने फिर से कोचिंग जाना शुरू कर दिया और वहीं होस्टल में रहने लगा, मगर इस बार कोचिंग में पढ़ाने नहीं बल्कि स्वयं पढ़ने के लिए. रवीना के लिए यह किसी बड़े झटके से कम नहीं था. वह अपनेआप को ठगा सा महसूस करने लगी. मगर दोष दे भी तो किसे? यह तो उस का अपना फैसला था.

पल्लव के जाने के बाद वह अकेली ही उस मोहल्ले में रहने लगी. इतना सब होने के बाद भी उसे पल्लव का इंतजार था. वह भी उस के बैंक परीक्षा के रिजल्ट का इंतजार कर रही थी,’एक बार पल्लव का सिलैक्शन हो जाए तो फिर सब ठीक हो जाएगा. हमारा दम तोड़ता रिश्ता फिर से जी उठेगा,’ इसी उम्मीद पर वह हर चोट सहती जा रही थी.

आखिर रिजल्ट भी आ गया. पल्लव की मेहनत रंग लाई और उस का बैंक परीक्षा में में चयन हो गया. रवीना यह खुशी उत्सव की तरह मनाना चाहती थी. वह दिनभर तैयार हो कर उस का इंतजार करती रही मगर वह नहीं आया. रवीना पल्लव को फोन पर फोन लगाती रही मगर उस ने फोन भी नहीं उठाया.

आखिर रवीना उस के होस्टल जा पहुंची. वहां जा कर पता चला कि पल्लव तो सुबह रिजल्ट आते ही अपने घर चला गया. रवीना बिलकुल निराश हो गई. क्या करे? कहां जाए? वर्तमान तो खराब हुआ ही, भविष्य भी अंधकारमय हो गया. आसमान तो हासिल नहीं हुआ, पांवों के नीचे की जमीन भी अपनी नहीं रही. पल्लव का प्रेम तो मिला नहीं, मातापिता का स्नेह भी वह छोड़ आई. काश, उस ने अपनेआप को कुछ समय सोचने के लिए दिया होता. मगर अब क्या हो सकता है? पीछे लौटने के सारे रास्ते तो वह खुद ही बंद कर आई थी. रवीना बुरी तरह से हताश हो गई. वह कुछ भी सोच नहीं पा रही थी. कोई निर्णय नहीं ले पा रही थी.

आखिर उस ने एक खतरनाक निर्णय ले ही लिया,”तुम्हें तुम्हारा रास्ता मुबारक हो. मैं अपने रास्ते जा रही हूं. खुश रहो,” रवीना ने एक मैसेज पल्लव को भेजा और अपना मोबाइल स्विच औफ कर लिया. संदेश पढ़ते ही पल्लव के पांवों के नीचे से जमीन खिसक गई.

‘अगर इस लड़की ने कुछ उलटासीधा कर लिया तो मेरा कैरियर चौपट हो जाएगा,’ यह सोचते हुए उस ने 1-2 बार रवीना को फोन लगाने की कोशिश की मगर नाकाम होने पर तुरंत दोस्त के साथ बाइक ले कर उस के पास पहुंच गया. जैसाकि उसे अंदेशा था, रवीना नींद की गोलियां खा कर बेसुध पड़ी थी. पल्लव दोस्त की मदद से उसे हौस्पिटल ले कर आया और उस के घर पर भी खबर कर दी. डाक्टरों के इलाज शुरू करते ही दवा लेने के बहाने पल्लव वहां से खिसक गया.

बेशक रवीना अपने घर वालों से सारे रिश्ते खत्म कर आई थी मगर खून के रिश्ते भी कहीं टूटे हैं भला? खबर पाते ही मातापिता बदहवास से बेटी के पास पहुंच गए. समय पर चिकित्सा सहायता मिलने से रवीना अब खतरे से बाहर थी. मांपापा को सामने देख वह फफक पड़ी,”मां, मैं बहुत शर्मिंदा हूं. सिर्फ आज के लिए ही नहीं बल्कि उस दिन के अपने फैसले के लिए भी, जब मैं आप सब को छोड़ आई थी,” रवीना ने कहा तो मां ने कस कर उस का हाथ थाम लिया.

“यदि मैं ने उस दिन घर न छोड़ा होता तो आज कहीं बेहतर जिंदगी जी रही होती. मेरा वर्तमान और भविष्य, दोनों ही सुनहरे होते. मैं ने स्वतंत्र होने में बहुत जल्दबाजी की. मैं तो आप लोगों से माफी मांगने के लायक भी नहीं हूं…” रवीना फफक पङी.

“तुम घर लौट चलो. अपनेआप को वक्त दो और फिर से अपने फैसले का मूल्यांकन करो. जिंदगी किसी एक मोड़ पर रुकने का नाम नहीं बल्कि यह तो एक सतत प्रवाह है. इस के साथ बहने वाले ही अपनी मंजिल को पाते हैं,” पापा ने उसे समझाया.

“हां, किसी एक जगह अटके रहने का नाम जिंदगी नहीं है. यह तो अनवरत बहती रहने वाली नदी है. तुम भी इस के बाहव में खुद को छोड़ दो और एक बार फिर से मुकाम बनाने की कोशिश करो. हम सब तुम्हारे साथ हैं,” मां ने उस का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा.

मन ही मन अपने फैसले से सबक लेने का दृढ संकल्प करते हुए रवीना मुसकरा दी. अब उसे स्वतंत्रता और स्वछंदता में फर्क साफसाफ नजर आ रहा था.

पति मेरे साथ मारपीट व गालीगलौज करते हैं, कोई रास्ता सुझाएं?

सवाल
मैं विवाहित महिला हूं. 4 साल का बेटा है. पति सरकारी नौकरी करते हैं. समस्या यह है कि ससुराल वालों के कहने पर मेरे पति मेरे साथ मारपीट व गालीगलौज करते हैं और बातबात पर दूसरी शादी करने व तलाक देने की धमकी देते हैं. घरेलू हिंसा से परेशान हो कर मैं अपने बेटे के साथ मायके रहने चली गई. कुछ समय पहले मेरे पिता का देहांत हो गया तो मैं ससुराल वापस आ गई. लेकिन पति व ससुराल वालों का मेरे प्रति रवैया अभी भी वैसा का वैसा ही है. ससुर अकसर धमकी देते हैं कि उन की पहुंच ऊपर तक है. दरअसल, मेरी ननद पुलिस में दारोगा है, इसी बात का वे मुझ पर रोब जमाते रहते हैं. मैं बहत परेशान हूं. उचित सलाह दें.

जवाब
पहले आप अपने पति से अकेले में प्यार से बात करें और समझाने की कोशिश करें. फिर भी बात न बने तो आप अदालत में जज के समक्ष अपनी सुरक्षा के लिए बचावकारी आदेश ले सकती हैं.

पति या ससुराल पक्ष द्वारा पत्नी का शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक, मौखिक, मनोवैज्ञानिक या किसी भी प्रकार का यौन शोषण किया जाना घरेलू हिंसा के अंतर्गत आता है और कोई भी पीड़ित महिला या उस का पड़ोसी या परिवार का कोई भी सदस्य अपने क्षेत्र के न्यायिक मजिस्ट्रेट की कोर्ट में शिकायत दर्ज करा कर बचावकारी आदेश हासिल कर सकता है. इस कानून का उल्लंघन होने की स्थिति में पीड़ित करने वाले को जेल के साथसाथ जुर्माना भी हो सकता है.

आप भी अपने साथ हो रहे अन्याय व प्रताड़ना के खिलाफ घरेलू हिंसा कानून के अंतगर्त ससुराल वालों के खिलाफ केस दर्ज करा कर न केवल ससुराल में रहने का अधिकार पा सकती हैं, बल्कि मानसिक व शारीरिक प्रताड़ना का मुआवजा की मांग भी कर सकती हैं.

आप की ससुराल वाले आप के अधिकारों की अनभिज्ञता के चलते आप के साथ ऐसा दुर्व्यवहार कर रहे हैं. जब आप उन्हें अपने अधिकारों की जानकारी देंगी तो वे रास्ते पर आ जाएंगे.

गुप्त रोग का इलाज कराएं, परम सैक्स को एंजौय करें

सैक्स का जिक्र आते ही युवा मन में एक विशेष प्रकार की सरसराहट होने लगती है. मन हसीन सपनों में खो जाता है, क्योंकि यह प्रक्रिया है 2 जवां दिलों के आपसी मिलन की. रमेश का विवाह नेहा से तय हो गया था. रमेश नेहा की खूबसूरती देख पहली ही नजर में उस का दीवाना हो गया था. नेहा को ले कर उस ने हसीन सपने बुन रखे थे. बस, इंतजार था शादी व मिलन की रात का. रमेश ने पहले कभी शारीरिक संबंध नहीं बनाए थे, इसलिए उस के लिए तो यह नया अनुभव था. मिलन की रात जब रमेश ने नेहा को अपने आगोश में लिया तो उस का धैर्य जवाब देने लगा. उस ने जल्दी से नेहा के कपड़े उतारे और सैक्स को तत्पर हो गया, पर अभी वे एकदूसरे में समा भी न पाए थे कि वह शांत हो गया. नेहा अतृप्त रह गई. जिस आनंद के सपने उस ने संजो रखे थे सब धराशायी हो गए. रमेश अपने को बहुत लज्जित महसूस कर रहा था.

रमेश जैसी स्थिति किसी भी युवा के साथ आ सकती है. अकसर युवा इसे अपनी शारीरिक कमजोरी या गुप्त रोग मान लेते हैं और उन्हें लगता है कि वे कभी शारीरिक संबंध स्थापित नहीं कर पाएंगे.

बहुत से युवा अपने मन की बात किसी से संकोचवश कर नहीं पाते और हताशा का शिकार हो कर आत्महत्या तक कर लेते हैं. कुछ युवा नीमहकीमों के चक्कर में पड़ जाते हैं जो उन्हें पहले नामर्द ठहराते हैं और फिर शर्तिया इलाज की गारंटी दे कर लूटते हैं. युवाओं को समझना चाहिए कि ऐसी समस्या मानसिक स्थिति के कारण उत्पन्न होती है.

प्रसिद्ध स्किन व वीडी स्पैशलिस्ट डा. ए के श्रीवास्तव का कहना है कि ‘पहली रात में सैक्स न कर पाना एक आम समस्या है, क्योंकि युवाओं को सैक्स की जानकारी नहीं होती. वे सैक्स को भी अन्य कामों की तरह निबटाना चाहते हैं, जबकि सैक्स में धैर्य, संयम और आपसी मनुहार अत्यंत आवश्यक है.

डा. श्रीवास्तव कहते हैं कि सैक्स से पहले फोरप्ले जरूरी है, इस से रक्त संचार तेज होता है और पुरुष के अंग में पर्याप्त कसाव आता है. कसाव आने पर ही सैक्स क्रिया का आनंद आता है और वह पूर्ण होती है. इसलिए युवाओं को सैक्स को गुप्त रोग नहीं समझना चाहिए. यदि फिर भी कोई समस्या है तो स्किन व वीडी विशेषज्ञ की राय लें.

आइए, एक नजर डालते हैं कुछ खास यौन रोगों पर :

शीघ्रपतन

अकसर युवाओं में शीघ्रपतन की समस्या पाई जाती है. यह कोई बीमारी नहीं है बल्कि दिमागी विकारों की वजह से ऐसा होता है. इस समस्या में युवा अपने पार्टनर को पूरी तरह से संतुष्ट करने से पहले ही स्खलित हो जाते हैं. यह बीमारी वैसे तो दिमागी नियंत्रण से ठीक हो जाती है, लेकिन अगर समस्या तब भी बनी रहे तो किसी योग्य चिकित्सक से परामर्श ले कर इस समस्या से छुटकारा मिल सकता है.

