साली के जिस्म की चाहत ने जीजा से कराया जुर्म

उत्तर प्रदेश पुलिस में हैडकांस्टेबल शिवकुमार की पोस्टिंग शिकोहाबाद के सीओ औफिस में थी. उन का घर वहां से कोई 60-65 किलोमीटर दूर आगरा में था. वहीं से वह रोजाना अपनी ड्यूटी पर आतेजाते थे. परिवार में पत्नी के अलावा 2 बेटियां संगम और ज्योति तथा एक बेटा अमरेंद्र कुमार था. परिवार के साथ वह हंसीखुशी से जिंदगी बिता रहे थे. उन्होंने तीनों बच्चों को अच्छे स्कूल में पढ़ायालिखाया था. बड़ी बेटी शादी लायक हुई तो उस की शादी उन्होंने अपने जिगरी दोस्त कुलदीप शैली के बेटे अशोक शैली से कर दी. कुलदीप गाजियाबाद के नेहरूनगर में रहते थे. उन की भी 2 बेटियां परविंद्र और पूजा तथा एक बेटा अशोक था. बेटी परविंद्र का विवाह उन्होंने बुलंदशहर के रहने वाले पंकज के साथ किया था.

संगम की शादी के समय उस की छोटी बहन ज्योति महज 12 साल की थी. अशोक गाजियाबाद में किसी फैक्ट्री में काम करता था. संगम और अशोक का जीवन काफी खुशहाल था. शादी के साल भर बाद ही अशोक एक बेटी का पिता बन गया था. वह जबतब अपनी पत्नी और बेटी के साथ ससुराल आता रहता था. शिवकुमार का बेटा अमरेंद्र एक दवा कंपनी में एमआर था. अशोक की बहन पूजा की शादी में निमंत्रण पा कर शिवकुमार पूरे परिवार के साथ आए थे. शादी में लहंगाचोली पहने ज्योति बहुत खूबसूरत लग रही थी. हालांकि उस की उम्र 14-15 साल थी, पर हृष्टपुष्ट शरीर की वजह से वह जवान लग रही थी. ऐसे में ज्योति की नजर अपने जीजा अशोक से टकराई तो उस की नजरों में उसे कुछ अजीब सा दिखाई दिया. क्योंकि इस के पहले अशोक ने कभी उसे इस तरह नहीं देखा था. चूंकि शादी अशोक की बहन पूजा की थी, इसलिए उस पर काफी जिम्मेदारियां थीं. वह भागदौड़ में लगा था. ऐसे में अशोक कई बार साली से टकराया. एक बार हिम्मत कर के उस ने ज्योति का हाथ पकड़ कर सहलाते हुए कहा, ‘‘ज्योति, आज तुम बड़ी सुंदर लग रही हो. किस पर बिजली गिराने का इरादा है ’’ जीजा की बात सुन कर ज्योति घबरा गई. झटके से अपना हाथ छुड़ा कर वह चली गई. उस का दिल जोरों से धड़क उठा था. वह समझ गई कि जीजा की नीयत ठीक नहीं है.

ज्योति सोच में डूबी थी कि जीजा उसे अजीब नजरों से क्यों देख रहे थे उसे लगा कि शायद उन्होंने मजाक किया होगा  इस बात को दिमाग से निकाल कर वह शादी के कार्यक्रमों में एंजौय करने लगी. लेकिन अशोक ने तो मन ही मन कुछ और ही सोच लिया था. शादी निपट जाने के बाद थकेहारे लोग आराम करने की सोच रहे थे, जबकि शिवकुमार अपने परिवार के साथ घर जाना चाहते थे, लेकिन कुलदीप ने उन्हें एक दिन और रुकने की बात कह कर रोक लिया. इस से अशोक को खुशी हुई, क्योंकि उस का दिल अपनी नाबालिग साली ज्योति पर आ गया था. वह किसी भी तरह उसे हासिल करना चाहता था. शादी की भागदौड़ में सभी काफी थक गए थे. इसलिए खापी कर सभी जल्दी ही सो गए. अशोक के लिए यह अच्छा मौका था. उस ने धीरे से ज्योति को उठा कर कहा, ‘‘चलो, तुम से कुछ बात करनी है.’’

डरीसहमी ज्योति के मुंह से आवाज तक नहीं निकली. उसे एकांत में ले जा कर अशोक उस के शरीर से छेड़छाड़ करने लगा. ज्योति ने विरोध किया तो उस ने कहा, ‘‘चुप रहो, अगर कोई जाग गया तो तुम्हारी ही बदनामी होगी.’’ ज्योति जानती थी कि अगर वह शोर मचाएगी तो घर के लोग उस की बात पर विश्वास नहीं करेंगे. क्योंकि सभी अशोक पर बहुत विश्वास करते थे. आखिर अशोक ने ज्योति को डराधमका कर अपनी हवस पूरी कर ली. यही नहीं, उस ने मोबाइल फोन से उस की कुछ आपत्तिजनक तसवीरें भी खींच लीं. अपना सब कुछ गंवा कर ज्योति कमरे में आ गई. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे  अशोक ने उसे धमकी दे रखी थी कि अगर उस ने किसी को कुछ बताया तो वह उसे बदनाम कर देगा.

ज्योति खामोश थी. उस के चेहरे का रंग उड़ा हुआ था. बेटी को परेशान देख कर मां मुन्नी ने पूछा तो उस ने तबीयत खराब होने का बहाना बना दिया. घर आ कर ज्योति ने राहत की सांस ली. उस ने तय कर लिया कि अब वह जीजा से कभी बात नहीं करेगी. अपने साथ घटी घटना के बारे में उस ने घर वालों से इसलिए नहीं बताया कि कहीं बहन का घर न टूट जाए. इसलिए चुप रह कर वह अपनी पढ़ाई में लग गई. कुछ दिन इसी तरह बीत गए. जीजा का कोई फोन नहीं आया तो उसे लगा कि शायद उन्हें अपनी गलती का अहसास हो गया है. लेकिन यह उस की भूल थी. अशोक को इधर गाजियाबाद के एक फार्महाउस में मैनेजर की नौकरी मिल गई थी. एक दिन वह अकेला ही ससुराल पहुंचा. उसे देख कर ज्योति डर गई.

‘‘अरे ज्योति, तुम इधरउधर क्यों भाग रही हो आओ, बैठो मेरे पास.’’ अशोक ने उस का हाथ पकड़ कर पास बैठाते हुए कहा. मुन्नी भी वहीं बैठी थी. इस की असल वजह क्या है, यह मुन्नी को पता नहीं था, इसलिए वह हंसने लगी. क्योंकि जीजासाली के बीच हंसीमजाक होना आम बात है. उस ने इसे गंभीरता से नहीं लिया. खाना खाने के बाद अशोक जाने लगा तो उस ने ज्योति से चुपके से कहा, ‘‘मैं ने आगरा के कुंदु कटरा स्थित एक होटल में कमरा बुक करा रखा है, तुम वहां आ जाना. मैं तुम्हारा इंतजार करूंगा.’’

ज्योति ने हिम्मत कर के कहा, ‘‘मैं वहां नहीं आऊंगी.’’

इस पर अशोक ने टेढ़ी नजरों से देखते हुए कहा, ‘‘तो फिर अंजाम भुगतने के लिए तैयार रहना. मेरी मानो तो तुम्हारा आना ही ठीक रहेगा. मैं होटल में तुम्हारा इंतजार करूंगा.’’ न चाहते हुए भी ज्योति को होटल जाना पड़ा. अशोक होटल के गेट पर ही मिल गया. उस का हाथ पकड़ कर वह उसे उस कमरे में ले गया, जो उस ने पहले से बुक करा रखा था. कमरे में पहुंच कर उस ने ज्योति के सामने एक कागज रख दिया, जिस पर कुछ टाइप किया हुआ था. ज्योति ने पूछा, ‘‘यह क्या है ’’

‘‘यह हमारी शादी का प्रमाण पत्र है. इस पर तुम दस्तखत कर दो.’’ अशोक ने कहा. ज्योति ने दस्तखत करने से मना करते हुए कहा, ‘‘आप तो दीदी के पति हैं, हमारी शादी कैसे हो सकती है ’’

‘‘देखो ज्योति, मैं तुम से प्यार करता हूं. तुम्हारे बिना जी नहीं सकता, इसलिए मैं तुम्हें अपनी पत्नी बनाना चाहता हूं.’’

‘‘मुझे यह बेहूदगी पसंद नहीं है.’’ कह कर ज्योति कमरे से बाहर जाने लगी तो अशोक ने उसे पकड़ कर बैड पर ही पटक दिया और गुर्राते हुए कहा, ‘‘अगर तुम ने मेरी बात नहीं मानी तो मैं तुम्हारे पूरे परिवार को खत्म कर दूंगा.’’

उस की धमकी से डर कर ज्योति ने उस कागज पर दस्तखत कर दिए. ज्योति मजबूर थी, इस का फायदा उठाते हुए अशोक ने उस के साथ जबरदस्ती की. उस ने उस की अश्लील वीडियो भी बना ली. ज्योति उस के जाल में पूरी तरह फंस चुकी थी. चाह कर भी वह नहीं निकल पा रही थी. उस के एक ओर कुआं था तो दूसरी ओर खाई. वह जीजा का शोषण सहती रही. मुन्नी कभीकभी पूछती भी कि वह परेशान क्यों रहती है तो वह पढ़ाई का बहाना बना देती. अशोक का जब भी उस के पास फोन आता, वह अवसाद से घिर जाती. वह उसे होटल में बुलाता. उस का वीडियो वायरल करने की धमकी दे कर अशोक उस के साथ मनमानी करता. इसी तरह 2 साल गुजर गए. अशोक की हिम्मत बढ़ती गई. ज्योति इंटरमीडिएट में आ गई थी. पढ़ाई में उस का मन बिलकुल नहीं लगता था. वह यही सोचती थी कि दुराचारी जीजा से कैसे छुटकारा मिले  उसे अब खुद से नफरत होने लगी थी.

सब कुछ चलता रहा. घर वाले बेटी पर हो रहे अत्याचार से बेखबर थे. बेटी भी अपना मुंह खोलने की हिम्मत नहीं कर पा रही थी. उसी बीच ज्योति की जिंदगी में नागेंद्र आ गया. वह ज्योति को अच्छा लगता था. दोचार मुलाकातों के बाद दोनों के बीच गहरा प्यार हो गया. नागेंद्र के प्यार से ज्योति का खोया आत्मविश्वास वापस लौटने लगा. इस के बाद जब भी अशोक का फोन आता, वह फोन रिसीव नहीं करती. अशोक की समझ में यह नहीं आ रहा था कि ज्योति ऐसा क्यों कर रही है  यह जानने के लिए एक दिन वह अपनी ससुराल पहुंच गया. उसे इस बार देख कर ज्योति ने तय कर लिया कि वह उस से बिलकुल नहीं डरेगी. मौका देख कर जब अशोक ने उसे होटल चलने को कहा तो उस ने साफ मना कर  दिया. अशोक ने उसे धमकाया तो उस ने कहा, ‘‘जीजा मेहरबानी कर के अब छोड़ दो मुझे.’’ अशोक ने उसे मोहब्बत की दुहाई दी, पर वह नहीं मानी. वह नाराज हो कर चला गया. ज्योति के व्यवहार से उसे लगा कि जरूर कोई उस की जिंदगी में आ गया है. अशोक ज्योति की सहेली के दोस्त सुमित को जानता था. उस ने जब सुमित को फोन किया तो उसे पता चला कि सचमुच ही ज्योति के जीवन में कोई और आ गया है. सच्चाई पता चलने पर अशोक को ज्योति पर बहुत गुस्सा आया.

इस के बाद ज्योति ने अपने प्रेमी नागेंद्र को सारी बात बता दी. उस ने ज्योति की हिम्मत बढ़ाते हुए कहा कि वह हमेशा उस के साथ है. अशोक से उसे डरने की जरूरत नहीं है. इस के बाद अशोक अपने आखिरी हथियार का उपयोग करते हुए धमकी देने लगा कि अगर उस ने उस की बात नहीं मानी तो वह उस के नंगे फोटो इंटरनेट पर डाल देगा. ज्योति ने साफ कह दिया, ‘‘जीजा, तुम्हें जो करना हो करो, मैं अब तुम से बिलकुल नहीं मिल सकती.’’ आखिर अशोक ने अंजाम की चिंता किए बिना ज्योति को सबक सिखाने की ठान ली. 9 सितंबर, 2016 को ज्योति कालेज के लिए निकली तो गली में खड़े कुछ लड़कों ने उसे देख कर कटाक्ष किया. वह उन की बातों का विरोध करने के बजाय आगे बढ़ गई. तभी उस के मोबाइल पर उस के भाई का फोन आया. भाई ने उसे तुरंत घर वापस आने को कहा.

ज्योति घर पहुंची तो उस ने देखा मां और भाई गुस्से में हैं. भाई ने उसे कई तमाचे जड़ दिए. भाई के गुस्से को देख कर ज्योति समझ गई कि जरूर जीजा ने उस का अश्लील वीडियो वायरल कर दिया है, जिसे घर वालों ने देख लिया है. ज्योति ने रोरो कर मां और भाई को जीजा की सारी करतूतें बता दीं. असलियत जान कर दोनों ने अपना सिर पीट लिया. ज्योति ने कहा कि वह जीजा की धमकियों से डर गई थी, जिस की वजह से उस ने किसी को कुछ नहीं बताया था. शिवकुमार उस समय ड्यूटी पर थे. अमरेंद्र ने पिता को फोन कर के सारी बात बताई तो उन्होंने कहा कि वह ज्योति को ले कर थाना सदर जाए और पुलिस को सारी बात बता कर रिपोर्ट दर्ज करा दे. अमरेंद्र बहन को ले कर थाना सदर पहुंचा और थानाप्रभारी अशोक कुमार सिंह को सारी बात बता दी. थानाप्रभारी ने उस की बात सुन कर भादंवि की धारा 376, 506, 420, 67, 72 के तहत अशोक सैली के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली. शिवकुमार और मुन्नी दामाद की इस हरकत से बहुत आहत हुए थे. पर उस ने काम ही ऐसा किया था, जो क्षमा करने लायक नहीं था. अगले दिन आगरा सदर बाजार पुलिस ने गाजियाबाद से अशोक को गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में अशोक ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. पति की करतूत से संगम को अफसोस है. बहरहाल कथा संकलन तक अशोक जेल में था.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

प्रेमिका से छुटकारा पाने की शातिर चाल

माधुरी जिस उम्र में थी, वह नएनए सपनों, उमंगों, उम्मीदों और उत्साह से लबरेज होती है. उस ने भी भविष्य के लिए ढेरों ख्वाब बुन रखे थे. बीकौम की छात्रा माधुरी सुंदर और हंसमुख स्वभाव की थी. पढ़लिख कर वह एक मुकाम हासिल करना चाहती थी. लेकिन यह ऐसी उम्र है, जब कोई करिश्माई व्यक्ति आकर्षित कर जाता है. फिर तो उसी के लिए दिल धड़कने लगता है. माधुरी के साथ भी ऐसा हुआ था. वह आदमी कौन था, यह सिर्फ माधुरी ही जानती थी, जिसे वह जाहिर भी नहीं होने देना चाहती थी. वह परिवार में सभी की प्रिय थी. मातापिता को अपने बच्चों से ढेरों उम्मीदें होती हैं. माधुरी को भी मांबाप की ओर से पढ़नेलिखने और घूमनेफिरने की इसीलिए आजादी मिली थी कि वह अपना भविष्य संवार सके.

