उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले के एक गांव बरौना से थोड़ी दूर खेतों में बाबा बटेश्वर का बहुत बड़ा आश्रम था, जहां दुखियारों के दर्द मिटाए जाते थे.
बाबा बटेश्वर 45 साल के थे, पर उन के चेहरे पर चमक ऐसी थी मानो 30 साल के हों. पढ़ेलिखे कितने थे, यह तो उन के फरिश्तों को भी नहीं मालूम, पर कोई भी धार्मिक किताब रटने की कला में नंबर वन थे.
वैसे तो बाबा बटेश्वर की कई चेलियां थीं, पर साध्वी सुधा का जलवा ही अलग था. वह बाबा बटेश्वर के हर राज जानती थी और 26 साल की कम उम्र में ही पेचीदा से पेचीदा काम का हल ढूंढ़ने में माहिर थी. वह खूबसूरत होने के साथसाथ शातिर भी.
एक दिन साध्वी सुधा और बाबा बटेश्वर एक गंभीर मसले पर बात कर रहे थे. बाबा थोड़े चिंतित थे, पर साध्वी सुधा उन के माथे को दबाते हुए कह रही थी, ‘‘आप क्यों टैंशन ले रहे हैं? हमारा धंधा एकदम बढि़या चल रहा है.’’
इस पर बाबा बटेश्वर सुधा का हाथ अपने हाथ में ले कर बोले, ‘‘तुम सम?ा नहीं रही हो. जितनी कमाई होनी चाहिए, उतनी हो नहीं पा रही है. अब आश्रम में औरतें कम दिखती हैं. ऐसे ही चलता रहा, तो हम सब सड़क पर आ जाएंगे.’’
साध्वी सुधा ने बाबा बटेश्वर के हाथों को प्यार से दबाते हुए कहा, ‘‘मैं ने इस का भी तोड़ निकाल लिया है. यहां शहर के पास ही मैं ने 2 ऐसे अस्पताल बंद करा दिए हैं, जहां औरतों की बीमारियों का इलाज किया जाता था. वहां गर्भपात कराने वाली लड़कियां, औरतों की बीमारियों से जू?ाने वाली लड़कियां और औरतें, पागलपन के दौरे पड़ने वालियों का इलाज किया जाता था.
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