Summer Special: वेट लॉस के लिए आप भी लगाते हैं खूब दौड़, तो हो जाएं सावधान

आजकल लोग वेट कम करने के लिए या हेल्थ से जुड़े किसी भी जानकारी के लिए सबसे पहले नेट पर सर्च करते हैं, लेकिन कई बार इंटरनेट पर दी गई ये जानकारी गलत भी साबित होती है. जैसे कि बताया जाता है कि वेट लॉस करने के लिए आपको अच्छी एक्सरसाइज करनी चाहिए. ये भी बताया जाता है कि आपको रनिंग करनी चाहिए और ये बात ठीक भी है, लेकिन रनिंग हर किसी के लिए अच्छी हो, ये सोचना गलत है. जी हां, बिना सोचे समझे रनिंग करना आपके ज्वाइंट्स के लिए नुकसानदायक साबित हो सकती है. इसके कारण नी-पेन, मोच, स्ट्रेस फ्रैक्चर आदि होने का डर बढ़ जाता है. अगर आप भी फिटनेस या वेट लॉस के लिए रनिंग शुरू करने जा रहे हैं तो इससे जुड़ी सभी बातों की जानकारी जरूर होनी चाहिए.

बता दें कि विशेषज्ञों के अनुसार अगर आपका वजन 90 किलो से ज्यादा है तो आपको रनिंग करने से बचना चाहिए. क्योंकि इतने वजन के साथ जब आप ​रनिंग करते हैं तो इसका सीधा असर आपके घुटनों पर पड़ता है. इससे ज्वाइंट पेन, लिगामेंट टियर जैसी परेशानियां हो सकती हैं.

रनिंग करते वक्त रखें इन खास बातों का ध्यान

1. गलत शूज पहनना

रनिंग करते वक्त शूज पहनने का ज्यादा ध्यान रखना चाहिए. लेकिन ये बहुत ही इपॉंर्टेंट है कि आप शूज सही कैरी करें. अगर आप गलत शूज पहन रहे है तो आपके पैर और घुटनों में दर्द हो सकता है. अपने पैरों के आकार के अनुसार अच्छी क्वालिटी के रनिंग शूज पहनकर ही दौड़ लगाएं. इससे पैरों की ग्रिप अच्छी रहती है और आप कई नुकसान से बच पाते हैं.

2. जल्दबाजी न करें

किसी भी चीज की जल्दबाजी ने करें. अगर आप बिगनर है तो रनिंग की जल्दी न करें. मतलब एक घंटा न दौड़े. अपने समय, दूरी और स्पीड को धीरे-धीरे बढ़ाएं. इसी के साथ बहुत लंबे कदम उठाने की कोशिश न करें, इससे घुटनों पर दबाव बढ़ता है. अगर आप बहुत जल्दी बहुत अधिक करने की कोशिश करेंगे तो इससे आपको चोट भी लग सकती है.

3. वार्म अप, कूल डाउन, स्ट्रेचिंग जरूरी

रनिंग से पहले और बाद में वार्म अप, कूल डाउन और स्ट्रेचिंग करना जरूरी है. इससे आपकी मसल्स में लचीलापन आ जाता है, जिससे आपको दौड़ने में आसानी होती है. साथ ही रिकवरी भी ठीक से हो पाती है. इन सभी के ​जरिए आप अपनी मसल्स को दौड़ने और रिलैक्स होने के लिए तैयार कर पाते हैं.

4. हाइड्रेटेड न रहना

रनिंग के टाइम पर पानी पीते रहना चाहिए. क्योकि आप डीहाइड्रेट होते है तो आपके मांसपेशियों में ऐंठन पैदा होने लगती है. इसी के साथ आपको बहुत जल्दी भी थकान होने लगती है.

मेरा बॉयफ्रेंड सेक्स करने के लिए कहता है, मैं क्या करूं?

सवाल

मैं 2 साल से एक लड़के से प्यार करती हूं. वह भी मुझे बेहद चाहता है. हमेशा मेरी इच्छाओं का सम्मान करता है. ऐसा कोई काम नहीं करता जो मुझे नागवार गुजरता हो. मगर अब कुछ दिनों से वह शारीरिक संबंध बनाने को कह रहा है पर साथ ही यह भी कहता है कि यदि तुम्हारी मरजी हो तो. मैं ने उस से कहा कि ऐसा करने से यदि मुझे गर्भ ठहर गया तो क्या होगा?

जवाब

इस पर उस का कहना है कि ऐसा कुछ नहीं होगा. कृपया राय दें कि मुझे क्या करना चाहिए?
दोस्ती में एकदूसरे की इच्छाओं को तवज्जो देना जरूरी होता है. तभी दोस्ती कायम रहती है. इस के अलावा आप का बौयफ्रैंड अभी आप का विश्वास जीतने के लिए भी ऐसा कर रहा है. जहां तक शारीरिक संबंधों को लेकर आप की आशंका है तो वह पूरी तरह सही है. यदि आप संबंध बनाती हैं तो गर्भ ठहर
सकता है, इसलिए शादी से पहले शारीरिक संबंध बनाने से हर हाल में बचना चाहिए.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
सब्जेक्ट में लिखे…  सरस सलिल- व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

नास्तिक : क्यों थी श्वेता की यह सोच

श्वेता चुलबुली, बड़बोली और खुले दिल की लड़की थी. मम्मी के दिल में एक ही बात खटकती रहती थी कि श्वेता देवधर्म, कर्मकांड वगैरह नहीं मानती थी.

तरहतरह के पकवान हम कभी भी खा, बना सकते हैं, इस के लिए किसी त्योहार की जरूरत क्यों? दीवाली के व्यंजन तो पूरे साल मिलते हैं. हम कभी भी खरीद सकते हैं, इस में कोई समस्या नहीं है? श्वेता की सोच कुछ ऐसी ही थी.

मातापिता को तो कभी कोई समस्या नहीं हुई, लेकिन उस की ससुराल वालों को होने लगी.

श्वेता का पति आकाश किसी सुपरस्टार की तरह दिखता था. औरतें मुड़मुड़ कर उसे देखती थीं और कहती थीं कि एकदम रितिक रोशन की तरह दिखता है.

श्वेता की सहेलियां उस से जलती थीं. जिम जाने और खूबसूरत दिखने वाले पति के साथ श्वेता की शादीशुदा जिंदगी बहुत अच्छी बीत रही थी.

दोनों पर मिलन की एक अलग ही धुन सवार थी.

लेकिन एक दिन आकाश ने उस से बोल ही दिया, ‘‘केवल मेरे मातापिता के लिए तुम रोज पूजा कर लिया करो… प्लीज. प्रसाद के रूप में नारियल बांटने में तुम्हें क्या दिक्कत है. नाम के लिए एक दिन व्रत रखा करो ताकि मां को तसल्ली हो कि उन की बहू सुधर गई है.’’

श्वेता गुस्से में बोली, ‘‘सुधर गई, मतलब…? नास्तिक औरतें बिगड़ी हुई होती हैं क्या? दबाव में आ कर भक्ति करना क्या सही है?

‘‘जब मुझे यह सब करना नहीं अच्छा लगता तो जबरदस्ती कैसी? मैं ने कभी अपने मायके में उपवास नहीं किया है. मुझे एसिडिटी हो जाती है इसलिए मैं कम खाती हूं, 2 रोटी और थोड़े चावल तो व्रत क्यों रखना?’’

श्वेता सच बोल रही थी. लेकिन इस बात से आकाश नाराज हो गया और धीरेधीरे उस ने श्वेता से बात करना कम कर दिया.