माधुरी दिल्ली से लगे गौतमबुद्ध नगर जिले के रबूपुरा थाना के गांव मोहम्मदपुर जादौन के रहने वाले मुनेश राजपूत की बेटी थी. वह एक समृद्ध किसान थे. वैसे तो यह परिवार हर तरह से खुश था, लेकिन नवंबर, 2016 में एक दिन माधुरी अचानक लापता हो गई तो पूरा परिवार परेशान हो उठा. वह घर नहीं पहुंची तो उसे ढूंढा जाने लगा. काफी प्रयास के बाद भी जब माधुरी का कुछ पता नहीं चल सका तो परिवार के सभी लोग परेशान हो उठे. चूंकि मामला जवान बेटी का था, इसलिए मुनेश ने थाने जा कर बेटी की गुमशुदगी दर्ज करा दी. पुलिस जांच में पता चला कि माधुरी अपने पिता के मोबाइल से किसी को फोन किया करती थी. पुलिस और घर वालों ने उस नंबर के बारे में पता किया तो वह नंबर नजदीक के ही गांव के रहने वाले राहुल जाट का निकला. 27 नवंबर, 2016 को राहुल को खोज निकाला गया.

राहुल के साथ माधुरी भी थी. दोनों ने जो कुछ बताया, उसे सुन कर घर वाले दंग रह गए. दोनों एकदूसरे से प्रेम करते थे. यही नहीं, उन्होंने आर्यसमाज मंदिर में विवाह भी कर लिया था. राहुल ने अपने 3 दोस्तों की मदद से माधुरी को भगाया था. मामला 2 अलगअलग जातियों का था. माधुरी के घर वाले इस रिश्ते के सख्त खिलाफ थे. वे बेटी द्वारा उठाए गए इस कदम से काफी आहत थे. बात मानमर्यादा और इज्जत की थी, इसलिए दोनों पक्षों के बीच आस्तीनें चढ़ गईं. इस मुद्दे पर पंचायत बैठी, जिस ने फैसला लिया कि दोनों ही अब एकदूसरे से कोई वास्ता नहीं रखेंगे. घर वालों ने माधुरी को डांटाफटकारा और जमाने की ऊंचनीच समझा कर इज्जत का वास्ता दिया. इस पर उस ने वादा किया कि अब वह कोई ऐसा कदम नहीं नहीं उठाएगी, जिस से उन की इज्जत पर आंच आए.

किस के दिमाग में कब क्या चल रहा है, यह कोई दूसरा नहीं जान सकता. माधुरी बिलकुल सामान्य जिंदगी जी रही थी. इस घटना को घटे अभी एक महीना भी नहीं बीता था कि 23 दिसंबर, 2016 की दोपहर माधुरी अचानक फिर लापता हो गई. उस के इस तरह अचानक घर से लापता होने से घर वाले परेशान हो उठे. उन्होंने अपने स्तर से उस की खोजबीन की. लेकिन जब वह शाम तक नहीं मिली तो उन का सीधा शक उस के प्रेमी राहुल पर गया.

माधुरी के घर वालों ने थाने जा कर राहुल और उस के दोस्तों के खिलाफ नामजद तहरीर दे दी. राहुल का चूंकि माधुरी से प्रेमप्रसंग चल रहा था और एक बार वह उसे ले कर भाग चुका था, इसलिए कोई भी होता, उसी पर शक करता. गुस्सा इस बात का था कि समझाने के बावजूद उस ने वादाखिलाफी की थी. इस बात से माधुरी के घर वाले ही नहीं, गांव वाले भी नाराज थे. शायद इसीलिए सभी माधुरी को जल्द से जल्द ढूंढ कर लाने को पुलिस से कहने लगे थे. पुलिस ने माधुरी के घर वालों से नंबर ले कर उस की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि अभी भी माधुरी की राहुल से बातचीत होती रहती थी. गायब होने वाले दिन भी उस की राहुल से बात हुई थी.

पुलिस ने राहुल और उस के दोस्तों को थाने ला कर पूछताछ की. लेकिन इन लोगों ने माधुरी के गायब होने में अपना हाथ होने से साफ मना कर दिया. इस पूछताछ में पुलिस को भी लगा कि इन लोगों का माधुरी के गायब होने में हाथ नहीं है तो उस ने उन्हें छोड़ दिया. कई दिन बीत गए, माधुरी का कुछ पता नहीं चला. घर वाले राहुल और उस के साथियों के छोड़े जाने से खिन्न थे. मुनेश के पड़ोस में ही रहता था हेमंत कौशिक उर्फ टिंकू, जो शादीशुदा ही नहीं, 2 बच्चों का बाप था. वह कंप्यूटर और मोबाइल रिपेयरिंग का काम करता था. पड़ोसी होने के नाते वह माधुरी के घर वालों की हर तरह से मदद कर रहा था.

हेमंत ने मुनेश को सलाह दी कि इस मामले में थाना पुलिस राहुल के खिलाफ काररवाई नहीं कर रही है तो चल कर पुलिस के बड़े अधिकारियों से मिला जाए. उस की बात घर वालों को ठीक लगी तो गांव के कुछ लोगों को साथ ले कर मुनेश एसएसपी औफिस जा पहुंचे. अपनी बात मनवाने के लिए इन लोगों ने धरनाप्रदर्शन भी किया. इस का नतीजा यह निकला कि एसएसपी धर्मेंद्र सिंह ने इस मामले में एसपी (देहात) सुजाता सिंह को काररवाई करने के निर्देश दिए. मामला तूल पकड़ता जा रहा था, इसलिए सुजाता सिंह ने थानाप्रभारी शाबेज खान को माधुरी की गुमशुदगी वाले मामले की गुत्थी सुलझाने को तो कहा ही, खुद भी इस मामले पर नजर रख रही थीं.

पुलिस एक बार फिर राहुल को पकड़ कर थाने ले आई. एसपी सुजाता सिंह ने खुद उस से पूछताछ की. राहुल का कहना था कि पंचायत के बाद वह माधुरी से कभी नहीं मिला तो पुलिस ने उस के ही नहीं, उस के दोस्तों के भी मोबाइल फोनों की लोकेशन निकलवाई. इस से पता चला कि राहुल ही नहीं, उस के दोस्त भी माधुरी के लापता होने वाले दिन घर पर ही थे. कई लोग इस बात की तसदीक भी कर रहे थे. जांच में यह बात सच पाई गई, इसलिए पुलिस उलझ कर रह गई. जबकि माधुरी के घर वाले यह बात मानने को तैयार नहीं थे. लेकिन अब तक राहुल के पक्ष में भी कुछ लोग उतर आए थे, इसलिए पुलिस को विरोध और आरोपों का सामना करना पड़ रहा था. कभीकभी परेशान हो कर पुलिस फरजी खुलासा करते हुए निर्दोषों को जेल भेज देती है. लेकिन इस मामले में ऐसा नहीं हुआ. एसपी सुजाता सिंह ने तय कर रखा था कि वह जो भी काररवाई करेंगी, सबूतों के आधार पर ही करेंगी. माधुरी के घर वाले चाहते थे कि राहुल और उस के साथियों को जेल भेजा जाए, लेकिन पुलिस के पास उन के खिलाफ एक भी सबूत नहीं था.

बात माधुरी की बरामदगी की भी थी. इस के लिए राहुल के पास कोई सुराग नहीं था. माधुरी कहां चली गई थी, इस बात को कोई नहीं जानता था. उस का प्रेम प्रसंग राहुल से था और राहुल को ही उस की खबर नहीं थी. पुलिस के लिए यह मामला काफी पेचीदा हो गया था. इस बीच पुलिस को पता चला कि माधुरी चोरीछिपे मोबाइल फोन इस्तेमाल करती थी. पुलिस को लगा कि इस से कोई सुराग मिल सकता है. लेकिन घर वालों को माधुरी का मोबाइल नंबर पता नहीं था. पुलिस ने गांव के टावर से जितने भी मोबाइल नंबर इस्तेमाल हो रहे थे, सभी का डाटा निकलवाया. यह संख्या 3 हजार से अधिक थी, लेकिन पुलिस को उम्मीद थी कि इस से कोई न कोई सुराग जरूर मिल जाएगा.

पुलिस ने मोबाइल नंबरों को खंगाला तो उन में 2 मोबाइल नंबर एक ही सीरीज के मिले. उन नंबरों को संदिग्ध मान कर जांच शुरू की गई. इस में खास बात यह थी कि माधुरी के लापता होने के 2 दिनों बाद दोनों नंबर बंद कर दिए गए थे. पुलिस ने उन नंबरों की आईडी निकलवाई तो वे जनपद पीलीभीत के एक ही पते पर लिए गए थे. सिमकार्ड लेते वक्त जो पहचानपत्र दिया गया था, वह भी फरजी था. पुलिस ने आईएमईआई नंबर के जरिए मोबाइल का पता किया तो पता चला कि जिस मोबाइल में दोनों सिम में से एक सिम का उपयोग हो रहा था, उसी टावर के अंतर्गत उस में दूसरा नंबर चल रहा था. पुलिस ने उस नंबर के बारे में पता किया तो वह माधुरी के पड़ोसी हेमंत का निकला. इस से हेमंत शक के दायरे में आ गया. 7 जनवरी, 2017 को थानाप्रभारी शाबेज खान एसआई श्रीपाल सिंह, नरेश कुमार, कांस्टेबल जकी अहमद और जितेंद्र को साथ ले कर गांव पहुंचे और पूछताछ के लिए हेमंत को हिरासत में ले लिया.

पूछताछ में हेमंत शातिर खिलाड़ी निकला. उस के न केवल माधुरी से प्रेमसंबंध थे, बल्कि उसी ने सुनियोजित तरीके से माधुरी की हत्या कर के उस की लाश को ठिकाने लगा दिया था. आपराधिक घटनाओं पर आधारित टीवी सीरियलों और फिल्मों से शातिर सोच पैदा कर के उस ने पूरी योजना बनाई थी. उस के प्रेम में अंधी हो चुकी माधुरी उस के इशारों पर नाचने वाली कठपुतली बन चुकी थी तो राहुल मोहरा. माधुरी के लिए हेमंत ही वह आकर्षक करिश्माई आदमी था, जिस का राज माधुरी ने अपने सीने में दफन कर रखा था. हेमंत की निशानदेही पर पुलिस ने गांव के ही एक खेत से माधुरी के शव को बरामद कर लिया था. पुलिस ने शव का पंचनामा भर कर पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया, साथ ही हेमंत के खिलाफ अपराध संख्या 2/2017 पर धारा 364, 302 और 201 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया था.

पुलिस ने हेमंत से विस्तार से पूछताछ की तो एक ऐसे शातिर दिमाग इंसान की कहानी निकल कर सामने आई, जिस ने एक लड़की को प्यार के जाल में फांस कर पहले उस की भावनाओं और विश्वास को छला, उस के बाद उसे मौत की चौखट पर पहुंचा दिया. पड़ोसी होने के नाते माधुरी और हेमंत के घर वालों का एकदूसरे के यहां आनाजाना था. करीब 10 महीने पहले हेमंत ने माधुरी पर डोरे डालने शुरू किए. माधुरी उम्र के नाजुक मोड़ पर थी. उस ने हेमंत का झुकाव अपनी ओर देखा तो वह भी उस की ओर आकर्षित हो गई. बहुत जल्दी दोनों के प्रेमसंबंध बन गए. हेमंत माधुरी को केवल मौजमस्ती का साधन बनाना चाहता था, लेकिन माधुरी उस से दिल से प्यार कर बैठी.

दिल के हाथों मजबूर हो कर माधुरी राह भटक गई. उन के रिश्ते की कोई मंजिल नहीं थी. बात एक ही गांव, पड़ोस और अलगअलग जाति की थी, इस से भी बड़ी बात यह थी कि हेमंत शादीशुदा ही नहीं, 2 बच्चों का बाप था. माधुरी इन बातों को भूल गई और उस के साथ जीनेमरने की कसमें खा लीं. हेमंत शातिर था. वह आपराधिक टीवी सीरियलों से भी खासा प्रभावित था. हेमंत किसी खतरे में नहीं पड़ना चाहता था, इसलिए उस ने फरजी आईडी पर 2 मोबाइल नंबर लिए. एक नंबर उस ने अपने पास रखा और दूसरा माधुरी को देते हुए कहा, ‘‘माधुरी, इस नंबर से मेरे सिवा किसी और से बात मत करना.’’

‘‘मैं भला किसी और से बातें क्यों करूंगी. वैसे भी मेरे लिए अब तुम ही सब कुछ हो.’’ माधुरी ने कहा ही नहीं, किया भी ऐसा ही. माधुरी फोन को छिपा कर रखती थी. उस से वह केवल हेमंत से ही बातें करती थी या एसएमएस करती थी. दोनों का संबंध इतना गुप्त था कि किसी को कानोंकान खबर नहीं थी. दोनों चूंकि पड़ोसी थे, इसलिए उन के संबंधों पर किसी ने कभी शक भी नहीं किया. इस मामले में हेमंत काफी सतर्क रहता था. हेमंत गांव से बाहर कंप्यूटर और मोबाइल रिपेयरिंग का काम करता था. वह सुबह घर से निकलता था तो शाम को ही वापस आता था. इस दौरान वह मोबाइल से माधुरी से जम कर बातें करता था और उस के प्यार के सपनों को पंख लगाता था. आखिर एक दिन माधुरी ने उस से कह ही दिया कि वह हमेशा के लिए उस की होना चाहती है. हेमंत ने भी ऐसा करने का वादा कर लिया. उस ने सोचा कि वक्त आने पर वह माधुरी से पीछा छुड़ा लेगा, लेकिन माधुरी की सोच ऐसी नहीं थी. वह उसे अपना सब कुछ मान चुकी थी, इसलिए प्यार की बातों के दौरान एक दिन उस ने हेमंत से पूछ लिया, ‘‘तुम कभी मुझे धोखा तो नहीं दोगे ’’

‘‘मैं ने तुम्हें धोखा देने के लिए प्यार नहीं किया माधुरी. मैं तुम्हारे लिए कुछ भी कर सकता हूं.’’

‘‘हम शादी कब करेंगे ’’

‘‘तुम जानती हो माधुरी कि यह सब इतना आसान नहीं है. इस के लिए हमें इंतजार करना होगा.’’ हेमंत ने उसे यह कह कर टाल तो दिया, लेकिन वह यह सोच कर चिंतित जरूर हो उठा कि माधुरी उस की पत्नी बनने का पक्का इरादा बना चुकी है.

इस के बाद आए दिन माधुरी हेमंत से शादी की बातें करने लगी. एक दिन बातोंबातों में माधुरी ने उस से कहा कि राहुल उसे पसंद करता है तो यह सुन कर वह खुश हो गया, क्योंकि इस से उसे माधुरी से छुटकारा पाने की राह सूझ गई. उस ने कहा, ‘‘माधुरी, तुम राहुल से भी बातें कर लिया करो, अब वही हमारी शादी कराएगा.’’

‘‘मतलब ’’ माधुरी ने पूछा.

‘‘यह मैं तुम्हें समय आने पर बताऊंगा. मैं जैसा कह रहा हूं, तुम वैसा ही करती रहो. उस के बाद हमें शादी से कोई नहीं रोक सकेगा. तुम अपने पिता के नंबर से उस से बातें किया करो.’’ माधुरी ने ऐसा ही किया. वह पिता के नंबर से राहुल को फोन करने लगी. दरअसल राहुल सीधासादा लड़का था. उसे पता नहीं था कि वह मोहरा बन रहा है. हेमंत के कहने पर माधुरी ने राहुल के सामने शादी का प्रस्ताव रखा. दोनों ही जानते थे कि घर वाले उन की शादी के लिए कभी तैयार नहीं होंगे. इस का एक ही उपाय था कि भाग कर शादी की जाए. माधुरी ने अधिक दबाव डाला तो राहुल इस के लिए तैयार हो गया. हेमंत ने माधुरी को समझाया, ‘‘तुम्हें राहुल से शादी भी करनी है और पकड़ी भी जाना है. इस से सब को विश्वास हो जाएगा कि राहुल तुम्हारा प्रेमी है. फिर एक दिन हम दोनों घर से भाग कर शादी कर लेंगे, जिस का सारा शक राहुल पर जाएगा. उस के जेल जाने पर मामला अपने आप शांत हो जाएगा.’’