नपुंसकता

नपुंसकता एक जन्मजात बीमारी है. इस रोग से ग्रसित लोग स्त्री को शारीरिक सुख देने में सक्षम नहीं होते और न ही संतान पैदा कर पाते हैं. कुछ युवाओं में क्रोमोसोम्स की कमी भी नपुंसकता का कारण होती है. युवाओं को शादी से पहले पता ही नहीं चलता कि उन के क्रोमोसोम्स या तो सक्रिय नहीं हैं या उन में दोष है. कुछ युवा शुरू में नपुंसक नहीं होते पर अन्य शारीरिक विकारों की वजह से वे सैक्स क्रिया सही तरीके से नहीं कर पाते. इसलिए उन को नपुंसक की श्रेणी में रखा जाता है. आजकल तो इंपोटैंसी टैस्ट भी उपलब्ध हैं. अगर ऐसी कोई समस्या है तो इस टैस्ट को अवश्य कराएं.

पुरुष हारमोंस की कमी

पुरुषों में टैस्टेटोरोन नाम का हारमोन बनता है. यही हारमोन पुरुष होने का प्रमाण है. कभीकभी किन्हीं वजहों से टैस्टेटोरोन स्रावित होना बंद हो जाता है तो वह व्यक्ति गुप्त रोग का शिकार हो जाता है. 50 से 55 वर्ष की आयु के बाद इस हारमोन के बनने की गति धीमी पड़ जाती है इसलिए ऐसे व्यक्ति सैक्स क्रिया में जोश से वंचित रह जाते हैं.

सिफलिस

यह वाकई एक गुप्त रोग है जो किसी अनजान के साथ यौन संबंध बनाने से होता है. अकसर यह रोग सफाई न रखने या ऐसे पार्टनर से सैक्स संबंध कायम करने से होता है जो अलगअलग लोगों से सैक्स संबंध बनाता है.

इस रोग में यौनांग पर दाने निकल आते हैं. कभीकभी इन दानों से खून या मवाद का रिसाव तक होता रहता है. यदि आप के यौन अंग पर ऐसे दाने उभरते हैं तो तुरंत त्वचा व गुप्त रोग विशेषज्ञ से राय लें और इलाज कराएं. इस का इलाज संभव है.

जिस तरह पुरुषों में यौन या गुप्त रोग होते हैं, उसी तरह महिलाओं में भी गुप्त रोग हो सकते हैं. अकसर बहुत सी युवतियों की सैक्स में रुचि नहीं होती. सैक्स के नाम से वे घबरा जाती हैं ऐसी युवतियां या तो बचपन में किसी हादसे का शिकार हुई होती हैं या फिर किसी गुप्त रोग से पीडि़त होती हैं, यहां तक कि वे शादी करने तक से घबराती हैं.

महिलाओं के कुछ खास गुप्त रोग

बांझपन

युवतियों में 12-13 वर्ष की उम्र से माहवारी आनी शुरू हो जाती है. कभीकभी यह 1-2 साल आगेपीछे भी हो जाती है पर ऐसी भी युवतियां हैं जिन के माहवारी होती ही नहीं. ऐसी युवतियां बांझपन का शिकार हो जाती हैं. स्त्री बांझपन भी पुरुष नपुंसकता की तरह जन्मजात रोग है. बहुतों में अनेक शारीरिक व्याधियों के चलते भी हो जाती है लेकिन वह अस्थायी होती है और इलाज से ठीक भी हो जाता है. अगर किसी किशोरी को माहवारी की समस्या है तो उसे तुरंत किसी योग्य स्त्रीरोग विशेषज्ञ से सलाह लेनी चाहिए.

जननांगों में खुजली

जब से समाज में खुलापन आया है युवा मस्ती में कब हदें पार कर देते हैं पता ही नहीं चलता. चूंकि इन्हें जननांगों की साफसफाई कैसे रखी जाए, यह पता नहीं होता इसलिए ये खुजली जैसे यौन संक्रमणों का शिकार हो जाते हैं. यदि बौयफ्रैंड को कोई यौन संक्रमण है तो गर्लफ्रैंड को इस यौन संक्रमण से बचाया नहीं जा सकता. अत: दोनों को ही शारीरिक संबंध बनाने से पहले अपने यौनांगों की अच्छी तरह सफाई कर लेनी चाहिए.

एंड्रोजन हारमोन का अभाव

जिस तरह पुरुषों में पुरुष हारमोन टैस्टेटोरोन होता है, उसी तरह युवतियों में एंड्रोजन हारमोन होता है. जिन युवतियों में इस हारमोन की कमी होती है, उन में सैक्स के प्रति उत्साह कम देखा गया है, क्योंकि यही हारमोन सैक्स क्रिया को भड़काता है. यदि कोई युवती एंड्रोजन हारमोन की कमी का शिकार है तो उसे तुरंत गाइनोकोलौजिस्ट से राय लेनी चाहिए. यह कोई लाइलाज रोग नहीं है.

लिकोरिया

लिकोरिया गंदगी की वजह से होने वाला एक महिला गुप्त रोग है. इस रोग में योनि से सफेद बदबूदार पानी का स्राव होता रहता है, जिस से शरीर में कैल्शियम व आयरन की कमी हो जाती है. इस रोग से बचने के लिए युवतियों को अपने गुप्तांगों की नियमित सफाई रखनी चाहिए और किसी दूसरी युवती के अंदरूनी वस्त्र नहीं पहनने चाहिए. लिकोरिया की शिकार युवतियों को तुरंत लेडी डाक्टर से सलाह लेना चाहिए, वरना यह रोग बढ़ कर बेकाबू हो सकता है.

सैक्स में भ्रांतियां न पालें

सैक्स की अज्ञानता की वजह से अकसर युवकयुवतियां सैक्स को ले कर तरहतरह की भ्रांतियां पाल लेते हैं.

हस्तमैथुन

यह एक स्वाभाविक क्रिया है. अकसर युवकों को हस्तमैथुन की आदत पड़ जाती है. ज्यादा हस्तमैथुन करने वाले युवकों को लगता है कि उन का अंग छोटा या टेढ़ा हो गया है और वे विवाह के बाद अपनी पत्नी से शारीरिक संबंध बनाने में कामयाब नहीं होंगे. कई नीमहकीम भी युवकों को डरा देते हैं कि हस्तमैथुन से अंग की नसें कमजोर पड़ जाती हैं और वे अपनी पत्नी को खुश नहीं रख सकेंगे, पर वास्तव में ऐसा नहीं है. हस्तमैथुन शरीर की आवश्यकता है. शरीर में वीर्य बनने पर उस का बाहर आना भी जरूरी है. इस में किसी प्रकार की कोई बुराईर् नहीं है. युवक ही नहीं युवतियां भी हस्तमैथुन करती हैं. डाक्टरों का भी मत है कि हस्तमैथुन का कोई प्रतिकूल असर नहीं पड़ता.

ज्यादा सैक्स सेहत के लिए हानिकारक

अकसर लोगों को यह कहते सुना जाता है कि ज्यादा सैक्स सेहत के लिए हानिकारक है पर ऐसा बिलकुल भी नहीं है. बल्कि सैक्स से महरूम रहना सेहत पर असर डालता है. सैक्स से मानसिक थकावट कम होती है, चित्त प्रफुल्लित रहता है जो सेहत के लिए अत्यंत जरूरी है.

अभिषेक: अंधविश्वास पर सुलगते सवाल

‘बमबम भोले…’ के जयजयकारे लग रहे थे. आगे से आवाज आई तो पीछे से भी जोर से सुर में सुर मिलाया गया.

‘हरहर महादेव…’ भीड़ के बीचोंबीच फंसी लगभग 80 साल की वृद्धा ने सम्मोहन की स्थिति में पुकार लगाई. ऐसा लगता था, वह इस अवस्था में काल पर विजय प्राप्त करने के लिए ही रातभर से भूखीप्यासी लाइन में लगी है.

मानस इस लाइन में 10वें नंबर पर खड़ा था. उसे स्वयं आश्चर्य हो रहा था कि वह यहां क्यों खड़ा है? दर्शन व अभिषेक कर वह ऐसा क्या प्राप्त कर लेगा जो उसे अभी तक नहीं मिल पाया? और जो नहीं भी मिला है, वह क्या आज के ही दिन दर्शन करने से मिलेगा, अन्य किसी दिन क्यों नहीं? ऐसी कई तार्किक बातें थीं जिन पर उस का विचारमंथन चल रहा था. वह था तो तार्किक पर अपनी पत्नी के अंधविश्वासी स्वभाव के सामने असहाय हो जाता था. इसलिए अनमने ही सही, वह भी एक हाथ में पानी से भरा तांबे का लोटा और दूसरे हाथ में बिल्व पत्र लिए रात 12 बजे से ही लाइन में धक्के खा रहा था. उसे स्वयं पर कोफ्त भी हो रही थी कि क्योंकर वह इस कुचक्र में फंस गया. उसे रहरह कर मां पर गुस्सा और पत्नी पर चिढ़ आती थी. उसे लगा कि उस के सारे तर्क मां व पत्नी की आस्था के सामने ढेर हो गए हैं.

लाइन में खड़ेखड़े मानस के पांव दुखने लगे, रहरह कर लगने वाले धक्के उस के विचारों के क्रम को तोड़ डालते थे. वह क्रम जोड़ता पर कुछ ही देर में वह फिर से टूट जाता था. इस टूटने व जुड़ने के क्रम के साथसाथ दर्शनार्थियों की लाइन भी इंच दर इंच आगे रेंग रही थी. मानस ने गति के साथ इस का तालमेल बिठाया तो पाया कि 1 घंटे में वह मात्र 2 फुट ही आगे बढ़ पाया है. उस दिन सोमवती अमावस्या थी. वैसे तो कई सोमवती अमावस्याओं पर उस ने रंगबिरंगे परिधानों से सजे ग्रामीण भक्तों की भीड़ देखी थी पर आज 27 वर्षों बाद बने दुर्लभ संयोग ने भीड़ को कई गुना बढ़ा दिया था. मानस 11 बजे रामघाट पहुंचा. तब घाट पर कीड़ेमकोड़ों की तरह भीड़ नजर आ रही थी जो सिर्फ इस बात का इंतजार कर रही थी कि जैसे ही 12 बजे अमावस लगे वैसे ही क्षिप्रा के पवित्र जल में डुबकी लगा ली जाए. लेकिन नहाने के विचार से ही मानस को उबकाई आने लगी. उसे लगा कि जरा से पानी में लाखों लोग हर डुबकी के साथ अपनी गंदगी पानी में धो लेंगे और उसी पानी में उसे नहाना होगा. वह अचकचा गया. वैसे भी, क्षिप्रा का पानी कब साफ रहता है. सारे शहर की गंदगी का नाला इस ‘पवित्र’ नदी में मिलता ही है, ऊपर से इतने लोगों का स्नान.

उस का जी वापस जाने को हुआ था. सोचा, ‘मां या पत्नी उसे देखने तो आ नहीं रहे हैं, कह दूंगा कि नहा लिया था.’

उस का मन फिरने ही लगा था कि वह एक बार फिर आस्था के आगे नतमस्तक हो गया.

एक जोर के धक्के ने उस की तंद्रा भंग की. वह जोर से चिल्ला पड़ा, ‘‘अरे भाई, धक्के मत मारो, बच्चे और बूढ़े भी लाइन में लगे हैं. ये भक्तों की लाइन है, कोई घासलेट, शक्कर की नहीं.’’

