“बस्तर गर्ल” की एवरेस्ट फतह !

नैना सिंह धाकड़ एक ऐसा नाम है जो आज रातों रात, किसी परिचय का मोहताज नहीं रहा. प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल राज्यपाल सुश्री अनुसुइया उइके सहित देश प्रदेश के गणमान्य विभूतियां नैना सिंह को बधाई दे रही है. दरअसल नैना सिंह धाकड़ नामक इस युवती ने छत्तीसगढ़ जैसे आदिवासी प्रदेश और बस्तर जैसे दुर्गम नक्सलवाद से गिरे हुए अंचल से जो ऐतिहासिक काम किया है उसे देखकर सभी आवाक, अचंभित हैं कि यह कैसे हो गया.

आइए! आज आपको नैना सिंह धाकड़ के उस संघर्ष से परिचय कराते हैं जिसकी बदौलत आज वह लोगों की जुबां पर है और देश का सम्मान बन गई है.

वस्तुत: छत्तीसगढ़ की प्रसिद्ध इंद्रावती नदी की तरह..जिस प्रकार कोई नदी दुर्गम पथरीली पहाड़ियों से गुजरते हुए अपना रास्ता सुगम बनाकर हम सब के लिए जीवनदायिनी बन जाती है, ठीक उसी प्रकार आज की ये नैना सिंह छत्तीसगढ़ की एक मात्र महिला पर्वतारोही  है जिसके नाम दुनिया की सबसे ऊँची पर्वत चोटी माउंट एवरेस्ट(8848.86 मीटर) और विश्व की चौथी सबसे ऊँची चोटी लोत्से (8516 मीटर ) को फ़तह करने का गौरव दर्ज हो गया है, उनकी यह उपलब्धि स्वर्णिम अक्षर में 1 जून 2021 को  इतिहास के पन्नों में अंकित हो गई. नैना को बस्तर गर्ल के नाम से भी जाना जाता है.

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सतत श्रम का परिणाम

नैना सिंह बताती हैं कि यह उपलब्धि कोई एक दिन की नहीं है. यह उनका बचपन का एक ख्वाब था कि उन्हें दुनिया की ऊंची चोटी को छूना है और देश का तिरंगा लहराना है.

इसके लिए उन्होंने अथक मेहनत की. प्रारंभिक चरण में जाने कितनी कठिनाइयां आई मगर नैना रूकी नहीं, आगे बढ़ती चली गई  आखिरकार अपने जीवन के लक्ष्य को प्राप्त कर लिया.

नैना सिंह की इस उपलब्धि पर मुख्यमंत्री बघेल जी द्वारा बधाई दी साथ ही मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा नैना ने अपने दृढ़ संकल्प, इच्छाशक्ति तथा अदम्य साहस से यह कर दिखाया है नैना की इस  सफलता से प्रदेश का गौरव बढ़ गया है.

माउंट एवरेस्ट को फतह करने के लिए जिस साहस, संघर्ष और अदम्य इच्छाशक्ति की आवश्यकता होती है हुआ निसंदेह बस्तर की इस बिटिया नैना सिंह में समाया हुआ है यही कारण है कि 60 दिनों में तय की गई ये दूरी नैना के 10 साल के अथक प्रयास का परिणाम है!

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अगर हम आज बात करे नैना सिंह धाकड़ की तो ये खबर और खास इसलिए भी हो जाती है कि ये जहां की  है वो बस्तर अंचल आज पूर्ण रूप से नक्सली प्रभावित क्षेत्र है, नैना जगदलपुर जिला मुख्यालय से करीब 10 किमी दूर स्थित एक्टा गुड़ा गाँव में पैदा हुईं और शिक्षा दीक्षा प्राप्त की. यह सच है कि इस तरह के इलाके अल्पसुविधाओं से युक्त होते है. जीविका के साधन के रूप में यहाँ के निवासी बहुतायत में तेंदूपत्ता ,महुआ को बेचना,चाय बेचना, छोटी मोटी दुकाने, ग्राम उद्योग जैसी सीमित अर्थ धन उपलब्ध कराने वाले संसाधन पर निर्भर होते है‌ जो दुनिया जानती है. इन विपरीत परिस्थितियों के बावजूद वहाँ की बालिका अगर सारी विषमताओं को दरकिनार कर अपने जोश और जुनून से अपने लक्ष्य को हासिल करती है,तो निश्चित रूप से ये उसके साथ- साथ देश के लिए बहुत बड़ी ऐतिहासिक उपलब्धि  है.

ढेर सारी खामियां, फिर भी खिलता है कमल

छतीसगढ राज्य के लिए यह पहला अवसर नहीं है जब यहाँ की बेटी ने घर की चार दिवारी से निकलकर पूरे देश मे व देश से बाहर हमारे देश का परचम फहराया है.

इसके पहले भी इसी तरह से नक्सल प्रभावित क्षेत्र बीजापुर से सॉफ्टबॉल खिलाड़ी अरुणा और सुनीता, कोरबा से शूटिंग में एक मात्र महिला श्रुति यादव( गोल्डन गर्ल) ,राजनांदगांव से रेणुका यादव एक मात्र महिला हॉकी ओलंपिक  चैंपियन आदि ऐसी छतीसगढ़ की बहुत सी महिला विभूतियाँ है जिन्होंने समय समय पर पूरे देश मे छत्तीसगढ़ राज्य का प्रतिनिधित्व किया है.

पर्वतारोही नैना सिंह ने अपने इस ऐतिहासिक सफलता के बाद कहा है उनके सामने और भी कई लक्ष्य है जिन्हें वह शीघ्र ही पूरा करने का प्रयास करेंगी.

प्रदेश में अल्पसुविधाओं के बावजूद अगर  राज्य की बेटियाँ स्वयं को सिद्ध करने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा देती है तो सम्पूर्ण सुविधा मिलने पर इनका विकास स्तर कहाँ तक जा सकता है ये विचारणीय है.

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इसी कड़ी में अगर बात करें यहाँ की सरकार की तो छत्तीसगढ़ सरकार  दूरदराज़ दुर्गम क्षेत्रों में खेल ,संस्कृति,शिक्षा,संरक्षण ,पोषण से संबंधित सुविधाओं को ध्यान में रखकर विशिष्ट पहल करे  इसे पूरा करने हेतू बहु-क्षेत्रीय योजनाओं और सहयोगात्मक कार्यों को अंजाम देना आवश्यक है, जिससे प्रतिभाशाली बच्चों को बैद्धिक ज्ञान के साथ- साथ तकनीकी ज्ञान भी पर्याप्त रूप से मिल सके, और ऐतिहासिक उपलब्धियों की निरंतरता बनी रहे.

एटीएम: नाबालिगों को रूपए का लालच!

आज का समय रुपयों का समय है. छोटे-छोटे बच्चे जैसे ही होश संभालते हैं उन्हें रूपया अपनी और आकर्षित करने लगता है उन्हें महसूस होता है कि उन्हें रुपया चाहिए और जब रूपया पैसा घर में नहीं मिलता तो वह राह चलते रूपयों के खजाने एटीएम की ओर ताकने लगते हैं. उन्हें लगता है कि यह कारू का खजाना है जिसे वह बहुत आसानी से पा सकते हैं, मगर…

छतीसगढ़ के जिला दुर्ग- उतई मेन रेड पर थाने से कुछ दूरी पर एक मकान में हिताची कंपनी का एटीएम लगा हुआ है. रात करीब रात 1.30 बजे 3 नाबालिग एटीएम बूथ के अंदर घुसे. अंदर घुसते ही वहां लगे लाइट और सीसीटीवी कैमरे तोड़ दिए.और रात करीब 3 बजे तक एटीएम में तोड़फोड़ करते रहे.
नाबालिगों ने ने एटीएम में लगी स्क्रीन व की-बोर्ड को भी बाहर निकाल लिया और पटक दिया. इसके बाद भी रुपयों से भरे चैंबर को खोलने में कामयाब नहीं हो सके. सुबह एटीएम में तोड़फोड़ देख पुलिस को सूचना दी गई.

इसके पहले भी नगर में एटीएम में चोरी का प्रयास हो चुका है. भिलाई में ही पहले भी हिताची कंपनी के एटीएम में चोरी का प्रयास किया जा चुका है. छावनी और वैशाली नगर क्षेत्र में भी ऐसी ही वारदात सामने आई थी. जब पुलिस छानबीन करने लगी तो जो चेहरे सामने आए उससे लोगों को आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा क्योंकि इस संपूर्ण वारदात में 18 साल से कम उम्र के नाबालिगों किशोरों की भूमिका उजागर हुई.

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होना चाहते हैं मालामाल!

आदिवासी बाहुल्य जिला जशपुर कोतवाली पुलिस ने बैंक के एटीएम को तोड़ने के प्रयास और दुकानों के ताले तोड़कर चोरी करने के लिए आरोप में 4 लोग गिरफ्तार हुए है. और इस वारदात में 2 नाबालिग भी शामिल हैं. इन आरोपियों ने शहर के कई घरों में चोरी की घटना को अंजाम दिया था. फिलहाल पुलिस ने सीसीटीवी फुटेज के आधार पर आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया है.

शहर में एटीएम तोड़ने के कई प्रयास हुए. कोतवाली के प्रभारी ओम प्रकाश ध्रुव ने हमारे संवाददाता को बताया कि 23 मई की रात को सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया के मुंबई स्थित मुख्यालय से उन्हें एटीएम तोड़ने की सूचना दी गई. पुलिस को सूचना मिली की शहर के गम्हरिया रोड स्थित सेंट्रल बैंक के एटीएम बूथ में दो अज्ञात युवक घुसकर मशीन के केस वाल्ट को तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं. सूचना पर कोतवाली पुलिस की पेट्रोलिंग टीम एटीएम बूथ पहुंच गई, लेकिन उससे पहले एटीएम का सायरन बज जाने से आरोपी मौके से फरार हो गए.