हेमंत दिमाग से माधुरी के साथ खेल रहा था, जबकि वह दिल की खुशी के चक्कर में अच्छाबुरा सोचे बिना डगमगा गई. वह उसे अपने इशारों पर नचा रहा था. माधुरी उस की हर बात मानती थी और हद दरजे का विश्वास करती थी. हेमंत के कहे अनुसार, माधुरी राहुल के साथ भागी भी और शादी भी कर ली. दोनों पकड़े भी गए. उन्हें पकड़वाने में हेमंत ने ही अहम भूमिका निभाई थी. उस ने माधुरी से पीछा छुड़ाने की योजना मन ही मन पहले ही तैयार कर ली थी. इतना सब तमाशा होने के बाद वह घर आई तो उस ने हेमंत को शादी की बात याद दिलाई. बदनामी, परिवार की डांटफटकार माधुरी ने सिर्फ हेमंत से शादी करने के लिए सही थी. हेमंत उसे प्यार से समझाबुझा कर पीछा छुड़ाने के बजाए उस के सपनों को और भी ऊंचाई दे कर बरगलाने का काम करता रहा. उस के कहने पर माधुरी राहुल से पिता के मोबाइल से बातें करती रही.

22 दिसंबर को हेमंत ने माधुरी से कहा था कि अगले दिन वह घर से निकल कर गांव के बाहर तय जगह पर पहुंच जाए. उसे लगता था कि माधुरी ऐसा नहीं करेगी. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. माधुरी उस के झूठे प्यार में अंधी हो चुकी थी. वह उस खेत पर पहुंच गई, जहां उस ने पहुंचने को कहा था. माधुरी ने यह बात हेमंत को फोन कर के बता भी दी. वह खेत गांव के किसान डंकारी सिंह का था. हेमंत ने पहले ही तय कर लिया था कि उसे क्या करना है. माधुरी उस के गले की फांस बन चुकी थी. शाम करीब 4 बजे वह खेत पर पहुंचा और माधुरी को कंबल तथा बाजार से ला कर खाना दे आया.

हेमंत ने उसे समझाने के बजाए बरगलाते हुए कहा, ‘‘माधुरी, मैं माहौल देख लूं. पहले तो राहुल को जेल भिजवाना जरूरी है. उस के बाद हम निकल चलेंगे. लेकिन तब तक तुम्हें यहीं रहना होगा.’’

माधुरी ने इस कड़ाके की ठंड में वह रात अकेली खेतों में बिताई. हेमंत उस के लिए खाना पहुंचाता रहा. किसी को उस पर शक न हो, इस के लिए वह माधुरी के घर वालों के साथ खड़ा रहा और उन्हें राहुल के खिलाफ भड़काता रहा. 2 दिन बीत गए. अब माधुरी को खेत में रहना मुश्किल लगने लगा. आखिर उस के सब्र का बांध टूट गया.

तीसरे दिन यानी 26 दिसंबर की शाम माधुरी हेमंत से चलने की जिद करने लगी तो प्यार जताने के बहाने उस ने दुपट्टे से उस का गला कस दिया. हेमंत का यह रूप देख कर माधुरी के होश उड़ गए. बचाव के लिए विरोध करते हुए उस ने हाथपैर भी चलाए, लेकिन हेमंत ने गले में लिपटा दुपट्टा पूरी ताकत से कस दिया था, जिस से छटपटा कर उस ने दम तोड़ दिया. हत्या कर के हेमंत ने अपने और माधुरी के मोबाइल का सिमकार्ड तोड़ दिया और घर आ गया. रात को वह बहाने से निकला और गड्ढा खोद कर लाश को दफना दिया. इस के बाद वह सामान्य जिंदगी जीने लगा.

लोगों के शक से बचने के लिए वह अपने काम पर भी जाता और माधुरी के पिता के साथ बैठ कर माधुरी को ले कर फिक्र भी जताता. हेमंत को पूरा विश्वास था कि वह कभी पकड़ा नहीं जाएगा. उसे लगता था कि दबाव में आ कर पुलिस राहुल और उस के दोस्तों को जेल भेज देगी. उस के बाद माधुरी की खोजबीन ठंडे बस्ते में चली जाएगी. इसीलिए उस ने माधुरी के घर वालों को पुलिस अधिकारियों के यहां प्रदर्शन करने के लिए उकसाया था.

यह अलग बात थी कि एसपी सुजाता सिंह की समझ से पुलिस ने किसी दबाव में काम नहीं किया और वह पकड़ में आ गया. यह भी सच है कि अगर पुलिस बारीकी से जांच न करती तो हेमंत कभी पकड़ा न जाता. उस की फरेबी फितरत और हैवानियत ने पूरे गांव को हैरान कर दिया. पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया था. कथा लिखे जाने तक उस की जमानत नहीं हो सकी थी. माधुरी हेमंत जैसे शातिर के झांसे में न आई होती और बिना डगमगाए अपने भविष्य को संवारने में लगी होती तो यह नौबत कभी न आती.

हेमंत जैसे लोग अपनी घिनौनी सोच को पूरी करने के लिए भोलीभाली लड़कियों को फंसाने का काम करते हैं. जरूरत है, लड़कियों को ऐसे लोगों से सावधान रहने की.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

अय्याशी में डूबा रंगीन मिजाज का कारोबारी

देश भर में क्रिकेट व अन्य खेलों का सामान बनाने के लिए प्रसिद्ध शहर जालंधर (पंजाब) के उपनगर लाजपतनगर की कोठी नंबर 141 में प्रसिद्ध करोड़पति बिजनैसमैन जगजीत सिंह लूंबा का परिवार रहता था. उन के सीमित परिवार में 60 वर्षीय पत्नी दलजीत कौर, 42 वर्षीय बेटा अमरिंदर सिंह उर्फ शंटू, बहू परमजीत कौर उर्फ पम्मी, 20 वर्षीय पोता शानजीत सिंह, मनजीत सिंह और पोती आशीषजीत कौर थीं. जगजीत लूंबा बड़े सज्जन एवं दयालु प्रवृत्ति के इंसान हैं. धनवान होने के बावजूद भी उन्हें किसी चीज का घमंड नहीं था. शहर में उन की जगजीत ऐंड कंपनी नाम से बहुत बड़ी फर्म है, जिस के अंतर्गत 2 पैट्रोल पंप, सर्विस स्टेशन और एक बहुत बड़ी मैटल ढलाई की फैक्ट्री है, जिस में कई फर्नेस लगे हैं. अमरिंदर सिंह उर्फ शंटू अपने पिता के साथ कारोबार संभालने में उन की मदद करता था. दलजीत कौर भी कभीकभार पति और बेटे की मदद के लिए पैट्रोल पंपों पर चली जाती थीं. तीनों बच्चे अभी पढ़ रहे थे. बड़ा पोता शानजीत सिंह एपीजे कालेज जालंधर का छात्र था. कुल मिला कर लूंबा परिवार सुखचैन से अपना जीवन निर्वाह कर रहा था.

23 फरवरी, 2017 की शाम करीब 4 बजे की बात है. दलजीत कौर अपने ड्राइंगरूम में परमजीत कौर उर्फ पम्मी और खुशवंत कौर उर्फ नीतू के साथ बैठी चाय पी रही थीं. खुशवंत कौर परमजीत कौर के पति के दोस्त बलजिंदर सिंह की पत्नी थी. दोनों के आपस में पारिवारिक संबंध थे. बलजिंदर की भी जालंधर के लक्ष्मी सिनेमा के पास मैटल ढलाई की फैक्ट्री थी.

अमरिंदर सिंह उर्फ शंटू की शादी के बाद से परमजीत कौर और खुशवंत कौर के बीच गहरी दोस्ती हो गई थी. इसी कारण वह हर रोज शाम के समय उस से मिलने उस के घर आ जाया करती थी. पिछले कई दिनों से दलजीत कौर की कमर में दर्द हो रहा था. शायद उम्र का तकाजा था. वह रोज शाम के ठीक 4 बजे फिजियोथैरेपी करवाने के लिए डाक्टर के यहां जाती थीं.

पर उस दिन खुशवंत कौर के आ जाने पर उन्होंने डाक्टर के यहां जाना कैंसिल कर दिया था. तीनों बच्चे शाम 4 से 6 बजे तक ट्यूशन पढ़ने चले जाते थे. मतलब आम दिनों में 4 से 6 बजे तक यानी 2 घंटे पम्मी घर में अकेली होती थी. उस दिन पम्मी की बेटी ट्यूशन चली गई थी.

बेटा शान जब ट्यूशन पढ़ने जाने के लिए निकलने लगा तो पम्मी ने कहा, ‘‘बेटा शान, तुम्हारे पापा का फोन आया था. उन्होंने कहा है कि तुम अपने छोटे भाई के साथ जा कर अवतारनगर रोड पर स्थित कार की दुकान पर एजेंट से मिलो. वह आज तुम्हारे पसंद की जीप खरीदवाएंगे.’’

‘‘ठीक है मम्मी.’’ शान ने मां की बात सुन कर कहा और छोटे भाई मनजीत को ले कर कार से अवतारनगर की तरफ चला गया.  दरअसल शान कई दिनों से अपने लिए जीप खरीदवाने की जिद कर रहा था.

तीनों महिलाएं चाय की चुस्कियां लेते हुए आपस में बतिया रही थीं कि तभी डोरबेल बजी. घंटी बजते ही पम्मी ने चाय का प्याला टेबल पर रखा और दरवाजे पर जा कर दरवाजा खोला तो सामने 2 आदमी खड़े थे. बिना कुछ कहे ही उन्होंने पम्मी को भीतर की ओर धक्का दे कर दरवाजा बंद कर दिया.

इस से पहले कि पम्मी कुछ समझ पाती, उन दोनों में से एक ने अपनी कमर से पिस्तौल निकाली और पम्मी को निशाना बना कर एक के बाद एक 3 गोलियां चला दीं. पम्मी को तो चीखने का अवसर भी नहीं मिला और वह फर्श पर गिर गई. गोलियों की आवाज सुन कर दलजीत कौर ड्राइंगरूम से बाहर आईं. बहू की हालत देख कर वह चिल्लाईं, ‘‘ओए मार दित्ता जालमा.’’

उन के साथ ही खुशवंत कौर भी कमरे से बाहर आ गई थी. माजरा समझ दोनों हमलावरों पर झपट पड़ीं. उन की इस हरकत से हमलावर घबरा गए. खुशवंत कौर दोनों में से एक से गुत्थमगुत्था हो गई. दलजीत कौर दूसरे आदमी से भिड़ गईं, जिस के हाथ में पिस्तौल था.

पिस्तौल वाले हमलावर ने दलजीत कौर से खुद को छुड़ाने के लिए उन पर गोली चला दी. इस के बाद दूसरे आदमी ने खुशवंत कौर को काबू करने के लिए अपने हाथ में थामा पेचकस उस की गरदन में पूरी ताकत से घुसेड़ दिया. उसी समय पिस्तौल वाले ने उस पर भी गोली चला कर मामला खत्म कर दिया.

तीनों औरतों की हत्या कर दोनों हमलावरों ने चैन की सांस ली और ड्राइंगरूम से निकल कर लौबी में आ गए. लौबी में रखे फ्रिज के पीछे टंगी चाबियों में से उन्होंने एक चाबी उठाई और घर के पिछवाड़े आ कर कोठी के बैक साइड वाला दरवाजा खोल कर निकल गए. मात्र 6-7 मिनट में वे 3 हत्याएं कर के आराम से चले गए थे.

दूसरी ओर जीप देखने के बाद शाम सवा 5 बजे शंटू जब अपने दोनों बेटों के साथ कोठी पर आया तो मुख्य दरवाजा भीतर से बंद मिला. काफी खटखटाने के बाद भी जब अंदर से कोई आहट नहीं सुनाई दी तो किसी अनहोनी की आशंका से परेशान हो कर बापबेटों ने धक्के मार कर दरवाजा तोड़ दिया. इस के बाद सामने का दृश्य देख कर उन के होश उड़ गए. शंटू चीखने लगे, ‘‘मार गए…मार गए… बीजी को मार गए.’’

बच्चे भी मदद के लिए उन के साथ चीखने लगे थे. चीखपुकार सुन कर पड़ोसी जमा हो गए. उन में खुशवंत कौर का बेटा अर्शदीप भी था. मां की लाश देख कर वह भी जोरजोर से रोने लगा. पड़ोसियों की मदद से तीनों को नजदीक के प्राइवेट अस्पताल ले गया. पौश कालोनी में दिनदहाड़े हुई 3 हत्याओं की खबर जंगल में लगी आग की तरह शहर भर में फैल गई. लोगों में दहशत भर गया. कोई इसे आंतकवादी घटना बता रहा था तो कोई आपसी रंजिश. किसी ने पुलिस को फोन कर दिया था. डा. अमनप्रीत सिंह ने मुआयना करने के बाद दलजीत कौर और खुशवंत कौर को मृत घोषित कर दिया. पुलिस केस था, इसलिए अस्पताल से भी पुलिस को सूचना दे दी गई.

परमजीत कौर की हालत नाजुक थी. उस के दिल की धड़कनें काफी धीमी थीं. उस की जान बचाने के लिए डाक्टरों ने उसे वेंटीलेटर पर रख दिया.

खबर मिलते ही थाना डिवीजन नंबर-4 के थानाप्रभारी प्रेम सिंह और थाना डिवीजन नंबर-6 के थानाप्रभारी गुरवचन सिंह दलबल सहित घटनास्थल पर पहुंच गए.

लाजपतनगर इलाका पहले थाना डिवीजन नंबर-6 में था, पर बाद में उसे थाना डिवीजन नंबर-4 में शामिल कर दिया गया. घटनास्थल पर पहुंचने के बाद पुलिस को पता चला कि सब लोग अस्पताल गए हैं तो थानाप्रभारी ने कोठी पर 2 सिपाही तैनात कर इंसपेक्टर प्रेम सिंह के साथ अस्पताल पहुंच गए. डाक्टर परमजीत को बचाने की कोशिश कर रहे थे पर उस की हालत में सुधार नहीं हो रहा था. फिर रात 9 बजे के करीब उस ने दम तोड़ दिया.

अस्पताल में पता चला कि जिन तीनों महिलाओं को गोली मारी गई थी, उन की मौत हो चुकी है. उन की लाशें कब्जे में ले कर पुलिस ने शंटू के बयान दर्ज किए और उन्हीं की ओर से भादंवि की धारा 302, 307, 452, 34 और 25, 27 आर्म्स एक्ट के तहत अज्ञात हत्यारों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर तीनों लाशों को पोस्टमार्टम के लिए राजकीय अस्पताल भेज दिया.

मामला करोड़पति बिजनैसमैन के परिवार में हुई 3 हत्याओं का था, इसलिए खबर मिलते ही पुलिस कमिश्नर (जालंधर) अर्पित शुक्ला सहित पुलिस के तमाम अधिकारी अपनेअपने लावलश्कर के साथ लाजपतनगर की कोठी नंबर-141 पर पहुंच गए. कोठी के ड्राइंगरूम में खून फैला था. क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम और फिंगरप्रिंट विशेषज्ञ मौके से सबूत ढूंढने का प्रयास कर रहे थे.

घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण करने के बाद पुलिस अधिकारियों को लगा कि हत्याएं लूटपाट के इरादे से नहीं की गईं, क्योंकि कोठी का सारा कीमती सामान अपनी जगह पर यथावत था. एक जगह कुरसियां और चाय के बरतन जमीन पर गिरे पडे़ थे, जिस से अनुमान लगाया गया कि वहां संघर्ष हुआ होगा.

हत्यारे जिस तरह कोठी के पीछे का दरवाजा खोल कर निकले थे, उस से यही अनुमान लगाया गया कि वह लूंबा परिवार के परिचित रहे होंगे, जिन का कोठी में आनाजाना रहा होगा. क्योंकि वह दरवाजा अकसर बंद रहता था और उस की चाबी फ्रिज के पीछे टंगी रहती थी. उन का मकसद केवल परमजीत कौर उर्फ पम्मी और उस की सास दलजीत कौर की हत्या करना था.

चश्मदीद गवाह न रहे, इसलिए उन्होंने कोठी में मौजूद खुशवंत कौर को भी मार दिया था. शंटू ने पुलिस को बताया था कि उस के परिवार की किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी. पुलिस मामले की जांच में जुट गई. पुलिस को पता चला कि उस कोठी में 4 नौकरानियां काम करती थीं.

सुबह 10 बजे से दोपहर 2 बजे तक 3 नौकरानियां बरतन झाड़ूपोंछा, कपड़े धोने आदि का काम कर के अपने घर चली जाती थीं. एक नौकरानी रीतू लगभग 3, साढ़े 3 बजे की चाय बनाने के बाद घर जाती थी. पुलिस ने चारों नौकरानियों और उन के पतियों से गहन पूछताछ करने के साथ उन की पारिवारिक कुंडली को भी खंगाला.

क्योंकि अकसर बड़े घरों में होने वाली ऐसी वारदातों के पीछे किसी न किसी नौकर का हाथ होता है. पर ये सब बेकसूर पाए गए. पुलिस को घटनास्थल से 2 खाली कारतूस मिले थे, जबकि तीनों मृतक महिलाओं पर 7 गोलियां चलाई गई थीं, इस का मतलब यह था कि शेष 5 गोलियां मृतकों के शरीर में रह गई थीं.

अगले दिन डा. चंद्रमोहन, डा. प्रिया और डा. राजकुमार के पैनल ने तीनों लाशों का पोस्टमार्टम किया. एक्सरे और पोस्टमार्टम की रिपोर्ट के अनुसार, दलजीत कौर को कुल 3 गोलियां मारी गई थीं, जिस में से एक गोली उन के दिल के पास और एक सिर में फंसी थी. परमजीत कौर को भी 3 गोलियां लगी थीं, जिन में एक गोली उस के माथे के ठीक बीचोबीच लगी थी और एक खोपड़ी और एक बाजू में फंसी हुई थी. इस के अलावा उस के शरीर पर चोटों के 6 निशान पाए गए थे.

खुशवंत कौर के सिर में एक गोली उस की कनपटी से हो कर खोपड़ी में फंस गई थी. उस की गरदन में 16 सेंटीमीटर लंबा एक पेचकस भी फंसा हुआ था. पोस्टमार्टम के बाद पुलिस ने तीनों लाशें परिजनों को सौंप दीं. उन के अंतिम संस्कार में शहर के अनेक व्यापारी, गणमान्य व्यक्तियों के अलावा हजारों लोग शामिल हुए थे.

पुलिस को अमरिंदर सिंह उर्फ शंटू से पूछताछ करनी थी, इसलिए अंतिम संस्कार के बाद पुलिस ने उसे थाने बुला लिया. उस समय वहां वरिष्ठ पुलिस अधिकारी भी मौजूद थे. थानाप्रभारी ने उस का मोबाइल फोन अपने कब्जे में ले कर चैक किया तो पता चला कि उस की सारी काल डिटेल्स डिलीट की हुई थी. उस का फोन नंबर सर्विलांस पर लगाने के बाद संबंधित फोन कंपनी से उस के नंबर की काल डिटेल्स हासिल की गई.

काल डिटेल्स की जांच में पुलिस को कई फोन नंबर संदिग्ध मिले. उन नंबरों के बारे में शंटू से पूछताछ की गई तो इस तिहरे हत्याकांड का खुलासा हो गया.

मामले का 24 घंटे में खुलासा होने पर पुलिस अधिकारियों ने राहत की सांस ली. हत्याकांड की साजिश में शामिल तेजिंदर कौर उर्फ रूबी नाम की महिला की गिरफ्तारी के लिए एक टीम फगवाड़ा भेज दी.

उस की गिरफ्तारी के बाद पुलिस कमिश्नर अर्पित शुक्ला ने उसी शाम प्रैसवार्ता कर पत्रकारों को बताया कि लाजपतनगर के तिहरे हत्याकांड के साजिशकर्ता और कोई नहीं, बल्कि अमरिंदर सिंह उर्फ शंटू और उस की प्रेमिका तेजिंदर कौर उर्फ रूबी है. इन दोनों अभियुक्तों ने पत्रकारों के सामने हत्या की कहानी बयान कर दी. इस सनसनीखेज तिहरे हत्याकांड की जो कहानी सामने आई, वह कुछ इस प्रकार थी—

जगजीत सिंह लूंबा की सारी कंपनियां दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की कर रही थीं. वह बड़े बिजनैसमैन थे, इसलिए उन का समाज में एक अलग ही रुतबा था. अमरिंदर सिंह उर्फ शंटू और उस की पत्नी परमजीत कौर में बड़ा गहरा प्यार था. शंटू और जगजीत सिंह सुबह एक साथ घर से निकलते थे. जगजीत सिंह का अधिकांश समय पैट्रोल पंपों पर गुजरता था, जबकि शंटू स्वतंत्र रूप से फैक्ट्री को देखता था. दोनों ने अपनेअपने काम बांट रखे थे, पर सारे कारोबार का लेखाजोखा जगजीत ऐंड कंपनी में होता था.

लूंबा परिवार की बरबादी के दिन की शुरुआत उस समय हो गई थी, जब सन 2013 में उन की कंपनी में तेजिंदर कौर उर्फ रूबी ने बतौर हैड एकाउंटैंट का कार्यभार संभाला. इस के पहले जगजीत ऐंड कंपनी में उस का पति सुखजीत बतौर कैशियर काम करता था. सुखजीत सिंह रूबी का नाम का ही पति था. क्योंकि उस पर सुखजीत सिंह का कोई नियंत्रण नहीं था.

अपना जीवन कैसे जीना है, इस बात के फैसले रूबी खुद लेती थी और उस में वह किसी का भी दखल बरदाश्त नहीं करती थी. कुल मिला कर वह एक आजाद खयाल महिला थी. कालेज के दिनों में ही रूबी ने तय कर लिया था कि वह भारत छोड़ कर विदेश जाएगी, जहां खूब दौलत कमा कर अपनी जिंदगी का लुत्फ उठाएगी.

इस के लिए उस ने कोई भी कीमत चुकाने का फैसला कर लिया था, पर विदेश जाने के लिए उस के पास पर्याप्त धन नहीं था. आखिर उस ने स्कौलरशिप ले कर आस्ट्रेलिया जाने का फैसला लिया. बारहवीं करने के बाद रूबी ने कंप्यूटर एजूकेशन में डिप्लोमा किया. इस के बाद उस ने सन 2009 में आईईएलटीएस की परीक्षा दी.

इस परीक्षा के तहत विदेश में नौकरी करने के लिए इच्छुक लोगों का अंगरेजी भाषा का टेस्ट लिया जाता है. फिर इस में मिले स्कोर बैंड के आधार पर उसे वीजा देने का फैसला लिया जाता है. इस परीक्षा में रूबी का स्कोर बैंड 5.5 आया. यह स्कोर बैंड अंगरेजी भाषा के मामूली उपयोगकर्ता का होता है, इसलिए कम स्कोर बैंड आने पर रूबी को आस्ट्रेलिया का वीजा नहीं मिला.

रूबी ने हिम्मत नहीं हारी. उस ने एक बार फिर आईईएलटीएस की परीक्षा दी. इस बार उसे 6.5 स्कोर बैंड प्राप्त हुए. यह स्कोर बैंड सक्षम उपयोगकर्ता का माना जाता है. पर उसे कम से कम 7 बैंड की जरूरत थी. इस बार भी वीजा न मिलने पर उस की विदेश जाने की इच्छा पूरी नहीं हो सकी. उसी दौरान उस की शादी सुखजीत सिंह से हो गई.

सुखजीत सिंह एक शरीफ युवक था. रूबी उसे ज्यादा महत्त्व नहीं देती थी. बातबात पर वह उस से क्लेश करती थी. क्लेश से बचने के लिए वह शांत रहता था. रूबी पति के साथ जालंधर के सोढल चौक पर किराए के मकान में रहती थी. पर अपनी महत्त्वाकांक्षा के चलते उस ने विदेश जाने का इरादा नहीं छोड़ा था.

वह किसी ऐसे आदमी की तलाश में थी, जो उस पर ढेर सारी दौलत लुटाए और उस के सपने पूरे करे. इस बीच उस की नौकरी अच्छे वेतन और अन्य सुविधाओं के साथ जगजीत ऐंड कंपनी में लग गई थी. इस नौकरी को उस ने अपने सपने पूरे करने का जरिया बना डाला था.

अमरिंदर सिंह उर्फ शंटू पहली ही मुलाकात में तेजिंदर कौर उर्फ रूबी का दीवाना हो गया था. रूबी भी अपने बौस की नजरों को ताड़ गई थी. यही तो वह चाहती थी. जिस आदमी की उसे तलाश थी, वह तलाश उस की पूरी हो गई थी.

शंटू किसी भी तरह रूबी को हासिल करना चाहता था. इस के लिए उस ने रूबी को तमाम सुविधाएं देने के साथ अपनी निजी सचिव बना लिया. अब वह हर समय शंटू के साथ रहती थी. दोनों एकदूसरे का शिकार करने पर तुले थे, पर तीर चलाने में पहल कोई नहीं कर रहा था.

रूबी को सरप्राइज देने के लिए शंटू ने जालंधर के रामामंडी क्षेत्र में एक कोठी खरीदी और उस की चाबी रूबी को देते हुए कहा, ‘‘आज से तुम इस कोठी में रहोगी. यह तुम्हारे लिए है.’’

रूबी की खुशी का ठिकाना न रहा. क्योंकि उस ने सोचा भी नहीं था कि शंटू इतनी जल्दी उस की झोली में आ गिरेगा. उसी शाम उस नई कोठी में रूबी के सामने जब शंटू ने प्यार का इजहार किया तो रूबी को जैसे मनचाही मुराद मिल गई. इसी दिन का तो उसे इंतजार था. दोनों ने ही उस दिन अपनी इच्छा पूरी की. इस के बाद रूबी पति को छोड़ कर शंटू द्वारा दी गई कोठी में रहने लगी.

शंटू का भी अधिकांश समय रूबी के साथ उसी नई कोठी में गुजरने लगा. घर पर काम का बहाना बना कर वह रूबी की बांहों में पड़ा रहता. 3 साल कब गुजर गए, पता ही नहीं चला और न ही उन के संबंधों की बात किसी को कानोकान पता चली. पर अवैध संबंध कभी न कभी खुल ही जाते हैं.

दिसंबर, 2016 में परमजीत कौर को अपने पति और रूबी के नाजायज संबंधों की भनक लग गई. इस बारे में जब उस ने शंटू से पूछा तो वह साफ मुकर गया. पर परमजीत के पास पुख्ता सबूत थे. उस ने यह बात अपनी सास दलजीत कौर को बताई. फिर एक दिन वह अपनी ननद और सास को ले कर रामामंडी वाली कोठी पर पहुंची.

रूबी कोठी में ही थी. तीनों ने मिल कर रूबी की खूब बेइज्जती की और उसे धक्के मार कर कोठी से बाहर कर अपना ताला लगा दिया. शंटू को जब इस बात का पता चला तो उसे अपने घर वालों पर बड़ा गुस्सा आया. घर आ कर उस ने खूब झगड़ा किया और पिता जगजीत सिंह से साफ कह दिया, ‘‘मैं पम्मी से तलाक ले कर रूबी से शादी कर के उसे इस घर की बहू बनाना चाहता हूं.’’

‘‘तेरी मति मारी गई है क्या, जो इस उम्र में पागलों जैसी बातें कर रहा है. शांति से अपने बीवीबच्चों के साथ रह.’’ जगजीत सिंह ने डांटा.

जगजीत सिंह और दलजीत कौर ने बेटे को बहुत समझाया, पर शंटू तो रूबी के मोहजाल में इस कदर जकड़ा था कि वह किसी भी सूरत में उस से दूर होने को तैयार नहीं था. शंटू की ससुराल वालों और अन्य रिश्तेदारों ने यह बात सुनी तो सभी उन की कोठी पर आ गए.

सभी ने शंटू को फटकार लगाते हुए समझाया, तब कहीं जा कर यह मामला शांत हुआ. उस समय सभी बड़ेबूढ़ों के दबाव में आ कर शंटू शांत हो गया, पर दिनरात वह पम्मी से पीछा छुड़ा कर रूबी से ब्याह रचाने के बारे में सोचता रहता था. वह इस बात को अच्छी तरह समझ गया था कि एक म्यान में 2 तलवारें नहीं रह सकतीं यानी पम्मी के रहते हुए वह रूबी को कभी इस घर की बहू नहीं बना सकता.

शंटू के पैट्रोल पंप पर कुछ समय पहले तक गांव ढिलवां निवासी विपिन नौकरी करता था. विपिन अपराधी प्रवृत्ति का था. उस पर कई मुकदमे चल रहे थे. एक दिन अचानक रास्ते में शंटू की मुलाकात विपिन से हो गई. गाड़ी रोक कर उस ने विपिन को अपने साथ बिठा लिया. शंटू ने उसे अपने और रूबी के रिश्ते के बारे में बता कर कहा, ‘‘पम्मी के रहते रूबी को अपना बनाना असंभव है. तू बता पम्मी का इलाज कैसे किया जाए?’’

‘‘जी, मैं क्या बताऊं?’’ विपिन ने असमंजस में कहा, ‘‘आप किसी वकील से सलाह ले लो.’’

‘‘नहीं, पम्मी का बड़ा सीधा इलाज है.’’ शंटू ने कहा.

‘‘वह क्या जी?’’ विपिन ने हैरानी से पूछा.

‘‘पम्मी का काम तमाम कर दे. न रहेगा बांस और न बजेगी बांसुरी.’’ शंटू ने सुझाव दिया.

‘‘ठीक है जी, हटा देते हैं रस्ते से.’’ विपिन अब पूरी बात समझ गया था. मुद्दे पर आते हुए उस ने कहा, ‘‘पर यह काम मैं अकेला नहीं कर सकूंगा. दूसरे बदले में कितने रुपए मिलेंगे?’’

‘‘पहले तू आदमी का इंतजाम कर ले, रुपयों की बात तभी कर लेंगे.’’ शंटू ने कहा.

अगले ही दिन विपिन ने गांव सरहाल कलां चब्बेवाल निवासी अमृतपाल को शंटू से मिलवाया. उस का बड़ा भाई विदेश में नौकरी करता था. वह भी मलेशिया में नौकरी करता था. 3 साल नौकरी कर के वह 6 महीने पहले ही घर लौटा था. यहां आ कर उस ने पैट्रोल पंप के शेड बनाने का काम शुरू कर दिया था.