परंतु उस की आवाज संकरे गलियारे के मोड़ को भी पार न कर सकी. मानस ने पीछे गरदन घुमा कर देखा, कतार का कोई ओरछोर नजर नहीं आ रहा था. शायद पीछे वाले मोड़ के बाद खुले मैदान में भी चक्राकार कतार होगी. एकदूसरे को ठेल कर आगे बढ़ने का प्रयास करती भीड़ को पुलिस की लाठी ही संयमित कर सकती थी. फिर से मानस पर तक हावी हो गया. उस ने सोचा, क्या चाहती है यह भीड़? क्या ‘भगवान’ इतने सस्ते हैं कि एक बार चलतेचलते 2 बिल्व पत्रों और छटांकभर जल चढ़ाने से प्रसन्न हो जाएंगे? उस का मन किया कि इस भीड़ में फंसे लोगों में से किसी बनिए से पूछे कि ‘क्या वह आज के इस महादर्शन के बाद कभी डंडी नहीं मारेगा या किसी सूदखोर से पूछे कि क्या वह आज सूद न लेने का प्रण करेगा या फिर किसी वृद्धा से पूछे कि वह ऐसा प्रण कर सकती है कि आज के बाद वह अपनी बहू पर अत्याचार नहीं करेगी? पर अंधश्रद्धा से सराबोर इस भीड़ से इस तरह के प्रश्न करना मूर्खता ही होती, इसलिए वह चुप रहा.

मंदिर के एक ओर बना प्रवेशद्वार 5 मीटर चौड़े गलियारे में खुलता था. यह गलियारा, जिस में कि मानस खड़ा था, डेढ़ सौ मीटर की दूरी पर मंदिर के गर्भगृह में जाने के लिए इस द्वार को 2 मोड़ दिए गए थे. बीचबीच में छोटेछोटे मंदिरों के कारण गलियारा और भी संकरा हो गया था. गलियारा, जहां पर गर्भगृह के लिए खुलता था, वहां नीचे जाने के लिए सीढि़यां थीं. संगमरमर की होने से सीढि़यां धवल प्रकाश में जगमग चमकती थीं. सुबह 4 बजे का समय हो चला था. मानस अपनी जगह से मात्र 5 फुट ही आगे बढ़ पाया था. धक्कामुक्की में थकान के कारण कुछ शिथिलता आ गई थी. हलकीहलकी बारिश भी गरमी को कम नहीं कर पा रही थी. गलियारे में गरमी बढ़ती ही जा रही थी. लोगों के गले खुश्क और कपड़े तरबतर हो रहे थे. लाइन में लगे बच्चों की हिम्मत जवाब दे गई. 10 साल की एक बच्ची बेहाल हो कर गिर गई, शायद गरमी और प्यास के कारण ऐसा हुआ था. पर आगेपीछे खड़े किसी भी भक्त ने अभिषेक के लिए साथ में लिए लोटे से उसे पानी पिलाना उचित न समझा.

‘‘माताजी, इस बच्ची को पानी क्यों नहीं दे देतीं?’’ मानस बोला. माताजी कुछ सोचविचार में पड़ गईं, शायद धर्म का प्रश्न उन के मस्तिष्क में घूम रहा होगा. मानस ने देर न करते हुए अपने लोटे में से थोड़ा सा पानी उस लड़की को पिला दिया. चंद मिनटों बाद ही वह होश में आ गई. ‘‘दादी, दादी, भूख लगी है,’’ लड़की बोली.

अपनी धार्मिक भावना का बलपूर्वक पालन करवाने की गरज से दादी अपनी पोती को भी साथ लेती आई थी, अपने साथसाथ उस से भी उपवास करवाया लगता था. पर नन्ही बच्ची कब तक भूख सहती?

‘‘कहां से आई हो, अम्मा?’’ मानस ने समय गुजारने के लिए पूछा.

वृद्ध महिला कुछ संकोच में पड़ी हुई थी, बोली, ‘‘बेटा, औरंगाबाद से आई हूं.’’

‘‘कोई खास मन्नतवन्नत है क्या?’’ मानस ने बात बढ़ाई.

‘‘हां, इस ‘अभागी’ लड़की का भाई गूंगा है, उसी के लिए आई हूं,’’ वृद्धा ने थकी आवाज में कहा.

‘‘अम्मा, इस में लड़की कैसे अभागी हुई?’’ मानस की आवाज से हलका सा क्रोध झलक रहा था.

‘‘काहे नहीं, बहनों के ‘भाग’ से ही तो भाई का भाग होवे है,’’ वृद्धा ने जोर दे कर कहा.

मानस का जी तो किया कि इस बात पर वृद्धा को खरीखोटी सुना दे पर वह वक्त इस बात के लिए उसे ठीक न जान पड़ा. उस ने एक बार फिर उस समाज को मन ही मन कोसा जो सारे परिवार के दुख के कारण को नारी जाति से जोड़ देता है.

तभी जोर का एक धक्का आया और मानस ने अपनेआप को गलियारे के मोड़ पर खड़ा पाया, जहां से नीचे गर्भगृह में जाने की सीढि़यां शुरू होती हैं. पहले से ही संकरी जगह को बैरिकैड लगा कर और संकरा कर दिया गया था. 2 सालों के बाद ही मानस वहां गया था, उसे वहां की व्यवस्था पर आश्चर्य हो रहा था. इतनी बड़ी भीड़ को संभालने के लिए गलियारे में होमगार्ड के केवल 2 जवान थे, धक्कामुक्की पर नियंत्रण करना उन के वश में नहीं था. मानस के ठीक आगे औरंगाबाद वाली वृद्धा थी. मानस ने जानबूझ कर उस की पोती को बीच में खड़ा कर लिया था, उस के पीछे 3-4 वृद्ध और थे, जिन से वह बीचबीच में बतिया कर रातभर से उन की आस्था की थाह लेने का प्रयास कर रहा था. इसी बीच, जो लाइन धीरेधीरे रेंग रही थी, वह भी बंद हो गई. बताया जा रहा था कि भस्मारती शुरू हो गई है. भोले से रूबरू होने का समय 2 घंटे और आगे खिसक गया. संकरा मोड़ और ऊपर से उमस, उस पर शरीरों की आपसी रगड़, तपिश और जलन को मानस का पोरपोर महसूस कर रहा था. उस ने सोचा, जब उस की यह हालत है तो बच्चों और वृद्धों का क्या हाल होगा. लगता है, ये प्राणी आज ही भोले के दरबार में आवागमन चक्र से मुक्त हो जाएंगे.

भीड़ पर एकएक मिनट भारी था. व्याकुलता बढ़ती ही जाती थी. मुक्त होने पर वह और भीड़ कैसा महसूस करेगी, खुली हवा में कितनी शांति और शीतलता होगी, इस विचार ने कुछ क्षणों का कष्ट कम कर दिया. तभी बाहर दालान में तेजी से बूटों के चलने की आवाजें आईं, उसी के पीछे कई पैरों की पदचाप सुनाई पड़ी. मानस ने महज अंदाजा लगाया, कोई वीआईपी इस दुर्लभ अवसर के पुण्य को अपने खाते में डालने आया होगा. भीड़ की मुक्ति का समय कुछ और आगे बढ़ गया. आधे घंटे बाद फिर उन्हीं बूटों की आवाज गूंजी. ठीक उसी समय लोगों के लिए आगे का मार्ग खोल दिया गया. अकुलाई भीड़ ने बिना आगापीछा सोचे जोर का धक्का मारा. मानस ने आगे खड़ी लड़की का हाथ कस कर पकड़ लिया. बूढ़ी दादी को वह सहारा देता, लेकिन तब तक वह सीढि़यों पर लुढ़क गई थी. मानस ने स्वयं और लड़की को पूरा जोर लगा कर एक तरफ कर लिया. उस के बाद तो एक के बाद एक पके फल की तरह लोग गिरने लगे. मानस को कुछ सूझता, इस के पहले ही एक बड़ा रेला उन सब लोगों के ऊपर से गुजर गया.

वह पागलों की तरह चिल्ला रहा था, ‘‘अरे, आगे… मत बढ़ो. तुम्हारे भाईबंधु दब कर मर रहे हैं.’’

पर उस की कौन सुनता, सभी को भूतभावन के दरबार में जाने की जल्दी थी. जब तक भीड़ को होश आता, तब तक तो अनर्थ हो चुका था. जहां मंदिर में घंटियों का मधुर स्वर गूंजना चाहिए था वहां चारों ओर लोगों का करुणक्रंदन और चीत्कार गूंज रही थी. सभी हतप्रभ थे. मानस एक हाथ से उस लड़की को थामे था, उस के दूसरे हाथ में अभी भी जल से आधा भरा तांबे का लोटा था, जिस से शिवलिंग का अभिषेक करने का उस का मन था.

पर वह कैसे आगे बढ़ता, किस मन से करता अभिषेक? जबकि उस के इर्दगर्द व भीतर प्रलयंकारी तांडव हो रहा था. उस ने पास ही कराह रहे घायल के मुंह में अभिषेक करने की मुद्रा में जलधारा छोड़ दी. यही सच्चा अभिषेक था.

चोट: कैसे पूरी की उसने पत्नी की जिस्मानी जरूरत

आखिर कब तक सहन करती? कब तक बेइज्जती, जोरजुल्म सहती? इस आदमी ने, जब से मैं इस घर में शादी कर के आई हूं, डांटफटकार, उलाहनोंतानों के अलावा कुछ नहीं दिया.

शादी के शुरुआती कुछ दिन… कुछ महीने… ज्यादा हुआ, तो एक साल तक प्यार से बात की. घुमानेफिराने ले जाते. सिनेमा दिखाते, मेला, प्रदर्शनी ले जाते. मीठीमीठी प्यारभरी बातें करते. यहां तक कि अपनी मां से भी बहस कर लेते.

अगर मेरी सास मुझे छोटीछोटी बातों पर टोकतीं, तो पतिदेव अपनी मां से कह देते, ‘‘क्यों छोटीछोटी बातों पर घर की शांति भंग कर रही हो? आप की लड़की के साथ ससुराल में यही सब हो तो क्या बीतेगी आप पर? यह इस घर की बहू है, नौकरानी नहीं.

‘‘यह तो कुछ नहीं कहती, लेकिन मैं ही इसे घुमाने ले जाता हूं. पढ़ीलिखी औरत है. बदलते समय के साथ आप नहीं बदल सकतीं, तो छोटीछोटी बातों पर टोकाटाकी कर के घर में अशांति तो न फैलाएं.’’

सास को लगता होगा कि जोरू का गुलाम है बेटा. वे गुस्से में कुछ दिन तक बात न करतीं. बात करतीं तो भी इस तरह, जैसे धीरेधीरे बातों से अपना गुस्सा निकाल रही हों.

‘‘मुझे क्या करना है? तुम खूब घूमोफिरो, लेकिन हद में. आसपड़ोस के घर में भी बहुएं हैं. यह क्या बात हुई कि जब जी आया मुंह उठा कर चल दिए.

न किसी से कुछ पूछना, न बता कर जाना. आखिर घर में बड़ेबुजुर्ग भी हैं. उन के मानसम्मान का भी ध्यान रखो.’’

एक साल बाद ही पति के बरताव में बदलाव आने लगा. शायद शादी की  खुमारी अब तक उतर चुकी थी. पहले ये बहुत ही कम टोकाटाकी करते, बाद में बातबात पर टोकने लगे. मेरी कोई बात इन्हें अच्छी ही नहीं लगती. हर बात में अपनी मां की तरफदारी करते. चाहे वह बात गलत हो या सही, मैं सुनती रही.

इस बीच 2 बच्चे भी हो गए. कहने को घरगृहस्थी तो ठीकठाक चल रही थी, लेकिन जिन पति से मैं प्यार करती थी, उन के बातबात पर डांटनेटोकने से मन उदास रहने लगा.

मैं अपनी तरफ से पति का, सास का, बच्चों का, घर का पूरा खयाल रखती, फिर भी इन की बातबात पर टोकने, डांटने की आदत नहीं जाती.