जब भी श्वेता की जिस्मानी संबंध बनाने की इच्छा होती तो ‘आज नहीं, मैं थक गया हूं’ कहते हुए आकाश मना कर देता. ये सब बातें अब रोज की कहानी बन गई थीं.

‘‘तुम्हारा मुझ में इंटरैस्ट क्यों खत्म हो गया? तुम्हारी दिक्कत क्या है?’’ श्वेता ने आकाश से पूछा.

बैडरूम में उस का खुला और गठीला बदन देख कर श्वेता का मन अपनेआप ही मचल जाता था, लेकिन आकाश ने साफ शब्दों में कह दिया, ‘‘तुम पहले भगवान को मानने लगो, मां को खुश करो, उस के बाद हम अपने बारे में सोचेंगे…’’

‘‘मेरा भगवान, पूजापाठ में विश्वास नहीं है, यह सब मैं ने शादी से पहले तुम्हें बताया था. जब हम दोनों गोरेगांव के बगीचे में घूमने गए थे… तुम्हें याद है?’’

‘‘मुझे लगा था कि तुम बदल जाओगी…’’

‘‘ऐसे कैसे बदल जाऊंगी. मैं

कोई मन में गुस्से की भावना रख कर नास्तिक नहीं बनी हूं, यह मेरा सालों का अभ्यास है.’’

धीरेधीरे श्वेता और उस की सास के बीच झगड़े होने लगे. श्वेता उन के साथ मंदिर तो जाती थी लेकिन बाहर ही खड़ी रहती थी, जिस पर झगड़े और ज्यादा बढ़ जाते थे.

एक बार सास ने कहा, ‘‘मंदिर के बाहर चप्पल संभालने के लिए रुकती है क्या? अंदर आएगी तो क्या हो जाएगा?’’

श्वेता ने भी तुरंत जवाब देते हुए कहा, ‘‘आप अपना काम पूरा करें, मुझे सिखाने की जरूरत नहीं है. मैं इन ढकोसलों को नहीं मानती.’’

सास घर लौट कर रोने लगीं, ‘‘मुझ से इस जन्म में आज तक किसी ने

ऐसी बात नहीं की थी. ऊपर वाला देख लेगा तुम्हें,’’ ऐसा बोलते हुए सास ने पलभर में एक पढ़ीलिखी बहू को दुश्मन ठहरा दिया.

शाम को आकाश के आने के बाद श्वेता बोली, ‘‘मैं मायके जा रही हूं, मुझे लेने मत आना. जब मेरा मन करेगा तब आऊंगी. लेकिन अभी से कुछ तय नहीं है. मायके ही जा रही हूं, कहीं भाग नहीं रही हूं. नहीं तो कुछ भी झूठी अफवाहें उड़ेंगी.’’

आकाश उस की तरफ देखता रह गया. उस की तीखी और करारी बातों से उसे थोड़ा डर लगा.

श्वेता अपने अमीर मातापिता के साथ जा कर रहने लगी. मां को यह बात अच्छी नहीं लगी, लेकिन श्वेता ने कहा, ‘‘आप थोड़ा धीरज रखो. आकाश को मेरे बिना अच्छा नहीं लगेगा.’’

आखिर वही हुआ. 15-20 दिन बीतने के बाद उस का फोन आना शुरू हो गया. पत्नी का मायके में रहने का क्या मतलब है? यह सोच कर वह बेचैन हो रहा था. उस का किया उस पर ही भारी पड़ गया. मां के दबाव में आ कर वह भगवान को मानता था.

श्वेता ने फोन काट दिया इसलिए आकाश ने मैसेज किया, ‘मुझे तुम से बात करनी है, विरार आऊं क्या?’

श्वेता के मन में भी प्यार था और उस ने  झट से हां कह दिया.

श्वेता ने कहा, ‘‘मैं ने तुम्हें भगवान को मानने के लिए कभी मना नहीं किया. पूजाअर्चना, जो तुम्हें करनी है जरूर करो, लेकिन मु   झे मेरी आजादी देने में क्या दिक्कत है. तुम्हारी मां को समझाना तुम्हारा काम है. अब तुम बोल रहे हो इसलिए आ रही हूं. अगर फिर कभी मेरी बेइज्जती हुई तो मैं हमेशा के लिए ससुराल छोड़ दूंगी…

इस तरह से श्वेता ने अपनी नास्तिकता की आजादी को हासिल कर लिया.

नसीब : वैदेही की दर्द भरी कहानी

वैदेही फार्मेसी के आखिरी साल में थी. वह मोहिते परिवार की सबसे शांत और सुशील बेटी थी. घर में कोई मेहमान भी आ जाए तो गिलास का पानी ले कर बाहर नहीं आती थी. कुछ सवालों के जवाब देने के अलावा वह कभी किसी से बात नहीं करती थी.

वैदेही पढ़ाईलिखाई में होशियार थी. देखने में भी वह खूबसूरत थी इसलिए हर कोई उस के लिए एक अच्छा रिश्ता चाहता था. घर में दादादादी थे. छोटी बहन अक्षरा 8वीं जमात में पढ़ती थी. पिता की किराना की दुकान थी और मां मालिनी खुशमिजाज. इस तरह से वैदेही का एक सुंदर परिवार था.

‘‘अरे ओ मालिनी, 8 बज गए, नाश्तापानी दोगी कि ऐसे ही भूखा मारोगी?’’

‘‘हांहां लाती हूं. हम लोग मरमर के काम करते हैं, फिर भी भूख नहीं लगती है और इन्हें चारपाई पर बैठेबैठे ही भूख लग जाती है. 2 बेटों को जन्म दिया है तो दोनों के घर जा कर रहना चाहिए न. मैं ने अकेले ठेका ले रखा है क्या इन बूढ़ेबुजुर्गों का?’’

‘‘अब चुप हो जा मां, क्या सवेरेसवेरे तुम दोनों का बड़बड़ाना शुरू हो जाता है.’’

‘‘बहू, चाय रख दे. वामन काका आए हैं.’’

‘‘12 बजे तक 4 कप चाय पी कर जाएगा यह बुड्ढा. पूरी जिंदगी बीत गई यही सब करने में.’’

‘‘बहू, चाय ला रही हो न?’’

‘‘हां, ला रही हूं बाबा.’’

दादादादी के साथ मां की होने वाली किचकिच देख कर वैदेही का शादी से मन ही उठ गया था. हम पढ़ेलिखे हैं, खुद कमाखा सकते हैं, शादी कर के दूसरे के परिवार में नौकर की तरह क्यों रहना? वैदेही शाम को कालेज से आई. मातापिता कमरे में ही बैठे थे.

‘‘क्यों न हम 4-5 दिन के लिए कहीं घूम आएं? अब तो बच्चे भी बड़े हो गए हैं.’’

‘‘मालिनी, मैं ने कितनी बार कहा है कि पैसे ले लो और बच्चों को ले कर कहीं घूमने चली जाओ. मांपिताजी को छोड़ कर मैं कहीं बाहर नहीं जा सकता हूं.’’

‘‘हां, हमेशा की तरह बहाना बनाओ. उन्हें 4-5 दिन के लिए अपने छोटे भाई के पास क्यों नहीं भेज देते?’’

‘‘मैं ऐसा नहीं करूंगा और आगे से इस मुद्दे पर किसी तरह की कोई बात नहीं होगी,’’ ऐसा बोलते हुए नितिन हाथ में पकड़ा अखबार फेंकते हुए घर से बाहर निकल गया. मालिनी हमेशा की तरह रसोई में जा कर रोने लगी.