उसी दौरान उस की मुलाकात विपिन से हुई थी. अमृतपाल साफसुथरी छवि वाला आदमी था, पर पैसों की वजह से उसे लालच आ गया. उस ने इस काम के लिए 15 लाख रुपए मांगे. सौदेबाजी के बाद मामला 8 लाख रुपए में तय हो गया. शंटू ने उसी समय विपिन को 1 लाख 40 हजार रुपए एडवांस दे दिए. इन रुपयों से विपिन और अमृतपाल उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद गए और वहां से किसी से एक पिस्तौल और गोलियां खरीद लाए.

शंटू ने अपनी पत्नी परमजीत कौर उर्फ पम्मी की हत्या की सुपारी अपनी प्रेमिका रूबी के कहने पर दी थी. हत्या की योजना बन जाने के बाद शंटू ने विपिन और अमृतपाल को अपनी कोठी का पूरा नक्शा समझाते हुए एकएक बात बारीकी से समझा दी कि कैसे उन्हें कोठी में दाखिल होना है और कैसे हत्या करनी है. उस के बाद फ्रिज के पीछे टंगी पिछले दरवाजे की चाबी से ताला खोल कर बाहर निकल जाना है.

शंटू ने विपिन और अमृतपाल को अपने घर के सभी सदस्यों की भी पूरी जानकारी दे दी थी कि कौन किस वक्त कहां होता है. हत्या करवाने के लिए शंटू ने शाम 4 से 5 बजे का टाइम तय किया था. क्योंकि वह जानता था कि उस समय परमजीत कौर कोठी में अकेली होती है.

21 फरवरी, 2017 को शंटू की योजनानुसार विपिन और अमृतपाल उस की कोठी नंबर 141 पर पहुंचे. उन्होंने यह कह कर घर में लगे सीसीटीवी कैमरों के कनेक्शन काट दिए कि शंटू भाई ने कहा है कि इन पुराने कैमरों की जगह अब नए मौडर्न कैमरे लगाए जाएंगे. इसी बहाने वे कोठी के अंदरूनी भाग को पूरी तरह देखसमझ आए. अगले दिन 22 फरवरी, 2017 को दोनों फिर से कोठी पर गए और वहां रखा डिजिटल वीडियो रिकौर्डर और मौनीटर भी उठा लाए.

23 फरवरी, 2017 की शाम करीब 4 बजे दोनों फिर कोठी पर पहुंचे और अपनी योजनानुसार इस हत्याकांड को अंजाम दे कर चुपचाप निकल गए. बात केवल परमजीत कौर उर्फ पम्मी की हत्या करने की हुई थी. इसलिए विपिन और अमृतपाल दलजीत कौर और खुशवंत कौर की हत्या नहीं करना चाहते थे, लेकिन हालात ऐसे बन गए कि उन्हें उन की भी हत्या करने के लिए मजबूर होना पड़ा.

शंटू को इस बात की आशंका बिलकुल नहीं थी कि उस की मां की भी मौत हो सकती है. वह अपनी मां से बेहद प्यार करता था. इस का उसे बहुत पश्चाताप है. रिमांड के दौरान पूछताछ करते समय वह अपनी मां को बारबार याद कर के रोने लगता था. उसे इस बात का अफसोस है कि उस की अय्याशियों और बेवजह की हठधर्मी से उस के परिवार का विनाश हो गया.

विपिन और अमृतपाल फरार हो गए थे. उन की तलाश में पुलिस की एक टीम दिल्ली और गाजियाबाद भी गई, पर वे पुलिस के हाथ नहीं लग सके. पुलिस ने अमरिंदर सिंह उर्फ शंटू और तेजिंदर कौर उर्फ रूबी को न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया है. कथा लिखे जाने तक विपिन और अमृतपाल गिरफ्तार नहीं हो सके थे.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

अपराधों को बढ़ावा देते पर्व त्योहार

पर्व, तीज, त्योहार इनसान के जीवन में खुशी लाते हैं. शुष्क जीवन में सरसता का संचार करते ये त्योहार इतने व्यर्थ हो गए हैं कि इन के लिए ‘व्यर्थ’ शब्द भी व्यर्थ हो गया है. जीवन में सरसता का संचार करने के बजाय कटुता का संचार करते हैं, तनाव पैदा करते हैं.

सब से पहली बात कि इन सारे पर्व त्योहारों को मनाने के लिए जबरन चंदा वसूली होती है. लोग अपने कलेजे पर पत्थर रख कर, मजबूरी में या डर कर, चंदा वसूलने वालों को उन की मुंहमांगी मोटी रकम देते हैं. जो जरा भी आनाकानी करता है, चंदा वसूलने वालों द्वारा मारापीटा जाता है. यदि दुकानदार मिल कर विरोध करते हैं तो उन की दुकानें लूट ली जाती हैं. ये पूजापर्व मनाने वाले लोग सार्वजनिक, सरकारी, गैरसरकारी मकानों का अतिक्रमण करते हुए बांसबल्ली के टैंट गाड़ते हैं, बिजली के खंभे से सीधी बिजली चुरा कर साजसजावट करते हैं.

आई.पी.सी. हो या सी.आर.पी.सी. हो, उन पर लागू नहीं होता और पुलिस किसी भी भारतीय कानून के तहत काररवाई कहां करती है? जो कानून पसंद, शांतिप्रिय नागरिक यदि थोड़ा सा भी विरोध करते हैं तो  इनके द्वारा प्रताडि़त होते हैं, घायल किए जाते हैं…और कई बार मौत के घाट तक उतार दिए जाते हैं. थाने में उन की रिपोर्ट तक दर्ज करने से पुलिस अधिकारी टालमटोल कर जाते हैं. थाना पुलिस एवं प्रशासन उलटा शिकायतकर्ता को ही अपमानित करते हुए भगा देता है.

जहां तहां सड़कों, नुक्कड़ों, चौराहों, आम रास्तों का अतिक्रमण कर के मिट्टी की मूर्तियां बैठाई जाती हैं. बांसबल्ली लगा कर रास्ता जाम कर दिया जाता है. आम नागरिक परेशान हो तो हो. उन्हें इस की चिंता नहीं होती.

एक ओर सरस्वती की पूजा होती है दूसरी ओर सजीव सरस्वतियों, यानी लड़कियों और युवतियों के साथ छेड़छाड़. सरस्वती को तथाकथित भक्त (जो हकीकत में ‘भक्त’ नहीं गुंडेबदमाश हुआ करते हैं) स्त्रियों, खासकर लड़कियों, किशोरियों के गालों पर गुलाल लगाने के बहाने छेड़छाड़ करते हैं. यही बात दुर्गापूजा और छठपर्व में भी देखने में आती है.

अखबारों में छपी खबरें सुबूत हैं. हाल में राजधानी दिल्ली में ठीक दशहरे के दिन अपने घर लौटती लड़की का उस के मातापिता के सामने ही अपहरण कर लिया गया. उस के साथ सामूहिक बलात्कार हुआ. ऐसी घटनाओं की सूची काफी लंबी है. पिछली दीवाली के दिन दिल्ली में एक 7 वर्षीय बच्ची का अपहरण कर के बलात्कार किया गया और हत्या कर के उस की लाश रिज एरिया में फेंक दी गई. पूजा व पर्व के दिनों में गुंडे जश्न मनाने के लिए जैसे मीट, मछली, शराब का जुगाड़ किया करते हैं वैसे ही अपनी मौजमस्ती के लिए मासूम लड़कियों का अपहरण, बलात्कार और हत्या भी कर देते हैं.

त्योहारों को तत्काल बंद कर देना चाहिए जो नाना अनाचारों, व्यभिचारों, आपराधिक कृत्यों के जनक हैं. यह कहना अतिशयोक्ति न होगा कि इन पर्वों, त्योहारों की आड़ में घोर अपराध पनप रहे हैं. समाज गर्त में जा रहा है. लड़कियों की इज्जत लूटी जा रही है. व्यभिचार बढ़ रहा है.

अब तो ‘धर्म निरपेक्षता’ भी दांव पर लग गई है. देश की सरकार सचमुच धर्मनिरपेक्ष रहती तो हिंदुओं के पर्वत्योहारों की इतनी सरकारी छुट्टियां क्यों? यह ‘विधान’ ही गलत है. यह भारतीय संविधान के विरुद्ध है. किसी भी धर्म की कोई भी छुट्टी नहीं होनी चाहिए. जिसे जो भी पर्वत्योहार मनाना हो वह अपना आकस्मिक अवकाश (सी.एल.) का प्रयोग करे.

इस देश में बहुत से सरकारी व गैरसरकारी संस्थान ऐसे हैं जहां चौबीसों घंटे काम चलता रहता है. किसी भी पर्व व त्योहार पर वहां छुट्टी नहीं होती और लोग भय या किसी लालच में नहीं बल्कि काम के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझ कर ड्यूटी पर आते हैं. यदि सरकार के एक उपक्रम में ऐसा हो सकता है तो दूसरे विभागों में क्यों नहीं.

इंसाफ में देर है पर अंधेर नहीं

ऐसा लग रहा है यह कोई अपराध नहीं, बल्कि फिल्मी कहानी है. अगर कोई निर्माता इस पर फिल्म बनाने का निर्णय ले ले तो हैरानी भी नहीं होनी चाहिए. घटना की शुरुआत या अंत कुछ भी कह लें, जबलपुर के थाना कैंट के बिलहरी मोहल्ले से हुई, जो मंडला रोड पर स्थित है. यहां अनुसूचित जाति के लोग ज्यादा रहते हैं. ज्यादा नहीं, अब से कुछ साल पहले तक बिलहरी एक गांव हुआ करता था. लेकिन धीरेधीरे यहां लोग बसने लगे तो यह जबलपुर के कैंट इलाके का प्रमुख मोहल्ला इस लिहाज से हो गया, क्योंकि यहां आसपास के गांव वालों के अलावा दूसरे शहरों और राज्यों के भी लोग आ कर बसने लगे थे.

कुछ लोगों को छोड़ दें तो बिलहरी में रह रहे ज्यादातर लोग मेहनतमजदूरी कर रोज कमानेखाने वाले हैं और कच्चे मकानों या झुग्गियों में रहते हैं. रोजाना कई लोग आ कर इस इलाके में बसते हैं और फिर धीरेधीरे यहीं के हो कर जबलपुरिया कहलाने लगते हैं.

रोजगार की तलाश में ऐसा ही एक जोड़ा अप्रैल, 2015 में जबलपुर आया तो बिलहरी में किराए का मकान ले कर रहने लगा. पति का नाम मयूर मलिक था और पत्नी का रिंकी शर्मा. रहने का ठिकाना मिल गया तो मयूर इधरउधर काम करने लगा. कुछ दिनों बाद उसे एक दुकान में नौकरी मिल गई. जल्दी ही उन के यहां एक बेटा भी हो गया.

रिंकी हालांकि हंसमुख और मिलनसार स्वभाग की थी, लेकिन अड़ोसपड़ोस में उस का कम ही उठनाबैठना था. रोज होने वाली बातचीत में उस ने पड़ोसियों से अपने बारे में बताया था कि वह और मयूर बिहार के जिला मुजफ्फरपुर के एक गांव के रहने वाले हैं.

शादी के बाद रोजगार की तलाश में दोनों जबलपुर आ गए हैं. आमतौर पर वहां रहने वालों में बाहर से आए परिवारों की औरतें भी घरगृहस्थी चलाने के लिए मजदूरी या घरों में झाड़ूपोंछा, बरतन आदि का काम करती थीं, पर रिंकी ने ऐसा कुछ नहीं किया तो इस की एक खास वजह थी.

उस खास वजह का पता 9 मई, 2017 को तब पता चला, जब थाना कैंट के थानाप्रभारी मनजीत सिंह दलबल के साथ उस के घर पहुंचे. पुलिस को देख कर स्वाभाविक रूप से हलचल मचनी ही थी. मोहल्ले वाले सवालिया नजरों से एकदूसरे को देखने लगे कि आखिर हुआ क्या है? रिंकी और मयूर मलिक तो किसी झगड़ेफसाद में भी नहीं पड़ते थे.

किसी को अंदाजा नहीं था कि सीधेसादे दिखने और लगने वाले रिंकी और मयूर एक हैरतंगेज फसाद खड़ा कर यहां रह रहे थे, जिस की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी. इसलिए जिस ने भी सुना, आंखें फाड़े हैरानी से यही कहा कि ‘हे भगवान! इतना बड़ा धोखा और जुर्म. कैसे लोग हैं ये?’

रिंकी और मयूर को थाना कैंट लाया गया. उन के गुनाह से परदा उठ चुका था. उन का गुनाह ऐसा था, जिस के बारे में मनजीत सिंह तो दूर, आला अफसरों ने भी नहीं सोचा था कि ऐसा भी होता है. सचमुच उन दोनों ने जो किया था, हैरान करने वाला था.

थाने में सिर झुकाए बैठी बेबस और थकीहारी रिंकी ने जो कहानी बताई, वह वाकई रहस्य और रोमांच से भरपूर थी, जिसे सुन कर हर किसी को उस आदमी पर तरस आया था, जिस का नाम मनोज शर्मा था. रिंकी की शादी बिहार के जिला मुजफ्फरपुर के गांव सरैया के रहने वाले मनोज शर्मा से फरवरी, 2015 में हुई थी. सरैया गांव थाना गुरका में आता है.

ससुराल में कुछ दिनों तक रहने के बाद एक दिन रहस्यमय तरीके से रिंकी गायब हो गई. उस की गुमशुदगी की खबर जब उस के पिता चंद्रशेखर शर्मा और मां बबीता को लगी तो उन्होंने थाने में रिपोर्ट लिखाई कि उन के दामाद मनोज और उस के घर वालों ने दहेज के लालच में उन की बेटी की हत्या कर दी है. यही नहीं, उन्होंने रिंकी की लाश भी पुलिस के सामने पेश कर दी थी, जो पूरी तरह से पहचान में नहीं आ रही थी.

पुलिस ने इस मामले में यकीन शायद इसलिए कर लिया था, क्योंकि खुद लड़की के मांबाप ने लाश की पहचान की थी. लिहाजा दहेज मांगने और हत्या के जुर्म में मनोज को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया, जिस की सुनवाई अदालत में चल रही थी.

मनोज की मां ललिता देवी को यकीन नहीं हो रहा था कि उन का सीधासादा बेटा अपनी पत्नी की हत्या कर सकता है. वह पुलिस वालों के सामने खूब रोईंगिड़गिड़ाईं, पर सब बेकार गया. तजुर्बेकार ललिता को बहू की हरकतें पहले दिन से ही संदिग्ध लग रही थीं. पर बेटा जेल में था और उस पर हत्या का आरोप था, इसलिए उन की समझ में नहीं आ रहा था कि वह बेटे की बेगुनाही कैसे साबित करें.

मां का दिल मां का होता है. उस की ममता और हिम्मत किसी सबूत की मोहताज नहीं होती. अपनी औलाद को खतरे में पड़ी देख कर उस की हिम्मत और बढ़ जाती है. ललिता ने ठान लिया था कि जैसे भी हो, बेटे की बेगुनाही साबित कर उसे जेल और हत्या के कलंक से मुक्त कराएंगी.

कानून की निगाहों में रिंकी मर चुकी थी. उस का अंतिम संस्कार भी हो चुका था. उस का हत्यारा पति अपने किए की सजा भुगत रहा था. जबकि ललिता का दिल बारबार यही कह रहा था कि कहीं कुछ गड़बड़ जरूर है. पुलिस वालों को धोखा हुआ है. यही बात जब जानपहचान और नातेरिश्तेदार दोहराते तो उन का दिल डूबने लगता.