एक बार मैं ने गुस्से में जरा जोर से कहा भी था, ‘‘आखिर बात क्या है? आप मुझे इस तरह से बेइज्जत क्यों करते रहते हैं?’’

इन्होंने भी झुंझला कर जवाब दिया, ‘‘मैं मर्द हूं. घर का मुखिया हूं. गलत बात पर टोकूंगा नहीं, तो क्या लाड़ करूंगा? तुम 2 बच्चों की मां बन गई हो. तुम्हें घर की जिम्मेदारी समझनी चाहिए. गलती पर डांटता हूं, तो गलती को सुधारना चाहिए. इस में बुरा मानने वाली क्या बात है?’’

‘‘मैं ऐसी कौन सी गलती करती हूं? क्या मन भर गया है मुझ से?’’

‘‘मुझे तो सब को साथ ले कर चलना है. तुम्हारा भी अब तक मन भर जाना चाहिए. प्यारमुहब्बत की उम्र बीत चुकी. अब अपने फर्ज पर ध्यान दो.’’

‘‘आखिर मैं ने फर्ज निभाने में कौन सी कमी रखी है?’’

‘‘तुम फिर बहस करने लगीं. मुझे तुम्हारी यही बात अच्छी नहीं लगती.’’

‘‘आप को मेरी कौन सी बात अच्छी लगती है आजकल?’’

‘‘औरत हो, औरत की तरह रहना सीखो. घर के कामकाज देखो. अम्मां की तबीयत ठीक नहीं रहती आजकल. उन की देखभाल करो.’’

‘‘करती तो हूं.’’

‘‘करती, तो अम्मां शिकायत नहीं करतीं.’’

‘‘अम्मां की तो आदत है मेरी शिकायत करने की. एक की चार लगा कर भड़काती हैं.’’

‘‘खबरदार, जो मेरी अम्मां के बारे में कुछ कहा,’’ इन्होंने इतनी जोर से डांटा कि मैं गुस्से में अपने कमरे में आ कर रोने लगी.

बैडरूम में तो ये बड़े प्यार से बात करते हैं. हालांकि अब यह होता है कि बैडरूम में मेरे आने तक ये सो जाते हैं. मुझे घर के काम निबटातेनिबटाते ही रात के 11-12 बज जाते हैं.

अब हमारे बीच संबंध बनने में भी काफी समय होने लगा था. मसरूफियत, जिम्मेदारी, बढ़ती उम्र के साथ ऐसा होता है. इस की कोई शिकायत नहीं. लेकिन आदमी दो बातें प्यार से कर ले, तो क्या बिगड़ जाएगा? लेकिन पता नहीं क्यों आजकल मुझे देख कर इन का पारा चढ़ जाता है, खासकर दूसरों के सामने.

ये दूसरों से तो अच्छी तरह बात करेंगे. अपनी अम्मां से, बच्चों से, पासपड़ोस के लोगों से, घर आए रिश्तेदारों से. दोस्तों से तो इस कदर प्यार से बातें करेंगे कि जैसे इन्हें गुस्सा आता ही न हो, मानो जबान पर चाशनी चिपक जाती हो.

लेकिन सुबह मैं थोड़ी देर से उठूं, तो चिल्लाते हैं, ‘‘तुम जल्दी नहीं उठ सकतीं. यह कोई समय है उठने का? अभी तक चाय नहीं बनी. चाय में चीनी कम है. कभी ज्यादा है. खाने में नमक नहीं है. यह सब्जी क्यों बनाई है? वही काम करती हो, जो मुझे पसंद नहीं आता. न घर में साफसफाई है, न बच्चों की तरफ ढंग से ध्यान देती हो.

‘‘अम्मां अब कितने दिनों की मेहमान हैं. कम से कम उन की देखभाल ही ठीक से कर लिया करो. तुम्हें कपड़े पहनने का सलीका नहीं आता है. तुम्हें मेहमानों से बात करने का ढंग नहीं है. तुम यह नहीं करती, तुम वह नहीं करती. तुम ऐसी हो, तुम वैसी हो. तुम्हें तो कुछ भी नहीं आता.’’

मैं ने तो अब बहस करना, इन की बातों पर ध्यान देना ही छोड़ दिया. जो कहना है, कहते रहो. मेरा काम सुनना है, सुनती रहती हूं. लेकिन आखिर कब तक? अकेले में कह दें तो सुन भी लूं. चार लोगों के बीच टोकना, डांटना घोर बेइज्जती है मेरी. मेरे औरत होने की. पत्नी हूं, नौकरानी नहीं.

एक दिन इन के 2-3 दोस्त खाने पर आए. इन के कहे मुताबिक ही खाना बनाया. मैं ने अच्छे से परोसा. लेकिन दोस्तों के सामने ही इन का चिल्लाना शुरू हो गया, ‘‘जरा अपने हाथपैर तेजी से चलाओ. यह जैट युग है, बैलगाड़ी की तरह काम मत करो…’’

फिर इन्होंने चीख कर कहा, ‘‘दही कहां है?’’

‘‘अभी लाई,’’ मैं ने अपनी रुलाई रोकते हुए कहा.

इन के एक दोस्त ने कहा, ‘‘क्या दबदबा बना कर रखा है यार? मैं अगर अपनी पत्नी से इतना कह दूं, तो घर में मुसीबत खड़ी हो जाए.’’

दूसरे दोस्त ने इन की हिम्मत बढ़ाते हुए कहा, ‘‘वाकई सही माने में तुम हो असली मर्द. औरतों को ज्यादा सिर पर नहीं चढ़ाना चाहिए.’’

मैं अंदर रसोई में से सब सुन रही थी. जी तो चाहता था कि सारा सामान उठा कर फेंक दूं. इन्हें और इन के दोस्तों को जम कर लताड़ लगाऊं, लेकिन चुप ही रही. पर मैं ने भी मन ही मन तय कर लिया था कि अपनी बेइज्जती का बदला तो ले कर रहूंगी. लेकिन बहस से, चीखचिल्ला कर घर का माहौल बिगाड़ कर नहीं. इन्हें बताऊंगी कि औरत कैसे शर्मिंदा कर सकती है. कैसे हरा सकती है. कैसे तुम्हारे मर्द होने का अहंकार तोड़ सकती है.

खाना खा रहे दोस्तों के बीच मैं दही रखने गई, तभी दोनों बच्चे वहां आ गए खेलते हुए.

‘‘बाहर निकालो इन्हें कमरे से. तुम बच्चों का ध्यान नहीं रख सकतीं…’’ वे जोर से चिल्लाए.

मैं दोनों बच्चों को जबरदस्ती घसीटते हुए कमरे से बाहर ले गई. इन के किसी दोस्त की आवाज कानों में आई, ‘‘खाना तो लजीज बना है.’’

इन्होंने मुंह बिचकाते हुए जवाब दिया, ‘‘खाना तो सुमन बनाती थी. पहले मेरी उसी से शादी होने वाली थी. सगाई तक हो गई थी उस से. कई बार मैं सुमन के घर भी गया. ऐसा स्वादिष्ठ खाना मुझे आज तक नसीब नहीं हुआ.’’

इन की सगाई टूटने की बात मुझे पता थी, लेकिन सुमन के खाने की तारीफ और मेरे खाने को सुमन के मुकाबले कमतर बताना मुझे अखर गया.

ये मर्द थे, तो मैं औरत थी. इन्हें अपने मर्द होने का घमंड था, तो मुझे क्यों न हो अपने औरत होने पर गर्व? अब इन्हें बताना जरूरी था कि औरत क्या होती है.

मर्द की सौ सुनार की और औरत की एक लुहार की कहावत को सच साबित करने का समय आ गया था. इन का यह जुमला कि मर्द बने रहने के लिए औरत को दुत्कारते रहना जरूरी है, तभी घर भी घर बना रहता है. तभी सब ठीक रहते हैं.

अम्मांजी ने इन से एक बार कहा भी था, ‘‘बेटा, मर्द को मर्द की तरह रहना चाहिए. औरत को हमेशा सिर पर चढ़ा कर नहीं रखना चाहिए. उसे डांटडपट, फटकार लगाना जरूरी है.’’

इन्होंने अम्मांजी की बातों को इस तरह स्वीकार किया कि मेरा पूरा वजूद ही बिखरने लगा.

दोनों बच्चे अकसर दादी के पास ही सोया करते थे. वे आज भी वहीं सो रहे थे. ये भी बिस्तर पर लेटेलेटे किताब पढ़ रहे थे.

आज मैं जरा जल्दी ही कमरे में पहुंच गई थी. मैं गाउन पहन कर सोती थी और कपड़े बाथरूम में ही बदलती थी. लेकिन आज मैं ने कमरे में जा कर साड़ी उतारी.

मैं ने तिरछी नजरों से इन की तरफ देखा. साड़ी बदलते ही इन का ध्यान मेरी तरफ गया. नहीं… नहीं, मेरे बदन की तरफ. पहले तो इन्होंने आदत के मुताबिक मुझे टोका, ‘‘यह जगह है क्या कपड़े बदलने की?’’

मैं ने भी कह दिया, ‘‘यहां पर आप के अलावा और कौन हैं? आप से कैसी परदादारी?’’

ये कुछ कहते, इस से पहले ही मैं ने अपने बाकी कपड़े भी उतार दिए. अब मैं छोटे कपड़ों में थी, टूपीस भी कह सकते हैं.

मैं ने पहनने के लिए गाउन उठाया. लेकिन इन के सब्र का पैमाना छलक चुका था. इन्होंने प्यार से मुझे अपनी ओर खींचते हुए कहा, ‘‘बहुत दिन हो गए तुम्हें प्यार किए हुए. आज इस रूप में देख कर सब्र नहीं होता.’’

इस के बाद कमरे में हम दोनों एक हो गए. अलग होते ही मैं मुंह बिचका कर एक तरफ मुंह फेर कर लेट गई. मैं ने कहा, ‘‘किसी वैद्यहकीम को दिखाओ. इतने सारे तो इश्तिहार आते हैं, कोई गोली ले लिया करो.’’

ये दुम दबाते पालतू कुत्ते की तरह आ र कूंकूं की आवाज में बोले, ‘‘क्यों, खुश नहीं हुईं क्या तुम? कुछ कमी रह गई क्या?’’

इन की हालत देख कर बड़ी मुश्किल से मैं ने अपनी हंसी रोकते हुए कहा, ‘‘नहीं, कोई ऐसी बात नहीं है. कभीकभी होता है ऐसा.’’

इन का उदास, हताश, हारा हुआ चेहरा देख कर मुझे अपनी जीत का एहसास हुआ. एक ही वार से इन के अंदर की मर्दानगी और बाहर का मर्द दोनों मुरदा पड़े हुए थे, जैसे दुनिया के सब से तुच्छ, कमजोर इनसान हों.

उस के बाद इन की टोकाटाकी, डांटफटकार तो बंद हुई ही, साथ ही साथ मेरी तरफ जब भी ये देखते, तो ऐसा लगता कि इन के देखने में डर और शर्मिंदा का भाव हो. अकसर चोरीछिपे जिस्मानी ताकत बढ़ाने के इश्तिहार पढ़ते भी नजर आते.

News Kahani: सत्संग में भगदड़, हाथरस बना मरघट

उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले के एक गांव बरौना से थोड़ी दूर खेतों में बाबा बटेश्वर का बहुत बड़ा आश्रम था, जहां दुखियारों के दर्द मिटाए जाते थे.

बाबा बटेश्वर 45 साल के थे, पर उन के चेहरे पर चमक ऐसी थी मानो 30 साल के हों. पढ़ेलिखे कितने थे, यह तो उन के फरिश्तों को भी नहीं मालूम, पर कोई भी धार्मिक किताब रटने की कला में नंबर वन थे.