‘‘मेरा नसीब ही फूटा है. यह बंगला, गाड़ी और पैसा होने के बावजूद कोई फायदा नहीं है. कभी थिएटर में फिल्म देखने तक नहीं गई. होटल में खाना, सैरसपाटा करना किसी तरह का कोई मजा नहीं है जिंदगी में.’’

‘‘मां, मेरी शादी होने के बाद मेरे साथ भी तो ऐसा ही होगा?’’

‘‘ऐसा नहीं है बेटी. औरत का जन्म ही दूसरों के लिए हुआ है. तुम दोनों

मेरी प्यारी बेटियां हो, यही मेरा असली सुख है.’’

मेहमानों का देखने आना, सिर पर पल्लू रख कर चलना, दहेज की मांग करना, शादी के बाद सासननद के ताने सुनना और उन के छोटेछोटे बच्चों की सेवा करना, बड़ों के पैर छूना वगैरह कितनी बकवास परंपराएं हैं.

इस के अलावा किसी की मौत हो जाने के बाद 10-10 दिन तक नातेरिश्तेदारों का जमावड़ा लगने पर सभी को खाना बना कर खिलाना वगैरह.

एक बहू को लगातार घर का काम करते हुए वैदेही ने करीब से देखा. एक बार शादी हो गई तो हम इस परंपराओं में पूरी तरह से फंस जाएंगे, जिस से छुटकारा मिलना मुश्किल है. इस से बेहतर है कि मैं शादी ही न करूं.

एक दिन दूध लेने वैदेही बाहर गई. पड़ोस के ही सार्थक से उस की टक्कर हो गई. सार्थक हैंडसम था. 10वीं के बाद डिप्लोमा कर के 2 साल से वह पुणे की एक कंपनी में नौकरी करता था. इस समय वह 2 महीने की छुट्टी ले कर गांव आया था. वैदेही उसे अच्छी लगती थी, इसलिए वह अलगअलग तरीके से उस का ध्यान खींचने की कोशिश करता था.

दूसरे दिन वैदेही कालेज जाने के लिए निकली. सार्थक भी उस के पीछेपीछे मोटरसाइकिल से गया. वैदेही ने अपनी गाड़ी के शीशे में से सार्थक को आते हुए देखा और नजरअंदाज कर के चली गई.

सार्थक पूरा दिन उस के फार्मेसी कालेज में बैठा रहा. शाम को कालेज से निकलते ही उस ने वैदेही को रोक लिया, ‘‘वैदेही, तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो. मुझ से शादी करोगी?’’

‘‘पागल हो क्या तुम? काम क्या करते हो?’’

‘‘पुणे की एक कंपनी में नौकरी करता हूं. 15,000 रुपए तनख्वाह है मेरी. तुम भी वहां 12,000 से 13,000 रुपए कमा सकती हो. सुखी संसार होगा हमारा.’’

‘‘चुप… घर वाले सुनेंगे तो मुझे ही मार डालेंगे.’’

‘‘क्यों मारेंगे? अभीअभी मेरे फ्रैंड की लव मैरिज हुई है. पहले रजिस्टर मैरिज करेंगे, फिर जान को खतरा है बता कर पुलिस स्टेशन में एफआईआर कर देंगे. कुछ नहीं होता है.’’

‘‘बहुत प्रैक्टिस किए लगते हो. चलो हटो रास्ते से.’’

‘‘तो क्या मैं हां समझ?’’

‘‘मैं ने हां बोला क्या?’’

‘‘लेकिन, न भी तो नहीं कहा अभी तुम ने.’’

वैदेही मन ही मन हंसते हुए अपनी गाड़ी पर बैठ के निकल गई. सार्थक अकसर अपनी खिड़की से उस के घर की तरफ देखता रहता था.

वैदेही के बाहर निकलने पर हाथ हिला कर इशारा करता था. मोबाइल फोन पर गाने बजाता था. उसे कालेज में जा कर गिफ्ट देता था. उस के बाहर जाते ही वह भी मोटरसाइकिल ले कर उस के पीछे लग जाता था.

‘‘तुम बस हां कह दो वैदेही. कुछ दिक्कत नहीं होगी. मेरा एक दोस्त पुणे में पुलिस विभाग में है. वह हमारी मदद करेगा. मैं तुम्हें जिंदगीभर खुश रखूंगा. तुम जैसा कहोगी वैसे ही होगा. तुम्हें कभी बिना खाए सोना नहीं पड़ेगा.

‘‘मुझ से ज्यादा तुम्हें कोई प्यार नहीं करेगा. मैं तुम्हारे लिए कुछ भी कर सकता हूं. सिर्फ तुम हां कह दो.’’

सार्थक की रोमांटिक कविताएं, मैसेज सबकुछ वैदेही को अच्छे लगते थे. दादादादी की रोजरोज की किचकिच, मांपिता के बीच आपसी मनमुटाव देख कर वह सोचने लगी, अरैंज मैरिज करने के बाद मेरे साथ भी यही होगा. ऐसे में भाग कर सार्थक से शादी कर लेने में क्या बुराई है.

इसी विचार के साथ एक दिन वैदेही सार्थक के साथ भाग कर पुणे आ गई. इस के बाद दोनों परिवारों की खूब बदनामी हुई.

सार्थक वैदेही के साथ अपने एक दोस्त के फ्लैट में रहने लगा. 10-15 दिन अच्छे से बीते. इस के बाद वैदेही नौकरी करने की जिद करने लगी.

‘‘अभी इस की जरूरत नहीं है. पैसे की कमी होगी तो मैं खुद तुम्हारे लिए नौकरी देखूंगा स्वीट हार्ट.’’

एक दिन सार्थक कोल्डड्रिंक की बोतल ले कर आया, जिसे देखते ही वैदेही ने मुंह लगाया और आधी बोतल खाली कर दी. 5-10 मिनट बाद उसे नींद आने लगी.

‘‘सार्थक, मुझे कुछ हो रहा है यार.’’

‘‘कुछ नहीं होगा. तुम बैड पर चुपचाप सो जाओ. मैं यहीं हूं.’’

दूसरे दिन जब वैदेही उठी तो देखा कि उस की बगल में कोई दूसरा लड़का सोया हुआ है. वैदेही के साथ जो हुआ, उसे वह समझ गई. वह जल्दी से कमरे से बाहर आई.

‘‘धोखेबाज, तुम ने मुझे फंसाया है. मैं तुम्हें नहीं छोड़ूंगी. पुलिस में शिकायत करूंगी,’’ वैदेही ने सार्थक से कहा.

‘‘जा, पुलिस के पास जा. वे लोग तुम्हें खड़ा भी करेंगे क्या. 10 दिन पहले वही पुलिस तुम्हें अपने मांपिता के पास जाने की कह रही थी तो तुम ने नहीं सुना.’’

‘‘कितने गिरे हुए इनसान हो तुम. एक लड़की की जिंदगी से खेलते हुए तुम्हें जरा भी शर्म नहीं आई?’’

‘‘अरे ओ लड़की, जो अपने जन्म देने वाले मांपिता की नहीं हुई तो वह भविष्य में मेरा क्या होगी? मांपिता के चेहरे पर कालिख लगाते हुए तुम्हें जरा भी लाजशर्म नहीं आई. और अब तुम मुझ से लाजशर्म की बात करती हो?’’