उन की समझ में एक बात यह नहीं आ रही थी कि अगर रिंकी मरी नहीं है तो वह लाश किस की थी, जिसे रिंकी समझ कर अंतिम संस्कार किया गया था. कम पढ़ीलिखी ललिता का दिमाग अब जासूसों सरीखा सोचने लगा था कि मुमकिन है कि इस साजिश में समधीसमधन के साथ रिंकी भी शामिल रही हो. लेकिन वे ऐसा क्यों करेंगे, यह सवाल भी अकसर मुंह बाए उस के सामने खड़ा रहता था.

आखिर तर्कों पर ममता भारी पड़ी और ललिता ने रिंकी का इतिहास यानी शादी के पहले की जिंदगी के बारे में खंगालना शुरू किया. उन्हें पहली बार में ही चौंकाने वाली बात यह पता चली कि रिंकी मयूर मलिक नाम के युवक को चाहती थी और यह बात हर कोई जानता था. उम्मीद की पहली किरण जागी तो दूसरी भी जल्द ही मिल गई. पता चला कि मयूर मलिक तभी से गायब है, जब से रिंकी की हत्या की बात कही गई थी. वह कहां है, यह किसी को नहीं मालूम था.

अब ललिता ने अपना पूरा ध्यान बहू के प्रेमी पर लगा दिया कि वह कहीं तो होगा और कभी न कभी तो अपने घर वालों से या फिर चंद्रशेखर और बबीता से संपर्क करेगा.

शक सच निकला. आखिरकार मई के पहले हफ्ते में ललिता को कहीं से पता चल गया कि मयूर मलिक उन की बहू रिंकी के साथ जबलपुर के बिलहरी इलाके में रह रहा है. देर न करते हुए उन्होंने यह जानकारी थाना सरैया पुलिस को दे दी.

पहली बार पुलिस ने ललिता की बात को गंभीरता से लिया और थानाप्रभारी ने तुरंत एएसआई शत्रुघ्न शर्मा की अगुवाई में एक टीम बना कर जबलपुर रवाना कर दिया. जबलपुर पहुंच कर शत्रुघ्न शर्मा ने थाना कैंट पहुंच कर थानाप्रभारी मनजीत सिंह को सारी बात बताई तो वह भी हैरान रह गए.

वह सोच कर रोमांचित थे कि अगर ऐसा है तो यह एक विरला मामला है. फौरन तैयारी कर के जब वह बिलहरी स्थित रिंकी के घर पहुंचे तो वाकई उन का सामना उस जिंदा लाश या औरत रिंकी शर्मा से हुआ, जो दुनिया और कानून की निगाह में 2 साल पहले मर चुकी थी. मयूर मलिक को भी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया.

रिंकी ने तुरंत स्वीकार कर लिया कि वह मनोज से शादी होने से पहले मयूर से प्यार करती थी और उसी से शादी करना चाहती थी. लेकिन घर वालों ने उस की शादी जबरदस्ती मनोज से कर दी थी. मनोज को वह मन से अपना पति नहीं स्वीकार पाई, जिस से ससुराल में उस का मन नहीं लगा.

यहां तक बात कतई हैरानी की या नई नहीं थी कि शादी के बाद लड़कियां अपने प्यार को भूल नहीं पातीं. ऐसे में वे भाग जाती हैं या फिर राज खुलने पर पति की निगाह में पत्नी का सम्मान और प्यार हासिल नहीं कर पातीं.

यही रिंकी के साथ हुआ. एक दिन मौका पा कर वह मयूर के साथ भाग गई और जबलपुर जा कर रहने लगी. अपनी नईनवेली पत्नी की गुमशुदगी के बारे में मनोज कुछ कर पाता, उस के पहले ही सासससुर ने उस पर परिवार सहित दहेज मांगने का आरोप लगा कर हत्या की रिपोर्ट दर्ज करा दी. पुलिस ने भी उसे जेल भेज दिया. जेल में वह यही सोचता रहा कि आखिरकार उस का गुनाह क्या है?

इधर चंद्रशेखर शर्मा और बबीता ने बेटी की गलती को ढंकने के लिए एक लाश का इंतजाम किया और रोरो कर पुलिस वालों को यकीन दिला दिया कि लाश उन की बेटी रिंकी की है. साफ दिख रहा है कि पुलिस ने  इस मामले में घोर लापरवाही बरती, जिस का खामियाजा निर्दोष मनोज को भगुतना पड़ा.

अभी इस मामले में एक अहम राज खुलना बाकी है. चंद्रशेखर और बबीता ने जिस लाश को रिंकी की लाश बताया था, उस की व्यवस्था उन्होंने कहां से की थी? कथा लिखे जाने तक दोनों फरार थे, इसलिए इस का पता नहीं चल सका था. अब उन की गिरफ्तारी के बाद ही पूरी तसवीर साफ होगी.

बात वाकई हैरान करने वाली है कि मनोज अपनी उस पत्नी की हत्या के आरोप में 2 साल जेल में रहा, जिस की हत्या हुई ही नहीं थी. अगर यह रहस्य न खुलता तो उस की हत्या के जुर्म में उसे मुमकिन है उम्रकैद या फांसी की सजा हो जाती. अगर ललिता देवी भागदौड़ कर के उसे नहीं बचातीं तो जरूर मनोज अंधे कानून की बेरहमी का शिकार हो जाता.

इस घटना ने अमिताभ बच्चन अभिनीत फिल्म ‘अंधा कानून’ के उस दृश्य की याद दिला दी, जिस में अमिताभ बच्चन भरी अदालत में खलनायक अमरीश पुरी की हत्या कर देता है और अदालत उसे सजा नहीं दे पाती, क्योंकि वह उसी खलनायक की हत्या के आरोप में उम्रकैद की सजा पहले ही भुगत चुका था.

हालांकि अब यह कहने में भी हर्ज नहीं है कि इंसाफ की चौखट पर देर है, अंधेर नहीं.

हाईटैक होता देह धंधा

शहरी चकाचौंध और ग्लैमर ने आज देह धंधे के माने ही बदल दिए हैं. यह काफी हाईटैक हो गया है. देश में आज तकरीबन 1370 रैडलाइट एरिया हैं. इन में सब से ज्यादा देह धंधे वाला एरिया कोलकाता और मुंबई का है. अकेले मुंबई रैडलाइट एरिया का ही करोड़ों रुपए का साप्ताहिक आंकड़ा है.

राजस्थान, उत्तर प्रदेश और ओडिशा ऐसे राज्य हैं, जहां देह धंधे की प्रथा का लंबा इतिहास रहा है. जयपुर ‘सवारियों’ के खेल में काफी तरक्की कर रहा है. इस वजह से गरम गोश्त के बेचने वालों की बांछें खिलती जा रही हैं.

प्रशासन या राज्य ने इस ओर इसलिए भी अपनी आंखें बंद कर रखी हैं, क्योंकि उन का इस से करीबी ताल्लुक है. आखिरकार नेताओं और अफसरों की मौजमस्ती का भी तो सवाल है.

राजस्थान का कोई भी शहर इस गरम गोश्त के कारोबार से अछूता नहीं है. इन इलाकों में ज्यादातर ‘सवारियों’ का धंधा होता है. या यों कहें कि इधर इस धंधे की खास क्वालिटी है, जिस का नाम ‘सवारी’ दिया गया है. यानी वे औरतें जिन्हें इस शहर से उस शहर में जिस्म के भिखारियों के आगे भेजा जाता है. जिस औरत का इस्तेमाल लोकल लैवल पर किया जाता है, उसे ‘गाड़ी’ कहते हैं.

राजस्थान में जहां ‘सवारियों’ का ज्यादा काम होता है, वे इलाके हैं जयपुर, कोटा, अलवर, डूंगरपुर, किशनगढ़, जोधपुर, गंगानगर, नागौर, जैसलमेर और सीकर. बाकी इलाकोें में ‘गाडि़यों’ और ‘सवारियों’ का खूब कारोबार होता है.

ये बातें देश के तमाम रैडलाइट एरिया में पिछले 3 सालों से रिसर्च कर रहे एक पत्रकार, लेखक मोहम्मद जावेद अनवर सिद्दीकी के आंकड़ों से हासिल हुई हैं.

‘सवारियों’ और ‘गाडि़यों’ के इस नायाब कारोबार से अजमेर भी अछूता नहीं रहा है. यहां गरम गोश्त के कारोबारी भी अपनी ‘सवारियों’ और ‘गाडि़यों’ के लिए मन्नतें मांगने आते हैं, क्योंकि यहां हर किसी की मुरादें पूरी होती हैं.

पिछले 4 साल से अख्तरी बेगम (बदला हुआ नाम) ‘सवारियों’ को लाने और उन्हें सफर पर भेजने तक का सारा कारोबार करती है. उस के पास दलाल माल ला कर बेचते हैं और ज्यादातर वह ट्रेनिंग पाई ‘सवारियों’ का ही कारोबार करती है.

अख्तरी बेगम का कहना है कि इस कारोबार में काहिल और बीमार हों, तब भी औरतें ‘सवारी’ पर जाती हैं और ‘गाडि़यों’ का काम शौकिया और पार्टटाइम कमाने वाली औरतों के लिए है. लेकिन धंधा चाहे ‘सवारी’ का हो या ‘गाड़ी’ का, एक बार जो औरत इस राह पर आ जाती है, उस का अंत उम्र ढल जाने के बाद या तो फुटपाथ पर पागलों की शक्ल में या कहीं दलालों के साथ कमीशनखोर के लैवल पर जा कर खत्म होता है. वे न तो मां रह पाती हैं, न बीवी, न बेटी और न बहन.

अजमेर और जयपुर में ज्यादातर ‘सवारियों’ को विदेश भेजा जाता है. विदेशों से आने वाले, जिन्हें यहां का गरम गोश्त भा जाता है, अपने देश में हमारे यहां से अपनी रातें रंगीन करने का सामान मंगाना ज्यादा पसंद करते हैं.

जाहिर है, इस कारोबार का रुतबा भी कम लुभावना नहीं होगा. इस में मोटी कमाई तो होती ही है, ज्यादा खतरा भी नहीं रहता. बस, अच्छी ‘सवारियों’ को इकट्ठा करना और उन्हें विदेशी भूखों के हवाले कर देना, बाकी वे जानें और उन का काम. उसे तो बस हवाईजहाज तक ले जाने की जिम्मेदारी निभानी होती है.

एक ‘सवारी’ से जो कारोबार का ग्राफ बनता है, जरा उस पर भी गौर करें. अमूमन देश के अलगअलग इलाकों से 12 साल से 21 साल की उम्र की लड़कियों को ‘सवारी’ के लिए चुन कर लाया जाता है.

आमतौर पर गरम गोश्त के विदेशी ग्राहक हमारे यहां के सौदागरों को अपनी पसंद और बजट भेजते हैं और उन्हें उन की पसंद की ‘सवारियां’ मुहैया करा दी जाती हैं. उन ‘सवारियों’ को विदेशों में काम के बहाने भेजा जाता है. कुछ ‘सवारियां’, जो पहली बार इस धंधे में आती हैं, उन्हें विदेश जा कर मोटी कमाई का लालच दे कर इस दलदल में उतार दिया जाता है.

‘सवारी’ एक बार विदेश क्या गई, उस का सबकुछ या तो लुट जाता है या फिर मिजाज ही ऐसा बन जाता है कि चाहत ही नहीं होती इस धंधे से बाहर आने की. जब तक हुस्न का जलवा रहता है, ‘सवारियां’ उड़नछू होती रहती हैं, फिर उम्र ढलने तक इतनी सोच उन में आ जाती है कि उन्हें इस कारोबार की सारी जानकारी हो जाती है और या तो वे इस कारोबार की रानी बन जाती हैं या अपनी जिंदगी अलगथलग काटने पर मजबूर हो जाती हैं.

राजस्थान से जो ‘सवारियां’ जाती हैं, वे काफी सैक्सी और कम उम्र की गठीली बालाएं होती हैं. जब वे सजतीसंवरती हैं, तो सचमुच बेहोश कर देती हैं. उन का भाव भी सब से ज्यादा होता है. खाड़ी देशों के गरम गोश्त के भूखे उन्हें देखते ही कुछ भी लुटाने को तैयार हो जाते हैं.

‘सवारियों’ में कुंआरियों का होना ही जरूरी नहीं है. इन में शादीशुदा भी होती हैं, जिन के मर्द इस बात से अनजान नहीं होते हैं कि उन की पटरानी किसी पराए मर्द की रातें रंगीन करने विदेश जा रही हैं. रही बात वीजा की, तो इस में भी कोई मुश्किल नहीं होती है.

औरतों को इन अंधी गलियों में धकेलने वाले कई देशों में फैले गिरोहों के लोगों द्वारा इन की सभी जरूरतें पूरी कर दी जाती हैं.

चांदी (बदला हुआ नाम) बताती है कि उसे एक ट्रक ड्राइवर से प्यार हो गया था. उस ने बड़ेबड़े सपने दिखाए थे और वह उस के साथ भाग आई अपने बंगाल से अजमेर. मांबाप, भाईबहन सब थे, मगर दुनिया की रंगीनियत देख कर वह बहक गई. पति था तो, लेकिन मनमौजी. वह भी कहीं कामधाम नहीं करता था और ऊपर से उसे मारतापीटता भी था.

सब से बड़ी बात तो यह थी कि उस मर्द से देह सुख भी चांदी को नहीं मिलता था. उस की सखीसहेलियां अपने पति की बातें उसे बताती रहती थीं, तो बेचारी चांदी सिसक कर रह जाती थी. शायद इसी कमजोरी को भांप गया था वह ट्रक ड्राइवर.

ट्रक ड्राइवर ने चांदी को खूब भोगा. उसी दौरान चांदी को मिल गई रजिया. रजिया ‘सवारियों’ को खाड़ी देशों में भेजने की ठेकेदार थी. उस ने उसे सारी बातें खूब समझा कर बताईं, जिसे सुन कर चांदी की समझ में बस इतनी बात आई कि अगर एक बार वह ‘सवारी’ बन गई, तो जिंदगीभर मौज से कटेगी. फिर तो अपने बापभाई को भी वह तार देगी. मायके की गरीबी छूमंतर हो जाएगी. उस ने ‘सवारी’ बन जाना कबूल कर लिया और दुबई चली गई.

बंगाल से दिल्ली, दिल्ली से जयपुर और जयपुर से अजमेर, इन तमाम जगहों पर लोगों ने चांदी को खूब भोगा और फिर वह दुबई चली गई. उस के साथ पहली बार दुबई जाने वाली एक और औरत थी. उस औरत के बारे में बताया गया कि वह अब तक अपने ही देश में जो विदेशी लोग आते हैं, उन को खुश करने होटलों में जाती रही है. सो, उसे उन लोगों के साथ रात बिताने की पूरी जानकारी है.

उस औरत के साथ चांदी को दुबई में एक होटल में ठहराया गया था. रोज सुबह उसी होटल में एक गाड़ी आ जाती थी, जो उसे ले कर शेखों के हरम तक पहुंचा आती थी.

शेख रातभर चांदी को खूब नोचखसोट कर सुबह तक तकरीबन बेहोशी की हालत में छोड़ दिया करते थे. फिर वही गाड़ी आती थी, जो उसे होटल में छोड़ आती थी.

होटल में आ कर जब चांदी को कुछ होश आता, तो अपनी ही अंटी में से पैसे जो उसे रात को शेख से मिलते थे, होटल और गाड़ी वाले को देने होते थे. वह खापी कर कुछ देर आराम करती और तब तक फिर से दूसरी रात के लिए बुकिंग आ जाती थी. इस तरह एक साल बीत गया और उस ने 19 हजार रियाल जमा कर लिए.