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फिर इन लोगो ने हरि ओम किराना दुकान के शटर को तोड़ने की नाकाम कोशिश की शिकायत पुलिस को मिली. दुकान के सीसीटीवी कैमरे में आरोपी की तस्वीर कैद हो गई थी . इस फुटेज के आधार पर छानबीन शुरू की गई. फुटेज के आधार पर देव कुमार राम और लोकेश्वर राम का नाम सामने आया. संदेह के आधार पर पूछताछ के लिए हिरासत में लिए जाने पर इन आरोपियों ने दो बाल अपचारीयों के साथ मिलकर इन दोनों ही वारदातों के साथ घर में चोरी की बात स्वीकार की. दोनों ने शहर के भागलपुर मोहल्ले में स्थित बंसराज किराना स्टोर, अमेलिया मींस, विशाल सोनी और ओम प्रकाश सिन्हा के घर में चोरी की वारदात को अंजाम देने की बात स्वीकार की.

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जरूरत अच्छे माहौल की

दरअसल किशोर अवस्था में अगर सही मार्गदर्शन नहीं मिले समझाइश न मिले तो रास्ता भटक जाने की बहुत ज्यादा आशंका रहती है.

ऐसे में परिजनों को चाहिए कि 12 वर्ष की उम्र के साथ ही बच्चों में स्वावलंबन और ईमानदारी का पाठ पढ़ाया जाना चाहिए, अच्छी अच्छी प्रेरक कहानियां बच्चों को पढ़नी चाहिए और उन्हें परिजनों को सुनानी चाहिए इस सबसे बच्चों में मनोविकार उत्पन्न नहीं होते.

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पुलिस अधिकारी इंद्र भूषण सिंह के मुताबिक दरअसल युवा होते बच्चे पैसों के प्रति आकर्षण रखते हैं जो कि स्वाभाविक है. जब घर में रुपए पैसे नहीं मिलते तो उन्हें लगता है कि एटीएम तोड़ कर के भी अपनी जरूरत पूरा कर सकते हैं.मगर वे भूल जाते हैं कि एटीएम के आसपास सीसीटीवी लगे रहते हैं और एटीएम को तोड़ पाना भी इतना आसान नहीं है. इस तरह किशोर अपराधिक दुनिया में प्रवेश कर जाते हैं और अपनी जिंदगी बर्बाद कर लेते हैं.

सामाजिक कार्यकर्ता, टी महादेव राव के मुताबिक किशोरों को परिजनों का आदर्श मार्गदर्शन बहुत आवश्यक होता है उन्हें कानून का महत्व भी बताना जरूरी है और सबसे बड़ी चीज है कि मेहनत से रुपए कमाने की सीख बच्चों को किशोरावस्था में ही मिल जानी चाहिए.

बीमारी की मार: रेहड़ी पटरी वालों की जिंदगी बेकार

लेखक- हेमंत कुमार

किसी भी शहर को शहर कहलाने का काम वहां की तंग गलियों में लगने वाले बाजार और गले से चीखचीख कर आवाज लगाते हुए फेरी वाले ही करते हैं. ऐसा शोरगुल, ऐसी भीड़भाड़ किसी बड़े शहर में ही देखने को मिलती है. ये ऐसे कारोबारी होते हैं, जो बिलकुल न के बराबर की कीमत पर ग्राहकों को घर के दरवाजे पर सुविधाएं मुहैया कराते हैं.

बीते साल कोरोना के चलते लगे लौकडाउन में सब से ज्यादा नुकसान अगर किसी को पहुंचा है, तो वे हैं यही रोज कमानेखाने वाले रेहड़ीपटरी और फेरी लगाने वाले छोटे गरीब कारोबारी.

नैशनल एसोसिएशन औफ स्ट्रीट वैंडर्स औफ इंडिया  के मुताबिक देखा जाए, तो देश की जीडीपी यानी सकल घरेलू उत्पाद में  ऐसे कारोबारियों का योगदान काफी ज्यादा रहता है. दिल्ली और मुंबई जैसे बड़े शहरों में इन का योगदान 1,590 करोड़ रुपए सालाना तक पहुंच जाता है.

चूंकि इन लोगों का सारा कारोबार खुले आसमान के नीचे भीड़भाड़ वाली जगहों पर ही होता है, तो जाहिर सी बात है कि महामारी के फैलने का जोखिम सब से ज्यादा इन ही लोगों से था और ऐसे ही आसार इस साल फिर से बनते नजर आ रहे हैं. मतलब, इन की जिंदगी से एक बार फिर खिलवाड़ होने वाला है.

इन फेरी, रेहड़ी और पटरी वालों की निजी जिंदगी पर नजर डालें, तो हम यह जान पाएंगे कि आखिर किस तरह लौकडाउन के चलते इन की निजी जिंदगी में भी लौक लग जाता है.

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दिल्ली में पटरी लगाने वाले रंजीत से बातचीत करने से मालूम पड़ता है कि इन की जिंदगी लौकडाउन से किस तरह बरबाद हुई. पेश हैं, रंजीत के साथ हुई बातचीत के खास अंश :

मूल रूप से आप कहां के रहने वाले हैं और दिल्ली में कब से रह रहे हैं?

मैं मूल रूप से झारखंड राज्य के साहिबगंज जिले का रहने वाला हूं और जाति से कुम्हार हूं. गांव के सारे लड़कों की तरह मैं भी जवानी में दिल्लीमुंबई भटका और आखिर में यहां दिल्ली में ही पटरी लगाने का काम करने लगा.

मैं 20 साल पहले ही दिल्ली आया था और तब से यहीं हूं. पहले जिम्मेदारियां कम थीं और भविष्य का कोई प्लान न था, पर बाद में सांसारिक जाल में फंस कर यहां रहना अब मेरी मजबूरी बन चुकी है.

आप की जीविका का साधन क्या है और बीते साल लौकडाउन से आप को किनकिन समस्याओं का सामना करना पड़ा? इस बार हालात कैसे हैं?

मैं पेशे से एक पटरी वाला हूं और दिल्ली में सदर बाजार, त्रिलोकपुरी और आजादपुर जैसी जगहों पर बाजार लगाता हूं. बाजार में  रेहड़ीपटरी वालों को पहले से ही कई तरह की असुविधाओं का सामना करना पड़ता ही है.

हमें ठेकेदारों को शांतिपूर्ण तरीके से बाजार लगाने के बदले 400-500 रुपए रोजाना देने पड़ते हैं. अगर हम ये पैसे न दें तो अगली बार से हमारी जगह पर किसी दूसरे को बैठा दिया जाता है.

उस इलाके के थानेदार की मिलीभगत होने के चलते हमारी सुनवाई करने वाला कोई नहीं होता, ऊपर से लौकडाउन के लग जाने से हमारी आजीविका पूरी तरह से बरबाद हो गई है. अपनी जगह बनाए रखने के लिए हमें पहले ही कई लोगों को अपनी दिनभर की कमाई का कुछ हिस्सा देना पड़ता है.

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आप किस तरह की चीजें बेचते हैं और दिन में तकरीबन कितने पैसे कमा लेते हैं?

मैं मौसम और मांग के हिसाब से कपड़े बेचता हूं. अगर काम ठीकठाक हुआ, तो मेरी रोजाना की आमदनी  800-1000 रुपए तक पहुंच जाती है, पर मंदी के दौरान लागत भी निकाल पाना मुश्किल हो जाता है, ऊपर से नगरपालिका के अफसर कभी भी आ कर सारा माल ट्रकों में भर कर ले जाते हैं. और तो और विरोध करने पर हिंसक कार्यवाही भी करते हैं.

लौकडाउन लग जाने से हालात बद से बदतर होने के कगार पर पहुंच गए थे. मेरे साथी पटरी वाले जैसेतैसे अपने गांव पहुंच गए. मैं ने भी कोशिश की, पर उस समय ट्रेनों की टिकट मिलना बहुत मुश्किल था और ट्रेन के अलावा किसी और साधन का खर्च उठा पाना मेरे बस में नहीं था.

कोरोना की दूसरी लहर की शुरुआत से काम पर क्या असर पड़ रहा है?

अभी तो हम पहली वाली लहर से ही आगे नहीं निकल सके थे कि यहां इस साल भी कोरोना की दूसरी लहर ने दस्तक दे दी है. बाजारों में खरीदारी करने वाले भी कोई बड़े लोग नहीं होते हैं, बल्कि वे भी हमारी तरह आम परिवारों से ही आते हैं.

अब थोड़ाबहुत काम होना शुरू ही हुआ था कि लोग दोबारा लौकडाउन के डर से अपने घरगांवों को जा रहे हैं. ऐसे में हमारे पास भी घर लौट जाने के अलावा कोई और चारा नहीं बचता, पर हमारे घर लौट जाने से भी हमारी चिंता खत्म नहीं होती.

हमारे बच्चों की पढ़ाईलिखाई, मकान का किराया, बाकी लोगों से लिए हुए कुछ उधार, इन सब उल?ानों की खातिर हमें कहीं और जा कर भी चैन नहीं है.

इस समय आप को सरकार से क्या उम्मीदें हैं?

सरकार से यही उम्मीद है कि वह इस बार के लौकडाउन से पहले अतिरिक्त ट्रेनें चलवा कर हमें अपने गांव पहुंचाने में मदद करे. प्राइवेट बस व ट्रकों से हजारों रुपए की टिकट खरीद कर जाने के हमारे हालात नहीं हैं.

यहां से गए तो हमारे बच्चों की पढ़ाईलिखाई छूट जाएगी, पर यहां रहे भी तो बच्चों की स्कूल की फीस कहां से  देंगे. जब रोजगार ही नहीं रहेगा, तो हम करेंगे क्या…

क्या पिछले साल आप को सरकार से कोई मदद मिली थी?

पिछले साल सरकार से कुछ  योजनाएं जैसे पीएम स्वनिधि योजना से 10,000 रुपए का कर्ज देने की योजना लागू तो हुई थी, पर सिर्फ उन के लिए, जो सरकारी कागजों पर असल माने में रेहड़ीपटरी वाले हैं, लेकिन हम जैसे कई लोगों के पास कोई सुबूत नहीं कि  हम रेहड़ीपटरी लगाते हैं. इस वजह से  हमें उस योजना का कोई फायदा न  मिल सका.