वैदेही फूटफूट कर रोने लगी. पुलिस के पास जाने में उसे शर्म आ रही थी. सार्थक के अलावा जिंदगी में कभी किसी पर यकीन नहीं किया था. अब मैं यहां से कहां जाऊंगी. लेकिन यहां रहूंगी तो धंधा करना पड़ेगा.

‘‘मांपिता को दुख दे कर दुनिया में कोई खुश नहीं रह सकता, यह सच है. मुझे माफ कर दो, लेकिन किसी तरह सार्थक के चंगुल से बाहर निकालो,’’ वैदेही मन ही मन खुद को कोस रही थी.

सार्थक बाहर चला गया था. थोड़ी देर बाद ही उन्मेष बैडरूम से बाहर आया.

‘‘मैं ने सब सुन लिया है. इस लफंगे के साथ घर छोड़ कर तुम आई थी. तुम ने कभी सोचा कि तुम्हारे इस बरताव से मांपिता की समाज में कितनी बदनामी होगी. जिंदगी के 20 साल साथ रहने वाले मांपिता को छोड़ कर 2 महीने की पहचान के इस गुंडेमवाली के जाल में कैसे फंस गई तुम? ऐसे में तुम्हारी पढ़ाईलिखाई का क्या फायदा है?’’

‘‘मैं सब समझ रही हूं, लेकिन अब क्या करूं?’’

‘‘तुम्हारे लिए एक प्रस्ताव है मेरे पास. मेरी बीवी के बच्चा नहीं हो सकता है. क्या तुम मुझे बच्चा दोगी? मैं जिंदगीभर तुम्हें प्यार और इज्जत दूंगा.’’

‘‘सार्थक के साथ रहने के बजाय अगर मेरी जिंदगी किसी के काम आ जाए तो इस में क्या गलत है. मैं तैयार हूं तुम्हारे साथ रहने के लिए. लेकिन, सार्थक…?’’

‘‘उसे मैं देख लूंगा. उस के मुंह पर पैसे फेंक कर मैं तुम्हें उस से आजाद करा लूंगा.’’

‘‘ठीक है, मैं तुम्हारे साथ आने के लिए तैयार हूं.’’

वैदेही बैग ले कर उन्मेष के साथ एक नए सफर पर निकल गई.

मोड़ ऐसा भी: जब बहन ने ही छीन लिया शुभा का प्यार

मां मुझ से पहले ही अपने दफ्तर से आ चुकी थीं. वह रसोईघर में शायद चाय बना रही थीं. मैं अपना बैग रख कर सीधी रसोईघर में ही पहुंच गई. मां अनमनी थीं. ऐसा उन के चेहरे से साफ झलक रहा था. फिर कुछ अनचाहा घटा है, मैं ने अनुमान लगा लिया. लड़के वालों की ओर से हर बार निराशा ही उन के हाथ लगी है. मैं ने जानबूझ कर मां की उदासी का कारण न पूछा क्योंकि दुखती रग पर हाथ धरते ही वे अपना धैर्य खो बैठतीं और बाबूजी को याद कर के घंटों रोती रहतीं.

मां ने मेरी ओर बिना देखे ही चाय का प्याला आगे बढ़ा दिया, जिसे थामे मैं बरामदे में कुरसी पर आ बैठी. मां अपने कमरे में चली गई थीं. विषाद से मन भर उठा. पिछले 4 साल से मां मेरे लिए वर की खोज में लगी थीं, लेकिन अभी तक एक अदद लड़का नहीं जुटा पाई थीं कि बेटी के हाथ पीले कर संतोष की सांस लेतीं.

मां अंतर्जातीय विवाह के पक्ष में नहीं थीं. अपने ब्राह्मणत्व का दर्प उन्हें किसी मोड़ पर संधि की स्थिति में ही नहीं आने देता था. मेरी अच्छीखासी नौकरी और ठीकठाक रूपरंग होते हुए भी विवाह में विलंब होता जा रहा था. जो परिवार मां को अच्छा लगता वह हमें अपनाने से इनकार कर देता और जिन को हम पसंद आते, उन्हें मां अपनी बेटी देने से इनकार कर देतीं.

शहर बंद होने के कारण मैं सड़क पर खड़ीखड़ी बेजार हो चुकी थी. कोई रिकशा, बस, आटोरिकशा आदि नहीं चल रहा था. घर से मां ने वनिता की मोपेड भी नहीं लाने दी, हालांकि वनिता का कालेज बंद था. मुझे दफ्तर पहुंचना था, कई आवश्यक काम करने थे. न जाती तो व्यर्थ ही अफसर की कोपभाजन बनती. इधरउधर देखा, कोई जानपहचान का न दिखा. घड़ी पर निगाह गई तो पूरा 1 घंटा हो गया था खड़ेखड़े. मैं सामने ही देखे जा रही थी. अचानक स्कूटर पर एक नौजवान आता दिखा. वह पास आता गया तो पहचान के चिह्न उभर आए. ‘यह तो शायद उदयन…हां, वही था. मेरे साथ कालेज में पढ़ता था, वह भी मुझे पहचान गया. स्कूटर रेंगता हुआ मेरे पास रुक गया.

‘‘उदयन,’’ मैं ने धीरे से पुकारा.

‘‘शुभा…तुम यहां अकेली खड़ी क्या कर रही हो?’’

‘‘बस स्टाप पर क्या करते हैं? दफ्तर जाने के लिए खड़ी थी, लेकिन लगता नहीं कि आज जा पाऊंगी?’’

‘‘आज कितने अरसे बाद दिखी हो तुम, शहर बंद न होता तो शायद आज भी नहीं…’’ कह कर वह हंसने लगा.

‘‘और तुम…बिलकुल सही समय पर आए हो,’’ कह कर मैं उस के पीछे बैठने का संकेत पाते ही स्कूटर पर बैठ गई. रास्ते भर उदयन और मैं कालेज से निकलने के बाद का ब्योरा एकदूसरे को देते रहे. वह बीकौम कर के अपना व्यवसाय कर रहा था और मैं एमकौम कर के नौकरी करने लगी थी. मेरा दफ्तर आ चुका था. वह मुझे उतार कर अपने रास्ते चला गया.

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गोराचिट्टा, लंबी कदकाठी के सम्मोहक व्यक्तित्व का स्वामी उदयन कितने बरसों बाद मिला था. कालेज के समय कैसा दुबलापतला सरकंडे सा था. मैं उसे भूल कर दफ्तर के काम में उलझ गई. होश में तब आई जब छुट्टी का समय हुआ. ‘अब जाऊंगी कैसे घर लौट कर?’ सोचती हुई बाहर निकल ही रही थी कि सामने गुलमोहर के पेड़ तले स्कूटर लिए उदयन खड़ा दिखाई दिया. उस ने वहीं से आवाज दी, ‘‘शुभा…’’

‘‘तुम?’’ मैं आश्चर्य में पड़ी उस तक पहुंच गई.

‘‘तुम्हें काम था कोई यहां?’’

‘‘नहीं, तुम्हें लेने आया हूं. सोचा, छोड़ तो आया लेकिन घर जाओगी कैसे?’’

मैं आभार से भर उठी थी. उस दिन के बाद तो रोज ही आनाजाना साथ होने लगा. हम साथसाथ घूमते हुए दुनिया भर की बातें करते. एक दिन उदयन घर आया तो मां को  उस का विनम्र व्यवहार और सौम्य  व्यक्तित्व प्रभावित कर गए. छोटी बहन वनिता बड़े शरमीले स्वभाव की थी, वह तो उस के सामने आती ही न थी. वह आता और मुझ से बात कर के चला जाता. मैं वनिता को चाय बना कर लाने के लिए कहती, लेकिन वह न आती.