वैसे तो बाबा बटेश्वर की कई चेलियां थीं, पर साध्वी सुधा का जलवा ही अलग था. वह बाबा बटेश्वर के हर राज जानती थी और 26 साल की कम उम्र में ही पेचीदा से पेचीदा काम का हल ढूंढ़ने में माहिर थी. वह खूबसूरत होने के साथसाथ शातिर भी.

एक दिन साध्वी सुधा और बाबा बटेश्वर एक गंभीर मसले पर बात कर रहे थे. बाबा थोड़े चिंतित थे, पर साध्वी सुधा उन के माथे को दबाते हुए कह रही थी, ‘‘आप क्यों टैंशन ले रहे हैं? हमारा धंधा एकदम बढि़या चल रहा है.’’

इस पर बाबा बटेश्वर सुधा का हाथ अपने हाथ में ले कर बोले, ‘‘तुम सम?ा नहीं रही हो. जितनी कमाई होनी चाहिए, उतनी हो नहीं पा रही है. अब आश्रम में औरतें कम दिखती हैं. ऐसे ही चलता रहा, तो हम सब सड़क पर आ जाएंगे.’’

साध्वी सुधा ने बाबा बटेश्वर के हाथों को प्यार से दबाते हुए कहा, ‘‘मैं ने इस का भी तोड़ निकाल लिया है. यहां शहर के पास ही मैं ने 2 ऐसे अस्पताल बंद करा दिए हैं, जहां औरतों की बीमारियों का इलाज किया जाता था. वहां गर्भपात कराने वाली लड़कियां, औरतों की बीमारियों से जू?ाने वाली लड़कियां और औरतें, पागलपन के दौरे पड़ने वालियों का इलाज किया जाता था.

‘‘हमारे कारसेवकों ने किसी मरीज की मौत के बाद वहां जम कर हंगामा किया और अस्पताल में खूब तोड़फोड़ मचाई. डाक्टर को भी अच्छे से सम?ा दिया गया. मजाल है कि अब कोई औरत वहां इलाज कराने चली जाए. अब उन के लिए हमारा आश्रम ही अपनी समस्याओं का हल पाने का आखिरी रास्ता है.

‘‘हमारे कारसेवकों ने उन औरतोें को बहलाफुसला कर यहां लाने का इंतजाम कर दिया है. आप की चेलियां गांवगांव घूम कर लोगों को आप के सत्संग में आने का न्योता दे रही हैं. बहुत जल्दी ही आश्रम में भीड़ लग जाएगी.’’

यह सुन कर बाबा बटेश्वर की बांछें खिल गईं. उन्होंने साध्वी सुधा की तरफ देखते हुए कहा, ‘‘तुम लोग ज्यादा से ज्यादा औरतों को आश्रम में लाओ. तन और मन से बीमार औरतों और लड़कियों को मैं भस्म में एलोपैथिक दवाएं और अफीम दूंगा, जिस से उन का बारबार यहां आने का मन करे.

‘‘और हां, कुछ जवान और खूबसूरत लड़कियों को भी घेर कर लाना, जिस

से आश्रम में नई चेलियां आ जाएं. तुम सम?ा रही हो न?’’

साध्वी सुधा ने बाबा बटेश्वर के

सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘मैं सब सम?ाती हूं. मैं भी तो ऐसे ही यहां आई थी. मेरी सौतेली मां ने 15 साल की कच्ची उम्र में ही मेरी शादी करा दी थी. पति भी ऐसा ढूंढ़ा, जो बिस्तर पर जाते ही पस्त हो जाता था. नामर्द कहीं का. ऊपर से सास का फरमान था कि मु?ो तो जल्दी से जल्दी पोता ही चाहिए.

‘‘अच्छा हुआ कि मैं आप के आश्रम में आई और आप की चहेती चेली बन गई. पति का सुख और मु?ो बच्चा दे कर आप ने धन्य कर दिया. सास को उस

का वारिस और मेरे पति को घर बैठे

पैसे मिलने लगे. मैं ने दोनों की जबान एकसाथ बंद करा दी.’’

यह सुन कर बाबा बटेश्वर मुसकरा दिए और साध्वी सुधा के साथ अपने खास कमरे में चले गए.

अगले दिन जब साध्वी सुधा अपने खास कारसेवकों के साथ अलगअलग गांव से औरतों और लड़कियों को आश्रम में आने का दाना फेंक कर आई, तो उस के चेहरे पर घबराहट साफ दिख रही थी.

साध्वी सुधा सीधी बाबा के तपस्या वाले कमरे में गई, जहां उस के अलावा किसी को जाने की इजाजत नहीं थी.

साध्वी सुधा की बदहवासी देख कर बाबा ने पूछा, ‘‘आज इतनी जल्दी कैसे आ गई? अभी तो दोपहर के 4 ही बजे हैं?’’

‘‘बाबाजी, अगर जान प्यारी है, तो मालमत्ता समेटो और कुछ दिन के लिए यहां से रफूचक्कर हो जाओ,’’ साध्वी सुधा ने अपनी ऊपर नीचे होती सांसें ठीक करते हुए कहा.

‘‘क्या हुआ…? तेजी के घोड़े पर क्यों सवार हो? साफसाफ बताओ?’’ बाबा बटेश्वर ने अपने आसन से उठते हुए पूछा.

‘‘बाबाजी, गजब हो गया है. हाथरस में ‘भोले बाबा’ के सत्संग में भगदड़ मचने से कई लोग मर गए हैं. मेरे पास अभी फोन आया है. दोपहर के ढाई बजे यह कांड हुआ है,’’ साध्वी सुधा ने कहा.

‘‘क्या… ‘भोले बाबा’ के सत्संग में भगदड़ मच गई… जल्दी बताओ, बात क्या है?’’ बाबा बटेश्वर ने कहा.

साध्वी सुधा ने बताया, ‘‘हाथरस में आज मंगलवार, 2 जुलाई, 2024 को हुए एक बड़े हादसे में 121 लोगों की मौत हो गई और दर्जनों दूसरे लोग घायल हो गए. वैसे, जिस आदमी का फोन मु?ो आया था, वह तो मरने वालों की तादाद ज्यादा बता रहा था.

‘‘मु?ो मिली खबर के मुताबिक, हाथरस से एटा की तरफ जाने वाले रास्ते पर जीटी रोड के किनारे फुलरई के

पास एक सत्संग कार्यक्रम का आयोजन किया गया था, जिस में ‘भोले बाबा’ उर्फ हरिनारायण साकार के पैरों की धूल लेने के लिए लोगों का हुजूम था.

‘‘कार्यक्रम में आने वाले हजारों की तादाद में भक्तों को देखते हुए 100 बीघा खाली खेत पर सत्संग का इंतजाम किया गया था. लोगों के लिए वहां खानेपीने का भी इंतजाम था. वहां उत्तर प्रदेश के साथसाथ दिल्ली और हरियाणा से भी भारी तादाद में लोग पहुंचे थे.

‘‘बारिश होने के चलते पानी भरने से वहां की मिट्टी दलदली हो गई थी, जिस से लोगों के फिसलने का खतरा था. सड़क और खेत के बीच भी फिसलन भरी ढलान थी, क्योंकि आननफानन में खेत को आयोजन के लिए तैयार किया गया था. कार्यक्रम की जगह कोई सपाट मैदान की तरह नहीं थी. कार्यक्रम कराने वाले लोगों ने इस बात का ध्यान नहीं रखा था.

‘‘जब ‘भोले बाबा’ का सत्संग खत्म हुआ और वे वहां से निकले, तो अचानक उन्हें देखने और उन के पैरों की धूल को छूने के लिए लोग टूट पड़े. इस से लोगों में भगदड़ मच गई और बेकाबू भीड़ एकदूसरे को रौंदते हुए आगे बढ़ती गई.

‘‘भगदड़ ऐसी मची कि लोग जब तक कुछ सम?ा पाते, तब तक एक के ऊपर एक चढ़ते चले गए. कुछ ही देर में 121 लोगों की मौत हो गई.

‘‘अच्छा, ‘भोले बाबा’ इतने बड़े महारथी हैं… हम ने तो इन के बारे में ज्यादा सुना नहीं,’’ बाबा बटेश्वर ने कहा.

साध्वी सुधा ने कहा, ‘‘मैं थोड़ाबहुत पहले से जानती थी, पर अब वापस आते हुए इन के बारे में और जाना.

‘‘खबरों की मानें, तो आध्यात्मिक उपदेशक सूरजपाल, जिन्हें लोकप्रिय रूप से ‘नारायण साकार हरि’ या ‘भोले बाबा’ के नाम से जाना जाता है, उत्तर प्रदेश के कासगंज जिले की पटियाली तहसील के बहादुर नगर गांव के रहने वाले हैं.

‘‘स्थानीय सूत्रों ने बताया है कि सूरजपाल 1990 के दशक तक उत्तर प्रदेश पुलिस में स्थानीय खुफिया इकाई में कांस्टेबल थे, जब उन्होंने अध्यात्म की ओर रुख किया, एक नया नाम अपनाया और सादा और पवित्र जीवन जीने के बारे में सार्वजनिक उपदेश देना शुरू किया. उन्होंने खुद को ‘नारायण साकार हरि’ का शिष्य बताया और अपने अनुयायियों से अपने भीतर सर्वशक्तिमान को खोजने के लिए कहा.

‘‘गांव में सूरजपाल का ‘नारायण साकार हरि आश्रम’ 30 एकड़ में फैला हुआ है. वे कारों के काफिले के साथ चलते हैं और उन के पास निजी सिक्योरिटी गार्ड भी हैं. वे मीडिया से दूरी बनाए रखते हैं, लेकिन गांवदेहात में उन के काफी समर्थक हैं.

‘‘60 की उम्र के आसपास के ‘भोले बाबा’ आमतौर पर सफेद कोट और पतलून और धूप का रंगीन चश्मा पहनते हैं. उन के अनुयायी, जिन में से ज्यादातर औरतें हैं, आमतौर पर गुलाबी कपड़े पहनते हैं और उन्हें ‘भोले बाबा’ के रूप में पूजते हैं. उन की पत्नी, जो अकसर सभाओं के दौरान मौजूद रहती हैं, को ‘माताश्री’ कह कर बुलाया जाता है.

‘‘बताया जाता है कि कई आईएएस और आईपीएस भी ‘भोले बाबा’ के भक्त हैं. उन के सत्संग में बड़े नेता और  अफसर भी पहुंचते हैं. ‘भोले बाबा’ के पश्चिमी उत्तर प्रदेश समेत उत्तराखंड, हरियाणा, मध्य प्रदेश, राजस्थान, दिल्ली समेत देशभर में लाखों अनुयायी हैं.’’

‘‘गजब का बाबा है. इतने लोगों को अपने पीछे दौड़ा रखा है. पहुंच भी अच्छी है शासनप्रशासन में. पर, यह भगदड़ मची कैसे? क्या कोई इंतजाम नहीं किया गया था वहां पर?’’ बाबा बटेश्वर ने पूछा.

‘‘सत्संग में तकरीबन 80,000 लोगों के आने की इजाजत दी गई थी, लेकिन 2 लाख से ज्यादा लोग शामिल थे.

‘‘इन ‘भोले बाबा’ का यह सत्संग कम से कम 10 एकड़ की जमीन पर हुआ था. इतनी बड़ी जगह होने के बावजूद

यहां पर लोगों के आनेजाने के लिए एक रास्ता बनाया गया था, वह भी कच्चा था, जबकि गाइडलाइन के मुताबिक, अगर कोई बड़ा कार्यक्रम होता है, जिस में हजारों में लोग शामिल होते हैं, उस में आनेजाने के लिए कई रास्ते बनाए जाते हैं.