ऐसे ही कई छोटेमोटे कारोबारी हैं, जो फैक्टरियों, बाजारों, रेलवे स्टेशनों पर कुली और ट्रांसपोर्ट सैक्टर में बो?ा ढोने का काम करने के लिए अपने गांवों से बहुत ही कम उम्र में निकल आते हैं, उन्हें बड़े शहरों में मुसीबत के समय सब से ज्यादा मार झेलनी पड़ती है.

गांव से शहर आ कर काम करने का सीधासादा यही मतलब है कि इन के गांवों में किसी भी तरह के रोजगार का मौका नहीं होता है और न ही ये इतने पढ़ेलिखे होते हैं कि कोई अच्छी नौकरी कर सकें, जिस वजह से गांव में मजदूरी करने से अच्छा इन्हें शहर आ कर मजदूरी करने में फायदा दिखता है.

चूंकि शहर में रोजगार के मौके, दिहाड़ी और मजदूरी की गुंजाइश ज्यादा है, तो शहर आना ही इन के लिए एकमात्र रास्ता रह जाता है. पर ऐसे मजदूरों की मजदूरी ले लेना और मुसीबत के समय भूल जाना हमारे समाज की कड़वी सचाई है.

मजदूरों के बिना कलकारखानों की कल्पना नहीं की जा सकती है. ऐसे में सरकार द्वारा इन का शोषण किया जाना बेहद भेदभाव वाला काम है.

जहां आईपीएल में मैच न खेलने वाले क्रिकेटरों को भी कई करोड़ रुपए दिए जाते हैं, नेताओं के बिजली बिल, पानी बिल, टैलीफोन बिल, बंगले के किराए, निजी सिक्योरिटी, सरकारी नौकरचाकर व दूसरी सुविधाओं पर सरकार सालाना 3 करोड़ से साढ़े  3 करोड़ रुपए का बोझ उठा सकती है, तो क्या ऐसे मजदूरों को इन के गांव भेजने के लिए कुछ दिनों के लिए अतिरिक्त ट्रेनें व बस सेवा मुफ्त में  या कम किराए पर मुहैया नहीं  करवा सकती?

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कितने ही लोगों को लौकडाउन में बच्चों की पढ़ाईलिखाई छुड़ानी पड़ी. क्या ऐसे समय में पैसों की कमी में बच्चों की पढ़ाईलिखाई न छूटे, इस बारे में सरकार कोई ठोस कदम नहीं उठा सकती?

अगर बाजारों की भीड़ में कोरोना फैलता है, तो क्या किसी चुनावी रैली में लोगों की भीड़ कोरोना नहीं फैलाती? क्या सरकारी मदद को आसान शर्तों पर इन्हें मुहैया नहीं कराया जा सकता?

दिल्ली में रेहड़ी, पटरी व फेरी वालों की तादाद 3,00,000 के आसपास है, पर सरकारी कागजों पर सिर्फ 1,25,000 लोग ही कानूनी तौर पर रेहड़ीपटरी लगाते हैं. ऐसे में हमारी तरह बचे 1,75,000 नामालूम रेहड़ीपटरी वाले किस से मदद की आस रखें? चूंकि इन के पास गरीब होने का कोई सरकारी सुबूत नहीं है, सो इन पर ध्यान देने वाला भी कोई नहीं है.

रेहड़ीपटरी, फेरी लगाने वाले, छोटे कारखानों में मजदूरी करने वाले ज्यादातर कारोबारी बिहार, ?ारखंड और बंगलादेश के बहुत ही पिछड़े इलाकों से ताल्लुक रखते हैं और जवान होतेहोते बड़े शहरों में रोजगार की तलाश में आ जाते हैं.

देखा जाए तो बिहार से मजदूरों का रोजगार की तलाश में बड़े शहरों में आने का एक अच्छाखासा इतिहास रहा है, जिस की एक वजह बिहार में गैरकृषि क्षेत्र में रोजगार के मौके न के बराबर होना है.

आईएचडी के एक सर्वे के मुताबिक, बिहार के गोपालगंज और मधुबनी जिलों से मजदूरों का बड़े शहरों में जाना ज्यादा देखने को मिलता है. कुम्हार, ग्वाला और शूद्र जाति से होने के चलते इन के पारंपरिक आजीविका के स्रोत पूरी तरह से बरबाद हो चुके हैं.

रंजीत कुम्हार जाति का है, जिस का काम मिट्टी के बरतन बनाना और बाजार में बेचने का होता था, पर औद्योगीकरण की मार के चलते कुम्हार जाति के बारे में अब सिर्फ किताबों में पढ़ने को मिलता है.

इतना ही नहीं, बाकी लोगों के साथ इसती तरह की आम समस्याएं हैं, जिस वजह से इन्हें शहर की ओर जाना पड़ता है. शुरुआत में इन की मंशा सिर्फ बड़े शहरों में जा कर पैसा कमाने की होती है, लेकिन तमाम जिम्मेदारियां, बीवीबच्चे और घरसंसार के जाल में फंस कर इन्हें अपनी जिंदगी इन्हीं बड़े शहरों में गुजारनी पड़ती है, जिस का एहसास इन्हें लौकडाउन जैसे हालात में देखने को मिलता है.

मेरी बेटी मेरा अभिमान

आज के युग में लड़कियां लड़कों से कंधा मिला कर हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं. आंध्र प्रदेश पुलिस के सर्किल इंसपेक्टर श्यामसुंदर की बेटी वाई. जेस्सी प्रशांति अपनी मेहनत और लगन से डीएसपी बनीं.

एक समय था, जब हर पिता चाहता था कि उस का बेटा उस की जिम्मेदारी संभाले. उस की अपेक्षा अधिक से अधिक ऊंचाई हासिल करे. उस के क्षेत्र में उस से भी बहुत आगे निकल जाए. पर अब समय बदल गया है. आज पिता केवल अपने बेटे के लिए ही नहीं, अपनी बेटी के लिए भी यही उम्मीद करने लगा है. इक्कीसवीं सदी में महिलाओं ने हर क्षेत्र में अपनी काबिलियत दिखाई है. इस के पीछे इसी तरह के उम्दा विचार रखने वाले पिताओं की ही अहम भूमिका है.

यह पिता की लगन और इच्छाशक्ति का ही नतीजा है कि आज उस पिता के लिए इस से अधिक खुशी और गर्व की बात क्या होगी कि उस की बेटी उसी के नक्शेकदम पर चल कर न केवल कामयाबी हासिल कर रही है, बल्कि उस से भी एक कदम आगे निकल रही है. ऐसा ही कुछ जनवरी महीने में  आंध्र प्रदेश में पुलिस विभाग में देखने को मिला.

आंध्र प्रदेश में पुलिस विभाग में सीआई के पद पद पर तैनात श्यामसुंदर ने जब अपनी डीएसपी बेटी को सैल्यूट किया तो गर्व से उन का सीना चौड़ा हो गया. इस के बाद दिल को छू लेने वाली यह तसवीर सोशल मीडिया पर वायरल हुई तो लोगों ने उसे हाथोंहाथ लिया.

3 जनवरी, 2021 को आंध्र प्रदेश पुलिस ने तिरुपति में पुलिस ड्यूटी मीट 2021 का आयोजन किया था, जिस का उद्घाटन डीजीपी गौतम सवांग ने किया था. इसी कार्यक्रम में भाग लेने आई पुलिस अफसर बेटी को देख कर सीआई पिता भावुक हो उठे थे.

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वाई. जेस्सी प्रशांति 2018 बैच की राज्य लोक सेवा आयोग की पुलिस अधिकारी हैं. इस समय वह आंध्र प्रदेश के जिला गुंटूर दक्षिण (शहर) में डीएसपी के पद पर तैनात हैं. तिरुपति में आयोजित पुलिस ड्यूटी मीट 2021 में प्रशांति की भी ड्यूटी लगी हुई थी. प्रशांति के पिता श्यामसुंदर तिरुपति कल्याणी डेम के नजदीक स्थित पुलिस प्रशिक्षण केंद्र में सीआई हैं.सीआई श्यामसुंदर की भी ड्यूटी पुलिस ड्यूटी मीट में लगी थी.

पुलिस ड्यूटी मीट में बेटी को ड्यूटी करते देख सीआई श्यामसुंदर चौंके. बेटी को डीएसपी की वरदी में देख कर वह बहुत खुश हुए, साथ ही गौरवान्वित भी. सीआई श्यामसुंदर ने अन्य पुलिस अफसरों के साथ डीएसपी बेटी को सैल्यूट तो किया ही, साथ ही यह भी कहा कि ‘नमस्ते मैडम’. जवाब में डीएसपी बेटी प्रशांति ने भी पिता को सैल्यूट करने के साथ आशीर्वाद भी लिया. वहां आए पुलिसकर्मी बापबेटी को इस तरह सैल्यूट करते देख भावुक हो उठे.

यह सब ऐसे ही नहीं संभव हुआ. इस के पीछे आंध्र प्रदेश के रहने वाले और पुलिस विभाग में नौकरी करने वाले श्यामसुंदर की इच्छाशक्ति थी. उन के घर जब बेटी का जन्म हुआ तो वह उदास या निराश होने के बजाय बहुत खुश हुए. उन्होंने उसी समय तय कर लिया कि वह बेटी को खूब पढ़ालिखा कर आगे बढ़ाएंगे. वह अपनी बेटी वाई. जेस्सी प्रशांति को अकसर राउंड पर जाते समय साथ ले जाते थे.