एक बात मैं कितने ही दिनों से महसूस कर रही थी. मुझे बारबार लगता कि जैसे उदयन कुछ कहना चाहता है, लेकिन कहतेकहते जाने क्या सोच कर रुक जाता है. किसी अनकही बात को ले कर बेचैन सा वह महीनों से मेरे साथ चल रहा था.

एक दिन उदयन मुझे स्कूटर से उतार कर चलने लगा तो मैं ने ही उसे घर में बुला लिया, ‘‘अंदर आओ, एक प्याला चाय पी कर जाना.’’ वह मासूम बालक सा मेरे पीछेपीछे चला आया. मां घर में नहीं थीं और वनिता भी कालेज से नहीं आई थी. सो चाय मैं ने बनाई. चाय के दौरान, ‘शुभा एक बात कहूं’ कहतेकहते ही उसे जोर से खांसी आ गई. गले में शायद कुछ फंस गया था. वह बुरी तरह खांसने लगा. मैं दौड़ कर गिलास में पानी ले आई और गिलास उस के होंठों से लगा कर उस की पीठ सहलाने लगी. खांसी का दौर समाप्त हुआ तो वह मुसकराने की कोशिश करने लगा. आंखों में खांसी के कारण आंसू भर आए थे.

‘‘उदयन, क्या कहने जा रहे थे तुम? अरे भई, ऐसी कौन सी बात थी जिस के कारण खांसी आने लगी?’’

सुन कर वह हंसने लगा, ‘‘शुभा…मैं तुम्हारे बिना नहीं रह…’’ अधूरा वाक्य छोड़ कर नीचे देखने लगा और मैं शरमा कर गंभीर हो उठी और लाज की लाली मेरे मुख पर दौड़ गई.

‘‘उदयन, यही बात कहने के लिए तो मैं न जाने कब से सोच रही थी,’’ धीरे से कह कर मैं ने उस के प्रेम निवेदन का उत्तर दे दिया था. दोनों अपनीअपनी जगह चुप बैठे रहे थे. लग रहा था, इन वाक्यों को कहने के लिए ही हम इतने दिनों से न जाने कितनी बातें बस ऐसे ही करे जा रहे थे. एकदूसरे से दृष्टि मिला पाना कैसा दूभर लग रहा था.

शाम खुशनुमा हो उठी थी और अनुपम सुनहरी आभा बिखेरती जीवन के हर पल पर उतर रही थी. मौसम का हर दिन रंगीन हो उठा था. मैं और उदयन पखेरुओं के से पंख लगाए प्रीति के गगन पर उड़ चले थे. हम लोग एक जाति के नहीं थे, लेकिन आपस में विवाह करने की प्रतिज्ञा कर चुके थे.

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झरझर बरसता सावन का महीना था. चारों ओर हरियाली नजर आ रही थी. पत्तों पर टपकती जल की बूंदें कैसी शरारती लगने लगती थीं. अकेले में गुनगुनाने को जी करता था. उदयन का साथ पा कर सारी सृष्टि इंद्रधनुषी हो उठती थी.

‘‘सोनपुर चलोगी…शुभा?’’ एक दिन उदयन ने पूछा था.

‘‘मेला दिखाने ले चलोगे?’’

‘‘हां.’’

मां हमारे साथ जा नहीं सकती थीं और अकेले उदयन के साथ मेरा जाना उन्हें मंजूर नहीं था. अत: मैं ने वनिता से अपने साथ चलने को कहा तो उस ने साफ इनकार कर दिया.

‘‘पगली, घर से कालेज और कालेज से घर…यही है न तेरी दिनचर्या. बाहर निकलेगी तो मन बहल जाएगा,’’ मैं ने उसे समझा कर तैयार कर लिया था. हम तीनों साथ ही गए थे. मैं बीच में बैठी थी, उदयन और वनिता मेरे इधरउधर बैठे थे, बस की सीट पर. इस यात्रा के बीच वनिता थोड़ाबहुत खुलने लगी थी. उदयन के साथ मेले की भीड़भाड़ में हम एकदूसरे का हाथ थामे घूमते रहे थे.

उदयन लगभग रोज ही हमारे घर आता था, लेकिन अब हमारी बातों के बीच वनिता भी होती. मैं सोचती थी कि उदयन बुरा मानेगा कि हर समय छोटी बहन को साथ रखती है. इसलिए मैं ने एक दिन वनिता को किसी काम के बहाने दीपा के घर भेज दिया था, लेकिन थोड़ी देर वनिता न दिखी तो उदयन ने पूछ ही लिया, ‘‘वनिता कहां है?’’

‘‘काम से गई है, दीपा के घर,’’ मैं ने अनजान बनते हुए कह दिया. उस दिन तो वह चला गया, लेकिन अब जब भी आता, वनिता से बातें करने को आतुर रहता. यदि वह सामने न आती तो उस के कमरे में पहुंच जाता. मैं ने उदयन से शीघ्र शादी करने को कहा था, लेकिन वह कहां माना था, ‘‘अभी क्या जल्दी है शुभा, मेरा काम ठीक से जम जाने दो…’’

‘‘कब करेंगे हम लोग शादी, उदयन?’’

‘‘बस, साल डेढ़साल का समय मुझे दे दो, शुभा.’’

मैं क्या कहती, चुप हो गई…मेरी भी तरक्की होने वाली थी. उस में तबादला भी हो सकता था. सोचा, शायद दोनों के ही हित में है. अब जब भी उदयन आता, वनिता उस से खूब खुल कर बातें करती. वह मजाक करता तो वह हंस कर उस का उत्तर देती थी. धीरेधीरे दोनों भोंडे मजाकों पर उतर आए. मुझ से सुना नहीं जाता था. आखिर कहना ही पड़ा मुझे, ‘‘उदयन, अपनी सीमा मत लांघो, उस लड़की से ऐसी बातें…’’

मेरी इस बात का असर तो हुआ था उदयन पर, लेकिन साली के रिश्ते की आड़ में उस ने अपने अनर्गल बोलों को छिपा दिया था. अब वह संयत हो कर बोलता था, फिर भी कहीं न कहीं से उस का अनुचित आशय झलक ही जाता. वनिता को मेरा यह मर्यादित व्यवहार करने का सुझाव अच्छा न लगा. मैं दिन पर दिन यही महसूस कर रही थी कि वनिता उदयन की ओर अदृश्य डोर से बंधी खिंची चली जा रही है. उदयन से कहा तो वह यही बोला था, ‘‘शुभा, यह तुम्हारा व्यर्थ का भ्रम है. ऐसा कुछ नहीं है जिस पर तुम्हें आपत्ति हो.’’

छुट्टी का दिन था, मां घर पर नहीं थीं. वनिता, दीपा के घर गई थी. अकेली ऊब चुकी थी मैं, सोचा कि घर की सफाई करनी चाहिए. हफ्ते भर तो व्यस्तता रहती है. मां की अलमारी साफ कर दी, फिर अपनी और फिर वनिता की. किताबें हटाईं ही थीं कि किसी पुस्तक से उदयन का फोटो मेरे पांव के पास आ गिरा. फोटो को देखते ही मेरा मन कैसी कंटीली झाड़ी में उलझ गया था कि निकालने के सब प्रयत्न व्यर्थ हो गए. लाख कोशिशों के बावजूद क्या मैं अपने मन को समझा पाई थी, पर मेरी आशंका गलत कहां थी? वनिता शाम को लौटी तो मैं ने उसे समझाने की चेष्टा की थी, ‘‘देख वनिता, क्यों उदयन के चक्कर में पड़ी है? वह शादी का वादा तो किसी और से कर चुका है.’’