‘‘हालांकि, यहां पर भी लापरवाही दिखाई गई. वहीं, जिस मैदान में यह सत्संग हो रहा था, उस में कई जगह पर गड्ढे थे, जिन्हें भी नहीं भरा गया था.

‘‘मीडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, भगदड़ में कई लोगों के पैर इन्हीं गड्ढों में फंस गए थे, जिस की वजह से वे गिर गए और पीछे वाले लोग उन्हें रौंदते हुए आगे बढ़ गए,’’ साध्वी सुधा ने कहा.

‘‘इस बाबा का प्रचार तंत्र बड़ा मजबूत है. कैसे मैनेज किया उस ने यह सत्संग?’’ बाबा बटेश्वर ने पूछा.

‘‘जहां तक मेरी जानकारी है, आयोजन समिति अपने कार्यक्रम का प्रचारप्रसार होर्डिंग के जरीए करती है, जिस पर आयोजन का सारा ब्योरा लिखा होता है. किसी ने मु?ो फोटो खींच कर भेजा है और उस से पता चला है कि आज के आयोजन के होर्डिंग में लिखा था, ‘नारायण साकार हरि’ की संपूर्ण ब्रह्मांड में सदासदा के लिए जयजयकार हो. सोच कर देखो साथ क्या जाएगा? मानव धर्म सत्य था, है और रहेगा. ‘नारायण साकार हरि’ का परम पवित्र उद्देश्य : नारायण साकार हरि की अनुकंपा से वर्तमान समय में समस्त संस्काररूपी समाज संसार में व्याप्त धर्म की आड़ में अंधविश्वास से चित्त हटाने, बिखरी हुई मानवता को जोड़ने, अनेकता में एकता, मानवता को गले लगाने, मानवमानव से प्रेम करने, आदर्श मानवीय समाज का निर्माण करने का अमर संदेश जनहित में जनमानस तक पहुंचाने के उद्देश्य को ले कर ‘मानव मंगल मिशन सद्भावना समागम’ का आयोजन हो रहा है’.’’

बाबा बटेश्वर ने हाथ जोड़ कर कहा, ‘‘इतना महान संदेश. फिर बाबा के हर सत्संग में लोगों का बहुत ज्यादा हुजूम लगता होगा?’’

साध्वी सुधा बोली, ‘‘इन के हर सत्संग में लाखों की भीड़ आती है. भीड़ लाने का काम आयोजन समिति और उस से जुड़ी दूसरी समितियों का होता है. आयोजन में जो भी चंदा जमा होता है, उस का 70 फीसदी ‘भोले बाबा’ के ट्रस्ट ‘मानव मंगल मिशन सद्भावना समागम’ में जमा होता है और बाकी 30 फीसदी चंदा लाने वाले को अपने पास रखने का अधिकार है.

‘‘बाबा के साथ मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और राजस्थान से जुड़े लोग बस और ट्रेन के जरीए आते हैं. आयोजन स्थल की सुरक्षा का इंतजाम बाबा की ‘नारायणी सेना’ करती है. इस में 15,000 मर्दऔरत हैं. औरतें गुलाबी रंग की साड़ी, ब्लाउज और टोपी पहनती हैं और मर्द सफेद रंग की पैंटशर्ट और टोपी लगाते हैं.’’

‘‘मु?ो एक आइडिया आ रहा है. हम आगे से गरीब और वंचित तबके की औरतों को अपने आश्रम में लाने की कोशिश करेंगे. उन्हें एक ड्रैस दिलाएंगे, खानेपीने का खासा ध्यान रखेंगे और नई चेलियां बनाएंगे.

‘‘ऐसे परिवारों में मर्द कमजोर होते हैं. समाज में दबेकुचले होते हैं, पर मेहनती होते हैं. कहीं न कहीं से कमाई कर ही लेते हैं. उन से धर्म का डर दिखा कर पैसा निकलवाया जा सकता है. वैसे, ‘भोले बाबा’ के सत्संग में किस तबके की औरतें आती हैं?’’ बाबा बटेश्वर ने गंभीर हो कर पूछा.

‘‘ज्यादा तो नहीं पता, पर ‘नारायण साकार हरि’ के सत्संग में जो लड़कियां गोपिकाएं बनती हैं, उन में से 80 फीसदी लड़कियां अपनी मां के साथ आती हैं. पहले मां को सेवादार बना कर कुछ जिम्मेदारी दी जाती है, फिर उस की लड़की को भी वहां जोड़ लिया जाता है. यह सारा काम पुराने सेवादार करते हैं,’’ साध्वी सुधा बोली.

‘‘मु?ो एक और आइडिया आया है. हमारे यहां जो बसें भर कर आती हैं, उन बस वालों से भी हम कुछ कमीशन ले सकते हैं. 300 किलोमीटर की दूरी वाली बस में अगर 50 सवारी आती हैं, तो बस वाला उन से 30,000-35,000 रुपए तो लेता होगा. वह हमें 1,000 रुपए भी दे तो कई बस वालों से यह रकम हमें बिना कुछ किएधरे ही मिल जाएगी. इतना ही नहीं, फिर हम ‘भोले बाबा’ की तरह अपनी सेना बना लेंगे. ज्यादा सेवादार, ज्यादा कमाई,’’ बाबा बटेश्वर ने कहा.

‘‘यह तो सही है, पर फिलहाल तो हमें इस बड़ी मुसीबत को टालना होगा. जनता का कोई भरोसा नहीं, कहीं कोई चिनगारी सुलग गई तो लोग गुस्से में

इस आश्रम को भी निशाने पर ले लेंगे. प्रशासन भी बेवजह परेशान करेगा,’’ साध्वी सुधा ने कहा.

‘‘ऐसा करते हैं कि अपनी नकदी और कीमती सामान को गाडि़यों में भरते हैं और अपने खासमखास 12-15 लोगों की टोली के साथ शिरडी धाम चलते हैं. तुम ऐसा करना, अपनी हर गाड़ी पर ‘बाबा बटेश्वर की शिरडी यात्रा’ का बैनर लगा देना और कुछ बड़ी गाडि़यों में सब जरूरी सामान भर लेना. हम कल सुबह ही सड़क के रास्ते से महाराष्ट्र निकल जाएंगे.’’

‘‘ठीक है, मैं इंतजाम करती हूं. हम ने जो नकदी पीछे दालान में गाड़ रखी है, उसे निकालते हैं. पर मु?ो एक डर है कि हमारे लोग ही लालच में कोई गड़बड़ न कर दें,’’ साध्वी सुधा बोली.

‘‘इतना रिस्क तो लेना ही पड़ेगा.

पर हम सब को बताएंगे कि शिरडी में कोई स्पैशल हवनपूजन करने का बोल रखा है. अगर तुम्हें लगता है कि किसी सेवादार में लालच आ जाएगा, तो मेरी खास चेलियों को भी गाड़ी में बिठा लेना, वे सब पर नजर रखेंगी.’’

इस के बाद बाबा बटेश्वर और साध्वी सुधा ने नकदी और कीमती सामान गाडि़यों में भर दिया. ऊपर से हवन सामग्री रख दी.

सारा सामान सैट करने के बाद बाबा बटेश्वर ने कहा, ‘‘कल तड़के ही हम निकल लेंगे. अब हम चलते हैं नए सफर की ओर. रास्ते में जो होगा भुगत लेंगे. जब मामला शांत हो जाएगा तो लौट आएंगे. फिर से धर्म का धंधा जमा लेंगे. इस बार बड़े लैवल पर.’’

साध्वी सुधा ने ‘हां’ में सिर हिलाया और आगे की तैयारी करने के लिए कमरे से बाहर चली गई.

खूबसूरत : जब असलम को अच्छी लगने लगी मुमताज

असलम ने धड़कते दिल के साथ दुलहन का घूंघट उठाया. घूंघट के उठते ही उस के अरमानों पर पानी फिर गया था. असलम ने फौरन घूंघट गिरा दिया. अपनी दुलहन को देख कर असलम का दिमाग भन्ना गया था. वह उसे अपने ख्वाबों की शहजादी के बजाय किसी भुतहा फिल्म की हीरोइन लग रही थी. असलम ने अपने दांत पीस लिए और दरवाजा खोल कर बाहर निकल गया.

बड़ी भाभी बरामदे में टहलते हुए अपने रोते हुए मुन्ने को चुप कराने की कोशिश कर रही थीं. असलम उन के पास चला गया.

‘‘मेरे साथ आइए भाभी,’’ असलम भाभी का हाथ पकड़ कर बोला.

‘‘हुआ क्या है?’’ भाभी उस के तेवर देख कर हैरान थीं.

‘‘पहले अंदर चलिए,’’ असलम उन का हाथ पकड़ कर उन्हें अपने कमरे में ले गया.

‘‘यह दुलहन पसंद की है आप ने मेरे लिए,’’ असलम ने दुलहन का घूंघट झटके से उठा कर भाभी से पूछा.

‘‘मुझे क्या पता था कि तुम सूरत को अहमियत दोगे, मैं ने तो सीरत परखी थी,’’ भाभी बोलीं.

‘‘आप से किस ने कह दिया कि सूरत वालों के पास सीरत नहीं होती?’’ असलम ने जलभुन कर भाभी से पूछा.

‘‘अब जैसी भी है, इसी के साथ गुजारा कर लो. इसी में सारे खानदान की भलाई है,’’ बड़ी भाभी नसीहत दे कर चलती बनीं

‘‘उठो यहां से और दफा हो जाओ,’’ असलम ने गुस्से में मुमताज से कहा.

‘‘मैं कहां जाऊं?’’ मुमताज ने सहम कर पूछा. उस की आंखें भर आई थीं.

‘‘भाड़ में,’’ असलम ने झल्ला कर कहा.

मुमताज चुपचाप बैड से उतर कर सोफे पर जा कर बैठ गई. असलम ने बैड पर लेट कर चादर ओढ़ ली और सो गया. सुबह असलम की आंख देर से खुली. उस ने घड़ी पर नजर डाली. साढ़े 9 बज रहे थे. मुमताज सोफे पर गठरी बनी सो रही थी.

असलम बाथरूम में घुस गया और फ्रैश हो कर कमरे से बाहर आ गया.

‘‘सुबहसुबह छैला बन कर कहां चल दिए देवरजी?’’ कमरे से बाहर निकलते ही छोटी भाभी ने टोक दिया.

‘‘दफ्तर जा रहा हूं,’’ असलम ने होंठ सिकोड़ कर कहा.

‘‘मगर, तुम ने तो 15 दिन की छुट्टी ली थी.’’

‘‘अब मुझे छुट्टी की जरूरत महसूस नहीं हो रही.’’

दफ्तर में भी सभी असलम को देख कर हैरान थे. मगर उस के गुस्सैल मिजाज को देखते हुए किसी ने उस से कुछ नहीं पूछा. शाम को असलम थकाहारा दफ्तर से घर आया तो मुमताज सजीधजी हाथ में पानी का गिलास पकड़े उस के सामने खड़ी थी.

‘‘मुझे प्यास नहीं है और तुम मेरे सामने मत आया करो,’’ असलम ने बेहद नफरत से कहा.

‘‘जी,’’ कह कर मुमताज चुपचाप सामने से हट गई.

‘‘और सुनो, तुम ने जो चेहरे पर रंगरोगन किया है, इसे फौरन धो दो. मैं पहले ही तुम से बहुत डरा हुआ हूं. मुझे और डराने की जरूरत नहीं है. हो सके तो अपना नाम भी बदल डालो. यह तुम पर सूट नहीं करता,’’ असलम ने मुमताज की बदसूरती पर ताना कसा.