उस समय वह बेटी को गर्व से अपने कार्य और फर्ज के बारे में समझाते. पिता को मिलती सलामियां देख कर भविष्य में उस के लिए भी ये पल आए, इस तरह का सपना प्रशांति के बालमन में बैठ गया. वह समझ गईं कि पुलिस वरदी को कितना मान और सम्मान मिलता है. इस के अलावा लोगों की सेवा करने का मौका मिलता है. इन्हीं सब चीजों ने प्रशांति को पुलिस सेवा की ओर आकर्षित किया. यानी पिता ही बेटी के रोल मौडल बने.

12वीं में अच्छे नंबर आने की वजह से प्रशांति को इंजीनियरिंग कालेज में दाखिला मिल गया. फिर भी उन के दिल में अपने पिता की तरह पुलिस की नौकरी कर के देश और जनता की सेवा करने की भावना बनी रही. अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद प्रशांति सिविल सर्विस परीक्षा की तैयारी करने लगीं.

जब बेटी की इच्छा की जानकारी श्यामसुंदर को हुई तो इस क्षेत्र में महिला कर्मचारी के रूप में बेटी के सामने आने वाली चुनौतियों के बारे में उसे बताया. शुरुआत में श्यामसुंदर का मन थोड़ा हिचका, परंतु तुरंत ही उन्होंने अपना मन बदला, क्योंकि उन्हें विश्वास था कि उन की बेटी किसी भी तरह की चुनौती का सामना करने में सक्षम है.

उस के बाद तो बेटी का सपना पिता का भी सपना बन गया. हमेशा बेटी की इच्छा पूरी करने और बेटी को आगे बढ़ने की प्रेरणा देने वाले पिता प्रशांति को इस क्षेत्र में आगे बढ़ने के उस के विचार को प्रोत्साहित करने लगे. खूब मेहनत और तैयारी के बाद प्रशांति ने सन 2018 में आंध्र प्रदेश पब्लिक सर्विस कमीशन ग्रुप एक की परीक्षा पास कर ली.

इस के बाद आंध्र प्रदेश के पुलिस विभाग में डीएसपी के रूप में प्रशांति का चयन हो गया. अपने ही विभाग में उच्च अधिकारी के रूप में बेटी की नियुक्ति हो जाए, इस से विशेष और गर्व की बात एक पिता के लिए और क्या हो सकती थी.

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अपनी बेटी के लिए गर्व का अनुभव करने वाले पिता श्यामसुंदर का कहना है कि उन की बेटी उन्हीं के विभाग में उच्च अधिकारी है. उस ने यह जो उच्च स्थान प्राप्त किया है, वह उस की मेहनत का फल एवं मांबाप का आशीर्वाद है. प्रशांति का भी यही मानना है. प्रशांति का कहना है, ‘आई होल्ड हाई रैंक, बट इन लाइफ माई फादर होल्ड्स हायर रैंक…’

फिलहाल वाई. जेस्सी प्रशांति पिता के आदर्शों का अनुसरण करते हुए अपना कार्यभार बखूबी निभा रही हैं. वह गुंटूर जिले में डीएसपी के पद पर तैनात हैं. जबकि उन के पिता श्यामसुंदर तिरुपति कल्याणी डेम के नजदीक के पुलिस ट्रेनिंग सेंटर में सर्किल इंसपेक्टर के रूप में अपना फर्ज निभा रहे हैं.

पिता और पुत्री एक ही विभाग में काम करते हैं, फिर भी इस के पहले एक बार भी औन ड्यूटी एकदूसरे के आमनेसामने नहीं हुए थे. पिछले 26 सालों से पुलिस विभाग की सेवा में लगातार जुड़े श्यामसुंदर की इच्छा थी कि उन के रिटायर होने के पहले उन्हें बेटी के साथ काम करने का मौका मिले.

56 वर्षीय श्यामसुंदर की इच्छा पूरी करने वाला अविस्मरणीय क्षण आया 2021 के जनवरी की 4 से 7 तारीख के दौरान जब पहली ‘आईजीएनआईटीई’ पुलिस मीट का आयोजन किया गया, जिस में राज्य भर के पुलिस विभाग में सेवा देने वाले कर्मचारियों को शामिल होना था. इस में वाई. जेस्सी प्रशांति की ड्यूटी वहां की व्यवस्था देखने में लगी थी. उस में अन्य कर्मचारियों के साथ भाग लेने श्यामसुंदर भी आए थे.

उन्होंने सफलतापूर्वक ड्यूटी कर रही अपनी बेटी प्रशांति को देखा. पुलिस विभाग का एक प्रोटोकाल होता है कि जब भी ड्यूटी पर अपने से बड़ा अधिकारी सामने आ जाता है तो निश्चित ही उस अधिकारी को आदर सहित सैल्यूट करना होता है. उसी प्रोटोकाल के अनुसार अन्य कर्मचारी प्रशांति को सैल्यूट कर रहे थे. उन्हीं के साथ श्यामसुंदर ने भी गर्व से डीएसपी बेटी प्रशांति को सैल्यूट किया.

उस समय उन के चेहरे पर अपनी बेटी के इस मुकाम पर पहुंचने का अपार संतोष झलक रहा था. अपने पिता को सैल्यूट करते देख प्रशांति थोड़ा सकुचाई. उन्होंने पिता से कहा भी कि वह उसे सैल्यूट न करें. पिता का सीना तो अपनी ही बेटी को अपने अधिकारी के रूप में देख कर गज भर का हो चुका था. उन्होंने एक अधिकारी की तरह उसे सम्मान देते हुए सैल्यूट करते हुए कहा, ‘नमस्ते मैडम.’

इस के बाद बेटी ने भी पिता के इस कृत्य का आदर करते हुए उन के सम्मान में सैल्यूट किया. इस धन्य पल के जो साक्षी बने, वे पिता और पुत्री के इस सम्मानयुक्त संबंध को सम्मान के साथ देखते रहे.

तमाम लोगों ने इस ऐतिहासिक पल को कैमरे में कैद कर लिया, जिस में अपनी बेटी को सैल्यूट करते पिता के चेहरे की खुशी और गर्व साफ झलक रहा था. उस फोटो को आंध्र प्रदेश पुलिस डिपार्टमेंट ने ट्विटर पर डालते हुए लिखा, ‘आंध्र प्रदेश पुलिस फर्स्ट ड्यूटी मीट ब्रिंग्स ए फैमिली टुगेदर.’

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कैमरे में कैद आंध्र प्रदेश पुलिस की पितापुत्री की यह अद्भुत तसवीर सचमुच प्रेरणादायक है, जो तमाम पिताओं को अपनी बेटियों के सपने पूरा करने और बेटियों को इस स्थान तक पहुंचने का आह्वान करती है. जिस से पिता बेटी पर गर्व का अनुभव कर सकें और कह सकें—मेरी बेटी मेरा अभिमान.

कोरोना में आईपीएल तमाशे का क्या काम

जब भारत में कोरोना की दूसरी लहर जोर मार रही थी, तब सब के खासकर क्रिकेट प्रेमियों के दिमाग में यही बात चल रही थी कि इस बार का इंडियन प्रीमियर लीग का आयोजन होगा या नहीं? स्टेडियम दर्शकों से भरेंगे या खाली कुरसियों पर सिर्फ परिंदे पर मारते नजर आएंगे?

पर चुनावी रैलियों की तरह यह ‘किरकिटिया तमाशा’ कैसे बंद किया  जा सकता था… वही हुआ भी. लेकिन जैसेजैसे कोरोना की तबाही सुनामी में बदलती दिखी, उस का असर आईपीएल पर भी साफ नजर आया.

आस्ट्रेलियाई खिलाड़ी एंड्रयू टाय के बाद उन्हीं के हमवतन एडम जांपा और केन रिचर्डसन भी आईपीएल को बीच में ही छोड़ कर आस्ट्रेलिया वापस चले गए.

इस से पहले भारतीय फिरकी गेंदबाज रविचंद्रन अश्विन ने भी यह कहते हुए टूर्नामैंट बीच में छोड़ दिया कि वे अपने परिवार की मदद करने के लिए आईपीएल से ब्रेक ले रहे हैं. उन्होंने सोशल मीडिया पर बताया, ‘मेरा परिवार और रिश्तेदार कोविड 19 से जंग लड़ रहे हैं और मैं ऐसे मुश्किल समय में उन का साथ देना चाहता हूं… अगर सबकुछ सही रहा, तो मैं जल्द ही खेल के मैदान में लौट सकूंगा.’

इसी तरह से राजस्थान रौयल्स टीम के लिए खेलने वाले एंड्रयू टाय सिडनी लौट गए. उन्होंने इस के लिए ‘बायोबबल में रहने के चलते पैदा हुए तनाव’ और ‘आस्ट्रेलिया की सीमा बंद होने की चिंताओं’ को वजह बताया.

34 साल के एंड्रयू टाय मुंबई से दोहा होते हुए आस्ट्रेलिया पहुंचे. उन्होंने बताया, ‘जब लोगों को पता चला कि मैं वापस जा रहा हूं, तो कई लोगों ने मु झ से बात की. कई लोग तो यह भी जानना चाहते थे कि मैं किस रूट से वापसी कर रहा हूं.’

खिलाड़ी तो खिलाड़ी अंपायरों में भी कोरोना का खौफ दिखा. नतीजतन, अंपायर नितिन मैनन और पौल रीफेल भी आईपीएल से हट गए. बताया जा रहा है कि इंदौर के रहने वाले नितिन मैनन की पत्नी और मां कोरोना संक्रमित हो गई हैं. ऐसे में उन्होंने आईपीएल के बायोबबल से बाहर निकलने का फैसला किया.

इसी तरह पौल रीफेल ने भारत में कोविड 19 के ज्यादा बढ़ते मामलों और आस्ट्रेलिया के द्वारा यात्रा प्रतिबंध  को देखते हुए आईपीएल से हटने का फैसला किया.

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यह वह दौर है, जब देश में दूसरे खेलों का होना पूरी तरह से बंद है. हकीकत तो यह है कि छोटेमोटे खेल संघों के पास इतना बजट नहीं है कि वे अपने खिलाडि़यों और दूसरे लोगों के लिए बायोबबल बना सकें.