जिस बहन के मुख से कभी बोल भी नहीं फूटते थे, आज वह यों दावानल उगलने लगेगी, ऐसा तो मैं ने सोचा भी नहीं था. वनिता गुस्से से फट पड़ी, ‘‘क्यों मेरे पीछे पड़ी हो दीदी, हर समय तुम इसी ताकझांक में लगी रहती हो कि मैं उदयन से बात तो नहीं कर रही हूं.’’

‘‘मैं क्यों ताकझांक करूंगी, मैं तो तुझे समझा रही हूं,’’ मैं ने धीरे से कहा.

‘‘क्या समझाना चाहती हो मुझे, बोलो?’’

क्या कहती मैं? चुप ही रही. सोचने लगी कि आज वनिता को क्या हो गया है. इस का मुख तो ‘दीदी, दीदी’ कहते थकता नहीं था, आज यह ऐसे सीधी पड़ गई.

‘‘देख वनिता, तुझे क्या मिल जाएगा उदयन को मुझ से छीन कर,’’ मैं ने सीधा प्रश्न किया था.

‘‘किस से? किस से छीन कर?’’ वह वितृष्णा से भर उठी थी, ‘‘मैं ने किसी से नहीं छीना उसे, वह मुझे मिला है. फिर तुम उदयन को क्यों नहीं रोकतीं? मैं बुलाती हूं क्या उसे?’’ उस ने तड़ाक से ये वाक्य मेरे मुख पर दे मारे. अंधे कुएं में धंसी जा रही थी मैं. मां बुलाती रहीं खाने के लिए, लेकिन मैं सुनना कहां चाहती थी कुछ… ‘‘मां, सिर में दर्द है,’’ कह कर किसी तरह उन से निजात पा गई थी, लेकिन वह मेरे बहानों को कहां अंगीकार कर पाई थीं.

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‘‘शुभा, क्या हुआ बेटी, कई दिन से तू उदास है.’’

मेरी रुलाई फूट पड़ी थी. रोती रही मैं और वे मेरा सिर दबाती रहीं. क्या कहती मां से? कैसे कहती कि मेरी छोटी बहन ने मेरे प्यार पर डाका डाला है…और क्या न्याय कर पातीं वे इस का. उन के लिए तो दोनों बेटियां बराबर थीं.

वनिता ने मेरे साथ बोलचाल बंद कर दी थी. उदयन ने भी घर आना छोड़ दिया था. हम दोनों बहनों की रस्साकशी से तंग आ कर वह किनारे हो गया था. मेरी रातों की नींद उड़ गई थी. अजीब हाल था मेरा. रुग्ण सी काया और संतप्त मन लिए बस जी रही थी मैं. दफ्तर में मन नहीं लगता था और घर में वनिता का गरूर भरा चेहरा देख कर कितने अनदेखे दंश खाए थे अपने मन पर, हिसाब नहीं था मेरे पास. तनाव भरे माहौल को मां टटोलने की कोशिश करती रहतीं, लेकिन उन्हें कौन बताता.

‘‘वनिता, तू ने मुझ से बोलना क्यों बंद कर रखा है?’’ एक दिन मैं हारी हुई आवाज में बोली थी. सोचा, शायद सुलह का कोई झरोखा मन के आरपार देखने को मिल जाए, समझानेबुझाने से वनिता रास्ते पर आ जाए क्योंकि मुझे लगता था कि मैं उदयन के बिना जी नहीं पाऊंगी.

‘‘क्या करोगी मुझ से बोल कर, मैं तो उदयन को छीन ले गई न तुम से.’’

‘‘क्या झूठ कह रही हूं?’’

‘‘बिलकुल सच कहती हो, लेकिन मेरा दोष कितना है इस में, यह तुम भी जानती हो,’’ उस का सपाट सा उत्तर मिल गया मुझे.

‘‘तो तू नहीं छोड़ेगी उसे?’’ मैं ने आखिरी प्रश्न किया था.

‘‘मुझे नहीं पता मैं क्या करूंगी?’’ कहती हुई वह घर से बाहर हो गई.

मैं ने इधरउधर देखा था, लेकिन वह कहीं नजर न आई. मुझे डर लगने लगा था. दौड़ कर मैं दीपा के घर पहुंची. वहां जा कर जान में जान आई क्योंकि वनिता वहीं थी.

‘‘तुम दोनों बहनों को क्या हो गया है? पागल हो गई हो उस लड़के के पीछे,’’ दीपा क्रोध में बोल रही थी. वह मुझे समझाती रही, ‘‘देखो शुभा, उदयन वनिता को चाहने लगा है और यह भी उसे प्यार करती है. ऐसी स्थिति में तू रोक कैसे सकती है इन्हें? पगली, तू कहां तक रोकबांध लगाएगी इन पर? यदि तू उदयन से विवाह भी कर लेगी तब भी इन का प्यार नहीं मिट पाएगा बल्कि और बढ़ जाएगा. जीवन भर तुझे अवमानना ही झेलनी पड़ेगी. तू क्यों उदयन के लिए परेशान है? वह तेरे प्रति ईमानदार ही होता तो यह विकट स्थिति आती आज?’’

रात भर जैसे कोई मेरे मन के कपाट खोलता रहा कि मृग मरीचिका के पीछे कहां तक दौड़ूंगी और कब तक? उदयन मेरे लिए एक सपना था जो आंख खुलते ही विलीन हो गया, कभी न दिखने के लिए.

एक दिन मां ने कहा, ‘‘बेटी, उदयन डेढ़ साल तक शादी नहीं करना चाहता था, अब तो डेढ़ साल भी बीत गया?’’ उन्होंने अंतर्जातीय विवाह की मान्यता देने के पश्चात चिंतित स्वर में पूछा था.

‘‘मां, अब करेगा शादी…वह वादा- खिलाफी नहीं करेगा.’’

शादी की तैयारियां होने लगी थीं. मैं ने दफ्तर से कर्ज ले लिया था. मां भी बैंक से अपनी जमापूंजी निकाल लाई थीं. कार्ड छपने की बारी थी. मां ने कार्ड का विवरण तैयार कर लिया था, ‘शुभा वेड्स उदयन.’

मैं ने मां के हाथ से वह कागज ले लिया. वह निरीह सी पूछने लगीं, ‘‘क्यों, अंगरेजी के बजाय हिंदी में कार्ड छपवाएगी?’’

‘‘नहीं, मां नहीं, आप ने तनिक सी गलती कर दी है…’’ ‘वनिता वेड्स उदयन’ लिख कर वह कागज मैं ने मां को लौटा दिया.

‘‘क्या…? यह क्या?’’ मां हक्की- बक्की रह गई थीं.

‘‘हां मां, यही…यही ठीक है. उदयन और वनिता की शादी होगी. मेरी मंजिल तो अभी बहुत दूर है. घबराते नहीं मां…’’ कह कर मैं ने मां की आंखों से बहते आंसू पोंछ डाले.