कुछ और पैसों के लालच में चांदी ने अपने एजेंटों से बात की, तो उस ने उसे वीजा के लिए किसी के बारे में बताया, लेकिन फिर क्या हुआ उसे पता ही नहीं, क्योंकि उसे जब उस रात शेख ने नोचने की शुरुआत की तो वह इतना वहशियाना था कि बेचारी बेहोश हो गई और जब होश में आई तो हवाईजहाज में थी. फिर दिल्ली में आ पहुंची.

अब वह ऐसा काम नहीं करेगी, इतना सोचते हुए बाहर आई. एयरपोर्ट पर एक गाड़ी खड़ी थी, जिस में चांदी को उस के एजेंट के आदमी बिठा ले गए. वह कुछ सोच पाती, उस से पहले उस के सपनों ने दम तोड़ दिया.

‘हिंदुस्तान के प्रमुख देह व्यापार और उस के बदलते परिदृश्य’ विषय पर रिसर्च करने वाले मोहम्मद जावेद अनवर सिद्दीकी ने जयपुर, अलवर, कोटा, नागौर, गंगानगर, जोधपुर, बीकानेर, अजमेर, सीकर, बाड़मेर, चित्तौड़गढ़, भीलवाड़ा, टोंक, हनुमानगढ़, भरतपुर, बूंदी और बांसवाड़ा में जा कर सभी रैडलाइट इलाकों की छानबीन की.

इस से जो खास बातें सामने आई हैं, उन के मुताबिक पूरे देश में राजस्थान तीसरा ऐसा प्रमुख राज्य है, जहां से देश के बाहर ‘सवारियां’ भेजने का कारोबार होता है.

यह चौंकाने वाली बात है कि अगर सरकार देह व्यापार की मंडियों से टैक्स वसूल करने लगे, तो अकेला यह व्यापार देश की तमाम पंचवर्षीय योजनाओं को पूरा करने के लिए काफी है.

कोटा, राजस्थान की 2 पढ़ीलिखी सहेलियां रूबी और सविता (बदला हुआ नाम) पिछले 5 साल से जिस्मफरोशी का धंधा कर रही हैं. अब वे पछतावा नहीं कर रही हैं, बल्कि कहती हैं कि इतनी रईसी क्या बाहर मिलेगी?

बनारस से धंधे की शुरुआत करते हुए इन दोनों ने अब तक 3 बार ‘सवारी’ का सफर पूरा किया है. अब तो वे अपने ही देश में रह कर इस धंधे को अंजाम दे रही हैं.

जिस्म की खरीदफरोख्त का काम अब बदनाम बस्तियों से होते हुए राज्य के गंवई इलाकों के घरों की चौखट तक को पार कर गया है. माहौल ऐसा बन गया है कि लोग अपनी पत्नी, सौतेली या कमजोर बहन, भांजी या दूसरी औरतों को गरम गोश्त की गलियों में खुद भेजते हैं, जिस के एवज में बैठेबिठाए बेहतर आमदनी हो जाती है.

यह बात भी कम चौंकाने वाली नहीं है कि कहींकहीं नौकरी की जरूरत ने भी कमसिन लड़कियों को जिस्म की तस्करी में फंसा दिया है.

साल 2015 में दिल्ली पुलिस ने नौकरी का झांसा दे कर जिस्मफरोशी के जाल में फांस कर गांव की औरतों और जवान होती कमसिन बालिकाओं को अरब देशों में बेचने वाले एक गिरोह का परदाफाश किया था. इस में 80 फीसदी राजस्थान की थीं, जो अपने घरबार की गरीबी, भुखमरी से जूझते लाचार मांबाप और कुपोषण की शिकार भाईबहनों की खातिर नौकरी करने घर से बाहर निकल गई थीं.

दिल्ली में पकड़े गए गरम गोश्त के सौदागरों ने जाहिर किया कि वे राजस्थान के जयपुर, अजमेर, ब्यावर और अलवर इलाकों से गांव की लड़कियों और औरतों को नौकरी का झांसा दे कर अपने जाल में लपेट लेते थे.

इन अबलाओं को दिल्ली में सब से पहले इस गहरी अंधेर नगरी से रूबरू कराया जाता है, फिर कुछ खास गुर बताते हुए इस पेशे में उतार दिया जाता है.

कभी एकएक दाने को मुहताज जयपुर बाजार के तंग महल्ले के टूटेफूटे मकान में रहने वाली शायरा (बदला हुआ नाम) ने 40 लाख रुपए में एक मकान खरीद कर लोगों को चौंका दिया.

इस की खबर पुलिस को भी मिली, तो उस ने फौरन शायरा को दबोच लिया और उस के बाद यह राज खुला कि शायरा ‘सवारियों’ की कारोबारियों में से एक है.

जयपुर और अजमेर से शायरा महिला डांस म्यूजिकल ग्रुप की आड़ में गांवों से लाई गई बेबस लड़की को विदेश भेजने का काम करती थी. किराए के गुंडेमवालियों के बल पर वह एक शातिर कारोबारी बन गई थी.

आज डांस स्कूल और म्यूजिकल ग्रुप की आड़ में राजस्थान के कई इलाकों में जिस्मफरोशी का काम चल रहा है. हकीकत यह है कि अजमेर इन दिनों इस धंधे की खास मंडी बना हुआ है.

मास्टरमाइंड और सब से बड़े रेगिस्तानी कारोबारी के रूप में सलाम उर्फ टोपीबाज का नाम सामने आया है. सलाम खुद तो मुंबई में रहता है, लेकिन जयपुर और अजमेर में इस के 3 खास एजेंट काम संभालते हैं.

इन एजेंटों के साथ उन की खास सैक्रेटरी की हैसियत से एकएक औरत भी रहती है. इन को एरिया में घूम रहे दलाल और सड़कछाप गुंडों के जरीए माल मिलता है.

बताते हैं कि सलाम का नैटवर्क पिछले 10-12 सालों से चल रहा है. इस पर हाथ क्या नजर तक उठाने के लिए पुलिस को कई बार सोचना पड़ता है.

चाहे सलाम मुंबई में रहे या अजमेरजयपुर में, उस का नैटवर्क अब इतना तगड़ा हो गया है कि किसी भी तरह की अड़चन इस के कारोबार को डिस्टर्ब नहीं कर सकती है.

अब तो सलाम ने अपना कारोबार कंप्यूटराइज्ड कर लिया है. इंटरनैट या मोबाइल फोन पर ही सारा काम निबटा लिया जाता है.

जिस्म के सौदागरों का काम करने का तरीका भी कुछ अजीब सा है. ये देहात से लाई गई लड़कियों को डांस की टे्रनिंग देते हैं. उन के घर वालों को कहा जाता है कि उन की लाड़ली को विदेश में काम करने के लिए ले जा रहे हैं, जहां ये बहुत सारा रुपया कमा सकेंगी.

मांबाप इजाजत देने से गुरेज नहीं करते, फिर उन्हें 20-25 हजार रुपए थमा दिए जाते हैं, जो उन्हें गरीबी के अंधेरे में किसी चांद से कम नहीं लगते. उन से यह भी कहा जाता है कि उनकी बेटी विदेश से उन्हें मोटी रकम भेजती रहेगी.

जब ये मासूम लड़कियां डांस की कुछ टे्रनिंग ले कर अरब देशों की जमीन पर उतार दी जाती हैं, तब जा कर इन्हें पता चलता है कि इन की मासूमियत को यहां शेखों की बांहों में मसला जाएगा.

क्या कोई बता सकता है कि लोग चंद सिक्कों में जो मासूम देह खरीदते हैं, वे आती कहां से हैं और कैसे?

इस सवाल का जवाब मिलेगा पश्चिम बंगाल के बागानों से, उत्तरपूर्व के पहाड़ों से, कश्मीर की सुनहरी वादियों से, दक्षिण भारत के समुद्री घाटों से और नेपाल के गांवों से. मुंबई के कमाठीपुरा, फारस रोड, फाकलैंड रोड और पीला हाउस जैसे इलाकों में हर महीने सैकड़ों नई नाबालिग लड़कियां पहुंचाई जाती हैं.

गरीबी की चक्की में पिसती ये भोलीभाली 10 से 12 साल की मासूम लड़कियों ने सिर्फ इतनी ही गलती की थी कि उन्होंने अपने लिए एक बेहतर जिंदगी का सपना देख लिया था. कई तो परिवार की सताई हुई होती हैं, कई दुबई जा कर खूब ज्यादा पैसा कमाने की तमन्ना लिए होती हैं, कइयों को मुंबई आ कर फिल्मी सितारे से शादी करनी होती है या खुद हीरोइन बनने का सपना देख रही होती हैं.

नेपाल बौर्डर पर तकरीबन हर थाने और सोनौली व भैरवाट्रांजिट कैंप में ऐसे बोर्ड लगे हैं, जिन पर नेपाल से गायब हुई ऐसी तमाम लड़कियों के फोटो चस्पां होते हैं, जिन्हें देह धंधे की भेंट चढ़ा दिया जाता है.

इन तथाकथित गुमशुदा नाबालिग और बालिग लड़कियों को कभी बरामद नहीं किया जा सका है, यह रिकौर्ड उन पुलिस थानों में मिल सकता है. अलबत्ता, उन में से तकरीबन 90 फीसदी लड़कियों के घर वाले जान चुके होते हैं कि उन की लाड़ली परदेश में पैसा कमा रही है. थानों में लगे पुराने फोटो उम्मीदों की तरह धुंधले भी होते जाते हैं.

मोईती, नेपाल के एक सदस्य के पास एक गांव का बाशिंदा आता है और अपनी पत्नी को किसी लोगों के द्वारा बहलाफुसला कर भगा ले जाने की बाबत शिकायत करता है, उस के बारे में जब तहकीकात की जाती है, तो पता चलता है कि उस की बीवी मुंबई में है और अच्छीखासी कमाई कर रही है. लिहाजा, उसे परेशान होने की जरूरत नहीं है.

इस खबर के साथ बेचारे के हाथ में एक हजार रुपए थमा दिए जाते हैं और बताया जाता है कि अब हर महीने उसे उस की बीवी की ओर से 2 हजार रुपए मिलेंगे, सो वह अपनी जबान बंद ही रखे.

वह आदमी कुछ दिनों तक तो यों ही खोजता फिरा, फिर बाद में जब पता लगा कि उस की बीवी पुणे के बुधवारपेठ रैडलाइट इलाके में एक कोठे पर काजल नामक बाई के पास है, तो वह थाने से पुलिस के साथ चल पड़ा अपनी बीवी की छुड़ाने को. जुगत काम आई और पुलिस दस्ते ने उस की बीवी को सुरक्षित बरामद कर लिया. पुलिस ने उस की बीवी के साथ 5 नेपाली दलालों को भी पकड़ लिया.

कुछ गिरोह नेपाल के पहाड़ों और तराई में बसे गांवों की गरीब नाबालिग लड़कियों के जत्थे को मुंबई की देह मंडी में झोंक देते हैं. इस बारे में कोई तय आंकड़ा भी मुहैया नहीं है, जिस से पता चले कि कितनी लड़कियां हर साल नेपाल की तराइयों से ला कर मुंबई में बेच दी जाती हैं.

लेकिन सरकारी सूत्रों की अगर मानें, तो जाहिर होता है कि 4 से 5 हजार लड़कियों को बहलाफुसला कर नेपाल के रास्ते भारत की सब से बड़ी देह मंडी कमाठीपुरा में बेच दिया जाता है. इन में से 40 फीसदी बहलाफुसला कर, 30 फीसदी जबरन, जिस में उन के घर और रिश्तेनातेदारों की रजामंदी होती है. 30 फीसदी पैसे कमाने की खातिर इस दलदल में आती हैं.

नादान मोहब्बत का नतीजा

उत्तर प्रदेश के शहर आगरा के थाना छत्ता की गली कचहरी घाट में रामअवतार अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी के अलावा 3 बेटियां थीं. बड़ी बेटी की वह शादी कर चुका था, मंझली के लिए लड़का ढूंढ रहा था. सब से छोटी शिल्पी हाईस्कूल में पढ़ रही थी.

शिल्पी की उम्र  भले ही कम थी, पर उस की शोखी और चंचलता से रामअवतार और उस की पत्नी चिंतित रहते थे. पतिपत्नी उसे समझाते रहते थे, पर 15 साल की शिल्पी कभीकभी बेबाक हो जाती थी. इस के बावजूद रामअवतार ने कभी यह नहीं सोचा था कि उन की यह बेटी एक दिन ऐसा काम करेगी कि वह समाज में मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगे.

कचहरी घाट से कुछ दूरी पर जिमखाना गली है. वहीं रहता था शब्बीर. उस का बेटा था इरफान, जो एक जूता फैक्ट्री में कारीगर था. इरफान के अलावा शब्बीर के 2 बेटे और थे.

शिल्पी जिमखाना हो कर ही स्कूल आतीजाती थी. वह जब स्कूल जाती तो इरफान अकसर उसे गली में मिल जाता. आतेजाते दोनों की निगाहें टकरातीं तो इरफान के चेहरे पर चमक सी आ जाती. इस से शिल्पी को लगने लगा कि इरफान शायद उसी के लिए गली में खड़ा रहता है.

शिल्पी का सोचना सही भी था. दरअसल शिल्पी इरफान को अच्छी लगने लगी थी. यही वजह थी, वह उसे देखने के लिए गली में खड़ा रहता था. कुछ दिनों बाद वह शिल्पी से बात करने का बहाना तलाशने लगा. इस के लिए वह कभीकभी उस के पीछेपीछे कालोनी के गेट तक चला जाता, पर उस से बात करने की हिम्मत नहीं कर पाता. जब उसे लगा कि इस तरह काम नहीं चलेगा तो एक दिन उस के सामने जा कर उस ने कहा, ‘‘मैं कोई गुंडालफंगा नहीं हूं. मैं तुम्हारा पीछा किसी गलत नीयत से नहीं करता. मैं तुम से एक बात कहना चाहता हूं.’’

CRIME

‘‘तुम मुझ से क्या चाहते हो?’’ शिल्पी ने पूछा.

‘‘बात सिर्फ इतनी है कि मैं तुम से दोस्ती करना चाहता हूं.’’ इरफान ने कहा.

‘‘लेकिन मैं तुम से दोस्ती नहीं करना चाहती. मम्मीपापा कहते हैं कि लड़कों से दोस्ती ठीक नहीं.’’ शिल्पी ने कहा और मुसकरा कर आगे बढ़ गई.

इरफान उस की मुसकराहट का मतलब समझ गया. हिम्मत कर के उस ने आगे बढ़ कर उस का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘कोई जल्दी नहीं है, तुम सोचसमझ लेना. मैं तुम्हें सोचने का समय दे रहा हूं.’’

‘‘कोई देख लेगा.’’ कह कर शिल्पी ने अपना हाथ छुड़ाया और आगे बढ़ गई. किसी लड़के ने उसे पहली बार ऐसे छुआ था. उस के शरीर में बिजली सी दौड़ गई थी. शिल्पी उम्र की उस दहलीज पर खड़ी थी जहां आसानी से फिसलने का डर रहता है. इरफान पहला लड़का था, जिस ने उस से दोस्ती की बात कही थी, पर मांबाप और समाज का डर आड़े आ रहा था.

इरफान के बारे में शिल्पी ज्यादा कुछ नहीं जानती थी. बस इतना जानती थी कि वह जिमखाना गली में रहता है. उसे उस का नाम भी पता नहीं था. धीरेधीरे इरफान ने उस के दिल में जगह बना ली. मिलने पर इरफान उस से थोड़ीबहुत बात भी कर लेता. पर उसे प्यार के इजहार का मौका नहीं मिल रहा था. एक दिन उस ने कहा, ‘‘चलो, ताजमहल देखने चलते हैं. वहीं बैठ कर बातें करते हैं.’’