इस के उलट बीसीसीआई दुनिया का सब से अमीर बोर्ड है. इस वजह से वह आईपीएल का आयोजन कर पा रहा है. पर सवाल उठता है कि क्या इस समय ऐसा आयोजन कराना जरूरी है, जब देश कोरोना के चलते तबाही के कगार पर खड़ा है?

सब से बड़ी बात तो यह है कि आईपीएल क्रिकेट का कोई ऐसा आयोजन नहीं है, जिस का रिकौर्ड खिलाडि़यों के किसी काम का हो. यहां तो उन की नीलामी लगती है और कई महाअमीरों ने अपनीअपनी टीमें बना रखी हैं और उन्हें आपस में भिड़ा दिया जाता है.

चूंकि उन टीमों में तकरीबन हर देश के खिलाड़ी होते हैं, जिन्हें अच्छाखासा पैसा मिलता है, इसलिए वे जनता को खुश करने और अगले साल लगने वाली नीलामी में अपने दाम बढ़वाने की खातिर अच्छा खेलते हैं. क्रिकेट प्रेमियों को भी 3 घंटे का मनोरंजन मिल जाता है, इसलिए वे भी टैलीविजन से चिपके रहते हैं. स्टेडियम में तो जा नहीं सकते न.

पर जब से क्रिकेट के नाम पर यह ट्वैंटी20 का मसाला तैयार किया गया है, तब से सट्टेबाजों और जुआ खेलने वालों की भी पौबारह हो गई है. अब तो ऐसे गेमिंग एप आ गए हैं, जिन में अपनी क्रिकेट की टीम बनाओ और पैसा जीतो.

बड़ेबड़े खिलाड़ी उन गेमिंग एप के इश्तिहारों में दिखाई देते हैं और लोगों को खेलने और पैसा जीतने के लिए उकसाते हैं. हालांकि बाद में उस एप के जोखिम इश्तिहार में बता दिए जाते हैं, पर उन की परवाह करता कौन है.

हालांकि सट्टेबाजी दूसरी बीमारी है आईपीएल को ले कर. अगर एक राज्य से ही सम झें, तो उत्तर प्रदेश के कई जिलों में आईपीएल मैच शुरू होते ही सटाकिंग का औनलाइन खेल शुरू हो जाता है. सट्टे का यह खेल तब तक चलता है, जब तक मैच खत्म नहीं हो जाता है. इस बीच जो लोग सट्टा खेल कर हार जाते हैं, उन को बड़ा माली नुकसान हो चुका होता है.

उदयपुर, राजस्थान में आईपीएल क्रिकेट सीजन में सट्टा कारोबार चलाने वाले एक गिरोह के सदस्यों को पुलिस ने 27 अप्रैल की रात को गिरफ्तार किया था. यह गिरोह उदयपुर के मीरा नगर में बने एक कौंप्लैक्स से सट्टा कारोबार चला रहा था.

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इन आरोपियों के कब्जे से तकरीबन 8 करोड़ रुपए का हिसाब, 40 मोबाइल फोन, लैपटौप, पेटी मशीन और काफी उपकरण बरामद किए थे. आरोपी उदयपुर में बैठ कर मंदसौर, नीमच, रतलाम, इंदौर जैसी कई जगहों के लोगों से सट्टे पर दांव लगवा रहे थे.

लिहाजा, आईपीएल का यह मायावी खेल वह धीमा नशा है, जो बहुतों को अपनी चपेट में ले चुका है. जब खिलाड़ी पैसा कमाने वाले लोगों के बारे में बताते हैं कि फलां आदमी ने इस गेमिंग एप से कुछ समय में ही लाखों रुपए कमा लिए हैं, तो सवाल उठता है कि जो समाज जुआरियों को इज्जत दे रहा है, क्या वह तरक्की कर सकता है? बिलकुल नहीं. द्य

फिलहाल टल गया आईपीएल

जिस बात का डर था वही हुआ. आईपीएल का आयोजन कराने वाले इसे बड़ा सेफ मान रहे थे और बोल रहे थे कि कोरोना का इस पर कोई बुरा असर नहीं पड़ेगा, पर बायोबबल में कोरोना वायरस की ऐंट्री के बाद इस लीग को फिलहाल स्थगित कर दिया गया है. अब यह दोबारा कब होगा, कहां होगा, होगा भी या नहीं, इस बारे में बीसीसीआई ने कुछ संकेत दिए हैं कि आईपीएल के बाकी बचे मैचों का आयोजन ट्वैंटी20 वर्ल्ड कप से पहले भारत में ही हो सकता है.

याद रहे कि कि आईपीएल, 2021 में कुछ खिलाडि़यों के कोरोना पौजिटिव पाए जाने के बाद आईपीएल के बाकी मैच रोक दिए गए हैं. पर अब लगता है कि इस साल सिंतबरअक्तूबर में ही भारत में ट्वैंटी20 वर्ल्ड कप का आयोजन होना है. उस समय सभी विदेशी टीमें भारत में ही होंगी. अगर सितंबर में बीसीसीआई को मौका मिल जाता है, तो आईपीएल का आयोजन तब मुमकिन हो सकता है.

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भविष्य में क्या होगा, यह तो कह नहीं सकते, पर अभी देश में जो हालात हैं, वे कोरोना महामारी का विकराल रूप दिखा रहे हैं. खिलाडि़यों को भी इस बीमारी से बच कर रहना चाहिए और बहुत से विदेशी खिलाड़ी तो अपने परिवार की खातिर बीच में ही आईपीएल छोड़ कर चले गए थे. जो खिलाड़ी बायोबबल तकनीक के बावजूद कोरोना की चपेट में आ गए हैं, उन का ध्यान रखना बीसीसीआई की पहली प्राथमिकता होनी चाहिए.

‘सेल्फी’ ने ले ली, होनहार बिरवान की जान…

कोरोना संक्रमण काल में छत्तीसगढ़ के जिला कोरबा के उपनगर कटघोरा से एक परिवार आज पिकनिक मनाने  केंदई  जल प्रपात चला गया. जहां असामयिक दुर्घटना में  डूबने से युवकों की दुखद मृत्यु हो गई. वही साथ में  पास ही खड़ी पत्नी और बहन अपनी आंखों से इस दुखद घटना को देखती रह गई और कुछ भी नहीं कर सकी. दरअसल, हुआ यह कि छोटा भाई पानी में खड़ा हुआ था और बड़ा भाई चंद कदम दूर खड़ा होकर के मोबाइल से सेल्फी वीडियो बनाने का प्रयास कर रहा था.

इसी दरमियान पानी में खड़े छोटे भाई का पैर फिसला असंतुलित होकर वह  पानी में डूबने लगा, उसे डूबता देख सेल्फी लेने की तैयारी कर रहा बड़ा भाई घबराया और उसे बचाने के लिए पानी में छलांग लगा दी जबकि उसे तैरना नहीं आता था, छोटे भाई को बचाने के फेर में दोनों भाई देखते ही देखते पानी की गहराई में चले गए और पत्नी और उनकी बहन आंसू बहाते रोती रह गईं. लोगों को पुकारा … मगर मदद के लिए जब तक लोग आते एक बड़ी घटना घटित हो चुकी थी.

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हाल ही में हुआ था विवाह!

कोरबा जिला के कटघोरा बस स्टैंड में अशोक वस्त्र एक कपड़े की दुकान है इसी परिवार के  होनहार युवक पीयूष  अपने भाई पत्नी और बहन के साथ पिकनिक मनाने क्षेत्र में प्रसिद्ध केंदई जल प्रपात गया. यहीं चार  4 सदस्यों में से  दो की डूबकर मौत हो गई . दोनों सगे भाई थे एक दूसरे से बहुत प्यार करते थे. इनमे एक विवाहित था जबकि दूसरा मृतक का  छोटा भाई . मृतकों का नाम पीयूष गोयल और आयुष गोयल हैं.

सुबह अचानक आयुष को सुझा कि क्यों न पिकनिक चला जाए और पीयूष  जलप्रपात पिकनिक मनाने पहुंच गए . जहां  लगभग 3 बजे सेल्फी पोज बनाते यह हृदय विदारक घटना हो गई.

दरअसल, छोटा भाई  पानी मे उतरा था. और सेल्फी लेने के दौरान आयूष गोयल का पैर फिसल गया और पानी में गिर गया, छोटे भाई को पानी में गिरते देख पियुष गोयल  उसको बचाने पानी में कूदा, लेकिन दोनों डूबने लगे तभी पीयूष की पत्नी राशि बंसल जिसे तैरना आता था दोनों को बचाने  पानी में कूद जद्दोजहद करने लगी मगर असफल रही.

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बदहवास बहन रिया गोयल और पत्नी राशि  ने इसकी सूचना आसपास के लोगो को  दी.  हादसे की सूचना पाकर मोरगा चौकी व बांगो थाने के पुलिस अधिकारी  पहुंचे और शव को निकाला गया.

सबसे दुखद बात यह कि मृतक पीयूष गोयल की अभी हाल ही में अप्रैल माह में राशि के साथ विवाह हुआ था और अभी राशि की हाथ की मेहंदी भी नहीं मिटी कि यह दुखद घटना हो गई.

होनहार पीयूष लंदन में नौकरी करता…

मृतक पीयूष गोयल बचपन से ही पढ़ाई में बेहद होशियार था. एक मध्यम परिवार का होने के बावजूद अपनी योग्यता के बूते वह सॉफ्टवेयर इंजीनियर बन गया और वर्तमान में दुबई मे पदस्थ था. और वह कुछ दिनों पूर्व विवाह के लिए कटघोरा आया हुआ था.  अप्रैल माह में पीयूष का विवाह भिलाई के बंसल परिवार की राशि  बंसल से संपन्न हुआ था, विवाह होने के बाद जल्द ही पीयूष गोयल लंदन में शिफ्ट होने की तैयारी में‌ था उसके लिए एक नई जिंदगी इंतजार कर रही थी, लेकिन लॉक डाउन होने की वजह से वह सपरिवार लंदन नहीं जा पाया . पुलिस ने दोनों का शव  स्थानीय  सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में  परीक्षण हेतु सौंप दिया. जहां अंतिम उपचार में दोनों को पम्पिंग की गई और अंततः डॉक्टरों ने दोनों को मृत घोषित कर दिया.