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प्रेग्नेंसी एंजॉय कर रही हैं Deepika Padukone, पति रणवीर सिंह के साथ शेयर कीं फोटो

बौलीवुड के फेवरेट और मशहूर कपल रणवीर सिंह और दीपिका पादुकोण इन दिनों अपने आने वाले बेबी को लेकर सुर्खियों में बने हुए है. एक्ट्रेस अपनी प्रेग्नेंसी पीरियड को एन्जॉय कर रही हैं. एक्ट्रेस ने इसकी जानकारी खुद सोशल मीडिया पर पोस्ट करके दी थीं. जिसके बाद फैंस की खुशी का ठिकाना ही नहीं था, लेकिन अब एक्ट्रेस पहली बार बेबी बंप के साथ बाहर स्पॉट हुई. जिसकी वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है.

 

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आपको बता दें कि दोनों जल्द ही माता-पिता बनने वाले है. दोनों ही पेरेंट्स बनने के पीरियड को खूब एन्जॉय कर रहे हैं. एक्ट्रेस इसी साल सितंबर में अपने बेबी का वेलकम करेंगी. जिसकी वजह से वे इन दिनों मीडिया की लाइमलाइट में बनी हुई है लेकिन हाल में दीपिका और रणवीर वेकेशन पर निकले है, जिन्हें मीडिया ने स्पॉट किया और दीपिका को बेबी बंप के साथ कैमरे में कैप्चर किया. ये फोटो देख फैंस खुश हो गए हैं.

सोशल मीडिया पर बेबी बंप के साथ दीपिका पादुकोण की फोटो खूब वायरल हो रही है फैंस इस वीडियो पर जमकर कमेंट कर रहे है. जो देख रहा है हैरानी के साथ साथ खुश भी है. वीडियो में दीपिका पादुकोण स्टेयर से नीचें उतरती हुई नजर आ रही है. बता दें कि इस फोटो में एक्ट्रेस ने ऑवर साइज टीशर्ट और डेनिम पहनी हुई है. एक्ट्रेस ने अपना कूल लुक बालों का बन और आंखों पर चश्मा लगाकर पूरा किया है. इस फोटो में दीपिका का बेबी बंप साफ नजर आ रहा है. दीपिका के पीछे ही व्हाइट आउटफिट में रणवीर सिंह भी हैं, जिन्होंने अपना चेहरा नीचे कर रखा है. बता दें कि अब तक ये जानकारी नहीं मिली है कि ये फोटो किस जगह की है, लेकिन फैंस दीपिका की इस फोटो पर खूब प्यार लूटा रहे है.

 

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दीपिका पादुकोण और रणवीर सिंह के वर्कफ्रंट की बात करें तो दोनों ही रोहित शेट्टी की फिल्म सिंघम अगेन में दिखेंगे. इस फिल्म के कुछ पोस्टर दीपिका और रणवीर ने शेयर भी किए हैं. इस बार फिल्म में अजय देवगन, अक्षय कुमार, अर्जुन कपूर, करीना कपूर, टाइगर श्रॉफ के अलावा और भी कई एक्टर्स होने वाले हैं. ये तमाम सेलेब्स इस एक्शन फिल्म में अलगअलग रोल निभाएंगे हैं.

शाहरुख खान ने पृथ्वी शॉ की रुमर्ड गर्लफ्रेंड को किया Hug, वीडियो ने मचाया बवाल

इन दिनों आईपीएल फीवर हर किस के सिर चढ़ कर बोल रहा है. क्रिकेट के फैंस सिर्फ मैच पर नजर गड़ाए हुए है. वही, आईपीएल में शाहरुख खान की केकरआर भी अच्छा खेलती हुई नजर आ रही है. इसी बीच शाहरुख खान ने स्टेडियम में कुछ ऐसा कर दिया कि उसका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया है.

 

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बता दें कि ऐसा पहली दफा नहीं है अब जब शाहरुख ने स्टेडियम कुछ ऐसा किया हो जो मीडिया की लाइमलाइट में न छाया हो. शाहरुख खान जब भी स्टेडियम में जाते हैं तो कुछ ऐसा करते हैं जिसकी हर तरफ चर्चा होती है. इस बार भी कुछ ऐसा ही हुआ है. जी हां, हाल ही में हुए आईपीएल मैच के दौरान शाहरुख खान ने क्रिकेटर पृथ्वी शॉ की रुमर्ड गर्लफ्रेंड से कुछ इस तरह मुलाकात की है जिसके बाद उनका वीडियो तेजी से वायरल हो गया है.


दरअसल, कोलकता नाइट राइडर्स और दिल्ली कैपिटल मैच के बाद शाहरुख खान स्टैडियम में पहुंचे. यहां उनकी मुलाकात पृथ्वी शॉ की रुमर्ड गर्लफ्रेंड निधि तापड़िया से हुई. निधि को देखते ही किंग खान ने उन्हें गले से लगा लिया. इसके बाद उनसे खूब सारी बातें भी की. निधि भी शाहरुख खान से मिलकर इतनी खुश नजर आईं कि उन्होंने अपना और शाहरुख का वीडियो सोशल मीडिया पर भी पोस्ट किया.

वीडियो को पोस्ट करते हुए निधि ने कैप्शन में लिखा – ‘मैं अगर कहूं तुमसा कोई…कायनात में नहीं है कहीं.’ इस वीडियो के बैकग्राउंड में भी यहीं गाना बज रहा है. इतना ही नहीं, इस वीडियो में फैंस कमेंट करते हुए भी दिख रहे है. एक यूजर ने लिखा है- ‘जिस तरह किंग खान ने हग किया और उसके सिर पर अपना हाथ रखा वो दिखाता है कि वो अपने से छोटे को किस तरह से इज्जत देते हैं.’ एक और यूजर ने लिखा- ‘मैं SRK का हग फील कर सकती हूं.’ एक और यूजर ने कमेंट किया- ‘शाहरुख खान वो आदमी है जो हर औरत अपनी जिंदगी में चाहती है.

बता दें, कि निधि तपाड़िया पेशे से एक मॉडल और एक्ट्रेस हैं. निधि का नाम पिछले कई समय से क्रिकेटर पृथ्वी शॉ संग जुड़ता रहा है. दोनों को कई बार एक साथ स्पॉट भी किया गया. हालांकि, दोनों ने खुलकर अभी तक अपने रिश्तों को लेकर कोई ऑफिशियल अनाउंसमेंट नहीं दी है.

पिता बनने से पहले खुद का जरूर करें मोटिवेट, ये है टिप्स

पिता बनने का हर किसी का सपना होता है, जिसे लेकर पुरुष काफी एक्साइटेड होते हैं, लेकिन कुछ लोगों के मन में इसे लेकर काफी घबराहट होने लगती है. क्योंकि इससे जरूरी जुड़ी जिम्मेदारीयों का स्वीकार करना इतना असान नहीं होता है. लेकिन इस जिम्मेदारी से पिछे हटना कोई सोल्यूशन नहीं है. इसलिए जरूरी है कि आप खुद को मोटिवेट करें, लेकिन खुद को मोटिवेट कैसे किया जाए ये जानना भी जरूरी है. तो आज हम इस आर्टिकल में ये बताएंगे कि आप पहली बार पिता बनने पर अपने आपको कैसे मोटिवेट करें.

1. पिता बनने का सही समय

पिता बनने के लिए सही उम्र क्या है? आप इसके लिए मेडिकल साइंस के आधार पर पहले ही पूरी जानकारी कर लें. इसके बाद बारी आती है खुद को आर्थिक और मानसिक रूप से तैयार करने की. शादी के बाद अपनी पार्टनर के साथ मिलकर इस बारे में चर्चा करें. आपकी पत्नी के हां कहने से आपका मनोबल और बढ़ जाएगा. आप इसके लिए पहली बार पिता बनने वाले एक प्रोफेसर की फादरहुड स्टोरी से भी काफी कुछ सीख सकते हैं.