मुमताज चुपचाप आंसू पीते हुए कमरे से बाहर निकल गई. इस के बाद मुमताज ने खुद को पूरी तरह से घर के कामों में मसरूफ कर लिया. वह यही कोशिश करती कि असलम और उस का सामना कम से कम हो.

दोनों भाभियों के मजे हो गए थे. उन्हें मुफ्त की नौकरानी मिल गई थी. एक दिन मुमताज किचन में बैठी सब्जी काट रही थी तभी असलम ने किचन में दाखिल हो कर कहा, ‘‘ऐ सुनो.’’

‘‘जी,’’ मुमताज उसे किचन में देख कर हैरान थी.

‘‘मैं दूसरी शादी कर रहा हूं. यह तलाकनामा है, इस पर साइन कर दो,’’ असलम ने हाथ में पकड़ा हुआ कागज उस की तरफ बढ़ाते हुए कहा.

‘‘क्या…?’’ मुमताज ने हैरत से देखा और सब्जी काटने वाली छुरी से अपना हाथ काट लिया. उस के हाथ से खून बहने लगा.

‘‘जाहिल…,’’ असलम ने उसे घूर कर देखा, ‘‘शक्ल तो है ही नहीं, अक्ल भी नहीं है तुम में,’’ और उस ने मुमताज का हाथ पकड़ कर नल के नीचे कर दिया.

मुमताज आंसुओं को रोकने की नाकाम कोशिश कर रही थी. असलम ने एक पल को उस की तरफ देखा. आंखों में उतर आए आंसुओं को रोकने के लिए जल्दीजल्दी पलकें झपकाती हुई वह बड़ी मासूम नजर आ रही थी.

असलम उसे गौर से देखने लगा. पहली बार वह उसे अच्छी लगी थी. वह उस का हाथ छोड़ कर अपने कमरे में चला गया. बैड पर लेट कर वह देर तक उसी के बारे में सोचता रहा, ‘आखिर इस लड़की का कुसूर क्या है? सिर्फ इतना कि यह खूबसूरत नहीं है. लेकिन इस का दिल तो खूबसूरत है.’

पहली बार असलम को अपनी गलती का एहसास हुआ था. उस ने तलाकनामा फाड़ कर डस्टबिन में डाल दिया.

असलम वापस किचन में चला आया. मुमताज किचन की सफाई कर रही थी.

‘‘छोड़ो यह सब और आओ मेरे साथ,’’ असलम पहली बार मुमताज से बेहद प्यार से बोला.

‘‘जी, बस जरा सा काम है,’’ मुमताज उस के बदले मिजाज को देख कर हैरान थी.

‘‘कोई जरूरत नहीं है तुम्हें नौकरों की तरह सारा दिन काम करने की,’’ असलम किचन में दाखिल होती छोटी भाभी को देख कर बोला.

असलम मुमताज की बांह पकड़ कर अपने कमरे में ले आया, ‘‘बैठो यहां,’’  उसे बैड पर बैठा कर असलम बोला और खुद उस के कदमों में बैठ गया.

‘‘मुमताज, मैं तुम्हारा अपराधी हूं. मुझे तुम जो चाहे सजा दे सकती हो. मैं खूबसूरत चेहरे का तलबगार था. मगर अब मैं ने जान लिया है कि जिंदगी को खूबसूरत बनाने के लिए खूबसूरत चेहरे की नहीं, बल्कि खूबसूरत दिल की जरूरत होती है. प्लीज, मुझे माफ कर दो.’’

‘‘आप मेरे शौहर हैं. माफी मांग कर आप मुझे शर्मिंदा न करें. सुबह का भूला अगर शाम को वापस आ जाए तो उसे भूला नहीं कहते,’’ मुमताज बोली.

‘‘थैंक्स मुमताज, तुम बहुत अच्छी हो,’’ असलम प्यार से बोला.

‘‘अच्छे तो आप हैं, जो मुझ जैसी बदसूरत लड़की को भी अपना रहे हैं,’’ कह कर मुमताज ने हाथों में अपना चेहरा छिपा लिया और रोने लगी.

‘‘पगली, आज रोने का नहीं हंसने का दिन है. आंसुओं को अब हमेशा के लिए गुडबाय कह दो. अब मैं तुम्हें हमेशा हंसतेमुसकराते देखना चाहता हूं.

‘‘और खबरदार, जो अब कभी खुद को बदसूरत कहा. मेरी नजरों में तुम दुनिया की सब से हसीन लड़की हो,’’ ऐसा कह कर असलम ने मुमताज को अपने सीने से लगा लिया.

मुमताज सोचने लगी, ‘अंधेरी रात कितनी भी लंबी क्यों न हो, मगर उस के बाद सुबह जरूर होती है.’

रोनाल्डो और अक्षय फिटनेस के हैं मास्टर, फोलो करें इनके टिप्स

Olympics games शुरु हो गए है. फुटबौलर क्रिस्टियानो रोनाल्डो अपने खेल के लिए तो पूरे देश विदेश में मशहूर है लेकिन, साथ ही अपनी फिटनेस को लेकर भी पिछे नहीं है उनकी फिटनेस के फैंस दीवाने है. ऐसे ही बौलीवुड को हर साल चार से पांच फिल्में देने वाले अक्षय कुमार भी अपनी फिटनेस से पिछे नहीं है. उनकी फिटनेस के चर्चे हर तरफ है. तो आइए जानते है बौलीवुड के अक्षय कुमार की फिटनेस, डाइट और फुलबोल खिलाड़ी रोनाल्डो की फिटनेस के लिए क्या करते है.

 

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फुटबौलर क्रिस्टियानो रोनाल्डो की फिटनेस

रोनाल्डो आम लोगों की तरह आठ घंटे की नींद लेने की जगह दिनभर में 90-90 मिनट की पांच नींद लेते हैं. उनकी डाइट में दिनभर में दो लंच, दो डिनर होते हैं, इसमें सलाद, फल, सब्जियां, मोटा अनाज, अंडा और चिकन होता है. इनकी फिटनेस इतनी अच्छी है कि वे अपनी उम्र से कम दिखते है.

रोनाल्डो मेंटल हेल्थ पर भी खासा ध्यान देते हैं. वे परिवार और दोस्तों के साथ रहना पसंद करते हैं. जिम में कार्डियो एक्सरसाइज जैसे रनिंग, रोइंग और वेटलिफ्टिंग पर फोकस करते हैं. मैच के बाद वे 30 मिनट स्विमिंग जरूर करते हैं. रोनाल्डो अपने स्टैमिना को बढ़ाने और मांसपेशियों को एक्टिव रखने के लिए क्विक लेग वर्कआउट और वार्म अप भी करते हैं. यही नहीं रोनाल्डो बौक्स जंप, ब्रौड जंप और स्क्वैट्स आदि जैसी एक्सरसाइज भी करते हैं. रोनाल्डो फिट रहने के लिए कोई मौका नहीं छोड़ते हैं इसलिए वे साइकिलिंग भी जरूर करते है.

इटली के क्लब युवेंटस के लिए खेलने वाले पुर्तगाली फुटबौलर क्रिस्टियानो रोनाल्डो के इंस्टाग्राम पर 20 करोड़ फौलोअर्स है. जो उनके खेल और फिटनेस को लेकर प्रभावित है. Akshay kumar

बौलीवुड एक्टर अक्षय कुमार की फिटनेस

बौलीवुड एक्टर अक्षय कुमार साल में एक नहीं बल्कि कई फिल्में करते हैं. जिसके लिए उन्हें जमकर मेहनत करनी पड़ती है. अक्षय की चुस्ती और फुर्ती देख उनकी उम्र का अंदाजा लगाना बेहद मुश्किल है. अक्षय कुमार अपनी फिटनेस और एनर्जी से युवाओं को टक्कर देते हैं. जिसके लिए वे खुद का फिट रखते है. अक्षय फिटनेस अपनी फिटनेस को लेकर बेहद ही सीरियस रहते है. फिट बने रहने के लिए एक्टर वर्कआउट से लेकर डाइट तक बैलेंस रूटीन फौलो करते हैं.

अक्षय कुमार की डाइट की बात करें तो एक्टर सुबह एक गिलास दूध, मिल्क शेक या फिर जूस, अंडा, और पराठा खाते हैं. वहीं स्नेक्स क्रेविंग को खत्म करने के लिए एक्टर ड्राई फ्रूट, फ्रूट्स लेते हैं. लंच में एक्टर उबला हुआ चिकन या फिर, मिक्स हरी सब्जियां, दाल और दही जैसी हेल्दी चीजें खाते हैं. अक्षय कुमार के रात के खाने में हरी सब्जियां, सूप और सलाद आदि शामिल होता है.

जानकारी के मुताबिक, एक्टर अक्षय कुमार अपना स्टेमिना बढ़ाने के लिए वीक में दो बार बास्केटबौल खेलते हैं. इसके अलावा अक्षय स्विमिंग करते हैं. बता दें कि स्विमिंग करने से आप न सिर्फ फिजिकली फिट रहते हैं बल्कि मेंटली भी हेल्दी रहने में हेल्प मिलती है. वर्कआउट का टाइम न होने पर अक्षय कुछ देर वौक जरूर करते हैं.

हेल्दी रहने के लिए अक्षय रोजाना करीब आधे घंटे मेडिटेशन करते हैं. इसके साथ ही खुद को हाइड्रेट रखने के दिन में लिए 4-5 लीटर पानी पीते हैं. वहीं अक्षय फिट रहने के लिए प्रोटीन शेक लेने की बजाय अच्छी डाइट लेते हैं. क्योंकि उनका मानना है, प्रोटीन शेक से लौन्ग टर्म नुकसान हो सकता है. रात को सोने के करीब 4 घंटे पहले ही खाना खा लेते हैं. इस तरह अक्षय खुद को डेली रूटीन में फिट रखते है.

होटल में किया काम तो किसी के साथ हुई छेड़छाड़, ऐसा रहा भोजपुरी एक्ट्रेसेस का करियर

भोजपुरी की एक्ट्रैसेस आज अपने उस मुकाम पर है जहां वह पहुंचना चाहती थी. भोजपुरी की कई ऐसी एक्ट्रेसेस है जो अपनी कड़ी मेहनत और स्ट्रगल के साथ यहां तक पहुंची है और एक पौपुलर एक्ट्रेस बनीं है. लेकिन इनका यहां तक पहुंचने का सफर असान नहीं रहा है कई ऐसी एक्ट्रेसेस है जिन्होंने कास्टिंग काउच का भी सामना किया तो, कई एक्ट्रेस ने एक्टिंग से पहली कई तरह की नौकरियां की. जाने भोजपुरी की इन एक्ट्रेस के स्ट्रगल के बारें में जो आज यहां तक पहुंची है.

 

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मोनालिसा ने 120 रुपए के लिए होटल में किया था काम     

एक्ट्रेस मोनालिसा का शरुआती करियर बहुत मुश्किलों से भरा रहा. एक्ट्रेस की कड़ी मेहनत और टैलेंट के चलते आज वे इस मुकाम पर है. लेकिन एक टाइम ऐसा था जब एक्ट्रेस को 120 रुपय की नौकरी के लिए होटल में खड़े होकर काम किया करती थी.

मोनालिसा ने 15 साल की उम्र से ही काम करना शुरु कर दिया था. साथ ही उन्होंने अपनी पढ़ाई नहीं छोड़ी. पढ़ाई के साथ उन्होंने टीवी शोज और म्यूजिक एल्बम में काम करना शुरु किया था. मोनालिसा बंगाली हिंदू परिवार से है. उन्होंने भोजपुरी, हिंदी, बंगाली, उड़िया, तमिल, कन्नड़, और तेलुगु भाषाओं की फिल्मों में काम किया है.