नाबालिग के यौन शोषण की कभी न खत्म होने वाली कहानी

कहा जाता है- हरि अनंत हरि कथा अनंता वैसे ही समाज की आम भाषा में यह कहा जा सकता है – नाबालिक के यौन शोषण की कहानी  अनंत है.

यह सच है कि इसके लिए सरकार ने नियम कायदे बना दिए हैं कानून बन चुका है. और जब बच्चों के साथ यौन शोषण करने वालों में कोई कोई पुलिस पकड़ में आता है तो चर्चा का सबब बन जाता है कि कैसा अनर्थ हो रहा है.कुल मिलाकर के यह बात दोहराई जाती है कि नाबालिग के यौन शोषण की कहानी अनंत है

आइए… आज इस रिपोर्ट में हम इस महत्वपूर्ण सामाजिक मसले पर ऐसे पक्ष उद्घाटित कर रहे हैं जो आपको चौकाएंगे. दरअसल, बच्चों के शोषण की अनेक घटनाएं हो रही हैं ऐसे में इस महत्वपूर्ण मसले पर सामाजिक दृष्टिकोण से हर एक तरीके से रोक लगाने की आवश्यकता है. यहां यह बताना भी लाजिमी होगा कि 10 मासूम बच्चों में  सिर्फ 7 बच्चे यौन शोषण के आज भी शिकार हो रहे हैं और नाम मात्र के मामले ही सामने आ रहे हैं उसके अनुसार बच्चों के साथ दुष्कर्म करने वाले आसपास के परिजन परिवारिक इष्ट मित्र ही पाए गए हैं.

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इसलिए इसी रिपोर्ट के माध्यम से आपको सावधान करते हुए कुछ महत्वपूर्ण जानकारी दी जा रही है. जिसमें सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अगर हमारे परिवार में नन्हे बच्चे हैं तो हम जागरूक रहे, हमारी जागरूकता के बगैर बच्चों के साथ यौन शोषण संभव हो सकता है.

और नाबालिग की शादी कर दी!

ऐसे ही एक सनसनीखेज मामले में छत्तीसगढ़  के जिला रायगढ़ के थाना  लैलूंगा की पुलिस द्वारा एक बालिका को परवरिश व घरेलू काम कराने के नाम पर सुन्दरगढ़ (ओडिशा) ले जाकर उसकी जबरजस्ती युवक के साथ शादी कराने वाले आरोपी पिता-पत्र को ओडिशा से पकड़ लिया गया है. हमारे  संवाददाता को  जांच अधिकारी लक्ष्मण प्रसाद पटेल ने बताया  – बालिका की मां  दिनांक 15 मई को थाना लैलूंगा में  रिपोर्ट दर्ज कर बताई कि रोजी मजदूरी का काम कर अपने बच्चों का पालन पोषण कर ती है. करीब चार माह पहले सुन्दरगढ़, ओडिशा में रहने वाला ईश्वर महाकुल  उसकी पंद्रह वर्षीय बेटी रानी (काल्पनिक नाम)  को अपने साथ ले गया और वादा किया कि बालिका घर का काम काज करेगी, मैं उसे बेटी की तरह रख कर पढ़ाऊंगा. भरोसा कर महिला  ने अपने परिवारवालों से सलाह लेकर जान परिचित होने के कारण उस व्यक्ति के साथ बेटी को भेज दिया. कुछ माह बाद अपने रिस्तेदारो के साथ अपनी बेटी को देखने सुंदरगढ़ ओडिशा गई तो  देखा ईश्वर महाकुल के घर में बालिका से बहुत ज्यादा काम कराया जा रहा था, यही नही नाबालिक बालिका की शादी  ईश्वर महाकुल ने अपने बेटे गणेश बारीक के साथ जबरजस्ती करा दी है.

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यह सब देख कर बालिका की मां भौचक्र रह गई. सबसे बड़ा अपराध यह की बालिका के  परिवारवालों को कथित विवाह की जानकारी भी नहीं दी गई . और जब महिला ने अपनी बेटी को अपने साथ लेकर अपने घर लैलूंगा जाऊंगी कहा तो उसे झगड़ा कर भगा दिया गया . अंततः महिला ने बेटी का शोषण किये जाने के संबंध में थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई. पुलिस के समक्ष यह मामला आया तो जिला रायगढ़ पुलिस ने मामला पंजीबद्ध कर लिया.
जांच अधिकारी लक्ष्मण प्रसाद पटेल ने बताया आरोपी पिता-पुत्र  आरोपी ईश्वर बारीक पिता चक्रधर बारीक उम्र 50 वर्ष उसके पुत्र गणेश बारीक उम्र 21 साल दोनों निवासी ग्राम कुराई महकुलपारा थाना तलसरा जिला सुन्दरगढ़ ओडिशा को हिरासत में लेकर उनके बयान लिए गए और गंभीर अपराध पाए जाने पर मामला पंजीबद्ध किया गया. प्रकरण में साक्ष्य के आधार पर आरोपियों के विरूद्ध धारा 9, 10 बालविवाह प्रतिषेध अधिनियम, 4, 8 पास्को एक्ट जोड़ी गई है.

कोरोना: स्वच्छता अभियान में जुटी महिलाएं इंसान नहीं हैं!

कोरोना संक्रमण काल में  “मिशन प्रेरक” के रूप में कार्य कर रही हजारों  महिला सफाई मजदूरों को सुरक्षा किट नहीं दी गई है. असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के संबंध में  छत्तीसगढ़ प्रदेश में लागू श्रम कानूनों का पालन करने  में कोताही हो रही है. आगे चलकर यह विस्फोटक रूप धारण कर सकता है.

दरअसल, यह सफाई मजदूर न केवल वार्डों में जाकर घर-घर जाकर कचरा संग्रहण का काम करती है, बल्कि इसका पृथक्कीकरण करके निस्तारण के काम तथा गोबर संग्रहण केंद्रों में भी सहयोग करती है.
कोरोना संक्रमण के समय  कोरोना योद्धा के रूप में उनकी प्रमुख भूमिका स्वमेव उजागर है. देशभर में लॉक डाऊन के दौरान भी अपने जीवन को खतरे में डालकर ये सफाई मजदूर  सुबह से जिस तरह अपना काम कर रही हैं, वह सराहनीय  है. लेकिन  नगर निगमों में  छत्तीसगढ़ में यह आज  उपेक्षा का शिकार  है.

मिशन क्लीन सिटी योजना के अंतर्गत काम कर रही इन महिला सफाई मजदूरों को कोरोना की इस दूसरी  लहर में भी सुरक्षा किट नहीं दिया जा रहा है, जबकि मास्क, ग्लोब्स, सेनेटाइजर व साबुन कोरोना से लड़ने के लिए महत्वपूर्ण उपकरण है.इन सुरक्षा किटों के अभाव में दसियों कर्मचारी कोरोना का शिकार हो गई हैं, लेकिन निगम के दैनिक वेतनभोगी मजदूर होने के बावजूद निगम ने उनके इलाज व मेडिकल सुविधाएं देने की अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया है और उन्हें बीमारी की इस अवधि का वेतन भी नहीं दिया गया है. उदाहरणार्थ औद्योगिक नगर कोरबा के  वार्ड 67 में अघन बाई बंजारे , तुलसी कर्ष , कमल महंत के अलावा अन्य वार्डों के कई कर्मचारी “कोरोना” का शिकार हुई हैं. मजदूरी न मिलने से ये परिवार आज भुखमरी की कगार पर है.

संवेदनशीलता और न्याय

सफाई मजदूरों के प्रति सरकार और  निगम प्रशासन का  असंवेदनहीन रवैया “कोरोना” से लड़ने में बाधक है. सभी सफाई मजदूरों को ऑक्सीमीटर व थर्मामीटर सहित सुरक्षा किट दी जानी चाहिए तथा कोरोना से ग्रस्त मजदूरों को उनके अवकाश की अवधि का पूरा मजदूरी भुगतान किया जाना चाहिए.  निगम एक सरकारी स्वायत्त संस्था है और इस प्रदेश के श्रम कानूनों का पालन करने के लिए वह बाध्य है.  सफाई के कार्य से जुड़े मिशन प्रेरकों की समस्या को लेकर बांकी मोंगरा जोन कमिश्नर के माध्यम से निगम के महापौर और आयुक्त के नाम ज्ञापन भी दिया गया है. दरअसल होना चाहिए कि प्रदेश के सभी नगर निगम में मिशन क्लीन सिटी योजना के अंतर्गत‌ जो हजारों सफाई मजदूर दैनिक वेतनभोगियों के रूप में काम कर रहे हैं.और  यह सभी मजदूर महिलाएं है. अधिकांश मजदूर कई सालों से नियमित रूप से काम कर रहे हैं. उनकी कार्यावधि 7 घंटों से ऊपर है. निगम प्रमुख नियोक्ता है और इस नाते श्रम कानूनों को लागू करने के लिए सीधे जिम्मेदार है.