शिल्पी ने हां कर दी तो दोनों औटो से ताजमहल पहुंच गए. वहां शिल्पी को जब पता चला कि उस का नाम इरफान है तो उस ने कहा, ‘‘ओह तो तुम मुसलमान हो?’’

‘‘हां, मुसलमान हूं तो क्या हुआ? क्या मुसलमान प्यार नहीं कर सकता. मैं तुम से प्यार करता हूं, ठीकठाक कमाता भी हूं. और मैं वादा करता हूं कि जीवन भर तुम्हारा बनकर रहूंगा. तुम्हें हर तरह से खुश रखूंगा.’’

इरफान देखने में अच्छाखासा था और ठीकठाक कमाई भी कर रहा था, केवल एक ही बात थी कि वह मुसलमान था. पर आज के जमाने में तमाम अंतरजातीय विवाह होते हैं. यह सब सोच कर शिल्पी ने इरफान की मोहब्बत स्वीकार कर ली. उस दिन के बाद वह अकसर उस के साथ घूमनेफिरने लगी.

मोहल्ले वालों ने जब शिल्पी को इरफान के साथ देखा तो तरहतरह की बातें करने लगे. किसी ने रामअवतार को बताया कि वह अपनी बेटी को संभाले. वह एक मुसलमान लड़के के साथ घूमतीफिरती है. कहीं उस की वजह से कोई बवाल न हो जाए.

बेटी के बारे में सुन कर रामअवतार के कान खड़े हो गए. दोपहर में जब वह घर पहुंचा तो पता चला कि शिल्पी अभी तक घर नहीं आई है. पत्नी ने बताया कि वह रोज देर से आती है. कहती है कि एक्स्ट्रा क्लास चल रही है.

रामअवतार दुकान पर लौट गया. कुछ देर बाद पत्नी का फोन आया कि शिल्पी आ गई है तो वह घर आ गया. उस ने शिल्पी से पूछताछ की तो उस ने कहा कि वह किसी लड़के से नहीं मिलती. छुट्टी के बाद मैडम क्लास लेती हैं. इसलिए देर हो जाती है.

रामअवतार जानता था कि शिल्पी झूठ बोल रही है. वह खुद उसे पकड़ना चाहता था, इसलिए उस ने उस से कुछ नहीं कहा. कुछ दिनों तक शिल्पी से कोई टोकाटाकी नहीं हुई तो वह निश्ंिचत हो गई. वह इरफान के साथ घूमनेफिरने लगी. फिर एक दिन रामअवतार ने उसे इरफान के साथ देख लिया. उस ने शिल्पी को डांटाफटकारा ही नहीं, उस का स्कूल जाना भी बंद करा दिया.

बंदिश लगने से शिल्पी का प्रेमी से मिलनाजुलना बंद हो गया. वह उस से मिलने के लिए बेचैन रहने लगी, जिस से उसे अपने ही घर वाले दुश्मन नजर आने लगे. अब घर उसे कैदखाना लगने लगा था. उस का मन कर रहा था कि किसी तरह वह इस चारदीवारी को तोड़ कर अपने प्रेमी के पास चली जाए. एक दिन उसे वह मौका मिला तो वह इरफान के साथ भाग गई.

हिंदू लड़की को मुसलमान लड़का भगा कर ले गया था. इस बात पर इलाके में तनाव फैल गया. थाना छत्ता में 28 अगस्त, 2010 को रामअवतार की तरफ से शिल्पी को भगाने वाले इरफान के खिलाफ मुकदमा दर्ज हो गया. इस के बाद पुलिस सक्रिय हो गई. जल्दी ही पुलिस ने दोनों को ढूंढ निकाला. पुलिस ने दोनों को अदालत में पेश किया. चूंकि शिल्पी नाबालिग थी, इसलिए अदालत ने उसे उस के पिता को सौंप दिया और इरफान को जेल भेज दिया.

प्रेमी के जेल जाने से शिल्पी बहुत दुखी थी. वह अपने पिता के खिलाफ खड़ी हो गई. मांबाप और रिश्तेदारों ने शिल्पी को लाख समझाने की कोशिश की, पर उस के दिलोदिमाग से इरफान नहीं निकला. शिल्पी की उम्र भले ही कमसिन थी, पर उस की मोहब्बत तूफानी थी. जबकि समाज और कानून की नजर में उस की मोहब्बत बेमानी थी, क्योंकि वह नाबालिग थी.

इरफान 3 महीने बाद जेल से बाहर आ गया. उस के जेल से बाहर आने पर शिल्पी बहुत खुश हुई. दोनों के बीच चोरीछिपे मोबाइल से बातचीत होने लगी. शिल्पी पर नजरों का सख्त पहरा था. उसे घर से निकलने की इजाजत नहीं थी. वह अपने प्रेमी से मिलने के लिए छटपटा रही थी, पर रामअवतार और उस की पत्नी माया सतर्क थे.

शिल्पी और इरफान साथसाथ रहने का मन बना चुके थे. मांबाप की लाख निगरानी के बावजूद एक दिन रात में शिल्पी प्रेमी के पास पहुंच गई. इरफान इस बार उसे ले कर इलाहाबाद चला गया. इरफान ने लव मैरिज के लिए हाईकोर्ट के वकीलों से बात की, लेकिन शिल्पी नाबालिग थी, इसलिए कोई मदद नहीं कर सका.

इस के बाद इरफान ने एक काजी की मदद से शिल्पी से निकाह कर लिया. शिल्पी दोबारा घर से भागी थी. इस बार किसी ने विरोध नहीं किया, पर रामअवतार परेशान था. वह मदद के लिए पुलिस के पास पहुंचा तो पुलिस ने इरफान के घर वालों पर दबाव डाला. करीब एक महीने बाद इरफान शिल्पी के साथ वापस आ गया. पुलिस ने दोनों को कोर्ट में पेश किया, शिल्पी अभी भी नाबालिग थी, लेकिन इस बार उस ने पिता के साथ जाने से इनकार कर दिया. तब अदालत ने उसे नारी निकेतन तो इरफान को जेल भेज दिया.

प्रेमी युगल को कानून ने एक बार फिर जुदा कर दिया. लेकिन उन की मोहब्बत जुनूनी हो गई थी. शिल्पी अब अपने बालिग होने का इंतजार कर रही थी. इस से तय हो गया कि बाहर आने के बाद दोनों साथसाथ रहेंगे. तब साथ रहने का उन के पास कानूनी अधिकार होगा.

14 महीने बाद जब शिल्पी नारी निकेतन से बाहर आई, तब तक इरफान भी जेल से छूट चुका था. हालांकि नारी निकेतन के दरवाजे पर शिल्पी के मांबाप मौजूद थे, लेकिन शिल्पी ने साफ कहा कि वह अपने शौहर के साथ जाएगी. बेबस मांबाप देखते ही रह गए और बेटी प्रेमी के साथ चली गई. क्योंकि अब वह बालिग थी और अपनी मरजी की मालिक थी.

मांबाप के प्रति उस के मन में प्यार नहीं, नफरत थी. जिन के कारण उसे नारी निकेतन में रहना पड़ा तो प्रेमी को जेल में. शिल्पी जब नहीं मानी तो मांबाप ने भी उसे उस के हाल पर छोड़ दिया. अब वह इस दर्द को भूलना चाहते थे कि बेटी ने समाज में उन्हें कितना जलील किया था.

शिल्पी ने अपनी दुनिया प्रेमी के साथ बसा ली थी. उस ने कभी भी नहीं जानना चाहा कि उस के कारण मांबाप का क्या हाल हुआ. किस तरह से वो अपनी तारतार हुई इज्जत के साथ जी रहे थे.

धीरेधीरे प्यार का नशा उतरने लगा और शिल्पी को मांबाप की याद आने लगी. एक दिन वह पिता के घर पहुंच गई. मां का दिल पिघल गया, उस ने उसे गले से लगा लिया. उस दिन के बाद शिल्पी चोरीछिपे पिता के घर जाने लगी.

CRIME

इरफान का काफी पैसा पुलिसकचहरी और इधरउधर की भागदौड़ में खर्च हो गया था. उस ने फिर से जूता फैक्ट्री में काम शुरू कर दिया था, लेकिन शिल्पी की ख्वाहिशें बढ़ रही थीं. उस का खयाल था कि शादी के बाद शौहर उसे एक रंगीन दुनिया में ले जाएगा, पर उस ने महसूस किया कि जिंदगी उतनी रंगीन नहीं है, जैसा कि उस ने सोचा था. उस की चाहतों की उड़ान बहुत ऊंची थी. उसे लग रहा था कि इरफान ने जो खुशियां देने का वादा किया था, वह पूरा नहीं कर पा रहा है.

एक दिन उस ने इरफान से कहा, ‘‘जब तक तुम प्रेमी थे, तब तक मोहब्बत से लबरेज थे. लेकिन अब जब शौहर हो गए हो तो लगता है कि तुम्हारी मोहब्बत भी ठंडी पड़ गई है.’’

‘‘क्या मतलब है तुम्हारा? तुम्हारी मोहब्बत में मैं 2-2 बार जेल गया हूं. पुलिस के जुल्म सहे हैं. अब तुम मुझे ही ताने दे रही हो.’’ इरफान ने कहा.

‘‘मैं भी तो तुम्हारी खातिर नारी निकेतन में रही. मांबाप का घर छोड़ा, आज भी उन की उपेक्षा सह रही हूं.’’ शिल्पी ने तुनक कर कहा.

इसी तरह के छोटेछोटे झगड़ों में एक दिन इरफान ने उसे 2 तमाचे जड़ दिए तो शिल्पी हैरान रह गई पहले तो वह कहता था कि उसे फूलों की तरह रखेगा, उस ने उस पर हाथ उठा दिया. उस ने कहा कि अगर उसे पता होता कि उस की मोहब्बत इतनी कमजोर होगी तो वह उसे कभी स्वीकार न करती.

शिल्पी को लगा कि उस ने गलती कर दी है. लेकिन अब उसे जिंदगी इरफान के साथ ही गुजारनी थी. आखिर हिम्मत कर के वह मायके गई और रोरो कर मां को अपना दुख सुनाया. उस ने कहा कि इरफान पर काफी कर्जा हो गया, जिस से वह तनाव में रहता है. मां ने बेटी का दुख सुना और उसे माफ भी कर दिया. लेकिन जब रामअवतार को पता चला कि बेटी घर आई थी तो वह गुस्से से भर उठा. उस ने पत्नी से साफ कह दिया कि जिस आदमी को उस ने दामाद माना ही नहीं, वह उस की मदद कतई नहीं कर सकता.

घर में अब आए दिन झगड़े होने लगे थे. ससुराल में शिल्पी का कोई हमदर्द नहीं था. मायके वाले भी नहीं अपनाएंगे, शिल्पी यह भी जानती थी. वह तनाव में रहने लगी. उसे लगने लगा कि जिंदगी कैद के सिवाय कुछ नहीं है.

इरफान की समझ में आ गया कि मोहब्बत का खेल बहुत हो चुका है. उसे जिंदगी को पटरी पर लाने के लिए पैसे की जरूरत थी, जिस के लिए मेहनत जरूरी थी. बेटी ने भले ही परिवार को दर्द दिया था, पर ममता मरी नहीं थी. मांबाप बेटी के लिए परेशान थे, पर वह उसे अपनाना नहीं चाहते थे.

12 दिसंबर, 2016 को रामअवतार को किसी ने फोन कर के बताया कि शिल्पी को मार दिया गया है. बेटी की मौत की खबर से रामअवतार सदमे में आ गया. उस ने तुरंत माया को यह खबर सुनाई और पत्नी के साथ शब्बीर के घर पहुंच गया, जहां मकान की ऊपरी मंजिल पर बेटी का शव पलंग पर पड़ा था. उस के गले पर जो निशान थे, उस से साफ लग रहा था कि उसे गला घोंट कर मारा गया है. बेटी की लाश देख कर वह फूटफूट कर रोने लगा.

पुलिस को भी खबर मिल गई थी. थाना छत्ता के थानाप्रभारी शैलेंद्र सिंह मय फोर्स के घटनास्थल पर पहुंच गए थे. उन्होंने रामअवतार से पूछताछ की तो उस ने बताया कि करीब सवा महीने पहले बेटी को फोन कर के बताया था कि इरफान उसे मारतापीटता है और मायके से पैसा लाने को कहता है.

बेटी ने परिवार को बड़ा जख्म दिया था, इस कारण वह बेटी से नाराज था. इसलिए उस समय उसने उस से ज्यादा बात नहीं की थी. वह यह नहीं जानता था कि इरफान उसे जान से ही मार डालेगा.

इरफान और उस के घर वाले फरार हो चुके थे. पुलिस ने रामअवतार और मोहल्ले वालों की मौजूदगी में घटनास्थल की काररवाई पूरी कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया.

रामअवतार की तरफ से थाना छत्ता में शब्बीर और उस के बेटों इरफान, जमीर, फुरकान व शाहनवाज के खिलाफ भादंवि की धारा 498ए, 304बी, 201 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट आई तो पता चला कि शिल्पी की मौत दम घुटने से हुई थी. इस से पुलिस को विश्वास हो गया कि यह हत्या का मामला था. पुलिस अब आरोपियों के पीछे लग गई. पुलिस ने आरोपियों के कई ठिकानों पर छापे मारे, लेकिन कोई भी हाथ नहीं लगा.

घटना के हफ्ते भर बाद शब्बीर पुलिस की गिरफ्त में आ गया. इस के बाद धीरेधीरे सभी आरोपी पकड़े गए. शब्बीर ने बताया था कि उस ने बहू को नहीं मारा. अगर उसे कोई परेशानी होती तो वह बेटे का विवाह हिंदू लड़की से न होने देता. उस ने उसे सम्मान के साथ घर में रहने की जगह दी.

शब्बीर के अनुसार शिल्पी की मौत में उस का कोई हाथ नहीं है. इरफान शिल्पी के साथ ऊपर के कमरे में रहता था. जबकि अन्य लोग नीचे रहते थे. चूंकि रिपोर्ट नामजद दर्ज कराई गई थी, इसलिए पुलिस ने उस का बयान ले कर उसे न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया. इस के बाद पुलिस ने एकएक कर के सभी को जेल भेज दिया.

सिर्फ इरफान पुलिस की गिरफ्त से दूर था. पुलिस ने उस की भी सरगर्मी से तलाश शुरू की तो जून, 2017 में उस ने अदालत में आत्मसमर्पण कर दिया. लेकिन उस ने अपना अपराध स्वीकार नहीं किया. उस का कहना था कि वह शिल्पी से मोहब्बत करता था. शिल्पी को खुश रखने के लिए वह मेहनत कर के पैसा कमा रहा था. उस ने खुद ही फांसी लगा कर जान दी है.

इरफान भी जेल चला गया. शिल्पी मोहब्बत में इस कदर बागी हुई कि अपनों के मानसम्मान की भी परवाह नहीं की, पर उस को यह नहीं मालूम था कि समाज के नियमों को तोड़ने वालों को समाज माफ नहीं करता.

रामअवतार भले बेटी से नाराज था, पर अपनी गुमराह बेटी को उस की मौत के बाद माफ कर चुका है, अब वह बेटी के लिए इंसाफ की लड़ाई लड़ रहा है. वह नादान बेटी को गुमराह करने वालों को माफ नहीं करना चाहता बल्कि उन्हें सजा दिलाना चाहता है.

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