एक बार एक्ट्रेस को सेक्सुअली अब्यूज भी किया गया था, जब वे केवल 11 साल की थी. मोनालिसा कोलकाता में घूमने आई थी. जिस दौरान एक शख्स ने बहाने से उन्हे सेक्सुअली अब्यूज किया था.

सबिया शेख से रानी चटर्जी बनने को मजबूर हुई थी एक्ट्रेस

रानी चटर्जी उन एक्ट्रेसेस में से है जो सबसे ज्यादा कमाई करने वाली एक्ट्रेस है. रानी चटर्जी का असली नाम सबिया शेख है. वे एक मुस्लिम परिवार से थी, उन्होंने अपने करियर की शुरुआत केवल 14 साल की उम्र में की थी. वे बौलीवुड और भोजपुरी सिनेमा में अपने एक्टिंग के लिए मशहूर हैं. लेकिन रानी का नाम सबिया शेख क्यों बदल गया. इसके पीछे उनकी दिलचस्प कहानी है.

रानी चटर्जी को फिल्म ससुरा बड़ा पैसे वाला मिली थी. जिसकी शूटिंग गोरखपुर के मंदिर में होनी थी. जिसे लेकर सबको ये चिंता थी कि मंदिर के पंडित को कोई दिक्कत ने की एक्ट्रेस मुस्लिम है जिस वजह से फिल्म के प्रोड्यूसर ने शबिया का नाम रानी रख दिया. जिसके बाद उन्हे रानी के नाम से ही जाना जाने लगा. Bhojpuri

जब रानी के साथ डायरेक्टर ने की थी छेड़-छाड़

रानी को हिंदी फिल्म के लिए एक बड़े बौलीवुड डायरेक्टर ने बुलाया था तो उनके साथ हरासमेंट हुई थीं.रानी डायरेक्टर से मिलने उनके औफिस गई थी जहां रानी के साथ बहुत बद्तमीजी हुई थी.

अंजना सिंह के लिए उड़ाई गई थी अफवाह कि इन्हें एड्स है

अपनी एक्टिंग से सबका दिल जीतने वाली अंजना आज भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री में टौप हीरोइन है. भोजपुरी फिल्मों की खूबसूरत एक्ट्रेस अंजना सिंह ने फिल्मों के साथसाथ कई टेलीविजन सीरियल में भी काम किया है, जिसमें महुआ चैनल पर आने वाला सीरियल “भाग ना बचे कोई” भी शामिल है. लेकिन क्या आप जानते हैं एक्ट्रेस बनने से पहले अंजना सिंह कहां जौब किया करती थीं. भोजपुरी सिनेमा में हौट केक के नाम से पहचाने जाने वाली अंजना सिंह एक्टिंग से पहले प्रोडक्शन मैनेजर के तौर पर काम किया करती थीं.

अंजना सिंह की ये जौब डायरेक्टर ने उनके कौन्फिडेंस को देखते हुए दी थी और इस जौब से मिलने वाली सैलरी अंजना के पिता की सैलरी के बराबर थी. अंजना को किसी भी तरह की कठिनाइयों का सामना नहीं करना पड़ा, लेकिन अंजना अपने टैलेंट के दम पर भोजपुरी हीरोइन है. लेकिन करियर की शुरुआत में अंजना को कंट्रोवर्सी का सामना जरुर करना पड़ा.

भोजपुरी इंडस्ट्री की एक दूसरी हीरोइन ने अंजना सिंह को लेकर एक बड़ी साजिश रची थी और ये जलन के चलते किया गया था. अंजना सिंह के शुरुआती दौर में उनको लेकर इंडस्ट्री में झूठी बातें फैलाई जा रही थीं. किसी ने अंजना सिंह से दूर रहो क्योंकि उसे एड्स हो गया है जैसा खबर फैलाई थी.

मैं दो लड़को से प्यार करती हूं, समझ नहीं आ रहा किससे शादी करूं?

सवाल
मैं एक युवक से बहुत प्यार करती थी और वह भी मुझे उतना ही चाहता था. मगर किसी बात के कारण हमारी बात 2 साल नहीं हो पाई, लेकिन हम दोनों एकदूसरे को नहीं भूल पाए. एक अन्य युवक, जो 2 साल से मुझे प्यार करता है और मैं भी उसे मन ही मन चाहने लगी हूं. लेकिन उसे मैं अपने पहले प्यार की तरह नहीं चाहती हूं. मगर इस युवक से मेरे घर वाले शादी के लिए मान गए हैं. अब जब शादी होने वाली है तो पहले वाला युवक मेरी जिंदगी में दोबारा आ गया है. मैं उस से अब भी प्यार करती हूं और अब वह भी मुझ से शादी करने को कह रहा है. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब

वास्तव में आप दोनों को ही धोखा दे रही हैं. जिन कारणों से आप का पहले युवक से मनमुटाव हुआ था और 2 साल तक बात नहीं हुई, क्या वे कारण दोबारा उत्पन्न नहीं होंगे? आप अपने पेरैंट्स से बात करें. यह गुड्डेगुड्डी का खेल तो है नहीं कि चलो वह नहीं, तो दूसरा फिट हो जाएगा. सोचसमझ कर ही निर्णय लें.

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ये हैं 9 तरीके प्यार के मीठे मीठे पल के

सुखद दांपत्य जीवन का आधार सफल सैक्स ही है और सैक्स यानी सहवास की सफलता पतिपत्नी दोनों पर निर्भर करती है. विकासपुरी, दिल्ली की नेहा का मानना है कि सफल सहवास तभी मुमकिन है जब आप के पति या पार्टनर आप को और्गेज्म तक पहुंचाएं. सैक्सोलौजिस्ट डा. अशोक कहते हैं कि पतिपत्नी दोनों ही चरम सुख प्राप्त कर सकें, इस के लिए एकदूसरे के प्रति आकर्षण, प्राइवेसी और मानसिक तौर पर तैयार होना जरूरी है.

आइए, जानते हैं प्यार के मीठे पलों के लिए जरूरी कुछ टिप्स:

  1. एकदूसरे के प्रति आकर्षण

पतिपत्नी का एकदूसरे के प्रति आकर्षण ही कामोत्तेजना पैदा करता है, क्योंकि आकर्षण ही सहवास के लिए दोनों में उत्तेजना पैदा कर शरीर में स्थित सैक्स ग्रंथियों में हारमोंस के स्राव का कारण बनता है.

डा. अशोक के मुताबिक किसी महिला के शरीर से अंडाणु निकाल दिए जाएं तो उस का आकर्षण पुरुष के प्रति लगभग समाप्त हो जाता है. इसी तरह अगर पुरुष के ब्रेन के नीचे की रस प्रवाहिका ग्रंथि निकाल दी जाए तो उस के अंडकोश सूख जाते हैं. सहवास करने की इच्छा के लिए सभी यौन ग्रंथियों की सक्रियता के साथसाथ आकर्षण बेहद जरूरी है.

डा. अशोक के मुताबिक, कई स्त्रीपुरुषों में एकदूसरे के प्रति आकर्षण का अभाव होता है, तो कोईकोई पुरुष हर बार नई स्त्री के साथ सहवास करना चाहता है. उस के लिए उम्र, रंगरूप कोई माने नहीं रखता. वह बस सहवास को प्राथमिकता देता है. पतिपत्नी के बीच सैक्स सफलता की कमी ही उन की सैक्स लाइफ को कष्टमय बना देती है.

  1. बैडरूम को सैक्सी लुक दें

सैक्सी मूड बनाने के लिए बैडरूम का सैक्सी लुक होना जरूरी है. बैडरूम में फूलों वाली बैडशीट बिछाएं, साटन के परदे लगाएं और उसे रंगीन गुलाबों से सजाएं और उस में कैंडल्स जलाएं. ऐसा माहौल आप को केवल रोमांटिक ही नहीं बनाएगा, बल्कि सैक्सुअल ऐनर्जी को बढ़ाने में मददगार होगा.

  1. खुशबू से महकाएं तन

परफ्यूम की खुशबू सहवास क्रिया में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है. खुशबू से महकता हुआ स्त्रीपुरुष का शरीर सैक्स इच्छा को तीव्र ही नहीं करता, बल्कि कामोत्तेजना को भी बढ़ाता है. भावनात्मक रूप से भी पतिपत्नी एकदूसरे के नजदीक आते हैं. इस से सैक्स लाइफ आनंदमयी बन जाती है.

  1. पहनें सैक्सी वस्त्र

सहवास को खास बनाने में सैक्सी वस्त्र अहम भूमिका निभाते हैं. पति को सरप्राइज देने के लिए सैक्सी इनरवियर पहनें. नाइटी भी रैड, गुलाबी, नीले रंग की चुनें. कामोत्तेजना बढ़ाने में सैक्सी वस्त्रों की अपनी अलग ही भूमिका होती है. ऐसा होने से पतिपत्नी दोनों ही चरम सुख को प्राप्त कर सकते हैं.

  1. आलिंगन भी अहम

विवाह के बाद तनमन दोनों ही मिलते हैं. यही शारीरिक स्पर्श रिश्तों को मजबूती प्रदान करता है. कभीकभी काम की अधिकता की वजह से पतिपत्नी आलिंगन, चुंबन और सहवास करने का समय ही नहीं निकाल पाते हैं. सहवास के समय आलिंगन, स्पर्श, चुंबन को महसूस कर सफल सैक्स को अंजाम दिया जा सकता है.

  1. भावनात्मक भी रहें

अकसर सैक्स क्रिया से पूर्व सुखद वातावरण बिना बनाए ही पति पत्नी से संबंध बनाने की चेष्टा करते हैं. जबकि भावनात्मक पहलू को सैक्स के दौरान और बाद में भी समझना चाहिए. पति पत्नी की आंखों में शर्म, प्यार और शब्दों में भावनात्मक प्यार ही चाहता है, तो पत्नी भी चाहती है कि पति उस के काम की प्रशंसा और सौंदर्य की सराहना करे. इस के साथसाथ दोनों एकदूसरे के यौन संबंधी स्वभाव की भिन्नता को जानते हुए भी एकदूसरे को कौपरेट करें.

  1. जल्दबाजी ठीक नहीं

डा. अशोक के मुताबिक महिलाओं में सहवास संतुष्टि को ले कर 3 प्रकार की विभिन्नताएं पाई जाती हैं:

जल्दी संतुष्ट होने वाली.

थोड़ी देर में संतुष्ट होने वाली.

देर से संतुष्ट होने वाली.

कई पति पत्नी को पूर्णरूप से सैक्स के लिए तैयार न कर के जल्दबाजी में सहवास करते हैं. जबकि उन्हें अपनी पत्नी को उस की मनोवृत्ति के अनुसार सैक्स में संतुष्ट करना चाहिए. पत्नी यदि विभिन्न रतिक्रियाओं से संतुष्ट होने वाली हो तो पति को उस पर भी ध्यान देना चाहिए.

  1. सहवास से पहले

इस के अलावा सहवास से पहले स्पर्श, आलिंगन, चुंबन, मर्दन आदि कामक्रीडाओं से उत्तेजना को चरम सीमा पर पहुंचा कर ही सहवास करना चाहिए. पूर्ण संतुष्टि के लिए पतिपत्नी को लज्जा, भय, संकोच, अशांति को त्याग कर कामक्रीडा को अंजाम देना चाहिए.

  1. तनाव न करें

सैक्स का मनमस्तिष्क से संबंध होता है. यदि मन में भय, चिंता, लोकलाज का भय हो तो कई बार प्रथम सहवास में पुरुष शीघ्रपतन का शिकार बन जाता है और थकान व तनाव की स्थिति में पतिपत्नी दोनों ही सफल सहवास करने और सैक्स का आनंद उठाने से वंचित रह जाते हैं. दांपत्य जीवन में सैक्स सुख सही तालमेल और प्रसन्न रहने से ही प्राप्त होता है.

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