 यह महिला मजदूर अत्यन्त दूषित वातावरण में काम करती हैं, जिससे उनके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़‌ रहा है. कोरोना संकट के समय वे अपनी जान जोखिम में डालकर काम कर रही हैं.इसके बावजूद उन्हें कोई सुरक्षा किट नहीं दी जा रही है, जो उनकी जीवन-रक्षा और कोरोना के प्रसार को रोकने के लिए भी जरूरी है.
कोरोना की दूसरी लहर ज्यादा  प्राणघातक है. लेकिन यह महिलाएं कोरोना योद्धा के रूप में बहादुरी से काम कर रही हैं। इन प्रतिकूल परिस्थितियों में काम करते हुए कई सफाई मजदूर कोरोना की शिकार हुई हैं
कोरोनाग्रस्त होने के बावजूद इन सफाई मजदूरों को निगम द्वारा कोई मेडिकल सुविधाएं तो दी नहीं गई, बल्कि उनकी बीमारी की अवधि की मजदूरी भी काट ली गई है.इससे ये परिवार भुखमरी के भी शिकार हो रहे हैं. यह उनके साथ सरासर अन्याय है और निगम प्रशासन का यह रूख कोरोना से लड़ने में बाधक है।
अतः सभी मजदूरों को मासिक आधार पर सुरक्षा किट दिए जाएं. इन किटों में मास्क, दस्ताने, साबुन व सेनेटाइजर के साथ ही थर्मामीटर और ऑक्सीमीटर भी शामिल हो.

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कोरोना ग्रस्त सभी सफाई मजदूरों को उनकी बीमारी की अवधि का सवैतनिक अवकाश दिया जाए तथा काटी गई मजदूरी का भुगतान किया जाए.

सरकारी नीतियों से परेशान बेरोजगार नौजवान

‘अच्छे दिन’ का सपना देखने वाले बेरोजगार नौजवानों ने भारतीय जनता पार्टी सरकार को इस उम्मीद के साथ चुना था कि पढ़ेलिखे नौजवानों को रोजगार मिलेगा, मगर करोड़ों नौजवान आज भी बेकारी की वजह से खाली बैठे हैं.

देश के अलगअलग राज्यों में शिक्षा विभाग के स्कूलकालेजों में संविदा पर बतौर अतिथि शिक्षक और शिक्षा मित्र काम कर रहे नौजवान रोजीरोटी के  लिए जद्दोजेहद कर रहे हैं, पर शायद सरकार की मंशा नहीं है कि पढ़ेलिखे लड़केलड़कियां नौकरियां करें.

वह तो चाहती है कि पढ़लिख कर नौजवान कांवड़ यात्रा निकालें, मंदिर बनाने के काम में अपनी ताकत ?ांक दें, पार्टी की रैलियों में ?ांडेबैनर लगाने का काम करें, गौरक्षा के नाम पर मौब लिंचिंग करें और हिंदूमुसलिम के नाम पर दंगेफसाद करें. बहुत हद तक धर्म  की हिमायती सरकार इस में कामयाब भी हुई है.

देश के जो पढ़ेलिखे नौजवान सरकारी नौकरी की तलाश में अपना समय बरबाद कर रहे हैं, उन को यह बात अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए कि सरकार उन्हें कोई रोजगार देने वाली  नहीं है.

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चुनाव के समय ऐलान किया गया था कि हर साल 2 करोड़ लोगों को नौकरी दी जाएगी, पर चुनाव होते ही नौकरी देने का वादा करने वाली सरकार अब नौजवानों को आत्मनिर्भर होने का ?ान?ाना पकड़ा रही है.

नई शिक्षा नीति में व्यावसायिक पाठ्यक्रम लाने की वकालत तो सरकार कर रही है, पर जो व्यावसायिक संस्थान पहले से चल रहे हैं, उन में पढ़ाने के लिए शिक्षकों की भरती तक नहीं कर पाई है.

मध्य प्रदेश के कई स्कूलों में 9वीं से 12वीं तक वोकेशनल ऐजूकेशन दी जा रही है, मगर इन स्कूलों में वोकेशनल की ट्रेनिंग देने वाले शिक्षक ही नहीं हैं. ऐसे में सरकार केवल डिगरी बांट कर वाहवाही लूट रही है.

बेरोजगारी खेल रहे नौजवानों को यह बात मालूम होनी चाहिए कि जिन क्षेत्रों में नौकरियां अफरात में भरी पड़ी रहती थीं, उन्हें सरकार निजी हाथों को सौंप रही है.

रेलवे बोर्ड, बैंकिंग संस्थान और सरकारी स्कूलकालेजों में नौकरियों के मौके ज्यादा होते थे. इन्हीं क्षेत्रों को सरकार घाटे का सौदा मान कर निजी हाथों में दे कर अपना पल्ला ?ाड़  रही है.

देश में बेरोजगारी का आलम यह है कि किसी वैकेंसी के आते ही लाखों की तादाद में बेरोजगार अर्जी देने के लिए मारेमारे फिरते हैं.

साल 2021 के फरवरी महीने में हरियाणा के पानीपत शहर की अदालत में चपरासी के 13 पदों के लिए नौकरी का इश्तिहार निकला, तो बेरोजगारों की 27,671 अर्जियां जमा हो गईं.

अर्जियों की जांच के बाद जब इंटरव्यू के लिए बुलाया गया, तो दिलचस्प बात सामने आई कि 8वीं पास उम्मीदवार को नौकरी में लिया जाना

था, पर बड़ी तादाद में एमबीए, एमए, बीए, बीएससी, बीटैक डिगरीधारी लड़केलड़कियां चपरासी बनने की खातिर धक्कामुक्की करते नजर आए.

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देश में बेलगाम हो रही बेरोजगारी का सच यही है कि करोड़ों की तादाद में पढ़ेलिखे नौजवान अपनी काबिलीयत को दरकिनार कर नौकरी पाने के लिए चपरासी बनने के लिए भी तैयार हैं, मगर सरकार उन के साथ केवल छल ही कर रही है.

एक साल में दोगुनी बेरोजगारी

उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से सा?ा की गई एक जानकारी में यह बात सरकार ने खुद स्वीकार की है कि पिछले एक साल में बेरोजगारी दोगुनी हो गई है.

कांग्रेस विधायक और कांग्रेस के अध्यक्ष अजय कुमार ‘लल्लू’ ने बेरोजगारी पर विधानसभा में उत्तर प्रदेश के लेबर और रोजगार मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्या से सवाल किया था, जिस का संबंधित महकमे की तरफ से जवाब दे कर बेरोजगारी के जो आंकड़े दिए गए हैं, वे चौंकाने वाले हैं.

इस जवाब में बताया गया है कि सीएमआईई की सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक, प्रदेश में बेरोजगारी दर साल 2018 में 5.92 फीसदी थी, जबकि साल 2019 में  9.97 फीसदी रही यानी 2018 से तुलना की जाए तो साल 2019 में उत्तर प्रदेश में बेरोजगारी दर तकरीबन दोगुनी हो गई है.

ये आंकड़े इसलिए भी ज्यादा चौंकाने वाले हैं, क्योंकि ये कोरोना काल से पहले के हैं. देश में कोरोना वायरस महामारी के चलते साल 2020 के मार्च महीने से लौकडाउन लागू किया गया था, जिस का अर्थव्यवस्था से ले कर रोजगार पर बड़ा असर पड़ा, लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार ने बेरोजगारी की दर के जो आंकड़े शेयर किए हैं, वे इस से काफी पहले के हैं. उत्तर प्रदेश में बढ़ते अपराधों की वजह बेरोजगारी का होना भी है.

बेरोजगार ‘जन स्वास्थ्य रक्षक’

मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ राज्यों के गांवकसबों में ‘जन स्वास्थ्य रक्षक’ बनाए गए लाखों नौजवान भी इन दिनों अपनी रोजीरोटी के लिए जद्दोजेहद कर रहे हैं.

‘जन स्वास्थ्य रक्षक योजना’ को इसलिए शुरू किया गया था, ताकि गांवकसबों के लोगों को प्राथमिक उपचार की सुविधा आसानी से मिल सके. इस के लिए बाकायदा हर गांव के एक पढ़ेलिखे नौजवान को ट्रेनिंग दे कर बीमार लोगों को शुरुआती इलाज करने की सुविधा दी गई थी.

आज भी देश के कई इलाकों में डाक्टर, नर्स नहीं पहुंच पाते हैं, ऐसे में ‘जन स्वास्थ्य रक्षक’ बनाए गए यही लोग गांव के लोगों के लिए प्राथमिक उपचार की सुविधा मुहैया कराते हैं.

नरसिंहपुर जिले के बांसखेड़ा गांव में ‘जन स्वास्थ्य रक्षक’ रहे प्रवेश तिवारी   कहते हैं, ‘90 के दशक में शुरू की गई ‘जन स्वास्थ्य रक्षक योजना’ का मकसद गांवगांव मरीजों को तत्काल इलाज सुविधा उपलब्ध कराना था. इस के लिए इन्हें अनुभवी डाक्टरों से प्रशिक्षण दिलाया गया. प्रशिक्षण देने वाले एमबीबीएस, एमडी डाक्टर थे, जिन्होंने ट्रेनिंग दे कर और फिर काम ले कर इन्हें काबिल बनाया था.’

लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग द्वारा लिखित परीक्षा ले कर इन की योग्यता को जांचापरखा गया. जो ‘जन स्वास्थ्य रक्षक’ इस में कामयाब हुए, शासन द्वारा प्रमाणपत्र दे कर उन के गांव में नियुक्त कर दिया गया.

गांवों में पदस्थ इन ‘जन स्वास्थ्य रक्षकों’ को प्राथमिक उपचार करने के लिए अधिकृत कर दिया गया. साथ ही, राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रमों जैसे कुष्ठ निवारण, मलेरिया, फाइलेरिया, टीबी, बच्चों के टीकाकरण, पल्स पोलियो और नसबंदी अभियान में सहभागिता का अनुबंध किया गया.

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योजना के मुताबिक, इन्हें 20 तरह की दवाएं रखने की छूट दी गई, ताकि मरीज को स्वास्थ्य लाभ मिल जाए और उसे जराजरा सी बीमारी के लिए बड़े अस्पताल की ओर न भटकना पड़े. ‘पल्स पोलियो’ जैसे अभियान में भी ‘जन स्वास्थ्य रक्षक’ का अहम रोल रखा गया और इन लोगों ने गांवगांव और घरघर जा कर पोलिया की दवा का वितरण किया.

‘जन स्वास्थ्य रक्षकों’ ने छोटेछोटे गांवों की स्वास्थ्य व्यवस्थाओं को मजबूत किया और ?ालाछाप डाक्टरों को गांवों में पनपने का मौका ही नहीं दिया.