2. पिताओं पर आधारित हिंदी फिल्में

आप पिता बनने से पहले की तैयारी को और भी नजदीक से देखना चाहते हैं तो कुछ फादरहुड फिल्में देखें. इससे भी आपको आइडिया मिल सकता है. यूं तो हम फिल्मों की कई बातें अपने जीवन में उतारने की कोशिश करते हैं, ऐसे में फादरहुड मूवी से भी काफी कुछ सीख सकते हैं. जैसे कि फरहान अख्तर और विद्या बालन की फिल्म ‘शादी के साइड इफेक्ट्स’ (Shaadi Ke Side Effects) में पिता बनने से पहले और बाद के जीवन को अच्छी तरह समझ सकते हैं. इसमें हर चीज को बेहतरीन तरीके से समझाया गया है. इस मूवी से जरूर आपका कंफ्यूजन दूर हो जाएगा. इसके बाद शायद आप भी फरहान की तरह गलती करने से बच जाएं.

3. रियल फादरहुड स्टोरी

अगर आप यह मानते हैं कि रील और रियल लाइफ में बहुत अंतर होता है, तो कुछ रियल फादरहुड स्टोरी ही पढ़ लीजिए. कुणाल खेमू की फादरहुड जर्नी देख लें. इसके अलावा इन बॉलीवुड एक्टर्स के पिता का संघर्ष के बारे में पढ़ें, जिन्होंने अपने बच्चों के लिए क्या कुछ नहीं किया. इसके अलावा इन मजदूर पिताओं के आईएएस बेटों की कहानी पढ़ लें. क्या अब भी आप पिता बनने से डर रहे हैं या पिता बनने को बोझ मान रहे हैं?

4. फैमिली काउंसलर से मिलें

आप गूगल में फैमिली काउंसलर नियर मी सर्च करें. अपनी सुविधानुसार फैमिली काउंसर से ऑनलाइन या ऑफलाइन फादरहुड टिप्स ले सकते हैं. शायद आपके लिए उनकी सलाह कारगर साबित हो.

अगर आप पिता भी बनने के बार रिलेक्स रहना चाहते हैं, तो पिता बनने से पहले ये सारी चीजें कर लें. इन बातों को जानकर आप जब अगले बच्चे की प्लानिंग करेंगे तो शायद आपको, न तो किसी फैमिली काउंसर की और न ही किसी आर्टिकल की जरूरत पड़ेगी. इस बारे में ज्यादा जानकारी के लिए मेंसएक्सपी का फादरहुड सेक्शन विजिट करें.

मेरी शादी मेरे बौयफ्रेंड से नहीं हो पाई और वह अब भी मेरे पीछे पड़ा है, मैं क्या करूं?

सवाल
मैं जिस लड़के से प्यार करती थी, उस से मेरी शादी नहीं हो पाई. हम दोनों की अलग अलग शादी हो गईं. लेकिन वह अब भी मेरे पीछे पड़ा रहता है और न मिलने पर जान देने की धमकी देता है. क्या करूं?

जवाब
अगर उसे आप से बहुत प्यार था, तो हर हालत में उसे आप से ही शादी करनी चाहिए थी. अब चूंकि ऐसा नहीं हुआ, तो आप उसे भूल कर पूरी तरह पति का ही खयाल रखें. वह जान कतई नहीं देगा. अलबत्ता, उस के चक्कर में आप अपने पति का यकीन खो सकती हैं.

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सुरक्षित सेक्स के इन खतरों के बारे में भी जानिए

हम सभी की तरह मार्केटिंग प्रोफेशनल प्रिया चौहान को भी पूरा भरोसा था कि कंडोम का इस्तेमाल उन्हें हर तरह की सेक्स से फैलनेवाली बीमारियों (एसटीडीज) से महफूज रखेगा. आखिरकार इस बात को लगभग सभी स्वीकार करने लगे हैं. वे तब अचरज से भर गईं, जब उन्हें वेजाइनल हिस्से में लालिमा और जलन की वजह से त्वचा विशेषज्ञ के पास जाना पड़ा.

‘‘डौक्टर ने मुझे बताया कि मुझे सिफलिस का संक्रमण हुआ है, जो एक तरह की एसटीडी है,’’ गायत्री बताती हैं. ‘‘मुझे लगता था कि कंडोम मुझे इस तरह की बीमारियों से सुरक्षित रखता है और जलन की वजह के बारे में मैं सोचती थी कि शायद मैं पर्याप्त मात्रा में पानी नहीं पी रही हूं.’’

ये चुंबन से भी हो सकता है

गायत्री और उनके बौयफ्रेंड को कुछ ब्लड टेस्ट कराने कहा गया और ऐंटीबायोटिक्स दिए गए, ताकि सिफलिस के वायरस को फैलने से रोका जा सके. ये वो सबसे आम एसटीडी है, जिसे रोकने में कंडोम सक्षम नहीं है.

सेक्सोलौजिस्ट डा. राजीव आनंद, जो कई जोड़ों को कंडोम और एसटीडीज से जुड़े इस मिथक की सच्चाई बता चुके हैं, कहते हैं कि अधिकतर लोग कंडोम को एसटीडीज से बचने का सबसे सुरक्षित तरीका मानते हैं, लेकिन कुछ इन्फेक्शंस ऐसे हैं, जो ओरल सेक्स या चुंबन के जरिए भी फैल सकते हैं.

‘‘ये भ्रांति शायद इसलिए है कि एड्स से जुड़ी जानकारी के केंद्र में कंडोम ही है. हालांकि यह एड्स की रोकथाम में कारगर है, लेकिन यह कुछ एसटीडीज की रोकथाम में कारगर नहीं है,’’

वे कहते हैं. ‘‘कंडोम प्रेगनेंसी और कुछ एसटीडीज से बचाव करता है, लेकिन हरपीज वायरस के इन्फ़ेक्शन से बचाने में यह कारगर नहीं है. यह एचपीवी (ह्यूमन पैपिलोमा वायरस) और कुछ फंगल इन्फ़ेक्शंस, जो त्वचा के उन हिस्सों के संपर्क के कारण फैलते हैं, जो कंडोम से नहीं ढंके हैं, से भी बचाव नहीं कर पाता.’’

कंडोम के इस्तेमाल से शारीरिक स्राव का विनिमय तो रुक जाता है, लेकिन हरपीज, एचपीवी और गोनोरिया आदि होने की संभावना बनी रहती है.

इस खतरे को कम करें

अपने साथी को अच्छी तरह जानना तो जरूरी है ही, पर ऐसे लोगों की संख्या को सीमित रखें, जिनसे आप सेक्शुअल संबंध रखती हैं, ताकि आप एसटीडीज के खतरे से बच सकें. यदि आप किसी नए साथी के साथ संबंध बना रही हैं तो उसका चेकअप जरूर कराएं.

‘‘यह महत्वपूर्ण है कि आप अपने साथी से चेकअप कराने को कहें और उसकी रिपोर्ट्स देखें. मुझे पता है कि ये थोड़ा अटपटा लगेगा, लेकिन हमें समय के साथ चलना होगा,’’ कहती हैं रश्मि बंसल, जो दो वर्षों तक लिव-इन रिश्तों में थीं. ‘‘यदि वह आपको सच में पसंद करता है तो ऐसा करने में उसे कोई समस्या नहीं होगी.’’ इसके अलावा हेपेटाइटिस बी और एचपीवी के लिए वैक्सीन लेना भी अच्छा रहता है.

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