‘जन स्वास्थ्य रक्षक’ योजना में मध्य प्रदेश सरकार ने कई सौ करोड़ रुपए खर्च किए, ताकि गांवदेहात के क्षेत्रों में प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराई जा सकें और डाक्टरों की कमी को कुछ हद तक पूरा किया जा सके.

मध्य प्रदेश में ‘जन स्वास्थ्य रक्षकों’ का काम साल 2003 तक बखूबी चलता रहा, पर प्रदेश में भाजपा की सरकार बनते ही इन ‘जन स्वास्थ्य रक्षकों’ को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया.

यही हाल अतिथि शिक्षकों का मध्य प्रदेश के स्कूलकालेजों में लंबे समय से बच्चों को पढ़ा रहे अतिथि शिक्षकों को भी कोरोना काल में बेरोजगार रह कर दो वक्त की रोटी के लिए मुहताज रहना पड़ा.

गाडरवारा पीजी कालेज में फिजिक्स पढ़ाने वाले अतिथि विद्वान डाक्टर सुनील शर्मा कहते हैं कि सरकार कम पैसों में ज्यादा काम ले रही है. इसी वजह से रैगुलर प्रोफैसर भरती करने के बजाय अतिथि शिक्षकों से काम लिया जा रहा है.

मध्य प्रदेश में शिक्षक भरती के नाम पर पढ़ेलिखे डिगरीधारी नौजवानों की परीक्षा ले कर मोटी फीस वसूली गई और परीक्षा पास करने वाले नौजवानों को नौकरी देने में आनाकानी की जा  रही है.

चयन परीक्षा में 150 में से 113 अंक पाने वाले सचिन नेमा पिछले एक साल से शिक्षक बनने की राह देख  रहे हैं, मगर सरकारी आश्वासन ही अभी तक उन के हाथ लगे हैं.

क्यों है सरकारी नौकरी का मोह

लोगों की सोच यही है कि एक बार सरकारी नौकरी मिल जाए तो जिंदगीभर आराम से बैठ कर खाया जा सकता है. सरकारी नौकरी में जहां काम के घंटे कम और तनख्वाह ज्यादा होती है, वहीं रिटायर्ड होने के बाद पैंशन और कई तरह की सुविधाएं मिलती हैं.

बहुत से नौजवानों की सोच है कि निजी सैक्टर में नौकरी मिलने से दिनभर काम करना पड़ता है और बाद में पैंशन वगैरह न मिलने से गुजरबसर करना मुश्किल होता है.

नौजवान खुद निकालें रास्ता

धार्मिक पाखंड में डूबी सरकार नौजवानों को नौकरी तो देने से रही. ऐसे में बेरोजगारों को खुद ही कोई रास्ता निकालना होगा. सरकारी नौकरी न मिलने से निराश होने के बजाय नौजवान छोटेमोटे काम कर के या अपना खुद का रोजगार शुरू कर अपने पैरों पर खड़े हो सकते हैं.

खेतीकिसानी के बैकग्राउंड वाले नौजवान परंपरागत खेती छोड़ वैज्ञानिक ढंग से खेती के तौरतरीके अपना कर अपनी आमदनी में इजाफा कर सकते हैं.

नरसिंहपुर जिले के डोभी गांव के नौजवान श्रीराम किरार ने केसर की खेती, सिंहपुर बड़ा के वैभव शर्मा ने मशरूम की खेती, गाडरवारा के उमाशंकर कुशवाहा ने फूलों की खेती,  बनखेड़ी के मान सिंह गूजर ने जैविक खेती, करताज के राकेश दुबे ने गन्ने से जैविक गुड़ बना कर लाखों की आमदनी के साथ एक नया मुकाम हासिल कर के इस बात को सही साबित भी किया है.

आजकल सरकारी स्कूलों से लोगों का मोह दूर होने लगा है. ऐसे में जो नौजवान सरकारी स्कूलों में शिक्षक बनने की सोच रहे हैं, वे अपना खुद का स्कूल खोल कर दूसरे नौजवानों को रोजगार भी दे सकते हैं.

आज भी गांवशहर, कसबे में बिजली मेकैनिक, प्लंबर, मोटर मेकैनिक, वैल्डर, राजमिस्त्री आसानी से नहीं मिलते हैं. नौजवानों को इन कामों की ट्रेनिंग ले कर अपना खुद  का रोजगार शुरू करने पर जोर देना चाहिए.

कंप्यूटर की पढ़ाई करने वाले पढ़ेलिखे नौजवान खुद का कंप्यूटर सैंटर या औनलाइन केंद्र खोल कर महीने में अच्छीखासी आमदनी हासिल कर सकते हैं, क्योंकि आज के डिजिटल युग में  हर काम औनलाइन होने का चलन बढ़  गया है.

कोरोना: अंधेरे में रौशनी हैं… एक्टिव टीम !

देर रात का वक़्त है. अचानक मोबाइल की घंटी बजती है…  “भैया …भैया..! मैं बहुत बीमार हूं… मुझे.”और वह खांसने लगता है.

-“क्या हुआ है भाई तुझे बता… कैसा लग रहा है…. यह बताओ कहां पर हो…!”

थोड़ी देर में बीमार खांसते हुए शख्स के पास 4-5 युवा पहुंच जाते हैं. कोरोना संक्रमण के इस भयावह समय में यह सब आश्चर्यचकित करने वाली बात एक सच्ची घटना है.

दरअसल, कोरोनावायरस कोविड 19 के इस समय काल में जहां चारों तरफ बदहवासी का माहौल है, हर आमो ख़ास, जिम्मेदार आदमी अपनी जान बचाना चाहता है और घरों में  लाकडाउन  कर बैठा हुआ है….  ऐसे में कुछ युवा ऐसे भी हैं जो मानवीयता की डोर  को बांधे हुए हैं और मानवीय संवेदना का परिचय दे रहे हैं…

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रात का वक्त है. एंबुलेंस मुख्य मार्ग से होती हुई गोपालपुर  कोविद अस्पताल जहां खुद प्राइवट ऐम्ब्युलेन्स  सीधा वहां जाकर रुकती है एंबुलेंस से एक शख्स को बाहर निकाला जाता है. जो  कमजोर और बीमार दिखाई दे रहा है युवा उन्हें सहारा देकर के हॉस्पिटल की ओर आगे बढ़ते हैं. कोविड का समय है उन्हें लापरवाह देख कोई कहता है- प्रोटोकॉल का पालन करो! तब वह लोग सतर्क होते हैं.

हॉस्पिटल से किट मिल जाता है उसे पहन कर के यह लोग बीमार शख्स को सहारा देते हुए आगे बढ़ते हैं और चिकित्सालय में भर्ती करके उसे आक्सीजन की कमी का पता चलते ही बमुश्किल ऑक्सीजन की व्यवस्था करके उसकी जान बचाने का प्रयास कर रहे हैं .

यह “एक्टिव टीम” है अमित नवरंग लाल की जिसमें वे स्वयं अनिल द्विवेदी, युगल शर्मा , संदीप अग्रवाल और अनिल वरंदानी जैसे कुछ युवा कोरोना कोविड-19 के इस त्रासद समय में लोगों की जान बचाने का स्तुत्य प्रयास कर रहे हैं.

एक छोटा सा प्रयास छत्तीसगढ़ के औद्योगिक नगर कोरबा में चल रहा है यहां यह बताना भी लाज़मी है कि टीम द्वारा लोगों से सहयोग लेकर oximiter themamiter Cylender इत्यादि चिकित्सकीय सामग्री भी उपलब्ध कराई जा रही है.

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और जेल भेजने की तैयारी!

और एक  दिन हुआ यह की जब एक्टिव टीम एक पॉजिटिव मरीज को लेकर के  नगर के हॉस्पिटल पहुंची तो वहां गेट बंद था रात हो चुकी थी और गेट नहीं खुल रहा था ऐसे में जब युवा टीम ने वहां हंगामा खड़ा किया तो डॉक्टर बाहर आ गए और बात पहुंच गई थाना पुलिस तक. आनन-फानन में पुलिस आई और एक्टिव टीम को थाने में बैठा दिया गया . गिरफ्तारी की कवायद शुरू हो गई. जैसे ही शहर में एक्टिव टीम की गिरफ्तारी की बात फैलने लगी पुलिस ने चिकित्सक के साथ समझौता करा कर अमित की एकटिव टीम को रिहा कर दिया.

अभी तक सेवा भावना से प्रेरित  टीम  तीन एयर कंडीशन और आक्सीजन गैस  युक्त एंबुलेंस शहरवासियों के लिए उपलब्ध करवा चुकी है जो कोरोना कोविड 19 पीड़ितों को पूर्णता निशुल्क सेवा दे रही है.

अमित नवरंग लाल द्वारा कोरोना से ग्रसित दुखी लोगों की जब सहायता की जाने लगी तो लोगों के हाथ सहयोग के लिए उठ खड़े हुए. देखते ही देखते किसी ने उन्हें  आक्सीजन तो किसी ने उन्हें दूसरे तरीके से मदद करने का काम किया.एक एक बुजुर्ग कोरोना निगेटिव महिला जिसका इलाज चल रहा था. उसने इस युवा टीम की सेवा भावना को देख कर के उस बुजुर्ग महिला ने अपने पास रखे हुए पचास हजार रुपए देते हुए कहा कि यह पैसे कोरोना से ग्रसित लोगों की सेवा में लगा दो. एक तरफ जहां चारों तरफ लोग आज कोरोना संक्रमण को देखकर के भयभीत हैं. वहीं छत्तीसगढ़ के कोरबा की एक्टिव टीम यह संदेश दे रही है कि  मानव सेवा  से बड़ी कोई चीज नहीं होती, और  कोई जब मन में ठान कर के सेवा के लिए  निकल पड़ता है तो वह बड़ी सी बड़ी त्रासदी और बीमारी को भी हराकर एक संदेश दे जाता है.

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